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‫ترجمان االسالم‬

‫مکتبہ سیّد احمد شہید رح‬ सुरह्तुल अस्र 20-02-


2021

ِ ‫أَعـو ُذ بِاهللِ ِم َن ال َّشي‬....


‫ْـطان الرَّجيـم‬
‫هّٰللا‬
ِ ‫۞ بِس ِْم ِ الرَّحْ مٰ ِن الر‬
‫َّحي ِْم‬
۱﴿ۙ ‫ص ِر‬ۡ ‫﴾ َو ۡال َع‬
۲﴿ۙ ‫ان لَفِ ۡی ُخ ۡس ٍر‬َ ‫﴾اِ َّن ااۡل ِ ۡن َس‬
۳﴿٪ ‫اص ۡوا بِالص َّۡب ِر‬ ِّ ‫اص ۡوا بِ ۡال َح‬
َ ‫ق َو تَ َو‬ َ ‫ت َو تَ َو‬ ‫صلِ ٰح ِـ‬ّ ٰ ‫﴾اِاَّل الَّ ِذ ۡی َن ٰا َمنُ ۡوا َو َع ِملُوا ال‬
 ज़माने की क़सम!
बेशक इंसान बहुत बड़े नक
ु सान में है ।
सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए, और नेक आमाल करते रहे , और एक-दस
ू रे को
हक़ की नसीहत और सब्र की नसीहत करते रहे ।

ये सूरह उन छोटी सूरतों में से है जो अक्सर नमाजों में पढ़ी जाती है । ये बहुत ही अहम
सबक दे ती है ।
समझ का तकाज़ा है कि अल्लाह के पैग़ाम का पूरा इल्म हासिल करें और उसी हिसाब
से अपनी पूरी ज़िन्दगी ढाल दें ।
सूरत का सबक क्या है ?
वक्त तेज़ी से बीत रहा है और जो लोग बेपरवाही बरत रहे हैं वो बहुत बड़े नक
ु सान में
हैं। चाहे एक आदमी हो या पूरी कौम, सब बर्बाद होने वाले हैं। जब से दनि
ु या बनाई गई
है , ज़माना गवाह है कि जिस ने भी गफलत बरती, तबाह हो गया। लेकिन कुछ लोग हैं
जो इस तबाही से बच जाएंगे। ये सूरत कहती है कि बर्बादी से वही बचें गे जो लोग ईमान
लाएंगे, नेक अमल करें गे, एक दस
ू रे को हक यानी इस्लाम की दावत दें गे और समझने
वाली बात कि जब इस्लाम की दावत दी जाएगी तो शैतान के चेले हाथ पैर मारें गे, इस
वजह से ज़ल्
ु म के पहाड़ ईमान वालों पर किया जाएगा तो ईमान वालों को फर्ज़ है कि वो
मजबत
ू ी के साथ इस्लाम पर जमे रहें । ईमान और नेक काम आदमी को एक मजबत

1
लोहे की कड़ी बना दे ते हैं, ईमान की मज़बूती और ज़्यादा से ज़्यादा नेक काम ही कड़ियों
के ठोस होने का पता दें गे। लेकिन अकेली कड़ी चाहे जितनी मज़बत
ू हो, उससे ज़्यादा
काम नहीं लिया जा सकता। काम तो ज़ंजीर से लिया जाता है ।

जब ये ईमान वाले एक दस
ू रे को इस्लाम पर मर मिटने की दावत दे ते रहें गे तो परू ी
दनि
ु या की मज़बूत कड़ियां मिलकर एक मज़बूत ज़ंजीर बन कर उभरें गे। जब कोई कड़ी
कमज़ोर पड़ेगी तो दस
ू री कड़ी उसको संभाल लेगी। ज़ंजीर की एक एक कड़ी शैतान और
उसके दोस्तों से भिड़ने को तैयार होगी। इस तरह पूरी दनि
ु या के ईमान वाले एक ज़ंजीर
की तरह अल्लाह के हुक्म की पाबंदी करें गे। यही वो इलाज है जो कुरान बताता है , और
जिसपर चलकर सहाबा (रजि) ने दनि
ु या में जालिमों की बिसात लपेटी थी और मौत के
बाद की ज़िन्दगी भी अपने नाम करी।
ये समझने के बाद अब ईमान, नेक काम, हक़ और सब्र को समझना चाहिए।
ये चारों लफ्ज़ इतने ज़्यादा बोले सुने जाते हैं कि इन सब का एक धध
ुं ला सा मतलब तो
हमारी समझ में आता है लेकिन एक ठोस मतलब क्या होता है , इससे हम बेखबर है ।
कोशिश करते है कि ईमान, नेक काम , हक़ और सब्र की नसीहत के बारे में कुरान क्या
कहता है । क़ुरआन के तीन हिस्सों को बयान किया गया है जिससे इन चार लफ़्ज़ों का
मतलब इंशा अल्लाह साफ हो जाएगा।

1. ये सरू ह बकरा की आयत है । इसमें नेकी के बारे में तफसील से बताया गया
है ।“नेकी ये नहीं है की तुमने अपने चेहरे पूरब की तरफ़ कर लिये या पश्चिम की
तरफ़ बल्कि नेकी ये है कि आदमी अल्लाह को और आख़िरत के दिन और
फ़रिश्तों को और अल्लाह की उतारी हुई किताब और उसके पैग़म्बरों को दिल से
माने और अल्लाह की मुहब्बत में अपना दिलपसन्द माल रिश्तेदारों और यतीमों
पर, ग़रीबों और मुसाफ़िरों पर, मदद के लिये हाथ फैलाने वालों पर और ग़ल
ु ामों की
रिहाई पर ख़र्च करे ; नमाज़ क़ायम करे और ज़कात दे । और नेक वो लोग हैं कि
जब वादा करें तो उसे परू ा करें , और तंगी व मस
ु ीबत के वक़्त में और हक़ और
बातिल की लड़ाई में सब्र करें । ये हैं सच्चे लोग और यही लोग परहे ज़गार हैं”।

2
ये आयत ना सिर्फ नेकी की बहुत छोटे खयाल की जड़ काट दे ती है बल्कि इस्लाम
में नेकी किसको कहते है , इसका परू ा पता दे ती है ।
2. सूरह लुकमान का दस
ू रा रुकु भी चार चीज़ों को बयान करता है , “हमने
लुक़मान को हिकमत अता की थी कि अल्लाह का शक्र
ु गुज़ार हो। जो कोई शुक्र
करे उसका शक्र
ु उसके अपने ही लिये फ़ायदे मद
ं है । और जो कुफ़्र करे तो हक़ीक़त
में अल्लाह बेनियाज़ और आप-सी-आप तारीफ़ के क़ाबिल (महमद
ू ) है । याद करो
जब लुक़मान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, “बेटा, ख़ुदा के साथ
किसी को साझी न ठहराना, सच तो ये है कि शिर्क बहुत बड़ा ज़ल्
ु म है ।”और ये
हक़ीक़त है कि हमने इंसान को अपने माँ-बाप का हक़ पहचानने का ख़द
ु बढ़ावा
दिया है । उसकी माँ ने कमज़ोरी-पर-कमज़ोरी उठाकर उसे अपने पेट में रखा और
दो साल उसका दध
ू छूटने में लगे। (इसीलिये हमने उसे नसीहत की कि) मेरा शुक्र
कर और अपने माँ-बाप का शुक्र अदा कर, मेरी ही तरफ़ तुझे पलटना है । लेकिन
अगर वे तझ
ु पर दबाव डालें कि मेरे साथ तू किसी ऐसे को साझी ठहराए जिसे तू
नहीं जानता तो उनकी बात हरगिज़ न मान। दनि
ु या में उनके साथ अच्छा बर्ताव
करता रह, मगर पैरवी उस शख़्स के रास्ते की कर जिसने मेरी तरफ़ रुजू किया है ।
फिर तुम सबको पलटना मेरी ही तरफ़ है , उस वक़्त मैं तुम्हें बता दँ ग
ू ा कि तुम
किस तरह के काम करते रहे हो। (और लक़
ु मान ने कहा था कि) “बेटा कोई चीज़
राई के दाने के बराबर भी हो, और किसी चट्टान में या आसमानों या ज़मीन में
कहीं छिपी हुई हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। वो बारीक से बारीक चीज़ दे ख
लेनेवाला और ख़बर रखनेवाला है । बेटा, नमाज़ क़ायम कर, नेकी का हुक्म दे , बरु ाई
से मना कर, और जो मुसीबत भी तुमपर पड़े, उसपर सब्र कर। ये वे बातें हैं
जिनपर बहुत बढ़ावा दिया गया है । और लोगों से मँह
ु फेरकर बात न कर, न
अकड़कर चल, अल्लाह किसी घमण्डी और डींग मारनेवाले शख़्स को पसन्द नहीं
करता। अपनी चाल में इंसाफ बनाए रख, और अपनी आवाज़ ज़रा धीमी रख, सब
आवाज़ों से ज़्यादा बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है ।”

ये आयत इस्लाम की परू ी इमारत के नक्शे की खोल कर बयान कर दे ती है ।

3
3. सूरह हा मीम सजदा का चौथा रुकु दीन की सबसे बड़ी मंज़िल को साफ कर दे ता
है “जिन लोगों ने कहा कि अल्लाह हमारा रब है और फिर वे उसपर जमे रहे ,
यक़ीनन उनपर फ़रिश्ते उतरते हैं और उनसे कहते हैं कि “न डरो, न ग़म करो, और
ख़ुश हो जाओ उस जन्नत की ख़ुशख़बरी से जिसका तुमसे वादा किया गया है ।
हम इस दनि
ु या की ज़िन्दगी में भी तुम्हारे साथी हैं और आख़िरत में भी। वहाँ जो
कुछ तम
ु चाहोगे, तम्
ु हें मिलेगा और हर चीज़ जिसकी तम
ु तमन्ना करोगे, वो
तुम्हारी होगी। ये है मेहमाननवाज़ी का सामान उस हस्ती की तरफ़ से जो माफ़
करनेवाली और रहम करनेवाली है ।”और उस शख़्स की बात से अच्छी बात और
किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ़ बल
ु ाया और नेक अमल किया और कहा
कि मैं मुसलमान हूँ। और ऐ नबी, भलाई और बुराई एक जैसी नहीं हैं। तुम बुराई
को उस नेकी से दरू करो जो बेहतरीन हो। तुम दे खोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी
दश्ु मनी पड़ी हुई थी, वो जिगरी दोस्त बन गया है । ये खासियत नहीं मिलती, मगर
उन लोगों को जो सब्र करते हैं और ये दर्जा हासिल नहीं होता, मगर उन लोगों को
जो बड़े नसीबवाले हैं। और अगर तुम शैतान की तरफ़ से कोई उकसाहट महसूस
करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो, वो सब कुछ सुनता और जानता है ”।

इस रुकु में ईमान, नेक काम, हक़ और सब्र की नसीहत, इन सबकी सबसे ऊंची मंज़िल
बयान की गई है ।

अब ये समझा जाए कि हमारे समाज में ईमान और नेक काम का तसव्वुर क्या है और
कुरान इसके उलट क्या कहता है । हम पर ज़िम्मेदारी है कि तमाम तालीम को खुद
समझे और अपने आस – पड़ोस, घर, जिनके साथ कारोबारी करते हैं यानी जिससे भी
हमारा मामला पड़ता हो,उसको इस्लाम का जो पहलू हमने सीखा है ,उससे हर किसी को
खबरदार कर दें ।

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