आचार्य जगदीश चन्द्र बोस और उनके महान आविष् - कार। - Scientific World

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 10

2/28/2021

Home  Scientist

आचाय जगद श च बोस और उनके महान


आ व कार।
 SHARE:

7  30 नवंबर 2014

Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 1/10
2/28/2021

जब दे श म व ान शोध काय लगभग नह ं के बराबर थे। ऐसी प रि थ तय म जगद श च बोस ने



व ान के े म मौ लक योगदान दया। उस समय तक दे श म इस तरह का काम कसी ने शु तक
नह ं कया था। जगद श च बोस का योगदान दो मह वपण ू े म रहा। पहला उ ह ने बहुत छोट
तरं ग उ प न करने का तर का दखाया और दस
ू रा हे न रक ह ज के अ भ ाह को एक उ नत प दया।

व ान के अन य प थक - आचाय जगद श च बोस

-नवनीत कुमार गु ता

भारत के अनेक वै ा नक ने परू े व व म अपने काय से पहचान बनाई। ऐसे ह वै ा नक म जगद शच बोस का
नाम भी शा मल है । जगद शच बोस को जे.सी. बोस के नाम से भी जाना जाता है । आचाय जे.सी. बोस के समकाल न
मरव नाथ टै गोर, वामी ववेकान द और राजा राम मोहन राय जैसे महान लोग थे। वह समय बौ क ां त का
था। और यह वो समय भी था जब दे श म व ान शोध काय लगभग नह ं के बराबर थे।

ऐसी प रि थ तय म जगद श च बोस ने व ान के े म मौ लक योगदान दया। उस समय तक दे श म इस तरह


का काम कसी ने शु तक नह ं कया था। जगद श च बोस का योगदान दो मह वपण
ू े म रहा। पहला उ ह ने
बहुत छोट तरं ग उ प न करने का तर का दखाया और दस
ू रा हे न रक ह ज के अ भ ाह को एक उ नत प दया।
 
30 नव बर, 1858 को ज म आचाय जे.सी. बोस का बचपन गांव ररौल म गुज़रा, जो अब बां लादे श म है । जब वे छोटे
थे तब उ ह तरह-तरह के क ड़े-मकोड़ और मछ लयां पकड़ने का शौक था। उ ह पानी म रहने वाले सांप को भी पकड़ने
का शौक था। उन सांप को दे खकर उनक बड़ी बहन अ सर डर जाया करती थीं। गांव के बाद अ ययन के लए जगद ष
च बोस कलक ता के सट जे वयस कॉलेज गए।

आचाय जे.सी. बोस कलक ता व व व यालय से नातक और कैि ज के म टन कॉलेज से एम.ए. थे। उ ह ने सन ्
1896 म लंदन व व व यालय से व ान म डॉ टरे ट क उपा ध ा त क थी। जेसी बोस अनेक सं थाओं के
स मा नत सद य रहे । वह सन ् 1920 म रॉयल सोसायट के फैलो चन
ु े गए थे। आचाय जगद शच बोस ने भौ तक
और जीव व ान म मह वपण
ू काय कए। हम मब प से उनके काय को समझने का यास करते ह।
भौ तक म जे.सी. बोस का योगदान:
उ नीसवीं सद के अं तम दन म जे सी बोस के काय ने परू द ु नया म भारत का नाम रोशन कराया। जनवर 1898 म
यह स हुआ क माकनी का बेतार अ भ ाह यानी वायरलेस र सवर (Wireless receiver) जगद श च बोस
वारा आ व का रत था। माकनी ने इसी का एक संशो धत अ भ ाह य उपयोग कया था जो मकर ऑटो कोहे रर था,
िजससे पहल बार अटलां टक महासागर पार बेतार संकेत 1901 म ा त हो सका था। और तभी इ यट
ू ऑफ
इलेि कल ए ड इले ो न स इंजी नयस ने जगद ष च बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ (Wireless Hall
of Fame) म सि म लत कया। तब आचाय जगद श च बोस को माकनी के साथ बेतार संचार के पथ दशक काय के
लए रे डयो का सह आ व कारक माना गया। जेसी बोस के काय का उपयोग आने वाले समय म कया गया। आज का

https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 2/10
2/28/2021

रे डयो, टे ल वजन, रडार, भत


ु ल य संचार रमोट सेि सग, माइ ोवेव ओवन और इंटरनेट, आचाय जगद श च बोस के
कृत ह।

अपने 36व ज म दवस पर उ ह ने एक योग वारा यह दशन कया क लघु व यत


ु चु बक य तरं ग के वारा
संकेत ा त हो सकते ह। उ ह ने पहला दशन सडे सी कॉलेज म कया था और फर कलक ता टाउन हॉल म। अपने
योग वारा जेसी बोस ने बताया था क व यत
ु चु बक य तरं ग कसी सद
ु रू थल तक केवल अंत र के सहारे पहुंच
सकती ह तथा यह तरं ग कसी या का कसी अ य थान पर नयं ण भी कर सकती ह। असल म यह रमोट कं ोल
स टम था।

उसी समय दस
ू र ओर कॉटलै ड के भौ तक व जे स लाक मै सवेल (James Clerk Maxwell) ने अपने ग णतीय
स ा त से स कर दया क व यत
ु चु बक य तंरग होती ह। मै सवेल ने दशाया क व यत
ु चु बक य तरं ग म
व यत
ु ीय और चु बक य े एक दस
ू रे के लंबवत ् व संचरण क दशा म होते ह। सभी कार क व यत
ु चु बक य
ऊजा तरं ग होती ह और तरं ग के समान इनम आविृ त होती है । आविृ त कसी नि चत समय म कसी नि चत ब द ु
से तरं ग के गुज़रने क सं या होती है ।

दलच प बात ये है क व यत
ु चु बक य तरं ग दस
ू र तरं ग से भ न होती ह। व यत
ु चु बक य तरं ग का वाह हर
दशा म हो सकता है जब क व न तरं ग हवा म अनद
ु ै य तरं ग के प म घने और ह के होते हुए चलती ह। वह ं पानी
क तरं ग अनु थ तर के से चलती ह।

मै सवेल क इस मह वपण
ू खोज ने व यत
ु और चु बक व को एक साथ दे खा। फर एक जमन वै ा नक हे न रक
डॉ फ ह ज (Heinrich Rudolf Hertz) िज ह ने पहल बार मै सवेल के स ा त को अपने योग वारा मा णत
कया। उ ह ने दखाया क व यत
ु चु बक य व करण पैदा भी कये जा सकते ह और ा त भी कये जा सकता है । जो
आज रे डयो तरं ग कहलाते है । और िजसे पहले हटिज़यन वे स (Hertzian waves) या ऐथे रक वे स (Etheric
waves) भी कहा जाता था।

ह ज़ ने यह भी दखाया क व यत
ु चु बक य तरं ग काशीय तरं ग क भां त पराव तत और अपव तत होती ह।
ले कन ह ज वारा ा त सबसे छोट तरं गदै य 66 सट मीटर क था। इन तरं ग के काशीय गुण जैसे परावतन,
अपवतन और व
ु ण को मापने के लए ह ज को बहुत बड़े उपकरण का योग करना पड़ता था। ले कन जमनी म
हे न रक ह ज के दशन के सात साल बाद ह एक अनोखा काय हुआ हमारे दे श म हुआ। 

आचाय जे.सी. बोस वो थम यि त थे िज ह ने एक ऐसे यं का नमाण कया जो सू म तरं गे पैदा कर सकती थीं और
जो 25 म लमीटर से 5 म लमीटर तक क थीं और इसी लए उनका यं इतना छोटा था क उसे एक छोटे ब से म कह ं
भी ले जाया जा सकता था। और यह थी सबसे च काने वाल बात य क उस समय माकनी, आ लवर लॉज और अ य
वै ा नक सैकड़ मीटर क तरं गदै य वाल व यत
ु चु बक य तरं ग वारा संकेत संचारण पर शोध काय कर रहे थे।
आचाय जे.सी. बोस ने द ु नया को उस समय एक ब कुल नए तरह क रे डयो तरं ग दखाई जो क 1 सट मीटर से 5
म लमीटर क थी िजसे आज माइ ोवे स या सू म तरं ग कहा जाता है ।
https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 3/10
2/28/2021

हम जानते ह क हमार आंख केवल लाल से नारं गी रं ग तक के तरं गदै य को ह दे ख पाती ह। लाल से परे पे मम
रे डयो तरं ग होती ह और सू म तरं ग भी। बड़ी तरं गदै य वाल रे डयो तरं ग प ृ वी के ऊपर आयनमंडल से टकराकर
वापस आती है और यह कारण है क प ृ वी के एक कोने से दस
ु रे कोने तक तरं ग का पहुंचना स भव हो पाता है , और
िजससे द ु नया भर म रे डयो सारण संभव हो सका। और आचाय जे.सी. बोस ने 1 सट मीटर से 5 म लमीटर तक क
सू म तरं ग पैदा क और जो उ नसवीं शता द के आ खर कुछ साल म उनक कलक ता ि थत योगशाला म हा सल
क गई। खास तौर पर आचाय जे.सी. बोस ने यह दखाया क लघु व यत
ु चु बक य तरं ग एक काश पंज
ु क तरह
पराव तत और अपव तत होती है । उ ह ने व यत
ु चु बक य तरं ग को ु वत भी कर दखाया। आचाय जे.सी. बोस के
म लमीटर तरं ग पर ऐसे अ णी काय ने भारत म योगा मक व ान क आधार शला रखी।

उस समय एक बड़ी सम या व यत
ु चु बक य तरं ग को ा त करने क थी। अभी ये नि चत होना बाक था क तरं ग
को ा त करने का सबसे अ छा हो सकता है । िजस तरह हमार आख काश को दे खने के लए संसच
ू क या डटे टर का
काम करती ह उसी तरह व यत
ु चु बक य व करण को ा त करने के लए भी एक संसच
ू क क ज़ रत होती है ।
आचाय जे.सी. बोस के सामने यह एक सम या थी। सा रत संकेत को ा त करना सन ् 1900 म एक सम या थी। उस
समय डायोड तो था नह ं िजससे संकेत को हण कया जा सके। तो फर इसका समाधान एक अ भ ाह या संस तक
यानी कोहे रर के प म मला जो संकेत का अ भ हण, एि टना से कर सकता था।

अ भ ाह एक ऐसा यं है िजसक सहायता से एि टना वारा रे डयो तरं ग को ा त कया गया। कोहे रर का काम था
क वो एसी रे डयो वे सी स नल को डीसी म इस तरह बदल दे क िजससे एक मोस ट
ं र और इयरफोन काम
करने लगे। अ भ ाह के संचालन का मल
ू आधार था धातु के कण का आपस म एक होना। जब रे डयो आविृ त उन
कण पर डाल जाती है तब व यत
ु धारा का वाह आसान हो जाता है ।

सम या ये थी क अ भ ाह म धारा वाह रे डयाई संकेत के हटने के बाद भी बनी रहती थी। जब क अ भ ाह को


संकेत हटते ह अगले संकेत ा त करने के लए तैयार हो जाना चा हये था। लगातार संकेत ा त होते रह इस लए
अ भ ाह को थोड़ा झटका दे ना पड़ता था। इस सम या को सल
ु झाने के लए 1890 के दौरान ् ां स स भौ तक व
एडुआड ै ल (Edouard branly) ने अ भ ाह का आ व कार कया था। ै ल के बाद सर ऑ लवर लॉज ने अ भ ाह
का एक उ नत प बनाया। ले कन आचाय जे.सी. बोस क नज़र म इसम भी, और बेहतर क गुज़ांईश थी।

अ छे संचार के लए एक अ छे संसच
ू क क ज़ रत होती है । इस लए आचाय जे.सी. बोस ने धातु के कतरन वाले
संसच
ू क क जगह एक कह ं बेहतर पाइरल ि ंग कोहे रर बनाया। इस यं म छोटे -छोटे ि ंग एक दस
ू रे के साथ
पर पर दबाव से ऐसे जड़
ु े ह क जब व यत
ु चु बक य व करण इसक संवेदनशील सतह पर पड़ती ह। तो इस कोहरर
क तरोधक शि त अचानक कम हो जाती है और धारा वाह को धारामापी यानी गै वेनोमीटर म दे खा जा सकता है ।
ि ंग पर ह के दबाव से ह संसच
ू क क द ता बढ़ाई जा सकती है । यह कारण था क ये संसच
ू क ै ल के संसच
ू क से
बेहतर माना गया।

फर आया एक इससे भी उ नत कोहे रर। आचाय जे.सी. बोस ने सोचा तो य ना गैलेना का योग कया जाय। गैलेना
जो लेड स फाइड के ट स होते ह इसके लए ब कुल उ चत सा बत हुए। आचाय जे.सी. बोस ने फर एक जोड़े
https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 4/10
2/28/2021

गैलेना से एक संवेदनशील ‘गैलेना वायंट कॉ टै ट’ संसच


ू क बनाया िजसे रे डयो तरं ग का पहला अधचालक अ भ ाह
माना जाता है । गैलेना का योग व यत
ु चु बक य तरं ग को व यत
ु ीय प द म बदलने के लए कया गया।
व यत
ु ीय प द को एक एयरफोन वारा पन
ु उ पा दत कर सन
ु े जा सकते थे। फर भी आचाय जे.सी. बोस ने
अ भ ाह पर अपना शोधकाय जार रखा और अ ततः एक ऐसा अ भ ाह ा त करने म सफल भी हो गए िजसे बार-
बार झटके नह ं दे ने पड़ते थे। 

इस उ कृ ट वै ा नक यं म धातु क एक छोट याल म पारा भरा होता है जो तेल क पतल परत से ढक होती है ।
िजसे आयरन मकर आयरन कोहे रर कहा गया। इस उपकरण के ऊपर लोहे क एक छोट ड क लटक हुई थी, िजसे
एक पच क मदद से ऊपर नीचे कया जा सकता था और जो तेल क पतल परत से ढके हुए पारे को बस छू पाती थी।
संसच
ू नक या तब होती थी जब रे डयो वे सी स नल, तेल क उस पतल परत को बस इतना ह भेद पाती थी
क धारा वाह था पत हो सके।

ऐसे कोहे रर िजनको झटके नह दे ने पड़ते थे उ ह व थापन कोहे रर कहा गया। और यह वह सम या थी िजसको
आचाय जे.सी. बोस ने द ु नया के लए हल कया। ये खास कोहे रर उन दन के योग होने वाले दस
ू रे अ भ ा हय से
कह ं बेहतर था। और यह वह ऑटो कोहे रर था िजसे एक एक टे लफोन से जोड़कर एक ऐसा व वसनीय मज़बत
ू कोहे रर
बना लया गया। िजसे माकनी ने अपने महासागर पार बेतार संचार म योग कया।
ऐसा नह ं था क इतना कुछ कर लेने के बाद बोस चप
ु चाप बैठ गये। उ ह ने सोचा क यह संकेत अब और यादा दरू तक
य नह ं पहुंच सकता, जैसे े सडे सी कॉलेज से उनके घर तक, जो क एक मील दरू था। ले कन इससे पहले क वो
ऐसा करते उ ह टश एसो सएशन के आमं ण पर इं लैे ड जाना पड़ा जहां उ ह लवरपल ू सेशन म शा मल होना था।

लवरपल
ू म ा त या त से आचाय जे.सी. बोस को फर रॉयल सं थान म ायडे इव नंग ले चर के आमं ण मले।
इ ह ं या यान के दौरान जब जे.सी. बोस ने अपने उपकरण का खल
ु ा दशन कया, तो कई बु जीवी है रान रह गए।
य क उ ह ने अपने आ व कार से यापार करने म कोई च नह ं दखाई।

बोस के एक अमेर क दो त साराबल


ु िज ह मसेज़ ओले बल

(Mrs. Ole Bull) के नाम से भी जाना जाता था उ ह ने बोस को
समझाया-बझ
ु ाया तब वो अपने अ भ ाह गैलेना रसीवर के पेटट
के लये तैयार हो गये। अज दा खल क गयी 30 सत बर 1901
म और पेटट मला 29 माच 1904 म। ले कन बोस ने अपने
अ धकार को मानने से इ कार कया और पेटट क अव ध समा त
होने द । आचाय जे.सी. बोस वारा आ व का रत सू म तरं ग क
तकनीक अगामी दशक म भारत के वभ न े म
सफ़लतापव
ू क योग क गई। 

ले कन तब से अब तक, समय बहुत गज़


ु र चक
ु ा है । रे डयो व ान क इस परं परा को आगे बढ़ाते हुए एक और मेधावी
वै ा नक एस के. म ा ने कलक ता व व व यालय के भौ तक वभाग म शोध काय ार भ कया। ो. एस के. म ा
https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 5/10
2/28/2021

और उनके सहयो गय ने भारत के ऊपर एक आय नत परत का ायो गक पता सन ् 1930 म लगाया और यह योग
कलक ता ि थत भारतीय रा य सारक सेवा के उपकरण और 50 कलोमीटर दरू ि थत ह र घाटा के अ भ ाह यं
के मदद से स भव हो पाया।

आचाय जे.सी. बोस का सू म तरं ग पर अ णी शोध काय लगभग 50 साल तक आगे नह ं बढ़ पाया। फर 1940 के
दशक म ो. एस. के. चटजी और उनके सहयोगय ने भारतीय व ान सं थान बगलु म सू म तरं ग पर एक नई
नज़र डाल । ले कन स चाई यह है क इन सभी के मागदशक आचाय जे.सी. बोस ह थे। िज ह ने ना केवल द ु नया के
लए एक नई राह रौशन क बि क भारत वा सय के लए गव और स मान का एक अनोखा उदाहरण भी पेश कया।

जीव व ान के े म जे.सी. बोस का योगदान:


कलक ता के े सडे सी कॉलेज म भौ तक व ान पढ़ते हुए जगद श च बोस ने एक वै ा नक बनने का नणय
लया। जै वक से लगाव होते हुए भी जगद श च बोस क च भौ तक व ान म बढ़ने लगी और इसका मु य कारण
था सट जे वयस कॉलेज म फादर लैफ के भौ तक व ान के मज़ेदार या यान। ले कन दल ह दल म जैव व ान के
अ ययन क लालसा भी थी। इसी लए जब फैसले का समय आया तो इं लै ड जाते व त डॉ टर पढ़ने क ह सोची।
लंदन म एक ह साल गुज़रा था क उ ह बार-बार बख
ु ार आने लगा। अपने ोफेसर क सलाह पर उ होने डॉ टर क
पढ़ाई छोड़ क ज म दा खला लया और व ान पढ़ने लगे। अ ततः उ ह ने भौ तक को अपने शोध का के ब दु
बनाया य क बोस लॉड रै ले से बहुत भा वत थे। भौ तक व ान म शोध करते हुए आचाय जगद ष च बोस दे खा
क अ य पदाथ और सजीव के यवहार मे कोई न कोई र ता ज़ र है ।

इस कार 19वीं शता द का अ त होते-होते जगद श च बोस क शोध च व यत


ु चु बक य तरं ग से हट कर
जीवन के भौ तक पहलओ
ू ं क ओर होने लगी, िजसे आज जीव भौ तक कहते ह। असल म जीव व ान म उनक च
बचपन से ह थी। इसी कारण बाद म उनका झुकाव जीव भौ तक क ओर हुआ। अगले तीस साल म जगद श च बोस
ने पादपीय को शकाओं पर व यत
ु ीय संकेत के भाव का अ ययन कया। उनके योग इस त य क ओर इशारा कर
रहे थे क स भवत: सभी पादपीय को शकाओं मे उ तेिजत होने क मता होती है । ठं डक, गम , काटे जाने, पष और
व यत
ु ीय उ ीपन के साथ-साथ बाहर नमी के कारण भी पौध म या ि थ तज उ प न हो सकती ह।

असल म इस च तन का आधार था उनके वारा अ भ ाह पर शोध काय। उ ह ने दे खा क अ भ ाह क द ता म


कमी तब आती है जब वो बार-बार संकेत ा त करते करते, उनके अनस
ु ार वे थक जाते थे। और जीव म भी ठ क ऐसा ह
होता है । उ ह ने ऐसे संवेदनशील यं बनाए जो पादप के अ त सू म जै वक याय को भी रकॉड कर सकते थे चाहे
वो याएं भौ तक, रासाय नक, यां क या व यत
ु ीय ह ।

आचाय जगद श च बोस वारा पादप क जै वक याओं पर व यत


ु चु बक य तरं ग के भाव पर शोध काय
आरं भ कया। 1901 से जगद ष च बोस ने पौध पर व यत
ु ीय संकेत के भाव का अ ययन कया और इस काय के
लए िजन पौध का उ ह ने चयन कया वे थे छुई-मई
ु और डे म डयम गाइरस यानी शालपण ।

https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 6/10
2/28/2021

आचाय जगद श च बोस को व वास था क सजीव और नज व के इस मलन म व यत


ु चु बक य तरं ग का एक
वशेष थान है । जगद श च बोस ने कुछ ऐसे पौध का चयन कया जो उ ीपन से पया त पेण उ तेिजत हो सकते
थे। छुई-मई
ु को लाजव ती भी कहते ह, अगर उनक पि तय को छुएं तो वो एक दस
ू रे पर झक
ु ने लगतीं ह। और इस
त या को तकनीक भाषा म पशानव
ु तन कहते ह। िजसने जगद श च बोस को एक गहर सोच म डाल दया।
और वो इस न कष पर पहुंचे क ऐसी त या या- वभव के कारण होती है । इस उपकरण पर काम करते हुए िजसे
सं प दन रकाडर कहा जाता है जगद श च बोस इस न कष पर पहुंचे क क ये पि तयां जब मड़
ु ती ह तो इसका
व यत
ु ीय भाव तन तक भी पहुंचता है और जब यह व यतु ीय संकेत ऊपर और नीचे क दशाओं म चलते ह तो
दस
ू र पि तयां भी मड़
ु ने लगती है और यह दे खये व यत
ु ीय भाव कस तरह एक धातु क बनी एक पतल कलम नम
ु ा
चीज़ से रकाड क जा सकती है ।

आज वै ा नक ने यह सा बत कर दया है क या ि थ तज 20 से 30 म लमीटर त सेके ड क र तार से चलती


है । एक दस
ु रा अ त
ु पौधा शालपण या न इं डयन टे ल ाफ लांट (Indian telegraph plant) यह पौधा अपनी
पि तय म एक अ त ू घम
ु ाव पैदा करता है । यान से दे खने पर इनक छोट पि तय को हम नाचते हुए पाते ह। जैसे
छुईमई
ु के पौधे पर योग कया, वैसे ह आचाय जगद श च बोस ने यह नि चत कया क व यत ु ीय दोलन और
वतः ग त का मेल हम इं डयन टे ल ाफ या डसमो डयम गायरे स म दे ख सकते ह। िजसक वजह से इसक नचल
छोट पि तयां ऊपर से नीचे घम
ु ती ह। आचाय जगद श च बोस ने डसमो डयम गायरे स के व यत
ु ीय पंदन को
जीव के ह य ग त से तल
ु ना करने के लए सं प दन रकाडर का योग कया।
जगद श च बोस ने आगे बताया क पौध म उ ीपन का भाव, टगर पेशर यानी फ ती दबाव और को षकाओं के
फैलाव से जड़
ु ा हुआ है । पौध म वतः ग त के अ ययन के अलावा आचाय जगद श च बोस और भी आ चयच कत
हुए जब उ ह ने पाया क पौध म धीमी ग त से हो रहे वकास को भी रकॉड कया जा सकता है ।

औसतन एक सेके ड म पौधे का एक इचं का एक सौ हज़ारवां ह सा बढ़ता है । तो इसे नापा कैसे जाय? यह व ृ दर
बहुत ह कम है । आचाय जगद श च बोस ने खदु ह एक अ य त संवेद यं बनाया, जो क इस धीमी ग त से हो रह
व ृ को नाप सकता था और उ ह ने उसे े को ाफ (Crescograph) कहा। बोस वारा बनाए गए आरोहमापी यानी
े को ाफ का त प कोलकाता ि थत बोस इंि ट यट
ू (Bose Institute Kolkata) म दे खा जा सकता है । यहां वह

https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 7/10
2/28/2021

व भ न योग के लए पौधे को लगाते थे। यह उपकरण पौधे के व ृ को वतः दस हज़ार गन


ु ा बढ़ाकर रकॉड करने
क मता रखता था। पौधे सीधी रे खा म नह ं बढ़ते। ये टे ढ़े मेढ़े बढ़ते ह। इस लए इस काले कांच के टुकड़े पर बनी
ब दओ
ु ं क लाइन सीधी नह ं बि क टे ढ़ है ।

घषण को कम करने के लए आचाय जगद श च बोस ने कांच के टुकड़े को इस तरह लगाए थे क वो आगे पीछे और

दॉए-बॉए चल सके। उस उपकरण का योग पौध पर तापमान, और काष के भाव के अ ययन के लए भी हुआ।
उ ह ने पौधे क व ृ म ज़हर और व यत
ु ीय वाह का भी असर दे खा। इस उपकरण का दशन परू द ु नया म आचाय
जगद श च बोस ने सन ् 1914 से शु कया।

ऐसे योग जगद श च बोस ने कैि ज और ऑ सफोड मे जब दखाए तो वहां के वै ा नक अचि भत रह गए।
य क द ु नया म कह ं भी कसी ने इससे पहले जीव व ान म ऐसा काय नह कया था। इस संग म एक दलच प
बात हुई, जब जगद श च बोस ने यह दशाना चाहा क पौध म हमार तरह दद का एहसास होता है , उ ह भी तकल फ
होती है , अगर उ हे काटा जाए और अगर उनम जहर डाल दया जाए तो वह मर भी सकते है । 

बहुत सारे वै ा नक और जाने माने जन समह


ू के सम जब जगद श च बोस ने एक पौधे मे ज़हर का एक इंजे शन
लगाया और कहा क अभी आप सभी दे खगे क इस पौधे क म ृ यु कैसे होती है । जगद श च बोस ने योग शु कया,
जहर का इंजे शन भी लगाया ले कन पौधे पर कोई असर नह हुआ। वह परे शान ज र हुए ले कन अपना संयम बरतते
हुये ये कहा क अगर इस ज़हर ले इंजे शन का एक सजीव अथात इस पौधे पर कोई असर नह हुआ तो दस ू रे जानदार
या न मझ
ु पर भी कोई बरु ा भाव नह पड़ेगा। जैसे ह जगद श च बोस खद
ु को इंजे शन लगाने चले तो अचानक
दशक म से एक आदमी खड़ा हुआ और उसने कहा ‘म अपनी हार मानता हूं म टर जगद श च बोस, मने ह जहर क
जगह एक मलते जल
ु ते रं ग का पानी डाल दया था। जगद श च बोस ने फर से योग शु कया और पौधा सभी के
सामने मरु झाने लगा।

पौध म जे. सी. बोस वारा रकॉड कये गए पौध म व ृ क अ भरचना आज आधु नक व ान के त रक से भी स
हो गई है । पौध के व ृ और अ य जै वक याओं पर समय के भाव का अ ययन िजसक बु नयाद जे. सी. बोस ने
डाल थी, आज ोनोबायोलॉजी कह जाती है ।

ोनोबायोलॉजी का व ान जीव पर व भ न कार के जै वक याओं के लया मक सामंज य का ऐसा अ ययन


करती है जो जीव व ान को अ भयां क , वा य और कृ ष से भी जोड़ती है । ऐसी उ कृ ट वै ा नक खोज और
अ ययन के लए जे. सी. बोस को 1920 म रॉयल सोसायट का सद य चन
ु ा गया।

एक दस
ू रा अ ययन े िजसने आचाय जे.सी. बोस को आक षत कया, वह था पौध म जड़ से तने और प ते और
फुि गय तक पानी का ऊपर चढ़ना। दरअसल पौधे जो पानी सोखते ह उसम केवल पानी नह ं बि क अनेक कार के
काबन तथा अकाब नक अवयव भी होते ह। और यह रस का चढ़ाव कहलाता है । और यह कारण है क इस कया को
पानी का चढ़ाव अथात ना कहकर रस का चढ़ाव या रसारोहण कहते ह। जाइलम पौध के एसे ऊ तक ह िजनसे तरल का
बहाव स भव है और यह कारक है तरल का चढाव का। रसारोहण का कारण होता है तरल के बहाव म सकुड़न और
https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 8/10
2/28/2021

फैलाव। इस नाव पी छलावरण को हम माइ ो कोप के ज़ रये पि तय के नीचे छोटे छ के समान दे ख सकते ह।
िज ह टोमेटा कहते ह।

ये अ य त सू म खड़ कयां होती ह जो पौध के अ दर याओं के हसाब से खल


ु ती-ब द होती रहती ह। असल म पौध
म खाना बनाने यानी काश सं लेषण या के लये इ ह ं रं छ या टोमेटा से ऑ सीजन और काबन
डाईऑ साइड का आदान दान होता है । और यह छ जड़ से फु गी तक पानी और मनरल के बहाव को बनाए रखता
है । टोमेटा क इसी या से पौध वारा पानी को नल के अ दर खींचा जाता है । इस या म के शका बल एक अहम
भु मका नभाती है । आचाय जे. सी. बोस का ये मानना क पौध म जै वक ल ण अपने व ष ट ावान प म
अ भ य त होते ह जो क आज वीकृ त के पथ पर अ सर ह।

वड बना ये है क वतमान म हो रहे वकास को जे.सी. बोस ने सौ साल से कह ं पहले दे ख लया था जब क उनके
जीवनकाल म बु जी वय वारा इस त य का वीकार करना क ठन हो रहा था।

1915 म े सडे सी कॉलेज से सेवा नविृ त के प चात जगद श च बोस को अपना शोध काय जार रखने क अनम
ु त
भी मल । धीरे -धीरे अपनी योगशाला को अपने घर पर थाना त रत कर दया जो क व ान महा व यालय के
बगल म था। दो ह साल बाद या न 1917 म अपने घर के उ तर दशा म वो एक शोधशाला था पत करने म सफल
हुए। यह शोध के था उ तर कलक ता म िजसे अब आचाय फु ल च रोड कहा जाता है । बोस इंि ट यट
ु क
थापना 30 नव बर 1917 म हुई। आचाय जगद श च बोस अपने जीवन क अि तम घड़ी तक इस सं था के
नदे शक रहे । उनका दे हा त 1937 म हुआ।

आचाय जे. सी. बोस क तरह बोस इं यट


ू भी व भ न े म वै ा नक शोध काय म संल न है । बोस इं यट
ू म
आज जो कुछ भी हो रहा है उसक क पना आचाय जे. सी. बोस के अथक यास के बना नह ं क जा सकती। उ ह ने ना
केवल दे शवा सय के लए एक नई राह रौशन क बि क आगे वाल पीढ़ के मन म व ान क ललक जगाई।
-X-X-X-X-X-

अ य च चत वै ा नक के बारे म पढ़ने के लए यहां पर ि लक कर।

-X-X-X-X-X-
लेखक प रचय: 
नवनीत कुमार गु ता पछले दस वष से प -प काओं, आकाशवाणी एवं दरू दशन आ द जनसंचार के
व भ न मा यम वारा वै ा नक ि टकोण और पयावरण संर ण जाग कता के लए यासरत
ह। आपक व ान संचार वषयक लगभग एक दजन पु तक का शत हो चक
ु ह तथा इन पर गह

मं ालय के ‘राजीव गांधी ान व ान मौ लक पु तक लेखन परु कार' स हत अनेक परु कार एवं
स मान ा त हो चक
ु े ह। आप व ान संचार के े म कायरत सं था ‘ व ान सार’ से संबं ह।
आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपक कया जा सकता है ।
keywords: jagdish chandra bose in hindi, jagdish chandra bose biography in hindi, jagdish chandra
bose aquarium in hindi, jagdish chandra bose images, jagdish chandra bose crescograph in hindi,
https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 9/10
2/28/2021

jagdish chandra bose nobel prize in hindi, jagadish chandra bose discovery in hindi, jagadish
chandra bose contribution to science, jagdish chandra bose aquarium surat, jagdish chandra bose
photos, jc bose invention in hindi, jc bose biography in hindi, jc bose awards in hindi, jc bose
images, jc bose achievements in hindi, jc bose contribution to physics, jc bose contribution to
zoology, bose institute kolkata in hindi

© 2021 Scientific World


All rights reserved.

https://www.scientificworld.in/2014/11/jc-bose-biography-in-hindi.html 10/10

You might also like