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महापुरुषोंके सत्संगकी बातें (19 मार्च 2018) (४
महापुरुषोंके सत्संगकी बातें (19 मार्च 2018) (४
।।श्रीहरर:।।
महापरुु षोंके सत्सगं की बातें
क्षवषय सूची
------―***―------
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ८
नम्र-क्षनवेदन
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसखु दासजी महाराज' कहते हैं
क्षक संत - महात्माओ ं को याद करने से हृदय शुद्ध,
क्षनममल हो जाता है।
यथा-
िो संत ईश्वर भि िीवनमिु पहले हो गये।
उनकी कथायें गा सदा मन र्द्ध
ु करनेके नलये।।
आपको सतं ोंकी वाणी बहुत आती थी, बहुत सतं ोंकी
वाणी याद थी। अच्छे -अच्छे जानकार संत-
महात्माओक ं ो भी संकोच और भय था क्षक मााँजी कुछ
पूछ लेंगे और जवाब नहीं आया तो? (क्या होगा?)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३
(जैसे-)
८. भगवत्तत्व
९. एकै सतधै सब सधै
१०. िीवनोर्योगी कल्यतण-मतगा
११. सवोच्च र्दकी प्रतजिकत सतधन
१२. िीवन कत सत्य
१३. कल्यतणकतरी प्रवचन
१४. र्तजववक प्रवचन
१५. भगवतन से अर्नतर्न
१६. कल्यतणकतरी प्रवचन (भतग 2)
१७. िरणतगजर्
१८. भगवन्नतम
१९. िीवनोर्योगी प्रवचन
२०. सन्दर समति कत जनमताण
२१. मतनसमें नतम-वन्दनत
२२. सत्सगं की जवलक्षणर्त
२३. सतधकों के प्रजर्
२४. भगवत्प्रतजि सहि है
२५. अच्छे बनो
२६. भगवत्प्रतजिकी सगमर्त
२७. वतस्र्जवक सख
२८. स्वतजधन कै से बनें?
२९. कमा रहस्य
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १८
५२. सब िग ईश्वररुर् है
५३. आवश्यक चेर्तवनी
५४. मनष्यकत कर्ाव्य
५५. अमरर्तकी ओर
५६. सतर-सग्रं ह एवं सत्सगं के अमृर्-कण
५७. अमर्ृ जबन्द
५८. सत्संग-मितहतर
५९. सत्य की खोि
६०. क्यत गरु जबनत मजि नहीं?
६१. आदिा कहतजनयतुँ
६२. प्रेरक कहतजनयतुँ
६३. प्रश्नोत्तरमजणमतलत
६४. जिखत (चोटी)- धतरण की आवश्यकर्त
६५. मेरे र्ो जगरधर गोर्तल
६६. कल्यतणके र्ीन सगम मतगा
६७. सत्यकी स्वीकृजर् से कल्यतण
६८. र्ू- ही- र्ू
६९. एक नयी बतर्
७०. संसतर कत असर कै से छूटे?
७१. मतनवमतत्रके कल्यतणके जलए
७२. र्रमजर्र्त से प्रतथानत
७३. सतधनके दो प्रधतन सूत्र
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०
(४)-र्रमधतमकी प्रतजि -
(५)-गरु-चरणोंकत प्रभतव –
शब्दाथम-
आसा (क्षदग, क्षदसाएाँ)। बासी (वास, वस्त्र, अम्बर)।
आसाबासी (बसी हईु आशा)। आशाबाशी (आ-यह,
शाबाशी-प्रशंसायुि वाह वाही)। आशाबाशी (बाशी
आशा अथामत् आशा पडी-पडी देरके कारण बाशी नहीं
रहती, तुरन्त क्षमटती है, बाकी नहीं रहती)।
१-भावाथम-
श्री श्री गुरु क्षदगम्बरानन्दजी महाराजके चरण-शरणके
प्रभावसे मनके भीतर बैठी हुई आशा (क्षजसके कारण
परमात्माकी प्राक्षप्त नहीं हो पा रही है, वो) क्षनकलकर
चली जाती है (और जब मनमें कोई भी आशा, कामना
नहीं रहती, तब परमात्माकी प्राक्षप्त उसी िण हो जाती है
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३१
२-भावाथम-
क्षवद्यागुरु १००८ श्री क्षदगम्बरानन्दजी महाराजके
चरणोंकी शरण ले-लेनेसे से मनमें बसी हईु आशा चली
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ३२
ना सख
ु कािी पनडडतााँ ना सखु भपू भयााँह ।
सख
ु सहिााँ ही आवसी यह 'तष्ृ णा रोग' गयााँह ।।
रामनाम संसारमें सख
ु दाई कह सतं ।
दास होइ िपु रात नदन साधु सभा सौभतं ।।
राम(२) नाम सस
ं ारमें सखु (३)दाई कह सतं ।
दास(४) होइ जपु रात क्षदन साधु(१)सभा सौभन्त ।।
खुलासा-
(इस दोहेकी रचना स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजने की है।
था। गाना बजाना भी मैंने खूब क्षकये हैं। (मैंने अके ले)
हारमोक्षनयम आक्षद पर भजन गाते हुए रात भर जागरण
क्षकये हैं। मैंने वेदान्त की पढ़ाई की है और आचायम
तककी परीिा दी है। मेरी रुक्षच तो भजन साधन करनेमें
थी। पढ़ाई तो गुरुजनोंके कहनेसे करली। कहना मानना
मेरा स्वभाव था।
(७)-कछ जसद्धतन्र् –
आगे सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकासे क्षमलनका
वणमन क्षकया जायेगा क्षजसका काफी वणमन तारीख एक
अप्रैल उन्नीस सौ इकरानवें (क्षद.19910401/900 -
goo.gl/ub5Pjy) के क्षदन नौ बजेके प्रवचनमें स्वयं
'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' ने
गीताप्रेस, गोरखपुरमें क्षकया है।
आपके क्षसद्धान्तों ('मेरे क्षवचार') में क्षलखा है क्षक-
१. वतममान समय की आवश्यकताओक ं ो देखते हुए मैं
अपने कुछ क्षवचार प्रकट कर रहा ह।ूाँ मैं चाहता हूाँ क्षक
अगर कोई व्यक्षि मेरे नामसे इन क्षवचारों, क्षसद्धान्तोंके
क्षवरुद्ध आचरण करता हुआ क्षदखे तो उसको ऐसा
करनेसे यथाशक्षि रोकनेकी चेष्टा की जाय ।
२. मेरे दीिागुरुका शरीर शान्त होनेके बाद जब क्षव०
सं० १९८७ में मैंने उनकी बरसी कर ली, तब ऐसा पक्का
क्षवचार कर क्षलया क्षक अब एक तत्त्वप्राक्षप्तके क्षसवाय
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ४७
मेरे मनमें रही क्षक उनसे कै से क्षमलें? पैसा मैं पासमें रखता
नहीं, न लेता हूाँ (क्षकसीके देने पर भी पैसा मैं लेता नहीं),
क्षटकटके क्षलये भी क्षकसीसे कहता नहीं [क्षक मुझे श्री
सेठ(श्रेष्ठ)जीकी सत्संगमें जाना है, क्षटकट बनवादो]।
पैदल चलकर जाऊाँ तो वहााँ पहच ुाँ नहीं पाऊाँ ; क्योंक्षक मैं
पहच ुाँ ूाँ उससे तो पहले ही वो प्रोग्राम पूरा करके आगे
चलदे। वो गाडीसे चलते हैं, मैं पैदल, कै से पहच ुाँ ता।
गीताप्रेस कै से हआ
ु ?
'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' गीताजीके भाव
कहने लगे। गहरा क्षववेचन करने लगे। तो कह,
गीताजीकी टीका क्षलखो। तो गीताजीकी टीका क्षलखी
गई- साधारण भाषा टीका। वो गोयन्दकाजीकी क्षलखी
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ६८
श्री सेठजीने कहा क्षक सनु ाओ। तो मैंने कहा क्षक सेठजी!
इन सबसे धापकर आया हू,ाँ अब सुनानेका मन नहीं है,
अबतो साधन करना है। श्री सेठजीने कहा क्षक
यही(सत्सगं सनु ाना ही) साधन है। कह, यह साधन है!
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७३
क्षनगमण
ु -क्षनराकार का (ध्यान) कराते तीन घंटा(सुनाते)।
बस, आाँख मीचकर बैठ जाते। अब कौन बैठा है , कौन
ऊठ गया है, कौन नींद ले रहा है, कौन (जाग रहा है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ७७
क्षवशेष-प्रवचन।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके क्षवशेष
कै सेटोंके ७१ सत्सगं -प्रवचन चुने गये हैं। इनके नाम
(क्षवषय) भी क्षलखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।
(इसमें कई प्रवचन तो ऐसे हैं क्षक जो दूसरी जगह
उपलब्ध होना मुक्षश्कल है)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९१
गीता-पाठ
(यह क्षितीय प्रकारका गीता-पाठ है)।
[जो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराजके
साथ-साथ गीता-पाठ करना चाहते हैं, उनके क्षलये यह
क्षवशेष उपयोगी है]।
गीता-व्याख्या।
(यह करीब पैंतीस क्षदनों तककी कै सेटोंका सेट है, जो
124 फाइलोंमें क्षवभि है, क्षजसमें व्याख्या करके पूरी
गीताजी समझायी गयी है)।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें ९४
मानसमें नाम-वन्दना।
{रामचररतमानसके नाम वन्दना प्रकरण (1।18-28) की
जो नौ क्षदनोंतक व्याख्या की गई थी और क्षजसकी
"मानसमें नाम-वन्दना" नामक पुस्तक बनी थी उसके
आठ प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे परन्तु उपलब्ध करीब
आठ ही हुए)}।
गीर्त "सतधक-सि
ं ीवनी र्ररजिष्ट"।
लेखक – 'श्रद्धेय स्वतमीिी श्री रतमसखदतसिी
महतरति'।
संकीतमनमें मन कै से लगे?
इसके क्षलये श्री महाराजजीने यह तरकीब (अटकऴ)
बतायी है क्षक भगवानके गुण और लीलायुि नाम
जोड-जोडकर इस चतुदमश मन्त्रका कीतमन करें।
जैसे –
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
आप ही हो एक(१) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सदा(२) ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १२४
http://swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/p
ustak/pustak1/html/picture/list.htm
(goo.gl/LUaeWB)
महापुरुषोंके सत्संग की बातें १३५
तथा
ये (जो बातें मैं क्षलख रहा हू,ाँ वे) बातें मेरी जानकारी में
हैं और मेरी दृक्षष्ट में सही हैं, सच्ची हैं, यथाथम हैं।
मैं यहााँ वही बातें क्षलख रहा हूाँ जो मेरी दृक्षष्ट में क्षनस्सन्देह
हों, यथाथम हों। क्षकसी के अगर कोई बात समझ में न
आयें अथवा सन्देह हो तो मेरे (डुगाँ रदास राम) से बात
कर सकते हैं।
उत्तर- सही नहीं है, उनको पूरी बात का पता नहीं। क्षनसान
तो वो गीता, रामायण आक्षद दूसरी पुस्तकें पढ़ते समय
भी लगा देते थे। ऐसे इनकी पुस्तकें पढ़ते समय भी लगा
देते थे।
देते थे, अथवा यों कक्षहये क्षक क्षनसान लगा देते थे)। ऐसी
कई पुस्तकें आज भी देखी जा सकती है।
...
यथा -
सबनह मानप्रद आपु अमानी ।
भरत प्रान सम मम ते प्रानी ।।
(रामचररतमा.७।३८)।
बनता है, उस) में कोई जानवर क्षगर जाता है, मर जाता है
तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसक्षलये
यह नमक अशुद्ध माना गया है)।
गभार्तर् कत प्रतयजित्त-
जैसे –
कूडे-कचरे के आग न लगावें; क्योंक्षक इसके साथ में
अनेक जीव-जन्तु क्षजन्दे ही जल जाते हैं। क्षकसीने आग
लगा भी दी हो तो उसे बुझादें।
वाली क्षखडकी में अटक रहेे़ हों, बाहर नहीं जा पा रहे हों
तो क्षखडकी को खोल कर उनको बाहर करदें और
क्षखडकी को वापस बन्द करलें।
दस दोष ये हैं-
(शरीर के तीन दोष-) १.चोरी, २.जारी (परस्त्री गमन,
परपुरुष गमन- व्यक्षभचार), ३.जीव क्षहस
ं ा,
×××
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २००
गभार्तर् कत प्रतयजित्त-
(१६)- सूजियतुँ-(िरु)
(श्रद्धेय स्वामीिी श्री रामसख ु दासिी महारािके श्रीमख
ु से
सनु ी हुई सनू ियााँ)।
(संशोक्षधत)
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख ु दासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनकर क्षलखी हुई जो कहावतें आक्षद सूक्षियााँ
थीं, वो यहााँ कुछ क्षवस्तारसे क्षलखी जा रहीं है।
प्रसगं -
एक बारकी बात है क्षक मैंने(डुाँगरदासरामने) 'परम श्रद्धेय
स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज' को 'राजस्थानी
कहावतें' नामक पुस्तक क्षदखाई क्षक इसमें यह कहावत
क्षलखी है, यह क्षलखी है, आक्षद। तब श्री महाराजजीने
कुछ कहावतें बोलकर पूछा क्षक अमुक कहावत क्षलखी
है क्या? अमुक क्षलखी है क्या? आक्षद आक्षद। देखने पर
कुछ कहावतें तो क्षमल गई और कई कहावतें ऐसी थीं
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २०६
(१७)-र्च
ं तमृर्
(भावाथश)
नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव) ।
अक्षन्तम प्रवचन-
[पहले क्षदन-]
एक बहतु श्रेष्ठ, बडी सगु म, बडी सरल बात है । वह यह
है क्षक क्षकसी तरहकी कोई इच्छा मत रखो । न
परमात्माकी, न आत्माकी, न सस ं ारकी, न मुक्षिकी, न
कपयाणकी, कुछ भी इच्छा मत करो और चुप हो जाओ
। शान्त हो जाओ । कारण क्षक परमात्मा सब जगह
शान्तरूपसे पररपूणम है । स्वतः-स्वाभाक्षवक सब जगह
पररपूणम है । कोई इच्छा न रहे, क्षकसी तरहकी कोई
कामना न रहे तो एकदम परमात्माकी प्राक्षप्त हो जाय,
तत्त्वज्ञान हो जाय, पूणमता हो जाय !
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३१
[दूसरे क्षदन-]
श्रोता‒
कल आपने बताया क्षक कोई चाहना न रखे । इच्छा
छोडना और चुप होना दोनोंमें कौन ज्यादा फायदा
करता है ?
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३३
स्वामीजी‒
मैं भगवानका् ह,ूाँ भगवान् मेरे हैं, मैं और क्षकसीका नहीं
ह,ूाँ और कोई मेरा नहीं है । ऐसा स्वीकार कर लो ।
इच्छारक्षहत होना और चुप होना‒दोनों बातें एक ही हैं ।
इच्छा कोई करनी ही नहीं है, (न) भोगोंकी, न मोिकी,
न प्रेमकी, न भक्षिकी, न अन्य क्षकसीकी ।
श्रोता‒
इच्छा नहीं करनी है, पर कोई काम करना हो तो ?
स्वामीजी‒
काम उत्साहसे करो, आठों पहर करो, पर कोई इच्छा
मत करो । इस बातको ठीक तरहसे समझो । दूसरोंकी
सेवा करो, उनका दुःख दूर करो, पर बदलेमें कुछ चाहो
मत । सेवा कर दो और अन्तमें चुप हो जाओ । कहीं
नौकरी करो तो वेतन भले ही ले लो, पर इच्छा मत रखो।
महापुरुषोंके सत्संग की बातें २३४
(1-) http://db.tt/v4XtLpAr
(2-) http://www.swamiramsukhdasji.org
(3-) http://goo.gl/28CUxw
नोट-
यहााँ पर श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी
महाराजकी मोबाइल आक्षद पर पढ़ने योग्य गीता
साधक-सज ं ीवनी, साधन-सुधा-क्षसन्धु, गीता-दपमण
आक्षद करीब तीस से अक्षधक पुस्तकें भी क्षन:शुपक
उपलब्ध है।