कोत निदरा् याओ माया-पिशाचीर कोले ।१। मजिबो बोलिया एसे संसारभितोरे । भु लिया रोहिले सु मि अविद्यार भोरे ।२। तोमारे लोइते आमि होइनु अवतार । आमि विना बन्धु आर के आछे तोमार ।३। एने छि औषधी माया नाशिबारो लागि । हरिनाम महामंतर् लओ तु मि मागि' ।४। भकतिविनोद प्रभु चरणे पोडिया। से इ हरिनाम मंतर् लोइलो मागिया ।५।
१. भगवान् श्रीगौरचन्दर् पु कार रहे हैं , "उठो, उठो! सोती आत्माओं
उठ! लम्बे काल से तु म माया पिशाचिनी की गोद में सो रहे हो! २. "इस जन्म-मृ त्यु के सं सार में आते समय तु मने कहा था "हे भगवन्! निश्चित् ही मैं आपका भजन करूँगा, किन्तु अब तु म अपने उस वचन को भूल गये और अविद्या के अं धकार में डूब गये । ३. "केवल तु म्हारे उद्धार हे तु मैं ने अवतार लिया है । मे रे अतिरिक्त आखिर तु म्हारा कौन मित्र है ? ४. 'मैं मायारूपी रोग को जड़ से उखाड़ने की औषधी लाया हँ ।ू अब प्रार्थना करते हुए यह हरे कृष्ण महामं तर् मु झसे ले लो।" ५. भक्तिविनोद श्रीगौरां ग महाप्रभु के चरणों पर गिर पड़ते हैं और हरिनाम की भिक्षा माँ गने के पश्चात् उन्हें महामं तर् प्राप्त होता है । ***