के बल पि ही मिष्ु य िे ज्ञाि-ववज्ञाि के क्षेत्र में सभी उपलब्धधयों को प्राप्त ककया है । परिश्रम के बल पि ही जीवि को सख ु मय बिाया जा सकता है। परिश्रम िहहत व्यब्तत का जीवि दख ु मय होता है । ईश्वि भी परिश्रमी व्यब्तत की ही सहायता किता है । कहा भी गया है - “परिश्रम ही सफलता की कंु जी है ”।
इनतहास साक्षी है कक ब्जि लोगों िे नििं ति परिश्रम
ककया है , वे सफल भी िहे हैं । प्राचीि काल में ऋवि- मुनि नििं ति तपस्या किके ससद्धधयां प्राप्त किते थे।
वैज्ञानिकों िे नििं ति परिश्रम द्वािा अिेक अववष्काि
किके जीवि को सुखमय बिाया है । खखलाडी, असभिेता, धचककत्सक, वैज्ञानिक आहद सभी के सफलता का िाज परिश्रम ही है ।
परिश्रम के बबिा कोई भी उपलब्धध िहीं प्राप्त हो
सकती है । परिश्रम िहहत व्यब्तत का जीवि असभशाप एवं बोझ बि जाता है । मिष्ु य के भाग्य का निमााण उसके परिश्रम से ही होता है । मैधथलीशिण गप्ु त जी िे कहा भी है -
“बिता बस उद्यम ही ववधध है ,
समलती ब्जससे सख ु की निधध है ।“
ववद्याथी के सलए नििं ति परिश्रम औि अभ्यास
नितांत आवश्यक है । जो बच्चे नििं ति परिश्रम किके अध्ययि किते हैं, वे सफलता प्राप्त किते हैं। उिका जीवि सुखमय होता है । ऐसे बच्चे सभी के वप्रय होते हैं। परिश्रम से जी चुिािे वाला ववद्याथी अपिे लक्ष्य से भटक जाता है । संसाि की सभी उपलब्धधयों के पीछे परिश्रम का ही हाथ है । परिश्रम में असंभव को भी संभव कि हदखािे की शब्तत है । मिष्ु य को परिश्रम रूपी अमल् ू य निधध को अपिाकि अपिे जीवि को सख ु मय बिािा चाहहए। सिस सख ु मय जीवि का िाज भी तो परिश्रम में ही निहहत है । कहा भी गया है - “ब्जसिे परिश्रम ककया, उसका जीवि सफल िहा।”