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िशव छ पती िश ण सं था

संत तु काराम नॅ शनल मॉडे ल ू ल,लातूर


क ा9 श भाग 1 पाठ 1 ''दु ः ख का अिधकार

पाठ घटक

1. ावना

2 .पाठ का सार

3.पाठ के मह पूण िबंदु

4.पाठ के पा ो के नाम

5.अवधारणा न ा

6.चलिच

7.प रयोजन काय

8.सं दभ

9. संच

पा पु क के

परी ा के ि कोण से मह पूण

1. ावना -
इस कहानी म उस बुिढ़या के िवषय म बताया गया है , िजसका बे टा मर गया है ।
धन के अभाव म बेटे की मृ ु के अगले िदन ही वृ ा को बाज़ार म खरबूज़े बे चने
आना पड़ता है । बाज़ार के लोग उसकी मजबू री को अनदे खा करते ए, उस वृ ा
को ब त भला-बु रा बोलते ह। कोई घृ णा से थूककर बे हया कह रहा था, कोई
उसकी नीयत को दोष दे रहा था,कोई रोटी के टु कड़े पर जान दे ने वाली कहता,
कोई कहता इसके िलए र ों का कोई मतलब नही ं है , परचून वाला कहता,यह
धम ईमान िबगाड़कर अंधेर मचा रही है , इसका खरबू ज़े बेचना सामािजक
अपराध है। इन िदनों कोई भी उसका सामान छूना नही ं चाहता था। यिद उसके
पास पैसे होते, तो वह कभी भी सू तक म सौदा बेचने बाज़ार नही ं जाती।
दू सरी ओर लेखक के पड़ोस म एक सं ां त मिहला रहती थी िजसके बे टे की मृ ु
हो गई थी। उस मिहला का पास शोक मनाने का असीिमत समय था। अढ़ाई मास
से पलंग पर थी,डॉ र िसरहाने बैठा रहता था।
ले खक दोनों की तुलना करना चाहता था। इस कहानी से है िक दु ख मनाने
का अिधकार भी उनके पास है, िजनके पास पै सा हो। िनधन अपने दु ख को
अपने मन म ही रख लेते ह। वह इसे कट नही ं कर पाते। इसिलए इस पाठ का
शीषक दु ः ख का अिधकार साथक है।

लेखक प रचय
लेखक - यशपाल
ज - 1903

2 .पाठ का सार -
लेखक के अनुसार मनु ों का पहनावा ही समाज म मनु का अिधकार और
उसका दज़ा िनि त करता है। पर ु लेखक कहता है िक समाज म कभी ऐसी भी
प र थित आ जाती है िक हम समाज के ऊँचे वग के लोग छोटे वग की भावनाओं
को समझना चाहते ह पर ु उस समय समाज म उन ऊँचे वग के लोगों का पहनावा
ही उनकी इस भावना म बाधा बन जाती है ।
लेखक अपने ारा अनुभव िकये गए एक का वणन करता आ कहता है िक
एक िदन लेखक ने बाज़ार म, फुटपाथ पर कुछ खरबूजों को टोकरी म और कुछ
को ज़मीन पर रखे ए दे खा। खरबूजों के नज़दीक ही एक ढलती उ की औरत
बैठी रो रही थी।
लेखक कहता है िक खरबूज़े तो बेचने के िलए ही रखे गए थे, पर ु उ खरीदने के
िलए कोई कैसे आगे बढ़ता? ोंिक खरबूजों को बेचने वाली औरत ने तो कपड़े म
अपना मुँह िछपाया आ था और उसने अपने िसर को घुटनों पर रखा आ था और
वह बुरी तरह से िबलख - िबलख कर रो रही थी। लेखक कहता है िक उस औरत
का रोना दे खकर लेखक के मन म दु ः ख की अनुभूित हो रही थी, पर ु उसके रोने
का कारण जानने का उपाय लेखक को समझ नही ं आ रहा था ोंिक फुटपाथ पर
उस औरत के नज़दीक बैठ सकने म लेखक का पहनावा लेखक के िलए सम ा
खड़ी कर रहा था ोंिक ले खक ऊँचे वग का था और वह औरत छोटे वग की थी।
लेखक कहता है िक उस औरत को इस अव था म दे ख कर एक आदमी ने नफरत
से एक तरफ़ थूकते ए कहा िक दे खो ा ज़माना है ! जवान लड़के को मरे ए
अभी पू रा िदन नही ं बीता और यह बे शम दु कान लगा के बैठी है। वही ं खड़े दू सरे
साहब अपनी दाढ़ी खुजाते ए कह रहे थे िक अरे , जैसा इरादा होता है अ ा भी
वैसा ही लाभ दे ता है।
लेखक कहता है िक सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने मािचस की तीली से
कान खुजाते ए कहा अरे , इन छोटे वग के लोगों का ा है? इनके िलए िसफ रोटी
ही सबसे ादा मह पूण होती है ।
इनके िलए बेटा-बे टी, पित-प ी, धम-ईमान सब रोटी का टु कड़ा है । इन छोटे लोगों
के िलए कोई भी र ा रोटी नही ं है । जब लेखक को उस औरत के बारे म जानने
की इ ा ई तो लेखक ने वहाँ पास-पड़ोस की दु कानों से उस औरत के बारे म
पू छा और पूछने पर पता लगा िक उसका ते ईस साल का एक जवान लड़का था।
घर म उस औरत की ब और पोता-पोती ह। उस औरत का लड़का शहर के पास
डे ढ़ बीघा भर ज़मीन म स याँ उगाने का काम करके प रवार का पालन पोषण
करता था। लड़का परसो ं सुबह अँधेरे म ही बेलों म से पके खरबूजे चु न रहा था।
खरबूजे चुनते ए उसका पैर दो खेतों की गीली सीमा पर आराम करते ए एक
साँ प पर पड़ गया।
साँ प ने लड़के को डस िलया।लेखक कहता है िक जब उस औरत के लड़के को साँप
ने डँ सा तो उस लड़के की यह बुिढ़या माँ पागलों की तरह भाग कर झाड़-फूँक करने
वाले को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना आ। नागदे व की पूजा भी ई।
लेखक कहता है िक पूजा के िलए दान-दि णा तो चािहए ही होती है । उस औरत
के घर म जो कुछ आटा और अनाज था वह उसने दान-दि णा म दे िदया। पर
भगवाना जो एक बार चुप आ तो िफर न बोला। लेखक कहता है िक िज़ंदा आदमी
नंगा भी रह सकता है, परं तु मुद को नंगा कैसे िवदा िकया जा सकता है ? उसके िलए
तो बजाज की दु कान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके िलए उस लड़के की
माँ के हाथों के ज़ेवर ही ों न िबक जाएँ ।
लेखक कहता है की भगवाना तो परलोक चला गया और घर म जो कुछ भी अनाज
और पै से थे वह सब उसके अ म सं ार करने म लग गए। ले खक कहता है िक
बाप नही ं रहा तो ा, लड़के सुबह उठते ही भूख से िबलिबलाने लग गए। अब बे टे
के िबना बुिढ़या को दु अ ी-चव ी भी कौन उधार दे ता।
ोंिक समाज म माना जाता है िक कमाई केवल लड़का कर सकता है और उस
औरत के घर म कमाई करना वाला लड़का मर गया था तो अगर कोई उधार दे ने
की सोचता तो यह सोच कर नही ं दे ता िक लौटाने वाला उस घर म कोई नही ं है।
यही कारण था िक बुिढ़या रोते -रोते और आँ ख पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे ए
खरबूजे टोकरी म समेटकर बाज़ार की ओर बेचने के िलए आ गई।
उस बेचारी औरत के पास और चारा भी ा था? लेखक कहता है िक बुिढ़या
खरबूजे बेचने का साहस करके बाज़ार तो आई थी, परं तु िसर पर चादर लपेटे, िसर
को घुटनों पर िटकाए ए अपने लड़के के मरने के दु ः ख म बु री तरह रो रही थी।
लेखक अपने आप से ही कहता है िक कल िजसका बेटा चल बसा हो, आज वह
बाजार म सौदा बे चने चली आई है, इस माँ ने िकस तरह अपने िदल को प र िकया
होगा?
लेखक कहता है िक जब कभी हमारे मन को समझदारी से कोई रा ा नही ं िमलता
तो उस कारण बेचैनी हो जाती है िजसके कारण कदम तेज़ हो जाते ह। लेखक भी
उसी हालत म नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रा े म चलने वाले लोगों
से ठोकर खाता आ चला जा रहा था और सोच रहा था िक शोक करने और गम
मनाने के िलए भी इस समाज म सुिवधा चािहए और... दु ः खी होने का भी एक
अिधकार होता है ।

3.पाठ के मह पूण िबंदु -

पाठ ा ा - दुः ख का अिधकार


मनु ों की पोशाक उ िविभ े िणयों म बाँट दे ती ह। ायः पोशाक ही समाज म
मनु का अिधकार और उसका दज़ा िनि त करती है । वह हमारे िलए अनेक बंद
दरवाज़े खोल दे ती है, परं तु कभी ऐसी भी प र थित आ जाती है िक हम ज़रा नीचे
झुककर समाज की िनचली ेिणयों की अनुभूित को समझना चाहते ह।
उस समय यह पोशाक ही बं धन और अड़चन बन जाती है । जै से वायु की लहर कटी
ई पतंग को सहसा भूिम पर नही ं िगर जाने दे ती ं, उसी तरह खास प र थितयों म
हमारी पोशाक हम झुक सकने से रोके रहती है।
श ाथ –
पोशाक – पहरावा
िविभ - अलग -अलग
अड़चन - बाधा

ा ा – ले खक कहता है िक मनु ों का पहरावा उ अलग -अलग ेिणयों म बाँट


दे ता है । लेखक के अनुसार मनु ों का पहरावा ही समाज म मनु का अिधकार
और उसका दज़ा िनि त करत। है। मनु ों का पहरावा ही मनु ों के िलए समाज
के अनेक बंद दरवाज़े खोल दे ता है पर ु लेखक कहता है िक समाज म कभी ऐसी
भी प र थित आ जाती है
िक हम समाज के ऊँचे वग के लोग छोटे वग की भावनाओं को समझना चाहते ह
पर ु उस समय समाज म उन ऊँचे वग के लोगों का पहनावा ही उनकी इस भावना
म बाधा बन जाती है। लेखक उदाहरण दे ते ए समझाते ह िक जैसे वायु की लहर
कटी ई पतंग को कभी भी अचानक भूिम पर नही ं िगरने दे ती, उसी तरह खास
प र थितयों म हमारा पहरावा हम हमारी भावनाओं को दशाने से रोक दे ता है ।
बाजार म, फुटपाथ पर कुछ खरबू ज़े डिलया म और कुछ ज़मीन पर िब ी के िलए
रखे जान पड़ते थे। खरबूजों के समीप एक अधेड़ उ की औरत बैठी रो रही थी।
खरबूज़े िब ी के िलए थे, पर ु उ खरीदने के िलए कोई कैसे आगे बढ़ता?
खरबूजों को बेचने वाली तो कपड़े से मुँ ह िछपाए िसर को घुटनों पर रखे फफक-
फफककर रो रही थी।
श ाथ –
डिलया – टोकरी
अधे ड़ – ढलती उ
फफक-फफक कर - िबलख - िबलख कर

ा ा – ले खक अपनेारा अनु भव िकये गए एक का वणन करता आ


कहता है िक एक िदन लेखक ने बाजार म, फुटपाथ पर कुछ खरबूजों को टोकरी
म और कुछ को ज़मीन पर रखे ए दे खा, ऐसा लग रहा था िक उनको वहाँ बेचने
के िलए रखा आ है ।
खरबूजों के नज़दीक ही एक ढलती उ की औरत बै ठी रो रही थी। ले खक कहता
है िक खरबूज़े तो बे चने के िलए ही रखे गए थे, पर ु उ खरीदने के िलए कोई कैसे
आगे बढ़ता? ोंिक खरबूजों को बेचने वाली औरत ने तो कपड़े म अपना मुँह
छु पाया आ था और उसने अपने िसर को घुटनों पर रखा आ था और वह बुरी
तरह से िबलख - िबलख कर रो रही थी।
पड़ोस की दु कानों के त ों पर बै ठे या बाजार म खडे़ लोग घृणा से उसी ी के
संबंध म बात कर रहे थे। उस ी का रोना दे खकर मन म एक था-सी उठी, पर
उसके रोने का कारण जानने का उपाय ा था?
फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने म मेरी पोशाक ही वधान बन खड़ी हो गई।
एक आदमी ने घृ णा से एक तरफ़ थूकते ए कहा, " ा ज़माना है ! जवान लड़के
को मरे पू रा िदन नही ं बीता और यह बेहया दु कान लगा के बैठी है।" दू सरे साहब
अपनी दाढ़ी खुजाते ए कह रहे थे , "अरे जैसी नीयत होती है अ ा भी वैसी ही
बरकत दे ता है।"
श ाथ –
घृणा – नफ़रत
था – दु ः ख
वधान – सम ा
बेहया – बेशम
नीयत – इरादा
बरकत - लाभ

ा ा – लेखक कहता है िक उस औरत को इस तरह रोता आ दे ख कर आसपास


पड़ोस की दु कानों के त ों पर बैठे ए और बाजार म खडे़ लोग नफ़रत से उस
औरत के बारे म ही बात कर रहे थे। लेखक कहता है िक उस औरत का रोना
दे खकर लेखक के मन म दु ः ख की अनुभूित हो रही थी,
पर ु उसके रोने का कारण जानने का उपाय ले खक को समझ नही ं आ रहा था
ोंिक फुटपाथ पर उस औरत के नज़दीक बै ठ सकने म लेखक का पहरावा ले खक
के िलए सम ा खड़ी कर रहा था ोंिक ले खक ऊँचे वग का था और वह औरत
छोटे वग की थी। लेखक कहता है
िक उस औरत को इस अव था म दे ख कर एक आदमी ने नफरत से एक तरफ़
थूकते ए कहा िक दे खो ा ज़माना है! जवान लड़के को मरे ए अभी पू रा िदन
नही ं बीता और यह बेशम दु कान लगा के बैठी है। वही ं खड़े दू सरे साहब अपनी दाढ़ी
खुजाते ए कह रहे थे िक अरे , जैसा इरादा होता है अ ा भी वै सा ही लाभ दे ता है ।
सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने िदयासलाई की तीली से कान खुजाते ए
कहा,"अरे , इन लोगों का ा है? ये कमीने लोग रोटी के टु कड़े पर जान दे ते ह।
इनके िलए बेटा-बे टी, खसम-लु गाई, धम-ईमान सब रोटी का टु कड़ा है ।"
परचून की दु कान पर बैठे लाला जी ने कहा," अरे भाई, उनके िलए मरे िजए का
कोई मतलब न हो, पर दू सरे के धम-ईमान का तो खयाल करना चािहए! जवान बेटे
के मरने पर तेरह िदन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाजार म आकर
खरबूजे बेचने बैठ गई है ।
हज़ार आदमी आते -जाते ह। कोई ा जानता है िक इसके घर म सूतक है । कोई
इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धम कैसे रहेगा? ा अँ धेर है !"
श ाथ –
िदयासलाई – मािचस
खसम – पित
लुगाई – प ी
परचून की दु कान – दाल आिद की दु कान
सूतक – छूत

ा ा – ले खक कहता है िक सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने मािचस


की तीली से कान खुजाते ए कहा अरे , इन छोटे वग के लोगों का ा है ? ये कमीने
लोग रोटी के टु कड़े पर जान दे ते ह। इनके िलए िसफ रोटी ही सबसे ादा
मह पूण होती है।इनके िलए बेटा-बेटी, पित-प ी, धम-ईमान सब रोटी का टु कड़ा
है ।
इन छोटे लोगों के िलए कोई भी र ा रोटी नही ं है । लेखक कहता है िक दाल आिद
की दु कान पर बैठे लाला जी ने उस औरत के बारे म बात करते ए कहा िक अरे
भाई, इन छोटे वग के लोगों के िलए मरे िजए का कोई मतलब हो या न हो, पर दू सरे
के धम-ईमान का तो इन लोगो ं को ाल करना चािहए।
जवान बेटे के मरने पर तेरह िदन का छूत होता है और वह यहाँ सड़क पर बाजार
म आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है । हज़ार आदमी आते -जाते ह। िकसी को ा पता
िक इसके घर म िकसी की मौत ई है और अभी सूतक है । कोई इसके खरबूजे खा
ले तो उसका ईमान-धम कैसे रहेगा? सब न हो जाएगा।
पास-पड़ोस की दु कानों से पू छने पर पता लगा-उसका तेईस बरस का जवान लड़का
था। घर म उसकी ब और पोता-पोती ह। लड़का शहर के पास डे ढ़ बीघा भर ज़मीन
म किछयारी करके प रवार का िनवाह करता था। खरबू जो की डिलया बाजार म
प ँ चाकर कभी लड़का यं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती।
लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों म से पके खरबूजे चु न रहा था। गीली मेड़ की
तरावट म िव ाम करते ए एक साँ प पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को
डँ स िलया।
श ाथ –
बरस – साल
किछयारी – स याँ उगाने का काम
िनवाह – पालन पोषण
मेड़ – दो खेतों की सीमा
िव ाम – आराम

ा ा - जब लेखक को उस औरत के बारे म जानने की इ ा ई तो ले खक ने


वहाँ पास-पड़ोस की दु कानों से उस औरत के बारे म पूछा और पू छने पर पता लगा
िक उसका तेईस साल का एक जवान लड़का था। घर म उस औरत की ब और
पोता-पोती ह। उस औरत का लड़का शहर के पास डे ढ़ बीघा भर ज़मीन म स याँ
उगाने का काम करके प रवार का पालन पोषण करता था। खरबू जो की टोकरी
बाजार म प ँ चाकर कभी उस औरत का लड़का खुद बेचने के िलए पास बै ठ जाता
था, कभी वह औरत बैठ जाती थी। पास-पड़ोस की दु कान वालों से लेखक को पता
चला िक लड़का परसों सुबह अँधेरे म ही बे लों म से पके खरबूजे चुन रहा था। खरबूजे
चुनते ए उसका पै र दो खेतों की गीली सीमा पर आराम करते ए एक साँप पर
पड़ गया। साँप ने लड़के को डँ स िलया।
लड़के की बुिढ़या माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना आ।
नागदे व की पूजा ई। पूजा के िलए दान-दि णा चािहए। घर म जो कुछ आटा और
अनाज था, दान-दि णा म उठ गया। माँ, ब और ब े ‘भगवाना से िलपट-
िलपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप आ तो िफर न बोला। सप के िवष से
उसका सब बदन काला पड़ गया था।
िज़ंदा आदमी नंगा भी रह सकता है , परं तु मु द को नं गा कैसे िवदा िकया जाए? उसके
िलए तो बजाज की दु कान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके िलए माँ के
हाथों के छ ी-ककना ही ों न िबक जाएँ ।
श ाथ –
बावली- पागलों की तरह
ओझा – झाड़-फूँक करने वाले
दफे – बार
छ ी-ककना - ज़ेवर

ा ा - लेखक कहता है िक जब उस औरत के लड़के को साँ प ने डँ सा तो उस


लड़के की यह बुिढ़या माँ पागलों की तरह भाग कर झाड़-फूँक करने वाले को बुला
लाई। झाड़ना-फूँकना आ। नागदे व की पूजा भी ई। लेखक कहता है िक पू जा के
िलए दान-दि णा तो चािहए ही होती है। उस औरत के घर म जो कुछ आटा और
अनाज था वह उसने दान-दि णा म दे िदया।
पर ु कुछ भी नही ं आ ोंिक सप के िवष से उसका सब बदन काला पड़ गया
था। माँ, ब और ब े ‘भगवाना से िलपट-िलपटकर रोए, पर भगवाना जो एक
बार चुप आ तो िफर न बोला। लेखक कहता है िक िज़ंदा आदमी नंगा भी रह
सकता है ,
परं तु मुद को नंगा कैसे िवदा िकया जा सकता है ? उसके िलए तो बजाज की दु कान
से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके िलए उस लड़के की माँ के हाथों के ज़ेवर
ही ों न िबक जाएँ ।
भगवाना परलोक चला गया। घर म जो कुछ चूनी भूसी थी सो उसे िवदा करने म
चली गई। बाप नही ं रहा तो ा, लड़के सुबह उठते ही भूख से िबलिबलाने लगे।
दादी ने उ खाने के िलए खरबूजे दे िदए लेिकन ब को ा दे ती? ब का बदन
बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बे टे के िबना बुिढ़या को दु अ ी-चव ी भी
कौन उधार दे ता।
बुिढ़या रोते -रोते और आँ ख पोंछते -पोंछते भगवाना के बटोरे ए खरबूजे डिलया म
समेटकर बाजार की ओर चली - और चारा भी ा था?
ा ा - लेखक कहता है की भगवाना तो परलोक चला गया और घर म जो कुछ
भी अनाज और पैसे थे वह सब उसके अ म सं ार करने म लग गए। ले खक
कहता है िक बाप नही ं रहा तो ा, लड़के सुबह उठते ही भूख से िबलिबलाने लग
गए। दादी ने उ खाने के िलए खरबूजे दे िदए लेिकन ब को ा दे ती?
ब का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के िबना बुिढ़या को
दु अ ी-चव ी भी कौन उधार दे ता। ोंिक समाज म माना जाता है िक कमाई केवल
लड़का कर सकता है और उस औरत के घर म कमाई करना वाला लड़का मर गया
था तो
अगर कोई उधार दे ने की सोचता तो यह सोच कर नही ं दे ता िक लौटाने वाला उस
घर म कोई नही ं है। यही कारण था िक बुिढ़या रोते -रोते और आँ ख पोंछते-पोंछते
भगवाना के बटोरे ए खरबूजे टोकरी म समे टकर बाजार की ओर बेचने के िलए
आ गई। उस बेचारी औरत के पास और चारा भी ा था?
बुिढ़या खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परं तु िसर पर चादर लपेटे, िसर को
घुटनों पर िटकाए ए फफक-फफकर रो रही थी।
कल िजसका बेटा चल बसा, आज वह बाजार म सौदा बेचने चली है , हाय रे प र-
िदल!
उस पु -िवयोिगनी के दु ः ख का अंदाजा लगाने के िलए िपछले साल अपने पड़ोस म
पु की मृ ु से दु ः खी माता की बात सोचने लगा। वह सं ां त मिहला पु की मृ ु
के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी।
उ पं ह-पं ह िमनट बाद पु -िवयोग से मूछा आ जाती थी और मू छा न आने की
अव था म आँ खों से आँ सू न क सकते थे। दो-दो डा◌ॅ र हरदम िसरहाने बै ठे
रहते थे। हरदम िसर पर बफ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पु -
शोक से िवत हो उठे थे।

श ाथ –
पु -िवयोिगनी – पु को खोने वाली
पु -िवयोग – पु के िबछड़ने के दु ः ख
मूछा – बेहोश
हरदम – हमेशा

ा ा - लेखक कहता है िक बु िढ़या खरबूजे बे चने का साहस करके बाजार तो


आई थी, परं तु िसर पर चादर लपेटे, िसर को घुटनों पर िटकाए ए अपने लड़के के
मरने के दु ः ख म बुरी तरह रो रही थी। लेखक अपने आप से ही कहता है िक कल
िजसका बेटा चल बसा हो, आज वह बाजार म सौदा बे चने चली आई है , इस माँ ने
िकस तरह अपने िदल को प र िकया होगा?
अपने पु को खोने वाली उस माँ के दु ः ख का अं दाजा लगाने के िलए ले खक िपछले
साल उसके पड़ोस म पु की मृ ु से दु ः खी माता की बात सोचने लगा। वह बेचारी
मिहला पु की मृ ु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से ही नही ं उठ पाई थी।
उ पं ह-पं ह िमनट बाद पु के िबछड़ने के दु ः ख के कारण से बेहोशी आ जाती
थी और जब वह होश म होती थी तो भी उसकी आँ खों से आँ सू न क सकते थे।
दो-दो डा◌ॅ र हमेशा उसके िसरहाने बैठे रहते थे। हमेशा िसर पर बफ रखी जाती
थी। शहर भर के लोगों के मन उसका इस तरह पु की याद म दु खी रहने के कारण
से दु खी हो उठता था।
जब मन को सूझ का रा ा नही ं िमलता तो बेचैनी से कदम तेज़ हो जाते ह। उसी
हालत म नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकर खाता म चला जा रहा था।
सोच रहा था - शोक करने, गम मनाने के िलए भी स िलयत चािहए और... दु ः खी
होने का भी एक अिधकार होता है।
श ाथ –
सूझ – समझदारी
स िलयत – सुिवधा
ा ा-

लेखक कहता है िक जब कभी हमारे मन को समझदारी से कोई रा ा नही ं िमलता


तो बे चैनी हो जाती है िजसके कारण कदम तेज़ हो जाते ह। ले खक भी उसी हालत
म नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रा े म चलने वाले लोगों से ठोकर
खाता आ चला जा रहा था और सोच रहा था िक शोक करने और गम मनाने के
िलए भी इस समाज म सुिवधा चािहए और... दु ः खी होने का भी एक अिधकार होता
है ।

4.पाठ के पा ो के नाम -
इस पाठ म मु पा एक बुिढ़या है जो पु शोक से पीिड़त है । उस बु िढ़या की तुलना
एक अ ी से की गई है िजसने ऐसा ही दद झे ला था। दू सरी ी एक संप घर की
थी। इसिलए उस ी ने ढ़ाई महीने तक पु की मृ ु का शोक मनाया था। उसके
शोक मनाने की चचा कई लोग करते थे । लेिकन बुिढ़या की गरीबी ने उसे पु का शोक
मनाने का भी मौका नही ं िदया। बुिढ़या को मजबूरी म दू सरे ही िदन खरबूजे बे चने के
िलए घर से बाहर िनकलना पड़ा। ऐसे म लोग उसे िहकारत की नजर से ही दे ख रहे
थे। एक ी की सं प ता के कारण शोक मनाने का पूरा अिधकार िमला वही ं दू सरी
ी इस अिधकार से वंिचत रह गई। इसिलए इस पाठ का शीषक िबलकुल साथक है ।

5.अवधारणा न ा -

दु ः ख मनाने का
मनु ों का पहनावा अिधकार सभी को
ही समाज म मनु होता है िफर चाहे वह
का अिधकार और समाज के िकसी भी
उसका दज़ा िनि त वग का हो।
करता है ।

समाज म होने
वाले उ वग और
िन वग के
भेदभाव को दशा
रहा है ।

समाज म कभी ऐसी भी


दु ः ख मनाने का प र थित आ जाती है िक हम
समाज के ऊँचे वग के लोग छोटे
अिधकार सभी वग की भावनाओं को समझना
को होता है िफर चाहते ह पर ु उस समय समाज
म उन ऊँचे वग के लोगों का
चाहे वह समाज पहनावा ही उनकी इस भावना म
के िकसी भी वग बाधा बन जाती है।

का हो।
6.चलिच -
https://youtu.be/SZlS0xkwGls
https://youtu.be/yj67AdHcMpg
https://youtu.be/V6um9kklF0M
https://youtu.be/cWW3PrmdgzY

7.प रयोजन काय -


1.
‘ की पहचान उसकी पोशाक से होती है। इस िवषय पर क ा म प रचचा
कीिजए।

2.
यिद आपने भगवाना की माँ जैसी िकसी दु खया को दे खा है तो उसकी कहानी
िल खए।

3.
पता कीिजए िक कौन-से साँप िवषैले होते ह? उनके िच एक कीिजए और िभि
पि का म लगाइए।

8. -अ ास -
(क) िन िल खत ों के उ र (25-30 श ों म) िल खए -

1- मनु के जीवन म पोशाक का ा मह है ?


उ र - मनु के जीवन म पोशाक का अ िधक मह है ोंिक समाज म
िकसी की पोशाक दे खकर हम उस की हैिसयत और जीवन शै ली
का पता लगत। है। एक अ ी पोशाक की समृ का तीक भी कही जा
सकती है । हमारी पोशाक हम समाज म एक िनि त दजा िदलवाती है । पोशाक
हमारे िलए कई दरवाज़े खोलती है। कभी कभी वही पोशाक हमारे िलए अड़चन
भी बन जाती है।
2 - पोशाक हमारे िलए कब बंधन और अड़चन बन जाती है ?
उ र - कभी कभार ऐसा होता है िक हम नीचे झुक कर समाज के दद को जानना
चाहते ह। ऐसे समय म हमारी पोशाक अड़चन बन जाती है ोंिक अपनी पोशाक
के कारण हम झुक नही ं पाते ह। हम यह डर सताने लगता है िक अ े पोशाक म
झुकने से आस पास के लोग ा कहगे। कही ं अ ी पोशाक म झुकने के कारण
हम समाज म अपना दजा न खो द।
3 - ले खक उस ी के रोने का कारण ों नही ं जान पाया?
उ र - ले खक एक स वग से स रखता है । उसने अपनी सं प ता के
िहसाब से कपड़े पहने ए थे। इसिलए वह झुक कर या उस बु िढ़या के पास
बैठकर उससे बात करने म असमथ था। इसिलए वह उस ी के रोने का कारण
नही ं जान पाया।
4 - भगवाना अपने प रवार का िनवाह कैसे करता था?
उ र - भगवाना पास म ही एक ज़मीन पर किछयारी करके अपना और अपने
प रवार का िनवाह करता था। वह उस ज़मीन म खरबूजे उगाता था। वहाँ से वह
खरबूजे तोड़कर लाता था और बेचता था। कभी-कभी वह यं दु कानदारी करता
था तो कभी दु कान पर उसकी माँ बैठती थी।
5 - लड़के की मृ ु के दू सरे ही िदन बुिढ़या खरबूजे बेचने ों चल पड़ी?
उ र - लड़के के इलाज म बुिढ़या की सारी जमा पूँजी ख़ हो गई थी। जो कुछ
बचा था वह लड़के के अंितम सं ार म खच हो गया। अब लड़के के ब ों की
भूख िमटाने के िलए यह ज री था िक बुिढ़या कुछ कमा कर लाए। उसकी ब
भी बीमार थी। इसिलए लड़के की मृ ु के दू सरे ही िदन बुिढ़या को खरबूजे बेचने
के िलए िनकलना पड़ा।
6 - बुिढ़या के दु ः ख को दे खकर लेखक को अपने पड़ोस की सं ां त मिहला
की याद ों आई?
उ र - बुिढ़या के दु ख को दे खकर लेखक को अपने पड़ोस की सं ां त मिहला की
याद इसिलए आई िक उस सं ां त मिहला के पु की मृ ु िपछले साल ही ई थी।
पु के शोक म वह मिहला ढ़ाई महीने िब र से उठ नही ं पाई थी। उसकी
खाितरदारी म डॉ र और नौकर लगे रहते थे। शहर भर के लोगों म उस मिहला
के शोक मनाने की चचा थी और यहाँ बाजार म भी सभी उसी तरह बु िढ़या के बारे
म बात कर रहे थे।

(ख) िन िल खत ों के उ र (50-60 श ों म) िल खए-


1- बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली ी के बारे म ा- ा कह रहे थे?
अपने श ों म िल खए।
उ र - बाजार के लोग खरबूजे बे चने वाली ी के बारे म तरह तरह की बात कर
रहे थे। कोई कह रहा था िक बेटे की मृ ु के तुरंत बाद बु िढ़या को बाहर िनकलना
ही नही ं चािहए था। कोई कह रहा था िक सूतक की थित म वह दू सरे का धम
कर सकती थी इसिलए उसे नही ं िनकलना चािहए था। िकसी ने कहा, िक ऐसे
लोगों के िलए र ों नातों की कोई अहिमयत नही ं होती। वे तो केवल रोटी को
अहिमयत दे ते ह। अिधकांश लोग उस ी को नफरत की नजर से दे ख रहे थे।
कोई भी उसकी दु िवधा को नही ं समझ रहा था।
2 - पास-पड़ोस की दु कानों से पूछने पर लेखक को ा पता चला?
उ र - पास-पड़ोस की दु कानों से पू छने पर लेखक को उस बुिढ़या के दु ख के बारे
म पता चला। लेखक को पता चला िक बु िढ़या का इकलौता बे टा साँप के काटने से
मर गया था। बुिढ़या के घर म उसकी ब और पोते पोती रहते थे। बु िढ़या का सारा
पै सा बेटे के इलाज म खच हो गया था। ब को तेज बुखार था। इसिलए अपने
प रवार की भूख िमटाने के िलए बुिढ़या को खरबूजे बेचने के िलए घर से बाहर
िनकलना पड़ा था।
3 - लड़के को बचाने के िलए बुिढ़या माँ ने ा- ा उपाय िकए?
उ र - लड़के को बचाने के िलए बुिढ़या ने जो उिचत लगा, जो उसकी समझ म
आया िकया। उसने झटपट ओझा को बुलाया। ओझा ने झाड़-फूँक शु िकया।
ओझा को दान दि णा दे ने के िलए बुिढ़या ने घर म जो कुछ था दे िदया। घर म
नागदे व की पूजा भी करवाई।
4 - ले खक ने बु िढ़या के दु ः ख का अंदाशा कैसे लगाया?
उ र - लेखक ने बुिढ़या के दु ख का अंदाजा पहले तो बु िढ़या के रोने से लगाया।
लेखक को लगा िक जो ी खरबूजे बेचने के िलए आवाज लगाने की बजाय
अपना मुँह ढ़क कर रो रही हो वह अव ही गहरे दु ख म होगी। िफर लेखक ने
दे खा िक अ लोग बु िढ़या को बड़े नफरत की ि से दे ख रहे थे। इससे भी
ले खक ने बुिढ़या के दु ख का अंदाजा लगाया। ले खक ने उसके पड़ोस म एक संप
ी के दु ः ख के साथ जोड़ कर भी समझना चाहा।
5 - इस पाठ का शीषक ‘दु ः ख का अिधकार कहाँ तक साथक है?
कीिजए।
उ र - इस पाठ म मु पा एक बुिढ़या है जो पु शोक से पीिड़त है । उस
बुिढ़या की तुलना एक अ ी से की गई है िजसने ऐसा ही दद झेला था। दू सरी
ी एक संप घर की थी। इसिलए उस ी ने ढ़ाई महीने तक पु की मृ ु का
शोक मनाया था। उसके शोक मनाने की चचा कई लोग करते थे । लेिकन बु िढ़या
की गरीबी ने उसे पु का शोक मनाने का भी मौका नही ं िदया। बु िढ़या को
मजबू री म दू सरे ही िदन खरबूजे बेचने के िलए घर से बाहर िनकलना पड़ा। ऐसे म
लोग उसे नफरत की नजर से ही दे ख रहे थे। एक ी की संप ता के कारण
शोक मनाने का पूरा अिधकार िमला वही ं दू सरी ी इस अिधकार से वं िचत रह
गई। इसिलए इस पाठ का शीषक िबलकुल साथक है।

िन िल खत के आशय कीिजए -
1 -जैसे वायु की लहर कटी ई पतंग को सहसा भूिम पर नही ं िगर जाने दे ती ं
उसी तरह खास प र थितयों म हमारी पोशाक हम झुक सकने से रोके रहती है।
उ र - कोई भी पतंग कटने के तु रंत बाद जमीन पर धड़ाम से नही ं िगरती। हवा
की लहर उस पतंग को ब त दे र तक हवा म बनाए रखती ह। पतंग धीरे -धीरे बल
खाते ए जमीन की ओर िगरती है। हमारी पोशाक भी हवा की लहरों की तरह
काम करती है । कई ऐसे मौके आते ह िक हम अपनी पोशाक की वजह से
झुककर जमीन की स ाई जानने से वंिचत रह जाते ह। इस पाठ म लेखक अपनी
पोशाक की वजह से बुिढ़या के पास बैठकर उससे बात नही ं कर पाता है।
2 - इनके िलए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धम-ईमान सब रोटी का टु कड़ा है ।
उ र - यह एक कार का कटा है जो िकसी की गरीबी और उससे उपजी
मजबू री का उपहास उड़ाता है । जो यह कटा कर रहा है उसे िस े का
एक पहलू ही िदखाई दे रहा है। हर र ों नातों की मयादा रखना चाहता
है । लेिकन जब भूख की मजबूरी होती है तो कई लोगों को मजबू री म यह मयादा
लांघनी पड़ती है। उस बुिढ़या के साथ भी यही आ था। बुिढ़या को न चाहते ए
भी खरबूजे बेचने के िलए िनकलना पड़ा था।
3 - शोक करने, गम मनाने के िलए भी स िलयत चािहए और ... दु खी होने
का भी एक अिधकार होता है।
उ र - शोक मनाने की स िलयत भगवान हर िकसी को नही ं दे ता है । कई बार
जीवन म कुछ ऐसी मजबू रयाँ या िज ेदा रयाँ आ जाती ह िक मनु को शोक
मनाने का मौका भी नही ं िमलता। यह बात खासकर से िकसी गरीब पर अिधक
लागू होती है। पाठ के आधार पर कहा जा सकता है िक गरीब को तो शोक मनाने
का अिधकार ही नही ं होता है।

ी माधव नगराले [ िहंदी अ ापक ]


िहंदी िवभाग

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