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Hindi Lit Ch18
Hindi Lit Ch18
दि
ू रे ददन फिर खरगोश की नजर एक रे लगाड़ी पर पड़ी ।
बि फिर क्या था? खरगोश रे लगाड़ी के िाथ दौड़ पड़ा।
कछ दरू जाकर रे ल गाड़ी फकिी स्टे शन पर खड़ी हो गई।
वह एक िवार गाड़ी थी जो हर स्टे शन पर खड़ी होती थी।
उर्र खरगोश दौड़ता रहा और रे लगाड़ी को पीछे छोड़ कर
बहत आगे तनकल गया। खरगोश का मन बल्ल्लयों उछल
पड़ा और उिने िोचा फक वह रे लगाड़ी िे भी तेज दौड़
िकता है ।
अब वह अपने िामने फकिी को कछ भी नह ं िमझता था और िब िे यह
कहता फक वन में उिके िामने कोई भी नह ं है , क्योंफक उिने दौड़ में रे लगाड़ी
को भी पछाड़ ददया है ।वन के िभी जानवर खरगोश की बातों में आकर उिे
अच्छा मानने लगे और आदर िे नमन करने लगे।
ऊदबबलाव जंगल के िभी जानवर के िाथ खरगोश के पाि पहुँ चा। उि िमय
खरगोश दम तोड़ रहा था। उदबबलाव ने िबको िना कर कहा--"भाइयों, यह
खरगोश अपने को बहत बढ़-चढ़कर िमझता था। जो अपने को बहत बढ़-चढ़कर
िमझता है , उिका अंत में यह हाल होता है । अपने बल िे अर्र्क काम करने पर
अंत में नकिान ह उठाना पड़ता है ।"