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।। श्रीहरि: ।।

नित्य स्तुनत (प्रार्थिा),


गीतापाठ औि सत्सगं
(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसखु दासजी महाराज के इकहत्तर
ददनों वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध ) ।।

● ● ●

लेखिकताथ -
संत डुुँगिदास िाम
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २

नित्य स्तुनत ( प्रार्थिा ), गीतापाठ औि सत्संग


(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर नदिों
वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध ) ।।

[ कृ पया इस जानकरी को पूरा पढ़ें, इसम़ें श्रीस्वामीजी महाराज के


सत्सगं की महत्त्वपर्ू ण जानकरी लिखी गयी है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रलिलदन प्रािः पााँच


बजे लनत्य- स्िुलि प्रार्णना, गीिापाठ आलद के बाद सत्संग करिे र्े
जो बहुि ही बलढया और लविक्षर् हुआ करिा र्ा। वैसा सत्सगं
आज भी सबिोग सगु मिा से करि़ें - इसके लिये इकहत्तर लदनों के
सत्संग- प्रवचनों के समुदाय का एक प्रबन्ध लकया गया है। उसकी
जानकारी यहााँ दी जा रही है- ]

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसख ु दासजी महािाज के समय में


प्रनतनदि पाुँच बजते ही गीताजी के कुछ चुिे हुए श्लोकों*१●
द्वािा नित्य-स्तुनत, प्रार्थिा शुरु हो जाती र्ी। उसके बाद
गीताजी के लगभग दस श्लोकोंका क्रमशः पाठ औि
हरि:शिणम् हरि:शिणम् ... इस प्रकाि कीतथि होता र्ा।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३

इिके बाद श्रीस्वामीजी महािाज सत्सगं -प्रवचि किते र्े, जो


प्रायः छः बजेसे पहले ही समाप्त हो जाते र्े।

र्ोङे समय में होिेवाला यह सत्संग-प्रोग्राम*२● बहुत ही


बऩिया होता र्ा। बहतु नवलक्षण औि प्रभावशाली र्ा। उससे
बङा लाभ होता र्ा।
( इस नवषयमें कुछ आगे बताया गया है। )

वो लाभ हम सब आज भी ले सकते हैं, सत्संग कि सकते हैं,


सुि सकते हैं औि उन्हीं की वाणी के सार्-सार् में प्रार्थिा,
गीतापाठ आनद भी कि भी सकते हैं।

'श्रीस्वामीजी महािाज' के समय में नजस प्रकाि से सत्संग


होता र्ा उस प्रकाि से हम आज भी किलें - इस बातको
ध्यािमें िखते हुए यह इकहत्ति नदिों के प्रवचिों का सेट (
सत्सगं - समदु ाय ) तैयाि नकया गया है। इसमें ये चािों हैं - 1-
नित्य-स्तुनत (प्रार्थिा) ,2-गीताजी के दस-दस श्लोकों का
क्रमशः पाठ,3-हरि:शिणम.् .. वाला संकीतथि तर्ा 4-सत्संग-
प्रवचि। ये चािों श्रीस्वामीजी महािाज की वाणी में ही तैयाि
नकये गये हैं। चािों उन्हीकी आवाज़ में है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ४

यह "सत्सगं -समदु ाय" मोबाइल, टैबलेट आनद में आसािीसे


देखा औि सुिा जा सकता है औि दूसिे यन्रोंद्वािा भी यह
सत्संग नकया जा सकता है ( मेमोिी काडथ, पेि ड्राइव,
लेपटोप, कम्प्यूटि, सीडी ्लेयि, स्पीकि या टी.वी. आनद के
द्वािा भी यह सत्सगं सिु ा जा सकता है )।

चािों एक िम्पबि पि, एक ही फाइल में जोङे गये हैं; इसनलये


एक बाि चालू कि देिे पि ये चािों अपिे-आप सुिायी पङेंगे,
बाि-बाि चालू िहीं कििे पङेंगे।

यन्र के द्वािा इसको एक बाि शुरु किदो, बाकी काम अपिे-


आप हो जायेगा अर्ाथत् आप पाुँच बजे प्रार्थिा चालू किदो;
तो प्रार्थिा होकि आगे गीतापाठ अपिे-आप आ जायेगा
औि उसके बाद हरि:शिणम् ... वाला संकीतथि आकि
अपिे-आप प्रवचि आ जायेगा, सत्संग-प्रवचि शुरु हो
जायेगा।

इस प्रकाि नित्य िये-िये सत्संग-प्रवचि आते जायेंगे।


इकहत्ति नदि पिू े हो जािेपि इसी प्रकाि वापस एक िम्पबि से
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ५

शरुु कि सकते हैं औि इस प्रकाि उम्रभि सत्सगं नकया जा


सकता है।

इिके अलावा श्री स्वामीजी महािाज के कोई दूसिे प्रवचि


सुििे हों तो प्रार्थिा आनद के बाद सुिे हुए प्रवचिों की जगह
दूसिे (िये) प्रवचि लगाकि सुि सकते हैं।

इिमें सुनवधा के नलए प्रत्येक फाइल पि शुरु में फाइल औि


नदिों की सख्
ं या तर्ा गीताजीके अध्याय औि श्लोकोंकी
संख्या नलखी गई है; इसके बाद हरिःशिणम-् संकीतथि का
संकेत औि श्रीस्वामीजी महािाज का िाम नलखा गया है।
इसके आगे प्रवचि की तािीख औि सत्संग के नवषय का
िाम नलखा गया है।

इिके अलावा प्रार्थिा शरुु होिे से पहले, प्रनतनदि गीताजी


के अध्याय औि श्लोकों की संख्या बोली गई है नजससे पता
लग जाता है नक आज नित्य स्तुनत-प्रार्थिा के बाद गीताजी
के कौि से दस श्लोकों का पाठ आिेवाला है। उसके बाद
नदिों की सख्
ं या औि प्रवचि का िाम बोला गया है, सत्सगं
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ६

का नवषय बताया गया है; उसके बाद श्रीस्वामीजी महािाज


का िाम औि प्रत्येक प्रवचि की तािीख बोली गयी है।

कई अिजाि लोग साधक-सज ं ीविी औि गीताजीको


अलग-अलग माि लेते हैं, उिको समझािे के नलये गीतापाठ
की सूचिा बोलते समय "गीता" िाम के सार्- सार्
"साधक- संजीविी" का िाम भी बोला गया है। इससे यह
दशाथया गया है नक गीताजी साधक-सज ं ीविी से अलग िहीं
है, साधक- सज ं ीविी गीताजी से अलग िहीं है। दोिों एक ही
हैं, दो िहीं है। जो श्लोक गीताजी में हैं वे - के वे ही श्लोक
साधक- संजीविी में है। गीताजी के श्लोकों को ही साधक-
सज ं ीविी में अच्छी तिह से समझाया गया है।

इसनलये प्रार्थिा के बाद गीताजी के दस- दस श्लोकों का पाठ


कििे से पहले , उिकी श्लोकसंख्या वाली सूचिा बोलते समय
"गीता साधक- सज ं ीविी, अमक
ु अध्याय, श्लोक अमक ु से
अमुक तक" बोला गया है। इससे गीता साधक-संजीविीका
प्रचाि भी होगा औि कोई ध्याि लगाकि साधक- संजीविी
प़िेंगे तो उिको गीताजी सुगमता से समझमें आ जायेगी।
उिको एक ियी नदशा नमलेगी। व्यवहाि औि पिमार्थ की
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ७

नवलक्षण नवलक्षण बातें नमलेगी। सत्सगं की बातें समझ में


आयेगी। औि भी बहुत कुछ होगा। सब संशय नमट जायेंगे।
सब द्वन्द्व समाप्त हो जायेंगे। पिमशानन्त नमल जायेगी।

इिके नसवाय इस प्रबन्ध में प्रवचिों के िामों वाली "बोली


हुई नवषयसूची" एक सार् ( इकट्ठी ) भी जोङी गई है (
इकहत्ति नदिोंवाली नवषयसच ू ी एक फाइल में ही जोङदी
गयी है )। इस सूची में से अपिे पसन्द का प्रवचि चुिकि
सुििे से बङी शानन्त नमलती है, बङा लाभ होता है औि
अच्छा लगता है। अपिे मि में पङी अिेक शंकाएुँ नमट जाती
है। िया प्रकाश (ज्ञाि) नमल जाता है।

यह प्रवचि- समूह ( सत्संग-समुदाय ) इकहत्ति नदिोंका


इसनलये बिाया गया नक इतिे नदिों में अङ्गन्यास आनद
सनहत क्रमशः पूिी गीताजी का पाठ हो जाता है।

( प्रनतनदि प्रार्थिा के बाद गीताजी के किीब दस-दस श्लोकों


का क्रमशः पाठ किते-किते इकहत्ति नदिोंमें अङ्गिास
किन्यास, माहात्म्पय औि आिती सनहत पूिी गीताजी का पाठ
हो जाता है। )
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ८

७०० श्लोकों वाली गीताजी के दस-दस श्लोकों का नवभाग


कििे से ७० नदि होते हैं ; पिन्तु गीता जी के अङ्गन्यास
किन्यास, माहात्म्पय, आिती, प्रत्येक अध्यायों की श्लोक
संख्या औि अध्यायों के आिम्पभ तर्ा समानप्त की मयाथदाओ ं
को ध्याि में िखते हएु यह काम ७१ नदिों में पिू ा नकया गया
है।

अध्यायों की मयाथदा िखते हएु दस- दस श्लोकों का नवभाग


उिके भीति ही नकया गया है। अनन्तम नवभाग में श्लोक कम
पङ जािे पि भी उस अध्याय की मयाथदा को लाुँघकि अगले
अध्याय में दखल िहीं दी गयी है। अध्याय की शुरुआत औि
समानप्त का गौिव िखते हएु उस नवभाग को छोटा ही िहिे
नदया है। जहाुँ अनन्तम नवभाग में कुछ श्लोक अनधक हो गये
तो उसी अध्याय के नवभागों को बाुँट नदया गया है; पि श्लोकों
की संख्या दस ही कििे का आग्रह िखकि जि मािस में
जनटलता पैदा िहीं की गयी है। नवभागों को सहज ही िहिे
नदया है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ९

[ श्रीस्वामीजी महािाज के समय में भी ( पाुँच बजे वाले


सत्संग से पहले ) गीताजी के दस- दस श्लोकों का पाठ इसी
प्रकाि से नवभाग किके नकया जाता िहा है। ]

जैसे, पहले अध्याय में सैंतालीस श्लोक है। इसके पाुँच नवभाग
नकये गये। अनन्तम नवभाग में तीि श्लोक कम पङ गये। कम
पङ जािे पि भी पहले अध्याय के समानप्त की सीमा (मयाथदा)
लाुँघकि औि दूसिे अध्याय के शुरुआत की मयाथदा तोङकि
तीि श्लोक उसमें से ले- लेिे की दखल िहीं दी गयी है। ऐसे
ही तीसिे अध्याय में तैंतालीस श्लोक है। उसमें दस- दस श्लोकों
के तीि नवभाग नकये गये। बचे हुए तीि श्लोक उस अध्याय के
नवभागों को ही बाुँट नदये गये अर्ाथत् ग्यािह- ग्यािह श्लोकों
के तीि नवभाग बिा नदये गये। इस प्रकाि सात सौ श्लोक
उिहत्ति नदिों में पिू े हएु । नफि एक नदि गीताजी के माहात्म्पय
औि आिती का तर्ा एक नदि गीता जी के अङ्गन्यास-
किन्यास आनद का- इस प्रकाि नमलकि- सब इकहत्ति नदि
हुए। इिके सार्-सार् प्रवचिों*३● की संख्या भी इकहत्ति
हो गयी।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १०

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसख


ु दासजी महािाज िे गीता-
पाठ*४● के आिम्पभ में अङ्गन्यास किन्यास आनद का पाठ
नकया है तर्ा गीता-पाठ के अन्त में गीता जी के माहात्म्पय का
पाठ नकया है औि गीताजी की आिती गायी है। ये इकहत्ति
नवभाग उसी गीतापाठ के नकये गये हैं।

ये नित्य-स्तुनत, गीतापाठ औि हरिःशिणम-् संकीतथि- तीिों


उन्हीं की आवाज ( स्वि ) के सार्-सार् कििे चानहये। ऐसा
कििे से प्रत्यक्ष औि अप्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।
महापरुु षों की वाणी के सार् में पाठ कििे का बङा महत्त्व है।
भगवाि् की बङी कृपा होती है तभी ऐसा मौका नमलता है।

इसके बाद श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसुखदासजी महािाजका


सत्संग- प्रवचि जरूि सुििा चानहये।

कई जिे पाुँच बजे प्रार्थिा तो कि लेते हैं (औि कई जिे


गीतापाठ भी कि लेते हैं ), पिन्तु सत्संग िहीं सुिते, सत्संग
को महत्त्व िहीं देते। वे प्रार्थिा आनद को ही जरूिी समझते हैं,
सत्संग को िहीं; नकन्तु जरूिी सत्संग ही है। यह समझिा
चानहये। श्री स्वामीजी महािाज सबसे अनधक महत्त्व सत्सगं
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ११

को देते र्े। इसनलये प्रार्थिा आनद के बाद सत्संग जरूि सिु िा


चानहये। सत्संग सुििा छोङदेिे वाले तो वैसे ही हैं, जैसे कोई
भोजि की तैयािी किके भोजि छोङदे।

अर्ाथत् जैसे कोई भोजि कििे की सब तैयािी किके भोजि


िहीं किता, तो उसको भोजि का लाभ िहीं नमलता; ऐसे ही
कोई प्रार्थिा आनद के द्वािा सत्संग सुििे की तैयािी किके
सत्सगं िहीं सिु ता, तो उसको सत्सगं का लाभ िहीं नमलता।
इसनलये हमको सत्संग के लाभ से वनचचत िहीं िहिा
चानहये।

ये प्रार्थिा आनद सत्सगं के नलये ही होते र्े, ऐसा समझिा


चानहये। लोग जब आकि*५● बैठ जाते तो पाुँच बजते
ही*६● तुिन्त प्रार्थिा शुरु हो जाती र्ी औि उसके सार् ही
सत्संग-स्र्ल का दिवाजा भी बन्द हो जाता र्ा,बाहिके
(लोग) बाहि औि भीतिके भीति (ही िह जाते र्े)।

नफि लोग प्रार्थिा, गीता-पाठ आनद किते, इतिेमें उिका मि


शान्त हो जाता र्ा, हलचल नमट जाती र्ी औि उिका मि
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १२

सत्सगं सिु िे के नलये तैयाि हो जाता र्ा। उस समय उिको


सत्संग सुिाया जाता र्ा। ( ऐसी अवस्र्ामें सत्संग सुििे से
बङा लाभ होता है। सत्संग हृदय में बैठता है। )

सत्सगं सुिते समय भी कोई र्ोडी-सी भी आवाज िहीं किता


र्ा। अगि नकसी कािण से कोई आवाज हो भी जाती तो बडी
अटपटी औि खटकिेवाली लगती र्ी।

पहले नित्य-स्तुनत एक कागज के लम्पबे पन्िे में छपी हुई होती


र्ीं। प्रार्थिा आनद के बाद में लोग उस पन्िे को गोळ-गोळ
किके समेट लेते र्े। समेटते समय सत्संग में उस पन्िे की
आवाज होती र्ीं,तो उस कागजकी आवाज (खडके ) से भी
सुििे में नवक्षेप होता र्ा, ध्याि उधि चला जाता र्ा। नफि वो
प्रार्थिा पुस्तकमें छपवायी गयी, नजससे नक आवाज ि हो
औि उसके कािण सत्संग सुििे में नवक्षेप ि हो। ध्याि सत्संग
सिु िे में लगा िहे। इस प्रकाि सत्सगं सिु ते समय कागज की
आवाज भी सुहाती िहीं र्ी। इतिा ध्याि से सुिा जाता र्ा
सत्संग। ध्याि देकि सुििे से सत्संग समझ में बहुत बऩिया
आता है। समझ में आिे से बात जुँच जाती है औि हृदय में
नबठायी जा सकती है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १३

सत्सगं सिु ते समय मिकी वृनत्त इधि-उधि चली जाती है तो


सत्संग ठीक तिह से समझ में िहीं आता। शान्तनचत्त से, मि
लगाकि सुििे से समझ में आता है औि लगता भी बहुत
अच्छा है।

इस प्रकाि दिवाजा बन्द किके प्रार्थिा, गीतापाठ औि


संकीतथि आनद के किके सत्संग सुििे की तैयािी की जाती
र्ी नजससे नक सत्संग सुिते समय ध्याि इधि-उधि ि जाय,
कोई नवक्षेप ि हो औि एकाग्रता से सत्सगं सिु ी जाय,
सुििेका प्रवाह टूटे िहीं, सत्संगका प्रवाह अबाध-गनत से
श्रोताओ ं के हृदय में आ जाय औि वो उसी में भिा िहे।

सत्सगं के बाद*७● भी भजि-कीतथि आनद कोई दूसिा


प्रोग्राम िहीं नकया जाता र्ा। दूसिी बातें भी िहीं की जाती
र्ीं।

( क्योंनक ऐसा कििे से हम सत्संग में सुिी हुई कई बातें भूल


जाते हैं, याद िहीं िहती, हृदय में ठहि िहीं पाती।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १४

इसनलये सत्सगं के बाद कुछ देि तक नबल्कुल चपु िहिा


चानहये। सुिी हुई बातों को हृदय में ठहििे देिा चानहये। उिको
हृदय में बैठािा चानहये। )

इस प्रकाि शान्तनचत्त से, मि लगाकि सत्संग सुििे के नलये


दिवाजा बन्द, प्रार्थिा, गीतापाठ औि संकीतथि आनद
उपयोगी होते र्े। इसनलये यह समझिा चानहये नक ये सब
सत्संग के नलये नकये जाते र्े।

नजसके नलये इतिी तैयािी की जाती है, ध्याि लगाकि सुििे


की कोनशश की जाती है, ऐसा वो सत्संग छोडिा िहीं चानहये,
प्रार्थिा आनद के बाद सत्संग जरूि सुििा चानहये। सत्संग तो
प्रार्थिा आनद सब साधिों का फल है-

सिसगं ि मदु मगं ि मि


ू ा।
सोइ फि लसलध सब साधन फूिा।।
(रामचररि.बाि.३)।


नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १५

इस इकहत्ति नदिों वाले सत्सगं - समदु ाय में खास बात यह है


नक प्रार्थिा,गीतापाठ, हरि:शिणम् ( संकीतथि ) औि प्रवचि-
ये चािों श्रीस्वामीजी महािाज की ही आवाज ( वाणी ) में हैं,
उन्हीके स्वि में हैं। महापुरुषों की वाणी में बङी नवलक्षणता
होती है, बङा प्रभाव होता है। जहाुँ महापरुु षों की वाणी
चलती है, वहाुँ बङा आिन्द मङ्गल िहता है। बङा लाभ
होता है। इसनलये कृपया इसके द्वािा वो लाभ स्वयं लें औि
दूसिों को भी लाभ लेिेके नलये प्रेरित किें।।

अपिे घि, मोहल्ले या सत्संग भवि आनद में प्रातः पाुँच बजे
इस नित्य- सत्संग की व्यवस्र्ा कििी चानहये नजससे नक
सबलोग सगु मता पवू थक सत्सगं का लाभ ले सकें ।

'श्रीस्वामीजी महािाज' के समय में पाुँच बजे नजस प्रकाि से


सत्सगं होता र्ा आज भी उसी प्रकाि से कििा चानहये। प्रकाि
में परिवतथि िहीं कििा चानहये। महापुरुषों िे नजस तिीके से
सत्संग नकया औि किवाया र्ा उसी तिीके से कििे से बङा
लाभ होता है, बङी शनि नमलती है। महापुरुषों द्वािा आचरित
इस प्रकाि इस सत्सगं को कोई भी किेंगे औि किवायेंगे तो
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १६

उिको बङा भािी लाभ होगा। यह दुनियाुँ की बङी भािी सेवा


है। नकसी को भगवाि् की तिफ लगािा पिमसेवा है।

गीताप्रेस के संस्र्ापक सेठजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका


कहते र्े नक लाखों मिुष्यों की भौनतक सेवा से एक मिुष्य
की पिमसेवा ( भगवाि् की तिफ लगा देिा ) ब़िकि है।

इस प्रकाि हम नित्य सत्सगं का लाभ ले सकते हैं औि लोगों


को भी यह लाभ नदला सकते हैं। प्रातः पाुँच बजते ही यन्र
के द्वािा शुरु किके यह सत्संग अिेक लोगों को सुिाया जा
सकता है औि इस प्रकाि सत्संग किवाया जा सकता है।
हमलोगों चानहये नक सत्सगं का लाभ स्वयं लें औि दूसिों को
भी दें। सत्सगं प्रनतनदि किें।

नफि सत्सगं में सिु ी हुई बातों की बैठकि आपस में चचाथ किें।
एक- दूसिे आपस में सत्संग की बातों का आदाि-प्रदाि किते
हुए ठीक तिह से समझें औि समझावें।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज कहते हैं नक


सत्सगं के बाद सिु ी हईु बातों की बैठकि आपस में चचाथ
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १७

कििे से, समझिे से बङा लाभ होता है। बनु द्ध का नवकास
होता है।

इस प्रकाि कििे से सत्संग की बातें नवशेष समझ में आती है।


एक बात पि नकसी का ध्याि िहीं गया या याद िहीं िही तो
दूसिा याद नदला देता है। जैसे दीपकके िीचे अुँधेिा िहता है,
पि दो दीपक एक-दूसिेके सामिे िख दें तो दोिों दीपकोंके
िीचेका अुँधेिा दूि हो जाता है।

साधक- संजीविी गीता (१०\११ की व्याख्या) में नलखा नक

••• नफि वे आपसमें एक-दूसिेको भगवाि् के तत्त्व, िहस्य,


गुण, प्रभाव आनद जिाते हैं तो एक नवलक्षण सत्संग होता है।
जब वे आपसमें भावपवू थक बातें किते हैं, तब उिके भीति
भगवत्सम्पबन्धी नवलक्षण-नवलक्षण बातें स्वत: आिे लगती
हैं।

जैसे दीपकके िीचे अुँधेिा िहता है, पि दो दीपक एक-दूसिेके


सामिे िख दें तो दोिों दीपकोंके िीचेका अुँधेिा दूि हो जाता
है। ऐसे ही जब दो भगवद्भि एक सार् नमलते हैं औि
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १८

आपसमें भगवत-् सम्पबन्धी बातें चल पडती हैं, तब नकसीके


मिमें नकसी तिहका भगवत्सम्पबन्धी नवलक्षण भाव पैदा
होता है तो वह उसे प्रकट कि देता है तर्ा दूसिे के मिमें औि
तिहका भाव पैदा होता है तो वह भी उसे प्रकट कि देता है।
इस प्रकाि आदाि-प्रदाि होिेसे उिमें िये-िये भाव प्रकट
होते िहते हैं। पिन्तु अके लेमें भगवाि् का नचन्ति कििेसे उतिे
भाव प्रकट िहीं होते। अगि भाव प्रकट हो भी जायुँ तो अके ले
अपिे पास ही िहते हैं, उिका आदाि-प्रदाि िहीं होता। ■

इस प्रकाि सत्संग की बातों को अच्छी तिह समझिा चानहये


औि प्रनतनदि सत्सगं कििा चानहये।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

नट्पनणयाुँ-

*१. नित्य-स्तुनत प्रार्थिा के चुिे हुए उि (उन्िीस) श्लोकों की


संख्या गीताजी में इस प्रकाि है- (२/७; ८/९; ११/१५-२२,
३६-४४;)।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग १९

इस प्रार्थिा की शरुु आत से पहले, श्रीगणेश में यह श्लोक


बोला जाता र्ा-
'गजाननं भूिगर्ालदसेलविं
कलपत्र्जम्बूफिचारुभक्षर्म्।
उमासुिं शोकलवनाशकारकं
नमालम लवघ्नेश्वरपादपड़्कजम'् ।।

औि समानप्त के बाद यह श्लोक बोला जाता र्ा -

त्वमेव मािा च लपिा त्वमेव


त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव लवद्या द्रलवर्ं त्वमेव
त्वमेव सवं मम देवदेव ।।

( इस प्रकाि के वल प्रार्थिा के ही इक्कीस श्लोक हो जाते र्े।


इसके बाद प्रनतनदि गीताजी के लगभग दस श्लोकों का
क्रमशः पाठ तर्ा संकीतथि औि होता र्ा। )

ये सब लगभग सरह से लेकि बीस नमनिटों में पूिे हो जाते र्े।


इसके बाद (किीब 0518 बजे से) श्रीस्वामीजी महािाज
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २०

सत्सगं -प्रवचि किते र्े। यह सत्सगं पहले बाईस नमनिट के


आसपास औि बाद में किीब सत्ताईस नमनिट होिे लगा। यह
प्रायः छः बजे से 18 या 13 नमनिट पहले ही समाप्त कि नदया
जाता र्ा।
*२. श्री स्वामी जी महािाज का पाुँच बजेवाला यह सत्संग-
प्रोग्राम र्ोङे समयमें ही बहुत लाभ देिेवाला र्ा। उिके
सत्संग से लोगों को आज भी बहुत लाभ हो िहा है औि आगे,
भनवष्य में भी लोगों को इस सत्संग से बहुत लाभ होगा।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज के सत्संग में
हि प्रकाि के मिुष्य को अपिे- अपिे काम की सामग्री
नमलती है। इसनलये यह सत्सगं सबके काम का है। इसमें
बहुत नवलक्षणताएुँ भिी हुई है। इसमें तिह-तिह के लाभ है।

इसमें अिेक प्रकाि की नवशेषताएुँ हैं।

जैसे-
यह गीताज्ञाि िहस्य युि, शास्त्र सम्पमत, अिुभव सनहत,
युनियुि, सत असत का नवभाग बतािेवाला औि तत्काल
पिमात्मप्रानप्त का अिभ
ु व किािे वाला है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २१

यह नबिा कुछ नकये पिमात्मा की प्रानप्त किािेवाला, सिलता


से भगवत्प्रानप्त किािेवाला, किणसापेक्ष तर्ा किणनििपेक्ष
साधि बतािे वाला औि किणिनहत साध्य का अिुभव
किािेवाला है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज का सत्संग


आजकल की आवश्यकता युि, सामनयक, रुनचकि औि
तिह-तिह की शंकाओ ं का समाधाि कििेवाला है।

यह सश ं यछे दक, दुःख नमटािेवाला, िाग-द्वेष नमटािेवाला,


समता लािेवाला, शोकिाशक, नचन्ता नमटािेवाला औि
पश्चात्ताप हििेवाला है।

यह उन्माद, नडप्रेशि टेंशि नमटािेवाला, स्वास््य ठीक


कििेवाला, ससं ाि का मोह नमटािेवाला, सस ं ाि की
निःसािता बतािेवाला, चेतािेवाला, तीिों तापों का िाश
कििेवाला औि व्यवहाि में पिमार्थ की कला नसखािेवाला
है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २२

यह गभथपात आनद बङे -बङे पापों से बचािेवाला, मृत्यु से


बचािेवाला, आत्महत्या से बचािेवाला, दुघथटिािाशक,
बुिाई िनहत कििेवाला औि संसािमार् की असीम सेवा का
िहस्य बतािेवाला है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसख
ु दास जी महािाज का सत्सगं
परिवाि में प्रेम से िहिे की नवद्या नसखािेवाला, आपसी
मतभेद नमटािेवाला, खटपट नमटािेवाला, लङाई- झगङे
का समाधाि कििेवाला औि सुख शानन्त कििेवाला है।
यह गऊ, ब्राह्मण, नहन्दू औि नहन्दु सस्ं कृनत की िक्षा
कििेवाला, साधकों को सही िास्ता बतािेवाला, साधू औि
गृहस्र्ों को सही मागथ बतािेवाला औि साधुता नसखािेवाला
है, सज्जिता नसखािेवाला है।
यह अहंता ममता नमटािेवाला, भय, आशा, तष्ृ णा, आसनि
आनद नमटािेवाला, काम क्रोध आनद नवकािों से
छुङािेवाला औि त्याग वैिाग्य नसखािेवाला है।

श्री स्वामी जी महािाज सत्संग पिमात्मा का पिमप्रेम प्रदाि


कििेवाला,भगवाि् की लीला समझािेवाला, भनि का
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २३

िहस्य बतािेवाला, भगवाि् से अपिापि औि पिम प्रभस


ु े
नित्य-सम्पबन्ध जोङिेवाला है।

यह भगवत्कृपा का िहस्य बतािेवाला, सगण ु - निगथण ु ,


साकाि- नििाकाि का िहस्य समझािेवाला, वासुदेवः सवथम्
, समग्ररूप भगवाि् का ज्ञाि किािेवाला, सबका समन्वय
कििेवाला, संसाि औि पिमात्मा का भेद नमटािेवाला है।

यह तकथ सनहत, तानत्त्वक, गुरुज्ञाि, तत्त्वज्ञाि, ब्रह्मज्ञाि तर्ा


कमथ का िहस्य बतािेवाला, अर्थयुि, सािगनभथत,
सवथनहतकािी, मािवमार् का कल्याण कििेवाला, बङा
नवलक्षण औि अत्यन्त प्रभावशाली है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज का सत्संग


अपिे नप्रयजि की मृत्यु का शोक हििेवाला, सम्पपनत्तिाश से
होिेवाला दुःख नमटािेवाला, दरिद्रतािाशक औि व्यापाि
की कला नसखािेवाला है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २४

यह नफज़ुलखचथ नमटािेवाला, आमदिी बढािेवाला, बिकत


कििेवाला, कचजूसी नमटािेवाला, सदुपयोग नसखािेवाला,
लक्षमी लािेवाला औि सौभाग्य ब़िािेवाला है।

यह मिोमानलन्य नमटािेवाला, सास-बहू में प्रेम ब़िािेवाला,


दाम्पपत्य जीवि सखु मय कििेवाला, वश ं वनृ द्ध कििेवाला,
बालबच्चों को मृत्यु से बचािेवाला औि बहि बेटी की िक्षा
कििेवाला है।

श्री स्वामी जी महािाज का सत्संग माता- नपता, सास- ससुि


आनद की सेवा किवािेवाला, शािीरिक कष्ट नमटािेवाला,
जादू-टोिा, देवी-देवता, प्रेत-नपति, भतू -नपशाच आनद का
भय नमटािेवाला, बहम का दुःख नमटािेवाला औि नम्या
भ्रम का निवािण कििेवाला है।

यह दोषदृनष्टिाशक, स्वभाव सुधाििेवाला, लोक- पिलोक


सुधाििेवाला, पापी का भी कल्याण कििेवाला औि
जीवन्मनु ि प्रदाि कििेवाला है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २५

यह भगवाि् में प्रेम बढािेवाला, भगवद्धाम की प्रानप्त


किािेवाला, नित्यप्राप्त की प्रानप्त किवािेवाला औि आिन्द-
मङ्गल कििेवाला है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज का सत्संग


खाि-पाि शद्ध ु कििेवाला, शद्ध
ु आचाि-नवचाि
नसखािेवाला, नियम व्रत नसखािेवाला, उत्साह ब़िािेवाला
औि नििाशा का दुःख नमटािेवाला है।

यह सत्संग असहाय को सहायता देिेवाला, दुःखों से व्यनर्त


की व्यर्ा नमटािेवाला, भीति का दुःख नमटािेवाला औि
हािेहएु को सहािा देिेवाला है।

यह सत्सगं नजसका कोई िहीं उसको सहािा देिेवाला, गिीबों


को अपिापि देिेवाला, उदािता नसखािेवाला, कुिीनत
नमटािेवाला औि नगिेहुए को उठािेवाला है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज का सत्संग


सुख की िींद देिेवाला, आपस का मिमुटाव नमटािेवाला,
प्रेम किािेवाला, बिु ाई कििेवाले की भी भलाई कििेवाला,
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २६

दोष नमटािेवाला, निवाथह की नचन्ता नमटािेवाला, औि


आिन्द कििेवाला है।

इस प्रकाि औि भी अिेक प्रकाि से लाभ देिेवाला है, यह तो


कुछ नदग्दशथि है।

इसमें औि भी कई नवलक्षणताएुँ भिी हुई है। इससे बङा भािी


लाभ होता है। यह भगवाि् की बङी कृपा है जो हमलोग उस
समय के सत्संग से आज भी वैसा ही लाभ ले सकते हैं।

*३. इस सत्सगं -समदु ाय में पसन्द नकये गये नवशेष प्रवचि


जोङे गये हैं। जो वषोंतक सत्सगं सिु ते- सिु ते पसन्द नकये
गये र्े।

प्रवचि सिु ते समय नकसी प्रवचि में कोई नवशेष बात समझ
में आयी, तो उस प्रवचि को अलग से संग्रह के नलये िख
नलया र्ा। ऐसे अिेक प्रवचिों में से ये इकहत्ति प्रवचि
चुिकि इस सत्संग- समुदाय में जोङे गये हैं। इिमें पाुँच बजे
के अलावा दूसिे समय के प्रवचि भी हैं। कुछ नमनिटों के
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २७

अलावा ये प्रवचि भी लगभग आधे घटं े के हैं। ( इि प्रवचिों


के िामों की सूची भी बतायी गयी है। )

*४. श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज द्वािा


नकया गया गीतापाठ अिेक प्रकाि से बङा उपयोगी है।
इसनलये इससे सबको लाभ लेिा चानहये।

नजिको ठीक तिह से गीता प़ििा िहीं आता हो तो उिको


चानहये नक श्रीस्वामीजी महािाज द्वािा नकये गये गीतापाठ के
सार्- सार् गीतापाठ किें। इससे उिको ठीक तिह से गीता
प़ििा आ जायेगा।

नजिको गीता प़ििा तो आता है पि शुद्ध उच्चािण कििा िहीं


आता, तो उिको चानहये नक इसके सार्-सार् ध्याि देकि
गीतापाठ किें। इससे उिको शद्ध
ु उच्चािण कििा आ जायेगा,
वे शुद्ध उच्चािण किके गीता प़ििा सीख जायेंगे।

श्रीस्वामीजी महािाज से कोई पूछता नक मेिे को गीता जी के


संस्कृत श्लोक शुद्ध उच्चािण किके प़ििे िहीं आते, मैं श्लोकों
का उच्चािण शद्ध ु कै से करूुँ? तो श्रीस्वामीजी महािाज
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २८

उिको उपाय बताते नक यहाुँ सबु ह चाि बजे गीताजी की टैप


( कै सेट ) लगती है; उसके सार्-सार् गीताजी प़िो।

( इस प्रकाि संस्कृत श्लोकों का उच्चािण शुद्ध नकया जा


सकता है। इस गीतापाठ के सार् गीताजी प़िकि कोई भी
उच्चािण शद्ध
ु कि सकता है। )

प्रश्न-
गीताजी के सस्ं कृत श्लोक आनद प़ििे में कोई गलती हो जाय
तो कोई दोष तो िहीं लगेगा?

उत्ति-
िहीं लगेगा; क्योंनक प़ििेवाले की िीयत (मि का भाव)
सही है।

ऐसा प्रश्न नकसीिे श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखु दास जी


महािाज से नकया र्ा। तब वे बोले नक आप गीताजी प़िो,
भगवाि् िीयत देखते हैं अर्ाथत् भगवाि् देखते हैं नक इसकी
िीयत गीता प़ििे की है, प़ििे में यह जाि बूझकि गलती िहीं
किता। शरुु आत में ऐसे गलनतयाुँ हो जाती है। भगवाि्
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग २९

गलनतयों की तिफ िहीं देखते, िीयत की तिफ देखते हैं।


िीयत सही होिे से गलनतयाुँ होिेपि भी माफ कि देते हैं।

पढते समय बालक से शुरु- शुरु में गलनतयाुँ होती है; पिन्तु
प़िािेवाले माफ कि देते हैं ( िहीं तो प़ििा औि प़िािा- दोिों
मुनश्कल हो जायेंगे )। इसनलये अशुद्ध उच्चािण की गलती
के डि से गीताजी को छोड िहीं देिा चानहये, गीताजी प़ििी
चानहये। हमािी िीयत गीता प़ििे की है औि ठीक तिह से िहीं
प़ि पा िहे हैं तो भी भगवाि् िाजी होते हैं। जैसे बालक की
तोतली बातों से माता नपता िाजी होते हैं, ऐसे भगवाि् भी
गीता प़ििे से िाजी होते हैं।

इसनलये नित्यस्तुनत के बाद श्रीस्वामीजी महािाज की वाणी


के सार्- सार् गीतापाठ जरूि कििा चानहये। ठीक तिह से
प़ििा ि आये तो भी गीताजी प़ििी चानहये, प़ििे की
कोनशश कििी चानहये। कोनशश कििे से ठीक तिह से प़ििा
आ जाता है।

[ अबकी बाि इस प्रबन्ध में साफ आवाज वाली गीतापाठ


के श्लोक जोङे हैं। इस गीतापाठ की आवाज नसंगापुि भेजकि
साफ किवायी गयी र्ी। ]
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३०

*५. शीतकाल में सयू ोदय देिी से होता है। सबु ह पाुँच जल्दी
बज जाते हैं। इस कािण सुिक्षा के नलये प्रातः पाुँच बजेवाली
प्रार्थिा सत्संग में माता- बहिों का आिा वनजथत र्ा।
वृन्दावि, ऋनषके श आनद तीर्थस्र्लों में पाुँच बजे भी माताएुँ
बहिें आ सकती र्ीं। नजस गाुँव या शहि में सत्सगं का
आनखिी नदि होता र्ा , उस नदि भी पाुँच बजे माता बहिों
के नलये आिे की छूट र्ी, वो भी सत्संग में आ सकती र्ीं
औि पाुँच बजे सत्संग- स्र्ल का दिवाज़ा भी बन्द िहीं होता
र्ा। देिी से आिेवाले भी प्रवेश कि सकते र्े।

*६. श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज कहते हैं


नक पाुँच बजते ही हम प्रार्थिा शरुु कि देते हैं तो दुनियाुँ भि
में जो प्रार्थिा होती है, हम सब उिके सार् एक हो जाते हैं (
अपिे घि, गाुँव, देश, नवदेश आनद दुनियाुँ भि में जहाुँ- जहाुँ
पाुँच बजेवाली प्रार्थिा होती है, वहाुँ- वहाुँ के सबलोग एक
ही समय में होिेवाली इस प्रार्थिा में एक सार् शानमल मािे
जाते हैं )। नजतिे लोग एक सार् प्रार्थिा किते हैं, उतिे ही गुिा
लाभ अनधक होता है, उिमें से प्रत्येक को उतिे ही गुिे
अनधक लाभ नमलता है। जैसे, दस हजाि लोग एक सार् में
एक बाि प्रार्थिा किते हैं तो उिमें से एक एक को दस हजाि
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३१

बाि प्रार्थिा कििे का लाभ एक बाि में होता है। इसनलये यह


प्रार्थिा सत्संग प्रातः पाुँच बजे ही कििी चानहये, आगे- पीछे
िहीं। पाुँच बजे कििे से ही सब एक सार् शानमल होते हैं।
नवदेश में िहिे वालों को चानहये नक भाित में नजस समय पाुँच
बजते हैं उस समय यह प्रार्थिा सत्सगं वाला प्रोग्राम किें।

(अगि समय पि िहीं कि पाये तो आगे -पीछे या नकसी भी


समय किके सत्सगं का लाभ ले सकते हैं। अन्य समय में
सत्संग कििे का निषेध िहीं है। यह तो उस समुदाय में एक
सार् शानमल होिेवालों के नलये कहा गया है।)

*७. सज्जिों से निवेदि है नक श्रीस्वामीजी महािाज के


समयमें नजस प्रकाि से सत्संग होता र्ा, आज भी उसी प्रकाि
से किें। इसके बीचमें औि शुरुआत में तर्ा समानप्त पि कोई
दूसिा प्रोग्राम ि जोङें। सत्सगं - समानप्त के बाद में भी पयाथप्त
समय तक अन्य प्रोग्राम शुरु ि किें औि ि दूसिी बातें किें ;
क्योंनक इससे हम सत्संग में सुिी हुई कई बातें भूल जाते हैं।
दूसिी बातें कििे से उन्हींकी प्रधािता हो जाती है औि सत्संग
की बातें गौण हो जाती है। सिु ी हईु बातें चली जाती है।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३२

इसनलये सत्सगं सिु िे के बाद कुछ देितक नबल्कुल चपु िहें


औि सत्संग की बातें हृदय में बैठिे दें।

यह इकहत्ति नदिोंवाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध इस पते


पि मुफ्त में नमलता है-
(अपलोड प्रनक्रया में ▪︎▪︎▪︎) ●●●
-------------+●+--------------
इकहत्ति नदिों वाले प्रवचि- समदु ाय का प्रबन्ध एक पहले
भी नकया गया र्ा नजसकी सच ू ी "श्रीस्वामीजी महािाज की
यर्ावत् वाणी" िामक पुस्तक में दी गयी है। इस पुस्तक में
सोलह जीबी मेमोिी काडथ वाली सत्संग- सामग्री की सूची
भी दी गयी है। श्रीस्वामीजी महािाज के ग्यािह चातुमाथसों
वाले प्रत्येक प्रवचिों के िामों की सच ू ी दी है औि अनन्तम
प्रवचि आनद को यर्ावत् नलखा गया है, प्रवचि किते समय
जैसे-जैसे श्रीस्वामीजी महािाज बोले हैं, वैसेके वैसे ही ( हू-
बहू ) नलखे हुए प्रवचि इस पुस्तक में नदये गये हैं। ये सब
इण्टििेट के इस पते पि निःशल्ु क उपलब्ध हैं-
bit.ly/1satsang औि bit.ly/1casett
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३३

यह सामग्री हमािे यहाुँ निःशल्ु क नमलती है। मफ्ु त में दी जाती


है। यह इण्टििेट पि भी निःशुल्क उपलब्ध है।

इण्टििेट पि सत्संग सामग्री का औि श्रद्धेय स्वामीजी श्री


िामसुखदास जी महािाज का िाम नलखदें, जब अिेक प्रकाि
की सामग्री सामिे आवे तब उिमें से अपिी इनच्छत सामग्री
चिु कि प्राप्त किलें, डाउिलोड किलें।
अबकी बाि वाले सत्संग-प्रबन्ध में साफ़ आवाज़ वाला
गीतापाठ, िये चुिे हुए प्रवचि, उिके नवषय औि सूची, तर्ा
अनधक जािकािी आनद औि कुछ अनधक नवशेषताएुँ जोङी
गई है। नजससे यह अनधक उपयोगी, रुनचकि औि सगु म हो
गया है।

यह इस पते पि निःशुल्क उपलब्ध है- ( नलंक प्रनक्रया में ▪︎▪︎▪︎


) ●●●

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज के लगाताि


सोलह वषों ( सि् 1990 से 2005 तक ) के प्रवचि, भजि,
कीतथि, ििसीजी का माहेिा, गीताजी की व्याख्या, गीता-
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३४

माधयु थ, पिु ािे प्रवचि आनद औि श्रीस्वामीजी महािाज के


नसद्धान्तों आनद की जािकािी "महापुरुषोंके सत्संगकी
बातें" िामक पुस्तक में दी गयी है। श्रीस्वामीजी महािाज के
नवषय में सही जािकािी ि होिे के कािण लोग कनल्पत,
मिगढन्त औि भ्रामक बातें कििे लग जाते हैं, उिका निवािण
कििे के नलये इस पुस्तक में सही जािकािी दी गयी है। तर्ा
इसमें औि भी उपयोगी सामग्री दी गयी है।

यह यहाुँ पि निःशुल्क नमलती है-

"सत्सगं -स्वामी रामसुखदासजी महाराज(के सत्संगके पते-


दिकाने आदद)।".
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-
post_37.html

पहलेवाला इकहत्तर ददनोंवाला सत्संग-समुदाय नीचे ददये


गये दलंक, पते द्वारा कोई भी दनिःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं,
डाउनलोड कर सकते हैं और सुन सकते हैं -
नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गगू ल ड्राइव) ।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३५

तथा-
@दनत्य-स्तुदत,गीता,सत्संग- श्रद्धेय ●● स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज@

( - पहलेवाले इकहत्तर ददनोंके सत्सगं -प्रवचनके सेटका


पता- )
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/A
ABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0

(हररिःशरणम् (सक ं ीततन) यहााँ (इस पते) से प्राप्त करें -


https://db.tt/0b9ae0xg )।

इस प्रकाि हमलोगों को चानहये नक इिके द्वािा अनधक से


अनधक लाभ लें औि दूसिों को भी लाभ लेिे के नलये प्रेरित
किें।

निवेदक- डुुँगिदास िाम।


सीतािाम सीतािाम।
दीपावली, नवक्रम संवत् २०७७, शुक्रवाि
▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३६

नजि महापरुु षों िे कनलयगु की जलती हुई आग से दुनियाुँ


को बचाया, नजि महापुरुषों िे करुणा की बिसात से दुनियाुँ
को शानन्त प्रदाि की, नजि महापुरुषों िे भटके हुए लोगों को
सही िास्ता नदखाया औि उिकी िक्षा की, नजि महापुरुषों की
वाणी औि ग्रर्ं ों के द्वािा असख्
ं य िि िािी कल्याण को प्राप्त
हुए औि आगे भी होते िहेंगे, नजि महापुरुषों िे दुनियाुँ का
बङा भािी नहत नकया, नजि महापुरुषों की दुनियाुँ सदा ऋणी
िहेंगी। ऐसे उि महापुरुषों को बािम्पबाि प्रणाम है। बािम्पबाि
प्रणाम है।

नजि करुणा सागि प्रभु िे गीताप्रेस के सस्ं र्ापक,


उत्पादक,सिं क्षक औि नहतकािक पिमश्रद्धेय सेठजी श्री
जयदयाल गोयन्दका जैसे महापुरुषों को ऐसे अवसि भेजा
तर्ा श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसुखदास जी महािाज जैसे
महापरुु षों का सत्सगं नदया, उि पिम नहतकािी, पिम प्रभु
पिमेश्वि को बािम्पबाि प्रणाम है, प्रणाम है।।

सवे भवन्िु सलु खनः सवे सन्िु लनरामयाः।


सवे भद्रालर् पश्यन्िु मा कलश्चद् दःु ख भाग्भवेि।् ।
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३७

राम राम राम राम राम राम राम।


राम राम राम राम राम राम राम।।

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----------------------------------

पता-
सत्संग-सतं वाणी.
श्रद्धेय●● स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सानहत्य पढें
और उिकी वाणी सुिें।
http://dungrdasram.blogspot.com
नित्य स्तुनत (प्रार्थिा), गीतापाठ और सत्संग ३८

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