Great Hindu Temples

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भारत मंदिरों का दे श है । यहां हर कुछ दरू ी में मंदिर स्थित है । भारत में हजारों वर्षों से मंदिर स्थल पर

दे वी दे वताओं की पूजा उपासना की जा रही हैं। लोक जीवन में जिस तरह आत्मचिंतन, मनन और
शास्त्रार्थ का महत्व रहा है उसी प्रकार मंदिरों का भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान रहा है । भारत में
कई ऐसे मंदिर हैं जो अनेकों रहस्य से भरे हुए हैं। कई ऐसे दे वालय हैं जिन्हें खगोलीय स्थान को ध्यान
में रखकर बनाया गया है । कई ऐसे गुफाएं हैं जहां दे वी दे वताओं की उपासना की जाती है । शिव और
शक्ति के ऐसे स्थान हैं जहां साक्षात ईश्वर के उपस्थिति की अनभ
ु ति
ू होती है । भारत में दे वताओं की
नगरी भी है और शक्ति की स्थली भी है । भारत में स्वर्ग का द्वार भी है और गुरुओं का आशीर्वाद भी
है ।

सनातन संस्कृति से जड़


ु े तमाम हिंद ू जैन बौद्ध मंदिर भारत में स्थित है । सद
ु रू उत्तर पर्व
ू के त्रिपरु ा और
अरुणाचल प्रदे श से लेकर कच्छे तक दे वी दे वताओं की विभिन्न तरीकों से उपासना की जाती है । शारदा
पीठ से लेकर कन्याकुमारी तक दे वी शक्ति का अद्भत
ु समागम दे खने को मिलता है ।

भारत में हजारों वर्षों से दे वी दे वताओं के सामूहिक उपासना के अलावा कुल दे वी-दे वता, ग्राम दे वी-दे वता
और नगर दे वी-दे वताओं की भी परं परा रही हैं। प्राचीन काल से ही शिव, पार्वती, दर्गा
ु , यक्ष, नाग, भैरव, इंद्र
और विष्णु की उपासना का प्रचलन रहा है ।

अटक से लेकर कटक तक की अखंड भारत भूमि में तमाम ऐसे मंदिर जो आज भी भारतीय परं परा के
गौरवशाली इतिहास को बखब
ू ी दर्शा रहे हैं। भारतीय सनातन परं परा में चार धाम है , सप्त पुरिया है और
12 ज्योतिर्लिंग है । दे वी की उपासना के अखंड भारत में कुल 51 शक्तिपीठ है । आइए जानते हैं भारत के
उन तमाम महान मंदिरों के बारे में जो ना सिर्फ अपनी वास्तुकला बल्कि दे वी दे वताओं की अद्भत

शक्तियों और भक्तों की अनन्य श्रद्धा का उदाहरण है ।

चार धाम - चार पीठ


भारत के चारों दिशाओं में स्थित मंदिरों को आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मुख्य रूप से महत्वपूर्ण तीर्थ के
रूप में परिभाषित किया था। इन चारों जगहों पर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मठों की स्थापना की थी।
यह 4 तीर्थ कुछ इस प्रकार हैं - उत्तर में बद्रीनाथ, पश्चिम की ओर द्वारका, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और
दक्षिण में रामेश्वरम।

इन चार धामों में बद्रीनाथ द्वारका और जगन्नाथ पुरी वैष्णव धाम है जबकि रामेश्वरम शैव स्थल है ।
लेकिन सनातन मान्यताओं में हरि यानी विष्णु और हर अर्थात शिव को शाश्वत मित्र कहा गया है ।
इसीलिए जहां पर हरि हैं वहां हर की भी उपस्थिति दे खी गई है ।

इसी तरह चारों धामों में भी हरि एवं हर उपस्थित हैं। उत्तर में बद्रीनाथ के साथ केदारनाथ स्थित है वही
दक्षिण में रामेश्वरम के साथ रं गनाथ स्वामी जी का मंदिर स्थित है । पर्व
ू दिशा में जगन्नाथ पुरी मंदिर
के साथ लिंगराज मंदिर है और पश्चिम में द्वारका जी के मंदिर के पास सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है ।

चार धामों में विष्णु जी के अलग-अलग अवतार अलग-अलग क्रियाकलापों के लिए मान्य है । ऐसी
मान्यता है कि भगवान विष्णु रामेश्वरम में स्नान करते हैं, बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं, जगन्नाथपुरी में
भोजन करते हैं और द्वारका में शयन करते हैं।

बद्रीनाथ मंदिर - बद्रीनाथ मंदिर हिमालय के शिखर पर स्थित है । अलकनंदा नदी के किनारे बसे इस
मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह आदिकाल से स्थापित है और सतयुग का पावन धाम माना जाता है ।
ऐसी भी मान्यता है की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी।

जगन्नाथ पुरी मंदिर - उड़ीसा राज्य में समुद्र के तट पर जगन्नाथ परु ी का मंदिर स्थित है । जगन्नाथ
मंदिर भारत के पवित्र सप्त पुरियों में से एक है । यहां भगवान कृष्ण श्री जगन्नाथ स्वामी के रूप में
विराजे हुए हैं। मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों अलग-अलग
रूप में विराजित है ।
रामेश्वरम - तमिल नाडु मैं समुद्र के किनारे रामेश्वरम तीर्थ स्थित है जो द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक
है । उत्तरी भारत में काशी और केदारनाथ की महत्ता जितनी है उतनी ही दक्षिण भारत में रामेश्वरम की
है । भगवान श्रीराम ने लंका कूच करने से पहले यहां रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना की थी।

द्वारका - भारत के पश्चिमी सिरे गुजरात राज्य में गोमती नदी जिस जगह समुद्र से मिलती है उसके तट
में यह मंदिर अवस्थित है । मान्यता है कि इस नगरी को श्रीकृष्ण ने बसाया था और मथुरा से यदव
ु ंशियों
को लाकर इस संपन्न नगरी को उनकी राजधानी बनाया था। हालांकि यह भी कहा जाता है कि असली
द्वारका समुद्र में समा गई है और इसके कुछ प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।

द्वादश ज्योतिर्लिंग

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने जिन 12 स्थलों पर अवतार लेकर अपने भक्तों को वरदान दिया वहां
पर इन ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है ।

सोमनाथ - 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है । सोमनाथ
ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात यह मंदिर भारतीय परं परा में ऐतिहासिक महत्व रखता है । इस मंदिर को
इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा 17 बार तोड़ा गया लेकिन भारतीय जिजीविषा ने इस मंदिर को हर बार पन
ु ः
निर्माण किया और वर्तमान में यह भारतीय सभ्यता का अप्रतिम प्रतीक है ।

श्री मल्लिकार्जुन - विंध्य के दक्षिणी हिस्से आंध्र प्रदे श में श्रीशैल पर्वत पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग को श्री
मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाता है । इस पर्वत को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है । यह
अद्वितीय मंदिर कृष्णा नदी के पावन तट पर स्थित है ।

श्री महाकालेश्वर - प्राचीन भारतीय इतिहास में उज्जैनी के नाम से प्रचलित नगरी में यह ज्योतिर्लिंग
स्थित है । वर्तमान समय में इस नगरी को उज्जैन के नाम से जाना जाता। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग
महाकालेश्वर रूप में पूजित है । क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग पर प्रतिदिन भस्म आरती
होती है जिसमें तत्काल दाह संस्कार किए गए शव को लाकर उससे शिवलिंग का श्रंग
ृ ार किया जाता है ।

श्री ओमकारे श्वर - मध्य प्रदे श में नर्मदा जी के किनारे ओमकारे श्वर मंदिर स्थित है । यहां पर मान्यता है
कि विंध्य पर्वत ने आदिदे व महादे व की आराधना की थी जिसके बाद से महादे व यहां विराजित हैं।

श्री केदारनाथ - भगवान शिव का यह अवतार हिमालय के शिखर में स्थित है । बद्रीनाथ धाम के समीप
केदारनाथ का मंदिर है । सनातन परं परा में पवित्र पांच नदियों के संगम के तट पर स्थली है ।

श्री भीमाशंकर - सहयाद्री पर्वत माला में भीमा नदी के तट पर पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थित है जो भीमाशंकर
के नाम से पूजित है । महादे व यहां भीमासुर राक्षस का वध किया था जिसके बाद से यह पवित्र भूमि
सनातनी भक्तों के लिए पूज्य है ।

श्री काशी विश्वनाथ - मान्यताओं के अनुसार विश्व की सबसे प्राचीनतम नगरी काशी में स्थित बाबा
विश्वनाथ का मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

श्री त्रंबकेश्वर - गोदावरी नदी के तट पर स्थित त्रयंबकेश्वर जी की पूजा द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से होती
है ।

श्री बैद्यनाथ धाम - बाबा बैद्यनाथ का मंदिर झारखंड के दे वघर में स्थित है । रावण ने घोर तपस्या कर
भगवान शिव से जिस लिंग की प्राप्ति की थी वह ईश्वरी लीला से वैद्यनाथ में ही स्थापित हो गया। यहां
बाबा के भक्तों द्वारा प्रतिवर्ष सावन माह में 108 किलोमीटर की पदयात्रा कर कावर से जल चढ़ाया जाता
है ।
श्री नागेश्वर - मराठवाड़ा क्षेत्र में हिंगोली में स्थित इस ज्योतिर्लिंग में पूजा वन में निवास करने वाले
दारुक राक्षस का नाश करने के बाद भगवान शिव की उपासना में किया जाता है ।

श्री रामेश्वरम - तमिलनाडु में समद्र


ु के किनारे रामेश्वरम तीर्थ स्थित है जो द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक
है । उत्तरी भारत में काशी और केदारनाथ की महत्ता जितनी है उतनी ही दक्षिण भारत में रामेश्वरम की
है । भगवान श्रीराम ने लंका कूच करने से पहले यहां रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना की थी।

श्री घष्ृ णेश्वर - अजंता एलोरा की अविश्वसनीय गुफाओं में स्थित ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में से
एक। इस ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

भारत के महत्वपूर्ण मंदिर

बर्फानी बाबा - बाबा अमरनाथ यात्रा प्रतिवर्ष भक्तों के द्वारा की जाती है । जम्मू कश्मीर में गुफाओं के
बीच प्रतिवर्ष बर्फ से बने लगभग 10 फीट से ऊंचे शिवलिंग की पूजा सनातनी भक्तों के द्वारा प्रतिवर्ष की
जाती है ।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा - उत्तर पूर्व के राज्य त्रिपुरा माता त्रिपुर सुंदरी का अद्भत
ु मंदिर है । माता त्रिपुर
संद
ु री के नाम पर ही इस राज्य का नाम त्रिपरु ा है । मान्यता है कि यहां मां सती के धारण किए गए
वस्त्र गिरे थे जिसकी वजह से यह शक्तिपीठ भारत के अज्ञात 108 एवं ज्ञात इनका 1 शक्तिपीठों में से
एक माना जाता है । यहां शक्ति को त्रिपुर सुंदरी तथा शिव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है ।

सिद्धेश्वरनाथ महादे व मंदिर, अरुणाचल प्रदे श - भारत के सुदरू अरुणाचल प्रदे श राज्य में स्थित इस मंदिर
का वर्णन शिवपरु ाण में भी दे खने को मिलता है । जहां स्थित शिवलिंग लगभग 20 फीट जमीन से ऊपर है
और 4 फीट जमीन से नीचे हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है । यह एक स्वयंभू शिवलिंग है ।
शिंगणापुर शनि मंदिर - महाराष्ट्र के शिंगणापरु में स्थित है सूर्यपुत्र भगवान शनिदे व का मंदिर।
विश्वप्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदे व की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी
छत्र या छत के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है । यहां शिगणापुर शहर
में भगवान शनिदे व का भय और सम्मान इतना है कि शहर के अधिकांश घरों में खिड़की, दरवाजे और
तिजोरी नहीं हैं। और जहाँ दरवाजे हैं वहां उनमें ताले नहीं लगाए जाते। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां चोरी
नहीं होती।

काल भैरव मंदिर, वाराणसी - उत्तरप्रदे श के वाराणसी में काल भैरव का एक प्रख्यात मंदिर है । यहाँ काल
भैरव बाबा को काशी का कोतवाल कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि कोई भी उनकी इच्छा के बगैर ना
काशी में आ सकता है और ना ही रह सकता है । मान्यता यह भी है कि काशी की सरु क्षा भैरव बाबा ही
करते हैं। वर्तमान में भी कोई अधिकारी वाराणसी जिले में पदस्थ होने के बाद सर्वप्रथम बाबा काल भैरव
का दर्शन कर अनुमति प्राप्त करते हैं। बाबा काल भैरव मंदिर के वर्तमान स्वरूप को बाजीराव पेशवा
द्वारा निर्माण करवाया गया था जो आज भी वैसा ही है ।

कामाख्या दे वी मंदिर असम - 51 शक्तिपीठों में से अत्यंत ही प्रसिद्ध और शक्तिशाली मंदिर है मां
कामाख्या दे वी का मंदिर। इस मंदिर को तांत्रिकों व अघोरियों का गढ़ माना जाता है । यह शक्तिपीठ
ब्रह्मपुत्र नदी के समीप नीलांचल पर्वत के पास है । इसे सभी शक्तिपीठों का महापीठ भी माना जाता है ।
यहां दे वी के योनि की पज
ू ा की जाती है ।

ओल्क्कन्ननेस्वरा मंदिर - ओल्क्कन्ननेस्वरा मंदिर तमिलनाडु के महाबलीपुरम में अवस्थित है ।


महिषासुरमर्दिनी मंडप के ऊपर 8 वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को द्रविड शैली में निर्मित किया गया है ।
यह मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है ।

दं तेश्वरी मंदिर, दं तेवाड़ा - छत्तीसगढ़ के माओवाद से प्रभावित क्षेत्र दं तेवाड़ा जिले में मां सती का दांत
गिरने की वजह से इस शक्तिपीठ को दं तेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है । डंकिनी और शंखिनी
नदियों के तट पर इस मंदिर का निर्माण महाराजा अन्नमदे व ने 14 वीं शताब्दी में करवाया था।
कन्याकुमारी - अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के संगम के तट पर कंु वारी दे वी का
मंदिर है जिसे कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है ।

मीनाक्षी सन्
ु दरे श्वर मन्दिर- मीनाक्षी सन्
ु दरे श्वर मन्दिर या मीनाक्षी अम्मां मन्दिर या केवल मीनाक्षी
मन्दिर भारत के तमिल नाडु राज्य के मदरु ई नगर, में स्थित एक ऐतिहासिक मन्दिर है । यह हिन्द ू दे वता
शिव (“‘सुन्दरे श्वरर”’ या सुन्दर ईश्वर के रूप में ) एवं उनकी भार्या दे वी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के
आकार की आंख वाली दे वी के रूप में ) दोनो को समर्पित है । मछली पांड्य राजाओं को राजचिह्न है ।

ज्वाला मंदिर – ज्वालादे वी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दरू ी पर स्थित
है । यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है । यहां सती माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां
स्थित दे वी के मुख से अग्नि निकल रही है । इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी।

अखंड भारत के मंदिर

जम्मू दीप से छोटा है भारतवर्ष भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था और वर्तमान में ना जंबूद्वीप है ना
भारतवर्ष और ना आर्यवर्त आज सिर्फ भारत बचा है । लेकिन एक समय में पूरे जंबूद्वीप में भारतीय
मंदिरों का इतिहास रहा है । आइए जानते हैं कौन-कौन सी जगह पर किन किन दे वी दे वताओं के मंदिर थे
और अभी भी हैं।

हिंगलाज मंदिर - सती माँ का सर जिस स्थान पर गिरा था वह स्थान हिंगलाज माता के मंदिर के रूप में
स्थापित है । यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान से लगभग 120 किलोमीटर दरू हिंगोल नदी के तट
पर स्थित है ।

कटासराज मंदिर - जब मां सती की मत्ृ यु हुई तो भगवान शिव की आंख से दो आंसू गिरे एक आंसू
भारत के पुष्कर में गिरा और दस
ू रा चकवाल में । यही चकवाल का हिस्सा अब पाकिस्तान में है और यहां
कटासराज मंदिर स्थित है ।
पशप
ु तिनाथ - नेपाल की राजधानी काठमांडू में पशप
ु तिनाथ का मंदिर स्थित है जो भगवान शिव को
समर्पित है । नेपाल जब हिंद ू राष्ट्र था तब इस मंदिर के दे वता भगवान पशुपतिनाथ को राष्ट्रीय दे वता
कहा जाता था।

मनकामना - मनकामना भगवती गोरखा में स्थित मनोकामना मंदिर है जो दे वी का शक्तिपीठ है । यहां
भक्तों की हर कामना परू ी होती हैं इस वजह से इसे मनकामना मंदिर कहा जाता है ।

अम्मा मंदिर, श्री लंका - श्रीलंका वही जगह है जहां भगवान श्रीराम ने माता सीता के लिए सेतुबंध तैयार
कर भारत से यात्रा की और रावण का वध कर लंका के लोगों को रावण के अहं कार से मुक्त किया। यहां
माता सीता को समर्पित सीता अम्मा मंदिर है । यह श्रीलंका का सबसे लोकप्रिय पर्यटन केंद्र है ।

माई सन मंदिर, वियतनाम - आंशिक रूप से ध्वस्त मंदिर माय सन मंदिर वियतनाम के सर्वाधिक
लोकप्रिय स्थलों में से एक है । इस मंदिर का निर्माण चंपा के राजामने चौथी से चौदहवीं शताब्दी के बीच
करवाया था। यहां भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और महादे व की प्रतिमाएं हैं।

काली मंदिर, म्यांमार - म्यानमार में स्थित मां काली का मंदिर हिंद ू श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण
है । सन 1871 में तमिलों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

कैलाश मानसरोवर - यहां साक्षात शिव विराजमान है । दर्भा


ु ग्य से यह क्षेत्र वर्तमान में चीन के आधिपत्य
में है लेकिन किसी जमाने में यह अखंड भारत का महत्वपूर्ण भाग हुआ करता था। यह पथ्
ृ वी का केंद्र है ।

आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिर


भारत में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा जिस तरह से मंदिरों को ध्वस्त किया गया है वह शायद ही दनि
ु या
में किसी और दे श में हुआ हो। चाहे वह गजनी हो या हो बाबर, अकबर से लेकर औरं गजेब तक और टीपू
सुल्तान से लेकर छोटे मुस्लिम आक्रांताओं तक सभी लोगों ने भारत भूमि से उसकी आत्मा रूपी मंदिरों
को खत्म करने का कार्य किया है ।

राम जन्मभूमि - श्री राम लला की जन्मभूमि 492 वर्षों से अपने मंदिर के लिए प्रतीक्षा में थी। बाबर के
सिपहसालार ने रामलला की जन्मभमि
ू पर स्थित मंदिर को तोड़कर यहां बाबर जैसे आक्रांता के नाम पर
मस्जिद खड़ी की थी। इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।

काशी विश्वनाथ - हिंद ू चेतना के केंद्र और विश्व के सबसे प्राचीन नगरी के रूप में मान्य वाराणसी में
स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर को भी मुगल आक्रांता औरं गजेब ने ध्वस्त किया था। आज भी यहां
ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है जोकि मंदिर प्रांगण का हिस्सा है ।

श्री कृष्ण जन्मभूमि - संपूर्ण विश्व जानता है कि मथुरा में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। ऐतिहासिक
मान्यताओं और सनातन आस्थाओं के अनुसार मथुरा हिंदओ
ु ं के लिए पवित्र नगरी है । यहां भी श्री कृष्ण
जन्मस्थली का विध्वंस कर औरं गजेब ने शाही ईदगाह मस्जिद बनाई हुई है ।

रुद्र महालय - गज
ु रात के पाटन क्षेत्र में प्राचीन सरस्वती नदी के तट पर स्थित रूद्र महालय का मंदिर
स्थित रहा है । लेकिन मुस्लिम आक्रांता होने इस के पश्चिमी हिस्से को तोड़कर जामी मस्जिद में बदल
दिया है ।

भोजशाला - भोजशाला मां सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है । इस मंदिर को 10 वीं शताब्दी में राजा भोज
द्वारा निर्माण करवाया गया था। यह स्थान शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। लेकिन मुस्लिम
आक्रांताओं द्वारा यहाँ भी दरगाह की आड़ में मंदिर को ध्वस्त करने की योजना बनाई गई।
सिर्फ इतना ही नहीं ऐसा भी कहा जाता है कि पूरे दे श में 45000 से अधिक हिंद ू मंदिरों को मुस्लिम
आक्रांताओं द्वारा नष्ट किया गया है या मस्जिद में परिवर्तित किया गया है । कश्मीर घाटी के मार्तंड सूर्य
मंदिर से लेकर गुजरात के सोमनाथ और बंगाल के मंदिरों से लेकर सुदरू तमिलनाडु के मंदिरों तक भी
आक्रांताओं ने अपनी गंदी नियत को जगजाहिर किया है ।

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