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Gurutva Jyotish July-2018
Gurutva Jyotish July-2018
Gurutva Jyotish July-2018
com
ध त
ॊ न जोशी (स्वतॊि) रेखकों का स्वागत
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोततष ववबाग हैं...
गुरुत्व कामाारम
गरु
ु त्व ज्मोततष भाससक ई-ऩत्रिका
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
(ODISHA) INDIA
भें आऩके द्वारा सरखे गमे भॊि,
पोन
91+9338213418,
मॊि, तॊि, ज्मोततष, अॊक ज्मोततष,
91+9238328785, वास्तु, पेंगशई
ु , टै यों, ये की एवॊ
ईभेर
gurutva.karyalay@gmail.com, अन्म आध्मात्त्भक ऻान वधाक
रेख को प्रकासशत कयने हे तु बेज
gurutva_karyalay@yahoo.in,
वेफ
www.gurutvakaryalay.com सकते हैं।
www.gurutvakaryalay.in
http://gk.yolasite.com/ अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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ऩत्रिका प्रस्तुतत BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA
ध त
ॊ न जोशी, Call Us: 91 + 9338213418,
गुरुत्व कामाारम 91 + 9238328785
पोटो ग्राफपक्स Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
ध त
ॊ न जोशी,
gurutva.karyalay@gmail.com
गुरुत्व कामाारम
अनुक्रभ
7 32
8 33
11 35
?
13 36
प 14 38
17 40
18 43
20 45
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21 46
22 51
प 24 54
26 56
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30 60
31 प 61
?
फॊध/ु फदहन
जम गुरुदे व
कौन है गुरु?
दहन्द ू सभ्मता का इततहास त्जतना ऩुयातन है , गुरु शब्द बी उतना ही ऩुयातन है ।
आजके आधतु नक मुग भें गुरु शब्द का अथा ाहे त्जतना फदरा हो, रेफकन ऩायॊ ऩरयक दहन्द ू धभा शास्िों-ग्रॊथों भें गुरु
शब्द की भदहभा अऩाय हैं, दहन्द ू धभा शास्िों-ग्रॊथों गुरु को बगवान के सभान मा बगवान से बी अधधक भहत्व
ददमा गमा हैं।
सयर शब्दों भें वणान कये तो भनुष्म को छोटा हो मा फड़ा फकसे बी कामा को सीखने के सरए फकसी ना फकसी
रुऩ भें गुरु की आवश्मक्ता होती हैं। फपय ाहे वह कामा बौततक जीवन से जुड़ा हो मा आध्मात्त्भक जीवन से से
जुड़ा हो, वह कामा गुरुकृऩा के त्रफना सॊऩन्न नहीॊ हो सकता।
सयर बाषा भें गुरु की व्माख्मा कयनी हो, तो हभाये धभाग्रॊथ-शास्ि एवॊ विद्वानों ने गुरु को ऻान का बॊडाय
कहा है ।
मदद हभ गुरु शब्द का शात्ब्दक अथा सभझे तो, ‘गु' मानी अॊधकाय, ‘रु' मानी प्रकाश होता हैं,
अथाात ् जो अऻान के अॊधकाय से तनकारकय ऻान रूऩी प्रकाश की ओय अग्रस्त कयता है , वह गुरु है ।
भनुष्म के जीवन भें अनेक गुरु होते हैं। छोटे फारको को अऺय ऻान दे ने वारे सशऺक/सशक्षऺका को ‘विद्या गुरु' कहा
जाता है । उसी प्रकाय उऩनमन-सॊस्काय, वववाह-सॊस्काय, इत्मादद धासभाक षोडश सॊस्काय कयने वारे को कुरगुरु मा
कुर ऩुयोदहत कहा जाता है । नौकयी-व्माऩाय-कामा ऺेि से सॊफॊधधत ऻान दे ने वारे को व्मवसाम गुरु कहा जाता है ।
इसी प्रकाय अध्मात्भ की ओय अग्रस्त कयने वारे को अध्मात्भ गुरु कहा जाता है ।
इनके अततरयक्त बी जीवन भें अनेक गुरु होते हैं। त्जससे बी हभ प्रत्मऺ-अप्रत्मऺ रूऩ भें कुछ बी सीखते हैं,
दहन्द ू सॊस्कृतत भें उसे गरु
ु कहा जाता है ।
भहाऩरु
ु षो के भतानश
ु ाय व्मत्क्त को अऩने जीवन भें ऩण
ू त
ा ा फकसी सद्गरु
ु गरु
ु की शयण भें जाने से प्राप्त हो
सकती हैं। बायतीम धभाशास्िो भें गरु
ु को ब्रह्भ स्वरुऩ कहाॊ गमा हैं।
फकसी सद्द गरु
ु के प्राप्त होने ऩय व्मत्क्त के सबी धभा-अधभा, ऩाऩ-ऩण्
ु म आदद सभाप्त हो जाते हैं।
मस्म स्भयणभािेण ऻानभुत्ऩद्यते स्वमभ ् ।
स् एव सवासम्ऩत्त्त् तस्भात्सॊऩूजमेद् गुरुभ ् ।।
अथाात: त्जनके स्भयण भाि से ऻान अऩने आऩ प्रकट होने रगता है औय वे ही सवा सम्ऩदा रूऩ हैं, अत् श्री
गरु
ु दे व की ऩज
ू ा कयनी ादहए।
हभाये ऋवष भतु न के भतानश
ु ाय गरु
ु उसे भानना ादहमे जो
प्रेयक् सू कश्वैव वा को दशाकस्तथा ।
सशऺको फोधकश् व
ै षडेते गुयव् स्भत
ृ ा् ॥
अथाात: प्रेयणा दे नेवारे, सू न दे नेवारे, स फतानेवारे, सही यास्ता ददखानेवारे, सशऺण दे नेवारे, औय फोध
कयानेवारे मे सफ गुरु सभान हैं।
गुरुशब्द की ऩरयबाषा शब्दो भें सरखना मा फताना एक भूखत
ा ा हैं एक ओछाऩन हैं। क्मोफक गुरु की
भदहभा अनॊत हैं अऩाय हैं। इस सरमे कत्रफयजी ने सरखा हैं।
गुरु गोववॊद दोनो खड़े काके रागू ऩाॊव,
गुरु फसरहायी आऩने गोववॊद ददमो फताए।
गुरु की तुरना फकसी अन्म से कयना कबी बी सॊबव नहीॊ हैं। इस सरमे शास्ि कहते हैं।
जो गुरु ऄविद्या, असॊमभ, अना ाय, कदा ाय, दयु ा ाय, ऩाऩा ाय आदद से भत्ु क्त ददराता है , वही गुरु नभस्काय
मोग्म है ।
ध त
ॊ न जोशी
6 - 2018
प प प
, प इ प
प इ प प
गुरु प्राथाना
गुरुब्राह्भा ग्रुरुववाष्ण्ु गरु
ु दे वो भहे श्वय् । त्वभेव भाता वऩता त्वभेव त्वभेव
गुरु् साऺात ् ऩयॊ ब्रह्भ तस्भै श्री गुयवे नभ् ॥ फॊधश्ु सखा त्वभेव। त्वभेव विद्या द्रववणॊ त्वभेव
त्वभेव सवं भभ दे व दे व।।
बावाथा: गुरु ब्रह्भा हैं, गुरु ववष्णु हैं, गुरु दह शॊकय हैं;
गुरु दह साऺात ् ऩयब्रह्भ हैं; एसे सद्गुरु को नभन । ब्रह्भानॊदॊ ऩयभसख
ु दॊ केवरॊ ऻानभतू ता द्वंद्वातीतॊ
गगनसदृशॊ तत्वभस्माददरक्ष्मभ ् । एकॊ तनत्मॊ
ध्मानभर
ू ॊ गरु
ु भतूा त् ऩज
ू ाभर
ू भ गरु
ु य ऩदभ ्। ववभरभ रॊ सवाधीसाक्षऺबत
ु ॊ बावातीतॊ त्रिगण
ु यदहतॊ
भॊिभर
ू ॊ गरु
ु यवााक्मॊ भोऺभर
ू ॊ गरु
ु य कृऩा।। सद्गुरुॊ तॊ नभासभ ॥
बावाथा: गुरु की भतू ता ध्मान का भर
ू कायण है,
बावाथा: ब्रह्भा के आनॊदरुऩ ऩयभ ् सख
ु रुऩ,
गरु
ु के यण ऩज
ू ा का भर
ू कायण हैं, वाणी
ऻानभतू ता, द्वंद्व से ऩये , आकाश जैसे तनरेऩ, औय
जगत के सभस्त भॊिों का औय गरु
ु की कृऩा
सक्ष्
ू भ "तत्त्वभसस" इस ईशतत्त्व की अनब
ु तू त
भोऺ प्रात्प्त का भर
ू कायण हैं।
दह त्जसका रक्ष्म है; अद्ववतीम, तनत्म ववभर,
अखण्डभण्डराकायॊ व्माप्तॊ मेन या यभ ्। अ र, बावातीत, औय त्रिगुणयदहत - ऐसे
तत्ऩदॊ दसशातॊ मेन तस्भै श्रीगुयवे नभ्।। सद्गुरु को भैं प्रणाभ कयता हूॉ ।
गुवष्ा टकभ ्
शयीयॊ सुरूऩॊ तथा वा करिॊ, भनश् ेन रग्नॊ गयु ोयतिऩद्मे, सदबाग्म से क्मा राब?
मशश् ारु ध िॊ धनॊ भेरु तुल्मभ ्। तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥८॥ (६) दानवत्ृ त्त के प्रताऩ से त्जनकी कीतता
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, गयु ोयष्टकॊ म् ऩठे त्ऩयु ामदे ही, ायो ददशा भें व्माप्त हो, अतत उदाय गरु
ु की
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥१॥ मततबऩ
ूा ततब्राह्भ ायी गेही। सहज कृऩा दृत्ष्ट से त्जन्हें सॊसाय के साये
करिॊ धनॊ ऩुि ऩौिाददसवं, सख
रभेद्वात्छछताथॊ ऩदॊ ब्रह्भसॊऻ,ॊ ु -एश्वमा हस्तगत हों, फकॊ तु उनका भन
गह
ृ ो फान्धवा् सवाभेतवि जातभ ्। गयु ोरुक्तवाक्मे भनो मस्म रग्नभ ्॥९॥ मदद गरु
ु के श्री यणों भें आसक्तबाव न
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, यखता हो तो इन साये एशवमों से क्मा राब?
॥इतत श्रीभद अद्य शॊकया ामाववयध तभ ्
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥२॥ गव
ु ष्ा टकभ ् सॊऩण
ू भ
ा ्॥
(७) त्जनका भन बोग, मोग, अश्व, याज्म,
षड़ॊगाददवेदो भुखे शास्िववद्या, बावाथा: (१) मदद शयीय रूऩवान हो, ऩत्नी स्िी-सख
ु औय धन बोग से कबी वव सरत
कववत्वादद गद्मॊ सऩ
ु द्मॊ कयोतत। बी रूऩसी हो औय सत्कीतता ायों ददशाओॊ भें
न होता हो, फपय बी गरु
ु के श्री यणों के प्रतत
ववस्तरयत हो, सभ
ु ेरु ऩवात के तल्
ु म अऩाय
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, आसक्त न फन ऩामा हो तो भन की इस
धन हो, फकॊ तु गरु
ु के श्री यणों भें मदद भन
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥३॥ अटरता से क्मा राब?
आसक्त न हो तो इन सायी उऩरत्ब्धमों से
ववदे शष
े ु भान्म् स्वदे शष
े ु धन्म्, क्मा राब?
(८) त्जनका भन वन मा अऩने ववशार
सदा ायवत्ृ तेषु भत्तो न ान्म्। (२) मदद ऩत्नी, धन, ऩि
ु -ऩौि, कुटुॊफ, गह
ृ बवन भें , अऩने कामा मा शयीय भें तथा
भनश् ेन रग्नॊ गयु ोयतिऩद्मे, एवॊ स्वजन, आदद प्रायब्ध से सवा सर
ु ब हो
अभल्
ू म बण्डाय भें आसक्त न हो, ऩय गरु
ु के
फकॊ तु गरु
ु के श्री यणों भें मदद भन आसक्त
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥४॥ श्री यणों भें बी वह भन आसक्त न हो ऩामे
न हो तो इस प्रायब्ध-सख
ु से क्मा राब?
ऺभाभण्डरे बूऩबूऩरफब्ृ दै ्, तो इन सायी अनासत्क्त्तमों का क्मा राब?
(३) मदद वेद एवॊ ६ वेदाॊगादद शास्ि त्जन्हें
सदा सेववतॊ मस्म ऩादायववन्दभ ्।
कॊठस्थ हों, त्जनभें सन्
ु दय काव्म तनभााण की (९) जो मतत, याजा, ब्रह्भ ायी एवॊ गह
ृ स्थ
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, प्रततबा हो, फकॊ तु उनका भन मदद गरु
ु के इस गरु
ु अष्टक का ऩठन-ऩाठन कयता है
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥५॥ श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो इन
औय त्जसका भन गरु
ु के व न भें आसक्त
सदगण
ु ों से क्मा राब?
मशो भे गतॊ ददऺु दानप्रताऩात ्, है , वह ऩण्
ु मशारी शयीयधायी अऩने
(४) त्जन्हें ववदे शों भें सभान आदय सभरता
जगद्वस्तु सवं कये मत्प्रसादात ्। इत्छछताथा एवॊ ब्रह्भऩद इन दोनों को
हो, अऩने दे श भें त्जनका तनत्म जम-
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे, सॊप्राप्त कय रेता है मह तनत्श् त है ।
जमकाय से स्वागत फकमा जाता हो औय
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥६॥ त्जसके सभान दस
ू या कोई सदा ायी
न बोगे न मोगे न वा वात्जयाजौ, बक्त नहीॊ, मदद उनका बी भन गरु
ु के
श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो सदगण
ु ों
न कन्ताभुखे नैव ववत्तेषु ध त्तभ ्।
से क्मा राब?
भनश् ेन रग्नॊ गुयोयतिऩद्मे,
(५) त्जन भहानब
ु ाव के यण कभर
तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकॊ तत् फकभ ्॥७॥
बभ
ू ण्डर के याजा-भहायाजाओॊ से तनत्म
अयण्मे न वा स्वस्म गेहे न कामे, ऩत्ू जत यहते हों, फकॊ तु उनका भन मदद गरु
ु
न दे हे भनो वताते भे त्वनध्मे। के श्री यणों के प्रतत आसक्त न हो तो इस
9 - 2018
भॊि ससि दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन ववृ ि हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
स्पदटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यक्त (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above ववधुत भारा - Rs- 190, 280
- Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं।
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10 - 2018
सवा कामा ससवि कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के सभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय
सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ
(१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
(६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त
होता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें तंत्र यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए
दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ
होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दष्ु ट प्रबावो से
यऺा होती हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें शत्रु ववजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से
सॊफॊधधत सभस्त ऩये शातनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शिु
धायण कताा व्मत्क्त का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते।
अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :
फकसी व्मत्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव दे ने नही दे ना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सयु क्षऺत हैं।
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फकमा है । भेये बूत ने फतामी आऩके अन्त्कयण की "फाफा जी ! वह बूत फोरता है फक भधस
ु ूदन स्वाभी ने
फात।" ज्मों ही भेया नाभ स्भयण फकमा, तो भैं णखॊ कय आने
श्री भधस
ु ूदनजी फोरे "बाई ! दे ख श्रीकृष्ण के तो दशान रगा। रेफकन उनके कयीफ जाने से भेये को आग जैसी
नहीॊ हुए, कोई फात नहीॊ। प्रणव का जऩ फकमा, कोई तऩन रगी। उनका तेज भेये से सहा नहीॊ गमा। उन्होंने
दशान नहीॊ हुए। गामिी का जऩ फकमा, दशान नहीॊ हुए। सकायात्भक शत्क्तओॊ का अनुष्ठान फकमा है तो उनका
अफ तू अऩने बूत का ही दशान कया दे , र।" आध्मात्त्भक ओज इतना फढ़ गमा है फक हभाये जैसे
भाय ने कहा् "स्वाभी जी ! भेया बूत तो तीन ददन के तुछछ शत्क्तमाॊ उनके कयीफ खड़े नहीॊ यह सकते। अफ
अॊदय ही दशान दे सकता है । 27घण्टे भें ही वह आ तुभ भेयी ओय से उनको हाथ जोड़कय प्राथाना कयना फक
जामेगा। रो मह भॊि औय उसकी ववधध।" वे फपय से अनुष्ठान कयें तो सफ प्रततफन्ध दयू हो
श्री भधस
ु ूदनजी ने भाय द्वारा फताई गई ऩूणा जामेंगे औय बगवान श्रीकृष्ण सभरेंगे। फाद भें जो गीता
ववधध जाऩ फकमा। एक ददन फीता, दस
ू या फीता, तीसया की टीका सरखेंगे। वह फहुत प्रससि होगी।"
बी फीत गमा औय ौथा शुरु हो गमा। 27घण्टे तो ऩूये श्री भधस
ु ूदन जी ने फपय से अनष्ु ठान फकमा, बगवान
हो गमे। बूत आमा नहीॊ। गमे भाय के ऩास। श्री श्रीकृष्ण के दशान हुए औय फाद भें बगवदगीता ऩय
भधस ु द
ू नजी फोरे् "श्री कृष्ण के दशान तो नहीॊ हुए भझ
ु े टीका सरखी। आज बी वह 'श्री भधसु द
ू नी टीका' के नाभ
तेया बत ू बी नहीॊ ददखता?" भाय ने कहा् "स्वाभी से ऩयू े ववश्व भें प्रससि है ।
जी! ददखना ादहए।" त्जन्हें सद्द बाग्म से गरु
ु भॊि सभरा है औय वहॊ
श्री भधस
ु द
ू नजी ने कहा् "नहीॊ ददखा।" ऩण
ू ा तनष्ठा व ववश्वास से ववधध-ववधान से उसका जऩ
भाय ने कहा् "भैं उसे योज फर ु ाता हूॉ, योज दे खता हूॉ। कयता है । उसे सबी प्रकाय फक ससविमा स्वत् प्राप्त हो
ठहरयमे, भैं फर
ु ाता हूॉ, उसे।" वह गमा एक तयप औय जाती हैं। उसे नकायात्भक शत्क्तमाॊ व प्रबावीजीव कष्ट
अऩनी ववधध कयके उस बत
ू को फर
ु ामा, बत
ू से फात की नहीॊ ऩहूॊ ा सकते।
औय वाऩस आकय फोरा्
***
द्वादश महा यंत्र
मॊि को अतत प्राध न एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्वारा फनामा गमा हैं।
ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि, सहस्िाऺी रक्ष्भी आफि मॊि
बाग्मोदम मॊि आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि
भनोवाॊतछत कामा ससवि मॊि ऩण
ू ा ऩौरुष प्रात्प्त काभदे व मॊि
याज्म फाधा तनवत्ृ त्त मॊि योग तनवत्ृ त्त मॊि
गह
ृ स्थ सख
ु मॊि साधना ससवि मॊि
शीि वववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि शिु दभन मॊि
उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि ऩण
ू ा प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ त
ै न्म मक्
ु त
फकमे जाते हैं। त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩज
ू ा अ न
ा ा-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं।
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13 - 2018
तफ कृष्णागय न कहा् "हे भाते ! भैं तो आऩका ाा सुनी। ऩयॊ तु ध्मान कयके उन्होंने वास्तववक यहस्म
ऩुि हूॉ औय आऩ भेयी भाता हैं। अत् आऩको मह शोबा का ऩता रगामा। दोनों ने कृष्णागय को ौयॊ ग ऩय दे खा,
नहीॊ दे ता। आऩ भाता होकय बी ऩुि से ऐसा ऩाऩकभा इससरए उसका नाभ ' ौयॊ गीनाथ' यख ददमा। फपय याजा
कयवाना ाहती हो !' से स्वीकृतत रेकय ौयॊ गीनाथ को गोद भें उठा सरमा
ऐसा कहकय गुस्से से कृष्णागय वहाॉ से रा औय फदरयकाश्रभ गमे। भछे न्द्रनाथ ने गोयखनाथ से
गमा। कृष्णागय के वहाॊ से रे जाने के फाद भें कहा् "तुभ ौयॊ गी को नाथ ऩॊथ की दीऺा दो औय सवा
बुजावॊती को अऩने ऩाऩकभा ऩय ऩश् ाताऩ होने रगा। ववद्याओॊ भें इसे ऩायॊ गत कयके इसके द्वारा याजा को
याजा को इस फात का ऩता र जामेगा, इस बम के मोग साभथ्मा ददखाकय यानी को दॊ ड ददरवाओ।"
कायण वह आत्भहत्मा कयने के सरए प्रेरयत हुई। ऩयॊ तु गोयखनाथ ने कहा् "ऩहरे भैं ौयॊ गी का तऩ
उसकी दासी ने उसे सभझामा् 'याजा के आने के फाद साभथ्मा दे खग
ूॉ ा।" गोयखनाथ के इस वव ाय को
तुभ ही कृष्णागय के णखराप फोरना शुरु कय दो फक भछें द्रनाथ ने स्वीकृतत दी।
उसने भेया सतीत्व रूटने की कोसशश की। महाॉ भेये ौयॊ गीनाथ को ऩवात की गुपा भें त्रफठाकय
सतीत्व की यऺा नहीॊ हो सकती। कृष्णागय फुयी तनमत गोयखनाथ ने कहा् 'तुम्हाये भस्तक के ऊऩय जो सशरा
का है , अफ आऩको जो कयना है सो कयो, भेयी तो जीने है , उस ऩय दृत्ष्ट दटकामे यखना औय भैं जो भॊि दे ता हूॉ
की इछछा नहीॊ।' उसी का जऩ ारू यखना। अगय दृत्ष्ट वहाॉ से हटी तो
याजा को फतामा त्जस प्रकाय से दासी ने फतामा। याजा जामेगी। इससरए सशरा ऩय ही दृत्ष्ट दटका कय यखना।'
ने कृष्णागय की ऐसी हयकत सुनकय क्रोध के आवेश भें ऐसा कहकय गोयखनाथ ने उसे भॊिोऩदे श ददमा औय
करूॉगा। अगय भैं ऐसा नहीॊ कय ऩामा तो स्वमॊ दे ह का प्रमोग कयके याजा के फाग भें जोयों की आॉधी रा
त्माग दॉ ग
ू ा।" दी। वऺ
ृ ादद टूट-टूटकय धगयने रगे, भारी रोग ऊऩय
प्रथभ गोयखनाथ ने ध्मान के द्वारा याजा का उठकय धयती ऩय धगयने रगे। इस आॉधी का प्रबाव
जीवनकार दे खा तो स भु वह ब्रह्भ भें रीन हो क
ु ा केवर फाग भें ही ददखामी दे यहा था इससरए रोगों ने
था। फपय गुरुदे व को ददए हुए व न की ऩूतता के सरए याजा के ऩास सभा ाय ऩहुॉ ामा। याजा हाथी-घोड़े, रशकय
गोयखनाथ प्राणत्माग कयने के सरए तैमाय हुए। तफ गुरु आदद के साथ फाग भें ऩहुॉ ।े ौयॊ गीनाथ ने वातास्ि के
भछें द्रनाथ ने कहा् ''याजा की आत्भा ब्रह्भ भें रीन हुई द्वारा याजा का सम्ऩूणा रशकय आदद आकाश भें उठाकय
है तो भैं इसके शयीय भें प्रवेश कयके 12 वषा तक फपय नी े ऩटकना शुरु फकमा। कुछ नगयवाससमों ने
यहूॉगा। फाद भें भैं रोक कल्माण के सरए भैं भेये शयीय ौयॊ गीनाथ को अनुनम-ववनम फकमा तफ उसने ऩवातास्ि
भें ऩुन् प्रवेश करूॉगा। तफ तक तू भेया मह शयीय का प्रमोग कयके याजा को उसके रशकय सदहत ऩवात
सॉबार कय यखना।" ऩय ऩहुॉ ा ददमा औय ऩवात को आकाश भें उठाकय धयती
भछें द्रनाथ ने तुयॊत दे हत्माग कयके याजा के भत
ृ ऩय ऩटक ददमा।
शयीय भें प्रवेश फकमा। याजा उठकय फैठ गमा। मह फपय गोयखनाथ ने ौयॊ गीनाथ को आऻा दी फक
आश् मा दे खकय सबी जनता हवषात हुई। फपय प्रजा ने वह अऩने वऩता का यणस्ऩशा कये । ौयॊ गीनाथ याजा का
अत्ग्न को शाॊत कयने के सरए याजा का सोने का ऩत
ु रा यणस्ऩशा कयने रगे फकॊतु याजा ने उन्हें ऩह ाना नहीॊ
फनाकय अॊत्मसॊस्काय-ववधध की। । तफ गोयखनाथ ने फतामा् "तभ
ु ने त्जसके हाथ-ऩैय
गोयखनाथ की बें ट सशवभॊददय की ऩज
ु ारयन से कटवाकय ौयाहे ऩय डरवा ददमा था, मह वही तम्
ु हाया
हुई। उन्होंने उसे सफ वत्ृ तान्त सन
ु ामा औय गरु
ु दे व का ऩि
ु कृष्णागय अफ मोगी ौयॊ गीनाथ फन गमा है ।"
शयीय 12 वषा तक सयु क्षऺत यखने का मोग्म स्थान गोयखनाथ ने यानी बज
ु ावॊती का सॊऩण
ू ा वत्ृ तान्त
ऩछ
ू ा। तफ ऩज
ु ारयन ने सशवभॊददय की गप
ु ा ददखामी। याजा को सन
ु ामा। याजा को अऩने कृत्म ऩय ऩश् ाताऩ
गोयखनाथ ने गुरुवय के शयीय को गुपा भें यखा। फपय वे हुआ। उन्होंने यानी को याज्म से फाहय तनकार ददमा।
याजा से आऻा रेकय आगे तीथामािा के सरए तनकर गोयखनाथ ने याजा से कहा् "अफ तुभ तीसया वववाह
ऩड़े। कयो। तीसयी यानी के द्वारा तुम्हें एक अत्मॊत गुणवान,
12 वषा फाद गोयखनाथ ऩुन् फदरयकाश्रभ ऩहुॉ ।े फुविशारी औय दीघाजीवी ऩुि की प्रात्प्त होगी। वही
वहाॉ ौयॊ गीनाथ की गुपा भें प्रवेश फकमा। दे खा फक याज्म का उत्तयाधधकायी फनेगा औय तुम्हाया नाभ योशन
एकाग्रता, गुरुभॊि का जऩ तथा तऩस्मा के प्रबाव से कये गा।" याजा ने तीसया वववाह फकमा। उससे जो ऩुि
ौयॊ गीनाथ के कटे हुए हाथ-ऩैय ऩुन् तनकर आमे हैं। प्राप्त हुआ, सभम ऩाकय उस ऩय याज्म का बाय सौंऩकय
मह दे खकय गोयखनाथ अत्मॊत प्रसन्न हुए। फपय याजा वन भें रे गमे औय ईश्वयप्रात्प्त के साधन भें
ौयॊ गीनाथ को सबी ववद्याएॉ ससखाकय तीथामािा कयने रग गमे। गोयखनाथ के साथ तीथों की मािा कयके
साथ भें रे गमे। रते- रते वे कौंडडण्मऩुय ऩहुॉ ।े वहाॉ ौयॊ गीनाथ फदरयकाश्रभ भें यहने रगे।
याजा शशाॊगय के फाग भें रुक गमे। गोयखनाथ ने इस प्रकाय गुरुकृऩा से कृष्णागय को गुरुभॊि
ौयॊ गीनाथ तो आऻा दी फक याजा के साभने अऩनी प्राप्त हुवा गुरुभॊि का तनष्ठा से जऩ कय के उन्हें
शत्क्त प्रदसशात कये । ससविमा प्राप्त हुई व अऩना खोमा हुवा भान-सभान ऩन
ू ्
ौयॊ गीनाथ ने वातास्ि भॊि से असबभॊत्रित बस्भ प्राप्त हुवा।
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17 - 2018
आरुणण की गुरुबत्क्त
ऩौयाणणक कथा के अनुशाय भहवषा आमोदधौम्म रुक गमा।
के आश्रभ भें फहुत से सशष्म थे। सबी सशष्म गरु ु दे व उस ददन ऩयू ी यात आरुणण ऩानीबये खेतभें भेड़से
भहवषा आमोदधौम्म की फड़े प्रेभ से सेवा कयते थे। एक सटे ऩड़े यहे । सदॊ से उनका साया शयीय बी अकड़ गमा,
ददन सॊध्मा के सभम वषाा होने रगी। भौसभ को दे खते रेफकन गरु
ु दे व के खेतका ऩानी फहने न ऩामे, इस वव ाय
हुएॊ अॊदाजा रगना भत्ु श्कर था की अगरे कुछ सभम से वे न तो ततनक बी दहरे औय न उन्होंने कयवट
तक वषाा होगी मा नहीॊ, इसका कुछ ठीक-दठकाना नहीॊ फदरी। इस कायण आरुणण के शयीयभें बमॊकय ऩीड़ा होते
था। वषाा फहुत जोयसे हो यही थी। भहवषाने सो ा फक यहने ऩय बी वे ऩ
ु ाऩ ऩड़े यहे । सफेया होने ऩय ऩज
ू ा
कहीॊ अऩने धान के खेत की भेड़ अधधक ऩानी बयने से औय हवन कयके सफ सशष्म गुरुदे व को प्रणाभ कयते थे।
टूट जामगी तो खेतभें से सफ ऩानी फह जामगा। ऩीछे भहवषा आमोदधौम्मने दे खा फक आज सफेये आरुणण
फपय वषाा न हो तो धान त्रफना ऩानी के सूख जामेगा। प्रणाभ कयने नहीॊ आमा।
हवषाने आरुणण से कहा—‘फेटा आरुणण !तुभ खेत ऩय भहवषाने दस
ू ये ववद्याधथामोंसे ऩूछा:‘आरुणण कहाॉ है ?’
जाकय दे खो, की कही भेड़ टूटनेसे खेत का ऩानी फह न ववद्याधथामों ने कहा: ‘कर शाभको आऩने आरुणण को
जाम।’ खेतकी भेड़ फाॉधनेको बेजा था, तफसे वह रौटकय नहीॊ
आरुणण अऩने गुरुदे व की आऻा ऩाकय वषाा भें आमा।’
बीगते हुए खेतऩय रे गमे। वहाॉ जाकय उन्हें ने दे खा फक भहवषा उसी सभम दस
ू ये विद्यर्थथयों को साथ रेकय
खेतकी भेड़ एक स्थान ऩय टूट गमी है औय वहाॉ से फड़े आरुणण को ढूॉढ़ने तनकर ऩड़े। भहवषा ने खेत ऩय जाकय
जोयसे ऩानी फाहय तनकर यहा है । आरुणण ने टूटे हुए आरुणण को ऩुकाया। आरुणण से ठण्ड के भाये फोरा तक
स्थान ऩय सभट्टी यखकय भेड़ फाॉधना ाहा। ऩानी वेग से नहीॊ जाता था। उन्होंने फकसी प्रकाय अऩने गुरुदे वकी को
तनकर यहा था औय वषाा से सभट्टी बी गीरी हो गमी थी, उत्तय ददमा। भहवषा ने वहाॉ ऩहुॉ कय अऩने आऻाकायी
इस सरमे आरुणण त्जतनी सभट्टी भेड़ फाॉधने के सरमे सशष्मको उठाकय रृदम से रगा सरमा, आशीवााद
यखते थे, उसे ऩानी फहा रे जाता था। फहुत दे य ऩरयश्रभ ददमा:‘ऩुि आरुणण ! तुम्हें सफ ववद्याएॉ अऩने-आऩ ही आ
कयके बी जफ आरुणण भेड़ न फाॉध सके तो वे उस टूटी जामॉ।’ अऩने गुरुदे व के आशीवााद से आरुणण फड़े बायी
भेड़के ऩास स्वमॊ रेट गमे। उनके शयीयसे ऩानीका फहाव विद्वान हो गए।
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18 - 2018
सशष्म: "फपय बी भहायाज ! भुझे मह कण्ठी नहीॊ सभथाजी ने सुनाददमा् "तेये जैसे गुरुद्रोही को भैं
ादहए।" सशष्म फनाऊॉगा ? जा बाई, जा। अऩना यास्ता नाऩ।"
तुकायाभजी: "नहीॊ ादहए तो तोड़ दो।" वह तो याभदासजी के सभऺ कान ऩकड़कय उठ-
र
े े ने खीॊ कय कण्ठी तोड़ दी। "अफ आऩका फैठ कयने रगा, नाक यगड़ने रगा। योते-योते प्राथाना
भॊि ?" कयने रगा। तफ करुणाभूतता स्वाभी याभदास ने कहा्
तुकायाभजी ने कहा:"वह तो भेये गुरुदे व आऩाजी "तुकायाभजी उदाय आत्भा हैं। वहाॉ जा। भेयी ओय से
त
ै न्म का प्रसाद है । उसभें भेया कुछ नहीॊ है ।" प्राथाना कयना। कहना फक सभथा ने प्रणाभ कहे हैं। तू
सशष्म फोरा: "भहायाज ! भुझे वह नहीॊ ादहए। अऩनी गरती की ऺभा भाॉगना।"
भुझे तो दस
ू या गुरु कयना है ।" सशष्म अऩने गुरु के ऩास वाऩस रौटा।
तुकायाभजी फोरे: "अछछा, तो भॊि त्माग दे ।" तुकायाभजी सभझ गमे फक सभथा का बेजा हुआ है तो
"कैसे त्मागॉू ?" भैं इन्काय कैसे करूॉ ?
"भॊि फोरकय ऩत्थय ऩय थक
ू दे । भॊि का त्माग फोरे् "अछछा बाई ! तू आमा था, कण्ठी सरमा
हो जामगा।" था। हभने दी, तूने छोड़ी। फपय रेने आमा है तो फपय दे
उस अबागे सशष्म ने गरु
ु भॊि का त्माग कयने के दे ते हैं। सभथा ने बेजा है तो रो ठीक है । सभथा की
सरए भॊि फोरकय ऩत्थय ऩय थक
ू ददमा। जम हो !"
तफ अनोखी घटना घटी। ऩत्थय ऩय थक
ू ते ही स्वमॊ बगवान शॊकयजी ने कहाॊ हैं:
वह भॊि उस ऩत्थय ऩय अॊफकत हो गमा। गुरुत्मागत ् बवेन्भृत्मु् भॊित्मागात ् दरयद्रता।
सशष्म तक
ु ायाभजी के महाॊ से वह गमा सभथा जी गुरुभॊिऩरयत्मागी यौयवॊ नयकॊ व्रजेत ्।। (गरु
ु गीता)
के ऩास। फोरा् "भहायाज ! भैं भॊि औय कण्ठी वाऩस दे विद्वानो के अनश
ु ाय गरु
ु बत्क्तमोग के अनश
ु ाय एक फाय
आमा हूॉ। अफ आऩ भझ
ु े अऩना सशष्म फनाओ।" गरु
ु कय रेने के फाद गरु
ु का त्माग नहीॊ कयना ादहए।
सभथा जी ने ऩूछा: "भॊि का त्माग फकमा उस गुरु का त्माग कयने से तो मह अछछा है फक सशष्म
सभम क्मा हुआ था ?" ऩहरे से ही गुरु न कये औय सॊसाय भें सड़ता यहे ,
सशष्म फोरा: "वह भॊि ऩत्थय ऩय अॊफकत हो गमा बटकता यहे । एक फाय गुरु कयके उनका त्माग कबी
था।" नहीॊ कयना ादहए।
सभथाजी फोरे: "ऐसे गरु
ु दे व का त्माग कयके
आमा त्जनका भॊि ऩत्थय ऩय अॊफकत हो जाता है ?
ऩत्थय जैसे ऩत्थय ऩय भॊि का प्रबाव ऩड़ा रेफकन तुझ
ऩय कोई प्रबाव नहीॊ ऩड़ा तो कभफख्त तू भेये ऩास क्मा
रेने आमा है ? तू तो ऩत्थय से बी गमा फीता है तो
इधय तू क्मा कये गा ? खाने के सरए आमा है ?"
सशष्म फोरा:"भहायाज ! वहाॉ गुरु का त्माग फकमा
औय महाॉ आऩने भुझे रटकता यखा ?"
सभथाजी फोरे: "तेये जैसे रटकते ही यहते हैं।
अफ जा, घॊटी फजाता ये ह। अगरे जन्भ भें तू फैर फन
जाना, गधा फन जाना, घोड़ा फन जाना।" 11 Pcs x 4 Colour Only Rs.370
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20 - 2018
भॊिजाऩ से शास्िऻान
याभवल्रबशयणजी फकसी सॊत के दशानगमे।
सॊत ने ऩूछा् तूम्हें "क्मा ादहए?"
याभवल्रबशयण् "भहायाज ! बगवान इश्वय की बत्क्त औय शास्िों का ऻान ादहए।"
याभवल्रबशयणजी ने ईभानदायी से भाॉगा था।
याभवल्रबशयजी का सछ ाई का जीवन था। कभ फोरते थे। उनके सबतय बगवान के
सरए तड़ऩ थी।
सॊत ने ऩूछा् "ठीक है । फस न?"
याभवल्रबशयण् "जी, भहायाज।"
सॊत ने हनुभानजी का भॊि ददमा।
याभवल्रबशयजी एकाग्रध त्त होकय ऩूणा तनष्ठा व तत्ऩयता से भॊि जऩ कय यहे थे। भॊि
जऩ कयते सभम हनुभानजी प्रकट हो गमे।
हनुभान जी ने ऩूछा: "क्मा ादहए?"
"आऩके दशान तो हो गमे। शास्िों का ऻान ादहए।"
हनुभानजी् "फस, इतनी सी फात? जाओ, तीन ददन के अॊदय तूभ त्जतने बी ग्रन्थ दे खोगे
उन सफका अथासदहत असबप्राम तम्
ु हाये रृदम भें प्रकट हो जामेगा।"
याभवल्रबशयजी काशी रे गमे औय काशी के ववश्वववद्यारम आदद के ग्रॊथ दे खे। वे फड़े
बायी विद्वान हो गमे। त्जन्होंने याभवल्रबशयजी के साथ वातााराऩ फकमा औय शास्ि-
ववषमक प्रश्नोत्तय फकमे हैं वे ही रोग उन्हें बरीप्रकाय से जानते हैं । दतु नमा के अछछे -
अछछे विद्वान उनका रोहा भानते हैं। याभवल्रबशयजी केवर भॊिजाऩ कयते-कयते
अनुष्ठान भें सपर हुए। हनुभानजी के साऺात दशान हो गमे औय तीन ददन के अॊदय
त्जतने शास्ि दे खे उन शास्िों का असबप्राम उनके रृदम भें प्रकट हो गमा।
एकरव्म की गुरुबत्क्त
ऩौयाणणक कथा के अनुशाय दहयण्मधनु का ‘कुत्ते के भॉह
ु भें ोट न रगे इस प्रकाय फाण भायने की
एकरव्म नाभ का एक रड़का था। दहयण्मधनु जातत से विद्या तो भैं बी नहीॊ जानता!’
बीर थे। अजुन
ा ने गुरु द्रोणा ामा से कहा् "गुरूदे व! आऩने
उस कार भें धनुर्थिद्या भें द्रोणा ामाजी को तो कहा था फक तेयी फयाफयी कय सके ऐसा कोई बी
भहायथ हाससर थी इस सरमे उनका नाभ व कीतता ायो धनुधाायी नहीॊ होगा ऩयॊ तु ऐसी अद्भत
ु औय अनोखी
औय पेरी हुई थी। द्रोणा ामा जी कौयवों एवॊ ऩाॊडवों के विद्या तो भैं बी नहीॊ जानता।"
गुरु थे इस सरमे उन्हें धनुर्थिद्या सशखाते थे। एकरव्म द्रोणा ामा बी वव ाय भें ऩड़ गमे। इस जॊगर भें
धनुर्थिद्या सीखने के उद्देश्म से गुरु द्रोणा ामा के ऩास ऐसा कुशर धनुधया कौन होगा? आगे जाकय दे खा तो
गमा रेफकन द्रोणा ामा ने कहा फक वे याजकुभायों के उन्हे दहयण्मधनु का ऩुि एकरव्म ददखामी ऩड़ा।
अरावा औय फकसी को धनुर्थिद्या नहीॊ ससखा सकते। द्रोणा ामा ने ऩूछा् "फेटा! तुभने मह विद्या कहाॉ
द्रोणा ामा जी के भना कयने के फावजुद एकरव्म से सीखी?"
ने भन-ही-भन द्रोणा ामा को अऩना गुरु भान सरमा था। एकरव्म ने कहा् "गुरुदे व! आऩकी कृऩा से ही
इस के सरए एकरव्म की गुरु द्रोणा ामा जी के प्रतत सीखी है ।"
श्रिा कभ नहीॊ हुई। द्रोणा ामा तो अजुन
ा को व न दे क
ु े थे फक
एकरव्म वहाॉ से वाऩस घय न जाकय सीधे ू या धनुधया नहीॊ होगा फकॊतु एकरव्म
उसके जैसा कोई दस
जॊगर भें रा गमा। वहाॉ जाकय उसने द्रोणा ामा की तो अजुन
ा से बी आगे फढ़ गमा।
सभट्टी की भूतता फनामी। एकरव्म हययोज गुरुभूतता का द्रोणा ामा ने एकरव्म से कहा् "भेयी भूतता को
ऩूजन कयता, फपय उसकी तयप एकटक दे खते-दे खते साभने यखकय तुभने धनुर्थिद्या तो सीखी ऩयॊ तु
ध्मान कयता औय उससे प्रेयणा रेकय धनुर्थिद्या का गुरुदक्षऺणा?"
अभ्मास कयता हुवा धनुर्थिद्या सीखने रगा। एकाग्रता के एकरव्म ने कहा् "आऩ जो भाॉगें।" द्रोणा ामा ने कहा्
कायण एकरव्म को प्रेयणा सभरने रगी। इस प्रकाय "तुम्हाये दादहने हाथ का अॉगूठा।" एकरव्म ने एक ऩर
अभ्मास कयते-कयते वह धनुर्थिद्या भें फहुत आगे फढ़ बी वव ाय फकमे त्रफना अऩने दादहने हाथ का अॉगठ
ू ा काट
गमा। कय गुरुदे व के यणों भें अवऩात कय ददमा।
एक फाय द्रोणा ामा धनुर्थिद्या के अभ्मास के सरए द्रोणा ामा ने कहा् "ऩि
ु ! अजन
ुा बरे ही धनुर्थिद्या
ऩाॊडवों औय कौयवों को जॊगर भें रे गमे। उनके साथ भें सफसे आगे यहे क्मोंफक भैं उसको व न दे क
ु ा हूॉ
एक कुत्ता बी था, वह दौड़ते-दौड़ते आगे तनकर गमा। ऩयन्तु जफ तक सूम,ा ाॉद औय नऺि यहें गे, तुम्हाया
जहाॉ एकरव्म धनुर्थिद्या का अभ्मास कय यहा था, वहाॉ गुणगान होता यहे गा।" एकरव्म की गुरुबत्क्त उसे
वह कुत्ता रुक गमा। एकरव्म के ववध ि वेष को धनुर्थिद्या भें सपरता के साथ ही द्रोणा ामा जैसे विद्वान
दे खकय कुत्ता बौंकने रगा। को गुरुदक्षऺणा भें अऩना अॊगूठा दे कय उनके रृदम भें
एकरव्म ने कुत्ते को ोट न रगे औय उसका
अऩने सरए आदय प्रकट कय ददमा। विद्वानो के
बौंकना बी फॊद हो जाए इस प्रकाय उसके भॉह
ु भें सात भातानुशाय गुरुबत्क्त, श्रिा औय रगनऩूवक
ा कोई बी
फाण बय ददमे।
कामा कयने से अवश्म सपरता प्राप्त होती है ।
जफ कुत्ता इस दशा भें द्रोणा ामा के ऩास ऩहुॉ ा
तो कुत्ते की मह हारत दे खकय अजुन ा को वव ाय आमा् ***
22 - 2018
श्रीकृष्ण की गुरूसेवा
सहस्ि भुखो से बी गुरु की भदहभा फखाण ना सॊबव नहीॊ हैं। क्मोकी गुरु की भदहभा अऩयॊ ऩाय हैं। इसी सरमे
तो स्वमॊ बगवान को बी जगत के कल्माणा हे तु जफ भानवरूऩ भें अवतरयत होना ऩडता हैं तो ऻान प्रात्प्त हे तु गुरू
की आवश्मक्ता होती हैं।
ऩौयाणणक शास्िो के अनुशाय द्वापर मुग भें जफ बगवान श्रीकृष्ण जफ बूरोक ऩय अवतरयत हुए।ॊ काराॊतय भें
कॊस का ववनाश होने के ऩश् मात बगवान श्रीकृष्ण ने शास्िोक्त ववधध-ववधान से अऩने हाथ भें ससभधा रेकय अऩने
गुरू श्रीसाॊदीऩनी के आश्रभ भें गमे। गुरुआश्रभ भें श्रीकृष्ण बत्क्तऩूवक
ा गुरू की सेवा कयने रगे। गुरू आश्रभ भें
सेवा कयते हुए बगवान श्रीकृष्ण ने वेद-वेदाॊग, उऩतनषद, भीभाॊसादद
षड्दशान, ऄस्त्र-शस्त्रविद्या, धभाशास्ि औय याजनीतत आदद अनेको विद्याएं
प्राप्त की। श्रीकृष्ण नें अऩनी प्रखय फुवि के कायण गुरू के
एक फायफताने भाि से ही सफ सीख सरमा। ववष्णुऩुयाण के अनुशाय
श्रीकृष्ण ने 64 कराएॉ केवर64 ददन भें ही सीख रीॊ। जफ विद्या
अभ्मास ऩण ू ा हुआ, तफ श्रीकृष्ण ने गुरूदे व से दक्षऺणा हे तु
अनयु ोध फकमा। श्रीकृष्ण् "गरू
ु दे व ! आऻा कीत्जए, भैं आऩकी क्मा
सेवा करूॉ ?" गरू
ु ् "कोई आवश्मकता नहीॊ है।" श्रीकृष्ण् "गरू
ु दे व
आऩको तो कुछ नहीॊ ादहए, फकॊतु हभें ददमे त्रफना न
ै नहीॊ ऩड़ेगा।
कुछ तो आऻा कयें !" गरू
ु ् "अछछा जाओ, अऩनी गरू
ु भाॉ से ऩछ
ू
रो।" श्रीकृष्ण गरू
ु ऩत्नी के ऩास गमे औय फोरे् "भाॉ ! कोई
सेवा हो तो फताइमे।"
गुरूऩत्नी जानती थीॊ फक श्रीकृष्ण कोई साधायण भानव नहीॊ स्वमॊ
बगवान हैं, अत् वे फोरी् "भेया ऩुि प्रबास ऺेि भें भय गमा है ।
उसे राकय दे दो ताफक भैं उसे ऩम् ऩान कया सकॉू ।"
श्रीकृष्ण फोरे: "जो आऻा।"
श्रीकृष्ण यथ ऩय सवाय होकय प्रबास ऺेि ऩहुॉ ।े सभुद्र ने
उन्हें दे खकय उनकी मथामोग्म ऩूजा की। श्रीकृष्ण फोरे् "तुभने अऩनी फड़ी फड़ी रहयों से हभाये गुरूऩि
ु को हय सरमा
था। अफ उसे शीि रौटा दो।"
सभुद्र् "भैंने फारक को नहीॊ हया है, भेये बीतय शॊखरूऩ से ऩॊ जन नाभक एक फड़ा दै त्म यहता है , तनसॊदेह उसी ने
आऩके गुरूऩुि का हयण फकमा है ।"
श्रीकृष्ण ने उसीऺण जर के बीतय घुसकय ऩॊ जन नाभक दै त्म को भाय डारा, ऩय उसके ऩेट भें गुरूऩुि
नहीॊ सभरा। तफ उसके शयीय का ऩाॊ जन्म शॊख रेकय श्रीकृष्ण जर से फाहय तनकर कय मभयाज की मभनी ऩुयी भें
गमे। वहाॉ बगवान ने उस शॊख को फजामा। कथा कहती हैं फक शॊख ध्वतन को सुनकय नायकीम जीवों के ऩाऩ नष्ट
हो गमे औय वे सबी जीव वैकॊु ठ ऩहुॉ गमे।
मभयाज ने श्रीकृष्ण को दे खकय उनकी फड़ी बत्क्त के साथ ऩूजा की औय प्राथाना कयते हुए कहा् "हे ऩुरूषोत्तभ ! भैं
आऩकी क्मा सेवा करूॉ ?"
23 - 2018
श्रीकृष्ण् "तुम्हाये दत
ू कभाफॊधन के अनुसाय हभाये गुरूऩुि को महाॉ रे आमे हैं। उसे भेयी आऻा से वाऩस दे दो।"
'जो आऻा' कहकय मभयाज उस फारक को रे आमे।
श्रीकृष्ण ने गरू
ु ऩि
ु को, त्जस रुऩ भें वह भया था उसी रुऩभें ऩन
ू ् उसका शयीय फनाकय, यत्नादद के साथ गरू
ु यणों
भें अवऩात कय ददमा।
श्रीकृष्ण ने कहा्"गुरूदे व ! औय जो कुछ बी आऩ ाहें , आऻा कयें ।"
गुरूदे व् "वत्स ! तुभने अऩनी गुरूदक्षऺणा बरी प्रकाय से सॊऩन्न कय दी। तुम्हाये जैसे सशष्म से गुरू की कौन-सी
काभना अवशेष यह सकती है ?
वत्स ! अफ तुभ अऩने घय जाओ।
गुरूदे व ने श्रीकृष्ण को आशशवााद दे ते हुवे कहां वत्स ! तुम्हायी कीतता श्रोताओं को ऩववत्र कयने वारी होगी औय
तम्
ु हाये द्वारा अर्जात ऻान व विद्या हय सभम उऩर्स्थत औय नवीन फनी यहकय सबीरोक भें तम्
ु हाये अबीष्ट पर को
दे ने भें सभथा हों।"
कनकधाया मॊि
आज के बौततक मुग भें हय व्मत्क्त अततशीि सभि
ृ फनना ाहता हैं।
कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से व्मत्क्त के जन्भों जन्भ के
ऋण औय दरयद्रता से शीि भुत्क्त सभरती हैं। मॊि के प्रबाव से व्माऩाय
भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। कनकधाया
मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हे तु
अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को ववद्वानो ने
स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं।
आज के मुग भें हय व्मत्क्त अततशीि सभि
ृ फनना ाहता हैं। धन
प्रात्प्त हे तु प्राण-प्रततत्ष्ठत कनकधाया मॊि के साभने फैठकय कनकधाया
स्तोि का ऩाठ कयने से ववशेष राब प्राप्त होता हैं। इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से ऋण औय दरयद्रता
से शीि भुत्क्त सभरती हैं। व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त होती हैं। जैसे श्री आदद
शॊकया ामा द्वारा कनकधाया स्तोि फक य ना कुछ इस प्रकाय की गई हैं , फक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-
ऩास के वामुभॊडर भें ववशेष अरौफकक ददव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं। दठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा
मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हे तु अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को
ववद्वानो ने स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। जगद्गुरु शॊकया ामा ने दरयद्र
ब्राह्भण के घय कनकधाया स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय ददत्ग्वजम भें सभरता हैं।
कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै स्वाहा' >> Order Now
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24 - 2018
भल्राह ने कहा् "गुरू का भतरफ क्मा होता है ? हभ नहीॊ जानते गुरू क्मा होता है ?"
गुरु का भतरफ सभझाते हे तु दे ववषा नायद फोरे: "गु भाने अन्धकाय। रू भाने प्रकाश। अथाात ्:जो अऻानरूऩी अन्धकाय
को हटाकय ऻानरूऩी प्रकाश कय दें उन्हें गुरू कहा जाता है ।
आऩ भेये आन्तरयक जीवन के गुरू हैं।" नायदजी ने भल्राह के ऩैय ऩकड़ सरमे।
भल्राह फोरा: "छोड़ो भुझे !" नायद: "आऩ भुझे सशष्म के रूऩ भें स्वीकाय कय रो गुरूदे व!"
भल्राह ने ऩीछा छुड़ाने के सरए कहा् "अछछा, स्वीकाय है , जा।"
नायदजी आमे वैकुण्ठ भें । बगवान ने कहा् "नायद ! अफ तू तनगुया तो नहीॊ है ?"
"नहीॊ बगवान ! भैं गुरू कयके आमा हूॉ।" "कैसे हैं तेये गुरू ?" "जया धोखा खा गमा भैं। वह कभफख्त भल्राह सभर
गमा। अफ क्मा कयें ? आऩकी आऻा भानी। उसी को गरू ु फना सरमा।"
नायद की फात से बगवान नायाज हो गमे औय फोरे् "तूने गुरू शब्द का अऩभान फकमा है ।"जा, तुझे ौयासी राख
जन्भों तक भाता के गबों भें नका बोगना ऩड़ेगा।" नायद योमे, छटऩटामे। बगवान ने कहा् "इसका इराज महाॉ नहीॊ
है । मह तो ऩुण्मों का पर बोगने की जगह है । नका ऩाऩ का पर बोगने की जगह है। कभों से छूटने की जगह तो
वहीॊ है । तू जा उन गुरूओॊ के ऩास भत्ृ मुरोक भें ।" नायद आमे भत्ृ मुरोक भें ।
उस गुरु फनामे हुए भल्राह के ऩैय
ऩकड़े् "गरू
ु दे व ! उऩाम फताओ। ौयासी के क्कय से छूटने का उऩाम फताओ।" गरू
ु जी ने ऩयू ी फात जान री औय
कुछ सॊकेत ददमे। नायद फपय वैकुण्ठ भें ऩहुॉ ।े बगवान को कहा् "भैं ौयासी राख मोतनमाॉ तो बोग रॉ ग
ू ा रेफकन
कृऩा कयके उसका नक्शा तो फना दो ! जया ददखा तो दो नाथ ! कैसी होती है ौयासी ?
बगवान ने नक्शा फना ददमा। नायद उसी नक्शे भें रोटने-ऩोटने रगे।
"अये ! मह क्मा कयते हो नायद ?"
"बगवान ! वह ौयासी बी आऩकी फनाई हुई है औय मह ौयासी बी आऩकी ही फनामी हुई है। भैं इसी भें क्कय
रगाकय अऩनी ौयासी ऩूयी कय यहा हूॉ।"
बगवान ने कहा् "भहाऩुरूषों(गुरु) के नुस्खे बी अनोखे होते हैं। मह मुत्क्त बी तुझे उन्हीॊ से सभरी नायद !
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26 - 2018
थे। तने भें उसी स्थान ऩय दक्षऺण बायत के केयर प्राॊत गोववन्दऩादा ामा के फाये भें कुछ फातें कही। तो वह
से ऩैदर रते हुए दो भहीने से बी अधधक सभम की तनदोष फारक बगवान गोववन्दऩादा ामा के दशान के
सरए तड़ऩ उठा।
मािा कयके शॊकय नाभ का फारक ऩहुॉ ा।
सॊन्माससमों ने कहा् "वह दयू जो गुपा ददखाई दे यही है
फारक फोरा: "भैंने नाभ सुना है बगवान
उसभें वे सभाधधस्थ हैं। अन्धेयी गुपा भें ददखाई नहीॊ
गोववन्दऩादा ामा का। वे ऩूज्मऩाद आ ामा कहाॉ यहते हैं?"
ऩड़ेगा इससरए मह दीऩक रे जा।"
सॊन्माससमों ने फतामा फक् "हभ बी उनके दशान का
दीमा जराकय उस फारक ने गुपा भें प्रवेश
इन्तजाय कय यहे है । उनकी सभाधध खर
ु े, औय उनकी
फकमा। ववस्भमता से ववभुग्ध होकय दे खा तो एक अतत
अभत
ृ फयसाने वारी तनगाहें हभ ऩय ऩड़ें, उनके
दीघाकाम, ववशार-बार-प्रदे शवारे, शान्त भुद्रा, रम्फी जटा
ब्रह्भानुबव के व नो से हभाये कान ऩववि हों इसी
औय कृश दे हवारे फपय बी ददव्म तेज से आरोफकत एक
इन्तजाय भें हभ बी नभादा फकनाये अऩनी कुदटमाएॉ
भहाऩुरूष ऩद्मासन भें सभाधधस्थ फैठे थे। उनके शयीय की
फनाकय फैठे हैं।" त्व ा सूख क
ु ी थी फपय बी उनका शयीय ज्मोततभाम
सॊन्माससमों ने उस फारक को तनहाया। वह फारक था।
बगवान गोववन्दऩादा ामा का दशान कयते ही शॊकय का वषा उन्होंने शॊकय को हठमोग की सशऺा दी। वषा ऩूया
योभ-योभ ऩुरफकत हो उठा। उसका भन एक प्रकाय से होने के ऩूवा ही शॊकय ने हठमोग भें ऩूणा ससि प्राप्त कय
अतनवा नीम ददव्म आनन्द से बय उठा। तनयन्तय आखो री। द्ववतीम वषा भें शॊकय याजमोग भें ससि हो गमे।
से फहते अश्रज
ु र से उनका वऺ् स्थर प्राववत हो गमा। हठमोग औय याजमोग की ससवि प्रात्प्त कयने के
उसकी मािा का ऩरयश्रभ साथाक हो गमा औय उसकी परस्वरूऩ शॊकय
फहुत फड़ी अरौफकक शत्क्त के
सायी थकान ऩरबय भें ही उतय गमी। अधधकायी फन गमे। दयू श्रवण, दयू दशान, सूक्ष्भ दे ह से
कयफि होकय फह फारक स्तुतत कयने रगा् व्मोभभागा भें गभन, अणणभा, रतघभा, दे हान्तय भें प्रवेश
इस सुन्दय बगवान की स्तुतत से गुपा गुन्ज एवॊ सवोऩरय इछछाभत्ृ मु शत्क्त के वे अधधकायी हो गमे।
उठी। तफ अन्म सॊन्मासी बी गुपा भें आ इकट्ठे हुए। तत
ृ ीम वषा भें गोववन्दऩादा ामा अऩने सशष्म को ववशेष
शॊकय तफ तक स्तवगान भें ही भग्न थे। ववस्भम मत्नऩूवक
ा ऻानमोग की सशऺा दे ने रगे। श्रवण, भनन,
ववभुग्ध ध त्त से सफने दे खा फक बगवान गोववन्दऩाद तनददध्मासन, ध्मान, धायणा, सभाधध का प्रकृत यहस्म
की वह तनश् र तनस्ऩन्द दे ह फाय-फाय कत्म्ऩत हो यही ससखा दे ने के फाद उन्होंने अऩने सशष्म को
है । प्राणों का स्ऩन्दन ददखाई दे ने रगा। ऺणबय भें ही साधनकभाानुसाय अऩयोऺनुबूतत के उछ स्तय भें दृढ़
उन्होंने एक दीघा तन्श्वास छोड़कय ऺु खोरे फकमे। प्रततत्ष्ठत कय ददमा।
शॊकय ने गोववन्दऩादा ामा बगवान को साष्टाॊग ध्मानफर से सभाधधस्थ होकय हय ऺण
प्रणाभ फकमा। दस
ू ये सॊन्मासी बी मोगीश्वय के यणों भें ददव्मानब
ु तू त से शॊकय का भन अफ सदै व एक अतीत्न्द्रम
प्रणत हुए। आनॊदध्वतन से गपु ा गॊत्ु जत हो उठी। तफ याज्म भें वव यण कयने रगा। उनकी दे ह भें ब्रह्भज्मोतत
प्रवीण सॊन्मासीगण मोगीयाज को सभाधध से सम्ऩूणा रूऩ प्रस्पुदटत हो उठी।
से व्मधथत कयाने के सरए मौधगक प्रफकमाओॊ भें तनमक्
ु त उनके भख
ु भण्डर ऩय अनऩ
ु भ रावण्म औय
हो गमे। क्रभ से मोगीयाज का भन जीवबसू भ ऩय उतय स्वगॉम हास झरकने रगा। उनके भन की सहज गतत
आमा। मथा सभम आसन का ऩरयत्माग कय वे गुपा से अफ सभाधध की ओय थी। फरऩूवक
ा उनके भन को
फाहय तनकरे। जीवबूसभ ऩय यखना ऩड़ता था। क्रभश् उनका भन
मोगीयाज की सहस्रों वषों की सभाधध एक फारक तनववाकल्ऩ बूसभ ऩय अधधरूढ़ हो गमा।
सॊन्मासी के आने से छूट गई है, मह फात द्रत
ु गतत से गोववन्दऩादा ामा ने दे खा फक शॊकय की साधना
ायौ ददशा भें पैर गमी। दयू स्थानों से मततवय के दशान औय सशऺा अफ सभाप्त हो क
ु ी है । सशष्म उस ब्राह्भी
की आकाॊऺा से रोगो ने आकय ओॊकायनाथ को एक त्स्थतत भें ऩहूॊ गमा है जहाॉ प्रततत्ष्ठत होने से श्रतु त
तीथाऺेि भें ऩरयणत कय ददमा। शॊकय का ऩरय म प्राप्त कहती है ्
कय गोववन्दाऩादा ामा ने जान सरमा फक मही वह सबद्यते रृदमग्रत्न्थत्श्छद्यन्ते सवासॊशमा्।
सशवावताय शॊकय है , त्जसे ऄद्वैत ब्रह्मविद्या का उऩदे श ऺीमन्ते ास्म कभााणण तत्स्भन ् दृष्टे ऩयावये ।।
कयने के सरए उन्होने सहस्र वषों तक सभाधध भें अथाात् मह ऩयावय ब्रह्भ दृष्ट होने ऩय दृष्टा का ऄविद्या
अवस्थान फकमा औय अफ मही शॊकय वेद-व्मास यध त आदद सॊस्कायरूऩ रृदमग्रत्न्थ-सभूह नष्ट हो जाता है एवॊ
ब्रह्भसूि ऩय बाष्म सरखकय जगत भें ऄद्वैत ब्रह्मविद्या (प्रायब्धसबन्न) कभायासश का ऺम होने रगता है ।
का प्र ाय कये गा। शॊकय अफ उसी दर
ु ब
ा अवस्था भें प्रततत्ष्ठत हो गमे।
एक शुब ददन श्रीगोववन्दऩादा ामाजी ने शॊकय को वषाा ऋतु का आगभन
हुआ। नभादा-वेत्ष्टत
सशष्म रूऩ भें ग्रहण कय सरमा औय उसे मोगादद की ओॊकायनाथ की शोबा अनुऩभ हो गमी। कुछ ददनों तक
सशऺा दे ने रगे। शॊकय के साथ-साथ अन्मान्म अववयाभ दृत्ष्ट होती यही। नभादा का जर क्रभश् फढ़ने
सॊन्माससमों ने बी उनका सशष्मत्व ग्रहण फकमा। प्रथभ रगा। सफ कुछ जरभम ही ददखाई दे ने रगा।
28 - 2018
ग्राभवाससमों ने ऩारतू ऩशुओॊ सभेत ग्राभ का त्मागकय तुम्हें आशीवााद दे ता हूॉ फक तुभ सभग्र वेदाथा ब्रह्भसूि
तनयाऩद उछ स्थानों भें आश्रम रे सरमा। बाष्म भें सरवऩफि कयने भें सपर होंगे।"
गुरूदे व कुछ ददनों से गुपा भें सभाधधस्थ हुए फैठे श्री गोववन्दऩादा ामा ने जान सरमा फक शॊकय की
थे। फाढ़ का जर फढ़ते-फढ़ते गुपा के द्वार तक आ सशऺा सभाप्त हो गई है । उनका कामा बी सम्ऩूणा हो
ऩहुॉ ा। गमा है । एक ददन उन्होंने शॊकय को अऩने तनकट
सॊन्मासीगण गुरूदे व का जीवन ववऩन्न दे खकय फुराकय ऩूछा की् वत्स ! क्मा तुम्हाये भन भें फकसी
फहुत शॊफकत होने रगे। गुपा भें फाढ़ के जर का प्रवेश प्रकाय का कोई सन्दे ह है ? क्मा तुभ बीतय फकसी प्रकाय
योकना आवश्माक था क्मोंफक वहाॉ गुरूदे व सभाधधस्थ थे। अऩूणत
ा ा का अनुबव कय यहे हो ? अथवा तुम्हें अफ क्मा
सभाधध से दयू कय उन्हे फकसी तनयाऩद स्थान ऩय रे कोई त्जऻासा है ?"
रने के सरमे सबी व्मग्र हो उठे । शॊकय ने आनत्न्दत हो गरू
ु दे व को प्रणाभ कयके कहा्
मह व्मग्रता दे खकय शॊकय कहीॊ से सभट्टी का एक "बगवन ! आऩकी कृऩा से अफ भेये सरए ऻातव्म अथवा
कॊु ब रे आमे औय उसे गुपा के द्वार ऩय यख ददमा औय प्राप्तव्म कुछ बी नहीॊ यहा। आऩने भुझे ऩूणभ
ा नोयथ कय
अन्म सॊन्माससमों को आश्वासन दे ते हुए फोरे् "आऩ ददमा है । अफ आऩ अनुभतत दें फक भैं सभादहत ध त्त
ध त्न्तत न हों। होकय ध यतनवााण राब करूॉ।"
गरू
ु दे व की सभाधध बॊग कयने की कोई कुछ दे य भौय यहकय श्री गोववन्दऩादा ामा ने
आवश्मकता नहीॊ। फाढ़ का जर इस कॊु ब भें प्रववष्ट होते शान्त स्वय भें कहा् "वत्स ! वैददक धभा-सॊस्थाऩन के
ही प्रततहत हो जामेगा, गप
ु ा भें प्रववष्ट नहीॊ हो सकेगा।" सरए दे वाधधदे व शॊकय के अॊश से तम्
ु हाया जन्भ हुआ है ।
सफको शॊकय का मह कामा फार सर
ु ब खेर जैसा तम्
ु हें ऄद्वैत ब्रह्भऻान का उऩदे श कयने के सरए भैं
रगा फकन्तु सबी ने ववत्स्भत होकय दे खा फक जर कॊु ब गरू
ु दे व की आऻा से सहस्रों वषों से तम्
ु हायी प्रतीऺा कय
भें प्रवेश कयते ही प्रततहत एवॊ रूि हो गमा है। गप
ु ा यहा था। अन्मथा ऻान प्राप्त कयते ही दे हत्माग कय
अफ तनयाऩद हो गई है । शॊकय की मह अरौफकक शत्क्त भुत्क्तराब कय रेता।
दे खकय सबी अवाक् यह गमे। अफ भेया कामा सभाप्त हो गमा है । अफ भैं
क्रभश् फाढ़ शाॊत हो गई। गोववन्दऩादा ामा बी सभाधधमोग से स्वस्वरूऩ भें रीन हो जाऊॉगा। तुभ अफ
सभाधध से तनकर गमे। उन्होंने सशष्मों के भुख से शॊकय अववभुक्त ऺेि भें जाओ। वहाॉ तुम्हें बवातनऩतत शॊकय के
के उक्त कामा की फात सुनी तो प्रसन्न होकय उसके दशान प्राप्त होंगे। वे तम्
ु हें त्जस प्रकाय का आदे श दें गे
भस्तक ऩय हाथ यखकय कहा् उसी प्रकाय तुभ कयना।"
"वत्स ! तुम्हीॊ शॊकय के अॊश से उदबूत रोक-शॊकय हो। शॊकय ने श्रीगुरूदे व का आदे श सशयोधामा फकमा।
अऩने गुरू गौड़ऩाद ामा के श्रीभुख से भैंने सुना था फक तदनन्तय एक शुब ददन श्रीगोववन्दऩादा ामा ने सबी
तुभ आओगे औय त्जस प्रकाय सहस्रधाया नभादा का स्रोत सशष्मों को आशीवााद प्रदान कय सभाधध मोग से दे हत्माग
एक कॊु ब भें अवरूि कय ददमा है उसी प्रकाय तुभ कय ददमा। सशष्मों ने मथा ाय गुरूदे व की दे ह का
व्मासकृत ब्रह्भसूि ऩय बाष्मय ना कय ऄद्वैत वेदान्त को नभादाजर भें मोगीजनोध त सॊस्काय फकमा।
आऩात ववयोधी सफ धभाभतों से उछ तभ आसन ऩय गुरूदे व की आऻा के अनुसाय शॊकय ऩैदर रते-
प्रततत्ष्ठत कयने भें सपर होंगे तथा अन्म धभों को रते काशी आमे। वहाॉ काशी ववश्वनाथ के दशान फकमे।
सावाबौभ ऄद्वैत ब्रह्भऻान के अन्तबक्
ुा त कय दोगे। बगवान वेदव्मास का स्भयण फकमा तो उन्होंने बी दशान
ऐसा ही गुरूदे व बगवान गौड़ऩादा ामा ने अऩने ददमे। अऩनी की हुई साधना, वेदान्त के अभ्मास औय
गुरूदे व शुकदे व जी भहायाज के श्रीभुख से सुना था। इन सदगुरू की कृऩा से अऩने सशवस्वरूऩ भें जगे हुए शॊकय
ववसशष्ट कामो के सरए ही तुम्हाया जन्भ हुआ है । भैं 'बगवान श्रीभद् अद्य शंकयाचामा' हो गमे।
29 - 2018
?
शमन का अथा होता है सोना अथाात तनद्रा। दहन्द ू धासभाक भान्मता हैं की दहन्द ू ऩॊ ाॊग के अनश
ु ाय
आषाढ़ शुक्र ऩऺ की एकादशी (अथाात हरयशमन एकादशी) से रेकय अगरे ाय भाह तक बगवान ववष्णु
शेषनाग की शैय्मा ऩय सोने के सरमे ऺीयसागय भें रे जाते हैं अथाात वे तनद्रा भें यहते हैं।
तनद्रा भें सरन होने के ऩश् मात श्री हरय कातताक शुक्र एकादशी (अथाात ् दे वोत्थान मा दे वउठनी एकादशी) को वे
उठ जाते हैं।
बायतीम ऩयॊ ऩया के अनुशाय दे वशमन एकादशी से रेकय कातताक शुक्र दशभी इन ाय भाह तक कोई बी
भाॊगसरक कामा नहीॊ फकमा जाता। क्मोफक इन कामों भें ऩॊ दे वता फक उऩत्स्थतत आवश्मक होती हैं बगवान
ववष्णु ऩॊ दे वता भें व्मोभ अथाात आकाश के अधधऩतत हैं अत् ववशेष रुऩ से बगवान ववष्णु की उऩत्स्थतत
आवश्मक्ता होती है । श्री ववष्णु की तनद्रा भें खरर न ऩड़े इस सरए सबी शुब कामा हरयशमन एकादशी के फाद
से फॊद हो जाते हैं, जो दे वोत्थान एकादशी से ऩुन् प्रायॊ ब होते हैं।
(भांगशरक कामा अथाात गह
ृ प्रवेश, वववाह, दे वताओं की प्राण-प्रततष्ठा, मऻ-हवन, संस्काय आदद कामा को
बायततम संस्कृतत भें भांगशरक कामा कहां जाता हैं।)
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36 - 2018
मोधगनी एकादशी
अजुन
ा ने कहा- "हे प्रबु! अफ आऩ कृऩा कयके है । भैं तुझे श्राऩ दे ता हूॉ फक तू स्िी के ववमोग भें तड़ऩे
आषाढ़ भाह के कृष्ण ऩऺ की एकादशी की कथा औय भत्ृ मुरोक भें जाकय कोढ़ी का जीवन व्मतीत कये ।
सुनाइमे। इस एकादशी का नाभ तथा भाहात्म्म क्मा है ? कुफेय के श्राऩ से वह तत्ऺण स्वगा से ऩथ्
ृ वी ऩय
आऩ भुझे ववस्तायऩूवक
ा फतामें।" धगया औय कोढ़ी हो गमा। उसकी स्िी बी उससे त्रफछड़
श्रीकृष्ण ने कहा- "हे ऩाण्डु ऩुि ! आषाढ़ भाह के गई।
कृष्ण ऩऺ की एकादशी का नाभ "मोधगनी एकादशी" है । भत्ृ मुरोक भें उसने अनेक बमॊकय कष्ट बोगे,
मोधगनी एकादशी के व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। उसकी फुवि भसरन न हुई औय उसे ऩूवा जन्भ की बी
मह व्रत इसरोक भें बोग तथा ऩयरोक भें भुत्क्त सुध यही। अनेक कष्टों को बोगता हुआ तथा अऩने ऩव
ू ा
दे ने वारा है । हे अजुन
ा ! मह एकादशी तीनों रोकों भें जन्भ के कुकभो को माद कयता हुआ वह दहभारम ऩवात
प्रससि है । मोधगनी एकादशीके व्रत से भनुष्म के सबी की तयप र ऩड़ा।
ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। रते- रते वह भाकाण्डेम ऋवष के आश्रभ भें जा
भैं तुम्हें ऩुयाण भें कही हुई कथा सुनाता हूॉ, हे ऩहुॉ ा। भाकाण्डेम ऋवष अत्मन्त तऩस्वी थे। भाकाण्डेम
अजुन
ा ध्मानऩूवक ा श्रवण कयो- कुफेय नाभ का एक याजा ऋवष दस ू ये ब्रह्भा के सभान प्रतीत हो यहे थे औय उनका
अरकाऩुयी नाभ की नगयी भें याज्म कयता था। वह ऩयभ वह आश्रभ ब्रह्भाजी की सबा के सभान शोबा दे यहा
सशव-बक्त था। याजा का हे भभारी नाभक एक मऺ था। ऋवष को दे खकय हे भभारी वहाॉ गमा औय उन्हें
सेवक था, जो ऩूजा के सरए पूर रामा कयता था। प्रणाभ कयके उनके यणों भें धगय ऩड़ा।
हे भभारी की ववशाराऺी नाभ की अतत सन्
ु दय स्िी थी। हे भभारी को दे खकय भाकाण्डेम ऋवष ने कहा तन
ू े
एक ददन वह भानसयोवय से ऩष्ु ऩ रेकय आमा, कौन-से कभा फकमे हैं, त्जससे तू कोढ़ी हुआ औय
फकन्तु काभासक्त होने के कायण ऩष्ु ऩों को यखकय बमानक कष्ट बोग यहा है ।
अऩनी स्िी के साथ यभण कयने रगा। इस बोग-ववरास भहवषा की फात सन
ु कय हे भभारी फोरा हे
भें दोऩहय हो गई। भतु नश्रेष्ठ! भैं याजा कुफेय का अनु य था। भेया नाभ
हे भभारी की याह दे खते-दे खते जफ याजा कुफेय को हे भभारी है । भैं प्रततददन भानसयोवय से पूर राकय सशव
दोऩहय हो गई तो याजा ने क्रोधऩव
ू क
ा अऩने अन्म सेवकों ऩज
ू ा के सभम याजा कुफेय को ददमा कयता था। एक ददन
को आऻा दी फक तुभ जाकय ऩता रगाओ फक हे भभारी स्िी भोहॉ भें पॉस जाने के कायण भुझे सभम का ऻान
अबी तक ऩुष्ऩ रेकय क्मों नहीॊ आमा। जफ सेवकों ने ही नहीॊ यहा औय भैं दोऩहय तक ऩुष्ऩ याजा तक न
उसका ऩता रगा के याजा के ऩास आकय फतामा- 'हे ऩहुॉ ा सका।
याजन! वह हे भभारी अऩनी स्िी के साथ यभण कय यहा तफ याजा ने क्रोध भे भुझे श्राऩ ददमा फक तू
है ।' अऩनी स्िी का ववमोग औय भत्ृ मुरोक भें जाकय कोढ़ी
इस फात को सुन याजा ने हे भभारी को फुराने फनकय दख
ु बोग। इस कायण भैं कोढ़ी हो गमा हूॉ तथा
की आऻा दी। डय से काॉऩता हुआ हे भभारी याजा के ऩथ्
ृ वी ऩय आकय कष्ट बोग यहा हूॉ, अत् कृऩा कयके
साभने उऩत्स्थत हुआ। उसे दे खकय कुफेय को अत्मन्त आऩ कोई ऐसा उऩाम फतरामे, त्जससे भेयी भुत्क्त हो।
क्रोध आमा। याजा ने कहा- 'अये अधभ! तूने भेये ऩयभ भाकाण्डेम ऋवष ने कहा 'हे हे भभारी! तूने सत्म
ऩूजनीम दे वों के दे व बगवान सशवजी का अऩभान फकमा व न कहे हैं, इससरए भैं तुम्हायें उिाय के सरए एक व्रत
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फताता हूॉ। मदद तूभ आषाढ़ भाह के कृष्ण ऩऺ की मोधगनी एकादशी हे याजन! इस मोधगनी एकादशी की
मोधगनी नाभक एकादशी का ववधानऩूवक
ा व्रत कयोगेतो कथा का पर अट्ठासी सहस्र ब्राह्भणों को बोजन कयाने
तेये सबी ऩाऩ नष्ट हो जाएॉगे। के सभान है । इसके व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं
भहवषा के व न सुन हे भभारी अतत प्रसन्न हुआ औय अन्त भें भोऺ प्राप्त कयके जीव स्वगा का अधधकायी
औय भहवषा के व नों के अनुसाय मोधगनी एकादशी का फनता है ।"
ऩूणा ववधध-ववधान से व्रत कयने रगा। इस व्रत के प्रबाव - : भनुष्म को ऩूजा-अ न
ा ा इत्मादद धासभाक कामा भें
से अऩने ऩुयाने स्वरूऩ भें आ गमा औय अऩनी स्िी के आरस्म मा प्रभाद नहीॊ कयना ादहए, अवऩतु भन को सॊमभ
साथ सुखऩूवक
ा यहने रगा। भें यखकय सदै व इष्ट सेवा कयनी ादहए।
दे वशमनी एकादशी
अजन
ुा ने कहा- हे श्रीकृष्ण ! आषाढ़ भाह के प्रजाजनों की फात सन
ु याजा ने कहा आऩ रोग सत्म
शक्
ु र ऩऺ की एकादशी की कथा सन
ु ाइमे। उस ददन कह यहे हैं। वषाा न होने से आऩ रोग फहुत दख ु ी हैं।
फकस दे वता का ऩज
ू न होता है ? उसका क्मा ववधान है ? याजा के ऩाऩों के कायण ही प्रजा को कष्ट बोगना ऩड़ता
कृऩा कय मह सफ ववस्तायऩव
ू क
ा फतामें। है । इस ववषम भें , भैं फहुत सो -वव ाय कय यहा हूॉ, फपय
बगवान श्रीकृष्ण ने कहा- "हे ऩाण्डु ऩि
ु ! एक बी भझ ु े अऩना कोई दोष ददखराई नहीॊ दे यहा है । आऩ
फाय नायदजी ने ब्रह्भाजी से मही प्रश्न ऩछ
ू ा था। तफ रोगों के कष्ट को दयू कयने के सरए भैं फहुत उऩाम कय
ब्रह्भाजी ने कहा था फक नायद! तभ
ु ने कसरमग
ु भें यहा हूॉ, ऩयन्तु आऩ ध त्न्तत न हों, भैं इसका कोई-न-
प्राणणभाि के उिाय के सरए सवा श्रेष्ठ प्रश्न ऩूछा है , कोई उऩाम अवश्म ही करूॉगा।
क्मोंफक एकादशी का व्रत सफ व्रतों भें उत्तभ होता है। याजा के व नों को सुन प्रजाजन रे गमे। याजा
इसके व्रत से सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी भान्धाता बगवान की ऩूजा कय कुछ ववसशष्ट व्मत्क्तमों
का नाभ "दे वशमनी एकादशी" है । को साथ रेकय वन की ओय र ददमा। वन भे वह
मह व्रत कयने से बगवान ववष्णु प्रसन्न होते हैं। ऋवष-भुतनमों के आश्रभों भें घूभते-घूभते अन्त भें अॊधगया
इस सम्फन्ध भें , भैं तुम्हें एक ऩौयाणणक कथा सुनाता हूॉ, ऋवष के आश्रभ ऩय ऩहुॉ गमा। यथ से उतयकय याजा
आऩ ध्मानऩूवक
ा श्रवण कयो भान्धाता नाभ का एक आश्रभ भें गमा। ऋवष के सम्भुख ऩहुॉ कय याजा ने उन्हें
सूमव
ा ॊशी याजा था। भान्धाता सत्मवादी, भहान तऩस्वी प्रणाभ फकमा। ऋवष ने याजा को आशीवााद ददमा, फपय
औय क्रवतॉ थाभान्धाता अऩनी प्रजा का ध्मान सन्तान ऩूछा- हे याजन! आऩ महाॉ फकस प्रमोजन से ऩधाये हैं, वो
की तयह कयता था। उसके याज्म की प्रजा धन-धान्म से कदहमे।
ऩरयऩूणा थी औय सुखऩूवक
ा जीवन-माऩन कय यही थी। याजा ने कहा हे भहवषा! भेये याज्म भें अकार ऩड़
उसके याज्म भें कबी अकार नहीॊ ऩड़ता था। गमा है , तीन वषा से वषाा नहीॊ हो यही है औय प्रजा कष्ट
कबी फकसी प्रकाय की प्राकृततक आऩदा नहीॊ बोग यही है। याजा के ऩाऩों के प्रबाव से ही प्रजा को
आती थी, ऩयन्तु न जाने याजा से क्मा बूर हो गई फक कष्ट सभरता है , ऐसा शास्िों भें सरखा है । भैं धभाानुसाय
एक फाय उसके याज्म भें जफयदस्त अकार ऩड़ गमा औय याज कयता हूॉ, फपय मह अकार कैसे ऩड़ गमा, इसका
प्रजा बोजन की कभी के कायण अत्मन्त दख
ु ी यहने भुझे अबी तक ऩता नहीॊ रग सका। अफ भैं आऩके ऩास
रगी। याज्म भें मऻ होने फन्द हो गए। अकार से ऩीडड़त इसी सभस्मा की तनवत्ृ त्त के सरए आमा हूॉ। आऩ कृऩा
प्रजा एक ददन दख
ु ी होकय याजा के ऩास जाकय प्राथाना कय भेयी इस सभस्मा का तनवायण कय भेयी प्रजा के
कयने रगे हे याजन! सभस्त सॊसाय की सत्ृ ष्ट का भुख्म कष्ट को दयू कयने के सरए कोई उऩाम फतराइमे।
आधाय वषाा है । सफ फात सन
ु ने के फाद ऋवष ने कहा 'हे याजन!
इसी वषाा के अबाव से याज्म भें अकार ऩड़ गमा इस सतमग
ु भें धभा के ायों यण सत्म्भसरत हैं। मह
है औय अकार से याज्म की प्रजा भय यही है । हे बऩ
ू तत! सतमग
ु सबी मग
ु ों भें उत्तभ है । इस मग
ु भें केवर
आऩ कोई ऐसा उऩाम कीत्जमे, त्जससे हभ रोगों का ब्राह्भणों को ही तऩ कयने तथा वेद ऩढ़ने का अधधकाय
कष्ट धीि दयू हो सके। मदद जल्द ही हभाये याज्म को है , फकन्तु आऩके याज्म भें एक शद्र
ू तऩ कय यहा है ।
अकार से भत्ु क्त न सभरी तो वववश होकय हभें को इसी दोष के कायण आऩके याज्म भें वषाा नहीॊ हो यही
फकसी दस
ू ये याज्म भें शयण रेनी ऩड़ेगी। है । मदद आऩ प्रजा का कल्माण ाहते हैं तो शीि ही
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उस शूद्र का वध कयवा दें । जफ तक आऩ मह कामा नहीॊ सबी कष्टों से भुक्त कयने वारा है ।'
कय रेत,े तफ तक आऩका याज्म अकार की ऩीड़ा से ऋवष के इन व नों को सुनकय याजा अऩने नगय
कबी भुक्त नहीॊ हो सकता।' ऋवष के व न सुन याजा ने वाऩस आ गमा औय ववधध-ववधान से दे वशमनी एकादशी
कहा- 'हे भुतनश्रेष्ठ! भैं उस तनयऩयाध तऩ कयने वारे शूद्र का व्रत फकमा। इस व्रत के प्रबाव से याज्म भें अछछी
को नहीॊ भाय सकता। फकसी तनदोष भनुष्म की हत्मा वषाा हुई औय प्रजा को अकार से भुत्क्त सभरी।
कयना भेये आ यण के ववरुि है औय भेयी आत्भा इसे इस एकादशी को ऩद्मा एकादशी बी कहते हैं। इस
फकसी बी त्स्थतत भें स्वीकाय नहीॊ कये गी। आऩ इस दोष व्रत के कयने से बगवान ववष्णु प्रसन्न होते हैं, अत्
से भुत्क्त का कोई दस
ू या उऩाम फतराइमे।' भोऺ की इछछा यखने वारे भनुष्मों को इस एकादशी का
याजा को वव सरत जान ऋवष ने कहा- 'हे याजन! व्रत कयना ादहए। ातभ
ु ाास्म व्रत बी इसी एकादशी के
मदद आऩ ऐसा ही ाहते हो तो आषाढ़ भाह के शुक्र व्रत से आयम्ब फकमा जाता है ।"
ऩऺ की दे वशमनी एकादशी का ववधानऩूवक
ा व्रत कयो। - अऩने कष्टों से भुत्क्त ऩाने के सरए फकसी
इस व्रत के प्रबाव से तम्
ु हाये याज्म भें वषाा होगी औय दस
ू ये का अदहत नहीॊ कयना ादहए। इष्टदे व ऩय श्रिा
प्रजा बी ऩूवा की बाॉतत सुखी हो जाएगी, क्मोंफक इस औय आस्था यखकय सत्कभा कयने से फड़े से फड़े कष्टों
एकादशी का व्रत सबी ससविमों को दे ने वारा है औय से बी सयरता से भत्ु क्त सभर सकती है ।
GURUTVA KARYALAY
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ातुभाास्म व्रत
अजन
ुा ने कहा- हे श्रीकृष्ण ! ववष्णु का शमन ऩऺ की द्वादशी को सभाप्त कय दे ना ादहए। इस
व्रत की कथा सुनाइमे। बगवान ववष्णु का शमन व्रत उऩवास के भनुष्म के सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं। जो
फकस प्रकाय फकमा जाता है । कृऩा कय ववस्तायऩूवक
ा भनुष्म इस उऩवास को प्रतत वषा कयते हैं, वह सूमा के
फताइमे।" सभान क्रात्न्तमुक्त ववभान ऩय फैठकय ववष्णु रोक को
श्रीकृष्ण ने कहा "हे ऩाण्डु ऩुि ! अफ भैं तुम्हें जाते हैं। हे याजन! अफ आऩ इसभें दान का अरग-अरग
बगवान श्रीहरय के शमन व्रत का ववस्ताय से वणान पर जानें-
सुनाता हूॉ। इसे ध्मानऩव
ू क
ा श्रवण कयो सूमा के कका यासश
भे प्रवेश होने ऩय बगवान ववष्णु शमन कयते हैं औय दे व भॊददयों भें यॊ गीन ऩत्ते-ऩत्त्तमाॊ फनाने वारे
जफ सूमा तुरा यासश भे आते हैं तफ बगवान जागते हैं। भनुष्म को सात जन्भों तक ब्राह्भण जन्भ सभरता
अधधक भास के दौयान बी ववधध इसी प्रकाय यहती है । है ।
आषाढ़ भाह के शुक्र ऩऺ की एकादशी का ातुभाास्म के ददनों भें जो भनुष्म बगवान ववष्णु को
ववधानऩूवक
ा उऩवास कयना ादहए। उस ददन बगवान दही, दध
ू घी, शहद औय सभश्री आदद ऩॊ ाभत
ृ से
ववष्णु की भूतता फनानी ादहए औय ातुभाास्म उऩवास स्नान कयाता है , वह वैबवशारी होकय अनन्त सुख
तनमभऩूवक
ा कयना ादहए। सवाप्रथभ बगवान ववष्णु की बोगता है ।
भूतता को स्नान कयाना ादहए। फपय श्वेत वस्िों को श्रिा ऩूवक
ा बूसभ, स्वणा, दक्षऺणा आदद ब्राह्भणों को
धायण कयाकय बगवान ववष्णु को तफकमादाय शैमा ऩय दानस्वरूऩ दे ने वारा भनुष्म स्वगा भें जाकय दे वयाज
शमन कयाना ादहए। बगवान ववष्णु का धऩ
ू , दीऩ औय के सभान सुख बोगता है ।
नैिेद्यादद ऩूणा ववधध-ववधान से ऩूजन कयाना ादहए। ववष्णु की स्वणा प्रततभा फनाकय जो भनुष्म उसका
बगवान का ऩूजन विद्वान ब्राह्भणों के द्वारा कयाना धऩ
ू , दीऩ, ऩुष्ऩ, नैिेद्य आदद से ऩूजन कयता है , वह
ादहए, ववष्णु की इस प्रकाय स्ततु त कयनी ादहए- 'हे दे वरोक भे जाकय अनन्त सख
ु बोगता है ।
प्रब!ु भैंने आऩको शमन कयामा है । आऩके शमन से ातभ
ु ाास्म भे जो भनष्ु म तनत्म बगवान को तर
ु सी
सम्ऩण
ू ा ववश्व सो जाता है । अवऩात कयता है , वह फैठकय ववष्णर
ु ोक को जाता है ।
इस तयह बगवान श्रीहरय के साभने हाथ जोड़कय बगवान ववष्णु का धऩ
ू -दीऩ से ऩज
ू न कयने वारे
प्राथाना कयनी ादहए- 'हे प्रबु! आऩ जफ ाय भाह तक भनष्ु म को अऺम धन की प्रात्प्त होती है ।
शमन कयें , तफ तक भेये इस ातभ
ु ाास्म व्रत को तनववार्घन दे वशमनी एकादशी से कातताक के भहीने तक जो
यखें।' भनष्ु म बगवान ववष्णु की ऩज
ू ा कयते हैं, उन्हें
बगवान ववष्णु की स्तुतत कयने के उऩयान्त शुि ववष्णुरोक की प्रात्प्त होती है ।
बाव से भनुष्मों को दातुन आदद के तनमभ को ग्रहण जो भनुष्म हस ातुभाास्म व्रत भें सॊध्मा के सभम
कयना ादहए। बगवान ववष्णु के व्रत को आयम्ब कयने दे वताओॊ तथा ब्राह्भणों को दीऩ दान कयते हैं तथा
के ऩाॉ कार वणणात फकए गए हैं। दे वशमनी एकादशी से ब्राह्भणों को स्वणा के ऩाि भें वस्ि दान दे ते हैं , वह
रेकय दे वोत्मानी एकादशी तक ातुभाास्म उऩवास कयना ववष्णुरोक को जाते हैं। बत्क्तऩूवक
ा बगवान का
ादहए। द्वादशी, ऩूणभ
ा ाशी, अष्टभी मा सॊक्राॊतत को यणाभत
ृ रेने वारे भनुष्म इस सॊसाय के आवागभन
उऩवास शुरू कयना ादहए औय कातताक भाह के शुक्र के क्र से भुक्त हो जाते हैं।
41 - 2018
जो भनुष्म बगवान ववष्णु के भॊददय भें प्रततददन ऩाऩों का नाश कयने वारे हैं। भेये न कयने मोग्म
१०८ फाय गामिी भन्ि का जाऩ कयते हैं , वे कबी कामों को कयने से जो ऩाऩ उत्ऩन्न हुए हैं, कृऩा कय
ऩाऩों भें सरप्त नहीॊ होते। आऩ उनको नष्ट कीत्जए।
ऩुयाण तथा धभाशास्ि को सुनने वारे औय वेदऩाठी ातुभाास्म भें प्राजाऩत्म तथा ाॊद्रामण व्रत ऩितत
ब्राह्भणों को वस्िों का दान कयने वारे भनुष्म दानी, का ऩारन बी फकमा जाता है । प्राजाऩत्म व्रत को १२
धनी, ऻानी औय मशस्वी होते हैं। ददनों भें ऩूणा कयते हैं। व्रत के आयम्ब से ऩहरे तीन
जो भनुष्म बगवान, ववष्णु मा सशवजी का स्भयण ददन १२ ग्रास बोजन प्रततददन रेते हैं , फपय आगाभी
कयते हैं औय उनकी प्रततभा दान कयते हैं, वे सभस्त तीन ददनों तक प्रततददन छब्फीस ग्रास बोजन रेते
ऩाऩों से भुक्त होकय गुणवान फनते हैं। हैं, इसके आगे के तीन ददनों तक २८ ग्रास बोजन
जो भनुष्म सूमा को अर्घमा दे ते हैं औय सभात्प्त भें सरमा जाता है औय इसके फाद फाकी फ े तीन ददन
गौ-दान कयते हैं, वे तनयोगता, दीघाामु, मश, धन तनयाहाय यहा जाता है । इस व्रत के कयने से भनुष्म
औय फर ऩाते हैं। की इत्छछत भनोकाभना ऩूणा होती है । व्रत कयने
जो भनुष्म ातुभाास्म भें गामिी भन्ि द्वारा ततर से वारा साधक प्राजाऩत्म व्रत कयते हुए ातुभाास्म के
होभ कयते हैं औय ातभ
ु ाास्म सभाप्त हो जाने ऩय हे तु उऩमक्
ु त सबी धासभाक कृत्म जैसे ऩज
ू न, जऩ,
ततर का दान कयते हैं, उनके सबी ऩाऩ नष्ट हो तऩ, दान, शास्िों का ऩठन-ऩाठन तथा कीतान आदद
जाते हैं औय तनयोग कामा सभरती है तथा सॊस्कायी कयता यहे ।
सॊतान की प्रात्प्त होती है। हे अजन
ुा ! इसी प्रकाय ाॊद्रामण व्रत बी फकमा जाता
जो भनष्ु म ातभ
ु ाास्म व्रत अन्न से होभ कयते हैं है । अफ इस व्रत का ववधान सन
ु ो- मह व्रत ऩयू ा
औय सभाप्त हो जाने ऩय घी, करश औय वस्िों का भहीना फकमा जाता है । ऩाऩों से भत्ु क्त के सरए
दान कयते हैं, वे ऐश्वमाशारी होते हैं। जो भनष्ु म फकमा जाने वारा मह व्रत फढ़ता-घटता यहता है ।
तुरसी को गरे भें धायण कयते हैं तथा अन्त भें इसभें अभावस्मा को एक ग्रास, प्रततऩदा को दो
बगवान ववष्णु के तनसभत्त ब्राह्भणों को दान दे ते हैं, ग्रास, द्ववतीमा को तीन ग्रास बोजन रेते हुए
वह ववष्णुरोक को ऩाते हैं। ऩूणणाभा के ऩूवा ौदह ग्रास औय ऩूणणाभा को ऩन्द्रह
ातुभाास्म उऩवास भें जो भनुष्म बगवान ववष्णु के ग्रास बोजन रेना ादहए। फपय ऩूणणाभा के फाद
शमन के उऩयान्त उनके भस्तक ऩय तनत्म दध
ू ौदह, तेयह, फायह, ग्मायह ग्रास इस क्रभ भें बोजन
ढ़ाते हैं औय अन्त भें स्वणा की दव
ू ाा दान कयते हैं रेते हुए बोजन की भािा प्रततददन घटानी ादहए।
तथा दान दे ते सभम जो इस प्रकाय की स्तुतत कयते है अजुना ! जो प्राजाऩत्म औय ाॊद्रामण व्रत कयते हैं,
हैं फक- 'हे दव
ू !े त्जस बाॉतत इस ऩथ्
ृ वी ऩय शाखाओॊ उन्हें इसरोक भें धन सम्ऩत्त्त, शायीरयक तनयोगता
सदहत पैरी हुई हो, उसी प्रकाय भुझे बी अजय-अभय तथा बगवान की कृऩा प्राप्त होती है । इसभें काॊसे
सॊतान दो', ऐसा कयने वारे भनुष्म के सफ ऩाऩ का ऩाि औय वस्ि दान की शास्िीम व्मवस्था है।
नष्ट हो जाते हैं औय अन्त भें स्वगा की प्रात्प्त होती ातुभाास्म के सभाऩन ऩय दक्षऺणा से सुऩाि
है । ब्राह्भणों को सन्तुष्ट कयने का ववधान है ।
जो भनुष्म बगवान सशव मा ववष्णु का स्भयण कयते ातुभाास्म व्रत के ऩूणा हो जाने के फाद ही गौ-दान
हैं, उन्हें यात्रि जागयण का पर प्राप्त होता है । कयना ादहए। मदद गौ-दान न कय सकें तो वस्ि
ातुभाास्म व्रत कयने वारे भनुष्म को उत्तभ ध्वतन दान अवश्म कयना ादहए।
वारा घण्ट दान कयना ादहए औय इस प्रकाय स्तुतत तनत्म जो भनुष्म ब्राह्भणों को प्रणाभ कयते हैं,
कयनी ादहए- 'हे प्रबु! हे नायामण! आऩ सभस्त उनका जीवन सपर हो जाता है औय वे सबी ऩाऩों
42 - 2018
से भुक्त हो जाते हैं। ातुभाास्म व्रत ऩूणा होने ऩय जो भनुष्म वषाा ऋतु भें गोऩी द
ॊ न दे ते हैं, उन ऩय
जो ब्राह्भणों को बोजन कयाता है , उसकी आमु तथा बगवान प्रसन्न होते हैं। ातुभाास्म भें एक फाय
धन भें ववृ ि होती है । बोजन कयने वारा, बूखे को अन्न दे ने वारा, बूसभ
जो भनुष्म अरॊकाय सदहत फछड़े वारी कवऩरा गाम ऩय शमन कयने वारा अबीष्ट को प्राप्त कयता है ।
वेदऩाठी ब्राह्भणों को दान कयते हैं , वे क्रवतॉ इत्न्द्रम तनग्रह कय, ातुभाास्म व्रत का अनन्त पर
आमुवान, सॊतानवान याजा होते हैं औय स्वगारोक भें प्राप्त फकमा जाता है ।
प्ररम के अन्त तक दे वयाज के सभान याज्म कयते श्रावण भें शाक, बादों भें दही, आत्श्वन भें दग्ु ध
हैं। औय कातताक भें दार का त्माग कयने वारे भनष्ु म
सूमद
ा े व तथा गणेशजी को जो भनुष्म तनत्म प्रणाभ तनयोगी होते हैं।
कयते हैं, उनकी आमु तथा रक्ष्भी फढ़ती है औय ातुभाास्म व्रत का तनमभऩूवक
ा ऩारन कयने ऩय ही
मदद गणेशजी प्रसन्न हो जाएॉ तो वे भनोवाॊतछत ईद्यापन कयना ादहए। जफ प्रबु से शैमा त्मागने
पर ऩाते हैं। सूमद
ा े व औय गणेशजी की प्रततभा का अनुयोध कयें , तफ ववशेष ऩूजन कयना ादहए।
ब्राह्भण को दे ने से सभस्त कामों की ससवि होती हैं। इस अवसय ऩय तनयसबभानी विद्वान ब्राह्भण को
दोनो ऋतओ
ु ॊ भें जो भनष्ु म सशवजी की प्रसन्नता के अऩनी ऺभता के अनस
ु ाय दान-दक्षऺणा दे कय प्रसन्न
सरए ततर औय वस्िों के साथ ताॊफे का ऩाि दान कयना ादहए। हे अजन
ुा ! दे वशमनी एकादशी औय
कयते हैं, उनके महाॉ स्वस्थ व सन्
ु दय सशवबक्त ातभ
ु ाास्म का भाहात्म्म अनन्त ऩण्
ु म परदामी है ,
सॊतान उत्ऩन्न होती है । ातभ
ु ाास्म व्रत के ऩण
ू ा होने इस व्रत के कयने से भानससक शात्न्त औय बगवान
ऩय ाॉदी मा ताॊफा-ऩाि गड़
ु औय ततर के साथ दान ववष्णु के प्रतत श्रिा फढ़ती है ।
कयना ादहए।
कथा-साय
बगवान ववष्णु के शमन कयने के उऩयान्त जो
ातुभाास्म बगवान ववष्णु की कृऩा प्राप्त कयने के सरए
भनुष्म मथा शत्क्त वस्ि औय ततर के साथ स्वणा
ाय भास तक फकमा जाने वारा व्रत है । इस व्रत को
का दान कयते हैं, उनके सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हैं
दे वशमनी से दे वोत्थान एकादसशमों से जोड़ने से बगवान
औय वे इसरोक भें बोग तथा ऩयरोक भें भोऺ
के प्रतत आस्था सुदृढ़ होती है । ातुभाास्म भें जफ
प्राप्त कयते हैं।
बगवान ववष्णु शमन कयते हैं, उस सभम कोई बी
ातुभाास्म व्रत के ऩूणा होने ऩय जो भनुष्म शैमा
भाॊगसरक कामा नहीॊ फकए जाते, भाॊगसरक कामों का
दान कयते हैं, उनको अऺम सुख की प्रात्प्त होती है
शुबायम्ब दे वोत्थानी एकादशी से ऩुन् प्रायम्ब होता है ।
औय वे कुफेय के सभान धनवान होते हैं।
प्रात्प्त स्थान:
फफ़योजा के प्रात्प्त स्थान फहोत साये है । त्जनभें से कुछ ही का उल्रेख वाणणत्ज्मक के सरए उत्तभ होता है ।, त्जसकी
गुणवत्ता औय प्रबाव अछछा हो उस का उल्रेख फकमा जायहा है । ईयान के भा’डन (Ma'dan) से ४५-५० फकभी उत्तय
ऩत्श् भ भें नेइशाफुय(तनशाऩुय) त्जसे बायत भे तनशाऩुयी के नाभ से जाना जता है । तनशाऩुयी सफसे अछछा होता है
इस्का यॊ ग एवॊ प्रबाव फाकी जगाओ से प्राप्त से उत्तभ होता है । दक्षऺण ऑस्रे सरमा. भें ीन, ब्राजीर, भेत्क्सको,
सॊमुक्त याज्म अभयीका, इॊग्रैंड, फेत्ल्जमभ औय बी फहोत सायी जगाहो से प्राप्त होता है ।
प्राकृततक सॊद
ु य फफ़योजा फ़ामदे भॊद है ।
भर
ू मह एक 100% प्राकृततक यत्न ऩत्थय है । (खनन/खादान के भाध्मभ से प्राप्त)
फफ़योजा के राब
फफ़योजा को एक आध्मात्त्भक रूऩ भें सहामता हे तु प्रमोग फकमा जाता है ।
फकसी बी त्स्थतत भें , जहाॊ स्ऩस्ट फात कयने की आवश्मक है , वहा व्मत्क्त की फात भे एक प्रकाय के गुण उत्ऩन्न
कयती है जो उसे दस
ू यो से अरग औय ज्मदा स्ऩस्ट सुवक्ता फनने भे भदद कयता है ।
व्मत्क्त को दोस्तों के फी खर
ु े वव ाय, प्माय औय तन:स्वाथा सॊफॊध के प्रवाह को सऺभ कयने के सरए, फफ़योजा
उऩमोगकताा के अॊदय सभग्र भानससक त्स्थतत को फढ़ाने भे, सकायात्भक सो , सॊऩूणत
ा ा, अॊतऻाान, फुवि, भानससक
अधधक त्स्थयता औय आत्भ का ववकास कय उसको जानने के सरए अग्रणी फनाता है ।
फफ़योजा के सरमे कहा जाता ह। इस यत्न का राब सबी यासश के रोगो द्वारा उऩमोग फकमा जा सकता है , इसे
दतु नमा भे सबी उम्र औय सफ धभा के रोगो भे इस्तेभार सफसे आभ ऩहरू मह है , फक प्रत्मेक सॊस्कृतत औय हय
धभा भे फफ़योजा के राब का सम्भान कयते है ।
ऩहनने वारा के ऩरयवाय को भुसीफत से फ ामा है ववशेष रूऩ से ऩतत औय ऩत्नी फी , नफ़यत को नष्ट कयता है
औय प्माय फढ़ाता है ।
इस यत्न की अदृश्म स्िोतों से आने वारी ऊजाा आऩ के सरए उप्मोगी हो सकती है ।
फफ़योजा के यॊ ग भे फदराव होता यहता है ।
मदद मह गहये नीरे यॊ ग का हो तो मह अछछा शगुन है ।
मदद मह गहये हये यॊ ग का हो तो मह भाध्मभ है।
ऩयन्तु अगय मह ऩीरा हो जाता है मह एक फयु ा शगन
ु है ।
फफ़योजा को दोस्ती केसरमे एक अछछा सॊकेत भाना जाता है अगय फकसी अन्म व्मत्क्त के द्वारा उऩहाय भे प्राप्त
हो।
44 - 2018
राब:-
मह ीन भे व्माऩक रूऩ से पेंग शुई औय फक्रस्टर ध फकत्सा भें इस्तेभार फकमा है ।
शयाफ की रत छुडाने के सरए फक्रस्टर ध फकत्सकों द्वारा फफ़योजा की ससपारयश की जाती है ।
सॊक्रभण,ऊॉ ा यक्त ाऩ, अस्थभ, दाॉत औय भॉह
ु की सभस्मा एवॊ सूमा के ववफकयण से यऺा होती है ।
मह ज्मादातय फाज़य भे त्रफकने वारे फफ़योजा जेसे ऩत्थय असरी नहीॊ होते।
एक असरी मा नकरी फफ़योजा को ऩह ान ने के सरमे, इसकी सतह को दे खे असरी फक सतह खद
ु ा यी औय
सभतर मा सऩाट नहीॊ होती, एवॊ नकरी फफ़योजा की सतह सभतर मा सऩाट होती है ।
ध फकत्सा अस्वीकृतत
ऊऩय उल्रेख फफ़योजा सफ वणान के बायतीम औय ीनी ऩौयाणणक कथाओॊ के अनस
ु ाय हैं।
ऩत्थय के हीसरॊग राब के सरमे अऩने ध फकत्सक मा अन्म स्वास्थ्म दे खबार ऩेशव
े य से सराह रे एक ववकल्ऩ के
रूऩ भें इस्तेभार नहीॊ कयना ादहए।
स्वप्न भें भत
ृ ऩऺी को दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें जरता हुवा दीऩक दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें स्वणा को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें ह
ू ों को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें सपेद ीदटमाॉ दे खना धन राब का सॊकेत है । अष्ट रक्ष्भी कव को धायण
स्वप्न भें कारे त्रफछछू को दे खना धन राब का सॊकेत है । कयने से व्मत्क्त ऩय सदा भाॊ भहा
स्वप्न भें नेवरे का को दे खना हीये -ज्वाहयात फक प्रात्प्त का सॊकेत है । रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना
स्वप्न भें भधभ
ु क्खी का छत्ता दे खना धन राब का सॊकेत है । यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के
स्वप्न भें सऩा को पन उठामे दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । अष्ट रुऩ (१)-आदद रक्ष्भी, (२)-
स्वप्न भें हाथी को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी,
स्वप्न भें भहर को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
स्वप्न भें तोते को खाते दे खना प्रफर धन प्रात्प्त के मोग का सॊकेत है । (६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्मा
स्वप्न भें अॊगर
ु ी भें अॊगठ
ू ी ऩहनें हुवे दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है । रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन
स्वप्न भें आभ का फधग ा दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद
स्वप्न भें ऩवात औय वऺ
ृ ऩय ढ़ते दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
प्राप्त होता हैं।
स्वप्न भें आॊवरे औय कभर को दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
भल्
ू म भाि: Rs- 1250
स्वप्न भें गौ दग्ु ध, घी, पर वारे वऺ
ृ दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें सऩा को त्रफर के साथ दे खना आकत्स्भक धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
स्वप्न भें गाम के दशान होने से अत्मन्त शुब होता हैं, व्मत्क्त को मश, वैबव एवॊ ऩरयवाय वद्
ृ तघ से राब प्राप्त
होती है ।
स्वप्न भें फकसान को खेत भें काभ कयते दे खना धन प्रात्प्त का सॊकेत है ।
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हल्दी को हरयद्रा बी कहा जाता है । तॊि विद्या के से धन से सॊफॊधधत सभस्माएॊ दयू होती है ,
जानकायों का तो महाॊ तक भानना हैं की असरी कारी योजगाय भें ववृ ि होती हैं।
हल्दी प्राप्त होना सौबाग्म की फात हैं। त्जस घय भें कारी हल्दी के प्रबाव से नकायात्भक उजाा को
कारी हल्दी का ऩूजन होता हो वह घय भें तनवास कताा दयू फकमा जा सकता है ।
सौबाग्मशारी होते हैं। फकसी शुब भुहूता भें कारी हल्दी को ससॊदयू भें
ऐसी धासभाक भान्मता हैं की अऺम तत
ृ ीमा, यखकय धऩ
ू -दीऩ से ऩूजन कय रार कऩड़े भें एक
धनिमोदशी, दीऩावरी, ग्रहण, गुरु ऩुष्माभत
ृ मोग, ससक्के के साथ फाॊधय ततजोयी मा गल्रे भें यखने
त्रिऩुष्कय मोग, द्ववऩुष्कय मोग, कामा ससवि मोग, अभत
ृ से धन की ववृ ि होने रगती है ।
ससवि मोग आदद फकसी शुब भुहूता भें कारी हल्दी को
अऩने ऩूजा स्थान भें स्थावऩत कय उसका तनमसभत प्रफर धन प्रात्प्त प्रमोग
ऩूजन कयने से कारी हल्दी का भत्कायी प्रबाव
प्रफर धन की इछछा यखने वारे व्मत्क्त को भॊि
आश् माजन रुऩ से अतत शीि प्राप्त होता हैं।
ससि 11 गोभती क्र, 11 ऩीरी कौडडयाॊ औय कारी
हल्दी के 11 टुकड़ों को दीऩावरी मा धनिमोदशी आदद
धन प्रात्प्त प्रमोग शुब अवसय ऩय ऩूजन के सभम भाॊ रक्ष्भी की प्रततभा
कारी हल्दी को अऩने ऩूजन स्थान भें रक्ष्भी मा ध ि के साथ स्थावऩत कय ववधधवत ऩूजन कयने से
नायामण की प्रततभा मा ध ि के ऩास स्थावऩत शीि ववशेष राब की प्रात्प्त होती हैं। ऩूजन के ऩश् मात
कारी हल्दी की गाॊठ को ाॊदी, स्टीर मा घाटा हो यहा हो तो बी मह प्रमोग अत्मॊत राबप्रद होता
दे वता के साथ धऩ
ू -दीऩ से ऩूजन कयें ।
कारी हल्दी की गाॊठ को सोने मा ाॊदी के कामा ससवि प्रमोग
ससक्के के साथ रार वस्ि भें फाॊधकय ऩोटरी कारी हल्दी के टुकड़े ऩय भौरी रगाकय गूगर औय
फना कय उसे अन्म दे व प्रततभाओॊ के साथ ऩूजा रोफान के धऩ
ू से शोधन कयके अऩने ऩूजा स्थान भें
कयने से ववशेष राब की प्रात्प्त होती है । (सोने यखदें , फकसी भहत्वऩूणा कामा ऩय जाते सभम उसे
मा ाॊदी के ससक्के न हो तो रुऩमे-ऩैसे के नमे हभें शा अऩनी जेफ के उऩयी दहस्से भें मा फैग भें यखें,
ससक्के के साथ यखा जा सकता हैं) इस प्रमोग से कामा त्रफना फकसी फाधा ववध्न के ऩण
ू ा
कारी हल्दी की ऩोटरी को को अऩने गल्रे (कैश होने की सॊबावनाएॊ प्रफर हो जाती हैं।
फॉक्स), ततजोयी आदद भें बी यख सकते हैं। फकसी नमे कामा मा भहत्वऩण
ू ा कामा के सरए जाते
विद्वानों का अनुबव हैं की कारी हल्दी के ऩूजन सभम कारी हल्दी को द
ॊ न की तयह घीस कय
उसका ततरक रगाकय जाने से कामा भें सपरता
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प्राप्त होने की सॊबावना प्रफर हो जाती हैं। विद्वानों फनाकय उसभें थोडी गीरी ीने की दार, थोड़ा गुड़ औय
का अनुबव हैं की नौकयी व्मवसाम से जुड़े रोगों के थोड़ी सी वऩसी हुइ कारी हल्दी को दफाकय योगी व्मत्क्त
सरए मह प्रमोग अत्मॊत राबप्रद ससि होता हैं। के उऩय से सात फाय घड़ी की ददशा
(दक्षऺणावता/Clockwise) भें उताय कय गाम को णखरा
ताॊत्रिक प्रबाव तनवायण प्रमोग दें । मह उऩाम रगाताय तीन गुरूवाय कयने से ववशेष
राब ददखने रगता हैं।
मदद फकसी व्मत्क्त ऩय टोने-टोटके आदद ताॊत्रिक
प्रबाव हो तो उसे कारी हल्दी के छोड़े टुकड़े को छे द
नजय यऺा प्रमोग
कयके धागा भें वऩयोकय मा फकसी ताववज भें बय कय
मदद फकसी को नजय रग गमी है , तो कारे कऩड़े भें
धायण कयवामा जामे तो शीि ही अशुब प्रबावों से भुत्क्त
कारी हल्दी को फाॊधकय सात फाय नज़य रगे व्मत्क्त
सभर सकती हैं। कुछ विद्वानों का अनुबव हैं की कारी
मा फछ े के उऩय से घड़ी की ददशा
हल्दी को नवग्रह भॊि से असबभॊत्रित कय धायण कयने से
ग्रह जतनत ऩीड़ाएॊ दयू होती हैं। (दक्षऺणावता/Clockwise) भें उताय कय फहते हुमे जर
भें प्रवादहत कय दें मा फकसी ववयान जगह भें पैक दें ।
मदद फकसी के कामा मा व्मवसामीक स्थान ऩय फाय-
आकषाण प्रमोग
फाय फकसी की नज़य रग गई हो तो कारी हल्दी को
विद्वानों का भत हैं की कारी हल्दी को तॊि
कारे कऩड़े भें फाॊधकय दोनों हाथों से ऩूये कामा स्थर
शास्ि भें वशीकयण भें अत्मॊत राब प्रद जड़ी फूटी भाना
के सबतय सात फाय घूभाकय फहते हुमे जर भें
जाता है । तॊि विद्या के जानकायों का भानना हैं की
कारी हल्दी भें अभत प्रवादहत कय दें मा फकसी ववयान जगह भें पैक दें ।
ु आकषाण शत्क्त होने के कायण
वशीकयण आदद भें बी कारी हल्दी का प्रमोग ववशेष नज़य यऺा के सरए कारी हल्दी ऩय भौरी रऩेट कय
राबप्रद होता हैं। ऩीरे कऩड़े भें फाॊधकय अऩने व्मवसामीक स्थान के
प्रततददन कारी हल्दी का ततरक रगाने से सबी प्रकाय भुख्म द्वार ऩय रटका दें । इस प्रमोग से नज़य से
के इत्छछत भनुष्मों का आकषाण हो सकता हैं। कारी यऺा होगी एवॊ धन की ववृ ि बी होती यहे गी।
स्ऩशा कयवा कय धन यखने के स्थान ऩय यख दें । इस हल्दी को प्राम् तेर भें सबगो कय कुभकुभ ससॊदयू आदद
प्रमोग के प्रबाव से धन सॊ म होने रगता हैं। से रेऩ कय फे ा जाता हैं त्जससे उसकी नकरी होने की
फात साधयण व्मत्क्त को आसानी से नहीॊ रती।
* ाॊदी की डडब्फी उऩरब्ध न हो तो स्टीर मा प्रात्स्टक
रेफकन इस भें कऩूय से सभरती झुरती सुगन्ध नहीॊ
की डडब्फी का प्रमोग कयें । डडब्फी को स्थावऩत कयने हे तु
होती।
शुक्रऩऺ के प्रथभ शुक्रवाय के अरावा अऺम तत
ृ ीमा,
असरी कारी हल्दी की सुगन्ध कऩूय से सभरती-
धनिमोदशी, दीऩावरी का भुहूता बी शुब होता हैं।) झुरती होती हैं मही असरी कारी हल्दी की ऩह ान हैं।
असरी कारी हल्दी अॊदय से ही गहये यॊ ग की मा कारे
भशीनों को खयाफी से फ ाने हे तु प्रमोग यॊ ग की होती हैं उऩय से नहीॊ उसका उऩय का दहस्सा
अदयख के उऩयी दहस्से के सभान कत्थई यॊ ग से सभरता
मदद व्मवसाम मा उद्मोग भें भशीनों भें फाय-फाय
झुरता होता हैं।
खयाफी होती यहती हों, तो कारीहल्दी को द
ॊ न की तयह
तॊि विद्या के जानकायों का भत हैं की फकसी बी
केशय व गॊगा जर सभराकय घीस कय शुक्रऩऺ के तॊि प्रमोग को कयने ऩय उससे प्राप्त होने वारे पर
प्रथभ फुधवाय को भशीन ऩय स्वात्स्तक फना दें । इस केवर प्रमोग कताा के आत्भववश्वास औय श्रिा ऩय ही
प्रमोग से से भशीन फाय-फाय खयाफ नहीॊ होती। तनबाय कयते हैं। तॊि प्रमोग भें फकसी बी प्रकाय की शॊका
अथवा सॊदेह होने ऩय तॊि के प्रमोग नहीॊ कयने ादहए।
भाॊ रक्ष्भी की कृऩा प्रात्प्त हे तु प्रमोग
शॊका व सॊदेह बाव से फकमे गमे प्रमोगों का पर नगण्म
दीऩावरी के ददन कारी हल्दी औय एक ाॊदी का
मा प्राप्त नहीॊ होता हैं।
ससक्का ऩीरे वस्िों भें रऩेट कय उसे धन यखने के
स्थान ऩय यख दें । इस प्रमोग को अगरी ददऩावरी ऩय
भॊि कारी हल्दी
ऩुन् इसी प्रकाय कयें इस प्रमोग से वषा बय भाॊ रक्ष्भी
11 नॊग साफत
ू कारी हल्दी वजन 18 ग्राभ भाि रु.730/-
की कृऩा फनी यहती है ।
11 नॊग साफत
ू कारी हल्दी वजन 27 ग्राभ भाि रु.910/-
असरी नकरी की ऩयख
हभायें महाॊ कारी हल्दी की गाॊठ एवॊ टुकड़े प्रतत नॊग
मह कारी हल्दी का यॊ ग जफ मह हयी होती हैं तफ
वज़न 3 ग्राभ से 21 ग्राभ तक उऩरब्ध रु. 370, 460,
अॊदय से हल्के नीरे यॊ ग की होती हैं वह सुख ने ऩय
550, 730, 910, 1050, 1250, 1450,
अॊदय से गहये कत्थई मा कारे यॊ ग की हो जाती हैं। रेफकन
असरी कारी हल्दी ऩूणत
ा ् काजर के सभान कारी नहीॊ GURUTVA KARYALAY
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श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्क्त को फुवि, विद्या, वववेक का ववकास होता हैं औय योग, व्माधध एवॊ सभस्त
ववध्न-फाधाओॊ का स्वत् नाश होता है । श्री गणेशजी की कृऩा प्राप्त होने से व्मत्क्त के भुत्श्कर से भुत्श्कर कामा
बी आसान हो जाते हैं।
त्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भें ववऩयीत ऩरयणाभ प्राप्त हो यहे हों, ऩारयवारयक तनाव, आधथाक तॊगी, योगों से
ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्क्त को अथक भेहनत कयने के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, तनयाशा प्राप्त हो यही हो,
तो एसे व्मत्क्तमो की सभस्मा के तनवायण हे तु तुथॉ के ददन मा फुधवाय के ददन श्री गणेशजी की ववशेष ऩूजा-
अ न
ा ा कयने का ववधान शास्िों भें फतामा हैं।
त्जसके पर से व्मत्क्त की फकस्भत फदर जाती हैं औय उसे जीवन भें सुख, सभवृ ि एवॊ ऐश्वमा की प्रात्प्त होती
हैं। त्जस प्रकाय श्री गणेश जी का ऩज
ू न अरग-अरग उद्देश्म एवॊ काभनाऩतू ता हे तु फकमा जाता हैं, उसी प्रकाय श्री
गणेश मॊि का ऩज
ू न बी अरग-अरग उद्देश्म एवॊ काभनाऩतू ता हे तु अरग-अरग फकमा जाता सकता हैं।
श्री गणेश मॊि के तनमसभत ऩज
ू न से भनष्ु म को जीवन भें सबी प्रकाय की ऋवि-ससवि व धन-सम्ऩत्त्त की प्रात्प्त
हे तु श्री गणेश मॊि अत्मॊत राबदामक हैं। श्री गणेश मॊि के ऩज
ू न से व्मत्क्त की साभात्जक ऩद-प्रततष्ठा औय
कीतता ायों औय पैरने रगती हैं।
विद्वानों का अनब
ु व हैं की फकसी बी शब
ु कामा को प्रायॊ ऩ कयने से ऩव
ू ा मा शब
ु कामा हे तु घय से फाहय जाने से ऩव
ू ा
गणऩतत मॊि का ऩूजन एवॊ दशान कयना शुब परदामक यहता हैं। जीवन से सभस्त ववर्घन दयू होकय धन,
आध्मात्त्भक त
े ना के ववकास एवॊ आत्भफर की प्रात्प्त के सरए भनुष्म को गणेश मॊि का ऩूजन कयना ादहए।
गणऩतत मॊि को फकसी बी भाह की गणेश तुथॉ मा फुधवाय को प्रात: कार अऩने घय, ओफपस, व्मवसामीक
स्थर ऩय ऩूजा स्थर ऩय स्थावऩत कयना शुब यहता हैं।
गुरुत्व कामाारम भें उऩरब्ध अन्म : रक्ष्भी गणेश मॊि | गणेश मॊि | गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सदहत) | गणेश
ससि मॊि | एकाऺय गणऩतत मॊि | हरयद्रा गणेश मॊि बी उऩरब्ध हैं। अधधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय
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51 - 2018
नवग्रह शाॊतत मॊि मदद बवन के दक्षऺण बाग भें दोष हो तो प्राम्
नवग्रह ग्रहों के मॊिों को उनकी सॊफॊधधत ददशाओॊ भें इस सभम उस बवन भें तनवासकताा ध त
ॊ ा-तनाव आदद से
प्रकाय से रगाने ादहए जहाॊ मे आसानी से ददखाई दे ते ग्रस्त यहते हैं। भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत त्रिकोण
हो। नवग्रह शाॊतत मॊि के ऩूजन एवॊ भॊगर मॊि को स्थावऩत कयना
वामव्म मा ब्रह्भ स्थान भें जहाॊ बी तनवास कताा को कामा ऺेि भें
घय के आग्नेम कोण भें वास्तु दोष हो तो आग्नेम प्राण-प्रततत्ष्ठत शतन मॊि को स्थावऩत कयना ादहए।
स्थावऩत कयना ादहए। भें रगाना ादहए। उल्टा रगाने से ववऩरयत ऩरयणाभों
मदद बवन भें तनवास कयने वारे सदस्मों को भन से सम्भणु खन होना ऩड़ता हैं।
का नैकत्म कोण भें दोष होता हैं। एसी त्स्थती भें बवन के ईशान कोण भें दोष हो तो वास्तुदोषों को
बवन के नैकत्म कोण भें भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत दयू कयने हे तु भॊि ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत फह
ृ स्ऩतत मॊि
याहु मॊि औय भत्ृ मॊजम मॊि को स्थावऩत कयना को स्थावऩत कयना ादहए।
ादहए। नैकत्म कोण भें 7 इॊ का गड्ढा खोदकय इससे इन दोनों ददशाओॊ जतनत वास्तुदोष दयू होते
दे ना ादहए।
***
सशऺा से सॊफॊधधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भें अनावश्मक रूऩ से फाधा-ववर्घन मा रुकावटे हो यही हैं? फछ ो को
अऩने ऩण
ू ा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उध त पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कॊु डरी का
ववस्तत
ृ अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके विद्या अध्ममन भें आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के
कायण एवॊ उन दोषों के तनवायण के उऩामो के फाय भें ववस्ताय से जनकायी प्राप्त कयें ।
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53 - 2018
भॊि ससि दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन ववृ ि हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
स्पदटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यक्त (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above ववधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं।
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54 - 2018
* रृदम ये ख ऩय कारा त्रफॊद ु होना, मा आमु ये खा ऩय नीरा धब्फा हो, मा हाथ भें स्वास्थ्म ये खाटूटी-पूटी हो, मा भस्तक
ये खा के भध्म भें कारा धब्फा हो तो व्मत्क्त को ज्वय से ऩीड़ा होती हैं।
* मदद द्र
ॊ ऩवात ऩय गहयी धारयमाॊ हों, मा भस्तक ये खा धभ
ु ावदाय मा टूटी हुई हो, मा भस्तक ये खा ऩय क्रॉस का
ध न्ह हो, मा भस्तक ये खा का शतन ऩवात के तनकट अॊत होती हों, तो व्मत्क्त की भानससक फीभायी से ग्रससत होता हैं।
* भस्तक ये खा शतन ऩवात के नी े टूट कय खत्भ होती हो, द्र
ॊ ऩवात ऩय टे ढी-भेढी ये खाए हों, रृदम ये खा जॊजीय के
सभान हों कय अस्ऩष्ट हो, तो व्मत्क्त को ऩथयी योग होने फक सॊबावना यहती हैं।
* मदद हथेरी फक ये खाएॊ ऩीरी हो, मा गुरु ऩवात अधधक उन्नत हुआ हो, मा नख रॊफे एवॊ कारे हो,भस्तक ये खा औय
शतन ऩवात के नी े फक ये खा जॊजीयनभ
ु ा हो, तीनों भख्
ु म ये खाओॊ को कोई ये खा काट यही हो, तो व्मत्क्त को ऺम योग
एवॊ पेपड़ों से सॊफॊधधत योग हो जाता हैं।
* शतन ऩवात ऩय जारी हो, मा कोई ये खा आमु ये खा एवॊ भस्तक ये खा को काटकय जारी को छुती हो, मा द्र
ॊ भा ऩवात
ऩय क्रॉस हो, द्र
ॊ भा ऩवात ऩय अस्त-व्मस्त ये खाएॊ हों, स्वास्थ्म ये ख धभ
ु ती हुइ शुक्र ऩवात से जुडती हुइ कोई ये खा आमु
ये खा को काटकय भस्तक ये खा को काटती हुई रृदम ये खा से सभरती हो, तो व्मत्क्त भधभ
ु ेह से ऩीडड़त यहता हैं।
* मदद हथेरी अधधक ऩतरी एवॊ रॊफी हो, अॊगसु रमाॊ बी अधधक र ीरी हो, मा हथेरी से थोडड फड़ी हो, मा भस्तक
ये खा तथा रृदम ये खा के फी भें अधधक अॊतय हो, ग्रह ऩवातों की भुडने वारी ऊध्वाागाभी ये खाएॊ अधधक हो, तो व्मत्क्त
भस्तक ज्वय से ऩीडड़त होता हैं।
* मदद ॊद्र ऩवात कापी उन्नत हो द्र
ॊ ऩवात के नी े का बाग ऩय कापी ये खाएॊ हों, आमु ये खा को छुती हुई कोई ये खा
द्र
ॊ ऩवात की ओय जा यही हो, तो व्मत्क्त व्मत्क्त को भि
ू सॊफॊधी फीभारयमाॊ ऩीडड़त कयती हैं।
ऩयीऺण से व्मत्क्त के शयीय भें ऩीड़ा दे ने वारी ऩये शानी मा बववष्म भें होने वारी फीभायी का ऩता रगामा जा सकता हैं। इस
ऩयीऺण फक साथाकया ऩयीऺण कयने वारे के विद्वान के ऻान एवॊ अनुबव ऩय तनबाय कयता हैं।
56 - 2018
स भत्मो भत्ृ मुना शीिॊ ज्वयरूऩेण नीमते ॥४०॥ हैं। जो ाण्डारों के साथ फैठ कय घत
ृ (घी) तैर आदद
अनेक प्रकाय के द्रव्मों का ऩान कयता हैं उसकी प्रभेह से
यक्तभाल्मवऩुवस्
ा िो मो हसन ् दह्मते त्स्िमा।
भत्ृ मु हो जाती हैं। जो याऺसों के साथ ना ता हुवा जर
सोऽस्रवऩत्तेन भदहषश्ववयाहोष्रगदा ब्ै ॥४१॥
भें डूफ जाता हैं मा डूफकी रगाता हैं उसकी उन्भाद से
म् प्रमातत ददशॊ माम्माॊ भयणॊ तस्म मक्ष्भणा। भत्ृ मु हो जाती हैं। जो ना ता हुवा बूत-प्रेत द्वारा खीॊ ा
रता कण्टफकनी वॊशस्तारो वा रृदद जामते ॥४२॥ मा घसीटा जाता हैं उसकी अऩस्भाय (सभगॉ) द्वारा भत्ृ मु
मस्म तस्माशु गुल्भेन मस्म वत्ह्नभनध ष
ा भ ्। हो जाती हैं।
कानने यक्तकुसभ
ु े ऩाऩकभातनवेशने ॥५५॥ ववयागभाल्मवसना स्वप्ने कारतनशा भता ॥५८॥
ध तान्धकायसॊफाधे जनन्माॊ प्रवेशनभ ् । अथाात: स्वप्न भें कारे वणा वारीॊ, दभ
ु ख
ुा ी, दयु ा ारयणी,
ऩात् प्रासादशैरादे भत्ा स्मेन ग्रसनॊ तथा ॥५६॥ रम्फे केशों, नखों तथा स्तनों वारी, ववकृत वणा वारी,
काषातमणाभसौम्मानाॊ नग्नानाॊ दण्डधारयणाभ ् । भारा तथा ववकृत वणा वारे वस्िों वारी स्िी का ददखना
कार यात्रि के सभान भाना जाता हैं।
यक्ताऺाणाॊ कृष्णानाॊ दशानॊ जातु नेष्मते ॥५७॥
अथाात: जो स्वप्न भें सशय ऩय फाॊस, रता एवॊ झाडड़मों
द्ु स्वप्न का कायण
को उगते दे खना मा ऩक्षऺमों का फैठना मा घोंसरा
फनाना, अथवा सशय का भुण्डन मा कौवा एवॊ धगि आदद
भनोवहानाॊ ऩूणत्ा वात्स्रोतसाॊ प्रफरैभर
ा ै् ।
ऩक्षऺमों से तघय जाना तथा प्रेतों, वऩ ाशों, स्िीमों, फकसी
दृश्मन्ते दारुणा् स्वप्ना योगी मैमाातत ऩज ताभ ् ॥५९॥
प्रदे श के तनवाससमों, अथवा गोभाॊस बऺको द्वारा तघय
अयोग् सॊशमॊ प्राप्म कत्श् दे व ववभुछमते ।
जाना, वेतों के, रताओॊ के, फाॉसों की, तण
ृ ों के तथा
अथाात: अत्मन्त प्रकुवऩत वातादद दोषों द्वारा भनोवाही
काॊटों की झाड़ीमों भें पस जाते दे खना मा गढ्ढा एवॊ
स्िोत बय जाने से उक्त प्रकाय के बमानक बीष्ण स्वप्न
श्भशान भें सोना, धसू र तथा बस्भ भें धगयना, जम
ददखते हैं, त्जसके कायण योगी की भत्ृ मु हो जाती हैं औय
अथवा की ड़ भें डूफना मा डुफकी रगाना, तेजधाय वारी
स्वस्थ्म व्मत्क्त बी योगी हो जाता हैं तथा कुछ ही योग
नदी-नारे भें फह जाना, ना ना, फजाना तथा गाना, रार
भुक्त हो ऩाते हैं।
पूरों की भारा तथा वस्िों का धायण, उम्रको फढ़ते
दे खना, तथा अॊगों की ववृ ि, अभ्मङ्ग, वववाह, ऺौय कभा
भहवषा यक ने स्वप्न के रऺण इस प्रकाय
(फार तथा दाढ़ी फनाना), ऩक्वान्न बऺण, स्नेह ऩान, फतामे हैं।
मद्य ऩान, वभन, त्रफये न फक्रमा, सोना अथवा रोह
नातत प्रसप्ु त् ऩरु
ु ष् सपरान अपरान अवऩ।
सभरना, करह, फॉध जाना, ऩयात्जत होना, दोनो जूतों का
इत्न्द्रमेशन
े भनसा स्वप्नान ऩश्मत्मनेकधा॥
खोना, ऩाॉव की भड़ी धगयते दे खना, अधधक हषा,
प्रकुवऩत वऩत्तयों द्वारा सबड़्का जाना औय दीऩक, सूमा अथाात: जफ भानष्ु म गहयी तनद्रा भें नहीॊ होता तथा
आदद ग्रह, अत्श्वनी आदद नऺि मा ताये , दन्त, दे व दशों इत्न्द्रमों के ईश्वरयम प्रेयक भन द्वारा वह अनेक
प्रततभा तथा नेि का धगयना अथवा ववनाश, ऩवात का प्रकाय के स्वप्न दे खता हैं। कबी श्रवण इत्न्द्र से सुनता,
पटना औय वन भें , रार ऩुष्ऩ भें , ऩाऩीमों की घय भें , ऺुरयत्न्द्रम से दे खता हैं, त्वधगत्न्द्रम से स्ऩशा का
अन्धकाय भें , बीड़ भें , सॊकत भें अथवा भाता के गबा भें
अनुबव कयता हैं, यसनेत्न्द्रम से यस का औय िौणेत्न्द्रम
प्रवेश, छत, वऺ
ृ मा ऩवात आदद से धगयना, भछरी द्वारा
से गन्ध का अनब
ु व कयता हैं। वाधगत्न्द्रम से फोरता हैं-
तनगर जाना, औय कषाम वस्ि, धारयमों का क्रूयों का,
हस्तेत्न्द्रम से ऩकड़्ता हैं, शुदेत्न्द्रम से ऩुरयष ( एवॊ भूि
नग्नों का, दण्ड धारयमों का, रार आॉख वारों का तथा
का) त्माग कयता हैं , उऩस्थेत्न्द्रम (सशश्न एवॊ बग) से
कारे वणा के रोगों का ददखना फकसी बी दशा भें शुब
नहीॊ हैं (अथाात स्वस्थ्म मा योगी के सरए मह हातन शुक्र (वीमा) का त्माग कताा हैं, इसी को स्वप्नदोष कहा
शोक आदद का अनुबव होता हैं। मह 11 प्रकाय के को दे खता हैं औय जो छि, दऩाण, ववष, भाॊस, श्वेत
स्वप्नदोष हैं रेफकन अधधकतय उऩस्थ का स्वप्नदोष ऩष्ु ऩ, श्वेत वस्ि, अऩववि (ऩयु ीष अथाात भरभि
ू
अधधक होता हैं। वह बी मुवावस्था भें यात्रि बोजन भें इत्मादी) ऩदाथा के रेऩन को अथवा आम्र आदद परों को
शक्र
ु विाक भराई एवॊ दग्ु ध आदद के सेवन से अथवा प्राप्त कयता हैं, औय जो ऩवात, बवन, परवारे वऺ
ृ ,
तीव्र भैथन
ु ासबराष से। ससॊह, भानव की ऩीठ, हाथी अथवा गाम-फैर की तथा
नोट् जानकायों का भानना हैं की स्वप्नदोष ऩुरुष एवॊ घोड़ा गाड़ी ऩय ढ़ता हैं , जो नदी, झीर, तथा सभद्र
ु को
स्िी दोनो को होता हैं औय ऋतुस्नाता स्िी को तो कबी- तैय कय ऩाय कयता हैं, जो ऩूवोत्तय की औय जाता हैं (
कबी गबाधान बी हो जाता हैं , फपय ाहे वह अत्स्थ अथाात ऩूवोत्तय की मािा कयता हैं), अगम्म नायी से
आदद ऩैतक
ृ गुणों से हीन होता हैं। शय्माभूि जो सहवास कयता हैं, जो भतृ त-भयण को दे खता हैं , बीड़
अधधकतय फारक-फासरकाओॊ को होता हैं औय स्वप्नदोष सॊकट भें से तनकर जाता हैं , त्जसका दे वताओॊ एवॊ
जो मुवक-मुवततमों को होता हैं वह सफ स्वप्न के दोष वऩत्तयों द्वारा असबनन्दन होता हैं, जो योता हैं, जो धगय
है । कय उठ खड़ा होता हैं तथा जो शिओ
ु ॊ का भदा न कयता हैं
दे वान ् द्ववजान ् गोवष
ृ बान ् जीवत् सरृ
ु दो नऩ
ृ ान ्। वह आमु को, आयोग्म को तथा अधधक भािा भें धन को
प्राप्त कयता हैं।
साधन
ू ् मशत्स्वनो वत्ह्नसभिॊ स्वछछान ्
जराशमान ्॥ ***
कन्मा् कुभायकान ् गौयान ् शक्
ू रवस्िान्सत
ु ज
े स् ।
नयाशनॊ दीप्ततनॊु सभन्ताद्रधु धयोक्षऺतभ ् ॥ गणेश रक्ष्भी मॊि
म् ऩश्मेल्रबते मो वा छिादशाववषासभषभ ् ।
शक्
ु रा् सभ
ु नसो वस्िभभेध्मारेऩनॊ परभ ् ॥
शैरप्रासादसपरवऺ
ृ ससॊहनयद्ववऩान ् ।
आयोहे द्गोऽश्वमानॊ तये न्नदह्दोदधीन ् ॥
ऩव
ू ोत्तये ण गभनभगम्मागभनॊ भत
ृ भ् ।
सॊफाधात्न्न्सतृ तदे व्ै वऩतसृ बश् ासबनन्दनभ ् ॥
योदनॊ ऩतततोत्थानॊ द्ववषताॊ ावभदा नभ ् । प्राण-प्रततत्ष्ठत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-
दक
ु ान-ओफपस-पैक्टयी भें ऩूजन स्थान, गल्रा मा
मस्म स्मादामयु ायोग्मॊ ववत्तॊ फहु सोऽश्नत
ु े ॥
अरभायी भें स्थावऩत कयने व्माऩाय भें ववशेष राब
प्राप्त होता हैं। मॊि के प्रबाव से बाग्म भें उन्नतत,
अथाात: स्वप्न भें जो दे वताओॊ, द्ववजों (ब्राह्भण), साॉढों, भान-प्रततष्ठा एवॊ व्माऩय भें ववृ ि होती हैं एवॊ आधथाक
जीववत सभिों, याजाओॊ, सज्जनों, मशत्स्वमों, इन्धन त्स्थभें सुधाय होता हैं। गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थावऩत
कयने से बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुक्त
मुक्त अत्ग्न, तनभार जर के जराशम, कन्मा, फारक,
आशीवााद प्राप्त होता हैं।
गौय वणा वारों, श्वेत वस्ि वारों, तेजत्स्वमों अथवा
दे दीप्मभान शयीय वारे यक्त से ससत्न् त शयीयवारे याऺस Rs.325 से Rs.12700 तक
59 - 2018
अशब
ु स्वप्नों के ववषम भें ग्रंथों भें उल्रेख हैं
शब
ु स्वप्न की शब
ु ता भें ववृ ि के शरए शास्त्रं भें उल्रेख हैं
मदद फकसी व्मत्क्त को शुब, ध त्त को प्रसन्न कयने वारे, सख ु -सौबाग्म के सॊकेत दे ने वारे स्वप्न ददखाई दे
तो उस स्वप्न को गप्ु त यखना ादहए। स्वप्न की गोऩनीमता भें उसकी शब
ु ता तछऩी होती हैं। फकसी को इन
स्वप्न के फायें भें फतादे ने से स्वप्न की शब
ु ता भें कभी आतत हैं ओय सॊबवत स्वप्न तनष्पर बी हो सकता
हैं।
मदद स्वप्न भें शब
ु सॊकेत ददखाई दे तो व्मत्क्त को प्रात् स्नानादद से तनवत्ृ त हो कय धऩ
ू -दीऩ आदद से इष्ट
की ऩज
ू ा अ न
ा ा कयके अऩने इष्टदे व से शब
ु स्वप्न के पर शीि प्राप्त हो इस सरए ववशेष प्राथना कयनी
ादहए।
स्वप्न भें ददखे शुब सॊकेत ददखे तो व्मत्क्त को प्रात् अऩने गुरु का दशान कय आसशवााद प्राप्त कय रेने
ादहए दहए त्जससे शीि राब प्राप्त हो सके हैं।
60 - 2018
भकड़ी के जारे को दरयद्रता का प्रतीक भाना जाता हैं। भकड़ी के जारे से घय की फयकत प्रबाववत होती हैं। भकड़ी
के जारे होते हैं वहाॊ अरक्ष्भी तनवास कयती हैं धन की दे वी भहारक्ष्भी वहाॊ तनवास नहीॊ कयती हैं। त्जस घय भें मा
बवन भें तनमसभत साप-सपाई होती यहती हैं उस घय भें दे वी रक्ष्भी की कृऩा फयसती हैं, ऎसा शास्िोक्त ववधान हैं।
अऩने घय, दक
ु ान, ओफपस इत्मादी भें साप-सपाई के उऩयाॊत मदद भकड़ी के जारे रटकते हैं, तो जारे को दे खते ही
उसे उन्हें तुयॊत तनकार दें ।
भानाजाता हैं भकड़ी के जारे फुयी शत्क्तमों को अऩनी औय आकवषात कयते हैं, घय भें सकायात्भक उजाा खत्भ होती हैं
औय नकायात्भक उजाा का प्रबाव फढने रगता हैं। त्जससे घय के सदस्मों के स्वास्थ्म ऩय फुया प्रबाव ऩड़ने रगता हैं।
इस सरमे बवन से भकड़ी के जारे ददखते ही हटा दे ने ादहए।
नोट: हय शतनवाय, अभावस्मा को घयकी साप-सपाई कयना अधधक राबप्रद होता हैं। इस ददन घय से ऩयू ाना कफाड़-
बॊगाय(अनावश्मक ध ज-वस्त)ु इत्मादी बी तनकार दें ।
61 - 2018
बगवान सशव के बक्तो के सरमे तो रुद्राऺ को धायण रुद्राऺ को धायण कयता हैं, तो वह सभस्त ऩातको के
कयना ऩयभ आश्मक हैं। भुक्त हो जाता हैं।
जो भनुष्म तनमभानुशाय सहस्िरुद्राऺ धायण
वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्क्तभुत्क्तपरेप्सुसब् ॥ कयता हैं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हैं।
सशवबक्तैववाशष
े ेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥
उत्छछष्टो वा ववकभो वा भुक्तो वा सवाऩातकै्।
सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्िीशूद्राणाॊ।
भुछमते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥
सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥
अथाात् जो भनुष्म उत्छछष्ट अथवा अऩववि यहते हैं मा
सबी आश्रभों (ब्रह्भ ायी, वानप्रस्थ, गह
ृ स्थ औय सॊन्मासी)
फुये कभा कयने वार व अनेक प्रकाय के ऩाऩों से मक्
ु त
एवॊ वणों तथा स्िी औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण
वह भनुष्म रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩों से
कयना ादहमे, मह सशवजी की आऻा है !
छूट जाते हैं।
रुद्राऺ को तीनों रोकों भें ऩूजनीम हैं। रुद्राऺ के
स्ऩशा से रऺ गुणा तथा रुद्राऺ की भारा धायण कयने से कण्ठे रुद्राऺभादाम सम्रमते मदद वा खय्।
कयोड़ गुना पर प्राप्त होता हैं। रुद्राऺ की भारा से भॊि सोऽवऩरुद्रत्वभाप्नोतत फकॊ ऩुनबुवा व भानव्।
जऩ कयने से अनॊत कोदट पर की प्रात्प्त होती हैं। अथाात् कण्ठ भें रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा)
त्जस प्रकाय सभस्त रोक भें सशवजी वॊदनीम एवॊ बी भत्ृ मु को प्राप्त हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को
ऩज
ू नीम हैं उसी प्रकाय रुद्राऺ को धायण कयने वारा प्राप्त होता हैं, तो ऩथ्
ृ वीरोक के जो भनुष्म हैं उनके फाये
व्मत्क्त सॊसाय भें वॊदन मोग्म हैं। भें तो कहना ही क्मा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मों को
स्वगा-प्रात्प्त व रोक ऩयरोक सुधायने के सरए रुद्राऺ
रुद्राऺ धायण परभ ् अवश्म धायण कयने मोग्म हैं।
रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे त्रिऩुण्रकभ ्। रुद्राऺॊ भस्तके धत्ृ वा सशय् स्नानॊ कयोतत म्।
स ाण्डारोऽवऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणोंत्तभो बवेत ्॥ गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥
अथाात् त्जसके शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयके जो भनुष्म
त्रिऩुण्ड हो, वह ाण्डार बी हो तो सफ वणों भें उत्तभ ससय से स्नान कयता हैं उसे गॊगा स्नान के सभान ऩयभ
ऩूजनीम हैं। ऩववि स्नान का पर प्राप्त होता हैं तथा वह भनुष्म
अबक्त हो मा बक्त हो, नीॊ से नी व्मत्क्त बी मदी सभस्त ऩाऩों से भुक्त हो जाता हैं इसभें सॊशम नहीॊ हैं।
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63 - 2018
सवा कामा ससवि कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के सभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय
सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अष्ट रुऩ
(१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी,
(६)-ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त
होता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें तंत्र यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए
दयू होती हैं, साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ
होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दष्ु ट प्रबावो से
यऺा होती हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें शत्रु ववजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से
सॊफॊधधत सभस्त ऩये शातनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शिु
धायण कताा व्मत्क्त का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़ सकते।
अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :
फकसी व्मत्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव दे ने नही दे ना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सयु क्षऺत हैं।
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दस भहाववद्या ऩज
ू न मॊि Das Mahavidy a Poojan Yantra | Dasmahavidy a Pujan Yantra
दस भहाववद्या ऩज
ू न मॊि को दे वी दस
भहाववद्या की शत्क्तमों से मुक्त अत्मॊत
प्रबावशारी औय दर
ु ब
ा मॊि भाना गमा हैं।
इस मॊि के भाध्मभ से साधक के ऩरयवाय
ऩय दसो महाविद्याओॊ का आसशवााद प्राप्त होता
हैं। दस भहाववद्या मॊि के तनमसभत ऩूजन-दशान
से भनुष्म की सबी भनोकाभनाओॊ की ऩूतता होती
हैं। दस भहाववद्या मॊि साधक की सभस्त
इछछाओॊ को ऩूणा कयने भें सभथा हैं। दस
भहाववद्या मॊि भनष्ु म को शत्क्तसॊऩन्न एवॊ
बूसभवान फनाने भें सभथा हैं।
दस भहाववद्या मॊि के श्रिाऩूवक
ा ऩूजन
से शीि दे वी कृऩा प्राप्त होती हैं औय साधक को
दस भहाववद्या दे वीमों की कृऩा से सॊसाय की
सभस्त ससविमों की प्रात्प्त सॊबव हैं। दे वी दस
भहाववद्या की कृऩा से साधक को धभा, अथा,
काभ व ् भोऺ तुववाध ऩुरुषाथों की प्रात्प्त हो
सकती हैं। दस भहाववद्या मॊि भें भाॉ दग
ु ाा के दस
अवतायों का आशीवााद सभादहत हैं, इस सरए दस
भहाववद्या मॊि को के ऩूजन एवॊ दशान भाि से व्मत्क्त अऩने जीवन को तनयॊ तय अधधक से अधधक साथाक एवॊ
सपर फनाने भें सभथा हो सकता हैं।
दे वी के आसशवााद से व्मत्क्त को ऻान, सख
ु , धन-सॊऩदा, ऐश्वमा, रूऩ-सौंदमा की प्रात्प्त सॊबव हैं। व्मत्क्त को वाद-
वववाद भें शिओ
ु ॊ ऩय ववजम की प्रात्प्त होती हैं।
दश भहाववद्या को शास्िों भें आद्या बगवती के दस बेद कहे गमे हैं, जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3)
षोडशी, (4) बव
ु नेश्वयी, (5) बैयवी, (6) तछन्नभस्ता, (7) धभ
ू ावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10)
कभात्त्भका। इस सबी दे वी स्वरुऩों को, सत्म्भसरत रुऩ भें दश भहाववद्या के नाभ से जाना जाता हैं।
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65 - 2018
कव के ववषम भें अधधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें । >> Order Now
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66 - 2018
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससि फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि)
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूक्त मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेष्ठा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩष्ृ ठीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि > Shop Online | Order Now
सवाससविदामक भुदद्रका
इस भदु द्रका भें भग
ॊू े को शब
ु भह
ु ू ता भें त्रिधातु (सव
ु णा+यजत+ताॊफें) भें जड़वा कय उसे शास्िोक्त ववधध-
ववधान से ववसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्वारा सवाससविदामक फनाने हे तु प्राण-प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा त
ै न्म मक्
ु त
फकमा जाता हैं। इस भदु द्रका को फकसी बी वगा के व्मत्क्त हाथ की फकसी बी उॊ गरी भें धायण कय
सकते हैं। महॊ भदु द्रका कबी फकसी बी त्स्थती भें अऩववि नहीॊ होती। इस सरए कबी भदु द्रका को
उतायने की आवश्मक्ता नहीॊ हैं। इसे धायण कयने से व्मत्क्त की सभस्माओॊ का सभाधान होने
रगता हैं। धायणकताा को जीवन भें सपरता प्रात्प्त एवॊ उन्नतत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हैं
औय जीवन भें सबी प्रकाय की ससविमाॊ बी शीध्र प्राप्त होती हैं। भल्
ू म भात्र- 6400/-
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(नोट: इस भदु द्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फयु ा प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हैं।)
सवाशसविदामक भदु द्रका के ववषम भें अधधक जानकायी के शरमे हे तु सम्ऩका कयें ।
उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि ऩूणा
प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ ैतन्म मक्
ु त फकमे जाते हैं। त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩज
ू ा
अ न
ा ा-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं।
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70 - 2018
सॊऩण
ू ा प्राणप्रततत्ष्ठत
22 गेज शि
ु स्टीर भें तनसभात अखॊडडत
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71 - 2018
गरे भें होने के कायण मॊि ऩववि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं, वह गॊगा जर के सभान ऩववि होता हैं। इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदातम कहजाता हैं। जैसे अभत
ृ से उत्तभ कोई औषधध नहीॊ, उसी प्रकाय
रक्ष्भी प्रात्प्त के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्िोक्त व न हैं।
इस प्रकाय के नवयत्न जडड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्वाया शुब भह
ु ू ता भें प्राण प्रततत्ष्ठत
कयके फनावाए जाते हैं। Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से अधधक
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अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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72 - 2018
श्री हनभ
ु ान मॊि शास्िों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्भा जी के आदे श ऩय
हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्ि
का ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेष्ठ वक्ता होंगे तथा शास्ि ववद्या भें इन्हें भहायत हाससर होगी
औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों की
ववसबन्न फीभारयमों दयू होती हैं, इस मॊि भें अभतु शत्क्त सभादहत होने के कायण व्मत्क्त की स्वप्न दोष, धातु योग,
यक्त दोष, वीमा दोष, भछू ाा, नऩॊस
ु कता इत्मादद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मन्त राबकायी हैं। अथाात
मह मॊि ऩौरुष को ऩष्ु ट कयता हैं। श्री हनभ
ु ान मॊि व्मत्क्त को सॊकट, वाद-वववाद, बत
ू -प्रेत, द्मत
ू फक्रमा, ववषबम, ोय
बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्मादद से सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससवि प्रदान कयने भें सऺभ हैं।
श्री हनभ
ु ान मॊि के ववषम भें अधधक जानकायी के सरमे गरु
ु त्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भूल्म Rs- 910 से 12700 तक
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73 - 2018
श्री ऺेभ कल्माणी ससवि भहा मॊि वववाहकय मॊि स्वप्न बम तनवायक मॊि
ऻान दाता भहा मॊि रग्न ववर्घन तनवायक मॊि कुदृत्ष्ट नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभत
ृ तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता ववनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩज
ू न मॊि
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75 - 2018
2
सोम अषाढ़ कृ ष्ण चतुथी 20:06 धवनष्ठा 24:34 विषकुं भ 05:56 बि 06:56 मकर 11:08
3 शतवभषा
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण पंचमी 22:11 27:13 प्रीवत 06:53 कौलि 09:11 कुं भ -
4 पूिायभाद्रपद
बुध अषाढ़ कृ ष्ण षष्ठी 23:48 29:22 अयुष्मान 07:31 गर 11:04 कुं भ 22:54
5 ईत्तराभाद्रपद
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण सिमी 24:48 - सौभाग्य 07:44 विवि 12:23 मीन -
6 ईत्तराभाद्रपद
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄिमी 25:5 06:53 शोभन 07:25 बालि 13:02 मीन -
7 रे िवत
शवन अषाढ़ कृ ष्ण निमी 24:34 07:39 ऄवतगंड 06:29 तैवतल 12:56 मीन 07:40
8 ऄविनी
रवि अषाढ़ कृ ष्ण दशमी 23:17 07:38 धृवत 26:41 िवणज 12:01 मेष -
9 भरणी
सोम अषाढ़ कृ ष्ण एकादशी 21:16 06:50 शूल 23:51 बि 10:21 मेष 12:32
10 रोवहवण
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण द्वादशी 18:37 27:15 गंड 20:31 कौलि 08:00 िृष -
11 मृगवशरा
बुध अषाढ़ कृ ष्ण त्रयोदशी 15:28 24:43 िृवि 16:47 िवणज 15:28 िृष 14:02
12 अद्रा
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण चतुदश
य ी 11:58 21:54 ध्रुि 12:45 शकु वन 11:58 वमथुन -
13 पुनियसु
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄमािस्या 08:17 18:58 व्याघात 08:34 नाग 08:17 वमथुन 13:43
14 एकम- पुष्य
शवन अषाढ़ शुक्ल 25:0 16:06 िज्र 24:15 बालि 14:46 ककय -
वद्वतीया
15
रवि अषाढ़ शुक्ल तृतीया 21:43 अश्लेषा 13:27 वसवि 20:24 तैवतल 11:19 ककय 13:28
76 - 2018
16
सोम अषाढ़ शुक्ल चतुथी 18:51 मघा 11:12 व्यवतपात 16:54 िवणज 08:13 ससह -
17
मंगल अषाढ़ शुक्ल पंचमी 16:32 पूिायफाल्गुनी 09:27 िररयान 13:52 बालि 16:32 ससह 15:07
18
बुध अषाढ़ शुक्ल षष्ठी 14:51 ईत्तराफाल्गुनी 08:19 पररग्रह 11:20 तैवतल 14:51 कन्या -
19
गुरु अषाढ़ शुक्ल सिमी 13:52 हस्त 07:52 वशि 09:24 िवणज 13:52 कन्या 19:56
20
शुक्र अषाढ़ शुक्ल ऄिमी 13:36 वचत्रा 08:09 वसि 08:03 बि 13:36 तुला -
21 स्िावत
शवन अषाढ़ शुक्ल निमी 14:01 09:07 साध्य 07:16 कौलि 14:01 तुला -
22
रवि अषाढ़ शुक्ल दशमी 15:03 विशाखा 10:43 शुभ 07:01 गर 15:03 तुला 04:17
23
सोम अषाढ़ शुक्ल एकादशी 16:38 ऄनुराधा 12:52 शुक्ल 07:13 विवि 16:38 िृविक -
24
मंगल शुक्ल द्वादशी 18:37 जेष्ठा 15:27 ब्रह्म 07:48 बालि 18:37 िृविक 15:28
अषाढ़
25
बुध शुक्ल त्रयोदशी 20:53 मूल 18:21 आन्द्र 08:40 कौलि 07:43 धनु -
अषाढ़
26
गुरु अषाढ़ शुक्ल चतुदश
य ी 23:20 पूिायषाढ़ 21:25 िैधृवत 09:43 गर 10:06 धनु -
27
शुक्र अषाढ़ शुक्ल पूर्थणमा 25:50 ईत्तराषाढ़ 24:32 विषकुं भ 10:51 विवि 12:35 धनु 04:12
28
शवन श्रािण कृ ष्ण एकम 28:16 श्रिण 27:37 प्रीवत 12:00 बालि 15:04 मकर -
29
रवि श्रािण कृ ष्ण वद्वतीया - धवनष्ठा - अयुष्मान 13:04 तैवतल 17:25 मकर 17:06
30
सोम श्रािण कृ ष्ण तृतीया 06:32 धवनष्ठा 06:31 सौभाग्य 13:57 गर 06:32 कुं भ -
31
मंगल श्रािण कृ ष्ण तृतीया 08:31 शतवभषा 09:09 शोभन 14:36 विवि 08:31 कुं भ -
77 - 2018
1
17:43
रवि अषाढ़ कृ ष्ण तृतीया संकिी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोदय 20:46 पर)
2
सोम अषाढ़ कृ ष्ण चतुथी 20:06 -
3
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण पंचमी 22:11 नाग पंचमी, कोदकला पंचमी
4
-
बुध अषाढ़ कृ ष्ण षष्ठी 23:48
5
-
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण सिमी 24:48
6
शुक्र अषाढ़ कृ ष्ण ऄिमी 25:5 शीतलािमी, बोहरा ऄिमी
7
-
शवन अषाढ़ कृ ष्ण निमी 24:34
8
23:17
-
रवि अषाढ़ कृ ष्ण दशमी
9
सोम अषाढ़ कृ ष्ण एकादशी 21:16 योवगनी एकादशी व्रत
10
मंगल अषाढ़ कृ ष्ण द्वादशी 18:37 भौम प्रदोष व्रत
11
बुध अषाढ़ कृ ष्ण त्रयोदशी 15:28 वशि चतुदश
य ी, मावसक वशिरावत्र व्रत
12
गुरु अषाढ़ कृ ष्ण चतुदश
य ी 11:58 रोवहणी व्रत (जैन)
15
रवि अषाढ़ शुक्ल तृतीया 21:43 -
16
सोम अषाढ़ शुक्ल चतुथी 18:51 विनायकी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोस्त 21:57 पर)
17
मंगल अषाढ़ शुक्ल पंचमी 16:32 सूयय ककय संक्रांवत, स्कन्द पंचमीए
18
बुध अषाढ़ शुक्ल षष्ठी 14:51 सौर मास प्रारं भ श्रािण मास प्रारं भ, कं दभाय षष्ठी, कु मार षष्ठी,
19
गुरु अषाढ़ शुक्ल सिमी 13:52 वििस्ता सिमी
20
शुक्र अषाढ़ शुक्ल ऄिमी 13:36 दुगायिमी, खरसी पूजा (वत्रपुरा)
21
शवन अषाढ़ शुक्ल निमी 14:01 भडल्या निमी, भड़ली निमी, गुि निरात्रा समाि, मंसा पूजा
22
रवि अषाढ़ शुक्ल दशमी 15:03 अशा दशमी, वगररजा पूजा दशमी,
24
मंगल शुक्ल द्वादशी 18:37 िासुदि
े द्वादशी, प्रदोष व्रत
अषाढ़
25
बुध शुक्ल त्रयोदशी 20:53 प्रदोष व्रत, जया पाियती व्रत प्रारं भ,
अषाढ़
26
गुरु अषाढ़ शुक्ल चतुदश
य ी 23:20 चौमासी चौदस
28 श्रािण मास प्रारं भ, श्रािण में शाक िर्थजत, बृज मण्डल वहण्डोला
शवन श्रािण कृ ष्ण एकम 28:16
अरं भ
29
रवि श्रािण कृ ष्ण वद्वतीया - -
30
सोम श्रािण कृ ष्ण तृतीया 06:32 श्रािण प्रथम सोमिार,
31
मंगल श्रािण कृ ष्ण तृतीया 08:31 संकिी गणेश चतुथी व्रत (चंद्रोदय 20:41), मंगला गौरी व्रत
79 - 2018
यासश यत्न
भेष यासश: वष
ृ ब यासश: सभथन
ु यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भग
ॊू ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना
तर
ु ा यासश: वत्ृ श् क यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भग
ूॊ ा ऩख
ु याज नीरभ नीरभ ऩख
ु याज
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श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के साथ व्मत्क्तको दृढ़ इछछा शत्क्त एवॊ उजाा प्रततत्ष्ठत ऩूणा त
ै न्म मुक्त कयके
प्राप्त होती हैं, त्जस्से व्मत्क्त हभेशा एक बीड भें हभेशा आकषाण का केंद्र तनभााण फकमा जाता हैं। त्जस के
पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्क्त
यहता हैं।
को शीि ऩूणा राब प्राप्त होता हैं।
मदद फकसी व्मत्क्त को अऩनी प्रततबा व आत्भववश्वास के स्तय भें
कव को गरे भें धायण कयने से
ववृ ि, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफ भें रयश्तो भें सध
ु ाय कयने की
वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हैं।
ईछछा होती हैं उनके सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र का ऩूजन एक सयर व सुरब
गरे भें धायण कयने से कव
भाध्मभ सात्रफत हो सकता हैं।
हभेशा रृदम के ऩास यहता हैं त्जस्से
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र ऩय अॊफकत शत्क्तशारी ववशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ
व्मत्क्त ऩय उसका राब अतत तीव्र
अॊको से व्मत्क्त को अद्भत
ु आॊतरयक शत्क्तमाॊ प्राप्त होती हैं जो व्मत्क्त एवॊ शीि ऻात होने रगता हैं।
को सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भें अग्रणणम फनाने भें सहामक ससि होती हैं।
भर
ू म भात्र: 2350 >>Order Now
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के ऩूजन व तनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
श्रीकृष्ण का आशीवााद प्राप्त कय सभाज भें स्वमॊ का अद्ववतीम स्थान स्थावऩत कयें ।
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र अरौफकक ब्रह्भाॊडीम उजाा का सॊ ाय कयता हैं, जो एक प्राकृत्त्त भाध्मभ से व्मत्क्त के बीतय
सद्दबावना, सभवृ ि, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्क्तशारी भाध्मभ हैं!
श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के ऩूजन से व्मत्क्त के साभात्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रततष्ठा भें ववृ ि होती हैं।
ववद्वानो के भतानुसाय श्रीकृष्ण फीसा मंत्र के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग केंदद्रत कयने से व्मत्क्त फक ेतना शत्क्त जाग्रत
होकय शीि उछ स्तय को प्राप्तहोती हैं।
जो ऩुरुषों औय भदहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना ाहते हैं औय उन्हें अऩनी औय आकवषात कयना ाहते
हैं। उनके सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र उत्तभ उऩाम ससि हो सकता हैं।
ऩतत-ऩत्नी भें आऩसी प्रभ की ववृ ि औय सख
ु ी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृष्ण फीसा मंत्र राबदामी होता हैं।
भल्
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81 - 2018
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82 - 2018
जर
ु ाई 2018 -ववशेष मोग
कामा ससवि मोग
06 प्रातः 06:55 से ऄगले ददन प्रातः 05:02 तक 18 प्रातः 08:21 से ऄगले ददन प्रातः 05:06 तक
08 प्रातः 05:02 से प्रातः 07:39 तक 21 प्रातः 05:07 से प्रातः 09:08 तक
10 प्रातः 05:03 से प्रातः 05:021 तक 23 प्रातः 05:08 से दोपहर 12:54 तक
11 प्रातः 05:03 से रात 12:44 तक 27 रात 12:34 से रातभर
सूयोदय से रात 03:38 तक
12 रात 09:55 से ऄगले ददन सांय 06:59 तक 29
04 रात 12:06 से ऄगले ददन दोप.12:42 तक (पृथ्िी) 22 रात 03:32 से ऄगले ददन सांय 04:24 तक (स्िगय)
08 दोपहर 12:16 से रात 11:31 तक (स्िगय) 26 रात 11:16 से ऄगले ददन दोप. 12:33 तक (पाताल)
11 दोपहर 03:34 से रात 01:50 तक (स्िगय) 31 रात 07:44 से ऄगले ददन प्रात: 08:43 तक (पृथ्िी)
मोग पर :
कामा ससवि मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे तनत्श् त सपरता प्राप्त होती हैं, एसा शास्िोक्त व न हैं।
वद्वऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हैं। एसा शास्िोक्त व न हैं।
त्रिऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हैं। एसा शास्िोक्त व न हैं।
शास्िोंक्त भत से ववर्घनकायक बद्रा मोग भें शुब कामा कयना वत्जात हैं।
यववऩुष्म मोग अत्मॊत शुब मोग भाना गमा हैं।
दै तनक शब
ु एवॊ अशब
ु सभम ऻान तासरका
गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब)
वाय सभम अवधध सभम अवधध सभम अवधध
यवववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शुक्रवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शतनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
85 - 2018
ददन के ौघडडमे
सभम यवववाय सोभवाय भॊगरवाय फध
ु वाय गरु
ु वाय शक्र
ु वाय शतनवाय
यात के ौघडडमे
सभम यवववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शतनवाय
शास्िोक्त भत के अनश
ु ाय मदद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शब
ु भह
ु ू ता मा शब
ु सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भें
सपरता प्राप्त होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हैं। इस सरमे दै तनक शब
ु सभम ौघडड़मा दे खकय प्राप्त फकमा जा
सकता हैं।
नोट: प्राम् ददन औय यात्रि के ौघडड़मे फक धगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हैं। प्रत्मेक ौघडड़मे फक अवधध
1 घॊटा 30 सभतनट अथाात डेढ़ घॊटा होती हैं। सभम के अनुसाय ौघडड़मे को शुबाशुब तीन बागों भें फाॊटा जाता हैं, जो क्रभश्
शब
ु , भध्मभ औय अशब
ु हैं।
ददन फक होया - सम
ू ोदम से सूमाास्त तक
वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ
यवववाय सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन
सोभवाय ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा
भॊगरवाय भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र
फध
ु वाय फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु
शक्र
ु वाय शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु
शतनवाय शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु
यात फक होया – सम
ू ाास्त से सम
ू ोदम तक
यवववाय गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु
सोभवाय शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु
भॊगरवाय शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गरु
ु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु
फध
ु वाय सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन
गुरुवाय ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा
शक्र
ु वाय भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र
शतनवाय फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर सम
ू ा शक्र
ु फध
ु ॊद्र शतन गुरु भॊगर
होया भुहूता को कामा ससवि के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अ क
ू भाना जाता हैं, ददन-यात के २४ घॊटों भें शुब-अशुब
सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससवि के सरए प्रमोग कयना ादहमे।
द्र
ॊ भा फक होया सबी कामों के सरमे उत्तभ होती हैं।
गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ वववाह के सरमे उत्तभ होती हैं।
कवच के राब :
एसा शास्िोक्त व न हैं त्जस घय भें भहाभत्ृ मॊुजम मॊि स्थावऩत होता हैं वहा तनवास कताा हो नाना
प्रकाय फक आधध-व्माधध-उऩाधध से यऺा होती हैं।
ऩण
ू ा प्राण प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩण
ू ा ैतन्म मक्
ु त सवा योग तनवायण कव फकसी बी उम्र एवॊ जातत धभा के
रोग ाहे स्िी हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हैं।
जन्भाॊगभें अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रततकूरता से योग उतऩन्न होते हैं।
कुछ योग सॊक्रभण से होते हैं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक अतनमसभतता औय अशुितासे उत्ऩन्न होते हैं।
कव एवॊ मॊि द्वाया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नष्ट कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण
प्राप्त कयने हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हैं।
आज के बौततकता वादी आधुतनक मुगभे अनेक एसे योग होते हैं, त्जसका उऩ ाय ओऩये शन औय दवासे
बी कदठन हो जाता हैं। कुछ योग एसे होते हैं त्जसे फताने भें रोग दह फक ाते हैं शयभ अनुबव कयते हैं
एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि राबादातम ससि होता हैं।
प्रत्मेक व्मत्क्त फक जेसे-जेसे आमु फढती हैं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हैं। त्जसके
साथ अनेक प्रकाय के ववकाय ऩैदा होने रगते हैं एसी त्स्थती भें उऩ ाय हे तु सवायोगनाशक कव एवॊ
मॊि परप्रद होता हैं।
त्जस घय भें वऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक दह नऺिभे जन्भ रेते हैं, तफ उसकी
भाता के सरमे अधधक कष्टदामक त्स्थती होती हैं। उऩ ाय हे तु भहाभत्ृ मॊुजम मॊि परप्रद होता हैं।
त्जस व्मत्क्त का जन्भ ऩरयधध मोगभे होता हैं उन्हे होने वारे भत्ृ मु तुल्म कष्ट एवॊ होने वारे योग,
ध त
ॊ ा भें उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि शब
ु परप्रद होता हैं।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुक्त सवा योग तनवायण कव एवॊ मॊि के फाये भें अधधक
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89 - 2018
उऩयोक्त कव के अरावा अन्म सभस्मा ववशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्देश्म ऩतू ता हे तु कव का तनभााण फकमा जाता हैं। कव के ववषम भें
अधधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । *कव भाि शब
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सू ना
ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के अधधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं।
रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन वव ायो से सहभत हों।
ऩत्रिका भें प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्क्त ववशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हैं।
प्रकासशत रेख ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मदद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तववक जीवन से भेर होता हैं तो मह भाि
एक सॊमोग हैं।
प्रकासशत सबी रेख बायततम आध्मात्त्भक शास्िों से प्रेरयत होकय सरमे जाते हैं। इस कायण इन ववषमो फक
सत्मता अथवा प्राभाणणकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं।
अन्म रेखको द्वाया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभाणणकता एवॊ प्रबाव फक त्जन्भेदायी कामाारम मा
सॊऩादक फक नहीॊ हैं। औय नाहीॊ रेखक के ऩते दठकाने के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक
फकसी बी प्रकाय से फाध्म हैं।
ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भें ऩाठक का अऩना
ववश्वास होना आवश्मक हैं। फकसी बी व्मत्क्त ववशेष को फकसी बी प्रकाय से इन ववषमो भें ववश्वास कयने ना
कयने का अॊततभ तनणाम स्वमॊ का होगा।
हभाये द्वारा ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हैं। हभ फकसी बी
व्मत्क्त ववशेष द्वारा प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी त्जन्भेदायी नदहॊ रेते हैं।
मह त्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्क्त फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन ववषमो भें
नैततक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी तनमभों के णखराप कोई व्मत्क्त मदद नीजी स्वाथा ऩूतता हे तु प्रमोग कताा हैं
अथवा प्रमोग के कयने भे िदु ट होने ऩय प्रततकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं।
हभाये द्वारा ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग फकमे
हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्वारा तनत्श् त सपरता प्राप्त हुई हैं।
ऩाठकों फक भाॊग ऩय एक दह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का अधधकाय यखता हैं। ऩाठकों को एक रेख के
ऩून् प्रकाशन से राब प्राप्त हो सकता हैं।
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गरु
ु त्व ज्मोततष ऩत्रिका जर
ु ाई-2018
सॊऩादक
ध त
ॊ न जोशी
सॊऩका
गरु
ु त्व ज्मोततष ववबाग
गरु
ु त्व कामाारम
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97 - 2018
हभाया उद्देश्म
वप्रम आत्त्भम
फॊधु/ फदहन
जम गरु
ु दे व
जहाॉ आधुतनक ववऻान सभाप्त हो जाता हैं। वहाॊ आध्मात्त्भक ऻान प्रायॊ ब
हो जाता हैं, बौततकता का आवयण ओढे व्मत्क्त जीवन भें हताशा औय तनयाशा भें
फॊध जाता हैं, औय उसे अऩने जीवन भें गततशीर होने के सरए भागा प्राप्त नहीॊ हो
ऩाता क्मोफक बावनाए दह बवसागय हैं, त्जसभे भनुष्म की सपरता औय
असपरता तनदहत हैं। उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेष्ठकय
सपरता हैं। सपरता को प्राप्त कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ अधधकाय हैं। ईसी
सरमे हभायी शब
ु काभना सदै व आऩ के साथ हैं। आऩ अऩने कामा-उद्देश्म एवॊ
अनक
ु ू रता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्क्त से ऩण
ू ा प्राण-
प्रततत्ष्ठत ध ज वस्तु का हभें शा प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे
हभाया उद्देश्म महीॊ हे की शास्िोक्त ववधध-ववधान से ववसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्वाया
ससि प्राण-प्रततत्ष्ठत ऩण
ू ा ैतन्म मक्
ु त सबी प्रकाय के मन्ि- कव एवॊ शब
ु
परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहो ाने का हैं।
सम
ू ा की फकयणे उस घय भें प्रवेश कयाऩाती हैं।
जीस घय के णखड़की दयवाजे खुरे हों।
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2018