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नित्य स्तुति (प्रार्थना), गीतापाठ और सत्संग
नित्य स्तुति (प्रार्थना), गीतापाठ और सत्संग
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लेखिकताथ -
संत डुुँगिदास िाम
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २
जैसे, पहले अध्याय में सैंतालीस श्लोक है। इसके पाुँच नवभाग
नकये गये। अनन्तम नवभाग में तीि श्लोक कम पङ गये। कम
पङ जािे पि भी पहले अध्याय के समानप्त की सीमा (मयाथदा)
लाुँघकि औि दूसिे अध्याय के शुरुआत की मयाथदा तोङकि
तीि श्लोक उसमें से ले- लेिे की दखल िहीं दी गयी है। ऐसे
ही तीसिे अध्याय में तैंतालीस श्लोक है। उसमें दस- दस श्लोकों
के तीि नवभाग नकये गये। बचे हुए तीि श्लोक उस अध्याय के
नवभागों को ही बाुँट नदये गये अर्ाथत् ग्यािह- ग्यािह श्लोकों
के तीि नवभाग बिा नदये गये। इस प्रकाि सात सौ श्लोक
उिहत्ति नदिों में पिू े हएु । नफि एक नदि गीताजी के माहात्म्पय
औि आिती का तर्ा एक नदि गीता जी के अङ्गन्यास-
किन्यास आनद का- इस प्रकाि नमलकि- सब इकहत्ति नदि
हुए। इिके सार्-सार् प्रवचिों*३● की संख्या भी इकहत्ति
हो गयी।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १०
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नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १५
अपिे घि, मोहल्ले या सत्संग भवि आनद में प्रातः पाुँच बजे
इस नित्य- सत्संग की व्यवस्र्ा कििी चानहये नजससे नक
सबलोग सगु मता पवू थक सत्सगं का लाभ ले सकें ।
नफि सत्सगं में सिु ी हुई बातों की बैठकि आपस में चचाथ किें।
एक- दूसिे आपस में सत्संग की बातों का आदाि-प्रदाि किते
हुए ठीक तिह से समझें औि समझावें।
कििे से, समझिे से बङा लाभ होता है। बनु द्ध का नवकास
होता है।
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नट्पनणयाुँ-
जैसे-
यह गीताज्ञाि िहस्य युि, शास्त्र सम्पमत, अिुभव सनहत,
युनियुि, सत असत का नवभाग बतािेवाला औि तत्काल
पिमात्मप्रानप्त का अिभ
ु व किािे वाला है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २१
प्रवचि सिु ते समय नकसी प्रवचि में कोई नवशेष बात समझ
में आयी, तो उस प्रवचि को अलग से संग्रह के नलये िख
नलया र्ा। ऐसे अिेक प्रवचिों में से ये इकहत्ति प्रवचि
चुिकि इस सत्संग- समुदाय में जोङे गये हैं। इिमें पाुँच बजे
के अलावा दूसिे समय के प्रवचि भी हैं। कुछ नमनिटों के
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २७
प्रश्न-
गीताजी के सस्ं कृत श्लोक आनद प़ििे में कोई गलती हो जाय
तो कोई दोष तो िहीं लगेगा?
उत्ति-
िहीं लगेगा; क्योंनक प़ििेवाले की िीयत (मि का भाव)
सही है।
पढते समय बालक से शुरु- शुरु में गलनतयाुँ होती है; पिन्तु
प़िािेवाले माफ कि देते हैं ( िहीं तो प़ििा औि प़िािा- दोिों
मुनश्कल हो जायेंगे )। इसनलये अशुद्ध उच्चािण की गलती
के डि से गीताजी को छोड िहीं देिा चानहये, गीताजी प़ििी
चानहये। हमािी िीयत गीता प़ििे की है औि ठीक तिह से िहीं
प़ि पा िहे हैं तो भी भगवाि् िाजी होते हैं। जैसे बालक की
तोतली बातों से माता नपता िाजी होते हैं, ऐसे भगवाि् भी
गीता प़ििे से िाजी होते हैं।
*५. शीतकाल में सयू ोदय देिी से होता है। सबु ह पाुँच जल्दी
बज जाते हैं। इस कािण सुिक्षा के नलये प्रातः पाुँच बजेवाली
प्रार्थिा सत्संग में माता- बहिों का आिा वनजथत र्ा।
वृन्दावि, ऋनषके श आनद तीर्थस्र्लों में पाुँच बजे भी माताएुँ
बहिें आ सकती र्ीं। नजस गाुँव या शहि में सत्सगं का
आनखिी नदि होता र्ा , उस नदि भी पाुँच बजे माता बहिों
के नलये आिे की छूट र्ी, वो भी सत्संग में आ सकती र्ीं
औि पाुँच बजे सत्संग- स्र्ल का दिवाज़ा भी बन्द िहीं होता
र्ा। देिी से आिेवाले भी प्रवेश कि सकते र्े।
तथा-
@दनत्य-स्तुदत,गीता,सत्संग- श्रद्धेय ●● स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज@
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पता-
सत्संग-सतं वाणी.
श्रद्धेय●● स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सानहत्य पढें
और उिकी वाणी सुिें।
http://dungrdasram.blogspot.com
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