Namostu Chintan 6 Sept18

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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”.

अंक : 06 माह : सत बर 2018


Web site: www.vishuddhasagar.com

-: मंगलाचरण :-

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
namostushasangh@gmail.com; FB: NAMOSTU SHASAN SANGH

WHATSAPP: 9324358035, 9892279205 VOL: 2018:01:006 Page 1 of 43


कहाँ पर या है ?
मनहर मु तक 22
मु य आवरण:
आचाय ी वभव सागरजी महाराज
र ा बंधन महा य
तु त: बा. . च दद
सौज य:िजनागमसार

मंगलाचरण 01 वचन वा स य भावना 23


. नहालचं जी जैन ‘चं े श’ . नहालचं जी जैन ‘चं े श’

संपादक य 04 आचाय,उपा याय,साधू के वहार का योजन 24


पी. के. जैन ‘ द प’ ीमती मंजू पी. जैन

मंगलाशीष 05 वषा योग 25


आचाय ी वशु ध सागरजी महाराज ीमती क त जैन

आचाय ी वशु ध सागरजी अ य 06 आओ ण ल 26


आचाय ी वभव सागरजी महाराज बा. . अ य जैन

नमो तु शासन सेवा स म त 07 पु षाथ दे शना मशः 28


ट एवं अ य पदा धकार गण आचाय ी वशु ध सागरजी महाराज

बु दे लखंडी म दे व शा गु पूजन 08
र ा बंधन 33
लघुनंदन जैन
डॉ. ी सन
ु ील जैन ‘संचय’

चातुमास: िजनागम का अनुपम उपहार 12


आपके सझ
ु ाव 35
आचाय ी वमष सागरजी महाराज
तु त: बा. . अं कत भैयाजी त मण पाठ 36
आचाय ी वभव सागरजी महाराज
वा याय का फल 17
आचाय ी वभव सागरजी महाराज पावन वषा योग ह 38
बा. . भैयाजी अ भन दन
समाधी भि त : थम अ धकार 19
आचाय ी वभव सागरजी महाराज छपते छपते 39

चंतन काश 21
आ याि मक ावक-साधना संकार श वर 41
आचाय ी वशु ध सागरजी महाराज
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मनु य बनना भा य है
त व च होना सौभा य है
दगंबर गु मलना
परम सौभा य है
और
िजनवाणी सन
ु ना अहोभा य ह |

जो है सो है
आचाय ी वशु धसागरजी महाराज का
चातम
ु ास ी १००८ पा वनाथ दगंबर जैन
मं दर, राजा बाज़ार, औरं गाबाद, महारा
नमो तु शासन जयवंत हो
म हो रहा ह. आ याि मक ावक साधना
सं कार श वर १४-९-२०१८ से २३-९-२०१८ जयवंत हो वीतराग मण सं कृ त
तक आयोिजत ह गे. सभी आमं त ह. और
अ धक जानकार इसी प का म दे ख.

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
namostushasangh@gmail.com; FB: NAMOSTU SHASAN SANGH

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वा स य भाव के कारण तीथकर का र त भी
वेत, द ु ध के समान सफ़ेद हो जाता ह.
इसी अंक म आगे आपको वा स य क
अनोखी और अनुपम कथा भी पढने के लए ह
अतः हम सभी को वा स य भाव भी जीवन म
लाना चा हए. इसी वा स य अंग म ी व णक
ु ु मार
मु न और अक पनाचाय क कथा भी जग स ध
जय िजने . ह.
सभी वीतरागी न थ साधु संतो का यह
िजसके श य नह ं होती उसके ह वा स य भाव से ओत ोत अनुक पा सभी जीव
वा स य भाव होता ह के त सदै व ह रहती है , इस लए वे चातम
ु ास
अथात वषायोग के समय वहार नह ं करते ह.
अहा ! वा स य क कतनी संद
ु र प रभाषा
य क वषा काल म अनेक नाना कार के जीव
बताई ह मम ्गु दे व आचाय ी वशु सागर जी
क उ प होती रहती है अतः उन जीव क र ा,
महाराज ने. िजसके श य नह ं होती है उसके ह
अ हंसा त के भाव से वहार नह ं करते ह. यथाथ
वा स य भाव होता ह. आचाय भगवन ् ी
म तो उन नर ह जीव क र ा होती ह है . इस लए
अ मतग त जी सामा यक पाठ म भी थम गाथा
ह प च परमे ठ के अं तम तीन पद आचाय,
म कह रहे है “स वेषु मै ी” सभी से मै ी भाव
उपा याय और साधू को हम न थ तपोधन धरती
होगा तो वा स य अपने आप ह होगा. और सोलह
के दे वता भी कहते ह.
कारण भावनाओं म भी यह बताया गया है क
इस वषाकाल को वषा योग भी कहते ह.
वा स य का भाव जीव के तीथकर कृ त बंध का
योग तीन होते ह, मन,वचन और काय. इन तीनो
भी कारण होता ह. वा स य भाव सभी जीव के
योग से अ हंसा त के पालन हे तु वहार नह ं
त हो और इसके लए आदश बताया गया ह
करते ह. मु न संघ का वहार या वचरण न होने
“गौ ब छ सम ीत” अथात िजस तरह गौ / गाय
के कारण धम आराधना, सामा यक, त मण जो
अपने बछड़े से बना कसी अपे ा से ेम करती
क सदै व ह होता रहता ह, का लाभ भी समाज
है , उसका वा स य रहता ह ठ क उसी तरह हम
के ावक / ा वकाओं को भी मल जाता ह. सोने
मनु य को भी वा स य भाव रखना चा हए. इसी
म सुहागा वाल बात कहे तो सभी ावक /

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ा वकाओं को ी िजनदे व क वाणी अखंड चार
माह तक सन
ु ने का लाभ मलता रहता है और वह मंगलाशीष
भी तपोधन के मुखार वंद से, जो सफ लखते नह ं
ह बि क जो लखते ह उसीको लखते ह अथात ी
िजने दे व क वाणी अनुभव के साथ हम तक
धरती के दे वताओं के वारा पहुँचती ह.
अ या म को समझ कर अपनी पयाय को सफल
बनाने का यास कर मो माग श त होता ह.
अ हंसा त के पालन से यथाथ म तो उन
नर ह जीव क र ा होती ह है पर तु वे अपनी
आ मा पर उपकार करते ह और आ मा को ह
कम-ज नत भार से मु त करते हुए वयं भारह न
बनते रहते ह. आ मा का भारह न होना ह मो
का कारण ह.

णमो लोए स व साहुणं


सव वाणी व व क याणी है . जो क
या वाद, अनेकांत त व से मं डत है . ऐसी वीतराग
लोक के सभी
वाणी सव व व के क याण का कारण बने, इस
वीतरागी न थ संतो को उ दे य को लेकर “नमो तु चंतन पु प” प का
नम कार करता हूँ. प रवार जो उप म कर रहा है , वह अनक
ु रणीय

लोक म वरािजत है . ी िजन वा वा दनी, ी िजन शासन, नमो तु


शासन क भावना हे तु मंगलाशीष.
तीन कम नौ करोड़ मु नवर को
काल बार अनंताबार नमो तु आचाय ी 108 वशु ध सागरजी महाराज
परभणी, महारा .
11 जुलाई 2018.

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आचाय ी अ य

सार वत क व मणाचाय
ी 108 वभव सागरजी महाराज

नोट : सभी आचाय ी वभव सागरजी महाराज


को सार वत क व के प म जानते ह ह. आपक
बहु च चत कृ त “समाधी भि त शतक” – ‘तेर
छ छाया भगवन ् ! मेरे शर पर हो, मेरा अि तम-
मरण-समा ध, तेरे दर पर हो.’ शायद ह कसी
जैन ावक ने इस अनुपम रचना को न पढ़ा हो
या न सुना हो. ऐसे आचाय ी वभवसागर जी
महाराज वारा आचाय ी वशु धसागर जी
महाराज के बहुमान म मनोभाव को श द म
य त करते करते पूजा क रचना हो गयी.

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बरायठा : ीतेश जैन
छंदवाड़ा : ीमती मीनू आशीष जैन,
नमो तु शासन सेवा स म त द ल : ीमती रतु जैन
दग
ु : सजल जैन, गड
ु गाँव : पं.मक
ु े श शा ी
(पंजीकृत सं था)
हैदराबाद : डॉ. द प जैन
ट मंडल : इंदौर : दनेशजी गोधा, ीमती रि म गंगवाल
अ य ी पी. के. जैन ‘ द प’ जयपरु : डॉ. रं जना जैन
उपा य ा ीमती त ठा जैन कोलकाता : सरु े गंगवाल, राजेश काला,

महामं ी बा. .अ यकुमार जैन ीमती कुसम


ु छाबड़ा,
कोटा : न वन लह
ु ा डया, ीमती मला जैन
सह मं ी ी अिजत जैन
मब
ंु ई : द पक जैन, गौरव जैन, काश संघवी,
कोषा य : ी वीन जैन
भरथराज,
सद य ीमती मंजू पी.के. जैन मौरे ना : गौरव, िज मी जैन;
सद य ी सुशांत कुमार जैन पण
ु े : ाज ता चौगल
ु े
-: कायका रणी मंडल :- रायपरु : मतेश बाकल वाल,
रािजम (छ.ग.) : संजय जैन
चार सार मं ी :
रानीपरु : सौरभ जैन ाची जैन;
ी राहुल जैन, व दशा, ी अनरु ाग पटे ल, व दशा
रतलाम : मांगीलाल जैन
दे शा य :
सांगल : राजकुमार चौगलु े, राहुल नां े
ी गौरव कुमार जैन, बंगलु , कनाटक.
सकंदराबाद (उ. .): वपल
ु जैन, ऋषभ जैन
ीमती क त पवनजी जैन, द ल .
सोलापरु : कुमार धा यवहारे
ी नंदन कुमार जैन, छंदवाडा, म य दे श.
ट कमगढ़ : अशोक ाि तकार
नै तक ान को ठ :
उ जैन : राजकुमार बाकल वाल नवीन जैन
मं ी ी राजेश जैन, झाँसी, उ र दे श
उमर : अभय जैन
वशेष सद य : महेश, है दराबाद;
ऑ े लया, पथ : ीमती भि त हुले यवहारे
पाठशाला संचा लका:
एवं अ य सभी कायक ागण.
ीमती क त जैन, द ल ,
सह-संचा लका:
!!जो है सो है !!
ीमती करण जैन, हांसी, ह रयाणा.
हा सएप ु स : कुल 50 ु स के सभी !!नमो तु शासन जयवंत हो!! !!
एड मन/संचालक जयवंत हो वीतराग मण सं कृित!!
आगरा : शभ
ु म जैन, अतल
ु जैन,
बड़ा मलहरा; अ य पाटनी, ीमती रजनी जैन
बैतल
ू : अ वनाश जैन बानपरु : नवीन जैन
भोपाल : पं. राजेश “राज’

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“बंद
ु े लख डी म दे व शा गु भि त महानट न ृ य के नई,
पज
ू न" वास वास यह गावत है॥
ॐ ं ीदे वशा गु समह
ू अ अवतर
अवतर संवौष आ हानं ||
ॐ ं ीदे वशा गु समह
ू अ त ठ
त ठ ठ: ठ: थापनम ् ||
ॐ ं ीदे वशा गु समह
ू अ मम
सि न हतो भव भव वष सि न धकरणं
||
जल

महल अटार ड बल पईसा,


“ थापना"
ई को पाने मचल रहो।
महा महो सव मंगल अवसर, ओस बंद
ू सम जड़ वैभव है ,
ध य ध य शभ
ु दन आयो। मौत लट
ु े रो अचल रहो॥
परम शांत िजन मु ा लखके, जर जर होती काया पल पल,
रौम रौम मन हषाय ॥ मौका नोई गवाना है ।
परम शांत िजन मु ा पावे, िजनवर सम क णा रस पीके,
पल पल हम ललचावत है। नौका पार लगाना है॥
हम भ तन के परम भा य से, ॐ ं ीदे वशा गु य: ज मजरा
िजनवर रस वषावत है॥ ॥ म ृ यु वनाशनाय जलं नवपामी त वाहा|
िजनवाणी रस भौत क ठन है ,
॥ चंदन॥
भ त समझ नई पावत है।
तप अि न म द य दग बर, आपन दख
ु से नोई दख
ु ी है ,
मु न चलके दखलावत है॥ पर वैभव को नरख रहो।
हष पु प नज ब गया म भ,ु होड़ हाड म झल
ु सत नश- दन,
तुमको टे र लगावत है। पर को सुख लख बलख रहो॥

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अमर वेल सम वैभव जग को, नज से नज को भटकायो॥
बढ़के नज को घात करे ।
ॐ ं ीदे वशा गु य: कामबाण
चंदन सम शीतल कर दो भ,ु
व वंसनाय पु पं नवपामी त वाहा |
जो जग को उ पाद हरे ॥
॥नैवे य॥
ॐ ं ीदे वशा गु य: संसार - ताप
वनाशनाय च दनं नवपामी त वाहा | नरकन से भु रो रो के हम,

॥ अ त॥ करम नशावन आवत है।


भक
ू यास क आड़ म भव
ु र,
धन कंचन स बंधी जन म,
त ृ णा जाल बन
ु ावत है ॥
काहे को तम
ु अकड़ रहे । हाय हाय पईसा को करके,
पु य उदय के नाते सारे ,
नर तन नक बनावत है।
बात काय नई पकड़ रहे ॥
जा त ृ णा को जाल मटाबे,
भीतर जाके भीतर जाके,
पज
ू न नज क गावत है॥
मझ
ु को भी-तर जाना है । ॐ ं ीदे वशा गु य: ुधारोग
पर के गीत अनंत सन
ु ाये, वनाशनाय नैवे यं नवपामी त वाहा |
नज को गीत बनाना है ॥
॥द प॥
ॐ ं ीदे वशा गु य: अ यपद
सब करमन को बाप सयानो,
ा तये अ तान नवपामी त वाहा |
म यातम फैलावत है।
॥ पु प॥ बार बार नज ेणी चढ़ते,
डया तोड़ गरावत है ॥
खुद ने खुद को खूबई लट
ू ो,
हम म इ ी शि त नैईया,
दोष मडो पर ना रन पे।
मोह श ु को न ट कर।
काम मोह बस नज को लट
ू ो,
व वष
ृ भ सहनन दो भव
ु र,
आश रखी क लहा रन पे॥
ान यो त से व त कर॥
अं खयन के होते भी अंध,े
ॐ ं ीदे वशा गु य: मोहा धकार
ई ने हमको बनवायो।
वनाशनाय द पं नवपामी त वाहा |
संयम पु प मनोहर दो भ,ु
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॥धप
ू ॥ साथ कबहुँ ने छोडगे।
म या आं धया तफू ा आये,
सात करम तो मह
ु रा ईके,
धा को ने भल
ू गे॥
राजा मोह कहावत है ।
भव सागर से पार कर गे,
करम उदय म भाव पलटके,
हमको ई व वास रहो।
अपनी चाल दखावत है॥
लघन
ु ँ दन क वास वास म,
संसार मण शतरं जी को जौ,
र न य को वाश रहो॥
पल म खेल मटाने है।
ॐ ं ीदे वशा गु य:अनघपद ा तये
मु न पु य क द य वाल से,
अघ नवपामी त वाहा |
इनक धप
ू उडाने है॥
||जयमाला||
ॐ ं ीदे वशा गु य: अ टकम
व वंसनाय धप
ू ं नवपामी त वाहा | बार बार नरखे यह नैना,
तुमको लख मचलावत है।
॥फल॥
अंग अंग नरखे िजनवर को,
शांत व मन मोहन मरू त, नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
नासा ि ट जमावत है । अब तो मारे नैना भव
ु र,
धन कंचन से दरू नरं जन, धन कंचन म चत नह ं।
हर पल भु मु काबत है॥ वीतराग शव धन के आ गे,
मन वच तन को धागा न ये, ओर कछु इने दखत नह ं॥ ॥
हाथ पे हाथ जमावत है। वीतराग धन कैसे मलहे ,
जो मीठो फल तम
ु ने पायो, रटना यह लगावत है।
ऊ पे हम ललचावत है ॥ अंग अंग नरखे िजनवर को,
ॐ ं ीदे वशा गु य: मो फल नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
ा तये फलं नवपामी त वाहा | रौम रौम से जग क याणी,
॥अ य॥ िजनवाणी माँ गट भ ।
या वाद अमत
ृ रस लेके,
डोर पकड़ लई हमने भव
ु र,
भ य जन के नकट ग ॥
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त व ान क गोद म माता, नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
भ त को सहलावत है। य पज
ू न से पु य क धारा,
अंग अंग नरखे िजनवर को, अ वचल अमर अनंत बह।
नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥ ई धरती के दे व दग बर,
कलयग
ु म सतयग
ु दखलाय , सदा सदा जयवँत रह॥
धरती अ बर ऋणी भये। ध य भये लघन
ु ँदन नैना,
मण तपोधन पाकरके हम, समय को सार सन
ु ावत है।
कंगाल म धनी भये॥ अंग अंग नरखे िजनवर को,
क णा वि लत अंतर गु को, नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
क णा रस झलकावत है।
ॐ ं ी दे वशा गु य: अन यपद
अंग अंग नरखे िजनवर को,
ा तये जयमाला पण
ू ा य नवपामी त
नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
वाहा।
समता मय है ने गु के,
र चयता-अ याि मक क व दय
क णा रस झलकाबत है।
लघन
ु ँदन जैन
अरघ चढ़े या असी चले पर,
ी सयावास तीथ
त नक नह ं अकुलावत है ॥
बेगमगंज
ध य ध य है ान गु को,
म. .
समता पाठ पडावत है॥
अंग अंग नरखे िजनवर को,
नयना गीत सन
ु ावत है॥टे क॥
ठं ड गरम के े न म जब,
गु वर चरण बड़ाबत है ।
ऊ के पेहले माजन कर,
जीव के ाण बचाबत है॥
अपवाद माग क बात ने माने,
तप से कम नशावत है ।
अंग अंग नरखे िजनवर को,
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छल-ई या से र हत नमल आ मगण
ु क उपासना
करना ह मनु य जीवन का सार है ।

चातुमास – 2018 न चय- यवहार अ हंसा


के पथ पर सतत ् ग तमान न थ वीतरागी
मण के लए वश ट आ मसाधना का
अ भन दनीय अवसर है ।

आशा है सव ‘गुण ाहकता’ क भावना


करते हुए सभी िजनशासन क छ ब को उ जवल
रखने म अपनी भू मका का नवाह करगे।

चातुमास के स यक पव :-

गु पू णमा –

परमगु तीथकर महावीर और श य


इ भू त गौतम का समवसरण सभा म मलन ह
जैन परं परा म ‘गु पू णमा’ है । इस दन सभी
भाव लंगी संत मणाचाय वमशसागर मु न श यगण अपने परम उपकार गु के उपकार का
मरण कर धा भि त य त करते ह।
चातुमास : िजनागम पंथ का अनुपम उपहार
वतमान म गु पू णमा पव के अवसर पर
अहा ! च वत भरत के भारतदे श क प व
ावक एवं मण कुछ ऐसा संक प कर िजससे
भू म पर वचरण करते परम वीतरागी दग बर
जैन समाज म वा स य बढ़े और स चे जैनधम
मण- म णय , उ कृ ट ावक- ा वकाओं,
क र ा हो।
अ रहं त क थत िजनागम पंथ म ढ़ धा रखने
वाले िजनोपासक - मणोपासक एवं स गह
ृ थ
के वारा परम अ हंसा धम का शंखनाद सदा से िजनमु ा का अनादर न कर
होता आ रहा है। सभी ‘‘पर परो हो जीवानाम ्’’
सू सूि त को च रताथ करते हुये ‘हम स य ि ट
ावक एवं व वान ् जा तवाद, पंथवाद एवं
ह’ ऐसी अनुभू त करते ह। राग- वेष, बैर- वरोध,
या तलाभ के लए पनप रहे संतवाद को बढ़ावा

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
namostushasangh@gmail.com; FB: NAMOSTU SHASAN SANGH

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न दे कर िजनागम पंथ के अनस
ु ार चया करने वाले पि डतै ्र टचा र ब
ै ठरै च तपोधनैः।
पीछ -कमंडलध
ु ार न थ िजनमु ा क धा- शासनं िजनच य नमलं म लनीकृतम ्।।
भि त करके अपना कत य नवाह कर। कदा चत ्
अथात ् ‘चा र ट पि डत ने और बनावट
स य दशन का वयं प रचय दे ते हुये ि थ तकरण
तपि वय ने िजनच के नमल शासन को म लन
अंग का पालन भी कर। कंतु िजनमु ा का कभी
कर दया’।
अनादर या नंदा न कर।

गु पू णमा साधु मलन का पव है । आओ


साधु वनयोपसंपत गुण का पालन कर हम सब गु पू णमा पव को िजनागम पंथ के
अनुसार िजना ा पालन कर साथक कर।.

न थ वीतरागी साधज
ु न मूलाचार क थत
समाचार व ध का पालन करते हुये उपसंपत गण ु
वीर शासन जयंती
का प रचय द। उपसंपत ् के पाँच भेद ह। िजसम
वनयोपसंपत ् गुण का वणन करते आचाय भगवन ् भगवान महावीर क समवसरण सभा म
खरनेवाल द य व न आज हम सभी के सम
कहते ह - ‘अ य संघ से बहार करते हुये
‘िजनागम-िजनवाणी’ के प म ा त है । सभी
आये मु न को पादो ण या अ त थ मु न कहते ह।
मण एवं ावक िजनागम व णत पंथ अथात के
उनका वनय करना, आसन आ द दे ना, उनका
अनुसार चया कर ऐसी पव
ू ाचाय भगवंत क आ ा
अंगमदन करना, य वचन बोलना आ द।
है । यह ‘वीर शासन’ क प रपालना है । ावण बद

आप कन आचाय के श य ह, कस माग एकम ् ‘वीर शासन जयंती’ के प म व यात है ।

से बहार करते हुये आये ह, ऐसा न करना।


आओ हम सभी िजनागम क आ ा का
उ ह तण
ृ सं तर, फलक सं तर, पु तक, पि छका
पालन कर, िजनागम पंथ के अनुसार चया कर
आ द दे ना, उनके अनुकूल आचरण करना तथा
‘वीर शासन’ के त अपनी स ची धा य त
उ ह संघ म वीकारना वनयोपसंपत है ।
कर। कहा भी है –
मूलाचार क थत वनयोपसंपत ् गुण का
पालन कर मण संघ वा स य अंग का प रचय
िजन त
ु तदाधारौ तीथ वावेव त वतः।
द िजसस ‘जीव मा का क याण हो’ ऐसा
संसार तीयते त सेवी तीथसेवकः।।
िजनोपदे श साथक हो सके।जो व वान एवं मण
ऐसा नह ं करते वे िजनशासन को म लन करते ह,
कहा भी है अथात ् ‘िजनागम और िजनागम के ाता
गु वा तव म दो ह तीथ ह य क उ ह ं के

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


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वारा संसार पी समु तरा जाता है । उनका सेवक आज वीतरागी मण का र ाबंधन पव के
ह तीथ सेवक है ।’ वीतराग भाव को छोड़कर सरागभाव म ि थत होना
आ चय पैदा करता है । जब तल-तुष मा पर ह

पा वनाथ नवाण दवस से र हत आ म वभाव म रमणता क भावना करने

(बैर पर मा क वजय) वाले साधज


ु न के संयमोपकरण पि छका म लाख
पय क बोल लगाकर सोने, चांद क राखी बांधी
जाती है और साधज
ु न हष के साथ ब हन ने राखी
चातुमास काल म ावण शु ल स तमी का
बांधी ऐसे सराग भाव म जा गरते ह।
दवस मक
ु ु ट स तमी के प म मनाया जाता है ।
इस दन तेईसव तीथकर भगवान पा वनाथ वामी आशा करते ह, चातुमास म चतु वध मण
को नवाणा त हुआ। आज के दन भगवान संघ इस या त-पूजा क भावना को छोड़कर अपने
पा वनाथ क मा और कमठ के बैर का मरण वीतराग वभाव क र ा करगे और महा प र ह
सहज ह हो जाता है । जो येक ावक और के बढ़ते श थलाचार को दरू करगे।
मण के लए ेरणादायी है । सोच, मा का फल
ा त करना है या बैर का। कह ं-कह ं मण- मण, रा पव जात दवस –

ावक- ावक, मण- ावक, ावक- मण के बीच


मा भाव न होकर बैर भाव दे खा जा रहा है । आज ाणी मा के हत क भावना से साधज
ु न
के दन सोच इसका द ु प रणाम या होगा। अतः ‘रा के नाम संदेश’ म सदाचार का उपदे श दान
उ म मा भाव को धारण कर पा वनाथ भु क कर। जैसे –
तरह उ म फल ाि त का पु षाथ कर।
म चाहता हूँ, थम तीथकर ऋषभदे व के
पु च वत भरत का यह भारतदे श सदा खश
ु हाल,
र ाबंधन पव और आप र ह साधु क प छ म
संप न और समृ ध रहे ।
सोने चाँद क रा खयाँ कतनी उ चत
भारतदे श म भौ तक सम ृ ध के साथ

िजनागम पंथ के अनस आ याि मक सम ृ ध का भी सदा वागत हो।


ु ार चया का पालन
करने वाले आचाय अकंपन वामी के संघ पर घोर
भारत दे श का हर नौजवान हंसा को छोड़
उपसग जान मु न व णक
ु ु मार ने अपनी े ठ
अ हंसा म व वास रखे और व वभर म अ हंसा
साधना के फल से ा त व या ऋ ध के वारा
क अलख जगाये।
उपसग दरू कर पर पर साधु वा स य का अनुपम
उदाहरण तुत कया। जो वतमान म मण संघ भारत क नार शि त सीता, अंजना,
एवं ावक के लए ेरणा पद है । चंदनवाला को आदश मानकर आगे बढ़े िजससे

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नार , वा भमान के साथ स मानपव
ू क जीना सीख मावाणी पव -
सके।
वचन मावाणी का
भारतदे श म कभी ूण ह या न हो। क या आचरण म वैरभाव कतना उ चत
ूण ह या वकलांग चंतन क उपज है जो सवथा
अनै तक है साथ ह म ह या क दोषी। दशल ण धम का पालन करने वाले
मण एवं ावक वग मावाणी पव के मा यम
भारतदे श क युवाशि त नशील चीज
से जीवमा से मायाचना कर आ मा को शु ध
गुटखा, शराब, सगरे ट, स तथा यसन से दरू
करते ह। आज के दन एकेि य से लेकर पंचिे य
शाकाहार, योग तथा माता- पता क सेवा को
पय त जीव से सरलभाव से अपने ात-अ ात
कत य समझ।
दोष के त माभाव अनुभवकर नद ष आ मा
भारतदे श का येक वग साध,ु श क, बनाते ह।
राजनेता, सै नक, पु लस, छा -छा ाएँ एवं
चातम
ु ास म मण संघ एवं ावकगण सब
सामािजक संगठन सभी कत य न ठ बन और
भेदभाव यागकर एक मंच पर आसीन हो
अपनी मयादा म रहते हुये क तय पालन कर।
मावाणी आ मा से मनाय। कह ं ऐसा न हो क
भारतदे श का नाग रक सम ृ ध बने। शाद उ म माधम के पालक साधु एक मंच पर आने
म धन का अप यय न कर, शाद म लाख का से ह मना कर द और मावाणी पव एक कोरा
खच, कसी क च क सा, श ा, सामािजक- अ भनय मा बनके रह जाये। वचन मावाणी
धा मक े म लगाकर खु शयाँ चर थायी कर, के और आचरण बैरभाव का। िजनमु ाधार साधु
इ या द। ज र ह मावाणी पव को न कषाय भाव से
मनायगे ऐसी आशा करते ह।
दशल ण पव -

ध यतेरस एंव द पावल पव -


चातुमास म दशल ण पव का वश ट
मह व है । मण संघ दस धम क या या कर चतु वध संघ एवं स गह
ृ थ ावक इन
ावक को िजनागम पंथ अनस
ु ार धमपव
ू क जीने दन म भगवान महावीर के संसार मिु त फल का
क कला सखाते ह। सां कृ तक ग त व धय के चंतन कर स माग - मो माग को सफल करने
वारा आबाल-व ृ ध अपना वकास करते ह एवं क भावना कर। भगवान महावीर प र नवाण दवस
धम क मह ा से प र चत होते ह। दशल ण धम हम संसार म राग वेष के बंधन से छूटकर वीतराग
आ मो कष के सोपान है । भाव म ि थत हो पण
ू आ म वभाव क ाि त क
ेरणा दे ता है ।

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चातुमास के म य म अ य स यक् धम
भावना के आयोजन आयोिजत कर िजनशासन
का गौरव बढ़ाये। स गह
ृ थ ावक, मण संघ के
सा न य म िजनदे व-िजनागम-िजनमु ाधार गु के
त धावान बन। मण संघ वा स यभाव से
मल और स य दशन के आठ अंग आचरण म
आय तभी चातुमास के व श ट ण अ भनंदनीय
हो सकते ह और भगवान महावीर के शासन क
नमल भावना सव गुंजायमान हो सकती है ।

आओ, इस चातुमास म हम सभी मण


संघ िजनागम पंथ चया कर िजनशासन के गौरव
को बढ़ाये और ऋण मु त ह ।

जयद ु िजणागम पंथो"


िजनागम पंथ जयवंत हो
न तेरा पंथ क न बीस पंथ क
घर घर होगी चचा िजनागम पंथ क

भाव लंगी संत का वानभ


ु ू त चातुमास-
2018 छ दवाड़ा (म. .)म हो रहा ह.

गु मं : संकट मोचन तारण हारे , गु वमश


क जय जय जय
संकलनकता
बा. अं कत भैया

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अहो ! यह ह त ल खत लेख वा याय का
फल, और वा याय म हमा सार वत कव
मणाचाय ी 108 वभव सागरजी महाराज ने
बहुत ह सरल भाषा म समझा दया ह. सह है
वा याय ह सफल जीवन जीने क कला बताता

जीवन कैसा बनाया जाय, कैसे िजया जाय ?
इस लेखन के अ र को दे ख, मोती के समान
दखाई दे रह ह. यह वशेषता होती ह आचाय
भगव तो क और क णा होती है - सभी जीव का
उ धार हो. हम आचाय ी के थम दशन का
सौभा य मुंबई म ी १००८ पा वनाथ दगंबर जैन
मं दर, गुलाल वाड़ी, मुंबई म २०१८ के चातुमास
दौरान मला. आचाय ी के ेम और वा स य क
ऐसी बात रह क वषा के बना भी हम वा स य
से भीग गए. हमारा जीवन ध य हो गया. दादा
गु “गणाचाय ी 108 वराग सागरजी महाराज”
ने भी अपनी द य ट से सोचकर उनका
नामकरण “ वभव सागर” कया होगा. अपने
र न य के वैभव का उपयोग कर अपने भव का
वभाव कर रह ह और नाम को साथक कर रह ह.
ऐसे ह होते ह वीतरागी न थ मण. वैसे इसके
आगे मणाचाय
ी वभव सागरजी क बहुच चत
कालजयी अमर भि त रचना – “समाधी भि त”
शतक का पाठन कर सकगे. जैसा क नाम से ह
ात हो जाता ह क इसके 100 से अ धक का य
ह. यहाँ पर “ थम अ धकार” का शत कया जा
रहा ह शेष अगले अंक म आएगा.

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िजनवाणी रसपान क ं म, िजनवर को याऊ|
आयजन क संग त पाऊं, त संयम चाहूं ||
गुणीजन के स गुण गाऊं, िजनवर यह वर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||1||
... तेर छ छाया भगवन

पर नंदा न मुंह से नकले, मधुर वचन बोलूं |


दय तराजू पर हतकार , संभाषण तौलूं ||
आ म-त व क रहे भावना, भाव वमल भर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||2||
... तेर छ छाया भगवन

िजन शासन म ी त बढ़ाऊँ, म यापथ छोडूँ |


न कलंक चैत य भावना, िजनमत से जोडूं ||
ज म-ज म म जैनधम यह, मले कृपा कर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||3||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

मरण समय गु -पादमूल हो, संत समह


ू रहे |
िजनालय म िजनवाणी क , गंगा न य बहे || भव-
सार वत क व मणाचाय ी भव म स यास मरण हो, नाथ हाथ धर दो| मेरा
अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||4||
108 वभव सागरजी महाराज
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

समा ध भि त शतक बा य काल से अब तक मने जो सेवा क हो| दे ना


चाहो भो ! आप तो, बस इतना फल दो || वास-
थम अ धकार वास, अं तम वास म णमोकार भर दो | मेरा
अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||5||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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वषय कषाय को म यागँ,ू तजूं प र ह को | मो
दःु ख नाश ह , कम नाश ह , बो ध-लाभ वर दो |
माग पर बढ़ता जाऊँ, नाथ अनु ह हो || तन
िजन गण
ु से भु आप भरे हो,वह मझ
ु म भर दो
पंजर से मुझे नकालो, स धालय घर दो | मेरा
||
अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||6||
यह ाथना, यह भावना, पूण आप कर दो ||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||11||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
भ बाहु सम गु हमारे , हम भ ता दो | मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
र न य संयम का शु चता, दय सरलता दो ||
चं गु त सी गु सेवा का, पाठ दय भर दो | मेरा
अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||7|| मशः –अगले अंक म...
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

अशुभ न सोचँ ू, अशुभ न चाहूँ अशुभ नह ं दे खूँ |


अशुभ सुनँन
ू ा, अशुभ कहूँना, अशुभ नह ं लेखूँ ||
शभ
ु चया हो, शभ
ु या हो, शु ध भाव भर दो|
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||8||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

तेरे चरण कमल वय िजनवर, रहे दय मेरे |


मेरा दय रहे सदा ह , चरण म तेरे ||
पं डत-पं डत मरण हो मेरा, ऐसा अवसर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||9||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

मने जो जो पाप कए ह , वह सब माफ करो |


खड़ा अदालत म हूं वामी, अब इंसाफ करो ||
मेरे अपराध को गु वर, आज मा कर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||10||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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चंतन वह काश है जो अनथ के ग ढे म
गरने से बचा लेता है . य द काश नह ं होगा
तो यि त माग म मण करते हुए वाहना द से
भीड़ सकता है और काश होगा तो वह दघु टना
से बच जाएगा.

चंतन के आलोक म जो िजएगा, वह हमेशा


हर पल आनं दत सुखमय जीवन िजएगा
य क सकारा मक चंतन सुख के सभी साधन
उपल ध करा दे ता है ।

(आचाय ी वशु धसागरजी महाराज क कृ त:


चंता रह य Mystery of Tension से उ धत
ृ )

चंतन काश
ान ‘ काश’ है और अ ान ‘अंधकार’ है .
स यक - चंतन काश, उिजयारा, आलोक,
उजाला, भा, रोशनी है . जैसे द प काश दे ता है ,
िजससे माग श त होता है , वैसे ह जो चंतन परम पू य आचाय ी 108
होता है . वह काश है , यो त है , जो वकास का वशु धसागरजी महाराज
माग श त करता है. चंतन वह उजास है जो
उ कष क ओर ले जाता है .

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इस युग के भगवान से ||
गु वर जब से आए,
स भावना नजर आयी |
जो कभी ना दे खी सुनी,
वह भावना नजर आयी ||
हम तो बदले सारा,
जमाना बदल गया |
सारे नगर के अंदर,
धम साधना नजर आयी ||

सीप के अंदर मोती का,


मनहर मु तक अरमान छुपा होता है ||
(सार वत क व आचाय ी वभवसागरजी द प के अंदर यो त का,
महाराज क कृ त: ‘भि त भारती’ से उ धत
ृ ) वरदान छुपा होता है ||
जौ लौ जीवन च तु हारा, गु चरण म आने से,
चम चम चमक रहा | ना घबराइए ||
त ल अमत
ृ मय करणे द, गु चरण म श य का,
कर ल ध य अहा ! || स मान छुपा होता है ||
अ ताचल जाने पर तुम फर,
या कर पाओगे ? तु त:

पु य काय का ऐसा अवसर, बा. . च दद


फर या पाओगे || (संघ थ -
सार वत क व
आंख से तो कम दे खा है , आचाय ी
दे खा है धान से | वभवसागरजी
वाणी से तो नह ं पुकारा,
महाराज)
तु ह पुकारा यान से ||
एक अलौ कक बात नराल ,
कहता अपने ान से |
तम
ु तो गु वर हमको लगते,
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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 06 माह : सत बर 2018
Web site: www.vishuddhasagar.com

वचन वा स य भावना
चार मले चौसठ खले, बीस रहे कर जोड़ |

वा स य चतु वध संघ त, धम से धम मले, ह षत साठ करोड़ ||

गौरव स हत आदर करो |


सामा य से कसी नी तकार ने लखा, जब दो
वा स यता नज आ म गुण, यि त मलते ह तो चार हाथ एवं मु कान म 64
त आ म अवलोकन करो || दात क पि तयां खल जाती है | 20 अंगल
ु से हाथ
वा स य हो गऊ-ब छ सम, जोड़े जाते ह | परं तु जब धम जीव, धम जीव से
ावक- मण िजनवर कह | मलता है तब सभी रोम रोम शर र के खुश हो जाते
वा स य य "चं े श" जहँ, ह तब सभी को कतना वा स य रहता होगा उसका
उसके सभी पातक नश || वणन मेर लघु कलम नह ं कर सकती है |

वा स य भावना के भाने से तीथकर कृ त का


स यः सूता यथा गौव से ि न य त – बंध भी होता है | सोलह भावनाओं म वचन वा स य
नामक भावना य से तीथकर बनाने म सहायक है
पू य आचाय दे व कहते ह - िजस कार तुरंत क |

सूता गाय अपने ब चे पर ेम करती है | उसी मचार नहाल चंद जैन “चं े श”
कार जो चार कार का संघ ह उस पर ेम करना ल लतपरु .
वा स य है | वा स य अंग एक मह वपण
ू अंग है सलाहकार : नमो तु चंतन
िजसके कारण मनु य के व प अथवा मन के
दशन ा त होते ह | अ य कोई भी ऐसा अंग या
या नह ं िजससे मनु य के मन का च ण हो
. ी नहालचं जी
सके पर तु वा स य को धारण करने वाले मनु य जैन “चं े श”
नमल प रणाम वाले होते ह | सो उनके मन का महाका य रचनाकार :
पव च ण वतः ह हो जाता है | ठ क इसी “ व-संवद
े मण”
कार थमानय
ु ोग का थ

धम सो गौ-ब छ ी त सम

जैसे गाय अपने ब चे पर बना कसी वाथ के


ेम करती है वैसे ह धम मनु य को दे खने मा
से धम जीव को वा स य करना चा हए |

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
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वषा योग म अथात चातम
ु ास के काल म
आचाय, उपा याय और साधू परमेि ठय सभी जीव के त वा स य और उनक र ा हे तु
के वहार का योजन भगवन एक जगह ह ककर चातुमास क थापना
करते ह. इन चार मह न म भगवन ीजी क
वाणी को, अपनी दे शना के मा यम से सभी
ावक/ ा वकाओं को आ म धम समझाते हुए
मो माग से नवाण ा त करने का उपदे श दे ते
ह.
इन चातुमास के चार मह न म यवसाय,
कामकाज इ या द भी कम ह रहता है अतः यह
समय धा मक काय के लए भी े ठ ह. एक से
बढकर एक यौहार भी इसी समय आते ह िजसमे
सबसे अ धक माव जीवन के लए वा स य पव
अथात र ा बंधन भी आता ह िजसक कथा,
व णक
ु ु मार मु न क कथा आप सभी को ात ह
ह. ावक/ ा वकाएं भी अ धक से अ धक समय
हम पंचमकाल म ह अतः आज हमारे
गु वय के सा न य का लाभ लेकर धम भावना
सामने तो अ रहं त और स ध परमे ठ नह ं ह
पर तु यह हमारा सौभा य है क उनके लघुनंदन एवं आ म उ न त क राह पर चलते ह.

हमारे सामने ह. भगवन बना वाथ या योजन - मंजू द प कुमार जैन


के, िजसमे राग के अंतर ग हत होने का कोई ीमती मंजू
कारण नह ं ह, वो प न सबके लए क याणकार पी. के. जैन
ह. हमारे पु योदय का न म पाकर भगवन दे शना सद य ट मंडल
दे ते ह और वहार करते ह िजसमे उनका कोई नमो तु शासन
योजन नह ं होता. जैसे मद
ृ ं ग, वादक क ऊँगल सेवा स म त (रिज.)
का पश पाकर वमेव बज कर, अनेक को क याण,
आनं दत करनेवाल सुमधरु व नयाँ दे ता ह, पर मुंबई.
मद
ृ ं ग का कोई योजन नह ं होता ह. यह उनका
सभी के त वा स य भाव ह ह िजसके कारण
वे हमारे क याण हे तु वहार करते समय भी दे शना
से सभी को अ भ सं चत करते रहते ह.

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ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
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ी म योग कम योग है तथा वषा योग "धम योग"
है .
वषा योग:
दगंबर ऋ षराज वषा ऋतु के चार माह
गु के चरण मे शत शत नमन
अपने वहारा द याओं को वराम दे कर एक
शीतयोग, ी मयोग क भां त वषा योग थान पर अ यवि थत हो नज ान यान
का भी अपना मह व है योग का अथ - जोड़ और साधना म ल न हो जाते ह. इसका कारण उनक
वषा का अथ जलविृ ट अथात िजस काल म जल ाणी पीड़ा पर नज सम समझने क वृ का
का योग हो उसे कहते ह "वषा योग" आ याि मक काशन. यह है उनक िजयो और जीने दो क
ि ट से दे खा जाए तो िजसम हमारा मन वचन भावना. यह उनक वा त वक अ हंसा, प प रण त
काय एका हो जाए, हमार मन वचन काय क यह है उनका त व ान और यह है उनका संयम,
प रणी त धम से जड़
ु जाएं परमे ठ से जड़
ु जाए, चा र , वशाल क णामई ि ट का अवलोकन. वषा
नज व प से, नज वैभव से जड़
ु जाए उसे कहते ऋतु के इन चार मह न म जीव जंतु क उ प
ह - वषा योग. अथवा यूं कह क िजसम साधक असं यात गुनी अ धक हो जाती है . सू मा तसू म
साधना से जड़
ु जाए, ावक साधु से व धम से जीव प ृ वी पर वचरण करने लगते ह. जो हम
जड़
ु जाए वह "वषा योग" है , मा इसका संबंध सामा य अवलोकन म तो अवलो कत नह ं होते.
बा य से नह ं ह कंतु इसके साथ- ावक क अंतरं ग अतः हमारे दगंबर मु नराज वषायोग क थापना
भि त जुड़ी हुई है , आ था धा जड़
ु ी हुई है और एक थान पर कर लेते ह। दस
ू रा कारण है यह है
संयम क साधना जुड़ी हुई है . क ी म व शीत काल के अ ट माह म ावक
अथ तथा काम पु षाथ म ह य त-रत रहता है .
उसके बाद मेरा समय धम यान पव
ू क यतीत हो,
ी म व शीतयोग म ावक िजस तरह
इस भावना से गु चरण मे जाकर नम कार
अपने यापार आ द घर के काय से जुड़ा रहता
करता है , वनय करता है , और अपनी नगर म
है . वषा योग म उसी त परता से धम क ओर जुड़
थापना (वषायोग / चातम
ु ास) करवाता है . तीसरा
जाएं, आ म साधना संयम क ओर जुड़ जाए, तब
कारण शर र क पाचन मता म द हो जाती है
वह नि चत ह जीवन का आनंद ले सकता है .
अतः त उपवास आ द से वह सयं मत रहता है .
यह चार माह उसके लए गु समागम म रहने
अतः हे ानी ! शार रक, मान सक, आि मक हर
का पू य अवसर होता है य क पग बहार इन
ि ट से चातुमास उपयोगी है .
गु जन का थाई समागम उनक द य दे शना
का वण उनक सेवा वेयाव ृ त आ द का लाभ
ा त करने का सौभा य मलता है . अतः शीत व

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हे आ मन ! ऐसे ह जब हमारे अंतमन म
वषय कषाय क ती ऊ मा नरं तर उ ग लत हो
रह है , अंतर का ताप अ वरल ग त से बढ़ रहा है ,
आओ एक ण ले
अपनी दयनीय ि थ त पर वयं को ह दया करना
ध य हो आज का दन । ध य हो व णु
है . और सागर सम गंभीर गु , सदगु पी सागर
कुमार मु नराज । नमो तु शासन जयवंत हो ।
के चरण म पहुंच कर धमामत
ृ क जब हमारे
जयवंत हो वा स य पव ।
ऊपर ती विृ ट होगी उनक द यवाणी का हम
पान करगे तो जो च तन पी लहर लहरायगी र ा बंधन का ये पावन पव वा स य पव
तभी हमारे अंतरं ग म जो ती ऊ मा दाह उ प न के प म भी मनाया जाता है । य क इसी दन
कर रह है वह शां त को ा त होगी. इस वषा के अकंपनाचाय स हत 700 मु नय का उपसग दरू
साथ -साथ धमामत
ृ वषा का सौभा य भी वशेष हुआ था। स यक दशन के वा स य अंग म
प से वषा काल म ह ा त हो पाता है | स ध मु नराज व णु कुमार वारा 700 मु नय
का उपसग हि तनापुर नगर म दरू हुआ था।

आचाय सम तभ वामी ने र नकरं ड


आने से गु के आये बहार,
ावकाचार म लखा है क जैसे गाय अपने बछड़े
जाने से गु के जाए बहार ।। को बना वाथ के दध
ू पलाती है । वैसे ह साधम
का साधम के त ऐसा भाव होना चा हए। ध य
आया वषा योग दे खो,
हो व णु कुमार मु न िज ह ने अपने मु न पद का
गु क छाई है म हमा अपार।। याग करके भी उपसग को दरू कया । आज लोगो
ने वा स य का मतलब एक दस
ू र क झूठ लेटो
म खाना , गले मलना , साथ मे घूमना आ द
ीमती क त जैन
द ल दे शा य ा समझ लया। ले कन ये सब वा स य नह है ।ये
नमो तु शासन सेवा तो सब अपनी वाथ क पू त के साधन है । जहाँ
स म त (रिज.) नः वाथ भाव है वह वा स य हो सकता है ।
संचा लका जहाँ कं चत मा भी य द वाथ है वहाँ वा स य
नमो तु शासन सेवा भाव हो ह नह ं सकता ।
स म त पाठशाला आजकल समाज मे वा स य का अभाव
होता दख रहा है । उसका मूल कारण है सवदनाओ
का अभाव । लोगो म संवेदनाये ह नह बची है
य क TV दे ख कर भोजन कर रह या फर भोजन

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क शु धता का अभाव । ये दोन होने से भाव नमो तु शासन जयवंत हो ।
क वशु धता का भी अभाव। जयवंत हो वीतराग मण सं कृ त |

यि त वा स य के अभाव म न जाने कन
र ा बंधन पव क सभी को शभ
ु कामनाय ।
कन क नंदा करता रहता । यहाँ क लोक
पू य मु ा के त भी अ वनय का भाव ले आता
। समाज, नगर और रा म अपने ह धम क
हँसी कराता रहता है । ओर य द उसे पूछा जाएं
क ऐसा य कया जा रहा है ? तो बोलता है
क स य को द ु नयां के सामने ला रहा हूँ । अरे !
उसे कौन समझाये क तेरे इस स य से न जाने
कतन लोग के मन मे िजन धम के त अस य
बैठ गया है ।

इस लए मेरा मानना क य द वा तव म
िजन धम क र ा करनी है और र ा बंधन पव
को साथक बनाना है , तो आये हम सब एक ण
ले क मेरे न म से या हा सएप के मा यम से
या फर फेसबुक के मा यम के साथ साथ अ य
कसी भी सोशल मी डया पर कभी भी िजनधम
क अ भावना नह करगे । बा. . अ य जैन
उदयपरु
हम सब मल कर सयंम से नीचे गरते महाम ी:
हुए जीव को वा स य भाव दे कर उस जीव क नमो तु शासन सेवा
और िजन धम क दोन क र ा करगे । स म त (रिज.)
मंब
ु ई.

वा स य र नाकर ऐसे गु वर
आचाय भगवंत वशु द सागर जी
सदा जयवंत हो ।

इ त शुभम भुयात।।

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नोट:- महान त व व लेषक आचाय ी अमत ृ च T;ksfr% t;fr ¾ loksZR—"V 'kq) psruk:i izdk'k
वामी क महान रचना “पु षाथ स युपाय” पर t;oUr gksA
आधा रत तपल मरणीय, चया शरोम ण, अ या म
योगी, आगम उपदे टा,
संवधक, आचायर न
वा याय
ी 108
भावक,
वशु ध सागरजी

ु **L;k}kn dks ueLdkj^^
महाराज क दे शना “पु षाथ दे शना” का मश: काशन
ijekxeL; thoa fuf"k)tkR;U/kflU/kqjfo/kkue~ A
का शभ ु ार भ कया गया है . अब तक आपने इस

ं राज क दो गाथा/ लोक का पठन कया है . इस
ldyu;foyflrkuka fojks/keFkua uekE;usdkUre~A 2A
थं राज के मंगलाचरण म ान यो त को ह नम कार
vUo;kFkZ%
कया गया है . यह जैन दशन क वशेषता है . इसम fuf"k)tkR;U/kflU/kqjfo/kkue~ ¾ tUekU/k iq#"kksa d¢
यि त को नह ं गण ु का ह वणन और पू य वताया
gfLr&fo/kku dk fu"ks/k djus okys
गया ह. अब आगे बढ़ते है तीसर गाथा क ओर...
ldyu;foyflrkuka ¾ leLr u;ksa ls izdkf'kr
मशः......
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okysA ijekxeL;¾mRd`"V tSu fl)kar d¢A thoa ¾
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चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख
ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
namostushasangh@gmail.com; FB: NAMOSTU SHASAN SANGH

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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 06 माह : सत बर 2018
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र ाबंधन यह भारत क गु - श य परं परा का तीक


योहार भी है । यह दान के मह व को ति ठत
- डॉ. सुनील जैन संचय, ल लतपुर
करने वाला पावन योहार है । यह वा स य का
भारत अतु य है । यह योहार - पव , पव भी है , यह मु न र ा का पव भी है ।
उ सव क धरती है । यहाँ वभ न कार के
र ाबंधन पव को मनाने के पीछे अनेक
योहार-पव मनाए जाते ह । हर योहार-पव अपना
पौरा णक कथानक जुड़े हुए ह । जैनधम म भी
वशेष मह व रखता है ।
इस पव को मनाने के पीछे एक कथानक जड़ु ा है
राखी एक धम नरपे योहार है । इसे परू े ।
दे श म मनाया जाता है । रा य, जा त और धम
उस कथानक के अनुसार, उ ज यनी म
कोई भी हो, हर यि त इसे मनाता है । राखी
ीधम नाम के राजा के चार मं ी थे - ब ल,
मॉर शस और नेपाल म भी मनाई जाती है ।
बह
ृ प त, नमु च और लाद । इन मं य ने
र ाबंधन का यह पव ावण पू णमा के दन
शा ाथ म परािजत होने के कारण त
ु सागर
मनाया जाता है । हर योहार-पव अपना वशेष
मु नराज पर तलवार से हार का यास कया तो
मह व रखता है । र ाबंधन मनाने के पीछे अनेक
राजा ने उ ह दे श से नकाल दया । चार मं ी
कारण जुड़े हुए ह । सबसे यादा र ाबंधन भाई-
अपमा नत होकर हि तनापरु के राजा प म क
बहन के ेम का तीक के प म यह पव मनाया
शरण म आए। कुछ समय बाद मु न अकंपनाचाय
जाता है । ब हन को मह न पूव से ह इस पव
700 मु न श य के संग हि तनापरु पहुंच।े ब ल
क ती ा रहती है । र ाबंधन पा रवा रक
को अपने अपमान का बदला लेने का वचार आया।
समागम और मेल- मलाप बढ़ाने वाला योहार है
उसने राजा से वरदान के प म सात दन के लए
। इस अवसर पर प रवार के सभी सद य इक ठे
रा य मांग लया। रा य पाते ह ब ल ने मु न
होते ह । ववा हत बहन मायके वाल से मल-जुल
तथा आचाय के साधना- थल के चार तरफ आग
आती ह । उनके मन म बचपन क याद सजीव
लगवा द । धए
ु ं और ताप से यान थ मु नय को
हो जाती ह । बालक-बा लकाएँ नए व पहने घर-
अपार क ट होने लगा, पर मु नय ने अपना धैय
आँगन म खेल-कूद करते ह । बहन भाई क कलाई
नह ं तोड़ा । उ ह ने त ा क क जब तक यह
म राखी बाँधकर उससे अपनी र ा का वचन लेती
क ट दरू नह ं होगा, तब तक वे अ न-जल का
है । भाई इस वचन का पालन करता है । राखी
याग रखगे । वह दन ावण शु ल पू णमा का
के दन हर घर म उ साह का माहौल रहता है।
दन था।
परू ा प रवार एकजुट होता है । जीवनभर नै तक,
सां कृ तक और अ याि मक मू य भी इस पव म
शा मल ह ।
चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख
ु दाई है ;आ मशां त सदा मलेगी, चंतन ह सुखदाई है || ई-मेल:
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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 06 माह : सत बर 2018
Web site: www.vishuddhasagar.com
मु नय पर संकट जानकर मु नराज व णु कंतु आज यह र ा उपे त है , हम चाहते
कुमार ने वामन का वेश धारण कया और ब ल ह ‘सरु ा’, मगर कसक ? मा अपनी और अपनी
के य म भ ा मांगने पहुंच गए । उ ह ने ब ल भौ तक स पदा क । आज यह वाथपूण संक णता
से तीन पग धरती मांगी । ब ल ने दान क हामी ह सब अनथ क जड़ बन गई है । म दस
ू र के
भर द , तो व णु कुमार ने योग बल से शर र को लए य चंता क ं , मुझे बस मेरे जीवन क चंता
बहुत अ धक बढ़ा लया । उ ह ने अपना एक पग है । म, मेरा, अपना, आज का सारा यवहार यह ं
सुमे पवत पर, दस
ू रा मानुषो र पवत पर रखा तक केि त हो गया है । र ापना समा त हो गया
और अगला पग थान न होने से आकाश म डोलने है ?
लगा। सव हाहाकार मच गया । ब ल के
वयं क परवाह न करते हुए अ य क
मायाचना करने पर उ ह ने मु नराज अपने
र ा करना- यह इस पव के मानने का वा त वक
व प म आए। इस तरह सात सौ मु नय क
रह य है । व णक
ु ु मार मु न ने बंधन को अपनाया
र ा हुई। सभी ने पर पर र ा करने का बंधन
। अपने पद को छोड़कर मु नय क र ाथ गए ।
बांधा, िजसक म ृ त र ा-बंधन योहार के प म
ऐसा करने म उनका योजन धम भावना और
आज तक चल रह है ।
वा स य था । र ा के लए जो बंधन है , वह सभी
व णु कुमार मु न ने साधम मु नय क के लए मिु त का कारण है ।
इस दन र ा क थी, इस लए साधम , गण
ु ी बंधु
इस तरह र ाबंधन का योहार समाज म
बा धव क र ा करना हम सबका परम कत य
ेम , वा स य, र ा और भाईचारा बढ़ाने का काय
है । जैन धम म तो ा णमा क र ा करने का
करता है । संसार भर म यह अनूठा पव है । इसम
उपदे श दया गया है । ी व णुकुमार महामु न
हम दे श क ाचीन सं कृ त क झलक दे खने को
ने व याऋ ध के भाव से उ ज यनी से आकर
मलती है ।
ब ल आ द मं य के वारा कये गये उपसग को
दरू कर मु नय क र ा क थी, वह त थ ‘ ावण
शु ला पू णमा’ थी, तभी से आज तक यह त थ
डॉ. सुनील जैन
‘र ाबंधन’ पव के नाम से सारे भारत म व यात
“संचय”,
है ।
ल लतपरु
र ा बंधन पव क मह ा इसी लए तो है उ र दे श
क महान आ मा ने र ा का महान काय स प न
कर संसार के सामने र ा का वा त वक व प
रखा-जीव क र ा, अ हंसा क र ा, धम क र ा।

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


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आपके सुझाव उनका पंचम गुण थान था तथा आचाय ी


व यासागर जी महाराज भी यह बोलते है और दय
संपादक महोदय,
म वा स य भाव था इस लए ह गए थे उनको
जय िजने ,
बचाने के लए... तो उससे बेहतर और अनु चत बात
आपका पछला अंक दे खा और पढ़ा. पढ़कर
यह है क इतने बड़े बड़े महान मु न के कये अपनी
मन बहुत ह फुि लत हो गया.
जबान न चलाओ तो वो अ छा हे .... आप तो वो
समाज म आजकल जो दे खने और सुनने म
महान पु ष को खाल नमन करो.. और आचाय
आ रहा ह, उससे मन म बहुत ह ठे स पहुंची
िजनसेन ने लखा हे क ऋ धधार साधु म इतनी
ह.मन बहुत ह आहत हो गया ह. पर तु जब
ताकत होती हे क वो चाहे तो सूय और च मा को
हमार अपनी “नमो तु चंतन पु प” पढने के बाद
भी आकाश म वच लत कर सकते हे . समु को
मझ
ु े ऐसा लगा क यह मेर ह नह ं बि क सभी
हथेल के हार से खाल कर सकते हे . अकाल म
क ह चंता ह. मै आज आपको आचाय ी
लय उ प न कर सकते है और िजसमे मो क
व यासागर जी ने जो कहा है वह लखकर भेज
पा ता नह ं हे उसे भी मो पा बना सकते है . तो
रहा हूँ.
सोचो क कतनी महान ह ती हे ऋ धधार मु न
आज बहुतसे लोग का मानना है क मु न !!!
ी व णु कुमार जी ने जो भी कया था वह उ चत वो तो जरा सा ान या बढ़ जाता है इस
नह ं था. वे तो 6व - 7व गण
ु थान वाले मु नराज ाणी का तो वो बडबडाना चालू कर दे ता है और
थे. अब जब ु लक जी ने समाचार दए क 700 अपने से यादा कसी को समझता नह ं है , और
मु न पर उपसग हो रहा हे . तब उ ह ने जो वेश कुछ भी मु नओं के बारे म भी बोलने लगता है ,
धारण कया था उसके कारण से वो 5वे गुण थान आचाय कंु द-कंु द वामी सा ात ् बोल रहे है पंचम
म आ गये थे तो वो उ चत काम नह ं था. ऐसा आज काल के अंत तक भाव लंगी मु न ह गे, "भाव लंग
के कई व वान लोग का मानना है . अगर आपके ान का वषय ह नह ं है " इस तरह अगर
व णक
ु ु मार मु न यह जानने पर भी कुछ न करते कभी दे व-शा -गु पर कभी कोई संकट आये और
और ऐसा सोचते क मुझे तो यान म ह बैठने दो. उस भ त म मता है तो अपनी ववेक बु ध के
जो भी होगा वो उनके पाप कम दय के अनुसार होगा. अनुसार कदा चत र ा कर सकता है ! अगर आप
ऐसा मानकर चले होते तो सोचो क उस समय दे व-शा -गु क र ा करगे तो आपक र ा होगी
उनक आ मा का या होता, उनका गुण थान 7 वे संसार सागर से डूबने से बचने म !
से सीधा 1 ले [ म या व] थान पर आ जाता तो आपके त यह व वास है क आप इसी
यादा कौन सा उ चत होता ? 7 वे थान से 5 व तरह समाज क वलंत सम या को लेकर हमारे
पर आ जाना या 1ले गण
ु थान पर लड़
ु कना, यह अपने जैन धम के उ थान म योगदान दे ते रहगे.
मालूम होने के बाद भी क मेरे म मता है उपचार ॐ शां त ॐ
करने क ... धवलाजी क चौथी पु तक म आया है आपका अपना
क उस समय जब वो वामन के प म थे उस समय समीर दोषी, भगवन, बारामती. महारा .

चंता कभी करना न भाई, चंता सदा दख


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त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||2||

त मण पाठ अपने गुण र न से भव ु र!.......

मोह महामद पीकर नश दन, म मदहोश हुआ|


य े म काल भाव म, कतना दोष हुआ|| यह
बेहोशी दरू भगाकर, मुझम होश भरो|
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||3||
अपने गण
ु र न से भव ु र!.......

हे प ृ वी! तू मादान दे , हे जल! मा करो| अि न


वायु! तू मादान दे , हे तण
ृ ! मा करो|| त वर!
गु वर! मा क िजए, अब ना रोष धरो|
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||4||
अपने गुण र न से भव ु र!.......

हे दो इं य! जीव कचुआ, कृ मलट आ दक रे |


हे तीन य! चीटा चींट खटमल, विृ चक रे |
हे चतु रं य! हे पंच य, अब संतोष धरो|
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||5||
अपने गण
ु र न से भव ु र!.......

भूतकाल के पाप मटाने, त मण करता |


नंदा गहा आलोचन कर, भाव मण हरता ||
अपने गुण र न से भव
ु र! मेरा कोष भरो |
आ म शु धयां दे कर वामी! क णा घोष करो|
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||6||

म ोधी हूं म मानी हूं मायावी लोभी | अपने गुण र न से भव ु र!.......

म अ ानी पाप कहानी, जैसा हूं जो भी ||


स थावर दोन जीव क , जो वराधना हुई |
अपनी ग ती म वीका ं , अब नद ष करो |
कभी न मुझसे मेरे भगवन! शु ध साधना हुई||
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||1||
अपना श य संभालो गु वर! न अफसोस करो|
अपने गण
ु र न से भव ु र!.......
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||7||

ई लपेट आग भव
ु र! कब ल कहां रखूं | अपने गण
ु र न से भव ु र!.......

परम पता के चरण आकर, य ना दोषकहूं ||


नह ं अ हंसा त पाला हो, स य न बोला हो|
हे पालक ! अपने बालक को, शी अदोष करो |

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चोर क हो कु ि ट से, यह मन डोला हो ||
बहुत प र ह जोड़ा मने, यह सब दोष हरो |
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||8||
अपने गुण र न से भव
ु र!.......

अणु त धरे गुण त धरे , श ा त धारे |


बारह त म लगने वाले, दोष नह ं टारे ||
लगे हुए उन अ तचार को, अब नद ष करो |
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||9||
अपने गुण र न से भव
ु र!.......

दशन त सामा यक पोधष, स च तमा के |


रा क भोजन मचय त, अ टम तमा के ||
नौ दस यारह तमाओं के, क मष कोश हरो |
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||10||
अपने गण
ु र न से भव ु र!.......

मेरे लए हुए जो नयम अनेक , पूरे नह ं कए |


मेरे ह कत य िजने वर! मुझसे नह ं हुए ||
मा मू त है मादान दो, आतम वभव करो|
त मण करता हूं भगवान! मेरे दोष हरो ||11||
अपने गण
ु र न से भव ु र!.......

(सार वत क व आचाय ी वभवसागरजी


महाराज क कृ त: ‘भि त भारती’ से उ धत
ृ )

!#$%&
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पावन वषा योग है |
जैनागम का ान बढ़ाना,
पावन वषा योग है |
अ या म क श ा पाना,
पावन वषा योग है |
अपना जीवन सफल बनाना,
पावन वषा योग है |
यह दल
ु भ संयोग है ,
पावन वषा योग है |
महा पु य का योग ह
पावन वषा योग है |

रा भोजन कभी न करना,


पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है बना छना जल कह ं न पीना,

संतो के सा न य म आना, पावन वषा योग है |


चार माह तक धम कमाना,
पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है |
भि त के रं ग म रं ग जाना,
आपस म मल जुल कर रहना,
पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है |
त दन वैयाव ृ करना,
कई वष के बाद म आया,
पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है |
त संयम क र ा करना,
पावन वषायोग है |
पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है |
यह दल
ु भ संयोग है ,
पावन वषा योग है | मो शा का ान बढ़ाना,
महापु य का योग है , पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है | जैन कम स धांत जानना,
पावन वषा योग है |
साधु संघ क सेवा करना,
याग तप या को अपनाना,
पावन वषा योग है |
पावन वषा योग है |
साधु क चया म रहना,
र ाबंधन पव मनाना,

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पावन वषा योग है |
अपनी कु टया पावन करना,
पावन वषा योग है |
शबर जैसी भि त करना,
पावन वषा योग है |
इनके चरण को छू माट हो जाती है चंदन ।
यह पहला संयोग है ,
तन को तपा तपा कर दे खो बना लया है कंु दन ।।
पावन वषा योग है |
नकल पड़े है जन जन के यह क ट मटाने ।
पावन वषा योग है |
तीथकर गु बनो लगे हम सब ह भावना भाने ।।
यह दल
ु भ संयोग है ,
पावन वषा योग है | वीण कुमार जैन

पावन वषा योग है , द प कुमार जैन


संपादक दै नक व व प रवार झांसी
पावन वषा योग है ||

. भैया अ भन दन
+++++
जैसे बादल को दे खकर मोर नाचने लगता
है आ मंज रय को दे खकर कोयल नये गीत गाने
लगती है उसी कार चातुमास लगते ह धा मक
जन और भु भ त का दय कमल खल उठता
है . व भ न कार के धम आराधना तप जप आ म
नयं ण आ द वारा धालज
ु न अपनी आ मा
का क याण करने म लग जाते ह.

सश
ु ांत कुमार जैन.
. भैया अ भन दन आचाय ी वभव सागरजी
उदयपुर. राज थान
महाराज के पाद ालन करते हुए.
सद य : ट मंडल
नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.)
क याण, मुंबई.

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अब पुनः सौभा य बुला रहा ह. सौभा यशाल अ याि मक


आप श वर म भाग लेने हेतु संयोजक से संपक करे
ावक-साधना सं कार श वर म उपि थत हो पाते ह.

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धांज ल
ऐसे महान मु नवर िज ह ने अपने कडवे
समाधी मरण ह मृ यु महो सव
वचन से भगवान ् महावीर के पथ को जैन ह
एक मा िजन दशन ह ऐसा दशन ह िजसमे
नह ं जैनेतर के जन जन तक पहुंचा कर वीतराग
भगवान ् बनते ह, बनाये नह ं जाते ह और यह
मण परं परा और सं कृ त को जयवंत कया और
दशन ऐसा ह िजसम मृ यु को भी महा महो सव
िजने दे व, सव दे व के नमो तु शासन को
के प म मनाया जाता है .
जयवंत कया, के पावन चरण म सम त नमो तु

ध य हो पू य मु न त ण सागरजी का शासन सेवा स म त प रवार के दे श- वदे श के गु

जीवन िज ह ने अपने जीवन काल म साधना के भ तगण अपनी अपनी धांज ल अ पत करते

फल स लेखना पूवक समाधी मरण को ा त ह.

कया. जैन दशन म मु न ह नह ं अ पतु सम त


मानव के लए जीवन क सफल साधना का फल
समाधी ह है .

िज ह ने अंत समय म चार कार के आहार


सभी अ न जल इ या द का बु ध पूवक याग
कर सबसे मा मांग कर काल को भी परा त
कया हो ऐसे मु नवर ध य हो ! ध य हो !

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वा याय भी
परम तप ह.
(रिज टड सं था)

य द आप भी घर बैठ फोन से 602/1, लाड शवा पेरेडाईज, बरला कॉलेज रोड,


क याण (पि चम)
नय मत वा याय करना चाहते ह तो मुंबई –

नमो तु शासन सेवा स म त पाठशाला E-mail : namostushasangh@gmail.com


: pkjainwater@gmail.com
से जु ड़ये और क िजये अपना आ म
WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
क याण. संपक करे :-

परम सुख आप सभी का आभार


नमो तु शासन सेवा
वा याय से ह
स म त प रवार
पाया जा सकता ह
“जय िजने ”
पी. के. जैन ‘ द प’ Q QQ

धा मक प का नःशु क वतरण के लए
बा. . अ य जैन
Q QQ

-: हमसे जुड़ने के लए तथा इस प का को


अपने फोन पर नशु क ा त करने के लए आगामी अंक मु न ी त ण सागरजी को

ऊपर लखे नंबर पर संपक करे :- धांज ल एवं मा वषय पर आधा रत


होगा अतः आप अपने लेख, सं मरण
इ या द उसी अनुसार भेज ---- संपादक.

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