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आ गये यंवद !

केशक बल ! गुफा-गेह !


राजा ने आसन दया। कहा :
"कृतकृय हुआ म तात ! पधारे आप।
भरोसा है अब मझ
ु को
साध आज मेरे जीवन क) पूर होगी !"

लघु संकेत समझ राजा का


गण दौड़े ! लाये असा/य वीणा,
साधक के आगे रख उसको, हट गये।
सभा क) उसुक आँख4
एक बार वीणा को लख, टक गयीं
यंवद के चेहरे पर।

"यह वीणा उतराखंड के 8ग9र-ा:तर से


--घने वन; म4 जहाँ <त करते ह <तचार --
बहुत समय पहले आयी थी।
पूरा तो इ?तहास न जान सके हम :
@क:तु सन
ु ा है
वAक)?तB ने मंCपूत िजस
अ?त ाचीन @करट-तE से इसे गढा ़ था --
उसके कान; म4 हम-Hशखर रहIय कहा करते थे अपने,
कंध; पर बादल सोते थे,
उसक) क9र-शुंड; सी डाल4

हम-वषाB से पूरे वन-यथ


ू ; का कर लेती थीं प9रCाण,
कोटर म4 भालू बसते थे,
केह9र उसके वKकल से कंधे खुजलाने आते थे।
और --सन
ु ा है -- जड़ उसक) जा पँहुची थी पाताल-लोक,
उसक) गंध-वण शीतलता से फण टका नाग वासु@क सोता था।
उसी @करट-तE से वAक)?तB ने
सारा जीवन इसे गढा :़
हठ-साधना यह थी उस साधक क) --
वीणा पूर हुई, साथ साधना, साथ ह जीवन-लला।"

राजा Eके साँस ल बी लेकर @फर बोले :


"मेरे हार गये सब जाने-माने कलाव:त,
सबक) वPया हो गई अकारथ, दपB चूर,
कोई Qानी गुणी आज तक इसे न साध सका।
अब यह असा/य वीणा ह Rयात हो गयी।
पर मेरा अब भी है वSवास
कृTछ-तप वAक)?तB का VयथB नहं था।
वीणा बोलेगी अवSय, पर तभी।
इसे जब सTचा Iवर-HसW गोद म4 लेगा।
तात! यंवद! लो, यह स मख
ु रह त
ु हारे
वAक)?तB क) वीणा,
यह म, यह रानी, भर सभा यह :
सब उदY, पयुB सुक,
जन माC तीZमाण !"
केश-क बल गुफा-गेह ने खोला क बल।
धरती पर चुपचाप [बछाया।
वीणा उस पर रख, पलक मँद
ू कर ाण खींच,
करके णाम,
अIपशB छुअन से छुए तार।

धीरे बोला : "राजन! पर म तो


कलाव:त हूँ नहं, Hश\य, साधक हूँ--
जीवन के अनकहे सय का साZी।
वAक)?तB!
ाचीन @करट-तE!
अHभमि:Cत वीणा!
/यान-माC इनका तो गदगद कर दे ने वाला है ।"

चुप हो गया यंवद।


सभा भी मौन हो रह।

वाPय उठा साधक ने गोद रख Hलया।


धीरे -धीरे झक
ु उस पर, तार; पर मIतक टे क दया।
सभा च@कत थी -- अरे , यंवद ]या सोता है?
केशक बल अथवा होकर पराभत

झुक गया तार पर?
वीणा सचमच
ु ]या है असा/य?
पर उस Iपि:दत स:नाटे म4
मौन यंवद साध रहा था वीणा--
नहं, अपने को शोध रहा था।
सघन ?नवड़ म4 वह अपने को

स^प रहा था उसी @करट-तE को


कौन यंवद है @क दं भ कर
इस अHभमि:Cत काEवाPय के स मुख आवे?
कौन बजावे
यह वीणा जो Iवंय एक जीवन-भर क) साधना रह?
भूल गया था केश-क बल राज-सभा को :

क बल पर अHभमि:Cत एक अकेलेपन म4 डूब गया था


िजसम4 साZी के आगे था
जीवत रह @करट-तE
िजसक) जड़ वासु@क के फण पर थी आधा9रत,
िजसके क:ध; पर बादल सोते थे
और कान म4 िजसके हम8गर कहते थे अपने रहIय।
स बो8धत कर उस तE को, करता था
नीरव एकालाप यंवद।

"ओ वशाल तE!


शत सह` पKलवन-पतझर; ने िजसका ?नत aप सँवारा,
@कतनी बरसात; @कतने खPयोत; ने आरती उतार,
दन भ^रे कर गये गुंज9रत,
रात; म4 bझKल ने
अनथक मंगल-गान सन
ु ाये,
साँझ सवेरे अन8गन
अनची:हे खग-कुल क) मोद-भर c)ड़ा काकHल
डाल-डाल को कँपा गयी--

ओ दघBकाय!
ओ पूरे झारखंड के अYज,
तात, सखा, गE
ु , आdय,
Cाता महTछाय,
ओ Vयाकुल मुख9रत वन-/व?नय; के
व:ृ दगान के मूतB aप,
म तुझे सन
ु ,ँू
दे ख,ूँ /याऊँ
अ?नमेष, Iतfध, संयत, संयुत, ?नवाBक :
कहाँ साहस पाऊँ
छू सकँू तुझे !
तेर काया को छे द, बाँध कर रची गयी वीणा को
@कस IपधाB से
हाथ कर4 आघात
छgनने को तार; से
एक चोट म4 वह सं8चत संगीत िजसे रचने म4
Iवंय न जाने @कतन; के Iपि:दत ाण रचे गये।

"नहं, नहं ! वीणा यह मेर गोद रह है, रहे ,


@क:तु म ह तो
तेर गोद बैठा मोद-भरा बालक हूँ,
तो तE-तात ! सँभाल मुझ,े
मेर हर @कलक
पुलक म4 डूब जाय :

म सन
ु ँ,ू
गन
ु ँ,ू
वIमय से भर आँकू
तेरे अनभ
ु व का एक-एक अ:त:Iवर
तेरे दोलन क) लोर पर झम
ू ूँ म त:मय--
गा तू :
तेर लय पर मेर साँस4
भर4 , पुर4, रत4 , वdाि:त पाय4।
"गा तू !
यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।
@क:तु अंगी, तू अZत, आम-भ9रत,
रस-वद,
तू गा :
मेरे अं8धयारे अंतस म4 आलोक जगा
Iम?ृ त का
dु?त का --
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !

" हाँ मुझे Iमरण है :


बदल -- क^ध -- पितय; पर वषाB बूँद; क) पटापट।
घनी रात म4 महुए का चप
ु चाप टपकना।
च^के खग-शावक क) 8चहुँक।
Hशलाओं को दल
ु ारते वन-झरने के
iत
ु लहरले जल का कल-?ननाद।
कुहर4 म4 छन कर आती
पवBती गाँव के उसव-ढोलक क) थाप।
गड़9रये क) अनमनी बाँसुर।
कठफोड़े का ठे का। फुलसुँघनी क) आतुर फुरकन :
ओस-बूँद क) ढरकन-इतनी कोमल, तरल, @क झरते-झरते
मानो हरHसंगार का फूल बन गयी।
भरे शरद के ताल, लह9रय; क) सरसर-/व?न।
कँू जो क) c4कार। काँद ल बी टjभ क)।
पंख-यु]त सायक-सी हं स-बलाका।
चीड़-वनो म4 ग:ध-अ:ध उ:मद मतंग क) जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-पात का kलुत एकIवर।
bझKल-दादरु , को@कल-चातक क) झंकार पुकार; क) य?त म4
संस?ृ त क) साँय-साँय।

"हाँ मुझे Iमरण है :


दरू पहाड़;-से काले मेघ; क) बाढ़
हा8थय; का मान; 8चंघाड़ रहा हो यथ
ू ।
घरघराहट चढ़ती बहया क)।
रे तीले कगार का 8गरना mप-छपाड़।
झंझा क) फुफकार, तkत,
पेड़; का अररा कर टूट-टूट कर 8गरना।
ओले क) करn चपत।
जमे पाले-ले तनी कटार-सी सख
ू ी घास; क) टूटन।
ऐंठg Hमjी का िIनpध घास म4 धीरे -धीरे 9रसना।
हम-तुषार के फाहे धरती के घाव; को सहलाते चुपचाप।
घाटय; म4 भरती
8गरती चjान; क) गूंज --
काँपती म:i -- अनग
ु ँज
ू -- साँस खोयी-सी,
धीरे -धीरे नीरव।

"मुझे Iमरण है
हर तलहट म4, छोटे पेडो ़ क) ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशओ
ु ं क) नाना[बध आतुर-तkृ त पुकार4 :
गजBन, घुघुरB , चीख, भूख, हु]का, 8च8चयाहट।
कमल-कुमद
ु -पC; पर चोर-पैर iत
ु धावत
जल-पंछg क) चाप।
थाप दादरु क) च@कत छलांग; क)।

प:थी के घोडे क) टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भसो के भार खुर क)।

"मुझे Iमरण है
उझक qZ?तज से
@करण भोर क) पहल
जब तकती है ओस-बूँद को
उस Zण क) सहसा च^क)-सी Hसहरन।
और दप
ु हर म4 जब
घास-फूल अनदे खे bखल जाते ह
मौमाbखयाँ असंRय झम
ू ती करती ह गंज
ु ार --
उस ल बे वलमे Zण का त:iालस ठहराव।
और साँझ को
जब तार; क) तरल कँपकँपी
IपशBहन झरती है --
मानो नभ म4 तरल नयन ठठक)
?न:संRय सवसा यव
ु ती माताओं के आHशवाBद --
उस सि:ध-?नHमष क) पुलकन लयमान।

"मुझे Iमरण है
और 8चC येक
Iतfध, वजrड़त करता है मुझको।
सन
ु ता हूँ म
पर हर Iवर-क पन लेता है मुझको मुझसे सोख --
वाय-ु सा नाद-भरा म उड़ जाता हूँ। ...
मुझे Iमरण है --
पर मुझको म भूल गया हूँ :
सन
ु ता हूँ म --
पर म मुझसे परे , शfद म4 लयमान।

"म नहं, नहं ! म कहं नहं !


ओ रे तE ! ओ वन !
ओ Iवर-सँभार !
नाद-मय संस?ृ त !
ओ रस-kलावन !
मुझे Zमा कर -- भूल अ@कंचनता को मेर --
मझ
ु े ओट दे -- ढँ क ले -- छा ले --
ओ शरtय !
मेरे गँग
ू ेपन को तेरे सोये Iवर-सागर का uवार डुबा ले !
आ, मुझे भला,
तू उतर बीन के तार; म4
अपने से गा
अपने को गा --
अपने खग-कुल को मुख9रत कर

अपनी छाया म4 पले मग


ृ ; क) चौकrड़य; को ताल बाँध,
अपने छायातप, विृ \ट-पवन, पKलव-कुसम
ु न क) लय पर
अपने जीवन-संचय को कर छं दय]
ु त,
अपनी Qा को वाणी दे !
तू गा, तू गा --
तू सि:न8ध पा -- तू खो
तू आ -- तू हो -- तू गा ! तू गा !"

राजा आगे
समा8धIथ संगीतकार का हाथ उठा था --
काँपी थी उँ गHलयाँ।
अलस अँगड़ाई ले कर मानो जाग उठg थी वीणा :
@कलक उठे थे Iवर-Hशश।ु
नीरव पद रखता जाHलक मायावी
सधे कर; से धीरे धीरे धीरे
डाल रहा था जाल हे म तार;-का ।

सहसा वीणा झनझना उठg --


संगीतकार क) आँख; म4 ठं डी पघल uवाला-सी झलक गयी --
रोमांच एक [बजल-सा सबके तन म4 दौड़ गया ।
अवत9रत हुआ संगीत
Iवय भू
िजसम4 सीत है अखंड
vwमा का मौन
अशेष भामय ।

डूब गये सब एक साथ ।


सब अलग-अलग एकाक) पार ?तरे ।
राजा ने अलग सन
ु ा:

"जय दे वी यश:काय
वरमाल Hलये
गाती थी मंगल-गीत,
द:ु दभ
ु ी दरू कहं बजती थी,
राज-मक
ु ु ट सहसा हलका हो आया था, मानो हो फल Hस9रस का
ई\याB, महदाकांZा, Pवेष, चाटुता
सभी पुराने लग
ु ड़े-से झड़ गये, ?नखर आया था जीवन-कांचन
धमB-भाव से िजसे ?नछावर वह कर दे गा ।

रानी ने अलग सन
ु ा:
छँ टती बदल म4 एक क^ध कह गयी --

ु हारे ये मbण-माbणक, कंठहार, पट-वIC,
मेखला @कं@कbण --
सब अंधकार के कण ह ये ! आलोक एक है
kयार अन:य ! उसी क)
वPयुKलता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,
8थरक उसी क) छाती पर उसम4 ?छपकर सो जाती है
आSवIत, सहज वSवास भर ।
रानी
उस एक kयार को साधेगी ।

सबने भी अलग-अलग संगीत सन


ु ा ।
इसको
वह कृपा-वा]य था भओ
ु ं का --
उसक)
आतंक-मुि]त का आSवासन :
इसको
वह भर ?तजोर म4 सोने क) खनक --
उसे
बटुल म4 बहुत दन; के बाद अ:न क) स;धी खश
ु बू ।
@कसी एक को नयी वधू क) सहमी-सी पायल-/व?न ।
@कसी दस
ू रे को Hशशु क) @कलकार ।
एक @कसी को जाल-फँसी मछल क) तड़पन --
एक अपर को चहक मु]त नभ म4 उड़ती 8चrड़या क) ।
एक तीसरे को मंडी क) ठे लमेल, गाहक; क) अIपधाB-भर बोHलयाँ

चौथे को मि:दर मी ताल-यु]त घंटा-/व?न ।


और पाँचव4 को लोहे पर सधे हथौड़े क) सम चोट4
और छठ4 को लंगर पर कसमसा रह नौका पर लहर; क) अवराम थपक ।
बटया पर चमरौधे क) aँधी चाप सातव4 के Hलये --
और आठव4 को कुHलया क) कट म4 ड़ से बहते जल क) छुल-छुल
इसे गमक नjन क) एड़ी के घँघ
ु a क)
उसे युW का ढाल :
इसे सझा-गोधूल क) लघु टुन-टुन --
उसे लय का डमa-नाद ।
इसको जीवन क) पहल अँगड़ाई
पर उसको महाज
ृ भ वकराल काल !
सब डूबे, ?तरे , bझपे, जागे --
ओ रहे वशंवद, Iतfध :
इयता सबक) अलग-अलग जागी,
संघीत हुई,
पा गयी वलय ।

वीणा @फर मूक हो गयी ।


साधु ! साधु ! "
उसने
राजा Hसंहासन से उतरे --
"रानी ने अपBत क) सतलड़ी माल,

हे Iवरिजत ! ध:य ! ध:य ! "

संगीतकार
वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँ क -- मानो
गोद म4 सोये Hशशु को पालने डाल कर मpु धा माँ
हट जाय, दठ से दल
ु ारती --
उठ खड़ा हुआ ।
बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवजBन,
बोला :
"dेय नहं कुछ मेरा :
म तो डूब गया था Iवयं शू:य म4
वीणा के मा/यम से अपने को मने
सब कुछ को स^प दया था --
सन
ु ा आपने जो वह मेरा नहं,
न वीणा का था :
वह तो सब कुछ क) तथता थी
महाशू:य
वह महामौन
अवभाuय, अनाkत, अiवत, अमेय
जो शfदहन
सबम4 गाता है ।"

नमIकार कर मड़
ु ा यंवद केशक बल। लेकर क बल गेह-गफ
ु ा को चला गया ।

उठ गयी सभा । सब अपने-अपने काम लगे ।


यग
ु पलट गया ।
य पाठक ! य; मेर वाणी भी
मौन हुई ।

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