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धनायविक्रमसन्दर्शनम्
धनायविक्रमसन्दर्शनम्
धनायविक्रमसन्दर्शनम्
धनायविक्रमसन्दर्शनम ्
भग प्रणेतभशग सत्यराधो भगेमाां धधयमुदिा ददन्नः।
भग प्रणो जनय गोभभरश्िैभग
श प्र नभृ भनिुश न्तः स्याम ॥
अथर्वर्ेद
सांस्कृत शब्द 'भग' का अथव ही श्री, शोभा, धन, ऐश्र्र्यव, र्ैभर्, त्तर्लास, प्रततष्ठा आदद है ।
भग से उत्पन्न होने र्ाला पदाथव र्या भार् ही भाग्र्य है । भाग्र्य के भोग की क्षमता
का तनर्ास दस ू रे स्थान में है । प्रश्न के सन्दभव में द्त्तर्तीर्य स्थान का अपना खास
महत्त्र् है । धनसांग्रह, बचत, खानदान की परम्परा से प्राप्त होने र्ाली सम्पदा, मान,
पाररर्ाररक पररर्ेश, सभ्र्य र्ाणी, त्तर्षर्य को त्तप्रर्य ढां ग से पेश कर पाना, उच्च लशक्षा,
त्तर्शेषज्ञता, कुलीनता, सुखों का भोग, अथावत ् भाग्र्य से प्राप्त होने र्ाले समस्त
साांसाररक सुखों की उपभोग क्षमता का आधार दस ू रा स्थान है ।
तत
ृ ीय भाि से विचारणीय
र्भ
ु े भिे श्रेष्ठबले तदीर्े तथाधधकैबशन्धगतेऽवर् नूनम ्।
त्रिकेतरे िगशबली भिेर्ो गरु ु ां विना िेतरदृब्ष्टयोगे ॥ 5 ॥
बध
ु े च कके र्तनराब्प्तगामी गुरूदये चन््कुजेज्ययोगे।
तथा बुधाांगे बध
ु र्ुक्रमन्दाः हरौ रिीज्यारयुतेऽथ कके ॥10॥
कुजेन्दद
ु े िेन््नत
ु ाश्च भौमे कुजाच्छसौम्याः क्षिततजाच्छमन्दाः।
सौम्यैनदृग्योगगतः भसतश्च र्ौकेगुमन्दारभसताश्च नायाशम ् ॥ 11 ॥
बध
ु ेक्षितो वित्तगतः र्तनश्च स्िायाखभाग्येषु बलाब्न्ितेषु।
बलाढ्य इन्दौ धनगो गुरुश्चेच्छुभेिणे भूररधनधधशरुक्ता ॥ 12 ॥
र्यदद 2, 9, 10, 11 भार्ों में से अधधकाांश भार् बली हों तो इन र्योगों में से कोई र्योग
बनने पर पच् ृ छक को अपने जीर्न काल में अमीर होने का सख ु लमलता है -
• अपनी रालश र्या उच्च रालश का शि ु पांचम में हो और शतन ग्र्यारहर्ें स्थान में हो;
• लाभ में बह ृ स्पतत और लसांह में सूर्यव पांचम में हो;
• स्र्रालश में गुरु कहीां हो और चन्िमा पांचम में गर्या हो;
• लाभ स्थान में शतन और ककव रालश में बध ु हो;
• धनु र्या मीन लग्न में चन्ि, मांगल र् बह ृ स्पतत का र्योग र्या परस्पर दृक्ष्ट सम्बन्ध
बने;
• लमथुन कन्र्या लग्न में बुध, शि ु र् शतन आपस में दृग्र्योग करें ;
• लसांह लग्न में सूर्य,व मांगल, बह ृ स्पतत का दृग्र्योग बनता हो;
• ककव लग्न में चन्ि, मांगल, बह ृ स्पतत का दृग्र्योग बने;
• मेष र्या र्क्ृ श्चक लग्न में मांगल, बुध, शि ु र्या मांगल, बुध, शतन का दृग्र्योग बने;
• र्ष
ृ र्या तलु ा लग्न में बध ु , शि ु र् शतन का दृग्र्योग हो;
• मांगल, शिु , शतन र्या राहु का कन्र्या रालश में कहीां भी र्योग बने;
• धन स्थान में शतन को बुध दे खता हो;
• धन स्थान में शभ ु दृष्ट बहृ स्पतत हो और चन्िमा बली हो।
उसका खानदान कैसा है ?
र्यदद:
द्त्तर्तीर्य में शुभग्रह होते हुए भी, 1, 7, 12 भार्ों में पापग्रह हों। लग्न में
बह ृ स्पतत, द्त्तर्तीर्य में शतन और सप्तम में पापग्रह हो। व्र्यक्क्त के पररर्ार में
त्तर्र्ाद, त्तर्र्योग, बबखरार् होता है ।
क्या आांखों में विकार सम्भि है ?
• द्त्तर्तीर्य में कई शभ ु पाप ग्रह हों तो व्र्यक्क्त अधधक बोलकर ही बात का खुलासा
कर सकता है । अथावत ् उसे थोडे र्चनों से सन्तोष नहीां होता है ।
• प्रश्न समर्य में बुध, चन्िमा र् मांगल बलर्ान ् र् सुक्स्थत हों तो व्र्यक्क्त की भाषण
कला की प्रशांसा होती है ।
• द्त्तर्तीर्य में शभ
ु ग्रहों के अधधक र्गव हों, धन स्थान में शभु ग्रह शभ
ु दृष्ट भी हो तो
मनुष्र्य को र्ाक् लसद्धध होती है । अथावत ् उसकी कही हुई बातें सच्ची हो जाती हैं।
साथ ही र्ह भाषा र् शब्दों का प्रभार्शाली इस्तेमाल करता है ।
क्या मुांह में बडा रोग सम्भि है ?
• तत
ृ ीर्य में शतन को बध ु र्या शि
ु दे खे;
• ततृ ीर्य में पापग्रह और षष्ठ में शभ ु ग्रह हो;
• मांगल से तीसरे स्थान में पापग्रह हों;
• तत ृ ीर्येश के साथ मांगल हो;
• तत ृ ीर्येश र् मांगल बत्रक स्थानों में पापदृष्टर्युक्त हों।
क्जस तरह तीसरे स्थान से भाईर्यों के साथ सम्बन्धों का त्तर्चार करना बतार्या गर्या
है , र्ैसे ही दस
ू रे , सातर्ें र् बारहर्ें स्थानों से पडौसी घरों का त्तर्चार करें । अथावत ् इन
स्थानों में सूर्य,व चन्ि र्या पापग्रह हों तो साधारण सम्बन्ध और उनपर पाप दृक्ष्ट भी
हो तो खराब सम्बन्ध कहें ।
िक्रास्तर्ार्ैविशधल
ु ग्ननाथौ र्ि
ू ोक्तयोगेषु खलस्य योगे।
लाभे रिौ िा रविणा युतेषु प्रोक्तेषु नो भत्ृ यजनाब्प्तमाहुः ॥ 27 ॥
इन र्योगों में नर्या र्या गर्या हुआ पुराना नौकर लमल जाता है -
पच्ृ छक अपने सभी पररर्ारजनों में अधधक भाग्र्यर्ान ्, अनुकरणीर्य र् माननीर्य होगा,
र्यददिः
• कोई बलर्ान ् ग्रह 3, 5, 1 स्थानों में कहीां हो और र्ह नर्म स्थान
को दे खे;
• तत ृ ीर्येश तत ृ ीर्य में एर्ां नर्मेश नर्म में हो;
• कोई भी शभ ु र्या अशभ ु ग्रह उच्चगत, मूलबत्रकोणी, स्र्रालशगत (कारक
ग्रहों से र्युक्त दृष्ट होकर) 3, 5, 9, 11 भार्ों में कहीां हो;
• प्रश्न लग्न में स्पष्ट राजर्योग बनता हो।
क्या अचानक लाभ या र्दोन्नतत होगी?
• ककसी प्रकार से प्रश्न में सफलता न ददखे तो नर्म एर्ां लाभ स्थान दे खें। इनमें
से कोई एक भी भार् र्यदद शभ ु र्या बली ग्रह से र्यक्
ु त र्या दृष्ट हो तो पच्
ृ छक को
कभी मनचाहा और कभी कोई अन्र्य शभ ु फल लमल जार्या करता है ।
क्या फनीचर या र्त्थर का काम अनुकूल है ?
बलिान ् षष्ठाधीर्स्तत
ृ ीयगो दृषद्दारूभभः श्रेयः।
बलिन्मन्दालोकात ् तब्स्मांश्च सांकीतशनां यातत ॥ 33 ॥
धने र्भ
ु खशगाः र्भु ा अिाब्प्तभेर्सांयुताः।
धनेर्भाग्यर्ौ युतौ सुखे रवियशदा भिेत ् ॥ 35 ॥
रिीक्षितो धनाधधर्श्चतुथभ
श े विधोः रविः ।
सख
ु ेर्दृष्टयक्
ु तदा तथैि स्याद्धनागमः ॥ 36 ॥
गरु ौ र्भ
ु खशभे र्भ
ु े र्भ
ु ः सख
ु ाधधर्ो यदद।
नरो नरे ण िादहतां समाप्नुयाच्च िाहनम ् ॥ 38 ॥
बत्रकेश के अततररक्त ककसी ग्रह की रालश में बह ृ स्पतत हो और नर्म में कोई शभ
ु
ग्रह चतुथेश होकर क्स्थत हो तो मनुष्र्य को ड्राइर्र सदहत गाडी
का सख ु लमलता है ।
क्या अमानत सांभाल सकूँू गा ?
सर्भ ु े वित्तभािेऽम्बुनाथयोगेिणाज्जनः।
र्रन्यासस्य भोगाद् िै विरतो गीयते व्रती ॥ 39 ॥
धन स्थान में शभ ु ग्रह, खास तौर से बह ृ स्पतत हो। धनस्थान पर चतुथेश का र्योग र्या
दृक्ष्ट हो। इन दो क्स्थीतर्यों में मनष्ु र्य दसू रों की अमानत को सांभाल कर रखता है ।
दोनों क्स्थततर्याां साथ बन जाएां तो लोग उसकी ईमानदारी की लमसाल दे ते हैं।
क्या मेरा लेखन र्सन्द आएगा?
भाग्येर्सौ्याधधर्योगदृष्टी
लाभेर्भाग्येर्समन्ियश्च।
गुरोब्स्िकोणे सुतर्े युते िा
प्रभसद्धलेखः प्रभिेन्मनष्ु यः ॥ 40 ॥
चतथु ेश र् नर्मेश का आपस में र्योग र्या दृक्ष्ट सम्बन्ध बने। लाभेश र् भाग्र्येश का
परस्पर र्योग र्या दृक्ष्ट हो। बह
ृ स्पतत से बत्रकोण में पांचमेश हो। बह
ृ स्पतत र् पांचमेश
का परस्पर दृग्र्योग बने। इन चार क्स्थततर्यों में लेखन के कारण व्र्यक्क्त को र्यश
लमलता है ।
क्या प्रेमी अच्छी भें ट दे गा?
प्रश्न लग्न में र्ये क्स्थततर्याां बनने पर अपने त्तप्रर्यतम र्या चाहने र्ाले से कीमती
भें ट लमलती है -
• राहु नर्म र्या लाभ में हो र्या नर्मेश, लाभेश के साथ सम्बन्ध करे ;
• द्त्तर्तीर्य स्थान में राहु अकेला हो;
• र्षृ , तुला, लमथुन र्या कन्र्या में शतन हो और अपने राशीश के साथ
सम्बन्ध बनाए।
क्या उस भें ट का राज खुलेगा ?
इन र्योगों में आसानी से बबना अधधक मेहनत ककए र्या सट्टा, लॉटरी आदद
से लाभ होता है -
• दशमेश का नर्ाांशश े र्यदद लाभेश के साथ हो र्या उससे दृष्ट हो;
• चन्िमा से 3, 6, 10, 11 स्थानों में केर्ल बलर्ान ् शभ
ु ग्रह हों;
• धनेश केन्ि में हो और लाभेश बलर्ान ् हो;
• धन स्थान में बुध को चन्िमा के बबना ककसी अन्र्य शभ ु ग्रह का र्योग र्या दृक्ष्ट
प्राप्त हो।
लाभ स्थान में कोई भी बलर्ान ् ग्रह अपनी उच्चादद अच्छी रालश, नर्ाांश में हो र्या लाभ
स्थान को ऐसे ग्रह दे खें।
अथर्ा लाभेश के साथ धनेश, पांचमेश और नर्मेश में से ककसी का सम्बन्ध बनता हो।
अथर्ा 2, 5, 9 भार्ेशों में से काई लाभ स्थान में हो।
उक्त चारों क्स्थततर्यों में प्रश्नलग्न की अन्र्य कमजोररर्याां र्या प्रश्न की सफलता के
त्तर्षर्य में ददखने र्ाला सन्दे ह दरू होता है । तब प्रश्न के सन्दभव में पच् ृ छक को
मनोनक ु ू ल सफलता का र्योग बनता है ।
धनायविक्रम का अन्योन्य सम्बन्ध
ककसी भी काम में सफलता, लसद्धध, उपलक्ब्ध र्या प्राक्प्त का सीधा सम्बन्ध हमारे
परािम, पररश्रम और प्रर्यत्न से ही होता है । अत: प्रश्न के सन्दभव में :
तत
ृ ीर्य र् एकादश स्थान शभ ु पांचक में क्स्थत ग्रहों से र्यक्
ु त हों और इनके स्र्ामी ग्रह
भी शभ ु पांचक में ही हों। इन स्थानों पर कोई पाप प्रभार् न हो तो व्र्यक्क्त को कानों
का सख ु , समधु चत श्रर्ण शक्क्त बनी रहती है ।
इसके त्तर्परीत, अशभ ु पांचक में क्स्थत ग्रहों का दृग्र्योग इन स्थानों में हो और इनके
स्र्ामी भी अशभ ु पांचक में गए हों तो श्रर्ण शक्क्त की कमी, कानों में रोग, कणेक्न्िर्य
की हातन होती है ।
क्या मेरा कोई सौतेला भाई है ?
बध
ु ायशलोकान्ियगे ततृ ीये चतष्ु टये िा च ततो बध ु ायौँ।
कुजस्ततृ ीयाधधर्योगमाप्तः स्िरां सुरम्यां भवितेतत गाने ॥ 52 ॥
• तत
ृ ीर्य स्थान से बध ु र्या गरु
ु र्या दोनों का कोई ताल्लकु बनता हो;
• ततृ ीर्य से केन्िों (6, 9, 12) में बुध, गुरु क्स्थत हों;
• तत ृ ीर्येश र् मांगल का कोई सम्बन्ध बने।
सिशविध लाभ के योग
• केन्ि र् बत्रकोणों में सब शभु ग्रह हों और पापग्रह केन्ि र् अष्टम में न हों;
• लग्न में कोई उच्चगत र्या स्र्रालश आदद में क्स्थत ग्रह हो और दशम में सूर्यव हो;
• शभु ग्रह से र्यक्
ु त लग्न में बध
ु की रालशर्यों में गरु
ु र् शि ु हों और दशम में मांगल
हो;
• लसांह लग्न में क्स्थत कोई ग्रह अपने उच्च र्या स्र्क्षेत्र में बैठे शभ
ु ग्रह को पूणव दृक्ष्ट
से दे ख रहा हो।
विलग्नकायाशधधर्ती सचन््ौ
तनजोच्चभस्थौ र्भु दृष्टयुक्तौ।
र्भ
ु ाः सचन््ा बभलनो भिेयु
स्ियः समस्ताथशफलाश्च योगाः ॥ 54 ॥
• लग्नेश, चन्िमा र् क्जस भार् से सम्बक्न्धत प्रश्न हो उसका स्र्ामी (कार्येश), र्ये
तीन र्यदद आपस में सम्बन्ध, दृक्ष्ट र्या र्योग करें ;
• लग्नेश र् कार्येश में कोई एक र्या दोनों उच्चाददगत हों और शभ ु ग्रह इनसे दृक्ष्ट
र्या र्योग करें ;
• चन्िमा सदहत सभी शभ ु ग्रह प्रश्न के समर्य बलर्ान ् हों।
र्भ
ु ः स्िोच्चाददग: खेट: र्भ
ु दृग्योगसांब्स्थतः।
लग्नाम्बर्
ु ि
ु लाभस्थः सिशभसद्धधां च र्ांसतत ॥ 55 ॥
कोई एक भी ग्रह अपने उच्चादद शभ ु पांचक में क्स्थत होकर शभ ु ग्रह से र्युक्त र्या दृष्ट
हो और 1, 4, 5, 11 भार्ों में कहीां हो तो र्यह भी र्ाांतछत कार्यव में सफलता का पुष्ट
र्योग है ।
प्रश्न के समर्य जो भार्ेश अपनी रालश से 6, 8, 12 में गर्या हो, र्ह उस भार् से
सम्बक्न्धत प्रश्नकी असफलता र्या हीनता को द्र्योततत करता है ।
त्तर्चारणीर्य भार्ेश सदहत कई ग्रह र्यदद आपस में पूणव दृक्ष्ट रखते हों र्या एक दस ू रे
की रालशर्यों में बत्रकरदहत भार्ों में क्स्थत हों तो पूणव कार्यवलसद्धध को बताते हैं।
र्यदद परस्पर दृक्ष्ट र्या रालश पररर्तवन र्ाले ग्रह त्तर्चारणीर्य भार् र्या प्रश्न लग्न से
बत्रक में हों तो भी आांलशक र्या काफी प्रर्यत्नों से सफलता का सांकेत दे ते हैं।
त्तर्चारणीर्य भार् र्या लग्न से एकादश में क्स्थत ग्रह कार्यव में सफलता को ही प्रकट
करता है ।
त्रिकब्स्थतत का अर्िाद
प्रश्न के समर्य इन क्स्थततर्यों में ग्रह हषवबली अथावत ् प्रसन्न रहकर अच्छा फल दे ने
र्ाले कहे गए हैं। कई ग्रह हत्तषवत हों तो प्रश्न का फल अनुकूल और मनभार्न होता
है ।
• अपने उच्च, मूलबत्रकोण रालश, स्र्रालश (अधधलमत्र र्या लमत्र की रालश अथावत ् शभु पांचक
में ) क्स्थत ग्रह;
• इन्हीां रालशर्यों के नर्ाांश में र्या र्गोिम नर्ाांश में क्स्थत ग्रह;
• षड्र्गों में अधधकाांश स्थानों में उक्त रालशर्यों में क्स्थत ग्रह;
• अपनी क्स्थत रालश के स्र्ामी के साथ बैठे र्या उससे दृष्ट ग्रह;
• द्त्तर्तीर्य, ततृ ीर्य और दशम में चन्िमा;
• नर्म स्थान में शतन;
• चतुथव में बुध,
• लग्न में सर्य ू ;व
• सप्तम में मांगल;
• लाभ स्थान में सभी ग्रह।
प्रश्नसन्दर्शना्ये ग्रन्थे ददल्ल्याां सुरेर्भमश्रोक्ते।
धनायविक्रमर्ि ू ं सन्दर्शनसांज्ञमिभसतां षष्ठम ् ॥ 60 ॥
ददल्लीर्ासी िॉ. सरु े श चन्ि लमश्र द्र्ारा कहे जा रहे इस प्रश्नसन्दशवन नामक ग्रन्थ में ,
द्त्तर्तीर्य, तत
ृ ीर्य और एकादश स्थानों से त्तर्चार करने र्योग्र्य त्तर्त्तर्ध प्रश्नों का त्तर्र्ेचन
करने र्ाला, र्यह धनार्यत्तर्िमसन्दशवन नामक छठा अध्र्यार्य सम्पन्न होता है ।