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आज की जिंदगी के सन्दर्भ में महात्मा विदुर के विचार
आज की जिंदगी के सन्दर्भ में महात्मा विदुर के विचार
आज की जिंदगी के सन्दर्भ में महात्मा विदुर के विचार
विदयु का जन्भ
हजततनाऩुय के भहायाज शान्तनु का ननषाद ऩुत्री सत्मिती के प्रनत आसजतत औय उनके वििाह
भें ननषाद की मह शतभ कक सत्मिती का ऩत्र
ु ही मि
ु याज होगा, मही फात भहायाज शान्तनु को
बीतय तक आहत कय गमी। िह गॊगा-ऩत्र
ु दे िव्रत के अधधकाय को कैसे दाॊि ऩय रगा सकते
थे ? गॊगा-ऩत्र
ु दे िव्रत ने वऩता की धचन्ता का कायण जानकय तिमॊ ननषादयाज के सभऺ
प्रनतऻा की कक ―ननषादयाज ! तम्
ु हायी कन्मा के गबभ से उत्ऩन्न ऩत्र
ु ही हजततनाऩयु के याज्म
का उत्तयाधधकायी होगा।‖‖ इस फात ऩय बी ननषादयाज का सॊशम सभाप्त न हुआ। उन्होंने
कहा, ――मदद तम्
ु हाया ऩत्र
ु भेयी सत्मिती के ऩत्र
ु से याज्म छीन रे ? दे िव्रत ने मह आशम
जानकय कहा, ―ननषादयाज भैं अजन्भ ब्रह्भचमभ का ऩारन कयने का बीष्भव्रत रेता हॉ ।‖‖ मह
सुनकय ननषादयाज ने भहायाज शान्तनु के साथ अऩनी याजकन्मा सत्मिती के वििाह के लरए
कोई आऩजत्त नहीॊ की। दे िव्रत बीष्भ के नाभ से प्रलसद्ध हो गए।
याजकुभाय दे िव्रत की बीष्भप्रनतऻा के फाद ―दे िव्रत कहीॊ ऩीछे छट गमा, अॊत्कऺ भें लसभटकय
यह गमा औय शेष यह गमा बीष्भ। शान्तनु ननरुऩाम असहाम भन भसोस कय यह गए। उनकी
आसजतत का इतना फडा भल्म चक
ु ाना ऩडा उनके ऩुत्र दे िव्रत को। भहायानी सत्मिती ने
धचत्राॊगद औय विधचत्र िीमभ को जन्भ ददमा। दोनों ही याजकुभाय ऩणभमुिा बी नहीॊ हो ऩाए थे
कक भहायाज शान्तनु तिगभ लसधाय गए। धचत्राॊगद हजततनाऩुय के सम्राट फने ऩय ननमनत को
उनका याज ् तिीकाय नहीॊ था। एक मुद्ध भें गॊधिभ याज के हाथों भहायाज धचत्राॊगद की भत्ृ मु हो
गई। अबी विधचत्रिीमभ मुिा नहीॊ हो ऩामे थे, ककन्तु याज्मलसॊहासन तो खारी नहीॊ यह सकता
था। अनुज विधचत्रिीमभ को याज लसॊहासन ऩय अलबवषतत ककमा गमा। बीष्भ उनके सॊयऺक थे।
मुिा होने ऩय विधचत्रिीमभ का वििाह होना था। सभाचाय लभरा-काशी नये श की तीन कन्माओॊ
का तिमॊिय हो यहा है । भाता सत्मिती की आऻा से बीष्भ ने तिमॊ ही यथ ऩय सिाय होकय
काशी की मात्रा की। तिमॊिय भें उनके सपेद फारों औय िैधव्म को दे खकय उऩहास होने रगा।
योष भें आकय बीष्भ तीनों कन्माओॊ का अऩहयण कय हजततनाऩुय रे आए। उन्होंने तीनों
कन्माएॉ विधचत्र िीमभ को सभवऩभत कय दीॊ। वििाह का आमोजन ककमा गमा। मह दे खकय काशी
नये श की फडी कन्मा ने उन्हें फतामा-िह भन-ही-भन कौशर नये श भहायाज शाल्ि को अऩना
ऩनत भान चकु ी है तो बीष्भ ने उन्हें सेिकों के साथ शाल्ि के महाॉ ऩहुॉचा ददमा औय अजम्फका
तथा अम्फालरका का वििाह विधचत्रिीमभ से कय ददमा गमा। होनी को कौन टार सकता था ?
सदाचायी दे िव्रत की कोभर बािनाओॊ को हजततनाऩयु याज्म की िेदी ऩय बें ट चढ़िा ददमा गमा
था तो भहायानी सत्मिती को बी उसका कुछ भल्म चक
ु ाना ही था। इस तयह धचत्राॊगद तो
अवििादहत ही सॊसाय से विदा हुए औय विधचत्रिीमभ बी मौिनोन्भाद भें उन्भत्त काभासतत ऺम
योग से ग्रतत हो गमे औय असभम ही नन्सन्तान तिगभ लसधाय गए। तितथ फारक की
काभना से सत्मिती ने दसया प्रमास ककमा औय अफकी फाय अम्फालरका को व्मास जी के कऺ
भें बेजा। अम्फालरका व्मासजी के कृष्णप ऩ को दे खकय बम से ऩीरी ऩड गई। परत् रुणण
ऩाण्डु ने जन्भ लरमा। सत्मिती की सभतमा का सभाधान अबी बी नहीॊ हुआ था। अत् एक
फाय अजम्फका को ऩन ु ् व्मास जी की शयण भें बेजने का विचाय हुआ। अजम्फका इस फाय जाने
को तैमाय न हुई। उसने अऩनी जगह अऩनी दासी को व्मासजी की शयण भें बेज ददमा। इस
दासी ने ही व्मासजी के द्िाया विदयु को जन्भ ददमा। िातति भें भहात्भा भाण्डव्म के शाऩ से
धभभयाज ही विदयु के प ऩ भें अितीणभ हुए मह बी एक ऩिभ प्रसॊग है । भाण्डव्म मशतिी भनु न
थे। उन्हें एक याजा ने भ्रभ से अऩयाधी जानकय प्राण-दण्ड दे ते हुए सरी ऩय रटका ददमा।
उन्होंने प्राण नहीॊ छोडे। कापी ददन फाद याजा को अऩनी बर का बान हुआ तो उन्हें सरी से
उताय अऩने अऩयाध की ऺभा भाॊगी। भुनन ने याजा को ऺभा कय ददमा। तबी से उनका नाभ
अणीभाण्डव्म ऩड गमा। ऩय उनके कायण साधायण असािधानी ऩय जो दण्ड लभरा, इसके लरए
उन्होंने धभभयाज की सबा भें जाकय उन्हें शद्र मोनन भें जन्भ रेकय भनुष्म फनने का शाऩ दे
ददमा। याज लसॊहासन कपय खारी हो गमा। उत्तयाधधकायी का प्रश्न कपय सत्मिती के सम्भुख
सभतमा फन गमा। बीष्भ प्रनतऻा से फॊधे हुए थे। ननरुऩाम सत्मिती ने ऩिभकार भें भुनन
ऩयाशय के सॊसगभ से उत्ऩन्न अऩने ही ऩुत्र कृष्ण द्िैऩामन व्मास को फुरिामा औय कुर को
चराने के लरए ननमोग के द्िाया अजम्फका को ऩुत्र-प्रदान कयने के लरए ननिेदन ककमा। ककसी
बी सन्सायी के लरए भन से ऐसा तिीकामभ कयना भमाभदा ही नहीॊ, बािना के बी प्रनतकर था।
ककन्तु कुर की यऺा के लरए उसने फरात ् मह आदे श तिीकाय ककमा ऩय व्मास जी के कऺ भें
जाकय बम ि रज्जा से उसने आॊखें फॊद कय रीॊ। परत् उसने नेत्रहीन धत
ृ याष्र को जन्भ
ददमा।
दहन्द ग्रॊथों भें ददमे जीिन-जगत के व्मिहाय भें याजा औय प्रजा के दानमत्िों की विधधित
नीनत की व्माख्मा कयने िारे भहाऩुरुषों ने भहात्भा विदयु सुविख्मात हैं। उनकी विदयु -नीनत
िातति भें भहाबायत मुद्ध से ऩिभ मुद्ध के ऩरयणाभ के प्रनत शॊककत हजततनाऩुय के भहायाज
धत
ृ याष्र के साथ उनका सॊिाद है । विदयु जानते थे, मुद्ध विनाशकायी होगा। भहायाज धत
ृ याष्र
अऩने ऩुत्र (दम
ु ोधन) भोह भें सभतमा का कोई सयर सभाधान नहीॊ खोज ऩा यहे थे। िह
अननणभम की जतथनत भें थे। दम
ु ोधन अऩनी हठ ऩय अडा था। दम
ु ोधन की हठ-नीनत विरुद्ध थी।
ऩाण्डिों ने द्मत की शतभ के अनुसाय फायह िषभ के फनिास औय एक िषभ की अऻातिास
अिधध ऩणभ कयने का फाद जफ अऩना याज्म िावऩस भाॉगा तो दम
ु ोधन के हठ के सम्भख
ु
असहाम एिॊ ऩत्र
ु भोह से ग्रतत भहायाज धत
ृ याष्र के ऩाण्डिों के दत कोई ननणाभमक उत्तय नहीॊ
दे सके। केिर इतना आश्ितत ककमा कक िह सफसे ऩयाभशभ कयके सॊजम द्िाया अऩना ननणभम
प्रेवषत कय दें गे। सॊजम के भाध्मभ से बेजा गमा सॊदेश बी कोई ननणाभमक सॊदेश नहीॊ था।
उसभें इतना कहा गमा था कक िे ऐसा कामभ कयें जजससे बयतिॊलशमों का दहत हो औय मुद्ध न
हो।
―भहाबायत‖ की कथा के भहत्त्िऩणभ ऩात्र विदयु कौयि-िॊश की गाथा भें अऩना विशेष तथान
यखते हैं। औय विदयु नीनत जीिन-मुद्ध की नीनत ही नहीॊ, जीिन-प्रेभ, जीिन-व्मिहाय की नीनत
के प ऩ भें अऩना विशेष तथान यखती है । याज्म-व्मितथा, व्मिहाय औय ददशा ननदे शक लसद्धाॊत
िातमों को वितताय से प्रततािना कयने िारी नीनतमों भें जहाॊ चाणतम नीनत का नाभोल्रेख
होता है , िहाॊ सत ्-असत ् का तऩष्ट ननदे श औय वििेचन की दृजष्ट से विदयु -नीनत का विशेष
भहत्त्ि है । व्मजतत िैमजततक अऩेऺाओॊ से जड
ु कय अनेक फाय ननतान्त व्मजततगत, एकेंद्रीम
औय तिाथी हो जाता है , िहीॊ िह िैजततक अऩेऺाओॊ के दामये से फाहय आकय एक को अनेक
के साथ तोडकय, सत ्-असत ् का विचाय कयते हुए सभजष्टगत बाि से सभाज केंद्रीम मा
फहुकेंद्रीम होकय ऩयाथी हो जाता है ।
ऩाण्डिों की सबा भें सॊजम का कथन सुनकय दे िकीनन्दन कृष्ण ने सफ विधध से सोच-विचाय
कय अऩने धभभ वििेक से इतना कहा—――सॊधध मा मुद्ध का ननणभम मुधधजष्ठय के हाथों भें नहीॊ,
भहायाज धत
ृ याष्र के ननणभम के अधीन है । िह इसे ऩयाभशभ मा चन
ु ौती कुछ बी भान सकते
हैं। हभाया आशम ऩयाभशभ से है , चन ु ौती से नहीॊ।‖‖ सॊजम की िाऩसी जजस सभम हुई, ददन ढर
चक ु ा था। भहायाज धत
ृ याष्र मुधधजष्ठय से हुई फातचीत का ब्मौया जानने के लरए उत्सुक थे।
जफकक सॊजम का भत था कक सायी फातें अगरे ददन याज्मसबा भें सफके साभने की जाए तो
उत्तभ होगा। मही सोचकय सॊजम भहायाज धत
ृ याष्र को साॊत्िना दे कय घय रौट गमा।
भहायाज धत
ृ याष्र उद्विणन हो यहे थे। सॊजम ने कोई फात उन्हें तऩष्ट प ऩ से नहीॊ फताई थी।
उनकी धचन्ता का विषम था, मुधधजष्ठय का ननणभम। िातति भें भहायाज धत
ृ याष्र अननश्चम से
नघय गए थे। कहना फडा कदठन था कक मुधधजष्ठय के ऩास से सॊजम तमा सभाचाय राए हैं?
उनके भन का चोय उन्हें व्माकुर ककमे हुए था। प्रश्न मह था कक—िह अऩने भन की दशा
ककस के साभने प्रकट कयें ? औय अन्तत् इस अननश्चम औय शॊका की घडी भें िह अऩने
ऩयभ आत्भीम विदयु को ही माद कयते हैं। विदयु ने द्मत क्रीडा के सभम भहायाज धत
ृ याष्र
को चेतामा था कक मदद मह खेर सभाप्त नहीॊ ककमा गमा तो अनथभ हो जाएगा। हजततनाऩुय
विनाश के कगाय ऩय जाने से नहीॊ फच ऩाएगा औय भहायाज बौनतक प ऩ से नेत्रहीने होते हुए
बी दे ख नहीॊ ऩा यहे थे, विदयु के सभझाने ऩय बी नहीॊ सभझ ऩाए। िह ऩुत्र भोह-ऩाश से
भत
ु त नहीॊ हो ऩाए। उन्हें अनब
ु ि हो गमा—मह ददन तो आना ही था। भहाविनाश की
आधायलशरा यखी जाने से ऩिभ सशॊककत धत
ृ याष्र द्िाया विदयु को फर
ु ाकय उनसे विचाय-विभशभ
कयना औय विदयु का भहायाज धत
ृ याष्र की बलभका का उल्रेख कयते हुए उन्हें उनके दानमत्ि
का फोध कयाने के लरए ददमा गमा नीनतगत उऩदे श ही िातति भें भहवषभ िेदव्मास यधचत
―भहाबायत‖ भें उद्मोग ऩिभ भें ―विदयु नीनत‖ के प ऩ भें िर्णभत है । विदयु एक तयह से
हजततनाऩुय याज-ऩरयिाय का सदतम होकय ही दासी ऩुत्र के नाते अधधकाय-प ऩ भें कुछ बी कह
ऩाने की दशा भें नहीॊ थे। मह तो याजऩरयिाय का अनुग्रह औय विदयु का तटतथ सत्म तथाऩन,
ऻान औय धभभ भें रुधच का प्रबाि था कक साभान्म होकय बी उन्हें विलशष्ट प ऩ भें उन्हें सदै ि
सम्भान लभरा। बीष्भ, भाता सत्मिती, धत
ृ याष्र अऩने जीिनकार तक ऩाण्डु, मुधधजष्ठय आदद
बाई, कृष्ण, गान्धायी, कुन्ती औय आचामभ द्रोण, कृऩाचामभ आदद सबी उनको मथोधचत भान-
सम्भान दे ते थे।
जानत के कायण ककनाये कय ददए जाने के फािजद अऩनी प्रनतबा, िातऩटुता औय कभभशीरता
के कायण विदयु कृष्ण के ऩारे भें खडे नजय आते हैं। भहाबायत कथा का शामद ही कोई
भहत्िऩणभ प्रसॊग हो, जहाॊ विदयु उऩजतथत न हों औय अऩनी याजनीनतक याम उन्होंने न दी हो।
भहाबायत के अद्भत
ु कभभशीर औय तनाि से बये भाहौर भें विदयु का तथान कहाॊ आता है ?
विदयु को सभझने के लरए उन्हें दो तयह से तुरना का ऩात्र फना सकते हैं, लसपभ इसलरए कक
तुरना सभझने भें सहामता कयती है । अऩनी जन्भकथा के कायण विदयु ऩाण्डु औय धत
ृ याष्र
के ऩारे भें चरे जाते हैं तो अऩनी प्रनतबा औय िाजणभता के कायण विदयु की तुरना कृष्ण के
अरािा औय ककसी से नहीॊ की जा सकती। ऩहरे जन्भ कथा की फात की जाए।
विधचत्रिीमभ की भत्ृ मु के ऩश्चात ् कुरुकुर के साभने िॊशनाश का खतया ऩैदा हो गमा था। इस
खतये से िॊश को फचाने के लरए शान्तनु की ऩत्नी सत्मिती ने (ऩहरे ऩनत औय कपय दोनों
ऩत्र
ु ें धचत्रगॊद औय विधचत्रिीमभ की भत्ृ मु के फाद) व्मास की सहामता रेने का ननणभम ककमा।
विधचत्रिीमभ की दोनों ऩजत्नमों अजम्फका औय अम्फालरका को उसने कहा कक िे ननमोग द्िाया
व्मास से सन्तान की प्राजप्त कयें । दोनों ऩत्र
ु िधए
ु ॊ भान गई। ऩय सत्मिती के भनोयथ की
खजण्डत ऩनतभ ही हो सकी। व्मास चकॊ क फहुत ही बमािह नाक-नतश के थे, इसलरए उन्हें
दे खते ही अजम्फका ने आॊखें फन्द कय रीॊ तो उसे अॊधा ऩुत्र ऩैदा हुआ, जो धत
ृ याष्र कहरामा।
उधय व्मास को दे खते ही अम्फालरका का यॊ ग ऩीरा ऩड गमा तो उसे ऩीरे शयीय िारा ऩाण्डु
नाभक ऩुत्र ऩैदा हुआ। जादहय है कक सत्मिती जैसी तेजजतिनी भदहरा को इस तयह के
विकराॊग ऩोतों से सॊतोष नहीॊ हुआ तो उसने एक फाय कपय से अजम्फका को व्मास से ननमोग
की प्रेयणा दी। इस फाय अजम्फका डय के भाये व्मास के ऩास गई ही नहीॊ औय उसने अऩनी
एक दासी को बेज ददमा, जजससे विदयु नाभक ऩुत्र का जन्भ हुआ। इस तयह ननमोग सन्तनत
के आधाय ऩय विदयु धत
ृ याष्र औय ऩाण्डु के बाई हुए, ऩय दासी का ऩत्र
ु होने के कायण उन्हें
याजकाज के रामक नहीॊ भाना गमा।
शयीय औय फजु ध्द दोनों दृजष्टमों से विदयु अऩने दोनों फडे ननमोगज बाइमों, धत
ृ याष्र औय ऩाण्डु
से कहीॊ श्रेष्ठतय थे। ऩय धत
ृ याष्र के अन्धा होने के कायण जफ उसे याजा फनने के आमोणम
भाना गमा तो वििश ऩीरे शयीय िारे ऩाण्डु को याजा फनामा गमा औय शयीरयक दृजष्ट से
सिाांग सन्
ु दय औय तितथ विदयु की तयप ककसी की ननगाह तक नहीॊ गई। अगय विकराॊग
होने के कयाण धत
ृ याष्र अऺभ था तो ऩाण्डु होने के कायण ऩाण्डु को बी आमोणम भान तीसये
बाई विदयु को याजा फना दे ना चादहए था। शयीय ही नहीॊ, फुजध्द की दृजष्ट से बी विदयु याजा
फन सकते थे। ऩय उन्हें नहीॊ फनामा गमा। तमों? उत्तय आसान नहीॊ।
उत्तय आसान इसलरए नहीॊ तमोंकक अऩने दोनों बाईमों के सभान विदयु बी व्मास के फर से
ही ऩैदा हुए थे, ऩय उन्हें कुरीनता की िैसी भान्मता नहीॊ लभरी। तकभ ददमा जाता है कक
उनकी भाता चकॊ क दासी थी, इसलरए विदयु को कुरीनता का िह प्रभाणऩत्र नहीॊ लभर ऩामा,
जो उनके दसये दोनों बाइमों को लभरा। तो तमा इससे मह ननष्कषभ ननकार लरमा जाए कक
भहाबायत कार भें िॊशननधाभयण भें वऩता के साथ-साथ भाॊ की बलभका का अगय ज्मादा नहीॊ
तो फयाफय का भहत्ि था? शामद इसलरए मुधधजष्ठय, बीभ औय अजुन
भ ऩाण्डि (ऩाण्डु ऩुत्र) होने
के साथ कौन्तेम (कुन्ती ऩुत्र) बी कहराए तो कृष्ण को िासुदेि (िसुदेि ऩुत्र) के साथ
दे िकीनन्दन औय मशोदानन्दन बी कहा गमा। ऩय मदद भाॊ का नाभ इतना ही ननणाभमक था
तो धत
ृ याष्र के सौ ऩुत्रें के नाभ भें उनकी भाॊ गान्धायी का नाभ तमों नहीॊ रोकवप्रम हो ऩामा?
सचभुच इन प्रश्नों के उत्तय नहीॊ लभर ऩाते औय इन्हीॊ अनुत्तरयत प्रश्नों के फीच एक
भहाभनत विदयु इसलरए मुियाज नहीॊ फन ऩाए, तमोंकक उनकी भाॊ दासी थी औय ऩयी
भहाबायत भें िे ऺत्ता कहराए, जो उनका जानत िाची नाभ था, जजसका अथभ है - चॊिय डुराने
िारा। ककतनी विडम्फना है कक धत
ृ याष्र औय ऩाण्डु के ननमोग-बाई होने के फािजद िे उनके
फजाए कणभ के ऩारे भें डार ददए गए, तमोंकक भहाबायत कथा भें विदयु के अरािा कणभ ही
ऐसे दसये ऩात्र हैं, जो ऩाण्डिों के बाई होने के फािजद सत मानी सायथी के हाथों ऩरने-ऩुसने
के कायण हीन जानत के भान लरए गए औय इस कष्ट को आजीिन झेरते यहे ।
ऩय जानत के कायण ककनाये कय ददए जाने के फािजद अऩनी प्रनतबा, िातऩटुता औय
कभभशीरता के कायण विदयु कृष्ण के ऩारे भें खडे नजय आते हैं। भहाबायत कथा का शामद
ही कोई भहत्िऩणभ प्रसॊग हो, जहाॊ विदयु उऩजतथत न हों औय अऩनी याजनीनतक याम उन्होंने
न दी हो। बीष्भ जैसे याजनीनत शातत्र के ऩयभऻानी वऩताभह के भौजद यहते हुए बी भहायाज
धत
ृ याष्र ने विदयु को ही अऩना भॊत्री फनामा था इससे कौयि ऩऺ को दो पामदे हो गए। एक
मह कक विदयु जैसे व्मजतत से धत
ृ याष्र को सदा एक ननष्ऩऺ औय उधचत याम लभरती यहती
औय दसया मह कक आमु भें छोटा बाई होने के कायण विदयु की याम को न भानने भें
धत
ृ याष्र हभेशा तितॊत्र थे। ऩय अऩनी याम न भानी जाने की ऩयिाह न कय विदयु ने अऩने
फडे बाई धत
ृ याष्र को हभेशा ठीक औय दो टक सराह दी। विडम्फना दे र्खए कक जफ धत
ृ याष्र
की याजसबा भें जआ
ु खेरा जाना प्रायम्ब हुआ तो याजा की आऻा से विदयु ही मधु धजष्ठय को
जए
ु का ननभन्त्रण दे ने गए, ऩय जआु खेरे जाने के दौयान ही विदयु ने जजस दफॊग तयीके से
जए
ु का वियोध ककमा औय दम
ु ोधन के चरयत्र का ऩदाभपाश ककमा, िह साहसी भन्त्री के ही फस
का काभ था। तफ विदयु ने दम
ु ोधन को कौिा औय गीदड तक कह ददमा औय धत
ृ याष्र को
चेतामा कक दम
ु ोधन के प ऩ भें एक कौिा औय एक गीदड उनके कुर का विनाश कयने को
ऩैदा हुआ है । दम
ु ोधन का ऩरयत्माग कय दे ने की सराह दे ते हुए विदयु ने धत
ृ याष्र को िह
श्रोक सुनामा, जो बायत के याजनीनत शातत्र का फडा ही रोकवप्रम कथन फन गमा है - त्मजेत ्
कुराथे ऩुरुषभ ्। ग्राभतमाथे कुरॊ त्मजेत ्। ग्राभॊ जनऩदतमाथे। आत्भाथे ऩधृ थिीॊ त्मजेत ् । अथाभत ्
एक व्मजतत का फलरदान दे कय बी कुर को फचाना चादहए, कुर का फलरदान दे कय बी ग्राभ
को फचाना चादहए, ग्राभ की फलर चढ़ाकय बी याज्म फचा रेना चादहए औय खद
ु को फचाने के
लरए याज्म का बी फलरदान कय दे ना चादहए। ऩय धत
ृ याष्र ने दम
ु ोधन नाभक एक व्मजतत का
फलरदान नहीॊ ककमा औय अन्तत: याज्म से हाथ धोने ऩडे। तबी जुए के दौय भें ही विदयु ने
चेतािनी दे दी थी कक आज जजसे विनोद भाना जा यहा है , कर को इसी भें से मुध्द की
उत्ऩजत्त होने िारी है । ऩयन्तु विदयु की न धत
ृ याष्र ने सुनी औय न दम
ु ोधन ने। विदयु की
फात को तफ बी कहाॊ सुना गमा, जफ बयी याजसबा भें द्रौऩदी को ननिभतत्र ककमा जा यहा था
औय विदयु हय कुछ ऺणों के फाद ऩयी सबा को फाय-फाय इस कुकृत्म के बमानक दष्ु ऩरयणाभों
की चेतािनी दे यहे थे। मे तभाभ घटनाएॊ तो फाद की हैं। ऩाण्डिों के जन्भकार से ही विदयु
का तनेह इन वऩतवृ िहीन फारकों से हो गमा था औय उन्होंने फाय-फाय धत
ृ याष्र को सभझामा
कक ऩाण्डिों को उनका न्मोमोधचत दहतसा लभरना ही चादहए। जफ दम
ु ोधन ने बीभ को ऩानी
भें कपकिा ददमा था तो विदयु ने ही कुन्ती को ढाढस फॊधामा था। जफ दम
ु ोधन ने िायणाित
के राऺागह
ृ भें ऩाण्डिों को उनकी भाॊ कुन्ती के सदहत जरा दे ने की मोजना फनाई तो विदयु
ने ही इस ऩये षडमन्त्र का ऩता मुधधजष्ठय को बयी याजसबा भें एक ऐसी बाषा के भाध्मभ से
दे ददमा, जो लसपभ विदयु औय मुधधजष्ठय ही जानते थे।
मानी नीनत, उऩदे श औय कभभ के ऺेत्र भें इतने साये काभ विदयु ने ककए। विदयु के इन्हीॊ
भहान नीनतव्मातमों औय कामों के कायण व्मास ने उन्हें भहाबायत भें भहात्भा विदयु फाय-फाय
कहा है । विदयु की नीनतभत्ता इतनी प्रभार्णक थी कक भहाबायत भें उऩरब्ध उन्हीॊ के कथनों
के आधाय ऩय आगे चरकय ―विदयु नीनत‖ नाभक प्रलसध्द अथभशातत्र ग्रन्थ चरन भें आ गमा।
जफ कृष्ण मध्
ु द टारने का एक आर्खयी प्रमास कयते हुए मधु धजष्ठय के दत फनकय धत
ृ याष्र से
लभरने आए तो धत
ृ याष्र के ऩाॊिों तरे से जभीन र्खसकने रगी। घफयाहट के भाये उसने विदयु
से ऩयी यात इस फाये भें ऩयाभशभ ककमा कक कृष्ण के साथ कैसे फयता जाए। ऩय धत
ृ याष्र ने
विदयु की तफ बी कहाॊ भानी?
तऩष्ट है कक विदयु अऩने सभम के एक ऐसे नीनतऻ थे, जजनके कथनों भें नीनतभत्ता है ,
ननबीकता है औय प्रासॊधगकता है । जजस सभम जो कहना चादहए, िह विदयु ने कहा औय ठीक
उसी आधाय ऩय उनका नाभ दे श के भहान याजनीनतिेत्ताओॊ भें आ गमा। कपय तमा कायण है
कक उन्हें िह तथान औय सम्भान नहीॊ लभर ऩामा, जो अऩने उन्हीॊ गण
ु ों के कायण कृष्ण को
लभरा? कायण तऩष्ट है । तऩष्ट, ननबीक औय प्रासॊधगक कथन भें विदयु कृष्ण से ककसी बी
तयह से कभ नहीॊ ठहयते। ऩय जहाॊ विदयु ऩीछे यह गए औय कृष्ण आगे ननकर गए, िह ऺेत्र
कभभ का है । विदयु आजीिन सकक्रम तो यहे , ऩय विदयु के ककसी कथन के ऩीछे कभभ का ठोस
सभथभन नहीॊ है , जफकक कृष्ण का कोई कथन बफना कभभ के सभथभन के है ही नहीॊ। भसरन
विदयु ने कहा कक जआ
ु नहीॊ खेरा जाना चादहए, ऩय जआ
ु खेरा गमा औय विदयु कुछ नहीॊ
कय ऩाए। विदयु ने कहा कक द्रौऩदी का चीयहयण नहीॊ होना चादहए, ऩय चीयहयण हुआ औय
विदयु कुछ नहीॊ कय ऩाए। विदयु ने कहा कक कृष्ण शाजन्तदत फन कय आ यहे हैं, उसका
सम्भान कयना चादहए। ऩय दम
ु ोधन ने कृष्ण को धगयफ्ताय कय रेना चाहा औय विदयु कुछ
नहीॊ कय ऩाए। औय कृष्ण? हय भौके ऩय कृष्ण ने कहा बी औय कय बी ददखामा। जयासन्ध
को भयिा ददमा। लशशुऩार को खद
ु ही भाय ददमा। दम
ु ोधन ने धगयफ्ताय कयना चाहा तो उसे
ऐसा हडका ददमा कक िह फेचाया हाथ जोडकय खडा हो गमा। दम
ु ोधन बफना मुध्द के ऩाण्डिों
को सुई बय जभीन दे ने को बी तैमाय नहीॊ हुआ तो कृष्ण ने मुध्द ही कयिा डारा। अजन
ुभ
थोडा बफदकने रगा तो उसे ऩयी गीता सुना दी औय मध् ु द भें बी रगा ददमा। औय कपय? मही
कृष्ण थे, जो कौयिऩऺ के तीन धयु न्धयों-बीष्भ, द्रोण औय कणभ की भत्ृ मु का कायण फने।
िस, मह पकभ था। विदयु औय कृष्ण दोनों नीनतऻ थे। ऩय कृष्ण की नीनत को कभभ का फर
प्राप्त था, जजसके दशभन हभें विदयु के जीिन भें नहीॊ होते। इसलरए कृष्ण ऩणाभिताय हो गए,
जफकक विदयु का भहत्ि भहान नीनतशातत्रकाय के दामये भें जा लसभटा। ऩय चकॊ क िे ऩणाभिताय
नहीॊ फन सके तो तमा विदयु का भहत्ि कभ भान लरमा जाए? ऐसा बरा कैसे हो सकता है ?
हय कोई ऩणभिताय नहीॊ हो सकता। िह तो कोई वियरा ही होता है । ऩय दे श की सभ्मता के
विकास भें मोगदान तो विदयु जैसों का बी अद्भत
ु होता है , जजन्होंने बायत को बीष्भ के
सभकऺ एक नीनतशातत्र दे ददमा।
अच्छी फातों को ग्रहण कयो
पऩतऩ
ृ पत्भहं ्य्ज्मं्रलप्प्तवत्न प्स्वतेन्ञभःण्स्वत्मुयभ्रतभवत्््याम्भ्रंिमतामनमे्न्स्थत ्॥अन्माम
के भागभ ऩय चरने िारा याजा वियासत भें लभरे याज्म को उसी प्रकाय से नष्ट कय दे ता है
जैसे तेज हिा फादरों को नछन्न -लबन्न कय दे ती है ।
मस्भ्त प्त्रस्मन्न्मतत्बत
ू ्नन्भग
ृ व्म्ध्न्मतभग
ृ ््इवतस्््गय्न्मतत्भपऩ्भहीं्रब्ध्वत््््ऩजयहीमते्॥
जैसे लशकायी से दहयण बमबीत यहते हैं ,उसी प्रकाय जजस याजा से उसकी प्रजा बमबीत यहती
है ,कपय चाहे िह ऩयी ऩथ्
ृ िी का ही तिाभी तमों न हो ,प्रजा उसका ऩरयत्माग कय दे ती है ।
अविश्िास
न्पवतमभप्ेदपवतमभपस्ते्पवतमभपस्ते्न्नतपवतमभप्ेत पस्पवतमभप्््या्बमभुताऩन्मतन्भुर्न्मतमपऩ्ननञृन्मततनत्
॥जो व्मजतत बयोसे के रामक नहीॊ है ,उस ऩय तो बयोसा न ही कयें ,रेककन जो फहुत
बयोसेभॊद है , उस ऩय बी अॊधे होकय बयोसा न कयें , तमोंकक जफ ऐसे रोग बयोसा तोडते हैं
तो फडा अनथभ होता है ।
््भुद्रिञं्वतणण्ं्पबयऩूवत्ः िर्ञधताू तः्प्चपकञता्ञं्पस्अजयं्प्तभत्रं्प्ञुिीरवतं्प्
नपत्न्मत््क्ष्मे्तावतचधञुवतीत्प्त॥
हततये खा ि शयीय के रऺणों के जानकाय को ,चोय ि चोयी से व्माऩायी फने व्मजतत को,
जुआयी को, धचककत्सक को ,लभत्र को तथा सेिक को -इन सातों को कबी अऩना गिाह न
फनाएॉ, मे कबी बी ऩरट सकते हैं।
स्त्रीषु्य्््ु््ऩेषु्स्वत््म्मरलपबुित्रष
ु ुस्बबगे्वत्मुपष्पवतमभप््ं्ञ ्रलप्् ्ञतभ
ुः ह
ः नत्॥
फुवद्धभान रोगों को चादहए क़ िे तत्री, याजा, सऩभ, शत्र,ु बोग, धातु तथा लरखी फात ऩय आॉख
भॉदकय बयोसा न कयें ।
अहॊ काय
पवतयाम्भदब्धनभदस्तत
ृ ीमबऽतब्नब्भद ्स्भद््एतेऽवततरप्त्न्भेत्एवत््त्ं्दभ् ्॥विद्मा का
अहॊ काय ,धन -सम्ऩनत का अहॊ काय ,कुरीनता का अहॊ काय तथा सेिकों के साथ का अहॊ काय
फुवद्धहीनों का होता है ,सदाचायी तो दभन द्िाया इनभें बी शाॊनत खोज रेते है ।
ईष्माभ ि द्िेष
उधचत व्मिहाय
कटु -िचन
भभ्ःण्मस्थीनन्ह्रदमं्तथ््ून प ,रुषुर््वत्पब्ननदः हन्मततीह्ऩुं््भ पस्तस्भ्या्वत्पभ
ु ुषतीभुग्ररुऩ्ं्
धभ्ःय्भब्ननतामिब्वत्ःमीत॥
कठोय फात सीधी भभभतथान, हड्डडमों तथा ददर ऩय जाकय चोट कयती है औय प्राणों को
टीसती यहती है , इसलरए धभभवप्रम व्मजतत को ऐसी फातों को हभेशा के लरए छोड दे ना चादहए।
वत्क््ंमभब्द्रह्नऩते््द
ु ्ु ञयतभब्भत स्अथःवतच प्पवतचपत्रं्प्न्िक्मं्फहु्ब्पषतभ पस
भुख से िातम फोरने ऩय सॊमभ यखना तो कदठन है ऩय हभेशा ही अथभमुतत तथा चभत्कायऩणभ
िाणी बी अधधक नहीॊ फोरी जा सकती।
वत्क्््मञ््वतदन्बत्र्ऩतन्न्मतत्मपय्हत ्िबपनत्य्त्र्मह्ननस्ऩयस्म्न्भभः््ु ते्ऩतन्न्मतत्त्न प्
ऩन्ण्डतब्न्वत््
ृ ेत प्ऩये य म ्॥
शब्द प ऩी फाण सीधा ददर ऩय जाकय रगता है जजससे ऩीडडत व्मजतत ददन -यात घर
ु ता यहता
है । इसलरए ऻानमों को चादहए कक कटु िचन फोरने से फचें ।
अय म्वतहनत्ञपतम्णं्पवतपवतधं्वत्ञप ््ुब्पषत्स््पवत्दब
ु ्ःपषत््य््नथ्ःमबऩऩयामते्॥
भीठे शब्दों भें फोरी गई फात दहतकायी होती है औय उन्ननत के भागभ खोरती है रेककन मदद
िही फात कटुताऩणभ शब्दों भें फोरी जाए तो द्ु खदामी होती है औय उसके दयगाभी दष्ु ऩरयभाण
होते हैं
यबहते्््मञपपवतःद्धं्वतनं्ऩयिुन््हतभ पस्वत्प््दरु
ु क्तं्फीबता्ं्न््ंयबहनत्वत्क्षुरतभ प्॥
फाणों से छरनी औय पयसे से कटा गमा जॊगर ऩुन् हया -बया हो जाता है रेककन कटु -िचन
से फना घाि कबी नहीॊ बयता।
तभथ्म्ऩेत्नन्ञभ्ःण्त््मेवतुम्ःनन्ब्यतस
अनुऩ्मवतुक्त्नन्भ््स्भ्तेष्भन ्ञृथ् सस
लभथ्मा उऩाम से कऩट ऩणभ कामभ लसद्ध हो जाते हैं ऩय उनभें भन रगाना ठीक नहीॊ है ।
म ्ञ्भभन्मतमू्रलप्ह्नत्य्््, ऩ्त्रे्रलपनत्ठ्ऩमते्धनं्पस्पवतिेषपवतच छुतवत्न प्क्षषुररलपञ्यी, तं्
्वतःरबञ ्ञुरुते्रलपभ्णभ पसस
याजा को असत ् उऩामों से कऩटऩणभ कामभ की लसवद्ध से दय यहना चादहए। काभ औय क्रोध
याजा शत्रु हैं, मे दोनों विलशष्ट ऻान को रुप्त कय दे ते है ।
गरत ननणभम
एञं्हन्मतम्न्मतन्वत््हन्मतम्द्रदषभ
ु क्
ुः तब्धन्ु भत्स्फपु द्धफपुः द्धभतबता््ृ ट््हन्मतम्या्य््रभ््य््ञभ प्॥
कोई धनुधयभ जफ फाण छोडता है तो सकता है कक िह फाण ककसी को भाय दे मा न बी भाये ,
रेककन जफ एक फुवद्धभान कोई गरत ननणभम रेता है तो उससे याजा सदहत सॊऩणभ याष्र का
विनाश हो सकता है ।
चरयत्र की यऺा
ऻानीजन
दग
ु ण
ुभ
यावत्पवतभौ्ञण्टञौ्तीक्ष्णौ्ियीयऩजयिबपषणौस्ममभप्धन ्ञ्भमते्ममभप्ञुप्मतामनीमभपय ्
॥ननधभनता एिॊ अऺभता के फािजद धन-सॊऩजत्त की इच्छा तथा अऺभ एिॊ असभथभ होने के
फािजद क्रोध कयना मे दोनों अिगुण शयीय भें काॉटों की तयह चब
ु कय उसे सुखाकय यख दे ते हैं
।
अनतभ्नबअनतवत्दमभप्तथ्ताम्गब्नय्चधऩस्क्रबधमभप्ताभपवतचधता्््प्तभत्रिबहमभप्त्नन्षट्सस्एत्
एवत््मस्तीक्ष्ण्ञृन्मततन्मतम्मूंपष्दे द्रहन्भ पस् ्एत्नन्भ्नवत्न प्घ्नन्न्मतत्न्भताृ मुबि
ः भस्तु्तेसस
अत्मॊत अलबभान, अधधक फोरना, त्माग का अबाि, क्रोध, तिाथभ, लभत्रद्रोहमे ी तीखी -
तरिायें भनुष्म की आमु को कभ कयती हैं। मे ही भनुष्मों का िध कयती हैं।
अतबमक्
ु तं फपतवतत दफ
ु र
ः ं हीन््धनभ प स
हृतस्तावतं ञ्तभनं पबयभ्पवतिन्न्मतत रलप््गय् सस
जजस साधन यदहत,दफ
ु र
भ भनष्ु म का ककसी शजतत सॊऩन्न के साथ वियोध हो गाम हो हे , जजस
का सफ ् कुच रट्
ु चक
ु हैं,कालभ ऩरु
ु ष तथा चोय को यात बजाभणने का योग रग जात हे ।
अ्ूमञब्दन्मतदिूञब्नन्ठुयब्वतपयञृच छठ स्््ञृच छं ्भहद्प्नबनत्नचपय्त प्ऩ्ऩभ्पयन प्॥
अच्छाई भें फुयाई दे खनेिारे, उऩहास उडाने िारा, कडिा फोरने िारा, अत्माचायी, अन्मामी
तथा कुदटर ऩुरुष ऩाऩ कभो भें लरप्त यहता है औय शीघ्र ही भुसीफतों से नघय जाता है ।
बत्रपवतधं्नयञस्मेदं्यावत्यभ्न्िनभ्ताभन ्स्ञ्भ ्क्रबधस्तथ््रबबस्तस्भ्दे ततात्रमं्ताम्ेत प्
॥काभ, क्रोध औय रोब-आत्भा को भ्रष्ट कय दे ने िारे नयक के तीन द्िाय कहे गए हैं । इन
तीनों का त्माग श्रेमतकय है ।
न्वतप्तबत्र््््तु्पयन्न्मतत्धभं्न्वतप््ुख्ं रलप्प्नुवतन्मततीह्तबत्र् स्न्वतप््ुखतं बत्र््गौयवतंरलप्प्नुवतन्न्मतत्
न्वतप्तबत्र्रलपिभंयबपमन्न्मतत्॥
जजनभें भतबेद होता है ,िे रोग कबी न्माम के भागभ ऩय नहीॊ चरते। सुख उनसे कोसों दय
होता है ,कीनतभ उनकी दश्ु भन होती है ,तथा शाॊनत की फात उन्हें चब
ु ती है ।
न्क्रबिी्स्म्त्र्वतभ्नी्ऩयस्म्तभत्रिबही्नबत्ननपबऩ्ेवतीस्न्प्तबभ्नी्न्प्हीनवतताृ तों्रुषुर्ं्
वत्पं्रुषतीं्वत्ःमीत॥
भयामऩ्ऩनं्ञरहं ्ऩुगवतपयं्ब्म्ःऩतामबयं तयं ्््नतबेदभ पस
य््यापवत्टं ्स्त्रीऩुं्मबपवतःवत्दं ्वतज्र्म्न्मतम्हुवतपमभपं्ऩन्मतथ् ्रलपद्ु ट सस
शयाफ ऩीना, करह कयना, अऩने सभह के साथ शत्रत
ु ा, ऩनत ऩत्नी औय ऩरयिाय भें बेद
उत्ऩन्न कयना, याजा के साथ तरेश कयने तथा ककसी तत्री ऩुरुष भें झगडा कयने सदहत सबी
फुये याततों का त्माग कयना ही श्रेमतकय है ।
षड््दबष् ्ऩुरुषेणेह्ह्तव्म््बूनततभन्च छत््स्ननि््तन्मति््बमं्क्रबध्आरस्मं्दीघः्ूत्रत््॥सॊसाय
भें उन्ननत के अलबराषी व्मजततमों को नीॊद, तॊद्रा(ऊॉघ), बम, क्रोध, आरतम तथा दे य से काभ
कयने की आदत-इन छह दग
ु ण
ुभ ों को सदा के लरए त्माग दे ना चादहए ।
्प्त्दबष् ््द््य््््ह्तव्म््व्म्नबदम् स्रलप्मिब्मपपवतःनमभमन्न्मतत्ञृतभर
ू ््अऩीमभवतय् सस
याजा के लरए मे सात दोष सिभथा त्माज्म हैंआशजतत-तत्री विषम -, जआ
ु , लशकाय, भद्मऩान,
िचन की कठोयता, कठोय दण्ड तथा धन का दप
ु ऩमोग
हयणं प ऩयम्वत्न्ं ऩयद्य्तबभिःनभ पस
्ुहृदमभपम ऩजयताम्गस्त्रमब दबष् षुरभ्वतह्सस
दसये के धन को हयना, ऩयामी तत्री से सॊऩकभ यखना तथा सहृदम लभत्र का त्माग-मह तीन दोष
आदभी का नाश कय दे ते हैं।
एञ ््म्ऩत्रभमभन्नत्वतस्त्रे्वत््मभप्िबबनभ प्स्मबऽ्ंपवतबज्म्बताृ मेय म ्ञब्नि
ृ ं्तयस्तत ्॥
जो व्मजतत तिाथी है , कीभती ितत्र, तिाददष्ट व्मॊजन, सुख-ऐश्िमभ की िततुओॊ का उऩबोग
तिमॊ कयता है , उन्हें जप यतभॊदों भें नहीॊ फाटॉ ता-उससे फढ़कय क्रय व्मजतत कौन होगा?
एञ ्ऩ्ऩ्नन्ञुरुते्परं्बङ्क
ु क्ते्भह््न स्बबक्त्यब्पवतरलपभच
ु मन्मतते्ञत्ः्दबषेण्तरप्मते्
॥व्मजतत अकेरा ऩाऩ-कभभ कयता है , रेककन उसके तात्कालरक सख ु -राब फहुत से रोग
उऩबोग कयते हैं औय आनॊददत होते हैं । फाद भें सख
ु -बोगी तो ऩाऩ-भत
ु त हो जाते हैं, रेककन
कताभ ऩाऩ-कभों की सजा ऩाता है ।
नपनं्छन्मतद्ंत््वत्
ृ न्त प्त्यमन्न्मतत्भ्म्पवतंन्भ्मम््वततःभ्नभ पस्नीडं्िञुन्मतत््इवत्
््तऩषुर्मभछन्मतद्ंस्मेनं्रलप्हतामन्मततञ्रे्॥
दज
ु न
भ औय कऩटी व्मिहाय कयने िारे व्मजतत की उसके ऩुण्म कभभ बी यऺा नहीॊ कय ऩाते।
जैसे ऩॊख ननकर आने ऩय ऩॊऺी घोसरे को छोड दे ते हैं; िैसे ही अॊत सभम भें ऩुण्म कभभ बी
उसका साथ छोड दे ते हैं।
धन
न्प्नतगण
ु वततास्वतेष््न्न्मतमन्मततं्ननगण
ुः ेष्ु पस्नेष््गण
ु ्न प्ञ्भमते्नपगण्
ुः म्त्र्नयु ज़्मतेस्उन्मतभतात््
गौजयवत्न्मतध््श्री्क्वतचपदे वत्वतनत्ठते॥
रक्ष्भी न तो प्रचॊड ऻाननमों के ऩास यहती है , न ननताॊत भखो के ऩास। न तो इन्हें ऻानमों से
रगाि है न भखो से। जैसे बफगडैर गाम को कोई-कोई ही िश भें कय ऩाता है , िैसे ही रक्ष्भी
बी कहीॊ-कहीॊ ही ठहयती हैं ।
न्मतम्म्न््ःतस्म्िव्मस्म्फबद्धव्मौ्यावत्वतनतक्रभौ्स्अऩ्त्रे्रलपनतऩन्तातमभप्ऩ्त्रे्प्रलपनतऩ्दनभ प्॥न्माम
औय भेहनत से कभाए धन के मे दो दप
ु ऩमोग कहे गए हैं- एक, कुऩात्र को दान दे ना औय
दसया, सुऩात्र को जप यत ऩडने ऩय बी दान न दे ना ।
रलप्मेण्श्रीभत्ं्रबञे्बबक्तं्ु िन्क्तनः्पवतयामतेस््ीमःन्मततामपऩ्द्रह्ञ््ठ्नन्दजयि्ण्ं्भहीऩते्॥
प्राम :धनिान रोगो भें खाने औय ऩचाने की शजतत नहीॊ होती औय ननधभन रकडी खा रें तो
उसे बी ऩचा रेते हैं।
इज्म््ममनद्न्नन्तऩ ््तामं्षुरभ््घण
ृ ्स्अरबब्इनत्भ्गोऽमं्धभःस्म््टपवतध ्स्भत
ृ ्॥मऻ,
अध्ममन, दान, तऩ, सत्म, ऺभा, दमा औय रोब विभुखता -धभभ के मे आठ भागभ फताए गए
हैं। इन ऩय चरने िारा धभभiत्भा कहराता है ।
ऩरयजतथनत के अनस
ु ाय कामभ कयना
एतमबऩभम््धीय ््त्रभेत्फरीम्े्स्इन्मति्म्््रलपणभते्नभते्मब्फरीम्े्॥
फवु द्धभान िही है जो अऩने से अधधक फरिान के साभने झक
ु जाए। औय फरिान को दे ियाज
इॊद्र की ऩदिी दी जाती है । अत् इॊद्र के साभने झक
ु ना दे िता को प्रणाभ कयने के सभान है ।
मदतप्तं्रलपणभनत्न्तत प््न्मतत्ऩमन्मततामपऩस्ममभप्स्वतमं्नतं्द्रुं ्न्तत प््त्रभमन्मततामपऩ्॥
जो धातु बफना गयभ ककए भुड जाती है ,उन्हें आग भें तऩने का कष्ट नहीॊ उठाना ऩडता। जो
रकडी ऩहरे से झुकी होती है ,उसे कोई नहीॊ झुकाता ।
ऩजा-ततनु त
ऩंपवत
प ्ऩ्
ू मन प्रबञे्मि ्रलप्प्नबनत्ञेवतरं्स्दे वत्न प्पऩतॄन प्भन्ु म्ंमभप्तबषुरून प्अनतचथ्ऩंपभ्न प्
॥दे िता, वऩतय, भनष्ु म, लबऺुक तथा अनतधथ-इन ऩाॉचों की सदै ि सच्चे भन से ऩजा-ततनु त
कयनी चादहए । इससे मश औय सम्भान प्राप्त होता है ।
वप्रम
फुवद्धभान
तथपवत्मबगपवतद्रहतं्मतात्ु ञभः्नन्त््मनतस
उऩ्ममक्
ु तं्भेध्वती्न्तव्र्गरऩमेन्मतभन सस
अच्छे औय साजत्िक प्रमास कयने ऩय कोई सत्कभभ लसद्ध नहीॊ बी होता है तो बी फवु द्धभान
ऩरु
ु ष को अऩने अॊदय णरानन नहीॊ अनब
ु ि कयना चादहए।
म ्रलपभ्णं्न्््न्नत्स्थ्ने्वतद्ध
ृ ौ्तथ््षुरमेस्ञबषे््नऩदे ्दण्डेन्््य्ज्मेऽवतनत्ठतेसस
जो याजा काभ औय क्रोध का ऩरयत्माग कय सुऩात्र को धन दे ता है , विशेष एिॊ शातत्र का
ऻाता है , कत्र्तव्म को शीघ्र ऩया कयने िारा है , उसे सफ प्रभाण भानते है
मथ््भध्ु ्भ्दताते्ऩु्ऩ्णण्षट्ऩद स्तयावतदथ्ःन्मतभनु्मेय म ्आदयाम्दपवतद्रहं्म्सस
जजस प्रकाय बौया परों की यऺा कयता हुआ, उनके भधु का आतिादन कयता है , उसी प्रकाय
याजा बी प्रजाजनों की यऺा कयते हुए, बफना कष्ट ददमे उनसे कय रेिे-
बाणम
फुद्धब्ञरूषबूत्म्ं्पवतन्िे्रलपतामुऩन्स्थतेस्अनमब्नम्ङ्कञिब्हृदम्त्र्वत्ऩःनत्॥
विनाशकार के सभम फुवद्ध विऩयीत हो जाती है । ऐसे व्मजतत के भन भें न्माम के तथान ऩय
अन्माम घय कय रेता है । िह अन्माम के आसये ही सफ ननणभम रेता है ।
मस्भप्दे वत् ्रलपमच छन्न्मतत्ऩुरुष्म्रलपय्बवतभ पस्फपु द्धं्तस्म्ऩञषःन्न्मतत््बऽवत्पीन्नन्ऩमभमनत्॥
जजसके बाणम भें ऩयाजम लरखी हो, ईश्िय उसकी फुवद्ध ऩहरे ही हय रेते हैं, इससे उस व्मजतत
को अच्छी फातें नहीॊ ददखाई दे ती, िह केिर फयु ा-ही-फयु ा दे ख ऩाता है ।
लभत्र
अपःमेदेवत्तभत्र्णण््नत्वत्ऽ्नत्वत््धनेस्न्नथःमन प्रलप््ननत्तभत्र्णं्््यपपतगत
ु ्भ प्॥
लभत्रों का हय जतथनत भें आदय कयना चादहए -चाहे उनके ऩास धन हो अथिा न हो तथा
उससे कोई तिाथभ न होने ऩय बी िक़्त -जप यत उनकी सहामता कयनी चादहए।
ममबन्मभपतातेन्वत््चपतातं्ननबत
ृ ं्ननबत
ृ ेन्वत्स््भेनत्रलप्म््रलप्््तमबभपत्री्न््ीवतमःनत्॥
दो व्मजततमों की लभत्रता तबी तथामी यह सकती है जफ उनके भन से भन, गढ़ फातों से गढ़
फातें तथा फवु द्ध से फवु द्ध लभर जाती है ।
भुखभ
भोह -भामा
अरलपिस्त्नन्ञ्म्ःणण्मब्भबह्दनुनत्ठनतस्््तेष्ं्पवतऩजयभ्रंि्या्भ्रंमभमते््ीपवतत्दपऩ्॥
जो भोह -भामा भें ऩडकय अन्माम का साथ दे ता है , िह अऩने जीिन को नयक-तुल्म फना
रेता है ।
बक्ष्मबतातभरलपनतच छन्मतनं्भतास्मब्वतिडिभ्म्भ पस्रबब्तबऩ्ती्ग्रस्ते्न्नुफन्मतधभवतेषुरतेसस
भछरी फदढ़मा चाये से ढकी हुई रोहे की काॊटी को रोब भें ऩडकय ननगर जाती है , उससे होने
िारे ऩरयणाभ ऩय विचाय नहीॊ कयती।
यऺक
ऩ्ःन्मतमन्थ् ्ऩिवतब्य्््नब्भन्न्मतत्रफ्न्मतधवत् ्स्ऩतमब्फ्न्मतधवत् ्स्त्रीण्ं्राह्मणभण््वतेदफ्न्मतधवत् ्
॥ऩशुओॊ के यऺक फादर होते है ,याजा के यऺक उसके भॊत्री ,ऩजत्नमों के यऺक उनके ऩनत
तथा िेदो के यऺक ब्राह्भण (ऻानी ऩुरुष ) होते हैं ।
भ्नेन्यक्ष्मते्ध्न्मतमभमभप्न प्यषुरतामनुक्रभ ्स्अबीक्ष्णदिःनं्ग्र्मभप्न्स्त्रमब्यक्ष्म् ्ञुपपरत ्
॥अनाज की यऺा तौर से होती है ,घोडे की यऺा उसे रोट -ऩोट कयाते यहने से होती है ,
सतत ् दे खये ख से गामों की यऺा होती है औय सादा ितत्रों से जतत्रमों की यऺा होती है ।
रयश्ते-नाते
्तामेन्यक्ष्मते्धभो्पवतयाम््मबगेन्यक्ष्मते्स्भ्
ृ म््यक्ष्मते्रुऩं्ञुरं्वतताृ तेन्यक्ष्मते्॥
धभभ की यऺा सत्म से होती है ,विद्मा की यऺा अभ्मास से ,सौंदमभ की यऺा तिच्छता से तथा
कुर की यऺा सदाचाय से होती है ।
अ्ंपवतब्गब्द्ु ट्ताभ््ञृतघ्नब्ननयऩत्रऩ स
्ःनीवतब्न्यचधऩ ससत्दृंन्जयधऩब्रबञे्वत
अऩने व्मजतत अऩने आधश्रताॊ भें अऩनी धन सॊऩजत्त को ठीक से फॊटिाया नहॊ ीी कय तो दष्ु ट
कृतघ्न औय ननरभज्ज है उसे इस रोक भें त्माग दे ना चादहए।
पतावत्जय्ते्त्त्गह
ृ े ्वत्न्मततु्चश्रम्तब्ु्टस्म्गह
ृ स्थधभे्स्वतद्ध
ृ ब्््नतयवत्त्र ्ञुरीन ््ख््
दजयिब्बचगनी्प्नऩताम््॥
ऩरयिाय भें सुख-शाॊनत औय धन-सॊऩजत्त फनाए यखने के लरए फडे-फढ़ों, भुसीफत का भाया
कुरीन व्मजतत, गयीफ लभत्र तथा ननतसॊतान फहन को आदय सदहत तथान दे ना चादहए । इन
चायों की कबी उऩेऺा नहीॊ कयनी चादहए।
ऩन्मतप्ग्न्मतमब्भनु्मेण्ऩजयपम्ः ्रलपमतानत स्पऩत््भ्त्न्ग्नय्ताभ््प्गुरुमभप्बयतषःब्॥
भाता, वऩता, अजणन, आत्भा औय गुरु इन्हें ऩॊचाणनी कहा गमा है । भनुष्म को इन ऩाॉच प्रकाय
की अजणन की सजगता से सेिा-सुश्रष
ु ा कयनी चादहए । इनकी उऩेऺा कयके हानन होती है ।
विचाय-विभशभ
विद्माथी
आरस्मं्भदभबहौ्प्ऩरं्गबन््टये वत्पस्स्तब्धधत््प्तबभ्ननतावतं्तथ््ताम्चगतावतभेवत्पस्एते्वतप्
्प्त्दबष् ्स्मु ््द््पवतयाम्चथःन्ं्भत् ्॥
विद्माधथभमों को सात अिगण
ु ों से दय यहना चादहए। मे हैं – आरस, नशा, चॊचरता, गऩशऩ,
जल्दफाजी, अहॊ काय औय रारच।
शजतत
द्रहं््फफरभ््धन
ू ्ं्य््््दण्डपवतचधफःरभ पस्िुश्रष
ु ््तु्फरं्स्त्रीण्ं्षुरभ््गुणवतत्ं्फरभ प॥
दहॊसा दष्ु ट रोगों का फर है ,दॊ डडत कयना याजा का फर है ,सेिा कयना जतत्रमों का फर है औय
ऺभाशीरता गुणिानों का फर है ।
शत्रु
शीरिान ् व्मजतत
न््त्््ब््वतस्त्रवतत््तभ्ट्ि््गबभत््न््त्स्अ्वत््न््तब्म्नवतत्््वतं्िीरवतत््न््तभ प्
॥सुॊदय ितत्र िारा व्मजतत सबा को जीत रेता है जजस व्मजतत के ऩास गामें हो ,िह लभठाई
खाने की इच्छा को जीत रेता है ; सिायी से चरने िारा व्मजतत भागभ को जीत रेता है तथा
शीरिान ् व्मजतत साये सॊसाय को जीत रेता है ।
िीरं्रलपध्नं्ऩुरुषे्तया्मस्मेह्रलपणमभमनतस्न्तस्म््ीपवततेन्थो्न्धनेन्न्फन्मतधतु ब ्॥
शीर ही भनुष्म का प्रभुख गुण है । जजस व्मजतत का शीर नष्ट हो जाता है -धन ,जीिन औय
रयश्तेदाय उसके ककसी काभ के नहीॊ यहते; अथाभत उसका जीिन व्मथभ हो जाता है ।
शब
ु चीजों का धचॊतन
्न्मतत्ऩ्या्भ्रमभमते्रुऩं््न्मतत्ऩ्या्भ्रमभमते्फरभ पस््न्मतत्ऩ्या्भ्रमभमते्््नं््न्मतत्ऩ्या्
व्म्चधभच
ृ छनत्॥
शोक कयने से प ऩ -सौंदमभ नष्ट होता है , शोक कयने से ऩौरुष नष्ट होता है , शोक कयने से
ऻान नष्ट होता है औय शोक कयने से भनुष्म का शयीय द्ु खो का घय हो जाता है । अथाभत
शोक त्माज्म है ।
सॊगनत
सॊऩजत्त
सज्जन ऩरु
ु ष्
सत्मता
एञभेवत्यापवततीमभ्तया्मया्य््न्मतन्वतफु्म्ेस््तामभ्स्वतगःस्म््बऩ्नभ प्ऩ्यवत्यस्म्नपजयवत्॥्
नौका भें फैठकय ही सभुद्र ऩाय ककमा जा सकता है , इसी प्रकाय सत्म की सीदढ़माॉ चढ़कय ही
तिगभ ऩहुॉचा जा सकता है , इसे सभझने का प्रमास कयें ।
गह
ृ ीतेवत्क्मब्नमपवतया्वतद्न्मतम ्िेष्त्रबबक्त््मणमपवतद्रहं्ञमभपस्न्न्थःञृताम्ञुतरत ्ञृत् ््तामब्
भद
ृ ु ्स्वतगःभुऩपनत्पवतयावत्न प्॥
आऻाकायी, नीनत -ननऩुण , दानी, धभभऩिभक कभाकय खाने िारा, अदहॊसक सुकभभ कयने िारा
,उऩकाय भानने िारा, सत्मिादी तथा भीठा फोरने िारा ऩुरुष तिगभ भें उत्तभ तथान ऩाता है ।
सदाचाय
गबतब ्ऩिुतबयमभवतपमभप्ञृ्म््प््ु्भद्ध
ृ म्स्ञुर्नन्न्रलपयबहन्न्मतत्म्नन्द्रहन्नन वतताृ तत ्॥
जजस कुर भें सदाचाय नहीॊ है , िहाॉ गामों, घोडों, बेड, तथा अन्म राख ऩशु -धन भौजद हों,
उस कुर की उन्ननत नहीॊ हो सकती।
सद्गण
ु ी्
फद्ध
ु मब्बमं्रलपणद
ु नत्तऩ्््पवतन्मतदते्भहत पस्गरु
ु िश्र
ु ष ू म््््नं्ि्न्न्मततं्मबगेन्पवतन्मतदनत्॥
ऻान द्िाया भनुष्म का डय दय होता है ,तऩ द्िाया उसे ऊॉचा ऩद लभरता है ,गुरु की सेिा
द्िाया विद्मा प्राप्त होती है तथा मोग द्िाया शाॊनत प्राप्त होती है।
अञीनतः्पवतनमब्हन्न्मतत्हन्मततामनथः्ऩय्क्रभ स
हन्न्मतत्ननतामं्षुरभ््क्रबधभ्प्यब््न्मततमरषुरण्भ पसस
जो भनष्ु म अऩने अॊदय विनम बाि धायण कयता है उसके अऩमश का तिमभेि ही नाश हो
जाता है । ऩयाक्रभ से अनथभ तथा ऺभा से क्रोध का नाश होता है । सदाचाय से कुरऺण से फचा
जा सकता है ।
अ्टौ्गुण् ्ऩुरुषं्दीऩमन्न्मतत्रलप्््प्ञौपतमं्प्दभ ्श्रत
ु ं्पस्ऩय्क्रभमभप्फहुब्पषत््प्द्नं्
मथ्िन्क्त्ञृत्त््प्॥
फुवद्ध, उच्च कुर, इॊदद्रमों ऩय काफ, शातत्रऻान, ऩयाक्रभ, कभ फोरना, मथाशजतत दान दे ना
तथा कृतऻता – मे आठ गुण भनुष्म की ख्मानत फढ़ाते हैं ।
एञ ्षुरभ्वतत्ं्दबषब्यावततीमब्नबऩऩयामतेस्मदे नं्षुरभम््मुक्तभिक्तं्भन्मतमते््न ्॥
ऺभाशीर व्मजततमों भें ऺभा कयने का गुण होता है , रेककन कुछ रोग इसे उसके अिगुण की
तयह दे खते हैं । मह अनुधचत है ।
एञब्धभः ्ऩयभ्श्रेम ्षुरभपञ््ि्न्न्मततरुक्तभ्स्पवतयावतपञ््ऩयभ््तन्ृ प्तयद्रहं्पञ्््ुख्वतह््॥
केिर धभभ-भागभ ही ऩयभ कल्माणकायी है , केिर ऺभा ही शाॊनत का सिभश्रेष्ट उऩाम है , केिर
ऻान ही ऩयभ सॊतोषकायी है तथा केिर अदहॊसा ही सुख प्रदान कयने िारी है ।
यावत्पवतभौ्ऩुरुषौ्य््न्स्वतगःस्मबऩजय्नत्ठत ्स्रलपबुमभप्षुरभम््मुक्तब्दजयिमभप्रलपद्नवत्न प्॥
जो व्मजतत शजततशारी होने ऩय ऺभाशीर हो तथा ननधभन होने ऩय बी दानशीर हो – इन दो
व्मजततमों को तिगभ से बी ऊऩय तथान प्राप्त होता है ।
षडेवत्तु्गुण् ्ऩुं्््न्ह्तव्म् ्ञद्पनस््तामं्द्नभन्रस्मभन्ूम््षुरभ््धनृ त ्॥
व्मजतत को कबी बी सच्चाई, दानशीरता, ननयारतम, द्िेषहीनता, ऺभाशीरता औय धैमभ – इन
छह गुणों का त्माग नहीॊ कयना चादहए ।
्बऽस्म्दबषब्न्भन्मततव्म ्षुरभ््द्रह्ऩयभं्फरभ पस्षुरभ््गुणों्मणमिक्त्न्ं्िक्त्न्ं्बूषणं्षुरभ््
॥
ऺभा तो िीयों का आबषण होता है । ऺभाशीरता कभजोय व्मजतत को बी फरिान फना दे ती
है औय िीयों का तो मह बषण ही है ।
अन्
ु म
ू ु ्ञृतरलप् ्िबबन्न्मतम्पयन प््द्स्नञृच छं ्भहद्प्नबनत््वतःत्र्प्पवतयबपते्॥
जो व्मजतत ककसी की ननॊदा नहीॊ कयता, केिर गुणों को दे खता है , िह फुवद्धभान सदै ि अच्छे
कामभ कयके ऩुण्म कभाता है औय सफ रोग उसका सम्भान कयते हैं।
अतबवत्दनिीरस्म्ननतामं्वतद्ध
ृ बऩ्ेपवतन स्पतावत्जय््म्रलपवतधःन्मतते्ञीनतःय्मुमि
ुः ब्फरभ पसस
अलबिादनशीर तथा िद्ध
ृ ों की सेिा कयने िारे भनुष्म की आमु, विद्मा, मश औय फर भें िवृ द्ध
होती है-
चपञीपषःतं्पवतरलपञृतं्प्मस्म्न्न्मतमे््न् ्ञभः्््नन्न्मतत्कञन्जनपत प्स्भन्मतत्रे्गप्ु ते््म्मगनन्ु ्ठते्
प्न्पतऩबऽप्मस्म्च मवतते्ञन्मभपदथः ्॥
जो व्मजतत अऩने अनक
ु र तथा दसयों के विरुद्ध कामों को इस प्रकाय कयता है कक रोगों को
उनकी बनक तक नहीॊ रगती। अऩनी नीनतमों को सािभजननक नहीॊ कयता ,इससे उसके सबी
कामभ सपर होते हैं।
््न्नत्पवतमभवत््नमतुं्भन्ु म्न प्, पवत््तदबषबषु्दध्नत्दण्डभ पस्््न्नतं्भ्त्र्ं्प्तथ््षुरभ्ं्प,
तं्त्यावतिं्श्री्ष
ुः ते््भग्र्सस2
जो भनुष्मों भें विश्िास उत्ऩन्न कयना जानता है , प्रभार्णत होने ऩय ही अऩयाधी को दण्ड दे ता
है , जो दण्ड की भात्रा का ऻाता है तथा ऺभा के उऩमोग को जानता है , उस याजा की सेिा भें
सम्ऩणभ सम्ऩजत्त आती है
दम्बं्भबहं ्भ्ता्मं्ऩ्ऩञृतामं्य््पद्ध्टं ्ऩपिुनं्ऩूगवतपयभ प्स्भतातबन्मतभतातपद्
ु न
ः पमभप्पऩ्वत्दं ्म ्
रलप््वत्न प्वत्ःमेत प्््रलप्न ्॥
जो व्मजतत अहॊ काय, भोह, भत्समभ (ईष्र्मा ), ऩाऩकभभ, याजद्रोह, चग
ु री सभाज से िैय -बाि,
नशाखोयी, ऩागर तथा दष्ु टों से झगडा फॊद कय दे ता है िही फुवद्धभान एिॊ श्रेष्ठ है ।
द्नं्हबभं्दप वततं्भङ्कगर्नन्रलप्मन्मभपतात्न प्पवतपवतध्न प्रबञवत्द्न प्स्एत्नन्म ्ञुरुत्नपतामञ्नन्
तस्मबताथ्नं्दे वतत््य्धमन्न्मतत्॥
जो व्मजतत दान, मऻ, दे ि -ततुनत, भाॊगलरक कभभ, प्रामजश्चत तथा अन्म साॊसरयक कामों को
मथाशजतत ननमभऩिभक कयता है ,दे िी-दे िता तिमॊ उसकी उन्ननत का भागभ प्रशतत कयते हैं ।
दे ि्प्य्न प््भम्जनप्नतधभ्ःन प्फुबूषते्म ्््ऩय्वतय् ्स्््मत्र्तत्र्तबगत ््दप वत्
भह््नस्म्चधऩतामं्ञयबनत्॥
जो व्मजतत रोक -व्मिहाय ,रोकाचाय ,सभाज भे व्माप्त जानतमों औय उनके धभों को जान
रेता है उसे ऊॉच-नीच का ऻान हो जाता है । िह जहाॉ बी जाता है अऩने प्रबाि से प्रजा ऩय
अधधकाय कय रेता है ।
न्मबऽय म्ुमतामनुञम्ऩते्प्न्दफ
ु र
ः ्रलप्नतब्व्मं्ञयबनत्स्न्ताम्ह्कञन्जनपत प्षुरभते्पवतवत्दं ्
्वतःत्र्त्दृग प्रबते्रलपि्ं््भ प्॥
जो व्मजतत ककसी की फुयाई नही कयता ,सफ ऩय दमा कयता है ,दफ
ु र
भ का बी वियोध नही
कयता ,फढ-चढकय नही फोरता ,वििाद को सह रेता है ,िह सॊसाय भे कीनतभ ऩाता है ।
न्वतपयभद्द
ु ीऩमनत्रलपि्न्मततं्न्दऩःभ्यबहनत्न्स्तभेनत्स्न्दग
ु त
ः बऽस्भीनत्ञयबतामञ्मं्तभ्मःिीरं्
ऩयभ्हुय्म्ः ्॥
जो ठॊ डी ऩडी दश्ु भनी को कपय से नहीॊ बडकाता, अहॊ काययदहत यहता है , तुच्छ आचयण नहीॊ
कयता ,तिमॊ को भुसीफत भें जानकय अनुधचत कामभ नहीॊ कयता,ऐसे व्मजतत को सॊसाय भें
श्रेष्ठ कहकय विबवषत ककमा जाता है ।
तभत्रं्बुड्क्ते््ंपवतबज्म्चश्रतेय मब्तभतं्स्वतपऩतामतभतं्ञभः्ञृतावत््स्दद्तामतभत्रे्वतपऩ्म्चपत ्
्ंस्तभ्ताभवतन्मततं्रलप्हतामनथ्ः ्॥
जो व्मजतत अऩने आधश्रत रोगों को फाॉटकय तिमॊ थोडे से बोजन से ही सॊतुष्ट हो जाता है ,
कडे ऩरयश्रभ के फाद थोडा सोता है तथा भाॉगने ऩय शत्रओ
ु ॊ को बी सहामता कयता है -अनथभ
ऐसे सज्जन के ऩास बी नहीॊ बटकते ।
म ््वतःबत
ू रलपिभे्ननपवत्ट ््तामब्भद
ृ भ
ु ्ःनञृच छुद्धब्वत ्स्अतीवत्््््मते्््नतभ्मे्
भह्भणण््ःताम्इवत्रलप्न्मतन ्॥
जो व्मजतत सबी रोगों के काभ को तत्ऩय, सच्चा, दमारु, सबी का आदय कयने िारा तथा
साजत्िक तिबाि का होता है ,िह सॊसाय भें श्रेष्ठ यत्न की बाॉनत ऩजा जाता है ।
म्आताभन्ऽऩत्रऩते्बि
ृ ं्नय ््््वतःरबञस्म्गुरुबवतःतामुत्स्अनन्मततते्् ््ुभन् ््भ्द्रहत ्््
ते्््््ूम्ः इवत्वतब््ते्॥
जो व्मजतत अऩनी भमाभदा की सीभा को नहीॊ राॉघता ,िह ऩुरुषोत्तभ सभझा जाता है । िह
अऩने साजत्िक प्रबाि , ननभभर भन औय एकाग्रता के कायण सॊसाय भें समभ के सभान तेजिान
होकय ख्मानत ऩाता है।
मब्नबद्धतं्ञुरुते्््तु्वतेष्ं न्ऩौरुषेण्पऩ्पवतञताथतेऽन्मतताम्न पस्न्भून्च छः त ्ञटुञ्न्मतम्ह्कञन्जनपत प्
परलपमं्द््तं्ञुरुते््नब्द्रह्॥
जो व्मजतत शैतानों जैसा िेश नहीॊ फनाता ,िीय होने ऩय बी अऩनी िीयता की फडाई नही
कयता ,क्रोध ् से विचलरत होने ऩय बी कडिा नहीॊ फोरता ,उससे सबी प्रेभ कयते हैं ।
्तामं्रुऩं्श्रत
ु ं्पवतयाम््ञौपतमं्िीरं्फरं्धनभ पस्िौमं्म्प्चपत्रब््मं्प्दिेभे्स्वतगःमबनम ्॥
सच्चाई, खफसयती, शातत्रऻान, उत्तभ कुर, शीर, ऩयाक्रभ। धन, शौमभ, विनम औय िाक्
ऩटुता -मे दस गुण तिगभ ऩाने के अथाभत सभतत एीेश्िमभ ऩाने के साधन हैं।
्भपपवतःवत्ह ्ञुरुते्न्हीनप ््भप ््यामं्व्मवतह्यं ्ञथ्ं्प्स्गुणपपवतःति्ट्ंमभप्ऩुयब्दध्नत्
पवतऩन्मभपतस्तस्म्नम् ््ुनीत् ॥
जो व्मजतत अऩनी फयाफयी के रोगों के साथ वििाह, लभत्रता, व्मिहाय तथा फोरचार यखता है ,
गुणगान रोगों को सदा आगे यखता है , िह श्रेष्ठ नीनतिान कहराता है ।
सभतल्
ु म रोग
राह्मणभणं्राह्मणभणब्वतेद्बत्ः्वतेद्न्स्त्रमं्तथ्स्अभ्तामं्नऩ
ृ नतवतेद्य््््य्््नभेवत्प॥
सभतुल्म रोग ही एक दसये को ठीक प्रकाय से जान सभझ ऩाते हैं, जैसे ऻानी को ऻानी,
ऩनत को ऩत्नी, भॊत्री को याजा तथा याजा को प्रजा। अत् अऩनी फयाफयी िारे के साथ ही
सॊफध यखना चादहए।
सख
ु द्ु ख
अनथःञं्पवतरलपवत््ं्गह
ृ े य म ्ऩ्ऩप ््न्न्मतध्ऩयद्य्तबभिःभ प्स्दम्बं्स्तपन्मतम्ऩपिन्मत
ु मं्भयामऩ्नं्न्
्ेवतते्ममभप््ख
ु ी््दप वत्॥
जो व्मजतत अकायण घय के फाहय नहीॊ यहता ,फयु े रोगों की सोहफत से फचता है ,ऩयतत्री से
सॊफध नहीॊ यखता ;चोयी ,चग
ु री ,ऩाखॊड औय नशा नहीॊ कयता -िह सदा सख
ु ी यहता है ।
अथ्ःगभब्ननतामभयबचगत््प्परलपम््प्ब्मः्परलपमवत्द्रदनी्प्स्वतमभममभप्ऩुत्रबऽथःञयी्प्पवतयाम््षट््
्ीवतरबञस्म््ुख्नन्य््न प्॥
धन प्राजप्त, तितथ जीिन, अनुकर ऩत्नी, भीठा फोरने िारी ऩत्नी, आऻाकायी ऩुत्र तथा
धनाजनभ कयने िारी विद्मा का ऻान से छह फातें सॊसाय भें सुख प्रदान कयती हैं ।
आयबग्मभ्नण्ृ मभपवतरलपवत्् ््निभःनु्मपस््ह््ंरलपमबग स्स्वतरलपतामम््वतन्ृ तातयबीतवत्् ्षट््
्ीवतरबञस्म््ुख्नन्य््न प्॥
तितथ यहना, उऋण यहना, ऩयदे श भें न यहना, सज्जनों के साथ भेर-जोर, तिव्मिसाम
द्िाया आजीविका चराना तथा बममुतत जीिनमाऩन – मे छह फातें साॊसारयक सुख प्रदान
कयती हैं ।
ई्मी्घण
ृ ी्न््ंतु्ट ्क्रबधनब्ननतामिङ्ककञत स्ऩयब्ग्मबऩ्ीवती्प्षडेते्ननतामद ु णखत् ्॥
ईष्माभर,ु घण
ृ ा कयने िारा, असॊतोषी, क्रोधी, सदा सॊदेह कयने िारा तथा दसयों के बाणम ऩय
जीिन बफताने िारा- मे छह तयह के रोग सॊसाय भें सदा द्ु खी यहते हैं ।
सेिक
तत्री
ऩ्
ू नीम्भह्ब्ग् ्ऩण्
ु म्मभप्गह
ृ दीप्तम स्न्स्त्रम ्क्षषुरमब्गह
ृ स्मबक्त्स्तस्भ्िक्ष्म््पवतिेषत सस
नायी घय की रक्ष्भी है । िह अत्मन्त सौबाणमशालरनी, ऩजा के मोणम ऩवित्र तथा घय की
शोबा है
तिाबविक कभभ
यावत्वतेवत्न्पवतय््ेते्पवतऩयीतेन्ञभःण्स्गह
ृ स्थमभप्ननय्यम्ब ्ञ्मःवत्ंमभपपवत्तबषुरुञ सस
जो अऩने तिबाि के विऩयीत कामभ कयते हैं िह कबी नहीॊ शोबा ऩाते। गह
ृ तथ होकय
अकभभण्मता औय सन्मासी होते हुए विषमासजतत का प्रदशभन कयना ठीक नहीॊ है ।
षिडभ्न प्ऩरु
ु षब््मणम्त प्तबन्मतनं्न्वततभवत्णःवते्अरलपवतक्त्यं ्आप्मं्अन्म्नमनभ प्ऋन्तावत्भ प्स्
आयक्षषुरत्यं ्य्््नं्ब्म्ं्प्ऽपरलपमवत्द्रदनीं्ग्र्भञ्भं्प्गबऩ्रं्वतनञ्भं्प्न्पऩतभ प॥
चऩ
ु यहने िारे आचामभ, भॊत्र न फोरने िारे ऩॊडडत, यऺा भें असभथभ याजा, कडिा फोरने िारी
ऩत्नी, गाॉि भें यहने के इच्छुक णिारे तथा जॊगर भें यहने के इच्छुक नाई – इन छह रोगों
को िैसे ही त्माग दे ना चादहए जैसे छे दिारी नाि को त्माग ददमा जाता है ।
अननवतेद ्चश्रमब्भर
ू ं्र्बस्म्प्िब
ु स्म्पस्भह्न प्बवततामननपवतःण्ण ््ख
ु ्ं प्नन्मततामभमभनत
ु े्॥
अऩने काभ भें रगे यहनेिारा व्मजतत सदा सख
ु ी यहता है । धन-सॊऩजत्त से उसका घय बया -
ऩया यहता है । ऐसा व्मजतत मश -भान -सम्भान ऩाता है ।
्ुख्ं प्द ु खं्प्बवत्बवतौ्प्र्ब्र्बौ्भयणं््ीपवततं्पस्ऩम्ःमि ््वतःभेत्े स्ऩि
ृ न्न्मतत्तस्भ्या्
धीयब्न्हृ्मेत्र्िबपेत प्॥
सुख -द्ु ख, राब -हानन, जीिन -भत्ृ म,ु उत्ऩनत -विनाश -मे सफ तिाबविक कभभ सभम -सभम
ऩय सफको प्राप्त होते यहते हैं। ऻानी ऩुरुष को इनके फाये भें सोचकय शोक नहीॊ कयना
चादहए। मे सफ शाशित कभभ हैं।
दहम्भत यखना
रलप्प्म्ऩदं ्न्व्मथते्ञद्चप-्दया
ु मबगभन्न्मतवतच छनत्प्रलपभतात स्द ु खं्प्ञ्रे््हते्भह्ताभ््
धयु न्मतधयस्तस्म्न््त् ््प्तन् ्॥
जो व्मजतत भुसीफत के सभम बी कबी विचलरत नहीॊ होता, फजल्क सािधानी से अऩने काभ
भें रगा यहता है , विऩयीत सभम भें द्ु खों को हॉ सते-हॉ सते सह जाता है , उसके साभने शत्रु
दटक ही नहीॊ सकते; िे तपान भें नतनकों के सभान उडकय नछतया जाते हैं ।