4 Shlok Bhagwat Sar

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इन चार श्लोकों में है परू ी भागवत कथा, आप

भी पढ़िए

पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से


मनुष्य के अज्ञान जननत मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और
वास्तववक ज्ञान रूपी सय
ू य का उदय होता है ।
अगर आपके पास इतना समय नहीीं है कक पूरी भागवत का पाठ कर सकें और आप
करना चाहते हैं। परे शान मत होइये ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें सींपूर्ण भागवत-तत्व
का उपदे श समाहहत है । यही मल
ू चत:ु श्लोकी भागवत है ।
पुरार्ों के मुताबिक, ब्रह्मािी द्वारा भगवान नारायर् की स्तुतत ककए िाने पर प्रभु ने
उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदे श केवल चार श्लोकों में हदया था। आइये िानते हैं
कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से परू ी भागवत पाठ का फल ममलेगा।
श्लोक- 1
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत ् सदसत परम।
पश्चादहीं यदे तच्च योSवमशष्येत सोSस्म्यहम
अथय- सजृ ष्ि से पूवण केवल मैं ही था। सत ्, असत या उससे परे मुझसे मभन्न कुछ नहीीं
था। सष्ृ िी न रहने पर (प्रलयकाल में ) भी मैं ही रहता हूीं। यह सि सष्ृ िीरूप भी मैं ही
हूूँ और िो कुछ इस सष्ृ िी, जस्थतत तथा प्रलय से िचा रहता है , वह भी मैं ही हूीं।
श्लोक-2
ऋतेSथं यत ् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मतन।
तद्ववद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम:
अथय- िो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीीं होता,
उसे आत्मा की माया समझो। िैसे (वस्तु का) प्रततबिम्ि अथवा अींधकार (छाया) होता
है ।
श्लोक-3
यथा महाजन्त भूतातन भूतष
े ूच्चावचेष्वनु।
प्रववष्िान्यप्रववष्िातन तथा तेषु न तेष्वहम॥
अथय- िैसे पींचमहाभूत (पथ्
ृ वी, िल, अजनन, वायु और आकाश) सींसार के छोिे -िड़े सभी
पदाथों में प्रववष्ि होते हुए भी उनमें प्रववष्ि नहीीं हैं, वैसे ही मैं भी ववश्व में व्यापक
होने पर भी उससे सींपक् ृ त हूीं।
श्लोक-4
एतावदे व जिज्ञास्यीं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:। अन्वयव्यततरे काभयाीं यत ् स्यात ् सवणत्र
सवणदा॥
अथय- आत्मतत्त्व को िानने की इच्छा रखनेवाले के मलए इतना ही िानने योनय है की
अन्वय (सष्ृ िी) अथवा व्यततरे क (प्रलय) क्रम में िो तत्त्व सवणत्र एवीं सवणदा रहता है ,
वही आत्मतत्व है ।
परु ार्ों के मत
ु ाबिक, इस चत:ु श्लोकी भागवत के पाठ करने या कफर सन
ु ने से मनष्ु य
के अज्ञान ितनत मोह और मदरूप अींधकार का नाश हो िाता है और वास्तववक ज्ञान
रूपी सूयण का उदय होता है ।

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