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ये कैसा संजोग मााँ बेटे का

लेखक- अज्ञात

दोस्तों, ये एक ऐसा संयोग था अपनी मााँ के साथ, जिसके बारे में मैं आपको बताने िा रहा हाँ। दोस्तों ये तभी
होता है िब ससतारे ककसी बहुत खास मौके पर ककसी खास ददशा में लाइन-बद्ध हों। मेरे खयाल से इसे और
ककसी तरीके से परभाषित नहीं ककया िा सकता।

मैं घर के षपछवाड़े में क्याररयों में खोई अपनी बाल ढाँ ढ़ रहा था, िब मैंने मााँ की आवाि अपने माता-षपता के
कमरे के साथ अटै च्ड बाथरूम की छोटी सी खखड़की से आती सन
ु ी। खखड़की थोड़ी सी खुली थी और मैं उसमें से
अपनी मााँ की फुसफुसाती आवाि को सन
ु सकता था, िब वो फोन पर ककसी से बात कर रही थी।

वो वास्तव में एक अद्भत


ु संयोग था।

वो शायद बाथरूम में टायलेट इश्तेमाल करने आई थी, और संयोगवश उसके पास मोबाइल था, िो अपने आप में
एक दल
ु भ
ल बात थी, क्योंकी मााँ बाथरूम में कभी मोबाइल लेकर नहीं िाती थी और संयोगवश मैं भी खखड़की के
इतने निदीक था कक वो क्या बातें कर रही हैं, साफ-साफ सन
ु सकता था।

मैं कोई िानबझकर उसकी बातें नहीं सन


ु रहा था। मैं तो अपनी बाल ढाँ ढ़ रहा था। मगर कुछ अल्फाि ऐसे होते
हैं कक आदमी चाहकर भी उन्हें निरअंदाि नहीं कर सकता, खासकर अगर वो अल्फाि अपनी सगी मााँ के माँह

से सन
ु रहा हो तो। िब मैंने मााँ को वो बात कहते सन
ु ा तो मेरे कान खड़े हो गये।

मााँ- “अब मैं तम्


ु हें क्या बताऊाँ? मझ
ु े तो अब यह भी याद नहीं है कक लण्ड का स्पशल कैसा होता है । इतना समय
हो गया है मझ
ु े बबना सेक्स के…”

पहले पहल तो मझ ु े अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ कक शायद मैंने सही से सन
ु ा ही नहीं है ? और मैं अपनी
सांसें रोक कर बबना कोई आवाि ककए परे ध्यान से सन ु ने लगा।

तब वो काफी समय तक चप
ु रही िैसे वो फोन पर दसरी ओर से बोलने वाले को सन
ु रही थी और बीच-बीच
‘हााँ’ ‘हाँ’ ‘मैं िानती हाँ’ कर रही थी। आखखरकार अंत में वो बोली- “मैं वो सब करके दे ख चुकी हाँ, मगर कोई
फायदा नहीं। अब हमारी जिंदगी उस पड़ाव पर पहुाँच गई है , जिसमें सेक्स हमारी रोिमराल की जिंदगी की िरूरत
नहीं रहा…”

उफफ्फफ… मैं अब िाकर समझा था। मेरी मााँ अपनी सेक्स लाइफ से संतष्ु ट नहीं थी और फोन पर ककसी से
सशकायत कर रही थी, या अपना दख
ु ड़ा रो रही थी। फोन के दसरे ससरे पर कौन था, मझ
ु े मालम नहीं था? मगर
िो कोई भी था, िादहर था मााँ के बहुत निदीक था। इसीसलए वो उस शख्स से इतने खुलेपन और भरोसे से
बात कर रही थी। कफर से एक लंबी चप्ु पी छा िाती है और वो ससफल सन
ु ती रहती है ।

1
तब वो बोलती है- “मझ
ु े नहीं मालम मैं क्या करूाँ? मेरी समझ में कुछ नहीं आता। कभी-कभी मझ
ु े इतनी इच्छा
होती है चद
ु वाने की, मेरी चत िैसे िल रही होती है, कामोत्तेिना िैसे ससर चढ़कर बोलती है , और मैं रात भर
सो नहीं पाती और वो दसरी ओर करवट लेकर ऐसे सोता है िैसे सब कुछ सही है , कुछ भी गलत नहीं है…”

मैंने कभी भी मााँ को कामोत्तेिना शब्द के साथ िोड़कर नहीं दे खा था। वो मेरे सलए इतनी पर्ल, इतनी ननष्कलंक
थी कक मैं िानता भी नहीं था कक उसकी भी शारीररक िरूरतें थीं, मेरी ही तरह। वो मेरे सलए ससफल मााँ थी, ससफल
मााँ… एक औरत कभी नहीं।

मैं िानता था मााँ और षपतािी एक साथ सोते हैं और मेरे मन के ककसी कोने में यह बात भी अंककत थी कक
उनके बीच आत्मीय संबध
ं थे, मगर अब िब मैंने अपने मन को दौड़ाया और इस बात की ओर ध्यान ददया कक
आत्मीयता का असली मतलब यहााँ चुदाई से था। मैंने कभी यह बात नहीं सोची थी कक मेरे षपतािी ने मेरी मााँ
को चोदा है , और अपना लण्ड मााँ की चत में घस
ु ेड़ा है, वो लण्ड जिसका एहसास मााँ के अनस
ु ार वो कब की भल
चुकी थी।

मााँ और चत यह दो ऐसे लफ़्ि थे, िो मेरे सलए एक लाइन में नहीं हो सकते थे। मेरी मााँ तो बस मााँ थी, परी
शद्
ु ध और पषवत्र। िब उसकी बातचीत ने इस ओर इशारा ककया कक उसके पास भी एक चत है , िो लण्ड के
सलए तड़प रही है । बस, मैं और कुछ नहीं सन
ु ना चाहता था। मैं यह भी भल गया कक मैं वहााँ क्या कर रहा था,
या क्या करने गया था? मैं वहााँ से दर हट िाना चाहता था, इतना दर कक मााँ की आवाि ना सन
ु सकाँ ।

उस ददन के बाद िब मैंने उसे रसोई में दे खा तो मझ


ु े उसकी उपजस्थनत में बेचैनी सी महसस होने लगी। मझ
ु े
थोड़ा अपराध बोध भी महसस हो रहा था कक मैं उसकी अंतरं ग दबु बधा को िान गया था, और उसे इस बात की
कोई िानकारी नहीं थी। उस अपराधबोध ने मााँ के सलए मेरी सोच को थोड़ा बदल ददया था। उसकी समस्या की
िानकारी ने उसके प्रनत मेरे निररए में भी तब्दीली ला दी थी। मैं शायद इसे सही ढं ग से बता तो नहीं सकता,
मगर मेरे अंदर कुछ अहसास िन्म लेने लगे थे।

उस ददन िब वो ड्राइंग रूम में आई तो बरबस मेरा ध्यान उसकी टााँगों की ओर गया। मैं चाहता नहीं था मगर
कफर भी खुद को रोक नहीं पाया। ससफल इतना ही नहीं, मेरी निर उसकी टााँगों से सीधे उस स्थान पर पहुाँच गई,
िहााँ उसकी टााँगें आपस में समल रही थीं, उस स्थान पर िहााँ उसने ना िाने ककतने समय से लण्ड महसस नहीं
ककया था। ऊपर से वो टाइट िीन्स पहने हुए थी और उसने अपनी टी-शटल िीन्स के अंदर दबा रखी थी, जिससे
उसकी टााँगों का वो मध्य भाग मझ
ु े बहुत अच्छे से ददखाई दे रहा था, बजल्क थोड़ा उभरा हुआ निर आ रहा था।
उसके वो लफ्फि मेरे कानों में गाँि रहे थे, िब मैं उसकी िांघों को घर रहा था।

मााँ अपनी फेवोररट िीन्स पहने हुए थी और वो स्थान िहााँ उसकी िांघें आपस में समल रही थीं, वहााँ थोड़ा गैप
था, िो उसकी चत को हाइलाइट कर रहा था, खब उभरकर। मैंने मााँ को पहले भी उस िीन्स में दे खा था, मगर
टााँगों के बीच का वो गैप मझ
ु े कभी निर नहीं आया था, ना ही वो नतकोने आकर का भाग। अससलयत में,
शायद मैंने वो उभरा हुआ दहस्सा दे खा ही नहीं था, शायद वो मेरी कल्पना मात्र थी। उसकी िीन्स काफी मोटे
कपड़े की बनी हुई थी, इससलए उस दहस्से को दे खना बहुत मजु श्कल था। मगर आि मैं उसे एक अलग ही रूप में
दे ख रहा था। उसकी चत की ओर बार-बार ध्यान िाने से मझ
ु े कुछ बेचैनी महसस होने लगी थी। उस रात मैं सो
नहीं सका।

2
उस रात िब मेरे माता-षपता अपने कमरे में सोने के सलए चले गये तो मैं कल्पना करने लगा कक कैसे मेरी मााँ
मेरे षपतािी के नीचे होगी, और उस लण्ड को अपनी चत में ले रही होगी, िो उसने ना िाने ककतने समय से
महसस भी नहीं ककया था। मैंने यह सब कफतर अपने ददमाग से ननकालने की बहुत कोसशश की, मगर घम कफर
कर वो बातें कफर से मेरे ददमाग में आ िाती। मेरा ध्यान उसकी पैंट के उस गैप वाले दहस्से की ओर चला
िाता, और मैं कल्पना में अपने षपतािी के लण्ड को उस गैप को भरते दे खता।

मेरे खयाल मझ
ु े बैचैन कर रहे थे और मैं ठीक से कह नहीं सकता कक मझ
ु े ककस बात से ज्यादा परे शानी हो रही
थी? इस बात से कक मााँ की चत बार-बार मेरी आाँखों के सामने घम रही थी, या कफर इस खयाल से कक मेरे
षपतािी उसे चोद रहे होंगे।

अगले ददन मेरा मड बहुत उखड़ा हुआ था। मेरे हाव-भाव मेरी हालत बता रहे थे।

खुद मााँ ने भी पछा कक मैं ठीक तो हाँ? वो उस ददन भी वोही िीन्स पहने हुए थी मगर उसके साथ एक फामल
कफदटंग टी-शटल डाली हुई थी।

उस ददन जिंदगी में पहली बार मेरा ध्यान मााँ के मम्मों की ओर गया। एक बारगी तो मझ ु े यकीन ही नहीं हुआ
कक उसके मम्मे इतने बड़े-बड़े और इतने सद ुं र थे। उसके भारी मम्मों के एहसास ने मेरी हालत और भी पतली
कर दी थी। बाकी का परा ददन मेरा मन उसकी टााँगों के िोड़ से उसके मम्मों, उसके उन गोल-मटोल भारी
मम्मों के बीच उछलता रहा। मेरे कानों में बार-बार उसकी वो बात गाँि उठती कक उसे अब लण्ड का एहसास भी
भल गया था, कक कभी-कभी उसको चद
ु वाने का ककतना मन होता था।

मैं मानता हाँ उसे मात्र एक मााँ की तरह दे खने की विाय एक सद


ुं र, कमनीय नारी के रूप में दे खने का बदलाव
मेरे सलए अप्रत्यासशत था। ऐसा लगता था िैसे एक पदाल उठ गया था, और िहााँ पहले एक धन्
ु धलका था वहााँ
अब मैं एक औरत की तस्वीर साफ-साफ दे ख सकता था। लगता था िैसे मेरी कुछ इच्छाएं मन की गहराइयों में
कहीं दबी हुई थीं, िो यह सन
ु ने के बाद उभरकर सामने आ गई थी कक उसको कभी-कभी चुदवाने का ककतना
मन होता था। मााँ िैसे बदलकर कोई और हो गई थी और मेरे सलए सवलथा नई थी।

िहााँ पहले मझ
ु े उसके मम्मों और उसकी िांघों के िोड़ पर दे खने से अपराधबोध, खझझक महसस होती थी, अब
हर बीतते ददन के साथ मैं उन्हें आसानी से बबना ककसी खझझक के दे खने लगा था। बजल्क िो भी मैं दे खता
अपने मन में खब िमकर उसकी तारीफ भी करता। मझ
ु े नहीं मालम उसने इस बदलाव पर कोई ध्यान ददया था
या नहीं? मगर कई मौकों पर मैं बड़ी आसानी से पकड़ा िा सकता था।

एक ददन आधी रात को मैं टीवी दे ख रहा था तो मझ


ु े ककचेन में मााँ के कदमों की आहट सन
ु ाई दी। उस समय
उसे सोते होना चादहए था, मगर वो िाग रही थी। वो ड्राइंग रूम में मेरे पास आई। उसके हाथ में िस का ग्लास
था। मााँ ने कहा- “मैं भी तम्
ु हारे साथ टीवी दे खग
ाँ ी…” कहकर छोटे सोफे पर बैठ गई, िो बड़े सोफे से नब्बे डडग्री
के कोर् पर था, जिस पे मैं बैठा हुआ था। उसने नाइटी पहनी हुई थी जिसका मतलब था कक वो सोई थी मगर
कफर उठ गई थी।

मैंने पछा- “नींद नहीं आ रही?” मेरे ददमाग में उसकी टे लीफोन वाली बातचीत गाँि उठी, जिसमें उसने कहा था
कक कभी-कभी उसे चद
ु वाने की इतनी िबरदस्त इच्छा होती थी कक उसे नींद नहीं आती।
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मैं सोचने लगा क्या उस समय भी उसकी वोही हालत है , कक शायद वो काम की आग यानी कामाग्नी में िल
रही है , और उसे नींद नहीं आ रही है, इसीसलए वो टीवी दे खने आई है । इस बात का एहसास होने पर कक मैं एक
अनत कामोत्तेजित नारी के साथ हाँ। मेरा बदन ससहर उठा।

मााँ वहााँ बैठकर आराम से िस पीने लगी। उसे दे खकर लगता था िैसे उसे कोई िल्दबािी नहीं थी, िस खतम
करके वापस अपने बेडरूम में िाने की। िब उसका ध्यान टीवी की ओर था तो मेरी निरें चोरी-चोरी उसके बदन
का मआ
ु इना कर रही थी। उसके मोटे और ठोस मम्मों की ओर मेरा ध्यान पहले ही िा चुका था। मगर इस बार
मैंने गौर ककया कक उसकी टााँगें भी बेहद खबसरत थीं। सोफे पे बैठने से उसकी नाइटी थोड़ी ऊपर उठ गई थी,
और वो उसके घट
ु नों से थोड़ा ऊपर तक ही उसकी िांघों को ढांप रही थी।

शायद रात बहुत गि ु र चुकी थी, या टीवी पर आधी रात को परवीन बाबी के ददलकश िलवे दे खने का असर था,
मगर मझु े मााँ की िांघें बहुत प्यारी लग रहीं थी। बजल्क सही लफ़्जों में बहुत सेक्सी लग रही थी। सेक्सी, यही
वो लफ़्ि था िो मेरे ददमाग में गि
ं ा था, िब हम दोनों टीवी दे ख रहे थे। या मेरे केस में , मैं टीवी दे खने का
नाटक कर रहा था। अससलयत में अगर मझ
ु े कुछ ददखाई दे रहा था तो वो उसकी सेक्सी िांघें थी और यह
खयाल मेरे ददमाग में घम रहा था कक वो इस समय शायद बहुत कामोत्तेजित है ।

मााँ काफी समय वहााँ बैठी रही, अंत में बोलते हुए उठ खड़ी हुई- “ओफफ्फफ… रात बहुत गि
ु र गई है । मैं अब सोने
िा रही हाँ…”

मैं कुछ नहीं बोला। वो उठकर मेरे पास गड


ु नाइट बोलने को आई। नामलली रात को मााँ षवदा लेते हुए मेरे होंठों
पर एक हल्का सा चुंबन लेती थी, िैसा मेरे बचपन से चला आ रहा था। वो ससफल सखे होंठों से सखे होंठों का
क्षखर्क स्पशल मात्र होता था, और उस रात भी कुछ ऐसा ही था, एक सखा, हल्का सा लगभग ना मालम होने
वाला चुंबन। मगर उस रात उस चुंबन के अथल बदल गये थे, क्योंकी मेरे ददमाग में उसके कामक
ु अंगों की धुंधली
सी तस्वीरें उभर रही थीं।

वो एक हल्का सा अच्छी महक वाला पफ्फयम ल डाले हुए थी जिसने मेरी दशा और भी खराब कर दी थी। मैं
उत्तेजित होने लगा था। मैं उसे मड़
ु कर रूम की ओर िाते दे खता रहा। उसका ससल्की, साफ्फट नाइटगाउन उसके
बदन के हर कटाव, हर मोड़, हर गोलाई का अनस
ु रर् कर रहा था। वो उसकी गाण्ड के उभार और ढलान से
चचपका हुआ उसके चतड़ों के बीच की खाई में हल्का सा धंसा हुआ था। उस दृश्य से मााँ को एक सद
ुं र, कमनीय
नारी के रूप में दे खने के मेरे बदलाव को पर्ल कर ददया था।

“मााँ ककतनी सद
ुं र है, ककतनी सेक्सी है?” मैं खुद से दोहराता िा रहा था। मगर उसकी सद
ुं रता ककस काम की?
वो आकिलक और कमनीय नारी हर रात मेरे षपतािी के पास उनके बेड पर होती थी, मगर कफर भी उनके अंदर
वो इच्छा नहीं होती थी कक उस कामोत्तेजित नारी से कुछ करें । मझ
ु े षपतािी के इस रवैये पर वाकई में बहुत
है रत हो रही थी।

मझ
ु े इस बात पर भी ताज्िुब हो रहा था कक मेरी मााँ अचानक से मझ
ु े इतनी सद
ुं र और आकिलक क्यों लगने
लगी थी? वैसे ये इतना भी अचानक से नहीं था। मगर यकायक मााँ मेरे सलए इतनी खबसरत, इतनी कमनीय हो
गई थी, इस बात का कुछ मतलब तो ननकलता था। क्यों मझ
ु े वो इतनी आकिलक और सेक्सी लगने लगी थी?
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मझ
ु े एहसास था कक इस सबकी शरु ु आत मझ ु े मााँ की अपर्ल जिश्मानी ख्वादहशों की िानकारी होने के बाद हुई
थी, लेककन कफर भी वो मेरी मााँ थी और मैं उसका बेटा, और एक बेटा होने के नाते मेरे सलए उन बातों का
ज्यादा मतलब नहीं होना चादहए था।

उसकी हसरतें ककसी और के सलए थीं, मेरे सलए नहीं, मेरे सलए बबल्कुल भी नहीं। अगर उस समय मैं कुछ सोच
सकता था तो ससफल अपनी हसरतों के बारे में , और मााँ के सलए मेरे ददल में पैदा हो रही हसरतें । मगर कफर मैं
उसकी ख्वादहश क्यों कर रहा था? क्या वाकई वो मेरी खावदहश बन गई थी? मेरे पास ककसी सवाल का िवाब
नहीं था। यह बात कक वो कभी-कभी बहुत उत्तेजित हो िाती थी, और यह बात कक उसकी जिश्मानी हसरतें परी
नहीं होती थीं। इसी बात ने मााँ के प्रनत मेरे अंदर कुछ एहसास िगा ददए थे।

यह बात कक वो चुदवाने के सलए तरसती है, मगर मेरा षपता उसे चोदता नहीं है , इस बात से मेरे ददमाग में यह
षवचार आने लगा कक शायद इसमें मैं उसकी कुछ मदद कर सकता था। मगर हमारा ररश्ता रास्ते में एक बहुत
बड़ी बाधा थी। इससलए वास्तव में उसके साथ कुछ कर पाने की संभावना मेरे सलए ना के बराबर ही थी। मगर
मेरे ददमाग के ककसी कोने में यह षवचार िरूर िन्म ले चक
ु ा था कक कोसशश करने में कोई हिल नहीं है । उस
संभावना ने एक मदल होने के नाते मााँ के सलए मेरे िज़्बातों को और भी मिबत कर ददया था, चाहे वो संभावना
ना के बराबर थी।

ज्यादातर मैं रात को काफी लेट सोता था, यह आदत मेरी स्कल के ददनों से बन गई थी, िब मैं आधी रात तक
पढ़ाई करता था, कालेि िाय्न करने के बाद से यह आदत और भी पक्की हो गई थी। मेरा ज्यादातर वक़्त
कंप्यटर पर काम करते गि
ु रता था। मगर मााँ के बारे में वो िानकारी हाससल होने के बाद, और िब से मझ
ु े इस
बात का एहसास हुआ था कक मााँ का बदन ककतना कामक ु है , वो ककतनी सेक्सी है , और उसकी उपजस्थनत में िो
कमनीय आनंद मझु े प्राप्त होने लगा था उससे मैं अब टीवी दे खने को महत्व दे ने लगा था। मैं अक्सर ड्राइंग रूम
में बैठकर टीवी दे खता और आशा करता कक वो आएगी और मझ
ु े कफर से वोही आनंद प्राप्त होगा।

मााँ का ध्यान मेरी नई ददनचयाल की ओर िाने में थोड़ा वक़्त लगा। शरू
ु -शरू
ु में वो कभी-कभी संयोग से वहााँ आ
िाती और थोड़ा वेकार बैठती, और टीवी पर मेरे साथ कुछ दे खती। मगर िल्द ही वो ननयसमत तौर पर मेरे साथ
बैठने लगी। मगर वो कभी भी लंबे समय तक नहीं बैठती थी मगर इतना समय काफी होता था एक सख
ु द
एहसास के सलए।

मझ
ु े लगा वो घर में अपनी मौिदगी का ककसी को एहसास करवाना चाहती थी। रात को िाने के टाइम उसकी
षवशेि कई बार िुबानी होती थी, वो हल्के से गड
ु नाइट बोल दे ती थी और कई बार वो हल्का सा होंठों से होंठों
का स्पशल, वो एक सखा सा स्पशल मात्र होता था और मेरे ख्याल से वो ककसी भी प्रकार चुंबन कहकर नहीं पक
ु ारा
िा सकता था। िो गमालहट मझ
ु े पहले मााँ के चुंबन से होती थी, वो समय के साथ उनकी आदत होने से िाती
रही। उन चुंबनों में ना कोई असर होता था और ना ही उनका कोई खास मतलब होता था। वो तो ससफल हमारे
षवदा लेने की औपचाररकता मात्र थी, एक ऐसी औपचाररकता जिसकी मझ
ु े कोई खास परवाह नहीं थी।

मैं अपनी परु ानी ददनचयाल की ओर लौट गया और अपना सारा समय कफर से अपने कंप्यटर पे बबताने लगा। अब
आधी रात तक टीवी दे खने में वो मिा ही नहीं था िैसा पहले आया करता था। मााँ को मेरे फैसले की मालमात
नहीं थी। पहले ही ददन िब उसने मझ
ु े ड्राइंग रूम से नदारद पाया तो वो मेरे रूम में मझ
ु े दे खने को आई।
5
मााँ- “आि टीवी नहीं दे खोगे क्या?”

मैं- “नहीं, मझ
ु े अपना प्रािेक्ट परा करना है…” मैंने बहाना बनाया।

मााँ- “ओह्ह…” वो थोड़ी ननराश लगी, कम से कम मझ


ु े तो ऐसा ही िान पड़ा।

कहने के सलए और कुछ नहीं था, मगर वो अभी िाना नहीं चाहती थी। वो बेड के ककनारे पर बैठ गई और टे बल
पर से एक मैगिीन उठाकर उसके पन्ने पलटने लगी। मैं बबिी होने का नाटक करता रहा, और वो चुपचाप
मैगिीन में खोई रही। कुछ दे र बाद मैंने उसे मैगिीन वापस रखते सन
ु ा।

मााँ- “ठीक है, मैं चलती हाँ…” वो खड़ी होकर बोली।

मैंने अपनी कुसी उसकी ओर घम


ु ा ली और कहा- “मेरा काम लगभग खतम हो चक
ु ा है मााँ, अगर तम
ु चाहो तो
थोड़ी दे र में हम टीवी दे खने चलते हैं…”

मााँ- “नहीं, नहीं। तम


ु पढ़ाई करो…” उसने िबाब ददया और मेरी तरफ आई। अब यह दहस्सा कुछ अथल सलए हुए
था।

शायद मेरा ये अंदािा गलत हो कक मझ


ु े ड्राइंग रूम में टीवी दे खते ना पाकर वो थोड़ा ननराश हो गई थी, मगर
िब वो मझ
ु से षवदा लेने के समय चुंबन लेने आई तो मैंने उसके हाव-भाव में एक ननश्चय दे खा और इस बार
मेरे मन में कोई संदेह नहीं था कक िैसे िुबानी षवदा की िगह वो चुंबन लेकर कोई बात िताना चाहती थी। मैं
थोड़ा आगे को झक
ु गया और उसके गड
ु नाइट चंब
ु न का इंति
े ार करने लगा।

आम तौर पर वो थोड़ा सा झुक कर अपने होंठ मेरे होंठों से छुआ दे ती थी। उसके हाथ उसकी कमर पर होते थे।
मगर उस रात उसने अपना दायां हाथ मेरे बाएं कंधे पर रखा और कफर मझ
ु े वो चुंबन ददया या मेरा चुंबन सलया।
मैंने इसे महि इत्तेफाक माना और इसे कोई गप्ु त इशारा समझकर इसका कोई दसरा अथल नहीं ननकाला। कारर्
यह था कक मैं कुसी पर बैठा हुआ था ना कक सोफे पर, इसीसलए उसे संतल
ु न के सलए मेरे कंधे पर हाथ रखना
पड़ा था। मगर वो चुंबन आि कुछ अलग तरह का था, इसमें कोई शक नहीं था।

यह कोई बहहुत बड़ी बात नहीं थी, मगर मझ ु े लगा कक वो हमारे इकट्ठे बैठने, साथ-साथ टीवी दे खने की आस
लगाए बैठे थी, उसे ककसी के साथ की िरूरत थी। शायद वो हमारे आधी रात तक ड्राइंग रूम के साथ की आदी
हो गई थी, और मेरे वहााँ ना होने पर उससे रहा नहीं गया था। मझ
ु े उसके चुंबन से उसकी ननराशा झलकती
ददखाई दी।

तभी वो खयाल मेरे मन में आया था। अगर उसके सलए चंब
ु न का एहसास बदलना संभव था, तो मेरे सलए भी
संभव था चाहे ककसी और तरीके से ही सही। जितना ज्यादा मैं इस बारे में सोचता उतना ही ज्यादा इसके नतीिे
को लेकर उत्तेजित होता गया। िब से मैंने उसे कहते सन
ु ा था कक वो चद
ु वाने के सलए तड़प रही है , तबसे मेरे
अंदर एक ज्वाला सी धधक रही थी। उस ज्वाला की लपटें और भी तेि हो िातीं, िब वो मेरे साथ अकेली आधी
रात तक टीवी दे खती थी।
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उसकी फोन वाली बातचीत से मैं िानता था कक वो कभी-कभी इतनी उत्तेजित होती थी कक उसे रात को नींद
नहीं आती थी। मझ
ु े लगता था कक िब-िब वो आधी रात को टीवी दे खने आती थी, उसकी वोही हालत होती
होगी, चाहे मेरे कारर् नहीं मगर अनत-कामोत्तेिना की हालत में तो वो होती ही थी।

अगर उस ददन भी उसकी वोही हालत थी िब वो मेरे साथ थी, तो क्या वो मेरी ओर हसरत से दे खेगी? िैसे मैं
उसकी ओर दे खता था? क्या उसके हृदय में भी वोही आग िल रही थी िो मेरे ददल में िल रही थी? क्या यह
संभव था कक उसके अंदर की आग को परोक्ष रूप से और भड़का ददया िाए ताकी कम से कम वो मेरी ओर
ककसी दसरी भावना से दे ख सके, िैसे मैं उसकी ओर दे खता था? क्या मैं उसके ददमाग में वो षवचार डाल सकता
था कक मैं उसकी समस्याओं के समाधान की एक संभावना हो सकता हाँ, चाहे वो ससफल एक षवचार होता इससे
ज्यादा कुछ नहीं।

मेरे सलए इन सवालों के िबाब िानने का कोई साधन नहीं था, मेरा मतलब कक अगर मैं शरु
ु आत भी करता तो
कहााँ से? कई बार मझ
ु े लगता िैसे मैं उसकी बेचैनी को, उसकी अकुलाहट को महसस कर सकता हाँ, मगर वो
ससफल एक अंदािा होता। मैं यकीन से कुछ नहीं कह सकता था। कोई ऐसा रास्ता नहीं था जिससे एक इशारा भर
ही समल िाता कक वो कैसे महसस करती है ?

उसके चंब
ु न ने उसकी कुछ भावनाओं से बगावत िरूर की थी, मगर उनका उस सबसे कोई वास्ता नहीं था िो
मैं िानना चाहता था। िरूर उसे ननराशा हुई थी िब मैं उसका साथ दे ने के सलए वहााँ नहीं था, मगर वो प्रभाव
एक मनोवैज्ञाननक था। उसे मेरा साथ अच्छा लगता था इससलए उसका ननराश होना संभव था, िब उसका बेटा
उसे कंपनी दे ने के सलए वहााँ मौिद नहीं था। मैं उसे ककसी और विह से ननराश दे खना चाहता था। चाहे एक
अलग तरीके से ही सही, मगर मैं एक िरूरत परी कर रहा था, एक बेटे की तरह नहीं बजल्क एक मदल की तरह।
मैं वो िानना चाहता था।

मैं महसस करना चाहता था कक जिश्मानी िरूरत परी करने की संभावना हमारे बीच मौिद थी, चाहे वो ससफल
एक संभावना होती और हम उसपर कभी अमल ना करते। अब अचानक से मैंने महसस ककया कक मेरे पास एक
मौका है , कम से कम ये पता करने का मैं ककतने पानी में हाँ? अगर मैं चुंबन को अपनी तरफ से ककसी तरह
कोई अलग रूप दे सकाँ , उसे एक इशारा भरकर सकाँ , उसे एक अलग एहसास करा सकाँ , उस चचंगारी को िो
उसके अंदर दहक रही थी, उसको हवा दे कर एक मदल की तरह भड़का सकाँ , ना कक एक बेटे की तरह। तब शायद
मैं ककसी संभावना का पता लगा सकाँ गा।

उस रात मैं बहुत बहुत दे र तक सोचता रहा, और एक योिना बनाने लगा कक ककस तरह मैं हमारी राबत्र के
चुंबनों में कुछ बदलाव करके उनमें कुछ एहसास डाल सकाँ ।

िब मैंने नतीिे के बारे में अलग-अलग ददशाओं से सोचा तो उत्तेिना से मेरा बदन कााँपने लगा। एक तरफ यहााँ
मैं यह सोचकर बहुत उत्तेजित हो रहा था कक अगर मैंने अपनी योिना अनसु ार काम ककया तो उसका नतीिा
क्या होगा? वहीं दसरी ओर मझ ु े अपनी योिना के षवपरीत नतीिे से भय भी महसस हो रहा था। उसकी
प्रनतकिया या तो सकारात्मक हो सकती थी, जिसमें वो कुछ ऐसी प्रनतकिया दे ती िो इस आग को और भड़का
दे ती, या कफर उसकी प्रनतकिया नकारात्मक होती जिससे उस संभावना के सभी द्वार हमेशा हमेशा के सलए बंद
हो िाते, िो संभावना अससलयत में कभी मौिद ही नहीं थी।
7
अब योिना बहुत ही साधारर् सी थी। मैं उसकी सक्ष्म प्रनतकिया को एक इशारा मानकर चल रहा था और इसके
साथ अपने तरीके से एक प्रयोग करके दे खना चाहता था। चाहे यह कुछ बेवकफाना िरूर लग सकता था मगर
मेरी योिना से मझ
ु े वो सई समल सकती थी िो मैं उस घास-फस के भारी ढे र में ढाँ ढ़ रहा था।

िैसा कक मैं पहले ही कह चुका हाँ हमारे राबत्र षवदा के चुंबन हमेशा सखे, हल्के से और नामालम होने वाले होंठों
का होंठों से स्पशल मात्र होते थे। अगर… मैं खद
ु से दोहराता िा रहा था… अगर वो इतने सखे ना रहें तो? मैं
अपने होंठ को उसके होंठों पर दबा तो नहीं सकता था, क्योंकी वो मयालदा के खखलाफ होता। लेककन अगर मेरे
होंठ सखे ना रहें तो? अगर उसको होंठों पर मख
ु रस का एहसास होगा तो? तब उसकी प्रनतकिया क्या होगी?
क्या वो इसका िवाब दे गी?

जितना ज्यादा मैं अपनी योिना को व्यावहाररक रूप दे ने के बारे में सोचता रहा, उतना ही ज्यादा मैं आंदोसलत
होता गया। मेरी हालत ऐसी थी कक उस रात मैं सो भी ना सका, बस उससे पाजिदटव ररयेक्शन समलने के बारे में
सोचता रहा।

अगली रात मैं प्लान के मत


ु ाबबक टीवी के आगे था। वो आई, िैसी मैं उम्मीद लगाए बैठा था कक वो आएगी
और मझ
ु े वहााँ मौिद दे खकर शायद थोड़ी उत्तेजित होगी। मगर वो चेहरे से कुछ भी उत्तेिना या खुशी ददखा नहीं
रही थी। इससे मझ
ु े ननराशा हुई और अपनी योिना को लेकर मैं कफर से सोचने लगा कक मझ ु े वो करना चादहए
या नहीं? मगर ननराश होने के बाविद मैंने प्लान को अमल में लाने का फैसला ककया। हमेशा की तरह हम कुछ
समय तक टीवी दे खते रहे ।

अंत मैं वो बोली- “मझ


ु े सोना चादहए बेटा। रात बहुत हो गई है …”

मैं- “ओके…” मैंने िबाब ददया और अपने सखे होंठों पर िल्दी से िीभ फेरी।

वो मेरी ओर नहीं दे ख रही थी, िब मैंने अपने होंठों पर िीभ फेरी। मैंने कफर से चार-पााँच वार ऐसे ही ककया
ताकी होंठ अच्छे से गीले हो िाएं। मैं होंठों से लार नहीं टपकाना चाहता था, मगर उन्हें इतना गीला कर लेना
चाहता था कक वो उस गीलेपन को, मेरे रस को महसस कर सके। उसके बाद मैंने खद
ु को उसकी प्रनतकिया के
सलए तैयार कर सलया।

मेरा ददल बड़े िोरों से धड़कनें लगा िब वो मेरे सोफे की ओर आई। मैं थोड़ा सा आगे िो झक
ु गया ताकी
उसको मेरे होंठों तक पहुाँचने में आसानी हो सके। मैं खुद को संयत करने के सलए मख
ु से सााँस लेने लगा जिसके
फलस्वरूप मेरे होंठ कुछ सख गये। मैंने िल्दी-िल्दी िीभ ननकालकर होंठों पर फेरी ताकी उन्हें कफर से गीला
कर सकाँ , बबल्कुल उसके चब
ुं न से पहले। मझ
ु े नहीं मालम उसने मझ
ु े ऐसा करते दे ख सलया था या नहीं?

िब मााँ के होंठ मेरे होंठों से छुए तो मेरी आाँखें बंद हो गई। मेरा चेहरा आवेश में िलते हुए लाल हो गया था।
मझ
ु े अपनी सााँस रोकनी पड़ी, क्योंकी मैं नहीं चाहता था कक मेरी भारी हो चुकी सााँस उसके चेहरे पर इतने िोर
से टकराए। होंठों के गीले होने से चुंबन की सनसनाहट बढ़ गई थी। यह वो पहले वाला आम सा, लगभग ना
मालम चलने वाला होंठों का स्पशल नहीं था। आि मैं हमारे होंठों के स्पशल को भली भााँनत महसस कर सकता था,
और मझ
ु े यकीन था उसने भी इसे महसस ककया था।
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मााँ धीरे से ‘गड
ु नाइट’ फुसफुसाई और अपने रूम में िाने के सलए मड़
ु गई। उसकी ओर से कोई स्पष्ट प्रनतकिया
निर नहीं आई थी हालााँकक मझ
ु े यकीन था कक वो अपने होंठों पर मेरा मख
ु रस लेकर गई थी। कुछ भी ऐसा
असाधारर् नहीं था जिस पर मैं उं गली रख सकता।

ऐसा लगता था िैसे हमारा वो चुंबन उसके सलए बाकी ददनों िैसा ही आम चुंबन था। कुछ भी फकल नहीं था। मैं
उसे अलग बनाना चाहता था, और उम्मीद लगाए बैठा था कक उसका ध्यान उस अंतर की ओर िाएगा, मगर
नहीं… ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अब ननराश होने की बारी मेरी थी। जितना मैं पहले आवेसशत था अब उतना ही
हताश हो गया था।

मैंने ककसी सकरात्मक या नकारात्मक प्रनतकिया की आशा की थी। अपने बेड पे लेटा हुआ मैं उस रात बहुत थका
हुआ, िज़्बाती तौर पर ननराश और हताश था। मैं ककसी नकारात्मक प्रनतकिया को आसानी से स्वीकार कर लेता,
मगर कोई भी प्रनतकिया ना समलने की जस्थनत के सलए मैं बबल्कुल भी तैयार नहीं था। उस रात िब मैं नींद के
सलए बेड पर करवटें बदल रहा था, तो मेरा ध्यान अपने लण्ड पर गया िो मेरे िोश से थोड़ा अकड़ा हुआ था
इसके बाविद कक बाद में मझ
ु े ननराशा हाथ लगी थी।

मेरी ननराशा अगले ददन भी मेरे साथ रही। ननराशा के साथ-साथ आत्मग्लानन और शमल का एहसास हो रहा था।
िो मैंने ककया था वो समाि, कुदरत, मन मयालदा के खखलाफ था, इससलए मेरे मन में ऐसा करने के सलए
पछतावे का एहसास भी हो रहा था। अगली रात िब हमारे ड्राइंग रूम में टीवी दे खने का टाइम हो गया तो मैं
लगभग नहीं िाने वाला था। मैं शायद अपने कमरे में ही रुकता, मगर ये बात कक मेरे न िाने से वो मेरे रूम
में आ सकती है । इससलये मैंने टीवी रूम िाने में ही भलाई समझी। अब मैंने िो धुन बनाई थी, उसका सामना
करने का वक़्त था।

उसके व्यवहार में कोई भी बदलाव ददखाई नहीं दे रहा था िो शायद एक अच्छी बात थी। उसकी कोई भी
प्रनतकिया ना दे खकर मझ
ु े बड़ी राहत हुई थी, ना की षपछली रात की तरह िब उसकी कोई भी प्रनतकिया ना
दे खकर मैं ननराश हो गया था। मझ ु े एहसास हुआ कक हमारी ददनचयाल में ककसी तब्दीली के सलए मैं अभी तैयार
नहीं था। मैंने अचानक महसस ककया कक रात को मााँ के साथ इकट्ठे समय बबताने से मझ
ु े भी खुशी समलती है ।
इस साथ से मााँ के द्वारा मेरी भी एक िरूरत परी होती थी, चाहे मनोवैज्ञाननक तौर पर ही सही।

मैंने हमारे चुंबन में थोड़ा सा बदलाव करके उनको थोड़ा ठोस बनाने की कोसशश की थी और मैं ऐसा बबना कोई
संकेत ददए या बबना कुछ िताए करने में सफल रहा था। मेरी शमल और आत्मग्लानन धीरे -धीरे इस राहत से
गायब होने लगी कक मैं बबना कोई कीमत चुकाए या बबना कोई सिा पाए साफ बच ननकला था।

हालााँकक मेरे वतालव में तब्दीली आ गई थी। मेरा उसको दे खने का निररया बदल गया था। उसे दे खते हुए मझु े
अब उतनी बेचैनी महसस नहीं हो रही थी। मैंने एक कदम और आगे बढ़ा ददया था और उसने मझ ु े ना कोसा था
था, ना ही कोई आपषत्त िताई थी। उस रात मााँ को ननहारने में मझ
ु े एक अलग ही आनंद प्राप्त हो रहा था। यह
बात िुदा थी कक मैं यकीन से नहीं कह सकता था कक िो कुछ हुआ था उसे उसकी कोई भनक भी लगी थी।

कफर से वही सब कुछ, हम बैठे टीवी दे ख रहे थे, उसने कहा- “बेटा, मैं चलती हाँ, रात बहुत हो गई है …”

9
इस वार मैंने अपने होंठ गीले नहीं ककए। चाहे मझ
ु े कोई नकारात्मक प्रनतकिया नहीं समली थी कफर भी मैंने रात
का तिब
ु ाल दोहराने की दहम्मत नहीं की। मैं आगे को होकर थोड़ा सा झक
ु गया और उसके चमने का इंतिार
करने लगा, ताकी मैं भी अपने रूम में िा सकाँ और उस सख
ु द मीठे एहसास में खुद को डुबो सकाँ जिसकी लहरें
मेरे जिश्म में घम रही थी।

उसके होंठ रोिाना की तरह मेरे होंठों से छुए जिसमें मेरे महसस करने के सलए कुछ भी खास नहीं था। मगर
मैंने कुछ महसस ककया, कुछ हल्का सा, अलग सा।

यह बबल्कुल हल्का सा था, लगभग ना महसस होने वाला। मेरे ददलो ददमाग में कोई संदेह नहीं था कक मैंने
उसके होंठों को हल्के से, बबल्कुल हल्के से ससकुड़ते महसस ककया था। िैसे हमारे होंठ ककसी के गाल पर चंब
ु न
लेते हुए ससकुड़ते हैं ठीक वैसे ही लेककन बहुत महीन से।

ये मेरी मााँ का होंठों से होंठों का स्पशल नहीं था बजल्क एक चुंबन था। यह पहली बार था िब मााँ के होंठों ने मेरे
होंठों पर कोई हलचल की थी। आम हालातों में , मैं इसे उसके होंठों का असमय ससकुड़ना मानकर रद्द कर दे ता,
मगर ये कुदरती तौर पर होने की विाय स्वैजच्छक ज्यादा लग रहा था। एक हल्का चंब
ु न होने के अलावा एक
हल्का सा, महीन सा दबाब भी था िो उसके होंठों ने मेरे होंठों पर लगाया था।

अगले ददन भर मैं बहुत परे शान रहा। मैं बस यही सोचे िा रहा था कक यह वास्तव में हुआ था या यह सब मेरी
कल्पना की उपि थी, क्योंकी मैं पहले से कुछ अच्छा होने की उम्मीद लगाए बैठा था। क्या वो भी मेरी तरह
हमारे चंब
ु न को और ज्यादा गहरा बनाना चाहती थी या कफर इसके उलट वो चंब
ु न को और गहरा होने से रोकने
की महि कोसशश कर रही थी, िैसे मेरे होंठों के गीलेपान ने िो एहसास हमारे चुंबन में भरा था वो उसको
रोकना चाहती होगी, जिससे होंठों को ससकोड़ने से वो शायद पक्का कर रही थी कक उसके होंठों का कम से कम
दहस्सा मेरे होंठों को छुए।

अपनी जिज्ञासा शांत करने के सलए िरूरी था कक मैं इसे एक बार कफर से महसस करता। मझ
ु े उसके साथ कल
रात िैसी जस्थनत में होना था और इस बार मैं हमारे शभ
ु राबत्र चुंबन की हर तफसील पर परा ध्यान दे ने वाला
था। मैं इस बात पर भी तकल षवतकल कर रहा था कक मझ
ु े अपने होंठ गीले करने चादहए या नहीं? मगर इससे
हालातों में बदलाव हो िाता। मझ
ु े कल ही की तरह आि भी अपने होंठ सखे रखने थे और कफर दे खना था कक
उसके होंठ क्या कमाल ददखाते हैं?

वो शाम और रात शरू


ु होने का समय और भी बेचैनी भरा था, मगर उतना बेचैनी भरा नहीं था जितना िब हम
टीवी दे ख रहे थे, तब था। िब मैं अपने शभ
ु राबत्र चुंबन का इंतिार कर रहा था और समय लग रह था िैसे थम
गया हो। वो इंतिार बहुत कष्टदाई था। मगर अंत में उसके िाने का समय हो गया और हमारे राबत्र षवदा के
उस चुंबन का भी।

मैं हमेशा की तरह आगे को झक


ु गया। मैंने अपनी आाँखें बंद कर लीं, ताकी मैं अपना परा ध्यान उस चंब
ु न पर
केंदित कर सकाँ । मैंने उसके होंठ अपने होंठों पर महसस ककए। मगर मैंने उसके होंठों का कोई भी दबाब अपने
होंठों पर महसस नहीं ककया, िैसा मैंने षपछली रात महसस ककया था। उसने अपने होंठ भी नहीं ससकोड़े िैसे
उसने षपछली दफा ककया था।

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मगर कफर भी कुछ अलग था, कुछ अंतर था। मेरा ऊपर का होंठ उसके बंद होंठों की गहराई में आसानी से
कफसल गया। िादहर था इस बार उसने अपने होंठ गीले ककए थे।

अब यह मात्र एक संिोग था या कफर उसने िानबझकर उन्हें गीला ककया था, मैं कुछ नहीं कह सकता था।
क्योंकी मैंने उसे अपने होंठ गीले करते नहीं दे खा था। मैंने उनका गीलापन तभी महसस ककया था िब उसने मेरे
होंठ छुए थे। मैं यह मानकर नहीं चल सकता था कक उसने ऐसा िानबझकर ककया था, चाहे उसने ऐसा िानबझ
कर ककया हो तो भी। मगर एक बात तय थी कक अगर उसने उन्हें िानबझ कर गीला ककया था तो इसका
मतलब वो भी हमारे राबत्र चुंबन को और ठोस बनाना चाहती थी, उसमें और ज्यादा गहराई चाहती थी, ठीक वैसे
ही िैसे मैंने कोसशश की थी, हमारे चुंबन को और गहरा बनाने की, उसमें और एहसास िगाने की।

मैं उसके होंठों की नमी अपने होंठों पर महसस कर सकता था बजल्क िब बाद में मैंने अपने होंठ चाटे तो उसका
स्वाद भी ले सकता था। मैं सोच रहा था कक क्या उसने भी मेरे होंठों का गीलापन ऐसे ही महसस ककया था और
क्या उसने भी उसका स्वाद चखा था िैसे मैंने उसका चखा था। क्या उसको भी मेरा मख
ु रस मीठा लगा था िैसे
उसका मख
ु रस मझ
ु े मीठा लगा था। मैं उसके िाने के काफी समय बाद तक अपने होंठों को चाटता रहा ताकी
चंब
ु न का वो स्वाद और सनसनाहट बनी रहे ।

मेरी मााँ ने मझ
ु े शभ
ु राबत्र के सलए नहीं चमा था। मेरी मााँ ने मझ
ु े अससलयत में चमा था चाहे बहुत हल्के से ही
सही। चाहे वो िानबझकर ककया था चाहे वो ससफल एक संिोग था। मेरी िांघों के बीच पत्थर की तरह कठोर
लण्ड को उस अंतर का पता नहीं था। उस रात मझ
ु े नींद बहुत दे र बाद आई क्योंकी मझ
ु े बरु ी तरह अकड़े लण्ड
के साथ सोना पड़ा था।

है रत की बात थी कक अगले ददन मझ ु े शमल और आत्मग्लानन का एहसास पहले की तल ु ना में बहुत कम हो रहा
था। मैंने अपनी सगी मााँ के कारर् हुई अपनी उत्तेिना को स्वीकार कर सलया था और उसके कारर् होने वाली
अपनी उत्तेिना को लेकर अब शांत था। अपनी मााँ के बारे में ऐसी भावनाएं रखना सही था… िब तक कक वो
ससफल मेरे ददमाग तक सीसमत थी।

हालााँकक हमारे बीच हानन रदहत मन को गद


ु गद
ु ाने वाला एक खेल चल रहा था, मगर अन्ततः यह एक खेल ही
था, मझ
ु े नहीं लगता था ये बहुत आगे तक बढ़े गा। आखखरकार वो मेरी मााँ थी। मैं उसके कारर् उत्तेजित हो
सकता था और शायद इसमें कुछ गलत नहीं था। मगर मैं उसके साथ वो सब नहीं कर सकता था, िो एक मदल
मेरी मााँ िैसी सद
ुं र, कामक
ु और मादकता से भरपर नारी के साथ करना चाहे गा। हमारा ररश्ता इसकी इिाित
नहीं दे ता था।

चाहे हम दोनों ने एक दसरे को गीले होंठों से चमा था, मगर ये हमारे बीच कुछ बदलने के सलए नाकाफी था।
अगर उसने भी अपने होंठ स्वेच्छा से गीले ककए थे तो हमने यह मान कर ऐसा ककया था कक दसरे को हमारी
मंशा की मालमात नहीं है, और हमने यह संभाषवत अस्वीकारता के तहत ककया था। मतलब अगर हम में से एक
ऐतराि िताता तो दसरा भोलेपन का नाटक करके साफ-साफ मक
ु र सकता था कक हमारे उन चब
ंु नों में उसने
कुछ भी िोड़ा है और वो ससफल मााँ बेटे के बीच साधारर् ‘गड
ु नाइट’ चुंबन हैं।

हम उस सीमा पे हल्का सा दबाब बना रहे थे मगर अससलयत में हम यह कभी कबल नहीं कर सकते थे कक हम
सीमा पर कोई दबाब डाल रहे थे। कुछ था तो िरूर मगर हम उस कुछ को ठीक से पढ़ नहीं पा रहे थे। और
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हम उस कुछ पर अमल तो बबल्कुल भी नहीं कर सकते थे। जिस पल हममे एक ‘उस कुछ’ पर अमल करता तो
दसरा खद-ब-खद
ु उससे भाग खड़ा होता। यही हमारी ननयनत थी।

मैंने अपने प्रयोग को कुछ और में षवकससत होने की उम्मीद नहीं की थी। यह हर तरह से एक हानन रदहत
प्रयोग था िो हमारे तन्हा ददलों को रात के अकेलेपन में थोड़ा गद
ु गद
ु ा सकता था, हममें थोड़ा िोश भर सकता
था, नसों में बहते ठं डे खन में थोड़ी गमी ला सकता था, मगर यह कुछ बड़ा होने की भसमका नहीं बन सकता
था। वो मेरी मााँ थी और मैं उसका बेटा था। कुदरत की ओर से मयालदा की रे खा खींची गई थी और वो रे खा कभी
भी पार नहीं की िा सकती थी… कभी भी नहीं।

मैं थोड़ा सा उदास और कुछ ननराश था इस सोच से कक उस रे खा को कभी पार नहीं ककया िा सकता। िरूर
हमारे पास एक दसरे को दे ने के सलए कुछ था, मगर हम वो दसरे को दे नहीं सकते थे। मैं बबना ककसी स्पष्ट
कारर् के खद
ु को हताश महसस कर रहा था और ददल पर इतना बोझ महसस हो रहा था कक अगले ददन मैं
टीवी दे खने भी नहीं गया।

एक बार कफर से मैं अपने रूम में ही रहा। अससलयत में , मैं उसका ध्यान और भी अपनी ओर खींचना चाहता
था, क्योंकी मझ
ु े यकीन था कक टीवी रूम में मेरी अनप
ु जस्थनत की ओर उसका ध्यान िाएगा और वो िरूर
कोसशश करे गी ददखाने की कक उसे हमारे रात के साथ की कमी महसस हो रही है । अससलयत में , मैं एक प्रमार्
के सलए तरस रहा था कक उसे भी हमारे साथ की बहुत िरूरत है ।

वो मझ
ु े दे खने आई, िैसी मैंने उम्मीद की थी कक वो आएगी, िैसे मेरा ददल चाहता था कक वो आए। मैं अपने
कंप्यटर पर काम नहीं कर रहा था, इससलए षपछली बार का बहाना नहीं बना सकता था। मैं बेड पर बैठा हुआ
था और सोच रहा था।

मााँ- “बेटा तम
ु ठीक तो हो?” उसने नरम स्वर में पछा।

मैं- “हां, मैं ठीक हाँ मााँ। बस थोड़ी थकावट सी महसस हो रही है …”

वो थोड़ी असमंिस में निर आ रही थी। मैं लेटा हुआ नहीं था िैसा कक मझ
ु े होना चादहए था, अगर मैं वाकई में
बहुत थका हुआ होता। मैं तो बस बेड पर आराम से बैठा हुआ था।

उसके चेहरे पर चचंता के बादल मंडराने लगे और मैं बता नहीं सकता था कक वो चचंता ककस षविय में कर रही
है ? मैं उसके हाव-भाव पढ़ने की कोसशश कर रहा था कक शायद मझ
ु े कुछ संकेत समल िाए। मगर मझ
ु े कुछ ना
समला।

मझ
ु े ऐसा लगा िैसे वो कुछ कहना चाहती थी मगर वो अल्फाि कहने के सलए वो खुद को तैयार ना कर सकी।
मैं भी कुछ कहना चाहता था मगर क्या कहाँ ये मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अंततः वो दरवािे की ओर मड़
ु ी
और बबना गड
ु नाइट बोले िाने लगी। उसका इस तरह बबना कुछ बोले िाना खद
ु में एक खास बात थी। मैं शायद
उसके साथ ज़्यादती कर रहा था। मैंने उसको इस समस्या से उबारने का फैसला ककया। मैंने खद
ु को भी इस
समस्या से बच ननकलने का मौका ददया।

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मैं- “अगर तम
ु थोड़ा सा समय दोगी तो मैं अभी आता हाँ। कफर समलकर टीवी दे खेंगे मााँ…”

हमारी दबु बधा, हमारा संकोच, हमारी शमल, अगर हम ये सब महसस करते थे तो इसे खतम करने और वापस
पहले वाले हालातों में लौटने का सबसे बदढ़या तरीका यही था कक हम सब कुछ भलकर ऐसे वतालव करते िैसे
कुछ हुआ ही ना हो।

मैं दे ख सकता था कक उसके कंधों से एक भारी बोझ उतर गया था क्योंकी वो एकदम से खखल उठी थी, मझ
ु े भी
एकदम से अच्छा महसस होने लगा। षपछली रात कुछ भी घदटत नहीं हुआ था। हमने कुछ भी नहीं ककया था,
और हमने गलत तो बबल्कुल भी कुछ नहीं ककया था।

हमने टीवी आन ककया। इस बार हमने एक दो षवियों पर हल्की-फुल्की बातें भी की। ककसी कारर् हमारे बीच
पहले के मक
ु ाबले ज्यादा हेल-मेल था। हम में कुछ दोस्ताना हो गया था। हालांकी हमारा राबत्र समलन छोटा था
मगर पहले के मक
ु ाबले ज्यादा अथलपर्ल था। हमने इसे एक दसरे को गड
ु नाइट बोलकर खतम ककया और एक
दसरे के होंठों पे हल्का सा चुंबन सलया- एक हल्का, सखा और न मालम पड़ने वाला चुंबन। उसके बाद हम दोनों
अपने-अपने कमरों में चले गये।

उसके बाद के आने वाले ददनों में मैंने उसके चुंबन के उस मीठे स्वाद को अपनी यादाश्त में तािा रखने की
बहुत कोसशश की। हमने अपनी रोिाना की जिंदगी वैसे ही चाल रखी, जिसमें हम इकट्ठे बैठकर टीवी दे खते,
कुछ बातचीत करते और कफर रात का अंत एक राबत्र चुंबन से करते- एक हल्के, सखे और न मालम चलने वाले
चंब
ु न से।

मैं इतना िरूर कहाँगा कक हमारे बीच गीले चुंबनों के पहले की तल


ु ना में अब हे ल-मेल बढ़ गया था। हमारे बीच
एक ऐसा संबध
ं षवकससत हो रहा था जिसने हमें और भी करीब ला ददया था। हम अब वास्तव में एक दसरे से
और एक दसरे के बारे में खुलकर ज्यादा बातचीत करने लगे थे। ऐसा लगता था िैसे उसके पास कहने के सलए
बहुत कुछ था, क्योंकी मैं बहुत दे र तक बैठा उसकी बातें सन
ु ता रहता िो आम तौर पर रोिमराल की जिंदगी की
साधारर् घटनायों पर होती थीं।

अब इस पड़ाव पर मैं दो चीिें िरूर बताना चाहाँगा। पहली तो यह कक बबना अपने षपता का ध्यान खींचे हमारे
सलए ये कैसे मम
ु ककन था, इतना समय एक साथ बैठ पाना? दसरा, अपनी ददनचयाल उसकी षपतािी के साथ
ददनचयाल से अलग रखना हमारे सलए कैसे मम
ु ककन था?

हमारा घर इंग्लीश के ‘य’ के आकर में बना हुआ है । मेरे षपतािी का बेडरूम लेफ्फट लेग के आखखरी कोने पे है ,
िबकी ककचेन राइट लेग के आखखरी कोने पे है । ककचेन के बाद ड्राइंग रूम है जिसमें हम टीवी दे खते हैं। ड्राइंग
रूम के बाद मेरा कमरा है । मेरे कमरे के बाद एक और कमरा है । उसके बाद षपतािी के साइड वाली लेफ्फट लेग
शरू
ु होती है , िहााँ एक कमरा है और उसके बाद मेरे माता-षपता का बेडरूम। मेरे षपतािी की साइड के काररडोर
में एक बड़ा शीशे का दरवािा था िो एक वरान्डे में खल
ु ता था, जिसके दसरे ससरे पर मेरी तरफ के काररडोर
और ककचेन के बीचो बीच था।

ददन के समय मााँ अपने काररडोर से उस शीशे का दरवािे का इश्तेमाल करके ककचेन में आती िाती थी।

13
रात के समय वरामदे के दरवािे बंद होते थे इससलए पहले उसे ककचेन से ड्राइंग रूम िाना पड़ता था और वहााँ
से काररडोर में िो मेरे रूम के सामने से गि
ु रता था। कफर मेरे रूम के साथ वाला कमरा, कफर दसरी तरफ का
कमरा और अंत में षपतािी का कमरा।

षपतािी के कमरे से ड्राइंग रूम की दरी काफी लंबी थी जिससे उनके सलए घर की इस साइड पर क्या हो रहा है ,
सन
ु पाना या दे ख पाना नामम
ु ककन था। हम कम आवाि में बबना उनको परे शान ककए टीवी दे ख सकते थे, या
बातचीत कर सकते थे, क्योंकी टीवी की आवाि कभी भी उन तक नहीं पहुाँच सकती थी और ना ही टीवी या
ककचेन की लाइट उनके सलए परे शानी का सबब बन सकती थी। इसके बाविद हम अपनी आवाि बबल्कुल धीमी
रखते थे, ताकी वो िाग ना सकें।

हमें दे खने का एक ही तरीका था कक वो खुद ड्राइंग रूम में चलकर आयें। मगर मेरे माता-षपता के पास उनकी
एक अपनी छोटी किि थी और साथ ही में चाय और काफी मेकर भी उनके पास था। इससलए िब वो खाने के
बाद एक बार अपने कमरे में चले िाते थे तो, उनको कभी भी इस ओर वापस आने की िरूरत नहीं पड़ती थी।

मैं सब
ु ह कालेि िाता था। कालेि से दोपहर को लौटता था और कफर रात को ट्यशन िाता था। िबकी मेरे
षपता सब
ु ह आठ से पााँच बिे तक काम करते थे। वो सब
ु ह छे बिे के करीब ननकलते थे, क्योंकी उनको थोड़ा दर
िाना पड़ता था। वो शाम को सात बिे के करीब लौट आते, खाना खाते, कुछ टाइम टीवी दे खते और लगभग नौ
बिे के करीब अपने रूम में चले िाते।

िब मैं ट्यशन से वापस आता, तब तक षपतािी सो चक


ु े होते। मैं नहा धोकर खाना खाता और कफर टीवी दे खने
बैठ िाता, जिसमें अब मेरी मााँ भी मेरा साथ ननभाने आ िाती। इससे मेरी मााँ को इतना समय समल िाता कक
उसकी ददनचयाल का एक दहस्सा षपतािी के साथ गि
ु रता और दसरा दहस्सा वो मेरे साथ टीवी दे खकर गि
ु ारती।
इस ददनचयाल से उसे ना तो षपतािी की चचंता रहती और ना ही िल्द सोने की।

िैसे-िैसे मैं और मेरी मााँ दोनों ज्यादा से ज्यादा समय एक साथ बबताने लगे, धीरे -धीरे हमारी आत्मीयता बढ़ने
लगी। कभी-कभी मााँ उसी सोफे पर बैठती जिस पर मैं बैठा होता, हालांकी वो दसरी तरफ के कोने पर बैठती।
यह ससफल समय की बात थी कक हममें से कोई एक कफर से हमारे चुंबनों में कुछ और िोड़ने की कोसशश करता।
अब सवाल यह था कक पहल कौन करे गा? और दसरा उसका िवाब कैसे दे गा?

एक बार वीकेंड पर मेरे षपतािी एक सेसमनार में दहस्सा लेने शहर से बाहर गये हुए थे। उनके िाने से हम एक
दसरे के साथ और भी खल ु कर पेश आ रहे थे। मैं एक नई कफल्म बािार से खरीद लाया। हम दोनों आराम से
बेकफकर होकर कफल्म दे ख रहे थे, क्योंकी आि उसको िाने की कोई िल्दी नहीं थी। हम दोनों उस रात और
रातों की तल
ु ना में बहुत दे र तक एक दसरे के साथ बैठे रहे । यहााँ तक कक ददन में खरीदी कफल्म खतम होने के
बाद भी हम टीवी पर एक दसरी कफल्म दे खने लगे। उस रात वाकई हम बहुत दे र तक ड्राइंग रूम में बैठे रहे।
अंत में खद
ु मैंन,े और मााँ ने कहा कक अब हमें सोना चादहए।

मैंने डी॰वी॰डी॰ प्लेयर से डी॰वी॰डी॰ ननकाली उसको उसके कवर में वापस डाला और कफर टीवी बंद कर ददया।
िबकी वो ककचेन में िठे बतलन ससंक में डालने लगी, ताकी सब
ु ह को उन्हें धो सके। अब िैसा कक मैं पहले ही
बता चक
ु ा हाँ कक हमारे घर के काररडोर ड्राइंग रूम से शरू
ु होते थे, सबसे पहले मेरे रूम के सामने से गि
ु रते थे,
उसके बाद दो गेस्टरूम और अंत में उसके बेडरूम पे िाकर खतम होता था।
14
मैंने ड्राइंग रूम का वरामदे में खल
ु ने वाला दरवािा बंद ककया िबकी उसने ककचेन और ड्राइंग रूम की लाइटें बंद
की। उसके बाद हम नीम अंधेरे में चलते हुए काररडोर में आ गये।

आम तौर पर हमारे राबत्र चब


ुं न के समय मैं सोफे पर बैठा थोड़ा आगे को झुकता था और वो मेरे सामने खड़ी
होकर नीचे झुक कर मेरे होंठों पर चुंबन दे ती थी। मगर उस ददन वो उस िगह होना था िहााँ काररडोर से वो
अपने रूम में चली िाती और मैं अपने रूम में , िो कक मेरे बेडरूम के सामने होना था।

हम दोनों मेरे बेडरूम के दरवािे के आगे एक दसरे को सभ


ु राबत्र बोलने के सलए रुक गये। अब हमें वो चुंबन हम
दोनों के एक दसरे के सामने खड़े होकर करना था, जिसमें कक उसे अपना चेहरा ऊपर को उठाना था िबकी मझ
ु े
अपना चेहरा नीचे को झुकाना था।

उस चुंबन की आत्मीयता और गहराई पहले चुंबनों के मक


ु ाबले खद
ु -ब-खुद बढ़ गई थी, रात के अंधेरे की
सरसराहट उसे रहस्यपर्ल बना रही थी। हम इतने करीब थे कक मैं उसके मम्मों को अपनी छाती के निदीक
महसस कर सकता था, यह पहली बार था िब हम ऐसे इतने करीब थे। मझ
ु े नहीं मालम कक उसके मम्मे वाकई
मझ
ु े छ रहे थे या नहीं? मगर वो मेरी पससलयों के बहुत करीब थे, बहुत-बहुत करीब। उसके मम्मे हैं ही इतने
बड़े-बड़े।

हम दोनों ने उस ददन काफी वक्त एक साथ गि ु ारा था, खब मिा ककया था, एक दसरे के साथ का बहुत आनंद
समला था। मन में आनंद की तरं गें फट रही थी और िो आत्मग्लानन मैंने षपछले गीले चंब
ु नों को लेकर महसस
की थी, वो परी तरह से गायब हो चुकी थी। माहौल की रोमांचचकता में तब और भी इिाफा हो गया िब उसने
अपना हाथ (असावधानी से) मेरे बाएं बाि पर सहारे के सलए रख ददया।

िब उसने ऊपर तक पहुाँचने के सलए खुद को ऊपर की ओर उठाया तो मैंने ननजश्चत तौर पे उसके भारी मम्मों
को अपनी छाती से रगड़ते महसस ककया। मैंने खद
ु को एकदम से उत्तेजित होते महसस ककया और कफर ना िाने
कैसे, खुद-ब-खुद मेरी िीभ बाहर ननकली और मेरे होंठों को परा गीला कर ददया, िब वो उसके होंठों को लगभग
छने वाले थे। वो मझ
ु े इतने अंधेरे में होंठ गीले करते नहीं दे ख पाई होगी।

िैसे ही हमारे होंठ एक दसरे से छुए, प्रनतकिया में खद


ु -ब-खुद उसका दसरा हाथ मेरे दसरे बाि पर चला गया
और इसे संकेत मानकर मेरे होंठों ने खद
ु -ब-खुद उसके होंठों पर हल्का सा दबाब बढ़ा ददया। यह एक छोटा सा
चंब
ु न था मगर लंबे समय तक अपना असर छोड़ने वाला था।

उसके होंठ भी नम थे। उसने उन्हें नम ककया था, िैसे मैंने अपने होंठ नम ककए थे। क्योंकी मैं उसके ऊपर झुका
हुआ था, इससलए िब हमारे होंठ आपस में समले और उन्होंने एक दसरे पर हल्का सा दवाब डाला तो दोनों की
नमी के कारर् उसका ऊपर का होंठ मेरे होंठों की गहराई में कफसल गया िबकी मेरा नीचे वाला होंठ उसके होंठों
की गहराई में कफसल गया। और सहिता से दोनों ने एक दसरे के होंठों को अपने होंठों में समेटे रखा।

मैंने उसका मख
ु रस चखा और वो बहुत ही मीठा था। मझ ु े यकीन था उसने भी मेरा मखु रस चखा था। िैसे ही
उसको एहसास हुआ कक हमारा शभु राबत्र का वो हल्का सा चंबु न एक असली चंब
ु न में तब्दील हो चक
ु ा है तो वो
एकदम परे शान हो उठी।
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उसके हाथों ने मझ
ु े धीरे से दर ककया और उसने अपना मख
ु मेरे मख
ु से दर हटा सलया। हमारा चंब
ु न थोड़ा
हड़बड़ी में खतम हुआ, वो धीरे से ‘गड
ु नाइट’ बद
ु बद
ु ाई और िल्दी-िल्दी अपने रूम को ननकल गई। मैं कम से
कम वहााँ दस समनट खड़ा रहा होऊाँगा कफर थोड़ा होश आने पर खुद को घसीटता अपने बेडरूम में गया और
िाकर अपने बेड पर लेट गया।

मेरे सलए यह स्वाभाषवक ही था कक मैं अगले ददन कुछ बरु ा महसस करते हुए िागता। हमने एक दसरे को ऐसे
चमा था िैसा हमारे ररश्ते में बबल्कुल भी स्वीकायल नहीं था और कफर यह बात कक वो लगभग वहााँ से भागते हुए
गई थी, से साबबत होता था कक हमने कुछ गलत ककया था। मझ
ु े समझ में नहीं आ रहा था कक हम एक दसरे
का सामना कैसे करें ग?

हम इसे एक बरु ा हादसा मानकर भल सकते थे और अपनी जिंदगी की ओर लौट सकते थे, मगर अससलयत में
यह कोई हादशा नहीं था। हमने इसे स्वेच्छा से ककया था इसमें कोई शक नहीं था।

1॰ मैंने वास्तव में अपनी सगी मााँ को चमा था और वो िानती थी कक मैंने उसे जिस तरह चमा था वैसे मैं उसे
चम नहीं सकता था।

2॰ यह बात कक वो लगभग वहााँ से भागती हुई गई थी, साबबत करती थी कक मेरा उसे चमना गलत था और वो
खुद यह िानती थी कक यह गलत है । इससलए उसने इस पर वहीं षवराम लगा ददया, इससे पहले कक हम इस
रास्ते पर और आगे बढ़ते।

मगर हमने इस समस्या से ननिात पाने का आसान तरीका चुना। हमने ऐसे ददखावा ककया िैसे कुछ हुआ ही
नहीं था। वैसे भी ऐसा कुछ कैसे घट सकता था? वो मेरी मााँ थी और मैं उसका बेटा। कुछ गलत नहीं घट
सकता था। िो भी पछतावा था, िो शमल थी वो ससफल हमारी चंचलता और शरारत की विह से थी।

मझ
ु े िल्द ही समझ में आ गया कक इंसानी ददमाग की यही कफतरत होती है कक वो ककसी गलती की विह से
होने वाली आत्मग्लानी को यही कहकर टाल दे ता है कक गलती की विह अवश्यंभावी थी। हमने एक सख
ु द,
आत्मीयता से भरपर शाम बबताई थी, इससलए यह स्वाभाषवक ही था हम एक दसरे को खद
ु के इतने निदीक
महसस कर रहे थे कक वो चुंबन स्वाभाषवक ही था। इसके इलावा इतना गहरा अंधेरा था कक हमें कुछ ददखाई भी
तो नहीं दे रहा था।

िब एक बार पछतावे की भावना ददल से ननकल गई और उस ‘शरारत’ को न्यायोचचत ठहरा ददया गया तो मेरे
सलए मााँ को नई रोशनी में दे खना बहुत मजु श्कल नहीं रह गया था। मैं वाकई में मााँ को एक नई रोशनी में दे ख
रहा था। मैं उसे ऐसे रूप में दे ख रहा था जिसकी ओर पहले कभी मेरा ध्यान ही नहीं गया था।

मैंने ध्यान ददया कक वो नये और आधनु नक कपड़ों की तल


ु ना में परु ाने कपड़ों में कहीं ज्यादा अच्छी लगती है । वो
नई और महाँगी स्कटल स की तल
ु ना में अपनी परु ानी फीकी पड़ चुकी िीन्स में कहीं ज्यादा अच्छी ददखती थी। वो
ब्लाउज के मक
ु ाबले टी-शटल में ज्यादा सद
ुं र लगती थी। उसके बाल चोटी में बाँधे ज्यादा अच्छे लगते थे ना कक
िब वो हे यर सलन से कोई स्टाइल बनवाकर आती थी। यहााँ जिस खास बबंद ु की ओर मैं इशारा करना चाहता हाँ
वो यह है कक वो मझ
ु े वास्तव में बहुत सद
ुं र निर आने लगी थी… एक सद
ुं र नारी की तरह।
16
मााँ कैसी ददखती है, मैं इसमें खासी ददलचस्पी लेने लगा। मेरी निरें चोरी-चोरी उसके बदन का मआ
ु ईना करने
लगीं, िैसे वो मझ
ु े सद
ुं र निर आने वाली ककसी सद
ुं र लड़की का करती। मझ
ु े मााँ को, उसके बदन और उसके
बदन की षवशेिताओं का इस तरह चोरी-चोरी अवलोकन करने में बहुत आनंद आने लगा। वो मझ ु े हर ददन
ज्यादा, और ज्यादा सद
ुं र ददखने लगी और मैं भी खद
ु को अक्सर उत्तेजित होते महसस करने लगा।

मााँ की तरफ से भी कुछ बदलाव दे खने को समल रहा था।

मैंने महसस ककया कक वो अब ज्यादा हाँसमख


ु हो गई थी। वो पहले की अपेक्षा ज्यादा मश्ु कुराती थी, उसकी चाल
में कुछ ज्यादा लचक आ गई थी, और तो और मैंने उसे कई बार कुछ गन
ु गन
ु ाते भी सन
ु ा था। उसके स्वभाव में
हमारी ‘उस मिे की रात’ के बाद ननजश्चत तौर पर बदलाव आ गया था। चाहे उसने उस रात मझ
ु े दर हटा ददया
था और िो कुछ हमारे बीच हो रहा था उसे रोक ददया था, इसके बाविद हमारे बीच घननष्टता पहले के मक
ु ाबले
बढ़ गई थी।

हम एक दसरे के निदीक आ गये थे- अध्याजत्मक दृजष्ट से भी और शारीररक दृजष्ट से भी। वो मझ


ु े अच्छी
लगने लगी थी और मैंने उसे एक दो मौकों पर बोला भी था कक वो बहुत अच्छी लग रही है । उसने भी दो तीन
बार मेरी प्रशंसा की थी, मतलब एक तरह से मझ
ु े षवश्वास ददलाया था कक हमारे बीच िो कुछ भी हो रहा था वो
दोनों ओर से था ना कक ससफल मेरी ओर से। कम से कम मेरी सोचकर अनस
ु ार तो ऐसा ही था, मैं परा ददन मााँ
के खयालों में ही गम
ु रहने लगा था।

एक ददन उमंग में मैंने उसके सलए चाकलेट भी खरीदे । मैंने उसके मम्मे दे खने के हर मौके का फायदा उठाया।
उसके मम्मे इतने बदढ़या, इतने बड़े-बड़े और इतने सद
ुं र थे कक मेरा मन उनकी प्रशंसा से भर उठता। हो सकता
है इस बात का तालकु इस बात से हो कक कभी उनपर मेरा हक था मगर वो थे बहुत सद
ंु र। मैं नहीं िानता
उसका ध्यान मेरी निर पर गया कक नहीं? मगर अगर उसने ध्यान ददया था तो उसने मेरी तान्क झााँक को
स्वीकार कर सलया था और इसकी आदी हो गई थी।

मेरा ध्यान उसकी पीठ पर भी गया, िब भी वो मझु से षवपरीत ददशा की ओर मख


ु ककए होती। उसकी पीठ बहुत
ही सदंु र थी। उसकी गाण्ड का आकर बहुत ददलकश था, उभरी हुई और गोल मटोल, बहुत ही मादक थी। और
उसे उस मादक गाण्ड का इश्तेमाल करना भी खब आता था। उसकी चाल में ऐसी कामक
ु सी लचक थी कक मैं
अक्सर उससे सम्मोदहत हो िाता था।

एक ददन मझ
ु े दे खने का अच्छा मौका समला, मेरा मतलब परी तरह खुलकर उसका चेहरा दे खने का मौका। वो
कुछ कर रही थी और उसकी आाँखें कहीं और िमी हुई थीं, इस तरह से कक वो मझु े अपनी ओर घरते नहीं दे ख
सकती थी। मैंने उसका चेहरा, उसके गाल, उसके होंठ और उसकी ठोड़ी दे खी और मेरा मन उसकी सद
ुं रता से
मोदहत हो उठा। मैंने ध्यान ददया कक मााँ के होंठ बड़ी खबसरती से गढ़े हुए थे िो अपने आप में बहुत मादक थे।
उन्हें दे खकर चमने का मन होता था।

इनसे हमारे चुंबनों को लेकर मेरी भावनाएं और भी प्रगाढ़ हो गई थीं, िब मेरे ददल में यह खयाल आया कक
हमारे राबत्र चंब
ु नों के समय यही वो होंठ थे जिन्हें मेरे होंठों ने स्पशल ककया था। वो याद आते ही माँह
ु में पानी आ
गया।
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मैंने इस बात पर भी ध्यान ददया कक वो बहुत प्यारी, बहुत आकिलक है । वो अक्सर कुछ न कुछ ऐसा करती थी
कक मैं असभभत हो उठता। ककचेन में कुछ गलत हो िाने पर जिस तरह वो मह ाँु फुलाती थी, िब कभी ककसी
काम में व्यस्त होने पर फोन की घंटी बिती थी और उसकी त्योररयां चढ़ िाती थीं, िब वो बगीचे में ककसी
फल को दे खकर मश्ु कुराती थी।

मझु े उसमें एक बहुत ही प्यारी और बहुत ही सद


ंु र नारी निर आने लगी थी। जितना ज्यादा मेरी उसमें
ददलचस्पी बढ़ती गई, उतना ही ज्यादा मैं उसके प्रेम में पागल होता गया। ‘पागल’ यही वो लफ्फि है िो मैं
समझता हाँ मेरी हालत को सही बयान कर सकता है । मगर मैं नहीं िानता था कक उसकी भावनाएं कैसी थी या
वो क्या महसस करती थी?

यह िैसे अवश्यंभावी था कक मेरे षपता को कफर से शहर से बाहर िाना था और लगता था िैसे वो इसी मौके का
इंति
े ार कर रही थी। इस बार खुद उसने हमारे रात को दे खने के सलए कफल्म खरीदी थी और मैं उस कफल्म को
उसके साथ दे खने के सलए सहमत था।

हमने रात का खाना बाहर के एक रे स्तरााँ से माँगवाया और दोनों ने एक साथ उस खाने का बहुत आनंद सलया।
हम दोनों ने सोफे पर बैठकर कफल्म दे खी, जिसमें मैं सोफे की एक तरफ बैठा हुआ था और वो दसरी तरफ।
कफल्म खतम होने के बाद हमने टीवी पर थोड़ा समय कुछ और दे खा, अंत में हम टीवी दे ख-दे खकर थक गये।
अपने कमरों में िाने की हमें कोई िल्दबािी नहीं थी और ना ही सभ
ु राबत्र कहने की कोई िल्दबािी थी। हम
तभी उठे िब और बैठना मजु श्कल हो गया था और हमें उठना ही था।

उसने ककचेन की लाइटें बंद की और दरवािे चेक ककए कक वो सही से बंद हैं या नहीं? िबकी मैंने डी॰वी॰डी॰ से
कफल्म ननकालकर उसके कवर में डाली और ररमोट के साथ दसरी िगह रखी और सभी एलेकट्राननक उपकरर्ों
को बंद कर ददया। षपछली बार की अचानक और रूखी समाजप्त के बाविद, हमारे बीच कोई अटपटापन नहीं था।
सब कुछ सही, सहि और शांत लग रहा था।

िब हम ड्राइंग रूम से उठकर काररडोर की ओर चलने लगे तो मेरा ददल थोड़ी तेिी से धड़कने लगा। मैं आस
लगाए बैठ था कक शायद आि कफर से मझ
ु े हमारी और रातों के चंब
ु नों की तल
ु ना में थोड़ा गहरा, थोड़ा ठोस
चुंबन लेने को समलेगा।

हमारी षपछली रात िब मेरे षपता घर से बाहर गये हुए थे, बहुत आत्मीयता से गि ु री थी और हमारा सभु राबत्र
चुंबन हमारे आमतौर के चब
ुं नों से ज्यादा ठोस था। मैं उम्मीद कर रहा था कक अगर षपछली रात से ज्यादा नहीं
तो कम से कम हमारे चुंबन की गहराई उस रात जितनी तो होगी ही। मैं उम्मीद कर रहा था कक शायद मझ
ु े
उसके मख
ु रस का स्वाद चखने को समलेगा, या हो सकता है मझ
ु े उसके होंठों के अंदरूनी दहस्से को महसस करने
का मौका भी समल िाए।

चलते-चलते िब हम मेरे बेडरूम के दरवािे के आगे रुके, तो मेरे ददल की धड़कनें बहुत तेि हो गई थीं। मेरी
सांसें उखाड़ने लगी थीं। मगर हाए… उसने मझ
ु े कुछ करने का मौका नहीं ददया। वो मेरे ज्यादा निदीक भी नहीं
आई। मैंने ध्यान ददया उसने हमारे बीच एक खास दरी बनाए रखी थी।

18
मझ
ु े बहुत ननराशा हुई। उसने हमारे बीच आत्मीयता को एक हद तक रखने का िो फैसला ककया था, मझु े उसका
सम्मान करना था। यह मानते हुए कक हम दोनों में ऐसी आत्मीयता संभव नहीं हो सकती, उसके सलए अपने होंठ
सखे रखना आसान था ताकी वो चुंबन ससफल सभ
ु राबत्र की सभकामना मात्र होता। मगर कफर भी कम से कम मैं,
उसके साथ बबताई उस सख
ु द रात के आनंद की लहरों में खुद को तैरता महसस कर सकता था। कम से कम
हमारा साथ पहले की तल
ु ना में ज्यादा अथलपर्ल था, ज्यादा दोस्ताना हो गया था।

वो अपने कमरे में चली गई और मैं अपने।

सब कुछ सही था। पहले भी कुछ गलत घदटत नहीं हुआ था और ना ही अब हुआ था। यह बहुत बड़ी राहत थी
कक हमने शाम और रात का अचधकतर समय एक साथ बबताया था और मयालदा की रे खा ना तो छुई गई थी, ना
ही पार की गई थी और ना ही उसे समटाया गया था। और हमने परा समय खब मिा भी ककया था।

मैं राहत महसस कर रहा था और शांनत भी कक हमने समलकर परा समय अच्छे से बबताया था और इस बार उसे
ना तो मझ
ु े धकेलना पड़ा था और ना ही अपने रूम की ओर भागना पड़ा था। हमारा ररश्ता लगता था और भी
पररपक्व हो गया था, जिसने ठीक ऐसी ही षपछली रात को हुई गलनतयों से बहुत कुछ सीख सलया था, और साथ
ही उन गलनतयों को निरअंदाि करना भी सीख सलया था।

कोई पंिह बीस समनट बाद मेरे दरवािे पर दस्तक हुई।

“कम इन…” मैं बोला तो मााँ दरवािा खोला और अंदर दाखखल हुई। उसने कपड़े बदलकर नाइटी पहन ली थी और
तभी मझ
ु े एहसास हुआ कक हमारी रात सभन्न होने का एक कारर् यह भी था कक कफल्म दे खने के समय उसने
िीन्स और टी-शटल पहनी हुई थी ना कक नाइटी, िैसे वो आम तौर पर रात को हमारे इकट्ठे समय बबताने के
समय पहनती थी।

मैंने उसे उस नाइटी में पहले कभी नहीं दे खा था। वो दे खने में नई लग रही थी। वो उसके मम्मों पर बड़ी
खबसरती से झल रही थी। नाइटी की डोररयां उसे इतनी अच्छे से नहीं संभाले हुई थीं जितने अच्छे से उसके
मम्मे उसे संभाले हुए थे। उसके नंगे कंधे और अधलनग्न िांघें मेरी आाँखों के सामने अपने परे शबाब पर थीं और
उसकी पतली सी नाइटी से झांकता उसका गदराया बदन बहुत कामक
ु लग रह था।

“मझ
ु े नींद नहीं आ रही…” वो बोली- “मैंने सोचा क्यों ना तम्
ु हारे साथ कुछ और समय बबता लाँ …”

उसने कहा कक उसे नींद नहीं आ रही और मेरा ध्यान एकदम से उसकी उस बात पर चला गया जिसमें उसने
कहा था की कभी-कभी वो इतनी कामोत्तेजित होती है कक उसे नींद भी नहीं आती। क्या यह संभव था कक मेरी
मााँ उस समय उस पल कामोत्तेजित थी? मैं िानता था अगर वो कामोत्तेजित है तो ननजश्चत तौर पर मेरी विह
से है । यह षवचार कक मेरी मााँ मेरे कारर् इतनी कामोत्तेजित है कक वो सो भी नहीं सकती, ने मेरे अंदर िल रही
कामोत्तेिना की आग को और भड़का ददया।

मैं- “हााँ हााँ मााँ, क्यों नहीं। मझ


ु े बहुत अच्छा लगेगा। मझ
ु े खद
ु नींद नहीं आ रही…” मैंने उससे कहा।

“थैंक्स…” उसे मेरे िबाब से काफी खुशी महसस हुई लगती थी। वो मेरे कंप्यटर वाली कुसी पर बैठ गई।
19
मझ
ु े ऐसा लगा िैसे वो कुछ परे शान सी है । वो कुसी पे अपने कुल्हों से दाईं से बाईं और बाईं से दाईं ओर
घम
ु ाती, मेरे कमरे में इधर-उधर दे ख रही थी। मैं अपने बेड पर बैठा बस उसे दे ख रहा था। वो मझ
ु े नहीं दे ख रही
थी।

कुछ समय बाद उसने पछा “तम्


ु हें कफल्म कैसी लगी?” उसकी सााँस थोड़ी सी उखड़ी हुई थी।

मैं- “अच्छी थी। मझु े बहुत मिा आया…” मैंने उसे िबाब ददया। मझ ु े अच्छे से याद था वो सवाल हम कुछ समय
पहले ड्राइंग रूम में एक दसरे से पछ चक
ु े थे मगर कफर भी मैंने उससे पछा- “तम् ु हें कैसी लगी मााँ?”

िब भी वो कुछ बोलती तो उसकी सााँस उखड़ी हुई महसस होती। मेरे साथ भी अब यही समस्या थी, मगर उतनी
नहीं जितनी उसके साथ। िब हम वहााँ खामोशी से बैठे थे तब मझ
ु े ध्यान आया कक उसने मेरे साथ ससफल और
ज्यादा समय ही नहीं बबताना, बजल्क उसके मन में इसके इलावा और भी कुछ था। मगर तकलीफ इस बात की
थी इस ‘और कुछ’ का कोई शरु
ु आती बबंद ु नहीं था। मैं कोई गलत अंदािा लगाने का खतरा उठाना नहीं चाहता
था और वो अंदािा लगाने में मेरी मदद करने के सलए अपनी तरफ से कोई संकेत, कोई इशारा कर नहीं रही थी।

मैं कफर भी खुश था, वो वहााँ मेरे पास मौिद थी और मैं उसे उस नाइटी में दे ख पा रहा था। उसके मम्मे वाकई
में बहुत सद
ंु र थे। मैं उनसे अपनी निरें नहीं हटा पा रहा था। मझ
ु े ताज्िब
ु था अगर उसने ध्यान भी नहीं था
कक ककस तरह मेरी निरें उसके बदन की तारीफ कर रही थी। उसने अपनी निरें फशल पर िमाई हुई थीं और
अपने पााँव मोड़कर कुसी के नीचे रखे हुए थे।

एक बार िब खामोशी बदालशत से बाहर हो गई, वो कुसी से उठ खड़ी हो गई और मेरे कमरे की दीवार पर लगे
पोस्टसल को दे खने लगी और कफर वो मेरे बक्
ु ससेल्फ को दे खने लगी, जिसमें मेरी कुछ ककताबें पड़ी थीं। उसके
कमरे में टहलने से उसकी ओर से कुछ हवा मेरी तरफ आई और वो हवा अपने साथ एक बहुत मनमोहक सी
सग
ु ध
ं लेकर आई, जिसे मेरी इंदियों ने महसस ककया।

मैंने उससे उसी पल पछा- “मााँ, तम


ु ने आि नया पफ्फयम
ल लगाया है ?”

वो मेरी तरफ मड़
ु ी। उसके चेहरे पर मश्ु कुराहट थी और मैं नहीं िानता उस मश्ु कुराहट का कारर् क्या था?
लगता था िैसे मैं बस उसके बदन पर नये पफ्फयम
ल की पहचान करके ही उसे खश
ु कर सकता था।

मााँ- “हां, नया है । तम्


ु हें अच्छा लगा?” उसका सवाल स्वाभाषवक ही था।

मैं- “हााँ मााँ, बहुत अच्छा है …” मैंने उसे िवाब ददया।

“थैंक्स…” वो बोली। वो मेरे निदीक आई, िो मैं यकीन से कह सकता हाँ कक उसकी कोसशश थी कक मैं उसके
पफ्फयम
ल की महक अच्छे से ले सकाँ । वो मेरे बेड के साथ रखे लाइटस्टैंड के पास आई तो लाइटस्टैंड के टे बल लैंप
से ननकलती रोशनी से उसका जिश्म नहा उठा। तब िाकर मैंने ध्यान ददया कक उसके चेहरे पर हल्का सा शग
ं ार
लगा हुआ था।

20
अब िाकर मझ ु े एहसास हुआ कक वो अपने कमरे में खुद को तैयार करने के सलए गई थी, क्योंकी उसे मेरे कमरे
में आना था। उसने मेरे कमरे में आने की योिना पहले से बना रखी थी और आने से पहले उसने खद ु को थोड़ा
सा सिाया था, साँवारा था। चेतन या अचेतन मन से, उसने कोसशश की थी कक वो अच्छी लगे, िादहर था उसने
मझ
ु े अच्छी लगने सलए ककया था। और यह षवचार कक उसने इससलए शग
ं ार ककया था कक मझ
ु े सद
ुं र लग सके
बहुत-बहुत उत्तेिक था, कामक
ु था।

हमारे बीच कुछ घट रहा था। इतना मैं परे षवश्वास से कह सकता था कक हमारे बीच कुछ खास घट रहा था। मैं
उसके पफ्फयम
ल की सग
ु ध
ं निदीक से लेने के बहाने उसपर थोड़ा सा झुक सकता था और हो सकता था हमारे बीच
वो ‘कुछ खास’ होने का शरु
ु आती बबंद ु बन िाता। मगर मझ
ु े तब सझा िब वो लाइटस्टैंड से दर हट गई। मैंने
एक बेहतरीन मौका गाँवा ददया था, िो शायद उसने मझ
ु े खद
ु ददया था।

तब मैंने फैसला ककया कक मझ


ु े बेड से उठ िाना चादहए और उसके थोड़ा निदीक होने की कोसशश करनी चादहए,
सही में मझ
ु े ऐसा ही करना चादहए था। मैं िानता था अगर मैंने उसके निदीक िाने की कोसशश की तो कुछ
ना कुछ होना तय था। मझ
ु े एक बहाना चादहए था उठने का और बेड से उतरने का। तब हम जिश्मानी तौर पर
एक दसरे के करीब आ िाते और कौन िानता है तब क्या होता? मैं ससफल एक ही बहाना बना सकता था;
बाथरूम िाने का।

िब मैं बाथरूम से बाहर आया तो दे खा वो कफर से उसी कुसी पर बैठी हुई है और मेरे बाहर आने का इंति े ार
कर रही है । जिस अंदाि में वो बैठी थी, बड़ा ही कामक
ु था। वो कुसी के ककनारे पर बैठी हुई थी, उसके हाथ
कुसी को आगे से और िांघों के बाहर से पकड़े हुए थे, उसकी टााँगें सीधी तनी हुई थीं, और उसका जिश्म थोड़ा
सा आगे को झुका हुआ था। उसकी नाइटी उसके घट ु नों से थोड़ा सा ऊपर उठी हुई थी और उसकी िांघों का
काफी दहस्सा नग्न था, उसकी िांघें बहुत ही सद
ुं र ददख रही थीं।

मझ
ु े अपनी अलमारी तक िाने के सलए उसके पास से गि
ु रना था। िब मैं उसके पास से उसके पााँव के ऊपर से
गि
ु रा तो मैंने उसके पााँव एकदम से दहलते दे खे िैसे उसे मेरे इतने पास से गि
ु रने के कारर् मेरे द्वारा कुछ
करने की आशंका हो। शायद वो स्पशल पाना चाहती थी। उस समय वो बहुत ही मादक लग रही थी और मैं उसे
छने के सलए मरा िा रहा था।

मैं बेड पर उस स्थान पर बैठा िो उसकी कुसी के बबल्कुल निदीक था। अब हम एक दसरे के सामने बैठे थे,
और हमारे बीच दरी बहुत कम थी। मेरे पााँव लगभग उसके पााँव को छ रहे थे। हम दोनों वहााँ खामोशी से बैठे थे
क्योंकी हमारे पास कहने के सलए कुछ भी नहीं था। कहते भी तो आखखर क्या कहते? माहौल बहुत ही प्यारनम ु ा
था मगर हम एक दसरे से प्यार िता नहीं सकते थे।

मैं आगे बढ़कर उसका हाथ नहीं थाम सकता था। वो अपनी िगह से उठकर बेड पर मेरे साथ नहीं बैठ सकती
थी। हमारे दहलने डुलने पर िैसे यह एक बंधन लगा हुआ था, िो हमें वहााँ इस तरह बैठाए हुए था। हम पत्थर
की मनतलयों की तरह िड़वत थे और उम्मीद कर रहे थे कक कुछ हो और हमें इस बंधन से छुटकारा समल िाए।

अगर कुछ हो सकता था तो वो यही था कक वो कहती- “मझ


ु े अब चलना चादहए…”

21
मैं उसे िाने नहीं दे ना चाहता था और मझ
ु े यकीन था कक वो भी िाना नहीं चाहती है । मगर कहीं पर, मन के
ककसी अंधेरे कोने में एक आवाि हमें हमारे उस राबत्र साथ को वहीं खतम कर दे ने के सलए बार-बार आगाह कर
रही थी। उस माहौल में बहुत कुछ हो िाने की संभावना थी।

उसने ससफल इतना कहा था कक उसे अब सोने के सलए िाना चादहए मगर उसने अपनी िगह से उठने की कोई
कोसशश ना की, वो वैसे ही बैठी थी। तब मझ
ु े लगा कक उसने मझ
ु े एक छोटा सा अवसर ददया है ।

मैं- “मगर क्यों? तम


ु क्यों िाना चाहती हो मााँ?” िब मेरे माँह
ु से वो लफ़्ि ननकले तो मैं उसकी प्रनतकिया को
लेकर डरा हुआ था

मैं डर रहा था क्योंक मझ


ु े लग रहा था कक उसने मझ
ु े िो मौका ददया है वो अचेतन मन से ददया है, इससलए हो
सकता है वो मेरे लफ्फिो के पीछे नछपे मेरे मकसद को पढ़ ना पाए। मैं नहीं चाहता था कक वो िाने के सलए
सामने तकल दे कक वो थकी हुई है या उसे नींद आ रही है , या रात बहुत हो गई है । मैं उसे यह कहते हुए सन
ु ना
चाहता था कक वो इससलए िाना चाहती है, क्योंकी उसे डर था कक अगर वो वहााँ और ज्यादा दे र तक रुकी तो
कुछ ऐसा हो सकता था िो नहीं होना चादहए था।

मैं िानता था कक वो भी इस बात को महसस कर सकती है कक हमारे बीच कुछ होने की संभावना है , इससलए
वो यह बात अपने होंठों पर ला सकती थी। असल में खुद मझ
ु े कोई अंदािा नहीं था कक अगर वो वहााँ रुकी तो
क्या हो सकता था। हमारे ररश्ते की मयालदा इतनी ऊंची थी कक उस समय भी, उन हालातों में वहााँ इस तरह
उसके सामने बैठकर मैं ज्यादा से ज्यादा एक मधरु चब
ंु न की उम्मीद कर सकता था। हालांकी मेरी पैंट में मेरा
पत्थर की तरह तना हुआ लौड़ा इस बात की गवाही भर रहा था कक अगर वो ज्यादा दे र वहााँ रुकती तो क्या-क्या
हो सकता था।

मेरा लौड़ा तना हुआ था। मैं कामोउन्माद में िल रहा था। और मैं कबल करता हाँ कक मेरी इस हालत की विह
मेरी मााँ थी, मगर रोना भी इसी बात का था कक वो मेरी मााँ थी।

मैं िानता था कक उसकी हालत भी कुछ-कुछ मेरे िैसे ही है । हम एक दसरे के इतने पास-पास बैठे थे कक एक
दसरे के जिश्म की गमी को महसस कर सकते थे। मगर इस धरती पर िीते िी यह नामम
ु ककन था कक हम
अपनी उत्तेिना की उस हालत को एक दसरे के समने स्वीकार कर लेत,े या एक दसरे को इस बारे में कोई
इशारा कर सकते, या वास्तव में हम अपनी उत्तेिना को लेकर कुछ कर सकते।

उसने मेरी बात का िवाब बहुत दे र से ददया। वो अपने पैरों पर निर दटकाए फुसफुसाई- “मझ
ु े नहीं मालम…”

मझु े लगा कक अनक


ु ल पररजस्थनतयों में उसका िबाब एकदम सही था। उसने उन चन्द लफ़्जों में बहुत कुछ कह
ददया था।

मैं- “यहााँ पर हमारे ससवा और कोई नहीं है…” मैंने भी फुसफुसा कर कहा। मेरी बात सीधी सी थी, मगर उन
हालातों के मद्दे निर उनके मायने बहुत गहरे थे।

मााँ- “लेककन अगर मैं रुकती भी हाँ तो हम करें गे क्या?” उसका िबाव बहुत िल्दी और सहिता से आया।
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मगर मझ
ु े नहीं लगता था कक वास्तव में उन लफ़्जों का कोई खास मतलब भी था। मेरे पास लाखों सझ
ु ाव थे कक
उसके रुकने पर हम क्या-क्या कर सकते थे? मगर मेरे माँह
ु से ससफल इतना ही ननकला- “कुछ भी मााँ, िो तम्
ु हें
अच्छा लगे…”

हम वहााँ कुछ दे र बबना कुछ ककए ऐसे ही खामोशी से बैठे रहे । शायद यही था िो हम कर सकते थे, बस
खामोशी से बैठ सकते थे, यह सोचते हुए कक वास्तव में हम क्या-क्या कर सकते थे, बबना कुछ भी वैसा ककए।
अंततः खामोशी असह्य हो गई।

वो और ज्यादा दे र जस्थर नहीं बैठ सकती थी। वो एकदम से उठकर खड़ी हो गई। मैं उसके उस तरह एकदम से
उठ िाने से डर सा गया। मैं भी उसके साथ उठकर खड़ा हो गया, इसके फलस्वरूप अब हम एक दसरे के सामने
खड़े थे। हम एक दसरे के बेहद पास-पास खड़े थे। हम एक दसरे के सामने रात के गहन सन्नाटे में चेहरे के
सामने चेहरा ककए खड़े थे।

उसने पहला कदम उठाया, शायद वो इसके सलए मझ


ु से ज्यादा तैयार थी। वो आगे बढ़ी और उसने मझ
ु े आसलंगन
में ले सलया। मझ
ु े इसकी कतई उम्मीद नहीं थी, इससलए मैं उसके आसलंगन के सलए तैयार भी नहीं था। उसने
अपनी बाहें मेरी कमर के चगदल लप्पेट दी और तेिी से मझ
ु े अपने आसलंगन में कस सलया।

मैंने प्रनतकिया में ऐसा कुछ भी नहीं ककया जिसकी उसने उम्मीद की होगी। मैंने बहुत ही बेढंगे और अनउ
ु पयक्
ु त
तरीके से उसे अपने आसलंगन में लेने की कोसशश की। मगर इससे पहले कक मैं उसे अपने आसलंगन में ले पाता,
उसने तेिी से मझ
ु े छोड़ ददया और उतनी ही तेिी से वो वहााँ से ननकल गई।

उसने अपने अंदर िो भावनाओं का आवेश दबाया हुआ था, मैं उसे महसस कर सकता था। मझ ु े उम्मीद थी
उसने भी मेरे अंदर के उस आवेश को महसस ककया होगा। अगर इशारों की बात की िाए तो हम दोनों परी तरह
से तैयार थे, मगर हमारे कुछ करने पर मयालदा का परम प्रनतबंध लगा हुआ था। हम ससफल वोही कर सकते थे िो
हमारे ररश्ते में स्वीकायल था। पहले के हालातों के मद्दे निर एक चुंबन, अब के हालातों अनस
ु ार एक आसलंगन।

यह ससफल एक आसलंगन था, और कुछ भी नहीं। मगर उसके मम्मे मेरे सीने पर दो नरम, मल
ु ायम गमालहट सलए
िलते हुए ननशान छोड़ गये थे। उसके िाने के बहुत दे र बाद तक भी मैं उस आलौककक आनंद में डबता इतराता
रहा।

यह परी तरह से स्थाषपत हो चुका था कक कुछ ना कुछ घट रहा था और यह साफ था कक हम दोनों उस ‘कुछ
ना कुछ’ मैं दहस्सा ले रहे थे। मगर समस्या यह थी कक हम ज्यादा से ज्यादा एक दसरे के गीले होंठों को चम
सकते थे, या होंठों से होंठों पर हल्का सा दबाब डाल सकते थे, या आसलंगब
ं द्ध हो सकते थे। मैं उसकी पीठ को
अपने हाथों से सहला नहीं सकता था, िैसा मैं करना चाहता था। मैं उसके होंठों में होंठ डालकर उसे खुले ददल
से चम नहीं सकता था। मैं उसके मम्मों को इच्छानस
ु ार छ नहीं सकता था। मेरे हाथ उसके मम्मों को छने के
सलए तरसते थे मगर मैं ऐसा नहीं कर सकता था।

मैं सोच रहा था कक मेरी तरह उसके भी अरमान होंगे। जिस तरह मैं उसे छने के सलए तरसता था क्या वो भी
ऐसी इच्छाएं पाले बैठी थी? अब तक िो कुछ हमारे बीच हुआ हुआ था उस दहसाब से तो उसके भी मेरे िैसे
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कुछ अरमान होंगे। मगर मझु से ज्यादा शायद वो खुद के अरमानो को काब ककए हुए थी। आखखरकार मैं एक मदल
था, और एक मदल होने के नाते, मेरे सलए अपनी सगी मााँ के सलए कमनीय भावनाएं रखना कोई बहुत बड़ी बात
नहीं थी। मगर एक मााँ होने के नाते, उसके सलए अपने बेटे के सलए ऐसी भावनाएं रखना बहुत गलत बात थी।
मगर इसमें , कोई शक नहीं था कक हमारे बीच वो कमनीय भावनाएं मौिद थी

मैंने फैसला कर सलया था की अब मैं सीधे-सीधे हमारे बीच जिश्मानी संपकल बढ़ाने की कोसशश करूाँगा। उस रात
ने हमारे ररश्ते में और भी घननष्टता ला दी थी। हमारी अगली रात सबसे बदढ़या रही। हम एक दसरे से काफी
सहिता से बात कर रहे थे, बजल्क बीच-बीच में एक दसरे को छे ड़ भी रहे थे। ऐसा लगता था िैसे हमारे ररश्ते
ने नई उाँ चाई को छ सलया था। मगर इस सबके बाविद थोड़ी दरी थी िो शायद हमें अपने बीच बनाये रखनी
िरूरी थी।

अगली रात िब उसने कहा कक उसे िाना चादहए तो मैं भी उसके साथ िाने के सलए उठ खड़ा हुआ। मझ ु े उसके
बाद वहााँ अकेले बैठने का मन नहीं था। यह हमरी नई ददनचयाल बन चुकी थी और मैं इसका ज्यादा से ज्यादा
फायदा उठाना चाहता था।

हमने बषत्तयां बंद की, दरवािों को बंद ककया और काररडोर की ओर बढ़ गये। िब हम मेरे रूम के सामने पहुाँच
गये तो मैं उसे ‘गडु नाइट’ कहने के सलए रुक गया।

िब उसने दे खा कक मैं काररडोर के बीचो बीच रुक गया हाँ, उसने काररडोर के दसरे ससरे की ओर दे खा िहााँ से
काररडोर उसके बेडरूम की साइड को मड़
ु िाता था। मैं समझ गया कक वो यही दे खने की कोसशश कर रही थी
कक वहााँ कोई है तो नहीं? जिसका सीधा मतलब था कक वो यकीन बनाना चाहती थी कक कहीं मेरे षपतािी तो
वहााँ से हमें नहीं दे ख रहे थे। उसने मझ
ु े दरवािे की ओर धकेला, िादहर था वो काररडोर में ‘गड
ु नाइट’ नहीं कहना
चाहती थी।

ये अपने आप में बहुत रोमांचकारी था। काररडोर में ककसी द्वारा दे खे िाने से बचने के सलए उसे मेरी ओर
झुकना था। ऐसा करते वक़्त उसे ना चाहते हुए भी अपना जिश्म मेरे जिश्म पर धीरे से दबाना पड़ा। मैं उसे
अपनी बाहों में लेना चाहता था मगर मैं ऐसा कर ना सका। मैं उससे उस तरह आसलंगब
ं द्ध नहीं हो सकता था।
उसने अपना जिश्म ऊपर को उठाया ताकी उसके होंठ मेरे होंठों तक पहुाँच सके, जिससे असावधानी में उसने
अपने मम्मे मेरी छाती पर रगड़े और कफर मझ
ु े एक चब
ुं न ददया।

वो एक नम चंब
ु न था। हम दोनों ने अपने होंठ गीले ककए हुए थे बबना इस बात की परवाह ककए कक दसरा इस
पर ऐतराि िता सकता है । चुंबन में थोड़ा सा दबाब भी था। हमारी ददनचयाल अब एक सादे शभु राबत्र चुंबन की
िगह एक आसलंगब
ं द्ध शभ
ु राबत्र चुंबन में बदल चुकी थी। हमारा चुंबन अब सखे होंठों का नाममात्र का स्पशल ना
रहकर अब नम लबों का समलन था, जिसमें होंठों का होंठों पर हल्का सा दबाब भी होता था। उसके मम्मे मेरी
छाती पर बहुत सदुं र सा एहसास छोड़ गये थे और पकड़े िाने की संभावना का रोमांच अलग से था। हम कुछ
ऐसा कर रहे थे िो हमें नहीं करना चादहए था और वैसा करते हम आराम से पकड़े भी िा सकते थे। यह बहुत
ही रोमांचपर्ल था, एक से बढ़कर कई मायनों में ।

यह बात कक वो पकड़े िाने से बचने की कोसशश कर रही थी, उसके इस िडयंत्र में शासमल होने की खल
ु आ
े म
गवाही दे रही थी, कक यह एक तरफा नहीं था।
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यह बात कक वो मझ
ु से नछपकर गोपनीयता से चमना और आसलंगन करना चाहती थी, यह साबबत करती थी कक
उसकी समझ के अनस
ु ार हमारा वैसा करना शमलनाक था। और इस बात के बाविद, कक हमारा वो वतालव उसकी
निर में शमलनाक था, वो कफर भी मझ
ु े चमना चाहती थी, मझ
ु े आसलंगन करना चाहती थी, साबबत करता था कक
वो कुछ ऐसा कर रही थी िो उसे नहीं करना चादहए था। मतलब वो कुछ ऐसा ऐसा कर रही थी िो एक मााँ होने
के नाते उसे नहीं करना चादहए था। मगर वो, वो सब करने की ददली ख्वादहशमंद थी।

मैं कामोत्तेजित था। मेरे अंदािे से वो भी परी कामोत्तेजित थी। मझ


ु े उसके बदन का मेरे बदन से स्पशल बहुत
आनंदमयी लग रहा था। मगर, यहीं हमारे सलए एक बहुत बड़ी समस्या थी, वो हमारी हद थी, हम उसके आगे
नहीं बढ़ सकते थे। मैं आगे बढ़कर उसके जिश्म को अपनी हसरत अनस
ु ार छ नहीं सकता था। वो अपनी हसरत
मझ
ु पर िादहर नहीं कर सकती थी। हालााँकक सभी संकेत एक खास ददशा में इशारा कर रहे थे, मगर हमें ऐसे
ददखावा करना था कक वो ददशा है ही नहीं।

वो वहााँ मेरे सामने क्षर् भर के सलए रुकी थी, िैसे कुछ सोच रही थी। कफर उसने मेरे हाथ अपने हाथों में सलए
और उन्हें धीरे से दबाया और कफर वो वहााँ से चली गई। मैं वहााँ खड़ा रहा और उसे काररडोर के कोने से अपने
रूम की तरफ मड़
ु ते दे खता रहा। मैंने उसकी भावनाओं की प्रबलता महसस की थी। मझ
ु े बरु ा लग रहा था कक मैं
उसे अपने भावावेश की प्रचंडता नहीं ददखा सका। मैं उससे कहीं ज्यादा खद
ु पर काब ककए हुए था।

हमारे बीच कोई चक्कर चल रहा है , बबना शक कफर से यह बात उभरकर सामने आ गई थी। उसका मेरे हाथों
को थामना और उन्हें दबाना बहुत ही कामक
ु था। मैं कामना कर रहा था कक काश मैंने उसे आि ककसी अलग
प्रकार से चमा होता। मगर अब तो वो िा चुकी थी, सो मेरी कामना कामना ही रही। मैं बहुत ही उत्तेजित था।
मैंने खुद से वायदा ककया कक अगली बार मैं सब कुछ बेहतर तरीके से करने की कोसशश करूाँगा।

अगली रात, मैं टीवी दे खने ड्राइंग रूम में नहीं गया। मैं दे खना चाहता था कक वो मझ
ु े दे खने आती है या नहीं?
मैं दे खना चाहता था कक क्या वो हमारे बीच ककसी और जिश्मानी संपकल के सलए आती है , िैसे वो उस रात आई
थी। मैंने दरवािा थोड़ा सा खुला छोड़ ददया, एक संकेत के तौर पर कक मैं उसके आने की उम्मीद कर रहा हाँ।

मैंने ड्राइंग रूम से टीवी की आवाि सन


ु ी और बहुत ननराश हुआ, बजल्क बहुत हताश भी हो गया। हो सकता है
वो मेरे वहााँ आने की उम्मीद लगाए बैठी हो। मगर मैं उसका मेरे कमरे में आने का इंतिार कर रहा था। मझ
ु े
ऐसी हसरत करने के सलए बहुत बरु ा महसस हुआ। मगर वो हसरत परी ना होने पर और भी बरु ा महसस हुआ।
ऐसा नहीं हो सकता था। अभी रात होने की शरु
ु आत हुई थी, इतनी िल्दी उसका मेरे कमरे में आना और वो सब
होना जिसकी मैं आस लगाए बैठा था बहुत मजु श्कल था।

मझु े बहुत िल्द एहसास हो गया कक मैं बहुत ज्यादा उम्मीदे लगाए बैठा हाँ। यह इतना भी आसान नहीं था। वो
ससफल एक औरत नहीं थी जिसके साथ मैं इतनी जिद पकड़े बैठा था, वो मेरी मााँ थी। वो सीधे-सीधे वो सब नहीं
कर सकती थी, वो उन आम तरीकों से मझ
ु से पेश नहीं आ सकती थी, एक मााँ होने के नाते मेरे साथ उसका
व्यवहार वो आमतौर वाला नहीं हो सकता था, िो मेरे और ककसी पाराई नारी के बीच संभव होता। उसने खद
ु को
थोड़ी ढील िरूर दी थी, मगर वो ककसी भी सरत में इसके आगे नहीं बढ़ सकती थी।

मझ
ु े शांत होने मैं थोड़ा वक़्त लगा, मगर िब मैं एक बार शांत हो गया तो मैं ड्राइंग रूम में चला गया।
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मााँ- “तम
ु ठीक तो हो ना?” उसने चचंतत स्वर में पछा। वो मेरी ओर जिज्ञासापवलक दे ख रही थी, मेरा चेहरा मेरे
हाव-भाव पढ़ने की कोसशश कर रही थी। मगर अब मैं अपने िज़्बातों पर काब पा चुका था, और अब सब सही
था, अब सब सामने था, िैसे होना चादहए था।

यह पानी की तरह साफ था कक मैं अपनी मााँ को पाना चाहता था, उसे पाने के सलए तड़प रहा था। यह भी साफ
था कक मैं एक खतरनाक खेल खेल रहा था। जिस चीि को मैं हाससल करने पर तलु ा हुआ था वो मेरी हो ही
नहीं सकती थी। वो ककसी भी कीमत पर मेरी नहीं हो सकती थी। और इससे भी ददलचस्प बात यह थी कक मैं
चाहता था कक मााँ भी मझ
ु े उसी तरह चाहे जिस तरह मैं उसे चाहता था।

मैं चाहता था उसके अंदर भी मेरे सलए वैसे ही िज़्बात हों िैसे उसके सलए मेरे अंदर थे िो शायद उसके अंदर
नहीं थे। अससलयत में वो िज़्बात उसके अंदर थे, मझ
ु े परा यकीन था वो थे मगर वो उन्हें िादहर नहीं कर
सकती थी। यह हमारी दबु बधा थी, कशमकश थी। हमारे अंदर एक दसरे के सलए िज़्बात थे मगर हम उन्हें एक
दसरे पर िादहर नहीं कर सकते थे।

मैं िानना चाहता था कक उसके ददमाग में क्या चल रहा था? मैं िानना चाहता था कक वो क्या सोच रही है?
मझ
ु े परा आभास था मगर अंततः यह सारी अटकलबािी थी। मैं सब कुछ परी तरह साफ-साफ िानना चाहता
था। उससे िानने का कोई रास्ता नहीं था, इससलए हम दोनों चप
ु चाप टीवी दे खने लगे, हमेशा की तरह। मझ
ु े
जिज्ञासा हो रही थी कक शायद वो मझ
ु से ककसी इशारे या संकेत की उम्मीद कर रही होगी। मगर कफर यह भी
एक अंदािा ही था, कुछ भी स्पष्ट नहीं था।

मैं इस बार भी उसके साथ ही ड्राइंग रूम से ननकला। हम मेरे रूम के आगे खड़े थे और इस बार मैं मेरे कमरे के
दरवािे की ओर बढ़ा ताकी उसे षपछली बार की तरह मझ
ु े धकेलना ना पड़े। िब वो मेरी ओर बढ़ी और मेरे
निदीक आई तो मेरा बदन तनाव से कसने लगा। मैं नहीं िानता था मैं क्या चाहता हाँ क्योंकी मझ
ु े मालम नहीं
था मैं क्या पा सकता हाँ? मगर एक बात मैं परे षवश्वास से िानता था कक मैं पहले की तल
ु ना में ज्यादा पाना
चाहता था।

मैं बरु ी तरह से उत्तेजित था और मेरा लण्ड पत्थर के समान कठोर हो चक


ु ा था। मैंने ध्यान ददया वो आि वोही
वाला पफ्फयम
ल लगाए हुए है जिसकी मैंने उस ददन हमारे कमरे में तारीफ की थी। आि मैं इसे अच्छे से सघ

सकता था क्योंकी वो उस रात के मक
ु ाबले आि बबल्कुल मेरे पास खड़ी थी और वो महक मेरे अंदर कामोन्माद
की िल रही ज्वाला को हवा दे कर और भड़का रही थी।

मैं- “मााँ तम्


ु हारे बदन से ककतनी प्यारी सग
ु ध
ं आ रही है …” मैं धीरे से फुसफुसाया और अपने होंठ अच्छे से गीले
कर सलए। होंठ गीले करना अब हमारे सलए आम बात थी, या मैं कह सकता हाँ कक हम उससे काफी आगे बढ़
चुके थे। होंठों की नमी सभ
ु राबत्र के चुंबन को और भी बेहतर बना दे ती थी, और क्योंकी इस पर अब तक मााँ ने
कोई ऐतराि नहीं िताया था, इससलए मैंने इसे हमारी ददनचयाल का अननवायाल दहस्सा बना सलया था।

मैंने हमारे आसलंगन को और भी आत्मीय बनाने का फैसला कर सलया था। यह मााँ थी जिसने आसलंगन की
शरु
ु आत की थी इससलए मझ
ु े लगा कक उसे थोड़ा सा और ठोस बनाने में कोई हिल नहीं है ।

26
उसे अपनी बाहों में लेते ही उसके मम्मे मेरी छाती से सट गये और मेरे परे जिश्म में सनसननाट दौड़ गई। मझ
ु े
डर था वो पीछे हट िाएगी, मगर वो नहीं हटी। मझु े एहसास हुआ कक उसके होंठ भी परे नम थे, इससलए मेरा
ऊपर वाला होंठ उसके होंठों में कफसल गया और उसका ननचला होंठ मेरे होंठों में कफसल गया। मैंने उसे अपनी
बाहों में थामे हुए उसके होंठों पर हल्का सा दबाब बढ़ाया।

उसके बदन ने एक हल्का सा झटका खाया मगर उसने मझ


ु े हटाया नहीं और खद
ु भी पीछे नहीं हटी। िब उसके
बदन ने झटका खाया और उसका जिश्म थोड़ा सा दहला डुला तो मैंने भी उसके दहलने डुलने के दहसाब से खद

को व्यवजस्थत ककया। िब हम कफर से जस्थर हुए तो मैंने पाया कक मेरा लण्ड उसके जिश्म में चुभ रहा था।

हम िल्द ही िद
ु ा हो गये और वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। मैं नहीं िानता था कक मेरा खड़ा लण्ड उसके
जिश्म के ककस दहस्से पे चभ
ु ा था? मगर मैं इतना िरूर िानता था कक हमारे जिस्मों के बीच उस खास संपकल
को हम दोनों ने बखबी महसस ककया था। उस चुभन को महसस करने के बाद उसके मन में कोई शक बाकी ना
रहा होगा कक मैं उत्तेजित था, कक मैं उसकी विह से उत्तेजित था, कक मैं उसके द्वारा लगाई कामोन्माद की आग
में िल रहा था।

मैंने अपने िज़्बात उसपर िानबझकर िादहर नहीं ककए थे, यह बस अपने आप हो गया था। यह एक संयोग
था। मगर मेरा लण्ड बहुत कठोर था, बहुत ज्यादा कठोर और उसका इस ओर ध्यान िाना लाजिम था। उसके
िाने के बाद मैं समझ नहीं पा रहा था कक मझ
ु े ककस तरह महसस करना चादहए। क्या मझ
ु े इस बात से डरना
चादहए कक वो हमेशा-हमेशा के सलए हमारे बीच दीवार खड़ी कर दे गी, और हमारे उस दे र रातों के साथ का अंत
हो िाएगा? क्या मझ
ु े ननराश होना चादहए था कक मेरे अकड़े लण्ड को महसस करने के बाद भी उसने कोई
प्रनतकिया नहीं दी थी? या मझ
ु े खश
ु होना चादहए कक मेरे िज़्बात उसके सामने उिागर हो गये थे चाहे वो एक
संयोग ही था।

अगर मैं कुछ कर सकता था तो वो था आने वाले अगले ददन का इंति


े ार। मगर अगली रात वो मेरे साथ टीवी
दे खने के सलए ड्राइंग रूम में नहीं आई।

मैं उसका इंति


े ार पे इंति
े ार करता रहा, वो अब आई कक अब आई, मगर वो नहीं आई। मैं उसे दे खने उसके
कमरे में नहीं िा सकता था, क्योंकी वहााँ मेरे षपतािी सोए हुए थे। मझ
ु े लगा उसने फैसला कर सलया था कक
अब हमारे उस आनंदमयी, कामोन्माद से लबरे ि ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है, बजल्क मेरे उस
सद
ुं र, कामक
ु ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है ।

सभी संकेत साफ-साफ बता रहे थे कक हमारे बीच क्या चल रहा था? मगर िब मेरे लण्ड की चुभन उसे महसस
हुई होगी तो उसे खद
ु -ब-खुद एहसास हुआ होगा कक मेरी तमन्ना क्या थी, मेरी असभलािा क्या थी और मैं ककस
चीि की कामना कर रहा था? और यह एहसास होते ही उसने सब कुछ बंद कर दे ने का फैसला ककया था। मैं
बहुत उदास हो गया और मझ ु े बहुत हताशा भी हुई। मैंने िानबझकर अपना लण्ड उसके बदन पर नहीं दबाया
था, वो असावधानी में हो गया था मगर अब मझ ु े इसकी कीमत तो चकु ानी ही थी।

दसरी रात को मााँ टीवी दे खने आई िरूर, मगर वो ज्यादा दे र वहााँ ना रुकी। मझ
ु े मौका ना समला कक मैं उससे
पछ सकता कक वो षपछली रात क्यों नहीं आई? या कक सब कुछ ठीक था, या कफर क्या मैंने कुछ गलत ककया
था? वो इत्तेफाकन हो गया था मगर अब उसे िरूर हमारे उस खेल की भयावहता का एहसास हो गया होगा।
27
िब वो गई तो उसने मझ ु े चमा नहीं था। उसने ससफल िव
ु ानी ‘गड
ु नाइट’ कहा था। वो मझ
ु े बहुत स्पष्टता से इस
बात के संकेत दे रही थी कक हमारे बीच वो सब कुछ खतम हो चक ु ा था, जिसकी हमने शरु
ु आत की थी। उसने
िरूर महसस ककया होगा कक हम हद से आगे बढ़ते िा रहे थे और इससलए उसे इसे खतम कर दे ना चादहए था
इससे पहले कक बात हाथ से ननकल िाती जिसकी योिना मैं पहले ही बना चक
ु ा था। उसका दृजष्टकोर् बबल्कुल
सही था, इसीसलए उसने सब कुछ वहीं का वहीं खतम कर दे ना उचचत समझा था।

मैं बहुत ब्याकुल था, बहुत अशांत था। मझ


ु े एक गहन उदासी की अनभु नत हो रही थी िो हमारे आसपास और
हमारे बीच छाई हुई थी। ऐसा लगता था िैसे हमारे बीच कोई ररश्ता बनने से पहले ही टट गया था। िो कुछ
हुआ था उसकी हम आपस में चचाल तक नहीं कर सकते थे क्योंकी वास्तव में कुछ हुआ ही नहीं था।

हमारे बीच िो कुछ था उसके खो िाने के बाद मझ


ु े उसकी बहुत याद आ रही थी। मगर वो िो कुछ भी कर रही
थी मैंने उसे कबल कर सलया था। मझ
ु े एहसास हो गया था वो खुद ककन हालातों से गि
ु र रही है । अगर मैं
अपनी प्रनतकिया को दे खता और मेरी तकलीफ िैसे अपनी मााँ की तकलीफ को भी समझता तो मझ
ु े उसके सलए
भी बहुत दख
ु महसस हो रहा था।

अब ना तो वो नाम शभ
ु राबत्र चुंबन थे और ना ही वो सख
ु द एहसास करने वाले आसलंगन। उस रात के बाद भी
आने वाली रातों को वो मेरे साथ टीवी दे खने को आती मगर अच्छी रात गि
ु रने की उसकी शभ
ु कामना हमेशा
िुवानी होती।

िब अगली बार मेरे षपतािी शहर से बाहर गये, तो मझ


ु े नहीं मालम था। अगर हम पहले की ही भााँनत कोई
कफल्म दे खेंगे और दे र रात तक इकट्ठे समय ब्यतीत करें गे। मझ
ु े उम्मीद थी कक हम पहले की ही तरह समय
बबताएंग,े मगर मैंने खद
ु को बदले हालातों के अनस
ु ार छोटे से राबत्र समलन के साथ के सलए तैयार रखा।

वाकई में हमारे षपतािी के िाने के बाद उस रात हमारा साथ थोड़े समय के सलए ही था मगर ये मेन था जिसने
हमारे उस राबत्र के साथ को छोटा कर ददया था। मैंने वहााँ से िल्दी उठने और अपने कमरे में िाने का फैसला
कर सलया। मैं हमारे बीच की उस दरी को बदालश्त नहीं कर सकता था और वैसे भी कफल्म दे खने का मेरा
बबल्कुल भी मन नहीं था, क्योंकी पहले िैसा कुछ भी नहीं था या कम से कम िैसा मैं चाहता था वैसा कुछ भी
नहीं था।

मैंने उसे गड
ु नाइट बोला और उसे अकेले टीवी दे खने के सलए छोड़कर वहााँ से चल गया।

उसे िरूर मालम था कक मैं परे शान था। उसने महसस ककया होगा कक मैं खुश नहीं था।

मैं अपने कमरे में गया और दरवािा बंद कर ददया। अपने बेड पर लेटा मैं करवटें बदल रहा था। मेरा ददल िोरों
से धड़क उठा, िब उस रात कुछ समय बाद मैंने अपने दरवािे पर दस्तक सन
ु ी।

अपने दरवािे पर उस रात थोड़ी दे र बाद दस्तक सन


ु कर मेरा ददल िोरों से धड़क उठा। मैं लगभग भागकर
दरवािा खोलने गया। वो मेरे सामने वोही उस रात वाली नाइटी पहने वोही पफ्फयम
ल लगाए महकती हुई खड़ी थी,
उसने हल्का सा शग
ं ार ककया हुआ था और बहुत ही प्यारी लग रही थी।
28
उसने अपना हाथ आगे मेरी ओर बढ़ाया और कहा- “आओ बेटा टीवी दे खते हैं। इतनी भी क्या िल्दी सोने की?”

मैंने अपना हाथ उसके हाथ में ददया और वो मेरा हाथ थामे मझ
ु े वाषपस ड्राइंग रूम में ले गई। मैं इस अचानक
बदलाव से अत्यचधक खुश था, हालााँकक मैं नहीं िानता था इस सबका मतलब क्या है या वो चाहती क्या है ? हम
उसी सोफे पर बैठ टीवी पर कुछ दे खने लगे। मझ
ु े याद नहीं हम दे ख क्या रहे थे। मैं अपने षवचारों में खोया हुआ
हालातों में आए अचानक बदलाव के बारे में सोच रहा था।

हम कुछ दे र तक वहााँ बैठे रहे मगर िल्द ही हमने फैसला ककया कक अब सोना चादहए। हम दोनों एक साथ उठ
खड़े हुए, ड्राइंगरूम और रसोई की सभी बषत्तयां बंद की और काररडोर की ओर चल पड़े िहााँ मेरा कमरा था और
िहााँ ज्यादातर हम एक दसरे को सभ ु राबत्र की सभ
ु कामना करते थे। मेरा ददल दग
ु नी रफ़्तार से धड़क रहा था
और मेरा ददमाग हसरत पे हसरत ककए िा रहा था।

मैंने अपने िज़्बातों को दम घट


ु ने की हद तक दबाकर रखा हुआ था। नाम होंठों के सभ
ु राबत्र चुंबन या आसलंगन
के दोहराने को लेकर मैं परी तरह से आश्वस्त नहीं था। मझ
ु े अपनी भावनाओ को इस हद्द तक दबाना पड़ रहा
था कक मैं बेसध सा होता िा रहा था।

मगर िैसा सामने आया वो खुद अपनी भावनाओं को दबाए हुए थी। एक बार िब हम मेरे कमरे के दरवािे पर
पहुाँचे तो वो मेरी ओर बढ़ी। उसने अपनी बाहें मेरी गदलन में डालने के सलए ऊपर उठाई। मैंने अपनी बाहें उसकी
कमर पर लपेट दीं और उसे अपनी ओर खींचकर पर्ल आसलंगन में ले सलया। हमारी गदल ने आपस में सटी हुई थी,
हमारी छानतयां परे संपकल में थी और मेरी बाहें उसे थोड़े िोर से अपने आसलंगन में सलए हुए थी। मैं उसे कसकर
अपने से चचपटाये हुए था। उसने िरूर मेरे आसलंगन में मेरी नारािगी महसस की होगी।

***** *****24
िब हम इतनी िोर से आसलंगब
ं द्ध हो गये थे तो कुदरतन हमारे होंठों का समलना भी लािमी था। मैंने अपनी
िीभ अपने होंठों पर रगड़कर उन्हें अच्छे से गीला कर सलया। िैसे ही मैंने अपना ससर पीछे को खींचा ताकी
हमारे चेहरे आमने सामने हों, उसका मख
ु मेरी ओर आया और मेरा मख
ु उसकी ओर बढ़ गया। मैंने अपनी
भावनाएं बहुत दबाकर रखी थी मगर अब उन्हें उभरने का मौका दे ददया था। मैंने अपने होंठ मााँ के होंठों पर
रखे और उन्हें थोड़ा सा खोलकर उसके ननचले होंठ को अपने होंठों में ले सलया।

मैं नहीं िानता कैसे मैं उस अदभ


ु त एहसास को लफ़्जों में बयान करूं, वो एहसास िब मेरी मााँ ने मेरा ऊपर का
होंठ अपने होंठों में ले सलया और मझ
ु े हल्के से चमा। उसके होंठ गल
ु ाब की पंखुडड़यों की तरह नािुक थे। मैंने
उन्हें पहले ऐसे नहीं महसस ककया था। कफर उसने अपना मख
ु नीचे को ककया और मेरा ननचला होंठ अपने होंठों
में लेकर मझ
ु े कफर से चमा। उसके होंठ मेरे होंठों पर कफसलने लगे, वो अपने पीछे मीठे मख
ु रस की लकीर सी
छोड़ते िाते, क्योंकी मेरे होंठ उसके दााँतों को स्पशल कर रहे थे।

मैंने उसका ऊपर का होंठ अपने होंठों में भर सलया और उसपर अपने होंठ घमाते हुए उसे धीरे -धीरे चसने लगा,
उसके होंठ को अपने मख ु में सहलाने लगा। चुंबन इतना लंबा था कक हम एक दसरे की समठास को अच्छे से
चख सकते थे। हमारे जिसम खद
ु -ब-खद
ु और िोर से एक दसरे से सट गये थे। मैंने अपना अकड़ा लण्ड उसके
जिश्म पर दबाया, और इस बार मैंने यह िानबझ कर ककया था।
29
वो पीछे ना हटी। मगर उसने अपना जिश्म भी मेरे लण्ड पर प्रनतकिया में नहीं दबाया बहरहाल कम से कम वो
पीछे तो नहीं हटी थी।

मगर चुंबन को खतम तो होना ही था, िब हम अपनी भावनाएं खुलकर एक दसरे से बयान कर चक
ु े थे। उसने
अपना ससर मेरी छाती पर दटका ददया और मैं उसे नमी से बाहों में थामे खड़ा रहा। एक लंबी खामोशी छा गई
थी और हम दोनों एक दसरे को थामे खड़े थे।

उस खामोशी को मााँ ने तोड़ा- “ये मैं क्या कर रही हाँ?” वो फुसफुसाई। वो एक ऐसा सवाल था िो वो मझ
ु से
ज्यादा खद
ु से कर रही थी।

इससलए मैंने कोई िबाब नहीं ददया। असल मैं मेरे पास उस सवाल का कोई िबाब था ही नहीं। कफर से खामोशी
छा गई और कफर वो अलग हो गई। हम एक दसरे के सामने खड़े थे और हमारे बीच दरी बहुत कम थी। उसने
अपने हाथ ऊपर ककए और अपने बाल साँवारने लगी। मैं उसे अपने बाल साँवारते दे ख रहा था साथ ही मेरा ध्यान
उसके मम्मों पर था िो बाहें ऊपर होने के कारर् आगे को उभर आए थे। वो इतनी कामक
ु लग रही थी कक मैं
आगे बढ़कर उसे कफर से अपनी बाहों में भर लेना चाहता था। मगर मझ
ु े ककसी अंिान शजक्त ने रोक सलया, ऐसी
शजक्त जिसको शायद मैं कभी स्पष्ट ना कर सकाँ ।

उसने अपने बाल सही ककए और कफर उसने अपनी ननगाहें सही की। कफर उसने मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में
थामा और धीमे से मेरे होंठों पर चमा। उसने उस चंब
ु न को कुछ दे र तक खींचा और कफर मझ
ु े ‘गाडचगफ्फट’ कहा।
और कफर एकदम से वो वहााँ से चली गई।

वो वहााँ से एकदम से हड़बड़ा कर चली गई।

अंततः हम एक दसरे को खुलकर िता चुके थे, बता चुके थे कक हम एक दसरे से क्या चाहते हैं? और उसी
समय वो सवाल करके उसने यह भी िता ददया था कक हमारा ऐसा करना गलत था। उसका इस तरह अचानक
चले िाना इस बात का संकेत था कक ये ककतना गलत था। हमारी उस गहरी आत्मीयता के साथ-साथ
आत्मग्लानन की भावना भी मौिद थी और आत्मग्लानन की उस भावना की तीव्रता इतनी थी कक उसे वहााँ से
लगभग भागना पड़ा था।

हमारा पछतावे से बचने का एक ही तरीका था कक हम ऐसे ददखावा करते िैसे कुछ हुआ ही नहीं था, िैसे हम
हमेशा पहले करते आए थे, िब हमें वो आत्मग्लानन की भावना घेर लेती थी और मैं और मााँ ददखावा करते कक
कुछ भी गलत घदटत नहीं हुआ है । मगर इस बार कुछ ऐसा हुआ था जिसे हम अनदे खा नहीं कर सकते थे। मेरे
षपतािी अभी भी शहर से बाहर रहने वाले थे। हमारे पास एक और रात थी। मैं िानता था यह समय था कक
हम उस सवाल का सामना करते, या कफर सब कुछ बंद कर दे त।े यह संभव नहीं था कक हम उसी तरह अधर में
लटके रहते। हमें फैसला लेना था कक हम हमारे ररश्ते से क्या चाहते हैं?

मगर कैसे? कैसे मैं उसे अपना ददल खोलने को कहता? क्या मैं उसके पास िाता और उससे पछता कक मेरे
द्वारा लण्ड दबाने पर वो इस तरह भाग क्यों रही है? वो षवचार ही बेहदा था। मैं उसे ककसी भी प्रकार हमारे उस
ररश्ते को लेकर उसे अपनी मंशा िादहर करने के सलए नहीं कह सकता था। मैं ससफल नछप सकता था।
30
वहााँ कुछ दे र खड़ा रहने के पश्चात मैं अपने कमरे में चला गया। मैंने बत्ती बंद की और चादर लेकर बेड पर सोने
की कोसशश में करवटें बदलने लगा। मेरी आाँखों में नींद का कोई नामोननशान नहीं था मगर मैं िागना भी नहीं
चाहता था।

उस वक़्त रात काफी गि


ु र चुकी होगी िब मैंने दरवािे पर हल्की सी दस्तक सन
ु ी। पहले पहल तो मैंने ध्यान
नहीं ददया, मझ
ु े लगा मेरा वहम था मगर तीसरी बार दस्तक होने पर मझ
ु े िबाब दे ना पड़ा। मझ
ु े नहीं मालम था
कक मझ
ु े कमरे में अंधेरा ही रहने दे ना चादहए या बेड के साथ लगे साइड लैंप को िला दे ना चादहए। मैं उठ गया
और उसे बोला- “हां मााँ, आ िाओ…”

उसने धीरे से दरवािा खोला और धीरे से फुसफुसाई- “अभी तक िाग रहे हो?”

मैं- “हां मााँ, मैं िाग रहा हाँ। अंदर आ िाओ…” मझ


ु े लगा उन हालातों में लाइटें बंद रखना मन
ु ाससब नहीं था।
इसीसलए मैंने बेड की साइड स्टॅ ैै
ै ंड की लाइट िला दी।

वो एक गाउन पहने थी िो उसे ससर से पााँव तक ढके हुए था। ऐसा उसने आि पहली बार ककया था। मैं चाहकर
भी खुद को वश में ना रख सका और गाउन का बारीकी से मय ु ाना करने लगा। मगर मेरे हाथ ननराशा लगी।
उसने िानबझ कर वो गाउन पहना था जिसने उसका परा बदन ढक ददया था और मझ
ु े उसके चेहरे के ससवा
कुछ भी निर नहीं आ रहा था। मैं आश्चयलचककत था कक आखखर उसको ऐसा करने की क्या िरूरत थी? शायद
मेरे सलए उसमें एक गहन इशारा, एक िोरदार संदेश नछपा हुआ था।

उसने मेरी कंप्यटर वाली कुसी ली और उसपर थोड़े वक़्त के सलए बैठ गई। उसकी निरें उसके पााँवों पर िमी
हुई थी, वो उन अल्फािों को ढाँ ढ़ने का प्रयास कर रही थी जिनसे वो अपनी बात की शरु
ु आत कर सकती। मैं
चुपचाप उसे दे खे िा रहा था, इस षवचार से खौफिदा कक वो मझ ु े यही बताने आई थी कक हमें सब कुछ बंद
करना पड़ेगा।

वो खामोशी आसहनीय थी।

अंततः बहुत लंबे समय बाद, उसने खांसकर अपना गला साफ ककया और बोली- “क्या तम
ु मझ
ु से नाराि हो?”

मैं, असल में उसके सवाल से थोड़ा है रत में पड़ गया था और मैंने उसे िल्दी से िबाव ददया कक मैं उससे नाराि
नहीं था। मगर िवाब दे ने से पहले मैं सोचने के सलए एक पल रुका। मैं असमंिस में था कक वो यह क्यों सोच
रही है कक मैं उससे नाराि हाँ? िबकी मैं इस सारे घटनािम के समय यही सोच-सोचकर परे शान था कक वो
मझ
ु से नाराि होगी। आखखरकार वो मेरा लण्ड था िो उसके जिश्म पर चभ
ु ा था, जिसने मेरी उन कामक

भावनाओं को उिागर कर ददया था िो उसके सलए मेरे मन में थी। और इस पर भी वो मझ
ु से पछ रही थी कक
कहीं मैं उससे नाराि तो नहीं था िैसे उसने मेरे साथ कुछ बरु ा कुछ गलत ककया था।

आखखरकार मैं बोला- “नाराि? नहीं मााँ मैं तम


ु से बबल्कुल भी नाराि नहीं हाँ…” इसके साथ ही मैंने यह भी िोड़
ददया- “भला मैं तम
ु से नाराि क्यों होऊाँगा?”

31
मााँ- “मझ
ु े लगा, मझ
ु े लगा शायद…” उसने अपना वाक्य अधरा छोड़ ददया।

मैं उसकी परे शानी की विह समझ गया था। उसके मन में िरूर कुछ और भी था और मैं िानना चाहता था कक
वो क्या था? मैंने उसे उकसाया- “शायद क्या मााँ?”

वो कुछ पल सोचती रही और कफर एक गहरी सााँस लेकर टपक से बोली- “मझ
ु े लगा, िो कुछ हमारे बीच कुछ
समय पहले हुआ तम
ु उसको लेकर मझ
ु से नाराि होगे…”

मैं- “मगर मैं नाराि क्यों होऊाँगा?” मैं अभी भी असमंिस में था। िहााँ तक मैं िानता था उसमें हम दोनों की
रिामंदी शासमल थी।

मााँ- “मझ
ु े लगा शायद मैं हद से कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गई थी िब हमने गड
ु नाइट कहा था…”

मैंने उसके अंदर गहराई में झााँकने की कोसशश की। वो ससफल अपने बतालव के बारे में सोच रही थी। उसे खुद से
कुछ गलत हो िाने का भय सता रहा था। मझ
ु े लगा वो मेरे लण्ड की अपने बदन पर चभ
ु न के बारे में सोच भी
नहीं रही थी, ना ही इस बात के बारे में कक मैंने भी उसे उतनी ही तमन्ना से चमा था, जितनी तमन्ना से उसने
मझ
ु े। वो ससफल अपने चमने के बारे में सोच रही थी, िैसे ये सब परी तरह से एकतरफा था, िैसे हमारे प्रेम
संबध
ं में ससफल वोही दहस्सा ले रही थी।

मैं- “क्या मतलब कक तम


ु हद से आगे बढ़ गई थी…” मैंने िानबझकर अंिान बनते हुए पछा।

मेरे सलए यह बात बहुत राहत दे ने वाली थी कक वो खद ु को कसरवार ठहरा रही थी और मझ ु पर कोई दोि नहीं
मढ़ रही थी। मझु े लगा जस्थनत मेरे ननयन्त्रर् में है क्योंकी वो रक्षात्मक मि
ु ा में थी, िबकी मझ
ु े अब डरने की
कोई िरूरत नहीं थी, िैसा मैं पहले सोचे बैठा था।

वो दबु बधा में थी। मझ


ु े अच्छी तरह से मालम था वो ककस बारे में बात कर रही है मगर मैं उसके मख
ु से सन
ु ना
चाहता था कक उसका इशारा ककस ओर है?

वो कुछ दे र तक अपने िवाब के बारे में सोचती रही। अचानक से वो बहुत पस्त और थकी हुई निर आने लगी।
वो उस कुसी पर चुपचाप बैठी, अपने पांव को दे खे िा रही थी और उसके हाथ दोनों बगलों से कुसी को कसकर
पकड़े हुए थे।

खामोशी के वो कुछ पल कुछ घंटों के बराबर थे, उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मेरी ओर दे खा- “क्या यह
संभव है कक तम
ु वाकई में नहीं िानते कक मैं ककस बारे में बात कर रही हाँ?”

मैंने उसे दे खा और वो मझ
ु े दे ख रही थी। उसकी आाँखें में बहुत गंभीरता थी। बजल्क मझ
ु े उसकी आाँखों में एक
अंिाना डर भी निर आया। उसे डर था कक वो उस बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है, िबकक मैं इस
बात से अंिान था कक हमारे बीच क्या चल रहा है? दसरे लफ़्जों में कदहए तो, वो उस मद्
ु दे को तल दे रही थी
जिसे छे ड़ने की उसे कोई आवश्यकता नहीं थी। मैं दे ख सकता था कक उसे अपनी सांसों पर काब रखने में
ददक्कत हो रही थी।
32
मैं उस सवाल का िवाब नहीं दे ना चाहता था। मगर अब िब उसने सवाल पछा था तो मझ
ु े िवाब दे ना ही था-
“मैं िानता हाँ तम
ु ककस बारे में बात कर रही हो?” मैंने बबना कुछ और िोड़े बात को वहीं तक सीसमत रखा।

वो चुपचाप बैठी थी, बस सोचती िा रही थी। उसके माथे की गहरी सशकन बता रही थी कक वो ककतनी गहराई से
सोच रही थी। वो ककसी षवचार को िााँच रही थी मगर उसे कह नहीं पा रही थी। वो उसे कहने के सही लफ़्जों
को ढाँ ढ़ने की कोसशश कर रही थी। आखखरकार, उसने एक गहरी सााँस ली ताकी अपने ददल की धड़कनों को काब
कर सके और चेहरे पर अपार गंभीरता सलए मझ
ु े पछा- “तो बताओ मैं ककस बारे में बात कर रही थी?”

उसने सीधे-सीधे मझ
ु े मौका ददया था कक मैं सब कुछ खल
ु े में ले आता। अब वक़्त आ गया था कक िो भी हमारे
बीच चल रहा था उसपर खल ु कर बात की िाए क्योंकी उसने बहुत साफ-साफ पछा था कक हमारे बीच चल क्या
रहा था। मझ
ु े कुछ समय लगा एक उपयक्
ु त िवाब सोचने के सलए, और िब मैंने अपना िवाब सोच सलया तो
उसकी आाँखों में आाँखें डालकर दे खा और कहा- “बात परी तरह से साफ है कक हम दोनों में से कोई भी पहल नहीं
करना चाहता…”

मैंने दे खा उसके चेहरे पर एक रं ग आ रहा था और दसरा िा रहा था, और कफर वो कुछ नामलल हो गई। हालााँकक
मैंने बहुत साफ-साफ इशारा कर ददया था कक क्या चल रहा है । वो प्रत्यक्ष बात परी साफ और सीधे लफ़्जों में
सन
ु ना चाहती थी ना कक अननजश्चत लफ़्जों में कक मैं ककस बारे में बात कर रहा हाँ।

उसकी प्रनतकिया स्पष्ट और मेरी उम्मीद के मत


ु ाबबक ही थी- “क्या मतलब तम्
ु हारा? ककस बात के सलए पहल?”

मैं बेदहचक साफ-साफ लफ़्जों में बयान कर सकता था मगर हमारे बीच िो चल रहा था उसके साथ एक ऐसा
गहरा कलंक िड़ ु ा हुआ था, वो इतना शमलशार कर दे ने वाला था कक उस पल भी िब सब कुछ खल ु े में आ चक
ु ा
था, हम उसे स्वीकार करने से कतरा रहे थे। इतना ही नहीं कक हममें से कोई भी पहला कदम नहीं उठाना
चाहता था बजल्क हममें से कोई भी यह भी स्वीकार नहीं करना चाहता था कक ककस बात के सलए पहल करने की
िरूरत थी।

कमरे में छाई गंभीरता की प्रबलता अषवश्वसनीय थी। वो अपनी उखड़ी सांसों पर काब पाने के सलए अपने मख

से सााँस ले रही थी। मेरे ददल की धड़कनें भी बेकाब हो रही थी, िब मैं िवाब के सलए उपयक्
ु त लफ़्जों का चुनाब
कर रहा था। मेरी नसों में खन इतनी तेिी से दौड़ रहा था कक मेरे सारे षवचार भटक रहे थे। मैं िानता था वो
समय एकदम उपयक्
ु त था, मैं िानता था कक हम दोनों हर बात से परी तरह अवगत थे, मैं िानता था कक
हममें से ककसी एक को मयालदा की उस लक्षमर् रे खा को पार करना था, मगर यह करना कैसे था, यह एक
समस्या थी।

उसके सवाल का िवाब दे ने की विाय मैंने उसके सामने अपना एक षवचार रखा- “तम
ु िानती हो मााँ िब हम
दोनों इस बारे में बात नहीं करते थे, तो सब कुछ ककतना आसान था, कोई भी परे शानी नहीं थी…”

उसने राहत की लंबी सांस ली और उसके चेहरे पर मश्ु कुराहट छा गई। मैंने महसस ककया कक उसकी वो
मश्ु कुराहट उन सब मश्ु कुराहट से ज्यादा प्यारी थी जितनी मैंने आि तक ककसी भी औरत के चेहरे पर दे खी थी।

33
अपना बदन ढीला छोड़ते हुए उसने मझ
ु े िवाब ददया- “हाँ, तम्
ु हारी इस बात से मैं परी तरह सहमत हाँ…”

मैंने उसके सदुं र मख


ु ड़े और तराशे हुए होंठों को दे खा। वो बहुत मोहक लग रही थी हालााँकक उसका बदन परी
तरह से ढाँ का हुआ था। एक बात तो पक्की थी कक हमारे बीच बफल की वो दीवार षपघल चुकी थी। हमारे बीच िो
कुछ चल रहा था उसपर अप्रत्यासशत रूप से हम दोनों सहमत थे और हम दोनों िानते थे कक हम अपररचचत
और वजिलत क्षेत्र में दाखखल हो चुके हैं।

मैं बहुत ही उत्तेजित था। मेरा लण्ड इतना अकड़ा हुआ था कक मझ


ु े ददल महसस हो रहा था। मैं उसे अपनी बाहों
में भर लेना चाहता था और उसके जिश्म को अपने जिश्म के साथ दबा हुआ महसस करना चाहता था। मैं उसके
मम्मों को अपनी छाती पर रगड़ते महसस करना चाहता था। मैं अपने हाथों से उसकी पीठ सहलाना चाहता था,
उसकी गाण्ड मसलना चाहता था। मैं उसके होंठों में होंठ डालकर खुले ददल से चमना चाहता था और चाहता था
कक वो भी मझ
ु े उतनी ही हसरत से खुलकर चमे।

हम वहााँ चुपचाप बैठे थे, मेरी निर उसपर िमी हुई थी और उसकी निर फशल पर िमी हुई थी। मेरा ककतना
मन था कक मैं िान सकता उसके ददमाग में उस वक़्त क्या चल रहा था। वो अपने षवचारों और भावनाओ में
ध्यानमग्न िान पड़ती थी िैसे मैं अपने षवचारों में था। वो बीच-बीच में गहरी सांसें ले रही थी ताकी खद
ु को
शांत कर सके। मझ
ु े नहीं मालम था अब हमें क्या करना चादहए?

आखखरकार कुछ समय पश्चात, िो कक अनंतकाल लग रहा था वो धीरे से फुसफुसाई- “क्या यह संभव है ?”

वो इतने धीरे से फुसफुसाई थी कक मैं उसके लफ़्जों को ठीक से सन


ु भी नहीं पाया था। मैं कुछ नहीं बोला। मैं
उस सवाल का िबाब नहीं दे ना चाहता था।

कफर से एक चुप्पी छा गई िब वो मेरे िबाव का इंति


े ार कर रही थी। िब मैंने कोई िबाव नहीं ददया तो उसने
मेरी ओर निर उठाकर दे खा और इस बार अधीरता से पछा- “क्या हमारे बीच यह संभव है ?”

मैं बहुत उत्तेजित होता िा रहा था, मेरी नसों में दौड़ता खन उबलने लगा था, क्योंकी मेरा मन उस समय बहुत
सारी संभावनाओ के बारे में सोच रहा था। उसने लगभग सब कुछ साफ-साफ कह ददया था और अपनी भावनाओं
और हसरतों को खुले रूप से िादहर कर ददया था। अब मेरी तरफ से संयत वतालव उसके साथ अन्याय होता। मैंने
उसकी आाँखों में झााँका और अपनी निर बनाए रखी। अपने लफ़्जों में जितनी हसरत मैं भर सकता था, भरकर
मैंने कहा- “तम्
ु हें कैसे बताऊाँ मााँ, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के सलए मनोकामना करता है…”

हम दोनों कफर से चुप हो गये थे। उसकी घोसर्ा और मेरी स्वीकारोजक्त की भयावहता हम दोनों को िहरीले
नाग की तरह डस रही थी। हम यकायक बहुत गंभीर हो गये थे। सब कुछ खुलकर सामने आ चुका था और हम
एक दसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत साफ-साफ था मगर हम कफर भी चप
ु चाप बैठे थे, दोनों नहीं िानते थे
आगे क्या करना चादहए?

खामोशी इतनी गहरी थी कक आखखरकार िब उसने मेरी ओर दे खा तो मैं उसके जिश्म की दहलडुल को भी सन

सकता था। उसके चेहरे पर वो अिीब भाव दे ख सकता था, डर और कामना, उम्मीद और आतंक का समला िल
ु ा
रूप था वो।
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उसने हमारी दबु बधा को लफ़्जों में बयान कर ददया- “अब? अब क्या?” वो बोली।

हाँ, मैं भी यही सोचे िा रहा था- अब क्या? अब इसके आगे बढ़ने की हमारी क्या संभावना थी? सामान्यतः
हमारा आगे बढ़ने वाला रास्ता स्पष्ट था, मगर हमारे बीच कुछ भी सामने नहीं था। सबसे पहले हम नामम
ु ककन
के मम
ु ककन होने के इच्छुक थे और अब िब वो नामम
ु ककन मम
ु ककन बन गया था, हम यकीन नहीं कर पा रहे
थे कक यह वास्तषवक है , सच है । हम समझ नहीं पा रहे थे कक हम अपने भाग्य का फायदा कैसे उठाएं, क्योंकी
हमारे आगे बढ़ने के सलए कोई ननधालररत योिना नहीं थी।

अंत में मैंने पहला कदम उठाने का फैसला ककया। एक गहरी सााँस लेकर, मैंने अपनी चादर हटाई और दृढ़
ननश्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके निदीक उसकी कुसी थी। वो संभवत मेरा इंति
े ार कर रही
थी। मैं बेड के ककनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा ददए। यह मेरा उसके “अब क्या?” का
िवाब था।

वो पहले तो दहचककचाई, मेरे कदम का िबाव दे ने के सलए वो अपनी दहम्मत िट


ु ा रही थी। धीरे -धीरे उसने अपने
हाथ आगे बढ़ाए और मेरे हाथों में दे ददए।

वो हमारा पहला वास्तषवक स्पशल था, िब मैंने उसे हसरत से छुआ था, हसरत िो उसके सलए थी और उसके
जिश्म के सलए थी। उसने इसे स्वीकार कर सलया था, बजल्क परस्पर मेरी हसरत का िबाव उसने अपने स्पशल से
ददया था। उसके हाथ बहुत नािक
ु महसस हो रहे थे। बहुत नरम, खबसरत हाथ थे मााँ के, और मेरे लंबे हाथों में
परी तरह से समा गये थे।

हमारा स्पशल रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था िैसे एक के जिश्म से षविली की तरं गें
ननकलकर दसरे के जिश्म में समा रही थीं। यह स्पशल रोमांचकता से उत्तेिना से बढ़कर था, यह एक स्पशल मात्र
नहीं था, उससे कहीं अचधक था। हमने उं गसलयों के संपकल मात्र से एक दसरे से अपने ददल की हिारों बातें को
साझा ककया था। हमारे हाथों का यह स्पशल षपछली बार के उस स्पशल से कहीं अचधक आत्मीय था िब उसने
काररडोर में मेरे हाथ थामे और दबाए थे।

मैंने अपनी उाँ गसु लयों को उसकी हथेसलयों पर रगड़ा। वो अपनी िगह पर जस्थर खड़ी रहने का प्रयास कर रही थी
क्योंकी उसका जिश्म हल्के-हल्के झटके खा रहा था। मैं उसकी उं गसलयां उसकी हथेसलयों की बैक को अपने
अंगठों से सहला रहा था।

वो गहरी सांसें ले रही थी और मैं उसके जिश्म को हल्के से कााँपते महसस कर सकता था। उसके खामोश
समपलर् से उत्सादहत होकर मैंने बेड से उतरने और उसके सामने खड़े होने का फैसला ककया। मैं अभी भी उसके
हाथ थामे हुए था, सो मेरे बेड से उठने के समय उसके हाथ भी थोड़ा सा ऊपर को उठे , जिस कारर् उसका बदन
भी थोड़ा ऊपर को उठा। उसने इशारा समझा और वो भी उठकर खड़ी हो गई। अब हम एक दसरे के सामने खड़े
थे, हाथों में हाथ थामे हम एक दसरे की गहरी सांसों को सन
ु रहे थे।

वो पहले आगे बढ़ी, वो मेरे पास आ गई और उसने अपना चेहरा मेरी ओर बढ़ाया। मैंने अपना चेहरा उसके चेहरे
पर झुकाया और वो मझ
ु े चमने के सलए थोड़ा सा और आगे बढ़ी। मैंने उसके हाथ छोड़ ददए और उसे अपनी
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बाहों में भर सलया। हमारे होंठ आपस में परस्पर िुड़ गये, हमारे अंदर कामक
ु ता का िुनन लावे की तरह फट
पड़ने को बेकरार हो उठा।

हम एक दसरे को थामे चम रहे थे। कभी नमी से, कभी मिबती से, कभी आवेश से, कभी िोश से। हमने इस
पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास ककया था कक िब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम
स्वाभाषवक था। हमने परी कठोरता से और गहराई से एक दसरे को चमा। हमारे होंठ एक दसरे के होंठों को चस
रहे थे और हमारी िीभें आपस में लड़ रही थीं। बजल्क हमने एक दसरे की जिव्हा को भी बारी-बारी से अपने मख

में भरकर चसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया।

उसके होंठ बहुत नािक


ु थे मगर उनमें ककतनी कामकु ता भरी पड़ी थी। उसके चंब
ु न बहुत नरम थे मगर ककतने
आनन्ददाई थे। उसकी जिव्हा बहुत मीठी थी मगर ककतनी मादक थी।

वो लम्हे अद्भत
ु थे और हमारा चुंबन बहुत लंबा चला था। हमने उन सभी व्यथल गि ु रे पलों की कमी दर कर दी
थी, िब हमारे होंठ इतने निदीक होते थे और हम सखे होंठों के चंब
ु न से कहीं अचधक करने के इछुक होते थे।
मझ
ु े यकीन नहीं हो पा रहा था हमारे चंब
ु न ककतने आनंदमयी थे, उसके होंठ ककतने स्वाददष्ट थे, और उसने
अपना चेहरा ककतने िोश से मेरे चेहरे पे दबाया हुआ था।

िब हमने अपनी भावक


ु ता, अपनी व्यग्रता, अपने िोश को पर्लतया एक दसरे को िता ददया तो मैंने खद
ु को
उससे अलग ककया और उसे दे खने लगा। अब मैं उसे एक नारी की तरह दे ख सकता था ना कक एक मााँ की
तरह। वो उस समय मझ
ु े आश्चयलिनक रूप से सद
ंु र लग रही थी और मैंने उसे बताया भी कक वो ककतनी
खबसरत है, ककतनी मनमोहक है , ककतनी आकिलक है ।

कफर मैं धीरे से उसके कान में फुसफुसाया- “मााँ, मैं तम्
ु हें नंगी दे खना चाहता हाँ…”

एक बार कफर से वो िवाब दे ने में दहचककचा रही थी। मैंने उसके गाउन की डोररयां पकड़ी और उन्हें धीरे से
खींचा। गााँठ खुलते ही उसने अपने आपको मझ
ु से थोड़ा सा दर हटा सलया। वो मझ
ु से बाि भर की दरी पर थी
और उसके गाउन की डोररयां खुल रही थी। एक बार डोररयां परी खुल गई तो उसने उन्हें वैसे ही लटकते रहने
ददया। वो अपनी बाहें लटकाए मेरे सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढं ग से खड़ी थी। उसका गाउन सामने से हल्का सा
खुल गया था।

तब मैंने िो दे खा, उसे दे खकर मैं षवजस्मत हो उठा। मझ


ु े उम्मीद थी उसने गाउन के अंदर परे कपड़े पहने होंगे,
मगर िब मैंने अपने कााँपते हाथ आगे बढ़ाए और उसके गाउन को थोड़ा सा और खोला, तो िैसे मैं ककसी तोहफे
को खोल रहा था, तब मैंने िाना कक उसने अंदर कुछ भी नहीं पहना था।

वो उस गाउन के अंदर पर्लतया नग्न थी। उसने वास्तव में मेरे कमरे में आने के सलए कपड़े उतारे थे, इस बात
के उलट कक उसे कपड़े पहनने चादहए थे। यह षवचार अपने आप में बड़ा ही कामक
ु था कक वो मेरे कमरे में परी
तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था िैसी उसने िरूर
उम्मीद की होगी, या योिना बनाई होगी कक यह हो।

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सबसे पहले मेरी निर उसके सपाट पेट पर गई। मेरी सााँस रुकने लगी िब उसका पेट और उसके नीचे का
दहस्सा मेरी निर के सामने खल
ु गया। पेट के नीचे मझ
ु े उसकी िांघों के िोड़ पे बबल्कुल छोटे -छोटे बालों का
एक नतकोना आकर ददखाई ददया। उसके बाद उसकी िांघें और उसकी टााँगें परी तरह से मेरी निर के सामने थी।
इसके बाद मैंने उसके गाउन के ऊपर के दहस्से को खोलना शरू
ु ककया और उसके मम्मे धीरे -धीरे मेरी प्यासी
निरों के सामने नम
ु ाया हो गये।

वो अतलु नीय थे। मैं िानता था मााँ के मम्मे बहुत मोटे -मोटे हैं, मगर िब वो मेरे सामने अपना रूप षवखेरते परी
शानो शौकत में गवल से तनकर खड़े थे, तो मैं उनकी सद ुं रता दे खकर आश्चयलचककत हो उठा। वो भव्य थे,
मादकता से लबरे ि। मैं एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेिी से हाथ बढ़ाकर उन्हें पकड़ सलया। मैंने अपनी
हथेसलयां उसके मम्मों के इदल -चगदल िमा दी। उसके ननपल्स मेरे हाथों के बबल्कुल बीचोबीच थे। मैंने उनकी
कोमलता महसस करने के सलए उन्हें धीरे से दबाया। उसके ननपल एकदम अकड़े थे, उसके मम्मे षवपल
ु और तने
हुए थे।

मेरे मम्मे दबाते ही उसने एक दबी सी सससकी भरी, जिसने मेरे कानों में शहद घोल ददया। उसे मेरे स्पशल में
आनंद समल रहा था, और मझ
ु े उसे स्पशल करने में आनंद समल रहा था। िल्द ही मेरे हाथ उसके परे मम्मों पर
कफरने लगे।

मैंने ध्यान ही नहीं ददया कक कब उसने अपना गाउन अपने कंधों से सरका ददया और उसे फशल पर चगरने ददया।
वो मेरे सामने खड़ी थी, परी नग्न, ककतनी मोहक, ककतनी चचत्ताकिलक और अषवश्वशनीय तौर से मादक लग रही
थी। मैंने उसे कफर से अपनी बाहों में भर सलया और उसे िल्दी-िल्दी और कठोरता से चमने लगा। मैं उसके
मम्मों को अपनी छाती पर रगड़ते महसस कर रहा था और मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी गाण्ड तक
सहला रहे थे। िैसे ही मेरे हाथ उसके नग्न ननतंबों पर पहुाँचे तो उसके साथ-साथ मेरे बदन को भी झटका लगा
मैं तरु ं त उन्हें सहलाने लग गया।

मैं उसे चम रहा था, उसके मम्मों पर अपनी छाती रगड़ रहा था, उसके ननतंबों को भींच रहा था, सहला रहा था,
और ननतंबों की दरार में अपनी उं गसलयां कफरा रहा था। मेरे हाथ उसकी पीठ पर घम रहे थे, उसके कल्हों पर,
उसकी बगलों पर, उसके कंधों पर, उसकी गदल न पर, उसके चेहरे पर, उसके बालों में , और कफर अंत में वापस
उसके मम्मों पर।

मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कक मझ


ु े उसे चमना चादहए, दल
ु ारना, पच
ु कारना चादहए या सहलाना चादहए। मैं
सब कुछ एक साथ करने की कोसशश कर रहा था, इससलए बहुत िल्दी मेरी सााँस फलने लगी। मैं वापस होश में
आया िब मैंने मााँ को मेरी टी-शटल को नीचे से पकड़ते दे खा और कफर वो उसे मेरे बदन से उतारने की कोसशश
करने लगी।

मेरी मााँ मेरे कपड़े उतार रही थी। वो मझ


ु े परा नग्न करना चाहती थी, ताकी अपनी त्वचा से मेरी त्वचा के स्पशल
के एहसास को महसस कर सके। मााँ के इस कायल में इतनी मादकता भरी थी कक मेरी उत्तेिना और भी बढ़ गई,
मेरा लण्ड पहले से भी ज्यादा कड़ा हो गया था।

िब वो मेरी टी-शटल को मेरे ससर से ननकाल रही थी तो मैं थोड़ा सा पीछे हट गया। िैसे ही टी-शटल गले से
ननकली मैं वापस उससे चचपक गया और इस बार उसके नग्न मम्मे मेरी नंगी छाती पर दब गये थे।
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हमारा त्वचा से त्वचा का वो स्पशल अकथनीय था। मैंने अपनी परी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसस नहीं
ककया था, जितना अब कर रहा था िब मेरी मााँ के मम्मे मेरी छाती पर दबे हुए थे, मेरे हाथ उसके ननतंबों को
थामे हुए उसे थोड़ा सा ऊपर उठाए हुए थे, और मेरे होंठ उसके होंठों को लगभग चबा रहे थे।

आखखरकार मााँ ने मेरे िनन पर षवराम लगाया। उसने मझ


ु े चमना बंद कर ददया, मझ
ु े उसको सहलाने से रोक
ददया, और मेरे कंधे पर ससर रखकर मझ
ु से सट गई। मैं उसे उसी तरह अपनी बाहों में थामे खड़ा रहा और
अपनी धड़कनों पर काब पाने की कोसशश करने लगा। हम कुछ दे र ऐसे ही एक दसरे को बाहों में सलए खड़े थे
और उन सख
ु द लम्हो का आनंद ले रहे थे।

अंततः, काफी समय बाद, मैंने खुद को उससे थोड़ा सा दर हटाया। मैं उसे इतने कसकर खद ु से चचपटाये हुए था
कक उसके मम्मे मेरी छाती में इस तरह धाँस गये थे कक मझ
ु े उन्हें झटके से अलग करना पड़ा। मैं, मााँ और बेड
के बीचोबीच खड़ा था। एक तरफ को हाथ करके मैंने मााँ को बेड पर चढ़ने का इशारा ककया।

इसके बाद उसने िो ककया, वो सबसे बढ़कर कामक


ु चीि होगी, िो मैंने अपनी परी जिंदगी में दे खी होगी। वो
मेरे बेड की ओर बढ़ी और मैं उसकी नंगी काया को ननहारने लगा। उसने बेड पर झुकते हुए सबसे पहले अपने
हाथ उस पर रखे। उसके मम्मे उसकी छाती से नीचे की ओर लटक रहे थे और उसकी पीठ और गाण्ड एक बहुत
ही मनमोहक सी कवल बना रही थी। कफर उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और अपना दादहना घट
ु ना उठाकर बेड पर
रख ददया, िबकी बाईं टााँग पीछे को फैलाकर, उसने अपना जिश्म अत्यंत भड़काऊ, मादक, कामक
ु और
अत्यचधक उत्तेजित मि
ु ा में ताना।

मैंने षवस्मय से उसकी नग्न दे ह को ननहारा और मेरे लण्ड ने उसकी उस मि


ु ा की प्रनतकिया में एक िोरदार
झटका खाया। उसने अपना बायां घट
ु ना उठाकर उसे भी बेड पर रख ददया। अब उसकी मि
ु ा बदलकर एक चौपाए
की तरह हो गई थी, वो अब अपने हाथों और घट
ु नों के बल बेड पर बैठी थी, उसकी गाण्ड हवा में उभरकर छत
की ओर उठी हुई थी, उसकी पीठ एक बेहद सद
ुं र सी कवल बना रही थी, और उसके मम्मे मेरे ददल की धड़कनों
के साथ दहलडुल रहे थे।

वो घट
ु नों के बल कुछ कदम आगे बढ़ाकर मेरे तककये के निदीक चली गई। कफर उसने अपने जिश्म का
अग्रभाग ऊपर उठाया और दो तीन सेकेंड के सलए घट
ु नों पर बैठ गई। कफर, वो िल्दी से मेरे तककये पर ससर
रखकर मेरे बेड पर पीठ के बल लेट गई और मझ
ु े दे खने लगी। उसके चेहरे की भाव भंचगमाएं और उसकी आाँखें
िैसे पक
ु ार-पक
ु ार कर कह रही थीं- “आओ, मेरे ऊपर चढ़ िाओ और मझ
ु े चोद डालो…”

वो मेरी ओर दे ख रही थी और उसकी आाँखें, उसका चेहरा िैसे कह रहा था- “आओ और मझ
ु े चोद डालो…”

मैं यकायक िैसे नींद से िागा। मैंने फुती से अपना पयिामा और शाटल स उतार फेंके और बेड पर चढ़कर उसके
पास चला गया। उसके जिश्म में िल्द से िल्द समा िाने की उस िबरदस्त कामना से मेरा लण्ड पत्थर की
तरह कठोर हो चुका था। उसे पाने की हसरत में मेरा जिश्म बख
ु ार की तरह तपने लगा था। मैं उस वक़्त इतना
कामोत्तेजित था कक उसके साथ सहवास करने की ख्वादहश ने मेरे ददमाग को कुन्द कर ददया था। मैं उसके अंदर
समा िाने के ससवा और कुछ भी सोच नहीं पा रहा था िैसे मेरी जिंदगी इस बात पर ननभलर करती थी कक मैं
ककतनी तेिी से उसके अंदर दाखखल हो सकता हाँ।
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मैं बेड पर उसकी बगल में चला गया और उसके मम्मों को मसलने लगा। उसकी बगल में िाते ही मैंने उसके
होंठों को अपने होंठों में भर सलया और उन्हें चमने और चसने लगा और कफर मैं उसके ऊपर चढ़ने लगा, मैंने
अपने होंठ उसके होंठों पर परी तरह चचपकाए रखे। उसके ऊपर चढ़कर मैंने खुद को उसकी टााँगों के बीच में
व्यवजस्थत ककया तो मेरा लण्ड उसके पेट पर चुभ रहा था। उसने अपनी टााँगें थोड़ी सी खोल दी ताकी मैं उनके
बीच अपने घट
ु ने रखकर उसके ऊपर लेट सकाँ ।

मैं उसके बदन पर लेटे-लेटे आगे पीछे होने लगा, उसके मम्मों पर अपनी छाती रगड़ने लगा, मैं बबना चुंबन तोड़े
अपना लण्ड सीधा ऊपर की ओर करना चाहता था। एक बार मेरा लण्ड उसकी कमर पर सीधा हो गया तो मैं
अपना जिश्म नीचे को खखसकाने लगा। धीरे -धीरे मैं अपना जिश्म तब तक नीचे को खखसकाता रहा िब तक मैंने
अपना लण्ड उसकी चत के छोटे -छोटे बालों में कफसलता महसस नहीं ककया, और नीचे िहााँ उसकी चत थी। िल्द
ही मैंने महसस ककया कक मेरा लण्ड उसकी चत को चम रहा है ।

मैं बेसध
ु होता िा रहा था। मैं अपनी मााँ को चोदने के सलए इतना बेताब हो चुका था कक अब बबना एक पल की
भी दे री ककए मैं उसके अंदर समा िाना चाहता था। मैं उसके मख
ु पर मख
ु चचपकाए, उसे चमते, चाटते, चसते
हुए आगे पीछे होने लगा, इस कोसशश में कक मझु े उसका छे द समल िाए। शायद उसको भी एहसास हो गया था
कक मेरा इरादा क्या है? इसीसलए उसने अपने घटु ने ऊपर को उठाए, अपनी टााँगें खोलकर अपने पेड़ को ऊपर को
मेरे लण्ड की ओर धकेला।

िब मैं उसे भखों की तरह चमे, चसे िा रहा था, िब मेरा जिश्म इतनी उत्कंठा से उसका छे द ढाँ ढ़ रहा था,
उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लण्ड अपनी उं गसलयों में पकड़ सलया और मझ
ु े अपनी चत का
रास्ता ददखाया। िैसे ही मैंने अपना लण्ड उसकी चत के होंठों के बीच पाया, िैसे ही मैंने अपने लण्ड के ससरे पर
उसकी चत के गीलेपन को महसस ककया, मैंने अपना लण्ड उसकी चत पर दबा ददया।

मैं उस समय इतना उत्तेजित हो चुका था कक कुछ भी सन


ु नहीं पा रहा था। मेरे कान गाँि रहे थे। मैं इतना
कामोत्तेजित था कक उसे अपनी परी ताकत से चोदना चाहता था। उसने िरूर मेरी अचधरता को महसस ककया
होगा िैसे मझ
ु े यकीन है उसने िरूर मेरी उत्तेिना की चरम सीमा को महसस ककया था।

उसने मझ
ु े अपने अंदर लेने के सलए खुद को दहल-डुल कर व्यवजस्थत ककया। मैंने महसस ककया वो मझ
ु े अपनी
चत के होंठों के बीच सही िगह ददखा रही थी। उसने मेरा लण्ड अपनी चत के होंठों पर रगड़ा और कफर उसे
थोड़ा ऊपर-नीचे ककया। अंत मैं मैंने महसस ककया मेरे लण्ड की टोपी एकदम उसकी चत के छे द के ऊपर थी।
कफर उसने अपने ननतंब ऊपर को और ऊंचे ककए और उसके घट
ु ने उसके मम्मों से सट गये। उसने अपने हाथ
मेरी पीठ पर रखे और थोड़ा सा दबाव दे कर मझ
ु े घस
ु ाने का इशारा ककया।

मैंने घस
ु ाया। मैं इतनी ताकत से घस
ु ाना चाहता था जितनी ताकत से मैं घस
ु ा सकता था। मगर इसके उलट मैंने
आराम से घस
ु ाना शरू
ु ककया। उसके अंदर समा िाने की अपनी िबरदस्त इच्छा और उसमें धीरे -धीरे समाने का
वो फकल अषवस्वसनीय था। बजल्क एक बार मैंने अपने लण्ड को वापस पीछे को खींचा, ताकी एकदम सही तरीके
से डाल सकाँ । मैं मााँ की चत में पहली बार लण्ड घस
ु ाने को एक यादगार बना दे ना चाहता था। मैंने उसकी चत
को खल
ु ते हुए महसस ककया। वो बहुत गीली थी इससलए घस
ु ाने में कोई खास िोर नहीं लगाना पड़ा।

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मैं अपने लण्ड को उसकी चत में समाते हुये महसस कर रहा था। मैं महसस कर रहा था ककस तरह मेरा लण्ड
उसकी चत में िगह बनाते आगे बढ़ रहा था। मैंने अपने लण्ड का ससरा उसकी चत में समाते महसस ककया। वो
एकदम जस्थर थी और उसके हाथों का मेरी पीठ पर दवाब मझ
ु े तेिी से अंदर घस
ु ा दे ने के सलए मिबर कर रहा
था।

मैं उसके अंदर समा चुका था। मैंने अपनी परी जिंदगी मैं ऐसा आनंद, ऐसा लत्ु फ कभी महसस नहीं ककया
जितना तब कर रहा था, िब मेरा लण्ड उसकी चत में परी तरह समा चक
ु ा था। मैंने उसे इतना अंदर धकेला
जितना मैं धकेल सकता था, और कफर मैं उसके ऊपर लेट गया और उसे इस बेकरारी से चमने लगा िैसे मैं
कल का सरि नहीं दे खने वाला था।

मैं अपनी मााँ को चमे रहा था, िब मैं अपनी मााँ को चोद रहा था। मैं उसके मम्मे अपनी छाती पर महसस कर
रहा था, और उसकी िांघें अपने कल्हों पर। मैं उसकी जिव्हा अपने मख
ु में महसस कर रहा था और उसकी
एंडड़यां अपने ननतंबों पर। मैं उसके जिश्म के अंग-अंग को महसस कर रहा था, बाहर से भी और अंदर से भी। मैं
उस सनसनी को बयान नहीं कर सकता, िो मेरे लण्ड से मेरे ददमाग और मेरे पांव के बीच दौड़ रही थी। हम
बहुत बहुत दे र तक ऐसे ही चमते रहे िबकक मेरा लण्ड उसकी चत में घस
ु ा हुआ था।

कई बार मैं उसे अंदर-बाहर करता, मगर ज्यादातर मैं उसे उसके अंदर घस
ु ाए बबना कुछ ककए पड़ा रहा, िबकी
मेरा मख
ु उसके मख
ु पर अपना कमाल ददखा रहा था। मैंने उसके होंठ चमे, उसके गाल चमे, उसकी आाँखें,
उसकी भवें, उसका माथा, उसकी ठोड़ी, उसकी गदल न और उसके कान की लौ को चाटा और अपने माँह
ु में भरकर
चसा। मैंने उसके मम्मे चसने की भी कोसशश की मगर उसके गल
ु ाबी ननपल चसते हुए मैं अपना लण्ड उसकी
चत के अंदर नहीं रख पा रहा था।

आधी रात के उस वक़्त िब मझ


ु े उसकी चत में लण्ड घस
ु ाए ना िाने ककतना वक़्त गि
ु र चक
ु ा था, मैंने ध्यान
ददया कक हम उस व्यग्रता से चमना बंद कर चक
ु े थे, जिस व्याग्रता से अब वो मझ
ु े मेरा लण्ड उसकी चत में
अंदर-बाहर करने के सलए उकसा रही थी।

मैंने धीरे -धीरे अंदर-बाहर करना शरू


ु ककया, मेरी पीठ पर उसके हाथ मझ
ु े उसकी चत में पंप करते रहने को
उकसा रहे थे। अंततः उसके हाथ मझ
ु े और भी तेिी से धक्के मारने को उकसाने लगे। अब मैं उसे चम नहीं रहा
था, बस उसे चोद रहा था। मैं अपने कल्हे आगे पीछे करते हुए, अपना लण्ड उसकी चत में तेिी से िोर लगाकर
अंदर-बाहर कर रहा था।

उसने मेरी पीठ पर अपनी टााँगें कैं ची की तरह कसकर इस बात को पक्का कर ददया कक मेरा लण्ड उसकी चत
के अंदर घस
ु ा रहे, और कफसल कर बाहर ना ननकल िाए। उसके मम्मे मेरे धक्कों की रफ़्तार के साथ ठुमके
लगा रहे थे और उसके चेहरे पर वो िबरदस्त भाव थे जिन्हें ना मैं ससफल दे ख सकता था बजल्क महसस भी कर
सकता था। वो हमारी कामिीड़ा की मधुरता को महसस कर रही थी और उसका जिश्म बड़े अच्छे से प्रनतकिया
में ताल से ताल समलाकर िबाव दे रहा था।

इसी तरह प्रेमरस में भीगे उन लम्हो में एक समय ऐसा भी आया िब उसके जिश्म में तनाव आने लगा और मैं
उसके जिश्म को अकड़ते हुए महसस कर सकता था। अपने लण्ड के उसकी चत में अंदर-बाहर होने की प्रनतकिया
स्वरूप मैं उसके जिश्म को अकड़ते हुए महसस कर सकता था।
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अससलयत में उसे चोदने के समय उसकी प्रनतकिया के सलए मैं तैयार नहीं था, िब उसका बदन वास्तव में
दहचकोले खाने लगा। उसने मेरी पीठ पर अपनी टााँगें और भी िोर से कस दी और ऊपर की ओर इतने िोर से
धक्के मारने लगी, जितने िोर से मैं नीचे को नहीं मार पा रहा था। उसके धक्के इतने तेि इतने िोरदार थे कक
मैं आखखरकार जस्थर हो गया, िबकी वो नीचे से अपनी गाण्ड उछाल-उछालकर मेरे लण्ड को परी ताकत से
अपनी चत में पंप कर रही थी। उसकी कराह अिीबो गरीब थीं। वो सससक रही थी मगर उसकी सससककयां उसके
गले से रुं ध-रुं ध कर बाहर आ रही थी।

आखखरकार मेरे खुद को जस्थर रखने के प्रयास के काफी समय बाद यह हुआ। उसने कुछ समय तक बहुत
िोरदार धक्के लगाए। तब उसने अपनी परी ताकत से खद ु को ऊपर और मझु पे दबा ददया और जस्थर हो गई।
कफर वो दाएं बाएं छटपताती हुई चीखने लगी। वो अपने होश हवास गाँवाकर चीख रही थी। वो इतने िोर से
सखसलत हो रही थी कक उसने लगभग मझ ु े अपने ऊपर से हटा ही ददया था

आखखरकार उसका जिश्म नरम पड़ गया और मैंने उसे कफर से चोदना चाल कर ददया। इस बार धीरे -धीरे और
एक सी रफ़्तार से। मैं अपने जिश्म में होने वाली सनसनाहट को अच्छे से महसस कर सकता था। मैं भी अपना
स्खलन निदीक आता महसस कर रहा था और मैं उस चुदाई को ज्यादा से ज्यादा खींचना चाहता था, िबकी वो
एकदम नरम पड़ गई थी। मझ
ु े उसे इस तरह चोदने में ज्यादा मिा आ रहा था क्योंकी अब मैं अपनी
सनसनाहट पर अपना ध्यान केंदित कर सकता था और उसकी चत में अपना परा लण्ड पेलते हुए उसकी चत से
ज्यादा से ज्यादा मिा ले सकता था।

मैंने अपने अंडकोिों में हल्का सा करें ट दौड़ते महसस ककया और मझ


ु े मालम चल गया कक अब कुछ ही पल बचे
हैं। मैं और भी तेिी से लण्ड चत में पेलने लगा, क्योंकी अब वो मिेदार सनसनाहट का एहसास बढ़ गया था।
मेरी रफ़्तार लगातार बढ़ती िा रही थी, परी चिष्टी का आनंद मैं अपने लण्ड के ससरे पर महसस कर रहा था
और अंत में मेरी हालत ऐसी थी कक मैं खुद को उसके जिश्म में समादहत कर दे ना चाहता था।

मैं इतने िोर से स्खसलत होने लगा कक मेरा जिश्म बेसध


ु सा हो गया। वो एक िबरदस्त स्खलन था और मैं
बहुत िोश से उसके अंदर छटने लगा। पहले मेरे लण्ड ने थोड़े से झटके खाए, और कफर बहुत दबाव से मेरे वीयल
की फुहारें लण्ड से छटने लगीं। मझ
ु े पक्का षवश्वास है कक उसने भी मेरे वीयल की चोट अपनी चत के अंदर
महसस की होगी। एक के बाद एक वीयल की फुहारें ननकलती रहीं। मैं लंबे समय तक छटता रहा। मैंने खुद को
परी ताकत से उससे चचपटाये रखा, िब तक वीयलपतन रुक ना गया।

आखखरकार मैं उसके ऊपर ढह गया। मैं थक कर चर हो चुका था और वो मझ ु े अपनी बाहों में थामे हुए थी।
ककतना सख
ु दायी था िब मााँ मझ
ु े अपनी बाहों में थामे हुए थी और मेरा लण्ड उसकी चत में घस ु ा हुआ था।
आखखरकार मेरा लण्ड नरम पड़कर इतना ससकुड़ गया कक अब मैं उसे उसकी चत के अंदर घस
ु ाए नहीं रख
सकता था। वो कफसल कर बाहर आ गया। वो मेरे सलए भी संकेत था, मैं उसके ऊपर से कफसल कर उसकी
बगल में लेट गया।

उसने मेरी ओर करवट ले ली और मझ


ु े दे खने लगी िबकी मैं अपनी सांसों पर काब पाने का प्रयास कर रहा था।
आखखरकार, िब मैं खद
ु पर ननयंत्रर् पाने में सफल हो गया, तो वो मश्ु कुराई, मेरे होंठों पर एक नरम सा चब
ंु न
अंककत कर उसने पछा- “तो, कैसा था? कैसा लगा तम्
ु हें ?”
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मैं- “मेरे पास शब्द नहीं हैं मााँ कक तम्
ु हें बता सकाँ ये ककतना अद्भत था, ककतना िबरदस्त, एकदम अनोखा
एहसास था…”

मााँ- “हाँ, सच में बहुत िबरदस्त था…” वो बहुत खुश िान पड़ती थी, कहा- “मैंने अपनी परी जिंदगी में इतना
अच्छा कभी महसस नहीं ककया जितना अब कर रही हाँ…”

वो समलन, हमारे समलन के कई मौकों में से पहला मौका था। हमने बार-बार ददल खोलकर एक दसरे को प्यार
ककया। हम एक दसरे के एहसासों को, एक दसरे की भावनाओं को अच्छे से समझे और हम एक दसरे के प्रनत
अपनी गहरी इच्छाओं को, अपनी ख्वादहशों को, कामनाओं को भी बखबी िान चक
ु े थे और एक दसरे को िता
भी चुके थे।

मेरे षपतािी के आने के बाद भी हम अपनी राबत्र ददनचयाल बनाए रखने में सफल रहे । बजल्क हमने इसका
षवस्तार करके इसे अपनी सब
ु ह की ददनचयाल भी बना सलया, िब मेरे षपतािी के आकफस के सलए ननकलने के
बाद वो मेरे कमरे में आ िाती और हम तब तक प्यार करते िब तक मेरे कालेि िाने का समय ना हो िाता।

यह हकीकत कक हमारा प्यार हमारा ररश्ता वजिलत है, हमारे समलन को हमारे प्रेम संबध
ं को आि भी इतना
आनंदमयी इतना तीब्र बना दे ता है, जितना यह तब था िब कुछ महीनों पहले हमने इसकी शरु
ु आत की थी।

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