कार्तिक में आकाशदीप

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काितक म आकाशदीप

काितक म आकाशदीप
“आकाशे दीयमानोदीपः ”
“काि कमासे भगवदु े शेन नभिस द दीपः ”

महापु दायक मो दायक काितक के मु िनयमों म सबसे मुख िनयम है दीपदान। इस दीपदान का ही एक कार है
आकाशदीप िजसका आधार पृ ी न होकर आकाश होता है अथात यह पृ ी के सतह से ऊपर रहता है । नीचे छायािच म
काशी म होने वाला आकाशदीप दान दशाया गया है ।

Image source: Google Search

आकाशदीप कब से आर कर?
पुराण वै वख काितकमासमाहा अ ाय 07 के अनुसार
एकाद ा ुलाका ा दीपदानमतोऽिप वा ।
दामोदराय नभिस तुलायां लोलया सह ।।
काितक शु एकादशी से, तुला रािश के सूय से अथवा पूिणमा से ल ी सिहत भगवान िव ु की स ता के िलये
आकाशदीप ार करना चािहए।

आकाशदीप दान िकस समय कर?


● सां यकाल
● अगर आप काितक ान के िनयम का भी पालन कर रहे ह तो सां यकालीन आकाशदीप दान के अित र
मु त म ान के तुर बाद िफर से आकाशदीप दान कर।

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काितक म आकाशदीप

आकाशदीप िकसके िनिम कर


● ल ी सिहत भगवान दामोदर (िव ु)
● िपतरों के िनिम

आकाशदीप दान मं

ं दपुराण के अनुसार
दामोदराय िव ाय िव पधराय च।
नम ृ ा दा ािम ोमदीपं ह रि यम्।।
आिद पुराण के अनुसार
धमाय नमः , हराय नमः , भू ै नमः , दामोदराय नमः ,
धमराजाय नमः , जापतये नमः , िपतृ ो नमः , ेते ो नमः
अपराक के अनुसार
दामोदराय नभिस तुलायां लोलया सह ।
दीपं ते य ािम नमोऽन ाय वेधसे।।
िपतरों के िनिम आकाश दीपदान का मं ं दपुराण के अनुसार
नमः िपतृ ः ेते ो नमो धमाय िव वे ।
नमो यमाय ाय कांतारपतये नमः ।।

पुराण वण से आकाशदीप दान का फल


जो पुराण वै वख काितकमासमाहा अ ाय 07 का गु मुख अथवा पुराणव ा के मुख से वण
करता है उसको आकाशदीप दान के समान ही फल ा हो जाता है ।

Essence Of Astrology ारा आकाशदीप दान िविध का िविवध शा ों


से स लन

िनणयिस ु के अनुसार िनणयामृत म पु रपुराण के मत से काितक मास म आकाशदीप कहा गया है


तुलायां ितलतैलेन साय ाले समागते।
आकाशदीपं यो द ात् मासमेकं ह रं ित।
महती ं ि यमा ोित प-सौभा -स दम्।।

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काितक म आकाशदीप
तुला की सं ा म ितल के तेल से सां यकाल के समय जो एक महीने ह र के ित आकाशदीप दे ता है वह बृहत् प से
प, सौभा और संपि ा करता है ।

इसकी िविध हे माि म आिद पुराण के वचन से यह है


िदवाकरे ऽ ाचलमौिलभूते गृहाददू रे पु ष माणं।
यूपाकृितं यि यवृ दा मारो भूमावथ त मूद्ि ।।
यवाङ् गुल युता ुम ेि ह दीघा अथ पि का ु।
कृ ा चत ोऽ दलाकृती ु यािमभवेद िदशानुसारी।।
जब सूय अ ां चल के िशरोभाग म हो जाय तो घर के समीप ही पु ष के माण से य ीय वृ के लकड़ी के यूप की तरह
आकृित िनमाण कर गाड़ द। उस यूप को भूिम म और म क यव के बराबर अंगुल के छे द के म म दो हाथ लंबी चार
पि ओं को कर उसम अ ादलाकृित बनावे िजनसे आठ िदशा मालूम हों।

त िणकायां तु महा काशो दीपः दे यो दलगा था ौ।


िनवे धमाय हराय भू ै दामोदराया थध राज।
जापित थ स ृतृ ः ेते एवाथ तमः थते ः ।। इित ।
उनकी किणका म बृह काश को करने वाला दीपक दे । उसके आठ दलों म आठ दीपक - धमाय नमः , हराय नमः , भू ै
नमः , दामोदराय नमः , धमराजाय नमः , जापतये नमः , िपतृ ो नमः , ेते ो नमः इन म से द। जो तम म थत है ।

इसको सरल बनाने के िलये सामा तः लोग 1 अ मुखी दीपक लेकर उसम आठ ब ी लगा लेते ह।

अपराक (एक ृ ित ) ने आकाशदीप के िलये अ मं िलखा है


दामोदराय नभिस तुलायां लोलया सह ।
दीपं ते य ािम नमोऽन ाय वेधसे।।
ल ी के साथ दामोदर के िलए तुलारािश म आकाश म दीपक आपको दे ता ँ । अन प ा के िलये नम ार है ।

पुराण वै वख काितकमासमाहा अ ाय 07 के अनुसार


सं ा े काितके मािस ातः ानपरायणः ।
आकाशदीपं यो द ा पु ं वदा हम् ।।
सवलोकािधपो भू ा सवसंप म तः ।
इह लोके सुखं भु ा चांते मो मवा ुयात् ।।
काितक मास आने पर जो ातः काल ान म त र हो (इसका अथ काितक ातः काल ान िनयम से है ) आकाशदीप का
दान (सां यकाल) करता है , वह सब लोकों का ामी और सब स ि यों से संप होकर इस लोक म सुख भोगता और अंत
म मो को ा होता है ।

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काितक म आकाशदीप
ानदानि यापूव ह रमंिदरम के ।
आकाशदीपो दात ो मासमेकं तु काितके ।।
इसिलए काितक म ान-दान आिद कम करते ए भगवान िव ु के मंिदर म कँगूरे (िशखर/चोटी) पर एक मास तक
अव दीपदान करना चािहए। दीप दे ने के समय इस मं का उ ारण कर :
दामोदराय िव ाय िव पधराय च।
नम ृ ा दा ािम ोमदीपं ह रि यम्।।
म सव प एवं िव पधारी भगवान् दामोदर को नम ार करके यह आकाशदीप दे ता ँ जो भगवान् को परमि य है ।

दा ंित ये काितकमािस म ा ोम दीपं ह रतु येऽ ।


प ंित ते नैव कदाऽिप दे वं यमं महा ू रमुखं मुनी ं ।।
जो संसार म भगवान िव ु की स ता के िलए आकाशदीप दे ते ह, वे कभी अ ंत ू र मुख वाले यमराज का दशन नहीं
करते।

आकाशदीपदानेन पुरा वै धमन नः ।।


िवमानवरमा िव ुलोकं ययौ नृपः ।।
पूवकाल म राजा धमन न ने आकाशदीप दान के भाव से े िवमान पर आ ढ़ हो िव ुलोक को थान िकया।

िपतरों के िनिम आकाश दीपदान


पुराण वै वख काितकमासमाहा अ ाय 07 के अनुसार
“आकाशदीपस शं िपतु ारकं निह”
आकाशदीप के समान िपतरों का उ ार करने का कोईऔर उपाय नहीं है ।

नमः िपतृ ः ेते ो नमो धमाय िव वे ।


नमो यमाय ाय कांतारपतये नमः ।।
जो मनु इस म से िपतरों के िलये आकाश म दीपदान करते ह, उनके िपतर नरक म हों तो भी उ म गित को ा
होते ह।

Essence Of Astrology
- By Lokesh Agrawal
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