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Ramayana - 15 Minute Read (Hindi Edition)
Ramayana - 15 Minute Read (Hindi Edition)
eISBN: 978-93-8980-757-8
© लेखकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2020
Ramayana
By - Himanshu Sharma
िवषय सूची
1. रामज म
2. िश ा एवं िववाह
3. रा यािभषेक
4. संहासन
5. वनवास
6. िक कंधा
7. वीर हनुमान
8. लंका िव वंस
9. िमलाप
10. अंत
रामज म
राजा दशरथ को सभी कार के सुख ा थे िकंतु एक सुख अभी भी उनके जीवन म
नह था वह था संतान सुख। संतान ाि के लए उ ह ने बहत पूजा अनु ान िकये
लेिकन अभी तक उनक मनोकामना पूरी नह हो पाई थी। उनक उ बढ़ती ही जा
रही थी। उ ह अपनी वृ ाव था और आस मृ यु का इतना दख
ु नह था जतना इस
बात का था िक वे िनःसंतान ही मर जाएंगे और सूय वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई
नह होगा। बस वह हमेशा यही सोचते रहते थे।
तो िफर देश देर िकस बात क । राजकु मार के िववाह के लए राजा दशरथ ने
क याओं क खोज का आदेश िदया।
अगले िदन ातः दोन राजकु मार िव वािम के साथ आगे बढ़े माग म अंगदेश पड़ा
गंगा सरयू के संगम पर पहच
ं े। िव वािम के साथ दोन ने यहां कामा म म रात
िबताई और दसरे
ू िदन उनक अगली आगे क या ा आरं भ हई। इसके बाद िव वािम
राम और ल मण गंगा तट पर पहच
ं े वहां के वनवा सय ने उ ह एक नौका दी जस पर
बैठकर उ ह ने नदी पार क ।
तब वे स ा म पहच
ं े और िव वािम ने बताया िक मने अपना य यहां िनिव न
समा करने क बहत कोिशश क िकंतु रा स के िवरोध के कारण म इसम सफल
नह हो सका ह।ं रा स आकाश माग से आकर खून हि यां और मांसपेिशयां को
अशु कर देते ह अब तु ह ही इससे हमारी र ा करनी होगी। राम और ल मण ने यह
आ ह खुशी-खुशी वीकार िकया। ातः काल सभी तप वी य थल पहच
ं े और
ऋिष िव वािम ने य कुं ड म अि व लत क और अगले ही पल वातावरण म
पिव लोक के वर गूज
ं ने लगे। पांच रात तो िनिव न समा हो गई। जब छठी रात
आई तो आकाश म शोर गूज
ं ने लगा राम ल मण समझ गए िक यह रा स मारीच
और सुबाह अपने सा थय के साथ आ चुका है। हाथ म अपिव व तु म लेकर जैसे
ही रा स सेना िनकट पहच
ं ी तो राम और ल मण ने तीर क वषा करके रा स को
मारना शु कर िदया। राम के एक बाण से तो सुबािह जलकर भ म हो गया वह
दसरे
ू बाण से मारीच लगभग आठ सौ मील उड़ता हआ दरू जाकर िगरा। इसके
अलावा आए सम त रा स तीर क धारा म तड़प तड़प कर मर गए और य
िनिव न समा हो गया सारा वातावरण राम-ल मण क जय जयकार से गुजरने
लगा।
बोलते बोलते मंथरा क सांस फूल गई, मंथरा बार-बार यही बात दोहराए जा रही थी
और उसने केकैयी के मन म भी संदेह का बीज फुिटत कर िदया। आ खर केकैयी
भी तो एक मां ही थी। उसने सोचा या जाने राम राजा बनने के प चात बदल जाए।
तब केकैयी बोली।
तु ह याद होगा िक राजा दशरथ शंभर नामक असुर से यु के दौरान बुरी तरह घायल
हो गए थे तब तुम ही रथ चलाकर यु भूिम से उ ह बाहर सुरि त लेकर आई थी और
तु हारी सेवा और देखभाल से ही वे व थ हो सके थे और इसके बदले म उ ह ने तु हे
दो वर दान िकए थे और तुमने कहा था िक जब मुझे ज रत होगी म वर मांग लूंगी।
आज वह समय आ गया है तुम उनसे दो वर मांग लो।
तो िफर इस कोपभवन म य ।
म यह तभी बताऊंगी जब आप मेरी मनोकामना पूरी करने का वचन मुझे दगे।
मने भला तु हारी कौन सी बात टाली है केकैयी। बोलो तुम या चाहती हो, म यह
वचन देता हं िक म तु हारी येक मनोकामना पूरी क ं गा।
तब केकैयी बोली।
तो सुिनए महाराज आपको याद होगा वष ं पूव आपने मुझे दो वर िदए थे। तब मने वे
वर नह मांगे थे लेिकन आज म आपसे वे मांगना चाहती ह।ं मेरा पहला वर यह है िक
जो राम का राजितलक हो रहा है बजाए राम के भरत का राजितलक हो और दसरा
ू
यह िक राम को चौदह वष के वनवास के लए एक तप वी के वेश म भेज िदया
जाए। इसे पूण कर अपना वचन िनभाए और इसे टालकर रघुकुल क रीत को
कलंिकत न कर।
राजा दशरथ यह सुनते ही सु रहे गए केकैयी के कटु वचन गम लावे क तरह उनके
कान म घुलते जा रहे थे। उनक आंख आंसू से भर आई और वे मम आहत होकर
बोले।
केकैयी बोली, महाराज आपने मुझे वचन िदया है और यिद आपने मेरा वचन तोड़ा तो
दिु नया को यह पता चल जाएगा िक रघुवश
ं ी राजा दशरथ ने वचन भंग िकया है और
आप सभी क नजर से िगर जाओगे। आप कु छ भी किहए म अपने िवचार से जरा भी
टस से मस नह होऊंगी। म यह कभी बदा त नह कर सकती िक मेरा पु दास क
तरह जीवन यतीत कर।
इधर राज महल म भारी चहल-पहल थी राजितलक क सारी तैया रयां पूरी हो चुक
थी। लोग उ सुकता से उस पल क ती ा कर रहे थे जब राम के म तक पर
राजमुकुट रखा जाएगा। तब विश ने मं ी सुमत
ं से कहा।
सुमत
ं त काल राजा दशरथ के पास पहच
ं े एवं राज अिभषेक क कायवाही म भाग
लेने को कहा। राजा दशरथ शोक क साकार ितमा बने हए सुमत
ं को देखते देखते
मूिछत हो गए। सुमत
ं एकदम से घबरा गया। तभी केकैयी पास आई और बोली।
सुमत
ं राम के पास पहच
ं े एवं उ ह ने कहा
रानी केकैयी का आदेश है राजकु मार, आप तुरंत उनके को म जाइए जहां
महाराज आपसे कु छ कहना चाहते ह।
बेचारे दशरथ का कलेजा फटा जा रहा था िफर या कर सकते थे वचन जो हार चुके
थे राजा दशरथ से यह बदा त नह हो सका और उनके कंठ से एक गहरी सांस
िनकली और वे मूिछत हो गए । राम ने मूिछत िपता को संभाला एवं अिभवादन िकया
और को से बाहर िनकल गए। राम को इस बात का तिनक भी अफसोस नह था
िक उनके हाथ से स ा िनकल गई उनके चेहरे पर पहले जैसी ही सौ यता छाई हई थी
ब क वे तो इस बात से बहत ही स थे िक उ ह िपता के वचन को िनभाने का एक
अवसर िमला है।
ऐसा कहकर सीता क आंख से झर झर अ ु बहने लगे। राम सीता का ऐसा अनुराग
देखकर अिभभूत हो उठे उ ह ने सीता को आ लंगन म लया और बोले।
हे सीते, तुमने तो मुझे अजीब दिु वधा म डाल िदया म तो चाहता था िक तु ह अपने
साथ वन का क न भोगने द।ं ू पर सच तो यह है िक तु हारे िबना चौदह वष ं का
वनवास काटना मेरे लए भी मु कल है। चलो यह अ छा हआ िक तुम मेरा साथ देना
चाहती हो। अब देर ना करके हम यथाशी वन क ओर चलने क तैयारी करनी
चािहए।
थोड़ी देर बाद उ ह होश आया उ ह एक पलंग पर लटाया गया तब राम ने कहा।
वाह महाराज खूब, अगर राम के साथ सेना, धनधा य, साथी सभी चले गए तो भरत
के लए यहां या रह जाएगा। ऐसा हआ तो मेरे वर का अिभ ाय ही या रह जाता
है।
केकैयी ने िबना समय गवाएं ही व तीन के हाथ म थमा िदए। बेचारे दशरथ या
करते वह तो अध मूिछत अव था म यह सब देख रहे थे। सीता को ऐसी अव था म
देखकर उनका िदल बैठे जा रहा था। थोड़ी ही देर म तीन ने व कल व धारण
िकए। सभी का अिभवादन िकया और वहां से बाहर िनकल आए।
राम ने कहा, आपका काम समा हआ आय, अब आप अयो या लौट जाइए। नदी
पार करके हम पैदल ही आगे क या ा करगे। राजमहल पहच
ं कर माताओं के चरण
म हमारी वंदना पहच
ं ाएं और उ ह बता द िक वनवास म हम जरा भी दख
ु ी नह ह।
सुमत
ं क आंख से आंसुओं क झड़ी बह िनकली। सुमत
ं जाना तो नह चाहते थे परं तु
मु कल से अयो या जाने को राजी हए। तीन ने नौका से गंगा क तुित करते हए
इसे पार िकया। तीन नाव से उतरे तब राम ने कहा।
ल मण अब हमारा वा तिवक वनवास आरं भ होता है। वन म संकट क कमी नह ,
तो तुम आगे आगे चलो बीच म सीता और पीछे म तुम लोग क र ा करता हआ
चलूंगा।
राजमहल से सभी जा चुके थे। कौश या वही महाराज दशरथ के पास बैठी हई थी
तभी आधी रात को अचानक उनक आंख खुल गई और वे िफर राम को याद करने
लगे तब उ ह दख
ु पूवक कौश या से बोले।
भरत ने पूछा, लेिकन माता हआ या है। यहां तो मुझे सभी जगह उदासी िदखाई दे रही
है।
सुनकर भरत को बहत आघात लगा। उससे रहा नह गया और वह फूट-फूट कर रोने
लगे।
मां म जानता था िक वाथ म अंधे होकर तुम ऐसा पाप करोगी। तुमने तो हमारे वंश
को ही कलंिकत कर िदया। िनःसंदेह तु हारे कारण ही महाराज का िनधन हआ। सोचो
तो माता कौश या और सुिम ा भी पु िवयोग म िकतनी तड़प रही ह गी। आज तु हारे
कारण म अनाथ हो गया मां। मुझे ऐसा रा य और स ा नह चािहए। म राम व ल मण
को वापस ले आऊंगा और उ ह ही संहासन पर िबठाऊंगा। म चला।
राम ने िच कू ट म अपना तेरा डाला हआ था एवं वनवास काट रहे थे। भरत जैसे ही
राम से िमले तो उनके चरण पर फूट-फूटकर रोए एवं िपता क मृ यु का समाचार
सुनाया। राम अ यंत दख
ु ी हए।
भरत बोले मुझे ऐसा राजपाट नह चािहए भैया उस पर आपका अ धकार है। अयो या
चलकर संहासन संभा लए।
राम बोले मने िपता के आदेश से वन गमन िकया है एवं उनके वचन को पूरा करना
ही मेरा धम है। म वचन तोड़कर उनक आ मा को क नह पहच
ं ाना चाहता।
भरत से िमलने के बाद राम उदास हो गए। उनक याद ने उ ह ऐसा घेरा िक िच कू ट
म उनका रहना दभर
ू हो गया। उ ह ने िच कू ट से अपना डेरा उठाया और ल मण एवं
सीता के साथ महावन म वेश कर गए।
दंडकार य पहच
ं ते हए वहां िवराज रा स का वध िकया। इस कार अपनी इस
वनवास या ा के दौरान उ ह ने कई रा स का वध िकया एवं ऋिष-मुिनय को उनके
आतंक से बचाया। इस तरह राम को वनवास भोगते हए लगभग 10 साल हो चुके थे।
हरी भरी राह से होते हए राम, सीता और ल मण पंचवटी क ओर चल िदए। लेिकन
अचानक रा ते म उ ह एक िवशाल प ी िदखाई िदया। तब प ी ने हाथ जोड़कर
कहा।
सूपनखा पीड़ा के मारे झटपटाती हई वहां से भाग िनकली और अपने भाई खर के पास
पहच
ं ी। खर को यह िब कु ल नह भाया और वयं रथ पर सवार होकर राम से लोहा
लेने चल िदया और साथ म भाई दषण
ू और रा स सेना को भी लेता गया। आ म के
िनकट पहच
ं ते ही खर व उसक सेना राम बाण छोड़ने लगे। तब राम को ोध आया
और उ ह ने ताबड़तोड़ बाण छोड़ना शु कर िदया देखते ही देखते अनिगनत रा स
जमीन पर आ पड़े और पलक झपकते ही सारा े रा स क लाश से पट गया। इस
कार इस भयंकर यु म राम ने दषण
ू के दोन हाथ काट िदए और अंत म सफ खर
बचा जसे भी राम ने अग त मुिन ारा ा अ से मार डाला।
राम क प नी सीता अ यंत पवती है और राम उसे बहत चाहते ह। अगर आप सीता
को हर लाए तो राम उसके िवयोग म घुट घुट कर मर जाएगा और आपको जहमत
उठाने क ज रत भी नह पड़ेगी।
यह उपाय रावण को भा गया और वह अपने िद य रथ पर सवार होकर आकाश माग
से सागर पार कर मारीच रा स के पास जा पहच
ं ा। यह वही मारीच था जसे राम ने
कभी िव वािम के य क र ा करते समय ऐसा तीर मारा था िक वह आघात होकर
यहां आकर िगर गया था।
वामी देखो िकतना यारा मृग है। म इसे पालना चाहती हं आप इसे पकड़ कर लाइए।
इसे हम बाद म महल म ले चलगे और अगर यह जीिवत न पकड़ा जाए तो इसे मार
कर इसक छाला ही ले आइए।
ऐसा कहकर राम वहां से िनकल चले। मायावी मृग कू दता फांदता हआ भाग रहा था
कभी नजर आता तो िफर कभी लु हो जाता। अंत म राम ने उस पर तीर छोड़ िदया
जो मृग क छाती पर जा लगा। बाण लगते ही वह असली प म आ गया और
झटपटाता हआ मारीच जोर से हे ल मण, हे सीते पुकार कर मर गया। राम देखते ही
समझ गए और िक यह रा स क चाल है और दोबारा कु िटया क ओर दौड़े। इधर हे
ल मण, हे सीते सुनते ही सीता ने सोचा िक राम संकट म फंस गए ह तो उ ह ने
ल मण को शी भाई क सहायता करने के लए भेजा। ल मण ने पहले तो सीता को
समझाया िक हो सकता है यह िकसी रा स क चाल हो परं तु सीता के अ धक कहने
पर ल मण ने अपना धनुष बाण संभाला और कु िटया से चल िदए।
म ि लोक राजा ह,ं िकंतु तु हारे प के सामने म सब कु छ हार चुका ह।ं तुम मेरी
सम त रािनय म सव म हो। तु ह म महारानी बनाऊंगा, तु हारी असं य दा सया
ह गी और तुम वहां राज करोगी। सीता ने रावण से अपने आप को छु ड़ाने क बहत
कोिशश क परं तु कोई फायदा नह हआ।
रावण जोर-जोर से हंसता हआ जा रहा था। तभी जटायु ने रावण को सीता का हरण
करते हए देखा तो वह ो धत हो गया और सीता को बचाने रावण के पास जा पहच
ं ा।
जटायु का बीच म कू दना रावण को भाया नह और रावण और जटायु म आकाश म
घमासान यु िछड़ गया। परं तु जटायु बूढ़ा और अश था रावण ने ती हार कर
उसके पंख काट िदए और वह तड़पता हआ जमीन पर आ िगरा। बस उसक सांस
बची हई थी। रावण का िवमान लंका क ओर उड़े जा रहा था।
इस कार रावण वन, ांत, नदी- नाल , पवत और सागर को पार करता हआ लंका
जा पहच
ं ा और सीता को अपने महल म ले गया। सीता सो रही थी तब रावण पास
आकर बोला।
सीता बोली। नीच रावण, स यवादी और परा मी राम ही मेरे आरा य ह। म िकसी पर
पु ष क छाया भी अपने ऊपर नह पड़ने दग
ं ू ी। तुझे इसक सजा ज र िमलेगी तेरी भी
वही दशा होगी जो खर और दषण
ू क हई।
माग म खोजते खोजते उ ह जटायु िमल गया जोिक राम क ती ा कर रहा था उसने
बताया िक रावण सीता का हरण कर ले गया है। वह बोला
सभी को बा ल क मृ यु का अ यंत दख
ु हआ। सु ीव क आंख भर आई और बा ल
क प नी तारा भी िवलाप करने लगी। इसके बाद बा ल का िव धवत स मान पूवक
अंितम सं कार िकया गया और सु ीव को िक कंधापुरी का सह स मान राजा बनाया
गया और बा ल के पु अंगद को युवराज।
वीर हनुमान
सीता क याद बार-बार राम को घेरकर याकु ल कर देती थी। ऐसे म ल मण राम को
सां वना िदया करते थे हनुमान राम के िवयोग से पीिड़त थे राम का क उनसे देखा
नह जाता था राम के ित उनके दय म असीम ा व अपन व था।
वषा ऋतु ख म हो गई। हनुमान ने सु ीव के पास जाकर उसे अपने कत य एवं वचन
क याद िदलाई। सु ीव ने भी हनुमान को यह िव वास िदलाया िक वह अपने वचन
को भूला नह है। तब सु ीव ने अपनी पूरी सेना के साथ राम के ार पर जाने का
िन चय लया। राम के पास पहच
ं कर सु ीव ने हाथ जोड़कर िवनती क ।
हे भु म सारी तैया रयां करके आया हं अब सीता माता क खोज का काम शु होने
म िवलंब हम िब कु ल नह करगे।
राम को हनुमान क यो यता पर पूरा भरोसा था। राम ने एक अंगूठी हनुमान को देते
हए कहा।
सुनो कपीस, यह अंगूठी म मेरा नाम अंिकत है अगर तु ह कह सीता िमल जाए तो
उसे पहचान के लए अंगूठी दे देना तािक उसे तुम पर कोई शक ना हो।
हे वानर , मने तु हारे मुख से रावण का नाम सुना। रावण ने बड़ी िनममता से मेरे भाई
जटायु को मार डाला था और म अपने भाई क मौत का बदला लेना चाहता था िकंतु
बहत बूढ़ा होने के कारण म रावण से लड़ने म असमथ ह।ं म तु हारी मदद अव य
क ं गा। सुनो रावण इसी माग से एक पवती नारी को हर ले गया था जो बार-बार
बड़ी क णा से हे राम हे ल मण पुकार रही थी। िनःसंदेह वे माता सीता ही ह गी और
वह कह और नह लंका म ही है जो यहां से चार सौ कोस दरू समु के पास थत है।
वह रा सराज रावण का रा य है बस िकसी तरह समु को पार कर सीता का पता
लगाया जा सकता है।
हे सीता माता। म राम का दतू हं वे आपको खोजते खोजते वानर राज सु ीव के पास
पहच
ं े ह। हम उ ह क आ ा से आपको खोजते िफर रहे थे तब मुझे जटायु के भाई ने
आपका पता िदया। म अथाह समु को लांघते हए लंकापुरी पहच
ं ा ह।ं
तु हारा संदेश सही है वानर। म राम क सीता ही हं और रावण मुझे यहां जबरद ती
उठा लाया है। पर तुम कौन हो, कह तुम कोई मायावी तो नह । य िक इससे पहले
भी मायावी मृग ारा मुझे धोखा िमल चुका है।
हनुमान बोले, हे माता मुझ पर तिनक भी संदेह न कर म िनःसंदेह राम का दतू ही ह।ं
मेरा नाम हनुमान है।
सीता को िव वास िदलाने के लए हनुमान ने वह अंगूठी सीता को िदखाते हए कहा
हे पवनपु , अब मुझे पूण िव वास हो गया है िक तु हे राम ने ही मेरे पास भेजा है।
यह लो पवन पु , यह मेरी िनशानी राम को दे देना। इसे देखकर राम तुरंत समझ
जाएंगे िक तुम मुझसे िमल चुके हो। उनसे कहना िक सीता के अपमान का बदला
ज दी आ कर ले।
हनुमान बोले ऐसा ही होगा माता। िफर हनुमान िवदा हए।
लंका से िनकलने से पहले हनुमान ने सोचा जरा लंका क साम रक थित भी समझ
लेनी चािहए और रावण क सेना एवं उनके अ -श के भंडार के बारे म भी
जानकारी ले लेनी चािहए। िफर या, हनुमान ने अशोक वािटका म तहस-नहस करना
शु िकया। अशोक वािटका के बड़े बड़े पेड़ को झकझोर कर भूिमसाध कर िदया।
रं ग िबरं गे फूल के सम त पौध को उखाड़ फका और जानबूझकर वािटका के मु य
ार पर खड़े हो गए तािक रावण के रा स उ ह िगर तार करने आए।
रावण का यि व देख हनुमान भी बहत भािवत हए। सुगिठत देह, िवशाल कंध,
बड़ी बड़ी तीखी आंख, भ य चेहरा इतना बलशाली आकषक राजा लेिकन िफर भी
इतना ू र एवं अ यायी हो सकता है हनुमान को यह िव वास नह हआ। रावण गरज
कर बोला।
अरे वानर तू कौन है िकसने भेजा है तुझे और अशोक वािटका म तूने सीता से या
बात क ।
रावण ने सोचा िफर बोला, ठीक है िवभीषण, म इसक जान नह लूंगा लेिकन इसके
िकए क सजा अव य दग
ं ू ा। इस वानर क पूछ
ं म आग लगा दो जब यह जली हई पूछ
लेकर िक कंधा पहच
ं ेगा तो इसका खूब मजाक उड़ेगा और यह आजीवन अपने इस
कु कृ य को याद कर पछताएगा।
हे लंकेश म तो कहग
ं ा जो कु छ कर सोच समझ कर कर एक ही वानर ने लंका क
जो दगु ित बना दी उससे हम सबक हा सल करना चािहए। सीता को वापस भेज दी जए
वरना राम क सेना लंका को तहस-नहस कर देगी। आप सीता को स मान पूवक यहां
से राम को लौटा दी जए राजन इसी म हमारी, आपक और लंका वा सय क भलाई
है। राम के शौय को कौन नह जानता है लंकेश। इन दरबा रय क बात मत सुनो राम
से माफ मांग लो और सीता को स प दो।
इस पर मेघनाद कसमसाया वह भी अपने िपता रावण क भांित दंभी था। उसने उपे ा
से कहा।
हे राम मेरा नाम िवभीषण है और म लंका नरे श रावण का छोटा भाई ह।ं
अधिमय का िवनाश भु। रावण ा से अमरता का वर पाकर दंभी हो गया है। मुझे
रावण क शि का पूरा ान है। रावण का भाई कुं भकरण, पु मेघनाद, सेनापित व
मं ी आिद भी अ यंत बलशाली है। म चाहता हं िक आप उसका िवनाश कर लंका को
बचाएं और इस काय म जो कु छ हो सकेगा म आपक सहायता अव य क ं गा।
रावण भला यह य सहने वाला था। उसने अपने रा स को अंगद को िगर तार
करने का आदेश िदया परं तु कोई भी अंगद का पैर तक नह िहला सका। अंगद ने
रा स सैिनक को एक ही हार म दरू कर िदया और वयं एक ऊंचे थान पर चढ़
बैठा जो रावण से संहासन से भी ऊंचा था। रावण के रा स सैिनक म अंगद को बहत
पकड़ने क कोिशश क लेिकन वह हाथ नह आया और वहां से िनकल राम के पास
जा पहच
ं ा।
राम के बाण से रा स चुन चुन कर धराशाई होते जा रहे थे।परं तु रावण पु इं जीत
ने धनुष से नागपाश छोड़ी जससे राम व ल मण दोन अचेत हो गए परं तु तभी
आकाश से ग ड़ िवनता का यान उतरा और उसने राम ल मण का पश िकया।
पलक झपकते ही वे होश म आ गए और वानर सेना का उ साह दोबारा लौट आया।
राम के स का बांध टू ट चुका था। तब राम ने घातक बाण से कुं भकरण पर हार
िकया इससे कुं भकरण का िवशाल लोह कवच टू ट कर नीचे िगर गया। उ ह ने धनुष
क यंचा ख चकर कुं भकरण पर बाण छोड़ िदए आ खर कुं भकरण कब तक इतने
बाण को झेल पाता। कुं भकरण का सर कट कर दरू जा िगरा और शरीर के भी
अनेक टु कड़े हो गए। रा स सेना म उसक मृ यु से मातम छा गया और सभी जगह
जय ीराम क जय-जयकार से गूज
ं उठा।
रावण को कुं भकरण पर बेहद भरोसा था उसक मौत का समाचार सुनते ही वह शोक
म डू ब गया। तब रावण ने नए सरे से यु क तैयारी शु कर दी उसने अपने कु छ
जीिवत पु पृ वीराज, देवांतक, नारांतक, अितकाय आिद को यु भूिम क ओर
रवाना िकया। रावण के यह सभी पु मारे गए। इनके अलावा ढेर सारे रा स भी राम
व ल मण के बाण के आगे िटक नह सके। तब रावण को मेघनाद क याद आई।
अब रावण को इसी पु पर िवजय क सारी आशाएं कि त थी। मेघनाद ने उसी समय
रथ सजाया और यु भूिम क ओर दौड़ पड़ा।
अंत म रावण ने तय िकया िक उसे वयं ही राम से ट कर लेने यु भूिम जाना होगा।
उसने वण रथ तैयार करने का आदेश िदया और रथ पर सवार होकर रण े म आ
पहच
ं ा। उसके साथ अनेक बलशाली रा स वीर और रा स सेना थी। रावण से पहले
मुकाबला करने ल मण और रावण ने बड़ी आसानी से ल मण के बाण को
नाकामयाब कर िदया और अपना यान राम पर कि त िकया।
राम व रावण म घनघोर यु िछड़ गया। रावण ने राम पर घातक वार छोड़ जनका
राम पर कोई भाव नह पड़ा। दोन ही यु क कला म िनपुण थे। एक िदन इं ने
अपना रथ राम के लए भेजा और सारथी मात ल भी। राम ने देव क भट वीकार
क और रथ पर सवार होकर रावण से यु रत हो गए। यह भीषण यु बारह िदन
तक चला। कभी राम रावण पर भारी पड़ते तो कभी रावण राम पर। राम ने अपने
बाण से रावण के अनेक बार दस सर धड़ से अलग िकए िकंतु राम का कोई अ
रावण को नह मार पा रहा था।
रावण ने मरने से पहले िवभीषण को राजनीित के अनेक गुर समझाएं और उसके बाद
अंितम सांस ली। अंत म समु तट पर रा स राज रावण का िव धवत अंितम सं कार
िकया गया। इस कार यु का अंत हो गया। राम ने लंका का राज िवभीषण को स प
िदया। िवभीषण का िव धवत रा यािभषेक हआ और रावण के बाद लंका के नए नरे श
िवभीषण बने।
िमलाप
राम वह ठहरे हए थे जहां लंका वेश के समय डेरा डाल रखा था। राम को सीता क
िचंता थी सीता अभी तक अशोक वािटका म ही थी। राम ने हनुमान से कहा
ठीक है, शी ही म उससे िमलूंगा। उनसे कहो नहा धोकर व नए व आभूषण धारण
कर िफर मेरे पास आए।
सीता हैरान थी िक यह राम का कैसा यवहार है। मेरे पास वयं न आकर मुझे
बुलवाया और यहां मेरा खुलेआम दशन करवा रहे ह। सीता को यह पहेली समझ
नह आई। सीता ही नह ब क िकसी को भी राम का यह यवहार पसंद नह आया।
सीता धीमे कदम से राम के पास पहच
ं ी और जोर जोर से रो पड़ी। राम ने आगे
बढ़कर सीता को आ लंगन म लया और गंभीर वर म कहा।
मने कभी सोचा भी नह था िक एक िदन मुझे आपसे ऐसे वचन सुनने पड़गे। ऐसा
लांछन सुनकर मेरा िदल टू ट चुका है। यह कौन नह जानता िक रावण मुझे यहां बल
से उठा लाया था िफर आप मुझ पर शंका कर रहे ह।
ल मण भी एक तरफ अपना ोध पाल खड़े थे। उ ह भी वयं राम से ऐसे ही यवहार
क उ मीद न थी। सीता ने कहा
ि य, तुम पर मुझे कभी संदेह नह रहा, बस लोग ारा इस तरह क बात होने के डर
से मने तु हारी परी ा ली थी तािक भिव य म कभी िकसी को तुम पर शक न हो। या
म नह जानता िक तुम िकतनी पिव हो। यह मने तु हारे लए ही िकया है सीते। मेरे
वचन से तु ह जो क हआ उसका मुझे दख
ु है। सीता ध य हई। उसका सुहाग उसे
वापस िमल गया था।
राम का वनवास समा होने को था। राम को भरत क बड़ी िचंता थी न जाने भरत
अयो या म कैसा समय यतीत कर रहे ह गे। लंका म उनका काम समा हो गया था
और एक िदन उ ह ने िवभीषण से लंका से िवदा होने क अनुमित चाही। िवभीषण ने
उ ह पु पक िवमान स प िदया। राम, सीता, ल मण के अलावा सम त वानर पु पक
िवमान पर सवार हए और अयो या क ओर उड़ान भरी।
हनुमान को पहले ही अयो या भेज िदया तािक वे भरत को उनके आगमन क सूचना
दे द। इस कार सीता एवं राम का िमलाप होने के प चात उनका वनवास भी समा
हो चुका था और वे अयो या पहच
ं रहे थे।
अंत
अयो या म भरत बड़ी याकु लता से राम क ती ा कर रहे थे। उनका एक-एक िदन
राम के आने क बाट म यतीत हो जाता था। चौदह वष का वनवास पूण होने म एक
िदन शेष रह गया था। भरत यथाशी रा य क ज मेदारी राम को स प कर बरी होना
चाहते थे।
राम का आगमन हआ। पु पक िवमान नीचे उतरा, पूरा अयो या राम के जयघोष से
गूज
ं उठा। एक िदन शुभ मुहत िनकाला और राम को संहासन पर आसीन िकया गया।
राम ने रा य संभालते ही शासन क ओर िवशेष यान िदया। उनके रा य म बकरी
और संह एक घाट पर पानी पीते थे। सभी िनवासी एक दसरे
ू से िमल जुल कर रहते
थे, आपस म लड़ाई झगड़ा कोई नह करता था, दरु ाचार का तो नाम ही नह था, सभी
पाप कम ं क भावना से परे थे, सभी संप थे।
राम ने महिष वा मीिक से कहा अगर सीता िन पाप है तो य मंडप पर आकर माण
तुत कर जससे सभी अयो या िनवा सय और लोग म यह बात पहच
ं े क सीता
पित ता थी। दसरे
ू िदन ात काल य मंडप म सारा नगर उमड़ आया ।बड़े-बड़े ऋिष
तप वी भी पधारे । सभी सीता के दशन करना चाहते थे। थोड़ी देर म सर झुकाए सीता
महिष वा मीिक के साथ य मंडप म पहच
ं ी। यह सीता पहले वाली सीता तो न थी
िकंतु मुख मंडल पर स च र तक वैसा ही था। सीता ने य मंडप म पहच
ं कर धरती
माता से हाथ जोड़कर िनवेदन िकया।