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िनिध
मु ानकोश िविकपीिडया से
माना जाता है िक नव िनिधयों म केवल खव िनिध को छोड़कर शेष 8 िनिधयां पि नी नामक िव ा के िस होने पर ा हो
जाती ह, लेिकन इ ा करना इतना भी सरल नहीं है ।
नव िनिधयों का िववरण
1. प िनिध
प िनिध के ल णों से संप मनु सा क गुण यु होता है , तो उसकी कमाई गई संपदा भी सा क होती है । सा क
तरीके से कमाई गई संपदा से कई पीिढ़यों को धन-धा की कमी नहीं रहती है । ऐसे सोने-चां दी र ों से संप होते ह
और उदारता से दान भी करते ह।
2. महाप िनिध
महाप िनिध भी प िनिध की तरह सा क है । हालां िक इसका भाव 7 पीिढ़यों के बाद नहीं रहता। इस िनिध से संप
भी दानी होता है और 7 पीिढयों तक सुख ऐ य भोगता है ।
3. नील िनिध
नील िनिध म स और रज गुण दोनों ही िमि त होते ह। ऐसी िनिध ापार ारा ही ा होती है इसिलए इस िनिध से संप
म दोनों ही गुणों की धानता रहती है । इस िनिध का भाव तीन पीिढ़यों तक ही रहता है ।
4. मुकंु द िनिध
मुकुंद िनिध म रजोगुण की धानता रहती है इसिलए इसे राजसी भाव वाली िनिध कहा गया है । इस िनिध से संप
या साधक का मन भोगािद म लगा रहता है । यह िनिध एक पीढ़ी बाद ख हो जाती है ।
5. नंद िनिध
नंद िनिध म रज और तम गुणों का िम ण होता है । माना जाता है िक यह िनिध साधक को लंबी आयु व िनरं तर तर ी दान
करती है । ऐसी िनिध से संप अपनी तारीफ से खुश होता है ।
6. मकर िनिध
मकर िनिध को तामसी िनिध कहा गया है । इस िनिध से संप साधक अ और श को सं ह करने वाला होता है । ऐसे
का राजा और शासन म दखल होता है । वह श ुओं पर भारी पड़ता है और यु के िलए तैयार रहता है । इनकी मृ ु
भी अ -श या दु घटना म होती है ।
7. क प िनिध
क प िनिध का साधक अपनी संपि को छु पाकर रखता है । न तो यं उसका उपयोग करता है , न करने दे ता है । वह सां प
की तरह उसकी र ा करता है । ऐसे धन होते ए भी उसका उपभोग नहीं कर पाता है ।
8. शंख िनिध
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9/25/2020 िनिध - िविकपीिडया
9. खव िनिध
यह साम ी ि येिटव कॉम ऍटी ूशन/शेयर-अलाइक लाइसस के तहत उपल है ; अ शत लागू हो सकती ह। िव ार से जानकारी हे तु दे ख
उपयोग की शत
https://hi.wikipedia.org/wiki/िनिध 2/2