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इतिहास Class 8 Notes Arora IAS
इतिहास Class 8 Notes Arora IAS
इतिहास
नई NCERT नोट्स
कक्षा -8
सच
ू ी
अध्याय-1 :कैसे , कब और कहााँ
• 1817 में स्कॉटलैंड के अर्णशास्त्री और राजतनतिक िाशणतनक जेम्स लमल ने िीन ववशाल खंडो में A history of British
India नामक एक ककिाब ललखी।
• इस ककिाब में भारि के इतिहास को िीन काल खण्डों दहन्ि,ू मस्ु स्लम और ब्रिदटश में बााँटा र्ा।
• राबटण क्ट्लाइव ने रे नेल को दहंिस्
ु िान के नक़्शे िैयार करने का काम सौंपा र्ा।
• ब्रिटे न की रानी ववक्ट्टोररया का िीसरा बेटा राजकुमार आर्णर को ड्यूक ऑफ़ कनॉट की पिवी गई र्ी।
• 1772 में ब्रिदटश संसि में उसे भ्रष्ट्टाचार के आरोपों पर अपनी सफाई िे नी पड़ी। ( उसे आरोपों से बरी कर दिया गया।
• 1774 में उसने आत्महत्या कर ली।
सहायक संधि -
• गवनणर जनरल ररचडण बेलेजली ( 1798-1805 ) इसे वेलेजली की संधि भी कहा जािा है ।
• जो ररयासि सहायक संधि मन लेिी र्ी उसे अपनी स्विन्त्र सेनाएं रखने का अधिकार नहीं र्ा।
• जो शासक रकम अिा करने में चूक जािे र्े िो जुमाणने के िौर पर उनका इलाका कंपनी अपने कब्जे में ले लेिी र्ी।
उिहारण के ललए अवि के नवाब का आिा इलाका ( 1801 ) में व है िराबाि के कई इलाके इसी आिार पर छीने गए।
मैसूर-टीपू सुल्िान ( शेर-ए-मैसूर )
• है िर अली ( 1761-1782 ) िर्ा टीपू सल्
ु िान ( 1782-1799 ) के नेित्ृ व में मैसरू काफी िाकिवर हो चक
ू ा र्ा।
• 1785 में टीपू सुल्िान ने बंिरगाहों से चन्िन की लकड़ी , काली लमचण और इलाइची का तनयाणि रोक दिया र्ा।
• टीपू सुल्िान ने भारि में रहने वाले फ्ांसीसी व्यापाररयों से घतनष्ट्ि सम्बन्ि ववकलसि ककए और उनकी मिि से अपनी
सेना का आिुतनकीकरण ककया।
• मैसूर के सार् अंग्रेजों की चार बार जंग हुई ( 1767-69 ,1780-84 ,1790-92, और 1799 )
• 1792 में मरािों और है िराबाि के तनजाम और कंपनी की संयक्ट् ु ि फौजों के हमले के बाि टीपू को अंग्रेजों से संधि करनी
पड़ी र्ी।
• इस संधि के िहि उसके िो बेटों को अंग्रेजो ( लाडण कानणवाललस ) ने बंिक के रूप में अपने पास रख ललया।
• श्रीरं गपट्टनम की आखखरी जंग में टीपू मारा गया िर्ा सत्ता वोडडयर राजवंश के हार्ों में सौंप िी गई ( टीपू 4 मई 1799
को मारा गया )
अंग्रेजों की मरािों से लड़ाई -
• 1761 में पानीपि की िीसरी लड़ाई में हार के बाि मरािा राज्य कई राज्यों में बट गया।
• इन राज्यों की बागडोर लसंधिया होलकर, गायकवाड़ और भोंसले जैसे अलग-अलग राजवंशों के हार् में र्ी।
• ये सारे सरिार एक पेशवा के अंिगणि एक कन्फेडरे सी ( राजयमण्डल ) के सिस्य र्े।
• पेशवा राजयमण्डल का सैतनक और प्रशासतनकीय प्रमुख होिा र्ा। और पुणे में रहिा र्ा।
• महाद्जी लसंधिया और नाना फडनीस अिारहवीं सिी के आखखर के िो प्रलसद्ि मरािा योद्िा और राजनीतिज्ञ र्े।
मरािो के सार् अंग्रेजो के िीन युद्ि हुए -
a) पहला युद्ि-1782 में सालबाई संधि के सार् ख़त्म हुआ।
b) िसू रा अंग्रेज-मरािा युद्ि -( 1803-05 ) निीजा यह हुआ कक उड़ीसा और यमुना के उत्तर में स्स्र्ि आगरा व दिल्ली सदहि
कई भू-भाग अंग्रेजो के कब्जे में आगए।
c) िीसरा यद्
ु ि- ( 1817-19 ) मरािो की िाकि कुचल िी गयी। पेशवा को पण
ु े से हटाकर कानपरु के पास ब्रबिूर में पेंशन
पर भेज दिया गया।
d) ववंध्य के िक्षक्षण में स्स्र्ि पूरे भू-भाग पर कंपनी का तनयंत्रण हो गया।
सवोच्चिा का िावा -
• लाडण हे स्स्टं ग ( 1813 से 1823 िक ) गवनणर जनरल के नेित्ृ व में " सवोच्चिा " की एक नयी तनति शुरू की गई।
• कंपनी का िावा र्ा कक उसकी सत्ता सवोच्च है इसललए वह भारिीय राज्यों से ऊपर है ।
• ककत्तूर ( कनाणटक ) की रानी चेन्नमा ने अंग्रेजो का ववरोि ककया फलस्वरूप 1824 में उन्हें धगरफ्िार ककया गया और 1829
में जेल में ही उनकी मत्ृ यु हो गयी।
• चेन्नम्मा के बाि ककत्तरू स्स्र्ि संगोली के एक गरीब चौकीिार रायन्ना ने यह प्रतिरोि जारी रखा। अंि में अंग्रेजो ने उसे
भी ( 1830 ) में फांसी पर लटका दिया।
• 1830 के िशक के अंि में कंपनी को रूस के प्रभाव से डर हुआ। इसललय उन्होंने 1838 से 1842 के बीच अफगातनस्िान
के सार् लम्बी लड़ाई लड़ी और वहााँ अप्रत्यक्ष शासन स्र्ावपि ककया।
• 1843 में लसंि पर भी कब्ज़ा।
• इसके बाि पंजाब की बारी परन्िु महाराजा रणजीि लसंह की वजह से िाल नहीं गली। 1839 में उनकी मत्ृ यु के बाि िो
लम्बी लड़ाईयां हुई और 1849 में अंग्रेजो ने पंजाब पर भी अधिग्रहण कर ललया।
ववलय तनति -
• अधिग्रहण की आखखरी लहार 1848-1856 के बीच गवनणर जनरल लाडण डलहौजी के शासन काल में चली।
• इस लसद्िांि के अनुसार ककसी शासक की मत्ृ यु हो जािी है और उसका कोई पुरुष वाररस नहीं है िो उसकी ररयासि हड़प
कर ली जािी र्ी।
• इस लसद्िांि के आिार पर सिारा (1848 ), सम्बलपुर ( 1850 ), उियपुर ( 1852 ), नागपरु (1853 ), और झााँसी (1854 )
पर अंग्रेजो ने कब्ज़ा कर ललया।
• 1856 में कंपनी ने अवि के नवाब पर कुशासन का आरोप लगािे हुए इसे भी तनयंत्रण में ले ललया।
नए शासन की स्र्ापना-
• गवनणर जनरल वारे न हे स्स्टं ग ( 1773-1785 ) के समय िक कंपनी बंगाल, बम्बई और मद्रास की सत्ता हालसल कर चुकी
र्ी।
• ब्रिदटश इलाके िीन प्रेलसडेंसी में बंटे र्े -बंगाल,मद्रास और बम्बई।
• शासन गवनणर का होिा र्ा और सबसे ऊपर गवनणर जनरल होिा र्ा।
• वॉरे न हे स्स्टं ग ने प्रशासकीय व न्याय के क्षेत्र में कई सुिर ककए।
• 1772 में नई व्यवस्र्ा के अंिगणि हर स्जले में िो अिालिे स्र्ावपि की गई।
• फौजिारी अिालि -काजी (एक न्यायािीश ) और मुफ़्िी( मुस्स्लम समुिाय का एक ब्ययववि जो कानूनों की व्याख्या करिा
है । काजी इसी व्याख्या के आिार पर फैसले सन
ु ािा है ) के अंिगणि कलेक्ट्टर की तनगरानी में।
• िीवानी अिालि-यूरोपीय स्जला कलेक्ट्टर इनके मुखखया र्े।
नोट- 1785 में जब वॉरे न हे स्स्टं ग इंग्लैण्ड लौटा एडमंड बके ने उस पर बंगाल के कुशासन का आरोप लगाया फलस्वरूप हे स्स्टं ग
पर महालभयोग चलाया गया जो ब्रिदटश संसि में 7 साल िक चलिा रहा।
• 1775 में 11 पंडडिों को भारिीय कानूनों का संकलन िैयार करने का काम सौंपा।
• एन. बी. हालडेड ने इस संकलन का अंग्रेजी में अनव
ु ाि ककया।
• 1778 िक यूरोपीय न्यायािीशों के ललए मुस्स्लम कानूनों की भी एक संदहिा िैयार कर ली गई।
• 1773 के रे ग्युलेदटंग ऐक्ट्ट के िहि एक नए सवोच्च न्यायलय की स्र्ापना की स्र्ापना की गयी।
• इसके आलावा कलकत्ता में अपीली अिालि- सिर तनजामि अिालि की भी स्र्ापना की गयी।
कलेक्ट्टर -भारिीय स्जले ओहिा या पि
• इसका काम लगान व कर इकट्िा करना, न्यायािीशों,पलु लस अधिकारीयों व िरोगा की सहायिा से स्जले में कानन
ू व्यवस्र्ा
बनाए रखना र्ा।
• उसका कायणकाल "कलेक्ट्रे ट " सत्ता और संरक्षण का नया केंद्र बन गया र्ा।
कंपनी की फ़ौज -
• अंग्रेज अपनी सेना को लसपॉय ( जो भारिीय शब्ि लसपाही से बना है ) आमी कहिे र्े।
• 1820 के िशक से ब्रिदटश साम्राज्य बमाण, अफगातनस्िान और लमश्र से भी लड़ रहा र्ा जहााँ लसपाही मस्कट ( िोड़ेिार बंिक
ू
) और मैचलॉक से लैस र्े।
• लसपादहयों को यूरोपीय ढं ग का प्रलशक्षण अभ्यास और अनुशासन लसखाया जाने लगा।
तनष्ट्कषण-
• ईस्ट इंडडया कंपनी एक व्यापाररक कंपनी से बढ़िे-बढ़िे एक भौगोललक औपतनवेलशक शस्क्ट्ि बन गयी।
• 1857 िक भारिीय उपमहाद्वीप के 63 प्रतिशि भभ
ू ाग और 78 प्रतिशि आवािी पर कंपनी का सीिा शासन स्र्ावपि हो
चुका र्ा।
अध्याय-3: ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलना
• राजस्व अधिक होने से जमींिार इसे चूका नहीं पािे र्े िो उनकी जमींिारी छीन ली जािी र्ी।
• राजस्व हमेशा के ललए िय होना।
महलवाड़ी बंिोबस्ि ( 1822 )
• बंगाल प्रेलसडेंसी के ललए उत्तर-पस्श्चम प्रांिों के ललए होल्ट मैकेंजी द्वारा िैयार की गई।
• इसमें गााँव के प्रत्येक अनुमातनि राजस्व को जोड़कर हर गााँव या ग्राम समूह ( महाल ) होने वाले राजस्व का दहसाब
लगाया जािा र्ा।
• इस राजस्व को स्र्ाई रूप से िय नहीं ककया गया र्ा। बस्ल्क उसमे समय-समय पर संशोिनो की गुंजाइस रखी गयी।
• राजस्व इकट्िा करने और उसे कंपनी को अिा करने का स्जम्मा जमींिार के बजाए गााँव के मुखखया को सौंप दिया गया।
मन
ु रो व्यवस्र्ा या रै यिवाड़ी व्यवस्र्ा-
• िक्षक्षण भारियीय इलाकों में लागू र्ी।
• कैप्टन एलेक्ट्जेंडर रीड ने टीपू सुल्िान से युद्ि के बाि हड़पे गए इलाकों में सबसे पहले इस व्यवस्र्ा को अपनाया र्ा।
• टॉमस मुनरो ने यह व्यवस्र्ा स्र्ाई कर पुरे भारि में लागू की।
• इसमें राजस्व का ऑकलन करने से पहले खेिों का सवेक्षण ककया जािा र्ा कफर सीिा ककसानों ( रै यिों ) से राजस्व
बंिोबस्ि ककया गया।
• मुनरो का यह मानना र्ा कक अंग्रेजो को वपिा की िरह ककसानों की रक्षा करनी चादहए।
यूरोप के ललए फसलें -
• अिारहवीं शिाब्िी के आखखर िक कंपनी ने अफीम और नील की खेिी पर पूरा जोर लगा दिया र्ा।
• लगभग 150 साल िक अंग्रेज िे श के ववलभन्न भागों में ककसी न ककसी फसल के ललए ककसानों को मजबूर करिे रहे ।
• जैसे -बंगाल में पटसन, असम में चाय , संयक्ट्
ु ि प्रान्ि ( वत्तणमान में उत्तर प्रिे श ) में गन्ना , पंजाब में गें हूाँ , महाराष्ट्र व
पंजाब में कपास , मद्रास में चावल।
भारिीय नील की मााँग क्ट्यों र्ी?
• नील का पौिा मुख्य रूप से उष्ट्णकदटबंिीय ( गमण ) इलाकों में ही उगिे र्े।
• िेरहवीं शिाब्िी िक इटली , फ़्ांस और ब्रिटे न के कपड़ा उत्पाि कपडे की रं गाई के ललए भारिीय नील का इस्िेमाल कर
िहे र्े।
• यूरोपीय उत्पािक बैगनी और नीला रं ग बनाने के ललए बोड ( शीिोष्ट्ण ) नामक पौिे का इस्िेमाल करिे र्े परन्िु वह
फीका र्ा उत्तरी इटली , िक्षक्षणी फ़्ांस व जमणनी और ब्रिटे न के कई दहस्सों में यह पौिा उगिा र्ा।
• कैररब्रबयाई द्वीप समूह स्स्र्ि सेंि डोलमंगयू में फ्ांसीसी , िाजील में पुिग
ण ाली, जमैका में ब्रिदटश और वेनेजुएला में स्पैतनश
लोग नील की खेिी करने लगे।
• उत्तरी अमेररका में भी नील की खेिी का प्रारम्भ हुआ।
• ब्रिटे न में औिोधगकीकरण होने से उसके कपास उत्पािन में वद्
ृ धि हुई परन्िु इसी िौरान वेस्ट इंडीज और अमेररका से
नील का आयाि बंि हो गया।
• 1783 से 1789 के बीच ितु नया में नील का उत्पािन आिा रह गया। स्जसके कारण भारिीय नील की मांग बढ़ी।
• ब्रिटे न द्वारा भारि से नील आयाि 1788 में 30 प्रतिशि जबकक 1810 में यह 95 प्रतिशि हो गया।
• नील की खेिी के िोमख्
ु य िरीके र्े -तनज और रै यिी
• तनज खेिी--इस व्यवस्र्ा में बागान माललक खुि अपनी जमीन पर नील का उत्पािन करिे र्े। या िो वह जमीन खरीि
लेिे र्े या िस
ू रे जमींिारों से जमीन भाड़े पर ले लेिे र्े और मजिरू ों को काम पर लगाकर नील की खेिी करवािे र्े।
• समस्या→ बड़े भूखंड उपलब्ि न होना , ककसानों से टकराव िर्ा िनाव , मजिरू ों का इंिजाम मुस्श्कल , हल बैलो का
आभाव।
• तनज व्यवस्र्ा के अंिगणि नील की पैिावार लसफण 25 प्रतिशि ( उससे भी कम ) र्ी। नील की खेिी होने के बाि उसमे
कोई फसल नहीं होिी र्ी। जमीन बंजर हो जािी र्ी।
• रै यिी खेिी →इसमें बागान माललक रै यिों से एक अनुबंि करिे र्े।
• मुखखया रै यिों की िरफ से अनुबंि के ललए बाध्य ककया जािा र्ा। िर्ा अनुबंि के बाि कम व्याज पर कजण दिया जािा
र्ा एवं कम से कम 25 प्रतिशि जमीन पर नील की खेिी करनी होिी र्ी।
नील ववद्रोह
• माचण 1859 में बंगाल के हजारों रै यिों ने लमलकर नील खेिी करने से इनकार कर दिया।
2 घुमंिू काश्िकार -
• झूम खेिी करने वाले घुमंिू काश्िकारों को भी स्र्ाई जमीन िे ककर उन्हें स्र्ाई खेिी करने को बाध्य ककया गया।
• कुछ ककसानों को भ-ू स्वामी िर्ा कुछ को पट्टे िार बनाया गया।
• पट्टे िार अपने भ-ू स्वालमयों को भाड़ा चक
ु ािे र्े और भस्
ू वामी सरकार को लगान िे िे र्े।
• पूवोत्तर राज्यों में झूम काश्िकारों के ववरोि के बाि उन्हें जंगल के भागों पर परं परागि झम
ू खेिी करने की अनुमति लमल
गई।
3 वन कानून का प्रभाव-
• अंगेजों ने सारे जंगलो पर अपना तनयंत्रण कर उन्हें राज्य की संपवत्त घोवषि कर दिया।
• झम
ू कास्िकारो को मजबरू न अंग्रेजों द्वारा िी गई जमीन पर खेिी के सार् रे लवे की पटररयााँ ववछाने का काम भी करना
पड़िा र्ा।
• वन कानून के खखलाफ ववद्रोह -1906 में सोंग्राम संगमा द्वारा असम में और 1930 के िशक में मध्य प्रान्ि में वन
सत्याग्रह हुआ।
4 व्यापार की समस्या -
• उनीसवीं शिाब्िी के िौरान व्यापारी और महाजन जनजाति समह
ू ों को नगि कजण िे ने, वन उपज खरीिने िर्ा उन्हें मजिरू ी
पर रखने के उनके पास आने लगे र्े।
• हजारी बाग़ ( झारखण्ड )-वत्तणमान झारखण्ड के हजारी बाग़ के पास संर्ाल जनजाति के लोग रे शम के कीड़े पालिे र्े।
• व्यापारी अपने एजेंटो को भेजकर उनसे कीड़ों का कृब्रत्रम कोष खरीिकर बिण बान या गया भेज िे िे र्े।
• इस िरह ववचौललयें खूब कमा रहे र्े जबकक उत्पािक जनजाति को बहुि कम मुनाफा हो रहा र्ा।
5 काम की िलाश –
• उनीसवीं सिी के आखखर से ही चाय बागान व खनन उद्योग भी एक महत्वपूणण उद्योग बन गया र्ा।
• असम चाय बागानों और झारखण्ड की कोयला खिानों में आदिवालसयों को बड़ी संख्या में भिी ककया गया।
• ये िे केिारों द्वारा तनयुक्ट्ि होिे र्े स्जन्हे बहुि कम वेिन लमलिा र्ा।
बगावि-
• उनीसवीं और बीसवीं शिास्ब्ियों के िौरान ववलभन्न भागों में ववलभन्न जनजािीय समह
ू ों के द्वारा बिलिे कानन
ू ों,
व्यावहाररक पाबंदियों, नए करों और व्यापाररयों व महाजनों द्वारा ककए जा रहे शोषण के खखलाफ ववद्रोह ककया।
I 1831-32 कोल आदिवालसयों द्वारा
I. 1855 संर्ालों द्वारा
II 1910 बस्िर ववद्रोह ( मध्य भारि में )
I 1940 वली ववद्रोह (महाराष्ट्र में )
ब्रबरसामुंडा -
• जन्म 1870 के िशक में। इनकी परवररश मुख्य रूप से बोहोड़ा के आस-पास के जंगलो में हुई।
• ब्रबरसा ने यह ऐलान ककया र्ा कक उसे भगवान ने लोगो की रक्षा और उनको दिकुओं ( बाहरी लोगो ) की गुलामी से आजाि
कराने के ललए भेजा है ।
• ब्रबरसा का जन्म एक मुंडा पररवार में हुआ र्ा। मुंडा एक जनजाति समूह है जो छोटा नागपुर में रहिा है ।
• ब्रबरसा के समर्णकों में इलाके के िस
ू रे आदिवासी संर्ाल और उरााँव भी शालमल र्े।
• ब्रबरसा मुंडा लमशनररयों के उपिे शो िर्ा बाि में बैष्ट्णव िमण प्रचारकों से प्रभाववि हुआ। उन्होंने जनेऊ िारण ककया और
शुद्ििा व िया पर जोर िे ने लगे।
• ब्रबरसा का आंिोलन लमशनररयों , महाजनों, दहन्ि ू भस्
ू वालमयों और सरकार को बाहर तनकालकर ब्रबरसा के नेित्ृ व में मंड
ु ा
राज स्र्ावपि करना चाहिा र्ा।
• 1895 में ब्रबरसा को धगरफ्िार ककया और िं गे -फसाि के आरोप में िो साल की सजा सुनाई गई।
• 1897 में जेल से बहार आकर उन्होंने 'रावणों ' ( दिकु और यूरोवपयों ) को िवाह करने का आहवान ककया।
• सफ़ेि झण्डा ब्रबरसा राज्य का प्रतिक र्ा।
• मत्ृ यु -सन 1900 में है जा से
लखनऊ- नवाब वास्जि अली शाह के बेटे ब्रबरस्जस कद्र को नया नवाब घोवषि कर दिया गया। उसकी मााँ बेगम हजरि महल
ने अंग्रेजों के खखलाफ मोचाण संभाला।
झााँसी- रानी लक्ष्मी बाई ने नाना साहे ब के सेनापति िांत्या टोपे के सार् लमलकर अंग्रेजों को भरी चुनौिी िी।
मांडला( मध्य प्रिे श )- राजगढ़ की रानी अवस्न्ि बाई लोिी ने 4000 सैतनकों की फ़ौज िैयार की और अंग्रेजों के खखलाफ उसका
नेित्ृ व ककया।
फ़ैजाबाि- मौलबी अहमिल्
ु ला शाह ने अपने समर्णकों की एक ववशाल संख्या जुटाकर अंग्रेजों इ लड़ने लखनऊ जा पहुाँचें।
बरे ली- बरे ली के लसपाही बख्ि खान ने लड़कों की एक ववशाल टुकड़ी के सार् दिल्ली की ओर कूच कर दिया।
ब्रबहार-जमींिार कुाँवर लसंह ने ववद्रोही लसपादहयों का सार् दिया और महीनों िक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
नोट- 6 अगस्ि 1857 को लेस्फ्टनेंट कनणल टाइटलर ने अपने कमांडर-इन-चीफ को टे लीग्राम भेजा स्जसमे उसने ललखा-"हमारे
लोग ववरोधियों की संख्या और लगािार लड़ाई से र्क गए है । एक-एक गााँव हमारे खखलाफ है । जमींिार भी हमारे खखलाफ खड़े
हो रहे है । "
कंपनी का पलटवार -
• कंपनी ने अपनी पूरी िाकि लगाकर ववद्रोह को कुचलने के ललए इंग्लैण्ड से और फौजी मंगवाए, ववद्रोदहयों को जल्िी सजा िे ने के ललए
नए कानन
ू बनाए और ववद्रोह के मख्
ु य केंद्रों पर िावा बोल दिया।
• लसिम्बर 1857 में दिल्ली िोबारा अंग्रेजों के कब्जे में आगई।
• बहािरु शाह जफ़र पे मुक़िमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा िी गई। उनके बेटों को उनकी आाँखों के सामने गोली
मार िी गई।
अक्ट्टूबर 1858 को बहािरु शाह और उनकी पत्नी बेगम जीनि महल को रं गून जेल में भेज दिया गया।
इसी जेल में नवम्बर 1862 में बहािरु शाह की मत्ृ यु हो गई।
• माचण 1858 में लखनऊ अंग्रेजों के कब्जे में आ गई।
• जून 1858 रानी लक्ष्मी बाई की लशकस्ि हुई और उन्हें मार दिया गया।
• िात्या टोपे मध्य भारि के जंगलो में रहिे हुए आदिवालसयों और ककसानों की सहायिा से छापामार युद्ि चलािे रहे ।
ववद्रोह के बाि के साल -
• अंग्रेजों ने 1859 के आखखर िक िे श पर िोबारा तनयंत्रण पा ललया।
• ब्रिदटश संसि ने 1858 में एक नया कानून पाररि ककया और ईस्ट इंडडया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिदटश साम्राज्य के हार् में सौंप दिया।
• ब्रिदटश मंब्रत्रमंडल के एक सिस्य को भारि मंत्री के रूप में तनयुक्ट्ि ककया गया। उसे सलाह िे ने के ललए एक पररषद् ( इंडडया काउस्न्सल )
का गिन ककया गया।
• भारि के गवनणर जरनल को वायसराय का ओहिा दिया गया। और उसे इंग्लैण्ड के राजा/रानी का तनजी प्रतितनधि घोवषि कर दिया
गया।
• फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने भारि के शासन की स्जम्मेिारी सीिे अपने हार्ों में ले ली र्ी।
• िे श के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कक भववष्ट्य में कभी भी उनके भू क्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं ककया जायेगा। िर्ा भारिीय शासकों को
ब्रिदटश साम्राज्य के अिीन शासन चलाने की छूट िी गई।
• सेना में भारिीय लसपादहयों की संख्या बढ़ाने का फैसला ललया गया।
• सेना में लसपादहयों का अनप
ु ाि कम करने और यरू ोपीय लसपादहयों की संख्या बढ़ाने का फैसला ललया गया।
• अब अवि , ब्रबहार, मध्य भारि और िक्षक्षण भारि से लसपादहयों को भिी करने के बजाए अब गोरखा,लसखों और पिानों में से ज्यािा
लसपाही भिी ककए जाएंगे।
• मुसलमानों की जमीन और संपवत्त बड़े पैमाने पर जब्ि की गई। उन्हें संिेह व शत्रुिा के भाव से िे खा जाने लगा। अंग्रेजो को लगिा र्ा कक
यह ववद्रोह उन्होंने ही खड़ा ककया र्ा।
• अंग्रेजों ने फैसला ककया कक वे भारि के लोगो के िमण और सामास्जक रीिी-ररवाजों का सम्मान करें गे।
• भू-स्वालमयों और जमींिारों की रक्षा करने िर्ा जमीन पर उनके अधिकारों को स्र्ातययत्व िे ने के ललए नीतियााँ बनाई गई।
• यहााँ के राजा ब्रबरककशोर िे व को स्व अधिकृि चार परगनाओं को िर्ा जगन्नार् मंदिर का संचालन व 14 गढ़ जािो के प्रशासतनक
उत्तरिातयत्व को पूवण में िबाव में आकर मरािाओं को सौंप िे ना पड़ा र्ा।
अंग्रेजों ने सांत्वना के रूप में एक तनयलमि अनुिान के सार् , जो कक उनकी पूवण भू संपवत्त के राजस्व का एक मात्र िशमांश र्ा ,अंग्रजों ने
उन्हें जगन्नार् मंदिर की िे ख-रे ख का िातयत्व दिया िर्ा उनका तनवास पूरी में तनस्श्चि कर दिया।
• खुिाण को अपने अिीन करने के बाि अंग्रेजो ने राजस्व तनवि
ृ जमीन पर कर लगाने की तनति अपनाई।
इससे राज्य के पूवण सैतनक वगण , स्जन्हे 'पाइक ' के नाम से जाना जािा र्ा ,उनका जीवन बुरी िरह से प्रभाववि हुआ।
फलस्वरूप 1805 से 1817 के बीच खुिाण से बड़े पैमाने पर लोग जमीन छोड़कर चले गए।
• खि
ु ाण के ववस्र्ावपि राजा का वंशानग
ु ि सेनानायक , जगबंिु ववद्यािर महापात्र भ्रमरवर राय , स्जन्हे लोग बक्ट्सी जगबंिु के नाम से
जानिे र्े। वह ऐसे बेिखल हुए जमींिारों में से एक र्े।
• व्याहाररक रूप से बक्ट्सी जगबंिु लभखारी बन गए और िो साल िक उन्होंने खुिाण के लोगो के स्वैस्च्छक िान से अपना गुजारा ककया।
• खुिाण के लोगो की िकलीफें -
अन्यत्र-िाइवपंग ववद्रोह-
• चीन के िक्षक्षणी भाग में 1857 के समकालीन एक ववद्रोह हुआ र्ा
• यह ववद्रोह 1850 में शुरू हुआ और 1860 के मध्य में जाकर ख़त्म हुआ।
• िाइवपंग ववद्रोह-हॉन्ग स्जकुआन्ग के नेित्ृ व में।
उद्िे श्य -
• अिारहवीं सिी के आखखर में कलकत्ता,बम्बई और मद्रास का महत्त्व प्रेसीडेंसी शहरों के रूप में िेजी से बढ़ रहा र्ा। वही
िस
ू री िरफ अन्य शहर मछलीपटनम ,सूरि और श्रीरं गपट्म जैसे शहरों का उन्नीसवीं सिी में काफी ज्यािा ववषहरीकरण
हुआ। बीसवीं सिी की शरु
ु आि में केवल 11 प्रतिशि लोग शहरों में रहिे र्े।
• ऐतिहालसक शाही शहर दिल्ली उन्नीसवीं सिी में एक िल
ू भरा छोटा सा क़स्बा बन कर रह गया , परन्िु 1911 में ब्रिदटश
भारि की राजिानी बनाने के बाि इसमें िोबारा जान आ गई।
दिल्ली
• यह शहर एक हजार साल से भी ज्यािा समय िक राजिानी रह चूका है ।
• यमुना निी के बाएं ककनारे पर लगभग साि वगण मील के छोटे से क्षेत्रफल में कम से कम 14 राजिातनयााँ अलग-अलग
समय पर बसाई गई।
• सारी राजिातनयों में सबसे शानिार शाहजहाना बाि , स्जसको 1639 में शाहजहााँ द्वारा बसाया गया।
• इसके भीिर ककला महल और बगल में शहर र्ा। लाल पत्र्र से बने लाल ककले में महल पररसर बनाया गया र्ा। स्जसके
पस्श्चम की ओर 14 िरवाजों वाला पुराना शहर र्ा।
• चााँिनी चौक के बीचो बीच नहर र्ी। फैज बाजार , जामा मस्स्जि ( उस समय इससे ऊाँची पूरे शहर में कोई इमारि नहीं
र्ी) इसके प्रमख
ु आकषणण केंद्र र्े।
• शाहजहााँ के समय दिल्ली सूफी संस्कृति का अहम ् केंद्र हुआ करािी र्ी। यहााँ कई िरगाह , खान काह और ईिगाह र्ी।
• मीर िकी ने कहा र्ा ," दिल्ली की सड़के महज सड़के नहीं है । वो िो ककसी धचत्रकार की एलबम्ब के पन्ने है ।
• इन सबके बावजूि अमीर और गरीब के बीच फासला बहुि गहरा र्ा। हवेललयों के बीच गरीबों के असंख्य कच्चे मकान
होिे र्े। त्योहारों और जलसे -जुलूसों में जब-िब टकराव भी फूट पड़िे र्े
नोट-
• िरगाह-सूफी संि का मकबरा।
• खानकाह-याब्रत्रयों के ललए ववश्राम घर और ऐसा स्र्ान जहााँ लोग आध्यास्त्मक मामलों पर चचाण करिे है ।
• ईिगाह-मुसलमानों का खुला प्रार्णना स्र्ल जहााँ सावणजतनक प्रार्णना और त्यौहार होिे है ।
• कुल-िे -सेक-ऐसा रास्िा जो एक जगह जाकर बंि हो जािा है ।
नई दिल्ली का तनमाणण-
• 1803 में अंग्रेजों ने मरािों को हराकर दिल्ली पर तनयंत्रण कर ललया र्ा।
• यह 1911 में िब बनना शुरू हुआ जब दिल्ली ब्रिदटश भारि की राजिानी बन गयी।
• 1824 में दिल्ली कॉलेज की स्र्ापना हुई स्जसकी शुरुआि अिारहवीं सिी में मिरसे के रूप में हुई र्ी।
• 1830 से 1857 िक की अवधि को दिल्ली का पुनजाणगरण काल माना जािा है ।
• 1857 के ऐतिहालसक क्रांति के बाि अंग्रेजों ने दिल्ली की ऐतिहालसक ववरासि को नष्ट्ट ककया।
• अनेक मस्स्जिों को नष्ट्ट कर दिया गया या उन्हें अन्य कामों में लाया जाने लगा।
• जामा मस्स्जि में पााँच साल िक ककसी को नमाज की इजाजि नहीं लमली। शहर का एक तिहाई दहस्सा ढहा दिया गया।
• नहरों को पाटकर समिल कर दिया गया।
• रे लवे की स्र्ापना करने और शहर को चारिीवारी के बाहर फ़ैलाने के ललए 1870 के िशक में शाहजहानाबाि की पस्श्चमी
िीवारों को िोड़ दिया गया।
• दिल्ली कॉलेज को एक स्कूल बना दिया गया और 1877 में उसे बंि कर दिया गया।
एक नई राजिानी की योजना
• 1877 में वायसरॉय ललटन ने रानी ववक्ट्टोररया को भारि की मललका घोवषि करने के ललए एक िरबार का आयोजन ककया।
• 1911 में जब जॉजण पंचम को इंग्लैण्ड का राजा बनाया गया िो इस मौके पर दिल्ली में एक और िरबार का आयोजन
हुआ। कलकत्ता की बजाए दिल्ली को भारि की राजिानी बनाने के फैसले का भी इसी िरबार में ऐलान ककया गया।
• इस िरबार में 100000 से ज्यािा भारिीय राजा-महाराजा,अंग्रेज अफसर और लसपाही जमा हुए र्े।
• जॉजण पंचम का राज्यालभषेक ( िरबार दिल्ली में )-[12 दिसंबर 1911 ]
• इसी दिन दिल्ली को भारि की राजिानी घोवषि ककया गया।
• रायसीना पहाड़ी पर िस वगण मील के इलाके में नई दिल्ली का तनमाणण ककया गया।
• एडवडण लटयंस और हबणटण बेकार नाम के िो वास्िक
ु ारों को नई दिल्ली और उसकी इमारिों का डडजाइन िैयार करने का
स्जम्मा सौंपा गया।
• सरकारी पररसर में िो मील का चौड़ा रास्िा , वायसरॉय के महल (वत्तणमान राष्ट्रपति भवन ) िक जाने वाला ककं ग्सवे (
वत्तणमान राजपर् ) और उसके िोनों िरफ सधचवालय की इमारिें बनाई गई।
• नोट-1888 में लाहौर गेट सुिार योजना-रॉबटण क्ट्लाकण द्वारा पुराने शहर के ललए।
• नोट-दिल्ली सि
ु ार रस्ट का गिन 1936 में ककया गया।
• नोट-िक्षक्षण अफ्ीका स्स्र्ि वप्रटोररया शहर की रूपरे खा हबणटण बेकर ने िैयार की र्ी।
• उन्नीसवीं सिी में सूिी कपडे के मशीनी उत्पािन में ब्रिटे न को ितु नया का सबसे प्रमुख औद्योधगक राष्ट्र बना दिया र्ा।
• 1850 में लोहा और इस्पाि उद्योग ब्रिटे न में पनपने की वजह से इसे "ितु नया का कारखाना " कहा जाने लगा।
भारिीय कपडे और ववश्व बाजार
• बंगाल पर अंग्रेजो की ववजय से पहले 1750 के आस-पास भारि परू ी ितु नया में कपड़ा उत्पािन के क्षेत्र में सबसे आगे र्ा।
• िक्षक्षण-पूवी एलशया ( जावा, सम
ु ात्रा और पेनांग ) िर्ा पस्श्चमी एवं मध्य एलशया में इन कपड़ो का भारी व्यापार र्ा।
• यूरोप के व्यापाररयों ने भारि से आया बारीक़ सूिी कपड़ा सबसे पहले ईराक के मोसूल शहर में अरब के व्यापाररयों के
पास िे खा र्ा।
• बारीक़ बुनाई वाले सभी कपड़ों को " मस्स्लन " ( मलमल ) कहने लगे।
• मसालों की िलाश में पि ु ग
ण ाली केरल के िट कालीकट पर पहुंचे िो वे वहााँ से मसालो के सार् सि
ू ी कपडे भी ले गए।
स्जसे "कैललको " ( कालीकट से तनकला शब्ि ) कहने लगे।
• बही - इसमें सूिी और रे शमी कपडो की 98 ककस्मे है स्जन्हे यूरोपीय व्यापारी पीस गुड्स कहिे र्े जो आम िौर पर 20
गज लम्बा और 1 गज चौड़ा र्ान होिा र्ा।
• र्ोक में स्जन कपड़ो ( छापेिार सूिी कपडे भी ) का ऑडणर दिया गया। उन्हें ये व्यापारी लशट्ज , कोसा ( या खस्सा ) और
बंडाना कहिे र्े।
• लशट्ज-यह दहंिी की 'छींट ' शब्ि से तनकला है ।
• बंडाना-यह दहंिी के 'बांिना 'शब्ि से तनकला है ।
• नोट- जामिानी बुनाई -( बीसवीं सिी की शुरुआि में ) सूिी और सोने के िागो के इस्िेमाल से बंगाल में स्स्र्ि ढाका और
संयुक्ट्ि प्रान्ि ( वत्तणमान उत्तर प्रिे श ) के लखनऊ जामिानी बुनाई के सबसे महत्वपूणण केंद्र र्े।
• नोट- बारीक़ कपडे पर छपाई ( छींट ) उन्नीसवीं सिी के मध्य मसल
ू ीपट्टनम ( आंध्र प्रिे श )
• नोट- बंडाना शैली ( राजस्र्ान और गुजराि ) बीसवीं सिी के प्रारम्भ में।
यूरोपीय बाजारों में भारिीय कपड़ा-
• अिारहवीं सिी में इंग्लैण्ड के ऊाँन व रे शम तनमाणिाओं ने भारिीय कपड़ों के आयाि का ववरोि करने लगे र्े।
• 1720 में ब्रिदटश सरकार ने इंग्लैंड में छापेिार सूिी कपडे-छींट -के इस्िेमाल पर पाबन्िी लगा दिया इस कानून को भी
कैललको अधितनयम ही कहा गया।
• 1764 में 'जॉन के ' ने स्स्पतनंग जैनी का अब्रबष्ट्कार ककया स्जससे परं परागि िकललयों की उत्पािकिा काफी बढ़ गई।
• 1786 में ररचडण अकणराइड ( हाइड्रोपॉवर इंजन का अब्रबष्ट्कार ककया र्ा ) ने वाष्ट्प इंजन का अब्रबष्ट्कार ककया स्जसने सूिी
कपडे की बुनाई को क्रस्न्िकारी रूप से बिल दिया।
• डच, फ्ेंच, ब्रिदटश और अन्य यूरोपीय कम्पतनयााँ भारि से चााँिी के बिले सूिी रे शमी कपडे खरीििी र्ी।
बुनकर-
• ये आमिौर पर बुनाई का काम करने वाले समुिायों के ही कारीगर होिे र्े, जो पीढ़ी िर पीढ़ी हुनर को आगे बढ़ािे र्े।
• बंगाल के िांिी , उत्तर भारि के जुलाहे या मोलमन िक्षक्षण भारि के साले व कैकोल्लर िर्ा िे वांग समुिाय बुनकरी के ललए
प्रलसद्ि र्े।
• सूि कािने का मदहलाऍ ं िर्ा कपडे बनाने का काम पुरुष करिे र्े।
• छपाईडर कपड़ा बनाने के ललए बन
ु करों को धचस्प्पगर नामक मादहर कारीगरों की जरुरि पड़िी र्ी जो िप्पे से छपाई करिे
र्े।
भारिीय कपड़ों का पिन
• सन 1783 में ववललयम जोन्स कलकत्ता आए। उन्हें ईस्ट इंडडया कं पनी ने सुप्रीम कोटण में जूतनयर जज के पि पर िैनाि
ककया।
• ये कानून ववि होने के सार्-सार् भाषा ववि भी र्े।
• इन्होने ऑक्ट्सफ़ोडण में ग्रीक और लैदटन का अध्ययन और इसके अलावा फ्ेंच,अरबी,फारसी व संस्कृि का भी ज्ञान र्ा।
• है नरी टॉमस कोलिुक और नैर्ेतनयल हॉलडेड भारिीय भाषाएाँ सीख कर संस्कृि व फारसी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाि
कर रहे र्े।
• इनलोगो के सार् लमलकर जॉन्स ने एलसयादटक सोसायटी ऑफ़ बंगाल का गिन ककया और एलसयादटक ररसचण नामक
शोिपत्र का प्रकाशन शुरू ककया।
• 1781 में अरबी, फारसी, इस्लालमक कानन
ू के अध्ययन को बढ़ावा िे ने के ललए कलकत्ता में एक मिरसा खोला गया।
• 1791 में बनारस में दहन्ि ू कॉलेज की स्र्ापना की गयी।
• उन्नीसवीं सिी की शुरुआि में बहुि सारे अंग्रेज अफसर लशक्षा के प्राच्यवािी ज्ञान को त्रुदटयों से भरा अवैज्ञातनक मानिे
र्े।
• जेम्स लमल ने सुझाव दिया कक लशक्षा के जररए उपयोगी व व्यावहाररक चीजों का ज्ञान दिया जाए एवं भारिीयों को पस्श्चमी
वैज्ञातनक सफलिाएाँ पढ़ाई जाए।
• 1830 के िशक ने र्ॉमस बैब्रबंगटन मैकॉले ने कहा " एक अच्छे यूरोपीय पुस्िकालय का केवल एक खाना ही भारि और
अरब के समूचे िे शी सादहत्य के बराबर है "।
• मैकॉले ने भारिीयों को अंग्रेजी भाषा में लशक्षा िे ने पर बल दिया।
• मैकॉले के लमनट्स ( वववरण ) के आिार पर 1835 का अंग्रेजों का लशक्षा अधितनयम पाररि ककया गया।
• सार् ही यह फैसला ललया गया कक अंग्रेजी को उच्च लशक्षा का माध्यम और कलकत्ता मिरसे िर्ा बनारस संस्कृि कॉलेज
जैसी प्राच्यवािी संस्र्ानों को प्रोत्साहन न दिया जाए।
• इन संस्र्ानों को "अपने आप क्षरण का लशकार होिे जा रहे अंिकार के मंदिरों "की संज्ञा िी गयी।
वुड डडस्पैच /घोषणापत्र ( वुड का नीतिपत्र 1854 में )
• 1854 में ईस्ट इंडडया कंपनी के लन्िन स्स्र्ि कोटण ऑफ़ डायरे क्ट्टसण ने भारिीय गवनणर जनरल को लशक्षा के ववषय में एक
नोट भेजा।
• इसे कंपनी के तनयंत्रण मंडल के अध्यक्ष चाल्सण वुड के नाम से जारी ककया।
• इस िस्िावेज में यूरोपीय लशक्षा का एक व्यावहाररक लाभ आधर्णक क्षेत्र में बिाया गया र्ा।
• वुड के नीतिपत्र में यह िकण भी दिया गया र्ा कक यूरोपीय लशक्षा से भारिीय नैतिकि चररत्र का उत्र्ान होगा।
• 1854 के नीतिपत्र के बाि सरकारी लशक्षा ववभागों का गिन व ववश्वववद्यालय लशक्षा ववकलसि करने के ललए भी किम
उिाए गए।
• 1857 के लसपाही ववद्रोह के समय कलकत्ता , मद्रास व बम्बई ववश्वववद्यालयों की स्र्ापना की जा रही र्ी।
नोट-
• ईसाई प्रचारकों ने िकण दिया कक नैतिकिा उत्र्ान ईसाई लशक्षा के द्वारा ही संभव है ।
• ईसाई प्रचारकों ने सेरामपुर ( कलकत्ता ) में अपना पहला लमशन खोला -( ववललयम कैरे की मिि से )
• सेरामपरु डेतनश ईस्ट इंडडया कम्पनी के तनयंत्रण में आिा र्ा।
• वषण 1800 में एक छापाखाना लगाया गया और 1818 में एक कॉलेज खोला गया।
स्र्ानीय पािशालाओं का क्ट्या हुआ ?
ववललयम एडम की ररपोटण -
• 1830 के िशक में स्कॉटलैण्ड से आए ईसाई प्रचारक ववललयम एडम ने बंगाल और ब्रबहार का िौरा ककया।
• एडम ने पाया की बंगाल और ब्रबहार में एक लाख से ज्यािा पािशालाएाँ है । ये बहुि छोटे -छोटे केंद्र र्े स्जनमे आमिौर पर
20 से ज्यािा ववद्यार्ी नहीं होिे र्े।
• ये पािशालाएाँ सम्पन्न लोगो या स्र्ानीय समुिाय द्वारा चलाई जािी र्ी। कई पािशालाएाँ गुरु द्वारा ही प्रारम्भ की गई
र्ी।
• लशक्षा का िरीका काफी लचीला र्ा न इनमे बच्चे की फ़ीस तनस्श्चि र्ी ,न ही ककिाबें, न ही ईमारि,न ही बेंच कुलसणयााँ
और न ही ब्लैक बोडण होिे र्े।
• इन पािशालाओं में अलग से कक्षाएाँ लेने, बच्चों की हाजरी व सालाना इस्म्िहान और समय सारणी की कोई व्यवस्र्ा नहीं
र्ी।
• लशक्षा का माध्यम मौखखक र्ा।
नई लशक्षा दिनचयाण व नए तनयम -
• उन्नीसवीं सिी के मध्य िक कंपनी का ध्यान मुख्य रूप से उच्च लशक्षा पर र्ा। परन्िु 1854 के बाि कम्पनी ने िे शी
लशक्षा व्यवस्र्ा में सुिार लाने का फैसला ललया।
• सबसे पहले कम्पनी ने बहुि सारे पंडडिों को सरकारी नौकरी पर रख ललया। और प्रत्येक पंडडि को 4-5 स्कूलों की िे खरे ख
का स्जम्मा सौंपा जािा र्ा।
• प्रत्येक गरु
ु को तनिे श दिया गया कक वे समय-समय पर स्कूल ररपोटण भेजे, कक्षाओं को तनयलमि समय-सारणी के अनस
ु ार
पढ़ाएं , अध्यापन पाठ्यपुस्िकों से कराएं और ववद्याधर्णयों की प्रगति मापने के ललए वावषणक परीक्षाएाँ करायी जाए।
• ववद्याधर्णयों से कहा गया कक वे तनयलमि रूप से शल्
ु क िे , तनयलमि रूप से कक्षा में आए , िय सीट पर बैिे और
अनुशासन के तनयमों का पालन करें ।
• नए तनयमों पर चलने वाली पािशालाओं को सरकारी अनुिान लमलने लगे।
महात्मा गााँिी के अंग्रेजी लशक्षा के प्रति ववचार -
• महात्मा गााँिी का कहना र्ा कक औपतनवेलशक लशक्षा ने भारिीयों के मस्स्िष्ट्क में हीनिा का बोि पैिा कर दिया है ।
• गााँिी की मान्यिा र्ी कक लशक्षा केवल भारिीय भाषा में ही िी जानी चादहए। अंग्रेजी में िी जा रही लशक्षा भारिीयों को
"अपनी ही भूलम पर अजनबी "बना दिया है ।
टै गोर का शांतितनकेिन-
• रववंद्र नार् टै गोर ने यह संस्र्ा 1901 में शरू
ु की र्ी।
• वह अंग्रेजों द्वारा स्र्ावपि की गई लशक्षा व्यवस्र्ा के कड़े और बंिनकारी अनुशासन से मुक्ट्ि होने के समर्णक र्े।
• टै गोर का मानना र्ा कक सज
ृ नात्मक लशक्षा को केवल प्राकृतिक पररवेश में ही प्रोत्सादहि ककया जा सकिा है ।
• गााँिी पस्श्चमी सभ्यिा और मशीनों व प्रौद्योधगकी के कट्टर आलोचक र्े वही टै गोर आिुतनक पस्श्चमी सभ्यिा और
भारिीय परम्परा के श्रेष्ट्ि ित्वों का सस्म्मश्रण चाहिे र्े।