सेवापराध और नामापराध

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आ द शंकर वै दक व ा सं ान

सेवापराध और नामापराध
शा म भगवान क पूजा के पाँच कार बताये गये ह-
अ भगमन, उपादान, योग, वा याय और इ या।
 दे वता के ान को साफ करना, लीपना, नमा य हटाना इ या द- ये
सब कम अ भगमन के अ तगत ह।
 ग , पु प, धूप-द पा द पूजासाम ी का सं ह उपादान है।
 इ दे व क आ म प से भावना करना योग है।
 म ाथ का अनुसंधान करते ए जप करना, सू , तो आ द का पाठ
करना, गुण, नाम, लीला आ द का क तन करना, वेदा तशा आ द का
अ यास करना- ये सब वा याय ह।
 व वध उपचार के ारा अपने आरा यदे व क पूजा इ या कहलाती है।
ये पाँच कार क पूजाएँ मश: सा , सामी य, सालो य, सायु य और
सा य मु को दे नवे ाली ह। इन पाँच कार क पूजा म दो कार के
अपराध से बचना पड़ता है। ये दोन अपराध ह - सेवापराध एवं नामापराध।
इनसे बचकर कया गया साधन ही फलदायी होता है। सभी कार क
दे वोपासना म इसका यान रखा जाना चा हये। यहाँ पर हम कु छ मुख
सेवापराध तथा नामापराध क चचा करगे। ‘आचारे ः' के पृ. 175 - 176
पर 32 सेवापराध क चचा है। यहाँ पर हम उ ह को सं ेप म तुत कर रहे
ह।
सेवापराध
यानैवा पा कै वाऽ प गमनं भगव गृहे।।

रभाष: 9044016661
आ द शंकर वै दक व ा सं ान

दे वो सवा सेवा च अ णाम तद तः।


एकह त णाम त पुर ता द णम्।।
उ े च तथाऽशौचे भगव दना दकम्।
पाद सारणं चा े तथा पयङ् कब नम्।।
शयनं भाषणं चैव म याभाषणमेव च।
उ ैभाषा वृथा ज पो रोदना द च व हः।।
न हानु हौ चैव ी वस कृ तभाषणम्।
अ ीलकथनं चैव अधोवायु वमोचनम्।।
क बला तरणं चैव पर न दा पर तु तः।
श ौ गौणोपचार अ नवे दतभ णम्।।
त कालभवानां च फलाद नामनपणम्।
व नयु व श या दानं जना दनः।।
गुरौ मौनं नज तो ं दे वता न दनं तथा।
तमेव णमे ा ो व णु े े (वा शवा द े )े वनेतरान्।। (आचारे ः पृ.
175-176)
अथात्
1. सवारी पर चढ़कर अथवा पैर म खड़ाऊँ या पा का आ द पहनकर
भगवान् के मं दर म जाना।
2. रथया ा, शवरा , ज मा मी आ द उ सव का न करना या उनके
दशन न करना।
रभाष: 9044016661
आ द शंकर वै दक व ा सं ान

3. भगवान् क मू त के दशन करके णाम न करना। अथवा एक हाथ से


णाम करना।
4. अशौच अथवा अशु अव ा म मू त के दशन करना। प र मा करते
समय भगवान् के सामने आकर कु छ न घूमकर फर प र मा करना
अथवा के वल सामने ही प र मा करते रहना।
5. भगवान् के व ह के सामने पैर फै लाकर बैठना अथवा दोन घुटन को
ऊँचा करके उनको हाथ से लपेटकर बैठना।
6. भगवान् के व ह के सामने सोना, भोजन करना, झूठ बोलना, जोर से
बोलना, म बातचीत करना, च लाना, कलह करना, कसी को पीड़ा
दे ना, कसी पर अनु ह करना तथा कसी को न ु र या कठोर वचन
बोलना।
7. भगवान् के व ह के सामने क बल से सारा शरीर ढक लेना, सरे क
न दा करना, सरे क तु त करना तथा अ ील श द बोलना।
8. श रहते ए भी गौण अथात् सामा य उपचार से भगवान् क सेवा -
पूजा करना, भगवान् को नवे दत कये बना कसी भी व तु का खाना-
पीना तथा कसी शाक या फला द के अगले भाग को तोड़कर भगवान्
के ना द लये दे ना।
9. भगवान् के व ह को पीठ दे कर बैठना, उनके व ह के सामने सरे
कसी को भी णाम करना ( सवा आ या मक गु के ), अपने मुख से
अपनी शंसा करना तथा कसी भी अ य दे वता क न दा करना।
10. गु दे व क अ यथना, कु शल - और उनका तवन न करना।।
ीवाराहपुराण म जो सेवापराध बताये गये ह तथा जनके वणन
'वीर म ोदय: पूजा काश:' के पृ. 166 - 187 पर ह, उनम से कु छ क चचा
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान

इस कार है-
1. अँधरे े
म भगवान् के व ह का श करना तथा नयम को न मानकर
व ह का श करना। कु े, ब ली, चूहे अथवा प ी आ द कसी के
भी ारा उ को भगवान् के लये अ पत करना।
2. बाजा (जैसे घंट आ द) या ताली बजाये बना ही म दर के ार को
खोलना, भगवान् को अभ य व तुएँ नवेदन करना, पूजा करते समय
बोलना तथा पूजा करते समय (उसे रोककर) मल याग के लये जाना।
3. ग और पु प चढ़ाने के पहले धूप दे ना, न ष पु प से भगवान् क
पूजा करना, दतवन (दातून) कये बना अथात् बना दाँत को साफ
कये भगवान् के व ह क पूजा या उनका श करना, मैथनु करके
भगवान क पूजा तथा उनके व ह का श करना, रज वला ी और
मुद का श करके भगवान् के व ह क पूजा या उनका श करना।
बना धोया आ व पहनकर या सरे का व पहनकर या मैला व
पहनकर भगवान् के व ह क पूजा या उनका श करना।
4. खाया आ अ पचने से पहले खाकर या पशु-प य के मांस को
खाकर या कसी कार के मादक का सेवन करके या शरीर म
तेल मा लश करके भगवान् के ी व ह क पूजा या उनका श
करना।
5. . म पान करके मं दर म वेश करना अथवा पूजा करना-
म प तु वरारोहे वशे वनं मम।
दशवषसह ा ण द र ो जायते पुनः।।
सुरां पी वा प यो मां तु कदा च पसप त।
इ त अपराधगणनायामु वा ।
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान

य तु भागवतो भू वा कामरागेण मो हतः।


द तोऽ प पबे म ं ाय ं न व ते।। (वी. म. पू. . पृ. 184)
अथात् - भगवान् कहते ह क जो म पान करके उनके मं दर म वेश करता
है वह दस हजार वषातक द र होता है। म पान करके जो उनक पूजा
करता है वह भगवान् का अपराधी है। जो भागवत अथात् भगवान् का भ
होकर अथवा द त होकर काम एवं राग से मो हत होकर म का पान
करता है उसके लये कोई ाय नह होता।

गंगा नान या यमुना नान करने से, भगवान् के नाम का आ य लेकर नाम -
क तन करने से सेवापराध छू ट जाता है। भगवान् के नाम - जप से सारे
अपराध मा हो जाते ह। ‘आचारे ः' के पृ. 176 म प पुराण का एक
ोक इस कार दया गया है-
सह नामपाठा गीतापारायणाद प।
तुलसीपूजाना ा प अपराध नवारणम्।।
अथात् - भगवान् के सह नामपाठ, गीतापारायण अथवा तुलसी क पूजा से
भगवान् व णु क सेवा म होनेवाले अपराध से मु हो जाती है। इसी कार
पंचा र जप, शवसह नाम अथवा शत पाठ से भगवान् शव के
अपराध से मु हो जाती है।
नामापराध
इनक चचा अनेक जैसे प पुराण, वाराहपुराण, आन द रामायण,
ह रभ - वलास तथा नारदमहापुराण म है। भगवान् का नाम - जप
करनेवाल से होने वाले अपराध क सं या दस बतायी गयी है। उदाहरणाथ
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान

गुरोरव ां साधूनां न दा भेदं हरे हरौ।


वेद न दा हरेनामबला पापसमीहनम्।।
अथवादं हरेना न पाष डं नामसं हे।
अलसे ना तके चैव ह रनामोपदे शनम्।।
नाम व मरणं चा प ना यनादरमेव च।
सं यजेद ् रतो व स दोषानेता सुदा णान्।। (नारदमहापुराण पूव. 82 /22 -
24)
अथात्-
1. स पु ष क न दा करना।
2.शव एवं व णु के नाम म अथात् भगवान् के व वध नाम म ऊँच-नीच
क क पना करना।
3. गु का अपमान करना।
4. वेद शा क न दा करना।
5. 'भगवान् के
नाम क जो इतनी म हमा कही गयी है, यह के वल तु तमा है,
असल म इतनी म हमा नह है' - इस कार भगवान् के नाम म अथवाद क
क पना करना।
6. 'भगवान्
के नाम से पाप का नाश होता है, पाप करके नाम लेने से पाप
न हो ही जायगे, पाप हमारा या कर सकते ह?' इस कार भगवान् के नाम
का आ य लेकर नाम के बल पर पाप करना।
7. नाम- जप को य , तप, दान, त आ द शुभ कम के समान मानना।

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आ द शंकर वै दक व ा सं ान

8. ार हत और सुनना न चाहनेवाले को नाम का उपदे श करना।


9. नाम क म हमा सुनकर भी नाम म ी त न करना और
10. 'म' और 'मेरे' के फे र म पड़कर वषयभोग म आस होना।
ये दस नामापराध ह। नामापराध से भी छु टकारा नाम के जप-क तन से ही
मलता है। प पुराण म कहा गया है क-
नामापराधयु ानां नामा येव हर यघम्।
अ व ा त यु ा न ता येवाथकरा ण च।। (प पुराण / ख./25/23)
अथात्- 'नामापराधयु पु ष का पाप नाम ही हरण करता है और नर तर
क तन कये जाने पर वह सारे मनोरथ को पूरा करता है।'
(यह लेख गीता ेस, गोरखपुर के क याण के 'साधनांक', 'आचारे ः' तथा
'वीर म ो. पूजा .' पर आधा रत है।)

रभाष: 9044016661

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