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श्रीवाणदात इत
दोहा-नमो नग्ो शुक्देवर्की करूँ प्रणाम अनन्त ।
तब प्रसाद सरमेदकी, चरएदास दरएन्त ॥१॥
प्रुपोतप परमात्मा, एरण विघ्ावीस |
आदि पुरुष अविचलतुहि,वीहि नवाऊँशीसार॥
कंट्लिया-धर से कहत हैं, अवर सोह जान ।
निहअतर श्वास रहित, दाही को मन आना॥
तह को मन आन, रावदिव सूरत लावें। |
आपाआप विचार, ओर ता शीश सवावों ६ क
चरणद्ास मत फहत है;अगम निगमकी सीख! £
यही वचन वद्यत्नावक्कों, मानों विस्लादीस ॥३॥
3“छ काया मुह सोई, सो मन होगे ।
नहअक्षर रवागा मं, चरणएदालत पत्र जाय ॥
28
4.
बा

चरशदास॑
#-920.8./3%5/5
&04.3.25,5.39%0
बलजोय, संद मददा कहें गधा |
क&दण्दप्श्फाहउचपएएफ्श्प्रशघ्लचपरएश्चएएप्रहतए
वष्जपापपपपशपप्घरण्टज्पर एइकएएएक्‍इए पएच
एप घए।
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द्र् शानह्वरोदय ।

क्षरपक्षरतिह अक्षर एके हविधा नांखों!|


|
३085%5832,05222.5,280.65.2.8.2.05.2.8.44.0.42.35-3.8.02.0.02555%& 525:/5

जब दरशे एद्ट्टी एक, बेप यह सबेतिद्वारों ।-!


डालपात फूलफुल मत्त, शो सभी निहारों ॥४॥!
कुण्दालिया-श्वासासा सोह भयो सोह सी ३»
7२। >“सं रशे भयी स|धीं करो विचार । साथी
4 रो
0 विचार उलट
न्‍ह अपने घर आबी | घट ३ ६
नर हाञअनूप लिमिट कारे तहां समावों ! चारदेव
| मेद्‌रँ हैं गीताका हे जैव । चरणद्ाक्ष लखि
५,

हरा ११ ४७५॥

|।स्त
3५
थे ० _क्राम्यान्‍:
न न्ट्ो
००३4 ) यीम हं,सुब ज्ञाननको ज्ञाठ।
4०
2दही
हि । सिद्द हे,तत्व छुरनका ध्यान ॥६॥
शान! जाप है, अजपा धाह साथ।
रपहंस
जे कोई जाने हैताक्ो मतों अगाधा७॥
दखरोदय साल है, समुझे श्वास उसाष्त । |
घुरी भर्ती तामे लुखे, पवन सुरत मत गास॥८॥
शुकदेव गुरु क्ृपाक्ररी, दियों खरोदय बाद ।
3.75
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ि-.श-:ै०-२-२०३
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है 8 ३8 33 $ $ 4 68 & $$&$$ 3$ & $$ &$$$& ३&& 4&&4॥५। ३35३
ज्ञानस्वरोदय ।
ह0
5

स॒वर्तों यह जानी परी, लाम होयकेहाथ ४६॥


इड़ा पाला सुषमणा, नोड़ी तीन विचार ।
दहिने बायें ससवतले, लखे पारणाधार ॥१०।
पिंगल दहिने झट ६ इड़ा स बाय हाय ।
4 सुषमण इनके पीच है,जब खरवालें दोय॥११-
जब स्वर चालें पिंगला, पृष्य सुय्य दहूँ बात ।
इंडासु वाये अन्न है, चन्द करत प्रकाश ॥१२॥ 6
उदय अस्त [विनडी लखे, विर्णम सुरगमंपिद् ।
पावें वच्वगरणकी;जब वह होवे [सिद्ध ॥ १३ ४
चरणदास तो शक कहतप्रिचर स्वस्पहिवान।
झिर कारजकों चर्रश/चरकों मानुसुजान॥१8॥ +
3७53.

कृष्णएक्ष जवहीं लगे, जाए प्रिला है भाव |


शुक्रपक्ष है चच्धको, यह मिश्रिय क्रजात ४१५४
मल अर इतवार दिन, ओर शर्तीचरलीन
शुभकारजको मिलत हैमरजऊे [दिततील ११६॥
सोमवार शक्कर भलो, दिनबेफर को देख ।
हर छानरुवरोदय |
र4.8.86.8.8.2.44.3.4.4.६8.80.0.6.6.0.4.8.6.4.3.0.0.00.0.0.48.0:3.03.2.50.2.444.4,04.3.8/.

3 चेद्रयोग में सफल हैं,चरणदास कहरेख ॥९७।


२ विधि ओवार विचारि कर, दहिनों वायों अह।.
$ चाणदाघसर जो मिले, गुभकारजप्रदंय ॥१८ा।
: रूष्णुपत्न के आदि ही, तीन विधि लग मात ।
3फिरवर्दा फिर माल है, फिर चन्शाफभान॥१६॥
£ शक्लयक्ष केआदही, तीन विध्य लग व
£ फितरज फिचन्द है. फिल्तज फरार ०
$सूजरो तियि मेंचले, ज्यों तर एकाश |
3 सुद्द देहीको. करनेहे, लाहलाइ हुलास ॥९१॥
'
बरलपक्ष चन्दा चेंढी, परी सह्ट [निहार ।
3 कुत्र आतंद्मंगल %९, देशेक सुखार ॥२२॥
शुक्काक्ष तिथि में चल, जो परी को भाव।
हू वजंश पद कह्े,क इंस करतुहन्।२३॥
$ सत्र का तिथि में चले, जो एखाकों चन्ह ।
छलह करे पीड़ा करे, हैनताप के ढुग्द ॥२४॥
£ऊा बाय सामब, सर वाब के समर
्ए्धपणध्ए एएएएघ्एप्ए५एच्च्एए्,
/, ध्टक्षआऋएद्र्त्ण्क्कत्तप्टएज्दाचटशए ४४ प्ष्प्प्शप आर
जलकिलल
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अजहर
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कक
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चाक
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शानस्वरोद्य |
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28033.0.024.3.4.0.4:43.3303:5.2.8.3.53.265.8.8.5.3.88.8.442.04.3.0.0.0,5.02.5.20.20
27

जो पूंद्धे शशि योगमें, दीनों को परसंग #२५॥


बीचें पीछे दाहिने, छूर मर्ज को राज ।
जोझोई पचे आयकर,तो मनकी शुमक/ज॥२६॥
दाहेना खर जब चलत है, पृद्चे बाय अगर ।
गुक्लपक्ष नह बार है, तो निष्पूस सरसेंग!२७।
जो कोई पंचे आयकर, बैठ दाहनी ओर! ;
चंदंचले सरज नहीं, नहीं काज विधिकीर/ १८१
'जो सूरंज में ध्वर चले, कहे दाहिने आय। ;
4 लग्नवार अरुतिधि गिले,कह कारजह जाय॥१६ ५
जो चन्दा में स्वर चले! कायें प्चे काज।
विधिओ अक्षरबार पिलि, शबकारजकीसाज१०
सात पांच नो तीन गिनि, पद्रह और पचीस |
काज-दचन अध्षर गिने मानुयोगकी इश ॥३ १४ 9
'चार' आठ द्वादशागेने, चोदह' सोलह मीत । |
4. चेहयोग के. सेग है, चरणदात एशजीद ॥३२॥
कर्क मेष तुला मकर, चारों चरती .रोश ः
खो शानस्वरोदय !

चर कारज परद्धाश ॥१३॥


मर
र्ज किकेपिलत,
नया छूटी, चॉथी आओ पद मीत ।
इयठहितभें सपपणा,
+कर पथ
श् सरलता स॒त्द रणजांति३ ४

|


क्र
24393
3 [७5
०्थ वृषकम्भयुत्र, बाय खरे के धग |
जं
जग
बढ
पते ह,धर क्ारज परतग [३५
पी स्थिर करे, नाश्ता आगे तेन |
सा देखे इृष्टितो,जबपावेकर बैल३६
चले, फ्रिदा चारहे वाह ।
ल्ध्य श्र
$ 45%]
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>न्‍्ण्क॥ पल, सर पिद्र लेहि निहार॥१७ |
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व 2६ 8आकाश
जे 4 है; आर तीपरी पौच |
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न प्‌ क पांच ये, करत श्वास मेंगोल ॥३८॥


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८०, हद चले, ओ पीरो रह्ष देख ।
शास मेंसुख निखत कर पेह॥३६॥
| क्ष
दर न्न
ञ्ध्ने दृक चले, लाल वर्ण है बेष ।
ले शाप में,काशदास ओ रेघ४४०॥
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कै.
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3 पृवी चछे, रत रू है ताप्त।
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७२.३४३.४१६
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5
शामस्वरोदय | छः

है|

पोलइ अग॒ल खाप में चरएदाप्तरूह मास १8१॥


हंगे रह है बाय झो, दिखा वाले पोग |
« आग्इ अपन रवात मे. रशु जांह कर जाय॥४१२॥
2
आपका
पक
52

| घर द्नों परत चले, बाहर ना परकाश |


मर हैवास की ऐोहतल आकाश ४ शा
थी के कोश हैं, जो छोड पूछे बात ।
श झरपेँ जो लर बले, कह शरज हे जात ॥
दर
की
।25
कि
व2
0दिछू और आह्श पुति वायु की जो होग।
हिट॥
स्ल्श्र्य
8)
जो०:
कोइपँचे आयकर
शुभक्वारज हि होव।३४॥ £
जल एव पि कान को, वर ऋरज को ना्ि। |
ग्तिवायु चर काज को दाहिने सर के ररहहि४ ६ ।
गेगीः को पंथ कोऊ बेठ बंद की ओर
'442.4६42-4-4.
“/१०३-३३०५७/४:७.३५५०४१२
रे
68.48
+45.8,9.7
पे
23.92.
9

घरदी बाय खर चले, परे, नहीं विधि कीर॥४७)॥


रे
325/ हट

गेगी को परसड़ जो, बाये पंशे आन।


सनवंग्ध मरंज चले, जैविना वह जाल 3 ४८ ३
पहंतू खर सी आपकार, सुन आर हा जाप।
आाथबका
कमा
का यम
-'“२
शानस्थरोदय । # ५ फ-पैटप७०-ऋधाााक,
टन


क्र ०3०» परतढ़वह रोगी ना ठहराय ॥ 8६ ॥
46, रिसों आयक्षार, एंड वहते श्वास ।
49
(:भ
>।

शा
निश्रय
#
करे जानिए. रोगीका नहिं नास५०
आर मो आय कार पैछ वहते १चचछ ।
ते करज जगत $, सफूल होय या उच्च ५१॥
76:79
४39

हते खरप आयदरि, जो2,एंड सुन और ||


तेकारज जगंतके उलट हो हि विधिकोर ५५२॥
या के द)हना; जो कोई प्रण होय |
है]
9
था ले परण आरिही, क|रज कै
शाय्
9
0:
एरए साय० ॥ ५३॥
नोप्‌ एकक[ फल कह तताह जादब सीय।
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(५.३..०५
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4०3७
लस्मय सोई लखे, ब॒रो भी जगहोय॥५४॥
चो०-सक्रान्ति प्रनिमेप विचारे। तादिन
लगे सुध्टी ।निहार ॥ तवहीं खरमें करे विचार।
कि:

चले कृनिसों तत्वानहार ॥ नो वाये खर एप्वी ।


होई। नोकों तत्व कहावे सो ४ देश दुद्ध अरु
समय वदावे | परजा छुख्ली मेह बरसावे ॥ चारा
3 बहुत ठौर को उपजे । नर दही को अन बहु
घझानस्वरोदय । जे ६

4 उपज॥ जल जानेवाय खरमाही । धरती फले ।


मेहंपपोही ॥ आनद्महलसों जग रहे। आप |
तँत॑ दंरश कारेवह ॥ जल घरती दोनों शुभ
भाई । चरणदास शुकदेव बताई ४ तीनि तख |
' का कह विच/रा । सरें जाका भेद निहारा॥
लगे भेष संक्रांदी तवहीं। लगती! घड़ी विचारे |
जबहीं ॥ अग्नितल सस्में जब चाले । गेग ;
दोष॑म परजा हाले ॥ कालपढड़े थोड़ासा बरसे ।
देश मेग़ जा! पावक दुरत ॥ वाततत्वचाल सर
सेग्रा ।जगमयमाव होय झछुदज्न॥ अधकाल /
थोडासा बरसे | वायु कख जो खर में दरें ॥£
।तले आकाश सवाल दोई । मेह न पे अन्त |
न-होई॥ कालपढ़े ठृण उपज नाहीं । तल
अकारा हाइ खर गाहा ॥
दो ०-चेंत महीना मध्यमें, जबहीं पखि होय ।
'शुक्लपक्षतादिनलग, प्राततमय जो होय॥५६॥
२०... शानस्वरोंदय |
30
3433.७,
0440.2.
च६2६0254680803०8.8.0.0.3.335.3.8.30.6402.04.00200

प्रातह ि परिवादों लखें, एथ्वों होय सुजान।


य्‌प्रोपरजा सुल्ीराजा सखी निद्वन 7५७॥
7

3909 रले जो पेंहमे, यही समय की मोत । ;


ही, बवद नीको बीत ॥५८१
॥!
2०.६4का
त हि:न री. वह चन्द्र प्ुत्थाल ।
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ने मर में338
जोनल
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बहसमो सम्ध्यवजाल ५६ ६
कक
निमासी

रे
7
दू;3३

रहि जो सपणचले राज होय उत्याल।


दल ख़त वालों बिनश है, ओर ढाल परनाव ॥६ ०॥
श्ज होय उल्यात पुनि. पढ़े झाल र्थि[स |
री

मेंह नहीं परजा दुसी, जो दाद तच जाकाश ६१


श्वापों में पावक चले, पढे छाल जब जाब। :
रे
भवकलंश हाई दशा 4, पिन फल अन्त ।
काल परजाइती, चलवायु जा तन्त ॥ ६३॥ £
मंक्रायदव आ चंद $॥ दाद बंद लेखाय । ६
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कम
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'जगतंकाज अवकहँतहू, चहसुस ्पे का न्यो|य॥६१॥


६१ प्फए४एपघवघ॒एफप्रतप्घ एपघत््छ
(गर्ररत्एअ धतइज कददपएएचएएडप
का
शानस्वरोदय | ११

' ची०-विवाहदान तीस्थ जो कहें | वृस्तर


एु.पर एव धर बार्ये स्वर में णे सबकीजे।
कट
ऐेंदी पृ्तक जो लिख हीजे +योग अभ्याह
! अरुकीज पीत । आपपवाी कीजेगीत "दीक्षा |
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4५६५०,
५#६२०4-८५
<६क-4०-+६
6,890
३.

8 | ड्स्जौैप
दि वेज # चंडयावाथर बेठे राजे ह
में श्विशयुलि जानो । दिए कारज सबदी |
बवाल ॥ करे इंतेली छणर छापे बग ;
| गुफा बमविहा
कि जाय छोटे बेर ।
गआएइस पशधर है चरद्ंस शुद्धहव
#
१०
28%९-

जशिः
+

28खयोग
नि जा >8)
श्र23]
पिरक्षाज कहांते ।६५॥
ह्वर केकाजये, सो मंदियों बताव।
परधर,6 खर के कहते, जञानसरोदय पाय/६६
न| धटफचछक
ए पड
९?"

7-67
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8


“ #०-लजो बाड़ो करतियों बाई । जाकर
ढ.4.202९-32%
0.20:%०.0-:425%-3#
4:64
0:424-4:4
२७वजन
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सेसक्सम
कप
र 3

अत,
ऊएर वृहि # युद्धवाद एए जीते स्लोह ।
दृहिने स्वर में चाले कोई ॥ भोजन करे करे
.रवाना ::सेथुन:कर्त मानु परवाना ॥ वही लिखे
श्र एप्प उस पक श्द्ए उच्च पद एपए उपचएपए एप्प ४४ एप एएएए उप 9पं
एपप्र
१२ ह शानस्वरोदय | ह
फेज व्यवहार । गज घोड़ा वाहन हथियार! ॥
विधा पढ़े व जा पाधे। प्रन्त्र घिढ़े आ ध्यान
अरब ॥ वंश भवन गबन जो कौजे। अछ
काडू का ऋण जा दाज ॥ ऋण काहपे त जो
मंत्र । ।वंष अर भत उतारन लाग॥चाणद।प्त
उस दउ।वंचारी । ये चर कम भान की भाते॥
३|०-चरकारज का भानु है, सिरकारज चन्द्र ।
अणचलतनचा।हय, तहां होइछ्बुद्धन्द ६८॥
ग।व परानलत धराे, हुधर उधर में मीत |
पषचचत न चालय, कजतहे रणजांत६&६
30650
कं]
जे
थे
26
आठ
छिन्र वीय [छत द।हुने, साध सप्रपणु जाने ।
ढील लगे के नामिले, के कारजड़ी हावि॥७०॥
हाय वेक्षश पांडा कछ जो कई काहजाय

3 पजेत न चालिय, दीनहेतोहिंवताय७ ९
नागढ़र[। सुएुगएचल, के आतग
का ध्यान |
37
अर202%
काय24
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कर,
2022
ता %4कह 40
आब56.
टिशशटशक्प्रएशाशशशपपफशरएए
कप प९
&॥
झानस्वरोदय ! श्र
चक्‍.६3.48.0 &38.8.8.6. &4.&.02.04.3.8.& 6.0..«.4 0.0.0.84.4 0.2.&.04.0.0. 48.34 ७६.७./१

पर उत्तर मत चलो, बाय तर प्रकाश ।


दानिहोय. बहुरे नहीं, आवनकी नहें आश७शे
$ दहिने चलद न चालिये, दर््षिणपश्चितत जानि।
4 जार जाये बहुर नहा, आ। हावे छूछु ०

|
॥ दाहिने सर में जाये के, परब उत्तर गज ।
4 शुभएम्पाते आवदकर सभीहायशु पक्ाज।७ ५॥
बाय खर में जाहये दक्षिण पश्मिमत देश ।
£! सख | आनद मंगल करे, जोरे जाय प्रदेश॥७६
3३2
23.5
82%.

|
ल्‍
हिने . सेदी आयकर, बाय पूछे को ॥
वाय खेर बन्द है, सफल काज नाहहीय७७ ६
वयकसक

5]
नशे ये सेती आयकर, दंहिने प्चे झाय ॥
रु
जे दहिनोंसरवन्द है, कारज अफलबताय॥७८
(|| सः शैतर की चले, कारज पृत्चे कोय ॥
न्छ्

जयांध वांसों कहो, मनसा परण होय७६


प इस
है
>श्न्ठौ बाहर को चलें, दव कोड पद्धे बोर ।
क्ले ऐसे भाषिये, दृहिं कारज विधि क्षोर८०)
अघकऊ
जज
#रजपलपभाज
+-

2बल,
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पद ४री ०
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जिर्त: किएमे वियाजपट 2 की. की न कि 7४ 5
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ज्ञानएचरोद्य । १५

सोलह दिन नशे देनचले,श्वास भाव का ओर


. आंय जान इक मासकी,ज|व जाये दनुछार८०॥
न]

हा टू
मे। भेकंध ते अवश, पॉचतारका जाद।॥|
नोता ।जेह। एक8| कालमेढ्‌ पाहेचान ५६०॥ :
मंद गुरुते] पाइए, गुरु (वन लहाहँ ने ज्ञान । |
'चरएंदाप यो कहते ह. गुरुपर वार प्रात ६१४
45
एक भांति जो रन इन, मनु दं।हेदो होये।
उछयट7
द-क.#॥-७६०७
220.
06
9.50;
.2./2.
4
#.
880
4.9.4%.,/3..3.
8.4.
8

-पएुद्ास दा कहंतहू तर जावादएन दायु॥६२॥


'भाड़। ज[। संपर्ए चल, १(च घृढ| उहराय। !
पंच पड़! सप्लशु बह, तबंहां चर परजा|य&३॥
नहें। चंद नाई सर & नहें। इुषुमछशा बाल।:
मुंच तेती श्वासा चले, घड़ी चार थे काल६४|
'चार दिन के आठ |६न, बारह के ।दुेल बीस।
एच जब चद्ा चले, आँपु जान दृढ़ इथ।५५॥
पेन रातआ तीन ६त, चाल देख आकाश ।
एक 4५ काया रहे, फार काल [विश्व|स ॥६९॥
4 दिन को तो चन्दा चले; चले गत की सर । |
१६ शानसुपरोदय !
'+.3.& 5.0.&.&.40.6.0.2.4.3.3 0.304.& 3 &.2.&.30
७३७६2७3.22.438 .4,2.4.2.8.&.0.%.%+.8.6₹

यह निश्नयक्षरि जानिये! प्राणगवनबहुदूर/६७॥


र॒ाति चले खर चन् में, दिनकों सरजवाल।
एक महीना यों चले, छटे महीना काल ॥९पा॥
जब साधु ऐसी लखे, छठे महीना कांल.।
गही लाधव करे, बेठ गुफ़ा तत्काल ॥६९४
ऊपर छुँचि अपान को, आन अप[न मिल्नाय। |
4 उत्तम करेसमाधिडों ताकी काल ते खाय ३००
पतन पये ज्वाला पचे, वामितले कराह।
रुरणको फ्रारिड,बस अफ्रपुर माहु॥ १०१ ॥
जहां काल पहुँचे नहीं, यपकी होय नत्ास। |
ग्रगनगंढलकी जाय कर, करे उनप्रवीवास १०३
जहा काल दवाई जाल है, छुट पद्चल संताप |
|हैयू उन सनी लान सत, विसेर आपएाआप३०३
तानों बंध लगाव के, या बंये को साध ।
योग सुपुमणाहेचल, देखे खेल अगाघ।१०४॥
|शक्तिजाय शिंवों मिले, जहां होय सतली[न।
टपापापप्पपपपरर्पएशकरफएससस
पप्एशप ण्शप्श्प्
पक एफ्ए्फप
ण्क्ण्श्श
जप्क्ल््छ्श
७ ्ड
पा झानस्वरोदय।
म शक
3 2854343.0.4:3+%:

भहलिंचत जो लगे. जान जान प्रवीस ॥१ ०५१


' आसन पी लगाय कर, सलवम्धन का बोध । £
मठगेहसाधाकर सरत गगनका साध ॥१०६
4 चन्द्र ये दांउई सम करे ठाहों हिंए लगाये |
।पंट्चकाकापकर, शन्याशेखरका जाया १०७॥
।इंडापिंगला साध कर, सपप्रण में कर वास ! £
4 परमज्याद मेल मिल तह पजमन विश्वास १ ०<
ज्ञकसाधन आगे करे तामा सब कछु हाप ।
जवबाह वही करें, काल बचावे पोय 0१०६१
तहश अवस्था याग कर, बढ रह मन जात £
काले वबाब साध ईं,अन्ततमय रण ह दी। १ ३ ० $
पदाअप में लागह, कार यात्रा अम्यात |
4 आंवग दांव कोल जब गगन इल कखे ॥१११
शनह शन३ साधकर, रात प्रश बढ़ावे। £
पैसा जानये ता काशने खाये ॥१ १९ ४६
। गईल साधन मे (किया, गगवभइल की जान | ६
बफ्तश कक एफ ४ पकककल्फ्कप्ररघएच्चं एप्रए5एएघ ०0 कशक एपकादर पजप्रपण जप जप
रु... शानस्परोदय ।
/2804.88.2.083.0.0.8.0.0
4.00 0.83.
.033:0
4.3.0.0.0.00.0.32
0६.0.0.0.4.6.4.
.003.4 ५३

आवत जान कालजव, कहा कर अज्ञान॥११३॥ ६


याग ध्यान कान्हा नह ज्वान अवस्था भोत।
आगम दंख कालकाढ हासकेवह जाता॥११४॥ ६
काबजीते हरसा |मेल, शन्यमहल अस्थान।
आगे।जनतापन 6 ७,अरुण अवस्थाजान ११५
काल अवध बंते जब तब जानि बहूजान।
यागात्राश उतारय ,ले।हुए म|।धज्ाा]य ।११६॥
;
कालजी।ते जगमें रहें, मात न व्यापै ताहि।!
4 दशा द्वारका फारकरजब्चाहु तवजाथ॥११७॥
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23
3

4 प्ृरजमरइल चीरक, याभा त्थामे प्राष्ठ । ६:


सायुन्यमक्त सो३त६,१५ पढ़ |निवोण॥११८॥ |
| रष्णपक्षके अध्यम, दक्षिण होथें जो मान । £
5 झोगी वषु नह, यजाहोयकिआनव११६॥
+.
#रघ73,4%.3
०5-08.
32.33

व/हन्यंपाय हारभाक्ते कर, प्रखती पहिचान | ६.


27
युक7
्तप7 ।वब
२६२२ 7 हु]तद[न॥१२०॥
मुक्त
मूये उत्तायन ले, शुक्लपक्ष के माहि |
छः
3
झानस्परोदय | “हद
कैसी...
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43,848 8.08.8,88.9.8.8.& 8.52, 9-%,220.9,8 8.0.8 7:45

यो काया त्याग्रिये यामें सेशय नाहिं॥१२६१॥ £


मुक्तदाय वहुर नहीं, जीव खोज मीट जाय ।
'बुंदस्मन्दर मिलरहे, हांनिया ना ठहराय॥१२२॥ £
सये दाक्षेिणायन विष, रहे मास पटुजान | £
फ्रउत्तरायन जीतकर, रहे मासपट म|न॥१२३॥ £
दोर। सखरकी शुद्धकर, श्वासा में मन राख। £
।मेद सकोदय पायकर, तय काहुसों माषा।३२ ॥ ६
।जोरंश ऊपर जाइये, दाहेने खर परकाश।
3 जीत दोद हरे नहीं, करेशुक्र ताशु॥१२५॥
इलन की स्वर दाहिना, तेरी दाहैनां होगे। £
०9

जो कोई पहिलेचढ़े.लेतजीतिहेसोय४११६॥ ६
सुषपण बलत न चाय, युद्धइरत सुनभीत । ६
शीश कटाव की फपे, दजन होई जीत॥१२७॥ £
जो बॉय एथिवी चले, चढ़ि आवे कोइ भूप | £
आप बे देंहपेलिये, वाद कहत्हूँ गूप ॥९२८॥ ६
। जल शर्येती सवस् चले,सुनोंकानदे बीर।;
छानस्वरोद्य ।
>६६&2०&&:23434:042220.052.8.08.88484.0.52
28808 20.4.0.04.28 4.8.0676 *
० आन म हो
:सफ्षतर[ज दोनों कर के परतीक ने र॥१२६:
पावक और अहाश था, वाबतत्व जो होंहि।
6
कछ ज्वारज नह काओजय इससे बरज तोह। १ ल्‍
३ दिनों सर जब चलतहे, कहीं जाये जो कोय |
4वीनपांर आगे घरे, सूरजकी दिन होय ॥१६१॥
;बंये सर में जाहये. वांयें पर चार!
४ पेय पग पहिले का, हाय चस्धका बार ॥१३१॥
2 रे जाँडेये, दहिनी उगभर तौन।
३बंयि संग चारढंग, बांयेकर परवीन ॥१३३॥
4 पंश्रवदी के मर्भकों, जा कीह पंचे आय।
लिंक हऊझ वालंकी, जीवे के मस्जाय ॥१३४॥ :
'प्रंदेयां बालक हदिके, जे फाह पृद्ध तय ।
3बाय कहियें छोकरी, दद्विते वेद होय॥ १३५ ॥।
इंहिने खरके चंलत हो, जा पहेँ पृद्ध आय |
'बाकी वंयो सरवले, वलिक दे मरजाय॥9 ३६॥
हानएपरोदय ! श्श्‌
05005 5.0,
877 8.8.3ज2.083.8/2/ 042224083:080.702020 02388

सरके बलत ही, जो पहू पूछे बेग।


ऋ&38220232

बांये. खरके चलत ही. जो वह पूछेबात । |


वाह बंयों चले, वेटी है कुशलात ॥ १३६६ ॥ £
पैंद ब्यांगके चत्त ही। अश्न गंसेंका आये | €
होंय नपुमुछ हीजड़ा, के सझतवासो जाय ॥१४ ०१

लेन प्रीक्ष गषेरी, जो वह एँचे आय।
अच्छा होय जो दासमय,ओबाही विशजाय। ४१
क्षण बाय ध्षण दाहिने, दो स्‍्वर झुषुभण हाय । |
|
पचंतवालेसों कह्टों, झलक उपजेंदय ॥ १४श॥ ।
वायुदतक चेंलद हैं, जो शाह पड आय । ६
'झयहोव बाहुनई।, पट माह [वेल्ंगाब !१४१॥। ः
जा फाह पूछे आवरर, वाकों मे ।क नाई ।
'दहिनों बायीं ससवले साधश्वांप माह १४४ ६
अप्रश्रश्क शक्शक्षक्शफफ कप एच ९४ छरएप एएप्रश्सएएफ्रप उप ह्आस क्उप चर्च 5
हरे शानस्घरोदय ।
.4-40.8-04043.042.0080# ,
सा8.2.402.8.8.23.2.,09208.2.2.4.8.0.04.02.4.3.040443.0

। बंध और जो आयकार, द्व पत्र जो कोई |


4 बंध ओरतो गभे है, वहते स्वर नहिं होह।।१४५
इढा पतला सप्मणा, नाड़ी कहिये तीन ।
4 सरज चन्द्र विचा२$, रहे श्वास लवतीन॥१४६॥ ६
। जले कछुआ सिमठ्कर; आप मांहि समाय |
4 तेपे ज्ञानी श्ासम, रहेंसुरात लबला|य॥१४७॥
। खास वन कोढड्नी, आयु ज्ञान नरलोंय ।
4 बीतज्ञाय श्वापास तरहिं मृतक नरहें।य।।१ ४८॥
इगकीस हजार बाप चले,रात दिनाओं श्वास ।
4 बीमा जैव वरप्त हाय अभि की नाम । १४६॥
॥ अक्लाल मृत्यु कोई मेरे, हेकर भुगते भरत ।.
4 श्वाप्ताजह वीतेप्रमी, तवअति यमदूत ॥१४०७।॥
4.चारों संयम साधकर, थ्ाप्ता युक्ति चलांयु ।
4 अक्रालमत्यु अविनहीं, जवे पूरी आयु॥१५१॥
4 सक्य भोजन कीजिये; रहिये ना पड़सोये।
॥ जलभासपों पीजिये, बहुतबोल मतलाय ॥१५१
क्श्ह्स्छज उप शाइउउा उउश धउतह एघउउ धपक शाउएज इतक पक हए तत
७२तक एक.
झानलल्‍्घरोदय । श्र

| कु०-मोध्षपुक्ति तुमचहतहो,तजो छाम्नाकाम /


मेन इच्छाको मेटकर, भज्नो निरंजन नाम॥
भजों निरंजन नाम, वेह अभ्यात्त ग्रिदावै। ;
' पंचनके तजखाह, आपमे आप पसमोवे ॥ ;
जब छूट भेठी देह जेस के तेपे रहिया।
चरएदासयहमक्ति गरुन हमतों कहिया॥१४३॥
दा०-दंह मर तह अमर, पाखहा हे सोय।
अन्नानी मवकतफिरत ले सोज्ञानों होय१५४॥:
: देह नहीं तू ब्रक्ष हे, अविनाशी निर्वात |;
नित॑ न्यारो तू देंह सो, कप देह सब जान १५७॥
डोलन बोलन सो बना, भरक्षण कर आहार | ;
सखइख भेथुन रोग सब गरमी शीत निहार १५६:
जाति वएए कुलदेह की, मुरत मृरत नाव। ६:
उपज बिनशे देदसों, पांचतत्व को गांव ै॥१४७॥;
पावक पानी वायु है धरती ओर आकाश |
पश्मतल्नके कोट में, आय ढियो तेंदास ॥१४८॥
2४ शानस्वरोदय ।

पंच पचास दह सद्ठे, गुए तो ई सात ।


पठ उप से जान, करतरहत उत्पात १५६॥
जिल्ला इंकी। नर का, जे के इन्द्र कान ।
4 नासा इन्द्री परन छे। १।॥१चा पाहेच|न१ ६ ०॥
दवा सा इन्द्रा व।पु का परावक्ष ड््त्रा नत |
बनक। साथ साधृद।, पद एव छुस्ध चेत॥१६९६१॥
नाह जाए आलकत, पंत प्यास जब होगे ।;
चरणदात पांचा कई,आरनततल ता जय १६ २॥
4 रक्त ।पत फू पारी, (बन्द फगीनों जे
3
|
४३.3...
«2<3.+.-3%..3.

4 चरणदाए पर*।त्तय, पारी सो 3हचान १६४१


4 बाम हा नाड़ी पहुँगम जाबव ओ मास ।
3 परयिदी की परकीत्ति ये, अन्त सनको नाछ-॥
बल करता ,अर धावना, परमाहकलः सझोच | £
4 कह वे सी जएनिए,वायुतल है शो ॥१६५५
इातक
का

दाग क्रोप मद लोम अर; मोह कहते हैंलोग | ः


|नभी पांचोज्ञानए ननित न्यारा हू बोग॥ ६६॥६
शानस्परोद्य ५५.
पा

|पोज-पचीसों एकही, इनके सकल खाव।


$निर विकार तू अहम है. आप आपको पराव१६७
निराकार निरलिप्त तू, देही जान अकार।
आपनि देंही मानमत, यही ज्ञान ततसार१६८॥
मस्तक छेद सक्ष नहां, पाूवक सके न जाए। ।
रे मिटेसों त्‌ नहीं, गुरु गम भेद निहर।१६६॥;
कटे काया यही, बने मिंटें फिर होये ॥ |
जिव आविनाशी: नित्य हे,जाने विरत्ञ[ फ़ोंच )७०
आंख नाक जिहवा कह. लच! जान अरुकादी।
पा. हन्द्रिय ज्ञान हैं, जाने जात तुजाच १७१६
गुदा लिंग मुख तीसरो, हाथ पांव लाख लेंह। |
नो इच्िय कमे हैं, यहसी: झहिये देह॥१७९॥
पृथ्ी काल में ठोर है. सुले जानिये हए।
पितसे में पावक रहे, तयल जानिये क्वर।
लाल रहे अनेक: लोग गोद अहाश!१:9४४ ६
अजाफब हर जाजजपछतटपाहप्रभापकाफाद पपएज चाकूतएत/डत्टाएफफ फट पध दशपादाप शाएएएइ चल
प््क्ता
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2९:९०-३०७०३-२-॥-७
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श्द्द झानस्परोदय !
242७880.0/2४2.4.0 08440%2-47 ५

4 जलको वासा भाल है, लिंग जानिये द्वार |


4 मेधुन कम अहार है, धोलों रंग निहार ॥१७५॥
।पवन नाभि में रहत है, नाप्ता जान जुहार
। हरयो रंग है वायुकी, गन्ध सुगन्ध अहार१७६
4 आकाश शाशम वास है, शखन द्वारें जान ।
।शब्दकशब्दअहारहे,ताहिश्यापपाईच[न
१७७॥
7 कारण सक्षम लिंग है, अरु कहियत अस्थल.।
4 शरीर चारसों जानिये, मेंमरी जड़पल॥१७८॥
4चित पुद्धिमन अहंकारजों अन्त ःकरण सचार ।
4 ज्ञान अग्निर्सोंजारिये, करकरपरोतविचार१ ७६॥
4 शब्दस्पर्श5₹ गन्ध है, अरु कहिये रप्त रूप ।
। देह कस तन्न मात्रा, तू काहियत निहरूप॥१८०
|बिराकार सा हैं अचल, निखासी तू जीव ।
4नरालम्ब निरबेरसों, अजअविनाशीजीव१८१॥
॥बाय कोठा आग्नको, दहिने जल परकाश ।
मनहिरेदय अध्थान हैपवन नामिमेंवरास +८२॥
का
हानस्वहोद्य
3272 0 0घ्‌ह
| 5200

मल कमल॒ंदल चारको, लाल पंखरी रग। ;


गरीसतवासा कियो, बस्सोजाप इका४१८३॥;
'पीतवश पटदल झुपल, नामी तले सेमाल।
पुठसहइंसजप जापिले, बहापवित्रोदाल ॥१८४॥॥
दरशपँखरी को कपल है, नौलवर्ण सो नाम । |
वेष्णुलंद्मीवासा किया, पष्ठसहरुपर याम३८४६
अनहद चक्र दृदय रहे, द्वादश दल अरु रपेत। ;
पट्सइसे जपजापिछ,सों शिवतकजह देव१८६॥
पोटंश दल को कपल है, कृण्ठवात शाशेरुप। ;
जाए लहरुप्तर जह जप, भेद लह अतिगूप॥१८७;
अग्नितक्न दो दल कमल, त्रिकुटीधाम अनृप
जाप॑ सहस्पर जहँजपे, पावज्योति स्वरुप ३८<॥
दंलहजार को कपल है, गग्ननमंडलम वास ।
जापसहस्पर जहँ जंपे,तेज पुंज परक्षाश १<६॥ ; काका
फूचकक्षक्षआा

योग दुक्तिकर खोजले,सरति निरत करचीन । ;


दशप्रकार प्नहद बजे होय जहाँ लवलीन१६०;
२८ प्राइस्वरोदय |
थ ीीीवघ3424332322420095542-544.0५.५.38.32442:4.2-६३.५७४:६४/
५३०८
ढुंइ०-एक मंवर गुल्जास्सी डितिय शेखघनिहो? |
... ण अजटराकी पथ दोल हैसंग्र। |
चाय ताल है छग पांचवे घंटा वाज 4६
छठे लुमुरद्ी नाई तह भेरि जुबालि।2
आठ बजे इुदुमी हिंहसना नोलो.।
दशशव बज पघृघर चरणदास्त सुदलों ५१६१४
दो ०-दशगक्ार अनहदघुरे, जितयोंगी| देलीह ;
ढ्‌
हालत्रय थऊ 2]सतवाथक्े चरशुदाल 244क इद्ाल
नाथ
१९१२
।कया

द्वान पत्र न। दाट्का, दश बाई का जान |


गाए अपन तमा[नहे अरुरुहियत उद्यार १६३
व्यान वायु अर किरडिस, कण बाई जीछ़ ||
नाध धृनजब दवृदत द॒ुश बाई शुजत्‌ १९४: |
देवे। ढार को कद इरउत्ताराह़ी हीच।
१६
नता
१४रह
अल

। १६४||
दा पिंगला सुप॒रणा, फेस+ करेपतितबखीरअनेद् ध।
रते शणायाम के, दीरिय
प्‌ देह घट अंज्वह्१ हट १
नहद्ध्दा | व्‌
9-2.
28%
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»७.७ पएच रु२9९5५.
, शानस्यरोदिय | श््ृ

पूरक क्र कुम्मकू करे, रचक पवन उतार ॥ई


ऐसे आाजायाम के सत्य के अगर ॥१६ 3
पेरती बन्द ज्मांद इर, हुश] पाचुकल शत
पल्तकआए चहेपंकर, करे अबरपुरणोग १६८१
पंच सद्रा साधके, शव घर्की सेद।
।शक्ति चहाँयके; पटचक्कर की और ॥१६६
्दर[ युक्ककि काजिये, केअजगर ध्यान । ;
3.

।आंप विचारय, परावलको ज्ञाव १९००)


पेश्य शरीर है, आह्यण् आ रजपूत ।
बाल्ना हू नहीं, चरशुदास अवृपू३ ६२०१॥
नबीया साझा जानिये, जीव बहा है पिच ।
वस्य


|!
री
273गछुदे छत मिठे, मेपरगादम विचार ०
पाप पुणे आशा तजों, बने और तो थौएँ:।
हायामोीईवेकरि वैलि, ज९ लूअजपराजाप २०६३ क्यध्शक
$.$
है.

आपश्ल्ांग ऑपगे, वुध्यों आपंडी आप 7


जाके एंदत फिर हैसी तू जापी आप ॥२० ४
रथ
कि
आओ
आम
नल
ता
पा
हैतय
हि
3548
3०8 ६8-28.&
६ झानस्वरोदय !
च&383.83.8.44.3.444.408.40.083340..0.3.8-4.4.8.0.63842.64.2.3.04354357

इच्चादुई विय्वारि कोर, क्या ने हो विवा4 ॥ |


त ते औवनमक्त हैं; तजोंमक्तिक्षी आस २०५)
4 पवन भें. आकाश, अग्निवायु्तों होय ।
पावक से पाली बयो, पानी धरती सोयृ॥२०३
परती मिलते खाद हे, खारी सादसा नीर।
अगितचरफरो खादहे, लहों छादएबीर/२०७॥
संह्ष मीठा चरफत, खाए पूर शत होगे ।|
|जर्बहीं तल विचरियें पोचतल् में कोय ॥२०५॥
। स्वाद पाव ओरंग हैं, और ददाई चाल ।
।पाचतलकी परलगह, साधुराव तर्काल॥२०६॥
ैदिरकोनो पक चले धरती ते चोकोर ।
. |झन्यसभाव अकाशर्ेपानी लेक्ेगोल १२१० ;
अग्नितल गुगताप्सी, कही रजोगणुवाय । ४
।क्‍
बानार सतागुए। दामह आर्य भाय २१ १ चात्क
पक"

के

नीर चले जब श्वासभे, रणऊपर चढ़ मत ।


;
बेरीकों शिरक।यिकीर, घरआवे रणजीत॥२१ २६
श्श्स्श्सापा
क्शस्श्श पका
ाशपफतपक् फ्एक्श
ाफ्इ कक४ ४
हहहइए हऋह्घघप्श्शप्रह्क्क श्इ्॒रफ१३7१9५४४७०७०.
शानस्वरोदय । घट

|पृषी के परकाश मेंयुद्धके जो कोई।३॥


430.9344.08550540824:352.,
९३४६७६०83.88333348848883988544

| शोउदलरें वर वरी, हारे वा होय ॥९१


/ अग्नितवके वहतही युद्ध करत मतजाव |£
!हारिहोंग जीतिनहीं अरु आधे तनघाव॥२१४॥;
।त्न आकाशहि जो चले तो वाहीं रहिजाय । |
।रशमांही कायाछुटे घर्नाह देखेआय ४९१४)
जल पुथ्वीके योग में गम रहें से हत। |
|वीयुक्त में छोकी आबर तत कुपत ४१६ ६॥६
4 पृथ्वी तल में गर्म जो बालक हेते हप ।
4घनवस्ता सोइ जानिये लुदर होंयसरुप। ३१७
4 आस्मत्त्व जब चलत है; कमी गे रहिजाय । |
गरम गिरे मादाइुही, हो बता मजाब ॥ 3५
_ वायुतल, स्वर दाहिते करे परुप-जव भोग । :
+ गम रे जो ता समय देशी आवे रोग १११६॥
।अनास, सेयम साधकर दृष्टिश्वासके मा्हि। ।
')हल मेद योंपंहिये, बिन साधे कहुनाहि।९१०॥
रू जशानल्वरोदय ।
१४2:22%5%:50%2.2.8
25.2.50.20.2.6632.68.032.3.3.8.48.2.2.0.3.8.8.

आन पद्म छमायक्रे, एकवर्ष नितसाध।


बे जेट हॉलिल, श्वासा हा आराध ॥६२ १
नामिदापिका माहिइर सोई सो जाएं ।
साई अजगी जाप है,छुटेपुण्य और पाप २२३
गेंद सरोदय बहुत है, सक्षम कह्यो बनाय ।
ताक तमक विचार लेअपनों वित मनलाय ॥
घशाणि टे गिखिर के पुत्र वरे लेन भीत ।
बचन खरोदय ना टरेम्रलीस | रणजीत २२
4 शुकदेव गुरुडी दयासों साधु दयासों जान |
4 चरणदास स्थ॒गीतेने कह्या सरोदय ज्ञान १२५
« कृप्पय-उहरे में ममजन्म नाम रणजीत बखानो ।
हे मुरली को खुतजान जांत दूसर पहिचानो ॥
बाल अवस्थ|माहि वहुरि द्िलीम भायो।
श्मत मिले शकरेव नाम चरणदास घेरायो॥
योग थुक्ति हंरिभक्ति क रे ब्रह्मज्ञान हृढ़ करगद्यों ।
आतमतंत्व विधारि क अजपा में सनिमरनरह्ों ॥
इत्र ओडनलरादय चरणदासक्ृत सम्पूर्णप4
४८ चर सका छा छइ/उप एक एक कप कद; हक ३३११७ २९ भ७₹५६३४६ २७-७२४७+ ७.

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