भारतीय सँस्कृति: गौ, गंगा, गीता और गायत्री

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भारतीय सँस्कृति : गौ , गंगा, गीता और

गायत्री
भारतीय सँस्कृति की कल्पना गौ , गंगा गीता और गायत्री के बगैर सम्भव नहीं है । जब आप वैदिक
भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो इसके ये चॉर पाद हैं जैसे ब्रह्म चतुष्पाद कहा जाता है इसी
तरह हिन्द ू सँस्कृति इसी चार पैरों पर खड़ी है । ऋग्वैदिक काल से तीन ग ( गौ, गंगा, गायत्री) थे जिनमें
द्वापर में चौथा गीता जुड़ गई जो उपनिषदों का सार है । कहा गया है कि सभी उपनिषद गौ के
समान है , श्री कृष्ण दह
ु ने वाले है , अर्जुन बछड़ा है और गीता उपदे श दध
ू है और उत्तम बूद्धि वाले इस
दध
ू को पीने वाले है । इस तरह गौ ब्रह्म ज्ञान की प्रतीक ही है । ऋग्वेद के समय से गायत्री, गंगा और
गौ का गहरा सम्बन्ध रहा है । गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल का सूक्त है जिसके द्रष्टा ऋषि
विश्वामित्र हैं ।

 तत ् सवितुर्वरे ण्यं। भर्गोदे वस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात ्। (ऋग्वेद ३,६२,१०)

विश्वमित्र ने गायत्री के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने का उपक्रम किया था। गायत्री वेदों के
सार के रूप में प्रतिष्ठित है । गायत्री और वेद एक ही हैं | गायत्री वेदमाता के नाम से जानी जाती है
और भगवद्गीता में भगवान ने इसे अपना स्वरूप बताया है | भगवान राम की गायत्री संध्या का
वर्णन वाल्मीकि रामायण में है | गायत्री रहस्य उपनिषद में कहा गया है की गायत्री के 24 अक्षर में हर
अक्षर में एक दे वता प्रतिष्ठित है | चैबिस अक्षरों के द्रष्टा ऋषि है जिनमे अंतिम अक्षर के द्रष्टा
अंगिरस विश्वामित्र हैं | वाल्मीकि रामायण को गायत्री के 24 अक्षरों के अनुसार 24 हजार श्लोको में
रचा गया था | हर हिन्द ू दे वता की एक गायत्री होती है जिसका हिन्द ू श्रद्धा से जप करके उनसे
वांक्षित लाभ प्राप्त करता है | गायत्री सम्पूर्ण वेदों के अर्थ को समाहित करती है | प्राचीन भारत में
सभी दिव्यास्त्र इसी मन्त्र से बनते थे | गायत्री से ही ब्रह्मास्त्र बनता था | गायत्री को भारतीय
संस्कृति का प्राण बताया गया है | यदि इसे

 वैदिक सांस्कृतिक में सभी कर्म गाय को आगे रख क्र किये जाते हैं क्योकि गौ के शरीर में समस्त
दे वगण निवास करते हैं और पैरों में समस्त तीर्थ का निवास है | गौ के पैरो की मिटटी जो मनष्ु य
अपने मस्तक में लगता है वह तत्काल तीर्थ में स्नान का फल पाता है | जहाँ गाय रहती है उस
स्थान को तीर्थ कहा गया है | सनातन वैदिक हिन्द ू संस्कृति में गाय और पथ्
ृ वी को एक ही माना
गया है इसलिए जब भी पथ्
ृ वी पर पाप और अधर्म बढ़ता है तो गाय ही पीड़ित होती है | वेदों में कहा
गया है “गोस्तु मात्रा न विद्यते “ अर्थात सबकी उपमा दी जा सकती है लेकिन गौ की कोई उपमा
नहीं है उसका स्थान कोई नहीं ले सकता | सम्पर्ण
ू वैदिक संस्कृति गौ केन्द्रित और गौ पर ही
आधारित है | गौ केंद्र में है | गायत्री की उपासना बगैर गाय के सम्भव नहीं है , हिन्द ू धर्म की कोई
पूजा गाय के बगैर सम्भव नहीं है | पूजा में पंचामत
ृ हो जो अमत
ृ ही है वो दही , घत
ृ और दग्ु ध के
बगैर नहीं बन सकता है | महाभारत अनुशासन पर्व में महर्षि च्यवन राजा नहुष कहते हैं की " मैं इस
संसार में गायो के समान कोई दस
ू रा धन नहीं दे खता हूँ | गौओं में पापो कोई लेश नहीं है इसलिए
इसमें लक्ष्मी का वास है | स्वाहा और वषट्कार गौओं में ही प्रतिष्ठित है | गौए ही यज्ञ का संचालन
करती हैं | वे अमत
ृ का आधारभूत हैं | गौए स्वर्ग की सेतु है | गौए समस्त कामनाओ को पूर्ण करने
में सक्षम है | उनसे बढकर दस
ू रा कोई नहीं | महाभारत अनुशासन दान धर्म पर्व में युधिष्ठिर गाय ,
भूमि और सरस्वती को एकसमान बताया है | कहते हैं जिन्हें अभ्युदय की इच्छा हो वो गायों को
दाहिने करके चले | भगवान श्री कृष्ण का गोपाल नाम तब पड़ा जब कामधेनु ने उनका अभिषेक
किया | वेदों , उपनिषदों , अरण्यों , गह्
ृ य सूत्रों , स्मति
ृ यों ,18 पुराणों , महाभारत , रामायण सभी शास्त्रों
में गो महिमा है | इतनी महिमा तो किसी दे वता की भी नहीं मिलती है |

महाराज दशरथ ने एक एक पत्र


ु की कामना से एक एक लाख गायें दान की थीं , ऐसा वाल्मीकि
रामायण बाल कांड में वर्णन है | पत्र
ु ों के विवाह के बाद दशरथ नें वशिस्ठ के समीप जाकर सभी
ब्राह्मणों को चार लाख गायें दान करने के लिए कहा था |

अब सब बिप्र बोलाई गोसाई | दे हु धेनु सब भांति बनाई


भगवान राम ने वनवास से पर्व
ू बहुत सारी गौए दान की थी | उन्होंने लक्ष्मण से कहा था की महर्षि
अगस्त्य और विश्वामित्र जी को हजारों गायें दे कर संतष्ु ट करो “तर्प्यस्य महाबाहों गो सहस्रेण राघव”

वाल्मीकि रामायण में ही त्रिजटा नामक ब्राह्मण की कथा भी आती है जो बहुत गरीब था और जिसे
उसकी पत्नी ने श्री राम के पास कुछ पाने की इच्छा से भेजा था | ब्राह्मण ने राम से कहा “मैं
निर्धन हूँ , मेरी सन्तान बहुत है | आप मझ
ु पर कृपा करे “ भगवान राम ने विनोद करते हुए कहा “
हे ब्राह्मण दे व , आपना डंडा जहाँ तक फेंक दें गे वहां तक की भमि
ू और गायें आपकी हो जाएँगी “
फिर क्या था, ब्राह्मण ने अपनी धोती बांधी और डंडे को ऐसा घम
ु ा कर फेंका की वह सरयू के पार
हजारों गौओं के बीच एक सांड के पास गिरा | श्री राम ने हजारों गाये और वहां तक की भमि
ू उसे दे
दी थीं |
भगवान ने गोमाता की रक्षा के लिए महर्षि विश्वामित्र को वचन दिया था “ गोब्राह्मण हितार्थाय
दे शस्य च हिताय च “ गो ब्राह्मण और राष्ट्र के लिए आप जैसे महान प्रभावशाली महात्मा के आदे श
का पालन करूंगा “ राज्याभिषेक के अवसर पर भगवान राम ने ब्राह्मणों को एक लाख घोड़े , एक
लाख हाथी और एक सौ सांड दान किया था | राम राज्य में गौ पज्
ू य थी , उनकी सेवा राजधर्म था |
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में तो गाय ही गाय है | उनका सम्पर्ण
ू जीवन गायों के बीच ही बिता
था | उनकी बाल लीलाओं में हर जगह गाय का जिक्र आता है | उन्होंने गोवर्धन गाय के लिए ही
उठाया , कंस के राक्षसों और कंस के बध का कारण गाय ही थी | रघव
ु ंश के प्रतापी राजा दिलीप को
पत्र
ु की प्राप्ति नंदिनी गौ की सेवा से ही हुई थी | इस कथा को महाकवि कालिदास ने रघव
ु ंश में
बहुत काव्यात्मक ढं ग से लिखा है | नंदिनी जब चर के घर लौटती थी तो महाराज दिलीप की पत्नी
उनकी आरती करती थी| हिन्द ू संस्कृति में गौ माता सर्वोच्च आसन पर विराजमान हैं | गाय के नाम
पर ही गोआ का नाम पड़ा था| गाय के नाम पर गोकुल , गोरखपुर , गोवर्धन, गोकर्ण जैसे तीर्थ हैं |
हिन्दओ
ु ं का गाय से एक अद्भत
ु भावनात्मक सम्बन्ध है इसे पाश्चात्य बुद्धि के लोग नहीं समझ सकते
|

गाय और गायत्री की तरह गंगा भी भारतीय संस्कृति का आधार है | ऋग्वेद के तीसरे मंडल का 33 वां
नदी सूक्त है । इसके ऋषि विश्वमित्र और दे वता नदी है । “इमं ते गंगे यमन
ु े सरस्वती शतुद्री स्तोमं”
मन्त्र मे गंगा , यमन
ु ा , सरस्वती, विपाशा और शुतुद्री नदियों का वर्णन आया है । ऋषि ने इन नदियों
को रोग दरू करने वाली और कल्याण करने वाली कहा है | गंगा, यमुना और सरस्वती ऋग्वेद के
समय से पूजनीय नदीयां है | लेकिन आर्य संस्कृति के विकास में गंगा नदी की भूमिका किसी भी नदी
की तुलना में अधिक है इसलिए उत्तर ऋग्वैदिक काल के बाद सांस्कृतिक रूप से गंगा का महात्म्य
सबसे ज्यादा रहा है | फ्रांस के बहु प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और भाषाविद जैक्स लेकान में semiotics पर
कुछ विशेष प्रकाश डालते हुए लिखा कि गंगा पोएटिक भाषा का एक दस ू रा स्पंदन है | A hamlet on
Ganges by which Hindu aesthetics illustrates the second form of the resonances of language
(lakshnalakshna)” इसके तट पर ऋषियों ने भाषा और संस्कृति के उस शिखर को छुआ जो दनि
ु या में
किसी संस्कृति के लिए सम्भव नहीं है | गंगा सिर्फ नदी नहीं है यह वैदिक आध्यात्मिक संस्कृति का
प्रवाह है | हिमालय में गोमुख से निकलती है दिव्य स्तोत्र रूपी परम पावन मां गंगा | हिंद ू गोमुखी में
अक्षमाला रखता है | अक्षमाला क्या है ? दे ववाणी के अ से क्ष तक के वर्णाक्षर अर्थात अक्ष | इससे
निःसत
ृ होते हैं सभी मन्त्र , ऋचाएं, स्तोत्र, इसी का विस्फार हैं पाणिनि के सूत्र, रामायण और भागवतम
| इसलिए दस
ू री दृष्टि से इस गोमुख से ही संस्कृत भाषा का अद्भत
ु प्रवाह निःसत
ृ हुआ | गोमुख और
गोमुखी में इस तरह एक गहरा अन्तर्सम्बन्ध है | गायत्री चतुष्पद है और ऐसा वेदों में कहा गया है “
सेषा चतुष्पदा षड्विधा गायत्री तदे तदृचाभ्यनूत्तम । तावानस्य महिमा ततो ज्याया-श्च पूरुषाः पादोस्य
सर्वाभूतानि त्रिपादस्यामत
ृ ं दिवीति । —छान्दोग्य उपनिषद ” उसका एक ही पाद यह सम्पूर्ण विश्व है ,
शेष तीन पाद तो अमत
ृ मय लोको में स्थित हैं | भाषा के उन पोएटिक आयामों , मन्त्रों के गुप्त
रहस्यों , गायत्री साम को ऋषियों ने गंगा तट पर ही साक्षात ् किया था | गंगा और गायत्री का एकत्व
है | गायत्री की सारी साधना गंगा तट पर ही की जाती है | गंगा जल के बगैर गायत्री उपासना
सम्भव ही नही है |

ऐसी मान्यता है की दे वता गण स्वर्ग में यह गीत गाते हैं कि वे व्यक्ति धन्य हैं जो भारत में जन्म
लेते हैं | ऐसा क्यों ? क्योकि भारत वर्ष को शिव के जटा जुट से निकलने वाली गंगा पवित्र करती है
| वह गंगा जिसके तट पर सप्तऋषियों ने तपस्या कर अमरत्व प्राप्त किया था | भगवान का दिव्य
तेज धारण करने वाली गंगा दनि
ु या की एक मात्र नदी है जिसके जल को वर्षों तक संग्रह करने के
बाद भी उसमें कीटाणु नहीं पड़ते | यह दिव्य आध्यात्मिक जीवनदायिनी शक्ति से ओतप्रोत है | हिन्द ू
धर्म में गंगा के तट पर एक महीने का कल्प वास करने की परम्परा ऋषियों ने डाली ताकि सबमे
इसकी दिव्य उर्जा का संचार हो सके | गंगा के तट पर एक महीने शास्त्र अध्ययन , उपदे श श्रवण ,
जप तप और ध्यान करके व्यक्ति मुक्त हो जाता है | गंगा का महात्म्य इतना है की शैव भगवान
शिव के जटाजूट से निकलने की कथा कहते है तो वैष्णव भगवान विष्णु के पाद से निकलने की
कथा कहते है | गंगा स्वर्ग से धरती पर कैसे आई इसकी अनेक कथाये हैं लेकिन सबका अर्थ एक ही
है की गंगा दिव्य है , स्वर्गिक है और पाप नाशिनी है | वैदिक संस्कृति की अवनति और अधर्म की
वद्धि
ृ होने पर द्वापर भगवान विष्णु श्री कृष्ण चन्द्र के रूप में अपनी पूर्ण कलाओं के साथ अवतरित
हुए | उन्होंने लोक कल्याण के लिए कर्मयोग का उपदे श अर्जुन को को दिया जिसे भगवद गीता कहते
हैं | यह वेद स्वरूप , ओंकार स्वरूप  भगवान के श्रीमुख से निकला था इसलिए यह वेदों और
उपनिषदों का सार बनकर हम तक आया | भगवद गीता का स्थान सनातन हिन्द ू धर्म के त्रयी में
स्थान प्राप्त है | हिन्द ू धर्म के तीन आधार धर्म ग्रन्थ हैं उपनिषद ,ब्रह्म सूत्र और भगवद्गीता इन्हें
परम्परा में त्रयी कहते हैं | द्वापर युग के बाद भगवद्गीता के बगैर भारतीय दर्शन और संस्कृति की
कल्पना नहीं की जा सकती | भगवान श्री कृष्ण के जीवन में गौ का अहम स्थान रहा | गायों के बीच
ही उनकी सम्पूर्ण लीलाए हैं | कामधेनु गाय ने स्वर्ग से उतरकर अपने उद्धारक भगवान का दग्ु ध से
अभिषेक किया था | तब से कृष्ण का नाम  गोविन्द -गोपाल पड़ा |
 भगवांन श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है :

" न किं चित्दर्ल


ु भं चैव गवां भक्तस्य भारतः"

 हे अर्जुन गो भक्त के लिए इस जगत में कुछ भी दर्ल


ु भ  नहीं है ! 
भगवद्गीता वेदांत का मुकुट मणि है | भगवान ने दसवें अध्याय विभूति योग में गायत्री को अपना
स्वरूप बताया है और गायों को भी अपना स्वरूप बताया है | लेकिन ये गायें भारतीय कामधेनु हैं ,
जर्सी सूअर नहीं | विभूति योग में ही उन्होंने अर्जुन को नदियों श्रेष्ठ जाह्नवी को बताया और गंगा
जी के वाहन मकर को श्रेष्ठ जलचर बताया |
 झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्णवी  
इससे गंगा -गो-गायत्री और गीता का आध्यात्मिक अन्तर्सम्बन्ध सहज ही सामने आता है कि ये चार
आध्यात्मिक संस्कृति के चार स्तम्भ क्यों हैं |

भगवद्गीता महात्म्य में कहा गया है तीसरे अध्याय के पाठ से गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है |
गीता का गंगा से कितना गहरा सम्बन्ध है ? तीसरा अध्याय कर्मयोग का प्रारम्भ है | गंगा माता का
सतत प्रवाह निष्काम है , वो निष्काम भाव से सष्टि
ृ का पाप हरन करती हैं और मुक्ति का मार्ग
प्रशस्त करती हैं | भगवद्गीता का पूरा पाठ न भी हो आधा ही हो तो भी गोदान का फल प्राप्त होता
है ऐसा वराह परु ाण इसके महात्म्य में वर्णन है | 

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