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अभ्यास 2
अभ्यास 2
‘साइकिल से अपनी किस्मत बदलती नेपाली महिलाएँ’ नामक लेख को ध्यानपूर्वक पढ़िए। प्रश्न 7 से 15 तक का उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए
अनुच्छेदों (A से D) में से सही अनुच्छेद चुनकर उसके सामने के कोष्ठक में सही का निशान लगाइए। अनुच्छेदों को एक से अधिक बार
चुना जा सकता है।
A नेपाल की सुरखेत घाटी में रहने वाली कु छ महिलाओं को साइकिल ने आज़ादी और रोजी-रोटी, दोनों दी हैं । सुबह-सुबह वे अपनी साइकिलों पर
सब्जियाँ लादती हैं और बाजार की तरफ निकल पड़ती हैं । ये साइकिलें उन्हें एक विदेशी संस्था ने दी हैं ।
इन्हीं महिलाओं में से एक नंदूकाला बसनेत कहती हैं कि साइकिल ने उनकी जिंदगी बदल दी । 33 साल की बसनेत के मुताबिक, साइकिल के साथ
जिंदगी बहुत अच्छी है । अगर मेरी साइकिल ठीक नहीं है तो मेरी जिंदगी भी ठीक नहीं है ।
B जब नेपाल में गृहयुद्ध चरम पर था तो बसनेत को अपना गाँव छोड़ना पड़ा उनका गाँव माओवादियों के नियंत्रण वाले इलाके में था जबकि उनके पति
नेपाली सेना में सैनिक थे। इसलिए उन्हें वहां शक की निगाहों से देखा जाता था ।
एक बार जब माओवादी विद्रोहियों के एक ठिकाने पर सेना के एक हेलीकॉप्टर ने बमबारी की तो वहाँ अफवाह फै ल गई कि यह कार्रवाई बसनेत की
तरफ से दी गई जानकारी के आधार पर ही की गई है ।
विद्रोहियों ने बसनेत को सबक सिखाने की ठानी । पड़ोसियों ने उनसे कहा कि वह गांव छोड़ दें । उन्हें रातोंरात वीरेंद्रनगर आना पड़ा जो सुरखेत घाटी
का मुख्य शहर है ।
C नंदूकाला बसनेत बताती हैं, “यहां पहुंच कर मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा । मेरे पास कोई जमीन जायदाद नहीं थी । मैंने पैसे के लिए नदी से रेत तक
निकाली और एक दिन तो पत्थर भी तोड़े ।”
फिर उन्होंने सब्जियाँ बेचनी शुरू कीं, लेकिन उन्हें 30 किलोग्राम की टोकरी को ढोकर बाजार ले जाना पड़ता था । कई बार तो वह सिर्फ 100
रुपयों के साथ घर लौटती थीं । फिर उन्हें साइकिल मिली और उनका कारोबार चल निकला । अब बसनेत 100 किलोग्राम तक सामान बाजार ले जा
सकती हैं, जिसमें सब्जियों के अलावा तिल और दालें भी शामिल हैं । साइकिल के जरिए वह दूर- दूर के बाजारों में भी आसानी से जा सकती हैं ।
अपनी दिन भर की कमाई 600 रुपयों को गिनते हुए वह कहती हैं यह मेरा अब स्थाई काम बन गया है।”
D हालाँकि पुरुष प्रधान नेपाली समाज में महिलाओं का साइकिल पर चढ़ना कई लोगों को रास नहीं आता ।
बसनेत ने जब साइकिल उठाई तो उन्हें कई लोगों ने बुरा भला कहा । लेकिन पति की मौत के बाद 4 बच्चों की परवरिश के लिए उनके सामने कोई
और रास्ता नहीं बचा था। वह बताती हैं “जब मैंने साइकिल उठाई तो लोगों ने कहा वह साइकिल चलाना क्यों सीख रही है । क्या उसे शर्म नहीं आती
?” रूढ़िवादी नेपाली समाज में विधवाओं को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रह भी हैं । उन्हें मनहूस समझा जाता है । लेकिन रेगमी अपनी साइकिल की
बदौलत आज इस हालत में है कि अपने बच्चों को स्कू ल में पढ़ा रही हैं । यही नहीं, अपनी झोपड़ी की जगह अब उन्होंने पक्का मकान भी बनवा लिया है
।