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आचार्य जगदीश चन्द्र बोस और उनके महान आविष् - कार। - Scientific World
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7 30 नवंबर 2014
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2/28/2021
-नवनीत कुमार गु ता
भारत के अनेक वै ा नक ने परू े व व म अपने काय से पहचान बनाई। ऐसे ह वै ा नक म जगद शच बोस का
नाम भी शा मल है । जगद शच बोस को जे.सी. बोस के नाम से भी जाना जाता है । आचाय जे.सी. बोस के समकाल न
मरव नाथ टै गोर, वामी ववेकान द और राजा राम मोहन राय जैसे महान लोग थे। वह समय बौ क ां त का
था। और यह वो समय भी था जब दे श म व ान शोध काय लगभग नह ं के बराबर थे।
आचाय जे.सी. बोस कलक ता व व व यालय से नातक और कैि ज के म टन कॉलेज से एम.ए. थे। उ ह ने सन ्
1896 म लंदन व व व यालय से व ान म डॉ टरे ट क उपा ध ा त क थी। जेसी बोस अनेक सं थाओं के
स मा नत सद य रहे । वह सन ् 1920 म रॉयल सोसायट के फैलो चन
ु े गए थे। आचाय जगद शच बोस ने भौ तक
और जीव व ान म मह वपण
ू काय कए। हम मब प से उनके काय को समझने का यास करते ह।
भौ तक म जे.सी. बोस का योगदान:
उ नीसवीं सद के अं तम दन म जे सी बोस के काय ने परू द ु नया म भारत का नाम रोशन कराया। जनवर 1898 म
यह स हुआ क माकनी का बेतार अ भ ाह यानी वायरलेस र सवर (Wireless receiver) जगद श च बोस
वारा आ व का रत था। माकनी ने इसी का एक संशो धत अ भ ाह य उपयोग कया था जो मकर ऑटो कोहे रर था,
िजससे पहल बार अटलां टक महासागर पार बेतार संकेत 1901 म ा त हो सका था। और तभी इ यट
ू ऑफ
इलेि कल ए ड इले ो न स इंजी नयस ने जगद ष च बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ (Wireless Hall
of Fame) म सि म लत कया। तब आचाय जगद श च बोस को माकनी के साथ बेतार संचार के पथ दशक काय के
लए रे डयो का सह आ व कारक माना गया। जेसी बोस के काय का उपयोग आने वाले समय म कया गया। आज का
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उसी समय दस
ू र ओर कॉटलै ड के भौ तक व जे स लाक मै सवेल (James Clerk Maxwell) ने अपने ग णतीय
स ा त से स कर दया क व यत
ु चु बक य तंरग होती ह। मै सवेल ने दशाया क व यत
ु चु बक य तरं ग म
व यत
ु ीय और चु बक य े एक दस
ू रे के लंबवत ् व संचरण क दशा म होते ह। सभी कार क व यत
ु चु बक य
ऊजा तरं ग होती ह और तरं ग के समान इनम आविृ त होती है । आविृ त कसी नि चत समय म कसी नि चत ब द ु
से तरं ग के गुज़रने क सं या होती है ।
दलच प बात ये है क व यत
ु चु बक य तरं ग दस
ू र तरं ग से भ न होती ह। व यत
ु चु बक य तरं ग का वाह हर
दशा म हो सकता है जब क व न तरं ग हवा म अनद
ु ै य तरं ग के प म घने और ह के होते हुए चलती ह। वह ं पानी
क तरं ग अनु थ तर के से चलती ह।
मै सवेल क इस मह वपण
ू खोज ने व यत
ु और चु बक व को एक साथ दे खा। फर एक जमन वै ा नक हे न रक
डॉ फ ह ज (Heinrich Rudolf Hertz) िज ह ने पहल बार मै सवेल के स ा त को अपने योग वारा मा णत
कया। उ ह ने दखाया क व यत
ु चु बक य व करण पैदा भी कये जा सकते ह और ा त भी कये जा सकता है । जो
आज रे डयो तरं ग कहलाते है । और िजसे पहले हटिज़यन वे स (Hertzian waves) या ऐथे रक वे स (Etheric
waves) भी कहा जाता था।
ह ज़ ने यह भी दखाया क व यत
ु चु बक य तरं ग काशीय तरं ग क भां त पराव तत और अपव तत होती ह।
ले कन ह ज वारा ा त सबसे छोट तरं गदै य 66 सट मीटर क था। इन तरं ग के काशीय गुण जैसे परावतन,
अपवतन और व
ु ण को मापने के लए ह ज को बहुत बड़े उपकरण का योग करना पड़ता था। ले कन जमनी म
हे न रक ह ज के दशन के सात साल बाद ह एक अनोखा काय हुआ हमारे दे श म हुआ।
आचाय जे.सी. बोस वो थम यि त थे िज ह ने एक ऐसे यं का नमाण कया जो सू म तरं गे पैदा कर सकती थीं और
जो 25 म लमीटर से 5 म लमीटर तक क थीं और इसी लए उनका यं इतना छोटा था क उसे एक छोटे ब से म कह ं
भी ले जाया जा सकता था। और यह थी सबसे च काने वाल बात य क उस समय माकनी, आ लवर लॉज और अ य
वै ा नक सैकड़ मीटर क तरं गदै य वाल व यत
ु चु बक य तरं ग वारा संकेत संचारण पर शोध काय कर रहे थे।
आचाय जे.सी. बोस ने द ु नया को उस समय एक ब कुल नए तरह क रे डयो तरं ग दखाई जो क 1 सट मीटर से 5
म लमीटर क थी िजसे आज माइ ोवे स या सू म तरं ग कहा जाता है ।
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हम जानते ह क हमार आंख केवल लाल से नारं गी रं ग तक के तरं गदै य को ह दे ख पाती ह। लाल से परे पे मम
रे डयो तरं ग होती ह और सू म तरं ग भी। बड़ी तरं गदै य वाल रे डयो तरं ग प ृ वी के ऊपर आयनमंडल से टकराकर
वापस आती है और यह कारण है क प ृ वी के एक कोने से दस
ु रे कोने तक तरं ग का पहुंचना स भव हो पाता है , और
िजससे द ु नया भर म रे डयो सारण संभव हो सका। और आचाय जे.सी. बोस ने 1 सट मीटर से 5 म लमीटर तक क
सू म तरं ग पैदा क और जो उ नसवीं शता द के आ खर कुछ साल म उनक कलक ता ि थत योगशाला म हा सल
क गई। खास तौर पर आचाय जे.सी. बोस ने यह दखाया क लघु व यत
ु चु बक य तरं ग एक काश पंज
ु क तरह
पराव तत और अपव तत होती है । उ ह ने व यत
ु चु बक य तरं ग को ु वत भी कर दखाया। आचाय जे.सी. बोस के
म लमीटर तरं ग पर ऐसे अ णी काय ने भारत म योगा मक व ान क आधार शला रखी।
उस समय एक बड़ी सम या व यत
ु चु बक य तरं ग को ा त करने क थी। अभी ये नि चत होना बाक था क तरं ग
को ा त करने का सबसे अ छा हो सकता है । िजस तरह हमार आख काश को दे खने के लए संसच
ू क या डटे टर का
काम करती ह उसी तरह व यत
ु चु बक य व करण को ा त करने के लए भी एक संसच
ू क क ज़ रत होती है ।
आचाय जे.सी. बोस के सामने यह एक सम या थी। सा रत संकेत को ा त करना सन ् 1900 म एक सम या थी। उस
समय डायोड तो था नह ं िजससे संकेत को हण कया जा सके। तो फर इसका समाधान एक अ भ ाह या संस तक
यानी कोहे रर के प म मला जो संकेत का अ भ हण, एि टना से कर सकता था।
अ भ ाह एक ऐसा यं है िजसक सहायता से एि टना वारा रे डयो तरं ग को ा त कया गया। कोहे रर का काम था
क वो एसी रे डयो वे सी स नल को डीसी म इस तरह बदल दे क िजससे एक मोस ट
ं र और इयरफोन काम
करने लगे। अ भ ाह के संचालन का मल
ू आधार था धातु के कण का आपस म एक होना। जब रे डयो आविृ त उन
कण पर डाल जाती है तब व यत
ु धारा का वाह आसान हो जाता है ।
अ छे संचार के लए एक अ छे संसच
ू क क ज़ रत होती है । इस लए आचाय जे.सी. बोस ने धातु के कतरन वाले
संसच
ू क क जगह एक कह ं बेहतर पाइरल ि ंग कोहे रर बनाया। इस यं म छोटे -छोटे ि ंग एक दस
ू रे के साथ
पर पर दबाव से ऐसे जड़
ु े ह क जब व यत
ु चु बक य व करण इसक संवेदनशील सतह पर पड़ती ह। तो इस कोहरर
क तरोधक शि त अचानक कम हो जाती है और धारा वाह को धारामापी यानी गै वेनोमीटर म दे खा जा सकता है ।
ि ंग पर ह के दबाव से ह संसच
ू क क द ता बढ़ाई जा सकती है । यह कारण था क ये संसच
ू क ै ल के संसच
ू क से
बेहतर माना गया।
फर आया एक इससे भी उ नत कोहे रर। आचाय जे.सी. बोस ने सोचा तो य ना गैलेना का योग कया जाय। गैलेना
जो लेड स फाइड के ट स होते ह इसके लए ब कुल उ चत सा बत हुए। आचाय जे.सी. बोस ने फर एक जोड़े
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इस उ कृ ट वै ा नक यं म धातु क एक छोट याल म पारा भरा होता है जो तेल क पतल परत से ढक होती है ।
िजसे आयरन मकर आयरन कोहे रर कहा गया। इस उपकरण के ऊपर लोहे क एक छोट ड क लटक हुई थी, िजसे
एक पच क मदद से ऊपर नीचे कया जा सकता था और जो तेल क पतल परत से ढके हुए पारे को बस छू पाती थी।
संसच
ू नक या तब होती थी जब रे डयो वे सी स नल, तेल क उस पतल परत को बस इतना ह भेद पाती थी
क धारा वाह था पत हो सके।
ऐसे कोहे रर िजनको झटके नह दे ने पड़ते थे उ ह व थापन कोहे रर कहा गया। और यह वह सम या थी िजसको
आचाय जे.सी. बोस ने द ु नया के लए हल कया। ये खास कोहे रर उन दन के योग होने वाले दस
ू रे अ भ ा हय से
कह ं बेहतर था। और यह वह ऑटो कोहे रर था िजसे एक एक टे लफोन से जोड़कर एक ऐसा व वसनीय मज़बत
ू कोहे रर
बना लया गया। िजसे माकनी ने अपने महासागर पार बेतार संचार म योग कया।
ऐसा नह ं था क इतना कुछ कर लेने के बाद बोस चप
ु चाप बैठ गये। उ ह ने सोचा क यह संकेत अब और यादा दरू तक
य नह ं पहुंच सकता, जैसे े सडे सी कॉलेज से उनके घर तक, जो क एक मील दरू था। ले कन इससे पहले क वो
ऐसा करते उ ह टश एसो सएशन के आमं ण पर इं लैे ड जाना पड़ा जहां उ ह लवरपल ू सेशन म शा मल होना था।
लवरपल
ू म ा त या त से आचाय जे.सी. बोस को फर रॉयल सं थान म ायडे इव नंग ले चर के आमं ण मले।
इ ह ं या यान के दौरान जब जे.सी. बोस ने अपने उपकरण का खल
ु ा दशन कया, तो कई बु जीवी है रान रह गए।
य क उ ह ने अपने आ व कार से यापार करने म कोई च नह ं दखाई।
और उनके सहयो गय ने भारत के ऊपर एक आय नत परत का ायो गक पता सन ् 1930 म लगाया और यह योग
कलक ता ि थत भारतीय रा य सारक सेवा के उपकरण और 50 कलोमीटर दरू ि थत ह र घाटा के अ भ ाह यं
के मदद से स भव हो पाया।
आचाय जे.सी. बोस का सू म तरं ग पर अ णी शोध काय लगभग 50 साल तक आगे नह ं बढ़ पाया। फर 1940 के
दशक म ो. एस. के. चटजी और उनके सहयोगय ने भारतीय व ान सं थान बगलु म सू म तरं ग पर एक नई
नज़र डाल । ले कन स चाई यह है क इन सभी के मागदशक आचाय जे.सी. बोस ह थे। िज ह ने ना केवल द ु नया के
लए एक नई राह रौशन क बि क भारत वा सय के लए गव और स मान का एक अनोखा उदाहरण भी पेश कया।
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औसतन एक सेके ड म पौधे का एक इचं का एक सौ हज़ारवां ह सा बढ़ता है । तो इसे नापा कैसे जाय? यह व ृ दर
बहुत ह कम है । आचाय जगद श च बोस ने खदु ह एक अ य त संवेद यं बनाया, जो क इस धीमी ग त से हो रह
व ृ को नाप सकता था और उ ह ने उसे े को ाफ (Crescograph) कहा। बोस वारा बनाए गए आरोहमापी यानी
े को ाफ का त प कोलकाता ि थत बोस इंि ट यट
ू (Bose Institute Kolkata) म दे खा जा सकता है । यहां वह
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घषण को कम करने के लए आचाय जगद श च बोस ने कांच के टुकड़े को इस तरह लगाए थे क वो आगे पीछे और
ं
दॉए-बॉए चल सके। उस उपकरण का योग पौध पर तापमान, और काष के भाव के अ ययन के लए भी हुआ।
उ ह ने पौधे क व ृ म ज़हर और व यत
ु ीय वाह का भी असर दे खा। इस उपकरण का दशन परू द ु नया म आचाय
जगद श च बोस ने सन ् 1914 से शु कया।
ऐसे योग जगद श च बोस ने कैि ज और ऑ सफोड मे जब दखाए तो वहां के वै ा नक अचि भत रह गए।
य क द ु नया म कह ं भी कसी ने इससे पहले जीव व ान म ऐसा काय नह कया था। इस संग म एक दलच प
बात हुई, जब जगद श च बोस ने यह दशाना चाहा क पौध म हमार तरह दद का एहसास होता है , उ ह भी तकल फ
होती है , अगर उ हे काटा जाए और अगर उनम जहर डाल दया जाए तो वह मर भी सकते है ।
पौध म जे. सी. बोस वारा रकॉड कये गए पौध म व ृ क अ भरचना आज आधु नक व ान के त रक से भी स
हो गई है । पौध के व ृ और अ य जै वक याओं पर समय के भाव का अ ययन िजसक बु नयाद जे. सी. बोस ने
डाल थी, आज ोनोबायोलॉजी कह जाती है ।
एक दस
ू रा अ ययन े िजसने आचाय जे.सी. बोस को आक षत कया, वह था पौध म जड़ से तने और प ते और
फुि गय तक पानी का ऊपर चढ़ना। दरअसल पौधे जो पानी सोखते ह उसम केवल पानी नह ं बि क अनेक कार के
काबन तथा अकाब नक अवयव भी होते ह। और यह रस का चढ़ाव कहलाता है । और यह कारण है क इस कया को
पानी का चढ़ाव अथात ना कहकर रस का चढ़ाव या रसारोहण कहते ह। जाइलम पौध के एसे ऊ तक ह िजनसे तरल का
बहाव स भव है और यह कारक है तरल का चढाव का। रसारोहण का कारण होता है तरल के बहाव म सकुड़न और
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फैलाव। इस नाव पी छलावरण को हम माइ ो कोप के ज़ रये पि तय के नीचे छोटे छ के समान दे ख सकते ह।
िज ह टोमेटा कहते ह।
वड बना ये है क वतमान म हो रहे वकास को जे.सी. बोस ने सौ साल से कह ं पहले दे ख लया था जब क उनके
जीवनकाल म बु जी वय वारा इस त य का वीकार करना क ठन हो रहा था।
1915 म े सडे सी कॉलेज से सेवा नविृ त के प चात जगद श च बोस को अपना शोध काय जार रखने क अनम
ु त
भी मल । धीरे -धीरे अपनी योगशाला को अपने घर पर थाना त रत कर दया जो क व ान महा व यालय के
बगल म था। दो ह साल बाद या न 1917 म अपने घर के उ तर दशा म वो एक शोधशाला था पत करने म सफल
हुए। यह शोध के था उ तर कलक ता म िजसे अब आचाय फु ल च रोड कहा जाता है । बोस इंि ट यट
ु क
थापना 30 नव बर 1917 म हुई। आचाय जगद श च बोस अपने जीवन क अि तम घड़ी तक इस सं था के
नदे शक रहे । उनका दे हा त 1937 म हुआ।
-X-X-X-X-X-
लेखक प रचय:
नवनीत कुमार गु ता पछले दस वष से प -प काओं, आकाशवाणी एवं दरू दशन आ द जनसंचार के
व भ न मा यम वारा वै ा नक ि टकोण और पयावरण संर ण जाग कता के लए यासरत
ह। आपक व ान संचार वषयक लगभग एक दजन पु तक का शत हो चक
ु ह तथा इन पर गह
ृ
मं ालय के ‘राजीव गांधी ान व ान मौ लक पु तक लेखन परु कार' स हत अनेक परु कार एवं
स मान ा त हो चक
ु े ह। आप व ान संचार के े म कायरत सं था ‘ व ान सार’ से संबं ह।
आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपक कया जा सकता है ।
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