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व्यापक दृिष्टकोण, ईमानदार कोशिश कविता कविता

राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार

भूख ज़िन्दगी
5 पौष , पक्ष कृष्ण -11, 2077 * देवास, शनिवार,09 जनवरी 2021 मुझे बेशक गुनहगार लिखना
साथ लिखना मेरे गुनाह, ज़िंदगी की उम्र....
हक की रोटी छीनना । ऐ उम्र थोड़ा ठहर

चार धर्म प्रेमी


मैंने मांगा था, किंतु, थोड़ी मेरी भी सुन
हास-परिहास: है हमे पता है, वे बोले मिला तो बस, अपमान, चल कुछ गुफ्तगू कर लें
राष्ट्रीय नवाचार चलो एक टायर खोल संदेश, उपदेश, उपहास, कभी रूठ जाती तू तो
देते है फिर चलाता और बहुत कुछ । कभी बिखर जाती
पिछले सप्ताह की प्रमुख ख़बरों हूं वे बोले फिर थौडे
ही चलेगी और सब
जिद भूख की थी,
वह मरती मेरे मरने के बाद ।
पर फिर भी तुझे मना लेती
अपनों के आँख आंसू देख
पर ओम वर्मा की चुटकी चार धर्म प्रेमी थे, हिन्दु मुस्लिम सिख और
ईसाई। सबके सब अलग हर कोई अपने आप मे
हंसने लगे, तभी साधु बोले हंस क्यो
रहे हो भाई ,सब बोले आप बात ही
इन,अपमानो,संदेशों,उपदेशो,
उपहासो, से पेट न भरा,
कभी तुझे फुसला लेती
बस चंद दिनों की और सांसें
बिहार की पूर्व सीएम राबड़ीदेवी ने नीतीश को खुले तौर पर साथ बडा।इन सबकी आपस मे नही बनती थी, कारण ऐसी कर रहे चारो टायर होगे और वे गुनाह न करता, तो मर जाता मैं, ये कहकर जी लेती
आने का न्योता दिया। था, सब कहते इन्हे मानो । और कोई किसी के धर्म सभी चलेगे तभी आप आपकी गाडी मेरे भूख से पहले । माना अब चल फिर नहीं सकती
जिसके शासनकाल को, माना जंगलराज। को नही मानता ,वक्त आता तो सभी एक दुसरे पर चला सकोगे वरना नही, तो महात्मा मुझे बेशक गुनहगार लिखना अपनों के गोद कभी हिल लेती
वे ही आॅफ़र कर रहे, अब दिल्ली का ताज॥ अपनी ताकत का इतेमाल करते।उसी गांव मे एक जोर जोर से हंसने लगे बोले तुम्हे तो लिखना, मैं गुनहगार था, कभी रो लेती कभी हंस लेती
यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कोरोना वैक्सीन को बार एक साधु आए, सबके सब गांव के लोग बहुतज्ञान है, सब कहने लगै हमे ही क्या यह तो कोई को पा सकते हो जो तुम्है चाहिए, सबके सब सोच या बना दिया गया । अपनों की यादें बटोर लेती
भाजपा का टीका बताकर नहीं लगवाने का बयान दिया। इकक्ठा हुए, साधु ने कहा आप लोग सभी यहां बच्चा भी बता दे,महात्मा फिर हंसने लगे, सबके मे पड गये, बोले हयने तो यह सोचा ही नही, साधु हो सके तो, लिखना, अब गिनती की है सांसें बची
टीके को मत दीजिए, अब दलगत पहचान। क्यो आए, सभी बोले हम हिन्दू है आप महात्मा है सब अब आप क्यो हंस रहे है, साधु बोले हंसु बोले तो सोचो, कि तुम सबके झगडने से इस गांव उस कलम की,मक्कारी, अपनों से दूर जाने की
धन्य सभी साइंसदाँ, भारत का विज्ञान॥ इसलिए, साधु ने कहा गलत आप सभी दूर खडे नही तो क्या करू, जैसे एक टायर निकल जाने से की आज तक उन्नति नही हुई, और सब कहते हो असंवेदना,चाटुकारिता, ना यादों को ले जाने की
ट्रंप ने चुनाव नतीजे पलटने के मकसद से फ़ोन पर बनाया दबाव। रहे, मेरे पास कोई नही आए, मै मुस्लिम हूं इतनी गाडी नही चलती, चलाने वाला नही चला सकता बताओ आप कौन.सा धर्म मानते, अरे तुमने आते जिसकी ,नजर पड़ी थी, ना सपनों को इजाजत दी
अॉडियो टेप हुआ वायरल। बात सुनते ही वहां रहने वाले मुस्लिम परिवार दौडे, तो आप कैसे कह.सकते है कि आप सभी एक देश ही धर्म पुछा यह.नही देखा कि एक गांव मे इंसानो मुझ पर मेरे गुनाहगार अब साथ रहीं ना सांसें
मुस्तक़बिल श्रीमान का, होगा मटियामेट। , साधु ने देखते ही कहा आप सब क्यो आए, से बंधे हुए हो और अलग अलग जाओगे तो देश के बीच.इंसान आया है, अब तो सबको ज्ञान मिल बनने से पहले अकेले ही खुद को पा बैठी
साबित होगा टेप यह, अगला वाटरगेट॥ मुस्लिम भाई बोले आप मुस्लिम है इसलिए, तभी चलाने वाला ,जग को चलाने वाला चला सकेगा, चुका था, सबने अपनी गलती सुधारी और साधु के लेकिन, उसने लिखा मुझे, अपनों के कांधे जा बैठी
अज्ञात वायरस के प्रकोप से लाखों मुर्गियाँ और कौव्वों की साधु बोले नही मै सिख हूं, मुस्लिम नही लेकिन हंसने की ही बात तो आप सभी करते है, सबके पैरो मे गिर पडे, आज गांव मे कोई हिन्दु मुस्लिम गुनहगार बनने के बाद । ऐ ज़िन्दगी तू क्यों रूठी ?
अकाल मृत्यु। आप वहां दूर खडे रहो, मुस्लिम भाई भी दूर हो सब लडाते और बंधे एक ही राष्ट्र से.तो.राष्ट्र की ,सिख, ईसाई नही था, आज उस गांव मे सभी
आओ होकर एकजुट, सारे करें उपाय। गये, तो सिख दौड पडे, उनसे भी यही बात की उन्नति कैसे हो बताओ, जब सभी की अपनी सीमा मानव थे सिर्फ मानव।
मूक प्राणियों की हमें, लग सकती है हाय॥ कि ईसाई आ गये, सबके सब आश्चर्य मे बोले है, सबके सब अपनी अपनी जगह चलकर पुरे देश
डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा संसद भवन केपिटाॅल पर हमला, यह कोई नही ऐसा कैसे हो सकता है, जब यह से बंध गये और राष्ट्रपति उस देश के डाइवर है तो लेख
4 मरे, कर्फ़्यू लगा। चारो नही तो फिर कौन प्रश्न पुछा गया तो ,वे बोले सोचो वे देश रूपी गाडी खींच सकेगे, या वह ऊपर राष्ट्रीय नवाचार
शर्मनाक है सैम जी, संसद पर आघात। चलो आओ मै बताता हूं, उन्होने उनकी कार की बैठा परमात्मा सबको एक डोरी से बांधे रखता है - सूरज सिंह राजपूत -निशा शर्मा
थानेदारी छोड़कर, घर देखो हालात॥ और देखा बोले मै बैठकर चलाता हूं और यह कार ,वह सबको साथ लेकर चलना चाहता है और तुम -ममता वैरागी जमशेदपुर , झारखंड चापा छत्तीसगढ़
चलती है पता है, सब बोले हां इसमे कौन सी बात सब अलग अलग जा रहे हो तो सभी उस मंजिल तिरला धार

-ओम वर्मा
देवास

सिने जगत की दबंग फेमिना


स्टंट क्वीन फियरलेस नाडिया
कविता कविता
राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार

गुमान न करना🌹 भूल जायेंगे


हैसियत का गुमान करने वाले,
जो कभी राजा हुआ करते थे।
सारा भूगोल तक सुपर हीरो की तो अनेकों फ़िल्में बनी मगर, एक भी
फिल्म ऐसी नहीं बनी जिसमें अभिनेत्री सुपर हीरोइन हो
उस समय में जबकि, हिन्दी सिनेमा अपनी किशोरावस्था
में ही था । उस समय जब सिने स्क्रीन पर पारम्परिक
गयी उसके बाद आई जंगल प्रिंसेज में तो उन्होंने शेर से
लड़ने जैसे खतरनाक स्टंट तक किये । जिसके बाद मिस
आज देखो तक़दीर ने करवट ली, पल भर ना आराम करेंगे । । मगर, आज से आठ दशक पूर्व हिन्दी सिनेमा के रजत कथाओं के जरिये सामान्य चरित्रों को ही प्रस्तुत किया फ्रंटियर मेल, पंजाब मेल, डायमंड क्वीन, हंटरवाली की
और वह रंक में तब्दील हो चले। हाथ जोड़ राम-राम करेंगे ।। पर्दे ने एक ऐसी नायिका को देखा है जिसके लिये सुपर जाता था । नाडिया ने उस छवि को तोड़कर अपने लिये बेटी, स्टंट क्वीन, हिम्मतवाली, लेडी रॉबिनहुड, तूफान
अपनी राजशाही पर गुमान था, नखरे खानदानी करेंगे । वीमेन या फ्री-फ्रेंक, फियरलेस, स्टंट क्वीन जैसे टाइटल एक अलग इमेज तैयार की और जैसा कि हम जानते क्वीन, दिल्ली एक्सप्रेस, कार्निवल क्वीन, सर्कस क्वीन,
खो दी उसने सारी सुख सुविधाएं। सारी बातें पुरानी करेंगे ।। का प्रयोग किया जाता था । वो उस दौर की कहानियों में है कि जो भी लीक से हटकर कहता या मिसाल कायम खिलाड़ी जैसी कई फ़िल्में उनके नाम पर दर्ज हो गयी
जब ग़रीबी का उपहास किया, खुलकर के वो भाव करेंगे । दिखाई जाने वाली रोने-धोने वाली या घर की चारदीवारी करता उसे विस्मृत कर पाना नामुमकिन होता है । यही जिनके नाम से उनके रोल का भी अंदाजा लगाया जा
तब किस्मत ऐसे मोड़ लाए। मीठे बोल कर घाव करेंगे ।। में महज़ एक आम गृहिणी या फिर पौराणिक चरित्रों को वजह कि हिंदी सिने जगत नाडिया के योगदान को नहीं सकता है । उनकी इस नकाबपोश जाँबाज सुपर हीरोइन
जिसको करता रहा तिरस्कृत, लम्बी-चौड़ी बात करेंगे । प्रस्तुत वाली अदाकाराओं के एकदम विपरीत और बोल्ड भूल सकता है । नाडिया का जन्म 8 जनवरी 1908 को छवि का प्रभाव ये था कि एक फिल्म मौज में जब उन्होंने
आज वह है राज-करता अंकित। पहले वाली ही घात करेंगे ।। थी । वह एक ऐसी नायिका थी जिसकी केवल बाहरी पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में हुआ तथा उनके पिता रोने वाला एक दृश्य किया तो वितरक ने उसे ये कहते
जिसने मन में अपने मैल रखा, नेताजी जल्द आयेंगे गाँव । वेशभूषा ही नहीं बल्कि, सम्पूर्ण हाव-भाव, हरकतें, बॉडी हर्बर्ट इवान्स ब्रिटिश सेना में सैनिक थे । अपने तबादले हुये हटा दिया कि नाडिया रो नहीं सकती । जबकि, आज
आज उसका वर्तमान कलंकित। जाति, धर्म के खेलेंगे दाँव ।। लैंग्वेज, बोलचाल की भाषा बोले तो हर एक चीज़ उसे की वजह से उनका मुम्बई आना महज संयोग नहीं बल्कि, की नायिकायें भी रोने-धोने वाली भूमिकाएं अभिनीत कर
मेहनत का लेकर पूरा मोल । तमाम सिने तारिकाओं से अलग प्रदर्शित करती थी । किस्मत का लेखा था तो वे यहाँ आई तो फिर यही की रही है ऐसी दिलेर जंगबाज लेडी रोबिनहुड स्टंट क्वीन
भूल जायेंगे सारा भूगोल ।। जिसकी वजह से उसके लिये बनने वाली फ़िल्में भी आकर हो गयी । अपने पिता की असमय मृत्यु के बाद फियरलेस नाडिया को उनके जन्मदिन पर स्मरण करते
विशेष होती थी जिनके नाम भी ऐसे कि नायकों को भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये स्टेनो टाइपिस्ट से हुए यही ख्याल आता कि हर सितारा अपने आप में एक
आज हिन्दी सिनेमा में ऐसी बहुत-सी सशक्त इस तरह के किरदार कम ही मिलते थे । नाडिया की तो शुरुआत करते हुये सर्कस में कलाबाजिया की तो बैले अलग पहचान रखता फिर वे तो बेजोड़ थी । जिनकी
नायिकायें है जो बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड में भी अपनी बात ही अलग थी वो तो जब स्क्रीन पर आती लोग उसे डांसर बनकर अपनी चपलता का प्रदर्शन भी किया । जहाँ फिल्में व दमदार भूमिकाएं देखकर किसी भी अभिनेत्री
- गीतिका पटेल “गीत” -✍️दिलखुश राव सुरास प्रतिभा ही नहीं अपने अभिनय का भी परचम लहरा रही देखकर जोश में भर जाते थे । आज के समय में हम जो होमी वाडिया की नजर उन पर पड़ी और फिर वो वाडिया को ईर्ष्या हो सकती कि वे हिरोइन होते हुए भी किसी हीरो
कोरबा (छत्तीसगढ़) 🌹✍️ त.रायपुर, भीलवाड़ा (राज.) हैं । उसके बावजूद भी एक-भी ऐसी हीरोइन नहीं जो सुपर हीरो की मूवीज देखते उस समय में उन्होंने अपने मूवीटोन की स्थायी नायिका ही नहीं आगे चलकर उनकी से कम नहीं थीं ।
बहादुरी के साथ घोड़े पर बैठकर आये और हाथ में हंटर दम पर ऐसी कई फ़िल्में लगातार दी जो आज भी किसी अर्धांगिनी भी बन गयी और अपना एक अलग अध्याय कहानी
खुली आँख से ख़्वाब देखा करेंगे। ग़ज़ल लेकर बड़े-से-बड़े खलनायक से सीधी टक्कर ले सके एक भी अभिनेत्री के पास नहीं क्योंकि, हमारे यहाँ केवल लिखा । उन्होंने अपने पूरे कैरियर में ऐसे हैरतअंगेज राष्ट्रीय नवाचार
उन्हें हर तरह मिल के पूरा करेंगे। राष्ट्रीय नवाचार और जिसके सामने हीरो भी दोयम दर्जे पर हो । जो सुपर हीरो की परिकल्पना है । वह घुड़सवारी, कुश्ती, कारनामे फिल्मों में किये कि देखने वाले साँस रोककर उन
सही बात कहना तो जारी रहेगा, दर्शाता कि इतनी उपलब्धियों या ख्याति के बाद भी आज तैराकी, तलवारबाजी के साथ-साथ जमीन से बिल्डिंग दृश्यों को देखते रह जाते थे जब वे पर्दे पर अवतरित होती
न बेजा मगर कोई शिकवा करेंगे। की सभी नायिकायें स्थापित समकालीन नायकों से कम पर छलांग लगाने में भी माहिर थी । ऐसे सारे स्टंट जो थी । उनका आगमन 1934 में बनी हंटरवाली फिल्म से - सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
सजाते रहेंगे सजाते रहे हैं, ही है जिन्हें मेहनताना भी उनसे कम मिलता है । अभी आज भी हमारे यहाँ केवल हीरो के द्वारा ही किये जाते है कुछ ऐसा हुआ कि फिर वो भूमिका ही उनकी पहचान बन नरसिंहपुर (म.प्र.)
चमन में सुमन बन के महका करेंगे।
वतन के लिए जान देंगे यक़ीनन,
वतनको कहीं भी न‌रुसवा करेंगे। कविता कविता कविता कविता कविता
अदूचढ़ के आया जो अब सरहदों पर, राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार राष्ट्रीय नवाचार
उसे बीच से चीर टुकड़ा करेंगे। -हमीद कानपुरी,
धर्म-ध्वज (सजल) ये शाम की तन्हाईयाँ
उड़ान आँखों के दोहे “अतीत दोस्ती का”
कानपुर
कविता धर्म ध्वजा फहराते चलना। कुछ इस दुनियाँ में अकेले ही रहते हैं
राष्ट्रीय नवाचार आँखों से जग देखते,हैं आँखें वरदान। सबमें ऐक्य जगाते रहना।। अपने सब के पास नहीं होते
भरो उड़ानें बहुत दूर तक, आँखों में संवेदना,आँखों में अभिमान ।। कभी वो दिनों की नीरज का पिपरमिन्ट टूट गये हैं जितने रिश्ते। कोई नहीं होता जीवन में उनके

“ मैं बेवफ़ा तो नहीं “


फिर घर में तुम आ जाओ। आँखें करुणामय दिखें,जबआँखों में नीर। हैं यादें पुरानी, का यूँ ही लाना, सबको एक बनाते रहना।। तन्हाइयों में अक्सर बहुत हैं रोते
अपने प्यारे बच्चों को भी, आँखों में अभिव्यक्त हो,औरों के हित पीर।। रहती थी मेरे साथ लाकरके सबके मुस्कुराने की कोशिश करते हैं हमेशा
उड़ना तो सिखला जाओ। आँखों में गंभीरता,और कुटिलता ख़ूब। बैठी अपनी जिंदगानी, आँखों में लगाना भावों में आयी विकृति को। मगर चेहरा सब बतलाता हैं
बेहद सख्त हूँ, कठोर हूँ मैं बेशक; बहन-बेटियों को शिक्षित कर, आँखों में उगती सतत, पावन-नेहिल दूब।। कभी विवेक की बातें शादाब ही ऐसा, अतिशय दूर भगाते रहना।। जो लवों से नहीं निकलता कभी
कड़वी बात कहूँ,सच्ची होती मगर। उनमें भी हिम्मत लाओ। आँखें आँखों से करें,चुपके से संवाद। कभी विकास की कहानी हठीला था सबमें संवादों का गहरा संकट। वो आंखों से छलक जाता है
चाहे भला लगूँ, या बुरा ही सही.... उड़ने की आजादी देकर, उर हो जाते उस घड़ी,सचमुच में आबाद।। बड़ी दिलचस्प होती थी जिसको था टीचर, सबमें बात कराते रहना।। दिन तो कट जाता है किसी तरह
कैसा भी हूँ पर,मैं बेवफ़ा तो नहीं।। बिटिया को आगे लाओ। आँखें नित सच बोलतीं,दिखता नहीं असत्य। इनकी हर रवानी को जाकर बताना शाम काटने को दौड़ी आती है
भरो उड़ानें देश की बेटी, आँखों के आवेग में,छिपा एक आदित्य।। जिससे चिढ़ता था अभिषेक, पियूष की बातें मिलती मन बनता जा रहा अजनबी। किसे सुनाएं दिन की दास्ताँ अपनी
सौ मीठी छुरी से भली एक कड़वी बात, माया-फूलन बन जाओ। आँखों में रिश्ता दिखे,आँखों में अहसास। उससे वही शब्द कहकर, थीं जिसको मनघट सहज बनाते रहना।। सारी रात आंखों में गुज़र जाती है
यही मूलमंत्र, कहता कड़वी पर सच्ची बात। सीएम-पीएम को कुर्सी को, आँखों में ही आस हो,आँखों में विश्वास।। सत्यम ने पुकारा, बातें थी वो सबको कपट-वायु भर रही हॄदय में। कोई दोस्त नहीं कोई रक़ीब नहीं
चलता वही डगर मैं सदा,जो है सही... सदा सदा ही तुम पाओ। आँखों में संवेदना,आँखों में अनुबंध। अब उसके गुस्से का मुझको उड़ानी सबको निर्मल करते चलना।। फिरता हूँ बेबस लाचार मारा मारा
नीम-सा कड़वा हूँ, मैं बेवफ़ा तो नहीं। भीमराव की बेटी हो तुम, आँखों आँखों से बनें,नित नूतन संबंध।। रहा न ठिकाना काॅलेज में जितनी थी तन्हाईयाँ ही तो अब साथी हैं अपनी
भरो उड़ाने उड़ जाओ। आँखों से ही क्रूरता,आँखों से अनुराग। काॅलेज की कितनी नखरों से भरी कहानी दंभ-द्वेष की आँधी बहती। मुड़ कर नहीं देखा किस्मत ने दोबारा
बेवफाई शब्द नहीं है शब्दकोश में मेरे, अपने हुनर ज्ञान कौशल से, आँखों से अपनत्व के,गुंजित होते राग।। गज़ब है वो सब अतीत बनें हैं मन को शीतल करते रहना।। आंगन में पेड़ के पत्तों की सरसराहट
इस शब्द का स्थान नहीं शब्दकोश में मेरे। विजय पताका लहराओ। आँखें पीड़ा,दर्द के,गाती हैं जब गीत। ये अतीतों की कहानी अब मेरी जुबानी भ्रम में जीता हर प्राणी है। होती है किसी के आने की आहट
मैं क्या हूँ, कौन हूँ,मैं एक खुली किताब हूँ.. प्यारी बहन अरुणिमा सिन्हा, अश्रु झलकते ,तब रचे शोक भरा संगीत।। चलो आज फ़िर से अनिरुध्द की बातें थी ज्ञान पंथ दिखलाते रहना।। करने लगी हों खामोशियाँ भी
मैं सबकुछ हूँ, पर मैं बेवफ़ा तो नहीं....।। जैसा तुम हिम्मत लाओ। आँखें गढ़तीं मान को,आँखें ही अपमान । बनी ये जुबानी सबसे ही हटकर जैसे कोई सुगबुगाहट
बाधाएं हो लाख भले पर, आँखों की भाषा पढ़े,वह नर बहुत सुजान ।। कभी हास्य का एक अभी भी याद आती वो गहरे सबके जख्म हो रहे। यह तन्हाईयाँ भी अब
कड़वा बोलो पर सच्चा बोलो,कहूँ मैं यही; आगे ही बढ़ते जाओ। आँखों में छिपकर रहें,जाने कितने राज़ । तड़का शिवम (रेडी) का रहतीं हैं कुछ कुछ सब पर मरहम करते रहना।। मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं
अपना लीजिये जीवन में ,बात यही सही। आँखें हैं यदि ज्योति बिन,तो नर बिन सुर,साज़।। कहकर शिवम को था चलो आज मिलना हुआ चोर, उचक्के, चाईं, लंपट। खामोशी के इन हसीन
दोस्त वही,जो कर दे आपके दोषों का अस्त- आँखों में हो दिव्यता,दिखते तीनों काल। नन्हें बुलाना तुमसे से फ़िर से सब को संत बनाते चलना।। पलों का इक किस्सा है
मुझे मानिये दोस्त या नहीं,पर मैं बेवफ़ा तो नहीं।। आँखें देखें यदि मलिन,जीवन बने बवाल।। थोड़ा मुस्कुराकर वो पता न कहाँ ये हमसे बहुत हो गई अब रुसवाईयाँ
आँखों को नैतिक रखें,तो मिलता उत्कर्ष। कहता था वानी बीत जाए जिंदगानी आलस अरु उन्माद खत्म कर। हिस्सा बन गई हैं ज़िन्दगी का
आँखें नेहिल तो मिले,जीवन में नित हर्ष ।। तेरी ये तो आदत है श्रम-उल्लास सभी में भरना।। यह शाम की तन्हाईयाँ
जानी ओ मानी धर्म पंथ है सबसे उत्तम।
-नेहांश कुलश्रेष्ठ कभी कोई टीचर को सुंदर कर्म सिखाते रहना।। -रवींद्र कुमार शर्मा
उज्जैन, मध्यप्रदेश - बुद्धि सागर गौतम -प्रो.शरद नारायण खरे उसको हो चिढ़ाना, घुमारवीं
नौसढ़, गोरखपुर, मंडला(मप्र) काँटे की तौल हाँपा, - शिवम अन्तापुरिया -डॉ० रामबली मिश्र जिला बिलासपर हि प्र
उत्तर प्रदेश, भारत सुदीप का बुलाना उत्तर प्रदेश हरिहरपुरी

समझौता मुझे समझौता


लघुकथा माने। आलोक एक रात पत्नी विरह से मैं अपनी चुनावी हार स्वीकार करता हूं। तुम्हें मुझे समझौता ही रहने दो मुझे समझौता ही रहने दो.......
राष्ट्रीय नवाचार व्याकुल होकर करवटें बदलने लगे। मन विजयी होने पर हृदय की गहराईयों से बधाई देता जिंदगी से,प्यार किया। देख लिया चेहरा दुनिया का,

आलोक और उनकी पत्नी खुशबू एक ही


में दृढ़ निश्चय करके चल पड़े, खुशबू के
कमरे की ओर। धीरे से दरवाज़े पर दस्तक
दी। रात के दो बजे नींद में विध्न पड़ने से
हूँ। सारे गिले - शिकवे दूर करने के लिए, अपनी
पार्टी से त्यागपत्र देकर, तुम्हारी पार्टी में सहर्ष
शामिल होना चाहता हूँ। “ खुशबू प्रतिक्रिया देने
ही रहने दो छल तो नही किया।।
शब्दों की सलाखों को,
मेरे दिल के आर-पार ही रहने दो।
मकसदों और सियासतों का है।
मेरा चेहरा,
बस मेरा ही रहने दो।
राजनैतिक पार्टी के प्रति समर्पित हैं। आए दिन पत्नी बौखलाई। गुस्से से चिल्लाते पूछा, के बदले मंद - मंद मुस्कुराई । आलोक का जिंदगी में , मुझे समझौता ही रहने दो......... मुझे समझौता ही रहने दो।
दंपति में देश के बिगड़ते हालातों, भ्रष्टाचार, “ कौन है? “ “ मैं आलोक। तुमसे जरूरी चेहरा ख़ुशी से खिल उठा, गुलाब की पंखुड़ियों बहुत बड़े -बड़े खवाब तो शिकवे और शिकायतों पर, मुझे समझौता ही रहने दो।।
महंगाई आदि ज्वलंत मुद्दों पर वैचारिक मतभेद बात करनी है। “ पति ने शांत स्वर में की तरह। खुशबू के मौन को मर्ज़ी मानकर उसे नही देखें। अब न वक्त जाया कर।
उभरकर सामने आने लगे। नतीजा, पति - पत्नी संक्षिप्त उत्तर दिया। “ सुबह सुनाना। “ आलिंगनबद्ध किया। इस तरह दोनों के मनमुटाव मेरी आँखों में छोटे- छोटे गूंगे , शिकायतें सब मेरी,
में बोलचाल बंद हो गई। दोनों अलग - अलग खुशबू के स्वर में बेरूखी दिखी। “ अभी हमेशा के लिए दूर हुए। सपने तो रहने दो।। मेरे साथ रहने दो।
कमरों में सोने लगे। लोकसभा चुनावों की नहीं, तो फिर कभी नहीं। “ आलोक ने मुझे समझौता ही रहने दो........ मुझे समझौता ही रहने दो........
घोषणा होते ही दोनों ने अलग - अलग पार्टी दमदार आवाज़ में कहा। मन मारकर जिंदगी से ,मैंने सौदे तो नही कियें। मैं किसी का ,
से पर्चा भरा। दोनों अपने निर्णय पर अडिग रहे। खुशबू ने दरवाज़ा खोला। आलोक ने - अशोक वाधवाणी सच का सामना करने के लिए, अपना कहाँ हो पाया।
चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक निकले। जीत का जबरदस्त जुलूस निकला। आलोक को खुशबू की आंखों में आंखें डालकर, उत्साहित गांधी नगर, मुखौटे भी नही लिए।। पराया था, पराया ही रह गया। - प्रीति शर्मा “असीम”
खुशबू जीत गई और आलोक हार गए। शहर में शामिल होने का आग्रह किया गया , मगर वे नहीं होकर कहा, “ नैतिक जिम्मेदारी निभाते हुए कोल्हापुर, महाराष्ट्र मेरा सच, मेरे साथ रहने दो। मुझे अपना तो...रहने दो। नालागढ़, हिमाचल- पंजाब

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