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Meaning, characteristics, nature and type of discipline.

हम सभी विभिन्न स्कूल विषयों से परिचित हैं जैसे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान व गणित इत्यादि। यह
सभी विषय विभिन्न अनश
ु ासन से संबंधित हैं। यदि हम ध्यान दें तो पता लगेगा की इन सभी विषयों को
पढ़ाने के ढं ग अलग अलग हैं। विज्ञान को सामाजिक विज्ञान की तरह नहीं बढ़ाया जा सकता।
ऐसा क्यों है ?
क्योंकि सभी विषयों की प्रकृति अलग अलग है । अतः किसी विषय को पढ़ाने से पूर्व यह जानना जरूरी है
कि विषय की प्रकृति या स्वरूप क्या है । किसी विषय की प्रकृति या स्वरूप को जानने से पूर्व यह जानना
जरूरी है की विषय या अनश
ु ासन क्या है ?

विषय:
ज्ञान का विभिन्न भागों में विभाजन ही विषय है । अतः जब ज्ञान को विषय अनुकूल विभाजित करके
पढ़ाया जाता है तो उसे विषय कहा जाता है ।

* "Subject is the branch or area of knowledge studied in a school."


Or
* " A subject is an area of knowledge or study especially one that one study at school college or
university level." Ex. भूगोल व इतिहास इत्यादि।

अनुशासन या अध्ययन क्षेत्र :

अध्ययन क्षेत्र से अभिप्राय उस शैक्षिक क्षेत्र से है जहां किसी विषय संबंधी ज्ञान का सूक्ष्म व विस्तत

अध्ययन किया जाता है व विषय संबंधी अनस
ु ंधान पर भी जोर दिया जाता है । सामान्यतः स्कूल स्तर
पर पाठ्यक्रम निश्चित रहता है व किसी भी विषय को स्थूल रूप में ही पढ़ाया जाता है यानि कि विषय
संबंधी मुख्य बिंदओ
ु ं पर ही ध्यान दिया जाता है । इस स्तर पर विषय अनुसंधान सम्मिलित नहीं रहता।
उदाहरण के लिए सामाजिक विज्ञान विषय को लें। सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में इतिहास, भूगोल,
समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान इत्यादि विषय सम्मिलित रहते हैं। इन सभी विषयों से स्थूल
ज्ञान लेकर सामाजिक विज्ञान विषय का निर्माण किया गया है । स्कूल स्तर पर सामाजिक विज्ञान में
सम्मिलित सभी विषयों का व्यक्तिगत अध्ययन संभव नहीं है । यदि इन सभी विषयों का व्यक्तिक
अध्ययन किया जाए तो यह अति विस्तत
ृ हो जाएगा। अतः स्कूल स्तर पर प्रत्येक विषय की अपनी
सीमाएं हैं। अब प्रश्न यह है कि किस स्तर पर इन विभिन्न विषयों का व्यक्तिक व सक्ष्
ू म अध्ययन या
इससे संबंधित अनुसंधान संभव है ।
यह सब कार्य उच्च शैक्षिक स्तर पर किया जाता है जैसे महाविद्यालय व मुख्यतः विश्वविद्यालय स्तर
पर किया जाने वाला विभिन्न विषयों का व्यक्तिक व सूक्ष्म अध्ययन।
विश्वविद्यालय स्तर पर विषय अनुकूल संकायों की स्थापना की जाती है जहां विभिन्न विषयों का सूक्ष्म
अध्ययन व अनस
ु ंधान किया जाता है ।
अतः अनुशासन उस शैक्षिक क्षेत्र को इंगित करता है जहां विषय अनुकूल सूक्ष्म अध्ययन व अनुसंधान
किया जाता है ।

विषय की प्रकृति:

प्रत्येक विषय की अपनी प्रकृति है । सभी विषयों का शिक्षण अधिगम सामान नहीं हो सकता। प्रत्येक
विषय अपनी ही कुछ विशेषताएं लिए हुए हैं। अतः प्रत्येक विषय की प्रकृति को जानना बहुत जरूरी है ।

1. विषय अध्ययन का एक साधन है ।

2. ये शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है ।

3. ये अध्ययन के एक निश्चित क्षेत्र को इंगित करता है ।

4. इसका अपना एक अलग अनुशासन है ।

5. ये पाठ्यक्रम अनुसार अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की पूर्ति

में सहायक है ।

6. ये विषय अनुकूल विभिन्न अनुभव विद्यार्थियों को प्रदान करता है ।

7. इसकी अध्ययन सामग्री विभिन्न संबंधित क्षेत्रों से संग्रहित की जाती है ।

8. यह व्यवसाय संबंधी ज्ञान प्रदान करने में सहायक है ।

9. यह ज्ञान व कौशल को व्यवस्थित ढं ग से प्रस्तुत करता है ।

10 इससे विद्यार्थियों की आवश्यकता अनुकूल तैयार किया जाता है ।

अनुशासन की प्रकृति:

1. इसमें किसी विषय का सूक्ष्म, विस्तत


ृ व व्यक्तिक अध्ययन किया जाता है ।

2. इसका संबंध अधिगम से है ।

3. यह विषय संबंधी नव ज्ञान प्राप्ति में सहायक है ।

4. इसके अनुसार ज्ञान की कोई सीमा नहीं है इसका निरं तर विस्तार होता रहता है ।

5. इसमें विद्यार्थी, शिक्षक, अनुसंधानकर्ता व विषय विशेषज्ञों का योगदान रहता है ।

6. इसमें ज्ञान के वर्गीकरण पर जोर दिया जाता है ।


7. यह विशिष्ट ज्ञान की एक शाखा है ।

8. इसकी अपनी विषयवस्तु व शैक्षिक साधन हैं।

9. इसमें अनुसंधान पर जोर दिया जाता है ।

10. इसमें निमनोक्त उपागमो (approaches) पर ध्यान दिया जाता है -

*(Multi-disciplinary)
बहु शास्त्रीय अनुशासनात्मक
* (Inter-disciplinary)`
अंतर शास्त्रीय अनुशासनात्मक
* (Trans-disciplinary)
ट्रांस अनुशासनात्मक
*(Cross-disciplinary)
पार अनुशासनात्मक
विषय में अनुशासन में अंतर:

* उद्देश्य (Aim): विषय का उद्देश्य ज्ञान वर्धन व सामाजिक उत्थान करना है जबकि अनुशासन का उद्देश्य
विद्यार्थियों के बौद्धिक क्षमताओं व कौशल का विस्तार करना है ।

* विषय वस्तु (Content): विषय का निर्माण सामान्य विचारों व सूचनाओं से हुआ है । इसमें प्रायोगिक
तकनीकी व स्थानीय ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है । जबकि अनुशासन की विषय वस्तु अधिक
पेचीदी दी है जो कि सिद्धांतों पर आधारित है ।

* केंद्र बिंद ु (Focus): विषय का ध्यान समाज की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक आवश्यकताओं पर
केंद्रित है जबकि अनुशासन का ध्यान विषय संबंधी सूक्ष्मताओं अनुसंधान पर केंद्रित है ।

* निष्कर्ष (Outcome): विषय का उद्देश्य सामान्य कौशल प्रदान कर अच्छे नागरिकों की उत्पत्ति करना है
जैसे अध्ययन लेखन गणित का शिक्षण। इसका क्षेत्र विस्तत
ृ है । जबकि अनुशासन का उद्देश्य विशिष्ट
कौशल उत्पन्न करना है जैसे व्यवसाय की योग्यता या अन्य विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित योग्यताओं को
उत्पन्न करना।

* क्षेत्र (Scope): विषय का क्षेत्र लचीला है जो कि सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो परिवर्तनशील है


जबकि अनुशासन का क्षेत्र विस्तत
ृ है इसमें विषय संबंधी बारीकियों, सूक्ष्म अध्ययन व अनुसंधान पर जोर
दिया जाता है ।
अनुशासन के प्रकार:

प्रश्न यह है कि अनुशासन या शैक्षिक क्षेत्र की उत्पत्ति किस तरह से हुई ? प्राचीन समय में विषयों का

वर्गीकरण नहीं था। दर्शनशास्त्र ही एक विषय था व यही मात्र एक अनुशासन था।समय के साथ-साथ

ज्ञान का विकास हुआ व विषय वर्गीकरण की आवश्यकता को महसूस किया गया। इसके साथ ही ज्ञान

का विभिन्न विषयों में विभाजन प्रारं भ हुआ। शैक्षिक क्षेत्र या अनुशासन का विभाजन विभिन्न शिक्षाविदों

द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से किया गया। वर्तमान समय में अनुशासन को मख्
ु यतः निम्न प्रकार से समूहों

व उप समूहों में वर्गीकृत किया गया है :

1. मानविकी या कला : इस वर्ग के अंतर्गत भाषा, साहित्य, धर्म, दर्शन, मानव, नीति, इतिहास, भूगोल,

अर्थशास्त्र, एवं राजनीतिक शास्त्र को शामिल किया गया है ।

2. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: इस वर्ग के अंतर्गत भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्राणी शास्त्र, वनस्पति

शास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान, एवं वैज्ञानिक तकनीक को शामिल किया गया है ।

3. गणित: इस वर्ग के अंतर्गत अंकगणित, रे खा गणित, बीजगणित, गतिशीलता एवं सांख्यिकी को शामिल

किया गया है ।

4. चिकित्सा विज्ञान: इस वर्ग के अंतर्गत चिकित्सा, यूनानी, होम्योपैथी, पशु चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, आदि

को शामिल किया गया है ।

5. कृषि: इस वर्ग के अंतर्गत कृषि, बागवानी, आदि को शामिल किया गया है ।

6. विधि: इस वर्ग के अंतर्गत अपराधिक कानन


ू , हिंद ू कानून, मुस्लिम कानन
ू , नागरिक कानून, क्षति का

कानन
ू , अंतरराष्ट्रीय कानून एवं संवैधानिक कानन
ू को शामिल किया गया है ।

7. वाणिज्य: इस वर्ग के अंतर्गत लेखा, बैंकिंग, बहीखाता और उससे संबंधित विषयों को शामिल किया गया।

8. ललित कला: इस वर्ग के अंतर्गत ड्राइंग, पें टिग


ं , संगीत, नत्ृ य आदि को शामिल किया गया है ।

9. शिक्षा: इस वर्ग के अंतर्गत शिक्षक शिक्षा, प्रशिक्षण एवं उसके विभिन्न रूपों को शामिल किया है ।

बहुअनुशासनात्मक अध्ययन:
अनुशासन से अभिप्राय एक विशिष्ट शैक्षिक क्षेत्र के अध्ययन से है । इसके विपरीत जब एक

विशिष्ट शैक्षिक क्षेत्र का अध्ययन न करके हम विभिन्न शैक्षिक क्षेत्रों का समावेश किसी विषय या

समस्या के अध्ययन के लिए करते हैं तो इसे बहुअनुशासनात्मक अध्ययन कहते हैं। उदाहरण के लिए

जब हम किसी विषय के अध्ययन या समस्या समाधान में विभिन्न शैक्षिक अध्ययन क्षेत्रों का प्रयोग

करते हैं, जैसे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित, अंग्रेजी इत्यादि, तो इसे हम बहुअनुशासनात्मक अध्ययन

कहें गे। बहुअनुशासनात्मक अध्ययन विभिन्न अनुशासन से ज्ञानार्जन कर अपनी सीमाओं में रहता है । वह

पाठ्यक्रम जिसके फलस्वरूप महाविद्यालय व विश्वविद्यालय स्तर पर डिग्रियां प्रदान की जाती हैं,

बहुअनुशासनात्मक अध्ययन कहलाता है ।

बहुआयामी अध्ययन या बहूअनश


ु ासनात्मक अध्ययन, बहअनश
ु ासनात्मक इसलिए कहलाता है

क्योंकि इसमें विभिन्न संघटक शामिल रहते हैं। यदि हम पर्यावरण अध्ययन को लें तो यह एक

बहुआयामी या बहूअनश
ु ासनात्मक अध्ययन कहलायेगा। क्योंकि यह निमनोक्त संघटकों को स्वयं में

समाहित किए है :

1. मानव शास्त्र:

इसमें मानव की विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन के जाता है । इसमें मुख्यता मानव शारीरिक संरचना,

मानसिक स्वास्थ्य, मानवीय समाज व संस्कृति, मानव उत्पत्ति व विकास का अध्ययन किया जाता है ।

2. जीव विज्ञान:

इसमें जीव, जीवन और जीवन संबंधी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । इस विज्ञान में हम जीवो की

संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में अध्ययन करते हैं। उपरोक्त

सभी पर्यावरण का अभिन्न अंग है ।

3. रसायन विज्ञान:
इसमें हम पदार्थों के संघटक, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान इसमें हुए परिवर्तनों का

अध्ययन करते हैं। यदि हमें पर्यावरण को समझना है तो हमें रसायन विज्ञान का अध्ययन भी करना

होगा।

4. कंप्यूटर विज्ञान:

आधुनिक युग में किसी भी तरह की सूचना का संग्रह जरूरी है जोकि कंप्यूटर के बिना संभव नहीं हो

पाता। पर्यावरण संबंधी डाटा संकलित करने में भी कंप्यूटर का अभिन्न योगदान है । इसके द्वारा

पर्यावरण संबंधित सभी जानकारियां जैसे प्रदष


ू ण के उपाय, मरुस्थलीकरण, जैव विविधता इत्यादि के बारे

में जानकारियों को आसानी से संग्रहित किया जा सकता है ।

5. अर्थशास्त्र:

अर्थशास्त्र में मल
ू तः उत्पादन, उपभोग, वस्तु एवं सेवाओं संबंधी आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया

जाता है । उपरोक्त सभी गतिविधियां पर्यावरण के क्षेत्र में भी महत्वपर्ण


ू प्रभाव रखती हैं। उदाहरणतया:

आर्थिक समद्धि
ृ के फल स्वरुप पर्यावरण भी प्रभावित होगा तो पर्यावरण संतुलन को किस प्रकार कायम

रखा जाए? या प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग किस प्रकार से किया जाए कि पर्यावरण संतुलन

बना रहे ।

6. भूविज्ञान:

इसमें पथ्
ृ वी पर विद्यमान भौतिक संरचना व विभिन्न तत्वों का अध्ययन किया जाता है जैसे ठोस पथ्
ृ वी

का निर्माण करने वाले शैलो व प्रक्रियाओं का अध्ययन। भूसंरचना में होने वाले परिवर्तन व प्रक्रियाएं

पथ्
ृ वी पर विद्यमान पर्यावरण को प्रमुखता से प्रभावित करते हैं।

7. भौतिक विज्ञान:

इसमें ऊर्जा के रूपांतरण व उसके द्रव्य संबंध की विवेचना की जाती है ।इसके द्वारा प्राकृतिक जगत व

उसकी आंतरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । भौतिक विज्ञान पर्यावरण को प्रमुखता से प्रभावित

करता है ।

8. सामाजिक विज्ञान:
इसमें सामाजिक जीवन सामाजिक परिवर्तन, मानव के व्यवहार व अन्य समाजोपयोगी गतिविधियों का

अध्ययन किया जाता है । उपरोक्त सभी विषय सामाजिक पर्यावरण को गहनता से प्रभावित करते हैं।

9. सांख्यिकी :

पर्यावरण अध्ययन में डेटा संग्रह, उसका प्रस्तुतीकर, विश्लेषण, संश्लेषण व गणितीय क्रियाओं में सांख्यिकी

का अमूल्य योगदान रहता है ।

10. इतिहास :

पर्यावरण संरक्षण में इतिहास की अहम भूमिका है । यह हमारे वर्तमान को प्रभावित करता है । इसके

द्वारा प्राचीन व्यवस्थाओं की जानकारी हमें प्राप्त होती है जिसके माध्यम से वर्तमान को संद
ु र व

सव्ु यवस्थित बनाया जा सकता है ।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बहुअनश


ु ासनात्मक व्यवस्था में किसी एक विषय या समस्या

का अनश
ु ासन अनस
ु ार अपने अपने दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है अतः बहूअनश
ु ासनात्मक

व्यवस्था में सभी अनुशासन अपनी सीमाओं में रहकर अपने ही दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इसमें

किसी विषय या समस्या के समाधान में विभिन्न विषयों के योगदान संबंधी प्रायोगिक ज्ञान विद्यार्थी को

प्राप्त होता है व वह भावी समस्याओं के समाधान के लिए तैयार हो पाता है ।

बहुअनुशासनात्मक व्यवस्था के सोपान:

1. शिक्षण की पूर्व योजना:

इस सोपान में यह निश्चित किया जाता है कि किसी विषय या समस्या समाधान के संदर्भ में विभिन्न

अनुशासन या विषयों से पर्याप्त विषय सामग्री उपलब्ध है ।

2. समस्या समाधान प्रक्रिया:

इस सोपान में विद्यार्थियों को समस्या समाधान प्रक्रिया से अवगत कराया जाता है । उन्हें इस बात से

अवगत करवाया जाता है कि समस्या समाधान में अन्य विषयों का सहयोग क्यों अनिवार्य है व विभिन्न

विषयों का प्रयोग किस प्रकार से किया जाए।

3. समस्या पठन:
इस सोपान में विद्यार्थियों के सम्मुख विषय या समस्या से संबंधित विभिन्न बिंदओ
ु ं को इसप्रकार प्रस्तुत

किया जाता है कि वो विभिन्न विषयों का समस्या समाधान में योगदान, को समझ पाए।

4. बहुअनुशासनात्मक दृष्टिकोण का विकास:

इस सोपान में विद्यार्थियों की बहुअनुशासनात्मक सोच को विकसित करने का प्रयास किया जाता है ।

उनके सम्मुख इस प्रकार समस्या को रखा जाता है कि उसके समाधान में वह विभिन्न विषयों के प्रयोग

की अनिवार्यता को समझ पाए। उन्हें इस प्रकार से गह


ृ कार्य दिया जाता है कि वह ने केवल उसी विषय

का ज्ञान प्राप्त करें जिसे शिक्षक पढ़ाता है बल्कि अन्य विषयों की उपयोगिता को भी वह समझ पाए।

5. उचित पष्ृ ठ पोषण:

इस सोपान में विद्यार्थियों को उचित पष्ृ ठ पोषण दिया जाता है । मख्


ु यतः उन विद्यार्थियों को जो

समस्या समाधान मैं विभिन्न विषयों के कुशल समायोजन में प्रवीण हो गए हो।

6. स्व: मल्
ू यांकन:

इस सोपान में विद्यार्थियों में इस क्षमता को विकसित किया जाता है कि वह किसी विषय या समस्या

के समाधान में प्रवीण हो जाएं व स्व:मूल्यांकन कर पाए।

उदाहरण : बहुअनुशासनात्मक शिक्षण

समस्या: इजरायल फिलिस्तीन विवाद


कारण :
1. इजराइल की उत्पत्ति
विषय (राजनीति शास्त्र)
2. प्रतिशोध की भावना
विषय (समाजशास्त्र)
3. धार्मिक विवाद
विषय (दर्शन शास्त्र)
4. जल स्त्रोत
विषय (भू विज्ञान)

सोपान:

1. प्रथम सोपान में शिक्षक द्वारा इजराइल फिलिस्तीन विवाद समस्या पर विभिन्न शैक्षिक

अनश
ु ासनों से पाठ्य सामग्री की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाएगा। उपरोक्त सभी कारण राजनीति

शास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र व भू विज्ञान की विषय वस्तु है । अतः इन सभी से समस्या के संदर्भ में

पाठ्य सामग्री की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

2. द्वितीय सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों को इजरायल और फिलिस्तीन समस्या से अवगत

कराया जाएगा।

3. तत
ृ ीय सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के सम्मुख समस्या से संबंधित मुख्य बिंद ु (इजराइल

की उत्पत्ति, प्रतिशोध की भावना, धार्मिक विवाद व जल स्त्रोत संसाधन) पर प्रकाश डाला जाएगा। इसके

साथ साथ समस्या से संबंधित विभिन्न अनुशासनों के विषय में बताया जाएगा।

4. चतुर्थ सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों में बहुअनुशासनात्मक सोच विकसित करने के लिए

विभिन्न विषयों या अनुशासनों से समस्या का क्या संबंध है , पर प्रकाश डाला जाएगा।

5. पांचवें सोपान में शिक्षक द्वारा सभी विद्यार्थियों से समस्या के संदर्भ में उनके विचारों को

संग्रहित किया जाएगा व सही उत्तर प्राप्त होने पर विद्यार्थियों का उचित पष्ृ ठ पोषण भी किया जाएगा।

6. छोटे सोपान में शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों को किसी बहुअनुशासनात्मक समस्या को हल करने के

लिए गह
ृ कार्य के रूप में दिया जाएगा।

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