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गरु

ु तेग बहादरु जी पर निबंध

हमारे समाज को हमेशा ऐसे महापरु ु षों की आवश्यकता रही है ,जिनके बलिदान से हमें यह प्रेरणा
मिलती है ,कि "अपना जान गवा दो लेकिन सत्य का त्याग ना करो।" इन्हीं महापरु ु षों में से एक महान बलिदानी
थे,“गरु
ु तेग बहादरु जी”। गरु
ु तेग बहादरु जी ने बिना अपने बारे में सोचें दस
ू रों के अधिकारों और विश्वास की
रक्षा के लिए अपनी जान गवा दी।

भारत का इतिहास ऐसे कई महापरु ु षों की वीरता की कहानियों और बलिदानों की गाथा से भरा
हुआ है । ऐसे महापरु ु षों की यादों से हमें हमेशा इस दे श के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती है । अपने धर्म की
रक्षा के लिए बलिदान दे ना तो सब का फर्ज है , लेकिन दस ू रो की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान दे ना केवल
गरु
ु तेग बहादरु जी ने ही सिखाया है ।
गरु
ु तेग बहादरु जी एक मात्र मिसाल है , जिन्होंने दसू रो की आस्था की रक्षा के लिए अपनी जान
गवा दी। इस निबंध में हम गरु ु तेग बहादरु जी से जड़
ु ी कुछ विशेष बातों पर प्रकाश डालेंगे।

सिखों के प्रथम गरु


ु गरु ु नानक दे व के बनाए गए मार्ग का अनस ु रण करने वाले गरु
ु तेग बहादरु
सिखों के नौवें गरु
ु थे। इन्होंने 115 ग्रंथों की रचना की है । जब कश्मीरी पंडितों और अन्य हिंदओ
ु ं को जबरदस्ती
मस
ु लमान बनाया जा रहा था तब गरु ु तेग बहादरु ने इसका विरोध किया। 1675 ईस्वी में मग ु ल शासक
औरं गजेब के सामने इनका सर कटवा दिया गया क्योंकि इन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया।

गरु
ु द्वारा शीश गंज साहिब और गरु
ु द्वारा रकाब गंज साहिब वह स्थान है जहां गरु
ु तेग बहादरु
जी की हत्या की गई थी। यह स्थान उनकी याद दिलाते हैं। इन्होंने धर्म और मानवीय मल् ू य, आदर्शों एवं
संस्कृति के प्रति अपने प्राणों की आहुति दे दी।

गरु
ु तेग बहादरु जी का जन्म पंजाब में स्थित अमत
ृ सर के गरु
ु हरगोविंद सिंह के पांचवें पत्र
ु के रूप
में हुआ था। इनके बचपन का नाम त्यागमल था। 14 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने मग
ु लों के विरुद्ध हो रहे यद्
ु ध
में अपने पिता के साथ अपनी वीरता का परिचय दिया था। इनके इस वीरता के रूप से प्रभावित होकर उनके
पिता ने इनको तेग बहादरु नाम दिया।

गरु
ु तेग बहादरु जी ने धर्म के प्रचार के लिए कई स्थानों पर भ्रमण किया। यह प्रयाग, बनारस,
पटना और असम आदि क्षेत्रों में गए। और वहां पर इन्होंने आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक संबधि ं त कार्य
किए। आध्यात्मिकता तथा धर्म का ज्ञान बांटा।

अंधविश्वास और रुढियों की आलोचना करके एक नए आदर्श स्थापित किया। इन्होंने कुआं


खद
ु वाए और धर्मशालाएं बनवाई आदि परोपकारी कार्य किए। इंग्लिश शायरी यात्राओं के बीच 1666 में गरु

जी के यहां एक पत्र
ु का जन्म हुआ और यही पत्रु दसवां गरु
ु गरु
ु गोविंद सिंह के नाम से जाना गया।

निष्कर्ष
हमारे दे श में विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं और हर किसी को अपने धर्म के प्रति
अपनी आस्था जड़ ु हुई है । हर कोई अपने धर्म को मानता है । अपने धर्म को मानना अच्छी बात है लेकिन

अगर आप दस ू रों को अपने धर्म को मानने के लिए जवाब दे रहे हैं तो यह बहुत ही गलत बात है । किसी से
जबरदस्ती अपना धर्म नहीं बनवाना चाहिए। हर किसी को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता प्राप्त है ।और हमें
किसी अन्य धर्म की निंदा भी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि कोई भी धर्म हमें भेदभाव करना नहीं सिखाता है ।
धर्म हमें आपस में भाईचारा बनाए रखना ही सिखाता है चाहे वह किसी का भी धर्म हो।

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