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Coi 3
Coi 3
Coi 3
प0
ृ ................................................................... पृ ।
िवषय सच
ू ी
उ िे शका
अनु छे द पृ
भाग 1
संघ और उसका रा यक्षेत्र
1. संघ का नाम और रा यक्षेत्र ............................................................ 2
2. नए रा य का प्रवेश या थापना...................................................... 2
[2क. िसिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त िकया जाना – िनरिसत ।]….......... 2
3. नए रा य का िनमार्ण और वतर्मान रा य के क्षेत्र , सीमाओं या नाम
म पिरवतर्न ................................................................................. 2
4. पहली अनुसच ू ी और चौथी अनुसच ू ी के संशोधन तथा अनुपरू क,
आनषु ंिगक और पािरणािमक िवषय का उपबंध करने के िलए अनु छे द
2 और अनु छे द 3 के अधीन बनाई गई िविधयां …………………….............. 3
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता ................................................... 4
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार ................................................................. 4
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार ...................................................................................... 5
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार .................................................................. 5
9. िवदे शी रा य की नागिरकता वे छा से अिजर्त करने वाले यिक्तय का
नागिरक न होना....................................................................... 5
10. नागिरकता के अिधकार का बना रहना ............................................ 5
11. संस द्वारा नागिरकता के अिधकार का िविध द्वारा िविनयमन िकया जाना 5
िवषय सूची (ii)
अनु छे द पृ
भाग 3
मूल अिधकार
साधारण
मंित्र-पिरष
74. रा पित को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष .................. 30
75. मंित्रय के बारे म अ य उपबंध ......................................................... 30
अ याय 2--कायर्पािलका
रा य पा ल
मंित्र-पिरष
163. रा यपाल को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष ………………….. 66
रा य का महािधवक्ता
165. रा य का महािधवक्ता ......................................................……………..... 67
रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष ............................................. 73
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया जाना
.………………….……………………………………………………. 73
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त ……………………….. 74
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना ……………………………………….. 74
182. िवधान पिरष का सभापित और उपसभापित ..................................... 74
183. सभापित और उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना.............................................................................................. 75
184. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म
कायर् करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त ...................... 75
185. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प
िवचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ....................................... 75
186. अ यक्ष और उपा यक्ष तथा सभापित और उपसभापित के वेतन और भ े .. 76
187. रा य के िवधान-मंडल का सिचवालय.................................................. 76
कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान....................................................... 76
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की
शिक्त और गणपूितर् ........................................................................ 76
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना....................................................................... 77
िवषय सूची (xii)
अनु छे द पृ
भाग 11
संघ और रा य के बीच संबंध
अ याय 1--िवधायी संबंध
िवधायी शिक्तय का िवतरण
245. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय का
िव तार... .......................................................................................... 133
246. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय की िवषय- 133
व तु ........................................................................................
246क. माल और सेवा कर के संबंध म िवशेष उपबंध ....................................... 134
247. कुछ अितिरक्त यायालय की थापना का उपबंध करने की संस की शिक्त....
........................................................................................... 134
248. अविश िवधायी शिक्तयां ................................................................. 134
249. रा य सच ू ी म के िवषय के संबध ं म रा ीय िहत म िविध बनाने की संस
की शिक्त ......................................................................................... 134
250. यिद आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म हो तो रा य सच ू ी म के िवषय के
संबंध म िविध बनाने की संस की शिक्त ......................................…….. 135
251. संस द्वारा अनु छे द 249 और अनु छे द 250 के अधीन बनाई गई िविधय
और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय म असंगित.. 135
252. दो या अिधक रा य के िलए उनकी सहमित से िविध बनाने की संस की
शिक्त और ऐसी िविध का िकसी अ य रा य द्वारा अंगीकार िकया जाना… 136
253. अंतररा ीय करार को प्रभावी करने के िलए िवधान ............................. 136
254. संस द्वारा बनाई गई िविधय और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िविधय म असंगित ..................................................................... 136
255. िसफािरश और पव ू र् मंजरू ी के बारे म अपेक्षाओं को केवल प्रिक्रया के िवषय
मानना................................................................................................ 137
अ याय 2--प्रशासिनक संबंध
साधारण
256. रा य की और संघ की बा यता .......................................................... 137
257. कुछ दशाओं म रा य पर संघ का िनयंत्रण .......................................... 137
[257क. संघ के सश बल या अ य बल के अिभिनयोजन द्वारा रा य की 138
सहायता – िनरिसत ।] ........................................................................
258. कुछ दशाओं म रा य को शिक्त प्रदान करने आिद की संघ की शिक्त…... 138
िवषय सूची (xviii)
अनु छे द पृ
जल संबंधी िववाद
262. अंतरराि यक निदय या नदी-दन
ू के जल संबंधी िववाद का यायिनणर्यन… 139
रा य के बीच सम वय
263. अंतर-रा य पिरष के संबंध म उपबंध................................................... 140
भाग 12
िव , संपि , संिवदाएं और वाद
अ याय 1--िव
साधारण
264. िनवर्चन ............................................................................................ 141
265. िविध के प्रािधकार के िबना कर का अिधरोपण न िकया जाना ................ 141
266. भारत और रा य की संिचत िनिधयां और लोक लेखे ............................. 141
267. आकि मकता िनिध ............................................................................ 141
प्रकीणर् िव ीय उपबंध
282. संघ या रा य द्वारा अपने राज व से िकए जाने वाले यय .................... 151
283. संिचत िनिधय , आकि मकता िनिधय और लोक लेखाओं म जमा
धनरािशय की अिभरक्षा आिद ............................................................. 151
284. लोक सेवक और यायालय द्वारा प्रा वादकतार्ओं की जमा रािशय और
अ य धनरािशय की अिभरक्षा ............................................................. 152
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट ......................................... 152
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन ............ 152
287. िवद्युत पर कर से छूट ...................................................................... 153
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट.. 154
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट ......................... 154
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन ...................................... 155
290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय ............................................... 155
[291. शासक की िनजी थैली की रािश – िनरिसत ।]...................................... 155
309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत..... 162
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध ....................... 162
311. संघ या रा य के अधीन िसिवल है िसयत म िनयोिजत यिक्तय का पद युत
िकया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म अवनत िकया जाना …............ 163
312. अिखल भारतीय सेवाएं ....................................................................... 163
312क. कुछ सेवाओं के अिधकािरय की सेवा की शत म पिरवतर्न करने या उ ह
प्रितसं त करने की संस की शिक्त ................................................... 164
313. संक्रमणकालीन उपबंध ........................................................................ 165
[314. कुछ सेवाओं के िवद्यमान अिधकािरय के संरक्षण के िलए उपबंध –
िनरिसत ।] ....................................................................................... 165
भाग 15
िनवार्चन
324. िनवार्चन के अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण का िनवार्चन आयोग म 174
िनिहत होना .....................................................................................
325. धमर्, मल
ू वंश, जाित या िलंग के आधार पर िकसी यिक्त का िनवार्चक-
नामावली म सि मिलत िकए जाने के िलए अपात्र न होना और उसके द्वारा
िकसी िवशेष िनवार्चक-नामावली म सि मिलत िकए जाने का दावा न िकया
जाना ................................................................................... 175
326. लोक सभा और रा य की िवधान सभाओं के िलए िनवार्चन का वय क
मतािधकार के आधार पर होना ........................................................... 175
327. िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने की संस की शिक्त
............................................................................................... 175
328. िकसी रा य के िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने
की उस िवधान-मंडल की शिक्त .......................................................... 175
329. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न .................. 176
[329क. प्रधान मंत्री और अ यक्ष के मामले म संस के िलए िनवार्चन के बारे म
िवशेष उपबंध --िनरिसत ।] ................................................................ 176
भाग 16
कुछ वग के संबंध म िवशेष उपबंध
330. लोक सभा म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िलए
थान का आरक्षण ............................................................................ 177
331. लोक सभा म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ........................... 177
332. रा य की िवधान सभाओं म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत
जनजाितय के िलए थान का आरक्षण ............................................... 178
333. रा य की िवधान सभाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ...... 179
334. थान के आरक्षण और िवशेष प्रितिनिध व का स र वषर् के प ात ् न रहना 179
335. सेवाओं और पद के िलए अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय
के दावे ............................................................................................. 179
336. कुछ सेवाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के िलए िवशेष उपबंध ................. 180
337. आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के िलए शैिक्षक अनद
ु ान के िलए िवशेष
उपबंध ............................................................................................. 180
िवषय सूची (xxiii)
अनु छे द पृ
378क. आंध्र प्रदे श िवधान सभा की अविध के बारे म िवशेष उपबंध ................... 229
[379. अ तकार्लीन संस तथा उसके अ यक्ष और उपा यक्ष के बारे म उपबंध -
िनरिसत ।] .......................................................................................
भाग 22
अनुसिू चयां
पहली अनुसच
ू ी ................................................................................................... 231
1. रा य ...............................................................................................
दस
ू री अनुसच
ू ी .................................................................................................... 237
तीसरी अनुसच
ू ी--शपथ या प्रितज्ञान के प्र प ........................................................... 242
चौथी अनुसच
ू ी--रा य सभा म थान का आबंटन..................................................... 246
िवषय सूची (xxviii)
अनु छे द पृ
पांचवीं अनुसच
ू ी--अनुसिू चत क्षेत्र और अनुसिू चत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण
के बारे म उपबंध . . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . . 248
भाग क -- साधारण
भाग ख -- अनुसिू चत क्षेत्र और अनस
ु िू चत जनजाितय का प्रशासन
और िनयंत्रण
भाग ग -- अनुसिू चत क्षेत्र
भाग घ -- अनस
ु च
ू ी का संशोधन
छठी अनुसच
ू ी-- असम, मेघालय, ित्रपरु ा और िमजोरम रा य के जनजाित क्षेत्र के
प्रशासन के बारे म उपबं◌ेध 252
...................................................................
सातवीं अनुसच
ू ी .................................................................................................................. 277
सच
ू ी 1 -- संघ सच
ू ी
सच
ू ी 2 -- रा य सच
ू ी
सच
ू ी 3 -- समवतीर् सच
ू ी
आठवीं अनस
ु च
ू ी -- भाषाएं .................................................................................. 291
नवीं अनस
ु च
ू ी--कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण ........................... 292
दसवीं अनस
ु च
ू ी--दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर्ता के बारे म उपबंध .................... 309
ग्यारहवीं अनस
ु च
ू ी--पंचायत की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ......................... 313
बारहवीं अनस
ु च
ू ी--नगरपािलकाओं, आिद की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ……. 314
पिरिश
पिरिश 1-- संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना) आदेश, 2019 315
और उपासना की स्ितंत्रता,
तथा उन सब में
बढाने के शलए
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतः थािपत ।
2
भारत का संिवधान 3
1
[परं तु इस प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक रा पित की िसफािरश के िबना और
जहां िवधेयक म अंतिवर् प्र थापना का प्रभाव 2***रा य म से िकसी के क्षेत्र, सीमाओं
या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस रा य के िवधान-मंडल द्वारा उस पर अपने
िवचार, ऐसी अविध के भीतर जो िनदश म िविनिदर् की जाए या ऐसी अितिरक्त अविध
के भीतर जो रा पित द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट िकए जाने के िलए वह िवधेयक
रा पित द्वारा उसे िनदिशत नहीं कर िदया गया है और इस प्रकार िविनिदर् या अनुज्ञात
अविध समा नहीं हो गई है , संस के िकसी सदन म पुरः थािपत नहीं िकया जाएगा ।]
3
[ प ीकरण 1–इस अनु छे द के खंड (क) से खंड (ङ) म, “रा य” के अंतगर्त संघ
रा यक्षेत्र है , िकं तु परं तुक म “रा य” के अंतगर्त संघ रा यक्षेत्र नहीं है ।
प ीकरण 2–खंड (क) द्वारा संस को प्रद शिक्त के अंतगर्त िकसी रा य या संघ
रा यक्षेत्र के िकसी भाग को िकसी अ य रा य या संघ रा यक्षेत्र के साथ िमलाकर नए
रा य या संघ रा यक्षेत्र का िनमार्ण करना है ।]
(2) पूव क्त प्रकार की कोई िविध अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान
का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।
1. संिवधान (पांचवां संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 2 द्वारा परं तुक के थान पर (24-12-1955 से) प्रित थािपत
।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या
भाग ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतः थािपत ।
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता–इस संिवधान के प्रारं भ पर प्र येक यिक्त िजसका
भारत के रा यक्षेत्र म अिधवास है और–
(क) जो भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ख) िजसके माता या िपता म से कोई भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले कम से कम पांच वषर् तक भारत के रा यक्षेत्र
म मामल
ू ी तौर से िनवासी रहा है ,
भारत का नागिरक होगा ।
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार–अनु छे द 5 म िकसी बात के होते हए भी, कोई यिक्त िजसने ऐसे रा यक्षेत्र से जो
इस समय पािक तान के अंतगर्त है , भारत के रा यक्षेत्र को प्र जन िकया है , इस संिवधान के
प्रारं भ पर भारत का नागिरक समझा जाएगा–
(क) यिद वह अथवा उसके माता या िपता म से कोई अथवा उसके िपतामह या
िपतामही या मातामह या मातामही म से कोई (मल
ू प म यथा अिधिनयिमत) भारत
शासन अिधिनयम, 1935 म पिरभािषत भारत म ज मा था ; और
(ख) (i) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 से पहले इस
प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह अपने प्र जन की तारीख से भारत के रा यक्षेत्र म
मामल ू ी तौर से िनवासी रहा है ; या
(ii) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 को या उसके प ात ्
इस प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह नागिरकता प्राि के िलए भारत डोिमिनयन
की सरकार द्वारा िविहत प्र प म और रीित से उसके द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से
पहले ऐसे अिधकारी को, िजसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त िकया है ,
आवेदन िकए जाने पर उस अिधकारी द्वारा भारत का नागिरक रिज ट्रीकृत कर िलया
गया है :
परं तु यिद कोई यिक्त अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास
भारत के रा यक्षेत्र म िनवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रिज ट्रीकृत नहीं िकया जाएगा ।
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के अिधकार–
अनु छे द 5 और अनु छे द 6 म िकसी बात के होते हुए भी, कोई यिक्त िजसने 1 माचर्, 1947
के प ात ् भारत के रा यक्षेत्र से ऐसे रा यक्षेत्र को, जो इस समय पािक तान के अंतगर्त है ,
प्र जन िकया है , भारत का नागिरक नहीं समझा जाएगा :
परं तु इस अनु छे द की कोई बात ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो ऐसे रा यक्षेत्र को,
4
भारत का संिवधान 5
1. संिवधान (चौबीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतः थािपत ।
6
भारत का संिवधान 7
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (ितरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2005 की धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अ तः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 8
दब
ु ल
र् वगर्'' वे ह गे, जो रा य द्वारा कुटुंब की आय और आिथर्क अलाभ के अ य सच
ू क के
आधार पर समय-समय पर अिधसिू चत िकए जाएं ।]
16. लोक िनयोजन के िवषय म अवसर की समता–(1) रा य के अधीन िकसी पद पर
िनयोजन या िनयिु क्त से संबंिधत िवषय म सभी नागिरक के िलए अवसर की समता होगी ।
(2) रा य के अधीन िकसी िनयोजन या पद के संबंध म केवल धमर्, मल ू वंश, जाित,
िलंग, उद्भव, ज म थान, िनवास या इनम से िकसी के आधार पर न तो कोई नागिरक अपात्र
होगा और न उससे िवभेद िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से िनवािरत नहीं
करे गी जो 1[िकसी रा य या संघ रा यक्षेत्र की सरकार के या उसम के िकसी थानीय या अ य
प्रािधकारी के अधीन वाले िकसी वगर् या वग के पद पर िनयोजन या िनयुिक्त के संबंध म ऐसे
िनयोजन या िनयुिक्त से पहले उस रा य या संघ रा यक्षेत्र के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती है ।]
(4) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िपछड़े हुए नागिरक के िकसी वगर् के पक्ष म,
िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार् नहीं है , िनयुिक्तय या
पद के आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
2
[(4क) इस अनु छे द की कोई बात रा य को अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत
जनजाितय के पक्ष म, िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार्
नहीं है , रा य के अधीन सेवाओं म 3[िकसी वगर् या वग के पद पर, पािरणािमक ये ता सिहत,
प्रो नित के मामल म] आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
4
[(4ख) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िकसी वषर् म िक हीं न भरी गई ऐसी
िरिक्तय को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन िकए गए आरक्षण के िलए िकसी उपबंध के
अनुसार उस वषर् म भरी जाने के िलए आरिक्षत ह, िकसी उ रवतीर् वषर् या वष म भरे जाने के
िलए पथ ृ क् वगर् की िरिक्तय के प म िवचार करने से िनवािरत नहीं करे गी और ऐसे वगर् की
िरिक्तय पर उस वषर् की िरिक्तय के साथ िजसम वे भरी जा रही ह, उस वषर् की िरिक्तय की
कुल संख्या के संबध ं म पचास प्रितशत आरक्षण की अिधकतम सीमा का अवधारण करने के
िलए िवचार नहीं िकया जाएगा ।]
(5) इस अनु छे द की कोई बात िकसी ऐसी िविध के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी जो
यह उपबंध करती है िक िकसी धािमर्क या सांप्रदाियक सं था के कायर्कलाप से संबंिधत कोई
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य के या उसके क्षेत्र म िकसी थानीय या अ य प्रािधकारी के अधीन उस रा य के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती हो” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पचासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा भत
ू लक्षी प्रभाव से (17-6-1995 से) कितपय
श द के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (इक्यासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 9
पदधारी या उसके शासी िनकाय का कोई सद य िकसी िविश धमर् का मानने वाला या िविश
संप्रदाय का ही हो ।
1
[(6) इस अनु छे द की कोई बात, रा य को िवद्यमान आरक्षण के अितिरक्त तथा
प्र येक प्रवगर् म पद के अिधकतम दस प्रितशत के अ यधीन, खंड (4) म उि लिखत वग से
िभ न नागिरक के आिथर्क प से दब र् िक हीं वग के पक्ष म िनयुिक्तय और पद के
ु ल
आरक्षण के िलए कोई भी उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
(2) भारत का कोई नागिरक िकसी िवदे शी रा य से कोई उपािध वीकार नहीं करे गा ।
वातं य-अिधकार
19. वाक् - वातं य आिद िवषयक कुछ अिधकार का संरक्षण–(1) सभी नागिरक को–
(ख) शांितपूवक
र् और िनरायुध स मेलन का,
1. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 10
1
[और]
2
(च)* * * *
(छ) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने का,
अिधकार होगा ।
3
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के
प्रयोग पर 4[भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता,] रा य की सरु क्षा, िवदे शी रा य के साथ मैत्रीपूणर्
संबंध , लोक यव था, िश ाचार या सदाचार के िहत म अथवा यायालय-अवमान, मानहािन
या अपराध-उ ीपन के संबंध म युिक्तयक्त ु िनबर्ंधन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर्ंधन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक यव था के िहत म युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक
कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे
िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभत ु ा और अखंडता या] लोक यव था या सदाचार के िहत म युिक्तयक्त ु
िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं
करे गी ।
(5) उक्त खंड के 6[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए
गए अिधकार के प्रयोग पर साधारण जनता के िहत म या िकसी अनुसिू चत जनजाित के िहत
के संरक्षण के िलए युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां
तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध
बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर साधारण जनता के िहत म यिु क्तयक्त
ु िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
6. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और
उपखंड (च)” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 11
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी और िविश तया 1[उक्त उपखंड की कोई बात–
(i) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने के िलए आव यक विृ क
या तकनीकी अहर्ताओं से, या
(ii) रा य द्वारा या रा य के वािम व या िनयंत्रण म िकसी िनगम द्वारा कोई
यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागिरक का पणू त
र् ः या भागतः अपवजर्न करके या
अ यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई िवद्यमान िविध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या
इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
20. अपराध के िलए दोषिसिद्ध के संबंध म संरक्षण–(1) कोई यिक्त िकसी अपराध के
िलए तब तक िसद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक िक उसने ऐसा कोई कायर् करने के
समय, जो अपराध के प म आरोिपत है , िकसी प्रव ृ िविध का अितक्रमण नहीं िकया है या
उससे अिधक शाि त का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के िकए जाने के समय प्रव ृ िविध
के अधीन अिधरोिपत की जा सकती थी ।
(2) िकसी यिक्त को एक ही अपराध के िलए एक बार से अिधक अिभयोिजत और
दं िडत नहीं िकया जाएगा ।
(3) िकसी अपराध के िलए अिभयुक्त िकसी यिक्त को वयं अपने िव द्ध साक्षी होने के
िलए बा य नहीं िकया जाएगा ।
21. प्राण और दै िहक वतंत्रता का संरक्षण–िकसी यिक्त को उसके प्राण या दै िहक
वतंत्रता से िविध द्वारा थािपत प्रिक्रया के अनस
ु ार ही वंिचत िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
2
[21क. िशक्षा का अिधकार–रा य, छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु वाले सभी
बालक के िलए नःशु क और अिनवायर् िशक्षा दे ने का ऐसी रीित म, जो रा य िविध द्वारा,
अवधािरत करे , उपबंध करे गा ।]
22. कुछ दशाओं म िगर तारी और िनरोध से संरक्षण–(1) िकसी यिक्त को जो िगर तार
िकया गया है , ऐसी िगर तारी के कारण से यथाशीघ्र अवगत कराए िबना अिभरक्षा म िन द्ध
नहीं रखा जाएगा या अपनी िच के िविध यवसायी से परामशर् करने और प्रितरक्षा कराने के
अिधकार से वंिचत नहीं रखा जाएगा ।
(2) प्र येक यिक्त को, जो िगर तार िकया गया है और अिभरक्षा म िन द्ध रखा गया
है , िगर तारी के थान से मिज ट्रे ट के यायालय तक यात्रा के िलए आव यक समय को
छोड़कर ऐसी िगर तारी से चौबीस घंटे की अविध म िनकटतम मिज ट्रे ट के समक्ष पेश िकया
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा कितपय श द के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अ तः थािपत ।
भारत का संिवधान 12
जाएगा और ऐसे िकसी यिक्त को मिज ट्रे ट के प्रािधकार के िबना उक्त अविध से अिधक अविध
के िलए अिभरक्षा म िन द्ध नहीं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो–
(क) त समय शत्रु अ यदे शीय है ; या
(ख) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िगर तार या
िन द्ध िकया गया है ।
(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का तीन मास से
अिधक अविध के िलए तब तक िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक–
(क) ऐसे यिक्तय से, जो उ च यायालय के यायाधीश ह या यायाधीश रहे
ह या यायाधीश िनयुक्त होने के िलए अिहर्त ह, िमलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन
मास की उक्त अविध की समाि से पहले यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म
ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु इस उपखंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध से
अिधक अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड
(ख) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िविहत की गई है ; या
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से,
जो िक अिधसिू चत नहीं हुई है ) खंड (4) के थान पर िन निलिखत प्रित थािपत िकया जाएगा,--
'(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का दो मास से अिधक की
अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक समिु चत उ च यायालय के मख्
ु य
यायमूितर् की िसफािरश के अनुसार गिठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास की अविध की समाि से पहले
यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अ यक्ष और कम से कम दो अ य सद य से िमलकर बनेगा और
अ यक्ष समुिचत उ च यायालय का सेवारत यायाधीश होगा और अ य सद य िकसी उ च यायालय के
सेवारत या सेवािनव ृ यायाधीश ह गे :
परं तु यह और िक इस खंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध के िलए िन द्ध
िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
िविहत की जाए ।
प ीकरण--इस खंड म, “समुिचत उ च यायालय” से अिभप्रेत है --
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध
आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म, िद ली संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय ;
(ii) (संघ रा यक्षेत्र से िभ न) िकसी रा य सरकार द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म
िन द्ध यिक्त की दशा म, उस रा य के िलए उ च यायालय ; और
(iii) िकसी संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी
द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म वह उ च यायालय जो संस द्वारा
इस िनिम बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन िविनिदर् िकया जाए ।' ।
भारत का संिवधान 13
(ख) ऐसे यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संस
द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अनुसार िन द्ध नहीं िकया जाता है ।
(5) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िकए गए आदे श के
अनुसरण म जब िकसी यिक्त को िन द्ध िकया जाता है तब आदे श करने वाला प्रािधकारी
यथाशक्य शीघ्र उस यिक्त को यह संसिू चत करे गा िक वह आदे श िकन आधार पर िकया गया
है और उस आदे श के िव द्ध अ यावेदन करने के िलए उसे शीघ्राितशीघ्र अवसर दे गा ।
(6) खंड (5) की िकसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म िनिदर् है , करने वाले
प्रािधकारी के िलए ऐसे त य को प्रकट करना आव यक नहीं होगा िज ह प्रकट करना ऐसा
प्रािधकारी लोकिहत के िव द्ध समझता है ।
* संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (क) का लोप िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक
अिधसूिचत नहीं हुई है ) बड़ी को क म के श द के थान पर “खंड (4)” श द, को क और अंक रखे जाएंगे ।
भारत का संिवधान 14
अिधकार होगा ।
27. िकसी िविश धमर् की अिभविृ द्ध के िलए कर के संदाय के बारे म वतंत्रता–िकसी
भी यिक्त को ऐसे कर का संदाय करने के िलए बा य नहीं िकया जाएगा िजनके आगम िकसी
िविश धमर् या धािमर्क संप्रदाय की अिभविृ द्ध या पोषण म यय करने के िलए िविनिदर् प
से िविनयोिजत िकए जाते ह ।
28. कुछ िशक्षा सं थाओं म धािमर्क िशक्षा या धािमर्क उपासना म उपि थत होने के
बारे म वतंत्रता–(1) रा य-िनिध से पण
ू त
र् ः पोिषत िकसी िशक्षा सं था म कोई धािमर्क िशक्षा
नहीं दी जाएगी ।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी िशक्षा सं था को लागू नहीं होगी िजसका प्रशासन
रा य करता है िकं तु जो िकसी ऐसे िव यास या यास के अधीन थािपत हुई है िजसके
अनस
ु ार उस सं था म धािमर्क िशक्षा दे ना आव यक है ।
(3) रा य से मा यताप्रा या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िशक्षा सं था म
उपि थत होने वाले िकसी यिक्त को ऐसी सं था म दी जाने वाली धािमर्क िशक्षा म भाग लेने
के िलए या ऐसी सं था म या उससे संलग्न थान म की जाने वाली धािमर्क उपासना म
उपि थत होने के िलए तब तक बा य नहीं िकया जाएगा जब तक िक उस यिक्त ने, या यिद
वह अवय क है तो उसके संरक्षक ने, इसके िलए अपनी सहमित नहीं दे दी है ।
सं कृित और िशक्षा संबंधी अिधकार
29. अ पसंख्यक-वग के िहत का संरक्षण–(1) भारत के रा यक्षेत्र या उसके िकसी
भाग के िनवासी नागिरक के िकसी अनुभाग को, िजसकी अपनी िवशेष भाषा, िलिप या
सं कृित है , उसे बनाए रखने का अिधकार होगा ।
(2) रा य द्वारा पोिषत या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िकसी िशक्षा सं था म
प्रवेश से िकसी भी नागिरक को केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, भाषा या इनम से िकसी के आधार
पर वंिचत नहीं िकया जाएगा ।
30. िशक्षा सं थाओं की थापना और प्रशासन करने का अ पसंख्यक-वग का
अिधकार–(1) धमर् या भाषा पर आधािरत सभी अ पसंख्यक-वग को अपनी िच की िशक्षा
सं थाओं की थापना और प्रशासन का अिधकार होगा ।
1
[(1क) खंड (1) म िनिदर् िकसी अ पसंख्यक-वगर् द्वारा थािपत और प्रशािसत िशक्षा
सं था की संपि के अिनवायर् अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविध बनाते समय, रा य यह
सिु नि त करे गा िक ऐसी संपि के अजर्न के िलए ऐसी िविध द्वारा िनयत या उसके अधीन
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 16
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संपि का अिधकार"
का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 17
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा (20-6-1964 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 18
1
[31ख. कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण–अनु छे द 31क म
अंतिवर् उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, नवीं अनुसच ू ी म िविनिदर्
अिधिनयम और िविनयम म से और उनके उपबंध म से कोई इस आधार पर शू य या कभी
शू य हुआ नहीं समझा जाएगा िक वह अिधिनयम, िविनयम या उपबंध इस भाग के िक हीं
उपबंध द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी से असंगत है या उसे छीनता है या यन ू करता है
और िकसी यायालय या अिधकरण के िकसी प्रितकूल िनणर्य, िडक्री या आदे श के होते हुए भी,
उक्त अिधिनयम और िविनयम म से प्र येक, उसे िनरिसत या संशोिधत करने की िकसी सक्षम
िवधान-मंडल की शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव ृ बना रहे गा ।]
2
[31ग. कुछ िनदे शक त व को प्रभावी करने वाली िविधय की याविृ –अनु छे द 13
म िकसी बात के होते हुए भी, कोई िविध, जो 3[भाग 4 म अिधकिथत सभी या िक हीं त व ]
को सिु नि त करने के िलए रा य की नीित को प्रभावी करने वाली है , इस आधार पर शू य
नहीं समझी जाएगी िक वह 4[अनु छे द 14 या अनु छे द 19] द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी
5
से असंगत है या उसे छीनती है या यनू करती है [और कोई िविध, िजसम यह घोषणा है िक
वह ऐसी नीित को प्रभावी करने के िलए है , िकसी यायालय म इस आधार पर प्र गत नहीं
की जाएगी िक वह ऐसी नीित को प्रभावी नहीं करती है ]:
परं तु जहां ऐसी िविध िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस
अनु छे द के उपबंध उस िविध को तब तक लागू नहीं ह गे जब तक ऐसी िविध को, जो
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखी गई है , उसकी अनुमित प्रा नहीं हो गई है ।
6
31घ. [रा िवरोधी िक्रयाकलाप के संबंध म िविधय की याविृ ।]–संिवधान
(ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
सांिवधािनक उपचार का अिधकार
32. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए उपचार–(1) इस भाग
द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए समिु चत कायर्वािहय द्वारा उ चतम यायालय
म समावेदन करने का अिधकार प्र याभत ू िकया जाता है ।
(2) इस भाग द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए उ चतम
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (प चीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनु छे द 39 के खंड (ख) या
खंड (ग) म िविनिदर् िसद्धांत ” के थान पर प्रित थािपत । धारा 4 को उ चतम यायालय द्वारा, िमनवार् िम स
िल0 और अ य बनाम भारत संघ और अ य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म अिविधमा य घोिषत कर िदया
गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
5. उ चतम यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल रा य ए.आई.आर. 1973, एस0सी0 1461 म ितरछे टाइप म
िदए गए उपबंध को अिविधमा य घोिषत कर िदया है ।
6. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 19
यायालय को ऐसे िनदे श या आदे श या िरट, िजनके अंतगर्त बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श,
प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उप्रेषण िरट ह, जो भी समिु चत हो, िनकालने की शिक्त होगी ।
(3) उ चतम यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रद शिक्तय पर प्रितकूल
प्रभाव डाले िबना, संस , उ चतम यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्त य िक हीं या सभी
शिक्तय का िकसी अ य यायालय को अपनी अिधकािरता की थानीय सीमाओं के भीतर
प्रयोग करने के िलए िविध द्वारा सशक्त कर सकेगी ।
(4) इस संिवधान द्वारा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, इस अनु छे द द्वारा प्र याभत
ू
अिधकार िनलंिबत नहीं िकया जाएगा ।
1
32क. [रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता पर अनु छे द 32 के अधीन कायर्वािहय
म िवचार न िकया जाना ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 3
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
2
[33. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार का, बल आिद को लागू होने म, उपांतरण करने
की संस की शिक्त–संस , िविध द्वारा, अवधारण कर सकेगी िक इस भाग द्वारा प्रद अिधकार
म से कोई,–
(क) सश बल के सद य को, या
(ख) लोक यव था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बल के सद य को, या
(ग) आसच ू ना या प्रित आसच
ू ना के प्रयोजन के िलए रा य द्वारा थािपत
िकसी यूरो या अ य संगठन म िनयोिजत यिक्तय को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) म िनिदर् िकसी बल, यूरो या संगठन के प्रयोजन के
िलए थािपत दरू संचार प्रणाली म या उसके संबंध म िनयोिजत यिक्तय को,
लागू होने म, िकस िव तार तक िनबर्ि धत या िनराकृत िकया जाए िजससे उनके कतर् य का
उिचत पालन और उनम अनुशासन बना रहना सिु नि त रहे ।]
34. जब िकसी क्षेत्र म सेना िविध प्रव ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद अिधकार पर
िनबर् धन–इस भाग के पव ू ग
र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा संघ
या िकसी रा य की सेवा म िकसी यिक्त की या िकसी अ य यिक्त की िकसी ऐसे कायर् के
संबंध म क्षितपूितर् कर सकेगी जो उसने भारत के रा यक्षेत्र के भीतर िकसी ऐसे क्षेत्र म, जहां
सेना िविध प्रव ृ थी, यव था के बनाए रखने या पुनः थापन के संबंध म िकया है या ऐसे
क्षेत्र म सेना िविध के अधीन पािरत दं डादे श, िदए गए दं ड, आिद समपहरण या िकए गए
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 6 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (पचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनु छे द 33 के थान पर (11-9-1984 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 20
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनु छे द 38 को
उसके खंड (1) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
21
भारत का संिवधान 22
1
[(च) बालक को वतंत्र और गिरमामय वातावरण म व थ
िवकास के अवसर और सुिवधाएं दी जाएं और बालक और अ पवय
यिक्तय की शोषण से तथा नैितक और आिथर्क पिर याग से रक्षा की जाए
।]
2
[39क. समान याय और िनःशु क िविधक सहायता–रा य यह सुिनि त
करे गा िक िविधक तंत्र इस प्रकार काम करे िक समान अवसर के आधार पर
याय सल ु भ हो और वह, िविश तया, यह सिु नि त करने के िलए िक आिथर्क
या िकसी अ य िनय ग्यता के कारण कोई नागिरक याय प्रा करने के अवसर
से वंिचत न रह जाए, उपयुक्त िवधान या कीम द्वारा या िकसी अ य रीित से
नःशु क िविधक सहायता की यव था करे गा ।]
40. ग्राम पंचायत का संगठन–रा य ग्राम पंचायत का संगठन करने के
िलए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शिक्तयां और प्रािधकार प्रदान करे गा जो उ ह
वाय शासन की इकाइय के प म कायर् करने योग्य बनाने के िलए आव यक
ह ।
41. कुछ दशाओं म काम, िशक्षा और लोक सहायता पाने का अिधकार–
रा य अपनी आिथर्क साम यर् और िवकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के,
िशक्षा पाने के और बेकारी, बढ़
ु ापा, बीमारी और नःशक्तता तथा अ य अनहर् अभाव
की दशाओं म लोक सहायता पाने के अिधकार को प्रा कराने का प्रभावी उपबंध
करे गा ।
42. काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं का तथा प्रसूित सहायता
का उपबंध–रा य काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं को सुिनि त करने
के िलए और प्रसूित सहायता के िलए उपबंध करे गा ।
43. कमर्कार के िलए िनवार्ह मजदरू ी आिद–रा य, उपयुक्त िवधान या
आिथर्क संगठन द्वारा या िकसी अ य रीित से कृिष के, उद्योग के या अ य प्रकार
के सभी कमर्कार को काम, िनवार्ह मजदरू ी, िश जीवन तर और अवकाश का
संपूणर् उपभोग सुिनि त करने वाली काम की दशाएं तथा सामािजक और
सां कृितक अवसर प्रा कराने का प्रयास करे गा और िविश तया ग्राम म कुटीर
उद्योग को वैयिक्तक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करे गा ।
3
[43क. उद्योग के प्रबंध म कमर्कार का भाग लेना–रा य िकसी उद्योग म
लगे हुए उपक्रम , थापन या अ य संगठन के प्रबंध म कमर्कार का भाग
लेना सुिनि त करने के िलए उपयुक्त िवधान द्वारा या िकसी अ य रीित से कदम
उठाएगा ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 23
1
[43ख. सहकारी सोसाइिटय का संवधर्न–रा य, सहकारी सोसाइिटय की
वैि छक िवरचना, उनके वशासी कायर्करण, लोकतांित्रक िनयंत्रण और विृ क
प्रबंधन का संवधर्न करने का प्रयास करे गा ।]
44. नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता–रा य, भारत के सम त
रा यक्षेत्र म नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता प्रा कराने का प्रयास
करे गा ।
2
[45. छह वषर् से कम आयु के बालक के िलए प्रारं िभक बा याव था दे ख-
रे ख और िशक्षा का उपबंध–रा य सभी बालक के िलए छह वषर् की आयु परू ी
करने तक, प्रारं िभक बा याव था दे ख-रे ख और िशक्षा दे ने के िलए उपबंध करने का
प्रयास करे गा ।]
46. अनस ु ूिचत जाितय , अनुसूिचत जनजाितय और अ य दब ु ल
र् वग के
िशक्षा और अथर् संबंधी िहत की अिभविृ द्ध–रा य, जनता के दब ु ल
र् वग के,
िविश तया, अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िशक्षा और अथर्
संबंधी िहत की िवशेष सावधानी से अिभविृ द्ध करे गा और सामािजक अ याय और
सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करे गा ।
47. पोषाहार तर और जीवन तर को ऊंचा करने तथा लोक वा य
का सुधार करने का रा य का कतर् य–रा य, अपने लोग के पोषाहार तर और
जीवन तर को ऊंचा करने और लोक वा य के सुधार को अपने प्राथिमक
कतर् य म मानेगा और रा य, िविश तया, मादक पेय और वा य के िलए
हािनकर ओषिधय के, औषधीय प्रयोजन से िभ न, उपभोग का प्रितषेध करने का
प्रयास करे गा ।
48. कृिष और पशप ु ालन का संगठन–रा य, कृिष और पशप ु ालन को
आधुिनक और वैज्ञािनक प्रणािलय से संगिठत करने का प्रयास करे गा और
िविश तया गाय और बछड़ तथा अ य दध ु ा और वाहक पशुओं की न ल के
पिररक्षण और सध ु ार के िलए और उनके वध का प्रितषेध करने के िलए कदम
उठाएगा ।
3
[48क. पयार्वरण का संरक्षण तथा संवधर्न और वन तथा व य जीव की
रक्षा–रा य, दे श के पयार्वरण के संरक्षण तथा संवधर्न का और वन तथा व य
जीव की रक्षा करने का प्रयास करे गा ।]
1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से) “अनु छे द 45” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 24
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत” के थान
पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
1
[भाग 4क
मूल कतर् य
51क. मल
ू कतर् य–भारत के प्र येक नागिरक का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) संिवधान का पालन करे और उसके आदश , सं थाओं, रा वज और
रा गान का आदर करे ;
(ख) वतंत्रता के िलए हमारे रा ीय आंदोलन को प्रेिरत करने वाले उ च
आदश को दय म संजोए रखे और उनका पालन करे ;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षु ण
रखे ;
(घ) दे श की रक्षा करे और आ ान िकए जाने पर रा की सेवा करे ;
(ङ) भारत के सभी लोग म समरसता और समान भ्रात ृ व की भावना का
िनमार्ण करे जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् पर आधािरत सभी भेदभाव से परे
हो, ऐसी प्रथाओं का याग करे जो ि य के स मान के िव द्ध है ;
(च) हमारी सामािसक सं कृित की गौरवशाली परं परा का मह व समझे
और उसका पिररक्षण करे ;
(छ) प्राकृितक पयार्वरण की, िजसके अंतगर्त वन, झील, नदी और व य
जीव ह, रक्षा करे और उसका संवधर्न करे तथा प्रािण मात्र के प्रित दयाभाव रखे ;
(ज) वैज्ञािनक ि कोण, मानववाद और ज्ञानाजर्न तथा सुधार की भावना
का िवकास करे ;
(झ) सावर्जिनक संपि को सुरिक्षत रखे और िहंसा से दरू रहे ;
(ञ) यिक्तगत और सामूिहक गितिविधय के सभी क्षेत्र म उ कषर् की ओर
बढ़ने का सतत प्रयास करे िजससे रा िनरं तर बढ़ते हुए प्रय और उपलि ध की
नई ऊंचाइय को छू ले ;]
2
[(ट) यिद माता-िपता या संरक्षक है , छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु
वाले अपने, यथाि थित, बालक या प्रितपा य के िलए िशक्षा के अवसर प्रदान
करे ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतः थािपत ।
25
भाग 5
संघ
अध्याय 1–कायर्पा�लका
रा�प�त और उपरा�प�त
52. भारत का रा�प�त–भारत का एक रा�प�त होगा ।
53. संघ क� कायर्पा�लका श��–(1) संघ क� कायर्पा�लका श�� रा�प�त म� �न�हत
होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ
अ�धका�रय� के द्वारा करे गा ।
(2) पव
ू ग
र् ामी उपबंध क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, संघ के र�ा
बल� का सव�च्च समादे श रा�प�त म� �न�हत होगा और उसका प्रयोग �व�ध द्वारा
�व�नय�मत होगा ।
(3) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात–
(क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी राज्य क� सरकार या अन्य
प्रा�धकार� को प्रदान �कए गए कृत्य रा�प�त को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी
जाएगी ; या
(ख) रा�प�त से �भन्न अन्य प्रा�धका�रय� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान करने
से संसद् को �नवा�रत नह�ं करे गी ।
54. रा�प�त का �नवार्चन–रा�प�त का �नवार्चन ऐसे �नवार्चकगण के सदस्य कर� गे
िजसम� –
(क) संसद् के दोन� सदन� के �नवार्�चत सदस्य ; और
(ख) राज्य� क� �वधान सभाओं के �नवार्�चत सदस्य,
ह�गे ।
[स्प�ीकरण–इस अनच्
1
ु छे द और अनच् ु छे द 55 म� , “राज्य” के अंतगर्त �दल्ल�
रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र और *पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र ह� ।]
55. रा�प�त के �नवार्चन क� र��त–(1) जहां तक साध्य हो, रा�प�त के �नवार्चन
म� �भन्न-�भन्न राज्य� के प्र�त�न�धत्व के मापमान म� एकरूपता होगी ।
(2) राज्य� म� आपस म� ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्य� और संघ म� समतुल्यता
प्रा� कराने के �लए संसद् और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा का प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य
ऐसे �नवार्चन म� िजतने मत दे ने का हकदार है उनक� संख्या �नम्न�ल�खत र��त से
अवधा�रत क� जाएगी, अथार्त ् :–
(क) �कसी राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के उतने
मत ह�गे िजतने �क एक हजार के ग�ु णत उस भागफल म� ह� जो राज्य क�
जनसंख्या को उस �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने
पर आए ;
1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्था�पत ।
*
पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुडुचेर� है ।
26
भारत का सं�वधान 27
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्प�ीकरण के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 28
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
शब्द� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 29
1. सं�वधान (ग्यारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा “संयु� अ�धवेशन म� समवेत संसद् के दोन�
सदन� के सदस्य�” के स्थान पर (19-12-1961 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 31
(4) कोई व्य��, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन अथवा
उ� सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन
कोई लाभ का पद धारण करता है, उपरा�प�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा ।
स्प�ीकरण–इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्य�� केवल इस कारण कोई
लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का रा�प�त या
उपरा�प�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का
मंत्री है ।
67. उपरा�प�त क� पदाव�ध–उपरा�प�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर्
क� अव�ध तक पद धारण करे गा :
परं तु–
(क) उपरा�प�त, रा�प�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) उपरा�प�त, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा
सकेगा िजसे राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत ने पा�रत �कया
है और िजससे लोक सभा सहमत है; �कं तु इस खंड के प्रयोजन के �लए कोई
संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को
प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सच ू ना न दे द� गई
हो ;
(ग) उपरा�प�त, अपने पद क� अव�ध समा� हो जाने पर भी, तब तक
पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर
लेता है ।
68. उपरा�प�त के पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और
आकिस्मक �र�� को भरने के �लए �नवार्�चत व्य�� क� पदाव�ध–(1) उपरा�प�त क�
पदाव�ध क� समा�� से हुई �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समा�� से
पहले ह� पण
ू र् कर �लया जाएगा ।
(2) उपरा�प�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई
उसके पद म� �र�� को भरने के �लए �नवार्चन, �र�� होने के प�ात ् यथाशीघ्र �कया
जाएगा और �र�� को भरने के �लए �नवार्�चत व्य��, अनच् ु छे द 67 के उपबंध� के अधीन
रहते हुए, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण करने का
हकदार होगा ।
69. उपरा�प�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक उपरा�प�त अपना पद ग्रहण करने
से पहले रा�प�त अथवा उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु �कसी व्य�� के सम�
�नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
शब्द� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 32
1. अनुच्छे द 71, सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) और तत्प�ात ्
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) संशो�धत होकर उपरो� रूप
म� आया ।
भारत का सं�वधान 33
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का (1-
11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क और
भाग ख म� उिल्ल�खत” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 34
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 35
1. दे �खए समय-समय पर यथा संशो�धत अ�धसूचना सं. का.आ.2297, तार�ख 3 नवंबर, 1958, भारत का राजपत्र,
असाधारण, 1958, भाग 2, अनुभाग 3(ii), प�
ृ 1315 ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंतःस्था�पत �कया
गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 36
जाने वाले स्थान� का आबंटन चौथी अनस ू ी म� इस �न�म� अंत�वर्� उपबंध� के अनस
ु च ु ार
होगा ।
(3) रा�प�त द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने वाले
सदस्य ऐसे व्य�� ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� �वशेष �ान या
व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :–
सा�हत्य, �व�ान, कला और समाज सेवा ।
1. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) “राज्य सभा” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “दसवीं अनुसच
ू ी के पैरा 4 के
उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 37
से �मलकर बनेगी ।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजन� के �लए,–
(क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा म� स्थान� का आबंटन ऐसी र��त से
�कया जाएगा �क स्थान� क� संख्या से उस राज्य क� जनसंख्या का अनप
ु ात सभी
राज्य� के �लए यथासाध्य एक ह� हो, और
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत
�कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान�
क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो :
8
[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध �कसी राज्य को लोक सभा म� स्थान�
के आबंटन के प्रयोजन के �लए तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक उस राज्य क�
जनसंख्या साठ लाख से अ�धक नह�ं हो जाती है ।]
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म�
�व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग ग म� �व�न�दर् � राज्य�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा अनुच्छे द 81 और अनुच्छे द 82 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) “अनुच्छे द 331 के उपबंध� के
अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “और दसवीं अनुसूची के पैरा 4”
शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ
पच्चीस सदस्य�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा “पच्चीस सदस्य�” के स्थान पर (17-10-1973
से) प्र�तस्था�पत ।
8. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) पच्चीस सदस्य� के स्थान पर
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 38
(3) इस अनच्
ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म�
अ�भ�नि�त क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� :
[परन्तु इस खंड म� अं�तम पव
1
ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग
ं त आंकड़े
प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, 3[यह अथर् लगाया जाएगा �क
वह,–
(i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तक
ु के प्रयोजन� के �लए
1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ; और
(ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजन� के �लए 4[2001] क� जनगणना
के प्र�त �नद� श है ।]]
82. प्रत्येक जनगणना के प�ात ् पन ु ः समायोजन–प्रत्येक जनगणना क� समा��
पर राज्य� को लोक सभा म� स्थान� के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-
�ेत्र� म� �वभाजन का ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से पन ु ः समायोजन �कया
जाएगा जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे :
परन्तु ऐसे पन
ु ः समायोजन से लोक सभा म� प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव
नह�ं पड़ेगा जब तक उस समय �वद्यमान लोक सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है :
5
[परन्तु यह और �क ऐसा पन ु ः समायोजन उस तार�ख से प्रभावी होगा जो रा�प�त
आदे श द्वारा �व�न�दर्� करे और ऐसे पन ु ः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के �लए
कोई �नवार्चन उन प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन
ु ः समायोजन
के पहले �वद्यमान ह� :
परन्तु यह और भी �क जब तक सन ् 6[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह� तब तक 7[इस अनच्
ु छे द के
अधीन,–
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा क�तपय शब्द� के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा "1991" के स्थान पर (22-6-2003 से
प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
6. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा "2000" (21-2-2002 से) प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा क�तपय शब्द� के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 39
1. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा "1991" के स्थान पर (22-6-2003 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) “छह वषर्” शब्द� के स्थान
पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्”
मूल शब्द� के स्थान पर “छह वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 40
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी
�व�ध द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� �व�हत क� जाएं ।
1
[85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और �वघटन—(1) रा�प�त समय-समय पर, संसद्
के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के �लए
आहूत करे गा, �कन्तु उसके एक सत्र क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम बैठक
के �लए �नयत तार�ख के बीच छह मास का अंतर नह�ं होगा ।]
(2) रा�प�त, समय-समय पर–
(क) सदन� का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) लोक सभा का �वघटन कर सकेगा ।
86. सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा�प�त का अ�धकार–
(1) रा�प�त, संसद् के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म�
अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर
सकेगा ।
(2) रा�प�त, संसद् म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के संबध ं म� संदेश या
कोई अन्य संदेश, संसद् के �कसी सदन को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश
इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय
पर सु�वधानसु ार शीघ्रता से �वचार करे गा ।
87. रा�प�त का �वशेष अ�भभाषण–(1) रा�प�त, 2[लोक सभा के �लए प्रत्येक
साधारण �नवार्चन के प�ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� और प्रत्येक वषर् के प्रथम सत्र के
आरं भ म�] एक साथ समवेत संसद् के दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और संसद् को
उसके आ�ान के कारण बताएगा ।
(2) प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा ऐसे
अ�भभाषण म� �न�दर्� �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3*** उपबंध
�कया जाएगा ।
88. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महान्यायवाद� के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और
भारत के महान्यायवाद� को यह अ�धकार होगा �क वह �कसी भी सदन म� , सदन� क�
�कसी संय� ु बैठक म� और संसद् क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के
रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस
अनच्
ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर (18-6-1951 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा “और सदन के अन्य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के �लए” शब्द� का (18-6-1951 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 41
संसद् के अ�धकार�
89. राज्य सभा का सभाप�त और उपसभाप�त–(1) भारत का उपरा�प�त राज्य
सभा का पदे न सभाप�त होगा ।
(2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने �कसी सदस्य को अपना उपसभाप�त चन
ु ग
े ी
और जब-जब उपसभाप�त का पद �र� होता है तब-तब राज्य सभा �कसी अन्य सदस्य
को अपना उपसभाप�त चन ु ेगी ।
90. उपसभाप�त का पद �र� होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–राज्य सभा
के उपसभाप�त के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) य�द राज्य सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �र� कर
दे गा ;
(ख) �कसी भी समय सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख
द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और
(ग) राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह
�दन क� सूचना न दे द� गई हो ।
91. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� कायर्
करने क� उपसभाप�त या अन्य व्य�� क� श��–(1) जब सभाप�त का पद �र� है या ऐसी
अव�ध म� जब उपरा�प�त, रा�प�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का
�नवर्हन कर रहा है, तब उपसभाप�त या य�द उपसभाप�त का पद भी �र� है तो, राज्य
सभा का ऐसा सदस्य िजसको रा�प�त इस प्रयोजन के �लए �नय� ु करे , उस पद के
कतर्व्य� का पालन करे गा ।
(2) राज्य सभा क� �कसी बैठक से सभाप�त क� अनप ु िस्थ�त म� उपसभाप�त, या
य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्य��, जो राज्य सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा
अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्य�� उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्य��,
जो राज्य सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, सभाप�त के रूप म� कायर् करे गा ।
92. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना–(1) राज्य सभा क� �कसी बैठक म� , जब उपरा�प�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब सभाप�त, या जब उपसभाप�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपसभाप�त, उपिस्थत रहने पर
भी, पीठासीन नह�ं होगा और अनच्ु छे द 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे,
यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त अनप ु िस्थत है ।
भारत का सं�वधान 42
कायर् संचालन
99. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य
अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, रा�प�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नय� ु व्य�� के
सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनसु ार, शपथ लेगा
या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
100. सदन� म� मतदान, �र��य� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� श��
और गणप�ू तर्–(1) इस सं�वधान म� यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक सदन क�
बैठक म� या सदन� क� संय� ु बैठक म� सभी प्र�� का अवधारण, अध्य� को अथवा
सभाप�त या अध्य� के रूप म� कायर् करने वाले व्य�� को छोड़कर, उपिस्थत और मत
दे ने वाले सदस्य� के बहुमत से �कया जाएगा ।
सभाप�त या अध्य�, अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्य�� प्रथमतः मत नह�ं
दे गा, �कन्तु मत बराबर होने क� दशा म� उसका �नणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग
करे गा ।
(2) संसद् के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �र�� होने पर भी, उस सदन को
कायर् करने क� श�� होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क कोई व्य��, जो ऐसा
करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या उसने मत �दया है या
अन्यथा भाग �लया है तो भी संसद् क� कोई कायर्वाह� �व�धमान्य होगी ।
सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर् सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का
दसवां भाग होगी ।
(4) य�द सदन के अ�धवेशन म� �कसी समय गणप�ू तर् नह�ं है तो सभाप�त या
अध्य� अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्य�� का यह कतर्व्य होगा �क वह सदन को
स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए �नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर् नह�ं
हो जाती है ।]
सदस्य� क� �नरहर्ताएं
101. स्थान� का �र� होना–(1) कोई व्य�� संसद् के दोन� सदन� का सदस्य नह�ं
होगा और जो व्य�� दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है उसके एक या दस ू रे
सदन के स्थान को �र� करने के �लए संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे गी ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 18 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं हुई थी) खंड (3) और
खंड (4) को लोप �कया गया गया �कन्तु सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा
(20-6-1978 से) उ� संशोधन को �नर�सत कर �दया गया ।
भारत का सं�वधान 45
(2) कोई व्य�� संसद् और �कसी 1*** राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन,
दोन� का सदस्य नह�ं होगा और य�द कोई व्य�� संसद् और 2[�कसी राज्य] के �वधान-
मंडल के �कसी सदन, दोन� का सदस्य चन ु �लया जाता है तो ऐसी अव�ध क� समा�� के
प�ात ् जो रा�प�त द्वारा बनाए गए �नयम� 3 म� �व�न�दर्� क� जाए, संसद् म� ऐसे व्य��
43
का स्थान �र� हो जाएगा य�द उसने राज्य के �वधान-मंडल म� अपने स्थान को पहले ह�
नह�ं त्याग �दया है ।
(3) य�द संसद् के �कसी सदन का सदस्य–
(क) 4[अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) या खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता
से ग्रस्त हो जाता है, या
[(ख) यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र
5
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग
ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे �कसी राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. दे �खए, �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना संख्या एफ.46/50-सी, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प�
ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम,1950 ।
4. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 102 के खंड (1)” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 46
(ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन
इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है ।
2
[स्प�ीकरण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्य�� केवल इस कारण भारत
सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं
समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है ।
3
[ (2) कोई व्य�� संसद् के �कसी सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा
ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो जाता है ।]
य�द वह दसवीं अनस
4
[103. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्र�� पर �व�न�य–(1) य�द यह प्र�
उठता है �क संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) म� व�णर्त
�कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्र� रा�प�त को �व�न�य के �लए
�नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�न�य अं�तम होगा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 19 द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) को (तार�ख
अ�धसू�चत नह�ं क� गई) से प्र�तस्था�पत �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के
�लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत ।
4. अनुच्छे द 103, सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत
और तत्प�ात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) संशो�धत
होकर उपरो� रूप म� प�ठत ।
भारत का सं�वधान 47
(2) ऐसे �कसी प्र� पर �व�न�य करने के पहले रा�प�त �नवार्चन आयोग क� राय
लेगा और ऐसी राय के अनस
ु ार कायर् करे गा ।]
(2) संसद् म� या उसक� �कसी स�म�त म� संसद् के �कसी सदस्य द्वारा कह� गई
�कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध ं म� उसके �वरुद्ध �कसी न्यायालय म� कोई
कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्य�� के �वरुद्ध संसद् के �कसी सदन के प्रा�धकार
द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन, पत्र, मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन के संबध
ं म�
इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी ।
1
[(3) अन्य बात� म� संसद् के प्रत्येक सदन क� और प्रत्येक सदन के सदस्य�
और स�म�तय� क� श��यां, �वशेषा�धकार और उन्म�ु �यां ऐसी ह�गी जो संसद्, समय-
समय पर, �व�ध द्वारा, प�र�नि�त करे और जब तक वे इस प्रकार प�र�नि�त नह�ं क�
जाती ह� तब तक 2[वह� ह�गी जो सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क�
धारा 15 के प्रव�
ृ होने से ठ�क पहले उस सदन क� और उसके सदस्य� और स�म�तय�
क� थीं ।]]
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 21 द्वारा क�तपय शब्द� को "तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क�
गई)" प्र�तस्था�पत नह�ं �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) क�तपय शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 48
(2) अनच्
ु छे द 108 और अनच् ु छे द 109 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई
�वधेयक संसद् के सदन� द्वारा तब तक पा�रत �कया गया नह�ं समझा जाएगा जब तक
संशोधन के �बना या केवल ऐसे संशोधन� स�हत, िजन पर दोन� सदन सहमत हो गए ह�,
उस पर दोन� सदन सहमत नह�ं हो जाते ह� ।
(3) संसद् म� लं�बत �वधेयक सदन� के सत्रावसान के कारण व्यपगत नह�ं होगा ।
(4) राज्य सभा म� लं�बत �वधेयक, िजसको लोक सभा ने पा�रत नह�ं �कया है,
लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत नह�ं होगा ।
(5) कोई �वधेयक, जो लोक सभा म� लं�बत है या जो लोक सभा द्वारा पा�रत कर
�दया गया है और राज्य सभा म� लं�बत है, अनच्
ु छे द 108 के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत हो जाएगा ।
108. कुछ दशाओं म� दोन� सदन� क� संय� ु बैठक–(1) य�द �कसी �वधेयक के
एक सदन द्वारा पा�रत �कए जाने और दस
ू रे सदन को पारे �षत �कए जाने के प�ात ्,–
(क) दस
ू रे सदन द्वारा �वधेयक अस्वीकर कर �दया गया है, या
(ख) �वधेयक म� �कए जाने वाले संशोधन� के बारे म� दोन� सदन अं�तम
रूप से असहमत हो गए ह�, या
(ग) दस
ू रे सदन को �वधेयक प्रा� होने क� तार�ख से उसके द्वारा �वधेयक
पा�रत �कए �बना छह मास से अ�धक बीत गए ह�,
भारत का सं�वधान 49
तो उस दशा के �सवाय, िजसम� लोक सभा का �वघटन होने के कारण �वधेयक व्यपगत
हो गया है, रा�प�त �वधेयक पर �वचार-�वमशर् करने और मत दे ने के प्रयोजन के �लए
सदन� को संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क�
सचू ना, य�द वे बैठक म� ह� तो संदेश द्वारा या य�द वे बैठक म� नह�ं ह� तो लोक
अ�धसूचना द्वारा दे गा :
परन्तु इस खंड क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी ।
(2) छह मास क� ऐसी अव�ध क� गणना करने म� , जो खंड (1) म� �न�दर्� है,
�कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसम� उ� खंड के उपखंड (ग) म�
�न�दर्� सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत कर �दया जाता
है ।
(3) य�द रा�प�त ने खंड (1) के अधीन सदन� को संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत
होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� सूचना दे द� है तो कोई भी सदन �वधेयक
पर आगे कायर्वाह� नह�ं करे गा, �कन्तु रा�प�त अपनी अ�धसच
ू ना क� तार�ख के प�ात ्
�कसी समय सदन� को अ�धसूचना म� �व�न�दर्� प्रयोजन के �लए संय� ु बैठक म�
अ�धवे�शत होने के �लए आहूत कर सकेगा और, य�द वह ऐसा करता है तो, सदन
तद्नस
ु ार अ�धवे�शत ह�गे ।
(4) य�द सदन� क� संय�ु बैठक म� �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�,
िजन पर संय� ु बैठक म� सहम�त हो जाती है, दोन� सदन� के उपिस्थत और मत दे ने
वाले सदस्य� क� कुल संख्या के बहुमत द्वारा पा�रत हो जाता है तो इस सं�वधान के
प्रयोजन� के �लए वह दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा :
परन्तु संय�
ु बैठक म�–
(क) य�द �वधेयक एक सदन से पा�रत �कए जाने पर दस ू रे सदन द्वारा
संशोधन� स�हत पा�रत नह�ं कर �दया गया है और उस सदन को, िजसम� उसका
आरं भ हुआ था, लौटा नह�ं �दया गया है तो ऐसे संशोधन� से �भन्न (य�द कोई
ह�), जो �वधेयक के पा�रत होने म� दे र� के कारण आवश्यक हो गए ह�, �वधेयक
म� कोई और संशोधन प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ;
(ख) य�द �वधेयक इस प्रकार पा�रत कर �दया गया है और लौटा �दया
गया है तो �वधेयक म� केवल पव ू �� संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन
�वषय� से सस ु ग
ं त ह� िजन पर सदन� म� सहम�त नह�ं हुई है, प्रस्था�पत �कए
जाएंगे,
और पीठासीन व्य�� का इस बारे म� �व�न�य अं�तम होगा �क कौन से संशोधन इस
खंड के अधीन ग्रा� ह� ।
(5) सदन� क� संय� ु बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने
आशय क� रा�प�त क� सूचना के प�ात ्, लोक सभा का �वघटन बीच म� हो जाने पर भी,
इस अनच्
ु छे द के अधीन संय�ु बैठक हो सकेगी और उसम� �वधेयक पा�रत हो सकेगा ।
109. धन �वधेयक� के संबध
ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक राज्य सभा म�
परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ।
भारत का सं�वधान 50
(2) धन �वधेयक लोक सभा द्वारा पा�रत �कए जाने के प�ात ् राज्य सभा को
उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और राज्य सभा �वधेयक क� प्रा�� क�
तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक को अपनी �सफा�रश� स�हत लोक
सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा क� सभी या �कन्ह�ं
�सफा�रश� को स्वीकर या अस्वीकार कर सकेगी ।
(3) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती है तो
धन �वधेयक राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार �कए गए
संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा ।
(4) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं करती
है तो धन �वधेयक, राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के �बना, दोन�
सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा
पा�रत �कया गया था ।
(5) य�द लोक सभा द्वारा पा�रत और राज्य सभा को उसक� �सफा�रश� के �लए
पारे �षत धन �वधेयक उ� चौदह �दन क� अव�ध के भीतर लोक सभा को नह�ं लौटाया
जाता है तो उ� अव�ध क� समा�� पर वह दोन� सदन� द्वारा, उस रूप म� पा�रत �कया
गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा पा�रत �कया गया था ।
(ङ) �कसी व्यय को भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना
या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ; या
भारत का सं�वधान 51
(च) भारत क� सं�चत �न�ध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्रा� करना
अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं
क� संपर��ा ; या
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क म�
�व�न�दर् � राज्य के तत्स्थानी प्रांत” के स्थान पर (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 53
114. �व�नयोग �वधेयक–(1) लोक सभा द्वारा अनच् ु छे द 113 के अधीन अनद
ु ान
�कए जाने के प�ात ्, यथाशक्य शीघ्र, भारत क� सं�चत �न�ध म� से–
(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार �कए गए अनद
ु ान� क�, और
(ख) भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत, �कन्तु संसद् के सम� पहले रखे
गए �ववरण म� द�शर्त रकम से �कसी भी दशा म� अन�धक व्यय क�,
प�ू तर् के �लए अपे��त सभी धनरा�शय� के �व�नयोग का उपबंध करने के �लए �वधेयक
परु ःस्था�पत �कया जाएगा ।
(2) इस प्रकार �कए गए �कसी अनद
ु ान क� रकम म� प�रवतर्न करने या अनद
ु ान
के ल�य को बदलने अथवा भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय क� रकम म�
प�रवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे �कसी �वधेयक म� संसद् के
�कसी सदन म� प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा और पीठासीन व्य�� का इस बारे म�
�व�न�य अं�तम होगा �क कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्रा� है या नह�ं ।
(3) अनच्
ु छे द 115 और अनच् ु छे द 116 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत क�
सं�चत �न�ध म� से इस अनच्ु छे द के उपबंध� के अनस ु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए
�व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
115. अनप
ु रू क, अ�त�र� या अ�धक अनद
ु ान–(1) य�द–
(क) अनच्
ु छे द 114 के उपबंध� के अनसु ार बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा
�कसी �व�श� सेवा पर चालू �व�ीय वषर् के �लए व्यय �कए जाने के �लए
प्रा�धकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन� के �लए अपयार्� पाई जाती है या उस
वषर् के वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� अनध् ु यात न क� गई �कसी नई सेवा पर
अनप ु रू क या अ�त�र� व्यय क� चालू �व�ीय वषर् के दौरान आवश्यकता पैदा हो
गई है, या
(ख) �कसी �व�ीय वषर् के दौरान �कसी सेवा पर, उस वषर् और उस सेवा
के �लए अनदु ान क� गई रकम से अ�धक कोई धन व्यय हो गया है,
तो रा�प�त, यथािस्थ�त, संसद् के दोन� सदन� के सम� उस व्यय क� प्राक्क�लत रकम को
द�शर्त करने वाला दस
ू रा �ववरण रखवाएगा या लोक सभा म� ऐसे आ�धक्य के �लए मांग
प्रस्तत
ु करवाएगा ।
भारत का सं�वधान 54
(2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा भारत क� सं�चत �न�ध
म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग
प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी, अनच्ु छे द 112,
अनच् ु छे द 113 और अनच् ु छे द 114 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय
�ववरण और उसम� व�णर्त व्यय या �कसी अनद ु ान क� �कसी मांग के संबध ं म� और भारत
क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत
करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� ।
116. लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान–(1) इस अध्याय के पव
ू ग
र् ामी
उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को–
(क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई
अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 113 म� �व�हत
प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच्
ु छे द 114 के उपबंध�
के अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ;
(ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�नि�त रूप के कारण मांग
ऐसे ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म�
सामान्यतया �दया जाता है तब भारत के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क�
प�ू तर् के �लए अनद
ु ान करने क� ;
(ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नह�ं है, ऐसा
ु ान करने क�,
कोई अपवादानद
श�� होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उ� अनद ु ान �कए गए ह� उनके �लए भारत क�
सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� संसद् को श�� होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच्
ु छे द 113 और अनच्ु छे द 114 के उपबंध
वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई
अनद ु ान करने के संबधं म� और भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए
धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी
ह� ।
परन्तु �कसी कर के घटाने या उत्सादन के �लए उपबंध करने वाले �कसी संशोधन
के प्रस्ताव के �लए इस खंड के अधीन �सफा�रश क� अपे�ा नह�ं होगी ।
वाला केवल इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के
अ�धरोपण का अथवा अन� ु ��य� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क�
मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क
वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के
अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है ।
(3) िजस �वधेयक को अ�ध�नय�मत और प्रव�तर्त �कए जाने पर भारत क�
सं�चत �न�ध म� से व्यय करना पड़ेगा वह �वधेयक संसद् के �कसी सदन द्वारा तब तक
पा�रत नह�ं �कया जाएगा जब तक ऐसे �वधेयक पर �वचार करने के �लए उस सदन से
रा�प�त ने �सफा�रश नह�ं क� है ।
साधारणतया प्र�क्रया
118. प्र�क्रया के �नयम–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद्
का प्रत्येक सदन अपनी प्र�क्रया ∗ और अपने कायर् संचालन के �व�नयमन के �लए �नयम
बना सकेगा ।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक इस सं�वधान
के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन के �वधान-मंडल के संबध ं म� जो प्र�क्रया के
�नयम और स्थायी आदे श प्रव� ृ थे वे ऐसे उपांतरण� और अनक ु ू लन� के अधीन रहते हुए
संसद् के संबध ं म� प्रभावी ह�गे िजन्ह� , यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा
का अध्य� उनम� करे ।
(3) रा�प�त, राज्य सभा के सभाप�त और लोक सभा के अध्य� से परामशर् करने
के प�ात ्, दोन� सदन� क� संय� ु बैठक� से संब�ं धत और उनम� परस्पर संचार से संब�ं धत
प्र�क्रया के �नयम बना सकेगा ।
(4) दोन� सदन� क� संय� ु बैठक म� लोक सभा का अध्य� या उसक�
अनप ु िस्थ�त म� ऐसा व्य�� पीठासीन होगा िजसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्र�क्रया
के �नयम� के अनस ु ार अवधारण �कया जाए ।
119. संसद् म� �व�ीय कायर् संबध ं ी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन–संसद्,
�व�ीय कायर् को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के �लए �कसी �व�ीय �वषय से
संब�ं धत या भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग करने के �लए �कसी �वधेयक
से संब�ं धत, संसद् के प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया और कायर् संचालन का �व�नयमन �व�ध
द्वारा कर सकेगी तथा य�द और जहां तक इस प्रकार बनाई गई �कसी �व�ध का कोई
उपबंध अनच् ु छे द 118 के खंड (1) के अधीन संसद् के �कसी सदन द्वारा बनाए गए �नयम
से या उस अनच् ु छे द के खंड (2) के अधीन संसद् के संबध ं म� प्रभावी �कसी �नयम या
स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अ�भभावी होगा ।
120. संसद् म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा–(1) भाग 17 म� �कसी बात के होते हुए
∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 22 द्वारा "(िजसके अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन
करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और को�क (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) से अंतस्था�पत । इस
संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
कर �दया गया ।
भारत का सं�वधान 56
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) का लोप �कया
गया, इससे पूवर् यह खंड सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से)
अंतःस्था�पत �कया गया था ।
2. उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 37) क� धारा 2 के अनुसार (09-
08- 2019 से) अब यह संख्या “त�तीस” है ।
3. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) "उच्चतम न्यायालय के और
राज्य� के उच्च न्यायालय� के ऐसे न्यायाधीश� से परामशर् करने के प�ात ्, िजनसे रा�प�त इस प्रयोजन के �लए
परामशर् करना आवश्यक समझे" शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन
�रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श
द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप �कया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है
। संशोधन के पूवर् यह �नम्नानुसार था--
“परन्तु मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयु�� क� दशा म� भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से
सदै व परामशर् �कया जाएगा :”।
5. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “परन्तु यह और �क” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 58
1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्था�पत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म�
उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 59
1. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 60
1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्
रा�प�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर्
एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख
16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 5 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्,”
के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16 अ�ूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
3. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 61
सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत से उत्पन्न हुआ है जो
इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और ऐसे प्रारं भ के
प�ात ् प्रवतर्न म� है या जो यह उपबंध करती है �क उ� अ�धका�रता का �वस्तार ऐसे
�ववाद पर नह�ं होगा ।]
2
[131क. [केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्र�� के बारे म�
उच्चतम न्यायालय क� अनन्य अ�धका�रता ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 4 द्वारा (13-4-1978) से �नर�सत ।
132. कुछ मामल� म� उच्च न्यायालय� से अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील�
अ�धका�रता–(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल, दां�डक या
अन्य कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम
न्यायालय म� होगी 3[य�द वह उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर
दे ता है] �क उस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ्
प्र� अंतवर्�लत है ।
69 (2)*
4
* * *
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 द्वारा परन्तुक के स्थान पर (1-11-1956 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत कर दे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (2) का लोप �कया गया
।
भारत का सं�वधान 62
(3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे �दया गया है *** वहां उस मामले म� कोई प�कार इस
1
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) क�तपय शब्द� का लोप
�कया गया ।
2. सं�वधान (तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत करे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमा�णत करता है” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 63
(2) संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च
न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, अं�तम आदे श या दं डादे श क�
अपील ऐसी शत� और प�रसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्� क�
जाएं, ग्रहण करने और सन ु ने क� अ�त�र� श�� दे सकेगी ।
1
[134क. उच्चतम न्यायालय म� अपील के �लए प्रमाणपत्र–प्रत्येक उच्च न्यायालय,
जो अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड
(1) म� �न�दर्� �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत करता है या दे ता है, इस
प्रकार पा�रत �कए जाने या �दए जाने के प�ात ् यथाशक्य शीघ्र, इस प्र� का अवधारण
�क उस मामले के संबध ं म� , यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के
खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) म� �न�दर्� प्रकृ�त का प्रमाणपत्र
�दया जाए या नह�ं,–
(क) य�द वह ऐसा करना ठ�क समझता है तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और
(ख) य�द ऐसा �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत �कए जाने या
�दए जाने के ठ�क प�ात ् व्य�थत प�कार द्वारा या उसक� ओर से मौ�खक आवेदन
�कया जाता है तो करे गा ।]
135. �वद्यमान �व�ध के अधीन फेडरल न्यायालय क� अ�धका�रता और श��य� का
उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयो�व्य होना–जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न
करे तब तक उच्चतम न्यायालय को भी �कसी ऐसे �वषय के संबध ं म� , िजसको अनच्
ु छे द
133 या अनच्ु छे द 134 के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, अ�धका�रता और श��यां ह�गी य�द
उस �वषय के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी �वद्यमान �व�ध के
अधीन अ�धका�रता और श��यां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयो�व्य थीं ।
136. अपील के �लए उच्चतम न्यायालय क� �वशेष इजाजत–(1) इस अध्याय म�
�कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने �ववेकानस ु ार भारत के राज्य�ेत्र
म� �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा �कसी वाद या मामले म� पा�रत �कए गए या �दए
गए �कसी �नणर्य, �डक्र�, अवधारण, दं डादे श या आदे श क� अपील के �लए �वशेष इजाजत
दे सकेगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात सश� बल� से संब�ं धत �कसी �व�ध द्वारा या उसके
अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा पा�रत �कए गए या �दए गए �कसी
�नणर्य, अवधारण, दं डादे श या आदे श को लागू नह�ं होगी ।
137. �नणर्य� या आदे श� का उच्चतम न्यायालय द्वारा पन
ु �वर्लोकन–संसद् द्वारा
बनाई गई �कसी �व�ध के या अनच् ु छे द 145 के अधीन बनाए गए �नयम� के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए �नणर्य या �दए गए
आदे श का पन
ु �वर्लोकन करने क� श�� होगी ।
138. उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता क� व�ृ द्ध–(1) उच्चतम न्यायालय को संघ
सूची के �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� ऐसी अ�त�र� अ�धका�रता और श��यां ह�गी
जो संसद् �व�ध द्वारा प्रदान करे ।
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 64
(2) य�द संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अ�धका�रता और श��य�
के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को �कसी �वषय के संबध ं म� ऐसी
अ�त�र� अ�धका�रता और श��यां ह�गी जो भारत सरकार और �कसी राज्य क� सरकार
�वशेष करार द्वारा प्रदान करे ।
139. कुछ �रट �नकालने क� श��य� का उच्चतम न्यायालय को प्रद� �कया जाना–
संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनच्ु छे द 32 के खंड (2) म� व�णर्त प्रयोजन� से
�भन्न �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए ऐसे �नदे श, आदे श या �रट, िजनके अंतगर्त बंद�
प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार पच्
ृ छा और उप्रेषण �रट ह�, या उनम� से कोई
�नकालने क� श�� प्रदान कर सकेगी ।
1
[139क. कुछ मामल� का अंतरण– 2[(1) य�द ऐसे मामले, िजनम� �व�ध के समान
या सारतः समान प्र� अंतवर्�लत ह�, उच्चतम न्यायालय के और एक या अ�धक उच्च
न्यायालय� के अथवा दो या अ�धक उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत ह� और उच्चतम
न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवाद� द्वारा या ऐसे �कसी मामले के
�कसी प�कार द्वारा �कए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है �क ऐसे प्र� व्यापक
महत्व के सारवान ् प्र� ह� तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च
न्यायालय� के सम� लं�बत मामले या मामल� को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी
मामल� को स्वंय �नपटा सकेगा :
परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उ� �व�ध के प्र�� का
अवधारण करने के प�ात ् ऐसे प्र�� पर अपने �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस उच्च
न्यायालय को, िजससे मामला मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय
उसके प्रा� होने पर उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू
ु प �नपटाने के �लए आगे
कायर्वाह� करे गा ।]
(2) य�द उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश्य क� प�ू तर् के �लए ऐसा करना
समीचीन समझता है तो वह �कसी उच्च न्यायालय के सम� लं�बत �कसी मामले, अपील
या अन्य कायर्वाह� का अंतरण �कसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा ।]
140. उच्चतम न्यायालय क� आनष ु �ं गक श��यां–संसद्, �व�ध द्वारा, उच्चतम
न्यायालय को ऐसी अनप ु रू क श��यां प्रदान करने के �लए उपबंध कर सकेगी जो इस
सं�वधान के उपबंध� म� से �कसी से असंगत न ह� और जो उस न्यायालय को इस
सं�वधान द्वारा या इसके अधीन प्रद� अ�धका�रता का अ�धक प्रभावी रूप से प्रयोग करने
के योग्य बनाने के �लए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत ह� ।
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध का सभी न्यायालय� पर आबद्धकर होना–
उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सभी न्यायालय� पर
आबद्धकर होगी ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 65
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
उच्चतम न्यायालय को भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र के बारे म� �कसी व्य�� को हािजर कराने
के, �कन्ह�ं दस्तावेज� के प्रकट�करण या पेश कराने के अथवा अपने �कसी अवमान का
अन्वेषण करने या दं ड दे ने के प्रयोजन के �लए कोई आदे श करने क� समस्त और प्रत्येक
श�� होगी ।
143. उच्चतम न्यायालय से परामशर् करने क� रा�प�त क� श��–(1) य�द �कसी
समय रा�प�त को प्रतीत होता है �क �व�ध या तथ्य का कोई ऐसा प्र� उत्पन्न हुआ है
या उत्पन्न होने क� संभावना है, जो ऐसी प्रकृ�त का और ऐसे व्यापक महत्व का है �क
उस पर उच्चतम न्यायालय क� राय प्रा� करना समीचीन है, तो वह उस प्र� को �वचार
करने के �लए उस न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सन ु वाई
के प�ात ् जो वह ठ�क समझता है, रा�प�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत कर
सकेगा ।
(2) रा�प�त अनच् ु छे द 131 *** के परन्तुक म� �कसी बात के होते हुए भी, इस
2
प्रकार के �ववाद को, जो 3[उ� परन्तक ु ] म� व�णर्त है, राय दे ने के �लए उच्चतम
न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सन ु वाई के प�ात ् जो
वह ठ�क समझता है, रा�प�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत करे गा ।
144. �स�वल और न्या�यक प्रा�धका�रय� द्वारा उच्चतम न्यायालय क� सहायता म�
कायर् �कया जाना–भारत के राज्य�ेत्र के सभी �स�वल और न्या�यक प्रा�धकार� उच्चतम
न्यायालय क� सहायता म� कायर् कर� गे ।
4
144क. [�व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्र�� के �नपटारे के बारे म�
�वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 5 द्वारा (13-
4-1978 से) �नर�सत ।
145. न्यायालय के �नयम आ�द–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध�
के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, रा�प�त के अनम ु ोदन से
न्यायालय क� पद्ध�त और प्र�क्रया के, साधारणतया, �व�नयमन के �लए �नयम बना
सकेगा िजसके अंतगर्त �नम्न�ल�खत भी ह�, अथार्त ् :–
(क) उस न्यायालय म� �व�ध-व्यवसाय करने वाले व्य��य� के बारे म� �नयम
;
(ख) अपील� सुनने के �लए प्र�क्रया के बारे म� और अपील� संबध ं ी अन्य �वषय�
के बारे म� , िजनके अंतगर्त वह समय भी है िजसके भीतर अपील� उस न्यायालय म�
ग्रहण क� जानी ह�, �नयम ;
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द
139क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंध�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) क�तपय शब्द�, अंक� और
अ�र� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “न्यूनतम संख्या” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 67
कतर्व्य� का पालन और ऐसी श��य� का प्रयोग करे गा िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध
द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कया जाए और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं
�कया जाता है तब तक, संघ के और राज्य� के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे कतर्व्य� का
पालन और ऐसी श��य� का प्रयोग करे गा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले
क्रमशः भारत डो�म�नयन के और प्रांत� के लेखाओं के संबध
ं म� भारत के महालेखापर��क
को प्रद� थीं या उसके द्वारा प्रयो�व्य थीं ।
1
[150. संघ के और राज्य� के लेखाओं का प्ररूप–संघ के और राज्य� के लेखाओं को
ऐसे प्ररूप म� रखा जाएगा जो रा�प�त, भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क 2[क� सलाह पर]
�व�हत करे ।]
151. संपर��ा प्र�तवेदन–(1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संघ के लेखाओं
संबध
ं ी प्र�तवेदन� को रा�प�त के सम� प्रस्तत
ु �कया जाएगा, जो उनको संसद् के प्रत्येक
सदन के सम� रखवाएगा ।
(2) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के �कसी राज्य के लेखाओं संबध
ं ी प्र�तवेदन�
को उस राज्य के राज्यपाल 3*** के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो उनको राज्य के
�वधान-मंडल के सम� रखवाएगा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से परामशर् के प�ात ्” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का (1-
11-1956 से) लोप �कया गया ।
भाग 6
1* * *
रा य
अ याय 1–साधारण
152. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 2[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ] ।
अ याय 2–कायर्पािलका
रा यपाल
153. रा य के रा यपाल–प्र येक रा य के िलए एक रा यपाल होगा :
[पर तु इस अनु छे द की कोई बात एक ही यिक्त को दो या अिधक रा य के
3
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क म के” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “का अथर् पहली अनुसूची के भाग
क म उि लिखत रा य है ” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 6 द्वारा जोड़ा गया ।
70
भारत का संिवधान 71
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 72
1. संिवधान (चौरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2006 की धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) “िबहार” के थान पर
प्रित थािपत ।
2 उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से) अंतः थािपत ।
4. दे िखए अिधसूचना सं. का.आ. 21(अ), तारीख 7-1-2004 ।
भारत का संिवधान 74
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड 4 अंतः थािपत िकया
गया था और उसका संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 75
167. रा यपाल को जानकारी दे ने, आिद के संबंध म मुख्यमंत्री के कतर् य–प्र येक
रा य के मख्
ु यमंत्री का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी मंित्र-पिरष के सभी िविन य रा यपाल को संसूिचत करे ;
(ख) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी जो जानकारी रा यपाल मांगे, वह दे ; और
(ग) िकसी िवषय को िजस पर िकसी मंत्री ने िविन य कर िदया है िकं तु
मंित्र-पिरष ने िवचार नहीं िकया है , रा यपाल द्वारा अपेक्षा िकए जाने पर पिरष
के समक्ष िवचार के िलए रखे ।
अ याय 3–रा य का िवधान-मंडल
साधारण
168. रा य के िवधान-मंडल का गठन–(1) प्र येक रा य के िलए एक िवधान-
मंडल होगा जो रा यपाल और–
(क) 1*** 2[आंध्र प्रदे श], िबहार, 3*** 4[म य प्रदे श,] 5*** 6[महारा ],
[कनार्टक] 8*** 9*** [10[तिमलनाडु, तेलंगाना] 11[और उ र प्रदे श] रा य म दो
7
सदन से ;
1. “आंध्र प्रदे श” श द का आंध्र प्रदे श िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा
(1-6-1985 से) लोप िकया गया ।
2. आंध्र प्रदे श िवधान पिरष अिधिनयम, 2005 (2006 का 1) की धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंतः थािपत ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई” श द का लोप िकया
गया ।
4. इस उपखंड म “म य प्रदे श” श द के अंतः थापन के िलए संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा
8(2) के अधीन कोई तारीख िनयत नहीं की गई है ।
5. तिमलनाडु िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से)
“तिमलनाडु” श द का लोप िकया गया ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंतः थािपत ।
7. मैसूर रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के
थान पर प्रित थािपत, िजसे संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956 से)
अंतः थािपत िकया गया था ।
8. पंजाब िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब” श द
का लोप िकया गया ।
9. तिमलनाडु िवधान पिरष अिधिनयम, 2010 (2010 का 16) की धारा 3 द्वारा (तारीख बाद म अिधसूिचत की
जाएगी) अंतः थािपत ।
10. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 (2014 का 6) की धारा 96 द्वारा (1-6-2014 से) "तिमलनाडु" के थान
पर प्रित थािपत ।
11. बंगाल िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) “उ र प्रदे श
और पि मी बंगाल” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 76
हुए, प्र येक रा य की िवधान सभा उस रा य म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र से प्र यक्ष
िनवार्चन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनिधक और साठ से अ यून सद य से िमलकर
बनेगी ।
(2) खंड (1) के प्रयोजन के िलए, प्र येक रा य को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म
ऐसी रीित से िवभािजत िकया जाएगा िक प्र येक िनवार्चन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको
आबंिटत थान की संख्या से अनप
ु ात सम त रा य म यथासा य एक ही हो ।
[ प ीकरण–इस खंड म “जनसंख्या” पद से ऐसी अंितम पव
2
ू व
र् तीर् जनगणना म
अिभिनि त की गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) प ीकरण के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 77
परं तु इस प ीकरण म अंितम पूवव र् तीर् जनगणना के प्रित िजसके सुसंगत आंकड़े
प्रकािशत हो गए ह, िनदश का, जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह
2
[2001] की जनगणना के प्रितिनदश है ।]
(3) प्र येक जनगणना की समाि पर प्र येक रा य की िवधान सभा म थान
की कुल संख्या और प्र येक रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का ऐसे
प्रािधकारी द्वारा और ऐसी रीित से पुनःसमायोजन िकया जाएगा जो संस िविध द्वारा
अवधािरत करे :
परं तु ऐसे पुन: समायोजन से िवधान सभा म प्रितिनिध व पद पर तब तक कोई
प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय िवद्यमान िवधान सभा का िवघटन नहीं हो जाता है
:
3
[परं तु यह और िक ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो रा पित
आदे श द्वारा िविनिदर् करे और ऐसे पन
ु : समायोजन के प्रभावी होने तक िवधान सभा के
िलए कोई िनवार्चन उन प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन:
समायोजन के पहले िवद्यमान ह :
परं तु यह और भी िक जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली जनगणना
के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह तब तक इस खंड के अधीन,–
(i) प्र येक रा य की िवधान सभा म 1971 की जनगणना के आधार पर
पुन: समायोिजत थान की कुल संख्या का ; और
(ii) ऐसे रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का, जो 2[2001] की
जनगणना के आधार पर पन ु : समायोिजत िकए जाएं,
4
[पन
ु : समायोजन आव यक नहीं होगा ।]
171. िवधान पिरषद की संरचना–(1) िवधान पिरष वाले रा य की िवधान
पिरष के सद य की कुल संख्या उस रा य की िवधान सभा के सद य की कुल संख्या
के 5[एक-ितहाई] से अिधक नहीं होगी :
1. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) मूल अंक
"1971 के थान पर "1991"" अंक प्रित थािपत िकए गए थे ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) "2000" अंक के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 78
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल श द
“पांच वषर्” के थान पर “छह वषर्” प्रित थािपत िकए गए थे ।
2. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 80
1
[174. रा य के िवधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और िवघटन–(1) रा यपाल,
समय-समय पर, रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन को ऐसे समय और
थान पर, जो वह ठीक समझे, अिधवेशन के िलए आहूत करे गा, िकं तु उसके एक सत्र
की अंितम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के िलए िनयत तारीख के बीच छह
मास का अंतर नहीं होगा ।
(2) रा यपाल, समय-समय पर,–
(क) सदन का या िकसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) िवधान सभा का िवघटन कर सकेगा ।]
175. सदन या सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा यपाल
का अिधकार–(1) रा यपाल, िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म
उस रा य के िवधान-मंडल के िकसी एक सदन म या एक साथ समवेत दोन सदन म,
अिभभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के िलए सद य की उपि थित की अपेक्षा कर
सकेगा ।
(2) रा यपाल, रा य के िवधान-मंडल म उस समय लंिबत िकसी िवधेयक के
संबंध म संदेश या कोई अ य संदेश, उस रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन को
भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश
द्वारा िवचार करने के िलए अपेिक्षत िवषय पर सुिवधानस
ु ार शीघ्रता से िवचार करे गा ।
176. रा यपाल का िवशेष अिभभाषण–(1) रा यपाल, 2[िवधान सभा के िलए
प्र येक साधारण िनवार्चन के प ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म] और प्र येक वषर् के प्रथम
सत्र के आरं भ म िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म एक साथ
समवेत दोन सदन म अिभभाषण करे गा और िवधान-मंडल को उसके आ ान के कारण
बताएगा ।
(2) सदन या प्र येक सदन की प्रिक्रया का िविनयमन करने वाले िनयम द्वारा ऐसे
अिभभाषण म िनिदर् िवषय की चचार् के िलए समय िनयत करने के िलए 3*** उपबंध
िकया जाएगा ।
177. सदन के बारे म मंित्रय और महािधवक्ता के अिधकार–प्र येक मंत्री और
रा य के महािधवक्ता को यह अिधकार होगा िक वह उस रा य की िवधान सभा म या
िवधान पिरष वाले रा य की दशा म दोन सदन म बोले और उनकी कायर्वािहय म
अ यथा भाग ले और िवधान-मंडल की िकसी सिमित म, िजसम उसका नाम सद य के
प म िदया गया है , बोले और उसकी कायर्वािहय म अ यथा भाग ले, िक तु इस
अनु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 8 द्वारा (18-6-1951 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “प्र येक सत्र” के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “तथा सदन के अ य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के िलए” श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 81
रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष–प्र येक रा य की िवधान सभा,
यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सद य को अपना अ यक्ष और उपा यक्ष चुनेगी और जब-जब
अ यक्ष या उपा यक्ष का पद िरक्त होता है तब-तब िवधान सभा िकसी अ य सद य को,
यथाि थित, अ यक्ष या उपा यक्ष चनु े गी ।
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना–िवधान सभा के अ यक्ष या उपा यक्ष के प म पद धारण करने वाला सद य–
(क) यिद िवधान सभा का सद य नहीं रहता है तो अपना पद िरक्त कर
दे गा ;
(ख) िकसी भी समय, यिद वह सद य अ यक्ष है तो उपा यक्ष को
संबोिधत और यिद वह सद य उपा यक्ष है तो अ यक्ष को संबोिधत अपने
ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद याग सकेगा ; और
(ग) िवधान सभा के त कालीन सम त सद य के बहुमत से पािरत
संक प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के िलए कोई संक प तब तक प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा जब तक िक उस संक प को प्र तािवत करने के आशय की कम से कम चौदह
िदन की सूचना न दे दी गई हो :
परं तु यह और िक जब कभी िवधान सभा का िवघटन िकया जाता है तो िवघटन
के प ात ् होने वाले िवधान सभा के प्रथम अिधवेशन के ठीक पहले तक अ यक्ष अपने
पद को िरक्त नहीं करे गा ।
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त–(1) जब अ यक्ष का पद िरक्त है तो
उपा यक्ष, या यिद उपा यक्ष का पद भी िरक्त है तो िवधान सभा का ऐसा सद य,
िजसको रा यपाल इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के कतर् य का पालन
करे गा ।
(2) िवधान सभा की िकसी बैठक से अ यक्ष की अनुपि थित म उपा यक्ष, या
यिद वह भी अनुपि थत है तो ऐसा यिक्त, जो िवधान सभा की प्रिक्रया के िनयम द्वारा
अवधािरत िकया जाए, या यिद ऐसा कोई यिक्त उपि थत नहीं है तो ऐसा अ य यिक्त,
जो िवधान सभा द्वारा अवधािरत िकया जाए, अ यक्ष के प म कायर् करे गा ।
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है
तब उसका पीठासीन न होना–(1) िवधान सभा की िकसी बैठक म, जब अ यक्ष को उसके
पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब अ यक्ष, या जब उपा यक्ष को उसके पद
से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब उपा यक्ष, उपि थत रहने पर भी, पीठासीन
नहीं होगा और अनु छे द 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्र येक बैठक के संबंध म वैसे
ही लागू ह गे जैसे वह उस बैठक के संबंध म लागू होते ह िजससे, यथाि थित, अ यक्ष या
उपा यक्ष अनुपि थत है ।
भारत का संिवधान 82
कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष
का प्र येक सद य अपना थान ग्रहण करने से पहले, रा यपाल या उसके द्वारा इस
िनिम िनयुक्त यिक्त के समक्ष, तीसरी अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प
के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्रितज्ञान करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर करे गा ।
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की शिक्त
और गणपूितर्–(1) इस संिवधान म यथा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, िकसी रा य के
िवधान-मंडल के िकसी सदन की बैठक म सभी प्र का अवधारण, अ यक्ष या सभापित
को अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त को छोड़कर, उपि थत और मत दे ने वाले
सद य के बहुमत से िकया जाएगा ।
अ यक्ष या सभापित, अथवा उस प म कायर् करने वाला यिक्त प्रथमत: मत नहीं
दे गा, िकं तु मत बराबर होने की दशा म उसका िनणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग
करे गा ।
(2) रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की सद यता म कोई िरिक्त होने पर
भी, उस सदन को कायर् करने की शिक्त होगी और यिद बाद म यह पता चलता है िक
कोई यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कायर्वािहय म उपि थत रहा है या उसने
मत िदया है या अ यथा भाग िलया है तो भी रा य के िवधान-मंडल की कायर्वाही
िविधमा य होगी ।
1
[(3) जब तक रा य का िवधान-मंडल िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक
रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का अिधवेशन गिठत करने के िलए गणपूितर् दस
सद य या सदन के सद य की कुल संख्या का दसवां भाग, इसम से जो भी अिधक हो,
होगी ।
(4) यिद रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष के अिधवेशन म िकसी समय
गणपूितर् नहीं है तो अ यक्ष या सभापित अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त का
यह कतर् य होगा िक वह सदन को थिगत कर दे या अिधवेशन को तब तक के िलए
िनलंिबत कर दे जब तक गणपूितर् नहीं हो जाती है ।]
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना–(1) कोई यिक्त रा य के िवधान-मंडल के दोन सदन
का सद य नहीं होगा और जो यिक्त दोन सदन का सद य चुन िलया जाता है उसके
एक या दस ू रे सदन के थान को िरक्त करने के िलए उस रा य का िवधान-मंडल िविध
द्वारा उपबंध करे गा ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा कितपय श द को "तारीख अिधसूिचत नहीं की
गई)" प्रित थािपत नहीं िकया गया । इस संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया गया ।
भारत का संिवधान 85
1. दे िखए िविध मंत्रालय की अिधसूचना सं0 एफ0 46/50-सी, िदनांक 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प ृ 678 म प्रकािशत समसामियक सद यता प्रितषेध िनयम, 1950 ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनु छे द 191 के खंड (1)” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (19-5-1974 से) के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 86
1
[(क) यिद वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर िजसको धारण करने वाले का
िनरिहर्त न होना रा य के िवधान-मंडल ने िविध द्वारा घोिषत िकया है , कोई लाभ
का पद धारण करता है ;]
(ख) यिद वह िवकृतिच है और सक्षम यायालय की ऐसी घोषणा िवद्यमान
है ;
(ग) यिद वह अनु मोिचत िदवािलया है ;
(घ) यिद वह भारत का नागिरक नहीं है या उसने िकसी िवदे शी रा य की
नागिरकता वे छा से अिजर्त कर ली है या वह िकसी िवदे शी रा य के प्रित िन ा
या अनुषिक्त को अिभ वीकार िकए हुए है ;
(ङ) यिद वह संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस
प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
[ प ीकरण–इस खंड के प्रयोजन के िलए,] कोई यिक्त केवल इस कारण भारत
2
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनु छे द के प्रयोजन के
िलए” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतः थािपत ।
4. अनु छे द 192, संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) और त प ात ्
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) संशोिधत होकर उपरोक्त प
म आया ।
भारत का संिवधान 87
न होते हुए या िनरिहर्त िकए जाने पर बैठने और मत दे ने के िलए शाि त–यिद िकसी
रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष म कोई यिक्त अनु छे द 188 की अपेक्षाओं का
अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए िक म उसकी सद यता के िलए अिहर्त नहीं
हूं या िनरिहर्त कर िदया गया हूं या संस या रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िकसी िविध के उपबंध द्वारा ऐसा करने से प्रितिषद्ध कर िदया गया हूं, सद य के प म
बैठता है या मत दे ता है तो वह प्र येक िदन के िलए जब वह इस प्रकार बैठता है या
मत दे ता है , पांच सौ पए की शाि त का भागी होगा जो रा य को दे य ऋण के प म
वसूल की जाएगी ।
1
[(3) अ य बात म रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की और ऐसे िवधान-
मंडल के िकसी सदन के सद य और सिमितय की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां
ऐसी ह गी जो वह िवधान-मंडल, समय-समय पर, िविध द्वारा पिरिनि त करे और जब तक
वे इस प्रकार पिरिनि त नहीं की जाती ह तब तक 2[वही ह गी जो संिवधान (चवालीसवां
संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 के प्रव ृ होने से ठीक पहले उस सदन की और
उसके सद य और सिमितय की थीं ।]
1.
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 88
िलए पारे िषत धन िवधेयक उक्त चौदह िदन की अविध के भीतर िवधान सभा को नहीं
लौटाया जाता है तो उक्त अविध की समाि पर वह दोन सदन द्वारा उस प म पािरत
िकया गया समझा जाएगा िजसम वह िवधान सभा द्वारा पािरत िकया गया था ।
199. “धन िवधेयक” की पिरभाषा–(1) इस अ याय के प्रयोजन के िलए, कोई
िवधेयक धन िवधेयक समझा जाएगा यिद उसम केवल िन निलिखत सभी या िक हीं
िवषय से संबंिधत उपबंध ह, अथार्त ् :–
(4) जब धन िवधेयक अनु छे द 198 के अधीन िवधान पिरष को पारे िषत िकया
भारत का संिवधान 91
शिक्त होगी और िजन प्रयोजन के िलए उक्त अनुदान िकए गए ह उनके िलए रा य की
संिचत िनिध म से धन िनकालना िविध द्वारा प्रािधकृत करने की रा य के िवधान-मंडल को
शिक्त होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन िकए जाने वाले िकसी अनुदान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म अनु छे द 203 और अनु छे द 204 के उपबंध
वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे वािषर्क िव ीय िववरण म विणर्त िकसी यय के बारे म कोई
अनुदान करने के संबंध म और रा य की संिचत िनिध म से ऐसे यय की पूितर् के िलए
धन का िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म प्रभावी
ह ।
संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 22 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
भारत का संिवधान 96
संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्” श द के
थान पर “प चीस वषर्” श द रख िदए गए ह :]
[परं तु यह और िक 4-5[अ णाचल प्रदे श, गोवा और िमजोरम रा य के िवधान-
3
मंडल ]] के संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्”
श द के थान पर “चालीस वषर्” श द रख िदए गए ह ।]
211. िवधान-मंडल म चचार् पर िनबर्ंधन–उ चतम यायालय या िकसी उ च
यायालय के िकसी यायाधीश के अपने कतर् य के िनवर्हन म िकए गए, आचरण के
1. िहमाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से ) अंतः थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “िहमाचल प्रदे श
रा य के िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
4. अ णाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (30-5-1987 से) “िमजोरम रा य के
िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
5. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अ णाचल
प्रदे श और िमजोरम” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 97
परं तु रा यपाल, रा पित के अनुदेश के िबना, कोई ऐसा अ यादे श प्रख्यािपत नहीं
करे गा यिद–
(क) वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को िवधान-मंडल म
पुर: थािपत िकए जाने के िलए रा पित की पूवर् मंजूरी की अपेक्षा इस संिवधान
के अधीन होती ; या
(ख) वह वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को रा पित के िवचार
के िलए आरिक्षत रखना आव यक समझता ; या
(ग) वैसे हर उपबंध अंतिवर् करने वाला रा य के िवधान-मंडल का
अिधिनयम इस संिवधान के अधीन तब तक अिविधमा य होता जब तक रा पित
के िवचार के िलए आरिक्षत रखे जाने पर उसे रा पित की अनुमित प्रा नहीं हो
गई होती ।
1. संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा (11-8-1975 से) खंड (4) अंतः थािपत िकया
गया था और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 27 द्वारा (20-6-1979 से) लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु ूची द्वारा को क और अंक “(1)” का लोप
िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) और खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 99
आव यक समझे ।
1
* * * *
217. उ च यायालय के यायाधीश की िनयुिक्त और उसके पद की शत–(1)
2
[अनु छे द 124क म िनिदर् रा ीय याियक िनयिु क्त आयोग की िसफािरश पर, रा पित]
अपने ह ताक्षर और मुद्रा सिहत अिधपत्र द्वारा उ च यायालय के प्र येक यायाधीश को
िनयुक्त करे गा और वह यायाधीश 3[अपर या कायर्कारी यायाधीश की दशा म अनु छे द
224 म उपबंिधत प म पद धारण करे गा और िकसी अ य दशा म तब तक पद धारण
करे गा जब तक वह 4[बासठ वषर्] की आयु प्रा नहीं कर लेता है :]]
परं त–
ु
(क) कोई यायाधीश, रा पित को संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा
अपना पद याग सकेगा ;
(ख) िकसी यायाधीश को उ चतम यायालय के यायाधीश को हटाने के
िलए अनु छे द 124 के खंड (4) म उपबंिधत रीित से उसके पद से रा पित द्वारा
हटाया जा सकेगा ;
(ग) िकसी यायाधीश का पद, रा पित द्वारा उसे उ चतम यायालय का
यायाधीश िनयुक्त िकए जाने पर या रा पित द्वारा उसे भारत के रा यक्षेत्र म
िकसी अ य उ च यायालय को, अंतिरत िकए जाने पर िरक्त हो जाएगा ।
(2) कोई यिक्त, िकसी उ च यायालय के यायाधीश के प म िनयुिक्त के िलए
तभी अिहर्त होगा जब वह भारत का नागिरक है और–
(क) भारत के रा यक्षेत्र म कम से कम दस वषर् तक याियक पद धारण
कर चुका है ; या
(ख) िकसी 5*** उ च यायालय का या ऐसे दो या अिधक यायालय का
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) पर तुक का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से, उस रा य के रा यपाल से और मुख्य यायमूितर् से िभ न िकसी यायाधीश की िनयुिक्त की दशा म उस उ च
यायालय के मुख्य यायमूितर् से परामशर् करने के प ात ्, रा पित” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम
यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 12 द्वारा “तब तक पद धारण करे गा जब तक िक वह साठ
वषर् की आयु प्रा न कर ले” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य म के” श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 100
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) श द “या” और उपखंड (ग)
अंतः थािपत िकए गए और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से)
उनका लोप िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) “ यािययक पद धारण िकया
हो” के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 101
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “िकसी रा य म” श द का (1-11-
1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 13 द्वारा प्रित थािपत ।
3. 1 नव बर, 1956 ।
4. संिवधान (चौवनवां संशोधन) अिधिनयम, 1986 की धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 102
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 7 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से परामशर् करने के प ात ्” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर्
एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर,
2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा “भारत के रा यक्षेत्र म के” श द का (1-11-1956
से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत । संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा मूल खंड (2) का लोप (1-11-1956 से) िकया गया ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 15 द्वारा अनु छे द 224 के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तो रा पित स यक्त प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 103
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तब रा पित स यक् प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
2. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 6 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 7 द्वारा अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 9 द्वारा (13-4-2015 से) “िकसी रा य के उ च
यायालय का मुख्य यायमूितर्, िकसी भी समय, रा पित की पूवर् सहमित से” के थान पर प्रित थािपत । यह
संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म
उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 104
1
[परं तु राज व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने म आिद या िकए गए िकसी
कायर् संबंधी िवषय की बाबत उ च यायालय म से िकसी की आरं िभक अिधकािरता का
प्रयोग, इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, िजस िकसी िनबर्ंधन के अधीन था वह
िनबर्ंधन ऐसी अिधकािरता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ के प ात ् लागू नहीं होगा ।]
2
[226. कुछ िरट िनकालने की उ च यायालय की शिक्त – (1) अनु छे द 32 म
िकसी बात के होते हुए भी 3*** प्र येक उ च यायालय को उन रा यक्षेत्र म सवर्त्र,
िजनके संबंध म वह अपनी अिधकािरता का प्रयोग करता है , 3[भाग 3 द्वारा प्रद
अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए और िकसी अ य प्रयोजन के िलए] उन
रा यक्षेत्र के भीतर िकसी यिक्त या प्रािधकारी को या समुिचत मामल म िकसी सरकार
को ऐसे िनदे श, आदे श या िरट िजनके अंतगर्त 4[बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध,
अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण िरट ह, या उनम से कोई] िनकालने की शिक्त होगी ।]
(2) िकसी सरकार, प्रािधकारी या यिक्त को िनदे श, आदे श या िरट िनकालने की
खंड (1) द्वारा प्रद शिक्त का प्रयोग उन रा यक्षेत्र के संबंध म, िजनके भीतर ऐसी शिक्त
के प्रयोग के िलए वादहे तुक पूणत र् : या भागत: उ प न होता है , अिधकािरता का प्रयोग
करने वाले िकसी उ च यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी िकया जा सकेगा िक
ऐसी सरकार या प्रािधकारी का थान या ऐसे यिक्त का िनवास- थान उन रा यक्षेत्र के
भीतर नहीं है ।
5
[(3) जहां कोई पक्षकार, िजसके िव द्ध खंड (1) के अधीन िकसी यािचका पर या
उससे संबंिधत िकसी कायर्वाही म यादे श के प म या रोक के प म या िकसी अ य
रीित से कोई अंतिरम आदे श–
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत । संिवधान
(बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) मूल परं तुक का लोप िकया गया था ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनु छे द 226 के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “िकं तु अनु छे द 131क और
अनु छे द 226क के उपबंध के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “िजनके अंतगर्त बंदी
प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण के प्रकार के लेख भी ह अथवा उनम से िकसी को”
श द से आरं भ होकर “ याय की सारवान ् िन फलता हुई है , िकसी क्षित के प्रिततोष के िलए” श द के साथ समा
होने वाले भाग के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5)
और खंड (6) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 105
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और त प ात ् संिवधान
(चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) प्रित थािपत होकर उपरोक्त खंड (1)
प म आया ।
भारत का संिवधान 106
परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई िनयम, िविहत िकए गए
कोई प्र प या ि थर की गई कोई सारणी त समय प्रव ृ िकसी िविध के उपबंध से
असंगत नहीं होगी और इनके िलए रा यपाल के पव ू र् अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी ।
(4) इस अनु छे द की कोई बात उ च यायालय को सश बल से संबंिधत
िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन गिठत िकसी यायालय या अिधकरण पर अधीक्षण की
शिक्तयां दे ने वाली नहीं समझी जाएगी ।
1
(5)* * * *
228. कुछ मामल का उ च यायालय को अंतरण–यिद उ च यायालय का यह
समाधान हो जाता है िक उसके अधीन थ िकसी यायालय म लंिबत िकसी मामले म
इस संिवधान के िनवर्चन के बारे म िविध का कोई सारवान ् प्र अंतवर्िलत है िजसका
अवधारण मामले के िनपटारे के िलए आव यक है 2[तो वह 3***उस मामले को अपने पास
मंगा लेगा और–]
(क) मामले को वयं िनपटा सकेगा, या
(ख) उक्त िविध के प्र का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे
प्र पर िनणर्य की प्रितिलिप सिहत उस यायालय को, िजससे मामला इस प्रकार
मंगा िलया गया है , लौटा सकेगा और उक्त यायालय उसके प्रा होने पर उस
मामले को ऐसे िनणर्य के अनु प िनपटाने के िलए आगे कायर्वाही करे गा ।
4
[228क. रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के िनपटारे के
बारे म िवशेष उपबंध ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 10
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
229. उ च यायालय के अिधकारी और सेवक तथा यय–(1) िकसी उ च
यायालय के अिधकािरय और सेवक की िनयिु क्तयां उस यायालय का मख्
ु य यायमिू तर्
करे गा या उस यायालय का ऐसा अ य यायाधीश या अिधकारी करे गा िजसे वह िनिद
करे :
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतः थािपत िकया
गया और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) “तो वह उस मामले को अपने
पास मंगा लेगा तथा --” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनु छे द 131क के उपबंध
के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 107
1
(क) * * * *
परं तु यिद ऐसा मुख्य थान िकसी संघ रा यक्षेत्र म है तो अनु छे द 219 और
अनु छे द 229 म रा य के रा यपाल, लोक सेवा आयोग, िवधान-मंडल और संिचत िनिध
के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे क्रमश: रा पित, संघ लोक सेवा
आयोग, संस और भारत की संिचत िनिध के प्रित िनदश ह ।]
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप िकया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
संशोधन के पूवर् खंड (क) िन नानुसार था :--
“(क) अनु छे द 217 म उस रा य के रा यपाल के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उन सभी
रा य के रा यपाल के प्रित िनदश है िजनके संबंध म वह उ च यायालय अिधकािरता का प्रयोग करता है ;”
भारत का संिवधान 109
1
[233क. कुछ िजला यायाधीश की िनयुिक्तय का और उनके द्वारा िकए गए
िनणर्य आिद का िविधमा यकरण–िकसी यायालय का कोई िनणर्य, िडक्री या आदे श होते
हुए भी, –
(क) (i) उस यिक्त की जो रा य की याियक सेवा म पहले से ही है या
उस यिक्त की, जो कम से कम सात वषर् तक अिधवक्ता या लीडर रहा है , उस
रा य म िजला यायाधीश के प म िनयुिक्त की बाबत, और
(ii) ऐसे यिक्त की िजला यायाधीश के प म पद थापना, प्रो नित या
अंतरण की बाबत,
जो संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले िकसी समय
अनु छे द 233 या अनु छे द 235 के उपबंध के अनुसार न करके अ यथा िकया
गया है , केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना, प्रो नित या
अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा जाएगा िक
वह अवैध या शू य है या कभी भी अवैध या शू य रहा था ;
(ख) िकसी रा य म िजला यायाधीश के प म अनु छे द 233 या
अनु छे द 235 के उपबंध के अनस ु ार न करके अ यथा िनयक्त ु , पद थािपत,
प्रो नत या अंतिरत िकसी यिक्त द्वारा या उसके समक्ष संिवधान (बीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयुक्त अिधकािरता की, पािरत िकए गए या
िदए गए िनणर्य, िडक्री, दं डादे श या आदे श की और िकए गए अ य कायर् या
कायर्वाही की बाबत, केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना,
प्रो नित या अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा
जाएगा िक वह अवैध या अिविधमा य है या कभी भी अवैध या अिविधमा य रहा
था ।]
234. याियक सेवा म िजला यायाधीश से िभ न यिक्तय की भतीर्–िजला
यायाधीश से िभ न यिक्तय की िकसी रा य की याियक सेवा म िनयुिक्त उस रा य
के रा यपाल द्वारा, रा य लोक सेवा आयोग से और ऐसे रा य के संबंध म अिधकािरता
का प्रयोग करने वाले उ च यायालय से परामशर् करने के प ात ्, और रा यपाल द्वारा
इस िनिम बनाए गए िनयम के अनुसार की जाएगी ।
235. अधीन थ यायालय पर िनयंत्रण–िजला यायालय और उनके अधीन थ
यायालय का िनयंत्रण, िजसके अंतगर्त रा य की याियक सेवा के यिक्तय और िजला
यायाधीश के पद से अवर िकसी पद को धारण करने वाले यिक्तय की पद थापना,
प्रो नित और उनको छुट्टी दे ना है , उ च यायालय म िनिहत होगा, िकं तु इस अनु छे द
की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह ऐसे िकसी यिक्त से उसके
अपील के अिधकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शत का िविनयमन करने वाली
िविध के अधीन उसे है या उ च यायालय को इस बात के िलए प्रािधकृत करती है िक
वह उससे ऐसी िविध के अधीन िविहत उसकी सेवा की शत के अनस ु ार यवहार न करके
अ यथा यवहार करे ।
1. संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 110
111
भाग 8
1
[संघ राज्य�ेत्र]
2
[239. संघ राज्य�ेत्र� का प्रशासन–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा यथा
अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक संघ राज्य�ेत्र का प्रशासन रा�प�त द्वारा �कया
जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदा�भधान स�हत, जो वह �व�न�दर्� करे , �नय�
ु �कए
गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कायर् करे गा िजतनी वह ठ�क समझता है ।
(2) भाग 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त �कसी राज्य के राज्यपाल को
�कसी �नकटवत� संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक �नय�
ु कर सकेगा और जहां कोई राज्यपाल
इस प्रकार �नय�
ु �कया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के रूप म� अपने कृत्य� का प्रयोग
अपनी मं�त्र-प�रषद् से स्वतंत्र रूप से करे गा ।
3
[239क. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए स्थानीय �वधान-मंडल� या मं�त्र-प�रषद� का
या दोन� का सज
ृ न–(1) संसद्, �व�ध द्वारा [ [पड
4 5
ु ु चेर�,]] संघ राज्य�ेत्र के �लए,] –
या दोन� का सज
ृ न कर सकेगी, िजनम� से प्रत्येक का गठन, श��यां और कृत्य वे ह�गे
जो उस �व�ध म� �व�न�दर्� �कए जाएं ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग ग म� के राज्य” शीषर्क
के स्थान पर (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा अनुच्छे द 239 और अनुच्छे द 240 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “गोवा,
दमण और द�व, और पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र� म� से �कसी के �लए” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
112
भारत का सं�वधान 113
रखता है ।]
(ग) अनच्
ु छे द 324 से अनच्
ु छे द 327 और अनच्
ु छे द 329 के उपबंध रा�ीय
राजधानी राज्य�ेत्र, रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र क� �वधान सभा और उसके सदस्य� के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे, �कसी राज्य, �कसी राज्य क� �वधान सभा और उसके
सदस्य� के संबध
ं म� लागू होते ह� तथा अनच्
ु छे द 326 और अनच्
ु छे द 329 म� “समु�चत
�वधान-मंडल” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह संसद् के प्र�त �नद� श
है ।
(ख) उपखंड (क) क� �कसी बात से संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए
�कसी भी �वषय के संबध
ं म� इस सं�वधान के अधीन �व�ध बनाने क� संसद् क� श�� का
1. सं�वधान (उनहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 114
1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) “(7)” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 116
अनच्
ु छे द 239 और अनच्
ु छे द 239कक के उपबंध� के अनस
ु ार रा�ीय राजधानी राज्य�ेत्र
के प्रशासन के �लए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत ह� ।]
1
[239ख. �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क�
प्रशासक क� श��–(1) उस समय को छोड़कर जब [ [पुडुचेर�] संघ राज्य�ेत्र] का
2 3
1. सं�वधान (सताईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्था�पत ।
2. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अनुच्छे द
239क के खंड (1) म� �न�दर् � संघ राज्य�ेत्र�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 117
(4)*
1
* * *
18 (च)* *
7
* *
1. खंड (4) सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (भूतल�ी रूप से) अंतःस्था�पत �कया
गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया
गया ।
2. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 4 द्वारा
(1-11-1973 से) प्र�व�� (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 3 द्वारा
(11-08-1961 से) प्र�व�� (ग) अंतःस्था�पत क� गई थी ।
4. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� (घ) का लोप �कया गया । मूल प्र�व�� (घ) सं�वधान (बारहवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (20-12-1961 से) अंतःस्था�पत क� गई थी ।
5. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत ।
6. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
7. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�व��
(च) का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 118
19 (छ)* *
1
* *
1. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदे श
संबंधी प्र�व�� (छ) का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “गोवा, दमण और द�व या
पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “�कसी �वद्यमान �व�ध” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग ग म� �व�न�दर् � राज्य” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 119
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसा राज्य” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (3) और खंड
(4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
1
[भाग 9
पंचायत
243. पिरभाषाएं–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,–
(क) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ख) “ग्राम सभा” से ग्राम तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समािव
िकसी ग्राम से संबिं धत िनवार्चक नामावली म रिज ट्रीकृत यिक्तय से िमलकर
बना िनकाय अिभप्रेत है ;
(ग) “म यवतीर् तर” से ग्राम और िजला तर के बीच का ऐसा तर
अिभप्रेत है िजसे िकसी रा य का रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसूचना द्वारा, म यवतीर् तर के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “पंचायत” से ग्रामीण क्षेत्र के िलए अनु छे द 243ख के अधीन गिठत
वाय शासन की कोई सं था (चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो) अिभप्रेत है ;
(ङ) “पंचायत क्षेत्र” से पंचायत का प्रादे िशक क्षेत्र अिभप्रेत है ;
(च) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पव ू व
र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसग
ं त आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ;
(छ) “ग्राम” से रा यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसच ू ना द्वारा, ग्राम के प म िविनिदर् ग्राम अिभप्रेत है और इसके अंतगर्त
इस प्रकार िविनिदर् ग्राम का समूह भी है ।
243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम तर पर ऐसी शिक्तय का प्रयोग और ऐसे
कृ य का पालन कर सकेगी, जो िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत
िकए जाएं ।
243ख. पंचायत का गठन–(1) प्र येक रा य म ग्राम, म यवतीर् और िजला तर
पर इस भाग के उपबंध के अनस
ु ार पंचायत का गठन िकया जाएगा ।
(2) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, म यवतीर् तर पर पंचायत का उस
रा य म गठन नहीं िकया जा सकेगा िजसकी जनसंख्या बीस लाख से अनिधक है ।
243ग. पंचायत की संरचना–(1) इस भाग के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी
रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, पंचायत की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा :
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119
भारत का संिवधान 120
243ङ. पंचायत की अविध, आिद–(1) प्र येक पंचायत, यिद त समय प्रव ृ िकसी
िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अिधवेशन के
िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी पंचायत
का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पवू र् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं होगा जब तक
खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी पंचायत का गठन करने के िलए िनवार्चन,–
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पव
ू र् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पूव,र्
परू ा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत पंचायत बनी रहती, छह
मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस पंचायत का गठन करने के िलए इस खंड
के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी पंचायत की अविध की समाि के पव ू र् उस पंचायत के िवघटन पर
गिठत की गई कोई पंचायत, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए बनी रहे गी िजसके
िलए िवघिटत पंचायत खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह इस प्रकार िवघिटत नहीं की
जाती ।
243च. सद यता के िलए िनरहर्ताएं–(1) कोई यिक्त िकसी पंचायत का सद य
चुने जाने के िलए और सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा, –
(क) यिद वह संबंिधत रा य के िवधान-मंडल के िनवार्चन के प्रयोजन के
िलए त समय प्रव ृ िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर
िदया जाता है :
परं तु कोई यिक्त इस आधार पर िनरिहर्त नहीं होगा िक उसकी आयु
प चीस वषर् से कम है , यिद उसने इक्कीस वषर् की आयु प्रा कर ली है ;
(ख) यिद वह रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या
उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
(2) यिद यह प्र उठता है िक िकसी पंचायत का कोई सद य खंड (1) म विणर्त
िकसी िनरहर्ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित
से, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उपबंिधत करे , िविन य के िलए िनदिशत
िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 123
1
[(3क) अनसु िू चत जाितय के िलए थान के आरक्षण से संबंिधत अनु छे द
243घ की कोई बात अ णाचल प्रदे श रा य को लागू नहीं होगी ।]
(4) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) खंड (2) के उपखंड (क) म िनिदर् िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, इस भाग का िव तार, खंड (1) म िनिदर् क्षेत्र के िसवाय, यिद कोई
ह , उस रा य पर उस दशा म कर सकेगा जब उस रा य की िवधान सभा इस
आशय का एक संक प उस सदन की कुल सद य संख्या के बहुमत द्वारा तथा
उस सदन के उपि थत और मत दे ने वाले सद य के कम से कम दो-ितहाई
बहुमत द्वारा पािरत कर दे ती है ;
(ख) संस , िविध द्वारा, इस भाग के उपबंध का िव तार, खंड (1) म
िनिदर् अनसु िू चत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र पर, ऐसे अपवाद और उपांतरण के
अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी िविध म िविनिदर् िकए जाएं और ऐसी
िकसी िविध को अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का संशोधन
नहीं समझा जाएगा ।
243ढ. िवद्यमान िविधय और पंचायत का बना रहना – इस भाग म िकसी बात
के होते हुए भी, संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 के प्रारं भ के ठीक पूवर्
िकसी रा य म प्रव ृ पंचायत से संबंिधत िकसी िविध का कोई उपबंध, जो इस भाग के
उपबंध से असंगत है , जब तक सक्षम िवधान-मंडल द्वारा या अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा
उसे संशोिधत या िनरिसत नहीं कर िदया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषर्
समा नहीं हो जाता है , इनम से जो भी पहले हो, तब तक प्रव ृ बना रहे गा :
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पूवर् िवद्यमान सभी पंचायत, यिद उस रा य की िवधान
सभा द्वारा या ऐसे रा य की दशा म, िजसम िवधान पिरष है , उस रा य के िवधान-
मंडल के प्र येक सदन द्वारा पािरत इस आशय के संक प द्वारा पहले ही िवघिटत नहीं कर
दी जाती ह तो, अपनी अविध की समाि तक बनी रहगी ।
243ण. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न – इस
संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के िलए ता पियर्त
िकसी ऐसी िविध की िविधमा यता, जो िनवार्चन-क्षेत्र के पिरसीमन या ऐसे
िनवार्चन-क्षेत्र को थान के आबंटन से संबंिधत है , िकसी यायालय म प्र गत
नहीं की जाएगी ;
(ख) िकसी पंचायत के िलए कोई िनवार्चन, ऐसी िनवार्चन अजीर् पर ही
प्र गत िकया जाएगा जो ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित से प्र तुत की गई है ,
िजसका िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके
अधीन उपबंध िकया जाए, अ यथा नहीं ।]
1. संिवधान (ितरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से) अंतः थािपत ।
1
[भाग 9क
नगरपािलकाएं
243त. पिरभाषाएं – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न
हो, –
(क) “सिमित” से अनु छे द 243ध के अधीन गिठत सिमित अिभप्रेत है ;
(ख) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ग) “महानगर क्षेत्र” से दस लाख या उससे अिधक जनसंख्या वाला ऐसा
क्षेत्र अिभप्रेत है िजसम एक या अिधक िजले समािव ह और जो दो या अिधक
नगरपािलकाओं या पंचायत या अ य संलग्न क्षेत्र से िमलकर बनता है तथा
िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक अिधसूचना द्वारा, महानगर
क्षेत्र के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “नगरपािलका क्षेत्र” से रा यपाल द्वारा अिधसिू चत िकसी नगरपािलका
का प्रादे िशक क्षेत्र
अिभप्रेत है ;
(ङ) “नगरपािलका” से अनु छे द 243थ के अधीन गिठत वाय शासन
की कोई सं था अिभप्रेत है ;
(च) “पंचायत” से अनु छे द 243ख के अधीन गिठत कोई पंचायत अिभप्रेत
है ;
(छ) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पूवव र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ।
243थ. नगरपािलकाओं का गठन – (1) प्र येक रा य म, इस भाग के उपबंध के
अनस
ु ार,–
(क) िकसी संक्रमणशील क्षेत्र के िलए, अथार्त ्, ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र
म संक्रमणगत क्षेत्र के िलए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह िकसी भी नाम से
ज्ञात हो) ;
(ख) िकसी लघुतर नगरीय क्षेत्र के िलए नगरपािलका पिरष का ; और
ृ र नगरीय क्षेत्र के िलए नगर िनगम का,
(ग) िकसी वह
गठन िकया जाएगा :
1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
127
भारत का संिवधान 128
परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपािलका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके िकसी भाग
म गिठत नहीं की जा सकेगी िजसे रा यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र म िकसी
औद्योिगक थापन द्वारा दी जा रही या िदए जाने के िलए प्र तािवत नगरपािलक सेवाओं
और ऐसी अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना
द्वारा, औद्योिगक नगरी के प म िविनिदर् करे ।
(2) इस अनु छे द म, “संक्रमणशील क्षेत्र”, “लघुतर नगरीय क्षेत्र” या “वह ृ र
नगरीय क्षेत्र” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए,
उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसम जनसंख्या की सघनता, थानीय प्रशासन के िलए उ प न
राज व, कृिष से िभ न िक्रयाकलाप म िनयोजन की प्रितशतता, आिथर्क मह व या ऐसी
अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना द्वारा,
िविनिदर् करे ।
243द. नगरपािलकाओं की संरचना – (1) खंड (2) म जैसा उपबंिधत है उसके
िसवाय, िकसी नगरपािलका के सभी थान, नगरपािलका क्षेत्र म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र
से प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा चन
ु े हुए यिक्तय द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के िलए,
प्र येक नगरपािलका क्षेत्र को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभािजत िकया जाएगा जो वाडर्
के नाम से ज्ञात ह गे ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –
(क) नगरपािलका म, –
(i) नगरपािलका प्रशासन का िवशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले
यिक्तय का ;
(ii) लोक सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान सभा के
ऐसे सद य का, जो उन िनवार्चन-क्षेत्र का प्रितिनिध व करते ह िजनम
कोई नगरपािलका क्षेत्र पण
ू त
र् ः या भागतः समािव ह ;
(iii) रा य सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान पिरष के
ऐसे सद य का, जो नगरपािलका क्षेत्र के भीतर िनवार्चक के प म
रिज ट्रीकृत ह ;
(iv) अनु छे द 243ध के खंड (5) के अधीन गिठत सिमितय के
अ यक्ष का,
प्रितिनिध व करने के िलए उपबंध कर सकेगा :
परं तु पैरा (i) म िनिदर् यिक्तय को नगरपािलका के अिधवेशन म मत दे ने
का अिधकार नहीं होगा ;
(ख) िकसी नगरपािलका के अ यक्ष के िनवार्चन की रीित का उपबंध कर
सकेगा ।
भारत का संिवधान 129
243ध. वाडर् सिमितय , आिद का गठन और संरचना – (1) ऐसी नगरपािलका के,
िजसकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अिधक है , प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर वाडर् सिमितय
का गठन िकया जाएगा, जो एक या अिधक वाड से िमलकर बनेगी ।
(ख) उस रीित की बाबत िजससे िकसी वाडर् सिमित म थान भरे जाएंगे,
उपबंध कर सकेगा ।
(3) वाडर् सिमित के प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर िकसी वाडर् का प्रितिनिध व करने वाला
िकसी नगरपािलका का सद य उस सिमित का सद य होगा ।
(3) प्र येक नगरपािलका म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की कुल
संख्या के कम से कम एक-ितहाई थान (िजनके अंतगर्त अनुसूिचत जाितय और
अनुसूिचत जनजाितय की ि य के िलए आरिक्षत थान की संख्या भी है ) ि य के
िलए आरिक्षत रहगे और ऐसे थान िकसी नगरपािलका के िभ न-िभ न िनवार्चन-क्षेत्र को
चक्रानुक्रम से आबंिटत िकए जा सकगे ।
(4) नगरपािलकाओं म अ यक्ष के पद अनुसिू चत जाितय , अनस
ु िू चत जनजाितय
और ि य के िलए ऐसी रीित से आरिक्षत रहगे, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,
उपबंिधत करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन थान का आरक्षण और खंड (4) के अधीन
अ यक्ष के पद का आरक्षण (जो ि य के िलए आरक्षण से िभ न है ) अनु छे द 334 म
िविनिदर् अविध की समाि पर प्रभावी नहीं रहे गा ।
(6) इस भाग की कोई बात िकसी रा य के िवधान-मंडल को िपछड़े हुए नागिरक
के िकसी वगर् के पक्ष म िकसी नगरपािलका म थान के या नगरपािलकाओं म अ यक्ष
के पद के आरक्षण के िलए कोई उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
243प. नगरपािलकाओं की अविध, आिद – (1) प्र येक नगरपािलका, यिद
त समय प्रव ृ िकसी िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने
प्रथम अिधवेशन के िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं :
परं तु िकसी नगरपािलका का िवघटन करने के पूवर् उसे सुनवाई का उिचत अवसर
िदया जाएगा ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी
नगरपािलका का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूवर् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं
होगा जब तक खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी नगरपािलका का गठन करने के िलए िनवार्चन, –
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पूवर् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पव
ू ,र्
पूरा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत नगरपािलका बनी रहती,
छह मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस नगरपािलका का गठन करने के िलए
इस खंड के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी नगरपािलका की अविध की समाि के पूवर् उस नगरपािलका के
िवघटन पर गिठत की गई कोई नगरपािलका, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए
बनी रहे गी िजसके िलए िवघिटत नगरपािलका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह
इस प्रकार िवघिटत नहीं की जाती ।
243फ. सद यता के िलए िनरहर् ताएं – (1) कोई यिक्त िकसी नगरपािलका का
भारत का संिवधान 131
फीस िकसी नगरपािलका को, ऐसे प्रयोजन के िलए, तथा ऐसी शत और िनबर्ंधन
के अधीन रहते हुए, समनुिद कर सकेगा ;
(ग) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए ऐसे सहायता-
ु ान दे ने के िलए उपबंध कर सकेगा ; और
अनद
(घ) नगरपािलकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्रा िकए गए सभी
धन को जमा करने के िलए ऐसी िनिधय का गठन करने और उन िनिधय म से
ऐसे धन को िनकालने के िलए भी उपबंध कर सकेगा,
जो िविध म िविनिदर् िकए जाएं ।
243म. िव आयोग – (1) अनु छे द 243झ के अधीन गिठत िव आयोग
नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित का भी पुनिवर्लोकन करे गा और जो–
(क)(i) रा य द्वारा उ ग्रहणीय ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के ऐसे
शद्ध
ु आगम के रा य और नगरपािलकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम
िवभािजत िकए जाएं, िवतरण को और सभी तर पर नगरपािलकाओं के बीच ऐसे
आगम के त संबंधी भाग के आबंटन को ;
(ii) ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के अवधारण को, जो
नगरपािलकाओं को समनुिद की जा सकगी या उनके द्वारा िविनयोिजत की जा
सकगी ;
(iii) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए सहायता
ु ान को, शािसत करने वाले िसद्धांत के बारे म ;
अनद
(ख) नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित को सुधारने के िलए आव यक
अ युपाय के बारे म ;
(ग) नगरपािलकाओं के सु ढ़ िव के िहत म रा यपाल द्वारा िव आयोग
को िनिदर् िकए गए िकसी अ य िवषय के बारे म,
रा यपाल को िसफािरश करे गा ।
(2) रा यपाल इस अनु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्र येक िसफािरश को,
उस पर की गई कारर् वाई के प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा ।
243य. नगरपािलकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा – िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, नगरपािलकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के
बारे म उपबंध कर सकेगा ।
भारत का संिवधान 133
(3) प्र येक िजला योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म,–
(4) प्र येक िजला योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी ऐसी
सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।
243यङ. महानगर योजना के िलए सिमित – (1) प्र येक महानगर क्षेत्र म, संपण
ू र्
महानगर क्षेत्र के िलए िवकास योजना प्रा प तैयार करने के िलए, एक महानगर योजना
सिमित का गठन िकया जाएगा ।
(3) प्र येक महानगर योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म, –
(4) प्र येक महानगर योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी
ऐसी सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।
भारत का संिवधान 136
1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
137
भारत का संिवधान 138
परं तु बोडर्, बोडर् की आकि मक िरिक्त को नामिनदशन द्वारा उसी वगर् के सद य म से,
िजसके संबंध म आकि मक िरिक्त हुई है , भर सकेगा, यिद बोडर् की पदाविध उसकी मल
ू
पदाविध के आधे से कम है ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसे संपरीक्षक और संपरीक्षा करने वाली
ऐसी फम की, जो सहकारी सोसाइिटय के लेखाओं की संपरीक्षा करने के िलए पात्र ह गी,
यूनतम अहर्ताएं और अनुभव अिधकिथत करे गा ।
(3) प्र येक सहकारी सोसाइटी, सहकारी सोसाइटी के साधारण िनकाय द्वारा िनयुक्त, खंड
(2) म िनिदर् िकसी संपरीक्षक या संपरीक्षा करने वाली फम द्वारा संपरीक्षा करवाएगी :
(4) प्र येक सहकारी सोसाइटी के लेखाओं की संपरीक्षा उस िव ीय वषर् की, िजससे ऐसे
लेखे संबंिधत ह, समाि के छह मास के भीतर की जाएगी ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
2. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” श द
के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा “और मेघालय” श द के थान पर (1-4-1985
से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
5. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा रा य
और िमजोरम संघ रा यक्षेत्र” श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
7. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।
143
भारत का संिवधान 144
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म” श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
145
भारत का संिवधान 146
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 4 द्वारा “संस ” के थान पर (16-9-2016 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 147
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 148
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 149
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 150
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 151
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
152
भारत का संिवधान 153
268. संघ द्वारा उद्गहीतृ िकए जाने वाले िकं तु रा य द्वारा संगहृ ीत और
िविनयोिजत िकए जाने वाले शु क – (1) ऐसे टांप-शु क 2*** जो संघ सच ू ी म विणर्त
ह, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाएं गे , िकं तु –
संगह
ृ ीत िकए जाएंगे ।
(2) िकसी रा य के भीतर उ ग्रहणीय िकसी ऐसे शु क के िकसी िव ीय वषर् म
आगम, भारत की संिचत िनिध के भाग नहीं ह गे, िक तु उस रा य को स प िदए
जाएंगे ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 6 द्वारा (16-9-2016 से) "तथा औषधीय और प्रसाधन
िनिमर्ितय पर ऐसे उ पाद-शु क, " श द का लोप िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग म
िविनिदर् रा य” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत (प्रव ृ नहीं हुआ है ) ।
भारत का संिवधान 154
2
[अनु छे द 269क म यथा उपबंिधत के िसवाय,] माल के क्रय] या िवक्रय पर कर और
माल के परे षण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकए जाएंगे िक तु खंड
(2) म उपबंिधत रीित से रा य को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके प ात ् स प िदए
जाएंगे या स प िदए गए समझे जाएंगे ।
प ीकरण – इस खंड के प्रयोजन के िलए –
(क) “माल के क्रय या िवक्रय पर कर” पद से समाचारपत्र से िभ न माल
के क्रय या िवक्रय पर उस दशा म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा क्रय या िवक्रय
अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है ;
(ख) “माल के परे षण पर कर” पद से माल के परे षण पर (चाहे परे षण
उसके करने वाले यिक्त को या िकसी अ य यिक्त को िकया गया हो) उस दशा
म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा परे षण अंतरराि यक यापार या वािण य के
दौरान होता है ।
ु आगम वहां तक के िसवाय, जहां
(2) िकसी िव ीय वषर् म िकसी ऐसे कर के शद्ध
तक वे आगम संघ रा यक्षेत्र से प्रा हुए आगम माने जा सकते ह, भारत की संिचत
िनिध के भाग नहीं ह गे, िकं तु उन रा य को स प िदए जाएंगे िजनके भीतर वह कर उस
वषर् म उ ग्रहणीय ह और िवतरण के ऐसे िसद्धांत के अनुसार, जो संस िविध द्वारा
बनाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकए जाएंगे ।]
3
[(3) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 4[माल का क्रय या िवक्रय या
परे षण] कब अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है , िविध द्वारा िसद्धांत बना
सकेगी ।]
5
[269क. अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म माल और सेवा कर
का उ ग्रहण और संग्रहण--(1) अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय
पर माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगहृ ीत िकया जाएगा तथा ऐसा
कर उस रीित म, जो संस द्वारा, िविध द्वारा, माल और सेवा कर पिरष की िसफािरश
पर उपबंिधत की जाए, संघ और रा य के बीच प्रभािजत िकया जाएगा ।
1. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 खंड (1) और खंड (2) के थान पर (9-6-2000 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 8 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) “माल का क्रय या िवक्रय”
श द के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 9 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 155
1. संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 3 द्वारा (9-6-2000 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (अट्ठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (प्रव ृनहीं हुआ और पुनः प्रित थािपत होने पर)
"अनु छे द 268 और अनु छे द 269" श द के थान पर "अनु छे द 268, अनु छे द 268क और अनु छे द 269"
प्रित थािपत िकए जाएंगे ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 156
प्रितशत, जो िविहत िकया जाए, भारत की संिचत िनिध का भाग नहीं होगा, िक तु उन
रा य को स प िदया जाएगा िजनके भीतर वह कर या शु क उस वषर् म उ ग्रहणीय है
और ऐसी रीित से और ऐसे समय से, जो खंड (3) म उपबंिधत रीित से िविहत िकया
जाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” से अिभप्रेत है –
(i) जब तक िव आयोग का गठन नहीं िकया जाता है तब तक रा पित
द्वारा आदे श द्वारा िविहत ; और
(ii) िव आयोग का गठन िकए जाने के प ात ् िव आयोग की िसफािरश
पर िवचार करने के प ात ् रा पित द्वारा आदे श द्वारा िविहत ।]
271. कुछ शु क और कर पर संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार – अनु छे द
269 और अनु छे द 270 म िकसी बात के होते हुए भी, संस , 1[अनु छे द 246क के
अधीन माल और सेवा कर के िसवाय,] उन अनु छे द म िनिदर् शु क या कर म से
िकसी म िकसी भी समय संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार द्वारा विृ द्ध कर सकेगी और
िकसी ऐसे अिधभार के संपूणर् आगम भारत की संिचत िनिध के भाग ह गे ।
272. [कर जो संघ द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह ृ ीत िकए जाते ह तथा जो संघ और
रा य के बीच िवतिरत िकए जा सकगे ।] –संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम,
2000 की धारा 4 द्वारा (9-6-2000 से) लोप िकया गया ।
273. जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के थान पर अनुदान – (1)
जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के प्र येक वषर् के शुद्ध आगम का कोई भाग
असम, िबहार, 2[ओिड़शा] और पि मी बंगाल रा य को स प िदए जाने के थान पर उन
रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म प्र येक वषर् भारत की संिचत िनिध पर
ऐसी रािशयां भािरत की जाएंगी जो िविहत की जाएं ।
(2) जूट पर और जूट उ पाद पर जब तक भारत सरकार कोई िनयार्त शु क
उद्गहीत
ृ करती रहती है तब तक या इस संिवधान के प्रारं भ से दस वषर् की समाि तक,
इन दोन म से जो भी पहले हो, इस प्रकार िविहत रािशयां भारत की संिचत िनिध पर
भािरत बनी रहगी ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” पद का वही अथर् है जो अनु छे द 270 म है ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 11 (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
2. उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 5 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 157
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 3 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 159
1. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा “दो सौ पचास पए” श द के थान पर (20-
12-1988 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा पर तुक का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 160
1
[279क. माल और सेवा कर पिरष –(1) रा पित, संिवधान (एक सौ एकवां
संशोधन) अिधिनयम, 2016 के प्रारं भ की तारीख से साठ िदन के भीतर, आदे श द्वारा,
माल और सेवा कर पिरष के नाम से ज्ञात एक पिरष का गठन करे गा ।
(2) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत सद य से िमलकर बनेगी,
अथार्त ् :--
(क) संघ का िव मंत्री -- अ यक्ष ;
(ख) संघ का राज व या िव का भारसाधक रा यमंत्री -- सद य ;
(ग) प्र येक रा य सरकार द्वारा नामिनिदर् िव या कराधान का भारसाधक
मंत्री या कोई अ य मंत्री -- सद य ।
(3) खंड (2) के उपखंड (ग) म िनिदर् माल और सेवा कर पिरष के सद य,
यथाशीघ्र अपने म से एक सद य को ऐसी अविध के िलए, जो वे िविनि त कर, पिरष
का उपा यक्ष चुनगे ।
(4) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत के संबंध म संघ और रा य को
िसफािरश करे गी--
(क) संघ, रा य और थानीय िनकाय द्वारा उद्गहीत
ृ कर, उपकर और
अिधभार, जो माल और सेवा कर म सि मिलत िकए जा सकगे ;
(ख) माल और सेवाएं जो माल और सेवा कर के अ यधीन हो सकगी या
िज ह माल और सेवा कर से छूट प्रा हो सकेगी ;
(ग) आदशर् माल और सेवा कर िविधयां, अनु छे द 269क के अधीन
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय माल पर उदगह ृ ीत माल
और सेवा कर के उ ग्रहण, प्रभाजन के िसद्धांत तथा वे िसद्धांत जो प्रदाय के
थान को शािसत करते ह ;
(घ) आवतर् की वह अवसीमा िजसके नीचे माल और सेवाओं को माल और
सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी ;
(ङ) माल और सेवा कर के समूह के साथ दर िजनके अंतगर्त यूनतम
दर भी ह ;
(च) िकसी प्राकृितक िवपि या आपदा के दौरान अितिरक्त संसाधन जुटाने
के िलए िकसी िविनिदर् अविध के िलए कोई िवशेष दर या दर ;
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 12 द्वारा (12-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 161
1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड (घ) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
भारत का संिवधान 163
प्रा होती है या उसके पास िनिक्ष की जाती है , यथाि थित, भारत के लोक लेखे म या
रा य के लोक लेखे म जमा की जाएगी ।
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट – (1) वहां तक के िसवाय,
जहां तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य द्वारा या रा य के भीतर
िकसी प्रािधकारी द्वारा अिधरोिपत सभी कर से संघ की संपि को छूट होगी ।
(2) जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) की कोई
बात िकसी रा य के भीतर िकसी प्रािधकारी को संघ की िकसी संपि पर कोई ऐसा कर,
िजसका दािय व इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, ऐसी संपि पर था या माना जाता
था, उद्गहीत
ृ करने से तब तक नहीं रोकेगी जब तक वह कर उस रा य म उद्गहीत ृ होता
रहता है ।
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन – (1)
रा य की कोई िविध, 1[माल के या सेवाओं के या दोन के प्रदाय पर, जहां ऐसा प्रदाय]–
(क) रा य के बाहर, या
(ख) भारत के रा यक्षेत्र म 2[माल के या सेवाओं के या दोन के आयात
अथवा माल के या सेवाओं के या दोन के] बाहर िनयार्त के दौरान,
होता है वहां, कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या अिधरोिपत करना प्रािधकृत नहीं
करे गी ।
3
[* * * *]
4
[(2) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 5[माल का या सेवाओं का या दोन
का प्रदाय] खंड (1) म विणर्त रीितय म से िकसी रीित से कब होता है िविध द्वारा, िसद्धांत
बना सकेगी ।
6
[(3)* * * *]
287. िवद्युत पर कर से छूट – वहां तक के िसवाय, जहां तक संस िविध द्वारा
अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य की कोई िविध (िकसी सरकार द्वारा या अ य यिक्तय
द्वारा उ पािदत) िवद्यतु के उपभोग या िवक्रय पर िजसका –
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13 (i) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के क्रय या
िवक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii)(आ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के आयात
या उसके" श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (1) के प ीकरण का लोप
िकया गया ।
4. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (2) और खंड (3) के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii) द्वारा (16-9-2016 से) "माल का क्रय या
िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(iii) द्वारा (16-9-2016 से) खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 165
(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग िकया जाता है या भारत सरकार द्वारा
उपभोग िकए जाने के िलए उस सरकार को िवक्रय िकया जाता है , या
(ख) िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म भारत सरकार या
िकसी रे ल कंपनी द्वारा, जो उस रे ल को चलाती है , उपभोग िकया जाता है अथवा
िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए उस सरकार या
िकसी ऐसी रे ल कंपनी को िवक्रय िकया जाता है ,
कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी और िवद्युत के
िवक्रय पर कोई कर अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने वाली कोई
ऐसी िविध यह सुिनि त करे गी िक भारत सरकार द्वारा उपभोग िकए जाने के िलए उस
सरकार को, या िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए
यथापूव क्त िकसी रे ल कंपनी को िवक्रय की गई िवद्युत की कीमत, उस कीमत से जो िवद्युत
का प्रचुर मात्रा म उपभोग करने वाले अ य उपभोक्ताओं से ली जाती है , उतनी कम होगी
िजतनी कर की रकम है ।
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट
– (1) वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा उपबंध करे , इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध िकसी जल या िवद्यत ु
के संबंध म, जो िकसी अंतरराि यक नदी या नदी-दन ू के िविनयमन या िवकास के िलए
िकसी िवद्यमान िविध द्वारा या संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा थािपत िकसी
प्रािधकारी द्वारा संिचत, उ पािदत, उपभुक्त, िवतिरत या िवक्रीत की जाती है , कोई कर
अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी ।
प ीकरण – इस खंड म, “िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध” पद के अंतगर्त
िकसी रा य की ऐसी िविध होगी जो इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािरत या बनाई
गई है और जो पहले ही िनरिसत नहीं कर दी गई है , चाहे वह या उसके कोई भाग उस
समय िब कुल या िविश क्षेत्र म प्रवतर्न म न ह ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, खंड (1) म विणर्त कोई कर
अिधरोिपत कर सकेगा या ऐसे कर का अिधरोपण प्रािधकृत कर सकेगा, िक तु ऐसी
िकसी िविध का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे रा पित के िवचार के िलए
आरिक्षत रखे जाने के प ात ् उसकी अनमु ित न िमल गई हो और यिद ऐसी कोई िविध
ऐसे कर की दर और अ य प्रसंगितय को िकसी प्रािधकारी द्वारा, उस िविध के अधीन
बनाए जाने वाले िनयम या आदे श द्वारा, िनयत िकए जाने का उपबंध करती है तो वह
िविध ऐसे िकसी िनयम या आदे श के बनाने के िलए रा पित की पूवर् सहमित अिभप्रा
िकए जाने का उपबंध करे गी ।
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट – (1) िकसी रा य
की संपि और आय को संघ के कर से छूट होगी ।
भारत का संिवधान 166
(2) खंड (1) की कोई बात संघ को िकसी रा य की सरकार द्वारा या उसकी ओर
से िकए जाने वाले िकसी प्रकार के यापार या कारबार के संबंध म अथवा उससे संबंिधत
िक हीं िक्रयाओं के संबंध म अथवा ऐसे यापार या कारबार के प्रयोजन के िलए प्रयुक्त
या अिधभुक्त िकसी संपि के संबंध म अथवा उसके संबंध म प्रोद्भत ू या उद्भत
ू िकसी आय
के बारे म, िकसी कर को ऐसी मात्रा तक, यिद कोई हो, िजसका संस िविध द्वारा उपबंध
करे , अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने से नहीं रोकेगी ।
(3) खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यापार या कारबार अथवा यापार या
कारबार के िकसी ऐसे वगर् को लागू नहीं होगी िजसके बारे म संस िविध द्वारा घोषणा
करे िक वह सरकार के मामूली कृ य का आनुषंिगक है ।
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन – जहां इस संिवधान के
उपबंध के अधीन िकसी यायालय या आयोग के यय अथवा िकसी यिक्त को या उसके
संबंध म, िजसने इस संिवधान के प्रारं भ से पहले भारत म क्राउन के अधीन अथवा ऐसे
प्रारं भ के प ात ् संघ के या िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म सेवा की है , संदेय
पशन भारत की संिचत िनिध या िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत है वहां, यिद –
(क) भारत की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह यायालय
या आयोग िकसी रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी की पूितर् करता है
या उस यिक्त ने िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म पूणत र् ः या भागतः सेवा
की है , या
(ख) िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह
यायालय या आयोग संघ की या अ य रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी
की पूितर् करता है या उस यिक्त ने संघ या अ य रा य के कायर्कलाप के संबंध म
पूणतर् ः या भागतः सेवा की है ,
तो, यथाि थित, उस रा य की संिचत िनिध पर अथवा, भारत की संिचत िनिध अथवा
अ य रा य की संिचत िनिध पर, यय या पशन के संबंध म उतना अंशदान, िजतना
करार पाया जाए या करार के अभाव म, िजतना भारत के मुख्य यायमूितर् द्वारा िनयुक्त
म य थ अवधािरत करे , भािरत िकया जाएगा और उसका उस िनिध म से संदाय िकया
जाएगा ।
1
[290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय – प्र येक वषर् िछयालीस लाख
पचास हजार पए की रािश केरल रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी और उस
िनिध म से ित वांकुर दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी और प्र येक वषर् तेरह लाख
पचास हजार पए की रािश 2[तिमलनाडु] रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी
और उस िनिध म से 1 नवंबर, 1956 को उस रा य को ित वांकुर-कोचीन रा य से
अंतिरत रा यक्षेत्र के िहंद ू मंिदर और पिवत्र थान के अनुरक्षण के िलए उस रा य म
थािपत दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी ।]
291. [शासक की िनजी थैली की रािश ।] – संिवधान (छ बीसवां संशोधन)
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 19 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
2. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 167
परं तु –
1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 20 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 170
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भाग 13
भारत के रा यक्षेत्र के भीतर यापार, वािण य और समागम
301. यापार, वािण य और समागम की वतंत्रता – इस भाग के अ य उपबंध
के अधीन रहते हुए, भारत के रा यक्षेत्र म सवर्त्र यापार, वािण य और समागम अबाध
होगा ।
302. यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन अिधरोिपत करने की संस की
शिक्त – संस िविध द्वारा, एक रा य और दस
ू रे रा य के बीच या भारत के रा यक्षेत्र के
िकसी भाग के भीतर यापार, वािण य या समागम की वतंत्रता पर ऐसे िनबर्ंधन
अिधरोिपत कर सकेगी जो लोक िहत म अपेिक्षत ह ।
303. यापार और वािण य के संबंध म संघ और रा य की िवधायी शिक्तय पर
िनबर्ंधन – (1) अनु छे द 302 म िकसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनुसूची की सूिचय
म से िकसी म यापार और वािण य संबंधी िकसी प्रिवि के आधार पर, संस को या
रा य के िवधान-मंडल को, कोई ऐसी िविध बनाने की शिक्त नहीं होगी जो एक रा य को
दस ू रे रा य से अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा एक रा य और
दसू रे रा य के बीच कोई िवभेद करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है ।
(2) खंड (1) की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से नहीं रोकेगी जो
कोई ऐसा अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा कोई ऐसा िवभेद
करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है , यिद ऐसी िविध द्वारा यह घोिषत िकया जाता
है िक भारत के रा यक्षेत्र के िकसी भाग म माल की कमी से उ प न िकसी ि थित से
िनपटने के प्रयोजन के िलए ऐसा करना आव यक है ।
304. रा य के बीच यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन – अनु छे द
301 या अनु छे द 303 म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा,–
(क) अ य रा य 1[या संघ रा यक्षेत्र ] से आयात िकए गए माल पर कोई
ऐसा कर अिधरोिपत कर सकेगा जो उस रा य म िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही
माल पर लगता है , िक तु इस प्रकार िक उससे इस तरह आयात िकए गए माल
और ऐसे िविनिमर्त या उ पािदत माल के बीच कोई िवभेद न हो ; या
(ख) उस रा य के साथ या उसके भीतर यापार, वािण य और समागम की
वतंत्रता पर ऐसे युिक्तयुक्त िनबर्ंधन अिधरोिपत कर सकेगा जो लोक िहत म
अपेिक्षत ह :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
171
भारत का संिवधान 172
परं तु खंड (ख) के प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक या संशोधन रा पित की पूवर्
मंजरू ी के िबना िकसी रा य के िवधान-मंडल म परु ः थािपत या प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा ।
[305. िवद्यमान िविधय और रा य के एकािधकार का उपबंध करने वाली
1
िविधय की याविृ – वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा िनदे श
दे अनु छे द 301 और अनु छे द 303 की कोई बात िकसी िवद्यमान िविध के उपबंध पर
कोई प्रभाव नहीं डालेगी और अनु छे द 301 की कोई बात संिवधान (चौथा संशोधन)
अिधिनयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई िकसी िविध के प्रवतर्न पर वहां तक कोई
प्रभाव नहीं डालेगी जहां तक वह िविध िकसी ऐसे िवषय से संबंिधत है , जो अनु छे द 19
के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है या वह िविध ऐसे िकसी िवषय के संबंध म, जो
अनु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है , िविध बनाने से संस या िकसी
रा य के िवधान-मंडल को नहीं रोकेगी ।]
306. [पहली अनुसूची के भाग ख के कुछ रा य की यापार और वािण य पर
िनबर्ंधन के अिधरोपण की शिक्त ।] – संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की
धारा 29 और अनुसूची द्वारा िनरिसत ।
307. अनु छे द 301 से अनु छे द 304 के प्रयोजन को कायार्ि वत करने के िलए
प्रािधकारी की िनयुिक्त – संस िविध द्वारा, ऐसे प्रािधकारी की िनयुिक्त कर सकेगी जो वह
अनु छे द 301, अनु छे द 302, अनु छे द 303 और अनु छे द 304 के प्रयोजन को
कायार्ि वत करने के िलए समुिचत समझे और इस प्रकार िनयुक्त प्रािधकारी को ऐसी
शिक्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कतर् य स प सकेगी जो वह आव यक समझे ।
1. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 4 द्वारा (27-4-1955 से) प्रित थािपत ।
भाग 14
संघ और रा य के अधीन सेवाएं
अ याय 1 – सेवाएं
308. िनवर्चन – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 1[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ।]
309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत –
इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम संघ
या िकसी रा य के कायर्कलाप से संबंिधत लोक सेवाओं और पद के िलए भतीर् का और
िनयक्त
ु यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन कर सकगे :
परं तु जब तक इस अनु छे द के अधीन समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम द्वारा
या उसके अधीन इस िनिम उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक, यथाि थित, संघ के
कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा पित या ऐसा यिक्त िजसे वह
िनिद करे और रा य के कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा य का
रा यपाल 2*** या ऐसा यिक्त िजसे वह िनिद करे , ऐसी सेवाओं और पद के िलए भतीर्
का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन करने वाले िनयम बनाने के
िलए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए िनयम िकसी ऐसे अिधिनयम के उपबंध के
अधीन रहते हुए प्रभावी ह गे ।
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध – (1) इस
संिवधान द्वारा अिभ यक्त प से यथा उपबंिधत के िसवाय, प्र येक यिक्त जो रक्षा सेवा
का या संघ की िसिवल सेवा का या अिखल भारतीय सेवा का सद य है अथवा रक्षा से
संबंिधत कोई पद या संघ के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , रा पित के
प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है और प्र येक यिक्त जो िकसी रा य की िसिवल सेवा का
सद य है या रा य के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , उस रा य के रा यपाल
3
*** के प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है ।
(2) इस बात के होते हुए भी िक संघ या िकसी रा य के अधीन िसिवल पद धारण
करने वाला यिक्त, यथाि थित, रा पित या रा य के रा यपाल 2*** के प्रसादपयर्ंत पद
धारण करता है , कोई संिवदा िजसके अधीन कोई यिक्त जो रक्षा सेवा का या अिखल
भारतीय सेवा का या संघ या रा य की िसिवल सेवा का सद य नहीं है , ऐसे िकसी पद को
धारण करने के िलए इस संिवधान के अधीन िनयक्त ु िकया जाता है , उस दशा म, िजसम,
यथाि थित, रा पित या रा यपाल 4*** िवशेष अहर्ताओं वाले िकसी यिक्त की सेवाएं प्रा
173
भारत का संिवधान 174
1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 10 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के थान पर प्रित थािपत
।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 175
312. अिखल भारतीय सेवाएं – (1) 1[भाग 6 के अ याय 6 या भाग 11] म िकसी
बात के होते हुए भी, यिद रा य सभा ने उपि थत और मत दे ने वाले सद य म से कम
से कम दो-ितहाई सद य द्वारा समिथर्त संक प द्वारा यह घोिषत िकया है िक रा ीय िहत
म ऐसा करना आव यक या समीचीन है तो संस , िविध द्वारा, संघ और रा य के िलए
सि मिलत एक या अिधक अिखल भारतीय सेवाओं के 2[(िजनके अंतगर्त अिखल भारतीय
याियक सेवा है )] सज
ृ न के िलए उपबंध कर सकेगी और इस अ याय के अ य उपबंध के
अधीन रहते हुए, िकसी ऐसी सेवा के िलए भतीर् का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत
का िविनयमन कर सकेगी ।
[(3) खंड (1) म िनिदर् अिखल भारतीय याियक सेवा के अंतगर्त अनु छे द
2
(4) पूव क्त अिखल भारतीय याियक सेवा के सजृ न के िलए उपबंध करने वाली
िविध म भाग 6 के अ याय 6 के संशोधन के िलए ऐसे उपबंध अंतिवर् हो सकगे जो उस
िविध के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए आव यक ह और ऐसी कोई िविध अनु छे द
368 के प्रयोजन के िलए संिवधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) “भाग 11” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 176
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 178
1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 11 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (इकतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (7-9-1976 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 179
जाना – (1) खंड (3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या
िकसी अ य सद य को केवल कदाचार के आधार पर िकए गए रा पित के ऐसे आदे श से
उसके पद से हटाया जाएगा जो उ चतम यायालय को रा पित द्वारा िनदश िकए जाने
पर उस यायालय द्वारा अनु छे द 145 के अधीन इस िनिम िविहत प्रिक्रया के अनस
ु ार
की गई जांच पर, यह प्रितवेदन िकए जाने के प ात ् िकया गया है िक, यथाि थित,
अ यक्ष या ऐसे िकसी सद य को ऐसे िकसी आधार पर हटा िदया जाए ।
(2) आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य को, िजसके संबंध म खंड (1) के
अधीन उ चतम यायालय को िनदश िकया गया है , 1*** संघ आयोग या संयक्तु आयोग
की दशा म रा पित और रा य आयोग की दशा म रा यपाल उसके पद से तब तक के
िलए िनलंिबत कर सकेगा जब तक रा पित ऐसे िनदश पर उ चतम यायालय का
प्रितवेदन िमलने पर अपना आदे श पािरत नहीं कर दे ता है ।
(3) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, यिद लोक सेवा आयोग का,
यथाि थित, अ यक्ष या कोई अ य सद य –
(क) िदवािलया यायिनणीर्त िकया जाता है , या
(ख) अपनी पदाविध म अपने पद के कतर् य के बाहर िकसी सवेतन
िनयोजन म लगता है , या
(ग) रा पित की राय म मानिसक या शारीिरक शैिथ य के कारण अपने
पद पर बने रहने के िलए अयोग्य है ,
तो रा पित, अ यक्ष या ऐसे अ य सद य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा ।
(4) यिद लोक सेवा आयोग का अ यक्ष या कोई अ य सद य, िनगिमत कंपनी
के सद य के प म और कंपनी के अ य सद य के साथ सि मिलत प से अ यथा,
उस संिवदा या करार से, जो भारत सरकार या रा य सरकार के द्वारा या िनिम की गई
या िकया गया है , िकसी प्रकार से संपक्त
ृ या िहतबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या
उससे उद्भत
ू िकसी फायदे या उपलि ध म भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजन के
िलए कदाचार का दोषी समझा जाएगा ।
318. आयोग के सद य और कमर्चािरवंद ृ की सेवा की शत के बारे म िविनयम
बनाने की शिक्त – संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा म रा पित और रा य आयोग
की दशा म उस रा य का रा यपाल 1*** िविनयम द्वारा –
(क) आयोग के सद य की संख्या और उनकी सेवा की शत का अवधारण
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 180
कर सकेगा ; और
(ख) आयोग के कमर्चािरवंद
ृ के सद य की संख्या और उनकी सेवा की
शत के संबंध म उपबंध कर सकेगा :
परं तु लोक सेवा आयोग के सद य की सेवा की शत म उसकी िनयुिक्त के प ात ्
उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न नहीं िकया जाएगा ।
319. आयोग के सद य द्वारा ऐसे सद य न रहने पर पद धारण करने के संबंध
म प्रितषेध – पद पर न रह जाने पर –
(क) संघ लोक सेवा आयोग का अ यक्ष भारत सरकार या िकसी रा य की
सरकार के अधीन िकसी भी और िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ख) िकसी रा य लोक सेवा आयोग का अ यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष या अ य सद य के प म अथवा िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग
के अ यक्ष के प म िनयुक्त होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ग) संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य सद य संघ
लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म या िकसी रा य लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष के प म िनयक्त
ु होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(घ) िकसी रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य
सद य संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य के प म
अथवा उसी या िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म िनयुक्त
होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार के अधीन
िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ।
320. लोक सेवा आयोग के कृ य – (1) संघ और रा य लोक सेवा आयोग का
यह कतर् य होगा िक वे क्रमशः संघ की सेवाओं और रा य की सेवाओं म िनयुिक्तय के
िलए परीक्षाओं का संचालन कर ।
(2) यिद संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अिधक रा य ऐसा करने का
अनरु ोध करते ह तो उसका यह भी कतर् य होगा िक वह ऐसी िक हीं सेवाओं के िलए,
िजनके िलए िवशेष अहर्ताओं वाले अ यथीर् अपेिक्षत ह, संयुक्त भतीर् की कीम बनाने और
उनका प्रवतर्न करने म उन रा य की सहायता करे ।
(3) यथाि थित, संघ लोक सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग से –
(क) िसिवल सेवाओं म और िसिवल पद के िलए भतीर् की पद्धितय से
भारत का संिवधान 181
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भारत का संिवधान 182
(5) रा पित या िकसी रा य के रा यपाल 1*** द्वारा खंड (3) के परं तुक के
अधीन बनाए गए सभी िविनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, यथाि थित, संस के
प्र येक सदन या रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन के समक्ष कम से कम
चौदह िदन के िलए रखे जाएंगे और िनरसन या संशोधन द्वारा िकए गए ऐसे उपांतरण के
अधीन ह गे जो संस के दोन सदन या उस रा य के िवधान-मंडल का सदन या दोन
सदन उस सत्र म कर िजसम वे इस प्रकार रखे गए ह ।
321. लोक सेवा आयोग के कृ य का िव तार करने की शिक्त – यथाि थित,
संस द्वारा या िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अिधिनयम संघ लोक
सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की या रा य की सेवाओं के संबंध म
और िकसी थानीय प्रािधकारी या िविध द्वारा गिठत अ य िनगिमत िनकाय या िकसी
लोक सं था की सेवाओं के संबंध म भी अितिरक्त कृ य के प्रयोग के िलए उपबंध कर
सकेगा ।
322. लोक सेवा आयोग के यय – संघ या रा य लोक सेवा आयोग के यय,
िजनके अंतगर्त आयोग के सद य या कमर्चािरवंद
ृ को या उनके संबंध म संदेय कोई
वेतन, भ े और पशन ह, यथाि थित, भारत की संिचत िनिध या रा य की संिचत िनिध
पर भािरत ह गे ।
323. लोक सेवा आयोग के प्रितवेदन – (1) संघ आयोग का यह कतर् य होगा
िक वह रा पित को आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और
रा पित ऐसा प्रितवेदन प्रा होने पर उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम
आयोग की सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने
वाले ज्ञापन सिहत उस प्रितवेदन की प्रित संस के प्र येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।
(2) रा य आयोग का यह कतर् य होगा िक वह रा य के रा यपाल 1*** को
आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह
कतर् य होगा िक ऐसे रा य म से प्र येक के, िजनकी आव यकताओं की पिू तर् संयुक्त
आयोग द्वारा की जाती है , रा यपाल 1*** को उस रा य के संबंध म आयोग द्वारा िकए
गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और दोन म से प्र येक दशा म ऐसा प्रितवेदन
प्रा होने पर, रा यपाल 2*** उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम आयोग की
सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने वाले ज्ञापन
सिहत उस प्रितवेदन की प्रित रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भाग 15
निर्ााचि
324. निर्ााचिों के अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण का निर्ााचि आयोग में
निहित िोिा--(1) इस संवर्धाि के अधीि संसद् और प्रत्येक राज्य के वर्धाि-मंडल के
ललए कराए जािे र्ाले सभी निर्ााचिों के ललए तथा राष्ट्रपनत और उपराष्ट्रपनत के पदों के
ललए निर्ााचिों के ललए निर्ााचक-िामार्ली तैयार करािे का और उि सभी निर्ााचिों के
संचालि का अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण, 1*** एक आयोग में निहित िोगा (जजसे
इस संवर्धाि में निर्ााचि आयोग किा गया िै) ।
(2) निर्ााचि आयोग मुख्य निर्ााचि आयक्त ु और उतिे अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों से,
यहद कोई िों, जजतिे राष्ट्रपनत समय-समय पर नियत करे , लमलकर बिेगा तथा मुख्य
निर्ााचि आयक्तु और अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों की नियक्तु क्त, संसद् द्वारा इस निलमत्त बिाई
गई वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, राष्ट्रपनत द्वारा की जाएगी ।
(3) जब कोई अन्य निर्ााचि आयक्त
ु इस प्रकार नियक्त ु ककया जाता िै तब मुख्य
निर्ााचि आयक्त
ु निर्ााचि आयोग के अध्यक्ष के रूप में काया करे गा ।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य की वर्धाि सभा के प्रत्येक साधारण
निर्ााचि से पिले तथा वर्धाि पररषद् र्ाले प्रत्येक राज्य की वर्धाि पररषद् के ललए
प्रथम साधारण निर्ााचि से पिले और उसके पश्चात ् प्रत्येक हद्वर्ावषाक निर्ााचि से पिले,
राष्ट्रपनत निर्ााचि आयोग से परामशा करिे के पश्चात ्, खंड (1) द्वारा निर्ााचि आयोग को
सौंपे गए कृत्यों के पालि में आयोग की सिायता के ललए उतिे प्रादे लशक आयक्त ु ों की भी
नियक्तु क्त कर सकेगा जजतिे र्ि आर्श्यक समझे ।
(5) संसद् द्वारा बिाई गई ककसी वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, निर्ााचि
आयक्त
ु ों और प्रादे लशक आयक्तु ों की सेर्ा की शतें और पदार्धध ऐसी िोंगी जो राष्ट्रपनत
नियम द्वारा अर्धाररत करे :
परन्तु मुख्य निर्ााचि आयक्त ु को उसके पद से उसी रीनत से और उन्िीं आधारों
पर िी िटाया जाएगा, जजस रीनत से और जजि आधारों पर उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश को िटाया जाता िै अन्यथा ििीं और मुख्य निर्ााचि आयक्त ु की सेर्ा की
शतों में उसकी नियक्तु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी पररर्ताि ििीं ककया जाएगा :
1. संवर्धाि (उन्िीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा “जजसके अंतगात संसद् के और राज्य के वर्धाि-
मंडलों के निर्ााचिों से उद्भत
ू या संसक्त संदेिों और वर्र्ाद के निणाय के ललए निर्ााचि न्यायाधधकरण की नियुक्तक्त
भी िै” शब्दों का (11-12-1966 से) लोप ककया गया ।
186
भारत का संवर्धाि 187
1. संवर्धाि (सातर्ां संशोधि) अधधनियम, 1956 की धारा 29 और अिुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संवर्धाि (इकसठर्ां संशोधि) अधधनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा “इक्कीस र्षा” के स्थाि पर (28-3-1989 से)
प्रनतस्थावपत ।
भारत का संवर्धाि 188
328. ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के ललए निर्ााचिों के संबध ं में उपबंध करिे
की उस वर्धाि-मंडल की शक्तक्त–इस संवर्धाि के उपबंधों के अधीि रिते िुए और जिां
तक संसद् इस निलमत्त उपबंध ििीं करती िै र्िां तक, ककसी राज्य का वर्धाि-मंडल
समय-समय पर, वर्धध द्वारा, उस राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या प्रत्येक सदि के
ललए निर्ााचिों से संबधं धत या संसक्त सभी वर्षयों के संबध
ं में , जजिके अंतगात निर्ााचक-
िामार्ली तैयार करािा और ऐसे सदि या सदिों का समयक् गठि सनु िजश्चत करिे के
ललए अन्य सभी आर्श्यक वर्षय िैं, उपबंध कर सकेगा ।
1. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थाि पर (10-8-1975 से)
प्रनतस्थावपत ।
2. संवर्धाि (चर्ालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1978 की धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परन्तु अिुच्छे द 329क के
उपबंधों के अधीि रिते िुए” शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप ककया गया ।
3. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 4 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्थावपत ।
भाग 16
िजल� क� अनसु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस
राज्य को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो उ�
स्वशासी िजल� क� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप
ु ात उस राज्य क� कुल
जनसंख्या से है ।]
1. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत ।
189
भारत का सं�वधान 190
[स्प�ीकरण–इस अनच्
1
ु छे द म� और अनच्
ु छे द 332 म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी
अं�तम पव
ू व
र् त� जनगणना म� अ�भ�नि�त क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसंगत
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� :
परन्तु इस स्प�ीकरण म� अं�तम पव
ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सस
ु ंगत
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह
3
[2001] क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]
331. लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्र�त�न�धत्व–अनच्
ु छे द 81 म�
�कसी बात के होते हुए भी, य�द रा�प�त क� यह राय है �क लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय
समुदाय का प्र�त�न�धत्व पयार्� नह�ं है तो वह लोक सभा म� उस समद ु ाय के दो से
अन�धक सदस्य नाम�नद� �शत कर सकेगा ।
(2) असम राज्य क� �वधान सभा म� स्वशासी िजल� के �लए भी स्थान आर��त
रह� गे ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा “1991” के स्थान पर (22-6-2003 से)
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के
भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 191
[(3क) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 2[2026] के प�ात ् क� गई
1
पहल� जनगणना के आधार पर, अरुणाचल प्रदे श, मेघालय, �मजोरम और नागाल�ड राज्य�
क� �वधान सभाओं म� स्थान� क� संख्या के, अनच्
ु छे द 170 के अधीन, पन
ु ःसमायोजन के
प्रभावी होने तक, जो स्थान ऐसे �कसी राज्य क� �वधान सभा म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय�
के �लए आर��त �कए जाएंगे, वे–
(ख) �कसी अन्य दशा म� , उतने स्थान ह�गे, िजनक� संख्या का अनप
ु ात,
स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो �वद्यमान �वधान
सभा म� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� क� (उ� तार�ख को यथा�वद्यमान)
संख्या का अनप
ु ात �वद्यमान �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या से ह� ।]
[(3ख) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 4[2026] के प�ात ् क� गई
3
पहल� जनगणना के आधार पर, �त्रपरु ा राज्य क� �वधान सभा म� स्थान� क� संख्या के,
अनच्
ु छे द 170 के अधीन, पन
ु ःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान उस �वधान
सभा म� अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के �लए आर��त �कए जाएंगे वे उतने स्थान ह�गे
िजनक� संख्या का अनप
ु ात, स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप
ु ात से कम नह�ं होगा जो
�वद्यमान �वधान सभा म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� क�, सं�वधान (बह�रवां
1. सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 192
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) क�तपय शब्द� का
लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (नब्बेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (28-9-2003 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (तेईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा “उस �वधान सभा म� उस समुदाय के िजतने
सदस्य वह समु�चत समझे नाम�नद� �शत कर सकेगा” के स्थान पर (23-1-1970 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 193
परन्तु इस अनच्
ु छे द क� �कसी बात से लोक सभा म� या �कसी राज्य क� �वधान
सभा म� �कसी प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव नह�ं पड़ेगा जब तक, यथािस्थ�त,
उस समय �वद्यमान लोक सभा या �वधान सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है ।
1. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) “स�र वषर्” शब्द� के
स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (पचानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2009 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ
वषर्” शब्द� के स्थान पर “स�र वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे । सं�वधान (उनासीवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1999 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2000 से) “पचास वषर्” शब्द� के स्थान पर “साठ वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए
थे । सं�वधान (बासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 2 द्वारा “चाल�स वषर्” शब्द� के स्थान पर “पचास
वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे । सं�वधान (प�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 क� धारा 2 द्वारा “तीस
वषर्” शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (बयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (6-9-2000 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 194
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 195
1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पा�र् शीषर् के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर खंड (1) से खंड (9) तक प्र�तस्था�पत �कए गए ।
3. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) खंड (1) और (2) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 196
(ग) अनस
ु ू�चत जा�तय� 1*** के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना
प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन
उनके �वकास क� प्रग�त का मूल्यांकन करे ;
(घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर्, और ऐसे अन्य समय�
पर, जो आयोग ठ�क समझे, रा�प�त को प्र�तवेदन दे ;
(ङ) ऐसे प्र�तवेदन� म� उन उपाय� के बारे म� जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण
ू र्
कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा अनस
ु ू�चत
जा�तय� 1*** के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �लए अन्य
उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ;
(च) अनस
ु ू�चत जा�तय� *** के संर�ण, कल्याण, �वकास तथा उन्नयन
1
के संबध
ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो रा�प�त, संसद् द्वारा बनाई गई
�कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्� करे ।
(6) रा�प�त ऐसे सभी प्र�तवेदन� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उसके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्प� करने वाला �ापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसा प्र�तवेदन, या उसका कोई भाग �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत
है िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध
ं है तो ऐसे प्र�तवेदन क� एक प्र�त उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई
तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्प�
करने वाला �ापन भी होगा ।
(8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्� �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्� �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�श�तया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध
ं म� , वे सभी श��यां ह�गी जो वाद का �वचारण
करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :–
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबध� के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार
�नय�
ु �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध
ऐसी ह�गी जो रा�प�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम,1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप म�
पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 2 द्वारा (11-8-2018 से) "ऐसे अन्य �पछड़े वग� के
प्र�त �नद� श, िजनको रा�प�त अनुच्छे द 340 के खंड (1) के अधीन �नयु� आयोग के प्र�तवेदन क� प्रा�� पर आदे श
द्वारा �व�न�दर् � करे , और आंग्ल-भारतीय समुदाय प्र�त �नद� श भी है " शब्द�, अंक� और को�क� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 198
1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 3 द्वारा (11-8-2018 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 200
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क और
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 202
संबध
ं म� और जहां वह *** राज्य है वहां उसके राज्यपाल *** से परामशर् करने के
4 5
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “�कसी ऐसे राज्य” के स्थान पर (1-
11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 10 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर्
करने के प�ात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 203
1. सं�वधान (अऩुसू�चत जा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), सं�वधान (अनुस�ू चत जा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र) आदे श,
1951 (सं.आ. 32), सं�वधान (जम्मू-कश्मीर) अनुस�ू चत जा�तयां आदे श, 1956 (सं.आ. 52), सं�वधान (दादरा और
नागर हवेल�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 64). सं�वधान (पां�डचेर�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श,
1964 (सं.आ. 68), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और
सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे �खए ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 11 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर्
करने के प�ात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् �” शब्द� और अ�र� का (1-11-1956 से) लोप �कया गया ।
.
4 सं�वधान (अऩुस�ू चत जनजा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), सं�वधान (अनुस�ू चत जनजा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र)
आदे श, 1951 (सं.आ. 33), सं�वधान (अंडमान और �नकोबार द्वीप) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1959 (सं.आ.
58), सं�वधान (दादरा और नागर हवेल�) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 65), सं�वधान (अनुसू�चत
जनजा�तयां) (उ�र प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ. 78), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जनजा�तयां
आदे श, 1968 (सं.आ. 82), सं�वधान (नागाल�ड) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1970 (सं.आ. 88) और सं�वधान
(�सिक्कम) अनुस�ू चत जनजा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे �खए ।
भारत का सं�वधान 204
�व�न�दर्� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर
सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उ� खंड के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना
म� �कसी प�ातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
1
[342क. सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर्–(1) राष्ट्रप�त, �कसी राज्य
या संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म� और जहां वह राज्य है, वहां उसके राज्यपाल से परामशर्
करने के पश्चात ् लोक अ�धसूचना द्वारा, सामािजक और शै��क दृिष्ट से ऐसे �पछड़े वग�
को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा, िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, यथािस्थ�त, उस
राज्य या संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म� सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़ा वगर् समझा
जाएगा ।
(2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर् को खंड
(1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसच
ू ना म� �व�न�दर्ष्ट सामािजक और शै��क दृिष्ट से
�पछड़े वग� क� केन्द्र�य सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर
सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन �नकाल� गई
अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।]
1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 4 द्वारा (11-8-2018 से) प्र�तस्था�पत ।
भाग 17
राजभाषा
अध्याय 1 – संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा – (1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि दे वनागरी
िोगी ।
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािे अंकों का रूि भारतीय अंकों
का अंतरराष्ट्रीय रूि िोगा ।
(2) खंड (1) में ककसी बात के िोते िुए भी, इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष
की अवधध तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग
ककया जाता रिे गा जजनके लिए उसका ऐसे प्रारं भ से ठीक िििे प्रयोग ककया जा रिा
था :
िरन्तु राष्ट्रितत उक्त अवधध के दौरान, आदे श1 द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में
से ककसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अततररक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के
अंतरराष्ट्रीय रूि के अततररक्त दे वनागरी रूि का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा ।
(3) इस अनच् ु छे द में ककसी बात के िोते िुए भी, संसद् उक्त िन्रि वषष की अवधध
के िश्चात ्, पवधध द्वारा –
(क) अंग्रेजी भाषा का, या
(ख) अंकों के दे वनागरी रूि का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उिबंधधत कर सकेगी जो ऐसी पवधध में पवतनहदषष्ट ककए जाएं
।
344. राजभाषा के संबध ं में आयोग और संसद् की सलमतत – (1) राष्ट्रितत, इस
संपवधान के प्रारं भ से िांच वषष की समाति िर और तत्िश्चात ् ऐसे प्रारं भ से दस वषष की
समाति िर, आदे श द्वारा, एक आयोग गहठत करे गा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनस ु ूची
में पवतनहदषष्ट पवलभन्न भाषाओं का प्रतततनधधत्व करने वािे ऐसे अन्य सदस्यों से लमिकर
बनेगा जजनको राष्ट्रितत तनयक्त ु करे और आदे श में आयोग द्वारा अनस ु रण की जाने वािी
प्रकिया िररतनजश्चत की जाएगी ।
(2) आयोग का यि कतषव्य िोगा कक वि राष्ट्रितत को –
(क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधधकाधधक
प्रयोग,
(ख) संघ के सभी या ककन्िीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के
प्रयोग िर तनबंधनों,
(ग) अनच् ु छे द 348 में उजलिखखत सभी या ककन्िीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग
की जाने वािी भाषा,
1. सं.आ. 41 दे खखए ।
202
भारत का संपवधान 203
िरन्तु यहद दो या अधधक राज्य यि करार करते िैं कक उन राज्यों के बीच ित्राहद
की राजभाषा हिन्दी भाषा िोगी तो ऐसे ित्राहद के लिए उस भाषा का प्रयोग ककया जा
सकेगा ।
347. ककसी राज्य की जनसंख्या के ककसी अनभ ु ाग द्वारा बोिी जाने वािी भाषा
के संबध
ं में पवशेष उिबंध – यहद इस तनलमत्त मांग ककए जाने िर राष्ट्रितत का यि
समाधान िो जाता िै कक ककसी राज्य की जनसंख्या का ियाषि भाग यि चािता िै कक
उसके द्वारा बोिी जाने वािी भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वि तनदे श दे
सकेगा कक ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सवषत्र या उसके ककसी भाग में ऐसे प्रयोजन
के लिए, जो वि पवतनहदषष्ट करे , शासकीय मान्यता दी जाए ।
अध्याय 3 – उच्चतम न्यायािय, उच्च न्यायाियों, आहद की भाषा
348. उच्चतम न्यायािय और उच्च न्यायाियों में और अधधतनयमों, पवधेयकों
आहद के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा – (1) इस भाग के िव ू ग
ष ामी उिबंधों में ककसी
बात के िोते िुए भी, जब तक संसद् पवधध द्वारा अन्यथा उिबंध न करे तब तक –
(क) उच्चतम न्यायािय और प्रत्येक उच्च न्यायािय में सभी कायषवाहियां
अंग्रेजी भाषा में िोंगी,
(ख) (i) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के पवधान-मंडि के सदन
या प्रत्येक सदन में िरु ःस्थापित ककए जाने वािे सभी पवधेयकों या प्रस्तापवत
ककए जाने वािे उनके संशोधनों के,
(ii) संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि द्वारा िाररत सभी अधधतनयमों
के और राष्ट्रितत या ककसी राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित सभी
अध्यादे शों के, और
(iii) इस संपवधान के अधीन अथवा संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि
द्वारा बनाई गई ककसी पवधध के अधीन तनकािे गए या बनाए गए सभी आदे शों,
तनयमों, पवतनयमों और उिपवधधयों के,
प्राधधकृत िाठ अंग्रेजी भाषा में िोंगे ।
(2) खंड (1) के उिखंड (क) में ककसी बात के िोते िुए भी, ककसी राज्य का
राज्यिाि 1*** राष्ट्रितत की िवू ष सिमतत से उस उच्च न्यायािय की कायषवाहियों में ,
जजसका मुख्य स्थान उस राज्य में िै, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय
प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािी ककसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा :
1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
भारत का संपवधान 205
िरन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायािय द्वारा हदए गए ककसी तनणषय,
क्तडिी या आदे श को िागू निीं िोगी ।
(3) खंड (1) के उिखंड (ख) में ककसी बात के िोते िुए भी, जिां ककसी राज्य के
पवधान-मंडि ने, उस पवधान-मंडि में िरु ःस्थापित पवधेयकों में या उसके द्वारा िाररत
अधधतनयमों में अथवा उस राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित अध्यादे शों में अथवा
उस उिखंड के िैरा (iii) में तनहदषष्ट ककसी आदे श, तनयम, पवतनयम या उिपवधध में प्रयोग
के लिए अंग्रेजी भाषा से लभन्न कोई भाषा पवहित की िै विां उस राज्य के राजित्र में उस
राज्य के राज्यिाि 1*** के प्राधधकार से प्रकालशत अंग्रेजी भाषा में उसका अनव ु ाद इस
अनच्ु छे द के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधधकृत िाठ समझा जाएगा ।
349. भाषा से संबधं धत कुछ पवधधयां अधधतनयलमत करने के लिए पवशेष प्रकिया –
इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष की अवधध के दौरान, अनच्
ु छे द 348 के खंड (1) में
उजलिखखत ककसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा के लिए उिबंध करने वािा
कोई पवधेयक या संशोधन संसद् के ककसी सदन में राष्ट्रितत की िव ू ष मंजरू ी के बबना
िरु ःस्थापित या प्रस्तापवत निीं ककया जाएगा और राष्ट्रितत ककसी ऐसे पवधेयक को
िरु ःस्थापित या ककसी ऐसे संशोधन को प्रस्तापवत ककए जाने की मंजरू ी अनच् ु छे द 344 के
खंड (1) के अधीन गहठत आयोग की लसफाररशों िर और उस अनच् ु छे द के खंड (4) के
अधीन गहठत सलमतत के प्रततवेदन िर पवचार करने के िश्चात ् िी दे गा, अन्यथा निीं ।
अध्याय 4 – पवशेष तनदे श
350. व्यथा के तनवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वािी भाषा –
प्रत्येक व्यक्तक्त ककसी व्यथा के तनवारण के लिए संघ या राज्य के ककसी अधधकारी या
प्राधधकारी को, यथाजस्थतत, संघ में या राज्य में प्रयोग िोने वािी ककसी भाषा में अभ्यावेदन
दे ने का िकदार िोगा ।
2
[350क. प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की सुपवधाएं – प्रत्येक राज्य और
राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधधकारी भाषाई अलिसंख्यक वगों के बािकों को लशक्षा
के प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की ियाषि सुपवधाओं की व्यवस्था करने का
प्रयास करे गा और राष्ट्रितत ककसी राज्य को ऐसे तनदे श दे सकेगा जो वि ऐसी सपु वधाओं
का उिबंध सतु नजश्चत कराने के लिए आवश्यक या उधचत समझता िै ।
1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
2. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 21 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थापित ।
भारत का संपवधान 206
भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा
2
[संपण
ू ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबध
ं में जो उद्घोषणा में वितनदिणष्ट
ककया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा ।
[स्पष्टीकरण – यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक यद्ध
3
ु या बाह्य
आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सजननकट है तो यह घोवषत करने िाली आपात की
उद्घोषणा कक यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है, यद्ध
ु या ऐसे ककसी आक्रमण या विद्रोह के िास्ति में
होने से पहले भी की जा सकेगी ।]
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा
4
(3) राष्ट्रपतत, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा तब तक नहीं करे गा जब तक संघ के मंत्रत्रमंडल का (अर्ाणत ् उस पररषद्
का जो अनच् ु छे ि 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मंत्रत्रमंडल स्तर के अनय मंत्रत्रयों से
लमलकर बनती है) यह वितनश्चय कक ऐसी उद्घोषणा की जाए, उसे ललखखत रूप में संसचू ित
नहीं ककया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे ि के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सिन के
समक्ष रखी जाएगी और जहां िह पि ू ि
ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली उद्घोषणा नहीं है
िहां िह एक मास की समाति पर, यदि उस अिचध की समाति से पहले संसद् के िोनों
सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोिन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रितणन में नहीं
रहे गी :
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और
खंड (3) के स्र्ान पर खंड (2) से खंड (8) प्रततस्र्ावपत ककए गए ।
207
भारत का संविधान 208
(8) जहां खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा का, यर्ाजस्र्तत, अननम
ु ोिन या उसको प्रित्त
ृ बनाए रखने का अननम ु ोिन
करने िाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूिना लोक सभा की कुल
सिस्य संख्या के कम से कम िसिें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके ललखखत रूप में ,–
(क) यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
(ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपतत को,
िी गई है िहां ऐसे संकल्प पर वििार करने के प्रयोजन के ललए लोक सभा की विशेष
बैठक, यर्ाजस्र्तत, अध्यक्ष या राष्ट्रपतत को ऐसी सूिना प्राि होने की तारीख से िौिह
दिन के भीतर की जाएगी ।]
[ [(9)] इस अनच्
1 2
ु छे ि द्वारा राष्ट्रपतत को प्रित्त शक्तक्त के अंतगणत, यद्ध
ु या बाह्य
आक्रमण या 2[सशस्त्र विद्रोह] के अर्िा यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र विद्रोह] का
3
संकट सजननकट होने के विलभनन आधारों पर विलभनन उद्घोषणाएं करने की शक्तक्त होगी
िाहे राष्ट्रपतत ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में है या नहीं ।
4
[* * * *]
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाि – जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब
–
(क) संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, संघ की कायणपाललका शक्तक्त
का विस्तार ककसी राज्य को इस बारे में तनिे श िे ने तक होगा कक िह राज्य
अपनी कायणपाललका शक्तक्त का ककस रीतत से प्रयोग करे ;
(ख) ककसी विषय के संबध ं में विचधयां बनाने की संसद् की शक्तक्त के
अंतगणत इस बात के होते हुए भी कक िह संघ सूिी में प्रगखणत विषय नहीं है,
ऐसी विचधयां बनाने की शक्तक्त होगी जो उस विषय के संबध ं में संघ को या संघ के
अचधकाररयों और प्राचधकाररयों को शक्तक्तयां प्रिान करती हैं और उन पर कतणव्य
अचधरोवपत करती हैं या शक्तक्तयों का प्रिान ककया जाना और कतणव्यों का
अचधरोवपत ककया जाना प्राचधकृत करती है :
1
[परनतु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग में
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) को खंड (9) के रूप
में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप ककया गया
।
भारत का संविधान 210
प्रितणन में है िहां यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की
सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें आपात की
उद्घोषणा प्रितणन में है , होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है तो और िहां तक,–
(i) खंड (क) के अधीन तनिे श िे ने की संघ की कायणपाललका शक्तक्त का, और
(ii) खंड (ख) के अधीन विचध बनाने की संसद् की शक्तक्त का,
विस्तार ककसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से लभनन है जजसमें या जजसके
ककसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है ।]
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राजस्िों के वितरण संबंधी
उपबंधों का लागू होना – (1) जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राष्ट्रपतत, आिे श
द्वारा, यह तनिे श िे सकेगा कक इस संविधान के अनच् ु छे ि 268 से अनच्
ु छे ि 279 के
सभी या कोई उपबंध ऐसी ककसी अिचध के ललए, जो उस आिे श में वितनदिण ष्ट की जाए
और जो ककसी भी िशा में उस वित्तीय िषण की समाति से आगे नहीं बढे गी, जजसमें ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में नहीं रहती है , ऐसे अपिािों या उपानतरणों के अधीन रहते हुए
प्रभािी होंगे , जो िह ठीक समझे ।
(2) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीध्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
355. बाह्य आक्रमण और आंतररक अशांतत से राज्य की संरक्षा करने का संघ का
कतणव्य – संघ का यह कतणव्य होगा कक िह बाह्य आक्रमण और आंतररक अशाजनत से
प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों
के अनस ु ार िलाया जाना सुतनजश्चत करे ।
356. राज्यों में सांविधातनक तंत्र के विफल हो जाने की िशा में उपबंध – (1)
यदि राष्ट्रपतत का ककसी राज्य के राज्यपाल 2*** से प्रततिेिन लमलने पर या अनयर्ा, यह
समाधान हो जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजसमें उस राज्य का शासन इस
संविधान के उपबंधों के अनस ु ार नहीं िलाया जा सकता है तो राष्ट्रपतत उद्घोषणा द्वारा –
(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और 3[राज्यपाल] में या
राज्य के विधान-मंडल से लभनन राज्य के ककसी तनकाय या प्राचधकारी में तनदहत
या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तक्तयां अपने हार् में ले सकेगा ;
1. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्िों का (1-
11-1956 से) लोप ककया गया ।
3. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “यर्ाजस्र्तत, या राजप्रमुख” शब्िों के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 211
उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से छह मास] की अिचध की समाति पर प्रितणन में नहीं
रहे गी :
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "खंड (3) के अधीन उद्घोषणा
का अनुमोिन करने िाले संकल्पों में से िूसरे के पाररत हो जाने की तारीख से एक िषण" के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्ि "छह मास" के स्र्ान
पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
भारत का संविधान 212
परनतु यदि और जजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन
करने िाला संकल्प संसद् के िोनों सिनों द्वारा पाररत कर दिया जाता है तो और उतनी
बार िह उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जजसको िह इस खंड
के अधीन अनयर्ा प्रितणन में नहीं रहती, 1[छह मास] की अिचध तक प्रित्त ृ बनी रहेगी,
ककनतु ऐसी उद्घोषणा ककसी भी िशा में तीन िषण से अचधक प्रित्त
ृ नहीं रहेगी :
परनतु यह और कक यदि लोक सभा का विघटन 2[छह मास] की ऐसी अिचध के
िौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए
रखने के संबधं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अिचध के िौरान पाररत नहीं ककया
गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से, जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म
बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की
अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा को प्रित्तृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है :
[परनतु यह भी कक पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के
2
अधीन की गई उद्घोषणा की िशा में , इस खंड के पहले परनतुक में “तीन िषण” के प्रतत
तनिे श का इस प्रकार अर्ण लगाया जाएगा मानो िह 3[“पांि िषण”] के प्रतत तनिे श हो ।]
4
[(5) खंड (4) में ककसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनम ु ोदित
उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से एक िषण की समाति से आगे ककसी अिचध के ललए
ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने के संबध ं में कोई संकल्प संसद् के ककसी सिन द्वारा
तभी पाररत ककया जाएगा जब–
(क) ऐसे संकल्प के पाररत ककए जाने के समय आपात की उद्घोषणा,
यर्ाजस्र्तत, संपणू ण भारत में अर्िा संपण
ू ण राज्य या उसके ककसी भाग में प्रितणन में
है ; और
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "एक िषण" के स्र्ान पर
प्रततस्र्ावपत । संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" मूल
शब्िों के स्र्ान पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
2. संविधान (िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (सड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (4-10-1990 से) प्रततस्र्ावपत और तत्पश्चात ्
संविधान (अड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (12-3-1991 से) संशोचधत होकर ितणमान रूप में
आया ।
4. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत और
तत्पश्चात ् संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड 5 के स्र्ान
पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 213
1. संविधान (ततरसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप ककया गया जजसे संविधान
(िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ककया गया र्ा ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे ि 358 को उसके
खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
भारत का संविधान 214
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा
प्रितणन में है” शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा”
शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
5. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) “भाग 3 द्वारा प्रित्त
अचधकारों” के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 215
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 7 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 216
प्रितणन में है िहां ककसी ऐसे आिे श का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी अनय भाग
पर तभी होगा जब राष्ट्रपतत, यह समाधान हो जाने पर कक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें
आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है, होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा
विस्तार आिश्यक समझता है ।]
(3) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
1
359क. [इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना ।] – संविधान (ततरसठिां
संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) तनरलसत ।
360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध – (1) यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो
जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी
भाग का वित्तीय स्र्ातयत्ि या प्रत्यय संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की
घोषणा कर सकेगा ।
2
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा–
(क) ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा िापस ली जा सकेगी या पररिततणत की
जा सकेगी ;
(ख) संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखी जाएगी ;
(ग) िो मास की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उस अिचध की
समाति से पहले संसद् के िोनों सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम ु ोिन नहीं कर
दिया जाता है :
परनतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन
हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में तनदिणष्ट िो मास की अिचध के िौरान
हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत
कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस
अिचध की समाति से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से,
जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म बार बैठती है, तीस दिन की समाति
पर प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा का
अनमु ोिन करने िाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।]
(3) उस अिचध के िौरान, जजसमें खंड (1) में उजल्लखखत उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है,
1. संविधान (उनसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1988 की धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से) अंतःस्र्ावपत । यह, इस
अचधतनयम के प्रारं भ से, अर्ाणत ् 1988 के मािण के तीसिें दिन से िो िषण की अिचध की समाति के पश्चात ् प्रित्त
ृ
नहीं रहे गी ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 217
संघ की कायणपाललका शक्तक्त का विस्तार ककसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबध ं ी ऐसे
लसद्धांतों का पालन करने के ललए तनिे श िे ने तक, जो तनिे शों में वितनदिणष्ट ककए जाएं,
और ऐसे अनय तनिे श िे ने तक होगा जजनहें राष्ट्रपतत उस प्रयोजन के ललए िे ना आिश्यक
और पयाणि समझे ।
(4) इस संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, –
(क) ऐसे ककसी तनिे श के अंतगणत–
(i) ककसी राज्य के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी या
ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के िेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने िाला
उपबंध ;
(ii) धन विधेयकों या अनय ऐसे विधेयकों को, जजनको अनच् ु छे ि
207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पाररत ककए जाने
के पश्चात ् राष्ट्रपतत के वििार के ललए आरक्षक्षत रखने के ललए उपबंध,
हो सकेंगे ;
(ख) राष्ट्रपतत, उस अिचध के िौरान, जजसमें इस अनच् ु छे ि के अधीन की
गई उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है, संघ के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी
या ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के, जजनके अंतगणत उच्ितम नयायालय और उच्ि
नयायालयों के नयायाधीश हैं, िेतनों और भत्तों में कमी करने के ललए तनिे श िे ने
के ललए सक्षम होगा ।
1
(5)* * * * *
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत ककया
गया र्ा और उसका संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
ककया गया ।
भाग 19
प्रकीर्ण
361. राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमख
ु ों का संरक्षर् – (1) राष्ट्रपति अथवा
राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और किणव्यों के पालन
के ललए या उन शक्तियों का प्रयोग और किणव्यों का पालन करिे हुए अपने द्वारा ककए
गए या ककए जाने के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के ललए ककसी न्यायालय को उत्तरदायी
नह ं होगा :
परन्िु अनच् ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषर् के ललए संसद् के ककसी सदन
द्वारा तनयि
ु या अलभहहि ककसी न्यायालय, अधधकरर् या तनकाय द्वारा राष्ट्रपति के
आचरर् का पन ु र्वणलोकन ककया जा सकेगा :
परन्िु यह और कक इस खंड की ककसी बाि का यह अथण नह ं लगाया जाएगा कक
वह भारि सरकार या ककसी राज्य की सरकार के र्वरुद्ध समुधचि कायणवाहहयां चलाने के
ककसी व्यक्ति के अधधकार को तनबंधधि करिी है ।
(2) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध उसकी पदावधध के
दौरान ककसी न्यायालय में ककसी भी प्रकार की दांक्तडक कायणवाह संस्थथि नह ं की जाएगी
या चालू नह ं रखी जाएगी ।
(3) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** की पदावधध के दौरान उसकी
धगरफ्िार या कारावास के ललए ककसी न्यायालय से कोई आदे लशका तनकाल नह ं
जाएगी ।
(4) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के रूप में अपना पद ग्रहर् करने
से पहले या उसके पश्चाि ्, उसके द्वारा अपनी वैयक्तिक हैलसयि में ककए गए या ककए जाने
के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के संबध ं में कोई लसर्वल कायणवाहहयां, स्जनमें राष्ट्रपति या
ऐसे राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध अनि ु ोष का दावा ककया जािा है, उसकी पदावधध
के दौरान ककसी न्यायालय में िब िक संस्थथि नह ं की जाएगी जब िक कायणवाहहयों की
प्रकृति, उनके ललए वाद हेिक ु , ऐसी कायणवाहहयों को संस्थथि करने वाले पक्षकार का नाम,
वर्णन, तनवास-थथान और उस अनि ु ोष का स्जसका वह दावा करिा है, कथन करने वाल
ललखखि सूचना, यथास्थथति, राष्ट्रपति या राज्यपाल 2*** को पररदत्त ककए जाने या उसके
कायाणलय में छोडे जाने के पश्चाि ् दो मास का समय समाप्त नह ं हो गया है ।
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
218
भारि का संर्वधान 219
1
[361क. संसद् और राज्यों के र्वधान-मंडलों की कायणवाहहयों के प्रकाशन का
संरक्षर्–(1) कोई व्यक्ति संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य की र्वधान
सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की ककन्ह कायणवाहहयों के सारिः
सह र्ववरर् के ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के संबध ं में ककसी न्यायालय में ककसी भी
प्रकार की लसर्वल या दांक्तडक कायणवाह का िब िक भागी नह ं होगा जब िक यह साबबि
नह ं कर हदया जािा है कक प्रकाशन र्वद्वे षपव
ू क
ण ककया गया है :
परन्िु इस खंड की कोई बाि संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य
की र्वधान सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की गुप्त बैठक की
कायणवाहहयों के र्ववरर् के प्रकाशन को लागू नह ं होगी ।
(2) खंड (1) ककसी प्रसारर् केन्र के माध्यम से उपलब्ध ककसी कायणक्रम या सेवा
के भागरूप बेिार िारयांबत्रकी के माध्यम से प्रसाररि ररपोर्टों या सामग्री के संबध
ं में उसी
प्रकार लागू होगा स्जस प्रकार वह ककसी समाचारपत्र में प्रकालशि ररपोर्टों या सामग्री के
संबधं में लागू होिा है ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द में , “समाचारपत्र” के अंिगणि समाचार एजेंसी की ऐसी
ररपोर्टण है स्जसमें ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के ललए सामग्री अंिर्वणष्ट है ।]
[361ख. लाभप्रद राजनीतिक पद पर तनयक्तु ि के ललए तनरहणिा – ककसी
2
राजनीतिक दल का ककसी सदन का कोई सदथय, जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन
सदन का सदथय होने के ललए तनरहहणि है, अपनी तनरहणिा की िार ख से प्रारं भ होने वाल
और उस िार ख िक स्जसको ऐसे सदथय के रूप में उसकी पदावधध समाप्त होगी या उस
िार ख िक स्जसको वह ककसी सदन के ललए कोई तनवाणचन लडिा है, और तनवाणधचि
घोर्षि ककया जािा है, इनमें से जो भी पव
ू ि
ण र हो, की अवधध के दौरान, कोई लाभप्रद
राजनीतिक पद धारर् करने के ललए भी तनरहहणि होगा ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, –
(क) “सदन” पद का वह अथण है जो उसका दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के
खंड (क) में है ;
(ख) “लाभप्रद राजनीतिक पद” अलभव्यक्ति से अलभप्रेि है, –
(i) भारि सरकार या ककसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां
ऐसे पद के ललए वेिन या पाररश्रलमक का संदाय, यथास्थथति, भारि
सरकार या राज्य सरकार के लोक राजथव से ककया जािा है ; या
1. संर्वधान (चवाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 220
1. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (28-12-1971 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 221
तनजी थैल का अंि ककया जािा है और तनजी थैल की बाबि सभी अधधकार,
दातयत्व और बाध्यिाएं तनवाणर्पि की जािी हैं और िद्नस
ु ार खंड (क) में तनहदणष्ट,
यथास्थथति, शासक या ऐसे शासक के उत्तराधधकार को या अन्य व्यक्ति को ककसी
रालश का तनजी थैल के रूप में संदाय नह ं ककया जाएगा ।]
364. महापत्तनों और र्वमानक्षेत्रों के बारे में र्वशेष उपबंध – (1) इस संर्वधान में
ककसी बाि के होिे हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधधसच ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक ऐसी
िार ख से, जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट की जाए,–
(क) संसद् या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई र्वधध
ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू नह ं होगी अथवा ऐसे अपवादों या
उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए लागू होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट ककए
जाएं ; या
(ख) कोई र्वद्यमान र्वधध ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र में उन बािों के
लसवाय प्रभावी नह ं रहे गी स्जन्हें उि िार ख से पहले ककया गया है या करने का
लोप ककया गया है अथवा ऐसे पत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू होने में ऐसे अपवादों
या उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए प्रभावी होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट
ककए जाएं ।
(2) इस अनच्
ु छे द में–
(क) “महापत्तन” से ऐसा पत्तन अलभप्रेि है स्जसे संसद् द्वारा बनाई गई ककसी
र्वधध या ककसी र्वद्यमान र्वधध द्वारा या उसके अधीन महापत्तन घोर्षि ककया गया
है और इसके अंिगणि ऐसे सभी क्षेत्र हैं जो उस समय ऐसे पत्तन की सीमाओं के
भीिर हैं ;
(ख) “र्वमानक्षेत्र” से वायु मागों, वायय
ु ानों और र्वमान चालन से संबधं धि
अधधतनयलमतियों के प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि र्वमानक्षेत्र अलभप्रेि है ।
365. संघ द्वारा हदए गए तनदे शों का अनपु ालन करने में या उनको प्रभावी करने में
असफलिा का प्रभाव – जहां इस संर्वधान के ककसी उपबंध के अधीन संघ की
कायणपाललका शक्ति का प्रयोग करिे हुए हदए गए ककन्ह ं तनदे शों का अनपु ालन करने में या
उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहिा है वहां राष्ट्रपति के ललए यह मानना
र्वधधपर्
ू ण होगा कक ऐसी स्थथति उत्पन्न हो गई है स्जसमें उस राज्य का शासन इस
संर्वधान के उपबंधों के अनस ु ार नह ं चलाया जा सकिा है ।
366. पररभाषाएं – इस संर्वधान में , जब िक कक संदभण से अन्यथा अपेक्षक्षि न
हो, तनम्नललखखि पदों के तनम्नललखखि अथण हैं, अथाणि ् :–
(1) “कृर्ष-आय” से भारिीय आय-कर से संबधं धि अधधतनयलमतियों के
प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि कृर्ष-आय अलभप्रेि है ;
(2) “आंग्ल-भारिीय” से ऐसा व्यक्ति अलभप्रेि है स्जसका र्पिा या र्पि-ृ
भारि का संर्वधान 222
परं परा में कोई अन्य परु ु ष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, ककन्िु जो भारि के
राज्यक्षेत्र में अधधवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे मािा-र्पिा से जन्मा है या
जन्मा था जो वहां साधारर्िया तनवासी रहे हैं और केवल अथथायी प्रयोजनों के
ललए वास नह ं कर रहे हैं ;
(3) “अनच्
ु छे द” से इस संर्वधान का अनच्
ु छे द अलभप्रेि है ;
(4) “उधार लेना” के अंिगणि वार्षणककयां दे कर धन लेना है और “उधार” का
िद्नस
ु ार अथण लगाया जाएगा ;
1
[(4क)* * * *]
(5) “खंड” से उस अनच्
ु छे द का खंड अलभप्रेि है स्जसमें वह पद आिा है ;
(6) “तनगम कर” से कोई आय पर कर अलभप्रेि है, जहां िक वह कर
कंपतनयों द्वारा संदेय है और ऐसा कर है स्जसके संबध
ं में तनम्नललखखि शिें परू
होिी हैं, अथाणि ् :–
(क) वह कृर्ष-आय के संबध
ं में प्रभायण नह ं है ;
(ख) कंपतनयों द्वारा संदत्त कर के संबध
ं में कंपतनयों द्वारा व्यर्ष्टयों
को संदेय लाभांशों में से ककसी कर्टौिी का ककया जाना उस कर को लागू
अधधतनयलमतियों द्वारा प्राधधकृि नह ं है ;
1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क) अन्िःथथार्पि
ककया गया और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप
ककया गया ।
भारि का संर्वधान 223
1. संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(i) द्वारा (16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 224
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (21) का
लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (28-12-1971 से) प्रतिथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 225
1
[(26क) “सेवाओं” से माल से लभन्न कुछ भी अलभप्रेि है ;
(26ख) “राज्य” के अंिगणि, अनच् ु छे द 246क, अनच् ु छे द 268, अनच्
ु छे द
269, अनच्ु छे द 269क और अनच् ु छे द 279क के संदभण में , र्वधान-मंडल वाला कोई
संघ राज्यक्षेत्र भी आिा है ;]
[(26ग) ‘‘सामास्जक और शैक्षक्षक दृस्ष्र्ट से र्पछडे वगों’’ से ऐसे र्पछडे
2
1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (26क) अंिःथथार्पि
ककया गया था और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से)
लोप ककया गया और संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(ii) द्वारा
(16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अधधतनयम, 2018 की धारा 5 द्वारा (11-8-2018 से) अंिःथथार्पि ।
3. संर्वधान (तछयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 4 द्वारा (2-2-1983 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 226
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (30) के थथान पर (1-
11-1956 से) प्रतिथथार्पि ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल अनुसूची के भाग क या भाग
ख में र्वतनहदण ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया ।
3. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
4. संर्वधान (र्वदे शी राज्यों के बारे में घोषर्ा) आदे श, 1950, (सं. आ. 2) दे खखए ।
भाग 20
संविधान का संशोधन
368. 1[संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया]
– [(1) इस संविधान में क्रकसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संविधायी शक्ति का
2
1. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा "संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया" के
स्िान पर (5-11-1971 से) प्रनतस्िावपत ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छे द 368 को खंड (2) के रूप में
पुनःसंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
4. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा “तब िह राष्ट्रपनत के समक्ष उसकी अनुमनत के
लिए रखा जाएगा तिा विधेयक को ऐसी अनुमनत दी जाने के पश्चात ्” के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
5. संविधान (एक सौ एकिां संशोधन) अधधननयम, 2016 की धारा 15 द्वारा (16-9-2016 से) "अनुच्छे द 162 या
अनुच्छे द 241" के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
227
भारत का संविधान 228
1
*** कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडिों द्वारा पाररत इस आशय के संकल्पों द्वारा
उन विधान-मंडिों का अनस
ु मिधन भी अपेक्षक्षत होगा ।
2
[(3) अनच्
ु छे द 13 की कोई बात इस अनच्
ु छे द के अधीन क्रकए गए क्रकसी
संशोधन को िागू नहीं होगी ।]
[(4) इस संविधान का (स्जसके अंतगधत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनच्
3
ु छे द के
अधीन संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 के प्रारं भ से पहिे
या उसके पश्चात ् क्रकया गया या क्रकया गया तात्पनयधत कोई संशोधन क्रकसी न्यायािय में
क्रकसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं क्रकया जाएगा ।
(5) शंकाओं को दरू करने के लिए यह घोवित क्रकया जाता है क्रक इस अनच् ु छे द के
अधीन इस संविधान के उपबंधों का पररिधधन, पररितधन या ननरसन के रूप में संशोधन
करने के लिए संसद् की संविधायी शक्ति पर क्रकसी प्रकार का ननबधन्धन नहीं होगा ।]
1. संविधान (सातिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहिी अनुसूची
के भाग क और भाग ख में विननददध ष्ट” शब्दों और अक्षरों का िोप क्रकया गया ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. अनुच्छे द 368 में खंड (4) और खंड (5) संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 द्वारा (3-
1-1977 से) अंतःस्िावपत क्रकए गए िे । उच्चतम न्यायािय ने लमनिाध लमल्स लिलमटे ड और अन्य बनाम भारत
संघ और अन्य एआईआर 1980, एस.सी. 1789 के मामिे में इस धारा को अविधधमान्य घोवित क्रकया है ।
भाग 21
1
[अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध]
(क) सत
ू ी और ऊनी व��, कच्ची कपास (िजसके अंतगर्त ओट� हुई रुई
और �बना ओट� रुई या कपास है), �बनौले, कागज (िजसके अंतगर्त अखबार�
कागज है), खाद्य पदाथर् (िजसके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�), पशओ
ु ं के
चारे (िजसके अंतगर्त खल� और अन्य सारकृत चारे ह�), कोयले (िजसके अंतगर्त
कोक और कोयले के व्यत्ु पाद ह�), लोहे , इस्पात और अभ्रक का �कसी राज्य के
भीतर व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ;
1. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी तथा अंतःकाल�न
उपबंध” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
229
भारत का सं�वधान 230
**
370. जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
1
ं म� अस्थायी उपबंध – (1) इस सं�वधान
म� �कसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनच्ु छे द 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध
ं म� लागू नह�ं
ह�गे ;
(ख) उ� राज्य के �लए �व�ध बनाने क� संसद् क� श��,–
(i) संघ सूची और समवत� सूची के उन �वषय� तक सी�मत होगी
िजनको रा�प�त, उस राज्य क� सरकार से परामशर् करके, उन �वषय� के
तत्स्थानी �वषय घो�षत कर दे , जो भारत डो�म�नयन म� उस राज्य के
अ�ध�मलन को शा�सत करने वाले अ�ध�मलन पत्र म� ऐसे �वषय� के रूप
म� �व�न�दर्� ह� िजनके संबध
ं म� डो�म�नयन �वधान-मंडल उस राज्य के
�लए �व�ध बना सकता है; और
(ii) उ� सू�चय� के उन अन्य �वषय� तक सी�मत होगी जो
रा�प�त, उस राज्य क� सरकार क� सहम�त से, आदे श द्वारा, �व�न�दर्�
करे ।
स्प�ीकरण – इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, उस राज्य क� सरकार से
वह व्य�� अ�भप्रेत है िजसे रा�प�त से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा क� 5 माचर्,
1948 क� उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर्
करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप म� तत्समय मान्यता प्रा� थी ;
** राष्ट्रप�त, संसद क� �सफा�रश पर भारत के सं�वधान के अनुच्छे द 370 के खंड (1) के साथ प�ठत अनुच्छे द 370
के खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए यह घोषणा करते ह� �क 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनुच्छे द 370
के सभी खंड, �सवाय �नम्न�ल�खत के, जो नीचे �दए गए के अनुसार है, प्रचालन म� नह�ं रह� गे, अथार्त ् :—
“370. इस सं�वधान के समय-समय पर यथा-संशो�धत, सभी उपबंध �बना �कन्ह�ं उपांतरण� या उपवाद� के
अनुच्छे द 152 या अनुच्छे द 308 या इस सं�वधान के �कसी अन्य अनुच्छे द या जम्मू-कश्मीर के सं�वधान म�
�कसी अन्य उपबंध या �कसी �व�ध, दस्तावेज, �नणर्य, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसूचना
या भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाल� �कसी रू�ढ़ या प्रथा या �कसी अन्य �लखत, सं�ध या करार
जो अनुच्छे द 363 के अधीन यथा प�रकिल्पत या अन्यथा है, म� तत्प्र�तकूल �कसी बात के अंत�वर्ष्ट होते हुए भी,
जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू ह�गे ।”।
(�व�ध और न्याय मंत्रालय, �वधायी �वभाग सं.आ. 273, तार�ख 5 अगस्त, 2019)
1. इस अनुच्छे द द्वारा प्रद� श��य� का प्रयोग करते हुए रा�प�त ने जम्मू और कश्मीर राज्य क� सं�वधान सभा क�
�सफा�रश पर यह घोषणा क� �क 17 नवंबर, 1952 से उ� अनुच्छे द 370 इस उपांतरण के साथ प्रवतर्नीय होगा
�क उसके खंड (1) म� स्प�ीकरण के स्थान पर �नम्न�ल�खत स्प�ीकरण रख �दया गया है, अथार्त ् :–
“स्प�ीकरण – इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए राज्य क� सरकार से वह व्य�� अ�भप्रेत है िजसे राज्य
क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर रा�प�त ने राज्य क� तत्समय पदारूढ़ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् करने
वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे �रयासत के रूप म� मान्यता प्रदान क� हो ।”।
* अब “राज्यपाल” (�व�ध मंत्रालय आदे श सं0 सं.आ. 44, �दनांक 15 नवंबर, 1952) ।
भारत का सं�वधान 231
(ग) अनच्
ु छे द 1 और इस अनच्
ु छे द के उपबंध उस राज्य के संबध
ं म� लागू
ह�गे ;
(घ) इस सं�वधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के
अधीन रहते हुए, जो रा�प�त आदे श 1 द्वारा �व�न�दर्� करे , उस राज्य के संबंध म�
2
लागू ह�गे :
परं तु ऐसा कोई आदे श जो उपखंड (ख) के पैरा (i) म� �न�दर्� राज्य के
अ�ध�मलन पत्र म� �व�न�दर्� �वषय� से संब�ं धत है, उस राज्य क� सरकार से परामशर्
करके ह� �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं :
परं तु यह और �क ऐसा कोई आदे श जो अं�तम पव
ू व
र् त� परं तुक म� �न�दर्� �वषय�
से �भन्न �वषय� से संब�ं धत है, उस सरकार क� सहम�त से ह� �कया जाएगा, अन्यथा
नह�ं ।
(2) य�द खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (ii) म� या उस खंड के उपखंड (घ) के
दसू रे परं तुक म� �न�दर्� उस राज्य क� सरकार क� सहम�त, उस राज्य का सं�वधान बनाने
के प्रयोजन के �लए सं�वधान सभा के बल ु ाए जाने से पहले द� जाए तो उसे ऐसी
सं�वधान सभा के सम� ऐसे �व�न�य के �लए रखा जाएगा जो वह उस पर करे ।
(3) इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त
लोक अ�धसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा �क यह अनच् ु छे द प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा या ऐसे
अपवाद� और उपांतरण� स�हत ह� और ऐसी तार�ख से, प्रवतर्न म� रहे गा, जो वह
�व�न�दर्� करे :
परं तु रा�प�त द्वारा ऐसी अ�धसच
ू ना �नकाले जाने से पहले खंड (2) म� �न�दर्� उस
राज्य क� सं�वधान सभा क� �सफा�रश आवश्यक होगी ।
2
[371. 3*** महारा� और गुजरात राज्य� के संबध
ं म� �वशेष उपबंध – 4* * *
(2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, रा�प�त, 5[महारा� या गज
ु रात
राज्य] के संबध
ं म� �कए गए आदे श द्वारा :–
1. समय-समय पर यथासंशो�धत सं�वधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदे श, 1954 (सं. आ. 48)
प�र�श� 1 म� दे �खए ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 22 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) “आंध्र प्रदे श,” शब्द� का लोप
�कया गया ।
4. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का लोप �कया गया ।
5. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 232
(क) यथािस्थ�त, �वदभर्, मराठवाड़ा 1[और शेष महारा� या] सौरा�, कच्छ
और शेष गुजरात के �लए पथ ृ क् �वकास बोड� क� स्थापना के �लए, इस उपबंध
स�हत �क इन बोड� म� से प्रत्येक के कायर्करण पर एक प्र�तवेदन राज्य �वधान
सभा के सम� प्र�तवषर् रखा जाएगा,
(ख) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उ� �ेत्र� के
�वकास व्यय के �लए �न�धय� के साम्यापण
ू र् आबंटन के �लए, और
(ग) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उ� सभी �ेत्र�
के संबध
ं म� , तकनीक� �श�ा और व्यावसा�यक प्र�श�ण के �लए पयार्� स�ु वधाओं
क� और राज्य सरकार के �नयंत्रण के अधीन सेवाओं म� �नयोजन के �लए पयार्�
अवसर� क� व्यवस्था करने वाल� साम्यापण
ू र् व्यवस्था करने के �लए,
राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा ।]
2
[371क. नागाल�ड राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी, –
(क) �नम्न�ल�खत के संबध ं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम नागाल�ड राज्य
को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक नागाल�ड क� �वधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा
�व�न�य नह�ं करती है, अथार्त ्,–
(i) नागाओं क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ;
(ii) नागा रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ;
(iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�न�य नागा
रू�ढ़जन्य �व�ध के अनसु ार होने ह� ;
(iv) भ�ू म और उसके संप�� स्रोत� का स्वा�मत्व और अंतरण ;
(ख) नागाल�ड के राज्यपाल का नागाल�ड राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के
संबध म� तब तक �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा जब तक उस राज्य के �नमार्ण के
ठ�क पहले नागा पहाड़ी त्यएु नसांग �ेत्र म� �वद्यमान आंत�रक अशां�त, उसक� राय
म� , उसम� या उसके �कसी भाग म� बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबध ं म�
अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने
व्य��गत �नणर्य का प्रयोग, मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के प�ात ् करे गा :
परं तु य�द यह प्र� उठता है �क कोई मामला ऐसा मामला है या नह�ं
िजसके संबध ं म� राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपे�ा क� गई है �क वह
1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महारा�” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 233
अपने व्य��गत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेक
से �कया गया �व�न�य अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क�
�व�धमान्यता इस आधार पर प्र�गत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने व्य��गत
�नणर्य का प्रयोग करके कायर् करना चा�हए था या नह�ं :
परं तु यह और �क य�द राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा
रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क अब यह आवश्यक नह�ं है �क नागाल�ड
राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� राज्यपाल का �वशेष उ�रदा�यत्व रहे तो
वह, आदे श द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क राज्यपाल का ऐसा उ�रदा�यत्व उस तार�ख
से नह�ं रहे गा जो आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए ;
(ग) अनदु ान क� �कसी मांग के संबधं म� अपनी �सफा�रश करने म� ,
नागाल�ड का राज्यपाल यह सु�नि�त करे गा �क �कसी �व�न�दर्� सेवा या प्रयोजन
के �लए भारत क� सं�चत �न�ध म� से भारत सरकार द्वारा �दया गया कोई धन
उस सेवा या प्रयोजन से संब�ं धत अनद
ु ान क� मांग म� , न �क �कसी अन्य मांग
म� , सिम्म�लत �कया जाए ;
(घ) उस तार�ख से िजसे नागाल�ड का राज्यपाल इस �न�म� लोक
अ�धसूचना द्वारा �व�न�दर्� करे , त्यए
ु नसांग िजले के �लए एक प्रादे �शक प�रषद्
स्था�पत क� जाएगी जो प�तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी और राज्यपाल
�नम्न�ल�खत बात� का उपबंध करने के �लए �नयम अपने �ववेक से बनाएगा,
अथार्त ् :–
(i) प्रादे �शक प�रषद् क� संरचना और वह र��त िजससे प्रादे �शक
प�रषद् के सदस्य चन ु े जाएंगे :
परं तु त्यए
ु नसांग िजले का उपाय�
ु प्रादे �शक प�रषद् का पदे न
अध्य� होगा और प्रादे �शक प�रषद् का उपाध्य� उसके सदस्य� द्वारा अपने
म� से �नवार्�चत �कया जाएगा ;
(ii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य चन
ु े जाने के �लए और सदस्य होने
के �लए अहर्ताएं ;
(iii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� क� पदाव�ध और उनको �दए जाने
वाले वेतन और भ�े, य�द कोई ह� ;
(iv) प्रादे �शक प�रषद् क� प्र�क्रया और कायर् संचालन ;
(v) प्रादे �शक प�रषद् के अ�धका�रय� और कमर्चा�रवद
ं ृ क� �नय�ु �
और उनक� सेवा क� शत� ; और
भारत का सं�वधान 234
“परं तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर, �कसी व्य�� को त्युएनसांग कायर् मंत्री के रूप म� ऐसे समय तक के
�लए �नयु� कर सकेगा, जब तक �क नागाल�ड क� �वधान सभा म� त्युएनसांग िजले के �लए, आबं�टत स्थान� को भरने
के �लए �व�ध के अनुसार व्य��य� को चुन नह�ं �लया जाता है” ।
भारत का सं�वधान 236
1. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्था�पत ।
5. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 237
1. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य के �लए” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 238
(ख) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श
म� �व�न�दर्� �कए जाएं, �नय� ु , आबं�टत या प्रोन्नत व्य��य� क� ज्ये�ता ;
(ग) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर �नय�
ु ,
आबं�टत या प्रोन्नत व्य��य� क� सेवा क� ऐसी अन्य शत� जो आदे श म� �व�न�दर्�
क� जाएं ।
(4) खंड (3) के अधीन �कया गया आदे श–
(क) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर �कसी �वषय
से संब�ं धत व्यथाओं के �नवारण के �लए ऐसे अभ्यावेदन प्रा� करने के �लए, जो
रा�प�त आदे श म� �व�न�दर्� करे और उस पर ऐसे आदे श करने के �लए जो वह
प्रशास�नक अ�धकरण ठ�क समझता है, प्रा�धकृत कर सकेगा ;
(ख) प्रशास�नक अ�धकरण क� श��य� और प्रा�धकार� और प्र�क्रया के संबध
ं
म� ऐसे उपबंध (िजनके अंतगर्त प्रशास�नक अ�धकरण क� अपने अवमान के �लए
दं ड दे ने क� श�� के संबध
ं म� उपबंध ह�) अंत�वर्� कर सकेगा जो रा�प�त आवश्यक
समझे ;
(ग) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर आने वाले
�वषय� से संब�ं धत और उस आदे श के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय
से �भन्न) �कसी न्यायालय अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के सम�
लं�बत कायर्वा�हय� के ऐसे वग� के, जो आदे श म� �व�न�दर्� �कए जाएं, अंतरण के
�लए उपबंध कर सकेगा ;
भारत का सं�वधान 239
आदे श, राज्य सरकार द्वारा उसक� प�ु � �कए जाने पर या आदे श �कए जाने क� तार�ख से
तीन मास क� समा�� पर, इनम� से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा :
परं तु राज्य सरकार, �वशेष आदे श द्वारा, जो �ल�खत रूप म� �कया जाएगा और
िजसम� उसके कारण �व�न�दर्� �कए जाएंगे, प्रशास�नक अ�धकरण के �कसी आदे श को
उसके प्रभावी होने के पहले उपांत�रत या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले म� प्रशास�नक
अ�धकरण का आदे श, यथािस्थ�त, ऐसे उपांत�रत रूप म� ह� प्रभावी होगा या वह
�नष्प्रभाव हो जाएगा ।
(6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परं तुक के अधीन �कया गया प्रत्येक �वशेष
आदे श, �कए जाने के प�ात ्, यथाशक्य, शीघ्र, राज्य �वधान-मंडल के दोन� सदन� के
सम� रखा जाएगा ।
(7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशास�नक अ�धकरण पर अधी�ण क� श��
नह�ं होगी और (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अ�धकरण,
प्रशास�नक अ�धकरण क� या उसके संबध ं म� अ�धका�रता, श�� या प्रा�धकार के अधीन
�कसी �वषय क� बाबत �कसी अ�धका�रता, श�� या प्रा�धकार का प्रयोग नह�ं करे गा ।
(8) य�द रा�प�त का यह समाधान हो जाता है �क प्रशास�नक अ�धकरण का
�नरं तर बने रहना आवश्यक नह�ं है तो रा�प�त आदे श द्वारा प्रशास�नक अ�धकरण का
उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठ�क पहले अ�धकरण के सम� लं�बत मामल�
के अंतरण और �नपटारे के �लए ऐसे आदे श म� ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठ�क
समझे ।
(9) �कसी न्यायालय, अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के �कसी �नणर्य, �डक्र� या
आदे श के होते हुए भी,–
(क) �कसी व्य�� क� कोई �नय�ु �, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क�
बाबत जो–
(i) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथा�वद्यमान हैदराबाद राज्य क�
∗ उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमू�तर् और अन्य बनाम आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य 1987 (1) ए.आई.आर.
1987 एस.सी., प.ृ 663 म� अनुच्छे द 371घ के खंड (5) और उसके परं तुक को असंवैधा�नक और शून्य घो�षत
�कया ।
भारत का सं�वधान 240
1. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 241
�नद� श ह� और 2[चार वषर्] क� उ� अव�ध �नयत �दन से प्रारं भ हुई समझी जाएगी
;
(घ) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्य उपबंध नह�ं करती है तब तक
�सिक्कम राज्य को लोक सभा म� एक स्थान आबं�टत �कया जाएगा और
�सिक्कम राज्य एक संसद�य �नवार्चन-�ेत्र होगा िजसका नाम �सिक्कम संसद�य
�नवार्चन-�ेत्र होगा ;
(ङ) �नयत �दन को �वद्यमान लोक सभा म� �सिक्कम राज्य का प्र�त�न�ध
�सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� द्वारा �नवार्�चत �कया जाएगा ;
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्”
मूल शब्द� के स्थान पर “छह वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “पांच वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार वषर्” मूल
शब्द� के स्थान पर “पांच वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
भारत का सं�वधान 242
1. सं�वधान (पचपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (छप्पनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत ।
3
सं�वधान (अठानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2012 क� धारा 2 द्वारा (1-10-2013 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 245
1. दे �खए, अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 115, तार�ख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग
3, प0
ृ 51; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 870, तार�ख 4 नवंबर, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2,
अनुभाग 3, प0
ृ 903; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 508, तार�ख 4 अप्रैल, 1951, भारत का राजपत्र, असाधारण,
भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 287; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 1140ख, तार�ख 2 जुलाई, 1952, भारत का राजपत्र,
असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 616/I; और त्रावणकोर-कोचीन भू�म अजर्न �व�ध अनुकूलन आदे श, 1952,
भारत का सं�वधान 246
अध्यादे श, य�द तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहले ह� वापस नह�ं ले �लया गया है
तो, ऐसे प्रारं भ के प�ात ् अनच्
ु छे द 382 के खंड (1) के अधीन कायर्रत उस राज्य क�
�वधान सभा के प्रथम अ�धवेशन से छह स�ाह क� समा�� पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा और
इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �कसी
अध्यादे श को उ� अव�ध से आगे प्रव� ृ बनाए रखती है ।
1
[372क. �व�धय� का अनक ु ू लन करने क� रा�प�त क� श�� – (1) सं�वधान
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत म� या उसके �कसी
भाग म� प्रव�ृ �कसी �व�ध के उपबंध� को उस अ�ध�नयम द्वारा यथासंशो�धत इस सं�वधान
के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन� के �लए, रा�प�त, 1 नवंबर, 1957 से पहले �कए
गए आदे श 2 द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक
29
ु ू लन
और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर सकेगा �क
वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो आदे श म� �व�न�दर्� क� जाए, इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन�
और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपां
त रण को
�कसी न्यायालय म� प्र�गत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात, �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार�
को, रा�प�त द्वारा उ� खंड के अधीन अनकु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का �नरसन
या संशोधन करने से रोकने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।]
373. �नवारक �नरोध म� रखे गए व्य��य� के संबध ं म� कुछ दशाओं म� आदे श
करने क� रा�प�त क� श�� – जब तक अनच् ु छे द 22 के खंड (7) के अधीन संसद् उपबंध
नह�ं करती है या जब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से एक वषर् समा� नह�ं हो जाता है,
इनम� से जो भी पहले हो, तब तक उ� अनच् ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (4)
और खंड (7) म� संसद् के प्र�त �कसी �नद� श के स्थान पर रा�प�त के प्र�त �नद� श और
उन खंड� म� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के प्र�त �नद� श के स्थान पर रा�प�त द्वारा �कए
गए आदे श के प्र�त �नद� श रख �दया गया हो ।
374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� और फेडरल न्यायालय म� या सप�रषद्
�हज मजेस्ट� के सम� लं�बत कायर्वा�हय� के बारे म� उपबंध--(1) इस सं�वधान के प्रारं भ
से ठ�क पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा
�नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे
और तब ऐसे वेतन� और भ�� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्टी और प�शन के संबध
ं म� ऐसे
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 23 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
2. दे �खए 1956 और 1957 के �व�ध अनुकूलन आदे श ।
भारत का सं�वधान 248
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 13 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 250
और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस
अनच्
ु छे द के खंड (2) के परं तुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदाव�ध क� समा�� तक
पद धारण करते रह� गे जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे सदस्य� को लागू �नयम� के
अधीन अवधा�रत है ।
1
[378क. आंध्र प्रदे श �वधान सभा क� अव�ध के बारे म� �वशेष उपबंध – अनच्
ु छे द
172 म� �कसी बात के होते हुए भी, राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 28 और
धारा 29 के उपबंध� के अधीन ग�ठत आंध्र प्रदे श राज्य क� �वधान सभा, य�द पहले ह�
�वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, उ� धारा 29 म� �न�दर्� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध
तक बनी रहेगी, इससे अ�धक नह�ं और उ� अव�ध क� समा�� का प�रणाम उस �वधान
सभा का �वघटन होगा ।]
379. [अन्तकार्ल�न संसद् तथा उसके अध्य� और उपाध्य� के बारे म� उपबंध ।]–
सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च
ू ी द्वारा (1-
11-1956 से) �नर�सत ।
380. [रा�प�त के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956
क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
381. [रा�प�त क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956
क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
382. [पहल� अनस ु ूची के भाग क म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के
बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
383. [प्रान्त� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
384. [राज्यपाल� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1956 क� धारा 29 और अनस ु च
ू ी द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
385. [पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के
बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
386. [पहल� अनसु ूची के भाग ख म� के राज्य� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से)
�नर�सत ।
387. [कुछ �नवार्चन� के प�रयोजन� के �लए जनसंख्या के �नधार्रण के बारे म�
�वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनसु ूची द्वारा (1-11-1956 से) �नर�सत ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 24 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 251
1. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 2 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
2. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 3 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
251
अनस
ु ूची
1[पहल�
(अनुच्छे द 1 और अनुच्छे द 4)
1. राज्य
नाम राज्य�ेत्र
1. आंध्र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� , राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1)
म� , आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम
अनुसूची म� और आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम,
1968 क� अनुसूची म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं
ह� जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
�द्वतीय अनुसूची म� 3[तथा आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क�
धारा 3 म� ] �व�न�दर् � ह� ।]
2. असम वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले असम प्रांत, खासी
राज्य� और असम जनजा�त �ेत्र� म� समा�व� थे, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके
अंतगर्त नह�ं ह� जो असम (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1951 क�
अनुसच
ू ी म� �व�न�दर् � ह� [और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
4
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा पहल� अनुसूची के स्थान पर (1-11-1956 से)
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
पूवव
र् त� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) जोड़ा गया ।
5. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) जोड़ा गया ।
6. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) अंतःस्था�पत ।
252
भारत का सं�वधान 253
नाम राज्य�ेत्र
3. �बहार 1
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो �बहार प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह�
और वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,
1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे
राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और पि�मी बंगाल (राज्य�ेत्र
अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�
और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो प्रथम व�णर्त अ�ध�नयम क�
धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् � ह� 2[और वे राज्य�ेत्र जो
�बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् � ह� ।]]
3
[4. गुजरात वे राज्य�ेत्र जो मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �न�दर् � ह� ।]
1. �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 24) क� धारा 4 द्वारा (10-6-1970 से)
पूवव
र् त� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) जोड़ा गया ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 4 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा
(1-10-1959 से) अंतःस्था�पत ।
5. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 254
नाम राज्य�ेत्र
1
[7. त�मलनाडु] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो मद्रास प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� और वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 म�
2
[तथा आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
�द्वतीय अनसु च
ू ी म� ] �व�न�दर् � ह�,] �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं
ह� जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा (1) और
धारा 4 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� और 3
[वे राज्य�ेत्र भी इसके
अंतगर्त नह�ं ह� जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 क�
उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 6 और धारा 7 क� उपधारा (1) के खंड
(घ) म� �व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र
प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची
म� �व�न�दर् � ह� ।]
4
[8. महारा� वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�, �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �न�दर् �
ह� ।]
5 6
[ [9.] कनार्टक] वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगठर् न अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह�, 7[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 क� अनुसूची
म� �व�न�दर् � ह� ।]
1. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “7. मद्रास” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56 ) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से)
अंतःस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से)
क�तपय शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
5. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “9. मैसूर” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
7. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 255
नाम राज्य�ेत्र
1 2
[10.] [ओ�डशा] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारम्भ से ठ�क पहले या तो उड़ीसा प्रांत
म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� ।
1
[11.] पंजाब वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 म�
�व�न�दर् � ह� 3[और वे राज्य�ेत्र जो अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन)
अ�ध�नयम, 1960 क� प्रथम अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � ह�,] 4[�कं तु वे
राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1960 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � ह�] 5[और वे राज्य�ेत्र भी
इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3
क� उपधारा (1), धारा 4 और धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� ।]
3
[12.] राजस्थान वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 म�
�व�न�दर् � ह�, 6[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राजस्थान और
मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची म�
�व�न�दर् � ह� ।]
1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 6 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 64) क� धारा 4 द्वारा (17-1-1961 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 द्वारा (17-1-1961 से) जोड़ा गया ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
6. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1959
से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 256
नाम राज्य�ेत्र
1
[13.] उ�र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो संय�
ु प्रांत
नाम से �ात प्रांत म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस
प्रांत के भाग रहे ह�, वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-
प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म�
�व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-
प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म�
�व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और उ�र
प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के
खंड (क) 3[तथा उ�र प्रदे श पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3] म�
�व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो ह�रयाणा और
उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा
(1) के खंड (क) म� �व�न�दर् � ह� ।]
1
[14.] पि�मी वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो पि�मी
बंगाल बंगाल प्रांत म� समा�व� थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत
के भाग रहे ह� और चंद्रनगर (�वलयन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 के
खंड (ग) म� यथा प�रभा�षत चंद्रनगर का राज्य�ेत्र और वे राज्य�ेत्र भी
जो �बहार और पि�मी बंगाल (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क�
धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� 4
[और वे राज्य�ेत्र भी, जो
पहल� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् � ह� �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त
नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के
खंड (ग) म� अंत�वर्� �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध
सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के
भाग 3 म� �न�दर् � राज्य�ेत्र� और दसू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् �
राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क�
दस
ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् � ह� ।]
1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“13. उ�र प्रदे श” के सामने क� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 257
नाम राज्य�ेत्र
1 2
[ [**.] * * *]
[ [15.] नागाल�ड
3 4
वे राज्य�ेत्र जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �व�न�दर् � ह� ।]
[ [16.] ह�रयाणा
5 4 6
[वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श
(सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड
(क) म� �व�न�दर् � ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो उस
अ�ध�नयम क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् � ह� ।]]
7 4
[ [17.] �हमाचल वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत
प्रदे श थे मानो वे �हमाचल प्रदे श और �बलासपुर के नाम से �ात मुख्य आयु�
वाले प्रांत रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966
क� धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् � ह� ।]
1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से
संबं�धत प्र�व�� 15 को हटाया गया ।
2. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 8 से 14 तक को
प्र�व�� 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
4. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत और तत्प�ात ्
ह�रयाणा और उ�रप्रदे श (सीमा प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
प्र�व�� को संशो�धत �कया गया ।
6. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“17. ह�रयाणा” के सामने क� प्र�व�� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 258
नाम राज्य�ेत्र
1 2
[ [18.] म�णपरु वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह म�णपुर के नाम से �ात मुख्य आयु� वाला प्रांत
रहा हो ।]
2
[19.] �त्रपुरा वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह �त्रपुरा के नाम से �ात मुख्य आयु� वाला प्रांत
रहा हो 3[और वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960
क� धारा 3 के खंड (घ) म� अंत�वर्� �कसी बात के होते हुए भी जहां तक
उनका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल�
अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् � राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् �
ह� ।]
2
[20.] मेघालय वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 म�
�व�न�दर् � ह� 1[और वे राज्य�ेत्र, जो पहल� अनुसच ू ी के भाग 1 म� �न�दर् �
ह� �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् �
ह� ।]
4 2
[ [21.] �सिक्कम वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ
से ठ�क पहले �सिक्कम म� समा�व� थे ।]
5 2
[ [22.] �मजोरम वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत ।
2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 259
नाम राज्य�ेत्र
[ [23.] अरुणाचल
1 2
वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 7 म�
प्रदे श �व�न�दर् � ह� ।]
[ [24.] गोवा
3 2
वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क�
धारा 3 म� �व�न�दर् � ह� ।]
[ [25.] छ�ीसगढ़
4 2
मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् � राज्य�ेत्र
।]
[ [26.] 6[उ�राखंड]
5 2
वे राज्य�ेत्र जो उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
[ [27.] झारखंड
7 2
वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
[ [28.] तेलंगाना
8 2
वे राज्य�ेत्र जो आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
1. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 16 से 29
तक को प्र�व�� 15 से 28 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से)
अंतःस्था�पत ।
4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
5. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
6. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 4 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” शब्द के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
8. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 260
2. संघ राज्य�ेत्र
नाम �वस्तार
3
[3.] 4
[ल�द्वीप] वह राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् � है ।
5 1
[ [4.] दादरा और नागर वह राज्य�ेत्र जो 11 अगस्त, 1961 से ठ�क पहले स्वतंत्र दादरा
हवेल� तथा दमण और और नागर हवेल� म� समा�व� था तथा वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण
द�व और द�व पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 4 म� �व�न�दर् � ह� ।]
6 1
[ [*] * * * *।]
1. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) “�हमाचल प्रदे श” से
संबं�धत प्र�व�� 2 का लोप �कया गया और पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9
द्वारा (21-1-1972 से) म�णपुर और �त्रपुरा से संबं�धत प्र�व��य� का लोप �कया गया ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) प्र�व�� 2 और 3 लोप
�कया गया और प्र�व�� 4 से 9 तक को प्र�व�� 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) क्रमशः प्र�व�� 4 से 9
तक को प्र�व�� 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 5 द्वारा
(1-11-1973 से) “लक्काद�व, �म�नकोय, अमीनद�वी द्वीप” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 5 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� 4 और प्र�व�� 5 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (11-08-1961 से) दादरा और नागर हवेल� से संब�ं धत प्र�व�� 4 अंतःस्था�पत
क� गई थी ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से) प्र�व�� 5 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत तथा तत्प�ात ् दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन)
अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क� धारा 5 द्वारा (19-12-2019 से) प्र�व�� 4 और प्र�व�� 5 के स्थान पर
प्र�व�� 4 के रूप म� प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 261
नाम �वस्तार
1 1
[ [6.] 2[पुडुचेर�] वे राज्य�ेत्र जो 16 अगस्त, 1962 से ठ�क पहले भारत म�
पां�डचेर�, का�रकल, माह� और यनम के नाम से �ात फ्रांसीसी
बिस्तय� म� समा�व� थे ।]
3 1
[ [7.] चंडीगढ़ वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 4 म�
�व�न�दर् � ह� ।]
4 1
[ [* * * *]
5
[8. जम्मू-कश्मीर वे राज्य�ेत्र जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा
4 म� �व�न�दर् � ह� ।
9. लद्दाख वे राज्य�ेत्र जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा
3 म� �व�न�दर् � ह� ।]
1. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत ।
2. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 5 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” शब्द के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�व�� 8 का
लोप �कया गया और अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�व�� 9 को प्र�व�� 8 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया और
अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�व�� 8 का अरुणाचल प्रदे श अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 का (20-2-1987
से) लोप �कया गया ।
5. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) अंत:स्था�पत ।
दस
ू री अनुसूची
[अनच्
ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221]
भाग क
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में वितनर्दा ष्ट” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
*
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “पांच लाि रुपए” है ।
**
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “िीन लाि पचास हजार
रुपए” है ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे वितनर्दा ष्ट” शधदों का लोप (1-
11-1956 से) ककया गया ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा “ऐसे राज्यों” के ्र्ान पर (1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
4. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा भाग ि का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
261
भारि का संविधान 262
भाग ग
1. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में के ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ककसी ऐसे राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में
वितनर्दा ष्ट ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
4. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “कोई ऐसा राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 263
भाग घ
उच्चिम न्यायालय और 1*** उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
9. 2[(1) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों को िा्िविक सेिा में बबिाए समय
के ललए प्रति मास तनम्नललखिि दर से िेिन का संदाय ककया जाएगा, अर्ााि ् : –
मुख्य न्यायमूतिा 3
[10,000 रुपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 4
[9,000 रुपए:]**
परं िु यर्द उच्चिम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय भारि
सरकार की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार की या
उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबधं में (तनःशििा या क्षति पें शन
से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्चिम न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से 5[तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले उसका संरालशि मूल्य प्राप्त ककया है िो पें शन
के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबधं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिुल्य पें शन ।
(2) उच्चिम न्यायालय का प्रत्सयेक न्यायाधीश, बबना ककराया र्दए, शासकीय
तनिास के उपयोग का हकदार होगा ।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) की कोई बाि उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान
के प्रारं भ से ठीक पहले–
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में के
राज्यों में ” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उपपैरा (1)” के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,80,000 रुपए” है ।
4. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
** उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,50,000 रुपए” है ।
5. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उस पें शन की रालश घटा दी जाएगी” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 264
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (1) के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
2. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पचास हजार रुपए” है ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “3,500 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पच्चीस हजार रुपए” है ।
भारि का संविधान 265
परं िु यर्द ककसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय
भारि सरकार की या उसकी पि ू िा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार
की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबध
ं में (नःशििा या क्षति
पें शन से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्च न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि
ू ा सेिा के संबध ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले में उसका संरालशि मल् ू य प्राप्त ककया है िो
पें शन के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिल् ु य पें शन ।]
(2) ऐसा प्रत्सयेक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले–
(क) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद
धारर् कर रहा र्ा और ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 376 के िंड (1) के अधीन
ित्स्र्ानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूतिा बन गया है, या
(ि) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में
पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि िंड के अधीन ित्स्र्ानी
राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूतिा से लभन्न) न्यायाधीश बन गया है,
यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट दर से उच्चिर दर
पर िेिन प्राप्त कर रहा र्ा िो, यर्ाब््र्ति, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश के
रूप में िा्िविक सेिा में बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन
के अतिररि विशेष िेिन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार
वितनर्दाष्ट िेिन और ऐसे िेिन के अंिर के बराबर है जो िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त
कर रहा र्ा ।
1
[(3) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ
से ठीक पहले, पहली अनस ु ूची के भाग ि में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि अधधतनयम
द्वारा यर्ासंशोधधि उि अनस ु ूची में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य
न्यायमूतिा बन गया है , यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले अपने िेिन के अतिररि भत्ते के
रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा र्ा िो, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा के रूप में िा्िविक सेिा में
बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन के अतिररि भत्ते के रूप में
िही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (3) और उपपैरा (4) के ्र्ान पर (1-
11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 266
तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक (किाव्य, शक्तियां िर्ा सेिा की शिें) अधधतनयम, 1971 (1971 का 56) की धारा 3 द्वारा
भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक को उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर िेिन का संदाय ककया जाएगा
। उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018
का 10) की धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों का िे िन “दो लाि पचास हजार
रुपए” प्रति मास िक बढा र्दया गया है ।
तीसर� अनस
ु ूची
[अनच्
ु छे द 75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188 और 219]
*
*
अनुच्छे द 84(क) और अनुच्छे द 173(क) भी दे �खए ।
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
267
भारत का सं�वधान 268
“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) म� स्थान भरने के �लए अभ्यथ� के रूप म�
ई�र क� शपथ लेता हूं
नाम�नद� �शत हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखंग
ू ा, और म� भारत क� प्रभत
ु ा और
अखंडता अ�ुण्ण रखग
ूं ा ।”
ख
संसद् के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत)
हुआ हूं ई�र क� शपथ लेता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखग
ूं ा, म� भारत क� प्रभुता और अखंडता
अ�ुण्ण रखूंगा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र्
�नवर्हन करूंगा ।”]
4
“म�, अमुक, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश) (या भारत का
स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, 1[म� भारत क� प्रभत
ु ा
और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव
ू क
र् तथा अपनी परू �
योग्यता, �ान और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय या प�पात, अनरु ाग या द्वे ष
के �बना पालन करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क� मयार्दा बनाए रखग
ूं ा ।”
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 269
राज्य के मंत्री के रूप म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे
�कसी व्य�� या व्य��य� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य�
के सम्यक् �नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से
संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा ।”
2
[7
क
�कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने
वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, ------------------- जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) म� स्थान भरने
ई�र क� शपथ लेता हूं
के �लए अभ्यथ� के रूप म� नाम�नद� �शत हुआ हूं, �क म� �व�ध
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �न�ा रखूंगा, और म� भारत क�
प्रभुता और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा ।”
ख
�कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा प्ररूप 7 के स्थान पर (5-10-1963 से)
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 270
8
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का
प्ररूप :–
“म�, अमुक, जो ------------ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश)
ई�र क� शपथ लेता हूं
�नयु� हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�न�ा से प्र�त�ान करता हूं
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
[चौथी अनुसूची
1
[अनच्
ु छे द 4(1) और अनच्
ु छे द 80(2)]
राज्य सभा म� स्थान� का आबंटन
�नम्न�ल�खत सारणी के पहले स्तंभ म� �व�न�दर्� प्रत्येक राज्य या संघ राज्य�ेत्र
को उतने स्थान आबं�टत �कए जाएंगे िजतने उसके दस ू रे स्तंभ म� , यथािस्थ�त, उस
राज्य या उस संघ राज्य�ेत्र के सामने �व�न�दर्� ह� :
सारणी
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1965 से) चौथी अनुसच
ू ी के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) “18” के स्थान पर प्र�तस्था�पत।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) अन्तःस्था�पत ।
4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः
3 से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) “22” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
7. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से ) अंतःस्था�पत ।
8. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�व�� 4 से 29 को क्रमशः
प्र�व�� 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
9. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�व�� 4 (प्र�व�� 6 के रूप म�
पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
271
भारत का सं�वधान 272
1. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�व�� 4 से 29 को क्रमशः
प्र�व�� 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः
3 से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) “16” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
5. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “8. मद्रास” (“11”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 8 द्वारा (1-4-1960 से) “17” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
8. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “10. मैसूर” (“13”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
9. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 7 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) “11” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
11. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
12. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर
अंतःस्था�पत ।
13. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 41 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
14. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से
संबं�धत प्र�व�� 21** को हटाया गया ।
भारत का सं�वधान 273
1 1 2 3
[ [ [ [21.]]] नागाल�ड ................................................................................. 1]
[ [ [ [22.]]] �हमाचल प्रदे श..... ..................................................
4 5 6 3 3]
3 2 3
[ [ [23.]]] म�णपुर .................................................................. 1
3 2 3
[ [ [24.]]] �त्रपरु ा ............................................................... 1
3 2 3
[ [ [25.]]] मेघालय .............................................................. 1
7 3 2 3
[ [ [ [26.]]] �सिक्कम ............................................................ 1]
8 3 2 3
[ [ [ [27.]]] �मजोरम ............................................................. 1]
9 1 3 3
[ [ [ [28.]]] अरुणाचल प्रदे श ................................................. 1]
3 2 3
[ [ [29.]]] �दल्ल� ............................................................ 3
3 2 3
[ [ [30.]] 10[पडचेर� ु ु .......................................................... 1
34
11
[31. जम्मू-कश्मीर .......................................................... 4]
12
योग :– [233]]
1. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 6 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�व��य� को क्रमशः 3
से 31 तक क� प्र�व��य� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�व�� 22 से 31
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख म िविनिदर् रा य अिभप्रेत है परं तु” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” के थान पर
प्रित थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।
274
भारत का संिवधान 275
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथाि थित,
रा यपाल या राजप्रमुख” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का (1-
11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 276
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का लोप (1-
11-1956 से) िकया गया ।
2. अनुसूिचत क्षेत्र (भाग क रा य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसूिचत क्षेत्र (भाग ख रा य) आदे श, 1950 (सं.आ.
26), अनुसूिचत क्षेत्र (िहमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसूिचत क्षेत्र (िबहार, गुजरात, म य
प्रदे श और उड़ीसा रा य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे िखए ।
3. मद्रास अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1955
(सं.आ. 50) दे िखए ।
4. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 277
भाग घ
अनस
ु च
ू ी का संशोधन
1. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
छठी अनुसूची
[अनु छे द 244(2) और अनु छे द 275(1)]
1
[असम, मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम रा य ] के जनजाित क्षेत्र के प्रशासन
के बारे म उपबंध
1. वशासी िजले और वशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंध के अधीन रहते
2
1. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 1 म उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत कर संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस उप-पैरा की कोई बात, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले को (7-9-2003 से) लागू नहीं होगी ।”।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "भाग क" के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) "भाग 1 और भाग 2" के थान
पर प्रित थािपत ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
278
भारत का संिवधान 279
परं तु रा यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के
अधीन कोई आदे श इस अनुसच
ू ी के पैरा 14 के उप-पैरा (1) के अधीन िनयक्त
ु आयोग के
प्रितवेदन पर िवचार करने के प ात ् ही करे गा, अ यथा नहीं :
1
परं तु यह और िक रा यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िकए गए आदे श म ऐसे
आनष
ु ंिगक और पािरणािमक उपबंध (िजनके अंतगर्त पैरा 20 का और उक्त सारणी के
िकसी भाग की िकसी मद का कोई संशोधन है ) अंतिवर् हो सकगे जो रा यपाल को उस
आदे श के उपबंध को प्रभावी करने के िलए आव यक प्रतीत ह ।
2-3-4
2. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद का गठन –5[(1) प्र येक वशासी
िजले के िलए एक िजला पिरष होगी जो तीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी
िजनम से चार से अनिधक यिक्त रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे और शेष
वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकए जाएंगे ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के िलए
पैरा 2 म उप-पैरा (1) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह िक बोडोलड प्रादे िशक पिरष िछयालीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी िजनम से
चालीस सद य को वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकया जाएगा, िजनम से तीस अनुसूिचत
जनजाितय के िलए, पांच गैर जनजातीय समुदाय के िलए, पांच सभी समुदाय के िलए आरिक्षत ह गे तथा शेष
छह रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे िजनके अिधकार और िवशेषािधकार, िजनके अंतगर्त मत दे ने के
अिधकार भी ह, वही ह गे जो अ य सद य के ह, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के उन समुदाय म से, िजनका
प्रितिनिध व नहीं है , कम से कम दो मिहलाएं ह गी :” ।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 म उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत परं तक
ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु उ री कछार पहाड़ी िजले के िलए गिठत िजला पिरष , उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष कहलाएगी
और काबीर् आंगलांग िजले के िलए गिठत िजला पिरष , काबीर् आंगलांग वशासी पिरष कहलाएगी ।”;
.
4 संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 के उप-पैरा (3) म पर तक
ु के प ात ् िन निलिखत परं तक ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह और िक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए गिठत िजला पिरष बोडोलड प्रादे िशक पिरष
कहलाएगी ।” ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) उप-पैरा (1) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 280
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "ऐसी पिरषद " के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 281
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 282
परं तु जब तक िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िनयम
नहीं बनाए जाते ह तब तक रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (6) के अधीन बनाए गए
िनयम, प्र येक ऐसी पिरष के िलए िनवार्चन , उसके अिधकािरय और कमर्चािरय तथा उसकी
प्रिक्रया और उसके कायर् संचालन के संबंध म प्रभावी ह गे ।
1
* * * *
2-3-4
3. िविध बनाने की िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद की शिक्त – (1) वशासी प्रदे श की
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) िद्वतीय पर तुक का लोप िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 3
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) िन निलिखत प से
प्रित थािपत हो सके, अथार्त ् :--
“(3) पैरा 3क के उप-पैरा (2) या पैरा 3ख के उप-पैरा (2) म जैसा अ यथा उपबंिधत है , उसके िसवाय
इस पैरा या पैरा 3क के उप-पैरा (1) या पैरा 3ख के उप-पैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के
समक्ष तुर त प्र तत
ु की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक प्रभावी नहीं ह गी ।”।
“3क. उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और काबीर् आंगलांग वशासी पिरष की िविध बनाने की
अितिरक्त शिक्तयां--(1) पैरा 3 के उपबंध पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और
काबीर् आंगलांग वशासी पिरष को, संबंिधत िजल के भीतर िन निलिखत की बाबत िविधयां बनाने की शिक्त
होगी, अथार्त ् :--
(क) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, उद्योग ;
(ग) पशुधन का पिररक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग का िनवारण, पशु िचिक सा
प्रिशक्षण और यवसाय ; कांजी हाउस ;
(ङ) कृिष िजसके अंतगर्त कृिष िशक्षा और अनुसंधान, नाशक जीव से संरक्षण और पादप रोग का
िनवारण है ;
(च) म य उद्योग ;
(छ) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 56 के उपबंध के अधीन रहते हुए, जल, अथार्त ्, जल प्रदाय,
भारत का संिवधान 283
प्रादे िशक पिरष को ऐसे प्रदे श के भीतर के सभी क्षेत्र के संबंध म और वशासी िजले
उपबंध के अधीन रहते हुए मादक िलकर, अफीम और यु प न ; (xiii) िसंचाई ; (xiv) म और रोजगार ; (xv)
भूिम और राज व ; (xvi) पु तकालय सेवाएं (रा य सरकार द्वारा िव पोिषत और िनयंित्रत) ; (xvii) लाटरी (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 40 के उपबंध के अधीन रहते हुए), ना यशाला, ना य प्रदशर्न और िसनेमा (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 60 के उपबंध के अधीन रहते हुए) ; (xviii) बाजार और मेले; (xix) नगर िनगम,
सुधार यास, िजला बोडर् और अ य थानीय प्रािधकारी ; (xx) रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत संग्रहालय और
पुरात व िवज्ञान सं थान, संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके रा ीय मह व के घोिषत िकए गए
प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न, प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ;
(xxi) पंचायत और ग्रामीण िवकास ; (xxii) योजना और िवकास ; (xxiii) मुद्रण और लेखन सामग्री ; (xxiv) लोक
वा य इंजीिनयरी ; (xxv) लोक िनमार्ण िवभाग; (xxvi) प्रचार और लोक संपकर्; (xxvii) ज म और मृ यु का
रिज ट्रीकरण ; (xxviii) सहायता और पुनवार्स ; (xxix) रे शम उ पादन ; (xxx) सातवीं अऩुसूची की सूची 1 की
प्रिवि7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, लघु, कुटीर और ग्रामीण उद्योग ; (xxxi) समाज क याण
; (xxxii) मद
ृ ा संरक्षण ; (xxxiii) खेलकूद और युवा क याण ; (xxxiv) सांिख्यकी ; (xxxv) पयर्टन ; (xxxvi)
पिरवहन (सड़क, पुल, फेरी और अ य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची की सूची 1 म िविनिदर् नहीं ह,
नगरपािलका ट्राम, र जम
ु ागर्, अ तदशीय जलमाग के संबंध म सातवीं अनुसूची की सूची 1 और सूची 3 के उपबंध
के अधीन रहते हुए, अ तदशीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नोिदत यान से िभ न यान) ; (xxxvii) रा य
सरकार द्वारा िनयंित्रत और िव पोिषत जनजाित अनस
ु ंधान सं थान ; (xxxviii) शहरी िवकास-नगर और ग्रामीण
योजना) ; (xxxix) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 50 के उपबंध के अधीन रहते हुए बाट और माप ;
और (xl) मैदानी जनजाितय और िपछड़े वग का क याण :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात, --
(क) इस अिधिनयम के प्रारं भ की तारीख पर िकसी नागिरक के उसकी भूिम के संबंध म िवद्यमान
अिधकार और िवशेषािधकार को समा या उपांतिरत नहीं करे गी ; और
(ख) िकसी नागिरक को िवरासत, आबंटन, यव थापन के प म या अंतरण की िकसी अ य रीित
से भूिम अिजर्त करने से अनुज्ञात नहीं करे गी यिद ऐसा नागिरक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के भीतर भूिम
के ऐसे अजर्न के िलए अ यथा पात्र है ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां, जहां तक उनका संबध
ं सातवीं अनुसूची
की सूची 3 म िविनिदर् िवषय से है , रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत की जाएंगी जो उ ह रा पित के िवचार के
िलए आरिक्षत रखेगा ।
(3) जब कोई िविध रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रख ली जाती है , तब रा पित घोिषत करे गा िक वह
उक्त िविध पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक लेता है :
परं तु रा पित रा यपाल को यह संदेश दे सकेगा िक वह िविध को, बोडोलड प्रादे िशक पिरष को ऐसे संदेश के
साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे िक उक्त पिरष िविध या उसके िक हीं िविनिदर् उपबंध पर पुनिवर्चार करे
और िविश तया, िक हीं ऐसे संशोधन को पुरः थािपत करने की वांछनीयता पर िवचार करे िजनकी उसने अपने
संदेश म िसफािरश की है और जब िविध इस प्रकार लौटा दी जाती है तब उक्त पिरष , ऐसे संदेश की प्राि की
तारीख से छह मास की अविध के भीतर ऐसी िविध पर तदनुसार िवचार करे गी और यिद िविध उक्त पिरष द्वारा,
संशोधन सिहत या उसके िबना, िफर से पािरत कर दी जाती है तो उसे रा पित के समक्ष उसके िवचार के िलए
िफर से प्र तुत िकया जाएगा ।”।
भारत का संिवधान 285
की िजला पिरष को ऐसे क्षेत्र को छोड़कर जो उस िजले के भीतर की प्रादे िशक पिरषद
के, यिद कोई ह , प्रािधकार के अधीन ह, उस िजले के भीतर के अ य सभी क्षेत्र के
संबंध म िन निलिखत िवषय के िलए िविध बनाने की शिक्त होगी, अथार्त ् :–
(क) िकसी आरिक्षत वन की भूिम से िभ न अ य भूिम का, कृिष या
चराई के प्रयोजन के िलए अथवा िनवास के या कृिष से िभ न अ य प्रयोजन के
िलए अथवा िकसी ऐसे अ य प्रयोजन के िलए िजससे िकसी ग्राम या नगर के
िनवािसय के िहत की अिभविृ द्ध संभा य है , आंबटन, अिधभोग या उपयोग अथवा
अलग रखा जाना :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात 1[संबंिधत रा य की सरकार को] अिनवायर्
अजर्न प्रािधकृत करने वाली त समय प्रव ृ िविध के अनुसार िकसी भूिम का, चाहे
वह अिधभोग म हो या नहीं, लोक प्रयोजन के िलए अिनवायर् अजर्न करने से
िनवािरत नहीं करे गी ;
(ख) िकसी ऐसे वन का प्रबंध जो आरिक्षत वन नहीं है ;
(ग) कृिष के प्रयोजन के िलए िकसी नहर या जलसरणी का उपयोग ;
(घ) झम ू की पद्धित का या पिरवतीर् खेती की अ य पद्धितय का
िविनयमन ;
(ङ) ग्राम या नगर सिमितय या पिरषद की थापना और उनकी शिक्तयां
;
(च) ग्राम या नगर प्रशासन से संबंिधत कोई अ य िवषय िजसके अंतगर्त
ग्राम या नगर पुिलस और लोक वा य और व छता है ;
(छ) प्रमख
ु या मिु खय की िनयिु क्त या उ रािधकार ;
(ज) संपि की िवरासत ;
2
[(झ) िववाह और िववाह-िव छे द ;]
(ञ) सामािजक िढ़यां ।
(2) इस पैरा म, “आरिक्षत वन” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है जो असम वन िविनयम,
1891 के अधीन या प्र गत क्षेत्र म त समय प्रव ृ िकसी अ य िविध के अधीन आरिक्षत
वन है ।
(3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "खंड झ" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 286
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 4
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (5) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(6) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परं तुक के अधीन गिठत बोडोलड
प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम के" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 287
करने के प ात ्] अिधसूचना द्वारा, इस िनिम िनयत करे , यह पैरा ऐसे वशासी िजले या
वशासी प्रदे श के संबंध म, जो उस अिधसूचना म िविनिदर् िकया जाए, इस प्रकार प्रभावी
होगा मानो –
(i) उप-पैरा (1) म, “जो ऐसे पक्षकार के बीच ह िजनम से सभी पक्षकार
ऐसे क्षेत्र के भीतर की अनुसूिचत जनजाितय के ह तथा जो उन वाद और मामल
से िभ न ह िजनको इस अनुसच ू ी के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते
ह,” श द के थान पर, “जो इस अनुसूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) म िनिदर्
प्रकृित के ऐसे वाद और मामले नहीं ह िज ह रा यपाल इस िनिम िविनिदर् करे ,”
श द रख िदए गए ह ;
(ii) उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) का लोप कर िदया गया हो ;
(iii) उप-पैरा (4) म–
(क) “यथाि थित, प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष , रा यपाल के
पूवर् अनुमोदन से, िन निलिखत के िविनयमन के िलए िनयम बना सकेगी,
अथार्त ् :–” श द के थान पर, “रा यपाल िन निलिखत के िविनयमन के
िलए िनयम बना सकेगा, अथार्त ् :–” श द रख िदए गए ह ; और
(ख) खंड (क) के थान पर, िन निलिखत खंड रख िदया गया हो,
अथार्त ् :–
“(क) ग्राम पिरषद और यायालय का गठन, इस पैरा के
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
1
[(4) रा पित द्वारा िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श के संबंध म पैरा 4 के
उप-पैरा (5) के अधीन िनयत तारीख को और से, उस िजले या प्रदे श को लागू होने म
इस पैरा की िकसी बात के बारे म यह नहीं समझा जाएगा िक वह िकसी िजला पिरष
या प्रादे िशक पिरष को या िजला पिरष द्वारा गिठत यायालय को इस पैरा के उप-पैरा
(1) म िनिदर् शिक्तय म से कोई शिक्त प्रदान करने के िलए रा यपाल को प्रािधकृत
करती है ।]
2
[6. प्राथिमक िवद्यालय, आिद थािपत करने की िजला पिरष की शिक्त – (1)
वशासी िजले की िजला पिरष िजले म प्राथिमक िवद्यालय , औषधालय , बाजार ,
3
[कांजी हाउस ,] फेरी, मीनक्षेत्र , सड़क , सड़क पिरवहन और जलमाग की थापना,
िनमार्ण और प्रबंध कर सकेगी तथा रा यपाल के पव
ू र् अनम
ु ोदन से, उनके िविनयमन और
िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी और, िविश तया, वह भाषा और वह रीित िविहत
कर सकेगी, िजससे िजले के प्राथिमक िवद्यालय म प्राथिमक िशक्षा दी जाएगी ।
7. िजला और प्रादे िशक िनिधयां – (1) प्र येक वशासी िजले के िलए एक िजला
िनिध और प्र येक वशासी प्रदे श के िलए एक प्रादे िशक िनिध गिठत की जाएगी िजसम
क्रमशः उस िजले की िजला पिरष द्वारा और उस प्रदे श की प्रादे िशक पिरष द्वारा इस
संिवधान के उपबंध के अनसु ार, यथाि थित, उस िजले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र
ु म
म प्रा सभी धनरािशयां जमा की जाएंगी ।
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) पैरा 6 के थान पर प्रित थािपत ।
3. िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 4 द्वारा "कांजी हाउस" के थान पर प्रित थािपत
।
4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "यथाि थित, आसाम या मेघालय" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 290
[(2) रा यपाल, यथाि थित, िजला िनिध या प्रादे िशक िनिध के प्रबंध के िलए और
1
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) उप-पैरा (2) के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 291
(1) िकसी वशासी िजले के भीतर के िकसी क्षेत्र के संबंध म 6[रा य की सरकार] द्वारा
खिनज के पव ू क्षण या िन कषर्ण के प्रयोजन के िलए दी गई अनज्ञ
ु ि य या पट्ट से
प्र येक वषर् प्रोद्भत
ू होने वाले वािम व का ऐसा अंश, िजला पिरष को िदया जाएगा जो
उस 3[रा य की सरकार] और ऐसे िजले की िजला पिरष के बीच करार पाया जाए ।
(2) यिद िजला पिरष को िदए जाने वाले ऐसे वािम व के अंश के बारे म कोई
िववाद उ प न होता है तो वह रा यपाल को अवधारण के िलए िनदिशत िकया जाएगा
और रा यपाल द्वारा अपने िववेक के अनुसार अवधािरत रकम इस पैरा के उप-पैरा (1) के
अधीन िजला पिरष को संदेय रकम समझी जाएगी और रा यपाल का िविन य अंितम
होगा ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(i) द्वारा (16-9-2016 से) "और" श द का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(iii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
4. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत
उप-पैरा अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला पिरष को िदया जाने वाला
वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1) के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन
िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर िकया जाएगा ।”।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 292
1
[(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला
पिरष को िदया जाने वाला वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1)
के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर्
की अविध के भीतर िदया जाएगा ।]
2
10. जनजाितय से िभ न यिक्तय की साहूकारी और यापार के िनयंत्रण के िलए
िविनयम बनाने की िजला पिरष की शिक्त – (1) वशासी िजले की िजला पिरष उस
िजले म िनवासी जनजाितय से िभ न यिक्तय की उस िजले के भीतर साहूकारी या
यापार के िविनयमन और िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी ।
(2) िविश तया और पूवग
र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, ऐसे
िविनयम–
(ख) साहूकार द्वारा प्रभािरत या वसूल िकए जाने वाले याज की अिधकतम
दर िविहत कर सकगे ;
(ग) साहूकार द्वारा लेखे रखे जाने का और िजला पिरषद द्वारा इस िनिम
िनयुक्त अिधकािरय द्वारा ऐसे लेखाओं के िनरीक्षण का उपबंध कर सकगे ;
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म संशोिधत िकया गया, यथा संशोिधत उप-पैरा (2) के प ात ् उप-पैरा (3) अंतः थािपत
िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया :--
(क) शीषर्क म से “जनजाितय से िभ न यिक्तय की” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ख) उप-पैरा (1) म से “जनजाितय से िभ न” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ग) उप-पैरा (2) म, खंड (घ) के थान पर, िन निलिखत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(घ) िविहत कर सकगे िक कोई यिक्त, जो िजले म िनवासी है िजला पिरष द्वारा इस िनिम दी गई
अनुज्ञि के अधीन कोई थोक या फुटकर यापार करे गा अ यथा नहीं ।”।
भारत का संिवधान 293
िजला पिरष की कुल सद य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पािरत नहीं
कर िदए जाते ह :
परं तु यह और िक ऐसे िक हीं िविनयम के अधीन िकसी ऐसे साहूकार या यापारी
को जो ऐसे िविनयम के बनाए जाने के पहले से उस िजले के भीतर कारबार करता रहा
है , अनुज्ञि दे ने से इंकार करना सक्षम नहीं होगा ।
1
[(3) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी िविनयम रा यपाल के समक्ष तुर त
प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक उनका
कोई प्रभाव नहीं होगा ।]
(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के
अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।
11. अनुसूची के अधीन बनाई गई िविधय , िनयम और िविनयम का प्रकाशन –
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस अनस
ु च
ू ी के अधीन बनाई गई सभी िविधयां,
िनयम और िविनयम रा य के राजपत्र म तुर त प्रकािशत िकए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन
पर िविध का बल रखगे ।
2-3
12. 4[असम रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और असम
रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना] –(1) इस संिवधान म िकसी बात के
होते हुए भी, –
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजसम उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत अंतः थािपत
िकया गया :--
"(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष
को लागू नहीं होगी ।"।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनस
ु ूची के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख
म ऐसे िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “ इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनुसूची के पैरा 3क या पैरा 3ख म ऐसे
िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से)
शीषर्क के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 294
(2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िदया गया कोई िनदे श इस प्रकार िदया
जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
3
[12क. मेघालय रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और
मेघालय रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना – इस संिवधान म िकसी
बात के होते हुए भी –
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "रा य का िवधान-मंडल" के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंतः थािपत ।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 12क के थान पर पैरा 12क और पैरा 12ख प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 295
1. पैरा 12कक संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत िकया
गया । त प ात ् संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-
1988 से) पैरा 12कक और 12ख के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 296
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम" श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 14 आसाम रा य म
लागू होने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 14 के उप-पैरा (2) म, “रा यपाल की उससे संबंिधत िसफािरश के साथ” श द का लोप िकया जाएगा ।"।
भारत का संिवधान 298
संबंिधत िसफािरश के साथ, उस पर 1[रा य की सरकार] द्वारा की जाने के िलए प्र तािवत
कारर् वाई के संबंध म प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखेगा ।
(3) रा यपाल रा य की सरकार के कायर् का अपने मंित्रय म आबंटन करते
समय अपने मंित्रय म से एक मंत्री को रा य के वशासी िजल और वशासी प्रदे श के
क याण का िवशेषतया भारसाधक बना सकेगा ।
2
15. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद के काय और संक प का िनप्रभाव या
िनलंिबत िकया जाना – (1) यिद रा यपाल का िकसी समय यह समाधान हो जाता है िक
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष के िकसी कायर् या संक प से भारत की सुरक्षा का
संकटाप न होना संभा य है 3[या लोक यव था पर प्रितकूल प्रभाव पड़ना संभा य है ] तो
वह ऐसे कायर् या संक प को िनप्रभाव या िनलंिबत कर सकेगा और ऐसी कारर् वाई (िजसके
अंतगर्त पिरष का िनलंबन और पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या
िक हीं शिक्तय को अपने हाथ म ले लेना है ) कर सकेगा जो वह ऐसे कायर् को िकए जाने
या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संक प को प्रभावी िकए जाने का िनवारण करने
के िलए आव यक समझे ।
(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िकया गया आदे श, उसके
िलए जो कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष यथासंभवशीघ्र रखा
जाएगा और यिद वह आदे श, रा य के िवधान-मंडल द्वारा प्रितसं त नहीं कर िदया जाता है
तो वह उस तारीख से, िजसको वह इस प्रकार िकया गया था, बारह मास की अविध तक
प्रव ृ बना रहे गा :
पर तु यिद और िजतनी बार, ऐसे आदे श को प्रव ृ बनाए रखने का अनम ु ोदन
करने वाला संक प रा य के िवधान-मंडल द्वारा पािरत कर िदया जाता है तो और उतनी
बार वह आदे श, यिद रा यपाल द्वारा र नहीं कर िदया जाता है तो, उस तारीख से,
िजसको वह इस पैरा के अधीन अ यथा प्रवतर्न म नहीं रहता, बारह मास की और अविध
तक प्रव ृ बना रहे गा ।
4
16. िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन – 1
[(1) रा यपाल, इस
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 15 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया है :--
"(क) आरं िभक भाग म, “रा य के िवधान-मंडल द्वारा” श द के थान पर, “रा यपाल द्वारा” श द रखे जाएंगे
;
(ख) पर तुक का लोप िकया जाएगा ।"।
3. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 16
भारत का संिवधान 299
अनुसूची के पैरा 14 के अधीन िनयुक्त आयोग की िसफािरश पर, लोक अिधसूचना द्वारा,
िकसी िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन कर सकेगा, और–
उपबंध के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह, यथाि थित, िजला पिरष या
प्रादे िशक पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या कोई कृ य या शिक्तयां, लोक
अिधसूचना द्वारा, छह मास से अनिधक अविध के िलए अपने हाथ म ले सकेगा और यह
घोषणा कर सकेगा िक ऐसे कृ य या शिक्तयां उक्त अविध के दौरान ऐसे यिक्त या प्रािधकारी
द्वारा प्रयोक्त य ह गी िजसे वह इस िनिम िविनिदर् करे :
पर तु रा यपाल आरं िभक आदे श का प्रवतर्न, अितिरक्त आदे श या आदे श द्वारा,
एक बार म छह मास से अनिधक अविध के िलए बढ़ा सकेगा ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन िकया गया प्र येक आदे श, उसके िलए जो
कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और वह आदे श उस
तारीख से िजसको रा य िवधान-मंडल उस आदे श के िकए जाने के प ात ् प्रथम बार
बैठता है , तीस िदन की समाि पर प्रवतर्न म नहीं रहे गा यिद उस अविध की समाि से
पहले रा य िवधान-मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर िदया जाता है ।]
1
17. वशासी िजल म िनवार्चन-क्षेत्र के बनाने म ऐसे िजल से क्षेत्र का अपवजर्न –
रा यपाल, 2[असम या मेघालय 3[या ित्रपरु ा 4[या िमजोरम]] की िवधान सभा] के िनवार्चन
के प्रयोजन के िलए, आदे श द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा िक, 5[यथाि थित, असम या
मेघालय 3[या ित्रपुरा 4[या िमजोरम]] रा य म] िकसी वशासी िजले के भीतर का कोई क्षेत्र
ऐसे िकसी िजले के िलए िवधान सभा म आरिक्षत थान या थान को भरने के िलए
िकसी िनवार्चन-क्षेत्र का भाग नहीं होगा, िक तु िवधान सभा म इस प्रकार आरिक्षत न
िकए गए ऐसे थान या थान को भरने के िलए आदे श म िविनिदर् िनवार्चन-क्षेत्र का
भाग होगा ।
6
[18.* * * *]
7
19. संक्रमणकालीन उपबंध – (1) रा यपाल, इस संिवधान के प्रारं भ के प ात ्
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 17 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत पर तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस पैरा की कोई बात बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजला को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
5. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर अंतः थािपत ।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप िकया गया ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 19
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया गया अथार्त ् :--
भारत का संिवधान 301
यथासंभव शीघ्र, इस अनुसूची के अधीन रा य म प्र येक वशासी िजले के िलए िजला
पिरष के गठन के िलए कारर् वाई करे गा और जब तक िकसी वशासी िजले के िलए
िजला पिरष इस प्रकार गिठत नहीं की जाती है तब तक ऐसे िजले का प्रशासन
रा यपाल म िनिहत होगा और ऐसे िजले के भीतर के क्षेत्र के प्रशासन को इस अनुसूची
के पूवग
र् ामी उपबंध के थान पर िन निलिखत उपबंध लागू ह गे, अथार्त ् : –
(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (क) के अधीन िदया गया
कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी िविनयम
रा पित के समक्ष तुर त प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे
दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा ।
"(4) इस अिधिनयम के प्रारं भ के प ात ्, यथाशीघ्र आसाम म बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए एक
अंतिरम कायर्पालक पिरष , रा यपाल द्वारा बोडो आ दोलन के नेताओं म से, िजनके अंतगर्त समझौते के ज्ञापन के
ह ताक्षरकतार् भी ह, बनाई जाएगी और उसम उस क्षेत्र के गैर जनजातीय समुदाय को भी पयार् प्रितिनिध व िदया
जाएगा :
परं तु अ तिरम पिरष छह मास की अविध के िलए होगी िजसके दौरान पिरष का िनवार्चन कराने का
प्रयास िकया जाएगा ।
प ीकरण--इस उप-पैरा के प्रयोजन के िलए, “समझौते का ज्ञापन” पद से भारत सरकार, आसाम सरकार
और बोडो िलबरे शन टाइगसर् के बीच 10 फरवरी, 2003 को ह ताक्षिरत ज्ञापन अिभप्रेत है ।"।
भारत का संिवधान 302
1
[20. जनजाित क्षेत्र – (1) नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2, 2[भाग 2क]
और भाग 3 म िविनिदर् क्षेत्र क्रमशः असम रा य, मेघालय रा य, 2[ित्रपुरा रा य] और
िमजोरम 3[रा य] के जनजाित क्षेत्र ह गे ।
पर तु इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 के उप-पैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4,
पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के उप-पैरा (2), उप-पैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ)
और उप-पैरा (4) तथा पैरा 10 के उप-पैरा (2) के खंड (घ) के प्रयोजन के िलए,
िशलांग नगरपािलका म समािव क्षेत्र के िकसी भाग के बारे म यह नहीं समझा जाएगा
िक वह 5[खासी पहाड़ी िजले] के भीतर है ।
2
[(3) नीचे दी गई सारणी के भाग 2क म “ित्रपरु ा जनजाित क्षेत्र िजला” के प्रित
िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ित्रपुरा जनजाित क्षेत्र वशासी िजला पिरष
अिधिनयम, 1979 की पहली अनुसूची म िविनिदर् जनजाित क्षेत्र म समािव रा यक्षेत्र
के प्रित िनदश है ।]
सारणी
भाग 1
1. उ री कछार पहाड़ी िजला ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-
1-1972 से) पैरा 20 और 20क के थान पर प्रित थािपत । पैरा 21क को त प ात ् भारत संघ रा यक्षेत्र
(संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) प्रित थािपत िकया गया था ।
2. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) "संघ रा यक्षेत्र" के थान
पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्रित थािपत ।
5. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 303
1. आसाम सरकार द्वारा तारीख 14-10-1976 की अिधसूचना सं. टी.ए.डी./आर. 115/74/47 द्वारा "िमकीर पहाड़ी िजला"
के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत ।
3. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
5. संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) "िमजो
िजला" श द का लोप िकया गया ।
6. िमजोरम का राजपत्र 1972. तारीख 5 मई, 1972, िज द 1, भाग 2, प.ृ 17 म प्रकािशत िमजोरम िजला पिरष
(प्रकीणर् उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतः थािपत ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) क्रम सं0
2 और 3 तथा उनसे संबंिधत प्रिवि य के थान पर प्रित थािपत ।
.
8 संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) पैरा 20क
के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 304
(ख) िक हीं ऐसी िविधक कायर्वािहय म, िजनम िवद्यमान प्रादे िशक पिरष
एक पक्षकार है , िवद्यमान प्रादे िशक पिरष के थान पर त थानी नई िजला
पिरष का पक्षकार के प म रखा जाना ;
(घ) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष द्वारा बनाई गई और िविहत तारीख से ठीक
पहले प्रव ृिक हीं िविधय का, ऐसे अनुकूलन और उपांतरण के, चाहे वे िनरसन
के प म ह या संशोधन के प म, अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस
भारत का संिवधान 306
-- रा यपाल, इस अनस ु च
ू ी के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के उप-
पैरा (1) और उप-पैरा (7), पैरा 3 का उप-पैरा (3), पैरा 4 का उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा
6 का उप-पैरा (1), पैरा 7 का उप-पैरा (2), पैरा 9 का उप-पैरा (3), पैरा 14 का उप-पैरा
(1), पैरा 15 का उप-पैरा (1) और पैरा 16 का उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के अधीन
अपने कृ य के िनवर्हन म, मंित्र-पिरष से और यिद वह आव यक समझे तो संबंिधत
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष से परामशर् करने के प ात ्, ऐसी कारर् वाई करे गा, जो
वह विववेकानुसार आव यक समझे ।]
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) आसाम म
लागू होने के िलए पैरा 20खक अंतः थािपत िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) ित्रपुरा
और िमजोरम रा य को लागू करने म, पैरा 20ख के प ात ् िन निलिखत पैरा अंतः थािपत िकया गया ।
भारत का संिवधान 307
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
308
भारत का संिवधान 309
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) "पहली अनूसूची
या भाग क या भाग ख म िविनिदर् " श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रिवि 33 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 311
1. संिवधान (ब ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1973 की धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) "िद ली िव िवद्यालय और" के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 312
64. भारत सरकार द्वारा पूणतर् ः या भागतः िव पोिषत और संस द्वारा, िविध
द्वारा, रा ीय मह व की घोिषत वैज्ञािनक या तकनीकी िशक्षा सं थाएं ।
65. संघ के अिभकरण और सं थाएं जो–
(क) विृ क, यावसाियक या तकनीकी प्रिशक्षण के िलए ह िजसके अंतगर्त
पुिलस अिधकािरय का प्रिशक्षण है ; या
(ख) िवशेष अ ययन या अनुसंधान की अिभविृ द्ध के िलए ह ; या
(ग) अपराध के अ वेषण या पता चलाने म वैज्ञािनक या तकनीकी
सहायता के िलए ह ।
66. उ चतर िशक्षा या अनुसंधान सं थाओं म तथा वैज्ञािनक और तकनीकी
सं थाओं म मानक का सम वय और अवधारण ।
67. 1[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
[घोिषत] प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख तथा परु ात वीय थल और
1
अवशेष ।
68. भारतीय सवक्षण, भारतीय भू-वैज्ञािनक, वन पित िवज्ञान, प्राणी िवज्ञान और
मानव शा सवक्षण ; मौसम िवज्ञान संगठन ।
69. जनगणना ।
70. संघ लोक सेवाएं ; अिखल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग ।
71. संघ की पशन, अथार्त ् भारत सरकार द्वारा या भारत की संिचत िनिध म से
संदेय पशन ।
72. संस के िलए, रा य के िवधान-मंडल के िलए तथा रा पित और उपरा पित
के पद के िलए िनवार्चन; िनवार्चन आयोग ।
73. संस सद य के, रा य सभा के सभापित और उपसभापित के तथा लोक
सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष के वेतन और भ े ।
74. संस के प्र येक सदन की और प्र येक सदन के सद य और सिमितय की
शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मुिक्तयां; संस की सिमितय या संस द्वारा िनयुक्त
आयोग के समक्ष सा य दे ने या द तावेज पेश करने के िलए यिक्तय को हािजर कराना
।
75. रा पित और रा यपाल की उपलि धयां, भ े, िवशेषािधकार और अनप ु ि थित
छुट्टी के संबंध म अिधकार ; संघ के मंित्रय के वेतन और भ े ; िनयंत्रक-
महालेखापरीक्षक के वेतन, भ े और अनुपि थित छुट्टी के संबंध म अिधकार और सेवा की
अ य शत ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत" के थान पर (1-
11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 313
1. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 12 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 314
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 92 का
लोप िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतः थािपत ।
4. प्रिवि92ग संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (जो प्रव ृ नहीं हुई) अंतः थािपत की
गई थी उसका संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से)
लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 315
सचू ी 2 – रा य सच
ू ी
1. लोक यव था (िकं तु इसके अंतगर्त िसिवल शिक्त की सहायता के िलए
1
[नौसेना, सेना या वायु सेना या संघ के िकसी अ य सश बल का या संघ के िनयंत्रण
के अधीन िकसी अ य बल का या उसकी िकसी टुकड़ी या यूिनट का प्रयोग] नहीं है ) ।
2
[2. सच
ू ी 1 की प्रिवि 2क के उपबंध के अधीन रहते हुए पिु लस (िजसके
अंतगर्त रे ल और ग्राम पुिलस है )।]
3. 3*** उ च यायालय के अिधकारी और सेवक; भाटक और राज व यायालय
की प्रिक्रया ; उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय म ली जाने वाली फीस ।
4. कारागार, सध
ु ारालय, बौ टर् ल सं थाएं और उसी प्रकार की अ य सं थाएं और
उनम िन द्ध यिक्त ; कारागार और अ य सं थाओं के उपयोग के िलए अ य रा य से
ठहराव ।
5. थानीय शासन, अथार्त ् नगर िनगम , सुधार यास , िजला बोड , खनन-ब ती
प्रािधकािरय और थानीय वशासन या ग्राम प्रशासन के प्रयोजन के िलए अ य
थानीय प्रािधकािरय का गठन और शिक्तयां ।
6. लोक वा य और व छता ; अ पताल और औषधालय ।
7. भारत से बाहर के थान की तीथर्यात्राओं से िभ न तीथर्यात्राएं ।
8. मादक िलकर, अथार्त ् मादक िलकर का उ पादन, िविनमार्ण, क जा, पिरवहन,
क्रय और िवक्रय ।
9. िनःशक्त और िनयोजन के िलए अयोग्य यिक्तय की सहायता ।
10. शव गाड़ना और किब्र तान; शव-दाह और मशान ।
4
11* * * * *
12. रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत पु तकालय, संग्रहालय या वैसी ही अ य
सं थाएं; 5[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के 5[घोिषत]
िकए गए प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न प्राचीन और
ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा कितपय श द के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा प्रिवि 2 के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 11 का लोप िकया
गया ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत"
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 316
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 19 और 20 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 28 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 317
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 29 का लोप िकया गया
।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रिवि 36 का लोप िकया गया
।
भारत का संिवधान 318
45. भ-ू राज व िजसके अंतगर्त राज व का िनधार्रण और संग्रहण, भ-ू अिभलेख रखना,
राज व के प्रयोजन के िलए और अिधकार के अिभलेख के िलए सवक्षण और राज व का
अ य संक्रामण है ।
46. कृिष आय पर कर ।
47. कृिष भूिम के उ रािधकार के संबंध म शु क ।
48. कृिष भूिम के संबंध म संपदा-शु क ।
49. भूिम और भवन पर कर ।
50. संस द्वारा, िविध द्वारा, खिनज िवकास के संबंध म अिधरोिपत िनबर् धन के
अधीन रहते हुए, खिनज संबंधी अिधकार पर कर ।
51. रा य म िविनिमर्त या उ पािदत िन निलिखत माल पर उ पाद-शु क और
भारत म अ यत्र िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही माल पर उसी दर या िन नतर दर से
प्रितशु क–
(क) मानवीय उपभोग के िलए ऐ कोहाली िलकर ;
(ख) अफीम, इंिडयन हप और अ य वापक ओषिधयां तथा वापक
पदाथर्,
िक तु िजसके अंतगर्त ऐसी ओषिधयां और प्रसाधन िनिमर्ितयां नहीं ह िजनम ऐ कोहाल
या इस प्रिवि के उपपैरा (ख) का कोई पदाथर् अंतिवर् है ।
1
[52. * * * * *]
53. िवद्युत के उपभोग या िवक्रय पर कर ।
2
[54. अपिर कृत पैट्रोिलयम, उ च गित डीजल, मोटर ि पिरट (सामा य प से
पेट्रोल के प म ज्ञात), प्राकृितक गैस, िवमानन टबार्इन ईंधन और मानवीय उपभोग के
िलए ए कोहाली िलकर के िवक्रय पर कर िकं तु इसके अंतगर्त ऐसे माल का
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनक्र ु म म िवक्रय या अ तररा ीय यापार या
वािण य के दौरान िवक्रय नहीं आता है ।]
3
[55. * * * * *]
56. सड़क या अ तदशीय जलमाग द्वारा ले जाए जाने वाले माल और याित्रय पर
कर ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 52 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) प्रित थािपत तथा पुनः संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-2-1977 से) अंतः थािपत और संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 319
िकसी नगरपािलका या िकसी प्रादे िशक पिरष या िकसी िजला पिरष द्वारा उद्गहीत
ृ और
संगह
ृ ीत िकया जाए ।]
63. टांप-शु क की दर के संबंध म सच ू ी 1 के उपबंध म िविनिदर् द तावेज
से िभ न द तावेज के संबंध म टांप-शु क की दर ।
64. इस सच
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध
।
65. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सच
ू ी के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
66. इस सचू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
सच
ू ी 3 – समवतीर् सच
ू ी
1. दं ड िविध िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
ू ी 1 या सच
भारतीय दं ड संिहता के अंतगर्त आते ह, िक तु इसके अंतगर्त सच ू ी 2 म
िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध और िसिवल
शिक्त की सहायता के िलए नौसेना, सेना या वायुसेना अथवा संघ के िकसी अ य सश
बल का प्रयोग नहीं है ।
2. दं ड प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
दं ड प्रिक्रया संिहता के अंतगर्त ह ।
3. िकसी रा य की सुरक्षा, लोक यव था बनाए रखने या समुदाय के िलए
आव यक प्रदाय और सेवाओं को बनाए रखने संबध ं ी कारण से िनवारक िनरोध, इस
प्रकार िनरोध म रखे गए यिक्त ।
4. बंिदय , अिभयुक्त यिक्तय और इस सूची की प्रिवि 3 म िविनिदर् कारण से
िनवारक िनरोध म रखे गए यिक्तय का एक रा य से दस ू रे रा य को हटाया जाना ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iv) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 320
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 321
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (तीसरा संशोधन) अिधिनयम, 1954 की धारा 2 द्वारा (22-2-1955 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 322
1
[33क. बाट और माप, िजनके अंतगर्त मानक का िनयत िकया जाना नहीं
है ।]
34. कीमत िनयंत्रण ।
35. यंत्र नोिदत यान िजसके अंतगर्त वे िसद्धा त ह िजनके अनुसार ऐसे यान पर
कर उद्गहीत
ृ िकया जाना है ।
36. कारखाने ।
37. बायलर ।
38. िवद्युत ।
39. समाचारपत्र, पु तक और मुद्रणालय ।
40. 2[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
2
[घोिषत] पुरात वीय थल और अवशेष से िभ न परु ात वीय थल और अवशेष ।
41. ऐसी संपि की (िजसके अंतगर्त कृिष भूिम है ) अिभरक्षा, प्रबंध और ययन
जो िविध द्वारा िन क्रांत संपि घोिषत की जाए ।
3
[42. संपि का अजर्न और अिधग्रहण ।]
43. िकसी रा य म, उस रा य से बाहर उद्भत ू कर से संबंिधत दाव और अ य
लोक मांग की वसलू ी िजनके अंतगर्त भ-ू राज व की बकाया और ऐसी बकाया के प म
वसूल की जा सकने वाली रािशयां ह ।
44. याियक टांप के द्वारा संगह
ृ ीत शु क या फीस से िभ न टांप-शु क,
िक तु इसके अंतगर्त टांप-शु क की दर नहीं ह ।
45. सूची 2 या सूची 3 म िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय़ के प्रयोजन के
िलए जांच और आंकड़े ।
46. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सूची के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
47. इस सच
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन
घोिषत" के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
आठवीं अनुसच
ू ी
[अनु छे द 344(1) और अनु छे द 351]
भाषाएं
1. असिमया ।
2. बंगला ।
1
[3. बोडो ।
4. डोगरी ।]
2
[5.] गज
ु राती ।
3
[6.] िह दी ।
3
[7.] क नड ।
3
[8.] क मीरी ।
4 3
[ [9.] क कणी ।]
1
[10. मैिथली ।]
5
[11.] मलयालम ।
4 6
[ [12.] मिणपुरी ।]
6
[13.] मराठी ।
4 6
[ [14.] नेपाली ।]
6
[15.] 7[ओिडया]
6
[16.] पंजाबी ।
6
[17.] सं कृत ।
1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 3 को प्रिवि 5 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 4 से 7 को प्रिवि 6 से
प्रिवि 9 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (इकह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (31-8-1992 से) अ तः थािपत ।
5. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 8 को प्रिवि 11 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
6. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 9 से प्रिवि 14 को प्रिवि 12 से प्रिवि
17 के प म पुनःसंख्यांिकत (7-1-2004 से) िकया गया ।
7. संिवधान (िछयानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा “उिड़या” के थान पर (23-9-2011 से)
प्रित थािपत।
323
भारत का संिवधान 324
1
[18. संथाली ।]
2 3
[ [19.] िसंधी ।]
4
[20.] तिमल ।
5
[21.] तेलग
ु ू ।
5
[22.] उदर् ू ।
1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (इक्कीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1967 की धारा 2 द्वारा (10-4-1967 से) जोड़ा गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 15 को प्रिवि 19 के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 16 से प्रिवि 18 को
प्रिवि 20 से प्रिवि 22 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
[नवीं अनस
1
ु च
ू ी
[अनु छे द 31ख]
1. िबहार भूिम सुधार अिधिनयम, 1950 (1950 का िबहार अिधिनयम 30) ।
2. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम अिधिनयम, 1948 (1948 का मुंबई अिधिनयम
67)।
3. मुंबई मािलकी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई अिधिनयम
61)।
4. मुंबई तालुकदारी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 62)।
5. पंच महल मेहवासी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 63)।
6. मुंबई खेती उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का मुंबई अिधिनयम 6)।
7. मुंबई परगना और कुलकणीर् वतन उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का
मुंबई अिधिनयम 60)।
8. म य प्रदे श सांपि क अिधकार (संपदा, महल, अ य संक्रांत भूिम) उ सादन
अिधिनयम, 1950 (म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 1 सन ् 1951)।
9. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम, 1948
(1948 का मद्रास अिधिनयम 26)।
10. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) संशोधन अिधिनयम,
1950 (1950 का मद्रास अिधिनयम 1)।
11. 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम- यव था अिधिनयम
(उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1, 1951)।
12. है दराबाद (जागीर उ सादन) िविनयम, 1358फ (1358 फसली का सं0 69)।
13. है दराबाद जागीर (पिरवतर्न) िविनयम, 1359फ (1359 फसली का सं0 25)।
2
[14. िबहार िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1950 (1950
का िबहार अिधिनयम 38) ।
15. संयुक्त प्रांत के शरणािथर्य को बसाने के िलए भूिम प्रा करने का ऐक्ट, 1948
ई0 (संयुक्त प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948) ।
16. िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1948 (1948 का
अिधिनयम 60) ।
17. बीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1950 (1950 का अिधिनयम 47) की धारा 42
द्वारा य़था अंतः थािपत बीमा अिधिनयम, 1938 (1938 का अिधिनयम 4) की धारा
52क से धारा 52छ ।
18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अिधिनयम, 1951 (1951 का अिधिनयम 51) ।
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 14 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 5 द्वारा (27-4-1955 से) जोड़ा गया ।
325
भारत का संिवधान 326
1. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 3 द्वारा (20-6-1964 से) जोड़ा गया ।
भारत का संिवधान 327
52. उड़ीसा भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अिधिनयम 16) ।
53. उड़ीसा िवलीन रा यक्षेत्र (ग्राम-पद उ सादन) अिधिनयम, 1963 (1963 का
उड़ीसा अिधिनयम 10) ।
54. पंजाब भू-धिृ त सुरक्षा अिधिनयम, 1953 (1953 का पंजाब अिधिनयम
10) ।
55. राज थान अिभधिृ त अिधिनयम, 1955 (1955 का राज थान अिधिनयम
3) ।
56. राज थान जमींदारी और िब वेदारी उ सादन अिधिनयम, 1959 (1959 का
राज थान अिधिनयम 8) ।
57. कुमायंू तथा उ राखंड जमींदारी िवनाश तथा भिू म- यव था अिधिनयम,
1960 (उ र प्रदे श अिधिनयम 17, 1960) ।
58. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण अिधिनयम, 1960 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 1, 1961)।
59. पि मी बंगाल संपदा अजर्न अिधिनयम, 1953 (1954 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 1) ।
60. पि मी बंगाल भूिम सुधार अिधिनयम, 1955 (1956 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 10) ।
61. िद ली भिू म सध ु ार अिधिनयम, 1954 (1954 का िद ली अिधिनयम 8) ।
62. िद ली भिू म जोत (अिधकतम सीमा) अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 24) ।
63. मिणपुर भू-राज व और भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 33) ।
64. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 43) ।
1
[65. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
35) ।
66. केरल भिू म सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का केरल अिधिनयम
25) ।]
2
[67. आंध्र प्रदे श भूिम सुधार (अिधकतम कृिष जोत सीमा) अिधिनयम, 1973
(1973 का आंध्र प्रदे श अिधिनयम 1) ।
68. िबहार भिू म सध ु ार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973 का िबहार अिधिनयम 1) ।
1. संिवधान (उनतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (9-6-1972 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (च तीस संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (7-9-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 329
69. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का िबहार अिधिनयम 9) ।
70. िबहार भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का िबहार
अिधिनयम सं0 5) ।
71. गुजरात अिधकतम कृिष भूिम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1974
का गुजरात अिधिनयम 2) ।
72. हिरयाणा भूिम जोत की अिधकतम सीमा अिधिनयम, 1972 (1972 का
हिरयाणा अिधिनयम 26) ।
73. िहमाचल प्रदे श अिधकतम भूिम जोत सीमा अिधिनयम, 1972 (1973 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 19) ।
74. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का केरल
अिधिनयम 17) ।
75. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (म य
प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 12 सन ् 1974) ।
76. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (िद्वतीय संशोधन) अिधिनयम, 1972
(म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 13 सन ् 1974) ।
77. मैसूर भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1974 का कनार्टक
अिधिनयम 1) ।
78. पंजाब भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1973 का पंजाब अिधिनयम 10) ।
79. राज थान कृिष जोत पर अिधकतम सीमा अिधरोपण अिधिनयम, 1973
(1973 का राज थान अिधिनयम 11)।
80. गड ु लरू ज मम ् संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम,
1969 (1969 का तिमलनाड़ु अिधिनयम 24)।
81. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 12) ।
82. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अिधिनयम, 1964 (1964 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 22) ।
83. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 33) ।
84. मंब
ु ई अिभधिृ त और कृिष भिू म (गजु रात संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973
का गुजरात अिधिनयम 5) ।
85. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का उड़ीसा
अिधिनयम 9) ।
86. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सधु ार (दसू रा संशोधन) अिधिनयम, 1974
(1974 का ित्रपुरा अिधिनयम 7) ।]
भारत का संिवधान 330
1-2
[87. * * * * *]
88. उद्योग (िवकास और िविनयमन) अिधिनयम, 1951 (1951 का के द्रीय
अिधिनयम 65) ।
89. थावर संपि अिधग्रहण और अजर्न अिधिनयम, 1952 (1952 का के द्रीय
अिधिनयम 30) ।
90. खान और खिनज (िविनयमन और िवकास) अिधिनयम, 1957 (1957 का
के द्रीय अिधिनयम 67) ।
91. एकािधकार तथा अवरोधक यापािरक यवहार अिधिनयम, 1969 (1969 का
1. संिवधान (उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (10-8-1975 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 87 का लोप िकया
गया ।
प्रित पधार् अिधिनयम, 2002 (2003 का 12) की धारा 66 द्वारा (1-9-2009 से) िनरिसत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 92 का लोप िकया
गया ।
िवदे शी मुद्रा प्रबंध अिधिनयम, 1999 (1999 का 42) की धारा 49 द्वारा (1-6-2000 से) िनरिसत ।
भारत का संिवधान 331
1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (27-5-1978 से) प्रिवि 125 से प्रिवि 188 तक
अंतः थािपत ।
* अब मोटर यान अिधिनयम, 1988 (1988 का 59) के सुसंगत उपबंध दे ख ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 130 का लोप िकया
गया ।
भारत का संिवधान 333
131. लेवी चीनी समान कीमत िनिध अिधिनयम, 1976 (1976 का के द्रीय
अिधिनयम 31) ।
132. नगर-भूिम (अिधकतम सीमा और िविनयमन) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 33) ।
133. संघ लेखा िवभागीकरण (कािमर्क अंतरण) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 59) ।
134. असम अिधकतम भूिम जोत सीमा िनयतन अिधिनयम, 1956 (1957 का
असम अिधिनयम 1) ।
135. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम (िवदभर् क्षेत्र) अिधिनयम, 1958 (1958 का
मुंबई अिधिनयम 99) ।
136. गुजरात प्राइवेट वन (अजर्न) अिधिनयम, 1972 (1973 का गुजरात
अिधिनयम 14) ।
137. हिरयाणा भूिम-जोत की अिधकतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का हिरयाणा अिधिनयम 17) ।
138. िहमाचल प्रदे श अिभधिृ त और भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1974 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 8) ।
139. िहमाचल प्रदे श ग्राम शािमलाती भूिम िनधान और उपयोजन
अिधिनयम, 1974 (1974 का िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 18) ।
140. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन और प्रकीणर् उपबंध) अिधिनयम, 1974
(1974 का कनार्टक अिधिनयम 31) ।
141. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का कनार्टक
अिधिनयम 27) ।
142. केरल बेदखली िनवारण अिधिनयम, 1966 (1966 का केरल
अिधिनयम 12) ।
143. ित पुवारम ् संदाय (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल
अिधिनयम 19) ।
144. ी पादम ् भूिम िवमुिक्त अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
20) ।
145. ीपणडारवका भूिम (िनधान और िवमुिक्त) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 20) ।
146. केरल प्राइवेट वन (िनधान और समनुदेशन) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 26) ।
147. केरल कृिष कमर्कार अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल अिधिनयम 18) ।
148. केरल काजू कारखाना (अजर्न) अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल
अिधिनयम 29) ।
भारत का संिवधान 334
167. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1971 (1971 का तिमलनाडु अिधिनयम 41) ।
168. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
ू रा संशोधन
169. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 20) ।
170. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 37) ।
171. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) चौथा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 39) ।
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) छठा संशोधन
172. तिमलनाडु भिू म सध
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 7) ।
173. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) पांचवां संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
174. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 15) ।
175. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 30) ।
176. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 32) ।
177. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 11) ।
178. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
179. उ र प्रदे श भूिम-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (उ र प्रदे श अिधिनयम
संख्या 21,1971) तथा उ र प्रदे श भिू म-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 34,1974) द्वारा 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम-
यव था अिधिनयम (उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1,1951) म िकए गए संशोधन ।
180. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (उ र
प्रदे श अिधिनयम संख्या 20,1976) ।
181. पि मी बंगाल भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 28) ।
182. पि मी बंगाल अ य संक्रात भूिम का प्र यावतर्न अिधिनयम, 1973 (1973
का पि मी बंगाल अिधिनयम 23) ।
भारत का संिवधान 336
1. संिवधान (सतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 189 से प्रिवि 202 तक (26-8-
1984 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 337
1. संिवधान (िछयासठवां संशोधन) अिधिनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 203 से 257 तक (7-6-1990 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 338
230. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989
का म य प्रदे श अिधिनयम 8)।
231. महारा भू-राज व संिहता, 1966 (1966 का महारा अिधिनयम 41) धारा
36, धारा 36क और धारा 36ख ।
232. महारा भ-ू राज व संिहता और महारा अनस
ु िू चत जनजाित भिू म प्र यावतर्न
(दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1977 का महारा अिधिनयम 30) ।
233. महारा कितपय भूिम म खान और खिनज के िवद्यमान सांपि क अिधकार
का उ सादन अिधिनयम, 1985 (1985 का महारा अिधिनयम 16) ।
234. उड़ीसा अनस
ु ूिचत क्षेत्र (अनुसूिचत जनजाितय द्वारा) थावर संपि अंतरण
िविनयम, 1956 (1956 का उड़ीसा िविनयम 2) ।
235. उड़ीसा भिू म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1975 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 29) ।
236. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अिधिनयम
30) ।
237. उड़ीसा भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 44) ।
238. राज थान उपिनवेशन (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 12) ।
239. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 13) ।
240. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1987 (1987 का राज थान
अिधिनयम 21) ।
241. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1979 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 8) ।
242. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1980 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
243. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1981 (1981 का तिमलनाडु अिधिनयम 59) ।
244. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1983 (1984 का तिमलनाडु अिधिनयम 2) ।
245. उ र प्रदे श भूिम िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1982 (1982 का उ र प्रदे श
अिधिनयम 20) ।
भारत का संिवधान 340
1. संिवधान (िछह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1994 की धारा 2 द्वारा (31-8-1994 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 341
1. संिवधान (अठहतरवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (30-8-1995 से) प्रिवि 258 से प्रिवि 284
तक अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 342
1. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के थान प्रित थािपत ।
343
भारत का संिवधान 344
1. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 345
7. यायालय की अिधकािरता का वजर्न – इस संिवधान म िकसी बात के होते
हुए भी, िकसी यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के िकसी सद य की िनरहर् ता
से संबंिधत िकसी िवषय के बारे म कोई अिधकािरता नहीं होगी ।
8. िनयम – (1) इस पैरा के उप-पैरा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, सदन
का सभापित या अ यक्ष, इस अनुसूची के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए िनयम
बना सकेगा तथा िविश तया और पूवग र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले
िबना, ऐसे िनयम म िन निलिखत के िलए उपबंध िकया जा सकेगा, अथार्त ् : –
(क) सदन के िविभ न सद य िजन राजनीितक दल के सद य ह, उनके
बारे म रिज टर या अ य अिभलेख रखना ;
(ख) ऐसा प्रितवेदन जो सदन के िकसी सद य के संबंध म िवधान-दल का
नेता, उस सद य की बाबत पैरा 2 के उप-पैरा (1) के खंड (ख) म िनिदर् प्रकृित
की माफी के संबंध म दे गा, वह समय िजसके भीतर और वह प्रािधकारी िजसको
ऐसा प्रितवेदन िदया जाएगा ;
(ग) ऐसे प्रितवेदन िज ह कोई राजनीितक दल सदन के िकसी सद य को
ऐसे राजनीितक दल म प्रिव करने के संबंध म दे गा और सदन का ऐसा
अिधकारी िजसको ऐसे प्रितवेदन िदए जाएंगे ; और
(घ) पैरा 6 के उप-पैरा (1) म िनिदर् िकसी प्र का िविन य करने की
प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसी जांच की प्रिक्रया है , जो ऐसे प्र का िविन य करने
के प्रयोजन के िलए की जाए ।
(2) सदन के सभापित या अ यक्ष द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन बनाए
गए िनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस िदन की अविध
के िलए रखे जाएंगे । यह अविध एक सत्र म अथवा दो या अिधक आनुक्रिमक सत्र म
परू ी हो सकेगी । वे िनयम तीस िदन की उक्त अविध की समाि पर प्रभावी ह गे जब
तक िक उनका सदन द्वारा पिरवतर्न सिहत या उनके िबना पहले ही अनुमोदन या
अननुमोदन नहीं कर िदया जाता है । यिद वे िनयम इस प्रकार अनुमोिदत कर िदए जाते
ह तो वे, यथाि थित, ऐसे प म िजसम वे रखे गए थे या ऐसे पिरवितर्त प म ही
प्रभावी ह गे । यिद िनयम इस प्रकार अननुमोिदत कर िदए जाते ह तो वे िन प्रभाव हो
जाएंगे ।
(3) सदन का सभापित या अ यक्ष, यथाि थित, अनु छे द 105 या अनु छे द 194
के उपबंध पर और िकसी ऐसी अ य शिक्त पर जो उसे इस संिवधान के अधीन प्रा है ,
प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन बनाए गए
िनयम के िकसी यिक्त द्वारा जानबूझकर िकए गए िकसी उ लंघन के बारे म उसी रीित
से कारर् वाई की जाए िजस रीित से सदन के िवशेषािधकार के भंग के बारे म की जाती है
।]
पैरा 7 को िकहोतो होलोहन बनाम जेिच हु और अ य ए.आई.आर. 1993, एस.सी. 412 म बहुमत की राय के अनुसार
अनु छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म अिविधमा य घोिषत िकया गया ।
1
[ग्यारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243छ)
1. कृिष, िजसके अंतगर्त कृिष-िव तार है ।
2. भूिम िवकास, भूिम सुधार का कायार् वयन, चकबंदी और भूिम संरक्षण ।
3. लघु िसंचाई, जल प्रबंध और जलिवभाजक क्षेत्र का िवकास ।
4. पशुपालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन ।
5. म य उद्योग ।
6. सामािजक वािनकी और फामर् वािनकी ।
7. लघु वन उपज ।
8. लघु उद्योग, िजनके अंतगर्त खाद्य प्रसं करण उद्योग भी ह ।
9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग ।
10. ग्रामीण आवासन ।
11. पेय जल ।
12. ईंधन और चारा ।
13. सड़क, पुिलया, पुल, फेरी, जलमागर् और अ य संचार साधन ।
14. ग्रामीण िवद्युतीकरण, िजसके अंतगर्त िवद्युत का िवतरण है ।
15. अपारं पिरक ऊजार् ोत ।
16. गरीबी उ मूलन कायर्क्रम ।
17. िशक्षा, िजसके अंतगर्त प्राथिमक और मा यिमक िवद्यालय भी है ।
18. तकनीकी प्रिशक्षण और यावसाियक िशक्षा ।
19. प्रौढ़ और अनौपचािरक िशक्षा ।
20. पु तकालय ।
21. सां कृितक िक्रयाकलाप ।
22. बाजार और मेले ।
23. वा य और व छता, िजनके अंतगर्त अ पताल, प्राथिमक वा य के द्र
और औषधालय भी है ।
24. पिरवार क याण ।
25. मिहला और बाल िवकास ।
26. समाज क याण, िजसके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्तय का क याण भी है ।
27. दब ु ल
र् वग का और िविश तया, अनुसूिचत जाितय और अनुसूिचत
जनजाितय का क याण ।
28. सावर्जिनक िवतरण प्रणाली ।
29. सामुदाियक आि तय का अनुरक्षण ।]
1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) जोड़ा गया ।
347
1
[बारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243ब)
1. नगरीय योजना िजसके अंतगर्त नगर योजना भी है ।
2. भिू म उपयोग का िविनयमन और भवन का िनमार्ण ।
3. आिथर्क और सामािजक िवकास योजना ।
4. सङक और पल
ु ।
5. घरे लू, औद्योिगक और वािणि यक प्रयोजन के िलए जल प्रदाय ।
6. लोक वा य, व छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध ।
7. अिग्नशमन सेवाएं ।
8. नगरीय वािनकी, पयार्वरण का संरक्षण और पािर थितकी आयाम की अिभविृ द्ध
।
9. समाज के दबु ल
र् वग के, िजनके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्त भी ह, िहत की रक्षा ।
10. गंदी-ब ती सुधार और प्रो नयन ।
11. नगरीय िनधर्नता उ मूलन ।
12. नगरीय सख
ु -सिु वधाओं और सिु वधाओं, जैसे पाकर्, उद्यान, खेल के मैदान की
यव था ।
13. सां कृितक, शैक्षिणक और स दयर्परक आयाम की अिभविृ द्ध ।
14. शव गाड़ना और किब्र तान; शवदाह और मशान और िवद्यत
ु शवदाह गह
ृ ।
15. कांजी हाउस ; पशुओं के प्रित क्रूरता का िनवारण ।
16. ज म-मरण सांिख्यकी, िजसके अंतगर्त ज म और म ृ यु रिज ट्रीकरण भी
है ।
17. सावर्जिनक सख
ु -सुिवधाएं, िजनके अंतगर्त सड़क पर प्रकाश, पािकर्ंग थल,
बस टाप और जन सुिवधाएं भी ह ।
18. वधशालाओं और चमर्शोधनशालाओं का िविनयमन ।]
1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) जोड़ा गया ।
348
प�र�शष्ट-1
1
सं�वधान (जम्मू और कश्मीर म� लागू) आदे श, 2019
सी.ओ. 272
सं�वधान के अनच्
ु छे द 370 के खंड (1) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए,
राष्ट्रप�त, जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार क� सहम�त से �नम्न�ल�खत आदे श करते
ह� : —
ं म� लागू है, के
“(4) सं�वधान, जहां तक यह जम्मू और कश्मीर के संबध
प्रयोजन� के �लए—
1
�व�ध और न्याय मंत्रालय, �वधायी �वभाग क� अ�धसूचना सं0 सा.का.�न. 551(अ), तार�ख 5 अगस्त, 2019 द्वारा
भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3, उपखंड (i) म� प्रका�शत ।
भारत का सं�वधान 350
392
भारत का संिवधान 393
तारीख अिधसूिचत की जानी है ।
394
पिरिश 4
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015
395
भारत का संिवधान 396
पहली अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(क), धारा 2(ख) और धारा 3 दे िखए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
दस
ू री अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(ख), धारा 2(घ) और धारा 3 दे िखए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
तीसरी अनुसच
ू ी
[धारा 2(ग) दे िखए]
अनु छे द 2 :
ए क्लेव
संयुक्त प से स यािपत और डी.जी.एल.आर.एंड एस., बांग्लादे श तथा
डी.एल.आर.एंड एस., पि मी बंगाल (भारत) के तर पर अप्रैल, 1997 म
ह ताक्षर िकए गए भू-कर ए क्लेव मानिचत्र के अनुसार बांग्लादे श म के 111
भारतीय ए क्लेव और भारत म के 51 बांग्लादे श ए क्लेव का बांग्लादे श म जाने
वाले अितिरक्त क्षेत्र के िलए प्रितकर का दावा िकए िबना आदान-प्रदान िकया
जाएगा ।
अनु छे द 3 :
(I) 1974 के करार के अनु छे द 2 को िन नानुसार कायार्ि वत िकया
जाएगा :
भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच यह करार हुआ है िक
प्रितकूल क जे म धािरत रा यक्षेत्र के िलए, जैसा िक संयुक्त सवक्षण के
मा यम से अवधािरत िकया गया था और अपने-अपने प्रितकूल क जा भू-
क्षेत्र सूचक मानिचत्र (एपीएल मानिचत्र) म, िजसे िदस बर, 2010 और
अग त, 2011 के बीच दोन दे श के भ-ू अिभलेख और सवक्षण िवभाग
द्वारा अंितम प िदया गया है , पूणत र् या िचित्रत िकया गया था, िजनका
पूणत र् या वणर्न नीचे खंड (क) से खंड (घ) म िकया गया है , एक िनयत
सीमा के प म सीमा रे खा खींची जाएगी ।
सुसंगत सीमा पट्टी से मानिचत्र को मुिद्रत िकया जाएगा और उन
पर पूणार्िधकािरय द्वारा ह ताक्षर िकए जाएंगे और रा यक्षेत्रीय अिधकािरता
का अ तरण ए क्लेव के आदान-प्रदान के साथ-साथ पूणर् िकया जाएगा ।
ऊपर विणर्त सच ू क मानिचत्र म यथा िचित्रत सीमा का अ यंकन
िन नानुसार होगा :
(क) पि मी बंगाल सेक्टर
(i) बौसमारी-मधुगरी (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 154/5-एस से 157/1-एस
से होते हुए मथबंगा नदी के पुराने बहाव मागर् के म य
तक, जैसा िक 1962 के चकबंदी मानिचत्र म िचित्रत है
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म
संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी
।
(ii) अंधारकोटा (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 152/5-एस से सीमा तंभ
सं0 153/1-एस से होते हुए िवद्यमान मथबंगा नदी के
िकनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून,
2011 म संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और
सहमित हुई थी ।
भारत का संिवधान 400
(कक) नलजूरी-I
(कख) नलजूरी-III
1 2 3 4 5 6
क. वतंत्र िछट वाले ए क्लेव
1. गराटी 75 पोचागर ह दीबाड़ी 58.23
2. गराटी 76 पोचागर ह दीबाड़ी 0.79
3. गराटी 77 पोचागर ह दीबाड़ी 18
4. गराटी 78 पोचागर ह दीबाड़ी 958.66
5. गराटी 79 पोचागर ह दीबाड़ी 1.74
6. गराटी 80 पोचागर ह दीबाड़ी 73.75
7. िबंगीमारी भाग-I 73 पोचागर ह दीबाड़ी 6.07
भारत का संिवधान 404
1 2 3 4 5 6
8. नजीरगंज 41 बोडा ह दीबाड़ी 58.32
9. नजीरगंज 42 बोडा ह दीबाड़ी 434.29
10. नजीरगंज 44 बोडा ह दीबाड़ी 53.47
11. नजीरगंज 45 बोडा ह दीबाड़ी 1.07
12. नजीरगंज 46 बोडा ह दीबाड़ी 17.95
13. नजीरगंज 47 बोडा ह दीबाड़ी 3.89
14. नजीरगंज 48 बोडा ह दीबाड़ी 73.27
15. नजीरगंज 49 बोडा ह दीबाड़ी 49.05
16. नजीरगंज 50 बोडा ह दीबाड़ी 5.05
17. नजीरगंज 51 बोडा ह दीबाड़ी 0.77
18. नजीरगंज 52 बोडा ह दीबाड़ी 1.04
19. नजीरगंज 53 बोडा ह दीबाड़ी 1.02
20. नजीरगंज 54 बोडा ह दीबाड़ी 3.87
21. नजीरगंज 55 बोडा ह दीबाड़ी 12.18
22. नजीरगंज 56 बोडा ह दीबाड़ी 54.04
23. नजीरगंज 57 बोडा ह दीबाड़ी 8.27
24. नजीरगंज 58 बोडा ह दीबाड़ी 14.22
25. नजीरगंज 60 बोडा ह दीबाड़ी 0.52
26. पुटीमारी 59 बोडा ह दीबाड़ी 122.8
27. दै खाता छट 38 बोडा ह दीबाड़ी 499.21
28. स बरी 37 बोडा ह दीबाड़ी 1188.93
29. काजल िदघी 36 बोडा ह दीबाड़ी 771.44
30. नटकटोका 32 बोडा ह दीबाड़ी 162.26
31. नटकटोका 33 बोडा ह दीबाड़ी 0.26
32. बेउलाडांगा छट 35 बोडा ह दीबाड़ी 0.83
33. बलापारा इगराबार 3 दे बीगंज ह दीबाड़ी 1752.44
34. बला खनिकखरीजा 30 िडमला ह दीबाड़ी 7.71
िसतलदहा
भारत का संिवधान 405
1 2 3 4 5 6
35. बला खनिकखरीजा 29 िडमला ह दीबाड़ी 36.83
िसतलदहा
36. बराखनगीर 28 िडमला ह दीबाड़ी 30.53
37. नगरजीकोबरी 31 िडमला ह दीबाड़ी 33.41
38. कुचलीबारी 26 पटग्राम मेकलीगंज 5.78
39. कुचलीबारी 27 पटग्राम मेकलीगंज 2.04
40 बरा कुचलीबारी थाना पटग्राम मेकलीगंज 4.35
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
41. जमालोहा- 6 पटग्राम मेकलीगंज 5.24
बेलापुखारी
42. उपनचौकी 115/2 पटग्राम मेकलीगंज 0.32
कुचलीबारी
43. उपनचौकी 7 पटग्राम मेकलीगंज 44.04
कुचलीबारी
44. भोथनरी 11 पटग्राम मेकलीगंज 36.83
45. बालापुखारी 5 पटग्राम मेकलीगंज 55.91
46. बाराखानगीर 4 पटग्राम मेकलीगंज 50.51
47. बाराखानगीर 9 पटग्राम मेकलीगंज 87.42
48. छठ बोगडोकरा 10 पटग्राम मेकलीगंज 41.7
49. रतनपुर 11 पटग्राम मेकलीगंज 58.91
50. बोगडोकरा 12 पटग्राम मेकलीगंज 25.49
51. पुलकर डाबरी थाना पटग्राम मेकलीगंज 0.88
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
भारत का संिवधान 406
1 2 3 4 5 6
52. खरखरीया 15 पटग्राम मेकलीगंज 60.74
53. खरखरीया 13 पटग्राम मेकलीगंज 51.62
54. लोटामारी 14 पटग्राम मेकलीगंज 110.92
55. भूतबारी 16 पटग्राम मेकलीगंज 205.46
56. कोमट चांग्रबधा 16ए पटग्राम मेकलीगंज 42.8
57. कोमट चांग्रबधा 17ए पटग्राम मेकलीगंज 16.01
58. पनीसाला 17 पटग्राम मेकलीगंज 137.66
59. द्वािरकामारी 18 पटग्राम मेकलीगंज 36.5
खासबाश
60. पनीसाला 153/पी पटग्राम मेकलीगंज 0.27
61. पनीसाला 153/ओ पटग्राम मेकलीगंज 18.01
62. पनीसाला 19 पटग्राम मेकलीगंज 64.63
63. पनीसाला 21 पटग्राम मेकलीगंज 51.4
64. लोटामारी 20 पटग्राम मेकलीगंज 283.53
65. लोटामारी 22 पटग्राम मेकलीगंज 98.85
66. द्वािरकामारी 23 पटग्राम मेकलीगंज 39.52
67. द्वािरकामारी 25 पटग्राम मेकलीगंज 45.73
68. छट भोथाट 24 पटग्राम मेकलीगंज 56.11
69. बाकाटा 131 पटग्राम हथभंगा 22.35
70. बाकाटा 132 पटग्राम हथभंगा 11.96
71. बाकाटा 130 पटग्राम हथभंगा 20.48
72. भोग्रामगुरी 133 पटग्राम हथभंगा 1.44
73. चेनाकाटा 134 पटग्राम मेकलीगंज 7.81
74. बांसकाटा 119 पटग्राम मथबंगा 413.81
75. बांसकाटा 120 पटग्राम मथबंगा 30.75
76. बांसकाटा 121 पटग्राम मथबंगा 12.15
77. बांसकाटा 113 पटग्राम मथबंगा 57.86
78. बांसकाटा 112 पटग्राम मथबंगा 315.04
79. बांसकाटा 114 पटग्राम मथबंगा 0.77
भारत का संिवधान 407
1 2 3 4 5 6
80. बांसकाटा 115 पटग्राम मथबंगा 29.2
81. बांसकाटा 122 पटग्राम मथबंगा 33.22
82. बांसकाटा 127 पटग्राम मथबंगा 12.72
83. बांसकाटा 128 पटग्राम मथबंगा 2.33
84. बांसकाटा 117 पटग्राम मथबंगा 2.55
85. बांसकाटा 118 पटग्राम मथबंगा 30.98
86. बांसकाटा 125 पटग्राम मथबंगा 0.64
87. बांसकाटा 126 पटग्राम मथबंगा 1.39
88. बांसकाटा 129 पटग्राम मथबंगा 1.37
89. बांसकाटा 116 पटग्राम मथबंगा 16.96
90. बांसकाटा 123 पटग्राम मथबंगा 24.37
91. बांसकाटा 124 पटग्राम मथबंगा 0.28
92. गोटामारी िछट 135 हाितबंधा िसतलकुची 126.59
93. गोटामारी िछट 136 हाितबंधा िसतलकुची 20.02
94. बनापचाई 151 लालमोिनरहाट िदनहाटा 217.29
95. बनापचाई 152 लालमोिनरहाट िदनहाटा 81.71
भीतरकुथी
96. दिसआर छारा 150 फुलबारी िदनहाटा 1643.44
97. दकुरहाट- 156 कुरीग्राम िदनहाटा 14.27
दिकिनरकुथी
98. कलामती 141 भुंगामारी िदनहाटा 21.21
99. भाहोबगंज 153 भुंगामारी िदनहाटा 31.58
100. बाओितकुरसा 142 भुंगामारी िदनहाटा 45.63
101. बरा कोआचु का 143 भुंगामारी िदनहाटा 39.99
102. गावचु का II 147 भुंगामारी िदनहाटा 0.9
103. गावचु का I 146 भुंगामारी िदनहाटा 8.92
104. िदघालतरी II 145 भुंगामारी िदनहाटा 8.81
105. िदघालतरी I 144 भुंगामारी िदनहाटा 12.31
106. छोटूगरलझोरा II 149 भुंगामारी िदनहाटा 17.85
भारत का संिवधान 408
1 2 3 4 5 6
107. छोटू गरलझोरा I 148 भुंगामारी िदनहाटा 35.74
108. जे0एल0सं0 38 157 पटग्राम मथभंगा 3.5
के दिक्षणी छोर
और जे0एल0सं0
39 के दिक्षणी
छोर पर िबना
नाम और
जे0एल0सं0 का
1 िछट ( थानीय
प से
अशोकाबाड़ी** के
प म ज्ञात)
ख. अपखंड िछट वाले ए क्लेव
109 (i) बेवलाडांगा 34 ह दीबाड़ी बोडा 862.46
(ii) बेवलाडांगा अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
110. (i) कोतभाजनी 2 ह दीबाड़ी दे बीगंज 2012.27
(ii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
111. (i) दहाला खागराबारी ह दीबाड़ी दे बीगंज 2650.35
(ii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
29 िसत बर, 2002 से 2 अक्तूबर, 2002 तक कोलकाता म आयोिजत एक सौ पचासव (चौवनव) भारत-बांग्लादे श
सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
**
18 िसत बर, 2003 से 20 िसत बर, 2003 तक कूच िबहार (भारत) म आयोिजत एक सौ बावनव (छ पनव)
भारत-बांग्लादे श सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
भारत का संिवधान 409
1 2 3 4 5 6
(v) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(vi) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
17160.63
ुर् क्रम
िट पण : क्षेत्र सीमन काल 1996-97 के दौरान संयुक्त भूिम स यापन द्वारा उपयक्त
सं0 108 के ए क्लेव के नाम की अशोकाबाड़ी ए क्लेव के प म पहचान की गई ।
29. दग
ु ार्पुर िदनहाटा कालीगंज 83 20.96
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 412
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 413