Professional Documents
Culture Documents
Big File Raat Ko Full Done Sahi He Yahi Sirf Bhejni Ghe Jnvu Geeta Awasthi Project
Big File Raat Ko Full Done Sahi He Yahi Sirf Bhejni Ghe Jnvu Geeta Awasthi Project
विधि विभाग
शोध निबंध
गैर सैद्धांतिक
सत्र - 2019 - 20
विषय - भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओ की स्थति
मार्गदर्शन में - प्रस्तुत कर्ता -
डॉ. के .आर. मेघवाल गीता श्रीमाली
[ असिस्टेंट प्रोफे सर ] LL.M – THIRD SEM.
CERTIFICATE
It is certified that the work imposed is this dessertation on the topic of
“BHARITIYA PARIPREKSHYA ME MAHILAON KI STITI” was carried out by
MRS GEETA SHREEMALI under my guidence and supervision. I grant her
permission to submit the dessertation in completion for recommend paper
of seventh of the degree LLM 3rd sem. 2019-20.
DR. KR MEGHWAL
[Assistant Professor]
Department of law
DECLERATION
I GEETA SHREEMALI the student of LLM. 3rd sem. Faculty of law JNVU
Jodhpur [RAJ.] do hear by deaclares that this dessertation paper is being
completed & result of my own efforts.
HUMAN RIGHTS
ACKNOLEDGEMENT
I give a great gratitude to MR KR. MEGHWAL [Assistant Professor] Faculty
Of Law JNVU Jodhpur [RAJ.] who guided me for my research work. I really
thankful to sir for providing valuable guidance in my research work.
For compleating the present study I got assistance valuable advice &
suggestion directly or indirectly from my teacher & my well wisher, social
media & special gratitude to my parents who took keen intrest in my work
& impared me.
HUMAN RIGHTS
1. प्रस्तावना
2. स्वतंत्र भारत
3. श्रमशक्ति की भागीदारी
4. भूमि और संपत्ति संबंधी अधिकार
5. महिलाओ से संबंधित अपराध
6.
महिलाओं से संबंधित मुद्दे
7.
महिलाओं के अधिकार
8.
बच्चा गोद लेने के कानून
9.
महिला सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजनाएं
10.
राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति [2001]
11.
महिलाओं के संवैधानिक एवं विधिक अधिकार
12.
महिलाओं के लिए संवैधानिक उपबंध
13.
विधिक उपबंध
14.
प्रशनोत्तरी
15.
निष्कर्ष एवं सुझाव
अनुक्रमणिका
भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओ की स्थति
[1] प्रस्तावना :-
पिछले हजारों सालों में समाज के अन्दर महिलाओं की स्थिति में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव हुआ है। अगर गुज़रे चालीस-पचास
सालों को ही देखे तो हमें पता चलता है की महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक़ मिले इस पर बहुत ज्यादा काम किया गया है। पहले
के ज़माने में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर सख्त पाबन्दी थी। वे घर की चारदीवारी के अन्दर रहने को मजबूर थी। उनके
जीवन का एकमात्र लक्ष्य यही था की उन्हें अपने पति और बच्चों का ख्याल रखना है। महिलाओं के साथ न तो पुरुषों जैसा व्यव्हार
किया जाता था और न ही उन्हें पुरुषों जैसी अहमियत दी जाती थी। अगर वेदों के समय की बात की जाए तो उस वक़्त महिलाओं
की शिक्षा-दीक्षा का खास ख्याल रखा जाता था। इसके उदाहरण हम प्राचीन काल की पुस्तकों में भी देख सकते है।
अगर हम वेदों का अध्ययन करे तो उसमें हमें यह साफ़ देखने को मिलता है की उस वक़्त की औरतों को अपनी शिक्षा पूरी करने की
छू ट थी तथा उनका विवाह भी उन्हीं की रजामंदी से होता था। गार्गी और मैत्रयी नाम की दो महिला संतो का उदाहरण रिगवेद और
उपनिषदों में दिया हुआ है। इतिहास की मानें तो महिलाओं का पतन समृतियों (मनुसमृति) के साथ शुरू हुआ। धीरे धीरे भारत में
इस्लामी और ईसाई आगमन से महिलाओं से उनके हक़ छिनते चले गए। महिलाएं सामाजिक बेड़ियों में बंधकर रहने लगी जिनमें
प्रमुख थी सती प्रथा, बाल—विवाह, बालश्रम, विधवाओं के पुनःविवाह पर रोक आदि।
पर्दा प्रथा की शुरुआत भारत में मुस्लिम धर्म के आने के बाद हुई। राजस्थान के राजपूत समाज द्वारा गौहर नाम के रिवाज़ का
अनुगमन किया जाता था। मंदिर में जो महिलाएं थी उनका अमीर तथा प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता था। पर
आज के समय की बात की जाए तो महिलाएं हर क्षेत्र (जैसे राजनीती, सामाजिक कार्य, तकनीकी विभाग, खेल-कू द आदि) में अपना
योगदान बिना किसी डर के दे रही है। महिलायें हर जगह नेतृत्व करती दिख रही है बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पुरुषों से दो
कदम है। हम यह तो नहीं कह सकते की महिलाओं की स्थिति में सौ फीसदी बदलाव आया है पर इतना जरुर कह सकते है की
महिलाएं अब अपने अधिकारों के लिए और भी अधिक जागरूक हो गयी है।
भारत के आजाद होने के बाद महिलाओं की दशा में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं को अब पुरुषों के समान अधिकार मिलने लगे
है। महिलाएं अब वे सब काम आजादी से कर सकती है जिन्हें वे पहले करने में अपने आप को असमर्थ महसूस करती थी। आजादी
के बाद बने भारत के संविधान में महिलाओं को वे सब लाभ, अधिकार, काम करने की स्वतंत्रता दी गयी है जिसका आनंद पहले
सिर्फ पुरुष ही उठाते थे। वर्षों से अपने साथ होते बुरे सुलूक के बावजूद महिलाएं आज अपने आप को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त
पाकर और भी ज्यादा आत्मविश्वास से अपने परिवार, समाज तथा देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए लगातार कार्य कर रही
है।
हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। इसका मतलब देश की उन्नति का आधा दारोमदार महिलाओं पर
और आधा पुरुषों के कं धे पर निर्भर करता है। हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते उस समय का जब इसी आधी जनसँख्या को वे
मूलभूत अधिकार भी नहीं मिल पाते थे जिनकी वे हक़दार है। उन्हें अपनी जिंदगी अपनी ख़ुशी से जीने की भी आजादी नहीं थी।
परन्तु बदलते वक़्त के साथ इस नए ज़माने की नारी ने समाज में वो स्थान हासिल किया जिसे देखकर कोई भी आश्चर्यचकित रह
जायेगा। आज महिलाएं एक सफल समाज सुधारक, उधमी, प्रशासनिक सेवक, राजनयिक आदि है।
महिलाओं की स्थिति में सुधार ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार के मायने भी बदल कर रख दिए है। दूसरे विकासशील देशों
की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर है। यद्यपि हम यह तो नहीं कह सकते कि महिलाओं के हालात पूरी
तरह बदल गए है पर पहले की तुलना में इस क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में महिलाएं अपने अधिकारों
के प्रति पहले से अधिक सचेत है। महिलाएं अब अपनी पेशेवर जिंदगी (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक) को लेकर बहुत अधिक
जागरूक है जिससे वे अपने परिवार तथा रोजमर्रा की दिनचर्या से संबंधित खर्चों का निर्वाह आसानी से कर सके ।
महिलाएं अब लोकतंत्र और मतदान संबंधी कार्यो में भी काफी अच्छा काम कर रही है जिससे देश की प्रशासनिक व्यवस्था सुधर रही
है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। उदाहरण के तौर पर मतदान के दिन मतदान कें द्र पर हमें
पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की उपस्थिति नज़र आएगी। इंदिरा गाँधी, विजयलक्ष्मी पंडित, एनी बेसंट, महादेवी वर्मा, सुचेता
कृ पलानी, पी.टी उषा, अमृता प्रीतम, पदमजा नायडू , कल्पना चावला, राजकु मारी अमृत कौर, मदर टेरेसा, सुभद्रा कु मारी चौहान
आदि कु छ ऐसे नाम जिन्होंने महिलाओं की जिंदगी के मायने ही बदल कर रख दिए है। आज नारी बेटी, माँ, बहन, पत्नीं के रूप में
अलग अलग क्षेत्र जैसे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, विज्ञान तथा और विभागों में अपनी सेवाएं दे रही है। वे अपनी पेशेवर
जिंदगी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही है। महिलाओं की दशा सुधारने में इतना सब होने के बाद भी
हमे कहीं न कहीं उनके मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न से जुडी ख़बरें सुनने को मिल जाती है।
भारत सरकार ने हाल ही में महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पुराने जुवेनाइल कानून 2000 को
बदलते हुए नए जुवेनाइल जस्टिस (चिल्ड्रेन के यर एंड प्रोटेक्शन) बिल 2015 को लागू किया है। इसे खास-तौर पर निर्भया के स
को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इस कानून के अंतर्गत कोई भी किशोर जिसकी आयु 16 से 18 साल के बीच है और वह
जघन्य अपराध में शामिल है तो उस पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जा सके गी।
भारत सरकार ने 2001 को महिलाओं के सशक्तीकरण (स्वशक्ति) वर्ष के रूप में घोषित किया था। महिलाओं के सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति
2001 में पारित की गयी थी।
2006 में बलात्कार की शिकार एक मुस्लिम महिला इमराना की कहानी मीडिया में प्रचारित की गयी थी। इमराना का बलात्कार उसके ससुर ने
किया था। कु छ मुस्लिम मौलवियों की उन घोषणाओं का जिसमें इमराना को अपने ससुर से शादी कर लेने की बात कही गयी थी, व्यापक रूप से
विरोध किया गया और अंततः इमराना के ससुर को 10 साल की कै द की सजा दी गयी। कई महिला संगठनों और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ
बोर्ड द्वारा इस फै सले का स्वागत किया गया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन बाद, 9 मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पारित कर दिया जिसमें संसद और राज्य की
विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था है।
पुलिस रिकॉर्ड में महिलाओं के खिलाफ भारत में अपराधों का उच्च स्तर दिखाई पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने 1998 में यह जानकारी दी
थी कि 2010 तक महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की विकास दर जनसंख्या वृद्धि दर से कहीं ज्यादा हो जायेगी. पहले बलात्कार और छेड़छाड़ के
मामलों को इनसे जुड़े सामाजिक कलंक की वजह से कई मामलों को पुलिस में दर्ज ही नहीं कराया जाता था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं
के खिलाफ दर्ज किये गए अपराधों की संख्या में नाटकीय वृद्धि हुई है।
1990 में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज की गयी अपराधों की कु ल संख्या का आधा हिस्सा कार्यस्थल पर छेड़छाड़ और उत्पीड़न से संबंधित
था। लड़कियों से छेड़छाड़ (एव टीजिंग) पुरुषों द्वारा महिलाओं के यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक चालबाज तरकीब
(युफे मिज्म) है। कई कार्यकर्ता (एक्टिविस्ट) महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के लिए "पश्चिमी संस्कृ ति" के प्रभाव को
दोषी ठहराते हैं। विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखनों, पेंटिंग्स, चित्रों या किसी एनी तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व को रोकने के लिए 1987
में महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम पारित किया गया था। 1997 में एक ऐतिहासिक फै सले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने
कार्यस्थल में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक मजबूत पक्ष लिया। न्यायालय ने शिकायतों से बचने और इनके निवारण के लिए विस्तृत
दिशा-निर्देश भी जारी किया। बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन दिशा-निर्देशों को नियोक्ताओं के लिए एक आचार संहिता के रूप में प्रस्तुत किया।
[B] दहेज:-
1961 में भारत सरकार ने वैवाहिक व्यवस्थाओं में दहेज़ की मांग को अवैध करार देने वाला दहेज निषेध अधिनियम पारित किया।[ हालांकि दहेज-
संबंधी घरेलू हिंसा, आत्महत्या और हत्या के कई मामले दर्ज किये गए हैं। 1980 के दशक में कई ऐसे मामलों की सूचना दी गयी थी।
1985 में दहेज निषेध (दूल्हा और दुल्हन को दिए गए उपहारों की सूचियों के रख-रखाव संबंधी) नियमों को तैयार किया गया था। इन नियमों के
अनुसार दुल्हन और दूल्हे को शादी के समय दिए गए उपहारों की एक हस्ताक्षरित सूची बनाकर रखा जाना चाहिए। इस सूची में प्रत्येक उपहार,
उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए।
हालांकि इस तरह के नियमों को शायद ही कभी लागू किया जाता है।
1997 की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि दहेज़ के कारण प्रत्येक वर्ष कम से कम 5,000 महिलाओं की मौत हो जाती है और ऐसा
माना जाता है कि हर दिन कम से कम एक दर्जन महिलाएं जान-बूझकर लगाई गयी "रसोईघर की आग" में जलाकर मार दी जाती हैं। इसके लिए
उपयोग किया जाने वाला शब्द है "दुल्हन की आहुति" (ब्राइड बर्निंग) और स्वयं भारत में इसकी आलोचना की जाती है। शहरी शिक्षित समुदाय के
बीच इस तरह के दहेज़ उत्पीड़न के मामलों में काफी कमी आई है।
भारत में बाल विवाह परंपरागत रूप से प्रचलित रही है और यह प्रथा आज भी जारी है। ऐतिहासिक रूप से कम उम्र की लड़कियों को यौवनावस्था
तक पहुँचने से पहले अपने माता-पिता के साथ रहना होता था। पुराने जमाने में बाल विधवाओं को एक बेहद यातनापूर्ण जिंदगी देने, सर को मुंडाने,
अलग-थलग रहने और समाज से बहिष्कृ त करने का दंड दिया जाता था। हालांकि 1860 में बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था
लेकिन आज भी यह एक आम प्रथा है।
यूनिसेफ की "स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन-2009" की रिपोर्ट के अनुसार 20-24 साल की उम्र की भारतीय महिलाओं के 47% की शादी
18 साल की वैध उम्र से पहले कर दी गयी थी जिसमें 56% महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से थीं। रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया कि दुनिया भर में होने
वाले बाल विवाहों का 40% अके ले भारत में ही होता है।
भारत में पुरुषों का लिंगानुपात बहुत अधिक है जिसका मुख्य कारण यह है कि कई लड़कियां वयस्क होने से पहली ही मर जाती हैं। भारत के
जनजातीय समाज में अन्य सभी जातीय समूहों की तुलना में पुरुषों का लिंगानुपात कम है। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि आदिवासी समुदायों के
पास बहुत अधिक निम्न स्तरीय आमदनी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं। इसलिए कई विशेषज्ञों ने यह बताया है कि भारत में पुरुषों का उच्च
स्तरीय लिंगानुपात कन्या शिशु हत्या और लिंग परीक्षण संबंधी गर्भपातों के लिए जिम्मेदार है।
जन्म से पहले अनचाही कन्या संतान से छु टकारा पाने के लिए इन परीक्षणों का उपयोग करने की घटनाओं के कारण बच्चे के लिंग निर्धारण में
इस्तेमाल किये जा सकने वाले सभी चिकित्सकीय परीक्षणों पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया है। कु छ ग्रामीण क्षेत्रों में कन्या शिशु ह्त्या (कन्या
शिशु को मार डालना) आज भी प्रचलित है।[25] भारत में दहेज परंपरा का दुरुपयोग लिंग-चयनात्मक गर्भपातों और कन्या शिशु ह्त्याओं के लिए
मुख्य कारणों में से एक रहा है।
घरेलू हिंसा की घटनाएं निम्न स्तरीय सामाजिक-आर्थिक वर्गों (एसईसी) में अपेक्षाकृ त अधिक होती हैं।[51] घरेलू हिंसा कानून, 2005 से
महिलाओं का संरक्षण 26 अक्टू बर 2006 को अस्तित्व में आया।
[F] तस्करी:-
अनैतिक तस्करी (रोक) अधिनियम 1956 में पारित किया गया था। हालांकि युवा लड़कियों और महिलाओं की तस्करी के कई मामले दर्ज किये गए
हैं। इन महिलाओं को वेश्यावृत्ति, घरेलू कार्य या बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता रहा है।
घरेलू हिंसा को घरेलू दुर्व्यवहार, बाल दुर्व्यवहार और अन्तरंग साथी हिंसा भी कहा जाता है। मोटे तौर पर इसे एक अन्तरंग संबंध जैसे
शादी, डेटिंग, परिवार, दोस्तों या सहवास में दोनों भागीदारोंद्वारा अपमानजनक व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
घरेलू हिंसा के कई प्रकार है जैसे शारीरिक दुर्व्यवहार (मारना, लात मारना, काटना, वस्तुएं फें कना), यौन शोषण, भावनात्मक दुर्व्यवहार, जबरदस्ती,
धमकियां देना, तिरस्कार करना, गुप्त दुर्व्यवहार और आर्थिक अभाव।
घरेलू हिंसा एक दंडनीय अपराध है।
[D] रिंग द बेल:-
नवीन संचार माध्यम के उपयोग से ‘बेल बजाओ” एक ऐसा राष्ट्रीय अभियान है जिसकी पहुंच पूरे भारत में है। यह अभियान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,
अभियान राजदूत और फ़िल्म स्टार ‘बोमन ईरानी’ के समर्थन से अगस्त, 2008 में शुरू किया गया था।
घर हो या बाहर प्रत्येक महिला काम करती दिखती हैं । प्रत्येक महिला कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अवश्य ही काम करती हैं । कु छ महिलाएं
के वल घर सम्भालने हेतु ही अपना पूरा दिन व्यतीत करती हैं जबकि कु छ महिलाएं घर को सम्भालने के साथ-साथ परिवार को आर्थिक सहयोग
प्रदान करने के लिए घर के बाहर भी काम करती हैं । इन महिलाओं को मालूम होना चाहिए कि भारतीय संविधान के अन्तर्गत उनके कु छ मूल
अधिकार हैं जो कि सरकार द्वारा कानून बनाकर लागू किये गये हैं ।
(i) प्रत्येक काम करने वाली महिला को अपने काम या श्रम के लिए सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए ।
(ii) एक ही तरह के या मिलते-जुलते काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के समान ही पारिश्रमिक मिलना चाहिए ।
(iii) महिलाओं को गर्भावस्था व प्रसूति से सम्बन्धित कु छ विशेष अधिकार दिये गये हैं ।
(i) सरकार द्वारा तय किये गये वेतन की न्यूनतम दर किये गये काम के हिसाब से निश्चित की गई है ।
(ii) अगर किसी ने न्यूनतम दर से नीचे काम करना स्वीकार किया है तो भी मालिक न्यूनतम वेतन देने के लिए बाध्य है ।
(iii) वेतन की न्यूनतम दर आयु, काम के घंटे, दिन और महीनों के हिसाब से निश्चित की जाती है ।
(i) एक या समान तरह के काम के लिए महिला एवं पुरुष को समान वेतन मिलना चाहिए ।
(ii) जिस काम पर पुरुषों की भर्ती की जाये, उस काम पर महिलाओं को भी भर्ती होने का अधिकार है अगर वह उस काम की योग्यता रखती है ।
(i) महिलाओं के लिए अलग शौचालय और दरवाजे वाले गुसलखाने होने चाहिए ।
(ii) जहाँ 30 से अधिक महिलाएं काम करती हों वहाँ पर एक ‘क्रे श’ या झूलाघर यानि बच्चों की देखभाल के लिए जगह जरूर होनी चाहिए ।
(iv) महिलाओं से किसी चलती मशीन को साफ करवाना या तेल लगवाना मना है ।
(v) महिलाओं से एक सप्ताह में 48 घंटों से अधिक काम नहीं लिया जा सकता ।
(vi) औरतों से फै क्टरी में ओवर टाइम काम नहीं लिया जा सकता ।
(vii) सप्ताह में एक दिन अवकाश यानि छु ट्टी जरूर मिलनी चाहिए ।
(viii) 5 घंटों से अधिक लगातार काम नहीं कराया जा सकता तथा काम सिर्फ सुबह 6 बजे से रात के 7 बजे के बीच कराया जा सकता है ।
(ii) मालिक द्वारा प्रसूति से पहले और बाद की डॉक्टरी सुविधा उपलब्ध न कराने पर चिकित्सा का खर्च देना होगा ।
(iv) बच्चे को दूध पिलाने के लिए महिला को दिन में दो बार समय मिलेगा । बच्चे के 15 महीने के होने तक उसे यह सुविधाएं मिलती रहेंगी ।
यदि उपरोक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं तो निम्नलिखित अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करना
चाहिए:
अगर काम करते समय कोई दुर्घटना हो जाये या काम के कारण कोई गम्भीर बीमारी हो जाए या मृत्यु हो जाये तो ऐसे लोगों को या उनके वारिसों को
उनके मालिकों से मुआवजा मिलना चाहिए ।
यदि कामगार की इन कारणों से मृत्यु हो जाए तो उसके वारिसों को मुआवजा दिया जाना चाहिए । यदि कामगार को नौकरी छोड़ने के दो साल के
अन्दर बीमारी लग जाती है तो भी मुआवजा मिलेगा ।
(d) अगर मालिक मुआवजा देने से इंकार करें या पर्याप्त मुआवजा न दे तो आयुक्त (कमिश्नर) को एक अर्जी (प्रार्थना पत्र) देना होगा ।
जैसे कि:
iv. पति, पत्नी के द्वारा अपनाया गया परिवार नियोजन का साधन असफल हो जाता है ।
3. दाइयों, नर्सों या छोटे-मोटे घरेलू चिकित्सकों के द्वारा कराया गया गर्भ समापन अपराध है ।
4. गर्भ समापन सिर्फ सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पतालों में ही करवाना चाहिए ।
5. 12 सप्ताह के अंदर का गर्म समापन एक डाक्टर या लेडी डाक्टर की सलाह पर करवाया जा सकता है ।
6. यदि गर्भ 12 सप्ताह से ज्यादा का हो तो दो डाक्टरों या लेडी डाक्टर की सलाह पर गर्भ समापन कराया जा सकता है ।
आवश्यकता होने पर गर्भ समापन के लिए निम्न स्थानों से सम्पर्क करना चाहिए:
a. सरकारी अस्पताल ।
ii. 21 वर्ष से अधिक उम्र की विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित महिला भी किसी बच्चे को गोद ले सकती है ।
iii. अगर स्त्री-पुरुष शादीशुदा हैं तो बच्चा गोद लेने या अपना बच्चा गोद देने के लिए एक दूसरे की सहमति आवश्यक है ।
iv. यदि बच्चों के माता-पिता की मृत्यु हो गई हो या फिर वे गोद देने की स्थिति में नहीं हैं, तो बच्चे के संरक्षक द्वारा बच्चे को गोद दिया जा सकता है ।
v. अनाथालय के अधिकारी वहाँ रहने वाले सभी बच्चों के संरक्षक हैं, अत: वे वहाँ रहने वाले बच्चों को गोद दे सकते हैं ।
vi. अगर बच्चे को माँ-बाप से गोद लिया जा रहा है तो गोद लेते समय किसी खास रस्म की आवश्यकता नहीं है ।
vii. बच्चा गोद लेते समय बेहतर होगा कि दस्तावेजों का पंजीकरण करवा लिया जाए । इस स्थिति में दस्तावेजों को नकारा नहीं जा सकता है ।
(ङ) अगर पुरुष लड़की गोद ले रहा है या महिला लड़के को गोद ले रही है तो दोनों के बीच (गोद लेने वाले बच्चे तथा माँ/बाप) के उम्र का अंतर
कम से कम 21 वर्ष होना चाहिए ।
पालकत्व में:
i. स्थानीय अनाथालय ।
ii. खानदानी सम्पत्ति वह होती है जो कि हिन्दू पुरुष को अपने पूर्वजों से मिलती है, लड़कियों का खानदानी सम्पत्ति में जन्म से कोई अधिकार नहीं
है । उन्हें खानदानी सम्पत्ति से खाने-पीने, रहने, पढ़ाई व शादी का खर्चा मिलने का हक है ।
iii. सम्पत्ति का बँटवारा कानून के अनुसार या फिर वसीयत बनाकर हो सकता है पर यदि वसीयत न लिखी हो तो सम्पत्ति सभी वारिसों में बाँटी
जायेगी, सबको बराबर हिस्सा मिलेगा चाहे वो लड़का हो या लड़की ।
iv. हर व्यक्ति को चाहे वो पुरुष हो या स्त्री अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति की वसीयत करने का हक है ।
I. बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण और शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 22 जनवरी, 2015 को पानीपत, हरियाणा में इस
कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी|
II. इस कार्यक्रम का उद्देश्य लड़कियों के गिरते लिंगानुपात के मुद्दे के प्रति लोगों को जागरूक करना है|
III. इस कार्यक्रम का समग्र लक्ष्य लिंग के आधार पर लड़का और लड़की में होने वाले भेदभाव को रोकने के साथ साथ प्रत्येक बालिका की सुरक्षा,
शिक्षा और समाज में स्वीकृ ति सुनिश्चित करना है|
III. इस कार्यक्रम के तहत भारत के 200 जिलों से चयनित 11-18 आयु वर्ग की किशोरियों की देखभाल ‘समेकित बाल विकास परियोजना’
के अंतर्गत की जा रही है| इस कार्यक्रम के तहत लाभार्थियों को 11-15 और 15-18 साल के दो समूहों में विभाजित किया गया है|
IV. इस योजना के तहत प्राप्त होने वाले लाभों को दो समूहों में विभाजित किया गया है: (a).पोषण (11-15 वर्ष तक की लड़कियों को पका
हुआ खाना दिया जाता है) (b). गैर पोषण (15-18 वर्ष तक की लड़कियों को आयरन की गोलियां सहित अन्य दवाइयां मिलती हैं)|
समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गयी कल्याणकारी योजनायें
I. यह मातृत्व लाभ कार्यक्रम 28 अक्टू बर, 2010 को शुरू किया गया था|
II. II. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य 19 साल या उससे अधिक उम्र की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले दो बच्चों के
जन्म तक वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
III. III. इस कार्यक्रम के तहत सरकार द्वारा नवजात शिशु और स्तनपान कराने वाली माताओं की बेहतर देखभाल के लिए दो किस्तों
में 6000 रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है|
IV. यह कार्यक्रम ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ द्वारा चलाया जा रहा है|
III. इस योजना में कें द्र व राज्य सरकारें क्रमशः 75% और 25% खर्च का योगदान करेंगे |
IV. इस योजना का मुख्य लक्ष्य 75% अनुसूचित जाति/जनजाति/अत्यन्त पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय की बालिकाओं तथा
25% गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार की बच्चियों का दाखिला कराना है |
V. योजना में मुख्य रूप से ऐसी बालिकाओं पर ध्यान देना जो विद्यालय से बाहर हैं तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष से ऊपर है।
6. स्वाधार घर योजना:
II. इस योजना को 'महिला एवं बाल विकास मंत्रालय' के माध्यम से चलाया जा रहा है |
III. इस योजना का उद्देश्य वेश्यावृत्ति से मुक्त महिलाओं, रिहा कै दी, विधवाओं, तस्करी से पीड़ित महिलाओं, प्राकृ तिक आपदाओं, मानसिक रूप से
विकलांग और बेसहारा महिलाओं के पुनर्वास की व्यवस्था करना है।
IV. इस योजना के अंतर्गत विधवा महिलाओं के भोजन और आश्रय, तलाक शुदा महिलाओं को कानूनी परामर्श, चिकित्सा सुविधाओं और महिलाओं
को व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं|
V. इस योजना के माध्यम से महिलाओं को अपना जीवन फिर से शुरू करने के लिए शारीरिक और मानसिक मजबूती प्रदान की जाती है ताकि वे अपने
पैरों पर खड़ी हो सकें |
II. इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से चलाया जा रहा है |
III. योजना का मुख्य उद्येश्य महिलाओं का कौशल विकास कराकर उनको इस लायक बनाना है कि वे स्व-रोजगार या उद्यमी बनने का हुनर प्राप्त
कर सकें |
IV. इस योजना का मुख्य लक्ष्य 16 वर्ष या उससे अधिक की लड़कियों/महिलाओं का कौशल विकास करना है |
V. इस योजना के तहत अनुदान सीधे राज्यों/कें द्र शासित प्रदेशों को न देकर संस्था/संगठन यहाँ तक कि गैर सरकारी संगठन को सीधे
ही पहुँचाया जाता है |
प्राचीन युग से वर्तमान युग तक नारी के संघर्ष की गाथा बहुत लंबी है। कहा जाता रहा है कि वर्षो से पराधीनता में रहने
वाली एकमात्र जाति ‘‘नारी‘‘ ही है । इसी कारण स्त्री को ‘‘अंतिम उपनिवेश‘‘ की भी संज्ञा दी जाती रही है। वर्तमान
शताब्दी में विश्व में अपराधों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव समाज पर स्पष्ट परिलक्षित हो
रहा है क्योंकि समाज और अपराध एक दूसरे के पूरक हैं । अपराध समाज में कारित होते हैं और उनका उपचार भी
समाज में समाहित होता है । आदिम युग में मानवीय आवश्यकताएं न्यून थी, इसलिए अपराध भी काफी कम होते
थे, किन्तु वर्तमान में मनुष्य की नित नये बढ़ती आवश्यकताओं के कारण भी अपराध ज्यादा होने लगे हैं । प्रारंभ में
अपराध के वल चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार इत्यादि की घटनाओं तक ही सीमित थे, किन्तु वर्तमान में इन्टरनेट, इलेक्ट्राॅनिक
मीडिया तक बढ़ गई हैं, जिसे साइबर अपराध भी कहा जाता है ।
यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद स्त्री और पुरुष को समान दर्जा देता है किन्तु आंकड़ों से स्पष्ट है कि ये सिर्फ
कागजों तक ही सीमित है । यदि हमारे देश में घटित होने वाले महिलाओं के प्रति अपराधों का विश्लेषण करे तो
स्पष्ट होता है कि प्रति 6 मिनट पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़, सार्वजनिक अपमान, हत्या का प्रयास, बलात्कार, यौन-
उत्पीड़न, अश्लीलता जैसी घटनाएं घटती है । भारत के विभिन्न प्रदेशों की स्थिति को देखें तो महाराष्ट्र में सर्वाधिक फिर
मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश में राजस्थान में महिलाओं के प्रति ज्यादा अपराध घटित होते हैं ।
ऐसे अपराधों को रोकने कठोर से कठोरतम् कानून निर्मित किए जा रहे हैं, किन्तु जब तक पुरुषों तथा समाज की
मानसिकता में सुधार नहीं आएगा, ऐसे कानूनों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा क्योंकि समस्याओं का जन्म समाज से
ही होता है और उनका उन्मूलन भी कानून के उचित क्रियान्वयन के साथ साथ समाज द्वारा ही हो सकता है ।
भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं को बहुत से संवैधानिक एवं विधिक अधिकार प्रद Ÿा किये गये हैं, इसके साथ ही
इन अधिकारों के उचित क्रियान्वयन एवं महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने हेतु विभिन्न आयोगों की स्थापना भी की गई
है ।
[11] महिलाओं के लिए संवैधानिक उपबंधः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार ‘‘भारत राज्य क्षेत्र के किसी ब्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा
विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।‘‘
समानता का तात्पर्य यहां पर यह है कि स्त्री और पुरुष में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है तथा यह अधिकार स्त्री
और पुरुष दोनों को समान रूप से प्राप्त है ।
अनुच्छेद 15 के अनुसार ‘‘राज्य के वल धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के बीच कोई विभेद
नहीं करेगा‘‘ भारतीय संविधान में स्पष्ट है कि पुरुष एवं महिला को समान अधिकार प्रदान किये गये हैं, इतना ही इसी
अनुच्छेद के खंड 3 में स्त्रियों के लिए विशेष व्यवस्था भी की गई है क्योंकि महिलाओं की स्वाभाविक प्रकृ ति के कारण
उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद - 19 में महिलाओं को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है, ताकि वह स्वतंत्र रूप भारत के क्षेत्र में
आवागमन, निवास एवं व्यवसाय कर सकती है । स्त्री लिंग होने के कारण किसी भी कार्य से उनको वंचित करना
मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना गया है । तथा ऐसी स्थिति में कानून की सहायता हो सके गी ।
अनुच्छेद 23-24 द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाले शोषण को नारी गरिमा के लिए उचित नहीं मानते हुए महिलाओं की
खरीद-ब्रिकी वेश्यावृŸिा के लिए जबरदस्ती करना, भीख मंगवाना आदि को दंडनीय माना गया है । इसके लिए
सन् 1956 में ‘सेप्रश्न आॅफ इमोरस ट्राफिक इन विमेन इन विमेन एंड गल्र्स एक्ट‘‘ भी भारतीय संसद द्वारा पारित किया
गया ताकि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले सभी प्रकार के शोषण को समाप्त किया जा सके ।
आर्थिक न्याय प्रदान करने हेतु अनुच्छेद 39 (क) में स्त्री को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार एवं
अनुच्छेद 39 (द) में समान कार्य के लिए समान वेतन का उपबंध है।
अनुच्छेद 42 के अनुसार महिला को विशेष प्रसूति अवकाश प्रदान करने की बात कही गई है।
अनुच्छेद 46 इस बात का आव्हान करता है कि राज्य दुर्बल वर्गो के शिक्षा तथा अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से
अभिवृद्धि करेगा तथा सामाजिक अन्याय एवं सब प्रकार के शोषण से संरक्षा करेगा ।
संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 51 (क) (डं.) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हमारा दायित्व है कि हम हमारी संस्कृ ति
की गौरवशाली परंपरा के महत्व को समझे तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो कि स्त्रियों के सम्मान के खिलाफ हो
।
अनुच्छेद 243 (द) (3) में प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गये स्थानों की कु ल संख्या के 1/3 स्थान स्त्रियों के
लिए आरक्षित रहेगें और चक्रानुक्रम से पंचायत के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में आबंटित किये जाएगें ।
अनुच्छेद 325 के अनुसार निर्वाचक नामावली में महिला एवं पुरुष दोनों को ही समान रूप से सम्मिलित होने का अधिकार
प्रदान किया गया है, अनुच्छेद 325 द्वारा संविधान निर्माताओं ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि भारत में पुरुष और
स्त्री को समान मतदान अधिकार दिये गये हैं ।
FOOT NOTE
(1) देसाई नीरा और गैत्रयी कृ ष्णराज वीमेन एण्ड सोसायटी इन इंडिया अजंत पब्लिके शंस दिल्ली 1987, पृ. 46
(2) संयुक्त राष्ट्र संघ रिपोर्ट वनडे वीमने: ट्रेएड्स एण्ड स्टेटिक्स (डीरीलली) (1995)
[12] विधिक उपबंध:-
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों एवं अत्याचारों के निवारण के लिए राज्य द्वारा विभिन्न अधिनियम पारित किये गये हैं, ताकि
महिलाओं को उनका अधिकार मिल सकें एवं सामाजिक भेदभाव से उनकी सुरक्षा हो सकें ।
भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधानः- भा.द.ंसं. में भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार एवं निर्दयता के विरूद्ध
व्यवस्था की गई है ।
धारा 292 से 294 तहत विशिष्टता और सदाचार को प्रभावित करने वाले मामलों पर रोक लगाई गयी है । इसके अनुसार
अगर कोई स्त्रियों की नंगी तस्वीरें प्रदर्शित करता है अथवा क्रय-विक्रय करता है अथवा भौंडा प्रदर्शन करता है तो
ऐसे व्यक्ति को दो वर्ष तक की सजा एवं 2 हजार रुपया तक जुर्माना अथवा दोनों ही सजाओं का प्रावधान है ।
धारा 312 से 318 में गर्भपात कारित करना, अजन्में शिशुओं को नुकसान पहुंचाने, शिशुओं को अरक्षित छोड़ने और जन्म
छिपाने के विषय में दंड का प्रावधान किया गया है ।
धारा 354 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी स्त्री की लज्जा भंग करता है अथवा करने के उद्देश्य से आपराधिक बल प्रयोग
करता है तो उसे 2 वर्ष की सजा अथवा जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किये जानो का प्रावधान है ।
धारा 361 के अनुसार यदि किसी महिला की आयु 18 वर्ष से कम है और उसे कोई व्यक्ति उसके विधिपूर्व संरक्षक की
संरक्षकता से बिना सम्मति के या बहला अथवा फु सलाकर ले जाता है तो वह व्यक्ति व्यपहरण का दोषी होगा । तथा
धारा 363 से 366 में दंड का प्रावधान किया गया है ।
धारा 372 के तहत अगर किसी 18 वर्ष से कम आयु की महिला को किसी वेश्यावृŸिा के प्रयोजन के लिए बेचा जाने
पर दोषी व्यक्ति को 10 वर्ष तक की सजा व जुर्माना अथवा दोनों की सजा दी जा सके गी ।
धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया है एवं धारा 376 में बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान है ।
धारा 498 (अ) में प्रावधानित किया गया है कि अगर कोई पति अथवा उसका कोई रिश्तेदार विवाहित पत्नी के साथ
निर्दयतापूर्वक दुव्र्यवहार करता है अथवा दहेज को लेकर यातना देता है तो न्यायालय उसे 2 साल तक की सजा दे
सकता है ।
धारा 509 के तहत अगर कोई व्यक्ति स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहता है कोई ध्वनि या
कोई अंग विक्षेप करता हे या कोई वस्तु प्रदर्शित करता है अथवा कोई ऐसा कार्य करता है जिससे किसी स्त्री की
एकान्तता पर अतिक्रमण होता हे तो ऐसा व्यक्ति एक वर्ष तक की सजा एवं जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया
जायेगा ।
3. महिलाओं के लिए पारित किये गये विभिन्न अधिनियम
हमारे देश मे ंविभिन्न समयों में प्रचलित कु रीतियों एवं कु प्रथाओं को मुक्त कराने हेतु बहुत से अधिनियम पारित किये गये
है तथा महिलाओं को सुरक्षा एवं अधिकार देने हेतु भी अधिनियम पारित किये गये है, जो निम्न हैः-
(1) राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948
(2) दि प्लांटेशनस लेबर अधिनियम 1951
(3) परिवार न्यायालय अधिनियम, 1954
(4) विशेष विवाह अधिनियम, 1954
(5) हिन्दु विवाह अधिनियम 1955
(6) हिन्दु उ Ÿाराधिकारी अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005)
(7) अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956
(8) प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 (संशोधित 1995)
(9) दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
(10) गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971
(11) ठेका श्रमिक (रेग्युलेशन एण्ड एबोलिशन) अधिनियम 1976
(12) दि इक्वल रियुनरेशन अधिनियम 1976
(13) बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
(14) आपराधिक विधि (संशोधन) अधिनियम 1983
(15) कारखाना (संशोधन) अधिनियम 1986
(16) इन्डिकें ट रिप्रेसेन्टेशन आॅफ वुमेन एक्ट 1986
(17) कमीशन आॅफ सती (प्रिवेन्शन) एक्ट, 1987
(18) घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005
[13] प्रशनोत्तरी:-
प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?
उ.1 हाँ l
प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये
है ?
उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।
आवश्यकता है ?
उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।
प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?
उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।
प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में
प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?
उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।
नाम- हीराराम s/o राजूराम 90 गणेश मंदिर रातानाडा
प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?
उ.1 हाँ l
प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये
है ?
उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।
आवश्यकता है ?
उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।
प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?
उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।
प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में
प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?
उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।
उ.1 हाँ l
प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये
है ?
उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।
आवश्यकता है ?
उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।
प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?
उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।
प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में
प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?
उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।
नाम- मुके श जांगिड़ s/o रामचंद्र जांगिड़ 106 गणेश मंदिर रातानाडा
प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?
उ.1 हाँ l
प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये
है ?
उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।
आवश्यकता है ?
उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।
प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?
उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।
प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में
प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?
उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।