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जय नारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर

विधि विभाग
शोध निबंध
गैर सैद्धांतिक
सत्र - 2019 - 20
विषय - भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओ की स्थति
मार्गदर्शन में - प्रस्तुत कर्ता -
डॉ. के .आर. मेघवाल गीता श्रीमाली
[ असिस्टेंट प्रोफे सर ] LL.M – THIRD SEM.

CERTIFICATE
It is certified that the work imposed is this dessertation on the topic of
“BHARITIYA PARIPREKSHYA ME MAHILAON KI STITI” was carried out by
MRS GEETA SHREEMALI under my guidence and supervision. I grant her
permission to submit the dessertation in completion for recommend paper
of seventh of the degree LLM 3rd sem. 2019-20.

DR. KR MEGHWAL

[Assistant Professor]

Department of law

JNVU JODHPUR [RAJ.]

DECLERATION
I GEETA SHREEMALI the student of LLM. 3rd sem. Faculty of law JNVU
Jodhpur [RAJ.] do hear by deaclares that this dessertation paper is being
completed & result of my own efforts.

I have quoted titles of alloriginal sources that is – original documents &


name of the author whose work has helped me in writing this research
paper.

DATE - GEETA SHREEMALI


PLACE- JODHPUR LLM. 3 rd SEM.

HUMAN RIGHTS

ACKNOLEDGEMENT
I give a great gratitude to MR KR. MEGHWAL [Assistant Professor] Faculty
Of Law JNVU Jodhpur [RAJ.] who guided me for my research work. I really
thankful to sir for providing valuable guidance in my research work.

For compleating the present study I got assistance valuable advice &
suggestion directly or indirectly from my teacher & my well wisher, social
media & special gratitude to my parents who took keen intrest in my work
& impared me.

DATE - GEETA SHREEMALI


PLACE- JODHPUR LLM. 3 rd SEM.

HUMAN RIGHTS
1. प्रस्तावना
2. स्वतंत्र भारत
3. श्रमशक्ति की भागीदारी
4. भूमि और संपत्ति संबंधी अधिकार
5. महिलाओ से संबंधित अपराध
6.
महिलाओं से संबंधित मुद्दे
7.
महिलाओं के अधिकार
8.
बच्चा गोद लेने के कानून
9.
महिला सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजनाएं
10.
राष्‍ट्रीय महिला सशक्‍तीकरण नीति [2001]
11.
महिलाओं के संवैधानिक एवं विधिक अधिकार
12.
महिलाओं के लिए संवैधानिक उपबंध
13.
विधिक उपबंध
14.
प्रशनोत्तरी
15.
निष्कर्ष एवं सुझाव

अनुक्रमणिका
भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओ की स्थति
[1] प्रस्तावना :-
पिछले हजारों सालों में समाज के अन्दर महिलाओं की स्थिति में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव हुआ है। अगर गुज़रे चालीस-पचास
सालों को ही देखे तो हमें पता चलता है की महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक़ मिले इस पर बहुत ज्यादा काम किया गया है। पहले
के ज़माने में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर सख्त पाबन्दी थी। वे घर की चारदीवारी के अन्दर रहने को मजबूर थी। उनके
जीवन का एकमात्र लक्ष्य यही था की उन्हें अपने पति और बच्चों का ख्याल रखना है। महिलाओं के साथ न तो पुरुषों जैसा व्यव्हार
किया जाता था और न ही उन्हें पुरुषों जैसी अहमियत दी जाती थी। अगर वेदों के समय की बात की जाए तो उस वक़्त महिलाओं
की शिक्षा-दीक्षा का खास ख्याल रखा जाता था। इसके उदाहरण हम प्राचीन काल की पुस्तकों में भी देख सकते है।

अगर हम वेदों का अध्ययन करे तो उसमें हमें यह साफ़ देखने को मिलता है की उस वक़्त की औरतों को अपनी शिक्षा पूरी करने की
छू ट थी तथा उनका विवाह भी उन्हीं की रजामंदी से होता था। गार्गी और मैत्रयी नाम की दो महिला संतो का उदाहरण रिगवेद और
उपनिषदों में दिया हुआ है। इतिहास की मानें तो महिलाओं का पतन समृतियों (मनुसमृति) के साथ शुरू हुआ। धीरे धीरे भारत में
इस्लामी और ईसाई आगमन से महिलाओं से उनके हक़ छिनते चले गए। महिलाएं सामाजिक बेड़ियों में बंधकर रहने लगी जिनमें
प्रमुख थी सती प्रथा, बाल—विवाह, बालश्रम, विधवाओं के पुनःविवाह पर रोक आदि।

पर्दा प्रथा की शुरुआत भारत में मुस्लिम धर्म के आने के बाद हुई। राजस्थान के राजपूत समाज द्वारा गौहर नाम के रिवाज़ का
अनुगमन किया जाता था। मंदिर में जो महिलाएं थी उनका अमीर तथा प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता था। पर
आज के समय की बात की जाए तो महिलाएं हर क्षेत्र (जैसे राजनीती, सामाजिक कार्य, तकनीकी विभाग, खेल-कू द आदि) में अपना
योगदान बिना किसी डर के दे रही है। महिलायें हर जगह नेतृत्व करती दिख रही है बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पुरुषों से दो
कदम है। हम यह तो नहीं कह सकते की महिलाओं की स्थिति में सौ फीसदी बदलाव आया है पर इतना जरुर कह सकते है की
महिलाएं अब अपने अधिकारों के लिए और भी अधिक जागरूक हो गयी है।

भारत के आजाद होने के बाद महिलाओं की दशा में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं को अब पुरुषों के समान अधिकार मिलने लगे
है। महिलाएं अब वे सब काम आजादी से कर सकती है जिन्हें वे पहले करने में अपने आप को असमर्थ महसूस करती थी। आजादी
के बाद बने भारत के संविधान में महिलाओं को वे सब लाभ, अधिकार, काम करने की स्वतंत्रता दी गयी है जिसका आनंद पहले
सिर्फ पुरुष ही उठाते थे। वर्षों से अपने साथ होते बुरे सुलूक के बावजूद महिलाएं आज अपने आप को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त
पाकर और भी ज्यादा आत्मविश्वास से अपने परिवार, समाज तथा देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए लगातार कार्य कर रही
है।

हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। इसका मतलब देश की उन्नति का आधा दारोमदार महिलाओं पर
और आधा पुरुषों के कं धे पर निर्भर करता है। हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते उस समय का जब इसी आधी जनसँख्या को वे
मूलभूत अधिकार भी नहीं मिल पाते थे जिनकी वे हक़दार है। उन्हें अपनी जिंदगी अपनी ख़ुशी से जीने की भी आजादी नहीं थी।
परन्तु बदलते वक़्त के साथ इस नए ज़माने की नारी ने समाज में वो स्थान हासिल किया जिसे देखकर कोई भी आश्चर्यचकित रह
जायेगा। आज महिलाएं एक सफल समाज सुधारक, उधमी, प्रशासनिक सेवक, राजनयिक आदि है।
महिलाओं की स्थिति में सुधार ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार के मायने भी बदल कर रख दिए है। दूसरे विकासशील देशों
की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर है। यद्यपि हम यह तो नहीं कह सकते कि महिलाओं के हालात पूरी
तरह बदल गए है पर पहले की तुलना में इस क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में महिलाएं अपने अधिकारों
के प्रति पहले से अधिक सचेत है। महिलाएं अब अपनी पेशेवर जिंदगी (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक) को लेकर बहुत अधिक
जागरूक है जिससे वे अपने परिवार तथा रोजमर्रा की दिनचर्या से संबंधित खर्चों का निर्वाह आसानी से कर सके ।

महिलाएं अब लोकतंत्र और मतदान संबंधी कार्यो में भी काफी अच्छा काम कर रही है जिससे देश की प्रशासनिक व्यवस्था सुधर रही
है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। उदाहरण के तौर पर मतदान के दिन मतदान कें द्र पर हमें
पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की उपस्थिति नज़र आएगी। इंदिरा गाँधी, विजयलक्ष्मी पंडित, एनी बेसंट, महादेवी वर्मा, सुचेता
कृ पलानी, पी.टी उषा, अमृता प्रीतम, पदमजा नायडू , कल्पना चावला, राजकु मारी अमृत कौर, मदर टेरेसा, सुभद्रा कु मारी चौहान
आदि कु छ ऐसे नाम जिन्होंने महिलाओं की जिंदगी के मायने ही बदल कर रख दिए है। आज नारी बेटी, माँ, बहन, पत्नीं के रूप में
अलग अलग क्षेत्र जैसे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, विज्ञान तथा और विभागों में अपनी सेवाएं दे रही है। वे अपनी पेशेवर
जिंदगी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही है। महिलाओं की दशा सुधारने में इतना सब होने के बाद भी
हमे कहीं न कहीं उनके मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न से जुडी ख़बरें सुनने को मिल जाती है।

भारत सरकार ने हाल ही में महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पुराने जुवेनाइल कानून 2000 को
बदलते हुए नए जुवेनाइल जस्टिस (चिल्ड्रेन के यर एंड प्रोटेक्शन) बिल 2015 को लागू किया है। इसे खास-तौर पर निर्भया के स
को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इस कानून के अंतर्गत कोई भी किशोर जिसकी आयु 16 से 18 साल के बीच है और वह
जघन्य अपराध में शामिल है तो उस पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जा सके गी।

[2] स्वतंत्र भारत:-


भारत में महिलाएं अब सभी तरह की गतिविधियों जैसे कि शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृ ति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि में
हिस्सा ले रही हैं। इंदिरा गांधी जिन्होंने कु ल मिलाकर पंद्रह वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की, दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत
महिला प्रधानमंत्री हैं।
भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को सामान अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद 15 (1)),
अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39 (घ)) की गारंटी देता है। इसके अलावा यह महिलाओं और
बच्चों के पक्ष में राज्य द्वारा विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 15(3)), महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं
का परित्याग करने (अनुच्छेद 51(ए)(ई)) और साथ ही काम की उचित एवं मानवीय परिस्थितियाँ सुरक्षित करने और प्रसूति सहायता के लिए
राज्य द्वारा प्रावधानों को तैयार करने की अनुमति देता है। (अनुच्छेद 42)].
भारत में नारीवादी सक्रियता ने 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध के दौरान रफ़्तार पकड़ी. महिलाओं के संगठनों को एक साथ लाने वाले पहले राष्ट्रीय
स्तर के मुद्दों में से एक मथुरा बलात्कार का मामला था। एक थाने (पुलिस स्टेशन) में मथुरा नामक युवती के साथ बलात्कार के आरोपी
पुलिसकर्मियों के बरी होने की घटना 1979-1980 में एक बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का कारण बनी। विरोध प्रदर्शनों को राष्ट्रीय मीडिया में
व्यापक रूप से कवर किया गया और सरकार को साक्ष्य अधिनियम, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता को संशोधित करने और हिरासत
में बलात्कार की श्रेणी को शामिल करने के लिए मजबूर किया गया। महिला कार्यकर्ताएं कन्या भ्रूण हत्या, लिंग भेद, महिला स्वास्थ्य और महिला
साक्षरता जैसे मुद्दों पर एकजुट हुईं.
चूंकि शराब की लत को भारत में अक्सर महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जोड़ा जाता है,[26] महिलाओं के कई संगठनों ने आंध्र प्रदेश, हिमाचल
प्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में शराब-विरोधी अभियानों की शुरुआत की। कई भारतीय मुस्लिम महिलाओं ने शरीयत
कानून के तहत महिला अधिकारों के बारे में रूढ़िवादी नेताओं की व्याख्या पर सवाल खड़े किये और तीन तलाक की व्यवस्था की आलोचना की।
1990 के दशक में विदेशी दाता एजेंसियों से प्राप्त अनुदानों ने नई महिला-उन्मुख गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के गठन को संभव बनाया। स्वयं-
सहायता समूहों एवं सेल्फ इम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (सेवा) जैसे एनजीओ ने भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रमुख भूमिका निभाई
है। कई महिलाएं स्थानीय आंदोलनों की नेताओं के रूप में उभरी हैं। उदाहरण के लिए, नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर.

भारत सरकार ने 2001 को महिलाओं के सशक्तीकरण (स्वशक्ति) वर्ष के रूप में घोषित किया था। महिलाओं के सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति
2001 में पारित की गयी थी।
2006 में बलात्कार की शिकार एक मुस्लिम महिला इमराना की कहानी मीडिया में प्रचारित की गयी थी। इमराना का बलात्कार उसके ससुर ने
किया था। कु छ मुस्लिम मौलवियों की उन घोषणाओं का जिसमें इमराना को अपने ससुर से शादी कर लेने की बात कही गयी थी, व्यापक रूप से
विरोध किया गया और अंततः इमराना के ससुर को 10 साल की कै द की सजा दी गयी। कई महिला संगठनों और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ
बोर्ड द्वारा इस फै सले का स्वागत किया गया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन बाद, 9 मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पारित कर दिया जिसमें संसद और राज्य की
विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था है।

[3] श्रमशक्ति की भागीदारी:-


आम धारणा के विपरीत महिलाओं का एक बड़ा प्रतिशत कामकाजी है। राष्ट्रीय आंकड़ा संग्रहण एजेंसियाँ इस तथ्य को स्वीकार करती हैं कि श्रमिकों
के रूप में महिलाओं की भागीदारी को लेकर एक गंभीर न्यूनानुमान है। हालांकि पारिश्रमिक पाने वाले महिला श्रमिकों की संख्या पुरुषों की तुलना में
बहुत ही कम है। शहरी भारत में महिला श्रमिकों की एक बड़ी संख्या मौजूद है। एक उदाहरण के तौर पर सॉफ्टवेयर उद्योग में 30% कर्मचारी
महिलाएं हैं। वे पारिश्रमिक और कार्यस्थल पर अपनी स्थिति के मामले में अपने पुरुष सहकर्मियों के साथ बराबरी पर हैं।
ग्रामीण भारत में कृ षि और संबद्ध क्षेत्रों में कु ल महिला श्रमिकों के अधिक से अधिक 89.5% तक को रोजगार दिया जाता है।कु ल कृ षि उत्पादन में
महिलाओं की औसत भागीदारी का अनुमान कु ल श्रम का 55% से 66%% तक है। 1991 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में
डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी कु ल रोजगार का 94% है। वन-आधारित लघु-स्तरीय उद्यमों में महिलाओं की संख्या कु ल कार्यरत
श्रमिकों का 51% है।
श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ सबसे प्रसिद्ध महिला व्यापारिक सफलता की कहानियों में से एक है। 2006 में भारत की पहली बायोटेक
कं पनियों में से एक - बायोकॉन की स्थापना करने वाली किरण मजूमदार-शॉ को भारत की सबसे अमीर महिला का दर्जा दिया गया था। ललिता गुप्ते
और कल्पना मोरपारिया (दोनों भारत की के वल मात्र ऐसी महिला व्यवासियों में शामिल हैं जिन्होंने फ़ोर्ब्स की दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं
की सूची में अपनी जगह बनायी है) भारत के दूसरे सबसे बड़े बैंक, आईसीआईसीआई बैंक को संचालित करती हैं।

[4] भूमि और संपत्ति संबंधी अधिकार:-


अधिकांश भारतीय परिवारों में महिलाओं को उनके नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं मिलती है और उन्हें पैतृक संपत्ति का हिस्सा भी नहीं मिलता है।
महिलाओं की सुरक्षा के कानूनों के कमजोर कार्यान्वयन के कारण उन्हें आज भी ज़मीन और संपत्ति में अपना अधिकार नहीं मिल पाता हैA वास्तव
में जब जमीन और संपत्ति के अधिकारों की बात आती है तो कु छ क़ानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं।
1956 के दशक के मध्य के हिन्दू पर्सनल लॉ (हिंदू, बौद्ध, सिखों और जैनों पर लिए लागू) ने महिलाओं को विरासत का अधिकार दिया। हालांकि
बेटों को पैतृक संपत्ति में एक स्वतंत्र हिस्सेदारी मिलती थी जबकि बेटियों को अपने पिता से प्राप्त संपत्ति के आधार पर हिस्सेदारी दी जाती थी।
इसलिए एक पिता अपनी बेटी को पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से को छोड़कर उसे अपनी संपत्ति से प्रभावी ढंग से वंचित कर सकता था लेकिन बेटे को
अपने स्वयं के अधिकार से अपनी हिस्सेदारी प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त विवाहित बेटियों को, भले ही वह वैवाहिक उत्पीड़न का सामना क्यों ना
कर रही हो उसे पैतृक संपत्ति में कोई आवासीय अधिकार नहीं मिलता था। 2005 में हिंदू कानूनों में संशोधन के बाद महिलाओं को अब पुरुषों के
बराबर अधिकार दिए जाते हैं।
1986 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक वृद्ध और तलाकशुदा मुस्लिम महिला, शाहबानो के हक में फै सला सुनते हुए कहा कि उन्हें गुजारा भत्ता
मिलना चाहिए। हालांकि कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं ने इस फै सले का जोर-शोर से विरोध किया और उनहोंने यह आरोप लगाया कि अदालत उनके
निजी कानून में हस्तक्षेप कर रही है। बाद में कें द्र सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक संबंधी अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम को पारित किया।
इसी तरह ईसाई महिलाओं ने तलाक और उत्तराधिकार के समान अधिकारों के लिए वर्षों तक संघर्ष किया है। 1994 में सभी गिरजाघरों ने महिला
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से एक कानून का मसौदा तैयार किया जिसे ईसाई विवाह और वैवाहिक समस्याओं का क़ानून (क्रिस्चियन मैरेज एंड
मैट्रिमोनियल काउजेज बिल) कहा गया। हालांकि सरकार ने प्रासंगिक कानूनों में अभी तक कोई संशोधन नहीं किया है।

[5] महिलाओ से संबंधित अपराध:-

पुलिस रिकॉर्ड में महिलाओं के खिलाफ भारत में अपराधों का उच्च स्तर दिखाई पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने 1998 में यह जानकारी दी
थी कि 2010 तक महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की विकास दर जनसंख्या वृद्धि दर से कहीं ज्यादा हो जायेगी. पहले बलात्कार और छेड़छाड़ के
मामलों को इनसे जुड़े सामाजिक कलंक की वजह से कई मामलों को पुलिस में दर्ज ही नहीं कराया जाता था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं
के खिलाफ दर्ज किये गए अपराधों की संख्या में नाटकीय वृद्धि हुई है।

[A] यौन उत्पीड़न:-

1990 में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज की गयी अपराधों की कु ल संख्या का आधा हिस्सा कार्यस्थल पर छेड़छाड़ और उत्पीड़न से संबंधित
था। लड़कियों से छेड़छाड़ (एव टीजिंग) पुरुषों द्वारा महिलाओं के यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक चालबाज तरकीब
(युफे मिज्म) है। कई कार्यकर्ता (एक्टिविस्ट) महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के लिए "पश्चिमी संस्कृ ति" के प्रभाव को
दोषी ठहराते हैं। विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखनों, पेंटिंग्स, चित्रों या किसी एनी तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व को रोकने के लिए 1987
में महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम पारित किया गया था। 1997 में एक ऐतिहासिक फै सले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने
कार्यस्थल में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक मजबूत पक्ष लिया। न्यायालय ने शिकायतों से बचने और इनके निवारण के लिए विस्तृत
दिशा-निर्देश भी जारी किया। बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन दिशा-निर्देशों को नियोक्ताओं के लिए एक आचार संहिता के रूप में प्रस्तुत किया।

[B] दहेज:-
1961 में भारत सरकार ने वैवाहिक व्यवस्थाओं में दहेज़ की मांग को अवैध करार देने वाला दहेज निषेध अधिनियम पारित किया।[ हालांकि दहेज-
संबंधी घरेलू हिंसा, आत्महत्या और हत्या के कई मामले दर्ज किये गए हैं। 1980 के दशक में कई ऐसे मामलों की सूचना दी गयी थी।
1985 में दहेज निषेध (दूल्हा और दुल्हन को दिए गए उपहारों की सूचियों के रख-रखाव संबंधी) नियमों को तैयार किया गया था। इन नियमों के
अनुसार दुल्हन और दूल्हे को शादी के समय दिए गए उपहारों की एक हस्ताक्षरित सूची बनाकर रखा जाना चाहिए। इस सूची में प्रत्येक उपहार,
उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए।
हालांकि इस तरह के नियमों को शायद ही कभी लागू किया जाता है।
1997 की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि दहेज़ के कारण प्रत्येक वर्ष कम से कम 5,000 महिलाओं की मौत हो जाती है और ऐसा
माना जाता है कि हर दिन कम से कम एक दर्जन महिलाएं जान-बूझकर लगाई गयी "रसोईघर की आग" में जलाकर मार दी जाती हैं। इसके लिए
उपयोग किया जाने वाला शब्द है "दुल्हन की आहुति" (ब्राइड बर्निंग) और स्वयं भारत में इसकी आलोचना की जाती है। शहरी शिक्षित समुदाय के
बीच इस तरह के दहेज़ उत्पीड़न के मामलों में काफी कमी आई है।

[C] बाल विवाह:-

भारत में बाल विवाह परंपरागत रूप से प्रचलित रही है और यह प्रथा आज भी जारी है। ऐतिहासिक रूप से कम उम्र की लड़कियों को यौवनावस्था
तक पहुँचने से पहले अपने माता-पिता के साथ रहना होता था। पुराने जमाने में बाल विधवाओं को एक बेहद यातनापूर्ण जिंदगी देने, सर को मुंडाने,
अलग-थलग रहने और समाज से बहिष्कृ त करने का दंड दिया जाता था। हालांकि 1860 में बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था
लेकिन आज भी यह एक आम प्रथा है।
यूनिसेफ की "स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन-2009" की रिपोर्ट के अनुसार 20-24 साल की उम्र की भारतीय महिलाओं के 47% की शादी
18 साल की वैध उम्र से पहले कर दी गयी थी जिसमें 56% महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से थीं। रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया कि दुनिया भर में होने
वाले बाल विवाहों का 40% अके ले भारत में ही होता है।

[D] कन्या भ्रूण हत्या और लिंग के अनुसार गर्भपात:-

भारत में पुरुषों का लिंगानुपात बहुत अधिक है जिसका मुख्य कारण यह है कि कई लड़कियां वयस्क होने से पहली ही मर जाती हैं। भारत के
जनजातीय समाज में अन्य सभी जातीय समूहों की तुलना में पुरुषों का लिंगानुपात कम है। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि आदिवासी समुदायों के
पास बहुत अधिक निम्न स्तरीय आमदनी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं। इसलिए कई विशेषज्ञों ने यह बताया है कि भारत में पुरुषों का उच्च
स्तरीय लिंगानुपात कन्या शिशु हत्या और लिंग परीक्षण संबंधी गर्भपातों के लिए जिम्मेदार है।
जन्म से पहले अनचाही कन्या संतान से छु टकारा पाने के लिए इन परीक्षणों का उपयोग करने की घटनाओं के कारण बच्चे के लिंग निर्धारण में
इस्तेमाल किये जा सकने वाले सभी चिकित्सकीय परीक्षणों पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया है। कु छ ग्रामीण क्षेत्रों में कन्या शिशु ह्त्या (कन्या
शिशु को मार डालना) आज भी प्रचलित है।[25] भारत में दहेज परंपरा का दुरुपयोग लिंग-चयनात्मक गर्भपातों और कन्या शिशु ह्त्याओं के लिए
मुख्य कारणों में से एक रहा है।

[E] घरेलू हिंसा:-

घरेलू हिंसा की घटनाएं निम्न स्तरीय सामाजिक-आर्थिक वर्गों (एसईसी) में अपेक्षाकृ त अधिक होती हैं।[51] घरेलू हिंसा कानून, 2005 से
महिलाओं का संरक्षण 26 अक्टू बर 2006 को अस्तित्व में आया।

[F] तस्करी:-

अनैतिक तस्करी (रोक) अधिनियम 1956 में पारित किया गया था। हालांकि युवा लड़कियों और महिलाओं की तस्करी के कई मामले दर्ज किये गए
हैं। इन महिलाओं को वेश्यावृत्ति, घरेलू कार्य या बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता रहा है।

[6] महिलाओं से संबंधित मुद्दे:-


1. यौन उत्पीड़न
2. भ्रूण हत्या और लिंग चयनात्मक गर्भपात
3. घरेलू हिंसा
4. रिंग द बेल
5. अनैतिक व्यापार
6. अनैतिक व्यापार के परिणाम

[A] यौन उत्पीड़न


 बलात्कार करना या करने की कोशिश करना और यौन हमला।
 यौन संबंध के लिए अनचाहा दबाब (जबरदस्ती करना)।
 जान-बुझ कर सटना, ऊपर झुकना, और चिकोटी काटना ।
 गंदी निगाओं से देखना और इशारे करना।
 अनचाहे पत्र भेजना, फोन करना और यौन प्रकृ ति के अन्य साधन।
 जबरदस्ती घुमने के लिए ले जाना।
 बेवजह गंदे चुटकले सुनाना, प्रश्न पूछना, बताना  और परेशान करना।
 युवा लड़कियों को गुड़िया, बेबी, हनी कहकर बुलाना।
 सीटियाँ बजाना ।
 गंदी टिप्पणियाँ देना।
 कार्यसंबंधी चर्चा को यौन विषयों में बदलना।
 यौन कल्पनाओं, पसंद व बीते हुए कल के बारे में पूछना।
 किसी को सामाजिक और यौन जीवन के बारे में प्रश्न पूछना।
 किसी व्यक्ति के कपड़ों, शरीर व नैन-नक्शा के बारे में गंदी टिप्पणियाँ देना।
 इसके हानिकारक परिणामों में परिवार और दोस्तों से दूर जाना, उम्र के बच्चों के साथ बातचीत की स्वतंत्रता का अभाव होना, सामुदायिक
कार्यक्रमों में भाग न ले पाना, और शिक्षा के लिए अवसरों की कमी शामिल है।
 भारत में विवाह के लिए लड़की की कानूनी उम्र 18 वर्ष और लड़के के लिए 21 वर्ष है।
 भारत में इससे छोटी उम्र के लोगों का विवाह करना कानूनी अपराध है और यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के विरुद्ध दोषी पाया जाता है तो वह
दंड का पात्र है।

[B] भ्रूण हत्या और लिंग चयनात्मक गर्भपात:-

 भ्रूण हत्या लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का रक रूप है।


 भ्रूण हत्या लड़कियों के जन्म को नकारती है।
 अल्ट्रासाउंड/स्के निंग के द्वारा को बढ़ावा देता है।
 लिंग जाँच गर्भपात (इसे बेटे को वरीयता देना और बेटी को अस्वीकार करना भी कहा जाता) लिंग के चयन की विधि है जो उन क्षेत्रों में प्रचलित है
जहाँ लडकों लड़कियों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है।

[C] घरेलू हिंसा:-

 घरेलू हिंसा को घरेलू दुर्व्यवहार, बाल दुर्व्यवहार और अन्तरंग साथी हिंसा भी कहा जाता है। मोटे तौर पर इसे  एक अन्तरंग संबंध जैसे
शादी, डेटिंग, परिवार, दोस्तों या सहवास में दोनों भागीदारोंद्वारा अपमानजनक व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
 घरेलू हिंसा के कई प्रकार है जैसे शारीरिक दुर्व्यवहार (मारना, लात मारना, काटना, वस्तुएं फें कना), यौन शोषण, भावनात्मक दुर्व्यवहार, जबरदस्ती,
धमकियां देना, तिरस्कार करना, गुप्त दुर्व्यवहार और आर्थिक अभाव।
 घरेलू हिंसा एक दंडनीय अपराध है।

[D] रिंग द बेल:-
नवीन संचार माध्यम के उपयोग से ‘बेल बजाओ” एक ऐसा राष्ट्रीय अभियान है जिसकी पहुंच पूरे भारत में है। यह अभियान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,
अभियान राजदूत और फ़िल्म स्टार ‘बोमन ईरानी’ के समर्थन से अगस्त, 2008 में शुरू किया गया था।

[E] अनैतिक व्यापार:-



 विभिन्न प्रयोजनों के लिए बच्चों और औरतों की तस्करी सहित यौन शोषण भी मानवता के खिलाफ अपराधों में से एक है।
 युवा लड़कियों और लड़कों को बंधक बनाकर काम पर रखना, बेचना और उन्हें शोषण की स्थिति में डालना अनैतिक व्यापार में आता है।
 इन्हें वेश्यावृति और गुलामी के लिए मजबूर किया जाता है जैसे” बंधुआ मजदूरी और मालिकों द्वारा नौकर के साथ क्रू र व्यवहार।

[F] अनैतिक व्यापार के परिणाम:-

 अनैतिक व्यापर में पीडित व्यक्ति को शारीरिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
 बहुत बार पुलिस, दूसरों की पूछताछ, परिवार, दोस्तों इत्यादि के सवालों की वजह से पीड़ित व्यक्ति को लगता है कि वह खुद की वजह से पीड़ित है व इस
स्थिति का जिम्मेदार वह स्वयं है।
 अनैतिक व्यापार पीड़ित व्यक्ति लंबे समय तक चिंता, तनाव और शारीरिक समस्याओं से घिरा रहता है।
 नरहत्या कहलाती है। उदारहण के लिए खून करना।
 आत्महत्या इस शब्द का प्रयोग अपने आप को जान से मरने के लिए किया जाता है। मानसिक असंतुलन, दबाव, शराब तथा नशीली दवाइयों का उपयोग भी
आत्महत्या के कारणों में शामिल है। ज्यादातर लोग आत्महत्या की कोशिश किसी स्थिति से पीछा छु ड़ाने, कम असंभव लगने पर और बुरे विचारों व भावनाओं से
छु टकारा पाने के लिए करते हैं।
 मानसिक तनाव-तनाव जीवन का सामन्य हिस्सा है। ज्यादातर तनाव के कारण स्वजनित होते हैं। जिसका हम सभी अपने-अपने तरीकों से समाना करते हैं
जैसे- बीमार रहना, किसी प्रिय का मर जाना, लोगों द्वारा आलोचना, नौकरी का छु टना और गुस्सा आना आदि। तनाव शरीर तथा मन दोनों को प्रभावित करता
जिसे और अधिक समस्याएं उत्पन्न होती है।

[7] महिलाओं के अधिकार:- 

1. काम करने वाली महिलाओं के अधिकार

2. कामगार दुर्घटना मुआवजा के अधिकार

3. गर्भ समापन सम्बन्धी अधिकार

4. स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार.


जीने के लिए हमें कु छ अधिकार प्राप्त हैं, जो कि देश एवं कानून के द्वारा हमको प्रदान किये जाते हैं

कु छ प्रमुख अधिकारों का विवरण अग्रलिखित है:

[1] काम करने वाली महिलाओं के अधिकार:

घर हो या बाहर प्रत्येक महिला काम करती दिखती हैं । प्रत्येक महिला कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अवश्य ही काम करती हैं । कु छ महिलाएं
के वल घर सम्भालने हेतु ही अपना पूरा दिन व्यतीत करती हैं जबकि कु छ महिलाएं घर को सम्भालने के साथ-साथ परिवार को आर्थिक सहयोग
प्रदान करने के लिए घर के बाहर भी काम करती हैं । इन महिलाओं को मालूम होना चाहिए कि भारतीय संविधान के अन्तर्गत उनके कु छ मूल
अधिकार हैं जो कि सरकार द्वारा कानून बनाकर लागू किये गये हैं ।

यह अधिकार निम्न प्रकार हैं:

कामकाजी महिलाओं के अधिकांश/कानून:

(i) प्रत्येक काम करने वाली महिला को अपने काम या श्रम के लिए सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए ।

(ii) एक ही तरह के या मिलते-जुलते काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के समान ही पारिश्रमिक मिलना चाहिए ।

(iii) महिलाओं को गर्भावस्था व प्रसूति से सम्बन्धित कु छ विशेष अधिकार दिये गये हैं ।

(ब) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948:

(i) सरकार द्वारा तय किये गये वेतन की न्यूनतम दर किये गये काम के हिसाब से निश्चित की गई है ।

(ii) अगर किसी ने न्यूनतम दर से नीचे काम करना स्वीकार किया है तो भी मालिक न्यूनतम वेतन देने के लिए बाध्य है ।

(iii) वेतन की न्यूनतम दर आयु, काम के घंटे, दिन और महीनों के हिसाब से निश्चित की जाती है ।

(स) समान पारिश्रमिक अधिनियम:

(i) एक या समान तरह के काम के लिए महिला एवं पुरुष को समान वेतन मिलना चाहिए ।

(ii) जिस काम पर पुरुषों की भर्ती की जाये, उस काम पर महिलाओं को भी भर्ती होने का अधिकार है अगर वह उस काम की योग्यता रखती है ।

(द) फै क्टरी अधिनियम 1948:

(i) महिलाओं के लिए अलग शौचालय और दरवाजे वाले गुसलखाने होने चाहिए ।
(ii) जहाँ 30 से अधिक महिलाएं काम करती हों वहाँ पर एक ‘क्रे श’ या झूलाघर यानि बच्चों की देखभाल के लिए जगह जरूर होनी चाहिए ।

(iii) महिलाओं से निश्चित वजन से ज्यादा नहीं उठवाया जा सकता ।

(iv) महिलाओं से किसी चलती मशीन को साफ करवाना या तेल लगवाना मना है ।

(v) महिलाओं से एक सप्ताह में 48 घंटों से अधिक काम नहीं लिया जा सकता ।

(vi) औरतों से फै क्टरी में ओवर टाइम काम नहीं लिया जा सकता ।

(vii) सप्ताह में एक दिन अवकाश यानि छु ट्टी जरूर मिलनी चाहिए ।

(viii) 5 घंटों से अधिक लगातार काम नहीं कराया जा सकता तथा काम सिर्फ सुबह 6 बजे से रात के 7 बजे के बीच कराया जा सकता है ।

(य) प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961:


(i) कामकाजी महिलाओं को प्रसूति से पहले और बाद में कु ल 12 हफ्ते की छु ट्टी दी जा सकती है ।

(ii) मालिक द्वारा प्रसूति से पहले और बाद की डॉक्टरी सुविधा उपलब्ध न कराने पर चिकित्सा का खर्च देना होगा ।

(iii) गर्भावस्था के दौरान स्त्री को कोई भी भारी काम देना मना है ।

(iv) बच्चे को दूध पिलाने के लिए महिला को दिन में दो बार समय मिलेगा । बच्चे के 15 महीने के होने तक उसे यह सुविधाएं मिलती रहेंगी ।

(v) अगर गर्भपात हो जाता है तो 45 दिन का सवेतन अवकाश देना होगा ।

यदि उपरोक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं तो निम्नलिखित अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करना
चाहिए:

(i) श्रम अधिकारी (लेबर ऑफिसर),

(ii) श्रम आयुक्त (लेबर कमिश्नर) ।


[2] कामगार दुर्घटना मुआवजा के अधिकार:

अगर काम करते समय कोई दुर्घटना हो जाये या काम के कारण कोई गम्भीर बीमारी हो जाए या मृत्यु हो जाये तो ऐसे लोगों को या उनके वारिसों को
उनके मालिकों से मुआवजा मिलना चाहिए ।

इस तरह का मुआवजा निम्न अधिनियम के अन्तर्गत मिलता है:


कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923:
कामगार को मुआवजे का अधिकार है, जबकि:

(क) उसे अपने काम के दौरान किसी दुर्घटना से चोट आई हो ।

(ख) उसे अपने काम के कारण कोई बीमारी लग गई हो ।

यदि कामगार की इन कारणों से मृत्यु हो जाए तो उसके वारिसों को मुआवजा दिया जाना चाहिए । यदि कामगार को नौकरी छोड़ने के दो साल के
अन्दर बीमारी लग जाती है तो भी मुआवजा मिलेगा ।

दुर्घटना होने की स्थिति में:

(a) डाक्टरी जाँच अवश्य कराएं ।

(b) पास के थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज कराएं ।

(c) दुर्घटना मुआवजा कानूनी हक है, इसे जरूर लेना चाहिए ।

(d) अगर मालिक मुआवजा देने से इंकार करें या पर्याप्त मुआवजा न दे तो आयुक्त (कमिश्नर) को एक अर्जी (प्रार्थना पत्र) देना होगा ।

[3] गर्भ समापन सम्बन्धी अधिकार


:
कभी-कभी परिवार के सामने अकसर कु छ स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।

जैसे कि:

i. बच्चे से माँ के जीवन या स्वास्थ्य को खतरा हो जाता है ।

ii. अनचाहा गर्म हो जैसे बलात्कार के कारण ।


iii. बच्चे के विकलांग पैदा होने का खतरा हो ।

iv. पति, पत्नी के द्वारा अपनाया गया परिवार नियोजन का साधन असफल हो जाता है ।

इन स्थितियों में सुरक्षित तरीके से गर्भपात करवाया जा सकता है ।

इस संदर्भ में निम्न कानून प्रचलित है:


गर्म का चिकित्सीय समापन अधिनियम- 1971:

1. किसी महिला का जबरदस्ती गर्भपात करवाना अपराध है ।

2. गर्भ समापन यदि कानून के अनुसार करवाया जाये तो वह अपराध नहीं है ।

3. दाइयों, नर्सों या छोटे-मोटे घरेलू चिकित्सकों के द्वारा कराया गया गर्भ समापन अपराध है ।

4. गर्भ समापन सिर्फ सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पतालों में ही करवाना चाहिए ।

5. 12 सप्ताह के अंदर का गर्म समापन एक डाक्टर या लेडी डाक्टर की सलाह पर करवाया जा सकता है ।

6. यदि गर्भ 12 सप्ताह से ज्यादा का हो तो दो डाक्टरों या लेडी डाक्टर की सलाह पर गर्भ समापन कराया जा सकता है ।

7. यदि गर्भ 20 सप्ताह से अधिक का हो तो गर्म समापन नहीं कराया जा सकता है ।

आवश्यकता होने पर गर्भ समापन के लिए निम्न स्थानों से सम्पर्क करना चाहिए:

a. सरकारी अस्पताल ।

b. सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पताल इत्यादि ।


[8] बच्चा गोद लेने के कानून:
कु छ परिवारों में बच्चों की किलकारी नहीं गूँजती तो उनका जीवन सुना-सुना सा हो जाता है । ऐसे दम्पत्ति अगर चाहे तो किसी बच्चे को गोद लेकर
अपने सुने जीवन में बहार ला सकते हैं ।

बच्चों को गोद लेने के कु छ नियम अग्रलिखित हैं:


हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम- 1956

i. 21 वर्ष से ज्यादा उम्र को कोई पुरुष किसी बच्चे को गोद ले सकता है ।

ii. 21 वर्ष से अधिक उम्र की विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित महिला भी किसी बच्चे को गोद ले सकती है ।

iii. अगर स्त्री-पुरुष शादीशुदा हैं तो बच्चा गोद लेने या अपना बच्चा गोद देने के लिए एक दूसरे की सहमति आवश्यक है ।

iv. यदि बच्चों के माता-पिता की मृत्यु हो गई हो या फिर वे गोद देने की स्थिति में नहीं हैं, तो बच्चे के संरक्षक द्वारा बच्चे को गोद दिया जा सकता है ।

v. अनाथालय के अधिकारी वहाँ रहने वाले सभी बच्चों के संरक्षक हैं, अत: वे वहाँ रहने वाले बच्चों को गोद दे सकते हैं ।

vi. अगर बच्चे को माँ-बाप से गोद लिया जा रहा है तो गोद लेते समय किसी खास रस्म की आवश्यकता नहीं है ।

vii. बच्चा गोद लेते समय बेहतर होगा कि दस्तावेजों का पंजीकरण करवा लिया जाए । इस स्थिति में दस्तावेजों को नकारा नहीं जा सकता है ।

viii. सिर्फ हिन्दू धर्म के मानने वाले ही गोद ले सकते हैं ।

कोई व्यक्ति कितने बच्चे गोद ले सकता है ?

ज्यादा से ज्यादा एक लड़का और एक लड़की ।


कै सा बच्चा गोद ले सकते हैं ?

(क) लड़का अथवा लड़की अथवा दोनों ।

(ख) बच्चा हिन्दू हो ।

(ग) बच्चे की उम्र 15 वर्ष से अधिक न हो ।

(घ) बच्चा विवाहित नहीं होना चाहिए ।

(ङ) अगर पुरुष लड़की गोद ले रहा है या महिला लड़के को गोद ले रही है तो दोनों के बीच (गोद लेने वाले बच्चे तथा माँ/बाप) के उम्र का अंतर
कम से कम 21 वर्ष होना चाहिए ।

संरक्षक और प्रतिपालन अधिनियम- 1980:

a. जो व्यक्ति हिन्दु धर्म का नहीं है वह सिर्फ बच्चे का संरक्षक बन सकता है ।

b. पालकत्व और गोद लेने में फर्क है ।

पालकत्व में:

(क) बच्चे का पुराना नाम ही रहेगा ।

(ख) 21 साल का होने पर बच्चा आजाद हो जायेगा ।

(ग) पालकत्व रद्द किया जा सकता है ।

बच्चा गोद लेने के लिए निम्न स्थानों पर सम्पर्क कर सकते हैं:

i. स्थानीय अनाथालय ।

ii. स्थानीय स्वयं सेवी संस्थाएं इत्यादि ।


4. स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार:

i. औरत को सम्पत्ति का अधिकार है ।

ii. खानदानी सम्पत्ति वह होती है जो कि हिन्दू पुरुष को अपने पूर्वजों से मिलती है, लड़कियों का खानदानी सम्पत्ति में जन्म से कोई अधिकार नहीं
है । उन्हें खानदानी सम्पत्ति से खाने-पीने, रहने, पढ़ाई व शादी का खर्चा मिलने का हक है ।

iii. सम्पत्ति का बँटवारा कानून के अनुसार या फिर वसीयत बनाकर हो सकता है पर यदि वसीयत न लिखी हो तो सम्पत्ति सभी वारिसों में बाँटी
जायेगी, सबको बराबर हिस्सा मिलेगा चाहे वो लड़का हो या लड़की ।

iv. हर व्यक्ति को चाहे वो पुरुष हो या स्त्री अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति की वसीयत करने का हक है ।

[9] महिला सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजनाएं:-

1. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम:

I. बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण और शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 22 जनवरी, 2015 को पानीपत, हरियाणा में इस
कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी|
II. इस कार्यक्रम का उद्देश्य लड़कियों के  गिरते लिंगानुपात के मुद्दे के प्रति लोगों को जागरूक करना है|
III. इस कार्यक्रम का समग्र लक्ष्य लिंग के आधार पर लड़का और लड़की में होने वाले भेदभाव को रोकने के साथ साथ प्रत्येक बालिका की सुरक्षा,
शिक्षा और समाज में स्वीकृ ति सुनिश्चित करना है|

2. किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए राजीव गांधी योजना (सबला)


I. के न्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम की शुरूआत 1 अप्रैल, 2011 को की गई थी|
II. इस कार्यक्रम को ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ की देख-रेख में चलाया जा रहा है|

III. इस कार्यक्रम के तहत भारत के 200 जिलों से चयनित 11-18 आयु वर्ग की किशोरियों की देखभाल ‘समेकित बाल विकास परियोजना’
के अंतर्गत की जा रही है| इस कार्यक्रम के तहत लाभार्थियों को 11-15 और 15-18 साल के दो समूहों में विभाजित किया गया है|

IV. इस योजना के तहत प्राप्त होने वाले लाभों को दो समूहों में विभाजित किया गया है: (a).पोषण (11-15 वर्ष तक की लड़कियों को पका
हुआ खाना दिया जाता है) (b). गैर पोषण (15-18 वर्ष तक की लड़कियों को आयरन की गोलियां सहित अन्य दवाइयां मिलती हैं)|

समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गयी कल्याणकारी योजनायें

3. इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना:

I. यह मातृत्व लाभ कार्यक्रम 28 अक्टू बर, 2010 को शुरू किया गया था|
II. II. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य 19 साल या उससे अधिक उम्र की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले दो बच्चों के
जन्म तक वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
III. III. इस कार्यक्रम के तहत सरकार द्वारा नवजात शिशु और स्तनपान कराने वाली माताओं की बेहतर देखभाल के लिए दो किस्तों
में 6000 रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है|

IV. यह कार्यक्रम ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ द्वारा चलाया जा रहा है|

4. कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना:

I. इस योजना का शुभारम्भ 2004 में किया गया था |


II. यह योजना वर्ष 2004 से उन सभी पिछड़े क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता की दर राष्ट्रीय स्तर से कम हो|

III. इस योजना में कें द्र व राज्य सरकारें क्रमशः 75% और 25%  खर्च का योगदान करेंगे |

IV. इस योजना का मुख्य लक्ष्य 75% अनुसूचित जाति/जनजाति/अत्यन्त पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय की बालिकाओं तथा
25% गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार की बच्चियों का दाखिला कराना है |

V. योजना में मुख्य रूप से ऐसी बालिकाओं पर ध्यान देना जो विद्यालय से बाहर हैं तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष से ऊपर है।

5. प्रधानमन्त्री उज्ज्वला योजना:

I. इस योजना की शुरुआत प्रधामंत्री मोदी द्वारा 1 मई 2016 को की गई थी |

II. इस योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन मिलेंगे|


III. योजना का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और उनकी सेहत की सुरक्षा करना है।
IV. इस योजना के माध्यम से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा
देकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना चाहती है |

6. स्वाधार घर योजना:

I. इस योजना को 2001-02 में शुरू किया गया था |

II. इस योजना को 'महिला एवं बाल विकास मंत्रालय' के माध्यम से चलाया जा रहा है |

III. इस योजना का उद्देश्य वेश्यावृत्ति से मुक्त महिलाओं, रिहा कै दी, विधवाओं, तस्करी से पीड़ित महिलाओं, प्राकृ तिक आपदाओं, मानसिक रूप से
विकलांग और बेसहारा महिलाओं के पुनर्वास की व्यवस्था करना है।

IV. इस योजना के अंतर्गत विधवा महिलाओं के भोजन और आश्रय, तलाक शुदा महिलाओं को कानूनी परामर्श, चिकित्सा सुविधाओं और महिलाओं
को व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं|

V. इस योजना के माध्यम से महिलाओं को अपना जीवन फिर से शुरू करने के लिए शारीरिक और मानसिक मजबूती प्रदान की जाती है ताकि वे अपने
पैरों पर खड़ी हो सकें |

भारत में रोजगार और विकास के विभिन्न कार्यक्रमों की सूची

7. महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP)

I. इस योजना की शुरुआत 1986-87 में एक के न्द्रीय योजना के रूप में की गयी थी |

II. इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से चलाया जा रहा है |

III. योजना का मुख्य उद्येश्य महिलाओं का कौशल विकास कराकर उनको इस लायक बनाना है कि वे स्व-रोजगार या उद्यमी बनने का हुनर प्राप्त
कर सकें |

IV. इस योजना का मुख्य लक्ष्य 16 वर्ष या उससे अधिक की लड़कियों/महिलाओं का कौशल विकास करना है |

V. इस योजना के तहत अनुदान सीधे राज्यों/कें द्र शासित प्रदेशों को न देकर संस्था/संगठन यहाँ तक कि गैर सरकारी संगठन को सीधे
ही पहुँचाया जाता है |

राष्‍ट्रीय महिला सशक्‍तीकरण नीति (2001)


परिचय
जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्‍यों
और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है । संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा
प्रदान करता है अपितु राज्‍य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्‍मक भेदभाव के उपाय करने की
शक्‍ति भी प्रदान करता है ।
लोकतांत्रिक शासन व्‍यवस्‍था के ढांचे के अंतर्गत हमारे कानूनों, विकास संबंधी नीतियों, योजनाओं
और कार्यक्रमों में विभिन्‍न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्‍नति को उद्देश्‍य बनाया गया है । पांचवी
पंचवर्षीय योजना (1974-78) से महिलाओं से जुड़े मद्द
ु ों के प्रति कल्‍याण की बजाय विकास का
दृष्‍ठिकोण अपनाया जा रहा है । हाल के वर्षों में , महिलाओं की स्‍थिति को अभिनिश्‍चित करने में
महिला सशक्‍तीकरण को प्रमख
ु मद्द
ु े के रूप में माना गया है । महिलाओं के अधिकारों एवं कानन
ू ी
हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्‍ट्रीय महिला आयोग की
स्‍थापना की गई। भारतीय संविधान में 73 वें और 74 वें संशेाधनों (1993) के माध्‍यम से
महिलाओं के लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं के स्‍थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण का
प्रावधान किया गया है जो स्‍थानीय स्‍तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के
लिए एक मजबत
ू आधार प्रदान करता है ।
1.3 भारत ने महिलाओं के समान अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध विभिन्‍न अंतरराष्‍ट्रीय
अभिसमयों और मानवाधिकार लिखतों की भी पुष्टि की है । इनमें से एक प्रमुख वर्ष 1993 में
महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्‍ति पर अभिसमय (सीईडीएडब्‍ल्‍यू) की पष्टि
ु ह
1.4 मेक्‍सिको कार्य योजना (1975), नैरोबी अग्रदर्शी रणनीतियां (1985), बीजिंग घोषणा और
प्‍लेटफार्म फॉर एक्‍शन (1995) और जेंडर समानता तथा विकास और शांति पर संयुक्‍त राष्‍ट्र
महासभा सत्र द्वारा 21 वीं शताब्‍दी के लिए अंगीकृत "बीजिंग घोषणा एवं प्‍
लेटफार्म फॉर एक्‍शन
को कार्यान्‍वित करने के लिए और कार्रवाइयां एवं पहलें" नामक परिणाम दस्‍तावेज को समुचित
अनुवर्ती कार्रवाई के लिए भारत द्वारा पूर्णतया पष्ृ ‍ठांकित कर दिया गया है ।
1.5 इस नीति में नौवीं पंचवर्षीय योजना की प्रतिबद्धताओं एवं महिलाओं के सशक्‍तीकरण से
संबंधित अन्‍य सेक्‍टोरल नीतियों को भी ध्‍यान में रखा गया है ।
1.6 महिला आंदोलन और गैर सरकारी संगठनों, जिनकी बनि
ु यादी स्‍तर पर सशक्‍त उपस्‍थिति है
एवं जिन्‍हें महिलाओं के सरोकारों की गहन समझ है , के व्‍यापक नेटवर्क ने महिलाओं के
सशक्‍
तीकरण के लिए पहलों को शरू
ु करने में योगदान किया है ।
1.7 तथापि, एक ओर संविधान, विधानों, नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों, और सम्‍बद्ध तंत्रों में
प्रतिपादित लक्ष्‍यों तथा दस
ू री ओर भारत में महिलाओं की स्‍थिति के संबंध में परिस्‍थितिजन्य
वास्‍तविकता के बीच अभी भी बहुत बड़ा अंतर है । भारत में महिलाओं की स्‍थिति पर समिति की
रिपोर्ट "समानता की ओर", 1974 में इसका विस्‍तत
ृ रूप से विश्‍लेषण किया गया है और
महिलाओं के लिए राष्‍ट्रीय परिप्रेक्ष्‍य योजना, 1988-2000, श्रम शक्‍ति रिपोर्ट, 1988 और कार्रवाई
के लिए मंच, आकलन के पश्‍चात पांच वर्ष’’ में रे खांकित किया गया है ।
1.8 जेंडर संबंधी असमानता कई रूपों में उभरकर सामने आती है , जिसमें से सबसे प्रमुख विगत
कुछ दशकों में जनसंख्‍या में महिलाओं के अनुपात में निरं तर गिरावट की रूझान है । सामाजिक
रूढ़ीवादी सोच और घरे लू तथा समाज के स्‍
तर पर हिंसा इसके कुछ अन्‍य रूप हैं। बालिकाओं,
किशोरियों तथा महिलाओं के प्रति भेदभाव भारत के अनेक भागों में जारी है ।
1.9 जेंडर संबंधी असमानता के आधारभत
ू कारण सामाजिक और आर्थिक ढांचे से जड़
ु े हैं, जो
अनौपचारिक एवं औपचारिक मानकों तथा प्रथाओं पर आधारित है ।
1.10 परिणामस्‍वरूप, महिलाओं और खासकर अनस
ु चि
ू त जाति/अनस
ु चि
ू त जनजाति/अन्‍य पिछड़ा
वर्ग और अल्‍पसंख्‍यकों सहित कमजोर वर्गों की महिलाओं, जो अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों में और
अनौपचारिक, असंगठित क्षेत्र में हैं, की अन्‍यों के अलावा शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और उत्‍पादक संसाधनों
तक पहुंच अपर्याप्‍त है । अत: वे ज्‍यादातर सीमांत, गरीब और सामाजिक रूप से वंचित रह जाती
हैं।
लक्ष्य और उद्देश्‍य
1.11 इस नीति का लक्ष्‍य महिलाओं की उन्‍नति, विकास और सशक्‍तीकरण करना है । इस नीति
का व्‍यापक प्रसार किया जाएगा ताकि इसके लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए सभी हितधारकों की
सक्रिय भागीदारी प्रोत्‍साहित की जा सके। विशेष रूप से, इस नीति के उद्देश्‍यों में निम्‍नलिखित
शामिल हैं:
 (i) सकारात्‍मक आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों के माध्‍यम से महिलाओं के पूर्ण विकास
के लिए वातावरण बनाना ताकि वे अपनी पूरी क्षमता को साकार करने में समर्थ हो सकें |
 (ii) राजनीतिक, आर्थिक, सामजिक, सामाजिक, सांस्क
‍ ृ तिक और सिविल - सभी क्षेत्रों में
पुरूषों के साथ साम्‍यता के आधार पर महिलाओं द्वारा सभी मानवाधिकारों और मौलिक
स्‍वतंत्रता की विधित: और वस्‍तुत: प्राप्ति |
 (iii) राष्‍ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में भागीदारी करने और निर्णय
लेने में महिलाओं की समान पहुंच |
 (iv) स्‍वास्‍थ्‍य दे खभाल, सभी स्‍तरों पर गण
ु वत्‍तापर्ण
ू शिक्षा, करियर और व्‍यावसायिक
मार्गदर्शन, रोजगार, बराबर पारिश्रमिक, व्‍यावसायिक स्‍वास्‍थ्‍य तथा सरु क्षा, सामाजिक सरु क्षा
और सरकारी कार्यालय आदि में महिलाओं की समान पहुंच |
 (v) महलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्‍ति के लिए विधिक प्रणालियों का
सुदृढ़ीकरण |
 (vi) महिलाओं और पुरूषों दोनों की सक्रिय भादीदारी और संलिप्‍तता के माध्‍यम से
सामाजिक सेाच ओर सामुदायिक प्रथाओं में परिवर्तन लाना |
 (vii) विकास की प्रक्रिया में जेंडर परिप्रेक्ष्‍य को शामिल करना |
 (viii) महिलाओं और बालिका के प्रति भेदभाव और सभी प्रकार की हिंसा को समाप्‍त
करना, और
 (ix) सभ्‍य समाज, विशेष रूप से महिला संगठनों के साथ साझेदारी का निर्माण करना
और उसे सुदृढ़ बनाना।
नीति निर्धारण
न्‍यायिक-विधिक प्रणालियां
विधिक-न्‍यायिक प्रणाली को महिलाओं की आवश्‍यकताओं, विशेष रूप से घरे लू हिंसा और
वैयक्‍तिक हमले के मामलों में अधिक अनक्रि
ु याशील तथा जेंडर सुग्राही बनाया जाएगा। त्‍वरित
न्‍याय और अपराध की गंभीरता के समनुरूप दोषियों को दण्‍डित करने का सुनिश्‍चय करने के
लिए नए कानून अधिनियमित किए जाएंगे और विद्यमान कानूनों की पुनरीक्षा की जाएगी।
2.2 सामुदायिक तथा धार्मिक नेताओं सहित सभी हितधारकों की पहल पर और उनकी पूर्ण
सहभागिता से, इस नीति का उद्देश्‍य महिलाओं के प्रति भेदभाव को समाप्‍त करने के लिए विवाह,
विवाह विच्‍छेद, गुजारा भत्‍ता और अभिभावकत्‍
व से संबंधित व्‍यक्‍तिगत कानूनों में परिवर्तन को
प्रोत्‍साहित करना होगा। .
2.3 पित्रसत्‍तात्‍मक सामाजिक प्रणाली में सम्पत्ति संबंधी अधिकारों के विकास ने महिलाओं के
अधीनस्‍थ स्‍
टेटस में योगदान किया है । इस नीति का उद्देश्‍य सम्पत्ति के स्‍वामित्‍व और
उत्‍तराधिकार से संबंधित कानूनों को जेंडर की दृष्‍टि से न्‍यायपूर्ण बनाने के लिए आम सहमति
बनाने से इन कानूनों में परिवर्तनों को प्रोत्‍
साहित करना है ।
निर्णय लेना
3.1 सशक्‍तीकरण के लक्ष्यों को प्राप्‍त करने के लिए सभी स्‍तरों पर राजनीतिक प्रक्रिया में निर्णय
लेना सहित, सत्‍ता की साझेदारी और निर्णय लेने में महिलाओं की बराबर की भागीदारी
सुनिश्‍चित की जाएगी। विधायी, शासकीय, न्‍यायिक, कोर्पोरे ट, संवैधानिक निकायों तथा सलाहकार
आयोगों, समितियों, बोर्डों, न्‍यासों आदि सहित प्रत्‍येक स्‍तर पर नीति निर्धारण वाले निकायों में
महिलाओं की समान पहुंच एवं पर्ण
ू सहभागिता की गारं टी के लिए सभी उपाय किए जाएंगे। जहां
कहीं भी आवश्‍यक होगा, उच्‍चतर विधायी निकायों में भी आरक्षण/कोटा समेत आरक्षण/कोटा जैसी
सकारात्‍मक कार्रवाई पर समयबद्ध आधार पर विचार किया जाएगा। विकास प्रक्रिया में महिलाओं
की महिलाओं की प्रभावी सहभागिता को प्रोत्‍
साहित करने के लिए महिला अनुकूल वैयक्तिक
नीतियां भी बनाई जाएंगी।.
विकास प्रक्रिया में जेंडर परिप्रेक्ष्‍य को शामिल करना
4.1 उत्‍प्रेरक, भागीदार और प्राप्‍तकर्ता के रूप में विकास की सभी प्रक्रियाओं में महिलाओं के
परिप्रेक्ष्‍यों का समावेशन सनि
ु श्‍चित करने के लिए नीतियां, कार्यक्रम और प्रणालियां बनाई जाएंगी।
जहां कहीं भी नीतियों और कार्यक्रमों में दरि
ू यां होंगी वहां इन दरि
ू यों को पाटने के लिए महिला
विशिष्‍ट उपाय किए जाएंगे। मेनस्‍ट्रीमिंग के ऐसे तंत्रों की प्रगति का समय-समय पर आकलन
करने के लिए समन्‍
वय तथा मॉनीटरिंग तंत्र भी स्‍थापित किए जाएंगे। इसके परिणामस्‍वरूप
महिलाओं से संबंधित मुद्दों और सरोकारों का विशेष रूप से निराकरण होगा और ये सभी संबंधित
कानूनों, क्षेत्रीय नीतियों, कार्रवाई योजनाओं और कार्यक्रमों में दिखाई दें गे।
महिलाओं का आर्थिक सशक्‍तीकरण
गरीबी उन्‍मल
ू न
5.1 चूंकि गरीबी रे खा के नीचे जीवन यापन करने वालों में महिलाओं की जनसंख्‍या बहुत ज्‍यादा
है और वे ज्‍यादातर परिस्‍थितियों में अत्‍यधिक गरीबी में रहती हैं, अन्‍तर गह
ृ और सामाजिक
कड़वी सच्‍चाइयों को दे खते हुए, समष्‍टि आर्थिक नीतियां और गरीबी उन्‍
मूलन कार्यक्रम ऐसी
महिलाओं की आवश्‍यकताओं और समस्‍याओं का विशेष रूप से निराकरण करें गे। ऐसे कार्यक्रमों
के कार्यान्‍वयन में सुधार होगा जो पहले से ही महिलाओं के लिए विशेष लक्ष्‍य के साथ महिला
उन्‍
मुख हैं। महिलाओं की सक्षमताओं में वद्धि
ृ के लिए आवश्‍यक समर्थनकारी उपायों के साथ उन्‍हें
अनेक आर्थिक और सामाजिक विकल्‍प उपलब्‍ध कराकर गरीब महिलाओं को एकजुट करने तथा
सेवाओं की समभिरूपता के लिए कदम उठाए जाएंगे।
माइक्रो क्रेडिट
5.2 उपभोग तथा उत्‍पादन के लिए ऋण तक महिलाओं की पहुंच में वद्धि
ृ के लिए, नए सूक्ष्म-
ऋण तन्‍त्रों तथा सक्ष्
ू ‍म वि‍त्‍तीय संस्‍थाओं को स्‍थापित किया जाएगा एवं मौजद
ू ा सक्ष्
ू म-ऋण तन्‍
त्रों
तथा सक्ष्
ू ‍म वि‍
त्‍तीय संस्‍थाओं को सुद़ढ़ृ कि‍या जाएगा ताकि ऋण की पहुँच को बढ़ाया जाए।
वर्तमान वित्‍तीय संस्‍थाओं तथा बैंकों के माध्‍यम से ऋण का पर्याप्‍त प्रवाहको सुनि‍श्चित करने के
लिए अन्‍य सहायक उपाय किए जाएंगे ताकि गरीबी रे खा के नीचे रहने वाली सभी महलिाओं की
ऋण तक पहुँच सरल हो। .
महिलाएं और अर्थव्‍यवस्‍था
5.3 ऐसी प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी को संस्‍थागत बनाकर बहृ द् आर्थिक और
सामाजिक नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्‍वयन में महिलाओं के परिप्रेक्ष्‍य को शामिल किया
जाएगा। उत्‍पादकों तथा कामगारों के रूप में सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को
औपचारिक और गैर औपचारिक (घर में काम करने वाले कामगार भी शामिल) क्षेत्रों में मान्‍
यता
दी जाएगी तथा रोजगार और उनकी कार्यदशाओं से संबंधित समुचित नीतियां बनाई जाएंगी। इन
उपायों में निम्‍नलिखित शामिल हो सकते हैं:
 उत्‍पादकों और कामगारों के रूप में महिलाओं के योगदान को प्रतिबिम्‍बित करने के लिए,
जहां भी आवश्‍यक हो, जैसे कि जनगणना रिकार्ड में , काम की परम्‍परागत संकल्‍
पनाओं की
पुन: व्‍याख्‍या करना तथा पुन: परिभाषित करना।
 उपग्रह एवं राष्‍ट्रीय लेखा तैयार करना।
 उपरोक्‍त (i) और (ii) को संपन्‍न करने के लिए उपयुक्‍त कार्य पद्धतियों का विकास।
भूमड
ं लीकरण
भूमड
ं लीकरण ने महिलाओं की समानता के उद्देश्‍य को प्राप्‍त करने के लिए नई चुनौतियां प्रस्‍तुत
की हैं जिसके जेंडर प्रभाव का मूल्‍यांकन व्‍यवस्‍थित ढं ग से नहीं किया गया। तथापि महिला एवं
बाल विकास विभाग द्वारा करवाए गए सूक्ष्‍म स्‍तरीय अध्‍ययनों से स्‍पष्‍ट तौर पर पता चला है
कि रोजगार तक पहुंच तथा रोजगार की गुणवत्‍
ता के लिए नीतियों को दोबारा बनाने की
आवश्‍यकता है । बढ़ती वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के लाभ समान रूप से वितरित नहीं हुए हैं जिससे
विशेष रूप से अनौपचारिक आर्थिक और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय: बिगड़ती जा रही कार्यदशाओं तथा
असरु क्षित कार्य परिवेश के कारण व्‍यापक आर्थिक असमानताओं, महिलाओं में निर्धनता, लैंगिक
असमानता में वद्धि
ृ का मार्ग प्रशस्‍
त हुआ है । भूमंडलीकरण की प्रक्रिया से निकलने वाले
नकारात्‍मक सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए महिलाओं की क्षमता बढ़ाने तथा
उन्‍
हें सशक्‍
त बनाने के लिए कार्यनीतियां बनाई जाएंगी।
महिलाएं और कृषि
5.5 कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में उत्‍पादक के रूप में महिलाओं की महत्‍
वपर्ण
ू भमि
ू का को दे खते हुए,
संकेंद्रित प्रयास किए जाएंगे जिससे यह सनि
ु श्‍चित हो कि प्रशिक्षण, विस्‍
तार और विभिन्‍न
कार्यक्रमों के लाभ उनकी संख्‍या के अनप
ु ात में उन तक पहुंचें। कृषि क्षेत्र के महिला कामगारों
को लाभ पहुंचाने के लिए मद
ृ ा संरक्षण, सामाजिक वानिकी, डेयरी विकास और कृषि से संबद्ध
अन्‍य व्‍यवसायों जैसे कि बागवानी, लघु पशप
ु ालन सहित पशध
ु न, मर्गी
ु पालन, मत्‍स्‍य पालन
इत्‍यादि में महिला प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्‍तार किया जाएगा।
महिलाएं और उद्योग
5.6 इलेक्‍ट्रानिक्‍स, सूचना प्रौद्योगिकी, खाद्य प्रसंस्‍करण एवं कृषि उद्योग तथा वस्‍त्र उद्योग में
महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्‍वपूर्ण भूमिका इन क्षेत्रों के विकास में बहुत महत्‍वपूर्ण रही है ।
विभिन्‍न औद्योगिक क्षेत्रों में भागीदारी के लिए उन्‍हें श्रम विधान, सामाजिक सुरक्षा और अन्‍य
सहायता सेवाओं के रूप में व्‍यापक सहायता दी जाएगी।
5.7 इस समय महिलाएं चाहकर भी कारखानों में रात्रि पारी में काम नहीं कर सकती हैं।
महिलाओं को रात्रि पारी में काम करने में समर्थ बनाने के लिए उपयुक्‍त उपाय किए जाएंगे।
इसके लिए उन्‍हें सरु क्षा, परिवहन इत्‍यादि जैसी सहायता सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी।
सहायता सेवाएं
5.8 महिलाओं के लिए सहायता सेवाओं जैसे कि बाल दे खाभल सुविधाएं जिनमें कार्यस्‍थलों और
शैक्षणिक संस्‍थाओं में क्रेच भी शामिल है , वद्ध
ृ ों और नि:शक्‍त लेागों के लिए गह
ृ ों का विस्‍
तार
तथा सुधार किया जाएगा ताकि परिवेश को अनुकूल बनाया जाए तथा सामाजिक, राजनैतिक तथा
आर्थिक जीवन में उनका पूर्ण सहयोग सुनिश्‍चित किया जाए। विकासात्‍मक प्रक्रिया में प्रभावशाली
ढं ग से भाग लेने के लिए महिलाओं को प्रोत्‍
साहित करने हे तु महिला अनुकूल कार्मिक नीतियां
बनाई जाएंगी।
महिलाओं का सामाजिक सशक्‍तीकरण
शिक्षा
6.1 महिलाओं और लड़िकयों के लिए शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित किया जाएगा। भेदभाव
मिटाने, शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने, निरक्षरता को दरू करने, लिंग संवेदी शिक्षा पद्धति बनाने,
लड़कियों के नामांकन और अवधारण की दरों में वद्धि
ृ करने तथा महिलाओं द्वारा
रोजगार/व्‍यावसायिक/तकनीकी कौशलों के साथ-साथ जीवन पर्यन्‍त शिक्षण को सुलभ बनाने के
लिए शिक्षा की गण
ु वत्‍ता में सध
ु ार के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे। माध्‍यमिक और उच्‍च
शिक्षा में लिंग भेद को कम करने की ओर ध्‍यानाकर्षित किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं,
विशेष रूप से अनस
ु चि
ू त जातियों/अनस
ु चि
ू त जनजातियों/अन्‍य पिछड़ा वर्गों/अल्‍पसंख्‍यकों समेत
कमजोर वर्गों की लड़कियों और महिलाओं पर विशेष ध्‍यानाकर्षित करते हुए मौजूदा नीतियों में
समय संबंधी सेक्‍टोरल लक्ष्‍यों को प्राप्‍त किया जाएगा। लिंग भेद के मुख्‍य कारणों में एक के रूप
में लैंगिक रूढि़बद्धता का समाधान करने के लिए शिक्षा पद्धति के सभी स्‍तरों पर लिंग संवेदी
कार्यक्रम विकसित किए जाएंगे।
स्‍वास्‍थ्‍य
6.2 महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य, जिसमें पोषण और स्‍वास्‍
थ्‍य सेवाएं दोनों शामिल हैं, के प्रति सम्‍पर्ण

दृष्टिकोण अपनाया जाएगा और जीवन चक्र के सभी स्‍तरों पर महिलाओं तथा लड़कियों की
आवश्‍यकताओं पर विशेष ध्‍यान दिया जाएगा। बाल मत्ृ ‍यु दर और मात ृ मत्ृ ‍यु दर, जो मानव
विकास के संवेदनशील संकेतक हैं, को कम करने को प्राथमिकता दी जाती है । यह नीति राष्‍ट्रीय
जनसंख्‍या नीति 2000 में निर्दिष्‍ट बाल मत्ृ ‍यु दर (आईएमआर), मात ृ मत्ृ ‍यु दर (एमएमआर) के
लिए जन सांख्‍यिकी के राष्‍ट्रीय उद्देश्‍यों को दोहराती है । महिलाओं की व्‍यापक, किफायती और
कोटिपरक स्‍वास्‍थ्‍य दे खभाल तक पहुंच होनी चाहिए। ऐसे उपाय अपनाए जाएंगे जो महिलाओं को
सचि
ू त विकल्‍पों का प्रयोग करने में समर्थ बनाने के लिए उनके प्रजनन अधिकारों, लैंगिक और
स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जिसमें स्‍थानिक, संक्रामक और संचारी बीमारियां जैसे कि मलेरिया, टीबी
और पानी से उत्‍पन्‍न बीमारियों के साथ-साथ उच्‍च रक्‍तचाप और हृदय रोग के प्रति अरक्षिता
का ध्‍यान रखा जाएगा। एचआईवी/एड्स तथा अन्‍य यौन संचारित बीमारियों के सामाजिक,
विकासात्‍मक और स्‍वास्‍थ्‍य परिणामों से लिंग परिप्रेक्ष्‍य में निपटा जाएगा।
6.3 शिशु और मात ृ मत्ृ ‍यु दर तथा बाल विवाह जैसी समस्‍याओं से प्रभावशाली ढं ग से निपटने के
लिए मत्ृ ‍यु, जन्‍म और विवाहों के सूक्ष्‍म स्‍
तर पर अच्‍छे और सटीक आंकड़ों की उपलब्‍धता
अपेक्षित है । जन्‍म और मत्ृ ‍यु के पंजीकरण का सख्‍ती से अनप
ु ालन सनि
ु श्‍चित किया जाएगा तथा
विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य किया जाएगा।
6.4 राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या नीति ( 2000) की जनसंख्‍या स्‍थिरीकरण संबंधी प्रतिबद्धता के अनस
ु रण
में , यह नीति इस महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकता को स्‍वीकार करती है कि परिवार नियोजन की अपनी
पसंद की सुरक्षित, प्रभावी और किफायती विधियों तक पुरूषों और महिलाओं की पहुंच होनी
चाहिए तथा बाल विवाह एवं बच्‍चों में अन्‍तर रखने जैसे मुद्दों का उपयुक्‍त ढं ग से समाधान
किया जाना चाहिए। शिक्षा का प्रसार, विवाह का अनिवार्य पंजीकरण जैसे हस्‍तक्षेप और बीएसवाई
जैसे विशेष कार्यक्रम विवाह की आयु में दे री करने में प्रभाव डालेंगे ताकि 2010 तक बाल विवाह
की प्रथा समाप्‍त की जा सके।
6.5 समचि
ु त प्रलेखन के माध्‍यम से स्‍वास्‍थ्‍य दे खभाल और पोषण के बारे में महिलाओं के
परम्‍परागत ज्ञान को मान्‍यता दी जाएगी और उसके प्रयोग को प्रात्‍
साहित किया जाएगा।
महिलाओं के लिए उपलब्‍ध समग्र स्‍वास्‍थ्‍य अवसंरचना की रूपरे खा के अंदर दवा की भारतीय
और वैकल्‍पिक पद्धतियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
पोषण
6.6 चंकि
ू महिलाओं को तीनों महत्‍वपर्ण
ू चरणों अर्थात शैशवकाल एवं बाल्‍यकाल, किशोरावस्‍था
और प्रजनन चरण के दौरान कुपोषण और बीमारी का खतरा अधिक होता है , इसलिए महिलाओं
के जीवन चक्र के सभी स्‍तरों पर पोषण संबंधी आवश्‍यकताओं को पूरा करने पर संकेंद्रित ध्‍यान
दिया जाएगा। किशोरियों, गर्भवती और धात्री माताओं के स्‍वास्‍थ्‍य तथा शिशुओं और बच्‍चों के
स्‍वास्‍थ्‍य के बीच गहरा संबंध होने के कारण भी यह महत्‍वपूर्ण है । विशेष रूप से गर्भवती और
धात्री महिलाओं में वह
ृ द् और सक्ष्
ू म ‍ पोषण की कमियों की समस्‍या से निपटने के लिए विशेष
प्रयत्‍न किए जाएंगे क्‍योंकि इससे विभिन्‍न प्रकार की बीमारियां और अपंगताएं होती हैं।
6.7 उपयक्
ु ‍त कार्यनीतियों के माध्‍यम से लड़कियों और महिलाओं के पोषण संबंधी मामलों में घरों
के अन्‍
दर भेदभाव को समाप्‍त करने का प्रयास जाएगा। घरों के अन्‍दर पोषण में असमानता के
मुद्दों और गर्भवती तथा धात्री महिलाओं की विशेष आवश्‍यकताओं पर ध्‍यान दे ने के लिए पोषण
शिक्षा का व्‍यापक प्रयोग किया जाएगा। पद्धति की आयोजना, पर्यवेक्षण और प्रदायगी में भी
महिलाओं की भागीदारी सुनिश्‍चित की जाएगी।
पेयजल और स्‍वच्‍छता
6.8 विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी मलिन बस्‍तियों में सुरक्षित पेयजल, सीवेज के
निस्‍तारण, शौचालय की सवि
ु धाओं और परिवारों की आसान पहुंच के अंदर स्‍
वच्‍छता की
सवि
ु धाओं का प्रावधान करने में महिलाओं की आवश्‍यकताओं पर विशेष ध्‍यान दिया जाएगा। इस
प्रकार की सेवाओं की आयोजना, प्रदायगी और रख-रखाव में महिलाओं की भागीदारी सनि
ु श्‍चित
की जाएगी।
आवास और आश्रय
6.9 ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आवास नीतियों, आवासीय कालोनियों की आयोजना और
आश्रय के प्रावधान में महिलाओं के परिप्रेक्ष्‍य को शामिल किया जाएगा। महिलाओं जिसमें एकल
महिलाएं भी शामिल हैं, घरों की मखि
ु या, कामकाजी महिलाओं, विद्यार्थियों, प्रशिक्षुओं और
प्रशिक्षार्थियों के लिए पर्याप्‍त और सुरक्षित गह
ृ तथा आवास प्रदान करने पर विशेष ध्‍यान दिया
जाएगा।
पर्यावरण
6.10 पर्यावरण संरक्षण और जीर्णोद्धार से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों में महिलाओं को
शामिल किया जाएगा एवं उनके परिप्रेक्ष्‍यों को प्रतिबिंबित किया जाएगा। उनकी आजीविका पर
पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव को ध्‍यान में रखते हुए, पर्यावरण का संरक्षण करने और
पर्यावरणीय विकृति का नियंत्रण करने में महिलाओं की भागीदारी सनि
ु श्‍चित की जाएगी। ग्रामीण
महिलाओं का अधिकांश भाग आज भी स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध ऊर्जा के गैर वाणिज्यिक स्रोतों
जैसे कि जानवरों का गोबर, फसलों का अवशिष्‍ट और ईंधन लकड़ी पर निर्भर है । इन ऊर्जा स्रोतों
का पर्यावरण अनुकूल ढं ग से दक्ष प्रयोग सनि
ु श्‍चित करने के लिए, गैर परं परागत ऊर्जा स्रोतों के
कार्यक्रमों को प्रोन्‍नत करना नीति का उद्देश्‍य होगा। महिलाओं को सौर ऊर्जा, बायोगैस, धआ
ूँ ं रहित
चल्
ू ‍हों और अन्‍य ग्रामीण संसाधनों के प्रयोग को प्रचारित करने में शामिल किया जाएगा ताकि
पारिस्‍थितिकी प्रणाली को प्रभावित करने और ग्रामीण महिलाओं की जीवन शैली को परिवर्तित
करने में इन उपायों का स्‍पष्‍ट प्रभाव पड़े।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
6.11 विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं को और अधिक शामिल करने के लिए कार्यकमों को
सुदृढ़़ किया जाएगा। इन उपायों में उच्‍च शिक्षा के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को चुनने के
लिए लड़कियों को प्रेरित करना तथा यह भी सुनिश्‍चित शामिल होगा कि वैज्ञानिक और तकनीकी
निविष्टियों वाली विकासात्‍मक परियोजनाओं में महिलाएं पूर्ण रूप से शामिल हों। वैज्ञानिक
मनोदशा और जागति
ृ को विकसित करने के प्रयासों को भी और भी अधिक बढ़ाया जाएगा।
संचार और सच
ू ना प्रोद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में उनके प्रशिक्षण के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे
जिनमें उनके पास विशेष कौशल हैं। महिलाओं की आवश्‍यकताओं के अनुरूप उपयुक्‍त
प्रौद्योगिकियां विकसित करने तथा साथ ही कोल्‍
हू के बैल की तरह परिश्रम करते रहने की
उनकी प्रथा को कम करने के प्रयासों पर भी विशेष ध्‍यान दिया जाएगा।
विकट परिस्‍थितिग्रस्‍त महिलाएं
6.12 महिलिाओं की परिस्‍थितियों में विविधता तथा विशेष रूप से वंचित समूहों की
आवश्‍यकताओं को स्‍वीकार करते हुए, उन्‍हें विशेष सहायता प्रदान करने के लिए उपाय और
कार्यक्रम शरू
ु किए जाएंगे। इन समह
ू ों में अत्‍यधिक गरीबी में रहने वाली महिलाएं, निराश्रित
महिलाएं, टकराव की स्थितियों में रहने वाली महिलाएं, प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित महिलाएं,
कम विकसित क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं, अशक्‍त विधवाएं, वद्ध
ृ महिलाएं, विकट परिस्थितियों में
रहने वाली एकल महिलाएं, परिवार प्रधान महिलाएं, रोजगार से विस्‍थापित महिलाएं, प्रवासी
महिलाएं, वैवाहिक हिंसा की शिकार महिलाएं, परित्‍यक्‍त महिलाएं और वेश्‍याएं इत्‍यादि शामिल हैं।
महिलाओं के विरूद्ध हिंसा
7.1 महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार की हिंसा, चाहे यह शारीरिक हो अथवा मानसिक, घरे लू स्‍तर
पर हो अथवा सामाजिक स्‍तर पर, जिसमें रिवाजों, परम्‍पराओं अथवा प्रचलित मान्‍यताओं से
उत्‍पन्‍न हिंसा शामिल है , से प्रभावी ढं ग से निपटना जाएगा ताकि ऐसी घटनाएं न घटें । कार्य
स्‍थल पर यौन उत्‍पीड़न समेत ऐसी हिंसा एवं दहे ज जैसी प्रथाओं की रोकथाम के लिए, हिंसा की
शिकार महिलाओं के पुनर्वास के लिए और इस प्रकार की हिंसा करने वाले अपराधियों के विरूद्ध
प्रभावी कार्रवाई करने के लिए सहायता प्रदान करने वाली संस्‍थाओं और तंत्रों/स्‍कीमों का निर्माण
किया जाएगा और उन्‍
हें सुदृढ़ किया जाएगा। महिलाओं और लड़कियों के अवैध व्‍यापार से
निपटने वाले कार्यक्रमों और उपायों पर भी विशेष जोर दिया जाएगा।
लड़कियों के अधिकार
8.1 घर के अन्‍दर और बाहर निवारक और दण्‍
डात्‍मक दोनों प्रकार के दृढ़ उपाय अपनाकर
लड़कियों के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव तथा उनके अधिकारों के हनन को दरू किया जाएगा।
ये विशेष रूप से प्रसवपूर्व लिंग चयन और बालिका भ्रूण हत्‍या के रिवाज, लड़कियों की शैशव
काल में हत्‍या, बाल विवाह, बाल दरू
ु पयोग तथा बाल वेश्‍यावत्‍ति
ृ इत्‍यादि के विरूद्ध बनाए गए
कानूनों को सख्‍ती से लागू करने से संबंधित होंगे। परिवार के अंदर और बाहर लड़कियों के साथ
व्‍यवहार में भेदभाव को दरू करने तथा लड़कियों की अच्‍छी छवि प्रस्‍तुत करने के कार्य को
सक्रियता से प्रोत्‍साहित किया जाएगा। लड़कियों की आवश्‍यकताओं तथा भोजन और पोषण,
स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा और व्‍यावसायिक शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों में पर्याप्‍त निवेश का लक्ष्‍य रखने
पर विशेष जोर दिया जाएगा।
जन संचार माध्‍यम
9.1 लड़कियों तथा महिलाओं की मानवीय अस्मिता से संगत छवि प्रस्‍तुत करने के लिए मीडिया
का प्रयोग किया जाएगा। यह नीति विशिष्‍ट रूप से महिलाओं की मर्यादा कम करने वाली, विकृत
करने वाली तथा नकारात्‍मक परम्‍परागत रूढ़िबद्ध छवियों और महिलाओं के विरूद्ध हिंसा को
समाप्‍त करने के लिए प्रयास करे गी। विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में
महिलाओं के लिए समान पहुंच सनि
ु श्‍चित करने के लिए निजी क्षेत्र के भागीदारों तथा मीडिया
नेटवर्क को सभी स्‍तरों पर शामिल किया जाएगा। जेंडर रूढ़िबद्धता को दरू करने तथा महिलाओं
और परू
ु षों के सन्‍तलि
ु त चित्रांकन को बढ़ावा दे ने के लिए मीडिया को आचार संहिता, व्‍यावसायिक
दिशानिर्देशों तथा अन्‍य स्‍व विनियामक तंत्र विकसित करने के लिए प्रोत्‍
साहित किया जाएगा।
प्रचालनात्‍मक कार्यनीतियां
कार्य योजनाएं
10.1 केंद्र सरकार तथा राज्‍य सरकारों के सभी मंत्रालय महिला और बाल विकास के केंद्रीय/राज्‍य
विभागों तथा राष्‍ट्रीय/राज्‍य महिला आयोगों से परामर्श के माध्‍यम से इस नीति को ठोस
कार्रवाइयों का रूप दे ने के लिए समयबद्ध कार्य योजनाएं तैयार करें गे। योजनाओं में निम्‍नलिखित
को विशिष्‍ट रूप से शामिल किया जाएगा:
 I.) वर्ष 2010 तक प्राप्‍त किए जाने वाले मापेय लक्ष्‍य
 II.) संसाधनों का पता लगाना तथा वचनबद्धता
 iii) कार्रवाई संबंधी बिंदओ
ु ं के क्रियान्‍वयन के लिए उत्‍तरदायित्‍व
 iv) कार्रवाई संबंधी बिंदओ
ु ं तथा नीतियों की दक्ष निगरानी, समीक्षा तथा जेंडर प्रभाव
मल्
ू ‍यांकन सनि
ु श्‍चित करने के लिए संरचनाएं तथा तंत्र
 v) बजट संबंधी प्रक्रिया में जेंडर परिप्रेक्ष्‍य की शरू
ु आत करना
10.2 बेहतर आयोजना और कार्यक्रम निर्माण तथा संसाधनों के पर्याप्‍त आबंटन में सहायता
प्रदान करने के लिए, विशिष्‍टता प्राप्‍त एजेंसियों के साथ नेटवर्किं ग करके जेंडर विकास सूचकांक
(जीडीआई) तैयार किए जाएंगे। इनका गहनता से विश्‍लेषण तथा अध्‍ययन किया जाएगा। जेंडर
लेखा परीक्षा तथा मूल्‍यांकन तंत्र विकसित करने का कार्य भी इसके साथ-साथ किया जाएगा।
10.3 केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारों की सभी प्राथमिक आंकडा संकलन एजेंसियों तथा
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की शोध तथा शैक्षिक संस्‍थाओं से जेंडर संबंधी भिन्‍न-भिन्‍न आंकडों
के संकलन का कार्य शरू
ु किया जाएगा। महिलाओं की स्‍थिति को प्रतिबिम्‍बित करने वाले
महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में डाटा तथा सूचना संबंधी अन्‍तरालों को इनके द्वारा तत्‍
काल पाटने का प्रयास
किया जाएगा। सभी मंत्रालयों/निगमों/बैंकों/वित्‍तीय संस्‍थाओं आदि को जेंडर पथ
ृ क आधार पर
कार्यक्रमों तथा लाभों से संबंधित डाटा एकत्र करने, मिलान करने, प्रसार करने तथा
अनुरक्षित/प्रकाशित करने की सलाह दी जाएगी। इससे नीतियों की सार्थक आयोजना तथा
मूल्‍यांकन में मदद मिलेगी।
संस्‍थागत तंत्र
11.1 महिलाओं की उन्‍नति को बढावा
़ दे ने के लिए केंद्रीय तथा राज्‍य स्‍तरों पर विद्यमान
संस्‍थागत तंत्रों को सुदृढ़ किया जाएगा। ये उन उपायों के माध्‍यम से किए जाएंगे जो उपयुक्‍त हों
तथा अन्‍य बातों के साथ-साथ ये महिलाओं को सशक्‍त बनाने के लिए स्‍थल
ू नीतियों, विधायन,
कार्यक्रमों आदि को कारगर ढं ग से प्रभावित करने के लिए पर्याप्‍त संसाधनों, प्रशिक्षण तथा
समर्थनीय कौशलों आदि के प्रावधान से संबंधित होंगे।
11.2 इस नीति के प्रचालन की नियमित आधार पर निगरानी करने के लिए राष्‍ट्रीय तथा राज्‍य
परिषदों गठन किया जाएगा। प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय परिषद के अध्‍यक्ष होंगे तथा मख्
ु ‍य मंत्री राज्‍य
परिषदों के अध्‍यक्ष होंगे और इसकी संरचना व्‍यापक स्‍वरूप की होगी जिसमें संबंधित
मंत्रालयों/विभागों, राष्‍ट्रीय तथा राज्य महिला आयोगों, समाज कल्‍याण बोर्डों, गैर सरकारी संगठनों,
महिला संगठनों, कारपोरे ट क्षेत्र, श्रमिक संघों, वित्‍तीय संस्‍थाओं, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों तथा
सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के प्रतिनधि शामिल होंगे। ये निकाय वर्ष में दो बार इस नीति के
क्रियान्‍वयन में हुई प्रगति की समीक्षा करें गे। राष्‍ट्रीय विकास परिषद को सलाह तथा टिप्‍पणियों
के लिए नीति के अंतर्गत आरं भ किए गए कार्यक्रम की प्रगति के संबंध में समय-समय पर
सचि
ू त भी किया जाएगा।
11.3 सूचना एकत्र करने तथा प्रसार करने, अनुसंधन कार्य आरं भ करने, सर्वेक्षण करने, प्रशिक्षण
तथा जागरूकता सज
ृ न कार्यक्रम आदि क्रियान्‍वित करने के अधिदे श के साथ राष्‍ट्रीय और राज्‍य
महिला संसाधन केन्‍द्रों की स्‍थापना की जाएगी। उपयुक्‍त सूचना नेटवर्किं ग प्रणालियों के माध्‍यम
से इन केंद्रों को महिला अध्‍ययन केंद्रों तथा अन्‍य अनुसंधान और शैक्षिक संस्‍थाओं के साथ जोडा
जाएगा।
11.4 यद्यपि जिला स्तर पर संस्‍थाओं को सुदृढ किया जाएगा, बुनियादी स्‍तर पर,
आंगनवाड़ी/ग्राम/कस्‍
बा स्‍
तर पर स्‍वयं सहायता समह
ू ों (एसएचजी) में संगठित तथा सदृ
ु ढ़ करने के
लिए सरकार द्वारा अपने कार्यक्रमों के माध्‍यम से महिलाओं की सहायता की जाएगी। महिला
समह
ू ों की सहायता की जाएगी ताकि वे अपने आप को रजिस्‍
टर्ड सोसाइटियों के रूप में
संस्‍थानीकृत कर सकें तथा पंचायत/नगर पालिका स्‍तर पर संघबद्ध हो सकें। बैंकों तथा वित्‍
तीय
संस्‍थाओं समेत सरकारी तथा गैर सरकारी चैनलों के माध्‍यम से उपलब्‍ध संसाधन आहरित करके
तथा पंचायतों/ नगर पालिकाओं के साथ गहन अन्‍तरापष्ृ ‍ठ (संबंध) स्‍थापित करके ये सोसाइटियां
सामाजिक तथा आर्थिक विकास संबंधी सभी कार्यक्रमों का सहक्रियात्‍मक क्रियान्‍वयन करें गी।
संसाधनों का प्रबंधन
12.1 इस नीति को क्रियान्‍वित करने के लिए पर्याप्‍त वित्‍तीय, मानव तथा बाजार संसाधनों की
उपलब्‍धता का प्रबंधन संबंधित विभागों, वित्‍तीय ऋण संस्‍थाओं तथा बैंकों, निजी क्षेत्र, सभ्‍य
समाज तथा अन्‍य संबद्ध संस्‍थाओं द्वारा किया जाएगा। इस प्रक्रिया में निम्‍नलिखित शामिल
होंगे:
(क) जेंडर बजटिंग की कवायद के माध्‍
यम से महिलाओं को होने वाले लाभों का आकलन तथा
उनसे संबद्ध कार्यक्रमों को संसाधनों का आबंटन। इन स्‍कीमों के तहत महिलाओं को अधिकतम
लाभ प्रदान करने के लिए नीतियों में उपयुक्‍त परिवर्तन किए जाएंगे।
(ख) संबंधित विभागों द्वारा उपर्युक्‍त (क) के आधार पर पर्व
ू में रे खांकित नीति को विकसित
करने तथा संवर्धित करने के लिए संसाधनों का पर्याप्‍त आबंटन।
(ग) फील्‍ड स्‍तर स्‍वास्‍थ्‍य, ग्रामीण विकास, शिक्षा तथा महिला एवं बाल विकास के कार्मिकों तथा
अन्‍य ग्राम स्‍
तरीय पदाधिकारियों के बीच सहभागिता विकसित करना।
(घ) उपयुक्‍त नीतिगत पहलों तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के समन्‍वय से नई संस्‍थाओं
के विकास के माध्‍यम से बैंकों तथा वित्‍तीय ऋण संस्‍थाओं द्वारा ऋण संबंधी आवश्‍यकताओं को
पूरा करना।
12.2 सभी मंत्रालयों और विभागों से कम से कम 30 प्रतिशत लाभ/निधियां महिलाओं को प्राप्‍त
होने का सुनिश्‍चय करने के लिए नवीं योजना में अपनाई गई महिला घटक योजना की कार्यनीति
को कारगर ढं ग से कार्यान्‍वित किया जाएगा ताकि सभी संबंधित क्षेत्रों द्वारा महिलाओं और
लड़कियों की जरूरतों तथा उनके हितों पर ध्‍यान दिया जा सके। नोडल मंत्रालय होने के कारण
महिला एवं बाल विकास विभाग योजना आयोग के साथ मिलकर गुणवत्‍
ता एवं मात्रा दोनों दृष्टि
से समय-समय पर घटक योजना के क्रियान्‍वयन की प्रगति की निगरानी और समीक्षा करे गा।
12.3 महिलाओं की उननति के लिए कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करने के
लिए निजी क्षेत्र के निवेशों को भी श्रंख
ृ लाबद्ध करने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
कानून
13.1 इस नीति को क्रियान्‍वित करने के लिए अभिज्ञात विभागों द्वारा मौजद
ू ा विधायी संरचना
की समीक्षा की जाएगी तथा अतिरिक्‍
त विधायी उपाय किए जाएंगे। इसमें लिंग संबंधी सभी
भेदमल
ू क संदर्भों को दरू करने के लिए निजी, प्रथागत एवं जनजातीय कानूनों समेत विद्यमान
कानूनों, अधीनस्‍थ कानूनों, संबद्ध नियमों और कार्यपालक तथा प्रशासनिक विनियमों की समीक्षा
भी शामिल होगी। इस प्रक्रिया की योजना 2000-2003 की समयावधि में तैयार की जाएगी।
अपेक्षित विशिष्‍ट उपाय सभ्‍य समाज, राष्‍ट्रीय महिला आयोग तथा महिला एवं बाल विकास
विभाग को शामिल करते हुए परामर्शी प्रक्रिया के माध्‍यम से तैयार किए जाएंगे। उपयुक्‍त मामलों
में अन्‍य पणधारियों (स्‍टेकहोल्‍डर्स) को भी शामिल करने के लिए परामर्श प्रक्रिया को व्‍यापक
बनाया जाएगा।
13.2 सभ्‍य समाज और समुदाय को शामिल करके कानून के कारगर क्रियान्‍वयन को बढ़ावा
दिया जाएगा। यदि आवश्‍यक हुआ, तो कानन
ू में उपयक्
ु ‍त परिवर्तन किए जाएंगे।
13.3 इसके अतिरिक्‍त, कानून को कारगर ढं ग से क्रियान्‍वित करने के लिए निम्‍नलिखित अन्‍य
विशिष्‍ट उपाय किए जाएंगे।
(क) हिंसा और लिंग संबद्ध अत्‍याचारों पर विशेष रूप से ध्‍यान केंद्रित करते हुए, सभी प्रासंगिक
कानूनी उपलबंधों का कड़ाई से प्रवर्तन तथा शिकायतों का शीघ्र निवारण सुनिश्‍चित किया
जाएगा।
(ख) कार्य-स्‍थल पर यौन उत्‍पीड़न को रोकने तथा दं डित करने, संगठित/अंसगठित क्षेत्र में महिला
कार्यकर्त्रियों के संरक्षण और समान पारिश्रमिक अधिनियम एवं न्‍यन
ू तम मजदरू ी अधिनियम जैसे
संगत कानूनों के कड़ाई से प्रवर्तन के लिए उपाय किए जाएंगे
(ग) केंद्रीय, राज्‍य और जिला स्‍तरों पर सभी अपराध पन
ु रीक्षा मंचों तथा सम्‍
मेलनों में महिलाओं
के विरूद्ध अपराधों, उनकी घटनाओं, निवारण, जांच, पता लगाने तथा अभियोजन की नियमित रूप
से पुनरीक्षा की जाएगी। लड़कियों तथा महिलाओं के विरूद्ध हिंसा तथा अत्याचार से संबद्ध
शिकायतें दर्ज करने और पंजीकरण, जांच-पड़ताल और कानूनी कार्यवाही को सक
ु र बनाने के लिए
मान्यताप्राप्‍त, स्‍थानीय, स्‍वच्‍छि
ै क संगठनों को प्राधिकृत किया जाएगा।
(घ) महिलाओं के विरूद्ध हिंसा और अत्‍याचार को दरू करने के लिए पलि
ु स स्‍टेशनों में महिला
प्रकोष्‍ठों, महिला पुलिस स्‍टेशन परिवार न्‍यायालयों को प्रोत्‍
साहन, महिला न्‍यायालयों, परामर्श केंद्रों,
कानन
ू ी सहायता केंद्रों तथा न्‍याय पंचायतों को सदृ
ु ढ किया जाएगा और उनका विस्‍
तार किया
जाएगा।
(ङ) विशेष रूप से तैयार किए गए कानन
ू ी साक्षरता कार्यक्रमों में और सच
ू ना का अधिकार
कार्यक्रमों के माध्‍यम से महिलाओं के कानूनी अधिकारों, मानवाधिकारों तथा अन्‍य हकदारियों के
सभी पहलुओं पर सूचना का व्‍यापक रूप से प्रसार किया जाएगा।
लिंग (जेंडर) संवेदीकरण
14.1 नीति और कार्यक्रम निर्माताओं, क्रियान्‍वयन और विकास एजेंसियों, कानून प्रवर्तन तंत्रों और
न्‍याय पालिका, तथा गैर सरकारी संगठनों पर विशेष रूप से ध्‍यान केंद्रित करते हुए, राज्‍य के
कार्यपालक, विधायी तथा न्‍यायिक प्रकोष्‍ठों के कार्मिकों को प्रशिक्षित करने का कार्य आरं भ किया
जाएगा। अन्‍य उपायों में निम्‍नलिखित शामिल होंगे:
(क) लिंग संबंधी मुद्दों तथा महिलाओं के मानवाधिकारों के बारे में सामाजिक जागरुकता को
बढावा दे ना
(ख) लिंग संबंधी शिक्षा तथा मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के लिए पाठ्यचर्या
तथा शैक्षिक सामग्रियों की पन
ु रीक्षा करना
(ग) सभी सरकारी दस्‍तावेजों तथा विधिक लिखतों से महिलाओं की गरिमा को ठे स पहुंचाने वाले
सभी संदर्भों को हटाना
(घ) महिलाओं की समानता तथा अधिकारिता से संबंधित सामाजिक संदेशों को संप्रेषित करने के
लिए जन संचार माध्‍यमों के भिन्‍न-भिन्‍न रूपों का प्रयोग करना।
पंचायती राज संस्‍थाएं
15.1 भारतीय संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधनों (1993) ने राजनीतिक अधिकारों की
संरचना में महिलाओं के लिए समान भागीदारी तथा सहभागिता सनि
ु श्‍चित करने की दिशा में
महत्‍वपूर्ण सफलता दिलाई है । पंयायती राज संस्थाएं सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की
सहभगिता बढ़ाने की प्रक्रिया में केंद्रीय भमि
ू का निभाएंगी। पंचायती राज संस्‍थाएं तथा स्‍थनीय
स्‍वशासन संस्‍थाएं बुनयादी स्‍तर पर राष्‍ट्रीय महिला नीति के क्रियान्‍वयन तथा निष्‍पादन में
सक्रिय रूप से शामिल होंगी।
स्‍वैच्‍छिक क्षेत्र के संगठनों के साथ भागीदारी
16.1 महिलाओं को प्रभावित करने वाली सभी नीतियों तथा कार्यक्रमों के निर्माण, क्रियान्‍वयन,
निगरानी तथा पुनरीक्षा में शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुसंधान से संबंधित काम करने वाले स्‍वच्‍छि
ै क
संगठनों, संघों, परिसंघों, श्रमिक संघों, गैर सरकारी संगठनों, महिला संगठनों तथा संस्थाओं की
सहभागिता सनि
ु श्‍चित की जाएगी। इस प्रयोजनार्थ, उन्‍हें संसाधन और क्षमता निर्माण से संबंधित
उपयुक्‍त सहायता पदान की जाएगी तथा महिलाओं की अधिकारिता की प्रक्रिया में उनकी सक्रिय
भागीदारी को सक
ु र बनाया जाएगा।
अन्तर्राष्‍ट्रीय सहयोग
17.1 इस नीति का उद्देश्‍य महिला अधिकारिता के सभी क्षेत्रों में अंतर्राष्‍ट्रीय
बाध्‍यताओं/प्रतिबद्धताओं जैसे कि महिलाओं के विरूद्ध सभी रूपों के भेदभाव पर अभिसमय
(सीईडीएडब्‍ल्‍यू), बाल अधिकारों पर अभिसमय (सीआरसी), अंतर्राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या एवं विकास
सम्‍मेलन (आईसीपीडी+5) तथा इस तरह के अन्‍य लिखतों का क्रियान्‍वयन करना है । अनभ
ु वों की
हिस्‍सेदारी, विचारों तथा प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान, संस्‍थाओं तथा संगठनों के साथ नेटवर्किं ग
के माध्‍यम से तथा द्विपक्षीय और बहु-पक्षीय भागीदारियों के माध्‍यम से महिलाओं की
अधिकारिता के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय, क्षेत्रीय तथा उप क्षेत्रीय सहयोग को प्रोत्‍
साहित करने का कार्य
जारी रहे गा।
[10] महिलाओं के संवैधानिक एवं विधिक अधिकार
 
 
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नारी की स्थिति में काफी सुधारात्मक परिवर्तन हुए है । आजादी के  64 वर्शो के पश्चात हम
यदि कानूनी दृष्टिकोण से नारी के प्रति अपराधों को रोकने के लिए बनाये गये अधिनियमों की विवेचना करते हैं तो
स्पष्ट परिलक्षित होता है कि हमारे देश में नारी की गरिमामयी स्थिति को बनाये रखने के लिए बहुत सारे कानून बनाये
गये हैं। किन्तु पर्याप्त कानूनी शिक्षा के अभाव में कानूनों की जानकारी उनकों नहीं मिल पाती, यहाँ तक कि अधिकांश
महिलाओं को पता ही नहीं हो पाता कि उनके कौन कौन से अधिकार प्राप्त हैं । प्रस्तुत शोध पत्र में महिलाओं के
उत्थान एवं उनके प्रति अपराधों को रोकने हेतु बनाए गए अधिकारों की विवेचना की गई है ।

प्राचीन युग से वर्तमान युग तक नारी के संघर्ष की गाथा बहुत लंबी है। कहा जाता रहा है कि वर्षो से पराधीनता में रहने
वाली एकमात्र जाति ‘‘नारी‘‘ ही है । इसी कारण स्त्री को ‘‘अंतिम उपनिवेश‘‘ की भी संज्ञा दी जाती रही है। वर्तमान
शताब्दी में विश्व में अपराधों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव समाज पर स्पष्ट परिलक्षित हो
रहा है क्योंकि समाज और अपराध एक दूसरे के पूरक हैं । अपराध समाज में कारित होते हैं और उनका उपचार भी
समाज में समाहित होता है । आदिम युग में मानवीय आवश्यकताएं न्यून थी, इसलिए अपराध भी काफी कम होते
थे, किन्तु वर्तमान में मनुष्य की नित नये बढ़ती आवश्यकताओं के कारण भी अपराध ज्यादा होने लगे हैं । प्रारंभ में
अपराध के वल चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार इत्यादि की घटनाओं तक ही सीमित थे, किन्तु वर्तमान में इन्टरनेट, इलेक्ट्राॅनिक
मीडिया तक बढ़ गई हैं, जिसे साइबर अपराध भी कहा जाता है ।
 
यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद स्त्री और पुरुष को समान दर्जा देता है किन्तु आंकड़ों से स्पष्ट है कि ये सिर्फ
कागजों तक ही सीमित है । यदि हमारे देश में घटित होने वाले महिलाओं के प्रति अपराधों का विश्लेषण करे तो
स्पष्ट होता है कि प्रति 6 मिनट पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़, सार्वजनिक अपमान, हत्या का प्रयास, बलात्कार, यौन-
उत्पीड़न, अश्लीलता जैसी घटनाएं घटती है । भारत के विभिन्न प्रदेशों की स्थिति को देखें तो महाराष्ट्र में सर्वाधिक फिर
मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश में राजस्थान में महिलाओं के प्रति ज्यादा अपराध घटित होते हैं ।
 
ऐसे अपराधों को रोकने कठोर से कठोरतम् कानून निर्मित किए जा रहे हैं, किन्तु जब तक पुरुषों तथा समाज की
मानसिकता में सुधार नहीं आएगा, ऐसे कानूनों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा क्योंकि समस्याओं का जन्म समाज से
ही होता है और उनका उन्मूलन भी कानून के उचित क्रियान्वयन के साथ साथ समाज द्वारा ही हो सकता है ।
भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं को बहुत से संवैधानिक एवं विधिक अधिकार प्रद Ÿा किये गये हैं, इसके साथ ही
इन अधिकारों के उचित क्रियान्वयन एवं महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने हेतु विभिन्न आयोगों की स्थापना भी की गई
है ।
 
[11] महिलाओं के लिए संवैधानिक उपबंधः-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार ‘‘भारत राज्य क्षेत्र के किसी ब्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा
विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।‘‘
 
समानता का तात्पर्य यहां पर यह है कि स्त्री और पुरुष में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है तथा यह अधिकार स्त्री
और पुरुष दोनों को समान रूप से प्राप्त है ।
 
अनुच्छेद 15 के अनुसार ‘‘राज्य के वल धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के बीच कोई विभेद
नहीं करेगा‘‘ भारतीय संविधान में स्पष्ट है कि पुरुष एवं महिला को समान अधिकार प्रदान किये गये हैं, इतना ही इसी
अनुच्छेद के खंड 3 में स्त्रियों के लिए विशेष व्यवस्था भी की गई है क्योंकि महिलाओं की स्वाभाविक प्रकृ ति के कारण
उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है।
 
अनुच्छेद - 19 में महिलाओं को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है, ताकि वह स्वतंत्र रूप भारत के क्षेत्र में
आवागमन, निवास एवं व्यवसाय कर सकती है । स्त्री लिंग होने के कारण किसी भी कार्य से उनको वंचित करना
मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना गया है । तथा ऐसी स्थिति में कानून की सहायता हो सके गी ।
 
अनुच्छेद 23-24 द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाले शोषण को नारी गरिमा के लिए उचित नहीं मानते हुए महिलाओं की
खरीद-ब्रिकी वेश्यावृŸिा के लिए जबरदस्ती करना, भीख मंगवाना आदि को दंडनीय माना गया है । इसके लिए
सन् 1956 में ‘सेप्रश्न आॅफ इमोरस ट्राफिक इन विमेन इन विमेन एंड गल्र्स एक्ट‘‘ भी भारतीय संसद द्वारा पारित किया
गया ताकि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले सभी प्रकार के शोषण को समाप्त किया जा सके ।
 
आर्थिक न्याय प्रदान करने हेतु अनुच्छेद 39 (क) में स्त्री को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार एवं
अनुच्छेद 39 (द) में समान कार्य के लिए समान वेतन का उपबंध है।
 
अनुच्छेद 42 के अनुसार महिला को विशेष प्रसूति अवकाश प्रदान करने की बात कही गई है।
 
अनुच्छेद 46 इस बात का आव्हान करता है कि राज्य दुर्बल वर्गो के शिक्षा तथा अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से
अभिवृद्धि करेगा तथा सामाजिक अन्याय एवं सब प्रकार के शोषण से संरक्षा करेगा ।
 
 
संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 51 (क) (डं.) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हमारा दायित्व है कि हम हमारी संस्कृ ति
की गौरवशाली परंपरा के महत्व को समझे तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो कि स्त्रियों के सम्मान के खिलाफ हो

अनुच्छेद 243 (द) (3) में प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गये स्थानों की कु ल संख्या के  1/3 स्थान स्त्रियों के
लिए आरक्षित रहेगें और चक्रानुक्रम से पंचायत के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में आबंटित किये जाएगें ।
 
अनुच्छेद 325 के अनुसार निर्वाचक नामावली में महिला एवं पुरुष दोनों को ही समान रूप से सम्मिलित होने का अधिकार
प्रदान किया गया है, अनुच्छेद 325 द्वारा संविधान निर्माताओं ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि भारत में पुरुष और
स्त्री को समान मतदान अधिकार दिये गये हैं ।
 

FOOT NOTE

(1) देसाई नीरा और गैत्रयी कृ ष्णराज वीमेन एण्ड सोसायटी इन इंडिया अजंत पब्लिके शंस दिल्ली 1987, पृ. 46
(2) संयुक्त राष्ट्र संघ रिपोर्ट वनडे वीमने: ट्रेएड्स एण्ड स्टेटिक्स (डीरीलली) (1995)

[12] विधिक उपबंध:-
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों एवं अत्याचारों के निवारण के लिए राज्य द्वारा विभिन्न अधिनियम पारित किये गये हैं, ताकि
महिलाओं को उनका अधिकार मिल सकें एवं सामाजिक भेदभाव से उनकी सुरक्षा हो सकें ।
 
भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधानः- भा.द.ंसं. में भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार एवं निर्दयता के विरूद्ध
व्यवस्था की गई है ।
 
धारा 292 से 294 तहत विशिष्टता और सदाचार को प्रभावित करने वाले मामलों पर रोक लगाई गयी है । इसके अनुसार
अगर कोई स्त्रियों की नंगी तस्वीरें प्रदर्शित करता है अथवा क्रय-विक्रय करता है अथवा भौंडा प्रदर्शन करता है तो
ऐसे व्यक्ति को दो वर्ष तक की सजा एवं 2 हजार रुपया तक जुर्माना अथवा दोनों ही सजाओं का प्रावधान है ।
 
धारा 312 से 318 में गर्भपात कारित करना, अजन्में शिशुओं को नुकसान पहुंचाने, शिशुओं को अरक्षित छोड़ने और जन्म
छिपाने के विषय में दंड का प्रावधान किया गया है ।
 
धारा 354 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी स्त्री की लज्जा भंग करता है अथवा करने के उद्देश्य से आपराधिक बल प्रयोग
करता है तो उसे 2 वर्ष की सजा अथवा जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किये जानो का प्रावधान है ।
 
धारा 361 के अनुसार यदि किसी महिला की आयु 18 वर्ष से कम है और उसे कोई व्यक्ति उसके विधिपूर्व संरक्षक की
संरक्षकता से बिना सम्मति के या बहला अथवा फु सलाकर ले जाता है तो वह व्यक्ति व्यपहरण का दोषी होगा । तथा
धारा 363 से 366 में दंड का प्रावधान किया गया है ।
 
 
धारा 372 के तहत अगर किसी 18 वर्ष से कम आयु की महिला को किसी वेश्यावृŸिा के प्रयोजन के लिए बेचा जाने
पर दोषी व्यक्ति को 10 वर्ष तक की सजा व जुर्माना अथवा दोनों की सजा दी जा सके गी ।
 
धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया है एवं धारा 376 में बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान है ।
 
धारा 498 (अ) में प्रावधानित किया गया है कि अगर कोई पति अथवा उसका कोई रिश्तेदार विवाहित पत्नी के साथ
निर्दयतापूर्वक दुव्र्यवहार करता है अथवा दहेज को लेकर यातना देता है तो न्यायालय उसे 2 साल तक की सजा दे
सकता है ।
 
धारा 509 के तहत अगर कोई व्यक्ति स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहता है कोई ध्वनि या
कोई अंग विक्षेप करता हे या कोई वस्तु प्रदर्शित करता है अथवा कोई ऐसा कार्य करता है जिससे किसी स्त्री की
एकान्तता पर अतिक्रमण होता हे तो ऐसा व्यक्ति एक वर्ष तक की सजा एवं जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया
जायेगा । 
 
3.  महिलाओं के लिए पारित किये गये विभिन्न अधिनियम
हमारे देश मे ंविभिन्न समयों में प्रचलित कु रीतियों एवं कु प्रथाओं को मुक्त कराने हेतु बहुत से अधिनियम पारित किये गये
है तथा महिलाओं को सुरक्षा एवं अधिकार देने हेतु भी अधिनियम पारित किये गये है, जो निम्न हैः-
(1) राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948
(2) दि प्लांटेशनस लेबर अधिनियम 1951
(3) परिवार न्यायालय अधिनियम, 1954
(4) विशेष विवाह अधिनियम, 1954
(5) हिन्दु विवाह अधिनियम 1955
(6) हिन्दु उ Ÿाराधिकारी अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005)
(7) अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956
(8) प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 (संशोधित 1995)
(9) दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
(10) गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971
(11) ठेका श्रमिक (रेग्युलेशन एण्ड एबोलिशन) अधिनियम 1976
(12) दि इक्वल रियुनरेशन अधिनियम 1976
(13) बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
(14) आपराधिक विधि (संशोधन) अधिनियम 1983
(15) कारखाना (संशोधन) अधिनियम 1986
(16) इन्डिकें ट रिप्रेसेन्टेशन आॅफ वुमेन एक्ट 1986
(17) कमीशन आॅफ सती (प्रिवेन्शन) एक्ट, 1987
(18) घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005
[13] प्रशनोत्तरी:-

नाम- राजूराम प्रजापत, s/o भवरलाल प्रजापत, 95 गणेश मंदिर रातानाडा

प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?

उ.1 हाँ l

प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये

है ?

उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।

प्र. 3 तो क्या आप इस बात से सहमत है कि महिलाओ की रक्षा के लिए कानूननो की

आवश्यकता है ?

उ. 3 हाँ, बिलकु ल जिससे वे फलफू ल सके ।

प्र. 4 क्या महिलाये इन कानूनों की वजह से सुरक्षित है ?

उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।

प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?

उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।

प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में

किस प्रकार जागरूक कर सकते है ?

उ.6 टीवी के दवारा, कैं प लगाकर, विधिक सहायता दवारा इत्यादी ।

प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?

उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।
नाम- हीराराम s/o राजूराम 90 गणेश मंदिर रातानाडा

प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?

उ.1 हाँ l

प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये

है ?

उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।

प्र. 3 तो क्या आप इस बात से सहमत है कि महिलाओ की रक्षा के लिए कानूननो की

आवश्यकता है ?

उ. 3 हाँ, बिलकु ल जिससे वे फलफू ल सके ।

प्र. 4 क्या महिलाये इन कानूनों की वजह से सुरक्षित है ?

उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।

प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?

उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।

प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में

किस प्रकार जागरूक कर सकते है ?

उ.6 टीवी के दवारा, कैं प लगाकर, विधिक सहायता दवारा इत्यादी ।

प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?

उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।

नाम- नाथूसिंह s/o प्रतापसिंह 99 गणेश मंदिर रातानाडा


प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?

उ.1 हाँ l

प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये

है ?

उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।

प्र. 3 तो क्या आप इस बात से सहमत है कि महिलाओ की रक्षा के लिए कानूननो की

आवश्यकता है ?

उ. 3 हाँ, बिलकु ल जिससे वे फलफू ल सके ।

प्र. 4 क्या महिलाये इन कानूनों की वजह से सुरक्षित है ?

उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।

प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?

उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।

प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में

किस प्रकार जागरूक कर सकते है ?

उ.6 टीवी के दवारा, कैं प लगाकर, विधिक सहायता दवारा इत्यादी ।

प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?

उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।

नाम- मुके श जांगिड़ s/o रामचंद्र जांगिड़ 106 गणेश मंदिर रातानाडा
प्र.1 हमारे भारत में महिलाओ की स्तिति ज्यादा सुधरी हुई नहीं है ?

उ.1 हाँ l

प्र.2 क्या आप जानते है कि हमारे देश में महिलाओ के हित में कई कानून बनाये गये

है ?

उ. 2 हाँ, कु छ कु छ।

प्र. 3 तो क्या आप इस बात से सहमत है कि महिलाओ की रक्षा के लिए कानूननो की

आवश्यकता है ?

उ. 3 हाँ, बिलकु ल जिससे वे फलफू ल सके ।

प्र. 4 क्या महिलाये इन कानूनों की वजह से सुरक्षित है ?

उ. 4 हाँ, काफी हद तक ।

प्र. 5 क्या लोगो में महिला सुरक्षा से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता है ?

उ. 5 हाँ, बस पढ़े लिखे समाज में ही, आशिक्षित समाज में नहीं ।

प्र. 6 तो हम पुरे समाज को शिक्षित तथा अशिक्षित सभी लोगो के इन कानूनों के विषय में

किस प्रकार जागरूक कर सकते है ?

उ.6 टीवी के दवारा, कैं प लगाकर, विधिक सहायता दवारा इत्यादी ।

प्र. 7 महिलाओ कि दशा सुधारने में किन-किन लोगो को आगे आना चाहिए ?

उ. 7 स्वयं महिलाओ को तथा शिक्षित समाज तथा सरकार को भी आगे आना चाहिए ।

[14] निष्कर्ष एवं सुझावः-


  
महिलाओं को प्रद Ÿा अधिकारों एवं उनके लिए बनायें गये अधिनियमों के बाद भी महिलाओं की स्थिति शोचनीय है ।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए पर्याप्त अधिनियम है, जिनके कारण महिलाओं की स्थिति में सुधार
नहीं हो पा रहा है । स्वतंत्रता के पश्चात से वर्तमान तक विभिन्न अधिनियम जैसेः- हिन्दु विवाह अधिनियम, विशेष
विवाह अधिनियम, विवाह-विच्छेद व तलाक अधिनियम वेश्यावृŸिा उन्मूलन अधिनियम, गर्भपात की चिकित्सा द्वारा मान्यता
जैसे प्रमुख सुधारों से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में पर्याप्त अंतर आया है, फिर भी बहुत सी कमियाँ है, जिनकी
वजह से इन कानूनों का लाभ महिलाएँ नहीं उठा पाती -
(1) पूरे देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट है कि अधिकांश मामलों में रिपोर्ट ही
दर्ज नहीं करवाये जाते । चाहे पारिवारिक दबाव हो या सामाजिक दबाव जिसके चलते बहुत सी घटनाएँ परिवार की
चारदीवारी में ही सिमट कर रह जाती है ।
 
(2) महिलाओं के उत्थान एवं सरंक्षण के लिए पर्याप्त कानून एवं अधिनियम है, किन्तु लोगों को विशेषकर महिलाओं को
कानूनों एवं अधिकारों का पर्याप्त ज्ञान ही नहीं है, अतः ऐसे कानूनों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार या जानकारी समय-समय
पर महिलाओं को प्रदान की जानी चाहिए।
 
(3) घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में महिलाएँ आगे नहीं आती, यदि पीड़ित महिलाएँ ऐसे घटनाओं के विरूद्ध आवाज उठाना
भी चाहे तो समाज में इसे उचित नहीं माना जाता । ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून व सरकार के साथ
समाज को भी अपनी उचित भूमिका निर्वहन करना चाहिए ।
 
(4) देश में कु ल मतदाताओं में आधी संख्या महिलाओं की है, मगर इसके बावजूद भी लोकसभा तथा राज्य विधानमंडलों में
उनका प्रतिनिधित्व घोर निराशाजनक हे । अतः राजनीति में भी महिलाओं को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए

 
(5) भा.दं.सं. की धारा 498 ए के अंतर्गत विवाहित महिला पर सभी अत्याचार अपराध है, किन्तु इसे व्यवहार में दहेज
प्रताड़ना से जोड़ दिया जाता है, जो कि उचित नहीं है । क्योंकि महिलाएँ फौजदारी मुकदमा के लिए हिम्मत नहीं जुटा
पाती और साथ ही उनकों घर से निकाले जाने का भी डर रहता है ।
 
(6) लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाएँ प्रतिनिधित्व नहीं कर पाती है । विकसित देशों की लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाओं
का प्रतिनिधित्व उनकी संख्या के अनुपात में नहीं है।
 
(7) महिलाओं में साक्षरता के दर भी काफी कम है । आंकड़ों से स्पष्ट है कि 66ः पुरुषों की तुलना में सिर्फ  39ः
महिलाएँ ही शिक्षित है । शिक्षा का इतना कम प्रतिशत भी महिलाओं के प्रति अत्याचार का कारण है ।
 
(8) महिलाओं की स्थिति सुधारने में गैर-सरकारी संगठन अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकते है, साथ ही उत्पीड़ित
महिलाओं को सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा पर्याप्त दी जानी चाहिए तथा महिलाओं के लिए स्वरोजगार
योजनाओं आदि को भी पर्याप्त महत्व दिया जाए ।
 
 
FOOT NOTE

(3)पाण्डेय, डाॅ. जयनारायण, भारत का संविधान, सेन्ट्रल लाॅ एजेन्सी दिल्ली, 41 वाँ संस्करण 2008


(4) यादव राजाराम, भारतीय दंड संहिता, 1860 पंचम संस्करण 2005, सेन्ट्रल लाॅ पब्लिके शन्स, इलाहाबा

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