Gurutva Jyotish July-2018

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गुरुत्व कामाारम द्वारा प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका जर


ु ाई-2018

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E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोततष ऩत्रिका गरु
ु त्व ज्मोततष भाससक
जर
ु ाई-2018
ई-ऩत्रिका भें रेखन हे तु फ्रीराॊस
सॊऩादक

ध त
ॊ न जोशी (स्वतॊि) रेखकों का स्वागत
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोततष ववबाग हैं... 
गुरुत्व कामाारम

गरु
ु त्व ज्मोततष भाससक ई-ऩत्रिका
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
(ODISHA) INDIA
भें आऩके द्वारा सरखे गमे भॊि,
पोन
91+9338213418,
मॊि, तॊि, ज्मोततष, अॊक ज्मोततष,
91+9238328785, वास्तु, पेंगशई
ु , टै यों, ये की एवॊ
ईभेर
gurutva.karyalay@gmail.com, अन्म आध्मात्त्भक ऻान वधाक
रेख को प्रकासशत कयने हे तु बेज
gurutva_karyalay@yahoo.in,

वेफ
www.gurutvakaryalay.com सकते हैं।
www.gurutvakaryalay.in
http://gk.yolasite.com/ अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
www.shrigems.com
www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ GURUTVA KARYALAY
ऩत्रिका प्रस्तुतत BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA
ध त
ॊ न जोशी, Call Us: 91 + 9338213418,
गुरुत्व कामाारम 91 + 9238328785
पोटो ग्राफपक्स Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
ध त
ॊ न जोशी,
gurutva.karyalay@gmail.com
गुरुत्व कामाारम
अनुक्रभ
7 32

8 33

11 35
?

13 36

प 14 38

17 40

18 43

20 45

21 46

22 51

प 24 54

26 56

29 59

30 60

31 प 61
?

स्थामी औय अन्म रेख


सॊऩादकीम 4 दै तनक शब
ु एवॊ अशब
ु सभम ऻान तासरका
84

जुराई 2018 भाससक ऩॊ ाॊग 75 ददन के ौघडडमे 85

जुराई 2018 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 77 ददन फक होया - सम


ू ोदम से सम
ू ाास्त तक
86

जुराई 2018-ववशेष मोग 84


वप्रम आत्त्भम,

फॊध/ु फदहन

जम गुरुदे व

कौन है गुरु?
दहन्द ू सभ्मता का इततहास त्जतना ऩुयातन है , गुरु शब्द बी उतना ही ऩुयातन है ।
आजके आधतु नक मुग भें गुरु शब्द का अथा ाहे त्जतना फदरा हो, रेफकन ऩायॊ ऩरयक दहन्द ू धभा शास्िों-ग्रॊथों भें गुरु
शब्द की भदहभा अऩाय हैं, दहन्द ू धभा शास्िों-ग्रॊथों गुरु को बगवान के सभान मा बगवान से बी अधधक भहत्व
ददमा गमा हैं।
सयर शब्दों भें वणान कये तो भनुष्म को छोटा हो मा फड़ा फकसे बी कामा को सीखने के सरए फकसी ना फकसी
रुऩ भें गुरु की आवश्मक्ता होती हैं। फपय ाहे वह कामा बौततक जीवन से जुड़ा हो मा आध्मात्त्भक जीवन से से
जुड़ा हो, वह कामा गुरुकृऩा के त्रफना सॊऩन्न नहीॊ हो सकता।
सयर बाषा भें गुरु की व्माख्मा कयनी हो, तो हभाये धभाग्रॊथ-शास्ि एवॊ विद्वानों ने गुरु को ऻान का बॊडाय
कहा है ।
मदद हभ गुरु शब्द का शात्ब्दक अथा सभझे तो, ‘गु' मानी अॊधकाय, ‘रु' मानी प्रकाश होता हैं,
अथाात ् जो अऻान के अॊधकाय से तनकारकय ऻान रूऩी प्रकाश की ओय अग्रस्त कयता है , वह गुरु है ।

भनुष्म के जीवन भें अनेक गुरु होते हैं। छोटे फारको को अऺय ऻान दे ने वारे सशऺक/सशक्षऺका को ‘विद्या गुरु' कहा
जाता है । उसी प्रकाय उऩनमन-सॊस्काय, वववाह-सॊस्काय, इत्मादद धासभाक षोडश सॊस्काय कयने वारे को कुरगुरु मा
कुर ऩुयोदहत कहा जाता है । नौकयी-व्माऩाय-कामा ऺेि से सॊफॊधधत ऻान दे ने वारे को व्मवसाम गुरु कहा जाता है ।
इसी प्रकाय अध्मात्भ की ओय अग्रस्त कयने वारे को अध्मात्भ गुरु कहा जाता है ।
इनके अततरयक्त बी जीवन भें अनेक गुरु होते हैं। त्जससे बी हभ प्रत्मऺ-अप्रत्मऺ रूऩ भें कुछ बी सीखते हैं,
दहन्द ू सॊस्कृतत भें उसे गरु
ु कहा जाता है ।

भहाऩरु
ु षो के भतानश
ु ाय व्मत्क्त को अऩने जीवन भें ऩण
ू त
ा ा फकसी सद्गरु
ु गरु
ु की शयण भें जाने से प्राप्त हो
सकती हैं। बायतीम धभाशास्िो भें गरु
ु को ब्रह्भ स्वरुऩ कहाॊ गमा हैं।
फकसी सद्द गरु
ु के प्राप्त होने ऩय व्मत्क्त के सबी धभा-अधभा, ऩाऩ-ऩण्
ु म आदद सभाप्त हो जाते हैं।
मस्म स्भयणभािेण ऻानभुत्ऩद्यते स्वमभ ् ।
स् एव सवासम्ऩत्त्त् तस्भात्सॊऩूजमेद् गुरुभ ् ।।
अथाात: त्जनके स्भयण भाि से ऻान अऩने आऩ प्रकट होने रगता है औय वे ही सवा सम्ऩदा रूऩ हैं, अत् श्री
गरु
ु दे व की ऩज
ू ा कयनी ादहए।
हभाये ऋवष भतु न के भतानश
ु ाय गरु
ु उसे भानना ादहमे जो
प्रेयक् सू कश्वैव वा को दशाकस्तथा ।
सशऺको फोधकश् व
ै षडेते गुयव् स्भत
ृ ा् ॥
अथाात: प्रेयणा दे नेवारे, सू न दे नेवारे, स फतानेवारे, सही यास्ता ददखानेवारे, सशऺण दे नेवारे, औय फोध
कयानेवारे मे सफ गुरु सभान हैं।
गुरुशब्द की ऩरयबाषा शब्दो भें सरखना मा फताना एक भूखत
ा ा हैं एक ओछाऩन हैं। क्मोफक गुरु की
भदहभा अनॊत हैं अऩाय हैं। इस सरमे कत्रफयजी ने सरखा हैं।
गुरु गोववॊद दोनो खड़े काके रागू ऩाॊव,
गुरु फसरहायी आऩने गोववॊद ददमो फताए।
गुरु की तुरना फकसी अन्म से कयना कबी बी सॊबव नहीॊ हैं। इस सरमे शास्ि कहते हैं।

दृष्टान्तो नैव दृष्टत्स्िबुवनजठये सद्गुयोऻाानदातु्


स्ऩशाश् त्े ति करप्म् स नमतत मदहो स्वरृताभश्भसायभ ् ।
न स्ऩशात्वॊ तथावऩ धश्रत यगुणमुगे सद्गुरु्
स्वीमसशष्मे स्वीमॊ साम्मॊ ववधते बवतत तनरुऩभस्तेवारौफककोऽवऩ ॥
अथाात: तीनों रोक, स्वगा, ऩथ्ृ वी, ऩातार भें ऻान दे नेवारे गुरु के सरए कोई उऩभा नहीॊ ददखाई दे ती । गुरु को
ऩायसभणण के जैसा भानते है , तो वह ठीक नहीॊ है , कायण ऩायसभणण केवर रोहे को सोना फनाता है , ऩय स्वमॊ
जैसा नदह फनाता ! सद्फुरु तो अऩने यणों का आश्रम रेनेवारे सशष्म को अऩने जैसा फना दे ता है ; इस सरए
गुरुदे व के सरए कोई उऩभा नदह है , गुरु तो अरौफकक है ।
इस कसरमग
ु भें धभा के नाभ ऩय गुरुके नाभ का ठोंगी ोरा ऩहनने वारो की बी कभी नहीॊ हैं इस सरमे
शास्िो भें सरखा हैं।
सवाासबरावषण् सवाबोत्जन् सऩरयग्रहा् ।
अब्रह्भ ारयणो सभथ्मोऩदे शा गुयवो न तु ॥
अथाात: असबराषा यखनेवारे, सफ बोग कयनेवारे, सॊग्रह कयनेवारे, ब्रह्भ मा का ऩारन न कयनेवारे, औय सभथ्मा
उऩदे श कयनेवारे, गुरु नदह होते है ।

जो गुरु ऄविद्या, असॊमभ, अना ाय, कदा ाय, दयु ा ाय, ऩाऩा ाय आदद से भत्ु क्त ददराता है , वही गुरु नभस्काय
मोग्म है ।

इस प भें सॊफॊधधत जानकायीमों के ववषम भें साधक एवॊ विद्वान


ऩाठको से अनुयोध हैं, मदद दशाामे गए भॊि, , मॊि, साधना एवॊ उऩामों के राब, प्रबाव
इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भें , डडजाईन भें , टाईऩीॊग भें , वप्रॊदटॊग भें , प्रकाशन
भें कोई िदु ट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सध
ु ाय रें मा फकसी मोग्म ज्मोततषी, गरु
ु मा विद्वान
से सराह ववभशा कय रे । क्मोफक विद्वान ज्मोततषी, गुरुजनो एवॊ साधको के तनजी अनुबव
ववसबन्न भॊि, श्रोक, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावों का वणान कयने भें बेद होने ऩय काभना
ससवि हे तु फक जाने वारी वारी ऩज
ू न ववधध एवॊ उसके प्रबावों भें सबन्नता सॊबव हैं।

आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो प की कृऩा


आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे । प से मही प्राथना हैं…

ध त
ॊ न जोशी
6 - 2018

***** प ववशेषाॊक से सॊफॊधधत सू ना *****


 ऩत्रिका भें गुरु ऩूणणाभा ववशेषाॊक भें दे वी उऩासना से सॊफॊधधत रेख गुरुत्व कामाारम के अधधकायों के साथ ही
आयक्षऺत हैं।
 गुरु ऩणू णाभा ववशेषाॊक भें वणणात रेखों को नात्स्तक/अववश्वासु व्मत्क्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं।
 गुरु उऩासना का ववषम आध्मात्भ से सॊफॊधधत होने के कायण बायततम धभा शास्िों से प्रेरयत होकय प्रस्तुत
फकमा हैं।
 गुरु ऩूणणाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत ववषमो फक सत्मता अथवा प्राभाणणकता ऩय फकसी बी प्रकाय की त्जन्भेदायी
कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं।
 गुरु ऩूणणाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत सबी जानकायीकी प्राभाणणकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी कामाारम मा
सॊऩादक की नहीॊ हैं औय ना हीॊ प्राभाणणकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी के फाये भें जानकायी दे ने हे तु
कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हैं।
 गुरु ऩणू णाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत रेखो भें ऩाठक का अऩना ववश्वास होना आवश्मक हैं। फकसी बी व्मत्क्त
ववशेष को फकसी बी प्रकाय से इन ववषमो भें ववश्वास कयने ना कयने का अॊततभ तनणाम स्वमॊ का होगा।
 गुरु ऩूणणाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 गुरु ऩूणणाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय ददए गमे हैं।
हभ फकसी बी व्मत्क्त ववशेष द्वारा प्रमोग फकमे जाने वारे धासभाक, एवॊ भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा
उऩामोकी त्जन्भेदायी नदहॊ रेते हैं। मह त्जन्भेदायी भॊि- मॊि मा अन्म उऩामोको कयने वारे व्मत्क्त फक स्वमॊ
फक होगी।
 क्मोफक इन ववषमो भें नैततक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी तनमभों के णखराप कोई व्मत्क्त मदद नीजी
स्वाथा ऩूतता हे तु प्रमोग कताा हैं अथवा प्रमोग के कयने भे िुदट होने ऩय प्रततकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं।
 गुरु ऩणू णाभा ववशेषाॊक से सॊफॊधधत जानकायी को भाननने से प्राप्त होने वारे राब, राब की हानी मा हानी
की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हैं।
 हभाये द्वारा ऩोस्ट फकमे गमे सबी जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म
हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा कव , भॊि-मॊि मा उऩामो द्वारा तनत्श् त
सपरता प्राप्त हुई हैं।

 प प प
, प इ प
प इ प प

अधधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं।

(सबी वववादो केसरमे केवर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)


7 - 2018

गुरु प्राथाना


गुरुब्राह्भा ग्रुरुववाष्ण्ु गरु
ु दे वो भहे श्वय् । त्वभेव भाता वऩता त्वभेव त्वभेव
गुरु् साऺात ् ऩयॊ ब्रह्भ तस्भै श्री गुयवे नभ् ॥ फॊधश्ु सखा त्वभेव। त्वभेव विद्या द्रववणॊ त्वभेव
त्वभेव सवं भभ दे व दे व।।
बावाथा: गुरु ब्रह्भा हैं, गुरु ववष्णु हैं, गुरु दह शॊकय हैं;
गुरु दह साऺात ् ऩयब्रह्भ हैं; एसे सद्गुरु को नभन । ब्रह्भानॊदॊ ऩयभसख
ु दॊ केवरॊ ऻानभतू ता द्वंद्वातीतॊ
गगनसदृशॊ तत्वभस्माददरक्ष्मभ ् । एकॊ तनत्मॊ
ध्मानभर
ू ॊ गरु
ु भतूा त् ऩज
ू ाभर
ू भ गरु
ु य ऩदभ ्। ववभरभ रॊ सवाधीसाक्षऺबत
ु ॊ बावातीतॊ त्रिगण
ु यदहतॊ
भॊिभर
ू ॊ गरु
ु यवााक्मॊ भोऺभर
ू ॊ गरु
ु य कृऩा।। सद्गुरुॊ तॊ नभासभ ॥
बावाथा: गुरु की भतू ता ध्मान का भर
ू कायण है,
बावाथा: ब्रह्भा के आनॊदरुऩ ऩयभ ् सख
ु रुऩ,
गरु
ु के यण ऩज
ू ा का भर
ू कायण हैं, वाणी
ऻानभतू ता, द्वंद्व से ऩये , आकाश जैसे तनरेऩ, औय
जगत के सभस्त भॊिों का औय गरु
ु की कृऩा
सक्ष्
ू भ "तत्त्वभसस" इस ईशतत्त्व की अनब
ु तू त
भोऺ प्रात्प्त का भर
ू कायण हैं।
दह त्जसका रक्ष्म है; अद्ववतीम, तनत्म ववभर,
अखण्डभण्डराकायॊ व्माप्तॊ मेन या यभ ्। अ र, बावातीत, औय त्रिगुणयदहत - ऐसे
तत्ऩदॊ दसशातॊ मेन तस्भै श्रीगुयवे नभ्।। सद्गुरु को भैं प्रणाभ कयता हूॉ ।

ई- जन्भ ऩत्रिका E HOROSCOPE


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१००+ ऩेज भें प्रस्तत
ु 100+ Pages
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GURUTVA KARYALAY
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BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA
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8 - 2018

गुवष्ा टकभ ्
शयीयॊ सुरूऩॊ तथा वा करिॊ, भनश् ेन रग्नॊ गयु ोयतिऩद्मे, सदबाग्म से क्मा राब?
मशश् ारु ध िॊ धनॊ भेरु तुल्मभ ्। तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥८॥ (६) दानवत्ृ त्त के प्रताऩ से त्जनकी कीतता
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, गयु ोयष्टकॊ म् ऩठे त्ऩयु ामदे ही, ायो ददशा भें व्माप्त हो, अतत उदाय गरु
ु की
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥१॥ मततबऩ
ूा ततब्राह्भ ायी गेही। सहज कृऩा दृत्ष्ट से त्जन्हें सॊसाय के साये
करिॊ धनॊ ऩुि ऩौिाददसवं, सख
रभेद्वात्छछताथॊ ऩदॊ ब्रह्भसॊऻ,ॊ ु -एश्वमा हस्तगत हों, फकॊ तु उनका भन
गह
ृ ो फान्धवा् सवाभेतवि जातभ ्। गयु ोरुक्तवाक्मे भनो मस्म रग्नभ ्॥९॥ मदद गरु
ु के श्री यणों भें आसक्तबाव न
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, यखता हो तो इन साये एशवमों से क्मा राब?
॥इतत श्रीभद अद्य शॊकया ामाववयध तभ ्
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥२॥ गव
ु ष्ा टकभ ् सॊऩण
ू भ
ा ्॥
(७) त्जनका भन बोग, मोग, अश्व, याज्म,
षड़ॊगाददवेदो भुखे शास्िववद्या, बावाथा: (१) मदद शयीय रूऩवान हो, ऩत्नी स्िी-सख
ु औय धन बोग से कबी वव सरत
कववत्वादद गद्मॊ सऩ
ु द्मॊ कयोतत। बी रूऩसी हो औय सत्कीतता ायों ददशाओॊ भें
न होता हो, फपय बी गरु
ु के श्री यणों के प्रतत
ववस्तरयत हो, सभ
ु ेरु ऩवात के तल्
ु म अऩाय
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, आसक्त न फन ऩामा हो तो भन की इस
धन हो, फकॊ तु गरु
ु के श्री यणों भें मदद भन
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥३॥ अटरता से क्मा राब?
आसक्त न हो तो इन सायी उऩरत्ब्धमों से
ववदे शष
े ु भान्म् स्वदे शष
े ु धन्म्, क्मा राब?
(८) त्जनका भन वन मा अऩने ववशार
सदा ायवत्ृ तेषु भत्तो न ान्म्। (२) मदद ऩत्नी, धन, ऩि
ु -ऩौि, कुटुॊफ, गह
ृ बवन भें , अऩने कामा मा शयीय भें तथा
भनश् ेन रग्नॊ गयु ोयतिऩद्मे, एवॊ स्वजन, आदद प्रायब्ध से सवा सर
ु ब हो
अभल्
ू म बण्डाय भें आसक्त न हो, ऩय गरु
ु के
फकॊ तु गरु
ु के श्री यणों भें मदद भन आसक्त
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥४॥ श्री यणों भें बी वह भन आसक्त न हो ऩामे
न हो तो इस प्रायब्ध-सख
ु से क्मा राब?
ऺभाभण्डरे बूऩबूऩरफब्ृ दै ्, तो इन सायी अनासत्क्त्तमों का क्मा राब?
(३) मदद वेद एवॊ ६ वेदाॊगादद शास्ि त्जन्हें
सदा सेववतॊ मस्म ऩादायववन्दभ ्।
कॊठस्थ हों, त्जनभें सन्
ु दय काव्म तनभााण की (९) जो मतत, याजा, ब्रह्भ ायी एवॊ गह
ृ स्थ
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, प्रततबा हो, फकॊ तु उनका भन मदद गरु
ु के इस गरु
ु अष्टक का ऩठन-ऩाठन कयता है
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥५॥ श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो इन
औय त्जसका भन गरु
ु के व न भें आसक्त
सदगण
ु ों से क्मा राब?
मशो भे गतॊ ददऺु दानप्रताऩात ्, है , वह ऩण्
ु मशारी शयीयधायी अऩने
(४) त्जन्हें ववदे शों भें सभान आदय सभरता
जगद्वस्तु सवं कये मत्प्रसादात ्। इत्छछताथा एवॊ ब्रह्भऩद इन दोनों को
हो, अऩने दे श भें त्जनका तनत्म जम-
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, सॊप्राप्त कय रेता है मह तनत्श् त है ।
जमकाय से स्वागत फकमा जाता हो औय
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥६॥ त्जसके सभान दस
ू या कोई सदा ायी
न बोगे न मोगे न वा वात्जयाजौ, बक्त नहीॊ, मदद उनका बी भन गरु
ु के
श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो सदगण
ु ों
न कन्ताभुखे नैव ववत्तेषु ध त्तभ ्।
से क्मा राब?
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे,
(५) त्जन भहानब
ु ाव के यण कभर
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥७॥
बभ
ू ण्डर के याजा-भहायाजाओॊ से तनत्म
अयण्मे न वा स्वस्म गेहे न कामे, ऩत्ू जत यहते हों, फकॊ तु उनका भन मदद गरु

न दे हे भनो वताते भे त्वनध्मे। के श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो इस
9 - 2018

भॊि ससि दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन ववृ ि हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
स्पदटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यक्त (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above ववधुत भारा - Rs- 190, 280
- Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं।
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भॊि ससि स्पदटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩण
ू ा एवॊ शत्क्तशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त
शब
ु फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से अधधक से अधधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय
व्मत्क्त के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩण
ू ा प्राण-प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा त
ै न्म मक्
ु त "श्री मॊि" त्जस व्मत्क्त
के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससि होता है उसके दशान भाि से अन-धगनत राब
एवॊ सख
ु की प्रात्प्त होतत है । "श्री मॊि" भे सभाई अदद्रततम एवॊ अद्रश्म शत्क्त भनष्ु म की सभस्त शब
ु इछछाओॊ
को ऩयू ा कयने भे सभथा होतत है । त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय तनयाशा दयू होकय वह भनष्ु म असफ़रता
से सफ़रता फक औय तनयन्तय गतत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौततक सख
ु ो फक प्रात्प्त होतत
है । "श्री मॊि" भनष्ु म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक
उजाा का तनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थावऩत कयने से
वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩये शातन भे न्मन
ु ता आतत है व सख
ु -सभवृ ि, शाॊतत एवॊ ऐश्वमा फक प्रत्प्त
होती है । >> Shop Online | Order Now
गुरुत्व कामाारम भे ववसबन्न आकाय के "श्री मॊि" उप्रब्ध है
भल्
ू म:- प्रतत ग्राभ Rs. 28.00 से Rs.100.00

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10 - 2018

सवा कामा ससवि कव


त्जस व्मत्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊतछत सपरतामे एवॊ
फकमे गमे कामा भें ससवि (राब) प्राप्त नहीॊ होती, उस व्मत्क्त को सवा कामा ससवि कव
अवश्म धायण कयना ादहमे।
कवच के प्रभख
ु राब: सवा कामा ससवि कव के द्वारा सख
ु सभवृ ि औय नव ग्रहों के
नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र
का नाश हो कय सख
ु -सौबाग्म एवॊ उन्नतत प्रात्प्त होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शब
ु कामा
ससि होते हैं। त्जसे धायण कयने से व्मत्क्त मदद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे ववृ ि होतत
हैं औय मदद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नतत होती हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।
 सवा कामा ससवि कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के सभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय
सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ
(१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
(६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त
होता हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें तंत्र यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए
दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ
होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दष्ु ट प्रबावो से
यऺा होती हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें शत्रु ववजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से
सॊफॊधधत सभस्त ऩये शातनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शिु
धायण कताा व्मत्क्त का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते।
अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :
फकसी व्मत्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव दे ने नही दे ना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सयु क्षऺत हैं।
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11 - 2018

गुरुभॊि के प्रबाव से ईष्ट दशान



विद्वानो के अनश
ु ाय शास्िोक्त उल्रेख हैं की गमे रेफकन श्रीकृष्ण के दशान न हुए। 'अनष्ु ठान भें कुछ
कोई बी भॊि तनत्श् त रूऩ से अऩना प्रबाव अवश्म िदु ट यह गई होगी' ऐसा सो कय श्री भधसु द
ू नजी ने दस ू ये
यखते हैं। छ् भहीने भें दस
ू या अनुष्ठान फकमा फपय बी श्रीकृष्ण
त्जस प्रकाय ऩानी भें कॊकड़-ऩत्थय डारने से उसभें दशान न हुए।
तयॊ गे उठती हैं उसी प्रकाय से भॊिजऩ के प्रबाव से हभाये दो फाय अनष्ु ठान के उयाॊत असपरता प्राप्त होने
बीतय आध्मात्त्भक तयॊ ग उत्ऩन्न होती हैं। जो हभाये ऩय श्री भधस
ु द
ू न के ध त्त भें ग्रातन हो गई। सो ा
इदा-धगदा सक्ष्
ू भ रूऩ से एक सयु ऺा कव जैसा प्रकासशत फक् 'फकसी अजनफी फाफाजी के कहने से भैंने फायह भास
वरम (अथाात ओया) का तनभााण होता हैं। उन ओया का त्रफगाड़ ददमे अनुष्ठानों भें ।
सूक्ष्भ जगत भें उसका प्रबाव ऩड़ता है । जो खर
ु ी आॊखो सफभें ब्रह्भ भाननेवारा भैं 'हे कृष्ण ...हे बगवान ...
से साभान्म व्मत्क्त को उसका प्रबाव ददखाई नहीॊ दे ता। दशान दो ...दशान दो...' ऐसे भेया धगड़धगड़ाना ?
उस सुयऺा कव से व्मत्क्त को नकायात्भक प्रबावी जो श्रीकृष्ण की आत्भा है वही भेयी आत्भा है । उसी
जीव व शत्क्तमा उसके ऩास नहीॊ आ सकतीॊ। आत्भा भें भस्त यहता तो ठीक यहता। श्रीकृष्ण आमे
श्रीभदबगवदगीता की 'श्री भधस
ु ूदनी नहीॊ औय ऩूया वषा बी रा गमा। अफ क्मा टीका
टीका' प्र सरत एवॊ भहत्त्वऩूणा टीकाओॊ भें से एक हैं। सरखना ?"
इस टीका के य तमता श्री भधस
ु ूदन सयस्वतीजी जफ वे ऊफ गमे। अफ न टीका सरख सकते हैं न
सॊकल्ऩ कयके रेखनकामा के सरए फैठे ही थे फक एक तीसया अनुष्ठान कय सकते हैं। रे गमे मािा कयने को
तेजस्वी आबा सरमे ऩयभहॊ स सॊन्मासी अ ानक घय का तीथा भें । वहाॉ ऩहुॉ े तो साभने से एक भाय आ यहा
द्वार खोरकय बीतय आमे औय फोरे् "अये भधस
ु ूदन! तू था। उस भाय ने इनको ऩहरी फाय दे खा औय श्री
गीता ऩय टीका सरखता है तो गीताकाय से सभरा बी है भधस
ु ूदनजी ने बी भाय को ऩहरी फाय दे खा।
फक ऐसे ही करभ उठाकय फैठ गमा है? तूने कबी भाय ने कहा् "फस, स्वाभीजी! थक गमे न दो अनुष्ठान
बगवान श्रीकृष्ण के दशान फकमे हैं फक ऐसे ही उनके कयके?"
व नों ऩय टीका सरखने रग गमा?" श्रीभधस
ु ूदन स्वाभी ौंके ! सो ा् "अये भैंने अनुष्ठान
श्री भधस
ु ूदनजी तो थे वेदान्ती, ऄद्वैतिादी। वे फकमे, मह भेये ससवा औय कोई जानता नहीॊ। इस भाय
फोरे् "दशान तो नहीॊ फकमे। तनयाकाय ब्रह्भ-ऩयभात्भा को कैसे ऩता रा?"
सफभें एक ही है । श्रीकृष्ण के रूऩ भें उनका दशान कयने वे भाय से फोरे् "तेये को कैसे ऩता रा?", "कैसे बी
का हभाया प्रमोजन बी नहीॊ है । हभें तो केवर उनकी ऩता रा। फात सछ ी कयता हूॉ फक नहीॊ ? दो अनुष्ठान
गीता का अथा स्ऩष्ट कयना है ।" कयके थककय आमे हो। ऊफ गमे, तबी इधय आमे हो।
"सॊन्मासी फोरे नहीॊ ....ऩहरे उनके दशान कयो फपय फोरो, स फक नहीॊ?"
उनके शास्ि ऩय टीका सरखो। रो मह भॊि। छ् भहीने "बाई ! तू बी अन्तमााभी गरु
ु जैसा रग यहा है । स
इसका अनष्ु ठान कयो। बगवान प्रकट होंगे। उनसे प्रेयणा फता, तन
ू े कैसे जाना ?"
सभरे फपय रेखनकामा का प्रायॊ ब कयो।" "स्वाभी जी ! भैं अन्तमााभी बी नहीॊ औय गरु
ु बी नहीॊ।
भॊि दे कय फाफाजी रे गमे। श्री भधस
ु द
ू नजी ने भैं तो हूॉ जातत का भाय। भैंने बत
ू को अऩने वश भें
अनुष्ठान शुरु फकमा। अनुष्ठान के छ् भहीने ऩण
ू ा हो
12 - 2018

फकमा है । भेये बूत ने फतामी आऩके अन्त्कयण की "फाफा जी ! वह बूत फोरता है फक भधस
ु ूदन स्वाभी ने
फात।" ज्मों ही भेया नाभ स्भयण फकमा, तो भैं णखॊ कय आने
श्री भधस
ु ूदनजी फोरे "बाई ! दे ख श्रीकृष्ण के तो दशान रगा। रेफकन उनके कयीफ जाने से भेये को आग जैसी
नहीॊ हुए, कोई फात नहीॊ। प्रणव का जऩ फकमा, कोई तऩन रगी। उनका तेज भेये से सहा नहीॊ गमा। उन्होंने
दशान नहीॊ हुए। गामिी का जऩ फकमा, दशान नहीॊ हुए। सकायात्भक शत्क्तओॊ का अनुष्ठान फकमा है तो उनका
अफ तू अऩने बूत का ही दशान कया दे , र।" आध्मात्त्भक ओज इतना फढ़ गमा है फक हभाये जैसे
भाय ने कहा् "स्वाभी जी ! भेया बूत तो तीन ददन के तुछछ शत्क्तमाॊ उनके कयीफ खड़े नहीॊ यह सकते। अफ
अॊदय ही दशान दे सकता है । 27घण्टे भें ही वह आ तुभ भेयी ओय से उनको हाथ जोड़कय प्राथाना कयना फक
जामेगा। रो मह भॊि औय उसकी ववधध।" वे फपय से अनुष्ठान कयें तो सफ प्रततफन्ध दयू हो
श्री भधस
ु ूदनजी ने भाय द्वारा फताई गई ऩूणा जामेंगे औय बगवान श्रीकृष्ण सभरेंगे। फाद भें जो गीता
ववधध जाऩ फकमा। एक ददन फीता, दस
ू या फीता, तीसया की टीका सरखेंगे। वह फहुत प्रससि होगी।"
बी फीत गमा औय ौथा शुरु हो गमा। 27घण्टे तो ऩूये श्री भधस
ु ूदन जी ने फपय से अनष्ु ठान फकमा, बगवान
हो गमे। बूत आमा नहीॊ। गमे भाय के ऩास। श्री श्रीकृष्ण के दशान हुए औय फाद भें बगवदगीता ऩय
भधस ु द
ू नजी फोरे् "श्री कृष्ण के दशान तो नहीॊ हुए भझ
ु े टीका सरखी। आज बी वह 'श्री भधसु द
ू नी टीका' के नाभ
तेया बत ू बी नहीॊ ददखता?" भाय ने कहा् "स्वाभी से ऩयू े ववश्व भें प्रससि है ।
जी! ददखना ादहए।" त्जन्हें सद्द बाग्म से गरु
ु भॊि सभरा है औय वहॊ
श्री भधस
ु द
ू नजी ने कहा् "नहीॊ ददखा।" ऩण
ू ा तनष्ठा व ववश्वास से ववधध-ववधान से उसका जऩ
भाय ने कहा् "भैं उसे योज फर ु ाता हूॉ, योज दे खता हूॉ। कयता है । उसे सबी प्रकाय फक ससविमा स्वत् प्राप्त हो
ठहरयमे, भैं फर
ु ाता हूॉ, उसे।" वह गमा एक तयप औय जाती हैं। उसे नकायात्भक शत्क्तमाॊ व प्रबावीजीव कष्ट
अऩनी ववधध कयके उस बत
ू को फर
ु ामा, बत
ू से फात की नहीॊ ऩहूॊ ा सकते।
औय वाऩस आकय फोरा्
***
द्वादश महा यंत्र
मॊि को अतत प्राध न एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्वारा फनामा गमा हैं।
 ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि,  सहस्िाऺी रक्ष्भी आफि मॊि
 बाग्मोदम मॊि  आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि
 भनोवाॊतछत कामा ससवि मॊि  ऩण
ू ा ऩौरुष प्रात्प्त काभदे व मॊि
 याज्म फाधा तनवत्ृ त्त मॊि  योग तनवत्ृ त्त मॊि
 गह
ृ स्थ सख
ु मॊि  साधना ससवि मॊि
 शीि वववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  शिु दभन मॊि
उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि ऩण
ू ा प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ त
ै न्म मक्
ु त
फकमे जाते हैं। त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩज
ू ा अ न
ा ा-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं।

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13 - 2018

गुरुभॊि के प्रबाव से यऺा



'स्कन्द ऩयु ाण' के ब्रह्भोत्तय खण्ड भें उल्रेख है ् आऩने सन
ु यखी है । फपय बी आऩने शयाफ ऩीनेवारी
काशी नये श की कन्मा करावती के साथ भथयु ा के वेश्माओॊ के साथ औय कुरटाओॊ के साथ बोग बोगे हैं।"
दाशाहा नाभक याजा का वववाह हुआ। याजा् "तुम्हें इस फात का ऩता कैसे र गमा?"
वववाह के फाद याजा ने अऩनी ऩत्नी को फर
ु ामा ऩत्नी् "नाथ ! रृदम शुि होता है तो मह ख्मार
औय सॊसाय-व्मवहाय स्थाऩीत कयने की फात कहीॊ ऩयॊ तु स्वत् आ जाता है ।"
ऩत्नी ने इन्काय कय ददमा। तफ याजा ने जफदा स्ती कयने याजा प्रबाववत हुआ औय यानी से फोरा् "तुभ
की फात कही। भुझे बी बगवान सशव का वह भॊि दे दो।"
ऩत्नी ने कहा् "स्िी के साथ सॊसाय-व्मवहाय यानी्"आऩ भेये ऩतत हैं। भैं आऩकी गुरु नहीॊ फन
कयना हो तो फर-प्रमोग नहीॊ, प्माय स्नेह-प्रमोग कयना सकती। हभ दोनों गगाा ामा भहायाज के ऩास रते हैं।"
ादहए।
दोनों गगाा ामाजी के ऩास गमे औय उनसे प्राथाना की।
ऩत्नी ने कहा् नाथ ! भैं आऩकी ऩत्नी हूॉ, फपय
उन्होंने स्नानादद से ऩववि हो, मभन
ु ा तट ऩय अऩने
बी आऩ भेये साथ फर-प्रमोग कयके सॊसाय-व्मवहाय न
सशवस्वरूऩ के ध्मान भें फैठकय याजा-यानी को द्रष्टीऩात
कयें ।"
से ऩावन फकमा। फपय सशवभॊि दे कय अऩनी शाॊबवी दीऺा
आणखय वह याजा था। ऩत्नी की फात सुनी-
से याजा ऩय शत्क्तऩात फकमा। विद्वानो के भतानुशाय
अनसुनी कयके ऩत्नी के नजदीक गमा। ज्मों ही उसने
कथा भे उल्रेख हैं फक दे खते-ही-दे खते सैकडो तुछछ
ऩत्नी का स्ऩशा फकमा त्मों ही उसके शयीय भें ववद्मुत
ऩयभाणु याजा के शयीय से तनकर-तनकरकय ऩरामन कय
जैसा कयॊ ट रगा।
गमे।
उसका स्ऩशा कयते ही याजा का अॊग-अॊग जरने
रगा। वह दयू हटा औय फोरा् "क्मा फात है ? तुभ इतनी
सुन्दय औय कोभर हो फपय बी तुम्हाये शयीय के स्ऩशा
से भुझे जरन होने रगी?"
ऩत्नी् "नाथ ! भैंने फाल्मकार भें दव
ु ाासा ऋवष
से गुरुभॊि सरमा था। वह जऩने से भेयी सात्त्त्वक ऊजाा
का ववकास हुआ है ।
जैस,े यात औय दोऩहय एक साथ नहीॊ यहते उसी
तयह आऩने शयाफ ऩीने वारी वेश्माओॊ के साथ औय
कुरटाओॊ के साथ जो सॊसाय-बोग बोगा हैं, उससे आऩके
ऩाऩ के कण आऩके शयीय भें , भन भें , फुवि भें अधधक है
औय भैंने जो भॊिजऩ फकमा है उसके कायण भेये शयीय भें
ओज, तेज, आध्मात्त्भक कण अधधक हैं।
इससरए भैं आऩके नजदीक नहीॊ आती थी फत्ल्क Energized Tortoise Shree Yantra
आऩसे थोड़ी दयू यहकय आऩसे प्राथाना कयती थी। आऩ
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फुविभान हैं फरवान हैं, मशस्वी हैं धभा की फात बी
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14 - 2018

गुरुभॊि के जऩ से अरौफकक ससविमा प्राप्त होती हैं



कौंडडण्मऩुय भें शशाॊगय नाभ के याजा याज्म कयते जफ कृष्णागय 17 वषा का मुवक हुआ तफ याजा
थे। वे प्रजाऩारक थे। उनकी यानी भॊदाफकनी बी ने अऩने भॊत्रिमों को कृष्णागय के सरए उत्तभ कन्मा
ऩततव्रता, धभाऩयामण थी। रेफकन सॊतान न होने के ढूॉढने की आऻा दी। ऩयॊ तु कृष्णागय के मोग्म कन्मा
कायण दोनों द्ु खी यहते थे। उन्हें कहीॊ बी न सभरी। उसके फाद कुछ ही ददनों भें
उन्होंने याभेश्वय जाकय सॊतान प्रात्प्त के सरए यानी भॊदाफकनी की भत्ृ मु हो गमी। अऩनी वप्रम यानी के
सशवजी की ऩूजा, तऩस्मा का वव ाय फकमा। ऩत्नी को भय जाने का याजा को फहुत द्ु ख हुआ। उन्होंने वषाबय
रेकय याजा याभेश्वय की ओय र ऩड़े। भागा भें कृष्णा- श्रािादद सबी कामा ऩूये फकमे औय अऩनी भदन-ऩीड़ा के
तुॊगबद्रा नदी के सॊगभ-स्थर ऩय दोनों ने स्नान फकमा कायण ध िकूट के याजा बुजध्वज की नवमौवना कन्मा
औय वहीॊ तनवास कयते हुए वे सशवजी की आयाधना बुजावॊती के साथ दस
ू या वववाह फकमा। उस सभम
कयने रगे। बज
ु ावॊती की उम्र 13 वषा की थी औय याजा शशाॊगय का
एक ददन स्नान कयके दोनों रौट यहे थे फक ऩि
ु कृष्णागय की उम्र 17 वषा की थी।
याजा को सभत्रि सयोवय भें एक सशवसरॊग ददखाई ऩड़ा। एक ददन याजा सशकाय खेरने याजधानी से फाहय
उन्होंने वह सशवसरॊग उठा सरमा औय अत्मॊत श्रिा से गमे हुए थे। कृष्णागय भहर के प्राॊगण भें खड़े होकय
उसकी प्राण-प्रततष्ठा की। याजा यानी ऩण
ू ा तनष्ठा से खेर यहा था। उसका शयीय अत्मॊत सॊद ु य व आकषाक
सशवजी की ऩज
ू ा-अ न
ा ा कयने रगे। सॊगभ भें स्नान होने के कायण बज
ु ावॊती उस ऩय आसक्त हो गमी।
कयके सशवसरॊग की ऩूजा कयना उनका तनत्मक्रभ फन उसने एक दासी के द्वारा कृष्णागय को अऩने ऩास
गमा। फुरवामा औय उसका हाथ ऩकड़कय काभेछछा ऩूयण कयने
एक ददन कृष्णा नदी भें स्नान कयके याजा की भाॉग की।
सूमद
ा े वता को अर्घमा दे ने के सरए अॊजसर भें जर रे यहे
थे, तबी उन्हें एक सशशु ददखाई ददमा। उन्हें आसऩास
दयू -दयू तक कोई नजय नहीॊ आमा। तफ याजा ने सो ा
फक 'जरूय बगवान सशवजी की कृऩा से ही भुझे इस
सशशु की प्रात्प्त हुई है !' वे अत्मॊत हवषात हुए औय
अऩनी ऩत्नी के ऩास जाकय उसको सफ वत्ृ ताॊत सन ु ामा।
वह फारक गोद भें यखते ही भॊदाफकनी के आ र
से दध
ू की धाया फहने रगी। यानी भॊदाफकनी फारक को
स्तनऩान कयाने रगी। धीये -धीये फारक फड़ा होने रगा।
वह फारक कृष्णा नदी के सॊगभ-स्थान ऩय प्राप्त होने
के कायण उसका नाभ 'कृष्णागय' यखा गमा।
याजा-यानी कृष्णागय को रेकय अऩनी याजधानी
कौंडडण्मुऩय भें वाऩस रौट आमे। ऐसे अरौफकक फारक
को दे खने के सरए सबी याज्मवासी याजबवन भें आमे। Rs. 370, 550, 730, 1450, 1900
फड़े उत्साह के साथ सभायोहऩूवक
ा उत्सव भनामा गमा। Visit Us: www.gurutvakaryalay.com
15 - 2018

तफ कृष्णागय न कहा् "हे भाते ! भैं तो आऩका ाा सुनी। ऩयॊ तु ध्मान कयके उन्होंने वास्तववक यहस्म
ऩुि हूॉ औय आऩ भेयी भाता हैं। अत् आऩको मह शोबा का ऩता रगामा। दोनों ने कृष्णागय को ौयॊ ग ऩय दे खा,
नहीॊ दे ता। आऩ भाता होकय बी ऩुि से ऐसा ऩाऩकभा इससरए उसका नाभ ' ौयॊ गीनाथ' यख ददमा। फपय याजा
कयवाना ाहती हो !' से स्वीकृतत रेकय ौयॊ गीनाथ को गोद भें उठा सरमा
ऐसा कहकय गुस्से से कृष्णागय वहाॉ से रा औय फदरयकाश्रभ गमे। भछे न्द्रनाथ ने गोयखनाथ से
गमा। कृष्णागय के वहाॊ से रे जाने के फाद भें कहा् "तुभ ौयॊ गी को नाथ ऩॊथ की दीऺा दो औय सवा
बुजावॊती को अऩने ऩाऩकभा ऩय ऩश् ाताऩ होने रगा। ववद्याओॊ भें इसे ऩायॊ गत कयके इसके द्वारा याजा को
याजा को इस फात का ऩता र जामेगा, इस बम के मोग साभथ्मा ददखाकय यानी को दॊ ड ददरवाओ।"
कायण वह आत्भहत्मा कयने के सरए प्रेरयत हुई। ऩयॊ तु गोयखनाथ ने कहा् "ऩहरे भैं ौयॊ गी का तऩ
उसकी दासी ने उसे सभझामा् 'याजा के आने के फाद साभथ्मा दे खग
ूॉ ा।" गोयखनाथ के इस वव ाय को
तुभ ही कृष्णागय के णखराप फोरना शुरु कय दो फक भछें द्रनाथ ने स्वीकृतत दी।
उसने भेया सतीत्व रूटने की कोसशश की। महाॉ भेये ौयॊ गीनाथ को ऩवात की गुपा भें त्रफठाकय
सतीत्व की यऺा नहीॊ हो सकती। कृष्णागय फुयी तनमत गोयखनाथ ने कहा् 'तुम्हाये भस्तक के ऊऩय जो सशरा
का है , अफ आऩको जो कयना है सो कयो, भेयी तो जीने है , उस ऩय दृत्ष्ट दटकामे यखना औय भैं जो भॊि दे ता हूॉ
की इछछा नहीॊ।' उसी का जऩ ारू यखना। अगय दृत्ष्ट वहाॉ से हटी तो

याजा के आने के फाद यानी ने सफ वत्ृ तान्त इसी प्रकाय सशरा तभ


ु ऩय धगय जामेगी औय तम्
ु हायी भत्ृ मु हो

याजा को फतामा त्जस प्रकाय से दासी ने फतामा। याजा जामेगी। इससरए सशरा ऩय ही दृत्ष्ट दटका कय यखना।'

ने कृष्णागय की ऐसी हयकत सुनकय क्रोध के आवेश भें ऐसा कहकय गोयखनाथ ने उसे भॊिोऩदे श ददमा औय

अऩने भॊत्रिमों को उसके हाथ-ऩैय तोड़ने की आऻा दे दी। गप


ु ा का द्वार इस तयह से फॊद फकमा फक अॊदय कोई
वन्म ऩशु प्रवेश न कय सके। फपय अऩने मोगफर से
आऻानुसाय वे कृष्णागय को रे गमे। ऩयॊ तु
ाभुण्डा दे वी को प्रकट कयके आऻा दी फक इसके सरए
याजसेवकों को रगा फक याजा ने आवेश भें आकय आऻा
योज पर राकय यखना ताफक मह उन्हें खाकय जीववत
दी है । कहीॊ अनथा न हो जाम ! इससरए कुछ सेवक
यहे ।
ऩुन् याजा के ऩास आमे। याजा का भन ऩरयवतान कयने
उसके फाद दोनों तीथामािा के सरए रे गमे।
की असबराषा से वाऩस आमे हुए कुछ याजसेवक औय
ौयॊ गीनाथ सशरा धगयने के बम से उसी ऩय दृत्ष्ट
अन्म नगय तनवासी अऩनी आऻा वाऩस रेने के याजा से
जभामे फैठे थे। पर की ओय तो कबी दे खा ही नहीॊ
अनुनम-ववनम कयने रगे। ऩयॊ तु याजा का आवेश शाॊत
वामु बऺण कयके फैठे यहते। इस प्रकाय की मोगसाधना
नहीॊ हुआ औय फपय से वही आऻा दी।
से उनका शयीय कृश हो गमा।
फपय याजसेवक कृष्णागय को ौयाहे ऩय रे आमे।
भछें द्रनाथ औय गोयखनाथ तीथााटन कयते हुए
सोने के ौयॊ ग ( ौकी) ऩय त्रफठामा औय उसके हाथ ऩैय
जफ प्रमाग ऩहुॉ े तो वहाॉ उन्हें एक सशवभॊददय के ऩास
फाॉध ददमे। मह दृश्म दे खकय नगयवाससमों की आॉखों भे
याजा त्रिववक्रभ का अॊततभ सॊस्काय होते हुए ददखाई ऩड़ा।
दमावश आॉसू फह यहे थे। आणखय सेवकों ने आऻाधीन
नगयवाससमों को अत्मॊत द्ु खी दे खकय गोयखनाथ को
होकय कृष्णागय के हाथ-ऩैय तोड़ ददमे। कृष्णागय वहीॊ
अत्मॊत दमाबाव उभड़ आमा औय उन्होंने भछे न्द्रनाथ से
ौयाहे ऩय ऩड़ा यहा।
प्राथाना की फक याजा को ऩुन् जीववत कयें । ऩयॊ तु याजा
कुछ सभम फाद दै वमोग से नाथ ऩॊथ के मोगी
ब्रह्भस्वरूऩ भें रीन हुए थे इससरए भछे न्द्रनाथ ने याजा
भछें द्रनाथ अऩने सशष्म गोयखनाथ के साथ उसी याज्म
को जीववत कयने की स्वीकृतत नहीॊ दी। ऩयॊ तु गोयखनाथ
भें आमे। वहाॉ रोगों के द्वारा कृष्णागय के ववषम भें
ने कहा् "भैं याजा को जीववत कयके प्रजा को सुखी
16 - 2018

करूॉगा। अगय भैं ऐसा नहीॊ कय ऩामा तो स्वमॊ दे ह का प्रमोग कयके याजा के फाग भें जोयों की आॉधी रा
त्माग दॉ ग
ू ा।" दी। वऺ
ृ ादद टूट-टूटकय धगयने रगे, भारी रोग ऊऩय
प्रथभ गोयखनाथ ने ध्मान के द्वारा याजा का उठकय धयती ऩय धगयने रगे। इस आॉधी का प्रबाव
जीवनकार दे खा तो स भु वह ब्रह्भ भें रीन हो क
ु ा केवर फाग भें ही ददखामी दे यहा था इससरए रोगों ने
था। फपय गुरुदे व को ददए हुए व न की ऩूतता के सरए याजा के ऩास सभा ाय ऩहुॉ ामा। याजा हाथी-घोड़े, रशकय
गोयखनाथ प्राणत्माग कयने के सरए तैमाय हुए। तफ गुरु आदद के साथ फाग भें ऩहुॉ ।े ौयॊ गीनाथ ने वातास्ि के
भछें द्रनाथ ने कहा् ''याजा की आत्भा ब्रह्भ भें रीन हुई द्वारा याजा का सम्ऩूणा रशकय आदद आकाश भें उठाकय
है तो भैं इसके शयीय भें प्रवेश कयके 12 वषा तक फपय नी े ऩटकना शुरु फकमा। कुछ नगयवाससमों ने
यहूॉगा। फाद भें भैं रोक कल्माण के सरए भैं भेये शयीय ौयॊ गीनाथ को अनुनम-ववनम फकमा तफ उसने ऩवातास्ि
भें ऩुन् प्रवेश करूॉगा। तफ तक तू भेया मह शयीय का प्रमोग कयके याजा को उसके रशकय सदहत ऩवात
सॉबार कय यखना।" ऩय ऩहुॉ ा ददमा औय ऩवात को आकाश भें उठाकय धयती
भछें द्रनाथ ने तुयॊत दे हत्माग कयके याजा के भत
ृ ऩय ऩटक ददमा।
शयीय भें प्रवेश फकमा। याजा उठकय फैठ गमा। मह फपय गोयखनाथ ने ौयॊ गीनाथ को आऻा दी फक
आश् मा दे खकय सबी जनता हवषात हुई। फपय प्रजा ने वह अऩने वऩता का यणस्ऩशा कये । ौयॊ गीनाथ याजा का
अत्ग्न को शाॊत कयने के सरए याजा का सोने का ऩत
ु रा यणस्ऩशा कयने रगे फकॊतु याजा ने उन्हें ऩह ाना नहीॊ
फनाकय अॊत्मसॊस्काय-ववधध की। । तफ गोयखनाथ ने फतामा् "तभ
ु ने त्जसके हाथ-ऩैय
गोयखनाथ की बें ट सशवभॊददय की ऩज
ु ारयन से कटवाकय ौयाहे ऩय डरवा ददमा था, मह वही तम्
ु हाया
हुई। उन्होंने उसे सफ वत्ृ तान्त सन
ु ामा औय गरु
ु दे व का ऩि
ु कृष्णागय अफ मोगी ौयॊ गीनाथ फन गमा है ।"
शयीय 12 वषा तक सयु क्षऺत यखने का मोग्म स्थान गोयखनाथ ने यानी बज
ु ावॊती का सॊऩण
ू ा वत्ृ तान्त
ऩछ
ू ा। तफ ऩज
ु ारयन ने सशवभॊददय की गप
ु ा ददखामी। याजा को सन
ु ामा। याजा को अऩने कृत्म ऩय ऩश् ाताऩ
गोयखनाथ ने गुरुवय के शयीय को गुपा भें यखा। फपय वे हुआ। उन्होंने यानी को याज्म से फाहय तनकार ददमा।
याजा से आऻा रेकय आगे तीथामािा के सरए तनकर गोयखनाथ ने याजा से कहा् "अफ तुभ तीसया वववाह
ऩड़े। कयो। तीसयी यानी के द्वारा तुम्हें एक अत्मॊत गुणवान,
12 वषा फाद गोयखनाथ ऩुन् फदरयकाश्रभ ऩहुॉ ।े फुविशारी औय दीघाजीवी ऩुि की प्रात्प्त होगी। वही
वहाॉ ौयॊ गीनाथ की गुपा भें प्रवेश फकमा। दे खा फक याज्म का उत्तयाधधकायी फनेगा औय तुम्हाया नाभ योशन
एकाग्रता, गुरुभॊि का जऩ तथा तऩस्मा के प्रबाव से कये गा।" याजा ने तीसया वववाह फकमा। उससे जो ऩुि
ौयॊ गीनाथ के कटे हुए हाथ-ऩैय ऩुन् तनकर आमे हैं। प्राप्त हुआ, सभम ऩाकय उस ऩय याज्म का बाय सौंऩकय
मह दे खकय गोयखनाथ अत्मॊत प्रसन्न हुए। फपय याजा वन भें रे गमे औय ईश्वयप्रात्प्त के साधन भें
ौयॊ गीनाथ को सबी ववद्याएॉ ससखाकय तीथामािा कयने रग गमे। गोयखनाथ के साथ तीथों की मािा कयके
साथ भें रे गमे। रते- रते वे कौंडडण्मऩुय ऩहुॉ ।े वहाॉ ौयॊ गीनाथ फदरयकाश्रभ भें यहने रगे।
याजा शशाॊगय के फाग भें रुक गमे। गोयखनाथ ने इस प्रकाय गुरुकृऩा से कृष्णागय को गुरुभॊि
ौयॊ गीनाथ तो आऻा दी फक याजा के साभने अऩनी प्राप्त हुवा गुरुभॊि का तनष्ठा से जऩ कय के उन्हें
शत्क्त प्रदसशात कये । ससविमा प्राप्त हुई व अऩना खोमा हुवा भान-सभान ऩन
ू ्
ौयॊ गीनाथ ने वातास्ि भॊि से असबभॊत्रित बस्भ प्राप्त हुवा।

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17 - 2018

आरुणण की गुरुबत्क्त

ऩौयाणणक कथा के अनुशाय भहवषा आमोदधौम्म रुक गमा।
के आश्रभ भें फहुत से सशष्म थे। सबी सशष्म गरु ु दे व उस ददन ऩयू ी यात आरुणण ऩानीबये खेतभें भेड़से
भहवषा आमोदधौम्म की फड़े प्रेभ से सेवा कयते थे। एक सटे ऩड़े यहे । सदॊ से उनका साया शयीय बी अकड़ गमा,
ददन सॊध्मा के सभम वषाा होने रगी। भौसभ को दे खते रेफकन गरु
ु दे व के खेतका ऩानी फहने न ऩामे, इस वव ाय
हुएॊ अॊदाजा रगना भत्ु श्कर था की अगरे कुछ सभम से वे न तो ततनक बी दहरे औय न उन्होंने कयवट
तक वषाा होगी मा नहीॊ, इसका कुछ ठीक-दठकाना नहीॊ फदरी। इस कायण आरुणण के शयीयभें बमॊकय ऩीड़ा होते
था। वषाा फहुत जोयसे हो यही थी। भहवषाने सो ा फक यहने ऩय बी वे ऩ
ु ाऩ ऩड़े यहे । सफेया होने ऩय ऩज
ू ा
कहीॊ अऩने धान के खेत की भेड़ अधधक ऩानी बयने से औय हवन कयके सफ सशष्म गुरुदे व को प्रणाभ कयते थे।
टूट जामगी तो खेतभें से सफ ऩानी फह जामगा। ऩीछे भहवषा आमोदधौम्मने दे खा फक आज सफेये आरुणण
फपय वषाा न हो तो धान त्रफना ऩानी के सूख जामेगा। प्रणाभ कयने नहीॊ आमा।
हवषाने आरुणण से कहा—‘फेटा आरुणण !तुभ खेत ऩय भहवषाने दस
ू ये ववद्याधथामोंसे ऩूछा:‘आरुणण कहाॉ है ?’
जाकय दे खो, की कही भेड़ टूटनेसे खेत का ऩानी फह न ववद्याधथामों ने कहा: ‘कर शाभको आऩने आरुणण को
जाम।’ खेतकी भेड़ फाॉधनेको बेजा था, तफसे वह रौटकय नहीॊ
आरुणण अऩने गुरुदे व की आऻा ऩाकय वषाा भें आमा।’
बीगते हुए खेतऩय रे गमे। वहाॉ जाकय उन्हें ने दे खा फक भहवषा उसी सभम दस
ू ये विद्यर्थथयों को साथ रेकय
खेतकी भेड़ एक स्थान ऩय टूट गमी है औय वहाॉ से फड़े आरुणण को ढूॉढ़ने तनकर ऩड़े। भहवषा ने खेत ऩय जाकय
जोयसे ऩानी फाहय तनकर यहा है । आरुणण ने टूटे हुए आरुणण को ऩुकाया। आरुणण से ठण्ड के भाये फोरा तक
स्थान ऩय सभट्टी यखकय भेड़ फाॉधना ाहा। ऩानी वेग से नहीॊ जाता था। उन्होंने फकसी प्रकाय अऩने गुरुदे वकी को
तनकर यहा था औय वषाा से सभट्टी बी गीरी हो गमी थी, उत्तय ददमा। भहवषा ने वहाॉ ऩहुॉ कय अऩने आऻाकायी
इस सरमे आरुणण त्जतनी सभट्टी भेड़ फाॉधने के सरमे सशष्मको उठाकय रृदम से रगा सरमा, आशीवााद
यखते थे, उसे ऩानी फहा रे जाता था। फहुत दे य ऩरयश्रभ ददमा:‘ऩुि आरुणण ! तुम्हें सफ ववद्याएॉ अऩने-आऩ ही आ
कयके बी जफ आरुणण भेड़ न फाॉध सके तो वे उस टूटी जामॉ।’ अऩने गुरुदे व के आशीवााद से आरुणण फड़े बायी
भेड़के ऩास स्वमॊ रेट गमे। उनके शयीयसे ऩानीका फहाव विद्वान हो गए।

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18 - 2018

सद् गुरु के त्माग से दरयद्रता आती हैं



सशवाजी के गुरुदे व श्री सभथा याभदास के इदा - आऩकी भण्डरी भें यहूॉगा, बजन-कीतान आदद करूॉगा।
धगदा याजसी औय बोजन-बगत फहुत हो गमे थे। आऩकी सेवा भें यहूॉगा।"
तुकायाभजी की बक्त सादगी मुक्त यहते थे। सभथा जी ने ऩूछा् "तू ऩहरे कहाॉ यहता था?"
तुकायाभजी कहीॊ बी बजन-कीतान कयने जाते तो सशष्म फोरा: "तुकायाभजी भहायाज के वहाॉ।" ।
कीतान कयानेवारे गह
ृ स्थ का सीया-ऩूड़ी, आदद बोजन "तुकायाभजी भहायाज से तूने गुरुभॊि सरमा है तो
ग्रहण नहीॊ कयते थे। तक
ु ायाभजी सादी-सूदी योटी, तॊदयू भैं तुझे कैसे भॊि दॉ ?ू
की बाजी औय छाछ रेते। घोड़ागाडी, ताॉगा आदद का अगय भेया सशष्म फनना है , भेया भॊि रेना है तो
उऩमोग नहीॊ कयते औय ऩैदर रकय जाते। उनका तुकायाभजी को भॊि औय भारा वाऩस दे आ। ऩहरे
जीवन एक तऩस्वी का जीवन था। गुरुभॊि का त्माग कय तो भैं तेया गुरु फनॉू।"
तक
ु ायाभजी के कई साये सभथाजी ने उसको
सशष्मो भें से एक सशष्म न्व सत्म सभझाने के सरए
दे खा फक सभथा याभदास के वाऩस बेज ददमा। सशष्म तो
साथ भें जो रोग जाते हैं वे खश
ु हो गमा फक भैं अबी
अछछे कऩड़े ऩहनते हैं, सीया- तक
ु ायाभजी का त्माग कयके
ऩड़
ू ी आदद उत्तभ प्रखाय के आता हूॉ।
व्मॊजन खाते हैं। कुछ बी हो, तुकायाभ जैसे
सभथा याभदास सशवाजी सदगुरु का त्माग कयने की
भहायाज के गुरु हैं , अथाात कुफुवि सशष्म को आमी ?
याजगुरु हैं। उनके महाॊ यहने सभथाजी ने उसको
वारे सशष्मों को खाने-ऩीने सफक ससखाने का तनश् म
का, अभन- भन आदद का, फकमा।
खफ
ू भौज है । उनके सशष्मों र
े ा खश
ु होता हुआ
को सभाज भें भान-सम्भान तुकायाभजी के ऩास ऩहुॉ ा्
बी सभरता है । हभाये गुरु "भहायाज ! भुझे
तुकायाभजी भहायाज के ऩास आऩका सशष्म अफ नहीॊ
कुछ नहीॊ है । भखभर के यहना है ।"
गद्दी-तफकमे नहीॊ, खाने-ऩहनने तुकायाभजी ने कहा्
की ठीक व्मवस्था नहीॊ। महाॉ यहकय क्मा कयें ? "भैंने तुझे सशष्म फनाने के सरए खत सरखकय फुरामा
सशष्म के ध तभें इस प्रकाय का ध त
ॊ न-भनन ही कहाॉ था ? तू ही अऩने आऩ आकय सशष्म फना था,
कयते-कयते सभथा याभदास की भण्डरी भें जाने का बाई ! कण्ठी भैंने कहाॉ ऩहनाई है ? तूने ही अऩने हाथ
आकषाण ऩैदा हो गमा हुआ। से फाॉधी है । भेये गुरुदे व ने जो भॊि भुझे ददमा था वह
सशष्म ऩहुॉ ा सभथाजी के ऩास औय हाथ जोड़कय तुझे फता ददमा। उसभें भेया कुछ नहीॊ है ।"
प्राथाना की् "भहायाज ! आऩ भुझे अऩना सशष्म फनामें।
19 - 2018

सशष्म: "फपय बी भहायाज ! भुझे मह कण्ठी नहीॊ सभथाजी ने सुनाददमा् "तेये जैसे गुरुद्रोही को भैं
ादहए।" सशष्म फनाऊॉगा ? जा बाई, जा। अऩना यास्ता नाऩ।"
तुकायाभजी: "नहीॊ ादहए तो तोड़ दो।" वह तो याभदासजी के सभऺ कान ऩकड़कय उठ-

े े ने खीॊ कय कण्ठी तोड़ दी। "अफ आऩका फैठ कयने रगा, नाक यगड़ने रगा। योते-योते प्राथाना
भॊि ?" कयने रगा। तफ करुणाभूतता स्वाभी याभदास ने कहा्
तुकायाभजी ने कहा:"वह तो भेये गुरुदे व आऩाजी "तुकायाभजी उदाय आत्भा हैं। वहाॉ जा। भेयी ओय से

ै न्म का प्रसाद है । उसभें भेया कुछ नहीॊ है ।" प्राथाना कयना। कहना फक सभथा ने प्रणाभ कहे हैं। तू
सशष्म फोरा: "भहायाज ! भुझे वह नहीॊ ादहए। अऩनी गरती की ऺभा भाॉगना।"
भुझे तो दस
ू या गुरु कयना है ।" सशष्म अऩने गुरु के ऩास वाऩस रौटा।
तुकायाभजी फोरे: "अछछा, तो भॊि त्माग दे ।" तुकायाभजी सभझ गमे फक सभथा का बेजा हुआ है तो
"कैसे त्मागॉू ?" भैं इन्काय कैसे करूॉ ?
"भॊि फोरकय ऩत्थय ऩय थक
ू दे । भॊि का त्माग फोरे् "अछछा बाई ! तू आमा था, कण्ठी सरमा
हो जामगा।" था। हभने दी, तूने छोड़ी। फपय रेने आमा है तो फपय दे
उस अबागे सशष्म ने गरु
ु भॊि का त्माग कयने के दे ते हैं। सभथा ने बेजा है तो रो ठीक है । सभथा की
सरए भॊि फोरकय ऩत्थय ऩय थक
ू ददमा। जम हो !"
तफ अनोखी घटना घटी। ऩत्थय ऩय थक
ू ते ही स्वमॊ बगवान शॊकयजी ने कहाॊ हैं:
वह भॊि उस ऩत्थय ऩय अॊफकत हो गमा। गुरुत्मागत ् बवेन्भृत्मु् भॊित्मागात ् दरयद्रता।
सशष्म तक
ु ायाभजी के महाॊ से वह गमा सभथा जी गुरुभॊिऩरयत्मागी यौयवॊ नयकॊ व्रजेत ्।। (गरु
ु गीता)
के ऩास। फोरा् "भहायाज ! भैं भॊि औय कण्ठी वाऩस दे विद्वानो के अनश
ु ाय गरु
ु बत्क्तमोग के अनश
ु ाय एक फाय
आमा हूॉ। अफ आऩ भझ
ु े अऩना सशष्म फनाओ।" गरु
ु कय रेने के फाद गरु
ु का त्माग नहीॊ कयना ादहए।
सभथा जी ने ऩूछा: "भॊि का त्माग फकमा उस गुरु का त्माग कयने से तो मह अछछा है फक सशष्म
सभम क्मा हुआ था ?" ऩहरे से ही गुरु न कये औय सॊसाय भें सड़ता यहे ,
सशष्म फोरा: "वह भॊि ऩत्थय ऩय अॊफकत हो गमा बटकता यहे । एक फाय गुरु कयके उनका त्माग कबी
था।" नहीॊ कयना ादहए।
सभथाजी फोरे: "ऐसे गरु
ु दे व का त्माग कयके
आमा त्जनका भॊि ऩत्थय ऩय अॊफकत हो जाता है ?
ऩत्थय जैसे ऩत्थय ऩय भॊि का प्रबाव ऩड़ा रेफकन तुझ
ऩय कोई प्रबाव नहीॊ ऩड़ा तो कभफख्त तू भेये ऩास क्मा
रेने आमा है ? तू तो ऩत्थय से बी गमा फीता है तो
इधय तू क्मा कये गा ? खाने के सरए आमा है ?"
सशष्म फोरा:"भहायाज ! वहाॉ गुरु का त्माग फकमा
औय महाॉ आऩने भुझे रटकता यखा ?"
सभथाजी फोरे: "तेये जैसे रटकते ही यहते हैं।
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20 - 2018

भॊिजाऩ से शास्िऻान

याभवल्रबशयणजी फकसी सॊत के दशानगमे।
सॊत ने ऩूछा् तूम्हें "क्मा ादहए?"
याभवल्रबशयण् "भहायाज ! बगवान इश्वय की बत्क्त औय शास्िों का ऻान ादहए।"
याभवल्रबशयणजी ने ईभानदायी से भाॉगा था।
याभवल्रबशयजी का सछ ाई का जीवन था। कभ फोरते थे। उनके सबतय बगवान के
सरए तड़ऩ थी।
सॊत ने ऩूछा् "ठीक है । फस न?"
याभवल्रबशयण् "जी, भहायाज।"
सॊत ने हनुभानजी का भॊि ददमा।
याभवल्रबशयजी एकाग्रध त्त होकय ऩूणा तनष्ठा व तत्ऩयता से भॊि जऩ कय यहे थे। भॊि
जऩ कयते सभम हनुभानजी प्रकट हो गमे।
हनुभान जी ने ऩूछा: "क्मा ादहए?"
"आऩके दशान तो हो गमे। शास्िों का ऻान ादहए।"
हनुभानजी् "फस, इतनी सी फात? जाओ, तीन ददन के अॊदय तूभ त्जतने बी ग्रन्थ दे खोगे
उन सफका अथासदहत असबप्राम तम्
ु हाये रृदम भें प्रकट हो जामेगा।"
याभवल्रबशयजी काशी रे गमे औय काशी के ववश्वववद्यारम आदद के ग्रॊथ दे खे। वे फड़े
बायी विद्वान हो गमे। त्जन्होंने याभवल्रबशयजी के साथ वातााराऩ फकमा औय शास्ि-
ववषमक प्रश्नोत्तय फकमे हैं वे ही रोग उन्हें बरीप्रकाय से जानते हैं । दतु नमा के अछछे -
अछछे विद्वान उनका रोहा भानते हैं। याभवल्रबशयजी केवर भॊिजाऩ कयते-कयते
अनुष्ठान भें सपर हुए। हनुभानजी के साऺात दशान हो गमे औय तीन ददन के अॊदय
त्जतने शास्ि दे खे उन शास्िों का असबप्राम उनके रृदम भें प्रकट हो गमा।

नवयत्न जडड़त श्री मॊि शास्ि व न के अनुसाय शुि सव


ु णा मा यजत भें तनसभात श्री मॊि के ायों औय मदद
नवयत्न जड़वा ने ऩय मह नवयत्न जडड़त श्री मॊि कहराता हैं। सबी यत्नो को उसके तनत्श् त स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट
के रूऩ भें धायण कयने से व्मत्क्त को अनॊत एश्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रात्प्त होती हैं। व्मत्क्त को एसा आबास होता हैं
जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्क्त
ऩय प्रबाव नहीॊ होता हैं। गरे भें होने के कायण मॊि ऩववि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं, वह गॊगा जर के सभान ऩववि होता हैं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदातम
कहजाता हैं। जैसे अभत
ृ से उत्तभ कोई औषधध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रात्प्त के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि
सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्िोक्त व न हैं। इस प्रकाय के नवयत्न जडड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्वाया शुब भुहूता भें
प्राण प्रततत्ष्ठत कयके फनावाए जाते हैं। Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से अधधक >> Order Now
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21 - 2018

एकरव्म की गुरुबत्क्त

ऩौयाणणक कथा के अनुशाय दहयण्मधनु का ‘कुत्ते के भॉह
ु भें ोट न रगे इस प्रकाय फाण भायने की
एकरव्म नाभ का एक रड़का था। दहयण्मधनु जातत से विद्या तो भैं बी नहीॊ जानता!’
बीर थे। अजुन
ा ने गुरु द्रोणा ामा से कहा् "गुरूदे व! आऩने
उस कार भें धनुर्थिद्या भें द्रोणा ामाजी को तो कहा था फक तेयी फयाफयी कय सके ऐसा कोई बी
भहायथ हाससर थी इस सरमे उनका नाभ व कीतता ायो धनुधाायी नहीॊ होगा ऩयॊ तु ऐसी अद्भत
ु औय अनोखी
औय पेरी हुई थी। द्रोणा ामा जी कौयवों एवॊ ऩाॊडवों के विद्या तो भैं बी नहीॊ जानता।"
गुरु थे इस सरमे उन्हें धनुर्थिद्या सशखाते थे। एकरव्म द्रोणा ामा बी वव ाय भें ऩड़ गमे। इस जॊगर भें
धनुर्थिद्या सीखने के उद्देश्म से गुरु द्रोणा ामा के ऩास ऐसा कुशर धनुधया कौन होगा? आगे जाकय दे खा तो
गमा रेफकन द्रोणा ामा ने कहा फक वे याजकुभायों के उन्हे दहयण्मधनु का ऩुि एकरव्म ददखामी ऩड़ा।
अरावा औय फकसी को धनुर्थिद्या नहीॊ ससखा सकते। द्रोणा ामा ने ऩूछा् "फेटा! तुभने मह विद्या कहाॉ
द्रोणा ामा जी के भना कयने के फावजुद एकरव्म से सीखी?"
ने भन-ही-भन द्रोणा ामा को अऩना गुरु भान सरमा था। एकरव्म ने कहा् "गुरुदे व! आऩकी कृऩा से ही
इस के सरए एकरव्म की गुरु द्रोणा ामा जी के प्रतत सीखी है ।"
श्रिा कभ नहीॊ हुई। द्रोणा ामा तो अजुन
ा को व न दे क
ु े थे फक
एकरव्म वहाॉ से वाऩस घय न जाकय सीधे ू या धनुधया नहीॊ होगा फकॊतु एकरव्म
उसके जैसा कोई दस
जॊगर भें रा गमा। वहाॉ जाकय उसने द्रोणा ामा की तो अजुन
ा से बी आगे फढ़ गमा।
सभट्टी की भूतता फनामी। एकरव्म हययोज गुरुभूतता का द्रोणा ामा ने एकरव्म से कहा् "भेयी भूतता को
ऩूजन कयता, फपय उसकी तयप एकटक दे खते-दे खते साभने यखकय तुभने धनुर्थिद्या तो सीखी ऩयॊ तु
ध्मान कयता औय उससे प्रेयणा रेकय धनुर्थिद्या का गुरुदक्षऺणा?"
अभ्मास कयता हुवा धनुर्थिद्या सीखने रगा। एकाग्रता के एकरव्म ने कहा् "आऩ जो भाॉगें।" द्रोणा ामा ने कहा्
कायण एकरव्म को प्रेयणा सभरने रगी। इस प्रकाय "तुम्हाये दादहने हाथ का अॉगूठा।" एकरव्म ने एक ऩर
अभ्मास कयते-कयते वह धनुर्थिद्या भें फहुत आगे फढ़ बी वव ाय फकमे त्रफना अऩने दादहने हाथ का अॉगठ
ू ा काट
गमा। कय गुरुदे व के यणों भें अवऩात कय ददमा।
एक फाय द्रोणा ामा धनुर्थिद्या के अभ्मास के सरए द्रोणा ामा ने कहा् "ऩि
ु ! अजन
ुा बरे ही धनुर्थिद्या
ऩाॊडवों औय कौयवों को जॊगर भें रे गमे। उनके साथ भें सफसे आगे यहे क्मोंफक भैं उसको व न दे क
ु ा हूॉ
एक कुत्ता बी था, वह दौड़ते-दौड़ते आगे तनकर गमा। ऩयन्तु जफ तक सूम,ा ाॉद औय नऺि यहें गे, तुम्हाया
जहाॉ एकरव्म धनुर्थिद्या का अभ्मास कय यहा था, वहाॉ गुणगान होता यहे गा।" एकरव्म की गुरुबत्क्त उसे
वह कुत्ता रुक गमा। एकरव्म के ववध ि वेष को धनुर्थिद्या भें सपरता के साथ ही द्रोणा ामा जैसे विद्वान
दे खकय कुत्ता बौंकने रगा। को गुरुदक्षऺणा भें अऩना अॊगूठा दे कय उनके रृदम भें
एकरव्म ने कुत्ते को ोट न रगे औय उसका
अऩने सरए आदय प्रकट कय ददमा। विद्वानो के
बौंकना बी फॊद हो जाए इस प्रकाय उसके भॉह
ु भें सात भातानुशाय गुरुबत्क्त, श्रिा औय रगनऩूवक
ा कोई बी
फाण बय ददमे।
कामा कयने से अवश्म सपरता प्राप्त होती है ।
जफ कुत्ता इस दशा भें द्रोणा ामा के ऩास ऩहुॉ ा
तो कुत्ते की मह हारत दे खकय अजुन ा को वव ाय आमा् ***
22 - 2018

श्रीकृष्ण की गुरूसेवा

सहस्ि भुखो से बी गुरु की भदहभा फखाण ना सॊबव नहीॊ हैं। क्मोकी गुरु की भदहभा अऩयॊ ऩाय हैं। इसी सरमे
तो स्वमॊ बगवान को बी जगत के कल्माणा हे तु जफ भानवरूऩ भें अवतरयत होना ऩडता हैं तो ऻान प्रात्प्त हे तु गुरू
की आवश्मक्ता होती हैं।
ऩौयाणणक शास्िो के अनुशाय द्वापर मुग भें जफ बगवान श्रीकृष्ण जफ बूरोक ऩय अवतरयत हुए।ॊ काराॊतय भें
कॊस का ववनाश होने के ऩश् मात बगवान श्रीकृष्ण ने शास्िोक्त ववधध-ववधान से अऩने हाथ भें ससभधा रेकय अऩने
गुरू श्रीसाॊदीऩनी के आश्रभ भें गमे। गुरुआश्रभ भें श्रीकृष्ण बत्क्तऩूवक
ा गुरू की सेवा कयने रगे। गुरू आश्रभ भें
सेवा कयते हुए बगवान श्रीकृष्ण ने वेद-वेदाॊग, उऩतनषद, भीभाॊसादद
षड्दशान, ऄस्त्र-शस्त्रविद्या, धभाशास्ि औय याजनीतत आदद अनेको विद्याएं
प्राप्त की। श्रीकृष्ण नें अऩनी प्रखय फुवि के कायण गुरू के
एक फायफताने भाि से ही सफ सीख सरमा। ववष्णुऩुयाण के अनुशाय
श्रीकृष्ण ने 64 कराएॉ केवर64 ददन भें ही सीख रीॊ। जफ विद्या
अभ्मास ऩण ू ा हुआ, तफ श्रीकृष्ण ने गुरूदे व से दक्षऺणा हे तु
अनयु ोध फकमा। श्रीकृष्ण् "गरू
ु दे व ! आऻा कीत्जए, भैं आऩकी क्मा
सेवा करूॉ ?" गरू
ु ् "कोई आवश्मकता नहीॊ है।" श्रीकृष्ण् "गरू
ु दे व
आऩको तो कुछ नहीॊ ादहए, फकॊतु हभें ददमे त्रफना न
ै नहीॊ ऩड़ेगा।
कुछ तो आऻा कयें !" गरू
ु ् "अछछा जाओ, अऩनी गरू
ु भाॉ से ऩछ

रो।" श्रीकृष्ण गरू
ु ऩत्नी के ऩास गमे औय फोरे् "भाॉ ! कोई
सेवा हो तो फताइमे।"
गुरूऩत्नी जानती थीॊ फक श्रीकृष्ण कोई साधायण भानव नहीॊ स्वमॊ
बगवान हैं, अत् वे फोरी् "भेया ऩुि प्रबास ऺेि भें भय गमा है ।
उसे राकय दे दो ताफक भैं उसे ऩम् ऩान कया सकॉू ।"
श्रीकृष्ण फोरे: "जो आऻा।"
श्रीकृष्ण यथ ऩय सवाय होकय प्रबास ऺेि ऩहुॉ ।े सभुद्र ने
उन्हें दे खकय उनकी मथामोग्म ऩूजा की। श्रीकृष्ण फोरे् "तुभने अऩनी फड़ी फड़ी रहयों से हभाये गुरूऩि
ु को हय सरमा
था। अफ उसे शीि रौटा दो।"
सभुद्र् "भैंने फारक को नहीॊ हया है, भेये बीतय शॊखरूऩ से ऩॊ जन नाभक एक फड़ा दै त्म यहता है , तनसॊदेह उसी ने
आऩके गुरूऩुि का हयण फकमा है ।"
श्रीकृष्ण ने उसीऺण जर के बीतय घुसकय ऩॊ जन नाभक दै त्म को भाय डारा, ऩय उसके ऩेट भें गुरूऩुि
नहीॊ सभरा। तफ उसके शयीय का ऩाॊ जन्म शॊख रेकय श्रीकृष्ण जर से फाहय तनकर कय मभयाज की मभनी ऩुयी भें
गमे। वहाॉ बगवान ने उस शॊख को फजामा। कथा कहती हैं फक शॊख ध्वतन को सुनकय नायकीम जीवों के ऩाऩ नष्ट
हो गमे औय वे सबी जीव वैकॊु ठ ऩहुॉ गमे।
मभयाज ने श्रीकृष्ण को दे खकय उनकी फड़ी बत्क्त के साथ ऩूजा की औय प्राथाना कयते हुए कहा् "हे ऩुरूषोत्तभ ! भैं
आऩकी क्मा सेवा करूॉ ?"
23 - 2018

श्रीकृष्ण् "तुम्हाये दत
ू कभाफॊधन के अनुसाय हभाये गुरूऩुि को महाॉ रे आमे हैं। उसे भेयी आऻा से वाऩस दे दो।"
'जो आऻा' कहकय मभयाज उस फारक को रे आमे।
श्रीकृष्ण ने गरू
ु ऩि
ु को, त्जस रुऩ भें वह भया था उसी रुऩभें ऩन
ू ् उसका शयीय फनाकय, यत्नादद के साथ गरू
ु यणों
भें अवऩात कय ददमा।
श्रीकृष्ण ने कहा्"गुरूदे व ! औय जो कुछ बी आऩ ाहें , आऻा कयें ।"
गुरूदे व् "वत्स ! तुभने अऩनी गुरूदक्षऺणा बरी प्रकाय से सॊऩन्न कय दी। तुम्हाये जैसे सशष्म से गुरू की कौन-सी
काभना अवशेष यह सकती है ?
वत्स ! अफ तुभ अऩने घय जाओ।
गुरूदे व ने श्रीकृष्ण को आशशवााद दे ते हुवे कहां वत्स ! तुम्हायी कीतता श्रोताओं को ऩववत्र कयने वारी होगी औय
तम्
ु हाये द्वारा अर्जात ऻान व विद्या हय सभम उऩर्स्थत औय नवीन फनी यहकय सबीरोक भें तम्
ु हाये अबीष्ट पर को
दे ने भें सभथा हों।"

कनकधाया मॊि
आज के बौततक मुग भें हय व्मत्क्त अततशीि सभि
ृ फनना ाहता हैं।
कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से व्मत्क्त के जन्भों जन्भ के
ऋण औय दरयद्रता से शीि भुत्क्त सभरती हैं। मॊि के प्रबाव से व्माऩाय
भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। कनकधाया
मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हे तु
अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को ववद्वानो ने
स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं।
आज के मुग भें हय व्मत्क्त अततशीि सभि
ृ फनना ाहता हैं। धन
प्रात्प्त हे तु प्राण-प्रततत्ष्ठत कनकधाया मॊि के साभने फैठकय कनकधाया
स्तोि का ऩाठ कयने से ववशेष राब प्राप्त होता हैं। इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से ऋण औय दरयद्रता
से शीि भुत्क्त सभरती हैं। व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। जैसे श्री आदद
शॊकया ामा द्वारा कनकधाया स्तोि फक य ना कुछ इस प्रकाय की गई हैं , फक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-
ऩास के वामुभॊडर भें ववशेष अरौफकक ददव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं। दठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब

मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हे तु अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को
ववद्वानो ने स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। जगद्गुरु शॊकया ामा ने दरयद्र
ब्राह्भण के घय कनकधाया स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय ददत्ग्वजम भें सभरता हैं।
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24 - 2018

दे ववषा नायद ने एक भल्राह को अऩना गुरु फनामा



ऩौयाणणक कथा के अनुशाय एक फाय दे ववषा नायद ने वैकुण्ठ भें प्रवेश फकमा। प्रवेश कयते ही बगवान ववष्णु औय
रक्ष्भी जी "दे ववषा नायद" का खफ
ू आदय-सत्काय कयने रगे।
बगवान ववष्णु ने नायदजी का हाथ ऩकड़ा औय आयाभ कयने को कहा। एक तयप बगवान ववष्णु नायद जी की सेवा
कय यहे हैं औय दस
ू यी तयप रक्ष्भी जी ऩॊखा हाॉक यही हैं।
नायद जी कहते हैं- "बगवान ! अफ छोड़ो। मह रीरा फकस फात की है ?
नाथ ! मह क्मा याज सभझाने की मुत्क्त है ? आऩ भेयी सेवा कय यहे हैं औय भाता जी ऩॊखा हाॉक यही हैं ?"
"नायद ! तू गुरूओॊ के रोक से आमा है । मभऩुयी भें ऩाऩ बोगे जाते हैं, वैकुण्ठ भें ऩुण्मों का पर बोगा जाता है
रेफकन भत्ृ मुरोक भें सदगुरू की प्रात्प्त होती है औय जीव सदा के सरए भुक्त हो जाता है।
भारूभ होता है, तू फकसी गुरू की शयण ग्रहण कयके आमा है ।"
नायदजी को अऩनी बर
ू का अहसास कयाने के सरए बगवान मे सफ प्रमास कय यहे थे।
नायद जी ने कहा् "प्रबु ! भैं बक्त हूॉ रेफकन तनगयु ा (तनगयु ा अथाात त्जसका कोई गरु
ु नहीॊ) हूॉ।
गरू
ु क्मा दे ते हैं ? गरू
ु का भाहात्म्म क्मा होता है आऩ मह फताने की कृऩा कयो बगवान !"
"गरू
ु क्मा दे ते हैं..... गरु
ु का भाहात्म्म क्मा होता है मह जानना हो तो गरू
ु ओॊ के ऩास जाओ। मह वैकुण्ठ है ।
"नायद ! जा, तू फकसी गरू
ु की शयण रे। फाद भें इधय आ।"
दे ववषा नायद गरू
ु की खोज कयने भत्ृ मर
ु ोक भें आमे। सो ा फक भझ
ु े प्रबातकार भें जो सवाप्रथभ सभरेगा उसको भैं
गुरू भानॉग
ू ा। प्रात्कार भें सरयता के तीय ऩय गमे। दे खा तो एक आदभी शामद स्नान कयके आ यहा है । हाथ भें
जरती अगयफत्ती है । नायद जी ने भन ही भन उसको गुरू भान सरमा। ऩास ऩहुॉ े तो ऩता रा फक वह भाछीभाय
है , दहॊसक है । (भल्राह के रूऩ भें आददनायामण ही आमे थे।) नायदजी ने अऩना सॊकल्ऩ फताते हुएॊ कहाॊ: "हे भल्राह
! भैंने आऩको गुरू भान सरमा है ।"

श्री भहारक्ष्भी मंत्र


धन फक दे वी रक्ष्भी हैं जो भनुष्म को धन, सभवृ ि एवॊ ऐश्वमा प्रदान कयती हैं। अथा(धन) के त्रफना भनुष्म जीवन
द्ु ख, दरयद्रता, योग, अबावों से ऩीडडत होता हैं, औय अथा(धन) से मुक्त भनुष्म जीवन भें सभस्त सुख-सुववधाएॊ
बोगता हैं। श्री भहारक्ष्भी मॊि के ऩूजन से भनुष्म की जन्भों जन्भ की दरयद्रता का नाश होकय, धन प्रात्प्त के प्रफर
मोग फनने रगते हैं, उसे धन-धान्म औय रक्ष्भी की ववृ ि होती हैं। श्री भहारक्ष्भी मॊि के तनमसभत ऩूजन एवॊ दशान
से धन की प्रात्प्त होती है औय मॊि जी तनमसभत उऩासना से दे वी रक्ष्भी का स्थाई तनवास होता है । श्री भहारक्ष्भी
मॊि भनुष्म फक सबी बौततक काभनाओॊ को ऩूणा कय धन ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा हैं। अऺम तत
ृ ीमा, धनतेयस,
दीवावरी, गुरु ऩुष्माभत
ृ मोग यववऩुष्म इत्मादद शुब भुहूता भें मॊि की स्थाऩना एवॊ ऩूजन का ववशेष भहत्व हैं।
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25 - 2018

भल्राह ने कहा् "गुरू का भतरफ क्मा होता है ? हभ नहीॊ जानते गुरू क्मा होता है ?"
गुरु का भतरफ सभझाते हे तु दे ववषा नायद फोरे: "गु भाने अन्धकाय। रू भाने प्रकाश। अथाात ्:जो अऻानरूऩी अन्धकाय
को हटाकय ऻानरूऩी प्रकाश कय दें उन्हें गुरू कहा जाता है ।
आऩ भेये आन्तरयक जीवन के गुरू हैं।" नायदजी ने भल्राह के ऩैय ऩकड़ सरमे।
भल्राह फोरा: "छोड़ो भुझे !" नायद: "आऩ भुझे सशष्म के रूऩ भें स्वीकाय कय रो गुरूदे व!"
भल्राह ने ऩीछा छुड़ाने के सरए कहा् "अछछा, स्वीकाय है , जा।"
नायदजी आमे वैकुण्ठ भें । बगवान ने कहा् "नायद ! अफ तू तनगुया तो नहीॊ है ?"
"नहीॊ बगवान ! भैं गुरू कयके आमा हूॉ।" "कैसे हैं तेये गुरू ?" "जया धोखा खा गमा भैं। वह कभफख्त भल्राह सभर
गमा। अफ क्मा कयें ? आऩकी आऻा भानी। उसी को गरू ु फना सरमा।"
नायद की फात से बगवान नायाज हो गमे औय फोरे् "तूने गुरू शब्द का अऩभान फकमा है ।"जा, तुझे ौयासी राख
जन्भों तक भाता के गबों भें नका बोगना ऩड़ेगा।" नायद योमे, छटऩटामे। बगवान ने कहा् "इसका इराज महाॉ नहीॊ
है । मह तो ऩुण्मों का पर बोगने की जगह है । नका ऩाऩ का पर बोगने की जगह है। कभों से छूटने की जगह तो
वहीॊ है । तू जा उन गुरूओॊ के ऩास भत्ृ मुरोक भें ।" नायद आमे भत्ृ मुरोक भें ।
उस गुरु फनामे हुए भल्राह के ऩैय
ऩकड़े् "गरू
ु दे व ! उऩाम फताओ। ौयासी के क्कय से छूटने का उऩाम फताओ।" गरू
ु जी ने ऩयू ी फात जान री औय
कुछ सॊकेत ददमे। नायद फपय वैकुण्ठ भें ऩहुॉ ।े बगवान को कहा् "भैं ौयासी राख मोतनमाॉ तो बोग रॉ ग
ू ा रेफकन
कृऩा कयके उसका नक्शा तो फना दो ! जया ददखा तो दो नाथ ! कैसी होती है ौयासी ?
बगवान ने नक्शा फना ददमा। नायद उसी नक्शे भें रोटने-ऩोटने रगे।
"अये ! मह क्मा कयते हो नायद ?"
"बगवान ! वह ौयासी बी आऩकी फनाई हुई है औय मह ौयासी बी आऩकी ही फनामी हुई है। भैं इसी भें क्कय
रगाकय अऩनी ौयासी ऩूयी कय यहा हूॉ।"

बगवान ने कहा् "भहाऩुरूषों(गुरु) के नुस्खे बी अनोखे होते हैं। मह मुत्क्त बी तुझे उन्हीॊ से सभरी नायद !

 क्मा आऩके फछ े कुसॊगती के सशकाय हैं?

 क्मा आऩके फछ े आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं?

 क्मा आऩके फछ े घय भें अशाॊतत ऩैदा कय यहे हैं?

घय ऩरयवाय भें शाॊतत एवॊ फछ े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फछ े के नाभ से गरु


ु त्व कामाारत द्वाया
शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत ऩण
ू ा त
ै न्म मक्
ु त वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.डडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थावऩत कय अल्ऩ ऩज
ू ा, ववधध-ववधान से आऩ ववशेष
राब प्राप्त कय सकते हैं। मदद आऩ तो आऩ भॊि ससि वशीकयण कव एवॊ एस.एन.डडब्फी फनवाना
ाहते हैं, तो सॊऩका इस कय सकते हैं।

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26 - 2018

श्रीमद् अद्य शंकराचायय सदगुरू



एक सॊत नभादा फकनाये ओॊकाये श्वय तीथा भें फड़ा तेजस्वी रग यहा था। इस फार सॊन्मासी का
एकान्त गुपा भें आत्भशात्न्त व ऩयब्रह्भ ऩयभात्भा की सम्मक् ऩरय म ऩाकय उनका ववस्भम फढ़ गमा। फकतनी
शात्न्त भें ध्मानभग्न थे। उनके ध्मान की ाा दयू -दयू दयू केयर प्रदे श ! औय मह फछ ा वहाॉ से अकेरा ही
तक ायों औय पेरी हुई थी। वहॊ सॊत बगवान आमा है श्रीगुरू की आश भें । जफ उन्होंने दे खा फक इस
गोववन्दऩादा ामा थे। त्जन्होने अऩने स्वरूऩ का फोध हो अल्ऩ अवस्था भें ही वह बाष्म सभेत सबी शास्िों भें
गमा है । ऩायॊ गत है औय इसके परस्वरूऩ उसके भन भें वैयाग्म
नभादा फकनाये तऩ कयने वारे अन्म तऩस्वी श्री उत्ऩन्न हो गमा है तो उन सफका भन प्रसन्नता से बय
गोववन्दऩादा ामा के दशान कयने हे तु उसी गप
ु ा के तनकट गमा।
कुदटमा नाकय यहने रगे। उनका कहना था की इसी वहाॊ उऩत्स्थत फकसी ने ऩूछा् "क्मा नाभ है फेटे ?"
स्थान ऩय वे यहते-यहते फढ़
ू े हो गमे रेफकन अबी तक श्री "भेया नाभ शॊकय है ।"
ववन्दऩादा ामाजी की सभाधध नहीॊ खर
ु ी। इसी ववषम ऩय फछ े की ओजस्वी वाणी औय तीव्र त्जऻासा
अन्म मोगी, सॊत-स्नमासस उऩत्स्थत रोग ाा कय यहे दे खकय उन्होंने सभाधधस्थ फैठे भहामोगी गुरूवमा श्री

थे। तने भें उसी स्थान ऩय दक्षऺण बायत के केयर प्राॊत गोववन्दऩादा ामा के फाये भें कुछ फातें कही। तो वह

से ऩैदर रते हुए दो भहीने से बी अधधक सभम की तनदोष फारक बगवान गोववन्दऩादा ामा के दशान के
सरए तड़ऩ उठा।
मािा कयके शॊकय नाभ का फारक ऩहुॉ ा।
सॊन्माससमों ने कहा् "वह दयू जो गुपा ददखाई दे यही है
फारक फोरा: "भैंने नाभ सुना है बगवान
उसभें वे सभाधधस्थ हैं। अन्धेयी गुपा भें ददखाई नहीॊ
गोववन्दऩादा ामा का। वे ऩूज्मऩाद आ ामा कहाॉ यहते हैं?"
ऩड़ेगा इससरए मह दीऩक रे जा।"
सॊन्माससमों ने फतामा फक् "हभ बी उनके दशान का
दीमा जराकय उस फारक ने गुपा भें प्रवेश
इन्तजाय कय यहे है । उनकी सभाधध खर
ु े, औय उनकी
फकमा। ववस्भमता से ववभुग्ध होकय दे खा तो एक अतत
अभत
ृ फयसाने वारी तनगाहें हभ ऩय ऩड़ें, उनके
दीघाकाम, ववशार-बार-प्रदे शवारे, शान्त भुद्रा, रम्फी जटा
ब्रह्भानुबव के व नो से हभाये कान ऩववि हों इसी
औय कृश दे हवारे फपय बी ददव्म तेज से आरोफकत एक
इन्तजाय भें हभ बी नभादा फकनाये अऩनी कुदटमाएॉ
भहाऩुरूष ऩद्मासन भें सभाधधस्थ फैठे थे। उनके शयीय की
फनाकय फैठे हैं।" त्व ा सूख क
ु ी थी फपय बी उनका शयीय ज्मोततभाम
सॊन्माससमों ने उस फारक को तनहाया। वह फारक था।

ऩढाई से सॊफॊधधत सभस्मा


क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भें अनावश्मक रूऩ से फाधा-ववर्घन मा रुकावटे हो यही हैं? फछ ो को अऩने ऩूणा
ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उध त पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कॊु डरी का ववस्तत
ृ अध्ममन अवश्म
कयवारे औय उनके ववद्मा अध्ममन भें आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषों के तनवायण के उऩामो के
फाय भें ववस्ताय से जनकायी प्राप्त कयें ।
GURUTVA KARYALAY
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27 - 2018

बगवान गोववन्दऩादा ामा का दशान कयते ही शॊकय का वषा उन्होंने शॊकय को हठमोग की सशऺा दी। वषा ऩूया
योभ-योभ ऩुरफकत हो उठा। उसका भन एक प्रकाय से होने के ऩूवा ही शॊकय ने हठमोग भें ऩूणा ससि प्राप्त कय
अतनवा नीम ददव्म आनन्द से बय उठा। तनयन्तय आखो री। द्ववतीम वषा भें शॊकय याजमोग भें ससि हो गमे।
से फहते अश्रज
ु र से उनका वऺ् स्थर प्राववत हो गमा। हठमोग औय याजमोग की ससवि प्रात्प्त कयने के
उसकी मािा का ऩरयश्रभ साथाक हो गमा औय उसकी परस्वरूऩ शॊकय
फहुत फड़ी अरौफकक शत्क्त के
सायी थकान ऩरबय भें ही उतय गमी। अधधकायी फन गमे। दयू श्रवण, दयू दशान, सूक्ष्भ दे ह से
कयफि होकय फह फारक स्तुतत कयने रगा् व्मोभभागा भें गभन, अणणभा, रतघभा, दे हान्तय भें प्रवेश
इस सुन्दय बगवान की स्तुतत से गुपा गुन्ज एवॊ सवोऩरय इछछाभत्ृ मु शत्क्त के वे अधधकायी हो गमे।
उठी। तफ अन्म सॊन्मासी बी गुपा भें आ इकट्ठे हुए। तत
ृ ीम वषा भें गोववन्दऩादा ामा अऩने सशष्म को ववशेष
शॊकय तफ तक स्तवगान भें ही भग्न थे। ववस्भम मत्नऩूवक
ा ऻानमोग की सशऺा दे ने रगे। श्रवण, भनन,
ववभुग्ध ध त्त से सफने दे खा फक बगवान गोववन्दऩाद तनददध्मासन, ध्मान, धायणा, सभाधध का प्रकृत यहस्म
की वह तनश् र तनस्ऩन्द दे ह फाय-फाय कत्म्ऩत हो यही ससखा दे ने के फाद उन्होंने अऩने सशष्म को
है । प्राणों का स्ऩन्दन ददखाई दे ने रगा। ऺणबय भें ही साधनकभाानुसाय अऩयोऺनुबूतत के उछ स्तय भें दृढ़
उन्होंने एक दीघा तन्श्वास छोड़कय ऺु खोरे फकमे। प्रततत्ष्ठत कय ददमा।
शॊकय ने गोववन्दऩादा ामा बगवान को साष्टाॊग ध्मानफर से सभाधधस्थ होकय हय ऺण
प्रणाभ फकमा। दस
ू ये सॊन्मासी बी मोगीश्वय के यणों भें ददव्मानब
ु तू त से शॊकय का भन अफ सदै व एक अतीत्न्द्रम
प्रणत हुए। आनॊदध्वतन से गपु ा गॊत्ु जत हो उठी। तफ याज्म भें वव यण कयने रगा। उनकी दे ह भें ब्रह्भज्मोतत
प्रवीण सॊन्मासीगण मोगीयाज को सभाधध से सम्ऩूणा रूऩ प्रस्पुदटत हो उठी।
से व्मधथत कयाने के सरए मौधगक प्रफकमाओॊ भें तनमक्
ु त उनके भख
ु भण्डर ऩय अनऩ
ु भ रावण्म औय
हो गमे। क्रभ से मोगीयाज का भन जीवबसू भ ऩय उतय स्वगॉम हास झरकने रगा। उनके भन की सहज गतत
आमा। मथा सभम आसन का ऩरयत्माग कय वे गुपा से अफ सभाधध की ओय थी। फरऩूवक
ा उनके भन को
फाहय तनकरे। जीवबूसभ ऩय यखना ऩड़ता था। क्रभश् उनका भन
मोगीयाज की सहस्रों वषों की सभाधध एक फारक तनववाकल्ऩ बूसभ ऩय अधधरूढ़ हो गमा।
सॊन्मासी के आने से छूट गई है, मह फात द्रत
ु गतत से गोववन्दऩादा ामा ने दे खा फक शॊकय की साधना
ायौ ददशा भें पैर गमी। दयू स्थानों से मततवय के दशान औय सशऺा अफ सभाप्त हो क
ु ी है । सशष्म उस ब्राह्भी
की आकाॊऺा से रोगो ने आकय ओॊकायनाथ को एक त्स्थतत भें ऩहूॊ गमा है जहाॉ प्रततत्ष्ठत होने से श्रतु त
तीथाऺेि भें ऩरयणत कय ददमा। शॊकय का ऩरय म प्राप्त कहती है ्
कय गोववन्दाऩादा ामा ने जान सरमा फक मही वह सबद्यते रृदमग्रत्न्थत्श्छद्यन्ते सवासॊशमा्।
सशवावताय शॊकय है , त्जसे ऄद्वैत ब्रह्मविद्या का उऩदे श ऺीमन्ते ास्म कभााणण तत्स्भन ् दृष्टे ऩयावये ।।
कयने के सरए उन्होने सहस्र वषों तक सभाधध भें अथाात् मह ऩयावय ब्रह्भ दृष्ट होने ऩय दृष्टा का ऄविद्या
अवस्थान फकमा औय अफ मही शॊकय वेद-व्मास यध त आदद सॊस्कायरूऩ रृदमग्रत्न्थ-सभूह नष्ट हो जाता है एवॊ
ब्रह्भसूि ऩय बाष्म सरखकय जगत भें ऄद्वैत ब्रह्मविद्या (प्रायब्धसबन्न) कभायासश का ऺम होने रगता है ।
का प्र ाय कये गा। शॊकय अफ उसी दर
ु ब
ा अवस्था भें प्रततत्ष्ठत हो गमे।
एक शुब ददन श्रीगोववन्दऩादा ामाजी ने शॊकय को वषाा ऋतु का आगभन
हुआ। नभादा-वेत्ष्टत
सशष्म रूऩ भें ग्रहण कय सरमा औय उसे मोगादद की ओॊकायनाथ की शोबा अनुऩभ हो गमी। कुछ ददनों तक
सशऺा दे ने रगे। शॊकय के साथ-साथ अन्मान्म अववयाभ दृत्ष्ट होती यही। नभादा का जर क्रभश् फढ़ने
सॊन्माससमों ने बी उनका सशष्मत्व ग्रहण फकमा। प्रथभ रगा। सफ कुछ जरभम ही ददखाई दे ने रगा।
28 - 2018

ग्राभवाससमों ने ऩारतू ऩशुओॊ सभेत ग्राभ का त्मागकय तुम्हें आशीवााद दे ता हूॉ फक तुभ सभग्र वेदाथा ब्रह्भसूि
तनयाऩद उछ स्थानों भें आश्रम रे सरमा। बाष्म भें सरवऩफि कयने भें सपर होंगे।"
गुरूदे व कुछ ददनों से गुपा भें सभाधधस्थ हुए फैठे श्री गोववन्दऩादा ामा ने जान सरमा फक शॊकय की
थे। फाढ़ का जर फढ़ते-फढ़ते गुपा के द्वार तक आ सशऺा सभाप्त हो गई है । उनका कामा बी सम्ऩूणा हो
ऩहुॉ ा। गमा है । एक ददन उन्होंने शॊकय को अऩने तनकट
सॊन्मासीगण गुरूदे व का जीवन ववऩन्न दे खकय फुराकय ऩूछा की् वत्स ! क्मा तुम्हाये भन भें फकसी
फहुत शॊफकत होने रगे। गुपा भें फाढ़ के जर का प्रवेश प्रकाय का कोई सन्दे ह है ? क्मा तुभ बीतय फकसी प्रकाय
योकना आवश्माक था क्मोंफक वहाॉ गुरूदे व सभाधधस्थ थे। अऩूणत
ा ा का अनुबव कय यहे हो ? अथवा तुम्हें अफ क्मा
सभाधध से दयू कय उन्हे फकसी तनयाऩद स्थान ऩय रे कोई त्जऻासा है ?"
रने के सरमे सबी व्मग्र हो उठे । शॊकय ने आनत्न्दत हो गरू
ु दे व को प्रणाभ कयके कहा्
मह व्मग्रता दे खकय शॊकय कहीॊ से सभट्टी का एक "बगवन ! आऩकी कृऩा से अफ भेये सरए ऻातव्म अथवा
कॊु ब रे आमे औय उसे गुपा के द्वार ऩय यख ददमा औय प्राप्तव्म कुछ बी नहीॊ यहा। आऩने भुझे ऩूणभ
ा नोयथ कय
अन्म सॊन्माससमों को आश्वासन दे ते हुए फोरे् "आऩ ददमा है । अफ आऩ अनुभतत दें फक भैं सभादहत ध त्त
ध त्न्तत न हों। होकय ध यतनवााण राब करूॉ।"
गरू
ु दे व की सभाधध बॊग कयने की कोई कुछ दे य भौय यहकय श्री गोववन्दऩादा ामा ने
आवश्मकता नहीॊ। फाढ़ का जर इस कॊु ब भें प्रववष्ट होते शान्त स्वय भें कहा् "वत्स ! वैददक धभा-सॊस्थाऩन के
ही प्रततहत हो जामेगा, गप
ु ा भें प्रववष्ट नहीॊ हो सकेगा।" सरए दे वाधधदे व शॊकय के अॊश से तम्
ु हाया जन्भ हुआ है ।
सफको शॊकय का मह कामा फार सर
ु ब खेर जैसा तम्
ु हें ऄद्वैत ब्रह्भऻान का उऩदे श कयने के सरए भैं
रगा फकन्तु सबी ने ववत्स्भत होकय दे खा फक जर कॊु ब गरू
ु दे व की आऻा से सहस्रों वषों से तम्
ु हायी प्रतीऺा कय
भें प्रवेश कयते ही प्रततहत एवॊ रूि हो गमा है। गप
ु ा यहा था। अन्मथा ऻान प्राप्त कयते ही दे हत्माग कय
अफ तनयाऩद हो गई है । शॊकय की मह अरौफकक शत्क्त भुत्क्तराब कय रेता।
दे खकय सबी अवाक् यह गमे। अफ भेया कामा सभाप्त हो गमा है । अफ भैं
क्रभश् फाढ़ शाॊत हो गई। गोववन्दऩादा ामा बी सभाधधमोग से स्वस्वरूऩ भें रीन हो जाऊॉगा। तुभ अफ
सभाधध से तनकर गमे। उन्होंने सशष्मों के भुख से शॊकय अववभुक्त ऺेि भें जाओ। वहाॉ तुम्हें बवातनऩतत शॊकय के
के उक्त कामा की फात सुनी तो प्रसन्न होकय उसके दशान प्राप्त होंगे। वे तम्
ु हें त्जस प्रकाय का आदे श दें गे
भस्तक ऩय हाथ यखकय कहा् उसी प्रकाय तुभ कयना।"
"वत्स ! तुम्हीॊ शॊकय के अॊश से उदबूत रोक-शॊकय हो। शॊकय ने श्रीगुरूदे व का आदे श सशयोधामा फकमा।
अऩने गुरू गौड़ऩाद ामा के श्रीभुख से भैंने सुना था फक तदनन्तय एक शुब ददन श्रीगोववन्दऩादा ामा ने सबी
तुभ आओगे औय त्जस प्रकाय सहस्रधाया नभादा का स्रोत सशष्मों को आशीवााद प्रदान कय सभाधध मोग से दे हत्माग
एक कॊु ब भें अवरूि कय ददमा है उसी प्रकाय तुभ कय ददमा। सशष्मों ने मथा ाय गुरूदे व की दे ह का
व्मासकृत ब्रह्भसूि ऩय बाष्मय ना कय ऄद्वैत वेदान्त को नभादाजर भें मोगीजनोध त सॊस्काय फकमा।
आऩात ववयोधी सफ धभाभतों से उछ तभ आसन ऩय गुरूदे व की आऻा के अनुसाय शॊकय ऩैदर रते-
प्रततत्ष्ठत कयने भें सपर होंगे तथा अन्म धभों को रते काशी आमे। वहाॉ काशी ववश्वनाथ के दशान फकमे।
सावाबौभ ऄद्वैत ब्रह्भऻान के अन्तबक्
ुा त कय दोगे। बगवान वेदव्मास का स्भयण फकमा तो उन्होंने बी दशान
ऐसा ही गुरूदे व बगवान गौड़ऩादा ामा ने अऩने ददमे। अऩनी की हुई साधना, वेदान्त के अभ्मास औय
गुरूदे व शुकदे व जी भहायाज के श्रीभुख से सुना था। इन सदगुरू की कृऩा से अऩने सशवस्वरूऩ भें जगे हुए शॊकय
ववसशष्ट कामो के सरए ही तुम्हाया जन्भ हुआ है । भैं 'बगवान श्रीभद् अद्य शंकयाचामा' हो गमे।
29 - 2018

श्री गुरु स्तोिभ ्


ऩावाती उवा बावाथा: भाता ऩावाती ने कहा हे दमातनधध शॊबु ! गरु
ु भॊि के दे वता
अथाात ् गरु
ु दे व एवॊ उनका आ ायादद धभा क्मा है - इस फाये ववस्ताय
गरु
ु भान्िस्म दे वस्म धभास्म तस्म एव वा ।
से फतामे। भहादे व ने कहा जीवात्भा-ऩयभात्भा का ऻान, दान,
ववशेषस्तु भहादे व ! तद् वदस्व दमातनधे ॥ ध्मान, मोग ऩयु ी, काशी मा गॊगा तट ऩय भत्ृ मु - इन सफभें से कुछ
भहादे व उवा बी गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥१॥ प्राण,
शयीय, गह
ृ , याज्म, स्वगा, बोग, मोग, भत्ु क्त, ऩत्नी, इष्ट, ऩि
ु , सभि -
जीवात्भनॊ ऩयभात्भनॊ दानॊ ध्मानॊ मोगो ऻानभ ्। इन सफभें से कुछ बी गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय
उत्कर काशीगॊगाभयणॊ न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥१॥ नहीॊ हैं॥२॥ वानप्रस्थ धभा, मतत ववषमक धभा, ऩयभहॊ स के धभा,
प्राणॊ दे हॊ गेहॊ याज्मॊ स्वगं बोगॊ मोगॊ भत्ु क्तभ ्। सबऺुक अथाात ् मा क के धभा - इन सफभें से कुछ बी गरु ु दे व से
फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥३॥ बगवान ववष्णु की
बामाासभष्टॊ ऩुिॊ सभिॊ न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥२॥
बत्क्त, उनके ऩज
ू न भें अनयु त्क्त, ववष्णु बक्तों की सेवा, भाता की
वानप्रस्थॊ मततववधधभं ऩायभहॊ स्मॊ सबऺुक रयतभ ्। बत्क्त, श्रीववष्णु ही वऩता रूऩ भें हैं, इस प्रकाय की वऩता सेवा - इन
साधो् सेवाॊ फहुसुखबुत्क्तॊ न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥३॥ सफभें से कुछ बी गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ
ववष्णो बत्क्तॊ ऩूजनयत्क्तॊ वैष्णवसेवाॊ भातरय बत्क्तभ ्। हैं॥४॥ प्रत्माहाय औय इत्न्द्रमों का दभन, प्राणामाभ, न्मास-ववन्मास
का ववधान, इष्टदे व की ऩज
ू ा, भॊि जऩ, तऩस्मा व बत्क्त - इन सफभें
ववष्णोरयव वऩतस
ृ ेवनमोगॊ न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥४॥
से कुछ बी गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥५॥
प्रत्माहायॊ त्े न्द्रममजनॊ प्राणामाॊ न्मासववधानभ ्। कारी, दगु ाा, रक्ष्भी, बव
ु नेश्वरय, त्रिऩयु ासन्
ु दयी, बीभा, फगराभख ु ी
इष्टे ऩूजा जऩ तऩबत्क्तना गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥५॥ (ऩण
ू ाा), भातॊगी, धूभावती व ताया मे सबी भातश
ृ त्क्तमाॉ बी गरु
ु दे व
से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥६॥ बगवान के भत्स्म,
कारी दग
ु ाा कभरा बुवना त्रिऩुया बीभा फगरा ऩूणाा।
कूभा, वायाह, नयससॊह, वाभन, नय-नायामण आदद अवताय, उनकी
श्रीभातॊगी धभ
ू ा ताया न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥६॥ रीराएॉ, रयि एवॊ तऩ आदद बी गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से
भात्स्मॊ कौभं श्रीवायाहॊ नयहरयरूऩॊ वाभन रयतभ ्। फढ़कय नहीॊ हैं॥७॥ बगवान के श्री बग ृ ,ु याभ, कृष्ण, फि ु तथा
नयनायामण रयतॊ मोगॊ न गयु ोयधधकॊ न गयु ोयधधकॊ॥७॥ कत्ल्क आदद वेदों भें वणणात दस अवताय गरु ु दे व से फढ़कय नहीॊ है ,
गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥८॥ गॊगा, मभन
ु ा, ये वा आदद ऩववि नददमाॉ,
श्रीबग
ृ ुदेवॊ श्रीयघुनाथॊ श्रीमदन
ु ाथॊ फौिॊ कल्क्मभ ्।
काशी, काॊ ी, ऩयु ी, हररद्वार, द्वाररका, उज्जतमनी, भथुया, अमोध्मा
अवताया दश वेदववधानॊ न गयु ोयधधकॊ न गयु ोयधधकॊ॥८॥
आदद ऩववि ऩरु यमाॉ व ऩष्ु कयादद तीथा बी गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ है ,
गॊगा काशी कान् ी द्वारा भामाऽमोध्माऽवन्ती भथयु ा। गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥९॥ हे सन्
ु दयी ! हे भातेश्वयी ! गोकुर
मभुना ये वा ऩुष्कयतीथा न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥९॥ मािा, गौशाराओॊ भें भ्रभण एवॊ श्री वन्ृ दावन व भधुऩयु आदद शब ु
नाभों का यटन - मे सफ बी गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ है ,गरु
ु दे व से फढ़कय
गोकुरगभनॊ गोऩुययभणॊ श्रीवन्ृ दावन-भधऩ
ु ुय-यटनभ ्।
नहीॊ हैं॥१०॥ तर
ु सी की सेवा, ववष्णु व सशव की बत्क्त, गॊगा सागय
एतत ् सवं सुन्दरय ! भातना गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥१०॥
के सॊगभ ऩय दे ह त्माग औय अधधक क्मा कहूॉ ऩयात्ऩय बगवान श्री
तुरसीसेवा हरयहयबत्क्त् गॊगासागय-सॊगभभुत्क्त्। कृष्ण की बत्क्त बी गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ
फकभऩयभधधकॊ कृष्णेबत्क्तना गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥११॥ हैं॥११॥ इस स्तोि का जो तनत्म ऩाठ कयता है वह आत्भऻान एवॊ
भोऺ दोनों को ऩाकय धन्म हो जाता है | तनत्श् त ही सभस्त
एतत ् स्तोिभ ् ऩठतत तनत्मॊ भोऺऻानी सोऽवऩ धन्मभ ् ।
ब्रह्भाण्ड भे त्जस-त्जसका बी ध्मान फकमा जाता है , उनभें से कुछ
ब्रह्भाण्डान्तमाद्-मद् ध्मेमॊ न गुयोयधधकॊ न गुयोयधधकॊ॥१२॥ बी गरुु दे व से फढ़कय नहीॊ है , गरु
ु दे व से फढ़कय नहीॊ हैं॥१२॥
|| वह
ृ दववऻान ऩयभेश्वयतॊिे त्रिऩयु ासशवसॊवादे श्रीगयु ो्स्तोिभ ् || उऩयोक्त गरु
ु स्तोत्र वह
ृ द ववऻान ऩयभेश्वयतंत्र भं त्रत्रऩयु ा-शशव संवाद
भें वर्णात हैं।
30 - 2018

श्री गुरु अष्टोत्तयशत ॐ तुल्मवप्रमावप्रमाम नभ्॥ ॐ भधयु बावषणे नभ्॥


ॐ तुल्मभानाऩभानाम नभ्॥ ॐ भहात्भने नभ्॥
नाभावसर ॐ तेजत्स्वने नभ्॥ ॐ भहावाक्मोऩदे शकिे नभ्॥
ॐ सद्गुयवे नभ्॥ ॐ त्मक्तसवाऩरयग्रहाम नभ्॥ ॐ सभतबावषणे नभ्॥
ॐ अऻाननाशकाम नभ्॥ ॐ त्माधगने नभ्॥ ॐ भुक्ताम नभ्॥
ॐ अदत्म्बने नभ्॥ ॐ दऺाम नभ्॥ ॐ भौतनने नभ्॥
ॐ ऄद्वैतप्रकाशकाम नभ्॥ ॐ दान्ताम नभ्॥ ॐ मतध त्ताम नभ्॥
ॐ अनऩेऺाम नभ्॥ ॐ दृढव्रताम नभ्॥ ॐ मतमे नभ्॥
ॐ अनसूमवे नभ्॥ ॐ दोषवत्जाताम नभ्॥ ॐ मद्दृछछाराबसन्तुष्टाम नभ्॥
ॐ अनुऩभाम नभ्॥ ॐ द्वन्द्वातीताम नभ्॥ ॐ मुक्ताम नभ्॥
ॐ अबमप्रदािे नभ्॥ ॐ धीभते नभ्॥ ॐ यागद्वेषवत्जाताम नभ्॥
ॐ अभातनने नभ्॥ ॐ धीयाम नभ्॥ ॐ ववददताणखरशास्िाम नभ्॥
ॐ अदहॊसाभूतम
ा े नभ्॥ ॐ तनत्मसन्तुष्टाम नभ्॥ ॐ विद्याववनमसम्ऩन्नाम नभ्॥
ॐ अहै तक
ु दमाससन्धवे नभ्॥ ॐ तनयहॊ कायाम नभ्॥ ॐ ववभत्सयाम नभ्॥
ॐ अहॊ काय नाशकाम नभ्॥ ॐ तनयाश्रमाम नभ्॥ ॐ वववेफकने नभ्॥
ॐ अहॊ काय वत्जाताम नभ्॥ ॐ तनबामाम नभ्॥ ॐ ववशाररृदमाम नभ्॥
ॐ आ ामेन्द्राम नभ्॥ ॐ तनभादाम नभ्॥ ॐ व्मवसातमने नभ्॥
ॐ आत्भसन्तष्ु टाम नभ्॥ ॐ तनभाभाम नभ्॥ ॐ शयणागतवत्सराम नभ्॥
ॐ आनन्दभत
ू म
ा े नभ्॥ ॐ तनभाराम नभ्॥ ॐ शान्ताम नभ्॥
ॐ आजावमक्
ु ताम नभ्॥ ॐ तनभोहाम नभ्॥ ॐ शि
ु भानसाम नभ्॥
ॐ उध तवा े नभ्॥ ॐ तनमोगऺेभाम नभ्॥ ॐ सशष्मवप्रमाम नभ्॥
ॐ उत्सादहने नभ्॥ ॐ तनरोबाम नभ्॥ ॐ श्रिावते नभ्॥
ॐ उदासीनाम नभ्॥ ॐ तनष्काभाम नभ्॥ ॐ श्रोत्रिमाम नभ्॥
ॐ उऩयताम नभ्॥ ॐ तनष्क्रोधाम नभ्॥ ॐ सत्मवा े नभ्॥
ॐ ऐश्वमामुक्ताम नभ्॥ ॐ तन्सॊगाम नभ्॥ ॐ सदाभुददतवदनाम नभ्॥
ॐ कृत कृत्माम नभ्॥ ॐ ऩयभसुखदाम नभ्॥ ॐ सभध त्ताम नभ्॥
ॐ ऺभावते नभ्॥ ॐ ऩत्ण्डताम नभ्॥ ॐ सभाधधक-वत्जाताम नभ्॥
ॐ गुणातीताम नभ्॥ ॐ ऩूणााम नभ्॥ ॐ सभादहतध त्ताम नभ्॥
ॐ ारुवात्ग्वरासाम नभ्॥ ॐ प्रभाणप्रवताकाम नभ्॥ ॐ सवाबूतदहताम नभ्॥
ॐ ारुहासाम नभ्॥ ॐ वप्रमबावषणे नभ्॥ ॐ ससिाम नभ्॥
ॐ तछन्नसॊशमाम नभ्॥ ॐ ब्रह्भकभासभाधमे नभ्॥ ॐ सुरबाम नभ्॥
ॐ ऻानदािे नभ्॥ ॐ ब्रह्भात्भतनष्ठाम नभ्॥ ॐ सुशीराम नभ्॥
ॐ ऻानमऻतत्ऩयाम नभ्॥ ॐ ब्रह्भात्भववदे नभ्॥ ॐ सुरृदे नभ्॥
ॐ तत्त्वदसशाने नभ्॥ ॐ बक्ताम नभ्॥ ॐ सूक्ष्भफुिमे नभ्॥
ॐ तऩत्स्वने नभ्॥ ॐ बवयोगहयाम नभ्॥ ॐ सॊकल्ऩवत्जाताम नभ्॥
ॐ ताऩहयाम नभ्॥ ॐ बुत्क्तभुत्क्तप्रदािे नभ्॥ ॐ सम्प्रदामववदे नभ्॥
ॐ तुल्मतनन्दास्तुतमे नभ्॥ ॐ भॊगरकिे नभ्॥ ॐ स्वतन्िाम नभ्॥
31 - 2018

श्री गुरु प्राथाना


शुक्राम्ब्रधयॊ ववष्णुॊ शसशवणं तुबज
ुा भ।् प्रसन्नवदनॊ। रुद्रस्त्वॊ प्रजाऩतत्। त्वभत्ग्नस्त्वॊ वषटकायस्त्वाभाहु्
ध्मामेत्सवावविोऩशान्तमे ॥१॥ यवववाये सॊक्रान्तौ सवासाक्षऺणभ ् ॥१६॥ मोधगनाॊ प्रथभो ध्मेमो मतीनाॊ
शुबमोगे मथाववधध। वैधत
ृ ौ व्मतीऩाते ववप्राणाॊ गह
ृ े ब्रह्भ ारयणाभ।् आधधव्माध्मोश् हत्ताा त्वॊ सवाऩाऩऺमॊ
तथा ॥२॥ दवतामतने व
ै नद्माॊ वै सङ्गभोत्तसे। अथवा कुरु ॥१७॥ दीनानाॊ कृऩणानाॊ सवेषाॊ व्माधधनाशनभ।्
स्वगह
ृ े व
ै शुबे स्थाने ववशेषत् ॥३॥ स्िानॊ सभा ये द्रोगी एवॊ बास्कयॊ ध्मात्वा नभस्कृत्म प्रसादमेत ् ॥१८॥ ऩाऩी
भत
ृ ऩुि् सुऩुिक्। कभाणा ऩीडडतो मोऽसौ नायी वा व
ै दयु ा ायी ऩयतनन्दाऩयो जन्। ब्रह्भहा हे भहायी
ऩुरुषोऽथवा ॥४॥ धािीपरातन रोिॊ गोभमॊ सुयाऩी गुरुतल्ऩग् ॥१९॥ स्िीहन्ता फारघाती
ततरसषाऩान ्। भत्ृ त्तका् सप्त कऩयूा भुशीयॊ अगम्मागभनॊ तथा। एवभाददकऩाऩातन भमा वै
भुस्तसॊतुरभ ् ॥५॥ औषधै् सभबागैस्तु स्िानॊ ऩूवज
ा न्भतन ॥२०॥
कुमाात्प्रमत्नत्। दे वान ् वऩतॊश्ृ सॊतप्मा दत्वा सूमाार्घमाभेव कृतातन ववववधान्मेव सवााणण भाष्टुाभहा सस। शयणॊ तव
॥६॥ एवॊ सवााववधधॊ कृत्वा सॊकल्ऩॊ कायमेत्तत्॥ सॊप्राप्तस्त्वॊ भाभुितभ
ुा हा सस ॥२१॥ भभोऩरय कृऩाॊ कृत्वा
अद्मेहेत्मादद प्रा ीनसॊध तकभाववरोकनाथं कभा भे कथम प्रबो। रग्नॊ तात्कासरकॊ कृत्वा जन्भऩिॊ
भन्काभनाससिमथं ववष्णो: ऩूजनऩूवक
ा ॊ तनयीक्ष्म ॥२२॥ रग्नग्रहवव ाये ण ऻातव्मॊ कभा
कभाववऩाकऩुस्तकऩूजनभहॊ करयष्मे। अङ्गन्मासऩूवक
ा ॊ भाभकभ ्। ग्रहरग्नवव ाये ण जानत्न्त कभा ऩत्ण्डता् ॥२३॥
षोडशोऩ ायऩूजासॊकल्ऩ् वैश्वदे वॊ श्रािॊ । अिान्तये सूत उवा ॥ कैराससशखये यम्मे सुखासीनॊ भहे श्वयभ ् ।
दे हशि
ु मथं ऩयु श् यणाङ्गत्वेन गोसभथन
ु दानव्रतॊ कुम्बदानॊ प्रणम्म ऩावाती बक्त्मा ऩप्रछछ सदासशवभ ् ॥२४॥
, प्रजाऩततसॊतष्ु टमे षोडश ब्राह्भणान ् बोजमेत।् ऩावात्मव
ु ा ॥ दे वदे व जगन्नाथ बक्तानग्र
ु ह कायक।
बोजनान्तये प्राथानाऽऽ ामास्मब्राह्भण त्वॊ भहाबाग रोकोऩकायकॊ प्रश्नॊ वद भे ऩयभेश्वय ॥२५॥ करौ
बसू भदे व द्ववजोत्तभ। मथाववधॊ प्रततऻाम प्रा ीनॊ भानवास्तछ
ु छा् ऩाऩभोहसभत्न्वता्। भहायोगग्रहग्रस्ता्
शब
ु ाशब
ु भ ् ॥७॥ कथॊ भे कथमस्वाशु कृऩाॊ कृत्वा ऩि
ु कन्मावववत्जाता ॥२६॥ कुत्त्सता रूऩववभ्रष्टा भत
ृ वत्सा
भभोऩरय। एवॊ तु ब्राह्भणा ामं नभस्कृत्म प्रसादमेत ् ॥८॥ नऩॊस
ु का्। नायीणाॊ ऩरु
ु षाणाॊ ऩव
ू क
ा भा मत्प्रबो ॥२७॥
दश ऩश् तथा ववप्रानुऩवेश्म प्रमत्नत्। तेषाभनुऻमा सवं तत्सवं वद भे स्वासभन ् सवाऻोऽसस भतो भभ। तछ
प्रामत्श् त्तभुऩक्रभेत ् ॥९॥ वस्िारङ्गयणैया ाथं ऩूजतमत्वा श्रत्ु वा व ो दे व्मा् प्रीततभान ् स भहे श्वय् ॥२८॥ प्रहस्म
प्रजाऩततस्वरूऩॊ गुरुॊ प्राथामेत ् प्रजाऩते भहाफाहो जगतभीशो वल्रबाॊ प्रीततसॊमुताभ।् उवा प्रश्नॊ तद्गूढें
वेदवेदाङ्गऩायग। ऩुिकाभसभि
ृ मथं ऩूजाॊ गह्
ृ हीष्व ते नभ् िैरोक्मे ावऩ दर
ु ब
ा भ् ॥२९॥ सशव उवा ॥ श्रण
ृ ु त्वॊ
॥१०॥ धगरयजे दे वव नण
ृ ाॊ कभा ववशेषत्। कथमासभ न सन्दे हो
ववष्णो त्वॊ ऩुण्डयीकाऺ बुवनानाॊ ऩारक्। रक्ष्म्मा सह मत्ते भनसस वत्ताते ॥३०॥
ह्षीकेश ऩूजाॊ गह्
ृ हीष्व ते नभ् ॥११॥ रुद्र त्वॊ दै न्मनाशाम भत्माा् सवे जगज्जाता् कभा कुवात्न्त सवादा। स्वकभााणण
सदा बस्भाङ्गधायक्। नागहायोऩवीती ऩूजाॊ गह्
ृ हीष्व ततो दे वव बुज्मॊते दे वभानुषै् ॥३१॥ भानवैस्तु ववशेषेण
ते नभ् ॥१२॥ स्वगे सुयाश् गन्धवाा् ऩातारे ऩन्नगादम्। सुखद्ु खाददकॊ मत ्। कभािमॊ सवेषाॊ तन्भध्मे सॊध तॊ
भत्ृ मुरोके भनुष्माश् सवे ध्मामत्न्त बास्कयभ ् ॥१३॥ मत ् ॥३२॥ वक्तव्मॊ नाि सन्दे हो मत्कृत्वा
भहामऻाददकॊ व
ै अत्ग्नहोिादद कभा । तीथास्िानॊ तथा परभाप्रुमात ् प्रायब्धॊ ववस्तयॊ कभा वताभानॊ दृश्मते
ध्मानॊ वताने बास्कयोदमात ् ॥१४॥ ब्रह्भा ववष्णु् सशव् ॥३३॥ अत्श्वन्माददकनऺिे सवेषाॊ जन्भ जामते।
शत्क्तदे वदे वो भुनीश्वया्। ध्मामत्न्त बास्कयॊ दे वॊ तदाददऩादबेदेन ऻातव्मॊ शुबाशुबभ ् ॥३४॥
साऺीभूतॊ जगिमे ॥१५॥ त्वॊ ब्रह्भा त्वॊ वै ववष्णुस्त्वॊ इतत कभाववऩाकसंदहतामां प्रथभोऽध्माम:॥
32 - 2018

श्री गुरु स्भयण तथा स्वस्तमन


श्री भंगर भूतम
ा े नभ्। श्री हरय । श्री गणेशाम नभ। "स्वस्त्ममन" (शार्न्त ऩाठ)
॥श्री भाता वऩतभ्
ृ माॊ नभ:। श्रीगुरुभ्मो नभ:॥ ॐ आ नो बद्रा : क्रतवो मन्तु ववश्वेतोऽदब्धासो
रम्फोदयभ ् ऩयभ सुन्दयभेकदन्तभ ् यक्ताम्फयभ ् त्रिनमनभ ् अऩयीतास उतभद्। दे वा नो मथा सद्सभद् वध
ृ े
ऩयभ ऩवविभ ्। उद्यद्ददवाकय तनबोज्जवर कात्न्तकान्तभ ् असॊन्नप्रामुवो यक्षऺतायो ददवे ददवे॥
ववर्घनेश्वय सकरववर्घनहयभ ् नभासभ॥ दे वानाॊ बद्रा सुभततऋजूमताॊ दे वाना याततयसब नो
गुरु स्भयण तनवताताभ ्। दे वाना सख्मभुऩसेददभा वमॊ दे वा न आमु्
अऻानततसभयान्द्मस्म ऻानाज्जन शराकमा। प्रततयन्तु जीव से॥
ऺुरून्भीसरतभ ् मेन तस्भै श्री गुरुवे नभ:॥ तान्ऩूवम
ा ा तनववदा
हूभहे वमॊ बगॊ सभिभददतत
अखण्डभण्डराकायभ ् व्माप्तॊमेन या यभ ्। दऺभत्स्िधभ ्। अमाभणॊ वरुण सोभभत्श्वना सयस्वती न:
तत्ऩदभ ् दसशातभ ् मेन तस्भै श्री गुरुवे नभ:॥ सुबगा भमस्कयत ्॥ तन्नो वातो भमोबु वातु बेषजॊ
श्री गुरुवे नभ : तन्भाता ऩधृ थवी तत्त्ऩता धौ्।
तद् ग्रावाण: सोभसुतो भमोबुवस्तदत्श्वना श्रण
ृ ुतॊ
ऩववत्र कयण भन्त्र धधष्णमा मुवभ ्॥ तभीशानॊ जगतस्तस्थष
ु स्ऩततॊ
ॐ अऩववि् ऩवविोवा सवाावस्थाॊ गतोऽवऩ वा। धधमत्जजन्वभवसे हूभहे वमभ ्। ऩूषा नो मथा वेदसाभसद्
म: स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्भाभ्मन्तय् शुध :॥ वध
ृ े यक्षऺता ऩामुयदब्ध: स्वस्तमे॥
ॐ ऩुण्डयीकाऺ: ऩुनात,ु ॐ ऩुण्डयीकाऺ: ऩुनात,ु स्वत्स्त न इन्द्रो वि
ृ श्रवा् स्वत्स्त न ऩूषा ववश्ववेदा:।
ॐ ऩुण्डयीकाऺ: ऩुनातु। स्वत्स्त नस्ताक्ष्मो अरयष्टनेसभ: स्वत्स्त नो
आ ाम्म प्राणानाम्मभ ् गुरुॊ गुरु भन्िॊ स्भत
ृ फह
ृ स्ऩततदा धातु॥
ॐ केशवाम नभ्, ॐ नायामणाम नभ: ऩष
ृ दश्वा भरुत: ऩत्ृ श्नभातय: शब
ु ॊ मावानो ववदथेषु
ॐ भाधवाम नभ: जग्भम:। अत्ग्न त्जह्वा भनव: सयू ऺसो ववश्वे नो दे वा
आ भन के फाद भुह को ऩोछ रें। अवसागभत्न्नह:॥ बद्रॊ कणेसब: श्रण
ु म
ु ाभ दे वा बद्रॊ
ॐ रृषीकेशाम नभ:, ॐ गोववन्दाम नभ् ऩश्मेभाऺसबमाजिा:। त्स्थयै यङ्गेस्तष्ु टुवा सस्तनू
सबव्माशभ
े दह दे वदहतॊ मदाम:ु ॥
ऩवविी धायण भन्ि –
शतसभन्नु शयदो अत्न्त दे वा मिा नश् क्रा जयसॊ
" ऩवविे स्थो वैष्णव्मौ सववतुव्ा प्रसव उत्ऩुनाम्मत्छछद्रे ण
तनन
ू ाभ ्। ऩि
ु ासो मि वऩतयो बवत्न्त भानो भर्घमा
ऩवविेण सूमस्
ा म यत्श्भसब:। तस्म ते ऩवविऩते
यीरयषतामुगन्
ा तो:॥
ऩवविऩूतस्म मत्काभ: ऩुन: तत्छकेमभ ्।"
अददततधौयददतत यन्तरयऺभददतत भााता स वऩता स ऩुि:।

आसन ऩववत्रीकयण कयने का भन्त्र ववश्वे दे वा अददतत: ऩज जना अददतत जाातभददतत

ॐ ऩत्ृ थ्व त्वमा धत जातनत्वभ ्॥


ृ ा रोका दे वव त्वभ ् ववष्णुना धत
ृ ा।
त्वभ ् धायम , भाॊ दे वव ऩवविभ ् कुरु आसनभ ्॥ धौ: शात्न्तयन्तरयऺ शात्न्त: ऩधृ थवी शात्न्तयाऩ:
शात्न्तयोषदम: शात्न्त:। वनस्ऩतम: शात्न्त ववाश्वे दे वा:
भंगर ततरक भंत्र शात्न्त ब्राह्भ शात्न्त: सवा शात्न्त: शात्न्तये व शात्न्त: सा
ॐ स्वत्स्त न इन्द्रों वि
ृ श्रवा: स्वत्स्तन: ऩूषा ववश्वेवेदा, भा शात्न्तये धध॥
स्वत्स्तन स्ताक्ष्मो अरयष्ट नेसभ:, स्वत्स्त नो फह
ा ृ स्ऩतत मतो मत: सभीहसे ततो नो अॊबमॊ कुरु। शॊ न: कुरु
दा धातु। प्रजाभ्मोऽबमॊ न ऩशुभ्म:॥ सुखशात्न्तबावतु ॥
33 - 2018

आध्मात्त्भक उन्नतत हे तु उत्तभ ातुभाास व्रत



दहन्द ू धभाग्रॊथों के अनस
ु ाय, आषाढ भास भें शक्
ु रऩऺ
की एकादशी की यात्रि से बगवान ववष्णु इस ददन से रेकय
अगरे ाय भास के सरए मोगतनद्रा भें रीन हो जाते हैं, एवॊ
कातताक भास भें शक्
ु रऩऺ की एकादशी के ददन मोगतनद्रा से
जगते हैं। इससरमे ाय इन भहीनों को ातभ
ु ाास कहाजाता हैं।
ातभ
ु ाास का दहन्द ू धभा भें ववशेष आध्मात्त्भक भहत्व भाना
जाता हैं।
अषाढ भास भें शुक्र ऩऺ फक द्वादशी अथवा
ऩूणणाभा अथवा जफ सूमा का सभथन
ु यासश से कका यासश भें
प्रवेश होता हैं तफ से ातुभाास के व्रत का आयॊ ब होता हैं। ातुभाास के व्रत फक सभात्प्त कातताक भास भें शुक्र ऩऺ
फक द्वादशी को होती हैं। साधु सॊन्मासी अषाढ भासफक ऩूणणाभा से ातुभाास भानते हैं।
सनातन धभा के अनुमामी के भत से बगवान ववष्णु सवाव्माऩी हैं. एवॊ सम्ऩूणा ब्रह्भाॊडा बगवान ववष्णु
फक शत्क्त से दह सॊ ासरत होता हैं। इस सरमे सनातन धभा के रोग अऩने सबी भाॊगसरक कामो का शुबायॊ ब बगवान
ववष्णु को साऺी भानकय कयते हैं।
शास्िो भें सरखा गमा है फक वषााऋतु के ायों भास भें रक्ष्भी जी बगवान ववष्णु की सेवा कयती हैं। इस
अवधध भें मदद कुछ तनमभों का ऩारन कयते हुवे अऩनी भनोकाभना ऩूतता हे तु व्रत कयने से ववशेष राब प्राप्त होता
हैं।
ातुभाास भें व्रत कयने वारे साधक को प्रततददन सूमोदम के सभम स्नान इत्मादद से तनवत्ृ त होकय
बगवान ववष्णु की आयाधना कयनी ादहमे।

चातुभाास के व्रत का प्रायं ब कयने से ऩूवा तनम्न संकल्ऩ कयना चादहमे।


"हे प्रब,ु भैंने मह व्रत का सॊकल्ऩ आऩको साक्षऺ भानकय उऩत्स्थतत भें सरमा हैं। आऩ भेये उऩय कृऩा
यख कय भेये व्रत को तनववार्घन सभाप्त कयने का साभथ्मा भुजे प्रदान कयें । मदद व्रत को ग्रहण कयने के उऩयाॊत फी
भें भेयी भत्ृ मु हो जामे तो आऩकी कृऩा द्र मह ऩूणा रुऩ से सभाप्त हो जामे।

व्रत के दौयन बगवान ववष्णु की वंदना इस प्रकाय कयें ।


शाॊताकायॊ बुजगशमनॊऩद्मनाबॊसुयेशॊ।
ववश्वाधायॊ गगनसदृशॊभेघवणाशुबाङ्गभ ्॥
रक्ष्भीकान्तॊकभरनमनॊमोधगसबध्र्मानगम्मॊ।
वन्दे ववष्णुॊबवबमहयॊ सवारोकैकनाथभ ्॥
बावाथा:- त्जनकी आकृतत अततशम शाॊत हैं, जो शेषनाग की शय्माऩय शमन कय यहे हैं , त्जनकी नासब भें कभर है , जो
सफ दे वताओॊ द्वारा ऩूज्म हैं, जो सॊऩूणा ववश्व के आधाय हैं, जो आकाश के सद्रश्म सवाि व्माप्त हैं, नीरे भेघ के सभान
त्जनका वणा हैं , त्जनके सबी अॊग अत्मॊत सुॊदय हैं, जो मोधगमों द्वारा ध्मान कयके प्राप्त फकमे जाते हैं , जो सफ रोकों के
स्वाभी हैं , जो जन्भ-भयणरूऩ बम को दयू कयने वारे हैं, ऐसे रक्ष्भीऩतत,कभरनमन,बगवान ववष्णु को भैं प्रणाभ कयता
हूॊ।
34 - 2018

स्कॊदऩुयाण के अनुशाय ातुभाास का ववधध-ववधान औय भाहात्म्म इस प्रकाय ववस्ताय से वणणात


हैं।
ातुभाास भें शास्िीम ववसबन्न तनमभों का ऩारन कय व्रत कयने से अत्माधधक
ऩुण्म राब प्राप्त होते हैं।
 जो व्मत्क्त ातुभाास भें केवर शाकाहायी बोजन ग्रहण कयता हैं, वह
धन धान्म से सम्ऩन्न होता हैं।
 जो व्मत्क्त ातुभाास भें प्रततददन यािी ॊद्र उदम के फाद ददन भें
भाि एकफाय बोजन कयता हैं, उसे सुख सभवृ ि एवॊ एश्वमा फक
प्रात्प्त होती हैं।
 जो व्मत्क्त बगवान ववष्णु के शमनकार भें त्रफना भाॊगे अन्न का
सेवन कयता हैं, उसे बाई-फॊधओ
ु ॊ का ऩूणा सुख प्राप्त होता हैं।
 स्वास्थम राब एवॊ तनयोगी ये हने के सरमे ातुभाास भें ववष्णुसूक्त
के भॊिों को स्वाहा कयके तनत्म हवन भें ावर औय ततर की
आहुततमाॊ दे ने से राब प्राप्त होता हैं।
 ातभ
ु ाास के ाय भहीनों भें धभाग्रॊथों के तनमसभत स्वाध्माम से ऩण्
ु म
पर सभरता हैं।
 ातभ
ु ाास के ाय भहीनों भें व्मत्क्त त्जस वस्तु को त्मागता हैं वह वस्तु
उसे अऺम रूऩ भें ऩन
ु ् प्राप्त हो जाती हैं।
ातभ
ु ाास का सद उऩमोग आत्भ उन्नतत के सरए फकमा जाता हैं। ातभ
ु ाास के तनमभ भनष्ु म के
सबतय त्माग औय सॊमभ की बावना उत्ऩन्न कयने के सरए फने हैं।
ातभ
ु ाास भें फकस ऩदाथा का त्माग कयें
व्रत कयने वारे व्मत्क्त को...
 श्रावण भास भें हयी सब्जी का त्माग कयना ादहमे।
 बाद्रऩद भास भें दही का त्माग कयना ादहमे।
 आत्श्वन भास भें दध
ू का त्माग कयना ादहमे।
 कातताक भास भें दारों का का त्माग कयना ादहमे।
 व्रत कताा को शैय्मा शमन, भाॊस, भधु आदद का सेवन त्माग कयना ादहमे।

त्माग फकमे गम ऩदाथो का पर तनम्न प्रकाय हैं।


 जो व्मत्क्त गुड़ का त्माग कयता हैं, उसकी वाणी भें भधयु ता आतत हैं।
 जो व्मत्क्त तेर का त्माग कयता हैं, उसके सभस्त शिओ
ु ॊ का नाश होता हैं।
 जो व्मत्क्त घी का त्माग कयता हैं, उसके सौन्दमा भें ववृ ि होती हैं।
 जो व्मत्क्त हयी सब्जी का त्माग कयता हैं, उसकी फुवि प्रफर होती हैं एवॊ ऩुि राब प्राप्त होता हैं।
 जो व्मत्क्त दध
ू एवॊ दही का त्माग कयता हैं, उसके वॊश भें ववृ ि होकय उसे भत्ृ मु उऩयाॊत गौरोक भें स्थान
प्राप्त होता हैं।
 जो व्मत्क्त नभक का त्माग कयता हैं, उसकी सभस्त भनोकाभना ऩूणा होकय उसके सबी कामा भें तनत्श् त
सपरता प्राप्त होती हैं।
35 - 2018

?

शमन का अथा होता है सोना अथाात तनद्रा। दहन्द ू धासभाक भान्मता हैं की दहन्द ू ऩॊ ाॊग के अनश
ु ाय
आषाढ़ शुक्र ऩऺ की एकादशी (अथाात हरयशमन एकादशी) से रेकय अगरे ाय भाह तक बगवान ववष्णु
शेषनाग की शैय्मा ऩय सोने के सरमे ऺीयसागय भें रे जाते हैं अथाात वे तनद्रा भें यहते हैं।
तनद्रा भें सरन होने के ऩश् मात श्री हरय कातताक शुक्र एकादशी (अथाात ् दे वोत्थान मा दे वउठनी एकादशी) को वे
उठ जाते हैं।
बायतीम ऩयॊ ऩया के अनुशाय दे वशमन एकादशी से रेकय कातताक शुक्र दशभी इन ाय भाह तक कोई बी
भाॊगसरक कामा नहीॊ फकमा जाता। क्मोफक इन कामों भें ऩॊ दे वता फक उऩत्स्थतत आवश्मक होती हैं बगवान
ववष्णु ऩॊ दे वता भें व्मोभ अथाात आकाश के अधधऩतत हैं अत् ववशेष रुऩ से बगवान ववष्णु की उऩत्स्थतत
आवश्मक्ता होती है । श्री ववष्णु की तनद्रा भें खरर न ऩड़े इस सरए सबी शुब कामा हरयशमन एकादशी के फाद
से फॊद हो जाते हैं, जो दे वोत्थान एकादशी से ऩुन् प्रायॊ ब होते हैं।
(भांगशरक कामा अथाात गह
ृ प्रवेश, वववाह, दे वताओं की प्राण-प्रततष्ठा, मऻ-हवन, संस्काय आदद कामा को
बायततम संस्कृतत भें भांगशरक कामा कहां जाता हैं।)

भॊि ससि मॊि


गरु
ु त्व कामाारम द्वाया ववसबन्न प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड
(सोने) भे ववसबन्न प्रकाय की सभस्मा के अनुसाय फनवा के भॊि ससि ऩूणा प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ
ैतन्म मुक्त फकमे जाते है . त्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्क्त
त्रफना फकसी ऩूजा अ न
ा ा-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते है . त्जस भे प्रध न मॊिो
सदहत हभाये वषो के अनस
ु ध
ॊ ान द्वाया फनाए गमे मॊि बी सभादहत है . इसके अरवा आऩकी
आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है . गुरुत्व कामाारम द्वाया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि
अखॊडडत एवॊ २२ गेज शुि कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 ट शुि ससरवय ( ाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड
(सोने) भे फनवाए जाते है . मॊि के ववषम भे अधधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कये …

GURUTVA KARYALAY
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36 - 2018

मोधगनी एकादशी

अजुन
ा ने कहा- "हे प्रबु! अफ आऩ कृऩा कयके है । भैं तुझे श्राऩ दे ता हूॉ फक तू स्िी के ववमोग भें तड़ऩे
आषाढ़ भाह के कृष्ण ऩऺ की एकादशी की कथा औय भत्ृ मुरोक भें जाकय कोढ़ी का जीवन व्मतीत कये ।
सुनाइमे। इस एकादशी का नाभ तथा भाहात्म्म क्मा है ? कुफेय के श्राऩ से वह तत्ऺण स्वगा से ऩथ्
ृ वी ऩय
आऩ भुझे ववस्तायऩूवक
ा फतामें।" धगया औय कोढ़ी हो गमा। उसकी स्िी बी उससे त्रफछड़
श्रीकृष्ण ने कहा- "हे ऩाण्डु ऩुि ! आषाढ़ भाह के गई।
कृष्ण ऩऺ की एकादशी का नाभ "मोधगनी एकादशी" है । भत्ृ मुरोक भें उसने अनेक बमॊकय कष्ट बोगे,
मोधगनी एकादशी के व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। उसकी फुवि भसरन न हुई औय उसे ऩूवा जन्भ की बी
मह व्रत इसरोक भें बोग तथा ऩयरोक भें भुत्क्त सुध यही। अनेक कष्टों को बोगता हुआ तथा अऩने ऩव
ू ा
दे ने वारा है । हे अजुन
ा ! मह एकादशी तीनों रोकों भें जन्भ के कुकभो को माद कयता हुआ वह दहभारम ऩवात
प्रससि है । मोधगनी एकादशीके व्रत से भनुष्म के सबी की तयप र ऩड़ा।
ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। रते- रते वह भाकाण्डेम ऋवष के आश्रभ भें जा
भैं तुम्हें ऩुयाण भें कही हुई कथा सुनाता हूॉ, हे ऩहुॉ ा। भाकाण्डेम ऋवष अत्मन्त तऩस्वी थे। भाकाण्डेम
अजुन
ा ध्मानऩूवक ा श्रवण कयो- कुफेय नाभ का एक याजा ऋवष दस ू ये ब्रह्भा के सभान प्रतीत हो यहे थे औय उनका
अरकाऩुयी नाभ की नगयी भें याज्म कयता था। वह ऩयभ वह आश्रभ ब्रह्भाजी की सबा के सभान शोबा दे यहा
सशव-बक्त था। याजा का हे भभारी नाभक एक मऺ था। ऋवष को दे खकय हे भभारी वहाॉ गमा औय उन्हें
सेवक था, जो ऩूजा के सरए पूर रामा कयता था। प्रणाभ कयके उनके यणों भें धगय ऩड़ा।
हे भभारी की ववशाराऺी नाभ की अतत सन्
ु दय स्िी थी। हे भभारी को दे खकय भाकाण्डेम ऋवष ने कहा तन
ू े
एक ददन वह भानसयोवय से ऩष्ु ऩ रेकय आमा, कौन-से कभा फकमे हैं, त्जससे तू कोढ़ी हुआ औय
फकन्तु काभासक्त होने के कायण ऩष्ु ऩों को यखकय बमानक कष्ट बोग यहा है ।
अऩनी स्िी के साथ यभण कयने रगा। इस बोग-ववरास भहवषा की फात सन
ु कय हे भभारी फोरा हे
भें दोऩहय हो गई। भतु नश्रेष्ठ! भैं याजा कुफेय का अनु य था। भेया नाभ
हे भभारी की याह दे खते-दे खते जफ याजा कुफेय को हे भभारी है । भैं प्रततददन भानसयोवय से पूर राकय सशव
दोऩहय हो गई तो याजा ने क्रोधऩव
ू क
ा अऩने अन्म सेवकों ऩज
ू ा के सभम याजा कुफेय को ददमा कयता था। एक ददन
को आऻा दी फक तुभ जाकय ऩता रगाओ फक हे भभारी स्िी भोहॉ भें पॉस जाने के कायण भुझे सभम का ऻान
अबी तक ऩुष्ऩ रेकय क्मों नहीॊ आमा। जफ सेवकों ने ही नहीॊ यहा औय भैं दोऩहय तक ऩुष्ऩ याजा तक न
उसका ऩता रगा के याजा के ऩास आकय फतामा- 'हे ऩहुॉ ा सका।
याजन! वह हे भभारी अऩनी स्िी के साथ यभण कय यहा तफ याजा ने क्रोध भे भुझे श्राऩ ददमा फक तू
है ।' अऩनी स्िी का ववमोग औय भत्ृ मुरोक भें जाकय कोढ़ी
इस फात को सुन याजा ने हे भभारी को फुराने फनकय दख
ु बोग। इस कायण भैं कोढ़ी हो गमा हूॉ तथा
की आऻा दी। डय से काॉऩता हुआ हे भभारी याजा के ऩथ्
ृ वी ऩय आकय कष्ट बोग यहा हूॉ, अत् कृऩा कयके
साभने उऩत्स्थत हुआ। उसे दे खकय कुफेय को अत्मन्त आऩ कोई ऐसा उऩाम फतरामे, त्जससे भेयी भुत्क्त हो।
क्रोध आमा। याजा ने कहा- 'अये अधभ! तूने भेये ऩयभ भाकाण्डेम ऋवष ने कहा 'हे हे भभारी! तूने सत्म
ऩूजनीम दे वों के दे व बगवान सशवजी का अऩभान फकमा व न कहे हैं, इससरए भैं तुम्हायें उिाय के सरए एक व्रत
37 - 2018

फताता हूॉ। मदद तूभ आषाढ़ भाह के कृष्ण ऩऺ की मोधगनी एकादशी हे याजन! इस मोधगनी एकादशी की
मोधगनी नाभक एकादशी का ववधानऩूवक
ा व्रत कयोगेतो कथा का पर अट्ठासी सहस्र ब्राह्भणों को बोजन कयाने
तेये सबी ऩाऩ नष्ट हो जाएॉगे। के सभान है । इसके व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं
भहवषा के व न सुन हे भभारी अतत प्रसन्न हुआ औय अन्त भें भोऺ प्राप्त कयके जीव स्वगा का अधधकायी
औय भहवषा के व नों के अनुसाय मोधगनी एकादशी का फनता है ।"
ऩूणा ववधध-ववधान से व्रत कयने रगा। इस व्रत के प्रबाव - : भनुष्म को ऩूजा-अ न
ा ा इत्मादद धासभाक कामा भें
से अऩने ऩुयाने स्वरूऩ भें आ गमा औय अऩनी स्िी के आरस्म मा प्रभाद नहीॊ कयना ादहए, अवऩतु भन को सॊमभ
साथ सुखऩूवक
ा यहने रगा। भें यखकय सदै व इष्ट सेवा कयनी ादहए।

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दे वशमनी एकादशी

अजन
ुा ने कहा- हे श्रीकृष्ण ! आषाढ़ भाह के प्रजाजनों की फात सन
ु याजा ने कहा आऩ रोग सत्म
शक्
ु र ऩऺ की एकादशी की कथा सन
ु ाइमे। उस ददन कह यहे हैं। वषाा न होने से आऩ रोग फहुत दख ु ी हैं।
फकस दे वता का ऩज
ू न होता है ? उसका क्मा ववधान है ? याजा के ऩाऩों के कायण ही प्रजा को कष्ट बोगना ऩड़ता
कृऩा कय मह सफ ववस्तायऩव
ू क
ा फतामें। है । इस ववषम भें , भैं फहुत सो -वव ाय कय यहा हूॉ, फपय
बगवान श्रीकृष्ण ने कहा- "हे ऩाण्डु ऩि
ु ! एक बी भझ ु े अऩना कोई दोष ददखराई नहीॊ दे यहा है । आऩ
फाय नायदजी ने ब्रह्भाजी से मही प्रश्न ऩछ
ू ा था। तफ रोगों के कष्ट को दयू कयने के सरए भैं फहुत उऩाम कय
ब्रह्भाजी ने कहा था फक नायद! तभ
ु ने कसरमग
ु भें यहा हूॉ, ऩयन्तु आऩ ध त्न्तत न हों, भैं इसका कोई-न-
प्राणणभाि के उिाय के सरए सवा श्रेष्ठ प्रश्न ऩूछा है , कोई उऩाम अवश्म ही करूॉगा।
क्मोंफक एकादशी का व्रत सफ व्रतों भें उत्तभ होता है। याजा के व नों को सुन प्रजाजन रे गमे। याजा
इसके व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी भान्धाता बगवान की ऩूजा कय कुछ ववसशष्ट व्मत्क्तमों
का नाभ "दे वशमनी एकादशी" है । को साथ रेकय वन की ओय र ददमा। वन भे वह
मह व्रत कयने से बगवान ववष्णु प्रसन्न होते हैं। ऋवष-भुतनमों के आश्रभों भें घूभते-घूभते अन्त भें अॊधगया
इस सम्फन्ध भें , भैं तुम्हें एक ऩौयाणणक कथा सुनाता हूॉ, ऋवष के आश्रभ ऩय ऩहुॉ गमा। यथ से उतयकय याजा
आऩ ध्मानऩूवक
ा श्रवण कयो भान्धाता नाभ का एक आश्रभ भें गमा। ऋवष के सम्भुख ऩहुॉ कय याजा ने उन्हें
सूमव
ा ॊशी याजा था। भान्धाता सत्मवादी, भहान तऩस्वी प्रणाभ फकमा। ऋवष ने याजा को आशीवााद ददमा, फपय
औय क्रवतॉ थाभान्धाता अऩनी प्रजा का ध्मान सन्तान ऩूछा- हे याजन! आऩ महाॉ फकस प्रमोजन से ऩधाये हैं, वो
की तयह कयता था। उसके याज्म की प्रजा धन-धान्म से कदहमे।
ऩरयऩूणा थी औय सुखऩूवक
ा जीवन-माऩन कय यही थी। याजा ने कहा हे भहवषा! भेये याज्म भें अकार ऩड़
उसके याज्म भें कबी अकार नहीॊ ऩड़ता था। गमा है , तीन वषा से वषाा नहीॊ हो यही है औय प्रजा कष्ट
कबी फकसी प्रकाय की प्राकृततक आऩदा नहीॊ बोग यही है। याजा के ऩाऩों के प्रबाव से ही प्रजा को
आती थी, ऩयन्तु न जाने याजा से क्मा बूर हो गई फक कष्ट सभरता है , ऐसा शास्िों भें सरखा है । भैं धभाानुसाय
एक फाय उसके याज्म भें जफयदस्त अकार ऩड़ गमा औय याज कयता हूॉ, फपय मह अकार कैसे ऩड़ गमा, इसका
प्रजा बोजन की कभी के कायण अत्मन्त दख
ु ी यहने भुझे अबी तक ऩता नहीॊ रग सका। अफ भैं आऩके ऩास
रगी। याज्म भें मऻ होने फन्द हो गए। अकार से ऩीडड़त इसी सभस्मा की तनवत्ृ त्त के सरए आमा हूॉ। आऩ कृऩा
प्रजा एक ददन दख
ु ी होकय याजा के ऩास जाकय प्राथाना कय भेयी इस सभस्मा का तनवायण कय भेयी प्रजा के
कयने रगे हे याजन! सभस्त सॊसाय की सत्ृ ष्ट का भुख्म कष्ट को दयू कयने के सरए कोई उऩाम फतराइमे।
आधाय वषाा है । सफ फात सन
ु ने के फाद ऋवष ने कहा 'हे याजन!
इसी वषाा के अबाव से याज्म भें अकार ऩड़ गमा इस सतमग
ु भें धभा के ायों यण सत्म्भसरत हैं। मह
है औय अकार से याज्म की प्रजा भय यही है । हे बऩ
ू तत! सतमग
ु सबी मग
ु ों भें उत्तभ है । इस मग
ु भें केवर
आऩ कोई ऐसा उऩाम कीत्जमे, त्जससे हभ रोगों का ब्राह्भणों को ही तऩ कयने तथा वेद ऩढ़ने का अधधकाय
कष्ट धीि दयू हो सके। मदद जल्द ही हभाये याज्म को है , फकन्तु आऩके याज्म भें एक शद्र
ू तऩ कय यहा है ।
अकार से भत्ु क्त न सभरी तो वववश होकय हभें को इसी दोष के कायण आऩके याज्म भें वषाा नहीॊ हो यही
फकसी दस
ू ये याज्म भें शयण रेनी ऩड़ेगी। है । मदद आऩ प्रजा का कल्माण ाहते हैं तो शीि ही
39 - 2018

उस शूद्र का वध कयवा दें । जफ तक आऩ मह कामा नहीॊ सबी कष्टों से भुक्त कयने वारा है ।'
कय रेत,े तफ तक आऩका याज्म अकार की ऩीड़ा से ऋवष के इन व नों को सुनकय याजा अऩने नगय
कबी भुक्त नहीॊ हो सकता।' ऋवष के व न सुन याजा ने वाऩस आ गमा औय ववधध-ववधान से दे वशमनी एकादशी
कहा- 'हे भुतनश्रेष्ठ! भैं उस तनयऩयाध तऩ कयने वारे शूद्र का व्रत फकमा। इस व्रत के प्रबाव से याज्म भें अछछी
को नहीॊ भाय सकता। फकसी तनदोष भनुष्म की हत्मा वषाा हुई औय प्रजा को अकार से भुत्क्त सभरी।
कयना भेये आ यण के ववरुि है औय भेयी आत्भा इसे इस एकादशी को ऩद्मा एकादशी बी कहते हैं। इस
फकसी बी त्स्थतत भें स्वीकाय नहीॊ कये गी। आऩ इस दोष व्रत के कयने से बगवान ववष्णु प्रसन्न होते हैं, अत्
से भुत्क्त का कोई दस
ू या उऩाम फतराइमे।' भोऺ की इछछा यखने वारे भनुष्मों को इस एकादशी का
याजा को वव सरत जान ऋवष ने कहा- 'हे याजन! व्रत कयना ादहए। ातभ
ु ाास्म व्रत बी इसी एकादशी के
मदद आऩ ऐसा ही ाहते हो तो आषाढ़ भाह के शुक्र व्रत से आयम्ब फकमा जाता है ।"
ऩऺ की दे वशमनी एकादशी का ववधानऩूवक
ा व्रत कयो। - अऩने कष्टों से भुत्क्त ऩाने के सरए फकसी
इस व्रत के प्रबाव से तम्
ु हाये याज्म भें वषाा होगी औय दस
ू ये का अदहत नहीॊ कयना ादहए। इष्टदे व ऩय श्रिा
प्रजा बी ऩूवा की बाॉतत सुखी हो जाएगी, क्मोंफक इस औय आस्था यखकय सत्कभा कयने से फड़े से फड़े कष्टों
एकादशी का व्रत सबी ससविमों को दे ने वारा है औय से बी सयरता से भत्ु क्त सभर सकती है ।

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40 - 2018

ातुभाास्म व्रत

अजन
ुा ने कहा- हे श्रीकृष्ण ! ववष्णु का शमन ऩऺ की द्वादशी को सभाप्त कय दे ना ादहए। इस
व्रत की कथा सुनाइमे। बगवान ववष्णु का शमन व्रत उऩवास के भनुष्म के सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। जो
फकस प्रकाय फकमा जाता है । कृऩा कय ववस्तायऩूवक
ा भनुष्म इस उऩवास को प्रतत वषा कयते हैं, वह सूमा के
फताइमे।" सभान क्रात्न्तमुक्त ववभान ऩय फैठकय ववष्णु रोक को
श्रीकृष्ण ने कहा "हे ऩाण्डु ऩुि ! अफ भैं तुम्हें जाते हैं। हे याजन! अफ आऩ इसभें दान का अरग-अरग
बगवान श्रीहरय के शमन व्रत का ववस्ताय से वणान पर जानें-
सुनाता हूॉ। इसे ध्मानऩव
ू क
ा श्रवण कयो सूमा के कका यासश
भे प्रवेश होने ऩय बगवान ववष्णु शमन कयते हैं औय  दे व भॊददयों भें यॊ गीन ऩत्ते-ऩत्त्तमाॊ फनाने वारे
जफ सूमा तुरा यासश भे आते हैं तफ बगवान जागते हैं। भनुष्म को सात जन्भों तक ब्राह्भण जन्भ सभरता
अधधक भास के दौयान बी ववधध इसी प्रकाय यहती है । है ।
आषाढ़ भाह के शुक्र ऩऺ की एकादशी का  ातुभाास्म के ददनों भें जो भनुष्म बगवान ववष्णु को
ववधानऩूवक
ा उऩवास कयना ादहए। उस ददन बगवान दही, दध
ू घी, शहद औय सभश्री आदद ऩॊ ाभत
ृ से
ववष्णु की भूतता फनानी ादहए औय ातुभाास्म उऩवास स्नान कयाता है , वह वैबवशारी होकय अनन्त सुख
तनमभऩूवक
ा कयना ादहए। सवाप्रथभ बगवान ववष्णु की बोगता है ।
भूतता को स्नान कयाना ादहए। फपय श्वेत वस्िों को  श्रिा ऩूवक
ा बूसभ, स्वणा, दक्षऺणा आदद ब्राह्भणों को
धायण कयाकय बगवान ववष्णु को तफकमादाय शैमा ऩय दानस्वरूऩ दे ने वारा भनुष्म स्वगा भें जाकय दे वयाज
शमन कयाना ादहए। बगवान ववष्णु का धऩ
ू , दीऩ औय के सभान सुख बोगता है ।
नैिेद्यादद ऩूणा ववधध-ववधान से ऩूजन कयाना ादहए।  ववष्णु की स्वणा प्रततभा फनाकय जो भनुष्म उसका
बगवान का ऩूजन विद्वान ब्राह्भणों के द्वारा कयाना धऩ
ू , दीऩ, ऩुष्ऩ, नैिेद्य आदद से ऩूजन कयता है , वह
ादहए, ववष्णु की इस प्रकाय स्ततु त कयनी ादहए- 'हे दे वरोक भे जाकय अनन्त सख
ु बोगता है ।
प्रब!ु भैंने आऩको शमन कयामा है । आऩके शमन से ातभ
ु ाास्म भे जो भनष्ु म तनत्म बगवान को तर
ु सी
सम्ऩण
ू ा ववश्व सो जाता है । अवऩात कयता है , वह फैठकय ववष्णर
ु ोक को जाता है ।
इस तयह बगवान श्रीहरय के साभने हाथ जोड़कय  बगवान ववष्णु का धऩ
ू -दीऩ से ऩज
ू न कयने वारे
प्राथाना कयनी ादहए- 'हे प्रबु! आऩ जफ ाय भाह तक भनष्ु म को अऺम धन की प्रात्प्त होती है ।
शमन कयें , तफ तक भेये इस ातभ
ु ाास्म व्रत को तनववार्घन  दे वशमनी एकादशी से कातताक के भहीने तक जो
यखें।' भनष्ु म बगवान ववष्णु की ऩज
ू ा कयते हैं, उन्हें
बगवान ववष्णु की स्तुतत कयने के उऩयान्त शुि ववष्णुरोक की प्रात्प्त होती है ।
बाव से भनुष्मों को दातुन आदद के तनमभ को ग्रहण  जो भनुष्म हस ातुभाास्म व्रत भें सॊध्मा के सभम
कयना ादहए। बगवान ववष्णु के व्रत को आयम्ब कयने दे वताओॊ तथा ब्राह्भणों को दीऩ दान कयते हैं तथा
के ऩाॉ कार वणणात फकए गए हैं। दे वशमनी एकादशी से ब्राह्भणों को स्वणा के ऩाि भें वस्ि दान दे ते हैं , वह
रेकय दे वोत्मानी एकादशी तक ातुभाास्म उऩवास कयना ववष्णुरोक को जाते हैं। बत्क्तऩूवक
ा बगवान का
ादहए। द्वादशी, ऩूणभ
ा ाशी, अष्टभी मा सॊक्राॊतत को यणाभत
ृ रेने वारे भनुष्म इस सॊसाय के आवागभन
उऩवास शुरू कयना ादहए औय कातताक भाह के शुक्र के क्र से भुक्त हो जाते हैं।
41 - 2018

 जो भनुष्म बगवान ववष्णु के भॊददय भें प्रततददन ऩाऩों का नाश कयने वारे हैं। भेये न कयने मोग्म
१०८ फाय गामिी भन्ि का जाऩ कयते हैं , वे कबी कामों को कयने से जो ऩाऩ उत्ऩन्न हुए हैं, कृऩा कय
ऩाऩों भें सरप्त नहीॊ होते। आऩ उनको नष्ट कीत्जए।
 ऩुयाण तथा धभाशास्ि को सुनने वारे औय वेदऩाठी  ातुभाास्म भें प्राजाऩत्म तथा ाॊद्रामण व्रत ऩितत
ब्राह्भणों को वस्िों का दान कयने वारे भनुष्म दानी, का ऩारन बी फकमा जाता है । प्राजाऩत्म व्रत को १२
धनी, ऻानी औय मशस्वी होते हैं। ददनों भें ऩूणा कयते हैं। व्रत के आयम्ब से ऩहरे तीन
 जो भनुष्म बगवान, ववष्णु मा सशवजी का स्भयण ददन १२ ग्रास बोजन प्रततददन रेते हैं , फपय आगाभी
कयते हैं औय उनकी प्रततभा दान कयते हैं, वे सभस्त तीन ददनों तक प्रततददन छब्फीस ग्रास बोजन रेते
ऩाऩों से भुक्त होकय गुणवान फनते हैं। हैं, इसके आगे के तीन ददनों तक २८ ग्रास बोजन
 जो भनुष्म सूमा को अर्घमा दे ते हैं औय सभात्प्त भें सरमा जाता है औय इसके फाद फाकी फ े तीन ददन
गौ-दान कयते हैं, वे तनयोगता, दीघाामु, मश, धन तनयाहाय यहा जाता है । इस व्रत के कयने से भनुष्म
औय फर ऩाते हैं। की इत्छछत भनोकाभना ऩूणा होती है । व्रत कयने
 जो भनुष्म ातुभाास्म भें गामिी भन्ि द्वारा ततर से वारा साधक प्राजाऩत्म व्रत कयते हुए ातुभाास्म के
होभ कयते हैं औय ातभ
ु ाास्म सभाप्त हो जाने ऩय हे तु उऩमक्
ु त सबी धासभाक कृत्म जैसे ऩज
ू न, जऩ,
ततर का दान कयते हैं, उनके सबी ऩाऩ नष्ट हो तऩ, दान, शास्िों का ऩठन-ऩाठन तथा कीतान आदद
जाते हैं औय तनयोग कामा सभरती है तथा सॊस्कायी कयता यहे ।
सॊतान की प्रात्प्त होती है।  हे अजन
ुा ! इसी प्रकाय ाॊद्रामण व्रत बी फकमा जाता
 जो भनष्ु म ातभ
ु ाास्म व्रत अन्न से होभ कयते हैं है । अफ इस व्रत का ववधान सन
ु ो- मह व्रत ऩयू ा
औय सभाप्त हो जाने ऩय घी, करश औय वस्िों का भहीना फकमा जाता है । ऩाऩों से भत्ु क्त के सरए
दान कयते हैं, वे ऐश्वमाशारी होते हैं। जो भनष्ु म फकमा जाने वारा मह व्रत फढ़ता-घटता यहता है ।
तुरसी को गरे भें धायण कयते हैं तथा अन्त भें इसभें अभावस्मा को एक ग्रास, प्रततऩदा को दो
बगवान ववष्णु के तनसभत्त ब्राह्भणों को दान दे ते हैं, ग्रास, द्ववतीमा को तीन ग्रास बोजन रेते हुए
वह ववष्णुरोक को ऩाते हैं। ऩूणणाभा के ऩूवा ौदह ग्रास औय ऩूणणाभा को ऩन्द्रह
 ातुभाास्म उऩवास भें जो भनुष्म बगवान ववष्णु के ग्रास बोजन रेना ादहए। फपय ऩूणणाभा के फाद
शमन के उऩयान्त उनके भस्तक ऩय तनत्म दध
ू ौदह, तेयह, फायह, ग्मायह ग्रास इस क्रभ भें बोजन
ढ़ाते हैं औय अन्त भें स्वणा की दव
ू ाा दान कयते हैं रेते हुए बोजन की भािा प्रततददन घटानी ादहए।
तथा दान दे ते सभम जो इस प्रकाय की स्तुतत कयते  है अजुना ! जो प्राजाऩत्म औय ाॊद्रामण व्रत कयते हैं,
हैं फक- 'हे दव
ू !े त्जस बाॉतत इस ऩथ्
ृ वी ऩय शाखाओॊ उन्हें इसरोक भें धन सम्ऩत्त्त, शायीरयक तनयोगता
सदहत पैरी हुई हो, उसी प्रकाय भुझे बी अजय-अभय तथा बगवान की कृऩा प्राप्त होती है । इसभें काॊसे
सॊतान दो', ऐसा कयने वारे भनुष्म के सफ ऩाऩ का ऩाि औय वस्ि दान की शास्िीम व्मवस्था है।
नष्ट हो जाते हैं औय अन्त भें स्वगा की प्रात्प्त होती ातुभाास्म के सभाऩन ऩय दक्षऺणा से सुऩाि
है । ब्राह्भणों को सन्तुष्ट कयने का ववधान है ।
 जो भनुष्म बगवान सशव मा ववष्णु का स्भयण कयते  ातुभाास्म व्रत के ऩूणा हो जाने के फाद ही गौ-दान
हैं, उन्हें यात्रि जागयण का पर प्राप्त होता है । कयना ादहए। मदद गौ-दान न कय सकें तो वस्ि
 ातुभाास्म व्रत कयने वारे भनुष्म को उत्तभ ध्वतन दान अवश्म कयना ादहए।
वारा घण्ट दान कयना ादहए औय इस प्रकाय स्तुतत  तनत्म जो भनुष्म ब्राह्भणों को प्रणाभ कयते हैं,
कयनी ादहए- 'हे प्रबु! हे नायामण! आऩ सभस्त उनका जीवन सपर हो जाता है औय वे सबी ऩाऩों
42 - 2018

से भुक्त हो जाते हैं। ातुभाास्म व्रत ऩूणा होने ऩय  जो भनुष्म वषाा ऋतु भें गोऩी द
ॊ न दे ते हैं, उन ऩय
जो ब्राह्भणों को बोजन कयाता है , उसकी आमु तथा बगवान प्रसन्न होते हैं। ातुभाास्म भें एक फाय
धन भें ववृ ि होती है । बोजन कयने वारा, बूखे को अन्न दे ने वारा, बूसभ
 जो भनुष्म अरॊकाय सदहत फछड़े वारी कवऩरा गाम ऩय शमन कयने वारा अबीष्ट को प्राप्त कयता है ।
वेदऩाठी ब्राह्भणों को दान कयते हैं , वे क्रवतॉ इत्न्द्रम तनग्रह कय, ातुभाास्म व्रत का अनन्त पर
आमुवान, सॊतानवान याजा होते हैं औय स्वगारोक भें प्राप्त फकमा जाता है ।
प्ररम के अन्त तक दे वयाज के सभान याज्म कयते  श्रावण भें शाक, बादों भें दही, आत्श्वन भें दग्ु ध
हैं। औय कातताक भें दार का त्माग कयने वारे भनष्ु म
 सूमद
ा े व तथा गणेशजी को जो भनुष्म तनत्म प्रणाभ तनयोगी होते हैं।
कयते हैं, उनकी आमु तथा रक्ष्भी फढ़ती है औय  ातुभाास्म व्रत का तनमभऩूवक
ा ऩारन कयने ऩय ही
मदद गणेशजी प्रसन्न हो जाएॉ तो वे भनोवाॊतछत ईद्यापन कयना ादहए। जफ प्रबु से शैमा त्मागने
पर ऩाते हैं। सूमद
ा े व औय गणेशजी की प्रततभा का अनुयोध कयें , तफ ववशेष ऩूजन कयना ादहए।
ब्राह्भण को दे ने से सभस्त कामों की ससवि होती हैं। इस अवसय ऩय तनयसबभानी विद्वान ब्राह्भण को
 दोनो ऋतओ
ु ॊ भें जो भनष्ु म सशवजी की प्रसन्नता के अऩनी ऺभता के अनस
ु ाय दान-दक्षऺणा दे कय प्रसन्न
सरए ततर औय वस्िों के साथ ताॊफे का ऩाि दान कयना ादहए। हे अजन
ुा ! दे वशमनी एकादशी औय
कयते हैं, उनके महाॉ स्वस्थ व सन्
ु दय सशवबक्त ातभ
ु ाास्म का भाहात्म्म अनन्त ऩण्
ु म परदामी है ,
सॊतान उत्ऩन्न होती है । ातभ
ु ाास्म व्रत के ऩण
ू ा होने इस व्रत के कयने से भानससक शात्न्त औय बगवान
ऩय ाॉदी मा ताॊफा-ऩाि गड़
ु औय ततर के साथ दान ववष्णु के प्रतत श्रिा फढ़ती है ।
कयना ादहए।
कथा-साय
 बगवान ववष्णु के शमन कयने के उऩयान्त जो
ातुभाास्म बगवान ववष्णु की कृऩा प्राप्त कयने के सरए
भनुष्म मथा शत्क्त वस्ि औय ततर के साथ स्वणा
ाय भास तक फकमा जाने वारा व्रत है । इस व्रत को
का दान कयते हैं, उनके सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं
दे वशमनी से दे वोत्थान एकादसशमों से जोड़ने से बगवान
औय वे इसरोक भें बोग तथा ऩयरोक भें भोऺ
के प्रतत आस्था सुदृढ़ होती है । ातुभाास्म भें जफ
प्राप्त कयते हैं।
बगवान ववष्णु शमन कयते हैं, उस सभम कोई बी
 ातुभाास्म व्रत के ऩूणा होने ऩय जो भनुष्म शैमा
भाॊगसरक कामा नहीॊ फकए जाते, भाॊगसरक कामों का
दान कयते हैं, उनको अऺम सुख की प्रात्प्त होती है
शुबायम्ब दे वोत्थानी एकादशी से ऩुन् प्रायम्ब होता है ।
औय वे कुफेय के सभान धनवान होते हैं।

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43 - 2018

फफ़योजा एक ववरऺण यत्न



फफ़योजा शब्द अॊदाज से 16 वीॊ सदी के आसऩास फ्रें बाषा के तुकी (Turquois) से प्राप्त हुवा था मा गहये
नीरे यॊ ग का ऩत्थय (pierre turquin) से प्राप्त हुवा होगा मा, इस के नाभ भे फहोत साये सहस्म है ! नकरी फफ़योजा
के अत्स्तत्व रागू होने से असरी फफ़योजा का भहत्व कभ हो गमा है , फफ़योजा को कई नाभों से जाना जाता है ,
खतनज सभूह: भयकत सभूह.

प्रात्प्त स्थान:
फफ़योजा के प्रात्प्त स्थान फहोत साये है । त्जनभें से कुछ ही का उल्रेख वाणणत्ज्मक के सरए उत्तभ होता है ।, त्जसकी
गुणवत्ता औय प्रबाव अछछा हो उस का उल्रेख फकमा जायहा है । ईयान के भा’डन (Ma'dan) से ४५-५० फकभी उत्तय
ऩत्श् भ भें नेइशाफुय(तनशाऩुय) त्जसे बायत भे तनशाऩुयी के नाभ से जाना जता है । तनशाऩुयी सफसे अछछा होता है
इस्का यॊ ग एवॊ प्रबाव फाकी जगाओ से प्राप्त से उत्तभ होता है । दक्षऺण ऑस्रे सरमा. भें ीन, ब्राजीर, भेत्क्सको,
सॊमुक्त याज्म अभयीका, इॊग्रैंड, फेत्ल्जमभ औय बी फहोत सायी जगाहो से प्राप्त होता है ।

प्राकृततक सॊद
ु य फफ़योजा फ़ामदे भॊद है ।
भर
ू मह एक 100% प्राकृततक यत्न ऩत्थय है । (खनन/खादान के भाध्मभ से प्राप्त)
फफ़योजा के राब
 फफ़योजा को एक आध्मात्त्भक रूऩ भें सहामता हे तु प्रमोग फकमा जाता है ।
 फकसी बी त्स्थतत भें , जहाॊ स्ऩस्ट फात कयने की आवश्मक है , वहा व्मत्क्त की फात भे एक प्रकाय के गुण उत्ऩन्न
कयती है जो उसे दस
ू यो से अरग औय ज्मदा स्ऩस्ट सुवक्ता फनने भे भदद कयता है ।
 व्मत्क्त को दोस्तों के फी खर
ु े वव ाय, प्माय औय तन:स्वाथा सॊफॊध के प्रवाह को सऺभ कयने के सरए, फफ़योजा
उऩमोगकताा के अॊदय सभग्र भानससक त्स्थतत को फढ़ाने भे, सकायात्भक सो , सॊऩूणत
ा ा, अॊतऻाान, फुवि, भानससक
अधधक त्स्थयता औय आत्भ का ववकास कय उसको जानने के सरए अग्रणी फनाता है ।
 फफ़योजा के सरमे कहा जाता ह। इस यत्न का राब सबी यासश के रोगो द्वारा उऩमोग फकमा जा सकता है , इसे
दतु नमा भे सबी उम्र औय सफ धभा के रोगो भे इस्तेभार सफसे आभ ऩहरू मह है , फक प्रत्मेक सॊस्कृतत औय हय
धभा भे फफ़योजा के राब का सम्भान कयते है ।
 ऩहनने वारा के ऩरयवाय को भुसीफत से फ ामा है ववशेष रूऩ से ऩतत औय ऩत्नी फी , नफ़यत को नष्ट कयता है
औय प्माय फढ़ाता है ।
 इस यत्न की अदृश्म स्िोतों से आने वारी ऊजाा आऩ के सरए उप्मोगी हो सकती है ।
 फफ़योजा के यॊ ग भे फदराव होता यहता है ।
 मदद मह गहये नीरे यॊ ग का हो तो मह अछछा शगुन है ।
 मदद मह गहये हये यॊ ग का हो तो मह भाध्मभ है।
 ऩयन्तु अगय मह ऩीरा हो जाता है मह एक फयु ा शगन
ु है ।
 फफ़योजा को दोस्ती केसरमे एक अछछा सॊकेत भाना जाता है अगय फकसी अन्म व्मत्क्त के द्वारा उऩहाय भे प्राप्त
हो।
44 - 2018

 अगय इभे धागे के सभान ये खा ददखाई दे ती है , मह शित


ु ा उत्ऩन्न होने का सॊकेत है ।
 मह बी अवववादहत रड़फकमों को ऩेहनाने से उनके वववाह शीि होता है ।

राब:-
 मह ीन भे व्माऩक रूऩ से पेंग शुई औय फक्रस्टर ध फकत्सा भें इस्तेभार फकमा है ।
 शयाफ की रत छुडाने के सरए फक्रस्टर ध फकत्सकों द्वारा फफ़योजा की ससपारयश की जाती है ।
 सॊक्रभण,ऊॉ ा यक्त ाऩ, अस्थभ, दाॉत औय भॉह
ु की सभस्मा एवॊ सूमा के ववफकयण से यऺा होती है ।
 मह ज्मादातय फाज़य भे त्रफकने वारे फफ़योजा जेसे ऩत्थय असरी नहीॊ होते।
 एक असरी मा नकरी फफ़योजा को ऩह ान ने के सरमे, इसकी सतह को दे खे असरी फक सतह खद
ु ा यी औय
सभतर मा सऩाट नहीॊ होती, एवॊ नकरी फफ़योजा की सतह सभतर मा सऩाट होती है ।
ध फकत्सा अस्वीकृतत
 ऊऩय उल्रेख फफ़योजा सफ वणान के बायतीम औय ीनी ऩौयाणणक कथाओॊ के अनस
ु ाय हैं।
ऩत्थय के हीसरॊग राब के सरमे अऩने ध फकत्सक मा अन्म स्वास्थ्म दे खबार ऩेशव
े य से सराह रे एक ववकल्ऩ के
रूऩ भें इस्तेभार नहीॊ कयना ादहए।

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45 - 2018

स्वप्न द्वारा जाने धनप्रात्प्त के मोग



 स्वप्न भें दे वी-दे वता के दशान होने से धन राब के साथ-साथ सपरता दशााता है ।

 स्वप्न भें गाम का दध


ू तनकारना म तनकारते दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 सपेद घोडे को दे खना धन की प्रात्प्त एवॊ उज्जवर बववष्म का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें नीरकण्ठ मा सायस ऩऺी को दे खना धन राब एवॊ याज सम्भान फक प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें कदम्फ के वऺ
ृ को दे खना धन प्रात्प्त, स्वास्थ्म राब,
याजसम्भान प्रात्प्त का सॊकेत है ।
अष्ट रक्ष्भी कव
 स्वप्न भें कानों भें फारी मा धायण फकमे दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत
है ।
 स्वप्न भें नत्ृ म कयती स्िी/कन्मा को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।

 स्वप्न भें भत
ृ ऩऺी को दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें जरता हुवा दीऩक दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें स्वणा को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें ह
ू ों को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें सपेद ीदटमाॉ दे खना धन राब का सॊकेत है । अष्ट रक्ष्भी कव को धायण
 स्वप्न भें कारे त्रफछछू को दे खना धन राब का सॊकेत है । कयने से व्मत्क्त ऩय सदा भाॊ भहा
 स्वप्न भें नेवरे का को दे खना हीये -ज्वाहयात फक प्रात्प्त का सॊकेत है । रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना
 स्वप्न भें भधभ
ु क्खी का छत्ता दे खना धन राब का सॊकेत है । यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के
 स्वप्न भें सऩा को पन उठामे दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । अष्ट रुऩ (१)-आदद रक्ष्भी, (२)-
 स्वप्न भें हाथी को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी,
 स्वप्न भें भहर को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
 स्वप्न भें तोते को खाते दे खना प्रफर धन प्रात्प्त के मोग का सॊकेत है । (६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्मा
 स्वप्न भें अॊगर
ु ी भें अॊगठ
ू ी ऩहनें हुवे दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन
 स्वप्न भें आभ का फधग ा दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद
 स्वप्न भें ऩवात औय वऺ
ृ ऩय ढ़ते दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
प्राप्त होता हैं।
 स्वप्न भें आॊवरे औय कभर को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
भल्
ू म भाि: Rs- 1250
 स्वप्न भें गौ दग्ु ध, घी, पर वारे वऺ
ृ दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें सऩा को त्रफर के साथ दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
 स्वप्न भें गाम के दशान होने से अत्मन्त शुब होता हैं, व्मत्क्त को मश, वैबव एवॊ ऩरयवाय वद्
ृ तघ से राब प्राप्त
होती है ।
 स्वप्न भें फकसान को खेत भें काभ कयते दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
46 - 2018

भॊि ससि कारी हल्दी के ववसबन्न राब



विद्वानों का कथन हैं की ईश्वय की कृऩा प्रात्प्त दहन्द ू सॊस्कृतत भें हल्दी को अत्मॊत शुब एवॊ
हे तु एवॊ वाॊतछत कामा भें ससवि की प्रात्प्त एवॊ गुणकायी भाना जाता हैं इस सरए हल्दी का प्रमोग
भनोकाभना ऩूतता हे तु भॊि, मॊि बोजन व औषधध के अरावा
औय तॊि के अनेक उऩामो का भाॊगसरत कामा, दे वी-
वणान दहन्दॊ ू धभाग्रॊथों भें दे वताओॊ के ऩूजन-अ न

सभरता हैं। इत्मादद भें ववशेष रुऩ से
आज के बौततक मुग प्रमोग फकमा जाता हैं।
भें हय कामा अथा (धन) के अधधकतय रोगों ने हल्दी
उऩय प्रत्मऺ मा अप्रत्मऺ रुऩसे केवर ऩीरे यॊ ग की ही दे खी
तनबाय होता हैं इस सरमे होगी। क्मोफक ऩीरी हल्दी
प्रत्मेक व्मत्क्त फक मही इछछा का प्रमोग हय घयों भें
होती हैं फक उसके ऩास बी भसारों के रुऩ भें प्रमोग
इतना धन हो फक वह अऩने होता ही हैं, इस सरए ऩीरी
जीवन भें सभस्त बौततक हल्दी फाजायों भें आसानी से
सख
ु ो को बोग ने भें सभथा उऩरब्ध हो जाती हैं।
हों। हय व्मत्क्त की ाह होती रेफकन हल्दी कारे
हैं की उसकी धन-सॊऩत्त्त ददन दोगन
ु ी यात ौगन
ु ी फढती यॊ ग की बी प्राप्त होती हैं। कारी हल्दी को तॊि शास्िों
यहें ! भें अधधक दर
ु ब
ा औय दे वीम
दहन्द ू धभा भें धन औय गुणों से मुक्त भाना गमा
ऐश्वमा की दे वी भाॊ भहारक्ष्भी हैं। कारी हल्दी औषधधम
हैं जो धन, सभवृ ि एवॊ ऐश्वमा गुणों से बयऩूय होती हैं,
प्रदान कयती हैं। इस सरए भाॉ इससरए इस का प्रमोग तॊि
भहारक्ष्भी की प्रसन्नता एवॊ प्रमोगो के अरावा औषधध
कृऩा से धन, सभवृ ि एवॊ ऐश्वमा के तनभााण इत्मादद भें बी
की प्रात्प्त के सयर उऩाम तॊि ववशेष रुऩ से फकमा जाता
शास्ि भें फतामे गमे हैं। हैं।
बायतीम ऩयॊ ऩया भें तॊि विद्या के
हल्दी का ववशेष भहत्व फतामा जानकाय भानते हैं की धन
गमा हैं, हल्दी का उऩमोग प्रात्प्त हे तु कारी हल्दी एक
प्राम् सबी व्मत्क्त के जीवन अभत
ु भत्कायी प्रबावों से
भें बोजन के अरावा अधधक्तय आध्मात्त्भक व औषधध के मुक्त होती हैं, उनका भानना हैं की कारी हल्दी के
रुऩ भें बी होता हैं। आध्मात्त्भक ऺेि भें हल्दी के प्रमोगो ववधध-ववधान से ऩूजन से व्मत्क्त असीभ धन-सॊऩत्त्त
से धन प्रात्प्त सॊबव हैं! एवॊ ऐश्वमा प्राप्त कयने भें सभथा हो सकता हैं।
47 - 2018

हल्दी को हरयद्रा बी कहा जाता है । तॊि विद्या के से धन से सॊफॊधधत सभस्माएॊ दयू होती है ,
जानकायों का तो महाॊ तक भानना हैं की असरी कारी योजगाय भें ववृ ि होती हैं।
हल्दी प्राप्त होना सौबाग्म की फात हैं। त्जस घय भें  कारी हल्दी के प्रबाव से नकायात्भक उजाा को
कारी हल्दी का ऩूजन होता हो वह घय भें तनवास कताा दयू फकमा जा सकता है ।
सौबाग्मशारी होते हैं।  फकसी शुब भुहूता भें कारी हल्दी को ससॊदयू भें
ऐसी धासभाक भान्मता हैं की अऺम तत
ृ ीमा, यखकय धऩ
ू -दीऩ से ऩूजन कय रार कऩड़े भें एक
धनिमोदशी, दीऩावरी, ग्रहण, गुरु ऩुष्माभत
ृ मोग, ससक्के के साथ फाॊधय ततजोयी मा गल्रे भें यखने
त्रिऩुष्कय मोग, द्ववऩुष्कय मोग, कामा ससवि मोग, अभत
ृ से धन की ववृ ि होने रगती है ।
ससवि मोग आदद फकसी शुब भुहूता भें कारी हल्दी को
अऩने ऩूजा स्थान भें स्थावऩत कय उसका तनमसभत प्रफर धन प्रात्प्त प्रमोग
ऩूजन कयने से कारी हल्दी का भत्कायी प्रबाव
प्रफर धन की इछछा यखने वारे व्मत्क्त को भॊि
आश् माजन रुऩ से अतत शीि प्राप्त होता हैं।
ससि 11 गोभती क्र, 11 ऩीरी कौडडयाॊ औय कारी
हल्दी के 11 टुकड़ों को दीऩावरी मा धनिमोदशी आदद
धन प्रात्प्त प्रमोग शुब अवसय ऩय ऩूजन के सभम भाॊ रक्ष्भी की प्रततभा

 कारी हल्दी को अऩने ऩूजन स्थान भें रक्ष्भी मा ध ि के साथ स्थावऩत कय ववधधवत ऩूजन कयने से

नायामण की प्रततभा मा ध ि के ऩास स्थावऩत शीि ववशेष राब की प्रात्प्त होती हैं। ऩूजन के ऩश् मात

कय उसका ववधधवत ऩज गोभती क्र, कौडड औय हल्दी के टुकड़ों को ऩीरे कऩड़े


ू न कयें ।
 विद्वानों का अनब भें फाॊध कय ऩोटरी फना कय अऩनी ततजोयी मा गल्रे भें
ु व हैं की कारी हल्दी को घय
भें स्थावऩत कय ऩज यखरें। तनमसभत मथा सॊबव रक्ष्भी भॊि का जऩ कयते
ू न कयने से घय भें तनयॊ तय
सख यहें । इस ववधध से ऩूजन कयने से धन सॊफॊधधत रुकावट
ु -शाॊतत की ववृ ि होने रगती है ।
 तॊि शास्ि के जानकायों का कथन हैं की कारी शीि दयू होने रगती हैं औय ऩरयवाय भें तनयॊ तय धन,

हल्दी के तनमसभत ऩज सुख, सभवृ ि भें ववृ ि होती हैं।


ू न से व्मत्क्त को कबी
ऩैसा की कभी नहीॊ होती। मदद व्मवसाम भें तनयन्तय राब के स्थान ऩय

 कारी हल्दी की गाॊठ को ाॊदी, स्टीर मा घाटा हो यहा हो तो बी मह प्रमोग अत्मॊत राबप्रद होता

प्रात्स्टक की डडब्फी भें यख कय प्रतत-ददन दे वी- हैं।

दे वता के साथ धऩ
ू -दीऩ से ऩूजन कयें ।
 कारी हल्दी की गाॊठ को सोने मा ाॊदी के कामा ससवि प्रमोग
ससक्के के साथ रार वस्ि भें फाॊधकय ऩोटरी  कारी हल्दी के टुकड़े ऩय भौरी रगाकय गूगर औय
फना कय उसे अन्म दे व प्रततभाओॊ के साथ ऩूजा रोफान के धऩ
ू से शोधन कयके अऩने ऩूजा स्थान भें
कयने से ववशेष राब की प्रात्प्त होती है । (सोने यखदें , फकसी भहत्वऩूणा कामा ऩय जाते सभम उसे
मा ाॊदी के ससक्के न हो तो रुऩमे-ऩैसे के नमे हभें शा अऩनी जेफ के उऩयी दहस्से भें मा फैग भें यखें,
ससक्के के साथ यखा जा सकता हैं) इस प्रमोग से कामा त्रफना फकसी फाधा ववध्न के ऩण
ू ा
 कारी हल्दी की ऩोटरी को को अऩने गल्रे (कैश होने की सॊबावनाएॊ प्रफर हो जाती हैं।
फॉक्स), ततजोयी आदद भें बी यख सकते हैं।  फकसी नमे कामा मा भहत्वऩण
ू ा कामा के सरए जाते
विद्वानों का अनुबव हैं की कारी हल्दी के ऩूजन सभम कारी हल्दी को द
ॊ न की तयह घीस कय
उसका ततरक रगाकय जाने से कामा भें सपरता
48 - 2018

प्राप्त होने की सॊबावना प्रफर हो जाती हैं। विद्वानों फनाकय उसभें थोडी गीरी ीने की दार, थोड़ा गुड़ औय
का अनुबव हैं की नौकयी व्मवसाम से जुड़े रोगों के थोड़ी सी वऩसी हुइ कारी हल्दी को दफाकय योगी व्मत्क्त
सरए मह प्रमोग अत्मॊत राबप्रद ससि होता हैं। के उऩय से सात फाय घड़ी की ददशा
(दक्षऺणावता/Clockwise) भें उताय कय गाम को णखरा
ताॊत्रिक प्रबाव तनवायण प्रमोग दें । मह उऩाम रगाताय तीन गुरूवाय कयने से ववशेष
राब ददखने रगता हैं।
मदद फकसी व्मत्क्त ऩय टोने-टोटके आदद ताॊत्रिक
प्रबाव हो तो उसे कारी हल्दी के छोड़े टुकड़े को छे द
नजय यऺा प्रमोग
कयके धागा भें वऩयोकय मा फकसी ताववज भें बय कय
 मदद फकसी को नजय रग गमी है , तो कारे कऩड़े भें
धायण कयवामा जामे तो शीि ही अशुब प्रबावों से भुत्क्त
कारी हल्दी को फाॊधकय सात फाय नज़य रगे व्मत्क्त
सभर सकती हैं। कुछ विद्वानों का अनुबव हैं की कारी
मा फछ े के उऩय से घड़ी की ददशा
हल्दी को नवग्रह भॊि से असबभॊत्रित कय धायण कयने से
ग्रह जतनत ऩीड़ाएॊ दयू होती हैं। (दक्षऺणावता/Clockwise) भें उताय कय फहते हुमे जर
भें प्रवादहत कय दें मा फकसी ववयान जगह भें पैक दें ।
 मदद फकसी के कामा मा व्मवसामीक स्थान ऩय फाय-
आकषाण प्रमोग
फाय फकसी की नज़य रग गई हो तो कारी हल्दी को
विद्वानों का भत हैं की कारी हल्दी को तॊि
कारे कऩड़े भें फाॊधकय दोनों हाथों से ऩूये कामा स्थर
शास्ि भें वशीकयण भें अत्मॊत राब प्रद जड़ी फूटी भाना
के सबतय सात फाय घूभाकय फहते हुमे जर भें
जाता है । तॊि विद्या के जानकायों का भानना हैं की
कारी हल्दी भें अभत प्रवादहत कय दें मा फकसी ववयान जगह भें पैक दें ।
ु आकषाण शत्क्त होने के कायण
वशीकयण आदद भें बी कारी हल्दी का प्रमोग ववशेष  नज़य यऺा के सरए कारी हल्दी ऩय भौरी रऩेट कय

राबप्रद होता हैं। ऩीरे कऩड़े भें फाॊधकय अऩने व्मवसामीक स्थान के

प्रततददन कारी हल्दी का ततरक रगाने से सबी प्रकाय भुख्म द्वार ऩय रटका दें । इस प्रमोग से नज़य से

के इत्छछत भनुष्मों का आकषाण हो सकता हैं। कारी यऺा होगी एवॊ धन की ववृ ि बी होती यहे गी।

हल्दी का ततरक एक अत्मॊत सयर तॊिोक्त प्रमोग है ।


ग्रह शाॊतत प्रमोग
ववशेष नोट: आकषाण मा वशीकयण हे तु कारी हल्दी का
मदद फकसी व्मत्क्त की जन्भ कॊु डरी भें गरू
ु औय
प्रमोग कयने से ऩूवा कारी हल्दी को फकसी मोग्म
शतन दोनो ऩीडड़त हो, तो ग्रह शाॊतत हे तु फकसी शक्
ु रऩऺ
जानकाय विद्वान से वशीकयण भॊि से असबभॊत्रित एवॊ
के प्रथभ गरू
ु वाय से तनमसभत रूऩ से कारी हल्दी को
भॊि ससि अवश्म कयवारें ।

ॊ न की तयह घीस कय ततरक रगाने से मह प्रमोग
* आकषाण प्रमोग केवर शुब उद्देश्म हे तु राबप्रद होता
दोनों ऩीडड़त ग्रह शब
ु पर प्रदान कयते हैं।
हैं, अनैततक कामा मा उद्देश्म हे तु फकमा गमा आकषाण
प्रमोग तनत्श् त रुऩ से अत्माधधक हानी कायक ससि धन सॊ म हे तु प्रमोग
होता हैं। कुछ रोगों की आभदनी उत्तभ होने के उऩयाॊत
बी धन सॊ म नहीॊ कय ऩाते। उन्हें फकसी बी शुक्रऩऺ
स्वास्थ्म वधाक प्रमोग के प्रथभ शुक्रवाय को एक ाॊदी की डडब्फी भें कारी
मदद कोई व्मत्क्त हभेंशा त्रफभाय मा अस्वस्थ हल्दी, नागकेशय व रार यॊ ग का ससन्दयू को साथ भें
यहता हो, तो फकसी बी गुरूवाय से मह प्रमोग प्रायॊ ब कय सभराकय भाॊ रक्ष्भी की प्रततभा मा ध ि के यणों से
के तीन गुरुवाय तक प्रमोग कयें । गेहूॊ के आटे के दो ऩेड़े
49 - 2018

स्ऩशा कयवा कय धन यखने के स्थान ऩय यख दें । इस हल्दी को प्राम् तेर भें सबगो कय कुभकुभ ससॊदयू आदद
प्रमोग के प्रबाव से धन सॊ म होने रगता हैं। से रेऩ कय फे ा जाता हैं त्जससे उसकी नकरी होने की
फात साधयण व्मत्क्त को आसानी से नहीॊ रती।
* ाॊदी की डडब्फी उऩरब्ध न हो तो स्टीर मा प्रात्स्टक
रेफकन इस भें कऩूय से सभरती झुरती सुगन्ध नहीॊ
की डडब्फी का प्रमोग कयें । डडब्फी को स्थावऩत कयने हे तु
होती।
शुक्रऩऺ के प्रथभ शुक्रवाय के अरावा अऺम तत
ृ ीमा,
असरी कारी हल्दी की सुगन्ध कऩूय से सभरती-
धनिमोदशी, दीऩावरी का भुहूता बी शुब होता हैं।) झुरती होती हैं मही असरी कारी हल्दी की ऩह ान हैं।
असरी कारी हल्दी अॊदय से ही गहये यॊ ग की मा कारे
भशीनों को खयाफी से फ ाने हे तु प्रमोग यॊ ग की होती हैं उऩय से नहीॊ उसका उऩय का दहस्सा
अदयख के उऩयी दहस्से के सभान कत्थई यॊ ग से सभरता
मदद व्मवसाम मा उद्मोग भें भशीनों भें फाय-फाय
झुरता होता हैं।
खयाफी होती यहती हों, तो कारीहल्दी को द
ॊ न की तयह
तॊि विद्या के जानकायों का भत हैं की फकसी बी
केशय व गॊगा जर सभराकय घीस कय शुक्रऩऺ के तॊि प्रमोग को कयने ऩय उससे प्राप्त होने वारे पर
प्रथभ फुधवाय को भशीन ऩय स्वात्स्तक फना दें । इस केवर प्रमोग कताा के आत्भववश्वास औय श्रिा ऩय ही
प्रमोग से से भशीन फाय-फाय खयाफ नहीॊ होती। तनबाय कयते हैं। तॊि प्रमोग भें फकसी बी प्रकाय की शॊका
अथवा सॊदेह होने ऩय तॊि के प्रमोग नहीॊ कयने ादहए।
भाॊ रक्ष्भी की कृऩा प्रात्प्त हे तु प्रमोग
शॊका व सॊदेह बाव से फकमे गमे प्रमोगों का पर नगण्म
दीऩावरी के ददन कारी हल्दी औय एक ाॊदी का
मा प्राप्त नहीॊ होता हैं।
ससक्का ऩीरे वस्िों भें रऩेट कय उसे धन यखने के
स्थान ऩय यख दें । इस प्रमोग को अगरी ददऩावरी ऩय
भॊि कारी हल्दी
ऩुन् इसी प्रकाय कयें इस प्रमोग से वषा बय भाॊ रक्ष्भी
11 नॊग साफत
ू कारी हल्दी वजन 18 ग्राभ भाि रु.730/-
की कृऩा फनी यहती है ।
11 नॊग साफत
ू कारी हल्दी वजन 27 ग्राभ भाि रु.910/-
असरी नकरी की ऩयख
हभायें महाॊ कारी हल्दी की गाॊठ एवॊ टुकड़े प्रतत नॊग
मह कारी हल्दी का यॊ ग जफ मह हयी होती हैं तफ
वज़न 3 ग्राभ से 21 ग्राभ तक उऩरब्ध रु. 370, 460,
अॊदय से हल्के नीरे यॊ ग की होती हैं वह सुख ने ऩय
550, 730, 910, 1050, 1250, 1450,
अॊदय से गहये कत्थई मा कारे यॊ ग की हो जाती हैं। रेफकन
असरी कारी हल्दी ऩूणत
ा ् काजर के सभान कारी नहीॊ GURUTVA KARYALAY
होती, फाजायों भें एकदभ काजर के सभान कारी हल्दी Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785,

सभर जाती हैं, त्जसे कारे यॊ ग की स्माही मा यॊ ग आदद


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से यॊ ग भें डूफा कय तैमाय फकमा जाता हैं। इस प्रकाय की

ग्रह शाॊतत हे तु ववशेष भॊि ससि कव


कारसऩा शाॊतत कव 3700 भाॊगसरक मोग तनवायण कव 1450 ससि शुक्र कव 820
शतन साड़ेसाती-ढ़ै मा कष्ट तनवायण कव 2350 नवग्रह शाॊतत 1250 ससि शतन कव 820
श्रावऩत मोग तनवायण कव 1900 ससि सूमा कव 820 ससि याहु कव 820
1900 ससि भॊगर कव 820 820
ॊडार मोग तनवायण कव 1450 ससि फुध कव 820
ग्रहण मोग तनवायण कव 1450 ससि गुरु कव 820 >> Order Now
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50 - 2018

श्री गणेश मॊि


गणेश मॊि सवा प्रकाय की ऋवि-ससवि प्रदाता एवॊ सबी प्रकाय की उऩरत्ब्धमों दे ने भें सभथा है , क्मोकी श्री गणेश मॊि
के ऩूजन का पर बी बगवान गणऩतत के ऩूजन के सभान भाना जाता हैं। हय भनुष्म को को जीवन भें सुख-सभवृ ि
की प्रात्प्त एवॊ तनमसभत जीवन भें प्राप्त होने वारे ववसबन्न कष्ट, फाधा-ववर्घनों को नास के सरए श्री गणेश मॊि को
अऩने ऩूजा स्थान भें अवश्म स्थावऩत कयना ादहए। श्रीगणऩत्मथवाशीषा भें वणणात हैं ॐकाय का ही व्मक्त स्वरूऩ
श्री गणेश हैं। इसी सरए सबी प्रकाय के शुब भाॊगसरक कामों औय दे वता-प्रततष्ठाऩनाओॊ भें बगवान गणऩतत का
प्रथभ ऩूजन फकमा जाता हैं। त्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि फक शत्क्त को फढाने के सरमे भॊि के आगें ॐ (ओभ ्)
आवश्म रगा होता हैं। उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामों के सरमे बगवान ् गणऩतत की ऩूजा एवॊ स्भयण
अतनवामा भाना गमा हैं। इस ऩौयाणणक भत को सबी शास्ि एवॊ वैददक धभा, सम्प्रदामों ने गणेश जी के ऩूजन हे तु
इस प्रा ीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हैं।

श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्क्त को फुवि, विद्या, वववेक का ववकास होता हैं औय योग, व्माधध एवॊ सभस्त
ववध्न-फाधाओॊ का स्वत् नाश होता है । श्री गणेशजी की कृऩा प्राप्त होने से व्मत्क्त के भुत्श्कर से भुत्श्कर कामा
बी आसान हो जाते हैं।
त्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भें ववऩयीत ऩरयणाभ प्राप्त हो यहे हों, ऩारयवारयक तनाव, आधथाक तॊगी, योगों से
ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्क्त को अथक भेहनत कयने के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, तनयाशा प्राप्त हो यही हो,
तो एसे व्मत्क्तमो की सभस्मा के तनवायण हे तु तुथॉ के ददन मा फुधवाय के ददन श्री गणेशजी की ववशेष ऩूजा-
अ न
ा ा कयने का ववधान शास्िों भें फतामा हैं।
त्जसके पर से व्मत्क्त की फकस्भत फदर जाती हैं औय उसे जीवन भें सुख, सभवृ ि एवॊ ऐश्वमा की प्रात्प्त होती
हैं। त्जस प्रकाय श्री गणेश जी का ऩज
ू न अरग-अरग उद्देश्म एवॊ काभनाऩतू ता हे तु फकमा जाता हैं, उसी प्रकाय श्री
गणेश मॊि का ऩज
ू न बी अरग-अरग उद्देश्म एवॊ काभनाऩतू ता हे तु अरग-अरग फकमा जाता सकता हैं।
श्री गणेश मॊि के तनमसभत ऩज
ू न से भनष्ु म को जीवन भें सबी प्रकाय की ऋवि-ससवि व धन-सम्ऩत्त्त की प्रात्प्त
हे तु श्री गणेश मॊि अत्मॊत राबदामक हैं। श्री गणेश मॊि के ऩज
ू न से व्मत्क्त की साभात्जक ऩद-प्रततष्ठा औय
कीतता ायों औय पैरने रगती हैं।
 विद्वानों का अनब
ु व हैं की फकसी बी शब
ु कामा को प्रायॊ ऩ कयने से ऩव
ू ा मा शब
ु कामा हे तु घय से फाहय जाने से ऩव
ू ा
गणऩतत मॊि का ऩूजन एवॊ दशान कयना शुब परदामक यहता हैं। जीवन से सभस्त ववर्घन दयू होकय धन,
आध्मात्त्भक त
े ना के ववकास एवॊ आत्भफर की प्रात्प्त के सरए भनुष्म को गणेश मॊि का ऩूजन कयना ादहए।
गणऩतत मॊि को फकसी बी भाह की गणेश तुथॉ मा फुधवाय को प्रात: कार अऩने घय, ओफपस, व्मवसामीक
स्थर ऩय ऩूजा स्थर ऩय स्थावऩत कयना शुब यहता हैं।
गुरुत्व कामाारम भें उऩरब्ध अन्म : रक्ष्भी गणेश मॊि | गणेश मॊि | गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सदहत) | गणेश
ससि मॊि | एकाऺय गणऩतत मॊि | हरयद्रा गणेश मॊि बी उऩरब्ध हैं। अधधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय
प्राप्त कय सकते हैं।
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51 - 2018

मॊि द्वारा वास्तु दोष तनवायण



हय बवन के तनभााण से उसभें शुब एवॊ अशुब भुख्म द्वार के उऩयी दहस्से भें अॊदय-फाहय भॊि
दोनों प्रकाय के तत्त्व व्माप्त होते हैं। केवर शब
ु तत्त्व ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत श्रीमॊि, कनक धाया मॊि औय
हो मा केवर अशुब तत्त्व हो मह दक्षऺणावतॉ स्पदटक गणेश जी
सॊबव नहीॊ हैं। दोनों तत्त्वों का (दादहनी सूॊढ) को स्थावऩत कयने से
सभश्रीत प्रबाव उस बवन ऩय होता उस बवन के द्वार दोष औय वास्तु
हैं। दोष दयू होते हैं।
उसभें पका इतना ही होता हैं बवन के भुख्म द्वार के उऩय
की कहीॊ शुब तत्त्व की अधधक होती भध्म बाग भें श्रीगणेश की प्रततभा
हैं तो कहीॊ अशुब तत्त्व की ऩयशु औय अॊकुश सरए फुविभत्ता औय
अधधकता यहती हैं। इस सरए कोई सभवृ ि के दाता के रुऩ भें शुबदाम
बी बवन नातो ऩूणा रुऩ से शुब भॊि ससि ऩन्ना गणेश है । भुख्म द्वार ऩय फैठे हुए गणेशजी
तत्त्व से मक्
ु त हो ता हैं नाहीॊ अशब
ु की प्रततभा द्वार के उऩय शब ु भानी
बगवान श्री गणेश फवु ि औय सशऺा के
तत्त्व से मक्
ु त होता हैं। जाती है ।
कायक ग्रह फध
ु के अधधऩतत दे वता
शब
ु तत्त्व की अधधकता से बगवान गणेश हभाये जीवन
हैं। ऩन्ना गणेश फध
ु के सकायात्भक
उसे शब
ु सॊकेत सभझा जाता हैं एवॊ प्रबाव को फठाता हैं एवॊ नकायात्भक की सपरता के प्रतीक है। गणेश जी
अशब
ु तत्त्व की अधधकता को दोष प्रबाव को कभ कयता हैं।. ऩन्न का ववशार उदय भें ऩयू ा ब्रह्भाॊड
के रुऩ भें जाना जाता हैं । अशब
ु गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन विद्यमान है । गणेशजी की सॊड
ू ववर्घनों
तत्त्व की अधधकता से ही वास्तु दोष भें ववृ ि भें ववृ ि होती हैं। फछ ो फक को दयू कयने के सरए भड़ ु ी हुई यहती
उत्ऩन्न होता हैं। ऩढाई हे तु बी ववशेष पर प्रद हैं है । हभायी सॊस्कृतत भें फकसी बी शुब
इस सरए वास्तु मन्ि एवॊ ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फछ े कामों को प्रायॊ ब कयने से ऩहरे इनका
अन्म उऩामों का सहामता से बवन फक फवु ि कूशाग्र होकय उसके प्रथभ स्भयण कयने का ववधान हैं।
आत्भववश्वास भें बी ववशेष ववृ ि
के शुब तत्त्वों की ववृ ि एवॊ अशुब श्रीमॊि
होती हैं। भानससक अशाॊतत को कभ
तत्त्वों अथांत दोषों को कभ फकमा बवन के सबी प्रकाय के दोष
कयने भें भदद कयता हैं, व्मत्क्त
जा सकता हैं। दयू कयने के सरए भॊि ससि प्राण-
द्वारा अवशोवषत हयी ववफकयण शाॊती
वास्तु दोष दयू कयने के प्रततत्ष्ठत स्ऩपदटक श्रीमॊि की
प्रदान कयती हैं, व्मत्क्त के शायीय के
उऩाम मदद बवन भें सॊफॊधधत ददशा तॊि को तनमॊत्रित कयती हैं। त्जगय, स्थाऩना कयने से एवॊ उसका प्रततददन
भें वास्तु दोष हो तो उस ददशा भें पेपड़े, जीब, भत्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि ऩूजन-अ न
ा कयनी ादहए।
वास्तु मॊि रगाना ादहए। इत्मादद योग भें सहामक होते हैं। भाॊगसरक ध ह्न
घय भें वास्तु दोषनाशक मॊि को कीभती ऩत्थय भयगज के फने होते हैं।
बवन के भख्
ु म द्वार ऩय ॐ,
ववधध-ववधान से स्थावऩत कयना
Rs.550 से Rs.8200 तक स्वत्स्तक शब
ु -राब, ऋवि-ससवि आदद
ादहए।
भॊगरदामक प्रततक ध ह्न रगाने
गणेश प्रततभा
ादहए। बवन के भख्
ु म द्वार ऩय प्रततददन गॊगाजर का
तछड़काव घय भें कयना ादहए।
52 - 2018

नवग्रह शाॊतत मॊि  मदद बवन के दक्षऺण बाग भें दोष हो तो प्राम्

नवग्रह ग्रहों के मॊिों को उनकी सॊफॊधधत ददशाओॊ भें इस सभम उस बवन भें तनवासकताा ध त
ॊ ा-तनाव आदद से

प्रकाय से रगाने ादहए जहाॊ मे आसानी से ददखाई दे ते ग्रस्त यहते हैं। भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत त्रिकोण

हो। नवग्रह शाॊतत मॊि के ऩूजन एवॊ भॊगर मॊि को स्थावऩत कयना

स्थाऩना से बी वास्तुदोषों का शभन ादहए।

होता है । उत्तय, ऩूव,ा दक्षऺण,  मदद बवन के वामव्म

ऩत्श् भ, ईशान, आग्नेम, नैऋत्म, कोण भें दोष हो तो प्राम्

वामव्म मा ब्रह्भ स्थान भें जहाॊ बी तनवास कताा को कामा ऺेि भें

वास्तु दोष हो उस ददशा भें सॊफॊधधत सभस्माओॊ का साभना कयना

दे व का मॊि स्थवऩत कये मा उसे ऩड़ता हैं। भॊि ससि प्राण-

ऩज प्रततत्ष्ठत केतु मॊि को स्थावऩत


ू ा स्थान भें स्थवऩत कये ।
 बवन के उत्तय भें फहृ स्ऩतत, कयना ादहए।

कुफेय मा वरुण मॊि रगाना  मदद बवन के ऩत्श् भ

ादहए। बाग भें दोष हो तो भॊि ससि

 घय के आग्नेम कोण भें वास्तु दोष हो तो आग्नेम प्राण-प्रततत्ष्ठत शतन मॊि को स्थावऩत कयना ादहए।

कोण भें भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत द्र


ॊ मॊि को बवन के भख्
ु म द्वार ऩय घोड़े की नार को U आकाय

स्थावऩत कयना ादहए। भें रगाना ादहए। उल्टा रगाने से ववऩरयत ऩरयणाभों

 मदद बवन भें तनवास कयने वारे सदस्मों को भन से सम्भणु खन होना ऩड़ता हैं।

नहीॊ रगने, इन्ऩपेक्शन, अॊतडड़मों की सभस्मा, बम,  मदद बवन ऩव


ू ा बाग भें दोष हो तो भॊि ससि प्राण-

आधथाक हातन आदद सभस्मा मे यहती हो तो बवन प्रततत्ष्ठत सम


ू ा मॊि को स्थावऩत कयना ादहए।

का नैकत्म कोण भें दोष होता हैं। एसी त्स्थती भें  बवन के ईशान कोण भें दोष हो तो वास्तुदोषों को

बवन के नैकत्म कोण भें भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत दयू कयने हे तु भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत फह
ृ स्ऩतत मॊि
याहु मॊि औय भत्ृ मॊजम मॊि को स्थावऩत कयना को स्थावऩत कयना ादहए।

ादहए। नैकत्म कोण भें 7 इॊ का गड्ढा खोदकय  इससे इन दोनों ददशाओॊ जतनत वास्तुदोष दयू होते

उसभें सवा 5 से 7 यत्ती का असबभॊत्रित गोभेद दफा हैं।

दे ना ादहए।
***
सशऺा से सॊफॊधधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भें अनावश्मक रूऩ से फाधा-ववर्घन मा रुकावटे हो यही हैं? फछ ो को
अऩने ऩण
ू ा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उध त पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कॊु डरी का
ववस्तत
ृ अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके विद्या अध्ममन भें आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के
कायण एवॊ उन दोषों के तनवायण के उऩामो के फाय भें ववस्ताय से जनकायी प्राप्त कयें ।
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53 - 2018

भॊि ससि दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन ववृ ि हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
स्पदटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यक्त (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above ववधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं।
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भॊि ससि स्पदटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩण
ू ा एवॊ शत्क्तशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त
शब
ु फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से अधधक से अधधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय
व्मत्क्त के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩण
ू ा प्राण-प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा त
ै न्म मक्
ु त "श्री मॊि" त्जस व्मत्क्त
के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससि होता है उसके दशान भाि से अन-धगनत राब
एवॊ सख
ु की प्रात्प्त होतत है । "श्री मॊि" भे सभाई अदद्रततम एवॊ अद्रश्म शत्क्त भनष्ु म की सभस्त शब
ु इछछाओॊ
को ऩयू ा कयने भे सभथा होतत है । त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय तनयाशा दयू होकय वह भनष्ु म असफ़रता
से सफ़रता फक औय तनयन्तय गतत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौततक सख
ु ो फक प्रात्प्त होतत
है । "श्री मॊि" भनष्ु म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक
उजाा का तनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थावऩत कयने से
वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩये शातन भे न्मन
ु ता आतत है व सख
ु -सभवृ ि, शाॊतत एवॊ ऐश्वमा फक प्रत्प्त
होती है । >> Shop Online | Order Now
गुरुत्व कामाारम भे ववसबन्न आकाय के "श्री मॊि" उप्रब्ध है
भल्
ू म:- प्रतत ग्राभ Rs. 28.00 से Rs.100.00

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54 - 2018

हस्त ये खा एवॊ योग



व्मत्क्त फक हथेरी भें ववसबन्न प्रकाय फक ये खाऎ, ऩवात एवॊ उन ऩय उबय कय आने वारे तयह तयह के ध ह्न के फदराव से
व्मत्क्त को होने वारी फीभारयमों का अॊदाजा रगामा जासकता हैं। हय ग्रह के कुछ तनत्श् त ध ह्न होते हैं। इन ध ह्नो का
प्रबाव हथेरी भें ग्रह के ऩवात ऩय होंने के अनुरुऩ शुब-अशुब पर फक प्रात्प्त होती हैं।

जातनए हस्त ये खा से ववसबन्न योग के सॊकेत


* हभे शत्क्त प्रदान कयने वारी सूमा ये खा एवॊ स्वास्थ्म ये खा सूमा ऩवता के सभीऩ ऩाई जाती हैं।
* मदद हथेरी भें शतन एवॊ सूमा का सॊफॊध हो जाए तो व्मत्क्त कब्ज से ऩीडा होती हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें रृदम ये खा कभजोय होती हैं एवॊ बाग्म ये खा एकदभ स्ऩष्ट हो, आमु ये खा से जुडी हुई कोई
ये खा कतनत्ष्ठका के तीसये ऩवा तक जाती हो, मा भॊगर ऩवात ऩय क्रॉस का ध ह्न हो, मा उबये हुए द्र ॊ ऩवात ऩय झॊडे
का ध ह्न हो तो व्मत्क्त फदहजभी, अऩ , गैस इत्मादद योग से ऩीडड़त होता हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें गोर घेये का ग्रहों के ऩवातों ऩय होना शब
ु भाना गमा हैं, रेफकन गोर घेये का ये खाओॊ ऩय
होना अत्मॊत अशब
ु भाना गमा हैं। मदद गोर घेये का रृदम ये खा ऩय होने से व्मत्क्त को आॊखो फक सभस्मा हो
सकती हैं। भॊगर ऩवात ऩय गोर घेया होने से बी नेि सॊफॊधधत ऩीडा होती दे खी गई हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें शतन ऩवात ऩय मा आमु ये खा के अॊत भें क्रॉस मा जारीदाय ये खा का होना व्मत्क्त को
असाध्म योग होने का सॊकेत दे ती हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें स्वास्थ्म ये खा टूटी पूटी हो, मा रृदम ये खा औय भस्तक ये खा एक दस
ू ये सभीऩ आ गई हो
तो व्मत्क्त को श्वास योग होने की आशॊका अधधक यहती हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा, रृदम ये खा औय भस्तक ये खा के अॊत भें जारीदाय ये खाएॊ हों मा ऩवातों ऩय
जारीदाय ये खाएॊ हों, क्रॉस का ध ह्न हो, हथेरी ऩय कारे मा नीरे यॊ ग के धब्फे मा त्रफॊद ु हों, नाखन
ू गहये नीरे यॊ ग के
हों, नाखन
ू टूटने वारे हों मा अस्वाबाववक आकय के हों, मा अॊगुसरमाॊ भुड़ी हुई हों, मा हथेरी फक त्व ा नयभ हो, हाथ
हभेशा बीगा हुआ सा यहता हों, तो व्मत्क्त जीवन बय फकसी न फकसी योग से ऩीडडत होकय अस्वस्थ यहता हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा, रृदम ये खा औय भस्तक ये खा तीनों एक जगह सभरी हुई हो, मा अॊगुसरमों के
नाखन ू ों भें खड़ी ये खाए हो, मा नखन
ू फकनायों से टूटे हुए हों, नाखन
ू ों के भूर ऩय न्द्रभा कारे यॊ गके हो मा ववरुप्त
होगमे हो, मा शतन ऩवात ऩय जारीदाय ध ह्न का होना, व्मत्क्त को गदठमा योग होने का सॊकेत दे ता हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा ऩय क्रॉस होना फकसी दघ
ु ट
ा ना ग्रस्त होने का सॊकेत होता हैं।
* आमु ये खा के अॊत भें कारा धब्फा होना गॊबीय ोट रगने का सू क हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा ऩय कारा त्रफॊद ु हो तो मह फकसी फड़े योग की सू ना दे ता हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा अॊत भें दो भुखी हो जाए तो, व्मत्क्त को भधभ
ु ेह होने का सॊकेत होता हैं।
* त्जस व्मत्क्त के हाथ भें आमु ये खा ौड़ी हो, मा उसका यॊ ग ऩीरा हो, मा जॊजीयनुभा हो तो व्मत्क्त का स्वास्थ्म हय
सभम
खयाफ यहता हैं।
* आमु ये खा का अ ानक टूट जाना व्मत्क्त की फकसी फीभायी के कायब अ नाक भत्ृ मु का सॊकेत भाना गमा हैं।
हस्त ये खा से जाने योग
55 - 2018

* रृदम ये ख ऩय कारा त्रफॊद ु होना, मा आमु ये खा ऩय नीरा धब्फा हो, मा हाथ भें स्वास्थ्म ये खाटूटी-पूटी हो, मा भस्तक
ये खा के भध्म भें कारा धब्फा हो तो व्मत्क्त को ज्वय से ऩीड़ा होती हैं।
* मदद द्र
ॊ ऩवात ऩय गहयी धारयमाॊ हों, मा भस्तक ये खा धभ
ु ावदाय मा टूटी हुई हो, मा भस्तक ये खा ऩय क्रॉस का
ध न्ह हो, मा भस्तक ये खा का शतन ऩवात के तनकट अॊत होती हों, तो व्मत्क्त की भानससक फीभायी से ग्रससत होता हैं।
* भस्तक ये खा शतन ऩवात के नी े टूट कय खत्भ होती हो, द्र
ॊ ऩवात ऩय टे ढी-भेढी ये खाए हों, रृदम ये खा जॊजीय के
सभान हों कय अस्ऩष्ट हो, तो व्मत्क्त को ऩथयी योग होने फक सॊबावना यहती हैं।
* मदद हथेरी फक ये खाएॊ ऩीरी हो, मा गुरु ऩवात अधधक उन्नत हुआ हो, मा नख रॊफे एवॊ कारे हो,भस्तक ये खा औय
शतन ऩवात के नी े फक ये खा जॊजीयनभ
ु ा हो, तीनों भख्
ु म ये खाओॊ को कोई ये खा काट यही हो, तो व्मत्क्त को ऺम योग
एवॊ पेपड़ों से सॊफॊधधत योग हो जाता हैं।
* शतन ऩवात ऩय जारी हो, मा कोई ये खा आमु ये खा एवॊ भस्तक ये खा को काटकय जारी को छुती हो, मा द्र
ॊ भा ऩवात
ऩय क्रॉस हो, द्र
ॊ भा ऩवात ऩय अस्त-व्मस्त ये खाएॊ हों, स्वास्थ्म ये ख धभ
ु ती हुइ शुक्र ऩवात से जुडती हुइ कोई ये खा आमु
ये खा को काटकय भस्तक ये खा को काटती हुई रृदम ये खा से सभरती हो, तो व्मत्क्त भधभ
ु ेह से ऩीडड़त यहता हैं।
* मदद हथेरी अधधक ऩतरी एवॊ रॊफी हो, अॊगसु रमाॊ बी अधधक र ीरी हो, मा हथेरी से थोडड फड़ी हो, मा भस्तक
ये खा तथा रृदम ये खा के फी भें अधधक अॊतय हो, ग्रह ऩवातों की भुडने वारी ऊध्वाागाभी ये खाएॊ अधधक हो, तो व्मत्क्त
भस्तक ज्वय से ऩीडड़त होता हैं।
* मदद ॊद्र ऩवात कापी उन्नत हो द्र
ॊ ऩवात के नी े का बाग ऩय कापी ये खाएॊ हों, आमु ये खा को छुती हुई कोई ये खा
द्र
ॊ ऩवात की ओय जा यही हो, तो व्मत्क्त व्मत्क्त को भि
ू सॊफॊधी फीभारयमाॊ ऩीडड़त कयती हैं।

हस्त ये खा से रकवा से ऩीडड़त होने के रऺण?


* मदद दोनों हाथों भें शतन ऩवात ऩय नऺि जेसा ध ह्न हों।
* द्र
ॊ ऩवात ऩय जारीदाय ये खाएॊ हों।
* नखों की आकाय त्रिकोण जेसा प्रततत होयहा हों।
* शतन ऩवात ऩय क्रॉस का ध ह्न हों।
* दोनों हाथों भें आमु ये खा के अॊत भें नऺि जेसा ध ह्न मा बाग्म ये खा के अॊत भें शतन ऩवात ऩय नऺि जेसा ध ह्न हों।
* भस्तक ये खा भें से कोई ये खा तनकरकय शतन ऩवात तक जाती हों मा वहाॊ तीन शाखा वारी ये खा हों।
* मा तीन टुकड़ों भें शुक्र भुद्रा हों। भस्तक ये खा भें शतन मा सूमा ऩवात के नी े मव का ध ह्न हों।
* नाखन
ू टुकडो भें फटे हुवे ददखाई दे तो हों।
उऩयोक्त रऺण भें से मदद एक बी रऺण व्मत्क्त के हाथ भें ददखाई दे , तो व्मत्क्त को रकवा योग ऩीडड़त होने फक सॊबावनाएॊ
अधधक होजाती हैं।

नोट: उऩयोक्त सबी वणान ऩण


ू त
ा ् ससिान्तों ऩय आधारयत हैं। उऩयोक्त रऺण मदद व्मत्क्त फक हथेरी भें हो, तो उसके सक्ष्
ू भ

ऩयीऺण से व्मत्क्त के शयीय भें ऩीड़ा दे ने वारी ऩये शानी मा बववष्म भें होने वारी फीभायी का ऩता रगामा जा सकता हैं। इस
ऩयीऺण फक साथाकया ऩयीऺण कयने वारे के विद्वान के ऻान एवॊ अनुबव ऩय तनबाय कयता हैं।
56 - 2018

स्वप्न से योग एवॊ भत्ृ मु के सॊकेत



स्वप्ने भद्मॊ सह प्रेतम
ै ्ा वऩफन ् कृष्मते शुना। ऩय कभर उगता ददखे तो उसकी कुष्ठ से भत्ृ मु हो जाती

स भत्मो भत्ृ मुना शीिॊ ज्वयरूऩेण नीमते ॥४०॥ हैं। जो ाण्डारों के साथ फैठ कय घत
ृ (घी) तैर आदद
अनेक प्रकाय के द्रव्मों का ऩान कयता हैं उसकी प्रभेह से
यक्तभाल्मवऩुवस्
ा िो मो हसन ् दह्मते त्स्िमा।
भत्ृ मु हो जाती हैं। जो याऺसों के साथ ना ता हुवा जर
सोऽस्रवऩत्तेन भदहषश्ववयाहोष्रगदा ब्ै ॥४१॥
भें डूफ जाता हैं मा डूफकी रगाता हैं उसकी उन्भाद से
म् प्रमातत ददशॊ माम्माॊ भयणॊ तस्म मक्ष्भणा। भत्ृ मु हो जाती हैं। जो ना ता हुवा बूत-प्रेत द्वारा खीॊ ा
रता कण्टफकनी वॊशस्तारो वा रृदद जामते ॥४२॥ मा घसीटा जाता हैं उसकी अऩस्भाय (सभगॉ) द्वारा भत्ृ मु
मस्म तस्माशु गुल्भेन मस्म वत्ह्नभनध ष
ा भ ्। हो जाती हैं।

जुह्वतो घत जो योगी-गधा, उॉ ट, त्रफल्री, फन्दय, शादर


ू तथा सूअय के
ृ ससक्तस्म नग्नस्मोयसस जामते ॥४३॥
साथ अथवा प्रेतों मा ससमायों के साथ रता हैं मा उन
ऩद्भॊ स नश्मेत्कुष्ठे न ण्डारै् सह म् वऩफेत ् ।
ऩय सवाय हो कय रता हैं उसकी भत्ृ मु हो जाती हैं। जो
स्नेहॊ फहुववधॊ स्वप्ने स प्रभेहेण नश्मतत॥४४॥
स्वप्न भें भारऩआ
ू - योटी अथवा क ौयी खाता हैं औय
उन्भादे न जरे भज्जेद्मो नृत्मन ् याऺसै् सह । जागने ऩय वैसे ही वभन कय दे ता हैं वह जीववत नहीॊ
अऩस्भाये ण मो भत्मो नृत्मन ् प्रेतेन नीमते ॥४५॥ यहता । स्वप्न भें सम
ू ा मा न्द्रभा का ग्रहण दे खना
मानॊ खयोष्रभाजाायकवऩशादा र ू सूकयै ् । नेियोगों का कायण औय उसका ऩतन होते दे खना

मस्म प्रेतै् श्रग दृत्ष्टनाश अथाात अन्धेऩन का कायण होता हैं।


ृ ारैवाा स भत्ृ मोवातत
ा े भुखे ॥४६॥।
अऩूऩशष्कुरीजाग्ध्वा ववफुिस्तद्ववधॊ वभन ् । भत्ू ध्ना वॊशरतादीनाॊ सम्बवो वमसाॊ तथा ॥४८॥
न जीवत्मक्षऺयोगाम सूमेन्दग्र
ु हणेऺणभ ् ॥ तनरमो भण्
ु डता काक-गध्र
ृ ाद्मै् ऩरयवायणभ ् ।
सूमाा न्द्रभसो् ऩातदशानॊ दृत्ग्वनाशनभ ्। तथा प्रेतवऩशा स्िीद्रववडाऽन्ध्रगवाशनै् ॥४९॥
अथाात: जो योगी स्वप्न भें प्रेतों के साथ फैठ कय मद्य सङ्गो वेिरतावॊशतण
ृ कण्टकसॊकटे ।
ऩीता हैं औय कुत्तों द्वारा खीॊ ा-घसीटा जाता हैं उसकी श्वभ्रश्भशानशमनॊ ऩतनॊ ऩाॊसब
ु स्भनो् ॥५०॥
भत्ृ मु ज्वय से होती हैं। जो व्मत्क्त रार यॊ ग के पूरों
भज्जनॊ जरऩङ्कादौ शीिेण स्रोतसा रृतत् ।
की भारा धायण फकमे हैं, अऩने शयीय को रार यॊ ग से
नत्ृ मवाददिगीतातन यक्तस्रग्वस्िधायणभ ् ॥५१॥
यॊ गा दे खता हैं , रार वस्ि धायण फकमे हैं, हॉसता हैं औय
स्िी द्वारा खीॊ ा जाता हैं उसकी यक्तवऩत्त द्वारा भत्ृ मु वमोङ्गववृ ियभ्मङ्गो वववाह् श्भश्रक
ु भा ।
हो जाती हैं। जो व्मत्क्त बैसा, कुत्ता, सूअय, उॉ ट मा ऩक्वान्नस्नेहभद्याश् प्रछछदा नववये ने ॥५२॥
गझ ऩय सवाय हो कय दक्षऺण ददशा को जाता हैं उसकी दहयण्मरोहमोरााब् कसरफान्धऩयाजमौ ।
याज्मसबा से भत्ृ मु होजाती हैं। त्जसके रृदम प्रदे श ऩय उऩानद्मग
ु नाशश् प्रऩात ऩाद भाणो् ॥५३॥
काण्डो वारी रता-वेर, फाॉस अथवा ताड़ उत्ऩन्न होते
हषो बश
ृ ॊ प्रकुवऩतै् वऩतसृ बश् ावबत्सानभ ् ।
ददखाई दे तो उसकी गुल्भयोग से भत्ृ मु हो जाती हैं। जो
प्रदीऩग्रहनऺि दन्तदै वत ऺुषाभ ् ॥५४॥
ज्वारा यदहत अत्ग्न भें आहुततमाॉ डारता हैं, नॊगा हो कय
शयीय ऩय घत ृ (घी) का सेवन कयता हैं औय उसके शीने ऩतनॊ वा ववनाशो वा बेदनॊ ऩवातस्म ।
57 - 2018

कानने यक्तकुसभ
ु े ऩाऩकभातनवेशने ॥५५॥ ववयागभाल्मवसना स्वप्ने कारतनशा भता ॥५८॥
ध तान्धकायसॊफाधे जनन्माॊ प्रवेशनभ ् । अथाात: स्वप्न भें कारे वणा वारीॊ, दभ
ु ख
ुा ी, दयु ा ारयणी,
ऩात् प्रासादशैरादे भत्ा स्मेन ग्रसनॊ तथा ॥५६॥ रम्फे केशों, नखों तथा स्तनों वारी, ववकृत वणा वारी,

काषातमणाभसौम्मानाॊ नग्नानाॊ दण्डधारयणाभ ् । भारा तथा ववकृत वणा वारे वस्िों वारी स्िी का ददखना
कार यात्रि के सभान भाना जाता हैं।
यक्ताऺाणाॊ कृष्णानाॊ दशानॊ जातु नेष्मते ॥५७॥
अथाात: जो स्वप्न भें सशय ऩय फाॊस, रता एवॊ झाडड़मों
द्ु स्वप्न का कायण
को उगते दे खना मा ऩक्षऺमों का फैठना मा घोंसरा
फनाना, अथवा सशय का भुण्डन मा कौवा एवॊ धगि आदद
भनोवहानाॊ ऩूणत्ा वात्स्रोतसाॊ प्रफरैभर
ा ै् ।
ऩक्षऺमों से तघय जाना तथा प्रेतों, वऩ ाशों, स्िीमों, फकसी
दृश्मन्ते दारुणा् स्वप्ना योगी मैमाातत ऩज ताभ ् ॥५९॥
प्रदे श के तनवाससमों, अथवा गोभाॊस बऺको द्वारा तघय
अयोग् सॊशमॊ प्राप्म कत्श् दे व ववभुछमते ।
जाना, वेतों के, रताओॊ के, फाॉसों की, तण
ृ ों के तथा
अथाात: अत्मन्त प्रकुवऩत वातादद दोषों द्वारा भनोवाही
काॊटों की झाड़ीमों भें पस जाते दे खना मा गढ्ढा एवॊ
स्िोत बय जाने से उक्त प्रकाय के बमानक बीष्ण स्वप्न
श्भशान भें सोना, धसू र तथा बस्भ भें धगयना, जम
ददखते हैं, त्जसके कायण योगी की भत्ृ मु हो जाती हैं औय
अथवा की ड़ भें डूफना मा डुफकी रगाना, तेजधाय वारी
स्वस्थ्म व्मत्क्त बी योगी हो जाता हैं तथा कुछ ही योग
नदी-नारे भें फह जाना, ना ना, फजाना तथा गाना, रार
भुक्त हो ऩाते हैं।
पूरों की भारा तथा वस्िों का धायण, उम्रको फढ़ते
दे खना, तथा अॊगों की ववृ ि, अभ्मङ्ग, वववाह, ऺौय कभा
भहवषा यक ने स्वप्न के रऺण इस प्रकाय
(फार तथा दाढ़ी फनाना), ऩक्वान्न बऺण, स्नेह ऩान, फतामे हैं।
मद्य ऩान, वभन, त्रफये न फक्रमा, सोना अथवा रोह
नातत प्रसप्ु त् ऩरु
ु ष् सपरान अपरान अवऩ।
सभरना, करह, फॉध जाना, ऩयात्जत होना, दोनो जूतों का
इत्न्द्रमेशन
े भनसा स्वप्नान ऩश्मत्मनेकधा॥
खोना, ऩाॉव की भड़ी धगयते दे खना, अधधक हषा,
प्रकुवऩत वऩत्तयों द्वारा सबड़्का जाना औय दीऩक, सूमा अथाात: जफ भानष्ु म गहयी तनद्रा भें नहीॊ होता तथा
आदद ग्रह, अत्श्वनी आदद नऺि मा ताये , दन्त, दे व दशों इत्न्द्रमों के ईश्वरयम प्रेयक भन द्वारा वह अनेक
प्रततभा तथा नेि का धगयना अथवा ववनाश, ऩवात का प्रकाय के स्वप्न दे खता हैं। कबी श्रवण इत्न्द्र से सुनता,
पटना औय वन भें , रार ऩुष्ऩ भें , ऩाऩीमों की घय भें , ऺुरयत्न्द्रम से दे खता हैं, त्वधगत्न्द्रम से स्ऩशा का
अन्धकाय भें , बीड़ भें , सॊकत भें अथवा भाता के गबा भें
अनुबव कयता हैं, यसनेत्न्द्रम से यस का औय िौणेत्न्द्रम
प्रवेश, छत, वऺ
ृ मा ऩवात आदद से धगयना, भछरी द्वारा
से गन्ध का अनब
ु व कयता हैं। वाधगत्न्द्रम से फोरता हैं-
तनगर जाना, औय कषाम वस्ि, धारयमों का क्रूयों का,
हस्तेत्न्द्रम से ऩकड़्ता हैं, शुदेत्न्द्रम से ऩुरयष ( एवॊ भूि
नग्नों का, दण्ड धारयमों का, रार आॉख वारों का तथा
का) त्माग कयता हैं , उऩस्थेत्न्द्रम (सशश्न एवॊ बग) से
कारे वणा के रोगों का ददखना फकसी बी दशा भें शुब
नहीॊ हैं (अथाात स्वस्थ्म मा योगी के सरए मह हातन शुक्र (वीमा) का त्माग कताा हैं, इसी को स्वप्नदोष कहा

कायक हैं।) जाता हैं, त्जसभें शक्र


ु स्राव का स्खरन होता हैं, औय
ऩादे त्न्द्रम से रता हैं इस प्रकाय दस इत्न्द्रम के स्वप्न
भत्ृ मु सू क स्वप्न
दोष होते हैं औय भनसू नाभक इत्न्द्रम से सुख-द्ु ख का
अनुबव होता हैं मथा स्वप्न भें डय रगता हैं, क्रोध एवॊ
कृष्णा ऩाऩाऽनना ाया दीघाकेशनखस्तनी ।
58 - 2018

शोक आदद का अनुबव होता हैं। मह 11 प्रकाय के को दे खता हैं औय जो छि, दऩाण, ववष, भाॊस, श्वेत
स्वप्नदोष हैं रेफकन अधधकतय उऩस्थ का स्वप्नदोष ऩष्ु ऩ, श्वेत वस्ि, अऩववि (ऩयु ीष अथाात भरभि

अधधक होता हैं। वह बी मुवावस्था भें यात्रि बोजन भें इत्मादी) ऩदाथा के रेऩन को अथवा आम्र आदद परों को
शक्र
ु विाक भराई एवॊ दग्ु ध आदद के सेवन से अथवा प्राप्त कयता हैं, औय जो ऩवात, बवन, परवारे वऺ
ृ ,
तीव्र भैथन
ु ासबराष से। ससॊह, भानव की ऩीठ, हाथी अथवा गाम-फैर की तथा
नोट् जानकायों का भानना हैं की स्वप्नदोष ऩुरुष एवॊ घोड़ा गाड़ी ऩय ढ़ता हैं , जो नदी, झीर, तथा सभद्र
ु को
स्िी दोनो को होता हैं औय ऋतुस्नाता स्िी को तो कबी- तैय कय ऩाय कयता हैं, जो ऩूवोत्तय की औय जाता हैं (
कबी गबाधान बी हो जाता हैं , फपय ाहे वह अत्स्थ अथाात ऩूवोत्तय की मािा कयता हैं), अगम्म नायी से
आदद ऩैतक
ृ गुणों से हीन होता हैं। शय्माभूि जो सहवास कयता हैं, जो भतृ त-भयण को दे खता हैं , बीड़
अधधकतय फारक-फासरकाओॊ को होता हैं औय स्वप्नदोष सॊकट भें से तनकर जाता हैं , त्जसका दे वताओॊ एवॊ
जो मुवक-मुवततमों को होता हैं वह सफ स्वप्न के दोष वऩत्तयों द्वारा असबनन्दन होता हैं, जो योता हैं, जो धगय
है । कय उठ खड़ा होता हैं तथा जो शिओ
ु ॊ का भदा न कयता हैं
दे वान ् द्ववजान ् गोवष
ृ बान ् जीवत् सरृ
ु दो नऩ
ृ ान ्। वह आमु को, आयोग्म को तथा अधधक भािा भें धन को
प्राप्त कयता हैं।
साधन
ू ् मशत्स्वनो वत्ह्नसभिॊ स्वछछान ्
जराशमान ्॥ ***
कन्मा् कुभायकान ् गौयान ् शक्
ू रवस्िान्सत
ु ज
े स् ।
नयाशनॊ दीप्ततनॊु सभन्ताद्रधु धयोक्षऺतभ ् ॥ गणेश रक्ष्भी मॊि
म् ऩश्मेल्रबते मो वा छिादशाववषासभषभ ् ।
शक्
ु रा् सभ
ु नसो वस्िभभेध्मारेऩनॊ परभ ् ॥
शैरप्रासादसपरवऺ
ृ ससॊहनयद्ववऩान ् ।
आयोहे द्गोऽश्वमानॊ तये न्नदह्दोदधीन ् ॥
ऩव
ू ोत्तये ण गभनभगम्मागभनॊ भत
ृ भ् ।
सॊफाधात्न्न्सतृ तदे व्ै वऩतसृ बश् ासबनन्दनभ ् ॥
योदनॊ ऩतततोत्थानॊ द्ववषताॊ ावभदा नभ ् । प्राण-प्रततत्ष्ठत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-
दक
ु ान-ओफपस-पैक्टयी भें ऩूजन स्थान, गल्रा मा
मस्म स्मादामयु ायोग्मॊ ववत्तॊ फहु सोऽश्नत
ु े ॥
अरभायी भें स्थावऩत कयने व्माऩाय भें ववशेष राब
प्राप्त होता हैं। मॊि के प्रबाव से बाग्म भें उन्नतत,
अथाात: स्वप्न भें जो दे वताओॊ, द्ववजों (ब्राह्भण), साॉढों, भान-प्रततष्ठा एवॊ व्माऩय भें ववृ ि होती हैं एवॊ आधथाक

जीववत सभिों, याजाओॊ, सज्जनों, मशत्स्वमों, इन्धन त्स्थभें सुधाय होता हैं। गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थावऩत
कयने से बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुक्त
मुक्त अत्ग्न, तनभार जर के जराशम, कन्मा, फारक,
आशीवााद प्राप्त होता हैं।
गौय वणा वारों, श्वेत वस्ि वारों, तेजत्स्वमों अथवा
दे दीप्मभान शयीय वारे यक्त से ससत्न् त शयीयवारे याऺस Rs.325 से Rs.12700 तक
59 - 2018

स्वप्न की अशुबता तनवायण हे तु सयर उऩाम


अशब
ु स्वप्नों के ववषम भें ग्रंथों भें उल्रेख हैं

मातत ऩाऩोऽल्ऩपरताॊ दानहोभजऩाददसब् ।


अकल्माणभवऩ स्वप्नॊ दृष्टवा तिैव म् ऩुन् ॥
ऩश्मेत्सौम्मॊ शुबॊ तस्म शुबभेव परॊ बवेत ् ।
अथाात: ऩाऩ -अशुब स्वप्न का अशुब पर ववधध ऩूवक
ा दान, हवन तथा जऩ आदद कयने से स्वल्ऩ हो जाता हैं।
अशुब स्वप्न को दे ख कय जो ऩुन् सो जाता हैं औय उसभें शुब स्वप्न दे खता हैं अथवा सुख दामक स्वप्न दे खता हैं
उसका पर शुब होता हैं। औय शुब स्वप्न को दे ख कय ऩुन् अशुब स्वप्न दे खता हैं उसका पर अशुब होता हैं।

स्वप्न की अशबु ता तनवायण के उऩाम


 जो स्वप्न डयावने, अवप्रम, अशुबता सू क, त्जससे व्मत्क्त तनद्रा से उठ जाता हैं, एसे स्वप्न ददखने ऩय तनॊद
खर
ु ने ऩय फकसी को नहीॊ फताने ादहए।
 मदद फकसी को एसे स्वप्न आते हैं तो व्मत्क्त को अऩने इष्ट को प्राथना कयके ऩन
ु ् सो जाना ादहए।
 मदद फकसी व्मत्क्त को एसे स्वप्न आते हैं औय मदद प्रात् उसे सवाप्रथभ गाम, भोय, दे वारम, सौबाग्मवती
स्िी, बगवाने भें श्रिा यखने वारे सात्त्वक व्मत्क्त आदद शब
ु शक
ु न वारे जीव मा ऩदाथा के दशान से स्वप्न
की अशब
ु ता सभाप्त हो जाती हैं।
 मदद फकसी कायण से उक्त साधनों की व्मवस्था मा दशान सॊबव न हो सके तो, अशब ु स्वप्न भें दे खे हुए
दृश्म को शौ ारम भें दोहायाना दे ना ादहए इससे उसकी अतनष्टता नष्ट हो जाती हैं।
 मदद फकसी व्मत्क्त को अशुब स्वप्न के कायण अधधक बम मा उसकी अशुबता की ध त
ॊ ा सता यही हो तो
व्मत्क्त को प्रात् स्नानादद से तनवत्ृ त हो कय फकसी जानकाय मा विद्वान से सराह प्राप्त कय उसकी शाॊतत के
सरए हवन कयना ादहए। सुऩाि व्मत्क्त को मथा शत्क्त दान दे कय इश्वय से अशुबता दयू कयने हे तु प्राथना
कयनी ादहए।

शब
ु स्वप्न की शब
ु ता भें ववृ ि के शरए शास्त्रं भें उल्रेख हैं
 मदद फकसी व्मत्क्त को शुब, ध त्त को प्रसन्न कयने वारे, सख ु -सौबाग्म के सॊकेत दे ने वारे स्वप्न ददखाई दे
तो उस स्वप्न को गप्ु त यखना ादहए। स्वप्न की गोऩनीमता भें उसकी शब
ु ता तछऩी होती हैं। फकसी को इन
स्वप्न के फायें भें फतादे ने से स्वप्न की शब
ु ता भें कभी आतत हैं ओय सॊबवत स्वप्न तनष्पर बी हो सकता
हैं।
 मदद स्वप्न भें शब
ु सॊकेत ददखाई दे तो व्मत्क्त को प्रात् स्नानादद से तनवत्ृ त हो कय धऩ
ू -दीऩ आदद से इष्ट
की ऩज
ू ा अ न
ा ा कयके अऩने इष्टदे व से शब
ु स्वप्न के पर शीि प्राप्त हो इस सरए ववशेष प्राथना कयनी
ादहए।
 स्वप्न भें ददखे शुब सॊकेत ददखे तो व्मत्क्त को प्रात् अऩने गुरु का दशान कय आसशवााद प्राप्त कय रेने
ादहए दहए त्जससे शीि राब प्राप्त हो सके हैं।
60 - 2018

धनप्रात्प्त भें फाधक हैं भकड़ी के जारे



भकड़ी के जारे ज्मादातय घय, ओफपस, दक
ु ान इत्मादद
जगहो ऩय ऩामे जाते हैं, विद्वानो के भतानश
ु ाय
वास्तश
ु ास्ि के अनश
ु ाय भकड़ी के जारे अशब
ु होते हैं।
भकड़ी के जारे से बवन भें तनवास कताा की आधथाक
उन्नतत फाधधत होती हैं, आधथाक अबाव होने रगता हैं,
स्वास्थ्म से सॊफॊधी ऩये शातनमाॊ होने की सॊबावनाएॊ
फढजाती हैं।

भकडी के जारे अशुब क्मों भाने जाते हैं?


वास्तु के अनुसाय त्जस बवन भें भकड़ी के जारे होते
हैं, ठीक तनमसभत साप-सपाई नहीॊ होती, उस बवन भें
तनवास मा व्मवसाम कयने वारो को धन की कभी फनी
यहती हैं। भकड़ी के जारे की अशब
ु ता के कायण
व्मत्क्त ाहे त्जतना धन कभा रें रेफकन फ त कय
ऩाता, धन की कभी फनी यहती हैं। आम से व्मम
अधधक होने रगते हैं। अनावश्मक ख ा फढजाते हैं , घय भें योग-त्रफभायी क्रेश इत्मादद घय कय जाते हैं शीि सभाप्त
नहीॊ होते।

भकड़ी के जारे को दरयद्रता का प्रतीक भाना जाता हैं। भकड़ी के जारे से घय की फयकत प्रबाववत होती हैं। भकड़ी
के जारे होते हैं वहाॊ अरक्ष्भी तनवास कयती हैं धन की दे वी भहारक्ष्भी वहाॊ तनवास नहीॊ कयती हैं। त्जस घय भें मा
बवन भें तनमसभत साप-सपाई होती यहती हैं उस घय भें दे वी रक्ष्भी की कृऩा फयसती हैं, ऎसा शास्िोक्त ववधान हैं।

अऩने घय, दक
ु ान, ओफपस इत्मादी भें साप-सपाई के उऩयाॊत मदद भकड़ी के जारे रटकते हैं, तो जारे को दे खते ही
उसे उन्हें तुयॊत तनकार दें ।

भकड़ी के जारे तनकरते ही धन का आगभन होगा औय अनावस्मक ख ा कभ होंगे औय धन का सॊ म होने रगेगा।


विद्वानो के भतानुशाय भकड़ी के जारे स्वास्थ्म के सरए बी नुक्शानकायी होते हैं। इसी सरए भकड़ी के जारे बवन भें
नहीॊ यहने दे ना ादहए।

भानाजाता हैं भकड़ी के जारे फुयी शत्क्तमों को अऩनी औय आकवषात कयते हैं, घय भें सकायात्भक उजाा खत्भ होती हैं
औय नकायात्भक उजाा का प्रबाव फढने रगता हैं। त्जससे घय के सदस्मों के स्वास्थ्म ऩय फुया प्रबाव ऩड़ने रगता हैं।
इस सरमे बवन से भकड़ी के जारे ददखते ही हटा दे ने ादहए।
नोट: हय शतनवाय, अभावस्मा को घयकी साप-सपाई कयना अधधक राबप्रद होता हैं। इस ददन घय से ऩयू ाना कफाड़-
बॊगाय(अनावश्मक ध ज-वस्त)ु इत्मादी बी तनकार दें ।
61 - 2018

श्रावन भास भें रुद्राऺ धायण कयना ऩयभ कल्माणकायी हैं?



रुद्र के अऺ से प्रकट होने के कायण रुद्राऺ को गरे भें रुद्राऺ धायण कयने से कयोडो ो़ गोदान (गाम का
साऺात सशव का सरॊगात्भक स्वरुऩ भाना गमा हैं। दान) का पर सभरता हैं।
विद्वानो का कथ हैं की रुद्राऺ भें एक ववसशष्ट प्रकाय की अरग-अरग यॊ गों के रुद्राऺ भें अरग-अरग
ददव्म उजाा शत्क्त सभादहत होती हैं। प्राम् सबी ग्रॊथकायों प्रकाय की शत्क्तमाॊ तनदहत होती हैं। इस सरमे यॊ गो के
व विद्वानो ने रुद्राऺ को असह्म ऩाऩों को नाश कयने अनुसाय रुद्राऺ का प्रबाव भनुष्म ऩय ऩड़ता हैं।
वारा भाना हैं। ब्राह्भणा् ऺत्रिमा् वैश्मा् शूद्राश् ते त सशवाऻमा ।
इस शरए शशव भाहा ऩयु ाण भें उल्रेख ककमा गमा हैं। वऺ ृ ा जाता् ऩधृ थव्माॊ तु तज्जातीमो् शुबाऺभ् ।
श्वेतास्तु ब्राह्भण ऻेमा् ऺत्रिमा यक्तवणाका् ॥
सशववप्रमतभो ऻेमो रुद्राऺ् ऩयऩावन्। ऩीता् वैश्मास्तु ववऻेमा् कृष्णा् शूद्रा उदाह्ुता् ॥
दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥
अन्म श्रोक भें उल्रेख हैं:
अथाात: रुद्राऺ अत्मॊत ऩववि, शॊकय बगवान का अतत
ब्राह्भणा् ऺत्रिमा वैश्मा् शूद्रा जाता भभाऻमा ॥
वप्रम हैं। उसके दशान, स्ऩशा व जऩ द्वारा सवा ऩाऩों का
रुद्राऺास्ते ऩधृ थव्माॊ तु तज्जातीमा् शुबाऺका् ॥
नाश होता हैं।
श्वेतयक्ता् ऩीतकृष्णा वणााऻेमा् क्रभाद्फुध्ै ॥
रुद्राऺ धायणाने सवा द्ु खनाश्
स्वजातीमॊ नृसबधाामं रुद्राऺॊ वणात् क्रभात ् ॥
अथाात: रुद्राऺ असॊखम द्ु खों का नाश कयने वारा हैं।

श्वेत यं ग: सपेद यॊ ग वारे रुद्राऺ भें सात्त्त्वक उजाामुक्त


रुद्राऺ शब्द के उछ ायण से गोदा का पर प्राप्त होता
ब्रह्भ स्वरुऩ शत्क्त सभादहत होती हैं। इस सरए ब्राह्भण
हैं।
को श्वेत वणा का रुद्राऺ धायण कयना ादहए।
रुद्राऺ के ववषम भें रुद्राऺ जावारोऩतनषद भें स्वमॊ
यक्तवणीम (ताम्र के सभान आबामुक्त) : यक्त यॊ ग की
बगवान कारग्नी का कथन हैं:
आबामुक्त रुद्राऺ भें याजसी उजाामुक्त शिस
ु ॊहायक शत्क्त
सभादहत होती हैं। इस सरए ऺत्रिम को यक्तवणॉम रुद्राऺ
तद्रुद्राऺे वात्ग्वषमे कृते दशगोप्रदानेन
धायण कयना ादहए।
मत्परभवाप्नोतत तत्परभश्नुते ।
ऩीतवणीम (कांचन मा ऩीरी आबामक्
ु त) : ऩीरे यॊ ग की
कये ण स्ऩष्ृ टवा धायणभािेण द्ववसहस्ि
आबामक्
ु त रुद्राऺ भें याजसी व ताभसी दोनों प्रकाय की
गोप्रदान पर बवतत ।
सॊमक्
ु त उजाा शत्क्त सभादहत होती हैं। इस सरए वैश्म
कणामोधाामभ
ा ाणे एकादश सहस्ि गोप्रदानपरॊ बवतत ।
को ऩीतवणॉम रुद्राऺ धायण कयना ादहए।
एकादश रुद्रत्वॊ गछछतत ।
कृष्णवणीम: कारे यॊ ग की आबामक्
ु त रुद्राऺ भें ताभसी
सशयसस धामाभाणे कोदट ग्रोप्रदान परॊ बवतत ।
उजाामक्
ु त सेवा व सभऩाणात्भक शत्क्त सभादहत होती हैं।
अथाात: रुद्राऺ शब्द के उछ ायण से दश गोदान (गाम
इस सरए शद्र
ू को कृष्णवणॉम रुद्राऺ धायण कयना
का दान) का पर प्राप्त होता हैं। रुद्राऺ का स्ऩशा कयने
ादहए।
व धायण कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का
मह शास्िों भे उल्रेणखत विद्वान ऋवषमों का तनदे श है फक
पर सभरता हैं। दोनो कानो ऩय रुद्राऺ धायण कयने से
भनुष्म को अऩने वणा के अनुरूऩ श्वेत, यक्त, ऩीत औय
ग्माया हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हैं।
कृष्ण वणा के रुद्राऺ धायण कयने ादहए। ववशेषकय
62 - 2018

बगवान सशव के बक्तो के सरमे तो रुद्राऺ को धायण रुद्राऺ को धायण कयता हैं, तो वह सभस्त ऩातको के
कयना ऩयभ आश्मक हैं। भुक्त हो जाता हैं।
जो भनुष्म तनमभानुशाय सहस्िरुद्राऺ धायण
वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्क्तभुत्क्तपरेप्सुसब् ॥ कयता हैं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हैं।
सशवबक्तैववाशष
े ेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥
उत्छछष्टो वा ववकभो वा भुक्तो वा सवाऩातकै्।
सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्िीशूद्राणाॊ।
भुछमते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥
सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥
अथाात् जो भनुष्म उत्छछष्ट अथवा अऩववि यहते हैं मा
सबी आश्रभों (ब्रह्भ ायी, वानप्रस्थ, गह
ृ स्थ औय सॊन्मासी)
फुये कभा कयने वार व अनेक प्रकाय के ऩाऩों से मक्
ु त
एवॊ वणों तथा स्िी औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण
वह भनुष्म रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩों से
कयना ादहमे, मह सशवजी की आऻा है !
छूट जाते हैं।
रुद्राऺ को तीनों रोकों भें ऩूजनीम हैं। रुद्राऺ के
स्ऩशा से रऺ गुणा तथा रुद्राऺ की भारा धायण कयने से कण्ठे रुद्राऺभादाम सम्रमते मदद वा खय्।
कयोड़ गुना पर प्राप्त होता हैं। रुद्राऺ की भारा से भॊि सोऽवऩरुद्रत्वभाप्नोतत फकॊ ऩुनबुवा व भानव्।
जऩ कयने से अनॊत कोदट पर की प्रात्प्त होती हैं। अथाात् कण्ठ भें रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा)
त्जस प्रकाय सभस्त रोक भें सशवजी वॊदनीम एवॊ बी भत्ृ मु को प्राप्त हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को
ऩज
ू नीम हैं उसी प्रकाय रुद्राऺ को धायण कयने वारा प्राप्त होता हैं, तो ऩथ्
ृ वीरोक के जो भनुष्म हैं उनके फाये
व्मत्क्त सॊसाय भें वॊदन मोग्म हैं। भें तो कहना ही क्मा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मों को
स्वगा-प्रात्प्त व रोक ऩयरोक सुधायने के सरए रुद्राऺ
रुद्राऺ धायण परभ ् अवश्म धायण कयने मोग्म हैं।
रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे त्रिऩुण्रकभ ्। रुद्राऺॊ भस्तके धत्ृ वा सशय् स्नानॊ कयोतत म्।
स ाण्डारोऽवऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणोंत्तभो बवेत ्॥ गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥
अथाात् त्जसके शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयके जो भनुष्म
त्रिऩुण्ड हो, वह ाण्डार बी हो तो सफ वणों भें उत्तभ ससय से स्नान कयता हैं उसे गॊगा स्नान के सभान ऩयभ
ऩूजनीम हैं। ऩववि स्नान का पर प्राप्त होता हैं तथा वह भनुष्म
अबक्त हो मा बक्त हो, नीॊ से नी व्मत्क्त बी मदी सभस्त ऩाऩों से भुक्त हो जाता हैं इसभें सॊशम नहीॊ हैं।

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63 - 2018

सवा कामा ससवि कव


त्जस व्मत्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊतछत सपरतामे एवॊ
फकमे गमे कामा भें ससवि (राब) प्राप्त नहीॊ होती, उस व्मत्क्त को सवा कामा ससवि कव
अवश्म धायण कयना ादहमे।
कवच के प्रभख
ु राब: सवा कामा ससवि कव के द्वारा सख
ु सभवृ ि औय नव ग्रहों के
नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र
का नाश हो कय सख
ु -सौबाग्म एवॊ उन्नतत प्रात्प्त होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शब
ु कामा
ससि होते हैं। त्जसे धायण कयने से व्मत्क्त मदद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे ववृ ि होतत
हैं औय मदद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नतत होती हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।
 सवा कामा ससवि कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के सभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय
सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ
(१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
(६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त
होता हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें तंत्र यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए
दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ
होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दष्ु ट प्रबावो से
यऺा होती हैं।

 सवा कामा ससवि कव के साथ भें शत्रु ववजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से
सॊफॊधधत सभस्त ऩये शातनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शिु
धायण कताा व्मत्क्त का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते।
अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :
फकसी व्मत्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव दे ने नही दे ना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सयु क्षऺत हैं।
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64 - 2018

दस भहाववद्या ऩज
ू न मॊि Das Mahavidy a Poojan Yantra | Dasmahavidy a Pujan Yantra

दस भहाववद्या ऩज
ू न मॊि को दे वी दस
भहाववद्या की शत्क्तमों से मुक्त अत्मॊत
प्रबावशारी औय दर
ु ब
ा मॊि भाना गमा हैं।
इस मॊि के भाध्मभ से साधक के ऩरयवाय
ऩय दसो महाविद्याओॊ का आसशवााद प्राप्त होता
हैं। दस भहाववद्या मॊि के तनमसभत ऩूजन-दशान
से भनुष्म की सबी भनोकाभनाओॊ की ऩूतता होती
हैं। दस भहाववद्या मॊि साधक की सभस्त
इछछाओॊ को ऩूणा कयने भें सभथा हैं। दस
भहाववद्या मॊि भनष्ु म को शत्क्तसॊऩन्न एवॊ
बूसभवान फनाने भें सभथा हैं।
दस भहाववद्या मॊि के श्रिाऩूवक
ा ऩूजन
से शीि दे वी कृऩा प्राप्त होती हैं औय साधक को
दस भहाववद्या दे वीमों की कृऩा से सॊसाय की
सभस्त ससविमों की प्रात्प्त सॊबव हैं। दे वी दस
भहाववद्या की कृऩा से साधक को धभा, अथा,
काभ व ् भोऺ तुववाध ऩुरुषाथों की प्रात्प्त हो
सकती हैं। दस भहाववद्या मॊि भें भाॉ दग
ु ाा के दस
अवतायों का आशीवााद सभादहत हैं, इस सरए दस
भहाववद्या मॊि को के ऩूजन एवॊ दशान भाि से व्मत्क्त अऩने जीवन को तनयॊ तय अधधक से अधधक साथाक एवॊ
सपर फनाने भें सभथा हो सकता हैं।
दे वी के आसशवााद से व्मत्क्त को ऻान, सख
ु , धन-सॊऩदा, ऐश्वमा, रूऩ-सौंदमा की प्रात्प्त सॊबव हैं। व्मत्क्त को वाद-
वववाद भें शिओ
ु ॊ ऩय ववजम की प्रात्प्त होती हैं।
दश भहाववद्या को शास्िों भें आद्या बगवती के दस बेद कहे गमे हैं, जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3)
षोडशी, (4) बव
ु नेश्वयी, (5) बैयवी, (6) तछन्नभस्ता, (7) धभ
ू ावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10)
कभात्त्भका। इस सबी दे वी स्वरुऩों को, सत्म्भसरत रुऩ भें दश भहाववद्या के नाभ से जाना जाता हैं।
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65 - 2018

अभोद्य भहाभत्ृ मुॊजम कव


अभोद्य् भहाभत्ृ मुॊजम कव व उल्रेणखत अन्म साभग्रीमों को शास्िोक्त ववधध-ववधान से
ववद्वान ब्राह्भणो द्वारा सवा राख भहाभत्ृ मुंजम भंत्र जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्वारा तनसभात कव
अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं।

अभोद्य् भहाभत्ृ मॊुजम कव


अभोद्य् भहाभत्ृ मॊज
ु म
कव फनवाने हे त:ु
अऩना नाभ, वऩता-भाता का नाभ, कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दक्षऺणा भाि: 10900

कव के ववषम भें अधधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें । >> Order Now
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श्री हनुभान मॊि


शास्िों भें उल्रेख हैं की श्री हनभ
ु ान जी को बगवान सम
ू द
ा े व ने ब्रह्भा जी के आदे श ऩय हनभ
ु ान जी को
अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्ि का
ऩण
ू ा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेष्ठ वक्ता होंगे तथा शास्ि ववद्या भें इन्हें भहायत हाससर
होगी औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुशाय हनुभान मॊि की आयाधना से
ऩरु
ु षों की ववसबन्न फीभारयमों दयू होती हैं, इस मॊि भें अभत
ु शत्क्त सभादहत होने के कायण व्मत्क्त की
स्वप्न दोष, धातु योग, यक्त दोष, वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्मादद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें
अत्मन्त राबकायी हैं। अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुष्ट कयता हैं। श्री हनुभान मॊि व्मत्क्त को सॊकट, वाद-
वववाद, बूत-प्रेत, द्मूत फक्रमा, ववषबम, ोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्मादद से सॊकटो से
यऺा कयता हैं औय ससवि प्रदान कयने भें सऺभ हैं। श्री हनुभान मॊि के ववषम भें अधधक जानकायी के सरमे
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भॊि ससि ऩायद प्रततभा


ऩायद श्री मॊि ऩायद रक्ष्भी गणेश ऩायद रक्ष्भी नायामण ऩायद रक्ष्भी नायामण

21 Gram से 5.250 Kg तक 100 Gram 121 Gram 100 Gram


उऩरब्ध
ऩायद सशवसरॊग ऩायद सशवसरॊग+नॊदद ऩायद सशवजी ऩायद कारी

21 Gram से 5.250 Kg तक 101 Gram से 5.250 Kg 75 Gram 37 Gram


उऩरब्ध तक उऩरब्ध
ऩायद दग
ु ाा ऩायद दग
ु ाा ऩायद सयस्वती ऩायद सयस्वती

82 Gram 100 Gram 50 Gram 225 Gram


ऩायद हनुभान 2 ऩायद हनुभान 3 ऩायद हनुभान 1 ऩायद कुफेय

100 Gram 125 Gram 100 Gram 100 Gram


हभायें महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससि ऩायद प्रततभाएॊ, सशवसरॊग, वऩयासभड, भारा एवॊ गुदटका शुि ऩायद भें उऩरब्ध हैं।
त्रफना भॊि ससि की हुई ऩायद प्रततभाएॊ थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हैं।
ो़
ज्मोततष, यत्न व्मवसाम, ऩूजा-ऩाठ इत्मादद ऺेि से जुडे फॊध/ु फहन के सरमे हभायें ववशेष मॊि, कव , यत्न, रुद्राऺ व अन्म दर
ु ब
साभग्रीमों ऩय ववशेष सुत्रफधाएॊ उऩरब्ध हैं। अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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67 - 2018

हभाये ववशेष मॊि


व्माऩाय ववृ ि मंत्र: हभाये अनब
ु वों के अनस
ु ाय मह मॊि व्माऩाय ववृ ि एवॊ ऩरयवाय भें सख
ु सभवृ ि हे तु ववशेष प्रबावशारी हैं।
बशू भराब मंत्र: बसू भ, बवन, खेती से सॊफॊधधत व्मवसाम से जड़ु े रोगों के सरए बसू भराब मॊि ववशेष राबकायी ससि
हुवा हैं।
तंत्र यऺा मंत्र: फकसी शिु द्वारा फकमे गमे भॊि-तॊि आदद के प्रबाव को दयू कयने एवॊ बूत, प्रेत नज़य आदद फुयी
शत्क्तमों से यऺा हे तु ववशेष प्रबावशारी हैं।
आकर्स्भक धन प्रार्प्त मंत्र: अऩने नाभ के अनुसाय ही भनुष्म को आकत्स्भक धन प्रात्प्त हे तु परप्रद हैं इस
मॊि के ऩज
ू न से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राप्त होता हैं। ाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो,
धन-सॊऩत्त्त इत्मादद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राप्त हो सकता हैं। हभाये वषों के अनस
ु ॊधान एवॊ अनब
ु वों से
हभने आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि से शेमय रे डडॊग, सोने- ाॊदी के व्माऩाय इत्मादद सॊफॊधधत ऺेि से जड
ु े रोगो को
ववशेष रुऩ से आकत्स्भक धन राब प्राप्त होते दे खा हैं। आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि से ववसबन्न स्रोत से धनराब बी
सभर सकता हैं।
ऩदौन्नतत मंत्र: ऩदौन्नतत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हैं। त्जन रोगों को अत्माधधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रे ष्ठ
कामा कयने ऩय बी नौकयी भें उन्नतत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह ववशेष राबप्रद हो सकता हैं।
यत्नेश्वयी मंत्र: यत्नेश्वयी मॊि हीये -जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना- ाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊधधत व्मवसाम से जुडे रोगों के
सरए अधधक प्रबावी हैं। शेय फाजाय भें सोने- ाॊदी जैसी फहुभल्
ू म धातओ
ु ॊ भें तनवेश कयने वारे रोगों के सरए बी
ववशेष राबदाम हैं।
बशू भ प्रार्प्त मंत्र: जो रोग खेती, व्मवसाम मा तनवास स्थान हे तु उत्तभ बूसभ आदद प्राप्त कयना ाहते हैं, रेफकन
उस कामा भें कोई ना कोई अड़ न मा फाधा-ववर्घन आते यहते हो त्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके
सरए बसू भ प्रात्प्त मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हैं।
गह
ृ प्रार्प्त मंत्र: जो रोग स्वमॊ का घय, दक
ु ान, ओफपस, पैक्टयी आदद के सरए बवन प्राप्त कयना ाहते हैं।
मथाथा प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गह
ृ प्रात्प्त मॊि ववशेष उऩमोगी ससि
हो सकता हैं।
कैरास धन यऺा मंत्र: कैरास धन यऺा मॊि धन ववृ ि एवॊ सुख सभवृ ि हे तु ववशेष परदाम हैं।
आधथाक राब एवॊ सुख सभवृ ि हे तु 19 दर
ु ब
ा रक्ष्भी मॊि >> Shop Online | Order Now

ववसबन्न रक्ष्भी मॊि


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि कनक धाया मॊि
श्री मॊि (भॊि यदहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससवि दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)

श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससि फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि)

श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूक्त मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेष्ठा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩष्ृ ठीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि > Shop Online | Order Now

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68 - 2018

सवाससविदामक भुदद्रका
इस भदु द्रका भें भग
ॊू े को शब
ु भह
ु ू ता भें त्रिधातु (सव
ु णा+यजत+ताॊफें) भें जड़वा कय उसे शास्िोक्त ववधध-
ववधान से ववसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्वारा सवाससविदामक फनाने हे तु प्राण-प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा त
ै न्म मक्
ु त
फकमा जाता हैं। इस भदु द्रका को फकसी बी वगा के व्मत्क्त हाथ की फकसी बी उॊ गरी भें धायण कय
सकते हैं। महॊ भदु द्रका कबी फकसी बी त्स्थती भें अऩववि नहीॊ होती। इस सरए कबी भदु द्रका को
उतायने की आवश्मक्ता नहीॊ हैं। इसे धायण कयने से व्मत्क्त की सभस्माओॊ का सभाधान होने
रगता हैं। धायणकताा को जीवन भें सपरता प्रात्प्त एवॊ उन्नतत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हैं
औय जीवन भें सबी प्रकाय की ससविमाॊ बी शीध्र प्राप्त होती हैं। भल्
ू म भात्र- 6400/-
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(नोट: इस भदु द्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फयु ा प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हैं।)
सवाशसविदामक भदु द्रका के ववषम भें अधधक जानकायी के शरमे हे तु सम्ऩका कयें ।

ऩतत-ऩत्नी भें करह तनवायण हे तु


मदद ऩरयवायों भें सख
ु -सुववधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भें ऩतत-ऩत्नी के त्रफ भे
करह होता यहता हैं, तो घय के त्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्वारा शास्िोक्त
ववधध-ववधान से भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत ऩूणा ैतन्म मक्
ु त वशीकयण कव एवॊ गहृ करह नाशक
डडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें त्रफना फकसी ऩूजा, ववधध-ववधान से आऩ ववशेष राब प्राप्त कय
सकते हैं। मदद आऩ भॊि ससि ऩतत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गह
ृ करह नाशक डडब्फी फनवाना
ाहते हैं, तो सॊऩका आऩ कय सकते हैं।

100 से अधधक जैन मॊि


हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दर
ु ब
ा एवॊ शीि प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि,
ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्ध हैं।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है।
इसके अरावा आऩकी आवश्मकता अनस
ु ाय आऩके द्वारा प्राप्त (ध ि, मॊि, डड़ज़ाईन) के अनरु
ु ऩ मॊि
बी फनवाए जाते है. गुरुत्व कामाारम द्वारा उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊडडत एवॊ 22 गेज शि

कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 ट शि
ु ससरवय ( ाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है। मॊि
के ववषम भे अधधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयें ।
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69 - 2018

द्वादश भहा मॊि


मॊि को अतत प्राध न एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान
द्वारा फनामा गमा हैं।
 ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि,  सहस्िाऺी रक्ष्भी आफि मॊि
 बाग्मोदम मॊि  आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि
 भनोवाॊतछत कामा ससवि मॊि  ऩूणा ऩौरुष प्रात्प्त काभदे व मॊि
 याज्म फाधा तनवत्ृ त्त मॊि  योग तनवत्ृ त्त मॊि
 गहृ स्थ सुख मॊि  साधना ससवि मॊि
 शीि वववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  शिु दभन मॊि

उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि ऩूणा
प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ ैतन्म मक्
ु त फकमे जाते हैं। त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩज
ू ा
अ न
ा ा-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं।
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 क्मा आऩके फछ े कुसॊगती के सशकाय हैं?

 क्मा आऩके फछ े आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं?

 क्मा आऩके फछ े घय भें अशाॊतत ऩैदा कय यहे हैं?

घय ऩरयवाय भें शाॊतत एवॊ फछ े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फछ े के नाभ से गरु


ु त्व कामाारत
द्वारा शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत ऩूणा ैतन्म मुक्त वशीकयण कव
एवॊ एस.एन.डडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थावऩत कय अल्ऩ ऩज
ू ा, ववधध-ववधान से
आऩ ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं। मदद आऩ तो आऩ भॊि ससि वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.डडब्फी फनवाना ाहते हैं, तो सॊऩका इस कय सकते हैं।

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70 - 2018

सॊऩूणा प्राणप्रततत्ष्ठत 22 गेज शुि स्टीर भें तनसभात अखॊडडत

ऩुरुषाकाय शतन मंत्र


ऩरु
ु षाकाय शतन मॊि (स्टीर भें ) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शतन की कायक धातु शि

स्टीर(रोहे ) भें फनामा गमा हैं। त्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राप्त होता हैं। मदद
जन्भ कॊु डरी भें शतन प्रततकूर होने ऩय व्मत्क्त को अनेक कामों भें असपरता प्राप्त होती है, कबी
व्मवसाम भें घटा, नौकयी भें ऩये शानी, वाहन दघ
ु ट
ा ना, गह
ृ क्रेश आदद ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है
ऐसी त्स्थततमों भें प्राणप्रततत्ष्ठत ग्रह ऩीड़ा तनवायक शतन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भें
ो़
स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हैं। मदद शतन की ढै मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे
अवश्म ऩज
ू ना ादहए। शतनमॊि के ऩज
ू न भाि से व्मत्क्त को भत्ृ मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा ,
फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मत्क्त के सरमे शतन मॊि अधधक
राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आदद के रोगों को ऩदौन्नतत बी शतन द्वारा ही सभरती है अत् मह
मॊि अतत उऩमोगी मॊि है त्जसके द्वारा शीि ही राब ऩामा जा सकता है ।
भल्
ू म: 1225 से 8200 >> Shop Online | Order Now

सॊऩण
ू ा प्राणप्रततत्ष्ठत
22 गेज शि
ु स्टीर भें तनसभात अखॊडडत

शतन तैततसा मॊि


शतनग्रह से सॊफॊधधत ऩीडा के तनवायण हे तु ववशेष राबकायी मॊि।
भल्
ू म: 640 से 12700 >> Shop Online | Order Now

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71 - 2018

नवयत्न जडड़त श्री मॊि


शास्ि व न के अनुसाय शुि सुवणा मा
यजत भें तनसभात श्री मॊि के ायों औय
मदद नवयत्न जड़वा ने ऩय मह नवयत्न
जडड़त श्री मॊि कहराता हैं। सबी यत्नो को
उसके तनत्श् त स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट
के रूऩ भें धायण कयने से व्मत्क्त को
अनॊत एश्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रात्प्त होती
हैं। व्मत्क्त को एसा आबास होता हैं जैसे
भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं। नवग्रह को श्री
मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशुब
दशा का धायणकयने वारे व्मत्क्त ऩय
प्रबाव नहीॊ होता हैं।

गरे भें होने के कायण मॊि ऩववि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं, वह गॊगा जर के सभान ऩववि होता हैं। इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदातम कहजाता हैं। जैसे अभत
ृ से उत्तभ कोई औषधध नहीॊ, उसी प्रकाय
रक्ष्भी प्रात्प्त के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्िोक्त व न हैं।
इस प्रकाय के नवयत्न जडड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्वाया शुब भह
ु ू ता भें प्राण प्रततत्ष्ठत
कयके फनावाए जाते हैं। Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से अधधक
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अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

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72 - 2018

भॊि ससि वाहन दघ


ु ट
ा ना नाशक भारुतत मॊि
ऩौयाणणक ग्रॊथो भें उल्रेख हैं की भहाबायत के मुि के सभम अजुन
ा के यथ के अग्रबाग ऩय भारुतत ध्वज
एवॊ भारुतत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩण
ू ा मिु के दौयान हज़ायों-राखों प्रकाय के आग्नेम
अस्ि-शस्िों का प्रहाय होने के फाद बी अजन
ुा का यथ जया बी ऺततग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृष्ण भारुतत मॊि
के इस अभत
ु यहस्म को जानते थे फक त्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुतत नॊदन कयते हों, वह
दघ
ु ट
ा नाग्रस्त कैसे हो सकता हैं। वह यथ मा वाहन तो वामव
ु ेग से, तनफााधधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय ववजम ऩतका
रहयाता हुआ ऩहुॊ ग
े ा। इसी सरमे श्री कृष्ण नें अजन
ुा के यथ ऩय श्री भारुतत मॊि को अॊफकत कयवामा था।
त्जन रोगों के स्कूटय, काय, फस, रक इत्मादद वाहन फाय-फाय दघ ु ट
ा ना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन
को नऺ
ु ान हो यहा हों! उन्हें हानी एवॊ दघ
ु ट
ा ना से यऺा के उद्देश्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससि श्री भारुतत मॊि अवश्म
रगाना ादहए। जो रोग रान्स्ऩोदटं ग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हैं उनको श्रीभारुतत मॊि को अऩने वाहन भें
अवश्म स्थावऩत कयना ादहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडों रोगों का अनुबव यहा हैं की श्री भारुतत मॊि
को स्थावऩत कयने से उनके वाहन अधधक ददन तक अनावश्मक ख ो से एवॊ दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयक्षऺत यहे हैं। हभाया
स्वमॊका एवॊ अन्म ववद्वानो का अनुबव यहा हैं, की त्जन रोगों ने श्री भारुतत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हैं, उन
रोगों के वाहन फडी से फडी दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयक्षऺत यहते हैं। उनके वाहनो को कोई ववशेष नुक्शान इत्मादद नहीॊ होता
हैं औय नाहीॊ अनावश्मक रुऩ से उसभें खयाफी आतत हैं।
वास्तु प्रमोग भें भारुतत मंत्र: मह भारुतत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है । मदद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा
उस ऩय कोई वाद-वववाद हो, तो इछछा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उध त भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुतत मॊि
का प्रमोग फकमा जा सकता हैं। इस भारुतत मॊि के प्रमोग से जभीन शीि त्रफक जाएगी मा वववादभुक्त हो जाएगी।
इस सरमे मह मॊि दोहयी शत्क्त से मुक्त है ।
भारुतत मॊि के ववषम भें अधधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भल्
ू म Rs- 325 से 12700 तक

श्री हनभ
ु ान मॊि शास्िों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्भा जी के आदे श ऩय
हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्ि
का ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेष्ठ वक्ता होंगे तथा शास्ि ववद्या भें इन्हें भहायत हाससर होगी
औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों की
ववसबन्न फीभारयमों दयू होती हैं, इस मॊि भें अभतु शत्क्त सभादहत होने के कायण व्मत्क्त की स्वप्न दोष, धातु योग,
यक्त दोष, वीमा दोष, भछू ाा, नऩॊस
ु कता इत्मादद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मन्त राबकायी हैं। अथाात
मह मॊि ऩौरुष को ऩष्ु ट कयता हैं। श्री हनभ
ु ान मॊि व्मत्क्त को सॊकट, वाद-वववाद, बत
ू -प्रेत, द्मत
ू फक्रमा, ववषबम, ोय
बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्मादद से सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससवि प्रदान कयने भें सऺभ हैं।
श्री हनभ
ु ान मॊि के ववषम भें अधधक जानकायी के सरमे गरु
ु त्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भूल्म Rs- 910 से 12700 तक

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73 - 2018

ववशबन्न दे वताओं के मंत्र


गणेश मॊि भहाभत्ृ मज
ुॊ म मॊि याभ यऺा मॊि याज
गणेश मॊि (सॊऩण
ू ा फीज भॊि सदहत) भहाभत्ृ मज
ुॊ म कव मॊि याभ मॊि
गणेश ससि मॊि भहाभत्ृ मज
ुॊ म ऩज
ू न मॊि द्वादशाऺय ववष्णु भॊि ऩज
ू न मॊि
एकाऺय गणऩतत मॊि भहाभत्ृ मुॊजम मुक्त सशव खप्ऩय भाहा सशव ववष्णु फीसा मॊि
मॊि
हरयद्रा गणेश मॊि सशव ऩॊ ाऺयी मॊि गरुड ऩज
ू न मॊि
कुफेय मॊि सशव मॊि ध त
ॊ ाभणी मॊि याज
श्री द्वादशाऺयी रुद्र ऩज
ू न मॊि ऄवद्वतीम सवाकाम्म ससवि सशव मॊि ध त
ॊ ाभणी मॊि
दत्तािम मॊि नसृ सॊह ऩज
ू न मॊि स्वणााकषाणा बैयव मॊि
दत्त मॊि ऩॊ दे व मॊि हनभ
ु ान ऩज
ू न मॊि
आऩदि
ु ायण फटुक बैयव मॊि सॊतान गोऩार मॊि हनभ
ु ान मॊि
फटुक मॊि श्री कृष्ण अष्टाऺयी भॊि ऩज
ू न मॊि सॊकट भो न मॊि
व्मॊकटे श मॊि कृष्ण फीसा मॊि वीय साधन ऩज
ू न मॊि
कातावीमााजन
ुा ऩज
ू न मॊि सवा काभ प्रद बैयव मॊि दक्षऺणाभतू ता ध्मानभ ् मॊि

भनोकाभना ऩूतता एवं कष्ट तनवायण हे तु ववशेष मंत्र


व्माऩाय ववृ ि कायक मॊि अभत
ृ तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि िम ताऩोंसे भत्ु क्त दाता फीसा मॊि
व्माऩाय ववृ ि मॊि ववजमयाज ऩॊ दशी मॊि भधुभेह तनवायक मॊि
व्माऩाय वधाक मॊि ववद्यामश ववबूतत याज सम्भान प्रद ससि फीसा ज्वय तनवायण मॊि
मॊि
व्माऩायोन्नतत कायी ससि मॊि सम्भान दामक मॊि योग कष्ट दरयद्रता नाशक मॊि
बाग्म वधाक मॊि सख
ु शाॊतत दामक मॊि योग तनवायक मॊि
स्वत्स्तक मॊि फारा मॊि तनाव भक्
ु त फीसा मॊि
सवा कामा फीसा मॊि फारा यऺा मॊि ववद्मत
ु भानस मॊि
कामा ससवि मॊि गबा स्तम्बन मॊि गह
ृ करह नाशक मॊि
सख
ु सभवृ ि मॊि सॊतान प्रात्प्त मॊि करेश हयण फत्त्तसा मॊि
सवा रयवि ससवि प्रद मॊि प्रसत
ू ा बम नाशक मॊि वशीकयण मॊि
सवा सख
ु दामक ऩैंसदठमा मॊि प्रसव-कष्टनाशक ऩॊ दशी मॊि भोदहतन वशीकयण मॊि
ऋवि ससवि दाता मॊि शाॊतत गोऩार मॊि कणा वऩशा नी वशीकयण मॊि
सवा ससवि मॊि त्रिशर
ू फीशा मॊि वाताारी स्तम्बन मॊि
साफय ससवि मॊि ऩॊ दशी मॊि (फीसा मॊि मक्
ु त ायों वास्तु मॊि
प्रकायके)
शाफयी मॊि फेकायी तनवायण मॊि श्री भत्स्म मॊि
ससिाश्रभ मॊि षोडशी मॊि वाहन दघ
ु ट
ा ना नाशक मॊि
ज्मोततष तॊि ऻान ववऻान प्रद ससि फीसा अडसदठमा मॊि प्रेत-फाधा नाशक मॊि
मॊि
ब्रह्भाण्ड साफय ससवि मॊि अस्सीमा मॊि बत
ू ादी व्माधधहयण मॊि
कुण्डसरनी ससवि मॊि ऋवि कायक मॊि कष्ट तनवायक ससवि फीसा मॊि
क्रात्न्त औय श्रीवधाक ौंतीसा मॊि भन वाॊतछत कन्मा प्रात्प्त मॊि बम नाशक मॊि
74 - 2018

श्री ऺेभ कल्माणी ससवि भहा मॊि वववाहकय मॊि स्वप्न बम तनवायक मॊि
ऻान दाता भहा मॊि रग्न ववर्घन तनवायक मॊि कुदृत्ष्ट नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभत
ृ तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता ववनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩज
ू न मॊि

भॊि ससि ववशेष दै वी मॊि सधू


आद्य शत्क्त दग
ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि
भहान शत्क्त दग
ु ाा मॊि (अॊफाजी मॊि) सप्तसती भहामॊि(सॊऩण
ू ा फीज भॊि सदहत)
नव दग
ु ाा मॊि कारी मॊि
नवाणा मॊि ( ाभड
ुॊ ा मॊि) श्भशान कारी ऩज
ू न मॊि
नवाणा फीसा मॊि दक्षऺण कारी ऩज
ू न मॊि
ाभड
ॊु ा फीसा मॊि ( नवग्रह मक्
ु त) सॊकट भोध नी कासरका ससवि मॊि
त्रिशर
ू फीसा मॊि खोडडमाय मॊि
फगरा भख
ु ी मॊि खोडडमाय फीसा मॊि
फगरा भख
ु ी ऩज
ू न मॊि अन्नऩण
ू ाा ऩज
ू ा मॊि
याज याजेश्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि

भॊि ससि ववशेष रक्ष्भी मॊि सधू


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि
श्री मॊि (भॊि यदहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि
श्री मॊि (सॊऩण
ू ा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससि फीसा मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सक्
ू त मॊि रक्ष्भी गणेश मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩष्ृ ठीम) ज्मेष्ठा रक्ष्भी भॊि ऩज
ू न मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि
श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि) वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससवि दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
अॊकात्भक फीसा मॊि
ताम्र ऩत्र ऩय सव
ु णा ऩोरीस ताम्र ऩत्र ऩय यजत ऩोरीस ताम्र ऩत्र ऩय
(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1” 550 1” X 1” 370 1” X 1” 325
2” X 2” 910 2” X 2” 640 2” X 2” 550
3” X 3” 1450 3” X 3” 1050 3” X 3” 910
4” X 4” 2350 4” X 4” 1450 4” X 4” 1225
6” X 6” 3700 6” X 6” 2800 6” X 6” 2350
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75 - 2018

जुराई 2018 भाससक ऩॊ ाॊग


वतवथ चंद्र
दद िार माह पक्ष समावि नक्षत्र समावि योग समावि करण समावि समावि
रावश
1 17:43 श्रिण विषकुं भ
रवि अषाढ़ कृ ष्ण तृतीया 21:36 - विवि 17:43 मकर -

2
सोम अषाढ़ कृ ष्ण चतुथी 20:06 धवनष्ठा 24:34 विषकुं भ 05:56 बि 06:56 मकर 11:08

3 शतवभषा
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण पंचमी 22:11 27:13 प्रीवत 06:53 कौलि 09:11 कुं भ -

4 पूिायभाद्रपद
बुध अषाढ़ कृ ष्ण षष्ठी 23:48 29:22 अयुष्मान 07:31 गर 11:04 कुं भ 22:54

5 ईत्तराभाद्रपद
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण सिमी 24:48 - सौभाग्य 07:44 विवि 12:23 मीन -

6 ईत्तराभाद्रपद
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄिमी 25:5 06:53 शोभन 07:25 बालि 13:02 मीन -

7 रे िवत
शवन अषाढ़ कृ ष्ण निमी 24:34 07:39 ऄवतगंड 06:29 तैवतल 12:56 मीन 07:40

8 ऄविनी
रवि अषाढ़ कृ ष्ण दशमी 23:17 07:38 धृवत 26:41 िवणज 12:01 मेष -

9 भरणी
सोम अषाढ़ कृ ष्ण एकादशी 21:16 06:50 शूल 23:51 बि 10:21 मेष 12:32

10 रोवहवण
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण द्वादशी 18:37 27:15 गंड 20:31 कौलि 08:00 िृष -

11 मृगवशरा
बुध अषाढ़ कृ ष्ण त्रयोदशी 15:28 24:43 िृवि 16:47 िवणज 15:28 िृष 14:02

12 अद्रा
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण चतुदश
य ी 11:58 21:54 ध्रुि 12:45 शकु वन 11:58 वमथुन -

13 पुनियसु
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄमािस्या 08:17 18:58 व्याघात 08:34 नाग 08:17 वमथुन 13:43

14 एकम- पुष्य
शवन अषाढ़ शुक्ल 25:0 16:06 िज्र 24:15 बालि 14:46 ककय -
वद्वतीया

15
रवि अषाढ़ शुक्ल तृतीया 21:43 अश्लेषा 13:27 वसवि 20:24 तैवतल 11:19 ककय 13:28
76 - 2018

16
सोम अषाढ़ शुक्ल चतुथी 18:51 मघा 11:12 व्यवतपात 16:54 िवणज 08:13 ससह -

17
मंगल अषाढ़ शुक्ल पंचमी 16:32 पूिायफाल्गुनी 09:27 िररयान 13:52 बालि 16:32 ससह 15:07

18
बुध अषाढ़ शुक्ल षष्ठी 14:51 ईत्तराफाल्गुनी 08:19 पररग्रह 11:20 तैवतल 14:51 कन्या -

19
गुरु अषाढ़ शुक्ल सिमी 13:52 हस्त 07:52 वशि 09:24 िवणज 13:52 कन्या 19:56

20
शुक्र अषाढ़ शुक्ल ऄिमी 13:36 वचत्रा 08:09 वसि 08:03 बि 13:36 तुला -

21 स्िावत
शवन अषाढ़ शुक्ल निमी 14:01 09:07 साध्य 07:16 कौलि 14:01 तुला -

22
रवि अषाढ़ शुक्ल दशमी 15:03 विशाखा 10:43 शुभ 07:01 गर 15:03 तुला 04:17

23
सोम अषाढ़ शुक्ल एकादशी 16:38 ऄनुराधा 12:52 शुक्ल 07:13 विवि 16:38 िृविक -

24
मंगल शुक्ल द्वादशी 18:37 जेष्ठा 15:27 ब्रह्म 07:48 बालि 18:37 िृविक 15:28
अषाढ़

25
बुध शुक्ल त्रयोदशी 20:53 मूल 18:21 आन्द्र 08:40 कौलि 07:43 धनु -
अषाढ़

26
गुरु अषाढ़ शुक्ल चतुदश
य ी 23:20 पूिायषाढ़ 21:25 िैधृवत 09:43 गर 10:06 धनु -

27
शुक्र अषाढ़ शुक्ल पूर्थणमा 25:50 ईत्तराषाढ़ 24:32 विषकुं भ 10:51 विवि 12:35 धनु 04:12

28
शवन श्रािण कृ ष्ण एकम 28:16 श्रिण 27:37 प्रीवत 12:00 बालि 15:04 मकर -

29
रवि श्रािण कृ ष्ण वद्वतीया - धवनष्ठा - अयुष्मान 13:04 तैवतल 17:25 मकर 17:06

30
सोम श्रािण कृ ष्ण तृतीया 06:32 धवनष्ठा 06:31 सौभाग्य 13:57 गर 06:32 कुं भ -

31
मंगल श्रािण कृ ष्ण तृतीया 08:31 शतवभषा 09:09 शोभन 14:36 विवि 08:31 कुं भ -
77 - 2018

जुराई 2018 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय


दद वाय भाह ऩऺ ततधथ समावि प्रभख
ु व्रत-त्मोहाय

1
17:43
रवि अषाढ़ कृ ष्ण तृतीया संकिी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोदय 20:46 पर)

2
सोम अषाढ़ कृ ष्ण चतुथी 20:06 -

3
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण पंचमी 22:11 नाग पंचमी, कोदकला पंचमी

4
-
बुध अषाढ़ कृ ष्ण षष्ठी 23:48

5
-
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण सिमी 24:48

6
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄिमी 25:5 शीतलािमी, बोहरा ऄिमी

7
-
शवन अषाढ़ कृ ष्ण निमी 24:34

8
23:17
-
रवि अषाढ़ कृ ष्ण दशमी

9
सोम अषाढ़ कृ ष्ण एकादशी 21:16 योवगनी एकादशी व्रत

10
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण द्वादशी 18:37 भौम प्रदोष व्रत

11
बुध अषाढ़ कृ ष्ण त्रयोदशी 15:28 वशि चतुदश
य ी, मावसक वशिरावत्र व्रत

12
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण चतुदश
य ी 11:58 रोवहणी व्रत (जैन)

देि-वपतृकायय-स्नान-दान हेतु ईत्तम ऄमािस्या, अषाढ़ी ऄमािस्या,


13
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄमािस्या 08:17 श्राि की ऄमािस्या, हलहाररणी ऄमािस्या, पुष्य नक्षत्र (18.58
से), क्षय वतवथ गुि निरात्रा प्रारं भ

14 एकम- श्री जगन्नाथ रथयात्रा, मनोरथ वद्वतीया, चंद्रदशयन, पुष्य नक्षत्र


शवन अषाढ़ शुक्ल 25:0
वद्वतीया (रावत्र 16:06 तक)
78 - 2018

15
रवि अषाढ़ शुक्ल तृतीया 21:43 -

16
सोम अषाढ़ शुक्ल चतुथी 18:51 विनायकी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोस्त 21:57 पर)

17
मंगल अषाढ़ शुक्ल पंचमी 16:32 सूयय ककय संक्रांवत, स्कन्द पंचमीए

18
बुध अषाढ़ शुक्ल षष्ठी 14:51 सौर मास प्रारं भ श्रािण मास प्रारं भ, कं दभाय षष्ठी, कु मार षष्ठी,

19
गुरु अषाढ़ शुक्ल सिमी 13:52 वििस्ता सिमी

20
शुक्र अषाढ़ शुक्ल ऄिमी 13:36 दुगायिमी, खरसी पूजा (वत्रपुरा)

21
शवन अषाढ़ शुक्ल निमी 14:01 भडल्या निमी, भड़ली निमी, गुि निरात्रा समाि, मंसा पूजा

22
रवि अषाढ़ शुक्ल दशमी 15:03 अशा दशमी, वगररजा पूजा दशमी,

23 देिशयनी, हररशयनी एकादशी, रविनारायण एकादशी, चातुमायस


सोम अषाढ़ शुक्ल एकादशी 16:38
प्रारं भ, देि शयन

24
मंगल शुक्ल द्वादशी 18:37 िासुदि
े द्वादशी, प्रदोष व्रत
अषाढ़
25
बुध शुक्ल त्रयोदशी 20:53 प्रदोष व्रत, जया पाियती व्रत प्रारं भ,
अषाढ़
26
गुरु अषाढ़ शुक्ल चतुदश
य ी 23:20 चौमासी चौदस

27 गुरु पूर्थणमा, व्यास पूजन, खग्रास चंद्रग्रहण, व्रत-स्नान-दान हेतु


शुक्र अषाढ़ शुक्ल पूर्थणमा 25:50
ईत्तम पूर्थणमा, सत्य पूर्थणमा

28 श्रािण मास प्रारं भ, श्रािण में शाक िर्थजत, बृज मण्डल वहण्डोला
शवन श्रािण कृ ष्ण एकम 28:16
अरं भ
29
रवि श्रािण कृ ष्ण वद्वतीया - -

30
सोम श्रािण कृ ष्ण तृतीया 06:32 श्रािण प्रथम सोमिार,

31
मंगल श्रािण कृ ष्ण तृतीया 08:31 संकिी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोदय 20:41), मंगला गौरी व्रत
79 - 2018

यासश यत्न
भेष यासश: वष
ृ ब यासश: सभथन
ु यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भग
ॊू ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना

Red Coral Diamond Green Emerald Naturel Pearl Ruby Green


(Special) (Special) (Old Berma) Emerald
(Special) (Special) (Special)
(Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
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White Colour. Rati

तर
ु ा यासश: वत्ृ श् क यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भग
ूॊ ा ऩख
ु याज नीरभ नीरभ ऩख
ु याज

Diamond Red Coral Y.Sapphire B.Sapphire B.Sapphire Y.Sapphire


(Special) (Special) (Special) (Special) (Special) (Special)
10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 1050 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000
20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 1250 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000
30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000
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80 - 2018

श्रीकृष्ण फीसा मॊि


फकसी बी व्मत्क्त का जीवन तफ आसान फन जाता हैं जफ उसके ायों औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश
भें हों। जफ कोई व्मत्क्त का आकषाण दस
ु यो के उऩय एक ुम्फकीम प्रबाव डारता हैं, तफ रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना अधधक कष्ट व
ऩये शानी से सॊऩन्न हो जाते हैं। आज के बौततकता वादद मुग भें हय व्मत्क्त श्रीकृष्ण फीसा कव
के सरमे दस
ू यो को अऩनी औय खी ने हे तु एक प्रबावशासर ुॊफकत्व को श्रीकृष्ण फीसा कव को केवर
कामभ यखना अतत आवश्मक हो जाता हैं। आऩका आकषाण औय व्मत्क्तत्व ववशेष शुब भुहुता भें तनभााण फकमा
आऩके ायो ओय से रोगों को आकवषात कये इस सरमे सयर उऩाम हैं, जाता हैं। कव को ववद्वान
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र। क्मोफक बगवान श्री कृष्ण एक अरौफकव एवॊ ददवम कभाकाॊडी ब्राहभणों द्वाया शुब भुहुता
ॊुफकीम व्मत्क्तत्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के ऩूजन भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से ववसशष्ट
एवॊ दशान से आकषाक व्मत्क्तत्व प्राप्त होता हैं। तेजस्वी भॊिो द्वाया ससि प्राण-

श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के साथ व्मत्क्तको दृढ़ इछछा शत्क्त एवॊ उजाा प्रततत्ष्ठत ऩूणा त
ै न्म मुक्त कयके

प्राप्त होती हैं, त्जस्से व्मत्क्त हभेशा एक बीड भें हभेशा आकषाण का केंद्र तनभााण फकमा जाता हैं। त्जस के
पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्क्त
यहता हैं।
को शीि ऩूणा राब प्राप्त होता हैं।
मदद फकसी व्मत्क्त को अऩनी प्रततबा व आत्भववश्वास के स्तय भें
कव को गरे भें धायण कयने से
ववृ ि, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफ भें रयश्तो भें सध
ु ाय कयने की
वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हैं।
ईछछा होती हैं उनके सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र का ऩूजन एक सयर व सुरब
गरे भें धायण कयने से कव
भाध्मभ सात्रफत हो सकता हैं।
हभेशा रृदम के ऩास यहता हैं त्जस्से
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र ऩय अॊफकत शत्क्तशारी ववशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ
व्मत्क्त ऩय उसका राब अतत तीव्र
अॊको से व्मत्क्त को अद्भत
ु आॊतरयक शत्क्तमाॊ प्राप्त होती हैं जो व्मत्क्त एवॊ शीि ऻात होने रगता हैं।
को सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भें अग्रणणम फनाने भें सहामक ससि होती हैं।
भर
ू म भात्र: 2350 >>Order Now
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के ऩूजन व तनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
श्रीकृष्ण का आशीवााद प्राप्त कय सभाज भें स्वमॊ का अद्ववतीम स्थान स्थावऩत कयें ।
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र अरौफकक ब्रह्भाॊडीम उजाा का सॊ ाय कयता हैं, जो एक प्राकृत्त्त भाध्मभ से व्मत्क्त के बीतय
सद्दबावना, सभवृ ि, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्क्तशारी भाध्मभ हैं!
 श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के ऩूजन से व्मत्क्त के साभात्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रततष्ठा भें ववृ ि होती हैं।
 ववद्वानो के भतानुसाय श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग केंदद्रत कयने से व्मत्क्त फक ेतना शत्क्त जाग्रत
होकय शीि उछ स्तय को प्राप्तहोती हैं।
 जो ऩुरुषों औय भदहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना ाहते हैं औय उन्हें अऩनी औय आकवषात कयना ाहते
हैं। उनके सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र उत्तभ उऩाम ससि हो सकता हैं।
 ऩतत-ऩत्नी भें आऩसी प्रभ की ववृ ि औय सख
ु ी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र राबदामी होता हैं।

भल्
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81 - 2018

जैन धभाके ववसशष्ट मॊिो की सू ी


श्री ौफीस तीथंकयका भहान प्रबाववत भत्कायी मॊि श्री एकाऺी नारयमेय मॊि
श्री ोफीस तीथंकय मॊि सवातो बद्र मॊि
कल्ऩवऺ
ृ मॊि सवा सॊऩत्त्तकय मॊि
ध त
ॊ ाभणी ऩाश्वानाथ मॊि सवाकामा-सवा भनोकाभना ससविअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि)
ध त
ॊ ाभणी मॊि (ऩैंसदठमा मॊि) ऋवष भॊडर मॊि
ध त
ॊ ाभणी क्र मॊि जगदवल्रब कय मॊि
श्री क्रेश्वयी मॊि ऋवि ससवि भनोकाभना भान सम्भान प्रात्प्त मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि ऋवि ससवि सभवृ ि दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससवि भहामॊि ववषभ ववष तनग्रह कय मॊि
(अनब
ु व ससि सॊऩण
ू ा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)
श्री ऩद्मावती मॊि ऺुद्रो ऩद्रव तननााशन मॊि
श्री ऩद्मावती फीसा मॊि फह
ृ छ क्र मॊि
श्री ऩाश्वाऩद्मावती ह्ींकाय मॊि वॊध्मा शब्दाऩह मॊि
ऩद्मावती व्माऩाय ववृ ि मॊि भत
ृ वत्सा दोष तनवायण मॊि
श्री धयणेन्द्र ऩद्मावती मॊि काॊक वॊध्मादोष तनवायण मॊि
श्री ऩाश्वानाथ ध्मान मॊि फारग्रह ऩीडा तनवायण मॊि
श्री ऩाश्वानाथ प्रबक
ु ा मॊि रधुदेव कुर मॊि
बक्ताभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक) नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका ववसशष्ट मॊि
भणणबद्र मॊि उवसग्गहयॊ मॊि
श्री मॊि श्री ऩॊ भॊगर भहाश्रत
ृ स्कॊध मॊि
श्री रक्ष्भी प्रात्प्त औय व्माऩाय वधाक मॊि ह्ीॊकाय भम फीज भॊि
श्री रक्ष्भीकय मॊि वधाभान ववद्या ऩट्ट मॊि
रक्ष्भी प्रात्प्त मॊि ववद्या मॊि
भहाववजम मॊि सौबाग्मकय मॊि
ववजमयाज मॊि डाफकनी, शाफकनी, बम तनवायक मॊि
ववजम ऩतका मॊि बत
ू ादद तनग्रह कय मॊि
ववजम मॊि ज्वय तनग्रह कय मॊि
ससि क्र भहामॊि शाफकनी तनग्रह कय मॊि
दक्षऺण भख
ु ाम शॊख मॊि आऩत्त्त तनवायण मॊि
दक्षऺण भख
ु ाम मॊि शिभ
ु ख
ु स्तॊबन मॊि
मंत्र के ववषम भें अधधक जानकायी हे तु संऩका कयें ।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ODISHA)
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82 - 2018

घॊटाकणा भहावीय सवा ससवि भहामॊि को


स्थाऩीत कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩण
ू ा
होती हैं। सवा प्रकाय के योग बत
ू -प्रेत आदद उऩद्रव से
यऺण होता हैं। जहयीरे औय दहॊसक प्राणीॊ से सॊफॊधधत
बम दयू होते हैं। अत्ग्न बम, ोयबम आदद दयू होते
हैं।
दष्ु ट व असयु ी शत्क्तमों से उत्ऩन्न होने वारे
बम से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हैं।
मॊि के ऩज
ू न से साधक को धन, सख
ु , सभवृ ि,
ऎश्वमा, सॊतत्त्त-सॊऩत्त्त आदद की प्रात्प्त होती हैं।
साधक की सबी प्रकाय की सात्त्वक इछछाओॊ की ऩतू ता
होती हैं।
मदद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय
वशीकयण, भायण, उछ ाटन इत्मादद जाद-ू टोने वारे
प्रमोग फकमे गमें होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत्
नष्ट हो जाते हैं औय बववष्म भें मदद कोई प्रमोग
कयता हैं तो यऺण होता हैं।
कुछ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका
मॊि से जुडे अद्भत
ु अनब
ु व यहे हैं। मदद घय भें श्री
घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थावऩत फकमा हैं औय मदद कोई इषाा, रोब, भोह मा शित ु ावश मदद
अनधु त कभा कयके फकसी बी उद्देश्म से साधक को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हैं तो मॊि के
प्रबाव से सॊऩण
ू ा ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हैं, कबी-कबी शिु के द्वाया फकमा गमा अनधु त कभा
शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते दे खा हैं। भल्
ू म:- Rs. 2350 से Rs. 12700 तक उप्रब्ि
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83 - 2018

अभोघ भहाभत्ृ मुॊजम कव


अभोद्य् भहाभत्ृ मज
ॊु म कव व उल्रेणखत अन्म साभग्रीमों को शास्िोक्त ववधध-ववधान से ववद्वान
ब्राह्भणो द्वाया सवा राख भहाभत्ृ मंज
ु म भंत्र जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्वाया तनसभात फकमा जाता हैं इस
सरए कव अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं। >> Order Now

अभोद्य् भहाभत्ृ मुॊजम कव


अभोद्य् भहाभत्ृ मुॊजम
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, वऩता-भाता का नाभ, कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दक्षऺणा भाि: 10900

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न


ववशेष मॊि

हभायें महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने- ाॊदद-


ताम्फे भें आऩकी आवश्मक्ता के अनस
ु ाय
फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी
आवश्मक डडजाईन के अनुसाय २२ गेज
शुि ताम्फे भें अखॊडडत फनाने की ववशेष
सबी साईज एवॊ भल्
ू म व क्वासरदट के
सवु वधाएॊ उऩरब्ध हैं।
असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध हैं।
ो़
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भल्
ू म ऩय उऩरब्ध हैं। ज्मोततष कामा से जड
ु े
फध/ु फहन व यत्न व्मवसाम से जड
ु े रोगो के सरमे ववशेष भल्
ू म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म
सवु वधाएॊ उऩरब्ध हैं।
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84 - 2018

जर
ु ाई 2018 -ववशेष मोग
कामा ससवि मोग
06 प्रातः 06:55 से ऄगले ददन प्रातः 05:02 तक 18 प्रातः 08:21 से ऄगले ददन प्रातः 05:06 तक
08 प्रातः 05:02 से प्रातः 07:39 तक 21 प्रातः 05:07 से प्रातः 09:08 तक
10 प्रातः 05:03 से प्रातः 05:021 तक 23 प्रातः 05:08 से दोपहर 12:54 तक
11 प्रातः 05:03 से रात 12:44 तक 27 रात 12:34 से रातभर
सूयोदय से रात 03:38 तक
12 रात 09:55 से ऄगले ददन सांय 06:59 तक 29

त्रत्रऩुष्कय मोग (तीनगुना पर दामक ) वद्वऩुष्कय मोग (दौ गुना पर दामक )


10 प्रातः 05:03 से प्रातः 05:021 तक 29 प्रातः 04:20 से ऄगले ददन प्रातः 05:11 तक
ववघ्नकायक बद्रा
01 प्रात: 04:38 से सांय 05:55 तक (पाताल) 19 दोपहर 01:36 से रात्र 01:22 तक (पाताल)

04 रात 12:06 से ऄगले ददन दोप.12:42 तक (पृथ्िी) 22 रात 03:32 से ऄगले ददन सांय 04:24 तक (स्िगय)

08 दोपहर 12:16 से रात 11:31 तक (स्िगय) 26 रात 11:16 से ऄगले ददन दोप. 12:33 तक (पाताल)

11 दोपहर 03:34 से रात 01:50 तक (स्िगय) 31 रात 07:44 से ऄगले ददन प्रात: 08:43 तक (पृथ्िी)

16 प्रातः 08:04 से संध्या 06:41 तक (पृथ्िी)

मोग पर :
 कामा ससवि मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे तनत्श् त सपरता प्राप्त होती हैं, एसा शास्िोक्त व न हैं।
 वद्वऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हैं। एसा शास्िोक्त व न हैं।
 त्रिऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हैं। एसा शास्िोक्त व न हैं।
 शास्िोंक्त भत से ववर्घनकायक बद्रा मोग भें शुब कामा कयना वत्जात हैं।
 यववऩुष्म मोग अत्मॊत शुब मोग भाना गमा हैं।

दै तनक शब
ु एवॊ अशब
ु सभम ऻान तासरका
गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब)
वाय सभम अवधध सभम अवधध सभम अवधध
यवववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शुक्रवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शतनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
85 - 2018

ददन के ौघडडमे
सभम यवववाय सोभवाय भॊगरवाय फध
ु वाय गरु
ु वाय शक्र
ु वाय शतनवाय

06:00 से 07:30 ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ चल काल


07:30 से 09:00 चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ
09:00 से 10:30 लाभ शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग
10:30 से 12:00 ऄमृत रोग लाभ शुभ चल काल ईद्वेग
12:00 से 01:30 काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ चल
01:30 से 03:00 शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ
03:00 से 04:30 रोग लाभ शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत
04:30 से 06:00 ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ चल काल

यात के ौघडडमे
सभम यवववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शतनवाय

06:00 से 07:30 शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ


07:30 से 09:00 ऄमृत रोग लाभ शुभ चल काल ईद्वेग
09:00 से 10:30 चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ
10:30 से 12:00 रोग लाभ शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत
12:00 से 01:30 काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ चल
01:30 से 03:00 लाभ शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग
03:00 से 04:30 ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ शुभ चल काल
04:30 से 06:00 शुभ चल काल ईद्वेग ऄमृत रोग लाभ

शास्िोक्त भत के अनश
ु ाय मदद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शब
ु भह
ु ू ता मा शब
ु सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भें
सपरता प्राप्त होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हैं। इस सरमे दै तनक शब
ु सभम ौघडड़मा दे खकय प्राप्त फकमा जा
सकता हैं।

नोट: प्राम् ददन औय यात्रि के ौघडड़मे फक धगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हैं। प्रत्मेक ौघडड़मे फक अवधध
1 घॊटा 30 सभतनट अथाात डेढ़ घॊटा होती हैं। सभम के अनुसाय ौघडड़मे को शुबाशुब तीन बागों भें फाॊटा जाता हैं, जो क्रभश्
शब
ु , भध्मभ औय अशब
ु हैं।

ौघडडमे के स्वाभी ग्रह * हय कामा के सरमे शब


ु /अभत
ृ /राब का
शुब ौघडडमा भध्मभ ौघडडमा अशुब ौघडड़मा ौघडड़मा उत्तभ भाना जाता हैं।
ौघडडमा स्वाभी ग्रह ौघडडमा स्वाभी ग्रह ौघडडमा स्वाभी ग्रह
शुब गुरु य शुक्र उद्बेग सूमा * हय कामा के सरमे र/कार/योग/उद्वेग
अभत
ृ द्र
ॊ भा कार शतन का ौघडड़मा उध त नहीॊ भाना जाता।
राब फुध योग भॊगर
86 - 2018

ददन फक होया - सम
ू ोदम से सूमाास्त तक
वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ

यवववाय सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन
सोभवाय ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा
भॊगरवाय भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र
फध
ु वाय फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध

शक्र
ु वाय शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु
शतनवाय शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र

यात फक होया – सम
ू ाास्त से सम
ू ोदम तक
यवववाय गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध

सोभवाय शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु

भॊगरवाय शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र

फध
ु वाय सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन
गुरुवाय ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा
शक्र
ु वाय भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र
शतनवाय फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर
होया भुहूता को कामा ससवि के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अ क
ू भाना जाता हैं, ददन-यात के २४ घॊटों भें शुब-अशुब
सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससवि के सरए प्रमोग कयना ादहमे।

ववद्वानो के भत से इर्छित कामा शसवि के शरए ग्रह से संफधं धत होया का चन


ु ाव कयने से ववशेष राब
प्राप्त होता हैं।
 सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हैं।

 द्र
ॊ भा फक होया सबी कामों के सरमे उत्तभ होती हैं।

 भॊगर फक होया कोटा -क ये ी के कामों के सरमे उत्तभ होती हैं।

 फुध फक होया ववद्या-फुवि अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हैं।

 गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ वववाह के सरमे उत्तभ होती हैं।

 शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हैं।

 शतन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊधधत कामा के सरमे उत्तभ होती हैं।


87 - 2018

सवा योगनाशक मॊि/कव


भनुष्म अऩने जीवन के ववसबन्न सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता
हैं। उध त उऩ ाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्क्त सभर जाती हैं, रेफकन कबी-कबी साध्म योग
होकय बी असाध्म होजाते हैं, मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हैं। हजायो राखो रुऩमे ख ा कयने ऩय
बी अधधक राब प्राप्त नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्वारा ददजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय
सात्रफत होती हैं, एसी त्स्थती भें राब प्रात्प्त के सरमे व्मत्क्त एक डॉक्टय से दस
ू ये डॉक्टय के क्कय रगाने
को फाध्म हो जाता हैं।
बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊतत हे तु ववसबन्न आमव
ु ेय औषधो के
अततरयक्त मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भें कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक
प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था। फुविजीवो के भत से जो व्मत्क्त जीवनबय अऩनी ददन माा ऩय तनमभ,
सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हैं, एसे व्मत्क्त को ववसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती
हैं। रेफकन आज के फदरते मग
ु भें एसे व्मत्क्त बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते ददख जाते हैं। क्मोफक सभग्र
सॊसाय कार के अधीन हैं। एवॊ भत्ृ मु तनत्श् त हैं त्जसे ववधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता,
रेफकन योग होने फक त्स्थती भें व्मत्क्त योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हैं। इस सरमे मंत्र
भंत्र एवं तंत्र के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्क्त योगो से भुत्क्त ऩाने का मा उसके प्रबावो
को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हैं।
ज्मोततष विद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को
उजागय कय सकते हैं। ज्मोततष शास्ि के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हैं, जहा
आधतु नक ध फकत्सा शास्ि अऺभ होजाता हैं वहा ज्मोततष शास्ि द्वाया योग के भूर(जड़) को ऩकड कय
उसका तनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससि होता हैं।
हय व्मत्क्त भें रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हैं, त्जसका तनमभीत ववकास क्रभ फि तयीके से
होता यहता हैं। जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भें ऩरयवतान होता है मा ववखॊडडन होता हैं तफ व्मत्क्त के शयीय
भें स्वास्थ्म सॊफॊधी ववकायो उत्ऩन्न होते हैं। एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हैं।
त्जस्से योगो के होने के कायण व्मत्क्त के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गो य त्स्थती से प्राप्त
होता हैं।
सवा योग तनवायण कव एवॊ भहाभत्ृ मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्क्त के जन्भाॊग भें त्स्थत कभजोय
एवॊ ऩीडडत ग्रहो के अशब
ु प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩव
ू क
ा फकमा जासकता हैं। जेसे हय
व्मत्क्त को ब्रह्भाॊड फक उजाा एवॊ ऩथ्
ृ वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हैं दठक उसी प्रकाय कव एवॊ
मॊि के भाध्मभ से ब्रह्भाॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्क्त को सकायात्भक उजाा प्राप्त होती हैं
त्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुक्त कयने हे तु सहामता सभरती हैं।
योग तनवायण हे तु भहाभत्ृ मॊुजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हैं। त्जस्से दहन्द ू सॊस्कृतत का प्राम् हय
व्मत्क्त भहाभत्ृ मुॊजम भॊि से ऩरयध त हैं।
88 - 2018

कवच के राब :
 एसा शास्िोक्त व न हैं त्जस घय भें भहाभत्ृ मॊुजम मॊि स्थावऩत होता हैं वहा तनवास कताा हो नाना
प्रकाय फक आधध-व्माधध-उऩाधध से यऺा होती हैं।
 ऩण
ू ा प्राण प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा ैतन्म मक्
ु त सवा योग तनवायण कव फकसी बी उम्र एवॊ जातत धभा के
रोग ाहे स्िी हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हैं।
 जन्भाॊगभें अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रततकूरता से योग उतऩन्न होते हैं।
 कुछ योग सॊक्रभण से होते हैं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक अतनमसभतता औय अशुितासे उत्ऩन्न होते हैं।
कव एवॊ मॊि द्वाया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नष्ट कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण
प्राप्त कयने हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हैं।
 आज के बौततकता वादी आधुतनक मुगभे अनेक एसे योग होते हैं, त्जसका उऩ ाय ओऩये शन औय दवासे
बी कदठन हो जाता हैं। कुछ योग एसे होते हैं त्जसे फताने भें रोग दह फक ाते हैं शयभ अनुबव कयते हैं
एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि राबादातम ससि होता हैं।
 प्रत्मेक व्मत्क्त फक जेसे-जेसे आमु फढती हैं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हैं। त्जसके
साथ अनेक प्रकाय के ववकाय ऩैदा होने रगते हैं एसी त्स्थती भें उऩ ाय हे तु सवायोगनाशक कव एवॊ
मॊि परप्रद होता हैं।
 त्जस घय भें वऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक दह नऺिभे जन्भ रेते हैं, तफ उसकी
भाता के सरमे अधधक कष्टदामक त्स्थती होती हैं। उऩ ाय हे तु भहाभत्ृ मॊुजम मॊि परप्रद होता हैं।
 त्जस व्मत्क्त का जन्भ ऩरयधध मोगभे होता हैं उन्हे होने वारे भत्ृ मु तुल्म कष्ट एवॊ होने वारे योग,
ध त
ॊ ा भें उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि शब
ु परप्रद होता हैं।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुक्त सवा योग तनवायण कव एवॊ मॊि के फाये भें अधधक
जानकायी हे तु सॊऩका कयें । >> Shop Online | Order Now

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types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your
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89 - 2018

भंत्र शसि कवच


मंत्र वसि किच को विशेष प्रयोजन में ईपयोग के वलए और शीघ्र प्रभाि शाली बनाने के वलए तेजस्िी मंत्रो द्वारा शुभ महूतय में शुभ
ददन को तैयार दकये जाते है । ऄलग-ऄलग किच तैयार करने के वलए ऄलग-ऄलग तरह के मंत्रो का प्रयोग दकया जाता है ।
 क्यों चुने मंत्र वसि किच?  ईपयोग में असान कोइ प्रवतबन्ध नहीॊ  कोइ विशेष वनवत-वनयम नहीं  कोइ बुरा प्रभाि नहीं

भंत्र शसि कवच सधू च


राज राजेिरी किच 11000 विष्णु बीसा किच
Raj Rajeshwari Kawach ………..……………………… Vishnu Visha Kawach ………..………………………... 2350
ऄमोघ महामृत्युंजय किच रामभद्र बीसा किच
Amogh Mahamrutyunjay Kawach ……………………. 10900 Ramabhadra Visha Kawach ………..………………… 2350
दस महाविद्या किच कु बेर बीसा किच
Dus Mahavidhya Kawach ………..……………………. 7300 Kuber Visha Kawach ………..…………………………. 2350
श्री घंटाकणय महािीर सिय वसवि प्रद किच गरुड बीसा किच
Shri Ghantakarn Mahavir Sarv Siddhi Prad Kawach.. 6400 Garud Visha Kawach ………..………………………… 2350
सकल वसवि प्रद गायत्री किच लक्ष्मी बीसा किच
Sakal Siddhi Prad Gayatri Kawach …………………... 6400 Lakshmi Visha Kawach ……..…………………………. 2350
निदुगाय शवि किच ससह बीसा किच
Navdurga Shakiti Kawach ………..…………………… 6400 Sinha Visha Kawach ………..…………………………. 2350
रसायन वसवि किच निायण बीसा किच
Rasayan Siddhi Kawach ………..…………………….. 6400 Narvan Visha Kawach ………..……………………….. 2350
पंचदेि शवि किच संकट मोवचनी कावलका वसवि किच
Pancha Dev Shakti Kawach ………..…………………. 6400 Sankat Mochinee Kalika Siddhi Kawach ………..…… 2350
सिय कायय वसवि किच राम रक्षा किच
Sarv Karya Siddhi Kawach ………..………………….. 5500 Ram Raksha Kawach ………..………………………… 2350
सुिणय लक्ष्मी किच नारायण रक्षा किच
Suvarn Lakshmi Kawach ………..……………………. 4600 Narayan Raksha Kavach .……………………………... 2350
स्िणायकषयण भैरि किच हनुमान रक्षा किच
Swarnakarshan Bhairav Kawach ………..…………… 4600 Hanuman Raksha Kawach ………..………………….. 2350
कालसपय शांवत किच भैरि रक्षा किच
Kalsharp Shanti Kawach ………..…………………….. 3700 Bhairav Raksha Kawach ………………………………. 2350
विलक्षण सकल राज िशीकरण किच शवन साड़ेसाती और ढ़ैया कि वनिारण किच
Vilakshan Sakal Raj Vasikaran Kawach ………..…… 3250 Shani Sadesatee aur Dhaiya Kasht Nivaran Kawach ….. 2350
आि वसवि किच श्रावपत योग वनिारण किच
Isht Siddhi Kawach ………..…………………………… 2800 Sharapit Yog Nivaran Kawach ……..………………… 1900
परदेश गमन और लाभ प्रावि किच विष योग वनिारण किच
Pardesh Gaman Aur Labh Prapti Kawach ………...... 2350 Vish Yog Nivaran Kawach ……..……………………. 1900
श्रीदुगाय बीसा किच सियजन िशीकरण किच
Durga Visha Kawach ………..…………………………. 2350 Sarvjan Vashikaran Kawach ……..…………………… 1450
कृ ष्ण बीसा किच वसवि विनायक किच
Krushna Bisa Kawach ………..………………………... 2350 Siddhi Vinayak Ganapati Kawach ……..…………….. 1450
ऄि विनायक किच सकल सम्मान प्रावि किच
Asht Vinayak Kawach ………..………………………... 2350 Sakal Samman Praapti Kawach ……..………………. 1450
अकषयण िृवि किच स्िप्न भय वनिारण किच
Aakarshan Vruddhi Kawach ……..…………………… 1450 Swapna Bhay Nivaran Kawach ……..……………….. 1050
90 - 2018

िशीकरण नाशक किच सरस्िती किच (कक्षा +10 के वलए)


Vasikaran Nashak Kawach ……..…………………….. 1450 Saraswati Kawach (For Class +10) ………………….. 1050
प्रीवत नाशक किच सरस्िती किच (कक्षा 10 तकके वलए)
Preeti Nashak Kawach ……..…………………………. 1450 Saraswati Kawach (For up to Class 10) …………….. 910
चंडाल योग वनिारण किच िशीकरण किच (2-3 व्यविके वलए)
Chandal Yog Nivaran Kawach ……..………………… 1450 Vashikaran Kawach For (For 2-3 Person) ……………. 1250
ग्रहण योग वनिारण किच पत्नी िशीकरण किच
Grahan Yog Nivaran Kawach ……..………………….. 1450 Patni Vasikaran Kawach ………………………………... 820
मांगवलक योग वनिारण किच (कु जा योग ) पवत िशीकरण किच
Magalik Yog Nivaran Kawach (Kuja Yoga) …………. 1450 Pati Vasikaran Kawach …………………………………. 820
ऄि लक्ष्मी किच िशीकरण किच ( 1 व्यवि के वलए)
Asht Lakshmi Kawach ……..………………………... 1250 Vashikaran Kawach (For 1 Person) …………………… 820
अकवस्मक धन प्रावि किच सुदशयन बीसा किच
Akashmik Dhan Prapti Kawach ……..……………….. 1250 Sudarshan Visha Kawach ……..…………………...…... 910
स्पे.व्यापार िृवि किच महा सुदशयन किच
Special Vyapar Vruddhi Kawach ……..……………… 1250 Mahasudarshan Kawach ……..……………...…………. 910
धन प्रावि किच तंत्र रक्षा किच
Dhan Prapti Kawach ……..…………………………... 1250 Tantra Raksha Kawach …………………………………. 910
कायय वसवि किच िशीकरण किच (2-3 व्यविके वलए)
Karya Siddhi Kawach ……..…………………………… 1250 Vashikaran Kawach For (For 2-3 Person) ……………. 1250
भूवमलाभ किच पत्नी िशीकरण किच
Bhumilabh Kawach ……..……………………………. 1250 Patni Vasikaran Kawach ………………………………... 820
निग्रह शांवत किच पवत िशीकरण किच
Navgrah Shanti Kawach ……..……………………….. 1250 Pati Vasikaran Kawach …………………………………. 820
संतान प्रावि किच िशीकरण किच ( 1 व्यवि के वलए)
Santan Prapti Kawach ……..………………………….. 1250 Vashikaran Kawach (For 1 Person) …………………… 820
कामदेि किच सुदशयन बीसा किच
Kamdev Kawach ……..………………………………. 1250 Sudarshan Visha Kawach ……..…………………...…... 910
हंस बीसा किच महा सुदशयन किच
Hans Visha Kawach ……..…………………………….. 1250 Mahasudarshan Kawach ……..……………...…………. 910
पदौन्नवत किच तंत्र रक्षा किच
Padounnati Kawach ……..…………………………. 1250 Tantra Raksha Kawach …………………………………. 910
ऋण / कजय मुवि किच वत्रशूल बीसा किच
Rin / Karaj Mukti Kawach ……..……………………… 1250 Trishool Visha Kawach ……..…………………………... 910
शत्रु विजय किच व्यापर िृवि किच
Shatru Vijay Kawach ………………………………….. 1050 Vyapar Vruddhi Kawach ………………………………... 910
वििाह बाधा वनिारण किच सिय रोग वनिारण किच
Vivah Badha Nivaran Kawach ………………………... 1050 Sarv Rog Nivaran Kawach ……………………………... 910
स्िवस्तक बीसा किच शारीररक शवि िधयक किच
Swastik Visha Kawach ……..…………………………. 1050 Sharirik Shakti Vardhak Kawach ..……………………... 910
मवस्तष्क पृवि िधयक किच वसि शुक्र किच
Mastishk Prushti Vardhak Kawach …………………… 820 Siddha Shukra Kawach …………………………………. 820
91 - 2018

िाणी पृवि िधयक किच वसि शवन किच


Vani Prushti Vardhak Kawach ………………………… 820 Siddha Shani Kawach …………………………………... 820
कामना पूर्थत किच वसि राहु किच
Kamana Poorti Kawach ………………………………. 820 Siddha Rahu Kawach …………………………………… 820
विरोध नाशक किच वसि के तु किच
Virodh Nashan Kawach ………………………………. 820 Siddha Ketu Kawach ……………………………………. 820
वसि सूयय किच रोजगार िृवि किच
Siddha Surya Kawach …………………………………. 820 Rojgar Vruddhi Kawach ………………………………… 730
वसि चंद्र किच विघ्न बाधा वनिारण किच
Siddha Chandra Kawach ……………………………… 820 Vighna Badha Nivaran Kawah …………………………. 730
वसि मंगल किच (कु जा) नज़र रक्षा किच
Siddha Mangal Kawach (Kuja) ……………………… 820 Najar Raksha Kawah ……………………………………. 730
वसि बुध किच रोजगार प्रावि किच
Siddha Bhudh Kawach ………………………………… 820 Rojagar Prapti Kawach …………………………………. 730
वसि गुरु किच दुभायग्य नाशक किच
Siddha Guru Kawach ………………………………..… 820 Durbhagya Nashak ……………………………………… 640

उऩयोक्त कव के अरावा अन्म सभस्मा ववशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्देश्म ऩतू ता हे तु कव का तनभााण फकमा जाता हैं। कव के ववषम भें
अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । *कव भाि शब
ु कामा मा उद्देश्म के सरमे >> Shop Online | Order Now

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92 - 2018

Gemstone Price List


NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Yellow Sapphire Bangkok (फैंकोक ऩख
ु याज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) 1000.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फैंकोक नीरभ) 100.00 150.00 190.00 550.00 1000.00 & above
Ruby (भाणणक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भाणणक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भाणणक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोतत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 यतत तक) (रार भूॊगा) 125.00 190.00 280.00 370.00 460.00 & above
Red Coral (4 यतत से उऩय)( रार भूॊगा) 190.00 280.00 370.00 460.00 550.00 & above
White Coral (सफ़ेद भूॊगा) 73.00 100.00 190.00 280.00 460.00 & above
Cat’s Eye (रहसुतनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Cat’s Eye ODISHA(उडडसा रहसतु नमा) 280.00 460.00 730.00 1000.00 1900.00 & above
Gomed (गोभेद) 19.00 28.00 45.00 100.00 190.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 190.00 280.00 460.00 730.00 1000.00 & above
Zarakan (जयकन) 550.00 730.00 820.00 1050.00 1250.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (फफ़योजा) 100.00 145.00 190.00 280.00 460.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Real Topaz (उडडसा ऩुखयाज/टोऩज) 100.00 190.00 280.00 460.00 640.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 100.00 190.00 280.00 460.00 640.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे रा) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Opal (उऩर) 28.00 46.00 90.00 190.00 460.00 & above
Garnet (गायनेट) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तभ ु रा ीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमका ान्त भणण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 10.00 19.00 28.00 55.00 100.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 28.00 45.00 100.00 190.00 & above
Moon Stone ( न्द्रकान्त भणण) 12.00 19.00 28.00 55.00 190.00 & above
Rock Crystal (स्फ़दटक) 19.00 46.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयग ) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
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93 - 2018

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YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -

Shastrokt Yantra

11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga


12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
26 YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
94 - 2018

YANTRA LIST EFFECTS

43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets


44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA)
Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose
Yantra Available @:- Rs- 325 to 12700 and Above…..
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95 - 2018

सू ना
 ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के अधधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं।

 रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन वव ायो से सहभत हों।

 नात्स्तक/ अववश्वासु व्मत्क्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं।

 ऩत्रिका भें प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्क्त ववशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हैं।

 प्रकासशत रेख ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मदद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तववक जीवन से भेर होता हैं तो मह भाि
एक सॊमोग हैं।

 प्रकासशत सबी रेख बायततम आध्मात्त्भक शास्िों से प्रेरयत होकय सरमे जाते हैं। इस कायण इन ववषमो फक
सत्मता अथवा प्राभाणणकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं।

 अन्म रेखको द्वाया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभाणणकता एवॊ प्रबाव फक त्जन्भेदायी कामाारम मा
सॊऩादक फक नहीॊ हैं। औय नाहीॊ रेखक के ऩते दठकाने के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक
फकसी बी प्रकाय से फाध्म हैं।

 ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भें ऩाठक का अऩना
ववश्वास होना आवश्मक हैं। फकसी बी व्मत्क्त ववशेष को फकसी बी प्रकाय से इन ववषमो भें ववश्वास कयने ना
कयने का अॊततभ तनणाम स्वमॊ का होगा।

 ऩाठक द्वारा फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।

 हभाये द्वारा ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हैं। हभ फकसी बी
व्मत्क्त ववशेष द्वारा प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी त्जन्भेदायी नदहॊ रेते हैं।

 मह त्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्क्त फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन ववषमो भें
नैततक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी तनमभों के णखराप कोई व्मत्क्त मदद नीजी स्वाथा ऩूतता हे तु प्रमोग कताा हैं
अथवा प्रमोग के कयने भे िदु ट होने ऩय प्रततकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं।

 हभाये द्वारा ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग फकमे
हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्वारा तनत्श् त सपरता प्राप्त हुई हैं।

 ऩाठकों फक भाॊग ऩय एक दह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का अधधकाय यखता हैं। ऩाठकों को एक रेख के
ऩून् प्रकाशन से राब प्राप्त हो सकता हैं।

 अधधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं।

(सबी वववादो केशरमे केवर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)


96 - 2018

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ु त्व ज्मोततष ऩत्रिका जर
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हभाया उद्देश्म
वप्रम आत्त्भम
फॊधु/ फदहन
जम गरु
ु दे व
जहाॉ आधुतनक ववऻान सभाप्त हो जाता हैं। वहाॊ आध्मात्त्भक ऻान प्रायॊ ब
हो जाता हैं, बौततकता का आवयण ओढे व्मत्क्त जीवन भें हताशा औय तनयाशा भें
फॊध जाता हैं, औय उसे अऩने जीवन भें गततशीर होने के सरए भागा प्राप्त नहीॊ हो
ऩाता क्मोफक बावनाए दह बवसागय हैं, त्जसभे भनुष्म की सपरता औय
असपरता तनदहत हैं। उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेष्ठकय
सपरता हैं। सपरता को प्राप्त कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ अधधकाय हैं। ईसी
सरमे हभायी शब
ु काभना सदै व आऩ के साथ हैं। आऩ अऩने कामा-उद्देश्म एवॊ
अनक
ु ू रता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्क्त से ऩण
ू ा प्राण-
प्रततत्ष्ठत ध ज वस्तु का हभें शा प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे
हभाया उद्देश्म महीॊ हे की शास्िोक्त ववधध-ववधान से ववसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्वाया
ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत ऩण
ू ा ैतन्म मक्
ु त सबी प्रकाय के मन्ि- कव एवॊ शब

परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहो ाने का हैं।
सम
ू ा की फकयणे उस घय भें प्रवेश कयाऩाती हैं।
जीस घय के णखड़की दयवाजे खुरे हों।

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