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अप्सरा साधना

भानव जीवन का सवोऩयी रक्ष्म तो धभााचयण कयते हुए अऩने दायमत्वों


का यनवााह कय भोऺ की प्राप्तत कयना होता है ,औय इसके साथ ही
भानव की एक भख्
ु म आवश्मकता होती है “आकषाक व्मप्ततत्व” ,
प्जसके सहाये वह आत्भववबोय होकय जीवन की अनेक ववषभताओॊ को
सहज ही ऩाय कय रेता है !जो व्मप्तत अभबनम के ऺेत्र भें सपर होने की
इच्छा यखते हैं अथवा अऩने जीवन भें रूऩ, सौन्दमा, मौवन, आकषाक
व्मप्ततत्व, भन के अनक
ु ू र जीवन साथी, कामाऺेत्र भें भन के अनक
ु ूर
अधधकायी मा सहकभी व जीवन भें प्रेभ सौहादा आदद की हीनता के
कायण भानभसक ऩीड़ा से व्मधथत होते हैं , ऐसे व्मप्ततमों के भरए
अतसया साधना सॊऩन्न कय रेना सवोत्तभ भागा होता है !
सनातन धभा के शास्त्त्रों भें प्राचीन कार से ही अतसयाओॊ की साधना का
प्रचरन यहा है , तमोंकक इनकी साधना वैददक दे वी दे वताओॊ की साधना
से कहीॊ अधधक सहज व सयर होती हैं !अतसया साधना सॊऩन्न कयने से
अत्मॊत कभ सभम भें ही उत्तभ अभबनम की करा, रूऩ, सौन्दमा,
मौवन, आकषाक व्मप्ततत्व, भन के अनुकूर जीवन साथी, कामाऺेत्र भें
भन के अनक
ु ू र अधधकायी मा सहकभी व जीवन भें प्रेभ सौहादा , मौवन
आदद के अऩेक्षऺत ऩरयणाभ प्रातत होकय साधक के बौयतक जीवन को
सवाानन्द से ऩरयऩूणत
ा ा की प्राप्तत होती है ! एक ववशेष ववधध से तॊत्रोतत

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ऩद्धयत से भरॊगाचान अथवा चक्राचान कयने भात्र से बी अनेक अतसयाएॊ
स्त्वत् ही भसद्ध हो जाती हैं ! इस साधना के प्रबाव से व्मप्ततत्व अत्मॊत
आकषाक व चम्
ु फकीम हो जाता है तथा भें आने वारे सबी रोग उनकी
औय आकवषात होने रगते हैं.प्जनके वैवादहक, ऩारयवारयक, साभाप्जक
जीवन भें तरेश व तनाव की प्स्त्थयत उत्ऩन्न हो, इस साधना के प्रबाव
से उनके वैवादहक, ऩारयवारयक व साभाप्जक जीवन भें प्रेभ सौहादा की
प्स्त्थयतमाॊ उत्ऩन्न हो जाती हैं.कामाऺेत्र भें भन के अनक
ु ू र अधधकायी मा
सहकभी न होने के कायण असहज ऩरयप्स्त्थमों भें नौकयी चरे जाने का
बम यहता है , इस साधना के प्रबाव से अधधकायी व सहकभी भभत्रवत हो
जाते हैं.
अतसयाओॊ की साधना अनेक रूऩों भें की जाती है , जैसे भाॉ, फहन, ऩत्र
ु ी,
ऩत्नी अथवा प्रेभभका के रूऩ भें इनकी साधना की जाती है , ओय साधक
प्जस रूऩ भें इनको साधता है मे उसी प्रकाय का व्मवहाय व ऩरयणाभ बी
साधक को प्रदान कयती हैं, अतसयाओॊ को ऩत्नी मा प्रेभभका के रूऩ भें
साधने ऩय साधक को कोई कदिनाई मा हानी नहीॊ होती है , तमोंकक मह
तो साधक के व्मप्ततत्व को इतना अधधक प्रबावशारी फना दे ती हैं कक
साधक के सॊऩका भें यहने वारा प्रत्मेक व्मप्तत अतसया साधक के भन के
अनक
ु ू र आचयण कयने रगता है .
प्रत्मऺ अतसया साधना

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मह प्रत्मक्षऺकयण साधना थोड़ी कदिन होती है , इस साधना भें
साधनाकार के सभम डेढ़ से दो घॊटे तक का प्स्त्थय आसन, ऩण
ू ा
एकाग्रता, वीयबाव, ब्रह्भचमा व यनबामता की ऩयभ अयनवामाता होती है ,
ककन्तु श्रेष्ि गरु
ु से ववधधवत दीऺा रेकय गरु
ु के यनदे शन भें साधना
कयने से मह साधना बी अत्मन्त सयर फन जाती है . शुक्र के प्रबावकार
अथाात 24 वषा तक की आमु के साधक की ऊजाा प्रफर व उत्तभ होने के
कायण ववधधवत दीक्षऺत होकय ऩण
ु त
ा ् गरु
ु के यनदे शन भें यहकय सबी
आवश्मक यनमभों का ऩारन कयते हुए भात्र कुछ ददनों भें ,मह अतसया
साधना ऩण
ू ा कय अतसया भसवद्ध प्रातत कय अतसया को प्रत्मऺ कय उससे
अऩने भन के अनुकूर नैयतक कामा कया सकता है . मह साधना गुरु के
यनदे शन औय सायनध्म तथा साधक की मोग्मता का यनयीऺण ककमे
बफना नहीॊ कयामी जा सकती है .
अप्सरा यक्षिणी कवच
इस कवच को साधना से ऩहरे 1,5 मा 7 फाय जऩ ककमा जाना चादहए।
इस कवच के जऩ से ककसी बी प्रकाय की सन्
ु दयी साधना भें ववऩयीत
ऩरयणाभ प्रातत नहीॊ होते औय साधना भें जल्द ही भसवद्ध प्रातत होती हैं।
इस कवच के जऩने से मक्षऺणीमों/ अतसयाओॊ का वशीकयण होता हैं।

।। श्री उन्भत्त-बैयव उवाच ।।

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श्रण
ृ ु कल्माणण ! भद्-वातमॊ, कवचॊ दे व-दर
ु ब
ा ॊ।
मक्षऺणी-नायमकानाॊ त,ु सॊऺेऩात ् भसवद्ध-दामकॊ ।।
ऻान-भात्रेण दे वभश ! भसवद्धभातनोयत यनप्श्चतॊ।
मक्षऺणण स्त्वमभामायत, कवच-ऻान-भात्रत् ।।
सवात्र दर
ु ब
ा ॊ दे वव ! डाभये षु प्रकाभशतॊ।
ऩिनात ् धायणान्भत्मो, मक्षऺणी-वशभानमेत ् ।।

ववयनमोग्- ॐ अस्त्म श्रीमक्षऺणी-कवचस्त्म श्री गगा ऋवष्, गामत्री


छन्द्, श्री अभुकी मक्षऺणी दे वता, साऺात ् भसवद्ध-सभद्ध
ृ मथे ऩािे
ववयनमोग्।

ऋष्माददन्मास्- श्रीगगा ऋषमे नभ् भशयभस, गामत्री छन्दसे नभ् भख


ु े,
श्री ययतवप्रमा मक्षऺणी दे वतामै नभ् रृदद, साऺात ् भसवद्ध-सभद्ध
ृ मथे ऩािे
ववयनमोगाम नभ् सवाांगे।।। भर
ू ऩाि ।।
भशयो भे मक्षऺणी ऩात,ु रराटॊ मऺ-कन्मका।
भख
ु ॊ श्री धनदा ऩात,ु कणौ भे कुर-नायमका ।।
चऺुषी वयदा ऩात,ु नाभसकाॊ बतत-वत्सरा।
केशाग्रॊ वऩॊगरा ऩात,ु धनदा श्रीभहे श्वयी ।।
स्त्कन्धौ कुरारऩा ऩात,ु गरॊ भे कभरानना।
ककयायतनी सदा ऩात,ु बुज-मुग्भॊ जटे श्वयी ।।

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ववकृतास्त्मा सदा ऩात,ु भहा-वज्र-वप्रमा भभ।
अस्त्त्र-हस्त्ता ऩातु यनत्मॊ, ऩष्ृ िभद
ु य-दे शकभ ् ।।
बेरुण्डा भाकयी दे वी, रृदमॊ ऩातु सवादा।
अरॊकायाप्न्वता ऩात,ु यनतम्फ-स्त्थरॊ दमा ।।
धाभभाका गुह्मदे शॊ भे, ऩाद-मुग्भॊ सुयाॊगना।
शून्मागाये सदा ऩात,ु भन्त्र-भाता-स्त्वरुवऩणी ।।
यनष्करॊका सदा ऩात,ु चाम्फव
ु त्मणखरॊ तनॊ।ु
प्रान्तये धनदा ऩात,ु यनज-फीज-प्रकाभशनी ।।
रक्ष्भी-फीजाप्त्भका ऩात,ु खड्ग-हस्त्ता श्भशानके।शन्
ू मागाये नदी-तीये ,
भहा-मऺेश-कन्मका।।
ऩातु भाॊ वयदाख्मा भे, सवाांगॊ ऩातु भोदहनी।
भहा-सॊकट-भध्मे त,ु सॊग्राभे रयऩु-सञ्चमे ।।
क्रोध-रुऩा सदा ऩात,ु भहा-दे व यनषेववका।
सवात्र सवादा ऩात,ु बवानी कुर-दायमका ।।
इत्मेतत ् कवचॊ दे वव ! भहा-मक्षऺणी-प्रीयतवॊ।
अस्त्मावऩ स्त्भयणादे व, याजत्वॊ रबतेऽधचयात ्।।
ऩञ्च-वषा-सहस्राणण, प्स्त्थयो बवयत बू-तरे।
वेद-ऻानी सवा-शास्त्त्र-वेत्ता बवयत यनप्श्चतभ ्।
अयण्मे भसवद्धभातनोयत, भहा-कवच-ऩाित्।
मक्षऺणी कुर-ववद्मा च, सभामायत सु-भसद्धदा।।

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अणणभा-रयघभा-प्राप्तत् सुख-भसवद्ध-परॊ रबेत ्।
ऩदित्वा धाययमत्वा च, यनजानेऽयण्मभन्तये ।।
प्स्त्थत्वा जऩेल्रऺ-भन्त्र भभष्ट-भसवद्धॊ रबेप्न्नभश।
बामाा बवयत सा दे वी, भहा-कवच-ऩाित्।।
ग्रहणादे व भसवद्ध् स्त्मान ्, नात्र कामाा ववचायणा ।।

मंत्र साधना के ननयम

साधना के भरए एकाॊत स्त्थान का चन


ु ाव कयना चादहए प्जससे कक
आऩकी ऩूजा अथवा साधना भें ककसी प्रकाय का व्मवधान न उऩप्स्त्थत
हो |शास्त्त्रों भें ऩववत्र नददमों के तट, ऩवात , जॊगर , तीथा स्त्थर , गप
ु ाओॊ
आदद की प्राथभभकता दी है |तमोंकक ऐसे स्त्थाओॊ ऩय भन स्त्वत् ही
एकाग्र होने रगता है |घय के एकाॊत कभये को शुद्ध-स्त्वच्छ फनाकय
ऩज
ू ा-साधना -अनष्ु िान ककमा जा सकता है |कुशासन, ये शभी आसन,
ऊनी , म्रगचभा अथवा व्माघ्र चभा आदद भें से साधना के अनुकूर आसन
का प्रमोग कयें |जऩ कामा अतसया भारा से ककमा जाना चादहए | प्रात्
कार ऩूवा की ओय तथा साॊमकार ऩप्श्चभ ददशा की ओय भुख कयके जऩ
कयना चादहए |अतसया साधना यात भें कक जानी चादहए |
नोट – भशव भॊत्र तथा गणेश की कभ से कभ 5 भारा प्रत्मेक ददन कयना
अयनवामा होता है .

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वेद औय ऩुयाणों भरॊग ऩुयाण भें उल्रेख भभरता है कक अतसया सफसे
सॊद
ु य औय जादईु शप्ततमों से सॊऩन्न होती हैं। मह गॊधवा रोक भें यहने
वारी दे वरोक भें नत्ृ म औय सॊगीत के भाध्मभ से दे वताओॊ का
भनोयॊ जन कयती हैं। दे वयाज इन्र दे व ने भसॊहासन की यऺा के भरए
अनेक फाय सॊत-तऩप्स्त्वमों के किोय तऩ को बॊग कयने के भरए
अतसयाओॊ का इस्त्तेभार ककमा है ।अतसयाओॊ के ऐसे इस्त्तेभार के चरते
धयती ऩय अतसया से उत्ऩन्न रोगों का वॊश चरा औय अतसयाओॊ ने
भनुष्म जायत का इयतहास फदर कय यख ददमा।
अप्सरा जैसा सौन्दयय प्राप्त करे

Mantra-
।। ऊॉ सॊ सौन्दमा भसदघ्मे सॊ ऊॉ ।।
Mantra :
ऊॉ त्रीॊ ह्ीॊ ह्ूॊ मौवन दे ही ऊॊ.

अतसयाएॉ दो प्रकाय की भानी गमी हैं:


दै ववक:- ऐसी अतसयाएॉ जो स्त्वगा भें यनवास कयती हैं। यम्बा सदहत
भुख्म 11 अतसयाओॊ को दै ववक अतसया कहा जाता है ।
रौककक:- ऐसी अतसयाएॉ जो ऩथ्
ृ वी ऩय यनवास कयती हैं। जैसे ताया,
भामा, अॊजना इत्मादद। इनकी कुर सॊख्मा 34 फताई गमी है ।

34
अतसयाओॊ को सौबाग्म का प्रतीक बी भाना गमा है । कहते हैं अतसयाओॊ
का कौभामा कबी बॊग नहीॊ होता औय वो सदै व कुभायी ही फनी यहती है ।
सभागभ के फाद अतसयाओॊ को उनका कौभामा वाऩस प्रातत हो जाता है ।
उनका सौंदमा कबी ऺीण नहीॊ होता औय ना ही वे कबी फढ
ू ी होती हैं।
उनकी आमु बी फहुत अधधक होती है । भाकाण्डेम ऋवष के साथ वातााराऩ
कयते हुए उवाशी कहती है – हे भहवषा! भेये साभने ककतने इॊर आमे औय
ककतने इॊर गए ककन्तु भैं वही की वही हूॉ। जफ तक 14 इॊर भेये सभऺ
इन्रऩद को नहीॊ बोग रेते भेयी भत्ृ मु नहीॊ होगी। प्रभुख अतसयाओॊ के
नाभ औय उनके भॊत्र
प्रधान अप्सरा
1- यम्बा
2- ऊवाशी:
3- यतरोत्तभा:
शास्त्त्रों के अनुसाय दे वयाज इन्र के स्त्वगा भें 11 अतसयाएॊ उनकी प्रभुख
सेववका थीॊ। मे 11 अतसयाएॊ हैं-
1- कृतस्त्थरी अतसया,
2- ऩुॊप्जकस्त्थरा,
3- भेनका,
4– यम्बा,
5- प्रम्रोचा अतसया

35
6- अनुम्रोचा,
7- घत
ृ ाची अतसया,
8- वचाा,
9- ऊवाशी,
10- ऩूवधा चप्त्त औय
11- यतरोत्तभा।
इन सबी अतसयाओॊ की प्रधान अतसया यम्बा थी।
प्रभुख अतसयाएॉ:
12- कृतस्त्थरी अतसया ,13- ऩॊप्ु जकस्त्थरा,14- प्रम्रोचा अतसया भॊत्र
15- अनुम्रोचा,16- घत
ृ ाची अतसया भॊत्र,17- वचाा,18- ऩूवधा चप्त्त.
अन्म प्रभख
ु अतसयाएॉ:
19- अप्म्फका,20- अरम्वुषा,21- अनावद्मा,22- अनुचना,23-
अरुणा ,24- अभसता,25- अऩाणा,26- फुदफुदा,27- चॊर ज्मोत्सना
28- दे वी,29- गुनभुख्मा,30- गुनुवया,31- हषाा,32- इन्ररक्ष्भी
33- काम्मा,34- कॊचनभारा अतसया ,35- कणणाका,36- केभशनी
37- कुण्डरा हरयणी अतसया,38- ऺेभा,39- रता,40 – रीरावती
अतसया,41- रक्ष्भना,42- भनोयभा,43- भारयची,44- भभश्रास्त्थरा
45- भग
ृ ाऺी ,46- नाभबदशाना अतसया,47- ऩव
ू धा चट्टी,48- ऩष्ु ऩदे हा
49- बूवषणण,50- यक्षऺता,51- यत्नभारा अतसया,52- ऋतुशरा
53- साहजन्मा,54- सभीची,55- सौयबेदी,56- शायद्वती,57- शधु चका

36
58- सोभी,59- सुवाहु,60- सुगॊधभोददनी अतसया ,61- सुवप्रमा
62- सयु जा,63- सयु सा,64- सयु ाता,65- शशी:,66- उभरोचा

रम्भा अप्सरा
प्रभुख 11 अतसयाओॊ भें प्रधान अतसया यॊ बा हैं। यम्बा अऩने रूऩ औय
सौन्दमा के भरए तीनों रोकों भें प्रभसद्ध थी।
मही कायण था कक हय कोई उसे हाभसर कयना चाहता था। याभामण
कार भें मऺयाज कुफेय के ऩत्र
ु नरकुफेय की ऩत्नी के रूऩ भें इसका
उल्रेख भभरता है । यावण ने यम्बा की अप्स्त्भता बॊग की थी प्जसके
कायण नरकुफेय ने उसे शाऩ ददमा था कक „जा, जफ बी तू तझ
ु े न चाहने
वारी स्त्त्री से सॊबोग कये गा, तफ तुझे अऩने प्राणों से हाथ धोना ऩड़ेगा।‟
भाना जाता है कक इसी शाऩ के बम से यावण ने सीताहयण के फाद दे वी
सीता को छुआ तक नहीॊ था।‟भहाबायत‟ भें इसे तुरुॊफ नाभ के गॊधवा की
ऩत्नी फतामा गमा है । स्त्वगा भें अजुन
ा के स्त्वागत के भरए यम्बा ने नत्ृ म
ककमा था। उस वतत ऊवाशी बी थीॊ जो अजन
ुा ऩय भोदहत हो गई थी।एक
फाय ववश्वाभभत्र की घोय तऩस्त्मा से ववचभरत होकय इॊर ने यॊ बा को
फर
ु वाकय ववश्वाभभत्र का तऩ बॊग कयने के भरए बेजा रेककन ऋवष इन्र
का षड्मॊत्र सभझ गए औय उन्होंने यॊ बा को हजाय वषों तक भशरा
फनकय यहने का शाऩ दे डारा। सवार मह उिता है कक अऩयाध को इॊर ने
ककमा था कपय सजा यॊ बा को तमों भभरी? हाराॊकक वाल्भीकक याभामण
की एक कथा के अनुसाय एक ब्राह्भण द्वाया मह ऋवष के शाऩ से भुतत
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हुई थीॊ। रेककन स्त्कन्द ऩुयाण के अनुसाय इसके उद्धायक „श्वेतभुयन‟
फताए गए हैं, प्जनके छोड़े फाण से मह भशरारूऩ भें कॊभभतीथा भें धगयकय
भुतत हुई थीॊ।
यम्बा तत
ृ ीमा -सह
ु ाग की यऺा तथा फवु द्धभान सॊतान के भरए कयें यम्बा
तीज व्रत शीघ्र परदामी भाना जाता है । मह व्रत ज्मेष्ि शुतर तत
ृ ीमा
को ककमा जाता है ।
भॊत्र :: ऊॉ स: यम्बे आगच्छागच्छ स्त्वाहा

उवयशी : इॊर की सफसे रूऩवती अतसया


उवाशी के जन्भ की कथा का उल्रेख इस प्रकाय है । बगवान ववष्णु ने
ब्रह्भा जी के ऩुत्र धभा औय उनकी ऩत्नी रुधच की तऩस्त्मा से प्रसन्न
होकय उनके घय नय औय नायामण रूऩ भें जन्भ भरमा। फाल्मकार भें ही
नय औय नायामण ने साधु का वेष फनाकय भाता वऩता से आऻा भरमा
औय तऩस्त्मा के भरए घय से चर ददए। मे नय औय नायामण ही
भहाबायत कार भें कृष्ण औय अजन
ुा हुए।इनकी तऩस्त्मा दे खकय इॊर का
आसन डोरने रगा औय उन्हें बम सताने रगा कक नय औय नायामण
तऩ के फर ऩय इॊररोक ऩय अधधकाय न कय रें। बमबीत इॊर ने नय औय
नायामण को तऩस्त्मा से ववभुख कयने के भरए काभदे व सॊग अऩनी वप्रम
अतसया भेनका औय यॊ बा को बेजा। रेककन काभदे व औय अतसयाएॊ नय
नायामण की तऩस्त्मा बॊग नहीॊ कय ऩाए। इसके फाद जो हुआ उसकी
कल्ऩना दे वयाज इॊर को बी नहीॊ थी।नय नायामण ने अतसयाओॊ के
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ऩयाप्जत हो जाने ऩय अऩनी आॊखें खोरी औय अतसयाओॊ को अबम दान
दे कय दे वयाज इॊर को फर
ु ामा। घफयाते हुए इॊर नय नायामण के ऩास ऩहुॊचे
तो नय नायामण ने कहा कक हभें दे वरोक का रोब नहीॊ है इसभरए हभायी
तऩस्त्मा भें ववघ्न भत डारो औय तम्
ु हें प्जन अतसयाओॊ की सॊद
ु यता ऩय
अभबभान है उससे रूऩवती अतसया भैं तुम्हें बें ट कयता हूॊ। नायामण ने
अऩनी उरु मानी जॊघा से उवाशी को प्रकट ककमा जो इॊर की सबी
अतसयाओॊ से सॊद
ु य थी।नय नायामण की तऩस्त्मा से बगवान भशव प्रकट
हुए औय उनके अनुयोध ऩय केदायनाथ ज्मोयताभरॊग के रूऩ भें केदायनाथ
भें फस गए। जहाॊ मह घटना हुई थी वह स्त्थान आज फरीनाथ के नाभ से
जाना जाता है । महाॊ दो ऩवात आभने साभने खड़े हैं। कहते हैं मे ऩवात नय
औय नायामण के रूऩ भें आज बी हैं महाॊ ववयाजभान हैं। कभरमग
ु के अॊत
भें दोनो ऩवात आऩस भें भभर जाएॊगे औय वताभान फरीनाथ का यास्त्ता
फॊद हो जाएग। इसके फाद बववष्म फरी भें बगवान फरीनाथ की ऩूजा
होगी।
एक फाय इन्र की सबा भें उवाशी के नत्ृ म के सभम याजा ऩुरुयवा उसके
प्रयत आकृष्ट हो गए थे प्जसके चरते उसकी तार बफगड़ गई थी। इस
अऩयाध के कायण इन्र ने रुष्ट होकय दोनों को भत्ृ मुरोक भें यहने का
शाऩ दे ददमा था। भत्ृ मर
ु ोक भें ऩरु
ु यवा औय उवाशी कुछ शतों के साथ
ऩयत-ऩत्नी फनकय यहने रगे। दोनों के कई ऩुत्र हुए। ऩुरु के वॊश भें ही
आगे चरकय कुरु से कौयव हुए। बीष्भ वऩताभह कुरुवॊशी ही थे।मही

39
उवाशी एक फाय इन्र की सबा भें अजुन
ा को दे खकय आकवषात हो गई थी
औय इसने प्रणम-यनवेदन ककमा, रेककन अजन
ुा ने कहा- „हे दे वी! हभाये
ऩूवज
ा ने आऩसे वववाह कयके हभाये वॊश का गौयव फढ़ामा था अत् ऩुरु
वॊश की जननी होने के नाते आऩ हभायी भाता के तल्
ु म हैं.।‟ अजन
ुा की
ऐसी फातें सुनकय उवाशी ने कहा- „तुभने नऩुॊसकों जैसे वचन कहे हैं अत्
भैं तुम्हें शाऩ दे ती हूॊ कक तुभ 1 वषा तक ऩुॊसत्वहीन यहोगे।‟
ववश्वाममत्र ओर उवयशी:ववश्वाभभत्र ने जफ मह सन
ु ा कक उवाशी इन्र के
दयफाय की सफसे सौन्दमाभमी नत्ृ माॊगना है , तो उन के भन भे आमा कक
उवाशी उनके आश्रभ भे बी नत्ृ म कये । ववश्वाभभत्र जी ने अऩना सॊदेश
इन्र तक ऩहुॊचा ददमा ऩयन्तु इन्र ने भना कय ददमा मह ककसी बी प्रकाय
से सम्बव नहीॊ है ।ववश्वाभभत्र तो हिी ऋवष थे , उन्होंने भॊत्र शप्तत
द्वाया उवाशी को अऩने आश्रभ भें फुरामा औय कहा – तम्
ु हें िीक वैसा ही
नत्ृ म कयना होगा जैसा इन्र की सबा भें तुभ कयती हो।उवाशी ने ऐसा
कयने से भना कय ददमा औय वावऩस इन्ररोक चरी गई। ववश्वाभभत्र ने
उसी ऺण प्रयतऻा की कक “भैं तॊत्र की यचना करूॊगा औय तॊत्र शप्तत से
उवाशी को अऩने आश्रभ भें फर
ु ा कय ,नत्ृ म कयवाऊॊगा!” औय इसी
प्रयतऻा कक ऩरयणाभ से „उवाशी तॊत्र‟ की यचना की औय हजायों भशष्मों
के साभने उवाशी का नत्ृ म सॊऩन्न कयवामा. ववश्वाभभत्र के फाद उनके
भशष्म बूरयश्रवा, धचन्भम, दे वसुत,गन्धय, औय महाॊ तक कक दे वी ववश्रा

40
औय यत्नप्रबा ने बी उवाशी भसद्ध कय जीवन के सम्ऩूणा बोगों का बोग
ककमा।
भॊत्र:ऊॉ श्री उवाशी आगच्छागच्छ स्त्वाहा.

मेनका
भेनका ने अऩने रूऩ औय सौंदमा से तऩस्त्मा भें रीन ववश्वाभभत्र का तऩ
बॊग कय ददमा। ववश्वाभभत्र सफ कुछ छोड़कय भेनका के ही प्रेभ भें डूफ
गए। भेनका से ववश्वाभभत्र ने वववाह कय भरमा औय भेनका से
ववश्वाभभत्र को एक सन्
ु दय कन्मा प्रातत हुई प्जसका नाभ शकॊु तरा यखा
गमा। शकॊु तरा छोटी ही थी, तबी एक ददन भेनका उसे औय ववश्वाभभत्र
को छोड़कय कपय से इॊररोक चरी गई। इसी ऩत्र
ु ी का आगे चरकय
सम्राट दष्ु मॊत से प्रेभ वववाह हुआ, प्जनसे उन्हें ऩुत्र की प्राप्तत हुई। मही
ऩत्र
ु याजा बयत थे।भरुद्गणों की कृऩा से ही बयत को बायद्वाज नाभक
ऩुत्र भभरा। बायद्वाज भहान ऋवष थे। चक्रवती याजा बयत के चरयत का
उल्रेख भहाबायत के आददऩवा भें बी है । इसी बयत के कुर भें याजा कुरु
हुआ औय उनसे कौयव वॊश की स्त्थाऩना हुई। कुरु के वॊश भें शान्तनु का
जन्भ हुआ। शान्तनु ने गॊगा औय सत्मवती से वववाह ककमा था। इसके
भतरफ मह कक उवाशी के वॊश को ही फाद भें भेनका ने आगे फढ़ामा।
भॊत्र : “ॐ ह्ीॊ श्रीॊ तरीॊ श्रीॊ भेनका अतसया आगच्छ आगच्छ स्त्वाहा”

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ऩंजजकस्थऱा
एक ओय जहाॊ उवाशी औय भेनका ने ऩरु
ु यवा के वॊश को आगे फढ़ामा था
वहीॊ ऩुॊप्जकस्त्थरा ने वानय वॊश को नमा आमाभ ददमा था। भाता अॊजनी
से हनभ
ु ान के जन्भ की कथा तो सफने सन ु ी है रेककन फहुत कभ रोग
जानते हैं कक दे वी अॊजनी ऩूवज
ा न्भ भें इॊर के दयफाय भें ऩुॊप्जकस्त्थरा
नाभक एक अतसया थीॊ। ऩुप्जॊकस्त्थरा ने तऩस्त्मा कयते एक तेजस्त्वी
ऋवष के साथ अबरता कय दी। गस्त्
ु से भें आकय ऋवष ने ऩॊप्ु जकस्त्थरा को
श्राऩ दे ददमा कक जा तू वानय की तयह स्त्वबाव वारी वानयी फन जा,
ऋवष के श्राऩ को सन
ु कय ऩॊप्ु जकस्त्थरा ऋवष से ऺभा माचना भाॊगने
रगी, तफ ऋवष ने दमा ददखाई औय कहा कक तुम्हाया वह रूऩ बी ऩयभ
तेजस्त्वी होगा। तभ
ु से एक ऐसे ऩत्र
ु का जन्भ होगा प्जसकी कीयता औय
मश से तुम्हाया नाभ मुगों-मुगों तक अभय हो जाएगा, इस तयह अॊजनी
को वीय ऩुत्र का आशीवााद भभरा।

नतऱोत्तमा
यतरोत्तभा स्त्वगा की ऩयभ सॊद
ु य अतसया है ।यतरोत्तभा की कई कथाएॊ
ऩुयाणों भें भभरती है उन्हीॊ भें से एक कथा मह है कक दहयण्मकभशऩु के
वॊश भें यनकॊु ब नाभक एक असयु उत्ऩन्न हुआ था, प्जसके सन्
ु द औय
उऩसुन्द नाभक दो ऩयाक्रभी ऩुत्र थे। उनके तऩ से प्रसन्न होकय
ब्रह्भाजी ने उनसे वय भाॊगने को कहा। दोनों असयु ों ने ब्रम्हा जी से

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अभयत्व का वय भाॊगा रेककन ब्रह्भाजी ने इसे दे ने से इनकाय कय
ददमा।ऐसे भें दोनों बाइमों ने आऩस भें ववचाय ववभशा ककमा। दोनों ने
सोचा कक वे हभ दोनों भें फहुत प्रेभ है औय हभ आऩस भें कबी रड़ते नहीॊ
है । उनको ऩण
ू ा ववश्वास था कक वे कबी बी एक दस
ू ये के णखराप कुछ बी
नहीॊ कयें गे। इसीभरए मही सोचकय उन्होंने ब्रह्भाजी से कहा कक उन्हें
मह वयदान भभरे कक एक-दस
ू ये को छोड़कय इस बत्ररोक भें उन्हें कोई बी
नहीॊ भाय सके। ब्रह्भाजी ने कहा- तथास्त्त।ु फस कपय तमा था दोनों
बाइमों सुन्द औय उऩसुन्द ने त्रैरोतम भें अत्माचाय कयने शुरू कय ददए
प्जसके चरते सबी ओय हाहाकाय भच गमा। ऐसी ववकट प्स्त्थयत
जानकय ब्रह्भाजी ने दोनों बाइमों को आऩस भें रड़वाने के भरए
यतरोत्तभा नाभ की अतसया की सप्ृ ष्ट की। ब्रह्भा से आऻा ऩाकय
यतरोत्तभा ने सुन्द औय उऩसुन्द के यनवास स्त्थान ववन्ध्म ऩवात की
ओय प्रस्त्थान ककमा। एक ददन यतरोत्तभा को दोनों बाइमों ने टहरते
हुए औय गाते हुए दे खा औय दोनों ही उसे दे खकय सुधफुध खो फैिे। जफ
उन्होंने सुध सॊबारी तफ सुन ्द ने उऩसुन्द से कहा कक मह अतसया आज
से भेयी ऩत्नी हुई। मह सन
ु ते ही उऩसन्
ु द बड़क गमा औय उसने कहा
नहीॊ तुभ अकेरे ही मह यनणाम कैसे रे सकते हो। ऩहरे इसे भैंने दे खा है
अत: मह भेयी अधाांधगनी फनेगी।फस कपय तमा था। दोनों ही बाई जो
फचऩन से ही एक दस
ू ये के भरए जान दे ने के भरए तैमाय यहते थे अफ वे
एक दस
ू ये की जान रेने के भरए रड़ने रगे। फहुत सभम तक उनभें

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रड़ाई चरी औय अॊतत: वे एक दस
ू ये के हाथों भाये गए।. उल्रेखनीम है
कक दवु ाासा ऋवष के शाऩ से मही यतरोत्तभा फाण की ऩत्र
ु ी हुई थी।
अष्टावक्र ने बी इसे शाऩ ददमा था।
भॊत्र : ऊॉ श्री यतरोत्ताभे आगच्छागच्छ स्त्वाहा

घत
ृ ाची अप्सरा
घत
ृ ाची प्रभसद्ध अतसया थीॊ। कहते हैं कक एक फाय बयद्वाज ऋवष की
अऩस्त्मा बॊग कयने के भरए इॊर से इसे बेजा था। बायद्वाज गॊगा स्त्नान
कय अऩने आश्रभ की ओय रौट यहे थे। तबी उनकी नजय घत
ृ ाची ऩय
ऩड़ी जो नदी से स्त्नान कय फाहय यनकर यही थी। बीगे वस्त्त्रों भें उसके
काभक
ु तन औय बये ऩयू े अॊगों को दे खकय बायद्वाज भन
ु ी वहीॊ रुक गए।
उन्होंने अऩने नेत्रों को फॊद कय खद
ु को यनयॊ त्रण कयने का प्रमास ककमा
रेककन ऐसा कयने भें वे असपर यहे । आॊखें खोरकय वे उसके रूऩ औय
सौंदमा को यनहायने रगे। काभवासना से ऩीडड़त बायद्वाज का दे खते ही
दे खते वीमाऩात हो गमा था। तबी वीमा को उन्होंने एक रोणण (भभट्टी का
फतान) भें यख ददमा प्जससे रोणाचामा का जन्भ हुआ था।
ऩौयाणणक कथा अनुसाय मह कश्मऩ ऋवष तथा प्राधा की ऩुत्री थीॊ। कहते
हैं कक ववश्वकभाा से बी घत
ृ ाची के ऩत्र
ु हुए थे। रुराश्व से घत
ृ ाची को दस
ऩुत्र औय दस ऩुबत्रमाॊ उत्ऩन्न हुई थीॊ। कन्नौज के नये श कुशनाब ने
इसके गबा से सौ कन्माएॊ उत्ऩन्न की थीॊ। भहवषा च्मवन के ऩत्र
ु प्रभभयत

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ने घत
ृ ाची के गबा से रूरू नाभक ऩुत्र उत्ऩन्न ककमा था। घत
ृ ाची की
खफ
ू सयू त कामा को यनहायने भात्र से वेदव्मासा़ ऋवष काभाशक् त हो गए
थे प्जसके चरते शुकदे व उत्ऩभ
न ्न हुए।इस तयह हभने दे खा कक ककस
तयह अतसयाओॊ के भादक जार भें पॊसकय ऋवषमों ने अऩना तऩ
छोड़कय सॊसाय भें अऩने वॊश की ववृ द्ध की। इसी तयह से उऩयोतत
अतसयाओॊ के औय बी कई कयनाभें हैं। इसके अरावा यनम्नभरणखत
अतसयाओॊ ने बी धयती ऩय आकय भनष्ु म जाती द्वाया कई ऩत्र
ु औय
ऩुबत्रमों को जन्भ ददमा हैं।
भॊत्र : ॐ ह्ीॊ ऐॊ घत
ृ ाची अतसया ह्ीॊ ऐॊ नभ्।

मग
ृ ािी अप्सरा

भग
ृ ाऺी का तात्ऩमा भग
ृ के सभान बोरी औय सुन्दय आॊखों वारी
अतसया से है । जो सुॊदय, आकषाक, भनोहय, धचयमौवनवती औय प्रसन्न
धचत्त अतसया है , औय यनयॊ तय साधक का दहत धचॊतन कयती यहती है ,
प्जसके शयीय से यनयॊ तय ऩद्म गॊध प्रवादहत होती यहती है , औय जो एक
फाय भसद्ध होने ऩय जीवन बय साधक के वश भें फनी यहती है ।
सरनत वप्रया
सयु यत वप्रमा एक अतसया का बी नाभ है औय अतसयाओॊ के एक वगा का
बी नाभ है ।भग
ृ ाऺी, इसी सुययत वप्रमा वगा की शीषास्त्थ नायमका है ।
सयु यत वप्रमा का सीधा सा तात्ऩमा है जो ययत वप्रम हो। ययत-वप्रम शब्द का
45
मदद साभान्म अथा रगाएॊ तो वह वासनात्भक ही होगा ककॊतु इसी
ययतवप्रम शब्द भें „सु”रगा कय मह स्त्ऩष्ट कयने का प्रमास ककमा गमा है
कक ऐसा क्रीड़ा जो शारीन हो, सुसभ्म हो, आनॊदप्रद हो . . . औय ऐसा तो
तबी सॊबव हो सकता है जफ साधक स्त्वमॊ भशष्ट, शारीन हो।उसे वह
करा आती हो कक कैसे ककसी स्त्त्री से वासनात्भक बफम्फों को प्रकट ककए
बफना बी भधयु वातााराऩ ककमा जा सकता है , कैसे वह भधयु नोक झोंक
की जा सकती है , जो ककसी प्रेभी व प्रेभभका के भध्म सदै व चरती यहने
वारी क्रीड़ा होती है ।
भग
ृ ाऺी ती सम्ऩण
ू ा रूऩ से प्रेभभका ही होती है , भधयु ही होती है , अऩने
साधक को रयझाने की करा जानती है , उसे तनावभुतत कयने के उऩाम
सप्ृ जत कयती यहती है , उसे धचॊताभत
ु त फनाए यखने के प्रमास कयती
यहती है । तबी तो सॊन्माभसमों के भध्म भग
ृ ाऺी से अधधक रोकवप्रम
कोई बी अतसया है ही नहीॊ।साधकों को मह प्जऻासा हो सकती है कक
कैसे एक ही अतसया अनेक सॊन्माभसमों के भध्म उऩप्स्त्थत यह सकती
है ? इसके प्रत्मुत्तय के भरए ध्मान यखना चादहए कक अतसया भूरत: दे व
वगा भें आती है , जो अऩने स्त्वरूऩ को कई-कई रूऩों भें ववबतत कय
सकती है ।
अतसया साधना भसद्ध कयने से व्मप्तत यनप्श्चन्त औय प्रसन्न धचत्त
फना यहता है , उसे अऩने जीवन भें भानभसक तनाव व्मातत नहीॊ
होता।अतसया के भाध्मभ से उसे भनचाहा स्त्वणा, रव्म, वस्त्त्र, आबष
ू ण

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औय अन्म बौयतक ऩदाथा उऩरब्ध होते यहते हैं। मही नहीॊ अवऩतु भसद्ध
कयने ऩय अतसया साधक के ऩण
ू त
ा ् वशवती हो जाती है , औय साधक जो
बी आऻा दे ता है , उस आऻा का वह तत्ऩयता के साथ ऩारन कयती है ।
साधक के चाहने ऩय वह सशयीय उऩप्स्त्थत होती है , मो सक्ष्
ू भ रूऩ से
साधक की आॊखों के साभने वह हभेशा फनी यहती है । इस प्रकाय भसद्ध की
हुई अतसया “वप्रमा” रूऩ भें ही साधक के साथ यहती है ।

मंत्र: ॐ भग
ृ ाऺी अतसयामै वश्मॊ कुरु कुरु पट् ।।
गोऩनीम भग
ृ ाऺी भहाभॊत्र: ॐ श्रॊ ृ श्रैभ भग
ृ ाऺी अतसयामै भसद्धॊ वश्मॊ श्रैभ
श्रॊृ पट् ।।

चंद्रज्योत्सना अप्सरा
इस साधना को ककसी बी ऩणू णाभा को, शक्र
ु वाय को अथवा ककसी बी
ववशेष ददन प्रायम्ब कयें |साधना प्रायम्ब कयने से ऩूवा साधक को चादहए
कक स्त्नान आदद से यनवत
ृ होकय अऩने साभने चौकी ऩय गुराफी वस्त्त्र
बफछा रें, ऩीरा मा सफ़ेद ककसी बी आसान ऩय फैिे, आकषाक औय
सुन्दय वस्त्त्र ऩहनें |ऩूवा ददशा कक ओय भुख कयके फैिें | घी का दीऩक
जरा रें |साभने चौकी ऩय एक थारी मा ऩरते यख रें , दोनों हाथों भें
गुराफ कक ऩॊखडु डमाॊ रेकय चॊरज्मोत्सना मॊत्र ऩय आवाहन कयें :-
“ओभ ! चॊरज्मोत्सने अगच्छ ऩण
ू ा मौवन सॊस्त्तत
ु ”े .
47
मह आवश्मक है कक मह आवाहन कभ से कभ १०१ फाय अवश्म हो
प्रत्मेक आवाहन भन्त्र के साथ एक गर
ु ाफ के ऩॊखड़
ु ी थारी भें यखें . इस
प्रकाय आवाहन से ऩूयी थारी ऩॊखडु ड़मों से बय दें .
अफ अतसया भारा को ऩॊखडु ड़मों के ऊऩय यख दें इसके फाद अऩने फैिने
के आसान ऩय ओय अऩने ऊऩय इत्र यछडके.चॊरज्मोत्सनात्कीरन मन्त्र
को भारा के ऊऩय आसान ऩय स्त्थावऩत कयें .गुदटका को मन्त्र के दाॉमी
ओय तथा मन्त्र के फाॊमी ओय स्त्थावऩत कयें . सग
ु प्न्धत अगयफती एवॊ घी
का दीऩक साधनाकार तक जरते यहना चादहए .सफसे ऩहरे गुरु ऩूजन
ओय गरु
ु भन्त्र जऩ कय रें.कपय मॊत्र तथा अन्म साधना साभग्री का
ऩॊचोऩचाय से ऩूजन सम्ऩन्न कयें .स्त्नान, यतरक, धऩ
ु , दीऩक एवॊ ऩुष्ऩ
चढावें .इसके फाद फाएॊ हाथ भें गरु ाफी यॊ ग से यॊ ग हुआ चावर यखें , ओय
यनम्न भन्त्रों को फोरकय मन्त्र ऩय चढावें .
|| ॐ ददव्मामै नभ् ||
|| ॐ प्राणवप्रमामै नभ् ||
|| ॐ वागीश्वमे नभ् ||
|| ॐ ऊजास्त्वरामै नभ् ||
|| ॐ सौंदमा वप्रमामै नभ् ||
|| ॐ मौवनवप्रमामै नभ् ||
|| ॐ ऐश्वमाप्रदामै नभ् ||
|| ॐ सौबाग्मदामै नभ् ||

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|| ॐ धनदामै चॊरज्मोत्सने नभ् ||
|| ॐआयोग्म प्रदामै नभ् ||
इसके फाद उऩयोतत चॊरज्मोत्सना भारा से यनम्न भॊत्र का ११ भारा
प्रयतददन जऩ कयें :-ॐ रृीॊ चॊरज्मोत्सने आगच्छ आऻाॊ ऩारम
भनोवाॊयछतॊ दे दह ऐॊ ॐ नभ् |
प्रत्मेक ददन अतसया आवाहन कयें , ओय हय शुक्रवाय को दो गुराफ कक
भारा यखें , एक भारा स्त्वॊम ऩहन रें , दस
ू यी भारा को यखें, जफ बी ऐसा
आबास हो कक ककसी का आगभन हो यहा है अथवा सुगन्ध एक दभ
फढने रगे अतसया का बफम्फ नेत्र फॊद होने ऩय बी स्त्ऩष्ट होने रगे तो
दस
ू यी भारा साभने मन्त्र ऩय ऩहना दें |२७ ददन कक साधना प्रत्मेक ददन
नमे-नमे अनब
ु व होते हैं, धचत्त भें सौंदमा बव बाव फढने रगता है , कई
फाय तो रूऩ भें अभबववृ द्ध स्त्ऩष्ट ददखाई दे ती है | प्स्त्त्रमों द्वाया इस
साधना को सम्ऩन्न कयने ऩय चेहये ऩय झाइमाॉ इत्मादद दयू होने रगती
हैं |

Who are some of the well-known/lesser-known Apsaras in


Hindu Mythology that have popular stories associated with
them?
APSARA ADRIKA - SATYVATI’S MOTHER

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Adrika a beautiful apsara, she was once cavorting around a Gandharva
in river Yamuna. A sage came to the river Yamuna for evening prayers.
Adrika decides to play a prank on sage, by pulling his leg under the
water. Sage’s prayers are distribued. He curses adrika to turn into a
mermaid (fish in some versions). Adrika pleads for forgiveness. Sage
blessed her to reveal from curse once she delivers two babies.
King upchariavasu was out in the forest for hunting. He dreams about
his beautiful queen Girika & mastrubrates. He collects his semen in a
leaf send it through a hawk. On the way hawk fights with another hawk
& the leaf fells into Yamuna. Adrika now a mermaid ( or a fish)
swallows it. She then delivers two babies, a boy & a girl. Adrika is
revealed from curse. The fisherman Dushraj finding two babies present
it to king Upchariravasu. King keeps the boy & presents the girl to
Dushraj. This girl later grows up as Satyavati- the great grandmother of
Pandavas & Kauravas.
APSARA INDUMATI - DASHARATHA’S MOTHER
Indumati was a gorgeous princess of vidharbha, chooses King Aja of
Ayodhya as her husband in her swayamvar. Aja & Indumati were very
much in love & eventually with time Indumati delivers a baby boy,
Dasharatha. When the baby was hardly 1 year old, Indumati was
strolling in the beautiful royal garden. Suddenly a garland from heaven
falls on her head & she dies immediately. Actually the garland was
actually that of Narada. Indumati in reality was a cursed apsara
named Harini. She was cursed by a sage to take human birth & will be
liberated from her curse when narada’s garland fells on her head.
APSARA JANAPADI:

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A beautiful apsara sent by Indra to distrub the penance
of Sharadvana grandson of sage Gautama. Sharadvana got distracted
by the beautiful Janapadi. His semen fell on weeds by the wayside,
dividing the weeds into two, from which a boy & girl was born. They are
kripacharya & kripi.
APSARA PREMLOCHA
Once Lord Indra send aspsara PramLocha to disturb the meditation of
Sage Kandu. Kandu passed one hundred years enjoying company with
the apsara. One day, the apsara expressed her desire to leave for her
heavenly abode. But he requested her to stay for some more time with
him. The apsara agreed to his request and stayed with him for another
hundred years. Then once again she expressed her desire to leave for
her heavenly abode. Once again, blinded by illusion, the sage
requested her to stay for some more time. Once again the apsara
stayed for another hundred years with Kandu. Thus, every time, when
the apsara got ready to leave, sage stopped her. One day, towards the
evening, the sage hurriedly left his ashram. On enquiring the sage
replied that as it was dusk, he should offer his evening
prayers.Laughingly, she said- "O Sage ! your day has ended after
hundreds of years! ". But the Sage replied that "You had arrived at the
ashram right in the morning today. You passed the whole day with me
and now it is evening.” Premlocha told the sage that they had together
passed nine hundred and seven years six months and three days.
Hearing this, the sage began to curse himself that he was so sunk in
the wordly pleasure with the apsara that he even forgot the time.He
drove her away from his ashram. Due to fear she she began to
perspirate. As a result few drops of sweat fall on leaves of trees. The
child she had conceived by the Sage Kandu came forth from the pores
of her skin in drops of perspiration. The trees received the living dews,
51
and the winds collected them into one mass. The rays of Chandra
provides nourishment.Gradually it increased in size till it became the
lovely girl named Marisha. She became the wife of ten Prachetas who
attained the powers of God after doing meditation of several thousands
years in the ocean. She gave birth to Daksha Prajapati.Following the
dictate of Brahma, Daksha Prajapati produced different kinds of living
beings as his children.
APSARA SUVARCHALA
Suvarchala, an apsara, was very impulsive and often acted without
thinking. Once because of her impulsive behaviour, Lord Brahma got
very angry with her and cursed her that she would become a bird.
Suvarchala promised Lord Brahma that she had repented her ways.
Lord Brahma said that his words could not be taken back and that
Suvarchala would have to go to earth and stay as a bird. Lord Brahma
however modified the curse and said that Suvarchala was to be freed
from her curse if she touched the pudding given by Lord Agni to
Dasaratha.

APSARA DHANYAMALI
This story was not actually the part of real ramayan. But part of
Adhyatma ramayan, adbuth ramayan, ramcharitamanasa etc. Kalnemi,
an asura who was the son of mareecha, ravan's uncle. Ravan gets
information from the spies that hanuman is going to bring sanheevani
bunti to survive lakshman, he orders kalnemi to misguide hanuman. So
when hanuman reaches the parvat he sees a sage meditating.
Hanuman enquires about the bunti to him. Sage through his powers
says to hanuman that lakshman is fine now and there is no need to get
the bunti. Hanuman is relaxed. Sage asks hanuman to take rest for
52
sometime and drink some water from the near by pond. Hanuman
thanks the sage & goes to the pond to drink water. But hanuman is
captured by a big crocodile. Hanuman fights with it and kills it. Much to
his surprise the crocodile turns into a beautiful women. She introduces
herself to hanuman as an apsara Dhanyamali who was cursed by a
sage to become a crocodile who will be liberated from curse only by
hanuman. Dhanyamali informs hanuman that the sage he met was
actually an asura called kalnemi who was sent by ravan to misguide
him. Hanuman thanks Dhanyamali and goes back. Kills kalnemi and
brings bunti for lakshman on time.
APSARA DUNDUBI
Apsara Dundubi who became Mandhara: Once this apsara was
sent by indra to break the penance of a sage. The sage cursed her
to born as a hunchback ugly women to live as a servant & do
injustice to people out of jealousy unable to see anyone happy.

APSARA NAYANTARA
She was cursed by Sage Vajra to born as an Asura princess. She
later took birth as Shurpanaka.

APSARA MALINI
She was cursed to be born as low caste women. She was Sabari of
Ramayana.

APSARA DHAMINI –WIFE OF SHANIDEV

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Manda or Dhamini is the second consort of Shani (First consort was
Neela) and mother of Gulikan. She is a Gandharva daughter and
princess. She is the goddess of Kalā. Her Nrtya/Dance can attract
anyone in the whole Brahman (Universe).
As per an ancient story, since his childhood Lord Shani was a keen
devotee of Lord Shiva. When his father Lord Surya married him skillful
daughter of Chitrrath, named Manda. He (Lord Shani) used to remain
absorbed in the deep thoughts of Lord Shiva. One day, his wife
(Dhamini) came to him, after having taken a bath after her mensuration
period, At that time Lord Shani was deeply absorbed in the deep
thoughts of his deity (Lord Shiva). He didn’t even care to glance at his
wife. His wife was affected by Mangal Dosha. So, his wife got much
depressed and cursed him, “You may not be able to look at some one
in future, and your sight would remain ever downward. Whomsoever
you look at, he would be ruined away." When she overcame of her
rage, she repented a lot, but the curse could not be get undone, so the
sight of Lord Shani remains downward forever. But, when Lord Shani
accepeted his rank (Lord of deeds), he gets liberate from this curse.

54

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