Copy of विषय - होली के कई रंग

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विषय : होली के कई रंग

"कु छ यादों से गुमनाम सा रिश्ता है, दिल में दर्द महसूस करा ही देती है और कु छ सिखा ही देती है"
इन पंक्तियों को बोलते हुए कविता की आंखों में आंसू छलक पड़े। शायद अच्छे पल थे या बुरा वक्त, यह तब तय हुआ जब उसकी आंसुओं से भरी आंखो ने उसकी
सिसकियों से साझा कर लिया। कोई दर्द था शायद... दर्द जो डर था, दर्द जो तकलीफ थी, दर्द जो हिम्मत देती थी। चेहरे पर कोई एक ऐसी शिकन थी जो दर्द से
बढ़कर थी मानों जैसे टूटते हुए तारों से आज किसी ने ख्वाहिश ही न मांगी हो।
फिर अपने आंसू को पोछते हुए, सिसकियों को संभालते हुए, चेहरे पर धुंधली सी मुस्कराहट लेकर हिम्मत से बोल पड़ी होली ! रंगों का त्योहार। कितनी खुशियां
लेकर आता है। मानो रंगों के बिना दुनिया अधूरी है। लाल, पीला, हरा, गुलाबी सब अपनी खूबियां लेकर आसमान में बिखर जाते है और इंसान के ऊपर गिरते ही
अपनी खूबियों से खुशियां बिखेर देते हैं।
"कविता की आवाज में कं पन सा महसूस हुआ पर शायद खुद को संभालते हुए आगे बढ़ी"
कु छ रंग ख़ुशी देते हैं,, कु छ गम और कु छ यूं ही दामन पर दाग दे जाते हैं और कु छ गलतियों से आगे बढ़ने की सीख। ऐसा ही कु छ मेरे साथ हुआ। होली का दिन
था। मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार। बचपन से ही मैंने रंगों को अपनी दुनिया माना हैं। खासकर मुझे होली अपने दोस्तों के साथ मनाना पसंद है, तो हर साल की तरह
चेहरे पर मुस्कान और हाथों में गुलाल लेकर मैं पहुंच गई अपने "होली सेलिब्रेटिंग पॉइंट" पर। मेरे सभी दोस्त वहां आए थे और फिर क्या हम सब खो गए होली
खेलने की धुन में। अचानक से एक हाथ मेरी ओर आकर मेरी कमर को छू गया, अजीब सा महसूस हुआ। पीछे मुड़ कर देखा तो एक अजनबी इंसान था। "शायद मैं
कु छ गलत महसूस कर रही हूं" खुद को समझाते हुए गेस्ट रूम मे पानी पीने चली गई। अचानक से एक आवाज आई हैलो डीयर". ! "कितना डर होता है लड़कियों
को, मुझे देखो एक अचानक से आई हुई आवाज से मैं डर गई और मेरे हाथ से पानी का गिलास छू ट गया" पीछे मुड़कर देखा तो वही अजनबी इंसान। उसे
अनदेखा करते हुए मैं अपने कदम आगे बढ़ाते हुए कमरे से बाहर जाने लगी तभी सहसा उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया। अजीब सी बात है, फिर से वही महसूस
हुआ मानो कोई गंदा कपड़ा पहन रखा हो। उसे खुद से दूर धक्का देते हुए मैं बोल पड़ी "यह क्या हरकत है" और फिर अपनी घबराहट, डर, हिम्मत को समेटते हुए
वहां से जाने लगी कि, फिर से मेरे हाथ को पकड़ कर मुझे घसीटते हुए वह कोने में ले गया। मैं चीखी "दूर हटो"। हाथों का इस्तेमाल किया, पैरों से मारने की
कोशिश, अफसोस कि मैं बस छटपटा कर रह गई। उसकी नजरों में एक घिनौना सा अहसास था। इस सब सोच के बीच मेरे हाथ मेरे पॉके ट में पहुंचे । राहत की सांस
लेते हुए.. रंग.. रंगों की पुड़िया! इस जंग में खुद को हिम्मत देते हुए, अपने आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए , अपनी मुट्ठी में हिम्मत भरा रंग भर कर उसकी आंखों
की ओर फें का। इतने में वह मुझे आजाद करते हुए जलन से चीखने लगा। मैंने आव देखा न ताव ,वहां से भाग पड़ी, खुद को आजाद करते हुए।
एक हल्की सी मुस्कराहट लेकर कविता बोल पड़ी "यह घटना तब की है जब मैं 14 साल की थी, शायद उस समय कु छ समझ नहीं आता था, पर अब समझती हूं
और मैं अब सब को समझाना चाहती हूं"। सबको हक होता है अपनी भावनाओं को महसूस करने का चाहे वह गंदा हो, चाहे अच्छा हो या फिर घिनौना ही क्यों न
हो। यह घटना मुझे बहुत कु छ सिखा गई। उस साल रंगों ने सिर्फ अपने महत्व में मुझे खुशियां ही नहीं दी, बल्कि एक सीख भी दी , एक ऐसी सीख जो आत्मसम्मान
की होती है, आत्मरक्षा की होती हैं।
आवाज उठाओ और सबको बताओ " There is difference between good touch and bad touch" सभी मां-बाप की जिम्मेदारी हैं, सभी
बहनों की जिम्मेदारी, भाइयों की जिम्मेदारी, दोस्तों की जिम्मेदारी है और सबसे ज्यादा समाज की जिम्मेदारी होती हैं। जिम्मेदारी नहीं आदत बनाओ और इन
आदतों में बुराइयों से लड़ने की शक्ति लाओ। हर एक औरत ममता की मूरत है उसका साथ निभाओ। उसकी गरिमा की रक्षा करो और उसे आत्मनिर्भर बनाओ।
फिर क्या -पूरा ऑडिटोरियम कविता की कहानी सुनकर तालियों से गूंज पड़ा। वह गूंज उसकी साहसी के लिए थी वह गूंज उसकी हिम्मत भरी कहानी सुनाने के
लिए थी। वो गूंज उसकी आत्मरक्षा में उठाएं हिम्मत भरे कदम के लिए थी }
Prakriti roy-1st year

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