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है, ऋिष मुिनयों ने। यिद उनको अपने जीवन म धारण िकया जाएं , जीवन म धारण करने से ही
हमारी सू और ती बुि बनती है। अ था ा ाय करते रहो, दूसरों को घृणा क ि से
पान करते रहो, उसको ान नही कहते, ान िकसे कहते ह? बेटा! महिष पतं ज ल और मुिनवरों!
महिष जमदि का एक श है, एक समय महिष जमदि से उनके पु ने एक िकया, उ ोंने
कहा हे िपता! ान िकसे कहते ह? तो जमदि ने कहा िक ान श एक िब ु है, और वह हमारे
शरीर म भी एक िब ु है, जसे काश कहते ह, उस काश को जानने का नाम ान कहलाता
है। इसका अथ ा आ, ान, ान भी कहते ह, पर ु उसी के आ त हो करके जमदि ने यह
कहा ा मैने तो यं इतना ही जाना है, ान तो ब त ही सू है। मेरे आिद आचाय जनों! हम
सं सार म पिव ता लाने के लए, उ ता लाने के लए, उस ान को ा करना है, जससे हमारे
जीवन म हम धारण करते चले जाएं , उसी का नाम ान कहलाता है।
दीपावली
आओ, अब हम महान जी के वा ों पर चले जाएं , आज उनक ेरणा हम, इ ोंने हम
ि तीय काल म भी िकया, वह इनके मनों क भावना, क ना थी, इ ोंने कु छ भु के िवषय
म, अपनी इ ाएं गट क , मुिनवरों! दीपावली और भगवान कृ म जो गोवधन इ ािदयों का
पालन िकया, आज म बेटा! ऋिष मुिनयों के वा ों पर ले जाना चाहता ँ। इस वाक् को, हमारे
यहाँ दीपावली का एक पव होता है, इसे महाभारत के काल से पूव, इसे दीप कहा जाता था, दीप
आवली मानो दीपावली भी कहा जाता था, िक ीं िक ी ानों म, दीपावली का अ भ ायः ा
था? जो सव भूम ल म दीपावली का पव मनाया जाता है, आज तो तीत नही कहाँ कहाँ मनाया
जाता है, पातालपुरी म ा, नाना रा ों म दीपावली को, राजा, महाराजा सभी इसका ागत
िकया करते थे। दीपावली का अ भ ायः यह है, जसम काश को लया जाता है। भगवान राम
से पूव, इसका कु छ ओर प था, भगवान राम से पूव इसका यह प था िक हमारे यहाँ दो पव
माने जाते ह, एक होली का पव होता है, होलका का पव, एक दीपावली पव होता है। इसम
ल ी का अवतरण भी होता है। पर ु वह कृ िष करने वाले जन, अब शरद ऋतु म, पृ ी के गभ
म बीज क ापना क जाती है, पृ ी के गभ म पृ ी क ापना क , तो वह िकसी काल म
यह नही िवचारता, िक इसका िकतना फल ा िकया, वह जब इस पृ ी के गभ म बीज क
ापना कर दे ने के प ात, भु से याचना क जाती है बेटा! ा उसमे पुरोिहत जन, आचाय जन
ेक गृह म आओ, या वा णक आओ, ऊँची ऊँची वन ितयों को एकि त करो, और साम ी
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 3 से 17
िव ु उपा ध
हमारे यहाँ सबसे पूव भगवान मनु जी के कथानानुसार, सबसे पूव यहाँ िव ु उपा ध मानी
जाती है िव ु उपा ध जो सबसे थम राजा, उसी का नाम िव ु कहलाता था। मुिनवरों यह मनु
जी से पूव एक प रपाटी थी, भगवान मनु जी से पूव यह प रपाटी थी ा, रा तो होता नही,
सेना नही होती थी, मुिनवरों! वहाँ ओर भी रा के अ धपित नही होते, पर ु ा होता था, िक
िव ु रा होता था। िव ु रा ा होता है? िव ु से कोई भयभीत तो होता नही था, उसम
के वल कत क णाली क श ा थी, कत णाली क श ा को, मुिनवरों! देखो, सब
आचरण करने वाले, उसको हमारे यहाँ िव ु रा अहा, भगवान मनु जी से पूव यह था।
ल ी पूजन
भगवान मनु जी ने आगे चलकर रा क णाली को, म पूव उ ारण भी कर चुका ँ।
आज तो के वल हमारे यहाँ महाराजा िव ु ने यह प रपाटी सं सार म िनिमत क , ा ल ी का
पूजन करो, कौन सी ल ी का पूजन करो? ल ी कहते ह, हमारे यहाँ कृ ित का नाम भी ल ी
कहलाता है, कृ ित का नाम ल ी कहलाता है, इस कृ ित क भी पूजा करो, ोंिक इस कृ ित
से हमारा यह शरीर बना आ है, यह कृ ित से बना आ है, हमारे ने ों म, जो भी िन णत िकए
एय है, वह सब कृ ित के धातुओ ं से बनते ह। यह सब कृ ित से उ होते ह, मानो दे खो,
अणु और महा अणु भी कृ ित से उ होते ह, तो उसका पूजन करो, तो हमारे यहाँ दीपावली
और दीपावली को हमारे यहाँ दे खो, उसका पूजन होता है। इसका पर रागतों के अनूकुल हमारे
यहाँ ल ी का पूजन िकया जाता है, ल ी के पूजन का अ भ ायः यह िक इसका पूजन करो,
आज से हम िनणय करना है, दीपावली के िदवस यह जैसे कृ ित जो कु छ हम काश तीत हो
रहा है। यह भौितक काश यह सब कृ ित का काश है। जैसे कृ ित हम का शत त ों हमारे
मानव शरीर म ओत ोत िकए ह, आज हम उन त ों को जानना, उसी पर अनुस ान करना है।
उसी से हम अपने जीवन को ऊँचा बनाना है, ल ी का अ भ ायः यह, िक आज हम वह य
करना चािहए, आज भु क याचना करते ए, ल ी का पूजन करो िक हम ल ी का दु पयोग
नही करगे, ल ी रा नायक होती है, रा नायक कौन होती है? ल ी होती है। जस राजा के
रा म ल ी नही होती, उस राजा का रा भी नही होता, मानो राजा के रा म ल ी होनी
चािहए। अब ल ी का पूजन होना चािहए, ेक गृह म, ेक मेरे माता िपता ों इसका
अ भ ायः यह िक िबना ल ी के हमारा काय नही चलता। िबना ल ी के हमारे जीवन का ल
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 7 से 17
पूरा नही होता, हम दान नही कर सकते, हम य नही कर सकते, मानो सं सार का जतना भी
काय है, हम उ ारण नही कर सकते, हम ने ों से ि पात नही कर सकते, मुिनवरों! हम अपने
ो ों से कोई वाक् वण नही कर सकते, यह सब कृ ित का, ल ी का एक चम ार कहलाता
है। इस चम ार क हम पूजा करनी है, पर ु इसको हम अ कार पूजन करना है, मुिनवरों!
पूजन ों िकया जाता है? आज हम हमारे ारा यह आता है िक पूजन करने का अ भ ायः
यह नही, हम आठो भुजों को एकि त कर, उसके आगे ाथना, इसका यह अ भ ायः नहीं है हम
िनयम बनाना है िक हम इस ल ी का दु पयोग नही करना है, हम कही दु पयोग नही करना है,
हम दुराचारों म ल ी को योग नही करना है। हम वैिदक चारों म, हम य कम म परमा ा
क ाथना म ा णों के स ार म बुि मानों के और जहाँ भी हमारे लए अ धक से अ धक
क ाण होता हो, हम वहाँ ल ी को वहाँ लगाना है। वहीं से योग म लाना है। आज के िदवस
मुिनवरों! देखो, इसका एक िनयम बनाया जाता है, इसके भाग बनाए जाते ह ल ी के , जो भी
ल ी गृह म होती है, उसके भाग बनाए जाते ह, िकतनी ल ी मुझे परोपकार काय म लगानी है,
िकतनी ल ी मुझे अपने ापार म प रणत करनी है, िकतनी ल ी मुझे रा के लए अिपत
करनी है। इतनी ल ी मुझे पृ ी के लए अिपत करनी है। ोंिक जससे पृ ी म अ उ
हो। तो मुिनवरों! दे खो, यह सब कु छ हमारे लए लाभदायक कहलाता है।
आधुिनक काल ल ी का दु पयोग महान जी
पू महान जीः गु दे व! आधुिनक काल म तो ल ी का कु छ ओर ही िकया जाता है।
आधुिनक काल म तो भगवन! आज के िदवस ा, कल के िदवस ा भगवन! इस ल ी का
ऐसा दु पयोग ा, भगवन! आधुिनक काल म उसे जुए क ि से कहा जाता है, ओर भी श
आधुिनक काल म च लत है, म तो उनको श त नही कहा करता ँ, पर ु आधुिनक काल म
वो श त कहते है, उनको आधुिनक काल म थलेश कहते ह, यह तो भु! इसको अ कार
नही ान कराया जाता, पर ु उसको ओर ही कु छ उ ारण िकया जाता है, तो ल ी का
आधुिनक काल म इसका िनयम बनाने के प ात इसका दु पयोग िकया जाता है।
दीपावली का पव
पू पाद गु दे वः अ ा बेटा! तो मुिनवरों! अभी अभी मेरे ारे महान जी कु छ मूख
वाली वाक् गट कर रहे थे, पर ु इससे मुझे अ धक योजन नही, के वल अपने िवचार गट
क ं , मुिनवरों! हमारे यहाँ ाचीन णाली, जो ाचीन णाली है, पर ु वह इस कार चली आई,
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है। मेरे आिद आचाय जनों! मेरे पिव भोले ऋिष म ल! उस भगवान कृ क चचा गट कर
रहे ह। ज ोंने बेटा! गऊंओं क पूजा क । हमारे यहाँ भगवान कृ से पूव भी देखो, गऊंओं क
पूजा होती चली आई, गऊंओं क पूजा आज से नही, पर ु पर रा से होती चली आई है।
मुिनवरों! दे खो, सव सं सार म गऊंओं क पूजा क जाती है, उसके दु को पान िकया जाता है,
घृत को पान िकया जाता है, उसी म य िकया जाता है। दे वता जन स होते ह, वह समय
समय पर मुिनवरों! दे खो, मानव को ा दे ते रहते ह।
गोवधन पूजन
पू महान जीः गु दे व! हमने ऐसा सुना है, जैसे आपने गोवधन का अभी अभी वणन
िकया है जब इ क पूजा नही होती थी, इ ने वृि क और भगवान कृ ने गोवधन के पवत
को ऊँचा अपने से ऊँचा उठाया था और वृ ावन के जतने ाणी थे सब उसक छाया म चले
गएं ।
परमा ा के िनयम के अनुकूल कम
पू पाद गु दे वः बेटा! यह इसका अ भ ायः नही है, िक इ ने वृि क , तो पवत को
उ ोंने ऊँचा कर लया, इसका अ भ ायः तो यह भी हो सकता है, ा ऊँचा ान था, वृि
अ धक ई और गोवधन के ऊपर बसने चले गएं , यह भी हो सकता है। पर ु यह नही, िक
कृ ित के िनयम के िव माना जाता है, पर ु भगवान कृ परमा ा के उस परमान के ब त
िनकट थे, ब त िनकट होने के प ात, जो जसके िनकट होता है, वह कृ ित के िवपरीत कोई
काय नही करता, भगवान ने जो िनयम बनाएं ह, उनके िवपरीत कोई काय नही करता, िवपरीत
कौन जाता है। जो बेटा! देखो, परमा ा से दूरी हो जाता है, और जो परमा ा के जतना भी
िनकट होता है। उतना ही वह कृ ित के िनयम को अंग भं ग नही करता, परमा ा के िनयम को
न नही करता, वह उसके अनुकूल काय करता चला जाता है, तः होता रहता है।
मेरे पिव आचाय जनों! मेरे ारे महान जी यह नही, पर ु उनसे यह मान लेना चािहए
िक गोवधन से दे खो, भगवान कृ ने गऊंओं क पूजा कराई। वहाँ इ क पूजा भी होती थी,
पर ु इ क पूजा को उसने शा कराया, ाइ क पूजा इ के रा म होनी चािहए? पर ु
इ ने उ क देने का य भी िकया, मानो दे खो, बकासुर इ ािदयों ने उनको क दे ना ार
िकया। भगवान कृ ने अपने करण से, उनक एकता से, उनक मानव मा क सहायता से,
छाया से, उसक सेना को न िकया, न करने के प ात, पर ु यह आ। आज हम देखो, इ
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 11 से 17
गणेश का पूजन
मुिनवरों! आज यहाँ दीपावली को, के वल गोवधन का ही पूजन नही होता है, गणेश का
पूजन भी होता है, गणेश का अ भ ायः यह है, जहाँ ल ी का, जहाँ कृ ित का, जहाँ , गऊ का
पूजन िकया जाता है, वहाँ परमिपता परमा ा का पूजन भी िकया जाता है। मुिनवरों! गणेश का
पूजन ों िकया जाता है? गणं े अ गणा मुिनवरों! दे खो, जो गणों का ामी हो, गण
सं सार म जा कहलाती है, उनका ामी गणपित कहलाता है। आज मुिनवरों! दे खो, हम गणपित
क पूजा करनी है, जस गणपित के पूजा करने से, हमारे दय म ेह आता है, हमारे दय म
मधुरता आती है, हमारे दय म कत क भावना आती है, हमारे दय म रा ीय भावना आती
है। मानो दे खो, यह सब भगवान क पूजा करने से ा होती है। ोंिक परमिपता परमा ा ने
सं सार को एक रा प को िनमा ण िकया है। इसका वाक् तो म कल ही गट कर सकूं गा अ
कार से, पर ु आज का आदे श तो के वल यह उ ारण करता चला जा रहा है। ा हम गणपित
क उपासना करनी चािहए। गणपित का पूजन करना चािहए, हमारे यहाँ मुिनवरों! देखो, गणपित
राजा को भी कहा जाता है। राजा का भी पूजन करना चािहए, ोंिक राजा का पूजन ों िकया
जाता है? राजा के पूजन का अ भ ायः यह नही, ा उसके चरणों को छू आ जाए, राजा के पूजन
का अ भ ायः यह है, ा हम उसके क
े ानों से, बुि मानों से, माताओं से और मेरी पु
पुि यों से राजा को यह ेरणा दे नी चािहए, राजा के दय म, ा हे राजन! मेरी पौ माता को तो
यह अ धकार दे ने चािहए, िक वह हमारा अ धपित है, तू गणेश है, तू राजा है, हमारे ार क तू
र ा कर। पुि यों को रा के ारा, राजा को यह सं दे श दे ना चािहए। हे देव! हे राजन! तू हमारा
राजा है, और हमारे जीवन का उपकार वा व म तो परमा ा के ऊपर है, पर ु कु छ तु ारे ारा
भी है। इसी लए हमारे िवधाता, हमारे जीवन म जो भी मानवता आए, उसका चुनौती आप लेते
रह। मुिनवरों! दे खो, यह सब मानव के लए ही, ा सं सार के रा क र ा, रा के िनयम, रा
के जो भी कु छ अवृि होते ह, वह सब आपके भुजों म इ े अ कार बनाते रहो, यह सब
मुिनवरों! देखो, एक जा का कत होता है, तो इसी परमा ा क उपासना करना, गणेश जी क
उपासना करना, महिषयों ने महान जी ने एक समय ऐसा वणन िकया िक गणेश जी तो महाराज
शव के पु कहलाते ह, और जनके ारा एक हाथी का एक ब त बड़ा मुख उनके अनुसार
प रणत िकया जाता है। मेरे आिद आचाय जनों! महान जी ने मुझे एक समय ऐसा गट
कराया, पर ु इसके साथ साथ म यह वाक् गट करता चला जाऊं, िक दे खो, गणेश जी का
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 13 से 17
बेटा! ऐसा तीत हो रहा है, जैसे आज अयो ा म वाक् उ ारण कर रहे हो बेटा! आज यह आय
वाली वा ों को हम पुनः से का शत करना है। इतना समय आ इस तीक से आज हम इससे
कु छ श ा ा करनी है। जन श ाओं को ले करके हम आज गऊंओं का पालन ा, दीपावली
का पव ा, इनको हम अपने जीवन म धारण कर, और इनको हम अपने जीवन म कु छ न कु छ
अ ाईयों को अपनाते चले जाएं ।
मान सक िवचारों का भाव
महिष जमदि ने जतनी सू ता का प रचय िदया। पर ु वह एक महान सराहनीय है।
जब महिष जमदि क प ी के िवचार देखो, िवचारों म एक महान दे खो, दूिषत ांित आ गई,
दूिषत ांित आ गई, तो अपने पु पर हार कर रहा है, ों? ोंिक उ ोंने कहा िक म अपने
गृह को, म अपने आ म को शमशान भूिम नही बनाना चाहता ँ, म इसको ऋिष क भूिम
बनाना चाहता ँ। मुिनवरों! दे खो, यह उस ऋिष के िवचार ह, ऋिष के िवचार ब त सू ह इसी
कार यिद जाओं के िवचार एक दूसर के न करने वाले हो जाते ह, और एक दूसरे को न
करना, अपने उदर क पूित हो, दूसरा न हो जाएं या कु छ हो, इस कार के िवचार बन जाते ह।
तो ा होता है? यह िवचार जमदि के कथनानुसार, यह िवचार सब अ र म रमण करते ह,
और जब अ र म रमण करते ह, अहा, सूय क िकरण आ करके िमलती ह, जल के परमाणु
जाते ह, अि के ती परमाणु जाते ह, वायु का िमलान होता है, उनका जब आपस म दे वताओं
का, दे वताओं का एक समाज एकि त होता है, और देवताओं के ारा यह मान सक िवचार जाते
ह, दे वता इनको सींचते ह, सींच करके ा होता है? ा दे वता इनके लए, इनके िवचारों को
ि तीय पों म प रणत कर दे ते ह बेटा!। पहले कृ ित के आ मण होते ह, तो िकसी रा म दे खो,
रा ीय सं ाम हो रहा है, तो कहीं मुिनवरों! दे खो, अकाल पड़ रहे ह, कहीं वृि नही होती, वृि
होती है, तो अनावृि होती है। यह सब दे खो, मानव के मान सक िवचारों का आहार और वहार
का फल कहलाता है। यह महिष जमदि का कथन है, महिष जमदि के िवचार बेटा! एक महान
िवचार कहलाए जाते ह, हमारे ऋिष मुिनयों ने महिष जमदि को िवचारधारा म सबसे अ णीय
माना है, अ णीय माना है, कारण ा है? ा उनके िवचार, वह अपनी मान सकता को ऊँचा
बनाने के लए, अपने सू िवचार सं सार को दे ते ह। उन िवचारों का यह प रणाम रहा, ा उनके
वाक् उ ारण करने का आज हम पुनः से सौभा ा हो रहा है।
मेरे आिद आचाय जनों म के वल यह श उ ारण कर रहा था, वह यह ा हम उन सब
पव का वा िवक प-दीपावली,आहार, वहार और िवचार ऊँचा होना चािहए-31 10 1965 प ृ ठ 16 से 17