मिठाईवाला

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िवषय: िहंदी

कक्षा: 7
पाठ: िमठाईवाला
ि ई
लेखक: भगवती प्रसाद वाजपेयी
लेखक पिरचय
लखक
ज म -1111 अक्ट ू बर 1899
अक्टबर
ज म थान- ग्राम मंगलपुर, कानपुर
ि
िनधन- 08 मई ई 1973
कहानी
ह संग्रह – मधुपकर्, िहलोर,
ह , खाली बोतल,,
उपहार, दीपमािलका, बाती और लौ आिद |
इनके अितिरक्त व वे किवता सग्रह,
संग्रह नाटक,
नाटक उप यास
आिद की भी रचना िकए ह |
प्रवेश
पाठ प्रवश
मानवीय िर त पर आधािरत यह एक मािमर्क
कथा हहै | अपनी सतान
संतान खोन
खोने पर िमठाईवाला
सब ब च म अपने ब चे दे खता है | ब चे भी
उसके पास दौड़
दौड़े आत
आते ह | धनी होन
होने पर भी वह
मन के सख ु -चैन और ब च से िमलने वाले
यार के िलए गिलय म मीठी गोिलया,
गोिलयाँ बास
बाँसरी
रु ी
और िखलौने बेचकर उनकी तोतली बोली का
आनंद लता
आनद लेता हहै |
िमठाईवाला
यह पाठ एक फेरीवाले यिक्त
पर आधािरत ह है | वह म द
ृ ल
मदलु
आवाज़ म पुकार- पुकार कर
ब च को कभी िखलौने ल , कभी
मरु िलयाँ, तो कभी िमठाई
बेचतता ह
है | उस
उसके मादक,
द , मधररु
एवं मीठे वर को सुनकर
ब च के स साथ यवितयाँ
ु त भी
िचक के पीछे से झाँकने
लगती त थीं |
ब चे
च पाकर् म खेखलनालना छोड़कर दौड़कर आते आत और
उसे घेर लेते | वह ब च को बड़े प्रेम-से
िखलौन,
िखलौने म ुरली, िमठाई
मरली आिद बचता
बेचता था |
उनकी न हीं-न हीं उँ गिलय से कम पैसे लेकर
भी उ ह ख खशुश करन
करने वाल
वाले िखलौन,
िखलौने ममरली
रु ली आिद
दे दे ता था | लोग उसकी इस उदारता एवं
ब च के प्रित प्रम
प्रेम को दखकर
दे खकर प्रस न होतहोते थ
थे |
राय िवजयबहादरु की प नी रोिहणी को भी
अजीब लगा | जब उसके ब च चे िखलौन
िखलौने खलखेल रह
रहे
थे | वह आ चयर् म पड़ गई | इतने कम दाम
म फरीवाला
फेरीवाला िखलौन
िखलौने क्य बचता बेचता होगा | पर
रोिहणी ने िवशेष यान नहीं िदया |
िफर छह महीने
महीन बाद जब
वही यिक्त मरु िलयाँ बेचता
हु आ आया और ब च को
हआ
कम दाम म मरु ली बेची, तो
रोिहणी को पपन:
ुन: उसपर ककछ
ुछ
संदेह हुआ और मरु लीवाले
की उदारता का कारण
जानने के िलए अधीर हो
िकंतु वह आठ महीन
उठी | िकत महीने
बाद आया |
िमठाईवाले के प म | उसका वही पिरिचत
वर सन ु ते ही रोिहणी ने तरु ं त उसके बारे म
जानने के िलए दादी को उसे रोकने के िलए
कहा तथा वयंं परदेे के पीछेे सेे िमठाई
ि ई का
मोल-भाव करने लगी | बात करने पर पता
चला िकि वह अपनेे नगर का एक प्रिति ि ि ठत
आदमी था | अपनी प नी एवं ब च के गुजर
जानेे के बाद वह कभी-कभी फेरीी लगाता था |
िजससे वह गली के ब च म अपने मत ृ संतान
कीी छिवि देे ख सके | उसकीी क ण कहानीी
सुनकर रोिहणी की आँख म आँसू आ गए |
तभी चु नू, मु नू दौड़कर
ौ आए और औ
रोिहणी से िमठाई माँगने
लगे | उ ह दखकर
लग दे खकर
िमठाईवाले को अपने
खुद के ब च कीी याद
आ गई | वह िमठाई की
दोो पिु ड़या दोन
ो ब च
को दे कर, िबना पैसे
ि
िलए अपनीी मद
ृ ल

आवाज़ म ब च को
पकु ारता हुआ आगेे बढ़
गया |
श दाथर्र्
1. िचक – बाँस की पतली तीिलय का बना परदा
2. छ ज – छत की दीवार से बाहर िनकला भाग
3
3. पलिकत
प ल
ु िकत - प्रस न
4. मादक – नशा पैदा करनेवाला
5
5. मदल
म दृ ल
ु - मीठा
6. सथ ु नी – सलवार या पाजामी
7. एहसान – उपकार
8
8. अचकचाकर – हरानी है रानी स
से
9. नारं गी – संतरे के रं ग–सा
10. असीम – बहुत, िजसकी सीमा न हो
11. हरजा – नकसान
हर ु स
12. प्रिति ठत – स मािनत
13
13. अठखेिलय – उछल-क
अठखिलय उछल कद ूद
14. कोलाहल – शोर
पाठ स
से सीख
इस पाठ के मा यम स से यह ज्ञान प्रा त होता ह है
िक मनु य के जीवन म सख ु और दख ु दोन
आते ह | द
आत दख

ु की पिरि थित म मानव को
धैयर् बनाए रखना चािहए और उस पिरि थित
से िनकलन
स िनकलने का माग मागर् ढ
ढँू ढना
ढना चािहए | िजस
प्रकार इस पाठ म एक प्रिति ठत यिक्त अपने
मन की स सख
ुख-शाित
शांित के िलए फरीवाला
फेरीवाला बनन
बनने म
भी संकोच नहीं करता है |

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