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UP SI 2021

मूल �वधान / सं �वधान


भाग 3
सं �वधान

यूपी एसआई क� तैयारी के �लए पूरी ईबुक


डाउनलोड करें
UP Police SI 2021 - मल
ू �वधान / सं�वधान भाग 1 – दण्ड सं�हता

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मल
ू �वधान / सं�वधान
भाग 3 – सं�वधान
• सं�वधान का उद्दे श्य ........ (पष्ृ ठ सं : 3 – 5)

• मौ�लक अ�धकार ........ (पष्ृ ठ सं : 5)

• नी�त �नद� शक तत्व एवं मूल कतर्व्य ........ (पष्ृ ठ सं : 6 - 7)

• क�द्र�य एवं प्रदे �शक राज्य� का गठन एवं उनके अ�धकार


........ (पष्ृ ठ सं : 8 - 9)

• कानन
ू बनाने का अ�धकार ........ (पष्ृ ठ सं : 9)

• स्थानीय शासन ........ (पष्ृ ठ सं : 10 - 11)

• क�द्र और राज्य� के बीच सम्बन्ध ........ (पष्ृ ठ सं : 12)

• �नवार्चन ........ (पष्ृ ठ सं : 12 - 13)

• संवैधा�नक अनुसू�चयां ........ (पष्ृ ठ सं : 14 - 15)

• अ�खल भारतीय सेवाएं एवं उनक� चयन पद्ध�त ........ (पष्ृ ठ

सं : 15 - 17)
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ू �वधान / सं�वधान भाग 1 – दण्ड सं�हता

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मुख्य �बंद ु :

भाग 1 – दण्ड सं�हता (यहाँ डाउनलोड कर� )

• भारतीय दण्ड �वधान एवं दण्ड प्र�क्रया सं�हता

भाग 2 – प्रावधान और अ�ध�नयम (यहाँ डाउनलोड कर� )

• म�हलाओं , बच्च� ,अनुस�ू चत जा�त के सदस्य� आ�द को संर�ण दे ने सम्बन्धी


�व�धक प्रवधान
• यातायात �नयम (मोटर वाहन अ�ध�नयम, 2019)
• पयार्वरण (संर�ण) अ�ध�नयम, 1986
• वन्यजीव संर�ण अ�ध�नयम, 1972
• मानव अ�धकार संर�ण अ�ध�नयम, 1993
• सूचना का अ�धकार अ�ध�नयम,2005
• आय-कर अ�ध�नयम, 1961
• भ्रष्टाचार �नवारण अ�ध�नयम, 1988
• राष्ट्र�य सरु �ा अ�ध�नयम,1980
• आईट� अपराध
• साइबर अपराध-2000
• जन�हत या�चका
• महत्वपूणर् न्या�यक �नणर्य
• भू�म सुधार,1950
• भू�म अ�धग्रहण,2013
• भू-राजस्व सम्बन्धी कानून,1901
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सं�वधान
सं�वधान का उद्दे श्य

सं�वधान शब्द लै�टन भाषा के शब्द ‘ ग�ठत ‘ से बना है िजसका अथर् है ‘स्था�पत करना’ है ।
भारतीय सं�वधान 9 �दसंबर 1946 से शुरू होकर 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुआ। यह
26 जनवर� 1950 को अिस्तत्व म� आया। इसके �नमार्ण म� 2 वषर् 11 मह�ने और 18 �दन
का समय लगा। सं�वधान का मख्
ु य उद्दे श्य एक ऐसी व्यवस्था का �नमार्ण करना जो
समाज के हर वगर् को न्याय �दला सके । सबको आगे बढ़ने का सामान अवसर �मले , एक
ऐसी व्यवस्था जो जा�त धमर् सम्प्रदाय से परे हो । �नसंदेह आज हमारे पास बेहतर न्याय
व्यवस्था है ,आगे बढ़ने के पयार्प्त अवसर है पर सवाल यह उठता है क� क्या स�र साल से
ज्यादा वक्त बीत जाने पर हम सं�वधान के उद्दे श्य� को पूरा करने म� सफल रहे ह�?
सं�वधान कुछ बु�नयाद� कानून बनाता है । ये कानून समझाते ह� �क समाज पर �कसका
शासन होना चा�हए और यह कैसे होना चा�हए। इसे राष्ट्र�य पहचान या मौ�लक पहचान कहा
जाता है । लोग� द्वारा बु�नयाद� �नयम� और �व�नयमन को स्वीकार करके इसे राजनी�तक
पहचान कहा जाता है । नै�तक पहचान का मतलब है �क क्या करना चा�हए और क्या नह�ं
करना चा�हए। यह समाज के मूल्य� का प्र�त�न�धत्व करता है । इसे नै�तक पहचान कहा
जाता है ।

भारतीय सं�वधान म� वतर्मान समय म� भी केवल 470 अनच्


ु छे द, तथा 12 अनस
ु �ू चयां ह� और
ये 25 भाग� म� �वभािजत है । परन्तु इसके �नमार्ण के समय मल
ू सं�वधान म� 395 अनच्
ु छे द
जो 22 भाग� म� �वभािजत थे इसम� केवल 8 अनुसू�चयां थीं।
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भाग �वषय अनच्


ु छे द
भाग 1 संघ और उसके �ेत्र (अनुच्छे द 1-4)
भाग 2 नाग�रकता (अनुच्छे द 5-11)
भाग 3 मूलभूत अ�धकार (अनुच्छे द 12 - 35)
भाग 4 राज्य के नी�त �नदे शक तत्व (अनुच्छे द 36 - 51)
भाग 4A मूल कतर्व्य (अनुच्छे द 51A)
भाग 5 संघ (अनच्
ु छे द 52-151)
भाग 6 राज्य (अनुच्छे द 152 -237)
भाग 7 सं�वधान (सातवाँ संशोधन) (अनचछे
ु ़ द 238)
अ�ध�नयम, 1956 द्वारा
�नर�सत
भाग 8 संघ राज्य �ेत्र (अनुच्छे द 239-242)
भाग 9 पंचायत (अनुच्छे द 243- 243O)
भाग 9A नगरपा�लकाएं (अनच्
ु छे द 243P - 243ZG)
भाग 10 अनस
ु �ू चत और जनजा�त (अनच्
ु छे द 244 - 244A)
�ेत्र
भाग 11 संघ और राज्य� के बीच (अनुच्छे द 245 - 263)
संबंध
भाग 12 �व�, सम्प��, सं�वदाएं और (अनुच्छे द 264 -300A)
वाद
भाग 13 भारत के राज्य �ेत्र के (अनुच्छे द 301 - 307)
भीतर व्यापार, वा�णज्य और
समागम
भाग 14 संघ और राज्य� के अधीन (अनच्
ु छे द 308 -323)
सेवाएं
भाग 14A अ�धकरण (अनुच्छे द 323A - 323B)
भाग 15 �नवार्चन (अनुच्छे द 324 -329A)
भाग 16 कुछ वग� के �लए �वशेष (अनुच्छे द 330- 342)
उपबंध सम्बन्ध
भाग 17 राजभाषा (अनुच्छे द 343- 351)
भाग 18 आपात उपबन्ध (अनुच्छे द 352 - 360)
भाग 19 प्रक�णर् (अनच्
ु छे द 361 -367)
भाग 20 सं�वधान के संशोधन अनुच्छे द
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भाग 21 अस्थाई संक्रमणकाल�न और (अनच्


ु छे द 369 - 392)
�वशेष उपबन्ध
भाग 22 सं��प्त नाम, प्रारम्भ, �हन्द� (अनुच्छे द 393 - 395)
म� प्रा�धकृत पाठ और
�नरसन

मौ�लक अ�धकार
मौ�लक अ�धकार उन अ�धकार� को कहा जाता है जो व्यिक्त के जीवन के �लये प्राकृ�तक होने के
कारण सं�वधान द्वारा नाग�रक� को प्रदान �कये जाते ह� और िजनम� राज्य द्वार हस्त�ेप नह�ं �कया
जा सकता। ये ऐसे अ�धकार ह� जो व्यिक्त के व्यिक्तत्व के पूणर् �वकास के �लये आवश्यक ह� और
िजनके �बना मनुष्य अपना पूणर् �वकास नह� कर सकता। मूल सं�वधान म� सात मौ�लक अ�धकार थे,
ले�कन 44व� सं�वधान संशोधन के द्वारा संप�� का अ�धकार को मौ�लक अ�धकार क� सूची से हटाकर
इसे सं�वधान के अनुच्छे द 300 (a) के अन्तगतर् क़ानूनी अ�धकार के रूप म� रखा गया है । इसे संयुक्त
राज्य अमे�रका के सं�वधान से �लया गया है । मौ�लक अ�धकार नाग�रक और रहे वासी को राज्य क�
मनमानी या शो�षत नी�तयो और कायर्वाह� के सामने र�ण प्रदान करने के �लए �दये गए। सं�वधान
के अनुच्छे द 12 मे राज्य क� प�रभाषा द� हुई है क� “राज्य” के अंतगर्त भारत क� सरकार और संसद
तथा राज्य� म� से प्रत्येक राज्य क� सरकार और �वधान- मंडल तथा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या
भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्रा�धकार� ह�।

मौ�लक अ�धकार� का वग�करण

मौ�लक अ�धकार अनुच्छे द


समानता का अ�धकार अनुच्छे द 14 से 18 तक

स्वतंत्रता का अ�धकार अनुच्छे द 19 से 22 तक

शोषण के �वरुध अ�धकार अनुच्छे द 23 से 24 तक

धा�मर्क स्वतंत्रता क अ�धकार अनुच्छे द 25 से 28 तक।

सांस्कृ�तक तथा �श�ा सम्बं�धत अनुच्छे द 29 से 30 तक।

अ�धकार
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संवध
ै ा�नक उपचार� का अ�धकार अनच्
ु छे द 32

नी�त �नद� शक तत्व एवं मल


ू कतर्व्य :
सं�वधान कुछ राज्य के नी�त �नद� शक तत्व �नधार्�रत करता है , यद्य�प ये न्यायालय म� कानूनन
न्यायो�चत नह�ं ठहराए जा सकते, परन्तु दे श के शासन के �लए मौ�लक ह�, और कानून बनाने म� इन
�सद्धान्त� को लागू करना राज्य का कतर्व्य है । ये �नधार्�रत करते ह� �क राज्य यथासंभव सामािजक
व्यवस्था िजसम� -सामािजक, आ�थर्क और राजनै�तक न्याय क� व्यवस्था राष्ट्र�य जीवन क� सभी
संस्थाओं म� कायम करके जनता नी�तय� को ऐसी �दशा दे गा ता�क सभी पुरुष� और म�हलाओं को
जी�वकोपाजर्न के पयार्प्त साधन मुहैया कराए जाएं। समान कायर् के �लए समान वेतन और यह इसक�
आ�थर्क �मता एवं �वकास के भीतर हो, कायर् के अ�धकार प्राप्त करने के �लए प्रभावी व्यवस्था करने,
बेरोजगार के मामले म� �श�ा एवं सावर्ज�नक सहायता, वद्
ृ धावस्था, बीमार� एवं असमथर्ता या
अयोग्यता क� आवश्यकता के अन्य मामले म� सहायता करना। राज्य कमर्कार� के �लए �नवार्ह
मजदरू �, कायर् क� मानवीय िस्थ�तय�, जीवन का शाल�न स्तर और उद्योग� के प्रबंधन म� कामगार� क�
पूणर् सहभा�गता प्राप्त करने के प्रयास करे गा।

महत्वपूणर् �नद� शक तत्व� म� यह भी है क� बच्च� के �लए अवसर� और सु�वधाओं क� व्यवस्था से


संबं�धत ह� ता�क उनका �वकास अच्छ� तरह हो, 14 वषर् क� आयु तक के सभी बच्च� के �लए मुक्त
एवं अ�नवायर् �श�ा, अनुसू�चत जा�त, अनुसू�चत जनजा�त और अन्य कमजोर वग� के �लए �श�ा और
आ�थर्क �हत� का संवधर्न ग्राम पंचायत� का संगठन; कायर्पा�लका से न्यायपा�लका को अलग करना;
पूरे दे श के �लए एक समान �स�वल कोड लागू करना, राष्ट्र�य स्मारक� क� र�ा करना, समान अवसर
के आधार पर न्याय का संवधर्न करना, मुक्त कानूनी सहायता क� व्यवस्था, पयार्वरण क� र�ा और
उन्नयन और दे श के वन� एवं वन्य जीव� क� र�ा करना; अंतरराष्ट्र�य शािन्त और सुर�ा का �वकास,
राष्ट्र� के बीच न्याय और सम्मानजनक संबंध, अंतरराष्ट्र�य कानून� सं�ध बाध्यताओं का सम्मान
करना, मध्यवत� द्वारा अंतरराष्ट्र�य �ववाद� का �नपटान करना।

भारतीय सं�वधान क� एक प्रमुख �वशेषता यह है �क यह नाग�रक� के अ�धकार� और कतर्व्य� को


संतु�लत करता है । �व�दत है �क आपातकाल के दौरान भारतीय सं�वधान के भाग IV-A म� 42व�
संशोधन अ�ध�नयम, 1976 के माध्यम से मौ�लक कतर्व्य� का समावेशन �कया गया था। वतर्मान म�
अनुच्छे द 51(A) के तहत व�णर्त 11 मौ�लक कतर्व्य ह�, िजनम� से 10 को 42व� संशोधन के माध्यम से
जोड़ा गया था जब�क 11व� मौ�लक कतर्व्य� को वषर् 2002 म� 86व� सं�वधान संशोधन के ज़�रये
सं�वधान म� शा�मल �कया गया था। भारतीय सं�वधान म� मौ�लक कतर्व्य� क� अवधारणा तत्काल�न
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USSR के सं�वधान से प्रे�रत है । इसे श्री स्वणर् �संह स�म�त क� �सफा�रश पर आंत�रक आपातकाल
क� ज़रूरत एवं आवश्यकताओ को पूरा करने के �लए लाया गया था। इसके अनुसार भारत के प्रत्येक
नाग�रक का क�र्व्य होगा �क वह-

सं�वधान का पालन करे और उसके आदश�,संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान


का आदर करे ।
स्वतंत्रता के �लए हमारे राष्ट्र�य आन्दोलन को प्रे�रत करने वाले उच्च आदश� को
हृदय म� संजोए रखे व उनका पालन करे ।
भारत क� संप्रभुता एकता व अखंडता क� र�ा कर� और उसे अ�ुण्ण बनाये रख�।

दे श क� र�ा कर� और आवाह्न �कए जाने पर राष्ट् क� सेवा कर� ।

भारत के सभी लोग� म� समरसता और समान भ्रातत्ृ व क� भावना का �नमार्ण


कर� जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् आधा�रत भेदभाव से परे ह�, उन सभी
प्रथाओं का त्याग कर� जो म�हलाओं के सम्मान के �वरुद्ध ह�।
हमार� सामा�सक संस्कृ�त क� गौरवशाल� परम्परा का मह�व समझ� और उसका
प�रर�ण कर� ।
प्राकृ�तक पयार्वरण िजसके अंतगर्त वन, झील,नद� वन्य प्राणी आ�द आते ह� क�
र�ा करे और उसका संवधर्न कर� तथा प्राणी मात्र के प्र�त दयाभाव रख�।
वै�ा�नक दृिष्टकोण मानववाद व �ानाजर्न तथा सुधार क� भावना का �वकास
कर� ।
सावर्ज�नक सम्प�� को सुर��त रख� व �हंसा से दरू रह� ।

व्यिक्तगत और सामू�हक ग�त�व�धय� के सभी �ेत्र� म� उत्कषर् क� ओर बढ़ने का


सतत प्रयास कर� िजससे राष्ट्र �नरं तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलिब्ध क� नई
ऊँचाइय� को छू ले।
6 से 14 वषर् तक क� उम्र के बीच अपने बच्च� को �श�ा के अवसर उपलब्ध
कराना।
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क�द्र�य एवं प्रदे �शक राज्य� का गठन एवं उनके अ�धकार

सामान्य रूप से प्रभुस�ा का �वभाजन संघीय एवं राज्यसरकार� के मध्य उनके सं�वधान म� उिल्ल�खत
होता है जो उस सं�वदा को अं�तम रूप से पुष्ट करता है । भारतीय सं�वधान का संघीय च�रत्र इसक�
प्रमुख �वशेषताओं म� से एक है , हालाँ�क भारतीय सं�वधान म� कह�ं भी महासंघ या फेडरे शन शब्द का
प्रयोग नह�ं �कया गया है । बिल्क इसके स्थान पर भारतीय सं�वधान म� भारत को ‘राज्य� के संघ’ के
रूप म� संबो�धत �कया गया है । इसम� राज्य स्वयं कायर्भार वहन करते ह� एवं उसके प्र�तरूप अ�धकार
एवं साधन के रूप म� प्रदान कर दे ते ह�।वास्तव म� महासंघ दो तरह क� सरकार� के बीच स�ा साझा
करने और उनके संबं�धत �ेत्र� को �नयं�त्रत करने हे तु एक समझौता है ।संघवाद सरकार का वह रूप है
िजसम� दे श के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद ह�- पहला क�द्र�य स्तर पर और दस
ू रा
स्थानीय या राज्यीय स्तर पर कायर् करती है । सहकार� संघवाद म� क�द्र व राज्य एक-दस
ू रे के साथ
�ै�तज संबंध स्था�पत करते हुए एक-दस
ू रे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास
करते ह�। सहकार� संघवाद क� इस अवधारणा म� यह स्पष्ट �कया जाता है �क क�द्र और राज्य म� से
कोई भी �कसी से श्रेष्ठ नह�ं है ।

क�द्र और राज्य� के बीच संबंध� का उल्लेख सं�वधान के भाग XI और XII म� �वधायी, प्रशास�नक तथा
�व�ीय संबंध� के तहत �कया गया है ।

सं�वधान के अनुच्छे द 256-263 तक क�द्र तथा राज्य� के प्रशास�नक संबंध� क� चचार् क� गई है ।


प्रशास�नक संबंध� से तात्पयर् क�द्र व राज्य� क� सरकार� के कायर्पा�लका संबंधी तालमेल से होता है ।

भारतीय सं�वधान ने प्रशास�नक व्यवस्था म� एकरूपता सु�निश्चत करने का भी प्रावधान �कया है ।


इसम� IAS और IPS जैसी अ�नल भारतीय सेवाओं का �नमार्ण और उन्ह� राज्य के प्रमुख पद आवं�टत
करने संबंधी प्रावधान शा�मल ह�। अ�खल भारतीय सेवा के अ�धका�रय� क� मौजूदगी से क�द्र सरकार
को अपने अ�धकार� का प्रयोग करने और उनके माध्यम से राज्य� पर �नयंत्रण रखने का मागर् प्रशस्त
होता है , क्य��क क�द्र का अ�खल भारतीय सेवाओं के सदस्य� पर अ�धकार होता है ।

भारत म� ग�ठत कुल 5 �ेत्रीय प�रषद� पर सिम्म�लत राज्य� के नाम इस प्रकार ह�:

 उ�र� �ेत्रीय प�रषद: पंजाब, ह�रयाण, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, �हमांचल प्रदे श राज्य तथा
चंडीगढ़ एवं �दल्ल� संघ राज्य �ेत्र ।
 मध्य �ेत्रीय प�रषद: उ�र प्रदे श, मध्य प्रदे श, उ�राखंड एवं छ�ीसगढ़ ।
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 पूव� �ेत्रीय प�रषद: �बहार, पिश्चम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, असम, �सिक्कम, म�णपुर, �त्रपुरा,
मेघालय, नागाल�ड, अरुणाचल प्रदे श तथा �मजोरम।
 पिश्चम �ेत्रीय प�रषद: गज
ु रात, महाराष्ट्र, गोवा राज्य, दमन द�व एवं दादर तथा नागर हवेल�
संघ राज्य �ेत्र ।
 द��णी �ेत्रीय प�रषद: आंध्र प्रदे श, केरल, कनार्टक एवं त�मलनाडु राज्य एवं पुदच
ु ेर� संघ राज्य
�ेत्र ।

कानून बनाने का अ�धकार


�कसी भी दे श राज्य या समाज को चलाने के �लए एक कानून बनाये जाते ह�। व्यवस्था और
अनुशासन बनाए रखने के �लए कुछ �नयम क� जरूरत होती है । उस �नयम और कानून म� बहुत ह�
छोटा सा फकर् होता है । जहां �नयम काम करने के तर�के को बताता है वह�ं कानून उस तर�के और
अनुशासन के टूटने पर उठाए जाने वाले कदम को बताता है । भारत म� �कसी व्यिक्त को सजा
सं�वधान के कानन
ू के अनस
ू ार �दया जाता है । कानन
ू क� अपनी एक प्र�क्रया होती है िजसके आधार
पर ह� काम होता है । कानून का उल्लेख सं�वधान म� �कया गया है । कानन
ू म� समय-समय पर
संशोधन �कया जाता है और कभी-कभी नये कानन
ू भी बनाए जाते ह�।

भारत म� तीन तरह से कानन


ू का �नमार्ण होता है । एक क�द्र स्तर पर कानन
ू बनते है जो परू े दे श म�
लागू होते ह�। दस
ू रा प्रदे श स्तर पर कानन
ू बनते ह� जो �कसी आमक
ु प्रदे श को ध्यान म� रखकर
बनाया जाता है । तीसरा राज्य और प्रदे श के द्वारा �मल कर बनाया जाता है ।
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केन्द्र�य सूची

राज्य सच
ू ी

समवत� सूची

कानन
ू � को तीन सच
ू ी के अंतगर्त
रखा जाता है ।

स्थानीय शासन
इस संदभर् म� वषर् 1882 को काफ� मह�वपूणर् माना जाता है , क्य��क इसी वषर् भारत के तत्काल�न
वायसराय लॉडर् �रपन ने �नवार्�चत स्थानीय सरकार� �नकाय के गठन क� पहल क� थी, उल्लेखनीय है
�क उस समय इन्ह� मुकामी बोडर् कहा जाता था। स्थानीय शासन द्वारा स्वशासन क� व्यवस्था को
स्थानीय स्वाय� शासन कहते ह�। स्थानीय स्वाय� शासन के दो मल
ू कारण ह�- पहला, यह व्यवस्था
शासन को �नचले स्तर तक लोकतां�त्रक बनाती है ; दस
ू रा, स्थानीय लोग� क� भागीदार� स�म बनाती
है , साथ ह� लोग� को शासन क� कला का �ान होता है। स्थानीय स्वशासन म� स्थानीय लोग� क�
भू�मका महत्वपूणर् होती है क्य��क वे स्थानीय समस्याओं को बेहतर ढं ग से समझ सकते ह� और
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उसके समाधान को भी आसानी से ढूंढ सकते ह�। अतः स्थानीय स्व-शासन का तात्पयर् है - स्थानीय
लोग� क� भागीदार� द्वारा स्थानीय शासन क� व्यवस्था सुचारू रूप से करना और उस व्यवस्था को
लोकतां�त्रक बनाना, िजससे समस्या का �नदान भी हो और लोकतां�त्रक स्वरूप क� �नचले स्तर तक
स्वस्थ व्यवस्था भी स्था�पत हो।

 73वाँ सं�वधान संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकार से संबं�धत है , िजन्ह� पंचायती राज संस्थान�
के रूप म� भी जाना जाता है । इसम�
 �त्र-स्तर�य
 प्रत्य� चुनाव
 आर�ण
 राज्य चुनाव आयुक्त

 74वाँ सं�वधान संशोधन शहर� स्थानीय सरकार से संबं�धत है , िजन्ह� नगरपा�लका भी कहा
जाता है । इसके अंतगर्त अनुच्छे द 243P से 243ZG तक नगरपा�लकाओं से संबं�धत उपबंध
�कये गए ह�। नगरपा�लकाओं का गठन अनुच्छे द 243Q म� नगरपा�लकाओं के तीन स्तर� के
बारे म� उपबंध ह�।
 नगर पंचायत - ऐसे संक्रमणशील �ेत्र� म� ग�ठत क� जाती है , जो गाँव से शहर� म� प�रव�तर्त
हो रहे ह�।
 नगरपा�लका प�रषद - इसे छोटे शहर� अथवा लघु नगर�य �ेत्र� म� ग�ठत �कया जाता है ।
 नगर �नगम - बड़े नगर�य �ेत्र� , महानगर� म� ग�ठत क� जाती है ।

क�द्र और राज्य� के बीच सम्बन्ध

हमारा दे श स्वतंत्रता उपरांत क�द्र-राज्य संबंध का मसला अत्या�धक संवेदनशील मामला रहा है।[1]
�वषय चाहे अलग भाषाओं क� पहचान, असमान �वकास, राज्य� के गठन का हो, पन
ु गर्ठन का हो या
�फर �वशेष राज्य का दजार् दे ने से जड़
ु ा हो। ये सब क�द्र-राज्य संबंध� क� सीमा म� आते ह�। इनके
अलावा दे श म� �श�ा, व्यापार जैसे �वषय� पर नी�त �नमार्ण के सवाल उठने पर भी उसके केन्द्र म� है
क�द्र और राज्य के बीच म� इनको लेकर क्या आपसी समझ है , यह� मह�वपण
ू र् होता है । सं�वधान के
भाग- XI म� अनच्
ु छे द 245 से 255 तक केन्द्र-राज्य �वधायी संबध
ं � क� चचार् क� गई है । इसके
अ�त�रक्त कुछ अन्य अनुच्छे द भी इस �वषय से संबं�धत ह�।
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केन्द्र-राज्य प्रशास�नक संबंध


अनुच्छे द 256 के अनुसार राज्य क� कायर्पा�लका शिक्तयाँ इस तरह प्रयोग लायी जाये �क संसद
द्वारा पा�रत �व�धय� का पालन हो सके। इस तरह संसद क� �व�ध के अधीन �व�धय� का पालन हो
सके। इस तरह संसद क� �व�ध के अधीन राज्य कायर्पा�लका शिक्त आ गयी है। केन्द्र राज्य को ऐसे
�नद� श दे सकता है जो इस संबंध म� आवश्यक हो।

अनुच्छे द 257 कुछ मामल� म� राज्य पर केन्द्र �नयंत्रण क� बात करता है । राज्य कायर्पा�लका शिक्त
इस तरह प्रयोग म� ल� जाये �क वह संघ कायर्पा�लका से संघषर् न करे । केन्द्र अनेक �ेत्र� म� राज्य
को उसक� कायर्पा�लका शिक्त कैसे प्रयोग करे इस पर �नद� श दे सकता है । य�द राज्य �नद� श पालन
म� असफल रहा तो राज्य म� राष्ट्रप�त शासन तक लाया जा सकता है ।

अनच्
ु छे द 258[2] के अनुसार संसद को राज्य प्रशास�नक तंत्र को उस तरह प्रयोग लेने क� शिक्त दे ता
है िजनसे संघीय �व�ध पा�लत हो केन्द्र को अ�धकार है �क वह राज्य म� �बना उसक� मज� के सेना,
केन्द्र�य सरु �ा बल तैनात कर सकता है । अ�खल भारतीय सेवाएँ भी केन्द्र को राज्य प्रशासन पे
�नयंत्रण प्राप्त करने म� सहायता दे ती ह�। अनु 262 संसद को अ�धकार दे ता है �क वह अंतराज्य जल
�ववाद को सल
ु झाने हे तु �व�ध का �नमार्ण करे संसद ने अंतराज्य जल �ववाद तथा बोडर् एक्ट पा�रत
�कये थे। अनु 263 राष्ट्रप�त को शिक्त दे ता है �क वह अंतराज्य प�रषद स्था�पत करे ता�क राज्य�
के मध्य उत्पन्न �भन्न मतान्तर सल
ु झा सके।

�नवार्चन
आयोग म� वतर्मान म� एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते ह�। जब यह पहले पहल
1950 म� ग�ठत हुआ तब से और 15 अक्टूबर, 1989 तक केवल मुख्य �नवार्चन आयुक्त स�हत यह
एक एकल-सदस्यीय �नकाय था। 1993 से यह तीन-सदस्यीय �नकाय बन गया। इसका गठन भारत
म� स्वतंत्र एवं �नष्प� रूप से �व�भन्न से भारत के प्रा�त�न�धक संस्थान� म� प्र�त�न�ध चुनने के �लए
�कया गया था। भारतीय चन
ु ाव आयोग क� स्थापना 25 जनवर� 1950 को क� गयी थी।मुख्य चुनाव
आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त� क� �नयुिक्त भारत का राष्ट्रप�त करता है । मुख्य चुनाव आयुक्त
का कायर्काल 6 वषर् या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जब�क अन्य चुनाव आयुक्त� का
कायर्काल 6 वषर् या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता ह�। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन
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ू �वधान / सं�वधान भाग 1 – दण्ड सं�हता

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भारत के सव�च्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है । मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा
महा�भयोग के ज�रए ह� हटाया जा सकता ह�।

भारत �नवार्चन आयोग के पास �वधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रप�त आ�द चुनाव से
सम्बं�धत स�ा होती है जब�क ग्रामपंचायत, नगरपा�लका, महानगर प�रषद् और तहसील एवं िजला
प�रषद् के चुनाव क� स�ा सम्बं�धत राज्य �नवार्चन आयोग के पास होती है ।

सव�च्च न्यायालय के �नणर्यानुसार अनु 324[1] मे �नवार्चन आयोग क� शिक्तयाँ कायर्पा�लका द्वारा
�नयं�त्रत नह�ं हो सकती उसक� शिक्तयां केवल उन �नवार्चन संबंधी संवैधा�नक उपाय� तथा संसद
�न�मर्त �नवार्चन �व�ध से �नयं�त्रत होती है �नवार्चन का पयर्वे�ण, �नद� शन, �नयंत्रण तथा आयोजन
करवाने क� शिक्त मे दे श मे मुक्त तथा �नष्प� चुनाव आयोिजत करवाना भी �न�हत है जहां कह�
संसद �व�ध �नवार्चन के संबंध मे मौन है वहां �नष्प� चुनाव करवाने के �लये �नवार्चन आयोग
असी�मत शिक्त रखता है यध�प प्राकृ�तक न्याय, �व�ध का शासन तथा उसके द्वारा शिक्त का
सदप
ु योग होना चा�हए

�नवार्चन आयोग �वधा�यका �न�मर्त �व�ध का उल्लघँन नह�ं कर सकता है और न ह� ये स्वेच्छापूणर्


कायर् कर सकता है उसके �नणर्य न्या�यक पुनर��ण के पात्र होते है

�नवार्चन आयोग क� शिक्तयाँ �नवार्चन �व�धय� क� पूरक है न �क उन पर प्रभावी तथा वैध प्र�क्रया
से बनी �व�ध के �वरूद्ध प्रयोग नह� क� जा सकती है

अ�ध�नयम संशोधन 1988 से इस प्रकार के संशोधन �कये गये ह�।

 इलेक्ट्रॉ�नक मतदान मशीन का प्रयोग �कया जा सकेगा. वषर् 2004 के लोकसभा चुनाव मे
इनका सवर्त्र प्रयोग हुआ तथा 2014 के बाद लगातार मतदान म� इसका उपयोग होता आ रहा
है
 राजनै�तक दल� का �नवार्चन आयोग के पास अ�नवायर् पंजीकरण करवाना होगा य�द वह
चुनाव लड़ना चाहे तो कोई दल तभी पंजीकृत होगा जब वह सं�वधान के मौ�लक �सद्धांत� के
पालन करे तथा उनका समावेश अपने दल�य सं�वधान मे कर�
 मतदान केन्द्र पर कब्जा, जाल� मत
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ू �वधान / सं�वधान भाग 1 – दण्ड सं�हता

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संवैधा�नक अनुसू�चयां
भारत का सं�वधान द�ु नया का सबसे बड़ा �ल�खत सं�वधान है , इसम� 448 अनुच्छे द, 25 भाग
और 12 अनुसू�चयां है । भारत का सं�वधान, नाग�रक� और सरकार द्वारा अपनाई जाने वाल�
और पालन क� जाने वाल� सं�हता, प्र�क्रयाओं, अ�धकार�, कतर्व्य�, �नयम� और �व�नयम� को
समेटे हुए है । बी. आर. अम्बेडकर इसके मुख्य �नमार्ता और “भारतीय सं�वधान के जनक” के
रूप म� जाने जाते है । सं�वधान को 26 नवंबर 1949 को भारत क� सं�वधान सभा द्वारा
अपनाया गया था और 26 जनवर� 1950 को लागू हुआ था िजसे गणतंत्र �दवस के रूप म�
मनाया जाता है । शुरुआत के समय, इसम� 225 अनुच्छे द 22 भाग और 8 अनुसू�चयां थी।
अब तक सं�वधान म� 104 संशोधन �कए जा चुके ह�। भारतीय सं�वधान के भाग, और
अनुसू�चय� के साथ-साथ कुछ प्रमुख अनुच्छे द� के बारे म� �वस्तार से जान�।

अनुसू�चयां �वषय

पहल� अनस
ु च
ू ी राज्य� और क�द्र शा�सत प्रदे श� और उनके
प्रदे श� क� सच
ू ी
द्�वतीय अनस
ु ूची राष्ट्रप�त, राज्यपाल�, राज्य� के अध्य�, अध्य�
और लोक सभा के उपाध्य� और राज्य� क�
प�रषद के अध्य� और उपाध्य� और �वधान
सभा के अध्य� और उपाध्य� और अध्य�
�कसी राज्य के �वधान प�रषद के उपाध्य�,
सव�च्च न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च
न्यायालय और भारत के �नयंत्रक और
महालेखा पर��क राज्य� और क�द्रशा�सत
प्रदे श� और उनके �ेत्र� क� सूची।
तीसर� अनुसूची शपथ का प्रारूप।
चौथी अनुसूची राज्य� क� प�रषद म� सीट� के आवंटन का
प्रावधान।
पांचवीं अनस
ु च
ू ी अनस
ु �ू चत �ेत्र� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय�
के प्रशासन और �नयंत्रण का प्रावधान।
छठ� अनुसूची असम, मेघालय, �त्रपुरा और �मजोरम राज्य�
म� जनजातीय �ेत्र� के प्रशासन के प्रावधान।
सातवीं अनुसूची संघ सूची, राज्य सूची और समवत� सूची।
आठवीं अनुसूची मान्यता प्राप्त भाषाओं क� सूची।
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नौवीं अनस
ु च
ू ी कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� के सत्यापन
के प्रावधान।
दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर अयोग्यता के
प्रावधान।
ग्यारहवीं अनुसूची पंचायत� क� शिक्तयाँ, अ�धकार और
उ�रदा�यत्व।
बारहवीं अनस
ु ूची नगर पा�लकाओं क� शिक्तयाँ, अ�धकार और
उ�रदा�यत्व।
तीसर� अनुसूची शपथ का प्रारूप।
चौथी अनस
ु च
ू ी – राज्य� क� प�रषद म� चौथी अनस
ु च
ू ी – राज्य� क� प�रषद म� सीट�
सीट� के आवंटन का प्रावधान। के आवंटन का प्रावधान।

अ�खल भारतीय सेवाएं एवं उनक� चयन


पद्ध�त
स्वतंत्रता के पहले भारतीय �स�वल सेवा (आईसीएस) भारत म� सभी सेवाओं म� व�रष्ठतम थी।
आईसीएस के आलवा भारतीय पु�लस सेवा भी थी। स्वतंत्रता के बाद ऐसा अनुभव �कया गया
�क यद्य�प आईसीएस शाह� काल क� बपौती थी, राष्ट्र क� एकता, अखण्डता और िस्थरता को
बनाए रखने के �लए अ�खल भारतीय सेवाओं क� आवश्यकता थी। इसके अनुसार क�द्र और
राज्य� के �लए एक समान एक या अ�धक अ�खल भारतीय सेवाओं का सज
ृ न करने के �लए
सं�वधान के अनुच्छे द 312 म� एक प्रावधान �कया गया। भारतीय प्रशास�नक सेवा और
भारतीय पु�लस सेवा सं�वधान के अनुच्छे द 312 क� तजर् पर संसद द्वारा ग�ठत होती है ।
सं�वधान के लागू होने के बाद, एक नया अ�खल भारत सेवा अथार्त भारतीय वन सेवा वषर्
1966 म� सिृ जत क� गई। अ�खल भारत क� समान �व�शष्टता यह है �क इन सेवाओं के
सदस्य� क� �नयुिक्त क�द्र द्वारा क� जाती है परन्तु उनक� सेवाएं �व�भन्न राज्य संवग� म� द�
जाती ह� और उनके �लए राज्य और क�द्र दोन� के अधीन सेवा दे ने का दा�यत्व होता है ।
अ�खल भारत सेवाओं के ये पहलू भारतीय संघ क� क�द्र�य �वशेषता को मजबत
ू करते ह�।इसके
अ�धकार� अ�खल भारतीय प्रशास�नक सेवा के अ�धकार� है । भारतीय प्रशास�नक सेवा (तथा
भारतीय प�ु लस सेवा) म� सीधी भत� संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोिजत �स�वल सेवा
पर��ा के माध्यम से क� जाती है तथा उनका आवंटन भारत सरकार द्वारा राज्य� को कर
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�दया जाता है । आईएएस अ�धकार� क�द्र�य सरकार, राज्य सरकार� और सावर्ज�नक �ेत्र के
उपक्रम� म� रणनी�तक और महत्वपूणर् पद� पर काम करते ह�। सरकार के वेस्ट�मंस्टर प्रणाल�
ू रे दे श� क� तरह, भारत म� स्थायी नौकरशाह� के रूप म� आईएएस भारत सरकार के
के बाद दस
कायर्कार� का एक अ�वभाज्य अंग है , और इस�लए प्रशासन को तटस्थता और �नरं तरता प्रदान
करता है ।
तीन अ�खल भारत सेवाओं अथार्त भारतीय प्रशास�नक सेवा (आईएएस), भारतीय पु�लस सेवा
(आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस) म� का�मर्क, लोक �शकायत और प� शन
मंत्रालय आईएएस का संवगर् �नयंत्रण प्रा�धकार� है । सभी तीन सेवाओं क� �नयुिक्त संघ लोक
सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा क� जाती है । इन अ�धका�रय� क� �नयुिक्त और इनका
प्र�श�ण क�द्र सरकार द्वारा �कया जाता है और उन्ह� �व�भन्न राज्य संवग� म� आबं�टत �कया
जाता है ।
भारत के सं�वधान संघ एवं राज्य� के �लए समान अ�खल भारतीय सेवाओं के सज
ृ न क�
व्यवस्था करता है । अ�खल भारतीय सेवाएं अ�ध�नयम, 1951 म� यह प्रावधान �कया गया है
�क क�द्र�य सरकार, अ�खल भारतीय सेवाओं पर �नयुक्त व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत�
को �व�नय�मत करने के �लए �नयमावल� बना सकती है । वतर्मान म� केवल भारतीय
प्रशास�नक सेवा, भारतीय प�ु लस सेवा और भारतीय वन सेवा को अ�खल भारतीय सेवाओं के
रूप म� ग�ठत �कया गया है । इन सेवाओं पर भत� तदनुरूप अ�खल भारतीय सेवा भत�
�नयमावल� के तहत क� जाती है और सीधी भत� (प्र�तयो�गता पर��ा के माध्यम से) तथा
राज्य संवा (संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संयोिजत स�म�त के माध्यम से) से पदोन्न�त के
द्वारा भत� क� जाती है । अ�खल भारतीय सेवा शाखा राज्य सरकार सेवा से पदोन्न�त के
माध्यम से भत� से संबं�धत है जो �क क्रमश: भारतीय प्रशास�नक सेवा./भारतीय पु�लस सेवा/
भारतीय वन सेवा पदोन्न�त �व�नयम द्वारा शा�सत क� जाती है ।
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अ�खल भारतीय सेवा

भारतीय �स�वल सेवा

भारतीय प�ु लस
सेवा

भारतीय वन
सेवा
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भाग 1 – दण्ड सं�हता


(यहाँ डाउनलोड कर� )

भाग 2 – प्रावधान और अ�ध�नयम


(यहाँ डाउनलोड कर� )
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