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Ahimsa
Ahimsa
Ahimsa
अरव द
ं नगर, बांकुरा – प .ब. भारत
फोन: +९१-९४७४८६४६१३
स ााधिकार सुरक्षित
1
ॐ
के सन्दभा में
अह स
िं ा
चंदन सक
ु ु मार सेनगप्ु ता
2
प्रकाशकीय
अह स
िं ा परामो धममः|
अह स
िं ा के इस तत्व को म अपने जीवन
को सिंवारने े तु अह स
िं ा का स ारा ले
पीड़ाओिं से खद
ु को भली भािंतत अलग रखते
3
प्रश्न ैं जजसे सिंदर्भमत करने े तु जिंगी
के र्लए कुर्लतापूवक
म इस्तेमाल भी ककया
दे र ा ै |
4
इस र्ोधात्मक कायम के अिंतगमत
रूप ो सके |
वैसे तो अह स
िं ा ववर्य पर जारों
5
सच
ू ीपत्र
१. वस्तुजस्र्तत ७
२. प्रकृतत का प्रकोप १२
३. नुकसान और लाभ! १६
४. ककसका दोर्! २३
५. आपदा प्रबिंधन ३१
११. समपमर् ८६
6
स्तुस्स्थतत
सन्दर्भमत ो र ा ै | जब प ली बार
7
ी लोग इसके व्यापकत्व के बारे में अिंदाजा
भी बदलते जा र े ैं | इस बात की
प्रदर्मन एक सन
ु रा ब ाना र्मल गया |
र्सर्फम जब
ु ानी जिंग चल र ा र्ा, अब उन
भी र्ायद दे खा जा सकेगा |
8
चाह ए , य अभी भी तकम का ववर्य ै,
जागततक ह स
िं ा का पनपना भी पररलक्षक्षत
ो र ा ै | एक ऐसी पररजस्र्तत का
तनमामर् ो र ा ै ज ाँ मानवतावादी
म त्वाकािंक्षी सझ
ु ावों पर भी व ी सिंकट
भख
ू और ग़रीबी से मक्
ु त ववश्व का सपना
10
उस सपने से खद
ु को ओतप्रोत करते र ने
भटक र े ैं |
11
प्रकृतत का प्रकोप !
का ी प्रकोप ै , तो प ला प्रश्न य ी
कुर्लता पूवक
म उपयोग में न ीिं ला पाए,
तर्ा दस
ू रों के प्रतत समुचचत सिंवेदनाओिं का
12
न ीिं ोना | आज अमेररका के लोग ज़्यादा
दे र् खद
ु को अलग रखकर सफलता की
जजम्मेदारी मारी ै |
कोरोना सिंिमर् को म एक
क्या म इस तनयिंत्रर् से खद
ु को अलग
खद
ु को मुक्त करते ु ए अग्रज की
14
भूर्मका में खद
ु को दे ख पाएगा ? अगर ाँ
तो कैसे ?
पररजस्र्तत जो भी ो , इतना तो
दस
ू रे से घुल र्मलकर सिंयुक्त रूप से न
बना चक
ु े ैं | उन् ें अब र्सर्फम एक ठोस
ोगा |
15
नुकसान और लाभ!
इस बात की चचाम खब
ू चल पड़ी ै
सबसे ज़्यादा नक
ु सान उठाना पड़ेगा, उन् ें
उन् ें ह स
िं ा, भूख, परे र्ानी आहद से भी
16
को ी कुछ स ायता रार्र् आसानी से र्मल
पास उत्पादन से जड़
ु े लोगों का तिंत्र अगर
के कारर् नक
ु सान उठाना पड़ेगा, अवपतु
17
ककसी भी घटना िम से र्सर्फम ातन
को नक
ु सान उठाना पड़ा, कई दे र् में
19
लाने े तु प्रेरर्ा र्मली, व्यापार जगत में
सुधारों से एक दस
ू रे को पररचचत कराया
गया | इस प्रकार से और भी कई मन
ु ार्फे
करता र ा | एक तर से प्रकृतत को
प्रदर्
ू र् के प्रकोप से मक्
ु त ोने के र्लए
पा र ा ै जब मारे कल कारखानों से
ै |
खद
ु के दे र् में ी म ामारी से जझ
ू र े ैं,
21
करने में लगा ै | उसे आचर्मक मिंदी के
ोनेवाला ै |
22
ककसका दोष!
23
सबके सब ककसी ख़ास दे र् से ी समग्र
24
सकेंगे | अगर दो समू ककसी ववर्ेर्
कारर् से एक दस
ू रे को मरने मारने पर
ु ए भी सबको भग
ु तना ोगा | सबसे
पास भी र्ायद ी ो |
26
व्यवस्र्ा ै | उस व्यवस्र्ा तक प ु ँ चने के
प ले ी एक बड़ी सिंख्या को भख
ु मरी का
दस
ू रा कारर् ै कक एक राज्य की सरकार
दस
ू रे राज्य पर जजम्मेदाररयाँ र्ोपने का
27
सिंिमर् के काल में भारतीय
28
ोगा | इस ववर्य से इतना तो स्पष्ट्ट ो
29
उनका असुरक्षक्षत र ना ी सबसे बड़ा
करते र े |
30
आपदा प्रबंिन
31
दश्ु मन का मुकाबला कर र े ैं | य
एक आम नागररक खद
ु को
32
सघन रूप से कायम कर पाने का एक
सन
ु रा मौका , जो कक कोरोना सिंिमर् के
मारे सम्मख
ु कई चन
ु ौततयों को एकसार्
आवश्यकता ै |
33
व्यवस्र्ा का पररचायक ै | इसके अभाव
34
सवोपरर अगर सिंवेदनाओिं को आधार
की भी ो , और चा े कोई भी राजनैततक
36
संघ से महासंघ तक का सफ़र
को बनते और बबखरते भी दे खा ै | इस
37
उसे र्मला र्लया जाएगा, या कफर पुराने
गट
ु या सिंप्रदाय का वचमस्व अन्य लोग
अनभ
ु व लेते ु ए मानव सभ्यता राजतिंत्र से
और अब सच
ू ना तिंत्र और प्रौद्योचगकी के
बल पर कियाजन्वत र ने के मिंत्र से
ह ताय सर्वजन सख
ू ाय” कोई समाधान सत्र
ू
नुकसान ु आ वो दस
ू रे ववश्व युि में ुए
नक
ु सान से क ीिं ज़्यादा ै , इस म ामारी
मख
ु ी दे र्ों के र्लए इस सिंकट से पार पाना
के तरु िं त बाद ी भख
ु मरी और बेरोजगारी
परोक्ष रूप से एक दस
ू रे पर तनभमर करने
लगे ैं, एक दस
ू रे की व्यवस्र्ा परस्पर के
बनाने पड़ेंगे |
एक दस
ू रे के किया कलापों से ोने
41
पररर्ाम क्या ोगा उसपर भी मिंर्न करने
43
दे र् में आकर चली भी गई | आरिं र्भक
45
बनाए रखने के र्लए र्सपा ी जान की
47
ोकर अपने घर की ओर भागने के र्लए
चगने चन
ु े कममचाररयों को सरु क्षक्षत रख पाना
ोगा |
49
सहभाधगता आिाररत लोकतंत्र
मौजद
ू ा पररजस्र्तत में अगर म
50
का अवसर दे ना ोगा | ककसी एक ोन ार
51
युगोपयोगी कदम उठाने का सत्सा स
हदखाएँ |
बन चक
ु ा ै , य ाँ तक कक ववरोध करने
लायक ताकत जट
ु ाने के र्लए बा री तत्वों
ै |
52
आसानी से सोच भी सकते ैं | सवाल
उल्टे तरफ से भी पछ
ू ा जा सकता ै,
मन
ु ार्सब समझा | जनता जनादम न द्वारा
54
इच्छार्जक्त द्वारा ी तनधामररत ोता र ता
ै |
55
सवोदय ववचारधारा में आस्र्ा रखनेवाले
से तनकलकर लोकसत्ता के बल से
ो सके |
57
र ा | अनेकोनेक कर्ा माला के जररए
इस र्भ
ु -अर्भ
ु सिंघर्म को तनरिं तरता प्रदान
उनके अनभ
ु व को पष्ट्ु ट करने लायक प्रजा
जीनेवालों की सिंख्या भी ब ु त ै |
58
सवम व्यापी सत्ता माना गया ै | उसमें
में पाते ैं |
59
चर्यार उठाना पड़ता ै, जरुरत पड़ने पर
चन
ु ौती का सामना करने े तु डटकर खड़ा
कतमव्यतनष्ट्ठा से और तत्परता सह त
60
वचमस्व प्रस्र्ावपत ोता ुआ में दे खना
ोगा |
अह स
िं क वजृ त्त में भी क्या पररवतमन
61
को दब
ु ारा परखना ोगा? सुववधाएँ प्राप्त
को पर्
ू तम ः समाप्त करने में स ायक तत्व
ै ? अनुभव य ी क ता ै कक ववनार्क
62
समाधान का दर्मन ो पाना र्ायद ी
सिंभव ो |
ी म त्वपर्
ू म स्र्ान र्मला ै | इसे
का सरलतापव
ू क
म त्याग कर सकें व ीीँ
अह स
िं ा कक प्रततष्ट्ठा ो चक
ु ी ै ऐसा मान
सकेंगे | अह स
िं ा का एक व्यापक स्वरुप
अह स
िं क भी ोता ै , अर्ामत सिंयम के
भीतर अह स
िं ा का बीजक ै | ककसी
63
ो जाना वरताव में सिंतोर् का ोना भी
व्यजक्त को अह स
िं क ोने कक प्रेरर्ा दे ता
स्वार्ी भाव से नक
ु सान में डालना पसिंद
न ीिं करें गे | एक ह स
िं ा के ववपरीत उससे
ोकर ह स
िं ा का स ारा लेने लग जाते ैं |
अह स
िं ा का अर्म र्सफम जीव को न ीिं
से न ीिं ै | अवपतु अह स
िं ा का एक व्यापक
64
उनके प्रतत यत्नर्ील ोने का तत्व ै |
ु आ भी हदखेगा |
अह स
िं ा मानव को मानव से बािंधने
कर सकते कक प्रततपक्ष कब अह स
िं क
65
सकते कक अह स
िं ा के तत्व को प्रततपक्ष
क्यिंकू क अह स
िं ा का मागम वीरों का मागम ै,
वास्तवोचचत ो सकता ै जब म
66
कताव्य बुवि और तत्परता
तक र ता ै | इन पररजस्र्ततयों को
67
मन पुलककत ोते ु ए उमा भवानी के सार्
68
सती ने सीता का रूप धारर् ककए उस
सिंकोचवर् चप
ु चाप ी सती र्र्वलोक में
से जड़
ु े सभी बातों का तो ज्ञान ो चक
ु ा
पर्
ू तम ः त्याग भी न ीिं कर सकते र्े | सती
लगे|
इस खर्
ु ी में दक्ष राजा एक यज्ञ का
71
जानेवाला ग़लती का ज्ञान ोते ी अपने
सम्मानपूवक
म उमा के जाने का इिंतजाम कर
दे त्याग कर हदया |
हदया जाए |
73
कर दे ने े तु र्र्व का तनर् ्चय भजक्त मागम
जब म ादे व ने य म सूस कर
कराया कक उन् ें खद
ु का अपमान जार
र्ा |
74
अष्ट्ट ससवि का दशान
जाएगा |
75
और अ म का त्याग कर हदया | समय
आने पर नम
ु ान जी सक्ष्
ू म रूप ले सकते
इस गर्
ु ों के कारर् कभी आत्मर्भमान भी
बुधकौर्र्क क ते ैं ---
ातात्मजं ानरयथ
ू मख्
ु यं श्रीरामदत
ू ं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
76
र्रर् लेता ू ँ। नुमान जी सरलता और
प ली मल
ु ाकात में नम्रता पव
ू क
म ी पेर् ु ए
र्लए क ते र े | य तो रावर् का
प्रततभार्सत ोता ै |
78
भक्त से सदै व समपमर् ी माँगते ैं |
करते ैं |
79
भस्तत मागा में बािक
जाते ैं …
सख
ु -दःु ख आहद के कारर्ों को स ी तरीके
80
न ोना भी अववद्या को ी प्रततभावर्त
करनेवाला ै |
ोता ै |
81
५| असभतन ेश- जीवन से प्रेम,
रखनेवाले मोह त जन खद
ु के र्रीर से
उसीको सिंवारते र ते ैं |
मान सकते ैं |
82
अिंर् में व्यजक्त चेतन को क्लेर् प ु ँ चाते
र ता ै | दरु ाचरर्, दभ
ु ामवना, दज
ु न
म ों से
प्रकार के ोंगे |
83
प्रमाद (योगाभ्यास, प्रार्ायाम, ध्यान,
84
जीवात्मा में कर सकते ैं | अगर ऐसा ी
85
समपाण
86
कािंक्षक्षत समय तर्ा तनधामररत पर् से
हदखने लगा, खद
ु को व्यवजस्र्त करते ुए
मायस
ू ी में कुछ चगने चन
ु े अन्न के दाने
87
और हदन भर के सिंग्र ों को छाँटने लगा |
हदया र्ा |
इस घटना से र्भक्षु और
88
हटके र ने के र्लए उसने अपने जीवन मिंत्र
को अग्रगन्य माना |
सवमर्जक्तमान के पास खद
ु को समवपमत
89
दातयत्व का पालन करे | उसे तो जीवन
प्रकिया से मक्
ु त ो पाने का मिंत्र भी
90
जिंगी सनक और उससे जुड़े दै वी
91
राज्य में मराठा वरगी घुस आए ैं तर्ा
लट
ू मचाते ु ए राजधानी ववष्ट्र्प
ु रू की ओर
या ह स
िं ा मिंजूर न ीिं र्ा | उन् ोंने मराठा
से वसल
ू ी करना ोगा | राज्य पर उन
सौंप चक
ु े र्े | अतः अब जो भी ोगा उसे
93
र्े| ककसी भी ालत में अखिंड कीतमन को
94
र्ा| अब तो राजा से करुर्ा की भीख र्मल
जाए तो ी ब ुत ै |
र्त्रप
ु क्ष परे र्ान र्े तो दस
ू रे तरफ
र ा र्ा |
95
भास्कर पिंडडत ने रातभर जो ववनार् लीला
से खर्
ु न ीिं ु ए, उन् ोंने दोनों सैतनकों को
ै व ाँ से बारूद की म क फैल र ी ै |
97
ोते ैं | उनपर भजक्त बनाए रखने वालों
दोनों ओर लग सकता ै |
पर उधार चक
ु ता ना करने का आरोप
लगाया | जज सा ब ने उस ककसान के
98
में ाजजर ोने के र्लए क ा | ग़रीब
चक
ु ा र्ा | उसने सरलता से सा ू कार पर
ककसान ने क ा कक जब वो सा ू कार को
जजसा ब ने उस रघन
ु ार्जी के नाम का
जो कक जट
ु ाकर लाना उस ककसान की
100
पुजारीजी ने भी उस पत्र को श्री रघुनार्जी
ककसान ने क ा , "रघन
ु ार्जी तो सवमत्र
बढ
ू ा आदमी ककसान के पक्ष में गवा ी दे ने
101
चला गया | सा ू कार के ह साब खाते में
ो गया|
102
रघुनार्जी के पैर के पास ी रखा र्ा |
इस घटना से जज सा ब
103
सोच ववचार करते र े की सरलता और
में एक मन ी दस
ू रे मन के तरिं गों से
ओतप्रोत ो सकता ै , एक मन ी दस
ू रे
104
ब्रह्म एक रूप अनेक
105
प्रत्यक्ष करते समय अक्सर व्यजक्त भ्रर्मत
ो जाता ै |
106
सुब से एक के बाद एक कई
107
बार आए | र बार उन् ें य ी लगता र्ा
म सूस कर र ा र्ा |
108
र ना ोगा | जीवन पर् का य ी पार्ेय
ोना चाह ए |
109
आत्मज्ञानी के र्लए जठराजग्न ब्रह्म का ी
अगर तनष्ट्ठापूवक
म तर्ा तनरिं तर अपने ईष्ट्ट
110
ऐश्वररक र्जक्त का साजन्नध्य म सूस कर
अनभ
ु व करनेवाला मन तो र्ि
ु चेतन
मागम बताएँगे |
112
ऋवर् माकमण्डेय को ब ु त ी कम
के सामने खद
ु म ादे व बाधक बन गये,
म ादे व की र्रर् ले चक
ु े र्े | म ादे व के
करते र े गा | व ीिं दस
ू री ओर भ्रर्मत
खद
ु को ववश्वास और श्रिा के धनी बना
सकेंगे|
114
भस्तत सम्मेलन
लगता ै|
115
उनको लगा की ईष्ट्ट दे वता को उसी मिंहदर
117
उपासना के र्लए सदै व पैसा चाह ए ऐसा
दे वता सा माँगा |
118
राष्ट्र भजक्त और ईष्ट्ट भजक्त के
ै|
119
अनेकोनेक उदा रर् अपने पररमिंडल में
121
आवश्यपालनीय का ववधान अपनाते ुए
122
राष्ट्रह त में काम करनेवाले कायमकताम का
न ीिं र ता ै | कायमकताम तो एक
123
म उस मागम पर ज्यादा से ज्यादा
सिंत ने अह स
िं ा को भली भािंतत समझा पाने
र े | अह स
िं ा का तत्व मानव सभ्यता के
प्रचलन से काफी प ले का तत ्व ै |
ऋवर्यों ने उसके सग
ु मता, सरलता,
सफलता पव
ू क
म अपने जीवन में उतार लें
लेना ोगा |
124
भारतीय दर्मन के कई पक्षों में
सक्ष्
ू मता के सार् इस व्रत के व्याव ाररक
अह स
िं ा का तत्व समान रूप से कारगर
125
स्फूर्त प्रकिया ै | उस प्रकिया से तालमेल
मागम ी चन
ु ना ोगा |
126
न ीिं ो सकता ै | समाज एक ऐसा चि
ोगा |
इस धरती पर कई बार
स्वाभाववक ी ै कक जब जब नैसचगमक
व्यवस्र्ा का सिंतल
ु न बबगड़ेगा तब तब
127
र्मल र ी ै | य सूचना तिंत्र का ी
में कुर्लतापव
ू क
म अिंर्भाचगता सतु नजश्चत
बन सकेगा | आज भी ववडिंबना य ी ै
मुख्य धारा से खद
ु को दरू रखा | .एकबार
128
झाड़खािंड के एक जजले में र्र्क्षा
129
उस ग्रामीर् का र्िंका ग़लत भी
अरमानों को मत
ू म ोता ु आ प्रत्यक्ष कर
सकेगा.
131
जंगी सनक या सनकी जंगबाज!
सल
ु गनेवाली माचचस की तीर्लयाँ ैं, र्सर्फम
132
और नाम जोड़े जा र े ैं, जजनपर अिंकुर्
चन
ु ौती से कम न ीिं समझना चाह ए |
कक र्त्रप
ु क्ष को ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान
ु आ की न ीिं |
133
ककसी लोकतिंत्र के द्वारा सिंचार्लत
134
में लोग ज़्यादा ववश्वास रखते ैं, ना कक
जाने में |
पररजस्र्तत से भी की जा सकती ै जब
पड़ा |
135
सिंघीय व्यवस्र्ा में दे र्ों का करीब आना
में खद
ु के कारनामों को पसारने में ज़्यादा
136
मैत्री का यग
ु
को एकजट
ु करके ककसी बा री र्त्रु का
ोगा |
137
गुरु र्र्ष्ट्य परिं परा में ककया जाने
ताकक अजुन
म के मन में पसरने वाले सभी
चक
ु े र्े, उनके भक्तों और सेवकों ने अपने
एक दस
ू रे से अचधकाचधक सघन करने के
139