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bl l=h; dk;Z esa Hkkx-I vkSj Hkkx-II gSaA izR;sd Hkkx esa ik¡p iz”u gSaA vkidks dqy ik¡p iz”u djus gSa]
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Hkkx-I
1- yksd iz”kklu dks ifjHkkf’kr dhft;s vkSj yksd ,oa futh iz”kklu ds chp varj rFkk lekurkvksa
dks mtkxj dhft;sA 20
2- laxBu ds iz:i oxhZdj.k ij ,d fVIi.kh fyf[k;sA 20
3- fiNys dqN o’kksZa esa iz”kklfud fl)kar ds fodkl dk ijh{k.k dhft;sA 20
4- oSKkfud izca/ku ij ,Q-MCY;w- Vsyj ds ;ksxnku dh ppkZ dhft;sA 20
5- ukSdj”kkgh dks ifjHkkf’kr dhft;s rFkk eSDl oscj ds ukSdj”kkgh ds ekWMy dk vkykspukRed
fo”ys’k.k dhft;sA 20

Hkkx-II
6- vczkge ekWLyks ds vko”;drk inkuqØe fl)kar dh O;k[;k dhft;sA 20
7- foDVj ozwe ds izR;k”kk fl)kar dk vkykspukRed fo”ys’k.k dhft;sA 20
8- uohu yksd iz”kklu ds y{; rFkk fojks/kh y{; dh O;k[;k dhft;sA 20
9- laxBukRed laLd`fr dks ifjHkkf’kr dhf;ts rFkk mlds eq[; ?kVdksa dh ppkZ dhft;sA 20
10- uohu yksd izca/ku ifjizs{; ds izHkko dk ijh{k.k dhft;sA 20
ASSIGNMENT SOLUTIONS GUIDE (2020-21)

MPA-12
iz'kklfud fl¼kar
MPA-12/ TMA/ 2020-21
Disclaimer/Special Note: These are just the sample of the Answers/Solutions to some of the Questions
given in the Assignments. These Sample Answers/Solutions are prepared by Private
Teacher/Tutors/Authors for the help and guidance of the student to get an idea of how he/she can
answer the Questions given the Assignments. We do not claim 100% accuracy of these sample
answers as these are based on the knowledge and capability of Private Teacher/Tutor. Sample
answers may be seen as the Guide/Help for the reference to prepare the answers of the Questions
given in the assignment. As these solutions and answers are prepared by the private teacher/tutor so
the chances of error or mistake cannot be denied. Any Omission or Error is highly regretted though
every care has been taken while preparing these Sample Answers/Solutions. Please consult your own
Teacher/Tutor before you prepare a Particular Answer and for up-to-date and exact information, data
and solution. Student should must read and refer the official study material provided by the
university.

Hkkx&I
iz'u 1- yksd iz'kklu dks ifjHkkf"kr dhft;s vkSj yksd ,oa futh iz'kklu osQ chp varj rFkk lekurkvksa dks
mtkxj dhft;sA
mÙkjµ yksd iz'kklu dh ifjHkk"kk,aµलोक प्रशासन को उसके संकु�चत, व्यापक, प�रव�तर्त आ�द अथ� म� प�रभा�षत
करने क� कोशीश� �वद्वान� ने क� ह�, िजससे लोक प्रशासन क� अनेक प�रभाषाएं सामने आती ह�। अतः ग्लेड्न ने लोक
प्रशासन को बहुरू�पया कहा।
लो. प्रशा. लोक नी�त या �व�ध का �क्रयान्वयन है ।
एल.डी. व्हाइट- ”लोक प्रशासन म� वे सब कायर् आते िजनका उद्देश्य लोक नी�त को लागू करना है ।”
पुन: एल.डी. व्हाइट- ”लोक प्रशासन म� वे सब �क्रयाएं आती ह� िजनका उद्देश्य अ�धकृत अ�धका�रय� द्वारा घो�षत
लोकनी�तय� को �क्रयािन्वत करना है ।”
वुड्रो �वल्सन- ”�व�ध को क्रमबद्ध और �वस्तत
ृ रूप म� लागू करना ह� लोक प्रशासन है ।”
पन
ु : वड
ु रो �वल्सन, ”�व�ध के �क्रयान्वयन क� प्रत्येक �क्रया प्रशास�नक �क्रया है । िजस प्रकार राजनी�त का संबंध नी�त
�नमार्ण से है , उसी प्रकार प्रशासन का संबंध नी�त �क्रयान्वयन से है ।”
गुडनाऊ- ”प्रशासन” राज्य क� इच्छा के �क्रयान्वयन का प्रतीक है ।”
�डमॉक- ”कानून को कायर्रूप दे ना ह� लोक प्रशासन है ।”
पुन: �डमॉक-”स�म अ�धका�रय� द्वारा घो�षत लोक नी�त को पूरा करना या लागू करना लोक प्रशासन है ।”
मरसन- ”िजस प्रकार राजनी�त शास्त्र नी�त �नमार्ण म� जन सहभा�गता को अ�धका�धक स�ु निश्चत करने के श्रेष्ठ तर�के
खोजता है , उसी प्रकार लोक प्रशासन उन नी�तय� के �क्रयान्वयन के श्रेष्ठ तर�के खोजता है ।”
लोक प्रशासन हो या �नजी प्रशासन संगठन क� आवश्यकता दोन� म� पड़ती है । य�द मानवीय संगठन तथा भौ�तक साधन�
का सह� समन्वय न �कया जाए तो उ�चत ल�य� क� प्रािप्त नह� क� जा सकती है ।
लोक प्रशासन व �नजी प्रशासन म� मुख्यतः �नम्न असमानताऐं है -
1. ू � का प्रभाव—लोक प्रशासन म� सभी कायर् एवं ग�त�व�धयां कानन
कानन ू के अनस
ु ार होते ह�। प्रत्येक कायर् पहले से
�निश्चत �नयम� के अनुसार संपन्न होता है और अ�धकार� स्व�ववेक से कायर्क्रम कम ह� कर पाते ह�। वह�ं �नजी
प्रशासन म� अ�धकार� को स्व�ववेक से कायर् करने क� छूट होती है । लोक प्रशासन को कानूनी अ�धका�रता प्राप्त है
जब�क �नजी प्रशासन को नह�ं है ।
2. राजनी�तक �नद� शन—लोक प्रशासन को प्रत्येक िस्थ�त म� राजनी�तक कायर्पा�लका के आदे श� का पालन करना
अ�नवायर् होता है जब�क �नजी प्रशासन म� �कसी उद्योगप�त को अपने �नणर्य स्वयं करने क� स्वतंत्रता होती है
और उस पर सरकार का �नयंत्रण नह�ं होता है । राजनी�तक नेतत्ृ व बदलने पर लोक प्रशासन प्रभा�वत होता है
ले�कन �नजी प्रशासन प्रभा�वत नह�ं होता है ।
3. उद्देश्य� म� �भन्नता—लोक प्रशासन का उद्देश्य जनकल्याण होता है और इसम� लाभ हा�न क� �भन्नता नह�ं क�
जाती है । वह�ं �नजी प्रशासन लोक कल्याण को कोई महत्व नह�ं दे ता है तथा प्रत्येक कायर् �नजी लाभ व हा�न को
ध्यान म� रखकर करता है । अच्छे लोक प्रशासन का मापदं ड, जनता को प्रदान स�ु वधाएं ह� जब�क अच्छे �नजी
प्रशासन का मापदं ड अ�धकतम लाभ क� प्रािप्त है ।
4. समानता का व्यवहार—लोक प्रशासन म� सबके प्र�त समानता एवं एकरूपता का व्यवहार �कया जाता है अथार्त
�कसी के प्र�त प�पात नह�ं �कया जाता है जब�क �नजी प्रशासन उन व्यिक्तय� म� अ�धक रु�च प्रकट करता है
िजनसे उसके व्यवसाय म� अ�धक लाभ होने क� संभावना रहती है ।
5. ू �—लोक प्रशासन द्वारा उत्पा�दत वस्तओ
नाममात्र क� क�मत वसल ु ं या प्रदत सेवाओं हे तु केवल लागत मल्
ू य या
कभी-कभी उससे भी कम क�मत वसूल क� जाती है । इसके �वपर�त �नजी प्रशासन म� उत्पा�दत वस्तुओं एवं
सेवाओं हे तु अ�धक से अ�धक संभव क�मत वसूल� करने का उद्देश्य होता है ।
6. सेवा सुर�ा—लोक प्रशासन म� कमर्चा�रय� को सेवा सुर�ा प्राप्त होती है । उन्ह� �वशेष कारण� से �नधार्�रत प्र�क्रया
द्वारा ह� सेवा मुक्त �कया जा सकता है अन्यथा कमर्चार� सेवा�नवत्ृ त क� आयु तक �निश्चंत होकर अपनी सेवाएं
दे ता है । �नजी प्रशासन म� कमर्चा�रय� को सेवा सरु �ा प्राप्त नह�ं होती है । यहां कमर्चा�रय� का सेवाकाल अन्य कई
कारक� से प्रभा�वत होता है ।
7. �वत्तीय �नयंत्रण—लोक प्रशासन पर बाहर� �वत्तीय �नयंत्रण स्था�पत रहता है । व्यवस्था�पका द्वारा बजट के
माध्यम से लोक प्रशासन को धन प्राप्त होता है और बजट के द्वारा ह� लोक प्रशासन पर �वत्तीय �नयंत्रण भी रखा
जाता है । व्यवस्था�पका अनेक स�म�त और अ�धका�रय� के माध्यम से लोक प्रशासन के आय व्यय पर �नयंत्रण
रखती है ।
8. आचार सं�हता—लोक प्रशासन और �नजी प्रशासन, दोन� के व्यवहार संबंधी आचार सं�हता अलग-अलग है । लोक
प्रशासन म� �नयम� के पालन व नै�तकता के आदश� को प्राथ�मकता द� जाती है । लोक प्रशासन स्वयं द्वारा
उत्पा�दत वस्तुओं सेवाओं का गुणगान नह�ं करता ले�कन �नजी प्रशासन �व�ापन� द्वारा अ�धक से अ�धक प्रचार
को प्राथ�मकता दे ता है ।
9. अनामता का �सद्धांत—लोक प्रशासन म� प्रशासक का अनाम रहकर कायर् करते ह�। यह �सद्धांत मं�त्रप�रषद के
उत्तरदा�यत्व �सद्धांत का पूरक है अथार्त प्रशासक� के कायर् हे तु संबं�धत मंत्री ह� �वधा�यका के प्र�त उत्तरदायी है ।
वह�ं �नजी प्रशासक� के अपने काय� के �लए स्वयं का नाम होता है ।
10. जन उत्तरदा�यत्व—लोक प्रशासन जनता के प्र�त उत्तरदाई होता है । इसी क्रम म� उसे �व�भन्न राजनी�तक दल�,
दबाव समूह व समाचार पत्र इत्या�द क� आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है । व्यवस्था�पका और
न्यायपा�लका भी प्रत्य� या अप्रत्य� रूप से अपना �नयंत्रण रखते ह�। यह ल�ण �नजी प्रसाशन म� नह�ं है ।
11. कायर्�ेत्र क� व्यापकता—लोक प्रशासन का कायर्�ेत्र संपण
ू र् राज्य क� भौगो�लक सीमाएं होती ह�। इसी कारण इसका
संगठन भौगो�लक दृिष्ट से �वस्तत
ृ होता है । लोक प्रशासन मानव जीवन के सभी �ेत्र� तक �वस्तत
ृ होता है और
इसका प्रभाव भी बहुत व्यापक होता है । जब�क �नजी प्रशासन केवल अपने कायर्�त्र
े तक सी�मत रहता है ।
12. जीवन र�क सेवाएं—लोक प्रशासन समाज को जीवन र�क सेवाएं आवश्यक रूप से प्रदान करता है जैसे शां�त
व्यवस्था क� स्थापना, �श�ा, यातायात, �च�कत्सा सु�वधाएं इत्या�द। इन सु�वधाओं के �बना सामािजक जीवन
का अिस्तत्व संभव नह�ं है । दस
ू र� तरफ �नजी प्रशासन केवल उन्ह� व्यवसाय म� रु�च रखता है जो उसके �लए
लाभकार� �सद्ध होता है ।

iz'u 2- laxBu osQ iz:i oxhZdj.k ij ,d fVIi.kh fyf[k;sA


mÙkjµ संगठन क� �व�भन्न प�रभाषाएँ ह�—
ू ी- ”एक साझा उद्देश्य क� प�ू तर् के प्रत्येक मानव सभा संगठन का रूप संघ का रूप ह� संगठन है ।”
मन
साइमन- ”संगठन से हमारा आशय सहकार� प्रयोग क� एक स�ु नयोिजत व्यवस्था से है िजसम� हर प्र�तभागी क� एक भ�ू मका
कत्तर्व्य और िजम्मेदा�रयाँ होती है ।”
गु�लक- ”संगठन सत्ता का वह �नधार्�रत औपचा�रक ढाँचा है िजसके ज�रए प�रभा�षक उद्देश्य के �लए कायर् के उप�वभाग�
को व्यविस्थत, प�रभा�षत और संयोिजत �कया जाता है ।”
े - ”संगठन का सरोकार एक उपक्रम म� व्यिक्तय� के बीच संबंध� के प्र�तरूप से होता है जो इस प्रकार �न�मर्त होता है �क
ग्लैडन
उद्यम के काम को परू ा �कया जा सके।”
�फफनर-“संगठन म� सुव्यविस्थत श्रम �वभाजन लाने के �लए संबद्ध व्यिक्तय� और समूह� के बीच के संबंध शा�मल होते ह�।”
एल. डी. व्हाइट-”एक संगठन के काय� और िजम्मेदा�रय� के बँटवारे के ज�रए �कसी आम सहम�त के उद्देश्य क� पू�तर् का
रास्ता सुगम बनाने के �लए कमर्चा�रय� क� व्यवस्था है ।”
चेस्टर बनार्ड-र् ”संगठन दो या अ�धक व्यिक्तय� क� ग�त�व�धय� या शिक्तय� के सोचे-समझे तालमेल क� एक व्यवस्था है ।”
जे. एम. गॉस- “संगठन एक साझा उद्देश्य म� लगे व्यिक्तय� और समह
ू � के प्रयास� और �मताओं को इस रूप म� जोड़ना है �क
उन लोग� के बीच न्यूनतम मतभेद और अ�धकतम संतोष के साथ वां�छत उद्देश्य क� पू�तर् क� जा सके, िजनके �लए काम हो
रहा है और जो इस काम म� लगे ह�।”
अर�वक- ”संगठन �कसी उद्देश्य के �लए जरूर�-ग�त�व�धय� को �नधार्�रत करने और उन्ह� समूह� म� व्यविस्थत करने का
काम है , ता�क उन्ह� व्यिक्तय� को स�पा जा सके।”
यह शब्द ‘प्रशासन’ अलग-अलग लोग� के �लए अलग-अलग अथ� का बोध कराता है । यह तीन �भन्न अथ� म� प्रयक्
ु त होता
है , या�न प्रशासन ढाँचे को �नधार्�रत करने, काम और स्वयं प्रशास�नक ढाँचा।
ये तीन� दृिष्टकोण इन अथ� म� संगठन के एक यां�त्रक दृिष्टकोण का प्र�त�न�धत्व करते ह� �क वे मानव संबंध� का बोध नह�ं
दे त।े �फर भी, संगठन एक संरचना भी है और मानव संबंध� का एक समुच्चय भी।
एल. डी. व्हाइट के अनस
ु ार- एक संगठन के तीन प्रमख
ु संघटन अंग होते ह�, व्यिक्त, संबंद्ध, प्रयास और एक साझा उद्देश्य।
सी.ई. बनार्ड के अनस
ु ार, एक संगठन के संघटक अंग ह�- (क) सामान्य उद्देश्य, (ख) परस्पर संचार और (ग) सेवा करने क�
इच्छा।
हरबटर् ए. साइमन के अनुसार एक संगठन के काम� म� सदस्य� के बीच काम� का बँटवारा करना, मानक प्रथाओं को �नधार्�रत
करना, एक संचार व्यवस्था प्रदान करना, �नणर्य� को संप्रे�षत करना और सदस्य� को प्र�श��त करना शा�मल ह�।
संगठन के ला��णक �वशेषताएँ (Features of Organisation):
�नकोलस हे नर� ने संगठन� क� ला��णक �वशेषताओं को �नम्न प्रकार से सं�े�पत �कया है :
1. संगठन उद्देश्यपूण,र् ज�टल मानवीय समूह होते ह�।
2. इनक� पहचान द्�वतीयक सम्बन्ध� के द्वारा क� जाती है ।
3. इनके �वशेषीकृत और सी�मत ल�य होते ह�।
4. संवहनीय सहकार� ग�त�व�ध इनक� एक �वशेषता है ।
5. ये एक बड़े सामािजक तंत्र के भीतर एक�कृत होते ह�।
6. ये अपने पयार्वरण को सेवाएँ और उत्पाद उपलब्ध कराते ह�।
7. ये अपने पयार्वरण के साथ आदान-प्रदान पर �नभर्र रहते ह�।
एल डी व्हाइट के अनुसार एक संगठन म� तीन प्राथ�मक तत्व होते ह�, जैसे �क- व्यिक्त, साझा प्रयास और सामान्य उद्देश्य।
सी आई बरनाडर् के अनुसार एक संगठन के तत्व ह�—
(i) सामान्य उद्देश्य,
(ii) संचार,
(iii) सेवा करने क� इच्छा।
हरबडर् ए साइमन के अनुसार एक संगठन के काय� म� सदस्य� के बीच कायर् �वभाजन, मानक व्यवहार� का �नमार्ण, एक
संचार प्रणाल� क� उपलिब्ध, �नणर्य� का पारे षण और सदस्य� का प्र�श�ण शा�मल है ।
संगठन के आधार (Bases of Organisation):
लूथर गु�लक ने संगठन के चार आधार� क� पहचान क� है । ये ह�—
1. उद्देश्य, 2. प्र�क्रया,
3. व्यिक्त और 4. स्थान।
इनक� �नम्न रूप से व्यवस्था क� गई है —
1. उद्देश्य—इसका अथर् है संगठन द्वारा �कया जाने वाला काम। काम पर आधा�रत संगठन उदाहरण ह�- र�ा �वभाग,
स्वास्थ्य �वभाग, श्रम �वभाग, मानव संसाधन �वकास �वभाग इत्या�द।
उद्देश्य �सद्धांत या कायार्त्मक �सद्धांत के गुण �नम्न ह�—
(1) यह संगठन को एक सुसंबद्ध �मशन दे ता है ।
(2) यह कम� के परस्पर आच्छादन और दोहराव को खत्म करता है ।
(3) यह समिन्वत नी�तय� के �वकास म� सहायता करता है ।
(4) यह असफलताओं क� िजम्मेदार� तय करने म� स�म बनाता है ।
(5) यह सामान्य आदमी द्वारा भी आसानी से समझा जा सकता है ।
उद्देश्य �सद्धान्त या कायार्त्मक �सद्धांत के दग
ु ण
ुर् �नम्न ह�—
1. यह अधीनस्थ� के काम� क� उपे�ा करता है ।
2. यह नवीनतम तकनीक� क� उपे�ा करता है ।
3. यह �चंतन म� �वभागीयता क� ओर ले जाता है ।
हाल्डेन कमेट� �ब्रटे न (1918-19) फस्टर् हूवर-कमीशन ऑफ यू.एस.ए. (1949-50) और एड�म�नस्ट्रे �टव �रफॉम्सर् कमीशन
ऑफ इं�डया क� अध्ययन ट�म (1966- 1970) ने इसी �सद्धांत का सुझाव �दया था।
2. प्र�क्रया—इसका अथर् काम को पूरा करने म� संगठन द्वारा प्रयोग म� लाई तकनीक या �व�शष्ट कौशल से है । इस प्र�क्रया
पर आधा�रत संगठन� क� �मसाल� ह�- अंत�र� �वभाग, कानन
ू �वभाग, समद्र
ु �वकास �वभाग, इलैक्ट्रां�नक्स �वभाग
इत्या�द।
प्र�क्रया �सद्धांत के गुण ह�—
(1) यह सवार्�धक �व�शष्ट�करण म� सहायता करता है ।
(2) यह आधु�नकतम तकनीक के अ�धकतम उपयोग द्वारा अथर्व्यवस्था को सु�निश्चत करता है ।
(3) यह श्रम बचाने वाले यंत्र� के अ�धकतम उपयोग द्वारा अथर्व्यवस्था को सरु �ा प्रदान करता है ।
(4) यह तकनीक काम� म� तालमेल को प्रोत्साहन दे ता है ।
(5) यह कै�रयर सेवा के �वकास के �लए अनुकूल होता है ।
प्र�क्रया �सद्धांत के दग
ु ुण
र् इस प्रकार ह�—
(1) इसका सी�मत उपयोग होता है क्य��क इसे गैर-तकनीक� ग�त�व�धय� म� नह�ं लागू �कया जा सकता।
(2) यह ल�य से ज्यादा महत्व माध्यम� को दे ता है ।
(3) यह पेशेवर घमंड को �वक�सत कर दे ता है और मतभेद क� ओर ले जाता है ।
(4) यह सामान्य� प्रशासक� क� सेवाओं क� उपे�ा करता है ।
3. व्यिक्त—इसका अथर् है —संगठन क� सेवा प्राप्त कर रहे लोग� का समूह (ग्राहक गण)। ग्राहक� पर आधा�रत संगठन के
उदाहरण ह�—पुनवार्स �वभाग, आ�दवासी कल्याण �वभाग, स्त्री कल्याण �वभाग इत्या�द।
ग्राहक �सद्धांत के गुण ह�—
(1) यह एक समह
ू क� सभी आवश्यकताओं के �लए एक एज�सी को िजम्मेदार बनाता है ।
(2) यह लाभ प्राप्तकतार्ओं को द� जाने वाल� �व�भन्न सेवाओं के तालमेल म� सहायता करता है ।
(3) यह ल�य समह
ू और एज�सी के बीच एक कर�बी �रश्ता कायम करता है ।
(4) यह समस्याओं के प्र�त एक पण
ू र्तावाद� दृिष्टकोण को स�म बनाता है ।
ग्राहक �सद्धांत के दग
ु ुण
र् ह�—
(1) यह छोटे -छोटे �वभाग� क� �वशाल संख्या को पैदा कर दे ता है और इस तरह से एक ऐसे प्रशासन म� प�रणा�मत होता
है िजसे हाल्डेन कमेट� ‘�लल�पुट प्रकार का प्रशासन’ कहती है ।
(2) यह �वभाग� के बीच न्या�यक �ववाद पैदा करता है ।
(3) यह बहु-कायार्त्मक च�रत्र के कारण �व�शष्ट�करण के �सद्धांत का उल्लंघन करता है ।
(4) यह दबाव समूह� के अनु�चत प्रभाव� के सम� संगठन को कमजोर बनाता है ।
4. स्थान—इसका अथर् ह�- संगठन के अंतगर्त आनेवाला भूभागीय �ेत्र। स्थान पर आधा�रत संगठन के उदाहरण ह�- बाहर�
मामल� का �वभाग और इसके अंतगर्त �ेत्रीय �वभाजन, दामोदर घाट� �वभाग, रे लवे के �ेत्रीय कायार्लय इत्या�द।
स्थान �सद्धांत के गुण ह�—
(1) यह एक �निश्चत �ेत्र म� द� जाने वाल� �व�भन्न सेवाओं के बीच तालमेल म� सहायता करता है ।
(2) यह संबं�धत �ेत्र� क� जरूरत� के अनुसार राष्ट्र�य नी�तय� के अनुकूल क� इजाजत दे ता है ।
(3) यह लंबी दरू � और संचार म� होने वाले खच� को कम करके अथर्व्यवस्था को सुर�ा प्रदान करता है ।
स्थान �सद्धांत के दग
ु ण
ुर् ह�—
(1) यह राष्ट्र�य नी�तय� के प्रशासन म� एकरूपता के �वपर�त जाता है ।
(2) यह राष्ट्र�य दृिष्टकोण और एकता क� क�मत पर स्थानीयवाद को बढ़ावा दे ता है ।
(3) यह सह बहुकायार्त्मक च�रत्र के कारण �व�शष्ट�करण के �सद्धांत का उल्लंघन करता है ।
(4) यह संगठन को स्थानीय �हत� और दबाव समूह� के अनु�चत प्रभाव के सम� कमजोर बना दे ता है ।

iz'u 3- fiNys oqQN o"kks± esa iz'kklfud fl¼kUr osQ fodkl dk ijh{k.k dhft;sA
mÙkjµ
iz'u 4- oSK kfud izcaè ku ij ,d MCY;w Vsyj osQ ;ksxnku dh ppkZ dhft;sA
mÙkjµ हे नर� एल गांट ने वै�ा�नक प्रबंधन के �वकास म� �नम्न योगदान �कए—
(i) उन्ह�ने प्रोत्साहन भुगतान के कायर् व बोनस-तंत्र क� शुरुआत क�। इसके अनुसार �कसी मजदरू को बोनस तब �दया
जाएगा जब वह मानक को परू ा करे गा।
(ii) उन्ह�ने उद्योग क� आदत� पर �वशेष बल �दया। उन्ह�ने कहा �क संगठन काम करने के आदतन तर�क� को
�वक�सत करते ह�। अत: प्रशासन को शुरुआती दौर म� ह� अच्छ� आदत� बनानी चा�हए।
(iii) उन्ह�ने एक चाटर् बनाया िजसम� समयानुसार कायर् प्रग�त को लगातार दशार्या जा सकेगा। यह गांट चाटर् के नाम से
जाना गया।
�गल्ब्रेथ दं प�त—फ्र�क व �ल�लयन �गल्ब्रेथ (दं प�त) ने भी वै�ा�नक प्रबंधन म� कुछ अहम योगदान �कए—
(i) काय� म� अनावश्यक कायर्वा�हय� के उन्मल
ू न म� मदद करने के �लए उन्ह�ने ‘प्रवाह प्र�क्रया चाटर् ’ का आ�वष्कार
�कया। उनका तंत्र ‘स्पीड वकर्’ कहलाया।
(ii) उन्ह�ने आधु�नक ग�त और समय अध्ययन� क� तकनीक� क� बु�नयाद रखी। जैसा �क �हक्स व गुलेट का �वचार
है - “�गल्ब्रेथ दं प�त ने ‘एक सवर्श्रेष्ठ तर�के’ क� अपनी खोज म� ग�त व समय अध्ययन को एक ऊँचे स्तर तक
�वक�सत �कया। उन्ह�ने कायर् क� मूल इकाई के रूप म� थबर्�लग्स (Therbligs) (‘Gilbreths’ को उलटा �लखने पर)
का आ�वष्कार �कया।”
एच. इमरसन है �रंगटन इमरसन ने सह� संगठन क� उत्तम उत्पादकता पर जोर �दया और कुशलता के बारह �सद्धांत
प्र�तपा�दत �कए। उनक� प्रच�लत पुस्तक� इ�फ�शएंसी और �द ट्वेल्व �प्रं�सपल ऑफ इ�फ�शएंसी ह�। उन्ह�ने वै�ा�नक
प्रबंधन क� जगह अपने तंत्र को ‘कुशलता तंत्र’ कहना पसंद �कया।
वे बारह �सद्धांत ह�—
(i) स्पष्टत: प�रभा�षत उद्देश्य, (ii) सामान्य बोध,
(iii) योग्य परामशर्, (iv) अनश
ु ासन,
(v) �नष्प� सौदा, (vi) भरोसेमंद, तेज और उ�चत �रकॉडर्,
(vii) मानक और अनुसूची, (viii) प्रेषण,
(ix) मानक िस्थ�तयाँ, (x) मानक कायार्न्वयन,
(xi) �ल�खत मानक व्यवहार �नद� श, (xii) कुशलता पुरस्कार।
एम.एल.कुक—अन्य लोग� से �भन्न, मौ�रस एल.कुक ने वै�ा�नक प्रबंधन के �सद्धांत� और तकनीक� को शासन के साथ-साथ
�श�ा के �ेत्र म� भी लागू �कया। वै�ा�नक प्रबंधन को सावर्भौ�मक रूप से लागू �कया जा सकता है , यह उन्ह�ने स्पष्ट रूप से
प्रमा�णत �कया। एक दस
ू रे मायने म� वह टे लर से �भन्न भी थे।
जैसे-काम करने के ‘एक सवर्श्रेष्ठ तर�के’ क� खोज म� उन्ह�ने मजदरू � क� भी भागीदार� क� माँग क�, जब�क टे लर के अनुसार-
‘एक सवर्श्रेष्ठ तर�के’ क� खोज केवल कायर् �वश्लेषण के �वशेष� (न �क मजदरू ) ह� कर सकते ह�।
वै�ा�नक प्रबंधन के आलोचना और �वरोध (Criticism and Opposition of Scientific Management)—
‘वै�ा�नक प्रबंधन’ का कई वग� ने आलोचना और �वरोध �कया—
(i) कारखाना स्तर (जो �नचला स्तर है ) के कामकाज पर ध्यान-क�द्रण और उच्च स्तर क� सांगठ�नक प्र�क्रयाओं क�
उपे�ा के कारण इसक� आलोचना संगठन के एक अधूरे �सद्धांत के रूप म� क� गई।
(ii) संगठन के मानवीय पहलू क� अनदे खी के कारण इसक� आलोचना संगठन के एक यां�त्रक �सद्धांत के रूप म� भी क�
जाती है । दस
ू रे शब्द� म� , इसने सांगठ�नक कुशलता क� व्याख्या केवल यां�त्रक अथ� म� क�। यह मजदरू को यंत्र
मानता है और उसे उतना ह� कुशल बनाना चाहता है िजतना �क यंत्र है । स्पष्टत: मजदरू � ने इसका �वरोध �कया।
(iii) मानवीय प्रेरणा को कम आँकने और अ�त सरल बनाने के कारण भी इसक� आलोचना क� जाती है । मानवीय प्रेरणा
क� व्याख्या यह आ�थर्क कारक� (भौ�तक पुरस्कार�) के अथ� म� ह� करता है और प्रेरणा के सामािजक और
मनोवै�ा�नक पहलू को उपे��त कर दे ता है ।
इसे प्रेरणा का ‘एकलवाद� �सद्धांत’ कहा जाता है । एल्टन मेयो के हॉथॉनर् अध्ययन� ने खल
ु ासा �कया �क संगठन के
कायर् �नधार्रण और मजदरू � के व्यवहार क� व्याख्या म� सामािजक और मनोवै�ा�नक कारक भी आ�थर्क कारक�
िजतने महत्त्वपूणर् ह�।
एम.पी, फॉलेट, पीटर ड्रकर, ओल�वर शेल्डन, चेस्टर बनार्डर् और �क्रस आ�गर्�रस जैसे अन्य मानवीय संबंध व
व्यवहार �वशेष�� ने भी यह� राय प्रकट क�।
(iv) मजदरू � के उत्पादन से जुड़े व्यवहार (अथार्त ् शार��रक कारक) से ह� सरोकार रखने के कारण माचर् व साइमन ने
इसक� कल्पना ‘शार��रक प्रबंधन �वचारधारा’ के रूप म� क� है ।
(v) इसका सबसे ज्यादा �वरोध मजदरू नेताओं (ट्रे ड यू�नयन�) ने �कया। टे लर के �सद्धांत (बौ�द्धक क्रां�त) के अमल से
मजदरू � और मा�लक� के बीच से सभी अंतर�वरोध खत्म हो जाते ह� और उनके बीच एक प्रभावी सहकार स्था�पत
होता है ।
इस प्रकार, ट्रे ड यू�नयन� अनावश्यक हो जाती ह�। दस
ू रे शब्द� म� , टे लरवाद को न केवल उनक� भू�मका, बिल्क ट्रे ड
आंदोलन और ‘सामू�हक सौदे बाजी’ के �सद्धांत के �लए खतरा माना गया। प्रो. रॉबटर् हॉक्सी क� जाँच-पड़ताल ने तो
यहाँ तक बताया �क वै�ा�नक प्रबंधन और मजदरू यू�नयनवाद के �सद्धांत आपस म� मेल नह�ं खाते।
(vi) दो कारण� से प्रबंधक भी इसका �वरोध करते ह�। पहला, वै�ा�नक पद्ध�तय� को अपनाने से उन्ह� अपने �नणर्य और
स्व�ववेक से हाथ धोना पड़ेगा। दस
ू रा, टे लरवाद के कारण उनके काम और िजम्मेदा�रय� बढ़ जाएँगी।

iz'u 5- ukSdj'kkgh dks ifjHkkf"kr dhft;sA rFkk eSDl osc j osQ ukSdj'kkgh osQ ekWM y dk vkykspukRed fo'ys"k.k
dhft;sA
mÙkjµ मैक्स वेबर सत्ता के वग�करण तथा प्रशासन क� गुणवत्ता क� दृिष्ट से नौकरशाह� व्यवस्था को महत्वपणू र् मानते थे
एक अच्छे नौकरशाह� के �लये वेबर �नम्न गुण� को आवश्यक मानते ह�—
वेबर क� नौकरशाह� का �सद्धांत वतर्मान समय म� भी भारतीय नौकरशाह� के �लये महत्वपूणर् है । इसम� �न�हत पदसोपान क�
व्यवस्था और �नयम-उन्मुखता के कारण नौकरशाह� व्यवस्था म� अनुशासन बना रहता है , जब�क योग्यता पर आधा�रत
चयन और काय� का स्पष्ट �वभाजन व्यिक्तय� को काय�न्मुख बनाता है । यह लोक कल्याणकार� राज्य क� स्थापना के
�लये आवश्यक है । जहाँ आ�धका�रक �रकॉडर् क� व्यवस्था के कारण उनके काय� क� जवाबदे ह� तय क� जा सकती है , वह�ं
संवैधा�नक व्यवस्था और कायर्काल क� सरु �ा उन्ह� ईमानदार� से कायर् करने के �लये प्रे�रत करती है । तटस्थता,
अना�मता तथा �नव�यिक्तकता नौकरशाह को प�पात से बचाता है ।
�कं तु इसके कुछ प्रावधान� का दरु
ु पयोग लोकतां�त्रक तथा लोक कल्याणकार� राज्य क� अवधारणा को कमजोर भी करती ह�।
पदसोपान क� व्यवस्था उच्च पद-धारको म� तानाशाह� क� भावना को जन्म दे ती है , वह�ं �नयम उन्मुखता लालफ�ताशाह� को
बढ़ावा दे ती है , जब�क अना�मता का प्रावधान लोकसेवक� क� प्रेरणा को कम भी करता है ।
इन प्रावधान� के दरु
ु पयोग को रोक कर इसे और भी प्रासं�गक बनाया जा सकता है ।

Hkkx&II
iz'u 6- vczkge ekWL yks osQ vko';drk inkuqo zQe fl¼kUr dh O;k[;k dhft;sA
mÙkjµ Maslow के अनुसार, मनुष्य� के पास अलग-अलग ज़रूरत� होती ह� जो एक दस ू रे को ओवरलैप करती ह�। इस प्रकार,
जब हम जरूरत� के एक समूह को पूरा करते ह�, तो हमारा अ�भप्रेरण अगले समूह म� र�डायरे क्ट �कया गया है ।
अपने पूरे अध्ययन म� , Maslow मानव जरूरत� के पदानुक्रम एक �परा�मड के माध्यम से। इसम� , सबसे बु�नयाद� जरूरत�,
जीवन से संबं�धत, �परा�मड के आधार पर ह�। जब�क अ�धक अमत
ू र् जरूरत�, आत्मा से संबं�धत �परा�मड के शीषर् पर ह�।
हम प्रत्येक आवश्यक समूह क� अ�धक अच्छ� तरह से बात कर� गे, बिल्क मास्लो के �परा�मड के तकर् और मौ�लक �सद्धांत�
को समझना महत्वपूणर् है । यह संदेश, मूल रूप से, यह है �क लोग� को प्रे�रत करने के �लए एक नेता को पहले यह समझने क�
आवश्यकता है �क वतर्मान म� उनके पास �कस समूह क� जरूरत है ।
अगर लोग� को अभी भी असंतुष्ट बु�नयाद� जरूरत� क� आवश्यकता है तो लोग� को अमूतर् जरूरत� के प्र�त लोग� क� प्रेरणा
को �नद� �शत करने का प्रयास नह�ं �कया जाता है ।
Maslow के �परा�मड को बेहतर ढं ग से �च�त्रत करने के �लए, अब हम अपने चरण� के बारे म� बात करते ह�, यानी, मानव
जरूरत� के �वकास के कदम। आप इन चरण� को भी हमारे अंदर दे ख सकते ह�—
1) शार��रक आवश्यकताओं—जरूरत� के पदानक्र
ु म म� , शार��रक रूप से सबसे ब�ु नयाद� ह�, क्य��क वे हमारे अिस्तत्व
से जुड़े हुए ह�। जब एक इंसान के पास नह�ं होता है शार��रक जरूरत� आपक� प्रेरणा पूर� तरह से इस समूह पर
क��द्रत होगी। Maslow के अनुसार, वे ह�: श्वास, जी�वत रहने, खाने, पीने, आराम, सेक्स होने।
पेशेवर जीवन म� , ऐसी ज़रूरत� मख्
ु य रूप से उन कायर्क्रम� से संबं�धत होती ह� जो आराम और भोजन क� अनुम�त
दे ती ह� और अ�धभार नह�ं दे ती ह�।
2) सरु �ा आवश्यकताओं—िजस �ण से एक इंसान क� शार��रक जरूरत� को परू ा �कया जाता है , वह अपने प्रेरणा पर
ध्यान क��द्रत करे गा सुर�ा क� जरूरत है । उनम� खतरे से सुर�ा क� भावना शा�मल है । उन्ह� अन्य कारक� के साथ
शार��रक सुर�ा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार और संबंध� म� सापे� िस्थरता द्वारा �च�त्रत �कया जा सकता है ।
पेशेवर दायरे म� , हम अस्वस्थता, जी�वत मजदरू �, �नरं तरता क� कुछ गारं ट� (या िस्थ�त के अनुसार कम से कम
पारद�शर्ता), स्वास्थ्य योजना इत्या�द के �खलाफ �नवारक उपाय� के बारे म� सोच सकते ह�।
3) सामािजक जरूरत�—मनष्ु य भी पास है सामािजक जरूरत�, सरु �ा आवश्यकताओं के ठ�क ऊपर। यहां हम मानव
जरूरत� के एक और अ�धक अमूतर् दायरे म� प्रवेश करना शुरू कर दे ते ह�। वे प�रवार, दोस्त�, समूह� और �रश्त� का
�हस्सा होने के रूप म� सामंजस्यपूणर् मानव संबंध� को बनाए रखने के बारे म� ह�।
पेशेवर पहलू म� , लोग गहराई से ट�म का �हस्सा बनना चाहते ह�। मा�लक� और सहक�मर्य� के साथ दयालु संबंध
बनाए रखने म� स�म होने के अ�त�रक्त।
4) ु ान के �लए आवश्यकता है —As सम्मान क� आवश्यकता है , सामािजक जरूरत� से ऊपर, हमार� �मताओं क�
अनम
आत्म-मान्यता के साथ-साथ दसू र� क� मान्यता से जुड़े हुए ह�। वे सम्मा�नत, प्रशंसनीय और प्र�तिष्ठत होने के
�लए इंसान क� आवश्यकता से जुड़े हुए ह�, जो ग�रमा क� भावना उत्पन्न करते ह�।
पेशेवर दायरे म� , हम सकारात्मक उपलिब्धय� के �लए प�रणाम�, रचनात्मक प्र�त�क्रयाओं और मान्यता और
प्र�तष्ठा के �लए िज़म्मेदार� को उजागर कर सकते ह�।
5) आत्म-प्रािप्त क� आवश्यकता है —अंत म� मासलो के अनस
ु ार, मानव जरूरत� के पैमाने पर, ह� आत्म-प्रािप्त क�
आवश्यकता है । यह �वकास से जुड़ी जरूरत� और अपने ल�य� क� उपलिब्ध होगी: चुनौ�तय�, आजाद�, सपन� क�
प्रािप्त और आत्म-�नयंत्रण पर काबू पाने।
व्यावसा�यक जीवन म� , इन जरूरत� को क�रयर �वकास, प्रचार, चुनौ�तय� म� स्वायत्तता, अपनी प�रयोजनाओं और �नणर्य
लेने म� अ�धक भागीदार� से जोड़ा जाता है ।
Maslow �परा�मड के महत्व और उपयोग—जैसा �क म�ने पहले उल्लेख �कया था, मास्लो के �परा�मड म� इसका व्यापक
उपयोग है व्यापार प्रबंधन। दो �ेत्र� म� रोजमरार् क� िजंदगी म� मास्लो के �सद्धांत पर भार� मात्रा म� आक�षर्त होता है : मानव
संसाधन प्रबंधन और �बक्र� और वा�णिज्यक प्रबंधन।
पीपल मैनेजम� ट म� मास्लो �परा�मड का उपयोग—एक प्रबंधक को लोग� के प्रबंधन म� इसका उपयोग करने के �लए मास्लो के
�परा�मड को सजाने क� आवश्यकता नह�ं है । बस इसके उपयोग के पीछे तकर् को जान�: प्रे�रत होने और पुरस्कार दे ने से पहले
अपने कमर्चा�रय� क� जरूरत� को समझ�।
म�ने अक्सर सुना है �क "मेर� ट�म अप्रसन्न है " और यह प�रणाम क� उपलिब्ध के �लए वषर् के अंत म� एक वसा बोनस के वादे
के बावजूद होता है । प्रबंधक को यह समझने क� जरूरत है �क प्रत्येक कमर्चार� एक व्यिक्त होता है और प्रत्येक व्यिक्त क�
अलग-अलग ज़रूरत होती है ।
ल�य� क� उपलिब्ध आत्म-प्रािप्त क� आवश्यकता है , और इसके बारे म� कोई प्रेरणा प्राप्त करने का कोई उपयोग नह�ं है य�द
व्यिक्त क� कुछ अन्य अनप
ु लब्ध आवश्यकता है । ऐसे समय होते ह� जब एक सहयोगी के पास व्यावसा�यक दायरे म� कुछ
और बु�नयाद� अनुपलब्ध आवश्यकता होती है । नेता को इस पर कायर् करना चा�हए।
अगर वह अिस्तत्व के �लए संघषर् कर रहा है तो आत्म-प्रािप्त के �लए कमर्चार� क� प्रेरणा को चाजर् करने का कोई तर�का नह�ं
है ।
यहां तक �क उन मामल� म� जहां आवश्यकता सख्ती से व्यिक्तगत है , प्रबंधक सहानुभू�त �दखा सकते ह� और �कसी भी तरह
से मदद करने क� को�शश कर सकते ह�। कमर्चार� �कसी अन्य समय कंपनी को परु स्कृत करे गा।
iz'u 7- foDVj ozwe osQ izR ;k'kk fl¼kUr dk vkykspukRed fo'ys"k.k dhft;sA
mÙkjµ दोस्त� इस आ�टर् कल म� हम समझ�गे क� अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत (Abhiprerna ka Prtyasha siddhant) क्या
है ?अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धान्त �कसने �दया? या दस
ू रे शब्द� म� कह� तो हम जान�गे �क �वक्टर व्रूम का �सद्धांत (Victor
Vroom Theory in Hindi) क्या है ? अतः इस पोस्ट म� पढ़ने वाले टॉ�पक को �नम्न नाम� से जान सकते ह� – प्रत्याशा �सद्धांत
(Prtyasha Siddhant), अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत, �वक्टर व्रूम का �सद्धांत
अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत—�वक्टर व्रम
ू ने अ�भप्रेरणा के प्रत्याशा �सद्धांत का प्र�तपादन �कया। यह �सद्धांत प्रयास,
�नष्पादन, तथा प्र�तफल म� सम्बन्ध बताता है ।
तो दोस्त� अगर कोई आपसे पूछे �क प्रत्याशा �सद्धांत या अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत �कसने �दया तो आप उत्तर द� गे
�क अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत �वक्टर व्रूम ने �दया।
�वक्टर व्रूम ने बताया �क अ�भप्रेरणा प्रत्याशा (expectancy), कतर्त्ृ व (instrumentality), सामथ्यर् (Valence) पर आधा�रत है ।
इसम� तीन श्रे�णय� म� सम्बन्ध बताया गया। जो �क इस प्रकार ह�-
प्रयास �नष्पादन सम्बन्ध (Efforts Performance Relation)—यह �कसी व्यिक्त द्वारा यह मान्यता होती है क� उसके
प्रयास उसे �नष्पादन क� और ले के जाय�गे यह हम� प्रत्याशा (Expectancy) के बारे म� बताती है ।
प्रत्याशा से आशय है क� प्रयास �नष्पादन और प�रणाम क� और ले जायेगा। यह आत्म प्रभा�वत ( Self – efficacy ) पर
आधा�रत होती है । प्रत्याशा का मूल्यांकन सम्भाव्यता (Probability) के रूप म� �कया जाता है । यह बीच घटती बढती रहती है ।
�नष्पादन प्र�तफल सम्बन्ध (Performance rewards relation)—यह �कसी व्यिक्त द्वारा यह मान्यता होतू है �क कायर्
�नष्पादन प्र�तफल और प�रणाम क� और ले जाती है । यह हम� कतर्त्ृ व (Instrumentality) के बारे मे बताती है ।
यह �नष्पादन और प्र�तफल के बीच सम्बंध बताती है । यह – 1 से + 1 के बीच घटता बढता रहता है ।
प्र�तफल व्यिक्तगत ल�य सम्बन्ध (Rewards personal goal relationship)—प्रत्येक व्यिक्त को �वश्वास होता है क�
उसके प्रयास उसे �निश्चत प�रणाम क� और ले जाय�गे।
प�रणाम क� शिक्त या प्रत्याशा िजतनी अ�धक होगी अ�भप्रेरणा का स्तर भी उतना अ�धक होगा। िजसे सामथ्यर् कहा जाता
है । इस �सद्धांत के अनुसार अ�भप्रेरणा सामथ्यर्,कतत्र्ृ व और प्रत्याशा के �मश्रण का प�रणाम है ।
इसे एक सूत्र ( formula ) द्वारा भी प्रद�शर्त �कया जा सकता है ।
अ�भप्रेरणा = सामथ्यर् × कतत्र्ृ व × प्रत्याशा
अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत (Victor Vroom Theory in Hindi)—तो उम्मीद है दोस्त� आपको प्रत्याशा �सद्धांत
(Prtyasha Siddhant), अ�भप्रेरणा का प्रत्याशा �सद्धांत (Abhiprerna ka Prtyasha Siddhant), �वक्टर व्रम
ू का �सद्धांत(
Victor Vroom ka siddhant) , Victor Vroom Theory in Hindi नामक यह टॉ�पक समझ आ गया होगा।

iz'u 8- uohu yksd iz'kklu osQ y{; rFkk fojksè kh y{; dh O;k[;k dhft;sA
mÙkjµ
iz'u 9- laxBukRed laL o`Qfr dks ifjHkkf"kr dhft;s rFkk mlosQ eq[ ; ?kVdksa dh ppkZ dhft;sA
mÙkjµ संगठन संरचना का �नमार्ण करना प्रबन्धक� का महत्वपूणर् कतर्व्य है । उपयक्ु त संगठन संरचना के �नमार्ण से ह�
उद्देश्य� क� प्रािप्त सम्भव है जो संगठन को ल�य प्रािप्त कराती परन्तु य�द संगठन संरचना दोषपूणर् हो तो यह संगठन को
�वनाश क� ओर ले जाती है । अत: संगठन संरचना को कइर् तत्व प्रभा�वत करते ह� िजनम� से कुछ प्रमुख ह�—
1. सगंठन के उ�दे श्य—सगंठन सरं चना के �नमार्ण से पूवर् यह प्रबधंक� को स्पष्ट होना चा�हए �क �कन उद्योग� क�
प्रािप्त हे तु संगठन का �नमार्ण �कया जा रहा है ।वस्तुत: संगठन स्वयं म� कोइर् उद्देश्य नह�ं होता, वह तो संस्था के
उद्देश्य� को प्राप्त करने का एक साधन मात्र है । इस�लये संगठन संरचना के चयन से पूवर् उद्देश्य� को ध्यान म� रखा
जाना चा�हए।
2. सगंठन का आकार—सगंठन का आकार भी सरं चना को प्रभा�वत करता है ।उद्देश्य� एवं संसाधन� क� उपलब्धता के
आधार पर संगठन संरचना का आकार �निश्चत �कया जाता है । छोटा संगठन होने पर �वकेन्द्र�कृत व्यवस्था
अपनायी जा सकती है । संगठन बड़ा होने पर केन्द्र�यकृत व्यवस्था ह� श्रेयस्कर होती है ।
3. सगंठन के कायर्—प्रत्येक सगंठन क� स्थापना �कसी �व�शष्ट उदद्◌ेश्य� क� पू�तर् के �लए क� जाती है । इसके �लए
�व�शष्ट प्रकार के काय� को सम्पन्न �कया जाता है । काय� क� प्रकृ�त भी संगठन संरचना को प्रभा�वत करती है ।
�नमार्णी संस्था होने पर संगठन संरचना, एक �व�नयोग संस्था क� संगठन संरचना से सवर्था �भन्न होगी। सेवा
प्रदाता संगठन, तथा वस्तु क� संरचनाओं म� परस्पर �भन्नता पायी जाती है । इस प्रकार संगठन के कायर् भी संगठन
संरचना को प्रभा�वत करते ह�।
4. बाजार क� दशा—बाजार क� दशा भी सगंठन सरं चना के �नधारर् ण म� सहायक होती है । प्र�तस्पधार् �कतनी है �कस
�दशा म� है उसका वेग �कतना है ? आ�द संगठन संरचना को �वस्तत
ृ संकु�चत करती है । उपभोक्ता बाजार है या
उत्पादक बाजार बाजार �कस जगह िस्थत है ? बाजार क� संरचना कैसी है इन पर भी �वचार करना पड़ता है । �कसी
भी व्यावसा�यक संगठन को बाजार क� दषा बहुत प्रभा�वत करती है क्य��क एक संगठन को बाजार म� ह� कायर्
करना है । बाजार म� ह� संगठन का �वकास होता है और बाजार म� ह� संगठन का समापन होता है । बाजार क�
सम्भावनाय� ह� संगठन को �वकास के �लये प्रे�रत करती ह� इसी�लये बाजार क� दषा संगठन संरचना के �न�धारण
म� महत्वपूणर् भू�मका �नभाती है ।
5. ू रचना—संगठन संरचना ऐसी होनी चा�हए जो प्रबंधक�य व्यह
प्रब्रंधक�य व्यह ू रचना के अनक
ु ू ल हो िजससे संगठन
सह� �दशा म� एवं �वकास के पथ पर ग�तशील हो सके। इस�लए प्रबंधक�य व्यूह रचना संगठन संरचना को प्रभा�वत
करती है । प्रत्येक संगठन क� उन्न�त या अवन�त सकल प्रबंधक�य व्यूह रचना पर आधा�रत होती है । प्रबंधक�य
व्यूह रचना क� सफलता के �लये यह आवश्यक है �क संगठन संरचना, व्यूह रचना म� सहायक हो न �क रणनी�त के
�क्रयान्वयन म� अवरोध उत्पन्न कर� । प्रबंधक�य रणनी�त म� समय पर प�रिस्थ�तय� के अनुसार प�रवतर्न भी
करना पड़ता है । इन तात्का�लक प�रवतर्न� को अपनाने म� भी संगठन संरचना सहायक होनी चा�हए।
6. वातावरण—दे श के राजनी�तक, सामािजक, आ�थर्क, धा�मर्क, वातावरण भी संगठन को प्रभा�वत करता है । प्रभावी
संगठन संरचना वह� होती है जो व्यावसा�यक वातावरण के अनुकूल हो एवं �वकास के पथ पर बढ़ने म� सहायक हो।
वातावरण म� प�रवतर्न के अनुसार ह� प्रबंधक�य रणनी�तय� म� भी प�रवतर्न होते रहते ह�। वातावरण ह� संगठन क�
ग�तषीलता को एक �दषा दे ते ह�। अनुकूल वातावरण म� संगठन का �वकास सहज होता है जब�क प्र�तकूल
वातावरण म� संगठन क� �वकास सहज नह�ं होता है । इसी�लए संगठन संरचना ऐसी होनी चा�हए �क संगठन
प्र�तकूल वातावरण म� �नबार्ध रूप से ग�तषील रह सके।
7. व्यापा�रक �ेत्र—व्यवसाय का �ेत्र भी संगठन संरचना को प्रभा�वत करता है । व्यवसाय स्थानीय �ेत्रीय प्रादे �शक,
राष्ट्र�य या अन्तरार्ष्ट्र�य स्तर का हो सकता है इस�लए यह अ�त आवश्यक है �क व्यापा�रक ��ेत्र को ध्यान म�
रखते हुए ह� संगठन संरचना को अपनाया जाय।
8. कमर्चा�रय� का मनो�व�ान—कमर्चा�रय� क� मनोदशा क� संगठन संरचना को प्रभा�वत करती है । य�द
कमर्चा�रय� क� सामािजक, आ�थर्क, मानवीय आवश्यकताओं क� संतुिष्ट होती रहती है और उनम� परस्पर आदर,
अपनत्व, स्वा�मभिक्त तथा सहयोग क� भावना जाग्रत रहती है तो यह संगठन के �लए लाभदायक होगी और य�द
कमर्चार� असंतुष्ट ह�गे तो वह संगठन को भी कुप्रभा�वत कर� गे।
9. अन्य घटक- संगठन संरचना को प्रभा�वत करने वाले अन्य घटक� म� बाजार का प्रकार, प्रथाएं, परम्पराएं, संगठन
क� संचालन �क्रयाय�, �नयंत्रण का �वस्तार, पद-समता प्रबंधक� क� योग्यता, प्रबंधक�य कायर्, �वभागीकरण,
�वकास क� दर आ�द प्रमुख ह�।

iz'u 10- uohu yksd izca/ u ifjizs{ ; osQ izHkko dk ijh{k.k dhft;sA
mÙkjµ एक शताब्द� के अल्पकाल म� ह� लोक प्रशासन जैसे अपे�ाकृत नए �वषय ने िजतने प�रवतर्न दे खे ह�, संभवत: वह
अपने आप म� उदाहरण है , एक प्र�क्रया के रूप म� तो लोक प्रशासन मानव जीवन के उद्भव के साथ ह� आरं भ हो गया था,
�कं तु �वषय के रूप म� यह एक शताब्द� पव
ू र् ह� प्रकाश म� आया, 1887 म� वड
ु रो �वल्सन के लेख ‘The Study of
Administration’ के साथ ह� लोक प्रशासन का एक �वषय प�रवतर्न के रूप म� जन्म हुआ तब से लेकर आज तक प�रिस्थ�त
के अनुसार लोक प्रशासन म� लगातार प�रवतर्न होते रहे ह�।
य�द यह कहा जाए �क प�रिस्थ�तय� के अनुरूप स्वयं को ढालना ह� लोक-प्रशासन क� सबसे महत्वपूणर् �वशेषता रह� है तो
अ�तशयोिक्त न होगी। एक शताब्द� पूवर् लोक प्रशासन म� ‘राजनी�त प्रशासन द्�व�वभाजन’ (Politics Administration
Dichotomy) का सत्र
ू पात �कया गया था वह�ं वतर्मान म� यह ‘कल्याणकार� राज्य’ क� ओर क��द्रत हो गया है ।
कल्याणकार� राज्य क� धारणा को मूतरू
र् प दे ने के प्रयास म� लोक प्रशासन म� अनेकानेक नवीन प्रविृ त्तय� का उभार हुआ है ,
इन नवीन प्रविृ त्तय� ने परं परागत लोक प्रशासन म� बु�नयाद� प�रवतर्न कर �दए ह�। प�रणामत: यह एक नए रूप म� उभरा है ,
इस प�रव�तर्त लोक प्रशासन को नवीन लोक प्रशासन का नाम �दया गया है ।
यद्य�प नवीन लोक प्रशासन क� यह प्रव�ृ त 1940 से प्रकाश म� आई है तथा�प इसका उभार बीते तीन दशक� म� तेजी से हुआ
है । इतने कम समय म� ह� लोक प्रशासन क� यह �वधा लोक�प्रयता के �शखर पर पहुंच गई है ।
2. नवीन लोक प्रशासन क� प्रकृ�त (Nature of New Public Administration):
�वगत तीन दशक� म� नवीन लोक प्रशासन ने प्रबंध �वचारक� को सामािजक, आ�थर्क, राजनी�तक प�रवतर्न� का प्रमुख
एजेन्ट बना �दया है । यह माना जाने लगा है �क हमारा पारं प�रक लोक प्रशासन इस समय वैध नह�ं है ।
इसके नेपथ्य म� सवर्प्रथम कारण यह माना जाता है �क पुरातन लोक प्रशासन के �सद्धांत उन तत्व� को पहचानने म� �वफल
रहे ह� जो सावर्ज�नक �ेत्र म� प्रभावका�रता व द�ता के प्रेरक ह�, परु ातन लोक प्रशासन के �सद्धांत थे-मल्
ू यशून्यता, द�ता,
�नष्प�ता, कायर्कुशलता, जब�क नवीन लोक प्रशासन, नै�तकता उत्तरदा�यत्व प्रणाल� पर बल दे ता है । यह माना जाने लगा
है �क नवीन लोक प्रशासन सामािजक प�रवतर्न का सवर्श्रेष्ठ संवाहक है तथा यह ल�योम्मुखी है ।जैसा �क फ्रेड�रक्सन का
�वचार है - ”नवीन लोक प्रशासन कम व्यापक अथवा लोक�प्रय और अपने पूवज
र् � क� अपे�ा अ�धक सावर्ज�नक, कम
वणार्त्मक और अ�धक परं परागत एवं आदे शात्मक, कम संरथानोमुख और अ�धक मुविक्कल पर प्रभावोम्मुख, कम तटस्थ
एवं अ�धक मानक�य आदशर् है ।”
नवीन लोक प्रशासन क� �वशेषताएं—
नवीन लोक प्रशासन क� �वशेषताओं को �नम्न�ल�खत �बंदओ
ु ं के अंतगर्त समझा जा सकता है :
1. राजनी�त तथा प्रशासन का द्�व�वभाजन अप्रासं�गक—प्राचीन लोक प्रशासन क� सवार्�धक महत्वपूणर् �वशेषता
राजनी�त बनाम प्रशासन थी। तत्काल�न लेखक� ने राजनी�त तथा प्रशासन को दो ऐसे �बंदओ
ु ं के रूप म� व्यक्त
�कया जो एक-दस
ू रे से पण
ू त
र् : अलग ह�। नवीन लोक प्रशासन के �वचारक� ने इस अवधारणा को अब �नरस्त कर
�दया है ।
नए �वचारक� का मानना है �क राजनी�त तथा प्रशासन को अलग-अलग रूप म� दे खने पर दोन� �वधाएं अपूणर् रहती
है तथा समाज के प्र�त अपने उतरदा�यत्व का सह� रूप म� �नवर्हन नह�ं कर पाती है । अब यह माना जाता है �क उक्त
दोन� �वधाएं अ�भन्न रूप से जुड़ी ह�।
यह भी माना जाता है �क दोन� �वधाओं क� एक-दस
ू रे पर प्र�त�क्रया होती रहती है । नवीन लोक प्रशासन के एक
अन्य प्रमुख �वचारक पॉल एप्लबी का �वचार है �क राजनी�त तथा प्रशासन को अलग-अलग �बंद ु मानने पर लोक
प्रशासन क� स्वीकायर्ता तो कम होगी ह� साथ ह� कल्याणकार� राज्य क� अवधारणा ध्वस्त हो जाएगी। उनका
�वचार है �क नी�त का �नमार्ण ह� लोक प्रशासन है इस�लए यह द्�व�वभाजन अवास्त�वक, अप्रासं�गक व
अव्यवहायर् है ।
एक अन्य �वचार रॉबटर् ट�, गोलमव्यस्
ू क� तो प्रशासन को राजनी�त पर हावी मानते हुए कहते ह� �क प्रशासन
महत्वपूणर् काय� म� राजनी�त को बदल सकता है न �क राजनी�त, प्रशासन को। राजनी�त और प्रशासन को पथ ृ क्
करना संभव नह�ं है ।
2. प्रभावोत्पादकता—पुरातन लोक प्रशासन क� सवार्�धक महत्वपूणर् �वशेषताओं म� से एक ‘�मतव्ययता तथा
कायर्कुशलता’ थी, �कं तु कल्याणकार� राज्य क� अवधारणा को साथर्क करने के प्रयास म� अब लोक�प्रय सरकार� ने
�मतव्ययता जैसे शब्द को भल
ु ा �दया है । अब सरकार� इस �दशा म� प्रयासरत ् ह� �क कैसे जनता को अ�धका�धक
राहत द� जाए।
समाजशास्त्री उसी सरकार को बेहतर ठहराते ह� जो सामािजक संवेदनाओं को समझ सके, कहा जाने लगा है �क
�मतव्ययता का स्थान सामािजक कायर्कुशलता ने ग्रहण कर �लया है तथा लोक प्रशासन अब क�तपय प्र�क्रयाओं
व व्यवसाय� से �नकलकर सामुदा�यक प्र�क्रयाओं म� शा�मल हो चुका है ।
लोक प्रशासन को अ�धका�धक प्रभावोम्मख
ु बनाए जाने के �लए सरकार� अब घाटे का बजट बनाकर भी जनता को
लाभ पहुंचाना अपना ध्येय समझने लगी ह�। इसे ह� श्रेयस्कर माना जाता है समाज भी इसे ह� मान्यता दे ता है ।
3. मानवीय दृिष्टकोण—पुरातन लोक प्रशासन म� �सद्धांत� का इस तरह बोलबाला था �क सम्पूणर् तन्त्र म� मनुष्य मात्र
एक कलपुजार् समझा जाता था। क्ला�सकल �सद्धांत तथा वै�ा�नक प्रबंधन म� मनुष्य को आ�थर्क जीव कहा गया
और मानवीयता को कोई स्थान नह�ं �दया गया।
नवीन लोक प्रशासन म� मनष्ु य को मात्र आ�थर्क तराजू म� नह�ं तौला गया है और यह प्रद�शर्त करने क� चेष्टा क�
गई है �क अब प्रशासन काय�म्मख
ु होने क� अपे�ा मानवोम्मुखी हो। नवीन लोक प्रशासन के उभार के पश्चात ्
प्रत्येक राजनी�तक प्रशास�नक �क्रया का क�द्र �बंद ु मनुष्य बन गया है जो लोक प्रशासन क� नवीन �वचारधारा को
�नमूल
र् घो�षत करती है िजसम� मनुष्य को उत्पादन का यंत्र माना जाता है ।
4. ग्राहक क��द्रत प्रशासन—नव लोक प्रशासन ग्राहक क��द्रत प्रशासन पर बल दे ता है । नीग्रो एवं नीग्रो के शब्द� म�
“लोक सेवाओं का अ�धका�धक प्रभावशाल� तथा मानवीय �वतरण उसी िस्थ�त म� साथर्क �सद्ध हो सकता है ,
जब�क ग्राहक क��द्रत प्रशासन के साथ प्रशासन म� नौकरशाह� को दरू �कया जाए।”
5. एक प्रग�तशील �व�ान—पुरातन लोक प्रशासन के लेखक� ने इस �वषय को �व�ान के रूप म� स्था�पत करने के
प्रयास म� �व�भन्न �सद्धांतो व तकनीक� क� खोज क�, �कं तु नवीन लोक प्रशासन के समथर्क यह मानते ह� �क
�सद्धांत व तकनीक� के कारण लोक प्रशासन क� मूल आत्मा नष्ट हो जाती है िजसके कारण लोक प्रशासन एक
अनपे��त दृढ़ता क� ओर अग्रसर हो जाता है ।
नवीन लोक प्रशासन अ�धकतम स्तर पर लोक प्रशासन का स्वरूप एक प्रग�तशील �व�ान के रूप म� दे खते ह�। रॉबटर् डाहल
जैसे लेखक ने तो लोक प्रशासन को �व�ान �वषय मानने पर गंभीर �चंता व्यक्त क� है । नवीन लोक प्रशासन के समथर्क
मानते ह� �क लोक प्रशासन के अपने शाश्वत अथवा सवर्व्यहायर् �सद्धांत ह�, �कं तु कोई सामान्य �सद्धांत नह�ं है , जैसा �क बनार्डर्
का मानना है �क पारं प�रक लोक प्रशासन के �सद्धांत नवीन संदभ� म� मुहावर� से कम नह�ं ह�।
नवीन प�रप्रे�य म� यह कहा जाता है �क पारं प�रक लोक प्रशासन का कोई �सद्धांत एकल रूप म� �नरू�पत नह�ं �कया जा
सकता। उदाहरण के रूप म� ‘आदे श क� एकता’ (Unity of Command) को �लया जा सकता है । इस �सद्धांत का मूल यह है �क
कोई भी कमर्चार� अपने से व�रष्ठ मात्र एक अ�धकार� क� आ�ा का पालन करे गा। वतर्मान संदभ� म� यह हास्यास्पद ह�
प्रतीत होता है , क्य��क प्रत्येक कमर्चार� बहुआयामी कायर् करता है और इस प�रिस्थ�त म� मात्र एक अ�धकार� क� आ�ा
मानना प्रशासन म� दृढ़ता क� िस्थ�त उत्पन्न करे गा।
इसी प्रकार पदसोपा�नक (Hierarchy) �सद्धांत का भी पण
ू त
र् या पालन नह�ं �कया जा सकता है । वस्तिु स्थ�त स्पष्ट हो जाती है
�क लोक प्रशासन के अपने कुछ �सद्धांत अवश्य हो सकते ह�, �कं तु उसम� पयार्प्त नमनीयता उपिस्थत है । लोक प्रशासन के
�सद्धांत ग�णतीय �सद्धांत� क� तरह कठोर नह�ं है ।
अतएव पुरातन �वचारक� क� यह प�रकल्पना है �क लोक प्रशासन �व�ान है । नवीन लोक प्रशासन म� उक्त महत्वपूणर्
�बंदओ
ु ं के दशर्न होते ह�। इन �बंदओ
ु ं के आधार पर नवीन लोक प्रशासन क� प्रकृ�त एवं प्रविृ त्त को सहज रूप से समझा जा
सकता है ।
नवीन लोक प्रशासन को समाज के प्र�त अपनी प्र�तबद्धता के �लए प्रे�रत करती है , नवीन लोक प्रशासन सम्प्र�त पी.पी.बी.
�सद्धांत पर कायर् कर रहा है , इसे �वस्तत
ृ रूप म� कायर्क्रम �नयोजन, �क्रयान्वयन, बजट (Programme, Planning,
Budgeting) कहा जाता है , इसी प्रकार नवीन लोक प्रशासन �नयोजन पर प्राथ�मक दृिष्ट क��द्रत करना है ।
नवीन लोक प्रशासन क� एक अन्य �वशेषता प्रशास�नक प्रयास� क� प्र�क्रयाओं और संरचनाओं तथा उनके ल�य� के आपसी
संबंध� पर अ�धक स्पष्ट �चन्तन करना है , नवीन लोक प्रशासन अब अ�धका�धक सामािजक और मनोवै�ा�नक रूख
अपनाए हुए है ।
इस प्रयास म� नवीन लोक प्रशासन के एजेन्ट सत्ता का अ�धकतम �वक�द्र�करण करने पर बल दे ते ह�। भारत म� पंचायती राज
इसी �वक�द्र�करण का प्र�तफल है । स्थानीय व्यिक्तय� को दे श क� नी�त �नमार्ण संस्था म� बनाए रखे जाने का प्रयास नवीन
लोक प्रशासन लगातार कर रहा है । नवीन लोक प्रशासन के समथर्क सामािजक न्याय को मानवीय �वकास का पथ प्रदशर्न
करने हे तु सव�तम वाहक समझते ह�। नवीन लोक प्रशासन म� अ�धका�रय� क� �नष्प�ता को भी अनुपयुक्त ठहराया गया है ।
नवीन लोक-प्रशासन का �वचार है �क लोक सेवक� को दलगत तटस्थता तो बनाए रखनी चा�हए, �कं तु सामािजक और अन्य
कायर्क्रम� को लागू करते हुए उन्ह� �नष्प�ता का आवरण हटा दे ना चा�हए �क वे अपनी स्वेच्छा का प्रयोग समाज म� अल्प
सु�वधाओं वाले समूह� के �हत� क� र�ा करने के �लए कर� ।
नवीन लोक-प्रशासन इस बात पर भी जोर दे ता है �क प्रशास�नक अध्ययन करते समय पारदे शीय (International) अध्ययन
पर गौर �कया जाए, प्रशासन के काय� म� तभी संपूणत
र् ा आ सकती है जब �व�भन्न दे श� क� प्रशास�नक प्रणा�लय� का
तुलनात्मक अध्ययन �कया जाए।
हाल के वष� म� नवीन लोक-प्रशासन को और अ�धक अ�भनव बनाए जाने का प्रयास �कया गया है । डे�वड रचने तथा टे ड
�गब्लर क� कृ�त ‘Reinventins Government: How the Entrepreneurial Spirit is Transforming the Public Sector’ म�
एक और सकारात्मक प्रयास दे खने को �मलता है ।
इस पुस्तक म� उन्ह�ने दस सूत्रीय कायर्क्रम का सुझाव �दया है िजसे वे ‘उद्यमकतार् शासन’ (Entrepreneurial
Government) कहते ह�। इसक� �वशेषताओं का उल्लेख करते हुए लेखक ने कहा �क उद्यमकतार् शासन �हत� तथा सेवाओं म�
�भन्न उपलब्धकतार्ओं के मध्य प्र�तस्पधार् प्रोत्सा�हत करते ह�।
इस शासन म� अ�धका�धक �वक�द्र�करण, कल्याणकार� बजट, बाजार�य संरचना पर जोर �दया जाता है । उद्यमकतार् शासन
म� क�ठनाइय� को पण
ू र् आकार लेने क� बजाय उसके इलाज के स्थान पर उनके �नवारण को महत्व दे ते ह�।
इस प्रकार नवीन लोक-प्रशासन का दशर्न परं परागत �सद्धांत� को बहुत हद तक खा�रज करता है । नवीन लोक-प्रशासन के
अनेक �वचारक इसे नए रूप म� एक मौ�लक �वषय के रूप म� प्रस्तुत करते ह�, �कं तु कुछ �वचारक नवीन लोक-प्रशासन को
परं परागत प्रशासन के संशो�धत रूप से और ज्यादा नह�ं मानते ह�।

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