Professional Documents
Culture Documents
Hindi Revison Booklet
Hindi Revison Booklet
व्याकिण अभ्यास -
शब्दावली
अतिरिक्ि पाठ्य
सामग्री
व्याकिण अभ्यास - शब्दावली
अतिरिक्ि पाठ्य सामग्री
Customs and Traditions (रीति ररवाज एवं परं पराएँ) Food, Fashion, celebrations
FOOD
भीकाजी कामा सभ
ु ारिी इंस्टीट्यट
ू ऑफ होटल मैनेजमें ट में ‘होटल मैनेजमें ट और
पययटन के क्षेत्र में ववकास िथा अनस
ु ंधान की संभावनाएं ववषय पर दो हदवस
अंिराष्ट्रीय सम्मेलन के पहले हदन उक्ि बाि इंडियन फेिरे िन ऑफ कशलनरी
एसोशसएिन के अध्यक्ष एवं जाने-माने िेफ मंजीि गगल ने कही। कुलपति िॉ.एनके
आहूजा, यक्र ू े न से पहुंची इफजीतनया जाररकोवा एवं िॉ.आिीष दहहया ने काययक्रम का
दीप प्रज्जज्जवशलि करके उद्घाटन ककया। गगल ने कहा कक भारि शमगिि संस्कृतियों का
संगम है । टूररज्जम का क्षेत्र बहुि ववस्िि
ृ है और इसमें रोजगार की अपार संभावनाएं
हैं। होटल मैनजे में ट में अनि ु ासन एवं सेवा को उद्दे श्य मानकर सफलिा हाशसल की
जा सकिी है। गगल के अनस
ु ार पंजाबी खाना दतु नया में सवायगधक प्रशसद्ध है जो सेहि
के शलए लाभकारी एवं जायकेदार होिा है । इफजीतनया जाररकोवा ने कहा कक भारि
टूररज्जम को बहुि आकवषयि करिा है । परू ी दतु नया आज भारिीय संस्कृति की ओर
आकवषयि हो रही है । इसमें खानपान और रहन-सहन भी िाशमल है । जाररकोवा ने कहा
कक पययटन के क्षेत्र में कॅररयर बनाने के शलए कई भाषाओं में कमांि जरुरी है।
िॉ.ररयाज कुरै िी ने कहा कक टूररज्जम का क्षेत्र आगथयक ववकास में ज्जयादा योगदान दे
रहा है । आईटीिीसी के पव
ू य प्रेसीिेंट प्रो.वववपन नय्यर ने कहा बािचीि के िरीके और
अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड होनी चाहहए। संयोजक िॉ.शिवमोहन िमाय ने कहा कक
यह सम्मेलन होटल मैनेजमें ट के क्षेत्र में कॅररयर की िमाम संभावनाओं से पदाय
उठाएगा। िॉ.आिीष दहहया ने कहा कक आज प्रोफेिन होने के मायने बदल गए हैं।
यव
ु ाओं को सकारात्मक मानशसकिा के साथ ज्ञान प्राप्ि करके अपन हुनर हदखाना
चाहहए। सम्मेलन में मैनेजमें ट की एडिहटि बक ु का ववमोचन भी हुआ। काययक्रम में
प्रो.जगदीि खन्ना, भोला चौरशसया, प्रो.सन
ु ील कुमार, अंककि िीवास्िव, यजुवेंद्र शसंह,
िॉ.संदीप कुमार, िॉ.बीसी दब
ु े, जयराज शसंह सहहि ववशभन्न राज्जयों के शिक्षक और
वविेषज्ञ मौजूद रहे ।
https://www.msn.com/hi-in/news/other/e0-a4-ad-e0-a4-be-e0-a4-b0-e0-a4-a4-e0-a5-80-e0-a4-af-e0-
a4-b8-e0-a4-82-e0-a4-b8-e0-a5-8d-e2-80-8d-e0-a4-95-e0-a5-83-e0-a4-a4-e0-a4-bf-e0-a4-94-e0-a4-
b0-e0-a4-96-e0-a4-be-e0-a4-a8-e0-a4-aa-e0-a4-be-e0-a4-a8-e0-a4-95-e0-a5-80-e0-a4-aa-e0-a5-82-
e0-a4-b0-e0/ar-BBG3sCH
मौसम के अनस
ु ार खाद्य पदाथय यहा पर कहीं पहाड, कहीं मैदान, कहीं उपजाऊ
िो कहीं ऊसर भशू म है । यहा का वािावरण भी ठं िा है । इन्हीं ववववधिाओं के
अनुसार यहा के भोजन के शलए फसलें िैयार होिी हैं, जो ज्जयादािर मोटे अनाज के रूप में हैं। इनमें
गेहूं, धान, मिुवा, झगोरा, ज्जवार, चौलाई, तिल, राजमा, उडद, गहथ, नौरं गी, लोबबया और िोर जैसी फसलें
मुख्य हैं। इन्हीं अनाजों से यहा पर पौष्ष्ट्टक व स्वाहदष्ट्ट व्यजन बनाए जािे हैं।
मिुवा का अपना वविेष महत्व रहा है । तिल व धतनये की चटनी और घी के साथ मिुवा के आटे से
बनी रोटी का अलग ही लजीज जायका होिा है । यही नहीं, लाल चावल के साथ राजमा, उडद, िोर और
लोबबया की दालें भोजन की प्रमुख अंग हैं। झगोरे व कौणी की खीर, झगोरे का छन््या , मूला की
गथचोणी, आलू के गुटके यहा की थाली का वविेष अंग रहे हैं। ये सभी व्यजन िरीर में प्रोटीन, वसा,
खतनज, रे िा , काबोहाइड्रेट्स, कैष्शियम, फॉस्फेारस व आयरन की कमी दरू करिे हैं। पररणामस्वरूप
ववषम पररष्स्थतियों में रहने के बावजूद पवयिीय क्षेत्रों के लोग स्वस्थ रहिे हैं। त्योहारों व मागशलक
अवसरों पर उपयक्
ुय ि मोटे अनाजों से बनने वाले िरह िरह के व्यजनों का स्वाद भी हर ककसी को-
ब्याह के मौके पर चावल के आटे से बनने वाले अरसे व वपसी हुए उडद से बनी-भािा है । िादी
पकोडडया सभी को भािी हैं। स्वाले, भड
ू े , खीर, रोट, पुए, पत्यूड, गि
ुं ला, पेठा व वपिालू से बनने वाली
बडडया आहद व्यजनों को ग्रहण करने का अलग ही लुत्फ है ।
राज्जय के हर क्षेत्र में ये सभी पारं पररक व्यजन आपको शमल जाएगे। यह बाि अलग है कक बदलिे
वक्ि की मार इन पारं पररक व्यजनों पर भी पडी है ।
पोषक ित्वों से पररपूणय
दे हरादन
ू की िाइटीशियन रे नू जैन के अनुसार उत्तराखंि के लोगों का पारं पररक भोजन पूरी िरह
सिुशलि व पोषक ित्वों से पररपूणय है । वजह यह कक इसमें सभी मोटे अनाज िाशमल हैं। एक प्रकार
से यह बैलेंस िाइट है । एक दौर ऐसा भी आया जब लोग पारं पररक भोजन से दरू ी बनाने लगे थे,
लेककन अब कफर से लोग पारं पररक भोजन के महत्व को समझने लगे हैं।
हहमाचल प्रदे ि
पवयिों से आच्छाहदि इस राज्जय के पारं पररक भोजन में जायके के साथ पोषक ित्वों को भी महत्व
हदया गया है । यहा के भोजन में भी मोटे अनाजों को महत्व हदया गया है । हहमाचल प्रदे ि का
सवायगधक लोकवप्रय पारं पररक व्यजन रे हडू है । िायद ही कोई ऐसा घर हो, जहा पर रे हडू न बनाया
जािा हो। इसका कारण यह है कक पौष्ष्ट्टक होने के अलावा इसे बनाने में गहृ णणयों को ज्जयादा
मिक्कि भी नहीं करनी पडिी। इसे दो शमनट में िैयार ककया जा सकिा है । रे हडू दही व लस्सी
दोनों से बनाया जािा है और इसे दाल व सब्जी के साथ भी खा सकिे हैं।
वविेषज्ञों की राय
यहा के आयव
ु ेहदक वविेषज्ञों के अनुसार रे हडू के शलए सीधे दही का प्रयोग करने बजाय इसे लस्सी से
बनाएं िो यह स्वास््य के शलए ज्जयादा लाभप्रद है । ऐसा इसशलए, क्योंकक लस्सी में वसा की मात्रा कम
हो जािी है । लस्सी से िैयार ककया गया रे हडू सुपाच्य होने के अलावा आिों को भी स्वस्थ सकक्रय-
बनािा है । इसके सेवन से कब्ज व पेट के रोगों में भी राहि शमलिी है ।
प्रस्िुतिवववेक िुक्ला :
https://www.jagran.com/health/traditional-food-of-uttrakhand-9500929.html
Fashion
पारंपररक कला में आधनु िकता का बेजोड़ सगं म
खादी एक ऐसा वस्त्र है, जो जीवन शैली को दशााता है। यह हाथ से काता गया और हाथ से बनु ा गया कपडा होता
है, जो मलू रूप से सतू ी, ससल्क या ऊनी हो सकता है। खादी पहनकर हम न ससर्ा अच्छे सदखते हैं, बसल्क अच्छा
महससू भी करते हैं। महात्मा गाांधी ने इसे भारत का गौरव बना सदया था। खादी ससर्ा एक कपडा नहीं है, यह
आजादी का प्रतीक है और हमें भारत की समृद्ध सवरासत और परांपरा की जड़ों की ओर वापस ले जाता है। इसे
लेकर गाांधीजी का दृसिकोण स्पि था, “यसद हमारे अदां र ‘खादी-भावना’ है, तो हमें जीवन के हर पहलू में सरलता
को अपनाना होगा। खादी-भावना का अथा है अपार धैय,ा उतना ही अटूट भरोसा और धरती के हर मनष्ु य के साथ
सहानुभसू त।”
उनके कपड़ों में पारांपररक सशल्प और आधसु नक सशल्प का आकर्ाक मेल होता है सजसे आप ‘एथसनक कांटेपररी
लक ु ’ कहते हैं। उनके सासडय़ों तथा स्टोल़ों के कलेक्शन में हर के पीछे एक कहानी है।
पारांपररक चरखे पर कच्चे रेशे से धागा बनाया जाता है। इसका आकर्ाण इसकी बनु ावट और खरु दरी सर्सनसशांग में है
जो अपने आप में प्रकृ सत के साथ एक नजदीकी सांबांध स्थासपत करता है। इसमें एक खास गणु है, जो आपको ससदाय़ों
में गरम और गसमाय़ों में ठांडा रखता है। आज के समय में बनु कऱों के सलए बहुत ही चनु ौतीपणू ा माहौल है, इससलए
हाथ से बनु े कपड़ों को नया रूप देने और बाजार की प्रसतस्पद्धाा में बने रहने के सलए सडजाइनर अपनी टेक्सटाइल
और सडजाइन कौशल़ों को सामने ला रहे हैं।
यवु ा सडजाइनर दपां सत, भारतीय सशल्प व सडजाइन सांस्थान, जयपुर के अमृत सदू न साहा और उनकी पत्नी सांतोर्
साहा, जो कोलकाता की सबडला कला अकादमी की छात्रा रही हैं, साथ में एससाहा ब्ाांड ले कर आए हैं, सजसमें
हैंडलमू के कपड़ों का बेहतरीन समश्रण सदखाई देता है। वे इस दृसि से अनठू े हैं सक उन्ह़ोंने खादी में नए प्रयोग और
पैटना शासमल सकए हैं और उन्हें सबसे बस़िया जामदानी बनु ावट़ों के साथ समसश्रत सकया है।
उनके कपड़ों में पारांपररक सशल्प और आधसु नक सशल्प का आकर्ाक मेल होता है सजसे आप ‘एथसनक कांटेपररी
लक ु ’ कहते हैं। उनके सासडय़ों तथा स्टोल़ों के कलेक्शन में हर के पीछे एक कहानी है।
उन्ह़ोंने पसिम बांगाल के गाांव़ों के बनु कऱों की मदद करते हुए शरुु आत में गमछ़ों और कपड़ों के थाऩों की बनु ाई से
शरुु आत की। आज उनकी टीम में करीब 45 अत्यांत प्रसतभावान हैंडलमू बनु कर पारांपररक हैंडलमू का सौंदया वापस
ला रहे हैं। सतू ी तथा ससल्क पर शद्ध ु जरी के साथ जामदानी तकनीक वाली बनु ावट का इस्तेमाल सकया जाता है।
जामदानी की उत्पसि मगु ल काल से मानी जाती है। इनकी खादी जामदानी र्ै शनेबल और समृद्ध है। इनमें ससल्क या
सतू ी के बेस कपडे पर सवर्म शेड में ज्यासमतीय, आकृ तीय और र्ूलदार नमनू े बनु े गए हैं।
खादी जामदानी बनाने की प्रसिया को मोटे तौर पर दो भाग़ों में बाांटा गया है। सतू बनाना और करघे पर बनु ाई। करघे
पर ही कपड़ों में सडजाइन बनाए जाते हैं। इस प्रसिया में शटल आगे-पीछे करते हुए नमनू े बनाए जाते हैं, सजस तरह
सईु को कपडे में डालते-सनकालते हुए सडजाइन बनाए जाते हैं। 450 काउांट खादी पर बनु ाई और खादी को दसू रे सतू ़ों
जैसे ऊन, सन और अरी ससल्क के साथ समलाकर कपडा तैयार करने जैसे प्रयोग इनकी सवशेर्ताएां रही हैं। प्राकृ सतक
रांग़ों का इस्तेमाल करना पयाावरण के अनक ु ू ल तकनीक तो है ही साथ ही ऐसे रांगो का इस्तेमाल उनके पारांपररक
कपड़ों को आधसु नक रूप देता है।
फैशन
भाषण
हम सब फैिन पसंद करिे हैं लेककन फैिनेबल होने का हमेिा यह मिलब नहीं होिा कक आप
महं गे कपडे या सामान पहनिे रहे। आप रें िी और सरल कपडे पहन सकिे हैं और उनसे भी
फैिनेबल हदख सकिे हैं। फैिन िो आज ग्लैमरस रैंप िक सीशमि नहीं है । यह लोकवप्रय पोिाक
डिजाइनर के स्थानीय ब्ांि से तनकल कर छोटे िहरों की सडकों, दक
ु ानों और कस्बों के कोनों िक
पहुंच गए हैं। वास्िव में कई कॉपोरे ट कायायलयों और कॉलेजों को इन हदनों अपने वावषयक
महोत्सवों और काययक्रमों में फैिन िो के आयोजन करिे दे खा जा रहा है । स्थानीय ब्ांि अपने
ब्ांि और कपडे को लोकवप्रय बनाने के शलए िो का आयोजन करिे हैं। आपको कई ऐसे मौकें
शमल सकिे हैं जहां आपको फैिन पर एक भाषण दे ने की आवश्यकिा पड सकिी है । फैिन पर
भाषण दे ने के शलए तनचे हदए गए हमारे कुछ नमूने ऐसे मौकों के शलए आपको िैयार करें गे।
हमने फैिन पर छोटे और लम्बे भाषण साझा ककए हैं जो ककसी प्रकार के िो या अवसर के शलए
उपयुक्ि हो सकिे हैं। आप इन्हें उदाहरण के रूप में उपयोग कर सकिे हैं और अपने दियकों को
प्रभाववि करने के शलए फैिन पर अपना भाषण िैयार कर सकिे हैं।
सुप्रभाि दोस्िों
इस फैिन िो का हहस्सा बनने के शलए धन्यवाद। हर साल की िरह हमारी कंपनी डिजाइनर
कपडों को बढावा दे ने के शलए इस फैिन िो का आयोजन कर रही है ष्जन्हें हमारे ब्ांि द्वारा
तनशमयि ककया गया है । इस बार कंपनी ने इस िो से अष्जयि 50% कमाई को हमारे साथ जुडे एक
चैररटी संगठन को दान करने का तनणयय शलया है । मैं आज िाम के शलए आपका मेजबान हूं और
आप के साथ फैिन पर अपने ववचार साझा करने जा रहा हूं और यह भी बिाऊंगा कक इस िब्द
का मूलिः मिलब क्या है ।
ईमानदारी से कहूँ िो "फैिन" िब्द सभी को आकवषयि करिा है । सरल िब्दों में इसकी व्याख्या
करें िो यह मल
ू रूप से सत्तारूढ प्रववृ त्तयों या अपनी स्वयं की व्यष्क्िगि वरीयिाओं के अनस
ु ार
कपडे, सामान और गहने पहनने की िैली है । फैिन, संक्षेप में , एक साधारण पोिाक को इस िरह
पहनने की कला है कक इंसान सुंदर और सुिोशभि हदखे। कुछ के शलए यह डिजाइनर कपडे
पहनने के साथ अलग िरह से स्टाइल और फैं सी वस्त्रों के साथ आकषयक हदखना है । फैिन का
पालन करने वाले लोगों के बीच यह रें डिंग प्रववृ त्त स्थावपि करने में एक प्रमुख भूशमका तनभाने में
सहायिा करिा है। फैिन स्टाइशलि कपडे या सामान आहद पहनने के बारे में ही नहीं है यह
पहले ककसी वविेष व्यष्क्ि या जगह पर अवसर, संस्कृति और िैली को समझने के शलए भी है
और कफर उसके अनुसार पोिाक को पहनने की अनुमति दे िा है । इस प्रकार फैिन डिजाइनर
कपडे डिज़ाइन करने से पहले अवसर, जगह, सामग्री और कई अन्य चीजों का अध्ययन करने के
शलए बहुि समय लेिे हैं। उन्हें कपडे डिज़ाइन करने से पहले व्यष्क्ि के आकार, वजन, ऊंचाई और
रं ग के शलए वविेष रूप से िकनीक का उपयोग करना, शसलाई पद्धति, कपडे आहद पर ववचार
करना होिा है ।
फैिन शसफय कपडे िक ही सीशमि नहीं है । इसकी पहुंच कपडे और पोिाक से परे है । फैिन से
िात्पयय ऊपर से नीचे िक सुन्दर रूप में बने-ठने रहने से है । फैिन की पररभाषा को साथयक
करने में सही टॉप, शमलान वाले कंगन या चडू डयाँ, घडी, मेकअप, जूिे आहद िाशमल हैं।
लोगों को प्रभाववि करने में मीडिया भी एक मजबूि भशू मका तनभािी है । कई फैिन-ववशिष्ट्ट
टे लीववजन चैनल, टे ली-धारावाहहक, कफशमें आहद हैं जो लोगों को फैिन पर सझ
ु ाव दे िे हैं। बहुि से
लोग कफशमी हष्स्ियों और प्रशसद्ध व्यष्क्ियों की नकल करना पसंद करिे हैं। ऑनलाइन स्टोर
फैिनेबल कपडे पर ववशभन्न प्रकार की छूट प्रदान करिे हैं ष्जससे हर ककसी की फैिन िक पहुँच
हो।
संक्षेप में कहे िो फैिन हमारे जीवन का एक अतनवायय हहस्सा है । इस प्रकार यह िकय दे ने के
बजाए कक फैिन या नवीनिम रुझान हमारी संस्कृति के शलए अच्छा या बुरा है यह नए फैिन
तनयमों को अपनाने और अपने आप में एक ऐसी चीज़ बनाना है जो एक साथ फैिनेबल और
सभ्य है ।
धन्यवाद।
समारोह
संस्कृति न केवल मनुष्ट्य की आत्मा वाहक है बष्शक एक राष्ट्र का मूल भी है । ववशभन्न दे िों में
अलग अलग संस्कृतियां हैं चकंू क-राष्ट्रीय त्योहार ककसी दे ि की सबसे अच्छी सांस्कृतिक
उपलष्ब्धयों और सबसे महत्वपूणय ररवाजों का प्रतितनगधत्व करिा है । त्योहार एक सांस्कृतिक घटना
है और संस्कृतियों के अध्ययन के शलए एक िष्क्ििाली उपकरण भी है । त्योहार को 'संस्कृति का
वाहक' माना जािा है । त्योहार ककसी दे ि, समाज और संस्कृतियों के व्यवहार और ववचारों का
प्रतिबबम्बन माना जािा है ।
त्योहारों से लोग संस्कार सीखिे हैं, बनािे हैं और साझा करिे हैं। इस अद्वविीय और ववशिष्ट्ट
घटना के माध्यम से, हम मानव संस्कृति की गहरी परि की जांच सुववधाजनक और प्रत्यक्ष
िरीके से कर सकिे है । इसके अलावा, एक त्योहार हमें दो संस्कृतियों की ववचलन और समानिा
का पिा लगाने के शलए एक आधार प्रदान करिा है ।
जैसा कक ज्ञाि है , त्योहार हमारे दै तनक जीवन में एक महत्वपूणय भूशमका तनभािा है । एक
सांस्कृतिक घटना के रूप में त्योहार मानव ववकास और ऐतिहाशसक ववकास के दौरान अष्स्ित्व में
आिा है । इस अनठ
ू ी सांस्कृतिक घटना से मानव पररवेि और प्राकृतिक पररवेि और पररधीय
पररवेि को ध्यान में रखिे हुए मानव संस्कृतियों के गुण और तनयम संधाररि होिे हैं और मानव
संस्कृति और त्योहारों के बीच के ररश्िे का पिा चला है ।
भारिीय और पष्श्चमी दे िों के बीच त्योहार भावनात्मक अशभव्यष्क्ियों के रूप में अलग होिे हैं।
भारिीय त्योहार अपने वास्िववक ववचारों को प्रदशियि करिे हैं जबकक पष्श्चमी लोग हमेिा अपने
हदमाग को स्विंत्र रूप से प्रकट करिे हैं। उपहारों और व्यवहारों को स्वीकार करने का िरीका
अलग है । त्योहारों के दौरान भारिीय और पष्श्चमी दे िों के त्योहारों में उपहार के बारे में बहुि
शभन्न हैं। भारिीय लोग अक्सर उपहार को प्रसन्निा से स्वीकार करिे हैं, लेककन वे इसे
प्रस्िि
ु किाय के सामने नहीं खोलें गे जबकक पष्श्चमी दे ि में लोग एक उपहार की मांग करिे हैं
और वे आमिौर पर लोगों के सामने इसे खोलिे और उनका धन्यवाद व्यक्ि करिे हैं।
पाश्चात्य संस्कृति प्राचीन यूनान की सभ्यिा की उपज है ष्जसका ववकास नगर दीवारों की
ककलाबंहदयों से हुआ। आधतु नक सभ्यिा अथायि िथाकगथि पाश्चात्य सभ्यिा को पूणि
य जडवादी :
कहा जािा है , क्योंकक मनष्ट्ु यों के मन पर इन दीवारों की गहरी छाप पड गई है । रवीन्द्रनाथ टै गोर
के िब्दों में 'यह प्रववृ त्त हमें स्वतनशमयि प्राचीरों के बाहर की प्रत्येक वस्िु को संहदग्ध दृष्ष्ट्ट से
दे खने को वववि कर दे िी है और हमारे अंि करण िक प्रवेि करने के शलए सच्चाई को भी:
ववकट युद्ध करना पडिा है ।'
पाश्चात्य संस्कृति के मध्य साधन और साध्य दोनों ही दृष्ष्ट्टयों से व्यापक अंिर है । एक प्रकृति
से साहचयय की पक्षधर है िो वहीं द्वविीय स्वतनशमयि दीवारों के मध्य बनाए गए तछद्रों से होकर
प्रकृति को दे खकर संिुष्ट्ट कर लेिी है । त्योहारों का महत्व समाज और राष्ट्र की एकिासमद्
ृ गध-,
प्रेम एकिा, मेलशमलाप की दृष्ष्ट्ट से है और सांप्रदातयकिा एकिा-, धाशमयक समन्वय, सामाष्जक
समानिा को प्रदशियि करना है ।
हमारे भारिीय त्योहार समय समय पर घहटि होकर हमारे अंदर-आत्मीयिा और राष्ट्रीयिा
उत्पन्न करिे रहिे हैं। जािीय भेद भावना और संकीणयिा के धध
ुं को ये त्योहार अपने अपार-
शभन्न कर दे िे हैं। सबसे बडी बाि िो यह होिी है कक ये-उशलास और आनंद के द्वारा तछन्न
त्योहार अपने जन्मकाल से लेकर अब िक उसी पववत्रिा और साष्त्वकिा कीभावना को संजोए
हुए हैं। युगपररवियन और युग का पटाक्षेप इन त्योहारों के शलए कोई प्रभाव नहीं िाल सका।-
भारिीय त्योहार पष्श्चमी त्योहारों से अलग हैं। अगधकांि भारिीय त्योहार प्राचीन शमथकों से आिे
हैं, लेककन इनका धमय से अटूट संबंध है । प्राचीन समय में अलगअलग इल-ााकों में एक दस
ू रे के-
साथ संचार का मौका, असुववधाजनक पररवहन के कारण राष्ट्रों में कम अनुबंध थे इसशलए
संस्कृतियां पूरी िरह से अलग थीं। इन संस्कृतियों को प्रदशियि और इनके ववस्िार में त्योहारों का
महत्वपूणय योगदान है । पष्श्चमी त्योहारों का मूल सज
ृ न व्यष्क्िवाद के आनंद के शलए हुआ है ।
पष्श्चमी ववश्व में व्यष्क्ि प्रमुख है , समाज या पररवार उसके बाद है और इस बाि का पररलक्षण
वहां के त्योहारों एवं रीतिररवाजों में स्पष्ट्ट हदखाई दे िा है ।-
भारि में त्योहार दै तनक जीवन का एक हहस्सा है । उत्सव के दौरान वविेष और रं गीन कक्रया-
कलाप राष्ट्रीय संस्कृति के सबसे प्रमुख और प ्रतितनगध पहलुओं को संरक्षक्षि करिे हैं। यद्यवप
त्योहारों के रूप एकररवाजों-दस
ू रे से अलग होिे हैं। वे सभी प्राचीन रीति-, ररश्िों व ज्ञान, अनभ
ु व
या एक खजाने शलए खडे होिे हैं इसशलए हम दे ि या राष्ट्र में त्योहारों की समझ के माध्यम से
संस्कृति समझ सकिे हैं। त्योहार कुछ राष्ट्र से संबंगधि हैं और सभी इंसानों के भी हैं। ववशभन्न
मूल, पष्ट्ृ ठभूशम और सामाष्जक संरचनाओं के बावजूद मानव हमेिा आनंद और खि
ु ी के इजहार के
शलए त्योहारों का आिय प्राचीनकाल से लेिा आ रहा है ।
भारिीय संस्कृति समद्
ृ ध और ववववध है और अपने िरीके से अद्वविीय है । भारिीय संस्कृति का
स्वरूप ववश्वव्यापी एवं आध्याष्त्मकिागामी है जबकक पाश्चात्य संस्कृति जडवादी एवं आत्मक्रेंहदि
है । पाश्चात्य संस्कृति व्यष्क्िवादी है , जबकक भारिीय संस्कृति ववश्व के साथ व्यष्क्ि के संबंधों
को महत्व दे िी है । भारिीय संस्कृति मानविावादी है जबकक पाश्चात्य संस्कृति स्वकेंहद्रि है और
व्यष्क्ि को छोटे छोटे कटघरों में बांटकर दे खिी है ।-
हमारा शिष्ट्टाचार, एक दस
ू रे के साथ संवाद करने का िरीका आहद हमारी संस्कृति के महत्वपूण-य
घटक हैं। हालांकक हमने जीवन के आधतु नक साधनों को स्वीकार कर शलया है , हमारी जीवनिैली
में सध
ु ार ककया है , हमारे मश
ू यों और ववश्वास अभी भी अपररवतियि हैं। कोई व्यष्क्ि अपने कपडे,
खाने और रहने के िरीके को बदल सकिा है , लेककन ककसी व्यष्क्ि के समद्
ृ ध मूशय हमेिा
अपररवतियि रहिे हैं, क्योंकक वे हमारे हदल, मन, िरीर और आत्मा के भीिर गहराई से जुडें हैं, जो
हम अपनी संस्कृति से प्राप्ि करिे हैं।
पष्श्चमी संस्कृति को उन्नि संस्कृति के रूप में भी जाना जा सकिा है । यह इसशलए है , क्योंकक
इसके ववचार और मश
ू य उन्नि सभ्यिा के ववकास और ववकास को बढावा दे िे हैं। पाश्चात्य
संस्कृति भौतिकिा के प्रति प्रतिबद्ध हदखाई दे िी है । अि अथयवादी है िथा उसकी :वह मूलि :
भौतिक उन्नति के प्रति समवपयि प्रिीि होिी है :मूल प्रववृ त्त भोगवादी है । यह मुख्यि, क्योंकक
उसका आध्याष्त्मक पक्ष भी पदाथय के सक्ष्
ू मिम रूप से आगे नहीं बढ पािा है । दृष्ट्टव्य है कक
ईसाई धमय का दाियतनक पक्ष मनुष्ट्य के बंधत्ु व पर जाकर रुक जािा है ।
पष्श्चमी संस्कृति का भारि में काफी प्रभाव पडा है लेककन इसके पास इसके पेिव
े र और ववपक्ष
भी हैं। पष्श्चमी संस्कृति में कई अच्छी चीजें हैं, जो हमने अपनाई हैं लेककन हम केवल
नकारात्मक क्यों दे खिे हैं? यहां िक कक भारिीय संस्कृति ने पष्श्चमी दतु नया को भी प्रभाववि
ककया है । दतु नया शसकुड रही है और हम सभी कई िरीकों से एक दस
ू रे के करीब आ रहे हैं।-
पष्श्चमी संस्कृति ने समाज के लगभग हर आयाम को प्रभाववि ककया है । ककंिु मुख्य धाशमयक
परं पराएं अभी भी समान हैं। हां, ये बाि जरूर है कक पष्श्चमी संस्कृति के कारण भारिीय
जीवनिैली में अंिर आया है । हम यह कह सकिे हैं कक पष्श्चमी संस्कृति ने भारिीय समाज की
प्रमुख परं पराओं पर असर नहीं िाला, बष्शक जीवनिैली और समाज की स्पष्ट्ट वविेषिाएं बदल दी
हैं।
इन त्योहारों का रूप चाहे व्यष्क्ि िक ही सीशमि हो, चाहे संपण
ू य समाज और राष्ट्र को प्रभाववि
करने वाला हो, चाहे बडा हो, चाहे छोटा, चाहे एक क्षेत्र वविेष का हो या समग्र दे ि का अवश्यमेय
िद्धा और ववश्वास, नैतिकिा और वविुद्धिा का पररचायक है । इससे कलुषिा और हीनिा की
भावना समाप्ि होिी है और सच्चाई, तनष्ट्कपटिा िथा आत्मववश्वास की उच्च और िेष्ट्ठ भावना
का जन्म होिा है ।
बैसाखी – सामाजजक सांस्कृतिक समिसिा का पवा
बैसाखी का त्योहार वैसे िो परू े दे ि में हर धमय के लोग अपने-अपने िरीके से मनािे हैं लेककन
इस त्योहार पर शसख संप्रदाय और हहंद ू संप्रदाय के लोग ष्जस जोि के साथ मनािे हैं वह कहीं
और दे खने को नहीं शमलिा। अंग्रेजी कलैंिर के हहसाब से हर साल यह त्योहार 13 अप्रैल को
मनाया जािा है । लेककन वविेष पररष्स्थतियों में कभी-कभी यह 14 अप्रैल को भी मनाया जािा
है । दस
ू रा कृवष से जुडा होने के कारण भी इस त्योहार का अलग ही महत्व है । फसलें पक कर
िैयार हो चक
ु ी होिी हैं ष्जन्हें लेकर एक ककसान सौ िरह के सपने सजाये होिा है । उन्हीं सपनों
के पूरा होने की उम्मीद उस पकी फसल में दे खिा है । ककसानों की यह खि
ु ी बैसाखी के उत्सव
में भी दे खी जा सकिी है । पूरे पंजाब के साथ-साथ उत्तर हररयाणा ढोल नगाडों की थाप से गूंज
उठिा है । घरों से पकवानों की खि
ु बू के साथ रं ग बबरं गी पोिाकों में सजे युवक-युवतियां भंगडा-
गगद्दा करिे नजर आिे हैं। बैसाखी का सामाष्जक-सांस्कृतिक महत्व िो है ही साथ ही धाशमयक
महत्व भी है आइये आपको बिािे हैं क्या हैं बैसाखी पवय का धाशमयक महत्व।
बैसाखी को मुख्य रुप से खेिी का पवय माना जािा है लेककन इसका धाशमयक रुप से भी बहुि
ज्जयादा महत्व है । दरअसल शसखों के दसवें गुरु, गुरु गोबबंद शसंह ने गुरु िेगबहादरु शसंह जी के
बशलदान के बाद, धमय की रक्षा के शलये बैसाखी के हदन ही 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की
थी। उन्होंने एक ही प्याले से अलग-अलग जातियों और अलग-अलग धमों व अलग-अलग क्षेत्रों
से चन
ु कर पंच प्यारों को अमि
ृ छकाया। इसशलये यह सामाष्जक समरसिा का त्यौहार भी माना
जा सकिा है ।
वहीं हहंद ू संप्रदाय के लोग इसे नववषय के रुप में भी मनािे हैं इस हदन स्नान, भोग आहद लगाकर
पूजा की जािी है । हहंद ू पौराणणक ग्रंथों के अनुसार मान्यिा यह भी है कक हजारों साल पहले
भगीरथ कठोर िप के बाद दे वी गंगा को धरिी पर उिारने में इसी हदन कामयाब हुए थे।
इसशलये इस हदन हहंद ू संप्रदाय के लोग पारं पररक रुप से गंगा स्नान करने को भी पववत्र मानिे
हैं व दे वी गंगा की स्िुति करिे हैं। गंगा चालीसा का पाठ करिे हैं। हररद्वार, बनारस, प्रयाग आहद
धाशमयक स्थलों पर गंगा आरिी में िाशमल होिे हैं व गंगा मैया की पूजा करिे हैं।
दक्षक्षण भारि के केरल में भी इस त्यौहार के वविु के नाम से मनाया जािा है । इस हदन लोग
नये-नये कपडे खरीदिे हैं, आतििाबाष्जयां होिी हैं और ‘वविु कानी’ सजाई जािी है । इसमें फूल,
फल, अनाज, वस्त्र, सोना आहद सजाकर प्राि: उठकर इसके दियन करिे हैं और सख
ु -समद्
ृ गध की
कामन करिे हैं।
Health
भारि में स्वच्छिा का नारा काफी परु ाना है लेककन अभी भी दे ि की एक बडी आबादी गंदगी के
बीच अपना जीवन बबिाने को मजबरू है । 2011 की जनगणना के अनस
ु ार राष्ट्रीय स्वच्छिा कवरे ज
46.9 प्रतििि है जबकक ग्रामीण क्षेत्रों में यह औसि केवल 30.7 प्रतििि है। अभी भी दे ि की 62
करोड 20 लाख की आबादी (राष्ट्रीय औसि 53.1 प्रतििि) खल
ु े में िौच करने को मजबूर हैं।
राज्जयों की बाि करें िो मध्य प्रदे ि के ग्रामीण क्षेत्रों में िौचालय के उपयोग की दर 13.6 प्रतििि,
राजस्थान में 20 प्रतििि, बबहार में 18.6 प्रतििि और उत्तर प्रदे ि में 22 प्रतििि है। भारि के
केवल ग्रामीण ही नहीं बष्शक िहरी क्षेत्र में िौचालयों का अभाव है । यहाँ सावयजतनक िौचालय भी
पयायप्ि संख्या में नही हैं, ष्जसकी वजह से हमारे िहरों में भी एक बडी आबादी खल
ु े में िौच करने
को मजबूर है । इसी िरह से दे ि में करीब 40 प्रतििि लोगों को स्वच्छ पीने योग्य पानी उपलब्ध
नही है ।
दे ि में साफ-सफाई की कमी एक बहुि बडी चनु ौिी है क्योंकक इसी से गम्भीर बीमाररयाँ फैलिी हैं
ष्जसका असर सबसे ज्जयादा बच्चों पर ही पडिा है । ववशभन्न राष्ट्रीय एवं अंिरायष्ट्रीय मंचों पर बच्चों
के स्वास््य और उनके िारीररक,मानशसक ववकास के शलए बाल स्वच्छिा को बहुि महत्वपण ू य माना
गया है लेककन दभु ायग्य से भारि में 14 साल की उम्र समह
ू के बच्चों में से 20 फीसदी से अगधक
बच्चे असरु क्षक्षि पानी, अपयायप्ि स्वच्छिा या अपयायप्ि सफाई के कारण या िो बीमार रहिे हैं या
मौि का शिकार हो जािे हैं। इसी िरह से सफाई के अभाव के कारण िायररया से होने वाली मौिों
में 90 फीसदी पांच साल से कम उम्र के बच्चे होिे हैं।
अगर हम साफ-सफाई की कमी को दरू कर लें िो इससे ना केवल बच्चों के गन्दगी जतनि
बीमाररयों से हो रही मौिों में कमी आएगी बष्शक उन्हें घरों, स्कलों एवं आंगनबाडीयों में िुद्ध
पेयजल, िौचालय, एवं सफाई के अवसर भी उपलब्ध हो सकेंगें ,लेककन अभी भी यह सपना दरू की
कौडी लगिा है । तनष्श्चि रूप से हमें सभी बच्चों को स्वास््य, िारीररक और मानशसक ववकास
दे ने की हदिा में अभी लम्बा सफर िय करना है ।
बच्चों को स्वच्छिा एवं साफ-सफाई के बारे जागरूक करने के साथ साथ यह भी जरूरी है कक घरों
,िालाओं , आंगनबाडीयों और अन्य सावजयतनक स्थानों में स्वच्छिा, इसके सच
ु ारू प्रबंधन , िौचालय
,और साफ पानी उपलब्ध कराने को लेकर ध्यान केष्न्द्रि ककया जाए । ष्जससे बच्चों को उनके
िारीररक,मानशसक ववकास के शलए साफ – सथ
ु रा माहौल शमल सके और वे गन्दगी और इससे
उपजने वाली जानलेवा बीमाररयों से सरु क्षक्षि रह सकें ।
व्यायाम
Optional topic- Leisure Entertainment, traveling, Sports,
मनोरं जन
आज हम आपको एक ऐसे पवयिीय स्थल की जानकारी दे ने वाले हैं ष्जसकी यात्रा करने के शलए शसफय दे ि से
ही नहीं बष्शक ववदे िों से भी लोग आिे हैं।वह िीथय स्थल हमारे दे ि की िान है लोग वहां पर घूमना पसंद
करिे हैं चशलए पढिे है पवयिीय यात्रा पर तनबंध।पवयिीय यात्रा करना मुझे िरु
ु से ही बहुि पसंद था दरअसल
आज हम िहरों में रह रहे हैं िो हमें कभी भी इस िरह के पवयि आसपास दे खने का मौका नहीं शमलिा।बहुि
से लोगों के मन में पवयिीय यात्रा करने का ख्याल आिा है और ककसी ककसी को यात्रा करने का मौका शमलिा
है ।आज से कुछ समय पव
ू य मेने भी पवयिीय यात्रा की थी।मैंने अपने दोस्िों से नैनीिाल के बारे में काफी कुछ
सुना था।नैनीिाल एक बहुि ही अच्छा दाियतनक स्थल है वहा पर यात्रा करने से हमें सुकून शमलिा है यह उत्तर
प्रदे ि के पवयिों में ष्स्थि है।सुना है यह लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर ष्स्थि है ।
मैंने अपनी फैशमली के साथ शमलकर नैनीिाल जाने का तनणयय शलया और एक हदन तनष्श्चि ककया।हमने इसके
शलए कुछ हदन पहले ही ररजवेिन करवा शलया था कफर एक हदन हम नैनीिाल की ओर तनकल पडे।हमने
नैनीिाल में जाने से पहले अपने साथ कुछ गमय कपडे भी रखे थे साथ में कंबल आहद भी रखे हुए थे क्योंकक
सुना है कक नैनीिाल मैं बहुि ही सदी पडिी है हम ग्रीष्ट्म ऋिु के अंि में नैनीिाल की ओर गए थे दरअसल
इस समय नैनीिाल में आपको बहुि सारे लोग आिे हैं,हम नैनीिाल बस में सवार होकर जा रहे थे िो रास्िे में
कोटगोदाम नाम का स्थान पडिा है हमने महसस
ू ककया कक इससे पहले िो हमें बडी गमी लग रही थी लेककन
जैसे ही हम इस स्थान से ऊपर की ओर पवयि िंखलाओं की ओर आगे बढिे गए हमारी गमी दरू होिी चली
गई,हमें सदी महसूस होने लगी जब हम कोटगोदाम से ऊपर की ओर जा रहे थे िो हमने बहुि सारे पवयि
दे खे,जो दे खने में बहुि ही सद
ुं र लग रहे थे मैंने कभी भी इस िरह के पवयिो को नहीं दे खा था।पहली बार इस
िरह के दृश्य दे खकर मैं बहुि ही खि
ु था,धीरे -धीरे हमारी बस ऊपर की िरफ चलिी जा रही थी और हम
लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर पहुंच गए।
हम नैनीिाल पहुंचे और हमने दे खा कक वहां पर एक बहुि ही गहरा िालाब था।ये सोचने वाली बाि है कक
इिनी ऊंचाई पर बहुि गहरा िालाब कैसे हो सकिा है ।हमें वहां का वािावरण दे खकर बहुि ही अच्छा लग रहा
था,वही पास में ही हनुमानगढी है हम हनुमानगढी को दे खने के शलए गए,वहां पर हनम
ु ान जी का मंहदर भी है
ष्जसके दियन पाकर हमको बहुि ही अच्छा लगा,हमने नैनीिाल के दियन ककए वहां पर हमने नाव में बैठकर
चारों ओर घुमा।
मैं पहली बार एक नाव में बैठकर घुमा था,मेरे साथ मेरे मम्मी पापा और मेरे भाई बहन भी थे।मैं बहुि ही
खि ु ी महसस
ू कर रहा था उसके बाद हमने वविेष रुप से नैनीिाल के पवयिों को दे खा वहां की ऊंचाई को
महसूस ककया वहां के अच्छे मौसम को दे खा।गमी में भी वहां जौर की ठण्ि थी।हमने अपने गमय कपडे पहने
हुए थे,साथ में अपने िरीर पर चद्दर भी लपेटे हुए थे दरअसल वहां पर बहुि जोर की ठं ि पड रही थी
दरअसल नैनीिाल के दृश्य दे खकर मुझे ऐसा लग रहा था कक मैं कहीं और आ गया हूं।मैं नैनीिाल के चारों
ओर घुमा और मुझे बहुि ही अच्छा लग रहा था।मैं अपनी पवयिीय यात्रा से बहुि ही खि
ु था।
नैनीिाल वाकई में हर व्यष्क्ि को जाना चाहहए क्योंकक इस िरह का वािावरण हमको और कहीं पर भी दे खने
का मौका नहीं शमलिा है ।अगर मुझे आगे भी नैनीिाल घूमने का मौका शमलेगा िो मैं जरूर जाऊंगा क्योंकक
वहां पर बहुि कुछ दे खने लायक है उसके बाद जब मैं घर आया िो मेरे दोस्िों ने मझ
ु से नैनीिाल के बारे में
पूछा मैंने उनको बिाया दरअसल मैं नैनीिाल के बारे में अपने दोस्िों को बिा कर बहुि ही खि
ु था,मेरा मन
कर रहा था कक मैं एक बार वहां पर कफर जाऊं। दोस्िों इस िरह से मैंने नैनीिाल की पवयिीय यात्रा की।
खेल
इसके अलावा दौडना, साइकल चलाना, िैरना जैसी गतिववगधयाँ काडिययो एक्सरसाइज भी हैं। ये व्यष्क्ि को
िंदरु
ु स्ि रखिे हैं। खेलने वाले बच्चों में संघषय का माद्दा बनिा है । खेलने वाले का मेटाबोशलज्जम यानी
चयापचय सध
ु रिा है अिः ऐसे लोगों का िरीर कैलोरी बनय करने में भी सस्
ु िी नहीं हदखािा। शलहाजा,
मोटापा भी णखलाडडयों से दरू रहिा है और उत्साह उनकी शिराओं में हमेिा बहिा है । णखलाडी कभी कंधे
झुकाकर नहीं चलिा। खेलने वाले व्यष्क्ि का पॉश्चर सध
ु रिा है , वह सीधा िनकर उठिा है, बैठिा और
चलिा है ष्जससे उसके व्यष्क्ित्व में आत्मववश्वास की प्रिीति होिी है ।
बच्चे यहद कोसय से अलग ककिाबें पढ रहे होिे हैं िो यह अच्छा ही है । इससे उनका भाषा ज्ञान ववकशसि-
होगाा, िब्द ववन्यास सध
ु रे गा और अशभव्यष्क्ि पख्
ु िा होगी। ज्ञान की िष्क्ि और स्वयं को उम्दा िरीके-
से अशभव्यक्ि कर लेने की क्षमिा उनके आत्मववश्वास में इजाफा करे गी। पढने की आदि से उन्हें
इंसानी मनोववज्ञान समझने में भी आसानी होगी। पस्
ु िकें उन्हें पररपक्व बनाएँगी। इसी िरह पें हटंग आहद
में रुगच व्यष्क्ि को िनावमक्
ु ि िो करिी ही है , उसमें कलाबोध भी ववकशसि होिा है ।
कलाओं को सराहने और अपनाने वाले व्यष्क्ि में एक ववशिष्ट्ट नजर ववकशसि हो जािी है । पें हटंग न शसफय
प्रतियोगगिाओं में जाने के शलए है , न शसफय पैसा कमाने के शलए है बष्शक यह िो आत्मा को िरबिर करने
वाली ववधाएँ हैं। इनसे यहद आने वाली पीढी िद्
ु ध कला के दृष्ष्ट्टकोण से भी जुडिी है िो न शसफय उसका
सौंदययबोध बढिा है , बष्शक उन्हें जीवन की सद
ुं रिा को दे खना आ जािा है , उनके व्यष्क्ित्व में
आध्याष्त्मक तनखार भी आिा है ।
Core topic - Communication and media
Advertisement, Internet, Censorship, Television
इंटरनेट और बच्चे
पहले शसनेमा या टीवी को लेकर खबरें आिी थीं कक ककसी ककरदार से प्रभाववि होकर ककसी बच्चे ने
सरीखा स्टं ट करने की कोशिि में जान गंवा दी या कफर ककसी नौजवान ने कहानी के असर में ’सप
ु रमैन‘
अपराध कर िाला। यह बाि अब शसफय शसनेमा या टीवी िक सीशमि नहीं रही है ।
मीडिया जगि के िमाम उत्पाद इस इंटरनेटी यग
ु में व्यष्क्ि की हथेली में शसमट आये हैं। सो, हमारे शलए
वक्ि मीडिया उत्पादों के असर के बारे में नये शसरे से सोचने का है । यह ि्य शसद्ध हो चक
ु ा है कक
इंटरनेट की दतु नया, खासकर कंप्यट
ू र और स्माटय फोन पर चलनेवाले खेल बच्चों की िारीररक और मानशसक
सेहि के शलए घािक हो रहे हैं।
चंद रोज पहले खबर आयी थी कक मब ुं ई का एक ककिोर ब्लू ह्वेल गेम इस हद िक आदी हुआ कक उसने
इस खेल में दी गयी चुनौिी को स्वीकार करिे हुए एक ऊंची मंष्जल से छलांग लगा कर आत्महत्या कर
ली। यह ककिोर ब्लू ह्वेल गेम का पहला भारिीय शिकार बना। अलग अलग दे िों से इस गेम के चक्कर-
में ककिोरों की मौि की खबरें आ रही हैं। इंग्लैंि के बाल आयक्
ु ि एन लॉन्गफीशि ने सोिल मीडिया के
माशलकान की िीखी आलोचना की है कक वे बच्चों को ज्जयादा से ज्जयादा इंटरनेट के उपभोग के शलए जुगि
लगा रहे हैं। उनकी नजर में बच्चों में ऑनलाइन की लि स्वास््य के शलए हातनकारक खाद्य पदाथों की
आदि की िरह है ।
पहले की िल
ु ना में आज मीडिया के उत्पाद कहीं ज्जयादा अंिरं ग हैं। स्माटय फोन की मौजूदगी के कारण
हमआप अब पहले की िरह ककसी समह
ू में बैठ कर शसनेमा या टीवी नहीं दे खिे-, स्माटय फोन के कारण
ववशभन्न उत्पादों को तनजी एकांि में दे खनेबरिने का मौका पैदा हुआ है -। ववगचत्र यह भी है कक मीडिया
के उत्पाद अपनी प्रकृति में सावयजतनक होिे हैं, लेककन स्माटय फोन जैसी यष्ु क्ि के कारण उनका उपभोग
तनजी एकांि की अंिरं गिा में हो रहा है । ककसी मीडिया उत्पाद की सावयजतनक आलोचना समीक्षा उसके-
ठीक आस-् ठीकवाद के शलए जरूरी होिी है , लेककन ऐसी सावयजतनक आलोचना इंटरनेटी प्रसार और गति
िथा स्माटय फोन जैसी यष्ु क्ि से पैदा अंिरं गिा के बीच संभव नहीं है ।
िोधों के मि
ु ाबबक, बच्चे और ककिोरों में इंटरनेट की लि उनके सामाष्जक व्यवहार और मनोवैज्ञातनक
संरचना पर नकारात्मक असर िाल रही है । िकनीक के द्रि
ु प्रसार के कारण यह समस्या शसफय पष्श्चमी
दे िों की नहीं है । भारि भी िेजी से इसकी चपेट में आ रहा है । इसकी रोकथाम के शलए पररवार, स्कूल
और सरकार सबकी िरफ से प्रयास होने चाहहए, अन्यथा इंटरनेट जैसा बदलाव, ववकास और मनोरं जन का
उम्दा साधन एक बडी िबाही का कारण बन सकिा है।
अमभव्यजक्ि की आजादी पि सेंसि क्यों?
केंद्रीय कफशम प्रमाणन बोिय (सीबीएफसी) और वववादों का चोली दामन का साथ रहा है । वषय 1952 में अपनी
स्थापना के बाद से ही सीबीएफसी का नाम अक्सर ककसी न ककसी वववाद से जड
ु िा ही रहा है । वववाद की ष्स्थति
कभी ककसी राजनैतिक दल से करीबी ररश्िा रखने वालों को बोिय का प्रमख
ु बनाए जाने के कारण िो कभी ककसी
कफशम/दृश्य को प्रसाररि ककए जाने की अनुमति दे ने अथवा न दे ने के कारण पैदा होिी रही है। कभी ककसी
सीईओ के ररश्वि लेकर कफशमों के प्रसारण की अनम
ु ति दे ने के कारण िो कभी ककसी कफशम को प्रसारण की
अनुमति न दे ने के कारण। कभी एक कफशम में 21 कट्स लगाने का आदे ि दे ने के कारण िो कभी प्रमाणन के
शलए आयी कफशम की कॉपी के लीक होकर इंटरनेट पर पहुंचने के कारण। इन सबके बावजूद सीबीएफसी की
सबसे अगधक चचाय कफशमों से दृश्यों व संवादों पर कैंची चलाने के कारण होिी है। दृश्यों व संवादों पर कैंची
चलाने के कारण सीबीएफसी को उसके वास्िववक नाम की बजाए सेंसर बोिय के नाम से अगधक जाना जािा है ।
हाल कफलहाल सेंसर बोिय एकबार कफर से वववादों के घेरे में है। इस बार वववाद कफशम 'शलष्प्स्टक अंिर माय
बुकाय', 'इंद ू सरकार', 'व्हे न है री मेट सेजल' व िा. अमत्यय सेन पर आधाररि िॉक्युमेंटरी को लेकर है । हालांकक काफी
वाद वववाद के बाद शलष्प्स्टक अंिर माय बक
ु ाय ररलीज हो चुकी है और व्हे न है री मेट सेजल भी ररलीज होने को
िैयार है । कुछ ऐसा ही कफशम 'उडिा पंजाब' के साथ हुआ था जब बोिय ने कफशम में 89 कट्स लगाने को कहा
था। मामला अदालि िक पहुंचा और जज ने शसफय एक सीन हटाने के आदे ि हदये थे। अदालि ने बोिय को एक
बार कफर उसके उद्दे श्यों और कायों को याद करािे हुए कहा था कक सीबीएफसी का काम शसफय कफशमों को
प्रमाणपत्र दे ना और उन्हें उपयुक्ि िेणणयों में बांटना है। पूवय में आशमर खान की 'पीके' और बाबा राम रहीम की
कफशम 'मैसज
ें र ऑफ गॉि' को लेकर भी वववाद हुए थे। मैसज
ें र ऑफ गॉि को लेकर वववाद इिना गहराया कक
बोिय की ित्कालीन अध्यक्षा लीला सैमसन को ररजाइन िक करना पडा।
कहने का मिलब यह है कक जब इस दे ि में नागररकों को अशभव्यष्क्ि की स्विंत्रिा संववधान द्वारा प्रदत्त है िो
कफर समय समय पर इसके हनन की कोशिि क्यों की जािी है । ककिनी ववगचत्र बाि है कक सरकार द्वारा तनयुक्ि
कुछ लोग पहले ककसी कफशम को दे खकर अथवा संवाद को सन
ु कर यह फैसला लेिे हैं कक आम लोगों को वह
कफशम दे खनी चाहहए, वह संवाद सन
ु ना चाहहए अथवा नहीं। यह िो िब है जबकक सीबीएफसी के पास कफशम को
'यू', 'यू/ए', 'ए' व 'एस' वगय दे ने का ववकशप है, जो यह सतु नष्श्चि करिा है कक कफशम ककस वगय के दियकों के शलए
बनी है और उसे कौन दे ख सकिा है। स्वयं कफशम इंिस्री के लोग सीबीएफसी की काययप्रणाली से नाखि
ु हैं और
उनका मानना है कक कभी कभी िो बोिय ऐसे दृश्यों को कट करने की सलाह दे िा है जो कफशम का मूल सार होिी
हैं और समस्ि कहानी उसके ईदय गगदय बन
ु ी गयी होिी है । वे इसे कफशमकार की रचनात्मकिा का उपहास उडाना
भी मानिे हैं।
मुद्दे की बाि यह है कक क्या संस्कारों के नाम पर पुराने ख्यालाि इस जमाने में संगि हैं? इस दे ि में जहां हमें
18 वषय की उम्र में सरकार चन
ु ने का अगधकार और 21 वषय की उम्र में जीवनसाथी चुनने का अगधकार प्राप्ि है िो
क्या हमें अपने पसंद की कफशम दे खने का अगधकार नहीं है ? आणखर कबिक संस्कारों और भावनाओं के आहि
होने की संभावना के नाम पर हमारी अशभव्यष्क्ि की आजादी पर अंकुि लगाया जािा रहे गा। सीबीएफसी को
समझना चाहहए कक हम उस इंटरनेट के दौर में पहुंच चक
ु े हैं जहां एक ष्क्लक से सबकुछ उपलब्ध है , सेंसिय
कफशमें भी...
- सुिमभ सैनी
िीवी एक बद्
ु धू बक्सा
October 27, 2014, 12:15 PM IST मनजीि मसंह in सख
ु ी जीवन | मेरी खबर
वक़्ि के साथ मनोरं जन के साधन बदलिे रहिे हैं। आजादी से पहले मेले और नाटक मिशलयाँ
थी। उसके बाद रे डियो और रांसष्जस्टे र आये। इन सब के होिे हुए भी लोग फुसयि का समय
गली मोहशले में आपस मे गपिप करिे हुए एक दस ु रे के सुख दःु ख का हाल जान जािे थे, और
एक दस
ु रे के सुख दःु ख में िाशमल होिे थे। परन्िु टीवी के आगमन से लोगों की जीवन िैली मे
भारी बदलाव आया है । अब हदन राि टीवी पर काययकमय आिे रहिे हैं और लोग इनको दे खने के
शलए फुसयि का समय में भी घर की चार दीवारी में बंद हो कर बबिािे हैं।
टीवी में ऐसे सीररयलों की भरमार है ष्जनमे अपने हक़ और स्वाथय पर िो बल हदया जािा है परन्िु
ककसी भी कियव्य का ष्जक्र नहीं होिा। हर समय िादी ब्याह जैसे कपिे पहने लोगों को और सख
ु
सवु वधा और ऐश्वयय से भरपूर ष्जंदगी का गचत्रण ककया जािा है । सीररयल के पात्र एक दस
ू रे के
णखलाफ साष्जि रचिे रहिें हैं। बाि करिे हुए एक दस
ू रे को ककिने समय िक ऐसे घरू िे रहिें हैं
जैसे आपस मे साि जन्मों का बैर हो। ऐसे सीररयल घर घर मे अिाष्न्ि पैदा कर रहें हैं। टीवी
के कलाकारों द्वारा नाटकों मे गचबत्रि जीवन लोगों मे ऐसी ष्जंदगी की लालसा पैदा कर दे िा
है । ष्जसको पाने के शलये लोग स्वाथी और लालची बनिे जा रहें हैं।
टीवी में समाज की नकारात्मक ख़बरों पर ही अगधक बल हदया जािा है। अगर खबर दो सम्प्रदायों
से सम्बष्न्धि हुई िो इससे आपसी िनाव बढिा है । हर धमय को मानने वाले लाखों में हैं परन्िु
अगर कोई एक धमय गुरु या नेिा दस ु रे के धमय के बारे में कुछ गलि बोलिा है िो ब्ेककंग न्यूज़
बना हदया जािा है । ऐसे में आपसी सद्भाव को िो नुक्सान होिा ही है । दे ि में करोडों लोग हैं ।
अगर उनमे से एक दो शसरकफरे पागल ककसी की हत्या या घणृ णि अपराध करिें हैं िो अखबारों में
िो ऐसी घटनाओं को ख़ास महत्व नहीं हदया जािा। परन्िु खबररया चैनल उसे ब्ेककंग न्यूज़ बना
२४ घंटे हदखािे रहिे हैं। उनका हदल इस भी नहीं भरिा और वो अपराध से सम्बंहदि सनसनी
जैसे काययक्रमों में घटना को ववस्िार से नाट्य रूपांिर करके हदखािे है । अपराधी ऐसे काययक्रमों से
प्रेररि हो सकिे हैं। पर टीवी वालों को िो नंबर वन चेनल बनना होिा है , समाज को हातन ही होिी
है िो होिी रहे । टीवी पर ख़बरें धमाकेदार संगीि के साथ ऐसे सन
ु ाई जािीं हैं जैसे कोई पारसी
गथएटर का ड्रामा चल रहा हो। छोटी छोटी बािों को आज का मुद्दा बना कर लम्बी बेमिलब की
बहस कराई जािी है । परन्िु समाज से जि
ु ी बािों को कभी कभार ही हदखाया जािा है । ववगयपन
इिने कक लगिा है टीवी ववगयपन के शलए है और २४ घंटे के ववगयपन न शमलने के कारण बीच
बीच में ख़बरें या अन्य काययकमय हदखाना उनकी मजबूरी है । ऐसे में टीवी से ष्जिना बच सकें बचना
चाहहए। ऐसा करने से आप जशदी सोयेंगे और सुबह जशदी उठें गे ष्जससे आप की सेहि ठीक रहे गी।
बच्चों को बहार खेलने का अवसर शमलेगा और आप भी आस पडोस में शमल बैठ सकेंगे।
Core topic – Global issues Drugs, Migration, Global warming, Natural disaster
मादक द्रव्य का सेवन, ष्जसे निीली दवा के सेवन के रूप में भी जाना जािा है , उस पदाथय के
उपयोग के एक दोषपूणय अनुकूलनीय पद्धति को सूगचि करिा है ष्जसे तनभयर नहीं माना जािा
है । "निीली दवा का सेवन" िब्द, तनभयरिा को अलग नहीं करिा है ,[3] लेककन अन्यथा गैर-
गचककत्सा संदभों में इसका प्रयोग समान िरीके से ककया जािा है । मष्स्िष्ट्क या व्यवहार को
प्रभाववि करने वाली कोई औषगध या एक गैर- गचककत्सीय या गैर-गचककत्सा प्रभाव के शलए कायय-
तनष्ट्पादन में वद्
ृ गध करने वाली औषगध िक इन िब्दों के पररभाषाओं की एक वविाल िेणी है । ये
सभी पररभाषाएं वववादास्पद औषगध उपयोग के प्रति एक नकारात्मक तनणयय दे िे हैं (वैकष्शपक
ववचारों के शलए उत्तरदायी औषगध उपयोग नामक िब्द से िुलना करें . इस िब्द के साथ अक्सर
संबंगधि कुछ औषगधयों में अशकोहल, ऐष्म्फटामाइन्स, बाबबयचरु े ट्स, बेन्ज़ोिायष्जपाइन्स, कोकीन,
शमथैक्वैलोन्स, एवं ओवपऑयड्स िाशमल हैं। इन औषगधयों का उपयोग करने से स्थानीय न्याय
अगधकार पर तनभयर करिे हुए संभाववि िारीररक, सामाष्जक, एवं मनोवैज्ञातनक क्षति के अलावा
आपरागधक दं ि दोनों हो सकिा है ।[4] निीली दवा के दरु
ु पयोग की अन्य पररभाषाएं चार मुख्य
िेणणयों में आिी हैं: जन स्वास््य संबंधी पररभाषाएं, जन संचार और स्थानीय भाषा के उपयोग,
गचककत्सा संबंधी पररभाषाएं और राजनैतिक िथा आपरागधक न्याय संबंधी पररभाषाएं.
दतु नया भर में , संयुक्ि राष्ट्र संघ का अनुमान है कक हे रोइन, कोकीन और कृबत्रम औषगधयों के के
50 लाख से अगधक तनयशमि उपयोगकिाय हैं।[5]
आहदकाल मे मानव जब फल इकठ्ठे करके और शिकार करके पेट भरिा था, िब भोजन और सुरक्षक्षि स्थान की
िलाि मे इधर उधर भटकिा था। जब उसने खेिी करना और आग जला कर खाना बनाना सीख शलया, उसके
बाद एक घर की ज़रूरि हुई इस िरह एक जगह हटक कर लोग रहने लगे पर जब ज़मीन का उपजाऊपन
समाप्ि हो गया या वहाँ की जनसंख्या बहुि बढ गई या कोई प्राकृतिक ववपदा आगई िो उन्हे कहीं दस
ू री जगह
जाकर बसना पडा, अपना नया हठकाना ढूंढना पडा। मानव ही क्यों पिु पक्षी भी सही मौसम और भोजन की
िलाि मे दस
ू रे स्थान पर प्रवास करने चले जािे हैं। प्रवास का अथय होिा है अपने घर से दरू कुछ समय के
शलयें या हमेिा के शलयें चले जाना, कही और जाकर बस जाना। आज के संदभय मे प्रवासी िब्द उन लोगों के
शलये प्रयुक्ि होिा है जो अपना दे ि छोडकर एक बहिर ष्ज़न्दगी की िलाि मे दस
ू रे दे िों मे जा बसे हैं।
प्रवास प्रकृति का तनयम है । हमेिा से लोग दस
ू रे दे िों मे जािे रहे हैं, बसिे रहे हैं। पहली पीढी प्रवासी ही रहिी
है , सहदयाँ या कफर पीहढयाँ तनकलने के बाद वह दे ि पूरी िरह उनका होिा है। दस
ू रे दे ि की नागररकिा शमलने
के बाद भी उन्हे उनके मल
ू के दे ि से पहचान शमलिी है।
भारि मे भी कभी आयय आये थे कफर कुछ मुष्स्लम सशिनि आईं, मुग़ल आये जो यहीं के हो गये। अंग्रेज़ आये
जो बहुि वषो राज करके वावपस चले गये। अमेररका, आस्रे शलया, न्यज़ ू ीलैंि की िो समच
ू ी जनसंख्या ही
योरोपीय मल
ू के लोगों की है। वहाँ के मूल तनवासी क्रमिः रै ि इंडियन और ऐबोरीजनल िो कभी मख् ु य धारा से
जुडे नहीं, ना उन्हे जोडने का प्रयत्न ककया गया। प्रवासी योरोपीय समुदायों ने यहाँ की प्राकृतिक संपदा का
अच्छा उपयोग करके अपना दे ि बनाया अपने मूल दे िों से अलग हो गये।
िात्पयय यही है कक अपना दे ि अपना घर छोडकर एक बहिर ष्ज़न्दगी की िलाि मे मनुष्ट्य सद
ु रू दे िों मे जा
बसिा है । प्रवाशसयों की पहली पीढी को काफी संघषय करने पडिे हैं, किमकि से जझ
ू ना पडिा है। नई जगह
सामंजस्य बबठाना, छूटे हुए दे ि की संसकृति और भाषा का मोह, कफर अपने प्रवास के तनणयय को ख़द ु को और
दस
ू रों को सही साबबि करना। इसी की धुन मे बार बार छूटे हुए दे ि की कशमयाँ गगनाना, नये दे ि की खबू बयाँ
गगनाने मे वे अपनी जन्म भशू म का तनरादर िक करने लगिे हैं जबकक उनका जुडाव मूल दे ि से आसानी से
नहीं छूटिा। पहली पीढी के बहुि वषय इसी उहापोह मे तनकल जािे हैं।
प्रवास के शलयें लोग उन्ही दे िों मे आमिौर पर जािे हैं जहाँ की अथय व्यवस्था मल
ू दे ि की अथय व्यवस्था से
अच्छी होिी है धीरे धीरे उनमे यह भवना घर कर लेिी है कक ष्जस दे ि को वो छोड आये हैं वहाँ पर लोग पिा
नहीं कैसे जीिे हैं, चलो हम िो तनकल आये वहाँ से। यह बाि वविेष रूप से भारि से गये प्रवाशसयों मे मैने
उनके दे ि मे बहुि दे खी है । जहाँ चार भारिीय मूल के लोग बैठे उनकी चचाय होिी है कक वहाँ ककिनी गंदगी है ,
सडके ख़राब हैं वगैराह वगैराह। बोलने की स्विंत्रिा सबको है पर सोगचये कक प्रवासी िो यहाँ से पढाई करके
तनकल शलये, उनकी पढाई पर ष्जिना ख़चय हुआ उससे कई गन ु ा पैसा एक सीट के शलयें सरकार ख़चय करिी है,
चशलये कोई बाि नहीं यहाँ की जनसंख्या इिनी अगधक है कक एक जायेगा िो उसका स्थान लेने के शलये चार
और लोग िैयार खडे शमलेंगे। न प्रवाशसयों ने सरकार चुनी है न वो यहाँ के कर दािा हैं िो ककस हक़ से वो
शिकायि करिे हैं, अगर ये दे ि पसन्द नहीं िो मि आइये और आये िो अपने मूल दे ि के शलये सम्मान िो
लेके आयें जब आपने इस दे ि को कुछ हदया नहीं िो आपको शिकायिें करने का हक़ भी नहीं है। यह हक़
केवल दे ि के नागररकों का है जो दे ि की सरकार चन
ु िे हैं, कर दे िे है और दे ि की और अपनी उन्नति के शलयें
यहाँ रहकर महनि करिे हैं। आप िो अपने बढ
ू े मािा वपिा को भी छोड कर चले गये, सौ िेढ सौ िालर, यूरो या
पांउि भेजकर आपको लगा कक आपने बख़ब
ू ी अपना कियव्य तनभा शलया लेककन नहीं, जरूरि पडने पर केवल
पडौसी या यहाँ रहे ररश्िेदार ही काम आिे हैं। यहाँ रह रहे बुज़ुगय ष्जस अकेलेपन और असुरक्षा मे जीिे हैं उसकी
भरपाई िालर और यूरो से नहीं हो सकिी है ।
सभी प्रवासी इस प्रकार का व्यवहार नहीं करिे कुछ जब यहाँ आिे हैं िो महसूस ही नहीं होने दे िे कक वे प्रवासी
है ।कुछ प्रवासी भारिीय ववदे िों मे हहन्दी िथा अन्य भरिीय भाषाओं मे साहहत्य सज
ृ न करके अपने मूल दे ि का
नाम बढा रहे हैं।कुछ लोग ववज्ञान और िकनीकी क्षेत्र मे महत्वपण
ू य योगदान दे कर अपने प्रवासी दे ि और मल
ू
दे ि का नाम ऊँचा कर रहे हैं।कुछ प्रवासी उद्योगपति मल
ू दे ि मे तनवेि करके दे ि की अथय व्यवस्था सध
ु ारने
मे अपना महत्वपूणय योगदान दे रहे हैं।
प्रवाशसयों से मेरा आग्रह है कक जब वो भारि आयें िो यहाँ की हर पररष्स्थति मे सांमजस्य बनाकर अपने
वप्रयजनों से शमलें पर अपने दे ि की ख़बू बयाँ न गगनायें आज संचार के इस युग मे हर कोई जानिा है ककस दे ि
की क्या आगथयक और सामाष्जक व्यवस्था है। अपने दे ि मे बैठकर वो अपने मल
ू दे ि की तनन्दा करें िो उन्हे
कौन रोक सकिा है ! पर सोगचये ष्जस जगह आपने अपने जीवन के महत्वपूणय वषय बबिाये हैं इिने ररश्िे ष्जये
हैं उसकी तनन्दा करना क्या एक सभ्य व्यष्क्ि को िोभा दे िा है।
दीवारों पर अपने बज़
ु ुगों के गचत्रों को लगाकर रखने और उनके साथ ष्ज़न्दगी जीने मे बहुि अन्िर होिा है।
http://www.swargvibha.in/aalekh/all_aalekh/prawas_bbhatnagar.html
भम
ू ंडलीय ऊटमीकिण
कारण
औद्योगीकरण व वनों के ववनाि से पायायवरण में काबयन िाइ आक्साइि की मत्रा बढ़्िी जा रही हैं । बढी हुई
काबयन िाइ आक्साइि ने ग्रीन हाउस प्रभाव को जन्म हदया । वायम
ु ि
ं ल में काबयन िाइ आक्साइि की एक
चादर जैसी परि बनी हैं ष्जसकी वजह से सय
ू य के प्रकाि के साथ प्
ृ वी पर आई इन्फ्रारे ि रे डियों एष्क्टव
ककरणे पण
ू ि
य या वापस नही हो पािी और काबयन िाइ आक्साइि में शमल जािी हैं । इस िापीय ऊजाय के
वायम
ु ि
ं ल मैं कैद हो जाने से धरिी के औसि िापमान में बिोत्तरी होिी हैं, जो भम
ू ि
ं लीय ऊष्ट्मीकरण का
कारण बनिी हैं । भम
ू ि
ं लीय ऊष्ट्मीकरण के शलए प्रमख
ु रुप से काबयन िाइ आक्साइि गैस ष्जम्मेदार हैं
परन्िु शमथेन, क्लोरोफ्लोरो काबयन (सीिथा (सी.एफ . नाइरस आक्साइि भी इसके शलए ष्जम्मेदार हैं ।
साधारण बशबों की जगह कॉम्पैक्ट फ्लॉरॉसेंट लैंप )CFLs) का इस्िेमाल करें । समान रोिनी के शलए
कॉम्पैक्ट फ्लॉरॉसेंट साधारण बशबों की िल
ु ना में एक चौथाई ऊजाय का इस्िेमाल करिे हैं और उनसे आठ
गन
ु ा अगधक समय िक चलिे हैं साधारण बशब)1000 घंटे चलिे हैं और कॉम्पैक्ट फ्लॉरॉसेंट 8000 घंटे ।(
इस िरह आपके बबजली के बबल में िो जबदय स्ि कटौिी होिी ही है , बशब खरीदने का खचय भीकम होिा
है ।
बबजली की बचि करनेवाले उपकरण इस्िेमाल करें
यह अन्य उपकरणों के मक
ु ाबले ऊंची गण
ु वत्तावाले होिे हैं, अगधक चलिे हैं और 2 से 10 गन
ु ा िक बबजली
की बचि करिे हैं। यातन इनके इस्िेमाल से ऊजाय और पैसे, दोनों की बचि होिी है । भारि में रे कफ्रजरे टर
और एयरकंडििनर जैसे उपकरणों पर कुिलिा का दजाय बिानेवाले लेबल लगाए जािे हैं जो एक से पांच
शसिारा िक होिे हैं। यातन ष्जिने ज्जयादा शसिारे उिना ककफायिी उपकरण।
ऊजाय की बचि करनेवाले कम्प्यट
ू र इस्िेमाल करें
गाडी के टायरों में हवा की कमी से ईंधन की ज्जयादा खपि होिी है । रे डियल टायरों के इस्िेमाल से 3 से
7% ईंधन की बचि होिी है । एक शलटर पेरोल बचने का अथय है लगभग 25 कक़ग़्रा क़ाबयन िायऑक्साइि
वािावरण में नहीं पहुंचग
े ी।
जल का उपयोग सावधानी से करें
नलों को कस कर बन्द करें , टपकने या ररसने न दें । दांि साफ करिे, दाढी बनािे या मह
ंु हाथ धोिे हुए
मग का इस्िेमाल करें । नहाने के शलए फुहारे की जगह बाशटी और मग इस्िेमाल करें । अपनी बस्िी में
वषायजल संग्रह िरू
ु करें ।
प्लाष्स्टक के थैलों का उपयोग रोकें
इस आसान से उपाय से आप हर बरस लगभग 900 ककग़्रा क़ाबयन िायऑक्साइि को वािावरण में पहुंचने से
रोक लेंगे। थमोस्टै ट को 25 डिगी्र सेंहटग्रेि पर सैट करने से आपको कम कीमि पर अगधकिम आराम
शमलिा है ।
अक्षय ऊजाय इस्िेमाल करें
यह सहज कशपना की जा सकिी है कक ककिने बडे पैमाने पर इस प्रकार का ढांचा िैयार ककया जा रहा है
और ककिनी बडी संख्या में ऐसे रें ि कशमययों की आने वाले समय में आवश्यकिा पडने वाली है ।
डिजास्टर मैनज
े में ट या आपदा प्रबंधन की एक नई ववधा इस मंथन में उभरकर सामने आई है । इनका
काययक्षेत्र महज आपदा के बाद के पन
ु तनयमायण के कामकाज को संभालना या पीडडि व्यष्क्ियों की मदद
करना भर नहीं होिा है बष्शक आपदा की पव
ू य चेिावनी प्रणाली का ववकास और इन हातनयों को समय
रहिे न्यन
ू िम करने से भी जुडा हुआ है ।
भारि जैसे ववकासिील दे िों में प्रायः रोजाना ही ऐसे छोटे बडे हादसे िथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से-
ववशभन्न क्षेत्रों के लोगों को गज
ु रना पडिा है । बाद में बचाव के रूप में ष्जिने भी सरकारी एवं गैर
सरकारी प्रयास होिे हैं उनमें न िोआपसी िालमेल होिा है और न लोगों िक प्रभावी िरीके से इनका
फायदा पहुँच पािा है बष्शक कई दरू दराज के इलाकों में मदद पहुँचाने में काफी लंबा समय लग जािा है
और िब िक जान एवं माल की बडी हातन हो चक ु ी होिी है ।
यही कारण है कक दे ि में आपदा प्रबंधन का एक अलग से प्रागधकरण केंद्र सरकार के स्िर पर ववकशसि
ककया गया है और इसी की िाखाएँ िमाम राज्जयों और बडे िहरों के स्िर पर भी अष्स्ित्व में आ रही हैं।
इस कायय के शलए पयायप्ि धनराशि का भी प्रावधान है और रें ि मानव संसाधन की भी तनयष्ु क्ियाँ की जा
रही हैं।
महज चंद वषों पहले िक ऐसी रे तनंग के शलए ववदे िों में जाना पडिा था पर अब दे ि में ही सरकारी एवं
प्राइवेट सैक्टर के संस्थान अष्स्ित्व में आ गए हैं। इनमें सहटय कफकेट से लेकर एमबीए स्िर िक के इस
ववधा से संबगं धि कोसय हैं।
दे खा जाए िो इस रे तनंग में कम समय में एक्िन लेने की कायययोजना और समस्ि संसाधनों को एक
कुिल प्रबंधक की िरह अत्यंि प्रभावी व साथयक ढं ग से कक्रयाष्न्वि करने की रणनीति पर ज्जयादा जोर
होिा है । यह काययक्षेत्र शसफय एकेिेशमक महत्व का नहीं है बष्शक मैदानी स्िर पर समस्याओं से जझ
ू िे हुए
जोणखम भरी ष्स्थतियों में अंजाम दे ने से जड ु ा है ।
डिजास्टर मैनज
े में ट अध्यापन का भी एक अन्य क्षेत्र भी कायायनभ
ु वी लोगों के शलए हो सकिा है । प्रमख
ु
संस्थानों में डिजास्टर मैनेजमें ट इंष्स्टट्यट
ू (भोपाल), डिजास्टर शमहटगेिन इंष्स्टट्यट
ू (अहमदाबाद), सेंटर
फार डिजास्टर मैनेजमेंट (पण
ु े), नेिनल इन्फामेिन सेंटर ऑफ अथयके इंज-ाीतनयर आईआईटी (कानपरु )
का नाम शलया जा सकिा है ।
मुद्दा : सामाष्जक ररश्िे बचाना जरूरी
िॉ. वविेष गप्िा
ये िो केवल
अभी िुरंि
की ही
घटनाएं हैं, इनके साथ ही साथ आरुवष जघन्य
हत्याकांि जैसे न जाने ककिने मामले और
मुद्दा : सामाष्जक ररश्िे बचाना जरूरी
उनका अंजाम भी हमारे सामने हैं,
ये उदाहरण बिािे हैं कक आज सामाष्जक
संबंधों से जड
ु े सरोकार लगािार ध्वस्ि हो रहे हैं। यही बजह है कक आज आत्मीय ररश्िे स्वाथय की
आग में झुलसने को मजबूर हैं। पररवार के आष्त्मक संबंधों पर चोट करने वाली आज िमाम घटनाएं
रोज दे खने में आ रही हैं। आज पररवार व वववाह के ढांचे की दरकिी दीवारें , रक्ि संबंधों में लगािार
टूटन और रािों-राि लोगों के सफल होने का जुनून जैसे कारण समाज में बदलाव की िेज रफिार
को महसस
ू करा रहें हैं। इनके अलावा छोटे -छोटे स्वाथय आत्मीय संबंधों के साथ में नाबाशलग बच्चे
िक खन
ू की होली खेलने पर उिारू हैं। वैसे िो हमारे सामाष्जक संबध
ं ों और सगे ररश्िों में खन
ू ी जंग
का एक लंबा इतिहास रहा है । परं िु कुछ समय पहले िक इस प्रकार की घटनाएं राजघरानों के
आपसी स्वाथरे के टकराने िक ही सीशमि थीं। लेककन अब यह मुद्दा इसशलए और भी गंभीर हो गया
है क्योंकक अब छोटे -छोटे स्वाथरे को लेकर रक्ि संबंधों की बशल चढाने में आमजन भी िाशमल हो गए
हैं। वियमान की इस सच्चाई को प्रस्िि
ु करने में कोई हहचक नहीं कक िकनीकी शिक्षा, पूंजी, बाजार,
सच
ू ना िकनीकी के साथ में सोिल मीडिया जैसे कारकों के फैलाव के सामने पररवार, समद
ु ाय से
बनने वाले सामाष्जक ररश्िे बौने नजर आ रहे हैं। इसशलए सामाष्जक ररश्िों में टूटन वास्िव में
समाज व दे ि के शलए गचंिा का ववषय है ।
वियमान की इस िेजी से भागिी ष्जंदगी में सामाष्जक ररश्िों के अहसासों से बनने वाले समाज में
अब यह बहस चल पडी है कक क्या सामाष्जक ररश्िों में अभी और कडवाहट बढे गी? क्या भववष्ट्य में
वववाह और पररवार का सामाष्जक-वैधातनक ढांचा बच पाएगा अथवा इनका पूरी िरह कायापलट हो
जाएगा? क्या बच्चों को पररवार का वात्सशय, संवेदनाओं का अहसास, मश
ू य एवं संस्कारों की
सीख नैसगगयक पररवारों में शमल पाएगी अथवा उन्हें भी अब सच
ू ना िकनीक से जुडे आभासी
समाज पर ही तनभयर रहना होगा? क्या भववष्ट्य में एकल पररवार ही जीवन की सच्चाई बनकर उभरें गे
अथवा इनमें भी अभी और टूटन बढे गी? अगर हम यह मानिे हैं कक यह दौर िेज से बदलिे समाज
का दौर है िो कफर सवाल यह भी है कक क्या इन ररश्िों की टूटन को बदलाव की स्वाभाववक प्रकक्रया
समझा जाए या इसे नये वैष्श्वक समाज का दबाव मानकर चलना बेहिर होगा? आज के नये वैष्श्वक
समाज ये कुछ ऐसे ज्जवलंि प्रश्न हैं, ष्जनका भारिीय समाज के दायरे में ही हमें जवाब खोजना होगा।
सामाष्जक संबंधों के ढांचे पर ऐतिहाशसक तनगाह िालने से यह ज्ञाि होिा है कक आजादी के आंदोलन
के बाद पुरानी पीढी में ष्जन मूशयों और आदिरे के साथ सामाष्जक ररश्िों को पररवार के संयुक्ि
सांचें में ढाला, पंूजी के ववस्िार, बाजार की आक्रामकिा और व्यष्क्ि के रािों-राि सफल होने की
महत्त्वाकांक्षाओं ने उसे एक ही पल में बबखेर कर रख हदया। इन ररश्िों के टूटन की खनक आज
समाज में साफ सुनाई दे रही है ।
ध्यािव्य है कक ष्जस िरह वैष्श्वक संस्कृति फैल रही है उससे ऐसा अनुभव होिा है जैसे औद्योगगक-
व्यापाररक व्यवस्था के फैलाव में पररवार और समुदाय के भावनात्मक ररश्िे और उनकी वफादाररयां
बाधक शसद्ध हो रही हैं। अवलोकन बिािे हैं कक आज हर ररश्िा एक िनाव के दौर से गज
ु र रहा है ।
वह चाहे मािा-वपिा का हो या पति-पत्नी का, भाई-बहन, दोस्ि या अगधकारी व कमयचारी का ही ररश्िा
क्यों न हो, इन सभी ररश्िों के बीच एक िीि भाव पनप रहा है । ध्यान रहे सामाष्जक ररश्िे तनरं िर
संवाद की मांग करिे हैं। संवाद का अभाव इन सामाष्जक ररश्िों की गमायहट को कम करिा है ।
सामुदातयक ररश्िों की शमसाल माने जाने वाले गांवों में भी अब पररवार की संयुक्ििा ववभाष्जि हो
रही है । इससे बचाव का एक ही रास्िा है कक हम अपने परं परागि सामाष्जक ररश्िों की गमायहट को
पुन: महसस
ू करना िरू
ु करें । ररश्िों के सघन संवाद के बढने से न केवल भारिीय पररवारों की नींव
मजबूि होगी, बष्शक इससे भववष्ट्य में दे ि के सामाष्जक व सांस्कृतिक िाने-बाने को भी मजबूिी
शमलेगी। िायद सामाष्जक ररश्िों को बचाने का यही एक सबसे आसान रास्िा है ।
भाििीय मशक्षा व्यवस्था : एक ववश्लेषण
March 11, 2013, 11:30 AM IST आनंद कुमाि ममश्रा in परिवेश | अन्य
हमारे दे ि में डिग्री प्राप्ि करना बहुि ही आसान है , ष्जस कारण डिग्री का कोई मश
ू य नहीं है ।
ज्जयादािर शिक्षण संस्थान िथा महाववयालय अपनी झूठी िान बनाने के शलए शिक्षा िथा
नैतिकिा का चीर-हरण कर रहे हैं , और एक व्यवसातयक संगठन की िरह पैसे बनाने में लगे हुए
हैं और इसके शलए रोज़ नई नीतियां बना रहें हैं। इस कारण ये संस्थान, छात्रों के अन्दर िीव्र
असंिोष और भौतिकिा को जन्म दे रहे हैं । जो की छात्रों के अन्दर की नैतिकिा िथा
कियव्यपरायणिा का संहार कर रही है । प्रतिस्पधाय एक दस
ू रा ही रूप ले चक
ु ी ष्जसमें छात्र अपने
आप को िेस्ठ साबबि करने के शलए ककसी भी हद िक जाने के शलए िैयार हैं , इसमें ईमानदारी
िथा नैतिकिा का कोई स्थान नहीं है , िथा प्रतियोगिाओ के प्रबंधक अपने सवाथय को तनहहि
करने लगे रहिे है।
ज्जयादािर शिक्षक अहं कार और पक्षपाि से भरे होिे हैं, उन्हें नैतिकिा का सामान्िः कोई बोध नहीं
होिा। हमारी व्यवस्था में अगधकिर शिक्षक एक रबड की मुहर के समान है , जो कक हर उस छात्र
के माथे पर गचपका दी जािी है जो उसे तनजी लाभ पहुंचाने था प्रसन्न रखने में सक्षम
हो। शिक्षक को चाहहए की वह अपने वववेक का इस्िेमाल करके एक कमजोर छात्र को नैतिक था
उसके ज्ञान क्षेत्र में उसे सक्षम बनायें। जबकक शिक्षक छात्रों को एक नज़र में दे खिे ही अपनी
समझ के हहसाब से उनकी एक अनभ
ु तू ि बना लेिे हैं और ऐसे कमजोर छात्रों की मदद करने की
जगह उन्हें मंदबुद्गध घोवषि कर दे िे हैं। और कुछ स्व-कामयाब छत्रों पर मेहरबान हो जािे हैं
और उनके गुण गािे-कफरिे हैं और ऐसे छात्रों के बल पर स्वयं को िेष्ट्ट साबबि करने में लगे
रहिे हैं। और अपने होने का कारण भल
ू जािे हैं, जो की पीछे छूटे छात्रों को प्रेररि करना िथा
उन्हें सक्षम बनाना है ।
एक अच्छी शिक्षा नीति में , ज्ञान िथा शिक्षा प्राप्ि करना आसान होना चाहहए िाकक हर ककसी
को शिक्षा प्राप्ि करने का समान अवसर शमले, और ष्जसमें जािी, वणय और वगय जैसे िब्दों का
कोई स्थान न हो । इसमें कोई िक नहीं की शिक्षा में आरक्षण एक अच्छे मक्सद ( वगीकरण
की समाष्प्ि ) को प्राप्ि करने के शलए इस्िेमाल में लाया गया िथा अगधतनयशमि ककया गया ,
परन्िु इसके ववपरीि ये ववभाष्जकरण का एक मुख्य कारण बन गया है , ज्जयादािर महाववद्यालयों
एवं संस्थानों में लोग आरक्षण से क्रुद्ध हो कर गुटबंदी कर लेिे है और कमजोर वगय के लोगों
का बहहष्ट्कार करिे हैं िथा उन्हें हीन समझिे हैं । शिक्षा नीति में चाहहए की शिक्षा प्रत्येक
व्यष्क्ि के पहुँच में हो िाकक शिक्षा ग्रहण करने में उसके पररवार की आगथयक ऋण न टूट जाये ।
जबकक शिक्षा के तनजीकरण के बाद इस लक्ष्य की प्राष्प्ि की ��गह शिक्षा एक अत्यंि
लाभकारी व्यवसाय के रूप में तनखर के आया है ।
अगधकिर शिक्षण संस्थान शिक्षा का ववस्िार करने की बजाय उसका स्िर गगरा रहे हैं । ष्जस
कारण छात्रों का जीवन और दस्
ु वार हो गया है , और बेरोज़गारी बढ रही है , जबकक ि्य यह है की
ज्जयादािर डिग्री प्राप्ि ककये बेरोजगार लोग उस के लायक ही नहीं हैं । छात्रों को अवमानक डिग्री
बाटने की जगह िंत्र को चाहहए की उनके शलए उनके वास्िववक स्िर के अनस
ु ार उन्हें रोज़गार
शमले ना की कागज़ के चंद टुकडे , ष्जसे प्राप्ि करने में उसकी आगथयक पररष्स्थति और बबगड
जाये ।
मैं अपने तनजी जीवन से एक उदाहरण दे ना चाहिा हूँ , मेरा जब अपने महाववद्यालय में प्रवेि
हुआ था िब मै एक िकनीकी ववषय में एक अच्छे स्िर पे था ( मेरे सहपाहठयों के अनुसार ),
पर डिग्री ख़िम होने पर मुझे उस ववषय में महाववद्यालय में िेस्ठ होने के शलए पुरस्कृि ककया
गया जो की मुझे बबलकुल पसंद नहीं आया, जानिे हैं क्यों ? क्यों की 3 साल के अवधी के बाद
भी मेरा महाववद्यालय मेरे शलए/मेरी जगह पर ककसी दस
ु रे छात्र को नहीं ला सका जो जी मेरा
एक सवस्थ प्रतिद्वंदी बन सके, साधारण िब्दों में कहूँ िो मेरे महाववद्यालय ने इस अवधी के
दौरान ककसी भी छात्र का नैतिक या ज्ञानछे त्र में कोई स्िर नहीं बढाया जो जैसे थे वो वैसे ही
डिग्री लेकर चले गए । यह शिक्षा नीति की असफलिा का उदाहरण है ।
Scientific research
आनव
ु ांमशक संशोधधि फसल
(अंग्रेज़ी:जेनेहटक मॉडिफाइि फूि) वे फसलें हैं, ष्जनके आनुवांशिक पदाथय (िीएनए) में बदलाव ककये
जािे हैं, अथायि ऐसी फसलों की उत्पवत्त इनकी बनावट में अनुवांशिकीय रूपांिरण से की जािी है ।
इनका आनुवांशिक पदाथय आनुवांशिक अशभयांबत्रकी से िैयार ककया जािा है। इससे फसलों के
उत्पादन में बढोत्तरी होिी है और आवश्यक ित्वों की मात्रा बढ जािी है ।
इतिहास
इस िरीके से पहली बार १९९० में फसल पैदा की गयी थी। सबसे पहली इस ववगध से टमाटर को
रूपांिररि ककया गया था। कैशलफॉतनयया की कंपनी कैलगेने ने टमाटर के धीरे -धीरे पकने के गुण
को खोजा था, िब उस गुण के गुणसूत्र में पररवियन कर ये नयी फसल तनकाली थी। इसी िरह
का प्रयोग बाद में पिुओं पर भी ककया जा रहा है । २००६ में सूअर पर प्रयोग ककया गया। उत्तरी
अमेररका में अनुवांशिकीय रूपांिररि फसलों का उत्पादन सबसे अगधक ककया जािा है ।
आलोचना
2012 Paper 1 HL
2012 Paper 2 HL
2013 Paper 1 SL
2013 Paper 2 SL
2014 Paper 1 SL
2014 Paper 2 SL
2015 Paper 1 HL
2015 Paper 2 SL