पून्याह वाचनं

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PUNYAHAM

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ओं भूर्भुवस्सुवरोम् अस्मिन् कु म्बे सकल तीर्थादिपतिं वरुणं ध्यायामि आवाहयमि | वरुणस्य इदमासनम् | वरुणाय नम: इदम् पाद्यम्, इदम् आचमनीयं, इदम् अर्ग्यं, इदम् आचमनीयं,
इदम् स्नानं, इदम् आचमनीयं | वरुणाय नम: वस्त्र, यज्ञोपवीत, उत्तरीय, आभरणार्थे इमे अक्ष्ता: दिव्य परिमल गन्धान् धारयामि, हरिद्रा कु ङ्कु मम् समर्पयामि| अक्षतान् समर्पयामि | पुष्प
मालिकाम् समर्पयामि | पुष्पै: पूजयामि | वरुणाय नम: | प्रचेतसे नम: | सुरूपिने नम: | अपांतये नम: | तीर्थराजाय नम: | मकर वाहनाय नम: | पास हस्ताय नम: | जलादि पतये
नम: | वरुणाय नम: नानाविधानि पत्रानि पुष्पानि समर्पयामि | धूप दीपार्थम् अक्षतान् समर्पयामि | ओं भूर्भुवस्सुव: + ओं भूर्भुवस्सुव: | - देव सवित: प्रसुव – सत्यम् त्वर्तेन
परिषिञ्चामि - अमृतोपस्तरणमसि – प्राणाय स्वाहा: - अपणाय स्वाहा: - व्यानायस् स्वाहा:-उदानाय स्वाहा:- समानाय स्वाहा:- ब्रह्मने स्वाहा:- वरुणाय नम: कदलीफलं
निवेदयामि- अमृतापिधानमसि – आचमनीयं समर्पयामि - ओं भूर्भुवस्सुव: | पूगीफल समायुक्तं नागवल्ली दळैर्युतं | कर्पूर छू र्ण सय्युक्तं ताम्बूलम् प्रतिगृह्यताम् | वरुणाय नम: कर्पूर
ताम्बूलम् निवेदयामि | आचमनीयं समर्पयामि | वरुणाय नम: समस्तोपचारान्समर्पयामि.
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:
1. पुमन्याह जप कर्म कु रुध्वम् - वयं कु र्म:
2. ओं भवद्भि: अनुज्ञात: पुन्यं पुन्याहं वाचयिष्ये - ओं वाच्यताम्
3. ओं कर्मण: पुन्याहं भवन्तो बृवन्तु - पुन्याहम् कर्मणोस्तु
4. 1)करिष्यमान _____ कर्मणे स्वस्ति भवन्तो बृवन्तु - करिष्यमान ________ कर्मणे स्वस्ति
2)करिष्यमान ______कर्मणे स्वस्ति भवन्तो बृवन्तु - करिष्यमान ________ कर्मणे स्वस्ति
5. 1) सर्वोपकरण शुद्धि कर्मणे _____कर्मणे - सर्वोपकरण शुद्धि कर्मणे ___ कर्मणे
स्वस्ति भवन्तो बृवन्तु स्वस्ति
2) सर्वोपकरण शुद्धि कर्मणे ______कर्मणे - सर्वोपकरण शुद्धि कर्मणे ____ कर्मणे
स्वस्ति भवन्तो बृवन्तु स्वस्ति
6. कर्मण: ऋद्धि: भवन्तो बृवन्तु - कर्म ऋद्ध्यतां
7. ऋधि: समृद्धि: पुन्याहं समृद्धि: शिवं कर्मास्तु - अस्तु
8. प्रजापति: प्रियतां - प्रियताम् भगवान् प्रजापति:
9. शान्तिरस्तु - अस्तु (जलम्)
10. तुस्तिरस्तु - अस्तु
11. पुष्टिरस्तु - अस्तु
12. ऋद्धिरस्तु - अस्तु
13. अविघ्नमस्तु - अस्तु
14. आयुष्यमस्तु - अस्तु
15. आरोग्यमस्तु - अस्तु
16. दनधान्य समृद्धिरस्तु - अस्तु
17. गो ब्रह्मणेभ्य: शुभं भवन्तु - अस्तु
18. बहिर्देशे अरिष्ट निरतनमस्तु - अस्तु
19. उत्तरे कर्मणि अविघ्नमस्तु - अस्तु
20. सर्व शोभनमस्तु - अस्तु
21. अभिवृद्धिरस्तु - अस्तु
22. सर्वा: सम्पत: सन्तु - अस्तु
ओं शान्ति: शान्ति: शान्ति:
हिर्ण्य वर्णा…… mÉuÉþqÉÉlÉý-xxÉÑuÉýeÉïlÉþÈ… uÉÉxiÉÉãÿwmÉiÉã
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ओ भूर्भुवस्सुवरोम् अस्मात् कु म्बात् आवाहितम् सुमुखम् सकलतीर्थादिपतिं वरुणं यथास्थानं प्रतिस्ष्ठापयामि

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