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कककक कक कककक

चाह िमटी, िचंता िमटी मनवा बेपरवाह ।


िजसको कुछ नही चािहए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुमहार से, तु कया रौदे मोय ।
एक िदन ऐसा आएगा, मै रौदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, िफरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
ितनका कबहुँ ना िनंदये, जो पाव तले होय ।
कबहँु उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुर गोिवंद दोनो खड़े, काके लागूं पाय ।
बिलहारी गुर आपनो, गोिवंद िदयो िमलाय ॥
सुख मे सुिमरन ना िकया, दु :ख मे करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फिरयाद ॥
साई इतना दीिजये, जा मे कुटुम समाय ।
मै भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सीचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुर को कहते और ।
हिर रठे गुर ठौर है, गुर रठे नही ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृषणा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, िदवस गंवाया खाय ।
हीरा जनम अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख मे सुिमरन सब करे सुख मे करै न कोय।
जो सुख मे सुिमरन करे दुःख काहे को होय ॥
सुख मे सुिमरन ना िकया, दु :ख मे िकया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फिरयाद ॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे िफरे पछताओगे, पाण जािहं जब छू ट ॥
जाित न पूछो साधु की, पूिछ लीिजए जान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो मयान ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सीचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
बडा हुआ तो कया हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अित दूर ॥
पाच पहर धनधे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हिर नाम िबन, मुिकत कैसे होय ॥
कबीरा सोया कया करे, उिठ न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेगे, पड़ी रहेगी मयान ॥
जग मे बैरी कोई नही, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥
जहा काम तहा नाम निहं, जहा नाम निहं वहा काम ।
दोनो कबहूँ निहं िमले, रिव रजनी इक धाम ॥
कामी, कोधी, लालची, इनसे भिकत न होय ।
भिकत करे कोइ सूरमा, जाित वरन कुल खोय ॥
साधु ऐसा चािहए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गिह रहै थोथा देई उडाय॥
जो तोको काटा बुवै तािह बोव तू फूल।
तोिह फूल को फूल है वाको है ितरसुल॥
उठा बगुला पेम का ितनका चढ़ा अकास।
ितनका ितनके से िमला ितन का ितन के पास॥
सात समंदर की मिस करौ लेखिन सब बनराइ।
धरती सब कागद करौ हिर गुण िलखा न जाइ॥
साधू गाठ न बाधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब मागे तब देय॥

कककक कक ककककककककक-Kabir Ki Kundaliyan


माला फेरत जुग गया िफरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर धुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रप िमला हिर मुरली वाला
कहते दास कबीर माला पलाद ने फेरी
धर नरिसंह का रप बचाया अपना चेरो
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आया है िकस काम को िकया कौन सा काम


भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत िबसारी
मािलक के दरबार िमलै तुमको दुख भारी
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चलती चाकी देिख के िदया कबीरा रोय


दो पाटन के बीच मे सािबत बचा न कोय
सािबत बचा न कोय लंका को रावण पीसो
िजसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
किहते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
िजनदा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
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किबरा खड़ा बाजार मे सबकी मागे खैर


ना काहू से दोसती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर जान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मािह झूठ को फोड़े भंडा
िबन पैसे िबन दाम जान का मारै डंडा

कककक कक कककक - Raheem Ke Dohe


एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रिहमन मूलिहं सीिचबो, फूलै फलै अगाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो िदन रैन।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन॥
अब रहीम मुसिकल परी, गाढ़े दोऊ काम।
साचे से तो जग नही, झूठे िमलै न राम॥
गरज आपनी आप सो रिहमन कही न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥
छमा बड़न को चािहये, छोटन को उतपात।
कह ‘रहीम’ हिर का घटयौ, जो भृगु मारी लात॥
तरवर फल निहं खात है, सरवर िपयिह न पान।
किह रहीम पर काज िहत, संपित सँचिह सुजान॥
खीरा को मुंह कािट के, मिलयत लोन लगाय।
रिहमन करए मुखन को, चिहयत इहै सजाय॥
जो रहीम उतम पकृित, का किर सकत कुसंग।
चनदन िवष वयापत नही, लपटे रहत भुजगं ॥
जे गरीब सो िहत करै, धिन रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृषण िमताई जोग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, निहं रहीम घिट जािह।
िगिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नािह॥
खैर, खून, खासी, खुसी, बैर, पीित, मदपान।
रिहमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
टू टे सुजन मनाइए, जो टू टे सौ बार।
रिहमन िफिर िफिर पोिहए, टू टे मुकताहार॥
िबगरी बात बने नही, लाख करो िकन कोय।
रिहमन िबगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेिह।
ये तीनो तब ही गये, जबिह कहा कछु देिह॥
चाह गई िचंता िमटी, मनुआ बेपरवाह।
िजनको कछु निह चािहये, वे साहन के साह॥
रिहमन देख बड़ेन को, लघु न दीिजये डािर।
जहा काम आवै सुई, कहा करै तलवािर॥
माली आवत देख के, किलयन करे पुकािर।
फूले फूले चुिन िलये, कािल हमारी बािर॥
रिहमन वे नर मर गये, जे कछु मागन जािह।
उनते पिहले वे मुये, िजन मुख िनकसत नािह॥
रिहमन िवपदा ही भली, जो थोरे िदन होय।
िहत अनिहत या जगत मे, जािन परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो कया हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही, फल लागे अित दूर॥
रिहमन चुप हो बैिठये, देिख िदनन के फेर।
जब नीके िदन आइहै, बनत न लिगहै देर॥
बानी ऐसी बोिलये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
मन मोती अर दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना िमले, कोिटन करो उपाय॥
वे रहीम नर धनय है, पर उपकारी अंग।
बाटनवारे को लगै, जयौ मेहदी को रंग॥
रिहमह ओछे नरन सो, बैर भली ना पीत।
काटे चाटे सवान के, दोउ भाित िवपरीत॥
रिहमन धागा पेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टू टे से िफर ना जुड़े, जुड़े गाठ पिर जाय॥
रिहमन पानी रािखये, िबन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

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