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Harivansh Puran (Hindi) by Dr. Vinay
Harivansh Puran (Hindi) by Dr. Vinay
Harivansh Puran (Hindi) by Dr. Vinay
डॉ. वनय
डायमंड बु स
ISBN : 81-288-0711-0
HARIVANSH PURAN
by : Dr. Vinay
तावना
—डॉ० वनय
ह रवंश पुराण का मह व
ह रवंश पुराण
वैव वतमनु और यम क उ प
दे वता को व णु क सा वना
नारद-कंस संवाद
ी व णु का कृ ण प-ज म
भगवान् कृ ण क ज या ा
धेनकासुर वध
गोवधन उ सव
उ सेन को रा यदान
बाणासुर संग
ी कृ ण और न द-यशोदा मलन
ह रवंश के सुनने का फल
ह रवंश पुराण
वैव वत मनु और यम क उ प
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन! छाया को समझाकर सं ा अपने पता के घर प ंची
पर तु उसके पता व कमा ने सं ा को अपने प त के पास चले जाने को कहा। तब पता
के ब त बार कहने पर सं ा ने घोड़ी का प धारण कया और वहां से उ र कु दे श
जाकर घूमने लगी। इधर सूय ने छाया को सं ा ही समझा और उसने अपने समान तेज वी
पु उ प कया। यह भी वैव वत मनु के समान आकार- कार वाला आ इस लए उसक
स सावग नाम से ई। सूय ारा छाया के गभ से शनै र नामक तीय पु उ प
आ। अब छाया का नेह अपने पु पर अ धक हो गया सं ा संत त पर उसका वैसा नेह
नह रहा।
जैसा क वाभा वक होता है अपनी वमाता का यह वहार वैव वत मनु ने तो सहन
कर लया पर तु यम इसे सहन नह कर सके। वह बालसुलभ चंचलता और रोष के कारण
छाया को लात मारने को त पर हो गए। छाया को यम का यह वहार :ख द लगा और
उसने उसे शाप दया क तु हारा पैर इसी समय कटकर गर पड़े। छाया क बात से
थत और शाप से ाकुल यम ने अपने पता के पास जाकर कहा क पता शाप-
नवृ का कुछ उपाय क जए। माता को अपने सभी पु पर समान नेह रखना चा हए।
पर तु हमारी माता अपने छोटे पु का अ धक आदर और हमारी उपे ा करती है। इस लए
मने अपना पैर उठाया था पर तु पदाघात नह कया। मेरे ारा यह अनथ बाल- वभाव वश
ही हो गया था इसे मा क जए। माता ने मुझसे ोभ म कहा था क म तु हारी मां ं।
पूजन के यो य ं। तुमने मुझे मारने के लए अपना पांव उठाकर मयादा भंग क है।
इस लए तु हारा यह पांव कट कर गर जाए। पर तु हे पताजी पु तो कुपु हो जाता है
पर तु माता कभी भी कुमाता होती नह दे खी गई।
मुझे माता ने शाप दया है पर तु य द आप मुझ पर स हो जाएं और मेरा अपराध
मा कर द तो मेरा पांव गरने से बच जाएगा। भगवान् सूय ने कहा—हे पु ! न:संदेह
कसी महान् कारण से तु हारे जैसे स य व ा और धमा मा को शाप क ा त ई होगी।
पर तु म तु हारी माता के शाप को अ यथा नह कर सकता। अनेक क ट तु हारे पांव का
मांस लेकर पृ वी तल म समा जाएंगे, ऐसा होने से तु हारी माता के वचन क भी र ा होगी
और तुम भी शाप से मु हो जाओगे। इसके प ात् सूय ने सं ा पणी छाया से कहा—
माता का नेह सभी बालक के त समान होना चा हए, फर तुम छोटे बालक पर ही
अ य धक नेह रखती हो इसका या कारण है? पर तु छाया ने अपना अ भ ाय कट न
करके बात को आई गई कर दया। तब भगवान् सूय ने योग के बल से सब भेद जान लया
और छाया को न करने के लए त पर ए। उ ह ने छाया को उसके अहं के लए पाठ
पढ़ाना शु कया य क वह अ धक अहंकारी हो गई थी।
सूय दे व ने छाया को उसके अहं से नम न दे ख कु पत होकर उ ह ने छाया के केश
पकड़ लए, इससे सं ा के त उसने जो वचन दया था, वह प रपूण हो गया और उसने
सब वृ ा त कह सुनाये। छाया क बात पर ो धत ए सूय व कमा के पास प ंचे,
व कमा ने उनका व धवत् पूजन करके ोध शा त कया। वे बोले—आपके अ य धक
तेजोमय व प से खत ई सं ा घोड़ी के प म, वन म वचरण करती घास भ ण
करती है। आप अपनी उस शुभवरण रानी भाया को अव य दे खए, वह बड़वा प
धा रणी सदा तप या—परायण होकर केवल प का आहार करती ई कृश, द न, ज टल,
हाथी क सूंड से म दत कम लनी के समान ाकुल हो रही है तथा इस समय वह
ावा रणी योग बल से स प है। हे दे व! य द आप मेरी स म त मान तो आपको अ य त
सु दर एवं का तमय बना ं । उस समय तक सूय क आकृ त कुछ सु दर एवं असमान थी,
इस लए सुर के कहने से सु दरता ा त करने के लए सहमत हो गए और व कमा को
वैसा करने क अनुम त दे द ।
व कमा ने उ ह सान पर चढ़ाकर घसना आर भ कया, इस कार घषण करने से सूय
क उ ता कम होने लगी और उनका स दय़ नखर कर मुख पर चमकने लगा। तभी से
उनके मुख का वण लाल हो गया। उनके मुख से नकलने वाले तेज से धात, अयमा,
म ावरण, अशभग, वव वान्, पूजा, पज य, व ा और अजध य व णु नाम बारह,
आदय उप ए। अपनी ही दे ह से आ वभूत ए उन आ द य को दे खकर सूय को
अ य त स ता ई। व कमा ने पु प चंदन, अलंकार, आभूषण आ द से उनका स कार
करके कहा, हे आ द य! आप अपनी भाया के पास जाइए, इस समय वह बड़वा प से
उ र कु दे श म, वन म चर रही है। तब सूय ने भी अ का प धारण कया और वह
जाकर सं ा को अपने तपोबल से स प होकर सभी ा णय के लए घष होते ए
बड़वा प म वचरण करते ए दे खा।
सं ा अपने उस प म भी अ य त सु दर लग रही थी। जैसे ही भाववश सूय उसक
ओर अ य धक आक षत ए, वैसे ही बड़वा ने पर पु ष समझकर उनके वीय को अपने
नथुन म ले बाहर नकाल दया। जससे दो अ नी कुमार उ प ए। उनका नाम व
और नास व था। इसके प ात् सूय ने अपना यथाथ प अपनी भाया सं ा को दखाया
और तभी से उन कुमार के पता सूय और माता सूय-प नी । उधर छाया के शाप से
खत यम धमपूवक जा पर शासन करने लगे, इससे वे पतर के अ धप त और
लोकपाल हो गए।
यह यमराज का भाई शनी र ह बने और दोन अ नीकुमार वै ए। हे राजन्—वे
घोड़ को व थ करते ह। व कमा ने सूय का जो तेज कम कया था, उसी नकले ए
तेज से भगवान् व णु का च बनाया, उसी च से व णु ने असं य असुर का नाश
कया। यम और ा दे व क ब हन यमी यमुना नद बन गई, ा व मनु साव ण नाम से
स आ।
वैश पायनजी ने जनमेजय से कहा—हे राजन्! महाराज सगर के दो रा नयां थ , उनम
वदभ राजपु ी के शनी बड़ी थी। छोट रानी अ र ने म क अ य त सु दर क या थी। एक
दन मह ष औव ने उ ह बुलाकर कहा तुम म से एक रानी साठ हजार पु और सरी
केवल एक ही पु होने का वर मांगे। छोट रानी ने साठ हजार तथा बड़ी ने एक पु क
याचना क , इसके अनुसार के शनी ने असमंजस नाम का एक पु उ प कया।
असमंजस को पंचजन भी कहते थे, वह असामा य वीर था। छोट रानी के गभ से एक तु बे
क उप ई।
उसे तु बे से तल के बराबर साठ हजार पु ए थे, वे धीरे-धीरे वृ को ा त होने
लगे। सगर ने एक-एक पु को एक-एक घृत घट म रखवाकर येक पु के लए एक धाय
सेवा हेतु कर द । दस महीने तीत होने पर सभी बालक प रपु होकर राजा सगर क
सुख वृ करने लगे। हे जनमेजय! इस कार तु बे से राजा सगर के साठ हजार पु क
उप ई। उन सब राजपु म राजा का तेज था, पर तु राजपद पर पंचजन का ही
अ भषेक आ था। उस पंचजन का पु अंशुमान आ। अंशुमान के पु दलीप ए, उ ह
खटवांग भी कहा गया। खटवांग वग से पृ वी तल पर केवल एक मु त के लए आए थे
और इतने ही समय म उ ह ने अपने यान बल से स पूण ैलो य को मय जान लया।
इसके उपरा त कथा कहते ए वैश पायन जी बोले—
दलीप के पु भगीरथ ए, उ ह ने ही पृ वी पर गंगाजी को अवत रत कया। यश वी
भगीरथ ने गंगा जी को नद प म ा त करके उसे समु तक प ंचा दया, इसी लए गंगा
भागीरथी के नाम से स ई। भागीरथ के पु ुत व ुत का पु नाभाग आ। नाभाग
के पु अ बरीष, अ बरीष के स धु प और स धु प के अयुत जत आ। अयुत जत
का पु ऋतुपण आ। वह ूत- ड़ा के मम का ाता और परम यश वी था। राजा नल
के साथ उनका स यभाव था। ऋतुपण आतुपा ण का पु सुदास आ। वह इ का सखा
था। सुदास का पु सौदास था उसे क माषमद और म सह भी कहते थे।
क माषपद का पु सवकमा आ। सवकमा का पु अनर य आ। अनर य का पु
न न आ। उसके अन म और रघु नामक दो पु ए। अन म के ल ल और ल ह
के दलीप ए, यही रामच जी के पतामह थे। दलीप के पु रघु, रघु के पु अज और
अज के पु दशरथ ए। इ ह दशरथ के यहां परम यशवान एवं धमा मा भगवान् राम ने
ज म लया था। राम के पु कुश ए, कुश के पु अ त थ, अ त थ के पु नषध ए।
नषध के नल, नल के पु नभ, नभ के पु डरीक तथा पु डरीक के पु ेमध वा ए। इस
कार हे राजन्! एक म से यह रघुवंश आगे बढ़ता चला गया।
ेमध वा के पु दे वानीक, दे वानीक के अहीनगृहा फर सुध वा तथा सुध वा के पु
अनल ए। अनल का पु उवथ आ। उवथ का व नाभ। इसके बाद व नाभ ने पु प
म शंख को ज म दया। शंख को षता भी कहते थे। शंख का पु पु य और पु य का
पु अथ स आ। अथ स का पु सुदशन, सुदशन का अ नवण, अ नवण का शी
तथा शी का पु म आ, उसने कलाप प म जाकर योगा यास कया। उसका पु
वृहद्बल आ। पुराण म नल नाम के दो राजा का वृ ा त उपल ध है। उनम एक
वीरसेन का पु आ और सरा इ वाकु वंश म उ प आ। इस कार सब धान
इ वाकु-वंशीय राजा के नाम मने तु ह कह दए ह। यह सभी राजागण सूय क वंशावली
का पाठ करते ह। वे पाप र हत तथा आयु मान और पु वान होकर अ त म आ द य लोक
को ा त होते ह।
हे राजन्! यह सारी संतान पर पंरा सूयवंशी मानी ज़ाती है और ये सभी राजा सूय का
गुणगान करते रहे ह।
जनमेजय ने उ वंशावली सुनकर भगवान् वैश पायन से कहा क इससे मुझे अपने
पूवज के वषय म जानकारी मल गई है। अब आप कृपा करके भगवान् के व भ मु य
अवतार के वषय म बताइए।
भगवान् व णु के अवतार के वषय म पूछने पर जनमेजय से भगवान् वैश पायन ने
व भ अवतार के वषय म बताया—
कूमावतार : ब त पहले ऋ ष वासा इं से मलने के लए गए और उ ह ने एक कमल
के फूल क माला द । इं ने उस माला को अपने ऐरावत हाथी के सर पर डाल और वयं
नंदन वन म चले गए। हाथी ने उस माला को धरती पर गराकर मसल डाला। ऋ ष ने दे खा
क उनके सामने ही उनके दए ए स मान का तर कार हो रहा है तो उ ह ने ो धत
होकर इं को वैभव न होने का ाप दया। इससे सारे इं लोक म द र ता छा गई। दे वता
अभाव से पी ड़त होने लगे तो वे आ मर ा का उपाय जानने के लए भगवान् व णु के
पास गए। व णु ने उनक पूजा से स होकर दशन दए ओर मंदराचल को मथानी
बनाकर ीर सागर के मंथन से ल मी ा त करने के लए कहा। जब मंदराचल के थत
होने क बात उठ तो भगवान् व णु को कूम का अवतार धारण कर मंदराचल को अपनी
पीठ पर धारण करना पड़ा। फर मंथन के उपरांत ल मीजी का आ वभाव आ और
भगवान् नारायण क कृपा से दे वता क द र ता न हो गई।
वराह अवतार : पुराने समय म जय वजय नाम के व णु के दो ारपाल थे। ये सामा य
प से ार पर खड़े ए थे क सनक आ द ऋ ष जब व णु से मलने जाने लगे तो उ ह ने
रोक दया। ऋ षय ने ु होकर उ ह रा स यो न म पैदा होने का शाप दे डाला। ये दोन
हर या और हर यक शपु के प म क यप और द त के यहां उ प ए।
हर या ने बड़ा चम कार कया और वह संपूण ा णय स हत सागर समेत पृ वी को
उखाड़कर रसातल म ले गया। फर पृ वी के उ ार के लए दे वता भगवान् व णु के पास
आए तो उ ह ने वराह बनकर रसातल म वेश कया और दाढ़ से रा स को मारा तथा
सरी से पृ वी को बारह नकाला। वराह प धारण करने के कारण इस प को वराह
अवतार कहा जाता है।
नृ सह अवतार : भगवान् व णु के अवतार म नृ सह अवतार का ब त मह व है।
अपने भाई हर या के वध के बाद हर यक शपु को ब त क आ और उसने भयंकर
तप कया। उसक तप या से भगवान् व णु ब त स ए और जब उ ह ने वर मांगने के
लए कहा तो वह बोला क म न दन म, न रात म, न दे व, असुर, मनु य गंधव, सप, पशु-
प ी, रा स और न कसी जा त से मारा जाऊं। इस तरह उसने अव य होने का वर ले
लया। वर ा त करने के बाद वह ब त घमंडी हो गया और दे वलोक पर आ मण कर
दया। दे वता को वहां से भगाकर रा य करने लगा ले कन उसका पु ाद उसक
भावना के वपरीत व णुजी का भ था। उसने अपने पता को ई र मानने से इंकार कर
दया और व णु क ही पूजा करता रहा। हर यक शपु को उसक यह भावना ब कुल
वीकार नह थी। उसने अपने पु को अनेक कार के क दए और उसको मरवाने के
अनेक उपाए कए ले कन व णु भगवान् क कृपा से उसका बाल भी बांका नह आ।
एक बार ाद को उसके पता ने लोहे के खंभे से बांध दया और उसे आग से तपा
दया और कहा क मुझे इसम अपने भगवान् को दखाओ। पता पु को जैसे ही खड् ग से
मारने जा रहा था वैसे ही मनु य और शेर का संयु अवतार लेकर भगवान् व णु कट हो
गए और उ ह ने सं या के समय (जो न दन होता है न रात), महल क चौखट पर (जहां न
घर होता है न बाहर), अपनी जांघ पर रा स को लटाकर अपने नाखून से उसे मार
डाला। इस तरह भगवान् ने अपने भ क र ा के लए नृ सह का अवतार लया।
वामन अवतार : हर यक शपु के वंश म राजा ब ल पैदा आ। ाद का पु वरोचन
और वरोचन का पु ब ल था। ब ल ब त धमा मा और इं य को अपने वश म करने
वाला राजा था। उसने अपनी वीरता से इं आ द दे वता को जीतकर तीनो लोक को
अपने वश म कर रखा था। इस लए दे वता को उसे छल से ही परा त करना पड़ा।
अपनी ग त से च तत दे वता भगवान् व णु के पास गए और क यप ने भगवान् व णु क
स ता के लए घोर तप कया। जब भगवान् व णु स ए और उ ह ने क यप को वर
मांगने के लए कहा तो क यप ने कहा क आप राजा इं को उसका रा य लौटाने क
कृपा कर।
क यप क ाथना वीकार करके भगवान् व णु ने एक ा ण चारी के प म
अपना प रव तत कया और वामन प धारण करके ब ल के य म गए। ब ल ने ा ण
समझकर उनक पूजा क और कुछ लेने के लए कहा। वामन ने उनसे तीन पैर धरती
मांगी य क ब ल ने उ ह धरती दे ने का संक प कर लया था। इस लए वह वचन से पीछे
नह हटा। तब भगवान् ने अपना वराट् प धारण कया और एक ही पैर से 50 करोड़
योजन चौड़ा सागर तथा सात प वाली धरती को नाप लया। फर उ ह ने कहा क म
सरा पैर कहा रखूं तो ब ल ने अपना सर आगे करके कहा क आप सरा इस पर रख
ली जए तो भगवान् ने उसके सर पर पैर रखकर उसे पाताल लोक भेज दया। इस तरह
उ ह ने दे वता का रा य उ ह लौटा दया।
परशुराम अवतार : परशुराम के अवतार के प म भगवान् व णु ने उ ं ड य को
पाठ पढ़ाने का काय कया। यह कथा इस कार है क जमद न ऋ ष ने दे वराज इं को
स करने के बाद उनसे सु रभ नाम क एक गाय ा त कर ली थी। कुछ समय बाद राजा
कातवीय ने ऋ ष से गाय मांगी। ऋ ष ने गाय दे ने से इंकार कर दया, तब उस राजा ने
अपने बल का योग कया। जब वह गाय को ले जा रहा था तो गाय ने अपने स ग से
राजा और उसके सै नक को बुरी तरह से घायल कर दया। तब राजा ने ऋ ष जमद न पर
ती हार कया जससे वह मू छत होकर धरती पर गर पड़े और राजा उनक गाय को
लेकर चला गया।
ऐसे राजा का वध करने के लए भगवान् व णु ने ही जमद न के पु के प म
अवतार लया और कातवीय स हत अनेक य राजा को मारा जो आततायी होते थे
और इस तरह उ ह ने पृ वी को धम भावना से पुन: भर दया।
रामावतार : लोक म मयादा और आदश के उ च व प को था पत करने के लए
भगवान् व णु ने अयो या के राजा दशरथ के यहां राम के प म अवतार लया। उ ह ने
इस अवतार का धम नभाते वहा रक जीवन के मा यम से लोक मयादा क त ा क ।
इस संदभ म भी हर या के सरे प कु भकरण और हर यक शपु के सरे प
रावण के अ याचार से धरती को मु करने के लए राम का अवतार आ। ब त समय
पूव पुल य के पु व वा का ववाह एक दानव क पवती पु ी केकसी के साथ आ।
उसने एक बार सं या के समय ही प नी के साथ रमण कया और उसने रावण, कु भकरण
तथा शूपणखा नाम क स तान उ प क और फर उसके बाद व ध- वधानपूवक
सहवास के प रणाम व प वभीषण उ प आ। वभीषण अ छे आचार वाला और
भगवान् का भ था।
जैसा क सभी असुर के ारा कया गया तप उ ह होने तक बलशाली बना दे ता
इसी पर परा म रावण ने भी तप कया और शवजी को स करके असीम श ात
कर ली। उसने व णु को भी स कया और श पाने के लए य करने वाले ऋ षय
और दे वता को तंग करने लगा। जब ःखी होकर ऋ ष मु न मलकर भगवान् व णु क
शरण म गए तो भगवान् ने मनु और शत पा को दए गए वरदान का रह य उ ह बताया
और दशरथ के घर म राम प म उ प होने क बात कही।
समय आने पर जब भगवान् व णु ने राम के प म दशरथ के यहां ज म लया और
पहले तो मयादा क र ा करते ए कशोराव था म व ा म के साथ जाकर य म बाधा
डालने वाले ताड़का और सुबा नाम के रा स का वध कया और वनवास को वीकार
करके अ तत: लंका पर आ मण करके रावण और कु भकरण का वध कया। फर यहां
तक आ क उ ह ने अपनी जा म असंतोष फैलने के कारण एक धोबी के कहने पर
अपनी प नी का प र याग करके उ ह वन म भेज दया। इस कार उ ह ने लोक-र ा का
त पालन कया।
कृ णावतार : भगवान् व णु ने कंस और जरासंध बने जय- वजय के उ ार के लए
कृ ण प म अवतार लया। क तु मूल प म वह अवतार धम क र ा के लए और साथ
ही लोक ल जा के लए था। जब कंस और जरासंध ने ब त अ धक अ याचार करने
ार भ कर दए और धम को न करके अधम फैलाया तो भगवान् ने कृ ण प म अवतार
लया य क जरासंध और कंस के कारण पृ वी पर ऋ ष मु नय का य , तप, तीथ,
भजन, पूजन का काय ठ क तरह से नह चल रहा था। इन दोन ने अपने को भगवान्
घो षत कर दया था और व णु क पूजा न ष कर द थी।
कंस और जरासंध के अ याचार से तंग होकर ऋ ष-मु न व णु जी क शरण म गए
और अपनी दशा बताई। तब भगवान् ने दे वक के गभ से ज म लेना वीकार कया। कंस
को पता चला क उसक बहन के गभ से उसको मारने वाला पैदा होने वाला है तो उसने
दे वक और वसुदेव को बंद गृह म डाल दया और उसक सात संतान मार द । जब
भगवान् कृ ण उ प ए तो बंद गृह म ही ऐसा चम कार आ क दरवाज अपने आप
खुल गए, सारे चौक दार सो गए और वासुदेव ने ीकृ ण को टोकरी म रखकर रात रात
यमुना पार कर न द-यशोदा के यहां प ंचा दया।
ीकृ ण ने ज म रहकर अनेक लीलाएं क । इधर कंस ीकृ ण और बलराम को बढ़ते
ए जानकर ब त च तत था। उसने अनेक रा स तथा अनेक श शाली सेवक कृ ण को
मारने के लए भेजे ले कन उ ह का वध हो गया।
भगवान् कृ ण श ा ा त करके समु के बीच म ही नगर बसाने के वषय म सोचने
लगे और ारका नामक क पुरी बसाई। वदभ के राजा क पु ी मणी से कृ ण का
ववाह आ। जरासंध भी मणी से ववाह करना चाहता था पर कृ ण के साथ ववाह
क बात सुनकर उसे ोध आया। उसने ारका पर चढ़ाई कर द और इसी लड़ाई म वह
मारा गया। इस तरह भगवान् व णु ने व भ प म अवतार लया। उनके तरीक के
पीछे धरती पर धम क थापना और अधम का नाश न हत रहा है।
ऋ षय ारा यह पूछे जाने पर क भगवान् का वा त वक व प या है? जमद न
बोले क एक बार भगवती पावती ने शंकर जी से कहा था क अब म चाहती ं क आप
मुझे ीमद्भगवद् गीता के मह व को बताएं य क यह भगवान् के मुख से नकली ई
गीता है।
पावती क ज ासा सुनकर शंकर जी ने कहा क एक बार भगवती ल मी ने व णुजी
से पूछा था क वह ीर सागर म सोते रहते ह और जो कुछ भी घटता रहता है उसक
च ता नह करते। यह सुनकर व णु भगवान् ने ल मीजी से कहा था क वेद ास के
ारा मने वेद शा पी सागर का मंथन करके गीता शा क सृ क है। म उसके
भाव से, त व से सब कुछ दे ख लेता ं। यह यमान जगत् और सृ -संहार क
थ तयां, मेरा मायामय शरीर, यह ता वक अ ययन का वषय है। इसे ही ासजी ने
व णत कया है।
वैश पायन जी ने कहा—हे राजन्! अब भगवान् व णु के स युग म व व, दै वलोक
म दे व व और स यलोक म कृ ण प तथा व भ युग म कए गए उनके काय का वणन
करता ं। ये अ वनाशी भगवान् व के ा, अन ता मा एवं अ ह, दे ह धारण करके
वही ‘ह र’ कहे गए ह। ा, इ , च मा, धमराज, शु और बृह प त यह सब उ ह के
प ह। वही अ द त के गभ से उ प इ ानुज व णु ए थे। स युग म वृ ासुर-वध के
प ात् व व यात एक तारकासुर सं ाम आ था, उनम दानव ने रणो म होकर
दे वता, गंधव, य , र ा और नागा द का वध करना आर भ कर दया। उन दै य के भयंकर
हार से ाकुल एवं नर ए दे वता ग धव आ द यु े को छोड़कर भाग खड़े ए
और भगवान् व णु क शरण म प ंचे। उस समय आकाश म काले-काले बादल छा गए
जससे ह के स हत सूय-चं भी ढं क गए थे स तवायु अ य त वेग से चल रही थी और
अनेक त व, वाहमान ए बादल के पार प रक संघष से भयानक बजली चमकने लगी
और घोर गजना होने लगी। एक साथ ही व पात एवं उ कापात होने लगा, गम जल क
वषा होने लगी। इन उ पात से तीत होता था क आकाश जल रहा है और पघल कर
नीचे आ रहा है, आकाश म उमड़ते ए वमान डांवाडोल होने लगे। ऐसे समय म ही
भगवान् व णु उस अ धकार रा को चीर द प से कट ए। वे द रथ आ ढ़ थे,
उस रथ म हरे रंग के घोड़े थे, वजा पर ग ड़ वराजमान थे, च मा और सूय उस रथ के
च थे, मंदराचल उनका धुरा था।
उस याण म भगवान् शेष अ क राह थे; सुमे पवत कूबर था, तारागण उसके
अद्भुत बेल-बूटे थे, यह न बंधन थे। दै य से हारे ए दे वता ने जब उन अभयदाता
भु को दे खा तभी उ च वर से जय-जयकार करते ए उनक शरण म गए। उन सबक
आतवाणी सुनकर भगवान् ने यु म दै य का वध करने क त ा करते ए कहा। हे
दे वगण! डरो मत। म दै य को अभी हरा ं गा, तब तुम लोक के रा य पर पुन: अ धकार
करोगे। भगवान् क वाणी सुनकर दे वगण को वैसा ही आन द ा त आ जैसे अंधकार
र आ हो, :ख के मेघ छ - भ हो गए, सुखदायक वायु वा हत होने लगी और दश
दशाएं व छ हो ग ।
वैश पायनजी ने कहा—“हे राजन्! इसके प ात् दे वता और दै य म घोर यु आ।
दे वता पर दे यगण व भ कार से श ा धारण कर टू ट पड़े। जैसे धम और अधम
म अथवा रोष और वनय से होता है उसी कार दे वता-दै य म भीषण और अद्भुत
यु होने लगा। तेज ग त के दौड़ते रथ, दौड़ते ए वाहन, हाथ म तलवार लेकर उछलते
ए वीर, फके मूशल, छोड़े ए वाण तथा गरते ए मुदगर ् आ द सव दखाई दे रहे थे,
स पूण व म लय जैसा आतंक छा गया, दानव ने प रध ारा शला ख ड से भी
दे वता पर हार कए। इस यु म पहले दे वतागण जैसे हारे ए सै नक क तरह पीले
पड़ गए।
दानव के प र ध- हार से अनेक दे वता के म तक फट गए। ब त के दय वद ण
हो गए जससे र क धारा वा हत हो चली, दे व-सेना दानव के पाशजाल म बैठकर
चे ाहीन हो गई और दानवी माया के भाववश वह नता त अश हो गए। मरे ए के
समान न े भाव से खड़े ए दे वता के सभी शा ा थ हो गए, दै य ने उन
सबको काट डाला। यह दे खकर इ अपने व को लेकर दै य-सेना पर टू ट पड़े, जो उनके
सामने आया उसी को मार दया और फर तामस अ समूह से उ ह ने घोर अंधकार कर
दया जसके कारण यह पता लगना ही क ठन था क कौन दे वता है और कौन दै य है।
इस कार दानवी माया से मु होकर पूण य नपूवक दे वगण दै य को न करने लगे।
उस घोर अंधकार के कारण भयभीत ए रा स धराशायी हो गए। वे भयंकर आतनाद
करने लगे।
इस तरह भयभीत दानव के अंधकार म वलीन होने पर सव अंधकार छा गया पर
ात:काल के समान, पुन: दै य ने काश कर दया उससे अंधकार समा त हो गया। दै य
के अ न योग- भाव से स पूण अंधकार मट गया और दै य ने तुरं त आ मण कर
दया। उस मायामयी अ न से र ा पाने के लए दे वगण ने च मा क शरण ली। उस औव
अ न से दे वगण न तेज और संत त हो गए थे। शरण ा त के लए उ ह ने चं मा के
सामने, उनका अचन कया। इस कार जब उस माया से दे व व ण सेना ाकुल हो उठ ,
तब इ के ारा सब बात कहने पर जल प त उनसे बोले। व ण ने कहा—हे दे वराज!
पूवकाल म ऊव पु अ न ने जस माया को रचा था, यह वही लभ माया जीवन पय त
अ ु ण भाव वाली होकर हर यक शपु के पास रहेगी। य द इस माया को न करके
सबको सुखी करना है तो जल म उ प ए च मा को मेरे साथ क रए। म तब च मा
और सभी जल ज तु को साथ लेकर इस माया को न:संदेह न कर ं गा। दे वराज इ
ने व ण क बात यानपूवक सुनी।
वैश पायन जी ने कहा—हे राजन्! दे वता के आन द क वृ करने वाले इ ने
व ण क बात सुनकर च मा से कहा। इ बोले—हे च ! तुम असुर के वनाश और
दे वता क जीत के लए यु म व ण क सहायता करो, य क तुम महाबली और
काश यो त म ई र हो, रस ने तु ह स पूण ा णय का रस कहा है। समु के समान
तु हारा य और वृ जय है, तुम व म दन-रा को कट करते ए अपने ही
म डल म मण करते हो। तुम ेत भानु और हम यो त हो, तुम न के वामी तथा
संव सर के वतक हो, तुम काल योगा मक, य रस, औष धय के वामी शीतल,
अमृताधार, छ दोयो गन, ेत्वाहम, चपल, सोम पायी हो। सोम रस तथा जगत् के ा णय
का सौ य प हो। तुम अंधकार के नाशक और न के अ धप त हो। अत: तुम
सेना य व ण के साथ गमन करो, जससे हम शी ही इस जलाने वाली आसुरी माया से
मु हो सक। यह सुनकर च मा ने कहा—हे दे वे ! म यु थल म जाकर शी ही हम
क वषा करता ं, जसके भाव से आपके दे खते-दे खते ही यह माया न हो जाएगी और
इन सभी दै य का हम दे खते-दे खते गव ख डत कर दगे। आप च ता न कर।
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! इसके प ात् च मा ने हम वषा क , जससे मेघ के
समान कठोर दै य ढं क गए। इस कार पाश धारण करने वाले व ण और हम क वषा
करने वाले च मा दोन ही अपने श का हार करते ए उमड़ते ए समु के समान
यु - थल म घूमने लगे। बादल के ारा जल-वषा होने से जैसे स पूण व जल म बहने
लगता है वैसे ही उनक अ वषा से स पूण दै य सेना ाकुल हो गई। इस कार व ण ने
पाश से और च मा ने हम से दानवी माया को छ - भ कर दया। इस थ त म
दै यगण छ म तक के समान चलने क श से हीन होकर न य हो गए। उ ह अब
कुछ भी नह सूझ रहा था। उस समय दै य के सब वमान नीचे गरने लगे। जब मय दानव
ने दै य को व ण-पाश म ब और चं मा ारा कए गए हमपात से आ छा दत दे खा तो
उसने अपने पु च ारा बनाए ए, मायामय पवता का योग कया। उस पर
शलाएं, घा टयाँ, सह और ा का समूह थत थे। उस पवत का अलग भाग वृ
और क दरा वाले वन से ा त था। उसके वृ वायु के वेग से हल रहे थे। उस तरह
माया के यु होते ही पवत से बड़ी-बड़ी शला और वृ क वषा होने लगी जसके
कारण दे व-सेना से स त त दै य सेना म जीवन आ गया और च मा तथा व ण क माया
न हो गई तथा शला ख ड क वषा से थ त ब कुल वपरीत हो गई।
उस समय पहाड़ी थान के ऊंचा-नीचा होने के कारण पृ वी भी शला-ख ड क वषा
से कांप गई। कुछ दे वता शला-ख ड और चट् टान क मार से त- व त हो गए, कोई
भी दे वता कुशलपूवक न बच सका। व णु के अ त र सभी दे वगण नराश हो रहे थे।
पर तु भगवान् व णु त नक भी वच लत नह ए। भगवान् व णु सव ाता होने के कारण
सामा य थ त म रहे। वे यु का नरी ण करते ए आ मण के लए उपयु अवसर
दे ख रहे थे। मय दानव क माया क वृ होते ए दे खकर भगवान् ने वायु और अ न को
उसे रोकने का संकेत कया। उनक आ ा पाते ही वायु और अ न दानव माया को समा त
करने म लग गए। तब अ न और वायु के संयोग से लय समांन वृ को ा त ई दै य
सेना न होने लगी और दानव ारा यु माया का अ त हो गया।
उस समय रण भू म म वायु और अ न न प से वचरण कर रहे थे। अ न के
कोप से दानव के न ए वमान वायु के वेग मय वाह से पृ वी पर जा पड़ते। इससे
दै य अ य त नराश हो गए। इस कार दानवी माया के न होने पर दे वगण सब ओर से
भगवान् व णु क जय-जयकार कर रहे थे। इस यु म इ क जीत और मय दानव क
हार ई, इससे सम त दशाएं फु लत हो ग और धम-कम का अनु ान ार भ आ।
च मा का माग व छ हो गया। सूय अपनी वाभा वक ग त पर आ गए और सभी मनु य
कृत थ हो गए। मनु य म समय पर मृ यु होने लगी। अ न का आ ान नय मत प से
होने लगा और दे वगण य -भाग को पूववत् ा त करने लगे। संसार के सभी ाणी अपनी
ग त से काय करने लगे। लोकपाल ने अपने-अपने थान को फर से ा त कया तथा
पु या मा का अ युदय, पा पय का पतन हो गया। दे वता स ए। दै य परा जत हो
गए, संसार म स य का अनुकरण होने लगा, सभी अपने-अपने धम पर चलने लगे। सभी
राजागण जा-पालन म लग गए।
वैश पायनजी ने कहा—“हे राजन्! अ न और वायु के यु क समा त पर तीन लोक
म जय-जयकार होने लगी। अब दै य क पराजय का यह समाचार कालने म ने सुना तो
यह मंदराचल के समान और वृहदाकार सूय के समान तेजोमय मुकुट धारण करने वाला
होकर भयंकर गजना करते ए यु -भू म म आ गया। वह अनेक ह थयार धारण करके
पवत के समान और ी म ऋतु के दावानल के समान व लत होता आ धू वण के
केश, ह रत वण क दाढ़ -मूंछ, बाहर क ओर नकले ए दांत- ैलो य व तृत शरीर और
टे ढ़े तथा लाल वण के ने र तक फैले ए थे, उस समय वह अपनी भुजा से आकाश
को उठाए आ-सा तीत हो रहा था। वह अपने पैर क ठोकर से पवत को र दता, द घ
ास से मेघ को उड़ाता और मंदराचल-सा उ तेज दखाता आ ऐसा लग रहा था क
वह सब दे वता और उनके साथ दश दशा को कंपाता चलता आ ऐसा तीत होता
था, जैसे लयकार म भूखी मृ यु सामने आ रही हो। दे वता के हाथ से जो दै य मारे गए
थे उ ह कालने म ने उठने का संकेत कया। उस समय श ु के लए काल के समान उस
कालने म को दे खकर दे वगण अ य त भयभीत ए और सांसा रक ा णय ने यह समझा
क यह तीय व म भगवान् रण- े म वचरण कर रहे ह। जब उस असुर ने अपना
द ण पग बढ़ाया तब दे वगण ाकुल हो उठे और उनके श ा वायु से हल उठे । उसी
समय दानव-राज मय ने वहां आकर कालने म को कंठ से लगा लया। उस समय वह मंदर
पवत जैसा लगने लगा। वह उस समय सा ात् यम क तरह लग रहा था। उसक श क
प रक पना करके दे वता कांप गए थे।
दे वता को व णु क सा वना
वैश पायन जी बोले—“हे महाराज! जल, वेद, धम, मा, स य और नारायण, भगवती
ल मी ये दानवराज के अ धकार म नह आए, तब वह अ य त ोध से भरकर वै णव पद
ा त करने क इ छा से भगवान् व णु के पास गया। वहां जाकर उसने दे खा क भगवान्
व णु शंख, च , गदा धारण कए ए ह तथा दानव का नाश करने के लए अपनी गदा
घुमाते ए जाने को उ त ह। व णु भगवान् का जलवष बादल के समान वण था। वे
व ुत के समान चमकते ए पीता बर व पहने ए थे। सुनहले पंख वाले क यप पु
ग ड़ क पीठ पर आ ढ़ थे। यह दे खकर क भगवान् दानव का संहार करने को जाने के
लए तैयार ह, असुरराज कालने म ु आ तथा कभी ु भत न होने वाले भगवान् के
बारे म कहने लगा—यही मेरे पूवज का, दानव राजा का श ु है। इसी ने समु म रहने
वाले मधु तथा कैटभ का नाश कया है। कहते ह क यह हमारा अजेय श ु है। इसी ने
यु - थल म अ -श से न ु र तथा ब च क तरह बचपने के भाग से दानव का नाश
कया है। इसी ने असं य दै य-प नय का सुहाग न कया है, यह व णु ही दानव के
नाश का कारण है और यही दे वगण का व णु, वगवा सय के लए बैकु ठ है, यह सप
और जल म नवास करता है। यही ा एवं दे वगण को आ य दे ने वाला तथा हमारा श ु
है। इसी ने मेरे पूवज हर यक शपु का नाश कया था। इसी के आ य मे दे वगण य थल
म मह षय ारा अ न प म तीन भाग म द भाग हण करते ह। यही सभी दे व े षी
दै य के नाश का कारण है। इसी के ती ण तथा वेग च से हमारे कुल का नाश आ है।
इसी ने दे वगण क र ा करने के लए ाणपण के साथ अपने सूय से चमचमाते ए च
से दानव का संहार कया है। यही हम दानव का काल है। अब ब त समय प ात् म
इसके सम इसका काल बनकर आया ं। म इससे अपने सभी सा थय का बदला लूंगा।
यह अ य त क ठनता से सामने आया है।
अब यह मेरे तीर से पी ड़त अभी मेरे सम झुक जाएगा। आज मेरा सौभा य है क म
इसका वध करके अपने पूवज के ऋण से मु होऊंगा। दानव के लए भयानक इस
नारायण का नाश का ं गा तथा नारायण के ारा र त दे वगण का भी वध कर ं गा। यह
संभव है क फर कभी कोई अवतार धारण करके दानव को क दे । य क पहले भी
इसी अन त ने पद्मनाभ प धारण करके मधु तथा व णु ने नृ सह दे व का अवतार लेकर
मेरे पता हर यक शपु को अपनी जांघ पर चीरकर वध कया था। अपने शुभ समय म दे व
माता-अ द त के गभ म ज म धारण कया तथा तीन लोक को तीन ही डग म नाप लया
था पर तु अब इस समय भयंकर सं ाम म सभी दे वगण स हत यह मेरे ारा मृ यु को
ा त होगा।
जनमेजय को वैश पायन जी ने कहा—“हे राजन्! इस कार दानवराज नाना कार से
भगवान् को अपमा नत करता आ यु करने को उ त हो गया। उस दै य के ारा इतना
अपमान होने पर भी भगवान् व णु ो धत नह ए। अ पतु धैय के साथ म द मु कान
स हत कहने लगे—हे दानव! गव अ य त तु छ होता है। वीर वही होता है जसम श
रहते ए भी ोध न आए। इसी लए तुम धैय खोकर, गव के दोष से कही गई बात से ही
मर चुके हो। म तुमको बड़ा पापी जीव समझता ं। तु हारे बा -बल के गव के लए तु ह
ध कार है जहां पु ष नह वह ना रयां गुजरती फरती ह। वही तुम चाहते हो। जाप त
सृ कता से वमुख होकर कौन स चत रह सकता है। आज म तु हारा वध कर ं गा
य क तुमने दे वगण से उनके काय को अपने अ धकार म ले लया। म सभी दे वगण को
पुन: अपने-अपने पद पर पदासीन कर ं गा।
वैश पायन बोले—हे महाराज! इस कार पीता बधारी भगवान् व णु के कहने पर वह
दानव ोध के साथ जोर से हंसा तथा उसने अपने सभी श संभाल लए। इसके प ात्
उस दै य ने ोध से पागल होकर सभी श -अ अपने सौ हाथ म लेकर भगवान् व णु
क छाती पर हार करने शु कर दए। तारकामय इ या द दै य भी न शका आ द व
लेकर व णु भगवान् पर आ मण करने को उ त ए। अ य त वीर तथा नाना कार के
श से शो भत दै य के आघात करने पर भी भगवान् वच लत नह ए तथा यु - थल
के म य अकं पत पवत के सामन रहे। इसके प ात् दानवराज कालने म ने अपनी भयंकर
गदा से ग ड़ के म तक पर हार कया। उस दै य के इस काय को दे खकर व णु भगवान्
व मय म पड़ गए। उस गदा के हार से प राज ग ड़ ब त पी ड़त ए तथा भू म पर
उतर आए। जब भगवान् व णु ने अपना शरीर तथा प राज ग ड़ को घायल दे खा तो
उनके ने ोध से लाल हो उठे । तब उ ह ने अपना सुदशन च हाथ म लया। जैसे ही
भगवान् ने अपना च हाथ म लया वैसे ही भगवान् तथा प ीराज ग ड़ का शरीर व तार
को ा त होने लगा। भगवान् व णु क भुजा ने बढ़कर दश दशा को ढं क लया।
उनके शरीर के व तार से दशा, व दशा, पृ वी तथा आकाश सभी ढक गए। ऐसा मालूम
पड़ने लगा जैसे तीन लोक को आ ांत से बचाने के लए उनका शरीर व तार को ा त
ही रहा है दे वगण के क याण करने के लए व ता रत शरीर को दे खकर नभ थत ऋ ष
तथा ग धव भगवान् व णु क तु त करने लगे। इस शुभ समय म उनके म तक म वयं
वग का नवास था और वसन म अ बर से आ छा दत आकाश, चरण म वसुधा तथा
भुजा म दस दशाएं, ा त थ । सूय क करण के समान चमकता आ, हजार धार
वाला, ती भड़कती ई अ न के समान ती ण तथा भीषण सुदशन च भगवान् के हाथ
म सुशो भत हो रहा था। उस भयानक च क धारा वग क थी तथा ना भ व के स श
थी, उस पर दै य का मद, म जा, अ थ तथा धर लगा आ था। इस प म भगवान्
व णु अपनी स पूण ऐ य से भरी कला से पूण लग रहे थे। यह च भगवान् व णु क
इ छा के साथ-साथ व वध आकार धारण कर सकता था तथा सभी जगह जाने क उसक
मता थी।
उस च का नमाण भगवान् ने वयं कया था तथा उससे सभी डर कर रहते थे। उसम
ऋ षजन का ोध समा व था तथा वह हमेशा दप से पूण रहता था। इसका पर
हार करने पर तीन लोक पुल कत हो जाते थे। उसके हार करने पर यु - थल म मृत
यो ा का मांस खाने वाले जीव को दय स ता से भर उठता था। ऐसे भगवान् व णु
ने ोध म भयंकर लय व प च को लेकर अपने तेज से दै य का सारा तेज समा त
करते ए महान् असुर कालने म क सौ बा तथा भयानक हाहाकार करते ए सौ म तक
को काट दया। वह दै य अपने बा तथा म तक के कट जाने पर भी क पत नह आ
अ पतु कबंध अव था म बना शाखा वाले वृ के समान खड़ा रहा। तभी वनता पु
प राज ग ड़ दोन पंख फैलाकर उड़ने लगे तथा वायु के समान वेग से अपने व से
असुरराज कालने म पर हार कर उसे गरा दया।
इस कार से कालने म का हाथ तथा म तकहीन शरीर लुढ़कने लगा तथा आकाश से
गरकर पृ वी क ओर गरने लगा। उस भयंकर दै य का नाश होने पर दे वगण तथा
ऋ षजन साध यवाद दे ते ए भगवान् ी व णु क तु त करने लगे। और भी जो दै य
रण-भू म म अ यंत परा म के साथ यु कर रहे थे वे सभी भगवान् व णु क बा से
भचकर मृ यु को ा त हो गए। अ य कुछ दै य को बाल न चकर और कुछ दै य को
क ठ मरोड़कर भगवान् ने मार डाला। ब त को उ ह ने अपने गदा तथा च से मार डाला
तथा सभी दै य मृ यु को ा त होकर आकाश से धरती पर आ गरे। इस तरह भगवान्
व णु दे वराज इ के काय से दै य का संहार करते ए अ य त स चत खड़े दखाई
दए।
हे राजन्! इस कार सं ाम का अ त होने पर लोक पतामह ा सभी ा ष,
साधुजन, ग धव तथा अ सरा स हत शी ही वहां प ंचे तथा दे व के दे व भगवान् व णु
क सराहना करते ए कहने लगे, हे दे व! आपने इन दै य के वनाश व प ज टल काय
करके सभी दे व गण का भय र कर दया। इससे हम सभी ब त स च ह। हे व णो!
आपने महान् असुर कालने म का नाश कया है, इनको सवाए आपके कोई नह मार
सकता था। यह सभी दे वगण तथा लोक को जीतकर ऋ षजन को क दे ता आ मुझ
पर भी गरजने लगा था। अपने मृ यु पी कालने म के संहार स श यह ज टल काय कया
है इससे हम सभी को अ य त स ता ई। अब हम सब लोग वयं चलते ह, यहां पर सभी
ा ष एक त ए आपक ती ा म बैठे ए ह, इस लए आप वहां च लए। वहां सभी
मह ष तथा म भली कार से आपक तु त एवं पूजन करगे। वे सब ा ण होने के नाते
आपको वर दे ना चाहते ह।
वैसे आपको वर तो या दे सकते ह य क आप तो वयं ही सभी दे वगण तथा
दै यगण को वर दे ते हो। अब सभी तीन लोक म कोई भी क न होने से आन द म न ह।
अत: आप वयं दे वराज इ को तीन लोक का वा म व द जए। इस कार भगवान्
व णु, पतामह ाजी के कहने पर इ ा द सभी दे वगण से यह शुभ संवाद करने लगे।
भगवान् व णु बोले! यहां इ ा द जो भी दे वगण ह, सभी यानपूवक मेरी बात सुन। इस
महायु म इ से भी अ धक शूरवीर कालने म आ द दै य का मने नाश कर दया है। इस
भयानक सं ाम म दो दानव बच गए ह, राजा वरोचन का पु ब ल और सरा रा ।
दे वराज इ तथा व ण अपनी-अपनी दशा पर रा य कर। द ण दशा पर यमराज
तथा उ र दशा पर कुबेर रा य कर। इस कार व णुजी ने सबको अलग-अलग रा य
दान कया।
फर उ ह ने कहा क न स हत च मा अपने समय के अनुसार मण कर तथा
अपने सयन म बैठकर सूय ऋतु का यान करते ए अपने माग म संल न रह।
इस समय हे दे वगण ! अब दानव का भय छोड़कर शां तपूवक जीवन-यापन करो,
तु हारा क याण होगा तथा म अपने सनातन लोक को जाता ं। दै यगण अ य त नीच
होते ह म इनका घर म, वग म तथा यु - थल म भी व ास नह करता। त नक रा ता
मलते ही ये दै य उप व शु कर दे ते ह। मयादा का पालन करना तो वे जानते ही नह ।
तुम सभी अ य त मृ तथा शांत कृ त के हो। जब-जब ये पापी दै य तुमको सताएंगे
तथा तुम इनसे अ य त भय त ह गे तब-तब म शी आकर तु हारा भय र कर ं गा।
वैश पायन ने कहा—हे राजन्! इस कार दे वगण से कहकर स य, परा म तथा
तेज वी भगवान् ी व णु पतामह ा के लोक को चले गए तथा तारका द सं ाम म
दै य तथा भगवान् के बारे म जानने क जो आपने मुझसे इ छा कट क थी, उसी
व यमकारी कथा को मने आपको सुना दया है।
महाराज जनमेजय ने कहा—हे ा णदे व! दानव संहार के प ात् पतामह ाजी के
साथ लोक जाकर भगवान् ी व णु ने या- या काय कए। कमलयो न ाउह
लोक जस योजन से ले गए, व णु भगवान् लोक के कस भाग म गए? वहां
उ ह ने कस योग क उपासना क तथा कन नयम का पालन कया है? वहां रहते ए
लोक को दे वगण, दै यगण तथा मनु य-जन ारा पू य ल मीजी कस कार मल ?
भगवान् य ी म-ऋतु के अ त म सोते ह तथा बरसात के बाद उठते ह। लोक म
रहकर तीन लोक का पालन कस कार करते ह? हे यवर! म भगवान् व णु क इन
द लीला का वणन व तारपूवक आर भ से अ त तक सुनना चाहता ं।
यह सुनकर वैश पायन जी ने कहा—“महाराज! भगवान् ी व णु ने पतामह ाजी
के साथ लोक म जो काय कया, सु नए। व तारपूवक पहले म उसी का वणन करता
ं। पर तु उनक लीला का आधार अ य त गहन है। उनक लीला को दे वगण भी
नह जान पाए। अ पतु म यथाश आपको बता रहा ं सु नए। दे व के दे व भगवान् व णु
म तीन लोक समाए ए ह तथा तीन लोक म भगवान् वयं ा त ह। इसी तरह वयं
भगवान् म समाया आ तथा भगवान् वयं म ा त ह। अनेक योगी महापु ष ब त
य न करने पर भगवान् का पार न पा सके। पर तु भगवान् तीन लोक का ओर-छोर तथा
उसके मम को भली-भां त समझते ह। वे महा भु ह, दय तथा वचन से र ह। दे वगण
न य त उनक उपासना करते रहते ह। म अब भगवान् के सनातन लोक का दशन
कराता ं, सु नए।
लोक म प ंचकर सबसे पहले उ ह ने उसको भली-भां त दे खा। त प ात् भगवान् ने
वहां रहने वाले ऋ ष जन क व वधत् अ यथना क । वहां भगवान् ने दे खा क उषावेला
म अनेक मह ष हवन म आ त दे रहे ह। ात: या के समा त होने पर भगवान् ने दे खा
क उषावेला म अनेक मह ष हवन म आ त दे रहे ह। ात: या के समा त होने पर
भगवान् ने अ न दे वता को नम कार कया। ऋ षजन ारा आ ान करने पर गाहप या द
हण करने वाले अ न दे वता के साथ ही भगवान् थत हो गए। उस समय भगवान् व णु
पू य तथा वच वी ऋ षजन क अ यथना करके सनातन लोक म घुमने लगे।
उ ह ने दे खा क वहां रहने वाले थय ने च तन करके, बड़े-बड़े उ च य त भ बनाए
ए ह। शु घी क सुग ध आ रही है, ा ण जन वेद का उ चारण कर रहे ह तथा
भगवान् क ाथना के लए मं का आयोजन हो रहा है। यह सब दे खते ए वे फर घूमने
लगे। वहां रहने वाले ऋ षजन तथा दे वगण सभी शु मनोभावना के साथ अपने शुभ
हाथ म अ य लए ए कहने लगे। हे भगवान्! हम सभी जो भी काय कर रहे ह तथा जो
काय कर चुके ह उनम आपक सहायता क अ य त आव यकता है। सभी व ानगण इस
संसार क सृ अ न तथा चं से ई मानते ह, अत: अ न दे व, चं दे व और यह संसार
आपके ारा र चत ह।
हे महाराज! इस कार वागत- ाथना आ द के अंत म अनेक दे व के साथ भगवान् ी
व णु क ओर उ मुख होकर मु नजन कहने लगे—भगवान्! आप हमारे व धवत् पूण इस
य के अ त थ बन। आप ही हमारे य पूत के पा को हण करने यो य ह। हम ात है
क आप हमारे मं ारा यान यो य अ त थ ह। आपके सं ाम-भू म म चले जाने के
कारण हमारे सभी काय क गए थे य क हम जानते ह क आपके सभी य -कम थ
स होते ह। य क द णा आ द काय के पूरे होने पर आप ही य का लाभ वत रत
करते ह। अत: हम लोग आज आपक उप थ त म ही य का अनु ान करना चाहते ह। हे
राजन्! ऋ षय ऐसा कहने पर भगवान् ी व णु ने उनको, ऐसा ही कहकर स मान कया
तथा उस लोक म अ य त स ता से ाजी के साथ रहने लगे।
वैश पायन जी ने महाराज जनमेजय से कहा है—हे राजन्! इस तरह भगवान् ी व णु
लोक म रहने वाले ऋ षजन से स मान पा कर उस थान पर उप थत सभी से वदा
लेकर तथा ाजी को णाम करके स च से पुराण ार तु य तथा अपने नाम के
लए स अपने द लोक को चल दए। अपने लोक प ंचने पर और शा ाथ को
यथा थान रखते ही भगवान् नारायण ने दे खा क सम त दे वगण तथा ऋ षगण समु के
समान उमड़ते ए उनके आ म पर आए ए ह। उनका आ म लयकाल के स श घने
बादल से ढं का आ, न से भरा आ घोरतम ववर से आ छा दत तथा दे वगण के
लए भी अग य था। उस थान पर सूयदे व, चं दे व तथा वायुदेव का कोई भाव नह था।
वह थान भगवान् पद्मनाभ के तेज से चमचमा रहा था। वहां जाकर भगवान् ने केशभार
धारण कया। उनके हजार म तक हो गए तथा वे सोने के यास म लग गए। ऐसे समय म
ही लोक का अंत समय जानकर अपने व प म मु धा काल व प न ा दे वा द दे व
भगवान् ी व णु क सेवा करने लग ।
जब भगवान् शयन करने लगे तो उनको न द म ही वण वाले कमल क उ प ई यही
कमल ाजी क उ प का ोतक था। भगवान् ी व णु उसी व ाव था म ही
सू ारा अपने हाथ उठाते ए तीन लोक म मण करने लगे, जैसे भगवान् ने
ाजी क उ प क , वैसे ाजी के मुंह से नकली ई वांस से इस संसार क सृ हो
गई। इसके प ात् जाप त ा ार र चत जाजन ा ारा ही बांटे गए चार वण म
वभा जत कर दए गए। वेद म बतलाए गए कम के अनुसार अपने-अपने धम तथा
भगवान्-भ म संल न हो गए। वयं ा तथा कोई भी ऋ षजन उन घोर त मर यु
तथा द व ाव थत भगवान् ी व णु के प को नह जान पाए।
भगवान् व णु अपने मूल प म रहते ए वयं स वनाशहीन भगवान् ी व णु
अपने आ म म उसी न ाव था म ही संसार को मो हत करते ए शयन-संल न रहे तथा
उनको शयन करते-करते स युग और ेतायुग अथात् एक द सह वष बीत गए।
ापर युग के अ त समय म सम त संसार के जीवा मा के अ य त पी ड़त होने पर तथा
सभी ऋ षजन ारा उपासना करने पर ही भगवान् जागे।
ऋ षजन कहने लगे—हे भगवान्! अब आप माला से मु फूल के समान इस न ा को
याग कर दे खए—सभी जन, स यवाद तथा तधारी ऋ षगण एवं दे वगण जाप त
ा स हत आपके दशन क अ भलाषा से आपक ाथना कर रहे ह। हे भगवान्!अपने
पा तर पृ वी, आकाश, अ न वायु एवं जल के अ ध ाता स श दे वगण क ाथना
सुन।
इस कार स तमु नय स हत यह स पूण ऋ ष-म डली द वा य तथा व धवत्
छ द ारा व णु क सराहना कर रहे ह। हे शतप ा ! हे महा ुते! अब आप उ ठए,
कसी वशेष काय के उ प होने के कारण ही वे सम त दे वगण यहां पर एक त ए ह।
वैश पायन ने कहा—हे महाराज! इस कार सभी दे वगण तथा ऋ षजन ारा तु त
करने पर भगवान् ी व णु ने उस जलरा श को सू म कया तथा तेज से अंधकार का नाश
करके द शै या से उठ बैठे। न ा से जागकर भगवान् ी व णु ने दे खा क सम त
दे वगण स हत ाजी संसार क भलाई हेतु कुछ कहने को मौन धारण कए ए खड़े ह।
उन सभी को उप थत दे खकर न ा र हत च ु वाले उनको स बो धत करते ए धम तथा
अथपूण श द कहने लगे। भगवान् ी व णु बोले, हे दे वगण ! अब आप लोग क कसके
साथ कलह हो गई तथा आप लोग कससे भयभीत ह? आपके श ु दै य ने फर कोई
वनाशकारी काय तो नह कया? यह सब मुझे शी बताओ। आपक सहायता हेतु म
अपनी द शै या याग चुका ं। बतलाओ, अब तुझे या काय करना है? जन दै य ने
तु ह भयभीत कया है म उनका नाश कर ं गा।
ी व णु का कृ ण प-ज म
राजा जनमेजय ने मु न से कहा क भगवान् के ज म क कथा को व तार से बताइए।
तो वैश पायन ने कहा—हे नृप! जैसा मने पहले वणन कया उस कार दे वक क गभ
थ त ार भ ई और जैसे-तैसे उसके गभ से शशु ज म लेते थे, वैसे-वैसे कंस उ ह पृ वी
पर पटक-पटक कर वध कर दे ता था। इस कार दे वक क जब सातव बार गभ- थ त
ई उस समय योगमाया ने अपनी माया श ारा दे वक के गभ को रो हणी के गभ म
थत कर दया। इससे आधी रात म रज वल दे वक का गभपात हो गया। दे वक न ा से
मो हत होकर पृ वी पर लेट गई और योग माया का उ ह ान न हो सका। उ ह व मा
क अनुभू त ई क उ ह वेदना अव य ई। उस घोर अ धकारमयी रा म रो हणी के
समान सु दर रो हणी से योगमाया बोल , मने दे वक का गभ तु हारे गभ म व करा
दया है, अतएव इस गभ सं मण से जो पु तु हारे गभ से ज म लेगा, इसका नाम
संकषण होगा। इस कार कुछ समय तीत होने पर रो हणी के पु आ। रो हणी को
पु ा त के कारण ब त हष था और ह षत होती ई रो हणी जब अपने शशु स हत
अपने गृह म व ई उस समय उसक शोभा ऐसी लग रही थी क मानो च प नी
रो हणी अपने पु को लेकर व ई हो। इधर कंस ने दे वक के स तम गभ क खोज
ार भ कराई और इसी अव ध म दे वक को पुनः आठव बार गभ थ त हो गई।
सब कार क सावधानी करते ए कंस ने नममतापूवक वहार से अब तक दे वक के
सात गभ को न करा दया था। उसी उ े य क पू त के लए कंस के मं ी व राजसेवक
ारा दे वक के अ म गभ क दे ख-रेख हो रही थी। फर वयं भगवान् व णु वे छा से
दे वक के गभ म आए और उधर भगवान् व णु का शरीर इधर आ उधर न ा दे वी
भगवान् व णु के नदश के अनुसार यशोदा के गभ म वेश कर ग ।
इस कार सव क अव ध पूण होने पर नव महीने म इधर दे वक के पु और यशोदा
ने क या को एक साथ ज म दया। जस रा म भगवान् व णु ने वृ ण कुल म ज म
लया। उसी रा गोपराज न द क प नी यशोदा ने भी एक क या को ज म दया। चूं क
न द गोप क भाया यशोदा और वसुदेव क भाया दे वक एक साथ गभवती ई थ ।
इस लए उस अ भ जत् न म अ रा काल म उन दोन के पु एवं क या उ प ।
भगवान् का जैसे ही ज म आ, जैसे सम त भूम डल म उथल-पुथल होने लगी, समु
उमड़ने लगा, पवत वैसे ही हलने लगा और अ न भी धधकने लगी। आन ददायक वायु
वेगवती हो गई, धूल गु बारे शांत हो गए और न एकदम चमकने लगे। भगवान् के ज म
के समय अ भ जत न , जय ती नामक रा और वजय नामक मु त था। उस अ ,
शा त और सू म ह रनारायण भु के ज म लेते ही दे वता ने वग म वा बजाने ार भ
कर दए। सुरराज इ अपने लोक से उन पर पु प बरसाने लगे, मंगलमय वा य के
उ चारण ारा सुरगण, मु नगण, ग धव व अ सराएं उनक आराधना करने लग जनके
ज म लेते ही सम त भूतल आन दत हो उठा। दे वे र इ भी अपने दे वता स हत
भगवान् क तु त करने लगे। उस अ धकारमयी रा के समय उ म ल ण यु उन
भगवान् के प क छ व दे खकर लोक वसुदेव बोले—हे भो! आप अपने इस प को
संव रत क जए मुझे कंस से ब त भय है। उसने आपसे बड़े मेरे कई पु का वध कर
डाला है।
वैश पायन जी बोले—हे महाराज! वसुदेव जी क ाथना पर भगवान् ने अपना वह
अलौ कक प संव रत कर लया और फर उ ह ने वसुदेव से कहा—हे पताजी! आप
यहां से मुझे गोपराज न द के यहां ले च लए। भगवान् क ऐसी आ ा सुन वसुदेव तुर त ही
बालक को लेकर रा म यशोदा के घर प ंचे। दे वक को इस बात का ान भी नह था
और वे अपने बालक को यशोदा के नकट लटाकर क या को लेकर चल पड़े। य प
दे वक और यशोदा के गभ का प रवतन करके वसुदेव भयभीत थे, फर भी अपने को
कृताथ मानकर वे न द भवन से बाहर आए और मथुरा प ंचे। फर वसुदेव ने महाराज कंस
को दे वक के यहां क या उ प होने का संदेश दया।
दे वक के यहां स तान-ज म का समाचार सुनते ही कंस अपने सेवक स हत तेजी से
वहां प ंचा। वसुदेव और दे वक को हटाकर उसने कहा जो कुछ उ प आ उसे तुर त मेरे
पास लाओ, कंस के ऐसे आदे श को सुन दे वक के अ तःपुर क यां ची कार कर उठ
और दे वक ने कातर वर म कंस से कहा—अब मेरे क या उ प ई है। अब तक तुमने
मेरे सात पु का वध कर डाला तो यह क या तो वैसे ही मरी-सी है। वयं ही दे ख लो।
ऐसा कह दे वक ने उस उ प क या को कंस के आगे पृ वी पर लाकर लटा दया। फर
ह षत होते ए कंस ने कहा—वा तव म यह क या तो मर ही चुक है और यह कहकर
उसने क या को पैर पकड़कर घुमाकर उसे पृ वी पर मारने का उ म कया।
जैसे ही कंस ने क या को पृ वी पर पटका वैसे ही वह क या अपना बाल प यागकर
आकाश म उड़ गई। उस समय उसके केश फैले ए और उसक दे ह सु दर द चंदन से
सुशो भत थी। उसके स पूण अंग पर मालाएं सुशो भत थ । अद्भुत मुकुट म तक पर
धारण था। ऐसा दे ख सम त सुरगण उसक ाथना करने लगे। उस क या ने नील एवं पीत
वण के प रधान पहन रखे थे। हाथी के म तक स श उभरे ए उसके तन थे और रथ
जैसा वशाल व - दे श। उसका मुख च मा के समान पवान् था एवं उसक चार
भुजाएं थ । उसके शरीर क आभा दमकती व ुत के स श थी एवं उषाकालीन सूय के
समान र वण उसके ने थे। सायंकाल क मेघ यु सं या के समान उसके कुच थे। भूत-
ेत स हत उस घोर अ धकारमयी रा म वह बार-बार नाचती, हंसती और आकाश म
वचरती ई म दरा पान करने लगी। फर भयानक अट् टहास स हत ो धत वर म कंस से
कहा—हे पापी कंस! तूने मेरा वध करने हेतु मुझे पृ वी पर पटका। जब तेरा मृ युकाल
आएगा उस समय तेरा श ु तुझे घसीटे गा और उस समय म अपने हाथ से तेरे शरीर को
चीरकर तेरा धर पान क ं गी। हे राजा! कंस से इस कार ोधपूवक वचन कहकर वह
क या अपने भूत- ेत के स हत आकाश मंडल म वचरने लगी। इसके प ात् भगवान्
व णु के नदशानुसार वृ णवं शय के घर म पु के समाने बड़े य न के साथ पालन-
पोषण आ तो वह बढ़ने लगी। वह क या भगवान् जाप त के अंश से उ प थी। इस लए
यादव लोग भगवान् कृ ण क र क के प म उस क या को पूजने लगे। दे वता के
समान अद्भुत दे हधारणी वह क या जब कृ ण भगवान् क र ा करके चली गई तब कंस
बड़ा ल जत आ और अकेले म दे वक से बोला—दे वक बहन! मने अपनी मृ यु के भय
से तु हारे अनेक पु का वध कर डाला, ले कन अब ऐसा तीत होता है क मेरी मृ यु का
कारण कोई अ य ही बनेगा।
कंस ने ःख कट करते ए कहा—म बड़ा नदयी ं और मने अपने य का न
कया है, फर भी व ध ने जो भा य म लख दया उसे म कसी भी कार से प रव तत
नह कर सका। हे सती! तु ह अब पु के वध के वषय म सभी च ता और स ताप याग
दे ना चा हए। व ध के वधान के कारण ही मने उनका वध कया। य द तुम इस पर वचार
करो तो तु ह तीत होगा क म तो व ध के वधान का न म मा ं। समय ही मनु य का
सबसे बड़ा श ु है और यही उसका वनाशक है। जो होना होता है वह अव य होता है।
ले कन संताप तो यह है क दे व के वधान का मनु य वयं ही क ा बन जाता है। इस लए
तु ह पु क च ता यागकर यह शोकपूण दन ब द कर दे ना चा हए। मनु य क ग त ही
ऐसी है, वह काल को जीत नह सकता। हे बहन! पु वत् म तु हारे चरण म शीश नवाता
ं, तु ह मेरे ऊपर से ोध याग दे ना चा हए। मने तु हारा बड़ा अपकार कया है। कंस को
अपने चरण म पड़ा इस कार संताप करते दे खकर दे वक क आंख म आंसू उमड़ आए
वह अपने प त वसुदेव क ओर दे खकर एक मां क भां त वत दय से कंस से बोली—हे
व स! उठो, तुमने जो मेरे पु का वध कया, उसके कारण तुम नह हो, इसका मुख
कारण काल ही है। अब जब क इसके लए तुम मेरे चरण पर माथा रखकर इस कार
संत त होकर खेद कट कर रहे हो, इस लए म तु ह मा करती ं। गभ, बा याव था,
यौवनाव था और वाध य कोई भी थ त य न हो, ले कन काल क ग त नह कती।
दे वक ने पुनः कहा, ऐसा समय केवल काल के वशीभूत होकर ही आता है। काल का जो
काय होता था, उसके तुम न म मा हो। पु -ज म न हो तो यह संतोष रहता है क
उ प नह आ, क तु ज म हो और उसके प ात् वह न रह पाए तो यह ई र क कृपा
पर आधा रत है। वधाता ाणी को अपनी इ छा के अनुसार जहां चाहता है, ले जाता है,
इस लए हे व स! अब तुम जाओ और यह भूल जाओ क मुझे तुम पर कोई कोप है।
जसको जाना होता है वह मृ यु को अव य ा त करता है, इसके प ात् उसका केवल
अव श मा रह जाता है। अनेक ज म के पाप-दोष, मां-बाप के दोष और ज म के
कारण जीव को मृ यु ा त होती है। इसम तु हारा कोई दोष नह है। इस कार दे वक के
सां वनापूण वचन सुनकर कंस अपने अ तःपुर चला गया क तु उसके यास करने पर भी
उ े य क पू त म बाधा पड़ गई थी, इससे उसके च म च ता पी अ न जल रही थी।
वह दे वक के सामने तो उतना नह घबराया पर अकेले म आकर घबरा गया।
भगवान् कृ ण क ज-या ा
इसके बाद भगवान् कृ ण क व वध थ तय के वषय म बताते ए वैश पायन ने
कहा—हे नृप! दे वक ारा ज म दए जाने से पूव ही वसुदेव ने अपनी सरी प नी रो हणी
को गोपराज न द के यहां भेज दया था त प ात् उसको समाचार मला था क रो हणी क
कोख से च मा के स श सु दर मुख वाले बालक ने ज म लया है। गोपराज न द अपना
व णक कर चुकाने के लए अपने पु व प नी स हत मथुरा आए थे। तब यह सुनकर
वसुदेव उनसे भट करने प ंचे ओर न द से उ ह ने कहा—गोपराज! ज म तुर त वा पस
प ंचकर आप उन दोन बालक का जातकम सं कार आ द स प करके उनका पोषण
कर। जस कार यशोदा के पु का पालन हो, उसी कार रो हणी के पु का पालन होना
चा हए, य क रो हणी के पु से ही संसार क म पु वान कहलाऊंगा। मने अभी तक
अपने पु का मुख भी नह दे खा है। कंस क नदयता और उसके ारा शशु का वध
कए जाने से म व होकर भी मंदबु हो गया ं इस लए वशेष सावधानी स हत यशोदा
व रो हणी दोन के बालक क र ा कर और उनका पालन कर। चूं क उन बालक पर
अनेक कार के संकट आ रहे ह।
उसका पु ये है और मेरा पु छोटा है। फर उन दोन क लगभग बराबर क आयु
है, उसी कार उनके नामकरण का य न क रएगा। हे सखे! आपका ऐसा य न हो क
ये दोन समान आयु वाले बालक गाय के झु ड साथ लेकर ड़ा कर और घूम।
बा यकाल म अ धकतर सभी ाणी वे छाधारी व उ ड वभाव के होते ह, इस वषय म
आप वशेष सतक रह। वृ दावन म गोप का नवास थान न बनवाइएगा। य क वहां
कसी रा स, अनेक कार के सप और हसक पशु-प य का भय है। अपने गो म
गाय और उनके बछड़ को बचाते रह। वसुदेव ने कहा—सखे न द! रा समा त हो चुक
है, थान क शी ता क रए। ऐसा तीत होता है क ब तेरे प ी आपके इधर-उधर
च कर लगा रहे ह । हे भूपते? महान आ मा वसुदेव के मुख से ऐसे रह यपूण वचन
सुनकर न द गोपराज सावधान हो गए और न द ने वसुदेव से वदा मांगी, त प ात् यशोदा
स हत अपनी पालक म बैठ गए और साथ म इ ह ने अपने पु को भी उसम बठा लया।
इसके उपरांत वे यमुना के कनारे- कनारे एका त एवं अ धक पानी वाले माग से चले।
उस काल भातकालीन मंद शीतल वायु बह रही थी। आगे बढ़ने पर उ ह गो ज दखाई
पड़ने लगा, जो क हसक पशु से शू य था। वह मनोरम दे श गोवधन पवत के नकट
एवं यमुना कनारे थत था और उस थान पर शीतल व म द वायु बह रही थी। उस
मनोरम दे श क शोभा व भ कार के लता कुंज और वृ समूह से थी। अनेक धा
गौएं वहां घास चर रही थ । वह एक समतल भू म थी जहां गौएं सु वधापूवक चर सकती
थी और वहां अ य त सु दर तालाब भी थे। सांड के क ध क रगड़ तथा स ग के हार से
अनेक वृ क छाल छल गई थी। ऐसा मनोरम वन दे श गृ , बाज, ृंगाल, मृग और
सह आ द मांसाहारी वन पशु को शरण दए ए था। वहां हर समय सह क गजना
का घोर श द होता रहता था। अनेक कार के पखे वहां सदै व वचरण करते रहते थे।
वा द व मधुर फल क अ धकता थी, चार तरफ ह रयाली थी।
वहां अनेक गाय दखाई पड़ती थ और हर दशा म गाय का श द गूंजता था और हर
तरफ गाय के बछड़ क ह मा-ह मा श द व न गूंजती थी। अनेक बैलगा ड़यां गोलाकार
करके खड़ी थ । जगह-जगह पर कांट से का माग था, जनके कनारे अनेक जंगली वृ
भी गरे पड़े थे। कई थान पर बछड़ के बांधने के लए र सी स हत खूंटे गड़े पड़े थे। कई
थान पर उपले का चूरा फंसा पड़ा था और उस थान के सभी घर और मठ फूस से छाए
ए थे। अकसर उस थान पर अ छे -अ छे मानव आया-जाया करते थे। उस थान के
सभी ाणी व थ और -पु थे। कसी- कसी थान पर मोट र सयां भी पड़ी गई थ
और कह -कह गो पय ारा दही मथते समय उनके हाथ के आभूषण क व न सुनाई
दे ती थी। थान- थान पर दही व मट् ठा गरने के कारण वहां क मट् ट पर गीली हो गई।
जो गो पय के बालक वहां खेल रहे थे। उनक बड़ी-बड़ी शखाएं थ । गाय के सभी बाड़
के ार ब द थे और उनम गाय के रखने के लए सभी कार क सु वधाएं व मान थ ।
वहां वातावरण म चार तरफ पके ए घी क सुग ध आ रही थी। सभी तरफ नीले-पीले रंग
क पोशाक के कारण उनक युवा यां गत हो रही थ । उनक वेश-भूषा अ य त
आकषक थी उनक पहनावे म सौ दय था।
वे गो पय अं गया और साड़ी पहने ए और पु प के आभूषण पहनकर जलपूण घंड़े
को अपने सर पर रखकर एक पं म चल रही थ , उस ज म वेश करते ही गोपराज
न द को आता दे खकर उस तरफ बढ़कर बूढ़ गो पय और वृ गोप ने वागत कया।
इसके उपरा त न द को शंकट आ द से प रतृ त करके एक सुखदायी और सु वधापूण
थान पर बैठाया। उसके बाद न द वसुदेव क प नी रो हणी के नकट गए, जहां प ंचकर
उ ह ने रो हणी को नवो दत सूय के स श तेज वी कृ ण को दया। कृ ण को दे खकर
रो हणी अ य त स ।
इस कार बछु ड़ा आ प रवार जैसे मला हो और उनक स ता का आर पार नह
रहा हो। सब ऐसे ही अनुभव कर रहे थे। उनके वहां रहने के वषय म वैश पायन जी ने
कहा—हे राजन्! गोप क सुख-सु वधा का यान रखते ए न द को वहां रहते ए कुछ
काल बीत गया। उनके दोन पु का जब नामकरण आ, तब बड़े पु का नाम संकषण
और छोटे का कृ ण आ। ये भु ही थे जो मनु य यो न को ा त ए तथा मेघ के समान
याम शरीर वाले कृ ण गाय के बीच नवास करते ए समु के जल के समान सुखपूवक
वृ को ा त होने लगे। एक दन कृ ण को न द आने पर और गहरी न द होने पर
गोपरानी यशोदा ने उ ह एक छकड़े के नीचे सुला दया और वयं नहाने यमुना तट पर
गय । इधर कृ ण क न ा भंग हो गई और वह हाथ-पांव चलाते ए मधुर वर म रोने लगे
और तनपान क इ छा करते ए उ ह ने अपना पांव जैसे ही ऊपर को चलाया वैसे उसके
आघात से वह छकड़ा उलट गया। उसी समय यशोदा भी भीगे व पहने ए ही शी ता से
नान करके आ ग , उ ह ने दे खा, छकड़ा उ टा आ पड़ा है, उसम पु का ाकुल
दे खकर उ ह ने अपनी गोद म ले लया। छकड़े को उलटा आ दे खकर उ ह आ य आ,
पर तु वह यह नह जान सक क छकड़े को कसने पलट दया। अपने शशु का सकुशल
दे खकर कहने लग —हे लाल! तु हारे पता बड़े ोधी ह, जब वे सुनगे क म तु ह छकड़े
के नीचे सुलाकर यमुना नान को चली गयी थी और उसी समय म छकड़ा उलट गया तो न
जाने या कहगे। मुझे इस कार नान के लए यमुनाजी पर या जाना चा हए था? मेरे
अ छा भा य था, जससे छकड़े के उलट जाने पर भी तु ह कुशलपूवक पा सक ं।
यशोदाजी इस कार कह ही रही थ , तभी काषाय व को धारण कए ए नंदराय भी
गाय स हत वन से लौटे और दे खा क छकड़े का येक भाग टू टा पड़ा है, न दजी अ य त
भयपूवक ने से आंसू भरकर घर म तेजी से घुस गए और पूछने लगे क मेरा लाल तो
ठ क है? फर उसको तनपान करते दे खकर शा त ए और बोले क पर पर बैल भी तो
नह लड़े, फर यह छकड़ा कैसे उलट गया। नंदजी को अ य त आ य हो रहा था।
न दजी का सुनकर यशोदा का क ठ भर आया, वह भयपूण वर म बोली क
छकड़ा कसने गराया यह म नह जानती। म तो कपड़े धोने यमुना तट पर गयी थी और
जब वहां से आई तो इस कार उलटा पड़ा आ पाया। जब नंद-यशोदा म यह बात हो रही
थ वहां इकट् ठे ए बालक आकर बोले—यह छकड़ा इसी ने अपने पांव से उलट दया है,
हमने यह बात अपने ने से दे खी है यह सुनकर न द अ य त च कत ए। नंदराय ह षत
ए और भयभीत भी, वह अब बार-बार सोचते थे क ऐसा कैसे हो गया? पर तु साधारण
मत वाले गोप ने बालक क बात को यथाथ नह माना। वे व मयपूवक यही कहते रहे क
अ य त आ य क बात ई है, फर उ ह ने उस टू टे छकड़े को जोड़कर पुन: ठ क कर
दया।
इधर भगवान् अपनी माया दखा रहे थे उधर कंस कृ ण को न करने क चे ाएं कर
रहा था। वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! इस बात को कुछ समय तीत हो गया तब
कंस क धाय पूतना प णी का प धारण कर पंख से भयानक श द करती ई, आधी
रात समय न दजी के घर पर ोधपूवक प ंची। सह के समान भीषण गजना करने वाली
यह पूतना बार-बार घोर श द करती और ध क वषा करती ई एक वाहन के धुरे पर
जाकर बैठ गयी। जब सब लोग न ाम न हो गए तब उसने कृ ण के पास जाकर अपना
तनपान कराया। कृ ण ने उसका तनपान करते-करते उसके ाण का भी पान कर
लया, तब अ य त ाकुल होती ई पूतना घोर ची कार करती ई पृ वी पर लेट गयी।
उसक ची कार को सुनकर सु दर न द और गोप तथा यशोदा आ द यां अ य त शं कत
और भयभीत होते ए उठ पड़े। तब उ ह ने दे खा क व से फट ए पवत के समान
पूतना चेतनाहीन पृ वी पर पड़ी है तथा उसके तन भी कट गए ह।
वहां उप थत लोग अ य त आ यच कत ए और न द को घेर कर खड़े हो गए और
पूछने लगे क यह काय कसने कया? ब त वचार करने पर उसका कोई कारण उनक
समझ म नह आया और “ व मय है”ऐसा कहते ए अपने-अपने घर चले गए। जब वे
गोप आ य म भरे ए अपने घर चले गए तब न द ने अ य त घबराहट भरे वर म यशोदा
से पूछा क यह घटना कैसे ई। इसे दे खकर तो मुझे अपने बालक के लए अ य त भय
दखाई दे ने लगा है। इस पर यशोदा ने भी भयपूवक कहा—मुझे भी कुछ नह मालूम क
यह सब या और कैसे आ? म तो अपने बालक को साथ लेकर सो गई थी और इस
भयंकर श द को सुनकर ही जग पड़ी ं। यशोदा ारा अन भ ता कट करने पर न दा द
गोप कंस के कारण ही इसे भय क थ त मानते ए व यम म पड़ गए।
इसके बाद जनमेजयजी ने भगवन् वैश पायन से नवेदन कया क भगवान् कृ ण के
बालक से कशोर होने के वषय म बताने क कृपा कर।
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! नामकरण होने के बाद जैसे-तैसे समय तीत होने
लगा, वैसे-वैसे ही सौ य दशन कृ ण धीरे-धीरे वृ को ा त होते ए घुटन के बल चलने
लगे। उन दोन क आकृ त- कृ त, भोजन-वसन, भूषण, शयन, काय, बल एक समान थे
तथा वे समान पवाले नवो दत च और ात:काल के सूय के समान तेज वाले थे। उ ह
दे खकर ऐसा लगता था क एक शरीर के दो भाग ह, य क उनके सभी काय म समानता
थी तथा उसके सोने, खेलने, खाने— कसी प म अ तर नह था। दोन समान कद के थे
तथा लोक र ाथ दोन ने ही समान वेश गोप प धारण कया था। उनक आलौ कक
लीलाएं और तेज वता से तीत होता था क च मा सूय र मय का ओर सूय च
करण का ास कर रहा है। नाग के समान ल बी भुजा वाले दोन गोप पु अपने दे ह
को धूल धूस रत कए हाथी के ब च के समान इधर-उधर वचरने लगे।
दोन बालक शवपु का तकेय के समान अ य त सु दर थे। वे अपने दे ह म कभी भ म,
कभी उपल का चूरा, कभी गोबर लपेटे ए सब थान पर घुटन के बल चलते थे। उ ह
दे खकर नंद अ य त आन दत होते थे। वे दोन बालक अपने सा थय को चढ़ाते और
हंसते ए इधर-उधर घूमते थे। वे अ य त सुकुमार तथा चंचल ने वाले दोन इतने हठ हो
गये क न द उनको अ धक वश म न रख सक। एक दन अ य त ो धत ई यशोदा
कमल-नयन ीकृ ण को पकड़कर छकड़े के पास ले ग और उनक कमर म र सी
बांधकर ऊखल से बांध दया और यह कहकर क ताकत हो तो इससे छू टकर भाग जा,
वह अपने काय म लग ग ।
इधर माता अपने काम म लगी, उधर बाल-लीला करते ए कृ ण ऊखल से बंधे ए
धीरे- धीरे रगकर आंगन के बाहर नकले और सबको व मत करते ए यमलाजुन वृ के
म य जा प ंचे। वहां ऊखल टे ढ़ा होकर वृ म फंस गया तब वह उसे जोर लगाकर ख चने
लगे। इस कार ख चने से दोन वृ समूल उखड़कर पृ वी परं गर गए और कृ ण उनके
म य थत होकर हंसने लगे। ज गो पय पर अपना परा म द शत करने के लए ही,
उ ह ने यह लीला क थी। यशोदा के ारा बांधी गयी वह साधारण र सी उनके भाव से
अ य त ढ़ हो गयी थी। यमुना कनारे के माग से जाने वाली गो पय ने उनक यह लीला
दे खी तो अ य त आ य कट करती ई यशोदाजी के पास ग । वहां जाकर वे बोली-हे
जरानी! वल ब मत करो, शी ता से चलो, अरे दे खो कृ ण ने या कया है?
हम जस यमलाजुन वृ क पूजा अपनी कामना पू त के लए करती थ वे वृ तु हारे
बालक पर गरे ए धरती पर पड़े ह और दे खो! बालक ढ़ र सी से बंधा आ बीच म
खड़ा आ हंस रहा है। तुम अपने को अ य त बु मती मानती हो, पर तु तु हारी जैसी
म तहीन कौन होगी? बालक मृ यु के मुख से बचा है, शी तापूवक वहां जाकर अपने
बालक को बुलाओ। यह सुनते ही यशोदा अ य त आकुल होकर दौड़ पड़ी और शी ही
घटना थल पर जा प ंची। उ ह ने वहां दे खा क दोन वृ धरती पर गरे पड़े ह और उनके
बीच म ऊखल ख चते ए कृ ण हंस रहे ह और वह र सी अब भी उनक कमर से बंधी ई
है। इस घटना का समाचार समूचे ज म शी ता से फैल गया और सभी जवासी उस
कौतूहल उ प करने वाली घटना को दे खने के लए वहां आ गए। पर पर म वे सब गोप
कहने लगे—अहा! ये वशाल वृ गर पड़े, इस समय वायु, वषा, बजली या हा थय का
भी कोई उप व नह है तब यह कैसे गरे।
जस तरह जल वहीन मेघ शोभा र हत हो जाता है, वैसे ही ये वृ समूल उखड़कर
शोभा—हीन हो गए ह; ज/वा सय ारा लगाए ए वृ जबाला के लए अ य त
उपकारी थे। हे गोप े न द! इस दशा को ा त होकर भी यह आप पर अ य त स
तीत होते ह, इस लए इ ह ने आपके बालक को कोई हा न नह प ंचाई है। छकड़े का
टू टना और पूतना का मरना यह दो उ पात पहले ही हो चुके थे, अब इन वृ का गरना
तीसरा उ पात आ समझो। अब हमारा यहां रहना ठ क नह , य क बार-बार ऐसे
उ पात का होना शुभ-सूचक कदा प नह है। इसी समय न द शी तापूवक दौड़े और वे
कृ ण को ऊखल से खोल इस कार लारने लगे जैसे लोभी मनु य का खोया आ धन
मल गया हो। फर वे अपने पद्म नयन बालक के मुख को टकटक लगाकर दे खने लगे
और फर यशोदा पर ोध करते ए अपने घर गए। भगवान् कृ ण के उदर म दाम (र सी)
के बंधन से गो पय ने उ ह दामोदर नाम दया। वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! जब
ीकृ ण ज म रहते थे, तब यह उनक बाल-लीला वषयक एक अ य त व मयजनक
घटना ई है। वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! इस कार कृ ण और संकषण अपनी
शैशवाव था को पार करके सात वष क अव था के हो गए। संकषण नीले व ओर कृ ण
पीले धारण करके ेत चंदन लगा करके दोन शखाधारी बालक बछड़ के पालक हो गए।
दोन बालक सु दर प से सुनने म मधुर व न करते ए वन म वचरण करते ए तीन
सर के सप के समान सु दर तीत होते थे। उनके कान म मोर पंख का कु डल, म तक
पर प लव यु कमल पु प मुकुट, क ठ म वनमाल, कंधे पर र सी का जनेऊ, हाथ म
तु बी और छ का लए रहते तथा वंशी बजाया करते थे। वे कभी पर पर हास-प रहास
करते और कभी प का बछौना बनकार उस पर सोने क ड़ा करते थे। इस कार वे
दोन भाई वन म गाय को चराते और व वध ड़ा करते ए चंचल बछड़ के समान
शोभा पाते थे। उनक शोभा अपूव थी।
एक दन कृ ण ने अपने भाई संकषण से कहा—हे आय! अब इस वन म गोप बालक
के साथ खेलना उ चत नह है। य क हम इस वन का भली कार उपभोग कर चुके ह,
अब यहां घास भी नह रही और बेल तथा वृ भी थोड़े ही रह गए ह य क गोप ने वृ
को काट डाला है। पहले यह वन वृ से इतना प रपूण था क और कुछ भी दखाई नह
दे ता था, पर तु अब उन वृ के कट जाने अथवा प - वहीन हो जाने पर सरलता से र
तक दे खा जा सकता है। गौशाल और उसक ाचीर पर थत वृ , व क अ न म द धं
होकर भाव-हीन हो गए ह। जो घास अथवा का पहले ज के समीप था अब वह ब त
र है तथा य नपूवक उसक खोज करनी होती है। इस वन म घास, जल और व ाम-
थल मलना अब क ठन हो गया है, वृ ब त र- र पर रह गए ह, य द अब खोज न
करगे तो भ व य म हम खेलने और बैठकर व ाम करने को भी थान न मलेगा। यहां के
सभी वृ अब बेकार हो चुके ह, इस लए वनवासी प य ने इ ह याग दया है। यहां के
नवा सय ने वृ को काट डाला है, इस लए वन म अब वायु के सुखद झ के उपल ध
नह होते। प य के चले जाने से वह वन शाका द से हीन भोजन के समान नरान द हो
गया है।
वन म उ प शाक और का का व य होने के कारण का और घास यहां नह रही
इस लए यह ज अब गांव न रहकर नगर जैसा हो गया है। पवत क शोभा, ाम क
शोभा, वन तथा वन क शोभा गौएं ह, यही हमारे लए परमग त है। इस लए इस वन को
छोड़कर हम वह चलना चा हए जहां तृण और का चुर मा ा म उपल ध हो सके,
य क गौएं नवीन तृण को चरना चाहती ह। इस लए ध नक जवा सय को नवीन
वन प त से प रपूण वन म चलना चा हए य क जवा सय के लए वैसे भी कोई न त
गृह, े अथवा थान आ द का बंधन नह है। वे तो हंस, सारस आ द प य के समान
जहां कह भी जाकर रहने लगते ह वही थान ज बन जाता है। पर यहां क घास म गोबर
और मल-मू ा द के म त होने जाने से एक कार का ार उ प हो गया है, इस लए
गौएं इस घास को नह चरत और जो चर लेती ह उनका ध हतकर नह होता। इस लए
हम नवीन तृणयु समतल व य दे श म अपनी गौ के स हत चल दे ना चा हए। जहां
तक स भव हो इस थान को याग कर हम यहां से कह अ य चल द।
कृ ण ने कहा—सुना है, यमुना के तीर पर ही वृ दावन नाम का एक सु दर वन है जहां
हरे तृण , सु वा फल और मुधर जल क ब तायत सु दर वन है जहां हरे तृण , सु वा
फल और मुधर जल क ब तायत है। यह वन कद ब वृ से प रपूण है, वहां झ लय
और कांट के दशन तक नह होते तथा उस वन म े वन के सभी गुण ह। यहां ग धयु
वायु है। सभी ऋतुएं एक साथ रहती ह, वहां गो पकाएं अ य त आन द से वहार कर
सकती ह। उनके नकटवत न दन वन म आन द पवत के समान उ च शखर वाला
गोवधन नामक पवत व मान है। उस पवत के ऊपर नील मेघ के समान सघन तथा एक
योजन व तार वाला भांडीर नाम का एक वट वृ थत है। जैसे इ के न दन कानन म
म दा कनी बहती है, वैसे ही उस पवत क सीमा म यमुनाजी वा हत ह। वहां वचरण
करते ए हम दोन ही ग र गोवधन, भांडीर वृ और परम रमणीय यमुना को दे खते ए
आन दत ह गे।
भगवान् कृ ण बलराम से बोले—इस लए हे भैया! हमारा इस ज को याग कर
वृ दावन म नवास करना उ चत है, इस लए यहां कोई वशेष भय उप थत करके
जवा सय को डरा दे ना चा हए। भगवान् के इतना कहते उनक दे ह से सहसा हजार
भीषण आकार वाले भे ड़ए उ प हो गए। वे सब भे ड़ए जवासी गोप , गाय , बछड़ ,
गो पय आ द पर आ मण करके उ ह थत करने लगे। इससे स पूण जम डल
आतं कत हो उठा। वे भे ड़ए पांच-दस, पचास आ द के समूह म घूमते- फरते थे। भगवान्
कृ ण क दे ह से उ प ए उन काले मुख वाले भे ड़य ने ब त से बछड़ को मार डाला
और रा काल म गोप बालक को उठाकर ले जाने लगे। इस लए उन भे ड़य को आतंक
इतना बढ़ गया क कोई भी वन से कुछ लाने, गाय चराने या यमुना- कनारे जाने का
साहस नह कर पाता था। उन भे ड़य के भय से सभी जवासी त हो गए और कोई भी
बाहर नह नकलना चाहता था। उन सह के समान परा मी भे ड़य के भय से बचने के
लए जब जवासी एक त होकर एक थान पर रहने लगे थे और उनका भय र होने
लगा।
वैश पायन जी ने कहा—हे राजन् जब वे भे ड़ए अ य त उ ड हो गए तब सब
जवा सय ने एक त होकर पर पर म णा क और बोले क अब हम इस थान से या
काय है? हम यहां से कसी अ य वन म चल दे ना चा हए, जो क सुखपूवक नवास के
यो य तथा गाय के लए भी सुखदायी हो। अब वल ब से या लाभ है हम अपनी गाय
और बछड़ के स हत आज ही यहां से चल द, जससे उन भयानक भे ड़य ारा होने वाले
सवनाश से बचा जा सके। यह पीले दे ह वाले कृ ण-मुखी एवं नखकष भे ड़ए रात के
समय घोर गजना करते ए घूमते ह, जससे हम बड़ा डर लगता है। येक घर के
जवासी त दन ात:काल दन करते दखाई दे ते ह, कोई कहता है क मेरे भाई, पु व
बछड़ा, गाय को भे ड़य ने मार डाला है। हम इस कार जवा सय के दन और गाय के
ं दन से थत ए वृ पु ष के उस ज को छोड़कर चलने के ढ़ न य को सुनकर
बु मान न द ने उनसे कहा— क हे गोपगण! य द आपने इस थान को याग कर
वृ दावन चलने का न य ही कर लया है तो अब वल ब न करके जवा सय को शी
तैयार होने क आ ा द जए। इसके अनुसार ज भर म घोषणा करा द क सब गाय को
इकट् ठा कर लो और गृह थी के सब समान बतन-व ा द बैलगा ड़य म लाद दो। छकड़
तथा बछड़ को एक करके यहां से वृ दावन चलने को तैयार हो जाओ। न द क यह बात
सुनकर शी ही चलने के लए उ सुक सम त जवासी उसी समय उठ चले। उस समय वे
पर पर बोले—“चलो, ज द यहां से नकल चल तुम अभी भी य सो रहे हो, अपनी
बैलगाड़ी को जोतो, इस कार क बातचीत से एक कार का कोलाहल—सा होने लगा।
उस कोलाहल के साथ एक समूह गजन, सह-गजन या व ुत गजन जैसा घोर श द आ,
जससे स पूण ज-म डल गूंज उठा और गोप-गोपी ाकुल हो गए। जब गो पकाएं सर
पर सामान रखकर और बगल म गगरी दबाए पं ब होकर ज से चल तब ऐसा तीत
होने लगा जैसे आकाश क ता रकाएं पृ वी पर उतर पड़ी ह ।
उस समय गो पय का स दय अ तम था। उनक चो लयां, नीले, पीले या लाल रंग क
थ , इससे उनके पं ब होकर चलने से इ धनुष के उ दत जैसी शोभा होने लगी। धीरे-
धीरे चलने वाली गो पय के कंध पर जो र सयां लटक ई थ वे वट वृ क जटा
जैसी तीत होने लग । ज से चमचमाते ए रथ के समूह ऐसे लगने लगे जैसे अनेक नाव
वायु के झ क के साथ समु म उड़ रही ह । उन गोप के ज के चल दे ने पर वह भू म
म भू म जैसी तीत होती थी। वहां के घर म पड़े ए अ कण और कूड़े आ द पर कौए
मंडराने लगे थे। वहां से चल के गोप का समूह वृ दावन जा प ंचा और वहां उन सबने
पहले गाय के लए अनेक गोशाला का नमाण कया। सभी छकड़े अध-च ाकार के
घेरे के प म खड़े कए। वह थान एक योजन ल बा, एक योजन चौड़ा था। जसे ऊंचे-
ऊंचे कांटेदार वृ लगाकर चार ओर से घेर लया। तब छतनार क शाखा ने उस
वृ दावन को सब ओर से सुर त कया। इस तरह र सी से यु जल से धोया आ लगने
लगा। दही मथने का बतन, पाशयु क लक तंभन , प रवतन यो य शंकट, म थनपा के
बीच म थत द ड के सरे पर बंधी ई र सी कट ई वृ क शाखा पर घास बछा कर
रखे गए मंथन पा का ढ कन व छ, गोशाला, ओखली तथा पूवा भमुख थत भुस
व लत अ न, मं एवं चम स हत पयक यह सभी व तुएं यथा थान रखी ग । जल लेने
को जाती ई गो पकाएं वृ दावन क शोभा दे खती ई वृ क शाखा को पकड़-
पकड़कर नीचे क ओर झुकाने लग ।
उस समय जंगल को रहने के यो य बनाने के लए सभी युवा और वृ गोप ने कु हाड़ी
हण कर, वृ को शी तापूवक काटना आर भ कया। इस कार वा द जल और
उ म फल-फूल से यु वृ दावन के उस थान क शोभा असी मत हो गई। प य के
कलरव से यु न दन कानन के समान सुर य वृ दावन म प ंच कर गौएं इ छत ध दे ने
लग । गौ को शुभ चाहने वाले भगवान् जवन म वचरण करते समय ही वृ दावन म
रहने का न य कर चुके थे। यह नतांत सूखी तथा खी ी म ऋतु म वहां आए थे, पर तु
उनके वहां प ंचते ही जैसे दे व ने अमृत वषा आर भ कर द हो, जससे तृण बढ़ने लगे थे।
इस पर भी जहां वयं मुधसूदन ीकृ ण लोक हत के लए वराजमान ह उस थान को
सुंदर तो होना ही था। उस थान पर मनु य , गौ और बछड़ को कसी कार कोई क
हो सकता था? उस वृ दावन म सभी गौएं, गोप तथा संकषण आ द सब ीकृ ण के साथ
आन द स हत नवास करने लगे।
वैश पायन जी ने कहा—हे राजन्! एक बार ीकृ ण एक दह के पास खड़े कद ब के
ऊपर से दह से कूद पड़े। इस कार कूदने से उस दह म ोभ उठा और वह चार ओर जल
फकने लगा। उसके कूदने का श द का लया नाग के थान तक प ंचा तब स पूण दह कांप
उठा और वह नाग लाल ने कए ए जल से बाहर आया। उसके भीषण पांच मुख से
वालाएं नकल रही थ और वह अपनी ज ा को लपलपाता था। ोध के कारण उसका
शरीर फूल गया और तेज के ब त बढ़ने से अ न के समान दखाई दे ने लगा। स पूण जल
उसके ोध से खलबला उठा और उसके भय से यमुना क धारा भी वपरीत दशा म बहने
लगी।
एक बालक के समान उस दह म ड़ा करते ए ीकृ ण को दे खकर उसके मुख से
कृ ण ांस और ुव यु वालाएं ती ता से नकलने लग । उसके ोध से कनारे के सब
ख भ म हो गए। उसके पु , ी, सेवका द भी घोर सप थे। उ ह ने भी अपने मुख से
धुएं स हत अ न से ीकृ ण क स पूण दे ह को अपने म लपेट कर जकड़ लया, तब
भगवान् ह र पवत के समान थर एवं अचल खड़े रहे। फर महासप उ ह सब ओर से
काटने लगे, पर तु फर भी भगवान् का बाल-बांका न हो सका।
का लया का प दे खकर कृ ण सखा गोप बालक समझने लगे क यह नाग उनके म
को डस रहा है पर यह स य नह था—उ ह ने नंदजी से कहा क कृ ण को का लया नाग
डस रहा है। आप सब तुरंत वहां चल और बलराम को इसक सूचना दे द। नंदजी ने जब
व गरने के समान इस समाचार को सुना तब वे अ य त शोक संत त होते ए गरते-
पड़ते दह क ओर दौड़े। फर बलरामजी के स हत सब गोप गोपी, बाल-वृ , काली दह
पर जा प ंचे। न दा द सभी जवासी ने से आंसु क वषा करते ए कनारे पर ही
खड़े रहे और सारी ड़ा दे खते रहे।
तभी एक भाव और एक दे ह के ही भ व प बलरामजी ने ोध पूवक ीकृ ण से
कहा—हे कृ ण! तुम महाबाहो! इस वष प श वाले नागराज को शी ही न कर
डालो, य क यह मनु य बु वाले जवासी तु ह सामा य मनु य जानकर क णापूवक
दन कर रहे ह। बलरामजी क बात सुनकर भगवान् कृ ण झटका दे कर नागफन पर
नाचने के लए त पर हो गए। उ ह ने उसके सर को नीचा करके उस पर चढ़कर नृ य
कया इस कार म तक पर नाचते ए उसका मदन करने के कारण का लया नाग संत त
होकर मुख से र उगलता आ। आत वर म कहने लगा—हे कृ ण! म आपको जान नह
सका था इस लए ोध कया था, अब आपके ारा दमन कए जाने परं म वष र हत
आपक शरण म ं।
हे भु! आप मुझे जीवन दान क जए और बताइए क मुझे अब या करना और
कसके आ य म रहना है तब ीकृ ण ने उन पांच शर को झुकाकर खड़े ए नागराज से
हषपूवक कहा—तुम इस यमुना जल को छोड़कर अपने प रवार स हत समु के जल म
जाकर रहो। अब के प ात् य द मने तु ह या तु हारे कसी पु को यहां दे खा तो उसका वध
कर ं गा। तु हारे समु म चले जाने से यहां का जल नमल हो सकेगा। तु हारे यहां रहने से
सभी को भय है, इस लए तु ह तुरंत ही यहां से जाना चा हए। तु ह ग ड़ से डर है पर तु
वह तु हारे म तक पर मेरे चरण च को दे खकर तुमसे कुछ भी नह कहेगा। यह सुनकंर
वह नाग े भगवान् के चरण म सर झुका णाम करता आ सब गोप के दे खते दह से
चला गया।
इस कार का लया नाग का दमन करके ीकृ ण कनारे पर आ गए और सब गोप ने
उ ह घेरकर उनक तु त क और प र मा करने लगे। तब हष से व मत ए गोपराज से
इ कहने लगे—हे गोपराज! तु हारा पु इतना महान् है, इस लए तुम कृत-कृ य हो। अब
गोप , गाय तथा हम सब जवा सय पर जो सक़ंट उप थत होगा, उससे वशाल ने
वाले कृ ण हम मु करगे। फर वे सभी जवासी भगवान् कृ ण क तु त करते ए ज़
म इस कार प ंचे जस कार दे वगण चै रथ वन को थान करते ह।
धेनकासुर वध
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन् काली दह म उस सपराज का दमन हो जाने पर कृ ण
बलराम दोन ही आन दपूवक वचरण करने लगे। एक दन वे गाय को चराते ए अ य त
रमणीक ग र गोवधन पर जा प ंचे। तब गोवधन के उ रीय यमुना कनारे पर उ ह
अ य त रमणीक सरोवर दखाई दया। उ त ग व स के समान अं य त सु दर वे दोन भाई
तालप से आवृत उस ताल वन म वचरण करने लगे। वह थान समतल व छ और
कृशा से यु था, यहां न मट् ट थी और कंकड़-प थर का कह नाम नह था। काली
गांठ वाले अ य त ऊंचे ताल वृ हा थय क सूंड जसे ल बी थी और उन पर ताल फल
लद रहे थे। वाक् चतुर ीकृ ण ने बलरामजी से कहा—इन पके ए फल क सुग ध
स पूण वन म फैल रही है।
कृ ण ने बलराम से कहा, जब इनक सुगंध से ही ना सका तृ त हो रही है तो यह भी
अमृत के समान अ य त वा द ह गे। इस लए इन अ य त वा द , सुग धत, सुर य
फल को वृ से झाड़ ल। ीकृ ण क बात सुनकर मु कराते ए बलरामजी ने उन वृ
को हला- हला कर ब त से पके ए ताल फल पृ वी पर गरा लए। इस वन म मनु य का
जाना भी संभव नह था, य क वह दै य के नवास यो य म थल था। वहां गधे के प
म एक भयंकर दै य धेनुक नवास करता आ ताल वृ क दे ख-रेख करता था। उसके
भय से मनु य या पशु-प ी भी त हो रहे थे। जैसे करतल व न सुनकर कोई हाथी
बगड़ जाता है, वैसे ही फल के गराए जाने क व न सुनकर धेनुकासुर बगड़ उठा।
जधर से फल के गरने क व न ई थी, वह उधर ही अ य त वेगपूवक दौड़ा। उसक
रोमावली खड़ी हो गयी और ने त ध हो गए। वह अपने खुर से पृ वी को कुरेदता आ
बार-बार गजन कर रहा था। उसने यमराज के समान मुख फैला रखा था और वह पूंछ
उठाए ए वहां जा प ंचा जहां बलरामजी ताल वृ के नीचे खड़े थे। वहां प ंचते ही वह
उ ह दांत से काटने लगा। बलराम ने उसे ध का दे कर नीचे गरा दया। फर उसके पैर
को पकड़कर घुमाया और ताल वृ के ऊपर दे मारा। जससे उसक पीठ, ीवा, आ द
भ न हो गए। उसका मुख वकृत हो गया और वह अनेक ताल फल स हत धराशायी हो
गया। जब धेनुकासुर मर कर चे ाहीन हो गया, तब उसके आ मणकारी सा थय क भी
बलरामजी ने उसी के समान ग त बनाई। मरे ए गध और झड़े ए फल से वह थान
मेघमय शरदकालीन आकाश जैसा तीत होने लगा।
गोवधन उ सव
वैश पायन जी ने कहा—हे राजन्! इ के भाव को ीकृ ण भी भली कार जानते
थे, पर तु उस वृ क बात सुनकर कहा—हमारी जी वका तो गोवधन से चलती है,
इस लए हमारे दे वता भी पवत, वन और गोएं ही ह। कृषक क जी वका खेती से और वै य
क जी वका ापार से है। वैसे ही हमारी जी वका का साधन गोधन है। व ा ही आरा य
और वह उसी का पूजन करता है। अथवा जो लोग कसी एक दे वता के ारा जी वका
ा त करके अ य दे वता का पूजन करते ह, उनको इह लोक और परलोक दोन म ही सुख
नह मलता। कृ ष क सीमा खेत ह, खेत क सीमा वन और वन क सीमा पवत ह,
इस लए पवत ही हमारी ग त ह वे पवत क इ छानुसार व वध प को धारण कर
क दरा म वचरते रहते ह। कभी ा का प धारण कर वन को न करने वाले जीव
को डराते ए, वन क र ा करते ह वन म व न उप थत करने वाले राचा रय को
रा स के समान ू र को समा त कर दे ते ह।
ा ण म य-य और कृषक हल के अ भाग से कृ ष-य करते ह तथा हम गोप के
लए ग र-य का वधान है, इस लए हम वही करना चा हएं। मेरे मन से तो ग र-य का
आयोजन कर प व ब ल आ द के ारा पवत का पूजन करना चा हए। थ समय तीत
नह करना चा हए। क हए, आपका या वचार है? शरद ऋतु के पु प क माला से
सुशो भत गौ के ारा ग रराज क प र मा करके उ ह वन म चरने के लए छोड़
द जए। जब शरद ऋतु आ गई है, जल-तृण आ द वा द हो गए, आकाश व छ हो गया
और धरती का जल सूखने लगा है। वन थली भी कूद बा द पु प-गु छ से प रपूण है घास
प रप व हो ग और वन म मोर क बोली सुनाई नह दे ती है। जल, व और बजली से
वहीन मेघ बना दांत के हाथी के समान आकाश म घूम रहे ह। नवीन जल का शोषण
करने वाले वृ प से लदकर फूल उठे ह और ऐसा लगता है क आकाश बादल का
मुकुट, हंस का चंवर तथा व छ च मा का छ धारण करके राज सहासन पर बैठा हो।
वषाकाल म सोए भगवान् व णु को सब दे वता एक त होकर इसी समय जगाते ह।
वषा समा त होकर शरद ऋतु आ गई है; खेत म अ प रप व हो गए, व वध वषा के
प य और पु प से सुशो भत पवत इ धनुष यु बादल जैसे दखाई दे रहे ह। पवत पर
वृ क शाख घर के समानं व तृत होकर नीचे झुक गई ह। इस लए हम गाय को
सजाकर इस पवत-दे वता का पूजन करना ही उ चत है। अब गाय को पूरी तरह वभू षत
कर कंठ म घंटा आ द धारण कराकर ग रराज का पूजन आर भ कर। दे वता अपने इ
को पूज और हम इस पवत का पूजन कर। य द आप मुझ पर नेह करते ह और मुझे
अपना शुभ च तक मानते ह तो मेरे आ ह से आपको यह ग र-य करना होगा। गौएं सदा
ही सबक पूजनीय ह य द आपके मन म कोई संशय न हो तो लोक हत के लए य को
आर भ क जए।
ीकृ ण के कहने पर पहले तो गोप और कुछ बड़े लोग को इ के नाराज होने का
भय लगा पर कुछ ण बाद ही उ ह ने अपनी वीकृ त दे द ।
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! ीकृ ण के ऐसा कहने पर गोपगण ने पुल कत
होकर न:शंक च से कहा, हे व स! तु हारे कथन से हम अ य त आन दत ए ह।
तु हारे अनुसार चलने पर हमारी वृ होगी। तुम हमारी ग त, श , म त, कम और
शुभाशुभ के ाता अभयदाता तथा उपकारी म हो। तु हारे ही ताप से यह गोपजन और
ज वग य सुख को भोग रहे ह। तु हारे कर काय , असी मत बल, क त और व श
परा म को दे खकर हम आ य होता है। दे वता म इ के े होने के समान ही तुम
अपने परा म, य और ववेक सब मनु य म े हो। जैसे द त, पूण और ताप म सूय
सबसे े माने जाते ह, वैसे ही मनु य म तुम सव े हो।
हे भो! तु हारा आदे श कभी उ लंघन करने यो य नह रहा तो इस ग र-य के तु हारे
अनुरोध को कौन वीकार न करेगा। इस लए इ -महो सव न करने ओर गोप तथा गौ
के क याणाथ तुमने जस ग र-य के करने का नदश कया है, वही अब आर भ होगा।
ध से भोजन तैयार करके पीने का े जल कलश म भरकर रखा जाए। क तपय न दय
को ध से प रपूण करके सब कार से भ भोजन और पेय पदाथ एक कए जाएं?
ऐसा करने से गोप और गौ म आन द छाएगा और तु ह तथा बैल के गजन और
बछड़ के ननाद से जभू म ह षत हो उठे गी। दही के सरोवर, घृत के कुएं और ध क
कृ म न दयां भर कर अ ा द का मे पवत बनाया जाए। हे राजन् इसके अनुसार सब
सामान एक हो गया और ग र-य का आर भ आ। कुछ दे र म वहां गो पयां और गौ
का वशाल समाज दखाई दे ने लगा, य - थल के पास ही अ न थल , च थली, व वध
कार के भ य, सुग धत और पु पमाला और धूप आ द साम ी एक कर रख द
ग । फर शुभ-मु त म ग र-य आर भ कया गया। जब य काय स प हो गया तो
ीकृ ण ने अपनी माया से गोवधन प धारण कया और सभी अ पत साम ी का भोग
लगाने लगे। े ा ण ने भोजन से तृ त होकर व त वाचन कया और गोवधन
पधारी कृ ण भी इ छानुसार भोजन करके द हंसी हंसने लगे। ग रराज पधारी
कृ ण को गोप ने णाम कया तथा कृ ण प से उ ह ने भी अपने ग र प को णाम
कया।
सब उस समय व मत ए फर गोप ने पवत पर वराजमान दे व से नवदे न कया—हे
भगवान्! हम आपके आ ाकारी सेवक ह। हम सब या कर सो आ ा क रये? पवत
पधारी भगवान् बोले—हे गोपो! य द तुम अपनी गौ के त दया रखते हो तो आज से
मेरा ही पूजन करना। य क म ही तु हारे मनोरथ को पूण करने वाला ं, मेरी कृपा से
तुम असं य गौ वाले होकर वन म वचरोगे। म भी तु हारा सब कार से हत क ं गा
और वग के समान ही वहां भी तु हारे साथ नवास करता आ सब गोप क गौएं लाई
जाएं ज ह दे खकर मुझे अ य त आन द होगा।
इसके बाद भगवान् क स ता के लए बैल स हत असं य गाएं वहां लाई ग । उ ह ने
इस ग र गोवधन को सब ओर से घेर लया। वे सैकड़ -हजार असं य गौएं वनमाला आ द
से वभू षत हो रही थ । सब गौ को वश म रखने के लए गोपगण उनके पीछे -पीछे
दौड़ते थे। वे गोप भी सुग धत और रंग- बरंगे व से सुस जत थे। वे अपने हाथ
म मोर के पंख के आभूषण और श ा धारण कए ए थे और उ ह ने केश म भी
मोरपंख लगा रखे थे। इस कार असं य गोप क उप थ त से वहां व च शोभा हो रही
थी। कुछ गोप बैल पर चढ़ गए थे। कुछ नाच रहे थे और कुछ भागती ई गौ को रोक
रहे थे। इस कार गोवधन क प र मा का काय पूण हो जाने पर ग रराज क वह सा ात्
मू त अंतधान हो गई और फर ीकृ ण भी गोप के साथ वन म लौट आए। ग र-य के
उस अद्भुत समारोह से आ यच कत ए सभी जवासी भगवान् मधुसूदन क तु त
करने लगे।
इस कथा ख ड म सबसे मह वपूण कृ ण का गोवधन धारण करना है। इससे उस दे श
म भागीरथी क नयी लहर था पत ई।
वैश पायनजी ने कहा—हे राजन्! इस कार ीकृ ण ारा इ य को रोक दे ने से
कु पत ए इ ने सवतका द मु य-मु य मेघ को अपने पास बुलाकर कहा—हे मेघगण!
य द तुम म राजभ हो और आ ा का पालन करने वाले हो तो मेरे वचन को सुनो।
कृ णभ गोप ने वृ दावन जाकर मेरे य को नह कया है। इस लए उनके जीवन व प
गौ को स त-रा तक जल और आंधी के वेग से महा संत त करो। म भी अपने ऐरावत
पर चढ़कर वहां आ रहा ं और उस गजनशील भीषण वायु के कोप से सव सा गौएं
वनाश को ा त ह गी। कृ ण ारा इ -य न करने पर कु पत ए दे वराज ने यह आ ा
द । तभी ये पवताकार भीषण और गजन करते ए आकाश म छा गए। तभी और
अ धकार छा गया। हा थय के यूथ जैसा मकराकृ त वाले एवं सप क तरह लहराते ए
मेघ आकाश म मंडराने लगे। ऐसे हजार हा थय के झुंड के समान एक सरे से भड़े ए
मेघ भयंकर प से बरसने लगे। वे मनु य के हाथ के समान हाथी क सूंड के समान तथा
बांस जैसी मोट जल धारा को गराने लगे। उस समय ऐसा तीत होने लगा क अगाध
जल वाला महासागर ही प ंचाया गया हो। सब ओर भीषण गजन ही सुनाई पड़ने लगा।
आकाश म एक भी प ी दखाई नह दे ता था और मृग के समूह भयभीत होकर इधर-
उधर भाग रहे थे। सूय, च मा, ह, न के दशन भी नह हो रहे थे, इस कार भीषण
वषा से सभी मलीन हो गए। सूय-च के गुम होने से आकाश म अंधकार छा गया।
नर तर मूसलाधार वषा होने से पृ वी सब ओर जलमयी दखाई दे ने लगी। न दय म बाढ़
आ गई, सरोवर उमड़ पड़े और जल के वेग से नद के वृ उखड़-उखड़कर बह गए। वषा
के कारण गाय और गोप को न होते दे खकर ीकृ ण ने मन-ही-मन वचार कया क
वन के स हत गोवधन पवत को उखाड़कर इन सबको इसके नीचे शरण द जाए।
इस वशाल पवत को सरी पृ वी के समान उठा लेने से गौएं गो पयां, वालबाल आ द
सभी सुर त ह गे और यह पवत भी मेरे अधीन हो जाएगा। हे राजन्! ऐसा वचार थत
कर ीकृ ण ने उस पवत को उखाड़कर अपने बाएं हाथ पर धारण कर लया, उस समय
उसक सभी गुफाएं पर पर हलने लग । उनम भरा पानी इधर-उधर गरने लगा और उस
समय उसक शला के बंधन श थल हो जाने के कारण उससे बड़ी-बड़ी शलाएं
गरकर पृ वी पर छाने लग । उसके शखर गरने लगे तब वह पवत ीकृ ण के हाथ म
थत होकर आकाशगामी प ी के समान दखाई पड़ने लगा।
जस कार कोई नगर जनपद से घरा होता है, उसी कार वह पवत मेघ से घरा था।
उस समय पवत को हाथ पर रखे ए सवर क ीकृ ण ने मु कराकर गोप से कहा हे
गोप ! मने इस पवत को गाय क र ा के लए ही घर के समान बना दया है। इस काय के
करने म दे वता भी समथ नह ह। अब तुम शी ही सबके लए यथायो य थान न द
करो। इस पवत को उखाड़ कर मने कोस भर चौड़ा और पांच कोस ल बा थान बना दया
है। इससे ज तो या तीन लोक क र ा भी न हत है। भगवान् क बात सुनकर गोप
और गाय ने हष व न क जसे सुनकर मेघ भी भीषण प से गजने लगे।
फर उस पवत के नीचे गाय के झु ड-के-झु ड खड़े कर दए गए। पाषाण न मत
त भ के समान उन अ य त ऊंचे आकार वाले भगवान् ने उस पवत को य अ त थ के
समान ऊंचा उठा लया। उसी पवत के नीचे गोप के वतना द से लदे छकड़े खड़े कर दए
गए। जब इ क त ा थ हो गई और उसने कृ ण के अस भव काय को दे खा तो मेघ
क जल-वृ को रोक दया। एक स ताह पूरा होने पर वफल मनोरथ इ मेघ को साथ
लेकर अपने लोक को गए। मेघ के हटने से आकाश व छ हो गया और भगवान् भा कर
का शत होने लगे। गाय का संकट र आ और वे पवत के नीचे से नकल आ । अब
गोप ने दे खा क संकट टल गया है, तब वे अपने-अपने थान पर जा प ंचे। तदन तर
भगवान् ीकृ ण ने स होकर गोवधन पवत को फर उसी थान पर था पत कर दया।
इस कार दे वराज इ के थान पर कृ ण क भ ार भ हो गई।
उ सेन को रा यदान
कंस का वध करने के बाद ीकृ ण ने उ सेन को ही राजा बनाया। ीकृ ण ने वयं
कंस क मृ यु पर शोक कट कया और उ सेन ने कृ ण से कहा क तुमने कंस को
मारकर अपना काय कर लया है। अब य वंश क एकमा आशा तुम हो। इस कंस का
सं कार भी व धवत् करना। क तु हे व स! कंस के सं कार क व था तु ह ही करनी है।
जतने भी व ान, धनी और गुणी होते ह उनम से कोई भी काल के चुंगल से नह
नकल सकता। समय आने पर सबको काल का ास बनना पड़ता है। इस लए इस वषय
म च ता नह करनी चा हए। कृ ण ने उ र दया क मने काल क ग त के अनुसार ही
कंस का वध कया है, मुझे रा य नह चा हए। मने केवल लोक क याण के लए कंस का
वध कया है। अत: आप न त होकर इस रा य को हण कर। इतना कहकर भगवान्
गो व द ने उ सेन जी का अ भषेक कया और कंस के सं कार के लए तैयारी करने लगे।
कंस का सं कार करने के लए अनेक यादव उ सेन जी के पीछे -पीछे चले और यमुना
के कनारे ले जाकर पूरी व ध से उनका दाह-कम कया और यह कहते ए जल अपण
कया क वग म जाकर ये सब अपने पूवज से मल।
जब जरासंध को कंस क मृ यु का समाचार मला तो उसे ब त ोध आया। वह अ यंत
तापी राजा था उसने अपनी वशाल सेना तैयार क । कंस उसका दामाद लगता था अत:
उसने उसका बदला लेना चाहा। उसने मथुरा पर चढ़ाई कर द जसके फल व प जरासंध
और यादव के प म यु होने लगा। म से ीकृ ण, भी मक से उ सेन, कृत से
वसुदेव आ द यु करने लगे। इस भयानक यु के बीच जरासंध पर अपने भीषण बाण
क वषा करते ए बलराम जी ने ब त ती ता से आ मण कया। श समा त हो गए
और दोन गदा से यु करने लगे। यु भू म म अनेक लोग इस यु को दे खने के लए
क गए। जरासंध ने ब त कठोर हार कए ले कन उ ह ने बलराम जी को वच लत नह
कया। तभी आकाशवाणी ई क हे बलराम जी! आप जरासंध पर अपना ोध याग
द जए इसक मृ यु कसी और थान पर कसी और ारा लखी है। इस कार
दोन वीर अपने-अपने प म वापस लौट आए। ीकृ ण ने जरासंध का पीछा नह कया
और उसे भागने दया।
इसके बाद ीकृ ण ने का यवन नाम के असुर का वध कया। का यवन से ीकृ ण के
यु क चचा करते ए जनमेजय से कहा क वृ ण और अधंक वंश के गु गग थे। उ ह ने
ब त उदा जीवनयापन कया य क वे प नी के होते ए भी चय का पालन करते
थे। एक दन उनके साले ने उनको नपुंसक कहकर उनका अपमान कया यह सुनकर वे
अ जतजय नगर गए और वहां 12 वष तक लौहचूण खाकर शंकर क आराधना क ।
उनक आराधना से स होकर शंकर ने उ ह एक तेज वी पु का वरदान दया जो वृ षय
पर वजय ा त करेगा। जब यवनराज ने यह सब सुना तो उ ह य के समीप ठहरा
दया गया और वहां गोपली नाम क एक अ सरा ने उनका गभधारण कया। का यवन
इसी अ सरा का पु था। जब यवनराज क मृ यु हो गई तब का यवन राजा बना। इसके
बाद पूछा क म कससे सं ाम क ं तब नारदजी ने उसे यादव क बात सुना और
नारदजी ने ही का यवन के ज म का वृ ांत ीकृ ण को आकर सुनाया। थोड़े समय बाद
आस-पास के े जीत लेने के बाद उसने मथुरा क ओर चढ़ाई क । जब उसक चढ़ाई के
वषय म ीकृ ण को पता चला तो कृ ण ने अपने सा थय को बुलाकर कहा क घोर
वप का समय आ गया है। का यवन ने यु करने के वचार से चढ़ाई क है और
शवजी क हमारी मथुरा म रहने क अव ध पूरी हो गई है। जरासंध भी हमारा श ु है।
इस लए हम यह नगरी छोड़ दे नी चा हए। यह न य करके ीकृ ण ने एक सु दर से घड़े म
काला सांप बंद करके त के हाथ का यवन के पास भेजा। त ने उसे रखते ए कहा क
कृ ण काले नाग के समान भयंकर ह। का यवन ने भयंकर दांत वाली ची टयां उस घड़े म
डाल द और उ ह ने सांप को खा लया। कृ ण सब कुछ समझ गए और मथुरा छोड़कर
ारका के लए चल दए। का यवान ने कृ ण के साथ यु करने का वचार कया। कृ ण
वहां से भाग गए और वह उनके पीछे -पीछे भागता रहा।
का यवन से ीकृ ण कस कार बचे यह संग सुनाते ए वैश पायन जी बोले क
भागते-भागते ीकृ ण का एक गुफा म सोए मुचकुंद के पास प ंचे। मुचकुंद को यह
वरदान ा त था क जो उ ह सोते से जगाएगा वह उनक ोध अ न म जल जाएगा।
ीकृ ण ने सोए ए मुचकुंद पर अपना पीता बर डाल दया और आगे जाकर छप गए।
जब का यवन ने पीता बर धारी सोए ए मुचकुंद को दे खा तो वा त वकता नह पहचान
पाया। उसने मुचकुंद को लात मारकर उनको जगाया और जैसे ही वह जगे तो उसक
ोधा न म का यवन समा त हो गया। तब ीकृ ण मुचकुंद के समाने आए और कहा क
तुमने मेरा ब त बड़ा काय कया है। तु हारा क याण हो।
मुचकुंद से मलने के बाद भगवान् ीकृ ण को उसक सेना घोड़े और शा ा ात
ए। उ ह ने ब त सारी स प उ सेन को भट कर द और उससे ारका नगरी ब त
सु दर हो उठ । भगवान् ीकृ ण ने मुख यादव को साथ लेकर ारकापुरी के नमाण का
काय ार भ करने के ग हेतु थान का परी ण कया। जब थान तय हो गया तब ग का
नमाण-काय शु करा दया गया। उसक नगरी का नाम ारावती रखा गया और उसे इ
क अमरावती क तरह तैयार कया गया। ीकृ ण ने अपने संगी साथी यादव से कहा क
तुम न त होकर इस नगरी म रहोगे। अलग-अलग लोग ने सु दर माग चौराहे और भवन
का नमाण ार भ कर दया। उ ह ने व कमा को बुलाया और उसके आने पर व कमा
ने कहा क म आपके लए ब त सु दर भवन और माग का नमाण क ं गा ले कन उसने
यह भी कहा क नगरी सारे यादव के लए पूरी नह होगी। उस समय उसम इतना थान
होगा क नद आ द सब उ चत प से आ सक। ीकृ ण ने कहा क मुझे 12 योजन वाले
थान क आव यकता है। य द इतना थान मल जाए तो मेरा सु दर नगर बस जाएगा।
कुछ समय बाद समु 12 योजन पीछे हट गया और वहां एक सु दर नगरी का नमाण हो
गया। उस सु दर नगरी म ार, ाचीर प रखा सभी का ब त सु दर प से नमाण कया
गया। सेना के ारा आ मण का करना और सरे के आ मण को रोकने क मता वाले
थान भी बनाए गए। नगरी को बनाकर व कमा अपने थान को चले गए। फर भगवान्
कृ ण ने कुबेर के अनुचर न धप त शंख का बुलाया और वहां सभी व तु क व था
क । ीकृ ण ने कुछ इस कार क व था क क नगरी म कोई भी गरीब नह रहा।
महाराज उ सेन को राजा, काशी नरेश पुरो हत और अनेक मुख यादव को अ य का
पद स पा गया। कुछ समय बाद बलराम जी ने रेवत क पु ी रेवती से ववाह कया।
इन सारी व था को पूरा करने के बाद ीकृ ण और मणी का संग सुनाते ए
वैश पायन जी ने कहा क ीकृ ण ने मणी के मन क भावना समझते ए उनसे
ववाह करने का न य कर लया। वैसे मणी का ववाह जरासंध क घोषणा के
अनुसार शशुपाल के साथ होना न त आ और इस घोषणा के बाद अनेक राजा ववाह
म स म लत होने के लए आए। यह एक तरह का वयंवर था। मणी का वंश व यात
था। इसी वंश म भी म क उ प ई थी। म को जब कृ ण और मणी के ेम
भाव का पता चला तो उसे और भी ोध आया। ले कन आ यह क जब शशुपाल पूरी
तरह से तैयारी करके ववाह के लए आया तो मणी पूजा करने के लए मं दर म गई।
वहां उनके जाते ए उनक सुर ा का पूरा यान रखा गया। उधर सरी ओर ीकृ ण और
बलवान भी अपनी वशाल सेना लेकर वहां प ंचे। उ ह भी उ चत थान पर ठहराया गया।
जब मणी मं दर के समीप प ंची तब ीकृ ण ने उ ह दे खा और उनके हरण करने का
न य कया। जैसे ही मणी मं दर से बाहर नकली वैसे ही ीकृ ण ने सहसा उ ह
पकड़कर अपने रथ पर बठा लया और जो भी उ ह रोकने के लए आया, उसे बलराम,
युयुधान, कृतवमा को वह छोड़कर अपना रा ता पकड़ लया और इधर यु होने लगा।
ले कन इस यु म बलराम जी ने जरासंध आ द को परा त करते ए अपने आप ज द -
ज द यु से मु होकर न त हो गए। सरी ओर म ब त :खी आ और उसने
कहा क म कृ ण का वध कए बना लौट नह जाऊंगा। कृ ण से यु म उसके सारथी
आ द मारे गए और वह मू छत हो गया। कृ ण ने म के अ य सहयो गय को मार
डाला। बाण के इस भयंकर यु म जब मणी ने दे खा क उसका भाई मू छत हो गया
है और उसके साथी राजा भागने लगे ह तो उसने ीकृ ण से अपने भाई क ाण-र ा
मांगी। ीकृ ण ने म को छोड़ दया और स तापूवक ारका क ओर चल पड़े।
म ने कुंडनपुर न जाकर माग म ही नगर बनाकर नवास कया। उधर कृ ण और
मणी का ववाह हो गया।
समय आने पर म का वध हो गया। म के वध को बताते ए वैश पायन जी ने
जनमेजय को बताया क म और बलराम जी म ुत- ड़ा ारंभ ई। सारे राजा
अलग-अलग मालाएं लेकर म और बलराम जी का साहस बढ़ने के लए आ गए।
द ण प के राजा ने म को अतुल धनरा श द । ार भक अनेक दाव म बलराम
बार-बार परा जत ए तब एक बार उ ह ने ो धत होकर एक करोड़ वण मु ाएं दांव पर
लगा द ले कन वे इस बार भी हार गए। फर बलराम जी ने दस करोड़ मु ाएं दांव पर
लगा और उ ह रे ग तान म काले और लाल रंग के पास को फकने के लए कहा। म
ने पासा फका पर पूरे थान पर नह फर पाया इस लए इस दाव म बलराम जीते। ले कन
फर भी म ने चार को नौ बताकर अपनी वजय घो षत क और अकाशवाणी के ारा
वरोध कया गया क जीत उनक नह ई है। ले कन आकाशवाणी क बात सुनकर
बलराम जी ने ोध म आकर एक भारी अ पात उठाया और म पर दे मारा। इस तरह
ीकृ ण ने जस म को अपनी े मका के कारण छोड़ दया था वह इस कार बलराम
जी के ारा मारा गया जब म के वध का समाचार नगर म प ंचा तो सब लोग ब त
:खी ए और उसके साथ-साथ मणी भी ब त क ण वलाप करने लगी। कृ ण ने
उ ह समझाया और इसे दे व का वधान मानकर ही वीकार कया।
एक बार शंकर भगवान् का श य बाणासुर शवजी को अपनी साधना से स करके
बोला, भोलेनाथ मुझे वरदान दो। शवजी ने वरदान दया तो उसने मांगा क मेरे शरीर म
हजार भुजाएं हो जाएं। वे अवढर दानी थे। उनके लए ढाई हजार भी हो जाएं तो ना नह
कह। वरदान मलने के साथ ही दोन तरफ पांच-पांच सौ भुजाएं लटक गई। अब वह बड़ा
स आ क मेरे बराबर कौन श शाली है। दो भुजा वाला ई र क कृपा से बड़ा
श शाली होता है फर इसक तो एक हजार भुजाएं थ । कई वष तक घूम-घामकर पुन:
शवजी के पास आया और बोला, भु आपने एक हजार भुजाएं दे द , मेरे तो वजन लटक
गया। शंकर बोले, हमने जानकर थोड़े ही चपकाया है, तुमने जो वरदान मांगा वही तो
दया है। इस पर वह बोला क भु! म तो श का बढ़ावा करने, पूरी नया जीतने के
उ े य से ये भुजाएं ली थ क म सबसे अ धक श शाली बन जाऊंगा पर कोई सामने
नह आता, सब र से ही दे खकर भाग जाते ह। मेरी भुजा म लड़ने को ब त खाज मचती
है। शवजी बोले—अब म या क ं । तो बाणासुर ने कहा, महाराज आप ही मुझ से कु ती
लड़ ल। यह सुकर शव ने शाप दे दया, अरे म त! जस दन तेरे महल क वजा गर
जाएंगी, तेरी भुजा को काटने वाला तेरे घर पर ही आ जाएगा।
अब तो बाणासुर को ब त :ख आ। उसका सर घूम गया, न शवजी से कु ती क
बात करता न शाप मलता। बाणासुर ने शंकर क पुन: खूब पूजा क , इतनी पूजा क क
शंकर स होकर कट ए और बोले, बाणासुर! एक महीने से पूजा कर रहे हो, हम कुछ
समय के लए तांडव करना चाहते ह। बाणासुर ताल वा अपने हाथ म लेकर ताल दे ने
लगा। शव ने स होकर पुन: वर दया तो बाणासुर ने कहा, मेरे नगर क आप र ा
करेगे। तथा तु कह कर शव अंतधान हो गए। बाणासुर ने महल के दरवाजे के पास शव
मं दर बनवा दया और न त हो गया। बाणासुर क उषा नाम क पु ी थी, उसने व म
कृ ण के पौ अ न के दशन कए और अपनी सखी च लेखा को उसने बता दया।
च लेखा के सहयोग से अ न उषा के महल म प ंचा। कालांतर बाणासुर को ात
आ। उषा को डांटा-डपटा और अ न जी को कारागार म बंद कर दया। ारका म
काफ समय तक कुछ पता नह चला, ले कन दाऊजी ने कया, अ न नह दखाई
दे रहे ह? सब जगह दे खा पर पता नह चला। नारदजी से ात आ क अ न चार
महीने से बाणासुर क कारागार म पड़े ह।
यह समाचार पाते ही सेना तैयार करके कृ ण ने बाणासुर के यहां चढ़ाई कर द , चार
तरफ से शो णतपुर घेर लया गया। उसके महल क वजा गर पड़ी, वह बोला— वजा
गरे, चाहे कलश, हमारे शंकर सहायक तो भयंकर या करेगा। दोन सेनाएं टकरा । मा
राग बजने लगा। शंकर जी कट हो गए। कृ ण ने पूछा—भोलेनाथ, आप यहां कैसे? यही
शंकर से कृ ण से पूछा— ारका से इतनी र यहां कैसे? और फर शो णतपुर म यहां
या रखा है? शो णत का अथ है र और र को आसामी भाषा म तेज कहते ह, तो यहां
तेजपुर आसाम म और कहां ारका। शंकर ने कहा— ारकाधीश! यह बाणासुर मेरा
श य है, मने इसे वरदान दया है क म तेरे नगर क र ा क ं गा। ाराकाधीश बोले—
भोलेनाथ, ऐसे वरदान य दे ते हो? भगवान् होकर दरबान हो गए, यह भी कोई वरदान है?
जब शंकर ने पूछा—महाराज! आप कैसे आए तो भगवान् ने कहा—मेरा पौ अ न
अंदर बंद है। म उसे छु ड़ाने आया ं। भगवान् जैसे ही वेश करने लगे, शंकर ने कहा—
आप अंदर नह जा सकते, वह मेरा चेला है। भगवान् ने कहा—चेला को दे धकेला-मेरा
पोता अंदर बंद है। शंकर बोले—पोता है तो या होता है, वरदान भी कोई चीज है। आप
अ दर नह जा सकते। वे बोले, जाएंगे। शंकर ने कहा—दे ख लगे। भगवान् बोले—दे ख
लेना, दोन के समूह म पूरा सं ाम छड़ गया। कृ ण पूरे सै य के साथ ही आए थे। शंकर
जी ने शंख बजाया तो उनका भी पूरा प रवार उतर आया। वामी का तकेय, गणेश, भूत-
पशाच, डा कनी आ द सभी गण आ गए। एक-एक के चार-चार चुड़ैल चपट ग ।
भु ने यह य दे खा तो मं स करके ज भा छोड़ा। जैसे ही द ा शव-सेना
क ओर चला-भूत, ेत, पशाच और डा क नयां सभी ने लड़ाई बंद कर द , उबासी लेने
लगे। ेत के मोहड़े कौन दे ख सके। शंकर जी बोले—“यह या आ? अभी तो मेरी सेना
लड़ाई लड़ रही थी और अब खड़ी मुंह फाड़ रही है, उबासी ले रही है। तब उ ह मालूम
पड़ा क भु ने ज भा छोड़ दया है। शवजी क माया या कम है, जब लड़ते ह तो
सारे व प दखाई पड़ जाते ह। जब तक भोले ह तब तक भोले ह वरना गोले भी हाथ म
रखते ह। तभी तो भोले-भोले कहलाते ह। शंकर ने मं स करके एक ऐसा बाण छोड़ा
क भु क सेना को जूड़ी बुखार चढ़ गया। एक दन ठोक कर लड़े, एक दन बुखार आ
जाए इस कार आराम कर-करके लड़ाई होने लगी। आ य यह है क जसके पीछे यह
लड़ाई हो रही है वह बाणासुर अपने महल म आराम से बैठा आ था। खड़क म से लड़ाई
दे ख रहा है। वह जानता है क वह बीच म या बोले—उसके रख वाले भोलेनाथ लड़ रहे ह
उसक तरफ से।
अक मात् भु के ताप से उसक म त फर गई, उसके मन म वचार आया, मेरी हजार
भुजाएं काम आएंगी। लोग तो सर क लड़ाई म कूद पड़ते ह, यह तो मेरी अपनी लड़ाई
है। इस तरह वह श ागार म से अनेक श हाथ म उठाकर मैदान- े म आकर शंकर
जी से कहने लगा—हे भु! लाइए म भी कुछ श का दशन कर ं । शंकर कुछ पीछे
हटे और वह बाणासुर अपनी सह भुजा म श लए ीकृ ण के सामने आ गया।
भगवान् ने उसे स मुख दे खकर सुदशन चला दया तो दे खते ही दे खते उसक सारी भुजाएं
मूली-गाजर क तरह कट-कटकर धरती पर गर पड़ । ऐसे बा वहीन पु को दे खकर
थत वलाप करती बाणासुर क मां कोटरा नव होकर भगवान् के पैर म आकर गर
पड़ी। भगवान् ने उसे आता जानकर फेर ली य क पराई ी को आंख से न न
दे खने से तीन ज म के पु य न हो जाते ह। बाणासुर ने दे खा तो कहा, मां! यह या
कया? तो वह बोली—ब च के सामने माता- पता को घुटने टे कने पड़ते ह। बेटा अपनी
लाज दे कर तेरी जान बचानी ज री हो गई। जब मां ने उसे ाथना करने को कहा तो
बाणासुर भगवान् के चरण म सर नवाकर णाम करने लगा। तो भगवान् ने उसक सरी
तरफ क पांच सौ भुजाएं काट द । जैसे दो चा हए वैसे ही भुजाएं उसक शेष रह ग । उषा
का ववाह अ न से हो गया और जूड़ी-बुखार से भगवान् ने कहा—जो भागवत के 62
व, 63 व अ याय क कथा सुने उसे तुम छोड़ चले जाना। यह चम कार है क कसी को
भी तीसरे दन का बुखार आ जाए तो उसे इस भागवत् क पूव क थत अ याय क
कथा सुनने से यह बुखार फर नह आता। ब उपायकारी भु ीकृ ण का आ यान जो
भी मन लगाकर यान से सुनता है भु उसके सकल मनोरथ पूरे करते ह।
इसके प ात् भु ने राजा नृप का उ ार कया। बलराम ने जया ा क । भगवान् ने
राजा प क का भी उ ार कया। दाऊजी ने बल-बल का उ ार कया और ह तनापुर
वजय के प ात् ल मणाजी का सा ब के साथ ववाह कया। भगवान् क अ च य
लीला का दशन करके जो उसम भावना रखता है, उसका सव नारदजी क तरह
भगवत् भाव दखाई दे ता है। उसके बाद दो जगह से नमं ण आया, एक यु ध र महाराज
को राजसूय य करना था, सरा इस जरासंध ने धम न राजा को बंद गृह म डाल
रखा है और न य कर लया है क महाभैरव य क ं गा और सब धम न राजा क
गदन काट-काटकर आ त चढ़ाऊंगा। भगवान् तो सव ह। राजसूय य म जाने क
तैयारी कराई। भीमसेन, अजुन को ा ण बनाकर जरासंध क ा णता से उ ह ने यु
का वरदान मांग लया। भीमसेन को इशारा दे कर जरासंध के बीच म से दो करा दया।
उसके पु सहदे व का राज तलक कर दया। जतने राजा कारागार म पड़े थे सभी को
छु ड़ाया। सभी राजा ने भगवान् क ाथना क ।
कृ णायै वसुदेवाय हरये परमा मने।
णत: लेश नाशाय गो व दाय नमो नम:।।
इसके प ात् भु ने यु ध र का राजसूय य स प कराया। शशुपाल का उ ार
कया। य धन को जल म थल, थल म जल दे खने से हा य का वषय बनना पड़ा। इसके
प ात् भगवान् ने दं ता और शा व का उ ार कया। दाऊजी ने नै मषार य म सूतजी
पर कृपा क । दाऊजी ने इसके बाद भारतवष क या ा क ।
यह वृ ांत कहते ए वैश पायन जी ने जनमेजय से कहा—राजन्! तुमको कथा सुनते
ए छ: दन हो गए। आ खर तुमने अपने जीवन का या नणय कया? परी त ने कहा
—भगवान्! आपके मुख से कथा सुनने के बाद म जस न य पर प ंचा ं, वह आपको
बता दे ता ं—गु दे व! वाणी वही प व है जो ीकृ ण के गुण गाती है। येक को
जीवन म यह धारणा बनानी चा हए क जब तक हमारा जीवन रहेगा, हम भु का नाम,
जप, क तन अव य करगे। हाथ वही प व ह जो ठाकुर जी क सेवा म लगे रह। कभी
व है, पोशाक, ृंगार है, साम ी है। कुछ-न-कुछ इन हाथ से बनता रहे तो ये हाथ प व
ह। मन वही प व है जो चार तरफ भु के दशन करता रहे।
सयाराम मय सब जग जानी।
कर ं णाम जोर जुग पानी।
भगवन् कान वही प व ह, जो भगवान् क कथा सुनते रह। शुकदे व बोले—परी त!
हम तुमसे ब त स ह, जो तुमने वयं को कृ णा पत करके भगवान् क सेवा म लगाने
का न य कया। येक इ य से भगवान् म सम पत हो जाना ही तो जीवन क
साथकता है। हाथ से राधा-गो व द का ृंगार बने, आंख से दशन बने, वाणी से क तन,
सेवा और भजन बनता रहे। गृह थ म रहकर अपनी पूजा, अपना मं दर ठाकुर जी को ही
सब कुछ समझा जाए, संसार के सुख तो खूब अ छ तरह दे ख लए, अब जीवन म
ठाकुरजी का सुख दे खो। शकुदे व जी ने वभोर होकर कहा—राजा! तु हारे जैसे यो य पा
को कथा सुनाकर म अपने-आपको ध य मानता ं। अब म तु ह सब बात बताता ं। अब
तक तुम भगवान् क कथा सुन रहे थे, अब एक न काम भ क कथा सुनो।
भगवान् के एक ा ण म थे सुदामा। वह इं य के धम से वर थे। वह कामना
र हत थे। जते य थे और ा ण लीन थे। एक बार उनक प नी ने कहा—हे दे व!
आपके म सा ात् ीकृ ण ह और आप ारका चले जाएं तो भगवान् आपको ब त-सा
दगे। उससे आपके कुटु ब का पोषण होगा। सुदामा जी ने प मना कर दया और
कहा—दे वी! मने भगवान् क भ मांगने के लए नह क है ब क अपनी आ मा के
क याण के लए क है। सुशीला जी ने कहा—हे प तदे व! एक काम तो करो, आप अपने
म के दशन ही कर आओ, तो सुदामा न यह ताव स ता से वीकार कर लया और
कहा—अब क बार तुमने ठ क कहा है। हे दे वी! उ मो ोक भगवान् का दशन ही जीवन
का परम लाभ है। ऐसा करो, म खाली हाथ तो जाऊंगा नह , ी ठाकुरजी को नवेदन
करने के लए कुछ तो चा हए। चार मुट्ठ चावल सुशीला प नी ने अपनी धोती के टु कड़े म
बांधकर सुदामाजी के हाथ म पकड़ा दए।
सुदामा भु के दशन करने ाराका पुरी जा रहे थे दा र य क पराका ा थी। सुदामा जी
क फट चीथड़ा धोती, जहां फट वह गांठ लगी ई थी। पेट पीठ से जा लगा था। उस
द र ा ण को कभी भी तलक लगाने के लए रोली नह जुट पाई, ट घसकर तलक
लगाते थे, फर भी भगवान् का क तन करते जा रहे थे।
भजो राधारमण ह र गो वद जय जय।
इस कार क तन करते जा रहे थे। रा ते म यास लगी, दो बूंद पानी पया, ठाकुर जी
को णाम कया और ध यवाद कया क भु आपक बड़ी कृपा है, पानी पीने को दे रहे
हो। यहां भगवान् ने सब कुछ दे रखा है फर भी भु का नाम लेने का समय नह है मानव
को। भु अपने भ क था-कथा समझ रहे थे। प रचा रकाएं, सेवक नाना भ - म
केवल पानी पीकर भी उनका ध यवाद करके सो गया। तुर त योगमाया से कहा—दे खो
बगीचे म कुएं के पास हमारा एक म पानी पीकर भूखा सो गया है। उसे जगाना मत।
अपने भाव से ारका म ले आओ। योग माया को तो संकेत मा चा हए था तुर त सुदामा
जी ारका म पधार गए।
ारका म आकर जैसे ही सुदामाजी क आंख खुली नगर क चकाच ध दे खकर के
च कत रहे गए। पूछा—भैया! म कहां पर आ गया ं? एक ने उ र दया क पं डत जी यह
ाराकापुरी है। सुदामा ने कहा—म तो तीन महीने म ारकापुरी नह आ पाता। यह तो भु
क कृपा हो गई जो मुझे इतनी ज द ारका बुला लया। सुदामा ने उस सेवक से कहा,
भैया! यहां हमारे म का घर है। तो उस सेवक ने झुंझलाकर उसका उपहास करते ए
कहा—कह छोटे गांव म होगा तु हारा म । यहां तो करोड़प तय का नगर है। फर भी
नाम बातओ, तो उसने बताया, कृ ण। नाम सुनकर मन-ही-मन मु कराकर फर कुछ
सकपका कर उस सेवक ने कहा—यह नाम तो राजा धराज हमारे वामी का बचपन का
नाम है और फर उस सेवक ने कहा—वह जो सामने ड् योढ़ दखाई दे रही है, जहां
दरवाजे पर हाथी बंधा है वह ाथना करना, तु ह भु के दशन हो जाएंगे। ड् योढ़ पर
पहरेदार ने पूछा तो सुदामा यूं बोले—
म तो ीकृ ण का ता लब ं, मेरा यार भी है सरकार भी है।
ऐ कृ ण तु हारी उ फत म, गु जार भी है और खार भी है।।
तो सेवक ने कहा—अ छा महाराज! अभी दशन खुलगे तो तु हारी बात प ंचा दगे।
छड़ीदार भगवान् के पास गया तो वह भावुक हो उठा—कहां तो सव वामी कृ ण
महाराज, कहां वह अ कचन ा ण, पता नह यह म ता कैसे होगी। य ही वह छड़ीदार
भु के पास प ंचा तो भगवान् ने उसे दे खकर कहा—छड़ीदार जी! आप रो य रहे हो?
नह भगवान्! ऐसे ही कुछ वचार मन म आ गया। नह , कोई तो बात होगी? भगवान् ने
कहा—तो छड़ीदार बोला—महाराज! या बताऊं? जो दरवाजे पर दे खा है, उसके बारे म
सोचता ं तो जी कुछ और हो जाता है और आपके दशन करता ं तो वचार कुछ और हो
जाता है। य बात या है? कृ ण ने पूछा—
सीस पगा न झगा तन पे, भु पांय उपानह क नह सामा।
धोती फट सी लट पट , भु जाने को आय बसे के ह ामा।
बल दे ह ारे खड़ो ज, दे ख र ौ वसुधा अ भरामा।
पूछत द नदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।
सुदामा नाम सुनते ही कृ ण वयं उठकर ड् योढ़ तक आए और सुदामाजी को दय से
लगा लया और लाकर अपने सहासन पर बैठा दया। वयं उनके चरण म वराज गए।
सुदामाजी के चरण हाथ म लए सहच रय ने सारी सेवापूजा क तैयारी करी।
व पद हाथ म लयो है लोक नाथ, दे ख द नताई, द नताई उर
छायी है।।
कांटे बवाई धूल, हाटे पग फाटे पट, सोए भाग जागे आज पास
य राई है।।
पूजन को च दना द पानी कनक झारी, झा र बसारी ेमधार य
बहाई है।।
नैन नीर धोए य क णा नधान रोए, स ची अंसुआन माल
अंसुवन चढ़ाई है।
सुदामाजी के पैर म बवाई फट रही थी, उसम कांटा उलझ रहा था, भगवान् रेशमी
पीता बर से कांटा नकालना चाहते ह। शु क चरण म पीता बर उलझ गया, भगवान् ने
ख चा, सुदामा बोले— म मेरे को :खता है, आप रहने दो। भगवान् रोने लग गए।
बाणासुर संग
जनमेजय ने वैश पायन जी से पूछा क हे भगवान्! आप मुझे ीकृ ण और बाणासुर के
सं ाम के वषय म बताइए। मने सुन रखा है क भगवान् शंकर और क द ने बाणासुर को
वरदान दया आ था। वैश पायन जी ने उ र दया क हे जनमेजय! एक दन का तकेय
अपनी बाल- ड़ा कर रहे थे तो बाणासुर ने उसके सु दर शरीर को दे खा और उसके मन म
वचार आया क म शवजी का पु बनूंगा। इस वचार को पूरा करने के लए उसने क ठन
तप कया जससे स होकर उ ह ने उसे वरदान दे ना वीकार कया। तो उसने कहा क
म आप और भगवती माता के पु व क कामना करता ं। यह सुनकर भगवान् शंकर ने
कहा क हम इसे का तकेय से छोटा पु मान लेते ह और का तकेय क उ प का थान
शो णतपुर होगा तथा उसक र ा म वयं क ं गा।
भगवान् शंकर का संर ण पाकर वह अहंकार से भर गया और वह दे वता से यु के
बहाने ढूं ढने लगा। एक दन उसने भगवान् के सामने कहा क मने आपक कृपा से
दे वता को अनेक बार परा त कया है और अब वे मेरे साथ यु करने क ह मत नह
कर सकते। तो अब म या क ं । य क यु के बना मेरी संतु नह होती। यह सुनकर
शव जी ने कहा क तु ह ज द ही अपनी भुजा के बल के अनु प यु का अवसर
मलेगा।
वैश पयान जी ने जनमेजय को बताया क एक बार भगवान् शंकर और पावती वचरण
कर रहे थे और तभी सैकड़ गंधव और अ सराएं उस नद म ड़ा करने लगे। भगवान्
शव भी उसके संगी से मु ध हो गए। उन सभी अ सरा ने पावती को स कया। तब
च लेखा नाम क अ सरा पावती का प धारण करके शवजी को स करने लगी क
म ऐसे ही अपने ये के साथ वहार क ं । पावती ने उनके मन क बात समझ ली और
उसने कहा क ज द ही उसे ऐसा अवसर मलेगा। उ ह ने यह भी कहा क वैशाख क
ा शी क रात जस पु ष क संग त का व दे खेगी वही तेरा प त होगा। समय आने पर
वह रात आई तो व म उसे पु ष का संयोग ा त आ। उसक सखी भी पास म सोई
ई थी, वह उषा से कहने लगी क तुम य च क ग । तब उषा ने बताया क मने व म
पु ष का संयोग ा त कया है। म तो सती ं, ऐसे कैसे आ। उषा अपनी स खय के साथ
ब त दे र तक बात करती रही। उसका मन संतु नह आ तब मं ी क पु ी ने उससे कहा
क व म संयोग ा त करना कोई दोष नह है और फर तुम शंकर भगवान् तथा भगवती
पावती क कही बात का मरण करो, जो उ ह ने कहा था वह वैशाख क ादशी क रात
ही है। उषा को भी यह बात सुनकर सां वना मली ले कन अब यह था क कसी ने
उस पु ष को दे खा नह था तो कोई कैसे उसको पहचान पाएगा। ले कन जो पु ष यहां
आकर तुमसे मला वह कोई-न-कोई असाधारण होगा। जस नारी का प त इतना परा मी
नह होता उसे भाग का सुख मल ही नह सकता। अब तुम ऐसा करो क तुम उसके
वषय म कुछ बताओ और च लेखा उसे कह -न-कह से ढूं ढ लाएगी। च लेखा ने कहा
क मुझे पता तो चले क उस पु ष का प-गुण कैसा है। फर उसने कहा क एक स ताह
म मुख दै य, दे वता और य के च बनाकर उषा के सामने ले आई जससे वह अपने
व के पु ष को पहचान सके। जब उषा सारे च को दे खते ए मनु य के च को
दे ख रही थी तो उसक अन पर गई और पता चला क वह ीकृ ण का पौ है
और वह ब त वीर है।
उषा ने च लेखा से कहा क तुम तुर त जाओ और मेरे यतम को शी लवा आओ।
तुम अपनी इ छा से प धारण करने वाली योग व ा म पारंगत हो। यह सुनकर
च लेखा ा रकापुरी म प ंची। वहां जाकर वह सोचने लगी क अ न के पास कैसे
प ंचे और उससे उषा के बारे म बताए। तब उसने एक तालाब के कनारे पर बैठे ए
नारदजी को दे खा तो उनके पास जाकर उसने णाम कया। नारदजी का यान भंग आ
तो उससे बोले क हे अ सरा! तुम यहां कस लए आई हो तब उ र म च लेखा को अपने
साथ ले जाना चाहती ं ले कन यह बात ीकृ ण तक कैसे प ंचे। य द म उनक इ छा के
व अन को ले जाऊंगी तो जैसे ही उ ह पता चलेगा क वे मुझे भ म कर डालगे।
नारदजी ने कहा क तुम डरो मत। तुम अ न को ले जाओ और जब यु होने लगे
तो मुझे याद कर लेना। म तु ह अब लोग को मोह म डालने वाली तामसी व ा दे रहा ं।
च लेखा ने नारदजी से व ा ली और ु न के भवन के पास म ही अ न के भवन म
आ गई। वहां अ न अनेक सु द रय के म य बैठे ए भ लग रहे थे। च लेखा ने
अपनी व ा से य को तो चेतनाहीन कर दया और अ न से कुशल-मंगल पूछने
लगी। उसने कहा क आपका और उषा का व म प नी के समान आचरण हो चुका है
अत: उषा ने आपको अपने मन म बसा लया है वह आपके बना जी वत नह रहेगी। य द
कोई नारी आपक कामना करती है तो आपको उसे पूरा करना चा हए। मेरी ाथना है क
आप चल।
अ सरा से यह सुनकर अ न बोले क मने भी जब उ ह व म दे खा है तभी से उन
पर मु ध ं। म भी अपनी यतमा से मलने को आतुर ं। यह सुनते ही च लेखा ने
अन को हर लया और आकाश माग से शो णतपुर म वेश कया। वह थोड़े ही समय
के बाद अंपनी सखी के पास प ंची और घर म अतरंग भाग म उन दोन को प ंचा दया।
दोन को एकांत म सुख क अनुभू त के साथ भय भी लग रहा था। ले कन मन क बलता
से दोन ही च तत थे। अ न ने उषा को बताया क जब से व म उसका दशन आ है
तभी वे वह उसके वरह म ाकुल है। वह पर दोन का ग धव ववाह आ और ब त
समय तक वे वहां पर वहार करते रहे। थोड़े समय के बाद अंत:पुर के र क पर यह भेद
खुल गया तो उ ह ने बाणासुर को सारा वृ ांत बताया। बाणासुर ने अ न के वध क
आ ा दे द और कहा क मेरे ारा क यादान न करने पर उसक कैसे ह मत ई क मेरी
पु ी से गंधव ववाह कर। वह यहां आया कैसे। राजा क आ ा से वकराल सै नक
अन को मारने के लए चल पड़े। उषा को ब त ाकुलता ई ले कन अ न के
कहा क तुम च ता मत करो और मेरा परा म दे खो।
दै य क सेना को अपने सामने दे खकर अ न ने कहा क यह सब या है। तभी
च लेखा ने नारदजी का मरण कया। नारद जी वहां आ गए और कहा—हे अ न !
अब कसी बात क च ता मत करो। अ न नारदजी को दे खकर और भी नभ क हो
गए। अ न ने सेना पर अंत:पुर के दरवाजे और पर थत अरगला से हार कया
ले कन दानव भी सब ओर से उन पर हार करते रहे। इस कार यु म धीरे-धीरे भय
करता बढ़ता गया य क अ न दै य के श से ही उ ह मारने लगे। तब बाणासुर
वयं यु करने के लए आया। दोन म यु होने लगा और बाणासुर ने अ न पर
अनेक तीर से हार कया। बाणासुर क वजा भी कट गई और भयंकर यु होने लगा।
उ ह ने एक श अ न पर छोड़ी तब अ न ने उसे बीच म पकड़ लया और उ टे
बाणासुर पर हार कया। बाणासुर चेतनाहीन हो गया। तब उसने फर से चैत य होकर
माया यु का सहारा लया और कहा क जैसे ग ड़ सप को नगल जाता है वैसे ही म इसे
न कर ं गा। फर बाणासुर ने भीषण सप बाण क वषा क और उ ह ने अ न को
चार तरफ से जकड़ लया। उसे इस कार जकड़ा दे खकर कु मांड ने बाणासुर से कहा
क हे महाराज! जरा यह तो जान लो क यह है कौन और यहां य आया है? य क यह
तो अ य त परा मी और वीर है। इस लए इसे मारना उ चत नह है। इसने क या से
स भवत: गंधव ववाह कया हो इस लए य द यह मारने यो य है तो मा रए और पूजने
यो य है तो पू जए। य क जसके साथ क या क संग त हो जाती है वह पू य हो जाता
है। बाणासुर को कु मांड क बात भा गई और वह अ न को र क क दे ख-रेख म
छोड़कर अपने महल म आ गया। उधर नारदजी ने ा रका को थ कया।
ा रका म अ न को अनुप थत दे खकर सारी यां रोने लगी थ और उ ह ने रोते-
रोते कहा क ऐसा कौन है जसने ीकृ ण का अ य काय कया है। भगवान्
ीकृ ण तथा उनके अ य सा थय ने जब यह दन सुना तो वह आए और उ ह अ न
के अ य होने का वृ ांत मालूम आ। वे उस समय ोध से लाल हो गए थे। तब एक
यादव ने उनसे कहा क आप च तत मत होइए। हम सब इतने समथ ह क कसी से भी
यु कर सक। तब ीकृ ण ने कहा क अ न का अपहरण होने से पृ वी म राजा हम
बलहीन समझगे और बचपन म भी ु न का अपहरण आ था। पर पता तो चले क
अन को कौन ले गया। तुम सब अलग-अलग थान पर अ न को ढूं ढने के लए
जाओ।
भगवान् कृ ण के सेना य अनाधृ ने कहा क मेरी एक बात सु नए—हे भु! हो
सकता है, आपसे पुरानी श ुता के कारण इ ने अ न का अपहरण कया हो क तु
इस बात को ीकृ ण ने नह माना। अ ू र जी ने भी ीकृ ण क बात का समथन कया
तब वचार करके यह पाया गया क यह काय कसी ी का हो सकता है य क वह बड़ी
मायावी होती ह। ीकृ ण तथा अ य लोग को इस बात का ान होते ही थोड़ी-सी स ता
अनुभव ई य क तभी गए ए लोग बना कसी सफलता के लौट आए।
सरे दन ात: काल दे व ष नारद ीकृ ण के महल म आए और उ ह ने दे खा क सब
लोग च तत ह, वहां उप थत सभी लोग ने नारदजी का स मान कया तो नारदजी ने कहा
क तुम सब लोग यहां पर उदास होकर य बैठे हो। तो ीकृ ण ने कहा क अ न को
कोई उठाकर ले गया है। इसके उ र म नारदजी ने सारी बात बता द और बाणासुर के
साथ अ न के यु क सूचना द । यह सुनते ही कृ ण तैयार होने लगे तो नारदजी ने यह
कहा क अ न नागपाश म बंधा आ है और आप जाकर शी उसे छु ड़ाइए। ीकृ ण
शी स पूण साम ी के साथ ग ड़ क पीठ पर सवार होकर यु के लए थान करने
लगे।
वैश पायन जी ने जनमेजय को बताया क हे राजन्! ीकृ ण के चलते ही चार ओर से
उनक शंसा होने लगी और ु न क शोभा तो ब त वल ण थी। ग ड़ ने ब त ती
ग त से बड़े माग को पार कया और जब बाणासुर के नगर के समीप आए तो उ ह ने
व लत अ न दे खी। तो कृ ण जी ग ड़ जी से पूछने लगे। जब ग ड़ ने अपने सह
मुख करके पानी एक कया और अ न के ऊपर बरसा दया जससे वह शांत हो गई।
उधर भगवान् शंकर के अनुचर इस थ त को दे खकर ाकुल हो गए थे और इन अ नय
ने कृ ण के सा थय के साथ यु शु कर दया। बाणासुर के त भी उधर आ गए। तब
दस अ न गण यु करने लगे और उन अ नय के बीच मह ष अं गरा भी आ गए। उ ह ने
ीकृ ण क ओर शूल फका क तु उसे कृ ण ने बीच म ही काट दया।
कृ ण लगभग शो णतपुर के पास जा प ंचे और वहां उनका वर से यु आ। वर से
यु म अनेक वीर घायल ए। ीकृ ण ने यु करके उनको परा त कया और वै णव
वर और शव वर म यु के बाद ीकृ ण और शव म भी यु आ य क ग ड़ पर
बैठे कृ ण बलराम और ु न भयंकर बाण से दै य का संहार करने लगे। उधर शंकर के
सै नक भी तरह-तरह क बाण-वषा करते रहे थे। पृ वी इस यु से डर गयी थी ाजी
क शरण म गयी और कहा क म इस यु को सहन नह कर सकती। आप कुछ ऐसा
क जए जससे क मेरा भार कम हो और उसे समझा-बुझाकर ा जी शव के पास गए
और उनसे बोले क आपने ही तो बाणासुर के मारने का ब ध कया और आप ही उसक
र ा कर रहे ह और ीकृ ण तो आपक आ मा ह। यह सुनकर शवजी को भी अपने वर
क याद हो आई और यु से वापस आ गए। इसके बाद कृ ण और बाणासुर का यु
आ। इस यु म बाणासुर क ब त दशा ई और वह सोचने लगा मेरी दशा इस लए
ई है क मने अपने बंधु क बात नह मानी।
यु के अं तम चरण म भगवान् ीकृ ण ने अपना च छोड़ने का वचार कया तो
भगवान् शंकर ने पावती से कहा क च के छू टने से पूव ही तुम इसक र ा करो। पावती
जी ने ल बा दे वी से कहा और नरव होकर ीकृ ण के सामने खड़ी हो गई। जब
ीकृ ण ने उसे हटने को कहा तो उसने कहा क आप बाणासुर को न मार उसे अभयदान
दे कर मुझे जी वत पु वाली बनाइए तब ीकृ ण ने कहा क तु हारे इस पु को अपनी
सह भुजा का गव है अब म केवल म इसक दो भुजाय रहने दे ता ं। भगवान् कृ ण
जब तक च चलाने लगे तो बाणासुर क सभी भुजाएं कट ग और केवल दो बाह रह
ग । च अपना काम करके कृ ण के पास लौट आया। तब का तकेय भी वहां आए और
उनके बीच म पड़ने के कारण ीकृ ण ने कहा क मेरा काय अधूरा रह गया है।
इसके बाद कृ ण ने नारद से पूछा क अ न कहां है तब उ ह सूचना मली क वह
अ त:पुर म बंद ह। तभी च लेखा वहां आई और वे सब लोग अ त:पुर म प ंचे। वहां
ग ड़ के भय से सप तुर त भाग गए। फर अ न ने सबको णाम कया। उसके पीछे -
पीछे उषा भी वहां उप थत हो गई फर सबने नारद जी के चरण छु ए और वह उषा तथा
अन का ववाह करा दया। ीकृ ण ने कु मांड से कहा क अब तुम बंधु-बांधव
स हत शो णतपुर म रहो उसे यह आदे श दे कर कृ ण दे व को नम कार करके वहां से
चलने लगे। तब कु मांड ने कहा क व ण ने बाणासुर क गऊ पर अ धकार कर रखा
है। उनके थन से नकले ए ध को पीकर श शाली हो जाता है। ीकृ ण ने
व ण लोक के लए थान करने क सोची और उषा तथा उसक स खय स हत अ न
को ा रका भेज दया। कृ ण ने उन गऊ को ा त करने का वचार कया और व ण के
सै नक को मार भगाकर व ण को ु ध कर दया फर उससे गऊएं मांगी। तो व ण ने
कहा क मेरे और बाणासुर म एक सं ध ई थी म उसका उ लंघन नह कर सकता। तो
कृ ण बोले क मने बाणासुर क गउएं छोड़ द ह और फर ह षत होकर ा रका आ गए।
जब भगवान् कृ ण ा रका आए तो ह षत और व मत ए पुरवा सय ने उन दे वता
पर च दन, पु प एवं गंध आ द क वषा क धारा अ पत क , धूप दान क , फर णाम
और तु त गायन आ द कया। इस कार ा रका वा सय से पू जत इ ने आ क,
वसुदेव, दा ब, उ सुक, वपृथ, अ ू र और नषध का आ लगन कया और उनके म तक
को सूंघकर सभी यादव से कहने लगे—हे यादव गण! तु हारे ीकृ ण ने भगवान् और
वामी का तकेय से यु कया तथा बाणासुर को हरा कर यहां आए ह। बाणासुर क
भुजा म से केवल दो भुजाएं ही इ ह ने शेष छोड़ी ह।
इस कार भगवान् ीकृ ण ने जस लए अवतार हण कया है उसका ब त कुछ
भाग यहां स प हो जाता है।
भगवान् सूत जी ने शौनक जी से कहा क हे भगवान्! आप मुझे जनमेजय क संतान-
पर परा के वषय म बताने क कृपा कर। इसके उ र म सौ त जी बोले क जनमेजय के
का या नाम क प नी से दो पु उ प ए। च ापीड़ और सूयापीड़। च ापीड़ राजा बना
और बाद म उसके सौ पु ए। इसी वंश म जनमेजय त त ए। आ यह क
च ापीड़ के स यकण नाम का पु उ प आ। उसका भाई ेतकण मा लनी के साथ
वनवासी हो गया। वन म ही मा लनी गभवती हो गयी तो ेतकण ने महा थान क इ छा
क , मा लनी भी उसके पीछे -पीछे चली। ले कन कुछ र जाकर कमल के समान ने वाला
पु पैदा आ। वह उस बालक को वह छोड़कर प त के साथ चली गयी। फर उस बालक
को प पलाद और कौसी ऋ ष बेमक के आ म म ले आए और उसका पालन-पोषण
कया। एक तरह से बालक अजपा बेमक और उनक प नी का पु हो गया। इसी वंश से
आगे चलकर पा डव का पूव वंश त त आ।
हे शौनक जी! यह यह कथा जस कार ास जी के श य वैश पायन जी ने कही थी
म उसी तरह आपको सुना रहा ं। राजा जनमेजय ने सात य के बाद अ मेध य करने
का वचार कया। फर उ ह ने अपना यह वचार पुरो हत और आचाय के सामने रखा।
जब वह पुरो हत से बात कर रहे थे तभी ास जी वहां आ गए। उनके आने पर उनक
पूजा क गई और वेद आ द वषय क चचा आर भ हो गयी। तब जनमेजय ने ास जी
से कहा क महाभारत सुनते ए मुझे यह लगा क राजसूय य उस महा वनाश का कारण
बना था। य क उसके पूव ही अनेक-अनेक राजसूय य ए और उसी म म दे वासुर
यु आ। तो ऐसा य होता है क बड़े-बड़े ानी लोग के होते ए भी इस यु के
कारण प राजसूय य क वीकृ त य द जाती है। राजा या नेता के अहं के कारण
अनेक पु ष अनाथ हो जाते ह और नाश होता है। यह सुनकर ास जी ने कहा! हे पु
तु हारे पूवज अपना े माग याग बैठे थे। कुछ भा य क बात होती ह और काल क ग त
रोक नह जाती। य द तुम चाहो तो म भ व य क बात बता सकता ं। क तु काल क
ग त सबसे परे है।
वधाता कसी-न- कसी प म उ प और नाश का वधान करता है। लय के बाद
फर से सृ , सृ के बाद लय। यह सुनकर जनमेजय ने पूछा क मेरा अ मेध य
कस कार क बाधा से सत हो सकता है। ास जी ने कहा क ा ण के ोध से
य न होता है। जब तुम उस ोध का नवारण नह करोगे तब तक य सफल नह
होगा। आप ही मुझे बताइए क म या क ं ? तब ास जी ने कहा क जस तरह से न
आ तेज-तेज म वलीन हो जाता है उसी कार न आ य दे वता और ा ण म
ान प म थत रहता है।
जनमेजय ने ासजी से कहा क हे भगवान्! मेरी मु का समय कब है यह तो म
जानता ले कन जस युग म मने ज म लया है उसम कम प र म से ही अ धक पु य ा त
हो जाता है। यह सुनकर शौनक जी ने भी कया क अब धम क ग त को ीण करने
वाला क लयुग आने वाला है। इस लए इसके वषय म हम कुछ बताइए। भगवान् ास ने
कहना ार भ कया क मूल प से क लयुग म येक अपने वाभा वक धम को
भूलकर सरे काय करने लगेगा। उस युग म राजा लोग वाथ बनकर जा के हत,
साधन, य , तप आ द अ छे कम छोड़ दगे। य के अ त र सरे वण के लोग सजा
बन जाएंगे। य क पर परा न हो जाएगी। इसके साथ-साथ करने वाले अस य वहार
करने लगगे। म -मांस का योग बढ़ जाएगा। वयं राजा ही चोर या अपहरणकता हो
जाएंगे तथा सबसे मुख बात यह होगी क धन ही त ा का आधार बन जाएगा। लोग
धम ान से शू य ह गे, वधवा और सं या सय के संतान ह गी और मनु य क आयु
ब त कम हो जाएगी। सभी लोग अ बेचने लग जाएंगे, ा ण धम को बेचगे और यां
अपने प का वसाय करने लग जाएंगी। सभी े णय के तप या तथा य का
द भ करके कम हो जाएंगे। ा ण अपनी तप या तथा य के फल को धन के लए
बेचने वाले ह गे और सब व तुएं समय के तकूल होने लगगी। शू लोग प व आचार-
वचार हण करके, ेतद त-सू मदश , मु डत सर, काषाय वेषधारी होकर बौ धम के
अनुयायी बनगे।
जंगली हसक जीव क अ धकता होकर गाय क सं या घट जाएगी और जब व तु
का वाद पूवापे ा कम हो जाएगा। ले छ दे श के नवासी म य दे श म आकर रहने
लगगे और म य दे श वाल को ले छ के दे श म जाकर नवास करना पड़ेगा और सव
साधारण नीच माग पर चलने लगगे। बैल श हीन होकर हल ख चने म क ठनाई अनुभव
करगे और वषा भी ब त ही अ त- त प म होने लगेगी। सभी एक- सरे का
धन अपहरण करके चौय़वृ से शी ही धनवान बन जाना चाहगे और इस लए सबको
दशा त होना पड़ेगा। उस समय लोग धमाचरण छोड़ दगे, भू म ऊसर हो जाएगी और
रा ते म सब ओर डाकु का भय रहेगा। उस समय सब लोग सब कार क व तु को
बेचने वाले ही ह गे और पता क जायदाद का पु बंटवारा कर लगे। धन के लए लोग
अस य वहार करगे तथा सरे का धन दबा लगे।
क लयुग का वणन करते ए ास जी ने आगे कहा क गृह थ जीवन म सु दर और
े का अभास हो जाएगा। मांगने वाले ब त हो जाएंगे और दान का लाभ भी कम होगा।
लोग युवा अव था म ही वृ जैसे लगगे। क लयुग म सभी लोग ा ण बनने क को शश
करगे और अ धकतर लोग मान सक पीड़ा से त रहगे। सब लोग पर पर ई या- े ष से
भरे रहगे।
सूतजी ने बताया क ास जी ने जनमेजय को सां वना द और फर कथा को आगे
बढ़ाते ए उ ह ने यह भी बताया क जनमेजय ने वैर और ोध का याग कर दया और
अपने रा य का संचालन करने लगे। उ ह ने अ मेध य क द ा ली। घोड़े क ब ल के
अवसर पर उनक प नी उनके पास बैठ थी। उस सु दर वपु मा को दे खकर इ उस पर
मो हत हो गए और सू म प म अ क दे ह म वेश करने के बाद रानी का संग ा त
कया। इ क कुचे ा को अ वयु ने जान लया और राजा को बताया तो राजा ने इ को
शाप दया क य द मेरे जापालन और य का कुछ भी फल बचा तो अ मेध य का
कोई अनु ता इ को नह पूजेगा। तब जनमेजय ने ऋ वज को भी कहा क आप लोग
क असावधानी से मेरे य म व न उप थत आ है इस लए आप भी यहां से चले जाइए।
इसके बाद राजा ो धत होकर अपने अंत:पुर म गए और उ ह ने प नय को आ ा द क
इस वपु मा को अभी बाहर नकाल दो। इसके कृत से मेरा गौरव न आ है य क जो
पु ष ी का सहवास करता है उसे शां त नह मलती। जब राजा जनमेजय यह बात
कुछ कह रहे थे तब गंधव राज व ावसु राजा के पास आए और बोले क आपके सौ य
क पू त इ के लए अस थी इस लए उसने अपनी र भा नाम क अ सरा को वपु मा
बनाकर आपक प नी बनाया। आपक रानी वपु मा नह है यह तो केवल इ क
चाल थी क उसने आपका य भंग कर दया और इस तरह आप इ व के फल से वं चत
हो गए। इ ने एक ही छल से अपने दोन काम कर लए। यह केवल काल का भाव था
इसके लए आप इ या वयं को दोष मत द जए। आपको इ के अनुकूल काय करना
है। आप अपनी नारी र न को न कलंक मा नए। व ावसु के वचन को सुनकर जनमेजय
का ोध शांत आ और स च होकर जा का पालन करने लगा।
इसके बाद सनातन का वणन करते ए वैश पयान जी ने कहा क पर का
व प पंच इ य से जानने यो य नह है। सू म और थूल जगत् के कारण परम पु ष
का कभी नाश नह होता उसी से अहंकार और त व क उ प होती है वह सम त
जीव और वषय का वामी है सव ा त है वह कभी खं डत नह होता क तु व मान
रहता है इसी लए उसे वभु और नारायण कहते ह। उसी ने सारे व को घेर रखा है वह
य दखाई नह दे ता।
वह आ द अंत से परे है और भूत, भ व य तथा वतमान के प म प रव तत होता
रहता है, वह सभी लोक म रहता है। वही चराचर जगत् का एकमा वामी है। वह सृ
क रचना करता है और उसके शरीर से सारी जा का आ वभाव होता है। वह अ य
अवल बन र हत वयं का शत त व ही के प म जाना जाता है।
व का ार भक प जल बतलाया गया है। ा जल क सृ करते ह, जल से पूव
वायु होती है। ये ा ही संसार को धारण करते ह इस लए जगत् म धाता कहे जाते ह उस
जलमय संसार म जब ा क इ छा ा णय म नवास यो य थान बनाने क ई तो जल
और भू म पृथक्-पृथक् हो गए और व तथा ठोस पदाथ का भेद जान पड़ने लगा। उस
अवसर पर जल म डू बी ई पृ वी ने वयं ही ा का यान करते ए कहा—इस अन त
जलरा श म डू बी रहने से अ यंत ले शत ं, आप, मुझे कृपाकर बाहर नका लए।
भगवान् ने वाराह बनकर पृ वी को बाहर नकाला और वे वह अ य हो गए। वे सव
काल म अपनी इ छा से आधा रत रहते ह। उ ह से एक मंडल से सरा मंडल उ प होता
रहता है। इ ह ने अपने वामी भाव से सोम मंडल क रचना क फर उससे पवन त व
नकाला। वही वेद के प म व यात आ और भगवान् नारायण ने ही वेदो सनातन
पु ष क सृ क । उस सनातन पु ष का व भाग जल, थूल भाग पृ वी, पीला भाग
आकाश, यो त भाग ने और शरीर का पंदन ही वायु था। इस तरह उस अ से
पंच पदाथ क भौ तक सृ ई और इस सृ म जीव उ प ए। यह जीव उस परमा मा
का ही अंश है और इसम थत आ मा अपने पूव सं कार के कारण अ छा-बुरा अनुभव
करती है।
कुछ लोग इ य के सन म फंसकर :ख उठाते ह ले कन जो उ ह वशीभूत कर
लेते ह वे परम आन द क थ त म प ंचते ह। इसी लए ानी सांसा रक त व को
:ख का मूल मानकर उ ह याग दे ते ह।
इ य के योग सुख, :ख आ द से ही मनु य के शुभ-अशुभ कम सामने आते ह।
सांसा रक भाग और मो दोन ही योग कम के प रणाम ह। पर स य व प भोग म
कमफल का कोई भी अंश नह रहता।
वैश पायन जी ने कहा क हे महाराज! पृ वी के बीच म भाग को वद ण करके आकाश
म थत होते ह तो सुमे और मैनाक पवत बन जाते ह। परत का अथ कामना पूण करने
क कृ त है इस लए इनका नाम पवत पड़ा है। वेदा त के अनुसार जसे मय तेज कहा
गया है वह यो तमय परम पु ष उसका व ह होता है। फर उस परम पु ष के मुख से
जो तेज नकलता है वह चतुमुखी होता है और के मुख से उ प होने के कारण ही
उसे ा कहते ह। इसी लए ज प होने के कारण उसको ा ण भी कहा गया है।
लोक क थ त सबसे ऊपर बताई गयी है उसका प रमाण कोई नह जान सकता।
योगपरायण स ानी भी उसका व तार करोड़ योजन बताते ह। 49 म त, 11
, 12 आ द य दे व व ण और इ आ द से यह पृ वी ा त रहती है और भगवान्
व णु अपने तेज से उसका पालन करते ह। योगी लोग अ य और अ को य
अपनी आ मा से अनुभव करते ह और अपने पु य कम के ारा काय करते ए लोग का
हत करते ह। इस तरह कम से उ प पु य भी परमा मा के अंश होते ह। जो ान
परायण ऋ ष, यागी होता है वह व प भगवान् को ज द ा त कर लेता है। स य को
मानने वाले वद इस चराचर को व कहते ह। व प के बाद म अ ात परमा मा
प थूल- प ले मनो- प और बु प जगत् को रचता है और वही सबसे पहले ी-
पु ष म थम मथुन क सृ करता है और अनेक दे वी-दे वता के प म सुख भोग
करता है।
जो ान परायण ऋ ष नवाण पदगामी जन म अ णी होते ह उनके नयंता
ाजी होते ह। परमे र ने ही सोमदे व क उ प क और सम त जीव के अ य पद
पर भगवान् महे र को अ भ षत कया गया। त प ात् वे ब त गंभीर प से नाद करने
लगे। जससे उस स लल धारा का नाम नद आ। परमा मा ारा कट नद लोक
होकर पवता द को वद ण करके पृ वी पर आई। गगन से आने के कारण ही उसका नाम
गंगा पड़ा और वह पृ वी पर सात धारा म वभ होकर बहने लगी। फर उन गंगा ने
सह तीथ के प म अपना व तार कया जससे लोक और परलोक म उनका व तार
आ और मान-वृ ई। गंगाजी के जल के तेज से धा य म बीज अंकु रत होने और उनसे
तरह-तरह के ा णय क वृ होने लगी। इस धा य तथा मनु या द म मनी षय ारा
सम त धा मक याएं व तत क ग ।
ाजी के चार मुख से जो-जो ानमय श द नकले वे ही चार वेद हो गए, जो
मनु य को धम-साधन और ा त का माग दखलाते ह। वह वेद पी ान आगे
चलकर य के ा, उद्गाता, होता और अ वयु—इन चार भाग म स प होकर अन त
व तार को ा त हो गया और वयं भगवान् ही उस पद के अ धप त ए। धम के भी
ये चार चरण ह। योग का गु ान, वा याय और मनन ारा होता है, जससे मान सक
वकास होता है और वहां वेदो चय क थ त होती है। गृह थ आ म का पालन
करने वाले जब इस कार -यो न क ओर वृ होते ह तो मे शखर पर रहने
वाले ऋ षगण और उनके पतृगण इससे परम संतु हो जाते ह। ये ऋ ष उसी उ म
शखर पर वराजमान होकर सबका अवलोकन करते ह और जंघमूल म दाय और बाय पैर
के गु फ को रखकर गदन तथा रीढ़ क हड् डी को सीधा रखते ए ना भ दे श पर हथे लय
को रखकर, मुख को सह प से स मु ा म रखते ए साधना कर बैठते ह। वही
यो गय का आसन कहलाता है।
इस कार थर आसन पर बैठकर योग-साधन ास को नयं त करते ए म तक के
म य म व णु भगवान् का यान करते ह। उस समय सब इ य के वषय म नवृ हो
जाने से दय म ऐसा ान लोक होता है मानो आकाश म च मा का उदय ही हो। ऐसी
योग क साधना से अ तरामा म ान का ऐसा काश हो जाता है मानो एक नया सूय
ही का शत हो उठा हो। य प यह भूता मा ललाट के म य म ही थत रहता है, पर
अ ानी जन उसे नह जान पाते। च मा तथा सूय से ा त दोन ही यो त मनु य म समाई
रहती ह, पर यान ारा तन को एका कर सकने वाले ही उसका दशन कर सकते ह।
वेदो माग से आ मा-साधना करने वाले मनीषी ही उसको करने म समथ होते ह। अ य
लोग को इस अ या मत व का प रचय नह हो पाता।
भोग-तृ णा क अ धकता होने पर मनु य अ य ा णय को क दे ने लग जाता है
जससे अनेक कार के कम क वृ होने लगती है। इस तरह भोग और ऐ य के मद
म डू बकर मनु य आ मान द से वं चत रह जाता है। ेय-साधन म अनेक व न पड़ने लग
जाते ह। इस लए दय म अकार, उकार, मकार, च ब यु गाय ी को व करना
चा हए। यह वशु चैत य यो त ही आकाशा द सम त पदाथ क उ प का मूल कारण
है। यह शा त, अ य, चैत य, व प परम पु ष ही सा ा कार करने यो य है, पर इ य
ारा उसक ग त नह हो सकती। पर क शुभ काश-यु द त बड़ी
आन ददा यनी होती है, वह शु ल, कृ ण आ द वण से व मान रहती है। ऋ वेद, यजुवद
उस समय पु ष के ने से, सामवेद ज ा के अ भाग से और अथव म तक से उ प ए
ह। इन वेद ने उसका होने पर वयं अपनी पदवी ा त कर ली इसी कारण उनको वेद कहा
गया।
इन चार वेद ने एक य ा मक सनातन पु ष क सृ क । इनम अथव वेद के अंश
से म तक, ऋ वेद से गदन और क धे, सामवेद से छाती और बगल और यजुवद से पेडू,
क ट दे श, जंघा तथा पैर क उ प ई, इस कार वेद से उस द , अमर य पु ष का
ा भाव आ। यह वेदो सनातन य य ओर अ य जगत् म सव कार से
क याणकारी है, इसम हसा का कुछ भी स पक नह है। योग-साधन म चय त का
पालन बड़ा क ठन होता है। इसको जो पूण कर लेता है वही वेद का ाता, ानी और
स पु ष कहलाने के यो य है। आ मदश मु न ऐसे साधक का आदर करते ह, ऐसा ही
साधक स ची मान सक शा त ा त करता है। वेद महा मा उसी को वै णव-य करते
ह।
राजा जनमेजय ने कया- जस कार धन के न मलने पर आग वयं बुझ जाती है
उसी कार भोग के उपल ध न होने पर उनका शा त हो जाना वाभा वक है। ऐसी दशा
म य द मन एक बार समा ध अव था म प ंच जाता है तो फर वह वषय क ओर आकृ
होता है। वैश पायन जी ने कहा—इस कार मन का पुनरावतन आ त रक, शारी रक
अथवा मान सक कारण से ही होता है। ऐसे कारण मन म उप थत होकर च को
चलायमान कर दे ते ह। इन कारण को जस ान ारा जाना जा सकता है उसको ा त
करना भी क ठन ही है। वह श के वा याय तभी सुयो य आचाय के उपदे श से ही हो
सकता है। कम ारा उसको जान सकना संभव नह । नमाण अ भलाषी को शु प व
होकर न तापूवक आचाय क उपासना करनी और दोन धारणा यान आ द मो दायक
कम से द च होना चा हए। उसे समा हत च से वनीत भाव से रखते ए क
भावना करनी चा हए। ऐसा करने से अव य ही े वै णवपद क ा त होती है। इसम
संदेह नह क मन- साद ऐसी उ च ग त ा त करने का मु य साधन है।
जब साधक का च सांसा रक वकार से शू य हो जाता है तो -सा ा कार म
वल ब नह होता और भव के बंधन से शी ही छु टकारा हो जाता है। इसम कुछ भी संदेह
नह क सनातन क ा त कमयोग और ानयोग ारा ही न त है। जो साधक दे व
के ाता और वनीत होते ह वे सांसा रक पदाथ और वषय-भोग म अनास होते ह।
य प कम को पुनज म का कारण बतलाया गया है पर जो अनास भाव से कम करते ह
उनके लए यही मो का आधार बन जाता है और ऐसे साधन का कभी बारा आना नह
होता। फलाकां ा का याग करके कम करने से इ य के बंधन से मु होकर परम पद
को ा त कर लेता है और उसको मानव-दे ह हण करने के लए इस जगत् म नह आना
पड़ता।
सनातन -त व का वणन सुनने के बाद जनमेजय ने भगवान् नारायण के व भ
व प के वषय म पूछा, तो वैश पायन जी ने उ र दया क भगवान् व णु ने मधु रा स
का वध कया। सबसे पहले यह रा स घोर गजन करता आ गंधव के संगीत से
आक षत हो गया और भगवान् व णु मंदार पवत म व हो गए। फर दोन म यु होने
लगा और इस कार दे वता के हत का साधन करने के लए भगवान् व णु ने उसे मार
डाला।
वैश पायन जी ने बताया क भगवान् ने वामन के प म ब ल को छल कर दे वता का
काय कया। ब ल ब त परा म और दानशील असुर राजा था। उसने ब त बड़ा राजसूय
य ार भ कया। यह य ऐसा था जसे शु ाचाय अपने म के साथ उ प करा रहे
थे। भगवान् व णु इस य म वामन का प धारण करके आए और ब ल से तीन पैर पृ वी
क मांग क और जब उसने हां कर ली तो भगवान् ने तीन लोक को नाप लया और सारे
असुर को पाताल लोक म भेज दया।
भगवान् व णु ने वाराह के प म पृ वी का उ ार कया। आप यह जानते ह गे क
पहले यह संसार एक व णम अ ड के प म था। फर उसके ख ड ए और सृ क
इ छा से भगवान् ने उसके आठ भाग कर दए और इस कार अनेक तल बने। ले कन जब
पृ वी ब त पवत और जल के कारण धसनी शु हो गई तो भगवान् ने वाराह के प म
उसका उ ार कया। वाराह- पी भगवान् ने रसातल म घुसी पृ वी को जल से बाहर
लाकर त त कया।
वाराह के प म ही भगवान् व णु ने हर या को मारने का वचार कया। उ ह ने
हर या से यु कया और दे वता का काय करने के लए उ ह ने हर या को मार
दया। फर इसी प म नृ सह अवतार धारण करके उ ह ने दे वता क ाथना पर
हर यक शपु को मु दान क ।
हर यक शपु के वध के समय भगवान् ने सबसे पहले अपने-आपको ख भे से ाद
को दखाया और फर उसे स करके हर यक शपु का वध कया।
हंस- ड भक संग
राजा जनमेजय ने ी वैश पायनजी से पूछा क ीकृ ण और हंस ड भक म जो
भयंकर सं ाम आ था उसके बारे म बताइए। वैश पायनजी ने जनमेजय क ज ासा
शांत करते ए बताया क ाचीन काल म शा व नाम का एक नगर था जसम द
नाम का राजा रहता था। उसक दो प नयां थ ले कन संतान नह ई। उसका म था।
उस सखा ने पु क कामना से व णु क आराधना क और द ने शव को स
कया था। भगवान् शंकर ने एक रा के समय उनको कहा क तुम वर मांगो तो उ ह ने दो
पु का वर मांगा। उधर सरी ओर म सह क कामना क भी पूरी ई और उसने भी पु
होने का वरदान मांगा। समय आने पर दोन के यहां पु पैदा ए। ये तीन पु धीरे-धीरे
बढ़ते रहे। बड़े पु का नाम हंस और सरे का ड भक था और म सह के पु का नाम
जनादन था। धीरे-धीरे समय तीत होता गया और हंस और ड भक ने नीलक ठ को
स करने के लए हमालय पर तप या क । उ ह ने महादे व को स करने के लए
हमाचल पर तप या क । उ ह ने महादे व को स करके उनके दशन ा त कए। भगवान्
शंकर बोले क तु हारी जो इ छा हो, मांगो। तो उ ह ने कहा क हम दे वता, दै य, रा स,
गंधव आ द से परा जत न ह और जब-जब हम कसी से यु कर तो आपके दो भूत
हमारी र ा के लए उप थत ह । हम जब भी चाह तब द धनुष और फरसा हम
उपल ध हो। यह वरदान ा त करके वे दोन अजेय हो गए और भगवान् शंकर क लीला
हमेशा कया करते थे। इधर धमा मा पु जनादन पीता बरधारी होकर व णु क उपासना
म ल त रहता था। समय आने पर तीन का ववाह हो गया। तीन फर एक दन मु नय के
यहां गए ओर मु नय को नम कार कया। हंस ने कहा क हमारे पता एक य करना
चाहते ह और आप उसक पू त के लए च लए। हम अपनी सेना के बल पर भगवान् शंकर
क कृपा से सबको वजय कर लगे। इसके बाद वह दोन वासा आ म म गए य क
उ ह उनके ोध के वषय म मालूम नह था। इस लए उ ह ने ऋ ष वासा के साथ
वहार कया। जब वे दोन वहां प ंचे तो वासा तप या म लीन थे। उ ह आ य आ
क ये सब बगैर गृह थ के यहां कैसे रह रहे ह। उन दोन ने जनादन को अपने साथ लया
और वासा के पास प ंचे। हंस- ड भक ने कहा क आपका यह कौन-सा आ म है। आप
इस आड बर को छो ड़ए। आप गृह थ ब नए और संसार के सुख को भो गए। यह सुनकर
जनादन ने कहा-तुम यह कैसे बात कर रहे हो? या तु हारी बु खराब हो गई है? य द
तुम ाण क र ा चाहते हो तो इस तरह क धृ तापूण बात अपने मुंह से मत नकालो।
जनादन और ःखी होकर उनसे कहने लगे क य द तुमने कभी अपने बड़े-बूढ़ क सेवा
क होती तो तुम यह बात न कहते। तु ह ान क ा त नह ई है। मुझे तो इस कार क
बात कहना तो र, सुन भी नह सकता। तुम न जाने कस कारण अपने अ ान का दशन
कर रहे हो। हे राजन्! तुमने गु जी से जो ान ा त कया है वह अनुभवहीनता के कारण
न हो रहा है। य क ान को धम का कारण होना चा हए, पर तु तु हारा ान पाप का
कारण आ दखाई दे ता है। य द फर कभी ऐसी बात ई तो म तु हारा याग कर ं गा
और पवत से गर कर ाण दे ं गा, अथवा भयंकर वषपान करके या समु म गरकर ही
जीवन वस जत कर ं गा। अथवा तु हारे सामने ही मर जाऊंगा। इस कार कहते ए
जनादन ने पुन: वैसी बात न कहने का उन दोन राजपु से अनुरोध कया।
मह ष वासा ने उनक बात सुन ली थ । तो ोध से एक ने से उन दोन को दे खा और
कहा क तुम दोन यहां से चले जाओ। तभी राजकुमार हंस ने उनके पास जाकर उनक
कोपीन फाड़ द और यह य दे खकर मु न जन वहां से भाग गए। ले कन वासा ने उन
दोन को भ म नह कया और कहा क म तु ह नह मा ं गा य क इस समय पृ वी क
र ा ीकृ ण कर रहे ह वही तु हारे अहंकार को न कर। य प राजा जरासंध तु हारा
भाई है ले कन इस तरह क बात तो उसने भी नह क ।
वासा क बात सुनकर काल के वशीभूत उन दोन ने काफ व वंसक बात क और
अपने नगर म आ गए। उधर ऋ ष वासा ा रका आए। वे भगवान् को दखाने के लए
अपने टू टे ए कम डल ले करके आए थे। उधर भगवान् ीकृ ण सा य क के साथ खेल
रहे थे और यती लोग ार पर प ंच चुके थे। जब वे प ंचे तो बलराम ीकृ ण आ द ने
वासा को दे खकर आ य कट कया। कृ ण उनके सामने आए और हाथ जोड़कर कहने
लगे, आप इस आसन पर बै ठए। तब सभी लोग अपने-अपने आसन पर बैठ गए।
ीकृ ण ने उनक पूजा क और आने का कारण पूछा। वासा के दय म पहले से ही
ोध ब त था, ीकृ ण क बात सुनकर उ ह और भी ोध आ गया तब उ ह ने कहा—हे
कृ ण! आप सब कुछ जानते ह, अनजान य बन रहे ह, म आपको तीन लोक के प म
जानता ं। आप केवल पृ वी का भार उतारने के लए मानव प म आए ह तो आप
अपना यह रह य हमसे य छपा रहे ह। आप परमपद ह।
ऋ ष वासा ने कहा क मुझे आ य है क आप हमारे आने के कारण को जानते ए
भी अपनी अन भ ता दखा रहे ह, आप सब कुछ जानते ह। य द आप परो प से कुछ
कहना चाहते ह तब आप रस व प दखाई दे ने लगते ह और जब आपके त बु ती
होती है, आप दय म तेज प म व मान रहते ह। केशव! अब म आपको च मा
समझता ं तो आप च मा के प म य होते ह। इस लए आप अ ानी मन ब नए
और हमारे क का नवारण क जए।
हे भु! हम या कर? हंस और ड भक नाम के दो असुर शवजी से वरदान पाकर
ब त घम डी हो गए ह। उ ह ने हमारा अपमान कया है। हमारा यह टू टा आ कम डल
दे ख और फटा आ कोपीन। हे भु हम आपक शरण म आए ह—यह कहते ए वासा
लगभग मू छत हो गए।
वासा क दशा दे खकर भगवान् कृ ण को ब त ोध आया और उ ह ने उ ह सं ा म
लाते ए कहा क सारा दोष मेरा है पहले म ड़ा म रहने के कारण आपक ओर अ धक
यान नह दे पाया। क तु आप न त र हए। म हंस और ड भक को मारकर आपक
र ा क ं गा। म पूरी को शश क ं गा ले कन कुछ ऐसा उपाय कया जाए जससे जरासंध
उनक सहायता न कर सके। इस कार के संवाद के आदान- दान के बाद ऋ ष वासा
अपने थान पर चले गए। उ ह ने चलते समय नारदजी के पास नवास कया और
त व पर चचा करते ए एक सरे से वदा ए।
इधर सरी ओर हंस ड भक ने अपने पता से राजसूय य ार भ करने का नवेदन
कया। उनक इस बात पर जनादन हंसने लगा। ले कन उसने हंस से कहा क हे म हंस!
इस समय भी म, जरासंध और अनेक वीर अभी पृ वी पर व मान ह इस लए तु हारा यह
य करना अनु चत होगा।
जनादन क बात सुनकर हंस हंसा और उसने कहा क भी म बलहीन हो चुके ह। केवल
हमारा सामना यादव कर सकते ह। जरासंध मेरे बंधु ह इस लए तुम ीकृ ण के पास
जाओ और उ ह मेरी आ ा सुनाओ। उनसे कहो क वे तुर त राजसूय य के लए कर दे ने
के लए यहां आ जाएं। जनादन हंस क बात सुनकर हंसा और ा रका के लए थान
करते ए उसने सोचा क चलो, इस बहाने मुझे तो भगवान् कृ ण के दशन ह गे। वह एक
घोड़े पर सवार होकर ा रका के लए चल दया। उसने हंस को अपना य म समझा
य क उसी के कारण उसे यह अवसर मल रहा था क वह कृ ण के दशन करेगा। उसने
सोचा क कृ ण के दशन करने के बाद मेरी आ मा और भी महत् हो जाएगी। ले कन म
कृ ण से हंस क आ ा कैसे कह पाऊंगा। वहां सब म क ंगा तो लोग मुझे दे खकर हंसगे
ले कन हंस का त और म होने के नाते मुझे कुछ बात कहनी ही पड़गी। म भगवान् के
दशन तो क ं गा। ले कन कह ऐसा न हो क वे मेरे मुख से नकले ए श द सुनकर मुझ
पर अ स हो जाएं।
यह सोचते-सोचते व जनादन ा रका प ंच गया और फर अनुम त लेकर सभा म
प ंचा दया गया वहां उसने बलराम और कृ ण को अपने-अपने आसन पर बैठे ए दे खा।
उसने कहा—हे भो म जनादन नाम का व हंस का त बनकर आपके पास आया ं।
भु ने उसे आसन दया और कहा क इस पर बैठकर आप अपनी बात क हए।
ीकृ ण ने कहा क आप त ह इस लए आप जो भी बात कहगे उसको अ यथा लेने
का ही पैदा नह होता। इस पर जनादन ने कहा क आप ाता ह फर भी अनजान
बन रहे ह। आप मुझ से य कहलवाना चाहते ह। फर भी कसी तरह जनादन ने अपनी
बात कही। उस पर भगवान् कृ ण बोले क हम ड भक के य म चलगे और उसे लवण
दगे। यह सुनकर सब यादव हंसने लगे और भगवान् कृ ण ने सा य क को वहां पर भेजने
का वचार कया।
सा य क के सामने च लाता आ ड भक बोला क या तू नह जानता क भगवान्
शंकर ने हम ब त सारे अ -श दए ह जनसे हमारी र ा होती है। हम तु हारे जैसे
वाल का वध करके अपने पता का राजसूय य कराएंगे। तू तो त है इस लए नह मारा
जा सकता। ले कन जब हम यु भू म म उतरगे तब तुझे भी मार दगे।
यह सुनकर सा य क बोले क तुम चाहे जतनी बक-बक करते रहो, एक-दो- दन म ही
भगवान् कृ ण आ जाएंगे और तुझे मार डालगे। य द म त न होता म ही तु ह मार
डालता। तु ह मेरी श का भी अनुमान नह है और हमारे भगवान् तो ल मी, व लभ,
शंख, च , गदा और पद्म से सुशो भत ह।
इधर सा य क त कम करके ा रका के लए चले तो वहां प ंच कर उ ह ने सारा
वृ ांत सुनाया। इन सारी बात को सुनकर भगवान् कृ ण अपने सेनाप तय को बुलाया
और कहा क आप चतुरं गणी सेना सजाओ। सेना के अ धनायक ने तुरंत उसक आ ा
का पालन कया और यु क तैयारी म लग गए।
थोड़े समय बाद दा क के ारा सजाए गए एक रथ पर ीकृ ण बैठ गए और उ ह ने
अपने श अपने हाथ म ले लए। उनके चलते-चलते ा ण उनक तु त करने लगे।
सूत, मागध और बंद जन क तन करने लगे और वहां चार तरफ यु ओर तु त तथा
वीर व का मला-जुला वातावरण पैदा हो गया। भगवान् ीकृ ण पु कर सरोवर के लए
चल पड़े। वहां आकर उ ह ने पु कर के दशन कए और ड भक के आने क ती ा करते
रहे।
वैश पायन जी ने राजा जनमेजय को बताया क हे राजन्! ड भक भी अपनी सेना
सजाकर पु कर के लए चल दया। उसके आगे भी वकराल शरीर वाले दो भूत चल रहे
थे। उ ह ने अपने गले म ा क माला पहन रखी थी। ड बक के पीछे -पीछे सेना चल
पड़ी। तु ह पता होगा क ड भक क मै ी वच नामक एक दै य से हो गई थी। वच ने
इ को भी हरा दया था। वह वच फर ड भक के साथ हड भ नामक रा स को
लेकर वहां आ गया। उनके पास एक ब त बड़ी सुस जत सेना थी।
हंस और ड भक ने पु कर क ओर कूच कया और जरासंध को भी इस सं ाम क
सूचना द गई। ले कन उसने यु म भाग नह लया। दोन क सेनाएं पर पर यु के लए
तैयार हो ग और दोन ने यु म एक सरे के ह थयार को काटते ए यु करना ार भ
कया। इतना भयंकर यु आ क सै नक क गजन के बीच उनके हाथ-पैर कटने से जो
व न नकलती थी वह मली जा रही थी और पर पर आघात से यह भी पता चल रहा था
क कसके सै नक मर रहे ह। बलशाली रा स अपने वष से बुझे ए बाण का योग
करते थे और इधर यादव उनको काटते ए अपने अ का योग करते थे। इस यु म
मरने वाले यमराज के इं गत पर यमलोक और वगलोक जाते रहे। इसके बाद भगवान्
ीकृ ण ने परा म दखाया और एक तरह से - म यु होने लगा। ीकृ ण
वच से, बलराम जी हंस से, सा य क ड भक से और वसुदेव वड भक से लड़ने लगे
और इसके साथ अ य मह वपूण यादव य से यु करने लगे कुछ समय के उपरांत
भगवान् ीकृ ण ने वच के दय पर ब त तेज हार कया और इसके उ र म वच
ने भी इतना तेज तीर मारा क उनके व से धर क धार नकलने लगी। इस पर ो धत
होकर उ ह ने एक बाण से रथ- वजा व सारथी को मार डाला और वच को भी न ाण
करके पृ वी पर लटा दया। ले कन न ाण होने से पहले वच ने भयंकर यु कया
और उधर सरी ओर हंस और बलभ का यु हो रहा था। उ ह ने भी इस कार एक
सरे पर बाण का हार कया और पर पर आघात करते ए लड़ते रहे। बलराम जी ने
हंस को ब त घायल कर दया और उसे पृ वी पर गरा दया। कुछ दे र बाद वह फर उठा
और यु करने लगा। क तु इसके उ र म बलराम जी ने फर से एक साथ हजार बाण
छोड़े और हंस को क प ंचाया।
ड भक और सा य क का यु भी उतनी ही ती ता से हो रहा था। ड भक ने सा य क
से सा य क को ती बाण से ब धा ले कन इसके उ र म सा य क ने भी हजार बाण से
ड भक पर हार कया।
इस कार इस पर पर यु म कोई कसी से कम होकर सामने नह आ रहा था ले कन
जैसे-जैसे दै य का काल आता रहा वैसे-वैसे उनका वध होता रहा। वड भक का वध
करते ए वसुदेव जी ने ब त ती ग त से उस पर हार करके उसका ाणांत कर दया।
वड भक ने मरने से पूव हजार यादव को खा लया था और पूरी यादव सेना को
श हीन कर दया था। उसने वसुदेव से च लाकर कहा क म तु ह खा जाऊंगा। य क
ई र ने तु ह मेरा भोजन बनाया है। इसी बात के उ र म वसुदेव उ सेन ने उस पर हार
कए। वहां पर बलराम और वड भक म ब त दे र तक यु होता रहा। ले कन बलराम ने
एक घूंसा ऐसा मारा जससे वह मृ यु को ा त हो गया।
हंस और कृ ण के बीच यु म भी यही भयंकरता रही। हंस ड भक गोवधन पवत क
ओर चल दये और फर ीकृ ण सूय दय होने पर वहां प ंच गये और वहां यमुना के
कनारे फर दोन प म यु होने लगा। हंस बार-बार गजन करता आ ीकृ ण तथा
अ य पर आ मण कर रहा था। ु न ने एक बाण मार कर हंस और ड भक को ब ध
दया। इसके उ र म उ ह ने यादव पर तेजी से आ मण कया जससे यादव भागने लगे।
ले कन यादव को भागते ए दे खकर कृ ण और बलराम उनके सामने आकर खड़े ए
और उ ह रोका। व तुत: इस भयंकर यु को दे वता दे ख रहे थे। समय आने पर भगवान्
ीकृ ण ने पांचज य का नाद कया। इस नाद के उ र म हसं और ड भक ने भगवान् पर
शूल फका ले कन ीकृ ण ने रथ से नीचे उतर कर उन दोन को पकड़ कर और घुमाकर
र पवत क ओर फक दया। तब हंस ने कहा क हे ीकृ ण! तुम मेरे य म बाधक य
बनते हो? इस पर ीकृ ण ने उ र दया क का य स प नह होता। भगवान् फर
रथ म बैठ गये। अब इस रथ को सा य क चला रहे थे। थोड़े समय और खेल करने के बाद
ीकृ ण ने हंस से कहा क तु हारी मु नय के शाप से पहले ही मृ यु हो चुक है। अब तो
केवल यह शरीर न होगा। इस कार व भ प म यु करते ए भगवान् ीकृ ण ने
हंस और ड भक को मु द ।
ह रवंश के सुनने का फल
भगवान् वैश पायन जी ने जनमेजय ने पूछा क हे भु यह बताइए क ह रवंश वण
का फल या है? और इसका वाचन करते ए कस दे वता क पूजा करनी चा हए।
उ को सुनकर वैश पायन जी ने कहा क हे राजन्! वग म नवास करने वाले
दे वता भगवान् कृ ण के अवतार व के बाद पुन: अपने लोक को लौट गये। इन सब म नाग,
व ाचर, , स , गृह थ जो भी ह और मनु य भी वे ह रवंश का जाप करते ए पाप
मु हो जाते ह। मनु य को चा हए क वह भ भाव से ह रवंश को सुनकर दान दे और
अपने साम य के अनुसार गाय ध के आ द से ा ण को स कर।
ापूवक दया आ दान कथा के फल को और भी बढ़ा दे ता है।
कथा के समय भ क ापकता और समपण का भाव होना चा हए जससे नरो म
नर नारायण और सर वती क वंदना करते ए ह रवंश का वचन- वण होना चा हए।
भ को कथा वाचक के पास बैठकर कथा सुननी चा हए।
कथा वाचक और भ दोन को जते य होना चा हए।
कथा का थम पारायण के समय वग या ा के लए द वमान ा त होता है और
सरे पारायण पर मनु य दे व लोक म स मा नत होता है। तीसरे पारायण पर वह ादशाह
का फल ा त करता है और उसे हजार वष तक सुख भोगने का अ धकार मलता है।
चौथे पारायण पर बाजपेय य का फल मलता है।
पांचव पारायण का फल गना हो जाता है।
हे राजन्! इस कार अनेक पारायण के बाद मूलत: मनु य धीरे-धीरे उ म से भी उ म
ग त ा त करता है। जो पु ष परम ा त क कामना करते ह उ ह भगवान् व णु क
कथा को व णत करने वाली ु तय को सुनना चा हए।
इन ु तय म महाभारत मुख है। इसम वयं ास जी का कहना है क जो कुछ
भारत म है वह महाभारत म है। इस लए मनु य को चा हए क यह भगवान् का यान करते
ए ह रवंश क कथा सुने और ह रवंश से स ब धत सभी कथा को सुनते ए भगवान्
क शरण म जाये। इससे उसके सारे ःख र ह गे।