धनायविक्रमसन्दर्शनम्

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धनायविक्रमसन्दर्शनम ्
भग प्रणेतभशग सत्यराधो भगेमाां धधयमुदिा ददन्नः।
भग प्रणो जनय गोभभरश्िैभग
श प्र नभृ भनिुश न्तः स्याम ॥

अथर्वर्ेद

सब ऐश्र्र्यों र् भोगों का मूल कारण और श्री, धन, कोष और महत्त्र्ाकाांक्षाओां का


उत्पत्तिस्थान भग दे र्ता ही स्र्र्यां हमारा प्रेरक, कणवधार र् उन्नार्यक है । र्यही हमारे
भाग्र्य के उिम स्र्ास््र्य का हे तु है । इसी की कृपा से सच्ची धनाढ्र्यता आती है । र्ह
हमारी बुद्धध र् त्तर्चारों को समर्यानुसार कल्र्याणकारक मांगलमागव पर चलाए। र्ह
हमारे ललए अनुकूल रहते हुए, धन, सम्पदा, र्ाहन आदद सुख हमें दे ता है । उसी की
मदहमा से हम त्तर्शाल पररर्ार र्ाले बनें ।
द्वितीय भाि के विचारणीय विषय

कोषां विद्या ि िाणीां नयनमख ु भिां भाग्यभोग्यां समस्तां


िेषां भूषाां च िाहात ् सुखमर्नधतृ ी प्राततिेश्यां च हादश म ्।
िैराग्योद्भूततमाहुतनशजकुलविषयां नाभसकाां सत्यिाचां
कार्शण्यां कीततशहातनां िणणजविधधकृततां वित्तभािान्मन ु ीन््ाः ॥ 1 ॥
दस
ू रे स्थान से मुख्र्यत: इन बातों का त्तर्चार ककर्या जाता है -

• स्नातक, स्नातकोिर डिग्री कोसी के अततररक्त कोई, हुनर, व्र्यार्सातर्यक लशक्षा,


त्तर्शेषज्ञता हे तु लशक्षा आदद;
• जब ु ान, जीभ, बोलने की शक्क्त, भाषण कला, प्रस्तुततकरण, व्र्याख्र्यान,र्ाणी के त्तर्लभन्न
व्र्यार्सातर्यक प्रर्योग र्यथा गार्यन आदद;
• मांहु और इसकी भीतरी सांरचना;
• भाग्र्य से प्राप्त समस्त फलों के उपभोग के अर्सर र् क्षमता;
• र्ेशभष ू ा, पहनने ओढ़ने की अलभरुधच:
• सजने सांर्रने के शौक, लोगों से अलग ददखने र्ाला र्ेश;
• र्ाहन से होने र्ाला सुख और र्ाहन का लाभ;
• भोजन की इच्छा, खाने पीने की मात्रा, खान पान में पसन्दगी;
• र्ाणी र् मन पर तनर्यन्त्रण;
• पडौलसर्यों के साथ सम्बन्ध र् उनसे सख ु ;
• र्ैराग्र्य र् त्र्याग की भार्ना का उदर्य;
• अपना कुल, खानदान, र्ांश, कुटुम्ब;
• नाक (कान) की सघ ु डता, बनार्ट र् शक्क्त;
• झूठ बोलने की आदत;
• कांजस ू ी का व्र्यर्हार;
• साख र्या नाम बबगडने के अर्सर;
• ककसी चीज के खरीदने बेचने की कुशलता।
कुण्िली के छठे भार् की शभ ु क्स्थतत क्जस तरह से व्र्यक्क्त के अच्छे स्र्ास््र्य की
प्रतततनधध है , उसी प्रकार से हमारे भाग्र्य र्या नर्ें स्थान के स्र्ास््र्य की शभ
ु ाशभ
ु ता
दस ू रे स्थान (नर्ें से छठा) में तनदहत है ।

सांस्कृत शब्द 'भग' का अथव ही श्री, शोभा, धन, ऐश्र्र्यव, र्ैभर्, त्तर्लास, प्रततष्ठा आदद है ।
भग से उत्पन्न होने र्ाला पदाथव र्या भार् ही भाग्र्य है । भाग्र्य के भोग की क्षमता
का तनर्ास दस ू रे स्थान में है । प्रश्न के सन्दभव में द्त्तर्तीर्य स्थान का अपना खास
महत्त्र् है । धनसांग्रह, बचत, खानदान की परम्परा से प्राप्त होने र्ाली सम्पदा, मान,
पाररर्ाररक पररर्ेश, सभ्र्य र्ाणी, त्तर्षर्य को त्तप्रर्य ढां ग से पेश कर पाना, उच्च लशक्षा,
त्तर्शेषज्ञता, कुलीनता, सुखों का भोग, अथावत ् भाग्र्य से प्राप्त होने र्ाले समस्त
साांसाररक सुखों की उपभोग क्षमता का आधार दस ू रा स्थान है ।
तत
ृ ीय भाि से विचारणीय

अर्नधनविभागौ यद् ु धकण्ठस्िभत्ृ यान ्


करणगुणविनोदान ् स्थैयध श ैये प्रयत्नान ्।
रुधचबलकुलजन्मश्रेष्ठभसद्धीः समद् ृ धध
सहृु दनज
ु कृतां च िाददोषास्ततृ ीयात ् ॥ 2 ॥
तत
ृ ीर्य भार् से मख्
ु र्यतर्या इन बातों को दे खना चादहए-

• साथ बैठकर खाना पीना, सांर्युक्त पररर्ार, धन सम्पत्ति का बांटर्ारा;


• ककसी भी प्रकार का सांघषव, त्तर्रोध का सामना करने की शक्क्त, जझ
ु ारूपन;
• गले से सम्बक्न्धत बातें ;
• अपने तनजी नौकर, सेर्क;
• हाथों पैरों की किर्याशीलता, कमेक्न्िर्यों की सकिर्यता;
• धीरज, मन का सन्तल
ु न, त्तर्चारों की क्स्थरता;
• अपनी उन्नतत र्या जीर्न के ललए ककए जाने र्ाले प्रर्यत्न;
• रुधच, पसन्द, व्र्यर्हार में कुलीनता;
• ताकत, साम्र्यव:
• अपने पररर्ार में आगे जाने, सर्ावधधक उन्नतत करने र्या कुल में श्रेष्ठ होने के र्योग;
• अच्छी सफलता र् समद्
ृ धध;
• लमत्रों र् बन्धुओां द्र्ारा पैदा की गई रुकार्टें , त्तर्र्ाद, बाधाएां आदद।
ग्यारहिें स्थान के विषय

सिशलाभगुरुसोत्थसांग्रहाद् दासता च तनजजातसन्तततः।


स्िणशधान्यनरयानकन्यकाः िामकणशगलदोषसम्भिः ॥3॥

जानुसेव्यिसु दत्तमवर्शतां गुप्तकान्तर्ररतोषणाय िा।


र्ाटिां भलखनर्ाककमशसु कान्ततातधनलब्धधमागमात ् ॥ 4 ॥
ग्र्यारहर्ें भार् से इन बातों का त्तर्चार करना चादहए-

• सब तरह के लाभ, प्राक्प्त, उपलक्ब्ध;


• गरु
ु जनों, पर्
ू जव ों र्या अग्रजों से लमलने र्ाले लाभ;
• सभी प्रकार के सांग्रह, जड
ु ार्, लगार्, मनोर्योग, भण्िारण से होने र्ाला लाभ:
• ककसी की गुलामी र्या अधीनता;
• स्र्र्यां से पैदा होने र्ाली सन्तान की आर्यु;
• सोना, कीमती सामान, धन धान्र्य का सांग्रह;
• चालक समेत गाडी की प्राक्प्त;
• कन्र्या सन्तान;
• बाांर्या कान, गले में होने र्ाली गाांठें;
• घट
ु ने, त्तपांिली;
• अपनी दे खरे ख में रहने र्ाला माललक का धन;
• अपने प्रेमी को भें ट ककए गए गहने कपडे
• लेखन;
• ककसी काम को कुशलता र् सुघडता से करने की शक्क्त, मौके का फार्यदा उठाने
का गुण;
क्या मैं धनी हो र्ाऊांगा?

र्भ
ु े भिे श्रेष्ठबले तदीर्े तथाधधकैबशन्धगतेऽवर् नूनम ्।
त्रिकेतरे िगशबली भिेर्ो गरु ु ां विना िेतरदृब्ष्टयोगे ॥ 5 ॥

एकोऽवर् खेटो रसिगशर्द्


ु धः
सभ ु ािनाथो भिगो भिेद्िा।
जनो धनाढ्यो भविता ग्रहाणाां
र्भ
ु ार्भ
ु त्िां न विधचन्तनीयम ् ॥ 6 ॥
लाभ स्थान के र्ये र्योग व्र्यक्क्त को धनी बनाने में सक्षम हैं। इनमें ग्रहों की
स्र्ाभात्तर्क शभ ु ता र्या. अशभ ु ता का त्तर्चार तनरथवक है -
• ग्र्यारहर्ें स्थान में तनसगव शभ ु ग्रह की रालश र् र्गव हों और उस स्थान को ककसी
बली शभ ु पांचकगत ग्रह की दृक्ष्ट र्या र्योग प्राप्त हो;
• ग्र्यारहर्ें भार् का स्र्ामी उिम रालश नर्ाांश में हो और उसे बली ग्रहों का दृग्र्योग
लमलता हो;
• एकादश भार् को कई ग्रहों का सम्पकव प्राप्त हो;
• एकादश का स्र्ामी 6, 8, 12 भार्ों के अततररक्त ककसी स्थान में उिम रालश र् र्गों
में गर्या हो;
• लाभ स्थान पर बह ृ स्पतत को छोडकर ककसी अन्र्य बलर्ान ् ग्रह का र्योग र्या दृक्ष्ट
हो;
• षड्र्गों में से अधधकाांश में श्रेष्ठ र्गों में गर्या कोई ग्रह, चाहे अकेला ही क्र्यों न हो,
एकादश स्थान में क्स्थत हो;
• बत्रकेश के अलार्ा कोई ग्रह एकादश में क्स्थत हो।
विहाय चन््ां सुबली च लधधौ रिेद्शवितीये र्ुभखेटयुक्ते।
तनौ च िगोत्तमभागयाते ब्स्थरे तरे दे िनुते र्नौ च ॥ 7 ॥
धनायर्ौ लग्नर्तेश्च भमिे धने भसतेन्द ू तनधनेऽथ सौम्ये।
नर्
ृ ाददयोगे सतत वित्तप्राब्प्तर्ती भमथो बन्धगतौ च सुस्थौ ॥ 8 ॥
• लाभ स्थान में चन्िमा के अततररक्त कोई बलर्ान ् ग्रह हो;
• सूर्यव से दस
ू रे स्थान में कोई शभ
ु ग्रह हो;
• लग्न में र्गोिम नर्ाांश हो और गरु
ु शतन क्स्थर रालशर्यों में न हों;
• धनेश र् लाभेश दोनों ही लग्नेश के लमत्र र्या अधधलमत्र हों;
• द्त्तर्तीर्य स्थान में शि
ु र् चन्िमा हों;
• अष्टम में कोई बली शभ
ु ग्रह हो;
• प्रश्न के समर्य कोई राजर्योग बनता हो;
• धनेश र् लाभेश का आपस में कोई सम्बन्ध बनता हो।
क्या अमीरों में धगनती होगी?

अथो र्रे वित्तबहुत्ियोगाः भसते सुते मन्दविलोककते स्िे।


रिौ सुते भसांहगते च लाभे गुरुः स्िभे िा सुतगो तनर्ेर्ः ॥9॥

बध
ु े च कके र्तनराब्प्तगामी गुरूदये चन््कुजेज्ययोगे।
तथा बुधाांगे बध
ु र्ुक्रमन्दाः हरौ रिीज्यारयुतेऽथ कके ॥10॥

कुजेन्दद
ु े िेन््नत
ु ाश्च भौमे कुजाच्छसौम्याः क्षिततजाच्छमन्दाः।
सौम्यैनदृग्योगगतः भसतश्च र्ौकेगुमन्दारभसताश्च नायाशम ् ॥ 11 ॥

बध
ु ेक्षितो वित्तगतः र्तनश्च स्िायाखभाग्येषु बलाब्न्ितेषु।
बलाढ्य इन्दौ धनगो गुरुश्चेच्छुभेिणे भूररधनधधशरुक्ता ॥ 12 ॥
र्यदद 2, 9, 10, 11 भार्ों में से अधधकाांश भार् बली हों तो इन र्योगों में से कोई र्योग
बनने पर पच् ृ छक को अपने जीर्न काल में अमीर होने का सख ु लमलता है -

• अपनी रालश र्या उच्च रालश का शि ु पांचम में हो और शतन ग्र्यारहर्ें स्थान में हो;
• लाभ में बह ृ स्पतत और लसांह में सूर्यव पांचम में हो;
• स्र्रालश में गुरु कहीां हो और चन्िमा पांचम में गर्या हो;
• लाभ स्थान में शतन और ककव रालश में बध ु हो;
• धनु र्या मीन लग्न में चन्ि, मांगल र् बह ृ स्पतत का र्योग र्या परस्पर दृक्ष्ट सम्बन्ध
बने;
• लमथुन कन्र्या लग्न में बुध, शि ु र् शतन आपस में दृग्र्योग करें ;
• लसांह लग्न में सूर्य,व मांगल, बह ृ स्पतत का दृग्र्योग बनता हो;
• ककव लग्न में चन्ि, मांगल, बह ृ स्पतत का दृग्र्योग बने;
• मेष र्या र्क्ृ श्चक लग्न में मांगल, बुध, शि ु र्या मांगल, बुध, शतन का दृग्र्योग बने;
• र्ष
ृ र्या तलु ा लग्न में बध ु , शि ु र् शतन का दृग्र्योग हो;
• मांगल, शिु , शतन र्या राहु का कन्र्या रालश में कहीां भी र्योग बने;
• धन स्थान में शतन को बुध दे खता हो;
• धन स्थान में शभ ु दृष्ट बहृ स्पतत हो और चन्िमा बली हो।
उसका खानदान कैसा है ?

केन्् धनेर्े निमेर्बन्धे धनेऽथिा भाग्यर्तौ र्ुभाट्ये।


लग्नाांर्नाथेिणयोगयाते धनाााधधर्े सज्जनिांर्जातः ॥ 13 ॥
प्रश्नगत व्र्यक्क्त और उसके घर र्ाले सज्जन होते हैं और पररर्ार से अच्छे
सांस्कार लमलते हैं,

र्यदद:

• द्त्तर्तीर्येश केन्ि में शभ


ु र्युक्त र्या दृष्ट हो;
• नर्मेश द्त्तर्तीर्य में गर्या हो और शभ ु र्यक्
ु तदृष्ट हो;
• द्त्तर्तीर्येश पर लग्न में पडने र्ाले नर्ाांश के स्र्ामी की दृक्ष्ट र्या र्योग हो।

धनेर्तन्नाथनिाांर्नाथौ धनेर्लग्नाधधर्ती र्भ ु ार्े।


स्ितुांगभमिाददर्भ
ु ास्र्दे षु नरो भिेत्सज्जनिांर्जातः ॥ 14 ॥

• धनेश और धनेश का नर्ाांशश े एक रालश र्या एक नर्ाांश में हों;


• धनेश र् लग्नेश का परस्पर र्योग र्या दृक्ष्ट हो;
• धनेश र् लग्नेश र्या धनेश र् धनेश का नर्ाांशश े ककसी शभ ु रालश, उच्च,
अधधलमत्र र्या लमत्रादद की रालश र्या नर्ाांश में हों। इन र्योगों में भी व्र्यक्क्त
को अपने कुल से उिम सांस्कार लमलते हैं।
क्या मेरे र्ररिार में त्रबखराि होगा?

धने र्ुभाढ्येऽवर् मदोदयान्त्ये


खलग्रहाढ्ये प्रथमे गरु
ु ः स्यात ्।
धने मदे र्ार्खगाः कुलान्त
वििादविश्लेषकराः प्रददष्टाः ॥ 15 ॥

द्त्तर्तीर्य में शुभग्रह होते हुए भी, 1, 7, 12 भार्ों में पापग्रह हों। लग्न में
बह ृ स्पतत, द्त्तर्तीर्य में शतन और सप्तम में पापग्रह हो। व्र्यक्क्त के पररर्ार में
त्तर्र्ाद, त्तर्र्योग, बबखरार् होता है ।
क्या आांखों में विकार सम्भि है ?

र्ुक्रात ् त्रिके नेिर्तौ सर्ुक्रे धनाधधर्े िाांगर्तौ बुधः।


कुजेभगे िा कुजसौम्यदृष्टे धनव्यये सूयवश िधू विर्ेषात ् ॥ 16 ॥

ककोदये सूयय श ुतेक्षिते िा भसांहे तथा चन््युतेक्षितेऽवर्।


त्रिके विधािांर्ुधरो लयास्ते कोणे र्तननेिविकारयोगाः ॥ 17 ॥
ऐसा प्रश्न होने पर अधोललखखत र्योगों में से कोई र्योग बने तो नेत्रत्तर्कार होना
सम्भर् है -

• नेत्रपतत अथावत ् 2, 12 भार्ों के स्र्ामी शि


ु से बत्रक (6, 8, 12) में गए हों;
• द्त्तर्तीर्येश शि
ु के साथ हो;
• लग्नेश मेष, लमथुन, कन्र्या, र्क्ृ श्चक में हो और मांगल र्या बुध उसे दे खे;
• द्र्ादश र्या द्त्तर्तीर्य में सूर्यव र्या चन्िमा हो; (इन पर मांगल र्या बुध की दृक्ष्ट होने से
त्तर्शेष त्तर्कार होता है )
• ककव लग्न को सूर्यव दे खे र्या र्योग करे ;
• लसांह लग्न को चन्िमा दे खे र्या र्योग करे ;
• चन्िमा बत्रक में हो और सर्य
ू व 7, 8 भार्ों में हो;
• बत्रकोण में शतन के साथ सर्य
ू व 7, 8 में हो।
क्या भाषण कला या िाक् भसद्धध हो सकेगी?

धने सर्ार्का ग्रहाः प्रभूतभावषणां जनम ्।


बध
ु ारतारकाधधर्ा बलाब्न्िताः प्रर्ांभसतम ् ॥ 18 ॥
धने र्भ
ु ा लिाः र्भ ु ः र्भ
ु ेक्षितः खगस्तथा।
करोतत तां धगराां र्ततां यथोक्तसत्यभावषणम ् ॥ 19 ॥

• द्त्तर्तीर्य में कई शभ ु पाप ग्रह हों तो व्र्यक्क्त अधधक बोलकर ही बात का खुलासा
कर सकता है । अथावत ् उसे थोडे र्चनों से सन्तोष नहीां होता है ।
• प्रश्न समर्य में बुध, चन्िमा र् मांगल बलर्ान ् र् सुक्स्थत हों तो व्र्यक्क्त की भाषण
कला की प्रशांसा होती है ।
• द्त्तर्तीर्य में शभ
ु ग्रहों के अधधक र्गव हों, धन स्थान में शभु ग्रह शभ
ु दृष्ट भी हो तो
मनुष्र्य को र्ाक् लसद्धध होती है । अथावत ् उसकी कही हुई बातें सच्ची हो जाती हैं।
साथ ही र्ह भाषा र् शब्दों का प्रभार्शाली इस्तेमाल करता है ।
क्या मुांह में बडा रोग सम्भि है ?

मदे र्भ ु ैरनब्न्िताः खलाः र्नीन्दजु ौ यत


ु ौ।
त्रिके धनाधधर्ोऽगुतत्र्युक् कुजङ्ख्गोंगर्े ॥ 20 ॥
बध ु ेिणे ररर्ौ बधु ाकराधधर्ौ सर्ातको।
बुधाकशजौ धने तथा मुखे गदाततशसम्भिः ॥ 21 ॥

इन र्योगों में मांह


ु , तालु, जीभ आदद में कोई जदटल रोग सम्भर् होता है -

• सप्तम में पापग्रह हों और उनका शभ ु ग्रहों से कोई सम्बध न हो;


• शतन र् बुध बहुत तनकट र्युतत में हों और शभ ु दृग्र्योग से रदहत हों;
• द्त्तर्तीर्येश राहु र्या राहु की आधश्रत रालश के स्र्ामी से र्युक्त होकर बत्रक में हो;
• लग्नेश मांगल की रालश में गर्या हो और बध ु उसे दे खे;
• द्त्तर्तीर्येश र् बुध दोनों ही छठे स्थान में राहु र्या राहु के अधधक्ष्ठत राशीश से
र्यक्
ु तदृष्ट हों;
• द्त्तर्तीर्य में बुध र् शतन तनकट र्युतत में हों।
क्या भाईयों से बनी रहे गी ?

मन्दसमेत: सहजो जभसतदृष्टौ तथानज ु े र्ार्े।


षष्ठे सौम्यः कुरुते सोत्थानाां च मनोमलीमसताम ् ॥ 22 ॥
भौमात ् सोत्थे चैिां फलां तथा र्ार्सांयोगे।
सक्षिततजे सहजेर्े द्ियोब्स्िकेऽथ र्ार्खशदृग्योगे ॥ 23 ॥

इन र्योगों में भाई बहनों का आपसी प्र्यार र् सहर्योग तो कम होता ही है ,


साथ ही उनमें र्ैर त्तर्रोध भी सम्भात्तर्त होता है -

• तत
ृ ीर्य में शतन को बध ु र्या शि
ु दे खे;
• ततृ ीर्य में पापग्रह और षष्ठ में शभ ु ग्रह हो;
• मांगल से तीसरे स्थान में पापग्रह हों;
• तत ृ ीर्येश के साथ मांगल हो;
• तत ृ ीर्येश र् मांगल बत्रक स्थानों में पापदृष्टर्युक्त हों।

र्तनररह मांगलदृष्टो नीचास्तर्िभ ु स्थयुतः सहजः।


रविविधर्
ु ार्ा: र्ार्ैदृशष्टा च सहजसर्त्नताां कुयःुश ॥ 24 ॥

• तत ृ ीर्य में शतन पर मांगल की दृक्ष्ट र्या र्योग हो;


• तत ृ ीर्य में नीच, अस्त र्या शत्रु क्षेत्री ग्रह हों;
• तत ृ ीर्य में सूर्य,व चन्िमा र्या कोई भी पापग्रह पापदृष्ट हो तो भाईर्यों से
र्ैर त्तर्रोध होता है ।
र्डौसी कैसे भमलें गे?

यथा तत ृ ीये खलखेटयोगात ्


सहोदरोत्थां फलमिमक् ु तम ्।
तथा धनान्त्यस्मरभाद् विचायश
र्भ
ु ार्भ
ु ाय प्रततिेर्जाय ॥ 25 ॥

क्जस तरह तीसरे स्थान से भाईर्यों के साथ सम्बन्धों का त्तर्चार करना बतार्या गर्या
है , र्ैसे ही दस
ू रे , सातर्ें र् बारहर्ें स्थानों से पडौसी घरों का त्तर्चार करें । अथावत ् इन
स्थानों में सूर्य,व चन्ि र्या पापग्रह हों तो साधारण सम्बन्ध और उनपर पाप दृक्ष्ट भी
हो तो खराब सम्बन्ध कहें ।

सातर्ाां स्थान बबल्कुल सामने र्ाले घर का, दस ू रा दाांर्यी ओर र्ाले का और बारहर्ाां


बाांर्यी ओर र्ाले घर का होता है । अधधक सक्ष् ू म त्तर्चार के ललए इन स्थानों के
स्र्ालमर्यों की क्स्थतत से केन्िों में उसी ददशा में थोडी दरू के, पणफर में थोडा और दरू
के और आपोक्क्लम में क्स्थत ग्रहों से काफी दरू लेककन मुहल्ले में क्स्थत घरों और
उनमें रहने र्ालों के साथ सम्बन्धों का त्तर्चार करना चादहए।
क्या नौकर भमलेगा?

लाभेर्लाभास्र्दयोगमाप्ते मन्दे तथा िीयशयत ु ाढ्यलाभे।


र्भ
ु ेक्षिते लग्नमदे र्बन्धे मदे ऽथिा लग्नर्तौ तदाब्प्तः ॥ 26 ॥

िक्रास्तर्ार्ैविशधल
ु ग्ननाथौ र्ि
ू ोक्तयोगेषु खलस्य योगे।
लाभे रिौ िा रविणा युतेषु प्रोक्तेषु नो भत्ृ यजनाब्प्तमाहुः ॥ 27 ॥

इन र्योगों में नर्या र्या गर्या हुआ पुराना नौकर लमल जाता है -

• लाभेश र्या लाभ भार् से शतन का सम्बन्ध बने;


• लाभ स्थान में कोई बलर्ान ् ग्रह क्स्थत हो और शभ
ु ग्रह की एकादश पर दृक्ष्ट हो;
• सप्तमेश र् लग्नेश का सम्बन्ध बनता हो;
• लग्नेश सप्तम में क्स्थत हो;

इन क्स्थततर्यों में पर्


ू ोक्त र्योग तनष्फल हो जाते हैं। अथावत ् नौकर नहीां लमलता है -

• इन पूर्ोक्त र्योगों में र्यदद सूर्यव ही र्योग बनाने र्ाला हो;


• लाभ स्थान पर सूर्यव का र्योग हो;
• पर्
ू ोक्त ग्रहों में से कोई ग्रह र्या उनके साथ सम्बन्ध रखने र्ाले ग्रहों में से कोई
र्िी, अस्तांगत हो;
• लग्नेश र् चन्िमा र्िी र्या अस्तांगत ग्रहों के साथ सम्बन्ध करें ।
क्या बीमा कम्र्नी या सरकार से धन भमलेगा?

वित्तेर्े यदद चन््लग्नर्यत ु े सौम्येक्षिते स्िोच्चभे


िा चैतेषु धनायकोणतनदहतेष्िालोकयोगे भमथः।
कोणे केन््धनाब्प्तभे र्भ ु खगा लाभे विर्ेषात ् भसतर् ्
चन््ो िा तनजतांग ु भे र्भ
ु खगालोकेन राज्याधनम ् ॥ 28 ॥

इन क्स्थततर्यों में बीमा कम्पनी र्या सरकारी त्तर्भाग से त्तर्र्ाददत धन लमल


जाता है -

• लग्नेश र्या चन्िमा के साथ धनेश का र्योग र्या पण ू व दृक्ष्ट हो;


• उच्चगत धनेश को शभ ु ग्रहों का दृग्र्योग प्राप्त हो;
• धनेश, लग्नेश र् चन्िमा ककसी भी िम में 2, 5, 9, 11 भार्ों में हों।
इनमें परस्पर दृक्ष्ट र्या सम्बन्ध बनने पर और श्रेष्ठ र्योग होगा;
• केन्ि, बत्रकोण र् धनस्थान में शभ ु ग्रहों कर क्स्थतत र्या दृक्ष्ट हो;
• लाभ स्थान में बलर्ान ् शि ु र्या चन्िमा हो;
• शिु र्या चन्िमा उच्चगत होकर ककसी भी भार् में शभ ु ग्रहों से र्युक्त र्या दृष्ट हों।
क्या अर्ने र्ररिार में श्रेष्ठ हो सकूँू गा ?

खेटो विक्रमर्ुिविलग्ने श्रेष्ठबली कब्श्चत ् ततष्ठे च्चेत ्।


भाग्यां र्श्यन ् िा भाग्येर्ो भाग्ये सहजे िै सहजेर्ः ॥ 29 ॥
सोत्थे र्िु े भाग्ये लाभे स्िोच्चमलू तनजभां यातश्च।
नरर्ततयोगभिः र्ुरुषो िा कुलविश्रुतचररतः सांजातः ॥ 30 ॥

पच्ृ छक अपने सभी पररर्ारजनों में अधधक भाग्र्यर्ान ्, अनुकरणीर्य र् माननीर्य होगा,
र्यददिः
• कोई बलर्ान ् ग्रह 3, 5, 1 स्थानों में कहीां हो और र्ह नर्म स्थान
को दे खे;
• तत ृ ीर्येश तत ृ ीर्य में एर्ां नर्मेश नर्म में हो;
• कोई भी शभ ु र्या अशभ ु ग्रह उच्चगत, मूलबत्रकोणी, स्र्रालशगत (कारक
ग्रहों से र्युक्त दृष्ट होकर) 3, 5, 9, 11 भार्ों में कहीां हो;
• प्रश्न लग्न में स्पष्ट राजर्योग बनता हो।
क्या अचानक लाभ या र्दोन्नतत होगी?

बधु ां यदा विलग्नगां विधवु िशलोकते धनम ्।


तदार्ु प्राप्यते खलोऽथिा र्दां न र्ाब्न्तदम ् ॥ 31 ॥
भिां तर्ोऽथिा र्भ ु ो विलोकते समश्नुते।
र्भु ां जनैरनीब्प्सतां तथेब्प्सतां च लभ्यते ॥ 32 ॥

• प्रश्न लग्न में क्स्थत बध


ु को र्यदद चन्िमा र्या कोई िूर ग्रह दे खे तो व्र्यक्क्त को
अचानक ही कोई अधधकार र्या धन लमल जाता है । लेककन इस प्राक्प्त से कुछ
तनार् भी होता है ।

• ककसी प्रकार से प्रश्न में सफलता न ददखे तो नर्म एर्ां लाभ स्थान दे खें। इनमें
से कोई एक भी भार् र्यदद शभ ु र्या बली ग्रह से र्यक्
ु त र्या दृष्ट हो तो पच्
ृ छक को
कभी मनचाहा और कभी कोई अन्र्य शभ ु फल लमल जार्या करता है ।
क्या फनीचर या र्त्थर का काम अनुकूल है ?

बलिान ् षष्ठाधीर्स्तत
ृ ीयगो दृषद्दारूभभः श्रेयः।
बलिन्मन्दालोकात ् तब्स्मांश्च सांकीतशनां यातत ॥ 33 ॥

ततृ ीर्य भार् में बलर्ान ् षष्ठे श हो तो पच्


ृ छक को इमारती लकडी, फनीचर, लशला, पत्थर,
टार्यल आदद का काम शभ ु होता है ।

तब तत ृ ीर्य भार् पर बली शतन की दृक्ष्ट भी हो तो इस काम में पच्


ृ छक का नाम
त्तर्श्र्सनीर्य र् प्रलसद्ध भी हो जाता है ।
क्या ससुराल से सम्र्दा भमलेगी?

धनाधधर्ः भसतेन िा स्मराधधर्ेन सांयत ु ः।


बली भिास्र्दे ऽवर् सन ् धनां स्िदारताततः ॥ 34 ॥

धने र्भ
ु खशगाः र्भु ा अिाब्प्तभेर्सांयुताः।
धनेर्भाग्यर्ौ युतौ सुखे रवियशदा भिेत ् ॥ 35 ॥

रिीक्षितो धनाधधर्श्चतुथभ
श े विधोः रविः ।
सख
ु ेर्दृष्टयक्
ु तदा तथैि स्याद्धनागमः ॥ 36 ॥

इन र्योगों में ससुराल से सम्पत्ति आदद का लाभ होता है -

• बली द्त्तर्तीर्येश का शि ु र्या सप्तमेश से दृग्र्योग बने;


• द्त्तर्तीर्येश र् सप्तमेश का लाभ स्थान से कोई ररश्ता बनता हो;
• धन स्थान में शभ ु रालश में कई शभ ु ग्रह हों और लाभेश से दृग्र्योग करें ;
• धनेश र् भाग्र्येश का र्योग र्या दृक्ष्ट हो;
• चतथ ु व में बलर्ान ् सर्य
ू व हो;
• धनेश को सूर्यव दे खता हो;
• चन्िमा से चतथ ु व स्थान के साथ सर्य ू व का सम्बन्ध बने;
• लग्न र्या चन्ि से चतुथेश की दृक्ष्ट र्या र्योग सूर्यव से हो जाए।
क्या कार आदद का सुख होगा ?

भाग्येर्े वित्तयाते सुखसदनगता: र्ुण्यखायाधधर्ाश्च


सदृष्टे िाहनाथे बभलतन च गरु ु णा यक्
ु तदृष्टे सख
ु ेर्।े
र्ुण्येर्ाल्लाभभािे तनुर्ततसदहते लग्नसांस्थाः र्भ
ु ा िा
अन्त्ये चन््े च चन््ात ् सहजभिनगे भाग्यर्े िाहनाथः ॥ 37 ॥

इन क्स्थततर्यों में कार आदद र्ाहन का सुख होता है -

• धन स्थान में नर्मेश हो;


• लाभेश, दशमेश और नर्मेश में से ककसी का सम्बध चतुथव स्थान से बने;
• बलर्ान ् चतथ ु ेश को शभ ु ग्रह दे खें र्या र्योग करें ;
• चतुथेश को बह ृ स्पतत का दृग्र्योग प्राप्त हो;
• नर्मेश से ग्र्यारहर्ें भार् में लग्नेश गर्या हो;
• लग्न में शभु र्योग हो;
• चन्िमा द्र्ादश स्थान में क्स्थत हो;
• चन्िमा से तीसरे स्थान में भाग्र्येश हो।

गरु ौ र्भ
ु खशभे र्भ
ु े र्भ
ु ः सख
ु ाधधर्ो यदद।
नरो नरे ण िादहतां समाप्नुयाच्च िाहनम ् ॥ 38 ॥

बत्रकेश के अततररक्त ककसी ग्रह की रालश में बह ृ स्पतत हो और नर्म में कोई शभ

ग्रह चतुथेश होकर क्स्थत हो तो मनुष्र्य को ड्राइर्र सदहत गाडी
का सख ु लमलता है ।
क्या अमानत सांभाल सकूँू गा ?

सर्भ ु े वित्तभािेऽम्बुनाथयोगेिणाज्जनः।
र्रन्यासस्य भोगाद् िै विरतो गीयते व्रती ॥ 39 ॥

धन स्थान में शभ ु ग्रह, खास तौर से बह ृ स्पतत हो। धनस्थान पर चतुथेश का र्योग र्या
दृक्ष्ट हो। इन दो क्स्थीतर्यों में मनष्ु र्य दसू रों की अमानत को सांभाल कर रखता है ।
दोनों क्स्थततर्याां साथ बन जाएां तो लोग उसकी ईमानदारी की लमसाल दे ते हैं।
क्या मेरा लेखन र्सन्द आएगा?

भाग्येर्सौ्याधधर्योगदृष्टी
लाभेर्भाग्येर्समन्ियश्च।
गुरोब्स्िकोणे सुतर्े युते िा
प्रभसद्धलेखः प्रभिेन्मनष्ु यः ॥ 40 ॥

चतथु ेश र् नर्मेश का आपस में र्योग र्या दृक्ष्ट सम्बन्ध बने। लाभेश र् भाग्र्येश का
परस्पर र्योग र्या दृक्ष्ट हो। बह
ृ स्पतत से बत्रकोण में पांचमेश हो। बह
ृ स्पतत र् पांचमेश
का परस्पर दृग्र्योग बने। इन चार क्स्थततर्यों में लेखन के कारण व्र्यक्क्त को र्यश
लमलता है ।
क्या प्रेमी अच्छी भें ट दे गा?

राहुयद श ा भाग्यभिेर्योगे धनेऽथिागुः र्तनरब्स्त बौधे।


र्ौक्रे तदासीनभनाथबन्धे महर्शचेयातन विभष ू णातन ॥ 41 ॥

प्रश्न लग्न में र्ये क्स्थततर्याां बनने पर अपने त्तप्रर्यतम र्या चाहने र्ाले से कीमती
भें ट लमलती है -

• राहु नर्म र्या लाभ में हो र्या नर्मेश, लाभेश के साथ सम्बन्ध करे ;
• द्त्तर्तीर्य स्थान में राहु अकेला हो;
• र्षृ , तुला, लमथुन र्या कन्र्या में शतन हो और अपने राशीश के साथ
सम्बन्ध बनाए।
क्या उस भें ट का राज खुलेगा ?

ग्रहा अमी त्रिकेश्िरान्िये स्मराररर्ौ युतौ ।


विभष ू णां वप्रयावर्शतां जनार्िादमाप्नय
ु ात ् ॥ 42 ॥

इन र्योगों में दी गई भें ट का राज खल


ु जाता है -
• त्तपछले श्लोक में बताए गए भें टदार्यक ग्रहों का र्यदद ककसी बत्रकेश के साथ
सम्बन्ध बने।
• सप्तमेश र् षष्ठे श का आपस में दृग्र्योग बनता हो।
क्या लॉटरी र्ेयर आदद से लाभ होगा?
कमेर्ाध्युवषताांर्र्ेन सदहते लाभाधधर्े िेन्दत ु ः
सिे सौम्यखगाश्च िद् ृ धधसदनेष्िाधश्रत्य िीयाशब्न्िताः।
केन््े वित्तर्तौ तथा बलयुते लाभाधधर्े वित्तगे
सौम्ये सौम्ययुतेक्षिते र्र्धरां त्यक्त्िा धनां लीलया ॥ 43 ॥

इन र्योगों में आसानी से बबना अधधक मेहनत ककए र्या सट्टा, लॉटरी आदद
से लाभ होता है -
• दशमेश का नर्ाांशश े र्यदद लाभेश के साथ हो र्या उससे दृष्ट हो;
• चन्िमा से 3, 6, 10, 11 स्थानों में केर्ल बलर्ान ् शभ
ु ग्रह हों;
• धनेश केन्ि में हो और लाभेश बलर्ान ् हो;
• धन स्थान में बुध को चन्िमा के बबना ककसी अन्र्य शभ ु ग्रह का र्योग र्या दृक्ष्ट
प्राप्त हो।

स्िोच्चादौ च खला अिाब्प्तभिने िा वित्तर्े तादृभर्


भाग्याकार्भिेषु खे र्र्धरो मन्दो भिे स्िे कुजः।
सौम्याढ्यश्च सुखे ददनेर्सदहतः र्क्र ु ोऽथ र्क्र
ु े न्दज
ु ौ
लाभस्िान्ियगौ जनो धनगणां प्राप्नोत्ययत्नेन च ॥ 44 ॥
इन सब क्स्थततर्यों में भी सरलता से धनागम होता है -
• लाभ स्थान में कई पापग्रह अपने, उच्च, मूलबत्रकोण र्या स्र्रालश आदद में हों;
• अपने उच्चादद में क्स्थत धनेश 9, 10, 11 स्थानों में कहीां हो;
• चन्िमा दशम में , शतन एकादश में , मांगल और बुध द्त्तर्तीर्य में , सूर्यव एर्ां
शि ु चतथ ु व में , इनमें से र्यथासम्भर् कम से कम दो क्स्थततर्याां बनें ;
• शि ु और बुध का कोई सम्बन्ध 2, 11 स्थानों से बनता हो।
लाभ भाि की विर्ेषता

लाभे लाभाधधर्े िावर् र्भ ु रार्ौ र्भ


ु ाांर्के।
र्भु ेक्षितयुते सोले धनभाग्यात्मजैयत ुश े ॥ 45 ॥
दौबशल्यां प्रश्नलग्नस्य लीयतेऽथ फलां र्भ ु म ्।
ब्जज्ञाभसतस्य सिं तत ् र्च्ृ छको लभते ध्रि ु म ् ॥ 46 ॥

लाभ स्थान में कोई भी बलर्ान ् ग्रह अपनी उच्चादद अच्छी रालश, नर्ाांश में हो र्या लाभ
स्थान को ऐसे ग्रह दे खें।

अथर्ा स्र्र्यां लाभेश उच्चादद रालश, नर्ाांश में क्स्थत हो।

अथर्ा लाभेश के साथ धनेश, पांचमेश और नर्मेश में से ककसी का सम्बन्ध बनता हो।
अथर्ा 2, 5, 9 भार्ेशों में से काई लाभ स्थान में हो।

उक्त चारों क्स्थततर्यों में प्रश्नलग्न की अन्र्य कमजोररर्याां र्या प्रश्न की सफलता के
त्तर्षर्य में ददखने र्ाला सन्दे ह दरू होता है । तब प्रश्न के सन्दभव में पच् ृ छक को
मनोनक ु ू ल सफलता का र्योग बनता है ।
धनायविक्रम का अन्योन्य सम्बन्ध

कमशणण यत्नात ् भसद्धधः भसद्धेश्च तनधधकोषसांग्रहाद्याश्च।


तस्मात ् प्रश्ने लाभे सोजे लाभो र्नस्तथा सधने ॥ 47 ॥
अनयोबशलित्िे चाध्यिसायश्च र्राक्रमभे सबले।
र्ेमुषीभाग्यभािौ बलयोगे सदाऽमन्दरमणीयौ ॥ 48 ॥

ककसी भी काम में सफलता, लसद्धध, उपलक्ब्ध र्या प्राक्प्त का सीधा सम्बन्ध हमारे
परािम, पररश्रम और प्रर्यत्न से ही होता है । अत: प्रश्न के सन्दभव में :

• एकादश स्थान की सबलता का सौन्दर्यव और अधधक तनखर जाता है ,र्यदद तत ृ ीर्य


स्थान (त्तर्िम) भी सबल हो।
• र्यदद इनके साथ ही धन स्थान (बचत) भी बली हो तो सफलता की मात्रा र्क्त
और तात्काललक जरूरत से कुछ अधधक हो जार्या करती है ।
• पांचम (बुद्धध) और नर्म (भाग्र्य) स्थानों की बलर्िा तो सदै र् अतुल
आनन्द ही दे ती है ।
• प्रश्न में 2, 3, 11, 5, 9 स्थान सफलता के स्तम्भ और धरु ी हैं। इन स्थानों को लग्न
से और त्तर्चारणीर्य भार् से भी दे खें। इनमें से अधधकाधधक तत्त्र्ों की सबलता और
आपसी सम्बन्ध पच् ृ छक के मनोरथ पणू व होने की अधधकाधधक गारां टी जैसे ही हैं।
क्या भाईयों की उन्नतत होगी?

सुखे सुखेर्सोत्थर्ौ कुजां विना र्रे ण तौ।


यत
ु ौ सहोदरास्तदा समद् ृ धधमाप्नयु ःु कथम ् ॥ 49 ॥

चतुथेश और तत ृ ीर्येश चतुथव में हों। र्या सुखेश र् तत


ृ ीर्येश मांगल के बबना ककसी अन्र्य
ग्रह से र्यक्
ु त हों। इनमें से कोई र्योग बने तो प्रश्नकताव के भाई तरक्की नहीां कर पाते
हैं।
क्या कानों में कोई कमी होगी?

सहजलाभर्ती बभलनौ यदा भिनगाश्च खगा बभलनस्तथा।


श्रिणसौ्यमथो विकृततभशिेदर्रथा विहगब्स्थततरब्स्त चेत ् ॥ 50 ॥

तत
ृ ीर्य र् एकादश स्थान शभ ु पांचक में क्स्थत ग्रहों से र्यक्
ु त हों और इनके स्र्ामी ग्रह
भी शभ ु पांचक में ही हों। इन स्थानों पर कोई पाप प्रभार् न हो तो व्र्यक्क्त को कानों
का सख ु , समधु चत श्रर्ण शक्क्त बनी रहती है ।

इसके त्तर्परीत, अशभ ु पांचक में क्स्थत ग्रहों का दृग्र्योग इन स्थानों में हो और इनके
स्र्ामी भी अशभ ु पांचक में गए हों तो श्रर्ण शक्क्त की कमी, कानों में रोग, कणेक्न्िर्य
की हातन होती है ।
क्या मेरा कोई सौतेला भाई है ?

बली धनाधधर्ोऽष्टमे तथा तत ृ ीयर्ः खलैः।


कुजोऽथिाब्न्ितः भसतेन िेन्दनु ा सर्त्नजः ॥ 51 ॥

इन र्योगों में सौतेले भाई र्या बहन का होना सम्भर् है -


• द्त्तर्तीर्येश बलर्ान ् होकर अष्टम में हो और तत ृ ीर्येश के साथ पापग्रह हो;
• द्त्तर्तीर्येश बत्रक में गर्या हो और तत
ृ ीर्य में पापग्रह हों;
• द्त्तर्तीर्येश बत्रक में हो और मांगल पापर्युक्त हो;
• मांगल के साथ शि ु र्या चन्िमा का गहरा सम्बन्ध बनता हो।
क्या गाने में सरु सध
ु रे गा ?

बध
ु ायशलोकान्ियगे ततृ ीये चतष्ु टये िा च ततो बध ु ायौँ।
कुजस्ततृ ीयाधधर्योगमाप्तः स्िरां सुरम्यां भवितेतत गाने ॥ 52 ॥

गार्यन आदद में अच्छा सरु आर्ाज हो जाती है , र्यददिः

• तत
ृ ीर्य स्थान से बध ु र्या गरु
ु र्या दोनों का कोई ताल्लकु बनता हो;
• ततृ ीर्य से केन्िों (6, 9, 12) में बुध, गुरु क्स्थत हों;
• तत ृ ीर्येश र् मांगल का कोई सम्बन्ध बने।
सिशविध लाभ के योग

केन््े कोणे च सौम्याः सकलखलखगाः केन््रन्ध्राद् बदहःस्थाः


स्िोच्चे सौम्योऽथ कब्श्चत ् प्रथमभिनगः खे रविः सौम्ययुक्ते।
बौधे र्क्रु ज्ययोगे दर्मभिनगे भूभमजे कब्श्चदे कः
भसांहाांगात ् स्िोच्चभाददां गतममलखगां सिशभसद्धधः प्रर्श्यन ् ॥ 53 ॥

र्यहाां बताए जा रहे र्योगों में से कोई एक भी बनता हो तो पछ ू ने र्ाले को इक्च्छत


र्स्त,ु धन, पद, जमीन, र्र (दल् ू हा), सफलता आदद, जहाां जैसा प्रश्न हो, लमल जाती है -

• केन्ि र् बत्रकोणों में सब शभु ग्रह हों और पापग्रह केन्ि र् अष्टम में न हों;
• लग्न में कोई उच्चगत र्या स्र्रालश आदद में क्स्थत ग्रह हो और दशम में सूर्यव हो;
• शभु ग्रह से र्यक्
ु त लग्न में बध
ु की रालशर्यों में गरु
ु र् शि ु हों और दशम में मांगल
हो;
• लसांह लग्न में क्स्थत कोई ग्रह अपने उच्च र्या स्र्क्षेत्र में बैठे शभ
ु ग्रह को पूणव दृक्ष्ट
से दे ख रहा हो।
विलग्नकायाशधधर्ती सचन््ौ
तनजोच्चभस्थौ र्भु दृष्टयुक्तौ।
र्भ
ु ाः सचन््ा बभलनो भिेयु
स्ियः समस्ताथशफलाश्च योगाः ॥ 54 ॥

इन तीनों को भी सकल लसद्धधदार्यक र्योग समझें-

• लग्नेश, चन्िमा र् क्जस भार् से सम्बक्न्धत प्रश्न हो उसका स्र्ामी (कार्येश), र्ये
तीन र्यदद आपस में सम्बन्ध, दृक्ष्ट र्या र्योग करें ;
• लग्नेश र् कार्येश में कोई एक र्या दोनों उच्चाददगत हों और शभ ु ग्रह इनसे दृक्ष्ट
र्या र्योग करें ;
• चन्िमा सदहत सभी शभ ु ग्रह प्रश्न के समर्य बलर्ान ् हों।
र्भ
ु ः स्िोच्चाददग: खेट: र्भ
ु दृग्योगसांब्स्थतः।
लग्नाम्बर्
ु ि
ु लाभस्थः सिशभसद्धधां च र्ांसतत ॥ 55 ॥

कोई एक भी ग्रह अपने उच्चादद शभ ु पांचक में क्स्थत होकर शभ ु ग्रह से र्युक्त र्या दृष्ट
हो और 1, 4, 5, 11 भार्ों में कहीां हो तो र्यह भी र्ाांतछत कार्यव में सफलता का पुष्ट
र्योग है ।

स्िस्मात ् त्रिकब्स्थततां दहत्िा भमथोऽन्योन्यभशसांब्स्थताः।


भमथः र्णू ं प्रर्श्यन्तो लाभगाः भसद्धधदाः स्मत ृ ाः ॥ 56 ॥

प्रश्न के समर्य जो भार्ेश अपनी रालश से 6, 8, 12 में गर्या हो, र्ह उस भार् से
सम्बक्न्धत प्रश्नकी असफलता र्या हीनता को द्र्योततत करता है ।

त्तर्चारणीर्य भार्ेश सदहत कई ग्रह र्यदद आपस में पूणव दृक्ष्ट रखते हों र्या एक दस ू रे
की रालशर्यों में बत्रकरदहत भार्ों में क्स्थत हों तो पूणव कार्यवलसद्धध को बताते हैं।

र्यदद परस्पर दृक्ष्ट र्या रालश पररर्तवन र्ाले ग्रह त्तर्चारणीर्य भार् र्या प्रश्न लग्न से
बत्रक में हों तो भी आांलशक र्या काफी प्रर्यत्नों से सफलता का सांकेत दे ते हैं।
त्तर्चारणीर्य भार् र्या लग्न से एकादश में क्स्थत ग्रह कार्यव में सफलता को ही प्रकट
करता है ।
त्रिकब्स्थतत का अर्िाद

लग्नसोत्थसुखवित्तभिेर्ा अन्त्यभेषु तनजभाच्छुभदाः स्युः।


केन््कोणर्तयब्स्िकर्ाश्चेल्लग्न भािर्तयोऽवर् तथा स्यःु ॥ 57 ॥

• लग्नेश द्र्ादश में , द्त्तर्तीर्येश लग्न में , तत


ृ ीर्येश द्त्तर्तीर्य में , चतुथेश तत
ृ ीर्य में और
लाभेश दशम में क्स्थत हों तो इन्हें बत्रक में होने का दोष नहीां लगता है ।
• इसी तरह से पांचमेश चतुथव में , दशमेश नर्म में हो र्या कोई केन्िे श र् बत्रकोणेश
आपस में अदल बदल करके ककसी केन्ि र्या बत्रकोण में ही हों तो भी बत्रक क्स्थतत
का दोष नहीां लगता है ।
• र्यदद कोई एक ही ग्रह लग्नेश र्या त्तर्चारणीर्य भार्ेश होकर साथ ही ककसी
बत्रकभार् का भी पतत हो तो भी बत्रकक्स्थतत का दोष नहीां लगेगा। उदाहरणाथव, मेष
में मांगल, र्ष
ृ में शिु , मकर में शतन हो तो अपनी दस ू री रालश र्ाले भार्ों को
नक ु सान नहीां पांहुचाएांगे।
ग्रहों के हषश स्थान

स्िोच्चमूलतनजभाांर्मुर्ेता उत्तमाांर्मथिा लिर्द्


ु धाः।
स्िाश्रयेर्यतु तलोकनमाप्ता हवषशताः र्भ ु फलाः खचरे न््ाः ॥ 58 ॥
सोत्थवित्तदर्मेषु तनर्ेर्ो भाग्यसांस्थ इनजो जलगो ज्ञः।
लग्नमेत्य रविरस्तगतश्च भूभमभूभि श गताश्च समस्ताः ॥ 59 ॥

प्रश्न के समर्य इन क्स्थततर्यों में ग्रह हषवबली अथावत ् प्रसन्न रहकर अच्छा फल दे ने
र्ाले कहे गए हैं। कई ग्रह हत्तषवत हों तो प्रश्न का फल अनुकूल और मनभार्न होता
है ।
• अपने उच्च, मूलबत्रकोण रालश, स्र्रालश (अधधलमत्र र्या लमत्र की रालश अथावत ् शभु पांचक
में ) क्स्थत ग्रह;
• इन्हीां रालशर्यों के नर्ाांश में र्या र्गोिम नर्ाांश में क्स्थत ग्रह;
• षड्र्गों में अधधकाांश स्थानों में उक्त रालशर्यों में क्स्थत ग्रह;
• अपनी क्स्थत रालश के स्र्ामी के साथ बैठे र्या उससे दृष्ट ग्रह;
• द्त्तर्तीर्य, ततृ ीर्य और दशम में चन्िमा;
• नर्म स्थान में शतन;
• चतुथव में बुध,
• लग्न में सर्य ू ;व
• सप्तम में मांगल;
• लाभ स्थान में सभी ग्रह।
प्रश्नसन्दर्शना्ये ग्रन्थे ददल्ल्याां सुरेर्भमश्रोक्ते।
धनायविक्रमर्ि ू ं सन्दर्शनसांज्ञमिभसतां षष्ठम ् ॥ 60 ॥

ददल्लीर्ासी िॉ. सरु े श चन्ि लमश्र द्र्ारा कहे जा रहे इस प्रश्नसन्दशवन नामक ग्रन्थ में ,
द्त्तर्तीर्य, तत
ृ ीर्य और एकादश स्थानों से त्तर्चार करने र्योग्र्य त्तर्त्तर्ध प्रश्नों का त्तर्र्ेचन
करने र्ाला, र्यह धनार्यत्तर्िमसन्दशवन नामक छठा अध्र्यार्य सम्पन्न होता है ।

॥ एिमाददतः श्लोकाः 415 ॥

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