ChaturshashtiYoginis-Stotras-v1-2020-04-05 - To Share

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Date : 05-04-2020.
श्री गणेशाय नमः।
This Book Contains –

॥ चतुःषष्टि योष्टिनी स्तोत्र मंत्र ॥


॥ चौसठ योष्टिनी नाम-स्तोत्रम्‌॥
॥६४- योष्टिनी स्त्रोत की हवन ष्टवष्टि॥

॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक देवी-
देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-पहचुँ ाना है,
जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सनु ने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रंथों और अन्य पस्ु तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-
सनु ने-समझने-जानने और सजं ो कर सरु सित रखने योग्य है ।
पर इस जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका नक ु सान कर
सकता है । अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही होंगे ।
(धन्यवाद )\

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64-Yogini-Stotra-Havan- e2Learn By VRakesh


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॥ चतुःषष्टि योष्टिनी (६४)-योष्टिनी ॥


॥ चतुःषष्टि योष्टिनी स्तोत्र मंत्र ॥

आवाहन मंत्र - अष्टि कोण में (South-East)


चतुःषष्टि योष्टिनी का आवाहन करें ।

॥ आवाहन मंत्र ॥
ओम्‌आवाहयाम्यहं देवी योष्टिनीं परमेश्वरीम्‌।
योिाभ्यासेन संतिा परं-ध्यान समष्टिता ॥ * योिा-अभ्यासेन
ष्टदव्य-कण्डल-संकाशा, ष्टदव्य-ज्वाला-ष्टत्रलोचना ।
मूर्ततमती ह्यमूताा च उग्रा च ैवोग्ररूष्टपणी* ॥ *च-ऐव-उग्ररूष्टपणी
अनेक-भाव-संयक्ता, संसाराणाव-ताष्टरणी । *संसार-आणाव
यज्ञे कवान्त ष्टनर्तवघ्नं श्रेयो यच्छ्न्न्त मातर: ॥

अब िंि, अक्षत, िूप, दीप, न ैवेद्य, फल, लाल फू ल आष्टद से पूजन करें ।
इनकी पूजा-जप आष्टद में अष्टिकतर लाल रंि की वस्त का प्रयोि होता है ।
ऐसा तन्त्रों में वर्तणत है।

॥ चतुःषष्टि योष्टिनी-पूजन ॥
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः िंिम समप ायाष्टम । (चन्दन आष्टद िंि चढायें )
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः अक्षत समप ायाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः पष्पं समप ायाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः िूपम आघ्रापयाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः दीपं दशायाष्टम । *समप ायाष्टम
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः नवेद्य ं समप ायाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः आचमनीयं जलं समप ायाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः ऋत फलांष्टन समप ायाष्टम ।
ू म समप ायाष्टम ।
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः तांबल
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॥ मानष्टसक-पूजन ॥
ॐ "लं " पृथ्वी-तत्वात्मकं िन्धं, श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-देवता-प्रीतये समप ायाष्टम नमुः ।
ॐ "हं" आकाश-तत्वात्मकं पष्पं श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये समप ायाष्टम नमुः ।
ॐ "यं" वाय-तत्वात्मकं िूपम्‌ श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये आघ्रापयाष्टम नमुः ।
ॐ "रं" अष्टि-तत्वात्मकं दीपं श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये दशायाष्टम नमुः ।
ॐ "वं" अमृत-तत्वात्मकं महान ैवेद्य ं श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये ष्टनवेदयाष्टम नमुः ।
ॐ "वं" जल-तत्वात्मकं महान ैवेद्य ं श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये ष्टनवेदयाष्टम नमुः ।
ॐ "सं" सवा-तत्वात्मकं सवोपचारार्थे ताम्बूलं श्री चतुःषष्टि योष्टिनी-प्रीतये
समप ायाष्टम नमुः ॥ (*सवोपचारपूजां =सवा-उपचार-पूजां)

अब सनम्न योसगनी मत्रं का २१ जप करें ।


ऐसा सनत्य कमफ में शासमल कर ४१ सदन करें और बली देकर योसगसनयों को संतष्टु करें ।
बसल के सलए एक पीपल के पते पर दही, उड़द (काली दाल),
अित और घी की एक बत्ती जगाकर बसल मंत्र से बसल अपफण करें ।
ऐसा करने से योसगसनयों की कृ पा प्राप्त होती है । इसमें कोई सदं हे नहीं है ।
यह एक आसान और सरल सवधान है ।
पर इनकी पजू ा-और मन्त्रों का जप आसद
सकसी योग्य गरुु के सदशा-सनदेश में ही ज्यादा उसचत होता है,
क्योंसक कुछ योसगनीयां असत उग्र और प्रचण्ड स्वभाव की होती है ।
अगर सकसी कारण-वश नाराज हो जाये तो साधक का सवफनाश भी सनसित है ।
अतः असतररक्त सावधानी रखें ।

देवी-का कवच ( माता दगु ाफ, काली, चन्डी-कोई भी) अवश्य पाठ करें ।

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॥ चतुःषष्टि योष्टिनी स्तोत्र मंत्र ॥


ओम्‌आवाहयाम्यहं देवी योष्टिनीं परमेश्वरीम्‌।
योिाभ्यासेन संतिा परं-ध्यान समष्टिता ॥ * योिा-अभ्यासेन
ष्टदव्य-कण्डल-संकाशा, ष्टदव्य-ज्वाला-ष्टत्रलोचना ।
मूर्ततमती ह्यमूताा च उग्रा च ैवोग्ररूष्टपणी* ॥ *च-ऐव-उग्ररूष्टपणी
अनेक-भाव-संयक्ता, संसाराणाव-ताष्टरणी । *संसार-आणाव
यज्ञे कवान्त ष्टनर्तवघ्नं श्रेयो यच्छ्न्न्त मातर: ॥
ष्टदव्य योिी महायोिी, ष्टसद्धयोिी िणेश्वरी ।
प्रेताशी डाष्टकनी काली, कालराष्टत्र ष्टनशाचरी ॥
हुङ्कारी ष्टसद्ध-वेताली खप ारी भूतिाष्टमनी ।
उर्ध्ा-के शी ष्टवरुपाक्षी शष्ांिी मांस-भोष्टजनी ॥
फू त्कारी वीरभद्राक्षी िूम्राक्षी कलह-ष्टप्रया ।
रक्ता च घोर-रक्ताक्षी ष्टवरुपाक्षी भयंकरी ॥
चौष्टरका भाष्टरका(?माष्टरका) चण्डी वाराही मण्ड-िाष्टरणी ।
ा ी प्रेतवाष्टसनी ॥
भ ैरवी चष्टिणी िोिा दुमख
कालाक्षी मोष्टहनी चिी कं काली भवनेश्वरी ।
कण्डला तालकौमारी यमदूती कराष्टलनी ॥
कौष्टशकी यष्टक्षणी यक्षी कौमारी यंत्रवाष्टहनी ।
दुघाटा ष्टवकटा घोरा कपाला ष्टवष-लङ्घना ॥
**दुघाटे ष्टवकटे घोरे कम्पाले ष्टवष लङ्घने ॥
चत:षष्टि समाख्याता योष्टिन्न्यो ष्टह वरप्रदाुः ।
ष्टत्रलोक्यपूष्टजताुः ष्टनत्यं देव-मानष योष्टिष्टभुः ॥
ॐ चतुःषष्टि योष्टिनीभ्यो नमुः ॥ इष्टत

इत्यावाह्य=इत्य-आवाह्‌-य
ा येत =िन्ध-अष्टदष्टभ-पूजये
॥ िन्धाष्टदष्टभपूज ा त ॥

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॥ चौसठ योष्टिनी नाम-स्तोत्रम्‌॥


िजास्या ससह-वक्त्रा च, िृध्रास्या काक-तष्टण्डका ।
उष्ट्रास्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या ष्टशवानना ॥ *उष्ट्रास्या-अश्वा
उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना ।
कोटराक्षी चािवक्त्रा*, कब्जा च-ष्टवकटानना॥ *च-अिवक्त्रा
शष्ोदरी ललष्टिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना ।
ऋक्षाक्षी के कराक्षी च, बृहत्‌-तण्डा सराष्टप्रया ॥
कपाल-हस्ता रक्ताक्षी, शकी श्येनी कपोष्टतका ।
पाश-हस्ता दंड-हस्ता, प्रचण्डा चण्ड-ष्टविमा ॥
ष्टशशघ्नी पाश-हन्त्री च, काली रुष्टिर-पाष्टयनी।
वसापाना िभारक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमाष्टलका* ॥ *शवहस्ता-आन्त्रमाष्टलका
ऋक्ष-के शी महा-कष्टक्ष-नाािास्या प्रेत-पृष्ठका।
दन्द-शूक-िरा िौञ्ची, मृि-श्रृि
ं ा वृषानना ॥
फाष्टटतास्या िूम्र-श्वासा, व्योमपादोर्ध्ादृष्टिका* । *व्योम-पाद-उर्ध्ा-दृष्टिका
ताष्टपनी शोष्टषणी स्थूल-घोणोष्ठा कोटरी तर्था ॥
ष्टवद्यल्लोला* वलाकास्या, माजाारी कटपूतना। *ष्टवद-य
्‌ ल्‌-लोला
अट्टहास्या च-कामाक्षी, मृिाक्षी चेष्टत ता मताुः॥
॥ फल-श्रष्टत ॥
चतष्षष्टिस्तयोष्टिन्युः* पूष्टजता नवरात्र-के । * चतष्‌-षष्टिस्त-योष्टिन्युः
दुि-बािां नाशयष्टन्त, िभा-बालाष्टद-रष्टक्षकाुः॥ * बालाष्टद= बाल-आष्टद
न-डाष्टकन्यो न-शाष्टकन्यो, न कू ष्माण्डा न-राक्षसाुः।
तस्य पीड़ां-प्रकवाष्टन्त, नामान्येताष्टन* युः पठे त्‌॥ *नामान्य्‌-एताष्टन
बष्टल-पूजोपहारैश्च, िूप-दीप-समप ाणैुः। * पूजा-उपहारैश्‌-च
ष्टक्षप्रं प्रसन्ना योष्टिन्यो, प्रयच्छेयमानोरर्थान*्‌ ॥ *प्रयच्छेय-मानोरर्थान्‌
कृ ष्णाचतदाशीरात्रावपवासी नरोत्तमुः।* कृ ष्णा-चतदाशी-रात्राव-उपवासी नर-उत्तमुः।
प्रणवाष्टदचतर्थ्ान्तनामष्टभहावनं चरेत्‌॥ *प्रणव-आष्टद-चतर्थ्ान्त-नामष्टभ-हावनं चरेत्‌॥
प्रत्येकं हवनं चासां, शतमिोत्तरंमतम्‌* । *शतम्‌-अिोत्तरं-मतम्‌
स-सर्तपषा िग्िलुना, लघ-बदर-मानतुः॥ ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
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|| ६४ योष्टिनी स्त्रोत की हवन ष्टवष्टि ||

सािक कृ ष्ण-पक्ष की चतदाशी को उपवास करे ।


राष्टत्र में िग्िल और घृत से ष्टवभष्टक्त यक्त प्रत्येक नाम के आिे
प्रणव ॐ लिाकर, प्रत्येक नाम से १०८ आहुष्टतयााँ अर्तपत करे ।
पूरी तरह शद्ध होकर, एकाग्र-मन से जो इन नामों का पाठ करता है ।
उसे ष्टकसी भी प्रकार का भय, तन्त्र-मन्त्र, नजर, डाष्टकनी, शाष्टकनी,
कू ष्माण्ड और राक्षस आष्टद ष्टकसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती ।
इसके अलावा देवी सभी मनोकामनाओ को भी पूरा करती है ।

हवन के ष्टलये चौंसठ योष्टिनी नाम इस प्रकार है ।


प्रत्येक नाम के आष्टद में ‘ॐ’्‌तर्था अन्त में स्वाहा लिाकर हवन करें ।
ॐ िजास्यै स्वाहा ।१। ॐ ससह-वक्त्रायै स्वाहा ।२।
ॐ िृध्रास्यायै स्वाहा ।३। ॐ काक-तष्टण्डकायै स्वाहा ।४।
ॐ उष्ट्रास्यायै स्वाहा ।५। ॐ अश्व-खर-ग्रीवायै स्वाहा ।६।
ॐ वाराहस्यायै स्वाहा ।७। ॐ ष्टशवाननायै स्वाहा ।८।
ॐ उलूकाक्ष्यै स्वाहा ।९। ॐ घोर-रवायै स्वाहा ।१०।
ॐ मायूय ै स्वाहा ।११। ॐ शरभाननायै स्वाहा ।१२।
ॐ कोटराक्ष्यै स्वाहा ।१३। ॐ अि-वक्त्रायै स्वाहा ।१४।
ॐ कब्जायै स्वाहा ।१५। ॐ ष्टवकटाननायै स्वाहा ।१६।
ॐ शष्ोदयै स्वाहा ।१७। ॐ ललज्‌-ष्टजह्वायै स्वाहा ।१८।
ॐ श्व-दंष्ट्रायै स्वाहा ।१९। ॐ वानराननायै स्वाहा ।२०।
ॐ ऋक्षाक्ष्यै स्वाहा ।२१। ॐ के कराक्ष्यै स्वाहा ।२२।
ॐ बृहत्‌-तण्डायै स्वाहा ।२३। ॐ सरा-ष्टप्रयायै स्वाहा ।२४।
ॐ कपाल-हस्तायै स्वाहा ।२५। ॐ रक्ताक्ष्यै स्वाहा ।२६।
ॐ शक्यै स्वाहा ।२७। ॐ श्येन्य ै स्वाहा ।२८।
ॐ कपोष्टतकायै स्वाहा ।२९। ॐ पाश-हस्तायै स्वाहा ।३०।
ॐ दण्ड-हस्तायै स्वाहा ।३१। ॐ प्रचण्डायै स्वाहा ।३२।
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ॐ चण्ड-ष्टविमायै स्वाहा ।३३। ॐ ष्टशशघ्न्य ै स्वाहा ।३४।


ॐ पाश-हन्त्रयै स्वाहा ।३५। ॐ काल्य ै स्वाहा ।३६।
ॐ रुष्टिर-पाष्टयन्यै स्वाहा ।३७। ॐ वसा-पानायै स्वाहा ।३८।
ॐ िभा-भक्षायै* स्वाहा ।३९।* भक्षायै या ? रक्षायै , ॐ शव-हस्तायै स्वाहा ।४०।
ॐ आन्त्र-माष्टलकायै स्वाहा ।४१। ॐ ऋक्ष-के श्यै स्वाहा ।४२।
ॐ महा-कक्ष्यै स्वाहा ।४३। ॐ नािास्यायै स्वाहा ।४४।
ॐ प्रेत-पृष्ठकायै स्वाहा ।४५। ॐ दंष्ट्र-शूकर-िरायै स्वाहा ।४६।
ॐ िौञ्च्यै(िौञ्चयै) स्वाहा ।४७। ॐ मृि-श्रृि
ं ायै स्वाहा ।४८।
ॐ वृषाननायै स्वाहा ।४९। ॐ फाष्टटतास्यायै स्वाहा ।५०।
ॐ िूम्र-श्वासायै स्वाहा ।५१। ॐ व्योम-पादायै स्वाहा ।५२।
ॐ ऊर्ध्ा-दृष्टिकायै स्वाहा ।५३। ॐ ताष्टपन्यै स्वाहा ।५४।
ॐ शोष्टषण्यै स्वाहा ।५५। ॐ स्थूल-घोणोष्ठायै स्वाहा ।५६।
ॐ कोटयै स्वाहा ।५७। ॐ ष्टवद्यल्‌-लोलायै स्वाहा ।५८।
ॐ बलाकास्यायै स्वाहा ।५९। ॐ माजााय ै स्वाहा ।६०।
ॐ कट-पूतनायै स्वाहा ।६१। ॐ अट्टहास्यायै स्वाहा ।६२।
ॐ कामाक्ष्यै स्वाहा ।६३। ॐ मृिाक्ष्यै स्वाहा ।६४।

६४ योष्टिनी मंत्र- ॐ ह्रीं सवा योष्टिने कामेश्वरी ह्रीं स्वाहा


॥ॐॐॐ॥

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