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6.

ஸஙகலபம
दर्भष्वासीन: --
दर्भान्धारयमाण: |

शक्लाम्बरधर विष् + शान्तय | ओं र्भू: + र्भर्भिस्सिरोम | ममोपात्त समस्त + प्रीत्यर्थ | तदव लग्न + शभततथौ
|
: .........नक्षत्र ............ राशौ जातस्य ...........शर्ण ........ नक्षत्र ....... राशौ.........जातयाः र्र्
धर्पल्याश्च आवयोः सकटबयो:
. ............. सपत्रकयो: जनयो: साश्रित
सबन्धवर्योश्च

जनाभ्यासात जनप्रभश्रत एतत्क्षण पयन्त बाल्य वयश्रस कौर्ार यौव्वन वाधक च जाग्रत स्वप्न सषप्ति अवस्थास
र्नोवाक्काय कर्प्तिय ज्ञानप्तिय व्यापार कार्क् रोध-लोभ-र्ोह-र्दर्ात्सय आश्रदश्रभ:
सम्भाश्रवतानार् आवयोः सकटबयो: इह जनश्रण पव जनश्रण जनान्तरषच ज्ञानत: अज्ञानतश्च रहश्रस प्रकाश च
कताना ब्रह्महत्या सरापाण स्वणस्तय र्रतल्पर्र्ण आश्रद र्हापातक चतष्ठय व्यश्रतररक्तानर् अश्रतपातकाना
सर्पातकानार् उपपातकाना सङ्करीकरणाना र्श्रलनीकरणाना अपात्रीकरणाना जाश्रतभ्रश-करणाना प्रकीणकष
र्ध्य

शद्र स्पृष्ट शद्र दृष्ट शद्र पाश्रचत शद्र आहृत अभश्रक्षय पक्षणानार् अभोज्य भोजनानार् अपय पानानार् दर् सास्त्र
श्रवश्रहत कर् अननष्टान जश्रनतानार् दर् सास्त्र अश्रवश्रहत कर् अनष्टान उत्पन्नानार् सन्ध्यावन्दनाश्रत श्रनथ्य कर्
लोप सञ्जातानार् समत्सराश्रतष कतव्यत्वन दर् सास्त्र अनर्ोश्रतत व्रताश्रत अनष्टान अभाव सञ्जातानार्
प्रकीनकानार् ज्ञानत: सकत-कताना अज्ञानत: असकत-कताना ज्ञानत: अज्ञानतश्च अभ्यस्ताना श्रनरन्तर अभ्यस्ताना
श्रचरकाल अभ्यस्ताना श्रनरन्तर श्रचरकाल अभ्यस्ताना एव नवाना नवश्रवधाना बऺना बहश्रवधाना सवषार् पापाना
सवषार् पातकानार् सध्य: अपनोदनाथ

जननक्षत्र जनराश्रश वशात, नार् नक्षत्र नार् राश्रश वशात, जनानजन श्रत्रजन वसात र्हादशा अन्तदशा
अन्तरान्तदशा दशाश श्रत्रयाय द्रक्काण- अष्टक वर्ज सार्दाश्रयक साघाश्रयक वद वनाश्रसक श्रलि
उपर्रह क् रर-ग्रह क् षश्रणक-ग्रह क्षाप्तन्त-ग्रह ताकाश्रलक ग्रह ग्रहाश्रद ग्रहष ये ये ग्रहा: शभतर स्थानष प्तस्थता:
तषार् ग्रहाणार्ानकल्य श्रसध्यथर् ये ये ग्रहा: शभ स्थानश प्तस्थता: तषार् ग्रहाणार् अत्यन्त अश्रतसश्रयत
शभ फल प्रादृत्व श्रसध्यथर्

आयरारोग्य श्रसद्ध्यथं, पत्र पौत्र दनधाऩ तजो लप्तियाश्रद सकल साम्रज्य अश्रभवद्यथर् आरोर् दृढर्ात्रता,
श्रसद्ध्यथ, नीरोर् शतायष्य श्रसद्ध्यथ, परश्रह कत श्रक् रयर्ाण सकल र्ऩ तऩ यत्र औषत श्रवषचण प्रयोर् आश्रभचार
कत्या जश्रनत सव उपद्रव शानथर् आध्याप्तिक आश्रध आश्रध भौश्रतक दश्रवक नव नव जश्रनत तापत्रय श्रनव्रप्तददयथर्
नक्षत्र राशौ जातस्य/ जातया: श्रिसिश्रत तर् वष जननक्षत्र श्रतश्रथवार नक्षत्र लग्न-योर्करण आद्य:
सश्रचत: यो दोष: सर्जश्रन तत्दोष पररहाराथर् सवदोष शानथ, सवाररष्ट- शानथ, श्रचत्तश्धरथ, भीर्ाख्य
अर्त र्त्यञ्जय प्रसाद श्रसध्यरथर् आयर देवता
नक्षत्र दवता वरण दवता अष्टश्रदक्बालक दवता काल अवयव दवता प्रसाद श्रसध्यथर् अस्वत्तार्ाश्रद सि
श्रसरञ्जीश्रवनार्
प्रसात श्रसध्यथर् र्कण्दयातीनार् प्रसात श्रसध्यथर् सौभाग्य दवता प्रसात श्रसध्यथर् एतासार् दवतानार् प्रसातन
सकल श्रचप्तन्तत र्श्रनरथ अवाप्त्यथर् सकदम्भया: कल्याण परम्परा अवाप्त्यथर् सवष शभकर्ष बहर्कखन
श्रवजय प्राप्त्यथर् र्र् / जनऩा: र्ह वसतार् श्रिपतार् चतष्पतार् च नीरोर् शतायष्य श्रसध्यथर्
र्र् / जनऩा: कदम्भअङ्क भतष र्ध्य परस्पर सौर्नस्य अवाप्त्यथर् सवकायष सहयोर्िारा श्रवजय
प्राप्त्यथप्तविसिश्रत तर्र् वष कथव्यत्वन दर् सास्त्र ग्रन्तथष पश्रचतस्य बीर्रथ शाप्तन्त जप होर् कर्श्रण पतत्व श्रसप्त्धर
िारा अश्रतकार श्रसध्यथर्् एश्रभ: ब्राह्मण: सह आचाय र्खन कल्पोक्त प्रकारण प्राच्य उदीच्य अङ्क
र्ोदान नान्दी िादद वष्णव िदध कर् सादर्ऩप्रत दशदान र्नहकप्तल्पत दान सश्रहतर् र्हाऩास
परस्सर एकादश रद्राश्रभषक पवकर् करइष्यर्ान भीर्रथाख्य शाप्तन्त जप होर् कर्श्रण अश्रदकार श्रसध्यथर् पतत्व
श्रसध्यथर् प्राजापत्य आदीनार् कछ्छ्रानार् स्वऱपत: इदानीर् अनष्तातर् असख्यत्वात तत प्रत्याम्नाय भत
श्रहरण्यदान पवकर् आरम्भ र्ऺत लग्न सादर्ऩाथर् अश्रददवता प्रत्यश्रद दवता सश्रहत आश्रदत्याश्रद नवग्रहा
प्रीश्रतकर श्रहरऩदान पवजकर् भीर्रथाख्य शाप्तन्त जप होर् कर्श्रण आचाय र्खन कररष्य iÉSÇaÉÇ
कलशाश्रद mÉÔeÉÉÇ xÉuÉÉãïmÉMüUhÉ zÉÑSèkrÉjÉïÇ, zÉÑSèkrÉjÉï-zÉÑή mÉÑhrÉÉWûuÉÉcÉlÉÇ cÉ
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