Anant Chaturdashi Vrat Katha and Puja Vidhi

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अनंत चतुददशी

व्रत कथा
(पूजा विवध सवित)

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प्राचीन काऱ में सम
ु ॊत नाम का एक नेक तऩस्वी
ब्राह्मण था। उसकी ऩत्नी का नाम दीऺा था। उसकी
एक ऩरम सुॊदरी धममऩरायण तथा ज्योततममयी कन्या
थी। जजसका नाम सश
ु ीऱा था। सुशीऱा जब बडी हुई
तो उसकी माता दीऺा की मत्ृ यु हो गई।
ऩत्नी के मरने के बाद सुमॊत ने ककमशा नामक स्री से
दस
ू रा वववाह कर लऱया। सुशीऱा का वववाह ब्राह्मण
सम
ु ॊत ने कौंडडन्य ऋवष के साथ कर ददया। ववदाई में
कुछ दे ने की बात ऩर ककमशा ने दामाद को कुछ ईंटें
और ऩत्थरों के टुकडे बाॊध कर दे ददए।
कौंडडन्य ऋवष दख
ु ी हो अऩनी ऩत्नी को ऱेकर अऩने
आश्रम की ओर चऱ ददए। ऩरॊ तु रास्ते में ही रात हो
गई। वे नदी तट ऩर सॊध्या करने ऱगे।
सुशीऱा ने दे खा- वहाॊ ऩर बहुत-सी जस्रयाॊ सुॊदर वस्र
धारण कर ककसी दे वता की ऩज
ू ा ऩर रही थीॊ। सुशीऱा
के ऩूछने ऩर उन्होंने ववधधऩूवक
म अनॊत व्रत की महत्ता
बताई। सुशीऱा ने वहीॊ उस व्रत का अनुष्ठान ककया
और चौदह गाॊठों वाऱा डोरा हाथ में बाॊध कर ऋवष
कौंडडन्य के ऩास आ गई।
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कौंडडन्य ने सुशीऱा से डोरे के बारे में ऩूछा तो उसने
सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड कर अजनन में
डाऱ ददया, इससे भगवान अनॊत जी का अऩमान
हुआ। ऩररणामत: ऋवष कौंडडन्य दख
ु ी रहने ऱगे।
उनकी सारी सम्ऩजत्त नष्ट हो गई। इस दररद्रता का
उन्होंने अऩनी ऩत्नी से कारण ऩछ
ू ा तो सश
ु ीऱा ने
अनॊत भगवान का डोरा जऱाने की बात कहीॊ।
ऩश्चाताऩ करते हुए ऋवष कौंडडन्य अनॊत डोरे की
प्राजतत के लऱए वन में चऱे गए। वन में कई ददनों
तक भटकते-भटकते तनराश होकर एक ददन भूलम ऩर
धगर ऩडे।
तब अनॊत भगवान प्रकट होकर बोऱे- ‘हे कौंडडन्य!
तुमने मेरा ततरस्कार ककया था, उसी से तुम्हें इतना
कष्ट भोगना ऩडा। तुम दख
ु ी हुए। अब तुमने
ऩश्चाताऩ ककया है । मैं तम
ु से प्रसन्न हूॊ। अब तम
ु घर
जाकर ववधधऩव
ू क
म अनॊत व्रत करो। चौदह वषमऩयंत व्रत
करने से तम्
ु हारा दख
ु दरू हो जाएगा। तम
ु धन-धान्य
से सॊऩन्न हो जाओगे। कौंडडन्य ने वैसा ही ककया और
उन्हें सारे क्ऱेशों से मुजक्त लमऱ गई।’
श्रीकृष्ण की आऻा से युधधजष्ठर ने भी अनॊत भगवान
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का व्रत ककया जजसके प्रभाव से ऩाॊडव महाभारत के
युद्ध में ववजयी हुए तथा धचरकाऱ तक राज्य करते
रहे ।
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1. अनॊत चतद
ु म शी के ददन प्रात्काऱ स्नान उऩरान्त
ऩज
ू ा स्थऱ ऩर कऱश स्थावऩत करें ।
2. तत्ऩश्चात कऱश ऩर भगवान ववष्णु का चाय धचर
अथवा मूततम स्थावऩत करें ।
3. एक कच्चा धागा ऱेकर उसको कुमकुम, केसर
तथा हल्दी से रॊ गकर अनॊत सूर तनलममत करें।
4. अनॊत सूर में श्री हरी ववष्णु का ध्यान करते हुए
14 गाॉठ प्रभु ऱगाएॊ।
5. अब अनॊत सूर को भगवान ववष्णु के समऺ रखें
तथा भगवान ववष्णु व अनॊत सर
ू का ऩज
ू न
तनम्नलऱखखत मन्र का उच्चारण करते हुए करें,
जो हमने अगऱे ऩष्ृ ठ ऩर ददया हुआ है।
6. ऩज
ू न सॊऩन्न होने ऩर अनॊत सर
ू को अऩनी भज
ु ा
में बाॊध ऱें।
7. यह अनॊत सूर आऩकी समस्त प्रकार के सॊकटों से
रऺा करता है अत् इसकी ऩववरता का ध्यान रखें।

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