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महापुरुषोंके सत्संग की बातें २

महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३

।।ॐ श्रीपरमात्मने नमः।।

महापरुु षोंके सत्सगं की बातें


('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के सत्संग
की कुछ बातें)।
।।संक्षिप्त।।

सग्रं हकर्ता और लेखक – सर्ं डगुँ रदतस रतम


महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४

।।श्रीहरर:।।
महापरुु षोंके सत्सगं की बातें
क्षवषय सूची

क्षवषय पष्ठृ सख्


ं या

१- महापरुु षोंके सत्संग की बातें


नम्र ननवेदन .................................................... ८
(१) सतं श्री नियाराम िी महाराि ............................. १०
(२) मातािी की सतं ों में श्रद्धा-भनि .......................... १२
(३) (श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख ु दास िी महाराि की)
बालक अवस्थाकी बातें ......................................... २१
(४) परमधामकी प्रानि ............................................२७
(५) गरुु चरणोंका प्रभाव .........................................२९
(६) नवद्याध्ययन ...................................................३४
(७) कुछ नसद्धान्त .................................................४६
(८) परम श्रद्धेय सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका और
श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख ु दास िी महाराि का नमलन ..५१
(९) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका को भगवद्दर्शन .....५५
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५

(१०) श्रीमंगलनाथिी महाराि से सेठिी श्रीियदयालिी


गोयन्दका को प्रेरणा ...................................... ५९
(११) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका के नमत्र
हनमु ानदासिी गोयन्दका ................................ ६१
(१२) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका द्वारा
सत्संगका नवस्तार ......................................... ६५
(१३) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका द्वारा
कल्याण (पत्र) र्रू ु ..................................... ६६
(१४) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका द्वारा
गीताप्रेस खोला िाना .................................... ६७
(१५) सेठिी श्रीियदयालिी गोयन्दका से सम्बन्ध ....... ६९
(१६) भाईिी श्रीहनमु ान प्रसादिी पोद्दार ..................... ७०
(१७) श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख
ु दासिी महाराि
का साधन-सत्संग ......................................... ७२
(१८) सत्संग से बहुत ज्यादा लाभ ............................ ७५

२- महापरुु षोंके नामका, कामका और वाणीका


प्रचार करें तथा उनका दरुु पयोग न करें .................... ७८
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६

३- सत्संग-सामग्री (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी


महाराजकी लिलखत और ऑलियो ररकॉिड वािी
सत्संग-सामग्री आलद) ..................................... ८८
४- पााँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण ....... १०१
५- गीता 'साधक-संजीवनी' (िेखक- श्रद्धेय
स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराज) को
समझ-समझ कर पढ़नेसे अत्यन्त िाभ ................. १०८
६- िेखक का नाम हटाना या बदिना अपराध है ........ ११६
७- चतुदश ड मंत्र .................................................... १२२
८- संत-वाणी यथावत् रहने दें, संशोधन न करें ............. १२८
९- लतहत्तर पस्ु तकें ................................................ १३४
१०- सतं ोंके प्रलत मनगढ़न्त बातें न फै िाएं .................. १३५
११-अपनी फोटोका लनषेध क्यों है? ...........................१६३
१२- क्या लियाके द्वारा भगवत्प्रालि नहीं होती? ............१६९
१३- १.सवू ा- सतू कमें भगवानकी पजू ा करें अथवा
नहीं? कह, करें ..............................................१७३
१४- सहु ालगन स्त्री को एकादशी व्रत करना चालहये
या नहीं? कह, करना चालहये .............................१७६
१५- कुछ आवश्यक और उपयोगी बातें .....................१८६
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७

१६- सलू ियााँ -(शरुु ) ............................................. २०५


१७- पंचामृत ........................................................२०८
१८- गीता साधक-सजं ीवनी के लिये
भलवष्य-वालणयााँ .............................................२०९
१९- १.लनत्य-स्तुलत, गीता और सत्संग .......................२१३
२०- अलन्तम प्रवचन ............................................. २२८
२१- गीताजी कण्ठस्थ (याद) करनेका उपाय ............... २३५
२२- सत्संग-स्वामी रामसख ु दासजी महाराज ............... २४२
२३- पस्ु तक लमिनेका पता ......................................२४४

------―***―------
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८

नम्र-क्षनवेदन
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसखु दासजी महाराज' कहते हैं
क्षक संत - महात्माओ ं को याद करने से हृदय शुद्ध,
क्षनममल हो जाता है।
यथा-
िो संत ईश्वर भि िीवनमिु पहले हो गये।
उनकी कथायें गा सदा मन र्द्ध
ु करनेके नलये।।

इस प्रकार और भी अनेक लाभ हैं। इतने लाभ हैं क्षक


कोई कह नहीं सकता। इसक्षलये संत- महात्माओ ं की
कुछ बातें यहााँ क्षलखी जा रही है। सतं -महात्माओ ं के
क्षवषय में बातें यथाथम (सही-सही) होनी चाक्षहये। अपने
मन से ही गढ़कर या तथ्यहीन बातें नहीं कहनी चाक्षहये ।

(आज कल 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी


महाराज' के क्षवषयमें भी कई लोग 'बनावटी-बातें',
मनगढ़न्त बातें करने लग गये हैं। जो बातें हुई ही नहीं,
जो बातें कक्षपपत हैं, झठू ी है, क्षजसका कोई प्रमाण ही
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९

नहीं है - ऐसी सुनी-सुनायी बातें भी लोग क्षबना क्षवचार


क्षकये कहने लग गये, क्षबना सबूत की बातें करने लग गये
हैं। जो क्षक सवमथा अनक्षु चत है।

ऐसी बातें न तो महापुरुषोंको पसन्द है और न ही कोई


सच्चे आदमी को पसंद है। महापुरुष तो सत्य, यथाथम
और प्रमाक्षणत बातें करते हैं और कहते हैं तथा लाभ भी
सच्ची बातों से ही होता है। इसक्षलये उन्ही महापुरुषोंके
श्रीमुखसे सुनी हुई कुछ सही-सही बातोंके भाव यहााँ
क्षलखे जा रहे हैं-)

इसमें लेखन आक्षद की जो गलक्षतयााँ रह गयी हैं, वो मेरी


व्यक्षिगत हैं और जो अच्छाइयााँ हैं, वो उन महापुरुषों
की हैं। सज्जन लोग गलक्षतयों की तरफ ध्यान न देकर
अच्छाइयों की तरफ ध्यान देंगे, ऐसी आशा है।

क्षवनीत- डुगाँ रदास राम ।


दीपावली, सवं त २०७४
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०

(१)-संर् श्री जियतरतमिी महतरति –

हमारे देश(राजस्थान) में जीयारामजी महाराज एक बडे


भजनानन्दी संत हो गये हैं। करणूाँ (नागौर) में आपकी
बहन रहती थीं। बहनके स्नेहके कारण आप करणूाँ जाया
आया करते और भजन करते थे।

जंगलमें, बाहर अरणों(अरणीके वृिों)में चले जाते और


कई क्षदनोंतक क्षबना भोजन क्षकये ही आप भजन करते
रहते। वहााँ दूसरे लोग भी आ जाते थे। कभी उनको
लगता क्षक मेरे कारण यहााँ क्षकसीको तकलीफ होती है,
तो वो (उस जगह को छोडकर) कहीं दूसरी जगह जाकर
भजन करने लगते थे।

आपके क्षसर पर एक खड्डा (चोटका क्षनशान) था।


उसका कारण पूछने पर आपने बताया क्षक (यह युद्ध में
लगी हुई चोटका क्षनशान है-) त्रेतायुगमें जब
श्रीरामचन्रजी और रावणका युद्ध हआ
ु था, उस समय
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११

मैं भी उनके साथमें था। कोई प्रक्षसद्ध वानर नहीं, एक


साधारण वानर था। (रािसों से युद्ध करते समय)
रािसोंने यह चोट लगा दी थी (जो इस जन्ममें भी
उसकी पहचान बनी हुई है)।

(संत श्री दादूजी महाराजने भी ऐसी बात कही है क्षक-)

दादू तो आदू भया आि कालका नानह।ं


रामचन्र लकं ा चढ्या दादू था दल मानह।ं ।

सतं श्री क्षजयारामजी महाराजकी कथन की हईु वाणी


भी क्षमलती है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२

(२)-मतर्तिीकी संर्ोंमें श्रद्धत भजि –

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराजकी


माताजी पर आप (क्षजयारामजी महाराज) की बहुत दया
थी; क्योंक्षक बचपनमें ही उनकी मााँका शरीर शान्त हो
गया था। जब वो बडी हो गयी, क्षववाह हो गया और
ससुराल (माडपुरा, क्षजला - नागौर) गयी तो घूाँघट में भी
राम राम राम राम राम राम राम करती रहती थी।

लोगोंको यह राम राम करना एक आश्चयम सक्षहत नयी


और अच्छी बात लगती थी क्षक यह बहू तो जोरदार
आयी, जो ससरु ालमें भी राम राम करती है, भजन करती
है।

आपको सतं ोंकी वाणी बहुत आती थी, बहुत सतं ोंकी
वाणी याद थी। अच्छे -अच्छे जानकार संत-
महात्माओक ं ो भी संकोच और भय था क्षक मााँजी कुछ
पूछ लेंगे और जवाब नहीं आया तो? (क्या होगा?)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३

आप संतोंमें श्रद्धाभाव रखती थी, सेवा करती थी। घरमें


संतोंके क्षलये शुद्ध, अपरस जल अलगसे रखती थी।
पक्षवत्र बतमनमें जल {शुद्ध कपडेसे छान कर} भरती थी
और उस बतमनके मुाँह पर कपडा बााँध कर, ऊपर गोबर
क्षमट्टीसे लीप कर, अबोट रखती थी। उसमेंसे जल दूसरे
कामके क्षलये नहीं क्षनकालती थी और न दूसरोंको ही
ऐसा करने देती थी।

जब कोई संत-महात्मा पधारते तो उनसे कहती क्षक


महाराज! उस बतमनमें जल आपलोगों (संत-महात्माओ)ं
के क्षलये ही है, हमलोगोंने नहीं छुआ है। सतं -महात्मा
पधारते तब आप (और सक्षखयााँ) भजन गाया करतीं थी।
आप भगवद्भजन, भक्षिसे ही मानव जीवनकी सफलता
मानतीं थीं। इस प्रकार आप पर महापुरुषों और
भगवानकी बडी कृपा थी।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४

एक बार आपके बालकका शरीर शान्त हो गया था


(आपके बालक होते थे पर ज्यादा जीते नहीं थे , शान्त
हो जाते थे)।

उन क्षदनों पूज्य श्री क्षजयारामजी महाराज पधार गये। उस


समय आपको कहा गया क्षक भजन गाओ, हररयश
गाओ, तो आपने गाया नहीं। तब क्षकसीने पूज्य श्री
महाराजजीसे कह क्षदया क्षक ये भजन नहीं गा रही है, तब
कोई दूसरी सखी बोली क्षक ये कै से गावे, इनका तो
लडका चला हुआ है (लडका शान्त हो गया है)। तब श्री
क्षजयारामजी महाराजने कहा क्षक रामजी और देंगे
अथामत् भगवान् बालक क्षफरसे (दूसरा) और देंगे आप
तो भजन गाओ। तब श्री महाराजजीके कहने से आपने
भजन गाया।

भगवत्कृपा से जब आपके बालक हुआ तो लाकर श्री


महाराजजीके अपमण कर क्षदया। तब श्री क्षजयारामजी
महाराज बोले क्षक इस बालकको तो आप रखो और
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५

अबकी बार बालक हो तब दे देना। तब उस('आनन्द'


नामक) बालकको माताजीने अपने पास रखा।

इसके बाद क्षवक्रम संवत १९५८ में क्षजयारामजी


महाराजका शरीर शान्त हो गया। (भे ळू, क्षजला -
बीकानेर में आपका समाक्षधस्थल है)।

दो वषोंके बाद (क्षवक्रम संवत १९६० में) भगवानकी


कृपा से माताजीके दूसरा बालक हुआ, क्षजनका
जन्मका नाम था सुखदेव। इन्हीका नाम आगे चल कर
हुआ 'स्वामी रामसुखदास'।

ये वही महापुरुष हैं, क्षजनको लोग कहते हैं 'परम श्रद्धेय


स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'। क्षजन्होनें
गीताजी पर 'साधक-सज ं ीवनी' नामक अक्षितीय टीका
क्षलखीं और गीता-दपमण, गीता-माधुयम, गीता-ज्ञान-
प्रवेक्षशका, गीता-प्रबोधनी, साधन-सुधा-क्षसन्धु,
गहृ स्थमें कै से रहें?, मानसमें नाम-वन्दना आक्षद आक्षद
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६

अनेक ग्रंथोंकी रचना की तथा अपनी सरल भाषामें


प्रवचन करते हुए भगवत्प्राक्षप्तके सरल, श्रेष्ठ और
तत्काल भगवत्प्राक्षप्त करानेवाले अनेक साधन बताये।
नये-नये साधनोंका आक्षवष्कार क्षकया। पुराने साधनों
को भी सरल रीक्षतसे समझाया।

यहााँ 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज'
की अठहत्तर (७८) पुस्तकों (प्रकाशक – गीताप्रेस,
गोरखपुर) की सूची दी जा रही है।

(जैसे-)

१. गीर्त – सतधक - सि ं ीवनी


२. गीर्त - प्रबोधनी
३. गीर्त - दर्ाण
४. गीर्त - ज्ञतन प्रवेजिकत
५. गीर्त - मतधया
६. सतधन - सधत - जसन्ध
७. िीवनकत कर्ाव्य
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७

८. भगवत्तत्व
९. एकै सतधै सब सधै
१०. िीवनोर्योगी कल्यतण-मतगा
११. सवोच्च र्दकी प्रतजिकत सतधन
१२. िीवन कत सत्य
१३. कल्यतणकतरी प्रवचन
१४. र्तजववक प्रवचन
१५. भगवतन से अर्नतर्न
१६. कल्यतणकतरी प्रवचन (भतग 2)
१७. िरणतगजर्
१८. भगवन्नतम
१९. िीवनोर्योगी प्रवचन
२०. सन्दर समति कत जनमताण
२१. मतनसमें नतम-वन्दनत
२२. सत्सगं की जवलक्षणर्त
२३. सतधकों के प्रजर्
२४. भगवत्प्रतजि सहि है
२५. अच्छे बनो
२६. भगवत्प्रतजिकी सगमर्त
२७. वतस्र्जवक सख
२८. स्वतजधन कै से बनें?
२९. कमा रहस्य
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८

३०. गहृ स्थमें कै से रहें?


३१. सत्सगं कत प्रसतद
३२. महतर्तर्से बचो
३३. सच्चत गरु कौन?
३४. आवश्यक जिक्षत(सन्र्तनकत कर्ाव्य एवं आहतर-िजद्ध)
३५. मूजर्ार्ूित एवं नतम-िर्की मजहमत
३६. दगाजर्से बचो
३७. सच्चत आश्रय
३८. सहि सतधनत
३९. जनत्ययोगकी प्रतजि
४०. हम ईश्वर को क्यों मतनें?
४१. जनत्य-स्र्जर् और प्रतथानत
४२. वतसदेव: सवाम्
४३. सतधन और सतध्य
४४. कल्यतण र्थ
४५. मतर्ृिजिकत घोर अर्मतन
४६. जिन खोित जर्न र्तइयत
४७. जकसतन और गतय
४८. र्ववज्ञतन कै से हो?
४९. भगवतन् और उनकी भजि
५०. जिर् देखूुँ जर्र् र्ू
५१. देिकी वर्ामतन दित और उसकत र्ररणतम
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९

५२. सब िग ईश्वररुर् है
५३. आवश्यक चेर्तवनी
५४. मनष्यकत कर्ाव्य
५५. अमरर्तकी ओर
५६. सतर-सग्रं ह एवं सत्सगं के अमृर्-कण
५७. अमर्ृ जबन्द
५८. सत्संग-मितहतर
५९. सत्य की खोि
६०. क्यत गरु जबनत मजि नहीं?
६१. आदिा कहतजनयतुँ
६२. प्रेरक कहतजनयतुँ
६३. प्रश्नोत्तरमजणमतलत
६४. जिखत (चोटी)- धतरण की आवश्यकर्त
६५. मेरे र्ो जगरधर गोर्तल
६६. कल्यतणके र्ीन सगम मतगा
६७. सत्यकी स्वीकृजर् से कल्यतण
६८. र्ू- ही- र्ू
६९. एक नयी बतर्
७०. संसतर कत असर कै से छूटे?
७१. मतनवमतत्रके कल्यतणके जलए
७२. र्रमजर्र्त से प्रतथानत
७३. सतधनके दो प्रधतन सूत्र
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०

७४. ज्ञतनके दीर् िले


७५. सत्सगं के फूल
७६. सतगर के मोर्ी
७७. सन्र्-समतगम
७८. एक सन्र्की वसीयर् (आजद आजद)

(इस प्रकार आपने सारे जगतका क्षहत क्षकया। दुक्षनयााँ


सदा-सदाके क्षलये आपकी ऋणी रहेंगी)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१

('श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख


ु दासिी महाराि' की)
(३)-बतलक अवस्थत की बतर्ें–

बचपनमें ही आपकी क्षवलिणता क्षदखायी देती थी-


आपने बताया क्षक मैं जब बैठता था तो जलछानना
(जल छाननेका पक्षवत्र कपडा) खींचकर, क्षबछाकर
बैठता था। लोग कहते क्षक [क्षपछले जन्मके ] कोई
महात्मा आये हैं अथामत् क्षपछले जन्ममें ये कोई संत-
महात्मा थे (सो पुन: आ गये)।

लोग कहते क्षक सुखु! तू क्यों आया है?


तो मैं उत्तर देता क्षक भजन करानेके क्षलये आया ह।ूाँ मेरेको
यह भी पता नहीं था क्षक भजन करना अलग होता है
और भजन करवाना अलग होता है।

(आज कल लोग कहते हैं क्षक ये अमुकके अवतार थे ,


ये अमुक महात्मा थे आक्षद आक्षद; लेक्षकन आपने इन
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२

बातोंको स्वीकार नहीं क्षकया है, ये लोगोंकी कपपनाएाँ


हैं)।

माताजीकी क्षजयारामजी महाराजके प्रक्षत बडी श्रद्धा


भक्षि थी। क्षजस देश-गााँवमें महाराज क्षवराजते थे ,
उधरकी जब हवा आती तो झटपट, उसी समय बडे
आदरसे अपना घूाँघट उठाकर वो हवा लेने लगती क्षक
बापजी महाराजकी तरफसे हवा आ रही है।

जब वृद्ध हो गयीं और पेटमें जलोदर रोग हो गया, तो


क्षजयारामजी महाराजकी समाक्षध पर जाकर पेट पर वहााँ
की रज लगाली क्षक हे क्षजयारामजी बापजी! मेरी
क्षबमारी ठीक करदो। इससे उनकी क्षबमारी क्षमट गयी,
जलोदर रोग ठीक हो गया।

जब मुझे संतोको दे क्षदया था और मैं वहााँ रहता था, तब


माताजी आते और बैठ कर आदर से मेरेको नमस्कार
करते क्षक राम राम सतं ााँ! । मैं मटूलेकी तरह बैठा रहता।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३

जब माताजीने सुना क्षक मैं पढ़ाई कर रहा हू,ाँ तो वो बोले


क्षक पढ़ाई करके कौनसी हुण्डी कमानी है, मैंने तो भजन
करनेके क्षलये साधू बनाया है।

जब मैं बहतु छोटा था, तब माता क्षपता खेतमें काम


करनेके क्षलये जाते। साथमें जल ले जाते और मेरेको
भी(गोदीमें उठाकर) ले जाते। खेत गााँवसे काफी दूर था,
तो वो बोले क्षक तेरेको ले जावें या जलको ले जावें? तो
मैंने कहा क्षक जलको ले जाओ, मैं यहीं (घर पर) रह
जाऊाँ गा। मैंने यह नहीं कहा क्षक मैं तो साथमें चलगूाँ ा,
यहााँ नहीं रहगूाँ ा (भले ही जलको मत ले जाओ, मेरेको
ले चलो आक्षद आक्षद)। मैं घर पर रह जाता। वो
पडौक्षसनको मेरी देख भाल तथा भोजनके क्षलये कह कर
चले जाते। जब मुझे भूख लगती, तब वो रोटी बना कर
मुझे भोजन करा देती।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४

रातमें अके लेको जब मुझे डर लगता, तो मााँ की


औढ़नीमें प्रक्षवष्ट हो जाता, मााँ की औढ़नी औढ़ लेता।
(मााँ की औढ़नी औढ़नेसे मेरा डर क्षमट जाता)।

जब मैं चार वषमका था, तभी माताजीने मुझे (मेरेको)


सतं ोंको दे क्षदया। (अपनी जन्मभूक्षम, गााँव माडपुरा-
क्षजला नागौर से) जब ऊाँ ट पर क्षबठाकर संत मुझे ले जाने
लगे तो मााँ के आाँखों में आाँसू आ गये और मेरे भी
आाँखों में आाँसू आ गये; पर मैंने यह नहीं कहा क्षक मैं
जाऊाँ गा नहीं। (माताजी का शुभ नाम था श्री श्री
कुनणााँबाईजी।)

संत श्री सदारामजी महाराज और उनकी धमम पक्षत्न श्री


हररयााँबाईजी, जो दोनों ही साधू बन गये थे {इन्हीको
माताजीने अपना दूसरा बालक (- सख ु देव) क्षदया था}।

[ संत श्रीसदारामजी महाराज का गााँव करणूं (क्षजला-


नागौर) था। इनका क्षववाह गााँव चाडी (क्षजला- जोधपुर)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २५

में श्रीहररयााँबाईजी के साथ में हुआ था। संत


श्रीसदारामजी महाराज की बहन श्री श्रीकुनणााँबाईजी
का क्षववाह गााँव माडपुरा (क्षजला- नागौर) में श्री
श्रीरुघारामजी के साथ में हुआ था। ये (संत श्री
सदारामजी महाराज) अपने गााँव करणूं से चाखू
(क्षजला- जोधपुर) आ गये। सतं श्रीकन्हीरामजी महाराज
भी गााँव चाडी (क्षजला- जोधपुर) से चाखू आ गये। संत
श्रीकन्हीरामजी महाराज ने संत श्रीसदारामजी महाराज
से सख ु देव को क्षशष्यरूप में ले क्षलया ]।

कोई माताजीसे कुशल पूछते क्षक माजी! सखु ी हो न?


तो माताजी कहती क्षक सुख तो संतोंको दे क्षदया। वो
क्षफर पूछते क्षक तब आपके क्या रहा? तो माताजी
बोलतीं क्षक हमारे तो आनन्द है।

सुख तो सतं ोंको दे क्षदया अथामत् 'सुखदेव बेटा' (मैं) तो


संतोंको दे क्षदया गया। अब हमारे तो आनन्द है अथामत्
हमारे पास तो 'आनन्द बेटा' (बडा बेटा) रहा है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २६

श्री कुनणााँबाईजी और श्री हररयााँबाईजी-दोनों


सम्बन्धमें नणद भौजाई थीं। नणद-भौजाईके आपसमें
बडा प्रेम था। (श्री हररयााँबाईजीने बडे प्यारसे आपका
पालन-पोषण क्षकया)।

[इस प्रकार आपके गुरु हुए सतं श्री श्री कन्हीरामजी


महाराज (दासौडी, क्षजला- बीकानेर)।

श्री श्री कन्हीरामजी महाराज श्री लाखारामजी


महाराजके क्षशष्य हैं,
लाखारामजी महाराज श्री अनारामजी महाराजके
क्षशष्य हैं और
अनारामजी महाराज श्री रघुनाथदासजी महाराजके
क्षशष्य हैं और
पूज्यपाद श्री १०८ श्री रघुनाथदासजी महाराज
क्षसहं स्थल पीठ, रामस्नेही सम्प्रदायके आचायम हैं और
रामस्नेही सम्प्रदायकी मूल आचायाम हैं जगज्जननी श्री
सीताजी। श्रीसीताजी जगत की माता भी हैं और जगत
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २७

की गुरु भी हैं। जीवों को यही भगवान् का प्रेम


(रामस्नेह) क्षसखाती हैं और यही सबको प्रेम प्रदान
करती हैं ]।

(४)-र्रमधतमकी प्रतजि -

आपके दीिा गरुु 'श्री श्री कन्हीरामजी


महाराज'(दासौडी, क्षजला-बीकानेर) क्षवक्रम संमत
१९८६ क्षमगसर बदी तीज, मंगलवार को ब्रह्मलीन हुए।

चाखू (जोधपुर) में उनकी समाक्षध पर श्री महाराजजीने


इस दोहेकी रचना करके क्षशलालेख लगवाया है , जो
आज (क्षवक्रम समं त २०७१ में) भी मौजूद है। उस
क्षशलालेख पर अंक्षकत 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज' िारा रक्षचत दोहा इस प्रकार
है-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २८

संवत नवसनस षडवसु बद नमगसर कुि तीि।


कन्हीराम तनु त्यागकर भये आपु ननबीि।।

'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराज'


क्षवक्रम संवत २०६२, आषाढ़ बदी (कृष्ण पिवाली)
एकादशी की राक्षत्र, िादशी रक्षववार (एकादशीकी राक्षत्र
और िादशीकी सबु ह) ब्राह्ममूहतू म में, करीब ३।। (साढे
तीन) बजे के बाद में , गंगातट पर ब्रह्मलीन हुए।

अक्षन्तम समयमें आपके पास संतलोग भगवन्नामका


कीतमन कर रहे थे। अक्षन्तम समयमें जब आपको
गगं ाजल क्षदया गया, तो अक्षन्तम सााँसें रोककर और
प्राणान्त - कष्टकी बेपरवाही करके आपने गंगाजलका
आदरपूवमक घूाँट क्षलया तथा पेटमें ले जानेके क्षलये कण्ठ
िारा क्षनगला भी।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २९

क्षफर उन्हीं िणोंमें आपने शरीर त्यागकर भगवद्धाम प्राप्त


क्षकया। (गीता साधक-संजीवनी ८/ ५, ६ और २५ वें
श्लोकोंकी व्याख्या के अनस ु ार भगवद्धाम को प्राप्त हएु )।
तदनुसार यह दोहा क्षलखा गया-

संवत नभ चख षड नयन रनव आषाढ़ बद भाण।


स्वानम रामसख
ु दासिी तनु तनि भए ननवाशण।।

आपके क्षवद्यागुरु थे संत श्री श्री क्षदगम्बरानन्दजी


महाराज (क्षनमाज, क्षजला – पाली)। इन्हीसे आपने
सस्ं कृत आक्षद क्षवद्याएाँ पढ़ीं।

(५)-गरु-चरणोंकत प्रभतव –

आसाबासीके चरन आसाबासी िाय ।


आर्ाबार्ी नमलत है आर्ाबार्ी नााँय ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३०

इस दोहेकी रचना करके श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराजने इस दोहेमें (रहस्ययुि) अपने
क्षवद्यागरुु श्री क्षदगम्बरानन्दजी महाराजका नाम क्षलखा
है और उनका प्रभाव बताया है ।

शब्दाथम-
आसा (क्षदग, क्षदसाएाँ)। बासी (वास, वस्त्र, अम्बर)।
आसाबासी (बसी हईु आशा)। आशाबाशी (आ-यह,
शाबाशी-प्रशंसायुि वाह वाही)। आशाबाशी (बाशी
आशा अथामत् आशा पडी-पडी देरके कारण बाशी नहीं
रहती, तुरन्त क्षमटती है, बाकी नहीं रहती)।

१-भावाथम-
श्री श्री गुरु क्षदगम्बरानन्दजी महाराजके चरण-शरणके
प्रभावसे मनके भीतर बैठी हुई आशा (क्षजसके कारण
परमात्माकी प्राक्षप्त नहीं हो पा रही है, वो) क्षनकलकर
चली जाती है (और जब मनमें कोई भी आशा, कामना
नहीं रहती, तब परमात्माकी प्राक्षप्त उसी िण हो जाती है
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३१

- गीता २/५५ ; ६/१८)। बासी अथामत् देर नहीं लगती


(देर लगनेसे पडी-पडी वस्तु बासी हो जाती है, परन्तु गुरु
चरणोंके प्रभावसे इस कामके होनेमें देरी नहीं लगती।
जो परमात्माकी प्राक्षप्त कर लेता है, वास्तवमें वही वाह-
वाहका पात्र होता है, वही शाबाशीके लायक है)।

उसीको यह शाबाशी क्षमलती है(क्षक वाहवा, क्षजस


आशाके कारण अनन्त जीव, अनन्त कालसे, अनन्त
योक्षनयोंमें और अनन्त बार जन्मते -मरते रहते हैं - गीता
१३/२१, स्वयं आशा क्षमटा नहीं पाते; वो न तो गुरु-
चरण-शरण ग्रहण करते हैं और न आशा क्षमटा पाते हैं।
कोई एक ही ऐसी क्षहम्मत करते हैं क्षक इस प्रकार दुजमय
आशाको क्षमटाकर परमात्मा की प्राक्षप्त कर लेते हैं और
आपने भी वही क्षकया - शाबाश)।

२-भावाथम-
क्षवद्यागुरु १००८ श्री क्षदगम्बरानन्दजी महाराजके
चरणोंकी शरण ले-लेनेसे से मनमें बसी हईु आशा चली
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३२

जाती है और यह शाबाशी क्षमलती (क्षक वाह वा आप


आशारक्षहत हो गये –
चाह गयी नचन्ता नमटी मनआ
ु बेपरवाह ।
निसको कछू न चानहये सो र्ाहनपनत र्ाह ।।
जो बादशाहोंका भी बादशाह है, वो आप हो गये,
शाबाश)।

आशा बाशी नहीं रहती, अथामत् आशा पडी-पडी देरके


कारण बाशी नहीं हो जाती, गुरुचरण कमलोंके
प्रभावसे तुरन्त क्षमटती है, बाकी नहीं रहती, दु:खोंकी
कारण इस आशाके क्षमट जानेसे क्षफर आनन्द रहता है-

ना सख
ु कािी पनडडतााँ ना सखु भपू भयााँह ।
सख
ु सहिााँ ही आवसी यह 'तष्ृ णा रोग' गयााँह ।।

क्षवद्यागरुु श्री क्षदग(् आशा)+अम्बर(बासी, वास, कपडा)


+आनन्द-क्षदगम्बरानन्दजी महाराज।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३३

(क्षशष्य श्री) साधू रामसुखदासजी महाराज-

रामनाम संसारमें सख
ु दाई कह सतं ।
दास होइ िपु रात नदन साधु सभा सौभतं ।।

राम(२) नाम सस
ं ारमें सखु (३)दाई कह सतं ।
दास(४) होइ जपु रात क्षदन साधु(१)सभा सौभन्त ।।

खुलासा-
(इस दोहेकी रचना स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजने की है।

इसमें श्री महाराजजी ने परोिमें अपना नाम- (१)साधू


(२)राम (३)सुख (४)दास क्षलखा है - साधू रामसुखदास।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३४

('श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख


ु दासिी महाराि' का)
(६)-जवद्यतध्ययन -

आप('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज')
के कहनेके भाव हैं क्षक-

गीताजीसे पररचय हमारे पहलेसे ही है। क्षवक्रम समं त


१९७२ में गुरुजनोंने सबसे पहले गीताजीका श्लोक ही
क्षसखाया। गुरुजनोंने परीिाके क्षलये क्षक इस बालकको
सस्ं कृत क्षवद्या पढ़ावें, (तो) इसकी बुक्षद्ध कै सीक है,
इसक्षलये पहले गीताजी का यह श्लोक कण्ठस्थ
करवाया-

न तद्भासयते सयू ो न र्र्ाक ं ो न पावक:।


यद्गत्वा न ननवतशन्ते तद्धाम परमं मम।।
(गीता १५/६)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३५

उस समय मेरेको यह पता नहीं था क्षक यह श्लोक क्षकस


ग्रंथका और कहााँका है। पीछे पता लगा क्षक यह
गीताजीका श्लोक है।

क्षवक्रम संवत १९८४ में(ध्यान देने पर) मेरेको गीताजी


कण्ठस्थ क्षमली। कण्ठस्थ करनी नहीं पडी, कण्ठस्थ
क्षमली, पाठ करते-करते कण्ठस्थ हो गई थी, थोडीसी
भूलें थीं, उनको ठीक कर क्षलया गया।

जब मैं पढ़ता था, तभी मैंने गुरुजीसे कह क्षदया क्षक


महाराज! मेरेको तो गीता पढ़ादो, व्याकरणमें मन नहीं
लगता है।

गरुु जी बोले क्षक अरे यार! अभी (व्याकरण) पढ़ले। तू


खुद (गीता) पढ़ लेगा।

उन्होने कहा क्षक मैं ने बूढ़े-बूढ़े संतोंको देखा है क्षक


वेदान्तके ग्रथ
ं पढ़ते-पढ़ते जब 'तत्त्वानस ु ध
ं ान' पढ़ते हैं
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३६

तो उसमें संस्कृतकी पंक्षियााँ क्षमलती है। वो समझमें नहीं


आती। तब (संस्कृत समझनेके क्षलये) व्याकरण पढ़ना
शुरु करते हैं (और वो वृद्धावस्था में कक्षठन होता है। तू
अभी व्याकरण पढ़ लेगा तो तेरे वो कक्षठनता नहीं
आयेगी) तथा क्षकस क्षवषयमें क्षकस आचायमने क्या कहा
है और क्षकस आचायमका क्या मत है आक्षद आक्षद सन्देह
नहीं रहेंगे, स्वयं देख लेगा, पढ़ लेगा, समझ लेगा। जब
महाराजने कह क्षदया, तब पढ़ाई की। (नहीं तो पढ़नेकी
इच्छा नहीं थी)।

हमारे (श्री) गुरुजी मेरेको शुकदेव कहते थे। मेरे (श्री)


गरुु जीका भाव था क्षक मैं बहतु बडा, श्रेष्ठ बन।ूाँ बडे बडे
संत समाजमें कोई बात अटकी हो और उसका क्षनणमय
न हो पा रहा हो, तो वहााँ उस क्षनणमयको मेरा शुकदेव करे,
वहााँ क्षनणमय करनेवाला मेरा शुकदेव हो अथामत् उस
बातको सुलझानेवाला मैं होऊाँ , मैं ऐसा योग्य बन।ूाँ
शुकदेव इस प्रकार संत-मण्डक्षलयोंमें सुशोक्षभत हों।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३७

उन्होनें कहा क्षक तू चाहे तो तेरेको मण्डलेश्वर (संतोंकी


मण्डक्षलयोंका माक्षलक) बनादू।ाँ (या तू और कुछ बनना
चाहे तो वो बनादू)ाँ । तू मण्डलेश्वर बनजा। (क्षफर तू जहााँ
जायेगा, वहााँ आगे जाकर) मैं तुम्हारा प्रचार करूाँगा (क्षक
ऐसे ऐसे ये बडे भारी संत आये हैं)। मेरेको प्रचार करना
बहतु आता है। मैंने (नम्रतापूवमक) कहा क्षक महाराज!
मेरा मन नहीं करता। तब वो बोले- अरे यार, तो क्षफर तू
क्षवरि बनजा। मैंने कहा- हााँ, यह ठीक है।

लोगोंने मेरेसे कहा क्षक तुम आयुवेद पढ़लो (वैद्य बन


जाओ)। आजकल साधूको कोई पूछता नहीं है (क्षबना
कमाईके जीवन क्षनवामह कै से होगा?)।

मैंने (श्री) गुरुजीको यह बात बताई। (श्री) गुरुजी बोले


क्षक तेरा मन क्या करता है?-तेरा मन क्षकसमें करता है?
अथामत् वैद्य बननेके क्षलये तेरा मन करता है क्या? मैं ने
कहा क्षक महाराज! मेरा मन तो नहीं करता। सुबह-सुबह
कौन टट्टी पेशाब देखे। तब वो बोले क्षक अच्छा! तेरी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३८

मजी अथामत् तुम्हारी मजी हो तो आयुवेद पढ़ो और


मजी नहीं है तो मत पढ़ो। (मेरी मजी तो थी नहीं, लोगोंके
कहनेसे पूछ क्षलया था, नहीं तो) अगर गरुु जी कह देते
तो आयुवेद ही पढ़ता मैं तो। (लेक्षकन उन्होनें छूट देदी,
तब वैद्यगी नहीं पढ़ी)।

[जीवनक्षनवामहके क्षलये भी साधूको नौकरी नहीं करनी


चाक्षहये और न ही कोई धन्धा अपनाना चाक्षहये ,
भगवानने सब प्रबन्ध पहलेसे ही कर रखा है-

प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा र्रीर।


तल
ु सी नचन्ता क्यों करे भिले श्री रघबु ीर।।] ।

एक बार मैंने गीताजीमें एक नया अथम क्षनकाला। हमारे


साथी कहने लगे क्षक गीताजीकी क्षकसी टीकाओमं ें ऐसा
अथम क्षकसी टीकाकारने क्षलखा नहीं है। मैं ने कहा क्षक
क्षलखा तो नहीं है, पर ऐसा अथम बनता है क्षक नहीं? कह,
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३९

बनता तो है, लेक्षकन (क्षकसी टीकामें क्षलखा हुआ होता


तब प्रमाक्षणत माना जाता)।

ऐसे करते-करते हमलोग गुरुजीके पास आ गये और यह


बात उनसे पूछी क्षक सही है या नहीं? तब गरुु जीने बताया
क्षक यह अथम सही है, ऐसा अथम बनता है। तब हमारे साथी
बोले क्षक बनता तो है, पर ऐसा अथम कहीं क्षलखा नहीं है।
तब गरुु जी बोले क्षक अब क्षलखलो, क्षलखा हआ ु हो
जायेगा। (अथम तो यह सही है, जो शुकदेवने क्षकया है)।

गरुु जीके पढ़ा देनेके बाद हमलोग बैठकर आपसमें


चचाम करते क्षक आज क्या पढ़ाया, (अमुक सत्रू का क्या
भाव है, अमुककी सगं क्षत कै से और कहााँ लगेगी,
अमुकका क्या अथम बताया, अमुक सूत्रके क्षलये कौनसी
बात बतायी थी आक्षद आक्षद। एकको याद न होती तो
दूसरा बता देता, उसको भी याद नहीं आती तो तीसरा
बता देता, पर) जब क्षकसीको भी याद नहीं आती तब
गरुु जीके पास जाते पूछनेके क्षलये। वहााँ जानेपर गरुु जी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४०

पूछते क्षक कै से आये हो? तो हमलोग कहते क्षक एक बात


पूछनी है। गुरुजी कहते क्षक बोलो। बोलो कहते ही,
पूछनेसे पहले ही वो बात समझमें आ जाती, याद आ
जाती।

कभी-कभी तो उनके पासमें जाते और क्षबना बोले ही


समाधान हो जाता। वापस जाते देखकर पूछते क्षक कै से
आये थे? तो हमलोग कहते क्षक एक बात पूछनेके क्षलये
आये थे। कह, पूछा नहीं? कह, उसका तो यहााँ आते ही,
पूछनेसे पहले ही समाधान हो गया।

क्षजस बातको हम कई जने क्षमलकर भी याद नहीं कर


पाते, समझ नहीं पाते , वही बात उनके सामने जाते ही
याद आ जाती है, समझमें आ जाती है, तब मेरे पर असर
पडा क्षक इन (ज्ञानीजनों) के पास-पासमें एक ज्ञानका
घेरा रहता है (जो उस घेरेके अन्दर जाते ही ज्ञान प्राप्त हो
जाता है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४१

पढ़ाई ऐसी (समझ-समझकर) करनी चाक्षहये क्षक वो हम


दूसरोंको भी पढ़ा सकें । जो बात मेरी समझमें आ जाती,
वो मैं दूसरोंको भी समझा देता था। एक प्रकारसे
समझमें नहीं आती तो दूसरे प्रकारसे समझा देता। उससे
भी नहीं आती तो तीसरे, चौथे ढंगसे समझा देता। गुरुजी
कहते थे क्षक यह शुकदेव (समझानेके क्षलये) क्षजसके
पीछे पड जाता है, उसको समझाकर ही छोडता है,
समझा ही देता है।

मैंने गीता पाठशाला खोल रखी थी, उसमें मैं गीता


पढ़ाता था। संस्कृत क्षवद्या भी पढ़ाता था।

'लघुक्षसद्धान्तकौमुदी' पढ़नेके बादमें 'क्षसद्धान्तकौमुदी'


मैं अपने आप पढ़ गया, अपने आप उसकी संगक्षतयााँ
लगालीं।

श्रीमद्भागवतकी कथा सबसे पहले मैंने क्षवक्रम संमत


१९७९ में की थी। मैं रामायण आक्षदकी कथा भी करता
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४२

था। गाना बजाना भी मैंने खूब क्षकये हैं। (मैंने अके ले)
हारमोक्षनयम आक्षद पर भजन गाते हुए रात भर जागरण
क्षकये हैं। मैंने वेदान्त की पढ़ाई की है और आचायम
तककी परीिा दी है। मेरी रुक्षच तो भजन साधन करनेमें
थी। पढ़ाई तो गुरुजनोंके कहनेसे करली। कहना मानना
मेरा स्वभाव था।

हमारे गरुु जी कहते थे क्षक हमारे पास क्षवद्याथी क्षटकता


नहीं है और अगर क्षटक जाय, तो क्षविान बन जाता है;
क्योंक्षक सुबह चार बजेसे लेकर राक्षत्र दस बजे तक वो
पढ़ाईमें ही लगाये रखते थे। बीचमें कोई आधे घंटेका
क्षवश्राम होता था।

वो कहते थे क्षक [आपसमें पढ़ाईके अलावा दूसरी] बातें


मत करो, सो जाओ भलेही, पर बातें मत करो; क्योंक्षक
सो जानेसे (नींद ले लेनेसे) ताजगी आयेगी (और बातें
करोगे तो भीतर कूडा-कचरा भरेगा, समय नष्ट होगा,
क्षशक्षथलता आयेगी)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४३

[पढ़ाईमें ही लगे रहनेके कारण हमारे] सोनेकी मनमें ही


रही। जब रक्षववार का क्षदन आता, तब हमलोग क्षबस्तर
लगा लेते पहले क्षदन ही, क्षक कल सोयेंगे।

बडी तंगीसे पढ़ाई की है क्षक कपडे भी फट गये तो दूसरे


लायेंगे कहााँसे।

उन क्षदनों चार रुपयोंमें कपयाण आता था। मैं और (मेरे


सहपाठी संत श्री) क्षचमनरामजी-दोनों क्षमलकर
कपयाणके ग्राहक बने। हमने (कपयाण वालोंसे)
प्राथमना की क्षक हम क्षवद्याथी हैं(हमारे क्षलये ररयायत की
जाय, पैसोंकी तंगी है)। तो हमारे क्षलये तीन रुपयोंमें
कपयाण आता था, एक रुपयेकी छूट की गई।

मैं पढ़ता था, उन क्षदनोंमें जीवनरामजी हषम(ब्राह्मण) ने


एक प्रेस बनाया था- हषमप्रेस। मेरे मनमें आया क्षक (मेरा
वश चले तो) मैं भी एक प्रेस खोलू-ाँ गीताप्रेस।
उस समय गीताप्रेसका नामोक्षनशान भी नहीं था।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४४

(क्षवक्रम संमत १९८० में 'सेठजी श्री जयदयालजी


गोयन्दका' ने गीताप्रेस खोला)।

मेरे श्री सेठजीसे पररचय नहीं था। श्री सेठजीको तो मैं


एक कपयाणमें लेख क्षलखनेवाले-लेखक समझता था।
इनके लेख पढ़ कर मेरे पर बडा असर पडा क्षक ऐसे लेख
क्षवद्याके जोरसे तो नहीं क्षलखे जा सकते हैं, क्षलखनेवाले
कोई अनभ ु वी हैं, ये लेख अनभ ु वसे क्षलखे गये हैं। इनसे
क्षमलना चाक्षहये ।

उस समय मैंने एक न कहनेवाली बात कहदी जो


लोगोंको बुरी लगती है। मैंने कहा क्षक गीताके क्षजतने
गहरे भाव (सेठजी श्री जयदयाल) गोयन्दकाजी समझते
हैं, इतने गहरे भाव समझनेवाले गीताजीके टीकाकारोंमें
मेरेको कोई नहीं दीखता है। इतना ही नहीं, ज्ञानयोग
कममयोग आक्षदके गहरे भावोंके क्षववेचन करनेवाले भी
बहुत कम हैं।(श्री सेठजीके समान दूसरा कोई दीखता
नहीं है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४५

मधुसूदनाचायमजी महाराजकी क्षलखी हुई गीताजीकी


टीका 'गूढ़ाथम-दीक्षपका' मेरेको बडी क्षप्रय लगी। मैं
उसको अपने पासमें रखता था। क्षवित्तामें तो वो इतने
बडे लगे क्षक उनके समान कोई दीखता नहीं, पर
गीताजीके गहरे भावोंको क्षजतने (सेठजी श्री जयदयाल)
गोयन्दकाजी समझते हैं, उतने ये (मधुसदू नाचायमजी) भी
नहीं समझते। उस समय मैं क्षमला दोनोंसे ही नहीं था। न
तो श्री सेठजीसे क्षमला था और न उनसे। उनसे तो
क्षमलता ही कै से, वो तो पहले ही हो गये थे।

एक और बात बता दें। मेरे मनमें आया क्षक गीताप्रेस


खोला है, पर गीताजी मैं सनु ाऊाँ तब पता चले क्षक
गीताजी क्या होती है। (अपनेको गीताका जानकार
समझता था)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४६

(७)-कछ जसद्धतन्र् –
आगे सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकासे क्षमलनका
वणमन क्षकया जायेगा क्षजसका काफी वणमन तारीख एक
अप्रैल उन्नीस सौ इकरानवें (क्षद.19910401/900 -
goo.gl/ub5Pjy) के क्षदन नौ बजेके प्रवचनमें स्वयं
'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' ने
गीताप्रेस, गोरखपुरमें क्षकया है।
आपके क्षसद्धान्तों ('मेरे क्षवचार') में क्षलखा है क्षक-
१. वतममान समय की आवश्यकताओक ं ो देखते हुए मैं
अपने कुछ क्षवचार प्रकट कर रहा ह।ूाँ मैं चाहता हूाँ क्षक
अगर कोई व्यक्षि मेरे नामसे इन क्षवचारों, क्षसद्धान्तोंके
क्षवरुद्ध आचरण करता हुआ क्षदखे तो उसको ऐसा
करनेसे यथाशक्षि रोकनेकी चेष्टा की जाय ।
२. मेरे दीिागुरुका शरीर शान्त होनेके बाद जब क्षव०
सं० १९८७ में मैंने उनकी बरसी कर ली, तब ऐसा पक्का
क्षवचार कर क्षलया क्षक अब एक तत्त्वप्राक्षप्तके क्षसवाय
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४७

कुछ नहीं करना है । क्षकसीसे कुछ मााँगना नहीं है ।


रुपयोंको अपने पास न रखना है, न छूना है । अपनी
ओरसे कहीं जाना नहीं है, क्षजसको गरज होगी, वह ले
जायगा । इसके बाद मैं गीताप्रेसके संस्थापक सेठजी
श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके सम्पकम में आया । वे मेरी
दृक्षष्टमें भगवत्प्राप्त महापुरुष थे । मेरे जीवन पर उनका
क्षवशेष प्रभाव पडा ।

३. मैंने क्षकसी भी व्यक्षि, संस्था, आश्रम आक्षदसे


व्यक्षिगत सम्बन्ध नहीं जोडा है । यक्षद क्षकसी हेतुसे
सम्बन्ध जोडा भी हो, तो वह तात्काक्षलक था, सदाके
क्षलये नहीं । मैं सदा तत्त्व का अनयु ायी रहा हू,ाँ व्यक्षिका
नहीं ।

४. मेरा सदासे यह क्षवचार रहा है क्षक लोग मुझमें अथवा


क्षकसी व्यक्षिक्षवशेषमें न लगकर भगवानमें ही लगें ।
व्यक्षिपूजाका मैं कडा क्षनषेध करता हूाँ ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४८

५. मेरा कोई स्थान, मठ अथवा आश्रम नहीं है । मेरी


कोई गद्दी नहीं है और न ही मैं ने क्षकसीको अपना क्षशष्य
प्रचारक अथवा उत्तराक्षधकारी बनाया है । मेरे बाद मेरी
पुस्तकें (और ररकाडम की हुई वाणी ही) साधकोंका
मागम-दशमन करेंगी । गीताप्रेसकी पुस्तकोंका प्रचार,
गोरिा तथा सत्सगं का मैं सदैव समथमक रहा हूाँ ।
६. मैं अपना क्षचत्र खींचने, चरण-स्पशम करने, जय-
जयकार करने, माला पहनाने आक्षदका कडा क्षनषेध
करता हूाँ ।
७. मैं प्रसाद या भेंटरूपसे क्षकसीको माला, दुपट्टा, वस्त्र,
कम्बल आक्षद प्रदान नहीं करता । मैं खुद क्षभिासे ही
शरीर-क्षनवामह करता हूाँ ।
८. सत्संग-कायमक्रमके क्षलये रुपये (चन्दा) इकट्ठा
करनेका मैं क्षवरोध करता हूाँ ।
९. मैं क्षकसीको भी आशीवामद/शाप या वरदान नहीं देता
और न ही अपनेको इसके योग्य समझता हूाँ ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४९

१०. मैं अपने दशमनकी अपेिा गंगाजी, सूयम अथवा


भगवक्षिग्रहके दशमनको ही अक्षधक महत्त्व देता हूाँ ।

११. रुपये और स्त्री -- इन दो के स्पशम को मैंने सवमथा


त्याग क्षकया है ।

१२. क्षजस पत्र-पक्षत्रका अथवा स्माररकामें क्षवज्ञापन


छपते हों, उनमें मैं अपना लेख प्रकाक्षशत करने का
क्षनषेध करता हूाँ । इसी तरह अपनी दुकान, व्यापार
आक्षदके प्रचारके क्षलये प्रकाक्षशत की जानेवाली सामग्री
(कै लेण्डर आक्षद) में भी मेरा नाम छापनेका मैं क्षनषेध
करता हूाँ । गीताप्रेसकी पुस्तकोंके प्रचारके सन्दभममें यह
क्षनयम लागू नहीं है ।

१३. मैंने सत्सगं (प्रवचन) में ऐसी मयामदा रखी है क्षक


पुरुष और क्षस्त्रयााँ अलग-अलग बैठें । मेरे आगे थोडी
दूरतक के वल पुरुष बैठें । पुरुषोंकी व्यवस्था पुरुष और
क्षस्त्रयोंकी व्यवस्था क्षस्त्रयााँ ही करें । क्षकसी बातका
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५०

समथमन करने अथवा भगवानकी जय बोलनेके समय


के वल पुरुष ही अपने हाथ ऊाँ चे करें, क्षस्त्रयााँ नहीं ।
१४. कममयोग, ज्ञानयोग और भक्षियोग - तीनोंमें मैं
भक्षियोगको सवमश्रेष्ठ मानता हूाँ और परमप्रेमकी प्राक्षप्तमें
ही मानवजीवनकी पूणमता मानता हूाँ ।
१५. जो विा अपनेको मेरा अनुयायी अथवा कृपापात्र
बताकर लोगों से मान-बडाई करवाता है, रुपये लेता है,
क्षस्त्रयोंसे सम्पकम रखता है, भेंट लेता है अथवा वस्तुएाँ
मााँगता है, उसको ठग समझना चाक्षहये । जो मेरे नामसे
रुपये इकट्ठा करता है, वह बडा पाप करता है । उसका
पाप िमा करने योग्य नहीं है ।
[ ऐसे (मेरे क्षवचार) ''एक सतं की वसीयत'' (प्रकाशक-
गीताप्रेस गोरखपुर) नामक पुस्तक (पष्ठृ १२, १३) में भी
छपे हुए हैं।]
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५१

(८)-'र्रम श्रद्धेय सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'


और 'श्रद्धेय स्वतमीिी
श्रीरतमसखदतसिी महतरति' कत जमलन -

अब परम श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी


गोयन्दका(चूरू) और 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज' के क्षमलनका वणमन क्षकया
जायेगा, क्षजसका काफी वणमन तारीख एक अप्रैल
उन्नीस सौ इकरानवें (क्षद.19910401/900 –
goo.gl/ub5Pjy) के क्षदन नौ बजेके प्रवचनमें स्वयं
'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' ने
गीताप्रेस, गोरखपुरमें क्षकया है और क्षद.
19951205/830 (goo.gl/cLtjIi) बजेके सत्संगमें भी
क्षकया है।

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के


कहनेके भाव है क्षक)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५२

मेरे मनमें रही क्षक उनसे कै से क्षमलें? पैसा मैं पासमें रखता
नहीं, न लेता हूाँ (क्षकसीके देने पर भी पैसा मैं लेता नहीं),
क्षटकटके क्षलये भी क्षकसीसे कहता नहीं [क्षक मुझे श्री
सेठ(श्रेष्ठ)जीकी सत्संगमें जाना है, क्षटकट बनवादो]।
पैदल चलकर जाऊाँ तो वहााँ पहच ुाँ नहीं पाऊाँ ; क्योंक्षक मैं
पहच ुाँ ूाँ उससे तो पहले ही वो प्रोग्राम पूरा करके आगे
चलदे। वो गाडीसे चलते हैं, मैं पैदल, कै से पहच ुाँ ता।

क्षफर गम्भीरचन्दजी दुजारी (मेरे सहपाठी


क्षचमनरामजीके क्षमत्र) बोले क्षक वाक्षषमकोत्सव पर श्री
सेठजी ऋक्षषकुल ब्रह्मचयामश्रम चूरू आनेवाले हैं,
आपको मैं ले जाऊाँ गा, चलो। मैंने उनसे कहा नहीं था
(क्षक मुझे वहााँ जाना है, ले चलो, क्षटकट दे दो आक्षद) वो
अपने मनसे ही बोले। तब मौका समझकर कर मैं और
क्षचमनरामजी चूरू आये ।

श्री सेठजी उस समय चूरू पहच ुाँ े नहीं थे। कोई


पंचायतीके कारण देरी हो गई थी, आये नहीं थे। मैं वहीं
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५३

रहने लगा। गााँवमेंसे क्षभिा ले आना, पा लेना और वहीं


रहना। मौन रखता था। दो-चार क्षदन वहीं रहा।

क्षफर सुबहकी गाडीसे श्री सेठजी आये।(क्षकसीने उनको


बताया क्षक ऐसे-ऐसे यहााँ संत आये हैं तो श्री) सेठजी
खुद आये हमारी कुक्षटया पर, तो मैं भी गया उनके
सामने। उस समय थोडी देर मौन रखता था मैं। बोलता
नहीं था। तो श्री सेठजी क्षमले बडे प्रेमसे।

श्री सेठजीने कहा क्षक हमतो आपलोगोंके (सन्तों के )


सेवक हैं। मेरे मनमें आया क्षक सेवा लेनेके क्षलये ही आये
हैं, सेवा करो, सेवा लेंगे। हमारी सेवा और तरहकी है।
मनमें भाव ही आये थे, बोला नहीं था। बडे प्रेमसे क्षमले।
क्षफर वहााँ ठहरे (और सत्सगं करने लग गये)। यह घटना
क्षवक्रम संवत १९८९-९१ की है। हमारी पोल भी बतादें-
श्री सेठजीने सत्संग करवाया। मैंने सुना। तो कोई नयी
बात मालुम नहीं दी। ये गीताजीका अथम करेंगे शायद,
तो अथम तो मैं बक्षढ़या करदूाँ इनसे। वो (गीताजीके )
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५४

पदोंका अथम करते , उनका(और क्षकसीका)अथम करते;


तो मनमें आती क्षक क्यों तकलीफ देखते हैं। मेरे मनमें
अक्षभमान था क्षक मैं पढ़ा-क्षलखा ह।ूाँ मैंने क्षवद्याक्षथमयोंको
संस्कृत व्याकरण आक्षद पढ़ाया है। पढ़ाता हुआ ही
आया था पाठशाला छोडकर। यह अक्षभमान एक बडा
भारी रोग है।

श्री सेठजी बात करते , तो बातें तो उनकी मेरेको अच्छी


लगती; परन्तु श्लोकोंका अथम करते, ये करते, तो मेरे
बैठती नहीं थी बात।

पढ़ना-पढ़ाना कर क्षलया, गाना-बजाना कर क्षलया।


लोगोंको क्षसखा क्षदया। लोगोंको सनु ा क्षदया।
(व्याख्यान) सुनाता था। सुनने-सुनानेसे अरुक्षच हो गई।
अब तो भाई! साधनमें लगना है अच्छी तरहसे - यह
मनमें थी। तो दृक्षष्ट पसार कर देखा तो गोयन्दकाजीके
समान कोई नहीं दीखा मेरेको। दीखा क्षकससे? क्षक
लेखोंसे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५५

गीताके क्षवषयमें ये लेख क्षलखते थे , वो लेख देते थे


कपयाणमें। के वल इनके लेख देखकर इतने जोरोंसे
जाँच गई क्षक मैंने न कहनेवाली बात भी कहदी। मैंने कहा
क्षक गीताजीके गहरे अथमको क्षजतना गोयन्दकाजी
जानते हैं, उतना टीकाकारोंमें कोई नहीं दीखता है हमें ।
(इसका वणमन ऊपर आ चुका है)।

(९)- सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'को


भगवद्दिान -

'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' भारतके राजस्थान


राज्यके चूरू शहरमें रहनेवाले थे। इनके क्षपताका नाम
खूबचन्दजी गोयन्दका था और माताजीका नाम था श्री
क्षशवाबाईजी ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५६

चूरूवाली हवेलीमें एक बार ये चद्दर ओढ़कर लेटे हुए


थे। नींद आयी हुई नहीं थी। उस समय इनको भगवान्
क्षवष्णुके दशमन हएु । (इन्होनें सोचा क्षक क्षसर पर चद्दर
ओढ़ी हुई है, क्षफर भी दीख कै से रहा है?) इन्होने चद्दर
हटाकर देखा, तो भी भगवान् वैसे ही क्षदखायी दे रहे हैं।
भगवान् और आाँखोंके बीचमें चद्दर थी। क्षफर भी
भगवान् दीख रहे थे । चद्दरकी आड (औट) से भगवानके
दीखनेमें कोई फकम नहीं आया।

श्री सेठजीने बताया क्षक ऐसे अगर बीचमें पहाड भी आ


जाय, तो भी भगवानके दीखनेको वो रोक नहीं सके गा।
उसकी आडमें भगवानका दीखना बन्द नहीं होगा।
(क्षफर चद्दर ओढ़े-ओढ़े ही दशमन होते रहे तो इसमें आश्चयम
ही क्या है)।

जब इनको भगवानने दशमन क्षदये , तब इनको प्रेरणा हुई


क्षक क्षनष्काम भावका प्रचार क्षकया जाय (और इन्होनें
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५७

अपना सम्पूणम जीवन क्षनष्कामभावपूवमक परक्षहतमें लगा


क्षदया)।

आज गीताप्रेसको कौन नहीं जानता। उस गीताप्रेसकी


स्थापना करनेवाले ये ही थे। ये ही गीताप्रेसके उत्पादक,
जन्मदाता, संरिक, संचालक आक्षद सबकुछ थे। इन्होने
ही चूरूमें ऋक्षषकुल ब्रह्मचयामश्रम और कलकत्तामें
गोक्षबन्दभवन बनवाया। आपने ही ऋक्षषके श गंगातट पर
गीताभवन बनवाया और सत्संगका प्रचार क्षकया।
आपने ही अक्षितीय गीताजीका प्रचार क्षकया। (गीताजी
पर 'तत्वक्षववेचनी' नामक टीका क्षलखवाई और अनेक
ग्रंथोंकी रचना की)।

(आपकी ही कृपासे 'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज' जैसे महापुरुष सुलभ हुए।
आपके िारा जगतका बडा भारी क्षहत हुआ है। दुक्षनयााँ
सदा आपकी ऋणी रहेंगी)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५८

ये गुप्तरीक्षतसे भजन करते थे। ऐसे इनकी क्षनष्ठा थी क्षक मेरे


भगवानकी तरफ चलनेको कोई जान न जाय, क्षकसीको
पता न लगे- इस रीक्षतसे भजन करते थे।

एक प्रसंग चला था। उसमें ऐसी बात चली थी क्षक


प्रह्लादजी को बहुत कष्ट हुआ, बडी-बडी त्रास उनको
क्षमली। ऐसी बात चलते -चलतेमें श्री सेठजीने कहा था
क्षक प्रह्लादजीने अपनेको प्रकट कर क्षदया। इस वास्ते
क्षवघ्न आये। और वे (श्री सेठजी) कहते थे क्षक प्रकट नहीं
होना चाक्षहये । गप्तु रीक्षत से भजन होना चाक्षहये।

मनष्ु य अपने साधारण धनको भी गुप्त रखते हैं, तो क्या


भजन-स्मरण जैसी पूाँजी (भी) कोई साधारण है, जो
लोगोंमें प्रकट हो जाय! यह तो गप्तु रीक्षत से ही भजन
करना चाक्षहये। ऐसा उनका ध्येय था, इसी तरहसे लोग
कहते थे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ५९

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के


19951205_830 (goo.gl/cLtjIi) बजेवाले सत्संग-
प्रवचनसे।

ऐसी उनकी बडी, ऊाँ ची अवस्था हो गई थी। सगुण,


क्षनगमण
ु , साकार, क्षनराकार- इस क्षवषयमें मेरी समझमें
उनकी अच्छी, बक्षढ़या जानकारी थी।

(१०)- श्री मंगलनतथिी महतरतिसे 'सेठिी श्री


ियदयतलिी गोयन्दकत' को प्रेरणत -

श्री सेठजीके जीवन पर मंगलनाथजी महाराजका बडा


असर पडा। ऐसा उन्होने स्वयं कहा है। वो सस्ं कृतके बडे
क्षविान भी थे और संत भी थे। उनके संतत्वकी छाप
गोयन्दकाजी पर पडी (प्रभाव पडा) और क्षवित्ताकी
छाप हमारे क्षवद्यागरुु जी पर पडी। वो कहते थे क्षक बहतु
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६०

बडा क्षनणमय मंगलनाथजी महाराज करते थे। वो


साधूवेषमें थे।

वो चूरू आये थे, तो उनकी मुरा, उदासीनता, तटस्थता


और क्षवरक्षि बडी क्षवलिण थी। सेठजीने कहा क्षक (वो
देखकर) मेरेपर असर पडा। वो(श्री सेठजी उनको)
भावसे गुरु मानते थे, क्षशष्य-गुरुकी दीिा आक्षद नहीं
(ली थी, उनसे दीिा नहीं ली थी, उनको मनसे गरुु
मानते थे)। (श्री सेठजी कहते हैं क्षक) उनसे मेरे जीवनपर
असर पडा। इस तरहसे श्री सेठजी बडे क्षवक्षचत्र थे।
{मद्रत –
मखु , हाथ, गदशन, आनद की कोई नवर्ेष भाव सचू क नस्थनत
को मरु ा कहते हैं। (बहृ त नहन्दी कोर् से)}।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६१

(११)- 'सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'के जमत्र


हनमतनदतसिी गोयन्दकत -

कुटम्बमें इनके एक क्षमत्र थे। उनका नाम था


हनुमानदासजी गोयन्दका। ये हनुमान प्रसादजी पोद्दार
(कपयाण सम्पादक)-ये नहीं, दूसरे थे - हनमु ानदासजी
(हनुमानबख्सजी) 'गोयन्दका'। (वो तो 'पोद्दार' थे और
ये 'गोयन्दका' थे अथामत् ये हनुमानदासजी दूसरे थे)।
इनके (हनमु ानदासजी और श्री सेठजी के ) बालकपनमें
बडी, घक्षनष्ठ क्षमत्रता थी। कभी दोनों इस मााँके पास रहते ,
कभी दोनों उस मााँके पास रहते -ऐसे क्षमत्रता थी।
वो लग गये थे व्यापारमें , कलकत्तामें और ये(श्री
सेठजी) लग गये अपने (साधनमें)।
साधनकी बात उनको (हनमु ानदासजीको) भी नहीं
बताई। उनसे भी गुप्त रहते थे और ये इतने थे क्षक इनके
क्षपताजी पर भी असर था क्षक यह जैदा(जयदयाल) काम
करेगा तो पक्का आदमी है, वो छोडेगा नहीं।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६२

जब इनको खूब अनुभव हो गया, बहुत क्षवशेषतासे


(अनुभव हो गया)। तब क्षवचार क्षकया क्षक ये बातें मेरे
साथ ही चली जायेगी, दूसरोंको पता ही नहीं लगेगा;
तो क्या करें? कै से करें भाई?

क्षफर क्षवचार क्षकया क्षक मेरी बात सुनेगा कौन? लोग तो


कहेंगे- पागल है। इस वास्ते पागलकी बात कौन सनु ता
है। तो भाई! हनुमान सुनेगा मेरी बात।

ये थे चूरूमें और वो थे कलकत्तामें। वे खेमकाजी


(आत्मारामजी) के यहााँ मुनीम थे। ऐसी बात आयी
मनमें तो इन्होनें उनको पत्र क्षलखा क्षक तुम आओ।
तुमको खास बात कहनी है। मेरी बात क्षकसीको
कहनेका क्षवचार था नहीं; पर अब क्षवचार क्षकया क्षक
क्षकसीको कहदू।ाँ वो मैं तेरेको कहगूाँ ा। तुम आओ। मैं
तुम्हारेसे बात करूाँगा। तुम्हारे समान और कोई मेरा
प्यारा है नहीं क्षजससे क्षक मैं अपनी बात कह।ूाँ तब वो
आये।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६३

उस समय चूरूमें रेल नहीं हुई थी(चूरूमें रेपवे लाइन बनी


ही नहीं थी)। ऊाँ टों पर ही आये थे। सामने गये और क्षमले।

(उन्होने पूछा क्षक) क्या बात है? तो क्षफर उनके सामने


बातें कहीं। (क्षक) मैं तेरेको कहता हू,ाँ तू भी इसमें लगजा।
भगवानमें लगजा, अच्छी बात है।

बातें (ये) बताई क्षक देख! परमात्मतत्त्वका अनुभव


आदमीको हो सकता है और तूाँ और मैं बात कर रहे हैं,
इस तरहसे भगवानसे भी बात हो सकती है। ऐसा हो
सकता है। तो उनके बडा असर पडा क्षक ऐसा हो सकता
है!? कह, हााँ। तो लगजा भजनमें। तू जप कर।
भगवन्नामका जप कर। जपकी बात इनके क्षवशेषतासे
थी। भगवन्नामका रामरामरामरामरामरामरामराम
राम… यह जप भीतरसे करते थे , श्वाससे।

अभी, वृद्धावस्था तक भी, देखा है- (श्री सेठजी) कोई


काम करते, बोलते, बात करते, तो बोलनेके बादमें
स्वत: जप शुरु हो जाता श्वाससे। वो क्षनगाह रखते(उस
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६४

जपका दूसरे कोई ध्यान रखते) तो दूसरोंको मालुम हो


जाता। रामरामरामरामराम रामरामरामराम-ऐसे। तो ऐसे
भीतरसे जप होता था (उनके )। तो वो जप करना शुरु
क्षकया (हनुमानदासजीने)।
जप करते-करते उनको कुछ वैराग्य हुआ, तो कह, मेरे
मनमें आती है क्षक यहााँ बडा झंझट है, चलो साधू हो
जावें।
तो सेठजीने कहा- देख! साधू तो हो जावें; परन्तु तेरे तो
बच्चा होनेवाला है, (तू) क्षववाह करेगा और तेरे बालक
होगा, तो तेरेको पीछा(वापस) आना पडेगा और मेरेको
तू ले जायेगा तो मैं पीछे लौटकर आऊाँ गा नहीं। तो तेरा-
मेरा सत्संग नहीं होगा। तो कहा-अच्छा, नहीं
चलेंगे(साधू होनेके क्षलये-साधू नहीं बनेंगे)।
ऐसी कई-कई बातें इनके आपसमें हुई थी। मैंने बहुत-सी
बातें तो हनुमानदासजीसे सुनी है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६५

(१२)- 'सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'


द्वतरत सत्संगकत जवस्र्तर -

इसके बाद वो भी भजनमें लग गये। ये क्षफर काम करते


थे चक्रधरपुरमें। क्षफर बााँकुडा (बंगाल) आ गये।

श्री सेठजीने जो बातें बतायी थी हनुमानदासजीको, वो


कुछ प्रक्षसद्ध हो गई थी। इसक्षलये कलकत्तामें सत्संग
क्षकया करते। ये भी दुकानदार, वो भी दुकानदार, समय
क्षमलता नहीं, इसक्षलये कह, कल रक्षववार है (छुट्टी है),
तो शक्षनवारको ही लोग खड्गपुर आ जाते। बााँकुडासे
वो आ जाते, कलकत्तासे ये चले जाते और रात भर
सत्संग होता। सत्संग करके रक्षववार शामको ही वापस
चले जाते। इस तरह सत्संग चला।

सत्संग चलते-चलते कुछ प्रचार हुआ। लोग भी जानने


लगे। प्रचार करनेकी इनके धुन थी भीतर। अब लोगोंमें
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६६

प्रक्षसक्षद्ध हो गई। धममशाला नामक गााँवमें दुकान की थी,


तो वहााँकी क्षवक्षचत्र बात मैंने सुनी-

क्षजतने दुकानदार थे, सेठजी उनके सामने ताश(पत्ते)


खेलते और बाजीगरकी तरह कळा क्षदखाते। लोग
इकठ्टे हो जाते तब सत्सगं सनु ाते। ऐसे ही सत्सगं के
क्षलये तो इकठ्टे होते नहीं लोग; तो ऐसे चमत्कार
क्षदखाकर सत्संग सुनाते। ऐसी कई-कई बातें है। तो जब
सत्सगं शुरु हो गया तो कलकत्तेमें भी शुरु हो गया।
सत्संग होने लगा। (ऐसे) कई वषम बीत गये।

(१३)- 'सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'द्वतरत


"कल्यतण"(-र्त्र) िरु -

क्षफर वो चूरूसे जा रहे थे कलकत्ताकी तरफ; तो बीचमें


बातें हुई। तो घनश्यामदासजी क्षबडलाने इनको सूझ दी
क्षक तुम सत्सगं करते हो, (उन बातोंका) पत्र क्षनकालो,
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६७

तो कईयोंको लाभ हो जाय। तो जयदयालजीने कहा


क्षक पत्र क्षनकालना, करना आता नहीं। तो हनुमान
प्रसादजी पोद्दारने कहा क्षक सम्पादन तो मैं कर दूगाँ ा। तो
श्री सेठजीने कहा क्षक लेख मैं क्षलखा दूगाँ ा। तो ठीक है।
कपयाण शुरु हुआ। तो कपयाण खूब चला और
लोगोंने बहतु अपनाया और बहतु लाभ हआ ु । वो
कपयाण चलता आ रहा है आज तक। पहले बम्बईसे
शुरु हुआ और क्षफर गीताप्रेसमें आ गया।

(१४)- 'सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत'


द्वतरत गीर्तप्रेस खोलत ितनत -

गीताप्रेस कै से हआ
ु ?
'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' गीताजीके भाव
कहने लगे। गहरा क्षववेचन करने लगे। तो कह,
गीताजीकी टीका क्षलखो। तो गीताजीकी टीका क्षलखी
गई- साधारण भाषा टीका। वो गोयन्दकाजीकी क्षलखी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६८

हईु है। उस पर लेखकका नाम नहीं है। वो छपाने लगे


कलकत्ताके वक्षणकप्रेस में। छपनेके क्षलये मशीनपर
फमाम चढ़ गया, (छपने लगा), उस समय अशुक्षद्ध देखकर
क्षक भाई! मशीन बन्द करो, शुद्ध करेंगे। (मशीन बन्द
करके शुक्षद्ध की गई)।

ऐसे (बार-बार मशीन बन्द करवाकर शद्ध ु करनेसे)


वक्षणकप्रेस वाले तंग आ गये क्षक बीचमें बन्द करनेसे,
ऐसे कै से काम चलेगा? मशीन खोटी (क्षवलक्षम्बत) हो
जाती है हमारी। ऐसी क्षदक्कत आयी छपानेमें।

तब क्षवचार क्षकया क्षक अपना प्रेस खोलो। अपना ही


प्रेस, क्षजसमें अपनी गीता छाप दें। तब गीताप्रेस खोला।
{क्षवक्रम संवत १९८० में यह गीताप्रेस गोरखपुर (उत्तर-
प्रदेश) में खोला गया}।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६९

(१५)-'सेठिी श्री ियदयतलिी गोयन्दकत' से सम्बन्ध-

(पहली बार क्षमलने के बाद)


क्षफर हम (चूरूसे) गीताप्रेस गोरखपुर आये। वहााँ कई
क्षदन रहे। सत्संग हुआ। क्षफर ऋक्षषके शमें सत्संग हुआ
और इस प्रकार श्री सेठजी और हमारे जपदी ही भायला
(क्षमत्रता, अपनापन) हो गया, कोई पूवम(जन्म)के संस्कार
होंगे(क्षजसके कारण जपदी ही प्रेम हो गया)।

श्री सेठजीको मैं श्रेष्ठ मानता था। लोग पहले उनको


आपजी-आपजी(नामसे) कहते थे। मैं उनको श्रेष्ठ कहता
था। क्षफर लोग भी श्रेष्ठ-श्रेष्ठ कहते-कहते सेठजी कहने
लग गये।

एक बार सेठजी बोले क्षक स्वामीजीने हमको


सेठ(रुपयोंवाला) बना क्षदया। मैंने कहा क्षक मैं रुपयोंके
कारण सेठ नहीं कहता हू,ाँ रुपयेवाले तो और भी कई
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७०

बैठे हैं, (क्षजनके पास रुपये सेठजीसे भी ज्यादा है)। मेरा


सेठ कहनेका मतलब है- श्रेष्ठ।

(१६)- भतईिी श्री हनमतन प्रसतदिी र्ोद्दतर -

सेठजीको तो मैं ऊाँ चा मानता था, श्रेष्ठ मानता था और


भाईजी तो हमारे भाईकी तरह (बराबरके ) लगते थे।
साथमें रहते, क्षवनोद करते थे ऐसे ही।

भाईजीका बडा कोमल भाव था। भाईजीका 'प्रेमका


बतामव' क्षवक्षचत्र था- दूसरेका दुःख सह नहीं सकते थे
(दूसरेका दुःख देखकर बेचैन हो जाते थे)। बडे अच्छे
क्षवभूक्षत थे। हमारा बडा प्रेम रहा, बडा स्नेह रहा, बडी
कृपा रखते थे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७१

ये श्री सेठजीके मौसेरे (मााँकी बहन-मौसीके बेटा)भाई


थे। पहले इनके (आपसमें) पररचय नहीं था। इनके
पररचय हआ ु क्षशमलापाल जेलके समय।

भाईजी पहले कााँग्रेसमें थे और कााँग्रेसमें भी गममदलमें


थे। बडी करडी-करडी बातें थीं उनकी (गमम दलके क्षनयम
बडे कठोर होते थे)। भाईजी जब बंगालके क्षशमलापाल
कै दमें थे, तब श्री सेठजीको पता लगा क्षक हनुमान
जेलमें है। पीछे इनकी(भाईजीकी) माताजी थी, घरमें
उनकी स्त्री(पक्षत्न) थी। उनका प्रबन्ध श्री सेठजीने क्षकया।
उस प्रबन्धका असर पडा भाईजी पर और वो इनके (श्री
सेठजीके ) क्षशष्य ही बन गये , अनुयायी ही बन गये।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७२

(१७)- 'श्रद्धेय स्वतमीिी श्री रतमसखदतसिी महतरति'


कत सतधन-सत्संग -

श्री सेठजीने मेरेसे कहा क्षक व्याख्यान(सत्संग) सुनाओ।


तो मैंने कहा क्षक सेठजी! इन सबसे धापकर (तृप्त होकर)
आया ह।ूाँ अब तो साधन करना है। कथायें करली, भेंट-
पूजा कराली, रुपये रखकर देख क्षलये, बधावणा करवा
क्षलये, चेला-चेली कर क्षलये , गाना-बजाना कर क्षलया,
पेटी (हारमोक्षनयम) सीखली, तबला, दुकडा बजाने
सीख क्षलये। अके ले भजन गा-गाकर रातभर जागरण
कर क्षलये, व्याख्यान सुना क्षदये आक्षद आक्षद सब कर
क्षलये। इन सबको छोड क्षदया। इन सबसे अरुक्षच हो गई।

श्री सेठजीने कहा क्षक सनु ाओ। तो मैंने कहा क्षक सेठजी!
इन सबसे धापकर आया हू,ाँ अब सुनानेका मन नहीं है,
अबतो साधन करना है। श्री सेठजीने कहा क्षक
यही(सत्सगं सनु ाना ही) साधन है। कह, यह साधन है!
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७३

तो सुनानेमें ऐसा लगा क्षक एक-एक क्षदनमें कई-कई


घंटे(छ:छ:, आठ-आठ घंटोंसे ज्यादा) सत्सगं सुनाता।

श्री सेठजीने कहा क्षक सुनाओ, सुनाओ; तो इतना भाव


भर क्षदया क्षक सनु ाता ही सनु ाता हू,ाँ उनका शरीर जानेके
बाद भी। अभी तक सुनाता हू,ाँ यह वेग उन्हींका भरा
हुआ है।

लोगोंने प्रेरणा की क्षक स्वामीजीको कलकत्ता भेजो,


यहााँ सत्सगं करानेवाला कोई नहीं है। तो वे कलकत्ता
ले गये। क्षफर वहााँ कई महीनों(सात-सात, आठ-आठ
महीनों) तक सत्सगं सनु ाता था। लोग सनु ते थे। सबु ह
आठ बजेसे दस, शामको आठ बजेसे दस और कभी-
कभी दुपहरमें दो से चार बजे। ऐसे सत्संग करते थे।
क्षभिा मााँग कर पा लेना और सत्संग सनु ाना। ऐसे कई
वषम बीत गये। [पहले पुराने गोक्षबन्दभवनमें सत्संग होता
था, क्षफर बादमें यह नया गोक्षबन्दभवन कायामलय
बनाया गया]।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७४

ऋक्षषके शमें सत्संग पहले गंगाके इस पार काली


कमलीवाली धममशालामें होता था, क्षफर बादमें उस पार
होने लग गया। यह गीताभवन बादमें मेरे सामने बना है।

गीताजीकी टीका "तत्त्वक्षववेचनी" (लेखक-'सेठजी


श्री जयदयालजी गोयन्दका') हमारे सामने क्षलखी गई
है।

श्री सेठजीने कहा क्षक स्वामीजी! गीताजीका प्रचार


करो। मैं बोला क्षक कै से करें? तो बोले क्षक म्हे करााँ ज्यूाँ
करो- जैसे हम करते हैं ऐसे करो अथामत् जैसे हम
व्याख्यान देकर करते हैं, गीताजीकी टीका क्षलखकर
करते हैं, ऐसे आप भी व्याख्यान देकर करो और
गीताजी पर टीका क्षलखकर करो। (इस प्रकार उनकी
आज्ञासे हमने भी गीताजी पर टीका क्षलखी- "साधक-
संजीवनी")।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७५

(१८)- सत्संग से बहुर् ज्यतदत लतभ -


('श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख
ु दासिी महाराि')
+
यह बात जरूर है क्षक संतोंसे लाभ बहुत होता है। संत-
महात्माओसं े बहुत लाभ होता है।

मैं कहता हूाँ क्षक (कोई) साधन करे एकान्तमें खूब


तत्परतासे, उससे भी लाभ होता है; पर सत्संगसे लाभ
बहुत ज्यादा होता है।

साधन करके अच्छी, ऊाँ ची क्षस्थक्षत प्राप्त करना कमाकर


धनी बनना है और सत्संगमें गोद चला जाय( गोद चले
जाना है)। साधारण आदमी लखपक्षतकी गोद चला
जाय तो लखपक्षत हो जाता है, उसको क्या जोर आया।
कमाया हुआ धन क्षमलता है।

इस तरह सत्संगमें माक्षममक बातें क्षबना सोचे -


समझे(क्षमलती है), क्षबना मेहनत क्षकये बातें क्षमलती है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७६

कोई उद्धार चाहे तो मेरी दृक्षष्टमें सत्संग सबसे


ऊाँ चा(साधन) है।

भजनसे, जप- कीतमनसे, सबसे लाभ होता है, पर


सत्संगसे बहुत ज्यादा लाभ होता है। क्षवशेष पररवतमन
होता है। बडी शाक्षन्त क्षमलती है। भीतरकी, हृदयकी गााँठें
खुल जाती है एकदम साफ-साफ दीखने लगता है। तो
सत्संगसे (बहुत)ज्यादा लाभ होता है।

सत्संग सुनानेका सेठजीको बहुत शौक था, वो सुनाते


ही रहते, सनु ाते ही (रहते)।

सगण ु का ध्यान कराते तो तीन घंटा (सुनाते), सगुण का


ध्यान कराने में, मानक्षसक-पूजा करानेमें तीन घंटा।

क्षनगमण
ु -क्षनराकार का (ध्यान) कराते तीन घंटा(सुनाते)।
बस, आाँख मीचकर बैठ जाते। अब कौन बैठा है , कौन
ऊठ गया है, कौन नींद ले रहा है, कौन (जाग रहा है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७७

परवाह नहीं, वो तो कहते ही चले जाते थे। बडा क्षवक्षचत्र


उनका स्वभाव था। बडा लाभ हुआ, हमें तो बहुत लाभ
हआ
ु भाई। अभी(भी) हो रहा है। गीता पढ़ रहा हू,ाँ गीतामें
भाव और आ रहे हैं, नये-नये भाव पैदा हो रहे हैं, अथम
पैदा हो रहे हैं। बडा क्षवक्षचत्र ग्रंथ है भगवद् गीता।

साधारण पढ़ा हुआ आदमी भी लाभ ले लेता है बडेसे


(बहुत पढ़े हुए बडे आदमीसे भी ज्यादा लाभ साधारण
पढ़ा हआ ु आदमी गीतासे ले लेता है)। गीता और
रामायण- ये दो ग्रंथ बहुत क्षवक्षचत्र है। इनमें बहुत
क्षवक्षचत्रता भरी है।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' िारा


क्षदये गये क्षद. 19951205/830 बजेके सत्सगं -प्रवचनका
अंश। ( goo.gl/cLtjIi )।
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महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७८

(२)-महतर्रुषोंके नतमकत, कतमकत और वतणीकत


प्रचतर करें र्थत उनकत दरुर्योग न करें

रहस्य समझनेके क्षलये यह लेख पढ़ें -

एक बारकी बात है क्षक श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसख ु दासजी महाराज गीताप्रेस गोरखपुरमें
क्षवराजमान थे। उन क्षदनोंमें एक शोधकताम अंग्रेज-भाई
गीताप्रेस गोरखपुरमें आये। उन्होने सेठजी श्री
जयदयालजी गोयन्दका और भाईजी श्री हनमु ान
प्रसादजी पोद्दारके क्षवषयमें कई बातें पूछीं, क्षजनके उत्तर
श्री स्वामीजी महाराजने क्षदये ।

श्री महाराजजीकी बातोंसे उन अंग्रेज-भाईके समझमें


आया क्षक गीताप्रसके संस्थापक तो सेठजी श्री
जयदयालजी गोयन्दका है (उन्होंने सस्ं थापक
भाईजीको समझ रखा था)। अंग्रेज-भाईने बताया क्षक
गीताप्रेसके संस्थापक तो भाईजी थे। उनसे पूछा गया
क्षक कौन कहता है? अथामत् यह बात क्षकस आधार पर
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७९

कहते हो? तब उन अंग्रेज-भाईने गीतावाक्षटकामें


जानेकी, वहााँ पूछनेकी और उत्तर पानेकी बात बताते
हएु अखबारकी कक्षटंगें क्षदखायी क्षक ये देखो अखबारमें
भी ये बातें क्षलखी है (क्षक गीताप्रसके संस्थापक भाईजी
थे; उन्होंने और भी ऐसे क्षलखे हुए कई कागज बताये)।
ये सब देख-सुनकर श्री महाराजजीको लगा क्षक ऐसे तो
ये श्री सेठजीका नाम ही उठा देंगे । (श्री महाराजजीने
अंग्रेजको समझा क्षदया क्षक गीताप्रेसके सस्ं थापक श्री
सेठजी ही थे) ।
तबसे श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
अपने सत्सगं -प्रवचनोंमें भी यह बात बताने लग गये क्षक
गीताप्रेसके सस्ं थापक सेठजी श्री जयदयालजी
गोयन्दका ही थे । प्रवचनोंमें जब-जब श्री सेठजीका
नाम लेते, तो नाममें गीताप्रेसके सस्ं थापक, सरं िक,
संचालक, उत्पादक, सब कुछ आक्षद शब्द जोडकर
बोलते थे और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका
गीताप्रेसके सस्ं थापक, सच ं ालक, सरं िक, उत्पादक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८०

आक्षद सब कुछ थे - ऐसा बताते थे । श्री महाराजजीकी


यह चेष्टा थी क्षक सब लोग ऐसा ही समझें और दूसरोंको
भी समझायें।
उन्होने कपयाण-पक्षत्रकामें भी यह क्षलखवाना शुरु
करवा क्षदया क्षक गीताप्रेसके सस्ं थापक, सरं िक आक्षद
सब कुछ सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका है । इस
घटनासे पहले ऐसा नहीं होता था।
श्री सेठजी अपना प्रचार नहीं करते थे , उनके अनुयायी
भी नहीं करते थे; इसक्षलये श्री सेठजीका नाम तो क्षछपा
रहा और लोगोंने उस जगह भाईजीका नाम प्रकट कर
क्षदया, जो क्षक क्षबपकुल असत्य बात थी ।
अगर श्री स्वामीजी महाराज ऐसा नहीं करते , तो श्री
सेठजीका नाम और भी क्षछपा रह जाता और असत्यका
प्रचार होता ।
ऐसे महापुरुषोंका नाम क्षछप जाता क्षक क्षजनको याद
करनेसे ही कपयाण हो जाय ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८१

वो खुद तो अपना नाम चाहते नहीं थे, वो तो स्वयंकी


क्षलखी पुस्तकों पर भी अपना नाम क्षलखना नहीं चाहते
थे। [गीताप्रेससे अथमसक्षहत गीताजी(साधारण भाषा
टीका) छपी है, परन्तु श्री सेठजीने उसमें अपना (लेखक
का) नाम नहीं क्षलखा है। आज भी उसमें नाम नहीं
क्षलखा जा रहा है ]
श्री सेठजीसे पुस्तकों पर स्वयंका नाम क्षलखनेकी
प्राथमना की गई क्षक आपका नाम क्षलखा होगा, तो लोग
पढ़ेंगे; तब उन्होने स्वीकार क्षकया और उनकी पुस्तकों
पर उनका नाम क्षदया जाने लगा । इस प्रकार श्री सेठजी
अपना नाम नहीं चाहते थे और उनके अनयु ायी भी इसमें
साथ देते थे ; क्षजसका पररणाम यह हुआ क्षक सत्य क्षछप
गया और झठू सामने आ गया ।
अगर श्री सेठजीका नाम क्षछपा रहता तो हालात कुछ
और ही हईु होती; परन्तु श्री स्वामीजी महाराजने यह
कमी समझली और श्री सेठजीका नाम सामने ले आये,
क्षजससे जगतका महान् उपकार हो गया ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८२

यह उन महापुरुषोंकी हमलोगों पर भारी दया है । यह


हमलोगोंको क्षक्रयात्मक उपदेश है क्षक महापुरुष अपना
प्रचार स्वयं नहीं करते; यह तो हम लोगोंका कतमव्य है
क्षक उनका प्रचार हमलोग करें ।
श्री स्वामीजी महाराज बताते थे क्षक एक बार जब
'कणमवास' नामक स्थानमें श्री सेठजीका सत्संग चल
रहा था, तो भाईजी गीताप्रेस, कपयाण आक्षदका काम
छोडकर, बींटा(क्षबस्तर) बााँधकर वहााँ आ गये क्षक मैं तो
भजन करुाँगा; भगवानका प्रचार मनुष्य क्या कर सकता
है । तब श्री सेठजीने कहा क्षक भगवानका प्रचार करना
खुद भगवानका काम नहीं है, यह तो भिों(हमलोगों)
का काम है (वापस जाकर भगवानका काम करो, प्रचार
करो। तब वापस जाकर काम करने लगे।)।
इसी प्रकार महापुरुषोंका और उनकी वाणीका प्रचार
करना स्वयं महापुरुषोंका काम नहीं है, यह तो उनके
अनुयाक्षययोंका काम है, भिोंका काम है । अगर वे भी
नहीं करेंगे तो कौन करेगा? उनका नाम वे नहीं लेंगे तो
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८३

कौन लेगा? इसक्षलये यह भिोंका(-हमारा) कतमव्य है


क्षक महापुरुषोंका, उनकी वाणीका और उनकी
पुस्तकोंका दुक्षनयााँमें प्रचार करें । लोगोंको उनके बारेमें
समझावें क्षक ये कै से महापुरुष थे। हााँ, उनके प्रचारकी
औटमें अपना स्वाथम क्षसद्ध न करें ।

जैसे - अपनी कथा-प्रचारमें, पक्षत्रकामें, व्यापारमें या


दुकान आक्षदमें उन महापुरुषोंका नाम क्षलखावादें; (तो)
इससे हमारा प्रचार होगा, हमारी दुकानका प्रचार होगा,
क्षबक्री बढ़ेगी, लोग हमें उनका अनुयायी समझकर
हमारा आदर करेंगे, क्षवश्वास करेंगे, ग्राहक ज्यादा हो
जायेंगे, हमारे आमदनी बढ़ेगी, हमारे श्रोता ज्यादा
आयेंगे, हमारी बात भी कीमती हो जायेगी, हमारी मान-
बडाई होगी, लोग हमारेको उनका क्षवशेष आदमी मानेंगे
आक्षद आक्षद ।

ऐसी स्वाथमकी भावनासे, इस प्रकार स्वाथम क्षसद्ध करनेके


क्षलये महापुरुषोंके नामका दुरुपयोग न करें और कोई
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८४

करता हो तो उसको भी यथासाध्य रोकें । श्री स्वाीमजी


महाराज भी इसके क्षलये क्षनषेध करते थे और रोकते थे।

सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्रद्धेय


स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजको सत्संग बडा
क्षप्रय था। उनकी कोक्षशश थी क्षक ऐसा सत्संग आगे भी
चलता रहे।

इसक्षलये उनकी पुस्तकों िारा सत्संग करें, दुकानपर


पुस्तकें रखें और लोगोंको कोक्षशश करके बतावें तथा
देवें। पुस्तकें पढ़नेके क्षलये देवें और पूछें क्षक वो पुस्तक
पूरी पढ़ली क्या? पूरी पढ़लेनेपर वो पुस्तक वापस
लेकर दूसरी देवें। पुस्तक पढ़कर लोगोंको सनु ावें,
उनकी ररकोडम की हुई -वाणी िारा सत्संग करें, सभा
करके उनकी ररकोडम-वाणी लोगोंको सुनावें।

अपने सत्संग, कथा-प्रवचनोंमें भी महापुरुषोंकी


ररकोडम-वाणी लोगोंको सुनावें, भागवत-सप्ताहके
समान उनकी गीता 'तत्त्वक्षववेचनी' गीता 'साधक-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८५

संजीवनी' आक्षद ग्रंथोंका आयोजन करके लोगोंको


सुनावें ।
जैसे कथाकी सच ू ना क्षलखवाते हैं और सच
ू ना देते हैं क्षक
अमुक क्षदन भागवत-कथा होगी, आप पधारें; इसी
प्रकार महापुरुषोंकी वाणीकी, पुस्तकोंकी सूचना
क्षलखवायें और सच ू ना देवें तथा समयपर वाणी और
पुस्तक ईमानदारीसे सुनावें ।
क्षजस प्रकार श्री स्वामीजी महाराजके समय प्रातः
प्राथमना, गीता-पाठ (गीताजीके करीब दस श्लोकोंका
पाठ) और सत्संग होता था; वैसे ही आज भी प्राथमना,
गीता-पाठ करें और उनकी ररकोक्षडिंगवाणी िारा सत्संग
अवश्य सनु ें।
वहााँ महापुरुषोंका क्षन:स्वाथमभावसे नाम अवश्य
क्षलखवावें क्षक अमुक महापुरुषोंकी वाणी या पुस्तक
सनु ायी जायेगी, इसी प्रकार नाम लेकर सच ू ना देनी
चाक्षहये ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८६

ऐसा न हो क्षक हम उन संतोंका नाम नहीं क्षलखेंगे और


दूसरा कोई क्षलखेगा, तो हम मना करें गे; क्योंक्षक वो संत
मना करते थे।

इसमें थोडी-सी बात यह समझनेकी है क्षक वो मना


क्षकनको करते थे? क्षक जो क्षनजी स्वाथमके कारण
महापुरुषोंके नामका दुरुपयोग करते हैं (जैसा क्षक ऊपर
बताया जा चुका है), उनको मना करते थे । इसके
अलावा नाम क्षलखवाना मना नहीं था ।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके जहााँ-


जहााँ सत्संग-प्रोग्राम आक्षद होते थे , वहााँ-वहााँ आपका
नाम क्षलखकर और नाम लेकर ही प्रचार क्षकया जाता
था। अगर मनाही होती तो श्री स्वामीजी महाराज श्री
सेठजीका नाम क्यों लेते? और क्यों क्षलखवाते ? (जैसा
क्षक ऊपर प्रसगं क्षलखा जा चुका है) ।

अगर हम संसारको न तो महपुरुषोंके क्षवषयमें कुछ


बतायेंगे और न उनकी पुस्तकें बतायेंगे, तथा न उनकी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८७

ररकोडम-वाणीके क्षवषयमें बतायेंगे और दूसरोंको भी


मना करेंगे तो हम बडे दोषी हो जायेंगे, महापुरुषोंका
नाम उठा देनेवालों जैसे हो जायेंगे; क्योंक्षक इससे
संसारमें महापुरुषोंका नाम क्षछप जायेगा, लोग न तो
महापुरुषोंको जान पायेंगे और न उनकी पुस्तकें पढ़
पायेंगे, न उनकी ररकोडम-वाणी सनु पायेंगे और बेचारे
लोग दूसरी जगह भटकें गे। महापुरुषोंने दुक्षनयााँके क्षलये
जो प्रयास क्षकया था वो क्षसक्षमटकर कहीं पडा रह
जायेगा।

इस प्रकार हम महापुरुषोंके प्रयासमें सहयोगी न होकर


उलटे बाधा देनेवाले हो जायेंगे, जो क्षक न तो भगवानको
पसन्द है और न सतं -महात्माओ ं को ही पसन्द है।

हम सत्यको क्षछपानेमें सहयोगी होंगे तथा झूठके प्रचारमें


सहयोगी बनेंगे जैसा क्षक ऊपर क्षलखा जा चुका -
गीताप्रेसके सस
ं थापक श्री सेठजी थे यह सत्य क्षछप गया
और झूठका प्रचार हो गया।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८८

इसक्षलये संसारमें और घरोंमें स्वयं अगर कोई जपदी


तथा सुगमता-पूवमक सुख-शाक्षन्त चाहे, कपयाण चाहे
तो उपयमुि प्रकारसे महापुरुषोंकी पुस्तकें पढ़ें और
पढ़ावें, सुनें और सुनावें।

(उनकी ररकोक्षडिंग-वाणी सुनें और सुनावें तथा


महापुरुषोंके , सतं ोंके चररत्र सनु ें और सनु ावें, पढ़ें और
पढ़ावें)।।

(३)- सत्सगं -सतमग्री (श्रद्धेय स्वतमीिी


श्रीरतमसखदतसिी महतरतिकी जलजखर् और ऑजडयो
ररकॉडावतली सत्संग-सतमग्री आजद)

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह


वषोंके तो लगातार (सन् 1990 से 2005 तकके बारह
हजार छःह सौ क्षतरानबे) सत्सगं -प्रवचन उपलब्ध है और
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८९

इससे पहलेके(सन् 1975 से 1989 तकके ) भी कई


छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है।

[ऐसे पुराने प्रवचन और भी इकट्ठे क्षकये जा रहे हैं, क्षजसके


अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह
(शतक) बन चुके हैं और सातवााँ शतक चल रहा है,
क्षजसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह हो चुका है तथा और भी
प्रयास चल रहा है] ।

इन (सन् 1975 से 2005 तकके ) हजारों सत्संग-


प्रवचनोंमेंसे कई प्रवचनोंके साथ तो उनके क्षवषय
(प्रवचनोंके नाम) भी क्षलखे हएु हैं क्षजससे हम अपनी
रुक्षचके अनुसार मनचाहा प्रवचन खोजकर सुन सकते
हैं।

जैसे, हमारे मनमें आया क्षक मनकी हलचल कै से क्षमटे ?


तो हम कम्प्यूटर या मोबाइल में खोज (सचम) की जगह
'मन' शब्द क्षलखकर खोजेंगे तो इन हजारों प्रवचनोंमेंसे
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९०

जो-जो मन-सम्बन्धी प्रवचन हैं वो सब (229 प्रवचन)


इकट्ठे होकर हमारे सामने आ जायेंगे और उनमेंसे हम
अपनी पसन्दका प्रवचन सनु ेंगे तो क्षवशेष लाभ होगा।

[जब भूख लगी हो और उस समय अगर मनचाहा


भोजन क्षमल जाय तो क्षवशेष लाभ होता है।

इसी प्रकार जब हमारी क्षजज्ञासा हो, जाननेकी भूख हो


और उस समय अगर हम ये प्रवचन सुनें तो क्षवशेष लाभ
होगा, जीवन सधु र जायेगा, दु:ख क्षमट जायेगा, आनन्द
हो जायेगा]।

क्षवशेष-प्रवचन।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके क्षवशेष
कै सेटोंके ७१ सत्सगं -प्रवचन चुने गये हैं। इनके नाम
(क्षवषय) भी क्षलखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।
(इसमें कई प्रवचन तो ऐसे हैं क्षक जो दूसरी जगह
उपलब्ध होना मुक्षश्कल है)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९१

वो ७१ प्रवचन यहााँ(इस पते)से) प्राप्त करें-


http://db.tt/FzrlgTKe

[इनके क्षसवाय सन् 1990 से पहलेके हजारों प्रवचन तो


अभी ऑक्षडयो कै सेटोंमें ही पडे हुए हैं, कम्प्यूटर आक्षदमें
आये ही नहीं है, वो कायामक्षन्वत नहीं हो पा रहे हैं। उनके
क्षलये तो जोरदार लगन और मेहनत आक्षदकी
आवश्यकता है]।

इनके क्षसवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी
महाराजकी आवाजमें कई भजन(संग्रह क्षकये हुए 40
भजन) और कई प्रकारके कीतमन(21 प्रकारके संकीतमन)
उपलब्ध हएु हैं।

उनके िारा क्षनत्य-पाठ करनेके क्षलये शुरु करवाये हुए


गीताजीके पााँच श्लोक भी (दो प्रकारके ) उन्हीं की
आवाजमें है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९२

उनके िारा गाया गया नानीबाईका मायरा(छः


कै सेटोंवाला 48 क्षवभागों (फाइलों) में है), (यह
"नरसीजीका माहेरा" नामसे पााँच भागोंमें भी उपलब्ध
है)।

श्रीक्षवष्णुसहस्रनामस्तोत्रम-् पाठ तथा उन्हीं की


आवाजमें गीता-माधुयम है (इसका चौदहवााँ अध्याय
अनपु लब्ध है और पन्रहवााँ अध्याय भी पूरा उपलब्ध
नहीं हुआ)। (इसकी पूक्षतम अन्य आवाज़ िारा की गई है)।

इसी प्रकार, गीता-गान(प्रथम प्रकारका गीता-पाठ) है।

यह *सामूक्षहक आवृक्षत्त गीता-पाठ* है,


क्षजसमें आगे (पहले) तो श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसखु दासजी महाराज बोलते हैं और उनके पीछे
दूसरे लोग दुबारा उसीको दोहराते हैं, बोलते हैं।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९३

[जो गीताजीका शुद्ध-उच्चारण सीखना चाहते हैं और


गीताजी सीखना चाहते हैं तथा गीताजीका गायन, गीत
सनु ना चाहते हैं, उनके क्षलये यह क्षवशेष उपयोगी है।

इसकी साफ आवाजके क्षलये दुबारा ररकॉक्षडिंग भी की


गई है]।

गीता-पाठ
(यह क्षितीय प्रकारका गीता-पाठ है)।
[जो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराजके
साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके क्षलये यह
क्षवशेष उपयोगी है]।

गीता-व्याख्या।
(यह करीब पैंतीस क्षदनों तककी कै सेटोंका सेट है, जो
124 फाइलोंमें क्षवभि है, क्षजसमें व्याख्या करके पूरी
गीताजी समझायी गयी है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९४

[जो गीताजीका अथम समझना चाहते हैं, गीताजीका


रहस्य जानना चाहते हैं, उनके क्षलये यह क्षवशेष उपयोगी
है]

मानसमें नाम-वन्दना।
{रामचररतमानसके नाम वन्दना प्रकरण (1।18-28) की
जो नौ क्षदनोंतक व्याख्या की गई थी और क्षजसकी
"मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके
आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब
आठ ही हुए)}।

"कपयाणके तीन सुगम मागम"।


'कपयाण के तीन सुगम मागम' नामक पुस्तककी उन्हीके
िारा की गयी व्याख्या (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001
तकके 11 प्रवचन)।

[यह एक, अक्षितीय वो पुस्तक है क्षजसकी व्याख्या स्वयं


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराजने की है]।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९५

पााँचसौ चौंसठ प्रश्नोत्तर।


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसखु दासजी महाराजसे कई
लोग तरह-तरहके प्रश्न पूछा करते थे, क्षजसके जवाब
देकर श्री महाराजजी बडी सरलतासे उनको समझा देते
थे।

प्रश्नोंके उत्तर बडे सरल और सटीक होते थे तथा सुनकर


हरेकको बडा सन्तोष होता था।

ऐसे ही कुछ (564) प्रश्नोत्तर उनके प्रवचनोंमेंसे छााँटकर,


उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकठ्टे क्षकये गये हैं, जो
बडे कामके हैं। वो भी उपलब्ध है।

इकहत्तर(71) क्षदनोंके सत्सगं -प्रवचनोंका सेट-


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराजके समयमें
रोजाना प्रातः पााँच बजे क्षनत्य-स्तुक्षत और गीताजीके
करीब दस-दस श्लोकोंका पाठ होता था तथा
हरर:शरणम् 2 हरर:शरणम् 2 सक ं ीतमन होता था क्षफर श्री
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९६

महाराजजी सत्संग सुनाते थे। क्षजस प्रकार उन क्षदनोंमें


प्रातः 5 बजे क्षनत्य-स्तुक्षत, गीता-पाठ, सत्संग आक्षद
होता था उसी प्रकारसे इकहत्तर क्षदनोंके सत्सगं -
प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयार क्षकया गया
है। वो भी उपलब्ध है।

इनके क्षसवा उनके िारा बतायी गयी अपने जीवन-


सम्बन्धी कई बातें भी क्षलखकर संग्रहीत की गई है। तथा
उनके श्रीमुखसे सनु कर क्षलखी हईु अनेक सक्षू ियााँ (751
कहावतें, दोहे, आक्षद) भी उपलब्ध है।

इस प्रकार और भी अनेक कपयाणकारी उपयोगी-


सामग्री उपलब्ध है। हमारेको चाक्षहये क्षक शीघ्र ही उनसे
लाभ लें।

[जो कोई अपना शीघ्र और सरलता पूवमक कपयाण


चाहते हों तथा घरमें रहते हुए, सब काम-धन्धा करते हुए,
सख
ु पूवमक भगवत्प्राक्षप्त चाहते हों तो उनको चाक्षहये क्षक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९७

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी यह


सत्संग-सामग्री अवश्य अपने पासमें रखें और काममें
लें ]

ये सारी सामक्षग्रयााँ इण्टरनेट पर उपलब्ध होनी मुक्षश्कल


है। क्षकसीको चाक्षहये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके
क्षन:शुपक (फ्री में) दी जा सकती है।

जो लेना चाहें, कृपया वो इस पते पर सम्पकम करें-

-डुगाँ रदास राम, गााँव पोस्ट चााँवक्षण्डया, क्षजला नागौर,


राजस्थान(भारत)। मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389
और ब्लॉगका नाम, पता इस प्रकार है -
सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसख ु दासजी महाराजका
सालहत्य पढ़ें और उनकी वाणी सनु ें।
www.dungrdasram.blogspot.com
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९८

इनके क्षसवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजकी गीता साधक-संजीवनी, गीता-दपमण,
साधन-सध ु ा-क्षसन्धु, एक सतं की वसीयत आक्षद करीब
तीस पुस्तकें भी क्षनःशुपक दी जा सकती है, क्षजनको
कम्प्यूटर, टे बलेट या मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं।

इस प्रकार यह शीघ्र-कपयाणकारी सामग्री हमारेको


अपने पासमें रखनी चाक्षहये और यथाशीघ्र लाभ
अवश्य लेना चाक्षहये।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराजके


लगातार सोलह वषोंवाले 12693 (बारह हजार छःह सौ
क्षतरानबे) प्रवचनोंका क्षववरण इस प्रकार है-

सन् 1990 के 557 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९९

सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसखु दासजी महाराज।

सन् 1993 के 876 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1994 के 866 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1996 के 915 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १००

सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसखु दासजी महाराज।

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2000 के 998 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी


श्री रामसुखदासजी महाराज।

(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी


श्री रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2002 के 714 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०१

सन् 2003 के 729 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2004 के 702 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

सन् 2005 के 85 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।

(४)- र्तुँच श्लोक और उनकत र्तठ करवतनेकत कतरण

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज


एकान्तमें अके ले ही क्षवराजमान थे। ऐसा प्रतीत होता था
क्षक क्षकसी क्षवचारमें हैं(क्षवचार मग्न हैं)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०२

मैंने(डुगाँ रदासने) पूछा क्षक क्या बात है?


तब उत्तरमें क्षचन्ता और खे द व्यि करते हुएसे बोले क्षक
इन लोगों की क्या दशा होगी? (ये सत्संग करते हैं, सुनते
हैं, पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं, कपयाणमें क्षढलाई कर रहे
हैं, बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आक्षद आक्षद)।
क्षफर बताया क्षक कमसे कम इनकी दुगमक्षत न हों, इसके
क्षलये क्या करना चाक्षहये क्षक गीताजीके कुछ श्लोकोंका
पाठ करवाना चाक्षहये-
(बहतु पहले क्षक बात है क्षक एक बार श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज से एक हैड मास्टर ने पूछा
क्षक मनुष्य को कम- से कम क्या कर लेना चाक्षहये?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया क्षक
मनुष्य को कर तो लेना चाक्षहये अपना कपयाण।
तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाक्षहये ।
परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०३

लेना चाक्षहये क्षक मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय


(मनष्ु य जन्म से नीचे न क्षगर जाय)।
अथामत् इसी जन्म में भगवत्प्राक्षप्त न कर सके तो मरने के
बाद वापस मनुष्य जन्म क्षमल जाय। पशु-पिी, कीट-
पतंग आक्षद नीच योक्षनयों में न जाना पङे । इतना तो कर
ही लेना चाक्षहये ।
(तब उन्होंने पूछा क्षक) इसका क्या उपाय है (क्षक वापस
मनुष्य जन्म ही क्षमल जाय)?
इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले क्षक गीता
याद (कण्ठस्थ) करलें। क्योंक्षक-
गीता पाठ समायि
ु ो मतृ ो मानुषतां व्रिेत् ।
गीताभ्यासः पुनः कृत्वा लभते मनु िमत्तु माम् ।।
(गीता माहात्म्य)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०४

अथामत,् गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्षि होनेसे पहले


ही मर जाता है, तो] मरनेपर क्षफर मनष्ु य ही बनता है और
क्षफर गीता अभ्यास करता हआ ु उत्तम मुक्षिको प्राप्त कर
लेता है)। अस्तु।

(इसक्षलये हमलोगों को चाक्षहये क्षक गीताजी याद करलें


और गीताजी का पाठ करें )।

[ पूरी गीता का तो कहना ही क्या, गीताजी के तो एक


अध्याय का भी बङा माहात्म्य है। एक श्लोक या आधे
श्लोक अथवा चौथाई श्लोक (एक चरण) का भी बङा
माहात्म्य है।

इसक्षलये हमलोगों को चाक्षहये क्षक कम-से कम गीता जी


के पााँच श्लोकों का तो पाठ कर ही लें ]।

अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना


चाक्षहये?
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०५

क्षक अवतार-क्षवषयक (गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ


बक्षढ़या रहेगा।

क्षफर अन्दरसे बाहर सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह


कर रोजाना(हमेशा) के क्षलये इन पााँच श्लोंकों
(गीता४/६-१०) का पाठ शुरु करवा क्षदया।। यह पाठ
रोजाना सत्सगं -प्रवचनसे पहले होता था।

पााँच श्लोक आक्षदका पाठ उन महापुरुषों('श्रद्धेय


स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराज') की ही
आवाजके साथ-साथ करेंगे तो अप्रत्यि और प्रत्यि
रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराज िारा


लोक-कपयाण-क्षहत शुरु करवाये हुए गीताजी(४/६-
१०)के पााँच श्लोकोंका उन्हीं की आवाजमें पाठ यहााँसे
प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०६

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये


हएु और लोक-कपयाण क्षहत क्षनत्य-पाठके क्षलये शुरु
करवाये हएु -

गीताजीके क्षनत्य-पठनीय पााँच श्लोक (गीता ४/६-१०)-

वसदु वे सतु ं देवं कंसचाणरू मदशनम् ।


देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे िगद्गरुु म् ।।

अिोऽनप सन्नव्ययात्मा भतू नामीश्वरोऽनप सन् ।


प्रकृनतं स्वामनधष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।

यदा यदा नह धमशस्य ग्लाननभशवनत भारत ।


अभ्यत्ु थानमधमशस्य तदात्मानं सिृ ाम्यहम् ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०७

पररत्राणाय साधनू ां नवनार्ाय च दष्ु कृताम् ।


धमश संस्थापनाथाशय सम्भवानम यगु े यगु े ।।

िन्म कमश च मे नदव्यमेवं यो वेनत्त तत्त्वतः ।


त्यक्त्वा देहं पुनिशन्म नैनत मामेनत सोऽिशनु ।।

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामपु ानश्रताः ।


बहवो ज्ञानतपसा पतू ा मद्भावमागताः ।।

वसदु वे सतु ं देवं कंसचाणरू मदशनम् ।


देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे िगद्गरुु म् ।।
कृष्णं वन्दे िगद्गरुु म् ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०८

और क्षफर भगवन्नाम संकीतमन।


तत्पश्चात श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराजका सत्संग (होता था) ।।

(५)- गीर्त ‘सतधक-संिीवनी’(लेखक-श्रद्धेय


स्वतमीिी श्रीरतमसखदतसिी महतरति) को समझ-
समझकर र्ढ़नेसे अत्यन्र् लतभ

गीता 'साधक-सज ं ीवनी'।


लेखक - 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज'।
(के ) अध्ययनसे अत्यन्त लाभ-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १०९

प्रक्षसद्ध संत, श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजने श्रीमद्भगवद्गीता पर एक सरल, सबु ोधमय
क्षहन्दी टीका क्षलखी है, क्षजसका नाम है- साधक-
संजीवनी।
इसका अनेक भारतीय भाषाओमं ें और अंग्रेजी आक्षद
क्षवदेशी भाषाओमं ें भी अनुवाद हो चुका है तथा
प्रकाशन भी हो गया है।
क्षजन्होने ध्यानसे मन लगाकर इसको पढ़ा है, वे इस
क्षवषयमें कुछ जानते हैं और क्षजनको गीताजीका
वास्तक्षवक अथम और रहस्य समझना हो, उनको चाक्षहये
क्षक वे एक बार इसको समझ-समझकर पढ़ लेवें।
इसी प्रकार गीता 'तत्त्वक्षववेचनी' (लेखक 'श्रद्धेय
सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका') का भी समझ-
समझकर अध्ययन करें।
यह साधक-सज ं ीवनी(पररक्षशष्ट सक्षहत) ग्रथ
ं तथा उनके
और भी ग्रथ
ं गीताप्रेस गोरखपुरसे पुस्तकरूपमें और
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११०

इण्टरनेट पर उपलब्ध है और ये कम्प्यूटर, टे बलेट,


मोबाइल आक्षद पर पढ़ने लायक अलगसे भी उपलब्ध
है। (www.sadhaksanjivani.com)
इसक्षलये कृपया पररक्षशष्ट सक्षहत साधक-सज
ं ीवनी
गीताका समझ-समझ कर अध्ययन करें।
कई जने सोच लेते हैं क्षक रोजाना साधक-संजीवनीके
एक श्लोककी पूरी व्याख्या पढ़ लेवें या पूरा एक पृष्ठ पढ़
लेवें, यह बहुत बक्षढ़या है, परन्तु कभी-कभी क्षजस क्षदन
समय कम रहता है और पूरी एक श्लोककी व्याख्या या
पूरा पष्ठृ पढ़नेका आग्रह रहनेके कारण जपदी-जपदी
पढ़कर पूरा करते हैं, तो कई बातें पूरी समझे क्षबना ही रह
जाती है।

इस प्रकार पुस्तक तो पढ़कर पूरी कर लेते हैं, पर पूरी


समझे क्षबना रह जाती है । ऐसा क्यों होता है क्षक पृष्ठ या
व्याख्या पूरी करनेका आग्रह होनेसे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १११

अगर इसकी जगह समय बााँधलें, तो समस्या हल हो


जाती है; अथामत् १०-२० क्षमक्षनट या घंटा-आधाघंटा हमें
तो इसको समझनेमें लगाना है, चाहे एक क्षदनमें व्याख्या
या पृष्ठ पूरा हो या न हो। अगले क्षदन वहींसे आगे
समझकर पढ़ेंगे, कोई बात समझमें नहीं आई, तो दुबारा
पढ़ेंगे, क्षतबारा पढ़ेंगे, पूवामपरका ध्यान रखेंगे, और भी
कुछ आवश्यक हुआ तो वो करेंगे-ऐसे समय बााँधकर
करनेसे वो समस्या नहीं रहती।

इस प्रकार समझ-समझ कर पढ़नेसे बहुत लाभ होता है,


गीताका रहस्य समझमें आने लगता है, क्षफर तो रुक्षच हो
जाती है और प्रयास बढ़ जाता है, गीता समझमें आने
लगती है और गीता समझमें आ जाती है, तो भगवत्तत्त्व
समझमें आ जाता है; क्षफर तो कुछ जानना बाकी नहीं
रहता, न पाना बाकी रहता है, न करना बाकी रहता है;
मनुष्यजन्म सफल हो जाता है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११२

क्षजनको गीताजी याद(कण्ठस्थ) करनी हो, वो पहले इस


प्रकार साधक-सज ं ीवनीसे श्लोक समझकर याद करेंगे,
तो बडी सगु मतासे गीता याद हो जायेगी और क्षजतनी
बार श्लोकोंकी आवृक्षत्त करेंगे, उनके साथ-साथ अथम
और भावोंकी भी आवृक्षत्त हो जायेगी । इस प्रकार
गीताजीका ज्ञान बहुत बढ़ जायेगा और दृढ़ हो जायेगा।
गीता याद करनेवालोंके क्षलये 'गीता-ज्ञान-प्रवेक्षशका'
(लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज) बहुत उपयोगी है; इसी प्रकार 'गीता-दपमण'
(लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज) भी अत्यन्त लाभकारी है ।
'गीता-दपमण' ग्रंथ कै से प्रकट हुआ?
(क्षक)
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज जब
गीता 'साधक-सज ं ीवनी' की भूक्षमका क्षलखवा रहे थे,
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११३

तब वो भूक्षमका इतनी बडी हो गयी क्षक उसको 'गीता-


दपमण' नामक ग्रंथ बनाकर अलग से छपवाना पडा।
यह 'गीता-दपमण' सक ं ोच करते-करते भी (क्षक पहले भी
'साधक-सज ं ीवनी' इतना बडा पौथा हो गया, वैसे ही
यह न हो जाय) इतना बडा हो गया। इसमें गीताजीके
शोधपूणम १०८ लेख है और पूवामद्धम तथा उत्तराद्धम - दो
भागोंमें क्षवभि है।
कभी-कभी क्षकसी गीता-प्रेमी सज्जनको श्री
महाराजजी यह ग्रथ ं देकर फरमाते थे क्षक कमसे-कम
आप इसकी क्षवषय-सच ू ी तो (जरूर) देखना। गीताजीके
इस अक्षितीय-ग्रंथको एक बार जरूर पढ़ना चाक्षहये,
इसमें और भी कई बातें हैं।
यह ग्रंथ और साधक-सज ं ीवनी आक्षद अनेक ग्रंथ गीता-
प्रेस गोरखपुरसे प्रकाक्षशत हुए हैं और इण्टरनेट पर भी
उपलब्ध है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११४

गीर्त "सतधक-सि
ं ीवनी र्ररजिष्ट"।
लेखक – 'श्रद्धेय स्वतमीिी श्री रतमसखदतसिी
महतरति'।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' ने गीता


पर टीका- 'साधक-सज ं ीवनी' क्षलख दी और वो
पुस्तकरूपमें प्रकाक्षशत भी हो गयी।
उसके बादमें भी महाराजजीके मनमें गीताजीके बडे
क्षवलिण और नये-नये भाव आते रहे।
तब गीताजीके सातवें अध्याय पर नये भावोंकी
व्याख्या क्षलखकर पुस्तकरूपमें प्रकाक्षशत की गयी।
लेक्षकन नये-नये भाव तो और भी आने लग गये।
तब गीताजीके अठारहों अध्यायों पर गीताजीकी नयी
व्याख्या क्षलखकर प्रकाक्षशत की गयी, क्षजसका नाम
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११५

था- "साधक-संजीवनी पररक्षशष्ट"। इसमें गीताजीका


अथम पदच्छे द और अन्वय सक्षहत क्षदया गया है।

इसमें ऐसे-ऐसे भाव थे क्षक जो 'साधक-संजीवनी' में


नहीं आये। तब आवश्यक समझकर वो भाव ('साधक-
संजीवनी पररक्षशष्ट') 'साधक-संजीवनी' में जोड क्षदये
गये। इसके बाद 'साधक-संजीवनी' पर यह क्षलखा जाने
लगा - साधक-सज ं ीवनी (पररक्षशष्ट सक्षहत)।

{क्षजनके पास पुरानी साधक-सजं ीवनी है, उनको चाक्षहये


क्षक यह नयी वाली साधक-सज ं ीवनी (पररक्षशष्ट सक्षहत)
वाली भी लेकर पढ़ें}।

इसके बाद भी गीताजीके और नये भाव आये, वो


"गीता-प्रबोधनी" में क्षलखे गये। क्षफर भी नये-नये भाव
तो आते ही रहे…
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११६

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के ग्रंथ


यहााँ (इस पते) से प्राप्त करें-
www.swamiramsukhdasji.org
(मोबाइल आक्षद में पढ़ने योग्य) छोटे साइजमें गीता
'साधक-सजं ीवनी'(पररक्षशष्ट सक्षहत) यहााँसे प्राप्त करें -
goo.gl/7sHNQ6

(६)- लेखक कत नतम हटतनत यत बदलनत अर्रतध है


(श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख ु दासिी महाराि के लेखों और
बातों से उनका नाम हटाना अपराध है तथा उनका नाम
दसू रों की बातों में िोड़ना भी अपराध है)।
आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम की आड में दूसरों
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११७

की बातें क्षलख देते हैं और कई-कई तो अपने मन से,


अपनी समझ की (मन गढ़न्त) बात क्षलख कर उस पर
नाम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसखु दासजी महाराज का
क्षलख देते हैं क्षक यह बात उनकी है।

सज्जनों! यह बडा भारी अपराध है और झठू है। इस


प्रकार झठू ी बातें क्षलखने से उन बातों पर से लोगों का
क्षवश्वास हट जाता है और ऐसी झूठी बातों के कारण
कभी-कभी सत्य बातों पर भी क्षवश्वास नहीं होता।

इससे सत्य बात के भी आड लग जाती है और उस पर


लोगों का क्षवश्वास नहीं रहता (जो लोगों के कपयाण की
सामग्री में बडा भारी नक ु सान है)।
अब यह पता कै से चले क्षक यह बात वास्तव में श्रद्धेय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की ही है या
क्षकसी ने अपने मन से गढ़ कर क्षलख दी और उस पर
नाम श्री स्वामीजी महाराज का क्षलख क्षदया।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११८

सन्देह हो जाने पर उस पर क्षवश्वास कै से क्षकया जायेगा?


क्षवश्वास तो तभी होगा न जब क्षक उस पर कोई पुस्तक
के लेख या प्रवचन की तारीख का प्रमाण क्षलखा हआ ु
हो।
क्षवश्वास करने लायक बात वही है जो क्षकसी पुस्तक के
लेख या तारीख सक्षहत प्रवचन से लेकर क्षलखी गयी हो,
अथवा स्वयं उनके श्रीमुख से सुनी गयी हो।

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के क्षजन


लेखों और बातों में क्षकसी पुस्तक या प्रवचन आक्षद का
प्रमाण क्षलखा हआ ु नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है)।
क्षजस बात या लेख में लेखक का नाम क्षदया गया हो,
कृपया उसको हटावें नहीं और उस लेखक की जगह
दूसरे लेखक का नाम भी न देवें। लेखक का नाम हटाना
अपराध है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ११९

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों


और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है और दूसरों
की बातों में या अपनी बातों में उनका नाम जोडना भी
अपराध है, जो क्षक पाप से भी भयंकर है।

(ऐसे ही कई लोग उनके ररकोक्षडिंग प्रवचन में से उस


प्रवचन की तारीख और श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज का नाम हटा देते हैं।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की


ररकोक्षडिंग वाणी से उस प्रवचन की तारीख हटाना
उनका वचन भंग करना है; क्योंक्षक यह प्रवचन के साथ
तारीख ररकोडम करके जोडने वाली व्यवस्था स्वयं श्री
स्वामीजी महाराज ने ही करवायी थी क्षजससे क्षक अगर
ऊपर तारीख क्षलखने में भूल भी हो जाय तो भीतर
(ररकोक्षडिंग के साथ तारीख जुडी होने से) सही तारीख
का पता लग जाय।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२०

ऐसे ही श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के


उस प्रवचन में से उनका नाम भी नहीं हटाना चाक्षहये)।

{मेरे (डुगाँ रदास राम के ) सामने की बात है क्षक महाराज


जी से पूछा गया क्षक प्रवचन की कै सेटों पर क्षलखी हईु
तारीख कभी-कभी साफ नहीं दीखती। क्षमट भी जाती
है। क्षलखने में भी भूल से दूसरी तारीख क्षलख दी जाती
है। ऐसे में सही तारीख का पता कै से लगे? इसके क्षलये
क्या करें?

तब श्री महाराज जी बोले क्षक प्रवचन के साथ ही (भीतर


में) ररकोडम करदो। तब से ऐसा क्षकया जाने लगा। इन
प्रवचनों की भीतर से तारीख हटा कर क्षकसी ने महाराज
जी की वो व्यवस्था भंग की है। जो इसको आगे बढ़ाते
हैं। एक प्रकार से वो भी इस अपराध में साक्षमल है}।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं
क्षक एक तो होता है पाप और एक होता है अपराध।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२१

अपराध पाप से भी भयंकर होता है। पाप तो उसका


फल भुगतने से क्षमट जाता है; परन्तु अपराध नहीं
क्षमटता। अपराध तो तभी क्षमटता है क्षक जब वो (क्षजसका
अपराध क्षकया गया है वो) स्वयं माफ करदे।

अक्षधक जानने के क्षलये कृपया क्षदये गये पते वाला यह


लेख पढ़ें –
सतं -वाणी यथावत् रहने दें, सश
ं ोधन न करें। ('श्रद्धेय
स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज'की वाणी और
लेख यथावत् रहने दें, सश
ं ोधन न करें)।
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/12/blog-
post_30.html?m=1
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२२

(७)- चर्दाि मंत्र


(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख
ु दासिी महाराि द्वारा प्रकट
नकया हुआ चतदु र्श मन्त्र)

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख


ु दासजी महाराज िारा
प्रकट क्षकया हआु चतुदमश मन्त्र-

राम राम राम राम राम राम राम ।


राम राम राम राम राम राम राम ।।

{राम(१) राम(२) राम(३) राम(४) राम(५) राम(६)


राम(७) ।
राम(८) राम(९) राम(१०) राम(११) राम(१२) राम(१३)
राम(१४) ।।}
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२३

संकीतमनमें मन कै से लगे?
इसके क्षलये श्री महाराजजीने यह तरकीब (अटकऴ)
बतायी है क्षक भगवानके गुण और लीलायुि नाम
जोड-जोडकर इस चतुदमश मन्त्रका कीतमन करें।
जैसे –
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
आप ही हो एक(१) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सदा(२) ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२४

राम राम राम राम राम राम राम ।


राम राम राम राम राम राम राम ।।
सवशसमथश(३) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
परम सवशज्ञ(४) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सवशसहृु द(५) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२५

राम राम राम राम राम राम राम ।।


सभीके (६) हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सवश व्यापक(७) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
परम दयालु प्रभ(ु ८) राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२६

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज िारा


(भगवानमें श्रद्धा क्षवश्वास होनेके क्षलये) बताये गये
भगवानके सात* प्रभावशाली क्षवशेष नाम---

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं


क्षक) जब साधक यह स्वीकार करता है क्षक परमात्मा
अक्षितीय है, सदा है, सवमसमथम है, सवमज्ञ है, सवमसहृु द है,
सभीका है और सब जगह है, तब उसकी परमात्मापर
स्वत: श्रद्धा जाग्रत हो जाती है।

(ऊपर वाला चतुदमश नाम-सक ं ीतमन भी इन्ही नामों के


साथ कराया गया है। इसक्षलये यह क्षवशेष प्रभावशाली
है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२७

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज िारा


क्षलक्षखत 'कपयाणके तीन सगु म मागम' नामक पुस्तक
(पष्ठृ सख्ं या ३०) से।

*क्षजन क्षदनोंमें यह पुस्तक क्षलखी जा रही थी, उन क्षदनोंमें


आठ नाम बताना चाह रहे थे; लेक्षकन सात ही क्षलखा
पाये। आठवााँ नाम शायद यह था- 'परम दयाल'ु ;
क्योंक्षक कई बार सत्संग-प्रवचनोंमें भी यह नाम क्षलया
करते थे क्षक सवमसमथम , सवमज्ञ और परम दयालु
परमात्माके रहते हुए(उनके राज्य में) कोई क्षकसीको
दु:ख दे सकता है? अथामत् नहीं दे सकता।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२८

(८)- संर्-वतणी यथतवर्् रहने दें, संिोधन न करें


('श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख
ु दासिी महाराि' की वाणी
और लेख यथावत् रहने दें, सर्
ं ोधन न करें )।

१. एक बार क्षकसी पक्षत्रकामें श्रीस्वामीजी


(रामसख ु दासजी) महाराजके लेखको कुछ सश ं ोधन
करके छापा गया। उस लेखको सुननेपर श्रीस्वामीजी
महाराजको लगा क्षक इसमें क्षकसीने संशोधन क्षकया है,
क्षजससे इसका जैसा असर होना चाक्षहये , वैसा असर
दीख नहीं रहा है! तब श्रीस्वामीजी महाराजने एक पत्र
क्षलखवाकर भेजा, क्षजसमें क्षलखा था क्षक 'आप हमारे
लेखोंमें शब्दोंको बदलकर बडा भारी अनथम कर रहे हो;
क्योंक्षक शब्दोंको बदलनेसे हमारे भावोंका नाश हो
जाता है! इस क्षवषयमें आपको अपने धममकी, अपने
इष्टकी सौगन्ध है!' आक्षद। *
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२९

(परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज


िारा रक्षचत 'साधक-सज ं ीवनी' पर आधाररत
'सज
ं ीवनी-सध ु ा' के प्राक्कथन ix से साभार)।
………………………………………………
*
(क). यह बात उन क्षदनोंकी है क्षक क्षजन क्षदनोंमें गीता-
दपमण (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज) का प्रकाशन ...(से) हो रहा था (नाम क्षलखना
बक्षढ़या नहीं रहेगा)। बादमें भी कई बार ऐसे अवसर
आये हैं।

(ख). महापुरुषोंके शब्द बदलने नहीं चाक्षहये।


अगर भावोंका खुलासा करना हो तो ब्रैकेट( ) या
क्षटप्पणीमें करना चाक्षहये। और यह स्पष्ट होना चाक्षहये
क्षक ऐसा खुलासेके क्षलये क्षकया गया है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३०

अक्षधक जाननेके क्षलये यहााँ पढ़ें -


संत-वाणीकी रिा करें - श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कपयाणकारी
वाणीको सुरक्षित करें, उनमें कोई कााँट-छााँट न करें, सेट
पूरा रहने दें, अधूरा न करें।
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/b
log-post_72.html
२. एक बार 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज' से क्षकसीने कहा क्षक गोस्वामी श्री
तुलसीदासजी महाराजने जो रामायणमें यह चौपाई
क्षलखी है क्षक
ढोल गवााँर सरू पसु नारी।
सकल ताड़ना के अनधकारी॥
(५/५९)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३१

(तो) इसमें स्त्रीजातीका क्षतरस्कार है, इसक्षलये "नारी"


शब्द बदलकर(हटाकर) "चारी" (ढोल गवााँर सरू पसु
चारी) कर देना चाक्षहये ।
यह सुनकर श्री महाराजजीने उनको डााँटते हुए गुस्सा
जताकर जोरसे मना क्षकया क्षक यह अन्याय
है।उनकी(सन्तोंकी) वाणीमें कााँट-छााँट, हेरा-फे री नहीं
करनी चाक्षहये, जैसा उन्होने क्षलखा है, वैसा ही रहने देना
चाक्षहये। कोई उसको कााँट-छााँट करता है या बदलाव
करता है तो बडा अन्याय करता है। यह (वाणी बदलना)
गोस्वामीजी महाराजकी हत्या करना है। (अक्षधक
जाननेके क्षलये श्रीमहाराजजीकी पुस्तक "मातृशक्षिका
घोर अपमान"(लेखक- स्वामी रामसुखदास) पढ़ें)।
तथा-
"बात पते की " होनी चाक्षहये - (श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसख
ु दासजी महाराज की बातों के साथ प्रमाण
क्षलखा हआु होना चाक्षहये)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३२

आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी


श्रीरामसख
ु दासजी महाराज के नाम की आड में दूसरों
की बातें क्षलख देते हैं और कई-कई तो अपने मन से,
अपनी समझ की बात क्षलख कर उस पर नाम श्रद्धेय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का दे देते हैं क्षक
यह बात उनकी है।
सज्जनों! यह बडा भारी अपराध है, झूठ है।
इससे सत्य बात के भी आड लग जाती है और उस पर
लोगों का क्षवश्वास नहीं रहता (जो लोगों के कपयाण की
सामग्री में बडा भारी नक ु सान है)।
क्षवश्वास करने लायक बात वही है जो क्षकसी पुस्तक या
प्रवचन से लेकर क्षलखी गयी हो, अथवा स्वयं उनके
श्रीमुख से सुनी गयी हो। (श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज के क्षजन लेखों और बातों में
क्षकसी पुस्तक या प्रवचन आक्षद का प्रमाण क्षलखा हआ

नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३३

क्षजस बात या लेख में लेखक का नाम क्षदया गया हो,


कृपया उसको हटावें नहीं और उस लेखक की जगह
दूसरे लेखक का नाम भी न देवें। लेखक का नाम हटाना
अपराध है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों
और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है और दूसरों
की बातों में या अपनी बातों में उनका नाम जोडना भी
अपराध है, जो क्षक पाप से भी भयंकर है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं
क्षक एक तो होता है पाप और एक होता है अपराध।
अपराध पाप से भी भयंकर होता है। पाप तो उसका
फल भुगतने से क्षमट जाता है; परन्तु अपराध नहीं
क्षमटता। अपराध तो तभी क्षमटता है क्षक जब वो (क्षजसका
अपराध क्षकया गया है वो) स्वयं माफ करदे।
इसक्षलये हमें अपराध से बचना चाक्षहये।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३४

(९)- जर्हत्तर र्स्र्कें


(लेखक - श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख ु दासिी महाराि)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराजकी


साधक-सज ं ीवनी, साधन-सुधा-क्षसन्धु (इसमें करीब
तैंतालीस पुस्तकोंका संग्रह है, यद्यक्षप इसमें कुछ सामग्री
छोड दी गयी। इसमें अधूरापन है।) गीता-दपमण, गीता-
माधुयम आक्षद क्षतहत्तर पुस्तकें पढ़नेके क्षलये कृपया इस
पते (क्षठकाने) पर जायें और पढ़ें -

http://swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/p
ustak/pustak1/html/picture/list.htm
(goo.gl/LUaeWB)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३५

(१०)- संर्ोंके प्रजर् मनगढ़न्र् बतर्ें न फै लतएं

आजकल कई लोग सतं ों के प्रक्षत अनसमझी, मनगढ़न्त


बातें फै लाने लग गये हैं क्षजससे लोगो में भ्रम पैदा हो
जाता है और सही बात न क्षमलने के कारण कई लोग
उन भ्रामक बातों को ही सही बात मानने लग जाते हैं
तथा क्षबना क्षवचार क्षकए आगे फै लाने भी लग जाते हैं।
इस प्रकार झठू ी बातों का प्रचार होने लगता है और
सच्ची बातें लप्तु होने लगती है।

झठू ी बातों का प्रचार चाहे क्षकतना ही अच्छा चौला


पहना कर क्षकया जाय, तो भी पररणाम उनका ठीक नहीं
होता। उनसे लोगोंका नुकसान ही होता है, फायदा नहीं।

फायदा तो सच्ची बातों से ही होता है और संत-


महात्माओ ं को भी सच्ची बातें ही पसन्द है तथा
कपयाण भी सच्ची बातों से ही होता है। सच्ची बातों में
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३६

प्रेम होना सत्संग है। सत्संग की मक्षहमा क्षजतनी है उतनी


कोई कह नहीं सकता।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का कहना


है क्षक जगत में क्षजतने भी सद्गुण सदाचार है, क्षजतनी सख ु
शाक्षन्त है, दुक्षनयााँ में क्षजतनी अच्छाई है, भलाई है; वो
सब संत-महात्माओ ं की कृपा से ही है। उन सब के मूल
में (उनको पैदा करने वाले) सतं - महात्मा ही हैं।

ऐसी ही बात गोस्वामीजी श्रीतुलसीदास जी महाराज


भी कहते हैं –

िलचर थलचर नभचर नाना ।


िे िड़ चेतन िीव िहाना ।।

मनत कीरनत गनत भनू त भलाई ।


िब िेनहं ितन िहााँ िेनहं पाई ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३७

सो िानब सतसंग प्रभाऊ ।


लोकहुाँ बेद न आन उपाऊ ।।
(रामचररतमानस बाल० ३)।

तथा

दष्टु उदय िग आरनत हेतू ।


िथा प्रनसद्ध अधम ग्रह के तू ।।

संत उदय संतत सखु कारी ।


नबस्व सख
ु द निनम इदं ु तमारी ।।
(रामचररतमानस उत्तर०१२१)। आनद आनद।

सस ं ार में सतं -महात्माओ ं की मक्षहमा क्षजतनी प्रकट रूप


में रहेगी, उतनी ही अक्षधक संसार में सुख शाक्षन्त रहेगी,
उतने ही सद्गुण सदाचार आक्षद रहेंगे और क्षजतनी ही
सस ं ार में उनकी प्रकट रूप में मक्षहमा कम होंगी, मक्षहमा
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३८

जगत में क्षछपेगी; उतनी ही जगत में दुःख, अशाक्षन्त


आक्षद बढ़ेगी।

सन्त-महात्माओ ं के प्रक्षत मनगढ़न्त बातें फै लाने से


लोगों में भ्रम फै लेगा और सच्चाई क्षछप जायगी क्षजससे
दुक्षनयााँ का बडा भारी नुकसान होगा तथा सन्त-
महात्माओनं े दुक्षनयााँ के क्षहत के क्षलये जो महान् प्रयास
क्षकया है, वो महान् प्रयास भी एक प्रकार से व्यथम हो
जायेगा। बडी भारी हाक्षन हो जायेगी।

लोग उस महान् कपयाणकारी प्रयास के लाभ से


वक्षचचत रहेंगे, दुक्षनयााँको वो लाभ नहीं क्षमल पायेगा।
इस तरफ अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो हम भी दोषी होंगे।
इसक्षलये हमलोगों को चाक्षहये क्षक जो बातें सही-सही
हो, वही लोगों में फै लायें । भ्रम की बातों का क्षनराकरण
करें।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३९

इस लेख का प्रयोजन भी यही है क्षक लोगों को सच्ची,


सही-सही बातें बताई जाय।

ये (जो बातें मैं क्षलख रहा हू,ाँ वे) बातें मेरी जानकारी में
हैं और मेरी दृक्षष्ट में सही हैं, सच्ची हैं, यथाथम हैं।

मैं यहााँ वही बातें क्षलख रहा हूाँ जो मेरी दृक्षष्ट में क्षनस्सन्देह
हों, यथाथम हों। क्षकसी के अगर कोई बात समझ में न
आयें अथवा सन्देह हो तो मेरे (डुगाँ रदास राम) से बात
कर सकते हैं।

(१) प्रश्न- क्यत श्रद्धेय स्वतमीिी श्री रतमसखदतसिी


महतरति गरु की जनन्दत करर्े थे?

उत्तर- नहीं, श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराज ने कभी गुरु की क्षनन्दा नहीं की। वो तो प्रवचन
के आरम्भ में सदा ही गरुु -वन्दना क्षकया करते थे, गरुु जी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४०

को प्रणाम करते थे। उनके हृदय में गुरु का बडा आदर


था।

उन्होंने अपनी पुस्तक (क्या गुरु क्षबना मुक्षि नहीं?) में


स्वयं बताया है क्षक मैं गुरु की क्षनन्दा नहीं करता हू,ाँ मैं
पाखण्ड की क्षनन्दा करता ह।ूाँ

(आजकल के गुरु और क्षशष्यों का समाचार सुनकर वो


क्षशष्य और गरुु बनाने का क्षनषेध करने लग गये थे)।

उन्होंने क्षकसी के भी साथ में अपना व्यक्षिगत सम्बन्ध


नहीं जोडा है। न क्षकसी को अपना उत्तराक्षधकारी बनाया
है। न उन्होंने कोई आश्रम बनाया है और न ही कहीं कोई
उनकी गद्दी है। न उनके िारा चलाया हुआ कोई धन्धा है
और न ही उनका कोई स्थान है। वो न तो क्षकसीको
अपना क्षशष्य बनाते थे और न ही इसको बढ़ावा देते थे।
क्षकसी को अपना क्षशष्य बनाने का उन्होंने त्याग कर
क्षदया था। गरुु बनाने का भी वो क्षनषेध करते थे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४१

(२) प्रश्न- गरु र्ो उनके भी थे न?

उत्तर- हााँ, थे; परन्तु वो बात और प्रकार की थी। चार


वषम की अवस्था में ही उनकी माताजी ने उन्हें सन्तोंको
सौंप क्षदया था और उन सन्तोंने भी आगे दूसरे सन्तोंको
क्षशष्य रूप में दे क्षदया था। इस प्रकार वो इनके गुरु हुए,
(उन्होंने स्वयं गरुु नहीं बनाया)।

ये मानते उनको गुरुजी ही थे और कहते भी गुरुजी ही


थे तथा बतामव भी वैसा ही करते थे जैसा क्षक एक
सदाचारी क्षशष्य को करना चाहये।

गरुु जी का शरीर शान्त हो गया तब बरसी आक्षद करके


कुछ वषों के बाद आप गीताप्रेस के संस्थापक सेठजी
श्री जयदयालजी गोयन्दका के पास आ गये। अक्षधक
जानने के क्षलये कृपया यह लेख पढ़ें-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४२

@महापुरुषों के सत्संगकी बातें@ ('श्रद्धेय स्वामीजी


श्री रामसुखदासजी महाराज' के श्रीमुखके भाव)।
http://dungrdasram.blogspot.in/p/blog-
page_94.html?m=1

(३) प्रश्न- गीर्तप्रेस के संस्थतर्क र्ो भतईिी श्री हनमतन


प्रसतदिी र्ोद्दतर नहीं थे क्यत?

उत्तर- नहीं, गीताप्रेस के सस्ं थापक तो सेठजी श्री


जयदयालजी गोयन्दका ही थे।

अक्षधक जानने के क्षलये कृपया यह लेख पढ़ें-


महापुरुषोंके नामका, कामका और वाणीका प्रचार करें
तथा उनका दुरुपयोग न करें, रहस्य समझनेके क्षलये यह
लेख पढ़ें –
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/01/blog-
post_17.html?m=1
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४३

(४) प्रश्न- क्यत श्री स्वतमीिी महतरति संर्


श्रीिरणतनन्दिी महतरति के अनयतयी थे?

उत्तर- नहीं, वो सतं श्री शरणानन्दजी महाराज के


अनुयायी नहीं थे, वो तो तत्त्व के अनुयायी थे। यह बात
उन्होंने स्वयं कही है। उनके "मेरे क्षवचार" नामक
क्षसद्धान्तों के तीसरे क्षसद्धान्त में वो स्वयं कहते हैं क्षक

"मैंने क्षकसी भी व्यक्षि, संस्था, आश्रम आक्षद से


व्यक्षिगत सम्बन्ध नहीं जोडा है। यक्षद क्षकसी हेतु से
सम्बन्ध जोडा भी हो, तो वह तात्काक्षलक था, सदा के
क्षलये नहीं। मैं सदा तत्त्व का अनुयायी रहा हू,ाँ व्यक्षि का
नहीं।"

{श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की


पुस्तक "एक सतं की वसीयत"(प्रकाशक-गीताप्रेस,
गोरखपुर), पष्ठृ सख्
ं या १२ से}।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४४

अक्षधक जानने के क्षलये यह लेख पढ़ें-


(★-: मेरे क्षवचार :-★ श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसख ु दासजी महाराज)।
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/07/blog-
post_0.html?m=1

(५) प्रश्न- र्ब वो संर् श्रीिरणतनन्दिी महतरति की बतर्ें


क्यों मतनर्े थे?

उत्तर- वो श्री शरणानन्दजी महाराज की बातें नहीं मानते


थे, वो गीताजी की बातें मानते थे। जो बातें सतं श्री
शरणानन्दजी महाराज कहते थे , उनमें से जो बातें
गीताजी के अनुसार होती थीं, उन्हीं को मानते थे, सब
नहीं मानते थे। वो बातें श्री शरणानन्दजी महाराज की
होने के कारण नहीं मानते थे , क्षकन्तु गीताजी के अनस
ु ार
होने से मानते थे । (इसका आगे और खुलासा क्षकया
गया है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४५

इस प्रकार यह समझ लेना चाक्षहये क्षक श्रद्धेय स्वामीजी


श्री रामसुखदासजी महाराज संत श्रीशरणानन्दजी
महाराज की बातें नहीं मानते थे। वो गीताजी की बातें
मानते थे।

यह बात 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'


की पुस्तक "रहस्यमयी वाताम" (प्रकाशक-गीता
प्रकाशन, गोरखपुर) के पृष्ठ संख्या ३२९ पर क्षलखी हुई
है।

वहााँ श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज स्वयं


कहते हैं क्षक-

शरणानन्दजी की बातोंको मैं इसक्षलये मानता हूाँ क्षक वे


गीताके साथ क्षमलती है, इसक्षलये नहीं मानता क्षक वे
शरणानन्दजी की हैं! उनकी वही बात मेरेको जाँचती है ,
जो गीताके अनस ु ार हो।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४६

(६) प्रश्न- लोग कहर्े है जक वो संर् श्री िरणतनन्दिी


महतरति की र्स्र्कें जनसतन (अण्डर लतइन) लगत-
लगतकर र्ढ़र्े थे और जसरहतने रखकर सोर्े थे आजद
आजद। क्यत यह बतर् सही है?

उत्तर- सही नहीं है, उनको पूरी बात का पता नहीं। क्षनसान
तो वो गीता, रामायण आक्षद दूसरी पुस्तकें पढ़ते समय
भी लगा देते थे। ऐसे इनकी पुस्तकें पढ़ते समय भी लगा
देते थे।

वो इसक्षलये लगा देते थे क्षक पढ़नेवाले की दृक्षष्ट वहााँ


आसानी से चली जाय और थोडे ही समय में पाठक को
वो क्षवशेष बात क्षमल जाय, आसानी से मनन हो जाय।
क्षकसीको क्षदखानी हो तो भी आसानी से क्षदखायी जा
सके और देखी जा सके ।

उनकी प्राय: यह रीक्षत थी क्षक पुस्तक पढ़ते समय जो-


जो क्षवशेष बातें लगती, उनको राँग देते थे (क्षचक्षित कर
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४७

देते थे, अथवा यों कक्षहये क्षक क्षनसान लगा देते थे)। ऐसी
कई पुस्तकें आज भी देखी जा सकती है।

ऐसे श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज िारा
क्षचक्षित की हुई उनकी खुदकी क्षलखी हुई अनेक पुस्तकें
मैंने देखी है। उनके िारा क्षचि लगा-लगाकर पढ़ी हुई
रामायण मैंने देखी है तथा गीताजी भी देखी है।

अब रही बात पुस्तकें क्षसरहाने रखकर सोने की। सो


उनके क्षसरहाने पुस्तकें तो उनके पासमें रहने वाले
(संतलोग) सुक्षवधा के क्षलये रख देते थे क्षक जब चाहें ,
तब (सुगमतापूवमक) क्षसरहाने से उठाकर पढ़ी जा सके ।

(उनके तख्त के क्षसरहाने बैंच या चौकी लगाकर उसपर


आवश्यक सामग्री, पुस्तक आक्षद रख देते थे, क्षजसमें
गीता रामायण आक्षद और अन्य पुस्तकें भी होती थीं)।
इसका अथम यह नहीं है क्षक जैसे कोई (शुरुआती)
क्षवद्याथी क्षवद्या पाने के क्षलये पुस्तक का श्रद्धा पूवमक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४८

अध्ययन करता हो और क्षसरहाने ही रखकर सो जाता हो


क्षजससे क्षक उसको क्षवद्या क्षमले तथा उठते ही उस
अध्ययन में लग जाय आक्षद।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज का भाव


ऐसा नहीं था। उनका भाव तो स्वयं वो ही जानते हैं। दूसरे
तो बेचारे दूर से ही देखकर अन्दाजा लगाते हैं।

उनको तो उनके पास में रहनेवाले भी ठीक से नहीं समझ


पाते थे, क्षफर क्षबना श्रद्धा भक्षि के दूरवाले लोग तो
उनको समझ ही क्या सकते हैं। दूसरे लोग तो जैसी खुद
की समझ होती है, वैसी ही अटकल लगा लेते हैं और
अपनी बुक्षद्ध का पररचय देते हैं।
कई लोग सुनी-सुनाई, झठू ी बातों का भी प्रचार करते
रहते हैं। जैसे, कई लोग क्षबना जाने ही झठू ी बात कह देते
हैं क्षक उनके गले में कैं सर था। परन्तु सच्ची बात यह है
क्षक श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के
उम्र भर में कभी कैं सर नहीं हआ ु था। उनके कभी भी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १४९

और क्षकसी भी अंग में कैं सर नहीं हुआ था। अक्षधक


जानने के क्षलये यह लेख पढ़ें-

क्या गलेमें कैं सर था स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी


महाराजके ? कह, नहीं। उम्र भरमें कभी कैं सर हुआ ही
नहीं था उनके ।
http://dungrdasram.blogspot.in/2016/02/blog-
post_8.html?m=1

ऐसे ही कई लोगों ने उनके शरीर सक्षहत मौजूद रहते हुए


भी शरीर छोड कर चले जाने की झठू ी बात कहदी।
क्षजससे कई लोगों को बडा दुःख हआ ु । ऐसा कई बार हो
चुका है। इस प्रकार न जाने लोग और भी क्षकतनी ही
झठू ी-झठू ी बातें फै लाते रहते हैं।

मेरा भाव यह नहीं है क्षक संत श्री शरणानन्दजी महाराज


का प्रचार न हो। मैं तो चाहता हूाँ क्षक ऐसी कपयाणकारी
बातें सबको क्षमले और इसके क्षलये प्रयास क्षकया जाय;
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५०

परन्तु प्रचार सही ढंग से क्षकया जाय और सही-सही


बातों का क्षकया जाय। अनुक्षचत ढंग से न क्षकया जाय।
जैसे, आजकल कुछ लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज की वाणी की औट में संत श्री
शरणानन्दजी महाराज की वाणी का अनुक्षचत ढंग से
प्रचार करते है क्षक इनकी प्रशंसा तो स्वामी
रामसुखदासजी महाराज भी करते थे। वो इनकी पुस्तकें
क्षनसान लगा-लगा कर पढ़ते थे और क्षसरहाने रख कर
सोते थे आक्षद आक्षद। (उनके क्षलखने का ढंग ऐसा लगता
है क्षक मानो श्री स्वामीजी महाराज इसी कारण इतने
महान् हएु हैं)। यह तरीका गलत है और असत्य है।

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कोई संत


श्री शरणानन्दजी महाराज के कारण इतने महान् नहीं
हएु हैं, वो तो इनसे क्षमलने के पहले से ही महान् थे। इनसे
तो पररचय ही बाद में हुआ था)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५१

इस ढंग से जो प्रचार क्षकया जाता है, वो गलत ढंग से


प्रचार करना है। इसमें एक साधारण आदमी की तरह
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज को सतं
श्री शरणानन्दजी महाराज का 'प्रचार करनेवाले' बता
क्षदया गया है। जबक्षक बात ऐसी नहीं है।

यह तो अपनी बात की मजबूती के क्षलये क्षकया गया


सन्तों का 'अनुक्षचत इस्तेमाल' है। यह उन 'सन्तों की
सज्जनता का दुरुपयोग' है। यह उन सन्तोंका का गौरव
घटाना है। इसमें एक को बडा और एक को छोटा बना
क्षदया गया है। ऐसा नहीं करना चाक्षहये; क्योंक्षक पहच
ुाँ े
हुए सतं सतं सभी बडे ही होते है,
यथा-
पहुचाँ े पहुचाँ े एक मत अनपहुचाँ े मत और।
सतं दास घड़ी अरहट की ढुरै एक ही ठौर।।
नारायण अरु नगर के रज्िब राह अनेक।
भावै आवो नकधर से (ही) आगे अस्थल एक।।
(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज के प्रवचनों से)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५२

तथा (यह लेख भी पढ़ें-)

मैं क्षकसी व्यक्षि या सम्प्रदायका अनुयायी नहीं हूाँ -


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज।

कई लोगों को यह भ्रम है क्षक श्री स्वामी जी महाराज


अमुक सम्प्रदाय के थे, वे अमुक महात्मा की बात मानते
थे, अमुक की पुस्तकें पढ़ते थे, अमुक के अनयु ायी थे,
आक्षद आक्षद।

ऐसे ही कई लोग कह देते हैं क्षक श्रीस्वामीजी महाराज


का अमुक जगह आश्रम है, अमुक जगह उनका स्थान
है आक्षद आक्षद।

ऐसे भ्रम क्षमटाने के क्षलए कृपया श्री स्वामी जी महाराज


की "रहस्यमयी वाताम" नामक पुस्तक का यह अंश पढ़ें-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५३

"रहस्यमयी वाताम" (प्रकाशक- गीता प्रकाशन,


गोरखपुर) नामक पुस्तक के पृष्ठ ३२८ और ३२९ पर
'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज' स्वयं
बताते हैं क्षक –

प्रश्न - स्वतमी िरणतनन्दिीके जसद्धतन्र्से आर्कत क्यत


मर्भेद है?

स्वतमीिी - गहरे क्षसद्धान्तोंमें मेरा कोई मतभेद नहीं है।


वे भी करण क्षनरपेि शैली को मानते हैं, मैं भी।
शरणानन्दजीकी वाणी में युक्षियोंकी, तकम की प्रधानता
हैं। परन्तु मैं शास्त्रक्षवक्षधको साथ में रखते हुए तकम करता
ह।ूाँ उनके और मेरे शब्दोंमें फकम है। वे अवधूत कोक्षटके
महात्मा थे ; अत: उनके आचरण ठोस, आदशम नहीं थे।
उनके और मेरे क्षसद्धान्तमें बडा मतभेद यह है क्षक वे
अपनी प्रणालीके क्षसवाय अन्य का खण्डन करते हैं।
परन्तु मैं सभी प्रणाक्षलयोंका आदर करता ह।ूाँ
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५४

उन्होनें क्षक्रया और पदाथम (पररश्रम और पराश्रय ) - का


सवमथा क्षनषेध क्षकया हैं। परन्तु क्षक्रया और पदाथमका
सम्बन्ध रहते हएु भी तत्त्वप्राक्षप्त हो सकती हैं।

'हम भगवान के अंश हैं' - यह बात शरणानन्दजीकी


बातोंसे तेज है! उनकी पुस्तकोंमें यह बात नहीं आयी!
आश्चयमकी बात है क्षक 'सत्तामात्र' की बात उन्होनें कहीं
नहीं कही! खास बात यह है क्षक हमारा स्वरूप सत्तामात्र
है। उस सत्तामात्रमें ही साधकको क्षनरन्तर रहना चाक्षहये ।

प्रश्न - कई कहर्े हैं जक स्वतमीिी सेठिीकी बतर्ें मतनर्े


हैं, कई कहर्े हैं जक स्वतमीिी िरणतनन्दिी की बतर्ें
मतनर्े हैं, आर्कत इस जवषयमें क्यत कहनत है ?

स्वतमीिी - मैं क्षकसी व्यक्षि या सम्प्रदायका अनयु ायी


नहीं ह,ूाँ प्रत्युत तत्त्वका अनुयायी ह।ूाँ मुझे सेठजीसे क्या
मतलब? शरणानन्दजीसे भी क्या मतलब? मुझे तो
तत्त्वसे मतलब है? सार को लेना है, चाहे कहींसे क्षमले।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५५

शरणानन्दजी की बातोंको मैं इसक्षलये मानता हूाँ क्षक वे


गीताके साथ क्षमलती हैं, इसक्षलये नहीं मानता क्षक वे
शरणानन्दजीकी हैं! उनकी वही बात मेरेको जाँचती है,
जो गीताके अनुसार हो।

मेरेमें क्षकसी व्यक्षिका, सम्प्रदायका अथवा ज्ञान-कमम-


भक्षिका आग्रह नहीं है, पर जीवके कपयाण का आग्रह
है! मैं व्यक्षिपूजा नहीं मानता। क्षसद्धान्तका प्रचार होना
चाक्षहये, व्यक्षिका नहीं। व्यक्षि एकदेशीय होता है, पर
क्षसद्धान्त व्यापक होता है। बात वह होनी चाक्षहये, जो
व्यक्षिवाद और सम्प्रदायवादसे रक्षहत हो और क्षजससे
क्षहदं ू , मुसलमान, ईसाई आक्षद सभी का लाभ हो।

अक्षधक जानकारी के क्षलए यह लेख भी पढ़ें-


श्रीस्वामीजी महाराज की पुस्तक "एक सतं की
वसीयत" (प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर) के पृष्ठ
संख्या १२ पर स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी
महाराज कहते हैं क्षक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५६

...

३. मैंने क्षकसी भी व्यक्षि, संस्था, आश्रम आक्षदसे


व्यक्षिगत सम्बन्ध नहीं जोडा है। यक्षद क्षकसी हेतुसे
सम्बन्ध जोडा भी हो, तो वह तात्काक्षलक था, सदाके
क्षलये नहीं। मैं सदा तत्त्व का अनुयायी रहा हू,ाँ व्यक्षिका
नहीं।

४. मेरा सदासे यह क्षवचार रहा है क्षक लोग मुझमें अथवा


क्षकसी व्यक्षिक्षवशेषमें न लगकर भगवानमें ही लगें।
व्यक्षिपूजाका मैं कडा क्षनषेध करता ह।ूाँ

५. मेरा कोई स्थान, मठ अथवा आश्रम नहीं है। मेरी कोई


गद्दी नहीं है और न ही मैंने क्षकसीको अपना क्षशष्य
प्रचारक अथवा उत्तराक्षधकारी बनाया है। मेरे बाद मेरी
पुस्तकें ...
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५७

☆-:मेरे क्षवचार:-☆ श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज।
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/07/blo
g-post_0.html?m=1

इसक्षलये जो बात जैसी हो, क्षनष्पि भाव से वैसी ही


बतानी चाक्षहये। अच्छी बातों के प्रचार के क्षलये भी
गलत ढंग का सहारा नहीं लेना चाक्षहये । अक्षधक जानने
के क्षलये यह लेख पढ़ें-
कृपया श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
का गौरव कम न करें।
http://dungrdasram.blogspot.in/2016/12/blog-
post.html?m=1

क्षजनको सगु मता पूवमक अपना कपयाण करना हो और


सही जानकारी प्राप्त करनी हो तो उनको श्रद्धेय
स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की ररकोक्षडिंग
वाणी सनु नी चाक्षहये और उनकी पुस्तकें पढ़नी चाक्षहये।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५८

उनकी ररकोक्षडिंग वाणी में और उनकी पुस्तकोंमें सब


ग्रंथों का सार भरा हुआ है तथा इन सब संतों तथा इनकी
पुस्तकों के ज्ञान का सार भी है;

क्योंक्षक श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज


सब ग्रंथों के सार को जानते थे। इन सब सतं ों और ग्रंथों
को भी जानते थे। सतं श्री तुलसीदासजी महाराज,
मीरााँबाई, कबीरदासजी और वेदव्यासजी महाराज को
भी जानते थे। सतं श्री शरणानन्दजी महाराज को भी
जानते थे और भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार तथा
सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका को भी जानते थे।
इन सबकी पुस्तकों को भी वो जानते थे। गीताप्रेस की
पुस्तकों को भी जानते थे। वेदान्त के ग्रथं ों को भी जानते
थे, अनेक शास्त्रोंको, पुराणों को, उपक्षनषदों को, गीता,
रामायण, भागवत, महाभारत आक्षद ग्रथ ं ों को भी जानते
थे तथा और भी अनेक संतों की वाणी को भी आप
जानते थे। शरीर तथा संसार को भी जानते थे और स्वयं
तथा परमात्म-तत्त्व को भी जानते थे। परमात्मा के समग्र
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १५९

रूप (ब्रह्म, अध्यात्म, कमम, अक्षधभूत, अक्षधदैव और


अक्षधयज्ञ रूप सम्पूणम परमात्मा) को जानते थे (गीता
साधक-सज ं ीवनी ७/२९, ३०;८/४)। आजकल के
जमाने को और लोगों को जानते थे। साधकों को और
उनकी बाधाओ ं को जानते थे। उनकी बाधाओ ं को दूर
करने के सरल उपायों को भी जानते थे और बताते भी
थे। और भी पता नहीं क्या क्या जानते थे । परमात्मप्राक्षप्त
के क्षलये अनेक सरल-सरल युक्षियााँ जानते थे और
क्षजससे परमात्माकी प्राक्षप्त हो जाय - ऐसे नये-नये तथा
सरल आक्षवष्कार करना जानते थे और बताना भी
जानते थे। सन्त और सन्तपना भी जानते थे। इसक्षलये
उनकी बातों में और उनकी पुस्तकों में सब सतं ों और
सब ग्रंथों का सार आ गया है तथा वो भी बडी सुगमता
पूवमक समझ में आ जाय - इस रीक्षत से सरलता पूवमक
समझाया गया है।

श्रीमद्भगवद्गीता को तो ऐसी सरल करके गीता साधक-


सज ं ीवनी के रूप में समझा क्षदया क्षक साधारण पढ़ा
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६०

हआ ु आदमी भी गीता साधक-संजीवनी को पढ़कर


गीता का क्षविान बन सकता है, परमात्मतत्त्व को जान
सकता है और प्राप्त कर सकता है। ऐसे ही गीता-दपमण
ग्रंथ है जो क्षक गीता साधक-संजीवनी की ही भूक्षमका
है। ऐसे उनके और भी अनेक ग्रंथ है। इस प्रकार ध्यान
देने पर कुछ समझ में आता है क्षक वो क्षकतने महान् थे।

(७) प्रश्न- वो कभी-कभी संर् श्री िरणतनन्दिी महतरति


की प्रिंसत कर देर्े थे जिससे लगर्त है जक वो सर्ं श्री
िरणतनन्दिी महतरति के अनयतयी थे?

उत्तर- नहीं, अनयु ायी नहीं थे। वो प्रशंसा तो सतं श्री


तुलसीदासजी महाराज की भी कर देते थे, मीरााँबाई की
भी कर देते थे। कबीरदासजी महाराज, वेदव्यास जी
महाराज, सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका की भी
प्रशंसा कर देते थे। गीता, रामायण, भागवत, गीता
तत्त्वक्षववेचनी, गीता साधक-सज ं ीवनी की भी प्रशंसा
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६१

कर देते थे। गीता-दपमण, गीता-माधुयम और


कपयाणकारी प्रवचन आक्षद अपनी पुस्तकों की भी
प्रशंसा कर देते थे। ऐसे ही क्षकसी और की भी प्रशंसा
कर देते थे। इसका अथम यह नहीं है क्षक वो इनके
अनुयायी हो गये।

ऐसे तो कभी-कभी संत श्री शरणानन्दजी महाराज भी


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की
प्रशंसा कर देते थे। इससे यह थोडे ही कहा जायेगा क्षक
संत श्री शरणानन्दजी महाराज श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज के अनुयायी थे।

ऐसे ही कभी-कभी वो संत श्री शरणानन्दजी महाराज


की भी प्रशंसा कर देते थे, उनकी बुक्षद्ध की और उनकी
पुस्तकों की भी प्रशंसा कर देते थे, पढ़ने के क्षलये कह
देते थे। इससे कोई वो इनके अनुयायी थोडे ही हो गये।
नहीं हएु ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६२

यह सब उनकी महानता है क्षक जो अपनी बात को महत्त्व


न देकर दूसरों की बात को आदर देते हैं, अपनी पुस्तक
को पढ़ने के क्षलये न कहकर दूसरों की पुस्तक को पढ़ने
के क्षलये कहते हैं।

वो अपनी बात की प्रशंसा करना शमम की बात मानते


थे। क्षफर भी लोगों के क्षहत के क्षलये वो पुस्तकों आक्षद
की प्रशंसा कर देते थे। यह उनका त्याग था, महानता
थी, संतपना था। संतों का तो यह स्वभाव ही होता है
क्षक मान दूसरों को देते हैं, आप नहीं रखते हैं ।

यथा -
सबनह मानप्रद आपु अमानी ।
भरत प्रान सम मम ते प्रानी ।।
(रामचररतमा.७।३८)।

ऐसे संतों को बारम्बार प्रणाम।


बारम्बार प्रणाम।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६३

अक्षधक जानने के क्षलये उनके ग्रंथ पढ़ें और उनके


प्रवचनोंकी ररकोक्षडिंग की हुई वाणी सुनें।

राम राम राम राम राम राम राम।


राम राम राम राम राम राम राम।।
=======================

(११)-अर्नी फोटोकत जनषेध क्यों है?


(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख
ु दासिी महाराि अपनी
फोटोका ननषेध करते थे)।

आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसखु दासजी महाराज के क्षचत्र (चुपचाप) एक-
दूसरेको देने लग गये हैं। ऐसा करना लाभदायक नहीं है।

कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजके नामसे एक क्षचत्रको एक-दूसरेके मोबाइल
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६४

आक्षद पर भेजने लग गये हैं। इसमें वो चश्मा लगाये हुए,


दाक्षहने हाथके िारा पीछे सहारा क्षलये हुए और अपने एक
(दाक्षहने) पैर पर दूसरा (बायााँ) पैर रखे हएु तथा घुटनेपर
बायााँ हाथ धरे हुए क्षदखायी दे रहे हैं। उस क्षचत्रके नीचे
क्षकसीने नाम क्षलख क्षदया क्षक ये 'रामसुखदास जी
महाराज' हैं। लेक्षकन यह अनक्षु चत है। (वो अपने क्षचत्र के
क्षलये मना करते थे। ऐसे ही सेठजी श्री जयदयालजी
गोयन्दका भी अपने क्षचत्र-प्रचार के क्षलये मना करते थे)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं


क्षक महापुरुषोंके कहनेके अनुसार जो नहीं करता है, तो
(आज्ञा न माननेसे) वो उस लाभसे वक्षचचत रहता
है(दण्डका भागी नहीं होता) परन्तु क्षजसके क्षलये
महापुरुषोंने क्षनषेध क्षकया है, उस आज्ञाको कोई नहीं
मानता है तो उसको दण्ड होता है। (ज्यादा समझनेके
क्षलये 'एक संतकी वसीयत' नामक पुस्तक पढ़ें और
पढ़ावें)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६५

कई लोगोंके मनमें रहती है क्षक हमने श्री स्वामीजी


महाराजके दशमन नहीं क्षकये। अब अगर उनका क्षचत्र भी
क्षमल जाय तो दशमन करलें। ऐसे लोगोंके क्षलये तो
सत्संक्षगयोंके भी मनमें आ जाती है क्षक इनको क्षचत्रके
ही दशमन करवादें। इनकी बडी लगन है।लेक्षकन यह
उक्षचत नहीं है। अगर उक्षचत और आवश्यक होता तो श्री
स्वामीजी महाराज ऐसे लोगोंके क्षलये व्यवस्था कर देते।
लोगोंका आग्रह होने पर भी श्री महाराजजीने क्षचत्र-
दशमनके क्षलये व्यवस्था करना और करवाना तो दूरकी
बात है, उन्होने ऐसी व्यवस्था करनेवालोंको भी मना
कर क्षदया।।

महापुरुषोंके क्षसद्धान्तके अनुसार यह क्षचत्र-दशमन


करवाना भी उक्षचत नहीं है; क्योंक्षक अगर ऐसा उक्षचत
या आवश्यक होता तो श्री महाराजजी कमसे कम एक-
दो जनोंके क्षलये तो यह सुक्षवधा कर ही सकते थे। क्या
उस समय ऐसे भावुकों की यह चाहना नहीं थी?
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६६

हमने तो सुना है क्षक जोधपुरमें क्षकसी ने श्री


महाराजजीकी फोटुएाँ बनवा कर कई लोगोंको दे दी।
तब श्री महाराजजीने लोगोंसे वो फोटुएाँ वापस माँगवायी
और लोगोंने वो फोटुएाँ वापस लाकर दीं। कहते हैं क्षक
काफी फोटू वापस इकठ्टे हो गये थे। क्षफर उनको
जलाया गया।

इसका वणमन 'क्षवलिण सतं -क्षवलिण वाणी' नामक


पुस्तकमें भी है। इसमें महाराजजी िारा अपनी फोटो-
प्रचारके क्षखलाफ क्षलखाये गये पत्र भी क्षदये हैं और क्यों
महाराजजी वन्ृ दावनसे जोधपुर पधारे तथा लोगोंको
क्या-क्या कहा-इसका भी वणमन है।

BOOK- क्षवलिण संत-क्षवलिण वाणी - स्वामी


रामसखु दास जी - Google समूह -
https://groups.google.com/forum/m/#!msg/gi
tapress-literature/A7HF0iky-
QU/YdG9gooWVpwJ
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६७

यह जो पता (BOOK- क्षवलिण संत-क्षवलिण वाणी


- स्वामी रामसुखदास जी…) क्षदया गया है, इस
पुस्तकमें 'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी
महाराज' का जोधपुरमें क्षकये गये 'क्षचत्र-प्रचारका दुःख'
भी बताया गया है। उसमें यह भी बताया गया है क्षक
क्षचत्र प्रचार नरकोंमें जाने का रास्ता है। श्री महाराजजीने
अपनी वसीयतमें भी क्षचत्रका क्षनषेध क्षकया है।

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजसे क्षकसीने पूछा क्षक लोगोंको आप अपना
फोटो क्यों नहीं देते हैं? कई सतं तो अपनी फोटो
भिोंको देते हैं। (और वो भि दशमन, पूजन आक्षदके
िारा लाभ उठाते हैं)। आप भी अगर अपनी फोटो
लोगोंको दें, तो लोगोंको लाभ हो जाय।

तब श्री महाराजजी बोले क्षक हमलोग अगर अपनी


फोटो देने लग जायेंगे तो भगवानकी फोटो बन्द हो
जायेगी। (यह काम भगवक्षिरोधी है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६८

एक बार क्षकसीने श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजको उनके बचपनकी फोटो क्षदखायी, क्षजसमें
श्री महाराजजी अपने गरुु श्री १००८ कन्नीरामजी
महाराजके पास हाथ जोडे खडे हैं। उस क्षचत्रको देखकर
महाराजजीने क्षनषेध नहीं क्षकया क्षक इस फोटोको मत
रहने दो या लोगोंको मत क्षदखाओ आक्षद। इस घटनासे
कई लोग उस क्षचत्रके क्षचत्रको अपने पासमें रखने लग
गये और दूसरोंको भी देने लग गये क्षक इस क्षचत्रके क्षलये
श्री महाराजजीकी मनाही नहीं है। उस क्षचत्रके क्षलये
शायद श्री महाराजजीने इसक्षलये मना नहीं क्षकया क्षक
साथमें श्री गुरुजी हैं। इस क्षचत्रके क्षलये श्री महाराजजीने
न तो हााँ कहा और न ना कहा। इसक्षलये इस क्षचत्रका
दशमन कोई क्षकसीको करवाता है अथवा कोई करने को
कहता है तो घाटे -नफे की क्षजम्मेदारी स्वयं उन्ही पर है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १६९

(१२)-क्यत जियतके द्वतरत भगवत्प्रतजि नहीं होर्ी?


(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख
ु दासिी महाराि)।

कई जने श्री महाराजजीका सत्संग ध्यानसे नहीं सुनते हैं


और ठीकसे क्षवचार भी नहीं करते हैं।

इसक्षलये अधूरी बात पकड कर कहने लग जाते हैं क्षक


श्री स्वामीजी महाराज तो पाठ, पूजा, जप, ध्यान, दान,
पुण्य आक्षदके क्षलये मना करते है; क्योंक्षक क्षक्रयाओसं े
भगवत्प्राक्षप्त नहीं होती।

क्षक्रया तो जड है, जड-शरीरकी सहायतासे होती है और


भगवान् चेतन है। जडके िारा चेतनकी प्राक्षप्त कै से हो
सकती है। जड कमोंके िारा चेतन परमात्माकी प्राक्षप्त
नहीं हो सकती, आक्षद आक्षद।।

तो क्या क्षक्रयाके िारा भगवत्प्राक्षप्त नहीं होती? क्या


कमोंसे भगवान् नहीं क्षमलते?
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७०

इस बातको समझनेके क्षलये श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराजका यह (क्षदनांक
19940512/1630 बजेका) प्रवचन सनु ें-)

(क्षकसी के िारा ऐसा प्रश्न पूछे जाने पर श्रद्धेय स्वामीजी


श्री रामसुखदासजी महाराज बोले-)

स्वतमीिी - नहीं, मैं यह नहीं कहता ह।ूाँ जप, ध्यान,
कीतमन, सत्संग, स्वाध्याय- (ये) भगवानको लेकर क्षकये
जायाँ, उसको मैं कमम और क्षक्रया नहीं कहता ह।ूाँ उसको
उपासना(भक्षि) कहता ह।ूाँ

संसारके दान, पुण्य, तीथम, व्रत आक्षद- इनको तो मैं


क्षक्रया कहता हूाँ और भगवानको लेकरके जो जप-ध्यान
आक्षद क्षकया जाता हैं, वो कमम नहीं है, वो उपासना है।
उससे परमात्माकी प्राक्षप्त होती है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७१

क्षक्रयाओसं े भी (भगवत्प्राक्षप्त) होती है, क्षनष्काम भाव हो


और उद्देश्य परमात्मप्राक्षप्त हो, तो मात्र क्षक्रया
परमात्मप्राक्षप्तकी कारण हो जायेगी।

भोजन करना भी भगवानकी प्राक्षप्तका कारण, झाडू देना


भी भगवत्प्राक्षप्तका कारण, चरखा चलाना भी
भगवत्प्राक्षप्तका कारण…

…क्षक्रयाओसं े (भगवत्प्राक्षप्त) नहीं होती है, भावसे होती


है। क्षक्रयाओक
ं े िारा भगवानको पकडले - यह बात नहीं
है…भतवग्रतही िनतदान।

…क्षनरथमक काम क्षकया जाय, फूस, कचरा बुहार कर


फें का जाय क्षक इस कममसे भगवान् राजी हों, तो भक्षि
हो गई वो। क्षनकम्मा काम क्षबपकुल ही।…

भगवानका जहााँ उद्देश्य हो जाता है, वो [क्षक्रया] कमम


नहीं रहता है, अक्षग्नमें रखी हईु चीज सब(सब चीजें)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७२

चमकने लगती है। चाहे वो लोहा हो और चाहे पत्थर हो


और चाहे ठीकरी हो और चाहे कोयला हो - सब
चमकने लग जाता हैं। ऐसे भगवानके अपमण करनेसे
सबके -सब कमम, कमम नहीं रहते हैं। वो सब चमकने लग
जाते हैं।

इस वास्ते ऐसा मेरा [भाव] नहीं है क्षक जप, ध्यान [आक्षद


क्षक्रया] करनेसे भगवत्प्राक्षप्त नहीं होती। प्रेमसे होती है,
क्षनष्काम भावसे होती है। सस ं ारकी कामना न हो और
भगवानमें प्रेम हो, तो कुछ भी करो काम, गाळी दो भले
ही भगवानको(अपनापनसे)। भगवान् क्षमल जायेंगे
अपनापनसे।…

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसखु दासजी महाराज िारा


क्षदये गये (क्षदनांक 19940512/1630 बजेके) प्रवचनके
कुछ अंश। अक्षधक जाननेके क्षलये यह(ऊपर क्षदया गया)
प्रवचन सनु ें, या उसका यह अंश सनु ें।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७३

(१३)- १. सवू त-सूर्कमें भगवतनकी र्ूित करें अथवत


नहीं? कह, करें।
{श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख ु दासिी महारािने बताया है
नक करें (नबना प्राण-प्रनतष्ठावाली मनू तशकी करें )}।

(एक सज्जनने क्षलखा है क्षक-)


प्रश्न - जन्मके आशौच या मरणके आशौच में भोजन
करने से पहले भगवान् के अपमण करें अथवा नहीं?

उत्तर- (अपने भगवानके अपमण करें।)


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराजने बताया
है क्षक भगवानकी क्षजस मूक्षतमकी प्राण-प्रक्षतष्ठा करवाई
गई है, (वो मूक्षतम प्राणधारी है, इसक्षलये) उस मूक्षतमकी तो
जैसे एक प्राणधारी मनष्ु यकी सेवा होती है, वैसे ही
भगवानकी उस मूक्षतमकी भी सेवा होनी चाक्षहये (उनके
भोजन, वस्त्र, ठण्डी, गमी, आराम आक्षदका ध्यान रखना
चाक्षहये)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७४

सूवा-सूतकमें भगवानकी उस मूक्षतमकी सेवा-पूजा तो


ब्राह्मण आक्षदसे करवावें; अथवा ब्याही हईु कन्या हो
तो उससे करवावें; परन्तु क्षजस मूक्षतमकी प्राण-प्रक्षतष्ठा
नहीं करवाई गई है, वे ठाकुरजी तो अपने घरके
सदस्यकी तरह ही हैं।

उन अपने भगवानके सूवा-सूतक हमारे साथमें ही लगते


हैं और हमारे साथमें ही उतरते हैं।

(इसक्षलये सूवा-सूतकमें भी भगवानकी पूजा-अचमना न


छोडें, जैसे हम स्नान, भोजन आक्षद सूवा-सूतकमें भी
नहीं छोडते; करते हैं; ऐसे ही भगवानके भी करने
चाक्षहये)।

भगवान् का नाम हर अवस्था में लेना चाक्षहये।


भगवानके नाम के क्षलये क्षकसी भी अवस्थामें मना नहीं
है, चाहे कोई शुद्ध अवस्थामें हो या अशुद्ध अवस्थामें
हो, भगवानका नाम हर अवस्थामें क्षलया जा सकता है
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७५

और लेना चाक्षहये। भगवानके नाम लेनेमें कोई मनाही


नहीं है।

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज


बताते हैं क्षक अगर यह धारणा बनाली क्षक अशुद्ध
अवस्थामें भगवानका नाम नहीं लेना है , तो गजब हो
जायेगा; क्योंक्षक मरनेवाले प्राय: अशुद्ध अवस्थामें ही
मरते हैं और उस समय अगर यह धारणा रही क्षक अशुद्ध
अवस्थामें भगवानका नाम नहीं लेना है और वो
भगवानका नाम नहीं लेगा तो मुक्षिसे वंक्षचत रह
जायेगा, मुक्षि नहीं होगी। इसक्षलये भगवानके नाममें यह
धारणा न बनायें।

चाहे कोई शुद्ध हो या अशुद्ध हो, भगवानका नाम हर


अवस्थामें क्षलया जा सकता है और लेना चाक्षहये। सूवा-
सूतकमें भी भगवानका नाम लेना चाक्षहये, छोडना नहीं
चाक्षहये।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७६

(१४)-सहतजगन स्त्री को एकतदिी व्रर् करनत चतजहये यत


नहीं? कह, करनत चतजहये ।

एक बहन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराजके क्षदनांक 13-12-1995/0830 बजेका सत्संग
पढ़कर पूछतीं है क्षक क्या स्त्रीको व्रत नहीं करना चाक्षहए?

उसके उत्तरमें क्षनवेदन इस प्रकार है –


शास्त्रका कहना है क्षक

पत्यौ िीवनत या तु स्त्री उपवासं व्रतं चरे त् ।


आयष्ु यं हरते भतशनु शरकं चैव गच्छनत ।।
(अथम-)
जो स्त्री पक्षत के जीक्षवत रहते उपवास- व्रत का आचरण
करती है वह पक्षत की आयु िीण करती है और अन्त में
नरक में पडती है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७७

(गीताप्रेस के संस्थापक - श्रद्धेय सेठजी श्री


जयदयालजी गोयन्दका िारा क्षलक्षखत तत्त्व
क्षचन्तामक्षण, भाग 3, नारीधमम, पृष्ठ 291 से)।

पत्यौ निवनत या योनषदपु वासव्रतं चरे त् ।


आयःु सा हरते भतनशु शरकं चैव गच्छनत ॥
नवष्णस्ु मनृ त 25 ।

(इस भाव के वचन पाराशर स्मृक्षत 4/17; अक्षत्र सक्षं हता


136; क्षशवपुराण, रुर.पावमती. 54/29, 44; और
स्कन्दपुराण ब्रह्म. धमाम. 7/37; काशी उ. 82/139; में
भी आये हैं। "क्या करें क्या न करें " नामक पुस्तक से)।

इस शास्त्र वचनकी बात सनु कर जब कोई बहन पूछती


थीं तो श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
बताते थे क्षक सुहागके व्रत (करवा चौथ आक्षद) कर
सकती हैं (इसके क्षलये मनाही नहीं है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७८

कोई पूछतीं क्षक एकादशी व्रत भी नहीं करना चाक्षहए


क्या? तब उत्तर देते थे क्षक एकादशी (आक्षद) व्रत करना
हो तो पक्षतसे आज्ञा लेकर कर सकती है।

कछ और उर्योगी बतर्ें ये हैं-

प्याज और लहसनु का तो कई जने सेवन नहीं करते, पर


कई लोग गाजरका भिण कर लेते हैं।

लेक्षकन यह भी ठीक नहीं है; क्योंक्षक 'सेठजी श्री


जयदयालजी गोयन्दका' क्षबना एकादशी के भी गाजर
खाने का क्षनषेध करते थे।

श्री सेठजी एकादशीके क्षदन साबूदाना खानेका भी


क्षनषेध करते थे क्षक इसमें चावलका अंश क्षमलाया हुआ
होता है। (आजकल साबूदाने भी नकली आने लग
गये)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १७९

एकादशी के क्षदन चावल खाना वक्षजमत है; क्योंक्षक


ब्रह्महत्या आक्षद बडे-बडे पाप एकादशी के क्षदन चावलों
में क्षनवास करते हैं, चावलों में रहते हैं । ऐसा ब्रह्मवैवतम
पुराण में क्षलखा है।

जो एकादशी के क्षदन व्रत नहीं रखते, अन्न खाते हैं, उनके


क्षलये भी एकादशी के क्षदन चावल खाना वक्षजमत है।

स्मक्षृ त आक्षद ग्रंथों को मुख्य मानने वाले स्मातम एकादशी


व्रत करते हैं और भगवानको, (तथा वैष्णवों, सन्तों-
भिों को) मुख्य मानने वाले वैष्णव एकादशी व्रत करते
हैं ।

एकादशी चाहे वैष्णव हो अथवा स्मातम हो; चावल


खाने का क्षनषेध दोनों में है।

परम श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज वैष्णव
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८०

एकादशी व्रत, वैष्णव जन्माष्टमी व्रत आक्षद ही करते थे


और मानते थे ।

एकादशी आक्षद व्रतोंके माननेमें दो धमम है-


एक वैक्षदक धमम और एक वैष्णव धमम। (एक एकादशी
स्मातोंकी होती है और एक एकादशी वैष्णवोंकी होती
है।)

स्मातम वे होते हैं जो वेद और स्मृक्षतयोंको खास मानते हैं,


वे भगवानको खास नहीं मानते। वेदोंमें , स्मक्षृ तयोंमें
भगवानका नाम आता है इसक्षलये वे भगवानको मानते
हैं (परन्तु खास वेदोंको मानते हैं) और वैष्णव वे होते हैं
जो भगवानको खास मानते हैं, वे वेदोंको, पुराणोंको
इतना खास नहीं मानते क्षजतना भगवानको खास मानते
हैं।
(वैष्णव और स्मातमका रहस्य परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसख ु दासजी महाराज ने 19990809/1630 बजे
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८१

वाले प्रवचन में भी बताया है । कृपया वो प्रवचन इस


पते पर जाकर सुनें - पता:- goo.gl/eeqKqL)

वेदमत, पुराणमत आक्षदके समान एक संत मत भी है,


(क्षजसको वेदोंसे भी बढ़कर माना गया है)।
...
चहुाँ िगु तीनन काल नतहुाँ लोका ।
भए नाम िनप िीव नबसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू ।
सकल सक ु ृ त फल राम सनेहू ॥
(रामचररतमा.1/27)।
...
एकादशीको हपदीका प्रयोग नहीं करना चाक्षहये;
क्योंक्षक हपदीकी क्षगनती अन्नमें आयी है (हपदीको
अन्न माना गया है)।

सााँभरके नमक का प्रयोग भी एकादशी आक्षद व्रतोमें


नहीं करना चाक्षहये; क्योंक्षक सााँभर झील (क्षजसमें नमक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८२

बनता है, उस) में कोई जानवर क्षगर जाता है, मर जाता है
तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसक्षलये
यह नमक अशुद्ध माना गया है)।

सैंधा नमक काममें लेना ठीक रहता है। सैंधा नमक


पत्थरसे बनता है, इसक्षलये अशुद्ध नहीं माना गया।

एकादशीके अलावा भी फूलगोभी नहीं खानी चाक्षहये।


फूलगोभी में जन्तु बहुत होते हैं। [बैंगन भी नहीं खाने
चाक्षहये। शास्त्र का कहना है क्षक जो बैंगन खाता है,
भगवान उससे दूर रहते हैं]। उडद और मसूरकी दाळ भी
वक्षजमत है।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' बताते


हैं क्षक नमक जल है (नमक को जल माना गया है और
जल के छूत लगती है)। क्षजस वस्तु में नमक और जल
का प्रयोग हुआ हो, ऐसी कोई भी वस्तु बाजार से न लें;
क्योंक्षक इनके छूत लगती है। (अस्पृश्यके स्पशम हो गया
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८३

तो स्पशम दोष लगता है। इसके अलावा पता नहीं क्षक वो


क्षकस घरका बना हुआ है और क्षकसने, कै से बनाया है)।

हींग भी काममें न लें; क्योंक्षक वो चमडेमें डपट करके ,


बन्द करके रखी जाती है, नहीं तो उसकी सुगन्धी चली
जाय अथवा कम हो जाय। हींगकी जगह हींगडा काममें
लाया जा सकता है।

सोने चााँदी के वकम लगी हुई क्षमठाई नहीं खानी चाक्षहये;


क्योंक्षक ये (गाय या) बैलकी आाँतमें रखकर बनाये जाते
हैं। बैलकी आाँतमें छोटासा सोने या चााँदीका टुकडा
रखकर, उसको हथौडेसे पीट-पीटकर फै लाया जाता है
और इस प्रकार ये सोने तथा चााँदीके वकम बनते हैं।
इसक्षलये न तो वकम लगी हुई क्षमठाई काम में लावें, न
खावें और न क्षमठाईके वकम लगावें।

इसके क्षसवाय अपना कपयाण चाहने वालों को (क्षबना


एकादशी के भी) मांस, मक्षदरा तथा और भी अभक्ष्य
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८४

खान-पान आक्षद नहीं करने चाक्षहये, इनसे बचना चाक्षहये


और लोगों को भी ये बातें बताकर बचाना चाक्षहये ।

लाखकी चूक्षडयााँ काममें न लावें; क्योंक्षक लाखमें


लाखों (अनक्षगनत) जीवोंकी हत्या होती है।

मक्षदरामें भी असंख्य जीवोंकी हत्या होती है। मक्षदरा


बनाते समय पहले उसमें सडन पैदा की जाती है, जो
असंख्य जीवोंका समुदाय होता है। क्षफर उसको भभके
से गमम करके उसका अकम (रस) क्षनकाला जाता है।
उसको मक्षदरा कहते हैं। इसकी क्षगनती चार महापापों
(ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवणम या रत्नोंकी चोरी और
गुरुपक्षत्नगमन) में आयी है। तीन वषम तक कोई
महापापीके साथमें रह जाय, तो (पाप न करने पर भी)
उसको भी वही दण्ड होता है जो महापापीको होता है।
क्षजस घर में एक स्त्री के भी अगर गभमपात करवाया हुआ
हो तो उस घर का अन्न खाने योग्य नहीं होता (और उस
घर का जल भी पीने योग्य नहीं होता)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८५

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज उस घर


का अन्न नहीं खाते थे (उस घर की क्षभिा का अन्न लेना
छोड क्षदया था)। गभमपात ब्रह्महत्या से भी दूना पाप है।

अक्षधक जानने के क्षलये श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज की पुस्तक - "महापाप से
बचो" पढ़ें।

गभार्तर् कत प्रतयजित्त-

अगर कोई गभमपात का पाप क्षमटाना चाहें तो श्रद्धेय


स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराज ने यह उपाय
(प्रायक्षश्चत्त) बताया है -

बारह महीनों तक रोजाना (प्रक्षतक्षदन) भगवान् के सवा


लाख नाम का जप करें। (ये जप क्षबना नागा क्षकये
रोजाना करने चाक्षहये। षोडस मन्त्र या चतुदमश मन्त्र से
जप जपदी और सगु मतापूवमक हो सकते हैं)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८६

(१५)- कछ आवश्यक और उर्योगी बतर्ें।

महान भजन क्या है?


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराज बताते हैं
क्षक- क्षकसी को क्षकंक्षचन्मात्र भी कष्ट न हो- यह भाव
महान भजन है।

ऐसे व्यक्षि के तो मुख देखने से ही पाप झड जाते हैं,


क्षमट जाते हैं (देखने वाले के )-

तन कर मन कर बचन कर देत न काहुनह दःु क्ख।


तल
ु सी पातक झरत है देखत उसके मक्ु ख।।

भलाई करने वाला चाहे संसार की क्षकतनी ही बडी सेवा


करदे, भलाई करदे; वो सीक्षमत ही होगी; परन्तु बुराई
छोड देने पर, बुराई रक्षहत हो जाने पर दुक्षनयााँ की असीम
सेवा होगी। बुराई रक्षहत होना इतनी बडी सेवा है क्षक
क्षजसका कोई पारावार नहीं। यह दुक्षनयााँ की सबसे बडी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८७

सेवा है, अपार सेवा है। बुराई रक्षहत होने वाले का


कपयाण हो ही जायेगा। परमात्मा की प्राक्षप्त हो जायेगी।

बुराई रक्षहत होने के क्षलए श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसुखदासजी महाराज ने मुख्य तीन उपाय बताये हैं-

१.(बुक्षद्ध के िारा) क्षकसी को बुरा न समझना।


२.(मन के िारा) क्षकसी का बुरा न चाहना और
३.(शरीर के िारा) क्षकसीका बुरा न करना। इनके
अलावा कानों के िारा बुरा न सुनना, आाँखों के िारा
बुरा न देखना और मुख के िारा बुरा न कहना। क्षकसी
को भी बुरा न समझना। न दूसरों को (बुरा समझना)
और न अपने को बुरा समझना। ये भी बुराई रक्षहत होने
में सहायक हैं।

सब िग ईश्वर रूप है भलो बरु ो ननहं कोय।


िाकी िैसी भावना तैसो ही फल होय।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८८

हमेशा यह सावधानी रखनी चाक्षहये क्षक हमारे िारा


क्षकसी को कष्ट तो नहीं हो रहा है। हमेशा दूसरों का दुःख
दूर करने की मन में रहनी चाक्षहये, कोक्षशश रहनी
चाक्षहये। हम कुछ सावधाक्षनयााँ रखें तो दुक्षनयााँ की बडी
भारी सेवा हो जाय और हम अनेक बुराईयों से बच
जायाँ।

जैसे –
कूडे-कचरे के आग न लगावें; क्योंक्षक इसके साथ में
अनेक जीव-जन्तु क्षजन्दे ही जल जाते हैं। क्षकसीने आग
लगा भी दी हो तो उसे बुझादें।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज इसका
बडे जोर से क्षनषेध करते थे और इसको बडा भारी पाप
मानते थे। कहीं कचरे के आग लगी देखते तो संतों को
कहकर वो आग बुझवाते थे।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८९

चूपहा या गैस आक्षद जलाने से पहले उसको झाडलें।


अचानक जला देने से वहााँ के जीव जन्तु जल जाते हैं।

राक्षत्र में जहााँ रोशनी (प्रकाश) को देखकर जीव जन्तु,


पक्षतंगे आक्षद आते हों तो वो रोशनी (लाइट) न जलाएाँ।
जलाना जरूरी हो जाय तो (जीव जन्तुओ ं की रिा करते
हुए) जपदी ही वापस बन्द कर देवें।

सांप, क्षबच्छू, क्षछपकली, खटमल, जूाँ, मच्छर आक्षद


जीवों को मारें नहीं। ये घर में आ जायाँ तो इनको
सावधानी पूवमक पकड कर बाहर छोडदें।

मच्छरों को 'धुआाँ करना' 'उडा कर बाहर ले जाना'


आक्षद उपायों के िारा सुरक्षित बाहर क्षनकाल दें, मारें
नहीं। जब कमरे में से मच्छरों को बाहर क्षनकालने के
क्षलए धुआाँ क्षकया जाय तो एक दरवाजा या क्षखडकी
खोलदें, क्षजससे वो मच्छर बाहर जा सके । भीतर ही दम
घुटकर मर न जाय। क्षबना धुएाँ के भी अगर मच्छर जाली
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९०

वाली क्षखडकी में अटक रहेे़ हों, बाहर नहीं जा पा रहे हों
तो क्षखडकी को खोल कर उनको बाहर करदें और
क्षखडकी को वापस बन्द करलें।

मकडी, क्षतलचट्टा, चींटी, दीमक (उदाई), घुन, इपली,


चूहे आक्षद जीवों को मारें नहीं।

घर में पहले से ही साफ-सफाई आक्षद सावधानी रखें क्षक


क्षजससे घर में ऐसे जीव जन्तु पैदा ही न हों। ज़हरीले
पाउडर आक्षद का प्रयोग करके जीव जन्तुओ ं को मारें
नहीं। खेती में भी जहर क्षछडक कर जीवों को मारें नहीं।
यह तो इतना बडा भारी पाप है क्षक कह नहीं सकते।

घरकी साफ-सफाई आक्षद करते समय पहले ही ध्यान


से देखलें क्षक यहााँ चींटी आक्षद कोई बहुत छोटे -छोटे
जीव जन्तु तो नहीं है? अगर चींटी आक्षद जानवर हो तो
पहले कोमल फूलझाडू आक्षद से धीरे-धीरे उनको वहााँ
से दूर करदें और उनके वापस आने से पहले ही भीगे
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९१

कपडे आक्षद से सफाई करलें। ध्यान रखें क्षक पोछा


लगाते समय जीव जन्तु साथ में ही न मसल क्षदये जायाँ।

आसन आक्षद क्षबछाते समय, क्षबछाने से पहले उस जगह


को झाडकर क्षबछावें क्षजससे क्षक कोई जीव जन्तु उसके
नीचे दबकर न मर जाय। शौचाचार और सदाचार का
सदा पालन करें।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज बताते हैं
क्षक कम-से-कम अन्न और जल के तो हाथ धोकर (ही)
लगावें। क्षबना धोये अन्न और जल के हाथ न लगावें।

अन्न और जल को व्यथम बबामद न होने दें। जो अन्न को


व्यथम बबामद करता है तो उसको क्षबना अन्न के भूखों
मरना पडेगा। जो जल को बबामद करता है, टूाँटी खोलदी
और जल एसे ही क्षगर रहा है; तो अगाडी उसको क्षबना
जल के प्यासे मरना पडेगा। उसको अगाडी जल नहीं
क्षमलेगा।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९२

इसी प्रकार दूसरी बातों (समय, अच्छा नौकर, सज्जन


माक्षलक, सन्तान, मनुष्य शरीर, संत- महात्मा और सन्त
महात्माओ ं से लाभ, सत्सगं आक्षद के क्षवषय) में भी
समझ लेना चाक्षहये ।

जल में बहुत सक्ष्ू म जीव होते हैं, आाँखों से दीखाई नहीं


देते। इसक्षलए पानी को हमेशा गाढ़े दुपट (डब्बल) कपडे
से छानकर काम में लें। जल छानने के बाद में युक्षि से
जीवाणूाँ करें, उस कपडे पर अटके जीवों को बहते हुए
पानी में या पयामप्त स्थायी पानी में छोडें अथामत् उस
कपडे के क्षजस तरफ जीव अटके हुए हैं, लगे हुए हैं,
उसके ऊपर वाले दोनों क्षकनारों पर, एक (पहले) छोर से
शुरू करके दूसरे छोर तक और दूसरे छोर से शुरू करके
वापस पहले छोर तक, इस प्रकार सावधानी से छने हुए
जल की धारा क्षगरावें क्षक क्षजससे वो अटके हएु सभी
सूक्ष्म जीव वापस पानी में चले जायाँ। (इस काम को
'जीवाणूाँ करना' कहा जाता है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९३

अगर इस प्रकार अगर जीवाणूाँ नहीं की गई अथामत् उन


अटके हुए सूक्ष्म जीवों को छना हुआ जल डालकर
वापस पानी में नहीं छोडा गया तो वो जीव (शीघ्र ही)
मर जायेंगे। इसक्षलए जल छानने के बाद में सदा उन
जीवों के बचाव का उपाय जरूर करें। हमे शा छना हुआ
जल ही काम में लावें।

श्री स्वामीजी महाराज बताते हैं क्षक-

िल में झीणा िीव लखे ननहं कोय रे ।


अणछाडयो िल नपयै पाप बहु होय रे ।।
गाढ़ो पट करर दपु ट छाणकर पीनिये।
िीवाणाँू िल मााँय िगु त से कीनिये।।

छ: घंटे के बाद छने हुए जल में भी वापस जीव पैदा हो


जाते हैं, इसक्षलये उसको दुबारा छानना चाक्षहये।
चातुमामस में तो चार घंटे के बाद में ही उसमें जीव पैदा
हो जाते हैं। इसक्षलये उस पानी को दुबारा छानना चाक्षहये
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९४

और अन्य समय में छः घंटे के बाद में दुबारा छानना


चाक्षहये। इसमें दो घंटे की छूट ली जा सकती है अथामत
चार घंटे की जगह छः घंटे और छः घंटे की जगह आठ
घंटे बाद में दुबारा जल छान सकते हैं। जल को छान
कर, उबाल लेने पर चौबीस घंटों तक उसको दुबारा
छानने की जरुरत नहीं रहती।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज तो सब
कामों में इस प्रकार छना हुआ जल ही काम में लेते थे,
खान-पान और शौच-स्नान आक्षद सब में छना हुआ जल
ही काम में लाते थे।

दूध को भी छानकर काम में लेवें। उसमें रोआाँ (गाय का


बाल) न आ जाय; क्योंक्षक रोआाँ गाय को दुःख देकर
आया (टूटा) है। (भोजन में तो गाय के अलावा दूसरों
का बाल आ जाय तो भी वो भोजन त्याज्य हो जाता है,
करने योग्य नहीं रहता, उसका त्याग कर देना चाक्षहये ।
भोजन में ऊपर से क्षगरा हआ
ु बाल तो क्षनकाला जा
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९५

सकता है; पर अगर बाल भोजन के साथ में ही सीझ


गया हो तो वो भोजन त्याज्य है)।

गाय के सईू लगा कर उसका दूध न दूहें। सईू लगाने से


गाय को बडा भारी दुःख होता है, गाय परवश हो जाती
है। गाय के अंग-अंग ढ़ीले पड जाते हैं क्षजससे गाय के
शरीर में रहने वाला दूध (गाय के न चाहने पर भी) थनों
में आ जाता है। यह बडा भारी पाप है। जो दूध गाय के
सूई लगाकर दूहा जाता है, वो दूध खरीदें भी नहीं। सूई
लगाकर दूहा हआ ु दूध दूध नहीं है वो तो गाय का खून
माना गया है। यथा-

आपसे आया दधू बराबर मााँग कै नलया पाणी।


खैंचाताणी खनू बराबर यह संतों की बाणी।।

इसके क्षसवाय मनष्ु य को चाक्षहये क्षक दसों दोषों का और


सभी व्यसनों का त्याग करदें।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९६

दस दोष ये हैं-
(शरीर के तीन दोष-) १.चोरी, २.जारी (परस्त्री गमन,
परपुरुष गमन- व्यक्षभचार), ३.जीव क्षहस
ं ा,

(वाणी के चार दोष-) ४.क्षनन्दा (क्षकसी के दोष को दूसरे


के आगे प्रकट करके दूसरों में उस के प्रक्षत दुभामव पैदा
करना। गीता साधक-सज ं ीवनी १६/२ की व्याख्या से),
५.झूठ, ६.कठोर बोलना आक्षद, ७.वाचालता
(आवश्यकता से अक्षधक बोलना, बकवाद),

(मन के तीन दोष-) ८.क्षचन्ता, ९.तृष्णा, और १०.िेष।

चोरी िारी िीव हत्या तन रा दोष है तीन।


ननन्दा झठू कठोरता वाकचाल वाचीन।
तष्ृ णा नचन्ता द्वेष [ये मन के दोष भी तीन]।

(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख ु दासिी महाराि के श्रीमख


ु से
सनु े हुए)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९७

सात व्यसन ये हैं-


जुआखेलना, मक्षदरापान, मांसभिण, वेश्यागमन,
क्षशकार (हत्या) करना, चोरी करना और परस्त्रीगमन- ये
सात व्यसन तो घोराक्षतघोर नरकों में ले जाने वाले हैं*।
इनके क्षसवाय चाय, काफी, अफीम, बीडी-क्षसगरेट
आक्षद पीना और ताश-चौपड, खेल-तमाशा, क्षसनेमा
देखना, वृथा बकवाद, वृथा क्षचन्तन आक्षद जो भी
पारमाक्षथमक उन्नक्षतमें और न्याय-युि धन आक्षद कमाने
में बाधक हैं, वे सब-के -सब व्यसन हैं।

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज की
पुस्तक 'साधन-सुधा-क्षसन्धु', आवश्यक क्षशिा, पृष्ठ
संख्या ९२१ से)।

इस प्रकार आजकल आवश्यक और उपयोगी इन बातों


का क्षवशेष ध्यान रखना चाक्षहये।
----------------------------------------------
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९८

कछ और उर्योगी बतर्ें ये हैं-

प्याज और लहसुन का तो कई जने सेवन नहीं करते, पर


कई लोग गाजरका भिण कर लेते हैं।

लेक्षकन यह भी ठीक नहीं है; क्योंक्षक 'श्रद्धेय सेठजी श्री


जयदयालजी गोयन्दका' क्षबना एकादशी के भी गाजर
खाने का क्षनषेध करते थे।

श्री सेठजी एकादशीके क्षदन साबूदाना खानेका भी


क्षनषेध करते थे क्षक इसमें चावलका अंश क्षमलाया हुआ
होता है। (आजकल साबूदाने भी नकली आने लग गये
हैं)।

एकादशी के क्षदन चावल खाना वक्षजमत है; क्योंक्षक


ब्रह्महत्या आक्षद बडे-बडे पाप एकादशी के क्षदन चावलों
में क्षनवास करते हैं, चावलों में रहते हैं । ऐसा ब्रह्मवैवतम
पुराण में क्षलखा है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १९९

जो एकादशी के क्षदन व्रत नहीं रखते, अन्न खाते हैं, उनके


क्षलये भी एकादशी के क्षदन चावल खाना वक्षजमत है।

स्मक्षृ त आक्षद ग्रंथों को मुख्य मानने वाले स्मातम एकादशी


व्रत करते हैं और भगवानको, (तथा वैष्णवों, सन्तों-
भिों को) मुख्य मानने वाले वैष्णव एकादशी व्रत करते
हैं ।

एकादशी चाहे वैष्णव हो अथवा स्मातम हो; चावल


खाने का क्षनषेध दोनों में है।

परम श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज वैष्णव
एकादशी व्रत, वैष्णव जन्माष्टमी व्रत आक्षद ही करते थे
और मानते थे ।

×××
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २००

एकादशीको हपदीका प्रयोग नहीं करना चाक्षहये;


क्योंक्षक हपदीकी क्षगनती अन्नमें आयी है (हपदीको
अन्न माना गया है)।

सााँभरके नमक का प्रयोग भी एकादशी आक्षद व्रतोमें


नहीं करना चाक्षहये; क्योंक्षक सााँभर झील (क्षजसमें नमक
बनता है, उस) में कोई जानवर क्षगर जाता है, मर जाता है
तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसक्षलये
यह नमक अशुद्ध माना गया है)।

सैंधा नमक काममें लेना ठीक रहता है। सैंधा नमक


पत्थरसे बनता है, इसक्षलये अशुद्ध नहीं माना गया।

एकादशीके अलावा भी फूलगोभी नहीं खानी चाक्षहये।


फूलगोभी में जन्तु बहुत होते हैं। [बैंगन भी नहीं खाने
चाक्षहये। शास्त्र का कहना है क्षक जो बैंगन खाता है,
भगवान उससे दूर रहते हैं]। उडद और मसूरकी दाळ भी
वक्षजमत है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०१

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' बताते


हैं क्षक नमक जल है (नमक को जल माना गया है और
जल के छूत लगती है)। क्षजस वस्तु में नमक और जल
का प्रयोग हुआ हो, ऐसी कोई भी वस्तु बाजार से न लें;
क्योंक्षक इनके छूत लगती है।

(अस्पश्ृ यके स्पशम हो गया तो स्पशम दोष लगता है। इसके


अलावा पता नहीं क्षक वो क्षकस घरका बना हुआ है और
क्षकसने, कै से बनाया है)।
हींग भी काममें न लें; क्योंक्षक वो चमडेमें डपट करके ,
बन्द करके रखी जाती है, नहीं तो उसकी सगु न्धी चली
जाय अथवा कम हो जाय। हींगकी जगह हींगडा काममें
लाया जा सकता है।

सोने चााँदी के वकम लगी हुई क्षमठाई नहीं खानी चाक्षहये;


क्योंक्षक ये (गाय या) बैलकी आाँतमें रखकर बनाये जाते
हैं। बैलकी आाँतमें छोटासा सोने या चााँदीका टुकडा
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०२

रखकर, उसको हथौडेसे पीट-पीटकर फै लाया जाता है


और इस प्रकार ये सोने तथा चााँदीके वकम बनते हैं।

इसक्षलये न तो वकम लगी हईु क्षमठाई काम में लावें, न


खावें और न क्षमठाईके वकम लगावें।

इस के क्षसवाय अपना कपयाण चाहने वालों को (क्षबना


एकादशी के भी) मांस, मक्षदरा तथा और भी अभक्ष्य
खान-पान आक्षद नहीं करने चाक्षहये, इनसे बचना चाक्षहये
और लोगों को भी ये बातें बताकर बचाना चाक्षहये ।
लाखकी चूक्षडयााँ काममें न लावें; क्योंक्षक लाखमें
लाखों (अनक्षगनत) जीवोंकी हत्या होती है।

मक्षदरामें भी असंख्य जीवोंकी हत्या होती है। मक्षदरा


बनाते समय पहले उसमें सडन पैदा की जाती है,जो
असंख्य जीवोंका समुदाय होता है। क्षफर उसको भभके
से गमम करके उसका अकम (रस) क्षनकाला जाता है।
उसको मक्षदरा कहते हैं। इसकी क्षगनती चार महापापों
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०३

(ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवणम या रत्नोंकी चोरी और


गुरुपक्षत्नगमन) में आयी है।

तीन वषम तक कोई महापापीके साथमें रह जाय,तो (पाप


न करने पर भी) उसको भी वही दण्ड होता है जो
महापापीको होता है।

क्षजस घर में एक स्त्री के भी अगर गभमपात करवाया हआ ु


हो तो उस घर का अन्न खाने योग्य नहीं होता (और उस
घर का जल भी पीने योग्य नहीं होता)।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज उस घर
का अन्न नहीं खाते थे (उस घर की क्षभिा का अन्न लेना
छोड क्षदया था)। गभमपात ब्रह्महत्या से भी दूना पाप है।

अक्षधक जानने के क्षलये श्रद्धेय स्वामीजी श्री


रामसखु दासजी महाराज की पुस्तक - "महापाप से
बचो" पढ़ें।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०४

गभार्तर् कत प्रतयजित्त-

अगर कोई गभमपात का पाप क्षमटाना चाहें तो श्रद्धेय


स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराज ने यह उपाय
(प्रायक्षश्चत्त) बताया है -

बारह महीनों तक रोजाना (प्रक्षतक्षदन) भगवान् के सवा


लाख नाम का जप करें।

(ये जप क्षबना नागा क्षकये रोजाना करने चाक्षहये। षोडस


मन्त्र या चतुदमश मन्त्र से जप जपदी और सगु मतापूवमक
हो सकते हैं)।

('सुहाक्षगन स्त्री को एकादशी व्रत करना चाक्षहये या


नहीं? कह, करना चाक्षहये ।' नामक लेख से।)
http://dungrdasram.blogspot.in/2016/08/blo
g-post_13.html?m=1
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०५

(१६)- सूजियतुँ-(िरु)
(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख ु दासिी महारािके श्रीमख
ु से
सनु ी हुई सनू ियााँ)।

(संशोक्षधत)
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनकर क्षलखी हुई जो कहावतें आक्षद सूक्षियााँ
थीं, वो यहााँ कुछ क्षवस्तारसे क्षलखी जा रहीं है।

प्रसगं -
एक बारकी बात है क्षक मैंने(डुाँगरदासरामने) 'परम श्रद्धेय
स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज' को 'राजस्थानी
कहावतें' नामक पुस्तक क्षदखाई क्षक इसमें यह कहावत
क्षलखी है, यह क्षलखी है, आक्षद। तब श्री महाराजजीने
कुछ कहावतें बोलकर पूछा क्षक अमुक कहावत क्षलखी
है क्या? अमुक क्षलखी है क्या? आक्षद आक्षद। देखने पर
कुछ कहावतें तो क्षमल गई और कई कहावतें ऐसी थीं
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०६

जो न तो उस पुस्तकमें थीं और न कभी सुननेमें ही आयी


थीं।

उन क्षदनों महाराजजीके श्री मुखसे सुनी हुई कई कहावतें


क्षलख ली गई थीं और बादमें भी ऐसा प्रयास रहा क्षक
आपके श्रीमुखसे प्रकट हईु कहावतें, दोहे, सोरठे , छन्द,
सवैया, कक्षवता, साखी आक्षद क्षलखलें।

उन क्षदनोंमें तो मारवाडी-कहावतोंकी मानो बाढ़-सी आ


गई थी; कोई कहावत याद आती तो पूछ लेते क्षक यह
कहावत क्षलखी है क्या। इस प्रकार कई कहावतें क्षलखी
गई। इसके क्षसवा श्री महाराजजीके सत्सगं -प्रवचनोंमें
भी कई कहावतें आई है।

महापुरुषोंके श्रीमुखसे प्रकट हुई सूक्षियोंका संग्रह एक


जगह सुरक्षित हो जाय और दूसरे लोगोंको भी क्षमले-इस
दृक्षष्टसे कुछ सक्षू ियााँ यहााँ सग्रं ह करके क्षलखी जा रही है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०७

इसमें यह ध्यान रखा गया है क्षक जो सूक्षि श्री


महाराजजीके श्रीमुखसे क्षनकली है उसीको यहााँ क्षलखा
जाय।

कई सूक्षियोंके और शब्दोंके अथम समझमें न आनेके


कारण श्री महाराजजीसे पूछ क्षलये थे, कुछ वो भी इसमें
क्षलखे जा रहे हैं-

१-७५१ सक्षू ि-प्रकाश.


श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सनु ी हईु कहावतें आक्षद
(सूक्षि सं.१ से ७५१ तक)।
(goo.gl/g7XVAE)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०८

(१७)-र्च
ं तमृर्
(भावाथश)

१. हम (जैसे भी हैं) भगवान् के हैं।


२. हम भगवान् के दरबार (घर) में रहते हैं।
३. हम भगवान् का काम (कतमव्य-कमम) करते हैं।
४. हम भगवान् का प्रसाद (शुद्ध साक्षत्त्वक भोजन)
पाते हैं।
५. हम भगवान् के क्षदये प्रसाद (तनखाह आक्षद) से
भगवान् के जनों (कुटुक्षम्बयों) की सेवा करते हैं।

- श्रद्धेय स्वतमीिी श्रीरतमसखदतसिी महतरति के


07 अगस्र् 1982, (08:18 बिे) वतले प्रवचन से।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०९

(१८)- गीर्त ‘सतधक-संिीवनी’ के जलये भजवष्य-


वतजणयतुँ-
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज द्वारा।)

(१-) साधकों को चाक्षहये क्षक वे अपना कोई आग्रह न


रखकर इस टीका को पढ़ें और इसपर गहरा क्षवचार करें
तो वास्तक्षवक तत्त्व उनकी समझमें आ जायगा और जो
बात टीका में नहीं आयी है, वह भी समझमें आ जायगी।
- नवनीत- स्वामी रामसख ु दास
(साधक- संिीवनी पररनर्ष्ट नम्र ननवेदन से)।

(२-) इस गीता-दपमण के माध्यम से गीता का अध्ययन


करनेपर साधक को गीताका मनन करनेकी, उसको
समझनेकी एक नयी क्षदशा क्षमलेगी, नयी क्षवक्षधयााँ
क्षमलेंगी, क्षजससे साधक स्वयं भी गीतापर
स्वतन्त्रतरूपसे क्षवचार कर सके गा और नये -नये
क्षवलिण भाव प्राप्त कर सके गा। उन भावों से उसकी
गीता-विा - (भगवान) के प्रक्षत एक क्षवशेष श्रद्धा जाग्रत्
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१०

होगी क्षक इस छोटे-से ग्रंथ में भगवान ने क्षकतने क्षवलिण


भाव भर क्षदये हैं। ऐसा श्रद्धा- भाव जाग्रत् होनेपर 'गीता!
गीता!!' उच्चारण करनेमात्रसे उसका कपयाण हो
जायगा ।
- "गीता-दपशण" (लेखक- श्रद्धेय स्वामीिी
श्रीरामसख
ु दासिी महाराि) के प्राक्कथन से।

(३-) श्रीस्वामीजी महाराज कहते थे क्षक जैसे गोस्वामी


तुलसीदासजी महाराज के समय उनकी रामायण का
अक्षधक प्रचार नहीं था, पर अब घर-घर उनकी रामायण
पढ़ी जाती है, ऐसे ही चार-साढ़े चार सौ वषों के बाद
'साधक-सज ं ीवनी' का प्रचार होगा !
- श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख
ु दासिी महाराि की गीता
'साधक- संिीवनी' पर आधाररत 'संिीवनी- सधु ा'
नामक पस्ु तक के प्राक्कथन से)।

(४-) 'साधक- संजीवनी' क्षलखते समय श्री स्वामीजी


महाराज कहते थे क्षक इसे इस तरह क्षलखनी है क्षक
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २११

पढ़नेवाले को तत्त्वज्ञान हो जाय, वह मुि हो जाय !


उन्होंने 'साधक-संजीवनी' के प्राक्कथन में क्षलखा भी है
क्षक 'साधकों का शीघ्रता से और सगु मतापूवमक
कपयाण कै से हो'- इस बात को सामने रखते हुए ही यह
टीका क्षलखी गयी है।
- (श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख
ु दासिी महाराि की गीता
'साधक- सिं ीवनी' पर आधाररत 'सिं ीवनी- सधु ा'
नामक पस्ु तक के प्राक्कथन से)।

(५-) श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराज के


श्रीमुखसे मैंने(डुगाँ रदास राम ने) यह भी सुना है क्षक
भक्षवष्य में(सैकडों वषों के बाद) जब क्षकसी बात का
क्षनणमय लेना होगा तो सही क्षनणमय गीता 'साधक-
संजीवनी' के िारा होगा।

जैसे, क्षकसीके तरह-तरह की बातों तथा मतभेदों के


कारण सही क्षनणमय लेने में कक्षठनता हो जायेगी। यह
बात सही है या वो बात सही है? इस टीका की बात
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१२

सही है या उस टीकाकार की बात सही है? गीताजी का


यह अथम सही है अथवा वो अथम सही है? धमम के क्षनणमय
में यह बात सही है या वो बात सही है? व्यवहार में यह
करना सही है अथवा वो करना सही है? इस ग्रंथ की
बात मानें या उस ग्रंथ की बात मानें? इस जानकार की
बात मानें या उस जानकार की बात मानें? आक्षद आक्षद।

इस प्रकार जब असमचजस की क्षस्थक्षत हो जायेगी,


क्षकसी एक क्षनणमय पर पहचुाँ ना कक्षठन हो जायेगा। कोई
कहेंगे क्षक अमुक टीका में यह क्षलखा है, अमुक ने यह
अथम क्षकया है। अमुक स्थान पर यह क्षलखा है, अमुक
ग्रंथ में यह क्षलखा है और अमुक अमुक यह कहते हैं
आक्षद आक्षद।

तब कोई कहेंगे क्षक (गीता 'साधक- सज ं ीवनी' लाओ)


स्वामी रामसुखदास जी ने क्या कहा है? तब कोई कहेंगे
क्षक उन्होंने तो गीता की टीका 'साधक-संजीवनी' में यह
क्षलखा है। तब उनके जाँचेगी क्षक हााँ, यह बात सही है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१३

तब उसी बातसे सही क्षनणमय होगा और 'साधक-


संजीवनी' िारा क्षदया गया वही क्षनणमय सबको मान्य
होगा।

(१९)-१.जनत्य-स्र्जर्, गीर्त और सत्संग


(-श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख
ु दासिी महाराि के इकहत्तर
नदनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट)

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख


ु दासजी महाराज प्रक्षतक्षदन
प्रातः पााँच बजे के बाद सत्संग करवाया करते थे।

पााँच बजते ही गीताजी के चुने हुए कुछ (१९) श्लोकों


(२/७; ८/९; ११/१५-२२, ३६-४४;) िारा क्षनत्य-स्तुक्षत,
प्राथमना शुरु हो जाती थी। क्षफर गीताजी के लगभग दस-
दस श्लोकोंका (प्रक्षतक्षदन क्रमशः) पाठ और हरर:शरणम्
हरर:शरणम् ... आक्षद का सक ं ीतमन होता था।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१४

इस प्राथमना की शुरुआत से पहले यह श्लोक बोला जाता


था-
'गिाननं भतू गणानदसेनवतं
कनपत्थिम्बफ ू लचारुभक्षणम।्
उमासतु ं र्ोकनवनार्कारकं
नमानम नवघ्नेश्वरपादपड़्किम'् ।।

और समाक्षप्त के बाद यह श्लोक बोला जाता था -

त्वमेव माता च नपता त्वमेव


त्वमेव बन्धश्चु सखा त्वमेव।
त्वमेव नवद्या रनवणं त्वमेव
त्वमेव सवं मम देवदेव ।।

(इस प्रकार के वल प्राथमना के ही इक्कीस श्लोक हो जाते


थे। इसके बाद गीताजी के लगभग दस श्लोकों का पाठ
और होता था)। ये तीनों (प्राथमना, गीता-पाठ और
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१५

संकीतमन) करीब सत्रह (या बीस) क्षमनटों में पूरे हो जाते


थे।

इसके बाद (करीब 0518 बजे से) श्रद्धेय स्वामीजी


श्रीरामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रवचन सुनाते थे,
जो प्रायः छःह(6) बजेसे करीब 13 या 18 क्षमनट पहले
ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-प्रोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक,


सारगक्षभमत, कपयाणकारी तथा बडा क्षवलिण और
अत्यन्त प्रभावशाली होता था। उससे बडा भारी लाभ
होता था।

वो सब हम आज भी और उन्हीं की वाणीमें सुन सकते


हैं तथा साथ-साथ में कर भी सकते हैं।
इसमें (1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -
S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१६

क्षनत्य-स्तुक्षत, गीता, सत्संग- श्रद्धेय स्वामीजी


श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर क्षदनोंका सत्संग-
प्रवचन सेट में) वो सहायक-सामग्री है। (इसक्षलये यह
प्रयास क्षकया गया है)।

सज्जनोंसे क्षनवेदन है क्षक श्रद्धेय स्वामीजी


श्रीरामसुखदासजी महाराज के समयमें जैसे सत्संग
होता था, वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें। इस
बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम न जोडे।

क्षनत्य-स्तुक्षत, प्राथमना, गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों


का पाठ और हररःशरणम् हररःशरणम् आक्षद सक ं ीतमन
भी उन्हीं की आवाजके साथ-साथ करेंगे तो प्रत्यि और
अप्रत्यि रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

प्रातः पााँच बजे श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी


महाराजकी आवाजमें (ररकोक्षडिंग वाणीके साथ-साथ)
क्षनत्य-स्तुक्षत, प्राथमना और गीताजी के दस श्लोकों का
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१७

पाठ कर लेने के बाद यह हररः शरणम् वाला संकीतमन


(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की
आवाज में ही) सनु ें और साथ-साथ बोलें। इसके बाद
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका सत्संग
जरूर सुनें।

(हररःशरणम् (संकीतमन) यहााँ(इस पते)से प्राप्त


करें- https://db.tt/0b9ae0xg )।

कई जने पााँच बजे क्षसफम प्राथमना तो कर लेते हैं (और कई


जने गीता-पाठ भी कर लेते हैं), परन्तु सत्सगं नहीं सुनते
; लेक्षकन जरूरी सत्सगं सनु ना ही है। इसक्षलये 'श्रद्धेय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' का सत्संग
जरूर सुनें।

यह बात समझ लेनी चाक्षहये क्षक प्राथमना आक्षद सत्संगके


क्षलये ही होती थी। लोग जब आकर बैठ जाते तो पााँच
बजते ही तुरन्त प्राथमना शुरु हो जाती थी और उसके
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१८

साथ ही सत्संग-स्थल का दरवाजा भी बन्द हो जाता


था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह
जाते थे)।

तथा प्राथमना, गीता-पाठ आक्षद करते, इतनेमें उनका मन


शान्त हो जाता था, उनके मनकी वृक्षत्तयााँ शान्त हो जाती
थी। उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्सगं सनु ने से वो


भीतर(अन्तरात्मा में) बैठ जाता है)।

सत्संग के बाद भी भजन-कीतमन आक्षद कोई दूसरा


प्रोग्राम नहीं होता था, न इधर-उधर की या कोई दूसरी
बातें ही होती थी, क्षजससे क्षक सत्सगं में सनु ी हईु बातें
उनके नीचे दब जायाँ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २१९

सत्संग के समय कोई थोडी-सी भी आवाज नहीं करता


था। अगर क्षकसी कारणसे कोई आवाज हो भी जाती तो
बडी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।

पहले क्षनत्य-स्तुक्षत एक लम्बे कागज के पन्ने में छपी हुई


होती थी। प्राथमना के बाद में वो पन्ना लोग गोळ-गोळ
करके समेट लेते थे। समेटते समय सत्सगं में उस पन्ने
की आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाज
(खडके ) से भी सुनने में क्षविेप होता था। तब वो प्राथमना
पुस्तकमें छपवायी गयी, क्षजससे क्षक आवाज न हो और
सत्संग सुनने में क्षविेप न हो तथा एकाग्रता से सत्संग
सुनी जाय, सुननेका तार न टूटे, सत्सगं का प्रवाह
अबाध-गक्षत से श्रोता के हृदय में आ जाय और उसी में
भरा रहे।

सत्सगं सनु ते समय वक्षृ त्त इधर-उधर चली जाती है तो


सत्संग पूरा हृदय में आता नहीं है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२०

सुनने से पहले मनकी वृक्षत्तयों को शान्त कर लेने से बडा


लाभ होता है। शान्तक्षचत्त से सत्संग सुनने से समझ में
बहतु बक्षढ़या आता है और लगता भी बहतु बक्षढ़या है।

सत्सगं शान्तक्षचत्त से सनु ा जाय - इस के क्षलये पहले


प्राथमना आक्षद बडी सहायक होती थी। इस प्रकार
प्राथमना आक्षद होते थे सत्सगं के क्षलये। इसक्षलये प्राथमना
आक्षद के बाद में सत्सगं जरूर सनु ना चाक्षहये।

सत्संग तो प्राथमना आक्षद का फल है-

सतसंगत मदु मंगल मलू ा।


सोइ फल नसनध सब साधन फूला।।
(रामचररत.बा.३)।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' के समय


में क्षजस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज
भी कर सकते हैं।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२१

प्रक्षतक्षदन गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का पाठ


करते-करते लगभग सत्तर-इकहत्तर क्षदनोंमें पूरी गीताजी
का पाठ हो जाता था।

इस प्रकार इकहत्तर क्षदनों में क्षनत्य-स्तुक्षत और गीताजी


सक्षहत सत्संग-प्रवचनों का एक सत्संग-समुदाय हो
जाता था।

क्षजस प्रकार श्री स्वामीजी महाराज के समय में वो


सत्सगं होता था, वैसा सत्सगं हम आज भी कर सकते
हैं-

-इस बातको ध्यानमें रखते हुए एक इकहत्तर क्षदनों के


सत्सगं का सेट (प्रवचन-समूह) तैयार क्षकया गया है
क्षजसमें ये चारों है (1-क्षनत्य-स्तुक्षत, 2-गीताजी के दस-
दस श्लोकों का पाठ, 3-हरर:शरणम.् .. आक्षद संकीतमन
तथा 4-सत्सगं -प्रवचन- ये चारों है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२२

चारों एक नम्बर पर ही जोडे गये हैं; इसक्षलये एक बार


चालू कर देने पर ये चारों अपने-आप सुनायी दे-देंगे।
बार-बार चालू नहीं करने पडेंगे।

यन्त्र के िारा इसको एक बार शुरु करदो, बाकी काम


अपने आप हो जायेगा अथामत् आप पााँच बजे प्राथमना
चालू करदो; तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा
और उसके बाद हरर:शरणम् वाला संकीतमन आकर
अपने-आप सत्सगं -प्रवचन आ जायेगा, सत्सगं -प्रवचन
शुरु हो जायेगा।

इस प्रकार क्षनत्य नये-नये सत्सगं -प्रवचन आते जायेंगे।


इकहत्तर क्षदन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर
सकते हैं और इस प्रकार उम्र भर सत्सगं क्षकया जा
सकता है।

इनके अलावा श्री स्वामीजी महाराज के नये प्रवचन


सनु ने हों तो प्राथम ना आक्षद के बाद पुराने, सनु े हएु
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२३

प्रवचनों की जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते


हैं।

इसमें क्षवशेषता और क्षवलिणता यह है क्षक प्राथमना,


गीतापाठ, हरर:शरणम(् संकीतमन) और प्रवचन- ये चारों
श्रीस्वामीजी महाराज की ही आवाज (स्वर) में है।

महापुरुषों की आवाज में अत्यन्त क्षवलिणता होती है,


बडा प्रभाव होता है, उससे बडा भारी लाभ होता है।
इसक्षलये कृपया इसके िारा वो लाभ स्वयं लें और दूसरों
को भी लाभ लेनेके क्षलये प्रेररत करें।।

कई अनजान लोग साधक-संजीवनी और गीताजीको


अलग-अलग मान लेते हैं, उनको समझाने के क्षलये क्षक
गीताजी साधक-सज ं ीवनी से अलग नहीं है, दोनों एक
ही हैं, दो नहीं है- इस दृक्षष्टसे इसमें प्रक्षतक्षदन होने वाले
गीता पाठ में श्लोक सख् ं या की सच ू ना बोलते समय
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२४

गीता साधक-सजं ीवनी का नाम बोला गया है। इससे


गीता साधक-सज
ं ीवनीका प्रचार भी होगा।

इसमें सक्षु वधा के क्षलए प्रत्येक फाइल पर गीताजीके


अध्याय और श्लोकोंकी संख्या क्षलखी गई है तथा 71
क्षदनोंकी संख्या भी क्षलखी गई है और बोली भी गई है।

यह (इकहत्तर क्षदनोंका "सत्सगं -समूह") मोबाइलमें


आसानीसे देखा और सुना जा सकता है तथा दूसरे यन्त्रों
िारा भी सुना जा सकता है। (मेमोरी काडम, पेन ड्राइव,
सीडी प्लेयर, स्पीकर या टी.वी. आक्षद के िारा भी सनु ा
जा सकता है)।

यह सेट इकहत्तर क्षदनोंका इसक्षलये बनाया गया क्षक


इतने क्षदनों में पूरी गीताजी के पाठकी आवक्षृ त्त हो जाती
है, गीताजी का पूरा पाठ हो जाता है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२५

प्रक्षतक्षदन प्राथमना के बाद गीताजी के लगभग दस-दस


श्लोकों का पाठ होने से करीब सत्तर इकहत्तर क्षदनों में
पूरा गीता-पाठ हो जाता है।

(गीताजी के ७००-सात सौ श्लोकों में से दस-दस के


क्षहसाब से सत्तर क्षदन होते हैं ; लेक्षकन गीता जी के प्रत्येक
अध्यायों की श्लोक संख्या देखते हुए और अध्याय-
समाक्षप्त पर क्षवराम हो जाय- इस दृक्षष्ट से यह काम ६९
क्षदनों में पूरा क्षकया गया है।

क्षफर एक क्षदन अंगन्यास करन्यास आक्षद के क्षलये और


एक क्षदन गीता जी के माहात्म्य तथा आरती के क्षलये
जोडे गये हैं।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने भी


गीता-पाठ के आरम्भ में अंगन्यास करन्यास आक्षद का
पाठ क्षकया है तथा गीता-पाठ के अन्त में गीता जी के
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२६

माहात्म्य का पाठ क्षकया है और गीताजी की आरती


गायी है। यह उसी के अनुसार क्षकया गया है।

इस प्रकार यह इकहत्तर क्षदनों वाला प्राथमना, प्रवचनों


सक्षहत गीताजी के पूरे पाठ का समूह है। इसके क्षलये जो
एक प्रयास क्षकया गया है, वो है प्राथमना, गीतापाठ सक्षहत
इकहत्तर क्षदनों वाला सत्सगं -प्रवचनों का यह सेट)।
इस प्रकार हम घर बैठे या चलते-क्षफरते भी
महापुरुषोंकी सत्संगका लाभ ले सकते हैं।

वो सत्सगं नीचे क्षदये गये क्षलक


ं , पते िारा कोई भी सनु
सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं –

नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव) ।

तथा उस इकहत्तर क्षदनोंवाले सेटका पता-क्षठकाना यहााँ


भी है। आप वो यहााँसे क्षन:शुपक प्राप्त कर सकते हैं-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२७

@क्षनत्य-स्तुक्षत, गीता, सत्संग-श्रद्धेय स्वामीजी


श्रीरामसुखदासजी महाराज@ (-इकहत्तर
क्षदनोंके सत्सगं -प्रवचनके सेटका पता-)
https://goo.gl/X6SFNN

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कहते हैं


क्षक सत्संग के बाद में, बैठ कर आपस में सत्संग की
चचाम करने से बडा लाभ होता है। बुक्षद्ध का क्षवकास
होता है।

सत्संग के बाद, थोडी देर चुप रहें। कुछ समय तक न तो


अन्य चचाम करें और न कोई दूसरा प्रोग्राम शुरु करें।
(भजन,कीतमन, कथा आक्षद भी नहीं; क्योंक्षक इससे
अभी वाले सत्संग की बातें भूल जाती है; सुनी हुई बातों
को हृदय में बैठने दें। उनका मनन करें)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२८

(२०) अजन्र्म प्रवचन


(-श्रद्धेय स्वामीिी श्रीरामसख
ु दासिी महाराि)

[श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे


अक्षन्तम क्षदनोंमें यह प्राथमना की गयी क्षक आपके
शरीरकी अशि अवस्थाके कारण प्रक्षतक्षदन सत्सगं -
सभामें जाना कक्षठन पडता है। इसक्षलये आप क्षवश्राम
करावें।जब हमलोगोंको आवश्यकता मालूम पडेगी
तब आपको हमलोग सभामें ले चलेंगे और कभी
आपके मनमें सत्संक्षगयोंको कोई बात कहनेकी आ
जाय तो कृपया हमें बता देना, हमलोग आपको सभामें
ले जायेंगे।

उस समय ऐसा लगा क्षक श्री महाराजजी ने यह प्राथमना


स्वीकार करली।इस प्रकार जब भी पररक्षस्थक्षत अनुकूल
क्षदखायी देती तब समय-समय पर आपको सभामें ले
जाया जाता था।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २२९

एक क्षदन (परम धाम गमन से तीन क्षदन पहले २९ जून


२००५ को) श्रद्धेय श्री स्वामीजी महाराजने अपनी
तरफसे (अपने मनसे) फरमाया क्षक आज चलो अथामत्
आज सभामें चलें। सुनकर तुरन्त तैयारी की गयी।
पक्षहयोंवाली कुसी पर आपको क्षवराजमान करवा कर
सभामें ले जाया गया और जो बातें आपके मनमें आयीं,
वो सुनादी गयीं तथा वापस अपने क्षनवास स्थान पर
पधार गये। दूसरे क्षदन भी सभामें पधारे और प्रवचन हुए।

इस प्रकार यह समझ में आया क्षक जो अक्षन्तम बात


सत्संक्षगयोंको कहनी थी, वो उस (पहले) क्षदन कह दीं।
दूसरे क्षदन भी सभामें पधारे थे परन्तु दूसरों की मजी से
पधारे थे।अपनी मजीसे तो जो आवश्यक लगा, वो
पहले क्षदन कह चुके। दूसरे क्षदन (उन पहले क्षदन वाली
बातों पर) प्रश्नोत्तर हुए।

वो दोनों क्षदनों वाले प्रवचनोंके कुछ भाव यहााँ क्षलखे जा


रहे हैं-]
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३०

अक्षन्तम प्रवचन-

(ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराज


के आषाढ़ कृष्ण िादशी, क्षवक्रम सम्वत-२०६२,
तदनुसार ३ जुलाई, २००५ को परमधाम पधारनेके पूवम
क्षदनांक २९-३० जून, २००५ को गीताभवन,
स्वगामश्रम(हृषीके श) में क्षदये गये अक्षन्तम प्रवचन) ।

[पहले क्षदन-]
एक बहतु श्रेष्ठ, बडी सगु म, बडी सरल बात है । वह यह
है क्षक क्षकसी तरहकी कोई इच्छा मत रखो । न
परमात्माकी, न आत्माकी, न सस ं ारकी, न मुक्षिकी, न
कपयाणकी, कुछ भी इच्छा मत करो और चुप हो जाओ
। शान्त हो जाओ । कारण क्षक परमात्मा सब जगह
शान्तरूपसे पररपूणम है । स्वतः-स्वाभाक्षवक सब जगह
पररपूणम है । कोई इच्छा न रहे, क्षकसी तरहकी कोई
कामना न रहे तो एकदम परमात्माकी प्राक्षप्त हो जाय,
तत्त्वज्ञान हो जाय, पूणमता हो जाय !
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३१

यह सबका अनुभव है क्षक कोई इच्छा पूरी होती है, कोई


नहीं होती । सब इच्छाएाँ पूरी हो जायाँ यह क्षनयम नहीं है
। इच्छाओक ं ा पूरा करना हमारे वशकी बात नहीं है, पर
इच्छाओक ं ा त्याग कर देना हमारे वशकी बात है । कोई
भी इच्छा, चाहना नहीं रहेगी तो आपकी क्षस्थक्षत स्वतः
परमात्मामें होगी । आपको परमात्मतत्त्वका अनभ ु व हो
जायगा । कुछ चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जाना
नहीं, कहीं आना नहीं, कोई अभ्यास नहीं । बस, इतनी
ही बात है । इतनेमें ही पूरी बात हो गयी ! इच्छा करनेसे
ही हम संसारमें बाँधे हैं । इच्छा सवमथा छोडते ही सवमत्र
पररपूणम परमात्मामें स्वतः-स्वाभाक्षवक क्षस्थक्षत है ।
प्रत्येक कायममें तटस्थ रहो । न राग करो, न िेष करो ।
तलु सी ममता राम सों, समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दख ु , दास भए भव पार ॥
(दोहावली ९४)

एक क्षक्रया है और एक पदाथम है । क्षक्रया और पदाथम यह


प्रकृक्षत है । क्षक्रया और पदाथम दोनोंसे सबं ंध-क्षवच्छे द
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३२

करके एक भगवानके् आक्षश्रत हो जायाँ । भगवानके्


शरण हो जायाँ, बस । उसमें आपकी क्षस्थक्षत स्वतः है ।
‘भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सवमदा’‒ ऐसे
परमात्मामें आपकी स्वाभाक्षवक क्षस्थक्षत है। स्वप्नमें एक
स्त्रीका बालक खो गया। वह बडी व्याकुल हो गयी। पर
जब नींद खुली तो देखा क्षक बालक तो साथमें ही सोया
है‒ तात्पयम है क्षक जहााँ आप हैं, वहााँ परमात्मा पूरे-के -
पूरे क्षवद्यमान है । आप जहााँ हैं, वहीं चुप हो जाओ !!
‒२९ िून २००५, सतयं लगभग ४ बिे

+ **** **** **** ×

[दूसरे क्षदन-]
श्रोता‒
कल आपने बताया क्षक कोई चाहना न रखे । इच्छा
छोडना और चुप होना दोनोंमें कौन ज्यादा फायदा
करता है ?
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३३

स्वामीजी‒
मैं भगवानका् ह,ूाँ भगवान् मेरे हैं, मैं और क्षकसीका नहीं
ह,ूाँ और कोई मेरा नहीं है । ऐसा स्वीकार कर लो ।
इच्छारक्षहत होना और चुप होना‒दोनों बातें एक ही हैं ।
इच्छा कोई करनी ही नहीं है, (न) भोगोंकी, न मोिकी,
न प्रेमकी, न भक्षिकी, न अन्य क्षकसीकी ।

श्रोता‒
इच्छा नहीं करनी है, पर कोई काम करना हो तो ?

स्वामीजी‒
काम उत्साहसे करो, आठों पहर करो, पर कोई इच्छा
मत करो । इस बातको ठीक तरहसे समझो । दूसरोंकी
सेवा करो, उनका दुःख दूर करो, पर बदलेमें कुछ चाहो
मत । सेवा कर दो और अन्तमें चुप हो जाओ । कहीं
नौकरी करो तो वेतन भले ही ले लो, पर इच्छा मत रखो।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३४

सार बात है क्षक जहााँ आप हैं, वहीं परमात्मा हैं । कोई


इच्छा नहीं करोगे तो आपकी क्षस्थक्षत परमात्मामें ही
होगी । जब सब परमात्मा ही हैं तो क्षफर इच्छा क्षकसकी
करें ? संसारकी इच्छा है, इसक्षलये हम संसारमें हैं । कोई
भी इच्छा नहीं है तो हम परमात्मामें हैं ।
‒ ३० िून २००५, जदनमें लगभग ११ बिे ‒

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी


गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाक्षशत ‘एक सन्तकी
वसीयत’ नामक पुस्तक, पष्ठृ १४, १५ से)।

अनन्तम प्रवचन १ (२९ िनू २००५) का पता (नठकाना)


- (नलंक) डाउनलोड करनेके नलये goo.gl/gTyBxF
अथवा सनु नेके नलये goo.gl/yR5SLd

अनन्तम प्रवचन २ (३० िनू २००५) का पता (नठकाना)


- (नलंक) डाउनलोड करनेके नलये goo.gl/QS68Wj
अथवा सनु नेके नलये goo.gl/wt7YNR
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३५

(२१) गीर्तिी कण्ठस्थ (यतद) करने कत उर्तय

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज


से एक हैड मास्टर ने पूछा क्षक मनुष्य को कम- से कम
क्या कर लेना चाक्षहये?

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया क्षक


मनुष्य को कर तो लेना चाक्षहये अपना कपयाण।
तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाक्षहये ।
परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही
लेना चाक्षहये क्षक मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय
(मनुष्य जन्म से नीचे न क्षगर जाय)।

अथामत् इसी जन्म में भगवत्प्राक्षप्त न कर सके तो मरने के


बाद वापस मनुष्य जन्म क्षमल जाय। पशु-पिी,कीट-
पतंग आक्षद नीच योक्षनयों में न जाना पङे । इतना तो कर
ही लेना चाक्षहये ।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३६

(तब उन्होंने पूछा क्षक) इसका क्या उपाय है (क्षक वापस


मनुष्य जन्म ही क्षमल जाय)?

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले क्षक गीता


याद (कण्ठस्थ) करलें। क्योंक्षक-

गीता पाठ समायि ु ो मतृ ो मानुषतां व्रिेत् ।


गीताभ्यासः पुनः कृत्वा लभते मनु िमत्तु माम् ।।
(गीता माहात्म्य)

अथामत,् गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्षि होनेसे पहले


ही मर जाता है, तो] मरनेपर क्षफर मनष्ु य ही बनता है और
क्षफर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्षिको प्राप्त कर
लेता है)। अस्तु।

(इसक्षलये हमलोगों को चाक्षहये क्षक गीताजी याद करलें


और गीताजी का पाठ करें )।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३७

एक सज्जनने पूछा है क्षक हम गीताजी कण्ठस्थ करना


चाहते हैं, गीताजी कण्ठस्थ होनेका उपाय बतायें।

उत्तरमें क्षनवेदन है क्षक


गीताजी कण्ठस्थ करना हो तो पहले गीता साधक-
सज ं ीवनी, गीता तत्त्वक्षववेचनी, [गीता पदच्छे द अन्वय
सक्षहत] आक्षदसे गीताजीके श्लोकोंका अथम समझलें और
क्षफर रटकर कण्ठस्थ करलें।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं


क्षक छोटी अवस्थामें तो पहले श्लोक रटा जाता है और
पीछे उसका अथम समझा जाता है तथा बडी अवस्थामें
पहले अथम समझा जाता है और पीछे श्लोक रटा जाता
है। (जो श्लोक कण्ठस्थ हो चुके हों, उनकी आवृक्षत्त
रोजाना क्षबना देखे करते रहें)।

जो श्लोक क्षदनमें कण्ठस्थ क्षकये गये हैं,राक्षत्रमें सोनेसे


पहले कक्षठनता-पूवमक क्षबना देखे उनकी आवृक्षत्त करलें,
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३८

इससे सबु ह उठते ही (वापस क्षबना देखे आवृक्षत्त करोगे


तो) धडा-धड आ जायेंगे।

(क्षबना देखे गीता पाठ न करने से हाक्षन बताते हएु कभी-


कभी तकम सक्षहत और हाँसते हुए- से श्रीमहाराजजी
बोलते थे क्षक)

अगर कोई यह पूछे क्षक हम गीताजीका कण्ठस्थ पाठ


भूलना चाहते हैं, कोई उपाय बताओ। तो भूलनेका
उपाय यह है क्षक गीताजीका कण्ठस्थ पाठ गीताजीको
देखकर करते रहो, भूल जाओगे अथामत् कण्ठस्थ-पाठ
भी गीताजीको देख-देखकर करोगे तो भूल जाओगे।

इसक्षलये क्षजनको पूरी गीताजी याद (कण्ठस्थ) हो


अथवा दो-चार अध्याय ही याद हो, उनको चाक्षहये क्षक
कण्ठस्थ-पाठ गीताजी देख-देखकर न करें।कण्ठस्थ-
पाठ क्षबना देखे करें।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३९

जो सज्जन गीताजीको याद करना चाहते हैं, उनके क्षलये


'गीता-ज्ञान-प्रवेक्षशका' (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसख ु दासजी महाराज) नामक पुस्तक बडी सहायक
होगी। इसमें गीता-अध्ययन सम्बन्धी और भी अनेक
बातें बताई गई है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी


आवाजमें ररकोडम क्षकये हुए दो प्रकारके गीता-पाठ
उपलब्ध है। उनके साथ-साथ पाठ करनेसे गीताजी
कण्ठस्थ हो जाती है।

अगर कोई गीताजी सीखना चाहें, तो इस पाठके साथ-


साथ पढ़कर आसानीसे सीख सकते हैं। गीताजीका
शुद्ध उच्चारण कोई सीखना चाहें तो वो भी साथ-साथ
पाठ करके सीख सकते हैं।

कोई गीताजी पढ़नेकी लय सीखना चाहें, कोई


गीताजीकी राग सीखना चाहें, तो वो भी श्री
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४०

महाराजजीकी वाणीके साथ-साथ पाठ करके सीख


सकते हैं।

कोई गीताजी पढ़ते समय उच्चारणमें होनेवाली अपनी


भूलें सध
ु ारना चाहें, गलक्षतयााँ सध
ु ारना चाहें, तो वो
साथ-साथ पाठ करके सुधार सकते हैं।

कई लोग 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी


महाराज' से पूछते थे क्षक हम गीता पढ़ना चाहते हैं,
हमको शुद्ध गीताजी पढ़ना नहीं आता, क्या करें?

तब श्री महाराजजी उनसे कहते थे क्षक सबु ह चार बजे


यहााँ गीताजीके पाठकी कै सेट लगती है,उसके साथ-
साथ गीताजी पढो। (गीताजी शुद्ध पढ़ना आ जायेगा,
सही पढ़ना सीख जाओगे)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४१

उन क्षदनों प्रात: चार बजेसे श्री महाराजजीकी


आवाजवाले पाठकी ये(नीचे बतायी गयी) कै सेटें ही
लगती थीं। (आज भी हम वैसा कर सकते हैं)।

गीता-पाठ यहााँसे प्राप्त करें -

पहले प्रकार के गीता-पाठका पता-


स्वर(-आवाज) -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज
| http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/
blog-post_15.html

दूसरी प्रकारके गीता-पाठका पता-


स्वर(-आवाज)-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराज
| http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/
blog-post_17.html
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४२

(२२)सत्संग-स्वतमी रतमसखदतसिी महतरति


(के सत्संगके पते-नठकाने आनद)

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका


सत्संग (SATSANG GITA AADI -
S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ)
तथा उन्हीकी आवाजमें गीता-पाठ, गीता-गान
(सामूक्षहक आवृक्षत्त,साफ आवाज वाली ररकाक्षडिंग ),
गीता-माधुयम, गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस कै सेटोंका
सेट), 'कपयाणके तीन सुगम मागम'[नामक पुस्तककी
उन्हीके िारा व्याख्या], नानीबाईका माहेरा, भजन,
कीतमन, पााँच श्लोक(गीता ४/६-१०), तथा क्षनत्य-स्तुक्षत,
गीता, सत्संग(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी
महाराजके 71 क्षदनोंका सत्संग-प्रवचनोंका सेट),
मानसमें नाम-वन्दना, राम-कथामें सत्सगं आक्षद तथा
इनके क्षसवाय और भी सामग्री आप यहााँ(के इन पते-
क्षठकानों ) से मुफ्तमें-क्षनशुपक प्राप्त करें-
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४३

(1-) http://db.tt/v4XtLpAr
(2-) http://www.swamiramsukhdasji.org
(3-) http://goo.gl/28CUxw

नोट-
यहााँ पर श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराजकी मोबाइल आक्षद पर पढ़ने योग्य गीता
साधक-सज ं ीवनी, साधन-सुधा-क्षसन्धु, गीता-दपमण
आक्षद करीब तीस से अक्षधक पुस्तकें भी क्षन:शुपक
उपलब्ध है।

ये सब सामक्षग्रयााँ मेमोरी काडम आक्षद में भी भर कर


क्षन:शुपक दी जा सकती है।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४४
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४५
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४६
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४७
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४८
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २४९
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २५०
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २५१
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २५२

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