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पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 1 से 17

1 पव का वा िवक प-दीपावली, आहार, वहार और िवचार ऊंचा होना चािहए-31 10


1965
जीते रहो, दे खो, मुिनवरों! आज हम तु ारे सम , पुनः क भांित, कु छ वेदम ों का
गुणगान गाते चले जा रहे थे, आज क हमारी ये पिव वेद वाणी, हमारा दय, परमा ा का
अनुपम ा है, यह इतनी पिव ता म प रणत है, पर ु जब, परमा ा मानव के जतना िनकट
है, पर ु ि गोचर नही आता। वह भु िकतना िव च है, और मानव क ि िकतनी िव च
बन चुक है, जो िक आ ा और परमा ा का ब त घिन स है, वही आ ा हमारे इस शरीर
म, पर ु भु के दशनों का अ भलाषी है, ि गोचर नही आता है वह भु, ये भु ने िकतने सु र
ने रचे, िकतनी सु र वाणी, िकतना सु र यह गृह है। पर ु भु, इनसे िकतना दूरी और िकतना
िनकट है, िकतनी िव च ता है, उस भु क मिहमा म। बेटा! आ ा, परमा ा िकतने घिन ह।
पर ु इस शरीर म आने के प ात, तीत नही होता, वह भु िकतना दूरी चला जाता है हमसे,
यिद हम ग ीरता से, िवचार िविनमय करते ह, तो वह भु हमारे ब त िनकट भी है, पर ु यहाँ
हमारे ने ों म ऐसी ूलता आ जाती है, ा हम सू व ु को ि पात नही कर सकते, उनके
लए बेटा! सू त ओ
ु ं को जानने के लए, हमारे ने ों म यह दपण है, जससे परमा ा को
ि पात िकया जाता है, जसको सू से सू परमाणु को जाना जाता है, इन ने ों को बेटा! शनै
शनै, हम जल के ारा, जैसे मुिनवरों! पाप शु होता है, इसी कार ान पी जल के ारा, इन
ने ों क ि को सू बनाना होता है ोंिक इसम कृ ित के आवेश आने ही है।
ान का प
बेटा! म आगे का िवषय तो कल ही वणन क ं गा, महान जी क एक ेरणा मुझे आज
ा होती चली जा रही है, पर ु िवषय, तो ब त ही सु रता से, आज रण आ रहा था, इसको
सू सा और आगे ले जाना चाहता ँ। मुिनवरों! ये ने हम शु बनाने होंगे, ाण हम ऊँची
बनानी होगी, पर ु इनको ऊँचा बनाने के लए, हम एक व ु क आव कता है, और वह ा
है? ान। ान िकसे कहते ह? पर ु ान का अ भ ायः यह नही है, िक हम पोथी क पो थयों
को एकि त करले, उनका ा ाय करते रह, तो उनसे ान ा हों। मेरा अ भ ायः यह भी नही
क, उ न ा ाय िकया जाए। पर ु ान िकसे कहते है? वह ब त सू सा श है, जसे
कहते ह ान। पर ु ान कहाँ है? और ा है? वेदों क पोथी म भी ान है। पर ु आर
सं िहताओं म भी ान है, पर ु ान के ऊपर आचरण करना तो ान है, नहीं तो लेखनी ब क
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 2 से 17

है, ऋिष मुिनयों ने। यिद उनको अपने जीवन म धारण िकया जाएं , जीवन म धारण करने से ही
हमारी सू और ती बुि बनती है। अ था ा ाय करते रहो, दूसरों को घृणा क ि से
पान करते रहो, उसको ान नही कहते, ान िकसे कहते ह? बेटा! महिष पतं ज ल और मुिनवरों!
महिष जमदि का एक श है, एक समय महिष जमदि से उनके पु ने एक िकया, उ ोंने
कहा हे िपता! ान िकसे कहते ह? तो जमदि ने कहा िक ान श एक िब ु है, और वह हमारे
शरीर म भी एक िब ु है, जसे काश कहते ह, उस काश को जानने का नाम ान कहलाता
है। इसका अथ ा आ, ान, ान भी कहते ह, पर ु उसी के आ त हो करके जमदि ने यह
कहा ा मैने तो यं इतना ही जाना है, ान तो ब त ही सू है। मेरे आिद आचाय जनों! हम
सं सार म पिव ता लाने के लए, उ ता लाने के लए, उस ान को ा करना है, जससे हमारे
जीवन म हम धारण करते चले जाएं , उसी का नाम ान कहलाता है।
दीपावली
आओ, अब हम महान जी के वा ों पर चले जाएं , आज उनक ेरणा हम, इ ोंने हम
ि तीय काल म भी िकया, वह इनके मनों क भावना, क ना थी, इ ोंने कु छ भु के िवषय
म, अपनी इ ाएं गट क , मुिनवरों! दीपावली और भगवान कृ म जो गोवधन इ ािदयों का
पालन िकया, आज म बेटा! ऋिष मुिनयों के वा ों पर ले जाना चाहता ँ। इस वाक् को, हमारे
यहाँ दीपावली का एक पव होता है, इसे महाभारत के काल से पूव, इसे दीप कहा जाता था, दीप
आवली मानो दीपावली भी कहा जाता था, िक ीं िक ी ानों म, दीपावली का अ भ ायः ा
था? जो सव भूम ल म दीपावली का पव मनाया जाता है, आज तो तीत नही कहाँ कहाँ मनाया
जाता है, पातालपुरी म ा, नाना रा ों म दीपावली को, राजा, महाराजा सभी इसका ागत
िकया करते थे। दीपावली का अ भ ायः यह है, जसम काश को लया जाता है। भगवान राम
से पूव, इसका कु छ ओर प था, भगवान राम से पूव इसका यह प था िक हमारे यहाँ दो पव
माने जाते ह, एक होली का पव होता है, होलका का पव, एक दीपावली पव होता है। इसम
ल ी का अवतरण भी होता है। पर ु वह कृ िष करने वाले जन, अब शरद ऋतु म, पृ ी के गभ
म बीज क ापना क जाती है, पृ ी के गभ म पृ ी क ापना क , तो वह िकसी काल म
यह नही िवचारता, िक इसका िकतना फल ा िकया, वह जब इस पृ ी के गभ म बीज क
ापना कर दे ने के प ात, भु से याचना क जाती है बेटा! ा उसमे पुरोिहत जन, आचाय जन
ेक गृह म आओ, या वा णक आओ, ऊँची ऊँची वन ितयों को एकि त करो, और साम ी
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बनाओ, पर ु वेदों के साम वेदाः, जो उपासना का है, उस उपासना का क उपासना करो


य और साम ी के ारा दे वताओं क , कहा ों? ोंिक कृ िष करने वाले वै जन सब, जो
भूिम म बीज ािपत, ािपत िकया जाता था, ािपत, उसम से कु छ भाग को ले लया जाता है
और उस भाग को ले करके उसक सबक साम ी बनाई जाती है। वन ितयों को सबको एकि त
करके , सु र साम ी बना करके य िकया जाता है, भु से याचना क जाती है, हे भु! हमने जो
पृ ी के गभ म, जो भी अ इ ािद इसके गभ म ािपत कर िदया है बीज, यह हमारे लए
सु र हो, यह हमारे रा के लए, मानवतव के लए लाभदायक हो, मुिनवरों! यह सु र पों से
उपासना क जाती है। मानव वै जन सब य शाला के िनकट िवराजमान होते ह, पुरोिहत जन,
रा गृहणी मेरे रा म अ हो, जससे मेरे रा म अ क सू ता न रहे। जब राजा, रा गृहणी,
उनक प ी, उनके ारे पु , पौ इ ािद सब एकि त हो करके , य न करते थे राजा के भाव,
वह पुरोिहत, मण ाणी अित आहार अ ुते राजनाः वह पुरोिहत उसके अ ःकरण म ान
करने वाले, ान का भरण कर दे ते थे। पर ु दे खो, दीपावली आई, तो उस तक आप कोई भी
अशु काय न करो, य करते रहो, मुिनवरों! देखो, यह हमारे यहाँ ाचीन एक सं ृ ित का तीक
है। आज म उस ऋिष ाचीन मुिनयों क प रपाटी को ले करके , जब हम चलते ह। तो हमारा
दय गद गद होने लगता है। हमारे दय म एक मानवता ायः आती है, एक नवीन जीवन आता
है, इस ी ऋतु म, ोंिक यह ी ऋतु हम अमृत देती है, हमे अमृत दे ती है, ा को
सु र बनाती है।
पू महान जी इसको ी ऋतु ही ों कहते ह?
कृ िष क पिव ता
पू पाद गु दे व पर ु वाक् यह अपने अपने गृहों म उपासना पित सिहत, प ी सिहत,
िवराजमान हो करके परमा ा क उपासना करनी है। हे परमा न्! हमारे कृ िष को पिव बना,
हमारी कृ िष लाभदायक हो, इसम िकसी कार का ऐसा परमाणु या िकसी कार का ऐसा ांग न
छू ए, जससे यह न हो जाए। मुिनवरों! दे खो, यह उपासना क जाती थी, इसके उपरा मानो
य शाला म िवराजमान हो करके , अनुस ान िकया जाता था। अनुस ान िकया जाता है, िक हम
अब इस कृ िष को उपज करने के लए, ा ा साधन जुटाने ह, हम पृ ी म इसके गभ म,
बीज तो ािपत कर िदया, अब इस पृ ी के लए कौन सा खान पान होना चािहए? जससे इसके
गभ म जो कृ िष उ हो वह महान और िवशाल हो, ऊँची हो, और अ धक हो।
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कृ षक क भूिम का खान पान


मुिनवरों! उसके लए उसी का तीक हमारे यहाँ , पर रागतों से उसके प ात अनुस ान
िकया जाता, अनुस ान करके यह िवचार िविनमय िकया जाता, उसके लए, ऊँचे से ऊँचा उसका
खान पान होना चािहए पृ ी का, वा व म पृ ी का खान पान ा होता है? पृ ी का खान
पान, समय के अनूकुल उसको जल क वृि , समय के अनूकुल, उसको मुिनवरों! देखो, उसको गो
का, मुिनवरों! गो अ नी मानो दे खो, जो गो, खा करके , िनगलकर, आहार के लेती है, चाट लेती
है, उसको हमारे यहाँ खा ाम् णा अ आपांचात िकया जाता है। उसको (गोबर को) सं ह,
सं चत करने के प ात मानो उसको पृ ी म भू म ािपत िकया जाता है, जससे मुिनवरों! देखो,
पृ ी उ म अ उ हो, और अ धक से अ धक हो, रा म अ क सू ता न रहे। मुिनवरों!
अब अनुस ान करके और एक समारोह मनाया जाता है। सभी िव ानों का, बुि मान, वै ािनकों
का, िनणय करो, िक पृ ी के लए कौन सा अ दे खो, अ को उपज करने के लए, हमारे लए
कौन सी पृ ी के लए, खान पान होना चािहए।
पिव सं तान
जैसा मुिनवरों! मेरी पिव माता, जब गभ हम जैसे पु , माता के गभ म होते ह, तो
माता के लए हमारे बुि मानों ने सुशील ऊँचा और बालक को उ करने के लए,
बुि मानों ने एक चुनौती दी, और यह चुनौती दी िक माता को गभवती होने के , प ात ा
आहार, कौन सा आहार, पाना चािहए दे खो, जससे उससे गभ से सु र बालक उ हो।
मुिनवरों! दे खो, उ ोंने कहा आचाय का, वेदों और सं िहताओं म जो वणन होता है, वह बड़ा
िवशेष और सु र माना जाता है। ऋिष मुिनयों ने कहा भई! दे खो, उनके लए, सबसे िवशेष गो
दु होना चािहए। यह गो दु मुिनवरों! गो का दु , घृत को दूहने के प ात, माता के गभ से
िवशाल बालक का ज लेता है, उसका ा भी सु र होता है, मुिनवरों! और भी जतने
बालक होते ह, उनको पाना ही मुिनवरों! दे खो, सु र और सुशील गृह म ज लेता है। इसी
कार आवृि यों म पृ ी क तुलना क है, िक जैसे गो दु को पान करने से, हमारा ास ऊँचा
होता है, तो गो का, अ े अ ा ागा आ जो मल होता है। जो गोबर होता है उसको पृ ी क
म ािपत करने से अ उपज अ धक होता है। मुिनवरों! जो हमारे बुि मानों ने दो कार क
उपज हमारे यहाँ होती है, एक उपज मेरी पिव माता, जसको हम शकु का कहते ह। शकु का
वा व म ी, ल ी का नाम भी शकु का कहा जाता है, पर ु उस मेरी पिव माता का नाम
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भी शकु का है। जो बेटा! शा , दशनों के अनूकुल, अपने गभ से ारे पु को ज देने वाली


होती है। उसको भी हमारे आचाय ने आदरणीय, जैसे पृ ी को माता कहा जाता है, ऐसे ही उस
गभा ण को माता क ि से पान िकया जाता है। ोंिक उसक उपज होती है, बुि मानों क
उपज होती है, मुिनवरों! माताओं को उन पु ों क उपज नही करनी चािहए, जसका पृ ी पर आ
करके एक भार बन जाए।
जीवन म पु षाथ
वह देखो, मुिनवरों! भगवान कृ ने भी कहा है, ा, जो अयो मनु होता है, जो
अपने जीवन म पु षाथ करना नही चाहता, के वल कम क कसौटी पर, अपने जीवन को िनभर
करना जानता है, वह कोई मनु नही होता, उस मनु का भार होता है, इस पृ ी पर। अपने
जीवन म जो मनु पु षाथ नही होता, आल होता है, मादी होता है, मानो उसके ारा ाग
और तप ा नही होती, उस मनु का इस पृ ी पर भार होता है। उन मनु ों को सं सार म
जीवन धारण करने का अ धकर नही होता उन मनु ों को। मेरे आचाय ने ऐसा ही कहा है,
मुिनवरों! इसी कार मेरी पिव माता को हमारे ाचीन काल म जब भगवान राम से पूव का काल
था, महाराजा सूय वं श से ऊँचा जो काल था, पर ु उसम ऋिष मुिनयों क एक प रपाटी चली
आई और वह यह प रपाटी थी, गृह गृह म पुरोिहतपने का काय करना, पर ु उन मेरी पिव
माताओं को ऊँचा ऊँचा उपदे श दे करके , उनसे ऋिष बालक ज लेते। पर ु जमदि जैसे और
भी मुिनवरों! देखो, यहाँ महिष ु ी, जैसे ने ों का हीन भी कोई पु होता, तो वह भी मुिनवरों!
दे खो, उसके दय म, माता िव ा का भरण कर दे ती, और माता उस िव ा का भरण करने के
प ात, वह माता का ऋणी बालक कहलाता था। ऋणी बालक मुिनवरों! वह ऋणी होता है, और
जो अयो बालक होता है, जो उ होता है, माता के गभ से, वह अयो हो, तो जानो, माता
का जीवन भी थ और उसका पृ ी पर भार होता है।
गो दु
मेरे आिद आचाय जनों यह ऊँचा बालक कै से उ होता है? जब मुिनवरों! माता गो दु
का पान करती है, जैसे पृ ी म गो के मल को ािपत करके , उससे शु और भूिम म उपज
उ क जाती है अ धक, इसी कार गो दु के पान करने से अ धक ऊँचा बालक, बुि मान
बालक ज लेता है। हमारे यहाँ पर रा से मुिनवरों! दे खो, आज से नही, ये प रपाटी ऋिष
मुिनयों के काल से चली आई। भगवान िव ु इ ािदयों ने इस प रपाटी को िनणय िकया।
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 6 से 17

िव ु उपा ध
हमारे यहाँ सबसे पूव भगवान मनु जी के कथानानुसार, सबसे पूव यहाँ िव ु उपा ध मानी
जाती है िव ु उपा ध जो सबसे थम राजा, उसी का नाम िव ु कहलाता था। मुिनवरों यह मनु
जी से पूव एक प रपाटी थी, भगवान मनु जी से पूव यह प रपाटी थी ा, रा तो होता नही,
सेना नही होती थी, मुिनवरों! वहाँ ओर भी रा के अ धपित नही होते, पर ु ा होता था, िक
िव ु रा होता था। िव ु रा ा होता है? िव ु से कोई भयभीत तो होता नही था, उसम
के वल कत क णाली क श ा थी, कत णाली क श ा को, मुिनवरों! देखो, सब
आचरण करने वाले, उसको हमारे यहाँ िव ु रा अहा, भगवान मनु जी से पूव यह था।
ल ी पूजन
भगवान मनु जी ने आगे चलकर रा क णाली को, म पूव उ ारण भी कर चुका ँ।
आज तो के वल हमारे यहाँ महाराजा िव ु ने यह प रपाटी सं सार म िनिमत क , ा ल ी का
पूजन करो, कौन सी ल ी का पूजन करो? ल ी कहते ह, हमारे यहाँ कृ ित का नाम भी ल ी
कहलाता है, कृ ित का नाम ल ी कहलाता है, इस कृ ित क भी पूजा करो, ोंिक इस कृ ित
से हमारा यह शरीर बना आ है, यह कृ ित से बना आ है, हमारे ने ों म, जो भी िन णत िकए
एय है, वह सब कृ ित के धातुओ ं से बनते ह। यह सब कृ ित से उ होते ह, मानो दे खो,
अणु और महा अणु भी कृ ित से उ होते ह, तो उसका पूजन करो, तो हमारे यहाँ दीपावली
और दीपावली को हमारे यहाँ दे खो, उसका पूजन होता है। इसका पर रागतों के अनूकुल हमारे
यहाँ ल ी का पूजन िकया जाता है, ल ी के पूजन का अ भ ायः यह िक इसका पूजन करो,
आज से हम िनणय करना है, दीपावली के िदवस यह जैसे कृ ित जो कु छ हम काश तीत हो
रहा है। यह भौितक काश यह सब कृ ित का काश है। जैसे कृ ित हम का शत त ों हमारे
मानव शरीर म ओत ोत िकए ह, आज हम उन त ों को जानना, उसी पर अनुस ान करना है।
उसी से हम अपने जीवन को ऊँचा बनाना है, ल ी का अ भ ायः यह, िक आज हम वह य
करना चािहए, आज भु क याचना करते ए, ल ी का पूजन करो िक हम ल ी का दु पयोग
नही करगे, ल ी रा नायक होती है, रा नायक कौन होती है? ल ी होती है। जस राजा के
रा म ल ी नही होती, उस राजा का रा भी नही होता, मानो राजा के रा म ल ी होनी
चािहए। अब ल ी का पूजन होना चािहए, ेक गृह म, ेक मेरे माता िपता ों इसका
अ भ ायः यह िक िबना ल ी के हमारा काय नही चलता। िबना ल ी के हमारे जीवन का ल
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 7 से 17

पूरा नही होता, हम दान नही कर सकते, हम य नही कर सकते, मानो सं सार का जतना भी
काय है, हम उ ारण नही कर सकते, हम ने ों से ि पात नही कर सकते, मुिनवरों! हम अपने
ो ों से कोई वाक् वण नही कर सकते, यह सब कृ ित का, ल ी का एक चम ार कहलाता
है। इस चम ार क हम पूजा करनी है, पर ु इसको हम अ कार पूजन करना है, मुिनवरों!
पूजन ों िकया जाता है? आज हम हमारे ारा यह आता है िक पूजन करने का अ भ ायः
यह नही, हम आठो भुजों को एकि त कर, उसके आगे ाथना, इसका यह अ भ ायः नहीं है हम
िनयम बनाना है िक हम इस ल ी का दु पयोग नही करना है, हम कही दु पयोग नही करना है,
हम दुराचारों म ल ी को योग नही करना है। हम वैिदक चारों म, हम य कम म परमा ा
क ाथना म ा णों के स ार म बुि मानों के और जहाँ भी हमारे लए अ धक से अ धक
क ाण होता हो, हम वहाँ ल ी को वहाँ लगाना है। वहीं से योग म लाना है। आज के िदवस
मुिनवरों! देखो, इसका एक िनयम बनाया जाता है, इसके भाग बनाए जाते ह ल ी के , जो भी
ल ी गृह म होती है, उसके भाग बनाए जाते ह, िकतनी ल ी मुझे परोपकार काय म लगानी है,
िकतनी ल ी मुझे अपने ापार म प रणत करनी है, िकतनी ल ी मुझे रा के लए अिपत
करनी है। इतनी ल ी मुझे पृ ी के लए अिपत करनी है। ोंिक जससे पृ ी म अ उ
हो। तो मुिनवरों! दे खो, यह सब कु छ हमारे लए लाभदायक कहलाता है।
आधुिनक काल ल ी का दु पयोग महान जी
पू महान जीः गु दे व! आधुिनक काल म तो ल ी का कु छ ओर ही िकया जाता है।
आधुिनक काल म तो भगवन! आज के िदवस ा, कल के िदवस ा भगवन! इस ल ी का
ऐसा दु पयोग ा, भगवन! आधुिनक काल म उसे जुए क ि से कहा जाता है, ओर भी श
आधुिनक काल म च लत है, म तो उनको श त नही कहा करता ँ, पर ु आधुिनक काल म
वो श त कहते है, उनको आधुिनक काल म थलेश कहते ह, यह तो भु! इसको अ कार
नही ान कराया जाता, पर ु उसको ओर ही कु छ उ ारण िकया जाता है, तो ल ी का
आधुिनक काल म इसका िनयम बनाने के प ात इसका दु पयोग िकया जाता है।
दीपावली का पव
पू पाद गु दे वः अ ा बेटा! तो मुिनवरों! अभी अभी मेरे ारे महान जी कु छ मूख
वाली वाक् गट कर रहे थे, पर ु इससे मुझे अ धक योजन नही, के वल अपने िवचार गट
क ं , मुिनवरों! हमारे यहाँ ाचीन णाली, जो ाचीन णाली है, पर ु वह इस कार चली आई,
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 8 से 17

आज हम उस णाली को अपनाना है जो णाली हमारे ऋिष मुिनयों क िनयु क ई है, वह


िवशेष कहलाई जाती है, पर ु आज हम उस णाली को अपनाते चले जाएं , जससे हमारी
दीपावली, हमारे जीवन म, एक पिव ोित जलती रहे, पिव ोित जो हमारे जीवन म जलते
रहेगी, तो हम दीपावली का पव मनाने के अ धकारी कहलाएं गे। जसका अ भ ायः यह नही, िक
यह दीपावली यह िकसी एक रा म अपनाई जाती हो, यह दीपावली ेक राजाओं के रा म
अपनाई जाती। इसके उपल म सभी कु छ हम अपने अपने जीवन म कु छ न कु छ श ा ा
करते ह, मानो कृ िष करने वाले वै जन य करते ह और य करते ह, ों? ोंिक देखो, इस
िदवस यह पव इसी लए मनाया जाता है, ा कृ िष, भूिम के गभ म हम अ क ापना कर देते
ह। इसम बीज क ापना कर दे ते ह, और देखो, सबसे िनवृत हो करके अब भु से याचना करते
ह, भु! जो पृ ी म अ ािपत िकया है, यह हमारे लए लाभदायक हो, रा के लए, ऐसी
अनुपम कृ पा करो, समय समय पर वृि करो, समय समय पर बुि मानों क अनेक याचनाएं बेटा!
कोई मह ों के ारा परम पिव पुनीत अवसर और पुनीत िदवस का िनमाण िकया जाता है। हमारे
यहाँ यह के वल एक पुनीत म िनमाण होता रहता है।
गोवधन
आज म उस िदवस पर आ पं चा, जैसा महान जी मुझे कु छ वाक् भी गट करने ह,
आज वह िदवस है, जब भगवान कृ ने देखो, गोवधन क पूजा क , गोबर एक धन कहलाया
जाता है, गोबर एक गो का मल कहलाया जाता है, उसको गोवधन कहते ह। धन का अ भ ायः है
इससे हम कृ िष म अ धक से अ धक ित ािपत करने से, इससे धन उ होता है, मानो आज
भगवान कृ ने इस उपल म, आज के िदवस मानो देखो, इ को भी िनमं ण। इ ने कहा
दे खो, वहाँ इ क पूजा होती थी, गोवधन पर दे खो, वह एक ान भी है, मानो जो वृ ावन के
रा े भगवान कृ के जहाँ ज भूिम पर ु उसी के ार पर मानो देखो, वह एक ान गोवधन,
जहाँ इ क पूजा होती है। इ क पूजा होती है।
गऊओं क पूजा
मुिनवरों! इ क पूजा आ करती थी, भगवान कृ से पूव, इ क पूजा जब इ ोंने
बेटा! सब मानो देखो, गऊंओं को एकि त िकया, और गऊंओं क पूजा क गई, गोवधन पर
वृ ावन के मानो दे खो, सभी उस पवत पर आ पं च, और वहां एक सु र गऊओं क पूजा होने
लगी। गऊंओं के चरणों को, भगवान कृ का यह काय रहता था, िक भगवान कृ ेक गऊं
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 9 से 17

के दु को पान करते थे, मानो एक एक प म, उनके दु को पान करते, उ िन णत िकया


करते थे, ोंिक भगवान कृ अपने जीवन म एक ब त ऊँचे वै ािनक और अपने जीवन म
अनुस ान करना उनका काय था यह। सबसे पूव उ ोंने यही अनुस ान िकया, अपने रा म
अपने समाज म, जा म हम सबसे यह पूव िवचारना है िक हमारे रा के लए, हमारे जीवन के
लए, ा के लए, सबसे ऊँची व ु ा है? सबसे ऊँची व ु यिद कोई सं सार म, गृह ी के
आ म म िवचारने के लए तो अपने ा के लए है, जस गृह म, जस राजा के रा म
ा ऊँचा होता है, ि होते ह, वहाँ शं सा होती है। भगवान कृ ने सबसे पूव यह
काय िकया, तो गोवधन पर एक उ ोंने एक समाज एकि त िकया, उस समाज म गऊंओं को
एकि त िकया, भगवान कृ का यह आदे श था, िक भई! पूजन करो, िकसका पूजन करो?
गोवधन का गऊंओं क पूजा करो। गऊंओं क पूजा करने से आज हमारा ा , हमारी मानवता,
इससे ऊंची बनेगी, इसी लए गऊंओं का पूजन िकया गया। मुिनवरों! दे खो, भगवान कृ ने सबसे
पूव दे खो, गऊंओं का पूजन िकया।
पू महान जीः गु दे व! आधुिनक काल म गऊंओं का पूजन िकया जाता है।
भगवान कृ क गो सेवा
पू पाद गु दे वः अरे, भई! तुम सुनों, जो वाक् उ ारण आ उसको सुनों, वण करो। तो
मुिनवरों! ा म क ा स गो अ ािन मुिनवरों! गऊंओं का पूजन करने से हम यह सब कु छ ा
हो जाएगा, एक व ु ा नही होती, आज वह व ु ा होती है, उससे मुिनवरों! गऊंओं का
दु पीने से, हमारे जीवन म एक बुि मानता आती है, ास ऊँचा होता है और गऊंओं के दु
के पान करने पर हमारे शरीर म जो नाना कार के जो हो जाते ह, वह भी न हो जाते ह।
न हो जाने के प ात अहा, दे खो, उससे हमारा ा ऊँचा बनता चला जाता है और वह
क ल भोजन करने से मानव का ा अंग भं ग हो जाता है, अंग भं ग हो जाने के प ात
मुिनवरों! सबसे पूव यह िवशेषता है, गऊं के दु पान करने म ा मानव के जीवन म सदाचार
क भावना आती है। ेक मानव क
े देव क ा के ारा दुराचार क भावना न आ करके
सदाचार क भावना आती है। ोंिक गऊ के दु म, वह परमाणु होते ह, वह ेह होता है, जस
ेह से दे खो, जो हे गऊंओं म होता है। अहा, बेटा! दे खो, गऊंओं म, िकतना भी ोध हो,
पर ु उस ोध म जब भी उ एकि त होने का समय िमलेगा, तभी वह एकि त हो जाते ह।
इसी कार उनम िकतना हे होता है, ऐसे ही मानव मा म भी, इसी कार का ेह हो जाता
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 10 से 17

है। मेरे आिद आचाय जनों! मेरे पिव भोले ऋिष म ल! उस भगवान कृ क चचा गट कर
रहे ह। ज ोंने बेटा! गऊंओं क पूजा क । हमारे यहाँ भगवान कृ से पूव भी देखो, गऊंओं क
पूजा होती चली आई, गऊंओं क पूजा आज से नही, पर ु पर रा से होती चली आई है।
मुिनवरों! दे खो, सव सं सार म गऊंओं क पूजा क जाती है, उसके दु को पान िकया जाता है,
घृत को पान िकया जाता है, उसी म य िकया जाता है। दे वता जन स होते ह, वह समय
समय पर मुिनवरों! दे खो, मानव को ा दे ते रहते ह।
गोवधन पूजन
पू महान जीः गु दे व! हमने ऐसा सुना है, जैसे आपने गोवधन का अभी अभी वणन
िकया है जब इ क पूजा नही होती थी, इ ने वृि क और भगवान कृ ने गोवधन के पवत
को ऊँचा अपने से ऊँचा उठाया था और वृ ावन के जतने ाणी थे सब उसक छाया म चले
गएं ।
परमा ा के िनयम के अनुकूल कम
पू पाद गु दे वः बेटा! यह इसका अ भ ायः नही है, िक इ ने वृि क , तो पवत को
उ ोंने ऊँचा कर लया, इसका अ भ ायः तो यह भी हो सकता है, ा ऊँचा ान था, वृि
अ धक ई और गोवधन के ऊपर बसने चले गएं , यह भी हो सकता है। पर ु यह नही, िक
कृ ित के िनयम के िव माना जाता है, पर ु भगवान कृ परमा ा के उस परमान के ब त
िनकट थे, ब त िनकट होने के प ात, जो जसके िनकट होता है, वह कृ ित के िवपरीत कोई
काय नही करता, भगवान ने जो िनयम बनाएं ह, उनके िवपरीत कोई काय नही करता, िवपरीत
कौन जाता है। जो बेटा! देखो, परमा ा से दूरी हो जाता है, और जो परमा ा के जतना भी
िनकट होता है। उतना ही वह कृ ित के िनयम को अंग भं ग नही करता, परमा ा के िनयम को
न नही करता, वह उसके अनुकूल काय करता चला जाता है, तः होता रहता है।
मेरे पिव आचाय जनों! मेरे ारे महान जी यह नही, पर ु उनसे यह मान लेना चािहए
िक गोवधन से दे खो, भगवान कृ ने गऊंओं क पूजा कराई। वहाँ इ क पूजा भी होती थी,
पर ु इ क पूजा को उसने शा कराया, ाइ क पूजा इ के रा म होनी चािहए? पर ु
इ ने उ क देने का य भी िकया, मानो दे खो, बकासुर इ ािदयों ने उनको क दे ना ार
िकया। भगवान कृ ने अपने करण से, उनक एकता से, उनक मानव मा क सहायता से,
छाया से, उसक सेना को न िकया, न करने के प ात, पर ु यह आ। आज हम देखो, इ
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 11 से 17

हम िकसे कहते है? आज हम दे खो, इ के वल उसको नहीं कहते, जो सब राजाओं का राजा,


पर ु दे खो, हम परमा ा को इ कहा करते ह। यहाँ इ यिद एक राजा को लया जाए, तो वह
वृि ा कराएगा, पर ु देखो, वह अणु और परमाणुओ ं से वृि करा भी सकता है, यह भी हो
सकता है िक ब त से य ऐसे होते ह, जो कृ ित से िनकासे जाते ह। अनुस ान करने के प ात
िक वह अ र म उनका हार करने के प ात, जल के ारा देखो, जलों का उ ान हो जाता
है। उससे वृि भी हो सकती है, पर ु वह य कृ ित क नाना धातुओ ं से िनकासा जाता है। मेरे
आिद ऋिष मुिनयों! इसको तुम ेक जानता होगा, िक भगवान कृ क उस ि या को जाना
करते थे, इ भी उस ि या को जानते थे, पर ु इ ने यह कराया, यह हो सकता है, पर ु
इ ने ऐसा िकया नही था, यह अितता यह मानव क एक क ना है। एक गोवधन को ऊँचा ले
जाने के लए, एक मानव क एक क ना है। यह एक ांज ल और एक ा का एक पाठ है।
पर ु यह इससे अ धक ा से उसका वा िवक वाक् का अंग भं ग हो जाता है। गोवधन क
पूजा करने से मुिनवरों! देखो, भगवान कृ ने अपने जीवन का उ ान िकया, अपनी जा को
ऊँचा बनाया है। मानो दे खो, भगवान कृ के यहाँ एक काय और भी होता था, न क जतनी
भी शोभा थी, मानो दे खो, गऊंओं का सब घृत सब राजा कं स के ारा चला जाता था राजा कं स
के ारा जाता था, भगवान कृ जो भी दे वी उ ा होती, जो भी माताएं उ घृत ले जाती
ा होती, उ ि पात होती, उनसे छ न लेते और कहा करते िक यह कं स पापी है, तुम घृत को
यं पान करो, मानो दे खो, भगवान कृ ने यह िकतने ऊँचे ऊँचे काय िकए, उ ोंने कहा िक
कं स इतना दुराचारी है, िक वह दूसरों के अ धकार को लेना चाहता है। सं सार म उस ि को
न कर दो, जो दूसरों के अ धकार को छ नना चाहता है, दूसरे के अ धकार को छ नना यह
मानवता नही कहलाई जाती है। इसी लए हे मेरी पिव माताओं! हे मेरे पिव भ जनों! सं सार म
उस ि को अपने ार पर न आने दो, जो दूसरे के अ धकार को छ नने वाला हो, उसे अपने
अ धकार के , उसे अपने जीवन का, अपने का, अपनी ल ी का यं देखो, उसे उसका
अ धकार, उसका दािय बना रहे। इसी लए आज मुिनवरों! दे खो, भगवान कृ का एक एक
श ाथ बडा मह पूण है, हम उ ीं के आदे शों पर चलना चािहए। ोंिक उनका आदे श आयतव
म प रणत कहलाया जाता है। उ आय णाली को, आय पर रा को ऊँचा बनाने म, अपने
जीवन को समा िकया, अपने जीवन को सव दे खो, सं सार म समृ उनका जीवन तीत होता
रहा।
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 12 से 17

गणेश का पूजन
मुिनवरों! आज यहाँ दीपावली को, के वल गोवधन का ही पूजन नही होता है, गणेश का
पूजन भी होता है, गणेश का अ भ ायः यह है, जहाँ ल ी का, जहाँ कृ ित का, जहाँ , गऊ का
पूजन िकया जाता है, वहाँ परमिपता परमा ा का पूजन भी िकया जाता है। मुिनवरों! गणेश का
पूजन ों िकया जाता है? गणं े अ गणा मुिनवरों! दे खो, जो गणों का ामी हो, गण
सं सार म जा कहलाती है, उनका ामी गणपित कहलाता है। आज मुिनवरों! दे खो, हम गणपित
क पूजा करनी है, जस गणपित के पूजा करने से, हमारे दय म ेह आता है, हमारे दय म
मधुरता आती है, हमारे दय म कत क भावना आती है, हमारे दय म रा ीय भावना आती
है। मानो दे खो, यह सब भगवान क पूजा करने से ा होती है। ोंिक परमिपता परमा ा ने
सं सार को एक रा प को िनमा ण िकया है। इसका वाक् तो म कल ही गट कर सकूं गा अ
कार से, पर ु आज का आदे श तो के वल यह उ ारण करता चला जा रहा है। ा हम गणपित
क उपासना करनी चािहए। गणपित का पूजन करना चािहए, हमारे यहाँ मुिनवरों! देखो, गणपित
राजा को भी कहा जाता है। राजा का भी पूजन करना चािहए, ोंिक राजा का पूजन ों िकया
जाता है? राजा के पूजन का अ भ ायः यह नही, ा उसके चरणों को छू आ जाए, राजा के पूजन
का अ भ ायः यह है, ा हम उसके क
े ानों से, बुि मानों से, माताओं से और मेरी पु
पुि यों से राजा को यह ेरणा दे नी चािहए, राजा के दय म, ा हे राजन! मेरी पौ माता को तो
यह अ धकार दे ने चािहए, िक वह हमारा अ धपित है, तू गणेश है, तू राजा है, हमारे ार क तू
र ा कर। पुि यों को रा के ारा, राजा को यह सं दे श दे ना चािहए। हे देव! हे राजन! तू हमारा
राजा है, और हमारे जीवन का उपकार वा व म तो परमा ा के ऊपर है, पर ु कु छ तु ारे ारा
भी है। इसी लए हमारे िवधाता, हमारे जीवन म जो भी मानवता आए, उसका चुनौती आप लेते
रह। मुिनवरों! दे खो, यह सब मानव के लए ही, ा सं सार के रा क र ा, रा के िनयम, रा
के जो भी कु छ अवृि होते ह, वह सब आपके भुजों म इ े अ कार बनाते रहो, यह सब
मुिनवरों! देखो, एक जा का कत होता है, तो इसी परमा ा क उपासना करना, गणेश जी क
उपासना करना, महिषयों ने महान जी ने एक समय ऐसा वणन िकया िक गणेश जी तो महाराज
शव के पु कहलाते ह, और जनके ारा एक हाथी का एक ब त बड़ा मुख उनके अनुसार
प रणत िकया जाता है। मेरे आिद आचाय जनों! महान जी ने मुझे एक समय ऐसा गट
कराया, पर ु इसके साथ साथ म यह वाक् गट करता चला जाऊं, िक दे खो, गणेश जी का
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 13 से 17

ऐसा नही, पर ु गणेश जी महाराज शव के पु भी थे। पर ु यहाँ गणेश जी भगवान को कहा


जाता है, जो हाथी इतना िवशाल होता है, इतने िवशाल शरीर वाला होता है, मानो देखो, वह
िकतने ही अ ों को, िकतने ही वन ितयों को अपने उदर म ओत ोत कर लेता है, उसी से
उसका जीवन सं चार होता है, इसी कार हमारे यहाँ परमा ा के ारा देखो, यह सव भूम ल
होने के नाते, यह सव भूम ल उसका है। नाना कार के लोक लोका र ह, यह सब दे खो,
परमा ा के गभ म प रणत हो रहे ह, सब का शत हो रहे ह, उसी क ेरणा, उसी का पाठ,
उसी के मुिनवरों! एक एक, कण कण म परमा ा के गणेश के ापक होने के नाते, उन सबका
अ धपित होने के नाते अहा, उसका दे खो, इतना िवशाल म भी है। उसका इतना िवशाल
उदर भी है, मानो दे खो, वह सबको अपने म प रणत कर दे ता है, मुिनवरों! लय काल म भी
सबको िनगल जाता है। अपने गभ म, अपने उदर म सबको प रणत कर लेता है, मुिनवरों! उसका
इतना िवशाल उदर है, इतना िवशाल उसका मुखारिब है, मुिनवरों! देखो, जससे परमा ा को
हमारे यहाँ गणेश जी कहा जाता है। गणेशा णे जो गणों का ामी हो, गणों का ामी हो
मानो दे खो, नाना कार के लोक लोका रों का ामी हो, उसको हमारे यहाँ गणपित क चुनौती
दी जाती है। अहा, भगवान शव के पु का नाम भी गणेश जी है, ऐसा अ भ ायः यह नही िक
िकसी के पु का नाम गणेश जी हो, तो परमा ा को गणेश जी नही कह सकगे। अहा, मुिनवरों!
दे खो, जहाँ हम भगवान को गणेश जी कहा जाता है, िकसी के पु का नाम भी गणेश उ ारण
कर सकते ह। ोंिक वह तो एक गौ णक नामों से प रणत िकया जाता है।
मेरे आिद आचाय जनों! आज म यह चचा कर रहा था, िक आज दीपावली के पव म और
गो क पूजा करने के िदवस से हम भगवान कृ और हम अपनी पर रा को िवचारना है। जो
सं सार म दे खो, पर रावादी सं ृ ित को नही िवचारता, आह, उसका जीवन एक भार प म माना
जाता है, सं सार म आलसी और मादी बन करके अपने जीवन को हम थ नही करना है। पर ु
दे खो, आज हम सभी वा ों पर िवचार करना होगा, जैसे हम भूिम क र ा करते ह, मुिनवरों!
इसी कार मेरी जो पिव माता है, जसके गभ से हम जैसे पु ों का ज होता है, भगवान कृ ,
भगवान राम, महाराज शव मुिनवरों! देखो, अनेकों अनेक महान िवभूितयों का ज होता है।
जैसा मुिनवरों! देखो, यहाँ ऋिष मुिनयों का जमदि , जैसे महिष पारा, महिष लोमश, महिष
कणाद, आिद ऋिष महाराज, महिष अंिगरा इ ािद आचाय ऋिष जन ए, यह सब मेरी पिव
माताओं के गभ से ज लेते ह। जनके बड़े सौभा होते ह, जनक ाग और तप ा म एक
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 14 से 17

आ ित है, ाग और तप ा से मानव क माता क वृि यों से, मानव के अ ःकरण म उनक


भावनाओं से दे खो, उससे पु ों का ज होता है। मुिनवरों! दे खो, इससे हम सभी वा ों पर
िवचार करना है। हम जब हम क
े वाक् पर हम अपने पर रावादी जो हमारी ाचीन ऋिष
मुिनयों क णाली है।
आज भगवान राम, भगवान राम दे खो, यह वह भी िदवस है, जब भगवान राम, माता सीता
और हनुमान मुिनवरों! दे खो, ल ण इ ािद दे खो, लं का को िवजय करके अपनी अयो ा म आ
पं चे थे, अपनी अयो ा म आने के प ात मानो दे खो, मुिनवरों! देखो, जब राजा रावण को
िवजय िकया, िवजय करने के प ात, लं का का रा उनके िवधाता िवभीषण को लं का का ामी
बना करके , पु िवमान म िवराजमान हो करके , अपनी अयो ा म लौट आए, पर ु आज का
दे खो, वह िदवस, आज नही, पर ु आज को तो वह िदवस है लं का को िवजय करके , जब भगवान
राम ने माता सीता ने ल ण ने हनुमान ने िवराजमान हो करके देखो, भरत ने इ ािद श ु ने
माताओं के सिहत और गु जनों के सिहत मानो य िकया। आज वह िदवस है, पर ु ेक ाणी
को यह ान हो गया िक आज भगवान राम लं का को िवजय करके आ रहे ह, उस समय ेक
गृह म जो दीपावली का पव जो कृ षक दे खो, कृ षकों के दयों के ांित ािपत हो चुक थी, ा
भगवान राम नही आएं गे, न ित ा होगा, पर ु जब यह तीत आ, वै जनों को भी, राम
क िवजय हो गई है। लं का से आ गएं ह, उसी समय अयो ा म एक काश, सव एक आन
के उनके दयों म ा मुिनवरों! दे खो, आन के गीत का शत हो गएं , बेटा! वह लं का म भी
वह पव मनाया गया, पर रा के सं ृ ित के अनूकुल मनाया गया, पर ु रहा देखो, अयो ा म,
भगवान राम, सीता और ल ण, हनुमान जब वह अयो ा म आए, तो भरत ने राम के चरणों को
छु आ, उ ोंने सीता के चरणों को श िकया, और उनके ेह क उनके ेम क कोई सीमा नही
थी बेटा! जैसे दीपावली के िदवस मानो अपने गृहों को का शत करता है, और अपने मनों को
का शत करता है, इसी कार महाराजा भरत और श ु और माताओं का जो दय था, वह
इतना फु त हो गया, इतना काशमान हो गया, िक दीपावली और सूय का काश भी उनके
आगे अ कारमय तीत होता था। मेरे आिद आचाय जनों! यह ेम का तीक है, यह हमारा
आदर का तीक है, भरत ने जब सीता के चरणों को छु आ, उस समय कहा माते री! मुझे आपक
बड़ी ती ा थी मेरे ने थिकत हो गएं , मेरी ि सू से सू हो गई, आपको ि पात करते
करते, यह बेटा! िकतना ऊँचा आदे श था। मेरे उन ऋिष मुिनयों का महान िवभूितयों का आज मुझे
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 15 से 17

बेटा! ऐसा तीत हो रहा है, जैसे आज अयो ा म वाक् उ ारण कर रहे हो बेटा! आज यह आय
वाली वा ों को हम पुनः से का शत करना है। इतना समय आ इस तीक से आज हम इससे
कु छ श ा ा करनी है। जन श ाओं को ले करके हम आज गऊंओं का पालन ा, दीपावली
का पव ा, इनको हम अपने जीवन म धारण कर, और इनको हम अपने जीवन म कु छ न कु छ
अ ाईयों को अपनाते चले जाएं ।
मान सक िवचारों का भाव
महिष जमदि ने जतनी सू ता का प रचय िदया। पर ु वह एक महान सराहनीय है।
जब महिष जमदि क प ी के िवचार देखो, िवचारों म एक महान दे खो, दूिषत ांित आ गई,
दूिषत ांित आ गई, तो अपने पु पर हार कर रहा है, ों? ोंिक उ ोंने कहा िक म अपने
गृह को, म अपने आ म को शमशान भूिम नही बनाना चाहता ँ, म इसको ऋिष क भूिम
बनाना चाहता ँ। मुिनवरों! दे खो, यह उस ऋिष के िवचार ह, ऋिष के िवचार ब त सू ह इसी
कार यिद जाओं के िवचार एक दूसर के न करने वाले हो जाते ह, और एक दूसरे को न
करना, अपने उदर क पूित हो, दूसरा न हो जाएं या कु छ हो, इस कार के िवचार बन जाते ह।
तो ा होता है? यह िवचार जमदि के कथनानुसार, यह िवचार सब अ र म रमण करते ह,
और जब अ र म रमण करते ह, अहा, सूय क िकरण आ करके िमलती ह, जल के परमाणु
जाते ह, अि के ती परमाणु जाते ह, वायु का िमलान होता है, उनका जब आपस म दे वताओं
का, दे वताओं का एक समाज एकि त होता है, और देवताओं के ारा यह मान सक िवचार जाते
ह, दे वता इनको सींचते ह, सींच करके ा होता है? ा दे वता इनके लए, इनके िवचारों को
ि तीय पों म प रणत कर दे ते ह बेटा!। पहले कृ ित के आ मण होते ह, तो िकसी रा म दे खो,
रा ीय सं ाम हो रहा है, तो कहीं मुिनवरों! दे खो, अकाल पड़ रहे ह, कहीं वृि नही होती, वृि
होती है, तो अनावृि होती है। यह सब दे खो, मानव के मान सक िवचारों का आहार और वहार
का फल कहलाता है। यह महिष जमदि का कथन है, महिष जमदि के िवचार बेटा! एक महान
िवचार कहलाए जाते ह, हमारे ऋिष मुिनयों ने महिष जमदि को िवचारधारा म सबसे अ णीय
माना है, अ णीय माना है, कारण ा है? ा उनके िवचार, वह अपनी मान सकता को ऊँचा
बनाने के लए, अपने सू िवचार सं सार को दे ते ह। उन िवचारों का यह प रणाम रहा, ा उनके
वाक् उ ारण करने का आज हम पुनः से सौभा ा हो रहा है।
मेरे आिद आचाय जनों म के वल यह श उ ारण कर रहा था, वह यह ा हम उन सब
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 16 से 17

वा ों के िवचार करने का अ भ ायः यह मानवता और हमारा िवचार ऊंचा होना चािहए, िव च


से िव च होना चािहए, जससे मुिनवरों! दे वताजनों क गो ी म भी उनके समाज म भी हमारे
िवचार चल, हमारी भावना जाए, तो वह हम िवष न द। दै ों म प रणीत नही करना है। जससे
बेटा! हम देवता बन और और दे व ाओं के समाज म पं चे, दे वता वाले िवचार बन करके , हमारे
लए बेटा! हम अमृत दे ने वाले बन, िवष न तो िकसी को द अरे, िकसी को िवष दगे, तो िवष हम
अव ा होगा, अमृत दगे, तो परमिपता परमा ा के इस क वृ के नीचे िवराजामन ह।
हम िकसी को अमृत दगे, तो अमृत ही सीचगे, िवष दगे तो िवष ही सीचगे, इसी लए हम सं सार म
ों न अमृत देना चािहए। यह है बेटा! आज का हमारा आदे श, आज का आदेश यह समा होने
जा रहा है, कल समय िमलेगा तो म शेष भी चचाएं कल भी गट कर सकूं गा।
पू महान जीः गु दे व! आपका िवचार कु छ सु र भी लगा और कु छ असु र भी लगा।
पू पाद गु दे वः अरे, ों?
पू महान जीः भगवन! हमारे यहाँ का वाक् आता है, आप वहाँ उस वाक् को िमला
जाते ह
पू पाद गु दे वः हा .. अरे, ों
पू महान जीः भगवन! अभी अभी आप से ेरणा पों म गट िकया, िक माँ स आहार
करना ब त अिनवाय है।
पू पाद गु दे वः ‘बेटा! तुम िकया करो, उसम ा है, हम तो इससे कोई िवरोध नही,
पर ु हम तो महान आ ाओं के िवचार तु ारे सम गट िकए और जैसा तुमने बनना है, वैसे
बनते चले जाओ।
पू महान जीः भगवन! यह तो हमारे ों का कोई उ र नही है, हमारे ों का एक
यही उ र तो अव देते चले जाईएं , अभी आप ने कहा अमृत दोगे, तो अमृत ा होगा।
पू पाद गु दे वः हा नही महान ! यह बेटा! िवनोद ा करने लगे, आज के हमारे
आदे शो का जो शीषक था, वह यही था िक अपने महान िवचारों के लए हम अपने आहार और
वहार पर अव अनुस ान करना चािहए, तुम बेटा! हर समय िवनोद क चचा गट करते हो,
हम समय िवनोद का नही होता, समय िमलेगा तो तु ारे ों का उ र कल िदया जाएगा।
पू महान जीः अ ा भगवन्! जैसी आ ा।
पू पाद गु दे वः तो मुिनवरों! आज का यह आदे श समा होने जा रहा है आज के आदे शों
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 17 से 17

का अ भ ायः ा हमारा, िक हम अपने आहार वहार सू सा िवचार का, यह हम सब उ


करना है, यिद हम अपने रा को, अपनी मातृ भूिम को ऊँचा बनाना है, तो हम पुनः मान सकता
को उ करना है, जससे हमारे ारा हे एक दूसर म एक दूसर के िवचार से अवगत होते हों,
तो हम कत क भावनाओं म सं ल , रा वाद, मान सकवाद सब हमारे ारा प रणत हो करके ,
हम परमिपता परमा ा क छ छाया म पनपते ह, उसी क छ छाया म हम अपने िवचार को
ऊँचा बनाते चले जाएं , यह आदे श आज हमारा समा हो गया, कल समय िमलेगा, तो म शेष
चचाएं कल गट क ं गा आज का आदे श समा होता गया कल शेष चचाएं गट करगे अब वेद
का पाठ होगा।
पू महान जीः अ ा भगवन्! आ ा
पू पाद गु दे वः ‘आन मं गलम भवित
आय समाज जं ग पुरा नई िद ी।

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