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Banaras Wala Isaq
Banaras Wala Isaq
çHkkr cka/kqY;k
Blue Rose
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ISBN: 978-93-866673-68-8
Price: INR 150
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हद को हद के तरह प ढयेगा ...... अपनी वाली हद क तरह ,बोले जाने वाली हद
क तरह। ामर के फेरा म मत प ढ़एगा वना मजा कर करा हो जायेगा। वही प ढ़ए
जो हम पढ़ाना चाहते ह।
आभार
भात बांधु या
8932009646
@pbandhulya
https://www.facebook.com/prabhat.bandhulya
लाल सलाम !!! लॉ फैक ट म श द कह के दे खये अलग-अलग त या से कान
कनफु जया जायेगा
म ा जी ---- जय ीराम
संद प भाई ----- लाल सलाम कॉमरेड
शु ला जी ----- अबे जो बे
के ऍम पा डे य ----- सुथनी
यादव जी ------ भौजाई
अ हरी ----- कोई नई आइल बया का
सं कार ----- ां त आ कर रहेगी
बाबू साहब------ ऊ तो म ा जी के जान हया
आगे आइये साहब आपको सरे खेमे से भी मुलाकात करवा दे संद प भाई जी हाँ लाल
सलाम वाले कॉमरेड संद प दन भर मनुवाद और ा णवाद को ग रयाते नजर आते। पहले
छतुपुर म थे पर इनको जैसे ही हो टल मला छतुपुर से भगवानदास तक द लत पछडो
को एक करने लगे। लड़ कयाँ को टारगेट कर कॉमरेड बनाने का या चलाने म ए सपट
संद प भाई को झटका तब लगा जब एक जू नयर के पीछे पूरा साल लगा दए और बाद म
पता चला क वो संघी है। वो लड़क भी शा तर पुरे एक साल इनसे ले नन और मा स
पढ़ती रही और अपना इ का का प ा साल के अंत म फक ।
(संद प भाई)
रौल न -151
यस सर !!!!
अरे वाह बड़ा भा यशाली हउअ हो, एक सौ एकावन रौल न. पइले हउअ।
जी 151!
हम ही थे, हम यानी बनारस वाला इ क के लेखक। मगध यू नव सट से फ ज स ेजुएट,
काशी ह व व म कानून पढ़ने आये थे और लख इ क रहे थे ।
आराम से एक –एक लाइन से होते ऐ गुज रये और प ढ़ए अबतक के सबसे बेहतर इ क
को ।
रॉल नंबर 95 से शु होने वाला से न 'बी' म आपका वागत है।अब अपना इं
एडवोकेट इं जीत हो गया है। शु ला जी और व नाथ गली वाले यादव जी बनारस
कचहरी म माया फैला रहे ह। बहार वाले यादव जी इलाहाबाद नकल लए एल. एल. एम
करने। पा डे य जी सु ीम कोट से हाई कोट का च कर काट रहे है , वषधर द ली को चग
करने नकल लया है , बजरंगदल वाले यादव जी अगले वधायक के दावेदार है और म
इ क लख रहा ँ , ऐसा इ क जो तन साल मेरे पीछे और एक साल मेरे सामने चला है
यानी (2010-2014)। चार साल क यह ेम कहानी और इसमे मु य भू मका म है बुबुन
म ा और सोनल सह ( ठकुराइन )।
रौल न बर 95 एकदम खुश मजाज इंसान, बनारसी अंदाज सबकुछ क रये इनके साथ पर
इनके नाम का शाट फ़ॉम बनाने का यास न कर । इसी शाट फ़ॉम के च कर म शु ला जी
फेरा म पड़ गए थे ।
अरे भाई साहब वही शु ला जी चाय और चचा वाले जनका दल झारख ड वाली मैडम
पर अटका था। आपके लास म भी ऐसे कई शु ला, म ा, यादव और ठाकुर ह गे जो हर
लास के बाद चाय पीने
नकल जाते ह गे ।
गीलट माइंड और क पेबल होमीसाइड से ार आ लास राईट टू लाइफ तक आते
-आते दम तोड़ दे ता ।
"एकदम कूल के जैसा लास चलता है इहा तो " पसीना पोछते ऐ चतुवद जी कहते
........ तो उधर से चार मला (चार लोग) जबाब दे ते " इहे कारण न लॉ कूल नाम ह "।
जी हाँ लॉ कूल म कूल के तरह पढ़ाई चलती है भाई साहब मन है तबो और न मन है तबो
लास म बैठना ही है।
हालाँ क इंटरनेशनल लॉ के लास म पीछे से भागने क या रोज चलती थी। जा
दे खना है तो इंटरनेशनल लॉ के लास म बै ठये और अटडस होते ही टू डट् स क सं या
आधी होते दे खये। हमलोग सोच करते थे क हम चूना लगा रहे ह, पर वा तव म चूना
हमलोग का लग रहा था। डै श के ऊपर खड़े इंसान व ान् थे और बस मु कुराते रहते जैसे
कोई भगवान कह रहे ह क ब े नादान है , हे भु इ ह माफ़ करना।
ये आपके सामने पहली समे टर का टाइम टे बल चपका रहा ँ --------ए. के पा डे य सर
का वेश होते ही आज का दन शु आ।
पहला सवाल छा के बीच ---- हाई यू आर इन लॉ , हाई नॉट एनी अदर ॉफेशन ?
कुछ लड़ कयाँ चहक-चहक जबाब दे रही थ और लड़के भी महौल टाइट कये ऐ थे क
कृ णमोहन पा डे य कह दए, गु जी नेता बनना है इस लए लॉ करने आये ह।
गु जवाब चौचक दया है इ जवान (इ स च रहे थे, य क उस समय प रचय न आ
था)। च लए साहब आपको दे ख के लगता है अब कुछ सुधार आएगी भारतीय राजनी त
म'।
बोड पर अगला सवाल था
हाट इज ाइम ?? और यह कल का टॉ पक आ साहब, कुछ आपलोग पढ़ के आईये (
आज का सेवा समा त आ)
म ा जी मतलब भौकाल
'ये भैया जरा उ ोफेसर के बोल द जये न थोडा नबर ोजे ट म मलजाये '
कोई भी काम करवाना है म लए भाई म ा जी से । यहाँ तक ोफेसरभी आकर कहते क
ये म ा जी कौन ह भाई, ऊपर से आडर आया है मलने का ।
अब कोई मामला अगर गु जी लोग का भी फँस जाये तो वीसी साहब से इतना ब ढ़या
प रचय क म ा जी चुटक म सुलझा द। यही वजह थी क लोग ब त मानते थे म ा जी
को ।
म ा जी तो ऐसे म हला से घरे रहते,पर उनक बस एक ही खास थी सोनल सह जसे
म ा जी घेरे रहते। म ा जी क ठकुराइन। ठकुराइन बोले तो एकदम कोमल मन पर
कड़क मजाज, म ा जी के अलावा कसी क या मजाल क ठकुराइन को छे ड़ दे ।
हमलोग तो दे वर थे, भौजाई-भौजाई करते रहते पर कड़क मजाज के कारण कभी डर भी
लगता ।
यूँ तो हमारी सबसे पहली मुलाकात गया म ई थी पर इस बार बनारस के लहजे म बड़ी
कयामत लग रही थी बुबुन क ठकुराइन ।
अब पाँच साल बाद दे ख रहे थे अगर मा यम म ा जी न होते तो न वो मुझे पहचान पाती
और न म । हम भगवानदास हॉ टल म बैठे थे अपने म म डली म तब घघर आवाज के
साथ "तुमसा कोई यारा कोई मासूम नही है " बजने लगा । यही उन दन मेरे मोबाइल का
रग टोन आ करता था ।
म ा कॉ लग .......
हा हो बोला का बात
कहाँ हो ???
हो टल म है भाई कोई बात का ........
तेरी भाभी अ सी पर तेरा इंतजार कर रही है ।
अरे गु भउजी के बोला थोडा दे र और के हम फटफट से तुरंत प ँचत ह ।
म ा से मेरी यारी ब त पुरानी थी वरना अपनी महबूबा से भला कौन मलवाता है, वो भी
बनारस म।
साहब बनारस है तो बड़ा अपनापन का शहर पर कौन पं डत कैसा माया दे के आपक
दलो-जान को चुरा ले जायेगा खबर ही न लगेगी ।
'अरे काहे परेशान होती हो, चलो लंका छोड़ द लंका छोड़ने के बहाने आपको छोड़ने का
म कब फूँक दया गया आप समझ ही न पाएंगे ।
यादव जी का यार ले भागा उनका यार
यादव जी, जी हाँ व नाथ गली वाले बेचारे दल दे बैठे थे सरे दन के तीसरे लास म
यानी टोट का लास ।
"ये दे खये बात न क जये इधर यान द जये"
यादव जी लगे पड़े थे ग पयाने म और गु जी को ड टब हो रहा था ।
गु जी के कहने पर यादव जी सीट तो बदल लए पर दल वह अटक गया और ऐसा
अटका ससुर क तीन साल तक फँसा रहा ।
बनारस के थे ही ,बनारसी बोली बोलते इसी कारण सरे दे श से आई लड़ कयाँ इनक
दो त बन गई थ ।
अब दो त बन तो गई थी, पर उन दो त म से एक थी जो यादव जी को भा गई थी। सुबह
आने से लेकर शाम जाने तक बस उसी के याल म रहते। कट न से लेकर बाहर ाउं ड तक
यादव जी अब अपनापतरा दे ने लगे थे।
अपना ुप छोड़कर धीरे-धीरे म हला म डली क ओर श ट हो रहे थे। अब उन लोग के
साथ घूमना- फरना होने लगा तो हमलोग के साथ उठना-बैठना ब द हो गया। लास से
नकलते ही बाइक पर सवार होते और पीछे होती इनक म हला म और नकल लेते वीट
।
धीरे -धीरे एम पी वाली मैडम वाबो यालो क शहजाद बन गई, एक यारा ज बात
हलोरा मारने लगा। उनक सारी सहे लय को यादव जी के मन म छु पे यार का पता चल
चुका था। अब बथडे कसी का हो ,केक काटने म यादव जी शा मल होने लगे थे । जब
बथडे मना के आते तो इधर से उनका खूब वागत कया जाता अपने अंदाज म ।
कुल मला के सम झये ,इ क इधर का बाहर नकल आया था बस उधर के हाँ का इंतजार
था, पर जलनखोर क कमी भी तो न है इस फैक ट म, भाई साहब कुछ आगे बढ़ पाते,
उसके पहले ही प ा काट दया गया ।
महादे व के समीप रहते थे भाई साहब जी हाँ सही पकड़े है एकदमे व नाथ मं दर के बगल
म इनका मकान था। पूरे हाई से युरीट म रहते थे। अगर आपको इनके घर जाना है तो
पु लस से सामना करना ही होगा, खैर ई बात का फायदा भी यादव जी खूब उठाते थे,
भोलेनाथ से ब ढ़या वाला से टग था। हमलोग को बना लाइन म लगे महादे व से मलवा
दे ते ।
व व क लगभग हर लड़क इनके ड ल ट म मल जायेगी, जस कसी का नाम आप
डाले इ भाई साहब मचुअल म मौजूद रहगे। महादे व के कृपा से सब कुछ तो सही था पर
इहे कुल गड़बड़ा गया था क बनारसी ल डा एम पी म ससुराल बनाने का ज पाले ऐ था
और भौजाई मलन के मूड म थी ही नही ।
यादव जी ज पर अड़े ऐ थे क ससुराल बनेगा तो एम पी म ही। भाई साहब (यू +एम)
और पी कॉमन के च कर म थे, माने ल डा था यूपी का दल आया था एमपी के छोरी पे।
लड़क थी भी सुंदर और सुशील एकदम भारतीय नारी टाइप और मामला सेट भी हो जाता
पर जसके ुप म वषधर हो उसका आया तलक लौट जाये। अभी तो यहाँ कुछ
आ ही न था।
बेचारे भाई साहब का इ क अभी पनपा ही न था क दो पं डत के च कर म गँवा बैठे। एक
तो नाग, ऐसा डँसे क आदमी उठ न पाये और सरा मायावी और 2दोन काशी के पं डत ।
अभी नयन मलाया ही जा रहा था, फ ग सजाई ही जा रही थी क शोर हो गया ।
इ ेम बड़ा छु पा के शु करने क चीज है, बाद म पता चले तो ब ढ़या और अगर शु आत
म ही शोर हो जाये तो गुड़ गोबर। ठ क ऐसा ही आ इन यादव जी के साथ एक दन चाय
और चचा के समय दल क बात जुबान पर आ गई फर या अगले घ ट तक पूरे लास
को पता चल गया। बाक बचा काम वषधर कर गया। जहाँ मैडम को दे खता यादव जी का
नाम ले बुलाने लगता अब उ भी समझ गई थी क बनारस वाले
सब मलकर मजा ले रहे ह ।
तो धीरे धीरे कटने लगी, और अपने माया के दम पे हाँथ मार गए मायावी पं डत। अब यादव
जी और पं डत दोन जगरी यार थे पर इ सब मामला म यारी न चलता है। दो बाइक
फैक ट से नकलती थी एक पर तीन सवारी और जे पर केवल यादव जी। इ कुल इहे
पं डत का दे न था जो यादव जी अकेले हो गए थे ।
पर आज भी इ क ज दा है, इंतजार म ह यादव जी। अब तो भोकाल और टाइट है कचहरी
से लेकर व व तक आज भी लोग यादव जी को याद करते ह।
चाय और चचा
बनारस म चचा का अलग ही े ज है , फलां का बोला और उ नेतवा तो पूरा मॉडल सट
बनावे म लगा है , अबक बेरा का होइ हो ??
इस तरह के सवाल और जवाब म भड़े लोग आपको हर चौक चौराहे पर मल जायगे।
हम लॉ फैक ट म एड मशन लेते ही इन जगह के आ द हो गए थे। ध वंतरी पर जाना और
एक सरे क खचाई करते ऐ चाय क एक -एक चुसक लेना हर रोज जारी रहता था।
वषधर, शु ला, पा डे य और यादव जी लोग कुल मला के आठ लोग का ुप बन गया
था। इसमे इ का- का बाबू साहब लोग भी थे पर थम ा यह BY समीकरण था।
जी हाँ यादा दमाग पर जोर न डा लये BY माने ा ण लस यादव समीकरण क बात
कर रहे ह। आइये कुछ सं छ त प रचय इस ुप से करवा द आपको ।
व नाथ गली वाले यादव जी से तो आपको पछले प े म मलवा दए है अब आइये आगे
...
Y बरादरी से तो मला दए, आइये मलाएं आपको चाय और चचा पर मौजूद रहने वाले B
बरादरी से ।
शु ला जी
चाय क आदत लगाने वाले यही भाई साहब थे। हर घ ट के बाद धनवंतरी, इ ह के इशारे
पर चल दे ते थे हमलोग। ल बा कद, माट पसना लट हर लड़ कयां इनसे बात करना
चाहती थ , पर भाई साहब का दल तो झारख ड म अटका पड़ा था। कभी कुछ कह न पाये
पर, हमलोग क कृपा से पूरा व व जान गया था। मैडम भी जान ही चुक थी इसी कारण
तो जब भी सामना होता शरमा जाती थी। पुरे व व म प रचय था इनका, भोकाल मटे न
छोटा-बड़ा, यहाँ तक क ोफेसर भी बाय नेम पहचानते थे। हर काम चुटक म सुलझा दे ने
म मा हर शु ला जी नेतागीरी म भी आगे थ ।
वषधर
भाई साहब जो इनसे बच जाये समझो गंगा म जौ बुना हो। महादे व से जबरद त डं सने का
गुण ा त था भाई साहब को। कोई ऐसा बचा नह जसने यह कोप न झेला हो। कतन
का तो घर बसते बसते उजड़ गया । बेबाक बोली कह भी कसी के सामने कुछ भी बोलने
क कला रखने वाले भाई साहब उ पढ़ने लगे थे। चचा इनको लेकर भी ई थी पर दब
गई, और उसी के बाद से ये अपने वषधर प से व यात ए।
कुल इतने लोग थे जो मेरे साथ चाय और चचा के इस दौड़ म शा मल रहते थे।
बनारस मतलब चचा ली जये काउं ट क जये। गोपी क चाय कान, छतुपुर से लेकर राज
क कान लंका तक चाय पने के ब त अ े थे, हर जगह अपना खाता चलता था। बुबुन
महीने म सबको एक बार पेमट कर दे ता ।
चाहे वीट पर भीम भैया को या धनव तरी पर चचा को लोग इ बोल के नकल जाते क
म ा के नाम पे लख ली जयेगा । महीना म हजारतो चाय का दाम दे ना पड़ता था ।
सुबह जगते ही लंका यादव के कान पर प ँच जाते। चाय सगरेट चलता और वह
अख़बार वैगरह दे खते। अब अख़बार हाँथ म आना था क बाबू साहब का भाषण शु ।
न इ कुल दे श के लूट लेगा, साला केतना ाचार है बे, इ दे खो है चपरासी और एकर घरे
से नकला है आठ करोड़ ....। ऐसा ही बात चलता रहता और चाय सगरेट के बाद हमलोग
लौट आते।
हम बी एच यु वाल क एक आदत है क रात के एक बजे भी मूड बन जाये लंका जाने का
तो नकल लगे। बाइक रहे तो ब त ब ढ़या और न हो तो गप -शप करते पैदल भी मार दे ते
थ।
भीम भैया क चाय कान
व व का कनॉट लेस सम झये शाम होते लोग अपने-अपने जोड़े के साथ इस जगह दख
जायगे। चाय के चु क के साथ ेम का वाद कुछ अलग ही होता है। कभी मूड बने तो ाय
ज र क रये। भीम भैया क चाय कान कब से है इसपर तो यादा रसच न कये पर, जब
भी जाइए यहाँ चालीस-पचास लड़के मल ही जायगे इस बात से अंदाज लगा ली जये क
कतना नाम है इनका। महादे व के कृपा से इनका कान तो मजे से चल रहा है, पर हम
दे खते थे उनके चेहरे पर परेशानी जब कोई लड़क भी आकर कह जाती थी, क "भैया दो
कप चाय द जयेगा"। अरे छोट उ वाली कहे तो बात समझ म भी आये यहाँ तो हमउ
भी भैया कह दे ती थी। यहाँ कोई स मत दायरा नह है। वीट के बगल म होने के कारण हर
संकाय के लोग यहाँ मल ही जाते ह। भीम भैया के यहाँ भी अपना खाता चलता था सो
लोग आते-जाते चाय पीते और नकल जाते। जतना पैसा मला वो तो सही है और बाक
जो बचा म ा जी के खाते पर। इ तो उनको भी न पता रहता क उनके नाम पर कौन-
कौन अपना टोकन कटा ले रहा है ।
भैया णाम
यह एक श द है जो अपनापन दखाता है जो सं कार दखाता है, पर अपने यहाँ यह श द
इन सब से भी बढ़ के था। जब कोई जू नयर णाम करे तो बात पच जाये और जब
लासमेट और स नयर "भैया णाम " कह के आपके बगल से गुजरे तो समझ जाइये
आपका लया जा रहा है वो भी भ गा के ।
इ भैया णाम तब शु होता है जब आपको कसी म हला म के साथ दे ख लया जाता
है। अब या बड़ा या छोटा, जो भी गुजर रहा है वो "भैया णाम " कह के ही जायेगा ।
आप या तो मु कुरा दगे या आप बोलगे' और सब ठ क है न ' वे लोग कगे नही बस चलते
-चलते बात हो जायेगी ।
अब लड़क भी इ ेस क मेरे वाले का तो बड़ा प रचय है। सब लोग इसका स मान करते
ह, पर उसको का मालूम इ पर रा है यहाँ का .. खचाई का नया अंदाज ।
चतुवद जी
सब कोई इनको भैया कहता बड़ा नाम था भाई साहब का, ब त पहले से बी एचयू से जुड़े
रहने के कारण लोग से जान -पहचान काफ थी ।
इनको तो साइं ट ट होना चा हए था हमेशा खोज म लगे रहते थे .........
जी हाँ खोज म हला म का, एक जीवन साथी का। मली तो कई पर भाई साहब ठहर न
पाये ।
अपनी खोज म इधर-उधर भटकते रहते। पर जब माकशीट दे खगे तो 7 से उपर सीजीपीए
दे ख के माथा चक रया जायेगा ।
य क वीट , लंका और अ सी घूमने के बाद भी अ े नंबर लाने क कला सफ चतुवद
जी म है । भाई साहब सफ ए जाम के समय पढ़ के इतना ले आते थे य द पूरा सेमे टर पढ़
ल तो टॉप ही कर जाय ।
ऐसे ाणी आपके कॉलेज और से न म भी ह गे आप अपने वाले को मेरे चतुवद जी से
मलाइये .......
पतला- बला शरीर पर भौकाल मटे न, इ भाई साहब भी यादव जी क तरह आते-आते
इ क म पड़ गए थे पर बस अंतर यह क यादव जी पूरे तीन साल तक एक ही जगह अटके
रहे और इ भाई साहब तीन साल म तीस जगह च कर काट आये । कसम से इ बनारस है
ही ऐसा सब के दल म अरमान जगा दे ता है ।
चतुवद जी कॉलेज बाइक से आते पर ह न का अइसन फेरा पड़ा क अचानक कुछ
महीना गुजर जाने के बाद साय कल पर आ गए।
नह नह आप गलत जा रहे ह। कोई गरीबी न थी य क को कॉफ़ से लेकर प ज़ा
तक का पैसा नकालने म चतुवद जी त नक भी न संकोच करते ।
अब अगर आपके मन म चल रहा है क कह इनको पॉ यूशन कपस का ांड
अ बेसडर तो नह बना दया गया तो आप गलत ै क पर ह।
आ यूँ क एक दन चतुवद जी लास से हो टल के लए नकल रहे थे तो केमे
डपाटमट के पास अचानक से क गए। एक खूबसूरत सी लड़क अपनी बाल संवारते ए
लप लगा रही थी और भाई साहब उस लप म अपना दल फँसा बैठे ।
वैसे ये हर सरी लड़क को अपना दल दे बैठते थे मानो इनका दल कराना का कान हो
गया हो । ये कुछ अलग थी। अब इनका प रचय तो जबरद त था ही। अपने सू के
मा यम से पूरा बायोडाटा मंगवा लए।
लास टॉपर
पाठक जी
कैमे डपाटमट
बस या था चतुवद जी क गणेश प र मा शु हो गयी। अब कभी भी नकलते तो
केमे डपाटमट हो कर ही जाते .... कभी मुलाकात हो जाती, कभी मु कल से दे ख
पाते। ले कन रोज जाने का सल सला चालू रहता। एक दन मैडम मधुबन के पास दख
तो, पूरा रौ बन ड टाइल म चतुवद जी अपने बाइक को उसके आगे रोके और उतर ही रहे
थे क वह आगे बढ़ गई ।
अब संकट यह क अगर बाइक चलाते-चलाते बात करने का यास करते तो ये आगे
नकल जाते और य द उतर के बात करने का मन बनाते तो मैडम अपनी साइ कल से आगे
बढ़ जात ।
ऐसे ही कुछ दन तक खेल चलता रहा। ये कुछ कह ही न पाते सो न जाने इनका कैसे
दमाग घुमा या शायद 'इ व लट फॉर इच ' से भा वत ए और बाइक बेच के साइकल
खरीद लाये। इ बनारस है भैया आ शक म ल डा कुछ भी करने को तैयार रहता है ।
साइकल पर आ गए तो मैडम नो टस भी क , एक दो बार हाय- हे लो भी आ ।
मतलब दो ती हो गई थी। दे ख कर मु कुराना शु हो चुका था। चतुवद जी खुश , क
मामला धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है ।
एक दन लॉ फैक ट के बाहर चतुवद जी खड़े थे और मैडम उधर से आ रह थी .....
"अरे चतुवद कैसे हो ?"
चेहरे पर माइल चपकाये ठ क-ठाक का जवाब दया और बेताबी म पूछ डाले इधर कैसे
???
बस समझो तु ह से मलने आये ह
इतना सुनना था क चतुवद जी हवाई जहाज म उड़ने लगे ......
एक काम करो, मेरा साय कल अपने फैक ट म ही लगा दो और आओ चलो चाय पीतेह
धनवंतरी पे (ये ऑफर लड़क क तरफ से था )
चतुवद जी तो मने-मने खुश और महादे व को ध यवाद दे ते ए साय कल अंदर लगा आये ।
म चलो .....
और इधर-उधर क बात होने लग , कैसी चल रही है पढ़ाई? तुम नजर ही न आ रही थी
इधर .....
तो पो टर चपकवा दे ते इहे कुल ब तयाते -ब तयाते धनवंतरी प ँचे ।
अब चतुवद जी तो सामा जक आदमी बोले तुम यह को हम चाय ले कर आते है।
अभी चाचा दो पुरवा चाय दए ही थे क एक लड़का बाइक से आया .... मैडम हाँथ से
इशारा क ( हे लो इधर)। लड़क बोली को चाय पी कर चलते ह, तो भाई साहब गरम हो
गए नह यार वी आर ऑलरेडी लेट इतना सुनते ही केमे डपाटमट वाली मैडम उस
लड़के के बाइक के पीछे बैठ गय ।
इधर चतुवद जी दोन पुरवा को हाँथ म लए खड़े थे "अरे चाय तो पी लो"
कोई बात नह आप पी ली जये भैया, हमलोग लेट हो रहे ह। यह बोल के लड़का चतुवद
जी के यार को लेकर नकल गया और चतुवद जी बारी-बारी से दोन पुरवा चाय पी के
वापस फैक ट आ गए ।
बाद म जब वह अपना साइकल लेने आई तो बताई क वो यह पीएचडी म है और अगले
साल हमदोन क शाद होने वाली है ।
पर जगर वाले तो थे चतुवद जी। कभी भी हार नह माने और खोज हमेशा जारी रही। बस
एक ही चाह थी क कोई न कोई तो होगी जो मेरा इंतजार कर रही होगी ।
लड़ कय से घरे रहने क आदत ऐसी क अपना से न तो छो ड़ये सरे से न और
सरे डपाटमट म भी डाका डाले रहते । भाई साहब हमलोग के ुप म रेयर एंड रेअरे ट
केस म दखते, नह तो हमेसा जब भी आप चतुवद जी को दे खगे इनके आस-पास सफ
म हलाएं ही दखगी। लाइ ेरी म भी वह पढ़ने बैठते जहाँ इनके ुप क लड़ कयाँ बैठत ।
इसी तरह खोज जारी थी। पढाई म भी चपे ऐ थे अपने चतुवद जी। अचानक से व एक
बार और पलटा
"चतुवद " जी अब "पा डे य" जी पुकारे जाने लगे। ससुर हम भी कनफु जया गए क
चतुवद जी अचानक टाईटल कैसे बदल लए ।
खैर धीरे -धीरे पदा हटता गया और हम भी स ाई से ब होते गए ।
आ यूँ क एक बार पुनः चतुवद जी का दल अटक गया था अबक बार ऐसा अटका क
भाई साहब बढ़का आ शक का ख़ताब पाये। वो पा डे य थी। जी हाँ काशी क पा डे य जी-
ब त ही भोली, चेहरा पे माइल, पढ़ाई
म नंबर वन हर टाइम हाँथ म बुक एकदम जु ड सअरी मेटे रयल। बस या था फँस गए
चतुवद जी एक बार बारा। एक बात तो माननी पड़े गी, भाई साहब का दल तेज तरार
लड़क पर ही अटकता था ।
अब चचा शु .... 'भैया का हाल'? 'भौजाई ठ क है न '?? बनारस है भाई साहब!! यहाँ
लड़का कसी को दल दे बैठे ,भले लड़क को पता हो या नह , पर लड़के के सभी दो त
क वो भौजाई हो ही जाती है।
तो पा डे य जी भौजाई हो ही गई थ और लोग उनको डायरे ट कह नह सकते थे। इस लए
मजा लेने के मूड से चतुवद जी को ही कभी- कभार पा डे य जी कह के बुलाते और भाई
साहब एक माइल से जबाब दे ते ,मानो कह रहे ह क जारी रखो ।
व ऐसे ही गुजरता रहा। भाई साहब व बेव लगे पड़े रहते, कसी न कसी बहाने से
बात करते रहते ,पर एक दन मामला सु ीम कोट म प ँचा। नह -नह , यह अलग तरह का
कोट था। यहाँ अपीलीय मामला न प ँचता था। यहाँ कोई भी जानकारी भाया सू आती
थी। बात प ँच चुक थी क चतुवद जी कसके पीछे दौड़ रहे ह ।
के एम ट चौराहा
व व का एम एम वी और लॉ फैक ट का के एम ट हमेशा चचा म रहता है। इन दोन
चौराहे पे आपको लड़के खड़े मल जाएंगे। एम एम वी पर अपनी महबूबा से मलने हेतु, तो
के एम ट चौराहे पर अपना दद बाँटने हेतु। फाइव इयर वाला शोम हो या ी इयर वाला
अ मत शाही, या यादव जी सब बना डर भय के अपने दल क बात इस चै बर म कह दे ते
थे मन भी हलका हो जाता और गु जी का बू ट अप भाषण पॉ ज टव एनज भरने का
काम करता। यह चै बर इस लए भी खास था य क यहाँ आजाद थी अपने मन क बात
रखने क , कोट भी यह लगती थी और फटकार भी यह लगाया जाता था पर जो ेम
गु जी का हम सबको मला उसका कोई वक प नह । आप कसी भी वचारधारा के ह ,
सबका वागत है। चाय पर आप सभी आमं ीत ह। हालाँ क गु जी पर एक खास वग के
त झुकाव का आरोप लगता है पर हम तो दे खे थे क भले शु ला जी खड़े रह, पर यादव
जी को पहले कुस द जाती थी ।
अरे शाही खूब घूमत हउअ गु जी बोल दए, तो समझ जाइये क शाही रडार पर आ गया
है। वैसे आइये शाही से प रचय करा द आपका.... –बस लॉ पढ़ने आये थे भाई साहब, पर
पढ़ सबकुछ लए। कुछ महीन तक तो इनको घुमाया गया और घुमे भी ले कन ज द ही
इनको ान क ा त ई और अपने आप को कनारा कर लए। बाद के दन म इनको
इ क आ और वो अबतक चल रहा है। मतलब ये जान ली जये क आप या कर रहे ह ?
कहाँ रह रहे ह? और कतना उड़ रहे ह? सब सू के मा यम से गु जी के पास प ँच
जाता था। इ ह रा त से होते ए चतुवद जी का मामला भी प ँचा।
"इ कुल या करत हउअ भाई ?"
चतुवद जी सामने खड़े बेचारे बोले तो या बोले अरे गु जी बस...... (इतना कह चतुवद
जी चुप) अरे पढ़ो बेटा अभी पढ़ाई पे यान दो (इसी के साथ कोट ख म आ) हमारे समय
मूट कोट कंड ट गु जी के ही नेतृ व म होता था और हम कुछ लोग थे जो सभी डपाटमट
पर क जा जमाये रखते। अपना बुबुन तो फ़ूड डपाटमट म रहना पसंद करता ।
सबसे यादा ांसपोट वाल क चलती थी। अब टू डट् स को ले आने-ले जाने के म म
दो ती हो जाये सब इसी फराक म रहता, पर बाजी अपना अ हरी मार जाता, फर जो
भौकाल का दौर चले भाई साहब कहाँ कने वाले ह। अ हरी यहाँ घाट भी है न नह घुमा
दोगे... पुणे यू नव सट से आई लड़क पूछ ....... फर या था गाड़ी हा जर लड़ कयाँ बैठ
और भाई साहब अ सी घाट। अब जज साहब से मलने जाना है फैक ट गे ट हाउस म
अ हरी को खोजा जा रहा है पर भाई साहब हो तब तो ।
बेटा अ हरी को फोन लगाओ (गु जी एकदम अ त त) फोन मलाया गया "अबे कहा
हो भो** के गु जी खोज रहे ह" अरे एक मली के घुमा रहे ह अ सी पे। अब जो भाई
साहब फोन कये उ भी परेशान क कह जसको हम रज म लए थे उसको लेके तो नह
नकल गया ससुरा। तीन दन खूब म ती हर-हर महादे व के नारे के साथ मूट कोट ख म
आ , अब लगेगी असली पंचायत। बकैती शु उ मली अ थी बे, नागपुर वाली न.......
अबे चाण या से जो आई थी, उससे तो अपना नेता चपक ही गया था । भाग साले बहार
क थी, तो बस बात कर रहे थे इसी तरह दो-चार दन चलता फर लोग अपने-अपने काम म
लग जाते ।
उस दन कुछ दे र और बैठने के बाद हम तीनो लौट आये। अ सी से नकल कुछ दे र आगे
बढ़े तो ठकुराइन अपनी कूट रोक द , बुबुन को कते दे ख हम भी क गए। हम इशारे से
पूछे अब या आ? भाई क जा, खुद ही दे ख ले हम तो रोज दे खते ह लगभग तीन साल
से यह जारी है। वाकई हम जो दे खे वो ममता का एक प था हमे झकझोर दया। नजर
हमारी भी गई थी उस तरफ पर नजरअंदाज कर दए थे। ठकुराइन शॉप म गई सोनपापड़ी
का एक पैकेट ली और बूढ़ म हला, जो रोड पर बैठ थी उसे दे आई। बदले म ढे र सारा
आशीवाद नीके रहा ... खूब आगे जा ....माहदे व तोरा अ ा बर दे ब ी.... ठकुराइन
मु कुरा कर आगे बढ़ गई। मु कुराता चेहरा .... ठकुराइन और लाल सलाम । हम अब
लखने लगे जो मेरे आसपास होते उनके बारे म, ठकुराइन और बुबुन के बारे म सबकुछ हम
लखने लगे थे। अब हम पहले के तरह लोगो से नह मलते। मलने के पीछे मेरा वाथ
होता क हम उनके बारे म लखने के लए उनसे मल रहे ह। हालाँ क लोग को इस बात
का भनक नह लगने दे ते और कोई स च भी नह सकता था क लॉ का छा इ क लखने
बैठ जायेगा ।
ठकुराइन
कुछ लोग कॉमरेड सोनल कहते तो कुछ लोग आजाद गग वाली ठकुराइन। बनारसी
लड़क ... बनारसी बोली पर ब त ां तकारी .. ज बदलाव लाने का। बाबूजी बहार के
गया ड ट म पो टे ड थे, एकलौती और लाड़ली बेट दसव तक क पढाई वह गया म
ही रह करक । पर आगे के पढ़ाई के लए वापस अपने ज म ली वाराणसी आ गई।
बनारस राजनी त का गढ़ है , पूवाचल क जान क हये। कॉलेज म एड मशन लेते ही कुछ
ऐसे लोग के स क म आई क सोनल सह कामरेड सोनल हो गई । पहला काम ये लोग
यही करते ह, आपको अपना टायटल हटाने को े रत करगे। ठकुराइन धीरे-धीरे कॉलेज के
हर छोटे -बड़े मु े पर अपना वचार रखने लगी, हर गलत पे आवाज उठाने लगी। एम एम वी
म होने के कारण लड़ कय का साथ मला और दे खते-दे खते व व क ने ी के प म अपने
आप को ा पत कर ली। ेजुएशन फ ट इयर म एक मामला आया था, कसी लड़क के
साथ कॉलेज के ट चर ने बुरा हार कया था उसी के खलाफ लड़ते ऐ अपना पहचान
बनाने म सफल ई थी ठकुराइन।
बुबुन म ा
बहार के गया जले के एक ा ण का पु .....दादाजी मा टर थे और घर म पूजा-पाठ का
महौल रहता। बचपन म कु ती लड़ता, अखाड़े म अपनी उ के लड़क को पटक दे ता।
कभी कभार अपनी इस पहलवानी दखाने के च कर म दादा से मार भी खाता। बुबुन
कसी से डरता था तो वो थे इसके दादाजी, पुराने जमाने के मा टर थे। करमी (एक कार
का पौधा) के छड़ी से जो मारते तो बाम उखड़ जाना तय था। कूल के दन म सबको तंग
करता पर गु जी लोग का था बड़ा लाडला। नव म पहली बार ठकुराइन को दे ख कर कुछ
याल आया था, मतलब घ ट बजी थी। दसव के बाद ठकुराइन बनारस आ गई पर बुबुन
को यह गया म कना पड़ा। एक ज और ठकुराइन को पाने क चाहत उसे बनारस ख च
लाई थी। आ तो गया पर, कुछ महीन तक ढूं ढ न पाया और जब मला भी तो ठकुराइन
ब कुल इसके वपरीत हो चुक थी। एक ा ण वह भी जनेवधारी और महादे व का भ ।
घर म रामायण पढ़ –पढ़ के राम जी के बारे म जाना और शवरा ी का उपवास रखते ए
अपने अंदर शवभ पैदा कर रखी थी। काशी आया तो पहले महादे व का दशन कर
आशीवाद लया और बी एच यू के महौल म अपने आप को एडज ट करते ऐ राजनी त म
भी स य हो गया। तो झुकाव उधर होना वभा वक था, जो धम और रा क बात कर रहे
थे । बुबुन पहली बार बीएचयू कपस म ठकुराइन को लाल सलाम के नार के बीच दे खा
था। अब खुद जय बजरंगी जय ीराम वाला और महबूबा लाल सलाम वाली अब प ढ़ए
आगे-आगे होता है या ........
व व म कई ेम कथा एक साथ चल रही होती है। कोई कहता है तो कोई छु पा लेता है।
अगर व ध संकाय क बात कर तो तीन साल गुजर जाते
ह और ल डा अपने यार को अपने अंदर समेटे नकल जाता है।
कुछ जोड़े जगह के तलाश म रहते तो कुछ लोग बोलने से डरते छतुपुर से फ़ोटो कॉपी
करवाना हो तो करवा के ले आते, लौटते व कुछ खाने के लए भी ले आते, मैडम के साथ
व भी बताते पर उससे अपने दल क बात नह कह पाते। तभी अगले दन मैडम कसी
और के साथ दखती तो कट न म लग गई बैठक और संगीत चालू केतना दन से एगो
लइक के रही फेरा म हम लागल, सोचते रही आई लव यू कहब तले दोसर ले भागल ....
इसी बीच कोई कह दे क "शु ला जी क गल ड अपने बॉय ड के साथ घूम रही है" फर
दे खये पतराबाजी "कौन है बे बोल समझा द ओकरा के " ..... तब बुबुन भी चुप थोड़े रहता
"बो लये तो शु ला जी झारख ड बना डे हरी पार कये थोड़े जाता है उतारलगे और का "
शु ला जी बस मु कुरा के रह जाते ।
फर बात बदली जाती और कुल नेता को ग रयाना चालू अलग-अलग ट म म बँट गए लोग।
सरा कोई दे खे तो लगे अब लड़ाई हो जाये पर यह तो ेम था भाई साहब बनारस वाला ।
ठकुराइन अ सर अपना लास ख म होने के बाद लॉ फैक ट आ जाती और फर वह
कट न म बैठ कर शु हो जाता इ क का खेल। इधर दोन कुछ पसनल बात कर रहे होते
क ठकुराइन के दे वर लोग प ँच गए और खचाई शु । साले सब के सब पाला बदलने म
मा हर थे।हमेशा बुबुन के साथ रहते और अगर ठकुराइन आती, लॉ कट न म बैठती और
राजनी तक मु पर चचा होती तो एक दो को छोड़ सब ठकुराइन के साथ हो लेते।
एक अलग यार था यह, राजनी तक वचार दोन का उ टा.... एक वामपंथी और
सरा द णपंथी पर यार इतना गहरा क उसका कोई तोड़ नही। कुछ लोग जो कहते थे
क इ क दो अलग-अलग समुदाय और वचार के बीच नह हो सकता उनके ऊपर तमाचा
थी व व क यह जोड़ी। पॉ ल टकल लाइफ को पसनल लाइफ पर हावी कभी न होने
दया। पाट अपनी जगह और र ता अपनी जगह हालाँ क बीच-बीच म ठकुराइन अपने
खेमे म आने का ताव दे ती रहती। लोग बैठे ए ह हँसी मजाक चल रहा है तब ही
ठकुराइन कहती म ा जी इ भगवा उतार के ां तकारी ट म म शा मल हो जाइये तो जवाब
आता " न रे ब ी लाल सलाम का वलय जय ीराम म होइ "।
ऐसे यार के साथ नोकझ क चलता रहता ठकुराइन बोलती हम उस दन ब त खुश ह गे
जस दन मेरा लाल रंग आपके ऊपर चढ़ जाये म ा जी। बुबुन बस मु कुरा कर रह जाता।
नेता लोग के खरीद ब जैसा तो नह पर अपने पाले म ख चने का यास दोन तरफ से
चलता। कभी ऐसा मोड़ भी आता जब ये दोन ब कुल वपरीत खड़े होते पर दोन क
सुझबुझ और यार इन दोन को हमेशा जोड़े रखती।अ सी घाट पर बैठ के कुछ लान
बनाये थे दोन ने पूरा यूचर का खाका तैयार कया गया था। जय ीराम और लाल सलाम
के इस इ क म यह तय आ था क हम दोन म से कोई एक राजनी त म आगे बढ़े गा और
सरा उसका सपोट करेगा। अदभुत और अटू ट इस ेम कहानी के कई दलच क से ह,
जसे हम अपनी कलम म कैद कर रहे थे ।
हो टल प ँचते ही बुबुन कॉल लगा दे ता .....
या हो रहा है ?
अरे भाई चाय पने जा रहे ह....
हम तु हारे भाई न ह ठकुराइन ......
बक रखो न (फोन कट गया )
फर बारा कॉल लगाया जाता है .......
(ठकुराइन फोन उठाकर)
अरे बाबा या आ दो त लोग के साथ चाय पीने जा रहे ह।
हम भी आ जाय का म ा जी पूछे
अभी ही मल के आये ह न जाओ कुछ काम भी करो
(ठकुराइन क दो त हंसते ए अरे सोनल तेरा द वाना तो तुमको छोड़ही न रहा )
मुँह लटक गया म ा जी का साला अईसा श ल बनाता जैसे लगे महीना दन से मला
ही न हो अब बाबू साहब बोलते क, "अरे म ा कमसे कम बरला
के वा ते कुछ समय हमलोग को भी दे दया करो"।
का हो राइटर, म वा तो अपत कइले है अब न होगा राजनी त एकरा से कहो इ केवल
इ क लड़ाये। अरे सही बोले ह बाबू साहब घ ट फोन पे चपके रह रहा है ।
वाकई म ठकुराइन के हो टल जाने से लेकर सोने तक भाई साहब लाइन पर ही रहते थे ।
उ सो गई तब भी बाबू शोना मोना चालू रहता। एक दो बार तो हम खुद ग रया के अपने म
से बाहर नकाले थे।
गजब ामा चलता, मैडम का फोन आया तो कान म लग गया। इ कौन बात है अब हे लो-
हे लो बोलते रहो और उधर से कोई आवाज नह ..... फर अचानक तरह- तरह के गाने
सुनाई दे ने लगगे ..... लाइव ग स हो टल से सु नए लड़ कय क म ती। ठकुराइन भूल
जाती थी या जान बूझ कर सुनाती थी ये तो नह पता पर सबका मन ह रया जाता। उधर से
तरह- तरह के गाने गाए जा रहे ह, तो बाबू साहब भी मूड म आ गए और चाप दए इधर से
अपना फेवरेट वाला गाना जान मारे ललका ओढ नया ये गोरी और ऐसे ही दे र रात तक
म ती चलता रहता।
एक दन तो लाइव अंता री का ो ाम रख दया गया फोन पे। जय ी राम बॉयज बनाम
लाल सलाम ग स । पाँच-छः लोग सा जी के म म पैक हो गए। लड़ कय क तरफ से
ताव आया क ढं ग का सॉ ग गाना है। बुबुन पतरा लया, ढं ग मतलब का अब हमलोग
बहार और यूपी से ह, तो भोजपुरी गाना गईबे न करगे। बड़ी मान-मनौल के बाद तय आ,
अ ा ठ क पर, टोन ढं ग का होना चा हए। पीछे से एक मधुर आवाज आई" ओह सोनाल
गाने दो न, आई लव भोजपुरी स स-- जला जहानाबाद है बबाद कर द गोरी टाइप"।
बस इतना सुनते ही जहानाबाद वाले राकेश बाबू जो अभी सोने जा रहे थे उठ के बैठ गए।
अब न द गायब इ गाना से अपने होने का अहसास मला उनको.. बाबू साहबवा भो** के
हर बात म खूब मजा लेता, तो शु हो गया का बे अइसन कौन करट लगल क उठ के बैठ
गइले ।
अरे! नेता या चल रहा है आज हो टल म बैठक जमाये हो! चतुवद जी अंदर आते ऐ
पूछे ..... आव भैया आप भी सां कृ तक काय म म तभागी बन।
मैया मोरी म नही माखन खायो से टाट आ दं गल ये मेरा दल यार का द वाना से होते
ऐ कब मस कॉल मार ता कस दे बू का हो तक प ँच जाता पता ही न चलता ।
अब इधर से हद गाना के बेताज बादशाह चतुवद जी मोचा स ाले ए ह और उधर से
ठकुराइन क सब दो त। दं गल जारी है....... कोई कसी से हार मानने को तैयार नह है
चतुवद जी इधर से अकेले मोचा स ाले रहते। धीरे -धीरे सब सोने लगता, ये भैया, अब
ब द क जये ब त हो गया अब , पर चतुवद जी कहाँ कने वाले है। आ खर म फोन कब
ब द आ और सबके सो जाने के बाद या- या बात कये चतुवद जी …बस वही जानते।
गोली कांड
अब इ क ही कैसा जसमे कोई कांड न हो इस इ क म ब त सारे कांड ए ह उसमे से एक
है गोली कांड। बुबुन को अब तक आप कुछ हद तक समझ गए ह गे। अपना बुबुन अ
के लए अ ा तो बुरे के लये टे ढ़ है। दो ती सबसे रखता है, पर मनी नभाने म भी पीछे
न हटता। बेचारे 'पा डे य जी' ब तर पर पड़े थे आई सी यू म। अब गोली लगी थी, या डर
गए थे ये तो रपोट आने के बाद पता चलता पर बुबुन पूरी रात बैठा रहा था, उनक सेवा म।
आ यूँ क बुबुन कसी से उलझ गया था कपस के अंदर .... ठकुराइन को लेकर। बुबुन
सबकुछ सुन सकता था पर अपने यार के खलाफ कुछ भी नह 'का हो म ा खूब घुमावत
बड़े हमन के भी कुछ दलाओ '
(बुबुन का कोई सी नयर ठकुराइन को लेकर कमट कया )
अभी अपने बाइक से ठकुराइन को छोड़ने जा रहा था, कमट सुनते ही दमाग खराब हो
गया।
" पाँच मनट का आव तानी " बोल बुबुन नकला
ठकुराइन को हॉ टल छोड़ ठ क पाँच मनट म वापस उस जगह प ँच गया जहाँ कुछ
लड़के खड़े होकर हर आने जाने वाली लड़क पर कमट कर रहे थे।
का हो कौन बोल रहा था ?
हम , पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे कुछ बगाड़ ही लोगे ... (एक भाई साहब अकड़ के बोले)
बुबुन था तो नेता और हर गुण जानता था बड़े यार से बोला क नह हम लड़ने थोड़े आये
है, बस आप बोले और हम वादा कये पाँच मनट म आने का तो आ गए।
अबे चल बे म ा हम बुबुन को ले वहाँ से नकलना चाह रहे थे य क यादा दे र कता तो
मामला बढ़ता, नकल ही रहे थे क भाई साहब फर बोल बैठे " इ लाल सलाम वाली हया
बड़ा बेजोड़, जेतना बोली ओतना ख़चा करब बस एक बार गोद म आ जाये "।
"भोसड़ी के बुबुन नाम है मेरा लगता है पहचानते नह हो , कमसे कम पाँच थाप दया पूरा
गाल लाल हो गया।
उस समय तो उनलोग वहाँ से भाग गया पर कुछ दे र बाद ध वंतरी (चाय का अ ा) पर
बुबुन को अपने कुछ चमच के साथ घेर लया। बाबू साहब , हम और बुबुन उनलोग
लगभग दस और हमलोग तीन, अब बुबुन व व म नेता था ही बात तेजी से फ़ैल गई तो कुछ
लोग मजा लेने के लए भी खड़े थे।
उ ही म से थे एक 'पा डे य जी ' व व म कुछ भी हो पा डे य जी वहाँ ज र रहते है। कसी
भी संगठन का कोई भी काय म हो या कोई भी बड़ा ववाद आपको आस पास पा डे य जी
मल ही जायँगे। यही नही रंगीन मजाज के भी ह पा डे य जी, चाहे फेयरवेल या े शर
पाट कसी भी संकाय म हो अपने मोबाइल म लड़ कय का त वीर उतारते दख जायगे
पा डे य जी।
बुबुन गु से म था ही उलझ गया और चंदौली वाले बाबू साहब क ा नकाले और हाँथ म
लहराने लगे और का। साला इ का कपस म इ सब होगा तो बवाल हो जायेगा पर बाबू
सहबवा के वाला थोड़े था। भोसडी के का समझे हो बे चूड़ी पहने ह, कहते ऐ एक
फायर कर दया। एक को गोली पैर म लगी पर उनलोग भाग गया और इधर पा डे य जी
बेहोश। हमारी हालत ख़राब हो गयी क कह इसे लग तो नही गई ? आनन -फानन म
हॉ टल ले गए। डॉ टर ने बताया क सदमा आया है, ठ क हो जायगे।
अब तो गोली चलने क बात पुरे व व म फैल गई थी। पा डे य जी के वजह से हम तीनो को
अ ताल म पूरी रात जागना पड़ा।
आइये ये पा डे य जी ह कौन ये बताते ह।आप प ढ़ए और अपने आस- पास के इस पा डे य
को खोज नका लये।
कहते ह, क "बनारस म सभे गु हव....इहाँ कउनो चेला ना मली " ठ क वही हाल है बी
एच यू का।यहाँ जसका एड मशन हो जाए गाँव से लेकर र तेदार तक भोकाल टाईट।
बाक जगह पढ़ के आप स ट फकेट ले सकते ह, नौकरी भी मल जायेगी पर यहा पढ़ने
वाला मा लक बनता है। य क अ सी, लंका और वीट पर हा जरी लगाते ए भी अ े
न बर से पास होने क कला चतुवद जी के पास है।
हमरा सीधा कहने का मतलब ई आ क बी एच यू म पढ़ने वाला हर कोई ऑल राउं डर
होता है।
आइए मलवाते ह एक ऐसे ही मायावी छा से ......
"पा डे य जी " ....इसी े डमाक से बले से ब े क तरह दखने वाले ाणी क पहचान है।
कहते ह, क ये तीन साल एक कराये के लॉज म रहे। पर कसी को इनका नाम तक न पता
चला। आए थे बनारस घूमने, इनसे जब पूछा गया तो सबसे पहले र वदास पाक दे खने क
इ ा कए।
अरे हँ सए मत......उस व यही एक जगह आ करता था, लोग अपने हर आने वाले
र तेदार को यह ले आते थे।
इनका अगला पड़ाव था BHU ....
सह ार से अ दर वेश करते ही भवंरा फूल पर मडराने लगा।
सर सु दर लाल अ ताल ,म हला महा व ालय और क तूरबा छा ावास को जोड़ता आ
पहला वो चौराहा है, जो यहाँ आने वाले हर कसी म यहाँ श ा हण करने क इ ा
जगाता है। कहते ह श ा का एक खास मकसद होता है, तो यहाँ दखा पा डे य जी को
पहला मकसद !
पा डे य जी को र तेदारो ने नामांकन फाम के लए लगने वाली ल बी लाईन को दखाकर
डराया क यहाँ वेश क डगर ब त क ठन है, पर पा डे य जी कहाँ मानने वाले थे। डॉ टर
बनने के लए पटना म को चग कए थे और यहाँ लए बीए मे एड मशन।
अदभुत आदमी, अदभुत वचार।
पढाई मे काफ स रयस, 98% अटडस रहता था जब क कला संकाय म को-एजुकेशन
भी नह है।
लास के बाद का बचा समय सीधे लाई ेरी म बताते। जैसे हर आने वाले छा क इ ा
रहती है, इनक भी इ ा थी आइएएस क तैयारी क पर महादे व क नगरी म ये इस
प र ा क मोहमाया से ज द कनारे हो लए। कला संकाय से पढ़े ह, तो कुछ तो असर
होगा न।
हाँ भाई.... ब कुल है ! युवा महो सव मे इनके जबरद त सीट मारने क कला के सब
कायल रहते ह।
आप कसी के बारे म पूछ कर दे खए ... ना नह कहगे ब क ऐसे वणन करगे जैसे 24*7
उसी के साथ रहते ह ।
खबर म गहरी दलच ी रखते ह। इस लए इनके करीबी म इनके सु से मली खबर
क स यता पर सवाल नह उठाते।
कहते है क पाँच अखबार रोज पढता ँ, कोई भी प का लंका कान पर बना पलटे नह
छोड़ता।
पा डे य जी के मन म या चल रहा है .....पता करना मु कल है। जो दखते ह .... वो ह
नह , और जो ह वो दखते नह । इसी लए तो पा डे य जी क माया है....पूरे कै स म। पूरे
6 साल गुजार दए पा डे य जी बनारस म।
पा डे य जी का कुत से वही नाता है, जो परी ा के समय कताब से व ाथ का रहता है।
...स ताह म एक कुता एक बार ही पहनते ह....एकदम कड़क पर य ?.... य क कभी
नेता को राजनी तक रणनी त बनाने म मदद करते ह, तो कभी कसी एन .जी .ओ के
साथ समाज सेवा।...चाहे लंका पर धरना हो ...या कसी पाट का काय म कुता हर जगह
फट रहता है..भीड़ से अलग करता है। पा डे य जी एक औसत दज के व ाथ रहे (न बर
क मोहमाया से र)।..बा क कसी मे ह मत कहाँ जो इनसे कसी मु े पर बहस कर ले
.... य क ये मु े को भटकाने के शा तर खलाड़ी ह, वप ी को कभी हावी नह होने दे ते
ह। कसी से कभी यार न होने का सॉ लड बहाना बताकर बचने वाले पा डे य जी के एक
करीबी के अनुसार इनका लड़क पटाने का तरीका थोडा डफरट है।.... कसी इं लश
ी कग को चग को वाइन करते ह।. कला संकाय से अं ेजी नातक ह.....पहले स ताह
A B C D कुछ न जानने का नाटक करते ए सहपा ठय का सही आकलन करने के बाद
टारगेट पर फोकस करते ह। को चग के लड़के और ट चर को माया दे ने के बाद लड़ कय
को मन न.1 बनाते ए धीरे -धीरे टारगेट के दल म जगह बनाना शु करते ह। पा डे य
जी इस खेल के इतने शा तर खलाडी ह क कसी को भनक तक नह लगने दे ते क उनके
नेटवक रज म कौन आया और कौन बाहर। थोड़े प रवार के सं कार ह..और लडक के लए
से ट का याल भी ...इस लए खु लम-खु ला यार नह करते। इसका एक मकसद ये भी
रहता है.... क कसी यू इ को परेशानी न हो। पूरे 6 साल के बनारसी जीवन पर नजर
डाले, तो पता चला क ये हर 6 म हने पर अपना म बदल दे ते ह।.... य क बनारस के
हर कोने से कुछ सीखना चाहते ह)
पा डे य जी व भ कार के शोध कये ह।
वो दे ख के बता दे ते है बंद खाली है या नह ,,।
सेट होगी या नह ।
उनके इस शोध से कई लोग फायदा उठा चुके ह। कहते ह खुद कभी इ क नह कया
कसी से पर कौन से फैक ट के कस ोफेसर साहब के टारगेट म कौन है बता दे ते ह।
अगर कसी ने इनके खबर पर शक कया तो मा णत करने के लए, मलने का प का
समय और जगह भी बता दगे।
पा डे य जी लड़क और लड़ कय के त गु जन के भेदभाव पूण रवैये से परेशान होकर
बताते ह क ....यहाँ बेटा -बेट एक समान क नी त को ध का लगता है...।लड़ कय को
कुछ द कत हो तो पहले समय दे ते ह..समझाते ह,.और लड़क को सुबह शाम कह के
टरकाते ह।
जब से व व ालय म सेमे टर स टम लागू आ इन लोग के हाथ म जैसे 30 न बर का
मसाईल आ गया बार -बार छोड़ने को धमकाते रहते ह।
पा डे य जी इस 30 न बरी मसाईल से नह डरते।जब सारे लड़के आसान और परी ा के
स ा वत से स ब त टॉ पक पर ोजे ट बनाते ह।पा डे य जी इस मोहमाया से
अलग हर बार कुछ नया करने का यास करते ह , जसका उ ह खा मयाजा भी भुगतना
पड़ता है। कम न बर पाते ह... फर भी म त रहते ह।
इनके म तमौला मजाज का अ दाजा आप यूँ लगा ल जए.... क जस दन क ठनतम
वषय क प र ा हो उस दन भी आप एक कड़क कुत म मु कुराते पाएंगे। ये राजनी त के
मा हर खलाडी ह,.इस लए चै बर गुटबाजी से र रहते ह ..... जसका फायदा ये है क बन
मांगे मुराद पुरी हो जाती है।स ा कसी क हो फक नह पड़ता। जमीन पर नगाह और
आसमान म नशाना रखते ए.....वाद - ववाद से र रहना पसंद करते ह।
बीएचयू म आने वाला हर लड़का कसी न कसी राजनी तक वचारधारा से जुड़ जाता है।
तो पा डे य जी कस पाट म थे ....एक नजर म जानना मु कल है। ये ठकुराइन के लाल
सलाम व बुबुन के जय ीराम दोन म अपना ान पेलते मल जायगे। पा डे य जी का
सोशल म डया पर भी माया कम नह है। पाँच फेसबुक आईडी ,दो हाटसैप, इं टा ाम
और ट् वटर पर भी। इस लए इस मायावी इ सान को समझना मु कल है।कहते ह क
इनक मज के खलाफ कोई मल नह सकता। तय समय और तय जगह पर आप नह
आए.....तो मुलाकात मु कल है। शायद इस लए कोई लडक इ ह भाव न दे ती होगी। ये
बाहर से जतने शरीफ दखते ह.सच म वैसे ह नह । आपके साथ चलते ए ...आप ही के
खलाफ सा जश रच दगे ....और आपको पता भी न चलेगा। कसी के खलाफ कसी को
भड़काना इनके बाय हाथ का खेल है। लाई ेरी म ये पढ़ने नह जाते, जू नयस को रझाने
का वफल यास करते ह कहते ह आजकल कोई खाली आ ही न रहा...सबका कोई न
कोई पहले से रहता है ये सब तो उनका टाइम पास है......असली टारगेट शु से एक ही
है.... उनके म शु ला जी कहते ह..हम दे खत हई तु का करत हउअ....चपले रहा....मौका
मली। उनके करीबी यादव जी सलाह दे रहे ह...पा डे य जी उससे बच के र हए....वो ब त
चालू चीज है। एक और करीबी म कहते ह...दे खए पा डे य जी आप से कुछ हो न पायेगा
..... डू ब जाइएगा...और तैरना भी नह आता। पा डे य जी इन सबसे अलग अपनी
परोपकार सेवा जारी रखते है... कसी के लए सलेबस रखते ह,तो कसी को लास से
अपडे ट रखते ह। बनारस एक ज दा शहर है....मतलब आप कसी को कुछ बोल के
नकल नह सकते.......का बे भोसड़ी बड़का नेता बनत हउए ....अगर ब त शौक है
लड़ कय पर कमट मारने का।.तो एक बार बनारस मे ाई क रएगा ज र......पा डे य जी
भु भोगी ह।
वीट पर चाय क चु क मारते ...एक दन सनबीम क लड़ कय को बोल दए थे " मेड इन
चाइना "....... बना दे री के लड़ कय ने पलट के मसाईल दाग दया था " मेड इन बहार "
मतलब यूँ सम झये र रह के पास और पास रह के भी र थे पा डे य जी। आज उनको
आई सी यू म जाना पड़ा था सो पूरा रात बैठे रहे उनके दे खभाल के लए। सुबह होते वो
ठ क हो गए , तन बोतल पानी चढ़ा और मजाज ह रया गया उनका।
इ सब के च कर म बुबुन मोबाइल कहाँ छोड़ आया पता नह । सुबह होते बाबू साहब को
लंका पु लस उठा के ले गई।
दरोगा जी
(आइये सु नए बुबुन क जुबानी दरोगाजी क कहानी )
हम लंका थाना म बैठे थे, बाबू साहब को लंका पु लस उठा के ले आई थी। अब उठाये भी
य न बाबू साहब बड़ा अपत करते थे, कसी को भी पीट दे ते त नक नोक -झ क पर हाँथ
चला दे ते। लोग उ ह अकसर यार से समझाते “ क का हो बाबू साहब ई कुल का चलत ह
मरदवा केकरो मार दे ते हउअ” पर भाई साहब सुनने वाले कहाँ थे। इनको तो घमंड हो गया
था क मेरा यार इस व व का नेता है मेरा कौन या बगाड़ लेगा ? महीने म दो बार लंका
थाना और तीन-चार बार ौ टे रअल बोड ऑ फस म बाबू साहब के कारण च कर लगाना
ही पड़ता था , और इस बार तो मेरे मैटर म ही क ा नकाले थे।
या म ा कोई बात या ?
फोन कर लेते कब से बैठे हो? (दरोगा जी थाने म इं करते ऐ बोले) ना भैया इधर से
गुजर रहे थे तो स चे मलते चले।, भाई का र ता बन गया था हम दोन के बच। एक
सपाही को चाय लाने बोल हमे अंदर बैठा के कसी से बात करने लगे। दस मनट बाद
दरोगा जी और चाय दोन मेरे सामने । यही तो इ क है काशी का , एक बार आप कसी के
मन - दल- दमाग म बस गए तो आपको उतारा न जायेगा। यह आपके ऊपर नभर करता है
क आप कस तरह से इस र ते को नभा रहे ह।
दरोगा जी पहले गोरखपुर म थे। यहाँ आते ही पहला सामना उनका मेरे से आ था। लंका
पर उस समय के क सरकार के खलाफ आंदोलन कर रहे थे। करीब दो सौ टू डटस के
साथ सड़क पर उतरे ए थे। अब इतने लोगो के साथ सड़क पर उतरगे तो जाम लगेगा ही
और तब तो पूछो ही मत जब सड़क बनारस का हो। लान तो माच का था पर भीड़ उसी
व तय कर ली क सड़क पर ही बैठगे। आवागमन बा धत होने के कारण शासन हरकत
म आई। मेरे ताकत का अंदाज लग गया था उनको। अपने आप को असफल होता दे ख
हाँथ जोड़ लए थे मेरे सामने। अब इतना तो सं कार मला ही था मुझे क बड़ो के साथ
कैसे रहना है ? हम बोल दए एक घ टा और मैनेज कर ल जए सब ठ क हो जायेगा। एक
पं डत का वचन था सो पीछे कैसे हटते। एक तो ा ण आदमी ऊपर से काशी, महादे व क
नगरी म थे। दए गए वचन के अनुसार एक घ टा म सबकुछ सही हो गया। कुछ दन बाद
ले ट वाले कसी मु े पर आंदोलन करने वाले थे और उसी दन कोई बड़ा नेता बनारस
आने वाले थे, तो दरोगा जी क हवा उड़ी ई थी। कसी से मेरा नंबर ले कर कॉल कये।
हे लो लंका थाना से दरोगा जी बात करगे कसी ने यह बोल कर फोन दरोगा जी को दया।
हे लो म ा जी आपसे कुछ काम था, थोड़ा मलना था।
हम बोले क ठ क है वीट आ जाइये
(मन म स च रहे थे इ ससुर दरोगा हमसे काहे मलना चाहता है।) दरोगा जी प ँचे तो भीम
भैया दो चाय भेजवा दए चाय क चु क के साथ दरोगा जी अपनी सम या बता गए।
" कसी तरह रो कये म ा जी बड़ा उपकार होगा "।
अब मेरे संगठन क बात होती तो स ाल भी लेते, इ आजाद गग वाला मेरा य सुनेगा
? फर भी एक आ शन थी ठकुराइन …सो दरोगा जी को कह दए क दे खते ह यास
करते ह। ठकुराइन मानने को तैयार ही नह थी।
अरे यार कभी वीसी कभी दरोगा इ सब का चमचई छोड़ोगे क नह .. हमलोग डे ट न बदलने
वाले, उस नेता से बोलो वो बदल ले।
ठकुराइन थी तो ज कैसे सुनती , एक बार करने के लए ठान ली तो कर के ही दम लेती
थी। उ तो एकदम मानने को तैयार ही नह थी। आ खर यार तो यार होता है, ब त कुछ
समझाने के बाद वो राजी ई। हम दरोगा जी को फोन कर लए और ठकुराइन के सामने ही
सबकुछ लयर कर दए। दरोगा जी के सर से एक बोझ उ र गया था, उनके चेहरे पर
अब तनाव नह था।
यही दो एपीसोड के बाद दरोगा जी मेरे फैन हो गए थे माने एकदम खास। अब मजबूरन
हमको कॉल लगाना पड़ता, कॉल उठाते ही दरोगा जी पूछते "का हो म ा अबर केकर
पैरवी करत हउअ? इ बात तो था क जानते थे क हम कसी काम के लए ही कॉल कये
ह गे फर भी झ लाते नह और एक बार म कॉल र सव कर लेते।
बुबुन थाना म चल गया तो बाबू साहब को लेकर ही आएगा इ स च रहे थे तले नो यार
उधर से चले आ रहे थे। यादव के कान पर चाय सगरेट आ और मर-मजाक करते ऐ
हमलोग हॉ टल लौट आये।
लड़ाई बुबुन के वजह से ई थी तो एक क मट बनी और एक स ताह के लए म ा जी को
हो टल और लास से ससपड कर दया गया। बाबू साहब उधर से चले आ रहे ठकुराइन
का सौ कॉल आया था, उसको तो पता लग ही गया था इस कांड का। फर म ा जी इधर
से कॉल लगाये, फोन उठाते ही रोने लगी " य करते हो ये सब, कुछ हो जाता तो? कतना
कॉल कये एकदम से जान ले लए"
(वो बोल रही थी, म ा जी चुपचाप सुन रहे थे )
बुबुन उसको हँसाने के मूड म बोला चलो अब आ शक करते है, एक स ताह का छु ट मला
है व व से।
ससपड हो गए न ..... चलो ऐसे भी तुमको पढ़ना - लखना तो होता है नह । (ठकुराइन का
जबाब था यह)
म ा एक स ताह तक ससपड था, फर भी कॉलेज आता और रह तो भगवानदास म ही
रहा था। वीट से लंका और मधुबन का दौरा उसी तरह जारी था जैसे पहले, बस कुछ
बदला था तो यही क उनके ॉ सी मारक को एक स ताह का आराम मल गया था।
भोलू बाबू
जैसे हर ेम कहानी म वलेन होता है अपने बनारस वाले इ क म भी एक वलेन है ....
भोलू बाबू। नाम से तो भोलापन तीत होता है पर वा तव म है बड़ा ख स...नाम के
ब कुल उ टा। बाबू इस लए क बाबू साहब है पर पता नही भोलू य रखा गया?
ठकुराइन के बड़े भाई यानी पुरे लॉ फैक ट के साला अब भौजाई का भाई साला ही तो
होता है इ कोई गाली नह है। अपना बुबुन तो आज तक कसी से डरा ही नह । हाँ, जो
का भाई था तो स मान करता था। कभी रा ते म मल जाते तो ऐसा क कोई भगवान उतर
आया हो।मतलब पू छये नह ,ल सी से लेकर कॉफ़ तक एक ही बार म आ जायेगा और
ला ट म बनारस का पान।
खैर हो भी य ना-कहा भी जाता है *सारी खुदाई एक तरफ , जो का भाई एक तरफ*
भोलू बाबू को पहले से कुछ पता कहाँ था क बुबुनवा उनका जीजा है। इ तो भोलू बाबू एक
दन अ सी पर गाँजा फूँक रहे थे वह पे उनको एक लॉ फैक ट क लड़क पसंद आ गई
मु लम यूट एकदम चौचक, और भोलू बाबू का दल फसल गया। उसी व एक फूंक
मारे और बुलेट ले पीछे -पीछे चल दए। अरे गु ख म तो करते जा।" भाई साहब बाद म
आते ह" बोल भोलू बाबू नकल गए।
मतलब भोलू बाबू महादे व का साद छोड़ नकल गए तो सम झये मामला गंभीर है और हो
भी य न पुरे व व म जसके चच थे वो भोलू बाबू को पसंद आ गई थी। बुलेट से पीछा
करते-करते प ँच गए छतुपुर। जी हाँ मैडम यह रहती थ ।
छतुपुर हब है भाई साहब मनी लॉ फैक ट क हये और इसी छतुपुर के अ णोदय लॉज म
म टर दे वका त क लाइ ेरी है। एकदम बीएचयू के मा फक पैरलल लाइ ेरी चलाते ह भाई
साहब, पर आप सफ दे ख सकते ह।इनक कताब छू ने क गलती भी न कर।
अभी तक ये लोग उसी लॉज म जमे है और जु ड सयरी क तैयारी चल रही है। एक खास
बात है इस छतूपुर का हर साल यहाँ से थोक भाव म जज नकलते ह ,इस लए गोपी भी
दावा करता है क मेरे यहाँ चाय पीने वाले ब ते लोग आज जज ह। इस जुडीसीअल हब म
रहती थी एक हसीना जसके चच पुरे व व म थे और आज तो वो भोलू बाबू का भी दल
जत चुक थी।
फर या था अब भोलू बाबू का बुलेट एक दो घ टा लॉ फैक ट म दखने लगा धीरे- धीरे
गोपी से भी म ता हो गई य क छतुपुर म रह रहे कसी का भी बॉयोडाटा जानना है तो
आप गोपी से स क कर । कान म बाली पहने मु कुराते ए आपको सबकुछ बता दे गा।
भोलू बाबू उस यूट के ऐसे द वाने ऐ क उनक बैठक अब इधर ही लगने लगी।
अ धकतर समय लॉ फैक ट म ही बताने लगे। अब बुबुन के कान म ये बात आया तो
ठकुराइन को यह कह चढ़ाना शु कया क दोन भाई बहन एकदम लॉ फैक ट पे धावा
बोली ई हो। ऐसे ही कुछ पल बीते और एक दन भोलू बाबू क नजर अपनी बहन यानी
ठकुराइन पर पड़ी।
अब ठकुराइन तो अ सर आती ही रहती थ और कट न म बैठक लगती थी। उस दन
भोलू बाबू को कोई बता दया था इस इ क के बारे म। घर लौटते ही सवाल पे सवाल दागने
लगे और यह से शु ई भोलू बाबू क वलेन गरी।
अब उनको द कत इस बात से थी क लड़का ा ण है और यह उनके राजपुताने पर
हार था। सो लगे बुबुन को धमकाने पर भूल गए क इ पं डत काशी म रहता है और व व
का बड़ा नेता भी है। इसम कोई शक नह क बुबुन क ब त चलती थी यहां, सो जो पंगा
लया ओ गया पर, ये केस थोडा डफरट था य क सवाल जो के भाई का था। सो बुबुन
अलग तरीका ढूं ढा। अब वो अ सर भोलू बाबू से मलता हाल चाल पूछता जब भी कभी
घाट पर मलते तो चाय सगरेट और बनारसी पान से खा तरदारी करता।
बुबुन का लान था क उसे भोलू बाबू का एक अ ा म बनना है और वह सफल भी हो
गया। आ खर कब तक भोलू बाबू वलेन बने रहते “ मयां बीबी राजी तो या करेगा काजी”
लखनीया दरी
हमलोग लखनीया दरी के लए नकले थे।सुबह 8 बजे बुबुन के साथ ठकुराइन भी थी और
उसक दो दो त। वाराणसी से कुछ घ ट का रा ता है।पूरा ुप ही नकला था। बुबुन-
ठकुराइन आगे -आगे, उनके साथ एक कूट से दो लड़ कयाँ और हमलोग पीछे से र क
के प म। कपस म ही मौजूद पे ोल पंप पे जा के पे ोल लए। एक साथ कपस म दस
बाइक चलते नजर आये और ओ भी हर-हर महादे व के नारे के साथ तो इ तो लयर है क
कोई टोली नकली है जो आज म ती के मूड म है।
कपस से नकल हाईवे पकड़ के प ँच गए गंगा नद के पूल पे और वहाँ सारे लोग बाइक
लगा के उतर गए य क वहाँ से बनारस को कैद करने क चाहत सब म थी। तो चालू आ
फ़ोटो सेशन और या। पा डे य जी तो फोटो ाफर थे ही। पुरे ुप म इकलौता इंसान था
जसके बारे म आप अंदाज नह लगा सकते क ये भाई साहब ह या?
पूरे रा ते बुबुन भैया क ... जय .... बुबुन भैया क जय के नार के साथ काशी क या त
ा त श द बड़े ही अलंकृत ढं ग से जोड़ा जा रहा था। जब जय ीराम का नारा लगता
भौजाई के कुछ दे वर पीछे से लाल सलाम बोलना न भूलते। मानो फुल टू इंटेट मट के साथ
हमलोग आ ह ता आगे बढ़ रहे थे। ठकुराइन आज ब त खुश थी य क उसी का ला
कया गया ो ाम था। ब त दन से ज कर रही थी क चलना है। अब म ा जी भी तो
ब त बड़े आ शक थे। मैडम के कसी भी अरमान पर पानी फेरना नह चाहते थे।
हालाँ क कई जगह पर बुबुन को स लते दे खा था हमने, वो खुलकर बोलने से
हच कचाता था पर ठकुराइन नडर थी उसने हर कसी क गलत स च पर एक जोरदार
तमाचा मारा था। यह तमाचा उन लोग के लए था, जो समाज म नफरत फ़ैलाने का काम
करते ह, जो लोग अलग-अलग धारा का बोल एक सरे का क ल करने क योजना बनाते
ह।उन घोर द णपं थय को भी और उन वामपंथी को भी जो एक सरे को घृणा क ट
से दे खते ह, उनपर भी एक जोरदार तमाचा था यह बनारस वाला इ क। ब कुल अलग थी
ठकुराइन, अपने आप को कॉमरेड कहने पर गव महसूस करती तो थी पर बुबुन के
जय ीराम से भी उसको कोई परहेज न था।
उस समय तक हम तय कर चुके थे क मेरी कहानी क ना यका ठकुराइन ही हो सकती है।
पर इस बात क ज हमने कसी से नह कर रखा था। उस दन बुबुन का हाँथ पकड़े एक
ज मेदारी मेरे ऊपर दे रही थी " भात जब भी कभी कुछ लखना, मेरे इस इ क का ज
ज र करना" वो मजाक के मूड म ब कुल नह लग रही थी। वो चाहती थी क नया इस
द णपंथ और वामपंथ के बीच के ईमानदार इ क को लोग पढ़।
मुलाकात
हमलोग कूल म साथ थे। प ऐसा क पूरा कूल उसपर फ़दा था, हर कोई उसे पाना
चाहता था। एक लंबी ल ट थी और उस ल ट म बुबुन म सर का भी नाम दज था। अब
होड़ इस बात क थी क ल ट म पहले ान पर कौन रहेगा। कुछ को तो डये धमकाइये
भगाइए जनाब। ज द से अपना जगह बनाइये जनाब।।
म पढ़ाई म सामा य था पर डांस करता था, कूल के हर फं न म मेरा एक या दो डांस
होता। खई के पान बनारस वाला तो अब तक दहाई का आकड़ा पार कर गया था हम भी
खूब कमर लचका-लचका फ लम वाले चचा जी क ए टं ग करते। इतना कॉ फडस था
इस गाने के डांस पर क यू सम झये हम ही को रयो ाफ कये हो। हालाँ क वो मेरे लास
म ही थी पर सरे से न म रहने के कारण नयन मलने म दे री हो गई।
पहली बार नजर उसपर एनुअल फं न म पड़ी थी, धक से दल कर गया था, वो भी डांस
म भाग लेने आई थी। अब बस हम यही मना रहे थे क वो मेरी डांस पाटनर बन जाये।
सरे दन कूल नकलने से पहले मं दर प ँचा और पं डतजी को इक स पया दान कया,
ये इक स पया मेरे लए करोड़ो क जायदाद थी, जो मौसा जी पछली बार आये थे तो
दए थे। अब तो स त मना था, दादा जी का सीधा आदे श था क दे ना है तो ब ो को खाने
क चीज दो पैसा को न दे गा, इससे ब े बगड़ जाते है। कभी कभार तो मन करता क
बुढ़ऊ का धोती ही धो बया के कान म गरवी रख दे । खैर भगवान और पं डत जी का
आशीवाद ले अपनी एटलस वाली साइ कल से नकल पड़े । आशीवाद लेने म लेटे हो गई
प ँचते ही कूल गेट ब द हो चूका था। अब दो रा ता था या तो लौट आएं या फर पट सर
का प नशमट पाएं तो हमने सरा आ शन पर सही का नशान लगाया। मतलब साफ था
क ाउं ड का दो च कर लगाओ और जो भी कागज मले उसे उठाओ, महाशय को तो
वतमान सरकार म व ता अ भयान का ांड अ बेसडर होना चा हए था।
उस हसीना के वा ते हम पुरे जले का च कर लगा ले इ तो अपना ाउं ड ही था।
बस जो न होना चा हए था वो आ पूरे लास म मेरे आ शक के चच हो रहे थे और वो
बेचारी इन सबो से अनजान थी। कोई दोगलई कर गया था शाम को केट खेलते व
अपने माइल क वजह म उसका नाम लेना भारी पड़ गया। कानो कान खबर फ़ैल गई और
वो मेरी डांस पाटनर बनने से मना कर द । भाई या बताये भगवान से भरोसा ही उठ गया,
लौटे तो पं डतजी से दादा से कह दे ने क धमक दे अपना इ क स पया भी वापस मांग
लए।। मं दर हनुमान जी का था तब अहसास आ क जो खुद चारी हो वो मेरी गृह ी
या बसाएगा।
उस समय से मन म कृ ण भ जागी और म अपनी राधा के लए बंसी बजाने लगा।
अगले दन जब कूल प ँचा तो लगा क नाच गाने से स यास ले लूँ, पर ख़ोप ड़या से एक
स दे श आया क कम से कम इसी बहाने द दार तो होते रहेगा।
उसका पाटनर अं कत को बना दया गया उ हमरे साथ बच पर बैठता था। उ ससुरा को
स त हदायत था क यादा करीब न जाये और भाभी क नजर से दे खे। लोग कस नजर
से दे ख रहे थे पता नही पर अबतक सारे दो त के नजर म आ गई थी वो। करीब दस दन
ै टस होना था। इसी बच हमरी मौसी आई थी और डे री म क लाई थी तो हमारे ह से
चार गो पड़ा था। सुबह कूल जाते समय चारो ले के नकल लए।
लंच म वो हॉल म आई और मेरे बगल म ही बैठ , मानो कृ ण जी ने अपना कमाल दखा
दया हो उसी समय संक प लया क य द ओ मेरा डे री म क ले ली तो ी कृ ण मं दर म
जो पुजारी है उ ह एक सौ एक पया दान ं गा। मने उससे पूछा 'और बताओ कैसी हो?
'जैसी ँ आपके सामने 'ँ - उसका जवाब था यह। दल तो कया क क ँ सामने नह मेरे
गोद म तेरी जगह है, पर स लते ऐ मने कहा क तेरे लए कुछ लाया ँ। तभी उसक
एक दो त बुला ली और वो चली गई। 'खुद तो जुगाड़ है और हम कुछ कर रहे है तो मेरे
जुगाड़ पर पानी फेर रही है' मै भर पेट उसको ग रयाया। छु के व ओ मेरे पास आई
और पूछ या दे ने वाले थे? मने कहा चु मा। ओ चौक़ या कुछ भी!! मै भी पूरा तैयार हो
कर आया था, हॉल म कोई न था मैने उसे डे री म क द वो लेकर जब जाने लगी तो झटके
से मने उसके गाल को अपने होठो से चूम लया। वो वहाँ से चली गई मुझे डर था क कह
क लेन न कर दे । घर लौट तो आये पर वादे के अनुसार एक सौ एक पया कृ ण मं दर के
पुजारी को दान करना था। सम या बड़ी ज टल थी क यह राशी लाया कहाँ से जाये, प ँच
गए दलान म जहाँ दादा लेटे थे। ये दादा लावा पैर दबा दवा इ कहते ई हम उनका पैर
दबाने लगे। दादा तो आ खर हमर बाप के बाप थे समझ गए और बोले 'का बात हई हो,
कोई बात का, बोला कुछ च हवा का। बस आशीवाद चाही बाबा और बोड के ए जाम हई न
और सौ गो पया हे दे वे ला ए ा लास लागी कूल म। दादा भी हमारे जम दार ठहरे
फोन लगा दए कूल के सपल के पास “का हो मा टर ए ा लास दे रहा है तो सही
है पर पैसा के लए हमको डायरे ट फोन करता ब न से काहे बोलते हो”। उधर से या
जबाब आया पता नही पर पलक झपकते ही हम पर दो लाठ बजर चूका था। हम वहाँ से
नो दो यारह हो लए पर सवाल वचन पूरा करने का था तो भगवान से एक कॉ ै ट साइन
कर लए क जैसे हमारे हाँथ म पैसा आएगा भु हम आपके दरबार म दौड़े चले आएंगे।
म एक दन बाद कूल गया जैसे ही म अपना बैग रख बाहर आ रहा था, वो मुझसे पूछ ली
'कल य नही आये थे? मेरा जबाब था तेरे डर से। वो कह गई क
जाओ माफ़ कया तुझे वैसे वो ल हे इतने बुरे भी न थे।
इसी तरह दन बीतता गया और मेरा यार बढ़ता गया पर वो खुल कर कुछ न बोली। दोन
तरफ से इशाराबाजी चलता रहा, एक सरे को दे ख कर माइल दे ते रहे। एनुअल डे से दो
दन पहले अं कत के पैर म मोच आ गयी और पूनम मैम के पास सम या यह क सोनल
का पेअर कहाँ से लाये। तभी रेखा (मेरी डांस पाटनर) आई और बोली मैम बुबुन और
सोनल को एक साथ कर द जये हम नकल जाते है। रेखा इ र बन आई थी मेरे लए
शायद वो मेरे दल क बात और ज बात को समझ रही थी। अब सोनल मेरी डांस पाटनर
थी, इस बार उसका वरोध न करना मुझे सहमती सा लगा और मुझपर उसका रंग धीरे धीरे
चढ़ने लगा।
कूल बंधक के अनुसार हमलोगो के पास कल का छः घ टा ै टस के लए बचा था पर
अभी तो दो ही बज रहे है, मतलब साफ था क य द यास करे तो आज भी हमलोग कुछ
पल साथ गुजार सकते थे। हम प पू भैया से कह के चाभी माँग लए हॉल का और सोनल
को कने बोल दया। वो लोग जा चुके थे, कुछ ब े सरे म म नाटक क तैयारी कर रहे
थे और इस हॉल म सफ हम दोन थे। मेरी धड़कने तेज हो रही थी और एक डर भी क
कोई ऐसे दे ख लेगा हमलोगो को तो या स चेगा?
ह क यू जक के साथ हमलोग अपना टे प कर रहे थे तभी एक झटके के साथ वो मेरे
बाँहो म थी, यू जक चल रहा था पर हमलोग थम चुके थे। एक सरे को दे ख रहे थे। पर
तभी पूनम मस आ गय और हमलोग को र होना पड़ा। सबसे यारी वाली मस आज
मुझे वलेन लगने लगी अब उनक उप त म हमलोग ै टस कर रहे थे। एनुअल
फं न के दन परफॉरमस के बाद उसे रोकना चाहा पर वो न क ।
अब हमलोग टथ लास म आ गए थे पढाई का ब त ेशर था, और साथ म इ क ने मुझे
जकड़ रखा था, हालाँ क यह अब तक एकतरफा ही था यानी बस मेरे तरफ से।
पहले म साइ कल से जाता था, पर अब खलासी को सेट कर उसी बस से जाने लगा
जससे ठकुराइन जाती थी। चौक पर खड़ा रहता बस जैसे कती चढ़ कर दे ख लेते अगर
ठकुराइन दखे तो जायँगे और नही तो हम भी कूल नह जाते थे। ठकुराइन क उप त
पर मेरा आना जाना फ स होता था। सरे से न म होने के कारण मुलाकात कम होती
थी पर हम हमेशा उसके लास म के इद गद भटकते रहते थे। हमारा यास होता
अ धक से अ धक समय उसके नजर के सामने रहने का।
दोन तरफ से यार न सही दो ती तो हो ही चुक थी ओ भी गहरी वाली।
वो बोलने लगी थी 'ही इज ज ट मोर दै न ड बट नॉट बॉय ड। हम भी मोर दै न ड सुन
के खुश रहते थे। बोड ए जाम आने वाला था वो अब कूल आना ब द कर द और हम भी
ला ट ओवर बै टग म लग गए कम से कम अ सी परसट लाना है दादा जी साफ धमका
चुके थे। ए जाम का समय आ गया एक सरे को सटर पर दे ख माइल दे ते। आज ला ट
पेपर था बाहर नकल के म उसका इ तजार करने लगा वो पास से यह कहते ऐ गुजरी
'ह म पापा कहाँ है हम पीपल के पेड़ के पास इंतजार करंगे”। मेरा यान उसके कान म लगे
एअर फोन पे गया दमाग क ब ी जली क अगर नंबर माँग लया जाये तो काम बन
सकता है। अब मुह बत क गाड़ी मोबाइल के ज रये बढ़ानी थी पर संकट यह क मेरे पास
मोबाइल ही न था, खैर इसके पहले क उसके बाबूजी आये हम प ँच गए पीपल के पेड़
तक और रॉ बन ड टायल म तपाक से बोले क अब तो कूल ख म ही हो गया मोबाइल
का नंबर दे दे ती तो फोन पे बात होता। वो यह बोल के क बात करना ज री है कह इंकार
कर द , म बुझे मन से आगे बढ़ ही रहा था क ओ आवाज दे कर रोक ' “अबे आ शक क
जा और एक कागज का टु कड़ा द ”। म आगे बढ़ कर उसे खोला उसपर न बर के साथ
साथ एक नदश लखा था' सफ शाम के चार से सात बजे के बच म फोन करना'। म
बछु ड़ने का गम और मोबाइल न० पाने के ख़ुशी को समेटते ए घर लौट आया।
कूल डायरी जसका इ तमाल म सफ शायरी लखने के लए करता था उस पर उसका
नंबर उकेर दया। पापा का मोबाइल लेने से डरते थे कभी कभार गेम खेलने के लए ले भी
ले तो बाबूजी के अंदर छु पा अमरीश पूरी बाहर आ जाता था, तो उ मीद दादा से ही थी।
उनके पास नो कया 2700 ला सक था जसमे फ़ोटो खचने से लेकर फेसबुक चलाने तक
क सु वधा थी पर बुढ़ऊ मा टर हो के भी इ सब से अनजान
बरला वाले
बुबुन एड मशन ले कर लौट आया। गया आते ही पहले प ँचा उस गली म जहाँ कोमल
रहती थी, व नाथ मं दर का साद दया और दो दन बाद हमेसा के लए बनारस श ट
हो जायगे बोल कर घर के लए नकल गया मोह ले म चचा थी, म ा जी का लड़का
बी.एच .यू म एड मशन ले लया। लोग ऐसे मलने आ रहे थे जैसे यूपीएससी ै क कर दए
ह । कोई कहता क कैसे तैयारी करवाय?”हम ँ अपन बचवा के स च रहे ह क अगले
साल करवा दे वह ” पटू मु खया बोले, जो कोई भी पूछता सबको हम कोमल के को चग
के बारे म बताते और यह भी कहते क अगर एं स टे ट नकालना है तो वह जाओ।
आज बुबुन, दादा का आशीवाद ले नकल रहा था। पूरी फै मली टे शन आई थी छोड़ने और
एक कोने म कोमल भी खड़ी थी, े न पर सवार होते ही हाँथ हला बाय-बाय कया। े न
धीरे-धीरे चलने लगी तभी दौड़ कर कोमल आई और वो भी े न म सवार हो गई, हाँथ पकड़
के ऑल द बे ट कहा और धीमी ग त से चल रही े न से वो उतर गई। उसके उतरते ही े न
अपने र तार म थी और हम बस दल से आ दे रहे थे उसे। आज बनारस जाना और बी
एच यू म पढ़ना बस उसके कारण सफल हो पाया था।
करीब चार घ टा के या ा म बनारस प ँच गए, टै सी लया और लंका गेट। हालां क टै सी
बुक करना महंगा पड़ता है पर सामान इतना यादा था क या करते।थोड़ी दे र के लए
अमीर बनना ही बेहतर समझे।
हॉ टल म बाबू साहब पहले से ही आ चुके थे और उनका कोई र तेदार आया आ था सो
प रचय आ और हाँथ मुँह धो के हम अपना सामान एडज ट करने लगे। शाम को हम और
बाबू साहब घूमते ऐ लंका गेट प ँचे ई भाई साहब पहले से इस व व म आते रहे ह।
इस लए कुछ अनुभव था इनके पास। कुछ कताब खरीद , ल सी पए और लौट आये
वापस हो टल। कल सुबह से लास शु होने वाला था।
काशी ह व व ालय सव व ा क राजधानी है।इस प रसर म वेश करते ही एक
गज़ब का आकषण पैदा होता है,यहाँ का मनमोहक वातावरण रंग - बरंगे सपन को संजोने
का अवसर दे ता है। यहाँ नामांकन म इतनी त धा है, क लोग यहा कसी भी वषय से
बस पढना चाहते ह। कला संकाय ऐसे अनेक व ा थय के सपन को उड़ान दे ने म मदद
करता है। यही कारण है क यहाँ हर े के वशेष व ाथ मल जायगे। 10+2 म वषय
कुछ भी रहा हो यहाँ सब न दय क तरह सागर मे समा जाते ह
अगली क ा दशनशा क
भारतीय दशन को जानने और समझने का अवसर मला था.....पर मन न लगा य क,एक
तो यह नीरस वषय और ऊपर से शाम को सबसे आ खरी लास...... सुबह से शाम तक
ऊब जाते। बस पास होने के लए पढ़ लेते ह। पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो स वल क
तैयारी के लए इसे डू ब कर पढ़ते।
हम ठकुराइन को ढूं ढने लगे, अब बीएचयू इतना तो छोटा है नह जो कसी को आसानी से
ढूं ढ लया जाये, पर हारे नह थे। इस काम म हमारे म पाटनर बाबू साहब भी मदद कर
रहे थे।
फेसबुक पर मौजूद हर सोनल सह का बायोडाटा खंगाला जा रहा था जो कसी न कसी
प से काशी ह व व से जुडी ई थी। पर अब तक हम अपनी ठकुराइन को ढूं ढ न पाये
थे। समय के साथ हम बनारस के रंग म रंग रहे थे, अ सी घाट पे बाँसुरी क धुन से लेकर
व नाथ मं दर क घ ट क आवाज सब कुछ कैद कर रहे थे। राजनी त का रंग भी धीरे
-धीरे चढ़ रहा था। एक तो पं डत ऊपर से काशी आ गए थे।वेद और म को भी
सी रयसली हण करने लगे। लास जाते, कुछ ले चर अटड करते, कुछ बंक कर जाते।
कभी भीम भैया के चाय के कान पर तो छतुपुर म गोपी के चाय कान पर अपना हाजरी
दे ते रहते। धीरे -धीरे राजनी त म भी इंटरे ट लेने लगे। यही कुल एक महीना बाद क ा पर
भगवा गमछा चढ़ गया था। बनारस घूमना चाह रहे थे पर अकेले या फायदा, ठकुराइन का
कोई अता पता था नही पर एक उ मीद थी क, ढूं ढ लगे। बहार से आये थे तो ब त आशा
लेकर आये थे, अपने क रयर और ठकुराइन दोन के लए। करीब इसी तरह लास लंका,
वीट मधुबन करते दन नकल रहा था पर ठकुराइन का कोई अता-पता ही नह । बड़ा
परेशान रहने लगे। उसके अ बा का नंबर तो था कॉल कर सकते थे, पर कोई अपनी बेट
का नंबर कसी लड़के को य दे गा भाई? बाबू साहब को अपने आप पर पूरा कॉन फडस
था क वो लड़क क आवाज नकाल सकते ह। सो उनपर एक दाव खेला गया। कॉल
मलाये ......
उधर से भारी भरकम आवाज हे लो कौन ??
जी म ठकुररर... सोनल क दो त बोल रही ँ।
सोनल तो बनारस म है न अंकल। म यहाँ आई ँ तो स ची क मल लूँ। उसका नंबर
डलीट हो गया है ... उसका नंबर बता द जये लीज।
ठ क है बेटा लखो ....
(मेरे और बाबू साहब दोन ले चेहरे पर जीत क ख़ुशी दख रही थी क लान सफल आ)
94 .. (बोल क गए)
अ ा ये बताओ क तुम बोल कौन रही हो ....
बाबू साहब मेरे तरफ दे खने लगे .....। हम पास पड़ी कॉपी पर लख दए रेखा, जो मगध
मे डकल कॉलेज के पास रहती थी। बाबू साहब बोल तो दए पर अगले पल जो आ
उसका ज कर के हमलोग करीब चार दन तक हँसते रहे।
रेखा तुम कब बनारस चली गई? तुम तो अभी ही आंट से मल के गई। इतना सुनना था क
बाबू साहब कॉल काट दए। दो बैक कॉल आया फर य उठाने जाये हमलोग, आइ डया
फेल हो चुका था। महादे व क कृपा बनते-बनते बीच म अटक गई। अब कोई नया तरीका
सूझे तो योग म लाये और अपने काम म लग गए। लगभग तीन महीने गुजर जाने के बाद
हम पूरे रंग म आ गए थे। बनारसी पान भा गया था मुझे और पूरा बनारस का रंग चढ़ चुका
था।
आजाद आजाद
मनुवाद से आजाद , स ा यवाद से आजाद
बी एच यु गेट पर कुछ ले ट संगठन के लोग इक ा थे और नारेबाजी चल रही थी। तीन
महीन म पूरा बनारसी हो चुके थे हम। महादे व, भोसड़ी के, तोहसे न हो पाई, इस तरह के
कुछ अपनापन श द सख चुके थे। क ा पर भगवा गमछा लटक गया था, और अगर आप
बी एच यू के बारे म कुछ जानते ह◌ै तो समझ ली जये आट फैक ट का टै ग लग गया था
और परफे ट बरला वाला स ट फकेट लेने क यो यता भी आ गई थी। ले ट को नारा
लगाते दे ख मेरा सुलग गया हम ँ नया नया नेतई वाइन कये थे और जवानी का जोश था
तो भड़ गए और का। उधर से मुदाबाद तो इधर से जदाबाद। तरह-तरह के नारे के साथ
घमासान शु ,तब ही एक आजाद वाली नेताइन हमसे टकरा गई, जो पलट के दे खे तो
दे खते रह गए। भीड़ हमको ध का दे आगे नकल गई और हम ससुरा नरभसा गए। हमको
तो अपन आँख पर यक ने न हो रहा था क जो दे खे उ सही है का। तबले बाबू साहब कह
दए का हो अइसन का दे ख लेले हउअ क आँख चौ रा गईल।
आइये बाबू साहब से आपका प रचय करा दे हमारे म पाटनर थे बरला सी म, पूरा
ठकुरई अंदाज बना गाली के एक वा य पूरा ही न होता था। भोसड़ी के तो इनके लए
वा य टाटर था हमको तो इ संदेह था क ए जाम म भी इहे अंदाज म लखते है का। वीट
पर कौन लड़क कब रहेगी और कब लंका जायेगी सब ल ट रहता था इनके पास।
ो टो रअल बोड वाले तो इनके चाचा, मामा और मौसा लगते थे, र तेदारी फ रयाने म
ए सपट बाबू साहब हमसे इस बात से चड़ गए थे क हम इनके बरादरी वाली को य
सेट कये है ? हर ठकुराइन पर पहला दावा इ ही का रहता था।
आँख तो संच म चौ रा गया था। यक न न हो रहा था क वो सोनल है, थोडा गु सा भी आ
रहा था क नेतई करना ही था तो तो आजाद गग म य शा मल हो गई। खैर हो टल तो
लौट आये पर बेचैनी बढ़ ई थी, अब उसका बायोडाटा मलान हेतू बाबू साहब को लगा
दए। दन म बाप के नाम से लेकर गाँव का पता से न और लास सब लाके पटक
दए। हम तो इ कहते ह क उनको स ल ऑ फस म नौकरी मल जाये तो एक कागज भी
इधर उधर न हो और फटाफट सब काम नपटे । बात प क हो गई वो सोनल ही थी। पुराना
यार हलोर मारने लगा, टे रेचर बढ़ गया।
मुझे मेरी यार दख गई थी, भला कोई अपने यार को कैसे भूल सकता है। जब उस दन
टकराये तब ही पहचान लए थे अपनी ठकुराइन को बस, थोड़ा बदलाव ज र दखा था।
लास और फैक ट का इनफामशन लेने हेतु बाबू साहब को लगाये थे। फेसबुक पर पीपल
मे यू नो म मु बांधे डीपी के साथ कॉमरेड सोनल का नाम अ सर दखता था पर हम या
पता क मेरी ठकुराइन लाल सलाम हो गई है।
खैर हम ड र वे ट भेजे, दो दन तक एसे ट नह आ तो एक मैसेज भेजे
"हे लो ठकुराइन म बुबुन ँ तुम नह पहचान रही हो या ? ड र वे ट तो एसे ट करो"।
मैसेज सीन आ पर न कोई र लाई आया न ही ड र वे ट एसे ट कया गया।
ऐसा लगा शायद वो मुझे पहचानना ही नह चाहती है पर मन कहता नह वो मुझे कैसे भूल
सकती है। एक दन और बीतने के बाद हमारा मन टू ट गया अपने आप को समझाने लगे क
कोई बात नह शायद वो आगे बढ़ चुक है। उसके बाद ठकुराइन पर एक दो दन नजर पड़ा
तो दल पे प र रख के उसे नजरअंदाज कर दए।
ड र वे ट भेजने के पाँच दन बाद म ठकुराइन के म सूची म शा मल हो चुका था और
उस मैसेज के जवाब म लखा था” म ा जी हम आपको कैसे भुल सकते ह... कहाँ ह
साहब आप?"
हम दे खते ही खुश हो गए बोले अभी तो गया आये ह पर एड मशन ले लए ह बीएचयू म --
-
कॉमरेड सोनल - गुड!! यास जारी रखो।दे खते ह,कब सफल होते हो।
ऑल द बे ट कह के वो ऑफलाइन हो गई। हम भी अपने काम म लग गए। पटना गए,
काय म अटड कया और वापस बनारस। बनारस आ तो गए पर शु आत कहाँ से और
कैसे कर, यह स च रहे थे।
अब हार तो मानना न था। ठकुराइन के लए ही तो आये थे काशी म,तो लगे फॉलो करने।
हर दो दन पर मुलाकात हो ही जाती पर,एक सरे से बात नह करते। बस मेरे माइल का
जवाब वो भी मु कुरा कर दे ती। एक दन शाम म वीट पर थे तो ठकुराइन वह दखी पर
बात न ई बस वही माइल का दौर चला।
मेरा तो डे ली का ट न था, या यु समझे बाबा से एक वादा क रोज मलगे आपसे। बच म
एक दन ठकुराइन से रलेटेड बात भी भोले बाबा से कये थे, और उसी का असर था क
उस दन लंका पे आजाद गग के आंदोलन म मुझे दख गई थी वो। रोज के भाँ त उस दन
भी वी ट प ँचे। अब तक तो हम पुरे रंग म ढल चुके थे, स कल भी बन गया था। कुछ
समान वचारधारा के सी नयर के साथ उठना बैठना भी शु हो गया था। ठे ठ भाषा म
सम झये तो जहाँ भी खड़ा होते - तन गो इयार दो त मल जाता। मेरे इसी स कल का
फायदा उठा बाबू साहब केकरो से टकरा जाते।
भीम भैया के चाय कान के पास बैठ बाबू साहब का इंतजार करने लगे, तले उनका चेला
एक कप चाय धरा दया। गजब क बॉ ग थी मुझमे और भीम भैया म । एक सप लए
ही थे क दे खे बाबू साहब चेहरे पर मु कान लए मेरी और आ रहे थे। यह माइल मेरे से
मलने क तो नही ही थी य क बाबू साहब तो अ भये कुछ दे र पहले नकले थे हो टल से
पर इतना ज र लग रहा था, क कोई खजाना हाँथ लग गया है।
उ आते ही बोला ' अरे भौजाई अंदर बैठ है '
म चौका !! भौजाई ??
हा भाई आजाद गग वाली नेताइन जसका बायोडाटा तुम नकलवाए थे।
भाग भोसड़ी के साला फरक काहे ले रहे हो
अरे ह म पं डत महादे व कसम अंदर ही बैठ है। बाबू सहबवा था तो बदमाश पर महादे व के
भ था ऊ झूठा कसम न खा सकता था। ओ तेरी लगता है महादे व सुन लए तब हम और
बाबू साहब चल दए ,साथ म और लोग थे, लग रहा था क बारात आज ही नकलने
वाला है। जैसे ही अंदर गए लू कुरता और ले गस पहने, उजला रंग का प ा ओढ़े
ठकुराइन पर नजर पड़ गई। हाँथ म एक अं ेजी अख़बार और एक नोट बुक लए कसी का
इंतजार कर रही थी। अब या था उसको दे खते ही मेरे अंदर एक एनज आ गई और फर
लगातार नारे का दौर शु आ। नमः पावती पतय हर हर महादे व के नारे से पूरा प रसर
गूँज उठा।
रात म फेसबुक खोले ठकुराइन ऑनलाइन दख गई
रामभ बुबुन - य सुना तो था लाल सलाम वाले लोग मं दर नही जाते
कॉमरेड सोनल - मं दर जाना वो अपनी चॉइस है बस हमलोग ढकोसला नह करते। मं दरो
म पूजा के नाम पर लूट मची है और हमलोग तु हारे लोग जैसा धम क राजनी त न करते।
रामभ बुबुन - अरे यार धम के बना जदगी है या ? इंसा नयत ही धम है। अ ा छोड़ो
ये बताओ क मं दर के तरफ तुम या कर रही थी ?
कॉमरेड सोनल - य न जा सकते या बस घूमने गए थे और या ??
रामभ बुबुन - ठ क है अगर कल हो तो हम भी घुमा दो
कॉमरेड सोनल - ओके दे खते ह।
और इसी बीच हमलोग ने अपना मोबाइल नंबर भी ए सचज कर लया था।
अगले दन कॉल आया
हे लो कौन ??
पहचानो, दो त ही ह तु हारे .....
बोलो ठकुराइन कैसी हो ?
वाह पहचान तो गए, बस ठ क -ठाक ... तुम अभी हो कहाँ( ठकुराइन बुबुन से पूछ )
अरे रहंगे कहाँ, बस हो टल म ह।
तब उसी व पहला नमं ण द थी ठकुराइन, "अगर हो तो आओ मधुबन। मल कर
बात करते ह"
ओके, ज ट वेट फॉर फ ट न मनट् स- बोल के हम नकल गए और ठ क पं ह मनट बाद
हम मधुबन के पास थे। सामने लगे चेयर पर बैठ ठकुराइन अपना से फ़ उतार रही थी।
मुझे दे खते ही,"अरे म ा तुम तो बड़े माट लग रहे हो”। हम बोले चलो पहचान तो गई।
हम लगा पहचान भी पाओगी या नह । लगभग ढाई साल बाद ठकुराइन से मले थे। ऐसे
हम तो पहले ही दे ख लए थे पर आज बीएचयू म पहली मुलाकात थी हमारी। वो कुछ-कुछ
बोल रही थी और हम उसे बस नहार रहे थे। उसे एकटक दे खे जा रहे थे, तभी वो
बोली,”ठ क से नहार लो तब ही बोलगे कुछ य क तुम तो सुन रहे हो नही मेरी बात
को"। म उसे नहार रहा था वो रेड सूट म परी लग रही थी। मेरे यह बोलने पर क ब त
यारी लग रही हो ठकुराइन उसका जबाब था," रेड तु हरा फेवरेट कलर है न इस लए
पहनी ँ”। मतलब मेरे पसंद-नापसंद का याल रखती हो वाह! तब इतना याल था तो
तुम ये लाल सलाम वाली कॉमरेड काहे बन गई।
ओह! तुम भी न बस शु हो जाते हो। राजनी त को छोड़ो न अभी अपनी, हम दोन क
बात करो न (ठकुराइन मेरे बगल म बैठते ए बोली) दो कॉफ़ आडर कये, बात शु ।
गया के दो साल क शाट टोरी उसे बता रहे थे और वह बड़े यार से सुन रही थी। फर
हमलोग लगभग एक घ टा बाद लौट आये। मुलाकात तो ई थी, वो भी मेरे दल क बात
जानती थी पर जान कर भी अनजान बन रही थी वो। पता नह या हो रहा था उस समय।
एक तरफ तो बड़े यार से मलती और सरे तरफ मेरे वचारधारा का पुरजोर वरोध करती।
हम भी क यूज थे पर इतना तो था क उसके दल म मेरे लए सॉ ट कानर था।
एक दो फॉमल मुलाकात ई। उस दन बाबा का दशन कर पैदल लौट रहे थे हॉ टल। तो
पीछे से एक आवाज आई,"ओये म टर छोड़ ँ या”?
पीछे मुड़े तो ठकुराइन थी। ”अ ा ठ क है छोड़ दो", बोल हम उसके कूट पे बैठ गए।
फर वो कूट पीछे ले ली, हम मजाक म पूछे कडनैप करने का इरादा है या? मेरा हॉ टल
इधर थोड़े है।
अरे! डरो मत म ा जी,चलो को कॉफ़ पलाते ह,इसके बाद छोड़ दगे।
पाइप डाल के को कॉफ़ आ गया। हम तो पहली बार पी रहे थे ई ससुर कॉफ़ भी है और
को भी! गजब !! हम तो कॉफ़ मतलब हॉट समझते थे। खैर को कॉफ़ पीते ए
ठकुराइन से पूछे “तु हे पता है हम बीएचयू य आये है ?" वो मु कुरा कर जबाब द ,” हाँ
पता है मेरे लए तो नह ही आये हो”।
तब तो आपको कुछ पता नह है मैडम •••••••
तो बताओ?? (ठकुराइन अपना लास रखते ए बोली)
हम भी ख म कर ही चुके थे एक सप लेते ए बोले,"बस जसके लए आये है वो सामने
खड़ी है पर, वो दे खना और समझना ही नह चाहती”।
हाजीरजबाब तो थी ठकुराइन बोली,”दे ख तो रहे ह समझाओ”।
हम दोन एक सरे को दे खने लगे जैसे आँख लड़उआ खेल खेला जा रहा हो। कोई भी
पलक झपकाने को तैयार नह था। बस उसके आँख म अपनी त वीर दे खते ए, हम
महादे व को मन ही मन सा ी मान कर बोल ही दए “आई लव यू ठकुराइन”।
या!! ओ पलक झपकाते ए च क ।
अब तक हम उसका हाँथ अपने हाँथ म ले चुके थे, "हाँ ठकुराइन बस इसी वा ते आये ह
यहाँ,आई लव यू"।
लाल सलाम और जय ीराम का इ क स व है या? (ठकुराइन पूछ )
य मेरे अंदर स ाई नह दखती या? महादे व के सम , यह पं डत तु हे वचन दे ता है,
आखरी व तक हम साथ नभायेगा।
इस बार ठकुराइन आगे बढ़ और मुझे गले लगा ली, वो भी सबके सामने और बस इतना
पूछ थी
“मुकरोगे तो नह न ?"
हम जबाब म बस इतना बोल पाये थे,”कभी नह जान
अब हमलोग अकसर मलने लगे थे। लास के बाद थोड़ी ब त पाट -संगठन का काम
दे खते और टाइम नकाल कर अ सी आते, साथ बैठ इधर उधर क बात होती।
गंगा क लहर और बाँसुरी क तान। मंद हवा और हलोर लेती धार। कनारे घंट बैठने के
बाद उस म म सी रोशनी म जी कया य ना ठकुराइन के साथ नाव क या ा क जाये।
ना वक को बोला जरा हौले-हौले चलाना।वो हँसते ए बोली”डरो मत,म ँ तु हारे साथ
डू बोगे नह "। हम भी चुटक लेते ए बोले क हम फसल भी चुके ह और डू ब भी चुके ह।
वो शाम ब त खास थी। साथ म हसीना हो तो माहौल खुशनुमा हो ही जाता है।हम बढ़ रहे
थे और वो गाना याद आ रहा था “' जयरा रे झूमे ऐसे जैसे बनवा नाचे मोर ”। और भाई
साहब हमारे मुह बत क पतंग उड़ रही थी जसका मांझा हमारे हाथ और डोर ठकुराईन
पकड़ी ई थी।
वो झुक कर नद क धार के साथ अठखे लयां कर रही थी और मुझे पड़ा रही थी पानी।
नाव थोड़ी डगमगाई। म तो डर ही गया, कह इसक नादानी भारी न पड़ जाये। और सच
पूछो तो उसे लेकर ही फ मंद थे हम। उसके बना अपनी जदगी का एक पल भी क पना
नह कर पाये थे।
हम बोले अरे गर जाओगी ऐसे मत करो। बोलने लगी,”'डरपोक' तु ह खुद ही डर लग रहा
कह तुम न गर जाओ"। हमने कहा,”रहने भी दो हम तैरना आता है"। उसने तपाक से
बोला”तो म अपनी फ य क ँ ? मुझे पता है तु हारे होते मुझे कुछ नह हो सकता"।
उसके इस जवाब ने हम नश द कर दया था।
उसका व ास जीत चुके थे हम। र ते के पहले पड़ाव को पार कर चुके थे। बंसी क धुन
गंगा क धार से मलकर और सुरीली लग रही थी। स दय और सुर का अनोखा म ण
दे खते ही बन रहा था।
होली बनारस वाली
ठकुराइन बोली होली बनारस का दे ख लो, चढ़ा लो रंग बनारस का डू ब कर दे खो तो इस
भांग वाली ठं डई म। हम क गए आ खर पहली होली थी बनारस क ।हम भी जीना चाहते
थे बनारस को और वजह भी थी मेरे पास, भला कौन अपनी यार के गाल म गुलाल न
लगाना चाहेगा।
भांग, पान और ठं डई क जुगलबंद के साथ अ हड़पन, म ती और लड़बाजी के रंग के
साथ बनारसी होली क बात ही अलग है।
एकदम चौचक।
बाबा व नाथ क नगरी म फा गुन का बयार,ग लय से होली क सुरीली धुन और चौक
-चौराह पर होली मलन समारोह का काय म।
भारत को भारत होने का अहसास कराता है,
भारतीय सं कृ त का द दार कर पाएंगे आप।
रंग फा गुन का, सुबह-ए-बनारस और घाट, मजाज ह रया जायेगा आपका।
कसी को रंगे बना नह छोड़ने वाली बनारस क होली धमाकेदार है।
काशी क होली बाबा व नाथ के दरबार से शु होती है। रंगभरी एकादशी के दन भोले
बाबा संग अबीर-गुलाल से शु होता है काशी का हो लयाना माहौल और जे शु होता है
तो बुढ़वा मंगल तक चलता है।
हम क गए थे।बी एच यू म चार दन पहले से ही महौल बना आ था। सबलोग छु पर
घर जा रहे थे,तो कपस म होली तो बनता है। या लड़का या लड़क सबलोग एक सरे
को रंग लगाना चाह रहे थे। इ फगुआ है ही ऐसा सब से दो ती करवा दे ता है।
मधुबन म वशेष इंतजाम कया गया था, MMV क कुछ लड़ कयाँ यह काय म रखी थी
उसम मेरी ठकुराइन भी थी और कुछ -कुछ खास लड़क को बुलाया गया था। लड़के
-लड़ कयां पूरा म ती के मूड म थे। हम भी प ँचे एक सरे को गुलाल लगाया और मधुबन
गो ठ टाइल म राउं ड होकर सब बैठ गए।
बीच म केसर, प ता, बादाम, मघई पान, भांग क ठं ढई रख द गई। भांग और ठं ढई के
बना बनारसी होली क क पना ही बेकार है।
भांग माने शवजी का साद।
अब चार तरफ शवजी के भ और बीच म शव जी का साद। ऐसा रंग चढ़ा था क दो
दन तक उतरने का नाम ही न ले रहा था। सब को अल वदा कह के लड़को के ुप म
शा मल हो गए, ठकुराइन इ हदायत दे रखी थी, ज द म लौट जाना, पर कौन लौटना
चाहता था जब दो त का साथ वो भी बनारस वाली होली म। ढोलक, झाल मंजीरा आया
और शु आ कपस म घूम-घूम के फगुआ गाने का काय म।
बाबू साहब पूरा मूड म... भांग मार लए थे, हम भी चढ़ा ही चुके थे और जब दो यार हो
तैयार तो काहे का इंतजार भाई। 'रंगवाला ए जान,रंगवाला ए जान, बारह बरस मन ताजा
रही' ढोलक और झाल क र तार और बढ़ जाये जब कोई लड़क सामने से गुजरे। कोई
बदतमीजी न करेगा ये साफ कह दया गया था कसी पे जबरद ती रंग न फकना है।
इसी तरह 'होली खेले रघुबीरा अवध म' से लेकर “ रंगवा दे इ द उधार 'तक” फगुआ का दौर
चलता रहा, लोग ठं डई पीते रहे और हम अबतक होली के रंग म अपने आप को पूरी तरह
रंग चुके थे।
मायानगरी मु बई
'12141 राज नगर ए स ेस' अनाउं समट हो चुका था। बस े न आने ही वाली थी। हम
च स का बचा पैकेट बैग म डाले और मैडम जी क ओर मु कुरा कर दे खे। चल दए उनका
हाथ पकड़ कर। महादे व क कृपा से साइड लोवर और उ पर बथ मला था। हम अपनी
ठकुराईन को इ मनान से नहार सकते थे। सामान एडज ट कर के बैठ गए आमने-सामने।
आ खर मायानगरी म अपनी महबूबा के साथ इतने क मती दन बताने का मौका मल रहा
था। अपने यार को पंख दे ने के सपने दे खने लगे। चायवाले क आवाज़ से हमारी त ा
टू ट । इधर-उधर क बात होने लगी और दोन ट -बैग को घुमा रहे थे उस कप म। उसका ही
असर था शायद क वो फ क चाय भी ेशल वाली फ लग दे रही थी।
अंधेरा हो चला था। कूल से लेकर कॉलेज लाइफ र ु कर रहे थे। वो बस बोल रही थी
और हम नहार रहे थे उसे। तभी उसने चुटक बजाई और कहा-"ओये यान कहाँ है? कब
से बोले जा रहे और तुम सफ मु कुरा रहे हो"। हम भी झट से बोल ही दये क नहार रहे
ह तु ह। वो ज द से नज़र झुकाई और मु कुरा कर मुँह घुमा लया
गजब आ अचानक।भाई साहब! व त भी भरपूर साथ दे रहा था। कसी के मोबाइल म ये
गाना बजा 'मत कर इतना गु र सूरत पर ऐ हसीना, तेरी सूरत पर नह , हम तो तेरी सादगी
पर मरते ह'। वो भी मु कुरा रही थी। समझ गयी थी क ये गाना हम उसी को डे डीकेट कर
रहे ह। हम भी साथ म गुनगुना रहे थे। कुछ पल के लए दोन ही खामोश थे। जब तक वो
गाना चला,हम दोन बस एक- सरे को दे खते और मु कुराते रहे। 10 मनट के बाद उसने
बड़े यार से पूछा”कभी बताया नह तुम इतना अ ा गाते भी हो"। मैने भी नवाबी अ दाज़
म कहा"मोहतरमा धीरे -धीरे हमारे बारे म सब जान जायगी"। लग रहा था मने उनके दल
को टच कर दया। मने भी सुना था कह क लड़ कय को ऐसा ेशल टमट काफ पसंद
आता है।
खास कर जब उनक तारीफ़ यू जकल अंदाज़ म हो तो सोने पर सुहागा। गलत भी तो नह
था। उसक सादगी ने ही तो हमारे दल के तार झनझना दये थे। तभी प वाले भाई साहब
आडर लेने आ गये। 9 बजे के आस-पास खाना आ गया। न द दोन क आँख से गायब
थी। म म रोशनी आ रही थी। ए. सी बोगी थी खड़क से कुछ साफ नज़र नह आ रहा
था। फर भी न जाने वो आसमान म या ढूं ढ रही थी। फर बोली दे खो न आसमान कतना
साफ़ है और तारे टम टमा रहे ह। कतना यारा लग रहा।हम तो ये सोचने लगे क अभी तो
मायानगरी प ँचे भी नह थे और माया अभी से हो रही थी। लाल और भगवा कही ब त
पीछे छू ट गया था। नया रंग चढ़ रहा था।मौसम गुलाबी सा लगने लगा था।
ठं ढ लगने लगी थी ह क ,। क बल खोले और पैर पर रख लये। अँधेरे म वो और भी
ख़ूबसूरत लग रही थी। हम उसे नहार ही रहे थे क वो बोली क हम न द आ रही और उपर
के सीट पर सोने चली गयी।
हम भी कुछ दे र उसके बारे म सोचते-सोचते सो गये। "कब तक सोते रहोगे”मीठ आवाज़
पड़ी कान म.... जागना पड़ा। मेरी ज़ दगी का सबसे ख़ूबसूरत पल। वो सामने खड़ी
मु कुरा रही थी। 9 बज चुके थे।
े श होकर आये दे खे वो दो कप चाय लेकर बैठ है। कुक ज़ के साथ चाय का वाद ले रहे
थे। ब त सारी बात । अभी भी ब त कुछ कहना बाक था। बता नह पाये थे हमारे दल
म या- या है उसके लये।खाना-वाना आ। लगभग तीन बजे थे दोपहर के।क याण
टे शन प ँच चुक थी े न। कुछ घ टे बचे थे मायानगरी के वेश - ार तक प ँचने म।
शाम के 5 बज चुके थे और े न सी. एस. ट प ँच चुक थी। आ खर प ँच ही गए थे अपनी
मं जल पर। रोमां टक सफ़र क शु आत तो हो ही चुक थी और बफ गोले ने और तड़का
लगा दया।
मु बई आये और गोले का वाद न लया तो सफ़र अधूरा न रह जाये। और साथ म महबूबा
हो तो सोने पर सुहागा। बस एक सरे को नह खला रहे थे। खैर अपनी ये तम ा भी ज द
ही पूरी कर लगे ये सोचते ए गोला ख म आ। टै सी मली और नकल पड़े 'अंधेरी' क
ओर। रहने का इंतजाम वह आ था।
रा ते म कुछ र जाकर उसने मेरा हाथ पकड़ लया। म खुश तो ब त था। शायद मेरे
ज बात उस तक प ँच रहे थे। अपने वचारधारा से र, इस मु बई ने हम अपने रंग म
रंग लया था। दल से आवाज़ आ रही थी 'आमची मु बई'। अपना सा लगने ही तो लगा था
ये शहर।
गा ड़यां सरपट भाग रही थ । ऊँचे ब स मानो आसमान छू रहे ह ।साथ म दमाग म
मैडम को ेशल फ ल कराने का लान चल रहा था। सफ़र पूरा कैसे आ हाथ म हाथ
लये समझ ही नह आया।प ँच गये 'अँधेरी ई ट' हमारी मैडम क दो त का घर था। वो
लोग बाहर गए थे कह छु यां मानाने।कोई नह था हमारे बीच। पूरा व त हमारा था।
शु आत ब त अ ई थी। महादे व से मना रहे थे क बस ये कृपा बनाये रख हमपर।
खाने का ऑडर दे कर हम नहाने चले गये। खाना खाये दोन एक साथ। हमने पूछा क
चलना है कह बाहर। बोली क थक गये ह हम। कल सवेरे ' स वनायक' चलते ह।
बनारस म दे खे थे कई दफा शवरा ी म मं दर म। सोचने लगे धा मक वाभाव तो लस
पॉइंट है। दादा तो झट से ब वीकार कर लगे। हम फर सोच क शु आत गणपती ब पा
के दशन से हो तो ेम के रंग और गहरे हो जायगे। ठकुराइन बड़ी गौर से दे ख रही थी, हम
कुछ यादा याली पुलाव जो पाक रहे थे। ब त ज द सो गयी वो। खुले जु फ और गहरी
साँस पागल कर रहे थे हम। उसे अपनी नज़र म पूरी तरह कैद कर लेने का दल कर रहा
था। सोफे पर बैठ उसे नहार रहे थे।
वो बेखबर,बेपरवाह सो रही थी और उसे नहारते न जाने कब हम मीठे वाब म चले गये।
सवेरे नहा-धोकर कुता-जी स पहन लये और वो पीले सूट म कयामत ढा रही थी। हम तो
कुछ पल के लये अपना होश ही खो बैठे।ये ख सयानी ब ली आज सौ य बन मेरे सामने
खड़ी थी।
" आ या है तु ह"। आवाज़ सुन होश म आये। बोली चलो फर दे र हो जायेगी। हम तो
यही चाह रहे थे क उसे जी भर के नहार ल। खैर, प ँच गए अँधेरी टे शन। टकट लये
और 'दादर' प ँच गये। टै सी लए और प ँच गये स वनायक। लंबी लाईन थी।
ठकुराईन स च कर आई थी क बा पा के दशन कर ही जायगे। करीब एक घंटे के बाद दशन
ए। पं डत साद ऐसे सटा रहा था मानो कसी ने उसके अंदर बैटरी फट कर द हो। खैर
दशन मल गया। जब बाहर नकल रहे थे तो नज़र पड़ी कसी पर। पहचानने क को शश
कर रहे थे, तभी मैडम ने कहा अरे ये तो' डॉली ब ा' है। चलो भी इतना य उसे घूर रहे
हो। इस पगली को ये कौन समझाए क जब से हमारी नज़र इससे लड़ी है तब से कोई
सरा भाता ही नह । वो तो हम ' बग बॉस' म दे खे थे तो बस पहचानने क को शश मा
कये। बोलने लगी क 'महाल मी'मं दर भी जाऊँगी। ये या था पूरा दन पूजा-पाठ। अब
या कर सरकार का म सर आँख पर। महाल मयै नमो नमः के बोल बड़े सुरीले और
शीतल लग रहे थे।
पूरा दन भ म सम पत होकर हम बाहर नकले।ठकुराईन को ना रयल-पानी दखा और
नया शौक क एक ही ॉ से पयगे। इसे अगर हम अपना इनाम समझ तो गलत नह
होगा। गोला न सही डाभ ही सही। दे वा क कृपा ही तो कहगे इसे। मने पूछा क या
खाओगी एक अदनी सी वा हश”पाव-भाजी”क वो भी सड़क कनारे। पता ही नह था
क वो इतनी सरल है। अनायास ही मुँह से नकल गया और या- या छु पा रखा है मुझसे?
उसका भी था मतलब? म बस इतना ही बोल पाया”कुछ नह "।
अगले दन सुबह बड टड गए। पास म 'म त'(शाह ख़ खान का घर)। सभी लोग अपनी
फ़ोटो लक कर रहे थे। हमारी मैडम को कोई इंटरे ट नही था। अजीब बात थी। समु दर
कनारे हमारे साथ बैठना शायद यादा रास आ रहा था। लोग क भीड़ से अनजान वो मेरा
हाथ थामे लहर को सुन रही थी। अरे ये दल इज़हार-ए-मुह बत सुनने को बेचैन था,और
वो सफ हमसे गु तगू कये जा रही थी। क ब त हमारा दल बस ये मान बैठा था क
मुह बत तो है।
अब बारी थी मरीन लाइ स क । वो हम छे ड़ रही थी। कभी गुदगुद करती, कभी मेरे बाल
ख़राब। मैडम तकारी जसक जुबान अ सर कड़वी और आँख म खा जाने जैसा
भाव,भौह चढ़ ई,और नाक पर गु सा,आज ब ी बन गयी थी। या यूँ कह उस नया से
र कह अपनी ओह!हमारी गुलाबी नया म।
इंतज़ार था बस भगवा और लाल रंग के एक होने का।
हम दोन ने आमची मु बई को ध यवाद करते ए ज़ोर से कहा' ज़रा हटके ज़रा बचके ये है
मु बई मेरी जान'। उसी दन रात 10 बजे हमारी े न थी। हमने इन दन म वड़ा-पाव,भाखरी
पूरणपोली, पाव-भाजी, को हापूरी भाजी जैसे अनेक जायके का वाद लया। ठकुराईन को
का ा (वहाँ क सारी)म और नथ म दे ख व ास नह हो पा रहा था क ये लड़क
महारा ीयन नह है। हम भी कह दए एकदम मराठ अंदाज़ म ”खूप छान दशती ग"।
उसने भी शरारती अंदाज़ म पुछा”काय”?। दोन हँसने लगे। और वो दौड़ के मेरे गले लग
गयी। पीछे से आवाज़ आई”अरे भाऊ साइड चला"। और हम मु कुराते ए चल पड़े
वापस। पै कग भी करनी थी। रात के 11 बजे े न थी। महारा क मीठ याद हमारे साथ
थ । घर प ँचे और मने ठकुराईन को अपनी तरफ ख चते ए कह ही दया”मला तुझाशी
ेम आहे"। और वो मु कुरा कर बस बोली”चलो वी आर गे टग लेट"। उसके माथे पर मने
कस कया और चल दए टे शन क ओर। 3 बजे भोर म हम फर से मुग़लसराय थे। चल
पड़े वापस काशी नगरी। बनारस क सुबह बाह फैलाये खड़ी थी हमारे वागत म।
दस दन बाद
सुबह उठे उसका एक टे ट आया था ' अरे म ा जी वीसी का चमचई छोड़ कुछ छा -
छा ा के बारे म भी स च ली जये '।
झूठा इ जाम लगता था हमपर हम चमचा थोड़े थे, ऊ तो अपना वहार था सबसे
मलजुल कर रहने का। खैर ठकुराइन का मैसेज आया तो गंभीरता से लेना ही पड़े गा। तो
कुता डाले और बाइक उठा के प ँचे लंका गेट। ऍम. ऍम .भी क लड़ कयाँ आंदोलन कर
रही थी अपने एक श का के खलाफ। एक लड़क को लास म कुछ बुरा- भला
(अपश द) बोल दया था मोहतरमा ने। दे खते-दे खते यह एक आंदोलन का प ले लया
था।
ले ट वाले ढोल मंजीरा पट रहे थे .........
शम करो !! शम करो !!
श ा के मं दर म गाली -गलौज नही चलेगा।
ौ टे रयल बोड वाले समझा रहे थे और इस भीड़ का नेतृ व ठकुराइन कर रही थी। ले ट
वाले थे, हम शा मल तो हो नह सकते थे, पर अपनी ठकुराइन को बात करते दे ख और सुन
रहे थे। कैसे एक-एक बात रख रही थी वो व व शासन के सम ।
आंदोलन पूरे चरम पर था व व शासन क ओर से एक डे लगेट्स क ट म भेजी गई थी।
लड़ कय को दे खते ए म हला पु लस भी बुलाई गई थी। आंदोलन हसक न हो, इस लए
लोग ने अनशन क ओर मोड़ दया और यह ऐलान करते ऐ क य द कल तक कायवाही
न ई तो अनशन कया जायेगा। लड़ कय ने मु य गेट पर ही ताला जड़ दया था, मु य
गेट का बंद होना मतलब आवागमन पूरी तरह ठप। आवागमन का ठप होना व व शासन
क न द उडा द , य क चंद मनट म ही जाम लगना तय होता था। लगभग एक घ टे बाद
लोगो को समझाया बुझाया गया और उ चत कायवाही का आ ासन् दे भीड़ हटाई गई और
गेट खोल दया गया। अब जब सब लोग चले गए तो ठकुराइन कॉल कर बोली
साहब हम यह ह “यादव चाय कान पर आइये है”।
हम प ँचे दो कप चाय और एक गो - लैक लए। चाय के चु क के साथ सगरेट के धुँए
को म स करने लगे। वो करीब आई हम समझ पाते इसके पहले ही मेरे मुँह से सगरेट
ख च फक द ।
“उफ़ पैसा लगा था यार पीने तो दे ती”
जी नही ये सब गलत है, वरना हम बात करना छोड़ दगे। वो मु कुराते ऐ बोली क कल से
अनशन पर बैठ रहे ह। तुमलोग से तो कुछ हो न पायेगा। कपस म अराजकता फ़ैलाने के
अलावा कुछ मु े पर खड़ा होना भी सीखो। बात करते -करते हम दोन कपस क और बढ़े ,
हम चढ़ाने के मूड म बोले
“मतलब पूरा नेताइन हो ही गई हो”
अरे म ा जलो मत…… जानेमन चमचई छोड़ य द कसी मु े पर लड़ाई लड़े होते तो
आज यूपी- बहार के हीरो होते। हम मौन हो गए, तभी वो मेरा हाँथ पकड़ के बोली ओय
“यू आर माय हीरो”। बस थोड़ा स रयस हो जाओ मेरे यार। गाल को चूम के, बाय -बाय
बोल हॉ टल म चली गई। म ा जी कल का इंतजार क रयेगा सुबह यारह बजे के बाद
शायद यू नव सट म कुछ नया दे खने को मले।
हम बरला म अपने म म लेटे थे, तभी मोबाइल टु नटु नाया “ म ा जी आइये ज द वीट
कल के लए कुछ लान करना है”
कॉल अपने संगठन के एक साथी का था, तो प ँचे वीट । चचा उसी ऍम ऍम भी क
श का के हार पर थी। अब हमलोग भी चुप बैठना न चाह रहे थे। तय आ क व व
शासन का पुतला दहन कया जाये। कुछ लोग अपनी म हला म को फोन लगाये और
कल के काय म के लए आने को बोला। अब हमारी वाली तो सरे वचारधारा क थी तो
हम चुपचाप बैठे रहे। रणनी त तय ई और महादे व को नमन करते ऐ सब अपने अपने
हो टल के लए नकल लए। खाना खाया कुछ आ टकल पढ़े और सोने के पहले ठकुराइन
को फोन मलाये-डे ली क आदत थी।
"हमलोग भी कल कुछ कर रहे ह”।
या? उसका सवाल था
व व शासन का पुतला दहन।
हा हा हा हा ( वो खूब ठहठहा के हँसी )
कॉपी कैट हो ही तुमलोग .... चलो कुछ तो सीखे।
मतलब सही म कर रहे हो या सफ फ़ोटो खचाने वाला। स च समझ कर करना कही
तु हारे आलाकमान नाराज न हो जाये। (वो लगातार बोल रही थी और हँस रही थी)
इसी तरह इधर- उधर क बात कर गुड नाइट बोल सो गए। सुबह अपने संगठन वाल के
साथ गेट पर जमा ए, पुतला दहन आ, मी डया बाइट ई और लौट आये। लोग ने
बताया क शासन कुछ न क । व व के तरफ से कोई सकारा मक जवाब आते न दे ख
ले ट क नेता सोनल सह अनशन पर बैठने वाली है। अब खूबसूरत थी ही, बो थी,
बोलना जानती थी दे खते -दे खते दे श क सारी टॉप मी डया उसे घेर ली और हम हो टल म
लेटे अपनी ठकुराइन को लाइव दे ख रहे थे। हमारी लड़ाई फांसीवाद ताकत के खलाफ
है। लड़ाई शासन के सह पर गलत काय कर रही श क- श का के खलाफ है।
तभी एक प कार ने सवाल कया ........
आप कब तक अनशन पर बैठगी ?
उ चत कायवाई के साथ जब तक खुद वीसी आकर बात नह करते तब तक अनशन जारी
रहेगा।
(पीछे से एक भीड़ क आवाज, साथी सोनल को लाल सलाम ...... लाल सलाम ...... लाल
सलाम)
नारा तेज होता जा रहा था और लोग धीरे-धीरे जुटने लगे थे। हम भी कबतक म म रहते,
नकले लंका क ओर। गेट पर एक मंच बना था, मंच पर ठकुराइन के साथ-साथ उसके
वचारधारा वाले कुछ बैठे ऐ थे। लाल रंग क कुत , माथे पर बद और कान म बड़ा सा
इअर रग कमाल लग रही थी मेरी ठकुराइन। वो भाषण दे रही थी और हम र खड़ा होकर
उसे नहार रहे थे।
अभी -अभी तो मुंबई से लौटे थे, वहाँ से लौटने के बाद यार और बढ़ गया था, अब वो
ज ठकुराइन थोड़ा समझदार हो चुक थी। ”यू आर ज ट माय ड”से हम”यू आर माई
लाइफ”तक प ँच चुके थे। उसका भाषण सुनते सुनते हम उसमे खो गए और बीते पल
आँख के सामने आने लगे।
तभी एक नारा के साथ मेरा यान टू टा ' लाल - लाल - लाले लाल बस अब लाल ही
लहराएगा।
ठकुराइन बोल रही थी, हमारी इन भगवाधारीय से कोई मनी नह , हम मु े क लड़ाई
लड़ते ह। गत लड़ाई नह । म तो ये चाहती ँ क व व के तमाम संगठन साथ आय
और आवाज बुलंद कर। पूरे दन ऐसे ही अनशन चलता रहा। करीब रात के आठ बजे वीसी
आये और समझा-बुझाकर अनशन तोड़ने का र वे ट करने लगे। इस भरोसा पर क
अगले दन मैडम को बखा त कर दया जायेगा, ठकुराइन अनशन ल से उठ गई।
हम राज के कान पर चाय पी रहे थे। उसका कॉल आया कहा -"वीसी आये थे, कल
कायवाई करने क बात बोल अनशन तुड़वा दए ह"। चलो कह कुछ खाने चलते है।
हम दोन अ सी के पास एक रे टोरट म खाना खाये, इसके बाद वो बोली क हम हो टल
नह जायगे, तेरे साथ ही रहगे। ए जाम था सेक ड इयर का, तो जो लैट छतुपुर म था
उसी म श ट कर गए थे। सो अब मैडम का बात टाल कैसे सकते थे। बाबू साहब को फोन
मलाये”कहे क आप हो टल आ जाईए, करीब दो- तन दन हम और ठकुराइन साथ रहना
चाहते ह। इतना तो था, बाबू साहब कभी मेरा बात न टालते थे, जो जब बोल दया कर दे ते
थे। लंका पर आकर चाभी दे गए। हम अपनी ठकुराइन को लेकर लैट पर आ गए। काशी
म एक बात है लोग अपने आप म ही त रहते है, कसी को सरे से कोई यादा मतलब
न होता। फर भी मकान मा लक तो आ खर मा लक होता है, सवाल तो करेगा ही।
हम बोल दए थे क हमदोन क शाद होने वाली है और मंगनी हो गई है। मकान मा लक
हमलोग से यही कुछ सात-आठ साल बड़ा होगा वो भी सब समझता था, इस लए यादा
कुछ न बोलता था, बदले म कभी दा पाट तो कभी चकेन पाट पर उसे हमलोग नमं ण
दे ते रहते थे।
ठकुराइन लैट म आई तो सब इधर-उधर बखरा पड़ा था। अपना बैग रखी हाँथ-मुँह धोई
और सब कुछ एडज ट करने लगी।
अरे यार हद है आराम भी कर लो न ..... या काम पर लग गई ?
इतना ग दा से रहोगे तो कोई आराम तो नह ही कर पायेगा,उसका जबाब सुन हम भी उठे
और मदद करने लगे।
कुछ ही घ टो म लैट क त वीर बदल गई थी, सबकुछ ॉपर वे म रख दया गया था, जूते
अब बेड पर नह थे और नीचे गरा आ तौ लया जसे हमलोग रोज दे खते थे पर उठाते
नह थे आज मेज पर रखा था।
अइसने ब चा हए माँ को ..... हम हँसत ए बोले।
जाओ न .... बड़ा आये .... खोज के रखी ह गी माँ तेरे लए हम य ब बनाएंगी ?
य या खराबी है तेरे म कहते ए हम उसे चूम लए।
वो उठ के बाहर जाने लगी .....
ओये !!
या आ ? कधर चल द ?
आ रहे ह को न झा लगाये ह तो हाँथ-मुँह धोने दोगे क नह (ठकुराइन के हर श द म
मठास भरी रहती थी)।
हमलोग को लैट पर आते आते लगभग 9 बज गए थे, खा तो लए ही थे सो खाना बनाना
नह था, पर साथ म दो बोतल ीजर और एक कॉ क और कुछ च स ले कर आये थे
रात को दलच बनाने के लए।
वो टॉवल ली और बोली हम नहा कर आते ह।
ए ऐसे या दे ख रहे हो ???
जु फ तेरी ..... आँखे और
यही क भ गे बदन म कमाल क लग रही हो .....
चलो आँख बंद करो मुझे चज करना है -------
ओहो कर लो न हमसे या शरमाना (हम लाइंग कस दे ते ऐ बोले)
चलो उठो, बक जाओ न लीज .......
मुझे अपने करीब बुला कर बड़े शरारती अंदाज म मुझे कमरे से बाहर कर द । अजीब
वड बना है, मुझे मेरे ही कमरे से बाहर कर दया गया था।
फर हम अंदर आये। मेरी ठकुराइन परी लग रही थी अपने बाल को लपेट के जुड़ा बनाया
और बैठ गई च स और को क लेकर। जर कसके लए हम बोले तुम भी पी सकती
हो। मा 3% अ कोहल होता है। ब त आनाकानी करने के बाद वो भी पीने लगी कुछ पल
के बाद वो मेरी बाँहो म थी। नशा जर का था या मेरा ये तो पता नह पर उसका मुझसे
लपट कर सो जाना यह कह रहा था क ठकुराइन मेरी हो चुक है। हम रात भर अपनी
ठकुराइन को यूँ ही नहारते रहे और वो आराम से मेरी गोद म सोती रही।
ये गुजरता व त!! उसे ढूं ढने से लेकर उसे पाने तक का सफ़र....श दब करना ब त ही
क ठन है।
ब त मु कल से मली थी हम। महादे व का तोहफा ही कहते थे उसे। बाहर से स त पर
नरम दल। मॉडन पर अपनी सं कृ त और सं कार से ेम करने वाली। नीडर, अद य
साहसी,स ी। सब कुछ तो पा लया था उसम। तो य न कहते उसे महादे व का तोहफा
काशी नगरी म माँ गंगा क गोद, महादे व का आशीवाद और बेइंतहा मुझे यार दे ने वाली
साथी मल गयी थी। बस अब सुनहरे भ व य क क पना कर रहे थे दोन । दो साल गुज़र
चुके थे। और हम लग रहा था जैसे उससे मलना, उसके साथ बताये ल ह बस कुछ दन
क ही तो बात है। ये दो साल सफर ब त आसान लगा। हम हमसफ़र चुन चुके थे और
कह न कह इस बात का अहसास था हम, क यही है जो पूरी जदगी मेरा हाथ थामे खड़ी
रहेगी। हर व त। सब कुछ मल चुका था उसम। यार, व ास, सहारा, साथ।
लड़ाई-झगड़े , ठना-मनाना सब कुछ आ। ले कन सब कुछ से ऊपर था हमारा यार।
हम उसके लए और वो हमारे लए। पढ़ाई के तीसरे और अं तम पड़ाव पर प ँच गए थे।
वाब दे खना तो ला जमी था। ज मेदारी उठाने क बारी करीब आ रही थी। शहजाद को
अपनी म लका बनाना था। वो शाही जदगी दे नी थी उसे। हर तकलीफ से परे रखना था।
आंसु से कोसो र और मु कराहट के करीब रखने का सपना दे ख रहे थे। और खुद से
एक वादा भी कर चुके थे सुनहरा कल दे ने का।
इक रोज वो हम कॉल क । पहली बार आंसे अंदाज़ म। हम घबरा ही गए। जसक
मु कराहट के लए हम कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे आज वो नम आँख से हमसे बात
कर रही है। म पूछता रहा क बताओ या बात है। वो बस इतना ही बोली क हम मलना
है। और फूट-फूट कर रोने लगी। मलना तो ठ क है, ले कन उसके आँसू हम ब त परेशान
कर रहे थे। उसे इतना बेचैन हमन पहले कभी नह दे खा। गंगा कनारे सी ढ़य पर बैठ
उसका हाथ अपने हाथ म लये। पूछ रहे थे उसके आँसु का कारण और वो बस रोये जा
रही थी। उसके घर र ता आया था। हमारे पैर तले तो जैसे जमीन ही खसक गयी। एक
और बात का अहसास आ, उसके मन म मेरे लए यार। र नह रह सकती थी मुझसे।
कहने लगी क,”तु ह खुद से यादा चाहने लगी ँ, तुमसे र होने के याल से भी डर
लगता है। मेरी धड़कन बन गए हो तुम। तु हारे साथ गुजरे पल मेरी जदगी ह। शाद क ँ गी
तो तुमसे नह तो मर जाना पसंद क ँ गी। कसी और के बारे म स च भी नह सकती"।
इतना यार! ऐसी द वानगी। हम तो ध य हो गए। उसके लए चाहत और बढ़ते जा रही थी।
हमारी साँस क डोर भी तो ठकुराईन के हाथ थी।
हम तय कर चुके थे उसके घरवाल से बात करने के लए। इस परी ा म पास होना ब त
ज री भी था। हम मना रहे थे क बस सब सही हो जाये। हम बोले, " हन तो तुम हमारी
ही बनोगी। रोना बंद करो और कुछ व त दो हम"। उसने ह मत दखाई और हमारे बारे म
अपने माँ-पापा से बात क । हम भी बात कये। तहजीब और सं कार हमारे भी झलक रहे
थे। और वो हम दे ख मु कुरा रही थी। जब फ़ोन रखे तो बोली,"वाह म ा जी, बड़े शरीफ
लग रहे थे"। हम भी गव से बोले, होने वाले ससुर जी ने मलने का ताव दया है। पूछने
लगी ऐसा या जा हो गया। हम भी अभी कहाँ बताने वाले थे। हम उसके घर जाने क
तैयारी करने लगे। वो हम ऑल द बे ट बोलकर ऐसे वदा क मानो हम जंग के मैदान म
जा रहे। उससे गले मलकर मन म ये व ाश लए क चाहे कुछ भी हो ये परी ा हम पास
करनी ही है।
उसके घर से पहले हम अपने घर गए। अ मा-पापा सब ब त खुश थे। दादा जी कमजोर
लग रहे थे, पर रौब वही। बात तो हम अपने घर म भी करनी थी। डर लग रहा था। शु आत
कैसे कर। माँ हमारी बड़ी नरम दल है। स चे य न माँ से बात कर के दे ख। अ मा राजी तो
पापा भी राजी हो जायगे। हर संभव बखान कया हमने ठकुराईन का। अ मा मान गयी पर
बोली क, "दे ख बेटा उसके घरवाल को राजी करने क ज मेदारी तु हारी और तु हारे पापा
और दादा से हम बात करगे"। हमारा आधा काम आसान हो गया था। अब बस हम चल
दए थे ठकुराईन के घर। हमारा घर भी खानदानी है। अ पहचान है हमारी। और उससे
भी बड़ी बात हम ठकुराईन से बेहद यार करते ह। हमने उसके पापा से बस एक साल का
व त माँगा,ता क अपनी मुह बत को हर वो कुछ दे सकूँ जो दे ना चाहता था। मेरे इसी
व ास ने उनका मन जीत लया। भगवा और लाल एक होने वाले थे। स री वाब सजने
लग गए। अब बस इस एक साल खुद को साबीत करने म लगाना था। ये खुशखबरी हम
उसे दे ने ही वाले थे, क मन म याल आया। मल कर ही सब कुछ बताएँगे।
अगले दन कॉलेज आई तो सारा बात बताये तो यही तय आ था क म लॉ म एड मशन ले
लु और वो पीजी म और दो साल बाद मंगनी और तीसरे साला शाद कर हमेशा के लए
ठकुराइन को अपने पास ले आएंगे।
इतना बोल बुबुन क आँखे भ ग आई, भाई ठकुराइन क ह या ई है उसे मारा गया है। इन
दलालो को हमलोगो क मुह बत रास नह आई, और आती भी कैसे नफरत क बीज बो
कर राजनी त जो करते है
तुम लाल लाल शोर मचा के
अपनी लाल ल बहा के
चली तो गई
पर कुछ सवाल है मेरे .........
मधुबन कैसे म जाऊ, बँसी कैसे बजाऊ, कसके लए म गाऊ
जब तुम ही न हो जब तुम ही न