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श्रीवाणदात इत
दोहा-नमो नग्ो शुक्देवर्की करूँ प्रणाम अनन्त ।
तब प्रसाद सरमेदकी, चरएदास दरएन्त ॥१॥
प्रुपोतप परमात्मा, एरण विघ्ावीस |
आदि पुरुष अविचलतुहि,वीहि नवाऊँशीसार॥
कंट्लिया-धर से कहत हैं, अवर सोह जान ।
निहअतर श्वास रहित, दाही को मन आना॥
तह को मन आन, रावदिव सूरत लावें। |
आपाआप विचार, ओर ता शीश सवावों ६ क
चरणद्ास मत फहत है;अगम निगमकी सीख! £
यही वचन वद्यत्नावक्कों, मानों विस्लादीस ॥३॥
3“छ काया मुह सोई, सो मन होगे ।
नहअक्षर रवागा मं, चरणएदालत पत्र जाय ॥
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शान! जाप है, अजपा धाह साथ।
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जे कोई जाने हैताक्ो मतों अगाधा७॥
दखरोदय साल है, समुझे श्वास उसाष्त । |
घुरी भर्ती तामे लुखे, पवन सुरत मत गास॥८॥
शुकदेव गुरु क्ृपाक्ररी, दियों खरोदय बाद ।
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विधा पढ़े व जा पाधे। प्रन्त्र घिढ़े आ ध्यान
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काडू का ऋण जा दाज ॥ ऋण काहपे त जो
मंत्र । ।वंष अर भत उतारन लाग॥चाणद।प्त
उस दउ।वंचारी । ये चर कम भान की भाते॥
३|०-चरकारज का भानु है, सिरकारज चन्द्र ।
अणचलतनचा।हय, तहां होइछ्बुद्धन्द ६८॥
ग।व परानलत धराे, हुधर उधर में मीत |
पषचचत न चालय, कजतहे रणजांत६&६
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ढील लगे के नामिले, के कारजड़ी हावि॥७०॥
हाय वेक्षश पांडा कछ जो कई काहजाय
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3 पजेत न चालिय, दीनहेतोहिंवताय७ ९
नागढ़र[। सुएुगएचल, के आतग
का ध्यान |
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॥ दाहिने सर में जाये के, परब उत्तर गज ।
4 शुभएम्पाते आवदकर सभीहायशु पक्ाज।७ ५॥
बाय खर में जाहये दक्षिण पश्मिमत देश ।
£! सख | आनद मंगल करे, जोरे जाय प्रदेश॥७६
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नशे ये सेती आयकर, दंहिने प्चे झाय ॥
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जे दहिनोंसरवन्द है, कारज अफलबताय॥७८
(|| सः शैतर की चले, कारज पृत्चे कोय ॥
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ज्ञानएचरोद्य । १५
जो कोई पहिलेचढ़े.लेतजीतिहेसोय४११६॥ ६
सुषपण बलत न चाय, युद्धइरत सुनभीत । ६
शीश कटाव की फपे, दजन होई जीत॥१२७॥ £
जो बॉय एथिवी चले, चढ़ि आवे कोइ भूप | £
आप बे देंहपेलिये, वाद कहत्हूँ गूप ॥९२८॥ ६
। जल शर्येती सवस् चले,सुनोंकानदे बीर।;
छानस्वरोद्य ।
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० आन म हो
:सफ्षतर[ज दोनों कर के परतीक ने र॥१२६:
पावक और अहाश था, वाबतत्व जो होंहि।
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कछ ज्वारज नह काओजय इससे बरज तोह। १ ल्
३ दिनों सर जब चलतहे, कहीं जाये जो कोय |
4वीनपांर आगे घरे, सूरजकी दिन होय ॥१६१॥
;बंये सर में जाहये. वांयें पर चार!
४ पेय पग पहिले का, हाय चस्धका बार ॥१३१॥
2 रे जाँडेये, दहिनी उगभर तौन।
३बंयि संग चारढंग, बांयेकर परवीन ॥१३३॥
4 पंश्रवदी के मर्भकों, जा कीह पंचे आय।
लिंक हऊझ वालंकी, जीवे के मस्जाय ॥१३४॥ :
'प्रंदेयां बालक हदिके, जे फाह पृद्ध तय ।
3बाय कहियें छोकरी, दद्विते वेद होय॥ १३५ ॥।
इंहिने खरके चंलत हो, जा पहेँ पृद्ध आय |
'बाकी वंयो सरवले, वलिक दे मरजाय॥9 ३६॥
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हायामोीईवेकरि वैलि, ज९ लूअजपराजाप २०६३ क्यध्शक
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