Bee Keeping and Their Management Article in Hindi

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मधुमक्खी पालन एवं प्रबंधन

डॉ. भीमस हं , अति. मख्


ु य परियोजना मन्वयक
लपु पन फाउण्डेशन, 160, कृष्णा नगि,
भििपिु (िाज.) पपन - 321001
फोन: 05644-223023, फैक् ः 224241
मो. 9414222347
ई-मेल: bhimsingh84@gmail.com

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Agriculture has always been and still continues to be the main source of livelihood for majority of Indian
population. It growth is essential for self-reliance, ensuring food and nutritional security, poverty alleviation and
improving quality of life. Lupin has been a pioneer to introduce Beekeeping as the singular one major activity for
providing livelihood for landless, marginal farmers and the unemployed rural youth.This has resulted in
farmers evincing keen interest in farming sector. Beekeeping was unheard in the eastern part of Rajasthan
till 1992 which is now having a multiplying impact on economic upliftment of the villagers. Based on natural
resources and Mustard Cropping, we explored the possibilities and then planned for technology transfer and
promotion of Beekeeping. The survey and exploiting the feasibility began in the year 1990-91 with the help of
scientist of Central Bee Research and Training Institute, Pune. Survey indicated good possibilities of
Beekeeping. During year 1992-93, two private entrepreneurs of village Aghapur of Sewar block(Bharatpur) and
one employee of the Lupin HWRF were sent to Hissar Agriculture University for seven days practical training of
Beekeeping. These two persons were given 20 Boxes of bee colonies and stationed at village Aghapur in the
close vicinity of Keoladeo National Park(KNP). The experiment failed by the attacks of wild bees of KNP over the
domesticated bees. The Boxes were shifted to other areas. The renewed efforts of the organization and frequent
consultantations with experts progressed the activity in right direction. In subsequent year 1996-97, the
beekeepers of Saharanpur brought their boxes during mustard crop to Bharatpur. An interaction with these
Beekeepers turned to a milestone and led the training of 20 rural people of Bharatpur at Saharanpur with the
assistance of district administration and Horticulture Department of Bharatpur. Since then, Beekeeping has
become a massive programme in the district and is growing very fast providing employment to unemployed
youth, landless labourers, small and marginal farmers by empowering them on equity basis to upgrade their
economic status. The total honey production from District was 28.0 metric tonnes in 1997-98. Rajasthan
state with 33 districts now produces 3800 tonnes of honey, out of which, 1660 tonnes is produced
annually in Bharatpur district itself.

मधम
ु क्खी ही केवल कीट प्रजाति का जीव है जो मनुष्यों के ललए खाद्य पदार्थ (शहद) उत्पाददि
कर मानव सेवा में लगी हुई जो लमत्र कीट के रूप में पहचानी जािी है । मधम
ु क्खी पालन से शहद के
सार्-सार् फसलों में भी परागण की क्रिया िेज होने से 25 प्रतिशि से अधधक कृषि, उद्यातनकी व
वातनकी फसलों की उपज बढिी है ।

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विथमान में आबादी की बढोिरी एवं सीलमि संसाधनों के कारण रोजगार की समस्या ददन-
प्रतिददन षवकराल रूप धारण करिी जा रही है ।
कृषि, जोिों के तनरन्िर बंटबारे के कारण एक
मात्र कृषि कायथ के भरोसे परू े पररवार का पालन-
पोिण नहीं हो सकिा है , ऐसी स्स्र्ति में
मधम
ु क्खी पालन व्यवसाय एक ऐसी कृषि
आधाररि गतिषवधध है जो आसानी से ग्रामीण
पररवेश में शुरू की जा सकिी है । मधम
ु क्खी
पालन बेरोजगार युवकों, भूलम-हीन, अलशक्षिि व
लशक्षिि पररवारों को कम लागि से अधधक लाभ
दे ने वाला व्यवसाय ही नहीं है अषपिु इससे कृषि
उत्पादन में भी वद्
ृ धध होिी है । आज दे श में इस व्यवसाय को सुतनयोस्जि ढं ग से क्रियास्न्वि एवं
अनुसरण करने की अत्यन्ि जरूरि है , स्जससे दे श में हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।
यह एक प्रभावी गरीबी उन्मूलन की व्यवसातयक गतिषवधध है स्जसके माध्यम से बेरोजगार युवक/कृिक
इससे लाभ उठाकर अपना स्वयं का मधम
ु क्खी पालन व्यवसाय शुरू कर अपनी आधर्थक स्स्र्ति मजबूि
कर समद्
ृ ध कृषि, स्वस्र्, स्वच्छ व श्रेष्ठ भारि तनमाथण में भागीदार बन सकेंगे।
मधम
ु स्क्खयों की आदिों को जानकर, उनकी इच्छाओं को समझकर, उनको कम से कम कष्ट
पहुंचाकर अधधक से अधधक लाभ अस्जथि करने को मधम ु क्खी पालन कहिे हैं। सामान्य अर्ो में
व्यवसाय का िात्पयथ उन सभी आधर्थक मानवीय क्रियाओं के समावेश से है स्जसमें आधर्थक लाभ के
सार् सेवा, साहस और जोखखम के ित्व भी मौजूद होिे हैं। आधतु नक समाज में अपनाये जा रहे
षवलभन्न व्यवसायों और उद्योगों ने प्राकृतिक संसाधनों के असंिुललि दोहन के सार्-सार् पयाथवरण के
संिुलन को भी बबगाडा है , ऐसे में मधम
ु क्खी पालन एक पयाथवरण कल्याणकारी (ईकोफ्रैन्डली) उद्योग
के रूप में सामने आया है । यह व्यवसाय न केवल ग्रामीण िेत्रों में कुटीर उद्योगों केा बढावा दे ने में
महत्वपूणथ भूलमका तनभा सकिा है अषपिु षवदे शों में भारिीय शहद की बढिी हुई मांग को दे खिे हुए
षवदे शी मुद्रा अस्जथि करने में सार्थक योगदान दे सकिा है ।

मधम
ु क्खी पालन क्यों ?
1. रोजगार एवं आय के साधन हे िु
2. यह सरल एवं सस्िा उद्योग है ।
3. कृषि, उद्यातनकी व वातनकी फसलों में गुणवत्ता व उपज बढाने हे िु।
4. पयाथवरण सुरिा एवं पाररस्स्र्तिकी षवकास हे िु।

मधम
ु क्खी पालन े प्रमुख लाभ
फसल उत्पादन में वद्
ृ धध: ऐसी फसलें स्जनमें पर परागण द्वारा तनिेचन होिा है , शस्य, उद्यातनकी
वातनकी फसलों में पर परागण की क्रिया मधम
ु क्खी द्वारा की जाकर औसिन 5 से प प्रतिशि

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उत्पादन में वद्
ृ धध होिी है । इस वद्
ृ धध के ललए कृिक को अपने स्त्रोिों से क्रकसी प्रकार का तनवेश नहीं
करना पडिा िर्ा इसके पालन से शहद उत्पाद के रूप में प्राप्ि होिा है । राजस्र्ान राज्य में सरसों की
औसि उपज 88प क्रकलो/है क्टे यर है जो मधम
ु क्खी पालन करने पर प56 क्रकलो/है क्टे यर िक बढ जािी
है ।
शहद (हनी) का उत्पादन: मधम
ु स्क्खयां संग्रदहि पष्ु परस को पररवतिथि एवं पररशोधधि करके अपने छत्ते
को कोिों में रखिी हैं, स्जसे त्वररि गति से दोहन करना चादहए। इसके शहद खण्ड के छत्ते की
मधम
ु स्क्खयों को लशशु खण्ड में झाड दे िे हैं और शहद खण्ड का छत्ता खाली हो जािा है । इन छत्तों को
शहद तनष्कासन मशीन में रखकर शहद तनष्कालसि कर ललया जािा है ।
रायल जेली का उत्पादन: रायल जेली प्रकृति का सबसे अधधकिम प्राकृतिक पौस्ष्टक पदार्थ है स्जसका
तनयलमि सेवन करने पर आयु लम्बी होिी है और पुरूिार्थ कायम रहिा है ।
पराग (पोलन का उत्पादन): श्रलमक मधुलमक्खयां फूलों से पराग को लािी हैं, स्जसे पराग संग्रह यंत्र
द्वारा आसानीपूवक
थ एकबत्रि क्रकया जािा है ।
मौना षवि का उत्पादन: मौना षवि का उत्पादन षवि संग्रह यंत्र द्वारा क्रकया जािा है । इस षवि का
उपयोग गदठया, जैसी बीमाररयों में दवा के रूप में क्रकया जािा है ।
मोम (बी वैक्स) कर उत्पादन: मोम का उत्पादन मोम तनष्कासन एवं मोम पररष्करण द्वारा क्रकया
जािा है । यह शुद्ध एवं प्राकृतिक उत्पाददि मोम होिा है स्जसका उपयोग कॉस्मेदटक सामग्री िैयार
करने में क्रकया जािा है िर्ा मधम
ु क्खी पालन हे िु मोमी आधार शीट िैयार करने में होिा है ।
मोना गोंद (प्रोपोललस) का उत्पादन: श्रलमक मधम
ु स्क्खयां अपने मौन गह
ृ ों के दरारों एवं उनके जोडों को
वायुरूद्ध करने के ललए पौधें से गोंद ले जािी है स्जसे खरोंच कर एकबत्रि कर लेिे हें स्जसका उपयोग
चमथ रोग के उपचार में क्रकया जािा है । प्रापोललस का उत्पादन अधधकांश एषपस मैलीफेरा प्रजाति ही
करिी है ।
मौन वंश उत्पादन: मौन वंश वद्
ृ धध करके एवं उसकी नसथरी स्र्ाषपि करके एक कुटीर उद्योग के रूप
में मधम
ु क्खी पालन को स्र्ाषपि कर सकिे है ।

िाजस्थान में मधम


ु क्खी पालन की ंभावनायें
राजस्र्ान का एक बडा भू-भाग फसलों, सस्ब्जयों, फलोद्यानों, फूलों, जडी-बदू टयों, वनों आदद से
आच्छाददि है जो प्रतिविथ फल व बीज के सार् ही मकरन्द और पराग को धारण करिे है , क्रकन्िु
उसका भरपूर सदप
ु योग नहीं हो पािा है अषपिु इस बहुमूल्य उपज के अंश का दोहन न क्रकये जाने से
धप
ू , विाथ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रकृति में पुनः षवलीन हो जािे हैं। स्जसे प्राप्ि करने
के ललए मधम
ु क्खी पालन एक मात्र उपाय है ।

प्रदे श में मधम


ु क्खी पालन के ललए श्रीगंगानगर, हनुमानगढ, जोधपुर, बांसवाडा, धचिौडगढ, प्रिापगढ,
अजमेर, पाली, लसरोही, डूग
ं रपुर उदयपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, भरिपुर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर,
करौली, टोंक, कोटा, बूंदी, झालावाड, बारां आदद स्जले जलवायु एवं फसलों की दृस्ष्ट से उपयुक्ि हैं।

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भािि वर्ष में मधम
ु क्क्खयों की मख्
ु य रूप े चाि प्रजातियां हैं
. एषपस डोरसेटा: यह बडे आकार की मधम
ु क्खी होिी है जो ऊंचाई पर छत्ता बनािी है । स्वभाव से
बहुि ही गस्
ु सैल प्रवतृ ि की होिी है । विथ में एक छत्ते से औसिन 2प-25 क्रकलोग्राम शहद प्राप्ि होिा
है ।
2. एषपस फ्लोररयाः यह सबसे छोटे आकार की मधम
ु क्खी होिी है , जो मैदानी स्र्ानों पर झाडडयों पर
छि के कोने में छत्ता बनािी हैं। एक विथ से 2पप ग्राम से 2 क्रकलोग्राम शहद प्राप्ि होिा है ।
3. एषपस इंडडका: यह भारिीय मूल की प्रजाति है , जो पहाडी व मैदानी िेत्रों में पाई जािी है । यह
समान्िर दरू ी पर पेडों, गुफाओं व छुपी हुई जगहों पर छत्तें बनािी है । एक विथ में छत्ते से से 6
क्रकलोग्राम शहद बनािी है ।
4. एषपस मैलीफेरा: इस मधम
ु क्खी को इटे ललयन मधम
ु क्खी भी कहिे हैं। यह आकार व स्वभाव में
एषपस इंडडका की िरह होिी है लेक्रकन इस प्रजाति की रानी मक्खी के अण्डे दे ने की िमिा बहुि
अधधक होिी है । सार् ही भगछूट की प्रक्रिया कम होिी है व शहद अधधक मात्रा में इकट्ठा करिी है ।
एक विथ में दो खण्ड के बक्से से करीब 6प-8प क्रकलोग्राम शहद प्राप्ि होिा है । सार् ही रानी मक्खी के
अधधक अण्डे दे ने से मधुमस्क्खयों के वंश की बढोत्तेरी भी अधधक होिी है । इसललए व्यावसातयक पालन
की दृस्ष्ट से यह श्रेष्ठ मधम
ु क्खी प्रजाति हैं।

मधम
ु क्खी का परिवाि
मधम
ु स्क्खयों के एक मौन गह
ृ (पररवार) में औसिन 4प से 8प हजार मधम
ु स्क्खयां होिी हैं, स्जनमें से
एक रानी मधम
ु क्खी, और सौ नर (ड्रोन्स) व शेि मादा (श्रलमक) मधम
ु स्क्खयां होिी हैं, जो पररवार के
सदस्यों की संख्या में 95 प्रतिशि से भी ज्यादा होिी है ।

रानी मधम
ु क्खी
रानी मधम
ु क्खी पूणथ षवकलसि मादा है । एक मौनवंश में एक ही रानी होिी है , जो अण्डे दे ने का
कायथ करिी है । यह औसिन 25पप से पपप अण्डे प्रतिददन दे िी है । रानी का जीवन काल लगभग
विो का होिा है । रानी सुनहरे रं ग व लम्बे उदर युक्ि होिी हैं यह दो प्रकार के गलभथि व अगलभथि
अण्डे दे िी है । गलभथि अण्डे से मादा या श्रलमक एवं रानी और गलभथि अण्डे से नर षवकलसि होिे हैं।
युवा रानी, रानी कोि में षवकलसि होिी हैं, जो अंगुली के शीिथभाग (मूंगफली के दाने के बराबर) की
भांति छत्ते में नीचे की ओर लटकी हुई होिी है , अण्डे से युवा रानी षवकलसि होने में लगभग 5 से
6 ददन लगिे हैं।

मादा/केसरी/श्रलमक मधम
ु क्खी
श्रलमक मधम
ु क्खी अषवकलसि मादा है । मौमगह
ृ में समस्ि कायथ को श्रलमक ही करिी है । इसमें
डंक पण
ू ि
थ या षवकलसि होिा है । एक मधम
ु क्खी वंश में कुल मादा मधम
ु स्क्खयों की संख्या में 95
प्रतिशि से भी अधधक होिी है उनकी आयु 4प से 45 ददन िक होिी है यह आयु के अनस
ु ार कायथ
सम्पन्न करिी है । जैस-े जैसे इनकी आयु बढिी है वैस-े वैसे श्रलमक मधम
ु क्खी का कायथ बदलिा रहिा
है । इसक प्रकार श्रलमक कोि से पैदा होने के िीसरे ददन से कायथ करना प्रारं भ कर दे िी है श्रलमक के

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मख्
ु य कायथ रॉयल जेली श्रषवि करना, मोम उत्पाददि करना, छत्ता बनाना, छत्ते की सफाई करना, कोिों
की सफाई करना, वािायन करना, छत्ते का िापिम कायम रखना, वािानक
ु ू ललि करना, प्रवेश द्वार पर
चैकीदारी करना, भोजन के स्त्रोिों को खोज करना, मकरन्द (पष्ु प रस) एवं पराग के संग्रह का कायथ
लगभग 2- क्रकमी. की दरू ी िक करिी है । श्रलमक का कोि िटकोणीय व नर के कोि से छोटे आकार
का होिा है ।

नि या ड्रोन
नर मेदटंग का कायथ करिा है ये प्रजनन काल में बहुिायि में होिे हैं नर में डंक नहीं होिा है ।
इसका उदर काला एवं गोल होिा है । युवा रानी मेदटंग के ललए गंध (फेरोमोन) छोडिी है , स्जससे सभी
नर आकषिथि होिे हैं, यव
ु ा रानी मेदटंग हे िु उडिी है । िब सभी नर उनका पीछा करिे हैं, जो नर
सवथप्रर्म रानी को पकड लेिा है , उसी से मेदटंग हो जािी है । रानी मौनगहृ में वापस आिी है और नर
मर जािा है । इसे नपररयल फ्लाइट कहिे हैं। मेदटंग के दो िीन ददन पश्चाि रानी अण्डे दे ने लगिी है ।

मधम
ु क्खी में जीवन चक्र
मधम
ु क्खी में जीवन चि मे चार अवस्र्ाएं होिी हैं-

(1) अण्डा (2) लावाथ ( ) प्यूपा (4) वयस्क

अण्डा यदद नर कोि में है िो उससे नर पैदा होंगे व इसी प्रकार यदद मादा कोि में है , िो मादा पैदा
होगी। रानी, श्रलमक व नर में अण्डा अवस्र्ा िीन ददन िक रहिी है व वयस्क िमशः 5- 6 ददन,
2प से 2 ददन व 2 से 24 ददन में िैयार होिे हैं।

आधतु नक मौन गह
ृ मे मधम
ु क्खी पालन
प्राचीन काल से मधम
ु क्खी अपना छत्ता प्राकृतिक रूप से पेड के खोखले, दीवार की दरारों, छज्जों,
लमट्टी के घरों, लकडी के संदक
ू आदद में छत्ते बनािी है , स्जससे मधु का तनष्कासन करने के ललए छत्ते
को काट कर तनचोडिे र्े, स्जसके फलस्वस्प तनचोडिे समय अण्डा, लावाथ व प्यूपा का रस भी मधु में
आ जािा र्ा और छत्ता टूट जाने पर उसका वंश ही नष्ट हो जािा र्ा। इस प्रकार शुद्ध मधु भी प्राप्ि
नहीं होिा र्ा िर्ा मौनवंश भी नष्ट हो जािा र्ा इससे बचने के ललए वैज्ञातनकों ने िमशः शोध एवं
अध्ययन करके प्रकृति में बनाये गए छत्तों के लसद्धान्ि के अनरू
ु प िर्ा उसी के आधार पर
मधम
ु स्क्खयों को पालने हे िु मौनगह
ृ (लकडी के बक्से) व मधु तनष्कासन मशीन आदद उपकरणों का
आषवष्कार क्रकया, स्जससे मधम
ु स्क्खयों (मौनवंश) को आसानी से लकडी के बक्से में पाला जा सकिा
है ।

मधम
ु क्खी पालन पष्ु प पंचाग (फ्लोिल कलेन्डि) प्रबन्धन

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पोिण की योजना: मधम
ु क्खी पालक/कृिक को मधम
ु क्खी पालन करने से पण
ू थ इनके पोिण के ललए परू े
विथ की योजना बनाना अतनवायथ है । मधम
ु क्खी का पोिण पराग व मकरन्द है , जो इन्हें फूलों से प्राप्ि
होिा है । इसललए मधम
ु क्खी पालकों/कृिकों को चादहए क्रक वो इस पालन को अपनाने से पव
ू थ ये
सुतनस्श्चि कर लें क्रक क्रकस माह में क्रक वनस्पति से पूरे विथ नेक्टर व पोलन बहुिायि से लमलिे रहें गे,
क्योंक्रक पोलन व नेक्टर प्राकृतिक रूप से प्राप्ि नहीं होने की अवस्र्ा में कृबत्रम भोजन चीनी के घोल
के रूप में ददया जािा है , स्जससे मात्र मधम
ु स्क्खयां जीवन तनवाथह ही कर पािी हैं। स्जन वनस्पतियों से
पराग व मकरन्द प्रचरु मात्रा में लमलिा है वे इस प्रकार हैं- सरसों, िोररया, धतनयां, सौंफ, नींबू, अरहर,
लीची, सहजना, करौंदा, बरसीम, कद्दव
ू गीय सब्जी, यूकेललप्टस, करं ज, आंवला, मूंग, शीशम,
सूरजमुखी, नीम, खैर, में हदी, ज्वार, बाजरा, जवांसा, कटे री, रोदहडा, ललसोडा, अनार, खेजडी, बांसा
आदद।

कृिक को चादहए के अपने िेत्र का माहवार पुष्प कलेण्डर िैयार करें क्रक क्रकस माह में क्रकस
वनस्पति से मकरन्द व पराग उपलब्ध हो सकेगा। यदद वे वनस्पतियां पास के िेत्र में हो िो
मधम
ु क्खी पालक, मधम
ु क्खी पेदटका (हाइव) को वहां पर ले जाकर मकरन्द व पराग प्राप्ि कर सकिे
हैं।

मधम
ु क्खी पालन के सलए स्थान तनधाषिण व प्रबंधन
o मधम
ु क्खी पालन के ललए स्र्ान चन
ु ाव के ललए आवश्यक है क्रक 2- क्रक.मी. िेत्र में पेड-पौधे
बहुिायि में हों, स्जनमें पराग व मकरन्द विथभर लमल सकें।
o िेज हवाओं का स्र्ान पर सीधा प्रभाव नहीं होना चादहए। यदद स्र्ान छायादार पेड नही है िो
वहां अप्राकृतिक रूप से छायादार स्र्ान बनाना चादहए।
o स्र्ान मुख्य सडक से र्ोडा दरू होना चादहए। भूलम समिल व पानी का तनकास उधचि होना
चादहए।
o पास ही साफ एवं बहिा हुआ पानी मधमु क्खी पालन के ललए आवश्यक है ।
o नया लगाया हुआ बगीचा इस हे िु उधचि है , ज्यादा घना बगीचा भी गमी के मौसम में हवा को
आने जाने से रोकिा है ।
o स्र्ान के चारों िरफ िारबंदी या हे ज लगाकर अवांछनीय आने वालों को रोका जा सकिा है ।
o एषपयरी में पंस्क्ि से पंस्क्ि की दरू ी प फुट व बाक्स से बाक्स की दरू ी फुट रखें । बक्सों को
पंस्क्ि में बबखरे रूप में रखना चादहए। एक स्र्ान पर 5प से पप बक्से िक रखे जा सकिे हैं।

नवीन मधम
ु क्खी पालन इकाई स्थापना एवं प्रबंधन
मधम
ु क्खी पालक/कृिक मधम
ु क्खी पालन प2 से
लेकर पप मौनगह
ृ (हाइव) िक रख सकिा है । एक
मौनगह
ृ में िलपट, लशशु खण्ड, मधु खण्ड, भीिर ढक्कन,

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ऊपरी ढक्कन व 2प चैखट मोमी शीट के सार् होिी है । इसे दो मधम
ु क्खी कोलोनी से शरू
ु क्रकया जा
सकिा है । एक मधम
ु क्खी कोलोनी में 8 चैखट मधम
ु क्खी एक रानी होिी है । व चौखट मे अण्डा, लावाथ
व प्यप
ू ा भी होिे है । अच्छी कोलोनी में प्यप
ू ा की मात्रा अधधक होिी है । एक मौनगहृ में 2प फ्रेम
(चैखट) मधम
ु क्खी होिी है , लेक्रकन 2प चैखट मधम
ु क्खी खरीदने पर व्यय ज्यादा करना पडिा है ।
इसीललए 8 फ्रेम कालोनी शरू
ु आि करने पर विथ भर में इिनी ही मधम
ु क्खी की कोलोनी और िैयार हो
जािी है । इसीललए एक विथ में पहले मौनगह
ृ मजबि
ू करने चादहए। एक मजबि
ू मौनगह
ृ से औसिन
6प-8प क्रक.ग्रा. शहद प्राप्ि होिा है । यदद कृिक माइग्रेशन (स्र्ानान्िरण) पद्धति के द्वारा मधम
ु क्खी
पालन करना चाहिा है िो उसे प से 5प मौनगह
ृ से शुरूआि करनी चादहए व कोलशश करनी चादहए
क्रक एक गांव या िेत्र मे मौनपालक सामूदहक रूप से औसिन 5प मौनगह
ृ स्र्ानान्िरण पद्धति यानी
एक स्र्ान से दस
ू रे स्र्ान पर ले जाकर मधम
ु क्खी पालन करें । इससे एक स्र्ान से दस
ू रे स्र्ान पर
लाने व ले जाने पर होना वाला व्यय प्रति व्यस्क्ि कम आिा है ।

ऋिु मौन (मधम


ु क्खी) प्रबंधन
ऋिुओं के अनुरूप मधम
ु क्खी पालने एवं अधधक से अधधक उत्पादन करने के ललए जो व्यवस्र्ा एवं
प्रबन्ध करना होिा है उसे ऋिु मौन प्रबन्ध कहिे है । यह प प्रकार का होिा है ।
1. विाथ ऋिु मौन प्रबन्धन:
o मौनगह
ृ को छाया में रखने अर्वा पालीर्ीन से ढकना चादहए।
o मौनगह
ृ के अन्दर नमी न रहने पाये। यदद नमी हो िो धप
ू ददखाकर सुखा दे ना चादहए।
o मोमी पिंगे का प्रकोप न होने पाये।
o कृबत्रम भोजन चीनी का घोल गमथ करके सप्िाह में दो बार दे ना चादहए।
o यदद संभव हो िो पुष्प रस एवं पराग के सुलभिा वाले िेत्र में स्र्ानान्िररि करें ।
2. शीि ऋिु मौन प्रबन्धन:
इस ऋिु में चीनी का घोल गमथ करके दे ना चादहए। स्टाटथ र दे कर नये छत्ते बनवा लेना चादहए स्जससे
मौनवंश मधु उत्पादन एवं मौनवंश वद्
ृ धध हे िु पूणि
थ या अनुकूल हो। शीिकाल में यदद शीि लहर का
प्रकोप हो िो पालीर्ीन से मौनगह
ृ को ढकना चादहए िर्ा गमथ पानी का घोल दे िे रहना चादहए।
3. ग्रीष्म ऋिु मौन प्रबन्धन:
बसन्ि ऋिु के पश्चाि ग्रीष्म का आगमन होिा हैं इस ऋिु में तनष्कालसि मधु का पररष्कण, षवपणन
एवं मौनगह
ृ को छाया में रखने की व्यवस्र्ा करनी चादहए। ग्रीष्मकाल में पष्ु परस, पराग िर्ा पानी का
अभाव होिा है । ऐसी स्स्र्ति में कृबत्रम भोजन आधा चीनी और आधा पानी लमलाकर दे िे रहना चादहए।
इनके पीने हेिु िाजा जल की व्यवस्र्ा एवं मौनगह
ृ को बोरे आदद से ढक कर पानी से नम बनाये
जाने का व्यवस्र्ा करनी चादहए।
शहद है अनमोल रिन, अपनाने का करो जिन।

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मधम
ु क्खी पालन इकाई आर्थषक पवश्लेर्ण (50 बाक् यतू नट)
मद का नाम संख्या दर (रू.) कीमि (रू.)
(अ) स्र्ाई व्यय (खचाथ)
1. मधुमक्खी पेदटका/बाक्स (बी हाइव) 50 1,000 50,000
2. मधम
ु क्खी कॉलोनी ( प फ्रेम) 50 3,000 1,50,000
3. लोहे के स्टै ण्ड 50 75 3,750
4. शहद तनष्कासन मशीन (8 फ्रेम) 1 5,000 5,000
5. बी बेल 5 100 500
6. दस्िाने 5 जोडी 100 500
7. टूल क्रकट 1 200 200
8. नेट व मच्छरदानी ( 2x 2x प फुट) 1 2,300 2,300
9. टे ण्ट, बिथन आदद - 8,000 8,000
10. अन्य फुटकर खचाथ - 5,000 5,000
उप योग (अ) 2,25,250
(ब) आविी व्यय (खचाथ)
1. मधुमक्खी पेदटका (25%) 12 1,000 12,000
2. लोहे के स्टै ण्ड 12 75 900
3. प्लास्स्टक बाल्टी/ शहद भण्डार की (फूड ग्रेड) 100 120 12,000

4. मौमी आधार शीट क्रकलो पप क्रकलो 33,00


5. सल्फर ( प ग्राम/पेक्रकं ग) प पैक्रकट 5प पैक्रकट 500
6. चीनी ( क्रकलो/पेक्रकं ग) 15प क्रकग्रा. 5 क्रकग्रा 5,250
7. मजदरू ी 1 पपप माह 36000
8. माईग्रेशन खचाथ 3 20,000 20,000
9. अन्य फुटकर खचाथ - 5,000 5,000
उप योग (ब) 94,950
(स) ब्याज व मूल्य कटौिी व्यय (खचाथ)
1. स्र्ाई खचाथ पर ब्याज - @14% 31,535
2. अस्र्ाई खचाथ पर 6 माह का ब्याज - @14% 6,646
3. स्र्ाई सामान पर मूल्य कटौिी (मधुमक्खी के - @10% 7,525
अलावा)
उपयोग ( ) 45,706
महायोग (अ+ब+स) 3,65,906
(द) आय (आमदनी)
1. शहद (7प क्रकग्रा/पेदटका) 5प पेदटका से 5पप क्रकग्रा पप क्रकग्रा 3,50,000

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2. मोम (शहद की मात्रा का 2% ) 7प क्रकग्रा 25प/क्रकग्रा 17,500

3. अतिररक्ि कॉलोतनयां (25%) 12 3,000/ कॉलोनी 36,000

कुल योग 4,03500

 मधम
ु क्खी पालक इकाई अनुदान सहायिा हे िु आपके स्जले के उद्यान षवभाग में सम्पकथ
करें ।
 मधम
ु क्खी पालन इकाई स्र्ापना षवत्तीय सहायिा हे िु आपके िेत्र की सषवथस बैंक में
ऋण सहायिा के ललए सम्पकथ करें ।
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