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राग-परम्परा की विकास यात्रा में मतंगकृत बृहद्देशी का योगदान
राग-परम्परा की विकास यात्रा में मतंगकृत बृहद्देशी का योगदान
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भरत आिद पूव चाय ने िववेचन नह िकया, वे उसका िववेचन कर रहे ह I” मतंग की इस उ त का यह अथ
कदािप नह लेना चािहए िक मतंग से पूव राग-गायन चार म नह था और वे एक नवीन पर परा का सू पात
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श द का प ट उ लेख है तथा ३२ वे व
ु ा अ याय म ५ ाम-राग का ना सि धय म िविनयोग का नामत:
के िनयम के अनु प न होने से ‘राग-पर परा’ को त कालीन शा म थान नह िमल सका था, ह ‘लोक’ म
चलन बढ़ने के कारण त कालीन दे शी पर परा ‘गान’ के अ तगत उसका उ लेख शा कार ारा अव य
होने लगा था I िकसी भी नवीन पर परा को शा ीय मा यता िमलने के िलए उसकी एितहािसक िवकास-या ा
चुका था तथा इस पर परा के िवषय म शा कार के बीच पय त मतभे द भी पनप चुके थे I अत: मतंग को इस
से इस िवषय का थम ितपादन िकया है I अत: राग-पर परा की िवकास या ा के ारंिभक मह वपूण पड़ाव
राग-पर परा का ारं िभक िवकास : मानव की योगध मता के कारण रंजकता एवं वैिच य हे तु िनयम भंग
होते ह िजसके पिरणाम व प नवीन पर पराय ज म लेती और िवकिसत होती है I जाितय से ाम-राग के
ना शा के व
ु ा अ याय म म यम ाम, ष ज ाम, साधािरत, पंचम तथा कैिशक इन ५ ाम-राग
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अपूण वणन ) उपल ध बृह े शी म िमलता है I अपने वणन म मतंग ने इन तीन राग के साथ ‘शु ’ उपसग
लगाकर उ ह ‘शु ा गीित’ के अ तगत रखा है I ना शा म इन ाम-राग के नाम के साथ ‘शु ’ उपसग
व पगत समानता होते हु ये भी शैलीगत िभ नता थी और इसीकारण उनम पाथ य हेतु ाम-राग के नाम
मतंग ारा अपने राग-िववेचन के ारंभ म दुगश त, या टक, क यप ५ तथा शादूल के गीित-
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िवषयक मत के संकलन से ात होता है िक मतंग ने इन मत के मा यम से उनके काल तक हु ई राग-
भेद से होने लगी I इन नवीन राग- प को प च गीितय पर आधािरत राग- प के साथ नह रख पाने के
वग करण का आधार ही ‘गीित’ होने के कारण ‘भाषा’ को भी गीित ही माना गया I शादूल के परवत काल म
उपरो त िववेचन से प ट है िक दुगश त के परवत काल म राग-पर परा अपनी मौिलक िवशेषता
‘गीित’ के साथ-साथ व प भेद पर आधािरत भाषा, िवभाषा, अ तर-भाषा इन तीन नवीन पर पराओं को
राग-पर परा का सं ांित-काल ‘मतंगकाल’ : मतंग का काल एक कार से राग-पर परा का सं ांि त-काल
था िजसम ाम-राग हे तु िनध िरत अंश, यास, वर-संगित आिद िवकार के मा यम से कई नवीन राग- प
की िन मती हो चुकी थी I मतंग के स मुख ११० राग- प ऐसे थे िजनम शैलीगत या गीितगत िभ नता न होकर
अनुकूल लग रहे राग को चाहे वो ाचीन हो या नवीन उ ह ‘माग ’ प म रखते हु ये शेष नवीन राग- प को
जो िनयम-िवकृित अिधक होने के बावजूद लोकि य हो रहे थे, ‘दे शी’ के वग म रखा I मतंग ने थम वग के
िलए ‘माग ’ िवशेषण का योग नह िकया है तथािप ि तीय वग के साथ ‘दे शी’ िवशेषण के योग८ से यह
है वह िन चत ही ‘माग ’ है I
को जानने हेतु जाित-गायन के व प तथा उसके कुछ कड़े िनयम को समझना सहायक होगा –
ाचीन जाित-गायन को ायोिगक स दभ म समझने के िलए भूपाली राग सव िधक उपयु त है I यिद
हम भूपाली को एक ‘जाित’ मान ल तो धानी, दुग , मालक स और मधमाद सारंग ये भूपाली के ‘अंश-
िवकृत प’ कहलायगे I
हे तु िनध िरत वर-संगित का उसके हर अंश-िवकृत प म योग अिनवाय होता था, चाहे वह
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जाित के अंग की ( बंिदश की ) समा त िजससे हो वह वर यास है I इस त य को आधुिनक
मालक स की समा त कोमल गांधार से होगी तथा ऋषभांश प मधमाद सारंग म गायन की समा त
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ाचीन जाित-गायन म यह िनयम सबसे कड़क था और इसम पिरवतन की छूट नह थी I
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योग की छू ट दी गयी थी और वह भी केवल आरोह म , अवरोह म कदािप नह I
बहार इन राग म शु िनषाद का तथा राग जोग म शु गांधार का, केवल आरोह म योग मा य है I
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१) मतंग ने शु कैिशक राग के वणन म उसे कैिशकी व कम रवी जाितय से ज मा बताया है I
कैिशकी म यास वर गांधार तथा िनषाद बताये ह I इसी जाित म धैवत व िनषाद के अंश होने पर
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पंचम को यास मानना चािहए ऐसा भी िनदश है I राग शु कैिशक का ज म कैिशकी के ष जांश
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२) इसी कार शु कैिशकम यम के वणन म उसे कैिशकी व ष ज म यमा जाित से ज मा बताया है
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नवीन ल ण भी बताते ह यथा- गीित, मू छना, रस, िविनयोग, अलंकार, वण, कला और ताल I
रखे गए ह I शु कैिशक, िभ न कैिशक तथा गौड़ कैिशक इन तीन राग म अंश वर ष ज है तथा
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इन तीन राग म अंश वर ष ज तथा यास वर म यम है I प ट है नवीन ाम-राग पर परा को
गया है I
४) पूव म ही बताया गया है िक जाितय म अ तर गांधार व काकली िनषाद का योग अ यिधक मय िदत
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पर परा म िनयिमत (मु य) वर के प म िदखाई दे रहे ह I इसी कारण इन वर- प से यु त
मा यता दी गयी I
५) ाचीन जाित-पर परा म हर जाित के एक से अिधक अंश वर होने के कारण उनकी मू छना भरत
तथा दि ल ारा नह दी गयी I केवल ाम ही िदए गये ह I मतंग ने जाितय और ाम-राग दोन के
िलए मू छनाय बतायी है , अ तर केवल इतना है िक जाितय के िलये बतायी गयी मू छनाय ादश-
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वर ह (िजससे उस जाित के सभी अंश प का गायन संभव होता था ) तथा ाम-राग के िलये
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ह I हदोल राग के वणन म मतंग ने उसे धैवती और आषभी को छोड़कर अ य सभी जाितय से
ज मा बताया है I
मतंगो र काल म राग-पर परा के वाह की िदशा : पूव-पर परा के लोप एवं राग-पर परा के ज म
की िदशा के संकेत भी िमलते ह जो एक वतं शोध-प का िवषय है तथािप इनम से कुछ संकेत
की ेरणा िमली है I
२) बृह े शी म ाम-राग के नाम पु लगवाची है तथा भाषा, िवभाषा तथा अ तर भाषा के नाम
िन कष : तुत शोध-प म िकये गये मतंग के राग-िववेचन के िव लेषण से जाित-पर परा के लोप
एवं राग-पर परा के ादुभ व, िविभ न मत-मता तर के बीच उसकी िवकास या ा के िविवध पड़ाव
स दभ :
१) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक २६२, पृ ठ २६४ I
४) ी मतंग मुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक ३०१ से ३०३, अनु छे द १६६ से
१६९, पृ ठ ८८ से ९२ I
६) ी मतंग मुिन िणता बृह े शी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक २७१ से २७३, , पृ ठ ७८ से ८० I
७) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक २६८ से २७०, पृ ठ ७८ I
८) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक ३४६ तथा ३५२, पृ ठ २०० I
११) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . ४५ व ४६ के बीच
का ग भाग, पृ ठ ३७ I
१२) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . ४४, पृ ठ ३६ I
१३) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक ३०३ तथा अनु छे द १६९ ,पृ ठ ९०
से ९२ I
१४) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . १३७ व १३८ ,
पृ ठ ६३ I
१५) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . १३६ , पृ ठ ६२ I
१६) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक ३०२ तथा अनु छे द १६८ ,पृ ठ ९० I
१७) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . १३९ , पृ ठ ६३
१८) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA ,स पूण रागा याय के िव लेषण के आधार
पर I
१९) ी मतंग मुिन िणता बृह ेशी भाग -२ , कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA ,जाित िवशेष ल ण के िव लेषण के
आधार पर I
२०) ना शा , गायकवाड ओिरए टल सीरीज १४५, ि तीय सं करण, भाग ४, अ याय २८ , लोक . ३९ , पृ ठ ३५ I
२१) ी मतंगमुिन िणता बृह ेशी भाग -२, कलामूलशा थमाला (१०) IGNCA , लोक . ३२५, पृ ठ ११२ I
ई मेल : bhagwatashvin@gmail.com