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[9 �दसंबर, 2020 को यथा�व यमान]

The Constitution of India


[As on 9th December, 2020]
प्राक्क्थन

भारत के सं�वधान के इस संस्करण म� संसद द्वारा समय समय पर


संशो�धत �कये गये भारत के सं�वधान के पाठ को उद्धृत �कया गया है ।
इस संस्करण म� सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019
तक तथा उस स�हत संसद द्वारा �कए गए सभी संशोधन� को सिम्म�लत
�कया गया है । इस पाठ म� नीचे �दए गये पाद �टप्पण म� उन सं�वधान
संशोधन अ�ध�नयम� को उपद�शर्त �कया गया है िजनके द्वारा ऐसे संशोधन
�कये गए ह�।
सं�वधान (जम्मू और कश्मीर म� लागू) आदे श, 2019 को प�र�श�
1 म� संदभर् हे तु सिम्म�लत �कया गया है।
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 और सं�वधान
(अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003, जो �क अभी प्रवतृ नह�ं हुए ह�, से
संबं�धत संवध
ै ा�नक संशोधन� के पाठ को इस संस्करण म� सम�ु चत स्थान�
पर या अन्यथा पाद �टप्प्ण म� सिम्म�लत �कया गया है । इन संशोधन�
के पाठ को प�र�श� 2 और प�र�श� 3 म� संदभर् हे तु सिम्म�लत �कया
गया है ।
भारत और बांग्लादे श सरकार� के मध्य अिजर्त और अंत�रत
राज्य�ेत्र� के ब्यौर� को अंत�वर्� करने वाले सं�वधान (एक सौवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 2015 को प�र�श� 4 म� सिम्म�लत �कया गया है।

नई �दल्ल� : डा. जी. नारायण राजू


9 �दसंबर 2020 स�चव, भारत सरकार
संक्षप
े ाक्षर की सूची

का0आ0.............................................................. कानूनी आदे श ।

का0िन0आ0........................................................ कानूनी िनयम और आदे श ।

प0
ृ ................................................................... पृ ।

सं0 ................................................................... संख्यांक (न बर) ।

सं0आ0............................................................... संिवधान आदे श ।


भारत का संिवधान

िवषय सच
ू ी
उ िे शका

अनु छे द पृ
भाग 1
संघ और उसका रा यक्षेत्र
1. संघ का नाम और रा यक्षेत्र ............................................................ 2
2. नए रा य का प्रवेश या थापना...................................................... 2
[2क. िसिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त िकया जाना – िनरिसत ।]….......... 2
3. नए रा य का िनमार्ण और वतर्मान रा य के क्षेत्र , सीमाओं या नाम
म पिरवतर्न ................................................................................. 2
4. पहली अनुसच ू ी और चौथी अनुसच ू ी के संशोधन तथा अनुपरू क,
आनषु ंिगक और पािरणािमक िवषय का उपबंध करने के िलए अनु छे द
2 और अनु छे द 3 के अधीन बनाई गई िविधयां …………………….............. 3
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता ................................................... 4
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार ................................................................. 4
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार ...................................................................................... 5
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार .................................................................. 5
9. िवदे शी रा य की नागिरकता वे छा से अिजर्त करने वाले यिक्तय का
नागिरक न होना....................................................................... 5
10. नागिरकता के अिधकार का बना रहना ............................................ 5
11. संस द्वारा नागिरकता के अिधकार का िविध द्वारा िविनयमन िकया जाना 5
िवषय सूची (ii)
अनु छे द पृ

भाग 3

मूल अिधकार
साधारण

12. पिरभाषा ....................................................................................... 6


13. मल
ू अिधकार से असंगत या उनका अ पीकरण करने वाली िविधयां…..... 6
समता का अिधकार
14. िविध के समक्ष समता..................................................................... 6
15. धमर्, मल
ू वंश, जाित, िलंग या ज म थान के आधार पर िवभेद का प्रितषेध 6
16. लोक िनयोजन के िवषय म अवसर की समता .................................. 7
17. अ प ृ यता का अंत.......................................................................... 8
18. उपािधय का अंत............................................................................ 8
वातं य-अिधकार
19. वाक् - वातं य आिद िवषयक कुछ अिधकार का संरक्षण ..................... 8
20. अपराध के िलए दोषिसिद्ध के संबंध म संरक्षण................................. 10
21. प्राण और दै िहक वतंत्रता का संरक्षण................................................ 10
21क. िशक्षा का अिधकार.......................................................................... 10
22. कुछ दशाओं म िगर तारी और िनरोध से संरक्षण............................... 10
शोषण के िव द्ध अिधकार
23. मानव के द ु यार्पार और बला म का प्रितषेध ..................................... 11
24. कारखान आिद म बालक के िनयोजन का प्रितषेध............................. 12
धमर् की वतंत्रता का अिधकार
25. अंतःकरण की और धमर् के अबाध प से मानने, आचरण और प्रचार
करने की वतंत्रता …………………………………………………………………………………………….. 12
26. धािमर्क काय के प्रबंध की वतंत्रता.................................................. 12
27. िकसी िविश धमर् की अिभविृ द्ध के िलए कर के संदाय के बारे म
वतंत्रता ...................................................................................... 13
28. कुछ िशक्षा सं थाओं म धािमर्क िशक्षा या धािमर्क उपासना म उपि थत
होने के बारे म वतंत्रता.................................................................. 13
िवषय सूची (iii)
अनु छे द पृ

सं कृित और िशक्षा संबंधी अिधकार


29. अ पसंख्यक-वग के िहत का संरक्षण .............................................. 13
30. िशक्षा सं थाओं की थापना और प्रशासन करने का अ पसंख्यक-वग
का अिधकार………………………………………………………………………………………………………….. 13
[31. संपि का अिनवायर् अजर्न – िनरिसत ।] .......................................... 14
कुछ िविधय की याविृ
31क. संपदाओं आिद के अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविधय की
याविृ ......................................................................................... 14
31ख. कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण ………………………………. 15
31ग. कुछ िनदे शक त व को प्रभावी करने वाली िविधय की याविृ …………… 16
[31घ. रा िवरोधी िक्रयाकलाप के संबंध म िविधय की याविृ – िनरिसत ।] 16
सांिवधािनक उपचार का अिधकार
32. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए उपचार …….. 16
[32क. रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता पर अनु छे द 32 के अधीन
कायर्वािहय म िवचार न िकया जाना – िनरिसत ।] ……………………………. 16
33. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार का, बल आिद को लागू होने म,
उपांतरण करने की संस की शिक्त.................................................. 17
34. जब िकसी क्षेत्र म सेना िविध प्रव ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद
अिधकार पर िनबर् धन.................................................................... 17
35. इस भाग के उपबंध को प्रभावी करने के िलए िवधान ……................... 17
भाग 4
रा य की नीित के िनदे शक त व
36. पिरभाषा ....................................................................................... 19
37. इस भाग म अंतिवर् त व का लागू होना ……………………....................... 19
38. रा य लोक क याण की अिभविृ द्ध के िलए सामािजक यव था बनाएगा
........................................................................................ 19
39. रा य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीित त व............................................ 19
39क. समान याय और िनःशु क िविधक सहायता .................................... 20
िवषय सूची (iv)
अनु छे द पृ

40. ग्राम पंचायत का संगठन ............................................................... 20


41. कुछ दशाओं म काम, िशक्षा और लोक सहायता पाने का अिधकार…….. 20
42. काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं का तथा प्रसिू त सहायता
का उपबंध ..................................................................................... 20
43. कमर्कार के िलए िनवार्ह मजदरू ी आिद ............................................. 20
43क. उद्योग के प्रबंध म कमर्कार का भाग लेना ..................................... 20
43ख. सहकारी सोसाइिटय का संवधर्न ...................................................... 20
44. नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता .................................... 20
45. छह वषर् से कम आयु के बालक के िलए प्रारं िभक बा याव था दे ख-रे ख
और िशक्षा का उपबंध 20
46. अनुसिू चत जाितय , अनुसिू चत जनजाितय और अ य दब
ु ल
र् वग के 21
िशक्षा और अथर् संबध
ं ी िहत की अिभविृ द्ध .....................................
47. पोषाहार तर और जीवन तर को ऊंचा करने तथा लोक वा य का 21
सध
ु ार करने का रा य का कतर् य ....................................................
48. कृिष और पशुपालन का संगठन ....................................................... 21
48क. पयार्वरण का संरक्षण तथा संवधर्न और वन तथा व य जीव की रक्षा……. 21
49. रा ीय मह व के सं मारक , थान और व तुओं का संरक्षण............... 21
50. कायर्पािलका से यायपािलका का पथ
ृ ककरण....................................... 21
51. अंतररा ीय शांित और सरु क्षा की अिभविृ द्ध 21
भाग 4क
मूल कतर् य
51क. मल
ू कतर् य ................................................................................... 22
भाग 5
संघ
अ याय 1--कायर्पािलका
रा पित और उपरा पित
52. भारत का रा पित ............................................................................ 23
53. संघ की कायर्पािलका शिक्त ................................................................ 23
54. रा पित का िनवार्चन.......................................................................... 23
िवषय सूची (v)
अनु छे द पृ

55. रा पित के िनवार्चन की रीित ........................................................... 23


56. रा पित की पदाविध ......................................................................... 24
57. पन
ु िनर्वार्चन के िलए पात्रता ................................................................ 24
58. रा पित िनवार्िचत होने के िलए अहर्ताएं ............................................. 25
59. रा पित के पद के िलए शत ............................................................. 25
60. रा पित द्वारा शपथ या प्रितज्ञान........................................................ 25
61. रा पित पर महािभयोग चलाने की प्रिक्रया .......................................... 26
62. रा पित के पद म िरिक्त को भरने के िलए िनवार्चन करने का समय और
आकि मक िरिक्त को भरने के िलए िनवार्िचत यिक्त की पदाविध…. 26
63. भारत का उपरा पित...................................................................... 26
64. उपरा पित का रा य सभा का पदे न सभापित होना ......................... 26
65. रा पित के पद म आकि मक िरिक्त के दौरान या उसकी अनुपि थित म
उपरा पित का रा पित के प म कायर् करना या उसके कृ य का
िनवर्हन........................................................................................... 27
66. उपरा पित का िनवार्चन ................................................................. 27
67. उपरा पित की पदाविध ..................................................................... 28
68. उपरा पित के पद म िरिक्त को भरने के िलए िनवार्चन करने का समय
और आकि मक िरिक्त को भरने के िलए िनवार्िचत यिक्त की पदाविध … 28
69. उपरा पित द्वारा शपथ या प्रितज्ञान .................................................. 28
70. अ य आकि मकताओं म रा पित के कृ य का िनवर्हन................ 29
71. रा पित या उपरा पित के िनवार्चन से संबंिधत या संसक्त िवषय....... 29
72. क्षमा आिद की और कुछ मामल म दं डादे श के िनलंबन, पिरहार या
लघूकरण की रा पित की शिक्त......................................................... 29
73. संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार .............................................. 30

मंित्र-पिरष
74. रा पित को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष .................. 30
75. मंित्रय के बारे म अ य उपबंध ......................................................... 30

भारत का महा यायवादी


76. भारत का महा यायवादी ................................................................. 31
िवषय सूची (vi)
अनु छे द पृ

सरकारी कायर् का संचालन


77. भारत सरकार के कायर् का संचालन ................................................... 31
78. रा पित को जानकारी दे ने आिद के संबंध म प्रधान मंत्री के कतर् य 32
अ याय 2--संस
साधारण
79. संस का गठन.................................................................................. 32
80. रा य सभा की संरचना...................................................................... 32
81. लोक सभा की संरचना....................................................................... 33
82. प्र येक जनगणना के प ात ् पुनःसमायोजन …………………………………………….. 34
83. संस के सदन की अविध.............................................................. 34
84. संस की सद यता के िलए अहर्ता ................................................. 35
85. संस के सत्र, सत्रावसान और िवघटन.............................................. 35
86. सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा पित का
अिधकार ……………………………………………………………………………………………………………… 35
87. रा पित का िवशेष अिभभाषण ....................................................... 36
88. सदन के बारे म मंित्रय और महा यायवादी के अिधकार 36
संस के अिधकारी
89. रा य सभा का सभापित और उपसभापित ........................................ 36
90. उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया जाना…... 36
91. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म
कायर् करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त…………………………. 37
92. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प 37
िवचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ....................................
93. लोक सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष ............................................ 37
94. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना ……………………………………………………………. 37
95. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त ……………………… 38
िवषय सूची (vii)
अनु छे द पृ

96. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन


है तब उसका पीठासीन न होना ………………………………….…….. 38
97. सभापित और उपसभापित तथा अ यक्ष और उपा यक्ष के वेतन और भ े 38
98. संस का सिचवालय ..................................................................... 39
कायर् संचालन
99. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान ……..……………………………… 39
100. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की
शिक्त और गणपिू तर् …………………………………..……………….. 39
सद य की िनरहर्ताएं
101. थान का िरक्त होना .................................................................. 40
102. सद यता के िलए िनरहर्ताएं ........................................................... 40
103. सद य की िनरहर्ताओं से संबंिधत प्र पर िविन य ………………. 41
104. अनु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्रितज्ञान करने से पहले या अिहर्त
न होते हुए या िनरिहर्त िकए जाने पर बैठने और मत दे ने के िलए शाि त 41
संस और उसके सद य की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां
105. संस के सदन की तथा उनके सद य और सिमितय की शिक्तयां,
िवशेषािधकार आिद ……………………………………………………… 41
106. सद य के वेतन और भ े ............................................................... 42
िवधायी प्रिक्रया
107. िवधेयक के परु ः थापन और पािरत िकए जाने के संबंध म उपबंध … 42
108. कुछ दशाओं म दोन सदन की संयुक्त बैठक .………….……………… 43
109. धन िवधेयक के संबध
ं म िवशेष प्रिक्रया ........................................... 44
110. “धन िवधेयक” की पिरभाषा ............................................................ 44
111. िवधेयक पर अनुमित .................................................................... 45
िव ीय िवषय के संबंध म प्रिक्रया
112. वािषर्क िव ीय िववरण ..................................................................... 46
113. संस म प्राक्कलन के संबंध म प्रिक्रया ............................................ 47
114. िविनयोग िवधेयक ........................................................................... 47
िवषय सूची (viii)
अनु छे द पृ

115. अनुपूरक, अितिरक्त या अिधक अनुदान ........................................... 48


116. लेखानुदान, प्र ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान ...................................... 48
117. िव िवधेयक के बारे म िवशेष उपबंध ............................................. 49
साधारणतया प्रिक्रया
118. प्रिक्रया के िनयम ............................................................................ 49
119. संस म िव ीय कायर् संबंधी प्रिक्रया का िविध द्वारा िविनयमन 50
120. संस म प्रयोग की जाने वाली भाषा ................................................. 50
121. संस म चचार् पर िनबर् धन ............................................................. 50
122. यायालय द्वारा संस की कायर्वािहय की जांच न िकया जाना ……… 50
अ याय 3--रा पित की िवधायी शिक्तयां
123. संस के िव ांितकाल म अ यादे श प्रख्यािपत करने की रा पित की शिक्त
………………………………………………..…………………. 51
अ याय 4--संघ की यायपािलका
124. उ चतम यायालय की थापना और गठन ....................................... 51
124क. रा ीय याियक िनयिु क्त आयोग .................................................... 53
124ख. आयोग के कृ य ............................................................................. 54
124ग. िविध बनाने की संस की शिक्त ..................................................... 54
125. यायाधीश के वेतन आिद ............................................................... 54
126. कायर्कारी मख्
ु य यायमिू तर् की िनयुिक्त ............................................ 54
127. तदथर् यायाधीश की िनयुिक्त ........................................................ 54
128. उ चतम यायालय की बैठक म सेवािनव ृ यायाधीश की उपि थित .. 55
129. उ चतम यायालय का अिभलेख यायालय होना ............................... 55
130. उ चतम यायालय का थान ........................................................... 55
131. उ चतम यायालय की आरं िभक अिधकािरता …………………............... 55
[131क. के द्रीय िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के बारे म
उ चतम यायालय की अन य अिधकािरता – िनरिसत ।] …………… 56
132. कुछ मामल म उ च यायालय से अपील म उ चतम यायालय की
अपीलीय अिधकािरता........................................................................ 56
133. उ च यायालय से िसिवल िवषय से संबंिधत अपील म उ चतम 56
यायालय की अपीलीय अिधकािरता..................................................
134. दांिडक िवषय म उ चतम यायालय की अपीली अिधकािरता .……….. 57
िवषय सूची (ix)
अनु छे द पृ

134क. उ चतम यायालय म अपील के िलए प्रमाणपत्र ……………………………………….. 57


135. िवद्यमान िविध के अधीन फेडरल यायालय की अिधकािरता और शिक्तय
का उ चतम यायालय द्वारा प्रयोक्त य होना ………………………… 57
136. अपील के िलए उ चतम यायालय की िवशेष इजाजत ……………………………. 58
137. िनणर्य या आदे श का उ चतम यायालय द्वारा पन
ु िवर्लोकन ……….………. 58
138. उ चतम यायालय की अिधकािरता की विृ द्ध ..................……………………. 58
139. कुछ िरट िनकालने की शिक्तय का उ चतम यायालय को प्रद िकया जाना
.......................................................................................................... 58
139क. कुछ मामल का अंतरण ................................................................. 58
140. उ चतम यायालय की आनुषंिगक शिक्तयां ...................................... 59
141. उ चतम यायालय द्वारा घोिषत िविध का सभी यायालय पर आबद्धकर
होना ............................................................................ 59
142. उ चतम यायालय की िडिक्रय और आदे श का प्रवतर्न और प्रकटीकरण
आिद के बारे म आदे श .................................................................. 59
143. उ चतम यायालय से परामशर् करने की रा पित की शिक्त .…………. 59
144. िसिवल और याियक प्रािधकािरय द्वारा उ चतम यायालय की सहायता
म कायर् िकया जाना ........................................................... 59
[144क. िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के िनपटारे के बारे म 59
िवशेष उपबंध –िनरिसत ।]...............................................................
145. यायालय के िनयम आिद ............................................................... 59
146. उ चतम यायालय के अिधकारी और सेवक तथा यय 61
147. िनवर्चन ......................................................................................... 61
अ याय 5--भारत का िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक
148. भारत का िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक ................................................... 61
149. िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के कतर् य और शिक्तयां .............................. 62
150. संघ के और रा य के लेखाओं का प्र प ............................................ 62
151. संपरीक्षा प्रितवेदन ........................................................................... 63
भाग 6
रा य
अ याय 1--साधारण
152. पिरभाषा ........................................................................................ 64
िवषय सूची (x)
अनु छे द पृ

अ याय 2--कायर्पािलका
रा य पा ल

153. रा य के रा यपाल ......................................................................... 64

154. रा य की कायर्पािलका शिक्त ........................................................... 64

155. रा यपाल की िनयुिक्त ..................................................................... 64

156. रा यपाल की पदाविध ..................................................................... 65

157. रा यपाल िनयुक्त होने के िलए अहर्ताएं ............................................ 65

158. रा यपाल के पद के िलए शत .......................................................... 65

159. रा यपाल द्वारा शपथ या प्रितज्ञान ................................................... 65

160. कुछ आकि मकताओं म रा यपाल के कृ य का िनवर्हन ..................... 65

161. क्षमा आिद की और कुछ मामल म दं डादे श के िनलंबन, पिरहार या


लघूकरण की रा यपाल की शिक्त .................................................... 66

162. रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार .......................................... 66

मंित्र-पिरष
163. रा यपाल को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष ………………….. 66

164. मंित्रय के बारे म अ य उपबंध ........................................................ 66

रा य का महािधवक्ता
165. रा य का महािधवक्ता ......................................................……………..... 67

सरकारी कायर् का संचालन


166. रा य की सरकार के कायर् का संचालन .............................................. 68

167. रा यपाल को जानकारी दे ने, आिद के संबंध म मख्


ु यमंत्री के कतर् य …. 68

अ याय 3--रा य का िवधान-मंडल


साधारण
168. रा य के िवधान-मंडल का गठन ...................................................... 69

169. रा य म िवधान पिरषद का उ सादन या सज


ृ न ……………….……… 69

170. िवधान सभाओं की संरचना ............................................................ 69


िवषय सूची (xi)
अनु छे द पृ

171. िवधान पिरषद की संरचना .............................................................. 70


172. रा य के िवधान-मंडल की अविध .................................................... 72
173. रा य के िवधान-मंडल की सद यता के िलए अहर्ता .………………...… 72
174. रा य के िवधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और िवघटन .……………… 72
175. सदन या सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का
रा यपाल का अिधकार .……….………………………………………… 73
176. रा यपाल का िवशेष अिभभाषण ........................................................ 73
177. सदन के बारे म मंित्रय और महािधवक्ता के अिधकार .……………….. 73

रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष ............................................. 73
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया जाना
.………………….……………………………………………………. 73
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त ……………………….. 74
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना ……………………………………….. 74
182. िवधान पिरष का सभापित और उपसभापित ..................................... 74
183. सभापित और उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना.............................................................................................. 75
184. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म
कायर् करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त ...................... 75
185. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प
िवचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ....................................... 75
186. अ यक्ष और उपा यक्ष तथा सभापित और उपसभापित के वेतन और भ े .. 76
187. रा य के िवधान-मंडल का सिचवालय.................................................. 76
कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान....................................................... 76
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की
शिक्त और गणपूितर् ........................................................................ 76
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना....................................................................... 77
िवषय सूची (xii)
अनु छे द पृ

191. सद यता के िलए िनरहर्ताएं .............................................................. 78


192. सद य की िनरहर्ताओं से संबंिधत प्र पर िविन य ....................... 78
193. अनु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्रितज्ञान करने से पहले या
अिहर्त न होते हुए या िनरिहर्त िकए जाने पर बैठने और मत दे ने के
िलए शाि त..................................................................................... 79
रा य के िवधान-मंडल और उनके सद य की शिक्तयां, िवशेषािधकार
और उ मिु क्तयां
194. िवधान-मंडल के सदन की तथा उनके सद य और सिमितय की
शिक्तयां, िवशेषािधकार, आिद............................................................ 79
195. सद य के वेतन और भ े................................................................. 79
िवधायी प्रिक्रया
196. िवधेयक के परु ः थापन और पािरत िकए जाने के संबध
ं म उपबंध ....... 80
197. धन िवधेयक से िभ न िवधेयक के बारे म िवधान पिरष की शिक्तय
पर िनबर्ंधन ................................................................................... 80
198. धन िवधेयक के संबध
ं म िवशेष प्रिक्रया............................................. 81
199. “धन िवधेयक” की पिरभाषा............................................................... 81
200. िवधे यक पर अनुमित..................................................................... 82
201. िवचार के िलए आरिक्षत िवधेयक....................................................... 83
िव ीय िवषय के संबंध म प्रिक्रया
202. वािषर्क िव ीय िववरण...................................................................... 83
203. िवधान-मंडल म प्राक्कलन के संबंध म प्रिक्रया ………………………. 84
204. िविनयोग िवधेयक .......................................................................... 84
205. अनुपूरक, अितिरक्त या अिधक अनुदान ............................................ 85
206. लेखानुदान, प्र ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान ...................................... 86
207. िव िवधेयक के बारे म िवशेष उपबंध ............................................. 86
साधारणतया प्रिक्रया
208. प्रिक्रया के िनयम ........................................................................... 87
209. रा य के िवधान-मंडल म िव ीय कायर् संबंधी प्रिक्रया का िविध द्वारा
िविनयमन ..................................................................................... 87
िवषय सूची (xiii)
अनु छे द पृ

210. िवधान-मंडल म प्रयोग की जाने वाली भाषा ....................................... 87


211. िवधान-मंडल म चचार् पर िनबर्ंधन ..................................................... 88
212. यायालय द्वारा िवधान-मंडल की कायर्वािहय की जांच न िकया जाना…. 88
अ याय 4--रा यपाल की िवधायी शिक्त
213. िवधान-मंडल के िव ांितकाल म अ यादे श प्रख्यािपत करने की रा यपाल
की शिक्त ...................................................................................... 88
अ याय 5--रा य के उ च यायालय
214. रा य के िलए उ च यायालय ......................................................... 89
215. उ च यायालय का अिभलेख यायालय होना .................................... 90
216. उ च यायालय का गठन ............................................................... 90
217. उ च यायालय के यायाधीश की िनयुिक्त और उसके पद की शत ….. 90
218. उ चतम यायालय से संबंिधत कुछ उपबंध का उ च यायालय को
लागू होना ...................................................................................... 91
219. उ च यायालय के यायाधीश द्वारा शपथ या प्रितज्ञान…................... 91
220. थायी यायाधीश रहने के प ात ् िविध- यवसाय पर िनबर्ंधन . 92
221. यायाधीश के वेतन आिद ............................................................... 92
222. िकसी यायाधीश का एक उ च यायालय से दस
ू रे उ च यायालय को
अंतरण ......................................................................................... 92
223. कायर्कारी मख्
ु य यायमिू तर् की िनयुिक्त ............................................ 92
224. अपर और कायर्कारी यायाधीश की िनयुिक्त ..................................... 93
224क. उ च यायालय की बैठक म सेवािनव ृ यायाधीश की िनयुिक्त ……. 93
225. िवद्यमान उ च यायालय की अिधकािरता......................................... 94
226. कुछ िरट िनकालने की उ च यायालय की शिक्त .............................. 94
[226क. अनु छे द 226 के अधीन कायर्वािहय म के द्रीय िविधय की सांिवधािनक
वैधता पर िवचार न िकया जाना – िनरिसत ।] ................................... 95
227. सभी यायालय के अधीक्षण की उ च यायालय की शिक्त ................ 95
228. कुछ मामल का उ च यायालय को अंतरण ...................................... 96
[228क. रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के िनपटारे के 96
बारे म िवशेष उपबंध – िनरिसत ।]...................................................
िवषय सूची (xiv)
अनु छे द पृ

229. उ च यायालय के अिधकारी और सेवक तथा यय ........................... 96


230. उ च यायालय की अिधकािरता का संघ रा यक्षेत्र पर िव तार………. 97
231. दो या अिधक रा य के िलए एक ही उ च यायालय की थापना ….. 97
अ याय 6--अधीन थ यायालय
233. िजला यायाधीश की िनयुिक्त.......................................................... 98
233क. कुछ िजला यायाधीश की िनयुिक्तय का और उनके द्वारा िकए गए
िनणर्य आिद का िविधमा यकरण ..................................................... 98
234. याियक सेवा म िजला यायाधीश से िभ न यिक्तय की भतीर् ........ 99
235. अधीन थ यायालय पर िनयंत्रण ..................................................... 99
236. िनवर्चन ..................................................................................………. 99
237. कुछ वगर् या वग के मिज ट्रे ट पर इस अ याय के उपबंध का लागू 99
होना...............................................................................................
भाग 7
पहली अनुसच
ू ी के भाग ख के रा य
[238. पहली अनुसच
ू ी के भाग ख के रा य – िनरिसत ।] ............................. 100
भाग 8
संघ रा यक्षेत्र
239. संघ रा यक्षेत्र का प्रशासन .............................................................. 101
239क. कुछ संघ रा यक्षेत्र के िलए थानीय िवधान-मंडल या मंित्र-पिरषद का
या दोन का सजृ न .......................................................................... 101
239कक. िद ली के संबंध म िवशेष उपबंध ...................................................... 101
239कख. सांिवधािनक तंत्र के िवफल हो जाने की दशा म उपबंध ...................... 103
239ख. िवधान-मंडल के िव ांितकाल म अ यादे श प्रख्यािपत करने की प्रशासक
की शिक्त....................................................................................... 104
240. कुछ संघ रा यक्षेत्र के िलए िविनयम बनाने की रा पित की शिक्त……. 105
241. संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय ............................................ 105
[242. कोड़गू – िनरिसत ।]........................................................................ 106
भाग 9
पंचायत
243. पिरभाषाएं ..................................................................................... 107
िवषय सूची (xv)
अनु छे द पृ

243क. ग्राम सभा ..................................................................................... 107


243ख. पंचायत का गठन ......................................................................... 107
243ग. पंचायत की संरचना ....................................................................... 107
243घ. थान का आरक्षण ........................................................................ 108
243ङ. पंचायत की अविध, आिद .............................................................. 110
243च. सद यता के िलए िनरहर्ताएं ............................................................ 110
243छ. पंचायत की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व .............................. 111
243ज. पंचायत द्वारा कर अिधरोिपत करने की शिक्तयां और उनकी िनिधयां…. 111
243झ. िव ीय ि थित के पन
ु िवर्लोकन के िलए िव आयोग का गठन ………………. 111
243ञ. पंचायत के लेखाओं की संपरीक्षा ...................................................... 112
243ट. पंचायत के िलए िनवार्चन ............................................................... 112
243ठ. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना ........................................................... 113
243ड. इस भाग का कितपय क्षेत्र को लागू न होना ..................................... 113
243ढ. िवद्यमान िविधय और पंचायत का बना रहना ................................. 114
243ण. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न…………........ 114
भाग 9क
नगरपािलकाएं
243त. पिरभाषाएं ..................................................................................... 115
243थ. नगरपािलकाओं का गठन ................................................................ 115
243द. नगरपािलकाओं की संरचना .............................................................. 116
243ध. वाडर् सिमितय , आिद का गठन और संरचना ..................................... 117
243न. थान का आरक्षण ........................................................................ 117
243प. नगरपािलकाओं की अविध, आिद ..................................................... 118
243फ. सद यता के िलए िनरहर्ताएं ............................................................ 119
243ब. नगरपािलकाओं, आिद की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ........... 119
243भ. नगरपािलकाओं द्वारा कर अिधरोिपत करने की शिक्त और उनकी िनिधयां
........................................................................................ 119
243म. िव आयोग.................................................................................... 120
िवषय सूची (xvi)
अनु छे द पृ

243य. नगरपािलकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा ............................................. 120


243यक. नगरपािलकाओं के िलए िनवार्चन ...................................................... 120
243यख. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना ........................................................... 121
243यग. इस भाग का कितपय क्षेत्र को लागू न होना ..................................... 121
243यघ. िजला योजना के िलए सिमित .......................................................... 121
243यङ. महानगर योजना के िलए सिमित....................................................... 122
243यच. िवद्यमान िविधय और नगरपािलकाओं का बना रहना ........................ 123
243यछ. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न ............... 124
भाग 9ख
सहकारी सोसाइिटयां
243यज. पिरभाषाएं ......................................................................................... 125
243यझ. सहकारी सोसाइिटय का िनगमन ......................................................... 125
243यञ. बोडर् के सद य और उसके पदािधकािरय की संख्या और पदाविध ……….... 126
243यट. बोडर् के सद य का िनवार्चन ............................................................... 127
243यठ. बोडर् का अिधक्रमण और िनलंबन तथा अ तिरम प्रबंध …………………............. 127
243यड. सहकारी सोसाइिटय के लेखाओं की संपरीक्षा ......................................... 128
243यढ. साधारण िनकाय की बैठक संयोिजत करना ........................................... 128
243यण. सच
ू ना प्रा करने का सद य का अिधकार .......................................... 129
243यत. िववरिणयां ........................................................................................ 129
243यथ. अपराध और शाि तयां ....................................................................... 129
243यद. बहुरा य सहकारी सोसाइिटय को लागू होना ......................................... 130
243यध. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना .............................................................. 130
243यन. िवद्यमान िविधय का जारी रहना ........................................................ 130
भाग 10
अनुसूिचत और जनजाित क्षेत्र
244. अनस
ु िू चत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र का प्रशासन ................................... 131
244क. असम के कुछ जनजाित क्षेत्र को समािव करने वाला एक वशासी रा य
बनाना और उसके िलए थानीय िवधान-मंडल या मंित्र-पिरष का या दोन
का सज
ृ न ............................................................................ 131
िवषय सूची (xvii)
अनु छे द पृ

भाग 11
संघ और रा य के बीच संबंध
अ याय 1--िवधायी संबंध
िवधायी शिक्तय का िवतरण
245. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय का
िव तार... .......................................................................................... 133
246. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय की िवषय- 133
व तु ........................................................................................
246क. माल और सेवा कर के संबंध म िवशेष उपबंध ....................................... 134
247. कुछ अितिरक्त यायालय की थापना का उपबंध करने की संस की शिक्त....
........................................................................................... 134
248. अविश िवधायी शिक्तयां ................................................................. 134
249. रा य सच ू ी म के िवषय के संबध ं म रा ीय िहत म िविध बनाने की संस
की शिक्त ......................................................................................... 134
250. यिद आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म हो तो रा य सच ू ी म के िवषय के
संबंध म िविध बनाने की संस की शिक्त ......................................…….. 135
251. संस द्वारा अनु छे द 249 और अनु छे द 250 के अधीन बनाई गई िविधय
और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय म असंगित.. 135
252. दो या अिधक रा य के िलए उनकी सहमित से िविध बनाने की संस की
शिक्त और ऐसी िविध का िकसी अ य रा य द्वारा अंगीकार िकया जाना… 136
253. अंतररा ीय करार को प्रभावी करने के िलए िवधान ............................. 136
254. संस द्वारा बनाई गई िविधय और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िविधय म असंगित ..................................................................... 136
255. िसफािरश और पव ू र् मंजरू ी के बारे म अपेक्षाओं को केवल प्रिक्रया के िवषय
मानना................................................................................................ 137
अ याय 2--प्रशासिनक संबंध
साधारण
256. रा य की और संघ की बा यता .......................................................... 137
257. कुछ दशाओं म रा य पर संघ का िनयंत्रण .......................................... 137
[257क. संघ के सश बल या अ य बल के अिभिनयोजन द्वारा रा य की 138
सहायता – िनरिसत ।] ........................................................................
258. कुछ दशाओं म रा य को शिक्त प्रदान करने आिद की संघ की शिक्त…... 138
िवषय सूची (xviii)
अनु छे द पृ

258क. संघ को कृ य स पने की रा य की शिक्त.............................................. 139


[259. पहली अनुसचू ी के भाग ख के रा य के सश बल – िनरिसत ।]………….. 139
260. भारत के बाहर के रा यक्षेत्र के संबंध म संघ की अिधकािरता ................ 139
261. सावर्जिनक कायर्, अिभलेख और याियक कायर्वािहयां ............................. 139

जल संबंधी िववाद
262. अंतरराि यक निदय या नदी-दन
ू के जल संबंधी िववाद का यायिनणर्यन… 139

रा य के बीच सम वय
263. अंतर-रा य पिरष के संबंध म उपबंध................................................... 140
भाग 12
िव , संपि , संिवदाएं और वाद
अ याय 1--िव
साधारण
264. िनवर्चन ............................................................................................ 141
265. िविध के प्रािधकार के िबना कर का अिधरोपण न िकया जाना ................ 141
266. भारत और रा य की संिचत िनिधयां और लोक लेखे ............................. 141
267. आकि मकता िनिध ............................................................................ 141

संघ और रा य के बीच राज व का िवतरण


268. संघ द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाने वाले िकं तु रा य द्वारा संगह ृ ीत और
िविनयोिजत िकए जाने वाले शु क .................................................... 142
[268क. संघ द्वारा उदगह
ृ ीत िकए जाने वाला और संघ तथा रा य द्वारा संगहृ ीत
और िविनयोिजत िकया जाने वाला सेवा-कर -- िनरिसत ] ....................
269. संघ द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकं तु रा य को स पे जाने वाले कर...... 142
269क. अ तरराि यक यापार या वािण य के अनक्र ु म म माल और सेवा कर का
उ ग्रहण और संग्रहण ........................................................................ 143
270. उद्गहीत
ृ कर और उनका संघ तथा रा य के बीच िवतरण...................... 144
271. कुछ शु क और कर पर संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार .................. 145
[272. कर जो संघ द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकए जाते ह तथा जो संघ और
रा य के बीच िवतिरत िकए जा सकगे – िनरिसत ।].............................. 145
273. जट
ू पर और जट
ू उ पाद पर िनयार्त शु क के थान पर अनद
ु ान ........ 145
274. ऐसे कराधान पर िजसम रा य िहतबद्ध है , प्रभाव डालने वाले िवधेयक के
िलए रा पित की पव
ू र् िसफािरश की अपेक्षा .......................................... 145
िवषय सूची (xix)
अनु छे द पृ

275. कुछ रा य को संघ से अनुदान ........................................................... 146


276. विृ य , यापार , आजीिवकाओं और िनयोजन पर कर ........................... 147
277. याविृ ............................................................................................. 147
[278. कुछ िव ीय िवषय के संबंध म पहली अनुसच
ू ी के भाग ख के रा य से
करार – िनरिसत ।] ............................................................................ 148
279. “शुद्ध आगम” आिद की गणना .......................................................... 148
279क. माल और सेवा कर पिरष .................................................................. 148
280. िव आयोग ...................................................................................... 150
281. िव आयोग की िसफािरश ................................................................... 151

प्रकीणर् िव ीय उपबंध

282. संघ या रा य द्वारा अपने राज व से िकए जाने वाले यय .................... 151
283. संिचत िनिधय , आकि मकता िनिधय और लोक लेखाओं म जमा
धनरािशय की अिभरक्षा आिद ............................................................. 151
284. लोक सेवक और यायालय द्वारा प्रा वादकतार्ओं की जमा रािशय और
अ य धनरािशय की अिभरक्षा ............................................................. 152
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट ......................................... 152
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन ............ 152
287. िवद्युत पर कर से छूट ...................................................................... 153
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट.. 154
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट ......................... 154
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन ...................................... 155
290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय ............................................... 155
[291. शासक की िनजी थैली की रािश – िनरिसत ।]...................................... 155

अ याय 2--उधार लेना


292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना ........................................................... 155
293. रा य द्वारा उधार लेना ..................................................................... 155
िवषय सूची (xx)
अनु छे द पृ

अ याय 3--संपि , संिवदाएं, अिधकार, दािय व, बा यताएं और वाद


294. कुछ दशाओं म संपि , आि तय , अिधकार , दािय व और बा यताओं का
उ रािधकार ....................................................................................... 156

295. अ य दशाओं म संपि , आि तय , अिधकार , दािय व और बा यताओं का 156


उ रािधकार .......................................................................................
296. राजगामी या यपगत या वामीिवहीन होने से प्रोद्भत
ू संपि ................. 157
297. रा यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भिू म म ि थत मू यवान
चीज और अन य आिथर्क क्षेत्र के संपि ोत का संघ म िनिहत होना……. 157
298. यापार करने आिद की शिक्त ............................................................. 158
299. संिवदाएं ............................................................................................ 158
300. वाद और कायर्वािहयां .......................................................................... 158
अ याय 4--संपि का अिधकार
300क. िविध के प्रािधकार के िबना यिक्तय को संपि से वंिचत न िकया जाना…. 159
भाग 13
भारत के रा यक्षेत्र के भीतर यापार, वािण य और समागम
301. यापार, वािण य और समागम की वतंत्रता ......................................... 160
302. यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन अिधरोिपत करने की संस की
शिक्त ........................................................................................ 160
303. यापार और वािण य के संबंध म संघ और रा य की िवधायी शिक्तय पर
िनबर्ंधन ....................................................................................... 160
304. रा य के बीच यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन ................... 160
305. िवद्यमान िविधय और रा य के एकािधकार का उपबंध करने वाली िविधय
की याविृ ............................................................................ 161
[306. पहली अनस ु च
ू ी के भाग ख के कुछ रा य की यापार और वािण य पर 161
िनबर्ंधन के अिधरोपण की शिक्त – िनरिसत ।].....................................
307. अनु छे द 301 से अनु छे द 304 के प्रयोजन को कायार्ि वत करने के िलए
प्रािधकारी की िनयुिक्त ....................................................................... 161
भाग 14
संघ और रा य के अधीन सेवाएं
अ याय 1--सेवाएं
308. िनवर्चन ............................................................................................ 162
िवषय सूची (xxi)
अनु छे द पृ

309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत..... 162
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध ....................... 162
311. संघ या रा य के अधीन िसिवल है िसयत म िनयोिजत यिक्तय का पद युत
िकया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म अवनत िकया जाना …............ 163
312. अिखल भारतीय सेवाएं ....................................................................... 163
312क. कुछ सेवाओं के अिधकािरय की सेवा की शत म पिरवतर्न करने या उ ह
प्रितसं त करने की संस की शिक्त ................................................... 164
313. संक्रमणकालीन उपबंध ........................................................................ 165
[314. कुछ सेवाओं के िवद्यमान अिधकािरय के संरक्षण के िलए उपबंध –
िनरिसत ।] ....................................................................................... 165

अ याय 2--लोक सेवा आयोग

315. संघ और रा य के िलए लोक सेवा आयोग ........................................... 165


316. सद य की िनयुिक्त और पदाविध ....................................................... 166
317. लोक सेवा आयोग के िकसी सद य का हटाया जाना और िनलंिबत िकया
जाना ................................................................................................ 167
318. आयोग के सद य और कमर्चािरवद
ं ृ की सेवा की शत के बारे म िविनयम 168
बनाने की शिक्त ...............................................................................
319. आयोग के सद य द्वारा ऐसे सद य न रहने पर पद धारण करने के संबंध 168
म प्रितषेध ...............................................................................
320. लोक सेवा आयोग के कृ य ................................................................ 168
321. लोक सेवा आयोग के कृ य का िव तार करने की शिक्त ...................... 170
322. लोक सेवा आयोग के यय ................................................................ 170
323. लोक सेवा आयोग के प्रितवेदन .......................................................... 170
भाग 14क
अिधकरण
323क. प्रशासिनक अिधकरण ......................................................................... 171
323ख. अ य िवषय के िलए अिधकरण .......................................................... 172
िवषय सूची (xxii)
अनु छे द पृ

भाग 15

िनवार्चन
324. िनवार्चन के अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण का िनवार्चन आयोग म 174
िनिहत होना .....................................................................................
325. धमर्, मल
ू वंश, जाित या िलंग के आधार पर िकसी यिक्त का िनवार्चक-
नामावली म सि मिलत िकए जाने के िलए अपात्र न होना और उसके द्वारा
िकसी िवशेष िनवार्चक-नामावली म सि मिलत िकए जाने का दावा न िकया
जाना ................................................................................... 175
326. लोक सभा और रा य की िवधान सभाओं के िलए िनवार्चन का वय क
मतािधकार के आधार पर होना ........................................................... 175
327. िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने की संस की शिक्त
............................................................................................... 175
328. िकसी रा य के िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने
की उस िवधान-मंडल की शिक्त .......................................................... 175
329. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न .................. 176
[329क. प्रधान मंत्री और अ यक्ष के मामले म संस के िलए िनवार्चन के बारे म
िवशेष उपबंध --िनरिसत ।] ................................................................ 176
भाग 16
कुछ वग के संबंध म िवशेष उपबंध
330. लोक सभा म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िलए
थान का आरक्षण ............................................................................ 177
331. लोक सभा म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ........................... 177
332. रा य की िवधान सभाओं म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत
जनजाितय के िलए थान का आरक्षण ............................................... 178
333. रा य की िवधान सभाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ...... 179
334. थान के आरक्षण और िवशेष प्रितिनिध व का स र वषर् के प ात ् न रहना 179
335. सेवाओं और पद के िलए अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय
के दावे ............................................................................................. 179
336. कुछ सेवाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के िलए िवशेष उपबंध ................. 180
337. आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के िलए शैिक्षक अनद
ु ान के िलए िवशेष
उपबंध ............................................................................................. 180
िवषय सूची (xxiii)
अनु छे द पृ

338. रा ीय अनुसिू चत जाित आयोग ......................................................... 181


338क. रा ीय अनुसिू चत जनजाित आयोग .................................................... 182
338ख. िपछड़े वग के िलए रा ीय आयोग ...................................................... 196
339. अनुसिू चत क्षेत्र के प्रशासन और अनुसिू चत जनजाितय के क याण के बारे
म संघ का िनयंत्रण ........................................................................... 184
340. िपछड़े वग की दशाओं के अ वेषण के िलए आयोग की िनयुिक्त ………...... 184
341. अनुसिू चत जाितयां ............................................................................. 185
342. अनस
ु िू चत जनजाितयां ........................................................................ 196
342क. सामािजक और शैिक्षक ि से िपछड़े वगर् .......................................... 200
भाग 17
राजभाषा
अ याय 1--संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा ... ................ ................ ................ ..................... 186
344. राजभाषा के संबंध म आयोग और संस की सिमित ............................. 186
अ याय 2--प्रादे िशक भाषाएं
345. रा य की राजभाषा या राजभाषाएं ................ ................ ..................... 187
346. एक रा य और दस
ू रे रा य के बीच या िकसी रा य और संघ के बीच
पत्रािद की राजभाषा ............................................................................ 187
347. िकसी रा य की जनसंख्या के िकसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा
के संबंध म िवशेष उपबंध ....... ................ ................ ..................... 188
अ याय 3–उ चतम यायालय, उ च यायालय आिद की भाषा
348. उ चतम यायालय और उ च यायालय म और अिधिनयम , िवधेयक
आिद के िलए प्रयोग की जाने वाली भाषा ............................................ 188
349. भाषा से संबंिधत कुछ िविधयां अिधिनयिमत करने के िलए िवशेष प्रिक्रया.... 189
अ याय 4--िवशेष िनदे श
350. यथा के िनवारण के िलए अ यावेदन म प्रयोग की जाने वाली भाषा......... 189
350क. प्राथिमक तर पर मातभ
ृ ाषा म िशक्षा की सिु वधाएं ................................ 189
िवषय सूची (xxiv)
अनु छे द पृ

350ख. भाषाई अ पसंख्यक-वग के िलए िवशेष अिधकार .................................. 189


351. िह दी भाषा के िवकास के िलए िनदे श .................................................. 190
भाग 18
आपात उपबंध
352. आपात की उद्घोषणा ......................................................................... 191
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाव .......................................................... 193
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म है तब राज व के िवतरण संबंधी
उपबंध का लागू होना ....... ................ ................ ................ ......... 193
355. बा आक्रमण और आंतिरक अशांित से रा य की संरक्षा करने का संघ का
कतर् य ........................................................................................ 194
356. रा य म सांिवधािनक तंत्र के िवफल हो जाने की दशा म उपबंध ............ 194
357. अनु छे द 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन िवधायी शिक्तय का
प्रयोग .............................................................................................. 196
358. आपात के दौरान अनु छे द 19 के उपबंध का िनलंबन ......................... 197
359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रद अिधकार के प्रवतर्न का िनलबंन ... 198
[359क. इस भाग का पंजाब रा य को लागू होना – िनरिसत ।] ........................ 199
360. िव ीय आपात के बारे म उपबंध .......................................................... 199
भाग 19
प्रकीणर्
361. रा पित और रा यपाल और राजप्रमख
ु का संरक्षण ............................. 201
361क. संस और रा य के िवधान-मंडल की कायर्वािहय के प्रकाशन का संरक्षण 201
361ख. लाभप्रद राजनीितक पद पर िनयिु क्त के िलए िनरहर्ता ............................ 202
[362. दे शी रा य के शासक के अिधकार और िवशेषािधकार – िनरिसत ।]........ 202
363. कुछ संिधय , करार आिद से उ प न िववाद म यायालय के ह तक्षेप का
वजर्न ............................................................................................. 203
363क. दे शी रा य के शासक को दी गई मा यता की समाि और िनजी थैिलय
का अंत ........................................................................................... 203
364. महाप न और िवमानक्षेत्र के बारे म िवशेष उपबंध .............................. 204
365. संघ द्वारा िदए गए िनदे श का अनुपालन करने म या उनको प्रभावी करने
म असफलता का प्रभाव ................................................................…… 204
िवषय सूची (xxv)
अनु छे द पृ

366. पिरभाषाएं ....................................................................................... 204


367. िनवर्चन ............................................................................................ 209
भाग 20
संिवधान का संशोधन
368. संिवधान का संशोधन करने की संस की शिक्त और उसके िलए प्रिक्रया 210
भाग 21
अ थायी, संक्रमणकालीन और िवशेष उपबंध
369. रा य सच
ू ी के कुछ िवषय के संबंध म िविध बनाने की संस की इस
प्रकार अ थायी शिक्त मानो वे समवतीर् सच
ू ी के िवषय ह ...................... 211
370. ज म-ू क मीर रा य के संबंध म अ थायी उपबंध ................................... 211
371. महारा और गज
ु रात रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ………................... 213
371क. नागालड रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ............................................. 213
371ख. असम रा य के संबध
ं म िवशेष उपबंध ................................................. 216
371ग. मिणपुर रा य के संबंध म िवशेष उपबंध .............................................. 217
371घ. आंध्र प्रदे श रा य या तेलग
ं ाना रा य के संबंध म िवशेष उपबंध .............. 217
371ङ. आंध्र प्रदे श म कद्रीय िव िवद्यालय की थापना .................................. 220
371च. िसिक्कम रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ............................................ 220
371छ. िमजोरम रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ........................................... 223
371ज. अ णाचल प्रदे श रा य के संबंध म िवशेष उपबंध .................................. 224
371झ. गोवा रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ................................................. 224
371ञ. कनार्टक रा य के संबंध म िवशेष उपबंध ............................................. 224
372. िवद्यमान िविधय का प्रव ृ बने रहना और उनका अनुकूलन .................. 225
372क. िविधय का अनुकूलन करने की रा पित की शिक्त ............................. 226
373. िनवारक िनरोध म रखे गए यिक्तय के संबंध म कुछ दशाओं म आदे श
करने की रा पित की शिक्त .............................................................. 226
374. फेडरल यायालय के यायाधीश और फेडरल यायालय म या सपिरष
िहज मजे टी के समक्ष लंिबत कायर्वािहय के बारे म उपबंध ................... 227
िवषय सूची (xxvi)
अनु छे द पृ

375. संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए यायालय , प्रािधकािरय और


अिधकािरय का कृ य करते रहना ........................................................ 227

376. उ च यायालय के यायाधीश के बारे म उपबंध ................................. 227

377. भारत के िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे म उपबंध .............................. 228

378. लोक सेवा आयोग के बारे म उपबंध .................................................... 228

378क. आंध्र प्रदे श िवधान सभा की अविध के बारे म िवशेष उपबंध ................... 229

[379. अ तकार्लीन संस तथा उसके अ यक्ष और उपा यक्ष के बारे म उपबंध -
िनरिसत ।] .......................................................................................

[380. रा पित के बारे म उपबंध -- िनरिसत ।]............................................

[381. रा पित की मंित्र-पिरष -- िनरिसत ।]...........................................

[382. पहली अनुसच


ू ी के भाग क म के रा य के अ तकार्लीन िवधान-मंडल के
बारे म उपबंध --िनरिसत ।].................................................................

[383. प्रा त के रा यपाल के बारे म उपबंध -- िनरिसत ।]............................

[384. रा यपाल की मंित्र-पिरष -- िनरिसत ।]..............................................

[385. पहली अनुसच


ू ी के भाग ख म के रा य के अ तकार्लीन िवधान-मंडल के
बारे म उपबंध --िनरिसत ।].................................................................

[386. पहली अनुसच


ू ी के भाग ख म के रा य की मंित्र-पिरष -- िनरिसत ।]…

[387. कुछ िनवार्चन के पिरयोजन के िलए जनसंख्या के िनधार्रण के बारे म


िवशेष उपबंध --िनरिसत ।]...................................................................

[388. अ तकार्लीन संस तथा रा य के अ तकार्लीन िवधान-मंडल म


आकि मक िरिक्तय के बारे म उपबंध -- िनरिसत ।]...........................

[389. डोमीिनयन िवधान-मंडल तथा प्रा त और दे शी रा य के िवधान-मंडल म


लंिबत िवधेयक के बारे म उपबंध -- िनरिसत ।]...................................

[390. इस संिवधान के प्रारं भ और 1950 के 31 माचर् के बीच प्रा या उ थापत


या यय िकया हुआ धन -- िनरिसत ।].................................................
िवषय सूची (xxvii)
अनु छे द पृ

[391. कुछ आकि मकताओं म पहली और चौथी अनुसच


ू ी का संशोधन करने की
रा पित की शिक्त -- िनरिसत ।]........................................................

392. किठनाइय को दरू करने की रा पित की शिक्त ................................... 229

भाग 22

संिक्ष नाम, प्रारं भ, िहंदी म प्रािधकृत पाठ और िनरसन

393. संिक्ष नाम ..................................................................................... 230

394. प्रारं भ ............................................................................................... 230

394क. िहंदी भाषा म प्रािधकृत पाठ ................................................................ 230

395. िनरसन ............................................................................................. 230

अनुसिू चयां

पहली अनुसच
ू ी ................................................................................................... 231

1. रा य ...............................................................................................

2. संघ रा यक्षेत्र ...................................................................................

दस
ू री अनुसच
ू ी .................................................................................................... 237

भाग क -- रा पित और रा य के रा यपाल के बारे म उपबंध ………………

भाग ख -- [िनरिसत ।] .......................................................................

भाग ग -- लोक सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष के तथा रा य सभा के

सभापित और उपसभापित के तथा रा य की िवधान सभा के

अ यक्ष और उपा यक्ष के तथा िवधान पिरष के सभापित और

उपसभापित के बारे म उपबंध .. ... .. .. .. .. .. .. ... .. .. .. .. .... .. .

भाग घ -- उ चतम यायालय और उ च यायालय के यायाधीश के

बारे म उपबंध . .. .. .. .. .. ... .. .. .. .. .... .. .. .. ... .. .. .. .. .... ..

भाग ङ -- भारत के िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे म उपबंध

तीसरी अनुसच
ू ी--शपथ या प्रितज्ञान के प्र प ........................................................... 242

चौथी अनुसच
ू ी--रा य सभा म थान का आबंटन..................................................... 246
िवषय सूची (xxviii)
अनु छे द पृ

पांचवीं अनुसच
ू ी--अनुसिू चत क्षेत्र और अनुसिू चत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण
के बारे म उपबंध . . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . . 248
भाग क -- साधारण
भाग ख -- अनुसिू चत क्षेत्र और अनस
ु िू चत जनजाितय का प्रशासन
और िनयंत्रण
भाग ग -- अनुसिू चत क्षेत्र
भाग घ -- अनस
ु च
ू ी का संशोधन
छठी अनुसच
ू ी-- असम, मेघालय, ित्रपरु ा और िमजोरम रा य के जनजाित क्षेत्र के
प्रशासन के बारे म उपबं◌ेध 252
...................................................................
सातवीं अनुसच
ू ी .................................................................................................................. 277
सच
ू ी 1 -- संघ सच
ू ी
सच
ू ी 2 -- रा य सच
ू ी
सच
ू ी 3 -- समवतीर् सच
ू ी
आठवीं अनस
ु च
ू ी -- भाषाएं .................................................................................. 291
नवीं अनस
ु च
ू ी--कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण ........................... 292
दसवीं अनस
ु च
ू ी--दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर्ता के बारे म उपबंध .................... 309
ग्यारहवीं अनस
ु च
ू ी--पंचायत की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ......................... 313
बारहवीं अनस
ु च
ू ी--नगरपािलकाओं, आिद की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ……. 314
पिरिश
पिरिश 1-- संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना) आदेश, 2019 315

पिरिश 2 – संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 से उ धरण 355


पिरिश 3 – संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 357
पिरिश 4 – संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 358
उपाबंध – संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 िजसम भारत सरकार और
बांग्लादे श सरकार के बीच अिजर्त और अंतिरत रा यक्षेत्र के यौरे अ तिवर्

िवषय सूची (xxix)
अनु छे द पृ
भारत का संविधान
उद्देशिका

हम, भारत के लोग, भारत को एक 1


[संपूर्ण प्रभुत्ि-संपन्न समाजिादी
पंथननरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गर्राज्य] बनाने के शलए, तथा उसके समस्त नागररकों
को :

सामाजजक, आर्थणक और राजनैनतक न्याय,

विचार, अशभव्यक्ति, विश्वास, धमण

और उपासना की स्ितंत्रता,

प्रनतष्ठा और अिसर की समता

प्राप्त कराने के शलए,

तथा उन सब में

व्यक्ति की गररमा और 2[राष्ट्र की एकता

और अखंडता] सुननजित करने िाली बंधुता

बढाने के शलए

दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 निम्बर, 1949


ई0 (शमनत मागणिीर्ण िुक्ला सप्तमी, संित ् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस
संविधान को अंगीकृत, अर्धननयशमत और आत्मावपणत करते हैं ।

1. संविधान (बयालीसिां संिोधन) अर्धननयम, 1976 की धारा 2 वारा (3-1-1977 से)


“प्रभुत्ि-संपन्न लोकतंत्रात्मक गर्राज्य” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संिोधन) अर्धननयम, 1976 की धारा 2 वारा (3-1-1977 से)
“राष्ट्र की एकता” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
भाग 1

संघ और उसका रा यक्षेत्र


1. संघ का नाम और रा यक्षेत्र–(1) भारत, अथार्त ् इंिडया, रा य का संघ होगा ।
1
[(2) रा य और उनके रा यक्षेत्र वे ह गे जो पहली अनुसूची म िविनिदर् ह ।]
(3) भारत के रा यक्षेत्र म,–
(क) रा य के रा यक्षेत्र,
2
[(ख) पहली अनुसूची म िविनिदर् संघ रा यक्षेत्र, और]
(ग) ऐसे अ य रा यक्षेत्र जो अिजर्त िकए जाएं,
समािव ह गे ।
2. नए रा य का प्रवेश या थापना–संस , िविध द्वारा, ऐसे िनबंधन और शत
पर, जो वह ठीक समझे, संघ म नए रा य का प्रवेश या उनकी थापना कर सकेगी ।
3
[2क. िसिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त िकया जाना–संिवधान (छ ीसवां
संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) िनरिसत ।]
3. नए रा य का िनमार्ण और वतर्मान रा य के क्षेत्र , सीमाओं या नाम म
पिरवतर्न–संस , िविध द्वारा–
(क) िकसी रा य म से उसका रा यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अिधक
रा य को या रा य के भाग को िमलाकर अथवा िकसी रा यक्षेत्र को िकसी
रा य के भाग के साथ िमलाकर नए रा य का िनमार्ण कर सकेगी ;
(ख) िकसी रा य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी ;
(ग) िकसी रा य का क्षेत्र घटा सकेगी ;
(घ) िकसी रा य की सीमाओं म पिरवतर्न कर सकेगी ;
(ङ) िकसी रा य के नाम म पिरवतर्न कर सकेगी :

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतः थािपत ।

2
भारत का संिवधान 3

1
[परं तु इस प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक रा पित की िसफािरश के िबना और
जहां िवधेयक म अंतिवर् प्र थापना का प्रभाव 2***रा य म से िकसी के क्षेत्र, सीमाओं
या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस रा य के िवधान-मंडल द्वारा उस पर अपने
िवचार, ऐसी अविध के भीतर जो िनदश म िविनिदर् की जाए या ऐसी अितिरक्त अविध
के भीतर जो रा पित द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट िकए जाने के िलए वह िवधेयक
रा पित द्वारा उसे िनदिशत नहीं कर िदया गया है और इस प्रकार िविनिदर् या अनुज्ञात
अविध समा नहीं हो गई है , संस के िकसी सदन म पुरः थािपत नहीं िकया जाएगा ।]
3
[ प ीकरण 1–इस अनु छे द के खंड (क) से खंड (ङ) म, “रा य” के अंतगर्त संघ
रा यक्षेत्र है , िकं तु परं तुक म “रा य” के अंतगर्त संघ रा यक्षेत्र नहीं है ।

प ीकरण 2–खंड (क) द्वारा संस को प्रद शिक्त के अंतगर्त िकसी रा य या संघ
रा यक्षेत्र के िकसी भाग को िकसी अ य रा य या संघ रा यक्षेत्र के साथ िमलाकर नए
रा य या संघ रा यक्षेत्र का िनमार्ण करना है ।]

4. पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंिगक


और पािरणािमक िवषय का उपबंध करने के िलए अनु छे द 2 और अनु छे द 3 के
अधीन बनाई गई िविधयां–(1) अनु छे द 2 या अनु छे द 3 म िनिदर् िकसी िविध म
पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के िलए ऐसे उपबंध अंतिवर् ह गे जो उस
िविध के उपबंध को प्रभावी करने के िलए आव यक ह तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक
और पािरणािमक उपबंध भी (िजनके अंतगर्त ऐसी िविध से प्रभािवत रा य या रा य के
संस म और िवधान-मंडल या िवधान-मंडल म प्रितिनिध व के बारे म उपबंध ह)
अंतिवर् हो सकगे िज ह संस आव यक समझे ।

(2) पूव क्त प्रकार की कोई िविध अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान
का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।

1. संिवधान (पांचवां संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 2 द्वारा परं तुक के थान पर (24-12-1955 से) प्रित थािपत

2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या
भाग ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतः थािपत ।
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता–इस संिवधान के प्रारं भ पर प्र येक यिक्त िजसका
भारत के रा यक्षेत्र म अिधवास है और–
(क) जो भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ख) िजसके माता या िपता म से कोई भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले कम से कम पांच वषर् तक भारत के रा यक्षेत्र
म मामल
ू ी तौर से िनवासी रहा है ,
भारत का नागिरक होगा ।
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार–अनु छे द 5 म िकसी बात के होते हए भी, कोई यिक्त िजसने ऐसे रा यक्षेत्र से जो
इस समय पािक तान के अंतगर्त है , भारत के रा यक्षेत्र को प्र जन िकया है , इस संिवधान के
प्रारं भ पर भारत का नागिरक समझा जाएगा–
(क) यिद वह अथवा उसके माता या िपता म से कोई अथवा उसके िपतामह या
िपतामही या मातामह या मातामही म से कोई (मल
ू प म यथा अिधिनयिमत) भारत
शासन अिधिनयम, 1935 म पिरभािषत भारत म ज मा था ; और
(ख) (i) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 से पहले इस
प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह अपने प्र जन की तारीख से भारत के रा यक्षेत्र म
मामल ू ी तौर से िनवासी रहा है ; या
(ii) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 को या उसके प ात ्
इस प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह नागिरकता प्राि के िलए भारत डोिमिनयन
की सरकार द्वारा िविहत प्र प म और रीित से उसके द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से
पहले ऐसे अिधकारी को, िजसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त िकया है ,
आवेदन िकए जाने पर उस अिधकारी द्वारा भारत का नागिरक रिज ट्रीकृत कर िलया
गया है :
परं तु यिद कोई यिक्त अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास
भारत के रा यक्षेत्र म िनवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रिज ट्रीकृत नहीं िकया जाएगा ।
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के अिधकार–
अनु छे द 5 और अनु छे द 6 म िकसी बात के होते हुए भी, कोई यिक्त िजसने 1 माचर्, 1947
के प ात ् भारत के रा यक्षेत्र से ऐसे रा यक्षेत्र को, जो इस समय पािक तान के अंतगर्त है ,
प्र जन िकया है , भारत का नागिरक नहीं समझा जाएगा :
परं तु इस अनु छे द की कोई बात ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो ऐसे रा यक्षेत्र को,

4
भारत का संिवधान 5

जो इस समय पािक तान के अंतगर्त है , प्र जन करने के प ात ् भारत के रा यक्षेत्र को ऐसी


अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो पन
ु वार्स के िलए या थायी प से लौटने के िलए िकसी
िविध के प्रािधकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है और प्र येक ऐसे यिक्त के बारे म अनु छे द
6 के खंड (ख) के प्रयोजन के िलए यह समझा जाएगा िक उसने भारत के रा यक्षेत्र को 19
जुलाई, 1948 के प ात ् प्र जन िकया है ।
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार–अनु छे द 5 म िकसी बात के होते हुए भी, कोई यिक्त जो या िजसके माता या िपता
म से कोई अथवा िपतामह या िपतामही या मातामह या मातामही म से कोई (मल ू प म यथा
अिधिनयिमत) भारत शासन अिधिनयम, 1935 म पिरभािषत भारत म ज मा था और जो
इस प्रकार पिरभािषत भारत के बाहर िकसी दे श म मामल
ू ी तौर से िनवास कर रहा है , भारत
का नागिरक समझा जाएगा, यिद वह नागिरकता प्राि के िलए भारत डोिमिनयन की सरकार
द्वारा या भारत सरकार द्वारा िविहत प्र प म और रीित से अपने द्वारा उस दे श म, जहां वह
त समय िनवास कर रहा है , भारत के राजनियक या क सलीय प्रितिनिध को इस संिवधान के
प्रारं भ से पहले या उसके प ात ् आवेदन िकए जाने पर ऐसे राजनियक या क सलीय प्रितिनिध
द्वारा भारत का नागिरक रिज ट्रीकृत कर िलया गया है ।
9. िवदे शी रा य की नागिरकता वे छा से अिजर्त करने वाले यिक्तय का नागिरक न
होना–यिद िकसी यिक्त ने िकसी िवदे शी रा य की नागिरकता वे छा से अिजर्त कर ली है तो
वह अनु छे द 5 के आधार पर भारत का नागिरक नहीं होगा अथवा अनु छे द 6 या अनु छे द 8
के आधार पर भारत का नागिरक नहीं समझा जाएगा ।
10. नागिरकता के अिधकार का बना रहना–प्र येक यिक्त, जो इस भाग के पूवग
र् ामी
उपबंध म से िकसी के अधीन भारत का नागिरक है या समझा जाता है , ऐसी िविध के उपबंध
के अधीन रहते हुए, जो संस द्वारा बनाई जाए, भारत का नागिरक बना रहे गा ।
11. संस द्वारा नागिरकता के अिधकार का िविध द्वारा िविनयमन िकया जाना–इस
भाग के पव
ू ग
र् ामी उपबंध की कोई बात नागिरकता के अजर्न और समाि के तथा नागिरकता
से संबंिधत अ य सभी िवषय के संबध
ं म उपबंध करने की संस की शिक्त का अ पीकरण
नहीं करे गी ।
भाग 3
मूल अिधकार
साधारण
12. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो, “रा य” के
अंतगर्त भारत की सरकार और संस तथा रा य म से प्र येक रा य की सरकार और िवधान-
मंडल तथा भारत के रा यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के िनयंत्रण के अधीन सभी थानीय
और अ य प्रािधकारी ह ।
13. मल ू अिधकार से असंगत या उनका अ पीकरण करने वाली िविधयां–(1) इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत के रा यक्षेत्र म प्रव ृ सभी िविधयां उस मात्रा तक शू य
ह गी िजस तक वे इस भाग के उपबंध से असंगत ह ।
(2) रा य ऐसी कोई िविध नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को छीनती
है या यून करती है और इस खंड के उ लंघन म बनाई गई प्र येक िविध उ लंघन की मात्रा
तक शू य होगी ।
(3) इस अनु छे द म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,--
(क) “िविध” के अंतगर्त भारत के रा यक्षेत्र म िविध का बल रखने वाला कोई
अ यादे श, आदे श, उपिविध, िनयम, िविनयम, अिधसच
ू ना, िढ़ या प्रथा है ;
(ख) “प्रव ृ िविध” के अंतगर्त भारत के रा यक्षेत्र म िकसी िवधान-मंडल या
अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािरत या बनाई गई िविध
है जो पहले ही िनरिसत नहीं कर दी गई है , चाहे ऐसी कोई िविध या उसका कोई भाग
उस समय पण
ू त
र् या या िविश क्षेत्र म प्रवतर्न म नहीं है ।
1
[(4) इस अनु छे द की कोई बात अनु छे द 368 के अधीन िकए गए इस संिवधान के
िकसी संशोधन को लागू नहीं होगी ।]
समता का अिधकार
14. िविध के समक्ष समता–रा य, भारत के रा यक्षेत्र म िकसी यिक्त को िविध के
समक्ष समता से या िविधय के समान संरक्षण से वंिचत नहीं करे गा ।
15. धमर्, मल
ू वंश, जाित, िलंग या ज म थान के आधार पर िवभेद का प्रितषेध–(1)
रा य, िकसी नागिरक के िव द्ध केवल धमर्, मलू वंश, जाित, िलंग, ज म थान या इनम से
िकसी के आधार पर कोई िवभेद नहीं करे गा ।
(2) कोई नागिरक केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, िलंग, ज म थान या इनम से िकसी के
आधार पर–

1. संिवधान (चौबीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतः थािपत ।

6
भारत का संिवधान 7

(क) दक ु ान , सावर्जिनक भोजनालय , होटल और सावर्जिनक मनोरं जन के


थान म प्रवेश, या
(ख) पण
ू त
र् ः या भागतः रा य-िनिध से पोिषत या साधारण जनता के प्रयोग के
िलए समिपर्त कुओं, तालाब , नानघाट , सड़क और सावर्जिनक समागम के थान के
उपयोग,
के संबंध म िकसी भी िनय ग्यता, दािय व, िनबर् धन या शतर् के अधीन नहीं होगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात रा य को ि य और बालक के िलए कोई िवशेष
उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
1
[(4) इस अनु छे द की या अनु छे द 29 के खंड (2) की कोई बात रा य को सामािजक
और शैिक्षक ि से िपछड़े हुए नागिरक के िक हीं वग की उ नित के िलए या अनुसिू चत
जाितय और अनुसिू चत जनजाितय के िलए कोई िवशेष उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
2
[(5) इस अनु छे द या अनु छे द 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) की कोई बात रा य को
सामािजक और शैिक्षक ि से िपछड़े हुए नागिरक के िक हीं वग की उ नित के िलए या
अनुसिू चत जाितय या अनुसिू चत जनजाितय के िलए, िविध द्वारा, कोई िवशेष उपबंध करने से
िनवािरत नहीं करे गी, जहां तक ऐसे िवशेष उपबंध, अनु छे द 30 के खंड (1) म िनिदर्
अ पसंख्यक िशक्षा सं थाओं से िभ न, िशक्षा सं थाओं म, िजनके अंतगर्त प्राइवेट िशक्षा सं थाएं
भी ह, चाहे वे रा य से सहायता प्रा ह या नहीं, प्रवेश से संबंिधत ह ।]
3
[(6) इस अनु छे द या अनु छे द 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) या अनु छे द 29 के
खंड (2) की कोई बात, रा य को--

(क) खंड (4) और खंड (5) म उि लिखत वग से िभ न नागिरक के आिथर्क


प से दब ु ल
र् िक हीं वग की उ नित के िलए कोई भी िवशेष उपबंध करने से िनवािरत
नहीं करे गी ; और

(ख) खंड (4) और खंड (5) म उि लिखत वग से िभ न नागिरक के आिथर्क


प से दब ु ल
र् िक हीं वग की उ नित के िलए कोई भी िवशेष उपबंध करने से वहां
िनवािरत नहीं करे गी, जहां तक ऐसे उपबंध, ऐसी शैक्षिणक सं थाओं म, िजनके अंतगर्त
अनु छे द 30 के खंड (1) म िनिदर् ट अ पसंख्यक शैक्षिणक सं थाओं से िभ न प्राइवेट
शैक्षिणक सं थाएं भी ह, चाहे वे रा य द्वारा सहायता पाने वाली ह या सहायता न पाने
वाली ह, प्रवेश से संबंिधत ह, जो आरक्षण की दशा म िवद्यमान आरक्षण के अितिरक्त
तथा प्र येक प्रवगर् म कुल थान के अिधकतम दस प्रितशत के अ यधीन ह गे ।

प टीकरण--इस अनु छे द और अनु छे द 16 के प्रयोजन के िलए ''आिथर्क प से

1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (ितरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2005 की धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अ तः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 8

दब
ु ल
र् वगर्'' वे ह गे, जो रा य द्वारा कुटुंब की आय और आिथर्क अलाभ के अ य सच
ू क के
आधार पर समय-समय पर अिधसिू चत िकए जाएं ।]
16. लोक िनयोजन के िवषय म अवसर की समता–(1) रा य के अधीन िकसी पद पर
िनयोजन या िनयिु क्त से संबंिधत िवषय म सभी नागिरक के िलए अवसर की समता होगी ।
(2) रा य के अधीन िकसी िनयोजन या पद के संबंध म केवल धमर्, मल ू वंश, जाित,
िलंग, उद्भव, ज म थान, िनवास या इनम से िकसी के आधार पर न तो कोई नागिरक अपात्र
होगा और न उससे िवभेद िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से िनवािरत नहीं
करे गी जो 1[िकसी रा य या संघ रा यक्षेत्र की सरकार के या उसम के िकसी थानीय या अ य
प्रािधकारी के अधीन वाले िकसी वगर् या वग के पद पर िनयोजन या िनयुिक्त के संबंध म ऐसे
िनयोजन या िनयुिक्त से पहले उस रा य या संघ रा यक्षेत्र के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती है ।]
(4) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िपछड़े हुए नागिरक के िकसी वगर् के पक्ष म,
िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार् नहीं है , िनयुिक्तय या
पद के आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
2
[(4क) इस अनु छे द की कोई बात रा य को अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत
जनजाितय के पक्ष म, िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार्
नहीं है , रा य के अधीन सेवाओं म 3[िकसी वगर् या वग के पद पर, पािरणािमक ये ता सिहत,
प्रो नित के मामल म] आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
4
[(4ख) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िकसी वषर् म िक हीं न भरी गई ऐसी
िरिक्तय को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन िकए गए आरक्षण के िलए िकसी उपबंध के
अनुसार उस वषर् म भरी जाने के िलए आरिक्षत ह, िकसी उ रवतीर् वषर् या वष म भरे जाने के
िलए पथ ृ क् वगर् की िरिक्तय के प म िवचार करने से िनवािरत नहीं करे गी और ऐसे वगर् की
िरिक्तय पर उस वषर् की िरिक्तय के साथ िजसम वे भरी जा रही ह, उस वषर् की िरिक्तय की
कुल संख्या के संबध ं म पचास प्रितशत आरक्षण की अिधकतम सीमा का अवधारण करने के
िलए िवचार नहीं िकया जाएगा ।]
(5) इस अनु छे द की कोई बात िकसी ऐसी िविध के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी जो
यह उपबंध करती है िक िकसी धािमर्क या सांप्रदाियक सं था के कायर्कलाप से संबंिधत कोई

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य के या उसके क्षेत्र म िकसी थानीय या अ य प्रािधकारी के अधीन उस रा य के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती हो” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पचासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा भत
ू लक्षी प्रभाव से (17-6-1995 से) कितपय
श द के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (इक्यासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 9

पदधारी या उसके शासी िनकाय का कोई सद य िकसी िविश धमर् का मानने वाला या िविश
संप्रदाय का ही हो ।
1
[(6) इस अनु छे द की कोई बात, रा य को िवद्यमान आरक्षण के अितिरक्त तथा
प्र येक प्रवगर् म पद के अिधकतम दस प्रितशत के अ यधीन, खंड (4) म उि लिखत वग से
िभ न नागिरक के आिथर्क प से दब र् िक हीं वग के पक्ष म िनयुिक्तय और पद के
ु ल
आरक्षण के िलए कोई भी उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]

17. अ प ृ यता का अंत–“अ प ृ यता” का अंत िकया जाता है और उसका िकसी भी प


म आचरण िनिषद्ध िकया जाता है । “अ प ृ यता” से उपजी िकसी िनय ग्यता को लागू करना
अपराध होगा जो िविध के अनुसार दं डनीय होगा ।

18. उपािधय का अंत–(1) रा य, सेना या िवद्या संबंधी स मान के िसवाय और कोई


उपािध प्रदान नहीं करे गा ।

(2) भारत का कोई नागिरक िकसी िवदे शी रा य से कोई उपािध वीकार नहीं करे गा ।

(3) कोई यिक्त, जो भारत का नागिरक नहीं है , रा य के अधीन लाभ या िव ास के


िकसी पद को धारण करते हुए िकसी िवदे शी रा य से कोई उपािध रा पित की सहमित के
िबना वीकार नहीं करे गा ।

(4) रा य के अधीन लाभ या िव ास का पद धारण करने वाला कोई यिक्त िकसी


िवदे शी रा य से या उसके अधीन िकसी प म कोई भट, उपलि ध या पद रा पित की सहमित
के िबना वीकार नहीं करे गा ।

वातं य-अिधकार
19. वाक् - वातं य आिद िवषयक कुछ अिधकार का संरक्षण–(1) सभी नागिरक को–

(क) वाक् - वातं य और अिभ यिक्त- वातं य का,

(ख) शांितपूवक
र् और िनरायुध स मेलन का,

(ग) संगम या संघ 2[या सहकारी सोसाइटी] बनाने का,

(घ) भारत के रा यक्षेत्र म सवर्त्र अबाध संचरण का,


(ङ) भारत के रा यक्षेत्र के िकसी भाग म िनवास करने और बस जाने का,

1. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 10

1
[और]
2
(च)* * * *
(छ) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने का,
अिधकार होगा ।
3
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के
प्रयोग पर 4[भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता,] रा य की सरु क्षा, िवदे शी रा य के साथ मैत्रीपूणर्
संबंध , लोक यव था, िश ाचार या सदाचार के िहत म अथवा यायालय-अवमान, मानहािन
या अपराध-उ ीपन के संबंध म युिक्तयक्त ु िनबर्ंधन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर्ंधन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक यव था के िहत म युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक
कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे
िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभत ु ा और अखंडता या] लोक यव था या सदाचार के िहत म युिक्तयक्त ु
िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं
करे गी ।
(5) उक्त खंड के 6[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए
गए अिधकार के प्रयोग पर साधारण जनता के िहत म या िकसी अनुसिू चत जनजाित के िहत
के संरक्षण के िलए युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां
तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध
बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर साधारण जनता के िहत म यिु क्तयक्त
ु िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
6. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और
उपखंड (च)” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 11

करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी और िविश तया 1[उक्त उपखंड की कोई बात–
(i) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने के िलए आव यक विृ क
या तकनीकी अहर्ताओं से, या
(ii) रा य द्वारा या रा य के वािम व या िनयंत्रण म िकसी िनगम द्वारा कोई
यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागिरक का पणू त
र् ः या भागतः अपवजर्न करके या
अ यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई िवद्यमान िविध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या
इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
20. अपराध के िलए दोषिसिद्ध के संबंध म संरक्षण–(1) कोई यिक्त िकसी अपराध के
िलए तब तक िसद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक िक उसने ऐसा कोई कायर् करने के
समय, जो अपराध के प म आरोिपत है , िकसी प्रव ृ िविध का अितक्रमण नहीं िकया है या
उससे अिधक शाि त का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के िकए जाने के समय प्रव ृ िविध
के अधीन अिधरोिपत की जा सकती थी ।
(2) िकसी यिक्त को एक ही अपराध के िलए एक बार से अिधक अिभयोिजत और
दं िडत नहीं िकया जाएगा ।
(3) िकसी अपराध के िलए अिभयुक्त िकसी यिक्त को वयं अपने िव द्ध साक्षी होने के
िलए बा य नहीं िकया जाएगा ।
21. प्राण और दै िहक वतंत्रता का संरक्षण–िकसी यिक्त को उसके प्राण या दै िहक
वतंत्रता से िविध द्वारा थािपत प्रिक्रया के अनस
ु ार ही वंिचत िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
2
[21क. िशक्षा का अिधकार–रा य, छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु वाले सभी
बालक के िलए नःशु क और अिनवायर् िशक्षा दे ने का ऐसी रीित म, जो रा य िविध द्वारा,
अवधािरत करे , उपबंध करे गा ।]
22. कुछ दशाओं म िगर तारी और िनरोध से संरक्षण–(1) िकसी यिक्त को जो िगर तार
िकया गया है , ऐसी िगर तारी के कारण से यथाशीघ्र अवगत कराए िबना अिभरक्षा म िन द्ध
नहीं रखा जाएगा या अपनी िच के िविध यवसायी से परामशर् करने और प्रितरक्षा कराने के
अिधकार से वंिचत नहीं रखा जाएगा ।
(2) प्र येक यिक्त को, जो िगर तार िकया गया है और अिभरक्षा म िन द्ध रखा गया
है , िगर तारी के थान से मिज ट्रे ट के यायालय तक यात्रा के िलए आव यक समय को
छोड़कर ऐसी िगर तारी से चौबीस घंटे की अविध म िनकटतम मिज ट्रे ट के समक्ष पेश िकया

1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा कितपय श द के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अ तः थािपत ।
भारत का संिवधान 12

जाएगा और ऐसे िकसी यिक्त को मिज ट्रे ट के प्रािधकार के िबना उक्त अविध से अिधक अविध
के िलए अिभरक्षा म िन द्ध नहीं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो–
(क) त समय शत्रु अ यदे शीय है ; या
(ख) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िगर तार या
िन द्ध िकया गया है ।

(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का तीन मास से
अिधक अविध के िलए तब तक िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक–
(क) ऐसे यिक्तय से, जो उ च यायालय के यायाधीश ह या यायाधीश रहे
ह या यायाधीश िनयुक्त होने के िलए अिहर्त ह, िमलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन
मास की उक्त अविध की समाि से पहले यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म
ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु इस उपखंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध से
अिधक अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड
(ख) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िविहत की गई है ; या

 संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से,
जो िक अिधसिू चत नहीं हुई है ) खंड (4) के थान पर िन निलिखत प्रित थािपत िकया जाएगा,--
'(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का दो मास से अिधक की
अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक समिु चत उ च यायालय के मख्
ु य
यायमूितर् की िसफािरश के अनुसार गिठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास की अविध की समाि से पहले
यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अ यक्ष और कम से कम दो अ य सद य से िमलकर बनेगा और
अ यक्ष समुिचत उ च यायालय का सेवारत यायाधीश होगा और अ य सद य िकसी उ च यायालय के
सेवारत या सेवािनव ृ यायाधीश ह गे :
परं तु यह और िक इस खंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध के िलए िन द्ध
िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
िविहत की जाए ।
प ीकरण--इस खंड म, “समुिचत उ च यायालय” से अिभप्रेत है --
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध
आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म, िद ली संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय ;
(ii) (संघ रा यक्षेत्र से िभ न) िकसी रा य सरकार द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म
िन द्ध यिक्त की दशा म, उस रा य के िलए उ च यायालय ; और
(iii) िकसी संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी
द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म वह उ च यायालय जो संस द्वारा
इस िनिम बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन िविनिदर् िकया जाए ।' ।
भारत का संिवधान 13

(ख) ऐसे यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संस
द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अनुसार िन द्ध नहीं िकया जाता है ।

(5) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िकए गए आदे श के
अनुसरण म जब िकसी यिक्त को िन द्ध िकया जाता है तब आदे श करने वाला प्रािधकारी
यथाशक्य शीघ्र उस यिक्त को यह संसिू चत करे गा िक वह आदे श िकन आधार पर िकया गया
है और उस आदे श के िव द्ध अ यावेदन करने के िलए उसे शीघ्राितशीघ्र अवसर दे गा ।

(6) खंड (5) की िकसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म िनिदर् है , करने वाले
प्रािधकारी के िलए ऐसे त य को प्रकट करना आव यक नहीं होगा िज ह प्रकट करना ऐसा
प्रािधकारी लोकिहत के िव द्ध समझता है ।

(7) संस िविध द्वारा िविहत कर सकेगी िक–


*
(क) िकन पिरि थितय के अधीन और िकस वगर् या वग के मामल म िकसी
यिक्त को िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन तीन मास से
अिधक अविध के िलए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंध के अनुसार सलाहकार बोडर्
की राय प्रा िकए िबना िन द्ध िकया जा सकेगा ;

(ख) िकसी वगर् या वग के मामल म िकतनी अिधकतम अविध के िलए
िकसी यिक्त को िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िन द्ध
िकया जा सकेगा ; और

(ग) [खंड (4) के उपखंड (क)] के अधीन की जाने वाली जांच म


सलाहकार बोडर् द्वारा अनस


ु रण की जाने वाली प्रिक्रया क्या होगी ।

शोषण के िव द्ध अिधकार


23. मानव के द ु यार्पार और बला म का प्रितषेध–(1) मानव का द ु यार्पार और बेगार
तथा इसी प्रकार का अ य बला म प्रितिषद्ध िकया जाता है और इस उपबंध का कोई भी

* संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (क) का लोप िकया जाएगा ।
 संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
 संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
 संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक
अिधसूिचत नहीं हुई है ) बड़ी को क म के श द के थान पर “खंड (4)” श द, को क और अंक रखे जाएंगे ।
भारत का संिवधान 14

उ लंघन अपराध होगा जो िविध के अनस


ु ार दं डनीय होगा ।
(2) इस अनु छे द की कोई बात रा य को सावर्जिनक प्रयोजन के िलए अिनवायर् सेवा
अिधरोिपत करने से िनवािरत नहीं करे गी । ऐसी सेवा अिधरोिपत करने म रा य केवल धमर्,
मल
ू वंश, जाित या वगर् या इनम से िकसी के आधार पर कोई िवभेद नहीं करे गा ।
24. कारखान आिद म बालक के िनयोजन का प्रितषेध–चौदह वषर् से कम आयु के
िकसी बालक को िकसी कारखाने या खान म काम करने के िलए िनयोिजत नहीं िकया जाएगा
या िकसी अ य पिरसंकटमय िनयोजन म नहीं लगाया जाएगा ।
धमर् की वतंत्रता का अिधकार
25. अंतःकरण की और धमर् के अबाध प से मानने, आचरण और प्रचार करने की
वतंत्रता–(1) लोक यव था, सदाचार और वा य तथा इस भाग के अ य उपबंध के अधीन
रहते हुए, सभी यिक्तय को अंतःकरण की वतंत्रता का और धमर् के अबाध प से मानने,
आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा ।
(2) इस अनु छे द की कोई बात िकसी ऐसी िवद्यमान िविध के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं
डालेगी या रा य को कोई ऐसी िविध बनाने से िनवािरत नहीं करे गी जो–
(क) धािमर्क आचरण से संबद्ध िकसी आिथर्क, िव ीय, राजनैितक या अ य
लौिकक िक्रयाकलाप का िविनयमन या िनबर् धन करती है ;
(ख) सामािजक क याण और सध
ु ार के िलए या सावर्जिनक प्रकार की िहंदओ
ु ं
की धािमर्क सं थाओं को िहंदओ
ु ं के सभी वग और अनभ
ु ाग के िलए खोलने का उपबंध
करती है ।
प ीकरण 1–कृपाण धारण करना और लेकर चलना िसक्ख धमर् के मानने का अंग
समझा जाएगा ।
प ीकरण 2–खंड (2) के उपखंड (ख) म िहंदओ
ु ं के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया
जाएगा िक उसके अंतगर्त िसक्ख, जैन या बौद्ध धमर् के मानने वाले यिक्तय के प्रित िनदश है
और िहंदओ
ु ं की धािमर्क सं थाओं के प्रित िनदश का अथर् तदनस
ु ार लगाया जाएगा ।
26. धािमर्क काय के प्रबंध की वतंत्रता–लोक यव था, सदाचार और वा य के
अधीन रहते हुए, प्र येक धािमर्क संप्रदाय या उसके िकसी अनुभाग को–
(क) धािमर्क और पत
ू र् प्रयोजन के िलए सं थाओं की थापना और पोषण का,
(ख) अपने धमर् िवषयक काय का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और थावर संपि के अजर्न और वािम व का, और
(घ) ऐसी संपि का िविध के अनुसार प्रशासन करने का,
भारत का संिवधान 15

अिधकार होगा ।
27. िकसी िविश धमर् की अिभविृ द्ध के िलए कर के संदाय के बारे म वतंत्रता–िकसी
भी यिक्त को ऐसे कर का संदाय करने के िलए बा य नहीं िकया जाएगा िजनके आगम िकसी
िविश धमर् या धािमर्क संप्रदाय की अिभविृ द्ध या पोषण म यय करने के िलए िविनिदर् प
से िविनयोिजत िकए जाते ह ।
28. कुछ िशक्षा सं थाओं म धािमर्क िशक्षा या धािमर्क उपासना म उपि थत होने के
बारे म वतंत्रता–(1) रा य-िनिध से पण
ू त
र् ः पोिषत िकसी िशक्षा सं था म कोई धािमर्क िशक्षा
नहीं दी जाएगी ।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी िशक्षा सं था को लागू नहीं होगी िजसका प्रशासन
रा य करता है िकं तु जो िकसी ऐसे िव यास या यास के अधीन थािपत हुई है िजसके
अनस
ु ार उस सं था म धािमर्क िशक्षा दे ना आव यक है ।
(3) रा य से मा यताप्रा या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िशक्षा सं था म
उपि थत होने वाले िकसी यिक्त को ऐसी सं था म दी जाने वाली धािमर्क िशक्षा म भाग लेने
के िलए या ऐसी सं था म या उससे संलग्न थान म की जाने वाली धािमर्क उपासना म
उपि थत होने के िलए तब तक बा य नहीं िकया जाएगा जब तक िक उस यिक्त ने, या यिद
वह अवय क है तो उसके संरक्षक ने, इसके िलए अपनी सहमित नहीं दे दी है ।
सं कृित और िशक्षा संबंधी अिधकार
29. अ पसंख्यक-वग के िहत का संरक्षण–(1) भारत के रा यक्षेत्र या उसके िकसी
भाग के िनवासी नागिरक के िकसी अनुभाग को, िजसकी अपनी िवशेष भाषा, िलिप या
सं कृित है , उसे बनाए रखने का अिधकार होगा ।
(2) रा य द्वारा पोिषत या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िकसी िशक्षा सं था म
प्रवेश से िकसी भी नागिरक को केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, भाषा या इनम से िकसी के आधार
पर वंिचत नहीं िकया जाएगा ।
30. िशक्षा सं थाओं की थापना और प्रशासन करने का अ पसंख्यक-वग का
अिधकार–(1) धमर् या भाषा पर आधािरत सभी अ पसंख्यक-वग को अपनी िच की िशक्षा
सं थाओं की थापना और प्रशासन का अिधकार होगा ।
1
[(1क) खंड (1) म िनिदर् िकसी अ पसंख्यक-वगर् द्वारा थािपत और प्रशािसत िशक्षा
सं था की संपि के अिनवायर् अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविध बनाते समय, रा य यह
सिु नि त करे गा िक ऐसी संपि के अजर्न के िलए ऐसी िविध द्वारा िनयत या उसके अधीन

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 16

अवधािरत रकम इतनी हो िक उस खंड के अधीन प्र याभत


ू अिधकार िनबर्ि धत या िनराकृत न हो
जाए ।]
(2) िशक्षा सं थाओं को सहायता दे ने म रा य िकसी िशक्षा सं था के िव द्ध इस आधार
पर िवभेद नहीं करे गा िक वह धमर् या भाषा पर आधािरत िकसी अ पसंख्यक-वगर् के प्रबंध म है ।
1
* * * *

31. [संपि का अिनवायर् अजर्न ।]–संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978


की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) िनरिसत ।
2
[कुछ िविधय की याविृ ]
3
[31क. संपदाओं आिद के अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविधय की याविृ –
4
[(1) अनु छे द 13 म अंतिवर् िकसी बात के होते हुए भी,–

(क) िकसी संपदा के या उसम िक हीं अिधकार के रा य द्वारा अजर्न के िलए


या िक हीं ऐसे अिधकार के िनवार्पन या उनम पिरवतर्न के िलए, या

(ख) िकसी संपि का प्रबंध लोकिहत म या उस संपि का उिचत प्रबंध सिु नि त


करने के उ े य से पिरसीिमत अविध के िलए रा य द्वारा ले िलए जाने के िलए, या
(ग) दो या अिधक िनगम को लोकिहत म या उन िनगम म से िकसी का
उिचत प्रबंध सिु नि त करने के उ े य से समामेिलत करने के िलए, या

(घ) िनगम के प्रबंध अिभकतार्ओं, सिचव और कोषा यक्ष , प्रबंध िनदे शक ,


िनदे शक या प्रबंधक के िक हीं अिधकार या उनके शेयरधारक के मत दे ने के िक हीं
अिधकार के िनवार्पन या उनम पिरवतर्न के िलए, या
(ङ) िकसी खिनज या खिनज तेल की खोज करने या उसे प्रा करने के
प्रयोजन के िलए िकसी करार, पट्टे या अनुज्ञि के आधार पर प्रोद्भत
ू होने वाले िक हीं
अिधकार के िनवार्पन या उनम पिरवतर्न के िलए या िकसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञि
को समय से पहले समा करने या र करने के िलए,

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संपि का अिधकार"
का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 17

उपबंध करने वाली िविध इस आधार पर शू य नहीं समझी जाएगी िक वह 1[अनु छे द 14 या


अनु छे द 19] द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी से असंगत है या उसे छीनती है या यून करती है
:
परं तु जहां ऐसी िविध िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध है वहां इस
अनु छे द के उपबंध उस िविध को तब तक लागू नहीं ह गे जब तक ऐसी िविध को, जो
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखी गई है , उसकी अनुमित प्रा नहीं हो गई है :]
2
[परं तु यह और िक जहां िकसी िविध म िकसी संपदा के रा य द्वारा अजर्न के िलए
कोई उपबंध िकया गया है और जहां उसम समािव कोई भिू म िकसी यिक्त की अपनी जोत म
है वहां रा य के िलए ऐसी भिू म के ऐसे भाग को, जो िकसी त समय प्रव ृ िविध के अधीन
उसको लागू अिधकतम सीमा के भीतर है , या उस पर िनिमर्त या उससे अनल ु ग्न िकसी भवन
या संरचना को अिजर्त करना उस दशा के िसवाय िविधपण ू र् नहीं होगा िजस दशा म ऐसी भिू म,
भवन या संरचना के अजर्न से संबंिधत िविध उस दर से प्रितकर के संदाय के िलए उपबंध
करती है जो उसके बाजार-मू य से कम नहीं होगी ।]
(2) इस अनु छे द म,–
3
[(क) “संपदा” पद का िकसी थानीय क्षेत्र के संबंध म वही अथर् है जो उस
पद का या उसके समतु य थानीय पद का उस क्षेत्र म प्रव ृ भ-ू धिृ तय से संबंिधत
िवद्यमान िविध म है और इसके अंतगर्त–
(i) कोई जागीर, इनाम या मआ
ु फी अथवा वैसा ही अ य अनुदान और
4
[तिमलनाडु] और केरल रा य म कोई ज मम ् अिधकार भी होगा ;
(ii) रै यतबाड़ी बंदोब त के अधीन धत
ृ कोई भिू म भी होगी ;
(iii) कृिष के प्रयोजन के िलए या उसके सहायक प्रयोजन के िलए धत ृ
या पट्टे पर दी गई कोई भिू म भी होगी, िजसके अंतगर्त बंजर भिू म, वन भिू म,
चरागाह या भिू म के कृषक , कृिष िमक और ग्रामीण कारीगर के अिधभोग
म भवन और अ य संरचनाओं के थल ह ;]
(ख) “अिधकार” पद के अंतगर्त, िकसी संपदा के संबंध म, िकसी व वधारी,
उप- व वधारी, अवर व वधारी, भ-ू धिृ तधारक, 5[रै यत, अवर रै यत] या अ य म यवतीर्
म िनिहत कोई अिधकार और भ-ू राज व के संबंध म कोई अिधकार या िवशेषािधकार
ह गे ।]

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा (20-6-1964 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 18

1
[31ख. कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण–अनु छे द 31क म
अंतिवर् उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, नवीं अनुसच ू ी म िविनिदर्
अिधिनयम और िविनयम म से और उनके उपबंध म से कोई इस आधार पर शू य या कभी
शू य हुआ नहीं समझा जाएगा िक वह अिधिनयम, िविनयम या उपबंध इस भाग के िक हीं
उपबंध द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी से असंगत है या उसे छीनता है या यन ू करता है
और िकसी यायालय या अिधकरण के िकसी प्रितकूल िनणर्य, िडक्री या आदे श के होते हुए भी,
उक्त अिधिनयम और िविनयम म से प्र येक, उसे िनरिसत या संशोिधत करने की िकसी सक्षम
िवधान-मंडल की शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव ृ बना रहे गा ।]
2
[31ग. कुछ िनदे शक त व को प्रभावी करने वाली िविधय की याविृ –अनु छे द 13
म िकसी बात के होते हुए भी, कोई िविध, जो 3[भाग 4 म अिधकिथत सभी या िक हीं त व ]
को सिु नि त करने के िलए रा य की नीित को प्रभावी करने वाली है , इस आधार पर शू य
नहीं समझी जाएगी िक वह 4[अनु छे द 14 या अनु छे द 19] द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी
5
से असंगत है या उसे छीनती है या यनू करती है [और कोई िविध, िजसम यह घोषणा है िक
वह ऐसी नीित को प्रभावी करने के िलए है , िकसी यायालय म इस आधार पर प्र गत नहीं
की जाएगी िक वह ऐसी नीित को प्रभावी नहीं करती है ]:
परं तु जहां ऐसी िविध िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस
अनु छे द के उपबंध उस िविध को तब तक लागू नहीं ह गे जब तक ऐसी िविध को, जो
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखी गई है , उसकी अनुमित प्रा नहीं हो गई है ।
6
31घ. [रा िवरोधी िक्रयाकलाप के संबंध म िविधय की याविृ ।]–संिवधान
(ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
सांिवधािनक उपचार का अिधकार
32. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए उपचार–(1) इस भाग
द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए समिु चत कायर्वािहय द्वारा उ चतम यायालय
म समावेदन करने का अिधकार प्र याभत ू िकया जाता है ।
(2) इस भाग द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए उ चतम

1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (प चीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनु छे द 39 के खंड (ख) या
खंड (ग) म िविनिदर् िसद्धांत ” के थान पर प्रित थािपत । धारा 4 को उ चतम यायालय द्वारा, िमनवार् िम स
िल0 और अ य बनाम भारत संघ और अ य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म अिविधमा य घोिषत कर िदया
गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
5. उ चतम यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल रा य ए.आई.आर. 1973, एस0सी0 1461 म ितरछे टाइप म
िदए गए उपबंध को अिविधमा य घोिषत कर िदया है ।
6. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 19

यायालय को ऐसे िनदे श या आदे श या िरट, िजनके अंतगर्त बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श,
प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उप्रेषण िरट ह, जो भी समिु चत हो, िनकालने की शिक्त होगी ।
(3) उ चतम यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रद शिक्तय पर प्रितकूल
प्रभाव डाले िबना, संस , उ चतम यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्त य िक हीं या सभी
शिक्तय का िकसी अ य यायालय को अपनी अिधकािरता की थानीय सीमाओं के भीतर
प्रयोग करने के िलए िविध द्वारा सशक्त कर सकेगी ।
(4) इस संिवधान द्वारा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, इस अनु छे द द्वारा प्र याभत

अिधकार िनलंिबत नहीं िकया जाएगा ।
1
32क. [रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता पर अनु छे द 32 के अधीन कायर्वािहय
म िवचार न िकया जाना ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 3
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
2
[33. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार का, बल आिद को लागू होने म, उपांतरण करने
की संस की शिक्त–संस , िविध द्वारा, अवधारण कर सकेगी िक इस भाग द्वारा प्रद अिधकार
म से कोई,–
(क) सश बल के सद य को, या
(ख) लोक यव था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बल के सद य को, या
(ग) आसच ू ना या प्रित आसच
ू ना के प्रयोजन के िलए रा य द्वारा थािपत
िकसी यूरो या अ य संगठन म िनयोिजत यिक्तय को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) म िनिदर् िकसी बल, यूरो या संगठन के प्रयोजन के
िलए थािपत दरू संचार प्रणाली म या उसके संबंध म िनयोिजत यिक्तय को,
लागू होने म, िकस िव तार तक िनबर्ि धत या िनराकृत िकया जाए िजससे उनके कतर् य का
उिचत पालन और उनम अनुशासन बना रहना सिु नि त रहे ।]
34. जब िकसी क्षेत्र म सेना िविध प्रव ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद अिधकार पर
िनबर् धन–इस भाग के पव ू ग
र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा संघ
या िकसी रा य की सेवा म िकसी यिक्त की या िकसी अ य यिक्त की िकसी ऐसे कायर् के
संबंध म क्षितपूितर् कर सकेगी जो उसने भारत के रा यक्षेत्र के भीतर िकसी ऐसे क्षेत्र म, जहां
सेना िविध प्रव ृ थी, यव था के बनाए रखने या पुनः थापन के संबंध म िकया है या ऐसे
क्षेत्र म सेना िविध के अधीन पािरत दं डादे श, िदए गए दं ड, आिद समपहरण या िकए गए

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 6 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (पचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनु छे द 33 के थान पर (11-9-1984 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 20

अ य कायर् को िविधमा य कर सकेगी ।


35. इस भाग के उपबंध को प्रभावी करने के िलए िवधान–इस संिवधान म िकसी बात
के होते हुए भी,–
(क) संस को शिक्त होगी और िकसी रा य के िवधान-मंडल को शिक्त नहीं
होगी िक वह–
(i) िजन िवषय के िलए अनु छे द 16 के खंड (3), अनु छे द 32 के
खंड (3), अनु छे द 33 और अनु छे द 34 के अधीन संस िविध द्वारा उपबंध
कर सकेगी उनम से िकसी के िलए, और
(ii) ऐसे काय के िलए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोिषत िकए
गए ह, दं ड िविहत करने के िलए,
िविध बनाए और संस इस संिवधान के प्रारं भ के प ात ् यथाशक्य शीघ्र ऐसे काय के
िलए, जो उपखंड (ii) म िनिदर् ह, दं ड िविहत करने के िलए िविध बनाएगी ;
(ख) खंड (क) के उपखंड (i) म िनिदर् िवषय म से िकसी से संबंिधत या उस
खंड के उपखंड (ii) म िनिदर् िकसी कायर् के िलए दं ड का उपबंध करने वाली कोई
प्रव ृ िविध, जो भारत के रा यक्षेत्र म इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले प्रव ृ थी,
उसके िनबंधन के और अनु छे द 372 के अधीन उसम िकए गए िक हीं अनुकूलन
और उपांतरण के अधीन रहते हुए तब तक प्रव ृ रहे गी जब तक उसका संस द्वारा
पिरवतर्न या िनरसन या संशोधन नहीं कर िदया जाता है ।
प ीकरण–इस अनु छे द म, “प्रव ृ िविध” पद का वही अथर् है जो अनु छे द 372 म है

भाग 4
रा य की नीित के िनदे शक त व
36. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” का वही अथर् है जो भाग 3 म है ।
37. इस भाग म अंतिवर् त व का लागू होना–इस भाग म अंतिवर्
उपबंध िकसी यायालय द्वारा प्रवतर्नीय नहीं ह गे िकं तु िफर भी इनम अिधकिथत
त व दे श के शासन म मूलभूत ह और िविध बनाने म इन त व को लागू करना
रा य का कतर् य होगा ।
38. रा य लोक क याण की अिभविृ द्ध के िलए सामािजक यव था
बनाएगा– 1[(1)] रा य ऐसी सामािजक यव था की, िजसम सामािजक, आिथर्क
और राजनैितक याय रा ीय जीवन की सभी सं थाओं को अनुप्रािणत करे ,
भरसक प्रभावी प म थापना और संरक्षण करके लोक क याण की अिभविृ द्ध का
प्रयास करे गा ।
[(2) रा य, िविश तया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास
2

करे गा और न केवल यि य के बीच बि क िविभ न क्षेत्र म रहने वाले और


िविभ न यवसाय म लगे हुए लोग के समह ू के बीच भी प्रित ा, सिु वधाओं और
अवसर की असमानता समा करने का प्रयास करे गा ।]
39. रा य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीित त व–रा य अपनी नीित का,
िविश तया, इस प्रकार संचालन करे गा िक सिु नि त प से–
(क) पु ष और ी सभी नागिरक को समान प से जीिवका के
पयार् साधन प्रा करने का अिधकार हो ;
(ख) समुदाय के भौितक संसाधन का वािम व और िनयंत्रण इस
प्रकार बंटा हो िजससे सामिू हक िहत का सव म प से साधन हो ;
(ग) आिथर्क यव था इस प्रकार चले िजससे धन और उ पादन-
साधन का सवर्साधारण के िलए अिहतकारी संक्रद्रण न हो ;
(घ) पु ष और ि य दोन का समान कायर् के िलए समान वेतन
हो ;
(ङ) पु ष और ी कमर्कार के वा य और शिक्त का तथा
बालक की सुकुमार अव था का द ु पयोग न हो और आिथर्क आव यकता
से िववश होकर नागिरक को ऐसे रोजगार म न जाना पड़े जो उनकी
आयु या शिक्त के अनुकूल न ह ;

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनु छे द 38 को
उसके खंड (1) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।

21
भारत का संिवधान 22

1
[(च) बालक को वतंत्र और गिरमामय वातावरण म व थ
िवकास के अवसर और सुिवधाएं दी जाएं और बालक और अ पवय
यिक्तय की शोषण से तथा नैितक और आिथर्क पिर याग से रक्षा की जाए
।]
2
[39क. समान याय और िनःशु क िविधक सहायता–रा य यह सुिनि त
करे गा िक िविधक तंत्र इस प्रकार काम करे िक समान अवसर के आधार पर
याय सल ु भ हो और वह, िविश तया, यह सिु नि त करने के िलए िक आिथर्क
या िकसी अ य िनय ग्यता के कारण कोई नागिरक याय प्रा करने के अवसर
से वंिचत न रह जाए, उपयुक्त िवधान या कीम द्वारा या िकसी अ य रीित से
नःशु क िविधक सहायता की यव था करे गा ।]
40. ग्राम पंचायत का संगठन–रा य ग्राम पंचायत का संगठन करने के
िलए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शिक्तयां और प्रािधकार प्रदान करे गा जो उ ह
वाय शासन की इकाइय के प म कायर् करने योग्य बनाने के िलए आव यक
ह ।
41. कुछ दशाओं म काम, िशक्षा और लोक सहायता पाने का अिधकार–
रा य अपनी आिथर्क साम यर् और िवकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के,
िशक्षा पाने के और बेकारी, बढ़
ु ापा, बीमारी और नःशक्तता तथा अ य अनहर् अभाव
की दशाओं म लोक सहायता पाने के अिधकार को प्रा कराने का प्रभावी उपबंध
करे गा ।
42. काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं का तथा प्रसूित सहायता
का उपबंध–रा य काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं को सुिनि त करने
के िलए और प्रसूित सहायता के िलए उपबंध करे गा ।
43. कमर्कार के िलए िनवार्ह मजदरू ी आिद–रा य, उपयुक्त िवधान या
आिथर्क संगठन द्वारा या िकसी अ य रीित से कृिष के, उद्योग के या अ य प्रकार
के सभी कमर्कार को काम, िनवार्ह मजदरू ी, िश जीवन तर और अवकाश का
संपूणर् उपभोग सुिनि त करने वाली काम की दशाएं तथा सामािजक और
सां कृितक अवसर प्रा कराने का प्रयास करे गा और िविश तया ग्राम म कुटीर
उद्योग को वैयिक्तक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करे गा ।
3
[43क. उद्योग के प्रबंध म कमर्कार का भाग लेना–रा य िकसी उद्योग म
लगे हुए उपक्रम , थापन या अ य संगठन के प्रबंध म कमर्कार का भाग
लेना सुिनि त करने के िलए उपयुक्त िवधान द्वारा या िकसी अ य रीित से कदम
उठाएगा ।]

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 23

1
[43ख. सहकारी सोसाइिटय का संवधर्न–रा य, सहकारी सोसाइिटय की
वैि छक िवरचना, उनके वशासी कायर्करण, लोकतांित्रक िनयंत्रण और विृ क
प्रबंधन का संवधर्न करने का प्रयास करे गा ।]
44. नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता–रा य, भारत के सम त
रा यक्षेत्र म नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता प्रा कराने का प्रयास
करे गा ।
2
[45. छह वषर् से कम आयु के बालक के िलए प्रारं िभक बा याव था दे ख-
रे ख और िशक्षा का उपबंध–रा य सभी बालक के िलए छह वषर् की आयु परू ी
करने तक, प्रारं िभक बा याव था दे ख-रे ख और िशक्षा दे ने के िलए उपबंध करने का
प्रयास करे गा ।]
46. अनस ु ूिचत जाितय , अनुसूिचत जनजाितय और अ य दब ु ल
र् वग के
िशक्षा और अथर् संबंधी िहत की अिभविृ द्ध–रा य, जनता के दब ु ल
र् वग के,
िविश तया, अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िशक्षा और अथर्
संबंधी िहत की िवशेष सावधानी से अिभविृ द्ध करे गा और सामािजक अ याय और
सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करे गा ।
47. पोषाहार तर और जीवन तर को ऊंचा करने तथा लोक वा य
का सुधार करने का रा य का कतर् य–रा य, अपने लोग के पोषाहार तर और
जीवन तर को ऊंचा करने और लोक वा य के सुधार को अपने प्राथिमक
कतर् य म मानेगा और रा य, िविश तया, मादक पेय और वा य के िलए
हािनकर ओषिधय के, औषधीय प्रयोजन से िभ न, उपभोग का प्रितषेध करने का
प्रयास करे गा ।
48. कृिष और पशप ु ालन का संगठन–रा य, कृिष और पशप ु ालन को
आधुिनक और वैज्ञािनक प्रणािलय से संगिठत करने का प्रयास करे गा और
िविश तया गाय और बछड़ तथा अ य दध ु ा और वाहक पशुओं की न ल के
पिररक्षण और सध ु ार के िलए और उनके वध का प्रितषेध करने के िलए कदम
उठाएगा ।
3
[48क. पयार्वरण का संरक्षण तथा संवधर्न और वन तथा व य जीव की
रक्षा–रा य, दे श के पयार्वरण के संरक्षण तथा संवधर्न का और वन तथा व य
जीव की रक्षा करने का प्रयास करे गा ।]

1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से) “अनु छे द 45” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 24

49. रा ीय मह व के सं मारक , थान और व तुओं का संरक्षण–1[संस


द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व वाले 2
[घोिषत िकए गए]
कला मक या ऐितहािसक अिभ िच वाले प्र येक सं मारक या थान या व तु का,
यथाि थित, लंठ ु न, िव पण, िवनाश, अपसारण, ययन या िनयार्त से संरक्षण
करना रा य की बा यता होगी ।
50. कायर्पािलका से यायपािलका का पथ ृ क्करण–रा य की लोक सेवाओं
म, यायपािलका को कायर्पािलका से पथ
ृ क्त करने के िलए रा य कदम उठाएगा

51. अंतररा ीय शांित और सुरक्षा की अिभविृ द्ध–रा य,–
(क) अंतररा ीय शांित और सुरक्षा की अिभविृ द्ध का,
(ख) रा के बीच यायसंगत और स मानपूणर् संबंध को बनाए रखने
का,
(ग) संगिठत लोग के एक दस ू रे से यवहार म अंतररा ीय िविध और
संिध-बा यताओं के प्रित आदर बढ़ाने का, और
(घ) अंतररा ीय िववाद के मा य थम ् द्वारा िनपटारे के िलए प्रो साहन
दे ने का,
प्रयास करे गा ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत” के थान
पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
1
[भाग 4क
मूल कतर् य
51क. मल
ू कतर् य–भारत के प्र येक नागिरक का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) संिवधान का पालन करे और उसके आदश , सं थाओं, रा वज और
रा गान का आदर करे ;
(ख) वतंत्रता के िलए हमारे रा ीय आंदोलन को प्रेिरत करने वाले उ च
आदश को दय म संजोए रखे और उनका पालन करे ;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षु ण
रखे ;
(घ) दे श की रक्षा करे और आ ान िकए जाने पर रा की सेवा करे ;
(ङ) भारत के सभी लोग म समरसता और समान भ्रात ृ व की भावना का
िनमार्ण करे जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् पर आधािरत सभी भेदभाव से परे
हो, ऐसी प्रथाओं का याग करे जो ि य के स मान के िव द्ध है ;
(च) हमारी सामािसक सं कृित की गौरवशाली परं परा का मह व समझे
और उसका पिररक्षण करे ;
(छ) प्राकृितक पयार्वरण की, िजसके अंतगर्त वन, झील, नदी और व य
जीव ह, रक्षा करे और उसका संवधर्न करे तथा प्रािण मात्र के प्रित दयाभाव रखे ;
(ज) वैज्ञािनक ि कोण, मानववाद और ज्ञानाजर्न तथा सुधार की भावना
का िवकास करे ;
(झ) सावर्जिनक संपि को सुरिक्षत रखे और िहंसा से दरू रहे ;
(ञ) यिक्तगत और सामूिहक गितिविधय के सभी क्षेत्र म उ कषर् की ओर
बढ़ने का सतत प्रयास करे िजससे रा िनरं तर बढ़ते हुए प्रय और उपलि ध की
नई ऊंचाइय को छू ले ;]
2
[(ट) यिद माता-िपता या संरक्षक है , छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु
वाले अपने, यथाि थित, बालक या प्रितपा य के िलए िशक्षा के अवसर प्रदान
करे ।]

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतः थािपत ।

25
भाग 5
संघ
अध्याय 1–कायर्पा�लका
रा�प�त और उपरा�प�त
52. भारत का रा�प�त–भारत का एक रा�प�त होगा ।
53. संघ क� कायर्पा�लका श��–(1) संघ क� कायर्पा�लका श�� रा�प�त म� �न�हत
होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ
अ�धका�रय� के द्वारा करे गा ।
(2) पव
ू ग
र् ामी उपबंध क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, संघ के र�ा
बल� का सव�च्च समादे श रा�प�त म� �न�हत होगा और उसका प्रयोग �व�ध द्वारा
�व�नय�मत होगा ।
(3) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात–
(क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी राज्य क� सरकार या अन्य
प्रा�धकार� को प्रदान �कए गए कृत्य रा�प�त को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी
जाएगी ; या
(ख) रा�प�त से �भन्न अन्य प्रा�धका�रय� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान करने
से संसद् को �नवा�रत नह�ं करे गी ।
54. रा�प�त का �नवार्चन–रा�प�त का �नवार्चन ऐसे �नवार्चकगण के सदस्य कर� गे
िजसम� –
(क) संसद् के दोन� सदन� के �नवार्�चत सदस्य ; और
(ख) राज्य� क� �वधान सभाओं के �नवार्�चत सदस्य,
ह�गे ।
[स्प�ीकरण–इस अनच्
1
ु छे द और अनच् ु छे द 55 म� , “राज्य” के अंतगर्त �दल्ल�
रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र और *पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र ह� ।]
55. रा�प�त के �नवार्चन क� र��त–(1) जहां तक साध्य हो, रा�प�त के �नवार्चन
म� �भन्न-�भन्न राज्य� के प्र�त�न�धत्व के मापमान म� एकरूपता होगी ।
(2) राज्य� म� आपस म� ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्य� और संघ म� समतुल्यता
प्रा� कराने के �लए संसद् और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा का प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य
ऐसे �नवार्चन म� िजतने मत दे ने का हकदार है उनक� संख्या �नम्न�ल�खत र��त से
अवधा�रत क� जाएगी, अथार्त ् :–
(क) �कसी राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के उतने
मत ह�गे िजतने �क एक हजार के ग�ु णत उस भागफल म� ह� जो राज्य क�
जनसंख्या को उस �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने
पर आए ;

1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्था�पत ।
*
पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुडुचेर� है ।

26
भारत का सं�वधान 27

(ख) य�द एक हजार के उ� गु�णत� को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम


नह�ं है तो उपखंड (क) म� �न�दर्� प्रत्येक सदस्य के मत� क� संख्या म� एक और
जोड़ �दया जाएगा ;
(ग) संसद् के प्रत्येक सदन के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के मत� क� संख्या
वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्य� क� �वधान सभाओं
के सदस्य� के �लए �नयत कुल मत� क� संख्या को, संसद् के दोन� सदन� के
�नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने पर आए, िजसम� आधे से अ�धक
�भन्न को एक �गना जाएगा और अन्य �भन्न� क� उपे�ा क� जाएगी ।
(3) रा�प�त का �नवार्चन आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस
ु ार एकल
संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म� मतदान ग� ु होगा ।
1
[स्प�ीकरण–इस अनच्
ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म�
अ�भ�नि�त क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस ु ग
ं त आं
क ड़े प्रका�शत हो गए ह� :
परं तु इस स्प�ीकरण म� अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सस
ु ंगत आंकड़े
प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह
1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]
56. रा�प�त क� पदाव�ध–(1) रा�प�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क�
अव�ध तक पद धारण करे गा :
परं तु–
(क) रा�प�त, उपरा�प�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) सं�वधान का अ�तक्रमण करने पर रा�प�त को अनच् ु छे द 61 म�
उपबं�धत र��त से चलाए गए महा�भयोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा ;
(ग) रा�प�त, अपने पद क� अव�ध समा� हो जाने पर भी, तब तक पद
धारण करता रहे गा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर लेता
है ।
(2) खंड (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन उपरा�प�त को संबो�धत त्यागपत्र
क� सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्य� को तुरन्त द� जाएगी ।
57. पन
ु �नर्वार्चन के �लए पात्रता–कोई व्य��, जो रा�प�त के रूप म� पद धारण

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्प�ीकरण के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 28

करता है या कर चक ु ा है, इस सं�वधान के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए उस पद के


�लए पन
ु �नर्वार्चन का पात्र होगा ।
58. रा�प�त �नवार्�चत होने के �लए अहर्ताएं–(1) कोई व्य�� रा�प�त �नवार्�चत
होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नाग�रक है,
(ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक
ु ा है, और
(ग) लोक सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है ।
(2) कोई व्य��, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन
अथवा उ� सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के
अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, रा�प�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा ।
स्प�ीकरण–इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्य�� केवल इस कारण कोई
लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का रा�प�त या
उपरा�प�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का
मंत्री है ।
59. रा�प�त के पद के �लए शत�–(1) रा�प�त संसद् के �कसी सदन का या �कसी
राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी
सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य रा�प�त
�नवार्�चत हो जाता है तो यह समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान
रा�प�त के रूप म� अपने पद ग्रहण क� तार�ख से �र� कर �दया है ।
(2) रा�प�त अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा ।
(3) रा�प�त, �बना �कराया �दए, अपने शासक�य �नवास� के उपयोग का हकदार
होगा और ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का भी, जो संसद्, �व�ध द्वारा
अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक
ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का, जो दसू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्� ह�, हकदार
होगा ।
(4) रा�प�त क� उपलिब्धयां और भ�े उसक� पदाव�ध के दौरान कम नह�ं �कए
जाएंगे ।
60. रा�प�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक रा�प�त और प्रत्येक व्य��, जो
रा�प�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, अपना पद
ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमू�तर् या उसक� अनप ु िस्थ�त म� उच्चतम
न्यायालय के उपलब्ध ज्ये�तम न्यायाधीश के सम� �नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा
या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा, अथार्त ् :–

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
शब्द� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 29

ई�र क� शपथ लेता हूं


“म�, अमुक ---------------------------�कम� श्रद्धापव
ू क
र् भारत के रा�प�त
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के पद का कायर्पालन (अथवा रा�प�त के कृत्य� का �नवर्हन) करूंगा तथा अपनी
परू � योग्यता से सं�वधान और �व�ध का प�रर�ण, संर�ण और प्र�तर�ण करूंगा
और म� भारत क� जनता क� सेवा और कल्याण म� �नरत रहूंगा ।”।
61. रा�प�त पर महा�भयोग चलाने क� प्र�क्रया–(1) जब सं�वधान के अ�तक्रमण
के �लए रा�प�त पर महा�भयोग चलाना हो, तब संसद् का कोई सदन आरोप लगाएगा ।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नह�ं लगाया जाएगा जब तक �क–
(क) ऐसा आरोप लगाने क� प्रस्थापना �कसी ऐसे संकल्प म� अंत�वर्� नह�ं है,
जो कम से कम चौदह �दन क� ऐसी �ल�खत सूचना के �दए जाने के प�ात ्
प्रस्ता�वत �कया गया है िजस पर उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम
एक-चौथाई सदस्य� ने हस्ता�र करके उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने का अपना
आशय प्रकट �कया है ; और
(ख) उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत
द्वारा ऐसा संकल्प पा�रत नह�ं �कया गया है ।
(3) जब आरोप संसद् के �कसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दस
ू रा
सदन उस आरोप का अन्वेषण करे गा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण म� उपिस्थत होने
का तथा अपना प्र�त�न�धत्व कराने का रा�प�त को अ�धकार होगा ।
(4) य�द अन्वेषण के प�रणामस्वरूप यह घो�षत करने वाला संकल्प �क रा�प�त के
�वरुद्ध लगाया गया आरोप �सद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन
क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो
ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पा�रत �कए जाने क� तार�ख से रा�प�त को उसके
पद से हटाना होगा ।
62. रा�प�त के पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और
आकिस्मक �र�� को भरने के �लए �नवार्�चत व्य�� क� पदाव�ध–(1) रा�प�त क�
पदाव�ध क� समा�� से हुई �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समा�� से
पहले ह� पण
ू र् कर �लया जाएगा ।
(2) रा�प�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई
उसके पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, �र�� होने क� तार�ख के प�ात ् यथाशीघ्र
और प्रत्येक दशा म� छह मास बीतने से पहले �कया जाएगा और �र�� को भरने के �लए
�नवार्�चत व्य��, अनच्ु छे द 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण क�
तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण करने का हकदार होगा ।
63. भारत का उपरा�प�त–भारत का एक उपरा�प�त होगा ।
64. उपरा�प�त का राज्य सभा का पदे न सभाप�त होना–उपरा�प�त, राज्य सभा
का पदे न सभाप�त होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा :
भारत का सं�वधान 30

परं तु िजस �कसी अव�ध के दौरान उपरा�प�त, अनच् ु छे द 65 के अधीन रा�प�त के


रूप म� कायर् करता है या रा�प�त के कृत्य� का �नवर्हन करता है, उस अव�ध के दौरान
वह राज्य सभा के सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन नह�ं करे गा और वह अनच् ु छे द
97 के अधीन राज्य सभा के सभाप�त को संदेय वेतन या भ�े का हकदार नह�ं होगा ।
65. रा�प�त के पद म� आकिस्मक �र�� के दौरान या उसक� अनप ु िस्थ�त म�
उपरा�प�त का रा�प�त के रूप म� कायर् करना या उसके कृत्य� का �नवर्हन–(1) रा�प�त
क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद म� हुई �र�� क�
दशा म� उपरा�प�त उस तार�ख तक रा�प�त के रूप म� कायर् करे गा िजस तार�ख को ऐसी
�र�� को भरने के �लए इस अध्याय के उपबंध� के अनस ु ार �नवार्�चत नया रा�प�त
अपना पद ग्रहण करता है ।
(2) जब रा�प�त अनपु िस्थ�त, बीमार� या अन्य �कसी कारण से अपने कृत्य� का
�नवर्हन करने म� असमथर् है तब उपरा�प�त उस तार�ख तक उसके कृत्य� का �नवर्हन
करे गा िजस तार�ख को रा�प�त अपने कतर्व्य� को �फर से संभालता है ।
(3) उपरा�प�त को उस अव�ध के दौरान और उस अव�ध के संबध ं म� , जब वह
रा�प�त के रूप म� इस प्रकार कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है,
रा�प�त क� सभी श��यां और उन्म�ु �यां ह�गी तथा वह ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और
�वशेषा�धकार� का जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे , और जब तक इस �न�म� इस
प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का,
जो दस ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्� ह�, हकदार होगा ।
66. उपरा�प�त का �नवार्चन–(1) उपरा�प�त का �नवार्चन 1[संसद् के दोन� सदन�
के सदस्य� से �मलकर बनने वाले �नवार्चकगण के सदस्य�] द्वारा आनपु ा�तक प्र�त�न�धत्व
पद्ध�त के अनसु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म� मतदान ग� ु
होगा ।
(2) उपरा�प�त संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के
�कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के
�वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य उपरा�प�त �नवार्�चत हो जाता है तो यह
समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान उपरा�प�त के रूप म� अपने पद
ग्रहण क� तार�ख से �र� कर �दया है ।
(3) कोई व्य�� उपरा�प�त �नवार्�चत होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नाग�रक है,
ु ा है, और
(ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक
(ग) राज्य सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है ।

1. सं�वधान (ग्यारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा “संयु� अ�धवेशन म� समवेत संसद् के दोन�
सदन� के सदस्य�” के स्थान पर (19-12-1961 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 31

(4) कोई व्य��, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन अथवा
उ� सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन
कोई लाभ का पद धारण करता है, उपरा�प�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा ।
स्प�ीकरण–इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्य�� केवल इस कारण कोई
लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का रा�प�त या
उपरा�प�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का
मंत्री है ।
67. उपरा�प�त क� पदाव�ध–उपरा�प�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर्
क� अव�ध तक पद धारण करे गा :
परं तु–
(क) उपरा�प�त, रा�प�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) उपरा�प�त, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा
सकेगा िजसे राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत ने पा�रत �कया
है और िजससे लोक सभा सहमत है; �कं तु इस खंड के प्रयोजन के �लए कोई
संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को
प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सच ू ना न दे द� गई
हो ;
(ग) उपरा�प�त, अपने पद क� अव�ध समा� हो जाने पर भी, तब तक
पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर
लेता है ।
68. उपरा�प�त के पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और
आकिस्मक �र�� को भरने के �लए �नवार्�चत व्य�� क� पदाव�ध–(1) उपरा�प�त क�
पदाव�ध क� समा�� से हुई �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समा�� से
पहले ह� पण
ू र् कर �लया जाएगा ।
(2) उपरा�प�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई
उसके पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, �र�� होने के प�ात ् यथाशीघ्र �कया
जाएगा और �र�� को भरने के �लए �नवार्�चत व्य��, अनच् ु छे द 67 के उपबंध� के अधीन
रहते हुए, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण करने का
हकदार होगा ।
69. उपरा�प�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक उपरा�प�त अपना पद ग्रहण करने
से पहले रा�प�त अथवा उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु �कसी व्य�� के सम�
�नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
शब्द� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 32

करे गा, अथार्त ् :–


ई�र क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक --------------------------------�क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा तथा िजस पद को म� ग्रहण
करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र् �नवर्हन करूंगा ।”।
70. अन्य आकिस्मकताओं म� रा�प�त के कृत्य� का �नवर्हन–संसद्, ऐसी �कसी
आकिस्मकता म� जो इस अध्याय म� उपबं�धत नह�ं है, रा�प�त के कृत्य� के �नवर्हन के
�लए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठ�क समझे ।
[71. रा�प�त या उपरा�प�त के �नवार्चन से संब�ं धत या संस� �वषय–(1)
1

रा�प�त या उपरा�प�त के �नवार्चन से उत्पन्न या संस� सभी शंकाओं और �ववाद� क�


जांच और �व�न�य उच्चतम न्यायालय द्वारा �कया जाएगा और उसका �व�न�य अं�तम
होगा ।
(2) य�द उच्चतम न्यायालय द्वारा �कसी व्य�� के रा�प�त या उपरा�प�त के रूप
म� �नवार्चन को शून्य घो�षत कर �दया जाता है तो उसके द्वारा, यथािस्थ�त, रा�प�त या
उपरा�प�त के पद क� श��य� के प्रयोग और कतर्व्य� के पालन म� उच्चतम न्यायालय के
�व�न�य क� तार�ख को या उससे पहले �कए गए कायर् उस घोषणा के कारण अ�व�धमान्य
नह�ं ह�गे ।
(3) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, रा�प�त या उपरा�प�त के
�नवार्चन से संब�ं धत या संस� �कसी �वषय का �व�नयमन संसद् �व�ध द्वारा कर सकेगी

(4) रा�प�त या उपरा�प�त के रूप म� �कसी व्य�� के �नवार्चन को उसे �नवार्�चत
करने वाले �नवार्चकगण के सदस्य� म� �कसी भी कारण से �वद्यमान �कसी �र�� के
आधार पर प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ।]
72. �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या
लघक ू रण क� रा�प�त क� श��–(1) रा�प�त को, �कसी अपराध के �लए �सद्धदोष ठहराए
गए �कसी व्य�� के दं ड को �मा, उसका प्र�वलंबन, �वराम या प�रहार करने क� अथवा
दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक
ू रण क�–
(क) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श सेना न्यायालय ने �दया
है,
(ख) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श ऐसे �वषय संबध
ं ी �कसी

1. अनुच्छे द 71, सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) और तत्प�ात ्
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) संशो�धत होकर उपरो� रूप
म� आया ।
भारत का सं�वधान 33

�व�ध के �वरुद्ध अपराध के �लए �दया गया है िजस �वषय तक संघ क�


कायर्पा�लका श�� का �वस्तार है,
(ग) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं डादे श, मत्ृ यु दं डादे श है,
श�� होगी ।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) क� कोई बात संघ के सश� बल� के �कसी आ�फसर
क� सेना न्यायालय द्वारा पा�रत दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक
ू रण क� �व�ध द्वारा
प्रद� श�� पर प्रभाव नह�ं डालेगी ।
(3) खंड (1) के उपखंड (ग) क� कोई बात तत्समय प्रव�
ृ �कसी �व�ध के अधीन
�कसी राज्य के राज्यपाल 1
*** द्वारा प्रयो�व्य मत्ृ यु दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या
लघक
ू रण क� श�� पर प्रभाव नह�ं डालेगी ।
73. संघ क� कायर्पा�लका श�� का �वस्तार–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, संघ क� कायर्पा�लका श�� का �वस्तार–
(क) िजन �वषय� के संबध
ं म� संसद् को �व�ध बनाने क� श�� है उन तक,
और
(ख) �कसी सं�ध या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयो�व्य
अ�धकार�, प्रा�धकार और अ�धका�रता के प्रयोग तक,
होगा :
परं तु इस सं�वधान म� या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध म� अ�भव्य� रूप से
यथा उपबं�धत के �सवाय, उपखंड (क) म� �न�दर्� कायर्पा�लका श�� का �वस्तार �कसी 2***
राज्य म� ऐसे �वषय� तक नह�ं होगा िजनके संबध
ं म� उस राज्य के �वधान-मंडल को भी
�व�ध बनाने क� श�� है ।
(2) जब तक संसद् अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनच्
ु छे द म� �कसी बात
के होते हुए भी, कोई राज्य और राज्य का कोई अ�धकार� या प्रा�धकार� उन �वषय� म� ,
िजनके संबध ं म� संसद् को उस राज्य के �लए �व�ध बनाने क� श�� है, ऐसी कायर्पा�लका
श�� का या कृत्य� का प्रयोग कर सकेगा िजनका प्रयोग वह राज्य या उसका अ�धकार�
या प्रा�धकार� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले कर सकता था ।
मं�त्र-प�रषद्

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का (1-
11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क और
भाग ख म� उिल्ल�खत” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 34

74. रा�प�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद्– 1[(1) रा�प�त को


सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी िजसका प्रधान, प्रधान मंत्री होगा
और रा�प�त अपने कृत्य� का प्रयोग करने म� ऐसी सलाह के अनस
ु ार कायर् करे गा :]
2
[परं तु रा�प�त मं�त्र-प�रषद् से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पन
ु �वर्चार
करने क� अपे�ा कर सकेगा और रा�प�त ऐसे पन
ु �वर्चार के प�ात ् द� गई सलाह के
अनस
ु ार कायर् करे गा ।]
(2) इस प्र� क� �कसी न्यायालय म� जांच नह�ं क� जाएगी �क क्या मं�त्रय� ने
रा�प�त को कोई सलाह द�, और य�द द� तो क्या द� ।
75. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध–(1) प्रधान मंत्री क� �नय�ु � रा�प�त करे गा
और अन्य मं�त्रय� क� �नय�ु � रा�प�त, प्रधान मंत्री क� सलाह पर करे गा ।
3
[(1क) मं�त्र-प�रषद् म� प्रधान मंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या लोक सभा के
सदस्य� क� कुल संख्या के पन्द्रह प्र�तशत से अ�धक नह�ं होगी ।
(1ख) �कसी राजनी�तक दल का संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं
अनस
ु ूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी
�नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप
म� उसक� पदाव�ध समा� होगी या जहां वह ऐसी अव�ध क� समा�� के पव
ू र् ससंद् के
�कसी सदन के �लए �नवार्चन लड़ता है, उस तार�ख तक िजसको वह �नवार्�चत घो�षत
�कया जाता है, इनम� से जो भी पव
ू त
र् र हो, क� अव�ध के दौरान, खंड (1) के अधीन मंत्री
के रूप म� �नय�
ु �कए जाने के �लए भी �नर�हर्त होगा ।]
(2) मंत्री, रा�प�त के प्रसादपय�त अपने पद धारण कर� गे ।
(3) मं�त्र-प�रषद् लोक सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी ।
(4) �कसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, रा�प�त तीसर� अनुसूची म�
इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप� के अनस
ु ार उसको पद क� और गोपनीयता क� शपथ
�दलाएगा ।
(5) कोई मंत्री, जो �नरं तर छह मास क� �कसी अव�ध तक संसद् के �कसी सदन

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 35

का सदस्य नह�ं है, उस अव�ध क� समा�� पर मंत्री नह�ं रहे गा ।


(6) मं�त्रय� के वेतन और भ�े ऐसे ह�गे जो संसद्, �व�ध द्वारा, समय-समय पर
अवधा�रत करे और जब तक संसद् इस प्रकार अवधा�रत नह�ं करती है तब तक ऐसे ह�गे
जो दस
ू र� अनस
ु च ू ी म� �व�न�दर्� ह� ।
भारत का महान्यायवाद�
76. भारत का महान्यायवाद�–(1) रा�प�त, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश
�नय�
ु होने के �लए अ�हर्त �कसी व्य�� को भारत का महान्यायवाद� �नय�
ु करे गा ।
(2) महान्यायवाद� का यह कतर्व्य होगा �क वह भारत सरकार को �व�ध संबध ं ी
ऐसे �वषय� पर सलाह दे और �व�धक स्वरूप के ऐसे अन्य कतर्व्य� का पालन करे जो
रा�प�त उसको समय-समय पर �नद� �शत करे या स�पे और उन कृत्य� का �नवर्हन करे जो
उसको इस सं�वधान अथवा तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध द्वारा या उसके अधीन प्रदान
�कए गए ह� ।
(3) महान्यायवाद� को अपने कतर्व्य� के पालन म� भारत के राज्य�ेत्र म� सभी
न्यायालय� म� सन
ु वाई का अ�धकार होगा ।
(4) महान्यायवाद�, रा�प�त के प्रसादपय�त पद धारण करे गा और ऐसा पा�रश्र�मक
प्रा� करे गा जो रा�प�त अवधा�रत करे ।
सरकार� कायर् का संचालन
77. भारत सरकार के कायर् का संचालन–(1) भारत सरकार क� समस्त
कायर्पा�लका कारर्वाई रा�प�त के नाम से क� हुई कह� जाएगी ।
(2) रा�प�त के नाम से �कए गए और �नष्पा�दत आदे श� और अन्य �लखत� को
ऐसी र��त से अ�धप्रमा�णत �कया जाएगा जो रा�प�त द्वारा बनाए जाने वाले �नयम� 1 म� 13

�व�न�दर्� क� जाए और इस प्रकार अ�धप्रमा�णत आदे श या �लखत क� �व�धमान्यता इस


आधार पर प्र�गत नह�ं क� जाएगी �क वह रा�प�त द्वारा �कया गया या �नष्पा�दत आदे श
या �लखत नह�ं है ।
(3) रा�प�त, भारत सरकार का कायर् अ�धक सु�वधापव
ू क
र् �कए जाने के �लए और
मं�त्रय� म� उ� कायर् के आबंटन के �लए �नयम बनाएगा ।
14 (4)*
2
* * *
78. रा�प�त को जानकार� दे ने आ�द के संबध
ं म� प्रधान मंत्री के कतर्व्य–प्रधान

1. दे �खए समय-समय पर यथा संशो�धत अ�धसूचना सं. का.आ.2297, तार�ख 3 नवंबर, 1958, भारत का राजपत्र,
असाधारण, 1958, भाग 2, अनुभाग 3(ii), प�
ृ 1315 ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंतःस्था�पत �कया
गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 36

मंत्री का यह कतर्व्य होगा �क वह–


(क) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक
प्रस्थापनाओं संबध
ं ी मं�त्र-प�रषद् के सभी �व�न�य रा�प�त को संसू�चत करे ;
(ख) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक
प्रस्थापनाओं संबध
ं ी जो जानकार� रा�प�त मांगे, वह दे ; और
(ग) �कसी �वषय को, िजस पर �कसी मंत्री ने �व�न�य कर �दया है
�कन्तु मं�त्र-प�रषद् ने �वचार नह�ं �कया है, रा�प�त द्वारा अपे�ा �कए जाने पर
प�रषद् के सम� �वचार के �लए रखे ।
अध्याय 2–संसद्
साधारण
79. संसद् का गठन–संघ के �लए एक संसद् होगी जो रा�प�त और दो सदन� से
�मलकर बनेगी िजनके नाम राज्य सभा और लोक सभा ह�गे ।
80. राज्य सभा क� संरचना–(1) 1[ 2*** राज्य सभा]–
(क) रा�प�त द्वारा खंड (3) के उपबंध� के अनस
ु ार नाम�नद� �शत �कए जाने
वाले बारह सदस्य�, और
(ख) राज्य� के 3
[और संघ राज्य�ेत्र� के] दो सौ अड़तीस से अन�धक
प्र�त�न�धय�,
से �मलकर बनेगी ।
(2) राज्य सभा म� राज्य� के और 4[और संघ राज्य�ेत्र� के] प्र�त�न�धय� द्वारा भरे
18

जाने वाले स्थान� का आबंटन चौथी अनस ू ी म� इस �न�म� अंत�वर्� उपबंध� के अनस
ु च ु ार
होगा ।
(3) रा�प�त द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने वाले
सदस्य ऐसे व्य�� ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� �वशेष �ान या
व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :–
सा�हत्य, �व�ान, कला और समाज सेवा ।

1. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) “राज्य सभा” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “दसवीं अनुसच
ू ी के पैरा 4 के
उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 37

(4) राज्य सभा म� प्रत्येक 1*** राज्य के प्र�त�न�धय� का �नवार्चन उस राज्य


क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� द्वारा आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस
ु ार
एकल संक्रमणीय मत द्वारा �कया जाएगा ।
(5) राज्य सभा म� 2[संघ राज्य�ेत्र�] के प्र�त�न�ध ऐसी र��त से चन
ु े जाएंगे जो
संसद् �व�ध द्वारा �व�हत करे ।
3
[81. लोक सभा क� संरचना–(1) 4[अनच्
ु छे द 331 के उपबंध� के अधीन रहते हुए
5
***] लोक सभा–
(क) राज्य� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन
ु े गए
6
[पांच सौ तीस] से अन�धक 6[सदस्य�], और
(ख) संघ राज्य�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करने के �लए ऐसी र��त से, जो
ु े हुए [बीस] से अन�धक [सदस्य�],
संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , चन 7 7

से �मलकर बनेगी ।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजन� के �लए,–
(क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा म� स्थान� का आबंटन ऐसी र��त से
�कया जाएगा �क स्थान� क� संख्या से उस राज्य क� जनसंख्या का अनप
ु ात सभी
राज्य� के �लए यथासाध्य एक ह� हो, और
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत
�कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान�
क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो :
8
[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध �कसी राज्य को लोक सभा म� स्थान�
के आबंटन के प्रयोजन के �लए तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक उस राज्य क�
जनसंख्या साठ लाख से अ�धक नह�ं हो जाती है ।]

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म�
�व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग ग म� �व�न�दर् � राज्य�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा अनुच्छे द 81 और अनुच्छे द 82 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) “अनुच्छे द 331 के उपबंध� के
अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “और दसवीं अनुसूची के पैरा 4”
शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ
पच्चीस सदस्य�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा “पच्चीस सदस्य�” के स्थान पर (17-10-1973
से) प्र�तस्था�पत ।
8. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) पच्चीस सदस्य� के स्थान पर
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 38

(3) इस अनच्
ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म�
अ�भ�नि�त क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� :
[परन्तु इस खंड म� अं�तम पव
1
ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग
ं त आंकड़े
प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, 3[यह अथर् लगाया जाएगा �क
वह,–
(i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तक
ु के प्रयोजन� के �लए
1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ; और
(ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजन� के �लए 4[2001] क� जनगणना
के प्र�त �नद� श है ।]]
82. प्रत्येक जनगणना के प�ात ् पन ु ः समायोजन–प्रत्येक जनगणना क� समा��
पर राज्य� को लोक सभा म� स्थान� के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-
�ेत्र� म� �वभाजन का ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से पन ु ः समायोजन �कया
जाएगा जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे :
परन्तु ऐसे पन
ु ः समायोजन से लोक सभा म� प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव
नह�ं पड़ेगा जब तक उस समय �वद्यमान लोक सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है :
5
[परन्तु यह और �क ऐसा पन ु ः समायोजन उस तार�ख से प्रभावी होगा जो रा�प�त
आदे श द्वारा �व�न�दर्� करे और ऐसे पन ु ः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के �लए
कोई �नवार्चन उन प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन
ु ः समायोजन
के पहले �वद्यमान ह� :
परन्तु यह और भी �क जब तक सन ् 6[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह� तब तक 7[इस अनच्
ु छे द के
अधीन,–

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा क�तपय शब्द� के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा "1991" के स्थान पर (22-6-2003 से
प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
6. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा "2000" (21-2-2002 से) प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा क�तपय शब्द� के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 39

(i) राज्य� को लोक सभा म� 1971 क� जनगणना के आधार पर पन


ु ः
समायोिजत स्थान� के आबंटन का ; और

(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन का, जो 1[2001]


क� जनगणना के आधार पर पन
ु ः समायोिजत �कए जाएं,
पन
ु ः समायोजन आवश्यक नह�ं होगा ।]]
83. संसद् के सदन� क� अव�ध–(1) राज्य सभा का �वघटन नह�ं होगा, �कन्तु
उसके सदस्य� म� से यथा संभव �नकटतम एक-�तहाई सदस्य, संसद् द्वारा �व�ध द्वारा इस
�न�म� �कए गए उपबंध� के अनस
ु ार, प्रत्येक �द्वतीय वषर् क� समा�� पर यथाशक्य शीघ्र
�नव�
ृ हो जाएंगे ।
(2) लोक सभा, य�द पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम
अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से 2[पांच वषर्] तक बनी रहेगी, इससे अ�धक नह�ं और
2
[पांच वषर्] क� उ� अव�ध क� समा�� का प�रणाम लोक सभा का �वघटन होगा :

परन्तु उ� अव�ध को, जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब, संसद्, �व�ध


द्वारा, ऐसी अव�ध के �लए बढ़ा सकेगी, जो एक बार म� एक वषर् से अ�धक नह�ं होगी
और उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रह जाने के प�ात ् उसका �वस्तार �कसी भी दशा म� छह
मास क� अव�ध से अ�धक नह�ं होगा ।

84. संसद् क� सदस्यता के �लए अहर्ता–कोई व्य�� संसद् के �कसी स्थान को


भरने के �लए चन
ु े जाने के �लए अ�हर्त तभी होगा जब–
3
[(क) वह भारत का नाग�रक है और �नवार्चन आयोग द्वारा इस �न�म�
प्रा�धकृत �कसी व्य�� के सम� तीसर� अनस
ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए
प्ररूप के अनस
ु ार शपथ लेता है या प्र�त�ान करता है और उस पर अपने
हस्ता�र करता है ;]

(ख) वह राज्य सभा म� स्थान के �लए कम से कम तीस वषर् क� आयु का


और लोक सभा म� स्थान के �लए कम से कम पच्चीस वषर् क� आयु का है ; और

1. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा "1991" के स्थान पर (22-6-2003 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) “छह वषर्” शब्द� के स्थान
पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्”
मूल शब्द� के स्थान पर “छह वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 40

(ग) उसके पास ऐसी अन्य अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी
�व�ध द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� �व�हत क� जाएं ।
1
[85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और �वघटन—(1) रा�प�त समय-समय पर, संसद्
के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के �लए
आहूत करे गा, �कन्तु उसके एक सत्र क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम बैठक
के �लए �नयत तार�ख के बीच छह मास का अंतर नह�ं होगा ।]
(2) रा�प�त, समय-समय पर–
(क) सदन� का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) लोक सभा का �वघटन कर सकेगा ।
86. सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा�प�त का अ�धकार–
(1) रा�प�त, संसद् के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म�
अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर
सकेगा ।
(2) रा�प�त, संसद् म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के संबध ं म� संदेश या
कोई अन्य संदेश, संसद् के �कसी सदन को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश
इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय
पर सु�वधानसु ार शीघ्रता से �वचार करे गा ।
87. रा�प�त का �वशेष अ�भभाषण–(1) रा�प�त, 2[लोक सभा के �लए प्रत्येक
साधारण �नवार्चन के प�ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� और प्रत्येक वषर् के प्रथम सत्र के
आरं भ म�] एक साथ समवेत संसद् के दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और संसद् को
उसके आ�ान के कारण बताएगा ।
(2) प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा ऐसे
अ�भभाषण म� �न�दर्� �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3*** उपबंध
�कया जाएगा ।
88. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महान्यायवाद� के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और
भारत के महान्यायवाद� को यह अ�धकार होगा �क वह �कसी भी सदन म� , सदन� क�
�कसी संय� ु बैठक म� और संसद् क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के
रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस
अनच्
ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा ।

1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर (18-6-1951 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा “और सदन के अन्य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के �लए” शब्द� का (18-6-1951 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 41

संसद् के अ�धकार�
89. राज्य सभा का सभाप�त और उपसभाप�त–(1) भारत का उपरा�प�त राज्य
सभा का पदे न सभाप�त होगा ।
(2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने �कसी सदस्य को अपना उपसभाप�त चन
ु ग
े ी
और जब-जब उपसभाप�त का पद �र� होता है तब-तब राज्य सभा �कसी अन्य सदस्य
को अपना उपसभाप�त चन ु ेगी ।
90. उपसभाप�त का पद �र� होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–राज्य सभा
के उपसभाप�त के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) य�द राज्य सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �र� कर
दे गा ;
(ख) �कसी भी समय सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख
द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और
(ग) राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह
�दन क� सूचना न दे द� गई हो ।
91. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� कायर्
करने क� उपसभाप�त या अन्य व्य�� क� श��–(1) जब सभाप�त का पद �र� है या ऐसी
अव�ध म� जब उपरा�प�त, रा�प�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का
�नवर्हन कर रहा है, तब उपसभाप�त या य�द उपसभाप�त का पद भी �र� है तो, राज्य
सभा का ऐसा सदस्य िजसको रा�प�त इस प्रयोजन के �लए �नय� ु करे , उस पद के
कतर्व्य� का पालन करे गा ।
(2) राज्य सभा क� �कसी बैठक से सभाप�त क� अनप ु िस्थ�त म� उपसभाप�त, या
य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्य��, जो राज्य सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा
अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्य�� उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्य��,
जो राज्य सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, सभाप�त के रूप म� कायर् करे गा ।
92. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना–(1) राज्य सभा क� �कसी बैठक म� , जब उपरा�प�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब सभाप�त, या जब उपसभाप�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपसभाप�त, उपिस्थत रहने पर
भी, पीठासीन नह�ं होगा और अनच्ु छे द 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे,
यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त अनप ु िस्थत है ।
भारत का सं�वधान 42

(2) जब उपरा�प�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा म�


�वचाराधीन है तब सभाप�त को राज्य सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा
भाग लेने का अ�धकार होगा, �कन्तु वह अनच्ु छे द 100 म� �कसी बात के होते हुए भी ऐसे
संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर, मत दे ने का �बल्कुल
हकदार नह�ं होगा ।
93. लोक सभा का अध्य� और उपाध्य�–लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो
सदस्य� को अपना अध्य� और उपाध्य� चन
ु ेगी और जब-जब अध्य� या उपाध्य� का
पद �र� होता है तब-तब लोक सभा �कसी अन्य सदस्य को, यथािस्थ�त, अध्य� या
उपाध्य� चन
ु ेगी ।
94. अध्य� और उपाध्य� का पद �र� होना, पद त्याग और पद से हटाया
जाना–लोक सभा के अध्य� या उपाध्य� के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) य�द लोक सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �र� कर दे गा
;
(ख) �कसी भी समय, य�द वह सदस्य अध्य� है तो उपाध्य� को
संबो�धत और य�द वह सदस्य उपाध्य� है तो अध्य� को संबो�धत अपने
हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और
(ग) लोक सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह
�दन क� सूचना न दे द� गई हो :
परन्तु यह और �क जब कभी लोक सभा का �वघटन �कया जाता है तो �वघटन
के प�ात ् होने वाले लोक सभा के प्रथम अ�धवेशन के ठ�क पहले तक अध्य� अपने पद
को �र� नह�ं करे गा ।
95. अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् करने
क� उपाध्य� या अन्य व्य�� क� श��–(1) जब अध्य� का पद �र� है तब उपाध्य�,
या य�द उपाध्य� का पद भी �र� है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, िजसको रा�प�त
इस प्रयोजन के �लए �नय�
ु करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा ।
(2) लोक सभा क� �कसी बैठक से अध्य� क� अनपु िस्थ�त म� उपाध्य�, या य�द
वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्य��, जो लोक सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा
अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्य�� उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्य��,
जो लोक सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, अध्य� के रूप म� कायर् करे गा ।
भारत का सं�वधान 43

96. जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब


उसका पीठासीन न होना–(1) लोक सभा क� �कसी बैठक म� , जब अध्य� को उसके पद से
हटाने का संकल्प �वचाराधीन है तब अध्य�, या जब उपाध्य� को उसके पद से हटाने का
कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपाध्य�, उपिस्थत रहने पर भी, पीठासीन नह�ं होगा और
अनच्
ु छे द 95 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे
जैसे वे उस बैठक के संबध
ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य�
अनप
ु िस्थत है ।

(2) जब अध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प लोक सभा म�


�वचाराधीन है तब उसको लोक सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग
लेने का अ�धकार होगा और वह अनच्
ु छे द 100 म� �कसी बात के होते हुए भी, ऐसे
संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर प्रथमतः ह� मत दे ने
का हकदार होगा, �कन्तु मत बराबर होने क� दशा म� मत दे ने का हकदार नह�ं होगा ।

97. सभाप�त और उपसभाप�त तथा अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े–


राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त को तथा लोक सभा के अध्य� और उपाध्य�
को, ऐसे वेतन और भ�� का जो संसद्, �व�ध द्वारा, �नयत करे और जब तक इस �न�म�
इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भ�� का, जो दस
ू र�
अनस
ु ूची म� �व�न�दर्� ह�, संदाय �कया जाएगा ।

98. संसद् का स�चवालय–(1) संसद् के प्रत्येक सदन का पथ


ृ क् स�चवीय
कमर्चा�रवद
ंृ होगा :

परन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह संसद् के


दोन� सदन� के �लए सिम्म�लत पद� के सज
ृ न को �नवा�रत करती है ।

(2) संसद्, �व�ध द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन के स�चवीय कमर्चा�रवद


ंृ म� भत�
का और �नय�
ु व्य��य� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सकेगी ।

(3) जब तक संसद् खंड (2) के अधीन उपबंध नह�ं करती है तब तक रा�प�त,


यथािस्थ�त, लोक सभा के अध्य� या राज्य सभा के सभाप�त से परामशर् करने के प�ात ्
लोक सभा के या राज्य सभा के स�चवीय कमर्चा�रवद
ंृ म� भत� के और �नय�
ु व्य��य�
क� सेवा क� शत� के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए
�नयम उ� खंड के अधीन बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए प्रभावी
ह�गे ।
भारत का सं�वधान 44

कायर् संचालन
99. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य
अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, रा�प�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु व्य�� के
सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनसु ार, शपथ लेगा
या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।

100. सदन� म� मतदान, �र��य� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� श��
और गणप�ू तर्–(1) इस सं�वधान म� यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक सदन क�
बैठक म� या सदन� क� संय� ु बैठक म� सभी प्र�� का अवधारण, अध्य� को अथवा
सभाप�त या अध्य� के रूप म� कायर् करने वाले व्य�� को छोड़कर, उपिस्थत और मत
दे ने वाले सदस्य� के बहुमत से �कया जाएगा ।

सभाप�त या अध्य�, अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्य�� प्रथमतः मत नह�ं
दे गा, �कन्तु मत बराबर होने क� दशा म� उसका �नणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग
करे गा ।

(2) संसद् के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �र�� होने पर भी, उस सदन को
कायर् करने क� श�� होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क कोई व्य��, जो ऐसा
करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या उसने मत �दया है या
अन्यथा भाग �लया है तो भी संसद् क� कोई कायर्वाह� �व�धमान्य होगी ।

[(3) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद् के प्रत्येक


1

सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर् सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का
दसवां भाग होगी ।

(4) य�द सदन के अ�धवेशन म� �कसी समय गणप�ू तर् नह�ं है तो सभाप�त या
अध्य� अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्य�� का यह कतर्व्य होगा �क वह सदन को
स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए �नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर् नह�ं
हो जाती है ।]

सदस्य� क� �नरहर्ताएं

101. स्थान� का �र� होना–(1) कोई व्य�� संसद् के दोन� सदन� का सदस्य नह�ं
होगा और जो व्य�� दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है उसके एक या दस ू रे
सदन के स्थान को �र� करने के �लए संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे गी ।

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 18 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं हुई थी) खंड (3) और
खंड (4) को लोप �कया गया गया �कन्तु सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा
(20-6-1978 से) उ� संशोधन को �नर�सत कर �दया गया ।
भारत का सं�वधान 45

(2) कोई व्य�� संसद् और �कसी 1*** राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन,
दोन� का सदस्य नह�ं होगा और य�द कोई व्य�� संसद् और 2[�कसी राज्य] के �वधान-
मंडल के �कसी सदन, दोन� का सदस्य चन ु �लया जाता है तो ऐसी अव�ध क� समा�� के
प�ात ् जो रा�प�त द्वारा बनाए गए �नयम� 3 म� �व�न�दर्� क� जाए, संसद् म� ऐसे व्य��
43

का स्थान �र� हो जाएगा य�द उसने राज्य के �वधान-मंडल म� अपने स्थान को पहले ह�
नह�ं त्याग �दया है ।
(3) य�द संसद् के �कसी सदन का सदस्य–
(क) 4[अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) या खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता
से ग्रस्त हो जाता है, या
[(ख) यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र
5

स�हत लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर दे ता है और उसका त्यागपत्र,


यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� द्वारा स्वीकार कर �लया जाता है,]
तो ऐसा होने पर उसका स्थान �र� हो जाएगा :
[परन्तु उपखंड (ख) म� �न�दर्� त्यागपत्र क� दशा म� , य�द प्रा� जानकार� से या
6

अन्यथा और ऐसी जांच करने के प�ात ्, जो वह ठ�क समझे, यथािस्थ�त, सभाप�त या


अध्य� का यह समाधान हो जाता है �क ऐसा त्यागपत्र स्वैिच्छक या असल� नह�ं है तो
वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकर नह�ं करे गा ।]
(4) य�द संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य साठ �दन क� अव�ध तक सदन
क� अन�ु ा के �बना उसके सभी अ�धवेशन� से अनप
ु िस्थत रहता है तो सदन उसके स्थान
को �र� घो�षत कर सकेगा :
परन्तु साठ �दन क� उ� अव�ध क� संगणना करने म� �कसी ऐसी अव�ध को
�हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसके दौरान सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक
�दन� के �लए स्थ�गत रहता है ।

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग
ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे �कसी राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. दे �खए, �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना संख्या एफ.46/50-सी, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प�
ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम,1950 ।
4. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 102 के खंड (1)” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 46

102. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं–(1) कोई व्य�� संसद् के �कसी सदन का


सदस्य चन
ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा–
1
[(क) य�द वह भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन,
ऐसे पद को छोड़कर, िजसको धारण करने वाले का �नर�हर्त न होना संसद् ने
�व�ध द्वारा घो�षत �कया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;]

(ख) य�द वह �वकृत�च� है और स�म न्यायालय क� ऐसी घोषणा �वद्यमान


है;

(ग) य�द वह अनन्


ु मो�चत �दवा�लया है ;

(घ) य�द वह भारत का नाग�रक नह�ं है या उसने �कसी �वदे शी राज्य क�


नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है या वह �कसी �वदे शी राज्य के प्र�त �न�ा
या अनष
ु �� को अ�भस्वीकार �कए हुए है ;

(ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन
इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है ।
2
[स्प�ीकरण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्य�� केवल इस कारण भारत
सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं
समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है ।
3
[ (2) कोई व्य�� संसद् के �कसी सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा
ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो जाता है ।]
य�द वह दसवीं अनस
4
[103. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्र�� पर �व�न�य–(1) य�द यह प्र�
उठता है �क संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) म� व�णर्त
�कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्र� रा�प�त को �व�न�य के �लए
�नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�न�य अं�तम होगा ।

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 19 द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) को (तार�ख
अ�धसू�चत नह�ं क� गई) से प्र�तस्था�पत �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के
�लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत ।
4. अनुच्छे द 103, सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत
और तत्प�ात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) संशो�धत
होकर उपरो� रूप म� प�ठत ।
भारत का सं�वधान 47

(2) ऐसे �कसी प्र� पर �व�न�य करने के पहले रा�प�त �नवार्चन आयोग क� राय
लेगा और ऐसी राय के अनस
ु ार कायर् करे गा ।]

104. अनच् ु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त न


होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त–य�द संसद् के
�कसी सदन म� कोई व्य�� अनच् ु छे द 99 क� अपे�ाओं का अनप
ु ालन करने से पहले, या
वह जानते हुए �क म� उसक� सदस्यता के �लए अ�हर्त नह�ं हूं या �नर�हर्त कर �दया गया
हूं या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� द्वारा ऐसा करने से प्र�त�षद्ध कर
�दया गया हूं, सदस्य के रूप म� बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक �दन के �लए,
जब वह इस प्रकार बैठता है या मत दे ता है, पांच सौ रुपए क� शािस्त का भागी होगा
जो संघ को दे य ऋण के रूप म� वसल ू क� जाएगी ।

संसद् और उसके सदस्य� क� श��यां, �वशेषा�धकार और उन्मु��यां

105. संसद् के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क� श��यां,


�वशेषा�धकार आ�द–(1) इस सं�वधान के उपबंध� और संसद् क� प्र�क्रया का �व�नयमन
करने वाले �नयम� और स्थायी आदे श� के अधीन रहते हुए, संसद् म� वा�-स्वातंत्र्य होगा

(2) संसद् म� या उसक� �कसी स�म�त म� संसद् के �कसी सदस्य द्वारा कह� गई
�कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध ं म� उसके �वरुद्ध �कसी न्यायालय म� कोई
कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्य�� के �वरुद्ध संसद् के �कसी सदन के प्रा�धकार
द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन, पत्र, मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन के संबध
ं म�
इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी ।

1
[(3) अन्य बात� म� संसद् के प्रत्येक सदन क� और प्रत्येक सदन के सदस्य�
और स�म�तय� क� श��यां, �वशेषा�धकार और उन्म�ु �यां ऐसी ह�गी जो संसद्, समय-
समय पर, �व�ध द्वारा, प�र�नि�त करे और जब तक वे इस प्रकार प�र�नि�त नह�ं क�
जाती ह� तब तक 2[वह� ह�गी जो सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क�
धारा 15 के प्रव�
ृ होने से ठ�क पहले उस सदन क� और उसके सदस्य� और स�म�तय�
क� थीं ।]]

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 21 द्वारा क�तपय शब्द� को "तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क�
गई)" प्र�तस्था�पत नह�ं �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) क�तपय शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 48

(4) िजन व्य��य� को इस सं�वधान के आधार पर संसद् के �कसी सदन या


उसक� �कसी स�म�त म� बोलने का और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का
अ�धकार है, उनके संबध ं म� खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू
ह�गे िजस प्रकार वे संसद् के सदस्य� के संबध
ं म� लागू होते ह� ।
106. सदस्य� के वेतन और भ�े–संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और
भ�े, िजन्ह� संसद्, समय-समय पर, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस संबध ं
म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे भ�े, ऐसी दर� से और ऐसी शत�
पर, जो भारत डो�म�नयन क� सं�वधान सभा के सदस्य� को इस सं�वधान के प्रारं भ से
ठ�क पहले लागू थीं, प्रा� करने के हकदार ह�गे ।
�वधायी प्र�क्रया
107. �वधेयक� के परु ःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबध
ं म� उपबंध–(1) धन
�वधेयक� और अन्य �व� �वधेयक� के संबध ं म� अनच्ु छे द 109 और अनच्ु छे द 117 के
उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक संसद् के �कसी भी सदन म� आरं भ हो
सकेगा ।

(2) अनच्
ु छे द 108 और अनच् ु छे द 109 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई
�वधेयक संसद् के सदन� द्वारा तब तक पा�रत �कया गया नह�ं समझा जाएगा जब तक
संशोधन के �बना या केवल ऐसे संशोधन� स�हत, िजन पर दोन� सदन सहमत हो गए ह�,
उस पर दोन� सदन सहमत नह�ं हो जाते ह� ।

(3) संसद् म� लं�बत �वधेयक सदन� के सत्रावसान के कारण व्यपगत नह�ं होगा ।

(4) राज्य सभा म� लं�बत �वधेयक, िजसको लोक सभा ने पा�रत नह�ं �कया है,
लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत नह�ं होगा ।

(5) कोई �वधेयक, जो लोक सभा म� लं�बत है या जो लोक सभा द्वारा पा�रत कर
�दया गया है और राज्य सभा म� लं�बत है, अनच्
ु छे द 108 के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत हो जाएगा ।

108. कुछ दशाओं म� दोन� सदन� क� संय� ु बैठक–(1) य�द �कसी �वधेयक के
एक सदन द्वारा पा�रत �कए जाने और दस
ू रे सदन को पारे �षत �कए जाने के प�ात ्,–

(क) दस
ू रे सदन द्वारा �वधेयक अस्वीकर कर �दया गया है, या
(ख) �वधेयक म� �कए जाने वाले संशोधन� के बारे म� दोन� सदन अं�तम
रूप से असहमत हो गए ह�, या

(ग) दस
ू रे सदन को �वधेयक प्रा� होने क� तार�ख से उसके द्वारा �वधेयक
पा�रत �कए �बना छह मास से अ�धक बीत गए ह�,
भारत का सं�वधान 49

तो उस दशा के �सवाय, िजसम� लोक सभा का �वघटन होने के कारण �वधेयक व्यपगत
हो गया है, रा�प�त �वधेयक पर �वचार-�वमशर् करने और मत दे ने के प्रयोजन के �लए
सदन� को संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क�
सचू ना, य�द वे बैठक म� ह� तो संदेश द्वारा या य�द वे बैठक म� नह�ं ह� तो लोक
अ�धसूचना द्वारा दे गा :
परन्तु इस खंड क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी ।
(2) छह मास क� ऐसी अव�ध क� गणना करने म� , जो खंड (1) म� �न�दर्� है,
�कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसम� उ� खंड के उपखंड (ग) म�
�न�दर्� सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत कर �दया जाता
है ।
(3) य�द रा�प�त ने खंड (1) के अधीन सदन� को संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत
होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� सूचना दे द� है तो कोई भी सदन �वधेयक
पर आगे कायर्वाह� नह�ं करे गा, �कन्तु रा�प�त अपनी अ�धसच
ू ना क� तार�ख के प�ात ्
�कसी समय सदन� को अ�धसूचना म� �व�न�दर्� प्रयोजन के �लए संय� ु बैठक म�
अ�धवे�शत होने के �लए आहूत कर सकेगा और, य�द वह ऐसा करता है तो, सदन
तद्नस
ु ार अ�धवे�शत ह�गे ।
(4) य�द सदन� क� संय�ु बैठक म� �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�,
िजन पर संय� ु बैठक म� सहम�त हो जाती है, दोन� सदन� के उपिस्थत और मत दे ने
वाले सदस्य� क� कुल संख्या के बहुमत द्वारा पा�रत हो जाता है तो इस सं�वधान के
प्रयोजन� के �लए वह दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा :
परन्तु संय�
ु बैठक म�–
(क) य�द �वधेयक एक सदन से पा�रत �कए जाने पर दस ू रे सदन द्वारा
संशोधन� स�हत पा�रत नह�ं कर �दया गया है और उस सदन को, िजसम� उसका
आरं भ हुआ था, लौटा नह�ं �दया गया है तो ऐसे संशोधन� से �भन्न (य�द कोई
ह�), जो �वधेयक के पा�रत होने म� दे र� के कारण आवश्यक हो गए ह�, �वधेयक
म� कोई और संशोधन प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ;
(ख) य�द �वधेयक इस प्रकार पा�रत कर �दया गया है और लौटा �दया
गया है तो �वधेयक म� केवल पव ू �� संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन
�वषय� से सस ु ग
ं त ह� िजन पर सदन� म� सहम�त नह�ं हुई है, प्रस्था�पत �कए
जाएंगे,
और पीठासीन व्य�� का इस बारे म� �व�न�य अं�तम होगा �क कौन से संशोधन इस
खंड के अधीन ग्रा� ह� ।
(5) सदन� क� संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने
आशय क� रा�प�त क� सूचना के प�ात ्, लोक सभा का �वघटन बीच म� हो जाने पर भी,
इस अनच्
ु छे द के अधीन संय�ु बैठक हो सकेगी और उसम� �वधेयक पा�रत हो सकेगा ।
109. धन �वधेयक� के संबध
ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक राज्य सभा म�
परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ।
भारत का सं�वधान 50

(2) धन �वधेयक लोक सभा द्वारा पा�रत �कए जाने के प�ात ् राज्य सभा को
उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और राज्य सभा �वधेयक क� प्रा�� क�
तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक को अपनी �सफा�रश� स�हत लोक
सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा क� सभी या �कन्ह�ं
�सफा�रश� को स्वीकर या अस्वीकार कर सकेगी ।
(3) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती है तो
धन �वधेयक राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार �कए गए
संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा ।

(4) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं करती
है तो धन �वधेयक, राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के �बना, दोन�
सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा
पा�रत �कया गया था ।

(5) य�द लोक सभा द्वारा पा�रत और राज्य सभा को उसक� �सफा�रश� के �लए
पारे �षत धन �वधेयक उ� चौदह �दन क� अव�ध के भीतर लोक सभा को नह�ं लौटाया
जाता है तो उ� अव�ध क� समा�� पर वह दोन� सदन� द्वारा, उस रूप म� पा�रत �कया
गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा पा�रत �कया गया था ।

110. “धन �वधेयक” क� प�रभाषा–(1) इस अध्याय के प्रयोजन� के �लए, कोई


�वधेयक धन �वधेयक समझा जाएगा य�द उसम� केवल �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं
�वषय� से संब�ं धत उपबंध ह�, अथार्त ् :–

(क) �कसी कर का अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या


�व�नयमन ;

(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभू�त दे ने का


�व�नयमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ल� गई या ल� जाने वाल�
�कन्ह�ं �व�ीय बाध्यताओं से संब�ं धत �व�ध का संशोधन ;

(ग) भारत क� सं�चत �न�ध या आकिस्मकता �न�ध क� अ�भर�ा, ऐसी


�कसी �न�ध म� धन जमा करना या उसम� से धन �नकालना ;

(घ) भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग ;

(ङ) �कसी व्यय को भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना
या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ; या
भारत का सं�वधान 51

(च) भारत क� सं�चत �न�ध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्रा� करना
अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं
क� संपर��ा ; या

(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्� �कसी �वषय का आनष


ु �ं गक
कोई �वषय ।

(2) कोई �वधेयक केवल इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह


जमु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन�
ु ��य� के �लए फ�स� क�
या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है
अथवा इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या
�नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार,
प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है ।
(3) य�द यह प्र� उठता है �क कोई �वधेयक धन �वधेयक है या नह�ं तो उस पर
लोक सभा के अध्य� का �व�न�य अं�तम होगा ।
(4) जब धन �वधेयक अनच् ु छे द 109 के अधीन राज्य सभा को पारे �षत �कया
जाता है और जब वह अनच् ु छे द 111 के अधीन अनम ु �त के �लए रा�प�त के सम�
प्रस्तुत �कया जाता है तब प्रत्येक धन �वधेयक पर लोक सभा के अध्य� के हस्ता�र
स�हत यह प्रमाण प� ृ ां�कत �कया जाएगा �क वह धन �वधेयक है ।
111. �वधेयक� पर अनमु �त–जब कोई �वधेयक संसद् के सदन� द्वारा पा�रत कर
�दया गया है तब वह रा�प�त के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा और रा�प�त घो�षत
करे गा �क वह �वधेयक पर अनमु �त दे ता है या अनम
ु �त रोक लेता है :
परन्तु रा�प�त अनम ु �त के �लए अपने सम� �वधेयक प्रस्तुत �कए जाने के
प�ात ् यथाशीघ्र उस �वधेयक को, य�द वह धन �वधेयक नह�ं है तो, सदन� को इस संदेश
के साथ लौटा सकेगा �क वे �वधेयक पर या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर्� उपबंध� पर
पनु �वर्चार कर� और �व�श�तया �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� के परु ःस्थापन क� वांछनीयता पर
�वचार कर� िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �वधेयक इस प्रकार
लौटा �दया जाता है तब सदन �वधेयक पर तद्नस ु ार पन
ु �वर्चार कर� गे और य�द �वधेयक
सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है और
रा�प�त के सम� अनम ु �त के �लए प्रस्तुत �कया जाता है तो रा�प�त उस पर अनम ु �त
नह�ं रोकेगा ।
�व�ीय �वषय� के संबध
ं म� प्र�क्रया
112. वा�षर्क �व�ीय �ववरण–(1) रा�प�त प्रत्येक �व�ीय वषर् के संबध
ं म� संसद्
के दोन� सदन� के सम� भारत सरकार क� उस वषर् के �लए प्राक्क�लत प्रा��य� और
व्यय का �ववरण रखवाएगा िजसे इस भाग म� “वा�षर्क �व�ीय �ववरण” कहा गया है ।
(2) वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� �दए हुए व्यय के प्राक्कलन� म�–
भारत का सं�वधान 52

(क) इस सं�वधान म� भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय के रूप म�


व�णर्त व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, और
(ख) भारत क� सं�चत �न�ध म� से �कए जाने के �लए प्रस्था�पत अन्य
व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां,
पथ
ृ क् -पथ
ृ क् �दखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद
�कया जाएगा ।
(3) �नम्न�ल�खत व्यय भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय होगा, अथार्त ् :–
(क) रा�प�त क� उपलिब्धयां और भ�े तथा उसके पद से संब�ं धत अन्य
व्यय;
(ख) राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा लोक सभा के
अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े ;
(ग) ऐसे ऋण भार, िजनका दा�यत्व भारत सरकार पर है, िजनके अंतगर्त
ब्याज, �न�ेप �न�ध भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और
ऋण मोचन से संब�ं धत अन्य व्यय ह� ;
(घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध
ं म� संदेय
वेतन, भ�े और प� शन ;
(ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध
ं म� संदेय प� शन ;
(iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध ं म� द� जाने
वाल� प� शन, जो भारत के राज्य�ेत्र के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध ं म�
अ�धका�रता का प्रयोग करता है या जो 1[भारत डो�म�नयन के राज्यपाल वाले
प्रांत] के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध
ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कसी
भी समय अ�धका�रता का प्रयोग करता था ;
(ङ) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को, या उसके संबध
ं म� , संदेय
वेतन, भ�े और प� शन ;
(च) �कसी न्यायालय या माध्यस्थम ् अ�धकरण के �नणर्य, �डक्र� या पंचाट
क� तु�� के �लए अपे��त रा�शयां ;
(छ) कोई अन्य व्यय जो इस सं�वधान द्वारा या संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा,
इस प्रकार भा�रत घो�षत �कया जाता है ।
113. संसद् म� प्राक्कलन� के संबध
ं म� प्र�क्रया–(1) प्राक्कलन� म� से िजतने
प्राक्कलन भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय से संब�ं धत ह� वे संसद् म� मतदान के
�लए नह�ं रखे जाएंगे, �कन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा
�क वह संसद् के �कसी सदन म� उन प्राक्कलन� म� से �कसी प्राक्कलन पर चचार् को
�नवा�रत करती है ।

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क म�
�व�न�दर् � राज्य के तत्स्थानी प्रांत” के स्थान पर (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 53

(2) उ� प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संब�ं धत ह� वे लोक


सभा के सम� अनद ु ान� क� मांग� के रूप म� रखे जाएंगे और लोक सभा को श�� होगी
�क वह �कसी मांग को अनम ु �त दे या अनमु �त दे ने से इंकार कर दे अथवा �कसी मांग
को, उसम� �व�न�दर्� रकम को कम करके, अनम ु �त दे ।

ु ान क� मांग रा�प�त क� �सफा�रश पर ह� क� जाएगी, अन्यथा


(3) �कसी अनद
नह�ं ।

114. �व�नयोग �वधेयक–(1) लोक सभा द्वारा अनच् ु छे द 113 के अधीन अनद
ु ान
�कए जाने के प�ात ्, यथाशक्य शीघ्र, भारत क� सं�चत �न�ध म� से–
(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार �कए गए अनद
ु ान� क�, और
(ख) भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत, �कन्तु संसद् के सम� पहले रखे
गए �ववरण म� द�शर्त रकम से �कसी भी दशा म� अन�धक व्यय क�,
प�ू तर् के �लए अपे��त सभी धनरा�शय� के �व�नयोग का उपबंध करने के �लए �वधेयक
परु ःस्था�पत �कया जाएगा ।
(2) इस प्रकार �कए गए �कसी अनद
ु ान क� रकम म� प�रवतर्न करने या अनद
ु ान
के ल�य को बदलने अथवा भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय क� रकम म�
प�रवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे �कसी �वधेयक म� संसद् के
�कसी सदन म� प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा और पीठासीन व्य�� का इस बारे म�
�व�न�य अं�तम होगा �क कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्रा� है या नह�ं ।
(3) अनच्
ु छे द 115 और अनच् ु छे द 116 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत क�
सं�चत �न�ध म� से इस अनच्ु छे द के उपबंध� के अनस ु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए
�व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं ।

115. अनप
ु रू क, अ�त�र� या अ�धक अनद
ु ान–(1) य�द–
(क) अनच्
ु छे द 114 के उपबंध� के अनसु ार बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा
�कसी �व�श� सेवा पर चालू �व�ीय वषर् के �लए व्यय �कए जाने के �लए
प्रा�धकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन� के �लए अपयार्� पाई जाती है या उस
वषर् के वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� अनध् ु यात न क� गई �कसी नई सेवा पर
अनप ु रू क या अ�त�र� व्यय क� चालू �व�ीय वषर् के दौरान आवश्यकता पैदा हो
गई है, या
(ख) �कसी �व�ीय वषर् के दौरान �कसी सेवा पर, उस वषर् और उस सेवा
के �लए अनदु ान क� गई रकम से अ�धक कोई धन व्यय हो गया है,
तो रा�प�त, यथािस्थ�त, संसद् के दोन� सदन� के सम� उस व्यय क� प्राक्क�लत रकम को
द�शर्त करने वाला दस
ू रा �ववरण रखवाएगा या लोक सभा म� ऐसे आ�धक्य के �लए मांग
प्रस्तत
ु करवाएगा ।
भारत का सं�वधान 54

(2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा भारत क� सं�चत �न�ध
म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग
प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी, अनच्ु छे द 112,
अनच् ु छे द 113 और अनच् ु छे द 114 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय
�ववरण और उसम� व�णर्त व्यय या �कसी अनद ु ान क� �कसी मांग के संबध ं म� और भारत
क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत
करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� ।

116. लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान–(1) इस अध्याय के पव
ू ग
र् ामी
उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को–

(क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई
अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 113 म� �व�हत
प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच्
ु छे द 114 के उपबंध�
के अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ;
(ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�नि�त रूप के कारण मांग
ऐसे ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म�
सामान्यतया �दया जाता है तब भारत के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क�
प�ू तर् के �लए अनद
ु ान करने क� ;
(ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नह�ं है, ऐसा
ु ान करने क�,
कोई अपवादानद

श�� होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उ� अनद ु ान �कए गए ह� उनके �लए भारत क�
सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� संसद् को श�� होगी ।

(2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच्
ु छे द 113 और अनच्ु छे द 114 के उपबंध
वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई
अनद ु ान करने के संबधं म� और भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए
धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी
ह� ।

117. �व� �वधेयक� के बारे म� �वशेष उपबंध–(1) अनच्


ु छे द 110 के खंड (1) के
उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्� �कसी �वषय के �लए उपबंध करने वाला �वधेयक
या संशोधन रा�प�त क� �सफा�रश से ह� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत �कया जाएगा,
अन्यथा नह�ं और ऐसा उपबंध करने वाला �वधेयक राज्य सभा म� परु ःस्था�पत नह�ं
�कया जाएगा :

परन्तु �कसी कर के घटाने या उत्सादन के �लए उपबंध करने वाले �कसी संशोधन
के प्रस्ताव के �लए इस खंड के अधीन �सफा�रश क� अपे�ा नह�ं होगी ।

(2) कोई �वधेयक या संशोधन उ� �वषय� म� से �कसी के �लए उपबंध करने


भारत का सं�वधान 55

वाला केवल इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के
अ�धरोपण का अथवा अन� ु ��य� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क�
मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क
वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के
अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है ।
(3) िजस �वधेयक को अ�ध�नय�मत और प्रव�तर्त �कए जाने पर भारत क�
सं�चत �न�ध म� से व्यय करना पड़ेगा वह �वधेयक संसद् के �कसी सदन द्वारा तब तक
पा�रत नह�ं �कया जाएगा जब तक ऐसे �वधेयक पर �वचार करने के �लए उस सदन से
रा�प�त ने �सफा�रश नह�ं क� है ।
साधारणतया प्र�क्रया
118. प्र�क्रया के �नयम–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद्
का प्रत्येक सदन अपनी प्र�क्रया ∗ और अपने कायर् संचालन के �व�नयमन के �लए �नयम
बना सकेगा ।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक इस सं�वधान
के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन के �वधान-मंडल के संबध ं म� जो प्र�क्रया के
�नयम और स्थायी आदे श प्रव� ृ थे वे ऐसे उपांतरण� और अनक ु ू लन� के अधीन रहते हुए
संसद् के संबध ं म� प्रभावी ह�गे िजन्ह� , यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा
का अध्य� उनम� करे ।
(3) रा�प�त, राज्य सभा के सभाप�त और लोक सभा के अध्य� से परामशर् करने
के प�ात ्, दोन� सदन� क� संय� ु बैठक� से संब�ं धत और उनम� परस्पर संचार से संब�ं धत
प्र�क्रया के �नयम बना सकेगा ।
(4) दोन� सदन� क� संय� ु बैठक म� लोक सभा का अध्य� या उसक�
अनप ु िस्थ�त म� ऐसा व्य�� पीठासीन होगा िजसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्र�क्रया
के �नयम� के अनस ु ार अवधारण �कया जाए ।
119. संसद् म� �व�ीय कायर् संबध ं ी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन–संसद्,
�व�ीय कायर् को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के �लए �कसी �व�ीय �वषय से
संब�ं धत या भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग करने के �लए �कसी �वधेयक
से संब�ं धत, संसद् के प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया और कायर् संचालन का �व�नयमन �व�ध
द्वारा कर सकेगी तथा य�द और जहां तक इस प्रकार बनाई गई �कसी �व�ध का कोई
उपबंध अनच् ु छे द 118 के खंड (1) के अधीन संसद् के �कसी सदन द्वारा बनाए गए �नयम
से या उस अनच् ु छे द के खंड (2) के अधीन संसद् के संबध ं म� प्रभावी �कसी �नयम या
स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अ�भभावी होगा ।

120. संसद् म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा–(1) भाग 17 म� �कसी बात के होते हुए

∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 22 द्वारा "(िजसके अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन
करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और को�क (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) से अंतस्था�पत । इस
संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
कर �दया गया ।
भारत का सं�वधान 56

भी, �कन्तु अनच्


ु छे द 348 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् म� कायर् �हन्द� म� या अंग्रेजी
म� �कया जाएगा :

परन्त,ु यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा का अध्य� अथवा उस


रूप म� कायर् करने वाला व्य�� �कसी सदस्य को, जो �हन्द� म� या अंग्रेजी म� अपनी पयार्�
अ�भव्य�� नह�ं कर सकता है, अपनी मातभ
ृ ाषा म� सदन को संबो�धत करने क� अन�
ु ा दे
सकेगा ।

(2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस सं�वधान के


प्रारं भ से पंद्रह वषर् क� अव�ध क� समा�� के प�ात ् यह अनच्
ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो
“या अंग्रेजी म� ” शब्द� का उसम� से लोप कर �दया गया हो ।
121. संसद् म� चचार् पर �नबर्न्धन–उच्चतम न्यायालय या �कसी उच्च न्यायालय
के �कसी न्यायाधीश के, अपने कतर्व्य� के �नवर्हन म� �कए गए आचरण के �वषय म�
संसद् म� कोई चचार् इसम� इसके प�ात ् उपबं�धत र��त से उस न्यायाधीश को हटाने क�
प्राथर्ना करने वाले समावेदन को रा�प�त के सम� प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ह� होगी,
अन्यथा नह�ं ।
122. न्यायालय� द्वारा संसद् क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना–(1) संसद्
क� �कसी कायर्वाह� क� �व�धमान्यता को प्र�क्रया क� �कसी अ�भक�थत अ�नय�मतता के
आधार पर प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) संसद् का कोई अ�धकार� या सदस्य, िजसम� इस सं�वधान द्वारा या इसके
अधीन संसद् म� प्र�क्रया या कायर् संचालन का �व�नयमन करने क� अथवा व्यवस्था बनाए
रखने क� श��यां �न�हत ह�, उन श��य� के अपने द्वारा प्रयोग के �वषय म� �कसी
न्यायालय क� अ�धका�रता के अधीन नह�ं होगा ।
अध्याय 3–रा�प�त क� �वधायी श��यां
123. संसद् के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� रा�प�त क� श��–
(1) उस समय को छोड़कर जब संसद् के दोन� सदन सत्र म� ह�, य�द �कसी समय
रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण
तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत
कर सकेगा जो उसे उन प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� ।
(2) इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्या�पत अध्यादे श का वह� बल और प्रभाव होगा जो
संसद् के अ�ध�नयम का होता है, �कन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श–
(क) संसद् के दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा और संसद् के पन ु ः समवेत
होने से छह स�ाह क� समा�� पर या य�द उस अव�ध क� समा�� से पहले दोन�
सदन उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ते ह� तो, इनम� से दस
ू रे संकल्प
के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा ; और
(ख) रा�प�त द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा ।
भारत का सं�वधान 57

स्प�ीकरण–जहां संसद् के सदन, �भन्न-�भन्न तार�ख� को पन ु ः समवेत होने के


�लए, आहूत �कए जाते ह� वहां इस खंड के प्रयोजन� के �लए, छह स�ाह क� अव�ध क�
गणना उन तार�ख� म� से प�ातवत� तार�ख से क� जाएगी ।
(3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता
है िजसे अ�ध�नय�मत करने के �लए संसद् इस सं�वधान के अधीन स�म नह�ं है तो और
वहां तक वह अध्यादे श शून्य होगा ।
1
(4)* * * *
अध्याय 4–संघ क� न्यायपा�लका
124. उच्चतम न्यायालय क� स्थापना और गठन–(1) भारत का एक उच्चतम
न्यायालय होगा जो भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् और, जब तक संसद् �व�ध द्वारा अ�धक
संख्या �व�हत नह�ं करती है तब तक, सात 2 से अन�धक अन्य न्यायाधीश� से �मलकर
बनेगा ।
56

(2) 3[अनच् ु छे द 124क म� �न�दर्� रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग क� �सफा�रश


पर], रा�प�त अपने हस्ता�र और मुद्रा स�हत अ�धपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के
प्रत्येक न्यायाधीश को �नय� ु करे गा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करे गा जब
तक वह प�सठ वषर् क� आयु प्रा� नह�ं कर लेता है :
4
[* * * * *]
5
[परन्त]ु ,–
(क) कोई न्यायाधीश, रा�प�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) �कसी न्यायाधीश को खंड (4) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से हटाया
जा सकेगा ।
1
[(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� आयु ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी

1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) का लोप �कया
गया, इससे पूवर् यह खंड सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से)
अंतःस्था�पत �कया गया था ।
2. उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 37) क� धारा 2 के अनुसार (09-
08- 2019 से) अब यह संख्या “त�तीस” है ।
3. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) "उच्चतम न्यायालय के और
राज्य� के उच्च न्यायालय� के ऐसे न्यायाधीश� से परामशर् करने के प�ात ्, िजनसे रा�प�त इस प्रयोजन के �लए
परामशर् करना आवश्यक समझे" शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन
�रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श
द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप �कया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है
। संशोधन के पूवर् यह �नम्नानुसार था--
“परन्तु मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयु�� क� दशा म� भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से
सदै व परामशर् �कया जाएगा :”।
5. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “परन्तु यह और �क” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 58

र��त से अवधा�रत क� जाएगी िजसका संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे ।]


(3) कोई व्य��, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� �नय�ु � के �लए
तभी अ�हर्त होगा जब वह भारत का नाग�रक है और–
(क) �कसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का लगातार
कम से कम पांच वषर् तक न्यायाधीश रहा है ; या
(ख) �कसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का लगातार
कम से कम दस वषर् तक अ�धव�ा रहा है ; या
(ग) रा�प�त क� राय म� पारं गत �व�धवे�ा है ।
स्प�ीकरण 1–इस खंड म� , “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अ�भप्रेत है जो
भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� अ�धका�रता का प्रयोग करता है, या इस सं�वधान
के प्रारं भ से पहले �कसी भी समय प्रयोग करता था ।
स्प�ीकरण 2–इस खंड के प्रयोजन के �लए, �कसी व्य�� के अ�धव�ा रहने क�
अव�ध क� संगणना करने म� वह अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी
व्य�� ने अ�धव�ा होने के प�ात ् ऐसा न्या�यक पद धारण �कया है जो िजला
न्यायाधीश के पद से अवर नह�ं है ।
(4) उच्चतम न्यायालय के �कसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नह�ं हटाया
जाएगा जब तक सा�बत कदाचार या असमथर्ता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के �लए
संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपिस्थत
और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा सम�थर्त समावेदन,
रा�प�त के सम� उसी सत्र म� रखे जाने पर रा�प�त ने आदे श नह�ं दे �दया है ।
(5) संसद् खंड (4) के अधीन �कसी समावेदन के रखे जाने क� तथा न्यायाधीश के
कदाचार या असमथर्ता के अन्वेषण और सा�बत करने क� प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन
कर सकेगी ।
(6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के �लए �नय�ु प्रत्येक व्य��, अपना
पद ग्रहण करने के पहले रा�प�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु व्य�� के सम�,
तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस
ु ार, शपथ लेगा या
प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
(7) कोई व्य��, िजसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� पद धारण
�कया है, भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी न्यायालय म� या �कसी प्रा�धकार� के सम�
अ�भवचन या कायर् नह�ं करे गा ।
2
[124क. रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग--(1) रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग
नामक एक आयोग होगा, जो �नम्न�ल�खत से �मलकर बनेगा, अथार्त ् :--
(क) भारत का मुख्य न्यायमू�तर् -- अध्य�, पदे न ;

1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्था�पत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म�
उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 59

(ख) भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से ठ�क नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो


अन्य ज्ये� न्यायाधीश -- सदस्य, पदे न ;
(ग) संघ का �व�ध और न्याय का भारसाधक मंत्री -- सदस्य, पदे न ;
(घ) प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायमू�तर् और लोक सभा म� �वप� के
नेता या जहां ऐसा कोई �वप� का नेता नह�ं है वहां, लोक सभा म� सबसे बड़े
एकल �वप�ी दल के नेता से �मलकर बनने वाल� स�म�त द्वारा नाम�न�दर्� �कए
जाने वाले दो �वख्यात व्य�� -- सदस्य :
परं तु �वख्यात व्य��य� म� से एक �वख्यात व्य��, अनस ु ू�चत जा�त, अनस ु ू�चत
जनजा�त, अन्य �पछड़े वगर्, अल्पसंख्यक वगर् के व्य��य� अथवा ि�य� म� से नाम�न�दर्�
�कया जाएगा :
परं तु यह और �क �वख्यात व्य�� तीन वषर् क� अव�ध के �लए नाम�न�दर्� �कया
जाएगा और पन ु ःनाम�नद� शन का पात्र नह�ं होगा ।
(2) रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग का कोई कायर् या कायर्वा�हयां, केवल इस
आधार पर प्र�गत नह�ं क� जाएंगी या अ�व�धमान्य नह�ं ह�गी �क आयोग म� कोई �र��
है या उसके गठन म� कोई त्र�ु ट है ।
124ख. आयोग के कृत्य--रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग के �नम्न�ल�खत कतर्व्य
ह�गे,--
(क) भारत के मुख्य न्यायमू�तर्, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश�, उच्च
न्यायालय� के मुख्य न्यायमू�तर्य� तथा उच्च न्यायालय� के अन्य न्यायाधीश� के
रूप म� �नय�ु � के �लए व्य��य� क� �सफा�रश करना ;
(ख) उच्च न्यायालय� के मुख्य न्यायमू�तर्य� और अन्य न्यायाधीश� का एक
उच्च न्यायालय से �कसी अन्य उच्च न्यायालय म� स्थानांतरण करने क� �सफा�रश
करना ; और
(ग) यह सु�नि�त करना �क वह व्य��, िजसक� �सफा�रश क� गई है, स�म
और सत्य�न� है ।
124ग. �व�ध बनाने क� संसद् क� श��--संसद्, �व�ध द्वारा, भारत के मुख्य
न्यायमू�तर् और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� तथा उच्च न्यायालय� के मुख्य
न्यायमू�तर्य� और अन्य न्यायाधीश� क� �नय�ु � क� प्र�क्रया �व�नय�मत कर सकेगी तथा
आयोग को �व�नयम� द्वारा उसके कृत्य� के �नवर्हन, �नय�ु � के �लए व्य��य� के चयन
क� र��त और ऐसे अन्य �वषय� के �लए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं, प्र�क्रया
अ�धक�थत करने के �लए सश� कर सकेगी ।]
125. न्यायाधीश� के वेतन, आ�द– 1[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को ऐसे
वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस
�न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन� का संदाय �कया
जाएगा जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्� ह� ।]
(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे �वशेषा�धकार� और भ�� का तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी और
प� शन के संबध ं म� ऐसे अ�धकार� का, जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके
अधीन समय-समय पर अवधा�रत �कए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधा�रत नह�ं
�कए जाते ह� तब तक ऐसे �वशेषा�धकार�, भ�� और अ�धकार� का जो दस ू र� अनस
ु ूची म�
�व�न�दर्� ह�, हकदार होगा :
परन्तु �कसी न्यायाधीश के �वशेषा�धकार� और भ�� म� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी या

1. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 60

प� शन के संबधं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नय�ु � के प�ात ् उसके �लए अलाभकार�


प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
126. कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् क� �नय�ु �–जब भारत के मुख्य न्यायमू�तर् का पद
�र� है या जब मुख्य न्यायमू�तर्, अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्यथा अपने पद के
कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� म� से ऐसा
एक न्यायाधीश, िजसे रा�प�त इस प्रयोजन के �लए �नय� ु करे , उस पद के कतर्व्य� का
पालन करे गा ।
127. तदथर् न्यायाधीश� क� �नय�ु �–(1) य�द �कसी समय उच्चतम न्यायालय के
सत्र को आयोिजत करने या चालू रखने के �लए उस न्यायालय के न्यायाधीश� क� गणप�ू तर्
प्रा� न हो तो 1[रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग भारत के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा उसे �कए
गए �कसी �नद� श पर, रा�प�त क� पव ू र् सहम�त से] और संब�ं धत उच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायमू�तर् से परामशर् करने के प�ात ्, �कसी उच्च न्यायालय के �कसी ऐसे न्यायाधीश से,
जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नय� ु होने के �लए सम्य� रूप से अ�हर्त है और
िजसे भारत का मुख्य न्यायमू�तर् नामो�द� करे , न्यायालय क� बैठक� म� उतनी अव�ध के
�लए, िजतनी आवश्यक हो, तद्र्थ न्यायाधीश के रूप म� उपिस्थत रहने के �लए �ल�खत
रूप म� अनरु ोध कर सकेगा ।
(2) इस प्रकार नामो�द� न्यायाधीश का कतर्व्य होगा �क वह अपने पद के अन्य
कतर्व्य� पर प�ू वर्कता दे कर उस समय और उस अव�ध के �लए, िजसके �लए उसक�
उपिस्थ�त अपे��त है, उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� , उपिस्थत हो और जब वह इस
प्रकार उपिस्थत होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी
अ�धका�रता, श��यां और �वशेषा�धकार ह�गे और वह उ� न्यायाधीश के कतर्व्य� का
�नवर्हन करे गा ।
128. उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� उपिस्थ�त–इस
अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, 2[ रा�ीय न्या�यक �नय�ु � आयोग], �कसी भी
समय, रा�प�त क� पव ू र् सहम�त से �कसी व्य�� से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल
न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है [या जो उच्च न्यायालय के
3

न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नय� ु


होने के �लए सम्य� रूप से अ�हर्त है,] उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म�
बैठने और कायर् करने का अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्य��, िजससे इस प्रकार
अनरु ोध �कया जाता है, इस प्रकार बैठने और कायर् करने के दौरान, ऐसे भ�� का हकदार
होगा जो रा�प�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश
क� सभी अ�धका�रता, श��यां और �वशेषा�धकार ह�गे, �कन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय
का न्यायाधीश नह�ं समझा जाएगा :
परन्तु जब तक यथापव
ू �� व्य�� उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने

1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्
रा�प�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर्
एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख
16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 5 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्,”
के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
3. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 61

और कायर् करने क� सहम�त नह�ं दे दे ता है तब तक इस अनच्ु छे द क� कोई बात उससे


ऐसा करने क� अपे�ा करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।
129. उच्चतम न्यायालय का अ�भलेख न्यायालय होना–उच्चतम न्यायालय
अ�भलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� श�� स�हत
ऐसे न्यायालय क� सभी श��यां ह�गी ।
130. उच्चतम न्यायालय का स्थान–उच्चतम न्यायालय �दल्ल� म� अथवा ऐसे अन्य
स्थान या स्थान� म� अ�ध�व� होगा िजन्ह� भारत का मुख्य न्यायमू�तर्, रा�प�त के
अनम ु ोदन से समय-समय पर, �नयत करे ।
131. उच्चतम न्यायालय क� आरं �भक अ�धका�रता–इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए,–
(क) भारत सरकार और एक या अ�धक राज्य� के बीच, या
(ख) एक ओर भारत सरकार और �कसी राज्य या राज्य� और दस
ू र� ओर एक
या अ�धक अन्य राज्य� के बीच, या
(ग) दो या अ�धक राज्य� के बीच,
�कसी �ववाद म� , य�द और जहां तक उस �ववाद म� (�व�ध का या तथ्य का) ऐसा कोई
प्र� अंतवर्�लत है िजस पर �कसी �व�धक अ�धकार का अिस्तत्व या �वस्तार �नभर्र है तो
और वहां तक अन्य न्यायालय� का अपवजर्न करके उच्चतम न्यायालय को आरं �भक
अ�धका�रता होगी :
[परन्तु उ� अ�धका�रता का �वस्तार उस �ववाद पर नह�ं होगा जो �कसी ऐसी
1

सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत से उत्पन्न हुआ है जो
इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और ऐसे प्रारं भ के
प�ात ् प्रवतर्न म� है या जो यह उपबंध करती है �क उ� अ�धका�रता का �वस्तार ऐसे
�ववाद पर नह�ं होगा ।]
2
[131क. [केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्र�� के बारे म�
उच्चतम न्यायालय क� अनन्य अ�धका�रता ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 4 द्वारा (13-4-1978) से �नर�सत ।
132. कुछ मामल� म� उच्च न्यायालय� से अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील�
अ�धका�रता–(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल, दां�डक या
अन्य कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम
न्यायालय म� होगी 3[य�द वह उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर
दे ता है] �क उस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ्
प्र� अंतवर्�लत है ।
69 (2)*
4
* * *

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 द्वारा परन्तुक के स्थान पर (1-11-1956 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत कर दे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (2) का लोप �कया गया

भारत का सं�वधान 62

(3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे �दया गया है *** वहां उस मामले म� कोई प�कार इस
1

आधार पर उच्चतम न्यायालय म� अपील कर सकेगा �क पव ू �� �कसी प्र� का �व�न�य


गलत �कया गया है 4***।
स्प�ीकरण–इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, “अं�तम आदे श” पद के अंतगर्त ऐसे
�ववाद्यक का �व�न�य करने वाला आदे श है जो, य�द अपीलाथ� के प� म� �व�नि�त
�कया जाता है तो, उस मामले के अं�तम �नपटारे के �लए पयार्� होगा ।
133. उच्च न्यायालय� से �स�वल �वषय� से संब�ं धत अपील� म� उच्चतम न्यायालय
क� अपील� अ�धका�रता– 2[(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल
कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम
न्यायालय म� होगी 3[य�द उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता
है �क]–
(क) उस मामले म� �व�ध का व्यापक महत्व का कोई सारवान ् प्र� अंतवर्�लत
है ; और
(ख) उच्च न्यायालय क� राय म� उस प्र� का उच्चतम न्यायालय द्वारा
�व�न�य आवश्यक है ।]
(2) अनच्ु छे द 132 म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय म� खंड (1) के
अधीन अपील करने वाला कोई प�कार ऐसी अपील के आधार� म� यह आधार भी बता
सकेगा �क इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्र� का �व�न�य
गलत �कया गया है ।
(3) इस अनच् ु छे द म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक
न्यायाधीश के �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� तब तक
नह�ं होगी जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे ।
134. दां�डक �वषय� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता–(1) भारत के
राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य,
अं�तम आदे श या दं डादे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी य�द–
(क) उस उच्च न्यायालय ने अपील म� �कसी अ�भय� ु व्य�� क� दोषमु�� के
आदे श को उलट �दया है और उसको मत्ृ यु दं डादे श �दया है ; या
(ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्रा�धकार के अधीनस्थ �कसी न्यायालय से
�कसी मामले को �वचारण के �लए अपने पास मंगा �लया है और ऐसे �वचारण म�
अ�भय� ु व्य�� को �सद्धदोष ठहराया है और उसको मत्ृ यु दं डादे श �दया है ; या
(ग) वह उच्च न्यायालय 4[अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता है]
�क मामला उच्चतम न्यायालय म� अपील �कए जाने योग्य है :
परन्तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंध� के अधीन रहते हुए होगी जो
अनच्
ु छे द 145 के खंड (1) के अधीन इस �न�म� बनाए जाएं और ऐसी शत� के अधीन
रहते हुए होगी जो उच्च न्यायालय �नयत या अपे��त करे ।

1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) क�तपय शब्द� का लोप
�कया गया ।
2. सं�वधान (तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत करे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमा�णत करता है” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 63

(2) संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च
न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, अं�तम आदे श या दं डादे श क�
अपील ऐसी शत� और प�रसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्� क�
जाएं, ग्रहण करने और सन ु ने क� अ�त�र� श�� दे सकेगी ।
1
[134क. उच्चतम न्यायालय म� अपील के �लए प्रमाणपत्र–प्रत्येक उच्च न्यायालय,
जो अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड
(1) म� �न�दर्� �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत करता है या दे ता है, इस
प्रकार पा�रत �कए जाने या �दए जाने के प�ात ् यथाशक्य शीघ्र, इस प्र� का अवधारण
�क उस मामले के संबध ं म� , यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के
खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) म� �न�दर्� प्रकृ�त का प्रमाणपत्र
�दया जाए या नह�ं,–
(क) य�द वह ऐसा करना ठ�क समझता है तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और
(ख) य�द ऐसा �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत �कए जाने या
�दए जाने के ठ�क प�ात ् व्य�थत प�कार द्वारा या उसक� ओर से मौ�खक आवेदन
�कया जाता है तो करे गा ।]
135. �वद्यमान �व�ध के अधीन फेडरल न्यायालय क� अ�धका�रता और श��य� का
उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयो�व्य होना–जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न
करे तब तक उच्चतम न्यायालय को भी �कसी ऐसे �वषय के संबध ं म� , िजसको अनच्
ु छे द
133 या अनच्ु छे द 134 के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, अ�धका�रता और श��यां ह�गी य�द
उस �वषय के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी �वद्यमान �व�ध के
अधीन अ�धका�रता और श��यां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयो�व्य थीं ।
136. अपील के �लए उच्चतम न्यायालय क� �वशेष इजाजत–(1) इस अध्याय म�
�कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने �ववेकानस ु ार भारत के राज्य�ेत्र
म� �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा �कसी वाद या मामले म� पा�रत �कए गए या �दए
गए �कसी �नणर्य, �डक्र�, अवधारण, दं डादे श या आदे श क� अपील के �लए �वशेष इजाजत
दे सकेगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात सश� बल� से संब�ं धत �कसी �व�ध द्वारा या उसके
अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा पा�रत �कए गए या �दए गए �कसी
�नणर्य, अवधारण, दं डादे श या आदे श को लागू नह�ं होगी ।
137. �नणर्य� या आदे श� का उच्चतम न्यायालय द्वारा पन
ु �वर्लोकन–संसद् द्वारा
बनाई गई �कसी �व�ध के या अनच् ु छे द 145 के अधीन बनाए गए �नयम� के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए �नणर्य या �दए गए
आदे श का पन
ु �वर्लोकन करने क� श�� होगी ।
138. उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता क� व�ृ द्ध–(1) उच्चतम न्यायालय को संघ
सूची के �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� ऐसी अ�त�र� अ�धका�रता और श��यां ह�गी
जो संसद् �व�ध द्वारा प्रदान करे ।

1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 64

(2) य�द संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अ�धका�रता और श��य�
के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को �कसी �वषय के संबध ं म� ऐसी
अ�त�र� अ�धका�रता और श��यां ह�गी जो भारत सरकार और �कसी राज्य क� सरकार
�वशेष करार द्वारा प्रदान करे ।
139. कुछ �रट �नकालने क� श��य� का उच्चतम न्यायालय को प्रद� �कया जाना–
संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनच्ु छे द 32 के खंड (2) म� व�णर्त प्रयोजन� से
�भन्न �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए ऐसे �नदे श, आदे श या �रट, िजनके अंतगर्त बंद�
प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार पच्
ृ छा और उप्रेषण �रट ह�, या उनम� से कोई
�नकालने क� श�� प्रदान कर सकेगी ।
1
[139क. कुछ मामल� का अंतरण– 2[(1) य�द ऐसे मामले, िजनम� �व�ध के समान
या सारतः समान प्र� अंतवर्�लत ह�, उच्चतम न्यायालय के और एक या अ�धक उच्च
न्यायालय� के अथवा दो या अ�धक उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत ह� और उच्चतम
न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवाद� द्वारा या ऐसे �कसी मामले के
�कसी प�कार द्वारा �कए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है �क ऐसे प्र� व्यापक
महत्व के सारवान ् प्र� ह� तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च
न्यायालय� के सम� लं�बत मामले या मामल� को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी
मामल� को स्वंय �नपटा सकेगा :
परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उ� �व�ध के प्र�� का
अवधारण करने के प�ात ् ऐसे प्र�� पर अपने �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस उच्च
न्यायालय को, िजससे मामला मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय
उसके प्रा� होने पर उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू
ु प �नपटाने के �लए आगे
कायर्वाह� करे गा ।]
(2) य�द उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश्य क� प�ू तर् के �लए ऐसा करना
समीचीन समझता है तो वह �कसी उच्च न्यायालय के सम� लं�बत �कसी मामले, अपील
या अन्य कायर्वाह� का अंतरण �कसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा ।]
140. उच्चतम न्यायालय क� आनष ु �ं गक श��यां–संसद्, �व�ध द्वारा, उच्चतम
न्यायालय को ऐसी अनप ु रू क श��यां प्रदान करने के �लए उपबंध कर सकेगी जो इस
सं�वधान के उपबंध� म� से �कसी से असंगत न ह� और जो उस न्यायालय को इस
सं�वधान द्वारा या इसके अधीन प्रद� अ�धका�रता का अ�धक प्रभावी रूप से प्रयोग करने
के योग्य बनाने के �लए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत ह� ।
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध का सभी न्यायालय� पर आबद्धकर होना–
उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सभी न्यायालय� पर
आबद्धकर होगी ।

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 65

142. उच्चतम न्यायालय क� �ड�क्रय� और आदे श� का प्रवतर्न और प्रकट�करण


आ�द के बारे म� आदे श–(1) उच्चतम न्यायालय अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करते हुए
ऐसी �डक्र� पा�रत कर सकेगा या ऐसा आदे श कर सकेगा जो उसके सम� लं�बत �कसी
वाद या �वषय म� पण ू र् न्याय करने के �लए आवश्यक हो और इस प्रकार पा�रत �डक्र� या
�कया गया आदे श भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र ऐसी र��त से, जो संसद् द्वारा बनाई गई
�कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाए, और जब तक इस �न�म� इस प्रकार
उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, ऐसी र��त से जो रा�प�त आदे श 1 द्वारा �व�हत करे ,
प्रवतर्नीय होगा ।
77

(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
उच्चतम न्यायालय को भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र के बारे म� �कसी व्य�� को हािजर कराने
के, �कन्ह�ं दस्तावेज� के प्रकट�करण या पेश कराने के अथवा अपने �कसी अवमान का
अन्वेषण करने या दं ड दे ने के प्रयोजन के �लए कोई आदे श करने क� समस्त और प्रत्येक
श�� होगी ।
143. उच्चतम न्यायालय से परामशर् करने क� रा�प�त क� श��–(1) य�द �कसी
समय रा�प�त को प्रतीत होता है �क �व�ध या तथ्य का कोई ऐसा प्र� उत्पन्न हुआ है
या उत्पन्न होने क� संभावना है, जो ऐसी प्रकृ�त का और ऐसे व्यापक महत्व का है �क
उस पर उच्चतम न्यायालय क� राय प्रा� करना समीचीन है, तो वह उस प्र� को �वचार
करने के �लए उस न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सन ु वाई
के प�ात ् जो वह ठ�क समझता है, रा�प�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत कर
सकेगा ।
(2) रा�प�त अनच् ु छे द 131 *** के परन्तुक म� �कसी बात के होते हुए भी, इस
2

प्रकार के �ववाद को, जो 3[उ� परन्तक ु ] म� व�णर्त है, राय दे ने के �लए उच्चतम
न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सन ु वाई के प�ात ् जो
वह ठ�क समझता है, रा�प�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत करे गा ।
144. �स�वल और न्या�यक प्रा�धका�रय� द्वारा उच्चतम न्यायालय क� सहायता म�
कायर् �कया जाना–भारत के राज्य�ेत्र के सभी �स�वल और न्या�यक प्रा�धकार� उच्चतम
न्यायालय क� सहायता म� कायर् कर� गे ।
4
144क. [�व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्र�� के �नपटारे के बारे म�
�वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 5 द्वारा (13-
4-1978 से) �नर�सत ।
145. न्यायालय के �नयम आ�द–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध�
के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, रा�प�त के अनम ु ोदन से
न्यायालय क� पद्ध�त और प्र�क्रया के, साधारणतया, �व�नयमन के �लए �नयम बना
सकेगा िजसके अंतगर्त �नम्न�ल�खत भी ह�, अथार्त ् :–
(क) उस न्यायालय म� �व�ध-व्यवसाय करने वाले व्य��य� के बारे म� �नयम
;
(ख) अपील� सुनने के �लए प्र�क्रया के बारे म� और अपील� संबध ं ी अन्य �वषय�
के बारे म� , िजनके अंतगर्त वह समय भी है िजसके भीतर अपील� उस न्यायालय म�
ग्रहण क� जानी ह�, �नयम ;

1. उच्चतम न्यायालय (�डक्र� और आदे श) प्रवतर्न आदे श, 1954 (सं.आ.47) दे �खए ।


2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “के खंड (i)” शब्द�, को�क� और
अंक का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “उ� खंड” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 25 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 66

(ग) भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी का प्रवतर्न कराने के �लए उस


न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे म� �नयम ;
1
[(गग) 2[अनच् ु छे द 139क] के अधीन उस न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे
म� �नयम ;]
(घ) अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपील� को ग्रहण
�कए जाने के बारे म� �नयम ;
(ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए �कसी �नणर्य या �कए गए आदे श का
िजन शत� के अधीन रहते हुए पन ु �वर्लोकन �कया जा सकेगा उनके बारे म� और ऐसे
पनु �वर्लोकन के �लए प्र�क्रया के बारे म� , िजसके अतंगत र् वह समय भी है िजसके
भीतर ऐसे पन ु �वर्लोकन के �लए आवेदन उस न्यायालय म� ग्रहण �कए जाने ह�,
�नयम ;
(च) उस न्यायालय म� �कन्ह�ं कायर्वा�हय� के और उनके आनष ु �ं गक खच� के
बारे म� , तथा उसम� कायर्वा�हय� के संबध ं म� प्रभा�रत क� जाने वाल� फ�स� के बारे म�
�नयम ;
(छ) जमानत मंजरू करने के बारे म� �नयम ;
(ज) कायर्वा�हय� को रोकने के बारे म� �नयम ;
(झ) िजस अपील के बारे म� उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है �क वह
तुच्छ या तंग करने वाल� है अथवा �वलंब करने के प्रयोजन से क� गई है, उसके
सं��� अवधारण के �लए उपबंध करने वाले �नयम ;
(ञ) अनच्ु छे द 317 के खंड (1) म� �न�दर्� जांच� के �लए प्र�क्रया के बारे म�
�नयम ।
(2) 3[ 4*** खंड (3) के उपबंध�] के अधीन रहते हुए, इस अनच् ु छे द के अधीन बनाए
गए �नयम, उन न्यायाधीश� क� न्यन ू तम संख्या �नयत कर सक�गे जो �कसी प्रयोजन के
�लए बैठ�गे तथा एकल न्यायाधीश� और खंड न्यायालय� क� श�� के �लए उपबंध कर
सक�गे ।
(3) िजस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्र�
अतंव�र् लत है उसका �व�न�य करने के प्रयोजन के �लए या इस सं�वधान के अनच् ु छे द
143 के अधीन �नद� श क� सुनवाई करने के प्रयोजन के �लए बैठने वाले न्यायाधीश� क�
5 4***
[ न्यनू तम संख्या] पांच होगी :
परन्तु जहां अनच्
ु छे द 132 से �भन्न इस अध्याय के उपबंध� के अधीन अपील क�
सन
ु वाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीश� से �मलकर बना है और अपील

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द
139क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंध�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) क�तपय शब्द�, अंक� और
अ�र� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “न्यूनतम संख्या” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 67

क� सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है �क अपील म� सं�वधान के


�नवर्चन के बारे म� �व�ध का ऐसा सारवान ् प्र� अंतवर्�लत है िजसका अवधारण अपील के
�नपटारे के �लए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्र� को उस न्यायालय को, जो ऐसे
प्र� को अंतवर्�लत करने वाले �कसी मामले के �व�न�य के �लए इस खंड क�
अपे�ानस ु ार ग�ठत �कया जाता है, उसक� राय के �लए �नद� �शत करे गा और ऐसी राय क�
प्रा�� पर उस अपील को उस राय के अनरू ु प �नपटाएगा ।
(4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक �नणर्य खल ु े न्यायालय म� ह� सुनाएगा, अन्यथा नह�ं
और अनच्ु छे द 143 के अधीन प्रत्येक प्र�तवेदन खल ु े न्यायालय म� सुनाई गई राय के
अनस
ु ार ह� �दया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक �नणर्य और ऐसी प्रत्येक राय, मामले क�
सुनवाई म� उपिस्थत न्यायाधीश� क� बहुसंख्या क� सहम�त से ह� द� जाएगी, अन्यथा
नह�ं, �कन्तु इस खंड क� कोई बात �कसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नह�ं है, अपना
�वसम्मत �नणर्य या राय दे ने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।
146. उच्चतम न्यायालय के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय–(1) उच्चतम
न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� �नय�ु �यां भारत का मुख्य न्यायमू�तर् करे गा
या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� करे गा िजसे वह �न�द� करे :
परन्तु रा�प�त �नयम द्वारा यह अपे�ा कर सकेगा �क ऐसी �कन्ह�ं दशाओं म� , जो
�नयम म� �व�न�दर्� क� जाएं, �कसी ऐसे व्य�� को, जो पहले से ह� न्यायालय से
संलग्न नह�ं है, न्यायालय से संब�ं धत �कसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामशर्
करके ह� �नय� ु �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(2) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय के
अ�धका�रय� और सेवक� क� सेवा क� शत� ऐसी ह�गी जो भारत के मुख्य न्यायमू�तर् या उस
न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� द्वारा, िजसे भारत के मुख्य न्यायमू�तर् ने
इस प्रयोजन के �लए �नयम बनाने के �लए प्रा�धकृत �कया है, बनाए गए �नयम� द्वारा
�व�हत क� जाएं :
परन्तु इस खंड के अधीन बनाए गए �नयम� के �लए, जहां तक वे वेतन�, भ��,
छुट्टी या प� शन� से संब�ं धत ह�, रा�प�त के अनम
ु ोदन क� अपे�ा होगी ।
(3) उच्चतम न्यायालय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अतंगत र् उस न्यायालय के
अ�धका�रय� और सेवक� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�,
भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे और उस न्यायालय द्वारा ल� गई फ�स� और अन्य
धनरा�शयां उस �न�ध का भाग ह�गी ।
147. �नवर्चन–इस अध्याय म� और भाग 6 के अध्याय 5 म� इस सं�वधान के
�नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्र� के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया
भारत का सं�वधान 68

जाएगा �क उनके अतंगत र् भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के (िजसके अंतगर्त उस


अ�ध�नयम क� संशोधक या अनप ु रू क कोई अ�ध�नय�म�त है) अथवा �कसी सप�रषद्
आदे श या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अ�ध�नयम,
1947 के या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी
सारवान ् प्र� के प्र�त �नद� श ह� ।
अध्याय 5–भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क
148. भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क–(1) भारत का एक �नयंत्रक-
महालेखापर��क होगा िजसको रा�प�त अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा
�नय�
ु करे ग ा और उसे उसके पद से के वल उसी र��त से और उन्ह�ं आधार� पर हटाया
जाएगा िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया
जाता है ।
(2) प्रत्येक व्य��, जो भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क �नय� ु �कया जाता है
अपना पद ग्रहण करने से पहले, रा�प�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु व्य�� के
सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस
ु ार, शपथ लेगा
या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
(3) �नयंत्रक-महालेखापर��क का वेतन और सेवा क� अन्य शत� ऐसी ह�गी जो
संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक वे इस प्रकार अवधा�रत नह�ं क� जाती ह�
तब तक ऐसी ह�गी जो दस ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्� ह� :
परन्तु �नयंत्रक-महालेखापर��क के वेतन म� और अनप ु िस्थ�त छुट्टी, प� शन या
�नव�ृ � क� आयु के संबध ं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नय�ु � के प�ात ् उसके �लए
अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
(4) �नयंत्रक-महालेखापर��क, अपने पद पर न रह जाने के प�ात ्, भारत सरकार
के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी और पद का पात्र नह�ं होगा ।
(5) इस सं�वधान के और संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन
रहते हुए, भारतीय लेखापर��ा और लेखा �वभाग म� सेवा करने वाले व्य��य� क� सेवा क�
शत� और �नयंत्रक-महालेखापर��क क� प्रशास�नक श��यां ऐसी ह�गी जो �नयंत्रक-
महालेखापर��क से परामशर् करने के प�ात ् रा�प�त द्वारा बनाए गए �नयम� द्वारा �व�हत
क� जाएं ।
(6) �नयंत्रक-महालेखापर��क के कायार्लय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अंतगर्त उस
कायार्लय म� सेवा करने वाले व्य��य� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और
प� शन ह�, भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे ।
149. �नयंत्रक-महालेखापर��क के कतर्व्य और श��यां–�नयंत्रक-महालेखापर��क संघ
के और राज्य� के तथा �कसी अन्य प्रा�धकार� या �नकाय के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे
भारत का सं�वधान 69

कतर्व्य� का पालन और ऐसी श��य� का प्रयोग करे गा िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध
द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कया जाए और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं
�कया जाता है तब तक, संघ के और राज्य� के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे कतर्व्य� का
पालन और ऐसी श��य� का प्रयोग करे गा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले
क्रमशः भारत डो�म�नयन के और प्रांत� के लेखाओं के संबध
ं म� भारत के महालेखापर��क
को प्रद� थीं या उसके द्वारा प्रयो�व्य थीं ।
1
[150. संघ के और राज्य� के लेखाओं का प्ररूप–संघ के और राज्य� के लेखाओं को
ऐसे प्ररूप म� रखा जाएगा जो रा�प�त, भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क 2[क� सलाह पर]
�व�हत करे ।]
151. संपर��ा प्र�तवेदन–(1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संघ के लेखाओं
संबध
ं ी प्र�तवेदन� को रा�प�त के सम� प्रस्तत
ु �कया जाएगा, जो उनको संसद् के प्रत्येक
सदन के सम� रखवाएगा ।
(2) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के �कसी राज्य के लेखाओं संबध
ं ी प्र�तवेदन�
को उस राज्य के राज्यपाल 3*** के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो उनको राज्य के
�वधान-मंडल के सम� रखवाएगा ।

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से परामशर् के प�ात ्” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का (1-
11-1956 से) लोप �कया गया ।
भाग 6
1* * *
रा य
अ याय 1–साधारण
152. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 2[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ] ।
अ याय 2–कायर्पािलका
रा यपाल
153. रा य के रा यपाल–प्र येक रा य के िलए एक रा यपाल होगा :
[पर तु इस अनु छे द की कोई बात एक ही यिक्त को दो या अिधक रा य के
3

िलए रा यपाल िनयक्त


ु िकए जाने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
154. रा य की कायर्पािलका शिक्त–(1) रा य की कायर्पािलका शिक्त रा यपाल म
िनिहत होगी और वह इसका प्रयोग इस संिवधान के अनुसार वयं या अपने अधीन थ
अिधकािरय के द्वारा करे गा ।
(2) इस अनु छे द की कोई बात–
(क) िकसी िवद्यमान िविध द्वारा िकसी अ य प्रािधकारी को प्रदान िकए गए
कृ य रा यपाल को अंतिरत करने वाली नहीं समझी जाएगी ; या
(ख) रा यपाल के अधीन थ िकसी प्रािधकारी को िविध द्वारा कृ य प्रदान
करने से संस या रा य के िवधान-मंडल को िनवािरत नहीं करे गी ।
155. रा यपाल की िनयुिक्त–रा य के रा यपाल को रा पित अपने ह ताक्षर और
मद्र
ु ा सिहत अिधपत्र द्वारा िनयक्त
ु करे गा ।
156. रा यपाल की पदाविध–(1) रा यपाल, रा पित के प्रसादपयर्ंत पद धारण
करे गा ।
(2) रा यपाल, रा पित को संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद
याग सकेगा ।
(3) इस अनु छे द के पूवग र् ामी उपबंध के अधीन रहते हुए, रा यपाल अपने
पदग्रहण की तारीख से पांच वषर् की अविध तक पद धारण करे गा :

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क म के” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “का अथर् पहली अनुसूची के भाग
क म उि लिखत रा य है ” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 6 द्वारा जोड़ा गया ।
70
भारत का संिवधान 71

पर तु रा यपाल, अपने पद की अविध समा हो जाने पर भी, तब तक पद


धारण करता रहे गा जब तक उसका उ रािधकारी अपना पदग्रहण नहीं कर लेता है ।
157. रा यपाल िनयुक्त होने के िलए अहर् ताएं–कोई यिक्त रा यपाल िनयुक्त होने
का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागिरक है और पतीस वषर् की आयु पूरी कर चुका
है ।
158. रा यपाल के पद के िलए शत–(1) रा यपाल संस के िकसी सदन का या
पहली अनसु च
ू ी म िविनिदर् िकसी रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का सद य नहीं
होगा और यिद संस के िकसी सदन का या ऐसे िकसी रा य के िवधान-मंडल के िकसी
सदन का कोई सद य रा यपाल िनयुक्त हो जाता है तो यह समझा जाएगा िक उसने उस
सदन म अपना थान रा यपाल के प म अपने पदग्रहण की तारीख से िरक्त कर िदया
है ।
(2) रा यपाल अ य कोई लाभ का पद धारण नहीं करे गा ।
(3) रा यपाल, िबना िकराया िदए, अपने शासकीय िनवास के उपयोग का हकदार
होगा और ऐसी उपलि धय , भ और िवशेषािधकार का भी, जो संस , िविध द्वारा,
अवधािरत करे और जब तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक
ऐसी उपलि धय , भ और िवशेषािधकार का, जो दस ू री अनुसूची म िविनिदर् ह, हकदार
होगा ।
1
[(3क) जहां एक ही यिक्त को दो या अिधक रा य का रा यपाल िनयुक्त िकया
जाता है वहां उस रा यपाल को संदेय उपलि धयां और भ े उन रा य के बीच ऐसे
अनुपात म आबंिटत िकए जाएंगे जो रा पित आदे श द्वारा अवधािरत करे ।]
(4) रा यपाल की उपलि धयां और भ े उसकी पदाविध के दौरान कम नहीं िकए
जाएंगे ।
159. रा यपाल द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–प्र येक रा यपाल और प्र येक यिक्त जो
रा यपाल के कृ य का िनवर्हन कर रहा है , अपना पदग्रहण करने से पहले उस रा य के
संबंध म अिधकािरता का प्रयोग करने वाले उ च यायालय के मुख्य यायमूितर् या
उसकी अनुपि थित म उस यायालय के उपल ध ये तम यायाधीश के समक्ष
िन निलिखत प्र प म शपथ लेगा या प्रितज्ञान करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर
करे गा, अथार्त ् :–
ई र की शपथ लेता हूं
“म, अमुक,------------------------------ िक म द्धापूवक
र् .........................
स यिन ा से प्रितज्ञान करता हूं
(रा य का नाम) के रा यपाल के पद का कायर्पालन (अथवा रा यपाल के कृ य
का िनवर्हन) क ं गा तथा अपनी पूरी योग्यता से संिवधान और िविध का
पिररक्षण, संरक्षण और प्रितरक्षण क ं गा और म.............. (रा य का नाम) की
जनता की सेवा और क याण म िनरत रहूंगा ।” ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 72

160. कुछ आकि मकताओं म रा यपाल के कृ य का िनवर्हन–रा पित ऐसी


िकसी आकि मकता म, जो इस अ याय म उपबंिधत नहीं है , रा य के रा यपाल के
कृ य के िनवर्हन के िलए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है ।
161. क्षमा, आिद की और कुछ मामल म दं डादे श के िनलंबन, पिरहार या
लघकु रण की रा यपाल की शिक्त–िकसी रा य के रा यपाल को उस िवषय संबंधी, िजस
िवषय पर उस रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार है , िकसी िविध के िव द्ध िकसी
अपराध के िलए िसद्धदोष ठहराए गए िकसी यिक्त के दं ड को क्षमा, उसका प्रिवलंबन,
िवराम या पिरहार करने की अथवा दं डादे श म िनलंबन, पिरहार या लघकु रण की शिक्त
होगी ।
162. रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार–इस संिवधान के उपबंध के अधीन
रहते हुए िकसी रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार उन िवषय पर होगा िजनके
संबंध म उस रा य के िवधान-मंडल को िविध बनाने की शिक्त है :
परं तु िजस िवषय के संबंध म रा य के िवधान-मंडल और संस को िविध बनाने
की शिक्त है उसम रा य की कायर्पािलका शिक्त इस संिवधान द्वारा या संस द्वारा बनाई
गई िकसी िविध द्वारा, संघ या उसके प्रािधकािरय को अिभ यक्त प से प्रद कायर्पािलका
शिक्त के अधीन और उससे पिरसीिमत होगी ।
मंित्र-पिरष
163. रा यपाल को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष –(1) िजन बात
म इस संिवधान द्वारा या इसके अधीन रा यपाल से यह अपेिक्षत है िक वह अपने कृ य
या उनम से िकसी को अपने िववेकानुसार करे , उन बात को छोड़कर रा यपाल को अपने
कृ य का प्रयोग करने म सहायता और सलाह दे ने के िलए एक मंित्र-पिरष होगी िजसका
प्रधान, मुख्यमंत्री होगा ।
(2) यिद कोई प्र उठता है िक कोई िवषय ऐसा है या नहीं िजसके संबंध म इस
संिवधान द्वारा या इसके अधीन रा यपाल से यह अपेिक्षत है िक वह अपने िववेकानुसार
कायर् करे तो रा यपाल का अपने िववेकानुसार िकया गया िविन य अंितम होगा और
रा यपाल द्वारा की गई िकसी बात की िविधमा यता इस आधार पर प्र गत नहीं की
जाएगी िक उसे अपने िववेकानुसार कायर् करना चािहए था या नहीं ।
(3) इस प्र की िकसी यायालय म जांच नहीं की जाएगी िक क्या मंित्रय ने
रा यपाल को कोई सलाह दी, और यिद दी तो क्या दी ।
164. मंित्रय के बारे म अ य उपबंध–(1) मुख्यमंत्री की िनयुिक्त रा यपाल करे गा
और अ य मंित्रय की िनयिु क्त रा यपाल, मख्ु यमंत्री की सलाह पर करे गा तथा मंत्री,
रा यपाल के प्रसादपयर्ंत अपने पद धारण करगे :
भारत का संिवधान 73

परं तु 1[छ ीसगढ़, झारखंड,] म य प्रदे श और 2[ओिडशा] रा य म जनजाितय के


क याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूिचत जाितय और िपछड़े वग
के क याण का या िकसी अ य कायर् का भी भारसाधक हो सकेगा ।
[(1क) िकसी रा य की मंित्र-पिरष म मुख्यमंत्री सिहत मंित्रय की कुल संख्या
3

उस रा य की िवधान सभा के सद य की कुल संख्या के पंद्रह प्रितशत से अिधक नहीं


होगी :
परं तु िकसी रा य म मुख्यमंत्री सिहत मंित्रय की संख्या बारह से कम नहीं
होगी :
परं तु यह और िक जहां संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 के
प्रारं भ पर िकसी रा य की मंित्र-पिरष म मुख्यमंत्री सिहत मंित्रय की कुल संख्या,
यथाि थित, उक्त पंद्रह प्रितशत या पहले परं तुक म िविनिदर् संख्या से अिधक है वहां उस
रा य म मंित्रय की कुल संख्या ऐसी तारीख4 से, जो रा पित लोक अिधसूचना द्वारा
िनयत करे , छह मास के भीतर इस खंड के उपबंध के अनु प लाई जाएगी ।
(1ख) िकसी राजनीितक दल का िकसी रा य की िवधान सभा का या िकसी रा य
के िवधान-मंडल के िकसी सदन का िजसम िवधान पिरष है , कोई सद य जो दसवीं
अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सद य होने के िलए िनरिहर्त है , अपनी
िनरहर्ता की तारीख से प्रारं भ होने वाली और उस तारीख तक िजसको ऐसे सद य के प
म उसकी पदाविध समा होगी या जहां वह, ऐसी अविध की समाि के पूव,र् यथाि थित,
िकसी रा य की िवधान सभा के िलए या िवधान पिरष वाले िकसी रा य के िवधान-
मंडल के िकसी सदन के िलए कोई िनवार्चन लड़ता है उस तारीख तक िजसको वह
िनवार्िचत घोिषत िकया जाता है , इनम से जो भी पूवत र् र हो, की अविध के दौरान, खंड
(1) के अधीन मंत्री के प म िनयुक्त िकए जाने के िलए भी िनरिहर्त होगा ।]
(2) मंित्र-पिरष रा य की िवधान सभा के प्रित सामूिहक प से उ रदायी होगी ।
(3) िकसी मंत्री द्वारा अपना पदग्रहण करने से पहले, रा यपाल तीसरी अनस
ु च
ू ी म
इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ
िदलाएगा ।

1. संिवधान (चौरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2006 की धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) “िबहार” के थान पर
प्रित थािपत ।
2 उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से) अंतः थािपत ।
4. दे िखए अिधसूचना सं. का.आ. 21(अ), तारीख 7-1-2004 ।
भारत का संिवधान 74

(4) कोई मंत्री, जो िनरं तर छह मास की िकसी अविध तक रा य के िवधान-मंडल


का सद य नहीं है , उस अविध की समाि पर मंत्री नहीं रहे गा ।
(5) मंित्रय के वेतन और भ े ऐसे ह गे जो उस रा य का िवधान-मंडल, िविध
द्वारा, समय-समय पर अवधािरत करे और जब तक उस रा य का िवधान-मंडल इस
प्रकार अवधािरत नहीं करता है तब तक ऐसे ह गे जो दस ू री अनुसूची म िविनिदर् ह ।
रा य का महािधवक्ता
165. रा य का महािधवक्ता–(1) प्र येक रा य का रा यपाल, उ च यायालय का
यायाधीश िनयुक्त होने के िलए अिहर्त िकसी यिक्त को रा य का महािधवक्ता िनयुक्त
करे गा ।
(2) महािधवक्ता का यह कतर् य होगा िक वह उस रा य की सरकार को िविध
संबंधी ऐसे िवषय पर सलाह दे और िविधक व प के ऐसे अ य कतर् य का पालन करे
जो रा यपाल उसको समय-समय पर िनदिशत करे या स पे और उन कृ य का िनवर्हन
करे जो उसको इस संिवधान अथवा त समय प्रव ृ िकसी अ य िविध द्वारा या उसके
अधीन प्रदान िकए गए ह ।
(3) महािधवक्ता, रा यपाल के प्रसादपयर्ंत पद धारण करे गा और ऐसा पािर िमक
प्रा करे गा जो रा यपाल अवधािरत करे ।
सरकारी कायर् का संचालन
166. रा य की सरकार के कायर् का संचालन–(1) िकसी रा य की सरकार की
सम त कायर्पािलका कारर् वाई रा यपाल के नाम से की हुई कही जाएगी ।
(2) रा यपाल के नाम से िकए गए और िन पािदत आदे श और अ य िलखत को
ऐसी रीित से अिधप्रमािणत िकया जाएगा जो रा यपाल द्वारा बनाए जाने वाले िनयम म
िविनिदर् की जाए और इस प्रकार अिधप्रमािणत आदे श या िलखत की िविधमा यता इस
आधार पर प्र गत नहीं की जाएगी िक वह रा यपाल द्वारा िकया गया या िन पािदत
आदे श या िलखत नहीं है ।
(3) रा यपाल, रा य की सरकार का कायर् अिधक सुिवधापूवक
र् िकए जाने के िलए
और जहां तक वह कायर् ऐसा कायर् नहीं है िजसके िवषय म इस संिवधान द्वारा या इसके
अधीन रा यपाल से यह अपेिक्षत है िक वह अपने िववेकानुसार कायर् करे वहां तक
मंित्रय म उक्त कायर् के आबंटन के िलए िनयम बनाएगा ।
1
(4)* * * *

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड 4 अंतः थािपत िकया
गया था और उसका संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 75

167. रा यपाल को जानकारी दे ने, आिद के संबंध म मुख्यमंत्री के कतर् य–प्र येक
रा य के मख्
ु यमंत्री का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी मंित्र-पिरष के सभी िविन य रा यपाल को संसूिचत करे ;
(ख) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी जो जानकारी रा यपाल मांगे, वह दे ; और
(ग) िकसी िवषय को िजस पर िकसी मंत्री ने िविन य कर िदया है िकं तु
मंित्र-पिरष ने िवचार नहीं िकया है , रा यपाल द्वारा अपेक्षा िकए जाने पर पिरष
के समक्ष िवचार के िलए रखे ।
अ याय 3–रा य का िवधान-मंडल
साधारण
168. रा य के िवधान-मंडल का गठन–(1) प्र येक रा य के िलए एक िवधान-
मंडल होगा जो रा यपाल और–
(क) 1*** 2[आंध्र प्रदे श], िबहार, 3*** 4[म य प्रदे श,] 5*** 6[महारा ],
[कनार्टक] 8*** 9*** [10[तिमलनाडु, तेलंगाना] 11[और उ र प्रदे श] रा य म दो
7

सदन से ;

1. “आंध्र प्रदे श” श द का आंध्र प्रदे श िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा
(1-6-1985 से) लोप िकया गया ।
2. आंध्र प्रदे श िवधान पिरष अिधिनयम, 2005 (2006 का 1) की धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंतः थािपत ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई” श द का लोप िकया
गया ।
4. इस उपखंड म “म य प्रदे श” श द के अंतः थापन के िलए संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा
8(2) के अधीन कोई तारीख िनयत नहीं की गई है ।
5. तिमलनाडु िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से)
“तिमलनाडु” श द का लोप िकया गया ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंतः थािपत ।
7. मैसूर रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के
थान पर प्रित थािपत, िजसे संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956 से)
अंतः थािपत िकया गया था ।
8. पंजाब िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब” श द
का लोप िकया गया ।
9. तिमलनाडु िवधान पिरष अिधिनयम, 2010 (2010 का 16) की धारा 3 द्वारा (तारीख बाद म अिधसूिचत की
जाएगी) अंतः थािपत ।
10. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 (2014 का 6) की धारा 96 द्वारा (1-6-2014 से) "तिमलनाडु" के थान
पर प्रित थािपत ।
11. बंगाल िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) “उ र प्रदे श
और पि मी बंगाल” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 76

(ख) अ य रा य म एक सदन से,


िमलकर बनेगा ।
(2) जहां िकसी रा य के िवधान-मंडल के दो सदन ह वहां एक का नाम िवधान
पिरष और दसू रे का नाम िवधान सभा होगा और जहां केवल एक सदन है वहां उसका
नाम िवधान सभा होगा ।]
169. रा य म िवधान पिरषद का उ सादन या सज ृ न–(1) अनु छे द 168 म
िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा िकसी िवधान पिरष वाले रा य म िवधान
पिरष के उ सादन के िलए या ऐसे रा य म, िजसम िवधान पिरष नहीं है , िवधान
पिरष के सज ृ न के िलए उपबंध कर सकेगी, यिद उस रा य की िवधान सभा ने इस
आशय का संक प िवधान सभा की कुल सद य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपि थत
और मत दे ने वाले सद य की संख्या के कम से कम दो-ितहाई बहुमत द्वारा पािरत कर
िदया है ।
(2) खंड (1) म िविनिदर् िकसी िविध म इस संिवधान के संशोधन के िलए ऐसे
उपबंध अंतिवर् ह गे जो उस िविध के उपबंध को प्रभावी करने के िलए आव यक ह तथा
ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक और पािरणािमक उपबंध भी अंतिवर् हो सकगे िज ह संस
आव यक समझे ।
(3) पव
ू क्त प्रकार की कोई िविध अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान
का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।
[170. िवधान सभाओं की संरचना–(1) अनु छे द 333 के उपबंध के अधीन रहते
1

हुए, प्र येक रा य की िवधान सभा उस रा य म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र से प्र यक्ष
िनवार्चन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनिधक और साठ से अ यून सद य से िमलकर
बनेगी ।
(2) खंड (1) के प्रयोजन के िलए, प्र येक रा य को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म
ऐसी रीित से िवभािजत िकया जाएगा िक प्र येक िनवार्चन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको
आबंिटत थान की संख्या से अनप
ु ात सम त रा य म यथासा य एक ही हो ।
[ प ीकरण–इस खंड म “जनसंख्या” पद से ऐसी अंितम पव
2
ू व
र् तीर् जनगणना म
अिभिनि त की गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह :

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) प ीकरण के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 77

परं तु इस प ीकरण म अंितम पूवव र् तीर् जनगणना के प्रित िजसके सुसंगत आंकड़े
प्रकािशत हो गए ह, िनदश का, जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह
2
[2001] की जनगणना के प्रितिनदश है ।]
(3) प्र येक जनगणना की समाि पर प्र येक रा य की िवधान सभा म थान
की कुल संख्या और प्र येक रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का ऐसे
प्रािधकारी द्वारा और ऐसी रीित से पुनःसमायोजन िकया जाएगा जो संस िविध द्वारा
अवधािरत करे :
परं तु ऐसे पुन: समायोजन से िवधान सभा म प्रितिनिध व पद पर तब तक कोई
प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय िवद्यमान िवधान सभा का िवघटन नहीं हो जाता है
:
3
[परं तु यह और िक ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो रा पित
आदे श द्वारा िविनिदर् करे और ऐसे पन
ु : समायोजन के प्रभावी होने तक िवधान सभा के
िलए कोई िनवार्चन उन प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन:
समायोजन के पहले िवद्यमान ह :
परं तु यह और भी िक जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली जनगणना
के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह तब तक इस खंड के अधीन,–
(i) प्र येक रा य की िवधान सभा म 1971 की जनगणना के आधार पर
पुन: समायोिजत थान की कुल संख्या का ; और
(ii) ऐसे रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का, जो 2[2001] की
जनगणना के आधार पर पन ु : समायोिजत िकए जाएं,
4
[पन
ु : समायोजन आव यक नहीं होगा ।]
171. िवधान पिरषद की संरचना–(1) िवधान पिरष वाले रा य की िवधान
पिरष के सद य की कुल संख्या उस रा य की िवधान सभा के सद य की कुल संख्या
के 5[एक-ितहाई] से अिधक नहीं होगी :

1. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) मूल अंक
"1971 के थान पर "1991"" अंक प्रित थािपत िकए गए थे ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) "2000" अंक के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 78

परं तु िकसी रा य की िवधान पिरष के सद य की कुल संख्या िकसी भी दशा म


चालीस से कम नहीं होगी ।
(2) जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक िकसी रा य की
िवधान पिरष की संरचना खंड (3) म उपबंिधत रीित से होगी ।
(3) िकसी रा य की िवधान पिरष के सद य की कुल संख्या का–
(क) यथाशक्य िनकटतम एक-ितहाई भाग उस रा य की नगरपािलकाओं,
िजला बोड और अ य ऐसे थानीय प्रािधकािरय के, जो संस िविध द्वारा
िविनिदर् करे , सद य से िमलकर बनने वाले िनवार्चक-मंडल द्वारा िनवार्िचत होगा
;
(ख) यथाशक्य िनकटतम बारहवां भाग उस रा य म िनवास करने वाले
ऐसे यिक्तय से िमलकर बनने वाले िनवार्चक-मंडल द्वारा िनवार्िचत होगा, जो
भारत के रा यक्षेत्र म िकसी िव िवद्यालय के कम से कम तीन वषर् से नातक ह
या िजनके पास कम से कम तीन वषर् से ऐसी अहर् ताएं ह जो संस द्वारा बनाई
गई िकसी िविध या उसके अधीन ऐसे िकसी िव िवद्यालय के नातक की
अहर्ताओं के समतु य िविहत की गई ह ;
(ग) यथाशक्य िनकटतम बारहवां भाग ऐसे यिक्तय से िमलकर बनने वाले
िनवार्चक-मंडल द्वारा िनवार्िचत होगा जो रा य के भीतर मा यिमक पाठशालाओं से
अिन न तर की ऐसी िशक्षा सं थाओं म, जो संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध
द्वारा या उसके अधीन िविहत की जाएं, पढ़ाने के काम म कम से कम तीन वषर् से
लगे हुए ह ;
(घ) यथाशक्य िनकटतम एक-ितहाई भाग रा य की िवधान सभा के
सद य द्वारा ऐसे यिक्तय म से िनवार्िचत होगा जो िवधान सभा के सद य नहीं
ह ;
(ङ) शेष सद य रा यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंध के अनुसार
नामिनदिशत िकए जाएंगे ।
(4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन िनवार्िचत
होने वाले सद य ऐसे प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म चुने जाएंगे, जो संस द्वारा बनाई गई
िविध द्वारा या उसके अधीन िविहत िकए जाएं तथा उक्त उपखंड के और उक्त खंड के
उपखंड (घ) के अधीन िनवार्चन आनुपाितक प्रितिनिध व पद्धित के अनुसार एकल
संक्रमणीय मत द्वारा ह गे ।
(5) रा यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नामिनदिशत िकए जाने
वाले सद य ऐसे यिक्त ह गे िज ह िन निलिखत िवषय के संबंध म िवशेष ज्ञान या
यावहािरक अनभ ु व है , अथार्त ् :–
भारत का संिवधान 79

सािह य, िवज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा ।


172. रा य के िवधान-मंडल की अविध–(1) प्र येक रा य की प्र येक िवधान
सभा, यिद पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अिधवेशन के िलए
िनयत तारीख से 1[पांच वषर्] तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं और 1[पांच वषर्] की उक्त
अविध की समाि का पिरणाम िवधान सभा का िवघटन होगा :
परं तु उक्त अविध को, जब आपात ् की उद्घोषणा प्रवतर्न म है , तब संस िविध
द्वारा, ऐसी अविध के िलए बढ़ा सकेगी, जो एक बार म एक वषर् से अिधक नहीं होगी
और उद्घोषणा के प्रवतर्न म न रह जाने के प ात ् िकसी भी दशा म उसका िव तार छह
मास की अविध से अिधक नहीं होगा ।
(2) रा य की िवधान पिरष का िवघटन नहीं होगा, िकं तु उसके सद य म से
यथासंभव िनकटतम एक-ितहाई सद य संस द्वारा िविध द्वारा इस िनिम बनाए गए
उपबंध के अनुसार, प्र येक िद्वतीय वषर् की समाि पर यथाशक्य शीघ्र िनव ृ हो जाएंगे

173. रा य के िवधान-मंडल की सद यता के िलए अहर्ता–कोई यिक्त िकसी रा य
म िवधान-मंडल के िकसी थान को भरने के िलए चुने जाने के िलए अिहर्त तभी होगा
जब–
2
[(क) वह भारत का नागिरक है और िनवार्चन आयोग द्वारा इस िनिम
प्रािधकृत िकसी यिक्त के समक्ष तीसरी अनुसच ू ी म इस प्रयोजन के िलए िदए गए
प्र प के अनुसार शपथ लेता है या प्रितज्ञान करता है और उस पर अपने ह ताक्षर
करता है ;]
(ख) वह िवधान सभा के थान के िलए कम से कम प चीस वषर् की आयु
का और िवधान पिरष के थान के िलए कम से कम तीस वषर् की आयु का है ;
और
(ग) उसके पास ऐसी अ य अहर्ताएं ह जो इस िनिम संस द्वारा बनाई
गई िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन िविहत की जाएं ।

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल श द
“पांच वषर्” के थान पर “छह वषर्” प्रित थािपत िकए गए थे ।
2. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 80

1
[174. रा य के िवधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और िवघटन–(1) रा यपाल,
समय-समय पर, रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन को ऐसे समय और
थान पर, जो वह ठीक समझे, अिधवेशन के िलए आहूत करे गा, िकं तु उसके एक सत्र
की अंितम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के िलए िनयत तारीख के बीच छह
मास का अंतर नहीं होगा ।
(2) रा यपाल, समय-समय पर,–
(क) सदन का या िकसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) िवधान सभा का िवघटन कर सकेगा ।]
175. सदन या सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा यपाल
का अिधकार–(1) रा यपाल, िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म
उस रा य के िवधान-मंडल के िकसी एक सदन म या एक साथ समवेत दोन सदन म,
अिभभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के िलए सद य की उपि थित की अपेक्षा कर
सकेगा ।
(2) रा यपाल, रा य के िवधान-मंडल म उस समय लंिबत िकसी िवधेयक के
संबंध म संदेश या कोई अ य संदेश, उस रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन को
भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश
द्वारा िवचार करने के िलए अपेिक्षत िवषय पर सुिवधानस
ु ार शीघ्रता से िवचार करे गा ।
176. रा यपाल का िवशेष अिभभाषण–(1) रा यपाल, 2[िवधान सभा के िलए
प्र येक साधारण िनवार्चन के प ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म] और प्र येक वषर् के प्रथम
सत्र के आरं भ म िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म एक साथ
समवेत दोन सदन म अिभभाषण करे गा और िवधान-मंडल को उसके आ ान के कारण
बताएगा ।
(2) सदन या प्र येक सदन की प्रिक्रया का िविनयमन करने वाले िनयम द्वारा ऐसे
अिभभाषण म िनिदर् िवषय की चचार् के िलए समय िनयत करने के िलए 3*** उपबंध
िकया जाएगा ।
177. सदन के बारे म मंित्रय और महािधवक्ता के अिधकार–प्र येक मंत्री और
रा य के महािधवक्ता को यह अिधकार होगा िक वह उस रा य की िवधान सभा म या
िवधान पिरष वाले रा य की दशा म दोन सदन म बोले और उनकी कायर्वािहय म
अ यथा भाग ले और िवधान-मंडल की िकसी सिमित म, िजसम उसका नाम सद य के
प म िदया गया है , बोले और उसकी कायर्वािहय म अ यथा भाग ले, िक तु इस
अनु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।

1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 8 द्वारा (18-6-1951 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “प्र येक सत्र” के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “तथा सदन के अ य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के िलए” श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 81

रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष–प्र येक रा य की िवधान सभा,
यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सद य को अपना अ यक्ष और उपा यक्ष चुनेगी और जब-जब
अ यक्ष या उपा यक्ष का पद िरक्त होता है तब-तब िवधान सभा िकसी अ य सद य को,
यथाि थित, अ यक्ष या उपा यक्ष चनु े गी ।
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना–िवधान सभा के अ यक्ष या उपा यक्ष के प म पद धारण करने वाला सद य–
(क) यिद िवधान सभा का सद य नहीं रहता है तो अपना पद िरक्त कर
दे गा ;
(ख) िकसी भी समय, यिद वह सद य अ यक्ष है तो उपा यक्ष को
संबोिधत और यिद वह सद य उपा यक्ष है तो अ यक्ष को संबोिधत अपने
ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद याग सकेगा ; और
(ग) िवधान सभा के त कालीन सम त सद य के बहुमत से पािरत
संक प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के िलए कोई संक प तब तक प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा जब तक िक उस संक प को प्र तािवत करने के आशय की कम से कम चौदह
िदन की सूचना न दे दी गई हो :
परं तु यह और िक जब कभी िवधान सभा का िवघटन िकया जाता है तो िवघटन
के प ात ् होने वाले िवधान सभा के प्रथम अिधवेशन के ठीक पहले तक अ यक्ष अपने
पद को िरक्त नहीं करे गा ।
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त–(1) जब अ यक्ष का पद िरक्त है तो
उपा यक्ष, या यिद उपा यक्ष का पद भी िरक्त है तो िवधान सभा का ऐसा सद य,
िजसको रा यपाल इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के कतर् य का पालन
करे गा ।
(2) िवधान सभा की िकसी बैठक से अ यक्ष की अनुपि थित म उपा यक्ष, या
यिद वह भी अनुपि थत है तो ऐसा यिक्त, जो िवधान सभा की प्रिक्रया के िनयम द्वारा
अवधािरत िकया जाए, या यिद ऐसा कोई यिक्त उपि थत नहीं है तो ऐसा अ य यिक्त,
जो िवधान सभा द्वारा अवधािरत िकया जाए, अ यक्ष के प म कायर् करे गा ।
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है
तब उसका पीठासीन न होना–(1) िवधान सभा की िकसी बैठक म, जब अ यक्ष को उसके
पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब अ यक्ष, या जब उपा यक्ष को उसके पद
से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब उपा यक्ष, उपि थत रहने पर भी, पीठासीन
नहीं होगा और अनु छे द 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्र येक बैठक के संबंध म वैसे
ही लागू ह गे जैसे वह उस बैठक के संबंध म लागू होते ह िजससे, यथाि थित, अ यक्ष या
उपा यक्ष अनुपि थत है ।
भारत का संिवधान 82

(2) जब अ यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संक प िवधान सभा म


िवचाराधीन है तब उसको िवधान सभा म बोलने और उसकी कायर्वािहय म अ यथा भाग
लेने का अिधकार होगा और वह अनु छे द 189 म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे
संक प पर या ऐसी कायर्वािहय के दौरान िकसी अ य िवषय पर प्रथमत: ही मत दे ने का
हकदार होगा िकं तु मत बराबर होने की दशा म मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।
182. िवधान पिरष का सभापित और उपसभापित–िवधान पिरष वाले प्र येक
रा य की िवधान पिरष , यथाशीघ्र, अपने दो सद य को अपना सभापित और
उपसभापित चन
ु ेगी और जब-जब सभापित या उपसभापित का पद िरक्त होता है तब-तब
पिरष िकसी अ य सद य को, यथाि थित, सभापित या उपसभापित चुनेगी ।
183. सभापित और उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना–िवधान पिरष के सभापित या उपसभापित के प म पद धारण करने वाला
सद य–
(क) यिद िवधान पिरष का सद य नहीं रहता है तो अपना पद िरक्त कर
दे गा ;
(ख) िकसी भी समय, यिद वह सद य सभापित है तो उपसभापित को
संबोिधत और यिद वह सद य उपसभापित है तो सभापित को संबोिधत अपने
ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद याग सकेगा ; और
(ग) िवधान पिरष के त कालीन सम त सद य के बहुमत से पािरत
संक प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के िलए कोई संक प तब तक प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा जब तक िक उस संक प को प्र तािवत करने के आशय की कम से कम चौदह
िदन की सूचना न दे दी गई हो ।
184. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म कायर्
करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त–(1) जब सभापित का पद िरक्त है तब
उपसभापित, यिद उपसभापित का पद भी िरक्त है तो िवधान पिरष का ऐसा सद य,
िजसको रा यपाल इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के कतर् य का पालन करे गा

(2) िवधान पिरष की िकसी बैठक से सभापित की अनप ु ि थित म उपसभापित,
या यिद वह भी अनुपि थत है तो ऐसा यिक्त, जो िवधान पिरष की प्रिक्रया के िनयम
द्वारा अवधािरत िकया जाए, या यिद ऐसा कोई यिक्त उपि थत नहीं है तो ऐसा अ य
यिक्त, जो िवधान पिरष द्वारा अवधािरत िकया जाए, सभापित के प म कायर् करे गा ।
185. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन
भारत का संिवधान 83

है तब उसका पीठासीन न होना–(1) िवधान पिरष की िकसी बैठक म, जब सभापित को


उसके पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब सभापित, या जब उपसभापित को
उसके पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब उपसभापित, उपि थत रहने पर
भी पीठासीन नहीं होगा और अनु छे द 184 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्र येक बैठक के
संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे उस बैठक के संबंध म लागू होते ह िजससे,
यथाि थित, सभापित या उपसभापित अनुपि थत है ।

(2) जब सभापित को उसके पद से हटाने का कोई संक प िवधान पिरष म


िवचाराधीन है तब उसको िवधान पिरष म बोलने और उसकी कायर्वािहय म अ यथा
भाग लेने का अिधकार होगा और वह अनु छे द 189 म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे
संक प पर या ऐसी कायर्वािहय के दौरान िकसी अ य िवषय पर प्रथमत: ही मत दे ने
का हकदार होगा िकं तु मत बराबर होने की दशा म मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।

186. अ यक्ष और उपा यक्ष तथा सभापित और उपसभापित के वेतन और भ े–


िवधान सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष को तथा िवधान पिरष के सभापित और
उपसभापित को, ऐसे वेतन और भ का जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, िनयत
करे और जब तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक ऐसे वेतन
और भ का जो दस
ू री अनुसूची म िविनिदर् ह, संदाय िकया जाएगा ।

187. रा य के िवधान-मंडल का सिचवालय–(1) रा य के िवधान-मंडल के सदन


का या प्र येक सदन का पथ
ृ क् सिचवीय कमर्चािरव ृ द होगा :
परं तु िवधान पिरष वाले रा य के िवधान-मंडल की दशा म, इस खंड की िकसी
बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह ऐसे िवधान-मंडल के दोन सदन के िलए
सि मिलत पद के सज
ृ न को िनवािरत करती है ।
(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन
के सिचवीय कमर्चािरवंद
ृ म भतीर् का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत का
िविनयमन कर सकेगा ।

(3) जब तक रा य का िवधान-मंडल खंड (2) के अधीन उपबंध नहीं करता है तब


तक रा यपाल, यथाि थित, िवधान सभा के अ यक्ष या िवधान पिरष के सभापित से
परामशर् करने के प ात ् िवधान सभा के या िवधान पिरष के सिचवीय कमर्चािरवंद
ृ म
भतीर् के और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत के िविनयमन के िलए िनयम बना
सकेगा और इस प्रकार बनाए गए िनयम उक्त खंड के अधीन बनाई गई िकसी िविध के
उपबंध के अधीन रहते हुए, प्रभावी ह गे ।
भारत का संिवधान 84

कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष
का प्र येक सद य अपना थान ग्रहण करने से पहले, रा यपाल या उसके द्वारा इस
िनिम िनयुक्त यिक्त के समक्ष, तीसरी अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प
के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्रितज्ञान करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर करे गा ।
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की शिक्त
और गणपूितर्–(1) इस संिवधान म यथा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, िकसी रा य के
िवधान-मंडल के िकसी सदन की बैठक म सभी प्र का अवधारण, अ यक्ष या सभापित
को अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त को छोड़कर, उपि थत और मत दे ने वाले
सद य के बहुमत से िकया जाएगा ।
अ यक्ष या सभापित, अथवा उस प म कायर् करने वाला यिक्त प्रथमत: मत नहीं
दे गा, िकं तु मत बराबर होने की दशा म उसका िनणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग
करे गा ।
(2) रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की सद यता म कोई िरिक्त होने पर
भी, उस सदन को कायर् करने की शिक्त होगी और यिद बाद म यह पता चलता है िक
कोई यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कायर्वािहय म उपि थत रहा है या उसने
मत िदया है या अ यथा भाग िलया है तो भी रा य के िवधान-मंडल की कायर्वाही
िविधमा य होगी ।
1
[(3) जब तक रा य का िवधान-मंडल िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक
रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का अिधवेशन गिठत करने के िलए गणपूितर् दस
सद य या सदन के सद य की कुल संख्या का दसवां भाग, इसम से जो भी अिधक हो,
होगी ।
(4) यिद रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष के अिधवेशन म िकसी समय
गणपूितर् नहीं है तो अ यक्ष या सभापित अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त का
यह कतर् य होगा िक वह सदन को थिगत कर दे या अिधवेशन को तब तक के िलए
िनलंिबत कर दे जब तक गणपूितर् नहीं हो जाती है ।]
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना–(1) कोई यिक्त रा य के िवधान-मंडल के दोन सदन
का सद य नहीं होगा और जो यिक्त दोन सदन का सद य चुन िलया जाता है उसके
एक या दस ू रे सदन के थान को िरक्त करने के िलए उस रा य का िवधान-मंडल िविध
द्वारा उपबंध करे गा ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा कितपय श द को "तारीख अिधसूिचत नहीं की
गई)" प्रित थािपत नहीं िकया गया । इस संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया गया ।
भारत का संिवधान 85

(2) कोई यिक्त पहली अनुसूची म िविनिदर् दो या अिधक रा य के िवधान-


मंडल का सद य नहीं होगा और यिद कोई यिक्त दो या अिधक ऐसे रा य के िवधान-
मंडल का सद य चुन िलया जाता है तो ऐसी अविध की समाि के प ात ् जो रा पित
द्वारा बनाए गए िनयम 1 म िविनिदर् की जाए, ऐसे सभी रा य के िवधान-मंडल म ऐसे
यिक्त का थान िरक्त हो जाएगा यिद उसने एक रा य को छोड़कर अ य रा य के
िवधान-मंडल म अपने थान को पहले ही नहीं याग िदया है ।
(3) यिद रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का सद य–
(क) 2[अनु छे द 191 के खंड (2)] म विणर्त िकसी िनरहर् ता से ग्र त हो
जाता है , या
[(ख) यथाि थित, अ यक्ष या सभापित को संबोिधत अपने ह ताक्षर
3

सिहत लेख द्वारा अपने थान का याग कर दे ता है और उसका यागपत्र,


यथाि थित, अ यक्ष या सभापित द्वारा वीकार कर िलया जाता है ,]
तो ऐसा होने पर उसका थान िरक्त हो जाएगा :
[परं तु उपखंड (ख) म िनिदर्
4
यागपत्र की दशा म, यिद प्रा जानकारी से या
अ यथा और ऐसी जांच करने के प ात ्, जो वह ठीक समझे, यथाि थित, अ यक्ष या
सभापित का यह समाधान हो जाता है िक ऐसा यागपत्र वैि छक या असली नहीं है तो
वह ऐसे यागपत्र को वीकार नहीं करे गा ।]
(4) यिद िकसी रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का सद य साठ िदन की
अविध तक सदन की अनुज्ञा के िबना उसके सभी अिधवेशन से अनुपि थत रहता है तो
सदन उसके थान को िरक्त घोिषत कर सकेगा :
परं तु साठ िदन की उक्त अविध की संगणना करने म िकसी ऐसी अविध को
िहसाब म नहीं िलया जाएगा िजसके दौरान सदन सत्राविसत या िनरं तर चार से अिधक
िदन के िलए थिगत रहता है ।
191. सद यता के िलए िनरहर् ताएं–(1) कोई यिक्त िकसी रा य की िवधान सभा
या िवधान पिरष का सद य चनु े जाने के िलए और सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा–

1. दे िखए िविध मंत्रालय की अिधसूचना सं0 एफ0 46/50-सी, िदनांक 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प ृ 678 म प्रकािशत समसामियक सद यता प्रितषेध िनयम, 1950 ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनु छे द 191 के खंड (1)” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (19-5-1974 से) के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 86

1
[(क) यिद वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर िजसको धारण करने वाले का
िनरिहर्त न होना रा य के िवधान-मंडल ने िविध द्वारा घोिषत िकया है , कोई लाभ
का पद धारण करता है ;]
(ख) यिद वह िवकृतिच है और सक्षम यायालय की ऐसी घोषणा िवद्यमान
है ;
(ग) यिद वह अनु मोिचत िदवािलया है ;
(घ) यिद वह भारत का नागिरक नहीं है या उसने िकसी िवदे शी रा य की
नागिरकता वे छा से अिजर्त कर ली है या वह िकसी िवदे शी रा य के प्रित िन ा
या अनुषिक्त को अिभ वीकार िकए हुए है ;
(ङ) यिद वह संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस
प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
[ प ीकरण–इस खंड के प्रयोजन के िलए,] कोई यिक्त केवल इस कारण भारत
2

सरकार के या पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी रा य की सरकार के अधीन लाभ का


पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा िक वह संघ का या ऐसे रा य का मंत्री है ।
3
[(2) कोई यिक्त िकसी रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष का सद य होने
के िलए िनरिहर्त होगा यिद वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार िनरिहर्त हो जाता है
।]
4
[192. सद य की िनरहर् ताओं से संबंिधत प्र पर िविन य–(1) यिद यह प्र
उठता है िक िकसी रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का कोई सद य अनु छे द 191
के खंड (1) म विणर्त िकसी िनरहर् ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र रा यपाल
को िविन य के िलए िनदिशत िकया जाएगा और उसका िविन य अंितम होगा ।
(2) ऐसे िकसी प्र पर िविन य करने से पहले रा यपाल िनवार्चन आयोग की
राय लेगा और ऐसी राय के अनसु ार कायर् करे गा ।]
193. अनु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्रितज्ञान करने से पहले या अिहर्त

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनु छे द के प्रयोजन के
िलए” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतः थािपत ।
4. अनु छे द 192, संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) और त प ात ्
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) संशोिधत होकर उपरोक्त प
म आया ।
भारत का संिवधान 87

न होते हुए या िनरिहर्त िकए जाने पर बैठने और मत दे ने के िलए शाि त–यिद िकसी
रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष म कोई यिक्त अनु छे द 188 की अपेक्षाओं का
अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए िक म उसकी सद यता के िलए अिहर्त नहीं
हूं या िनरिहर्त कर िदया गया हूं या संस या रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िकसी िविध के उपबंध द्वारा ऐसा करने से प्रितिषद्ध कर िदया गया हूं, सद य के प म
बैठता है या मत दे ता है तो वह प्र येक िदन के िलए जब वह इस प्रकार बैठता है या
मत दे ता है , पांच सौ पए की शाि त का भागी होगा जो रा य को दे य ऋण के प म
वसूल की जाएगी ।

रा य के िवधान-मंडल और उनके सद य की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां

194. िवधान-मंडल के सदन की तथा उनके सद य और सिमितय की शिक्तयां,


िवशेषािधकार, आिद–(1) इस संिवधान के उपबंध के और िवधान-मंडल की प्रिक्रया का
िविनयमन करने वाले िनयम और थायी आदे श के अधीन रहते हुए, प्र येक रा य के
िवधान-मंडल म वाक् - वातं य होगा ।

(2) रा य के िवधान-मंडल म या उसकी िकसी सिमित म िवधान-मंडल के िकसी


सद य द्वारा कही गई िकसी बात या िदए गए िकसी मत के संबंध म उसके िव द्ध िकसी
यायालय म कोई कायर्वाही नहीं की जाएगी और िकसी यिक्त के िव द्ध ऐसे िवधान-
मंडल के िकसी सदन के प्रािधकार द्वारा या उसके अधीन िकसी प्रितवेदन पत्र, मत या
कायर्वािहय के प्रकाशन के संबंध म इस प्रकार की कोई कायर्वाही नहीं की जाएगी ।

1
[(3) अ य बात म रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की और ऐसे िवधान-
मंडल के िकसी सदन के सद य और सिमितय की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां
ऐसी ह गी जो वह िवधान-मंडल, समय-समय पर, िविध द्वारा पिरिनि त करे और जब तक
वे इस प्रकार पिरिनि त नहीं की जाती ह तब तक 2[वही ह गी जो संिवधान (चवालीसवां
संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 के प्रव ृ होने से ठीक पहले उस सदन की और
उसके सद य और सिमितय की थीं ।]

(4) िजन यिक्तय को इस संिवधान के आधार पर रा य के िवधान-मंडल के

1.
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 88

िकसी सदन या उसकी िकसी सिमित म बोलने का और उसकी कायर्वािहय म अ यथा


भाग लेने का अिधकार है , उनके संबंध म खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध
उसी प्रकार लागू ह गे िजस प्रकार वे उस िवधान-मंडल के सद य के संबंध म लागू होते
ह ।
195. सद य के वेतन और भ े–रा य की िवधान सभा और िवधान पिरष के
सद य ऐसे वेतन और भ े, िज ह उस रा य का िवधान-मंडल, समय-समय पर, िविध
द्वारा, अवधािरत करे और जब तक इस संबंध म इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है
तब तक ऐसे वेतन और भ े, ऐसी दर से और ऐसी शत पर, जो त थानी प्रांत की
िवधान सभा के सद य को इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले लागू थीं, प्रा करने के
हकदार ह गे ।
िवधायी प्रिक्रया
196. िवधेयक के पुरः थापन और पािरत िकए जाने के संबंध म उपबंध–(1) धन
िवधेयक और अ य िव िवधेयक के संबंध म अनु छे द 198 और अनु छे द 207 के
उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई िवधेयक िवधान पिरष वाले रा य के िवधान-मंडल के
िकसी भी सदन म आरं भ हो सकेगा ।
(2) अनु छे द 197 और अनु छे द 198 के उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई
िवधेयक िवधान पिरष वाले रा य के िवधान-मंडल के सदन द्वारा तब तक पािरत िकया
गया नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के िबना या केवल ऐसे संशोधन सिहत, िजन
पर दोन सदन सहमत हो गए ह, उस पर दोन सदन सहमत नहीं हो जाते ह ।
(3) िकसी रा य के िवधान-मंडल म लंिबत िवधेयक उसके सदन या सदन के
सत्रावसान के कारण यपगत नहीं होगा ।
(4) िकसी रा य की िवधान पिरष म लंिबत िवधेयक, िजसको िवधान सभा ने
पािरत नहीं िकया है , िवधान सभा के िवघटन पर यपगत नहीं होगा।
(5) कोई िवधेयक, जो िकसी रा य की िवधान सभा म लंिबत है या जो िवधान
सभा द्वारा पािरत कर िदया गया है और िवधान पिरष म लंिबत है , िवधान सभा के
िवघटन पर यपगत हो जाएगा ।
197. धन िवधेयक से िभ न िवधेयक के बारे म िवधान पिरष की शिक्तय पर
िनबर्ंधन–(1) यिद िवधान पिरष वाले रा य की िवधान सभा द्वारा िकसी िवधेयक के
पािरत िकए जाने और िवधान पिरष को पारे िषत िकए जाने के प ात ्–
(क) िवधान पिरष द्वारा िवधेयक अ वीकार कर िदया जाता है , या
(ख) िवधान पिरष के समक्ष िवधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा
िवधेयक पािरत िकए िबना, तीन मास से अिधक बीत गए ह, या
(ग) िवधान पिरष द्वारा िवधेयक ऐसे संशोधन सिहत पािरत िकया जाता
भारत का संिवधान 89

है िजनसे िवधान सभा सहमत नहीं होती है ,


तो िवधान सभा िवधेयक को, अपनी प्रिक्रया का िविनयमन करने वाले िनयम के अधीन
रहते हुए, उसी या िकसी प ातवतीर् सत्र म ऐसे संशोधन सिहत या उसके िबना, यिद
कोई ह , जो िवधान पिरष ने िकए ह, सझ ु ाए ह या िजनसे िवधान पिरष सहमत है ,
पुनःपािरत कर सकेगी और तब इस प्रकार पािरत िवधेयक को िवधान पिरष को पारे िषत
कर सकेगी ।
ु ारा पािरत कर िदए जाने और
(2) यिद िवधान सभा द्वारा िवधेयक इस प्रकार दब
िवधान पिरष को पारे िषत िकए जाने के प ात ्–
(क) िवधान पिरष द्वारा िवधेयक अ वीकार कर िदया जाता है , या
(ख) िवधान पिरष के समक्ष िवधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा
िवधेयक पािरत िकए िबना, एक मास से अिधक बीत गया है , या
(ग) िवधान पिरष द्वारा िवधेयक ऐसे संशोधन सिहत पािरत िकया जाता
है िजनसे िवधान सभा सहमत नहीं होती है ,
तो िवधेयक रा य के िवधान-मंडल के सदन द्वारा ऐसे संशोधन सिहत, यिद कोई ह , जो
िवधान पिरष ने िकए ह या सुझाए ह और िजनसे िवधान सभा सहमत है , उस प म
पािरत िकया गया समझा जाएगा िजसम वह िवधान सभा द्वारा दब ु ारा पािरत िकया गया
था ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात धन िवधेयक को लागू नहीं होगी ।
198. धन िवधेयक के संबंध म िवशेष प्रिक्रया–(1) धन िवधेयक िवधान पिरष
म पुरः थािपत नहीं िकया जाएगा ।
(2) धन िवधेयक िवधान पिरष वाले रा य की िवधान सभा द्वारा पािरत िकए
जाने के प ात ् िवधान पिरष को उसकी िसफािरश के िलए पारे िषत िकया जाएगा और
िवधान पिरष िवधेयक की प्राि की तारीख से चौदह िदन की अविध के भीतर िवधेयक
को अपनी िसफािरश सिहत िवधान सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर िवधान सभा,
िवधान पिरष की सभी या िक हीं िसफािरश को वीकार या अ वीकार कर सकेगी ।
(3) यिद िवधान सभा, िवधान पिरष की िकसी िसफािरश को वीकार कर लेती
है तो धन िवधेयक िवधान पिरष द्वारा िसफािरश िकए गए और िवधान सभा द्वारा
वीकार िकए गए संशोधन सिहत दोन सदन द्वारा पािरत िकया गया समझा जाएगा ।
(4) यिद िवधान सभा, िवधान पिरष की िकसी भी िसफािरश को वीकार नहीं
करती है तो धन िवधेयक िवधान पिरष द्वारा िसफािरश िकए गए िकसी संशोधन के
िबना, दोन सदन द्वारा उस प म पािरत िकया गया समझा जाएगा िजसम वह िवधान
सभा द्वारा पािरत िकया गया था ।
(5) यिद िवधान सभा द्वारा पािरत और िवधान पिरष को उसकी िसफािरश के
भारत का संिवधान 90

िलए पारे िषत धन िवधेयक उक्त चौदह िदन की अविध के भीतर िवधान सभा को नहीं
लौटाया जाता है तो उक्त अविध की समाि पर वह दोन सदन द्वारा उस प म पािरत
िकया गया समझा जाएगा िजसम वह िवधान सभा द्वारा पािरत िकया गया था ।
199. “धन िवधेयक” की पिरभाषा–(1) इस अ याय के प्रयोजन के िलए, कोई
िवधेयक धन िवधेयक समझा जाएगा यिद उसम केवल िन निलिखत सभी या िक हीं
िवषय से संबंिधत उपबंध ह, अथार्त ् :–

(क) िकसी कर का अिधरोपण, उ सादन, पिरहार, पिरवतर्न या


िविनयमन ;
(ख) रा य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्र याभिू त दे ने का िविनयमन
अथवा रा य द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली िक हीं िव ीय
बा यताओं से संबंिधत िविध का संशोधन ;
(ग) रा य की संिचत िनिध या आकि मकता िनिध की अिभरक्षा, ऐसी
िकसी िनिध म धन जमा करना या उसम से धन िनकालना ;

(घ) रा य की संिचत िनिध म से धन का िविनयोग ;


(ङ) िकसी यय को रा य की संिचत िनिध पर भािरत यय घोिषत करना
या ऐसे िकसी यय की रकम को बढ़ाना ;
(च) रा य की संिचत िनिध या रा य के लोक लेखे मद्धे धन प्रा करना
अथवा ऐसे धन की अिभरक्षा या उसका िनगर्मन ; या

(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) म िविनिदर् िकसी िवषय का आनुषंिगक


कोई िवषय ।
(2) कोई िवधेयक केवल इस कारण धन िवधेयक नहीं समझा जाएगा, िक वह
जमु ार्न या अ य धनीय शाि तय के अिधरोपण का अथवा अनुज्ञि य के िलए फीस की
या की गई सेवाओं के िलए फीस की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है
अथवा इस कारण धन िवधेयक नहीं समझा जाएगा िक वह िकसी थानीय प्रािधकारी या
िनकाय द्वारा थानीय प्रयोजन के िलए िकसी कर के अिधरोपण, उ सादन, पिरहार,
पिरवतर्न या िविनयमन का उपबंध करता है ।

(3) यिद यह प्र उठता है िक िवधान पिरष वाले िकसी रा य के िवधान-मंडल


म परु ः थािपत कोई िवधेयक धन िवधेयक है या नहीं तो उस पर उस रा य की िवधान
सभा के अ यक्ष का िविन य अंितम होगा ।

(4) जब धन िवधेयक अनु छे द 198 के अधीन िवधान पिरष को पारे िषत िकया
भारत का संिवधान 91

जाता है और जब वह अनु छे द 200 के अधीन अनुमित के िलए रा यपाल के समक्ष


प्र तुत िकया जाता है तब प्र येक धन िवधेयक पर िवधान सभा के अ यक्ष के ह ताक्षर
सिहत यह प्रमाण प ृ ांिकत िकया जाएगा िक वह धन िवधेयक है ।

200. िवधे यक पर अनुमित–जब कोई िवधे यक रा य की िवधान सभा द्वारा या


िवधान पिरष वाले रा य म िवधान-मंड ल के दोन सदन द्वारा पािरत कर िदया गया
है तब वह रा यपाल के समक्ष प्र तुत िकया जाएगा और रा यपाल घोिषत करे गा िक
वह िवधे यक पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक ले ता है अथवा वह िवधे यक को
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखता है :
परं तु रा यपाल अनुमित के िलए अपने समक्ष िवधे यक प्र तुत िकए जाने के
प ात ् यथाशीघ्र उस िवधे यक को, यिद वह धन िवधे यक नहीं है तो, सदन या सदन
को इस संदेश के साथ लौटा सके गा िक सदन या दोन सदन िवधे यक पर या उसके
िक हीं िविनिदर् उपबंध पर पुनिवर्चार कर और िविश तया िक हीं ऐसे संशोधन के
पुरः थापन की वां छनीयता पर िवचार कर िजनकी उसने अपने संदेश म िसफािरश की
है और जब िवधे यक इस प्रकार लौटा िदया जाता है तब सदन या दोन सदन िवधे यक
पर तदनुसार पुनिवर्चार करगे और यिद िवधे यक सदन या सदन द्वारा संशोधन सिहत
या उसके िबना िफर से पािरत कर िदया जाता है और रा यपाल के समक्ष अनुमित के
िलए प्र तु त िकया जाता है तो रा यपाल उस पर अनुमित नहीं रोकेगा :
परं तु यह और िक िजस िवधेयक से, उसके िविध बन जाने पर, रा यपाल की राय
म उ च यायालय की शिक्तय का ऐसा अ पीकरण होगा िक वह थान, िजसकी पिू तर् के
िलए वह यायालय इस संिवधान द्वारा पिरकि पत है , संकटाप न हो जाएगा, उस
िवधेयक पर रा यपाल अनम ु ित नहीं दे गा, िकं तु उसे रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत
रखेगा ।
201. िवचार के िलए आरिक्षत िवधेयक–जब कोई िवधेयक रा यपाल द्वारा रा पित
के िवचार के िलए आरिक्षत रख िलया जाता है तब रा पित घोिषत करे गा िक वह
िवधेयक पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक लेता है :
परं तु जहां िवधेयक धन िवधेयक नहीं है वहां रा पित रा यपाल को यह िनदे श दे
सकेगा िक वह िवधेयक को, यथाि थित, रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन को
ऐसे संदेश के साथ, जो अनु छे द 200 के पहले परं तुक म विणर्त है , लौटा दे और जब
कोई िवधेयक इस प्रकार लौटा िदया जाता है तब ऐसा संदेश िमलने की तारीख से छह
मास की अविध के भीतर सदन या सदन द्वारा उस पर तदनस ु ार पन
ु िवर्चार िकया जाएगा
और यिद वह सदन या सदन द्वारा संशोधन सिहत या उसके िबना िफर से पािरत कर
िदया जाता है तो उसे रा पित के समक्ष उसके िवचार के िलए िफर से प्र तुत िकया
जाएगा ।
िव ीय िवषय के संबंध म प्रिक्रया
भारत का संिवधान 92

202. वािषर्क िव ीय िववरण–(1) रा यपाल प्र येक िव ीय वषर् के संबंध म रा य


के िवधान-मंडल के सदन या सदन के समक्ष उस रा य की उस वषर् के िलए प्राक्किलत
प्राि य और यय का िववरण रखवाएगा िजसे इस भाग म “वािषर्क िव ीय िववरण” कहा
गया है ।
(2) वािषर्क िव ीय िववरण म िदए हुए यय के प्राक्कलन म–
(क) इस संिवधान म रा य की संिचत िनिध पर भािरत यय के प म
विणर्त यय की पूितर् के िलए अपेिक्षत रािशयां, और
(ख) रा य की संिचत िनिध म से िकए जाने के िलए प्र थािपत अ य
यय की पिू तर् के िलए अपेिक्षत रािशयां,
पथ
ृ क् -पथ
ृ क् िदखाई जाएंगी और राज व लेखे होने वाले यय का अ य यय से भेद
िकया जाएगा ।
(3) िन निलिखत यय प्र येक रा य की संिचत िनिध पर भािरत यय होगा,
अथार्त ् :–
(क) रा यपाल की उपलि धयां और भ े तथा उसके पद से संबंिधत अ य
यय ;
(ख) िवधान सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष के तथा िवधान पिरष वाले
रा य की दशा म िवधान पिरष के सभापित और उपसभापित के भी वेतन और
भ े ;
(ग) ऐसे ऋण भार िजनका दािय व रा य पर है , िजनके अंतगर्त याज,
िनक्षेप िनिध भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण
मोचन से संबिं धत अ य यय ह ;
(घ) िकसी उ च यायालय के यायाधीश के वेतन और भ के संबंध म
यय ;
(ङ) िकसी यायालय या मा य थम ् अिधकरण के िनणर्य, िडक्री या पंचाट
की तुि के िलए अपेिक्षत रािशयां ;
(च) कोई अ य यय जो इस संिवधान द्वारा या रा य के िवधान-मंडल
द्वारा, िविध द्वारा, इस प्रकार भािरत घोिषत िकया जाता है ।
203. िवधान-मंडल म प्राक्कलन के संबंध म प्रिक्रया–(1) प्राक्कलन म से िजतने
प्राक्कलन रा य की संिचत िनिध पर भािरत यय से संबंिधत ह वे िवधान सभा म
मतदान के िलए नहीं रखे जाएंगे, िक तु इस खंड की िकसी बात का यह अथर् नहीं
लगाया जाएगा िक वह िवधान-मंडल म उन प्राक्कलन म से िकसी प्राक्कलन पर चचार्
को िनवािरत करती है ।
(2) उक्त प्राक्कलन म से िजतने प्राक्कलन अ य यय से संबंिधत ह वे िवधान
सभा के समक्ष अनुदान की मांग के प म रखे जाएंगे और िवधान सभा को शिक्त होगी
भारत का संिवधान 93

िक वह िकसी मांग को अनुमित दे या अनुमित दे ने से इंकार कर दे अथवा िकसी मांग


को, उसम िविनिदर् रकम को कम करके, अनुमित दे ।
(3) िकसी अनुदान की मांग रा यपाल की िसफािरश पर ही की जाएगी, अ यथा
नहीं ।
204. िविनयोग िवधेयक–(1) िवधान सभा द्वारा अनु छे द 203 के अधीन अनुदान
िकए जाने के प ात ् यथाशक्य शीघ्र, रा य की संिचत िनिध म से–
(क) िवधान सभा द्वारा इस प्रकार िकए गए अनुदान की, और
(ख) रा य की संिचत िनिध पर भािरत, िक तु सदन या सदन के समक्ष
पहले रखे गए िववरण म दिशर्त रकम से िकसी भी दशा म अनिधक यय की,
पूितर् के िलए अपेिक्षत सभी धनरािशय के िविनयोग का उपबंध करने के िलए िवधेयक
पुरः थािपत िकया जाएगा ।
(2) इस प्रकार िकए गए िकसी अनुदान की रकम म पिरवतर्न करने या अनुदान
के ल य को बदलने अथवा रा य की संिचत िनिध पर भािरत यय की रकम म
पिरवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे िकसी िवधेयक म रा य के
िवधान-मंडल के सदन म या िकसी सदन म प्र थािपत नहीं िकया जाएगा और पीठासीन
यिक्त का इस बारे म िविन य अंितम होगा िक कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्रा
है या नहीं ।

(3) अनु छे द 205 और अनु छे द 206 के उपबंध के अधीन रहते हुए, रा य की


संिचत िनिध म से इस अनु छे द के उपबंध के अनुसार पािरत िविध द्वारा िकए गए
िविनयोग के अधीन ही कोई धन िनकाला जाएगा, अ यथा नहीं ।

205. अनुपूरक, अितिरक्त या अिधक अनुदान–(1) यिद–

(क) अनु छे द 204 के उपबंध के अनुसार बनाई गई िकसी िविध द्वारा


िकसी िविश सेवा पर चालू िव ीय वषर् के िलए यय िकए जाने के िलए
प्रािधकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन के िलए अपयार् पाई जाती है या उस
वषर् के वािषर्क िव ीय िववरण म अनु यात न की गई िकसी नई सेवा पर
अनुपूरक या अितिरक्त यय की चालू िव ीय वषर् के दौरान आव यकता पैदा हो
गई है , या

(ख) िकसी िव ीय वषर् के दौरान िकसी सेवा पर उस वषर् और उस सेवा के


िलए अनद
ु ान की गई रकम से अिधक कोई धन यय हो गया है ,
तो रा यपाल, यथाि थित, रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन के समक्ष उस यय
की प्राक्किलत रकम को दिशर्त करने वाला दस
ू रा िववरण रखवाएगा या रा य की िवधान
भारत का संिवधान 94

सभा म ऐसे आिधक्य के िलए मांग प्र तुत करवाएगा ।

(2) ऐसे िकसी िववरण और यय या मांग के संबंध म तथा रा य की संिचत


िनिध म से ऐसे यय या ऐसी मांग से संबंिधत अनुदान की पूितर् के िलए धन का
िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म भी,
अनु छे द 202, अनु छे द 203 और अनु छे द 204 के उपबंध वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे
वािषर्क िव ीय िववरण और उसम विणर्त यय के संबंध म या िकसी अनुदान की िकसी
मांग के संबंध म और रा य की संिचत िनिध म से ऐसे यय या अनुदान की पूितर् के
िलए धन का िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म
प्रभावी ह ।

206. लेखानुदान, प्र ययानुदान और अपवादानद


ु ान–(1) इस अ याय के पव
ू ग
र् ामी
उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी रा य की िवधान सभा को–

(क) िकसी िव ीय वषर् के भाग के िलए प्राक्किलत यय के संबंध म कोई


अनद ु ान, उस अनुदान के िलए मतदान करने के िलए अनु छे द 203 म िविहत
प्रिक्रया के परू ा होने तक और उस यय के संबंध म अनु छे द 204 के उपबंध के
अनुसार िविध के पािरत होने तक, अिग्रम दे ने की ;

(ख) जब िकसी सेवा की मह ा या उसके अिनि त प के कारण मांग ऐसे


यौरे के साथ विणर्त नहीं की जा सकती है जो वािषर्क िव ीय िववरण म
सामा यतया िदया जाता है तब रा य के संपि ोत पर अप्र यािशत मांग की पिू तर्
के िलए अनुदान करने की ;

(ग) िकसी िव ीय वषर् की चालू सेवा का जो अनुदान भाग नहीं है ऐसा


कोई अपवादानुदान करने की,

शिक्त होगी और िजन प्रयोजन के िलए उक्त अनुदान िकए गए ह उनके िलए रा य की
संिचत िनिध म से धन िनकालना िविध द्वारा प्रािधकृत करने की रा य के िवधान-मंडल को
शिक्त होगी ।

(2) खंड (1) के अधीन िकए जाने वाले िकसी अनुदान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म अनु छे द 203 और अनु छे द 204 के उपबंध
वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे वािषर्क िव ीय िववरण म विणर्त िकसी यय के बारे म कोई
अनुदान करने के संबंध म और रा य की संिचत िनिध म से ऐसे यय की पूितर् के िलए
धन का िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म प्रभावी
ह ।

207. िव िवधेयक के बारे म िवशेष उपबंध–(1) अनु छे द 199 के खंड (1) के


उपखंड (क) से उपखंड (च) म िविनिदर् िकसी िवषय के िलए उपबंध करने वाला िवधेयक
भारत का संिवधान 95

या संशोधन रा यपाल की िसफािरश से ही पुरः थािपत या प्र तािवत िकया जाएगा,


अ यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला िवधेयक िवधान पिरष म पुरः थािपत नहीं
िकया जाएगा :
परं तु िकसी कर के घटाने या उ सादन के िलए उपबंध करने वाले िकसी संशोधन
के प्र ताव के िलए इस खंड के अधीन िसफािरश की अपेक्षा नहीं होगी ।
(2) कोई िवधेयक या संशोधन उक्त िवषय म से िकसी िवषय के िलए उपबंध
करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा िक वह जुमार्न या अ य धनीय
शाि तय के अिधरोपण का अथवा अनुज्ञि य के िलए फीस की या की गई सेवाओं के
िलए फीस की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं
समझा जाएगा िक वह िकसी थानीय प्रािधकारी या िनकाय द्वारा थानीय प्रयोजन के
िलए िकसी कर के अिधरोपण, उ सादन, पिरहार, पिरवतर्न या िविनयमन का उपबंध
करता है ।
(3) िजस िवधेयक को अिधिनयिमत और प्रवितर्त िकए जाने पर रा य की संिचत
िनिध म से यय करना पड़ेगा वह िवधेयक रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन द्वारा
तब तक पािरत नहीं िकया जाएगा जब तक ऐसे िवधेयक पर िवचार करने के िलए उस
सदन से रा यपाल ने िसफािरश नहीं की है ।
साधारणतया प्रिक्रया
208. प्रिक्रया के िनयम–(1) इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, रा य
के िवधान-मंडल का कोई सदन अपनी प्रिक्रया और अपने कायर् संचालन के िविनयमन
के िलए िनयम बना सकेगा ।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन िनयम नहीं बनाए जाते ह तब तक इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले त थानी प्रांत के िवधान-मंडल के संबंध म जो प्रिक्रया
के िनयम और थायी आदे श प्रव ृ थे वे ऐसे उपांतरण और अनक ु ू लन के अधीन रहते
हुए उस रा य के िवधान-मंडल के संबंध म प्रभावी ह गे िज ह, यथाि थित, िवधान सभा
का अ यक्ष या िवधान पिरष का सभापित उनम करे ।
(3) रा यपाल, िवधान पिरष वाले रा य म िवधान सभा के अ यक्ष और िवधान
पिरष के सभापित से परामशर् करने के प ात ्, दोन सदन म पर पर संचार से संबंिधत
प्रिक्रया के िनयम बना सकेगा ।
209. रा य के िवधान-मंडल म िव ीय कायर् संबंधी प्रिक्रया का िविध द्वारा
िविनयमन–िकसी रा य का िवधान-मंडल, िव ीय कायर् को समय के भीतर पूरा करने के

 संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 22 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
भारत का संिवधान 96

प्रयोजन के िलए िकसी िव ीय िवषय से संबंिधत या रा य की संिचत िनिध म से धन का


िविनयोग करने के िलए िकसी िवधेयक से संबंिधत, रा य के िवधान-मंडल के सदन या
सदन की प्रिक्रया और कायर् संचालन का िविनयमन िविध द्वारा कर सकेगा तथा यिद और
जहां तक इस प्रकार बनाई गई िकसी िविध का कोई उपबंध अनु छे द 208 के खंड (1) के
अधीन रा य के िवधान-मंडल के सदन या िकसी सदन द्वारा बनाए गए िनयम से या उस
अनु छे द के खंड (2) के अधीन रा य िवधान-मंडल के संबंध म प्रभावी िकसी िनयम या
थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अिभभावी होगा ।
210. िवधान-मंडल म प्रयोग की जाने वाली भाषा–(1) भाग 17 म िकसी बात के
होते हुए भी, िक तु अनु छे द 348 के उपबंध के अधीन रहते हुए, रा य के िवधान-मंडल
म कायर् रा य की राजभाषा या राजभाषाओं म या िहंदी म या अंग्रेजी म िकया जाएगा :
परं तु, यथाि थित, िवधान सभा का अ यक्ष या िवधान पिरष का सभापित अथवा
उस प म कायर् करने वाला यिक्त िकसी सद य को, जो पूव क्त भाषाओं म से िकसी भाषा
म अपनी पयार् अिभ यिक्त नहीं कर सकता है , अपनी मातभ
ृ ाषा म सदन को संबोिधत करने
की अनज्ञ
ु ा दे सकेगा ।
(2) जब तक रा य का िवधान-मंडल िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक
इस संिवधान के प्रारं भ से पंद्रह वषर् की अविध की समाि के प ात ् यह अनु छे द ऐसे
प्रभावी होगा मानो “या अंग्रेजी म” श द का उसम से लोप कर िदया गया हो :
[परं तु 2[िहमाचल प्रदे श, मिणपरु , मेघालय और ित्रपरु ा रा य के िवधान-मंडल ] के
1

संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्” श द के
थान पर “प चीस वषर्” श द रख िदए गए ह :]
[परं तु यह और िक 4-5[अ णाचल प्रदे श, गोवा और िमजोरम रा य के िवधान-
3

मंडल ]] के संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्”
श द के थान पर “चालीस वषर्” श द रख िदए गए ह ।]
211. िवधान-मंडल म चचार् पर िनबर्ंधन–उ चतम यायालय या िकसी उ च
यायालय के िकसी यायाधीश के अपने कतर् य के िनवर्हन म िकए गए, आचरण के

1. िहमाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से ) अंतः थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “िहमाचल प्रदे श
रा य के िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
4. अ णाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (30-5-1987 से) “िमजोरम रा य के
िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
5. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अ णाचल
प्रदे श और िमजोरम” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 97

िवषय म रा य के िवधान-मंडल म कोई चचार् नहीं होगी ।

212. यायालय द्वारा िवधान-मंडल की कायर्वािहय की जांच न िकया जाना–(1)


रा य के िवधान-मंडल की िकसी कायर्वाही की िविधमा यता को प्रिक्रया की िकसी
अिभकिथत अिनयिमतता के आधार पर प्र गत नहीं िकया जाएगा ।
(2) रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधकारी या सद य, िजसम इस संिवधान
द्वारा या इसके अधीन उस िवधान-मंडल म प्रिक्रया या कायर् संचालन का िविनयमन करने
की अथवा यव था बनाए रखने की शिक्तयां िनिहत ह, उन शिक्तय के अपने द्वारा प्रयोग
के िवषय म िकसी यायालय की अिधकािरता के अधीन नहीं होगा ।

अ याय 4 - रा यपाल की िवधायी शिक्त


213. िवधान-मंडल के िव ांितकाल म अ यादे श प्रख्यािपत करने की रा यपाल
की शिक्त–(1) उस समय को छोड़कर जब िकसी रा य की िवधान सभा सत्र म है या
िवधान पिरष वाले रा य म िवधान-मंडल के दोन सदन सत्र म ह, यिद िकसी समय
रा यपाल का यह समाधान हो जाता है िक ऐसी पिरि थितयां िवद्यमान ह िजनके कारण
तरु त कारर् वाई करना उसके िलए आव यक हो गया है तो वह ऐसे अ यादे श प्रख्यािपत
कर सकेगा जो उसे उन पिरि थितय म अपेिक्षत प्रतीत ह :

परं तु रा यपाल, रा पित के अनुदेश के िबना, कोई ऐसा अ यादे श प्रख्यािपत नहीं
करे गा यिद–
(क) वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को िवधान-मंडल म
पुर: थािपत िकए जाने के िलए रा पित की पूवर् मंजूरी की अपेक्षा इस संिवधान
के अधीन होती ; या
(ख) वह वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को रा पित के िवचार
के िलए आरिक्षत रखना आव यक समझता ; या
(ग) वैसे हर उपबंध अंतिवर् करने वाला रा य के िवधान-मंडल का
अिधिनयम इस संिवधान के अधीन तब तक अिविधमा य होता जब तक रा पित
के िवचार के िलए आरिक्षत रखे जाने पर उसे रा पित की अनुमित प्रा नहीं हो
गई होती ।

(2) इस अनु छे द के अधीन प्रख्यािपत अ यादे श का वही बल और प्रभाव होगा


जो रा य के िवधान-मंडल के ऐसे अिधिनयम का होता है िजसे रा यपाल ने अनुमित दे
दी है , िकं तु प्र येक ऐसा अ यादे श–
(क) रा य की िवधान सभा के समक्ष और िवधान पिरष वाले रा य म
दोन सदन के समक्ष रखा जाएगा तथा िवधान-मंडल के पुन: समवेत होने से
भारत का संिवधान 98

छह स ाह की समाि पर या यिद उस अविध की समाि से पहले िवधान सभा


उसके अननुमोदन का संक प पािरत कर दे ती है और यिद िवधान पिरष है तो
वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथाि थित, संक प के पािरत होने पर या
िवधान पिरष द्वारा संक प से सहमत होने पर प्रवतर्न म नहीं रहे गा ; और
(ख) रा यपाल द्वारा िकसी भी समय वापस िलया जा सकेगा ।
प ीकरण–जहां िवधान पिरष वाले रा य के िवधान-मंडल के सदन, िभ न-िभ न
तारीख को पुन: समवेत होने के िलए, आहूत िकए जाते ह वहां इस खंड के प्रयोजन के
िलए छह स ाह की अविध की गणना उन तारीख म से प ा वतीर् तारीख से की जाएगी

(3) यिद और जहां तक इस अनु छे द के अधीन अ यादे श कोई ऐसा उपबंध
करता है जो रा य के िवधान-मंडल के ऐसे अिधिनयम म, िजसे रा यपाल ने अनुमित दे
दी है , अिधिनयिमत िकए जाने पर िविधमा य नहीं होता तो और वहां तक वह अ यादे श
शू य होगा :
परं तु रा य के िवधान-मंडल के ऐसे अिधिनयम के, जो समवतीर् सूची म प्रगिणत
िकसी िवषय के बारे म संस के िकसी अिधिनयम या िकसी िवद्यमान िविध के िव द्ध है ,
प्रभाव से संबंिधत इस संिवधान के उपबंध के प्रयोजन के िलए यह है िक कोई
अ यादे श, जो रा पित के अनद ु े श के अनस
ु रण म इस अनु छे द के अधीन प्रख्यािपत
िकया जाता है , रा य के िवधान-मंडल का ऐसा अिधिनयम समझा जाएगा जो रा पित के
िवचार के िलए आरिक्षत रखा गया था और िजसे उसने अनुमित दे दी है ।
1
(4)* * * *
अ याय 5–रा य के उ च यायालय
214. रा य के िलए उ च यायालय–2*** प्र येक रा य के िलए एक उ च
यायालय होगा ।
3
(2)* * * *
3
(3)* * * *
215. उ च यायालय का अिभलेख यायालय होना–प्र येक उ च यायालय
अिभलेख यायालय होगा और उसको अपने अवमान के िलए दं ड दे ने की शिक्त सिहत
ऐसे यायालय की सभी शिक्तयां ह गी ।
216. उ च यायालय का गठन–प्र येक उ च यायालय मुख्य यायमूितर् और ऐसे
अ य यायाधीश से िमलकर बनेगा िज ह रा पित समय-समय पर िनयुक्त करना

1. संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा (11-8-1975 से) खंड (4) अंतः थािपत िकया
गया था और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 27 द्वारा (20-6-1979 से) लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु ूची द्वारा को क और अंक “(1)” का लोप
िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) और खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 99

आव यक समझे ।
1
* * * *
217. उ च यायालय के यायाधीश की िनयुिक्त और उसके पद की शत–(1)
2
[अनु छे द 124क म िनिदर् रा ीय याियक िनयिु क्त आयोग की िसफािरश पर, रा पित]
अपने ह ताक्षर और मुद्रा सिहत अिधपत्र द्वारा उ च यायालय के प्र येक यायाधीश को
िनयुक्त करे गा और वह यायाधीश 3[अपर या कायर्कारी यायाधीश की दशा म अनु छे द
224 म उपबंिधत प म पद धारण करे गा और िकसी अ य दशा म तब तक पद धारण
करे गा जब तक वह 4[बासठ वषर्] की आयु प्रा नहीं कर लेता है :]]
परं त–

(क) कोई यायाधीश, रा पित को संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा
अपना पद याग सकेगा ;
(ख) िकसी यायाधीश को उ चतम यायालय के यायाधीश को हटाने के
िलए अनु छे द 124 के खंड (4) म उपबंिधत रीित से उसके पद से रा पित द्वारा
हटाया जा सकेगा ;
(ग) िकसी यायाधीश का पद, रा पित द्वारा उसे उ चतम यायालय का
यायाधीश िनयुक्त िकए जाने पर या रा पित द्वारा उसे भारत के रा यक्षेत्र म
िकसी अ य उ च यायालय को, अंतिरत िकए जाने पर िरक्त हो जाएगा ।
(2) कोई यिक्त, िकसी उ च यायालय के यायाधीश के प म िनयुिक्त के िलए
तभी अिहर्त होगा जब वह भारत का नागिरक है और–
(क) भारत के रा यक्षेत्र म कम से कम दस वषर् तक याियक पद धारण
कर चुका है ; या
(ख) िकसी 5*** उ च यायालय का या ऐसे दो या अिधक यायालय का

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) पर तुक का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से, उस रा य के रा यपाल से और मुख्य यायमूितर् से िभ न िकसी यायाधीश की िनयुिक्त की दशा म उस उ च
यायालय के मुख्य यायमूितर् से परामशर् करने के प ात ्, रा पित” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम
यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 12 द्वारा “तब तक पद धारण करे गा जब तक िक वह साठ
वषर् की आयु प्रा न कर ले” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य म के” श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 100

लगातार कम से कम दस वषर् तक अिधवक्ता रहा है ; 2***


1
(ग)* * * *
प ीकरण – इस खंड के प्रयोजन के िलए–
2
[(क) भारत के रा यक्षेत्र म याियक पद धारण करने की अविध
की संगणना करने म वह अविध भी सि मिलत की जाएगी िजसके दौरान
कोई यिक्त याियक पद धारण करने के प ात ् िकसी उ च यायालय का
अिधवक्ता रहा है या उसने िकसी अिधकरण के सद य का पद धारण िकया
है अथवा संघ या रा य के अधीन कोई ऐसा पद धारण िकया है िजसके
िलए िविध का िवशेष ज्ञान अपेिक्षत है ;]
3
[(कक) िकसी उ च यायालय का अिधवक्ता रहने की अविध की
संगणना करने म वह अविध भी सि मिलत की जाएगी िजसके दौरान
िकसी यिक्त ने अिधवक्ता होने के प ात ् 4[ याियक पद धारण िकया है या
िकसी अिधकरण के सद य का पद धारण िकया है अथवा संघ या रा य
के अधीन कोई ऐसा पद धारण िकया है िजसके िलए िविध का िवशेष ज्ञान
अपेिक्षत है ;]
(ख) भारत के रा यक्षेत्र म याियक पद धारण करने या िकसी
उ च यायालय का अिधवक्ता रहने की अविध की संगणना करने म इस
संिवधान के प्रारं भ से पहले की वह अविध भी सि मिलत की जाएगी
िजसके दौरान िकसी यिक्त ने, यथाि थित, ऐसे क्षेत्र म जो 15 अग त,
1947 से पहले भारत शासन अिधिनयम, 1935 म पिरभािषत भारत म
समािव था, याियक पद धारण िकया है या वह ऐसे िकसी क्षेत्र म िकसी
उ च यायालय का अिधवक्ता रहा है ।
5
[(3) यिद उ च यायालय के िकसी यायाधीश की आयु के बारे म कोई प्र
उठता है तो उस प्र का िविन य भारत के मुख्य यायमूितर् से परामशर् करने के प ात ्
रा पित द्वारा िकया जाएगा और रा पित का िविन य अंितम होगा ।]
218. उ चतम यायालय से संबंिधत कुछ उपबंध का उ च यायालय को लागू
होना–अनु छे द 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध, जहां-जहां उनम उ चतम
यायालय के प्रित िनदश है वहां-वहां उ च यायालय के प्रित िनदश प्रित थािपत करके,

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) श द “या” और उपखंड (ग)
अंतः थािपत िकए गए और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से)
उनका लोप िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) “ यािययक पद धारण िकया
हो” के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 101

उ च यायालय के संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे उ चतम यायालय के संबंध म


लागू होते ह ।
219. उ च यायालय के यायाधीश द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–1*** उ च
यायालय का यायाधीश होने के िलए िनयक्त ु प्र येक यिक्त, अपना पदग्रहण करने से
पहले, उस रा य के रा यपाल या उसके द्वारा इस िनिम िनयुक्त यिक्त के समक्ष, तीसरी
अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प के अनुसार, शपथ लेगा या प्रितज्ञान
करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर करे गा ।
[220. थायी यायाधीश रहने के प ात ् िविध- यवसाय पर
2
िनबर्ंधन–कोई यिक्त,
िजसने इस संिवधान के प्रारं भ के प ात ् िकसी उ च यायालय के थायी यायाधीश के
प म पद धारण िकया है , उ चतम यायालय और अ य उ च यायालय के िसवाय
भारत म िकसी यायालय या िकसी प्रािधकारी के समक्ष अिभवचन या कायर् नहीं करे गा

प ीकरण–इस अनु छे द म, “उ च यायालय” पद के अंतगर्त संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 के प्रारं भ3 से पहले िवद्यमान पहली अनुसूची के भाग ख म
िविनिदर् रा य का उ च यायालय नहीं है ।]
221. यायाधीश के वेतन, आिद– 4[(1) प्र येक उ च यायालय के यायाधीश
को ऐसे वेतन का संदाय िकया जाएगा जो संस , िविध द्वारा, अवधािरत करे और जब
तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक ऐसे वेतन का संदाय
िकया जाएगा जो दस
ू री अनुसूची म िविनिदर् ह ।]
(2) प्र येक यायाधीश ऐसे भ का तथा अनुपि थित छुट्टी और पशन के संबंध
म ऐसे अिधकार का, जो संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन समय-समय
पर अवधािरत िकए जाएं, और जब तक इस प्रकार अवधािरत नहीं िकए जाते ह तब तक
ऐसे भ और अिधकार का, जो दस ू री अनुसूची म िविनिदर् ह, हकदार होगा :
परं तु िकसी यायाधीश के भ म और अनुपि थित छुट्टी या पशन के संबंध म
उसके अिधकार म उसकी िनयुिक्त के प ात ् उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न नहीं िकया
जाएगा ।
222. िकसी यायाधीश का एक उ च यायालय से दस ू रे उ च यायालय को

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “िकसी रा य म” श द का (1-11-
1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 13 द्वारा प्रित थािपत ।
3. 1 नव बर, 1956 ।
4. संिवधान (चौवनवां संशोधन) अिधिनयम, 1986 की धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 102

अंतरण–(1) रा पित, 1[अऩु छे द 124क म िनिदर् रा ीय याियक िनयुिक्त आयोग की


िसफािरश पर] 2*** िकसी यायाधीश का एक उ च यायालय से दस ू रे उ च यायालय
को अंतरण कर सकेगा ।
[(2) जब कोई यायाधीश इस प्रकार अंतिरत िकया गया है या िकया जाता है
3

तब वह उस अविध के दौरान, िजसके दौरान वह संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम,


1963 के प्रारं भ के प ात ् दस
ू रे उ च यायालय के यायाधीश के प म सेवा करता है ,
अपने वेतन के अितिरक्त ऐसा प्रितकरा मक भ ा, जो संस िविध द्वारा अवधािरत करे ,
और जब तक इस प्रकार अवधािरत नहीं िकया जाता है तब तक ऐसा प्रितकरा मक भ ा,
जो रा पित आदे श द्वारा िनयत करे , प्रा करने का हकदार होगा ।]
223. कायर्कारी मख्ु य यायमूितर् की िनयुिक्त–जब िकसी उ च यायालय के मुख्य
यायमिू तर् का पद िरक्त है या जब ऐसा मुख्य यायमूितर् अनुपि थित के कारण या अ यथा
अपने पद के कतर् य का पालन करने म असमथर् है तब यायालय के अ य यायाधीश म
से ऐसा एक यायाधीश, िजसे रा पित इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के कतर् य
का पालन करे गा ।
4
[224. अपर और कायर्कारी यायाधीश की िनयुिक्त–(1) यिद िकसी उ च
यायालय के कायर् म िकसी अ थायी विृ द्ध के कारण या उसम कायर् की बकाया के कारण
रा पित को यह प्रतीत होता है िक उस यायालय के यायाधीश की संख्या को त समय
बढ़ा दे ना चािहए 5[तो रा पित, रा ीय याियक िनयुिक्त आयोग के परामशर् से, स यक्
प से] अिहर्त यिक्तय को दो वषर् से अनिधक की ऐसी अविध के िलए जो वह िविनिदर्
करे , उस यायालय के अपर यायाधीश िनयुक्त कर सकेगा ।
(2) जब िकसी उ च यायालय का मुख्य यायमूितर् से िभ न कोई यायाधीश
अनुपि थित के कारण या अ य कारण से अपने पद के कतर् य का पालन करने म

1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 7 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से परामशर् करने के प ात ्” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर्
एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर,
2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा “भारत के रा यक्षेत्र म के” श द का (1-11-1956
से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत । संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा मूल खंड (2) का लोप (1-11-1956 से) िकया गया ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 15 द्वारा अनु छे द 224 के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तो रा पित स यक्त प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 103

असमथर् है या मुख्य यायमूितर् के प म अ थायी प से कायर् करने के िलए िनयुक्त


िकया जाता है 1[तो रा पित, रा ीय याियक िनयुिक्त आयोग के परामशर् से, स यक् प
से] अिहर्त िकसी यिक्त को तब तक के िलए उस यायालय के यायाधीश के प म कायर्
करने के िलए िनयुक्त कर सकेगा जब तक थायी यायाधीश अपने कतर् य को िफर से
नहीं संभाल लेता है ।
(3) उ च यायालय के अपर या कायर्कारी यायाधीश के प म िनयुक्त कोई
यिक्त 2[बासठ वषर्] की आयु प्रा कर लेने के प ात ् पद धारण नहीं करे गा ।
3
[224क. उ च यायालय की बैठक म सेवािनव ृ यायाधीश की िनयुिक्त–इस
अ याय म िकसी बात के होते हुए भी, 4[रा ीय याियक िनयुिक्त आयोग िकसी रा य के
उ च यायालय के मुख्य यायमूितर् द्वारा उसे िकए गए िकसी िनदश पर, रा पित की
पूवर् सहमित से,] िकसी यिक्त से, जो उस उ च यायालय या िकसी अ य उ च
यायालय के यायाधीश का पद धारण कर चुका है , उस रा य के उ च यायालय के
यायाधीश के प म बैठने और कायर् करने का अनुरोध कर सकेगा और प्र येक ऐसा
यिक्त, िजससे इस प्रकार अनुरोध िकया जाता है , इस प्रकार बैठने और कायर् करने के
दौरान ऐसे भ का हकदार होगा जो रा पित आदे श द्वारा अवधािरत करे और उसको उस
उ च यायालय के यायाधीश की सभी अिधकािरता, शिक्तयां और िवशेषािधकार ह गे,
िकं तु उसे अ यथा उस उ च यायालय का यायाधीश नहीं समझा जाएगा :
परं तु जब तक यथापूव क्त यिक्त उस उ च यायालय के यायाधीश के प म
बैठने और कायर् करने की सहमित नहीं दे दे ता है तब तक इस अनु छे द की कोई बात
उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी ।]
225. िवद्यमान उ च यायालय की अिधकािरता–इस संिवधान के उपबंध के
अधीन रहते हुए और इस संिवधान द्वारा समुिचत िवधान-मंडल को प्रद शिक्तय के
आधार पर उस िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध के उपबंध के अधीन रहते हुए,
िकसी िवद्यमान उ च यायालय की अिधकािरता और उसम प्रशािसत िविध तथा उस
यायालय म याय प्रशासन के संबंध म उसके यायाधीश की अपनी-अपनी शिक्तयां,
िजनके अंतगर्त यायालय के िनयम बनाने की शिक्त तथा उस यायालय और उसके
सद य की बैठक का चाहे वे अकेले बैठ या खंड यायालय म बैठ िविनयमन करने की
शिक्त है , वही ह गी जो इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले थीं :

1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तब रा पित स यक् प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
2. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 6 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 7 द्वारा अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 9 द्वारा (13-4-2015 से) “िकसी रा य के उ च
यायालय का मुख्य यायमूितर्, िकसी भी समय, रा पित की पूवर् सहमित से” के थान पर प्रित थािपत । यह
संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म
उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 104

1
[परं तु राज व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने म आिद या िकए गए िकसी
कायर् संबंधी िवषय की बाबत उ च यायालय म से िकसी की आरं िभक अिधकािरता का
प्रयोग, इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, िजस िकसी िनबर्ंधन के अधीन था वह
िनबर्ंधन ऐसी अिधकािरता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ के प ात ् लागू नहीं होगा ।]
2
[226. कुछ िरट िनकालने की उ च यायालय की शिक्त – (1) अनु छे द 32 म
िकसी बात के होते हुए भी 3*** प्र येक उ च यायालय को उन रा यक्षेत्र म सवर्त्र,
िजनके संबंध म वह अपनी अिधकािरता का प्रयोग करता है , 3[भाग 3 द्वारा प्रद
अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए और िकसी अ य प्रयोजन के िलए] उन
रा यक्षेत्र के भीतर िकसी यिक्त या प्रािधकारी को या समुिचत मामल म िकसी सरकार
को ऐसे िनदे श, आदे श या िरट िजनके अंतगर्त 4[बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध,
अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण िरट ह, या उनम से कोई] िनकालने की शिक्त होगी ।]
(2) िकसी सरकार, प्रािधकारी या यिक्त को िनदे श, आदे श या िरट िनकालने की
खंड (1) द्वारा प्रद शिक्त का प्रयोग उन रा यक्षेत्र के संबंध म, िजनके भीतर ऐसी शिक्त
के प्रयोग के िलए वादहे तुक पूणत र् : या भागत: उ प न होता है , अिधकािरता का प्रयोग
करने वाले िकसी उ च यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी िकया जा सकेगा िक
ऐसी सरकार या प्रािधकारी का थान या ऐसे यिक्त का िनवास- थान उन रा यक्षेत्र के
भीतर नहीं है ।
5
[(3) जहां कोई पक्षकार, िजसके िव द्ध खंड (1) के अधीन िकसी यािचका पर या
उससे संबंिधत िकसी कायर्वाही म यादे श के प म या रोक के प म या िकसी अ य
रीित से कोई अंतिरम आदे श–

(क) ऐसे पक्षकार को ऐसी यािचका की और ऐसे अंतिरम आदे श के िलए


अिभवाक् के समथर्न म सभी द तावेज की प्रितिलिपयां, और

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत । संिवधान
(बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) मूल परं तुक का लोप िकया गया था ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनु छे द 226 के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “िकं तु अनु छे द 131क और
अनु छे द 226क के उपबंध के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “िजनके अंतगर्त बंदी
प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण के प्रकार के लेख भी ह अथवा उनम से िकसी को”
श द से आरं भ होकर “ याय की सारवान ् िन फलता हुई है , िकसी क्षित के प्रिततोष के िलए” श द के साथ समा
होने वाले भाग के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5)
और खंड (6) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 105

(ख) ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर,


िदए िबना िकया गया है , ऐसे आदे श को र कराने के िलए उ च यायालय को आवेदन
करता है और ऐसे आवेदन की एक प्रितिलिप उस पक्षकार को िजसके पक्ष म ऐसा आदे श
िकया गया है या उसके काउं सेल को दे ता है वहां उ च यायालय उसकी प्राि की तारीख
से या ऐसे आवेदन की प्रितिलिप इस प्रकार िदए जाने की तारीख से दो स ाह की अविध
के भीतर, इनम से जो भी प ा वतीर् हो, या जहां उ च यायालय उस अविध के अंितम
िदन बंद है वहां उसके ठीक बाद वाले िदन की समाि से पहले िजस िदन उ च यायालय
खुला है , आवेदन को िनपटाएगा और यिद आवेदन इस प्रकार नहीं िनपटाया जाता है तो
अंतिरम आदे श, यथाि थित, उक्त अविध की या उक्त ठीक बाद वाले िदन की समाि पर
र हो जाएगा ।]
1
[(4) इस अनु छे द द्वारा उ च यायालय को प्रद शिक्त से, अनु छे द 32 के खंड
(2) द्वारा उ चतम यायालय को प्रद शिक्त का अ पीकरण नहीं होगा ।]
2
[226क. अनु छे द 226 के अधीन कायर्वािहय म के द्रीय िविधय की
सांिवधािनक वैधता पर िवचार न िकया जाना ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1977 की धारा 8 द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
227. सभी यायालय के अधीक्षण की उ च यायालय की शिक्त–3[(1) प्र येक
उ च यायालय उन रा यक्षेत्र म सवर्त्र, िजनके संबंध म वह अपनी अिधकािरता का
प्रयोग करता है , सभी यायालय और अिधकरण का अधीक्षण करे गा ।]
(2) पूवगर् ामी उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, उ च
यायालय–
(क) ऐसे यायालय से िववरणी मंगा सकेगा ;
(ख) ऐसे यायालय की पद्धित और कायर्वािहय के िविनयमन के िलए
साधारण िनयम और प्र प बना सकेगा, और िनकाल सकेगा तथा िविहत कर
सकेगा ; और
(ग) िक हीं ऐसे यायालय के अिधकािरय द्वारा रखी जाने वाली पु तक ,
प्रिवि य और लेखाओं के प्र प िविहत कर सकेगा ।
(3) उ च यायालय उन फीस की सारिणयां भी ि थर कर सकेगा जो ऐसे
यायालय के शैिरफ को तथा सभी िलिपक और अिधकािरय को तथा उनम िविध-
यावसाय करने वाले अटिनर्य , अिधवक्ताओं और लीडर को अनुज्ञेय ह गी :

1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और त प ात ् संिवधान
(चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) प्रित थािपत होकर उपरोक्त खंड (1)
प म आया ।
भारत का संिवधान 106

परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई िनयम, िविहत िकए गए
कोई प्र प या ि थर की गई कोई सारणी त समय प्रव ृ िकसी िविध के उपबंध से
असंगत नहीं होगी और इनके िलए रा यपाल के पव ू र् अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी ।
(4) इस अनु छे द की कोई बात उ च यायालय को सश बल से संबंिधत
िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन गिठत िकसी यायालय या अिधकरण पर अधीक्षण की
शिक्तयां दे ने वाली नहीं समझी जाएगी ।
1
(5)* * * *
228. कुछ मामल का उ च यायालय को अंतरण–यिद उ च यायालय का यह
समाधान हो जाता है िक उसके अधीन थ िकसी यायालय म लंिबत िकसी मामले म
इस संिवधान के िनवर्चन के बारे म िविध का कोई सारवान ् प्र अंतवर्िलत है िजसका
अवधारण मामले के िनपटारे के िलए आव यक है 2[तो वह 3***उस मामले को अपने पास
मंगा लेगा और–]
(क) मामले को वयं िनपटा सकेगा, या
(ख) उक्त िविध के प्र का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे
प्र पर िनणर्य की प्रितिलिप सिहत उस यायालय को, िजससे मामला इस प्रकार
मंगा िलया गया है , लौटा सकेगा और उक्त यायालय उसके प्रा होने पर उस
मामले को ऐसे िनणर्य के अनु प िनपटाने के िलए आगे कायर्वाही करे गा ।
4
[228क. रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के िनपटारे के
बारे म िवशेष उपबंध ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 10
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
229. उ च यायालय के अिधकारी और सेवक तथा यय–(1) िकसी उ च
यायालय के अिधकािरय और सेवक की िनयिु क्तयां उस यायालय का मख्
ु य यायमिू तर्
करे गा या उस यायालय का ऐसा अ य यायाधीश या अिधकारी करे गा िजसे वह िनिद
करे :

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतः थािपत िकया
गया और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) “तो वह उस मामले को अपने
पास मंगा लेगा तथा --” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनु छे द 131क के उपबंध
के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 107

परं तु उस रा य का रा यपाल 1*** िनयम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा िक ऐसी


िक हीं दशाओं म जो िनयम म िविनिदर् की जाएं, िकसी ऐसे यिक्त को, जो पहले से ही
यायालय से संलग्न नहीं है , यायालय से संबंिधत िकसी पद पर रा य लोक सेवा
आयोग से परामशर् करके ही िनयुक्त िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
(2) रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अधीन रहते हुए,
उ च यायालय के अिधकािरय और सेवक की सेवा की शत ऐसी ह गी जो उस
यायालय के मुख्य यायमूितर् या उस यायालय के ऐसे अ य यायाधीश या अिधकारी
द्वारा, िजसे मुख्य यायमूितर् ने इस प्रयोजन के िलए िनयम बनाने के िलए प्रािधकृत
िकया है , बनाए गए िनयम द्वारा िविहत की जाएं :
परं तु इस खंड के अधीन बनाए गए िनयम के िलए, जहां तक वे वेतन , भ ,
छुट्टी या पशन से संबंिधत ह, उस रा य के रा यपाल के 1*** अनुमोदन की अपेक्षा होगी

(3) उ च यायालय के प्रशासिनक यय, िजनके अंतगर्त उस यायालय के
अिधकािरय और सेवक को या उनके संबंध म संदेय सभी वेतन, भ े और पशन ह,
रा य की संिचत िनिध पर भािरत ह गे और उस यायालय द्वारा ली गई फीस और अ य
धनरािशयां उस िनिध का भाग ह गी ।
[230. उ च यायालय की अिधकािरता का संघ रा यक्षेत्र पर िव तार–(1) संस ,
2

िविध द्वारा, िकसी संघ रा यक्षेत्र पर िकसी उ च यायालय की अिधकािरता का िव तार


कर सकेगी या िकसी संघ रा यक्षेत्र से िकसी उ च यायालय की अिधकािरता का
अपवजर्न कर सकेगी ।
(2) जहां िकसी रा य का उ च यायालय िकसी संघ रा यक्षेत्र के संबंध म
अिधकािरता का प्रयोग करता है , वहां–
(क) इस संिवधान की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह
उस रा य के िवधान-मंडल को उस अिधकािरता म विृ द्ध, उसका िनबर्ंधन या
उ सादन करने के िलए सशक्त करती है ; और
(ख) उस रा यक्षेत्र म अधीन थ यायालय के िलए िक हीं िनयम , प्र प
या सारिणय के संबंध म, अनु छे द 227 म रा यपाल के प्रित िनदश का, यह
अथर् लगाया जाएगा िक वह रा पित के प्रित िनदश है ।
231. दो या अिधक रा य के िलए एक ही उ च यायालय की थापना–(1) इस
अ याय के पूववर् तीर् उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस , िविध द्वारा, दो या
अिधक रा य के िलए अथवा दो या अिधक रा य और िकसी संघ रा यक्षेत्र के िलए
एक ही उ च यायालय थािपत कर सकेगी ।
(2) िकसी ऐसे उ च यायालय के संबंध म,–

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच


ू ी द्वारा “िजसम उ च यायालय का मुख्य
थान है ,” श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 16 द्वारा (1-11-1956 से) अनु छे द 230, 231 और 232
के थान पर अनु छे द 230 और 231 प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 108

1
(क) * * * *

(ख) अधीन थ यायालय के िलए िक हीं िनयम , प्र प या सारिणय के


संबंध म, अनु छे द 227 म रा यपाल के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा
िक वह उस रा य के रा यपाल के प्रित िनदश ह िजसम वे अधीन थ यायालय
ि थत ह ; और

(ग) अनु छे द 219 और अनु छे द 229 म रा य के प्रित िनदश का यह


अथर् लगाया जाएगा िक वे उस रा य के प्रित िनदश ह, िजसम उस उ च
यायालय का मुख्य थान है :

परं तु यिद ऐसा मुख्य थान िकसी संघ रा यक्षेत्र म है तो अनु छे द 219 और
अनु छे द 229 म रा य के रा यपाल, लोक सेवा आयोग, िवधान-मंडल और संिचत िनिध
के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे क्रमश: रा पित, संघ लोक सेवा
आयोग, संस और भारत की संिचत िनिध के प्रित िनदश ह ।]

232. िनवर्चन – [संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 6 द्वारा


(1-11-1956 से) अनु छे द 230, 231 और 232 के थान पर अनु छे द 230, और 231
को प्रित थािपत िकया गया] ।

अ याय 6–अधीन थ यायालय

233. िजला यायाधीश की िनयुिक्त–(1) िकसी रा य म िजला यायाधीश िनयुक्त


होने वाले यिक्तय की िनयुिक्त तथा िजला यायाधीश की पद थापना और प्रो नित उस
रा य का रा यपाल ऐसे रा य के संबंध म अिधकािरता का प्रयोग करने वाले उ च
यायालय से परामशर् करके करे गा ।

(2) वह यिक्त, जो संघ की या रा य की सेवा म पहले से ही नहीं है , िजला


यायाधीश िनयुक्त होने के िलए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वषर्
तक अिधवक्ता या लीडर रहा है और उसकी िनयुिक्त के िलए उ च यायालय ने िसफािरश
की है ।

1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप िकया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
संशोधन के पूवर् खंड (क) िन नानुसार था :--
“(क) अनु छे द 217 म उस रा य के रा यपाल के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उन सभी
रा य के रा यपाल के प्रित िनदश है िजनके संबंध म वह उ च यायालय अिधकािरता का प्रयोग करता है ;”
भारत का संिवधान 109

1
[233क. कुछ िजला यायाधीश की िनयुिक्तय का और उनके द्वारा िकए गए
िनणर्य आिद का िविधमा यकरण–िकसी यायालय का कोई िनणर्य, िडक्री या आदे श होते
हुए भी, –
(क) (i) उस यिक्त की जो रा य की याियक सेवा म पहले से ही है या
उस यिक्त की, जो कम से कम सात वषर् तक अिधवक्ता या लीडर रहा है , उस
रा य म िजला यायाधीश के प म िनयुिक्त की बाबत, और
(ii) ऐसे यिक्त की िजला यायाधीश के प म पद थापना, प्रो नित या
अंतरण की बाबत,
जो संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले िकसी समय
अनु छे द 233 या अनु छे द 235 के उपबंध के अनुसार न करके अ यथा िकया
गया है , केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना, प्रो नित या
अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा जाएगा िक
वह अवैध या शू य है या कभी भी अवैध या शू य रहा था ;
(ख) िकसी रा य म िजला यायाधीश के प म अनु छे द 233 या
अनु छे द 235 के उपबंध के अनस ु ार न करके अ यथा िनयक्त ु , पद थािपत,
प्रो नत या अंतिरत िकसी यिक्त द्वारा या उसके समक्ष संिवधान (बीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयुक्त अिधकािरता की, पािरत िकए गए या
िदए गए िनणर्य, िडक्री, दं डादे श या आदे श की और िकए गए अ य कायर् या
कायर्वाही की बाबत, केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना,
प्रो नित या अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा
जाएगा िक वह अवैध या अिविधमा य है या कभी भी अवैध या अिविधमा य रहा
था ।]
234. याियक सेवा म िजला यायाधीश से िभ न यिक्तय की भतीर्–िजला
यायाधीश से िभ न यिक्तय की िकसी रा य की याियक सेवा म िनयुिक्त उस रा य
के रा यपाल द्वारा, रा य लोक सेवा आयोग से और ऐसे रा य के संबंध म अिधकािरता
का प्रयोग करने वाले उ च यायालय से परामशर् करने के प ात ्, और रा यपाल द्वारा
इस िनिम बनाए गए िनयम के अनुसार की जाएगी ।
235. अधीन थ यायालय पर िनयंत्रण–िजला यायालय और उनके अधीन थ
यायालय का िनयंत्रण, िजसके अंतगर्त रा य की याियक सेवा के यिक्तय और िजला
यायाधीश के पद से अवर िकसी पद को धारण करने वाले यिक्तय की पद थापना,
प्रो नित और उनको छुट्टी दे ना है , उ च यायालय म िनिहत होगा, िकं तु इस अनु छे द
की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह ऐसे िकसी यिक्त से उसके
अपील के अिधकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शत का िविनयमन करने वाली
िविध के अधीन उसे है या उ च यायालय को इस बात के िलए प्रािधकृत करती है िक
वह उससे ऐसी िविध के अधीन िविहत उसकी सेवा की शत के अनस ु ार यवहार न करके
अ यथा यवहार करे ।

1. संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 110

236. िनवर्चन–इस अ याय म, –


(क) “िजला यायाधीश” पद के अंतगर्त नगर िसिवल यायालय का
यायाधीश, अपर िजला यायाधीश, संयुक्त िजला यायाधीश, सहायक िजला
यायाधीश, लघुवाद यायालय का मुख्य यायाधीश, मुख्य प्रेिसडसी मिज ट्रे ट,
अपर मुख्य प्रेिसडसी मिज ट्रे ट, सेशन यायाधीश, अपर सेशन यायाधीश और
सहायक सेशन यायाधीश ह ;
(ख) “ याियक सेवा” पद से ऐसी सेवा अिभप्रेत है जो अन यतः ऐसे
यिक्तय से िमलकर बनी है , िजनके द्वारा िजला यायाधीश के पद का और िजला
यायाधीश के पद से अवर अ य िसिवल याियक पद का भरा जाना आशियत है

237. कुछ वगर् या वग के मिज ट्रे ट पर इस अ याय के उपबंध का लागू होना–
रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, िनदे श दे सकेगा िक इस अ याय के पूवग र् ामी उपबंध
और उनके अधीन बनाए गए िनयम ऐसी तारीख से, जो वह इस िनिम िनयत करे , ऐसे
अपवाद और उपांतरण के अधीन रहते हुए, जो ऐसी अिधसूचना म िविनिदर् िकए जाएं,
रा य म िकसी वगर् या वग के मिज ट्रे ट के संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे रा य
की याियक सेवा म िनयुक्त यिक्तय के संबंध म लागू होते ह ।
भाग 7

[पहली अनुसूची के भाग ख के रा य ।]— संिवधान (सातवां संशोधन)


अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) िनरिसत ।

238. [पहली अनुसूची के भाग ख के रा य ।] — संिवधान (सातवां


संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से)
िनरिसत ।

111
भाग 8
1
[संघ राज्य�ेत्र]
2
[239. संघ राज्य�ेत्र� का प्रशासन–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा यथा
अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक संघ राज्य�ेत्र का प्रशासन रा�प�त द्वारा �कया
जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदा�भधान स�हत, जो वह �व�न�दर्� करे , �नय�
ु �कए
गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कायर् करे गा िजतनी वह ठ�क समझता है ।

(2) भाग 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त �कसी राज्य के राज्यपाल को
�कसी �नकटवत� संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक �नय�
ु कर सकेगा और जहां कोई राज्यपाल
इस प्रकार �नय�
ु �कया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के रूप म� अपने कृत्य� का प्रयोग
अपनी मं�त्र-प�रषद् से स्वतंत्र रूप से करे गा ।
3
[239क. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए स्थानीय �वधान-मंडल� या मं�त्र-प�रषद� का
या दोन� का सज
ृ न–(1) संसद्, �व�ध द्वारा [ [पड
4 5
ु ु चेर�,]] संघ राज्य�ेत्र के �लए,] –

(क) उस संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के रूप म� कायर् करने के �लए


�नवार्�चत या भागतः नाम�नद� �शत और भागतः �नवार्�चत �नकाय का, या

(ख) मं�त्र-प�रषद् का,

या दोन� का सज
ृ न कर सकेगी, िजनम� से प्रत्येक का गठन, श��यां और कृत्य वे ह�गे
जो उस �व�ध म� �व�न�दर्� �कए जाएं ।

(2) खंड (1) म� �न�दर्� �व�ध को, अनच्


ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस
सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा
उपबंध अंत�वर्� है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग ग म� के राज्य” शीषर्क
के स्थान पर (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा अनुच्छे द 239 और अनुच्छे द 240 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “गोवा,
दमण और द�व, और पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र� म� से �कसी के �लए” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
112
भारत का सं�वधान 113

रखता है ।]

[239कक. �दल्ल� के संबध


1
ं म� �वशेष उपबंध–(1) सं�वधान (उनह�रवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1991 के प्रारं भ से �दल्ल� संघ राज्य�ेत्र को �दल्ल� रा�ीय राजधानी
राज्य�ेत्र (िजसे इस भाग म� इसके प�ात ् रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र कहा गया है) कहा
जाएगा और अनच्
ु छे द 239 के अधीन �नय�
ु उसके प्रशासक का पदा�भधान उप-राज्यपाल
होगा ।

(2)(क) रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र के �लए एक �वधान सभा होगी और ऐसी


�वधान सभा म� स्थान रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� से प्रत्य�
�नवार्चन द्वारा चन
ु े हुए सदस्य� से भरे जाएंगे ।

(ख) �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या, अनस


ु ू�चत जा�तय� के �लए आर��त
स्थान� क� संख्या, रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन
(िजसके अंतगर्त ऐसे �वभाजन का आधार है) तथा �वधान सभा के कायर्करण से संब�ं धत
सभी अन्य �वषय� का �व�नयमन, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �कया जाएगा ।

(ग) अनच्
ु छे द 324 से अनच्
ु छे द 327 और अनच्
ु छे द 329 के उपबंध रा�ीय
राजधानी राज्य�ेत्र, रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र क� �वधान सभा और उसके सदस्य� के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे, �कसी राज्य, �कसी राज्य क� �वधान सभा और उसके
सदस्य� के संबध
ं म� लागू होते ह� तथा अनच्
ु छे द 326 और अनच्
ु छे द 329 म� “समु�चत
�वधान-मंडल” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह संसद् के प्र�त �नद� श
है ।

(3)(क) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �वधान सभा को राज्य सच ू ी


क� प्र�व�� 1, प्र�व�� 2 और प्र�व�� 18 से तथा उस सूची क� प्र�व�� 64, प्र�व�� 65
और प्र�व�� 66 से, जहां तक उनका संबध
ं उ� प्र�व�� 1, प्र�व�� 2 और प्र�व�� 18 से
है, संब�ं धत �वषय� से �भन्न राज्य सच
ू ी म� या समवत� सूची म� प्रग�णत �कसी भी �वषय
के संबध
ं म� , जहां तक ऐसा कोई �वषय संघ राज्य�ेत्र� को लागू है, संपण
ू र् रा�ीय
राजधानी राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाने क� श�� होगी ।

(ख) उपखंड (क) क� �कसी बात से संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए
�कसी भी �वषय के संबध
ं म� इस सं�वधान के अधीन �व�ध बनाने क� संसद् क� श�� का

1. सं�वधान (उनहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 114

अल्पीकरण नह�ं होगा ।

(ग) य�द �वधान सभा द्वारा �कसी �वषय के संबध


ं म� बनाई गई �व�ध का कोई
उपबंध संसद् द्वारा उस �वषय के संबध
ं म� बनाई गई �व�ध के, चाहे वह �वधान सभा द्वारा
बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो, या �कसी पव
ू त
र् र �व�ध के,
जो �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध से �भन्न है, �कसी उपबंध के �वरुद्ध है तो, दोन�
दशाओं म� , यथािस्थ�त, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, या ऐसी पव
ू त
र् र �व�ध अ�भभावी
होगी और �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क� मात्रा तक शन्
ू य होगी :
परं तु य�द �वधान सभा द्वारा बनाई गई �कसी ऐसी �व�ध को रा�प�त के �वचार के
�लए आर��त रखा गया है और उस पर उसक� अनम
ु �त �मल गई है तो ऐसी �व�ध
रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र म� अ�भभावी होगी :
परं तु यह और �क इस उपखंड क� कोई बात संसद् को उसी �वषय के संबध
ं म� कोई
�व�ध, िजसके अंतगर्त ऐसी �व�ध है जो �वधान सभा द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध का
प�रवधर्न, संशोधन, प�रवतर्न या �नरसन करती है, �कसी भी समय अ�ध�नय�मत करने से
�नवा�रत नह�ं करे गी ।
(4) िजन बात� म� �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन उप-राज्यपाल से यह अपे��त
है �क वह अपने �ववेकानस
ु ार कायर् करे उन बात� को छोड़कर, उप-राज्यपाल क�, उन
�वषय� के संबध
ं म� , िजनक� बाबत �वधान सभा को �व�ध बनाने क� श�� है, अपने कृत्य�
का प्रयोग करने म� सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी जो �वधान
सभा क� कुल सदस्य संख्या के दस प्र�तशत से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी,
िजसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा :
परं तु उप-राज्यपाल और उसके मं�त्रय� के बीच �कसी �वषय पर मतभेद क� दशा
म� , उप-राज्यपाल उसे रा�प�त को �व�न�य के �लए �नद� �शत करे गा और रा�प�त द्वारा
उस पर �कए गए �व�न�य के अनस
ु ार कायर् करे गा तथा ऐसा �व�न�य होने तक उप-
राज्यपाल �कसी ऐसे मामले म� , जहां वह �वषय, उसक� राय म� , इतना आवश्यक है
िजसके कारण तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक है वहां, उस �वषय म� ऐसी
कारर्वाई करने या ऐसा �नदे श दे ने के �लए, जो वह आवश्यक समझे, स�म होगा ।
(5) मुख्यमंत्री क� �नय�ु � रा�प�त करे गा और अन्य मं�त्रय� क� �नय�ु � रा�प�त,
मुख्यमंत्री क� सलाह पर करे गा तथा मंत्री, रा�प�त के प्रसादपयर्न्त अपने पद धारण कर� गे

भारत का सं�वधान 115

(6) मं�त्र-प�रषद् �वधान सभा के प्र�त साम�ू हक रूप से उ�रदायी होगी ।


1
[(7)(क)] संसद्, पव
ू ग
र् ामी खंड� को प्रभावी करने के �लए, या उनम� अंत�वर्�
उपबंध� क� अनप
ु �ू तर् के �लए और उनके आनष
ु �ं गक या पा�रणा�मक सभी �वषय� के �लए,
�व�ध द्वारा, उपबंध कर सकेगी ।
2
[(ख) उपखंड (क) म� �न�दर्� �व�ध को, अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस
सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा
उपबंध अंत�वर्� है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव
रखता है ।]
(8) अनच्
ु छे द 239ख के उपबंध, जहां तक हो सके, रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र,
उप-राज्यपाल और �वधान सभा के संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे 3
[पड
ु ु चेर�] संघ
राज्य�ेत्र, प्रशासक और उसके �वधान-मंडल के संबध
ं म� लागू होते ह� ; और उस
अनच्
ु छे द म� “अनच्
ु छे द 239क के खंड (1)” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा
�क वह, यथािस्थ�त, इस अनच्
ु छे द या अनच्
ु छे द 239कख के प्र�त �नद� श है ।
239कख. सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध–य�द रा�प�त
का, उप-राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है �क,–
(क) ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र का
प्रशासन अनच्
ु छे द 239कक या उस अनच्
ु छे द के अनस
ु रण म� बनाई गई �कसी
�व�ध के उपबंध� के अनस
ु ार नह�ं चलाया जा सकता है ; या
(ख) रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र के उ�चत प्रशासन के �लए ऐसा करना
आवश्यक या समीचीन है,
तो रा�प�त, आदे श द्वारा, अनच्
ु छे द 239कक के �कसी उपबंध के अथवा उस अनच्
ु छे द के
अनस
ु रण म� बनाई गई �कसी �व�ध के सभी या �कन्ह�ं उपबंध� के प्रवतर्न को, ऐसी
अव�ध के �लए और ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्� क� जाएं,
�नलं�बत कर सकेगा, तथा ऐसे आनषु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध कर सकेगा जो

1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) “(7)” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 116

अनच्
ु छे द 239 और अनच्
ु छे द 239कक के उपबंध� के अनस
ु ार रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र
के प्रशासन के �लए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत ह� ।]
1
[239ख. �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क�
प्रशासक क� श��–(1) उस समय को छोड़कर जब [ [पुडुचेर�] संघ राज्य�ेत्र] का
2 3

�वधान-मंडल सत्र म� है , य�द �कसी समय उसके प्रशासक का यह समाधान हो जाता है


�क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण तुरन्त कारर् वाई करना उसके �लए
आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत कर सकेगा जो उसे उन
प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� :

परं तु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादे श रा�प�त से इस �न�म� अनद


ु े श अ�भप्रा� करने
के प�ात ् ह� प्रख्या�पत करे गा, अन्यथा नह�ं :

परं तु यह और �क जब कभी उ� �वधान-मंडल का �वघटन कर �दया जाता है या


अनच्
ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्� �व�ध के अधीन क� गई �कसी कारर्वाई के कारण
उसका कायर्करण �नलं�बत रहता है तब प्रशासक ऐसे �वघटन या �नलंबन क� अव�ध के
दौरान कोई अध्यादे श प्रख्या�पत नह�ं करे गा ।

(2) रा�प�त के अनद


ु े श� के अनस
ु रण म� इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्या�पत
अध्यादे श संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल का ऐसा अ�ध�नयम समझा जाएगा जो अनच्
ु छे द
239क के खंड (1) म� �न�दर्� �व�ध म� , उस �न�म� अंत�वर्� उपबंध� का अनप
ु ालन करने
के प�ात ् सम्यक् रूप से अ�ध�नय�मत �कया गया है, �कं तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श—

(क) संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा और �वधान-


मंडल के पन
ु ः समवेत होने से छह स�ाह क� समा�� पर या य�द उस अव�ध क�
समा�� से पहले �वधान-मंडल उसके अननम
ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ता है तो
संकल्प के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा ; और

(ख) रा�प�त से इस �न�म� अनद


ु े श अ�भप्रा� करने के प�ात ् प्रशासक
द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा ।

1. सं�वधान (सताईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्था�पत ।
2. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अनुच्छे द
239क के खंड (1) म� �न�दर् � संघ राज्य�ेत्र�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 117

(3) य�द और जहां तक इस अनच्


ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता
है जो संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम म� , िजसे अनच्
ु छे द 239क के खंड
(1) म� �न�दर्� �व�ध म� इस �न�म� अंत�वर्� उपबंध� का अनप
ु ालन करने के प�ात ् बनाया
गया है, अ�ध�नय�मत �कए जाने पर �व�धमान्य नह�ं होता तो और वहां तक वह अध्यादे श
शून्य होगा ।]

(4)*
1
* * *

240. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए �व�नयम बनाने क� रा�प�त क� श��–(1)


रा�प�त–

(क) अंदमान और �नकोबार द्वीप ;


2
[(ख) ल�द्वीप ;]
3
[(ग) दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व;]
4
[(घ) ***;]
5
[(ङ) 6[पड
ु ु चेर�] ;]

18 (च)* *
7
* *

1. खंड (4) सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (भूतल�ी रूप से) अंतःस्था�पत �कया
गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया
गया ।
2. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 4 द्वारा
(1-11-1973 से) प्र�व�� (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 3 द्वारा
(11-08-1961 से) प्र�व�� (ग) अंतःस्था�पत क� गई थी ।
4. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� (घ) का लोप �कया गया । मूल प्र�व�� (घ) सं�वधान (बारहवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (20-12-1961 से) अंतःस्था�पत क� गई थी ।
5. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत ।
6. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
7. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�व��
(च) का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 118

19 (छ)* *
1
* *

संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सुशासन के �लए �व�नयम बना सकेगा :


2
[परं तु जब 3
[पड
ु ु चेर�] [संघ राज्य�ेत्र] के �लए �वधान-मंडल के रूप म� कायर्
5

करने के �लए अनच्


ु छे द 239क के अधीन �कसी �नकाय का सज
ृ न �कया जाता है तब
रा�प�त �वधान-मंडल के प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से उस संघ राज्य�ेत्र
ु ासन के �लए �व�नयम नह�ं बनाएगा :]
क� शां�त, प्रग�त और सश
4
[परं तु यह और �क जब कभी 5[पड
ु ु चेर�]] संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के रूप
म� कायर् करने वाले �नकाय का �वघटन कर �दया जाता है या उस �नकाय का ऐसे
�वधान-मंडल के रूप म� कायर्करण, अनच्
ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्� �व�ध के
अधीन क� गई कारर्वाई के कारण �नलं�बत रहता है तब रा�प�त ऐसे �वघटन या �नलंबन
क� अव�ध के दौरान उस संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सश
ु ासन के �लए �व�नयम
बना सकेगा ।]
(2) इस प्रकार बनाया गया कोई �व�नयम संसद् द्वारा बनाए गए �कसी अ�ध�नयम
या 6
[�कसी अन्य �व�ध] का, जो उस संघ राज्य�ेत्र को तत्समय लागू है, �नरसन या
संशोधन कर सकेगा और रा�प�त द्वारा प्रख्या�पत �कए जाने पर उसका वह� बल और
प्रभाव होगा जो संसद् के �कसी ऐसे अ�ध�नयम का है जो उस राज्य�ेत्र को लागू होता है
।]
241. संघ राज्य�ेत्र� के �लए उच्च न्यायालय–(1) संसद् �व�ध द्वारा, �कसी 7[संघ

1. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदे श
संबंधी प्र�व�� (छ) का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “गोवा, दमण और द�व या
पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “�कसी �वद्यमान �व�ध” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग ग म� �व�न�दर् � राज्य” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 119

राज्य�ेत्र] के �लए उच्च न्यायालय ग�ठत कर सकेगी या 1


[ऐसे राज्य�ेत्र] म� �कसी
न्यायालय को इस सं�वधान के सभी या �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए उच्च न्यायालय घो�षत
कर सकेगी ।
(2) भाग 6 के अध्याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरण� या अपवाद� के अधीन रहते
हुए, जो संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , खंड (1) म� �न�दर्� प्रत्येक उच्च न्यायालय के
संबधं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे अनच्ु छे द 214 म� �न�दर्� �कसी उच्च न्यायालय के
संबध
ं म� लागू होते ह� ।
2
[(3) इस सं�वधान के उपबंध� के और इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन
समु�चत �वधान-मंडल को प्रद� श��य� के आधार पर बनाई गई उस �वधान-मंडल क�
�कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो सं�वधान (सातवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म�
अ�धका�रता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारं भ के प�ात ् उस राज्य�ेत्र के संबध
ं म� उस
अ�धका�रता का प्रयोग करता रहे गा ।
(4) इस अनच्
ु छे द क� �कसी बात से �कसी राज्य के उच्च न्यायालय क�
अ�धका�रता का �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके भाग पर �वस्तार करने या उससे अपवजर्न
करने क� संसद् क� श�� का अल्पीकरण नह�ं होगा ।]
242. [कोडगू ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस
ु च
ू ी द्वारा �नर�सत ।

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसा राज्य” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (3) और खंड
(4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
1
[भाग 9
पंचायत
243. पिरभाषाएं–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,–
(क) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ख) “ग्राम सभा” से ग्राम तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समािव
िकसी ग्राम से संबिं धत िनवार्चक नामावली म रिज ट्रीकृत यिक्तय से िमलकर
बना िनकाय अिभप्रेत है ;
(ग) “म यवतीर् तर” से ग्राम और िजला तर के बीच का ऐसा तर
अिभप्रेत है िजसे िकसी रा य का रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसूचना द्वारा, म यवतीर् तर के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “पंचायत” से ग्रामीण क्षेत्र के िलए अनु छे द 243ख के अधीन गिठत
वाय शासन की कोई सं था (चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो) अिभप्रेत है ;
(ङ) “पंचायत क्षेत्र” से पंचायत का प्रादे िशक क्षेत्र अिभप्रेत है ;
(च) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पव ू व
र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसग
ं त आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ;
(छ) “ग्राम” से रा यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसच ू ना द्वारा, ग्राम के प म िविनिदर् ग्राम अिभप्रेत है और इसके अंतगर्त
इस प्रकार िविनिदर् ग्राम का समूह भी है ।
243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम तर पर ऐसी शिक्तय का प्रयोग और ऐसे
कृ य का पालन कर सकेगी, जो िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत
िकए जाएं ।
243ख. पंचायत का गठन–(1) प्र येक रा य म ग्राम, म यवतीर् और िजला तर
पर इस भाग के उपबंध के अनस
ु ार पंचायत का गठन िकया जाएगा ।
(2) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, म यवतीर् तर पर पंचायत का उस
रा य म गठन नहीं िकया जा सकेगा िजसकी जनसंख्या बीस लाख से अनिधक है ।
243ग. पंचायत की संरचना–(1) इस भाग के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी
रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, पंचायत की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा :

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119
भारत का संिवधान 120

परं तु िकसी भी तर पर पंचायत के प्रादे िशक क्षेत्र की जनसंख्या का ऐसी पंचायत


म िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की संख्या से अनप ु ात सम त रा य म यथासा य
एक ही हो ।
(2) िकसी पंचायत के सभी थान, पंचायत क्षेत्र म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र से
प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा चुने हुए यिक्तय से भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के िलए, प्र येक
पंचायत क्षेत्र को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म ऐसी रीित से िवभािजत िकया जाएगा िक
प्र येक िनवार्चन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंिटत थान की संख्या से अनुपात
सम त पंचायत क्षेत्र म यथासा य एक ही हो ।
(3) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,–
(क) ग्राम तर पर पंचायत के अ यक्ष का म यवतीर् तर पर पंचायत
म या ऐसे रा य की दशा म, जहां म यवतीर् तर पर पंचायत नहीं ह, िजला
तर पर पंचायत म ;
(ख) म यवतीर् तर पर पंचायत के अ यक्ष का िजला तर पर पंचायत
म ;
(ग) लोक सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान सभा के ऐसे
सद य का, जो उन िनवार्चन-क्षेत्र का प्रितिनिध व करते ह िजनम ग्राम तर से
िभ न तर पर कोई पंचायत क्षेत्र पूणतर् ः या भागतः समािव है , ऐसी पंचायत म
;
(घ) रा य सभा के सद य का और रा य की िवधान पिरष के सद य
का, जहां वे,–
(i) म यवतीर् तर पर िकसी पंचायत क्षेत्र के भीतर िनवार्चक के
प म रिज ट्रीकृत है , म यवतीर् तर पर पंचायत म ;
(ii) िजला तर पर िकसी पंचायत क्षेत्र के भीतर िनवार्चक के प
म रिज ट्रीकृत ह, िजला तर पर पंचायत म,
प्रितिनिध व करने के िलए उपबंध कर सकेगा ।
(4) िकसी पंचायत के अ यक्ष और िकसी पंचायत के ऐसे अ य सद य को, चाहे
वे पंचायत क्षेत्र म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र से प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा चुने गए ह या नहीं,
पंचायत के अिधवेशन म मत दे ने का अिधकार होगा ।
(5)(क) ग्राम तर पर िकसी पंचायत के अ यक्ष का िनवार्चन ऐसी रीित से, जो
रा य के िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत की जाए, िकया जाएगा ; और
(ख) म यवतीर् तर या िजला तर पर िकसी पंचायत के अ यक्ष का िनवार्चन,
उसके िनवार्िचत सद य द्वारा अपने म से िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 121

243घ. थान का आरक्षण – (1) प्र येक पंचायत म–


(क) अनुसूिचत जाितय ; और
(ख) अनुसूिचत जनजाितय ,
के िलए थान आरिक्षत रहगे और इस प्रकार आरिक्षत थान की संख्या का अनुपात,
उस पंचायत म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की कुल संख्या से यथाशक्य
वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र म अनुसूिचत जाितय की अथवा उस पंचायत क्षेत्र म
अनुसूिचत जनजाितय की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और
ऐसे थान िकसी पंचायत म िभ न-िभ न िनवार्चन क्षेत्र को चक्रानक्र
ु म से आबंिटत िकए
जा सकगे ।
(2) खंड (1) के अधीन आरिक्षत थान की कुल संख्या के कम से कम एक-ितहाई
थान, यथाि थित, अनस ु ूिचत जाितय या अनुसूिचत जनजाितय की ि य के िलए
आरिक्षत रहगे ।
(3) प्र येक पंचायत म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की कुल संख्या
के कम से कम एक-ितहाई थान (िजनके अंतगर्त अनुसूिचत जाितय और अनुसूिचत
जनजाितय की ि य के िलए आरिक्षत थान की संख्या भी है ) ि य के िलए आरिक्षत
रहगे और ऐसे थान िकसी पंचायत म िभ न-िभ न िनवार्चन-क्षेत्र को चक्रानुक्रम से
आबंिटत िकए जा सकगे ।
(4) ग्राम या िकसी अ य तर पर पंचायत म अ यक्ष के पद अनुसूिचत
जाितय , अनुसूिचत जनजाितय और ि य के िलए ऐसी रीित से आरिक्षत रहगे, जो
रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उपबंिधत करे :
परं तु िकसी रा य म प्र येक तर पर पंचायत म अनुसूिचत जाितय और
अनसु ूिचत जनजाितय के िलए आरिक्षत अ यक्ष के पद की संख्या का अनुपात, प्र येक
तर पर उन पंचायत म ऐसे पद की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा, जो उस रा य
म अनस ु िू चत जाितय की अथवा उस रा य म अनुसूिचत जनजाितय की जनसंख्या का
अनुपात उस रा य की कुल जनसंख्या से है :
परं तु यह और िक प्र येक तर पर पंचायत म अ यक्ष के पद की कुल संख्या
के कम से कम एक-ितहाई पद ि य के िलए आरिक्षत रहगे :
परं तु यह भी िक इस खंड के अधीन आरिक्षत पद की संख्या प्र येक तर पर
िभ न-िभ न पंचायत को चक्रानक्र
ु म से आबंिटत की जाएगी ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन थान का आरक्षण और खंड (4) के अधीन
अ यक्ष के पद का आरक्षण (जो ि य के िलए आरक्षण से िभ न है ) अनु छे द 334 म
िविनिदर् अविध की समाि पर प्रभावी नहीं रहे गा ।
(6) इस भाग की कोई बात िकसी रा य के िवधान-मंडल को िपछड़े हुए नागिरक
के िकसी वगर् के पक्ष म िकसी तर पर िकसी पंचायत म थान के या पंचायत म
अ यक्ष के पद के आरक्षण के िलए कोई उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
भारत का संिवधान 122

243ङ. पंचायत की अविध, आिद–(1) प्र येक पंचायत, यिद त समय प्रव ृ िकसी
िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अिधवेशन के
िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी पंचायत
का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पवू र् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं होगा जब तक
खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी पंचायत का गठन करने के िलए िनवार्चन,–
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पव
ू र् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पूव,र्
परू ा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत पंचायत बनी रहती, छह
मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस पंचायत का गठन करने के िलए इस खंड
के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी पंचायत की अविध की समाि के पव ू र् उस पंचायत के िवघटन पर
गिठत की गई कोई पंचायत, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए बनी रहे गी िजसके
िलए िवघिटत पंचायत खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह इस प्रकार िवघिटत नहीं की
जाती ।
243च. सद यता के िलए िनरहर्ताएं–(1) कोई यिक्त िकसी पंचायत का सद य
चुने जाने के िलए और सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा, –
(क) यिद वह संबंिधत रा य के िवधान-मंडल के िनवार्चन के प्रयोजन के
िलए त समय प्रव ृ िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर
िदया जाता है :
परं तु कोई यिक्त इस आधार पर िनरिहर्त नहीं होगा िक उसकी आयु
प चीस वषर् से कम है , यिद उसने इक्कीस वषर् की आयु प्रा कर ली है ;
(ख) यिद वह रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या
उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
(2) यिद यह प्र उठता है िक िकसी पंचायत का कोई सद य खंड (1) म विणर्त
िकसी िनरहर्ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित
से, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उपबंिधत करे , िविन य के िलए िनदिशत
िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 123

243छ. पंचायत की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व – संिवधान के उपबंध


के अधीन रहते हुए, िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, पंचायत को ऐसी शिक्तयां
और प्रािधकार प्रदान कर सकेगा, जो उ ह वाय शासन की सं थाओं के प म कायर्
करने म समथर् बनाने के िलए आव यक ह और ऐसी िविध म पंचायत को उपयुक्त तर
पर, ऐसी शत के अधीन रहते हुए, जो उसम िविनिदर् की जाएं, िन निलिखत के संबंध
म शिक्तयां और उ रदािय व यागत करने के िलए उपबंध िकए जा सकगे, अथार्त ् :–
(क) आिथर्क िवकास और सामािजक याय के िलए योजनाएं तैयार
करना ;
(ख) आिथर्क िवकास और सामािजक याय की ऐसी कीम को, जो उ ह
स पी जाएं, िजनके अंतगर्त वे कीम भी ह, जो ग्यारहवीं अनस
ु च
ू ी म सच
ू ीबद्ध
िवषय के संबंध म ह, कायार्ि वत करना ।
243ज. पंचायत द्वारा कर अिधरोिपत करने की शिक्तयां और उनकी िनिधयां–
िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,–
(क) ऐसे कर, शु क, पथकर और फीस उद्गहीत, ृ संगह
ृ ीत और िविनयोिजत
करने के िलए िकसी पंचायत को, ऐसी प्रिक्रया के अनुसार और ऐसे िनबर्ंधन के
अधीन रहते हुए, प्रािधकृत कर सकेगा ;
(ख) रा य सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ ृ ीत ऐसे कर, शु क, पथकर और
और संगह
फीस िकसी पंचायत को, ऐसे प्रयोजन के िलए, तथा ऐसी शत और िनबर्ंधन के
अधीन रहते हुए, समनुिद कर सकेगा ;
(ग) रा य की संिचत िनिध म से पंचायत के िलए ऐसे सहायता-अनुदान
दे ने के िलए उपबंध कर सकेगा ; और
(घ) पंचायत द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्रा िकए गए सभी धन को
जमा करने के िलए ऐसी िनिधय का गठन करने और उन िनिधय म से ऐसे
धन को िनकालने के िलए भी उपबंध कर सकेगा,
जो िविध म िविनिदर् िकए जाएं ।
243झ. िव ीय ि थित के पुनिवर्लोकन के िलए िव आयोग का गठन–(1) रा य
का रा यपाल, संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 के प्रारं भ से एक वषर् के
भीतर यथाशीघ्र, और त प ात ्, प्र येक पांचव वषर् की समाि पर, िव आयोग का गठन
करे गा जो पंचायत की िव ीय ि थित का पुनिवर्लोकन करे गा, और जो–
(क)(i) रा य द्वारा उद्गहीत
ृ कर , शु क , पथकर और फीस के ऐसे शद्ध

आगम के रा य और पंचायत के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम िवभािजत
िकए जाएं, िवतरण को और सभी तर पर पंचायत के बीच ऐसे आगम के
त संबंधी भाग के आबंटन को ;
भारत का संिवधान 124

(ii) ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के अवधारण को, जो पंचायत


को समनुिद की जा सकगी या उनके द्वारा िविनयोिजत की जा सकगी ;
(iii) रा य की संिचत िनिध म से पंचायत के िलए सहायता अनद
ु ान को,
शािसत करने वाले िसद्धांत के बारे म ;
(ख) पंचायत की िव ीय ि थित को सध
ु ारने के िलए आव यक अ यप
ु ाय
के बारे म ;
(ग) पंचायत के सु ढ़ िव के िहत म रा यपाल द्वारा िव आयोग को
िनिदर् िकए गए िकसी अ य िवषय के बारे म,
रा यपाल को िसफािरश करे गा ।
(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, आयोग की संरचना का, उन अहर्ताओं
का, जो आयोग के सद य के प म िनयिु क्त के िलए अपेिक्षत ह गी, और उस रीित का,
िजससे उनका चयन िकया जाएगा, उपबंध कर सकेगा ।
(3) आयोग अपनी प्रिक्रया अवधािरत करे गा और उसे अपने कृ य के पालन म
ऐसी शिक्तयां ह गी जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उसे प्रदान करे ।
(4) रा यपाल इस अनु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्र येक िसफािरश को,
उस पर की गई कारर् वाई के प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा ।
243ञ. पंचायत के लेखाओं की संपरीक्षा–िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,
पंचायत द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे म उपबंध कर
सकेगा ।
243ट. पंचायत के िलए िनवार्चन–(1) पंचायत के िलए कराए जाने वाले सभी
िनवार्चन के िलए िनवार्चक नामावली तैयार कराने का और उन सभी िनवार्चन के
संचालन का अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण एक रा य िनवार्चन आयोग म िनिहत होगा,
िजसम एक रा य िनवार्चन आयुक्त होगा, जो रा यपाल द्वारा िनयुक्त िकया जाएगा ।
(2) िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध के उपबंध के
अधीन रहते हुए, रा य िनवार्चन आयक्तु की सेवा की शत और पदाविध ऐसी ह गी जो
रा यपाल िनयम द्वारा अवधािरत करे :
परं तु रा य िनवार्चन आयुक्त को उसके पद से उसी रीित से और उ हीं आधार पर
ही हटाया जाएगा, िजस रीित से और िजन आधार पर उ च यायालय के यायाधीश को
हटाया जाता है , अ यथा नहीं और रा य िनवार्चन आयुक्त की सेवा की शत म उसकी
िनयुिक्त के प ात ् उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न नहीं िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 125

(3) जब रा य िनवार्चन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब िकसी रा य का रा यपाल,


रा य िनवार्चन आयोग को उतने कमर्चािरवंद
ृ उपल ध कराएगा िजतने खंड (1) द्वारा
रा य िनवार्चन आयोग को उसे स पे गए कृ य के िनवर्हन के िलए आव यक ह ।
(4) इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, पंचायत के िनवार्चन से संबंिधत या संसक्त सभी िवषय के संबंध म उपबंध
कर सकेगा ।
243ठ. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना–इस भाग के उपबंध संघ रा यक्षेत्र को लागू
ह गे और िकसी संघ रा यक्षेत्र को उनके लागू होने म इस प्रकार प्रभावी ह गे मानो िकसी
रा य के रा यपाल के प्रित िनदश, अनु छे द 239 के अधीन िनयुक्त संघ रा यक्षेत्र के
प्रशासक के प्रित िनदश ह और िकसी रा य के िवधान-मंडल या िवधान सभा के प्रित
िनदश, िकसी ऐसे संघ रा यक्षेत्र के संबंध म, िजसम िवधान सभा है , उस िवधान सभा के
प्रित िनदश ह :
परं तु रा पित, लोक अिधसच ू ना द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस भाग के
उपबंध िकसी संघ रा यक्षेत्र या उसके िकसी भाग को ऐसे अपवाद और उपांतरण के
अधीन रहते हुए, लागू ह गे, जो वह अिधसच
ू ना म िविनिदर् करे ।
243ड. इस भाग का कितपय क्षेत्र को लागू न होना–(1) इस भाग की कोई बात
अनु छे द 244 के खंड (1) म िनिदर् अनुसूिचत क्षेत्र और उसके खंड (2) म िनिदर्
जनजाित क्षेत्र को लागू नहीं होगी ।
(2) इस भाग की कोई बात िन निलिखत को लागू नहीं होगी, अथार्त ् : –
(क) नागालड, मेघालय और िमजोरम रा य ;
(ख) मिणपरु रा य म ऐसे पवर्तीय क्षेत्र िजनके िलए त समय प्रव ृ िकसी
िविध के अधीन िजला पिरषद िवद्यमान ह ।
(3) इस भाग की –
(क) कोई बात िजला तर पर पंचायत के संबंध म पि मी बंगाल रा य
के दािजर्िलंग िजले के ऐसे पवर्तीय क्षेत्र को लागू नहीं होगी िजनके िलए त समय
प्रव ृ िकसी िविध के अधीन दािजर्िलंग गोरखा पवर्तीय पिरष िवद्यमान है ;
(ख) िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह ऐसी िविध के
अधीन गिठत दािजर्िलंग गोरखा पवर्तीय पिरष के कृ य और शिक्तय पर प्रभाव
डालती है ।
भारत का संिवधान 126

1
[(3क) अनसु िू चत जाितय के िलए थान के आरक्षण से संबंिधत अनु छे द
243घ की कोई बात अ णाचल प्रदे श रा य को लागू नहीं होगी ।]
(4) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) खंड (2) के उपखंड (क) म िनिदर् िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, इस भाग का िव तार, खंड (1) म िनिदर् क्षेत्र के िसवाय, यिद कोई
ह , उस रा य पर उस दशा म कर सकेगा जब उस रा य की िवधान सभा इस
आशय का एक संक प उस सदन की कुल सद य संख्या के बहुमत द्वारा तथा
उस सदन के उपि थत और मत दे ने वाले सद य के कम से कम दो-ितहाई
बहुमत द्वारा पािरत कर दे ती है ;
(ख) संस , िविध द्वारा, इस भाग के उपबंध का िव तार, खंड (1) म
िनिदर् अनसु िू चत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र पर, ऐसे अपवाद और उपांतरण के
अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी िविध म िविनिदर् िकए जाएं और ऐसी
िकसी िविध को अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का संशोधन
नहीं समझा जाएगा ।
243ढ. िवद्यमान िविधय और पंचायत का बना रहना – इस भाग म िकसी बात
के होते हुए भी, संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 के प्रारं भ के ठीक पूवर्
िकसी रा य म प्रव ृ पंचायत से संबंिधत िकसी िविध का कोई उपबंध, जो इस भाग के
उपबंध से असंगत है , जब तक सक्षम िवधान-मंडल द्वारा या अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा
उसे संशोिधत या िनरिसत नहीं कर िदया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषर्
समा नहीं हो जाता है , इनम से जो भी पहले हो, तब तक प्रव ृ बना रहे गा :
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पूवर् िवद्यमान सभी पंचायत, यिद उस रा य की िवधान
सभा द्वारा या ऐसे रा य की दशा म, िजसम िवधान पिरष है , उस रा य के िवधान-
मंडल के प्र येक सदन द्वारा पािरत इस आशय के संक प द्वारा पहले ही िवघिटत नहीं कर
दी जाती ह तो, अपनी अविध की समाि तक बनी रहगी ।
243ण. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न – इस
संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के िलए ता पियर्त
िकसी ऐसी िविध की िविधमा यता, जो िनवार्चन-क्षेत्र के पिरसीमन या ऐसे
िनवार्चन-क्षेत्र को थान के आबंटन से संबंिधत है , िकसी यायालय म प्र गत
नहीं की जाएगी ;
(ख) िकसी पंचायत के िलए कोई िनवार्चन, ऐसी िनवार्चन अजीर् पर ही
प्र गत िकया जाएगा जो ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित से प्र तुत की गई है ,
िजसका िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके
अधीन उपबंध िकया जाए, अ यथा नहीं ।]

1. संिवधान (ितरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से) अंतः थािपत ।
1
[भाग 9क
नगरपािलकाएं
243त. पिरभाषाएं – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न
हो, –
(क) “सिमित” से अनु छे द 243ध के अधीन गिठत सिमित अिभप्रेत है ;
(ख) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ग) “महानगर क्षेत्र” से दस लाख या उससे अिधक जनसंख्या वाला ऐसा
क्षेत्र अिभप्रेत है िजसम एक या अिधक िजले समािव ह और जो दो या अिधक
नगरपािलकाओं या पंचायत या अ य संलग्न क्षेत्र से िमलकर बनता है तथा
िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक अिधसूचना द्वारा, महानगर
क्षेत्र के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “नगरपािलका क्षेत्र” से रा यपाल द्वारा अिधसिू चत िकसी नगरपािलका
का प्रादे िशक क्षेत्र
अिभप्रेत है ;
(ङ) “नगरपािलका” से अनु छे द 243थ के अधीन गिठत वाय शासन
की कोई सं था अिभप्रेत है ;
(च) “पंचायत” से अनु छे द 243ख के अधीन गिठत कोई पंचायत अिभप्रेत
है ;
(छ) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पूवव र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ।
243थ. नगरपािलकाओं का गठन – (1) प्र येक रा य म, इस भाग के उपबंध के
अनस
ु ार,–
(क) िकसी संक्रमणशील क्षेत्र के िलए, अथार्त ्, ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र
म संक्रमणगत क्षेत्र के िलए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह िकसी भी नाम से
ज्ञात हो) ;
(ख) िकसी लघुतर नगरीय क्षेत्र के िलए नगरपािलका पिरष का ; और
ृ र नगरीय क्षेत्र के िलए नगर िनगम का,
(ग) िकसी वह
गठन िकया जाएगा :

1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
127
भारत का संिवधान 128

परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपािलका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके िकसी भाग
म गिठत नहीं की जा सकेगी िजसे रा यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र म िकसी
औद्योिगक थापन द्वारा दी जा रही या िदए जाने के िलए प्र तािवत नगरपािलक सेवाओं
और ऐसी अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना
द्वारा, औद्योिगक नगरी के प म िविनिदर् करे ।
(2) इस अनु छे द म, “संक्रमणशील क्षेत्र”, “लघुतर नगरीय क्षेत्र” या “वह ृ र
नगरीय क्षेत्र” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए,
उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसम जनसंख्या की सघनता, थानीय प्रशासन के िलए उ प न
राज व, कृिष से िभ न िक्रयाकलाप म िनयोजन की प्रितशतता, आिथर्क मह व या ऐसी
अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना द्वारा,
िविनिदर् करे ।
243द. नगरपािलकाओं की संरचना – (1) खंड (2) म जैसा उपबंिधत है उसके
िसवाय, िकसी नगरपािलका के सभी थान, नगरपािलका क्षेत्र म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र
से प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा चन
ु े हुए यिक्तय द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के िलए,
प्र येक नगरपािलका क्षेत्र को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभािजत िकया जाएगा जो वाडर्
के नाम से ज्ञात ह गे ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –
(क) नगरपािलका म, –
(i) नगरपािलका प्रशासन का िवशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले
यिक्तय का ;
(ii) लोक सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान सभा के
ऐसे सद य का, जो उन िनवार्चन-क्षेत्र का प्रितिनिध व करते ह िजनम
कोई नगरपािलका क्षेत्र पण
ू त
र् ः या भागतः समािव ह ;
(iii) रा य सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान पिरष के
ऐसे सद य का, जो नगरपािलका क्षेत्र के भीतर िनवार्चक के प म
रिज ट्रीकृत ह ;
(iv) अनु छे द 243ध के खंड (5) के अधीन गिठत सिमितय के
अ यक्ष का,
प्रितिनिध व करने के िलए उपबंध कर सकेगा :
परं तु पैरा (i) म िनिदर् यिक्तय को नगरपािलका के अिधवेशन म मत दे ने
का अिधकार नहीं होगा ;
(ख) िकसी नगरपािलका के अ यक्ष के िनवार्चन की रीित का उपबंध कर
सकेगा ।
भारत का संिवधान 129

243ध. वाडर् सिमितय , आिद का गठन और संरचना – (1) ऐसी नगरपािलका के,
िजसकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अिधक है , प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर वाडर् सिमितय
का गठन िकया जाएगा, जो एक या अिधक वाड से िमलकर बनेगी ।

(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –


(क) वाडर् सिमित की संरचना और उसके प्रादे िशक क्षेत्र की बाबत ;

(ख) उस रीित की बाबत िजससे िकसी वाडर् सिमित म थान भरे जाएंगे,

उपबंध कर सकेगा ।

(3) वाडर् सिमित के प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर िकसी वाडर् का प्रितिनिध व करने वाला
िकसी नगरपािलका का सद य उस सिमित का सद य होगा ।

(4) जहां कोई वाडर् सिमित, –

(क) एक वाडर् से िमलकर बनती है वहां नगरपािलका म उस वाडर् का


प्रितिनिध व करने वाला सद य ; या

(ख) दो या अिधक वाड से िमलकर बनती है वहां नगरपािलका म ऐसे वाड


का प्रितिनिध व करने वाले सद य म से एक सद य, जो उस वाडर् सिमित के
सद य द्वारा िनवार्िचत िकया जाएगा,

उस सिमित का अ यक्ष होगा ।

(5) इस अनु छे द की िकसी बात से यह नहीं समझा जाएगा िक वह िकसी रा य


के िवधान-मंडल को वाडर् सिमितय के अितिरक्त सिमितय का गठन करने के िलए कोई
उपबंध करने से िनवािरत करती है ।
243न. थान का आरक्षण – (1) प्र येक नगरपािलका म अनुसूिचत जाितय और
अनुसूिचत जनजाितय के िलए थान आरिक्षत रहगे और इस प्रकार आरिक्षत थान की
संख्या का अनपु ात, उस नगरपािलका म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की
कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो उस नगरपािलका क्षेत्र म अनुसूिचत जाितय की
अथवा उस नगरपािलका क्षेत्र म अनुसूिचत जनजाितय की जनसंख्या का अनुपात उस
क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे थान िकसी नगरपािलका के िभ न-िभ न
िनवार्चन-क्षेत्र को चक्रानुक्रम से आबंिटत िकए जा सकगे ।

(2) खंड (1) के अधीन आरिक्षत थान की कुल संख्या के कम से कम एक-ितहाई


थान, यथाि थित, अनुसूिचत जाितय या अनुसूिचत जनजाितय की ि य के िलए
आरिक्षत रहगे ।
भारत का संिवधान 130

(3) प्र येक नगरपािलका म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की कुल
संख्या के कम से कम एक-ितहाई थान (िजनके अंतगर्त अनुसूिचत जाितय और
अनुसूिचत जनजाितय की ि य के िलए आरिक्षत थान की संख्या भी है ) ि य के
िलए आरिक्षत रहगे और ऐसे थान िकसी नगरपािलका के िभ न-िभ न िनवार्चन-क्षेत्र को
चक्रानुक्रम से आबंिटत िकए जा सकगे ।
(4) नगरपािलकाओं म अ यक्ष के पद अनुसिू चत जाितय , अनस
ु िू चत जनजाितय
और ि य के िलए ऐसी रीित से आरिक्षत रहगे, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,
उपबंिधत करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन थान का आरक्षण और खंड (4) के अधीन
अ यक्ष के पद का आरक्षण (जो ि य के िलए आरक्षण से िभ न है ) अनु छे द 334 म
िविनिदर् अविध की समाि पर प्रभावी नहीं रहे गा ।
(6) इस भाग की कोई बात िकसी रा य के िवधान-मंडल को िपछड़े हुए नागिरक
के िकसी वगर् के पक्ष म िकसी नगरपािलका म थान के या नगरपािलकाओं म अ यक्ष
के पद के आरक्षण के िलए कोई उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
243प. नगरपािलकाओं की अविध, आिद – (1) प्र येक नगरपािलका, यिद
त समय प्रव ृ िकसी िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने
प्रथम अिधवेशन के िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं :
परं तु िकसी नगरपािलका का िवघटन करने के पूवर् उसे सुनवाई का उिचत अवसर
िदया जाएगा ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी
नगरपािलका का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूवर् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं
होगा जब तक खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी नगरपािलका का गठन करने के िलए िनवार्चन, –
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पूवर् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पव
ू ,र्
पूरा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत नगरपािलका बनी रहती,
छह मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस नगरपािलका का गठन करने के िलए
इस खंड के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी नगरपािलका की अविध की समाि के पूवर् उस नगरपािलका के
िवघटन पर गिठत की गई कोई नगरपािलका, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए
बनी रहे गी िजसके िलए िवघिटत नगरपािलका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह
इस प्रकार िवघिटत नहीं की जाती ।
243फ. सद यता के िलए िनरहर् ताएं – (1) कोई यिक्त िकसी नगरपािलका का
भारत का संिवधान 131

सद य चुने जाने के िलए और सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा, –


(क) यिद वह संबंिधत रा य के िवधान-मंडल के िनवार्चन के प्रयोजन के
िलए त समय प्रव ृ िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर
िदया जाता है :
परं तु कोई यिक्त इस आधार पर िनरिहर्त नहीं होगा िक उसकी आयु
प चीस वषर् से कम है , यिद उसने इक्कीस वषर् की आयु प्रा कर ली है ;
(ख) यिद वह रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या
उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
(2) यिद यह प्र उठता है िक िकसी नगरपािलका का कोई सद य खंड (1) म
विणर्त िकसी िनरहर्ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र ऐसे प्रािधकारी को, और
ऐसी रीित से, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उपबंिधत करे , िविन य के िलए
िनदिशत िकया जाएगा ।
243ब. नगरपािलकाओं, आिद की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व – इस
संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –
(क) नगरपािलकाओं को ऐसी शिक्तयां और प्रािधकार प्रदान कर सकेगा, जो
उ ह वाय शासन की सं थाओं के प म कायर् करने म समथर् बनाने के िलए
आव यक ह और ऐसी िविध म नगरपािलकाओं को, ऐसी शत के अधीन रहते
हुए, जो उसम िविनिदर् की जाएं, िन निलिखत के संबंध म शिक्तयां और
उ रदािय व यागत करने के िलए उपबंध िकए जा सकगे, अथार्त ् : –
(i) आिथर्क िवकास और सामािजक याय के िलए योजनाएं तैयार
करना ;
(ii) ऐसे कृ य का पालन करना और ऐसी कीम को, जो उ ह
स पी जाएं, िजनके अंतगर्त वे कीम भी ह, जो बारहवीं अनस
ु च
ू ी म
सूचीबद्ध िवषय के संबंध म ह, कायार्ि वत करना ;
(ख) सिमितय को ऐसी शिक्तयां और प्रािधकार प्रदान कर सकेगा जो उ ह
अपने को प्रद उ रदािय व को, िजनके अ तगर्त वे उ रदािय व भी ह जो बारहवीं
अनुसूची म सूचीबद्ध िवषय के संबंध म ह, कायार्ि वत करने म समथर् बनाने के
िलए आव यक ह ।
243भ. नगरपािलकाओं द्वारा कर अिधरोिपत करने की शिक्त और उनकी िनिधयां
– िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –
(क) ऐसे कर, शु क, पथकर और फीस उद्गहीत,ृ संगह
ृ ीत और िविनयोिजत
करने के िलए िकसी नगरपािलका को, ऐसी प्रिक्रया के अनुसार और ऐसे िनबर्ंधन
के अधीन रहते हुए, प्रािधकृत कर सकेगा ;
(ख) रा य सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत ऐसे कर, शु क, पथकर और
भारत का संिवधान 132

फीस िकसी नगरपािलका को, ऐसे प्रयोजन के िलए, तथा ऐसी शत और िनबर्ंधन
के अधीन रहते हुए, समनुिद कर सकेगा ;
(ग) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए ऐसे सहायता-
ु ान दे ने के िलए उपबंध कर सकेगा ; और
अनद
(घ) नगरपािलकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्रा िकए गए सभी
धन को जमा करने के िलए ऐसी िनिधय का गठन करने और उन िनिधय म से
ऐसे धन को िनकालने के िलए भी उपबंध कर सकेगा,
जो िविध म िविनिदर् िकए जाएं ।
243म. िव आयोग – (1) अनु छे द 243झ के अधीन गिठत िव आयोग
नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित का भी पुनिवर्लोकन करे गा और जो–
(क)(i) रा य द्वारा उ ग्रहणीय ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के ऐसे
शद्ध
ु आगम के रा य और नगरपािलकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम
िवभािजत िकए जाएं, िवतरण को और सभी तर पर नगरपािलकाओं के बीच ऐसे
आगम के त संबंधी भाग के आबंटन को ;
(ii) ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के अवधारण को, जो
नगरपािलकाओं को समनुिद की जा सकगी या उनके द्वारा िविनयोिजत की जा
सकगी ;
(iii) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए सहायता
ु ान को, शािसत करने वाले िसद्धांत के बारे म ;
अनद
(ख) नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित को सुधारने के िलए आव यक
अ युपाय के बारे म ;
(ग) नगरपािलकाओं के सु ढ़ िव के िहत म रा यपाल द्वारा िव आयोग
को िनिदर् िकए गए िकसी अ य िवषय के बारे म,
रा यपाल को िसफािरश करे गा ।
(2) रा यपाल इस अनु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्र येक िसफािरश को,
उस पर की गई कारर् वाई के प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा ।
243य. नगरपािलकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा – िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, नगरपािलकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के
बारे म उपबंध कर सकेगा ।
भारत का संिवधान 133

243यक. नगरपािलकाओं के िलए िनवार्चन – (1) नगरपािलकाओं के िलए कराए


जाने वाले सभी िनवार्चन के िलए िनवार्चक नामावली तैयार कराने का और उन सभी
िनवार्चन के संचालन का अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण, अनु छे द 243ट म िनिदर्
रा य िनवार्चन आयोग म िनिहत होगा ।
(2) इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, नगरपािलकाओं के िनवार्चन से संबिं धत या संसक्त सभी िवषय के संबंध म
उपबंध कर सकेगा ।
243यख. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना – इस भाग के उपबंध संघ रा यक्षेत्र को
लागू ह गे और िकसी संघ रा यक्षेत्र को उनके लागू होने म इस प्रकार प्रभावी ह गे मानो
िकसी रा य के रा यपाल के प्रित िनदश, अनु छे द 239 के अधीन िनयुक्त संघ रा यक्षेत्र
के प्रशासक के प्रित िनदश ह और िकसी रा य के िवधान-मंडल या िवधान सभा के प्रित
िनदश, िकसी ऐसे संघ रा यक्षेत्र के संबंध म, िजसम िवधान सभा है , उस िवधान सभा के
प्रित िनदश ह :
परं तु रा पित, लोक अिधसूचना द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस भाग के
उपबंध िकसी संघ रा यक्षेत्र या उसके िकसी भाग को ऐसे अपवाद और उपांतरण के
अधीन रहते हुए, लागू ह गे, जो वह अिधसचू ना म िविनिदर् करे ।
243यग. इस भाग का कितपय क्षेत्र को लागू न होना – (1) इस भाग की कोई
बात अनु छे द 244 के खंड (1) म िनिदर् अनस ु िू चत क्षेत्र और इसके खंड (2) म िनिदर्
जनजाित क्षेत्र को लागू नहीं होगी ।
(2) इस भाग की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह पि मी
बंगाल रा य के दािजर्िलंग िजले के पवर्तीय क्षेत्र के िलए त समय प्रव ृ िकसी िविध के
अधीन गिठत दािजर्िलंग गोरखा पवर्तीय पिरष के कृ य और शिक्तय पर प्रभाव डालती
है ।
(3) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, संस , िविध द्वारा, इस भाग के
उपबंध का िव तार खंड (1) म िनिदर् अनुसूिचत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र पर, ऐसे
अपवाद और उपांतरण के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी िविध म िविनिदर् िकए
जाएं और ऐसी िकसी िविध को अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का
संशोधन नहीं समझा जाएगा ।
243यघ. िजला योजना के िलए सिमित – (1) प्र येक रा य म िजला तर पर,
िजले म पंचायत और नगरपािलकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करने
और संपूणर् िजले के िलए एक िवकास योजना प्रा प तैयार करने के िलए, एक िजला
योजना सिमित का गठन िकया जाएगा ।
(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, िन निलिखत की बाबत उपबंध कर सकेगा,
अथार्त ् :–
भारत का संिवधान 134

(क) िजला योजना सिमितय की संरचना ;

(ख) वह रीित, िजससे ऐसी सिमितय म थान भरे जाएंगे :

परं तु ऐसी सिमित की कुल सद य संख्या के कम से कम चार बटा पांच


सद य, िजला तर पर पंचायत के और िजले म नगरपािलकाओं के िनवार्िचत
सद य द्वारा, अपने म से, िजले म ग्रामीण क्षेत्र की और नगरीय क्षेत्र की
जनसंख्या के अनप
ु ात के अनस
ु ार िनवार्िचत िकए जाएंगे ;

(ग) िजला योजना से संबंिधत ऐसे कृ य जो ऐसी सिमितय को समनुिद


िकए जाएं ;

(घ) वह रीित, िजससे ऐसी सिमितय के अ यक्ष चुने जाएंगे ।

(3) प्र येक िजला योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म,–

(क) िन निलिखत का यान रखेगी, अथार्त ् :–

(i) पंचायत और नगरपािलकाओं के सामा य िहत के िवषय,


िजनके अंतगर्तथािनक योजना, जल तथा अ य भौितक और प्राकृितक
संसाधन म िह सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत िवकास और पयार्वरण
संरक्षण है ;

(ii) उपल ध िव ीय या अ य संसाधन की मात्रा और प्रकार ;

(ख) ऐसी सं थाओं और संगठन से परामशर् करे गी िज ह रा यपाल,


आदे श द्वारा, िविनिदर् करे ।

(4) प्र येक िजला योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी ऐसी
सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।

243यङ. महानगर योजना के िलए सिमित – (1) प्र येक महानगर क्षेत्र म, संपण
ू र्
महानगर क्षेत्र के िलए िवकास योजना प्रा प तैयार करने के िलए, एक महानगर योजना
सिमित का गठन िकया जाएगा ।

(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, िन निलिखत की बाबत उपबंध कर सकेगा,


अथार्त ् :–

(क) महानगर योजना सिमितय की संरचना ;

(ख) वह रीित िजससे ऐसी सिमितय म थान भरे जाएंगे :


भारत का संिवधान 135

परं तु ऐसी सिमित के कम से कम दो-ितहाई सद य, महानगर क्षेत्र म


नगरपािलकाओं के िनवार्िचत सद य और पंचायत के अ यक्ष द्वारा, अपने म से,
उस क्षेत्र म नगरपािलकाओं की और पंचायत की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार
िनवार्िचत िकए जाएंगे ;

(ग) ऐसी सिमितय म भारत सरकार और रा य सरकार का तथा ऐसे


संगठन और सं थाओं का प्रितिनिध व जो ऐसी सिमितय को समनुिद कृ य को
कायार्ि वत करने के िलए आव यक समझे जाएं ;

(घ) महानगर क्षेत्र के िलए योजना और सम वय से संबंिधत ऐसे कृ य जो


ऐसी सिमितय को समनुिद िकए जाएं ;

(ङ) वह रीित, िजससे ऐसी सिमितय के अ यक्ष चुने जाएंगे ।

(3) प्र येक महानगर योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म, –

(क) िन निलिखत का यान रखेगी, अथार्त ् : –

(i) महानगर क्षेत्र म नगरपािलकाओं और पंचायत द्वारा तैयार की


गई योजनाएं ;

(ii) नगरपािलकाओं और पंचायत के सामा य िहत के िवषय,


िजनके अंतगर्त उस क्षेत्र की समि वत थािनक योजना, जल तथा अ य
भौितक और प्राकृितक संसाधन म िह सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत
िवकास और पयार्वरण संरक्षण है ;

(iii) भारत सरकार और रा य सरकार द्वारा िनि त सम त उ े य


और पिू वर्कताएं ;

(iv) उन िविनधान की मात्रा और प्रकृित जो भारत सरकार और


रा य सरकार के अिभकरण द्वारा महानगर क्षेत्र म िकए जाने संभा य ह
तथा अ य उपल ध िव ीय या अ य संसाधन ;

(ख) ऐसी सं थाओं और संगठन से परामशर् करे गी िज ह रा यपाल,


आदे श द्वारा, िविनिदर् करे ।

(4) प्र येक महानगर योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी
ऐसी सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।
भारत का संिवधान 136

243यच. िवद्यमान िविधय और नगरपािलकाओं का बना रहना – इस भाग म


िकसी बात के होते हुए भी, संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 के प्रारं भ के
ठीक पूवर् िकसी रा य म प्रव ृ नगरपािलकाओं से संबंिधत िकसी िविध का कोई उपबंध,
जो इस भाग के उपबंध से असंगत है , जब तक सक्षम िवधान-मंडल द्वारा या अ य
सक्षम प्रािधकारी द्वारा उसे संशोिधत या िनरिसत नहीं कर िदया जाता है या जब तक ऐसे
प्रारं भ से एक वषर् समा नहीं हो जाता है , इनम से जो भी पहले हो, तब तक प्रव ृ बना
रहे गा :

परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पव


ू र् िवद्यमान सभी नगरपािलकाएं, यिद उस रा य की
िवधान सभा द्वारा या ऐसे रा य की दशा म, िजसम िवधान पिरष है , उस रा य के
िवधान-मंडल के प्र येक सदन द्वारा पािरत इस आशय के संक प द्वारा पहले ही िवघिटत
नहीं कर दी जाती ह तो, अपनी अविध की समाि तक बनी रहगी ।

243यछ. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न – इस


संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –

(क) अनु छे द 243यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के िलए


ता पियर्त िकसी ऐसी िविध की िविधमा यता, जो िनवार्चन-क्षेत्र के पिरसीमन या
ऐसे िनवार्चन-क्षेत्र को थान के आबंटन से संबंिधत है , िकसी यायालय म
प्र गत नहीं की जाएगी ;

(ख) िकसी नगरपािलका के िलए कोई िनवार्चन, ऐसी िनवार्चन अजीर् पर ही


प्र गत िकया जाएगा जो ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित से प्र तुत की गई है ,
िजसका िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके
अधीन उपबंध िकया जाए, अ यथा नहीं ।]
1
[भाग 9ख
सहकारी सोसाइिटयां
243यज. पिरभाषाएं--इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,--
(क) “प्रािधकृत यिक्त” से अनु छे द 243यथ म उस प म िनिदर् कोई यिक्त
अिभप्रेत है ;
(ख) “बोडर्” से िकसी सहकारी सोसाइटी का िनदे शक बोडर् या शासी िनकाय,
चाहे िकसी भी नाम से ज्ञात हो, िजसको िकसी सोसाइटी के कायर्कलाप के प्रबंध का
िनदे शन और िनयंत्रण स पा गया हो, अिभप्रेत है ;
(ग) “सहकारी सोसाइटी” से ऐसी सोसाइटी अिभप्रेत है , जो िकसी रा य म
त समय प्रव ृ सहकारी सोसाइिटय से संबंिधत िकसी िविध के अधीन रिज ट्रीकृत है
या रिज ट्रीकृत समझी गई है ;
(घ) “बहुरा य सहकारी सोसाइटी” से ऐसी सोसाइटी अिभप्रेत है , िजसके उ े य
एक रा य तक सीिमत नहीं ह और जो ऐसी सहकारी सोसाइिटय से संबंिधत त समय
प्रव ृ िकसी िविध के अधीन रिज ट्रीकृत है या रिज ट्रीकृत समझी गई है ;
(ङ) “पदािधकारी” से िकसी सहकारी सोसाइटी का अ यक्ष, उपा यक्ष, सभापित,
उपसभापित, सिचव या कोषा यक्ष अिभप्रेत है और िजनम िकसी सहकारी सोसाइटी के
बोडर् द्वारा िनवार्िचत िकया जाने वाला कोई अ य यिक्त भी सि मिलत है ;
(च) “रिज ट्रार” से बहुरा य सहकारी सोसाइिटय के संबध ं म के द्रीय सरकार
द्वारा िनयुक्त के द्रीय रिज ट्रार और सहकारी सोसाइिटय के संबंध म िकसी रा य के
िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध के अधीन रा य सरकार द्वारा िनयक्त ु सहकारी
सोसाइिटय का रिज ट्रार अिभप्रेत है ;
(छ) “रा य अिधिनयम” से िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई
िविध अिभप्रेत है ;
(ज) “रा य तरीय सहकारी सोसाइटी” से ऐसी सहकारी सोसाइटी अिभप्रेत है ,
िजसका स पूणर् रा य पर िव तािरत अपना प्रचालन क्षेत्र है और िजसको िकसी रा य
के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध म उस प म पिरभािषत िकया गया है

243यझ. सहकारी सोसाइिटय का िनगमन -- इस भाग के उपबंध के अधीन रहते हुए,
िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, वैि छक िवरचना, लोकतांित्रक सद य-िनयंत्रण,
सद य-आिथर्क भागीदारी और वशासी कायर्करण के िसद्धांत पर आधािरत सहकारी सोसाइिटय
के िनगमन, िविनयमन और पिरसमापन के संबंध म उपबंध कर सकेगा ।

1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
137
भारत का संिवधान 138

243यञ. बोडर् के सद य और उसके पदािधकािरय की संख्या और पदाविध -- (1)


बोडर् म उतनी संख्या म िनदे शक ह गे, िजतने रा य िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत
िकए जाएं :

परं तु सहकारी सोसाइटी के िनदे शक की अिधकतम संख्या इक्कीस से अिधक नहीं


होगी :

परं तु यह और िक िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसी प्र येक सहकारी


सोसाइटी के बोडर् म जो सद य के प म यि य से िमलकर बनी हो और उसम अनुसिू चत
जाितय या अनस
ु िू चत जनजाितय अथवा ि य के वगर् या प्रवगर् से सद य ह , एक थान
अनुसिू चत जाितय या अनुसिू चत जनजाितय और दो थान ि य के िलए आरिक्षत करे गा ।

(2) बोडर् के िनवार्िचत सद य तथा उसके पदािधकािरय की पदाविध, िनवार्चन की


तारीख से पांच वषर् की होगी और पदािधकािरय की पदाविध बोडर् की अविध के साथ
सहावसानी होगी :

परं तु बोडर्, बोडर् की आकि मक िरिक्त को नामिनदशन द्वारा उसी वगर् के सद य म से,
िजसके संबंध म आकि मक िरिक्त हुई है , भर सकेगा, यिद बोडर् की पदाविध उसकी मल

पदाविध के आधे से कम है ।

(3) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसी सोसाइटी के बोडर् के सद य के प


म बककारी, प्रबंधन, िव ु व रखने वाले या सहकारी सोसाइटी के उ े य और
के क्षेत्र म अनभ
उसके द्वारा िकए जाने वाले िक्रयाकलाप से संबंिधत िकसी अ य क्षेत्र म िवशेषज्ञता रखने वाले
बोडर् के सद य होने वाले यिक्तय को सहयोिजत करने के िलए, उपबंध कर सकेगा :

परं तु ऐसे सहयोिजत सद य खंड (1) के पहले परं तक


ु म िविनिदर् इक्कीस िनदे शक के
अितिरक्त दो से अिधक नहीं ह गे :

परं तु यह और िक ऐसे सहयोिजत सद य को ऐसे सद य के प म उनकी है िसयत म


सहकारी सोसाइटी के िकसी िनवार्चन म मतदान करने का या बोडर् के पदािधकािरय के प म
िनवार्िचत होने के िलए पात्र होने का अिधकार नहीं होगा :

परं तु यह भी िक िकसी सहकारी सोसाइटी के कृ यकारी िनदे शक, बोडर् के सद य भी


ह गे और ऐसे सद य को खंड (1) के पहले परं तक
ु म िविनिदर् कुल िनदे शक की कुल संख्या
की गणना करने के प्रयोजन के िलए अपविजर्त िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 139

243यट. बोडर् के सद य का िनवार्चन -- (1) िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई


गई िकसी िविध म िकसी बात के होते हुए भी, बोडर् का िनवार्चन, बोडर् की अविध के अवसान
से पूवर् संचािलत िकया जाएगा, िजससे यह सिु नि त िकया जा सके िक नविनवार्िचत बोडर् के
सद य, पदावरोही बोडर् के सद य की पदाविध के अवसान होते ही पद ग्रहण कर ल ।
(2) िकसी सहकारी सोसाइटी के सभी िनवार्चन के िलए िनवार्चक नामाविलयां तैयार
करने का और उन सभी िनवार्चन के संचालन का अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण, ऐसे
प्रािधकारी या िनकाय म, जो रा य िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत िकया जाए, िनिहत
होगा :
परं तु िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसे िनवार्चन के संचालन के िलए
प्रिक्रया और मागर्दशर्क िसद्धा त का उपबंध कर सकेगा ।
243यठ. बोडर् का अिधक्रमण और िनलंबन तथा अ तिरम प्रबंध -- (1) त समय प्रव ृ
िकसी िविध म िकसी बात के होते हुए भी, कोई बोडर्, छह मास से अिधक की अविध के िलए
अिति त नहीं िकया जाएगा या िनलंबनाधीन नहीं रखा जाएगा :
परं तु बोडर् को--
(i) उसके लगातार यितक्रम की दशा म ; या
(ii) अपने कतर् य के अनुपालन म उपेक्षा करने की दशा म ; या
(iii) बोडर् द्वारा सहकारी सोसाइटी या उसके सद य के िहत के प्रितकूल कोई
कायर् करने की दशा म ; या
(iv) बोडर् के गठन या उसके कृ य म कोई गितरोध उ प न होने की दशा म ;
या
(v) रा य िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, अनु छे द 243यट के खंड (2) के
अधीन यथा उपबंिधत प्रािधकारी या िनकाय के रा य अिधिनयम के उपबंध के अनस
ु ार
िनवार्चन कराने म असफल रहने की दशा म,
अिति त िकया जा सकेगा या िनलंबनाधीन रखा जा सकेगा :
परं तु यह और िक जहां कोई सरकारी शेयर धारण या सरकार द्वारा कोई उधार या
िव ीय सहायता या प्र याभिू त नहीं है वहां ऐसी िकसी सहकारी सोसाइटी के बोडर् को अिति त
नहीं िकया जाएगा या िनलंबनाधीन नहीं रखा जाएगा :
परं तु यह भी िक बककारी कारबार करने वाली िकसी सहकारी सोसाइटी की दशा म
बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 के उपबंध भी लागू ह गे :
भारत का संिवधान 140

पर तु यह भी िक बहुरा य सहकारी सोसाइटी से िभ न बककारी कारबार करने वाली


िकसी सहकारी सोसाइटी की दशा म, इस खंड के उपबंध वैसे ही प्रभावी ह गे मानो “छह मास”
श द के थान पर “एक वषर्” श द रखे गए थे ।

(2) बोडर् के अिधक्रमण की दशा म, ऐसी सहकारी सोसाइटी के कायर्कलाप का प्रबंध


करने के िलए िनयक्त
ु प्रशासक, खंड (1) म िविनिदर् अविध के भीतर िनवार्चन के संचालन के
िलए यव था करे गा और उसका प्रबंध िनवार्िचत बोडर् को स पेगा ।

(3) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, प्रशासक की सेवा की शत के िलए


उपबंध कर सकेगा ।

243यड. सहकारी सोसाइिटय के लेखाओं की संपरीक्षा -- (1) िकसी रा य का िवधान-


मंडल, िविध द्वारा, सहकारी सोसाइिटय द्वारा लेखाओं के रखे जाने और ऐसे लेखाओं की प्र येक
िव ीय वषर् म कम से कम एक बार संपरीक्षा िकए जाने के संबंध म उपबंध कर सकेगा ।

(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसे संपरीक्षक और संपरीक्षा करने वाली
ऐसी फम की, जो सहकारी सोसाइिटय के लेखाओं की संपरीक्षा करने के िलए पात्र ह गी,
यूनतम अहर्ताएं और अनुभव अिधकिथत करे गा ।

(3) प्र येक सहकारी सोसाइटी, सहकारी सोसाइटी के साधारण िनकाय द्वारा िनयुक्त, खंड
(2) म िनिदर् िकसी संपरीक्षक या संपरीक्षा करने वाली फम द्वारा संपरीक्षा करवाएगी :

परं तु ऐसे संपरीक्षक या संपरीक्षा करने वाली फम को रा य सरकार द्वारा या रा य


सरकार द्वारा इस िनिम प्रािधकृत िकसी प्रािधकारी द्वारा अनुमोिदत पैनल म से िनयुक्त िकया
जाएगा ।

(4) प्र येक सहकारी सोसाइटी के लेखाओं की संपरीक्षा उस िव ीय वषर् की, िजससे ऐसे
लेखे संबंिधत ह, समाि के छह मास के भीतर की जाएगी ।

(5) रा य अिधिनयम द्वारा यथा पिरभािषत िकसी सव च सहकारी सोसाइटी के लेखाओं


की संपरीक्षा िरपोटर् रा य िवधान-मंडल के समक्ष ऐसी रीित से रखी जाएगी जो रा य िवधान-
मंडल द्वारा, िविध द्वारा उपबंिधत की जाए ।

243यढ. साधारण िनकाय की बैठक संयोिजत करना -- िकसी रा य का िवधान-मंडल,


िविध द्वारा, यह उपबंध कर सकेगा िक प्र येक सहकारी सोसाइटी के साधारण िनकाय की
वािषर्क बैठक, ऐसे कारबार का सं यवहार करने के, जो ऐसी िविध म उपबंिधत िकया जाए,
िव ीय वषर् की समाि के छह मास की अविध के भीतर, संयोिजत की जाएगी ।
भारत का संिवधान 141

243यण. सच ू ना प्रा करने का सद य का अिधकार -- (1) िकसी रा य का िवधान-


मंडल, िविध द्वारा, सहकारी सोसाइटी के प्र येक सद य की सहकारी सोसाइटी की ऐसी बिहय ,
सचू ना और लेखाओं तक, जो ऐसे सद य के साथ उसके कारबार के िनयिमत सं यवहार म रखे
गए ह , पहुंच के िलए उपबंध कर सकेगा ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, सहकारी सोसाइटी के प्रबंधन म सद य
की भागीदारी सिु नि त करने के िलए, सद य द्वारा बैठक म उपि थित की ऐसी यन ू तम
अपेक्षा का उपबंध करते हुए और सेवाओं के ऐसे यूनतम तर का उपयोग करते हुए, जो ऐसी
िविध म उपबंध िकया जाए, उपबंध कर सकेगा ।
(3) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, अपने सद य के िलए सहकारी िशक्षा
और प्रिशक्षण का उपबंध कर सकेगा ।
243यत. िववरिणयां -- प्र येक सहकारी सोसाइटी, प्र येक िव ीय वषर् की समाि के
छह मास के भीतर रा य सरकार द्वारा अिभिहत प्रािधकारी को ऐसी िववरिणयां फाइल करे गी,
िजनम िन निलिखत बात सि मिलत ह गी, अथार्त ् :--
(क) उसके िक्रयाकलाप की वािषर्क िरपोटर् ;
(ख) उसके लेखाओं का संपरीिक्षत िववरण ;
(ग) अिधशेष के ययन की योजना, जो सहकारी सोसाइटी के साधारण िनकाय
द्वारा यथा अनुमोिदत हो ;
(घ) सहकारी सोसाइटी की उपिविधय के संशोधन , यिद कोई ह , की सच
ू ी ;
(ङ) उसके साधारण िनकाय की बैठक आयोिजत करने की तारीख और
िनवार्चन का, जब िनयत ह , संचालन करने के संबंध म घोषणा ; और
(च) रा य अिधिनयम के िक हीं उपबंध के अनुसरण म रिज ट्रार द्वारा
अपेिक्षत कोई अ य जानकारी ।
243यथ. अपराध और शाि तयां -- (1) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,
सहकारी सोसाइिटय से संबंिधत अपराध और ऐसे अपराध के िलए शाि तय से संबंिधत
उपबंध कर सकेगा ।
(2) खंड (1) के अधीन िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध म
िन निलिखत कायर् करना या उसका लोप करना अपराध के प म सि मिलत होगा, अथार्त ् :--
(क) कोई सहकारी सोसाइटी या उसका कोई अिधकारी या सद य जानबूझकर
िम या िववरणी बनाता है या िम या जानकारी दे ता है अथवा कोई यिक्त जानबझ
ू कर
ऐसी जानकारी नहीं दे ता है , जो इस िनिम रा य अिधिनयम के उपबंध के अधीन
प्रािधकृत यिक्त द्वारा उससे अपेिक्षत की गई हो ;
भारत का संिवधान 142

(ख) कोई यिक्त जानबूझकर या िकसी युिक्तयुक्त कारण के िबना रा य


अिधिनयम के उपबंध के अधीन जारी िकए गए िकसी समन, अ यपेक्षा या िविधपूणर्
िलिखत आदे श की अवज्ञा करता है ;
(ग) कोई िनयोजक, जो पयार् कारण के िबना, उसके द्वारा उसके कमर्चारी से
काटी गई रकम का, उस तारीख से, िजसको ऐसी कटौती की गई है , चौदह िदन की
अविध के भीतर सहकारी सोसाइटी को संदाय करने म असफल रहता है ;
(घ) ऐसा कोई अिधकारी या अिभरक्षक, जो ऐसी िकसी सहकारी सोसाइटी की,
िजसका वह अिधकारी या अिभरक्षक है , बिहय , लेखाओं, द तावेज , अिभलेख , रोकड़,
प्रितभिू त या अ य संपि की अिभरक्षा िकसी प्रािधकृत यिक्त को स पने म असफल
रहता है ; और
(ङ) जो कोई बोडर् के सद य या पदािधकािरय के िनवार्चन से पहले, उसके
दौरान या प ात ् कोई भ्र आचरण अपनाता है ।
243यद. बहुरा य सहकारी सोसाइिटय को लागू होना -- इस भाग के उपबंध, बहुरा य
सहकारी सोसाइिटय को इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू ह गे िक “रा य का िवधान-
मंडल”, “रा य अिधिनयम” या “रा य सरकार” के प्रित िकसी िनदश का वही अथर् लगाया
जाएगा जो क्रमशः, “संस ”, “के द्रीय अिधिनयम” या “के द्रीय सरकार” का है ।
243यध. संघ रा यक्षेत्र को लागू होना -- इस भाग के उपबंध, संघ रा यक्षेत्र को लागू
ह गे और ऐसे संघ रा यक्षेत्र को, िजसकी कोई िवधान सभा नहीं है , उसी प्रकार लागू ह गे मानो
िकसी रा य के िवधान-मंडल के प्रितिनदश, अनु छे द 239 के अधीन िनयक्त ु उसके प्रशासक के
प्रित और ऐसे संघ रा यक्षेत्र के संबंध म, िजसकी कोई िवधान सभा है , उस िवधान सभा के
प्रितिनदश है :
परं तु रा पित, राजपत्र म, अिधसच
ू ना द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस भाग के
उपबंध ऐसे िकसी संघ रा यक्षेत्र या उसके भाग को, िजसे वह अिधसच ू ना म िविनिदर् करे ,
लागू नहीं ह गे ।
243यन. िवद्यमान िविधय का जारी रहना -- इस भाग म िकसी बात के होते हुए भी,
संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 के प्रारं भ से ठीक पूवर् िकसी रा य म प्रव ृ
सहकारी सोसाइिटय से संबंिधत िकसी िविध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंध से
असंगत है , उसे सक्षम िवधान-मंडल या अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा संशोिधत या िनरिसत िकए
जाने तक या ऐसे प्रारं भ से एक वषर् के समा होने तक, इनम से जो भी कम हो, प्रव ृ बना
रहे गा ।]
भाग 10
अनुसूिचत और जनजाित क्षेत्र
244. अनुसूिचत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र का प्रशासन – (1) पांचवीं अनुसूची के
उपबंध 1[असम, 2[3[मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम]] रा य ] से िभ न 4*** िकसी रा य
के अनुसूिचत क्षेत्र और अनुसूिचत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण के िलए लागू
ह गे ।
(2) छठी अनुसूची के उपबंध 1[असम, 2[5[मेघालय,] ित्रपुरा] और िमजोरम रा य ]
के] जनजाित क्षेत्र के प्रशासन के िलए लागू ह गे ।
6
[244क. असम के कुछ जनजाित क्षेत्र को समािव करने वाला एक वशासी
रा य बनाना और उसके िलए थानीय िवधान-मंडल या मंित्र-पिरष का या दोन का
सजृ न – (1) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा असम रा य
के भीतर एक वशासी रा य बना सकेगी, िजसम छठी अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न
सारणी के 7[भाग 1] म िविनिदर् सभी या कोई जनजाित क्षेत्र (पूणत र् ः या भागतः)
समािव ह गे और उसके िलए –
(क) उस वशासी रा य के िवधान-मंडल के प म कायर् करने के िलए
िनवार्िचत या भागतः नामिनदिशत और भागतः िनवार्िचत िनकाय का, या
(ख) मंित्र-पिरष का,
या दोन का सजृ न कर सकेगी, िजनम से प्र येक का गठन, शिक्तयां और कृ य वे ह गे
जो उस िविध म िविनिदर् िकए जाएं ।
(2) खंड (1) म िनिदर् िविध, िविश तया, –

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
2. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” श द
के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा “और मेघालय” श द के थान पर (1-4-1985
से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
5. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा रा य
और िमजोरम संघ रा यक्षेत्र” श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
7. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।

143
भारत का संिवधान 144

(क) रा य सूची या समवतीर् सूची म प्रगिणत वे िवषय िविनिदर् कर


सकेगी िजनके संबंध म वशासी रा य के िवधान-मंडल को संपूणर् वशासी रा य
के िलए या उसके िकसी भाग के िलए िविध बनाने की शिक्त, असम रा य के
िवधान-मंडल का अपवजर्न करके या अ यथा, होगी ;
(ख) वे िवषय पिरिनि त कर सकेगी िजन पर उस वशासी रा य की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार होगा ;
(ग) यह उपबंध कर सकेगी िक असम रा य द्वारा उद्गहीत
ृ कोई कर
वशासी रा य को वहां तक स पा जाएगा जहां तक उसके आगम वशासी रा य
से प्रा हुए माने जा सकते ह ;
(घ) यह उपबंध कर सकेगी िक इस संिवधान के िकसी अनु छे द म रा य
के प्रित िकसी िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक उसके अंतगर्त वशासी
रा य के प्रित िनदश है ; और
(ङ) ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक या पािरणािमक उपबंध कर सकेगी जो
आव यक समझे जाएं ।
(3) पूव क्त प्रकार की िकसी िविध का कोई संशोधन, जहां तक वह संशोधन खंड
(2) के उपखंड (क) या उपखंड (ख) म िविनिदर् िवषय म से िकसी से संबंिधत है , तब
तक प्रभावी नहीं होगा जब तक वह संशोधन संस के प्र येक सदन म उपि थत और
मत दे ने वाले कम से कम दो-ितहाई सद य द्वारा पािरत नहीं कर िदया जाता है ।
(4) इस अनु छे द म िनिदर् िविध को अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस
संिवधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा िक उसम कोई ऐसा
उपबंध अंतिवर् है जो इस संिवधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव
रखता है ।]
भाग 11
संघ और रा य के बीच संबध

अ याय 1 – िवधायी संबंध
िवधायी शिक्तय का िवतरण
245. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय का
िव तार–(1) इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, संस भारत के संपूणर् रा यक्षेत्र
या उसके िकसी भाग के िलए िविध बना सकेगी और िकसी रा य का िवधान-मंडल संपण ू र्
रा य या उसके िकसी भाग के िलए िविध बना सकेगा ।
(2) संस द्वारा बनाई गई कोई िविध इस आधार पर अिविधमा य नहीं समझी
जाएगी िक उसका रा यक्षेत्रातीत प्रवतर्न होगा ।
246. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय की िवषय-
व तु–(1) खंड (2) और खंड (3) म िकसी बात के होते हुए भी, संस को सातवीं
अनुसूची की सूची 1 म (िजसे इस संिवधान म “संघ सच ू ी” कहा गया है ) प्रगिणत िकसी
भी िवषय के संबंध म िविध बनाने की अन य शिक्त है ।
(2) खंड (3) म िकसी बात के होते हुए भी, संस को और खंड (1) के अधीन
रहते हुए, 1*** िकसी रा य के िवधान-मंडल को भी, सातवीं अनस ु च
ू ी की सच
ू ी 3 म
(िजसे इस संिवधान म “समवतीर् सूची” कहा गया है ) प्रगिणत िकसी भी िवषय के संबंध
म िविध बनाने की शिक्त है ।
(3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, 1*** िकसी रा य के िवधान-
मंडल को, सातवीं अनस ु च
ू ी की सच
ू ी 2 म (िजसे इस संिवधान म “रा य सच
ू ी” कहा गया
है ) प्रगिणत िकसी भी िवषय के संबंध म उस रा य या उसके िकसी भाग के िलए िविध
बनाने की अन य शिक्त है ।
(4) संस को भारत के रा यक्षेत्र के ऐसे भाग के िलए 2[जो िकसी रा य] के
अंतगर्त नहीं है , िकसी भी िवषय के संबंध म िविध बनाने की शिक्त है , चाहे वह िवषय
रा य सूची म प्रगिणत िवषय ही क्य न हो ।
3
[246क. माल और सेवा कर के संबंध म िवशेष उपबंध--(1) अनु छे द 246 और
अनु छे द 254 म िकसी बात के होते हए भी, संस को, और खंड (2) के अधीन रहते
हुए प्र येक रा य के िवधान-मंडल को, संघ द्वारा या उस रा य द्वारा अिधरोिपत माल और
सेवा कर के संबंध म िविधयां बनाने की शिक्त होगी ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म” श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
145
भारत का संिवधान 146

(2) जहां माल का या सेवाओं का अथवा दोन का प्रदाय अ तरराि यक यापार


या वािण य के अनुक्रम म होता है वहां संस को, माल और सेवा कर के संबंध म
िविधयां बनाने की अन य शिक्त प्रा है ।
प ीकरण--इस अनु छे द के उपबंध, अनु छे द 279क के खंड (5) म िनिदर् माल
और सेवा कर के संबंध म, माल और सेवा कर पिरष द्वारा िसफािरश की गई तारीख से
प्रभावी ह गे ।]
247. कुछ अितिरक्त यायालय की थापना का उपबंध करने की संस की शिक्त–
इस अ याय म िकसी बात के होते हुए भी, संस अपने द्वारा बनाई गई िविधय के या
िकसी िवद्यमान िविध के, जो संघ सच ू ी म प्रगिणत िवषय के संबंध म है , अिधक अ छे
प्रशासन के िलए अितिरक्त यायालय की थापना का िविध द्वारा उपबंध कर सकेगी ।
248. अविश िवधायी शिक्तयां–(1) 1[अनु छे द 246क के अधीन रहते हुए, संस ]
को िकसी ऐसे िवषय के संबंध म, जो समवतीर् सूची या रा य सूची म प्रगिणत नहीं है ,
िविध बनाने की अन य शिक्त है ।
(2) ऐसी शिक्त के अंतगर्त ऐसे कर के अिधरोपण के िलए जो उन सूिचय म से
िकसी म विणर्त नहीं है , िविध बनाने की शिक्त है ।
249. रा य सूची म के िवषय के संबंध म रा ीय िहत म िविध बनाने की संस
की शिक्त–(1) इस अ याय के पूवग र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, यिद रा य
सभा ने उपि थत और मत दे ने वाले सद य म से कम से कम दो-ितहाई सद य द्वारा
समिथर्त संक प द्वारा घोिषत िकया है िक रा ीय िहत म यह आव यक या समीचीन है िक
संस 2[अनु छे द 246क के अधीन उपबंिधत माल और सेवा कर या] रा य सूची म
प्रगिणत ऐसे िवषय के संबंध म, जो उस संक प म िविनिदर् है , िविध बनाए तो जब तक
वह संक प प्रव ृ है , संस के िलए उस िवषय के संबंध म भारत के संपूणर् रा यक्षेत्र या
उसके िकसी भाग के िलए िविध बनाना िविधपूणर् होगा ।
(2) खंड (1) के अधीन पािरत संक प एक वषर् से अनिधक ऐसी अविध के िलए
प्रव ृ रहे गा जो उसम िविनिदर् की जाए :
परं तु यिद और िजतनी बार िकसी ऐसे संक प को प्रव ृ बनाए रखने का
अनुमोदन करने वाला संक प खंड (1) म उपबंिधत रीित से पािरत हो जाता है तो और
उतनी बार ऐसा संक प उस तारीख से, िजसको वह इस खंड के अधीन अ यथा प्रव ृ
नहीं रहता, एक वषर् की और अविध तक प्रव ृ रहे गा ।
(3) संस द्वारा बनाई गई कोई िविध, िजसे संस खंड (1) के अधीन संक प के
पािरत होने के अभाव म बनाने के िलए सक्षम नहीं होती, संक प के प्रव ृ न रहने के
प ात ् छह मास की अविध की समाि पर अक्षमता की मात्रा तक उन बात के िसवाय
प्रभावी नहीं रहे गी िज ह उक्त अविध की समाि से पहले िकया गया है या करने का लोप
िकया गया है ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 4 द्वारा “संस ” के थान पर (16-9-2016 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 147

250. यिद आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म हो तो रा य सूची म के िवषय के


संबंध म िविध बनाने की संस की शिक्त – (1) इस अ याय म िकसी बात के होते हुए
भी, संस को, जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म है , 1[अनु छे द 246क के अधीन
उपबंिधत माल या सेवा कर या] रा य सूची म प्रगिणत िकसी भी िवषय के संबंध म
भारत के संपूणर् रा यक्षेत्र या उसके िकसी भाग के िलए िविध बनाने की शिक्त होगी ।
(2) संस द्वारा बनाई गई कोई िविध, िजसे संस आपात की उद्घोषणा के अभाव
म बनाने के िलए सक्षम नहीं होती, उद्घोषणा के प्रवतर्न म न रहने के प ात ् छह मास
की अविध की समाि पर अक्षमता की मात्रा तक उन बात के िसवाय प्रभावी नहीं रहे गी
िज ह उक्त अविध की समाि से पहले िकया गया है या करने का लोप िकया गया है ।
251. संस द्वारा अनु छे द 249 और अनु छे द 250 के अधीन बनाई गई िविधय
और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय म असंगित – अनु छे द 249 और
अनु छे द 250 की कोई बात िकसी रा य के िवधान-मंडल की ऐसी िविध बनाने की शिक्त
को, िजसे इस संिवधान के अधीन बनाने की शिक्त उसको है , िनबर्ंिधत नहीं करे गी िकं तु
यिद िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध का कोई उपबंध संस द्वारा बनाई
गई िविध के, िजसे उक्त अनु छे द म से िकसी अनु छे द के अधीन बनाने की शिक्त संस
को है , िकसी उपबंध के िव द्ध है तो संस द्वारा बनाई गई िविध अिभभावी होगी चाहे वह
रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध से पहले या उसके बाद म पािरत की गई हो
और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध उस िवरोध की मात्रा तक अप्रवतर्नीय
होगी िकं तु ऐसा तभी तक होगा जब तक संस द्वारा बनाई गई िविध प्रभावी रहती है ।
252. दो या अिधक रा य के िलए उनकी सहमित से िविध बनाने की संस की
शिक्त और ऐसी िविध का िकसी अ य रा य द्वारा अंगीकार िकया जाना – (1) यिद
िक हीं दो या अिधक रा य के िवधान-मंडल को यह वांछनीय प्रतीत होता है िक उन
िवषय म से, िजनके संबंध म संस को अनु छे द 249 और अनु छे द 250 म यथा
उपबंिधत के िसवाय रा य के िलए िविध बनाने की शिक्त नहीं है , िकसी िवषय का
िविनयमन ऐसे रा य म संस िविध द्वारा करे और यिद उन रा य के िवधान-मंडल के
सभी सदन उस आशय के संक प पािरत करते ह तो उस िवषय का तदनुसार िविनयमन
करने के िलए कोई अिधिनयम पािरत करना संस के िलए िविधपण ू र् होगा और इस
प्रकार पािरत अिधिनयम ऐसे रा य को लागू होगा और ऐसे अ य रा य को लागू होगा,
जो त प ात ् अपने िवधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन ह वहां दोन सदन म
से प्र येक सदन इस िनिम पािरत संक प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है ।
(2) संस द्वारा इस प्रकार पािरत िकसी अिधिनयम का संशोधन या िनरसन इसी
रीित से पािरत या अंगीकृत संस के अिधिनयम द्वारा िकया जा सकेगा, िकं तु उसका उस

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 148

रा य के संबंध म संशोधन या िनरसन िजसको वह लागू होता है , उस रा य के िवधान-


मंडल के अिधिनयम द्वारा नहीं िकया जाएगा ।
253. अंतररा ीय करार को प्रभावी करने के िलए िवधान – इस अ याय के
पवू ग
र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस को िकसी अ य दे श या दे श के
साथ की गई िकसी संिध, करार या अिभसमय अथवा िकसी अंतररा ीय स मेलन, संगम
या अ य िनकाय म िकए गए िकसी िविन य के कायार् वयन के िलए भारत के संपूणर्
रा यक्षेत्र या उसके िकसी भाग के िलए कोई िविध बनाने की शिक्त है ।
254. संस द्वारा बनाई गई िविधय और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िविधय म असंगित – (1) यिद िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध का
कोई उपबंध संस द्वारा बनाई गई िविध के, िजसे अिधिनयिमत करने के िलए संस
सक्षम है , िकसी उपबंध के या समवतीर् सूची म प्रगिणत िकसी िवषय के संबंध म
िवद्यमान िविध के िकसी उपबंध के िव द्ध है तो खंड (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए,
यथाि थित, संस द्वारा बनाई गई िविध, चाहे वह ऐसे रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई
गई िविध से पहले या उसके बाद म पािरत की गई हो, या िवद्यमान िविध, अिभभावी
होगी और उस रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध उस िवरोध की मात्रा तक
शू य होगी ।
(2) जहां 1*** रा य के िवधान-मंडल द्वारा समवतीर् सूची म प्रगिणत िकसी िवषय
के संबंध म बनाई गई िविध म कोई ऐसा उपबंध अंतिवर् है जो संस द्वारा पहले बनाई
गई िविध के या उस िवषय के संबंध म िकसी िवद्यमान िविध के उपबंध के िव द्ध है तो
यिद ऐसे रा य के िवधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई िविध को रा पित के िवचार के
िलए आरिक्षत रखा गया है और उस पर उसकी अनुमित िमल गई है तो वह िविध उस
रा य म अिभभावी होगी :
परं तु इस खंड की कोई बात संस को उसी िवषय के संबंध म कोई िविध, िजसके
अंतगर्त ऐसी िविध है , जो रा य के िवधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई िविध का
पिरवधर्न, संशोधन, पिरवतर्न या िनरसन करती है , िकसी भी समय अिधिनयिमत करने
से िनवािरत नहीं करे गी ।
255. िसफािरश और पूवर् मंजूरी के बारे म अपेक्षाओं को केवल प्रिक्रया के िवषय
मानना – यिद संस के या 1*** िकसी रा य के िवधान-मंडल के िकसी अिधिनयम
को –
(क) जहां रा यपाल की िसफािरश अपेिक्षत थी वहां रा यपाल या रा पित ने,
(ख) जहां राजप्रमुख की िसफािरश अपेिक्षत थी वहां राजप्रमुख या रा पित ने,

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 149

(ग) जहां रा पित की िसफािरश या पव


ू र् मंजूरी अपेिक्षत थी वहां रा पित ने,
अनमु ित दे दी है तो ऐसा अिधिनयम और ऐसे अिधिनयम का कोई उपबंध केवल इस
कारण अिविधमा य नहीं होगा िक इस संिवधान द्वारा अपेिक्षत कोई िसफािरश नहीं की
गई थी या पूवर् मंजूरी नहीं दी गई थी ।
अ याय 2 – प्रशासिनक संबध

साधारण
256. रा य की और संघ की बा यता – प्र येक रा य की कायर्पािलका शिक्त का
इस प्रकार प्रयोग िकया जाएगा िजससे संस द्वारा बनाई गई िविधय का और ऐसी
िवद्यमान िविधय का, जो उस रा य म लागू ह, अनुपालन सिु नि त रहे और संघ की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार िकसी रा य को ऐसे िनदे श दे ने तक होगा जो भारत
सरकार को उस प्रयोजन के िलए आव यक प्रतीत ह ।
257. कुछ दशाओं म रा य पर संघ का िनयंत्रण – (1) प्र येक रा य की
कायर्पािलका शिक्त का इस प्रकार प्रयोग िकया जाएगा िजससे संघ की कायर्पािलका शिक्त
के प्रयोग म कोई अड़चन न हो या उस पर कोई प्रितकूल प्रभाव न पड़े और संघ की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार िकसी रा य को ऐसे िनदे श दे ने तक होगा जो भारत
सरकार को इस प्रयोजन के िलए आव यक प्रतीत ह ।
(2) संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार रा य को ऐसे संचार साधन के
िनमार्ण और बनाए रखने के बारे म िनदे श दे ने तक भी होगा िजनका रा ीय या सैिनक
मह व का होना उस िनदे श म घोिषत िकया गया है :
परं तु इस खंड की कोई बात िकसी राजमागर् या जलमागर् को रा ीय राजमागर् या
रा ीय जलमागर् घोिषत करने की संस की शिक्त को अथवा इस प्रकार घोिषत राजमागर्
या जलमागर् के बारे म संघ की शिक्त को अथवा सेना, नौसेना और वायुसेना संकमर्
िवषयक अपने कृ य के भाग प संचार साधन के िनमार्ण और बनाए रखने की संघ की
शिक्त को िनबर्ंिधत करने वाली नहीं मानी जाएगी ।
(3) संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार िकसी रा य म रे ल के संरक्षण के
िलए िकए जाने वाले उपाय के बारे म उस रा य को िनदे श दे ने तक भी होगा ।
(4) जहां खंड (2) के अधीन संचार साधन के िनमार्ण या बनाए रखने के बारे म
अथवा खंड (3) के अधीन िकसी रे ल के संरक्षण के िलए िकए जाने वाले उपाय के बारे
म िकसी रा य को िदए गए िकसी िनदे श के पालन म उस खचर् से अिधक खचर् हो गया
है जो, यिद ऐसा िनदे श नहीं िदया गया होता तो रा य के प्रसामा य कतर् य के िनवर्हन
म खचर् होता वहां उस रा य द्वारा इस प्रकार िकए गए अितिरक्त खच के संबंध म भारत
सरकार द्वारा उस रा य को ऐसी रािश का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव म
ऐसी रािश का, िजसे भारत के मुख्य यायमूितर् द्वारा िनयुक्त म य थ अवधािरत करे ,
संदाय िकया जाएगा ।
1
[257क. [संघ के सश बल या अ य बल के अिभिनयोजन द्वारा रा य की

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 150

सहायता ।]–संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 33 द्वारा


(20-6-1979 से) िनरिसत ।
258. कुछ दशाओं म रा य को शिक्त प्रदान करने, आिद की, संघ की शिक्त –
(1) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, रा पित, िकसी रा य की सरकार की
सहमित से उस सरकार को या उसके अिधकािरय को ऐसे िकसी िवषय से संबंिधत कृ य,
िजन पर संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार है , सशतर् या िबना शतर् स प सकेगा ।
(2) संस द्वारा बनाई गई िविध, जो िकसी रा य को लागू होती है ऐसे िवषय से
संबंिधत होने पर भी, िजसके संबंध म रा य के िवधान-मंडल को िविध बनाने की शिक्त
नहीं है , उस रा य या उसके अिधकािरय और प्रािधकािरय को शिक्त प्रदान कर सकेगी
और उन पर कतर् य अिधरोिपत कर सकेगी या शिक्तय का प्रदान िकया जाना और
कतर् य का अिधरोिपत िकया जाना प्रािधकृत कर सकेगी ।
(3) जहां इस अनु छे द के आधार पर िकसी रा य अथवा उसके अिधकािरय या
प्रािधकािरय को शिक्तयां प्रदान की गई ह या उन पर कतर् य अिधरोिपत िकए गए ह वहां
उन शिक्तय और कतर् य के प्रयोग के संबंध म रा य द्वारा प्रशासन म िकए गए
अितिरक्त खच के संबंध म भारत सरकार द्वारा उस रा य को ऐसी रािश का, जो करार
पाई जाए या करार के अभाव म ऐसी रािश का, िजसे भारत के मुख्य यायमिू तर् द्वारा
िनयक्त
ु म य थ अवधािरत करे , संदाय िकया जाएगा ।
[258क. संघ को कृ य स पने की रा य की शिक्त – इस संिवधान म िकसी बात
1

के होते हुए भी, िकसी रा य का रा यपाल, भारत सरकार की सहमित से उस सरकार को


या उसके अिधकािरय को ऐसे िकसी िवषय से संबंिधत कृ य, िजन पर उस रा य की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार है , सशतर् या िबना शतर् स प सकेगा ।]
259. [पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के रा य के सश बल ।] – संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस ू ी द्वारा िनरिसत ।
ु च
260. भारत के बाहर के रा यक्षेत्र के संबंध म संघ की अिधकािरता – भारत
सरकार िकसी ऐसे रा यक्षेत्र की सरकार से, जो भारत के रा यक्षेत्र का भाग नहीं है ,
करार करके ऐसे रा यक्षेत्र की सरकार म िनिहत िक हीं कायर्पालक, िवधायी या याियक
कृ य का भार अपने ऊपर ले सकेगी, िक तु प्र येक ऐसा करार िवदे शी अिधकािरता के
प्रयोग से संबंिधत त समय प्रव ृ िकसी िविध के अधीन होगा और उससे शािसत होगा ।
261. सावर्जिनक कायर्, अिभलेख और याियक कायर्वािहयां – (1) भारत के
रा यक्षेत्र म सवर्त्र, संघ के और प्र येक रा य के सावर्जिनक काय , अिभलेख और

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 151

याियक कायर्वािहय को पूरा िव ास और पूरी मा यता दी जाएगी ।


(2) खंड (1) म िनिदर् काय , अिभलेख और कायर्वािहय को सािबत करने की
रीित और शत तथा उनके प्रभाव का अवधारण संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
उपबंिधत रीित के अनुसार िकया जाएगा ।
(3) भारत के रा यक्षेत्र के िकसी भाग म िसिवल यायालय द्वारा िदए गए अंितम
िनणर्य या आदे श का उस रा यक्षेत्र के भीतर कहीं भी िविध के अनुसार िन पादन िकया
जा सकेगा ।
जल संबंधी िववाद
262. अंतरराि यक निदय या नदी-दन ू के जल संबंधी िववाद का
यायिनणर्यन – (1) संस , िविध द्वारा, िकसी अंतरराि यक नदी या नदी-दन
ू के या
उसम जल के प्रयोग, िवतरण या िनयंत्रण के संबध ं म िकसी िववाद या पिरवाद के
यायिनणर्यन के िलए उपबंध कर सकेगी ।
(2) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, संस , िविध द्वारा, उपबंध कर
सकेगी िक उ चतम यायालय या कोई अ य यायालय खंड (1) म िनिदर् िकसी िववाद
या पिरवाद के संबंध म अिधकािरता का प्रयोग नहीं करे गा ।
रा य के बीच सम वय
263. अंतररा य पिरष के संबंध म उपबंध – यिद िकसी समय रा पित को यह
प्रतीत होता है िक ऐसी पिरष की थापना से लोक िहत की िसिद्ध होगी िजसे –
(क) रा य के बीच जो िववाद उ प न हो गए ह उनकी जांच करने और
उन पर सलाह दे ने;
(ख) कुछ या सभी रा य के अथवा संघ और एक या अिधक रा य के
सामा य िहत से संबिं धत िवषय के अ वेषण और उन पर िवचार-िवमशर् करने;
या
(ग) ऐसे िकसी िवषय पर िसफािरश करने और िविश तया उस िवषय के
संबंध म नीित और कारर् वाई के अिधक अ छे सम वय के िलए िसफािरश करने,
के कतर् य का भार स पा जाए तो रा पित के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह आदे श
द्वारा ऐसी पिरष की थापना करे और उस पिरष द्वारा िकए जाने वाले कतर् य की
प्रकृित को तथा उसके संगठन और प्रिक्रया को पिरिनि त करे ।
भाग 12
िव , संपि , संिवदाएं और वाद
अ याय 1 – िव
साधारण
[264. िनवर्चन – इस भाग म, “िव
1
आयोग” से अनु छे द 280 के अधीन
गिठत िव आयोग अिभप्रेत है ।]
265. िविध के प्रािधकार के िबना कर का अिधरोपण न िकया जाना – कोई कर
िविध के प्रािधकार से ही अिधरोिपत या संगह
ृ ीत िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
266. भारत और रा य की संिचत िनिधयां और लोक लेखे – (1) अनु छे द 267
के उपबंध के तथा कुछ कर और शु क के शुद्ध आगम पूणत र् ः या भागतः रा य को स प
िदए जाने के संबंध म इस अ याय के उपबंध के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्रा
सभी राज व, उस सरकार द्वारा राज हुंिडयां िनगर्िमत करके, उधार द्वारा या अथ पाय
अिग्रम द्वारा िलए गए सभी उधार और उधार के प्रितसंदाय म उस सरकार को प्रा सभी
धनरािशय की एक संिचत िनिध बनेगी जो “भारत की संिचत िनिध” के नाम से ज्ञात
होगी तथा िकसी रा य सरकार को प्रा सभी राज व, उस सरकार द्वारा राज हुंिडयां
िनगर्िमत करके, उधार द्वारा या अथ पाय अिग्रम द्वारा िलए गए सभी उधार और उधार के
प्रितसंदाय म उस सरकार को प्रा सभी धनरािशय की एक संिचत िनिध बनेगी जो “रा य
की संिचत िनिध” के नाम से ज्ञात होगी ।
(2) भारत सरकार या िकसी रा य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्रा सभी
अ य लोक धनरािशयां, यथाि थित, भारत के लोक लेखे म या रा य के लोक लेखे म
जमा की जाएंगी ।
(3) भारत की संिचत िनिध या रा य की संिचत िनिध म से कोई धनरािशयां
िविध के अनुसार तथा इस संिवधान म उपबंिधत प्रयोजन के िलए और रीित से ही
िविनयोिजत की जाएंगी, अ यथा नहीं ।
267. आकि मकता िनिध – (1) संस , िविध द्वारा, अग्रदाय के व प की एक
आकि मकता िनिध की थापना कर सकेगी जो “भारत की आकि मकता िनिध” के नाम
से ज्ञात होगी िजसम ऐसी िविध द्वारा अवधािरत रािशयां समय-समय पर जमा की जाएंगी
और अनवेिक्षत यय का अनु छे द 115 या अनु छे द 116 के अधीन संस द्वारा, िविध
द्वारा, प्रािधकृत िकया जाना लंिबत रहने तक ऐसी िनिध म से ऐसे यय की पिू तर् के िलए
अिग्रम धन दे ने के िलए रा पित को समथर् बनाने के िलए उक्त िनिध रा पित के
ययनाधीन रखी जाएगी ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
152
भारत का संिवधान 153

(2) रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, अग्रदाय के व प की एक आकि मकता


िनिध की थापना कर सकेगा जो “रा य की आकि मकता िनिध” के नाम से ज्ञात होगी
िजसम ऐसी िविध द्वारा अवधािरत रािशयां समय-समय पर जमा की जाएंगी और
अनवेिक्षत यय का अनु छे द 205 या अनु छे द 206 के अधीन रा य के िवधान-मंडल
द्वारा, िविध द्वारा, प्रािधकृत िकया जाना लंिबत रहने तक ऐसी िनिध म से ऐसे यय की
पूितर् के िलए अिग्रम धन दे ने के िलए रा यपाल को समथर् बनाने के िलए उक्त िनिध रा य
के रा यपाल 1*** के ययनाधीन रखी जाएगी ।

संघ और रा य के बीच राज व का िवतरण

268. संघ द्वारा उद्गहीतृ िकए जाने वाले िकं तु रा य द्वारा संगहृ ीत और
िविनयोिजत िकए जाने वाले शु क – (1) ऐसे टांप-शु क 2*** जो संघ सच ू ी म विणर्त
ह, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाएं गे , िकं तु –

(क) उस दशा म, िजसम ऐसे शु क 3[संघ रा यक्षेत्र] के भीतर उ ग्रहणीय


ह, भारत सरकार द्वारा, और

(ख) अ य दशाओं म िजन-िजन रा य के भीतर ऐसे शु क उ ग्रहणीय ह,


उन-उन रा य द्वारा,

संगह
ृ ीत िकए जाएंगे ।
(2) िकसी रा य के भीतर उ ग्रहणीय िकसी ऐसे शु क के िकसी िव ीय वषर् म
आगम, भारत की संिचत िनिध के भाग नहीं ह गे, िक तु उस रा य को स प िदए
जाएंगे ।

268क. [संघ द्वारा उद्गहीत


4
ृ िकए जाने वाला और संघ तथा रा य द्वारा संगह
ृ ीत
और िविनयोिजत िकया जाने वाला सेवा-कर ।]–संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन)
अिधिनयम, 2016 की धारा 7 द्वारा (16-9-2016 से) लोप िकया गया ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 6 द्वारा (16-9-2016 से) "तथा औषधीय और प्रसाधन
िनिमर्ितय पर ऐसे उ पाद-शु क, " श द का लोप िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग म
िविनिदर् रा य” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत (प्रव ृ नहीं हुआ है ) ।
भारत का संिवधान 154

269. संघ द्वारा उद्गहीत


ृ और संगह
ृ ीत िकं तु रा य को स पे जाने वाले कर– [(1)
1

2
[अनु छे द 269क म यथा उपबंिधत के िसवाय,] माल के क्रय] या िवक्रय पर कर और
माल के परे षण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकए जाएंगे िक तु खंड
(2) म उपबंिधत रीित से रा य को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके प ात ् स प िदए
जाएंगे या स प िदए गए समझे जाएंगे ।
प ीकरण – इस खंड के प्रयोजन के िलए –
(क) “माल के क्रय या िवक्रय पर कर” पद से समाचारपत्र से िभ न माल
के क्रय या िवक्रय पर उस दशा म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा क्रय या िवक्रय
अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है ;
(ख) “माल के परे षण पर कर” पद से माल के परे षण पर (चाहे परे षण
उसके करने वाले यिक्त को या िकसी अ य यिक्त को िकया गया हो) उस दशा
म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा परे षण अंतरराि यक यापार या वािण य के
दौरान होता है ।
ु आगम वहां तक के िसवाय, जहां
(2) िकसी िव ीय वषर् म िकसी ऐसे कर के शद्ध
तक वे आगम संघ रा यक्षेत्र से प्रा हुए आगम माने जा सकते ह, भारत की संिचत
िनिध के भाग नहीं ह गे, िकं तु उन रा य को स प िदए जाएंगे िजनके भीतर वह कर उस
वषर् म उ ग्रहणीय ह और िवतरण के ऐसे िसद्धांत के अनुसार, जो संस िविध द्वारा
बनाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकए जाएंगे ।]
3
[(3) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 4[माल का क्रय या िवक्रय या
परे षण] कब अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है , िविध द्वारा िसद्धांत बना
सकेगी ।]
5
[269क. अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म माल और सेवा कर
का उ ग्रहण और संग्रहण--(1) अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय
पर माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगहृ ीत िकया जाएगा तथा ऐसा
कर उस रीित म, जो संस द्वारा, िविध द्वारा, माल और सेवा कर पिरष की िसफािरश
पर उपबंिधत की जाए, संघ और रा य के बीच प्रभािजत िकया जाएगा ।

1. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 खंड (1) और खंड (2) के थान पर (9-6-2000 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 8 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) “माल का क्रय या िवक्रय”
श द के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 9 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 155

प ीकरण--इस खंड के प्रयोजन के िलए, भारत के रा यक्षेत्र म आयात के


अनक्र
ु म म माल के या सेवाओं के या दोन के प्रदाय को अ तरराि यक यापार या
वािण य के अनक्र
ु म म माल का या सेवाओं का या दोन का प्रदाय समझा जाएगा ।
(2) खंड (1) के अधीन िकसी रा य को प्रभािजत रकम भारत की संिचत िनिध
का भाग नहीं होगी ।
(3) जहां खंड (1) के अधीन उद्गहीत
ृ कर के प म संगह ृ ीत रकम का उपयोग
अनु छे द 246क के अधीन िकसी रा य द्वारा उद्गहीत
ृ कर का संदाय करने के िलए िकया
गया है , वहां ऐसी रकम भारत की संिचत िनिध का भाग नहीं होगी ।
(4) जहां अनु छे द 246क के अधीन िकसी रा य द्वारा उद्गहीत
ृ कर के प म
संगह
ृ ीत रकम का उपयोग खंड (1) के अधीन उद्गहीत
ृ कर का संदाय करने के िलए िकया
गया है , वहां ऐसी रकम रा य की संिचत िनिध का भाग नहीं होगी ।
(5) संस , िविध द्वारा, प्रदाय के थान का और इस बात का िक माल का या
सेवाओं का अथवा दोन का प्रदाय अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म कब
होता है , अवधारण करने संबंधी िसद्धांत बना सकेगी ।]
[270. उद्गहीत
1
ृ कर और उनका संघ तथा रा य के बीच िवतरण–(1) क्रमशः
2
[अनु छे द 268, अनु छे द 269 और अनु छे द 269क] म िनिदर् शु क और कर के
िसवाय, संघ सूची म िनिदर् सभी कर और शु क ; अनु छे द 271 म िनिदर् कर और
शु क पर अिधभार और संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध के अधीन िविनिदर् प्रयोजन
के िलए उद्गहीत
ृ कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकए जाएंगे तथा
खंड (2) म उपबंिधत रीित से संघ और रा य के बीच िवतिरत िकए जाएंगे ।
3
[(1क) अनु छे द 246क के खंड (1) के अधीन संघ द्वारा संगह
ृ ीत कर भी, संघ
और रा य के बीच खंड (2) म उपबंिधत रीित म िवतिरत िकया जाएगा ।
(1ख) अनु छे द 246क के खंड (2) और अनु छे द 269क के अधीन संघ द्वारा
उद्गहीत
ृ और संगह ृ ीत ऐसा कर, िजसका उपयोग अनु छे द 246क के खंड (1) के अधीन
संघ द्वारा उद्गहीत
ृ कर का संदाय करने के िलए िकया गया है , और अनु छे द 269क के
खंड (1) के अधीन संघ को प्रभािजत रकम भी, संघ और रा य के बीच खंड (2) म
उपबंिधत रीित म िवतिरत की जाएगी ।]
(2) िकसी िव ीय वषर् म िकसी ऐसे कर या शु क के शुद्ध आगम का ऐसा

1. संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 3 द्वारा (9-6-2000 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (अट्ठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (प्रव ृनहीं हुआ और पुनः प्रित थािपत होने पर)
"अनु छे द 268 और अनु छे द 269" श द के थान पर "अनु छे द 268, अनु छे द 268क और अनु छे द 269"
प्रित थािपत िकए जाएंगे ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 156

प्रितशत, जो िविहत िकया जाए, भारत की संिचत िनिध का भाग नहीं होगा, िक तु उन
रा य को स प िदया जाएगा िजनके भीतर वह कर या शु क उस वषर् म उ ग्रहणीय है
और ऐसी रीित से और ऐसे समय से, जो खंड (3) म उपबंिधत रीित से िविहत िकया
जाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” से अिभप्रेत है –
(i) जब तक िव आयोग का गठन नहीं िकया जाता है तब तक रा पित
द्वारा आदे श द्वारा िविहत ; और
(ii) िव आयोग का गठन िकए जाने के प ात ् िव आयोग की िसफािरश
पर िवचार करने के प ात ् रा पित द्वारा आदे श द्वारा िविहत ।]
271. कुछ शु क और कर पर संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार – अनु छे द
269 और अनु छे द 270 म िकसी बात के होते हुए भी, संस , 1[अनु छे द 246क के
अधीन माल और सेवा कर के िसवाय,] उन अनु छे द म िनिदर् शु क या कर म से
िकसी म िकसी भी समय संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार द्वारा विृ द्ध कर सकेगी और
िकसी ऐसे अिधभार के संपूणर् आगम भारत की संिचत िनिध के भाग ह गे ।
272. [कर जो संघ द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह ृ ीत िकए जाते ह तथा जो संघ और
रा य के बीच िवतिरत िकए जा सकगे ।] –संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम,
2000 की धारा 4 द्वारा (9-6-2000 से) लोप िकया गया ।
273. जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के थान पर अनुदान – (1)
जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के प्र येक वषर् के शुद्ध आगम का कोई भाग
असम, िबहार, 2[ओिड़शा] और पि मी बंगाल रा य को स प िदए जाने के थान पर उन
रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म प्र येक वषर् भारत की संिचत िनिध पर
ऐसी रािशयां भािरत की जाएंगी जो िविहत की जाएं ।
(2) जूट पर और जूट उ पाद पर जब तक भारत सरकार कोई िनयार्त शु क
उद्गहीत
ृ करती रहती है तब तक या इस संिवधान के प्रारं भ से दस वषर् की समाि तक,
इन दोन म से जो भी पहले हो, इस प्रकार िविहत रािशयां भारत की संिचत िनिध पर
भािरत बनी रहगी ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” पद का वही अथर् है जो अनु छे द 270 म है ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 11 (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
2. उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 5 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 157

274. ऐसे कराधान पर िजसम रा य िहतबद्ध है , प्रभाव डालने वाले िवधेयक के


िलए रा पित की पवू र् िसफािरश की अपेक्षा – (1) कोई िवधेयक या संशोधन, जो ऐसा
कर या शु क, िजसम रा य िहतबद्ध है , अिधरोिपत करता है या उसम पिरवतर्न करता है
अथवा जो भारतीय आय-कर से संबंिधत अिधिनयिमितय के प्रयोजन के िलए पिरभािषत
“कृिष-आय” पद के अथर् म पिरवतर्न करता है अथवा जो उन िसद्धांत को प्रभािवत करता
है िजनसे इस अ याय के पव ू ग
र् ामी उपबंध म से िकसी उपबंध के अधीन रा य को
धनरािशयां िवतरणीय ह या हो सकगी अथवा जो संघ के प्रयोजन के िलए कोई ऐसा
अिधभार अिधरोिपत करता है जो इस अ याय के पूवग र् ामी उपबंध म विणर्त है , संस के
िकसी सदन म रा पित की िसफािरश पर ही पुरः थािपत या प्र तािवत िकया जाएगा,
अ यथा नहीं ।
(2) इस अनु छे द म, “ऐसा कर या शु क, िजसम रा य िहतबद्ध ह” पद से ऐसा
कोई कर या शु क अिभप्रेत है –
(क) िजसके शुद्ध आगम पूणत
र् ः या भागतः िकसी रा य को स प िदए जाते
ह, या
(ख) िजसके शुद्ध आगम के प्रित िनदश से भारत की संिचत िनिध म से
िकसी रा य को रािशयां त समय संदेय ह ।
275. कुछ रा य को संघ से अनुदान – (1) ऐसी रािशयां, िजनका संस िविध
द्वारा उपबंध करे , उन रा य के राज व म सहायता अनद
ु ान के प म प्र येक वषर् भारत
की संिचत िनिध पर भािरत ह गी िजन रा य के िवषय म संस यह अवधािरत करे िक
उ ह सहायता की आव यकता है और िभ न-िभ न रा य के िलए िभ न-िभ न रािशयां
िनयत की जा सकगी :
परं तु िकसी रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म भारत की संिचत
िनिध म से ऐसी पूंजी और आवतीर् रािशयां संद की जाएंगी जो उस रा य को उन
िवकास कीम के खच को पूरा करने म समथर् बनाने के िलए आव यक ह िज ह उस
रा य म अनुसूिचत जनजाितय के क याण की अिभविृ द्ध करने या उस रा य म
अनसु िू चत क्षेत्र के प्रशासन तर को उस रा य के शेष क्षेत्र के प्रशासन तर तक उ नत
करने के प्रयोजन के िलए उस रा य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ म िलया
जाए :
परं तु यह और िक असम रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म भारत
की संिचत िनिध म से ऐसी पंज
ू ी और आवतीर् रािशयां संद की जाएंगी –
भारत का संिवधान 158

(क) जो छठी अनस ू ी के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [भाग 1] म


ु च
1

िविनिदर् जनजाित क्षेत्र के प्रशासन के संबंध म इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक


पूवव
र् तीर् दो वषर् के दौरान औसत यय राज व से िजतना अिधक है , उसके बराबर
ह ; और
(ख) जो उन िवकास कीम के खच के बराबर ह िज ह उक्त क्षेत्र के
प्रशासन तर को उस रा य के शेष क्षेत्र के प्रशासन तर तक उ नत करने के
प्रयोजन के िलए उस रा य द्वारा भारत सरकार के अनम ु ोदन से हाथ म िलया
जाए ।
2
[(1क) अनु छे द 244क के अधीन वशासी रा य के बनाए जाने की तारीख को
और से –
(i) खंड (1) के दस
ू रे परं तक
ु के खंड (क) के अधीन संदेय कोई रािशयां
वशासी रा य को उस दशा म संद की जाएंगी जब उसम िनिदर् सभी जनजाित
क्षेत्र उस वशासी रा य म समािव ह और यिद वशासी रा य म उन जनजाित
क्षेत्र म से केवल कुछ ही समािव ह तो वे रािशयां असम रा य और वशासी
रा य के बीच ऐसे प्रभािजत की जाएंगी जो रा पित आदे श द्वारा िविनिदर् करे ;
(ii) वशासी रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म भारत की
संिचत िनिध म से ऐसी पंज ू ी और आवतीर् रािशयां संद की जाएंगी जो उन
िवकास कीम के खच के बराबर है िज ह वशासी रा य के प्रशासन तर को
शेष असम रा य के प्रशासन तर तक उ नत करने के प्रयोजन के िलए वशासी
रा य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ म िलया जाए ।]
(2) जब तक संस खंड (1) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक उस खंड के
अधीन संस को प्रद शिक्तयां रा पित द्वारा, आदे श द्वारा, प्रयोक्त य ह गी और रा पित
द्वारा इस खंड के अधीन िकया गया कोई आदे श संस द्वारा इस प्रकार िकए गए िकसी
उपबंध के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा :
परं तु िव आयोग का गठन िकए जाने के प ात ् रा पित द्वारा इस खंड के अधीन
कोई आदे श िव आयोग की िसफािरश पर िवचार करने के प ात ् ही िकया जाएगा,
अ यथा नहीं ।
276. विृ य , यापार , आजीिवकाओं और िनयोजन पर कर – (1) अनु छे द
246 म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी रा य के िवधान-मंडल की ऐसे कर से
संबंिधत कोई िविध, जो उस रा य के या उसम िकसी नगरपािलका, िजला बोडर्, थानीय
बोडर् या अ य थानीय प्रािधकारी के फायदे के िलए विृ य , यापार , आजीिवकाओं या
िनयोजन के संबंध म है , इस आधार पर अिविधमा य नहीं होगी िक वह आय पर कर
से संबंिधत है ।
(2) रा य को या उस रा य म िकसी एक नगरपािलका, िजला बोडर्, थानीय बोडर्

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 3 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 159

या अ य थानीय प्रािधकारी को िकसी एक यिक्त के बारे म विृ य , यापार , आजीिवकाओं


और िनयोजन पर कर के प म संदेय कुल रकम 1[दो हजार पांच सौ पए] प्रित वषर् से
अिधक नहीं होगी ।
2
* * * *
(3) विृ य , यापार , आजीिवकाओं और िनयोजन पर कर के संबंध म पूव क्त
प म िविधयां बनाने की रा य के िवधान-मंडल की शिक्त का यह अथर् नहीं लगाया
जाएगा िक वह विृ य , यापार , आजीिवकाओं और िनयोजन से प्रोद्भत ू या उद्भत
ू आय
पर कर के संबंध म िविधयां बनाने की संस की शिक्त को िकसी प्रकार सीिमत करती है

277. याविृ – ऐसे कर, शु क, उपकर या फीस, जो इस संिवधान के प्रारं भ से
ठीक पहले िकसी रा य की सरकार द्वारा अथवा िकसी नगरपािलका या अ य थानीय
प्रािधकारी या िनकाय द्वारा उस रा य, नगरपािलका, िजला या अ य थानीय क्षेत्र के
प्रयोजन के िलए िविधपूवक र् उद्गहीत
ृ की जा रही थी, इस बात के होते हुए भी िक वे कर,
शु क, उपकर या फीस संघ सच ू ी म विणर्त ह, तब तक उद्गहीत
ृ की जाती रहगी और उ हीं
प्रयोजन के िलए उपयोिजत की जाती रहगी जब तक संस , िविध द्वारा, इसके प्रितकूल
उपबंध नहीं करती है ।
278. [कुछ िव ीय िवषय के संबंध म पहली अनुसूची के भाग ख के रा य से
करार ।] – संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची
द्वारा (1-11-1956 से) िनरिसत ।
279. “शुद्ध आगम”, आिद की गणना – (1) इस अ याय के पूवग र् ामी उपबंध म
“शुद्ध आगम” से िकसी कर या शु क के संबंध म उसका वह आगम अिभप्रेत है जो
उसके संग्रहण के खच को घटाकर आए और उन उपबंध के प्रयोजन के िलए िकसी क्षेत्र
म या उससे प्रा हुए माने जा सकने वाले िकसी कर या शु क का अथवा िकसी कर या
शु क के िकसी भाग का शुद्ध आगम भारत के िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा अिभिनि त
और प्रमािणत िकया जाएगा और उसका प्रमाणपत्र अंितम होगा ।
(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके और इस अ याय के िकसी अ य अिभ यक्त
उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी ऐसी दशा म, िजसम इस भाग के अधीन िकसी शु क या
कर का आगम िकसी रा य को स प िदया जाता है या स प िदया जाए, संस द्वारा बनाई
गई िविध या रा पित का कोई आदे श उस रीित का, िजससे आगम की गणना की जानी है ,
उस समय का, िजससे या िजसम और उस रीित का, िजससे कोई संदाय िकए जाने ह, एक
िव ीय वषर् और दसू रे िव ीय वषर् म समायोजन करने का और अ य आनुषिं गक या सहायक
िवषय का उपबंध कर सकेगा ।

1. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा “दो सौ पचास पए” श द के थान पर (20-
12-1988 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा पर तुक का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 160

1
[279क. माल और सेवा कर पिरष –(1) रा पित, संिवधान (एक सौ एकवां
संशोधन) अिधिनयम, 2016 के प्रारं भ की तारीख से साठ िदन के भीतर, आदे श द्वारा,
माल और सेवा कर पिरष के नाम से ज्ञात एक पिरष का गठन करे गा ।
(2) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत सद य से िमलकर बनेगी,
अथार्त ् :--
(क) संघ का िव मंत्री -- अ यक्ष ;
(ख) संघ का राज व या िव का भारसाधक रा यमंत्री -- सद य ;
(ग) प्र येक रा य सरकार द्वारा नामिनिदर् िव या कराधान का भारसाधक
मंत्री या कोई अ य मंत्री -- सद य ।
(3) खंड (2) के उपखंड (ग) म िनिदर् माल और सेवा कर पिरष के सद य,
यथाशीघ्र अपने म से एक सद य को ऐसी अविध के िलए, जो वे िविनि त कर, पिरष
का उपा यक्ष चुनगे ।
(4) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत के संबंध म संघ और रा य को
िसफािरश करे गी--
(क) संघ, रा य और थानीय िनकाय द्वारा उद्गहीत
ृ कर, उपकर और
अिधभार, जो माल और सेवा कर म सि मिलत िकए जा सकगे ;
(ख) माल और सेवाएं जो माल और सेवा कर के अ यधीन हो सकगी या
िज ह माल और सेवा कर से छूट प्रा हो सकेगी ;
(ग) आदशर् माल और सेवा कर िविधयां, अनु छे द 269क के अधीन
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय माल पर उदगह ृ ीत माल
और सेवा कर के उ ग्रहण, प्रभाजन के िसद्धांत तथा वे िसद्धांत जो प्रदाय के
थान को शािसत करते ह ;
(घ) आवतर् की वह अवसीमा िजसके नीचे माल और सेवाओं को माल और
सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी ;
(ङ) माल और सेवा कर के समूह के साथ दर िजनके अंतगर्त यूनतम
दर भी ह ;
(च) िकसी प्राकृितक िवपि या आपदा के दौरान अितिरक्त संसाधन जुटाने
के िलए िकसी िविनिदर् अविध के िलए कोई िवशेष दर या दर ;

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 12 द्वारा (12-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 161

(छ) अ णाचल प्रदे श, असम, ज मू-क मीर, मिणपुर, मेघालय, िमजोरम,


नागालड, िसिक्कम, ित्रपरु ा, िहमाचल प्रदे श और उ राखंड रा य के संबंध म
िवशेष उपबंध ; और
(ज) माल और सेवा कर से संबंिधत कोई अ य िवषय, जो पिरष द्वारा
िविनि त िकया जाए ।
(5) माल और सेवा कर पिरष उस तारीख की िसफािरश करे गी िजसको
अपिर कृत पेट्रोिलयम, उ च गित डीजल, मोटर ि पिरट (सामा यतया पेट्रोल के प म
ज्ञात), प्राकृितक गैस और िवमानन टरबाइन ईंधन पर माल और सेवा कर उद्गहीत
ृ िकया
जाए ।
(6) इस अनु छे द द्वारा प्रद कृ य का िनवर्हन करते समय, माल और सेवा कर
पिरष माल और सेवा कर की सामंज यपण ू र् संरचना और माल और सेवाओं के िलए
सु यवि थत रा ीय बाजार के िवकास की आव यकता द्वारा मागर्दिशर्त होगी ।
(7) माल और सेवा कर पिरष की, उसकी बैठक म, गणपूितर् पिरष के कुल
सद य के आधे सद य से िमलकर होगी ।
(8) माल और सेवा कर पिरष अपने कृ य के पालन के िलए प्रिक्रया अवधािरत
करे गी ।
(9) माल और सेवा कर पिरष का प्र येक िविन य बैठक म उपि थत और मत
दे ने वाले सद य के अिधमानप्रा मत के कम से कम तीन-चौथाई के बहुमत द्वारा
िन निलिखत िसद्धांत के अनसु ार िकया जाएगा, अथार्त ् :--
उस बैठक म,--
(क) के द्रीय सरकार के मत को डाले गए कुल मत के एक-ितहाई
का अिधमान प्रा होगा ; और
(ख) सभी रा य सरकार के मत को एक साथ लेने पर डाले गए
कुल मत के दो-ितहाई का अिधमान प्रा होगा ।
(10) माल और सेवा कर पिरष का कोई भी कायर् या कायर्वािहयां केवल इस
कारण से अिविधमा य नहीं ह गी िक--
(क) पिरष म कोई िरिक्त है या उसके गठन म कोई त्रिु ट है ; या
(ख) पिरष के िकसी सद य के प म िकसी यिक्त की िनयुिक्त म कोई
त्रिु ट है ; या
(ग) पिरष की प्रिक्रया म कोई अिनयिमतता है जो मामले के गुणावगुण
को प्रभािवत नहीं करती है ।
(11) माल और सेवा कर पिरष ,--
भारत का संिवधान 162

(क) भारत सरकार और एक या अिधक रा य के बीच ; या


(ख) एक ओर भारत सरकार और िकसी रा य या रा य तथा दस
ू री ओर
एक या अिधक अ य रा य के बीच ; या
(ग) दो या अिधक रा य के बीच,
पिरष की िसफािरश या उनके कायार् वयन से उद्भत
ू िकसी िववाद के यायिनणर्यन के
िलए एक तंत्र की थापना करे गी ।]
280. िव आयोग – (1) रा पित, इस संिवधान के प्रारं भ से दो वषर् के भीतर
और त प ात ् प्र येक पांचव वषर् की समाि पर या ऐसे पूवत
र् र समय पर, िजसे रा पित
आव यक समझता है , आदे श द्वारा, िव आयोग का गठन करे गा जो रा पित द्वारा िनयुक्त
िकए जाने वाले एक अ यक्ष और चार अ य सद य से िमलकर बनेगा ।
(2) संस िविध द्वारा, उन अहर् ताओं का, जो आयोग के सद य के प म िनयिु क्त
के िलए अपेिक्षत ह गी और उस रीित का, िजससे उनका चयन िकया जाएगा, अवधारण कर
सकेगी ।
(3) आयोग का यह कतर् य होगा िक वह –
(क) संघ और रा य के बीच कर के शुद्ध आगम के, जो इस अ याय के
अधीन उनम िवभािजत िकए जाने ह या िकए जाएं, िवतरण के बारे म और
रा य के बीच ऐसे आगम के त संबंधी भाग के आबंटन के बारे म ;
(ख) भारत की संिचत िनिध म से रा य के राज व म सहायता अनुदान
को शािसत करने वाले िसद्धांत के बारे म ;
[(खख) रा य के िव आयोग द्वारा की गई िसफािरश के आधार पर
1

रा य म पंचायत के संसाधन की अनुपूितर् के िलए िकसी रा य की संिचत िनिध


के संवधर्न के िलए आव यक अ युपाय के बारे म ;]
[(ग) रा य के िव आयोग द्वारा की गई िसफािरश के आधार पर रा य
2

म नगरपािलकाओं के संसाधन की अनुपूितर् के िलए िकसी रा य की संिचत िनिध


के संवधर्न के िलए आव यक अ युपाय के बारे म ;]
3
[(घ)] सु ढ़ िव के िहत म रा पित द्वारा आयोग को िनिदर् िकए गए
िकसी अ य िवषय के बारे म,
रा पित को िसफािरश करे ।
(4) आयोग अपनी प्रिक्रया अवधािरत करे गा और अपने कृ य के पालन म उसे
ऐसी शिक्तयां ह गी जो संस , िविध द्वारा, उसे प्रदान करे ।

1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड (घ) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
भारत का संिवधान 163

281. िव आयोग की िसफािरश – रा पित इस संिवधान के उपबंध के अधीन


िव आयोग द्वारा की गई प्र येक िसफािरश को, उस पर की गई कारर् वाई के प ीकारक
ज्ञापन सिहत, संस के प्र येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।
प्रकीणर् िव ीय उपबंध
282. संघ या रा य द्वारा अपने राज व से िकए जाने वाले यय – संघ या रा य
िकसी लोक प्रयोजन के िलए कोई अनुदान इस बात के होते हुए भी दे सकेगा िक वह
प्रयोजन ऐसा नहीं है िजसके संबंध म, यथाि थित, संस या उस रा य का िवधान-मंडल
िविध बना सकता है ।
283. संिचत िनिधय , आकि मकता िनिधय और लोक लेखाओं म जमा
धनरािशय की अिभरक्षा, आिद – (1) भारत की संिचत िनिध और भारत की
आकि मकता िनिध की अिभरक्षा, ऐसी िनिधय म धनरािशय के संदाय, उनसे
धनरािशय के िनकाले जाने, ऐसी िनिधय म जमा धनरािशय से िभ न भारत सरकार
द्वारा या उसकी ओर से प्रा लोक धनरािशय की अिभरक्षा, भारत के लोक लेखे म उनके
संदाय और ऐसे लेखे से धनरािशय के िनकाले जाने का तथा पूव क्त िवषय से संबंिधत
या उनके आनुषंिगक अ य सभी िवषय का िविनयमन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
िकया जाएगा और जब तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक
रा पित द्वारा बनाए गए िनयम द्वारा िकया जाएगा ।
(2) रा य की संिचत िनिध और रा य की आकि मकता िनिध की अिभरक्षा, ऐसी
िनिधय म धनरािशय के संदाय, उनसे धनरािशय के िनकाले जाने, ऐसी िनिधय म
जमा धनरािशय से िभ न रा य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्रा लोक
धनरािशय की अिभरक्षा, रा य के लोक लेखे म उनके संदाय और ऐसे लेखे से
धनरािशय के िनकाले जाने का तथा पूव क्त िवषय से संबंिधत या उनके आनुषंिगक
अ य सभी िवषय का िविनयमन रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िकया
जाएगा और जब तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक रा य
के रा यपाल 1*** द्वारा बनाए गए िनयम द्वारा िकया जाएगा ।
284. लोक सेवक और यायालय द्वारा प्रा वादकतार्ओं की जमा रािशय और
अ य धनरािशय की अिभरक्षा – ऐसी सभी धनरािशयां, जो –
(क) यथाि थित, भारत सरकार या रा य की सरकार द्वारा जुटाए गए या
प्रा राज व या लोक धनरािशय से िभ न ह, और संघ या िकसी रा य के
कायर्कलाप के संबंध म िनयोिजत िकसी अिधकारी को उसकी उस है िसयत म, या
(ख) िकसी वाद, िवषय, लेखे या यिक्तय के नाम म जमा भारत के
रा यक्षेत्र के भीतर िकसी यायालय को,

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच


ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का (1-
11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 164

प्रा होती है या उसके पास िनिक्ष की जाती है , यथाि थित, भारत के लोक लेखे म या
रा य के लोक लेखे म जमा की जाएगी ।
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट – (1) वहां तक के िसवाय,
जहां तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य द्वारा या रा य के भीतर
िकसी प्रािधकारी द्वारा अिधरोिपत सभी कर से संघ की संपि को छूट होगी ।
(2) जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) की कोई
बात िकसी रा य के भीतर िकसी प्रािधकारी को संघ की िकसी संपि पर कोई ऐसा कर,
िजसका दािय व इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, ऐसी संपि पर था या माना जाता
था, उद्गहीत
ृ करने से तब तक नहीं रोकेगी जब तक वह कर उस रा य म उद्गहीत ृ होता
रहता है ।
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन – (1)
रा य की कोई िविध, 1[माल के या सेवाओं के या दोन के प्रदाय पर, जहां ऐसा प्रदाय]–
(क) रा य के बाहर, या
(ख) भारत के रा यक्षेत्र म 2[माल के या सेवाओं के या दोन के आयात
अथवा माल के या सेवाओं के या दोन के] बाहर िनयार्त के दौरान,
होता है वहां, कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या अिधरोिपत करना प्रािधकृत नहीं
करे गी ।
3
[* * * *]
4
[(2) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 5[माल का या सेवाओं का या दोन
का प्रदाय] खंड (1) म विणर्त रीितय म से िकसी रीित से कब होता है िविध द्वारा, िसद्धांत
बना सकेगी ।
6
[(3)* * * *]
287. िवद्युत पर कर से छूट – वहां तक के िसवाय, जहां तक संस िविध द्वारा
अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य की कोई िविध (िकसी सरकार द्वारा या अ य यिक्तय
द्वारा उ पािदत) िवद्यतु के उपभोग या िवक्रय पर िजसका –

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13 (i) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के क्रय या
िवक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii)(आ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के आयात
या उसके" श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (1) के प ीकरण का लोप
िकया गया ।
4. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (2) और खंड (3) के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii) द्वारा (16-9-2016 से) "माल का क्रय या
िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(iii) द्वारा (16-9-2016 से) खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 165

(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग िकया जाता है या भारत सरकार द्वारा
उपभोग िकए जाने के िलए उस सरकार को िवक्रय िकया जाता है , या
(ख) िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म भारत सरकार या
िकसी रे ल कंपनी द्वारा, जो उस रे ल को चलाती है , उपभोग िकया जाता है अथवा
िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए उस सरकार या
िकसी ऐसी रे ल कंपनी को िवक्रय िकया जाता है ,
कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी और िवद्युत के
िवक्रय पर कोई कर अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने वाली कोई
ऐसी िविध यह सुिनि त करे गी िक भारत सरकार द्वारा उपभोग िकए जाने के िलए उस
सरकार को, या िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए
यथापूव क्त िकसी रे ल कंपनी को िवक्रय की गई िवद्युत की कीमत, उस कीमत से जो िवद्युत
का प्रचुर मात्रा म उपभोग करने वाले अ य उपभोक्ताओं से ली जाती है , उतनी कम होगी
िजतनी कर की रकम है ।
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट
– (1) वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा उपबंध करे , इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध िकसी जल या िवद्यत ु
के संबंध म, जो िकसी अंतरराि यक नदी या नदी-दन ू के िविनयमन या िवकास के िलए
िकसी िवद्यमान िविध द्वारा या संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा थािपत िकसी
प्रािधकारी द्वारा संिचत, उ पािदत, उपभुक्त, िवतिरत या िवक्रीत की जाती है , कोई कर
अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी ।
प ीकरण – इस खंड म, “िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध” पद के अंतगर्त
िकसी रा य की ऐसी िविध होगी जो इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािरत या बनाई
गई है और जो पहले ही िनरिसत नहीं कर दी गई है , चाहे वह या उसके कोई भाग उस
समय िब कुल या िविश क्षेत्र म प्रवतर्न म न ह ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, खंड (1) म विणर्त कोई कर
अिधरोिपत कर सकेगा या ऐसे कर का अिधरोपण प्रािधकृत कर सकेगा, िक तु ऐसी
िकसी िविध का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे रा पित के िवचार के िलए
आरिक्षत रखे जाने के प ात ् उसकी अनमु ित न िमल गई हो और यिद ऐसी कोई िविध
ऐसे कर की दर और अ य प्रसंगितय को िकसी प्रािधकारी द्वारा, उस िविध के अधीन
बनाए जाने वाले िनयम या आदे श द्वारा, िनयत िकए जाने का उपबंध करती है तो वह
िविध ऐसे िकसी िनयम या आदे श के बनाने के िलए रा पित की पूवर् सहमित अिभप्रा
िकए जाने का उपबंध करे गी ।
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट – (1) िकसी रा य
की संपि और आय को संघ के कर से छूट होगी ।
भारत का संिवधान 166

(2) खंड (1) की कोई बात संघ को िकसी रा य की सरकार द्वारा या उसकी ओर
से िकए जाने वाले िकसी प्रकार के यापार या कारबार के संबंध म अथवा उससे संबंिधत
िक हीं िक्रयाओं के संबंध म अथवा ऐसे यापार या कारबार के प्रयोजन के िलए प्रयुक्त
या अिधभुक्त िकसी संपि के संबंध म अथवा उसके संबंध म प्रोद्भत ू या उद्भत
ू िकसी आय
के बारे म, िकसी कर को ऐसी मात्रा तक, यिद कोई हो, िजसका संस िविध द्वारा उपबंध
करे , अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने से नहीं रोकेगी ।
(3) खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यापार या कारबार अथवा यापार या
कारबार के िकसी ऐसे वगर् को लागू नहीं होगी िजसके बारे म संस िविध द्वारा घोषणा
करे िक वह सरकार के मामूली कृ य का आनुषंिगक है ।
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन – जहां इस संिवधान के
उपबंध के अधीन िकसी यायालय या आयोग के यय अथवा िकसी यिक्त को या उसके
संबंध म, िजसने इस संिवधान के प्रारं भ से पहले भारत म क्राउन के अधीन अथवा ऐसे
प्रारं भ के प ात ् संघ के या िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म सेवा की है , संदेय
पशन भारत की संिचत िनिध या िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत है वहां, यिद –
(क) भारत की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह यायालय
या आयोग िकसी रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी की पूितर् करता है
या उस यिक्त ने िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म पूणत र् ः या भागतः सेवा
की है , या
(ख) िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह
यायालय या आयोग संघ की या अ य रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी
की पूितर् करता है या उस यिक्त ने संघ या अ य रा य के कायर्कलाप के संबंध म
पूणतर् ः या भागतः सेवा की है ,
तो, यथाि थित, उस रा य की संिचत िनिध पर अथवा, भारत की संिचत िनिध अथवा
अ य रा य की संिचत िनिध पर, यय या पशन के संबंध म उतना अंशदान, िजतना
करार पाया जाए या करार के अभाव म, िजतना भारत के मुख्य यायमूितर् द्वारा िनयुक्त
म य थ अवधािरत करे , भािरत िकया जाएगा और उसका उस िनिध म से संदाय िकया
जाएगा ।
1
[290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय – प्र येक वषर् िछयालीस लाख
पचास हजार पए की रािश केरल रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी और उस
िनिध म से ित वांकुर दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी और प्र येक वषर् तेरह लाख
पचास हजार पए की रािश 2[तिमलनाडु] रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी
और उस िनिध म से 1 नवंबर, 1956 को उस रा य को ित वांकुर-कोचीन रा य से
अंतिरत रा यक्षेत्र के िहंद ू मंिदर और पिवत्र थान के अनुरक्षण के िलए उस रा य म
थािपत दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी ।]
291. [शासक की िनजी थैली की रािश ।] – संिवधान (छ बीसवां संशोधन)

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 19 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
2. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 167

अिधिनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) िनरिसत ।


अ याय 2 – उधार लेना
292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना – संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार,
भारत की संिचत िनिध की प्रितभिू त पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यिद कोई ह , िज ह
संस समय-समय पर िविध द्वारा िनयत करे , उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के
भीतर, यिद कोई ह , िज ह इस प्रकार िनयत िकया जाए, प्र याभूित दे ने तक है ।
293. रा य द्वारा उधार लेना – (1) इस अनु छे द के उपबंध के अधीन रहते हुए,
रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार, उस रा य की संिचत िनिध की प्रितभिू त पर
ऐसी सीमाओं के भीतर, यिद कोई ह , िज ह ऐसे रा य का िवधान-मंडल, समय-समय
पर, िविध द्वारा, िनयत करे , भारत के रा यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी
सीमाओं के भीतर, यिद कोई ह , िज ह इस प्रकार िनयत िकया जाए, प्र याभिू त दे ने तक
है ।
(2) भारत सरकार, ऐसी शत के अधीन रहते हुए, जो संस द्वारा बनाई गई
िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन अिधकिथत की जाएं, िकसी रा य को उधार दे सकेगी
या जहां तक अनु छे द 292 के अधीन िनयत िक हीं सीमाओं का उ लंघन नहीं होता है
वहां तक िकसी ऐसे रा य द्वारा िलए गए उधार के संबंध म प्र याभूित दे सकेगी और
ऐसे उधार दे ने के प्रयोजन के िलए अपेिक्षत रािशयां भारत की संिचत िनिध पर भािरत
की जाएंगी ।
(3) यिद िकसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पव
ू व
र् तीर् सरकार ने
उस रा य को िदया था अथवा िजसके संबंध म भारत सरकार ने या उसकी पूवव र् तीर्
सरकार ने प्र याभूित दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह रा य, भारत सरकार
की सहमित के िबना कोई उधार नहीं ले सकेगा ।
(4) खंड (3) के अधीन सहमित उन शत के अधीन, यिद कोई ह , दी जा सकेगी
िज ह भारत सरकार अिधरोिपत करना ठीक समझे ।
अ याय 3 – संपि , संिवदाएं, अिधकार, दािय व, बा यताएं और वाद
294. कुछ दशाओं म संपि , आि तय , अिधकार , दािय व और बा यताओं का
उ रािधकार – इस संिवधान के प्रारं भ से ही–
(क) जो संपि और आि तयां ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले भारत डोिमिनयन
की सरकार के प्रयोजन के िलए िहज मजे टी म िनिहत थीं और जो संपि और
आि तयां ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्र येक रा यपाल वाले प्रांत की सरकार के
प्रयोजन के िलए िहज मजे टी म िनिहत थीं, वे सभी इस संिवधान के प्रारं भ से
पहले पािक तान डोिमिनयन के या पि मी बंगाल, पव ू ीर् बंगाल, पि मी पंजाब
और पूवीर् पंजाब प्रांत के सज
ृ न के कारण िकए गए या िकए जाने वाले िकसी
समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और त थानी रा य म िनिहत ह गी;
और
भारत का संिवधान 168

(ख) जो अिधकार, दािय व और बा यताएं भारत डोिमिनयन की सरकार की


और प्र येक रा यपाल वाले प्रांत की सरकार की थीं, चाहे वे िकसी संिवदा से या
अ यथा उद्भत ू हुई ह , वे सभी इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािक तान
डोिमिनयन के या पि मी बंगाल, पूवीर् बंगाल, पि मी पंजाब और पूवीर् पंजाब प्रांत
के सजृ न के कारण िकए गए या िकए जाने वाले िकसी समायोजन के अधीन रहते
हुए क्रमशः भारत सरकार और प्र येक त थानी रा य की सरकार के अिधकार,
दािय व और बा यताएं ह गी ।
295. अ य दशाओं म संपि , आि तय , अिधकार , दािय व और बा यताओं का
उ रािधकार – (1) इस संिवधान के प्रारं भ से ही –
(क) जो संपि और आि तयां ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले पहली अनस ु चू ी के
भाग ख म िविनिदर् रा य के त थानी िकसी दे शी रा य म िनिहत थीं, वे सभी
ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस िनिम उस रा य की
सरकार से करे , संघ म िनिहत ह गी यिद वे प्रयोजन िजनके िलए ऐसे प्रारं भ से
ठीक पहले ऐसी संपि और आि तयां धािरत थीं, त प ात ् संघ सच ू ी म प्रगिणत
िकसी िवषय से संबंिधत संघ के प्रयोजन ह , और
(ख) जो अिधकार, दािय व और बा यताएं पहली अनुसच ू ी के भाग ख म
िविनिदर् रा य के त थानी िकसी दे शी रा य की सरकार की थीं, चाहे वे िकसी
संिवदा से या अ यथा उद्भूत हुई ह , वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो
भारत सरकार इस िनिम उस रा य की सरकार से करे , भारत सरकार के
अिधकार, दािय व और बा यताएं ह गी यिद वे प्रयोजन, िजनके िलए ऐसे प्रारं भ से
ठीक पहले ऐसे अिधकार अिजर्त िकए गए थे अथवा ऐसे दािय व या बा यताएं
उपगत की गई थीं, त प ात ् संघ सूची म प्रगिणत िकसी िवषय से संबंिधत भारत
सरकार के प्रयोजन ह ।
(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहली अनुसूची के भाग ख
म िविनिदर् प्र येक रा य की सरकार, उन सभी संपि और आि तय तथा उन सभी
अिधकार , दािय व और बा यताओं के संबंध म, चाहे वे िकसी संिवदा से या अ यथा
उद्भत
ू हुई ह , जो खंड (1) म िनिदर् से िभ न ह, इस संिवधान के प्रारं भ से ही त थानी
दे शी रा य की सरकार की उ रािधकारी होगी ।
296. राजगामी या यपगत या वामीिवहीन होने से प्रोद्भत ू संपि – इसम इसके
प ात ् यथा उपबंिधत के अधीन रहते हुए, भारत के रा यक्षेत्र म कोई संपि , जो यिद
यह संिवधान प्रवतर्न म नहीं आया होता तो राजगामी या यपगत होने से या
अिधकारवान ् वामी के अभाव म वामीिवहीन होने से, यथाि थित, िहज मजे टी को या
िकसी दे शी रा य के शासक को प्रोद्भत
ू हुई होती, यिद वह संपि िकसी रा य म ि थत है
तो ऐसे रा य म और िकसी अ य दशा म संघ म िनिहत होगी :
भारत का संिवधान 169

परं तु कोई संपि , जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार िहज मजे टी को या


दे शी रा य के शासक को प्रोद्भत
ू हुई होती, भारत सरकार के या िकसी रा य की सरकार
के क जे या िनयंत्रण म थी तब, यिद वे प्रयोजन, िजनके िलए वह उस समय प्रयुक्त या
धािरत थीं, संघ के थे तो वह संघ म या िकसी रा य के थे तो वह उस रा य म िनिहत
होगी ।

प ीकरण – इस अनु छे द म, “शासक” और “दे शी रा य” पद के वही अथर् ह


जो अनु छे द 363 म ह ।
1
[297. रा यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूिम म ि थत मू यवान
चीज और अन य आिथर्क क्षेत्र के संपि ोत का संघ म िनिहत होना – (1) भारत के
रा यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूिम या अन य आिथर्क क्षेत्र म समद्र
ु के
नीचे की सभी भूिम, खिनज और अ य मू यवान चीज संघ म िनिहत ह गी और संघ के
प्रयोजन के िलए धारण की जाएंगी ।

(2) भारत के अन य आिथर्क क्षेत्र के अ य सभी संपि ोत भी संघ म िनिहत


ह गे और संघ के प्रयोजन के िलए धारण िकए जाएंगे ।

(3) भारत के रा यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्नतट भूिम, अन य आिथर्क


क्षेत्र और अ य सामुिद्रक क्षेत्र की सीमाएं वे ह गी जो संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
या उसके अधीन समय-समय पर िविनिदर् की जाएं ।]
2
[298. यापार करने, आिद की शिक्त – संघ की और प्र येक रा य की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार, यापार या कारबार करने और िकसी प्रयोजन के िलए
संपि का अजर्न, धारण और ययन तथा संिवदा करने पर, भी होगा :

परं तु –

(क) जहां तक ऐसा यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है


िजसके संबंध म संस िविध बना सकती है वहां तक संघ की उक्त कायर्पािलका
शिक्त प्र येक रा य म उस रा य के िवधान के अधीन होगी ; और
(ख) जहां तक ऐसा यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है
िजसके संबंध म रा य का िवधान-मंडल िविध बना सकता है वहां तक प्र येक
रा य की उक्त कायर्पािलका शिक्त संस के िवधान के अधीन होगी ।]

1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 20 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 170

299. संिवदाएं – (1) संघ की या रा य की कायर्पािलका शिक्त का प्रयोग करते


हुए की गई सभी संिवदाएं, यथाि थित, रा पित द्वारा या उस रा य के रा यपाल 1***
द्वारा की गई कही जाएंगी और वे सभी संिवदाएं और संपि संबंधी ह तांतरण-पत्र, जो
उस शिक्त का प्रयोग करते हुए िकए जाएं, रा पित या रा यपाल 1*** की ओर से ऐसे
यिक्तय द्वारा और रीित से िन पािदत िकए जाएंगे िजसे वह िनिदर् या प्रािधकृत करे ।
(2) रा पित या िकसी रा य का रा यपाल 2*** इस संिवधान के प्रयोजन के
िलए या भारत सरकार के संबंध म इससे पूवर् प्रव ृ िकसी अिधिनयिमित के प्रयोजन के
िलए की गई या िन पािदत की गई िकसी संिवदा या ह तांतरण-पत्र के संबंध म वैयिक्तक
प से दायी नहीं होगा या उनम से िकसी की ओर से ऐसी संिवदा या ह तांतरण-पत्र
करने या िन पािदत करने वाला यिक्त उसके संबंध म वैयिक्तक प से दायी नहीं होगा ।
300. वाद और कायर्वािहयां – (1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला
सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और िकसी रा य की सरकार उस रा य के नाम
से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंध के अधीन रहते
हुए, जो इस संिवधान द्वारा प्रद शिक्तय के आधार पर अिधिनयिमत संस के या ऐसे
रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम द्वारा िकए जाएं, वे अपने-अपने कायर्कलाप के संबंध
म उसी प्रकार वाद ला सकगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा िजस प्रकार,
यिद यह संिवधान अिधिनयिमत नहीं िकया गया होता तो, भारत डोिमिनयन और
त थानी प्रांत या त थानी दे शी रा य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा
सकता था ।
(2) यिद इस संिवधान के प्रारं भ पर–
(क) कोई ऐसी िविधक कायर्वािहयां लंिबत ह िजनम भारत डोिमिनयन एक
पक्षकार है तो उन कायर्वािहय म उस डोिमिनयन के थान पर भारत संघ
प्रित थािपत िकया गया समझा जाएगा ; और
(ख) कोई ऐसी िविधक कायर्वािहयां लंिबत ह िजनम कोई प्रांत या कोई
दे शी रा य एक पक्षकार है तो उन कायर्वािहय म उस प्रांत या दे शी रा य के
थान पर त थानी रा य प्रित थािपत िकया गया समझा जाएगा ।
3
[अ याय 4 – संपि का अिधकार
300क. िविध के प्रािधकार के िबना यिक्तय को संपि से वंिचत न िकया जाना
– िकसी यिक्त को उसकी संपि से िविध के प्रािधकार से ही वंिचत िकया जाएगा,
अ यथा नहीं ।]

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भाग 13
भारत के रा यक्षेत्र के भीतर यापार, वािण य और समागम
301. यापार, वािण य और समागम की वतंत्रता – इस भाग के अ य उपबंध
के अधीन रहते हुए, भारत के रा यक्षेत्र म सवर्त्र यापार, वािण य और समागम अबाध
होगा ।
302. यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन अिधरोिपत करने की संस की
शिक्त – संस िविध द्वारा, एक रा य और दस
ू रे रा य के बीच या भारत के रा यक्षेत्र के
िकसी भाग के भीतर यापार, वािण य या समागम की वतंत्रता पर ऐसे िनबर्ंधन
अिधरोिपत कर सकेगी जो लोक िहत म अपेिक्षत ह ।
303. यापार और वािण य के संबंध म संघ और रा य की िवधायी शिक्तय पर
िनबर्ंधन – (1) अनु छे द 302 म िकसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनुसूची की सूिचय
म से िकसी म यापार और वािण य संबंधी िकसी प्रिवि के आधार पर, संस को या
रा य के िवधान-मंडल को, कोई ऐसी िविध बनाने की शिक्त नहीं होगी जो एक रा य को
दस ू रे रा य से अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा एक रा य और
दसू रे रा य के बीच कोई िवभेद करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है ।
(2) खंड (1) की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से नहीं रोकेगी जो
कोई ऐसा अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा कोई ऐसा िवभेद
करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है , यिद ऐसी िविध द्वारा यह घोिषत िकया जाता
है िक भारत के रा यक्षेत्र के िकसी भाग म माल की कमी से उ प न िकसी ि थित से
िनपटने के प्रयोजन के िलए ऐसा करना आव यक है ।
304. रा य के बीच यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन – अनु छे द
301 या अनु छे द 303 म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा,–
(क) अ य रा य 1[या संघ रा यक्षेत्र ] से आयात िकए गए माल पर कोई
ऐसा कर अिधरोिपत कर सकेगा जो उस रा य म िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही
माल पर लगता है , िक तु इस प्रकार िक उससे इस तरह आयात िकए गए माल
और ऐसे िविनिमर्त या उ पािदत माल के बीच कोई िवभेद न हो ; या
(ख) उस रा य के साथ या उसके भीतर यापार, वािण य और समागम की
वतंत्रता पर ऐसे युिक्तयुक्त िनबर्ंधन अिधरोिपत कर सकेगा जो लोक िहत म
अपेिक्षत ह :

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।

171
भारत का संिवधान 172

परं तु खंड (ख) के प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक या संशोधन रा पित की पूवर्
मंजरू ी के िबना िकसी रा य के िवधान-मंडल म परु ः थािपत या प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा ।
[305. िवद्यमान िविधय और रा य के एकािधकार का उपबंध करने वाली
1

िविधय की याविृ – वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा िनदे श
दे अनु छे द 301 और अनु छे द 303 की कोई बात िकसी िवद्यमान िविध के उपबंध पर
कोई प्रभाव नहीं डालेगी और अनु छे द 301 की कोई बात संिवधान (चौथा संशोधन)
अिधिनयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई िकसी िविध के प्रवतर्न पर वहां तक कोई
प्रभाव नहीं डालेगी जहां तक वह िविध िकसी ऐसे िवषय से संबंिधत है , जो अनु छे द 19
के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है या वह िविध ऐसे िकसी िवषय के संबंध म, जो
अनु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है , िविध बनाने से संस या िकसी
रा य के िवधान-मंडल को नहीं रोकेगी ।]
306. [पहली अनुसूची के भाग ख के कुछ रा य की यापार और वािण य पर
िनबर्ंधन के अिधरोपण की शिक्त ।] – संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की
धारा 29 और अनुसूची द्वारा िनरिसत ।
307. अनु छे द 301 से अनु छे द 304 के प्रयोजन को कायार्ि वत करने के िलए
प्रािधकारी की िनयुिक्त – संस िविध द्वारा, ऐसे प्रािधकारी की िनयुिक्त कर सकेगी जो वह
अनु छे द 301, अनु छे द 302, अनु छे द 303 और अनु छे द 304 के प्रयोजन को
कायार्ि वत करने के िलए समुिचत समझे और इस प्रकार िनयुक्त प्रािधकारी को ऐसी
शिक्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कतर् य स प सकेगी जो वह आव यक समझे ।

1. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 4 द्वारा (27-4-1955 से) प्रित थािपत ।
भाग 14
संघ और रा य के अधीन सेवाएं
अ याय 1 – सेवाएं
308. िनवर्चन – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 1[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ।]
309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत –
इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम संघ
या िकसी रा य के कायर्कलाप से संबंिधत लोक सेवाओं और पद के िलए भतीर् का और
िनयक्त
ु यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन कर सकगे :
परं तु जब तक इस अनु छे द के अधीन समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम द्वारा
या उसके अधीन इस िनिम उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक, यथाि थित, संघ के
कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा पित या ऐसा यिक्त िजसे वह
िनिद करे और रा य के कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा य का
रा यपाल 2*** या ऐसा यिक्त िजसे वह िनिद करे , ऐसी सेवाओं और पद के िलए भतीर्
का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन करने वाले िनयम बनाने के
िलए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए िनयम िकसी ऐसे अिधिनयम के उपबंध के
अधीन रहते हुए प्रभावी ह गे ।
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध – (1) इस
संिवधान द्वारा अिभ यक्त प से यथा उपबंिधत के िसवाय, प्र येक यिक्त जो रक्षा सेवा
का या संघ की िसिवल सेवा का या अिखल भारतीय सेवा का सद य है अथवा रक्षा से
संबंिधत कोई पद या संघ के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , रा पित के
प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है और प्र येक यिक्त जो िकसी रा य की िसिवल सेवा का
सद य है या रा य के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , उस रा य के रा यपाल
3
*** के प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है ।
(2) इस बात के होते हुए भी िक संघ या िकसी रा य के अधीन िसिवल पद धारण
करने वाला यिक्त, यथाि थित, रा पित या रा य के रा यपाल 2*** के प्रसादपयर्ंत पद
धारण करता है , कोई संिवदा िजसके अधीन कोई यिक्त जो रक्षा सेवा का या अिखल
भारतीय सेवा का या संघ या रा य की िसिवल सेवा का सद य नहीं है , ऐसे िकसी पद को
धारण करने के िलए इस संिवधान के अधीन िनयक्त ु िकया जाता है , उस दशा म, िजसम,
यथाि थित, रा पित या रा यपाल 4*** िवशेष अहर्ताओं वाले िकसी यिक्त की सेवाएं प्रा

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच


ू ी द्वारा “प्रथम अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् रा य अिभप्रेत है ” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, उस रा य के रा यपाल
या राजप्रमुख” के थान पर उपरोक्त प म रखा गया ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु ूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का लोप िकया
गया ।

173
भारत का संिवधान 174

करने के िलए आव यक समझता है , यह उपबंध कर सकेगी िक यिद करार की गई अविध


की समाि से पहले वह पद समा कर िदया जाता है या ऐसे कारण से, जो उसके िकसी
अवचार से संबंिधत नहीं है , उससे वह पद िरक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे
प्रितकर िदया जाएगा ।
311. संघ या रा य के अधीन िसिवल है िसयत म िनयोिजत यिक्तय का पद युत
िकया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म अवनत िकया जाना – (1) िकसी यिक्त को
जो संघ की िसिवल सेवा का या अिखल भारतीय सेवा का या रा य की िसिवल सेवा का
सद य है अथवा संघ या रा य के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , उसकी िनयुिक्त
करने वाले प्रािधकारी के अधीन थ िकसी प्रािधकारी द्वारा पद युत नहीं िकया जाएगा या
पद से नहीं हटाया जाएगा ।
1
[(2) यथापूव क्त िकसी यिक्त को, ऐसी जांच के प ात ् ही, िजसम उसे अपने
िव द्ध आरोप की सूचना दे दी गई है और उन आरोप के संबंध म 2*** सुनवाई का
युिक्तयुक्त अवसर दे िदया गया है , पद युत िकया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या
पंिक्त म अवनत िकया जाएगा, अ यथा नहीं :
3
[परं तु जहां ऐसी जांच के प ात ् उस पर ऐसी कोई शाि त अिधरोिपत करने की
प्र थापना है वहां ऐसी शाि त ऐसी जांच के दौरान िदए गए सा य के आधार पर
अिधरोिपत की जा सकेगी और ऐसे यिक्त को प्र थािपत शाि त के िवषय म अ यावेदन
करने का अवसर दे ना आव यक नहीं होगा :
परं तु यह और िक यह खंड वहां लागू नहीं होगा –]
(क) जहां िकसी यिक्त को ऐसे आचरण के आधार पर पद युत िकया
जाता है या पद से हटाया जाता है या पंिक्त म अवनत िकया जाता है िजसके
िलए आपरािधक आरोप पर उसे िसद्धदोष ठहराया गया है ; या
(ख) जहां िकसी यिक्त को पद युत करने या पद से हटाने या पंिक्त म
अवनत करने के िलए सशक्त प्रािधकारी का यह समाधान हो जाता है िक िकसी
कारण से, जो उस प्रािधकारी द्वारा लेखबद्ध िकया जाएगा, यह युिक्तयुक्त प से
सा य नहीं है िक ऐसी जांच की जाए ; या
(ग) जहां, यथाि थित, रा पित या रा यपाल का यह समाधान हो जाता है
िक रा य की सुरक्षा के िहत म यह समीचीन नहीं है िक ऐसी जांच की जाए ।
(3) यिद, यथापूव क्त िकसी यिक्त के संबंध म यह प्र उठता है िक खंड (2) म
िनिदर् जांच करना युिक्तयुक्त प से सा य है या नहीं तो उस यिक्त को पद युत करने या
पद से हटाने या पंिक्त म अवनत करने के िलए सशक्त प्रािधकारी का उस पर िविन य
अंितम होगा ।]

1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 10 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के थान पर प्रित थािपत

2. संिवधान (बयालीसवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 175

312. अिखल भारतीय सेवाएं – (1) 1[भाग 6 के अ याय 6 या भाग 11] म िकसी
बात के होते हुए भी, यिद रा य सभा ने उपि थत और मत दे ने वाले सद य म से कम
से कम दो-ितहाई सद य द्वारा समिथर्त संक प द्वारा यह घोिषत िकया है िक रा ीय िहत
म ऐसा करना आव यक या समीचीन है तो संस , िविध द्वारा, संघ और रा य के िलए
सि मिलत एक या अिधक अिखल भारतीय सेवाओं के 2[(िजनके अंतगर्त अिखल भारतीय
याियक सेवा है )] सज
ृ न के िलए उपबंध कर सकेगी और इस अ याय के अ य उपबंध के
अधीन रहते हुए, िकसी ऐसी सेवा के िलए भतीर् का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत
का िविनयमन कर सकेगी ।

(2) इस संिवधान के प्रारं भ पर भारतीय प्रशासिनक सेवा और भारतीय पुिलस


सेवा के नाम से ज्ञात सेवाएं इस अनु छे द के अधीन संस द्वारा सिृ जत सेवाएं समझी
जाएंगी ।

[(3) खंड (1) म िनिदर् अिखल भारतीय याियक सेवा के अंतगर्त अनु छे द
2

236 म पिरभािषत िजला यायाधीश के पद से अवर कोई पद नहीं होगा ।

(4) पूव क्त अिखल भारतीय याियक सेवा के सजृ न के िलए उपबंध करने वाली
िविध म भाग 6 के अ याय 6 के संशोधन के िलए ऐसे उपबंध अंतिवर् हो सकगे जो उस
िविध के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए आव यक ह और ऐसी कोई िविध अनु छे द
368 के प्रयोजन के िलए संिवधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।]

[312क. कुछ सेवाओं के अिधकािरय की सेवा की शत म पिरवतर्न करने या


3

उ ह प्रितसं त करने की संस की शिक्त – (1) संस , िविध द्वारा –

(क) उन यिक्तय की, जो सेक्रेटरी आफ टे ट द्वारा या सेक्रेटरी आफ टे ट


इन क िसल द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से पहले भारत म क्राउन की िकसी
िसिवल सेवा म िनयक्तु िकए गए थे और जो संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1972 के प्रारं भ पर और उसके प ात ्, भारत सरकार या िकसी रा य
की सरकार के अधीन िकसी सेवा या पद पर बने रहते ह, पािर िमक, छुट्टी और
पशन संबंधी सेवा की शत तथा अनुशासिनक िवषय संबंधी अिधकार, भिव यलक्षी
या भूतलक्षी प से पिरवितर्त कर सकेगी या प्रितसं त कर सकेगी ;

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) “भाग 11” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 176

(ख) उन यिक्तय की, जो सेक्रेटरी आफ टे ट द्वारा या सेक्रेटरी आफ टे ट


इन क िसल द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से पहले भारत म क्राउन की िकसी
िसिवल सेवा म िनयुक्त िकए गए थे और जो संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1972 के प्रारं भ से पहले िकसी समय सेवा से िनव ृ हो गए ह या
अ यथा सेवा म नहीं रहे ह, पशन संबंधी सेवा की शत भिव यलक्षी या भूतलक्षी
प से पिरवितर्त कर सकेगी या प्रितसं त कर सकेगी :
परं तु िकसी ऐसे यिक्त की दशा म, जो उ चतम यायालय या िकसी उ च
यायालय के मुख्य यायमूितर् या अ य यायाधीश, भारत के िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक,
संघ या िकसी रा य के लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या अ य सद य अथवा मुख्य
िनवार्चन आयक्त ु का पद धारण कर रहा है या कर चक ु ा है , उपखंड (क) या उपखंड (ख)
की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह संस को, उस यिक्त की उक्त
पद पर िनयिु क्त के प ात ्, उसकी सेवा की शत म, वहां तक के िसवाय जहां तक ऐसी
सेवा की शत उसे सेक्रेटरी आफ टे ट द्वारा या सेक्रेटरी आफ टे ट इन क िसल द्वारा भारत
म क्राउन की िकसी िसिवल सेवा म िनयुक्त िकया गया यिक्त होने के कारण लागू ह,
उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न करने के िलए या उ ह प्रितसं त करने के िलए सशक्त
करती है ।
(2) वहां तक के िसवाय जहां तक संस , िविध द्वारा, इस अनु छे द के अधीन
उपबंध करे इस अनु छे द की कोई बात खंड (1) म िनिदर् यिक्तय की सेवा की शत का
िविनयमन करने की इस संिवधान के िकसी अ य उपबंध के अधीन िकसी िवधान-मंडल
या अ य प्रािधकारी की शिक्त पर प्रभाव नहीं डालेगी ।
(3) उ चतम यायालय को या िकसी अ य यायालय को िन निलिखत िववाद
म कोई अिधकािरता नहीं होगी, अथार्त ् : –
(क) िकसी प्रसंिवदा, करार या अ य ऐसी ही िलखत के, िजसे खंड (1) म
िनिदर् िकसी यिक्त ने िकया है या िन पािदत िकया है , िकसी उपबंध से या उस
पर िकए गए िकसी प ृ ांकन से उ प न कोई िववाद अथवा ऐसे यिक्त को, भारत
म क्राउन की िकसी िसिवल सेवा म उसकी िनयुिक्त या भारत डोिमिनयन की या
उसके िकसी प्रांत की सरकार के अधीन सेवा म उसके बने रहने के संबंध म भेजे
गए िकसी पत्र के आधार पर उ प न कोई िववाद ;
(ख) मूल प म यथा अिधिनयिमत अनु छे द 314 के अधीन िकसी
अिधकार, दािय व या बा यता के संबंध म कोई िववाद ।
(4) इस अनु छे द के उपबंध मूल प म यथा अिधिनयिमत अनु छे द 314 म या
इस संिवधान के िकसी अ य उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह गे ।]
भारत का संिवधान 177

313. संक्रमणकालीन उपबंध – जब तक इस संिवधान के अधीन इस िनिम अ य


उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक ऐसी सभी िविधयां जो इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक
पहले प्रव ृ ह और िकसी ऐसी लोक सेवा या िकसी ऐसे पद को, जो इस संिवधान के
प्रारं भ के प ात ् अिखल भारतीय सेवा के अथवा संघ या िकसी रा य के अधीन सेवा या
पद के प म बना रहता है , लागू ह वहां तक प्रव ृ बनी रहगी जहां तक वे इस संिवधान
के उपबंध से संगत है ।
314. [कुछ सेवाओं के िवद्यमान अिधकािरय के संरक्षण के िलए उपबंध ।]
संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 3 द्वारा (29-8-1972 से)
िनरिसत ।
अ याय 2 – लोक सेवा आयोग
315. संघ और रा य के िलए लोक सेवा आयोग – (1) इस अनु छे द के उपबंध
के अधीन रहते हुए, संघ के िलए एक लोक सेवा आयोग और प्र येक रा य के िलए एक
लोक सेवा आयोग होगा ।
(2) दो या अिधक रा य यह करार कर सकगे िक रा य के उस समूह के िलए एक
ही लोक सेवा आयोग होगा और यिद इस आशय का संक प उन रा य म से प्र येक रा य
के िवधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन ह वहां प्र येक सदन द्वारा पािरत कर िदया
जाता है तो संस उन रा य की आव यकताओं की पिू तर् करने के िलए िविध द्वारा संयुक्त
रा य लोक सेवा आयोग की (िजसे इस अ याय म “संयुक्त आयोग” कहा गया है ) िनयिु क्त
का उपबंध कर सकेगी ।
(3) पूव क्त प्रकार की िकसी िविध म ऐसे आनुषंिगक और पािरणािमक उपबंध हो
सकगे जो उस िविध के प्रयोजन को प्रभावी करने के िलए आव यक या वांछनीय ह ।
(4) यिद िकसी रा य का रा यपाल 1*** संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने
का अनरु ोध करता है तो वह रा पित के अनमु ोदन से उस रा य की सभी या िक हीं
आव यकताओं की पूितर् करने के िलए सहमत हो सकेगा ।
(5) इस संिवधान म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो संघ लोक
सेवा आयोग या िकसी रा य लोक सेवा आयोग के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया
जाएगा िक वे ऐसे आयोग के प्रित िनदश ह जो प्र गत िकसी िविश िवषय के संबंध म,
यथाि थित, संघ की या रा य की आव यकताओं की पूितर् करता है ।
316. सद य की िनयुिक्त और पदाविध – (1) लोक सेवा आयोग के अ यक्ष और
अ य सद य की िनयुिक्त, यिद वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो, रा पित द्वारा
और, यिद वह रा य आयोग है तो, रा य के रा यपाल 1*** द्वारा की जाएगी :
परं तु प्र येक लोक सेवा आयोग के सद य म से यथाशक्य िनकटतम आधे ऐसे

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 178

यिक्त ह गे जो अपनी-अपनी िनयुिक्त की तारीख पर भारत सरकार या िकसी रा य की


सरकार के अधीन कम से कम दस वषर् तक पद धारण कर चुके ह और उक्त दस वषर् की
अविध की संगणना करने म इस संिवधान के प्रारं भ से पहले की ऐसी अविध भी
सि मिलत की जाएगी िजसके दौरान िकसी यिक्त ने भारत म क्राउन के अधीन या िकसी
दे शी रा य की सरकार के अधीन पद धारण िकया है ।
[(1क) यिद आयोग के अ यक्ष का पद िरक्त हो जाता है या यिद कोई ऐसा
1

अ यक्ष अनुपि थित के कारण या अ य कारण से अपने पद के कतर् य का पालन करने


म असमथर् है तो, यथाि थित, जब तक िरक्त पद पर खंड (1) के अधीन िनयुक्त कोई
यिक्त उस पद का कतर् य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अ यक्ष अपने
कतर् य को िफर से नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अ य सद य म से ऐसा
एक सद य, िजसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा म रा पित और रा य आयोग
की दशा म उस रा य का रा यपाल इस प्रयोजन के िलए िनयक्तु करे , उन कतर् य का
पालन करे गा ।]
(2) लोक सेवा आयोग का सद य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वषर् की
अविध तक या संघ आयोग की दशा म पसठ वषर् की आयु प्रा कर लेने तक और रा य
आयोग या संयुक्त आयोग की दशा म 2[बासठ वषर्] की आयु प्रा कर लेने तक इनम से
जो भी पहले हो, अपना पद धारण करे गा :
परं तु –
(क) लोक सेवा आयोग का कोई सद य, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की
दशा म रा पित को और रा य आयोग की दशा म रा य के रा यपाल 3*** को
संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद याग सकेगा ;
(ख) लोक सेवा आयोग के िकसी सद य को, अनु छे द 317 के खंड (1)
या खंड (3) म उपबंिधत रीित से उसके पद से हटाया जा सकेगा ।
(3) कोई यिक्त जो लोक सेवा आयोग के सद य के प म पद धारण करता है ,
अपनी पदाविध की समाि पर उस पद पर पुनिनर्युिक्त का पात्र नहीं होगा ।
317. लोक सेवा आयोग के िकसी सद य का हटाया जाना और िनलंिबत िकया

1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 11 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (इकतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (7-9-1976 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 179

जाना – (1) खंड (3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या
िकसी अ य सद य को केवल कदाचार के आधार पर िकए गए रा पित के ऐसे आदे श से
उसके पद से हटाया जाएगा जो उ चतम यायालय को रा पित द्वारा िनदश िकए जाने
पर उस यायालय द्वारा अनु छे द 145 के अधीन इस िनिम िविहत प्रिक्रया के अनस
ु ार
की गई जांच पर, यह प्रितवेदन िकए जाने के प ात ् िकया गया है िक, यथाि थित,
अ यक्ष या ऐसे िकसी सद य को ऐसे िकसी आधार पर हटा िदया जाए ।
(2) आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य को, िजसके संबंध म खंड (1) के
अधीन उ चतम यायालय को िनदश िकया गया है , 1*** संघ आयोग या संयक्तु आयोग
की दशा म रा पित और रा य आयोग की दशा म रा यपाल उसके पद से तब तक के
िलए िनलंिबत कर सकेगा जब तक रा पित ऐसे िनदश पर उ चतम यायालय का
प्रितवेदन िमलने पर अपना आदे श पािरत नहीं कर दे ता है ।
(3) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, यिद लोक सेवा आयोग का,
यथाि थित, अ यक्ष या कोई अ य सद य –
(क) िदवािलया यायिनणीर्त िकया जाता है , या
(ख) अपनी पदाविध म अपने पद के कतर् य के बाहर िकसी सवेतन
िनयोजन म लगता है , या
(ग) रा पित की राय म मानिसक या शारीिरक शैिथ य के कारण अपने
पद पर बने रहने के िलए अयोग्य है ,
तो रा पित, अ यक्ष या ऐसे अ य सद य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा ।
(4) यिद लोक सेवा आयोग का अ यक्ष या कोई अ य सद य, िनगिमत कंपनी
के सद य के प म और कंपनी के अ य सद य के साथ सि मिलत प से अ यथा,
उस संिवदा या करार से, जो भारत सरकार या रा य सरकार के द्वारा या िनिम की गई
या िकया गया है , िकसी प्रकार से संपक्त
ृ या िहतबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या
उससे उद्भत
ू िकसी फायदे या उपलि ध म भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजन के
िलए कदाचार का दोषी समझा जाएगा ।
318. आयोग के सद य और कमर्चािरवंद ृ की सेवा की शत के बारे म िविनयम
बनाने की शिक्त – संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा म रा पित और रा य आयोग
की दशा म उस रा य का रा यपाल 1*** िविनयम द्वारा –
(क) आयोग के सद य की संख्या और उनकी सेवा की शत का अवधारण

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 180

कर सकेगा ; और
(ख) आयोग के कमर्चािरवंद
ृ के सद य की संख्या और उनकी सेवा की
शत के संबंध म उपबंध कर सकेगा :
परं तु लोक सेवा आयोग के सद य की सेवा की शत म उसकी िनयुिक्त के प ात ्
उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न नहीं िकया जाएगा ।
319. आयोग के सद य द्वारा ऐसे सद य न रहने पर पद धारण करने के संबंध
म प्रितषेध – पद पर न रह जाने पर –
(क) संघ लोक सेवा आयोग का अ यक्ष भारत सरकार या िकसी रा य की
सरकार के अधीन िकसी भी और िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ख) िकसी रा य लोक सेवा आयोग का अ यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष या अ य सद य के प म अथवा िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग
के अ यक्ष के प म िनयुक्त होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ग) संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य सद य संघ
लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म या िकसी रा य लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष के प म िनयक्त
ु होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(घ) िकसी रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य
सद य संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य के प म
अथवा उसी या िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म िनयुक्त
होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार के अधीन
िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ।
320. लोक सेवा आयोग के कृ य – (1) संघ और रा य लोक सेवा आयोग का
यह कतर् य होगा िक वे क्रमशः संघ की सेवाओं और रा य की सेवाओं म िनयुिक्तय के
िलए परीक्षाओं का संचालन कर ।
(2) यिद संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अिधक रा य ऐसा करने का
अनरु ोध करते ह तो उसका यह भी कतर् य होगा िक वह ऐसी िक हीं सेवाओं के िलए,
िजनके िलए िवशेष अहर्ताओं वाले अ यथीर् अपेिक्षत ह, संयुक्त भतीर् की कीम बनाने और
उनका प्रवतर्न करने म उन रा य की सहायता करे ।
(3) यथाि थित, संघ लोक सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग से –
(क) िसिवल सेवाओं म और िसिवल पद के िलए भतीर् की पद्धितय से
भारत का संिवधान 181

संबंिधत सभी िवषय पर,


(ख) िसिवल सेवाओं और पद पर िनयुिक्त करने म तथा एक सेवा से
दस ू री सेवा म प्रो नित और अंतरण करने म अनुसरण िकए जाने वाले िसद्धांत
पर और ऐसी िनयुिक्त, प्रो नित या अंतरण के िलए अ यिथर्य की उपयक्त ु ता पर,
(ग) ऐसे यिक्त पर, जो भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार की
िसिवल है िसयत म सेवा कर रहा है , प्रभाव डालने वाले, सभी अनुशासिनक िवषय
पर, िजनके अंतगर्त ऐसे िवषय से संबंिधत अ यावेदन या यािचकाएं ह,
(घ) ऐसे यिक्त द्वारा या उसके संबंध म, जो भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन या भारत म क्राउन के अधीन या िकसी दे शी रा य
की सरकार के अधीन िसिवल है िसयत म सेवा कर रहा है या कर चुका है , इस
दावे पर िक अपने कतर् य के िन पादन म िकए गए या िकए जाने के िलए
ता पियर्त काय के संबंध म उसके िव द्ध संि थत िविधक कायर्वािहय की
प्रितरक्षा म उसके द्वारा उपगत खचर् का, यथाि थित, भारत की संिचत िनिध म से
या रा य की संिचत िनिध म से संदाय िकया जाना चािहए,
(ङ) भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार या भारत म क्राउन के
अधीन या िकसी दे शी रा य की सरकार के अधीन िसिवल है िसयत म सेवा करते
समय िकसी यिक्त को हुई क्षितय के बारे म पशन अिधिनणीर्त िकए जाने के
िलए िकसी दावे पर और ऐसे अिधिनणर्य की रकम िवषयक प्र पर,
परामशर् िकया जाएगा और इस प्रकार उसे िनदिशत िकए गए िकसी िवषय पर तथा ऐसे
िकसी अ य िवषय पर, िजसे, यथाि थित, रा पित या उस रा य का रा यपाल 1*** उसे
िनदिशत करे , परामशर् दे ने का लोक सेवा आयोग का कतर् य होगा :
परं तु अिखल भारतीय सेवाओं के संबंध म तथा संघ के कायर्कलाप से संबंिधत
अ य सेवाओं और पद के संबंध म भी रा पित तथा रा य के कायर्कलाप से संबिधत
अ य सेवाओं और पद के संबंध म रा यपाल 2*** उन िवषय को िविनिदर् करने वाले
िविनयम बना सकेगा िजनम साधारणतया या िकसी िविश वगर् के मामले म या िक हीं
िविश पिरि थितय म लोक सेवा आयोग से परामशर् िकया जाना आव यक नहीं होगा ।
(4) खंड (3) की िकसी बात से यह अपेक्षा नहीं होगी िक लोक सेवा आयोग से
उस रीित के संबंध म, िजससे अनु छे द 16 के खंड (4) म िनिदर् कोई उपबंध िकया
जाना है या उस रीित के संबंध म, िजससे अनु छे द 335 के उपबंध को प्रभावी िकया
जाना है , परामशर् िकया जाए ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भारत का संिवधान 182

(5) रा पित या िकसी रा य के रा यपाल 1*** द्वारा खंड (3) के परं तुक के
अधीन बनाए गए सभी िविनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, यथाि थित, संस के
प्र येक सदन या रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन के समक्ष कम से कम
चौदह िदन के िलए रखे जाएंगे और िनरसन या संशोधन द्वारा िकए गए ऐसे उपांतरण के
अधीन ह गे जो संस के दोन सदन या उस रा य के िवधान-मंडल का सदन या दोन
सदन उस सत्र म कर िजसम वे इस प्रकार रखे गए ह ।
321. लोक सेवा आयोग के कृ य का िव तार करने की शिक्त – यथाि थित,
संस द्वारा या िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अिधिनयम संघ लोक
सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की या रा य की सेवाओं के संबंध म
और िकसी थानीय प्रािधकारी या िविध द्वारा गिठत अ य िनगिमत िनकाय या िकसी
लोक सं था की सेवाओं के संबंध म भी अितिरक्त कृ य के प्रयोग के िलए उपबंध कर
सकेगा ।
322. लोक सेवा आयोग के यय – संघ या रा य लोक सेवा आयोग के यय,
िजनके अंतगर्त आयोग के सद य या कमर्चािरवंद
ृ को या उनके संबंध म संदेय कोई
वेतन, भ े और पशन ह, यथाि थित, भारत की संिचत िनिध या रा य की संिचत िनिध
पर भािरत ह गे ।
323. लोक सेवा आयोग के प्रितवेदन – (1) संघ आयोग का यह कतर् य होगा
िक वह रा पित को आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और
रा पित ऐसा प्रितवेदन प्रा होने पर उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम
आयोग की सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने
वाले ज्ञापन सिहत उस प्रितवेदन की प्रित संस के प्र येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।
(2) रा य आयोग का यह कतर् य होगा िक वह रा य के रा यपाल 1*** को
आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह
कतर् य होगा िक ऐसे रा य म से प्र येक के, िजनकी आव यकताओं की पिू तर् संयुक्त
आयोग द्वारा की जाती है , रा यपाल 1*** को उस रा य के संबंध म आयोग द्वारा िकए
गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और दोन म से प्र येक दशा म ऐसा प्रितवेदन
प्रा होने पर, रा यपाल 2*** उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम आयोग की
सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने वाले ज्ञापन
सिहत उस प्रितवेदन की प्रित रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भाग 15
निर्ााचि
324. निर्ााचिों के अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण का निर्ााचि आयोग में
निहित िोिा--(1) इस संवर्धाि के अधीि संसद् और प्रत्येक राज्य के वर्धाि-मंडल के
ललए कराए जािे र्ाले सभी निर्ााचिों के ललए तथा राष्ट्रपनत और उपराष्ट्रपनत के पदों के
ललए निर्ााचिों के ललए निर्ााचक-िामार्ली तैयार करािे का और उि सभी निर्ााचिों के
संचालि का अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण, 1*** एक आयोग में निहित िोगा (जजसे
इस संवर्धाि में निर्ााचि आयोग किा गया िै) ।
(2) निर्ााचि आयोग मुख्य निर्ााचि आयक्त ु और उतिे अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों से,
यहद कोई िों, जजतिे राष्ट्रपनत समय-समय पर नियत करे , लमलकर बिेगा तथा मुख्य
निर्ााचि आयक्तु और अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों की नियक्तु क्त, संसद् द्वारा इस निलमत्त बिाई
गई वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, राष्ट्रपनत द्वारा की जाएगी ।
(3) जब कोई अन्य निर्ााचि आयक्त
ु इस प्रकार नियक्त ु ककया जाता िै तब मुख्य
निर्ााचि आयक्त
ु निर्ााचि आयोग के अध्यक्ष के रूप में काया करे गा ।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य की वर्धाि सभा के प्रत्येक साधारण
निर्ााचि से पिले तथा वर्धाि पररषद् र्ाले प्रत्येक राज्य की वर्धाि पररषद् के ललए
प्रथम साधारण निर्ााचि से पिले और उसके पश्चात ् प्रत्येक हद्वर्ावषाक निर्ााचि से पिले,
राष्ट्रपनत निर्ााचि आयोग से परामशा करिे के पश्चात ्, खंड (1) द्वारा निर्ााचि आयोग को
सौंपे गए कृत्यों के पालि में आयोग की सिायता के ललए उतिे प्रादे लशक आयक्त ु ों की भी
नियक्तु क्त कर सकेगा जजतिे र्ि आर्श्यक समझे ।
(5) संसद् द्वारा बिाई गई ककसी वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, निर्ााचि
आयक्त
ु ों और प्रादे लशक आयक्तु ों की सेर्ा की शतें और पदार्धध ऐसी िोंगी जो राष्ट्रपनत
नियम द्वारा अर्धाररत करे :
परन्तु मुख्य निर्ााचि आयक्त ु को उसके पद से उसी रीनत से और उन्िीं आधारों
पर िी िटाया जाएगा, जजस रीनत से और जजि आधारों पर उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश को िटाया जाता िै अन्यथा ििीं और मुख्य निर्ााचि आयक्त ु की सेर्ा की
शतों में उसकी नियक्तु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी पररर्ताि ििीं ककया जाएगा :

1. संवर्धाि (उन्िीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा “जजसके अंतगात संसद् के और राज्य के वर्धाि-
मंडलों के निर्ााचिों से उद्भत
ू या संसक्त संदेिों और वर्र्ाद के निणाय के ललए निर्ााचि न्यायाधधकरण की नियुक्तक्त
भी िै” शब्दों का (11-12-1966 से) लोप ककया गया ।

186
भारत का संवर्धाि 187

परन्तु यि और कक ककसी अन्य निर्ााचि आयक्त


ु या प्रादे लशक आयक्त
ु को मुख्य
निर्ााचि आयक्तु की लसफाररश पर िी पद से िटाया जाएगा, अन्यथा ििीं ।
(6) जब निर्ााचि आयोग ऐसा अिरु ोध करे तब, राष्ट्रपनत या ककसी राज्य का
राज्यपाल 1*** निर्ााचि आयोग या प्रादे लशक आयक्त
ु को उतिे कमाचाररर्न्ृ द उपलब्ध
कराएगा जजतिे खंड (1) द्वारा निर्ााचि आयोग को सौंपे गए कृत्यों के निर्ािि के ललए
आर्श्यक िों ।
325. धमा, मल ू र्ंश, जानत या ललंग के आधार पर ककसी व्यक्तक्त का निर्ााचक-
िामार्ली में सजममललत ककए जािे के ललए अपात्र ि िोिा और उसके द्वारा ककसी वर्शेष
निर्ााचक-िामार्ली में सजममललत ककए जािे का दार्ा ि ककया जािा–संसद् के प्रत्येक
सदि या ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या प्रत्येक सदि के ललए निर्ााचि के
ललए प्रत्येक प्रादे लशक निर्ााचि-क्षेत्र के ललए एक साधारण निर्ााचक-िामार्ली िोगी और
केर्ल धमा, मल ू र्ंश, जानत, ललंग या इिमें से ककसी के आधार पर कोई व्यक्तक्त ऐसी
ककसी िामार्ली में सजममललत ककए जािे के ललए अपात्र ििीं िोगा या ऐसे ककसी
निर्ााचि-क्षेत्र के ललए ककसी वर्शेष निर्ााचक-िामार्ली में सजममललत ककए जािे का दार्ा
ििीं करे गा ।
326. लोक सभा और राज्यों की वर्धाि सभाओं के ललए निर्ााचिों का र्यस्क
मताधधकार के आधार पर िोिा–लोक सभा और प्रत्येक राज्य की वर्धाि सभा के ललए
निर्ााचि र्यस्क मताधधकार के आधार पर िोंगे अथाात ् प्रत्येक व्यक्तक्त, जो भारत का
िागररक िै और ऐसी तारीख को, जो समधु चत वर्धाि-मंडल द्वारा बिाई गई ककसी वर्धध
द्वारा या उसके अधीि इस निलमत्त नियत की जाए, कम से कम 2[अठारि र्षा] की आयु
का िै और इस संवर्धाि या समुधचत वर्धाि-मंडल द्वारा बिाई गई ककसी वर्धध के अधीि
अनिर्ास, धचत्तवर्कृनत, अपराध या भ्रष्ट या अर्ैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरहिात
ििीं कर हदया जाता िै, ऐसे ककसी निर्ााचि में मतदाता के रूप में रजजस्रीकृत िोिे का
िकदार िोगा ।
327. वर्धाि-मंडलों के ललए निर्ााचिों के संबध
ं में उपबंध करिे की संसद् की
शक्तक्त– इस संवर्धाि के उपबंधों के अधीि रिते िुए, संसद् समय-समय पर, वर्धध द्वारा,
संसद् के प्रत्येक सदि या ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या प्रत्येक सदि के
ललए निर्ााचिों से संबधं धत या संसक्त सभी वर्षयों के संबध
ं में , जजिके अंतगात निर्ााचक-
िामार्ली तैयार करािा, निर्ााचि-क्षेत्रों का पररसीमि और ऐसे सदि या सदिों का
समयक् गठि सुनिजश्चत करिे के ललए अन्य सभी आर्श्यक वर्षय िैं, उपबंध कर सकेगी

1. संवर्धाि (सातर्ां संशोधि) अधधनियम, 1956 की धारा 29 और अिुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संवर्धाि (इकसठर्ां संशोधि) अधधनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा “इक्कीस र्षा” के स्थाि पर (28-3-1989 से)
प्रनतस्थावपत ।
भारत का संवर्धाि 188

328. ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के ललए निर्ााचिों के संबध ं में उपबंध करिे
की उस वर्धाि-मंडल की शक्तक्त–इस संवर्धाि के उपबंधों के अधीि रिते िुए और जिां
तक संसद् इस निलमत्त उपबंध ििीं करती िै र्िां तक, ककसी राज्य का वर्धाि-मंडल
समय-समय पर, वर्धध द्वारा, उस राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या प्रत्येक सदि के
ललए निर्ााचिों से संबधं धत या संसक्त सभी वर्षयों के संबध
ं में , जजिके अंतगात निर्ााचक-
िामार्ली तैयार करािा और ऐसे सदि या सदिों का समयक् गठि सनु िजश्चत करिे के
ललए अन्य सभी आर्श्यक वर्षय िैं, उपबंध कर सकेगा ।

329. निर्ााचि संबधं ी मामलों में न्यायालयों के िस्तक्षेप का र्जाि–1[इस संवर्धाि


में ककसी बात के िोते िुए भी 2***--]

(क) अिच् ु छे द 327 या अिच्


ु छे द 328 के अधीि बिाई गई या बिाई जािे
के ललए तात्पनयात ककसी ऐसी वर्धध की वर्धधमान्यता, जो निर्ााचि-क्षेत्रों के
पररसीमि या ऐसे निर्ााचि-क्षेत्रों को स्थािों के आबंटि से संबधं धत िै, ककसी
न्यायालय में प्रश्नगत ििीं की जाएगी ;

(ख) संसद् के प्रत्येक सदि या ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या


प्रत्येक सदि के ललए कोई निर्ााचि ऐसी निर्ााचि अजी पर िी प्रश्नगत ककया
जाएगा, जो ऐसे प्राधधकारी को और ऐसी रीनत से प्रस्तत ु की गई िै जजसका
समुधचत वर्धाि-मंडल द्वारा बिाई गई वर्धध द्वारा या उसके अधीि उपबंध ककया
जाए, अन्यथा ििीं ।
3
329क. [प्रधाि मंत्री और अध्यक्ष के मामले में संसद् के ललए निर्ााचिों के बारे
में वर्शेष उपबंध ।]--संवर्धाि (चर्ालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1978 की धारा 36 द्वारा
(20-6-1979 से) निरलसत ।

1. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थाि पर (10-8-1975 से)
प्रनतस्थावपत ।
2. संवर्धाि (चर्ालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1978 की धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परन्तु अिुच्छे द 329क के
उपबंधों के अधीि रिते िुए” शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप ककया गया ।
3. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 4 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्थावपत ।
भाग 16

कुछ वग� के संबंध म� �वशेष उपबंध


330. लोक सभा म� अनस
ु �ू चत जा�तय� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के �लए
स्थान� का आर�ण–(1) लोक सभा म� –
(क) अनस
ु ू�चत जा�तय� के �लए,
1
[(ख) असम के स्वशासी िजल� क� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� को छोड़कर
अन्य अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए, और]
(ग) असम के स्वशासी िजल� क� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए,
स्थान आर��त रह� गे ।
(2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य 2
[या संघ राज्य�ेत्र] म� अनस
ु �ू चत जा�तय�
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप
या अनस ु ात, लोक सभा म�
उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह�
होगा जो, यथािस्थ�त, उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� अनस
ु �ू चत जा�तय� क� अथवा
उस राज्य 2
[या संघ राज्य�ेत्र] क� या उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के भाग क�
अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क�, िजनके संबध
ं म� स्थान इस प्रकार आर��त ह�, जनसंख्या का
ु ात उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� कुल जनसंख्या से है ।
अनप
[(3) खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा म� असम के स्वशासी
3

िजल� क� अनसु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस
राज्य को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो उ�
स्वशासी िजल� क� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप
ु ात उस राज्य क� कुल
जनसंख्या से है ।]

1. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत ।
189
भारत का सं�वधान 190

[स्प�ीकरण–इस अनच्
1
ु छे द म� और अनच्
ु छे द 332 म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी
अं�तम पव
ू व
र् त� जनगणना म� अ�भ�नि�त क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसंगत
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� :
परन्तु इस स्प�ीकरण म� अं�तम पव
ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सस
ु ंगत
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह
3
[2001] क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]
331. लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्र�त�न�धत्व–अनच्
ु छे द 81 म�
�कसी बात के होते हुए भी, य�द रा�प�त क� यह राय है �क लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय
समुदाय का प्र�त�न�धत्व पयार्� नह�ं है तो वह लोक सभा म� उस समद ु ाय के दो से
अन�धक सदस्य नाम�नद� �शत कर सकेगा ।

332. राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस


ु ू�चत जा�तय� और अनस
ु ू�चत
जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण–(1) 4
*** प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा म�
अनस
ु ू�चत जा�तय� के �लए और
5
[असम के स्वशासी िजल� क� अनस
ु ू�चत जनजा�तय�
को छोड़कर] अन्य अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान आर��त रह� गे ।

(2) असम राज्य क� �वधान सभा म� स्वशासी िजल� के �लए भी स्थान आर��त
रह� गे ।

(3) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य क� �वधान सभा म� अनस


ु ू�चत जा�तय� या
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप
अनस ु ात, उस �वधान सभा
म� स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो, यथािस्थ�त, उस राज्य क�
अनस
ु ू�चत जा�तय� क� अथवा उस राज्य क� या उस राज्य के भाग क� अनस
ु ू�चत

1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा “1991” के स्थान पर (22-6-2003 से)
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के
भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 191

जनजा�तय� क�, िजनके संबध


ं म� स्थान इस प्रकार आर��त ह�, जनसंख्या का अनप
ु ात उस
राज्य क� कुल जनसंख्या से है ।

[(3क) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई
1

पहल� जनगणना के आधार पर, अरुणाचल प्रदे श, मेघालय, �मजोरम और नागाल�ड राज्य�
क� �वधान सभाओं म� स्थान� क� संख्या के, अनच्
ु छे द 170 के अधीन, पन
ु ःसमायोजन के
प्रभावी होने तक, जो स्थान ऐसे �कसी राज्य क� �वधान सभा म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय�
के �लए आर��त �कए जाएंगे, वे–

(क) य�द सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 के प्रव�


ृ होने
क� तार�ख को ऐसे राज्य क� �वद्यमान �वधान सभा म� (िजसे इस खंड म� इसके
प�ात ् �वद्यमान �वधान सभा कहा गया है) सभी स्थान अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के
सदस्य� द्वारा धा�रत ह� तो, एक स्थान को छोड़कर सभी स्थान ह�गे ; और

(ख) �कसी अन्य दशा म� , उतने स्थान ह�गे, िजनक� संख्या का अनप
ु ात,
स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो �वद्यमान �वधान
सभा म� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� क� (उ� तार�ख को यथा�वद्यमान)
संख्या का अनप
ु ात �वद्यमान �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या से ह� ।]

[(3ख) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 4[2026] के प�ात ् क� गई
3

पहल� जनगणना के आधार पर, �त्रपरु ा राज्य क� �वधान सभा म� स्थान� क� संख्या के,
अनच्
ु छे द 170 के अधीन, पन
ु ःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान उस �वधान
सभा म� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के �लए आर��त �कए जाएंगे वे उतने स्थान ह�गे
िजनक� संख्या का अनप
ु ात, स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो
�वद्यमान �वधान सभा म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� क�, सं�वधान (बह�रवां

1. सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 192

संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रव�


ृ होने क� तार�ख को यथा�वद्यमान संख्या का
अनप
ु ात उ� तार�ख को उस �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या से है ।]
(4) असम राज्य क� �वधान सभा म� �कसी स्वशासी िजले के �लए आर��त
स्थान� क� संख्या का अनप
ु ात, उस �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या के उस
अनप ु ात उस राज्य क� कुल
ु ात से कम नह�ं होगा जो उस िजले क� जनसंख्या का अनप
जनसंख्या से है ।
(5) 1***
असम के �कसी स्वशासी िजले के �लए आर��त स्थान� के �नवार्चन-�ेत्र�
म� उस िजले के बाहर का कोई �ेत्र समा�व� नह�ं होगा ।
(6) कोई व्य�� जो असम राज्य के �कसी स्वशासी िजले क� अनस
ु ू�चत जनजा�त
का सदस्य नह�ं है, उस राज्य क� �वधान सभा के �लए उस िजले के �कसी �नवार्चन-�ेत्र
से �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा :
2
[परं तु असम राज्य क� �वधान सभा के �नवार्चन� के �लए, बोडोल�ड प्रादे �शक
प�रषद् �ेत्र िजला म� सिम्म�लत �नवार्चन-�ेत्र� म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� और गैर-
अनस
ु ू�चत जनजा�तय� का प्र�त�न�धत्व, जो उस प्रकार अ�धसू�चत �कया गया था और
बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला के गठन से पव
ू र् �वद्यमान था, बनाए रखा जाएगा ।]
333. राज्य� क� �वधान सभाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व–
ु छे द 170 म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द �कसी राज्य के राज्यपाल *** क�
अनच् 3

यह राय है �क उस राज्य क� �वधान सभा म� आंग्ल-भारतीय समद ु ाय का प्र�त�न�धत्व


आवश्यक है और उसम� उसका प्र�त�न�धत्व पयार्� नह�ं है तो वह उस �वधान सभा म�
4
[उस समुदाय का एक सदस्य नाम�नद� �शत कर सकेगा] ।

1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) क�तपय शब्द� का
लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (नब्बेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (28-9-2003 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (तेईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा “उस �वधान सभा म� उस समुदाय के िजतने
सदस्य वह समु�चत समझे नाम�नद� �शत कर सकेगा” के स्थान पर (23-1-1970 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 193

334. 1[स्थान� के आर�ण और �वशेष प्र�त�न�धत्व का क�तपय अव�ध के प�ात ्


न रहना]–इस भाग के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी,–

(क) लोक सभा म� और राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस


ु ू�चत जा�तय�
और अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान� के आर�ण संबध
ं ी, और

(ख) लोक सभा म� और राज्य� क� �वधान सभाओं म� नाम�नद� शन द्वारा


आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्र�त�न�धत्व संबध
ं ी,

इस सं�वधान के उपबंध इस सं�वधान के प्रारं भ से 2[खंड (क) के संबध


ं म� अस्सी वषर् और
खंड (ख) के संबध
ं म� स�र वषर्] क� अव�ध क� समा�� पर प्रभावी नह�ं रह� गे :

परन्तु इस अनच्
ु छे द क� �कसी बात से लोक सभा म� या �कसी राज्य क� �वधान
सभा म� �कसी प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव नह�ं पड़ेगा जब तक, यथािस्थ�त,
उस समय �वद्यमान लोक सभा या �वधान सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है ।

335. सेवाओं और पद� के �लए अनस


ु �ू चत जा�तय� और अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के
दावे–संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� के �लए �नय�ु �यां
करने म� , अनस
ु ू�चत जा�तय� और अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� के दाव� का प्रशासन
क� द�ता बनाए रखने क� संग�त के अनस
ु ार ध्यान रखा जाएगा :
3
[परन्तु इस अनच्
ु छे द क� कोई बात अनस
ु ू�चत जा�तय� और अनस
ु ू�चत
जनजा�तय� के सदस्य� के प� म� , संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं
के �कसी वगर् या वग� म� या पद� पर प्रोन्न�त के मामल� म� आर�ण के �लए, �कसी
पर��ा म� अहर्क अंक� म� छूट दे ने या मूल्यांकन के मानक� को घटाने के �लए उपबंध
करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।]

1. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) “स�र वषर्” शब्द� के
स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (पचानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2009 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ
वषर्” शब्द� के स्थान पर “स�र वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे । सं�वधान (उनासीवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1999 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2000 से) “पचास वषर्” शब्द� के स्थान पर “साठ वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए
थे । सं�वधान (बासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 2 द्वारा “चाल�स वषर्” शब्द� के स्थान पर “पचास
वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे । सं�वधान (प�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 क� धारा 2 द्वारा “तीस
वषर्” शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (बयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (6-9-2000 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 194

336. कुछ सेवाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय के �लए �वशेष उपबंध–(1) इस


सं�वधान के प्रारं भ के प�ात ्, प्रथम दो वषर् के दौरान, संघ क� रे ल, सीमाशल्
ु क, डाक और
तार संबध
ं ी सेवाओं म� पद� के �लए आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य� क� �नय�ु �यां उसी
आधार पर क� जाएंगी िजस आधार पर 15 अगस्त, 1947 से ठ�क पहले क� जाती
थीं ।

प्रत्येक उ�रवत� दो वषर् क� अव�ध के दौरान उ� समद


ु ाय के सदस्य� के �लए,
उ� सेवाओं म� आर��त पद� क� संख्या ठ�क पव
ू व
र् त� दो वषर् क� अव�ध के दौरान इस
प्रकार आर��त संख्या से यथासंभव �नकटतम दस प्र�तशत कम होगी :

परन्तु इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् के अंत म� ऐसे सभी आर�ण समा� हो


जाएंगे ।

(2) य�द आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य अन्य समुदाय� के सदस्य� क� तल


ु ना
म� गण ु के आधार पर �नय�ु � के �लए अ�हर्त पाए जाएं तो खंड (1) के अधीन उस
ु ागण
समद
ु ाय के �लए आर��त पद� से �भन्न या उनके अ�त�र� पद� पर आंग्ल-भारतीय
समुदाय के सदस्य� क� �नय�ु � को उस खंड क� कोई बात विजर्त नह�ं करे गी ।
337. आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के �लए शै��क अनद
ु ान के �लए �वशेष
उपबंध–इस सं�वधान के प्रारं भ के प�ात ्, प्रथम तीन �व�ीय वष� के दौरान आंग्ल-
भारतीय समद ं म� संघ और 1*** प्रत्येक राज्य द्वारा
ु ाय के फायदे के �लए �श�ा के संबध
वह� अनद
ु ान, य�द कोई ह�, �दए जाएंगे जो 31 माचर्, 1948 को समा� होने वाले �व�ीय
वषर् म� �दए गए थे ।
प्रत्येक उ�रवत� तीन वषर् क� अव�ध के दौरान अनद
ु ान ठ�क पव
ू व
र् त� तीन वषर् क�
अव�ध क� अपे�ा दस प्र�तशत कम हो सक�गे :
परन्तु इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् के अंत म� ऐसे अनद
ु ान, िजस मात्रा
तक वे आंग्ल-भारतीय समुदाय के �लए �वशेष �रयायत है उस मात्रा तक, समा� हो
जाएंगे :

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 195

परन्तु यह और �क कोई �श�ा संस्था इस अनच्


ु छे द के अधीन अनद
ु ान प्रा� करने
क� तब तक हकदार नह�ं होगी जब तक उसके वा�षर्क प्रवेश� म� कम से कम चाल�स
प्र�तशत प्रवेश आंग्ल-भारतीय समुदाय से �भन्न समुदाय� के सदस्य� के �लए उपलब्ध
नह�ं �कए जाते ह� ।
338. 1[रा�ीय अनस
ु ू�चत जा�त आयोग]– [ [(1) अनस
2 3
ु ू�चत जा�तय� के �लए एक
आयोग होगा जो रा�ीय अनस
ु ू�चत जा�त आयोग के नाम से �ात होगा ।
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्य�, एक उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस
प्रकार �नय�
ु �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और
पदाव�ध ऐसी ह�गी जो रा�प�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे ।]
(3) रा�प�त अपने हस्ता�र और मद्र
ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�,
उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नय�
ु करे गा ।
(4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� श�� होगी ।
(5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,–
(क) अनस
ु ू�चत जा�तय�
4
*** के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव�

�कसी अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से
संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे
र�ोपाय� के कायर्करण का मूल्यांकन करे ;
ु ू�चत जा�तय� 1*** को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत
(ख) अनस
करने क� बाबत �व�न�दर्� �शकायत� क� जांच करे ;

1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पा�र् शीषर् के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर खंड (1) से खंड (9) तक प्र�तस्था�पत �कए गए ।
3. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) खंड (1) और (2) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 196

(ग) अनस
ु ू�चत जा�तय� 1*** के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना
प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन
उनके �वकास क� प्रग�त का मूल्यांकन करे ;
(घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर्, और ऐसे अन्य समय�
पर, जो आयोग ठ�क समझे, रा�प�त को प्र�तवेदन दे ;
(ङ) ऐसे प्र�तवेदन� म� उन उपाय� के बारे म� जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण
ू र्
कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा अनस
ु ू�चत
जा�तय� 1*** के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �लए अन्य
उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ;
(च) अनस
ु ू�चत जा�तय� *** के संर�ण, कल्याण, �वकास तथा उन्नयन
1

के संबध
ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो रा�प�त, संसद् द्वारा बनाई गई
�कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्� करे ।
(6) रा�प�त ऐसे सभी प्र�तवेदन� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उसके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्प� करने वाला �ापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसा प्र�तवेदन, या उसका कोई भाग �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत
है िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध
ं है तो ऐसे प्र�तवेदन क� एक प्र�त उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई
तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्प�
करने वाला �ापन भी होगा ।
(8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्� �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्� �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�श�तया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध
ं म� , वे सभी श��यां ह�गी जो वाद का �वचारण
करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :–

(क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्य�� को समन करना और हािजर


कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ;
भारत का सं�वधान 197

(ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ;

(ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ;

(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त


क� अपे�ा करना ;

(ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ;

(च) कोई अन्य �वषय जो रा�प�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे ।

(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनस


ु ू�चत जा�तय�
1
*** को प्रभा�वत करने
वाले सभी महत्वपण
ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।]
2
[(10)] इस अनच्
ु छे द म� , अनस
ु ू�चत जा�तय� *** के प्र�त �नद� श का यह अथर्
1

लगाया जाएगा �क इसके अंतगर्त 3*** आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्र�त �नद� श भी है ।


4
[338क. रा�ीय अनस
ु �ू चत जनजा�त आयोग–(1) अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के �लए
एक आयोग होगा जो रा�ीय अनस
ु ू�चत जनजा�त आयोग के नाम से �ात होगा ।

(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबध� के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार
�नय�
ु �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध
ऐसी ह�गी जो रा�प�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।

(3) रा�प�त, अपने हस्ता�र और मद्र


ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�,
उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नय�
ु करे गा ।

1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम,1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप म�
पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 2 द्वारा (11-8-2018 से) "ऐसे अन्य �पछड़े वग� के
प्र�त �नद� श, िजनको रा�प�त अनुच्छे द 340 के खंड (1) के अधीन �नयु� आयोग के प्र�तवेदन क� प्रा�� पर आदे श
द्वारा �व�न�दर् � करे , और आंग्ल-भारतीय समुदाय प्र�त �नद� श भी है " शब्द�, अंक� और को�क� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 198

(4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� श�� होगी ।


(5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,–
(क) अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव�
ृ �कसी
अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से संब�ं धत
सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे र�ोपाय� के
कायर्करण का मूल्यांकन करे ;
(ख) अनस
ु �ू चत जनजा�तय� को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत
करने के सम्बन्ध म� �व�न�दर्� �शकायत� क� जांच करे ;
(ग) अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना
प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन
उनके �वकास क� प्रग�त का मल्
ू यांकन करे ;
(घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर् और ऐसे अन्य समय�
पर, जो आयोग ठ�क समझे, रा�प�त को �रपोटर् प्रस्तुत करे ;
(ङ) ऐसी �रपोट� म� उन उपाय� के बारे म� , जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण
ू र्
कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा अनस
ु ू�चत
जनजा�तय� के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �लए अन्य
उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ; और
(च) अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के संर�ण, कल्याण और �वकास तथा
उन्नयन के संबध
ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो रा�प�त, संसद् द्वारा
बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्� करे

(6) रा�प�त ऐसी सभी �रपोट� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उनके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्प� करने वाला �ापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसी �रपोटर् या उसका कोई भाग, �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है
िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध
ं है तो ऐसी �रपोटर् क� एक प्र�त उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके
भारत का सं�वधान 199

साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई


तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्प�
करने वाला �ापन भी होगा ।
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्� �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्� �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�श�तया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध
ं म� , वे सभी श��यां ह�गी, जो वाद का �वचारण
करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :–
(क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्य�� को समन करना और हािजर
कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ;
(ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ;
(ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ;
(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त
क� अध्यपे�ा करना ;
(ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ;
(च) कोई अन्य �वषय, जो रा�प�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस
ु ू�चत जनजा�तय� को प्रभा�वत करने
वाले सभी महत्वपण
ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।]
1
[338ख. �पछड़े वग� के �लए राष्ट्र�य आयोग–(1) सामािजक और शै��क दृिष्ट
से �पछड़े वग� के �लए एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य �पछड़ा वगर् आयोग के नाम से �ात
होगा ।
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार
�नयक्
ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध
ऐसी ह�गी, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
(3) राष्ट्रप�त, अपने हस्ता�र और मद्र
ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�,
उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक्
ु त करे गा ।

1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 3 द्वारा (11-8-2018 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 200

(4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� शिक्त होगी ।


(5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,—
(क) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के �लए इस सं�वधान या
तत्समय प्रव�
ृ �कसी अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत
र�ोपाय� से संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे
तथा ऐसे र�ोपाय� के कायर्करण का मूल्यांकन करे ;
(ख) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� को उनके अ�धकार�
और र�ोपाय� से वं�चत करने के संबध
ं म� �व�न�दर्ष्ट �शकायत� क� जांच करे ;
(ग) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के सामािजक- आ�थर्क
�वकास के संबध
ं म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के
अधीन उनके �वकास क� प्रग�त का मल्
ू यांकन करे ;
(घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर् और ऐसे अन्य समय�
पर, जो आयोग ठ�क समझे, राष्ट्रप�त को �रपोटर् प्रस्तत
ु करे ;
(ङ) ऐसी �रपोट� म� उन उपाय� के बारे म� , जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण
ू र्
कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हए तथा सामािजक
और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क
�वकास के �लए अन्य उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ; और
(च) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के संर�ण, कल्याण और
�वकास तथा उन्नयन के संबध
ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे , जो
राष्ट्रप�त, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
�नयम द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे ।
(6) राष्ट्रप�त, ऐसी सभी �रपोट� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उनके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्प� करने वाला �ापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसी �रपोटर् या उसका कोई भाग, �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है,
िजसका राज्य सरकार से संबध
ं है, तो ऐसी �रपोटर् क� एक प्र�त उस राज्य सरकार को
भेजी जाएगी, जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगी और उसके साथ राज्य
भारत का सं�वधान 201

से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द


कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्प� करने वाला
�ापन भी होगा ।
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध
ं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी, जो वाद का
�वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :--
(क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और
हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ;
(ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ;
(ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ;
(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त
क� अध्यपे�ा करना ;
(ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ;
(च) कोई अन्य �वषय, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग�
को प्रभा�वत करने वाले सभी महत्वपण
ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।]
339. अनस
ु �ू चत �ेत्र� के प्रशासन और अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण के बारे
म� संघ का �नयंत्रण–(1) रा�प�त 1
*** राज्य� के अनस
ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन और
अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के कल्याण के बारे म� प्र�तवेदन दे ने के �लए आयोग क� �नय�ु �,
आदे श द्वारा, �कसी भी समय कर सकेगा और इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् क�
समा�� पर करे गा ।
आदे श म� आयोग क� संरचना, श��यां और प्र�क्रया प�र�नि�त क� जा सक�गी
ु �ं गक या सहायक उपबंध समा�व� हो सक�गे िजन्ह� रा�प�त
और उसम� ऐसे आनष
आवश्यक या वांछनीय समझे ।

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क और
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 202

(2) संघ क� कायर्पा�लका श�� का �वस्तार 1


[�कसी राज्य] को ऐसे �नदे श दे ने
तक होगा जो उस राज्य क� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण के �लए �नदे श म�
आवश्यक बताई गई स्क�म� के बनाने और �नष्पादन के बारे म� है ।
340. �पछड़े वग� क� दशाओं के अन्वेषण के �लए आयोग क� �नय�ु �–
(1) रा�प�त, भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सामािजक और शै��क दृ�� से �पछड़े वग� क�
दशाओं के और िजन क�ठनाइय� को वे झेल रहे ह� उनके अन्वेषण के �लए और उन
क�ठनाइय� को दरू करने और उनक� दशा को सुधारने के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा
जो उपाय �कए जाने चा�हएं उनके बारे म� और उस प्रयोजन के �लए संघ या �कसी राज्य
ु ान �कए जाने चा�हएं और िजन शत� के अधीन वे अनद
द्वारा जो अनद ु ान �कए जाने
चा�हएं उनके बारे म� �सफा�रश करने के �लए, आदे श द्वारा, एक आयोग �नय�
ु कर
सकेगा जो ऐसे व्य��य� से �मलकर बनेगा जो वह ठ�क समझे और ऐसे आयोग को
�नय�
ु करने वाले आदे श म� आयोग द्वारा अनस
ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया प�र�नि�त क�
जाएगी ।

ु आयोग अपने को �नद� �शत �वषय� का अन्वेषण करे गा और


(2) इस प्रकार �नय�
रा�प�त को प्र�तवेदन दे गा, िजसम� उसके द्वारा पाए गए तथ्य उपव�णर्त �कए जाएंगे
और िजसम� ऐसी �सफा�रश� क� जाएंगी िजन्ह� आयोग उ�चत समझे ।
(3) रा�प�त, इस प्रकार �दए गए प्र�तवेदन क� एक प्र�त, उस पर क� गई कारर्वाई
को स्प� करने वाले �ापन स�हत, संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा ।
341. अनस
ु ू�चत जा�तयां–(1) रा�प�त,
2
[�कसी राज्य [या संघ राज्य�ेत्र] के
3

संबध
ं म� और जहां वह *** राज्य है वहां उसके राज्यपाल *** से परामशर् करने के
4 5

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “�कसी ऐसे राज्य” के स्थान पर (1-
11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 10 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर्
करने के प�ात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 203

प�ात ्] लोक अ�धसूचना 1 द्वारा, उन जा�तय�, मूलवंश� या जनजा�तय�, अथवा जा�तय�,


35

मूलवंश� या जनजा�तय� के भाग� या उनम� के यथ


ू � को �व�न�दर्� कर सकेगा, िजन्ह� इस
सं�वधान के प्रयोजन� के �लए 2[यथािस्थ�त,] उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के संबध
ं म�
अनस
ु ू�चत जा�तयां समझा जाएगा ।
(2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी जा�त, मूलवंश या जनजा�त को अथवा जा�त,
मूलवंश या जनजा�त के भाग या उसम� के यथ
ू को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई
अ�धसूचना म� �व�न�दर्� अनस
ु ू�चत जा�तय� क� सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम�
से अपविजर्त कर सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उ� खंड के
अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �कसी प�ातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया
जाएगा ।
342. अनस
ु �ू चत जनजा�तयां–(1) रा�प�त, [�कसी राज्य [या संघ राज्य�ेत्र]
2 2
के
संबध
ं म� और जहां वह *** राज्य है वहां उसके राज्यपाल *** से परामशर् करने के
3 4

प�ात ्] लोक अ�धसूचना5 द्वारा, उन जनजा�तय� या जनजा�त समुदाय� अथवा जनजा�तय�


या जनजा�त समुदाय� के भाग� या उनम� के यथ
ू � को �व�न�दर्� कर सकेगा, िजन्ह� इस
सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, 4[यथािस्थ�त,] उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के संबध
ं म�
अनस
ु ू�चत जनजा�तयां समझा जाएगा ।
(2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी जनजा�त या जनजा�त समुदाय को अथवा �कसी जनजा�त
या जनजा�त समद
ु ाय के भाग या उसम� के यथ
ू को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसच
ू ना म�

1. सं�वधान (अऩुसू�चत जा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), सं�वधान (अनुस�ू चत जा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र) आदे श,
1951 (सं.आ. 32), सं�वधान (जम्मू-कश्मीर) अनुस�ू चत जा�तयां आदे श, 1956 (सं.आ. 52), सं�वधान (दादरा और
नागर हवेल�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 64). सं�वधान (पां�डचेर�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श,
1964 (सं.आ. 68), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और
सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे �खए ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 11 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर्
करने के प�ात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
.
4 सं�वधान (अऩुस�ू चत जनजा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), सं�वधान (अनुस�ू चत जनजा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र)
आदे श, 1951 (सं.आ. 33), सं�वधान (अंडमान और �नकोबार द्वीप) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1959 (सं.आ.
58), सं�वधान (दादरा और नागर हवेल�) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 65), सं�वधान (अनुसू�चत
जनजा�तयां) (उ�र प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ. 78), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जनजा�तयां
आदे श, 1968 (सं.आ. 82), सं�वधान (नागाल�ड) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1970 (सं.आ. 88) और सं�वधान
(�सिक्कम) अनुस�ू चत जनजा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे �खए ।
भारत का सं�वधान 204

�व�न�दर्� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर
सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उ� खंड के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना
म� �कसी प�ातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
1
[342क. सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर्–(1) राष्ट्रप�त, �कसी राज्य
या संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म� और जहां वह राज्य है, वहां उसके राज्यपाल से परामशर्
करने के पश्चात ् लोक अ�धसूचना द्वारा, सामािजक और शै��क दृिष्ट से ऐसे �पछड़े वग�
को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा, िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, यथािस्थ�त, उस
राज्य या संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म� सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़ा वगर् समझा
जाएगा ।
(2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर् को खंड
(1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसच
ू ना म� �व�न�दर्ष्ट सामािजक और शै��क दृिष्ट से
�पछड़े वग� क� केन्द्र�य सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर
सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन �नकाल� गई
अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।]

1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 4 द्वारा (11-8-2018 से) प्र�तस्था�पत ।
भाग 17
राजभाषा
अध्याय 1 – संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा – (1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि दे वनागरी
िोगी ।
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािे अंकों का रूि भारतीय अंकों
का अंतरराष्ट्रीय रूि िोगा ।
(2) खंड (1) में ककसी बात के िोते िुए भी, इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष
की अवधध तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग
ककया जाता रिे गा जजनके लिए उसका ऐसे प्रारं भ से ठीक िििे प्रयोग ककया जा रिा
था :
िरन्तु राष्ट्रितत उक्त अवधध के दौरान, आदे श1 द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में
से ककसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अततररक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के
अंतरराष्ट्रीय रूि के अततररक्त दे वनागरी रूि का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा ।
(3) इस अनच् ु छे द में ककसी बात के िोते िुए भी, संसद् उक्त िन्रि वषष की अवधध
के िश्चात ्, पवधध द्वारा –
(क) अंग्रेजी भाषा का, या
(ख) अंकों के दे वनागरी रूि का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उिबंधधत कर सकेगी जो ऐसी पवधध में पवतनहदषष्ट ककए जाएं

344. राजभाषा के संबध ं में आयोग और संसद् की सलमतत – (1) राष्ट्रितत, इस
संपवधान के प्रारं भ से िांच वषष की समाति िर और तत्िश्चात ् ऐसे प्रारं भ से दस वषष की
समाति िर, आदे श द्वारा, एक आयोग गहठत करे गा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनस ु ूची
में पवतनहदषष्ट पवलभन्न भाषाओं का प्रतततनधधत्व करने वािे ऐसे अन्य सदस्यों से लमिकर
बनेगा जजनको राष्ट्रितत तनयक्त ु करे और आदे श में आयोग द्वारा अनस ु रण की जाने वािी
प्रकिया िररतनजश्चत की जाएगी ।
(2) आयोग का यि कतषव्य िोगा कक वि राष्ट्रितत को –
(क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधधकाधधक
प्रयोग,
(ख) संघ के सभी या ककन्िीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के
प्रयोग िर तनबंधनों,
(ग) अनच् ु छे द 348 में उजलिखखत सभी या ककन्िीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग
की जाने वािी भाषा,

1. सं.आ. 41 दे खखए ।
202
भारत का संपवधान 203

(घ) संघ के ककसी एक या अधधक पवतनहदषष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग ककए


जाने वािे अंकों के रूि,
(ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और ककसी राज्य के बीच या एक राज्य
और दस ू रे राज्य के बीच ित्राहद की भाषा और उनके प्रयोग के संबध
ं में राष्ट्रितत
द्वारा आयोग को तनदे लशत ककए गए ककसी अन्य पवषय,
के बारे में लसफाररश करे ।
(3) खंड (2) के अधीन अिनी लसफाररशें करने में , आयोग भारत की औद्योधगक,
सांस्कृततक और वैज्ञातनक उन्नतत का और िोक सेवाओं के संबध ं में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों
के व्यक्तक्तयों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक् ध्यान रखेगा ।
(4) एक सलमतत गहठत की जाएगी जो तीस सदस्यों से लमिकर बनेगी जजनमें से
बीस िोक सभा के सदस्य िोंगे और दस राज्य सभा के सदस्य िोंगे जो िमशः िोक
सभा के सदस्यों और राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनि
ु ाततक प्रतततनधधत्व िद्धतत के
अनसु ार एकि संिमणीय मत द्वारा तनवाषधचत िोंगे ।
(5) सलमतत का यि कतषव्य िोगा कक वि खंड (1) के अधीन गहठत आयोग की
लसफाररशों की िरीक्षा करे और राष्ट्रितत को उन िर अिनी राय के बारे में प्रततवेदन दे ।
(6) अनच्ु छे द 343 में ककसी बात के िोते िुए भी, राष्ट्रितत खंड (5) में तनहदषष्ट
प्रततवेदन िर पवचार करने के िश्चात ् उस संिण ू ष प्रततवेदन के या उसके ककसी भाग के
अनस ु ार तनदे श दे सकेगा ।
अध्याय 2 – प्रादे लशक भाषाएं
345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं – अनच्
ु छे द 346 और अनच्ु छे द 347 के
उिबंधों के अधीन रिते िुए, ककसी राज्य का पवधान-मंडि, पवधध द्वारा, उस राज्य में
प्रयोग िोने वािी भाषाओं में से ककसी एक या अधधक भाषाओं को या हिन्दी को उस
राज्य के सभी या ककन्िीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा या
भाषाओं के रूि में अंगीकार कर सकेगा :
िरन्तु जब तक राज्य का पवधान-मंडि, पवधध द्वारा, अन्यथा उिबंध न करे तब
तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ककया जाता
रिे गा जजनके लिए उसका इस संपवधान के प्रारं भ से ठीक िििे प्रयोग ककया जा रिा
था ।
346. एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच या ककसी राज्य और संघ के बीच
ित्राहद की राजभाषा – संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग ककए जाने के लिए
तत्समय प्राधधकृत भाषा, एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच तथा ककसी राज्य और संघ
के बीच ित्राहद की राजभाषा िोगी :
भारत का संपवधान 204

िरन्तु यहद दो या अधधक राज्य यि करार करते िैं कक उन राज्यों के बीच ित्राहद
की राजभाषा हिन्दी भाषा िोगी तो ऐसे ित्राहद के लिए उस भाषा का प्रयोग ककया जा
सकेगा ।
347. ककसी राज्य की जनसंख्या के ककसी अनभ ु ाग द्वारा बोिी जाने वािी भाषा
के संबध
ं में पवशेष उिबंध – यहद इस तनलमत्त मांग ककए जाने िर राष्ट्रितत का यि
समाधान िो जाता िै कक ककसी राज्य की जनसंख्या का ियाषि भाग यि चािता िै कक
उसके द्वारा बोिी जाने वािी भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वि तनदे श दे
सकेगा कक ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सवषत्र या उसके ककसी भाग में ऐसे प्रयोजन
के लिए, जो वि पवतनहदषष्ट करे , शासकीय मान्यता दी जाए ।
अध्याय 3 – उच्चतम न्यायािय, उच्च न्यायाियों, आहद की भाषा
348. उच्चतम न्यायािय और उच्च न्यायाियों में और अधधतनयमों, पवधेयकों
आहद के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा – (1) इस भाग के िव ू ग
ष ामी उिबंधों में ककसी
बात के िोते िुए भी, जब तक संसद् पवधध द्वारा अन्यथा उिबंध न करे तब तक –
(क) उच्चतम न्यायािय और प्रत्येक उच्च न्यायािय में सभी कायषवाहियां
अंग्रेजी भाषा में िोंगी,
(ख) (i) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के पवधान-मंडि के सदन
या प्रत्येक सदन में िरु ःस्थापित ककए जाने वािे सभी पवधेयकों या प्रस्तापवत
ककए जाने वािे उनके संशोधनों के,
(ii) संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि द्वारा िाररत सभी अधधतनयमों
के और राष्ट्रितत या ककसी राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित सभी
अध्यादे शों के, और
(iii) इस संपवधान के अधीन अथवा संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि
द्वारा बनाई गई ककसी पवधध के अधीन तनकािे गए या बनाए गए सभी आदे शों,
तनयमों, पवतनयमों और उिपवधधयों के,
प्राधधकृत िाठ अंग्रेजी भाषा में िोंगे ।
(2) खंड (1) के उिखंड (क) में ककसी बात के िोते िुए भी, ककसी राज्य का
राज्यिाि 1*** राष्ट्रितत की िवू ष सिमतत से उस उच्च न्यायािय की कायषवाहियों में ,
जजसका मुख्य स्थान उस राज्य में िै, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय
प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािी ककसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा :

1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
भारत का संपवधान 205

िरन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायािय द्वारा हदए गए ककसी तनणषय,
क्तडिी या आदे श को िागू निीं िोगी ।
(3) खंड (1) के उिखंड (ख) में ककसी बात के िोते िुए भी, जिां ककसी राज्य के
पवधान-मंडि ने, उस पवधान-मंडि में िरु ःस्थापित पवधेयकों में या उसके द्वारा िाररत
अधधतनयमों में अथवा उस राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित अध्यादे शों में अथवा
उस उिखंड के िैरा (iii) में तनहदषष्ट ककसी आदे श, तनयम, पवतनयम या उिपवधध में प्रयोग
के लिए अंग्रेजी भाषा से लभन्न कोई भाषा पवहित की िै विां उस राज्य के राजित्र में उस
राज्य के राज्यिाि 1*** के प्राधधकार से प्रकालशत अंग्रेजी भाषा में उसका अनव ु ाद इस
अनच्ु छे द के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधधकृत िाठ समझा जाएगा ।
349. भाषा से संबधं धत कुछ पवधधयां अधधतनयलमत करने के लिए पवशेष प्रकिया –
इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष की अवधध के दौरान, अनच्
ु छे द 348 के खंड (1) में
उजलिखखत ककसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा के लिए उिबंध करने वािा
कोई पवधेयक या संशोधन संसद् के ककसी सदन में राष्ट्रितत की िव ू ष मंजरू ी के बबना
िरु ःस्थापित या प्रस्तापवत निीं ककया जाएगा और राष्ट्रितत ककसी ऐसे पवधेयक को
िरु ःस्थापित या ककसी ऐसे संशोधन को प्रस्तापवत ककए जाने की मंजरू ी अनच् ु छे द 344 के
खंड (1) के अधीन गहठत आयोग की लसफाररशों िर और उस अनच् ु छे द के खंड (4) के
अधीन गहठत सलमतत के प्रततवेदन िर पवचार करने के िश्चात ् िी दे गा, अन्यथा निीं ।
अध्याय 4 – पवशेष तनदे श
350. व्यथा के तनवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वािी भाषा –
प्रत्येक व्यक्तक्त ककसी व्यथा के तनवारण के लिए संघ या राज्य के ककसी अधधकारी या
प्राधधकारी को, यथाजस्थतत, संघ में या राज्य में प्रयोग िोने वािी ककसी भाषा में अभ्यावेदन
दे ने का िकदार िोगा ।
2
[350क. प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की सुपवधाएं – प्रत्येक राज्य और
राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधधकारी भाषाई अलिसंख्यक वगों के बािकों को लशक्षा
के प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की ियाषि सुपवधाओं की व्यवस्था करने का
प्रयास करे गा और राष्ट्रितत ककसी राज्य को ऐसे तनदे श दे सकेगा जो वि ऐसी सपु वधाओं
का उिबंध सतु नजश्चत कराने के लिए आवश्यक या उधचत समझता िै ।

1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
2. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 21 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थापित ।
भारत का संपवधान 206

350ख. भाषाई अलिसंख्यक-वगों के लिए पवशेष अधधकारी – (1) भाषाई


अलिसंख्यक-वगों के लिए एक पवशेष अधधकारी िोगा जजसे राष्ट्रितत तनयक्त
ु करे गा ।
(2) पवशेष अधधकारी का यि कतषव्य िोगा कक वि इस संपवधान के अधीन भाषाई
अलिसंख्यक-वगों के लिए उिबंधधत रक्षोिायों से संबधं धत सभी पवषयों का अन्वेषण करे
और उन पवषयों के संबध ं में ऐसे अंतरािों िर जो राष्ट्रितत तनहदषष्ट करे , राष्ट्रितत को
प्रततवेदन दे और राष्ट्रितत ऐसे सभी प्रततवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष
रखवाएगा और संबधं धत राज्यों की सरकारों को लभजवाएगा ।]
351. हिन्दी भाषा के पवकास के लिए तनदे श – संघ का यि कतषव्य िोगा कक वि
हिन्दी भाषा का प्रसार बढाए, उसका पवकास करे जजससे वि भारत की सामालसक
संस्कृतत के सभी तत्वों की अलभव्यक्तक्त का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृतत में
िस्तक्षेि ककए बबना हिन्दस् ु तानी में और आठवीं अनस ु च
ू ी में पवतनहदषष्ट भारत की अन्य
भाषाओं में प्रयक्त
ु रूि, शै
ि ी और िदों को आत्मसात करते िुए और जिां आवश्यक या
वांछनीय िो विां उसके शब्द-भंडार के लिए मख् ु यतः सं स्क ृ त से और गौणतः अन्य
भाषाओं से शब्द ग्रिण करते िुए उसकी समपृ द्ध सतु नजश्चत करे ।
भाग 18
आपात उपबंध
352. आपात की उद्घोषणा – (1) यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक
गंभीर आपात विद्यमान है जजससे यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र विद्रोह] के कारण
1

भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा
2
[संपण
ू ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबध
ं में जो उद्घोषणा में वितनदिणष्ट
ककया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा ।
[स्पष्टीकरण – यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक यद्ध
3
ु या बाह्य
आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सजननकट है तो यह घोवषत करने िाली आपात की
उद्घोषणा कक यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है, यद्ध
ु या ऐसे ककसी आक्रमण या विद्रोह के िास्ति में
होने से पहले भी की जा सकेगी ।]
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा
4

पररितणन ककया जा सकेगा या उसको िापस ललया जा सकेगा ।

(3) राष्ट्रपतत, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा तब तक नहीं करे गा जब तक संघ के मंत्रत्रमंडल का (अर्ाणत ् उस पररषद्
का जो अनच् ु छे ि 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मंत्रत्रमंडल स्तर के अनय मंत्रत्रयों से
लमलकर बनती है) यह वितनश्चय कक ऐसी उद्घोषणा की जाए, उसे ललखखत रूप में संसचू ित
नहीं ककया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे ि के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सिन के
समक्ष रखी जाएगी और जहां िह पि ू ि
ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली उद्घोषणा नहीं है
िहां िह एक मास की समाति पर, यदि उस अिचध की समाति से पहले संसद् के िोनों
सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोिन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रितणन में नहीं
रहे गी :

1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और
खंड (3) के स्र्ान पर खंड (2) से खंड (8) प्रततस्र्ावपत ककए गए ।
207
भारत का संविधान 208

परनतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पि ू ि


ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली
उद्घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक
सभा का विघटन इस खंड में तनदिणष्ट एक मास की अिचध के िौरान हो जाता है और यदि
उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है,
ककनतु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अिचध की समाति से
पहले पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जजसको लोक सभा अपने
पन
ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहेगी
यदि उक्त तीस दिन की अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।
(5) इस प्रकार अनमु ोदित उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, खंड (4) के
अधीन उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाले संकल्पों में से िस
ू रे संकल्प के पाररत ककए
जाने की तारीख से छह मास की अिचध की समाति पर प्रितणन में नहीं रहेगी :
परनतु यदि और जजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन
करने िाला संकल्प संसद् के िोनों सिनों द्वारा पाररत कर दिया जाता है तो और उतनी
बार िह उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जजसको िह इस खंड
के अधीन अनयर्ा प्रितणन में नहीं रहती, छह मास की और अिचध तक प्रित्त ृ बनी
रहे गी :
परनतु यह और कक यदि लोक सभा का विघटन छह मास की ऐसी अिचध के
िौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए
रखने के संबधं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अिचध के िौरान पाररत नहीं ककया
गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म
बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की
अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा को प्रित्तृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।
(6) खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजनों के ललए, संकल्प संसद् के ककसी सिन
द्वारा उस सिन की कुल सिस्य संख्या के बहुमत द्वारा तर्ा उस सिन के उपजस्र्त और
मत िे ने िाले सिस्यों में से कम से कम िो-ततहाई बहुमत द्वारा ही पाररत ककया जा
सकेगा ।
(7) पि
ू ग
ण ामी खंडों में ककसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सभा खंड (1) के
अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने िाली उद्घोषणा का,
यर्ाजस्र्तत, अननम ु ोिन या उसे प्रित्त
ृ बनाए रखने का अननम ु ोिन करने िाला संकल्प
पाररत कर िे ती है तो राष्ट्रपतत ऐसी उद्घोषणा को िापस ले लेगा ।
भारत का संविधान 209

(8) जहां खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा का, यर्ाजस्र्तत, अननम
ु ोिन या उसको प्रित्त
ृ बनाए रखने का अननम ु ोिन
करने िाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूिना लोक सभा की कुल
सिस्य संख्या के कम से कम िसिें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके ललखखत रूप में ,–
(क) यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
(ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपतत को,
िी गई है िहां ऐसे संकल्प पर वििार करने के प्रयोजन के ललए लोक सभा की विशेष
बैठक, यर्ाजस्र्तत, अध्यक्ष या राष्ट्रपतत को ऐसी सूिना प्राि होने की तारीख से िौिह
दिन के भीतर की जाएगी ।]
[ [(9)] इस अनच्
1 2
ु छे ि द्वारा राष्ट्रपतत को प्रित्त शक्तक्त के अंतगणत, यद्ध
ु या बाह्य
आक्रमण या 2[सशस्त्र विद्रोह] के अर्िा यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र विद्रोह] का
3

संकट सजननकट होने के विलभनन आधारों पर विलभनन उद्घोषणाएं करने की शक्तक्त होगी
िाहे राष्ट्रपतत ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में है या नहीं ।
4
[* * * *]
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाि – जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब

(क) संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, संघ की कायणपाललका शक्तक्त
का विस्तार ककसी राज्य को इस बारे में तनिे श िे ने तक होगा कक िह राज्य
अपनी कायणपाललका शक्तक्त का ककस रीतत से प्रयोग करे ;
(ख) ककसी विषय के संबध ं में विचधयां बनाने की संसद् की शक्तक्त के
अंतगणत इस बात के होते हुए भी कक िह संघ सूिी में प्रगखणत विषय नहीं है,
ऐसी विचधयां बनाने की शक्तक्त होगी जो उस विषय के संबध ं में संघ को या संघ के
अचधकाररयों और प्राचधकाररयों को शक्तक्तयां प्रिान करती हैं और उन पर कतणव्य
अचधरोवपत करती हैं या शक्तक्तयों का प्रिान ककया जाना और कतणव्यों का
अचधरोवपत ककया जाना प्राचधकृत करती है :
1
[परनतु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग में

1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) को खंड (9) के रूप
में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप ककया गया

भारत का संविधान 210

प्रितणन में है िहां यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की
सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें आपात की
उद्घोषणा प्रितणन में है , होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है तो और िहां तक,–
(i) खंड (क) के अधीन तनिे श िे ने की संघ की कायणपाललका शक्तक्त का, और
(ii) खंड (ख) के अधीन विचध बनाने की संसद् की शक्तक्त का,
विस्तार ककसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से लभनन है जजसमें या जजसके
ककसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है ।]
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राजस्िों के वितरण संबंधी
उपबंधों का लागू होना – (1) जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राष्ट्रपतत, आिे श
द्वारा, यह तनिे श िे सकेगा कक इस संविधान के अनच् ु छे ि 268 से अनच्
ु छे ि 279 के
सभी या कोई उपबंध ऐसी ककसी अिचध के ललए, जो उस आिे श में वितनदिण ष्ट की जाए
और जो ककसी भी िशा में उस वित्तीय िषण की समाति से आगे नहीं बढे गी, जजसमें ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में नहीं रहती है , ऐसे अपिािों या उपानतरणों के अधीन रहते हुए
प्रभािी होंगे , जो िह ठीक समझे ।
(2) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीध्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
355. बाह्य आक्रमण और आंतररक अशांतत से राज्य की संरक्षा करने का संघ का
कतणव्य – संघ का यह कतणव्य होगा कक िह बाह्य आक्रमण और आंतररक अशाजनत से
प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों
के अनस ु ार िलाया जाना सुतनजश्चत करे ।
356. राज्यों में सांविधातनक तंत्र के विफल हो जाने की िशा में उपबंध – (1)
यदि राष्ट्रपतत का ककसी राज्य के राज्यपाल 2*** से प्रततिेिन लमलने पर या अनयर्ा, यह
समाधान हो जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजसमें उस राज्य का शासन इस
संविधान के उपबंधों के अनस ु ार नहीं िलाया जा सकता है तो राष्ट्रपतत उद्घोषणा द्वारा –
(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और 3[राज्यपाल] में या
राज्य के विधान-मंडल से लभनन राज्य के ककसी तनकाय या प्राचधकारी में तनदहत
या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तक्तयां अपने हार् में ले सकेगा ;

1. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्िों का (1-
11-1956 से) लोप ककया गया ।
3. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “यर्ाजस्र्तत, या राजप्रमुख” शब्िों के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 211

(ख) यह घोषणा कर सकेगा कक राज्य के विधान-मंडल की शक्तक्तयां संसद्


द्वारा या उसके प्राचधकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी ;
(ग) राज्य के ककसी तनकाय या प्राचधकारी से संबचं धत इस संविधान के
ककनहीं उपबंधों के प्रितणन को पण ू तण ः या भागतः तनलंत्रबत करने के ललए उपबंधों
सदहत ऐसे आनष ु चं गक और पाररणालमक उपबंध कर सकेगा जो उद्घोषणा के
उद्देश्यों को प्रभािी करने के ललए राष्ट्रपतत को आिश्यक या िांछनीय प्रतीत हों :
परनतु इस खंड की कोई बात राष्ट्रपतत को उच्ि नयायालय में तनदहत या उसके
द्वारा प्रयोक्तव्य ककसी शक्तक्त को अपने हार् में लेने या उच्ि नयायालयों से संबचं धत इस
संविधान के ककसी उपबंध के प्रितणन को पण ू त
ण ः या भागतः तनलंत्रबत करने के ललए
प्राचधकृत नहीं करे गी ।
(2) ऐसी कोई उद्घोषणा ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा िापस ली जा सकेगी या
उसमें पररितणन ककया जा सकेगा ।
(3) इस अनच् ु छे ि के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सिन के
समक्ष रखी जाएगी और जहां िह पि ू ि
ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली उद्घोषणा नहीं है
िहां िह िो मास की समाति पर प्रितणन में नहीं रहेगी यदि उस अिचध की समाति से
पहले संसद् के िोनों सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनमु ोिन नहीं कर दिया जाता है :
परनतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पि ू ि
ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली
उद्घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक
सभा का विघटन इस खंड में तनदिणष्ट िो मास की अिचध के िौरान हो जाता है और यदि
उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है,
ककनतु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अिचध की समाति से
पहले पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जजसको लोक सभा अपने
पन
ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहेगी
यदि उक्त तीस दिन की अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।
(4) इस प्रकार अनम
ु ोदित उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, [ऐसी
1

उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से छह मास] की अिचध की समाति पर प्रितणन में नहीं
रहे गी :

1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "खंड (3) के अधीन उद्घोषणा
का अनुमोिन करने िाले संकल्पों में से िूसरे के पाररत हो जाने की तारीख से एक िषण" के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्ि "छह मास" के स्र्ान
पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
भारत का संविधान 212

परनतु यदि और जजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन
करने िाला संकल्प संसद् के िोनों सिनों द्वारा पाररत कर दिया जाता है तो और उतनी
बार िह उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जजसको िह इस खंड
के अधीन अनयर्ा प्रितणन में नहीं रहती, 1[छह मास] की अिचध तक प्रित्त ृ बनी रहेगी,
ककनतु ऐसी उद्घोषणा ककसी भी िशा में तीन िषण से अचधक प्रित्त
ृ नहीं रहेगी :
परनतु यह और कक यदि लोक सभा का विघटन 2[छह मास] की ऐसी अिचध के
िौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए
रखने के संबधं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अिचध के िौरान पाररत नहीं ककया
गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से, जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म
बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की
अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा को प्रित्तृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है :
[परनतु यह भी कक पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के
2

अधीन की गई उद्घोषणा की िशा में , इस खंड के पहले परनतुक में “तीन िषण” के प्रतत
तनिे श का इस प्रकार अर्ण लगाया जाएगा मानो िह 3[“पांि िषण”] के प्रतत तनिे श हो ।]
4
[(5) खंड (4) में ककसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनम ु ोदित
उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से एक िषण की समाति से आगे ककसी अिचध के ललए
ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने के संबध ं में कोई संकल्प संसद् के ककसी सिन द्वारा
तभी पाररत ककया जाएगा जब–
(क) ऐसे संकल्प के पाररत ककए जाने के समय आपात की उद्घोषणा,
यर्ाजस्र्तत, संपणू ण भारत में अर्िा संपण
ू ण राज्य या उसके ककसी भाग में प्रितणन में
है ; और

1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "एक िषण" के स्र्ान पर
प्रततस्र्ावपत । संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" मूल
शब्िों के स्र्ान पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
2. संविधान (िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (सड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (4-10-1990 से) प्रततस्र्ावपत और तत्पश्चात ्
संविधान (अड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (12-3-1991 से) संशोचधत होकर ितणमान रूप में
आया ।
4. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत और
तत्पश्चात ् संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड 5 के स्र्ान
पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 213

(ख) तनिाणिन आयोग यह प्रमाखणत कर िे ता है कक ऐसे संकल्प में


वितनदिणष्ट अिचध के िौरान खंड (3) के अधीन अनम ु ोदित उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए
रखना, संबचं धत राज्य की विधान सभा के साधारण तनिाणिन कराने में कदठनाइयों
के कारण, आिश्यक है :]
1
[परनतु इस खंड की कोई बात पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड
(1) के अधीन की गई उद्घोषणा को लागू नहीं होगी ।]
357. अनच् ु छे ि 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधायी शक्तक्तयों का
प्रयोग – (1) जहां अनच् ु छे ि 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा द्वारा यह
घोषणा की गई है कक राज्य के विधान-मंडल की शक्तक्तयां संसद् द्वारा या उसके प्राचधकार
के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी िहां–
(क) राज्य के विधान-मंडल की विचध बनाने की शक्तक्त राष्ट्रपतत को प्रिान
करने की और इस प्रकार प्रित्त शक्तक्त का ककसी अनय प्राचधकारी को, जजसे राष्ट्रपतत
इस तनलमत्त वितनदिणष्ट करे , ऐसी शतों के अधीन, जजनहें राष्ट्रपतत अचधरोवपत करना
ठीक समझे, प्रत्यायोजन करने के ललए राष्ट्रपतत को प्राचधकृत करने की संसद् को
;
(ख) संघ या उसके अचधकाररयों और प्राचधकाररयों को शक्तक्तयां प्रिान करने
या उन पर कतणव्य अचधरोवपत करने के ललए अर्िा शक्तक्तयों का प्रिान ककया
जाना या कतणव्यों का अचधरोवपत ककया जाना प्राचधकृत करने के ललए, विचध
बनाने की संसद् को अर्िा राष्ट्रपतत को या ऐसे अनय प्राचधकारी को, जजसमें ऐसी
विचध बनाने की शक्तक्त उपखंड (क) के अधीन तनदहत है ;
(ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संचित तनचध में से व्यय
के ललए, संसद् की मंजरू ी लंत्रबत रहने तक ऐसे व्यय को प्राचधकृत करने की
राष्ट्रपतत को,
क्षमता होगी ।
2
[(2) राज्य के विधान-मंडल की शक्तक्त का प्रयोग करते हुए संसद् द्वारा, अर्िा
राष्ट्रपतत या खंड (1) के उपखंड (क) में तनदिणष्ट अनय प्राचधकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी
विचध, जजसे संसद् अर्िा राष्ट्रपतत या ऐसा अनय प्राचधकारी अनच्ु छे ि 356 के अधीन की
गई उद्घोषणा के अभाि में बनाने के ललए सक्षम नहीं होता, उद्घोषणा के प्रितणन में न
रहने के पश्चात ् तब तक प्रित्त ृ बनी रहे गी जब तक सक्षम विधान-मंडल या अनय
प्राचधकारी द्वारा उसका पररितणन या तनरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है ।]
358. आपात के िौरान अनच्
ु छे ि 19 के उपबंधों का तनलंबन – [(1)] [जब यद्ध
3 1

1. संविधान (ततरसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप ककया गया जजसे संविधान
(िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ककया गया र्ा ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे ि 358 को उसके
खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
भारत का संविधान 214

या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सुरक्षा के


संकट में होने की घोषणा करने िाली आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है] तब अनच्
ु छे ि 19
की कोई बात भाग 3 में यर्ा पररभावषत राज्य की कोई ऐसी विचध बनाने की या कोई
ऐसी कायणपाललका कारणिाई करने की शक्तक्त को, जजसे िह राज्य उस भाग में अंतविणष्ट
उपबंधों के अभाि में बनाने या करने के ललए सक्षम होता, तनबंचधत नहीं करे गी, ककनतु
इस प्रकार बनाई गई कोई विचध उद्घोषणा के प्रितणन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा
तक उन बातों के लसिाय तुरनत प्रभािहीन हो जाएगी, जजनहें विचध के इस प्रकार
प्रभािहीन होने के पहले ककया गया है या करने का लोप ककया गया है :
2
[परनतु 3[जहां आपात की ऐसी उद्घोषणा] भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग
में प्रितणन में है िहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की
सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें आपात की
उद्घोषणा प्रितणन में है, होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है तो और िहां तक,
ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबध ं में , जजसमें या जजसके ककसी भाग में
आपात की उद्घोषणा प्रितणन में नहीं है, इस अनच् ु छे ि के अधीन ऐसी कोई विचध बनाई जा
सकेगी या ऐसी कोई कायणपाललका कारणिाई की जा सकेगी ।]
4
[(2) खंड (1) की कोई बात,–
(क) ककसी ऐसी विचध को लागू नहीं होगी जजसमें इस आशय का उल्लेख
अंतविणष्ट नहीं है कक ऐसी विचध उसके बनाए जाने के समय प्रित्त
ृ आपात की
उद्घोषणा के संबधं में है ; या
(ख) ककसी ऐसी कायणपाललका कारणिाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख
अंतविणष्ट करने िाली विचध के अधीन न करके अनयर्ा की गई है ।
359. आपात के िौरान भाग 3 द्वारा प्रित्त अचधकारों के प्रितणन का तनलबंन – (1)
जहां आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है िहां राष्ट्रपतत, आिे श द्वारा यह घोषणा कर सकेगा
कक 5[(अनच्ु छे ि 20 और अनच्
ु छे ि 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रित्त ऐसे अचधकारों] को
प्रिततणत कराने के ललए, जो उस आिे श में उजल्लखखत ककए जाएं, ककसी नयायालय को

1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा
प्रितणन में है” शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा”
शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
5. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) “भाग 3 द्वारा प्रित्त
अचधकारों” के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 215

समािेिन करने का अचधकार और इस प्रकार उजल्लखखत अचधकारों को प्रिततणत कराने के


ललए ककसी नयायालय में लंत्रबत सभी कायणिादहयां उस अिचध के ललए जजसके िौरान
उद्घोषणा प्रित्त
ृ रहती है या उससे लघत
ु र ऐसी अिचध के ललए जो आिे श में वितनदिणष्ट की
जाए, तनलंत्रबत रहें गी ।
1
[(1क) जब 2[(अनच् ु छे ि 20 और अनच्ु छे ि 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रित्त
ककनहीं अचधकारों] को उजल्लखखत करने िाला खंड (1) के अधीन ककया गया आिे श
प्रितणन में है तब उस भाग में उन अचधकारों को प्रिान करने िाली कोई बात उस भाग में
यर्ापररभावषत राज्य की कोई ऐसी विचध बनाने की या कोई ऐसी कायणपाललका कारणिाई
करने की शक्तक्त को, जजसे िह राज्य उस भाग में अंतविणष्ट उपबंधों के अभाि में बनाने या
करने के ललए सक्षम होता, तनबंचधत नहीं करे गी, ककनतु इस प्रकार बनाई गई कोई विचध
पि ू ोक्त आिे श के प्रितणन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसिाय
तरु नत प्रभािहीन हो जाएगी, जजनहें विचध के इस प्रकार प्रभािहीन होने के पहले ककया
गया है या करने का लोप ककया गया है :]
2
[परनतु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग में
प्रितणन में है िहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की
सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें आपात की
उद्घोषणा प्रितणन में है, होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है तो और िहां तक,
ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबध ं में , जजसमें या जजसके ककसी भाग में
आपात की उद्घोषणा प्रितणन में नहीं है, इस अनच् ु छे ि के अधीन ऐसी कोई विचध बनाई जा
सकेगी या ऐसी कोई कायणपाललका कारणिाई की जा सकेगी ।]
3
[(1ख) खंड (1क) की कोई बात –
(क) ककसी ऐसी विचध को लागू नहीं होगी जजसमें इस आशय का उल्लेख
अंतविणष्ट नहीं है कक ऐसी विचध उसके बनाए जाने के समय प्रित्त
ृ आपात की
उद्घोषणा के संबधं में है ; या
(ख) ककसी ऐसी कायणपाललका कारणिाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख
अंतविणष्ट करने िाली विचध के अधीन न करके अनयर्ा की गई है ।]
(2) पि
ू ोक्त रूप में ककए गए आिे श का विस्तार भारत के संपण
ू ण राज्यक्षेत्र या
उसके ककसी भाग पर हो सकेगा :
4
[परनतु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग में

1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 7 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 216

प्रितणन में है िहां ककसी ऐसे आिे श का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी अनय भाग
पर तभी होगा जब राष्ट्रपतत, यह समाधान हो जाने पर कक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें
आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है, होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा
विस्तार आिश्यक समझता है ।]
(3) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
1
359क. [इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना ।] – संविधान (ततरसठिां
संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) तनरलसत ।
360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध – (1) यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो
जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी
भाग का वित्तीय स्र्ातयत्ि या प्रत्यय संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की
घोषणा कर सकेगा ।
2
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा–
(क) ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा िापस ली जा सकेगी या पररिततणत की
जा सकेगी ;
(ख) संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखी जाएगी ;
(ग) िो मास की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उस अिचध की
समाति से पहले संसद् के िोनों सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम ु ोिन नहीं कर
दिया जाता है :
परनतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन
हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में तनदिणष्ट िो मास की अिचध के िौरान
हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत
कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस
अिचध की समाति से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से,
जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म बार बैठती है, तीस दिन की समाति
पर प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा का
अनमु ोिन करने िाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।]
(3) उस अिचध के िौरान, जजसमें खंड (1) में उजल्लखखत उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है,

1. संविधान (उनसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1988 की धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से) अंतःस्र्ावपत । यह, इस
अचधतनयम के प्रारं भ से, अर्ाणत ् 1988 के मािण के तीसिें दिन से िो िषण की अिचध की समाति के पश्चात ् प्रित्त

नहीं रहे गी ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 217

संघ की कायणपाललका शक्तक्त का विस्तार ककसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबध ं ी ऐसे
लसद्धांतों का पालन करने के ललए तनिे श िे ने तक, जो तनिे शों में वितनदिणष्ट ककए जाएं,
और ऐसे अनय तनिे श िे ने तक होगा जजनहें राष्ट्रपतत उस प्रयोजन के ललए िे ना आिश्यक
और पयाणि समझे ।
(4) इस संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, –
(क) ऐसे ककसी तनिे श के अंतगणत–
(i) ककसी राज्य के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी या
ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के िेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने िाला
उपबंध ;
(ii) धन विधेयकों या अनय ऐसे विधेयकों को, जजनको अनच् ु छे ि
207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पाररत ककए जाने
के पश्चात ् राष्ट्रपतत के वििार के ललए आरक्षक्षत रखने के ललए उपबंध,
हो सकेंगे ;
(ख) राष्ट्रपतत, उस अिचध के िौरान, जजसमें इस अनच् ु छे ि के अधीन की
गई उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है, संघ के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी
या ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के, जजनके अंतगणत उच्ितम नयायालय और उच्ि
नयायालयों के नयायाधीश हैं, िेतनों और भत्तों में कमी करने के ललए तनिे श िे ने
के ललए सक्षम होगा ।
1
(5)* * * * *

1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत ककया
गया र्ा और उसका संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
ककया गया ।
भाग 19
प्रकीर्ण
361. राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमख
ु ों का संरक्षर् – (1) राष्ट्रपति अथवा
राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और किणव्यों के पालन
के ललए या उन शक्तियों का प्रयोग और किणव्यों का पालन करिे हुए अपने द्वारा ककए
गए या ककए जाने के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के ललए ककसी न्यायालय को उत्तरदायी
नह ं होगा :
परन्िु अनच् ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषर् के ललए संसद् के ककसी सदन
द्वारा तनयि
ु या अलभहहि ककसी न्यायालय, अधधकरर् या तनकाय द्वारा राष्ट्रपति के
आचरर् का पन ु र्वणलोकन ककया जा सकेगा :
परन्िु यह और कक इस खंड की ककसी बाि का यह अथण नह ं लगाया जाएगा कक
वह भारि सरकार या ककसी राज्य की सरकार के र्वरुद्ध समुधचि कायणवाहहयां चलाने के
ककसी व्यक्ति के अधधकार को तनबंधधि करिी है ।
(2) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध उसकी पदावधध के
दौरान ककसी न्यायालय में ककसी भी प्रकार की दांक्तडक कायणवाह संस्थथि नह ं की जाएगी
या चालू नह ं रखी जाएगी ।
(3) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** की पदावधध के दौरान उसकी
धगरफ्िार या कारावास के ललए ककसी न्यायालय से कोई आदे लशका तनकाल नह ं
जाएगी ।
(4) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के रूप में अपना पद ग्रहर् करने
से पहले या उसके पश्चाि ्, उसके द्वारा अपनी वैयक्तिक हैलसयि में ककए गए या ककए जाने
के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के संबध ं में कोई लसर्वल कायणवाहहयां, स्जनमें राष्ट्रपति या
ऐसे राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध अनि ु ोष का दावा ककया जािा है, उसकी पदावधध
के दौरान ककसी न्यायालय में िब िक संस्थथि नह ं की जाएगी जब िक कायणवाहहयों की
प्रकृति, उनके ललए वाद हेिक ु , ऐसी कायणवाहहयों को संस्थथि करने वाले पक्षकार का नाम,
वर्णन, तनवास-थथान और उस अनि ु ोष का स्जसका वह दावा करिा है, कथन करने वाल
ललखखि सूचना, यथास्थथति, राष्ट्रपति या राज्यपाल 2*** को पररदत्त ककए जाने या उसके
कायाणलय में छोडे जाने के पश्चाि ् दो मास का समय समाप्त नह ं हो गया है ।

1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।

218
भारि का संर्वधान 219

1
[361क. संसद् और राज्यों के र्वधान-मंडलों की कायणवाहहयों के प्रकाशन का
संरक्षर्–(1) कोई व्यक्ति संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य की र्वधान
सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की ककन्ह कायणवाहहयों के सारिः
सह र्ववरर् के ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के संबध ं में ककसी न्यायालय में ककसी भी
प्रकार की लसर्वल या दांक्तडक कायणवाह का िब िक भागी नह ं होगा जब िक यह साबबि
नह ं कर हदया जािा है कक प्रकाशन र्वद्वे षपव
ू क
ण ककया गया है :
परन्िु इस खंड की कोई बाि संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य
की र्वधान सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की गुप्त बैठक की
कायणवाहहयों के र्ववरर् के प्रकाशन को लागू नह ं होगी ।
(2) खंड (1) ककसी प्रसारर् केन्र के माध्यम से उपलब्ध ककसी कायणक्रम या सेवा
के भागरूप बेिार िारयांबत्रकी के माध्यम से प्रसाररि ररपोर्टों या सामग्री के संबध
ं में उसी
प्रकार लागू होगा स्जस प्रकार वह ककसी समाचारपत्र में प्रकालशि ररपोर्टों या सामग्री के
संबधं में लागू होिा है ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द में , “समाचारपत्र” के अंिगणि समाचार एजेंसी की ऐसी
ररपोर्टण है स्जसमें ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के ललए सामग्री अंिर्वणष्ट है ।]
[361ख. लाभप्रद राजनीतिक पद पर तनयक्तु ि के ललए तनरहणिा – ककसी
2

राजनीतिक दल का ककसी सदन का कोई सदथय, जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन
सदन का सदथय होने के ललए तनरहहणि है, अपनी तनरहणिा की िार ख से प्रारं भ होने वाल
और उस िार ख िक स्जसको ऐसे सदथय के रूप में उसकी पदावधध समाप्त होगी या उस
िार ख िक स्जसको वह ककसी सदन के ललए कोई तनवाणचन लडिा है, और तनवाणधचि
घोर्षि ककया जािा है, इनमें से जो भी पव
ू ि
ण र हो, की अवधध के दौरान, कोई लाभप्रद
राजनीतिक पद धारर् करने के ललए भी तनरहहणि होगा ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, –
(क) “सदन” पद का वह अथण है जो उसका दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के
खंड (क) में है ;
(ख) “लाभप्रद राजनीतिक पद” अलभव्यक्ति से अलभप्रेि है, –
(i) भारि सरकार या ककसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां
ऐसे पद के ललए वेिन या पाररश्रलमक का संदाय, यथास्थथति, भारि
सरकार या राज्य सरकार के लोक राजथव से ककया जािा है ; या

1. संर्वधान (चवाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 220

(ii) ककसी तनकाय के अधीन, चाहे तनगलमि हो या नह ं, जो भारि


सरकार या ककसी राज्य सरकार के पर् ू ि
ण ः या भागिः थवालमत्वाधीन है,
कोई पद और ऐसे पद के ललए वेिन या पाररश्रलमक का संदाय ऐसे
तनकाय से ककया जािा है,
लसवाय वहां के जहां संदत्त ऐसा वेिन या पाररश्रलमक प्रतिकरात्मक थवरूप का है ।]
362. [दे शी राज्यों के शासकों के अधधकार और र्वशेषाधधकार ।] – संर्वधान
(छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (28-12-1971 से) तनरलसि ।
363. कुछ संधधयों, करारों, आहद से उत्पन्न र्ववादों में न्यायालयों के हथिक्षेप का
वजणन – (1) इस संर्वधान में ककसी बाि के होिे हुए भी, ककन्िु अनच् ु छे द 143 के
उपबंधों के अधीन रहिे हुए, उच्चिम न्यायालय या ककसी अन्य न्यायालय को ककसी
ऐसी संधध, करार, प्रसंर्वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह अन्य ललखि के ककसी उपबंध
से, जो इस संर्वधान के प्रारं भ से पहले ककसी दे शी राज्य के शासक द्वारा की गई थी या
तनष्पाहदि की गई थी और स्जसमें भारि डोलमतनयन की सरकार या उसकी पव ू व
ण िी कोई
सरकार और स्जसमें भारि डोलमतनयन की सरकार या उसकी पव ू व
ण िी कोई सरकार एक
पक्षकार थी और जो ऐसे प्रारं भ के पश्चाि ् प्रविणन में है या प्रविणन में बनी रह है, उत्पन्न
ककसी र्ववाद में या ऐसी संधध, करार, प्रसंर्वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह अन्य ललखि
से संबधं धि इस संर्वधान के ककसी उपबंध के अधीन प्रोद्भि ू ककसी अधधकार या उससे
उद्भि
ू ककसी दातयत्व या बाध्यिा के संबध ं में ककसी र्ववाद में अधधकाररिा नह ं होगी ।
(2) इस अनच् ु छे द में –
(क) “दे शी राज्य” से ऐसा राज्यक्षेत्र अलभप्रेि है स्जसे हहज मजेथर्ट से या
भारि डोलमतनयन की सरकार से इस संर्वधान के प्रारं भ से पहले ऐसे राज्य के रूप
में मान्यिा प्राप्त थी ; और
(ख) “शासक” के अंिगणि ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति है स्जसे हहज
मजेथर्ट से या भारि डोलमतनयन की सरकार से ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी दे शी
राज्य के शासक के रूप में मान्यिा प्राप्त थी ।
1
[363क. दे शी राज्यों के शासकों को द गई मान्यिा की समातप्त और तनजी
थैललयों का अंि – इस संर्वधान या ित्समय प्रवत्त ृ ककसी र्वधध में ककसी बाि के होिे
हुए भी –
(क) ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति, स्जसे संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन)
अधधतनयम, 1971 के प्रारं भ से पहले ककसी समय राष्ट्रपति से ककसी दे शी राज्य के
शासक के रूप में मान्यिा प्राप्त थी, या ऐसा व्यक्ति, स्जसे ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी
समय राष्ट्रपति से ऐसे शासक के उत्तराधधकार के रूप में मान्यिा प्राप्त थी, ऐसे
प्रारं भ को और से ऐसे शासक या ऐसे शासक के उत्तराधधकार के रूप में मान्यिा
प्राप्त नह ं रह जाएगा ;
(ख) संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 के प्रारं भ को और से

1. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (28-12-1971 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 221

तनजी थैल का अंि ककया जािा है और तनजी थैल की बाबि सभी अधधकार,
दातयत्व और बाध्यिाएं तनवाणर्पि की जािी हैं और िद्नस
ु ार खंड (क) में तनहदणष्ट,
यथास्थथति, शासक या ऐसे शासक के उत्तराधधकार को या अन्य व्यक्ति को ककसी
रालश का तनजी थैल के रूप में संदाय नह ं ककया जाएगा ।]
364. महापत्तनों और र्वमानक्षेत्रों के बारे में र्वशेष उपबंध – (1) इस संर्वधान में
ककसी बाि के होिे हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधधसच ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक ऐसी
िार ख से, जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट की जाए,–
(क) संसद् या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई र्वधध
ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू नह ं होगी अथवा ऐसे अपवादों या
उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए लागू होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट ककए
जाएं ; या
(ख) कोई र्वद्यमान र्वधध ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र में उन बािों के
लसवाय प्रभावी नह ं रहे गी स्जन्हें उि िार ख से पहले ककया गया है या करने का
लोप ककया गया है अथवा ऐसे पत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू होने में ऐसे अपवादों
या उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए प्रभावी होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट
ककए जाएं ।
(2) इस अनच्
ु छे द में–
(क) “महापत्तन” से ऐसा पत्तन अलभप्रेि है स्जसे संसद् द्वारा बनाई गई ककसी
र्वधध या ककसी र्वद्यमान र्वधध द्वारा या उसके अधीन महापत्तन घोर्षि ककया गया
है और इसके अंिगणि ऐसे सभी क्षेत्र हैं जो उस समय ऐसे पत्तन की सीमाओं के
भीिर हैं ;
(ख) “र्वमानक्षेत्र” से वायु मागों, वायय
ु ानों और र्वमान चालन से संबधं धि
अधधतनयलमतियों के प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि र्वमानक्षेत्र अलभप्रेि है ।
365. संघ द्वारा हदए गए तनदे शों का अनपु ालन करने में या उनको प्रभावी करने में
असफलिा का प्रभाव – जहां इस संर्वधान के ककसी उपबंध के अधीन संघ की
कायणपाललका शक्ति का प्रयोग करिे हुए हदए गए ककन्ह ं तनदे शों का अनपु ालन करने में या
उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहिा है वहां राष्ट्रपति के ललए यह मानना
र्वधधपर्
ू ण होगा कक ऐसी स्थथति उत्पन्न हो गई है स्जसमें उस राज्य का शासन इस
संर्वधान के उपबंधों के अनस ु ार नह ं चलाया जा सकिा है ।
366. पररभाषाएं – इस संर्वधान में , जब िक कक संदभण से अन्यथा अपेक्षक्षि न
हो, तनम्नललखखि पदों के तनम्नललखखि अथण हैं, अथाणि ् :–
(1) “कृर्ष-आय” से भारिीय आय-कर से संबधं धि अधधतनयलमतियों के
प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि कृर्ष-आय अलभप्रेि है ;
(2) “आंग्ल-भारिीय” से ऐसा व्यक्ति अलभप्रेि है स्जसका र्पिा या र्पि-ृ
भारि का संर्वधान 222

परं परा में कोई अन्य परु ु ष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, ककन्िु जो भारि के
राज्यक्षेत्र में अधधवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे मािा-र्पिा से जन्मा है या
जन्मा था जो वहां साधारर्िया तनवासी रहे हैं और केवल अथथायी प्रयोजनों के
ललए वास नह ं कर रहे हैं ;
(3) “अनच्
ु छे द” से इस संर्वधान का अनच्
ु छे द अलभप्रेि है ;
(4) “उधार लेना” के अंिगणि वार्षणककयां दे कर धन लेना है और “उधार” का
िद्नस
ु ार अथण लगाया जाएगा ;
1
[(4क)* * * *]
(5) “खंड” से उस अनच्
ु छे द का खंड अलभप्रेि है स्जसमें वह पद आिा है ;
(6) “तनगम कर” से कोई आय पर कर अलभप्रेि है, जहां िक वह कर
कंपतनयों द्वारा संदेय है और ऐसा कर है स्जसके संबध
ं में तनम्नललखखि शिें परू
होिी हैं, अथाणि ् :–
(क) वह कृर्ष-आय के संबध
ं में प्रभायण नह ं है ;
(ख) कंपतनयों द्वारा संदत्त कर के संबध
ं में कंपतनयों द्वारा व्यर्ष्टयों
को संदेय लाभांशों में से ककसी कर्टौिी का ककया जाना उस कर को लागू
अधधतनयलमतियों द्वारा प्राधधकृि नह ं है ;

(ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले व्यर्ष्टयों की कुल आय की


भारिीय आय-कर के प्रयोजनों के ललए गर्ना करने में अथवा ऐसे
व्यर्ष्टयों द्वारा संदेय या उनको प्रतिदे य भारिीय आय-कर की गर्ना करने
में , इस प्रकार संदत्त कर को हहसाब में लेने के ललए कोई उपबंध र्वद्यमान
नह ं है ;
(7) शंका की दशा में , “ित्थथानी प्रांि”, “ित्थथानी दे शी राज्य” या
“ित्थथानी राज्य” से ऐसा प्रांि, दे शी राज्य या राज्य अलभप्रेि है स्जसे राष्ट्रपति
प्रश्नगि ककसी र्वलशष्ट प्रयोजन के ललए, यथास्थथति, ित्थथानी प्रांि, ित्थथानी
दे शी राज्य या ित्थथानी राज्य अवधाररि करे ;
(8) “ऋर्” के अंिगणि वार्षणककयों के रूप में मल
ू धन के प्रतिसंदाय की

1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क) अन्िःथथार्पि
ककया गया और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप
ककया गया ।
भारि का संर्वधान 223

ककसी बाध्यिा के संबध


ं में कोई दातयत्व और ककसी प्रत्याभूति के अधीन कोई
दातयत्व है और “ऋर्भार” का िद्नस
ु ार अथण लगाया जाएगा ;
(9) “संपदा शुल्क” से वह शुल्क अलभप्रेि है जो ऐसे तनयमों के अनस ु ार
जो संसद् या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल द्वारा ऐसे शुल्क के संबध ं में बनाई गई
र्वधधयों द्वारा या उनके अधीन र्वहहि ककए जाएं, मत्ृ यु पर संक्रांि होने वाल या
उि र्वधधयों के उपबंधों के अधीन इस प्रकार संक्रांि हुई समझी गई सभी संपर्त्त
के मूल मूल्य पर या उसके प्रति तनदे श से, तनधाणररि ककया जाए ;
(10) “र्वद्यमान र्वधध” से ऐसी र्वधध, अध्यादे श, आदे श, उपर्वधध, तनयम
या र्वतनयम अलभप्रेि है जो इस संर्वधान के प्रारं भ से पहले ऐसी र्वधध,
अध्यादे श, आदे श, उपर्वधध, तनयम या र्वतनयम बनाने की शक्ति रखने वाले ककसी
र्वधान-मंडल, प्राधधकार या व्यक्ति द्वारा पाररि ककया गया है या बनाया गया है ;
(11) “फेडरल न्यायालय” से भारि शासन अधधतनयम, 1935 के अधीन
गहठि फेडरल न्यायालय अलभप्रेि है ;
(12) “माल” के अंिगणि सभी सामग्री, वाखर्ज्या और वथिुएं हैं ;
[(12क) “माल और सेवा कर” से मानवीय उपभोग के ललए एल्कोहाल
1

ललकर के प्रदाय पर कर के लसवाय माल या सेवाओं अथवा दोनों के प्रदाय पर


कोई कर अलभप्रेि है ;]
(13) “प्रत्याभूति” के अंिगणि ऐसी बाध्यिा है स्जसका, ककसी उपक्रम के
लाभों के ककसी र्वतनहदणष्ट रकम से कम होने की दशा में , संदाय करने का
वचनबंध इस संर्वधान के प्रारं भ से पहले ककया गया है ;
(14) “उच्च न्यायालय” से ऐसा न्यायालय अलभप्रेि है जो इस संर्वधान के
प्रयोजनों के ललए ककसी राज्य के ललए उच्च न्यायालय समझा जािा है और इसके
अंिगणि –
(क) भारि के राज्यक्षेत्र में इस संर्वधान के अधीन उच्च न्यायालय
के रूप में गहठि या पन
ु गणहठि कोई न्यायालय है , और
(ख) भारि के राज्यक्षेत्र में संसद् द्वारा र्वधध द्वारा इस संर्वधान के
सभी या ककन्ह ं प्रयोजनों के ललए उच्च न्यायालय के रूप में घोर्षि कोई
अन्य न्यायालय है ;
(15) “दे शी राज्य” से ऐसा राज्यक्षेत्र अलभप्रेि है स्जसे भारि डोलमतनयन की
सरकार से ऐसे राज्य के रूप में मान्यिा प्राप्त थी ;
(16) “भाग” से इस संर्वधान का भाग अलभप्रेि है ;
(17) “पें शन” से ककसी व्यक्ति को या उसके संबध
ं में संदेय ककसी प्रकार की

1. संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(i) द्वारा (16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 224

पें शन अलभप्रेि है चाहे वह अलभदायी है या नह ं है और इसके अंिगणि इस प्रकार


संदेय सेवातनवर्ृ त्त वेिन, इस प्रकार संदेय उपदान और ककसी भर्वष्य तनधध के
अलभदानों की, उन पर ब्याज या उनमें अन्य पररवधणन सहहि या उसके बबना,
वापसी के रूप में इस प्रकार संदेय कोई रालश या रालशयां हैं ;
(18) “आपाि की उद्घोषर्ा” से अनच्
ु छे द 352 के खंड (1) के अधीन की
गई उद्घोषर्ा अलभप्रेि है ;
(19) “लोक अधधसूचना” से, यथास्थथति, भारि के राजपत्र में या ककसी
राज्य के राजपत्र में अधधसच
ू ना अलभप्रेि है ;
(20) “रे ल” के अंिगणि–
(क) ककसी नगरपाललक क्षेत्र में पर्
ू िण या स्थथि ट्राम नह ं है, या
(ख) ककसी राज्य में पर्
ू िण या स्थथि संचार की ऐसी अन्य लाइन
नह ं है स्जसकी बाबि संसद् ने र्वधध द्वारा घोर्षि ककया है कक वह रे ल
नह ं है ;
1
(21)* * * *
2
[(22) “शासक” से ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति अलभप्रेि है स्जसे
संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 के प्रारं भ से पहले ककसी समय,
राष्ट्रपति से ककसी दे शी राज्य के शासक के रूप में मान्यिा प्राप्त थी या ऐसा
व्यक्ति अलभप्रेि है स्जसे ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी समय, राष्ट्रपति से ऐसे शासक
के उत्तराधधकार के रूप में मान्यिा प्राप्त थी ;]
(23) “अनस
ु ूची” से इस संर्वधान की अनस
ु ूची अलभप्रेि है ;
(24) “अनस ु ूधचि जातियों” से ऐसी जातियां, मूलवंश या जनजातियां
अथवा ऐसी जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भाग या उनमें के यथ ू अलभप्रेि
हैं स्जन्हें इस संर्वधान के प्रयोजनों के ललए अनच्
ु छे द 341 के अधीन अनस
ु ूधचि
जातियां समझा जािा है ;
(25) “अनस ु ूधचि जनजातियों” से ऐसी जनजातियां या जनजाति समुदाय
अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या उनमें के यथ ू अलभप्रेि
हैं स्जन्हें इस संर्वधान के प्रयोजनों के ललए अनच्
ु छे द 342 के अधीन अनस
ु धू चि
जनजातियां समझा जािा है ;
(26) “प्रतिभतू ियों” के अंिगणि थर्टाक है ;

1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (21) का
लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (28-12-1971 से) प्रतिथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 225

1
[(26क) “सेवाओं” से माल से लभन्न कुछ भी अलभप्रेि है ;
(26ख) “राज्य” के अंिगणि, अनच् ु छे द 246क, अनच् ु छे द 268, अनच्
ु छे द
269, अनच्ु छे द 269क और अनच् ु छे द 279क के संदभण में , र्वधान-मंडल वाला कोई
संघ राज्यक्षेत्र भी आिा है ;]
[(26ग) ‘‘सामास्जक और शैक्षक्षक दृस्ष्र्ट से र्पछडे वगों’’ से ऐसे र्पछडे
2

वगण अलभप्रेि हैं, स्जन्हें इस संर्वधान के प्रयोजनों के ललए अनच्


ु छे द 342क के
अधीन ऐसा समझा गया है ;]
(27) “उपखंड” से उस खंड का उपखंड अलभप्रेि है स्जसमें वह पद आिा
है ;
(28) “कराधान” के अंिगणि ककसी कर या लाग का अधधरोपर् है चाहे वह
साधारर् या थथानीय या र्वशेष है और “कर” का िद्नस
ु ार अथण लगाया जाएगा ;
(29) “आय पर कर” के अंिगणि अतिलाभ-कर की प्रकृति का कर है ;
3
[(29क) “माल के क्रय या र्वक्रय पर कर” के अंिगणि–
(क) वह कर है जो नकद , आथथधगि संदाय या अन्य मूल्यवान
प्रतिफल के ललए ककसी माल में संपर्त्त के ऐसे अंिरर् पर है जो ककसी
संर्वदा के अनस
ु रर् में न करके अन्यथा ककया गया है ;
(ख) वह कर है जो माल में संपर्त्त के (चाहे वह माल के रूप में हो
या ककसी अन्य रूप में ) ऐसे अंिरर् पर है जो ककसी संकमण संर्वदा के
तनष्पादन में अंिवणललि है ;
(ग) वह कर है जो अवक्रय या ककथिों में संदाय की पद्धति से माल
के पररदान पर है ;
(घ) वह कर है जो नकद , आथथधगि संदाय या अन्य मूल्यवान
प्रतिफल के ललए ककसी माल का ककसी प्रयोजन के ललए उपयोग करने के
अधधकार के (चाहे वह र्वतनहदणष्ट अवधध के ललए हो या नह ं) अिंरर् पर है
;
(ङ) वह कर है जो नकद , आथथधगि संदाय या अन्य मल्
ू यवान

1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (26क) अंिःथथार्पि
ककया गया था और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से)
लोप ककया गया और संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(ii) द्वारा
(16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अधधतनयम, 2018 की धारा 5 द्वारा (11-8-2018 से) अंिःथथार्पि ।
3. संर्वधान (तछयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 4 द्वारा (2-2-1983 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 226

प्रतिफल के ललए ककसी माल के प्रदाय पर है जो ककसी अतनगलमि संगम


या व्यक्ति-तनकाय द्वारा अपने ककसी सदथय को ककया गया है ;
(च) वह कर है, जो ऐसे माल के, जो खाद्य या मानव उपभोग के
ललए कोई अन्य पदाथण या कोई पेय है (चाहे वह मादक हो या नह ं) ऐसे
प्रदाय पर है, जो ककसी सेवा के रूप में या सेवा के भाग के रूप में या
ककसी भी अन्य र ति से ककया गया है और ऐसा प्रदाय या सेवा नकद ,
आथथधगि संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के ललए की गई है,
और माल के ऐसे अंिरर्, पररदान या प्रदाय के बारे में यह समझा जाएगा कक
वह उस व्यक्ति द्वारा, जो ऐसा अंिरर्, पररदान या प्रदाय कर रहा है, उस माल
का र्वक्रय है , और उस व्यक्ति द्वारा, स्जसको ऐसा अंिरर्, पररदान या प्रदाय
ककया जािा है, उस माल का क्रय है ।]
1
[(30) “संघ राज्यक्षेत्र” से पहल अनस ु ूची में र्वतनहदणष्ट कोई संघ राज्यक्षेत्र
अलभप्रेि है और इसके अंिगणि ऐसा अन्य राज्यक्षेत्र है जो भारि के राज्यक्षेत्र में
समार्वष्ट है ककं िु उस अनस ु ूची में र्वतनहदणष्ट नह ं है ।]
367. तनवणचन – (1) जब िक कक संदभण से अन्यथा अपेक्षक्षि न हो, इस
संर्वधान के तनवणचन के ललए साधारर् खंड अधधतनयम, 1897, ऐसे अनक ु ू लनों और
उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए, जो अनच् ु छे द 372 के अधीन उसमें ककए जाएं, वैसे ह
लागू होगा जैसे वह भारि डोलमतनयन के र्वधान-मंडल के ककसी अधधतनयम के तनवणचन
के ललए लागू होिा है ।
(2) इस संर्वधान में संसद् के या उसके द्वारा बनाए गए अधधतनयमों या र्वधधयों
के प्रति ककसी तनदे श का अथवा 2*** ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के या उसके द्वारा
बनाए गए अधधतनयमों या र्वधधयों के प्रति ककसी तनदे श का यह अथण लगाया जाएगा कक
उसके अंिगणि, यथास्थथति, राष्ट्रपति द्वारा तनलमणि अध्यादे श या ककसी राज्यपाल 3*** द्वारा
तनलमणि अध्यादे श के प्रति तनदे श है ।
(3) इस संर्वधान के प्रयोजनों के ललए, “र्वदे शी राज्य” से भारि से लभन्न कोई
राज्य अलभप्रेि है :
परं िु संसद् द्वारा बनाई गई ककसी र्वधध के उपबंधों के अधीन रहिे हुए, राष्ट्रपति
आदे श द्वारा यह घोषर्ा कर सकेगा कक कोई राज्य उन प्रयोजनों के ललए, जो उस आदे श4
में र्वतनहदणष्ट ककए जाएं, र्वदे शी राज्य नह ं हैं ।

1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (30) के थथान पर (1-
11-1956 से) प्रतिथथार्पि ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल अनुसूची के भाग क या भाग
ख में र्वतनहदण ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया ।
3. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
4. संर्वधान (र्वदे शी राज्यों के बारे में घोषर्ा) आदे श, 1950, (सं. आ. 2) दे खखए ।
भाग 20
संविधान का संशोधन
368. 1[संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया]
– [(1) इस संविधान में क्रकसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संविधायी शक्ति का
2

प्रयोग करते हुए इस संविधान के क्रकसी उपबंध का पररिधधन, पररितधन या ननरसन के


रूप में संशोधन इस अनच् ु छे द में अधधकधित प्रक्रिया के अनस
ु ार कर सकेगी ।]
3
[(2)] इस संविधान के संशोधन का आरं भ संसद् के क्रकसी सदन में इस प्रयोजन
के लिए विधेयक परु ःस्िावपत करके ही क्रकया जा सकेगा और जब िह विधेयक प्रत्येक
सदन में उस सदन की कुि सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तिा उस सदन के उपस्स्ित
और मत दे ने िािे सदस्यों के कम से कम दो-नतहाई बहुमत द्वारा पाररत कर ददया जाता
है तब 4[िह राष्ट्रपनत के समक्ष प्रस्तत
ु क्रकया जाएगा, जो विधेयक को अपनी अनम ु नत
दे गा और तब] संविधान उस विधेयक के ननबंधनों के अनस ु ार सं
श ोधधत हो जाएगा :
परं तु यदद ऐसा संशोधन –
(क) अनच् ु छे द 54, अनच् ु छे द 55, अनच्
ु छे द 73, [अनच्
5
ु छे द 162, अनच्
ु छे द
241 या अनच्
ु छे द 279क] में , या
(ख) भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1
में , या
(ग) सातिीं अनस
ु च
ू ी की क्रकसी सच
ू ी में , या
(घ) संसद् में राज्यों के प्रनतननधधत्ि में , या
(ङ) इस अनच्
ु छे द के उपबंधों में ,
कोई पररितधन करने के लिए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने िािा विधेयक
राष्ट्रपनत के समक्ष अनम
ु नत के लिए प्रस्तत
ु क्रकए जाने से पहिे उस संशोधन के लिए

1. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा "संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया" के
स्िान पर (5-11-1971 से) प्रनतस्िावपत ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छे द 368 को खंड (2) के रूप में
पुनःसंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
4. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा “तब िह राष्ट्रपनत के समक्ष उसकी अनुमनत के
लिए रखा जाएगा तिा विधेयक को ऐसी अनुमनत दी जाने के पश्चात ्” के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
5. संविधान (एक सौ एकिां संशोधन) अधधननयम, 2016 की धारा 15 द्वारा (16-9-2016 से) "अनुच्छे द 162 या
अनुच्छे द 241" के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
227
भारत का संविधान 228

1
*** कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडिों द्वारा पाररत इस आशय के संकल्पों द्वारा
उन विधान-मंडिों का अनस
ु मिधन भी अपेक्षक्षत होगा ।
2
[(3) अनच्
ु छे द 13 की कोई बात इस अनच्
ु छे द के अधीन क्रकए गए क्रकसी
संशोधन को िागू नहीं होगी ।]
[(4) इस संविधान का (स्जसके अंतगधत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनच्
3
ु छे द के
अधीन संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 के प्रारं भ से पहिे
या उसके पश्चात ् क्रकया गया या क्रकया गया तात्पनयधत कोई संशोधन क्रकसी न्यायािय में
क्रकसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं क्रकया जाएगा ।
(5) शंकाओं को दरू करने के लिए यह घोवित क्रकया जाता है क्रक इस अनच् ु छे द के
अधीन इस संविधान के उपबंधों का पररिधधन, पररितधन या ननरसन के रूप में संशोधन
करने के लिए संसद् की संविधायी शक्ति पर क्रकसी प्रकार का ननबधन्धन नहीं होगा ।]

1. संविधान (सातिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहिी अनुसूची
के भाग क और भाग ख में विननददध ष्ट” शब्दों और अक्षरों का िोप क्रकया गया ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. अनुच्छे द 368 में खंड (4) और खंड (5) संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 द्वारा (3-
1-1977 से) अंतःस्िावपत क्रकए गए िे । उच्चतम न्यायािय ने लमनिाध लमल्स लिलमटे ड और अन्य बनाम भारत
संघ और अन्य एआईआर 1980, एस.सी. 1789 के मामिे में इस धारा को अविधधमान्य घोवित क्रकया है ।
भाग 21
1
[अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध]

369. राज्य सूची के कुछ �वषय� के संबध


ं म� �व�ध बनाने क� संसद् क� इस
प्रकार अस्थायी श�� मानो वे समवत� सच
ू ी के �वषय ह� – इस सं�वधान म� �कसी बात
के होते हुए भी, संसद् को इस सं�वधान के प्रारं भ से पांच वषर् क� अव�ध के दौरान
�नम्न�ल�खत �वषय� के बारे म� �व�ध बनाने क� इस प्रकार श�� होगी मानो वे �वषय
समवत� सूची म� प्रग�णत ह�, अथार्त ् :–

(क) सत
ू ी और ऊनी व��, कच्ची कपास (िजसके अंतगर्त ओट� हुई रुई
और �बना ओट� रुई या कपास है), �बनौले, कागज (िजसके अंतगर्त अखबार�
कागज है), खाद्य पदाथर् (िजसके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�), पशओ
ु ं के
चारे (िजसके अंतगर्त खल� और अन्य सारकृत चारे ह�), कोयले (िजसके अंतगर्त
कोक और कोयले के व्यत्ु पाद ह�), लोहे , इस्पात और अभ्रक का �कसी राज्य के
भीतर व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ;

(ख) खंड (क) म� व�णर्त �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के


�वरुद्ध अपराध, उन �वषय� म� से �कसी के संबध
ं म� उच्चतम न्यायालय से �भन्न
सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता और श��यां, तथा उन �वषय� म� से �कसी के
संबध
ं म� फ�स �कं तु इसके अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं
है,

�कं तु संसद् द्वारा बनाई गई कोई �व�ध, िजसे संसद् इस अनच्


ु छे द के उपबंध� के अभाव म�
बनाने के �लए स�म नह�ं होती, उ� अव�ध क� समा�� पर अ�मता क� मात्रा तक उन
बात� के �सवाय प्रभावी नह�ं रहेगी िजन्ह� उस अव�ध क� समा�� के पहले �कया गया है
या करने का लोप �कया गया है ।

1. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी तथा अंतःकाल�न
उपबंध” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।

229
भारत का सं�वधान 230

**
370. जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
1
ं म� अस्थायी उपबंध – (1) इस सं�वधान
म� �कसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनच्ु छे द 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध
ं म� लागू नह�ं
ह�गे ;
(ख) उ� राज्य के �लए �व�ध बनाने क� संसद् क� श��,–
(i) संघ सूची और समवत� सूची के उन �वषय� तक सी�मत होगी
िजनको रा�प�त, उस राज्य क� सरकार से परामशर् करके, उन �वषय� के
तत्स्थानी �वषय घो�षत कर दे , जो भारत डो�म�नयन म� उस राज्य के
अ�ध�मलन को शा�सत करने वाले अ�ध�मलन पत्र म� ऐसे �वषय� के रूप
म� �व�न�दर्� ह� िजनके संबध
ं म� डो�म�नयन �वधान-मंडल उस राज्य के
�लए �व�ध बना सकता है; और
(ii) उ� सू�चय� के उन अन्य �वषय� तक सी�मत होगी जो
रा�प�त, उस राज्य क� सरकार क� सहम�त से, आदे श द्वारा, �व�न�दर्�
करे ।
स्प�ीकरण – इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, उस राज्य क� सरकार से
वह व्य�� अ�भप्रेत है िजसे रा�प�त से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा क� 5 माचर्,
1948 क� उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर्
करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप म� तत्समय मान्यता प्रा� थी ;

** राष्ट्रप�त, संसद क� �सफा�रश पर भारत के सं�वधान के अनुच्छे द 370 के खंड (1) के साथ प�ठत अनुच्छे द 370
के खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए यह घोषणा करते ह� �क 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनुच्छे द 370
के सभी खंड, �सवाय �नम्न�ल�खत के, जो नीचे �दए गए के अनुसार है, प्रचालन म� नह�ं रह� गे, अथार्त ् :—

“370. इस सं�वधान के समय-समय पर यथा-संशो�धत, सभी उपबंध �बना �कन्ह�ं उपांतरण� या उपवाद� के
अनुच्छे द 152 या अनुच्छे द 308 या इस सं�वधान के �कसी अन्य अनुच्छे द या जम्मू-कश्मीर के सं�वधान म�
�कसी अन्य उपबंध या �कसी �व�ध, दस्तावेज, �नणर्य, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसूचना
या भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाल� �कसी रू�ढ़ या प्रथा या �कसी अन्य �लखत, सं�ध या करार
जो अनुच्छे द 363 के अधीन यथा प�रकिल्पत या अन्यथा है, म� तत्प्र�तकूल �कसी बात के अंत�वर्ष्ट होते हुए भी,
जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू ह�गे ।”।
(�व�ध और न्याय मंत्रालय, �वधायी �वभाग सं.आ. 273, तार�ख 5 अगस्त, 2019)
1. इस अनुच्छे द द्वारा प्रद� श��य� का प्रयोग करते हुए रा�प�त ने जम्मू और कश्मीर राज्य क� सं�वधान सभा क�
�सफा�रश पर यह घोषणा क� �क 17 नवंबर, 1952 से उ� अनुच्छे द 370 इस उपांतरण के साथ प्रवतर्नीय होगा
�क उसके खंड (1) म� स्प�ीकरण के स्थान पर �नम्न�ल�खत स्प�ीकरण रख �दया गया है, अथार्त ् :–
“स्प�ीकरण – इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए राज्य क� सरकार से वह व्य�� अ�भप्रेत है िजसे राज्य
क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर रा�प�त ने राज्य क� तत्समय पदारूढ़ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् करने
वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे �रयासत के रूप म� मान्यता प्रदान क� हो ।”।
* अब “राज्यपाल” (�व�ध मंत्रालय आदे श सं0 सं.आ. 44, �दनांक 15 नवंबर, 1952) ।
भारत का सं�वधान 231

(ग) अनच्
ु छे द 1 और इस अनच्
ु छे द के उपबंध उस राज्य के संबध
ं म� लागू
ह�गे ;
(घ) इस सं�वधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के
अधीन रहते हुए, जो रा�प�त आदे श 1 द्वारा �व�न�दर्� करे , उस राज्य के संबंध म�
2

लागू ह�गे :
परं तु ऐसा कोई आदे श जो उपखंड (ख) के पैरा (i) म� �न�दर्� राज्य के
अ�ध�मलन पत्र म� �व�न�दर्� �वषय� से संब�ं धत है, उस राज्य क� सरकार से परामशर्
करके ह� �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं :
परं तु यह और �क ऐसा कोई आदे श जो अं�तम पव
ू व
र् त� परं तुक म� �न�दर्� �वषय�
से �भन्न �वषय� से संब�ं धत है, उस सरकार क� सहम�त से ह� �कया जाएगा, अन्यथा
नह�ं ।
(2) य�द खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (ii) म� या उस खंड के उपखंड (घ) के
दसू रे परं तुक म� �न�दर्� उस राज्य क� सरकार क� सहम�त, उस राज्य का सं�वधान बनाने
के प्रयोजन के �लए सं�वधान सभा के बल ु ाए जाने से पहले द� जाए तो उसे ऐसी
सं�वधान सभा के सम� ऐसे �व�न�य के �लए रखा जाएगा जो वह उस पर करे ।
(3) इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त
लोक अ�धसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा �क यह अनच् ु छे द प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा या ऐसे
अपवाद� और उपांतरण� स�हत ह� और ऐसी तार�ख से, प्रवतर्न म� रहे गा, जो वह
�व�न�दर्� करे :
परं तु रा�प�त द्वारा ऐसी अ�धसच
ू ना �नकाले जाने से पहले खंड (2) म� �न�दर्� उस
राज्य क� सं�वधान सभा क� �सफा�रश आवश्यक होगी ।
2
[371. 3*** महारा� और गुजरात राज्य� के संबध
ं म� �वशेष उपबंध – 4* * *
(2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त, 5[महारा� या गज
ु रात
राज्य] के संबध
ं म� �कए गए आदे श द्वारा :–

1. समय-समय पर यथासंशो�धत सं�वधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदे श, 1954 (सं. आ. 48)
प�र�श� 1 म� दे �खए ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 22 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) “आंध्र प्रदे श,” शब्द� का लोप
�कया गया ।
4. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का लोप �कया गया ।
5. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 232

(क) यथािस्थ�त, �वदभर्, मराठवाड़ा 1[और शेष महारा� या] सौरा�, कच्छ
और शेष गुजरात के �लए पथ ृ क् �वकास बोड� क� स्थापना के �लए, इस उपबंध
स�हत �क इन बोड� म� से प्रत्येक के कायर्करण पर एक प्र�तवेदन राज्य �वधान
सभा के सम� प्र�तवषर् रखा जाएगा,
(ख) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उ� �ेत्र� के
�वकास व्यय के �लए �न�धय� के साम्यापण
ू र् आबंटन के �लए, और
(ग) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उ� सभी �ेत्र�
के संबध
ं म� , तकनीक� �श�ा और व्यावसा�यक प्र�श�ण के �लए पयार्� स�ु वधाओं
क� और राज्य सरकार के �नयंत्रण के अधीन सेवाओं म� �नयोजन के �लए पयार्�
अवसर� क� व्यवस्था करने वाल� साम्यापण
ू र् व्यवस्था करने के �लए,
राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा ।]
2
[371क. नागाल�ड राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी, –
(क) �नम्न�ल�खत के संबध ं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम नागाल�ड राज्य
को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक नागाल�ड क� �वधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा
�व�न�य नह�ं करती है, अथार्त ्,–
(i) नागाओं क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ;
(ii) नागा रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ;
(iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�न�य नागा
रू�ढ़जन्य �व�ध के अनसु ार होने ह� ;
(iv) भ�ू म और उसके संप�� स्रोत� का स्वा�मत्व और अंतरण ;
(ख) नागाल�ड के राज्यपाल का नागाल�ड राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के
संबध म� तब तक �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा जब तक उस राज्य के �नमार्ण के
ठ�क पहले नागा पहाड़ी त्यएु नसांग �ेत्र म� �वद्यमान आंत�रक अशां�त, उसक� राय
म� , उसम� या उसके �कसी भाग म� बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबध ं म�
अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने
व्य��गत �नणर्य का प्रयोग, मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के प�ात ् करे गा :
परं तु य�द यह प्र� उठता है �क कोई मामला ऐसा मामला है या नह�ं
िजसके संबध ं म� राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपे�ा क� गई है �क वह

1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महारा�” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 233

अपने व्य��गत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेक
से �कया गया �व�न�य अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क�
�व�धमान्यता इस आधार पर प्र�गत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने व्य��गत
�नणर्य का प्रयोग करके कायर् करना चा�हए था या नह�ं :
परं तु यह और �क य�द राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा
रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क अब यह आवश्यक नह�ं है �क नागाल�ड
राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� राज्यपाल का �वशेष उ�रदा�यत्व रहे तो
वह, आदे श द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क राज्यपाल का ऐसा उ�रदा�यत्व उस तार�ख
से नह�ं रहे गा जो आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए ;
(ग) अनदु ान क� �कसी मांग के संबधं म� अपनी �सफा�रश करने म� ,
नागाल�ड का राज्यपाल यह सु�नि�त करे गा �क �कसी �व�न�दर्� सेवा या प्रयोजन
के �लए भारत क� सं�चत �न�ध म� से भारत सरकार द्वारा �दया गया कोई धन
उस सेवा या प्रयोजन से संब�ं धत अनद
ु ान क� मांग म� , न �क �कसी अन्य मांग
म� , सिम्म�लत �कया जाए ;
(घ) उस तार�ख से िजसे नागाल�ड का राज्यपाल इस �न�म� लोक
अ�धसूचना द्वारा �व�न�दर्� करे , त्यए
ु नसांग िजले के �लए एक प्रादे �शक प�रषद्
स्था�पत क� जाएगी जो प�तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी और राज्यपाल
�नम्न�ल�खत बात� का उपबंध करने के �लए �नयम अपने �ववेक से बनाएगा,
अथार्त ् :–
(i) प्रादे �शक प�रषद् क� संरचना और वह र��त िजससे प्रादे �शक
प�रषद् के सदस्य चन ु े जाएंगे :
परं तु त्यए
ु नसांग िजले का उपाय�
ु प्रादे �शक प�रषद् का पदे न
अध्य� होगा और प्रादे �शक प�रषद् का उपाध्य� उसके सदस्य� द्वारा अपने
म� से �नवार्�चत �कया जाएगा ;
(ii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य चन
ु े जाने के �लए और सदस्य होने
के �लए अहर्ताएं ;
(iii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� क� पदाव�ध और उनको �दए जाने
वाले वेतन और भ�े, य�द कोई ह� ;
(iv) प्रादे �शक प�रषद् क� प्र�क्रया और कायर् संचालन ;
(v) प्रादे �शक प�रषद् के अ�धका�रय� और कमर्चा�रवद
ं ृ क� �नय�ु �
और उनक� सेवा क� शत� ; और
भारत का सं�वधान 234

(vi) कोई अन्य �वषय िजसके संबध


ं म� प्रादे �शक प�रषद् के गठन
और उसके उ�चत कायर्करण के �लए �नयम बनाने आवश्यक ह� ।
(2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, नागाल�ड राज्य के �नमार्ण क�
तार�ख से दस वषर् क� अव�ध तक या ऐसी अ�त�र� अव�ध के �लए िजसे राज्यपाल,
प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश पर, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस �न�म� �व�न�दर्� करे ,–
(क) त्यए
ु नसांग िजले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा ;
(ख) जहां भारत सरकार द्वारा नागाल�ड सरकार को, संपणू र् नागाल�ड राज्य
क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् के �लए कोई धन �दया जाता है वहां, राज्यपाल अपने
�ववेक से त्यएु नसांग िजले और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यापणू र् आबंटन
के �लए प्रबंध करे गा ;
(ग) नागाल�ड �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम त्यए ु नसांग िजले को तब
तक लागू नह�ं होगा जब तक राज्यपाल, प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश पर, लोक
अ�धसूचना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे ता है और ऐसे �कसी अ�ध�नयम के
संबधं म� ऐसा �नदे श दे ते हुए राज्यपाल यह �न�द� कर सकेगा �क वह अ�ध�नयम
त्यए
ु नसांग िजले या उसके �कसी भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण�
के अधीन रहते हुए, प्रभावी होगा िजन्ह� राज्यपाल प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश
पर �व�न�दर्� करे :
परं तु इस उपखंड के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा
सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो ;
(घ) राज्यपाल त्यए
ु नसांग िजले क� शां�त, उन्न�त और सुशासन के �लए
�व�नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए �व�नयम उस िजले को तत्समय
लागू संसद् के �कसी अ�ध�नयम या �कसी अन्य �व�ध का, य�द आवश्यक हो तो
भूतल�ी प्रभाव से �नरसन या संशोधन कर सक�गे ;
(ङ) (i) नागाल�ड �वधान सभा म� त्यए ु नसांग िजले का प्र�त�न�धत्व करने
वाले सदस्य� म� से एक सदस्य को राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर त्यए ु नसांग
कायर् मंत्री �नय� ू �� सदस्य� क�
ु करे गा और मुख्यमंत्री अपनी सलाह दे ने म� पव
1
9

1. सं�वधान (क�ठनाइय� का �नराकरण) आदे श, सं0 10 के पैरा 2 म� यह उपबंध है �क भारत के सं�वधान का


अनुच्छे द 371क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (2) के उपखंड (ङ) के पैरा (i) म� �नम्न�ल�खत परं तुक
(1-12-1963) से जोड़ �दया गया हो, अथार्त ् :--
भारत का सं�वधान 235

बहुसंख्या क� �सफा�रश पर कायर् करे गा ;


(ii) त्यए
ु नसांग कायर् मंत्री त्यए
ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� क�
बाबत कायर् करे गा और उनके संबध ं म� राज्यपाल के पास उसक� सीधी पहुंच होगी
�कं तु वह उनके संबध ं म� मख्
ु यमंत्री को जानकार� दे ता रहे गा ;
(च) इस खंड के पव ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी,
त्यए
ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� पर अं�तम �व�न�य राज्यपाल अपने
�ववेक से करे गा ;
(छ) अनच्
ु छे द 54 और अनच् ु छे द 55 म� तथा अनच्
ु छे द 80 के खंड (4) म�
राज्य क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� के या ऐसे प्रत्येक सदस्य के प्र�त
�नद� श� के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत प्रादे �शक प�रषद् द्वारा
�नवार्�चत नागाल�ड �वधान सभा के सदस्य� या सदस्य के प्र�त �नद� श ह�गे ;
(ज) अनच्
ु छे द 170 म� –
ं म� इस प्रकार प्रभावी
(i) खंड (1) नागाल�ड �वधान सभा के संबध
होगा मानो “साठ” शब्द के स्थान पर “�छयाल�स” शब्द रख �दया गया
हो ;
(ii) उ� खंड म� , उस राज्य म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य�
�नवार्चन के प्र�त �नद� श के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत
प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� द्वारा �नवार्चन होगा ;
(iii) खंड (2) और खंड (3) म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के प्र�त
�नद� श से को�हमा और मोकोकचग ंु िजल� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के
प्र�त �नद� श अ�भप्रेत ह�गे ।
(3) य�द इस अनच् ु छे द के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध को प्रभावी करने
म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो रा�प�त, आदे श द्वारा, कोई ऐसी बात (िजसके
अंतगर्त �कसी अन्य अनच्ु छे द का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस
क�ठनाई को दरू करने के प्रयोजन के �लए उसे आवश्यक प्रतीत होती है :
परं तु ऐसा कोई आदे श नागाल�ड राज्य के �नमार्ण क� तार�ख से तीन वषर् क�
समा�� के प�ात ् नह�ं �कया जाएगा ।

“परं तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर, �कसी व्य�� को त्युएनसांग कायर् मंत्री के रूप म� ऐसे समय तक के
�लए �नयु� कर सकेगा, जब तक �क नागाल�ड क� �वधान सभा म� त्युएनसांग िजले के �लए, आबं�टत स्थान� को भरने
के �लए �व�ध के अनुसार व्य��य� को चुन नह�ं �लया जाता है” ।
भारत का सं�वधान 236

स्प�ीकरण – इस अनच् ु छे द म� , को�हमा, मोकोकचग


ुं और त्यए
ु नसांग िजल� का
वह� अथर् है जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 म� है ।]
[371ख. असम राज्य के संबध
1
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात
के होते हुए भी, रा�प�त, असम राज्य के संबध
ं म� �कए गए आदे श द्वारा, उस राज्य क�
�वधान सभा क� एक स�म�त के गठन और कृत्य� के �लए, जो स�म�त छठ� अनस ु ूची के
पैरा 20 से संलग्न सारणी के 2[भाग 1] म� �व�न�दर्� जनजा�त �ेत्र� से �नवार्�चत उस
�वधान सभा के सदस्य� से और उस �वधान सभा के उतने अन्य सदस्य� से �मलकर
बनेगी िजतने आदे श म� �व�न�दर्� �कए जाएं तथा ऐसी स�म�त के गठन और उसके
उ�चत कायर्करण के �लए उस �वधान सभा क� प्र�क्रया के �नयम� म� �कए जाने वाले
उपांतरण� के �लए उपबंध कर सकेगा ।]
3
[371ग. म�णपरु राज्य के संबधं म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी, रा�प�त, म�णपरु राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा, उस राज्य
क� �वधान सभा क� एक स�म�त के गठन और कृत्य� के �लए, जो स�म�त उस राज्य के
पहाड़ी �ेत्र� से �नवार्�चत उस �वधान सभा के सदस्य� से �मलकर बनेगी, राज्य क� सरकार
के कामकाज के �नयम� म� और राज्य क� �वधान सभा क� प्र�क्रया के �नयम� म� �कए
जाने वाले उपांतरण� के �लए और ऐसी स�म�त का उ�चत कायर्करण सु�नि�त करने के
उद्देश्य से राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा ।
(2) राज्यपाल प्र�तवषर् या जब कभी रा�प�त ऐसी अपे�ा करे , म�णपरु राज्य के
पहाड़ी �ेत्र� के प्रशासन के संबध ं म� रा�प�त को प्र�तवेदन दे गा और संघ क� कायर्पा�लका
श�� का �वस्तार उ� �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� राज्य को �नदे श दे ने तक होगा ।
स्प�ीकरण – इस अनच् ु छे द म� , “पहाड़ी �ेत्र�” से ऐसे �ेत्र अ�भप्रेत ह� िजन्ह�
रा�प�त, आदे श द्वारा, पहाड़ी �ेत्र घो�षत करे ।]
4
[371घ. 5[आंध्र प्रदे श राज्य या तेलग ं ाना राज्य] के संबध
ं म� �वशेष उपबंध –
6
[(1) रा�प�त, आंध्र प्रदे श राज्य या तेलंगाना राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा,
प्रत्येक राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए दोन� राज्य� के �व�भन्न भाग� के

1. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्था�पत ।
5. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 237

लोग� के �लए लोक �नयोजन के �वषय म� और �श�ा के �वषय म� साम्यापण ू र् अवसर� और


स�ु वधाओं का उपबंध कर सकेगा और दोन� राज्य� के �व�भन्न भाग� के �लए �भन्न-�भन्न
उपबंध �कए जा सक�गे ।]
(2) खंड (1) के अधीन �कया गया आदे श, �व�श�तया, –
(क) राज्य सरकार से यह अपे�ा कर सकेगा �क वह राज्य क� �स�वल
सेवा म� पद� के �कसी वगर् या वग� का अथवा राज्य के अधीन �स�वल पद� के
�कसी वगर् या वग� का राज्य के �भन्न भाग� के �लए �भन्न स्थानीय काडर� म�
गठन करे और ऐसे �सद्धांत� और प्र�क्रया के अनस ु ार जो आदे श म� �व�न�दर्� क�
जाए, ऐसे पद� को धारण करने वाले व्य��य� का इस प्रकार ग�ठत स्थानीय
काडर� म� आबंटन करे ;
(ख) राज्य के ऐसे भाग या भाग� को �व�न�दर्� कर सकेगा जो–
(i) राज्य सरकार के अधीन �कसी स्थानीय काडर म� (चाहे उसका
गठन इस अनच् ु छे द के अधीन आदे श के अनस ु रण म� या अन्यथा �कया
गया है) पद� के �लए सीधी भत� के �लए,
(ii) राज्य के भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के अधीन �कसी
काडर म� पद� के �लए सीधी भत� के �लए, और
(iii) राज्य के भीतर �कसी �व��वद्यालय म� या राज्य सरकार के
�नयंत्रण के अधीन �कसी अन्य �श�ा संस्था म� प्रवेश के प्रयोजन के �लए,
स्थानीय �ेत्र समझे जाएंगे;
(ग) वह �वस्तार �व�न�दर्� कर सकेगा िजस तक, वह र��त �व�न�दर्� कर
सकेगा िजससे और वे शत� �व�न�दर्� कर सकेगा िजनके अधीन, यथािस्थ�त, ऐसे
काडर, �व��वद्यालय या अन्य �श�ा संस्था के संबध ं म� ऐसे अभ्य�थर्य� को,
िजन्ह�ने आदे श म� �व�न�दर्� �कसी अव�ध के �लए स्थानीय �ेत्र म� �नवास या
अध्ययन �कया है –
(i) उपखंड (ख) म� �न�दर्� ऐसे काडर म� जो इस �न�म� आदे श म�
�व�न�दर्� �कया जाए, पद� के �लए सीधी भत� के �वषय म� ;
(ii) उपखंड (ख) म� �न�दर्� ऐसे �व��वद्यालय या अन्य �श�ा संस्था
म� जो इस �न�म� आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए, प्रवेश के �वषय म� ,
अ�धमान �दया जाएगा या उनके �लए आर�ण �कया जाएगा ।
(3) रा�प�त, आदे श द्वारा, 1[आंध्र प्रदे श राज्य के �लए और तेलंगाना राज्य के
�लए] एक प्रशास�नक अ�धकरण के गठन के �लए उपबंध कर सकेगा जो अ�धकरण
�नम्न�ल�खत �वषय� क� बाबत ऐसी अ�धका�रता, श�� और प्रा�धकार का िजसके अंतगर्त

1. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य के �लए” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 238

वह अ�धका�रता, श�� या प्रा�धकार है जो सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम,


1973 के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) �कसी न्यायालय द्वारा
अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� द्वारा प्रयो�व्य था प्रयोग करे गा जो आदे श म�
�व�न�दर्� �कया जाए, अथार्त ् :–
(क) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श
म� �व�न�दर्� �कए जाएं, �नय�ु �, आबंटन या प्रोन्न�त ;

(ख) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श
म� �व�न�दर्� �कए जाएं, �नय� ु , आबं�टत या प्रोन्नत व्य��य� क� ज्ये�ता ;
(ग) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर �नय�
ु ,
आबं�टत या प्रोन्नत व्य��य� क� सेवा क� ऐसी अन्य शत� जो आदे श म� �व�न�दर्�
क� जाएं ।
(4) खंड (3) के अधीन �कया गया आदे श–
(क) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर �कसी �वषय
से संब�ं धत व्यथाओं के �नवारण के �लए ऐसे अभ्यावेदन प्रा� करने के �लए, जो
रा�प�त आदे श म� �व�न�दर्� करे और उस पर ऐसे आदे श करने के �लए जो वह
प्रशास�नक अ�धकरण ठ�क समझता है, प्रा�धकृत कर सकेगा ;
(ख) प्रशास�नक अ�धकरण क� श��य� और प्रा�धकार� और प्र�क्रया के संबध

म� ऐसे उपबंध (िजनके अंतगर्त प्रशास�नक अ�धकरण क� अपने अवमान के �लए
दं ड दे ने क� श�� के संबध
ं म� उपबंध ह�) अंत�वर्� कर सकेगा जो रा�प�त आवश्यक
समझे ;
(ग) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर आने वाले
�वषय� से संब�ं धत और उस आदे श के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय
से �भन्न) �कसी न्यायालय अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के सम�
लं�बत कायर्वा�हय� के ऐसे वग� के, जो आदे श म� �व�न�दर्� �कए जाएं, अंतरण के
�लए उपबंध कर सकेगा ;
भारत का सं�वधान 239

(घ) ऐसे अनप ु रू क, आनष


ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त
फ�स के बारे म� और प�रसीमा, सा�य के बारे म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध
को �कन्ह�ं अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू करने के �लए उपबंध
ह�) अंत�वर्� कर सकेगा जो रा�प�त आवश्यक समझे ।
(5) प्रशास�नक अ�धकरण का �कसी मामले को अं�तम रूप से �नपटाने वाला

आदे श, राज्य सरकार द्वारा उसक� प�ु � �कए जाने पर या आदे श �कए जाने क� तार�ख से
तीन मास क� समा�� पर, इनम� से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा :
परं तु राज्य सरकार, �वशेष आदे श द्वारा, जो �ल�खत रूप म� �कया जाएगा और
िजसम� उसके कारण �व�न�दर्� �कए जाएंगे, प्रशास�नक अ�धकरण के �कसी आदे श को
उसके प्रभावी होने के पहले उपांत�रत या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले म� प्रशास�नक
अ�धकरण का आदे श, यथािस्थ�त, ऐसे उपांत�रत रूप म� ह� प्रभावी होगा या वह
�नष्प्रभाव हो जाएगा ।
(6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परं तुक के अधीन �कया गया प्रत्येक �वशेष
आदे श, �कए जाने के प�ात ्, यथाशक्य, शीघ्र, राज्य �वधान-मंडल के दोन� सदन� के
सम� रखा जाएगा ।
(7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशास�नक अ�धकरण पर अधी�ण क� श��
नह�ं होगी और (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अ�धकरण,
प्रशास�नक अ�धकरण क� या उसके संबध ं म� अ�धका�रता, श�� या प्रा�धकार के अधीन
�कसी �वषय क� बाबत �कसी अ�धका�रता, श�� या प्रा�धकार का प्रयोग नह�ं करे गा ।
(8) य�द रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क प्रशास�नक अ�धकरण का
�नरं तर बने रहना आवश्यक नह�ं है तो रा�प�त आदे श द्वारा प्रशास�नक अ�धकरण का
उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठ�क पहले अ�धकरण के सम� लं�बत मामल�
के अंतरण और �नपटारे के �लए ऐसे आदे श म� ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठ�क
समझे ।
(9) �कसी न्यायालय, अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के �कसी �नणर्य, �डक्र� या
आदे श के होते हुए भी,–
(क) �कसी व्य�� क� कोई �नय�ु �, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क�
बाबत जो–
(i) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथा�वद्यमान हैदराबाद राज्य क�

∗ उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमू�तर् और अन्य बनाम आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य 1987 (1) ए.आई.आर.
1987 एस.सी., प.ृ 663 म� अनुच्छे द 371घ के खंड (5) और उसके परं तुक को असंवैधा�नक और शून्य घो�षत
�कया ।
भारत का सं�वधान 240

सरकार के या उसके भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के अधीन उस


तार�ख से पहले �कसी पद पर �कया गया था, या
(ii) सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 के प्रारं भ से
पहले आंध्र प्रदे श राज्य क� सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर
�कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन �कसी पद पर �कया गया
था, और
(ख) उपखंड (क) म� �न�दर्� �कसी व्य�� द्वारा या उसके सम� क� गई
�कसी कारर्वाई या बात क� बाबत,
केवल इस आधार पर �क ऐसे व्य�� क� �नय�ु �, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण, ऐसी
�नय�ु �, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क� बाबत, यथािस्थ�त, हैदराबाद राज्य के भीतर
या आंध्र प्रदे श राज्य के �कसी भाग के भीतर �नवास के बारे म� �कसी अपे�ा का उपबंध
करने वाल� तत्समय प्रव� ृ �व�ध के अनस
ु ार नह�ं �कया गया था, यह नह�ं समझा जाएगा
�क वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शन् ू य रहा था ।
(10) इस अनच् ु छे द के और रा�प�त द्वारा इसके अधीन �कए गए �कसी आदे श के
उपबंध इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध म�
�कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे ।
371ङ. आंध्र प्रदे श म� क�द्र�य �व��वद्यालय क� स्थापना – संसद् �व�ध द्वारा, आंध्र
प्रदे श राज्य म� एक �व��वद्यालय क� स्थापना के �लए उपबंध कर सकेगी ।]
[371च. �सिक्कम राज्य के संबध
1
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी, –
(क) �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से �मलकर
बनेगी ;
(ख) सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ क� तार�ख
से (िजसे इस अनच्
ु छे द म� इसके प�ात ् �नयत �दन कहा गया है) –
(i) �सिक्कम क� �वधान सभा, जो अप्रैल, 1974 म� �सिक्कम म�
हुए �नवार्चन� के प�रणामस्वरूप उ� �नवार्चन� म� �नवार्�चत ब�ीस सदस्य�
से (िजन्ह� इसम� इसके प�ात ् आसीन सदस्य कहा गया है) �मलकर बनी
है, इस सं�वधान के अधीन सम्यक् रूप से ग�ठत �सिक्कम राज्य क�
�वधान सभा समझी जाएगी ;
(ii) आसीन सदस्य इस सं�वधान के अधीन सम्यक् रूप से

1. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 241

�नवार्�चत �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे ; और


(iii) �सिक्कम राज्य क� उ� �वधान सभा इस सं�वधान के अधीन
राज्य क� �वधान सभा क� श��य� का प्रयोग और कृत्य� का पालन करे गी
;
(ग) खंड (ख) के अधीन �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा समझी गई
�वधान सभा क� दशा म� , अनच् ु छे द 172 के खंड (1) म� [पांच वषर्] क� अव�ध के
1

प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे [चार वषर्] क� अव�ध के प्र�त


2

�नद� श ह� और 2[चार वषर्] क� उ� अव�ध �नयत �दन से प्रारं भ हुई समझी जाएगी
;
(घ) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्य उपबंध नह�ं करती है तब तक
�सिक्कम राज्य को लोक सभा म� एक स्थान आबं�टत �कया जाएगा और
�सिक्कम राज्य एक संसद�य �नवार्चन-�ेत्र होगा िजसका नाम �सिक्कम संसद�य
�नवार्चन-�ेत्र होगा ;
(ङ) �नयत �दन को �वद्यमान लोक सभा म� �सिक्कम राज्य का प्र�त�न�ध
�सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� द्वारा �नवार्�चत �कया जाएगा ;

(च) संसद्, �सिक्कम क� जनता के �व�भन्न अनभ ु ाग� के अ�धकार� और


�हत� क� संर�ा करने के प्रयोजन के �लए �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा म� उन
स्थान� क� संख्या के �लए जो ऐसे अनभु ाग� के अभ्य�थर्य� द्वारा भरे जा सक�गे और
ऐसे सभा �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन के �लए, िजनसे केवल ऐसे अनभ ु ाग� के
अभ्यथ� ह� �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के �नवार्चन के �लए खड़े हो सक�गे,
उपबंध कर सकेगी ;

(छ) �सिक्कम के राज्यपाल का, शां�त के �लए और �सिक्कम क� जनता के


�व�भन्न अनभ ु ाग� क� सामािजक और आ�थर्क उन्न�त सु�नि�त करने के �लए
ू र् व्यवस्था करने के �लए �वशेष उ�रदा�यत्व होगा और इस खंड के अधीन
साम्यापण
अपने �वशेष उ�रदा�यत्व का �नवर्हन करने म� �सिक्कम का राज्यपाल ऐसे �नदे श�

1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्”
मूल शब्द� के स्थान पर “छह वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “पांच वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार वषर्” मूल
शब्द� के स्थान पर “पांच वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
भारत का सं�वधान 242

के अधीन रहते हुए जो रा�प�त समय-समय पर दे ना ठ�क समझे, अपने �ववेक से


कायर् करे गा ;

(ज) सभी संप�� और आिस्तयां (चाहे वे �सिक्कम राज्य म� समा�व�


राज्य�ेत्र� के भीतर ह� या बाहर) जो �नयत �दन से ठ�क पहले �सिक्कम सरकार
म� या �सिक्कम सरकार के प्रयोजन� के �लए �कसी अन्य प्रा�धकार� या व्य�� म�
�न�हत थीं, �नयत �दन से �सिक्कम राज्य क� सरकार म� �न�हत हो जाएंगी ;

(झ) �सिक्कम राज्य म� समा�व� राज्य�ेत्र� म� �नयत �दन से ठ�क पहले


उच्च न्यायालय के रूप म� कायर्रत उच्च न्यायालय �नयत �दन को और से
�सिक्कम राज्य का उच्च न्यायालय समझा जाएगा ;

(ञ) �सिक्कम राज्य के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र �स�वल, दां�डक और राजस्व


अ�धका�रता वाले सभी न्यायालय तथा सभी न्या�यक, कायर्पालक और
अनसु �चवीय प्रा�धकार� और अ�धकार� �नयत �दन को और से अपने-अपने कृत्य�
को इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, करते रह� गे ;

(ट) �सिक्कम राज्य म� समा�व� राज्य�ेत्र म� या उसके �कसी भाग म�


�नयत �दन से ठ�क पहले प्रव�
ृ सभी �व�धयां वहां तब तक प्रव�
ृ बनी रह� गी जब
तक �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उनका संशोधन या
�नरसन नह�ं कर �दया जाता है ;

(ठ) �सिक्कम राज्य के प्रशासन के संबध ं म� �कसी ऐसी �व�ध को, जो


खंड (ट) म� �न�दर्� है, लागू �कए जाने को सुकर बनाने के प्रयोजन के �लए और
�कसी ऐसी �व�ध के उपबंध� को इस सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के
प्रयोजन के �लए रा�प�त, �नयत �दन से दो वषर् के भीतर, आदे श द्वारा, ऐसी
�व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन और उपांतरण
कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और तब प्रत्येक ऐसी �व�ध इस प्रकार
�कए गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी
ऐसे अनक ु ू लन या उपांतरण को �कसी न्यायालय म� प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ;
(ड) उच्चतम न्यायालय या �कसी अन्य न्यायालय को, �सिक्कम के संबध ं
म� �कसी ऐसी सं�ध, करार, वचनबंध या वैसी ह� अन्य �लखत से, जो �नयत �दन
से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और िजसम� भारत सरकार या
उसक� पव ू वर् त� कोई सरकार प�कार थी, उत्पन्न �कसी �ववाद या अन्य �वषय के
संबधं म� अ�धका�रता नह�ं होगी, �कं तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं
लगाया जाएगा �क वह अनच् ु छे द 143 के उपबंध� का अल्पीकरण करती है ;
भारत का सं�वधान 243

(ढ) रा�प�त, लोक अ�धसूचना द्वारा, �कसी ऐसी अ�ध�नय�म�त का


�वस्तार, जो उस अ�धसच ू ना क� तार�ख को भारत के �कसी राज्य म� प्रव�
ृ है,
ऐसे �नबर्न्धन� या उपांतरण� स�हत, जो वह ठ�क समझता है, �सिक्कम राज्य पर
कर सकेगा ;
(ण) य�द इस अनच्
ु छे द के पवू गर् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध को प्रभावी
करने म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो रा�प�त, आदे श 1 द्वारा, कोई ऐसी बात
21

(िजसके अंतगर्त �कसी अन्य अनच् ु छे द का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण है) कर


सकेगा जो उस क�ठनाई को दरू करने के प्रयोजन के �लए उसे आवश्यक प्रतीत
होती है :
परं तु ऐसा कोई आदे श �नयत �दन से दो वषर् क� समा�� के प�ात ् नह�ं
�कया जाएगा ;
(त) �सिक्कम राज्य या उसम� समा�व� राज्य�ेत्र� म� या उनके संबध
ं म� ,
�नयत �दन को प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख से िजसको सं�वधान (छ�ीसवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 रा�प�त क� अनम ु �त प्रा� करता है, ठ�क पहले
समा� होने वाल� अव�ध के दौरान क� गई सभी बात� और कारर्वाइयां, जहां तक वे
सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 द्वारा यथासंशो�धत इस सं�वधान
के उपबंध� के अनरूु प ह�, सभी प्रयोजन� के �लए इस प्रकार यथासंशो�धत इस
सं�वधान के अधीन �व�धमान्यतः क� गई समझी जाएंगी ।]
2
[371छ. �मजोरम राज्य के संबध
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी,–
(क) �नम्न�ल�खत के संबधं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम �मजोरम राज्य
को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक �मजोरम राज्य क� �वधान सभा संकल्प
द्वारा ऐसा �व�न�य नह�ं करती है, अथार्त ् :–
(i) �मजो लोग� क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ;
(ii) �मजो रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ;
(iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�न�य �मजो
रू�ढ़जन्य �व�ध के अनसु ार होने ह� ;
(iv) भ�ू म का स्वा�मत्व और अंतरण :
परं तु इस खंड क� कोई बात, सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम,

1. सं�वधान (क�ठनाइय� का �नराकरण) आदे श सं0 11 (सं0 आ0 99) दे �खए ।


2. सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 244

1986 के प्रारं भ से ठ�क पहले �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� प्रव�


ृ �कसी क�द्र�य
अ�ध�नयम को लागू नह�ं होगी ;
(ख) �मजोरम राज्य क� �वधान सभा कम से कम चाल�स सदस्य� से �मलकर
बनेगी ।]
1
[371ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबध
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म�
�कसी बात के होते हुए भी,–
(क) अरुणाचल प्रदे श के राज्यपाल का अरुणाचल प्रदे श राज्य म� �व�ध
और व्यवस्था के संबध
ं म� �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा और राज्यपाल, उस संबध ं म�
अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने
व्य��गत �नणर्य का प्रयोग मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के प�ात ् करे गा :
परं तु य�द यह प्र� उठता है �क कोई मामला ऐसा मामला है या नह�ं
िजसके संबध ं म� राज्यपाल से इस खंड के अधीन अपे�ा क� गई है �क वह अपने
व्य��गत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेक से
�कया गया �व�न�य अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क�
�व�धमान्यता इस आधार पर प्र�गत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने व्य��गत
�नणर्य का प्रयोग करके कायर् करना चा�हए था या नह�ं :
परं तु यह और �क य�द राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा
रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क अब यह आवश्यक नह�ं है �क
अरुणाचल प्रदे श राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� राज्यपाल का �वशेष
उ�रदा�यत्व रहे तो वह, आदे श द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क राज्यपाल का ऐसा
उ�रदा�यत्व उस तार�ख से नह�ं रहे गा जो आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए ;
(ख) अरुणाचल प्रदे श राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से
�मलकर बनेगी ।]
2
[371झ. गोवा राज्य के संबध
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के
होते हुए भी, गोवा राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से �मलकर
बनेगी ।]
3
[371ञ. कनार्टक राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध -- (1) रा�प�त, कनार्टक
राज्य के संबध
ं म� �कए गए आदे श द्वारा,–

1. सं�वधान (पचपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (छप्पनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत ।
3
सं�वधान (अठानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2012 क� धारा 2 द्वारा (1-10-2013 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 245

(क) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र के �लए, एक पथ


ृ क् �वकास बोडर् क� स्थापना
के �लए, इस उपबंध स�हत �क इस बोडर् के कायर्करण पर एक प्र�तवेदन प्रत्येक
वषर् राज्य �वधान सभा के सम� रखा जाएगा ;
(ख) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए, उ� �ेत्र के
�वकास व्यय के �लए �न�धय� के साम्यापण
ू र् आबंटन के �लए ; और
(ग) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए, उ� �ेत्र से
संब�ं धत लोग� के �लए लोक �नयोजन, �श�ा और व्यावसा�यक प्र�श�ण के
�वषय� म� साम्यापणू र् अवसर और सु�वधाओं के �लए,
राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा ।
(2) खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन �कए गए आदे श द्वारा,–
(क) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र म� शै��णक और व्यावसा�यक प्र�श�ण
संस्थाओं म� , ऐसे छात्र� के �लए जो जन्म से या अ�धवास द्वारा उस �ेत्र के ह�,
स्थान� के आनप ु ा�तक आर�ण के �लए उपबंध �कया जा सकेगा ; और
(ख) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र म� राज्य सरकार के अधीन और राज्य सरकार
के �नयंत्रणाधीन �कसी �नकाय या संगठन म� पद� या पद� के वग� क� पहचान के
�लए और उन व्य��य� के �लए, जो जन्म से या अ�धवास द्वारा उस �ेत्र के ह�,
ऐसे पद� के आनप ु ा�तक आर�ण के �लए और उन पद� पर सीधे भत� द्वारा या
प्रोन्न�त द्वारा अथवा ऐसी �कसी अन्य र��त म� , जो आदे श द्वारा �व�न�दर्� क�
जाए, �नय�ु � के �लए उपबंध �कया जा सकेगा ।]
372. �वद्यमान �व�धय� का प्रव�ृ बने रहना और उनका अनक ु ू लन – (1) अनच्
ु छे द
395 म� �न�दर्� अ�ध�नय�म�तय� का इस सं�वधान द्वारा �नरसन होने पर भी, �कं तु इस
सं�वधान के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत
के राज्य�ेत्र म� सभी प्रव�
ृ �व�ध वहां तब तक प्रव�ृ बनी रहे गी जब तक �कसी स�म
�वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उसे प�रव�तर्त या �नर�सत या संशो�धत नह�ं
कर �दया जाता है ।
(2) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी प्रव�
ृ �व�ध के उपबंध� को इस सं�वधान के
उपबंध� के अनरू
ु प बनाने के प्रयोजन के �लए रा�प�त, आदे श द्वारा, ऐसी �व�ध म�
1
26

1. दे �खए, अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 115, तार�ख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग
3, प0
ृ 51; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 870, तार�ख 4 नवंबर, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2,
अनुभाग 3, प0
ृ 903; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 508, तार�ख 4 अप्रैल, 1951, भारत का राजपत्र, असाधारण,
भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 287; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 1140ख, तार�ख 2 जुलाई, 1952, भारत का राजपत्र,
असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 616/I; और त्रावणकोर-कोचीन भू�म अजर्न �व�ध अनुकूलन आदे श, 1952,
भारत का सं�वधान 246

�नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो


आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर सकेगा �क वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो
आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए, इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन
रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपांतरण को �कसी न्यायालय म�
प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ।
(3) खंड (2) क� कोई बात–
(क) रा�प�त को इस सं�वधान के प्रारं भ से 1[तीन वषर्] क� समा�� के
प�ात ् �कसी �व�ध का कोई अनकु ू लन या उपांतरण करने के �लए सश� करने
वाल�, या
(ख) �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� को, रा�प�त
द्वारा उ� खंड के अधीन अनक ु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का �नरसन या
संशोधन करने से रोकने वाल�,
नह�ं समझी जाएगी ।
स्प�ीकरण 1 – इस अनच् ु छे द म� , “प्रव�
ृ �व�ध” पद के अंतगर्त ऐसी �व�ध है जो
इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल द्वारा या अन्य
स�म प्रा�धकार� द्वारा पा�रत क� गई है या बनाई गई है और पहले ह� �नर�सत नह�ं कर
द� गई है, भले ह� वह या उसके कोई भाग तब पण ू त
र् ः या �कन्ह�ं �व�श� �ेत्र� म� प्रवतर्न
म� न ह� ।
स्प�ीकरण 2 – भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म
प्रा�धकार� द्वारा पा�रत क� गई या बनाई गई ऐसी �व�ध का, िजसका इस सं�वधान के
प्रारं भ से ठ�क पहले राज्य�ेत्रातीत प्रभाव था और भारत के राज्य�ेत्र म� भी प्रभाव था,
यथापव ू �� �कन्ह�ं अनकु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, ऐसा राज्य�ेत्रातीत
प्रभाव बना रहे गा ।
स्प�ीकरण 3 – इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा
�क वह �कसी अस्थायी प्रव�
ृ �व�ध को, उसक� समा�� के �लए �नयत तार�ख से, या उस
तार�ख से िजसको, य�द वह सं�वधान प्रव� ृ न हुआ होता तो, वह समा� हो जाती, आगे
प्रव�
ृ बनाए रखती है ।
स्प�ीकरण 4 – �कसी प्रांत के राज्यपाल द्वारा भारत शासन अ�ध�नयम, 1935
क� धारा 88 के अधीन प्रख्या�पत और इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रव�

तार�ख 20 नवंबर, 1952, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0


ृ 923 द्वारा यथासंशो�धत �व�ध
अनुकूलन आदे श, 1950, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, प0
ृ 449 ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 12 द्वारा (18-6-1951 से) “दो वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 247

अध्यादे श, य�द तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहले ह� वापस नह�ं ले �लया गया है
तो, ऐसे प्रारं भ के प�ात ् अनच्
ु छे द 382 के खंड (1) के अधीन कायर्रत उस राज्य क�
�वधान सभा के प्रथम अ�धवेशन से छह स�ाह क� समा�� पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा और
इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �कसी
अध्यादे श को उ� अव�ध से आगे प्रव� ृ बनाए रखती है ।
1
[372क. �व�धय� का अनक ु ू लन करने क� रा�प�त क� श�� – (1) सं�वधान
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत म� या उसके �कसी
भाग म� प्रव�ृ �कसी �व�ध के उपबंध� को उस अ�ध�नयम द्वारा यथासंशो�धत इस सं�वधान
के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन� के �लए, रा�प�त, 1 नवंबर, 1957 से पहले �कए
गए आदे श 2 द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक
29
ु ू लन
और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर सकेगा �क
वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए, इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन�
और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपां
त रण को
�कसी न्यायालय म� प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात, �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार�
को, रा�प�त द्वारा उ� खंड के अधीन अनकु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का �नरसन
या संशोधन करने से रोकने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।]
373. �नवारक �नरोध म� रखे गए व्य��य� के संबध ं म� कुछ दशाओं म� आदे श
करने क� रा�प�त क� श�� – जब तक अनच् ु छे द 22 के खंड (7) के अधीन संसद् उपबंध
नह�ं करती है या जब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से एक वषर् समा� नह�ं हो जाता है,
इनम� से जो भी पहले हो, तब तक उ� अनच् ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (4)
और खंड (7) म� संसद् के प्र�त �कसी �नद� श के स्थान पर रा�प�त के प्र�त �नद� श और
उन खंड� म� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के प्र�त �नद� श के स्थान पर रा�प�त द्वारा �कए
गए आदे श के प्र�त �नद� श रख �दया गया हो ।
374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� और फेडरल न्यायालय म� या सप�रषद्
�हज मजेस्ट� के सम� लं�बत कायर्वा�हय� के बारे म� उपबंध--(1) इस सं�वधान के प्रारं भ
से ठ�क पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा
�नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे
और तब ऐसे वेतन� और भ�� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी और प�शन के संबध
ं म� ऐसे

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 23 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
2. दे �खए 1956 और 1957 के �व�ध अनुकूलन आदे श ।
भारत का सं�वधान 248

अ�धकार� के हकदार ह�गे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� के संबध


ं म� अनच्
ु छे द
125 के अधीन उपबं�धत ह� ।
(2) इस सं�वधान के प्रारं भ पर फेडरल न्यायालय म� लं�बत सभी �स�वल या
दां�डक वाद, अपील और कायर्वा�हयां, उच्चतम न्यायालय को अंत�रत हो जाएंगी और
उच्चतम न्यायालय को उनको सुनने और उनका अवधारण करने क� अ�धका�रता होगी
और फेडरल न्यायालय द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले सुनाए गए या �दए गए
�नणर्य� और आदे श� का वह� बल और प्रभाव होगा मानो वे उच्चतम न्यायालय द्वारा
सन ु ाए गए ह� या �दए गए ह� ।
(3) इस सं�वधान क� कोई बात भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी न्यायालय के
�कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श क� या उसके संबध ं म� अपील� और या�चकाओं को
�नपटाने के �लए स�परषद् �हज मजेस्ट� द्वारा अ�धका�रता के प्रयोग को वहां तक
अ�व�धमान्य नह�ं करे गी जहां तक ऐसी अ�धका�रता का प्रयोग �व�ध द्वारा प्रा�धकृत है
और ऐसी अपील या या�चका पर इस सं�वधान के प्रारं भ के प�ात ् �कया गया सप�रषद्
�हज मजेस्ट� का कोई आदे श सभी प्रयोजन� के �लए ऐसे प्रभावी होगा मानो वह उच्चतम
न्यायालय द्वारा उस अ�धका�रता के प्रयोग म� जो ऐसे न्यायालय को इस सं�वधान द्वारा
प्रदान क� गई है, �कया गया कोई आदे श या �डक्र� हो ।
(4) इस सं�वधान के प्रारं भ से ह� पहल� अनस
ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्� �कसी
राज्य म� �प्रवी क��सल के रूप म� कायर्रत प्रा�धकार� क� उस राज्य के भीतर �कसी
न्यायालय के �कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श क� या उसके संबध ं म� अपील� और
या�चकाओं को ग्रहण करने या �नपटाने क� अ�धका�रता समा� हो जाएगी और उ�
प्रा�धकार� के सम� ऐसे प्रारं भ पर लं�बत सभी अपील� और अन्य कायर्वा�हयां उच्चतम
न्यायालय को अंत�रत कर द� जाएंगी और उसके द्वारा �नपटाई जाएंगी ।
(5) इस अनच्ु छे द के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए संसद् �व�ध द्वारा और
उपबंध कर सकेगी ।
375. सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए न्यायालय�, प्रा�धका�रय� और
अ�धका�रय� का कृत्य करते रहना – भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र �स�वल, दां�डक और
राजस्व अ�धका�रता वाले सभी न्यायालय और सभी न्या�यक, कायर्पालक और
अनसु �चवीय प्रा�धकार� और अ�धकार� अपने-अपने कृत्य� को, इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, करते रह� गे ।
376. उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध–(1) अनच् ु छे द 217 के
खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी प्रांत
के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर
चकु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे
और तब ऐसे वेतन� और भ�� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी और प�शन के संबध ं म� ऐसे
अ�धकार� के हकदार ह�गे जो ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� के संबध ं म� अनच् ु छे द
भारत का सं�वधान 249

221 के अधीन उपबं�धत ह� । 1[ऐसा न्यायाधीश इस बात के होते हुए भी �क वह भारत


का नाग�रक नह�ं है, ऐसे उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् अथवा �कसी अन्य उच्च
न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश �नय�
ु होने का पात्र होगा ।]
(2) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्�
�कसी राज्य के तत्स्थानी �कसी दे शी राज्य के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले
न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर इस प्रकार
�व�न�दर्� राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और अनच् ु छे द 217 के खंड
(1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस अनच् ु छे द के खंड (1) के
परं तुक के अधीन रहते हुए, ऐसी अव�ध क� समा�� तक पद धारण करते रह� गे जो रा�प�त
आदे श द्वारा अवधा�रत करे ।
(3) इस अनच् ु छे द म� , “न्यायाधीश” पद के अंतगर्त कायर्कार� न्यायाधीश या अपर
न्यायाधीश नह�ं है ।
377. भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध – इस सं�वधान के
प्रारं भ से ठ�क पहले पद धारण करने वाला भारत का महालेखापर��क, य�द वह अन्यथा
�नवार्चन न कर चक ु ा हो तो, ऐसे प्रारं भ पर भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क हो
जाएगा और तब ऐसे वेतन� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी और प� शन के संबध
ं म� ऐसे अ�धकार�
का हकदार होगा जो भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संबध ं म� अनच्ु छे द 148 के
खंड (3) के अधीन उपबं�धत है और अपनी उस पदाव�ध क� समा�� तक पद धारण
करने का हकदार होगा जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले उसे लागू होने वाले उपबंध� के
अधीन अवधा�रत क� जाए ।
378. लोक सेवा आयोग� के बारे म� उपबंध–(1) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क
पहले भारत डो�म�नयन के लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, य�द वे
अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो ऐसे प्रारं भ पर संघ के लोक सेवा आयोग के सदस्य
हो जाएंगे और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी,
�कं तु उस अनच्ु छे द के खंड (2) के परं तुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदाव�ध क�
समा�� तक पद धारण करते रह� गे जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे सदस्य� को लागू
�नयम� के अधीन अवधा�रत है ।
(2) इस स�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी प्रांत के लोक सेवा आयोग के या
प्रांत� के समह ू क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने वाले �कसी लोक सेवा आयोग के पद
धारण करने वाले सदस्य, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर,
यथािस्थ�त, तत्स्थानी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्य या तत्स्थानी राज्य� क�
आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने वाले संय� ु राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे

1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 13 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 250

और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस
अनच्
ु छे द के खंड (2) के परं तुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदाव�ध क� समा�� तक
पद धारण करते रह� गे जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे सदस्य� को लागू �नयम� के
अधीन अवधा�रत है ।
1
[378क. आंध्र प्रदे श �वधान सभा क� अव�ध के बारे म� �वशेष उपबंध – अनच्
ु छे द
172 म� �कसी बात के होते हुए भी, राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 28 और
धारा 29 के उपबंध� के अधीन ग�ठत आंध्र प्रदे श राज्य क� �वधान सभा, य�द पहले ह�
�वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, उ� धारा 29 म� �न�दर्� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध
तक बनी रहेगी, इससे अ�धक नह�ं और उ� अव�ध क� समा�� का प�रणाम उस �वधान
सभा का �वघटन होगा ।]
379. [अन्तकार्ल�न संसद् तथा उसके अध्य� और उपाध्य� के बारे म� उपबंध ।]–
सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च
ू ी द्वारा (1-
11-1956 से) �नर�सत ।
380. [रा�प�त के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956
क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
381. [रा�प�त क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956
क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
382. [पहल� अनस ु ूची के भाग क म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के
बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
383. [प्रान्त� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
384. [राज्यपाल� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1956 क� धारा 29 और अनस ु च
ू ी द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
385. [पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के
बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
386. [पहल� अनसु ूची के भाग ख म� के राज्य� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से)
�नर�सत ।
387. [कुछ �नवार्चन� के प�रयोजन� के �लए जनसंख्या के �नधार्रण के बारे म�
�वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनसु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 24 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 251

388. [अन्तकार्ल�न संसद् तथा राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� म� आकिस्मक


�र��य� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29
और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
389. [डोमी�नयन �वधान-मंडल तथा प्रान्त� और दे शी राज्य� के �वधान-मंडल� म�
लं�बत �वधेयक� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क�
धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
390. [इस सं�वधान के प्रारं भ और 1950 के 31 माचर् के बीच प्रा� या उत्थापत
या व्यय �कया हुआ धन ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29
और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
391. [कुछ आकिस्मकताओं म� पहल� और चौथी अनसु ूची का संशोधन करने क�
रा�प�त क� श�� ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनसु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
392. क�ठनाइय� को दरू करने क� रा�प�त क� श��–(1) रा�प�त, �कन्ह�ं ऐसी
क�ठनाइय� को, जो �व�श�तया भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के उपबंध� से इस
सं�वधान के उपबंध� को संक्रमण के संबध ं म� ह�, दरू करने के प्रयोजन के �लए आदे श
द्वारा �नदे श दे सकेगा �क यह सं�वधान उस आदे श म� �व�न�दर्� अव�ध के दौरान उपांतरण,
प�रवधर्न या लोप के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह
आवश्यक या समीचीन समझे :
परं तु ऐसा कोई आदे श भाग 5 के अध्याय 2 के अधीन सम्यक् रूप से ग�ठत
संसद् के प्रथम अ�धवेशन के प�ात ् नह�ं �कया जाएगा ।
(2) खंड (1) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श संसद् के सम� रखा जाएगा ।
(3) इस अनच्ु छे द, अनच्
ु छे द 324, अनच्
ु छे द 367 के खंड (3) और अनच्
ु छे द 391
द्वारा रा�प�त को प्रद� श��यां, इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले, भारत डो�म�नयन के
गवनर्र जनरल द्वारा प्रयो�व्य ह�गी ।
भाग 22
संक्षिप्त नाम, प्रारं भ, 1[ह द
ं ी में प्राधिकृत पाठ] और ननरसन
393. संक्षिप्त नाम – इस संवििान का संक्षिप्त नाम भारत का संवििान ै ।
394. प्रारं भ – य अनच्
ु छे द और अनच्
ु छे द 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367,
379, 380, 388, 391, 392 और 393 तरु न्त प्रित्तृ ोंगे और इस संवििान के शेष उपबंि
26 जनिरी, 1950 को प्रित्त
ृ ोंगे जो हदन इस सं वििान में इस संवििान के प्रारं भ के रूप में
ननहदि ष्ट ककया गया ै ।
2
[394क. ह द
ं ी भाषा में प्राधिकृत पाठ–(1) राष्ट्रपनत—
(क) इस संवििान के ह द
ं ी भाषा में अनि
ु ाद को, जजस पर संवििान सभा के
सदस्यों ने स्तािर ककए थे, ऐसे उपांतरणों के साथ जो उसे केंद्रीय अधिननयमों के
ह द
ं ी भाषा में प्राधिकृत पाठों में अपनाई गई भाषा, शैली और शब्दािली के अनरू ु प
बनाने के ललए आिश्यक ैं , और ऐसे प्रकाशन के पि ू ि ककए गए इस सं वििान के ऐसे
सभी संशोिनों को उसमें सजममललत करते ु ए, तथा
(ख) अंग्रेजी भाषा में ककए गए इस संवििान के प्रत्येक संशोिन के ह द
ं ी भाषा
में अनुिाद को,
अपने प्राधिकार से प्रकालशत कराएगा ।
(2) खंड (1) के अिीन प्रकालशत इस संवििान और इसके प्रत्येक संशोिन के अनुिाद
का ि ी अथि लगाया जाएगा जो उसके मूल का ै और यहद ऐसे अनि
ु ाद के ककसी भाग का
इस प्रकार अथि लगाने में कोई कहठनाई उत्पन्न ोती ै तो राष्ट्रपनत उसका उपयक्त
ु पनु रीिण
कराएगा ।
(3) इस संवििान का और इसके प्रत्येक संशोिन का इस अनच्
ु छे द के अिीन प्रकालशत
अनि
ु ाद, सभी प्रयोजनों के ललए, उसका ह द
ं ी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा ।
395. ननरसन – भारत स्ितंत्रता अधिननयम, 1947 और भारत शासन अधिननयम,
1935 का, पश्चात ् कधथत अधिननयम की, संशोिक या अनप
ु ूरक सभी अधिननयलमनतयों के साथ,
जजनके अंतगित वप्रिी कौंलसल अधिकाररता उत्सादन अधिननयम, 1949 न ीं ै , इसके द्वारा
ननरसन ककया जाता ै ।

1. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 2 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
2. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 3 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
251
अनस
ु ूची
1[पहल�

(अनुच्छे द 1 और अनुच्छे द 4)
1. राज्य
नाम राज्य�ेत्र
1. आंध्र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� , राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1)
म� , आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम
अनुसूची म� और आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम,
1968 क� अनुसूची म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं
ह� जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
�द्वतीय अनुसूची म� 3[तथा आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क�
धारा 3 म� ] �व�न�दर् � ह� ।]
2. असम वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले असम प्रांत, खासी
राज्य� और असम जनजा�त �ेत्र� म� समा�व� थे, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके
अंतगर्त नह�ं ह� जो असम (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1951 क�
अनुसच
ू ी म� �व�न�दर् � ह� [और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
4

नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म�


�व�न�दर् � ह� ] 4[और वे राज्य�ेत्र] भी इसके अंतगर्त नह�ं ह�
[जो पवू ��र
5

�ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5, धारा 6 और धारा 7 म�


�व�न�दर् � ह� । 6[और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह�], जो सं�वधान
(नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (क) म� अंत�वर्�
�कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 1 म� �न�दर् �
राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क�
दस
ू र� अनुसूची के भाग 1 म� �न�दर् � ह� ।]

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा पहल� अनुसूची के स्थान पर (1-11-1956 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
पूवव
र् त� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) जोड़ा गया ।
5. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) जोड़ा गया ।
6. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) अंतःस्था�पत ।

252
भारत का सं�वधान 253

नाम राज्य�ेत्र

3. �बहार 1
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो �बहार प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह�
और वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,
1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे
राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और पि�मी बंगाल (राज्य�ेत्र
अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�
और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो प्रथम व�णर्त अ�ध�नयम क�
धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् � ह� 2[और वे राज्य�ेत्र जो
�बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् � ह� ।]]
3
[4. गुजरात वे राज्य�ेत्र जो मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �न�दर् � ह� ।]

5. केरल वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 क�


उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� ।

6. मध्य प्रदे श वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 9 क�


उपधारा (1) म� 4
[तथा राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण)
अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची म� �व�न�दर् � ह� 5[�कन्तु इनके
अंतगर्त मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् �
राज्य�ेत्र नह�ं ह� ]।]

1. �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 24) क� धारा 4 द्वारा (10-6-1970 से)
पूवव
र् त� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) जोड़ा गया ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 4 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा
(1-10-1959 से) अंतःस्था�पत ।
5. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 254

नाम राज्य�ेत्र
1
[7. त�मलनाडु] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो मद्रास प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� और वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 म�
2
[तथा आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
�द्वतीय अनसु च
ू ी म� ] �व�न�दर् � ह�,] �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं
ह� जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा (1) और
धारा 4 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� और 3
[वे राज्य�ेत्र भी इसके
अंतगर्त नह�ं ह� जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 क�
उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 6 और धारा 7 क� उपधारा (1) के खंड
(घ) म� �व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र
प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची
म� �व�न�दर् � ह� ।]
4
[8. महारा� वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�, �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �न�दर् �
ह� ।]
5 6
[ [9.] कनार्टक] वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगठर् न अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�, 7[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 क� अनुसूची
म� �व�न�दर् � ह� ।]

1. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “7. मद्रास” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56 ) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से)
अंतःस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से)
क�तपय शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
5. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “9. मैसूर” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
7. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 255

नाम राज्य�ेत्र

1 2
[10.] [ओ�डशा] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारम्भ से ठ�क पहले या तो उड़ीसा प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� ।

1
[11.] पंजाब वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 म�
�व�न�दर् � ह� 3[और वे राज्य�ेत्र जो अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन)
अ�ध�नयम, 1960 क� प्रथम अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � ह�,] 4[�कं तु वे
राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1960 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � ह�] 5[और वे राज्य�ेत्र भी
इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3
क� उपधारा (1), धारा 4 और धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� ।]

3
[12.] राजस्थान वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 म�
�व�न�दर् � ह�, 6[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राजस्थान और
मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची म�
�व�न�दर् � ह� ।]

1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 6 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 64) क� धारा 4 द्वारा (17-1-1961 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 द्वारा (17-1-1961 से) जोड़ा गया ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
6. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1959
से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 256

नाम राज्य�ेत्र
1
[13.] उ�र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो संय�
ु प्रांत
नाम से �ात प्रांत म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस
प्रांत के भाग रहे ह�, वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-
प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म�
�व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-
प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म�
�व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और उ�र
प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के
खंड (क) 3[तथा उ�र प्रदे श पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3] म�
�व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो ह�रयाणा और
उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा
(1) के खंड (क) म� �व�न�दर् � ह� ।]
1
[14.] पि�मी वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो पि�मी
बंगाल बंगाल प्रांत म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत
के भाग रहे ह� और चंद्रनगर (�वलयन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 के
खंड (ग) म� यथा प�रभा�षत चंद्रनगर का राज्य�ेत्र और वे राज्य�ेत्र भी
जो �बहार और पि�मी बंगाल (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क�
धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� 4
[और वे राज्य�ेत्र भी, जो
पहल� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् � ह� �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त
नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के
खंड (ग) म� अंत�वर्� �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध
सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के
भाग 3 म� �न�दर् � राज्य�ेत्र� और दसू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् �
राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क�
दस
ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् � ह� ।]

1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“13. उ�र प्रदे श” के सामने क� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 257

नाम राज्य�ेत्र

1 2
[ [**.] * * *]

[ [15.] नागाल�ड
3 4
वे राज्य�ेत्र जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �व�न�दर् � ह� ।]

[ [16.] ह�रयाणा
5 4 6
[वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श
(सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड
(क) म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो उस
अ�ध�नयम क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् � ह� ।]]

7 4
[ [17.] �हमाचल वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत
प्रदे श थे मानो वे �हमाचल प्रदे श और �बलासपुर के नाम से �ात मुख्य आयु�
वाले प्रांत रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966
क� धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� ।]

1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से
संबं�धत प्र�व�� 15 को हटाया गया ।
2. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
4. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत और तत्प�ात ्
ह�रयाणा और उ�रप्रदे श (सीमा प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
प्र�व�� को संशो�धत �कया गया ।
6. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“17. ह�रयाणा” के सामने क� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 258

नाम राज्य�ेत्र
1 2
[ [18.] म�णपरु वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह म�णपुर के नाम से �ात मुख्य आयु� वाला प्रांत
रहा हो ।]

2
[19.] �त्रपुरा वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह �त्रपुरा के नाम से �ात मुख्य आयु� वाला प्रांत
रहा हो 3[और वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960
क� धारा 3 के खंड (घ) म� अंत�वर्� �कसी बात के होते हुए भी जहां तक
उनका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल�
अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् �
ह� ।]

2
[20.] मेघालय वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 म�
�व�न�दर् � ह� 1[और वे राज्य�ेत्र, जो पहल� अनुसच ू ी के भाग 1 म� �न�दर् �
ह� �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् �
ह� ।]

4 2
[ [21.] �सिक्कम वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ
से ठ�क पहले �सिक्कम म� समा�व� थे ।]

5 2
[ [22.] �मजोरम वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् � ह� ।]

1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत ।
2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 259

नाम राज्य�ेत्र

[ [23.] अरुणाचल
1 2
वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 7 म�
प्रदे श �व�न�दर् � ह� ।]

[ [24.] गोवा
3 2
वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क�
धारा 3 म� �व�न�दर् � ह� ।]

[ [25.] छ�ीसगढ़
4 2
मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् � राज्य�ेत्र
।]

[ [26.] 6[उ�राखंड]
5 2
वे राज्य�ेत्र जो उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]

[ [27.] झारखंड
7 2
वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]

[ [28.] तेलंगाना
8 2
वे राज्य�ेत्र जो आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]

1. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से)
अंतःस्था�पत ।
4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
5. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
6. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 4 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” शब्द के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
8. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 260

2. संघ राज्य�ेत्र

नाम �वस्तार

1. �दल्ल� वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �दल्ल� के मुख्य


आयु� वाले प्रांत म� समा�व� था ।
1
* * * * *
2
[2.] अंदमान और वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले अंदमान और
�नकोबार द्वीप �नकोबार द्वीप के मख्
ु य आयु� वाले प्रांत म� समा�व� था ।

3
[3.] 4
[ल�द्वीप] वह राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् � है ।
5 1
[ [4.] दादरा और नागर वह राज्य�ेत्र जो 11 अगस्त, 1961 से ठ�क पहले स्वतंत्र दादरा
हवेल� तथा दमण और और नागर हवेल� म� समा�व� था तथा वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण
द�व और द�व पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 4 म� �व�न�दर् � ह� ।]
6 1
[ [*] * * * *।]

1. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) “�हमाचल प्रदे श” से
संबं�धत प्र�व�� 2 का लोप �कया गया और पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9
द्वारा (21-1-1972 से) म�णपुर और �त्रपुरा से संबं�धत प्र�व��य� का लोप �कया गया ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) प्र�व�� 2 और 3 लोप
�कया गया और प्र�व�� 4 से 9 तक को प्र�व�� 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) क्रमशः प्र�व�� 4 से 9
तक को प्र�व�� 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 5 द्वारा
(1-11-1973 से) “लक्काद�व, �म�नकोय, अमीनद�वी द्वीप” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 5 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� 4 और प्र�व�� 5 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (11-08-1961 से) दादरा और नागर हवेल� से संब�ं धत प्र�व�� 4 अंतःस्था�पत
क� गई थी ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से) प्र�व�� 5 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत तथा तत्प�ात ् दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन)
अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क� धारा 5 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� 4 और प्र�व�� 5 के स्थान पर
प्र�व�� 4 के रूप म� प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 261

नाम �वस्तार
1 1
[ [6.] 2[पुडुचेर�] वे राज्य�ेत्र जो 16 अगस्त, 1962 से ठ�क पहले भारत म�
पां�डचेर�, का�रकल, माह� और यनम के नाम से �ात फ्रांसीसी
बिस्तय� म� समा�व� थे ।]
3 1
[ [7.] चंडीगढ़ वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 4 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
4 1
[ [* * * *]
5
[8. जम्मू-कश्मीर वे राज्य�ेत्र जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा
4 म� �व�न�दर् � ह� ।
9. लद्दाख वे राज्य�ेत्र जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा
3 म� �व�न�दर् � ह� ।]

1. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत ।
2. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 5 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” शब्द के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�व�� 8 का
लोप �कया गया और अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�व�� 9 को प्र�व�� 8 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया और
अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�व�� 8 का अरुणाचल प्रदे श अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 का (20-2-1987
से) लोप �कया गया ।
5. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) अंत:स्था�पत ।
दस
ू री अनुसूची
[अनच्
ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221]

भाग क

राष्ट्रपति और 1*** राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबंध

1. राष्ट्रपति और 1*** राज्यों के राज्यपालों को प्रति मास तनम्नललखिि


उपलब्धधयों का संदाय ककया जाएगा, अर्ााि ् :–

राष्ट्रपति 10,000 रुपए* ।

राज्य का राज्यपाल 5,500 रुपए **।

2. राष्ट्रपति और 2*** राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भत्तों का भी संदाय ककया


जाएगा जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले क्रमशः भारि डोलमतनयन के गिनार
जनरल को िर्ा ित्स्र्ानी प्रांिों के गिनारों को संदेय र्े ।

3. राष्ट्रपति और 3[राज्यों] के राज्यपाल अपनी-अपनी संपर् ू ा पदािधध में ऐसे


विशेषाधधकारों के हकदार होंगे ब्जनके इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले क्रमशः गिनार
जनरल और ित्स्र्ानी प्रांिों के गिनार हकदार र्े ।

4. जब उपराष्ट्रपति या कोई अन्य व्यक्ति राष्ट्रपति के कृत्सयों का तनिाहन कर रहा है


या उसके रूप में काया कर रहा है या कोई व्यक्ति राज्यपाल के कृत्सयों का तनिाहन कर
रहा है िब िह ऐसी उपलब्धधयों, भत्तों और विशेषाधधकारों का हकदार होगा ब्जनका,
यर्ाब््र्ति, िह राष्ट्रपति या राज्यपाल हकदार है ब्जसके कृत्सयों का िह तनिाहन करिा है
या, यर्ाब््र्ति, ब्जसके रूप में िह काया करिा है ।
4
* * * *

1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में वितनर्दा ष्ट” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
*
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “पांच लाि रुपए” है ।
**
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “िीन लाि पचास हजार
रुपए” है ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे वितनर्दा ष्ट” शधदों का लोप (1-
11-1956 से) ककया गया ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा “ऐसे राज्यों” के ्र्ान पर (1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
4. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा भाग ि का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
261
भारि का संविधान 262

भाग ग

लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के िर्ा राज्य सभा के सभापति और उपसभापति


के िर्ा 1*** 2[राज्य] की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के िर्ा विधान

पररषद् के सभापति और उपसभापति के बारे में उपबंध

7. लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति को ऐसे िेिन और भत्तों


का संदाय ककया जाएगा जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारि डोलमतनयन की
संविधान सभा के अध्यक्ष को संदेय र्े िर्ा लोक सभा के उपाध्यक्ष को और राज्य सभा
के उपसभापति को ऐसे िेिन और भत्तों का संदाय ककया जाएगा जो इस संविधान के
प्रारं भ से ठीक पहले भारि डोलमतनयन की संविधान सभा के उपाध्यक्ष को संदेय र्े ।

8. 3*** राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को िर्ा 4[राज्य] की


विधान पररषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे िेिन और भत्तों का संदाय ककया
जाएगा जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले क्रमशः ित्स्र्ानी प्रांि की विधान सभा
के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को िर्ा विधान पररषद् के सभापति और उपसभापति को संदेय
र्े और जहां ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले ित्स्र्ानी प्रांि की कोई विधान पररषद् नहीं र्ी
िहां उस राज्य की विधान पररषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे िेिन और भत्तों
का संदाय ककया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अिधाररि करे ।

1. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में के ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ककसी ऐसे राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में
वितनर्दा ष्ट ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
4. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “कोई ऐसा राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 263

भाग घ
उच्चिम न्यायालय और 1*** उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
9. 2[(1) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों को िा्िविक सेिा में बबिाए समय
के ललए प्रति मास तनम्नललखिि दर से िेिन का संदाय ककया जाएगा, अर्ााि ् : –
मुख्य न्यायमूतिा 3
[10,000 रुपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 4
[9,000 रुपए:]**
परं िु यर्द उच्चिम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय भारि
सरकार की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार की या
उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबधं में (तनःशििा या क्षति पें शन
से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्चिम न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से 5[तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले उसका संरालशि मूल्य प्राप्त ककया है िो पें शन
के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबधं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिुल्य पें शन ।
(2) उच्चिम न्यायालय का प्रत्सयेक न्यायाधीश, बबना ककराया र्दए, शासकीय
तनिास के उपयोग का हकदार होगा ।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) की कोई बाि उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान
के प्रारं भ से ठीक पहले–

1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में के
राज्यों में ” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उपपैरा (1)” के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।

उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,80,000 रुपए” है ।
4. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
** उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,50,000 रुपए” है ।
5. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उस पें शन की रालश घटा दी जाएगी” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 264

(क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद धारर् कर रहा


र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 374 के िंड (1) के अधीन उच्चिम
न्यायालय का मख् ु य न्यायमूतिा बन गया है, या
(ि) फेडरल न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारर्
कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि िंड के अधीन उच्चिम न्यायालय का
(मुख्य न्यायमूतिा से लभन्न) न्यायाधीश बन गया है,
उस अिधध में , ब्जसमें िह ऐसे मुख्य न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद
धारर् करिा है, लागू नहीं होगी और ऐसा प्रत्सयेक न्यायाधीश, जो इस प्रकार उच्चिम
न्यायालय का मुख्य न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश बन जािा है, यर्ाब््र्ति, ऐसे मुख्य
न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश के जो इस प्रकार उच्चिम न्यायालय का मुख्य
न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश बन जािा है, यर्ाब््र्ति, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा या अन्य
न्यायाधीश के रूप में िा्िविक सेिा में बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में
वितनर्दाष्ट िेिन के अतिररि विशेष िेिन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार
होगा जो इस प्रकार वितनर्दाष्ट िेिन और ऐसे िेिन के अंिर के बराबर है जो िह ऐसे
प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा र्ा ।
(4) उच्चिम न्यायालय का प्रत्सयेक न्यायाधीश भारि के राज्यक्षेत्र के भीिर अपने
किाव्य पालन में की गई यात्रा में उपगि व्यय की प्रतिपतू िा के ललए ऐसे यक्तु ियि ु भत्ते
प्राप्त करे गा और यात्रा संबध ं ी उसे ऐसी यक्तु ियि ु सुविधाएं दी जाएंगी जो राष्ट्रपति समय-
समय पर विर्हि करे ।
(5) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों की अनप ु ब््र्ति छुट्टी के (ब्जसके अंिगाि
छुट्टी भत्ते हैं) और पेंशन के संबध ं में अधधकार उन उपबंधों से शालसि होंगे जो इस
संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को लागू र्े ।
10. 1[(1) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को िा्िविक सेिा में बबिाए समय के
ललए प्रति मास तनम्नललखिि दर से िेिन का संदाय ककया जाएगा, अर्ााि ् : –
मुख्य न्यायमूतिा 2
[9,000 रुपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 3
[8,000 रुपए :]

1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (1) के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
2. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।

उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पचास हजार रुपए” है ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “3,500 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।

उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पच्चीस हजार रुपए” है ।
भारि का संविधान 265

परं िु यर्द ककसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय
भारि सरकार की या उसकी पि ू िा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार
की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबध
ं में (नःशििा या क्षति
पें शन से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्च न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि
ू ा सेिा के संबध ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले में उसका संरालशि मल् ू य प्राप्त ककया है िो
पें शन के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिल् ु य पें शन ।]
(2) ऐसा प्रत्सयेक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले–
(क) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद
धारर् कर रहा र्ा और ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 376 के िंड (1) के अधीन
ित्स्र्ानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूतिा बन गया है, या
(ि) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में
पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि िंड के अधीन ित्स्र्ानी
राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूतिा से लभन्न) न्यायाधीश बन गया है,
यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट दर से उच्चिर दर
पर िेिन प्राप्त कर रहा र्ा िो, यर्ाब््र्ति, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश के
रूप में िा्िविक सेिा में बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन
के अतिररि विशेष िेिन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार
वितनर्दाष्ट िेिन और ऐसे िेिन के अंिर के बराबर है जो िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त
कर रहा र्ा ।
1
[(3) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ
से ठीक पहले, पहली अनस ु ूची के भाग ि में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि अधधतनयम
द्वारा यर्ासंशोधधि उि अनस ु ूची में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य
न्यायमूतिा बन गया है , यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले अपने िेिन के अतिररि भत्ते के
रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा र्ा िो, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा के रूप में िा्िविक सेिा में
बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन के अतिररि भत्ते के रूप में
िही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।

1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (3) और उपपैरा (4) के ्र्ान पर (1-
11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 266

11. इस भाग में , जब िक कक संदभा से अन्यर्ा अपेक्षक्षि न हो,–


(क) “मुख्य न्यायमूतिा” पद के अंिगाि कायाकारी मुख्य न्यायमूतिा है और
“न्यायाधीश” पद के अंिगाि िद्ार् न्यायाधीश है ;
(ि) “िा्िविक सेिा” के अंिगाि–
(i) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप में किाव्य पालन में या ऐसे
अन्य कृत्सयों के पालन में , ब्जनका राष्ट्रपति के अनरु ोध पर उसने तनिाहन
करने का भार अपने ऊपर ललया है, बबिाया गया समय है ;
(ii) उस समय को छोड़कर ब्जसमें न्यायाधीश छुट्टी लेकर
अनप
ु ब््र्ि है, दीघाािकाश है ; और
(iii) उच्च न्यायालय से उच्चिम न्यायालय को या एक उच्च
न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंिरर् पर जाने पर पदग्रहर्-काल
है ।
भाग ङ
भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक के बारे में उपबंध
12. (1) भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक को चार हजार रुपए प्रतिमास की दर
से िेिन का संदाय ककया जाएगा ।
(2) ऐसा कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारि के
महालेिापरीक्षक के रूप में पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 377
के अधीन भारि का तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक बन गया है, इस पैरा के उपपैरा (1) में
वितनर्दाष्ट िेिन के अतिररि विशेष िेिन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार
होगा जो इस प्रकार वितनर्दाष्ट िेिन और ऐसे िेिन के अंिर के बराबर है जो िह ऐसे
प्रारं भ से ठीक पहले भारि के महालेिापरीक्षक के रूप में प्राप्त कर रहा र्ा ।
(3) भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक की अनप ु ब््र्ति छुट्टी और पें शन िर्ा
अन्य सेिा-शिों के संबध ं में अधधकार उन उपबंधों से, यर्ाब््र्ति, शालसि होंगे या
शालसि होिे रहें गे जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारि के महालेिापरीक्षक को
लागू र्े और उन उपबंधों में गिनार जनरल के प्रति सभी तनदे शों का यह अर्ा लगाया
जाएगा कक िे राष्ट्रपति के प्रति तनदे श हैं ।


तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक (किाव्य, शक्तियां िर्ा सेिा की शिें) अधधतनयम, 1971 (1971 का 56) की धारा 3 द्वारा
भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक को उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर िेिन का संदाय ककया जाएगा
। उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018
का 10) की धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों का िे िन “दो लाि पचास हजार
रुपए” प्रति मास िक बढा र्दया गया है ।
तीसर� अनस
ु ूची
[अनच्
ु छे द 75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188 और 219]
*

शपथ या प्र�त�ान के प्ररूप


1
संघ के मंत्री के �लए पद क� शपथ का प्ररूप :–
ई�र क� शपथ लेता हूं
“म�, अमक
ु , �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं

के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखग


ूं ा,
1
[म� भारत क� प्रभुता और अखंडता
अ�ुण्ण रखग
ूं ा,] म� संघ के मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र् और शुद्ध
अंतःकरण से �नवर्हन करूंगा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या द्वे ष के �बना, सभी
प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस
ु ार न्याय करूंगा ।”
2
संघ के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :–
ई�र क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक, �क जो �वषय संघ के मंत्री के रूप
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे �कसी व्य�� या व्य��य�
को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� के सम्यक् �नवर्हन के �लए
ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा
।”
2
[3

संसद् के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने
वाले प्र�त�ान का प्ररूप : –

*
अनुच्छे द 84(क) और अनुच्छे द 173(क) भी दे �खए ।
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।

267
भारत का सं�वधान 268

“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) म� स्थान भरने के �लए अभ्यथ� के रूप म�
ई�र क� शपथ लेता हूं
नाम�नद� �शत हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखंग
ू ा, और म� भारत क� प्रभत
ु ा और
अखंडता अ�ुण्ण रखग
ूं ा ।”

संसद् के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–

“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत)
हुआ हूं ई�र क� शपथ लेता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखग
ूं ा, म� भारत क� प्रभुता और अखंडता
अ�ुण्ण रखूंगा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र्
�नवर्हन करूंगा ।”]
4

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� और भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क द्वारा


ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–

“म�, अमुक, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश) (या भारत का

ई�र क� शपथ लेता हूं


�नयंत्रक-महालेखापर��क) �नयु� हुआ हूं, �क म� �व�ध द्वारा
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं

स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, 1[म� भारत क� प्रभत
ु ा
और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव
ू क
र् तथा अपनी परू �
योग्यता, �ान और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय या प�पात, अनरु ाग या द्वे ष
के �बना पालन करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क� मयार्दा बनाए रखग
ूं ा ।”

1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 269

�कसी राज्य के मंत्री के �लए पद क� शपथ का प्ररूप :–


ई�र क� शपथ लेता हूं
“म�, अमक
ु , �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखग
ूं ा, [म� भारत क� प्रभुता और अखंडता अ�ुण्ण
1

रखूंगा,] म� ----------------------राज्य के मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� का श्रद्धापव


ू क
र् और
शुद्ध अंतःकरण से �नवर्हन करूंगा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या द्वे ष के �बना,
सभी प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस ु ार न्याय करूंगा ।”
6
�कसी राज्य के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :–
ई�र क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक, �क जो �वषय ------------------------------------
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं

राज्य के मंत्री के रूप म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे
�कसी व्य�� या व्य��य� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य�
के सम्यक् �नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से
संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा ।”
2
[7

�कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने
वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, ------------------- जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) म� स्थान भरने
ई�र क� शपथ लेता हूं
के �लए अभ्यथ� के रूप म� नाम�नद� �शत हुआ हूं, �क म� �व�ध
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं

द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, और म� भारत क�
प्रभुता और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा ।”

�कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने

1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा प्ररूप 7 के स्थान पर (5-10-1963 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 270

वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–


“म�, अमुक, जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत)

ई�र क� शपथ लेता हूं


हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, म� भारत क� प्रभत
ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा
तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र् �नवर्हन करूंगा
।”]

8
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का
प्ररूप :–
“म�, अमुक, जो ------------ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश)
ई�र क� शपथ लेता हूं
�नयु� हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं

के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, 1


[म� भारत क� प्रभुता और अखंडता
अ�ुण्ण रखग
ूं ा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव
ू क
र् तथा अपनी परू � योग्यता, �ान
और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय या प�पात, अनरु ाग या द्वे ष के �बना पालन
करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क� मयार्दा बनाए रखूंगा ।”

1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
[चौथी अनुसूची
1

[अनच्
ु छे द 4(1) और अनच्
ु छे द 80(2)]
राज्य सभा म� स्थान� का आबंटन
�नम्न�ल�खत सारणी के पहले स्तंभ म� �व�न�दर्� प्रत्येक राज्य या संघ राज्य�ेत्र
को उतने स्थान आबं�टत �कए जाएंगे िजतने उसके दस ू रे स्तंभ म� , यथािस्थ�त, उस
राज्य या उस संघ राज्य�ेत्र के सामने �व�न�दर्� ह� :

सारणी

1. आंध्र प्रदे श ...................................................................................... 2


[11]
3
[2. तेलंगाना........................................................................................ 7]
4
[3.] असम ......................................................................................... 7
4
[4.] �बहार ......................................................................................... 5
[16]
6 4
[ [5.] झारखंड .................................................................................... 6]
[ [ [6.]] गोवा ....................................................................................
7 8 4
1]
[ [ [7.]] गज
9 6 8
ु रात ................................................................................. 11]
[ [ [8.] ह�रयाणा ...............................................................................
10 8 4
5]

1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1965 से) चौथी अनुसच
ू ी के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) “18” के स्थान पर प्र�तस्था�पत।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) अन्तःस्था�पत ।
4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः
3 से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) “22” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
7. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से ) अंतःस्था�पत ।
8. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�व�� 4 से 29 को क्रमशः
प्र�व�� 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
9. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 4 (प्र�व�� 6 के रूप म�
पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
271
भारत का सं�वधान 272

[ [9.] केरल .......................................................................................


1 2 9]
3
[ [10.] मध्य प्रदे श ............................................................................
1 2
[11]
4 1 2
[ [ [11.]] छ�ीसगढ़ .................................................................................. 5]
5 1 2 6
[ [ [12.] त�मलनाड़ु ................................................................................... [18]]
7 1 2
[ [ [13.] महारा� ..................................................................................... 19]
8 1 2
[ [ [14.] कनार्टक] .................................................................................... 12
1 2
[ [15.] 9[ओ�डशा] ..................................................................................... 10
1 2 10
[ [16.] पंजाब ........................................................................................... [7]
1 2
[ [17.]] राजस्थान ..................................................................................... 10
1 2 11
[ [18.]] उ�र प्रदे श .................................................................................. [31]
12[1[2[19.]] 13[उ�राखंड ............................................................................... 3]
1[2[20.]] पि�मी बंगाल ............................................................................. 16
[ [ [**.]] *
14 1 2
* *................................................... *]

1. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�व�� 4 से 29 को क्रमशः
प्र�व�� 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः
3 से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) “16” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
5. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “8. मद्रास” (“11”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 8 द्वारा (1-4-1960 से) “17” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
8. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “10. मैसूर” (“13”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
9. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 7 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) “11” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
11. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
12. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर
अंतःस्था�पत ।
13. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 41 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
14. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से
संबं�धत प्र�व�� 21** को हटाया गया ।
भारत का सं�वधान 273

1 1 2 3
[ [ [ [21.]]] नागाल�ड ................................................................................. 1]
[ [ [ [22.]]] �हमाचल प्रदे श..... ..................................................
4 5 6 3 3]
3 2 3
[ [ [23.]]] म�णपुर .................................................................. 1
3 2 3
[ [ [24.]]] �त्रपरु ा ............................................................... 1
3 2 3
[ [ [25.]]] मेघालय .............................................................. 1
7 3 2 3
[ [ [ [26.]]] �सिक्कम ............................................................ 1]
8 3 2 3
[ [ [ [27.]]] �मजोरम ............................................................. 1]
9 1 3 3
[ [ [ [28.]]] अरुणाचल प्रदे श ................................................. 1]
3 2 3
[ [ [29.]]] �दल्ल� ............................................................ 3
3 2 3
[ [ [30.]] 10[पडचेर� ु ु .......................................................... 1
34
11
[31. जम्मू-कश्मीर .......................................................... 4]
12
योग :– [233]]

1. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 6 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः 3
से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 22 से 31

तक को क्रमश: प्र�व�� 21 से 30 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।


4. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 5 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत ।
5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�व�� 4 से 29 को क्रमशः
प्र�व�� 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
6. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 16) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क�
प्र�व��य� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
7. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
8. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
9. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
10. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
11. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) अंतःस्था�पत ।
12. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) “232” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
पांचवीं अनुसच
ू ी
[अनु छे द 244 (1)]
अनुसूिचत क्षेत्र और अनुसूिचत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण के बारे म उपबंध
भाग क
साधारण
1. िनवर्चन – इस अनुसूची म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद के अंतगर्त 1*** 2[असम, 3[4[मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम]] रा य] नहीं
ह ।
2. अनुसूिचत क्षेत्र म िकसी रा य की कायर्पािलका शिक्त – इस अनुसूची के
उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार उसके
अनुसूिचत क्षेत्र पर है ।
3. अनुसिू चत क्षेत्र के प्रशासन के संबंध म रा पित को रा यपाल 5*** द्वारा
प्रितवेदन – ऐसे प्र येक रा य का रा यपाल 5***, िजसम अनुसूिचत क्षेत्र ह, प्रितवषर् या
जब भी रा पित इस प्रकार अपेक्षा करे , उस रा य के अनुसूिचत क्षेत्र के प्रशासन के
संबंध म रा पित को प्रितवेदन दे गा और संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार रा य
को उक्त क्षेत्र के प्रशासन के बारे म िनदे श दे ने तक होगा ।
भाग ख
अनुसूिचत क्षेत्र और अनुसूिचत जनजाितय का प्रशासन और िनयंत्रण
4. जनजाित सलाहकार पिरष – (1) ऐसे प्र येक रा य म, िजसम अनुसूिचत
क्षेत्र ह और यिद रा पित ऐसा िनदे श दे तो, िकसी ऐसे रा य म भी, िजसम अनुसूिचत
जनजाितयां ह िकं तु अनुसूिचत क्षेत्र नहीं है , एक जनजाित सलाहकार पिरष थािपत की
जाएगी जो बीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी िजनम से यथाशक्य िनकटतम
तीन-चौथाई उस रा य की िवधान सभा म अनुसूिचत जनजाितय के प्रितिनिध ह गे :

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख म िविनिदर् रा य अिभप्रेत है परं तु” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” के थान पर
प्रित थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।

274
भारत का संिवधान 275

परं तु यिद उस रा य की िवधान सभा म अनुसूिचत जनजाितय के प्रितिनिधय


की संख्या जनजाित सलाहकार पिरष म ऐसे प्रितिनिधय से भरे जाने वाले थान की
संख्या से कम है तो शेष थान उन जनजाितय के अ य सद य से भरे जाएंगे ।
(2) जनजाित सलाहकार पिरष का यह कतर् य होगा िक वह उस रा य की
अनस
ु ूिचत जनजाितय के क याण और उ नित से संबंिधत ऐसे िवषय पर सलाह दे जो
उसको रा यपाल 1*** द्वारा िनिदर् िकए जाएं ।
(3) रा यपाल 2***–
(क) पिरष के सद य की संख्या को, उनकी िनयिु क्त की और पिरष के
अ यक्ष तथा उसके अिधकािरय और सेवक की िनयुिक्त की रीित को ;
(ख) उसके अिधवेशन के संचालन तथा साधारणतया उसकी प्रिक्रया को,
और
ु ंिगक िवषय को,
(ग) अ य सभी आनष
यथाि थित, िविहत या िविनयिमत करने के िलए िनयम बना सकेगा ।
5. अनुसूिचत क्षेत्र को लागू िविध – (1) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए
भी, रा यपाल 1*** लोक अिधसूचना द्वारा िनदे श दे सकेगा िक संस का या उस रा य
के िवधान-मंडल का कोई िविश अिधिनयम उस रा य के अनस ु िू चत क्षेत्र या उसके
िकसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस रा य के अनुसूिचत क्षेत्र या उसके िकसी भाग
को ऐसे अपवाद और उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अिधसूचना म
िविनिदर् करे और इस उपपैरा के अधीन िदया गया कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा
सकेगा िक उसका भत ू लक्षी प्रभाव हो ।
(2) रा यपाल 1*** िकसी रा य म िकसी ऐसे क्षेत्र की शांित और सुशासन के
िलए िविनयम बना सकेगा जो त समय अनस ु िू चत क्षेत्र है ।
िविश तया और पूवग
र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, ऐसे
िविनयम–
(क) ऐसे क्षेत्र की अनुसूिचत जनजाितय के सद य द्वारा या उनम भूिम
के अंतरण का प्रितषेध या िनबर्ंधन कर सकगे ;
(ख) ऐसे क्षेत्र की जनजाितय के सद य को भूिम के आबंटन का
िविनयमन कर सकगे ;

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथाि थित,
रा यपाल या राजप्रमुख” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का (1-
11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 276

(ग) ऐसे यिक्तय द्वारा जो ऐसे क्षेत्र की अनुसूिचत जनजाितय के सद य


को धन उधार दे ते ह, साहूकार के प म कारबार करने का िविनयमन कर सकगे

(3) ऐसे िकसी िविनयम को बनाने म जो इस पैरा के उपपैरा (2) म िनिदर् है ,
रा यपाल 1*** संस के या उस रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का या िकसी
िवद्यमान िविध का, जो प्र गत क्षेत्र म त समय लागू है , िनरसन या संशोधन कर सकेगा

(4) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी िविनयम रा पित के समक्ष तरु त प्र तुत
िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक उनका कोई
प्रभाव नहीं होगा ।
(5) इस पैरा के अधीन कोई िविनयम तब तक नहीं बनाया जाएगा जब तक
िविनयम बनाने वाले रा यपाल 1*** ने जनजाित सलाहकार पिरष वाले रा य की दशा
म ऐसी पिरष से परामशर् नहीं कर िलया है ।
भाग ग
अनुसूिचत क्षेत्र
6. अनुसूिचत क्षेत्र – (1) इस संिवधान म, “अनुसूिचत क्षेत्र” पद से ऐसे क्षेत्र
अिभप्रेत ह िज ह रा पित आदे श2 द्वारा अनसु ूिचत क्षेत्र घोिषत करे ।
(2) रा पित, िकसी भी समय आदे श3 द्वारा –
(क) िनदे श दे सकेगा िक कोई संपूणर् अनुसूिचत क्षेत्र या उसका कोई
िविनिदर् भाग अनुसूिचत क्षेत्र या ऐसे क्षेत्र का भाग नहीं रहे गा,
[(कक) िकसी रा य के िकसी अनुसूिचत क्षेत्र के क्षेत्र को उस रा य के
4

रा यपाल से परामशर् करने के प ात ् बढ़ा सकेगा,]


(ख) िकसी अनुसूिचत क्षेत्र म, केवल सीमाओं का पिरशोधन करके ही,
पिरवतर्न कर सकेगा,

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का लोप (1-
11-1956 से) िकया गया ।
2. अनुसूिचत क्षेत्र (भाग क रा य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसूिचत क्षेत्र (भाग ख रा य) आदे श, 1950 (सं.आ.
26), अनुसूिचत क्षेत्र (िहमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसूिचत क्षेत्र (िबहार, गुजरात, म य
प्रदे श और उड़ीसा रा य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे िखए ।
3. मद्रास अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1955
(सं.आ. 50) दे िखए ।
4. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 277

(ग) िकसी रा य की सीमाओं के िकसी पिरवतर्न पर या संघ म िकसी नए


रा य के प्रवेश पर या नए रा य की थापना पर ऐसे िकसी क्षेत्र को, जो पहले
से िकसी रा य म सि मिलत नहीं है , अनुसूिचत क्षेत्र या उसका भाग घोिषत कर
सकेगा,

[(घ) िकसी रा य या रा य के संबंध म इस पैरा के अधीन िकए गए


1

आदे श या आदे श को िवखंिडत कर सकेगा और संबंिधत रा य के रा यपाल से


परामशर् करके उन क्षेत्र को, जो अनुसूिचत क्षेत्र ह गे, पुनः पिरिनि त करने के
िलए नए आदे श कर सकेगा,]

और ऐसे िकसी आदे श म ऐसे आनुषांिगक और पािरणािमक उपबंध हो सकगे जो रा पित


को आव यक और उिचत प्रतीत ह , िकं तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके िसवाय इस पैरा
के उपपैरा (1) के अधीन िकए गए आदे श म िकसी प ातवतीर् आदे श द्वारा पिरवतर्न नहीं
िकया जाएगा ।

भाग घ

अनस
ु च
ू ी का संशोधन

7. अनुसूची का संशोधन – (1) संस , समय-समय पर िविध द्वारा, इस अनुसूची


के उपबंध म से िकसी का, पिरवधर्न, पिरवतर्न या िनरसन के प म, संशोधन कर
सकेगी और जब अनुसूची का इस प्रकार संशोधन िकया जाता है तब इस संिवधान म इस
अनुसूची के प्रित िकसी िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह इस प्रकार संशोिधत
ऐसी अनुसूची के प्रित िनदश है ।

(2) ऐसी कोई िविध, जो इस पैरा के उपपैरा (1) म उि लिखत है , इस संिवधान


के अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।

1. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
छठी अनुसूची
[अनु छे द 244(2) और अनु छे द 275(1)]
1
[असम, मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम रा य ] के जनजाित क्षेत्र के प्रशासन
के बारे म उपबंध
1. वशासी िजले और वशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंध के अधीन रहते
2

हुए, इस अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 3[4[भाग 1, भाग 2 और भाग 2क]


की प्र येक मद के और भाग 3] के जनजाित क्षेत्र का एक वशासी िजला होगा ।
(2) यिद िकसी वशासी िजले म िभ न-िभ न अनुसूिचत जनजाितयां ह तो
रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, ऐसे क्षेत्र या क्षेत्र को, िजनम वे बसे हुए ह, वशासी
प्रदे श म िवभािजत कर सकेगा ।
(3) रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, –
(क) उक्त सारणी के 3
[िकसी भाग] म िकसी क्षेत्र को सि मिलत कर
सकेगा;
(ख) उक्त सारणी के 3
[िकसी भाग] म िकसी क्षेत्र को अपविजर्त कर
सकेगा ;
(ग) नया वशासी िजला बना सकेगा ;
(घ) िकसी वशासी िजले का क्षेत्र बढ़ा सकेगा ;
(ङ) िकसी वशासी िजले का क्षेत्र घटा सकेगा ;
(च) दो या अिधक वशासी िजल या उनके भाग को िमला सकेगा
िजससे एक वशासी िजला बन सके ;
5
[(चच) िकसी वशासी िजले के नाम म पिरवतर्न कर सकेगा ;]
(छ) िकसी वशासी िजले की सीमाएं पिरिनि त कर सकेगा :

1. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 1 म उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत कर संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस उप-पैरा की कोई बात, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले को (7-9-2003 से) लागू नहीं होगी ।”।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "भाग क" के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) "भाग 1 और भाग 2" के थान
पर प्रित थािपत ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।

278
भारत का संिवधान 279

परं तु रा यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के
अधीन कोई आदे श इस अनुसच
ू ी के पैरा 14 के उप-पैरा (1) के अधीन िनयक्त
ु आयोग के
प्रितवेदन पर िवचार करने के प ात ् ही करे गा, अ यथा नहीं :

1
परं तु यह और िक रा यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िकए गए आदे श म ऐसे
आनष
ु ंिगक और पािरणािमक उपबंध (िजनके अंतगर्त पैरा 20 का और उक्त सारणी के
िकसी भाग की िकसी मद का कोई संशोधन है ) अंतिवर् हो सकगे जो रा यपाल को उस
आदे श के उपबंध को प्रभावी करने के िलए आव यक प्रतीत ह ।

2-3-4
2. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद का गठन –5[(1) प्र येक वशासी
िजले के िलए एक िजला पिरष होगी जो तीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी
िजनम से चार से अनिधक यिक्त रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे और शेष
वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकए जाएंगे ।

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के िलए
पैरा 2 म उप-पैरा (1) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह िक बोडोलड प्रादे िशक पिरष िछयालीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी िजनम से
चालीस सद य को वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकया जाएगा, िजनम से तीस अनुसूिचत
जनजाितय के िलए, पांच गैर जनजातीय समुदाय के िलए, पांच सभी समुदाय के िलए आरिक्षत ह गे तथा शेष
छह रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे िजनके अिधकार और िवशेषािधकार, िजनके अंतगर्त मत दे ने के
अिधकार भी ह, वही ह गे जो अ य सद य के ह, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के उन समुदाय म से, िजनका
प्रितिनिध व नहीं है , कम से कम दो मिहलाएं ह गी :” ।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 म उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत परं तक
ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु उ री कछार पहाड़ी िजले के िलए गिठत िजला पिरष , उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष कहलाएगी
और काबीर् आंगलांग िजले के िलए गिठत िजला पिरष , काबीर् आंगलांग वशासी पिरष कहलाएगी ।”;
.
4 संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 के उप-पैरा (3) म पर तक
ु के प ात ् िन निलिखत परं तक ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह और िक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए गिठत िजला पिरष बोडोलड प्रादे िशक पिरष
कहलाएगी ।” ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) उप-पैरा (1) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 280

(2) इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) के अधीन वशासी प्रदे श के प म


गिठत प्र येक क्षेत्र के िलए पथ ृ क् प्रादे िशक पिरष होगी ।
(3) प्र येक िजला पिरष और प्र येक प्रादे िशक पिरष क्रमशः “(िजले का नाम)
की िजला पिरष ” और “(प्रदे श का नाम) की प्रादे िशक पिरष ” नामक िनगिमत िनकाय
होगी, उसका शा त उ रािधकार होगा और उसकी सामा य मुद्रा होगी और उक्त नाम से
वह वाद लाएगी और उस पर वाद लाया जाएगा ।
(4) इस अनस ू ी के उपबंध के अधीन रहते हुए, वशासी िजले का प्रशासन ऐसे
ु च
िजले की िजला पिरष म वहां तक िनिहत होगा जहां तक वह इस अनस ू च
ू ी के अधीन
ऐसे िजले के भीतर िकसी प्रादे िशक पिरष म िनिहत नहीं ह और वशासी प्रदे श का
प्रशासन ऐसे प्रदे श की प्रादे िशक पिरष म िनिहत होगा ।
(5) प्रादे िशक पिरष वाले वशासी िजले म प्रादे िशक पिरष के प्रािधकारी के
अधीन क्षेत्र के संबंध म िजला पिरष को, इस अनुसूची द्वारा ऐसे क्षेत्र के संबंध म प्रद
शिक्तय के अितिरक्त केवल ऐसी शिक्तयां ह गी जो उसे प्रादे िशक पिरष द्वारा प्र यायोिजत
की जाएं ।
(6) रा यपाल, संबंिधत वशासी िजल या प्रदे श के भीतर िवद्यमान जनजाित
पिरषद या अ य प्रितिनिध जनजाित संगठन से परामशर् करके, िजला पिरषद और
प्रादे िशक पिरषद के प्रथम गठन के िलए िनयम बनाएगा और ऐसे िनयम म
िन निलिखत के िलए उपबंध िकए जाएंगे, अथार्त ् : –
(क) िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद की संरचना तथा उनम थान
का आबंटन ;
(ख) उन पिरषद के िलए िनवार्चन के प्रयोजन के िलए प्रादे िशक
िनवार्चन-क्षेत्र का पिरसीमन ;
(ग) ऐसे िनवार्चन म मतदान के िलए अहर्ताएं और उनके िलए िनवार्चक
नामाविलय की तैयारी ;
(घ) ऐसे िनवार्चन म ऐसी पिरषद के सद य िनवार्िचत होने के िलए
अहर्ताएं ;
(ङ) 1[प्रादे िशक पिरषद ] के सद य की पदाविध ;

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "ऐसी पिरषद " के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 281

(च) ऐसी पिरषद के िलए िनवार्चन या नामिनदशन से संबंिधत या संसक्त


कोई अ य िवषय ;
(छ) िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद की प्रिक्रया और उनका कायर्
संचालन 1[(िजसके अंतगर्त िकसी िरिक्त के होते हुए भी कायर् करने की शिक्त है )]
;
(ज) िजला और प्रादे िशक पिरषद के अिधकािरय और कमर्चािरवंद
ृ की
िनयुिक्त ।
[(6क) िजला पिरष के िनवार्िचत सद य, यिद िजला पिरष पैरा 16 के अधीन
1

पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, पिरष के िलए साधारण िनवार्चन के प ात ्


पिरष के प्रथम अिधवेशन के िलए िनयत तारीख से पांच वषर् की अविध तक पद धारण
करगे और नामिनदिशत सद य रा यपाल के प्रसादपयर्ंत पद धारण करे गा :
परं तु पांच वषर् की उक्त अविध को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म है तब या
यिद ऐसी पिरि थितयां िवद्यमान ह िजनके कारण िनवार्चन कराना रा यपाल की राय म
असा य है तो, रा यपाल ऐसी अविध के िलए बढ़ा सकेगा जो एक बार म एक वषर् से
अिधक नहीं होगी और जब आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म है तब उद्घोषणा के प्रव ृ न
रह जाने के प ात ् िकसी भी दशा म उसका िव तार छह मास की अविध से अिधक नहीं
होगा :
परं तु यह और िक आकि मक िरिक्त को भरने के िलए िनवार्िचत सद य उस
सद य की, िजसका थान वह लेता है , शेष पदाविध के िलए पद धारण करे गा ।]
(7) िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष अपने प्रथम गठन के प ात ् 2[रा यपाल के
अनुमोदन से] इस पैरा के उप-पैरा (6) म िविनिदर् िवषय के िलए िनयम बना सकेगी
और 2[वैसे ही अनुमोदन से] –
(क) अधीन थ थानीय पिरषद या बोड के बनाए जाने तथा उनकी
प्रिक्रया और उनके कायर् संचालन का, और
(ख) यथाि थित, िजले या प्रदे श के प्रशासन िवषयक कायर् करने से
संबंिधत साधारणतया सभी िवषय का,
िविनयमन करने वाले िनयम भी, बना सकेगी :

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 282

परं तु जब तक िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िनयम
नहीं बनाए जाते ह तब तक रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (6) के अधीन बनाए गए
िनयम, प्र येक ऐसी पिरष के िलए िनवार्चन , उसके अिधकािरय और कमर्चािरय तथा उसकी
प्रिक्रया और उसके कायर् संचालन के संबंध म प्रभावी ह गे ।
1
* * * *
2-3-4
3. िविध बनाने की िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद की शिक्त – (1) वशासी प्रदे श की

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) िद्वतीय पर तुक का लोप िकया गया ।

2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 3
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) िन निलिखत प से
प्रित थािपत हो सके, अथार्त ् :--

“(3) पैरा 3क के उप-पैरा (2) या पैरा 3ख के उप-पैरा (2) म जैसा अ यथा उपबंिधत है , उसके िसवाय
इस पैरा या पैरा 3क के उप-पैरा (1) या पैरा 3ख के उप-पैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के
समक्ष तुर त प्र तत
ु की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक प्रभावी नहीं ह गी ।”।

3. संिवधान छठी अनस


ु ूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा आसाम रा य को लागू होने
के िलए पैरा 3 के प ात ् अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--

“3क. उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और काबीर् आंगलांग वशासी पिरष की िविध बनाने की
अितिरक्त शिक्तयां--(1) पैरा 3 के उपबंध पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और
काबीर् आंगलांग वशासी पिरष को, संबंिधत िजल के भीतर िन निलिखत की बाबत िविधयां बनाने की शिक्त
होगी, अथार्त ् :--

(क) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, उद्योग ;

(ख) संचार, अथार्त ्, सड़क, पल


ु , फेरी और अ य संचार साधन, जो सातवीं अनस
ु च
ू ी की सच
ू ी 1 म
िविनिदर् नहीं ह, नगरपािलक ट्राम, र जुमागर्, अंतदशीय जलमाग के संबंध म सातवीं अनुसूची की सूची 1 और
सच
ू ी 3 के उपबंध के अधीन रहते हुए, अंतदशीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नोिदत यान से िभ न
यान ;

(ग) पशुधन का पिररक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग का िनवारण, पशु िचिक सा
प्रिशक्षण और यवसाय ; कांजी हाउस ;

(घ) प्राथिमक और मा यिमक िशक्षा ;

(ङ) कृिष िजसके अंतगर्त कृिष िशक्षा और अनुसंधान, नाशक जीव से संरक्षण और पादप रोग का
िनवारण है ;

(च) म य उद्योग ;

(छ) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 56 के उपबंध के अधीन रहते हुए, जल, अथार्त ्, जल प्रदाय,
भारत का संिवधान 283

िसंचाई और नहर, जल िनकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शिक्त ;


(ज) सामािजक सुरक्षा और सामािजक बीमा ; िनयोजन और बेकारी ;
(झ) ग्राम , धान के खेत , बाजार , शहर आिद के संरक्षण के िलए बाढ़ िनयंत्रण कीम (जो तकनीकी
प्रकृित की न ह ) ;
(ञ) ना यशाला औंर ना य प्रदशर्न ; सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 60 के उपबंध के अधीन
रहते हुए, िसनेमा, खेल-कूद, मनोरं जन और आमोद ;
(ट) लोक वा य और व छता, अ पताल और औषधालय ;
(ठ) लघु िसंचाईं ;
(ड) खाद्य पदाथर्, पशुओं के चारे , क ची कपास और क चे जूट का यापार और वािण य तथा उनका
उ पादन, प्रदाय और िवतरण ;
(ढ) रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत पु तकालय, संग्रहालय और वैसी ही अ य सं थाएं संस द्वारा
बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन रा ीय मह व के घोिषत िकए गए प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और
अिभलेख से िभ न प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ; और
(ण) भूिम का अ य संक्रामण ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और काबीर् आगंलांग
वशासी पिरष द्वारा बनाई गई सभी िविधयां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसूची की सूची 3 म िविनिदर्
िवषय से है , रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत की जाएंगी, जो उ ह रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखेगा ।
(3) जब कोई िविध रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रख ली जाती है तब रा पित घोिषत करे गा िक
वह उक्त िविध पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक लेता है :
परं तु रा पित रा यपाल को यह िनदे श दे सकेगा िक वह िविध को, यथाि थित, उ री कछार पहाड़ी
वशासी पिरष या काबीर् आगंलांग वशासी पिरष को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे िक उक्त
पिरष िविध या उसके िक हीं िविनिदर् उपबंध पर पुनिवर्चार करे और िविश तया, िक हीं ऐसे संशोधन पर
पुरः थापन की वांछनीयता पर िवचार करे िजनकी उसने अपने संदेश म िसफािरश की है और जब िविध इस प्रकार
लौटा दी जाती है तब ऐसा संदेश िमलने की तारीख से छह मास की अविध के भीतर पिरष ऐसी िविध पर
तदनुसार िवचार करे गी और यिद िविध उक्त पिरष द्वारा संशोधन सिहत या उसके िबना िफर से पािरत कर दी
जाती है तो उसे रा पित के समक्ष उसके िवचार के िलए िफर से प्र तुत िकया जाएगा ।
4. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा पैरा 3क के प ात ् क्रमशः िन निलिखत
अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
3ख. बोडोलड प्रादे िशक पिरष की िविधयां बनाने की अितिरक्त शिक्तयां -- (1) पैरा 3 के उपबंध पर
प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, बोडोलड प्रादे िशक पिरष को, अपने क्षेत्र म, िन निलिखत के संबंध म िविधयां बनाने
की शिक्त होगी, अथार्त ् :--
(i) कृिष, िजसके अंतगर्त कृिष िशक्षा और अनुसंधान, नाशक जीव से संरक्षण और पादप रोग का
िनवारण है ; (ii) पशुपालन और पशु िचिक सा अथार्त ् पशुधन का पिररक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीव जंतुओं
के रोग का िनवारण, पशु िचिक सा प्रिशक्षण और यवसाय, कांजी हाऊस ; (iii) सहकािरता ; (iv) सां कृितक
कायर्; (v) िशक्षा अथार्त ् प्राइमरी िशक्षा, उ चतर मा यिमक िशक्षा िजसम विृ क प्रिशक्षण, प्रौढ़ िशक्षा, महािवद्यालय
िशक्षा (साधारण) भी है ; (vi) म य उद्योग ; (vii) ग्राम, धान के खेत , बाजार और शहर के संरक्षण के िलए बाढ़
िनयंत्रण (जो तकनीकी प्रकृित का न हो) ; (viii) खाद्य और िसिवल आपूितर् ; (ix) वन (आरिक्षत वन को छोड़कर) ;
(x) हथकरघा और व ; (xi) वा य और पिरवार क याण ; (xii) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 84 के
भारत का संिवधान 284

प्रादे िशक पिरष को ऐसे प्रदे श के भीतर के सभी क्षेत्र के संबंध म और वशासी िजले

उपबंध के अधीन रहते हुए मादक िलकर, अफीम और यु प न ; (xiii) िसंचाई ; (xiv) म और रोजगार ; (xv)
भूिम और राज व ; (xvi) पु तकालय सेवाएं (रा य सरकार द्वारा िव पोिषत और िनयंित्रत) ; (xvii) लाटरी (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 40 के उपबंध के अधीन रहते हुए), ना यशाला, ना य प्रदशर्न और िसनेमा (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 60 के उपबंध के अधीन रहते हुए) ; (xviii) बाजार और मेले; (xix) नगर िनगम,
सुधार यास, िजला बोडर् और अ य थानीय प्रािधकारी ; (xx) रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत संग्रहालय और
पुरात व िवज्ञान सं थान, संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके रा ीय मह व के घोिषत िकए गए
प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न, प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ;
(xxi) पंचायत और ग्रामीण िवकास ; (xxii) योजना और िवकास ; (xxiii) मुद्रण और लेखन सामग्री ; (xxiv) लोक
वा य इंजीिनयरी ; (xxv) लोक िनमार्ण िवभाग; (xxvi) प्रचार और लोक संपकर्; (xxvii) ज म और मृ यु का
रिज ट्रीकरण ; (xxviii) सहायता और पुनवार्स ; (xxix) रे शम उ पादन ; (xxx) सातवीं अऩुसूची की सूची 1 की
प्रिवि7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, लघु, कुटीर और ग्रामीण उद्योग ; (xxxi) समाज क याण
; (xxxii) मद
ृ ा संरक्षण ; (xxxiii) खेलकूद और युवा क याण ; (xxxiv) सांिख्यकी ; (xxxv) पयर्टन ; (xxxvi)
पिरवहन (सड़क, पुल, फेरी और अ य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची की सूची 1 म िविनिदर् नहीं ह,
नगरपािलका ट्राम, र जम
ु ागर्, अ तदशीय जलमाग के संबंध म सातवीं अनुसूची की सूची 1 और सूची 3 के उपबंध
के अधीन रहते हुए, अ तदशीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नोिदत यान से िभ न यान) ; (xxxvii) रा य
सरकार द्वारा िनयंित्रत और िव पोिषत जनजाित अनस
ु ंधान सं थान ; (xxxviii) शहरी िवकास-नगर और ग्रामीण
योजना) ; (xxxix) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 50 के उपबंध के अधीन रहते हुए बाट और माप ;
और (xl) मैदानी जनजाितय और िपछड़े वग का क याण :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात, --
(क) इस अिधिनयम के प्रारं भ की तारीख पर िकसी नागिरक के उसकी भूिम के संबंध म िवद्यमान
अिधकार और िवशेषािधकार को समा या उपांतिरत नहीं करे गी ; और
(ख) िकसी नागिरक को िवरासत, आबंटन, यव थापन के प म या अंतरण की िकसी अ य रीित
से भूिम अिजर्त करने से अनुज्ञात नहीं करे गी यिद ऐसा नागिरक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के भीतर भूिम
के ऐसे अजर्न के िलए अ यथा पात्र है ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां, जहां तक उनका संबध
ं सातवीं अनुसूची
की सूची 3 म िविनिदर् िवषय से है , रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत की जाएंगी जो उ ह रा पित के िवचार के
िलए आरिक्षत रखेगा ।
(3) जब कोई िविध रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रख ली जाती है , तब रा पित घोिषत करे गा िक वह
उक्त िविध पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक लेता है :
परं तु रा पित रा यपाल को यह संदेश दे सकेगा िक वह िविध को, बोडोलड प्रादे िशक पिरष को ऐसे संदेश के
साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे िक उक्त पिरष िविध या उसके िक हीं िविनिदर् उपबंध पर पुनिवर्चार करे
और िविश तया, िक हीं ऐसे संशोधन को पुरः थािपत करने की वांछनीयता पर िवचार करे िजनकी उसने अपने
संदेश म िसफािरश की है और जब िविध इस प्रकार लौटा दी जाती है तब उक्त पिरष , ऐसे संदेश की प्राि की
तारीख से छह मास की अविध के भीतर ऐसी िविध पर तदनुसार िवचार करे गी और यिद िविध उक्त पिरष द्वारा,
संशोधन सिहत या उसके िबना, िफर से पािरत कर दी जाती है तो उसे रा पित के समक्ष उसके िवचार के िलए
िफर से प्र तुत िकया जाएगा ।”।
भारत का संिवधान 285

की िजला पिरष को ऐसे क्षेत्र को छोड़कर जो उस िजले के भीतर की प्रादे िशक पिरषद
के, यिद कोई ह , प्रािधकार के अधीन ह, उस िजले के भीतर के अ य सभी क्षेत्र के
संबंध म िन निलिखत िवषय के िलए िविध बनाने की शिक्त होगी, अथार्त ् :–
(क) िकसी आरिक्षत वन की भूिम से िभ न अ य भूिम का, कृिष या
चराई के प्रयोजन के िलए अथवा िनवास के या कृिष से िभ न अ य प्रयोजन के
िलए अथवा िकसी ऐसे अ य प्रयोजन के िलए िजससे िकसी ग्राम या नगर के
िनवािसय के िहत की अिभविृ द्ध संभा य है , आंबटन, अिधभोग या उपयोग अथवा
अलग रखा जाना :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात 1[संबंिधत रा य की सरकार को] अिनवायर्
अजर्न प्रािधकृत करने वाली त समय प्रव ृ िविध के अनुसार िकसी भूिम का, चाहे
वह अिधभोग म हो या नहीं, लोक प्रयोजन के िलए अिनवायर् अजर्न करने से
िनवािरत नहीं करे गी ;
(ख) िकसी ऐसे वन का प्रबंध जो आरिक्षत वन नहीं है ;
(ग) कृिष के प्रयोजन के िलए िकसी नहर या जलसरणी का उपयोग ;
(घ) झम ू की पद्धित का या पिरवतीर् खेती की अ य पद्धितय का
िविनयमन ;
(ङ) ग्राम या नगर सिमितय या पिरषद की थापना और उनकी शिक्तयां
;
(च) ग्राम या नगर प्रशासन से संबंिधत कोई अ य िवषय िजसके अंतगर्त
ग्राम या नगर पुिलस और लोक वा य और व छता है ;
(छ) प्रमख
ु या मिु खय की िनयिु क्त या उ रािधकार ;
(ज) संपि की िवरासत ;
2
[(झ) िववाह और िववाह-िव छे द ;]
(ञ) सामािजक िढ़यां ।
(2) इस पैरा म, “आरिक्षत वन” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है जो असम वन िविनयम,
1891 के अधीन या प्र गत क्षेत्र म त समय प्रव ृ िकसी अ य िविध के अधीन आरिक्षत
वन है ।
(3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "खंड झ" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 286

की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक प्रभावी नहीं


ह गी ।
1
4. वशासी िजल और वशासी प्रदे श म याय प्रशासन – (1) वशासी प्रदे श
की प्रादे िशक पिरष ऐसे प्रदे श के भीतर के क्षेत्र के संबंध म और वशासी िजले की
िजला पिरष ऐसे क्षेत्र से िभ न जो उस िजले के भीतर की प्रादे िशक पिरषद के, यिद
कोई ह , प्रािधकार के अधीन ह, उस िजले के भीतर के अ य क्षेत्र के संबंध म, ऐसे वाद
और मामल के िवचारण के िलए जो ऐसे पक्षकार के बीच ह िजनम से सभी पक्षकार
ऐसे क्षेत्र के भीतर की अनसु िू चत जनजाितय के ह तथा जो उन वाद और मामल से
िभ न ह िजनको इस अनुसूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह, उस
रा य के िकसी यायालय का अपवजर्न करके ग्राम पिरषद या यायालय का गठन कर
सकेगी और उपुयक्त यिक्तय को ऐसी ग्राम पिरष के सद य या ऐसे यायालय के
पीठासीन अिधकारी िनयक्त ु कर सकेगी और ऐसे अिधकारी भी िनयक्त ु कर सकेगी जो इस
अनुसूची के पैरा 3 के अधीन बनाई गई िविधय के प्रशासन के िलए आव यक ह ।
(2) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, वशासी प्रदे श की प्रादे िशक
पिरष या उस प्रादे िशक पिरष द्वारा इस िनिम गिठत कोई यायालय या यिद िकसी
वशासी िजले के भीतर के िकसी क्षेत्र के िलए कोई प्रादे िशक पिरष नहीं है तो, ऐसे
िजले की िजला पिरष या उस िजला पिरष द्वारा इस िनिम गिठत कोई यायालय ऐसे
सभी वाद और मामल के संबंध म जो, यथाि थित, ऐसे प्रदे श या क्षेत्र के भीतर इस
पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन गिठत िकसी ग्राम पिरष या यायालय द्वारा िवचारणीय
ह तथा जो उन वाद और मामल से िभ न ह िजनको इस अनुसूची के पैरा 5 के उप-पैरा
(1) के उपबंध लागू होते ह अपील यायालय की शिक्तय का प्रयोग करे गा तथा उ च
यायालय और उ चतम यायालय से िभ न िकसी अ य यायालय को ऐसे वाद या
मामल म अिधकािरता नहीं होगी ।
(3) उ च यायालय 2*** को, उन वाद और मामल म िजनको इस पैरा के उप-
पैरा (2) के उपबंध लागू होते ह, ऐसी अिधकािरता होगी और वह उसका प्रयोग करे गा जो
रा यपाल समय-समय पर आदे श द्वारा िविनिदर् करे ।
(4) यथाि थित, प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष रा यपाल के पूवर् अनुमोदन से

1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 4
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (5) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(6) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परं तुक के अधीन गिठत बोडोलड
प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम के" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 287

िन निलिखत के िविनयमन के िलए िनयम बना सकेगी, अथार्त ् : –


(क) ग्राम पिरषद और यायालय का गठन और इस पैरा के अधीन उनके
द्वारा प्रयोक्त य शिक्तयां ;
(ख) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन वाद और मामल के िवचारण म
ग्राम पिरषद या यायालय द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रिक्रया ;
(ग) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन अपील और अ य कायर्वािहय म
प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष अथवा ऐसी पिरष द्वारा गिठत िकसी यायालय
द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रिक्रया ;
(घ) ऐसी पिरषद और यायालय के िविन य और आदे श का प्रवतर्न ;
(ङ) इस पैरा के उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के उपबंध को कायार्ि वत
करने के िलए अ य सभी आनुषंिगक िवषय ।
[(5) उस तारीख को और से जो रा पित 2[संबंिधत रा य की सरकार से परामशर्
1

करने के प ात ्] अिधसूचना द्वारा, इस िनिम िनयत करे , यह पैरा ऐसे वशासी िजले या
वशासी प्रदे श के संबंध म, जो उस अिधसूचना म िविनिदर् िकया जाए, इस प्रकार प्रभावी
होगा मानो –
(i) उप-पैरा (1) म, “जो ऐसे पक्षकार के बीच ह िजनम से सभी पक्षकार
ऐसे क्षेत्र के भीतर की अनुसूिचत जनजाितय के ह तथा जो उन वाद और मामल
से िभ न ह िजनको इस अनुसच ू ी के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते
ह,” श द के थान पर, “जो इस अनुसूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) म िनिदर्
प्रकृित के ऐसे वाद और मामले नहीं ह िज ह रा यपाल इस िनिम िविनिदर् करे ,”
श द रख िदए गए ह ;
(ii) उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) का लोप कर िदया गया हो ;
(iii) उप-पैरा (4) म–
(क) “यथाि थित, प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष , रा यपाल के
पूवर् अनुमोदन से, िन निलिखत के िविनयमन के िलए िनयम बना सकेगी,
अथार्त ् :–” श द के थान पर, “रा यपाल िन निलिखत के िविनयमन के
िलए िनयम बना सकेगा, अथार्त ् :–” श द रख िदए गए ह ; और
(ख) खंड (क) के थान पर, िन निलिखत खंड रख िदया गया हो,
अथार्त ् :–
“(क) ग्राम पिरषद और यायालय का गठन, इस पैरा के

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।

2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा

(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।


भारत का संिवधान 288

अधीन उनके द्वारा प्रयोक्त य शिक्तयां और वे यायालय िजनको ग्राम


पिरषद और यायालय के िविन य से अपील हो सकगी ;”;
(ग) खंड (ग) के थान पर, िन निलिखत खंड रख िदया गया हो,
अथार्त ् :–
“(ग) प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष अथवा ऐसी पिरष
द्वारा गिठत िकसी यायालय के समक्ष उप-पैरा (5) के अधीन रा-
पित द्वारा िनयत तारीख से ठीक पहले लंिबत अपील और अ य
कायर्वािहय का अंतरण,”; और
(घ) खंड (ङ) म “उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2)” श द , को क और
अंक के थान पर, “उप-पैरा (1)” श द, को क और अंक रख िदए गए ह
।]
5. कुछ वाद , मामल और अपराध के िवचारण के िलए प्रादे िशक पिरषद और
िजला पिरषद को तथा िक हीं यायालय और अिधकािरय को िसिवल प्रिक्रया संिहता,
1908 और दं ड प्रिक्रया संिहता, 18981 के अधीन शिक्तय का प्रदान िकया जाना – (1)
रा यपाल, िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श म िकसी ऐसी प्रव ृ िविध से, जो ऐसी
िविध है िजसे रा यपाल इस िनिम िविनिदर् करे , उद्भत ू वाद या मामल के िवचारण के
िलए अथवा भारतीय दं ड संिहता के अधीन या ऐसे िजले या प्रदे श म त समय लागू
िकसी अ य िविध के अधीन म ृ यु से, आजीवन िनवार्सन से या पांच वषर् से अ यून
अविध के िलए कारावास से दं डनीय अपराध के िवचारण के िलए, ऐसे िजले या प्रदे श पर
प्रािधकार रखने वाली िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष को अथवा ऐसी िजला पिरष
द्वारा गिठत यायालय को अथवा रा यपाल द्वारा इस िनिम िनयुक्त िकसी अिधकारी को,
यथाि थित, िसिवल प्रिक्रया संिहता, 1908 या दं ड प्रिक्रया संिहता, 18981 के अधीन ऐसी
शिक्तयां प्रदान कर सकेगा जो वह समिु चत समझे और तब उक्त पिरष , यायालय या
अिधकारी इस प्रकार प्रद शिक्तय का प्रयोग करते हुए वाद , मामल या अपराध का
िवचारण करे गा ।
(2) रा यपाल, इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िकसी िजला पिरष , प्रादे िशक
पिरष , यायालय या अिधकारी को प्रद शिक्तय म से िकसी शिक्त को वापस ले सकेगा
या उपांतिरत कर सकेगा ।
(3) इस पैरा म अिभ यक्त प से यथा उपबंिधत के िसवाय, िसिवल प्रिक्रया संिहता,
1908 और दं ड प्रिक्रया संिहता, 18981 िकसी वशासी िजले म या िकसी वशासी प्रदे श म,
िजसको इस पैरा के उपबंध लागू होते ह, िक हीं वाद , मामल या अपराध के िवचारण को
लागू नहीं होगी ।

1. दं ड प्रिक्रया संिहता, 1973 (1974 का 2) दे ख ।


भारत का संिवधान 289

1
[(4) रा पित द्वारा िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श के संबंध म पैरा 4 के
उप-पैरा (5) के अधीन िनयत तारीख को और से, उस िजले या प्रदे श को लागू होने म
इस पैरा की िकसी बात के बारे म यह नहीं समझा जाएगा िक वह िकसी िजला पिरष
या प्रादे िशक पिरष को या िजला पिरष द्वारा गिठत यायालय को इस पैरा के उप-पैरा
(1) म िनिदर् शिक्तय म से कोई शिक्त प्रदान करने के िलए रा यपाल को प्रािधकृत
करती है ।]
2
[6. प्राथिमक िवद्यालय, आिद थािपत करने की िजला पिरष की शिक्त – (1)
वशासी िजले की िजला पिरष िजले म प्राथिमक िवद्यालय , औषधालय , बाजार ,
3
[कांजी हाउस ,] फेरी, मीनक्षेत्र , सड़क , सड़क पिरवहन और जलमाग की थापना,
िनमार्ण और प्रबंध कर सकेगी तथा रा यपाल के पव
ू र् अनम
ु ोदन से, उनके िविनयमन और
िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी और, िविश तया, वह भाषा और वह रीित िविहत
कर सकेगी, िजससे िजले के प्राथिमक िवद्यालय म प्राथिमक िशक्षा दी जाएगी ।

(2) रा यपाल, िजला पिरष की सहमित से उस पिरष को या उसके अिधकािरय


को कृिष, पशुपालन, सामुदाियक पिरयोजनाओं, सहकारी सोसाइिटय , समाज क याण,
ग्राम योजना या िकसी अ य ऐसे िवषय के संबंध म, िजस पर 4*** रा य की
कायर्पािलका शिक्त का िव तार है , कृ य सशतर् या िबना शतर् स प सकेगा ।

7. िजला और प्रादे िशक िनिधयां – (1) प्र येक वशासी िजले के िलए एक िजला
िनिध और प्र येक वशासी प्रदे श के िलए एक प्रादे िशक िनिध गिठत की जाएगी िजसम
क्रमशः उस िजले की िजला पिरष द्वारा और उस प्रदे श की प्रादे िशक पिरष द्वारा इस
संिवधान के उपबंध के अनसु ार, यथाि थित, उस िजले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र
ु म
म प्रा सभी धनरािशयां जमा की जाएंगी ।

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) पैरा 6 के थान पर प्रित थािपत ।
3. िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 4 द्वारा "कांजी हाउस" के थान पर प्रित थािपत

4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "यथाि थित, आसाम या मेघालय" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 290

[(2) रा यपाल, यथाि थित, िजला िनिध या प्रादे िशक िनिध के प्रबंध के िलए और
1

उक्त िनिध म धन जमा करने, उसम से धनरािशयां िनकालने, उसके धन की अिभरक्षा


और पूव क्त िवषय से संबंिधत या आनुषंिगक िकसी अ य िवषय के संबंध म अनुसरण
की जाने वाली प्रिक्रया के िलए िनयम बना सकेगा ।
(3) यथाि थित, िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष के लेखे ऐसे प्र प म रखे
जाएंगे जो भारत का िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक रा पित के अनुमोदन से, िविहत करे ।
(4) िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद के लेखाओं की
संपरीक्षा ऐसी रीित से कराएगा जो वह ठीक समझे और िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के ऐसे
लेखाओं से संबंिधत प्रितवेदन रा यपाल के समक्ष प्र तुत िकए जाएंगे जो उ ह पिरष के
समक्ष रखवाएगा ।]
8. भू-राज व का िनधार्रण और संग्रहण करने तथा कर का अिधरोपण करने की
शिक्तयां–(1) वशासी प्रदे श के भीतर की सभी भूिमय के संबंध म ऐसे प्रदे श की
प्रादे िशक पिरष को और यिद िजले म कोई प्रादे िशक पिरष ह तो उनके प्रािधकार के
अधीन आने वाले क्षेत्र म ि थत भिू मय को छोड़कर िजले के भीतर की सभी भिू मय के
संबंध म वशासी िजले की िजला पिरष को ऐसी भूिमय की बाबत, उन िसद्धांत के
अनुसार राज व का िनधार्रण और संग्रहण करने की शिक्त होगी, िजनका 2[साधारणतया
रा य म भू-राज व के प्रयोजन के िलए भूिम के िनधार्रण म रा य की सरकार द्वारा
त समय अनुसरण िकया जाता है ।]
(2) वशासी प्रदे श के भीतर के क्षेत्र के संबंध म ऐसे प्रदे श की प्रादे िशक पिरष
को और यिद िजले म कोई प्रादे िशक पिरष ह तो उनके प्रािधकार के अधीन आने वाले
क्षेत्र को छोड़कर िजले के भीतर के सभी क्षेत्र के संबंध म वशासी िजले की िजला
पिरष को, भूिम और भवन पर कर का तथा ऐसे क्षेत्र म िनवासी यिक्तय पर पथकर
का उ ग्रहण और संग्रहण करने की शिक्त होगी ।
(3) वशासी िजले की िजला पिरष को ऐसे िजले के भीतर िन निलिखत सभी या
िक हीं कर का उ ग्रहण और संग्रहण करने की शिक्त होगी, अथार्त ् :–
(क) विृ , यापार, आजीिवका और िनयोजन पर कर ;
(ख) जीवजंतुओ,ं यान और नौकाओं पर कर ;

1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) उप-पैरा (2) के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 291

(ग) िकसी बाजार म िवक्रय के िलए माल के प्रवेश पर कर और फेरी से


ले जाए जाने वाले याित्रय और माल पर पथकर ; 1***
(घ) िवद्यालय , औषधालय या सड़क को बनाए रखने के िलए कर ; 2[और]
3
[(ङ) मनोरं जन और आमोद-प्रमोद पर कर ।]
(4) इस पैरा के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) म िविनिदर् कर म से िकसी कर के
उ ग्रहण और संग्रहण का उपबंध करने के िलए, यथाि थित, प्रादे िशक पिरष या िजला
पिरष िविनयम बना सकेगी 4[और ऐसा प्र येक िविनयम रा यपाल के समक्ष तुर त
प्र तुत िकया जाएगा और जब तक वह उस पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक उसका
कोई प्रभाव नहीं होगा] ।
9. खिनज के पूवक्षण या िन कषर्ण के प्रयोजन के िलए अनुज्ञि यां या पट्टे –
5

(1) िकसी वशासी िजले के भीतर के िकसी क्षेत्र के संबंध म 6[रा य की सरकार] द्वारा
खिनज के पव ू क्षण या िन कषर्ण के प्रयोजन के िलए दी गई अनज्ञ
ु ि य या पट्ट से
प्र येक वषर् प्रोद्भत
ू होने वाले वािम व का ऐसा अंश, िजला पिरष को िदया जाएगा जो
उस 3[रा य की सरकार] और ऐसे िजले की िजला पिरष के बीच करार पाया जाए ।
(2) यिद िजला पिरष को िदए जाने वाले ऐसे वािम व के अंश के बारे म कोई
िववाद उ प न होता है तो वह रा यपाल को अवधारण के िलए िनदिशत िकया जाएगा
और रा यपाल द्वारा अपने िववेक के अनुसार अवधािरत रकम इस पैरा के उप-पैरा (1) के
अधीन िजला पिरष को संदेय रकम समझी जाएगी और रा यपाल का िविन य अंितम
होगा ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(i) द्वारा (16-9-2016 से) "और" श द का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(iii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
4. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत
उप-पैरा अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला पिरष को िदया जाने वाला
वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1) के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन
िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर िकया जाएगा ।”।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 292

1
[(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला
पिरष को िदया जाने वाला वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1)
के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर्
की अविध के भीतर िदया जाएगा ।]
2
10. जनजाितय से िभ न यिक्तय की साहूकारी और यापार के िनयंत्रण के िलए
िविनयम बनाने की िजला पिरष की शिक्त – (1) वशासी िजले की िजला पिरष उस
िजले म िनवासी जनजाितय से िभ न यिक्तय की उस िजले के भीतर साहूकारी या
यापार के िविनयमन और िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी ।
(2) िविश तया और पूवग
र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, ऐसे
िविनयम–

(क) िविहत कर सकगे िक उस िनिम दी गई अनुज्ञि के धारक के


अितिरक्त और कोई साहूकारी का कारोबार नहीं करे गा ;

(ख) साहूकार द्वारा प्रभािरत या वसूल िकए जाने वाले याज की अिधकतम
दर िविहत कर सकगे ;

(ग) साहूकार द्वारा लेखे रखे जाने का और िजला पिरषद द्वारा इस िनिम
िनयुक्त अिधकािरय द्वारा ऐसे लेखाओं के िनरीक्षण का उपबंध कर सकगे ;

(घ) िविहत कर सकगे िक कोई यिक्त, जो िजले म िनवासी अनुसूिचत


जनजाितय का सद य नहीं है , िजला पिरष द्वारा इस िनिम दी गई अनुज्ञि के
अधीन ही िकसी व तु का थोक या फुटकर कारबार करे गा, अ यथा नहीं :

परं तु इस पैरा के अधीन ऐसे िविनयम तब तक नहीं बनाए जा सकगे जब तक वे

1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म संशोिधत िकया गया, यथा संशोिधत उप-पैरा (2) के प ात ् उप-पैरा (3) अंतः थािपत
िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया :--
(क) शीषर्क म से “जनजाितय से िभ न यिक्तय की” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ख) उप-पैरा (1) म से “जनजाितय से िभ न” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ग) उप-पैरा (2) म, खंड (घ) के थान पर, िन निलिखत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(घ) िविहत कर सकगे िक कोई यिक्त, जो िजले म िनवासी है िजला पिरष द्वारा इस िनिम दी गई
अनुज्ञि के अधीन कोई थोक या फुटकर यापार करे गा अ यथा नहीं ।”।
भारत का संिवधान 293

िजला पिरष की कुल सद य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पािरत नहीं
कर िदए जाते ह :
परं तु यह और िक ऐसे िक हीं िविनयम के अधीन िकसी ऐसे साहूकार या यापारी
को जो ऐसे िविनयम के बनाए जाने के पहले से उस िजले के भीतर कारबार करता रहा
है , अनुज्ञि दे ने से इंकार करना सक्षम नहीं होगा ।
1
[(3) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी िविनयम रा यपाल के समक्ष तुर त
प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक उनका
कोई प्रभाव नहीं होगा ।]
(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के
अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।
11. अनुसूची के अधीन बनाई गई िविधय , िनयम और िविनयम का प्रकाशन –
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस अनस
ु च
ू ी के अधीन बनाई गई सभी िविधयां,
िनयम और िविनयम रा य के राजपत्र म तुर त प्रकािशत िकए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन
पर िविध का बल रखगे ।
2-3
12. 4[असम रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और असम
रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना] –(1) इस संिवधान म िकसी बात के
होते हुए भी, –

1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजसम उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत अंतः थािपत
िकया गया :--
"(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष
को लागू नहीं होगी ।"।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनस
ु ूची के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख
म ऐसे िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “ इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनुसूची के पैरा 3क या पैरा 3ख म ऐसे
िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से)
शीषर्क के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 294

(क) 1[असम रा य के िवधान-मंडल] का कोई अिधिनयम, जो ऐसे िवषय म


से िकसी िवषय के संबंध म है िजनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 म ऐसे िवषय के
प म िविनिदर् िकया गया है , िजनके संबंध म िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष
िविधयां बना सकेगी और 1[असम रा य के िवधान-मंडल] का कोई अिधिनयम, जो
िकसी अनासुत ऐ कोहाली िलकर के उपभोग को प्रितिषद्ध या िनबर्ंिधत करता है ,
2
[उस रा य म] िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श को तब तक लागू नहीं
होगा जब तक दोन दशाओं म से हर एक म ऐसे िजले की िजला पिरष या ऐसे
प्रदे श पर अिधकािरता रखने वाली िजला पिरष , लोक अिधसूचना द्वारा, इस प्रकार
िनदे श नहीं दे दे ती है और िजला पिरष िकसी अिधिनयम के संबंध म ऐसा िनदे श
दे ते समय यह िनदे श दे सकेगी िक वह अिधिनयम ऐसे िजले या प्रदे श या उसके
िकसी भाग को लागू होने म ऐसे अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रभावी
होगा जो वह ठीक समझती है ;

(ख) रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, िनदे श दे सकेगा िक संस का या


1
[असम रा य के िवधान-मंडल] का कोई अिधिनयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड
(क) के उपबंध लागू नहीं होते ह 2[उस रा य म] िकसी वशासी िजले या वशासी
प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को
ऐसे अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अिधसूचना
म िविनिदर् करे ।

(2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िदया गया कोई िनदे श इस प्रकार िदया
जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
3
[12क. मेघालय रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और
मेघालय रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना – इस संिवधान म िकसी
बात के होते हुए भी –

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "रा य का िवधान-मंडल" के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंतः थािपत ।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 12क के थान पर पैरा 12क और पैरा 12ख प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 295

(क) यिद इस अनुसूची के पैरा 3 के उप-पैरा (1) म िविनिदर् िवषय म


से िकसी िवषय के संबंध म मेघालय रा य म िकसी िजला पिरष या प्रादे िशक
पिरष द्वारा बनाई गई िकसी िविध का कोई उपबंध या यिद इस अनूसूची के पैरा
8 या पैरा 10 के अधीन उस रा य म िकसी िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष
द्वारा बनाए गए िकसी िविनयम का कोई उपबंध, मेघालय रा य के िवधान-मंडल
द्वारा उस िवषय के संबंध म बनाई गई िकसी िविध के िकसी उपबंध के िव द्ध है
तो, यथाि थित, उस िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा बनाई गई िविध या
बनाया गया िविनयम, चाहे वे मेघालय रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िविध से पहले बनाया गया हो या उसके प ात ्, उस िवरोध की मात्रा तक शू य
होगा और मेघालय रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविध अिभभावी होगी ;
(ख) रा पित, संस के िकसी अिधिनयम के संबंध म, अिधसच ू ना द्वारा
िनदे श दे सकेगा िक वह मेघालय रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श
को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को ऐसे
अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अिधसूचना म
िविनिदर् करे और ऐसा कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका
भत ू लक्षी प्रभाव हो ।]
1
[12कक. ित्रपुरा रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और
ित्रपुरा रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना – इस संिवधान म िकसी बात के
होते हुए भी, –
(क) ित्रपुरा रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम, जो ऐसे िवषय म
से िकसी िवषय के संबंध म है िजनको इस अनुसूची के पैरा 3 म ऐसे िवषय के
प म िविनिदर् िकया गया है िजनके संबंध म िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष
िविधयां बना सकेगी, और ित्रपुरा रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम जो
िकसी अनासुत ऐ कोहािलक िलकर के उपभोग को प्रितिषद्ध या िनबर्ंिधत करता है ,
उस रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श को तब तक लागू नहीं होगा
जब तक, दोन दशाओं म से हर एक म, उस िजले की िजला पिरष या ऐसे प्रदे श
पर अिधकािरता रखने वाली िजला पिरष लोक अिधसूचना द्वारा, इस प्रकार िनदे श
नहीं दे दे ती है और िजला पिरष िकसी अिधिनयम के संबंध म ऐसा िनदे श दे ते
समय यह िनदे श दे सकेगी िक वह अिधिनयम उस िजले या प्रदे श या उसके िकसी
भाग को लागू होने म ऐसे अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा
जो वह ठीक समझती है ;
(ख) रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, िनदे श दे सकेगा िक ित्रपुरा रा य

1. पैरा 12कक संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत िकया
गया । त प ात ् संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-
1988 से) पैरा 12कक और 12ख के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 296

के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध


लागू नहीं होते ह, उस रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श को लागू
नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को ऐसे अपवाद या
उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अिधसच ू ना म िविनिदर् करे
;
(ग) रा पित, संस के िकसी अिधिनयम के संबंध म, अिधसूचना द्वारा
िनदे श दे सकेगा िक वह ित्रपुरा रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श
को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को ऐसे
अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अिधसूचना म
िविनिदर् करे और ऐसा कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका
भूतलक्षी प्रभाव हो ।
12ख. िमजोरम रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और
िमजोरम रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम को लागू होना – इस संिवधान म िकसी
बात के होते हुए भी, –
(क) िमजोरम रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम जो ऐसे िवषय म
से िकसी िवषय के संबंध म है िजनको इस अनस ु च
ू ी के पैरा 3 म ऐसे िवषय के
प म िविनिदर् िकया गया है िजनके संबंध म िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष
िविधयां बना सकेगी, और िमजोरम रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम, जो
िकसी अनासुत ऐ कोहािलक िलकर के उपभोग को प्रितिषद्ध या िनबर्ंिधत करता है ,
उस रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श को तब तक लागू नहीं होगा,
जब तक, दोन दशाओं म से हर एक म, उस िजले की िजला पिरष या ऐसे प्रदे श
पर अिधकािरता रखने वाली िजला पिरष , लोक अिधसूचना द्वारा, इस प्रकार िनदे श
नहीं दे दे ती है और िजला पिरष िकसी अिधिनयम के संबंध म ऐसा िनदे श दे ते
समय यह िनदे श दे सकेगी िक वह अिधिनयम उस िजले या प्रदे श या उसके िकसी
भाग को लागू होने म ऐसे अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा
जो वह ठीक समझती है ;
(ख) रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, िनदे श दे सकेगा िक िमजोरम रा य
के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध
लागू नहीं होते ह, उस रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श को लागू
नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को ऐसे अपवाद या
उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अिधसूचना म िविनिदर् करे
;
(ग) रा पित, संस के िकसी अिधिनयम के संबंध म, अिधसूचना द्वारा
भारत का संिवधान 297

िनदे श दे सकेगा िक वह िमजोरम रा य म िकसी वशासी िजले या वशासी


प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके िकसी भाग को ऐसे
अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अिधसूचना म
िविनिदर् करे और ऐसा कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका
भूतलक्षी प्रभाव हो ।]
13. वशासी िजल से संबंिधत प्राक्किलत प्राि य और यय का वािषर्क िव ीय
िववरण म पथ ृ क् प से िदखाया जाना – िकसी वशासी िजले से संबंिधत प्राक्किलत
प्राि यां और यय, जो 1*** रा य की संिचत िनिध म जमा होनी ह या उसम से िकए
जाने ह, पहले िजला पिरष के समक्ष िवचार-िवमशर् के िलए रखे जाएंगे और िफर ऐसे
िवचार-िवमशर् के प ात ् अनु छे द 202 के अधीन रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखे
जाने वाले वािषर्क िव ीय िववरण म पथ ृ क् प से िदखाए जाएंगे ।
2
14. वशासी िजल और वशासी प्रदे श के प्रशासन की जांच करने और उस पर
प्रितवेदन दे ने के िलए आयोग की िनयुिक्त – (1) रा यपाल, रा य म वशासी िजल और
वशासी प्रदे श के प्रशासन के संबध ं म अपने द्वारा िविनिदर् िकसी िवषय की, िजसके
अंतगर्त इस अनुसच ू ी के पैरा 1 के उप-पैरा (3) के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड
(च) म िविनिदर् िवषय ह, जांच करने और उस पर प्रितवेदन दे ने के िलए िकसी भी समय
आयोग िनयुक्त कर सकेगा, या रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श के साधारणतया
प्रशासन की और िविश तया–
(क) ऐसे िजल और प्रदे श म िशक्षा और िचिक सा की सुिवधाओं की और
संचार की यव था की,
(ख) ऐसे िजल और प्रदे श के संबंध म िकसी नए या िवशेष िवधान की
आव यकता थी, और
(ग) िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद द्वारा बनाई गई िविधय , िनयम
और िविनयम के प्रशासन की,
समय-समय पर जांच करने और उस पर प्रितवेदन दे ने के िलए आयोग िनयुक्त कर
सकेगा और ऐसे आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रिक्रया पिरिनि त कर सकेगा

(2) संबंिधत मंत्री, प्र येक ऐसे आयोग के प्रितवेदन को, रा यपाल की उससे

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम" श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 14 आसाम रा य म
लागू होने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 14 के उप-पैरा (2) म, “रा यपाल की उससे संबंिधत िसफािरश के साथ” श द का लोप िकया जाएगा ।"।
भारत का संिवधान 298

संबंिधत िसफािरश के साथ, उस पर 1[रा य की सरकार] द्वारा की जाने के िलए प्र तािवत
कारर् वाई के संबंध म प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखेगा ।
(3) रा यपाल रा य की सरकार के कायर् का अपने मंित्रय म आबंटन करते
समय अपने मंित्रय म से एक मंत्री को रा य के वशासी िजल और वशासी प्रदे श के
क याण का िवशेषतया भारसाधक बना सकेगा ।
2
15. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद के काय और संक प का िनप्रभाव या
िनलंिबत िकया जाना – (1) यिद रा यपाल का िकसी समय यह समाधान हो जाता है िक
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष के िकसी कायर् या संक प से भारत की सुरक्षा का
संकटाप न होना संभा य है 3[या लोक यव था पर प्रितकूल प्रभाव पड़ना संभा य है ] तो
वह ऐसे कायर् या संक प को िनप्रभाव या िनलंिबत कर सकेगा और ऐसी कारर् वाई (िजसके
अंतगर्त पिरष का िनलंबन और पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या
िक हीं शिक्तय को अपने हाथ म ले लेना है ) कर सकेगा जो वह ऐसे कायर् को िकए जाने
या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संक प को प्रभावी िकए जाने का िनवारण करने
के िलए आव यक समझे ।
(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िकया गया आदे श, उसके
िलए जो कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष यथासंभवशीघ्र रखा
जाएगा और यिद वह आदे श, रा य के िवधान-मंडल द्वारा प्रितसं त नहीं कर िदया जाता है
तो वह उस तारीख से, िजसको वह इस प्रकार िकया गया था, बारह मास की अविध तक
प्रव ृ बना रहे गा :
पर तु यिद और िजतनी बार, ऐसे आदे श को प्रव ृ बनाए रखने का अनम ु ोदन
करने वाला संक प रा य के िवधान-मंडल द्वारा पािरत कर िदया जाता है तो और उतनी
बार वह आदे श, यिद रा यपाल द्वारा र नहीं कर िदया जाता है तो, उस तारीख से,
िजसको वह इस पैरा के अधीन अ यथा प्रवतर्न म नहीं रहता, बारह मास की और अविध
तक प्रव ृ बना रहे गा ।
4
16. िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन – 1
[(1) रा यपाल, इस

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 15 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया है :--
"(क) आरं िभक भाग म, “रा य के िवधान-मंडल द्वारा” श द के थान पर, “रा यपाल द्वारा” श द रखे जाएंगे
;
(ख) पर तुक का लोप िकया जाएगा ।"।
3. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 16
भारत का संिवधान 299

अनुसूची के पैरा 14 के अधीन िनयुक्त आयोग की िसफािरश पर, लोक अिधसूचना द्वारा,
िकसी िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन कर सकेगा, और–

(क) िनदे श दे सकेगा िक पिरष के पुनगर्ठन के िलए नया साधारण


िनवार्चन तुर त कराया जाए ; या

(ख) रा य के िवधान-मंडल के पूवर् अनुमोदन से ऐसी पिरष के प्रािधकार


के अधीन आने वाले क्षेत्र का प्रशासन बारह मास से अनिधक अविध के िलए
अपने हाथ म ले सकेगा अथवा ऐसे क्षेत्र का प्रशासन ऐसे आयोग को िजसे उक्त
पैरा के अधीन िनयुक्त िकया गया है या अ य ऐसे िकसी िनकाय को िजसे वह
उपयुक्त समझता है , उक्त अविध के िलए दे सकेगा :

पर तु जब इस पैरा के खंड (क) के अधीन कोई आदे श िकया गया है तब


रा यपाल प्र गत क्षेत्र के प्रशासन के संबंध म, नया साधारण िनवार्चन होने पर पिरष
के पुनगर्ठन के लंिबत रहने तक, इस पैरा के खंड (ख) म िनिदर् कारर् वाई कर सकेगा :

पर तु यह और िक, यथाि थित, िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष को रा य के


िवधान-मंडल के समक्ष अपने िवचार को रखने का अवसर िदए िबना उस पैरा के खंड
(ख) के अधीन कोई कारर् वाई नहीं की जाएगी ।

[(2) यिद रा यपाल का िकसी समय यह समाधान हो जाता है िक ऐसी ि थित


2

उ प न हो गई है िजसम वशासी िजले या वशासी प्रदे श का प्रशासन इस अनस


ु ूची के

ित्रपुरा और िमजोरम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया है :--


'(क) उप-पैरा (1) के खंड (ख) म आने वाले “रा य के िवधान-मंडल के पूवर् अनुमोदन से” श द और
दस
ू रे पर तुक का लोप िकया जाएगा;'
(ख) उप-पैरा (3) के थान पर िन निलिखत उप-पैरा रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) या उप-पैरा (2) के अधीन िकया गया प्र येक आदे श, उसके िलए जो कारण
है उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।”।'.
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) पैरा 16 का उप-पैरा (1) के प म पुनसर्ंख्यांिकत िकया गया ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 300

उपबंध के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह, यथाि थित, िजला पिरष या
प्रादे िशक पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या कोई कृ य या शिक्तयां, लोक
अिधसूचना द्वारा, छह मास से अनिधक अविध के िलए अपने हाथ म ले सकेगा और यह
घोषणा कर सकेगा िक ऐसे कृ य या शिक्तयां उक्त अविध के दौरान ऐसे यिक्त या प्रािधकारी
द्वारा प्रयोक्त य ह गी िजसे वह इस िनिम िविनिदर् करे :
पर तु रा यपाल आरं िभक आदे श का प्रवतर्न, अितिरक्त आदे श या आदे श द्वारा,
एक बार म छह मास से अनिधक अविध के िलए बढ़ा सकेगा ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन िकया गया प्र येक आदे श, उसके िलए जो
कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और वह आदे श उस
तारीख से िजसको रा य िवधान-मंडल उस आदे श के िकए जाने के प ात ् प्रथम बार
बैठता है , तीस िदन की समाि पर प्रवतर्न म नहीं रहे गा यिद उस अविध की समाि से
पहले रा य िवधान-मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर िदया जाता है ।]
1
17. वशासी िजल म िनवार्चन-क्षेत्र के बनाने म ऐसे िजल से क्षेत्र का अपवजर्न –
रा यपाल, 2[असम या मेघालय 3[या ित्रपरु ा 4[या िमजोरम]] की िवधान सभा] के िनवार्चन
के प्रयोजन के िलए, आदे श द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा िक, 5[यथाि थित, असम या
मेघालय 3[या ित्रपुरा 4[या िमजोरम]] रा य म] िकसी वशासी िजले के भीतर का कोई क्षेत्र
ऐसे िकसी िजले के िलए िवधान सभा म आरिक्षत थान या थान को भरने के िलए
िकसी िनवार्चन-क्षेत्र का भाग नहीं होगा, िक तु िवधान सभा म इस प्रकार आरिक्षत न
िकए गए ऐसे थान या थान को भरने के िलए आदे श म िविनिदर् िनवार्चन-क्षेत्र का
भाग होगा ।
6
[18.* * * *]
7
19. संक्रमणकालीन उपबंध – (1) रा यपाल, इस संिवधान के प्रारं भ के प ात ्

1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 17 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत पर तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस पैरा की कोई बात बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजला को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
5. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर अंतः थािपत ।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप िकया गया ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 19
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया गया अथार्त ् :--
भारत का संिवधान 301

यथासंभव शीघ्र, इस अनुसूची के अधीन रा य म प्र येक वशासी िजले के िलए िजला
पिरष के गठन के िलए कारर् वाई करे गा और जब तक िकसी वशासी िजले के िलए
िजला पिरष इस प्रकार गिठत नहीं की जाती है तब तक ऐसे िजले का प्रशासन
रा यपाल म िनिहत होगा और ऐसे िजले के भीतर के क्षेत्र के प्रशासन को इस अनुसूची
के पूवग
र् ामी उपबंध के थान पर िन निलिखत उपबंध लागू ह गे, अथार्त ् : –

(क) संस का या उस रा य के िवधान-मंडल का कोई अिधिनयम ऐसे क्षेत्र


को तब तक लागू नहीं होगा जब तक रा यपाल, लोक अिधसूचना द्वारा, इस प्रकार
िनदे श नहीं दे दे ता है और रा यपाल िकसी अिधिनयम के संबंध म ऐसा िनदे श दे ते
समय यह िनदे श दे सकेगा िक वह अिधिनयम ऐसे क्षेत्र या उसके िकसी िविनिदर्
भाग को लागू होने म ऐसे अपवाद या उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा
जो वह ठीक समझता है ;

(ख) रा यपाल ऐसे िकसी क्षेत्र की शांित और सुशासन के िलए िविनयम


बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए िविनयम संस के या उस रा य के
िवधान-मंडल के िकसी अिधिनयम का या िकसी िवद्यमान िविध का, जो ऐसे क्षेत्र
को त समय लागू ह, िनरसन या संशोधन कर सकगे ।

(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (क) के अधीन िदया गया
कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।

(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी िविनयम
रा पित के समक्ष तुर त प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे
दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा ।

"(4) इस अिधिनयम के प्रारं भ के प ात ्, यथाशीघ्र आसाम म बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए एक
अंतिरम कायर्पालक पिरष , रा यपाल द्वारा बोडो आ दोलन के नेताओं म से, िजनके अंतगर्त समझौते के ज्ञापन के
ह ताक्षरकतार् भी ह, बनाई जाएगी और उसम उस क्षेत्र के गैर जनजातीय समुदाय को भी पयार् प्रितिनिध व िदया
जाएगा :
परं तु अ तिरम पिरष छह मास की अविध के िलए होगी िजसके दौरान पिरष का िनवार्चन कराने का
प्रयास िकया जाएगा ।
प ीकरण--इस उप-पैरा के प्रयोजन के िलए, “समझौते का ज्ञापन” पद से भारत सरकार, आसाम सरकार
और बोडो िलबरे शन टाइगसर् के बीच 10 फरवरी, 2003 को ह ताक्षिरत ज्ञापन अिभप्रेत है ।"।
भारत का संिवधान 302

1
[20. जनजाित क्षेत्र – (1) नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2, 2[भाग 2क]
और भाग 3 म िविनिदर् क्षेत्र क्रमशः असम रा य, मेघालय रा य, 2[ित्रपुरा रा य] और
िमजोरम 3[रा य] के जनजाित क्षेत्र ह गे ।

(2) 4[नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2 या भाग 3 म] िकसी िजले के प्रित


िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 की
धारा 2 के खंड (ख) के अधीन िनयत िकए गए िदन से ठीक पहले िवद्यमान उस नाम के
वशासी िजले म समािव रा यक्षेत्र के प्रित िनदश ह :

पर तु इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 के उप-पैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4,
पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के उप-पैरा (2), उप-पैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ)
और उप-पैरा (4) तथा पैरा 10 के उप-पैरा (2) के खंड (घ) के प्रयोजन के िलए,
िशलांग नगरपािलका म समािव क्षेत्र के िकसी भाग के बारे म यह नहीं समझा जाएगा
िक वह 5[खासी पहाड़ी िजले] के भीतर है ।

2
[(3) नीचे दी गई सारणी के भाग 2क म “ित्रपरु ा जनजाित क्षेत्र िजला” के प्रित
िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ित्रपुरा जनजाित क्षेत्र वशासी िजला पिरष
अिधिनयम, 1979 की पहली अनुसूची म िविनिदर् जनजाित क्षेत्र म समािव रा यक्षेत्र
के प्रित िनदश है ।]

सारणी
भाग 1
1. उ री कछार पहाड़ी िजला ।

1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-
1-1972 से) पैरा 20 और 20क के थान पर प्रित थािपत । पैरा 21क को त प ात ् भारत संघ रा यक्षेत्र
(संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) प्रित थािपत िकया गया था ।
2. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) "संघ रा यक्षेत्र" के थान
पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्रित थािपत ।
5. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 303

2. 1[काबीर् आंगलांग िजला ।]


2
[3. बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजला ।]
भाग 2
3
[1. खासी पहाड़ी िजला ।
2. जयंितया पहाड़ी िजला ।]
3. गारो पहाड़ी िजला ।
4
[भाग 2क
ित्रपुरा जनजाित क्षेत्र िजला ।]
भाग 3
5
* * *
6
[1. चकमा िजला ।
7
[2. मारा िजला ।
3. लई िजला ।]]
8
[20क. िमजो िजला पिरष का िवघटन – (1) इस अनुसूची म िकसी बात के
होते हुए भी, िविहत तारीख से ठीक पहले िवद्यमान िमजो िजले की िजला पिरष (िजसे
इसम इसके प ात ् िमजो िजला पिरष कहा गया है ) िवघिटत हो जाएगी और िवद्यमान
नहीं रह जाएगी ।
(2) िमजोरम संघ रा यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अिधक आदे श द्वारा,
िन निलिखत सभी या िक हीं िवषय के िलए उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् :–
(क) िमजो िजला पिरष की आि तय , अिधकार और दािय व का

1. आसाम सरकार द्वारा तारीख 14-10-1976 की अिधसूचना सं. टी.ए.डी./आर. 115/74/47 द्वारा "िमकीर पहाड़ी िजला"
के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत ।
3. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
5. संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) "िमजो
िजला" श द का लोप िकया गया ।
6. िमजोरम का राजपत्र 1972. तारीख 5 मई, 1972, िज द 1, भाग 2, प.ृ 17 म प्रकािशत िमजोरम िजला पिरष
(प्रकीणर् उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतः थािपत ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) क्रम सं0
2 और 3 तथा उनसे संबंिधत प्रिवि य के थान पर प्रित थािपत ।
.
8 संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) पैरा 20क
के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 304

(िजनके अतंगत र् उसके द्वारा की गई िकसी संिवदा के अधीन अिधकार और


दािय व ह) पण
ू त र् ः या भागतः संघ को या िकसी अ य प्रािधकारी को अंतरण ;
(ख) िक हीं ऐसी िविधक कायर्वािहय म, िजनम िमजो िजला पिरष एक
पक्षकार है , िमजो िजला पिरष के थान पर संघ का या िकसी अ य प्रािधकारी
का पक्षकार के प म रखा जाना अथवा संघ का या िकसी अ य प्रािधकारी का
पक्षकार के प म जोड़ा जाना ;
(ग) िमजो िजला पिरष के िक हीं कमर्चािरय का संघ को या िकसी
अ य प्रािधकारी को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पन ु िनर्योजन, ऐसे अंतरण या
पुनिनर्योजन के प ात ् उन कमर्चािरय को लागू होने वाले सेवा के िनबंधन और
शत ;
(घ) िमजो िजला पिरष द्वारा बनाई गई और उसके िवघटन से ठीक पहले
प्रव ृ िक हीं िविधय का, ऐसे अनुकूलन और उपांतरण के, चाहे वे िनरसन के
प म ह या संशोधन के प म, अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस िनिम
िकए जाएं, तब तक प्रव ृ बना रहना जब तक िकसी सक्षम िवधान-मंडल द्वारा या
अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा ऐसी िविधय म पिरवतर्न, िनरसन या संशोधन नहीं
कर िदया जाता है ;
(ङ) ऐसे आनष
ु ंिगक, पािरणािमक और अनप
ु रू क िवषय जो प्रशासक आव यक
समझे ।
प ीकरण – इस पैरा म और इस अनुसूची के पैरा 20ख म, “िविहत तारीख” पद
से वह तारीख अिभप्रेत है िजसको िमजोरम संघ रा यक्षेत्र की िवधान सभा का, संघ
रा यक्षेत्र शासन अिधिनयम, 1963 के उपबंध के अधीन और उनके अनुसार, स यक् प
से गठन होता है ।
20ख. िमजोरम संघ रा यक्षेत्र म वशासी प्रदे श का वशासी िजले होना और
उसके पािरणािमक संक्रमणकालीन उपबंध – (1) इस अनुसूची म िकसी बात के होते हुए
भी,–
(क) िमजोरम संघ रा यक्षेत्र म िविहत तारीख से ठीक पहले िवद्यमान
प्र येक वशासी प्रदे श उस तारीख को और से उस संघ रा यक्षेत्र का वशासी
िजला (िजसे इसम इसके प ात ्, त थानी नया िजला कहा गया है ) हो जाएगा
और उसका प्रशासक, एक या अिधक आदे श द्वारा, िनदे श दे सकेगा िक इस
अनुसूची के पैरा 20 म (िजसके अंतगर्त उस पैरा से संलग्न सारणी का भाग 3
है ) ऐसे पािरणािमक संशोधन िकए जाएंगे जो इस खंड के उपबंध को प्रभावी
करने के िलए आव यक ह और तब उक्त पैरा और उक्त भाग 3 के बारे म यह
समझा जाएगा िक उनका तद्नस ु ार संशोधन कर िदया गया है ;
(ख) िमजोरम संघ रा यक्षेत्र म िविहत तारीख से ठीक पहले िवद्यमान
वशासी प्रदे श की प्र येक प्रादे िशक पिरष (िजसे इसम इसके प ात ् िवद्यमान
प्रादे िशक पिरष कहा गया है ) उस तारीख को और से और जब तक त थानी नए
भारत का संिवधान 305

िजले के िलए पिरष का स यक् प से गठन नहीं होता है तब तक, उस िजले की


िजला पिरष (िजसे इसम इसके प ात ् त थानी नई िजला पिरष कहा गया है )
समझी जाएगी ।

(2) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष का प्र येक िनवार्िचत या नामिनदिशत सद य


त थानी नई िजला पिरष के िलए, यथाि थित, िनवार्िचत या नामिनदिशत समझा
जाएगा और तब तक पद धारण करे गा जब तक इस अनुसूची के अधीन त थानी नए
िजले के िलए िजला पिरष का स यक् प से गठन नहीं होता है ।

(3) जब तक त थानी नई िजला पिरष द्वारा इस अनुसच ू ी के पैरा 2 के उप-पैरा


(7) और पैरा 4 के उप-पैरा (4) के अधीन िनयम नहीं बनाए जाते ह तब तक िवद्यमान
प्रादे िशक पिरष द्वारा उक्त उपबंध के अधीन बनाए गए िनयम, जो िविहत तारीख से
ठीक पहले प्रव ृह, त थानी नई िजला पिरष के संबंध म ऐसे अनक ु ू लन और
उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रभावी ह गे जो िमजोरम संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक द्वारा
उनम िकए जाएं ।

(4) िमजोरम संघ रा यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अिधक आदे श द्वारा,


िन निलिखत सभी या िक हीं िवषय के िलए उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् : –

(क) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष की आि तय , अिधकार और दािय व का


(िजनके अंतगर्त उसके द्वारा की गई िकसी संिवदा के अधीन अिधकार और
दािय व ह) पूणत
र् ः या भागतः त थानी नई िजला पिरष को अंतरण ;

(ख) िक हीं ऐसी िविधक कायर्वािहय म, िजनम िवद्यमान प्रादे िशक पिरष
एक पक्षकार है , िवद्यमान प्रादे िशक पिरष के थान पर त थानी नई िजला
पिरष का पक्षकार के प म रखा जाना ;

(ग) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष के िक हीं कमर्चािरय का त थानी नई


िजला पिरष को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पुनिनर्योजन ; ऐसे अंतरण या
पुनिनर्योजन के प ात ् उन कमर्चािरय को लागू होने वाले सेवा के िनबंधन और
शत ;

(घ) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष द्वारा बनाई गई और िविहत तारीख से ठीक
पहले प्रव ृिक हीं िविधय का, ऐसे अनुकूलन और उपांतरण के, चाहे वे िनरसन
के प म ह या संशोधन के प म, अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस
भारत का संिवधान 306

िनिम िकए जाएं, तब तक प्रव ृ बना रहना जब तक सक्षम िवधान-मंडल द्वारा


या अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा ऐसी िविधय म पिरवतर्न, िनरसन या संशोधन
नहीं कर िदया जाता है ;

(ङ) ऐसे आनुषंिगक, पािरणािमक और अनुपूरक िवषय जो प्रशासक आव यक


समझे ।

[20खक. रा यपाल द्वारा अपने कृ य के िनवर्हन म वैवेिकक शिक्तय का प्रयोग -


1

- रा यपाल, इस अनुसूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के उप-पैरा


(1), उप-पैरा (6), उप-पैरा (6क) के पहले पर तुक को छोड़कर और उप-पैरा (7), पैरा 3
के उप-पैरा (3), पैरा 4 के उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा 6 के उप-पैरा (1), पैरा 7 के उप-
पैरा (2), पैरा 8 के उप-पैरा (4), पैरा 9 के उप-पैरा (3), पैरा 10 के उप-पैरा (3), पैरा
14 के उप-पैरा (1), पैरा 15 के उप-पैरा (1) और पैरा 16 के उप-पैरा (1) और उप-पैरा
(2) के अधीन अपने कृ य के िनवर्हन म, मंित्र-पिरष और, यथाि थित, उ री कछार
पहाड़ी वशासी पिरष या काबीर् आंगलांग पहाड़ी वशासी पिरष से परामशर् करने के
प ात ् ऐसी कारर् वाई करे गा, जो वह विववेकानुसार आव यक मानता है ।]

[20खख. रा यपाल द्वारा अपने कृ य के िनवर्हन म वैवेिकक शिक्तय का प्रयोग


2

-- रा यपाल, इस अनस ु च
ू ी के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के उप-
पैरा (1) और उप-पैरा (7), पैरा 3 का उप-पैरा (3), पैरा 4 का उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा
6 का उप-पैरा (1), पैरा 7 का उप-पैरा (2), पैरा 9 का उप-पैरा (3), पैरा 14 का उप-पैरा
(1), पैरा 15 का उप-पैरा (1) और पैरा 16 का उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के अधीन
अपने कृ य के िनवर्हन म, मंित्र-पिरष से और यिद वह आव यक समझे तो संबंिधत
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष से परामशर् करने के प ात ्, ऐसी कारर् वाई करे गा, जो
वह विववेकानुसार आव यक समझे ।]

20ग. िनवर्चन – इस िनिम बनाए गए िकसी उपबंध के अधीन रहते हुए, इस


अनसु ूची के उपबंध िमजोरम संघ रा यक्षेत्र को उनके लागू होने म इस प्रकार प्रभावी
ह गे –

1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) आसाम म
लागू होने के िलए पैरा 20खक अंतः थािपत िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) ित्रपुरा
और िमजोरम रा य को लागू करने म, पैरा 20ख के प ात ् िन निलिखत पैरा अंतः थािपत िकया गया ।
भारत का संिवधान 307

(1) मानो रा य के रा यपाल और रा य की सरकार के प्रित िनदश


अनु छे द 239 के अधीन िनयक्त ु संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक के प्रित िनदश ह ;
(“रा य की सरकार” पद के िसवाय) रा य के प्रित िनदश िमजोरम संघ
रा यक्षेत्र के प्रित िनदश ह और रा य िवधान-मंडल के प्रित िनदश िमजोरम संघ
रा यक्षेत्र की िवधान सभा के प्रित िनदश ह ;
(2) मानो–
(क) पैरा 4 के उप-पैरा (5) म संबंिधत रा य की सरकार से
परामशर् करने के उपबंध का लोप कर िदया गया हो ;
(ख) पैरा 6 के उप-पैरा (2) म, “िजस पर रा य की कायर्पािलका
शिक्त का िव तार है ” श द के थान पर “िजसके संबंध म िमजोरम संघ
रा यक्षेत्र की िवधान सभा को िविधयां बनाने की शिक्त है ” श द रख िदए
गए ह ;
(ग) पैरा 13 म, “अनु छे द 202 के अधीन” श द और अंक का
लोप कर िदया गया हो ।
21. अनुसूची का संशोधन – (1) संस , समय-समय पर िविध द्वारा, इस अनुसूची के
उपबंध म से िकसी का, पिरवधर्न, पिरवतर्न या िनरसन के प म संशोधन कर सकेगी और
जब अनस ु च
ू ी का इस प्रकार संशोधन िकया जाता है तब इस संिवधान म इस अनस
ु च
ू ी के
प्रित िकसी िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह इस प्रकार संशोिधत ऐसी अनुसूची के
प्रित िनदश है ।
(2) ऐसी कोई िविध जो इस पैरा के उप-पैरा (1) म उि लिखत है , इस संिवधान के
अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।
सातवीं अनुसूची
(अऩु छे द 246)
सच
ू ी 1 – संघ सच
ू ी
1. भारत की और उसके प्र येक भाग की रक्षा, िजसके अंतगर्त रक्षा के िलए
तैयारी और ऐसे सभी कायर् ह, जो युद्ध के समय युद्ध के संचालन और उसकी समाि के
प ात ् प्रभावी सै यिवयोजन म सहायक ह ।
2. नौसेना, सेना और वायस
ु ेना ; संघ के अ य सश बल ।
[2क. संघ के िकसी सश बल या संघ के िनयंत्रण के अधीन िकसी अ य बल
1

का या उसकी िकसी टुकड़ी या यिू नट का िकसी रा य म िसिवल शिक्त की सहायता म


अिभिनयोजन; ऐसे अिभिनयोजन के समय ऐसे बल के सद य की शिक्तयां, अिधकािरता,
िवशेषािधकार और दािय व । ]
3. छावनी क्षेत्र का पिरसीमन, ऐसे क्षेत्र म थानीय वशासन, ऐसे क्षेत्र के
भीतर छावनी प्रािधकािरय का गठन और उनकी शिक्तयां तथा ऐसे क्षेत्र म गहृ वास-
सुिवधा का िविनयमन (िजसके अंतगर्त भाटक का िनयंत्रण है ) ।
4. नौसेना, सेना और वायुसेना संकमर् ।
5. आयुध, अग् यायुध, गोलाबा द और िव फोटक ।
6. परमाणु ऊजार् और उसके उ पादन के िलए आव यक खिनज संपि ोत ।
7. संस द्वारा िविध द्वारा रक्षा के प्रयोजन के िलए या युद्ध के संचालन के िलए
आव यक घोिषत िकए गए उद्योग ।
8. के द्रीय आसूचना और अ वेषण यूरो ।
9. रक्षा, िवदे श कायर् या भारत की सुरक्षा संबंधी कारण से िनवारक िनरोध ; इस
प्रकार िनरोध म रखे गए यिक्त ।
10. िवदे श कायर्, सभी िवषय िजनके द्वारा संघ का िकसी िवदे श से संबंध होता है

11. राजनियक, क सलीय और यापािरक प्रितिनिध व ।
12. संयक्त
ु रा संघ ।
13. अंतररा ीय स मेलन , संगम और अ य िनकाय म भाग लेना और उनम
िकए गए िविन य का कायार् वयन।
14. िवदे श से संिध और करार करना और िवदे श से की गई संिधय , करार और
अिभसमय का कायार् वयन ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।

308
भारत का संिवधान 309

15. युद्ध और शांित ।


16. वैदेिशक अिधकािरता ।
17. नागिरकता, दे शीयकरण और अ यदे शीय ।
18. प्र यपर्ण ।
19. भारत म प्रवेश और उसम से उ प्रवास और िन कासन, पासपोटर् और वीजा ।
20. भारत से बाहर के थान की तीथर्यात्राएं ।
21. खल
ु े समद्र
ु या आकाश म की गई द यत ु ा और अपराध; थल या खल
ु े समद्र

या आकाश म रा की िविध के िव द्ध िकए गए अपराध ।
22. रे ल ।
23. ऐसे राजमागर् िज ह संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन रा ीय
राजमागर् घोिषत िकया गया है ।
24. यंत्र नोिदत जलयान के संबंध म ऐसे अंतदशीय जलमाग पर पोत पिरवहन
और नौ पिरवहन जो संस द्वारा िविध द्वारा रा ीय जलमागर् घोिषत िकए गए ह; ऐसे
जलमाग पर मागर् का िनयम ।
25.समद्र
ु ी पोत पिरवहन और नौ पिरवहन, िजसके अतंगत र् वारीय जल म पोत-
पिरवहन और नौ पिरवहन है ; वािणि यक समुद्री बेड़े के िलए िशक्षा और प्रिशक्षण की
यव था तथा रा य और अ य अिभकरण द्वारा दी जाने वाली ऐसी िशक्षा और प्रिशक्षण
का िविनयमन ।
26. प्रकाश तंभ, िजनके अंतगर्त प्रकाशपोत, बीकन तथा पोत पिरवहन और
वायय
ु ान की सरु क्षा के िलए अ य यव था है ।
27. ऐसे प न िज ह संस द्वारा बनाई गई िविध या िवद्यमान िविध द्वारा या
उसके अधीन महाप न घोिषत िकया जाता है , िजसके अंतगर्त उनका पिरसीमन और
उनम प न प्रािधकािरय का गठन और उनकी शिक्तयां ह ।
28. प न कंरतीन, िजसके अंतगर्त उससे संबद्ध अ पताल ह ; नािवक और
समुद्रीय अ पताल ।
29. वायुमागर्, वायुयान और िवमान चालन; िवमानक्षेत्र की यव था ; िवमान
यातायात और िवमानक्षेत्र का िविनयमन और संगठन; वैमािनक िशक्षा और प्रिशक्षण के
िलए यव था तथा रा य और अ य अिभकरण द्वारा दी जाने वाली ऐसी िशक्षा और
प्रिशक्षण का िविनयमन ।
30. रे ल, समुद्र या वायु मागर् द्वारा अथवा यंत्र नोिदत जलयान म रा ीय जलमाग
द्वारा याित्रय और माल का वहन ।
भारत का संिवधान 310

31. डाक-तार; टे लीफोन, बेतार, प्रसारण और वैसे ही अ य संचार साधन ।


32. संघ की संपि और उससे राज व, िकं तु िकसी 1*** रा य म ि थत संपि के
संबंध म, वहां तक के िसवाय जहां तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध करे , उस रा य
के िवधान के अधीन रहते हुए ।
2
33* * * * *
34. दे शी रा य के शासक की संपदा के िलए प्रितपा य अिधकरण ।
35. संघ का लोक ऋण ।
36. करसी, िसक्का िनमार्ण और वैध िनिवदा, िवदे शी मुद्रा ।
37. िवदे शी ऋण ।
38. भारतीय िरजवर् बक ।
39. डाकघर बचत बक ।
40. भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार द्वारा संचािलत लाटरी ।
41. िवदे श के साथ यापार और वािण य ; सीमाशु क सीमांत के आर-पार
आयात और िनयार्त ; सीमाशु क सीमांत का पिरिन य ।
42. अंतरराि यक यापार और वािण य ।
43. यापार िनगम का, िजनके अंतगर्त बककारी, बीमा और िव ीय िनगम ह
िकं तु सहकारी सोसाइटी नहीं ह, िनगमन, िविनयमन और पिरसमापन ।
44. िव िवद्यालय को छोड़कर ऐसे िनगम का, चाहे वे यापार िनगम ह या
नहीं, िजनके उ े य एक रा य तक सीिमत नहीं ह, िनगमन, िविनयमन और पिरसमापन

45. बककारी ।
46. िविनमय-पत्र, चेक, बचत पत्र और वैसी ही अ य िलखत ।
47. बीमा ।
48. टाक एक्सचज और वायदा बाजार ।
49. पेटट, आिव कार और िडजाइन; प्रितिल यिधकार; यापार िच और प य
व तु िच ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) "पहली अनूसूची
या भाग क या भाग ख म िविनिदर् " श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रिवि 33 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 311

50. बाट और माप के मानक िनयत करना ।


51. भारत से बाहर िनयार्त िकए जाने वाले या एक रा य से दस
ू रे रा य को
पिरवहन िकए जाने वाले माल की क्वािलटी के मानक िनयत करना ।
52. वे उद्योग िजनके संबंध म संस ने िविध द्वारा घोषणा की है िक उन पर संघ
का िनयंत्रण लोकिहत म समीचीन है ।
53. तेलक्षेत्र और खिनज तेल संपि ोत का िविनयमन और िवकास;
पेट्रोिलयम और पेट्रोिलयम उ पाद; अ य द्रव और पदाथर् िजनके िवषय म संस ने िविध
द्वारा घोषणा की है िक वे खतरनाक प से वलनशील ह ।
54. उस सीमा तक खान का िविनयमन और खिनज का िवकास िजस तक संघ
के िनयंत्रण के अधीन ऐसे िविनयमन और िवकास को संस , िविध द्वारा, लोक िहत म
समीचीन घोिषत करे ।
55. खान और तेलक्षेत्र म म और सरु क्षा का िविनयमन ।
56. उस सीमा तक अंतरराि यक निदय और नदी दन ू का िविनयमन और
िवकास िजस तक संघ के िनयंत्रण के अधीन ऐसे िविनयमन और िवकास को संस ,
िविध द्वारा, लोकिहत म समीचीन घोिषत करे ।
57. रा यक्षेत्रीय सागरखंड से परे मछली पकड़ना और मीन क्षेत्र ।
58. संघ के अिभकरण द्वारा नमक का िविनमार्ण, प्रदाय और िवतरण; अ य
अिभकरण द्वारा िकए गए नमक के िविनमार्ण, प्रदाय और िवतरण का िविनयमन और
िनयंत्रण ।
59. अफीम की खेती, उसका िविनमार्ण और िनयार्त के िलए िवक्रय ।
60. प्रदशर्न के िलए चलिचत्र िफ म की मंजरू ी ।
61. संघ के कमर्चािरय से संबंिधत औद्योिगक िववाद ।
62. इस संिवधान के प्रारं भ पर रा ीय पु तकालय, भारतीय संग्रहालय, इंपीिरयल
यद्ध
ु संग्रहालय, िवक्टोिरया मारक और भारतीय युद्ध मारक नाम से ज्ञात सं थाएं
और भारत सरकार द्वारा पूणतर् ः या भागतः िव पोिषत और संस द्वारा, िविध द्वारा, रा ीय
मह व की घोिषत वैसी ही कोई अ य सं था ।
63. इस संिवधान के प्रारं भ पर काशी िह द ू िव िवद्यालय, अलीगढ़ मुि लम
िव िवद्यालय और 1[िद ली िव िवद्यालय] नाम से ज्ञात सं थाएं ; 1[अनु छे द 371ङ के
अनुसरण म थािपत िव िवद्यालय ;] संस द्वारा, िविध द्वारा रा ीय मह व की घोिषत कोई
अ य सं था ।

1. संिवधान (ब ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1973 की धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) "िद ली िव िवद्यालय और" के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 312

64. भारत सरकार द्वारा पूणतर् ः या भागतः िव पोिषत और संस द्वारा, िविध
द्वारा, रा ीय मह व की घोिषत वैज्ञािनक या तकनीकी िशक्षा सं थाएं ।
65. संघ के अिभकरण और सं थाएं जो–
(क) विृ क, यावसाियक या तकनीकी प्रिशक्षण के िलए ह िजसके अंतगर्त
पुिलस अिधकािरय का प्रिशक्षण है ; या
(ख) िवशेष अ ययन या अनुसंधान की अिभविृ द्ध के िलए ह ; या
(ग) अपराध के अ वेषण या पता चलाने म वैज्ञािनक या तकनीकी
सहायता के िलए ह ।
66. उ चतर िशक्षा या अनुसंधान सं थाओं म तथा वैज्ञािनक और तकनीकी
सं थाओं म मानक का सम वय और अवधारण ।
67. 1[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
[घोिषत] प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख तथा परु ात वीय थल और
1

अवशेष ।
68. भारतीय सवक्षण, भारतीय भू-वैज्ञािनक, वन पित िवज्ञान, प्राणी िवज्ञान और
मानव शा सवक्षण ; मौसम िवज्ञान संगठन ।
69. जनगणना ।
70. संघ लोक सेवाएं ; अिखल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग ।
71. संघ की पशन, अथार्त ् भारत सरकार द्वारा या भारत की संिचत िनिध म से
संदेय पशन ।
72. संस के िलए, रा य के िवधान-मंडल के िलए तथा रा पित और उपरा पित
के पद के िलए िनवार्चन; िनवार्चन आयोग ।
73. संस सद य के, रा य सभा के सभापित और उपसभापित के तथा लोक
सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष के वेतन और भ े ।
74. संस के प्र येक सदन की और प्र येक सदन के सद य और सिमितय की
शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मुिक्तयां; संस की सिमितय या संस द्वारा िनयुक्त
आयोग के समक्ष सा य दे ने या द तावेज पेश करने के िलए यिक्तय को हािजर कराना

75. रा पित और रा यपाल की उपलि धयां, भ े, िवशेषािधकार और अनप ु ि थित
छुट्टी के संबंध म अिधकार ; संघ के मंित्रय के वेतन और भ े ; िनयंत्रक-
महालेखापरीक्षक के वेतन, भ े और अनुपि थित छुट्टी के संबंध म अिधकार और सेवा की
अ य शत ।

1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत" के थान पर (1-
11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 313

76. संघ के और रा य के लेखाओं की संपरीक्षा ।


77. उ चतम यायालय का गठन, संगठन, अिधकािरता और शिक्तयां (िजनके
अंतगर्त उस यायालय का अवमान है ) और उसम ली जाने वाली फीस ; उ चतम
यायालय के समक्ष िविध- यवसाय करने के हकदार यिक्त ।
78. उ च यायालय के अिधकािरय और सेवक के बारे म उपबंध को छोड़कर
उ च यायालय का गठन और संगठन 1[(िजसके अंतगर्त दीघार्वकाश है )] ; उ च
यायालय के समक्ष िविध- यवसाय करने के हकदार यिक्त।
[79. िकसी उ च यायालय की अिधकािरता का िकसी संघ रा यक्षेत्र पर
2

िव तारण और उससे अपवजर्न ।]


80. िकसी रा य के पिु लस बल के सद य की शिक्तय और अिधकािरता का उस
रा य से बाहर िकसी क्षेत्र पर िव तारण, िक तु इस प्रकार नहीं िक एक रा य की पुिलस
उस रा य से बाहर िकसी क्षेत्र म उस रा य की सरकार की सहमित के िबना िजसम
ऐसा क्षेत्र ि थत है , शिक्तय और अिधकािरता का प्रयोग करने म समथर् हो सके; िकसी
रा य के पिु लस बल के सद य की शिक्तय और अिधकािरता का उस रा य से बाहर रे ल
क्षेत्र पर िव तारण ।
81. अंतरराि यक प्र जन ; अंतरराि यक करं तीन ।
82. कृिष-आय से िभ न आय पर कर ।
83. सीमाशु क िजसके अंतगर्त िनयार्त शु क है ।
3
[84. भारत म िविनिमर्त या उ पािदत िन निलिखत माल पर उ पाद-शु क,--
(क) अपिर कृत पैट्रोिलयम ;
(ख) उ च गित डीजल ;
(ग) मोटर ि पिरट (सामा य प से पेट्रोल के प म ज्ञात) ;
(घ) प्राकृितक गैस ;
(ङ) िवमानन टबार्इन ईंधन ; और
(च) तंबाकू और तंबाकू उ पाद ।]
85. िनगम कर ।

1. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 12 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 314

86. यि य और कंपिनय की आि तय के, िजनके अंतगर्त कृिष भूिम नहीं


है , पूंजी मू य पर कर ; कंपिनय की पूंजी पर कर ।
87. कृिष भूिम से िभ न संपि के संबंध म संपदा शु क ।
88. कृिष भूिम से िभ न संपि के उ रािधकार के संबंध म शु क ।
89. रे ल, समुद्र या वायुमागर् द्वारा ले जाए जाने वाले माल या याित्रय पर सीमा
कर ; रे ल भाड़ और माल भाड़ पर कर ।
90. टाक एक्सचज और वायदा बाजार के सं यवहार पर टांप-शु क से िभ न
कर ।
91. िविनमय-पत्र , चेक , वचनपत्र , वहनपत्र , प्र ययपत्र , बीमा पािलिसय , शेयर
के अंतरण, िडबचर , परोिक्षय और प्राि य के संबंध म टांप-शु क की दर ।
1
[92. * * * * *]
[92क. समाचारपत्र से िभ न माल के क्रय या िवक्रय पर उस दशा म कर
2

िजसम ऐसा क्रय या िवक्रय अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है ।]


3
[92ख. माल के परे षण पर (चाहे परे षण उसके करने वाले यिक्त को या िकसी
अ य यिक्त को िकया गया है ), उस दशा म कर िजसम ऐसा परे षण अंतरराि यक
यापार या वािण य के दौरान होता है ।]
4
[92ग. * * * * *]
93. इस सूची के िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध

94. इस सूची के िवषय म से िकसी िवषय के प्रयोजन के िलए जांच, सवक्षण
और आंकड़े ।
95. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सूची के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ; नाविधकरण िवषयक अिधकािरता ।
96. इस सूची के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
97. कोई अ य िवषय जो सच ू ी 2 या सच
ू ी 3 म प्रगिणत नहीं है और िजसके
अंतगर्त कोई ऐसा कर है जो उन सूिचय म से िकसी सच ू ी म उि लिखत नहीं है ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 92 का
लोप िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतः थािपत ।
4. प्रिवि92ग संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (जो प्रव ृ नहीं हुई) अंतः थािपत की
गई थी उसका संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से)
लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 315

सचू ी 2 – रा य सच
ू ी
1. लोक यव था (िकं तु इसके अंतगर्त िसिवल शिक्त की सहायता के िलए
1
[नौसेना, सेना या वायु सेना या संघ के िकसी अ य सश बल का या संघ के िनयंत्रण
के अधीन िकसी अ य बल का या उसकी िकसी टुकड़ी या यूिनट का प्रयोग] नहीं है ) ।
2
[2. सच
ू ी 1 की प्रिवि 2क के उपबंध के अधीन रहते हुए पिु लस (िजसके
अंतगर्त रे ल और ग्राम पुिलस है )।]
3. 3*** उ च यायालय के अिधकारी और सेवक; भाटक और राज व यायालय
की प्रिक्रया ; उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय म ली जाने वाली फीस ।
4. कारागार, सध
ु ारालय, बौ टर् ल सं थाएं और उसी प्रकार की अ य सं थाएं और
उनम िन द्ध यिक्त ; कारागार और अ य सं थाओं के उपयोग के िलए अ य रा य से
ठहराव ।
5. थानीय शासन, अथार्त ् नगर िनगम , सुधार यास , िजला बोड , खनन-ब ती
प्रािधकािरय और थानीय वशासन या ग्राम प्रशासन के प्रयोजन के िलए अ य
थानीय प्रािधकािरय का गठन और शिक्तयां ।
6. लोक वा य और व छता ; अ पताल और औषधालय ।
7. भारत से बाहर के थान की तीथर्यात्राओं से िभ न तीथर्यात्राएं ।
8. मादक िलकर, अथार्त ् मादक िलकर का उ पादन, िविनमार्ण, क जा, पिरवहन,
क्रय और िवक्रय ।
9. िनःशक्त और िनयोजन के िलए अयोग्य यिक्तय की सहायता ।
10. शव गाड़ना और किब्र तान; शव-दाह और मशान ।
4
11* * * * *
12. रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत पु तकालय, संग्रहालय या वैसी ही अ य
सं थाएं; 5[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के 5[घोिषत]
िकए गए प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न प्राचीन और
ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा कितपय श द के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा प्रिवि 2 के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 11 का लोप िकया
गया ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत"
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 316

13. संचार, अथार्त ् सड़क, पुल, फेरी और अ य संचार साधन जो सूची 1 म


िविनिदर् नहीं ह ; नगरपािलक ट्राम ; र जुमागर् ; अंतदशीय जलमाग के संबध
ं म सूची
1 और सूची 3 के उपबंध के अधीन रहते हुए, अंतदशीय जलमागर् और उन पर
यातायात; यंत्र-नोिदत यान से िभ न यान ।
14. कृिष िजसके अंतगर्त कृिष िशक्षा और अनुसंधान, नाशक जीव से संरक्षण और
पादप रोग का िनवारण है ।
15. पशध ु न का पिररक्षण, संरक्षण और सध
ु ार तथा जीवजंतुओं के रोग का
िनवारण ; पशुिचिक सा प्रिशक्षण और यवसाय ।
16. कांजी हाउस और पशु अितचार का िनवारण ।
17. सूची 1 की प्रिवि 56 के उपबंध के अधीन रहते हुए, जल अथार्त ् जल
प्रदाय, िसंचाई और नहर, जल िनकास और तटबंध, जल भंडारकरण और जल शिक्त ।
18. भिू म, अथार्त ् भिू म म या उस पर अिधकार, भध
ू िृ त िजसके अंतगर्त भू वामी
और अिभधारी का संबंध है और भाटक का संग्रहण ; कृिष भूिम का अंतरण और अ य
संक्रामण; भूिम िवकास और कृिष उधार ; उपिनवेशन ।
1
[19* * * * *
20* * * * *]
21. मि यकी ।
22. सूची 1 की प्रिवि 34 के उपबंध के अधीन रहते हुए, प्रितपा य-अिधकरण ;
िव लंगिमत और कुकर् की गई संपदा ।
23. संघ के िनयंत्रण के अधीन िविनयमन और िवकास के संबंध म सच
ू ी 1 के
उपबंध के अधीन रहते हुए, खान का िविनयमन और खिनज िवकास ।
24. सूची 1 की 2[प्रिवि 7 और प्रिवि 52] के उपबंध के अधीन रहते हुए, उद्योग

25. गैस और गैस-संकमर् ।
26. सूची 3 की प्रिवि 33 के उपबंध के अधीन रहते हुए, रा य के भीतर
यापार और वािण य ।
27. सूची 3 की प्रिवि 33 के उपबंध के अधीन रहते हुए, माल का उ पादन,
प्रदाय और िवतरण ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 19 और 20 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 28 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 317

28. बाजार और मेले ।


1
29. * * * * *
30. साहूकारी और साहूकार; कृिष ऋिणता से मुिक्त ।
31. पांथशाला और पांथशालापाल ।
32. ऐसे िनगम का, जो सूची 1 म िविनिदर् िनगम से िभ न ह और
िव िवद्यालय का िनगमन, िविनयमन और पिरसमापन ; अिनगिमत यापािरक,
सािहि यक, वैज्ञािनक, धािमर्क और अ य सोसाइिटयां और संगम ; सहकारी सोसाइिटयां ।
33. नाटय़शाला और ना यप्रदशर्न ; सूची 1 की प्रिवि 60 के उपबंध के अधीन
रहते हुए, िसनेमा; खेलकूद, मनोरं जन और आमोद ।
34. दांव और द्यूत ।
35. रा य म िनिहत या उसके क जे के संकमर्, भिू म और भवन ।
2
36. * * * *
37. संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध के उपबंध के अधीन रहते हुए, रा य के
िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन ।
38. रा य के िवधान-मंडल के सद य के, िवधान सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष
के और, यिद िवधान पिरष है तो, उसके सभापित और उपसभापित के वेतन और भ े ।
39. िवधान सभा की और उसके सद य और सिमितय की तथा, यिद िवधान
पिरष है तो, उस िवधान पिरष की और उसके सद य और सिमितय की शिक्तयां,
िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां; रा य के िवधान-मंडल की सिमितय के समक्ष सा य दे ने
या द तावेज पेश करने के िलए यिक्तय को हािजर कराना ।
40. रा य के मंित्रय के वेतन और भ े ।
41. रा य लोक सेवाएं ; रा य लोक सेवा आयोग ।
42. रा य की पशन, अथार्त ् रा य द्वारा या रा य की संिचत िनिध म से संदेय
पशन ।
43. रा य का लोक ऋण ।
44. िनखात िनिध ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 29 का लोप िकया गया

2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रिवि 36 का लोप िकया गया

भारत का संिवधान 318

45. भ-ू राज व िजसके अंतगर्त राज व का िनधार्रण और संग्रहण, भ-ू अिभलेख रखना,
राज व के प्रयोजन के िलए और अिधकार के अिभलेख के िलए सवक्षण और राज व का
अ य संक्रामण है ।
46. कृिष आय पर कर ।
47. कृिष भूिम के उ रािधकार के संबंध म शु क ।
48. कृिष भूिम के संबंध म संपदा-शु क ।
49. भूिम और भवन पर कर ।
50. संस द्वारा, िविध द्वारा, खिनज िवकास के संबंध म अिधरोिपत िनबर् धन के
अधीन रहते हुए, खिनज संबंधी अिधकार पर कर ।
51. रा य म िविनिमर्त या उ पािदत िन निलिखत माल पर उ पाद-शु क और
भारत म अ यत्र िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही माल पर उसी दर या िन नतर दर से
प्रितशु क–
(क) मानवीय उपभोग के िलए ऐ कोहाली िलकर ;
(ख) अफीम, इंिडयन हप और अ य वापक ओषिधयां तथा वापक
पदाथर्,
िक तु िजसके अंतगर्त ऐसी ओषिधयां और प्रसाधन िनिमर्ितयां नहीं ह िजनम ऐ कोहाल
या इस प्रिवि के उपपैरा (ख) का कोई पदाथर् अंतिवर् है ।
1
[52. * * * * *]
53. िवद्युत के उपभोग या िवक्रय पर कर ।
2
[54. अपिर कृत पैट्रोिलयम, उ च गित डीजल, मोटर ि पिरट (सामा य प से
पेट्रोल के प म ज्ञात), प्राकृितक गैस, िवमानन टबार्इन ईंधन और मानवीय उपभोग के
िलए ए कोहाली िलकर के िवक्रय पर कर िकं तु इसके अंतगर्त ऐसे माल का
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनक्र ु म म िवक्रय या अ तररा ीय यापार या
वािण य के दौरान िवक्रय नहीं आता है ।]
3
[55. * * * * *]
56. सड़क या अ तदशीय जलमाग द्वारा ले जाए जाने वाले माल और याित्रय पर
कर ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 52 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) प्रित थािपत तथा पुनः संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-2-1977 से) अंतः थािपत और संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 319

57. सूची 3 की प्रिवि 35 के उपबंध के अधीन रहते हुए, सड़क पर उपयोग


के योग्य यान पर कर, चाहे वे यंत्र नोिदत ह या नहीं, िजनके अंतगर्त ट्रामकार ह ।
58. जीवजंतुओं और नौकाओं पर कर ।
59. पथकर ।
60. विृ य , यापार , आजीिवकाओं और िनयोजन पर कर ।
61. प्रित यिक्त कर ।
[62. मनोरं जन और आमोद-प्रमोद पर उस सीमा तक कर जो िकसी पंचायत या
1

िकसी नगरपािलका या िकसी प्रादे िशक पिरष या िकसी िजला पिरष द्वारा उद्गहीत
ृ और
संगह
ृ ीत िकया जाए ।]
63. टांप-शु क की दर के संबंध म सच ू ी 1 के उपबंध म िविनिदर् द तावेज
से िभ न द तावेज के संबंध म टांप-शु क की दर ।
64. इस सच
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध

65. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सच
ू ी के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
66. इस सचू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
सच
ू ी 3 – समवतीर् सच
ू ी
1. दं ड िविध िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
ू ी 1 या सच
भारतीय दं ड संिहता के अंतगर्त आते ह, िक तु इसके अंतगर्त सच ू ी 2 म
िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध और िसिवल
शिक्त की सहायता के िलए नौसेना, सेना या वायुसेना अथवा संघ के िकसी अ य सश
बल का प्रयोग नहीं है ।
2. दं ड प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
दं ड प्रिक्रया संिहता के अंतगर्त ह ।
3. िकसी रा य की सुरक्षा, लोक यव था बनाए रखने या समुदाय के िलए
आव यक प्रदाय और सेवाओं को बनाए रखने संबध ं ी कारण से िनवारक िनरोध, इस
प्रकार िनरोध म रखे गए यिक्त ।
4. बंिदय , अिभयुक्त यिक्तय और इस सूची की प्रिवि 3 म िविनिदर् कारण से
िनवारक िनरोध म रखे गए यिक्तय का एक रा य से दस ू रे रा य को हटाया जाना ।

1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iv) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 320

5. िववाह और िववाह-िव छे द; िशशु और अवय क; द क- ग्रहण; िवल, िनवर्सीयतता


और उ रािधकार ; अिवभक्त कुटु ब और िवभाजन ; वे सभी िवषय, िजनके संबंध म याियक
कायर्वािहय म पक्षकार इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले अपनी वीय िविध के अधीन थे ।
6. कृिष भिू म से िभ न संपि का अंतरण ; िवलेख और द तावेज का
रिज ट्रीकरण ।
7. संिवदाएं, िजनके अंतगर्त भागीदारी, अिभकरण, वहन की संिवदाएं और अ य
िवशेष प्रकार की संिवदाएं ह, िक तु कृिष भिू म संबंधी संिवदाएं नहीं ह ।
8. अनय
ु ो य दोष ।
9. शोधन अक्षमता और िदवाला ।
10. यास और यासी ।
11. महाप्रशासक और शासकीय यासी ।
[11क. याय प्रशासन ; उ चतम
1
यायालय और उ च यायालय से िभ न सभी
यायालय का गठन और संगठन ।]
12. सा य और शपथ ; िविधय , लोक काय और अिभलेख और याियक
कायर्वािहय को मा यता ।
13. िसिवल प्रिक्रया, िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ
पर िसिवल प्रिक्रया संिहता के अंतगर्त आते ह, पिरसीमा और मा य थम ् ।
14. यायालय का अवमान, िक तु इसके अंतगर्त उ चतम यायालय का अवमान
नहीं है ।
15. आिहंडन ; यायावरी और प्र ाजी जनजाितयां ।
16. पागलपन और मनोवैक य, िजसके अंतगर्त पागल और मनोिवकल यिक्तय
को ग्रहण करने या उनका उपचार करने के थान ह ।
17. पशुओं के प्रित क्रूरता का िनवारण ।
1
[17क. वन ।
17ख. व य जीवजंतुओं और पिक्षय का संरक्षण ।]
18. खाद्य पदाथ और अ य माल का अपिम ण ।
19. अफीम के संबंध म सूची 1 की प्रिवि 59 के उपबंध के अधीन रहते हुए
मादक द्र य और िवष ।
20. आिथर्क और सामािजक योजना ।
1
[20क. जनसंख्या िनयंत्रण और पिरवार िनयोजन ।]

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 321

21. वािणि यक और औद्योिगक एकािधकार, गुट और यास ।


22. यापार संघ ; औद्योिगक और म िववाद ।
23. सामािजक सुरक्षा और सामािजक बीमा ; िनयोजन और बेकारी ।
24. िमक का क याण िजसके अंतगर्त कायर् की दशाएं, भिव य िनिध, िनयोजक
का दािय व, कमर्कार प्रितकर, अशक्तता और वाधर्क्य पशन तथा प्रसूित सुिवधाएं ह ।
1
[25. सूची 1 की प्रिवि 63, 64, 65 और 66 के उपबंध के अधीन रहते हुए,
िशक्षा िजसके अंतगर्त तकनीकी िशक्षा, आयुिवर्ज्ञान िशक्षा और िव िवद्यालय ह ; िमक
का यावसाियक और तकनीकी प्रिशक्षण ।]
26. िविध विृ , िचिक सा विृ और अ य विृ यां ।
27. भारत और पािक तान डोिमिनयन के थािपत होने के कारण अपने मूल
िनवास- थान से िव थािपत यिक्तय की सहायता और पुनवार्स ।
28. पूतर् कायर् और पूतर् सं थाएं, पूतर् और धािमर्क िव यास और धािमर्क सं थाएं ।
29. मानव , जीव-जंतुओं या पौध पर प्रभाव डालने वाले संक्रामक या सांसिगर्क
रोग अथवा नाशकजीव के एक रा य से दस ू रे रा य म फैलने का िनवारण ।
30. ज म-मरण सांिख्यकी, िजसके अंतगर्त ज म और म ृ यु रिज ट्रीकरण है ।
31. संस द्वारा बनाई गई िविध या िवद्यमान िविध द्वारा या उसके अधीन
महाप न घोिषत प न से िभ न प न ।
32. रा ीय जलमाग के संबंध म सूची 1 के उपबंध के अधीन रहते हुए,
अंतदशीय जलमाग पर यंत्र नोिदत जलयान के संबंध म पोत पिरवहन और नौ पिरवहन
तथा ऐसे जलमाग पर मागर् का िनयम और अंतदशीय जलमाग द्वारा याित्रय और माल
का वहन ।
2
[33. (क) जहां संस द्वारा िविध द्वारा िकसी उद्योग का संघ द्वारा िनयंत्रण
लोकिहत म समीचीन घोिषत िकया जाता है वहां उस उद्योग के उ पाद का और उसी
प्रकार के आयात िकए गए माल का ऐसे उ पाद के प म,
(ख) खाद्य पदाथ का िजनके अंतगर्त खाद्य ितलहन और तेल ह,
(ग) पशुओं के चारे का िजसके अंतगर्त खली और अ य सारकृत चारे ह,
(घ) क ची कपास का, चाहे वह ओटी हुई हो या िबना ओटी हो, और िबनौले का,
और
(ङ) क चे जूट का,
यापार और वािण य तथा उनका उ पादन, प्रदाय और िवतरण ।]

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (तीसरा संशोधन) अिधिनयम, 1954 की धारा 2 द्वारा (22-2-1955 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 322

1
[33क. बाट और माप, िजनके अंतगर्त मानक का िनयत िकया जाना नहीं
है ।]
34. कीमत िनयंत्रण ।
35. यंत्र नोिदत यान िजसके अंतगर्त वे िसद्धा त ह िजनके अनुसार ऐसे यान पर
कर उद्गहीत
ृ िकया जाना है ।
36. कारखाने ।
37. बायलर ।
38. िवद्युत ।
39. समाचारपत्र, पु तक और मुद्रणालय ।
40. 2[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
2
[घोिषत] पुरात वीय थल और अवशेष से िभ न परु ात वीय थल और अवशेष ।
41. ऐसी संपि की (िजसके अंतगर्त कृिष भूिम है ) अिभरक्षा, प्रबंध और ययन
जो िविध द्वारा िन क्रांत संपि घोिषत की जाए ।
3
[42. संपि का अजर्न और अिधग्रहण ।]
43. िकसी रा य म, उस रा य से बाहर उद्भत ू कर से संबंिधत दाव और अ य
लोक मांग की वसलू ी िजनके अंतगर्त भ-ू राज व की बकाया और ऐसी बकाया के प म
वसूल की जा सकने वाली रािशयां ह ।
44. याियक टांप के द्वारा संगह
ृ ीत शु क या फीस से िभ न टांप-शु क,
िक तु इसके अंतगर्त टांप-शु क की दर नहीं ह ।
45. सूची 2 या सूची 3 म िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय़ के प्रयोजन के
िलए जांच और आंकड़े ।
46. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सूची के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
47. इस सच
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।

1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन
घोिषत" के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
आठवीं अनुसच
ू ी
[अनु छे द 344(1) और अनु छे द 351]
भाषाएं
1. असिमया ।
2. बंगला ।
1
[3. बोडो ।
4. डोगरी ।]
2
[5.] गज
ु राती ।
3
[6.] िह दी ।
3
[7.] क नड ।
3
[8.] क मीरी ।
4 3
[ [9.] क कणी ।]
1
[10. मैिथली ।]
5
[11.] मलयालम ।
4 6
[ [12.] मिणपुरी ।]
6
[13.] मराठी ।
4 6
[ [14.] नेपाली ।]
6
[15.] 7[ओिडया]
6
[16.] पंजाबी ।
6
[17.] सं कृत ।

1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 3 को प्रिवि 5 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 4 से 7 को प्रिवि 6 से
प्रिवि 9 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (इकह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (31-8-1992 से) अ तः थािपत ।
5. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 8 को प्रिवि 11 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
6. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 9 से प्रिवि 14 को प्रिवि 12 से प्रिवि
17 के प म पुनःसंख्यांिकत (7-1-2004 से) िकया गया ।
7. संिवधान (िछयानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा “उिड़या” के थान पर (23-9-2011 से)
प्रित थािपत।

323
भारत का संिवधान 324

1
[18. संथाली ।]
2 3
[ [19.] िसंधी ।]
4
[20.] तिमल ।
5
[21.] तेलग
ु ू ।
5
[22.] उदर् ू ।

1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (इक्कीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1967 की धारा 2 द्वारा (10-4-1967 से) जोड़ा गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 15 को प्रिवि 19 के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 16 से प्रिवि 18 को
प्रिवि 20 से प्रिवि 22 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
[नवीं अनस
1
ु च
ू ी
[अनु छे द 31ख]
1. िबहार भूिम सुधार अिधिनयम, 1950 (1950 का िबहार अिधिनयम 30) ।
2. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम अिधिनयम, 1948 (1948 का मुंबई अिधिनयम
67)।
3. मुंबई मािलकी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई अिधिनयम
61)।
4. मुंबई तालुकदारी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 62)।
5. पंच महल मेहवासी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 63)।
6. मुंबई खेती उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का मुंबई अिधिनयम 6)।
7. मुंबई परगना और कुलकणीर् वतन उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का
मुंबई अिधिनयम 60)।
8. म य प्रदे श सांपि क अिधकार (संपदा, महल, अ य संक्रांत भूिम) उ सादन
अिधिनयम, 1950 (म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 1 सन ् 1951)।
9. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम, 1948
(1948 का मद्रास अिधिनयम 26)।
10. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) संशोधन अिधिनयम,
1950 (1950 का मद्रास अिधिनयम 1)।
11. 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम- यव था अिधिनयम
(उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1, 1951)।
12. है दराबाद (जागीर उ सादन) िविनयम, 1358फ (1358 फसली का सं0 69)।
13. है दराबाद जागीर (पिरवतर्न) िविनयम, 1359फ (1359 फसली का सं0 25)।
2
[14. िबहार िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1950 (1950
का िबहार अिधिनयम 38) ।
15. संयुक्त प्रांत के शरणािथर्य को बसाने के िलए भूिम प्रा करने का ऐक्ट, 1948
ई0 (संयुक्त प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948) ।
16. िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1948 (1948 का
अिधिनयम 60) ।
17. बीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1950 (1950 का अिधिनयम 47) की धारा 42
द्वारा य़था अंतः थािपत बीमा अिधिनयम, 1938 (1938 का अिधिनयम 4) की धारा
52क से धारा 52छ ।
18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अिधिनयम, 1951 (1951 का अिधिनयम 51) ।

1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 14 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 5 द्वारा (27-4-1955 से) जोड़ा गया ।

325
भारत का संिवधान 326

19. उद्योग (िवकास और िविनयमन) संशोधन अिधिनयम, 1953 (1953 का


अिधिनयम 26) की धारा 13 द्वारा यथा अंतः थािपत उद्योग (िवकास और िविनयमन)
अिधिनयम, 1951 (1951 का अिधिनयम 65) का अ याय 3क ।
20. 1951 के पि मी बंगाल अिधिनयम 29 द्वारा यथा संशोिधत पि मी बंगाल
भिू म िवकास और योजना अिधिनयम, 1948 (1948 का पि मी बंगाल अिधिनयम 21)
।]
1
[21. आंध्र प्रदे श अिधकतम कृिष जोत सीमा अिधिनयम, 1961 (1961 का आंध्र
प्रदे श अिधिनयम 10) ।
22. आंध्र प्रदे श (तेलंगाना क्षेत्र) अिभधिृ त और कृिष भिू म (िविधमा यकरण)
अिधिनयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अिधिनयम 21)।
23. आंध्र प्रदे श (तेलंगाना क्षेत्र) इजारा और कौली भूिम अिनयिमत पट्टा र करण
और िरयायती िनधार्रण उ सादन अिधिनयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अिधिनयम
36)।
24. असम रा य लोक प्रकृित की धािमर्क या पूतर् सं था भूिम अजर्न अिधिनयम,
1959 (1961 का असम अिधिनयम 9) ।
25. िबहार भिू म सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1953 (1954 का िबहार अिधिनयम
20) ।
26. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
अिधिनयम, 1961 (1962 का िबहार अिधिनयम सं0 12) िजसके अंतगर्त इस
अिधिनयम की धारा 28 नहीं है ।
27. मुंबई तालुकदारी भूधिृ त उ सादन (संशोधन) अिधिनयम, 1954 (1955 का
मंबु ई अिधिनयम 1) ।
28. मंब
ु ई तालक
ु दारी भध
ू िृ त उ सादन (संशोधन) अिधिनयम, 1957 (1958 का
मुंबई अिधिनयम 18) ।
29. मुंबई इनाम (क छ क्षेत्र) उ सादन अिधिनयम, 1958 (1958 का मुंबई
अिधिनयम 98) ।
30. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम (गुजरात संशोधन) अिधिनयम, 1960 (1960
का गुजरात अिधिनयम 16)।
31. गुजरात कृिष भूिम अिधकतम सीमा अिधिनयम, 1960 (1961 का गुजरात
अिधिनयम 26) ।
32. सगबारा और मेहवासी संपदा (सांपि क अिधकार उ सादन, आिद) िविनयम,
1962 (1962 का गज
ु रात िविनयम 1) ।

1. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 3 द्वारा (20-6-1964 से) जोड़ा गया ।
भारत का संिवधान 327

33. गुजरात शेष अ य संक्रामण उ सादन अिधिनयम, 1963 (1963 का गुजरात


अिधिनयम 33), वहां तक के िसवाय जहां तक यह अिधिनयम इसकी धारा 2 के खंड
(3) के उपखंड (घ) म िनिदर् अ य संक्रामण के संबंध म है ।
34. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) अिधिनयम, 1961 (1961 का
महारा अिधिनयम 27) ।
35. है दाराबाद अिभधिृ त और कृिष भूिम (पुनःअिधिनयमन, िविधमा यकरण और
अितिरक्त संशोधन) अिधिनयम, 1961 (1961 का महारा अिधिनयम 45) ।
36. है दराबाद अिभधिृ त और कृिष भूिम अिधिनयम, 1950 (1950 का है दराबाद
अिधिनयम 21) ।
37. ज मीकरम संदाय (उ सादन) अिधिनयम, 1960 (1961 का केरल अिधिनयम
3) ।
38. केरल भूिम-कर अिधिनयम, 1961 (1961 का केरल अिधिनयम 13) ।
39. केरल भूिम सुधार अिधिनयम, 1963 (1964 का केरल अिधिनयम 1) ।
40. म य प्रदे श भ-ू राज व संिहता, 1959 (म य प्रदे श अिधिनयम, क्रमांक 20 सन ्
1959) ।
41. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा अिधिनयम, 1960 (म य प्रदे श
अिधिनयम क्रमांक 20 सन ् 1960)।
42. मद्रास खेितहर अिभधारी संरक्षण अिधिनयम, 1955 (1955 का मद्रास
अिधिनयम 25) ।
43. मद्रास खेितहर अिभधारी (उिचत लगान संदाय) अिधिनयम, 1956 (1956
का मद्रास अिधिनयम 24) ।
44. मद्रास कुडीइ पु अिधभोगी (बेदखली से संरक्षण) अिधिनयम, 1961 (1961
का मद्रास अिधिनयम 38) ।
45. मद्रास लोक यास (कृिष भूिम प्रशासन िविनयमन) अिधिनयम, 1961
(1961 का मद्रास अिधिनयम 57)।
46. मद्रास भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) अिधिनयम, 1961
(1961 का मद्रास अिधिनयम 58)।
47. मैसरू अिभधिृ त अिधिनयम, 1952 (1952 का मैसरू अिधिनयम 13) ।
48. कोड़गू अिभधारी अिधिनयम, 1957 (1957 का मैसरू अिधिनयम 14) ।
49. मैसरू ग्राम-पद उ सादन अिधिनयम, 1961 (1961 का मैसरू अिधिनयम
14) ।
50. है दराबाद अिभधिृ त और कृिष भूिम (िविधमा यकरण) अिधिनयम, 1961
(1961 का मैसूर अिधिनयम 36)।
51. मैसूर भूिम सुधार अिधिनयम, 1961 (1962 का मैसूर अिधिनयम 10) ।
भारत का संिवधान 328

52. उड़ीसा भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अिधिनयम 16) ।
53. उड़ीसा िवलीन रा यक्षेत्र (ग्राम-पद उ सादन) अिधिनयम, 1963 (1963 का
उड़ीसा अिधिनयम 10) ।
54. पंजाब भू-धिृ त सुरक्षा अिधिनयम, 1953 (1953 का पंजाब अिधिनयम
10) ।
55. राज थान अिभधिृ त अिधिनयम, 1955 (1955 का राज थान अिधिनयम
3) ।
56. राज थान जमींदारी और िब वेदारी उ सादन अिधिनयम, 1959 (1959 का
राज थान अिधिनयम 8) ।
57. कुमायंू तथा उ राखंड जमींदारी िवनाश तथा भिू म- यव था अिधिनयम,
1960 (उ र प्रदे श अिधिनयम 17, 1960) ।
58. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण अिधिनयम, 1960 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 1, 1961)।
59. पि मी बंगाल संपदा अजर्न अिधिनयम, 1953 (1954 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 1) ।
60. पि मी बंगाल भूिम सुधार अिधिनयम, 1955 (1956 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 10) ।
61. िद ली भिू म सध ु ार अिधिनयम, 1954 (1954 का िद ली अिधिनयम 8) ।
62. िद ली भिू म जोत (अिधकतम सीमा) अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 24) ।
63. मिणपुर भू-राज व और भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 33) ।
64. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 43) ।
1
[65. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
35) ।
66. केरल भिू म सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का केरल अिधिनयम
25) ।]
2
[67. आंध्र प्रदे श भूिम सुधार (अिधकतम कृिष जोत सीमा) अिधिनयम, 1973
(1973 का आंध्र प्रदे श अिधिनयम 1) ।
68. िबहार भिू म सध ु ार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973 का िबहार अिधिनयम 1) ।

1. संिवधान (उनतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (9-6-1972 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (च तीस संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (7-9-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 329

69. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का िबहार अिधिनयम 9) ।
70. िबहार भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का िबहार
अिधिनयम सं0 5) ।
71. गुजरात अिधकतम कृिष भूिम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1974
का गुजरात अिधिनयम 2) ।
72. हिरयाणा भूिम जोत की अिधकतम सीमा अिधिनयम, 1972 (1972 का
हिरयाणा अिधिनयम 26) ।
73. िहमाचल प्रदे श अिधकतम भूिम जोत सीमा अिधिनयम, 1972 (1973 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 19) ।
74. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का केरल
अिधिनयम 17) ।
75. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (म य
प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 12 सन ् 1974) ।
76. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (िद्वतीय संशोधन) अिधिनयम, 1972
(म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 13 सन ् 1974) ।
77. मैसूर भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1974 का कनार्टक
अिधिनयम 1) ।
78. पंजाब भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1973 का पंजाब अिधिनयम 10) ।
79. राज थान कृिष जोत पर अिधकतम सीमा अिधरोपण अिधिनयम, 1973
(1973 का राज थान अिधिनयम 11)।
80. गड ु लरू ज मम ् संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम,
1969 (1969 का तिमलनाड़ु अिधिनयम 24)।
81. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 12) ।
82. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अिधिनयम, 1964 (1964 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 22) ।
83. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 33) ।
84. मंब
ु ई अिभधिृ त और कृिष भिू म (गजु रात संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973
का गुजरात अिधिनयम 5) ।
85. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का उड़ीसा
अिधिनयम 9) ।
86. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सधु ार (दसू रा संशोधन) अिधिनयम, 1974
(1974 का ित्रपुरा अिधिनयम 7) ।]
भारत का संिवधान 330

1-2
[87. * * * * *]
88. उद्योग (िवकास और िविनयमन) अिधिनयम, 1951 (1951 का के द्रीय
अिधिनयम 65) ।
89. थावर संपि अिधग्रहण और अजर्न अिधिनयम, 1952 (1952 का के द्रीय
अिधिनयम 30) ।
90. खान और खिनज (िविनयमन और िवकास) अिधिनयम, 1957 (1957 का
के द्रीय अिधिनयम 67) ।
91. एकािधकार तथा अवरोधक यापािरक यवहार अिधिनयम, 1969 (1969 का

के द्रीय अिधिनयम 54) ।


3
[92. * * * *]
93. कोककारी कोयला खान (आपात उपबंध) अिधिनयम, 1971 (1971 का
के द्रीय अिधिनयम 64) ।
94. कोककारी कोयला खान (रा ीयकरण) अिधिनयम, 1972 (1972 का के द्रीय
अिधिनयम 36) ।
95. साधारण बीमा कारबार (रा ीयकरण) अिधिनयम, 1972 (1972 का के द्रीय
अिधिनयम 57) ।
96. इंिडयन कॉपर कारपोरे शन (उपक्रम का अजर्न) अिधिनयम, 1972 (1972 का
के द्रीय अिधिनयम 58) ।
97. ग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंध ग्रहण) अिधिनयम, 1972 (1972 का के द्रीय
अिधिनयम 72) ।
98. कोयला खान (प्रबंध ग्रहण) अिधिनयम, 1973 (1973 का के द्रीय
अिधिनयम 15) ।
99. कोयला खान (रा ीयकरण) अिधिनयम, 1973 (1973 का के द्रीय
अिधिनयम 26) ।
100. िवदे शी

मुद्रा िविनयमन अिधिनयम, 1973 (1973 का के द्रीय
अिधिनयम 46) ।

1. संिवधान (उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (10-8-1975 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 87 का लोप िकया
गया ।
 प्रित पधार् अिधिनयम, 2002 (2003 का 12) की धारा 66 द्वारा (1-9-2009 से) िनरिसत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 92 का लोप िकया
गया ।
 िवदे शी मुद्रा प्रबंध अिधिनयम, 1999 (1999 का 42) की धारा 49 द्वारा (1-6-2000 से) िनरिसत ।
भारत का संिवधान 331

101. एलकाक एशडाउन कंपनी िलिमटे ड (उपक्रम का अजर्न) अिधिनयम, 1973


(1973 का के द्रीय अिधिनयम 56) ।
102. कोयला खान (संरक्षण और िवकास) अिधिनयम, 1974 (1974 का के द्रीय
अिधिनयम 28) ।
103. अितिरक्त उपलि धयां (अिनवायर् िनक्षेप) अिधिनयम, 1974 (1974 का
के द्रीय अिधिनयम 37) ।
104. िवदे शी मुद्रा संरक्षण और त करी िनवारण अिधिनयम, 1974 (1974 का
के द्रीय अिधिनयम 52) ।
105. ग्ण कपड़ा उपक्रम (रा ीयकरण) अिधिनयम, 1974 (1974 का के द्रीय
अिधिनयम 57) ।
106. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1964
(1965 का महारा अिधिनयम 16) ।
107. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1965
(1965 का महारा अिधिनयम 32) ।
108. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1968
(1968 का महारा अिधिनयम 16) ।
109. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम,
1968 (1968 का महारा अिधिनयम 33) ।
110. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1969
(1969 का महारा अिधिनयम 37) ।
111. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम,
1969 (1969 का महारा अिधिनयम 38) ।
112. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1970
(1970 का महारा अिधिनयम 27) ।
113. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1972
(1972 का महारा अिधिनयम 13) ।
114. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1973
(1973 का महारा अिधिनयम 50) ।
115. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1965 (1965 का उड़ीसा
अिधिनयम 13) ।
भारत का संिवधान 332

116. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1966 (1967 का उड़ीसा


अिधिनयम 8) ।
117. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1967 (1967 का उड़ीसा
अिधिनयम 13) ।
118. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1969 (1969 का उड़ीसा
अिधिनयम 13) ।
119. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1970 (1970 का उड़ीसा
अिधिनयम 18) ।
120. उ र प्रदे श अिधकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अिधिनयम, 1972
(उ र प्रदे श अिधिनयम 18, 1973) ।
121. उ र प्रदे श अिधकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अिधिनयम, 1974
(उ र प्रदे श अिधिनयम 2, 1975) ।
122. ित्रपुरा भू-राज व और भूिम सुधार (तीसरा संशोधन) अिधिनयम, 1975
(1975 का ित्रपुरा अिधिनयम 3)।
123. दादरा और नागर हवेली भूिम सुधार िविनयम, 1971 (1971 का 3) ।
124. दादरा और नागर हवेली भूिम सुधार (संशोधन) िविनयम, 1973
(1973 का 5) ।
[125. मोटर यान अिधिनयम, 1939 (1939 का के द्रीय अिधिनयम 4) की
1

धारा 66क और अ याय 4क* ।


126. आव यक व तु अिधिनयम, 1955 (1955 का के द्रीय अिधिनयम 10) ।
127. त कर और िवदे शी मुद्रा छलसाधक (संपि समपहरण) अिधिनयम, 1976
(1976 का के द्रीय अिधिनयम 13)।
128. बंिधत म पद्धित (उ सादन) अिधिनयम, 1976 (1976 का के द्रीय
अिधिनयम 19) ।
129. िवदे शी मुद्रा संरक्षण और त करी िनवारण (संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का के द्रीय अिधिनयम 20) ।
2
[130* * * *]

1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (27-5-1978 से) प्रिवि 125 से प्रिवि 188 तक
अंतः थािपत ।
* अब मोटर यान अिधिनयम, 1988 (1988 का 59) के सुसंगत उपबंध दे ख ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 130 का लोप िकया
गया ।
भारत का संिवधान 333

131. लेवी चीनी समान कीमत िनिध अिधिनयम, 1976 (1976 का के द्रीय
अिधिनयम 31) ।
132. नगर-भूिम (अिधकतम सीमा और िविनयमन) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 33) ।
133. संघ लेखा िवभागीकरण (कािमर्क अंतरण) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 59) ।
134. असम अिधकतम भूिम जोत सीमा िनयतन अिधिनयम, 1956 (1957 का
असम अिधिनयम 1) ।
135. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम (िवदभर् क्षेत्र) अिधिनयम, 1958 (1958 का
मुंबई अिधिनयम 99) ।
136. गुजरात प्राइवेट वन (अजर्न) अिधिनयम, 1972 (1973 का गुजरात
अिधिनयम 14) ।
137. हिरयाणा भूिम-जोत की अिधकतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का हिरयाणा अिधिनयम 17) ।
138. िहमाचल प्रदे श अिभधिृ त और भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1974 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 8) ।
139. िहमाचल प्रदे श ग्राम शािमलाती भूिम िनधान और उपयोजन
अिधिनयम, 1974 (1974 का िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 18) ।
140. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन और प्रकीणर् उपबंध) अिधिनयम, 1974
(1974 का कनार्टक अिधिनयम 31) ।
141. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का कनार्टक
अिधिनयम 27) ।
142. केरल बेदखली िनवारण अिधिनयम, 1966 (1966 का केरल
अिधिनयम 12) ।
143. ित पुवारम ् संदाय (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल
अिधिनयम 19) ।
144. ी पादम ् भूिम िवमुिक्त अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
20) ।
145. ीपणडारवका भूिम (िनधान और िवमुिक्त) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 20) ।
146. केरल प्राइवेट वन (िनधान और समनुदेशन) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 26) ।
147. केरल कृिष कमर्कार अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल अिधिनयम 18) ।
148. केरल काजू कारखाना (अजर्न) अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल
अिधिनयम 29) ।
भारत का संिवधान 334

149. केरल िचट्टी अिधिनयम, 1975 (1975 का केरल अिधिनयम 23) ।


150. केरल अनस ु िू चत जनजाित (भिू म के अंतरण पर िनबर्ंधन और अ य संक्रांत
भूिम का प्र यावतर्न) अिधिनयम, 1975 (1975 का केरल अिधिनयम 31) ।
151. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का केरल
अिधिनयम 15) ।
152. काणम ् अिभधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1976 (1976 का केरल
अिधिनयम 16) ।
153. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1974
(म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 20 सन ् 1974)।
154. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1975
(म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 2 सन ् 1976) ।
155. पि मी खानदे श मेहवासी संपदा (सांपि क अिधकार उ सादन, आिद)
िविनयम, 1961 (1962 का महारा िविनयम 1) ।
156. महारा अनुसिू चत जनजाितय को भिू म का प्र यावतर्न अिधिनयम, 1974
(1975 का महारा अिधिनयम 14) ।
157. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) अिधिनयम,
1972 (1975 का महारा अिधिनयम 21)।
158. महारा प्राइवेट वन (अजर्न) अिधिनयम, 1975 (1975 का महारा अिधिनयम
29) ।
159. महारा कृिष भूिम (अिधकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) संशोधन
अिधिनयम, 1975 (1975 का महारा अिधिनयम 47)।
160. महारा कृिष भिू म (अिधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1975
(1976 का महारा अिधिनयम 2)।
161. उड़ीसा संपदा उ सादन अिधिनयम, 1951 (1952 का उड़ीसा
अिधिनयम 1)।
162. राज थान उपिनवेशन अिधिनयम, 1954 (1954 का राज थान
अिधिनयम 27) ।
163. राज थान भूिम सुधार तथा भू- वािमय की संपदा का अजर्न अिधिनयम,
1963 (1964 का राज थान अिधिनयम सं0 11) ।
164. राज थान कृिष जोत पर अिधकतम सीमा अिधरोपण (संशोधन) अिधिनयम,
1976 (1976 का राज थान अिधिनयम सं0 8) ।
165. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का राज थान
अिधिनयम सं0 12) ।
166. तिमलनाडु भिू म सध ु ार (अिधकतम भिू म सीमा घटाना) अिधिनयम, 1970
(1970 का तिमलनाडु अिधिनयम 17) ।
भारत का संिवधान 335

167. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1971 (1971 का तिमलनाडु अिधिनयम 41) ।
168. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
ू रा संशोधन
169. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 20) ।
170. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 37) ।
171. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) चौथा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 39) ।
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) छठा संशोधन
172. तिमलनाडु भिू म सध
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 7) ।
173. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) पांचवां संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
174. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 15) ।
175. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 30) ।
176. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 32) ।
177. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 11) ।
178. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
179. उ र प्रदे श भूिम-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (उ र प्रदे श अिधिनयम
संख्या 21,1971) तथा उ र प्रदे श भिू म-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 34,1974) द्वारा 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम-
यव था अिधिनयम (उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1,1951) म िकए गए संशोधन ।
180. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (उ र
प्रदे श अिधिनयम संख्या 20,1976) ।
181. पि मी बंगाल भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 28) ।
182. पि मी बंगाल अ य संक्रात भूिम का प्र यावतर्न अिधिनयम, 1973 (1973
का पि मी बंगाल अिधिनयम 23) ।
भारत का संिवधान 336

183. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का पि मी


बंगाल अिधिनयम 33) ।
184. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1975 (1975 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 23) ।
185. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 12) ।
186. िद ली भूिम जोत (अिधकतम सीमा) संशोधन अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 15) ।
187. गोवा, दमण और दीव मुंडकार (बेदखली से संरक्षण) अिधिनयम, 1975
(1976 का गोवा, दमण और दीव अिधिनयम 1) ।
188. पांिडचेरी भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) अिधिनयम, 1973
(1974 का पांिडचेरी अिधिनयम 9)।
[189. असम (अ थायी प से
1
यव थािपत क्षेत्र) अिभधिृ त अिधिनयम, 1971
(1971 का असम अिधिनयम 23) ।
190. असम (अ थायी प से यव थािपत क्षेत्र) अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम,
1974 (1974 का असम अिधिनयम 18) ।
191. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) संशोधी अिधिनयम, 1974 (1975 का िबहार अिधिनयम 13) ।
192. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का िबहार अिधिनयम 22) ।
193. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1978 (1978 का िबहार अिधिनयम 7) ।
194. भिू म अजर्न (िबहार संशोधन) अिधिनयम, 1979 (1980 का िबहार अिधिनयम 2) ।
195. हिरयाणा (भूिम-जोत की अिधकतम सीमा) (संशोधन) अिधिनयम, 1977
(1977 का हिरयाणा अिधिनयम 14) ।
196. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1978 (1978 का तिमलनाडु अिधिनयम 25) ।
197. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1979 (1979 का तिमलनाडु अिधिनयम 11) ।

1. संिवधान (सतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 189 से प्रिवि 202 तक (26-8-
1984 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 337

198. उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1978 (1978 का


उ र प्रदे श अिधिनयम 15) ।
199. पि मी बंगाल अ य संक्रात भूिम का प्र यावतर्न (संशोधन) अिधिनयम,
1978 (1978 का पि मी बंगाल अिधिनयम 24) ।
200. पि मी बंगाल अ य संक्रात भूिम का प्र यावतर्न (संशोधन) अिधिनयम,
1980 (1980 का पि मी बंगाल अिधिनयम 56) ।
201. गोवा, दमण और दीव कृिष अिभधिृ त अिधिनयम, 1964 (1964 का गोवा,
दमण और दीव अिधिनयम 7) ।
202. गोवा, दमण और दीव कृिष अिभधिृ त (पांचवां संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का गोवा, दमण और दीव अिधिनयम 17) ।]
1
[203. आंध्र प्रदे श अनुसूिचत क्षेत्र भूिम अंतरण िविनयम, 1959 (1959 का आंध्र
प्रदे श िविनयम 1) ।
204. आंध्र प्रदे श अनुसूिचत क्षेत्र िविध (िव तारण और संशोधन) िविनयम, 1963
(1963 का आंध्र प्रदे श िविनयम 2)।
205. आंध्र प्रदे श अनसु िू चत क्षेत्र भिू म अंतरण (संशोधन) िविनयम, 1970 (1970
का आंध्र प्रदे श िविनयम 1) ।
206. आंध्र प्रदे श अनसु िू चत क्षेत्र भिू म अंतरण (संशोधन) िविनयम, 1971 (1971
का आंध्र प्रदे श िविनयम 1) ।
207. आंध्र प्रदे श अनसु िू चत क्षेत्र भूिम अंतरण (संशोधन) िविनयम, 1978 (1978
का आंध्र प्रदे श िविनयम 1) ।
208. िबहार का तकारी अिधिनयम, 1885 (1885 का िबहार अिधिनयम 8) ।
209. छोटा नागपुर का तकारी अिधिनयम, 1908 (1908 का बंगाल अिधिनयम 6)
(अ याय 8--धारा 46, धारा 47, धारा 48, धारा 48क और धारा 49; अ याय 10 -- धारा
71, धारा 71क और धारा 71ख और अ याय 18--धारा 240, धारा 241, धारा 242) ।
210. संथाल परगना का तकारी (पूरक प्रावधान) अिधिनयम, 1949 (1949 का
िबहार अिधिनयम 14) धारा 53 को छोड़कर ।
211. िबहार अनस
ु िू चत क्षेत्र िविनयम, 1969 (1969 का िबहार िविनयम 1)
212. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1982 (1982 का िबहार अिधिनयम 55) ।

1. संिवधान (िछयासठवां संशोधन) अिधिनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 203 से 257 तक (7-6-1990 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 338

213. गुजरात दे व थान इनाम उ सादन अिधिनयम, 1969 (1969 का गुजरात


अिधिनयम 16) ।
214. गज
ु रात अिभधिृ त िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का गज
ु रात
अिधिनयम 37) ।
215. गुजरात अिधकतम कृिष भूिम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976
का रा पित अिधिनयम 43) ।
216. गुजरात दे व थान इनाम उ सादन (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का
गुजरात अिधिनयम 27) ।
217. गुजरात अिभधिृ त िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का गुजरात
अिधिनयम 30) ।
218. मु बई भ-ू राज व (गज
ु रात दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1980 (1980 का
गुजरात अिधिनयम 37) ।
219. मु बई भू-राज व संिहता और भूधिृ त उ सादन िविध (गुजरात संशोधन)
अिधिनयम, 1982 (1982 का गुजरात अिधिनयम 8) ।
220. िहमाचल प्रदे श भूिम अंतरण (िविनयमन) अिधिनयम, 1968 (1969 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 15) ।
221. िहमाचल प्रदे श भूिम अंतरण (िविनयमन) (संशोधन) अिधिनयम, 1986
(1986 का िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 16)।
ु िू चत जाित और अनुसिू चत जनजाित (कितपय भिू म अंतरण
222. कनार्टक अनस
प्रितषेध) अिधिनयम, 1978 (1979 का कनार्टक अिधिनयम 2) ।
223. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1978 (1978 का केरल
अिधिनयम 13) ।
224. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1981 (1981 का केरल
अिधिनयम 19) ।
ृ ीय संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का
225. म य प्रदे श भू-राज व संिहता (तत
म य प्रदे श अिधिनयम 61) ।
226. म य प्रदे श भ-ू राज व संिहता (संशोधन) अिधिनयम, 1980 (1980 का म य
प्रदे श अिधिनयम 15) ।
227. म य प्रदे श अकृिषक जोत उ चतम सीमा अिधिनयम, 1981 (1981 का म य
प्रदे श अिधिनयम 11) ।
228. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (िद्वतीय संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1984 का म य प्रदे श अिधिनयम 1) ।
229. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984
का म य प्रदे श अिधिनयम 14) ।
भारत का संिवधान 339

230. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989
का म य प्रदे श अिधिनयम 8)।
231. महारा भू-राज व संिहता, 1966 (1966 का महारा अिधिनयम 41) धारा
36, धारा 36क और धारा 36ख ।
232. महारा भ-ू राज व संिहता और महारा अनस
ु िू चत जनजाित भिू म प्र यावतर्न
(दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1977 का महारा अिधिनयम 30) ।
233. महारा कितपय भूिम म खान और खिनज के िवद्यमान सांपि क अिधकार
का उ सादन अिधिनयम, 1985 (1985 का महारा अिधिनयम 16) ।
234. उड़ीसा अनस
ु ूिचत क्षेत्र (अनुसूिचत जनजाितय द्वारा) थावर संपि अंतरण
िविनयम, 1956 (1956 का उड़ीसा िविनयम 2) ।
235. उड़ीसा भिू म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1975 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 29) ।
236. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अिधिनयम
30) ।
237. उड़ीसा भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 44) ।
238. राज थान उपिनवेशन (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 12) ।
239. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 13) ।
240. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1987 (1987 का राज थान
अिधिनयम 21) ।
241. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1979 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 8) ।
242. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1980 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
243. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1981 (1981 का तिमलनाडु अिधिनयम 59) ।
244. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1983 (1984 का तिमलनाडु अिधिनयम 2) ।
245. उ र प्रदे श भूिम िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1982 (1982 का उ र प्रदे श
अिधिनयम 20) ।
भारत का संिवधान 340

246. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1965 (1965 का पि मी


बंगाल अिधिनयम 18) ।
247. पि मी बंगाल भिू म सध
ु ार (संशोधन) अिधिनयम, 1966 (1966 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 11) ।
248. पि मी बंगाल भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1969 (1969 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 23)।
249. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 36) ।
250. पि मी बंगाल भूिम जोत राज व अिधिनयम, 1979 (1979 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 44)।
251. पि मी बंगाल भिू म सध
ु ार (संशोधन) अिधिनयम, 1980 (1980 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 41) ।
252. पि मी बंगाल भूिम जोत राज व (संशोधन) अिधिनयम, 1981 (1981 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 33)।
253. कलक ा ठे का अिभधिृ त (अजर्न और िविनयमन) अिधिनयम, 1981 (1981
का पि मी बंगाल अिधिनयम 37) ।
254. पि मी बंगाल भूिम जोत राज व (संशोधन) अिधिनयम, 1982 (1982 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 23)।
255. कलक ा ठे का अिभधिृ त (अजर्न और िविनयमन) (संशोधन) अिधिनयम,
1984 (1984 का पि मी बंगाल अिधिनयम 41) ।
256. माहे भूिम सुधार अिधिनयम, 1968 (1968 का पांिडचेरी अिधिनयम 1) ।
257. माहे भिू म सध
ु ार (संशोधन) अिधिनयम, 1980 (1981 का पांिडचेरी
अिधिनयम 1) ।]
[257क. तिमलनाडु िपछड़ा वगर्, अनुसूिचत जाित और अनुसूिचत जनजाित (रा य
1

के अधीन िशक्षा सं थाओं म थान और सेवाओं म िनयुिक्तय या पद का आरक्षण)


अिधिनयम, 1993 (1994 का तिमलनाडु अिधिनयम 45)।]
[258. िबहार िवशेषािधकार प्रा
1
यिक्त वासभूिम अिभधिृ त अिधिनयम, 1947 (1948
का िबहार अिधिनयम 4) ।

1. संिवधान (िछह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1994 की धारा 2 द्वारा (31-8-1994 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 341

259. िबहार चकबंदी और खंडकरण िनवारण अिधिनयम, 1956 (1956 का िबहार


अिधिनयम 22) ।
260. िबहार चकबंदी और खंडकरण िनवारण अिधिनयम, 1970 (1970 का िबहार
अिधिनयम 7) ।
261. िबहार िवशेषािधकार प्रा यिक्त वासभूिम अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम,
1970 (1970 का िबहार अिधिनयम 9)।
262. िबहार चकबंदी और खंडकरण िनवारण (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1975
का िबहार अिधिनयम 27) ।
263. िबहार चकबंदी और खंडकरण िनवारण (संशोधन) अिधिनयम, 1981 (1982
का िबहार अिधिनयम 35) ।
264. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1987 (1987 का िबहार अिधिनयम 21) ।
265. िबहार िवशेषािधकार प्रा यिक्त वासभूिम अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम,
1989 (1989 का िबहार अिधिनयम 11) ।
266. िबहार भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1990 का िबहार
अिधिनयम 11) ।
267. कनार्टक अनुसूिचत जाित और अनुसूिचत जनजाित (कितपय भूिम अंतरण
प्रितषेध) (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का कनार्टक अिधिनयम 3) ।
268. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989 का केरल
अिधिनयम 16) ।
269. केरल भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1990 का केरल
अिधिनयम 2) ।
270. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1990 का उड़ीसा
अिधिनयम 9) ।
271. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1979 (1979 का राज थान
अिधिनयम 16) ।
272. राज थान उपिनवेशन (संशोधन) अिधिनयम, 1987 (1987 का राज थान
अिधिनयम 2) ।
273. राज थान उपिनवेशन (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989 का राज थान
अिधिनयम 12) ।
274. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन
अिधिनयम, 1983 (1984 का तिमलनाडु अिधिनयम 3) ।

1. संिवधान (अठहतरवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (30-8-1995 से) प्रिवि 258 से प्रिवि 284
तक अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 342

275. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन


अिधिनयम, 1986 (1986 का तिमलनाडु अिधिनयम 57) ।
276. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1987 (1988 का तिमलनाडु अिधिनयम 4) ।
277. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) (संशोधन)
अिधिनयम, 1989 (1989 का तिमलनाडु अिधिनयम 30) ।
278. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1981 (1981 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 50) ।
279. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1986 (1986 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 5) ।
280. पि मी बंगाल भिू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1986 (1986 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 19)।
281. पि मी बंगाल भूिम सुधार (तीसरा संशोधन) अिधिनयम, 1986 (1986 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 35) ।
282. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 23) ।
283. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1990 (1990 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 24) ।
284. पि मी बंगाल भिू म सध
ु ार अिधकरण अिधिनयम, 1991 (1991 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 12) ।]
प ीकरण--राज थान अिभधिृ त अिधिनयम, 1955 (1955 का राज थान
अिधिनयम सं0 3) के अधीन, अनु छे द 31क के खंड (1) के दस
ू रे परं तुक के उ लंघन म
िकया गया अजर्न उस उ लंघन की मात्रा तक शू य होगा ।]
1[दसवीं अनुसूची
[अनु छे द 102(2) और अनु छे द 191(2)]
दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर्ता के बारे म उपबंध
1. िनवर्चन – इस अनुसूची म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “सदन” से, संस का कोई सदन या िकसी रा य की, यथाि थित,
िवधान सभा या, िवधान-मंडल का कोई सदन अिभप्रेत है ;
(ख) सदन के िकसी ऐसे सद य के संबंध म जो, यथाि थित, पैरा 2 या
2
*** पैरा 4 के उपबंध के अनुसार िकसी राजनीितक दल का सद य है , “िवधान-
दल” से, उस सदन के ऐसे सभी सद य का समूह अिभप्रेत है जो उक्त उपबंध के
अनुसार त समय उस राजनीितक दल के सद य ह ;
(ग) सदन के िकसी सद य के संबंध म, “मल ू राजनीितक दल” से ऐसा
राजनीितक दल अिभप्रेत है िजसका वह पैरा 2 के उप-पैरा (1) के प्रयोजन के िलए
सद य है ;
(घ) “पैरा” से इस अनस
ु च
ू ी का पैरा अिभप्रेत है ।
2. दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर् ता – (1) 3[पैरा 4 और पैरा 5] के उपबंध
के अधीन रहते हुए, सदन का कोई सद य, जो िकसी राजनीितक दल का सद य है ,
सदन का सद य होने के िलए उस दशा म िनरिहर्त होगा िजसम–
(क) उसने ऐसे राजनीितक दल की अपनी सद यता वे छा से छोड़ दी है ;
या
(ख) वह ऐसे राजनीितक दल द्वारा िजसका वह सद य है अथवा उसके
द्वारा इस िनिम प्रािधकृत िकसी यिक्त या प्रािधकारी द्वारा िदए गए िकसी िनदे श
के िव द्ध, ऐसे राजनीितक दल, यिक्त या प्रािधकारी की पूवर् अनज्ञ
ु ा के िबना, ऐसे
सदन म मतदान करता है या मतदान करने से िवरत रहता है और ऐसे मतदान
या मतदान करने से िवरत रहने को ऐसे राजनीितक दल, यिक्त या प्रािधकारी ने
ऐसे मतदान या मतदान करने से िवरत रहने की तारीख से पंद्रह िदन के भीतर
माफ नहीं िकया है ।
प ीकरण – इस उप-पैरा के प्रयोजन के िलए, –
(क) सदन के िकसी िनवार्िचत सद य के बारे म यह समझा जाएगा िक
वह ऐसे राजनीितक दल का, यिद कोई हो, सद य है िजसने उसे ऐसे सद य के
प म िनवार्चन के िलए अ यथीर् के प म खड़ा िकया था;
(ख) सदन के िकसी नामिनदिशत सद य के बारे म, –

1. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के थान प्रित थािपत ।

343
भारत का संिवधान 344

(i) उस दशा म, िजसम वह ऐसे सद य के प म अपने


नामिनदशन की तारीख को िकसी राजनीितक दल का सद य है , यह
समझा जाएगा िक वह ऐसे राजनीितक दल का सद य है ;
(ii) िकसी अ य दशा म, यह समझा जाएगा िक वह उस राजनीितक
दल का सद य है िजसका, यथाि थित, अनु छे द 99 या अनु छे द 188 की
अपेक्षाओं का अनुपालन करने के प ात ् अपना थान ग्रहण करने की तारीख
से छह मास की समाि के पव ू र् वह, यथाि थित, सद य बनता है या पहली
बार बनता है ।
(2) सदन का कोई िनवार्िचत सद य, जो िकसी राजनीितक दल द्वारा खड़े िकए
गए अ यथीर् से िभ न प म सद य िनवार्िचत हुआ है , सदन का सद य होने के िलए
िनरिहर्त होगा यिद वह ऐसे िनवार्चन के प ात ् िकसी राजनीितक दल म सि मिलत हो
जाता है ।
(3) सदन का कोई नामिनदिशत सद य, सदन का सद य होने के िलए िनरिहर्त
होगा यिद वह, यथाि थित, अनु छे द 99 या अनु छे द 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन
करने के प ात ् अपना थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाि के प ात ्
िकसी राजनीितक दल म सि मिलत हो जाता है ।
(4) इस पैरा के पूवग र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी ऐसे यिक्त
के बारे म जो, संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 के प्रारं भ पर, सदन का
सद य है (चाहे वह िनवार्िचत सद य हो या नामिनदिशत) –
(i) उस दशा म, िजसम वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले िकसी राजनीितक
दल का सद य था वहां, इस पैरा के उप-पैरा (1) के प्रयोजन के िलए यह समझा
जाएगा िक वह ऐसे राजनीितक दल द्वारा खड़े िकए गए अ यथीर् के प म ऐसे
सदन का सद य िनवार्िचत हुआ है ;
(ii) िकसी अ य दशा म, यथाि थित, इस पैरा के उप-पैरा (2) के प्रयोजन
के िलए, यह समझा जाएगा िक वह सदन का ऐसा िनवार्िचत सद य है जो िकसी
राजनीितक दल द्वारा खड़े िकए गए अ यथीर् से िभ न प म सद य िनवार्िचत
हुआ है या, इस पैरा के उप-पैरा (3) के प्रयोजन के िलए, यह समझा जाएगा िक
वह सदन का नामिनदिशत सद य है ।
1
3* * * *
4. दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर् ता का िवलय की दशा म लागू न होना –
(1) सदन का कोई सद य पैरा 2 के उप-पैरा (1) के अधीन िनरिहर्त नहीं होगा यिद उसके
मूल राजनीितक दल का िकसी अ य राजनीितक दल म िवलय हो जाता है और वह यह
दावा करता है िक वह और उसके मल ू राजनीितक दल के अ य सद य –
(क) यथाि थित, ऐसे अ य राजनीितक दल के या ऐसे िवलय से बने नए
राजनीितक दल के सद य बन गए ह; या
(ख) उ ह ने िवलय वीकार नहीं िकया है और एक पथ ृ क् समूह के प म
कायर् करने का िविन य िकया है ,

1. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 345

और ऐसे िवलय के समय से, यथाि थित, ऐसे अ य राजनीितक दल या नए राजनीितक


दल या समह ू के बारे म यह समझा जाएगा िक वह, पैरा 2 के उप-पैरा (1) के प्रयोजन
के िलए, ऐसा राजनीितक दल है िजसका वह सद य है और वह इस उप-पैरा के प्रयोजन
के िलए उसका मूल राजनीितक दल है ।
(2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के प्रयोजन के िलए, सदन के िकसी सद य के मल

राजनीितक दल का िवलय हुआ तभी समझा जाएगा जब संबंिधत िवधान-दल के कम से
कम दो-ितहाई सद य ऐसे िवलय के िलए सहमत हो गए ह ।
5. छूट – इस अनुसच ू ी म िकसी बात के होते हुए भी, कोई यिक्त, जो लोक सभा
के अ यक्ष या उपा यक्ष अथवा रा य सभा के उपसभापित अथवा िकसी रा य की िवधान
पिरष के सभापित या उपसभापित अथवा िकसी रा य की िवधान सभा के अ यक्ष या
उपा यक्ष के पद पर िनवार्िचत हुआ है , इस अनुसूची के अधीन िनरिहर्त नहीं होगा, –
(क) यिद वह, ऐसे पद पर अपने िनवार्चन के कारण ऐसे राजनीितक दल
की िजसका वह ऐसे िनवार्चन से ठीक पहले सद य था, अपनी सद यता वे छा
से छोड़ दे ता है और उसके प ात ् जब तक वह पद धारण िकए रहता है तब तक,
उस राजनीितक दल म पन ु ः सि मिलत नहीं होता है या िकसी दस
ू रे राजनीितक
दल का सद य नहीं बनता है ; या
(ख) यिद वह, ऐसे पद पर अपने िनवार्चन के कारण, ऐसे राजनीितक दल
की िजसका वह ऐसे िनवार्चन से ठीक पहले सद य था, अपनी सद यता छोड़
दे ता है और ऐसे पद पर न रह जाने के प ात ् ऐसे राजनीितक दल म पुनः
सि मिलत हो जाता है ।
6. दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर् ता के बारे म प्र का िविन य – (1) यिद
यह प्र उठता है िक सदन का कोई सद य इस अनुसूची के अधीन िनरहर्ता से ग्र त हो
गया है या नहीं तो वह प्र , ऐसे सदन के, यथाि थित, सभापित या अ यक्ष के िविन य
के िलए िनदिशत िकया जाएगा और उसका िविन य अंितम होगा :
परं तु जहां यह प्र उठता है िक सदन का सभापित या अ यक्ष िनरहर्ता से ग्र त
हो गया है या नहीं वहां वह प्र सदन के ऐसे सद य के िविन य के िलए िनदिशत
िकया जाएगा िजसे वह सदन इस िनिम िनवार्िचत करे और उसका िविन य अंितम
होगा ।
(2) इस अनुसूची के अधीन सदन के िकसी सद य की िनरहर्ता के बारे म िकसी
प्र के संबंध म इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन सभी कायर्वािहय के बारे म यह
समझा जाएगा िक वे, यथाि थित, अनु छे द 122 के अथर् म संस की कायर्वािहयां ह या
अनु छे द 212 के अथर् म रा य के िवधान-मंडल की कायर्वािहयां ह ।
भारत का संिवधान 346


7. यायालय की अिधकािरता का वजर्न – इस संिवधान म िकसी बात के होते
हुए भी, िकसी यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के िकसी सद य की िनरहर् ता
से संबंिधत िकसी िवषय के बारे म कोई अिधकािरता नहीं होगी ।
8. िनयम – (1) इस पैरा के उप-पैरा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, सदन
का सभापित या अ यक्ष, इस अनुसूची के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए िनयम
बना सकेगा तथा िविश तया और पूवग र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले
िबना, ऐसे िनयम म िन निलिखत के िलए उपबंध िकया जा सकेगा, अथार्त ् : –
(क) सदन के िविभ न सद य िजन राजनीितक दल के सद य ह, उनके
बारे म रिज टर या अ य अिभलेख रखना ;
(ख) ऐसा प्रितवेदन जो सदन के िकसी सद य के संबंध म िवधान-दल का
नेता, उस सद य की बाबत पैरा 2 के उप-पैरा (1) के खंड (ख) म िनिदर् प्रकृित
की माफी के संबंध म दे गा, वह समय िजसके भीतर और वह प्रािधकारी िजसको
ऐसा प्रितवेदन िदया जाएगा ;
(ग) ऐसे प्रितवेदन िज ह कोई राजनीितक दल सदन के िकसी सद य को
ऐसे राजनीितक दल म प्रिव करने के संबंध म दे गा और सदन का ऐसा
अिधकारी िजसको ऐसे प्रितवेदन िदए जाएंगे ; और
(घ) पैरा 6 के उप-पैरा (1) म िनिदर् िकसी प्र का िविन य करने की
प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसी जांच की प्रिक्रया है , जो ऐसे प्र का िविन य करने
के प्रयोजन के िलए की जाए ।
(2) सदन के सभापित या अ यक्ष द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन बनाए
गए िनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस िदन की अविध
के िलए रखे जाएंगे । यह अविध एक सत्र म अथवा दो या अिधक आनुक्रिमक सत्र म
परू ी हो सकेगी । वे िनयम तीस िदन की उक्त अविध की समाि पर प्रभावी ह गे जब
तक िक उनका सदन द्वारा पिरवतर्न सिहत या उनके िबना पहले ही अनुमोदन या
अननुमोदन नहीं कर िदया जाता है । यिद वे िनयम इस प्रकार अनुमोिदत कर िदए जाते
ह तो वे, यथाि थित, ऐसे प म िजसम वे रखे गए थे या ऐसे पिरवितर्त प म ही
प्रभावी ह गे । यिद िनयम इस प्रकार अननुमोिदत कर िदए जाते ह तो वे िन प्रभाव हो
जाएंगे ।
(3) सदन का सभापित या अ यक्ष, यथाि थित, अनु छे द 105 या अनु छे द 194
के उपबंध पर और िकसी ऐसी अ य शिक्त पर जो उसे इस संिवधान के अधीन प्रा है ,
प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन बनाए गए
िनयम के िकसी यिक्त द्वारा जानबूझकर िकए गए िकसी उ लंघन के बारे म उसी रीित
से कारर् वाई की जाए िजस रीित से सदन के िवशेषािधकार के भंग के बारे म की जाती है
।]

 पैरा 7 को िकहोतो होलोहन बनाम जेिच हु और अ य ए.आई.आर. 1993, एस.सी. 412 म बहुमत की राय के अनुसार
अनु छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म अिविधमा य घोिषत िकया गया ।
1
[ग्यारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243छ)
1. कृिष, िजसके अंतगर्त कृिष-िव तार है ।
2. भूिम िवकास, भूिम सुधार का कायार् वयन, चकबंदी और भूिम संरक्षण ।
3. लघु िसंचाई, जल प्रबंध और जलिवभाजक क्षेत्र का िवकास ।
4. पशुपालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन ।
5. म य उद्योग ।
6. सामािजक वािनकी और फामर् वािनकी ।
7. लघु वन उपज ।
8. लघु उद्योग, िजनके अंतगर्त खाद्य प्रसं करण उद्योग भी ह ।
9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग ।
10. ग्रामीण आवासन ।
11. पेय जल ।
12. ईंधन और चारा ।
13. सड़क, पुिलया, पुल, फेरी, जलमागर् और अ य संचार साधन ।
14. ग्रामीण िवद्युतीकरण, िजसके अंतगर्त िवद्युत का िवतरण है ।
15. अपारं पिरक ऊजार् ोत ।
16. गरीबी उ मूलन कायर्क्रम ।
17. िशक्षा, िजसके अंतगर्त प्राथिमक और मा यिमक िवद्यालय भी है ।
18. तकनीकी प्रिशक्षण और यावसाियक िशक्षा ।
19. प्रौढ़ और अनौपचािरक िशक्षा ।
20. पु तकालय ।
21. सां कृितक िक्रयाकलाप ।
22. बाजार और मेले ।
23. वा य और व छता, िजनके अंतगर्त अ पताल, प्राथिमक वा य के द्र
और औषधालय भी है ।
24. पिरवार क याण ।
25. मिहला और बाल िवकास ।
26. समाज क याण, िजसके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्तय का क याण भी है ।
27. दब ु ल
र् वग का और िविश तया, अनुसूिचत जाितय और अनुसूिचत
जनजाितय का क याण ।
28. सावर्जिनक िवतरण प्रणाली ।
29. सामुदाियक आि तय का अनुरक्षण ।]

1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) जोड़ा गया ।

347
1
[बारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243ब)
1. नगरीय योजना िजसके अंतगर्त नगर योजना भी है ।
2. भिू म उपयोग का िविनयमन और भवन का िनमार्ण ।
3. आिथर्क और सामािजक िवकास योजना ।
4. सङक और पल
ु ।
5. घरे लू, औद्योिगक और वािणि यक प्रयोजन के िलए जल प्रदाय ।
6. लोक वा य, व छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध ।
7. अिग्नशमन सेवाएं ।
8. नगरीय वािनकी, पयार्वरण का संरक्षण और पािर थितकी आयाम की अिभविृ द्ध

9. समाज के दबु ल
र् वग के, िजनके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्त भी ह, िहत की रक्षा ।
10. गंदी-ब ती सुधार और प्रो नयन ।
11. नगरीय िनधर्नता उ मूलन ।
12. नगरीय सख
ु -सिु वधाओं और सिु वधाओं, जैसे पाकर्, उद्यान, खेल के मैदान की
यव था ।
13. सां कृितक, शैक्षिणक और स दयर्परक आयाम की अिभविृ द्ध ।
14. शव गाड़ना और किब्र तान; शवदाह और मशान और िवद्यत
ु शवदाह गह
ृ ।
15. कांजी हाउस ; पशुओं के प्रित क्रूरता का िनवारण ।
16. ज म-मरण सांिख्यकी, िजसके अंतगर्त ज म और म ृ यु रिज ट्रीकरण भी
है ।
17. सावर्जिनक सख
ु -सुिवधाएं, िजनके अंतगर्त सड़क पर प्रकाश, पािकर्ंग थल,
बस टाप और जन सुिवधाएं भी ह ।
18. वधशालाओं और चमर्शोधनशालाओं का िविनयमन ।]

1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) जोड़ा गया ।

348
प�र�शष्ट-1
1
सं�वधान (जम्मू और कश्मीर म� लागू) आदे श, 2019
सी.ओ. 272

सं�वधान के अनच्
ु छे द 370 के खंड (1) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए,
राष्ट्रप�त, जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार क� सहम�त से �नम्न�ल�खत आदे श करते
ह� : —

1. (1) इस आदे श का नाम सं�वधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदे श,


2019) है ।

(2) यह तुरन्त प्रव�


ृ होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संशो�धत
सं�वधान (जम्मू और कश्मीर पर लाग)ू आदे श, 1954 का अ�धक्रमण करे गा ।

2. समय-समय पर यथा संशो�धत सं�वधान के सभी उपबंध जम्मू और


कश्मीर राज्य के संबध
ं म� लागू ह�गे और िजन अपवाद� और आशोधन� के अधीन ये
लागू ह�गे वे �नम्न प्रकार ह�गे : —

ु छे द 367 म� �नम्न�ल�खत खंड जोड़ा जाएगा, अथार्त ् :—


अनच्

ं म� लागू है, के
“(4) सं�वधान, जहां तक यह जम्मू और कश्मीर के संबध
प्रयोजन� के �लए—

(क) इस सं�वधान या इसके उपबंध� के �नद� श� को, उक्त राज्य के


संबध
ं म� यथा लागू सं�वधान और उसके उपबंध� का �नद� श माना जाएगा :

(ख) िजस व्यिक्त को राज्य क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर


राष्ट्रप�त द्वारा जम्मू एंव कश्मीर के सदर-ए-�रयासत, जो तत्स्था�नक रूप से
पदासीन राज्य क� मं�त्र प�रषद् क� सलाह पर कायर् कर रहे ह�, के रूप म�

1
�व�ध और न्याय मंत्रालय, �वधायी �वभाग क� अ�धसूचना सं0 सा.का.�न. 551(अ), तार�ख 5 अगस्त, 2019 द्वारा
भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3, उपखंड (i) म� प्रका�शत ।
भारत का सं�वधान 350

तत्स्था�नक रूप से मान्यता द� गई है , उनके �लए �नद� श� को जम्मू एंव


कश्मीर के राज्यपाल के �लए �नद� श माना जाएगा ;

(ग) उक्त राज्य क� सरकार के �नद� श� को, उनक� मं�त्रप�रषद् क�


सलाह पर कायर् कर रहे जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के �लए �नद� श� को
शा�मल करता हुआ माना जाएगा ; तथा

(घ) इस सं�वधान के अनच्


ु छे द 370 के परं तुक म� “खंड (2) म�
उिल्ल�खत राज्य क� सं�वधान सभा” अ�भव्यिक्त को “राज्य क� �वधान सभा”
पढ़ा जाएगा ।
पिरिश 2
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 से उद्धरण
* * * * * *
1. संिक्ष नाम और प्रारं भ – (1) * * *

(2) यह उस तारीख को प्रव ृ होगा जो कद्रीय सरकार, राजपत्र म अिधसच


ू ना द्वारा,
िनयत करे और इस अिधिनयम के िविभ न उपबंध के िलए िविभ न तारीख िनयत की जा
सकगी ।
* * * * * *
3. अनु छे द 22 का संशोधन – संिवधान के अनु छे द 22 म,–
(क) खंड (4) के थान पर िन निलिखत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :–
‘(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी
यिक्त का दो मास से अिधक की अविध के िलए िन द्ध िकया जाना
प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक समिु चत उ च यायालय के मख् ु य
यायमूितर् की िसफािरश के अनुसार गिठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास
की अविध की समाि से पहले यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय
म ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अ यक्ष और कम से कम दो अ य
सद य से िमलकर बनेगा और अ यक्ष समुिचत उ च यायालय का
सेवारत यायाधीश होगा और अ य सद य िकसी उ च यायालय के
सेवारत या सेवािनव ृ यायाधीश ह गे :
परं तु यह और िक इस खंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस
अिधकतम अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड
(7) के उपखंड (क) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िविहत की
जाए ।
प ीकरण–इस खंड म, “समिु चत उ च यायालय” से अिभप्रेत है –
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीन थ िकसी
अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण
म िन द्ध यिक्त की दशा म, िद ली संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च
यायालय ;
(ii) (संघ रा यक्षेत्र से िभ न) िकसी रा य सरकार द्वारा
िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म,
उस रा य के िलए उ च यायालय ; और
(iii) िकसी संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के

392
भारत का संिवधान 393

अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध


आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म वह उ च
यायालय जो संस द्वारा इस िनिम बनाई गई िविध द्वारा या
उसके अधीन िविनिदर् िकया जाए ।’;
(ख) खंड (7) म,–
(i) उपखंड (क) का लोप िकया जाएगा ;
(ii) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के प म पुनः अक्षरांिकत िकया
जाएगा ; और
(iii) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के प म पुनः अक्षरांिकत िकया
जाएगा और इस प्रकार पुनः अक्षरांिकत उपखंड म “खंड (4) के उपखंड
(क)” श द , को क अंक और अक्षर के थान पर, “खंड (4)” श द,
को क और अंक रखे जाएंगे ।
* * * * *
पििरश 3
संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003
[15 जनवरी, 2004]
भारत के संिवधान का और संशोधन
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणरा य के चौवनव वषर् म संस द्वारा िन निलिखत प म यह
अिधिनयिमत हो :–
1. संिक्ष नाम और प्रारं भ–(1) इस अिधिनयम का संिक्ष नाम संिवधान
(अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 है ।
(2) यह उस तारीख को प्रव ृ होगा, िजसे के द्रीय सरकार, राजपत्र म अिधसूचना
द्वारा, िनयत करे ।
2. नए अनु छे द 268क का अंतः थापन–संिवधान के अनु छे द 268 के प ात ्
िन निलिखत अनु छे द अंतः थािपत िकया जाएगा, अथार्त ् :–
“268क. संघ द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाने वाला और संघ तथा रा य द्वारा
संगह
ृ ीत और िविनयोिजत िकया जाने वाला सेवा कर–(1) सेवाओं पर कर भारत
सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाएंगे और ऐसा कर खंड (2) म उपबंिधत रीित से
भारत सरकार तथा रा य द्वारा संगह ृ ीत और िविनयोिजत िकया जाएगा ।
(2) िकसी िव ीय वषर् म, खंड (1) के उपबंध के अनस
ु ार उद्गहीत
ृ ऐसे
िकसी कर के आगम का–
(क) भारत सरकार और रा य द्वारा संग्रहण ;
(ख) भारत सरकार और रा य द्वारा िविनयोजन,
संग्रहण और िविनयोजन के ऐसे िसद्धांत के अनस
ु ार िकया जाएगा, िज ह संस
िविध द्वारा बनाए ।”।
3. अनु छे द 270 का संशोधन–संिवधान के अनु छे द 270 के खंड (1) म,
“अनु छे द 268 और अनु छे द 269” श द और अंक के थान पर, “अनु छे द 268,
अनु छे द 268क और अनु छे द 269” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ।
4. सातवीं अनुसच
ू ी का संशोधन–संिवधान की सातवीं अनसु च
ू ी म, सच
ू ी 1–संघ
सूची म, प्रिवि 92ख के प ात ् िन निलिखत प्रिवि अंतः थािपत की जाएगी, अथार्त ्
:–
“92ग. सेवाओं पर कर ।”।


तारीख अिधसूिचत की जानी है ।

394
पिरिश 4
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015

[28 मई, 2015]

भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच िकए गए करार और उसके


प्रोटोकाल के अनुसरण म रा यक्षेत्र का भारत द्वारा अजर्न िकए जाने
और कितपय रा यक्षेत्र का बांग्लादे श को अंतरण िकए जाने
को प्रभावी करने के िलए भारत के संिवधान
का और संशोधन करने के िलए
अिधिनयम

भारत गणरा य के िछयासठव वषर् म संस द्वारा िन निलिखत प म यह


अिधिनयिमत हो :--

1. संिक्ष नाम--इस अिधिनयम का संिक्ष नाम संिवधान (एक सौवां संशोधन)


अिधिनयम, 2015 है ।

2. पिरभाषाएं--इस अिधिनयम म,--

(क) “अिजर्त रा यक्षेत्र” से भारत-बांग्लादे श करार और उसके प्रोटोकाल म


समािव तथा पहली अनस ु च
ू ी म िनिदर् उतने रा यक्षेत्र अिभप्रेत ह, िजनका खंड
(ग) म िनिदर् करार और उसके प्रोटोकाल के अनुसरण म भारत द्वारा बांग्लादे श
से अजर्न िकए जाने के प्रयोजन के िलए अ यंकन िकया गया है ;

(ख) “िनयत िदन” से ऐसी तारीख अिभप्रेत है , जो कद्रीय सरकार, राजपत्र


म, अिधसच ू ना द्वारा, भारत-बांग्लादे श करार तथा उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म
पहली अनुसूची और दस ू री अनुसूची म यथािनिदर् कुछ रा यक्षेत्र का, िजनका इस
प्रकार अजर्न और अंतरण कराए जाने और उस प्रयोजन के िलए अ यंकन कराए
जाने के प ात ् बांग्लादे श से रा यक्षेत्र के अजर्न और बांग्लादे श को रा यक्षेत्र के
अंतरण के िलए तारीख िनयत करे ;

(ग) “भारत-बांग्लादे श करार” से भारत और बांग्लादे श के बीच भूिम सीमा


के अ यंकन और संबद्ध िवषय के संबंध म भारत गणरा य की सरकार और
बांग्लादे श जनवादी गणरा य की सरकार के बीच तारीख 16 मई, 1974 को हुआ
करार, तारीख 26 िदस बर, 1974, तारीख 30 िदस बर, 1974, तारीख 7
अक्तूबर, 1982 और तारीख 26 माचर्, 1992 का पत्र िविनमय तथा भारत सरकार
और बांग्लादे श सरकार के बीच हुए तारीख 6 िसत बर, 2011 के उक्त करार का
प्रोटोकाल अिभप्रेत है , िजसके सुसंगत उद्धरण तीसरी अनुसूची म िदए गए ह ;

395
भारत का संिवधान 396

(घ) “अंतिरत रा यक्षेत्र” से भारत-बांग्लादे श करार और उसके प्रोटोकाल म


समािव तथा दस ू री अनुसूची म िनिदर् उतने रा यक्षेत्र अिभप्रेत ह, िजनका खंड
(ग) म िनिदर् करार और उसके प्रोटोकाल के अनुसरण म भारत द्वारा बांग्लादे श
को अंतिरत िकए जाने के प्रयोजन के िलए अ यंकन िकया गया है ।

3. संिवधान की पहली अनुसूची का संशोधन--संिवधान की पहली अनुसूची म,


िनयत िदन से ही,--

(क) असम रा य के रा यक्षेत्र से संबंिधत पैरा म, “और वे रा यक्षेत्र भी


इसके अंतगर्त नहीं ह, जो संिवधान (नवां संशोधन) अिधिनयम, 1960 की धारा 3
के खंड (क) म अंतिवर् िकसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबध ं
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की दस ू री अनुसूची के भाग 1
म िनिदर् रा यक्षेत्र से है , संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की
दसू री अनस
ु चू ी के भाग 1 म िनिदर् ह” श द, को क, अंक और अक्षर, अंत म,
जोड़े जाएंगे ;

(ख) पि मी बंगाल रा य के रा यक्षेत्र से संबंिधत पैरा म, “और वे


रा यक्षेत्र भी, जो पहली अनुसूची के भाग 3 म िनिदर् ह िकं तु वे रा यक्षेत्र
इसके अंतगर्त नहीं ह, जो संिवधान (नवां संशोधन) अिधिनयम, 1960 की धारा 3
के खंड (ग) म अंतिवर् िकसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की पहली अनुसूची के भाग 3
म िनिदर् रा यक्षेत्र और दस
ू री अनस ू ी के भाग 3 म िनिदर् रा यक्षेत्र से है ,
ु च
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की दस ू री अनुसूची के भाग 3
म िनिदर् ह” श द, अंक, को क और अक्षर, अंत म, जोड़े जाएंगे ;

(ग) मेघालय रा य के रा यक्षेत्र से संबंिधत पैरा म, “और वे रा यक्षेत्र,


जो पहली अनुसच ू ी के भाग 1 म िनिदर् ह िक तु वे रा यक्षेत्र इसके अंतगर्त नहीं
ह, जो संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की दस ू री अनस
ु ूची के
भाग 2 म िनिदर् ह” श द, अंक और को क, अंत म, जोड़े जाएंगे ;

(घ) ित्रपुरा रा य के रा यक्षेत्र से संबंिधत पैरा म, “और वे रा यक्षेत्र जो


संिवधान (नवां संशोधन) अिधिनयम, 1960 की धारा 3 के खंड (घ) म अंतिवर्
िकसी बात के होते हुए भी जहां तक उनका संबंध संिवधान (एक सौवां संशोधन)
अिधिनयम, 2015 की पहली अनुसूची के भाग 2 म िनिदर् रा यक्षेत्र से है ,
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 की पहली अनुसूची के भाग 2
म िनिदर् ह” श द, को क, अंक और अक्षर, अंत म, जोड़े जाएंगे ।
भारत का संिवधान 397

पहली अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(क), धारा 2(ख) और धारा 3 दे िखए]

भाग 1

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 2 और तारीख 6 िसत बर, 2011


के प्रोटोकाल के अनु छे द 3(I)(ख)(ii)(iii)(iv)( v) के संबंध म अिजर्त रा यक्षेत्र ।

भाग 2

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 2 और तारीख 6 िसत बर, 2011


के प्रोटोकाल के अनु छे द 3(I)(ग)(i) के संबंध म अिजर्त रा यक्षेत्र ।

भाग 3

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 1(12) और अनु छे द 2 तथा तारीख


6 िसत बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनु छे द 2(II), 3(I)(क)(iii)(iv)(v)(vi) के संबंध म
अिजर्त रा यक्षेत्र ।

दस
ू री अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(ख), धारा 2(घ) और धारा 3 दे िखए]

भाग 1

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 2 और तारीख 6 िसत बर, 2011


के प्रोटोकाल के अनु छे द 3(I)(घ)(i)(ii) के संबंध म अ तिरत रा यक्षेत्र ।

भाग 2

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 2 और तारीख 6 िसत बर, 2011


के प्रोटोकाल के अनु छे द 3(I)(ख)(i) के संबंध म अ तिरत रा यक्षेत्र ।

भाग 3

तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 1(12) और अनु छे द 2 तथा तारीख


6 िसत बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनु छे द 2(II), 3(I)(क)(i)(ii)(vi) के संबंध म
अ तिरत रा यक्षेत्र ।
भारत का संिवधान 398

तीसरी अनुसच
ू ी
[धारा 2(ग) दे िखए]

I. भारत गणरा य की सरकार और बांग्लादे श जनवादी गणरा य की सरकार के बीच


भारत और बांग्लादे श के बीच भूिम सीमा के अ यंकन तथा संबंिधत िवषय के संबंध म
तारीख 16 मई, 1974 को हुए करार से उद्धरण

अनु छे द 1(12) : िवदे शी अंतःक्षेत्र (ए क्लेव)

बांग्लादे श ि थत भारतीय ए क्लेव और भारत ि थत बांग्लादे श ए क्लेव


का, पैरा 14 म उि लिखत ए क्लेव को छोड़कर, बांग्लादे श म जाने वाले
अितिरक्त क्षेत्र के िलए प्रितकर का दावा िकए िबना शीघ्रितशीघ्र आदान-प्रदान
िकया जाना चािहए ।

अनु छे द 2 :

भारत और बांग्लादे श की सरकार इस बात के िलए सहमत ह िक पहले से


अ यंिकत क्षेत्र म प्रितकूल क जे वाले रा यक्षेत्र, िजनके संबंध म सीमा पट्टी
मानिचत्र पहले से तैयार ह, पूणार्िधकािरय द्वारा सीमा पट्टी मानिचत्र पर ह ताक्षर
िकए जाने के छह मास के भीतर आदान-प्रदान िकए जाएंगे । वे सुसंगत
मानिचत्र पर यथासंभवशीघ्र और िकसी भी दशा म 31 िदस बर, 1974 के
अप ात ् ह ताक्षर कर सकते ह । ऐसे अ य क्षेत्र के, िजनकी बाबत अ यंकन
पहले ही िकया जा चकु ा है , मानिचत्र के मुद्रण हे तु शीघ्र उपाय िकए जाएं । इ ह
31 मई, 1975 तक मुिद्रत करा िलया जाना चािहए और त प ात ् उन पर
पूणार्िधकािरय द्वारा ह ताक्षर करवा िलए जाने चािहएं िजससे िक इन क्षेत्र म
प्रितकूलतः धािरत क ज का आदान-प्रदान 31 िदस बर, 1975 तक िकया जा
सके । िजन सेक्टर का अभी भी अ यंकन िकया जाना है , उनम रा यक्षेत्रीय
अिधकािरता का अ तरण संबंिधत सीमा पट्टी मानिचत्र पर पूणार्िधकािरय द्वारा
ह ताक्षर िकए जाने के छह मास के भीतर हो सकता है ।

II. भारत गणरा य की सरकार और बांग्लादे श जनवादी गणरा य की सरकार के


बीच भारत और बांग्लादे श के बीच भूिम सीमा के अ यंकन तथा संबंिधत िवषय
के संबध
ं म तारीख 6 िसत बर, 2011 को हुए करार के प्रोटोकाल से उद्धरण
अनु छे द 2 :

(II) 1974 के करार के अनु छे द 1, खंड 12 को कायार्ि वत िन नानुसार


िकया जाएगा :
भारत का संिवधान 399

ए क्लेव
संयुक्त प से स यािपत और डी.जी.एल.आर.एंड एस., बांग्लादे श तथा
डी.एल.आर.एंड एस., पि मी बंगाल (भारत) के तर पर अप्रैल, 1997 म
ह ताक्षर िकए गए भू-कर ए क्लेव मानिचत्र के अनुसार बांग्लादे श म के 111
भारतीय ए क्लेव और भारत म के 51 बांग्लादे श ए क्लेव का बांग्लादे श म जाने
वाले अितिरक्त क्षेत्र के िलए प्रितकर का दावा िकए िबना आदान-प्रदान िकया
जाएगा ।
अनु छे द 3 :
(I) 1974 के करार के अनु छे द 2 को िन नानुसार कायार्ि वत िकया
जाएगा :
भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच यह करार हुआ है िक
प्रितकूल क जे म धािरत रा यक्षेत्र के िलए, जैसा िक संयुक्त सवक्षण के
मा यम से अवधािरत िकया गया था और अपने-अपने प्रितकूल क जा भू-
क्षेत्र सूचक मानिचत्र (एपीएल मानिचत्र) म, िजसे िदस बर, 2010 और
अग त, 2011 के बीच दोन दे श के भ-ू अिभलेख और सवक्षण िवभाग
द्वारा अंितम प िदया गया है , पूणत र् या िचित्रत िकया गया था, िजनका
पूणत र् या वणर्न नीचे खंड (क) से खंड (घ) म िकया गया है , एक िनयत
सीमा के प म सीमा रे खा खींची जाएगी ।
सुसंगत सीमा पट्टी से मानिचत्र को मुिद्रत िकया जाएगा और उन
पर पूणार्िधकािरय द्वारा ह ताक्षर िकए जाएंगे और रा यक्षेत्रीय अिधकािरता
का अ तरण ए क्लेव के आदान-प्रदान के साथ-साथ पूणर् िकया जाएगा ।
ऊपर विणर्त सच ू क मानिचत्र म यथा िचित्रत सीमा का अ यंकन
िन नानुसार होगा :
(क) पि मी बंगाल सेक्टर
(i) बौसमारी-मधुगरी (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 154/5-एस से 157/1-एस
से होते हुए मथबंगा नदी के पुराने बहाव मागर् के म य
तक, जैसा िक 1962 के चकबंदी मानिचत्र म िचित्रत है
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म
संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी

(ii) अंधारकोटा (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 152/5-एस से सीमा तंभ
सं0 153/1-एस से होते हुए िवद्यमान मथबंगा नदी के
िकनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून,
2011 म संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और
सहमित हुई थी ।
भारत का संिवधान 400

(iii) पकुिरया (कुि तया-नािडया) क्षेत्र


िवद्यमान सीमा तंभ सं0 151/1-एस से सीमा तंभ
सं0 152/2-एस से होते हुए मथबंगा नदी के िकनारे तक
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म
संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी

(iv) चार मिह कंु डी (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 153/1-एस से सीमा तंभ
सं0 153/9-एस से होते हुए मथबंगा नदी के िकनारे तक
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म
संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी

(v) हिरपाल/खुतादाह/बटोली/सपामेरी/एलएन पुर (पटारी)
(नौगांव-मालदा) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 242/एस/13 से सीमा
तंभ सं0 243/7-एस/5 को जोड़ने वाली रे खा के प म
सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म संयुक्त
प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी ।
(vi) बे बाडी (पंचगढ़-जलपाईगुड़ी) क्षेत्र
बांग्लादे शी द्वारा प्रितकूलतः धािरत बे बाडी क्षेत्र
(पंचगढ़-जलपाईगुड़ी) और भारत द्वारा प्रितकूलतः धािरत
बे बाडी और िसंघपारा-खुडीपारा (पंचगढ़-जलपाईगुड़ी) म
सीमा रे खा 1996-1998 के दौरान संयुक्त प से िकए गए
अ यंकन के अनुसार खींची जाएगी ।
(ख) मेघालय सेक्टर
(i) लोबाचेरा-नूनचेरा
लईलांग-बिलचेरा म िवद्यमान सीमा तंभ सं0
1315/4-एस से सीमा तंभ सं0 1315/15-एस तक
लईलांग-नूनचेरा म सीमा तंभ सं0 1316/1-एस से सीमा
तंभ सं0 1316/11-एस तक लईलांग-लिहिलंग म सीमा
तंभ सं0 1317 से सीमा तंभ सं0 1317/13-एस तक
और लईलांग-लुभाचेरा म सीमा तंभ सं0 1318/1-एस से
सीमा तंभ सं0 1318/2-एस से होते हुए चाय बागान के
िकनारे तक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक िदस बर,
2010 म संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित
हुई थी ।
भारत का संिवधान 401

(ii) िपरडीवाह/पडुआ क्षेत्र


िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1270/1-एस से सीमा
तंभ सं0 1271/1-टी तक, संयुक्त प से िकए गए सवक्षण
और पर पर सहमित अनस ु ार सीमा रे खा खींची जाएगी ।
पक्षकार के बीच सहमित हुई है िक िपरडीवाह गांव से
भारतीय राि क को उस मानिचत्र के, िजस पर सहमित हुई
है , िब द ु सं0 6 के िनकट िपयांग नदी से पानी लेने की
अनुमित दी जाएगी ।
(iii) िलंगखाट क्षेत्र
(कक) िलंगखाट-I/कुलुमचेरा और िलंगखाट-
II/कुलुमचेरा
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1264/4-एस से
सीमा तंभ सं0 1265 और सीमा तंभ सं0
1265/6-एस से सीमा तंभ सं0 1265/9-एस तक
उस रे खा के अनुसार सीमा रे खा खींची जाएगी,
जैसािक संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और
पर पर सहमित हुई थी ।
(कख) िलंगखाट-III/सोनारहाट
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1266/13-एस से
दिक्षण िदशा के नाले के साथ-साथ वहां तक सीमा
रे खा जहां तक वह पूव-र् पि म िदशा म दस ू रे नाले
से िमलती है , खींची जाएगी उसके प ात ् यह पूवर्
िदशा म नाले के उ री िकनारे से होते हुए वहां तक
चलेगी, जहां तक वह संदभर् तंभ सं0 1267/4-आर.
बी. और 1267/3-आर. आई के उ र म िवद्यमान
अ तररा ीय सीमा से िमलती है ।
(iv) दावकी/तमािबल क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1275/1-एस से सीमा
तंभ सं0 1275/7-एस को जोड़ने वाली एक सीधी रे खा से
सीमा रे खा खींची जाएगी । पक्षकार इस क्षेत्र म “शू य
रे खा” पर बाड़ लगाने पर सहमत ह ।
भारत का संिवधान 402

(v) नलजूरी/ ीपुर क्षेत्र

(कक) नलजूरी-I

सीमा रे खा दिक्षण िदशा म िवद्यमान सीमा


तंभ सं0 1277/2-एस से पट्टी मानिचत्र सं0 166
म यथा दिशर्त तीन भ-ू खंड तक वहां तक की एक
ऐसी रे खा होगी जहां तक वह सीमा तंभ सं0
1277/5-टी से बहने वाले नाले से िमलती है
त प ात ् वह दिक्षण िदशा म नाले के पि मी
िकनारे के साथ-साथ बांग्लादे श की ओर के दो भ-ू
खंड तक चलेगी, त प ात ् वह पूवर् की ओर वहां
तक चलेगी जहां तक सीमा तंभ सं0 1277/4-एस
से दिक्षण िदशा म खींची गई रे खा से िमलती है ।

(कख) नलजूरी-III

िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1278/2-एस से


सीमा तंभ सं0 1279/3-एस तक सीमा रे खा एक
सीधी रे खा के प म खींची जाएगी ।

(vi) मुक्तापुर/िडिबर हावोर क्षेत्र

पक्षकार इस बात से सहमत ह िक भारतीय राि क


को काली मंिदर जाने की अनम ु ित दी जाएगी और उ ह
मक्त
ु ाप र
ु की ओर के तट से म ु ापरु /िडिबर हावोर क्षेत्र म
क्त
ि थत जलाशय से पानी लेने और मछली पकड़ने के
अिधकार का प्रयोग करने की भी अनज्ञ
ु ा दी जाएगी ।

(ग) ित्रपुरा सेक्टर

(i) ित्रपरु ा/मौलवी बाजार सेक्टर म च दन नगर-चंपाराई


चाय बागान क्षेत्र

िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1904 से सीमा तंभ सं0


1905 तक सोनार चेरी नदी के साथ सीमा रे खा खींची
जाएगी, जैसािक जल
ु ाई, 2011 म संयुक्त प से सवक्षण
िकया गया था और सहमित हुई थी ।
भारत का संिवधान 403

(घ) असम सेक्टर


(i) असम सेक्टर म कालाबाड़ी (बोरोईबारी) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1066/24-टी से सीमा
तंभ सं0 1067/16-टी तक सीमा रे खा खींची जाएगी,
जैसािक अग त, 2011 म संयुक्त प से सवक्षण िकया
गया था और सहमित हुई थी ।
(ii) असम सेक्टर म प लाथाल क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 1370/3-एस से सीमा
तंभ सं0 1371/6-एस से होते हुए चाय बागान के बाहरी
िकनारे से होते हुए पान बागान क्षेत्र के बाहरी िकनारे के
साथ-साथ सीमा तंभ सं0 1372 से 1373/2-एस तक
सीमा रे खा खींची जाएगी ।
III. तारीख 16 मई, 1974 के करार के अनु छे द 1(12) और तारीख 6
िसत बर, 2011 के करार के प्रोटोकाल के अनुसरण म भारत और बांग्लादे श के बीच
ए क्लेव के आदान-प्रदान की सूची
अ. बांग्लादे श म के आदान-प्रदान योग्य भारतीय ए क्लेव, क्षेत्रफल सिहत
क्रम िछट का नाम िछट सं0 बांग्लादे श के पि मी क्षेत्रफल
सं0 पुिलस बंगाल के एकड़ म
टे शन के पुिलस
भीतर ि थत टे शन के
भीतर
ि थत

1 2 3 4 5 6
क. वतंत्र िछट वाले ए क्लेव
1. गराटी 75 पोचागर ह दीबाड़ी 58.23
2. गराटी 76 पोचागर ह दीबाड़ी 0.79
3. गराटी 77 पोचागर ह दीबाड़ी 18
4. गराटी 78 पोचागर ह दीबाड़ी 958.66
5. गराटी 79 पोचागर ह दीबाड़ी 1.74
6. गराटी 80 पोचागर ह दीबाड़ी 73.75
7. िबंगीमारी भाग-I 73 पोचागर ह दीबाड़ी 6.07
भारत का संिवधान 404

1 2 3 4 5 6
8. नजीरगंज 41 बोडा ह दीबाड़ी 58.32
9. नजीरगंज 42 बोडा ह दीबाड़ी 434.29
10. नजीरगंज 44 बोडा ह दीबाड़ी 53.47
11. नजीरगंज 45 बोडा ह दीबाड़ी 1.07
12. नजीरगंज 46 बोडा ह दीबाड़ी 17.95
13. नजीरगंज 47 बोडा ह दीबाड़ी 3.89
14. नजीरगंज 48 बोडा ह दीबाड़ी 73.27
15. नजीरगंज 49 बोडा ह दीबाड़ी 49.05
16. नजीरगंज 50 बोडा ह दीबाड़ी 5.05
17. नजीरगंज 51 बोडा ह दीबाड़ी 0.77
18. नजीरगंज 52 बोडा ह दीबाड़ी 1.04
19. नजीरगंज 53 बोडा ह दीबाड़ी 1.02
20. नजीरगंज 54 बोडा ह दीबाड़ी 3.87
21. नजीरगंज 55 बोडा ह दीबाड़ी 12.18
22. नजीरगंज 56 बोडा ह दीबाड़ी 54.04
23. नजीरगंज 57 बोडा ह दीबाड़ी 8.27
24. नजीरगंज 58 बोडा ह दीबाड़ी 14.22
25. नजीरगंज 60 बोडा ह दीबाड़ी 0.52
26. पुटीमारी 59 बोडा ह दीबाड़ी 122.8
27. दै खाता छट 38 बोडा ह दीबाड़ी 499.21
28. स बरी 37 बोडा ह दीबाड़ी 1188.93
29. काजल िदघी 36 बोडा ह दीबाड़ी 771.44
30. नटकटोका 32 बोडा ह दीबाड़ी 162.26
31. नटकटोका 33 बोडा ह दीबाड़ी 0.26
32. बेउलाडांगा छट 35 बोडा ह दीबाड़ी 0.83
33. बलापारा इगराबार 3 दे बीगंज ह दीबाड़ी 1752.44
34. बला खनिकखरीजा 30 िडमला ह दीबाड़ी 7.71
िसतलदहा
भारत का संिवधान 405

1 2 3 4 5 6
35. बला खनिकखरीजा 29 िडमला ह दीबाड़ी 36.83
िसतलदहा
36. बराखनगीर 28 िडमला ह दीबाड़ी 30.53
37. नगरजीकोबरी 31 िडमला ह दीबाड़ी 33.41
38. कुचलीबारी 26 पटग्राम मेकलीगंज 5.78
39. कुचलीबारी 27 पटग्राम मेकलीगंज 2.04
40 बरा कुचलीबारी थाना पटग्राम मेकलीगंज 4.35
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
41. जमालोहा- 6 पटग्राम मेकलीगंज 5.24
बेलापुखारी
42. उपनचौकी 115/2 पटग्राम मेकलीगंज 0.32
कुचलीबारी
43. उपनचौकी 7 पटग्राम मेकलीगंज 44.04
कुचलीबारी
44. भोथनरी 11 पटग्राम मेकलीगंज 36.83
45. बालापुखारी 5 पटग्राम मेकलीगंज 55.91
46. बाराखानगीर 4 पटग्राम मेकलीगंज 50.51
47. बाराखानगीर 9 पटग्राम मेकलीगंज 87.42
48. छठ बोगडोकरा 10 पटग्राम मेकलीगंज 41.7
49. रतनपुर 11 पटग्राम मेकलीगंज 58.91
50. बोगडोकरा 12 पटग्राम मेकलीगंज 25.49
51. पुलकर डाबरी थाना पटग्राम मेकलीगंज 0.88
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
भारत का संिवधान 406

1 2 3 4 5 6
52. खरखरीया 15 पटग्राम मेकलीगंज 60.74
53. खरखरीया 13 पटग्राम मेकलीगंज 51.62
54. लोटामारी 14 पटग्राम मेकलीगंज 110.92
55. भूतबारी 16 पटग्राम मेकलीगंज 205.46
56. कोमट चांग्रबधा 16ए पटग्राम मेकलीगंज 42.8
57. कोमट चांग्रबधा 17ए पटग्राम मेकलीगंज 16.01
58. पनीसाला 17 पटग्राम मेकलीगंज 137.66
59. द्वािरकामारी 18 पटग्राम मेकलीगंज 36.5
खासबाश
60. पनीसाला 153/पी पटग्राम मेकलीगंज 0.27
61. पनीसाला 153/ओ पटग्राम मेकलीगंज 18.01
62. पनीसाला 19 पटग्राम मेकलीगंज 64.63
63. पनीसाला 21 पटग्राम मेकलीगंज 51.4
64. लोटामारी 20 पटग्राम मेकलीगंज 283.53
65. लोटामारी 22 पटग्राम मेकलीगंज 98.85
66. द्वािरकामारी 23 पटग्राम मेकलीगंज 39.52
67. द्वािरकामारी 25 पटग्राम मेकलीगंज 45.73
68. छट भोथाट 24 पटग्राम मेकलीगंज 56.11
69. बाकाटा 131 पटग्राम हथभंगा 22.35
70. बाकाटा 132 पटग्राम हथभंगा 11.96
71. बाकाटा 130 पटग्राम हथभंगा 20.48
72. भोग्रामगुरी 133 पटग्राम हथभंगा 1.44
73. चेनाकाटा 134 पटग्राम मेकलीगंज 7.81
74. बांसकाटा 119 पटग्राम मथबंगा 413.81
75. बांसकाटा 120 पटग्राम मथबंगा 30.75
76. बांसकाटा 121 पटग्राम मथबंगा 12.15
77. बांसकाटा 113 पटग्राम मथबंगा 57.86
78. बांसकाटा 112 पटग्राम मथबंगा 315.04
79. बांसकाटा 114 पटग्राम मथबंगा 0.77
भारत का संिवधान 407

1 2 3 4 5 6
80. बांसकाटा 115 पटग्राम मथबंगा 29.2
81. बांसकाटा 122 पटग्राम मथबंगा 33.22
82. बांसकाटा 127 पटग्राम मथबंगा 12.72
83. बांसकाटा 128 पटग्राम मथबंगा 2.33
84. बांसकाटा 117 पटग्राम मथबंगा 2.55
85. बांसकाटा 118 पटग्राम मथबंगा 30.98
86. बांसकाटा 125 पटग्राम मथबंगा 0.64
87. बांसकाटा 126 पटग्राम मथबंगा 1.39
88. बांसकाटा 129 पटग्राम मथबंगा 1.37
89. बांसकाटा 116 पटग्राम मथबंगा 16.96
90. बांसकाटा 123 पटग्राम मथबंगा 24.37
91. बांसकाटा 124 पटग्राम मथबंगा 0.28
92. गोटामारी िछट 135 हाितबंधा िसतलकुची 126.59
93. गोटामारी िछट 136 हाितबंधा िसतलकुची 20.02
94. बनापचाई 151 लालमोिनरहाट िदनहाटा 217.29
95. बनापचाई 152 लालमोिनरहाट िदनहाटा 81.71
भीतरकुथी
96. दिसआर छारा 150 फुलबारी िदनहाटा 1643.44
97. दकुरहाट- 156 कुरीग्राम िदनहाटा 14.27
दिकिनरकुथी
98. कलामती 141 भुंगामारी िदनहाटा 21.21
99. भाहोबगंज 153 भुंगामारी िदनहाटा 31.58
100. बाओितकुरसा 142 भुंगामारी िदनहाटा 45.63
101. बरा कोआचु का 143 भुंगामारी िदनहाटा 39.99
102. गावचु का II 147 भुंगामारी िदनहाटा 0.9
103. गावचु का I 146 भुंगामारी िदनहाटा 8.92
104. िदघालतरी II 145 भुंगामारी िदनहाटा 8.81
105. िदघालतरी I 144 भुंगामारी िदनहाटा 12.31
106. छोटूगरलझोरा II 149 भुंगामारी िदनहाटा 17.85
भारत का संिवधान 408

1 2 3 4 5 6
107. छोटू गरलझोरा I 148 भुंगामारी िदनहाटा 35.74
108. जे0एल0सं0 38 157 पटग्राम मथभंगा 3.5
के दिक्षणी छोर
और जे0एल0सं0
39 के दिक्षणी
छोर पर िबना
नाम और
जे0एल0सं0 का
1 िछट ( थानीय
प से
अशोकाबाड़ी** के
प म ज्ञात)
ख. अपखंड िछट वाले ए क्लेव
109 (i) बेवलाडांगा 34 ह दीबाड़ी बोडा 862.46
(ii) बेवलाडांगा अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
110. (i) कोतभाजनी 2 ह दीबाड़ी दे बीगंज 2012.27
(ii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
111. (i) दहाला खागराबारी ह दीबाड़ी दे बीगंज 2650.35
(ii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज


29 िसत बर, 2002 से 2 अक्तूबर, 2002 तक कोलकाता म आयोिजत एक सौ पचासव (चौवनव) भारत-बांग्लादे श
सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
**
18 िसत बर, 2003 से 20 िसत बर, 2003 तक कूच िबहार (भारत) म आयोिजत एक सौ बावनव (छ पनव)
भारत-बांग्लादे श सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
भारत का संिवधान 409

1 2 3 4 5 6
(v) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(vi) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
17160.63

ए क्लेव के उपरोक्त यौर का 9 अक्तूबर, 1996 से 12 अक्तूबर, 1996 के दौरान


कलक ा म आयोिजत भारत-बांग्लादे श स मेलन के दौरान और साथ ही 21 नव बर,
1996 से 24 नव बर, 1996 के दौरान जलपाईगुड़ी (पि मी बंगाल)-पांचागढ़ (बांग्लादे श)
सेक्टर म संयुक्त क्षेत्र िनरीक्षण के दौरान भी भारत और बांग्लादे श द्वारा धािरत अिभलेख
से संयक्त
ु प से िमलान िकया गया है और उ ह समाधानप्रद बनाया गया है ।

ुर् क्रम
िट पण : क्षेत्र सीमन काल 1996-97 के दौरान संयुक्त भूिम स यापन द्वारा उपयक्त
सं0 108 के ए क्लेव के नाम की अशोकाबाड़ी ए क्लेव के प म पहचान की गई ।

िबग्रेिडयर जे0आर0 पीटर मो0 शफी उ ीन


िनदे शक, भू-अिभलेख और सवक्षण महािनदे शक, भू-अिभलेख और
(पदे न), पि मी बंगाल, भारत सवक्षण, बांग्लादे श
और िनदे शक, पूवीर् क्षेत्र
भारतीय सवक्षण, कलक ा

आ. भारत म के आदान-प्रदान योग्य बांग्लादे श ए क्लेव, क्षेत्रफल सिहत

क्रम िछट का नाम पि मी बंगाल के बांग्लादे श के जे0एल0 क्षेत्रफल


सं0 पुिलस टे शन के पुिलस टे शन सं0 एकड़ म
भीतर ि थत के भीतर
ि थत
1 2 3 4 5 6
क. वतंत्र िछट वाले ए क्लेव
1. िछट कुचलीबारी मेकलीगंज पटग्राम 22 370.64
2. कुचलीबारी की िछट मेकलीगंज पटग्राम 24 1.83
भिू म
3. बालापुखारी मेकलीगंज पटग्राम 21 331.64
4. पनबारी सं0 2 की मेकलीगंज पटग्राम 20 1.13
िछट भूिम
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 410

5. िछट पनबारी मेकलीगंज पटग्राम 18 108.59


6. धाबलसाती िमगीर्पुर मेकलीगंज पटग्राम 15 173.88
7. बामनदल मेकलीगंज पटग्राम 11 2.24
8. िछट धाबलसाती मेकलीगंज पटग्राम 14 66.58
9. धाबलसाती मेकलीगंज पटग्राम 13 60.45
10. ीरामपुर मेकलीगंज पटग्राम 8 1.05
11. जोते िन जमा मेकलीगंज पटग्राम 3 87.54
12. जगतबेर सं0 3 की मथबंगा पटग्राम 37 69.84
िछट भिू म
13. जगतबेर सं0 1 की मथबंगा पटग्राम 35 30.66
िछट भूिम
14. जगतबेर सं0 2 की मथबंगा पटग्राम 36 27.09
िछट भूिम
15. िछट कोकोआबारी मथबंगा पटग्राम 47 29.49
16. िछट भंदारदाहा मथबंगा पटग्राम 67 39.96
17. धाबलगुड़ी मथबंगा पटग्राम 52 12.5
18. िछट धाबलगड़
ु ी मथबंगा पटग्राम 53 22.31
19. धाबलगुड़ी सं0 3 की मथबंगा पटग्राम 70 1.33
िछट भूिम
20. धाबलगुड़ी सं0 4 की मथबंगा पटग्राम 71 4.55
िछट भूिम
21. धाबलगुड़ी सं0 5 की मथबंगा पटग्राम 72 4.12
िछट भूिम
22. धाबलगुड़ी सं0 1 की मथबंगा पटग्राम 68 26.83
िछट भिू म
23. धाबलगुड़ी सं0 2 की मथबंगा पटग्राम 69 13.95
िछट भूिम
24. मिहशमारी िसतलकुची पटग्राम 54 122.77
25. बरु ा सराडुबी िसतलकुची हाितंबधा 13 34.96
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 411

26. फलनापुर िसतलकुची पटग्राम 64 506.56

27. अमझोल िसतलकुची हाितंबधा 57 1.25

28. िकसमत भातरीगाछ िदनहाटा कालीगंज 82 209.95

29. दग
ु ार्पुर िदनहाटा कालीगंज 83 20.96

30. बंसुआ खामर िदनहाटा लालमोिनरहाट 1 24.54


िगतालदाहा

31. पाओतुकुथी िदनहाटा लालमोिनरहाट 37 589.94

32. पि म बाकालीर छरा िदनहाटा भुंगामारी 38 151.98

33. म य बाकालीर छरा िदनहाटा भुंगामारी 39 32.72

34. पूरबा बाकालीर छरा िदनहाटा भुंगामारी 40 12.23

35. म य मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 3 136.66

36. म य िछट िदनहाटा भुंगामारी 8 11.87


मसालडांगा

37. पि म िछट िदनहाटा भंग


ु ामारी 7 7.6
मसालडांगा

38. उ र मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 2 27.29

39. कचुआ िदनहाटा भुंगामारी 5 119.74

40. उ र बंसजानी तूफानगंज भुंगामारी 1 47.17


41. छत ितलाई तूफानगंज भुंगामारी 17 81.56

ख. अपखंड िछट वाले ए क्लेव

42. (i) नलग्राम िसतलकुची पटग्राम 65 1397.34


(ii) नलग्राम िसतलकुची पटग्राम 65
(अपखंड)
(iii) नलग्राम िसतलकुची पटग्राम 65
(अपखंड)

1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 412

43. (i) िछट नलग्राम िसतलकुची पटग्राम 66 49.5

(ii) िछट नलग्राम िसतलकुची पटग्राम 66


(अपखंड)

44. (i) बतरीगाछ िदनहाटा कालीगंज 81 577.37

(ii) बतरीगाछ िदनहाटा कालीगंज 81


(अपखंड)

(iii) बतरीगाछ िदनहाटा फुलबारी 9


(अपखंड)

45. (i) कराला िदनहाटा फुलबारी 9 269.91

(ii) कराला (अपखंड) िदनहाटा फुलबारी 9

(iii) कराला (अपखंड) िदनहाटा फुलबारी 8

46. (i) िसबप्रसाद मु तती िदनहाटा फुलबारी 8 373.2

(ii) िसबप्रसाद िदनहाटा फुलबारी 6


मु तती (अपखंड)

47. (i) दिक्षण मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 6 571.38

(ii) दिक्षण िदनहाटा भुंगामारी 6


मसालडांगा (अपखंड)

(iii) दिक्षण िदनहाटा भुंगामारी 6


मसालडांगा (अपखंड)

(iv) दिक्षण िदनहाटा भुंगामारी 6


मसालडांगा (अपखंड)

(v) दिक्षण िदनहाटा भुंगामारी 6


मसालडांगा (अपखंड)

(vi) दिक्षण िदनहाटा भंग


ु ामारी 6
मसालडांगा (अपखंड)

1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 413

48. (i) पि म मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 4 29.49


(ii) पि म िदनहाटा भुंगामारी 4
मसालडांगा (अपखंड)
49. (i) पूरबा िछट िदनहाटा भुंगामारी 10 35.01
मसालडांगा
(ii) परू बा िछट िदनहाटा भंग
ु ामारी 10
मसालडांगा (अपखंड)
50. (i) पूरबा मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 11 153.89
(ii) पूरबा मसालडांगा िदनहाटा भुंगामारी 11
(अपखंड)
51. (i) उ र धालडांगा तूफानगंज भंग
ु ामारी 14 24.98
(ii) उ र धालडांगा तूफानगंज भुंगामारी 14
(अपखंड)
(iii) उ र धालडांगा तूफानगंज भुंगामारी 14
(अपखंड)
कुल क्षेत्र 7,110.02

ए क्लेव के उपरोक्त यौर का 9 अक्तूबर, 1996 से 12 अक्तूबर, 1996 के दौरान


कलक ा म आयोिजत भारत-बांग्लादे श स मेलन के दौरान और साथ ही 21 नव बर,
1996 से 24 नव बर, 1996 के दौरान जलपाईगुड़ी (पि मी बंगाल)-पांचागढ़ (बांग्लादे श)
सेक्टर म संयुक्त क्षेत्र िनरीक्षण के दौरान भी भारत और बांग्लादे श द्वारा धािरत अिभलेख
से संयुक्त प से िमलान िकया गया है और उ ह समाधानप्रद बनाया गया है ।

िबग्रेिडयर जे0आर0 पीटर मो0 शफी उ ीन


िनदे शक, भू-अिभलेख और सवक्षण महािनदे शक, भू-अिभलेख और
(पदे न), पि मी बंगाल, भारत सवक्षण, बांग्लादे श
और िनदे शक, पूवीर् क्षेत्र
भारतीय सवक्षण, कलक ा

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