Mata Ahilyabai Holkar

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1.

भारत में   भूमि पुत्रों एवं पुत्रियों  की अनेक कहानियां  युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए सुनाई
जाती है ।
2. पिछले 1000 वर्ष के पराधीनता काल में भी भारतवर्ष की पावन धरा पर अनेक संत -महात्मा,
महर्षि  और क्रांतिकारी चरित्रवान  मां भारती की संतानों ने जन्म लिया है ,  जिन्होंने अनेक कष्ट 
उठाकर भी  अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की तथा  विकट परिस्थितियों में भी धर्म ध्वजा को
थाम कर रखा।
3. ऐसी ही चरित्र नायिका  माता अहिल्याबाई होलकर थी।  माता अहिल्याबाई होल्कर ने  भारतीय
स्त्रियों में   व्याप्त  चारित्रिक उज्जवलता,   धर्म निष्ठा तथा  सदाचरण की  प्रेरणामयी जीवन शैली
को  प्रगट किया।   उत्तम शासन प्रणाली एवं  सुशासित राज्यव्यवस्था  का श्रेष्ठ उदाहरण दे ने वाली
माता अहिल्याबाई होल्कर का जीवन हम सभी भारतीयों के लिए वंदनीय है ।
4. इंदौर राज्य के  प्रधान पुरुष  मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू थी माता अहिल्याबाई । 
5. माता अहिल्याबाई का जन्म  पूना के पास चौंडा  नामक गांव में हुआ था, एक बार मल्हारराव
होलकर उत्तर भारत की यात्रा से पन
ू ा लौट रहे थे तब चौंडा  गांव में रात्रि हो जाने के कारण वे
एक मंदिर में रुक गए शाम का समय था,  मंदिर में आरती हो रही थी और वहां एक 8 वर्ष की
बालिका भगवान की पूजा करने आई,  उस बालिका के मुख की आभा और तेज को दे खकर 
मल्हारराव ने अपने एकमात्र पत्र
ु खंडरे ाव हे तु उस बालिका का चयन पत्र
ु वधू के रूप में भगवान के
सामने कर लिया और कुछ ही समय पश्चात  अहिल्या का होलकर साम्राज्य में नववधु के रूप में
प्रवेश हुआ।
a. अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली,  पष्ृ ठ- 2 
6. मल्हारराव होलकर  प्रारं भ से राजा नहीं थे,  होल गांव के रहने वाले थे इसलिए होलकर कहलाते
थे,  प्रारं भ में   उनके मामा  पेशवा के क्षेत्र में किसान थे,  माता पिता की मत्ृ यु के पश्चात मामा की
दे खरे ख में ही उनका पालन-पोषण हुआ।  वह परम पुरुषार्थी और महत्वाकांक्षी थे।   उन्होंने अपने
मामा के साथ रहते हुए शीघ्र ही   पास के किले में स्थित मराठा  सैन्य टुकड़ी के सानिध्य में
रहकर घड़
ु सवारी एवं शस्त्र विद्या में निपण
ु ता प्राप्त की और धीरे -धीरे   अपने तेज और प्रताप से  
कुछ ही वर्षों में   पुणे के पेशवा के प्रमुख सैन्य अधिकारी बन गए तथा आगे जाकर आपकी
योग्यता को दे खते हुए आपको मालवा की जागीरदारी दी गयी जिसका विस्तार कर आपने होलकर
साम्राज्य की स्थापना की।
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 16-19 
7. अहिल्याबाई पर शोध करने वाले सर जॉन मालकम  ने  मध्य भारत के क्षेत्र में घम
ू -घम
ू कर उन
लोगों से  अहिल्याबाई के जीवन पर पूछताछ की थी जिन्होंने अहिल्याबाई के साथ समय व्यतीत
किया था अथवा वे अहिल्याबाई के सुशासन के साक्षी रहे थे उनका खुद का कहना था कि उन्होंने
किसी भी व्यक्ति से अहिल्याबाई के बीच में नकारात्मक बात नहीं सन
ु ी अपितु सभी जाति के
लोग उनका नाम बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ लेते थे जो यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त था
कि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने समय में   उच्च कोटि की राजव्यवस्था स्थापित की थी।
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 23-24
8. माता अहिल्याबाई के जन्म को लेकर बहुत अधिक शोध नहीं हुआ परं तु राव बहादरु पारसनीस 
प्रयास के द्वारा उनके जन्म को औरं गाबाद जिले के  बीड़ क्षेत्र के चौंड नामक ईसवी सन 1723
निश्चित किया। उनके पिता मानको जी शिंदे थे। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के कारण यह
बहुत ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाई परं तु ईश्वर के प्रति इतनी निष्ठावान थी कि प्रतिदिन का पूजन
इत्यादि  हो जाने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करती थी।
9. ससुराल में अपनी सास गौतमीबाई और ससुर मल्हारराव के द्वारा इन्हें माता पिता तुल्य प्रेम
दिया गया उनके प्रति वे सदै व श्रद्धा समर्पण और भक्ति से भरी रहती थी।  इनके पति खंडरे ाव
स्वभाव से थोड़े उग्र और  अधिक धन खर्च करने वाले थे उसके बावजद
ू वे अपने पति को संपर्ण

आदर सम्मान के साथ और श्रद्धा के साथ व्यवहार करती थी। 
10. घर गह
ृ स्थी  के सभी कार्यों  का कुशलतापूर्वक संपादन करना,  सास ससुर की सेवा करना तथा
अपने पति को भी  प्रसन्न रखने का कार्य व पूरे मनोयोग से करती थी।   रात्रि में   सब के बाद
सोना और सुबह सबसे पहले उठकर दै निक कर्मों से निवत्ृ त होकर भगवान का पूजन कथा श्रवण
तथा दान इत्यादि दे ने के बाद ही उनकी आगे की दिनचर्या प्रारं भ होती थी। 
11. ईश्वर की असीम कृपा से 1745 में इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम इन्होंने  मालेराव
रखा,  वर्ष 1748 में एक पुत्री  रत्न की भी प्राप्ति हुई जिसका नाम मुक्ताबाई रखा गया।
12. कहा जाता है कि खंडरे ाव का मन राजकार्य में नहीं लगता था परं तु   अहिल्याबाई के अच्छे
व्यवहार और  शास्त्रों और पुराणों के  दृष्टांत दिए जाने पर धीरे -धीरे खंडरे ाव का मन परिवर्तित हो
गया और वह अपने पिता के साथ राज कार्य में रूचि लेने लगे।
13. सर जॉन मालकम  ने एक जगह लिखा है कि  कि जब भी मल्हारराव होलकर  किसी आवश्यक
कार्य से राज्य से बाहर रहते थे तब राज्यव्यवस्था  की अनेक जिम्मेदारियां अहिल्याबाई दे खती थी
जिसके कारण धीरे -धीरे उनमें राज्य व्यवस्था का दायित्व संभालने का गण
ु   विकसित हो गया।
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 30
14. खंडरे ाव अब मल्हारराव के साथ यद्ध
ु पर जाने लगे थे,  ऐसे ही एक युद्ध में भरतपुर के पास वे
वीरगति को प्राप्त हो गए।  अपने एकमात्र पत्र
ु खंडरे ाव की मत्ृ यु से मल्हारराव भी  अत्यंत दख
ु ी
हुए। पति की मत्ृ यु के पश्चात अहिल्याबाई विक्षिप्त सी हो गई और उन्होंने पति की चिता के
साथ स्वयं को  सती करने का निर्णय ले लिया,  किं तु मल्हारराव ने अपनी वद्ध
ृ ावस्था का  एकमात्र
सहारा अहिल्याबाई को बताते हुए कहा कि अब इस राज्य का और हमारा कोई और नहीं है , 
खंडरे ाव नहीं रहा  तो इस राज्य का कौन  सहारा होगा।
15. मल्हारराव ने किसी प्रकार से अहिल्याबाई को मनाया कि वे सती न हो और अब इस राज्य की
दे खभाल करना ही अपना धर्म समझें।अहिल्याबाई ने इसे ही अपना कर्तव्य समझकर से स्वीकार
किया और उसके पश्चात राज्य व्यवस्था  का संचालन अपनी सूझबझ
ू   से निष्ठा पूर्वक करने
लगी।  उनकी व्यवहार कुशलता एवं उच्च आचरण को दे खते हुए  राज्य के सभी सामंत गण एवं
सामान्य नागरिक सभी उनका बहुत आदर सम्मान करते थे और अपनी ओर से हर प्रकार का
सहयोग भी करते थे। 
16. अहिल्याबाई रामायण महाभारत और पुराण इत्यादि धर्म शास्त्रों का गंभीरता से अध्ययन करती
थी।  यही कारण था कि  शास्त्रोक्त   सदाचरण और उच्च जीवन मूल्य  उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट
कर भरे थे। ईश्वर में आस्था रखते हुए उन्होंने लगभग 30 वर्षों तक होलकर साम्राज्य का
सुशासन अपने निर्देशन में किया।
17. कुछ समय के पश्चात मल्हारराव होलकर का भी निधन हो गया जो अहिल्याबाई के लिए एक 
आघात था। अहिल्याबाई होल्कर ने अपने धर्म पिता के लिए  उनकी स्मति
ृ में एक छतरी का
निर्माण कराया। 
18. वे मल्हारराव के निर्देशन में राज कार्य की व्यवस्था तो दे खती थी परं तु   अंत:परु में ही वास करती
थी। मल्हारराव के निधन के पश्चात उन्हें राज्य के  क्रियाकलाप के लिए घर से बाहर भी आना
पड़ा।  उन्होंने मालेराव  को  राजगद्दी पर बैठा दिया,  परं तु वह स्वभाव से उग्र और चंचल था । बाद
में वह इतना दरु ाचारी और अत्याचारी हो गया कि प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी और अहिल्याबाई
होलकर भी दख
ु ी रहने लगी।  अनेक प्रकार से समझाने के बाद भी मालेराव का व्यवहार न बदला।
कुछ समय पश्चात मालेराव का भी आकस्मिक दे हांत हो गया। कुछ दष्ु ट प्रवत्ति
ृ के लोगों ने यह
भी प्रचारित किया  कि स्वयं अहिल्याबाई होल्कर ने ही अपने दरु ाचारी पुत्र की हत्या करा दी थी, 
परं तु  सर जॉन मालकम  ने  इस बात को पूरी तरह से नकार दिया  है ।
19. किं तु यदि इस बात में जरा सच्चाई होती तो भी यह अपने आप में एक अनप
ु म उदाहरण होता
कि अपनी प्रजा  के हित के लिए एक रानी ने अपने पुत्र की  मत्ृ यु चाहने में भी  दे री  नहीं की। 
किसी भी माता के लिए उसका पुत्र कुपुत्र ही क्यों न  हो उसकी मत्ृ यु की कल्पना भी अत्यंत
दख
ु दाई होती है ।
20. पुत्र की मत्ृ यु के पश्चात अहिल्याबाई एक प्रकार से अकेली हो गई,  उस समय का लाभ उठाकर 
गंगाधर राव जो मल्हारराव होलकर का दमाद था  उसने परू ी तरह से प्रयास किया  कि राज्य को
अपने हाथ में ले लिया जाए।   किं तु अहिल्याबाई जानती थी कि वह एक स्वार्थी  और लालची
व्यक्ति है ,  उसके हाथों में राज्य की बागडोर दे ना प्रजा के हित में नहीं होगा इसलिए  उन्होंने
राज्य की व्यवस्था को अपने ही हाथों में रखा। 
21. इस बात से गंगाधर चिढ  गया और उसने  पुणे  में   राघोबा  के पास  सूचना भेज दी कि
अहिल्याबाई के हाथों में राज्य सुरक्षित नहीं है और वह राज कार्य को अच्छी प्रकार से व्यवस्थित
ढं ग से चला  पाने में असमर्थ हैं।   उसने राघोबा से कहा कि आप मुझे राज कार्य चलाने का
अनुमोदन कर दें ,  और  राघोबा  गंगाधर के समर्थन में आ गए और उन्होंने अहिल्याबाई को संदेश
भेजा कि राज्य कार्य की व्यवस्था गंगाधर राव को दे दी जाए।
22. अहिल्याबाई  राजकार्य में   कुशल थी,  साथ ही साथ में एक  विदष
ु ी महिला भी थी,  उन्होंने राघोबा
को प्रत्युत्तर में   एक ऐसा पत्र लिखा जिसे पढ़कर  राघोबा को पूर्ण विश्वास हो गया  अहिल्याबाई 
एक योग्य एवं समझदार प्रशासिका हैं, किं तु उनके मन में भी मालवा के राज्य को हड़पने का 
लोभ  उत्पन्न हो चुका था,  वह गंगाधर का बहाना लेकर  उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
जब गंगाधर राव की यह युक्ति काम न  आई।  कुपित होकर उसने अहिल्याबाई पर  अपने ही पुत्र
मालेराव  की हत्या का आरोप भी  लगाया,  यह अहिल्याबाई के लिए बहुत पीड़ादायी था परं तु
अहिल्याबाई ने अपने प्रभु समर्पण एवं ईश्वरीय भक्ति के माध्यम से धैर्य बनाए रखा।  
23. माले राव की मत्ृ यु के पश्चात राज्य में चोर लुटेरों और डकैतों का  बोलबाला बढ़ने लगा था,  कुछ
लालची सामंत भी  धन के लालच में   उनका सहयोग कर दे ते थे।  प्रजा को इस दख
ु से  छुटकारा
दिलाने के लिए अहिल्याबाई ने अपने दरबार में यह घोषणा की कि जो भी  यव
ु क  अपने अदम्य
साहस से  प्रजा को इन चोर लुटेरों और डकैतों से मुक्ति दिलाएगा मैं अपनी पुत्री का विवाह उससे
कर दं ग
ू ी। इस कार्य को करने के लिए एक मराठा नवयुवक ने अपनी सहमति दी और  2 वर्षों के
कठिन परिश्रम  और शौर्य का परिचय दे ते हुए  अहिल्याबाई की संतान समान प्रजा को  चोर लट
ु े रों
और डकैतों से  मुक्त कर दिया। इस युवक का नाम यशवंतराव फाणशे   था। अपने वचन का
पालन करते हुए अहिल्याबाई होल्कर ने अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह यशवंतराव के साथ कर
दिया।   अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 53
24. राघोबा मालवा पर अपना आधिपत्य करना चाहते थे उन्होंने अपने सामंतों और सरदारों को
मालवा पर आक्रमण करने हे तु आदे श दे दिया और जब गप्ु त चरणों के माध्यम से यह सच
ू ना
अहिल्याबाई को मिली तो अहिल्याबाई ने भी अपने मंत्रियों सामंतों और सरदारों को गुप्त मंत्रणा
के लिए आमंत्रित किया। अहिल्याबाई के प्रति पूरी श्रद्धा और निष्ठा रखने वाले उनके मंत्रियों और
सामंतों ने उनको विश्वास दिलाया कि उनके जीवित रहते मालवा में कोई प्रवेश नहीं कर पाएगा।
आपत्ती के इस समय में अहिल्याबाई ने दरू दर्शिता दिखाते हुए गायकवाड भोंसले इत्यादि
आसपास के राजाओं को राघोबा जी की  उनके राज्य को हड़पने की नीति के प्रति  पत्र के माध्यम
से बताया और सहायता मांगी।  यद्ध
ु के समय पर स्वयं भी यद्ध
ु की पोशाक पहनकर शस्त्रों से
सुसज्जित होकर अपने इष्ट दे व  का पूजन अर्चन कर युद्ध पर जाने को तैयार  हो गई। 
यद्ध
ु प्रयाण करने से पहले  उन्हें पण
ु े के पेशवा की ओर से पत्र मिला कि वे उनके साथ
हैं,  राघोबा जैसे दष्ु टों को सबक सिखाना ही चाहिए,  साथ ही साथ भोंसले की सेना भी सहायता
के लिए नर्मदा के तट पर आ खड़ी हुई।  यह सब दे खकर अहिल्याबाई का साहस बढ़ गया और
उसने परमात्मा को कोटिश: नमन किया। 
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 54 
25. जब गंगाधर राव ने अहिल्याबाई होल्कर की  यद्ध
ु की तैयारी  और सेना का प्रबंधन दे खा,  साथ ही
साथ अहिल्याबाई की सहायता के लिए  दस
ू रे राजाओं की सेनाओं को तैयार दे खा तो उसके होश
उड़ गए,  उसने कभी ऐसी कल्पना ना की थी कि  अहिल्याबाई एक स्त्री होते हुए यद्ध
ु का प्रबंधन
इस प्रकार से कर  लेंगी। उसने शीघ्र राघोबा जी को यह सच
ू ना भेज दी।   अंततः  अहिल्याबाई के
विश्वसनीय सेनापति तुकोजीराव ने  अपनी कुशल रणनीति  और कूटनीति से राघोबा को  यद्ध

करने  की नीति को  त्यागने को विवश कर दिया। राघोबा यद्ध
ु का विचार त्याग कर मालेगांव की
मत्ृ यु पर शोक प्रकट करने अहिल्याबाई से मिलने इंदौर जा पहुंचे।  उनके इंदौर पहुंचने पर
अहिल्याबाई ने उनका बहुत आदर सत्कार किया जिससे राघोबा  अहिल्याबाई के प्रति सम्मान से
भर उठे । 
26. अब गंगाधर की स्थिति  ऐसी थी कि वह ना इधर का था और ना ही उधर का, पेशवा ने उनको
एक किले में नजरबंद कर दिया था,  पेशवा की मत्ृ यु के पश्चात जब राघोबा ने  शासन की
बागडोर अपने हाथ ली तब उसे किले   के कारागह
ृ से मुक्ति मिली। अहिल्याबाई होलकर: गोविंद
राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 67
27. तक
ु ोजीराव ,मल्हारराव होलकर के समय से ही  राज्य के हितेषी थे और अहिल्याबाई को  मातव
ृ त
ृ  
सम्मान दे ते थे,  तुकोजीराव के साथ मिलकर अहिल्याबाई ने अपने प्रशासन और राज्य व्यवस्था
को और सुदृढ़ किया । 
28. अहिल्याबाई के शासनकाल में होलकर साम्राज्य में सभी लोग मराठी ही बोला करते थे और
मराठी ही राजभाषा थी।
29. यह अहिल्याबाई होलकर की तेजस्विता ही थी कि उनके राज्य के आसपास रहने वाले चोर लुटेरे
डकैत दसू रे राजाओं के लिए सरदर्द बने हुए थे लेकिन  उनका कभी एहसास ना हुआ कि वह
अहिल्याबाई होलकर के साम्राज्य की ओर आंख उठाकर दे ख ले।  यशवंतराव,  तुकोजी  होलकर और
अहिल्याबाई  की राज्य व्यवस्था  तत्कालीन राज्य व्यवस्था में अत्यंत सदृ
ु ढ़ थी।  एक विधवा स्त्री
होते हुए भी उन्होंने स्वयं को कभी निर्बल और  अबला  सिद्ध नहीं होने दिया और विकट से विकट
परिस्थितियों का डटकर सामना किया।
30. उनकी दिनचर्या अत्यंत व्यस्त परं तु सरल थी।  यह सवेरे  प्रभु का भजन और पज
ू न आराधना
करने के पश्चात  अपने महल के बाहर एकत्र  गरीब लोगों को  दान दिया करती थी और उसके
पश्चात  उनके भोजन की व्यवस्था करती थी उसी के बाद वे स्वयं भोजन ग्रहण करती थी।  
भोजन करने के पश्चात वे साधारण वेश में अपने दरबार में उपस्थित होती जहां राज कार्य से
संबंधित दायित्व का निर्वहन करती और सायंकाल दरबार को विसर्जित करती। सायंकाल में पुन :
भगवद  भक्ति एवं पज
ू न अर्चन करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करती और रात्रि में अपने
विश्वसनीय मंत्रियों और सामंतों के साथ विशेष बैठक करती जिसमें राज्य की आय व्यय और
अन्य  आवश्यक मामलों पर चर्चा होती।  रात्रि 11:00 बजे वह अपने शयनकक्ष में विश्राम करने
जाती।
अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 79
31. एक राज्य की रानी होते हुए भी उनका जीवन बड़ा सरल और सादा था,  धर्म परायण जीवन और
परमार्थ  उनकी विशिष्टता थी।  यह सभी प्रकार के उपभोग  एवं रानी के विलास  से संबंधित
व्यवहार से बहुत दरू थी। शास्त्रों अनुकूल नियमों का पालन करते हुए वे अपना राज्य कार्य
चलाती थी और अपना जीवन भी। 
32. अहिल्याबाई ने जब शासन संभाला था तब इंदौर एक छोटा सा नगर था परं तु उनके सुशासन से
इंदौर एक विकसित नगर हो गया जहां दरू -दरू से व्यापारी अपना व्यापार करने आने लगे थे।
अहिल्याबाई की यह व्यवस्था दी थी कि बाहर से आए हुए व्यापारियों को भी प्रत्येक प्रकार की
सुविधाएं मिले और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट ना हो और व्यापार में उन्हें   उचित लाभ भी हो।
अपने राज्य की वाणिज्य  प्रबंधन के लिए उनका सुशासन उत्कृष्ट उदाहरण है । 
33. तत्कालीन शासन प्रणाली में ऐसी परं परा थी कि यदि किसी धनवान व्यक्ति की मत्ृ यु हो जाए
और  उसकी कोई संतान ना हो तो उसकी संपत्ति पर राज्य का अधिकार हो जाता था,  परं तु
अहिल्याबाई ने अपने समय में   ऐसे धनवान व्यक्तियों की विधवाओं को अपनी संपत्ति को धर्म
कार्य में लगाने हे तु प्रेरित किया।
34. अहिल्याबाई होल्कर के समय में भील जनजाति के लोगों का व्यापारियों के लिए बड़ा आतंक था, 
वे मार्ग में व्यापारियों को लूट लेते थे और उन पर कर भी लगाते थे।   अहिल्याबाई होल्कर को
जब यह पता लगा तो उन्होंने   भील सरदारों को समझाना चाहा किं तु जब भी नहीं समझे तो
कठोरता पर्व
ू क कार्रवाई कर उन्हें दं ड दिया,  उनके क्षमा मांगने पर  अहिल्याबाई ने उनके लिए
कृषि और अन्य श्रम की व्यवस्था की तथा उन्हें राज्य की मुख्य धारा में सम्मिलित होने का
अवसर दिया।  तब भील जनजाति ने  लूटमार का काम छोड़कर  कृषि और खेती में   अपना
जीविकोपार्जन  अहिल्याबाई के सानिध्य में करना प्रारं भ किया।
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 85 
35. अपने कार्यकाल में अहिल्याबाई होल्कर ने राज्य के दत
ू आसपास के राज्यों के दरबार में नियक्
ु त
किए हुए थे,  यह उनकी कुशलता ही थी कि आसपास के राज्यों के साथ किस प्रकार से वार्तालाप
को संवाद बना रहे उसकी व्यवस्था उन्होंने सुचारू रूप से की थी।
36. वे बड़े साम्राज्य, बड़ी सेना की अपेक्षा धर्म यक्
ु त साम्राज्य में विश्वास रखती थी और धर्म को ही
सबसे बड़ी शक्ति स्वीकार करती थी। अपने राज्य की विंध्याचल  पर्वत श्रेणी में उन्होंने अनेक
सड़कें धर्मशालाएं कंु ए और बावड़िया बनवाई थी। उन्होंने स्वयं   को राज्य और धर्म के प्रति
समर्पित किया हुआ था और वे स्वयं को ईश्वर के निमित्त के रूप में दे खती थी। 
37. धर्म कार्य के प्रति उनकी श्रद्धा इतनी थी कि उन्होंने अपनी राज्य की सीमा से बाहर दरू -दरू के
दे वालयों मंदिरों आदि की  पन
ु र्स्थापना,  मरम्मत एवं नव निर्माण इत्यादि कराया था और उसकी
आगे के संचालन हे तु धन की व्यवस्था भी सुनियोजित  रूप से की थी।  हिमालय क्षेत्र में अनेक
दे वालयों  के निर्माण का श्रेय माता अहिल्याबाई होल्कर को जाता है । 
38. गर्मियों में किसानों और प्रतीकों के लिए ठं डे पेयजल की व्यवस्था हे तु प्याऊ,  दक्षिण के मंदिरों में
गंगाजल  पहुंचाने हे तु  राज्य को से कावड़ व्यवस्था,  सर्दियां प्रारं भ होने से पूर्व गरीबों के लिए गर्म
कपड़ों के वितरण की व्यवस्था जैसी अनेक समाज कल्याण से जुड़ी परं परागत  व्यवस्थाओं को
उन्होंने पुनर्जीवित किया और उनके स्थाई रूप संचालन हे तु धन की व्यवस्था करने में वह कदापि
पीछे ना रहती थी। 
39. मनष्ु य के साथ-साथ पशओ
ु ं और पक्षियों  और पर्यावरण के लिए भी उनके शासनकाल में   अच्छी
व्यवस्था थी।   कुछ पकी फसल के खेतों को  खरीद कर पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता था और
उसका  धन  राजकोष दिया जाता था।अपने धन का एक बड़ा भाग रहे इस प्रकार से वह करती थी
जो अनेक लोगों को हास्यास्पद लग सकता है परं तु उनके शासन का आधार धर्म था और
भारतीय धर्म शास्त्रों में लिखे गए प्राणी मात्र के प्रति सद्भाव की भावना से प्रेरित होकर भी इस
प्रकार के कार्यों को भी करती थी। 
a. अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम जोशी, पष्ृ ठ - 89
40. अहिल्याबाई होल्कर के जीवन की एक बड़ी ही रोचक घटना है ।   कहा जाता है कि एक बार 
राघोबा को धन की आवश्यकता पड़ी और उन्होंने अहिल्याबाई से   धन दे ने का प्रस्ताव रखा, 
अहिल्याबाई अपने धन को भगवान को समर्पित कर चुकी थी और धर्म कार्य और राज्य कार्य के
अतिरिक्त  वे धन को इस प्रकार से दे ना नहीं चाहती थी उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया और
राघोबा को कहला भेजा  कि यह धन धर्म कार्य के लिए है इसे इस प्रकार तो आपको ना दिया
जाएगा,  आप ब्राह्मण हैं और यदि आप दान लेना चाहें गे तो  दान के रुप में आपको यह धन
दिया जा सकता है ।  यह सब सुनकर राघोबा अत्यंत कुपित हो गए  और उन्होंने  अपनी सेना
सहित अहिल्याबाई के राज्य पर आक्रमण कर दिया,  परं तु उन्होंने दे खा कि  सामने की सेना में
कोई भी पुरुष ना था सभी महिलाएं थी और स्वयं अहिल्याबाई उनका नेतत्ृ व कर रही थी।  
राघोबा की सेना ने स्त्रियों पर शस्त्र चलाने से मना कर दिया,  स्वयं राघोबा भी  ऐसा नहीं करना
चाहते थे उन्होंने अहिल्या से पूछा कि तुम्हारी सेना कहां है तब अहिल्याबाई ने उत्तर दिया कि
हमें हमारा राज्य   पेशवा की  होलकरों पर अनुकंपा से ही मिला है   इसलिए यहां की सेना आपके
विरुद्ध कैसे खड़ी कर सकते थे।   आपको धन चाहिए आप मेरी हत्या करके धन प्राप्त कर सकते
हैं।धर्म के लिए एकत्र धन की में प्राण दे कर भी रक्षा करूंगी।
a. राघोबा लज्जित होकर वापस लौट गए। अहिल्याबाई होलकर: गोविंद राम केशव राम
जोशी, पष्ृ ठ - 95
41. अहिल्याबाई होल्कर का धर्म परायण जीवन  सत्य सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए सदा समर्पित
रहा।  उन्होंने भारत वर्ष के लगभग सभी प्रमुख तीर्थ स्थानों पर मंदिर  दे वालय भवन आदि का
निर्माण मरम्मत, धर्मशालाओं का निर्माण मरम्मत और बावरियों, जलाशय और नदियों के घाट
इत्यादि का निर्माण मरम्मत कराया।राज्य की 85 का होते हुए भी उनका जीवन एक तपस्विनी
की भांति पवित्र और प्रेरक था।  वे अपनी प्रजा के लिए वत्सलमई माता थी।
42. उन्होंने अपने जीवन में अपनों की मत्ृ यु का बड़ा ही कष्ट दे खा,  अपनी पिता तुल्य ससुर,  अपने
पति,  पुत्र,   अपनी पुत्री के पुत्र,  और उसके वियोग में जामाता का निधन तथा जामाता के साथ 
बहुत समझाने के बाद भी पत्र ु ी का सती हो जाना  जैसी अनेक घटनाएं थी जो एक सामान्य
मनष्ु य को  तोड़ कर रख दे ती है और वह जिजीविषा कुछ और आत्महत्या कर  लेता है ,  परं तु
अहिल्याबाई होल्कर ने अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों से  मुंह नहीं मोड़ा,  उन्होंने  सभी प्रकार के दख
ु ों
और विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए धर्म का परू ी तरह से आचरण किया और अपने
कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ किया। आपके शिष्टाचार पर्ण
ू व्यवहार एवं परमार्थ के
लिए किए गए धर्म कार्यों से प्रभावित होकर आपके शत्रु भी आप का सम्मान करते थे।
43. राजमिस्त्री शिल्पी कारीगर साहित्यकार इत्यादि  विभिन्न विशेषज्ञों को अहिल्याबाई होलकर के
राज्य में आश्रय  मिलता था,  ब्राह्मणों एवं विद्वानों को आदर सत्कार दिया जाता था।  गरीब और
दलित जैन भी अभय होकर  दान प्राप्त करते थे। 
44. अपनी धार्मिक प्रवत्ति
ृ के कारण आपका निवास  नर्मदा जी के  सुरम्य तट पर महे श्वर में स्थित
था,यह वही महे श्वर है जिसको महाभारत काल में महिष्मति कहा जाता था और जो आज भी
ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ।  अहिल्याबाई के कारण से निर्जन
पड़े महे श्वर को पन
ु र्जीवन मिला और उन्होंने यहां पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया और उसके
प्राचीन भव्य स्वरूप को पन
ु र्स्थापित किया। 
45. विशिष्ट बात यह है कि उनका स्वयं का निवास स्थान एक सामान्य नागरिक की भांति दो
मंजिले भवन के रूप में है ।  एक वैभव संपन्न साम्राज्य की स्वामिनी होने के बावजूद भी उनकी
सरलता सादगी और आध्यात्मिकता ने सरल और  सादगी पर्ण
ू जीवन  का जो उदाहरण प्रस्तत

किया वह आज भी उनके निवास स्थान को दे खने से हमारी आंखों के सामने उजागर हो जाता
है । भारत की आत्मा और  सत्य सनातन धर्म के दर्शन को उनका यह निवास स्थान  साक्षात्कार
कराता है । उन्होंने अपने जीवन के 30 वर्ष  महे श्वर में ही व्यतीत किए  जहां उनका अधिकांश
समय पूजन अर्चन में ही व्यतीत होता था।   नर्मदा तट पर उन्होंने तुलसीवन भी  निर्मित कराया
था।  उनकी मत्ृ यु के पश्चात उनकी स्मति
ृ में   एक छतरी का निर्माण किया गया जिसमें
तत्कालीन समय में 1 करोड़  रुपए से अधिक  धन व्यय किया गया था।  आज भी वह छतरी  माता
अहिल्याबाई होल्कर जैसी मातश
ृ क्ति को प्रणाम करती हुई अखंड रूप से विराजमान है । 
46. शिवभक्त अहिल्याबाई होल्कर का धार्मिक जीवन  भारतीय हिंद ू जीवन शैली और हिंद ू परं पराओं 
के  निष्ठा पूर्वक पालन करने का  अनुपम उदाहरण है । भगवान के प्रति ऐसी श्रद्धा थी कि राज्य
कार्य से संबंधित सभी  पत्रको पर अपने हस्ताक्षर के स्थान पर वे श्री शंकर लिखती थी। उनके
राज्यों में सभी पंथों  संप्रदायों समद
ु ायों को मानने वालों यहां तक कि मस्लि
ु म समद
ु ाय को भी
पूरा संरक्षण प्राप्त था। वे स्वयं भगवान शिव के उपासक थी परं तु उन्होंने पूरे भारतवर्ष में  
भगवान विष्णु भगवान श्री कृष्ण  एवं दे वी के मंदिरों का निर्माण तथा मरम्मत करवाई।  सनातन
हिंद ू धार्मिक सहिष्णुता का वे  प्रतिमान थी। अहिल्याबाई का जीवन भारतीय  आदर्श नारी का
श्रेष्ठतम उदाहरण है । 
a. अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बक
ु ट्रस्ट नई दिल्ली,  पष्ृ ठ- 42
47. भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का संरक्षण करके उन्होंने राष्ट्र के प्रति अपने
उत्तरदायित्व का पालन किया,  मुस्लिमों द्वारा तोड़े गए मंदिरों एवं अन्य धर्म स्थलों को  माता
अहिल्याबाई ने अपने प्रयासों से  पन
ु ः प्रतिष्ठित किया, धर्म शास्त्रों का लेखन वाचन करने के
लिए विद्वानों को  आश्रय दिया और महे श्वर  को जीवंत मंदिर बना दिया जहां  प्रातः काल से
सायंकाल तक वेद मंत्रों और धर्म शास्त्रों की धनी गूंजती रहती थी घंटे घड़ियाल और कीर्तन 
इत्यादि होते रहते थे।  पुस्तकों को हाथ से लिखे जाने की परं परा थी इसलिए धर्म शास्त्रों की
अनेक प्रतिलिपि या तैयार करने के लिए भी उन्होंने ब्राह्मणों को नियक्
ु त किया था  जिन्हें
वेअच्छा पारिश्रमिक दिया करती थी।  इन प्रतिनिधियों को योग्य विद्वानों को दान में दे दिया
जाता था। उनके काल में समस्त भारत से विद्वान   ब्राह्मण और कुशल कारीगर  आकर  दान
दक्षिणा ग्रहण करते थे। 
a. अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बक
ु ट्रस्ट नई दिल्ली,  पष्ृ ठ- 51
48. सभी प्रकार के प्रशासनिक एवं  निर्माण इत्यादि से संबंधित कार्यों के लिए वि विवेकशील,
सत्यनिष्ठा  से युक्त योग्य व्यक्ति को ही  नियुक्त करती थी।  गुप्त वचनों के माध्यम से उनकी
कार्यप्रणाली और गतिविधियों की जानकारी भी लेती रहती थी किसी भी प्रकार का दोष सिद्ध होने
पर बिना केवल उसकी सेवा समाप्त कर दी थी अपितु   दोष एवं  भ्रष्ट आचरण के अनुसार दं ड
दे ने का भी विधान था।अहिल्याबाई होल्कर के काल में डाक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती थी
और दे श के प्रत्येक भाग में   अहिल्याबाई  के द्वारा स्थापित राजदत
ू गुप्तचर विभाग इत्यादि तक 
सूचनाओं का आदान-प्रदान सरलता से होता था।  युद्ध की स्थिति में   यह और अधिक सक्रिय हो
जाती थी। 
a. अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली,  पष्ृ ठ- 84
49. प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर 40 से अधिक मंदिरों में गंगाजल के द्वारा अभिषेक की स्थाई
व्यवस्था कराने का श्रेय भी माता अहिल्याबाई होल्कर को जाता है । यह जल गंगोत्री से लाया
जाता था। मां गंगा को हिंद ू धर्म में विशिष्ट स्थान दिया जाता है ,  गंगाजल को गंगोत्री से दे श के
विभिन्न तीर्थ स्थानों तक पहुंचाने  का   कार्य राष्ट्रपति सांस्कृतिक समरसता एवं एकता को ध्यान
में रखते हुए बहुत महत्वपूर्ण कार्य था।समाज के हित के लिए किए जाने वाले कार्यों को उन्होंने
पूरी तरह से राज्य पर निर्भर नहीं रखा अभी तो इसके लिए व्यवस्थापक निश्चित किए और वंश
परं परा के अनस
ु ार उन्हीं को व्यवस्था किए जाने की  श्रेष्ठ योजना भी बनाई। 
a. अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली,  पष्ृ ठ- 72 - 73
50. जब तक वे जीवित रही  उन्होंने अपना की संपूर्ण सामर्थ्य अपनी प्रजा  की प्रसन्नता और  धर्म
कार्यों के विधिवत संपादन हे तु लगाई।  13 अगस्त 1795   को इस महान आत्मा का शरीर
पंचतत्व में विलीन हो गया। तत्कालीन भारतीय समाज में स्त्रियों की जो स्थिति थी उसको दे खते
हुए अहिल्याबाई होल्कर ने एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया और न केवल राज्य व्यवस्था को
सुचारू रूप से चलाया अपने शत्रओ
ु ं से अपने राज्य की कूटनीति के द्वारा सुरक्षा भी की और
आवश्यकता होने पर रणक्षेत्र में भी शस्त्र धारण कर रणचंडी का रूप भी धारण किया।  ऐसी
अद्भत
ु और विशिष्ट व्यक्तित्व वाली  भारत की मात ृ शक्ति की प्रतीक दे वी अहिल्याबाई होल्कर
को शत-शत नमन है । 
51.

a. माता अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित दे वालय आदि ……..


b. स्रोत : अहिल्याबाई होलकर:  हीरा लाल वर्मा,  नेशनल बक
ु ट्रस्ट नई दिल्ली
c.
d.
e.
52.

53.

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