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स्वधा स्तोत्रम्
स्वधा स्तोत्रम्
ब्रह्मोवाच – Brahmovach
अर्थ – ब्रह्मा जी बोले – ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से मानव तीर्थ स्नायी हो जाता है . वह सम्पू णथ
पापों से मु क्त होकर वाजपे य यज्ञ के फल का अधधकारी हो जाता है .
अर्थ – स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस प्रकार यधि तीन बार स्मरण धकया जाए तो श्राद्ध, काल और
तपथ ण के फल पु रुष को प्राप्त हो जाते हैं .
अर्थ – श्राद्ध के अवसर पर जो पु रुष सावधान होकर स्वधा िे वी के स्तोत्र का श्रवण करता है,
वह सौ श्राद्धों का पु ण्य पा ले ता है , इसमें संशय नहीं है .
अर्थ – जो मानव स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस पधवत्र नाम का धत्रकाल सन्ध्या समय पाठ करता है ,
उसे धवनीत, पधतव्रता एवं धप्रय पत्नी प्राप्त होती है तर्ा सि् गु ण संपन्न पु त्र का लाभ होता है.
अर्थ – िे धव! तुम धपतरों के धलए प्राणतुल्य और ब्राह्मणों के धलए जीवनस्वरूधपणी हो. तुम्हें श्राद्ध
की अधधष्ठात्री िे वी कहा गया है . तुम्हारी ही कृपा से श्राद्ध और तपथ ण आधि के फल धमलते हैं .
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बधहगथ च्छ् मन्मनस: धपतृणां तुधिहे तवे ।
अर्थ – तुम धपतरों की तुधि, धिजाधतयों की प्रीधत तर्ा गृ हसर्ों की अधभवृ न्वद्ध के धलए मु झ ब्रह्मा के
मन से धनकलकर बाहर जाओ.
अर्थ – सुव्रते ! तुम धनत्य हो, तुम्हारा धवग्रह धनत्य और गु णमय है . तुम सृधि के समय प्रकट होती
हो और प्रलयकाल में तुम्हारा धतरोभाव हो जाता है .
अर्थ – तुम ऊँ, नम:, स्वन्वस्त, स्वाहा, स्वधा एवं िधिणा हो. चारों वे िों िारा तुम्हारे इन छ:
स्वरूपों का धनरूपण धकया गया है , कमथ काण्डी लोगों में इन छहों की मान्यता है .
अर्थ – हे िे धव! तुम पहले गोलोक में ‘स्वधा’ नाम की गोपी र्ी और राधधका की सखी र्ी,
भगवान कृष्ण ने अपने वि: सर्ल पर तुम्हें धारण धकया इसी कारण तुम ‘स्वधा’ नाम से जानी
गई.
अर्थ – इस प्रकार िे वी स्वधा की मधहमा गाकर ब्रह्मा जी अपनी सभा में धवराजमान हो गए. इतने
में सहसा भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो गई.
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तिा धपतृभ्य: प्रििौ तामे व कमलाननाम् ।
अर्थ – यह भगवती स्वधा का पु नीत स्तोत्र है . जो पु रुष समाधहत धचत्त से इस स्तोत्र का श्रवण
करता है, उसने मानो सम्पू णथ तीर्ों में स्नान कर धलया और वह वे ि पाठ का फल प्राप्त कर ले ता
है .
ववशे ष – धपतृ पि श्राद्ध के धिनों में इस स्वधा स्तोत्र का पाठ करना चाधहए. यधि पू रा स्तोत्र
समयाभाव के कारण नहीं पढ़ पाते हैं तब केवल तीन बार स्वधा, स्वधा, स्वधा बोलने से ही सौ
श्राद्धों के समान पु ण्य फल धमलता है .