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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ श्री शिव चालीसा ॐ

ॐ हिन्दी अनुवाद सहित,आरती और पूजा िवि ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ श्री शिव चालीसा हिन्दी अनुवाद सहित ॐ

ॐ ॐ

।। दोहा ।।
ॐ ॐ
श्री गणेश गगरिजा सुवन, मं गल मूल सुजान।

IN
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय विदान॥
ॐ ॐ

F.
अर्थ: हे गगरिजा पुत्र भगवान श्री गणेश आपकी जय हो। आप
मं गलकािी हैं, गवद्वता के दाता हैं, अयोध्यादास की प्रार्थना है प्रभु गक
D
ॐ आप ऐसा विदान दें जजससे सािे भय समाप्त हो जांए। ॐ
AP

ॐ ॐ
ST

|| श्री जशव चालीसा चौपाई ||


IN

ॐ जय गगरिजा पगत दीन दयाला। सदा कित सन्तन प्रगतपाला॥ ॐ


भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कु ण्डल नागफनी के ॥
ॐ ॐ
अर्थ: हे गगरिजा पगत हे, दीन हीन पि दया बिसाने वाले भगवान जशव
आपकी जय हो, आप सदा सं तो के प्रगतपालक िहे हैं। आपके मस्तक

पि छोटा सा चं द्रमा शोभायमान है, आपने कानों में नागफनी के कुं डल ॐ
डाल िखें हैं।

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

अंग गौि जशि गं ग बहाये। मुण्डमाल तन छाि लगाये॥


ॐ वस्त्र खाल बाघम्बि सोहे। छगव को देख नाग मुगन मोहे॥ ॐ

अर्थ: आपकी जटाओं से ही गं गा बहती है, आपके गले में मुं डमाल ॐ

(माना जाता है भगवान जशव के गले में जो माला है उसके सभी शीष
देवी सती के हैं, देवी सती का 108वां जन्म िाजा दक्ष प्रजापगत की
ॐ पुत्री के रुप में हुआ र्ा। जब देवी सती के गपता प्रजापगत ने भगवान ॐ
जशव का अपमान गकया तो उन्ोंने यज्ञ के हवन कुं ड में कु दकि अपनी

IN
जान दे दी तब भगवान जशव की मुं डमाला पूणथ हुई। इसके बाद सती ॐ

ने पावथती के रुप में जन्म जलया व अमि हुई) है। बाघ की खाल के
F.
वस्त्र भी आपके तन पि जं च िहे हैं। आपकी छगव को देखकि नाग भी
D
ॐ आकगषथत होते हैं। ॐ
AP

मैना मातु की ह्वै दुलािी। बाम अंग सोहत छगव न्यािी॥ ॐ



ST

कि गत्रशूल सोहत छगव भािी। कित सदा शत्रुन क्षयकािी॥


IN

ॐ अर्थ: माता मैनावं ती की दुलािी अर्ाथत माता पावथती जी आपके बांये ॐ


अंग में हैं, उनकी छगव भी अलग से मन को हगषथत किती है, तात्पयथ है
गक आपकी पत्नी के रुप में माता पावथती भी पूजनीय हैं। आपके हार्ों
ॐ ॐ
में गत्रशूल आपकी छगव को औि भी आकषथक बनाता है। आपने हमेशा
शत्रुओ ं का नाश गकया है।
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

नजि गणेश सोहै तहँ कै से। सागि मध्य कमल हैं जैसे॥
ॐ कागतथक श्याम औि गणिाऊ। या छगव को कगह जात न काऊ॥ ॐ

अर्थ: आपके सागनध्य में नं दी व गणेश सागि के बीच जखले कमल के ॐ



समान गदखाई देते हैं। कागतथकेय व अन्य गणों की उपस्थिगत से
आपकी छगव ऐसी बनती है, जजसका वणथन कोई नहीं कि सकता।
ॐ ॐ

IN
देवन जबहीं जाय पुकािा। तब ही दुख प्रभु आप गनवािा॥
ॐ गकया उपद्रव तािक भािी। देवन सब गमजल तुमगहं जुहािी॥ ॐ

F.
D
अर्थ: हे भगवन, देवताओं ने जब भी आपको पुकािा है, तुिंत आपने
ॐ ॐ
उनके दुखों का गनवािण गकया। तािक जैसे िाक्षस के उत्पात से
AP

पिेशान देवताओं ने जब आपकी शिण ली, आपकी गुहाि लगाई।


ॐ ॐ
ST
IN

तुित षडानन आप पठायउ। लवगनमेष महँ मारि गगिायउ॥ ॐ



आप जलं धि असुि सं हािा। सुयश तुम्हाि गवगदत सं सािा॥

ॐ अर्थ: हे प्रभू आपने तुिंत तिकासुि को मािने के जलए षडानन (भगवान ॐ


जशव व पावथती के पुत्र कागतथकेय) को भेजा। आपने ही जलं धि
(श्रीमद्देवी भागवत् पुिाण के अनुसाि भगवान जशव के तेज से ही
ॐ ॐ
जलं धि पैदा हुआ र्ा) नामक असुि का सं हाि गकया। आपके
कल्याणकािी यश को पूिा सं साि जानता है।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

गत्रपुिासुि सन युद्ध मचाई। सबगहं कृ पा कि लीन बचाई॥


ॐ गकया तपगहं भागीिर् भािी। पुिब प्रगतज्ञा तसु पुिािी॥ ॐ

अर्थ: हे जशव शं कि भोलेनार् आपने ही गत्रपुिासुि (तिकासुि के तीन ॐ



पुत्रों ने ब्रह्मा की भगि कि उनसे तीन अभेद्य पुि मांगे जजस कािण
उन्ें गत्रपुिासुि कहा गया। शतथ के अनुसाि भगवान जशव ने अजभजजत
ॐ नक्षत्र में असं भव िर् पि सवाि होकि असं भव बाण चलाकि उनका ॐ
सं हाि गकया र्ा) के सार् युद्ध कि उनका सं हाि गकया व सब पि

IN
अपनी कृ पा की। हे भगवन भागीिर् के तप से प्रसन्न हो कि उनके ॐ

पूवथजों की आत्मा को शांगत गदलाने की उनकी प्रगतज्ञा को आपने पूिा
गकया। F.
D
ॐ ॐ
AP

दागनन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुगत कित सदाहीं॥


ॐ ॐ
ST

वेद नाम मगहमा तव गाई। अकर् अनागद भेद नगहं पाई॥


IN

ॐ अर्थ: हे प्रभू आपके समान दानी औि कोई नहीं है, सेवक आपकी सदा ॐ
से प्रार्थना किते आए हैं। हे प्रभु आपका भेद जसफथ आप ही जानते हैं,
ॐ क्ोंगक आप अनागद काल से गवद्यमान हैं, आपके बािे में वणथन नहीं ॐ
गकया जा सकता है, आप अकर् हैं। आपकी मगहमा का गान किने में
तो वेद भी समर्थ नहीं हैं।
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

िगट उदजध मं र्न में ज्वाला। जिे सुिासुि भये गवहाला॥


ॐ कीन् दया तहँ किी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ ॐ

अर्थ: हे प्रभु जब क्षीि सागि के मं र्न में गवष से भिा घडा गनकला तो ॐ

समस्त देवता व दै त्य भय से कांपने लगे (पौिाजणक कर्ाओं के
अनुसाि सागि मं र्न से गनकला यह गवष इतना खतिनाक र्ा गक
ॐ उसकी एक बूं द भी ब्रह्मांड के जलए गवनाशकािी र्ी) आपने ही सब पि ॐ
मेहि बिसाते हुए इस गवष को अपने कं ठ में धािण गकया जजससे

IN
आपका नाम नीलकं ठ हुआ। ॐ

F.
D
पूजन िामचं द्र जब कीन्ा। जीत के लं क गवभीषण दीन्ा॥
ॐ ॐ
सहस कमल में हो िहे धािी। कीन् पिीक्षा तबगहं पुिािी॥
AP

एक कमल प्रभु िाखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥


ॐ कगठन भगि देखी प्रभु शं कि। भये प्रसन्न गदए इस्थित वि॥ ॐ
ST
IN

ॐ अर्थ: हे नीलकं ठ आपकी पूजा किके ही भगवान श्री िामचं द्र लं का को ॐ


जीत कि उसे गवभीषण को सौंपने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं
जब श्री िाम मां शगि की पूजा कि िहे र्े औि सेवा में कमल अपथण
ॐ ॐ
कि िहे र्े, तो आपके ईशािे पि ही देवी ने उनकी पिीक्षा लेते हुए एक
कमल को छु पा जलया।
ॐ अपनी पूजा को पूिा किने के जलए िाजीवनयन भगवान िाम ने, कमल ॐ
की जगह अपनी आं ख से पूजा सं पन्न किने की ठानी, तब आप प्रसन्न
हुए औि उन्ें इस्थित वि प्रदान गकया।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ जय जय जय अनं त अगवनाशी। कित कृ पा सब के घटवासी॥ ॐ
दुष्ट सकल गनत मोगह सतावै । भ्रमत िहे मोगह चैन न आवै॥
त्रागह त्रागह मैं नार् पुकािो। यगह अवसि मोगह आन उबािो॥ ॐ

लै गत्रशूल शत्रुन को मािो। सं कट से मोगह आन उबािो॥
अर्थ: हे अनं त एवं नष्ट न होने वाले अगवनाशी भगवान भोलेनार्, सब ॐ

पि कृ पा किने वाले, सबके घट में वास किने वाले जशव शं भू, आपकी
जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकाि जैसे तमाम दुष्ट
ॐ मुझे सताते िहते हैं। इन्ोंनें मुझे भ्रम में डाल गदया है, जजससे मुझे ॐ
शांगत नहीं गमल पाती। हे स्वामी, इस गवनाशकािी स्थिगत से मुझे

IN
उभाि लो यही उजचत अवसि। अर्ाथत जब मैं इस समय आपकी शिण ॐ

में हं, मुझे अपनी भगि में लीन कि मुझे मोहमाया से मुगि गदलाओ,
F.
सांसारिक कष्टों से उभािों। अपने गत्रशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश
D
ॐ कि दो। हे भोलेनार्, आकि मुझे इन कष्टों से मुगि गदलाओ। ॐ
AP


मातु गपता भ्राता सब कोई। सं कट में पूछत नगहं कोई॥ ॐ
ST

स्वामी एक है आस तुम्हािी। आय हिहु अब सं कट भािी॥


धन गनधथन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
IN

ॐ अस्तुगत के गह गवजध किौं तुम्हािी। क्षमहु नार् अब चूक हमािी॥ ॐ

ॐ अर्थ: हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-गपता, भाई-बं धु, नाते- ॐ
रिश्तेदाि सब होते हैं, लेगकन गवपदा पडने पि कोई भी सार् नहीं
देता। हे स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकि मेिे सं कटों को हि
ॐ लो। आपने सदा गनधथन को धन गदया है, जजसने जैसा फल चाहा, ॐ
आपकी भगि से वैसा फल प्राप्त गकया है। हम आपकी स्तुगत, आपकी
ॐ प्रार्थना गकस गवजध से किें अर्ाथत हम अज्ञानी है प्रभु, अगि आपकी ॐ
पूजा किने में कोई चूक हुई हो तो हे स्वामी, हमें क्षमा कि देना।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ शं कि हो सं कट के नाशन। मं गल कािण गवघ्न गवनाशन॥ ॐ

योगी यगत मुगन ध्यान लगावैं। नािद शािद शीश नवावैं॥


ॐ ॐ
अर्थ: हे जशव शं कि आप तो सं कटों का नाश किने वाले हो, भिों का
कल्याण व बाधाओं को दूि किने वाले हो योगी यगत ऋगष मुगन सभी
ॐ ॐ
आपका ध्यान लगाते हैं। शािद नािद सभी आपको शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नमो जशवाय। सुि ब्रह्मागदक पाि न पाय॥
ॐ जो यह पाठ किे मन लाई। ता पाि होत है शम्भु सहाई॥ ॐ

IN
अर्थ: हे भोलेनार् आपको नमन है। जजसका ब्रह्मा आगद देवता भी भेद ॐ

न जान सके , हे जशव आपकी जय हो। जो भी इस पाठ को मन
F.
लगाकि किेगा, जशव शम्भु उनकी िक्षा किेंगें, आपकी कृ पा उन पि
D
ॐ बिसेगी। ॐ
AP

ॐ ॠगनया जो कोई हो अजधकािी। पाठ किे सो पावन हािी॥ ॐ


ST

पुत्र हीन कि इिा कोई। गनश्चय जशव प्रसाद तेगह होई॥


IN

पस्थण्डत त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूवथक होम किावे ॥ ॐ



त्रयोदशी ब्रत किे हमेशा। तन नहीं ताके िहे कलेशा॥

ॐ अर्थ: पगवत्र मन से इस पाठ को किने से भगवान जशव कजथ में डू बे को ॐ


भी समृद्ध बना देते हैं। यगद कोई सं तान हीन हो तो उसकी इिा को
भी भगवान जशव का प्रसाद गनजश्चत रुप से गमलता है। त्रयोदशी
ॐ (चं द्रमास का तेिहवां गदन त्रयोदशी कहलाता है, हि चं द्रमास में दो ॐ

त्रयोदशी आती हैं, एक कृ ष्ण पक्ष में व एक शुक्ल पक्ष में) को पं गडत
ॐ बुलाकि हवन किवाने, ध्यान किने औि व्रत िखने से गकसी भी प्रकाि ॐ
का कष्ट नहीं िहता।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शं कि सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास जशवपुि में पावे॥
ॐ कहे अयोध्या आस तुम्हािी। जागन सकल दुुः ख हिहु हमािी॥ ॐ

ॐ ॐ
अर्थ: जो कोई भी धूप, दीप, नैवेद्य चढाकि भगवान शं कि के सामने
इस पाठ को सुनाता है, भगवान भोलेनार् उसके जन्म-जन्मांति के
पापों का नाश किते हैं। अंतकाल में भगवान जशव के धाम जशवपुि ॐ

अर्ाथत स्वगथ की प्रागप्त होती है, उसे मोक्ष गमलता है। अयोध्यादास को

IN
प्रभु आपकी आस है, आप तो सबकु छ जानते हैं, इसजलए हमािे सािे
ॐ ॐ
दुख दूि किो भगवन।
F.
D
ॐ ॐ
।। दोहा ।।
AP

ॐ गनत्त नेम कि प्रातुः ही, पाठ किौं चालीसा। ॐ


ST

तुम मेिी मनोकामना, पूणथ किो जगदीश॥


IN

मगसि छगठ हेमन्त ॠतु, सं वत चौसठ जान।


ॐ ॐ
अस्तुगत चालीसा जशवगह, पूणथ कीन कल्याण॥

ॐ अर्थ: हि िोज गनयम से उठकि प्रात:काल में जशव चालीसा का पाठ ॐ


किें औि भगवान भोलेनार् जो इस जगत के ईश्वि हैं, उनसे अपनी
मनोकामना पूिी किने की प्रार्थना किें। सं वत 64 में मं गजसि मास की
ॐ ॐ
छगठ गतजर् औि हेमंत ऋतु के समय में भगवान जशव की स्तुगत में जशव
चालीसा लोगों के कल्याण के जलए पूणथ की गई।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ श्री शिव जी आरती ॐ

ॐ ॐ
जय जशव ओंकािा ॐ जय जशव ओंकािा ।
ब्रह्मा गवष्णु सदा जशव अद्धाांगी धािा ॥ ॐ जय जशव...॥
ॐ ॐ
एकानन चतुिानन पं चानन िाजे ।

IN
हंसानन गरुडासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय जशव...॥
ॐ ॐ

F.
दो भुज चाि चतुभुथज दस भुज अगत सोहे।
गत्रगुण रूपगनिखता गत्रभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय जशव...॥
D
ॐ ॐ
AP

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धािी ।


चं दन मृगमद सोहै भाले शजशधािी ॥ ॐ जय जशव...॥
ॐ ॐ
ST

श्वेताम्बि पीताम्बि बाघम्बि अंगे ।


सनकागदक गरुणागदक भूतागदक सं गे ॥ ॐ जय जशव...॥
IN

ॐ कि के मध्य कमं डलु चक्र गत्रशूल धताथ । ॐ


जगकताथ जगभताथ जगसं हािकताथ ॥ ॐ जय जशव...॥

ॐ ब्रह्मा गवष्णु सदाजशव जानत अगववेका । ॐ


प्रणवाक्षि मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय जशव...॥


काशी में गवश्वनार् गविाजत निी ब्रह्मचािी । ॐ
गनत उगठ भोग लगावत मगहमा अगत भािी ॥ ॐ जय जशव...॥

ॐ गत्रगुण जशवजीकी आिती जो कोई नि गावे । ॐ


कहत जशवानि स्वामी मनवांजछत फल पावे ॥ ॐ जय जशव...॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ श्री शिव जी पूजा िवि ॐ

ॐ ॐ
जशवजी की पूजा-अजचना / पूजा ववधध इस प्रकाि है :
ॐ ॐ
 सोमवाि के गदन ब्रह्म मुहतथ में उठ जाएं । गनत्यकमों को पूिा कि

IN
स्नानागद कि गनवृत्त हो जाएं ।
ॐ  गफि पूजा घि में जाए या गफि मं गदि जाएं । यहां पि जशवजी समेत ॐ

F.
माता पावथती औि नं दी को गं गाजल औि दूध चढ़ाएं ।
D
 जशवजलंग पि धतूिा, भांग, आलू, चं दन, चावल अगपथत किें। सभी
ॐ ॐ
AP

को गतलक लगाएं । गफि धूप, दीप जलाएं । सबसे पहले गणेश जी


की आिती किें औि गफि जशवजी की आिती किें।
ॐ  गफि जशवजी को घी, शक्कि या प्रसाद का भोग लगाएं । इसके बाद ॐ
ST

सभी में प्रसाद बांटे।


IN

 जशवजी को गबल्व पत्र बेहद गप्रय हैं। इन्ें अगपथत किने से जशवजी
ॐ ॐ
प्रसन्न हो जाते हैं।
 भगवान जशव के पूजन के दौिान महामृत्यजय ुं मं त्र का 108 बाि
ॐ जाप किें। इससे शांगत एवं सुख-समृगद्ध की प्रागप्त होती है। ॐ

 इसके अलावा नमुः जशवाय, ऊँ नम: जशवाय मं त्र का जाप भी


किना चागहए। ॐ

 पूिे गदन व्रत किें। शाम को पूजा किने के बाद कि व्रत खोलें।
आप चाहें तो यह पूिा व्रत फलाहाि ही कि सकते हैं।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

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ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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