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UP SI Mool Vidhi Part 3
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मल
ू �वधान / सं�वधान
भाग 3 – सं�वधान
• सं�वधान का उद्दे श्य ........ (पष्ृ ठ सं : 3 – 5)
• कानन
ू बनाने का अ�धकार ........ (पष्ृ ठ सं : 9)
सं : 15 - 17)
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ू �वधान / सं�वधान भाग 1 – दण्ड सं�हता
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मुख्य �बंद ु :
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सं�वधान
सं�वधान का उद्दे श्य
सं�वधान शब्द लै�टन भाषा के शब्द ‘ ग�ठत ‘ से बना है िजसका अथर् है ‘स्था�पत करना’ है ।
भारतीय सं�वधान 9 �दसंबर 1946 से शुरू होकर 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुआ। यह
26 जनवर� 1950 को अिस्तत्व म� आया। इसके �नमार्ण म� 2 वषर् 11 मह�ने और 18 �दन
का समय लगा। सं�वधान का मख्
ु य उद्दे श्य एक ऐसी व्यवस्था का �नमार्ण करना जो
समाज के हर वगर् को न्याय �दला सके । सबको आगे बढ़ने का सामान अवसर �मले , एक
ऐसी व्यवस्था जो जा�त धमर् सम्प्रदाय से परे हो । �नसंदेह आज हमारे पास बेहतर न्याय
व्यवस्था है ,आगे बढ़ने के पयार्प्त अवसर है पर सवाल यह उठता है क� क्या स�र साल से
ज्यादा वक्त बीत जाने पर हम सं�वधान के उद्दे श्य� को पूरा करने म� सफल रहे ह�?
सं�वधान कुछ बु�नयाद� कानून बनाता है । ये कानून समझाते ह� �क समाज पर �कसका
शासन होना चा�हए और यह कैसे होना चा�हए। इसे राष्ट्र�य पहचान या मौ�लक पहचान कहा
जाता है । लोग� द्वारा बु�नयाद� �नयम� और �व�नयमन को स्वीकार करके इसे राजनी�तक
पहचान कहा जाता है । नै�तक पहचान का मतलब है �क क्या करना चा�हए और क्या नह�ं
करना चा�हए। यह समाज के मूल्य� का प्र�त�न�धत्व करता है । इसे नै�तक पहचान कहा
जाता है ।
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मौ�लक अ�धकार
मौ�लक अ�धकार उन अ�धकार� को कहा जाता है जो व्यिक्त के जीवन के �लये प्राकृ�तक होने के
कारण सं�वधान द्वारा नाग�रक� को प्रदान �कये जाते ह� और िजनम� राज्य द्वार हस्त�ेप नह�ं �कया
जा सकता। ये ऐसे अ�धकार ह� जो व्यिक्त के व्यिक्तत्व के पूणर् �वकास के �लये आवश्यक ह� और
िजनके �बना मनुष्य अपना पूणर् �वकास नह� कर सकता। मूल सं�वधान म� सात मौ�लक अ�धकार थे,
ले�कन 44व� सं�वधान संशोधन के द्वारा संप�� का अ�धकार को मौ�लक अ�धकार क� सूची से हटाकर
इसे सं�वधान के अनुच्छे द 300 (a) के अन्तगतर् क़ानूनी अ�धकार के रूप म� रखा गया है । इसे संयुक्त
राज्य अमे�रका के सं�वधान से �लया गया है । मौ�लक अ�धकार नाग�रक और रहे वासी को राज्य क�
मनमानी या शो�षत नी�तयो और कायर्वाह� के सामने र�ण प्रदान करने के �लए �दये गए। सं�वधान
के अनुच्छे द 12 मे राज्य क� प�रभाषा द� हुई है क� “राज्य” के अंतगर्त भारत क� सरकार और संसद
तथा राज्य� म� से प्रत्येक राज्य क� सरकार और �वधान- मंडल तथा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या
भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्रा�धकार� ह�।
अ�धकार
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संवध
ै ा�नक उपचार� का अ�धकार अनच्
ु छे द 32
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USSR के सं�वधान से प्रे�रत है । इसे श्री स्वणर् �संह स�म�त क� �सफा�रश पर आंत�रक आपातकाल
क� ज़रूरत एवं आवश्यकताओ को पूरा करने के �लए लाया गया था। इसके अनुसार भारत के प्रत्येक
नाग�रक का क�र्व्य होगा �क वह-
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सामान्य रूप से प्रभुस�ा का �वभाजन संघीय एवं राज्यसरकार� के मध्य उनके सं�वधान म� उिल्ल�खत
होता है जो उस सं�वदा को अं�तम रूप से पुष्ट करता है । भारतीय सं�वधान का संघीय च�रत्र इसक�
प्रमुख �वशेषताओं म� से एक है , हालाँ�क भारतीय सं�वधान म� कह�ं भी महासंघ या फेडरे शन शब्द का
प्रयोग नह�ं �कया गया है । बिल्क इसके स्थान पर भारतीय सं�वधान म� भारत को ‘राज्य� के संघ’ के
रूप म� संबो�धत �कया गया है । इसम� राज्य स्वयं कायर्भार वहन करते ह� एवं उसके प्र�तरूप अ�धकार
एवं साधन के रूप म� प्रदान कर दे ते ह�।वास्तव म� महासंघ दो तरह क� सरकार� के बीच स�ा साझा
करने और उनके संबं�धत �ेत्र� को �नयं�त्रत करने हे तु एक समझौता है ।संघवाद सरकार का वह रूप है
िजसम� दे श के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद ह�- पहला क�द्र�य स्तर पर और दस
ू रा
स्थानीय या राज्यीय स्तर पर कायर् करती है । सहकार� संघवाद म� क�द्र व राज्य एक-दस
ू रे के साथ
�ै�तज संबंध स्था�पत करते हुए एक-दस
ू रे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास
करते ह�। सहकार� संघवाद क� इस अवधारणा म� यह स्पष्ट �कया जाता है �क क�द्र और राज्य म� से
कोई भी �कसी से श्रेष्ठ नह�ं है ।
क�द्र और राज्य� के बीच संबंध� का उल्लेख सं�वधान के भाग XI और XII म� �वधायी, प्रशास�नक तथा
�व�ीय संबंध� के तहत �कया गया है ।
भारत म� ग�ठत कुल 5 �ेत्रीय प�रषद� पर सिम्म�लत राज्य� के नाम इस प्रकार ह�:
उ�र� �ेत्रीय प�रषद: पंजाब, ह�रयाण, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, �हमांचल प्रदे श राज्य तथा
चंडीगढ़ एवं �दल्ल� संघ राज्य �ेत्र ।
मध्य �ेत्रीय प�रषद: उ�र प्रदे श, मध्य प्रदे श, उ�राखंड एवं छ�ीसगढ़ ।
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पूव� �ेत्रीय प�रषद: �बहार, पिश्चम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, असम, �सिक्कम, म�णपुर, �त्रपुरा,
मेघालय, नागाल�ड, अरुणाचल प्रदे श तथा �मजोरम।
पिश्चम �ेत्रीय प�रषद: गज
ु रात, महाराष्ट्र, गोवा राज्य, दमन द�व एवं दादर तथा नागर हवेल�
संघ राज्य �ेत्र ।
द��णी �ेत्रीय प�रषद: आंध्र प्रदे श, केरल, कनार्टक एवं त�मलनाडु राज्य एवं पुदच
ु ेर� संघ राज्य
�ेत्र ।
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केन्द्र�य सूची
राज्य सच
ू ी
समवत� सूची
कानन
ू � को तीन सच
ू ी के अंतगर्त
रखा जाता है ।
स्थानीय शासन
इस संदभर् म� वषर् 1882 को काफ� मह�वपूणर् माना जाता है , क्य��क इसी वषर् भारत के तत्काल�न
वायसराय लॉडर् �रपन ने �नवार्�चत स्थानीय सरकार� �नकाय के गठन क� पहल क� थी, उल्लेखनीय है
�क उस समय इन्ह� मुकामी बोडर् कहा जाता था। स्थानीय शासन द्वारा स्वशासन क� व्यवस्था को
स्थानीय स्वाय� शासन कहते ह�। स्थानीय स्वाय� शासन के दो मल
ू कारण ह�- पहला, यह व्यवस्था
शासन को �नचले स्तर तक लोकतां�त्रक बनाती है ; दस
ू रा, स्थानीय लोग� क� भागीदार� स�म बनाती
है , साथ ह� लोग� को शासन क� कला का �ान होता है। स्थानीय स्वशासन म� स्थानीय लोग� क�
भू�मका महत्वपूणर् होती है क्य��क वे स्थानीय समस्याओं को बेहतर ढं ग से समझ सकते ह� और
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उसके समाधान को भी आसानी से ढूंढ सकते ह�। अतः स्थानीय स्व-शासन का तात्पयर् है - स्थानीय
लोग� क� भागीदार� द्वारा स्थानीय शासन क� व्यवस्था सुचारू रूप से करना और उस व्यवस्था को
लोकतां�त्रक बनाना, िजससे समस्या का �नदान भी हो और लोकतां�त्रक स्वरूप क� �नचले स्तर तक
स्वस्थ व्यवस्था भी स्था�पत हो।
73वाँ सं�वधान संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकार से संबं�धत है , िजन्ह� पंचायती राज संस्थान�
के रूप म� भी जाना जाता है । इसम�
�त्र-स्तर�य
प्रत्य� चुनाव
आर�ण
राज्य चुनाव आयुक्त
74वाँ सं�वधान संशोधन शहर� स्थानीय सरकार से संबं�धत है , िजन्ह� नगरपा�लका भी कहा
जाता है । इसके अंतगर्त अनुच्छे द 243P से 243ZG तक नगरपा�लकाओं से संबं�धत उपबंध
�कये गए ह�। नगरपा�लकाओं का गठन अनुच्छे द 243Q म� नगरपा�लकाओं के तीन स्तर� के
बारे म� उपबंध ह�।
नगर पंचायत - ऐसे संक्रमणशील �ेत्र� म� ग�ठत क� जाती है , जो गाँव से शहर� म� प�रव�तर्त
हो रहे ह�।
नगरपा�लका प�रषद - इसे छोटे शहर� अथवा लघु नगर�य �ेत्र� म� ग�ठत �कया जाता है ।
नगर �नगम - बड़े नगर�य �ेत्र� , महानगर� म� ग�ठत क� जाती है ।
हमारा दे श स्वतंत्रता उपरांत क�द्र-राज्य संबंध का मसला अत्या�धक संवेदनशील मामला रहा है।[1]
�वषय चाहे अलग भाषाओं क� पहचान, असमान �वकास, राज्य� के गठन का हो, पन
ु गर्ठन का हो या
�फर �वशेष राज्य का दजार् दे ने से जड़
ु ा हो। ये सब क�द्र-राज्य संबंध� क� सीमा म� आते ह�। इनके
अलावा दे श म� �श�ा, व्यापार जैसे �वषय� पर नी�त �नमार्ण के सवाल उठने पर भी उसके केन्द्र म� है
क�द्र और राज्य के बीच म� इनको लेकर क्या आपसी समझ है , यह� मह�वपण
ू र् होता है । सं�वधान के
भाग- XI म� अनच्
ु छे द 245 से 255 तक केन्द्र-राज्य �वधायी संबध
ं � क� चचार् क� गई है । इसके
अ�त�रक्त कुछ अन्य अनुच्छे द भी इस �वषय से संबं�धत ह�।
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अनुच्छे द 257 कुछ मामल� म� राज्य पर केन्द्र �नयंत्रण क� बात करता है । राज्य कायर्पा�लका शिक्त
इस तरह प्रयोग म� ल� जाये �क वह संघ कायर्पा�लका से संघषर् न करे । केन्द्र अनेक �ेत्र� म� राज्य
को उसक� कायर्पा�लका शिक्त कैसे प्रयोग करे इस पर �नद� श दे सकता है । य�द राज्य �नद� श पालन
म� असफल रहा तो राज्य म� राष्ट्रप�त शासन तक लाया जा सकता है ।
अनच्
ु छे द 258[2] के अनुसार संसद को राज्य प्रशास�नक तंत्र को उस तरह प्रयोग लेने क� शिक्त दे ता
है िजनसे संघीय �व�ध पा�लत हो केन्द्र को अ�धकार है �क वह राज्य म� �बना उसक� मज� के सेना,
केन्द्र�य सरु �ा बल तैनात कर सकता है । अ�खल भारतीय सेवाएँ भी केन्द्र को राज्य प्रशासन पे
�नयंत्रण प्राप्त करने म� सहायता दे ती ह�। अनु 262 संसद को अ�धकार दे ता है �क वह अंतराज्य जल
�ववाद को सल
ु झाने हे तु �व�ध का �नमार्ण करे संसद ने अंतराज्य जल �ववाद तथा बोडर् एक्ट पा�रत
�कये थे। अनु 263 राष्ट्रप�त को शिक्त दे ता है �क वह अंतराज्य प�रषद स्था�पत करे ता�क राज्य�
के मध्य उत्पन्न �भन्न मतान्तर सल
ु झा सके।
�नवार्चन
आयोग म� वतर्मान म� एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते ह�। जब यह पहले पहल
1950 म� ग�ठत हुआ तब से और 15 अक्टूबर, 1989 तक केवल मुख्य �नवार्चन आयुक्त स�हत यह
एक एकल-सदस्यीय �नकाय था। 1993 से यह तीन-सदस्यीय �नकाय बन गया। इसका गठन भारत
म� स्वतंत्र एवं �नष्प� रूप से �व�भन्न से भारत के प्रा�त�न�धक संस्थान� म� प्र�त�न�ध चुनने के �लए
�कया गया था। भारतीय चन
ु ाव आयोग क� स्थापना 25 जनवर� 1950 को क� गयी थी।मुख्य चुनाव
आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त� क� �नयुिक्त भारत का राष्ट्रप�त करता है । मुख्य चुनाव आयुक्त
का कायर्काल 6 वषर् या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जब�क अन्य चुनाव आयुक्त� का
कायर्काल 6 वषर् या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता ह�। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन
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भारत के सव�च्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है । मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा
महा�भयोग के ज�रए ह� हटाया जा सकता ह�।
भारत �नवार्चन आयोग के पास �वधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रप�त आ�द चुनाव से
सम्बं�धत स�ा होती है जब�क ग्रामपंचायत, नगरपा�लका, महानगर प�रषद् और तहसील एवं िजला
प�रषद् के चुनाव क� स�ा सम्बं�धत राज्य �नवार्चन आयोग के पास होती है ।
सव�च्च न्यायालय के �नणर्यानुसार अनु 324[1] मे �नवार्चन आयोग क� शिक्तयाँ कायर्पा�लका द्वारा
�नयं�त्रत नह�ं हो सकती उसक� शिक्तयां केवल उन �नवार्चन संबंधी संवैधा�नक उपाय� तथा संसद
�न�मर्त �नवार्चन �व�ध से �नयं�त्रत होती है �नवार्चन का पयर्वे�ण, �नद� शन, �नयंत्रण तथा आयोजन
करवाने क� शिक्त मे दे श मे मुक्त तथा �नष्प� चुनाव आयोिजत करवाना भी �न�हत है जहां कह�
संसद �व�ध �नवार्चन के संबंध मे मौन है वहां �नष्प� चुनाव करवाने के �लये �नवार्चन आयोग
असी�मत शिक्त रखता है यध�प प्राकृ�तक न्याय, �व�ध का शासन तथा उसके द्वारा शिक्त का
सदप
ु योग होना चा�हए
�नवार्चन आयोग क� शिक्तयाँ �नवार्चन �व�धय� क� पूरक है न �क उन पर प्रभावी तथा वैध प्र�क्रया
से बनी �व�ध के �वरूद्ध प्रयोग नह� क� जा सकती है
इलेक्ट्रॉ�नक मतदान मशीन का प्रयोग �कया जा सकेगा. वषर् 2004 के लोकसभा चुनाव मे
इनका सवर्त्र प्रयोग हुआ तथा 2014 के बाद लगातार मतदान म� इसका उपयोग होता आ रहा
है
राजनै�तक दल� का �नवार्चन आयोग के पास अ�नवायर् पंजीकरण करवाना होगा य�द वह
चुनाव लड़ना चाहे तो कोई दल तभी पंजीकृत होगा जब वह सं�वधान के मौ�लक �सद्धांत� के
पालन करे तथा उनका समावेश अपने दल�य सं�वधान मे कर�
मतदान केन्द्र पर कब्जा, जाल� मत
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संवैधा�नक अनुसू�चयां
भारत का सं�वधान द�ु नया का सबसे बड़ा �ल�खत सं�वधान है , इसम� 448 अनुच्छे द, 25 भाग
और 12 अनुसू�चयां है । भारत का सं�वधान, नाग�रक� और सरकार द्वारा अपनाई जाने वाल�
और पालन क� जाने वाल� सं�हता, प्र�क्रयाओं, अ�धकार�, कतर्व्य�, �नयम� और �व�नयम� को
समेटे हुए है । बी. आर. अम्बेडकर इसके मुख्य �नमार्ता और “भारतीय सं�वधान के जनक” के
रूप म� जाने जाते है । सं�वधान को 26 नवंबर 1949 को भारत क� सं�वधान सभा द्वारा
अपनाया गया था और 26 जनवर� 1950 को लागू हुआ था िजसे गणतंत्र �दवस के रूप म�
मनाया जाता है । शुरुआत के समय, इसम� 225 अनुच्छे द 22 भाग और 8 अनुसू�चयां थी।
अब तक सं�वधान म� 104 संशोधन �कए जा चुके ह�। भारतीय सं�वधान के भाग, और
अनुसू�चय� के साथ-साथ कुछ प्रमुख अनुच्छे द� के बारे म� �वस्तार से जान�।
अनुसू�चयां �वषय
पहल� अनस
ु च
ू ी राज्य� और क�द्र शा�सत प्रदे श� और उनके
प्रदे श� क� सच
ू ी
द्�वतीय अनस
ु ूची राष्ट्रप�त, राज्यपाल�, राज्य� के अध्य�, अध्य�
और लोक सभा के उपाध्य� और राज्य� क�
प�रषद के अध्य� और उपाध्य� और �वधान
सभा के अध्य� और उपाध्य� और अध्य�
�कसी राज्य के �वधान प�रषद के उपाध्य�,
सव�च्च न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च
न्यायालय और भारत के �नयंत्रक और
महालेखा पर��क राज्य� और क�द्रशा�सत
प्रदे श� और उनके �ेत्र� क� सूची।
तीसर� अनुसूची शपथ का प्रारूप।
चौथी अनुसूची राज्य� क� प�रषद म� सीट� के आवंटन का
प्रावधान।
पांचवीं अनस
ु च
ू ी अनस
ु �ू चत �ेत्र� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय�
के प्रशासन और �नयंत्रण का प्रावधान।
छठ� अनुसूची असम, मेघालय, �त्रपुरा और �मजोरम राज्य�
म� जनजातीय �ेत्र� के प्रशासन के प्रावधान।
सातवीं अनुसूची संघ सूची, राज्य सूची और समवत� सूची।
आठवीं अनुसूची मान्यता प्राप्त भाषाओं क� सूची।
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नौवीं अनस
ु च
ू ी कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� के सत्यापन
के प्रावधान।
दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर अयोग्यता के
प्रावधान।
ग्यारहवीं अनुसूची पंचायत� क� शिक्तयाँ, अ�धकार और
उ�रदा�यत्व।
बारहवीं अनस
ु ूची नगर पा�लकाओं क� शिक्तयाँ, अ�धकार और
उ�रदा�यत्व।
तीसर� अनुसूची शपथ का प्रारूप।
चौथी अनस
ु च
ू ी – राज्य� क� प�रषद म� चौथी अनस
ु च
ू ी – राज्य� क� प�रषद म� सीट�
सीट� के आवंटन का प्रावधान। के आवंटन का प्रावधान।
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�दया जाता है । आईएएस अ�धकार� क�द्र�य सरकार, राज्य सरकार� और सावर्ज�नक �ेत्र के
उपक्रम� म� रणनी�तक और महत्वपूणर् पद� पर काम करते ह�। सरकार के वेस्ट�मंस्टर प्रणाल�
ू रे दे श� क� तरह, भारत म� स्थायी नौकरशाह� के रूप म� आईएएस भारत सरकार के
के बाद दस
कायर्कार� का एक अ�वभाज्य अंग है , और इस�लए प्रशासन को तटस्थता और �नरं तरता प्रदान
करता है ।
तीन अ�खल भारत सेवाओं अथार्त भारतीय प्रशास�नक सेवा (आईएएस), भारतीय पु�लस सेवा
(आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस) म� का�मर्क, लोक �शकायत और प� शन
मंत्रालय आईएएस का संवगर् �नयंत्रण प्रा�धकार� है । सभी तीन सेवाओं क� �नयुिक्त संघ लोक
सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा क� जाती है । इन अ�धका�रय� क� �नयुिक्त और इनका
प्र�श�ण क�द्र सरकार द्वारा �कया जाता है और उन्ह� �व�भन्न राज्य संवग� म� आबं�टत �कया
जाता है ।
भारत के सं�वधान संघ एवं राज्य� के �लए समान अ�खल भारतीय सेवाओं के सज
ृ न क�
व्यवस्था करता है । अ�खल भारतीय सेवाएं अ�ध�नयम, 1951 म� यह प्रावधान �कया गया है
�क क�द्र�य सरकार, अ�खल भारतीय सेवाओं पर �नयुक्त व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत�
को �व�नय�मत करने के �लए �नयमावल� बना सकती है । वतर्मान म� केवल भारतीय
प्रशास�नक सेवा, भारतीय प�ु लस सेवा और भारतीय वन सेवा को अ�खल भारतीय सेवाओं के
रूप म� ग�ठत �कया गया है । इन सेवाओं पर भत� तदनुरूप अ�खल भारतीय सेवा भत�
�नयमावल� के तहत क� जाती है और सीधी भत� (प्र�तयो�गता पर��ा के माध्यम से) तथा
राज्य संवा (संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संयोिजत स�म�त के माध्यम से) से पदोन्न�त के
द्वारा भत� क� जाती है । अ�खल भारतीय सेवा शाखा राज्य सरकार सेवा से पदोन्न�त के
माध्यम से भत� से संबं�धत है जो �क क्रमश: भारतीय प्रशास�नक सेवा./भारतीय पु�लस सेवा/
भारतीय वन सेवा पदोन्न�त �व�नयम द्वारा शा�सत क� जाती है ।
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भारतीय प�ु लस
सेवा
भारतीय वन
सेवा
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