Ahimsa

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प्रकाशक

श्री चंदन सुकुमार सेनगुप्ता

अरव द
ं नगर, बांकुरा – प .ब. भारत

फोन: +९१-९४७४८६४६१३

स ााधिकार सुरक्षित

प्रथम प्रकाश: फ़र री २०२०

संशोधित प्रकाशन : जुलाई २०२०

कुल प्रतत : ५०००

1

जंगी सनक और राष्ट्र ाद

के सन्दभा में

अह स
िं ा

चंदन सक
ु ु मार सेनगप्ु ता

2
प्रकाशकीय
अह स
िं ा परामो धममः|

इस तत्व को अगर म मान भी

लेते ैं तो प्रश्न य र जाता ै कक,

अह स
िं ा के इस तत्व को म अपने जीवन

में कैसे उतारें | क्या इस तत्व को पर्


ू तम ः

समझते ु ए जीवन में उतार पाना सिंभवपर

ो सकेगा? क्या म अपने धमामर्म जीवन

को सिंवारने े तु अह स
िं ा का स ारा ले

सकेंगे? क्या तमाम अड़चनों से, सभी

पीड़ाओिं से खद
ु को भली भािंतत अलग रखते

ुए म जीवन दर्मन के र्ाश्वत तत्व के

र स्य का उजागर कर सकेंगे? क्या में

व्या ाररक जीवन में अह स


िं ा का तत्व

स ायता कर सकेगा? और भी ऐसे कई

3
प्रश्न ैं जजसे सिंदर्भमत करने े तु जिंगी

सनक और राष्ट्रवाद के सन्दभम में अह स


िं ा

र्ीर्मक इस पुजस्तका का प्रारूप तनधामररत

ककया गया ै| आधतु नक ववश्व में

पररजस्र्तीिं तेजी से बदल र ी ै , सबको

अपने र्लए मौके तलार्ने का सुन रा

अवसर र्मला ुआ ै जो कक सजने सँवारने

के र्लए कुर्लतापूवक
म इस्तेमाल भी ककया

जा सकता ै | प्रततस्पधाम इस बात की भी

लगी ै कक कौन ककसे पछाड़कर र्ोड़ा आगे

तनकल सके | य सब बाजार केंहित अर्म

व्यवस्र्ा का ी दष्ट्ु पररर्ाम ै जो ववववध

जग ों पर ववववध रूप में सन्दर्भमत ो र ा

ै और ब ु आयामी पररर्ामों को जन्म भी

दे र ा ै |

4
इस र्ोधात्मक कायम के अिंतगमत

कुछ ऐसे पक्षों को सिंदर्भमत ककया जा र ा

ै जो मारे र्ाश्वत तत्वों को व्याव ाररक

जीवन के आलोक में समझने े तु मदद

रूप ो सके |

वैसे तो अह स
िं ा ववर्य पर जारों

पन्नों वाले व्याख्यान को उपस्र्ावपत ककया

जा सकता ै | पर ज्यादा कारगर कुछ

तत्वों को समझने े तु म अपनी चचाम

को कुछ ख़ास व्याव ाररक पक्षों तक ी

सीर्मत रखना ज्यादा उचचत समझेंगे|

श्री चंदन सुकुमार सेनगुप्ता

5
सच
ू ीपत्र

१. वस्तुजस्र्तत ७

२. प्रकृतत का प्रकोप १२

३. नुकसान और लाभ! १६

४. ककसका दोर्! २३

५. आपदा प्रबिंधन ३१

६. सिंघ से म ासिंघ ... ३७

७. स भाचगता आधाररत लोकतिंत्र ५०

८. कतमव्य बुवि और तत्परता ६७

९. अष्ट्ट र्सवि का दर्मन ७५

१०. भजक्त मागम में बाधक ८०

११. समपमर् ८६

१२. ब्रह्म एक रूप अनेक १०५

१३. भजक्त सम्मेलन ११५

१४. जिंगी सनक या सनकी जिंगबाज! १३२

१५. मैत्री का युग १३७

6
स्तुस्स्थतत

भारत के सार् सार् पूरा जगत

एक अनदे खे दश्ु मन से लड़ र ा ै | इतना

तो म जरूर क सकते ैं कक य कोई

प ला मौका न ीिं ै , पर अगर कोरोना

सिंकट के व्यापकत्व पर नजर डालें तो

अवश्य ी य एक गिंभीर पररर्ाम दे ने

वाला वैजश्वक सिंकट ै , जो परमार्ु बम के

कारर् ववर् ्व के मानचचत्र पर मिंडराने वाले

सिंकट से क ीिं ज़्यादा घातक और क ीिं

ज़्यादा ववनार्क साबबत ोता ुआ

सन्दर्भमत ो र ा ै | जब प ली बार

कोरोना के बारे में कुछ जानकाररयाँ चीन

के वू ान र् र से आने लगी तब र्ायद

7
ी लोग इसके व्यापकत्व के बारे में अिंदाजा

लगा पाए ोंगे | हदसिंबर के बाद से इस

वैजश्वक सिंकट का ववर्य तेजी से बदलने

लगा, उतने ी तेजी से अर्मनीतत,

समाजनीतत और राजनीतत के समीकरर्

भी बदलते जा र े ैं | इस बात की

आर्िंका भी जताई जा र ी ै की दतु नया के

र्जक्तर्ाली दे र्ों को अपने अपने र्जक्त

प्रदर्मन एक सन
ु रा ब ाना र्मल गया |

ववनार्क चर्यारों के बारे में आज तक

र्सर्फम जब
ु ानी जिंग चल र ा र्ा, अब उन

चर्यारों को जिंग के मैदान पर उतरते ुए

भी र्ायद दे खा जा सकेगा |

म ामारी फैलने के र्लए प्रत्यक्ष या

परोक्ष रूप से ककसे दोर्ी ठ राया जाना

8
चाह ए , य अभी भी तकम का ववर्य ै,

पर जमीनी कीकत को अगर दे खा जाए

तो म ामारी के जन्मदाता को ी इसका

प्रत्यक्ष कारक माना जाना चाह ए |

पररस्र्ततयाँ कुछ भी ो, अब तो पूरी

दतु नया का इस म ामारी के कराल ग्रास में

आ जाना एक भववतव्य ी ै | इस प्रकोप

से तनकल पाने के र्लए सभी समू अपने

अपने स्तर पर प्रयास कर र े ैं | सफलता

अगर र्मल भी र े ों तो कुछ ख़ास क ने

लायक न ीिं ै , अवपतु इस म ामारी के

सन्दभम में वैजश्वक अजस्र्रता और तनाव

का जन्म ोना भली भाँतत सन्दर्भमत ो

र ा ै | मौजूदा प्रस्तुतत में म उन सभी

पक्षों के ऊपर प्रकार् डालना चा ें गे जजसके

कारर् जागततक अजस्र्रता को बढावा र्मल


9
र ा ो, उस प्रकिया को भी सन्दर्भमत करें गे

जजसके कारर् तनाव से म सब मक्


ु त ो

सकेंगे | इस म ामारी के सन्दभम में एक

जागततक ह स
िं ा का पनपना भी पररलक्षक्षत

ो र ा ै | एक ऐसी पररजस्र्तत का

तनमामर् ो र ा ै ज ाँ मानवतावादी

ववचारों और मान्यताओिं पर सिंकट के बादल

मिंडराते नजर आ र े ैं| सिंयुक्त राष्ट्र के

म त्वाकािंक्षी सझ
ु ावों पर भी व ी सिंकट

मिंडराने लगे ैं, एक ऐसी पररजस्र्तत ज ाँ

भख
ू और ग़रीबी से मक्
ु त ववश्व का सपना

र्सर्फम एक सपना ी र ने वाला ै | इसकी

वववेचनाओिं, मान्यताओिं और प्रत्यक्षक्षकों पर

प्रश्नचचन् सा लग गया ै | म ामारी से

ग्रर्सत ववश्व के र्लए मिंदी से जूझते ुए

10
उस सपने से खद
ु को ओतप्रोत करते र ने

में भी समस्याएँ पैदा ोनेवाली ै |

दोर् ककसका ै और उसे क्या सजा

दे नी चाह ए , इस ववर्य पर ी चचाम करते

करते समय गुजरने वाला ै | म य भी

क सकते ैं कक सिंकटापन्न पररजस्र्तत से

उभरने के र्लए जो ववश्व स्तर की एकता

का दर्मन पनपना र्ा उससे म मीलों दरू

भटक र े ैं |

11
प्रकृतत का प्रकोप !

अगर र्ोड़े दे र के र्लए य मान भी

लें कक कोरोना सिंिमर् असल में प्रकृतत

का ी प्रकोप ै , तो प ला प्रश्न य ी

तनमामर् ोता ै कक इस प्रकोप से सिंसार

को बचाने के र्लए मारे पास पयामप्त

समय र्ा, कफर भी उस मौके को म

कुर्लता पूवक
म उपयोग में न ीिं ला पाए,

आरोप - प्रत्यारोप में उलझकर र गये,

इसका क्या कारर् ो सकता ै ? इसका

एकमात्र कारर् ै व्यजक्त और गोष्ट्ठी

स्वार्म से ग्रर्सत किया कलापों का ोना,

तर्ा दस
ू रों के प्रतत समुचचत सिंवेदनाओिं का

12
न ीिं ोना | आज अमेररका के लोग ज़्यादा

सिंकट का सामना कर र े ैं | अगर म

इसे सिंवेदना रह त ोकर दे खने लग जाएँ

तो अप्रत्यक्ष रूप से इसका प्रकोप झेलने के

र्लए में भी तैयार र ना ोगा | आज के

ववश्व व्यापार की सिंरचना में कोई भी एक

दे र् खद
ु को अलग रखकर सफलता की

रा पर न ीिं चल सकता | प्रकृतत का

प्रकोप अगर आया भी ोगा तो सजम्मर्लत

रूप से उसका मुकाबला करने में ी मारी

बवु िमानी सवममान्य ो, में सभी पव


ू ामग्र ों

से मुक्त ोते ु ए एक साझी रर्नीतत के

अिंतगमत सकिय ोना ोगा | य ी

सजम्मर्लत प्रगतत का मागम ोने के सार्

सार् सवमसमावेर्क सम्यकत्व से पुष्ट्ट एक

उपाय ो सकता ै , ऐसा समझते ुए


13
सा र्सकता के सार् इसपर चल पड़ने की

जजम्मेदारी मारी ै |

कोरोना सिंिमर् को म एक

नैसचगमक तनयिंत्रर् के रूप में भी मान सकते

ैं , जजसके द्वारा िमर्ः बढते ु ए मानव

जनसिंख्या पर एक स्वाभाववक तनयिंत्रर्

स्र्ावपत ोता ु आ प्रततभार्सत ो र ा ै|

क्या म इस तनयिंत्रर् से खद
ु को अलग

कर पाएँगे? क्या अन्य जिंतओ


ु िं की भाँतत

में भी कोरोना के तनयिंत्रर् में ी र ना

ोगा ? क्या कोरोना ी मानव तनर्ममत

चचककत्सकीय प्रर्ाली पर सीधा प्र ार ै ?

क्या ववश्व पररवार इस गिंभीर सिंकट से

खद
ु को मुक्त करते ु ए अग्रज की

14
भूर्मका में खद
ु को दे ख पाएगा ? अगर ाँ

तो कैसे ?

पररजस्र्तत जो भी ो , इतना तो

स्पष्ट्ट ै कक समाज और सिंप्रदाय पर पैसों

का तनयिंत्रर् और चर्यार का वचमस्व अब

झूठा साबबत ो र ा ै , अब तो लोग एक

दस
ू रे से घुल र्मलकर सिंयुक्त रूप से न

हदखने वाले दश्ु मन से लड़ने के र्लए मन

बना चक
ु े ैं | उन् ें अब र्सर्फम एक ठोस

नीतत तनदे र्क तत्व के र्लए इिंतजार करना

पड़ेगा, इतना ी न ीिं उस तत्व को अमल

में ला पाने के र्लए भी प्रयत्नर्ील ोना

ोगा |

15
नुकसान और लाभ!

इस बात की चचाम खब
ू चल पड़ी ै

की दतु नया में सभी दे र्ों को कोरोना

सिंिमर् के चलते कार्फी नुकसान उठाना

पड़ र ा ै | इस ववर्य को अगर अचधक

सूक्ष्मता से दे खें तो उत्पादन और सेवा के

क्षेत्र में लगे ु ए असिंगहठत लोगों को ी

सबसे ज़्यादा नक
ु सान उठाना पड़ेगा, उन् ें

ी आपदा के कारर् अपने रोजगार से ार्

धोने की नौबत सी आ गई | भारत में भी

में इसका नजारा हद ाड़ी मजदरू ों के

पलायन के रूप में हदखा | कई जग ों पर

उन् ें ह स
िं ा, भूख, परे र्ानी आहद से भी

गुजरना पड़ा | सरकारी तिंत्र में दजम लोगों

16
को ी कुछ स ायता रार्र् आसानी से र्मल

पाने की उम्मीद ै , और एक बड़ा अनपढ

समू उन सभी सुववधाओिं से विंचचत सा ी

र ने वाला ै | मध्यम और छोटे व्यापारी

भी व्यवसाय चि टूटने से नुकसान झेलने

के र्लए मजबूर से ो र े ैं | उन् ें कुछ

ठोस स यता रार्र् अगर र्मल भी गई ों

तो उससे ज़्यादा कुछ रा त र्मलना सिंभव

न ीिं ै| उनका व्यवसाय पटरी पर आने से

प ले तक समस्याएँ बनी र े गी | उनके

पास उत्पादन से जड़
ु े लोगों का तिंत्र अगर

र े भी ों तो बाजार का सकिय न ीिं ोने

के कारर् नक
ु सान उठाना पड़ेगा, अवपतु

एक अतनश्चयता से भी गुजरना पड़ेगा |

17
ककसी भी घटना िम से र्सर्फम ातन

ी ातन ोते ों, कोई लाभ न ोता ो

ऐसा मान लेना समाज दर्मन के अनुकूल

ववचार न ीिं ो सकता | कोरोना सिंिमर् के

कारर् वैजश्वक म ामारी का सन्दभम भी

कुछ ऐसा ी ातन और लाभ के तराजू में

समतोल दर्ामता ै | कोरोना सिंिमर् से

लाखों लोग जान गँवा बैठे, अरबों लोगों

को नक
ु सान उठाना पड़ा, कई दे र् में

आचर्मक मिंदी जैसे ालात बन गये, लोगों

का रोजगार तछन गया, ककसान और

मजदरू एक अतनजश्चत जीवन को अपनाने

के र्लए वाध्य ो गये, अिंतरराष्ट्रीय

सीमाओिं पर तना - तनी की जस्र्तत बन

गई, आतिंक और अजस्र्रता का बादल दे र्

की सीमाओिं में भी घूमने लगा, रिं गभेद -


18
जातत भेद आहद अवगुर्ों को लोग

अचधकाचधक याद करने लगे और र क्षेत्र

में आचर्मक तिंगी से दे र् को गुजरना पड़ा |

नुकसानों को चगनते र ें तो र्ायद

सूची लिंबी ो जाए | इसके ववपरीत कुछ

ऐसे भी वगम ैं जजन् ें इस म ामारी के

सन्दभम में कुछ लाभ भी ु आ| जागततक

स्तर पर सभी लोगों को चचककत्सक और

चचककत्सा कर्ममयों के योगदान से पररचचत

ोने का मौका र्मला, आपसी भेद भल


ू कर

सजम्मर्लत रूप से आपदा प्रबिंधन में लगने

का मौका र्मला, स्र्ातनक उत्पादों पर

ध्यान हटकते ु ए पररयोजना प्रारूप तैयार

करने की और उसी योजना को अमल में

19
लाने े तु प्रेरर्ा र्मली, व्यापार जगत में

अपनी प चान बनाने और तत्परता हदखाने

का एक सुन रा मौका सबको र्मला,

चचककत्सकीय प्रबिंधन के क्षेत्र में कार्फी

सुधार ककए जाने लगे, नई प्रकियाओिं को

तर्ा तनदान तिंत्रों को आजमाने े तु

आवश्यक सुधार भी ोने लगे और उन

सुधारों से एक दस
ू रे को पररचचत कराया

गया | इस प्रकार से और भी कई मन
ु ार्फे

चगनाए जा सकते ैं जो कक में

अचधकाचधक बलर्ाली बनाने का काम

करता र ा | एक तर से प्रकृतत को

प्रदर्
ू र् के प्रकोप से मक्
ु त ोने के र्लए

समय र्मल गया | प्रकृतत के रूप रिं ग में

भी तनखार आने लगा | अचधकाचधक दे र्ों

में नाकेबिंदी के चलते प्रदर्


ू कों का प्रमार्
20
कार्फी मात्रा में घटा, इसका नतीजा ै कक

म तनसगम को उसके स्वाभाववक रिं ग रूप

में दे ख सके | इतना ी न ीिं मौसम में भी

कुछ बदलाव पररलक्षक्षत ुआ | य तभी ो

पा र ा ै जब मारे कल कारखानों से

ज रीले पदार्ों का तनकलना कुछ कम ु आ

ै |

दक्षक्षर् चीन सागर में मोचाम खोलने

के र्लए चीन और सार्ी दे र्ों को मौका

र्मला | उसे बाधा दे ने वाले जिंगी बेड़े अभी

खद
ु के दे र् में ी म ामारी से जझ
ू र े ैं,

अतः सुन रा मौका चीन अपने ार् से

जाने दे ना न ीिं चा े गा | जब पूरा ववश्व

सिंिमर् से जूझ र ा ै उस समय चीन

अपने नये व्यापाररक प लुओिं को उजागर

21
करने में लगा ै | उसे आचर्मक मिंदी के

रास्ते ववश्व व्यापार में ह स्सेदारी बढाने

े तु अनुप्रवेर् पाने का एक सुन रा मौका

हदखने लगा ै | मिंदी में चलने वाले

उद्योगों को खरीदने के र्लए चीन अपना

पैसा लगाने के रास्ते तलार्ने लगा | तीसरे

ववश्व के दे र् भी उसके नजर से बचने वाले

न ीिं ैं | अमेररका और योरोप की कमजोरी

का सीधा लाभ चीन जैसे दे र्ों को ी

ोनेवाला ै |

22
ककसका दोष!

स ी माने में अगर म दोर्

तनकालने लगें तो उसमें ककसी न ककसी

रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सबका

नाम दजम ो जाएगा| कुछ दे र के र्लए

अगर मान भी लें कक ककसी ख़ास दे र् या

समू ने ववर्ार्ु के सिंिमर् को जान

बूझकर फैलने हदया और मौके र्मलने के

र्लए इिंतजार करता र ा ताकक दतु नया के

परे र्ानी का लाभ उठाते ु ए व्यापार जगत

में अपना वचमस्व कायम ककया जा सके, तो

एक अ म प्रश्न य तनकलकर आता ै कक

अन्य दे र्ों की ऐसी क्या कमजोरी ै कक वे

23
सबके सब ककसी ख़ास दे र् से ी समग्र

व्यापार का सिंबिंध बनाने लग जाते ैं ?

ऐसी कौन सी मजबूरी ै जजसके कारर्

ज़्यादातर रोजगारी ककसी ख़ास दे र् और

ककसी ख़ास समू को ी चन


ु लेते ैं ?

ककसी सिंिमर् के अिंजाम

तक प ु ँ चाने में लापरवा ी दोनों तरफ ो

सकते ैं, सिंिामक और सिंिर्मत लोगों का

ररश्ता इतना स्वच्छ ै की लोग इसका

आकलन बड़ी आसानी से लगा लेते ैं |

जजसने सिंिमर् को फैलने हदया और

दतु नया को इसकी जानकारी वक् त र ते

न ीिं हदया , उनका भी कसूर उतना ी

प्रबल ै जजतना प्रबल सिंिमर् का | य

“आ बैल मुझे मार” वाली पररजस्र्तत मान

24
सकेंगे | अगर दो समू ककसी ववर्ेर्

कारर् से एक दस
ू रे को मरने मारने पर

उतर आएँ तो भी इसका अिंजाम न चा ते

ु ए भी सबको भग
ु तना ोगा | सबसे

भयानक और डरावना चचत्र अभी जो मारे

सामने आया ै व हद ाड़ी और प्रवासी

मजदरू ों के रोजगार तछन जाने के प्रकोप के

रूप में दे खा जाएगा | ककसी सिंिमर् से

र्ायद कुछ लोग मरते भी ोंगे, पर उसके

प ले ी भूख और तकलीर्फ से तर्ा अन्य

ककसी ादसे का र्र्कार ोकर कार्फी लोग

दम तोड़ दें गे | उनपर तनभमरर्ील पररवार

का क्या ोगा य तो म बड़ी आसानी से

ी अिंदाज लगा सकेंगे | मजदरू ों को र्सर्फम

इस अपराध की सजा र्मल र ी ै की

उनकी ब ाली का कोई सुरक्षीतता का


25
दायरा न ीिं र्ा, अतः उन् ें कभी भी काम

पर रखा जा सकेगा, कफर कभी भी काम से

तनकाला जा सकेगा | जजन् ोंने मजदरू ों को

कामपर रखा और आपदा की जस्र्तत में

काम से तनकाल हदया उनको भी इस बात

की ग्लातन जरूर सता र ी ोगी कक जाने

अिंजाने में उन् ोंने मजदरू ों को भगवान

भरोसे छोड़ा | अकेले भारत में ी रोजगार

से ार् धोने वाले मजदरू ों की सिंख्या करीब

तीस करोड़ की ै | इसका सटीक और

स्वीकार कर पाने लायक आँकड़ा सरकार के

पास भी र्ायद ी ो |

आपदा की जस्र्तत में प्रर्ासन दावा

कर र ी ै की हद ाड़ी मजदरू ों के र्लए

उनके पास त्रार् सामग्री, रोजगार आहद की

26
व्यवस्र्ा ै | उस व्यवस्र्ा तक प ु ँ चने के

प ले ी एक बड़ी सिंख्या को भख
ु मरी का

र्र्कार ोना ोगा | मजदरू ों का अनपढ

ोना तर्ा जागरूक न ोना इसका एक

मुख्य कारर् माना जा सकता ै | सरकार

की अपनी भी सीमाएँ ैं | अकेले गुजरात

की बात ी अगर कर लें तो व ाँ कायमरत

सत्तर लाख मजदरू ों के र्लए कुछ भी

कारगर उपाय त्वररत न ीिं कर पाएँगे |

दस
ू रा कारर् ै कक एक राज्य की सरकार

दस
ू रे राज्य पर जजम्मेदाररयाँ र्ोपने का

प्रयास करे गी | राजनीतत का भी र्र्कार

हद ाड़ी मजदरू ों को ी माना जाएगा |

27
सिंिमर् के काल में भारतीय

अर्मनीतत की ववकास दरें र्ून्य से भी नीचे

जाने का अनुमान ै | व्यवस्र्ा करते

समय सरकारी तिंत्र के पास हद ाड़ी मजदरू ों

से जुड़े ववर्यों का कोई स्पष्ट्ट आकलन

र्ा ी न ीिं | अभी भी अगर पजश्चम बिंगाल

सरकार से पूछा जाए कक ककतने हद ाड़ी

श्रर्मकों को बिंगाल वापस लाना ै , तो

उनके पास कोई आकलन ै ी न ीिं | र्सर्फम

आरोप प्रत्यारोप के िम में र्भड़े

अचधकाररयों से ी में सिंतोर् कर लेना

28
ोगा | इस ववर्य से इतना तो स्पष्ट्ट ो

ी र ा ै कक सरकारी तिंत्र में सिंवेदनाओिं

का भरा पूरा अभाव ै | उन् ें कागजी घोड़ा

दौड़ाने का प्रर्र्क्षर् र्मला , और व ी कर

भी र े ैं | अपने लोकतािंबत्रक ढाँचे में म

सिंवेदन ीन सरकारी तिंत्र से ज़्यादा कुछ

उम्मीद भी न ीिं रख सकते |

जो मजदरू रास्ते पर चलने के र्लए

मजबरू ो गये, औरिं गावाद के पास रे ल

पटरी पर रात गुजारते समय ादसे का

र्र्कार ो गये, कइयों को तेज रफ़्तार से

आने वाली गाड़ी ने ठोकर मारा, कइयों के

पैर में छाले पड़े, कुछ एक भूख और

तकलीर्फ से दम तोड़े और कइयों को

उपिवी तत्वों के ार् बर्ल ोना पड़ा ,

29
उनका असुरक्षक्षत र ना ी सबसे बड़ा

अपराध र्ा | म ामारी के कराल ग्रास में

ग्रर्सत ोने वाले इन सभी मजदरू ों के मन

में सरकार और व्यवस्र्ा के प्रतत ववश्वास

न ोने के कारर् सभी घटनाएँ त्वररत

सन्दर्भमत ोते चला | जब खद


ु के पास

का जमा पूिंजी ख़त्म ोने लगा तब वे सब

घर की ओर तनकल पड़े | कुछ लोग

जोखखम भरा सर्फर करने के र्लए प्रयास

करते र े |

30
आपदा प्रबंिन

म ामारी की पररजस्र्तत में दोर्

दे ना और दोर्ारोपर् का ह साब ककताब

करना दोनों पक्षों के र्लए समरूप घातक

र्सि ोगा | ककसी ख़ास वगम के खखलाफ

झिंडा उँ चा कर लेने से म सिंिमर् मुक्त

ववश्व की कल्पना भी न ीिं कर सकते |

आज ववश्व में कोरोना सिंिमर् े तु तनदान

तिंत्र, और्चध, चचककत्सा प्रर्ाली आहद

तलार्ने में लोग लगे ुए ैं, उनके पास

सबसे स योग र्मलने की उम्मीद भी ै |

इस पररजस्र्तत में सभी जन जजतनी

सघनता से कायमरत र ें गे उतने ी अच्छे

पररर्ाम का दर्मन ो सकेगा | य एक

ऐसी अवचध ै जब म एक न हदखने वाले

31
दश्ु मन का मुकाबला कर र े ैं | य

दश्ु मन एक लिंबी अवचध के र्लए मारे बीच

र ने वाला ै , अतः जाह र सी बात ै कक

में इसके सार् ी र ना सीखना ोगा |

एक आम नागररक खद
ु को

सिंिर्मत ोने से बचाने के र्लए सामाजजक

दरू ी बनाकर रखते ु ए कायमरत र ें , ववर्ेर्

जजम्मेदारी में लगे लोग अपनी

जजम्मेदाररयों का तनवाम कुर्लता पव


ू क

करें , अलगाव का लाभ उठाने वाले तत्वों

को प चानते ुए ऐसे ववघटनकारी तत्वों

को समाज के चि से अलग रखने का

प्रयास ो, दे र् के नागररकों को अपने

अपने धार्ममक, राजनीततक, सामाजजक तर्ा

आचर्मक भेद को भूलना ोगा | अचधकाचधक

32
सघन रूप से कायम कर पाने का एक

सन
ु रा मौका , जो कक कोरोना सिंिमर् के

मध्यम से आपदा के रूप में आया ै,

मारे सम्मख
ु कई चन
ु ौततयों को एकसार्

रख हदया | में अपने सूक्ष्म बुवि से

आपदा प्रबिंधन के कौर्लों में लचीलापन

रखते ु ए अनदे खे र्त्रु को प चानना ोगा

और उचचत उपायों और योजनाओिं पर

अमल करना ोगा | इस िम में कोई एक

लापरवा ी पूरी व्यवस्र्ा और समग्र प्रबिंधन

को ववफल कर दे गा | व्यवस्र्ा में लगे

लोगों को और ज़्यादा सिंवेदनर्ील ोने की

आवश्यकता ै |

सिंवेदना ी राष्ट्रीयता और समन्वय

का मानक ोने के सार् सार् उत्तम

33
व्यवस्र्ा का पररचायक ै | इसके अभाव

से ककसी भी राष्ट्र और सिंप्रदाय के र्लए

सिंकटापन्न जस्र्तत में आ जाना एक

भववतव्य मान लेना अनचु चत न ोगा | म

इस बात से भी इनकार न ीिं कर सकते कक

सिंवेदना रह त किया कलाप ह स


िं ा से ग्रर्सत

ो सकता ै | ऐसी पररजस्र्तत में

सिंवेदनाओिं को अगर राष्ट्रीय किया कलाप

का ह स्सा बनाना भी चा ें तो उसका

मानक कौन कौन से ोंगे? ककसके प्रतत

सिंवेदनाओिं को बनाए रखने की बात क ी

जाएगी ? सिंवेदनाओिं का दृजष्ट्टगोचर पक्ष

कौन कौन से ोंगे ?

34
सवोपरर अगर सिंवेदनाओिं को आधार

मानकर राष्ट्र रचना की कल्पना म कर

लें तो मजदरू ों को बेघर ोकर रास्ते पर

तनकालने की नौबत ी न ीिं आती | दस


ू रे

चरर् में अगर मजदरू अपने कममस्र्ल से

तनकलकर अगर घर की ओर चल भी पड़े

ोंगे तो उन् ें रास्ते पर ी उचचत स योग

र्मल जाता | सिंवेदना की कमी और

सिंवेदनाओिं का न ीिं ोने का ी नतीजा

हद ाड़ी मजदरू ों के रूप में मारे सम्मुख

सन्दर्भमत ोने लगा | सरकार चा े ककसी

की भी ो , और चा े कोई भी राजनैततक

दल उसका मखु खया ो , सबके सब

सिंवेदन ीन ोने के कारर् उनपर मजदरू ों

का भरोसा न ीिं र ा | भूखे प्यासे मजदरू ों

के पास स यता सामग्री प ु ँ च पाने के मागम


35
में भी कई बाधाएँ और र्सयासत हदखने

लगे | आपसी खीिंच तान के इस िम में

समन्वय और सम्प्रीतत से बनने वाले काम

बबगड़ते चले गये | व्यवस्र्ा में जड़


ु े लोगों

को प्रत्यक् र् रूप से जनता के आिोर्ों का

भी सामना करना पड़ा |

36
संघ से महासंघ तक का सफ़र

मानवता का पररपोर्क और उसके

ववपरीत , मागम पर चल पड़ने के आधार

को तनयामक मानकर ववर् ्व को म दो

धरू ी में बँट जाते ु ए भी अब दे ख सकेंगे |

सिंवेदनाओिं को आधार मानकर सिंघों के

सम्मेलन से ी मानवता का पररपोर्क और

पररचालक म ासिंघ भी बनेगा | उस ओर

सिंघीय ढाँचों के मुखखया प ल कर भी चक


ु े

ैं | वपछले र्ताब्दी में मने दो म ा सिंघों

को बनते और बबखरते भी दे खा ै | इस

र्ताब्दी में भी उससे क ीिं बलर्ाली एक

म ासिंघ का तनमामर् ोगा और पुराने

सिंघीय वतावस्र्ा में कुछ फेर बदल करके

37
उसे र्मला र्लया जाएगा, या कफर पुराने

सिंघ को परू ी तर से नष्ट्ट करके नये

म ासिंघ की रूपरे खा को प्रस्ताववत कर

हदया जाएगा | कोई भी सिंघ जब जनता

जनादम न के अरमानों और आकािंक्षाओिं पर

खरा न ीिं उतर पाते ों तो उसका य ी

पररर्ाम ोना एक भववतव्य मानना ोगा |

अब वैसा समय न ीिं र ा कक ककसी एक

गट
ु या सिंप्रदाय का वचमस्व अन्य लोग

आसानी से स्वीकार कर लें | सबके मतों

को पष्ट्ु ट करते ु ए प्रततभाचगता आधाररत

व्यवस्र्ा के जररए ी सिंघीय ढाँचों को

ज़्यादा से ज़्यादा बल र्मलेगा | इस ढाँचे

से अलग ोकर कोई भी व्यवस्र्ा ज़्यादा

कारगर र्सि न ीिं ो सकती, न ी उसे

ऐसा ोने दे ने की जरूरत ै |


38
सिंघीय व्यवस्र्ा के कई रिं ग रूप का

अनभ
ु व लेते ु ए मानव सभ्यता राजतिंत्र से

सामिंत तिंत्र के रास्ते लोकतिंत्र और

समाजतिंत्र की ओर बढे चला ै | गरु


र्र्ष्ट्य परिं परा का दर्मर् रामायर् में दजम

ककया गया, र्मत्र और मैत्री परिं परा का

दर्मर् म ाभारत में दजम ु आ, राजतिंत्र के

ऊपर से ववश्वास टने के िम में

लोकतािंबत्रक और समाजतािंबत्रक व्यवस्र्ा

का र्मश्रर् आधतु नक ववश्व का दर्मन र ा,

और अब सच
ू ना तिंत्र और प्रौद्योचगकी के

बल पर कियाजन्वत र ने के मिंत्र से

अत्याधतु नक ववश्व का कियान्वयन ोना

तय ै | इस पररजस्र्तत में उसी सिंप्रदाय

या समू को अचधकाचधक समर्मन प्राप्त

ोगा जजसके पास तािंबत्रकी का बल ै , जो


39
सिंसार को एक बलर्ाली तनदान दे ते ुए

प्रगतत के मागम पर समचु चत तरीके से

मागमदर्मन कर सके | जजनके पास “सवमजन

ह ताय सर्वजन सख
ू ाय” कोई समाधान सत्र

र े गा व ी मागमदर्मक के सार् सार्

सामुदातयक उत्प्रेरक की भूर्मका में भी खरा

उतरे गा | कोरोना सिंिमर् से ववश्व को जो

नुकसान ु आ वो दस
ू रे ववश्व युि में ुए

नक
ु सान से क ीिं ज़्यादा ै , इस म ामारी

से समग्र अर्म व्यवस्र्ा पर दो री मार

पड़ी, लोगों के रोजगार तछन गये, हद ाड़ी

मजदरू ों को भुखमरी का र्र्कार ोना पड़ा,

सभी राष्ट्रों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से

भारी नुकसान उठाना पड़ा, व्यजक्त से

व्यजक्त की दरू रयाँ बढी और सार् ी सार्

ववश्वास भी टूटा | कुछ र्जक्तधर दे र् इस


40
सिंकट से भले ी उभर पाएँ, पर ववकास

मख
ु ी दे र्ों के र्लए इस सिंकट से पार पाना

र्ायद ी सिंभव ो | इस सिंकट से उभरने

के तरु िं त बाद ी भख
ु मरी और बेरोजगारी

का सिंकट पूरी दतु नया को चपेट में लेने के

र्लए प्रस्तुत र े गा | ऐसा इसर्लए भी ोना

तय ै क्यूिंकी सभी दे र् प्रत्यक्ष या कफर

परोक्ष रूप से एक दस
ू रे पर तनभमर करने

लगे ैं, एक दस
ू रे की व्यवस्र्ा परस्पर के

द्वारा कार्फी मात्रा में प्रभाववत भी ोने

लगी ै | ऐसे सन्दभम में ककसी सिंकट से

उभरने के र्लए भी सिंयुक्त रूप से योजनाएँ

बनाने पड़ेंगे |

एक दस
ू रे के किया कलापों से ोने

वाले सभी पररवतमनों का सजम्मर्लत

41
पररर्ाम क्या ोगा उसपर भी मिंर्न करने

की जरूरत ै | अब जो सिंघ र्जक्त का

ववज्ञान सन्दर्भमत ोगा उसके सम्मुख में

स्वावलिंबन के वववततमत तत्वों को अमल में

लाते ुए समग्र और सवम समावेर्क

कियान्वयन के अिंतगमत ववश्व व्यवस्र्ा का

नक्र्ा बनाना ोगा | समस्या जागततक ै,

तो जाह र सी बात ै की तनदान तिंत्र और

सिंबिंचधत चचककत्सकीय प्रबिंधन भी जागततक

ो, उसके व्यवस्र्ापन में लगनेवाले लोग

जागततक ों तो जाह र सी बात य भी ै

कक प्रभाववत लोग भी जागततक नागररकता

के धारक ी ोंगे | ऐसी पररजस्र्तत में

राष्ट्रीय नागररकता के बगल में एक

जागततक नागररकता र्मल पाने की प्रकिया

से भी में गुजरना ोगा , ताकक म


42
आसानी से जागततक कियाकलापों में

अपनी अपनी भर्ू मका तय कर सकें | य

कोई अलीक कल्पना पर आधाररत समाज

और तनयमन का ववज्ञान न ीिं ै , बजल्क

य तो समाज के जागततक सूत्रों को एक

तिंत्र में वपरोने का ी ववज्ञान ोगा |

राजनीतत के कारर् भेदभाव करने का

आरोप एक राजनैततक दल अन्य दलों पर

लगाने लगें गे , य एक स ज प्रवजृ त्त

मानी जाएगी | अजूबा तो तब ोगा जब

सभी राजनीतत करने वाले दल और

नेतागर् सुर में सुर र्मलाकर खद


ु को एक

सैतनक के नाते जनता जनादम न के सम्मुख

प्रकट करने लगें और अपनी अपनी भूर्मका

तय करने लगें | य पररजस्र्तत भारत जैसे

43
दे र् में आकर चली भी गई | आरिं र्भक

समय में जब लोगों को कोरोना सिंिमर् के

स्वरूप ववर्यक कोई जानकारी न ीिं र्ी

और भारत इस लड़ाई को लड़ने के र्लए

पूरी तर से तैयार न ीिं र्ा तब सभी दल

और नेता गर् सुर में सुर र्मलाने लगे, पर

ज़्यादा हदन ऐसा कर पाने में असमर्म र े |

इसका कारर् पैसा और जनता पर अपने

अपने तनयिंत्रर् रख पाने के समीकरर् के

चलते ी ोता ु आ सन्दर्भमत ु आ | कोई

एक सरकार पक्षपात का आरोप लगाने

लगी तो कोई और सरकार के नेतागर्

जनता जनादम न के खाते में सीधे पैसा दे ने

का परोक्ष रूप से ववरोध करने लगे |

राजनीतत का खोखलापन इतना गिंभीर ो

उठा कक म ाराष्ट्र के पालघर में उन्मत्त


44
लोग सिंतों को र्सपाह यों के सामने ी पीट

पीट काट मार हदए | व ाँ की सरकार कुछ

सिंवेदन ीनता का पररचय दे ते ु ए सिंतों की

त्या को एक ादसा क ने लगे और लोगों

से पुनः पुनः गुजाररर् करने लगे कक उस

घटना को कोई साम्प्रदातयक रिं ग दे ने का

प्रयास न करें | समस्याओिं का प्रमार् और

जजम्मेदाररयों का समीकरर् कुछ भी ो

सकता ै , पर जनता जनादम न के सामने

राजनैततक दलों का स्वार्ी स्वरूप

प्रततभार्सत ोने लगा |

स्वतिंत्र दे र् में ज ाँ ततरिं गों के नीचे

भारतीय सेना के सभी ोन ार जवान

कायमरत ो सकते ैं, ज ाँ ततरिं गे की र्ान

45
बनाए रखने के र्लए र्सपा ी जान की

बाजी लगाते ों, ज ाँ ततरिं गे की र्ान में

गीत गाए जाते ों , जजसकी गररमा को

ठे स प ु ँचाने के प ले दश्ु मन पचास बार

सोचता ो उसी दे र् में कुछ राजनैततक दल

अलग अलग ध्वजों तले भारत को खर्


ु ाल

बनाने का र्पर् लेने लगें और एक दस


ू रे

के खखलाफ मोचाम खोल दें तो य कुछ

र्ोभनीय ववर्य न ीिं ो सकता | उन दलों

और गुटों पर जनता जनादम न को भरोसा

रखने से प ले भी जारों बार सोचने की

जरूरत ै | सिंघीय ढाँचों में अपनी अपनी

स भाचगता सतु नजश्चत करने े तु अलग

अलग ववचारधारा रखनेवाले समू को अगर

सरकारी यिंत्र का ह स्सा बनने हदया जाए

तो जाह र सी बात ै कक उनके बीच के


46
दरारों में ी अलगाव की जड़ों का ववस्तार

ोता र े गा, और अिंततः ऐसी दरारें िमर्ः

सिंघ को ी सिंकट में डाल दे गी |

ज ाँ नागररक ी सिंकट में ों व ाँ

नगर, पररर्द, नेता , म ाजन आहद लोगों

का क्या ोगा ? ऐसे म त्वाकािंक्षी और

स्वार्ी लोगों को रोजगार के अवसर कौन

दें गे? प ले तो राजस्र्ान, गुजरात, पिंजाब,

ररयार्ा और म ाराष्ट्र से भारी सिंख्या में

मजदरू ों को उनके ग ृ राज्य जाने के र्लए

मजबरू कर हदया गया, और उसके बाद

आचर्मक गततववचध र्ुरू कर पाने े तु उनके

वापसी की माँग ोने लगी | इसका पता

लगाना ब ु त ी जरूरी ै कक कौन कौन

सी पररजस्र्तत में मजदरू ों को बेरोजगार

47
ोकर अपने घर की ओर भागने के र्लए

मजबरू ोना पड़ा | मजदरू और ककसान

जजस दे र् में सुरक्षक्षत न ों उस दे र् में

चगने चन
ु े कममचाररयों को सरु क्षक्षत रख पाना

क ाँ तक सिंभव ो सकेगा? कौन से तिंत्र

ोंगे जजसमें कामगार, मजदरू और ककसान

सुरक्षक्षत र सकें? ककसान और मजदरू के

खातों में कुछ रकम दे दे ने से, उनके र्लए

खाद्यान्न उपलब्ध करने से और उनके

मुफ़्त इलाज का दातयत्व ले लेने से कुछ

द तक रा त र्मलने की उम्मीद जताई

जा सकेगी | इसे लिंबी अवचध तक

चलनेवाले उपयोजना का ह स्सा न ीिं

समझा जाना चाह ए | मजदरू , ककसान

और बेस ारा लोगों के र्लए सामाजजक

सुरक्षा का दायरा बढाना और उन् ें र


48
पररजस्र्तत में र राज्य में मदद र्मल पाने

की पररजस्र्तत का तनमामर् करना ी स्र्ाई

समाधान की ओर बढाया जाने वाला प ला

कदम मान सकेंगे | इसके ववपरीत कोई भी

अस्र्ाई व्यवस्र्ा को जनता जनादम न के

ह तवधमक तत्व के रूप में हदखना स ी न ीिं

ोगा |

49
सहभाधगता आिाररत लोकतंत्र

मौजद
ू ा पररजस्र्तत में अगर म

जनता जनादम न को एक ी ध्वज तले लाने

का प्रयास करें तो में प्रतततनचधत्व

आधाररत लोकतिंत्र में प्रत्येक नागररक के

र्लए अिंर्भागी पररकल्पना को रुपातयत

करते ु ए र पक्ष की स भाचगत सतु नजश्चत

करने लायक कानून पररर्द का गठन

करना ोगा | भारत के सभी नागररक को

अगर म सिंघीय रचना का ह स्सा मान र े

ैं तो उनके अिंर्भागी पररकल्पना को

रुपातयत करते समय भी उन् ें कानून

पररर्द या सिंसद में अपनी राय रख पाने

50
का अवसर दे ना ोगा | ककसी एक ोन ार

जन प्रतततनचध को सरकारी तिंत्र से पररचचत

कराने े तु और उनकी पात्रता सुतनजश्चत

करने े तु ककसी खास राजनैततक दल का

स ारा लेने की आवश्यकता इसर्लए भी

मानने लायक न ोगा क्यूिंकी सभी दल

अपनी अपनी आकािंक्षाओिं का बोझ जनता

जनादम न पर डालते चलेंगे और उन सबके

जीवनयात्रा का खचम सरल जनता पर डाल

हदया जाएगा | अगर कुछ कर पाने की

पात्रता म रखते ैं तो सवोपरर म ात्मा

गाँधी द्वारा प्रस्ताववत लोक सेवक सिंघ के

प्रारूप पर अमल करने े तु अिंतर मन से

तैयार ों और उसे अपने दे र् में त्वररत

लागू करने के र्लए एक वार्लष्ट्ठ और

51
युगोपयोगी कदम उठाने का सत्सा स

हदखाएँ |

ववरोध र्सर्फम ववरोध करने के र्लए

न ोकर एक तकमसिंगत ववर्य के सार्

सार् सिंपूरक तनदान तिंत्र का ह स्सा बनने

लायक सन्दर्भमत ोते र ना चाह ए | अपने

य ाँ ववरोध करना लोकतिंत्र का एक कलिंक

बन चक
ु ा ै , य ाँ तक कक ववरोध करने

लायक ताकत जट
ु ाने के र्लए बा री तत्वों

का स ारा भी र्लया जाता ै , जजसका

नतीजा अलगाव और आतिंक भी ो सकता

ै |

जम्मू कश्मीर आतिंक का र्र्कार

बना ुआ ै | ऐसी पररजस्र्तत में व ाँ बसे

लोगों पर क्या बीत र ी ोगी, य तो म

52
आसानी से सोच भी सकते ैं | सवाल

उल्टे तरफ से भी पछ
ू ा जा सकता ै,

कश्मीर में इतने आतिंकी क ाँ से पैदा ो

र े ैं ? उनको तनरिं तरता के सार् कौन

स यता हदए जा र ा ै ? इस जज ाद में

कार्फी लोगों की जानें जा र ी ै | इन

तमाम सिंवेदनर्ील कौर्ल्युक्त मुद्दे

आधाररत प लुओिं को उजागर करने लायक

कोई तकमसिंगत तनदान तिंत्र मारे पास र े

य ी अपेक्षक्षत मानी जा सकेगी | मुसीबतों

से म ज़्यादा दे र तक भाग न ीिं सकते,

इसका डटकर मुकाबला करने े तु में

अग्रज बनना ोगा , अवपतु व्यवस्र्ा में

लगे र ने के सार् सार् अपने करीबबयों का

भी ध्यान रखना ोगा | इतना ी न ीिं

ऐसा करते ुए में सिंवेदनर्ील भी र ना


53
ोगा | मजदरू जब कममस्र्ल से अपने

अपने घर के र्लए चल पड़े तब ककसी न

ककसी के नजरों के सामने से ी गुजर र े

ोंगे | जजन् ोंने भी हद ाड़ी मजदरू ों को

बेस ारा ोकर घर की ओर तनकल पड़ने

की दर्ा में दे खा उन सभी लोगों के बीच

अचधक सिंवेदना ववकर्सत ोने की जरूरत

ै | अपनी अपनी जजम्मेदाररयों से दर

ककनार कर पाने के िम में उन् ोंने सभी

जजम्मेदाररयों को सरकार पर र्ोपना

मन
ु ार्सब समझा | जनता जनादम न द्वारा

मान्य एक सिंस्र्ा ै सरकार, उसमें भी

कुछ ऐसे तिंत्र ैं जजन् ें यिंत्र मानव से

तुलना की जा सकती ै | उनके सकिय

ोने का सीधा सिंबिंध राजनैततक

54
इच्छार्जक्त द्वारा ी तनधामररत ोता र ता

ै |

सन १९४६ में भारत की

आजादी के ठीक प ले आजाद भारत े तु

लोकतिंत्र का स्वरूप प्रस्ताववत करते ुए

म ात्मा य म सूस कर र े र्े कक िािंतत

से जुड़े सिंस्र्ाओिं को इतत ास के पन्नों में

ी र ने दें और एक व्यापक लोकतिंत्रात्मक

अिंर्भागी पररकल्पना सुतनजश्चत करने

लायक म ासिंघ का तनमामर् कर हदया जाए,

ज ाँ नागररक मात्र का प्रतततनचधत्व

सतु नजश्चत ो सके | उनके व ी पररकल्पना

को लोक सेवक सिंघ के रूप में जाना जाता

ै | इस पररकल्पना को पूरे स्वरूप के सार्

कभी जमीन पर उतारा ी न ीिं गया |

55
सवोदय ववचारधारा में आस्र्ा रखनेवाले

अग्रजगर् आजाद ह न्दस्


ु तान में

पनपनेवाली समस्याओिं में उलझकर र

गये | नतीजा य ु आ कक ब ु दलीय

लोकतिंत्र के कलिंक से भारतीयों के अरमानों

को कुचला गया | भ्रष्ट्टाचार के ग नों से

राजनीतत को सजाया जाने लगा और

राजनेता के ार् में भ्रष्ट्टाचार का अमोघ .

औजार आ गया | एक ऐसी पररजस्र्ततयों

से गुजरना पड़ा ज ाँ कफरिं चगयों के सभी

दावे सच ोते चले गये | आधतु नक भारत

में अगर एक समझदारी के क्षेत्र का तनमामर्

ुआ ै तो अब भी में ब ु दलीय लोकतिंत्र

से तनकलकर लोकसत्ता के बल से

बर्लयान लोकसेवक सिंघ का तनमामर् करते

ु ए राष्ट्र को अचधकाचधक वर्लष्ट्ठ बनाना


56
ोगा | साधन , ु नर और प्रौद्योचगकी के

बीच उचचत मेल बिंधन करते ुए में

लोकह तार्म एक सिंवेदनर्ील व्यवस्र्ा का

भी प्रततपादन करना ोगा ज ाँ नागररक

मात्र का स्वार्म रक्षर् और सिंवधमन सिंभव

ो सके |

पौराखर्क काल से ी मारे

सम्मुख ऐसे ऐसे अभ्यास को सन्दर्भमत

करने का प्रयास ककया जाता र ा ै ज ाँ

आत्मा और परमात्मा के र्मल पाने की

सिंभावनाओिं को जहटलता से ग्रस्त एक

कहठनतम तपस्या का िम माना गया |

दे व दानव के बीच सिंघर्म को भी तनरिं तर

चलते र ने वाली प्रकिया बताया जाता

57
र ा | अनेकोनेक कर्ा माला के जररए

इस र्भ
ु -अर्भ
ु सिंघर्म को तनरिं तरता प्रदान

करने का प्रयास भी ोते र ा | आज भी

धमामर्म सेवा करनेवाले सिंत जन अवतार

के भूर्मका को लेकर आर्ावादी र ते ुए

हदखेंगे | में उन सिंत जनों के प्रयासों और

ध्येय मागम पर अडडग र ने की आकािंक्षा से

एक ी ववर्य का ज्ञान ो सकता ै कक

उनके अनभ
ु व को पष्ट्ु ट करने लायक प्रजा

पालक इष्ट्टदे व का पाचर्मव जगत में आना

एक दार्मतनक मान्यताओिं के अधीन सत्य

ै | इस आजस्तकता को धारर् ककए जीवन

जीनेवालों की सिंख्या भी ब ु त ै |

सनातन परिं परा में बत्रदे व को

ी श्रीजष्ट्ट- ववनार् और ववस्तार के िम का

58
सवम व्यापी सत्ता माना गया ै | उसमें

म ादे व ी केंिक की भर्ू मका में र े |

उनके सिं ारक वजृ त्त से छूटकर ी जीव

अजस्तत्व में आ सकता ै | म ादे व ी

दे वत्व के सवोत्कृष्ट्ट तपश्चयाम में

अचधकाचधक समय लीन र ते ैं | र्र्व

म ापुरार् में उनसे जुड़े प्रचर्लत कर्ाओिं

और गर्ाओिं का सिंकलन भी दजम ै |

अपने बजरिं गबली नम


ु ान जी को भी म

एक सफल और कुर्ल रुि अवतार के रूप

में पाते ैं |

कभी कभी में य भी दे खने के

र्लए र्मलता ै की मारे जािंबाज फौजी

अपने जान पर खेलकर मारे दे र् की रक्षा

करते ैं, उन् ें र्त्रु दमन के उद्देश्य से

59
चर्यार उठाना पड़ता ै, जरुरत पड़ने पर

त्याएिं भी करनी पड़ती ै और उनके पास

जब कोई चारा न ीिं बचता ै तो वे र्त्रु पर

जान लेवा मला करने े तु टूट पड़ते ैं |

उन् ें अगर पूर्त


म ः अह स
िं क बनाने का

प्रयास ककया जाये तो र्ायद सब के सब

खड़े खड़े मर जायेंगे | ज ाँ र्त्रु अह स


िं क

न ीिं ै व ािं रखवालों को भी आने वाले र

चन
ु ौती का सामना करने े तु डटकर खड़ा

र ना ी वास्तवोचचत माना जायेगा | म

उन् ें उनके सम्यकत्व से, राष्ट्रप्रेम से,

कतमव्यतनष्ट्ठा से और तत्परता सह त

कायमर्ील र ने से अलग न ीिं कर सकते |

अगर सभी र्त्रु पक्ष को मुक्त रख हदया

जाय तो र्ायद राष्ट्र के र कोने में उनका

60
वचमस्व प्रस्र्ावपत ोता ुआ में दे खना

ोगा |

म र्त्रु से मुक्त एक ववश्व

व्यवस्र्ा की कल्पना भले ी कर लें , पर

वास्तव में र्ायद ी ऐसा कुछ सिंदर्भमत ो

सकेगा | अतः सुर असुर सिंघर्म मेर्ा

चलते ी र नेवाला ै , इसके स्वरुप तर्ा

ढािंचे भले ी समय समय पर बदलते र ें |

इसका अर्म ै कक र्त्रु और र्मत्र के सिंख्या

और समू में पररवतमन आ भी सकता ै |

आज जो लोग र्मत्रवत र र े ैं, उनके

बीच ककसी कारर्वर् र्त्रभ


ु ाव पनप भी

सकता ै | ऐसी पररजस्र्तत में मारे

अह स
िं क वजृ त्त में भी क्या पररवतमन

कािंक्षक्षत ोगा? क्या में भी अपनी भूर्मका

61
को दब
ु ारा परखना ोगा? सुववधाएँ प्राप्त

करने, जजम्मेदाररयािं तनभाने और

समयोचचत तनर्मय ले पाने में म अगर

अपनी कमजोरी हदखा दें तो जाह र ै की

र्त्रु पक्ष को बल र्मलेगा | ग न

सजन्नववष्ट्ट र्मत्रगर् आपस में सामिंजस्यता

बनाये रखने के िम में अह स


िं ा का क्या

स्वरुप ो सकता ै ? क्या अह स


िं ा र्त्रभ
ु ाव

को पर्
ू तम ः समाप्त करने में स ायक तत्व

ै ? अनुभव य ी क ता ै कक ववनार्क

वजृ त्त रखनेवाले र्त्रु के सामने में भी

अपने ववचारविंत ोने का प्रमार् दे ना ोगा|

इतत ास साक्षी ै कक सदै व सिंघर्मरत कोई

समू तनरिं तर तरक्की न ीिं कर पाया ै|

अतः उस मागम पर चल पड़ने में कोई

62
समाधान का दर्मन ो पाना र्ायद ी

सिंभव ो |

भारतीय दर्मन में अह स


िं ा को ब ु त

ी म त्वपर्
ू म स्र्ान र्मला ै | इसे

ठयोग में एक व्रत के रूप में अवश्य

पालनीय बताया गया ै | म वर्म पतिंजर्ल

इस व्रत का स्वरुप बताते ु ए क े कक ज ाँ

र ने वाले सभी जीव परायेपन कक भावना

का सरलतापव
ू क
म त्याग कर सकें व ीीँ

अह स
िं ा कक प्रततष्ट्ठा ो चक
ु ी ै ऐसा मान

सकेंगे | अह स
िं ा का एक व्यापक स्वरुप

सिंयम से ै | एक सिंयर्मत व्यजक्त आदतन

अह स
िं क भी ोता ै , अर्ामत सिंयम के

भीतर अह स
िं ा का बीजक ै | ककसी

पररजस्र्तत, सुववधा, साधन आहद से सिंतुष्ट्ट

63
ो जाना वरताव में सिंतोर् का ोना भी

व्यजक्त को अह स
िं क ोने कक प्रेरर्ा दे ता

र े गा | म कभी भी ककसी जीव को

स्वार्ी भाव से नक
ु सान में डालना पसिंद

न ीिं करें गे | एक ह स
िं ा के ववपरीत उससे

भी क ीिं तीव्रता वाले ह स


िं क वजृ त्त का

जन्म लेना एक स ज प्रकिया ै | य ाँ

तक कक कभी कभी लोग भय से ग्रर्सत

ोकर ह स
िं ा का स ारा लेने लग जाते ैं |

अह स
िं ा का अर्म र्सफम जीव को न ीिं

मारें या ककसी को नुकसान न प ु िं चाने मात्र

से न ीिं ै | अवपतु अह स
िं ा का एक व्यापक

स्वरुप जीव मात्र को अपना समझते ुए

64
उनके प्रतत यत्नर्ील ोने का तत्व ै |

उस व्यापक स्वरुप को अगर म अपने

जीवन में उतारना भी चा ें तो में

जीवमात्र को अपना समझना ोगा | इसी

तत्व से ववश्व मैत्री का सिंतनयमन सिंदर्भमत

ु आ भी हदखेगा |

अह स
िं ा मानव को मानव से बािंधने

का ववज्ञान ै | इसके जररये सभी समू के

सामने प्रगतत का मागम प्रर्स्त ो सकेगा |

ज ाँ वैरी भाव ी न र ें , व ािं वैरी भाव के

कारन उत्पन्न ोने वाले सभी बाधक तत्वों

का समाप्त ोना भी अर्भप्रेत ै | म

र्सफम इस बात के र्लए भी इन्तजार न ीिं

कर सकते कक प्रततपक्ष कब अह स
िं क

बनेगा| इसके र्लए भी म समय न ीिं दे

65
सकते कक अह स
िं ा के तत्व को प्रततपक्ष

भली भािंतत समझ ले | अह स


िं क बनने से

प ले र्जक्तधर बनना जरूरी ो जाता ै |

क्यिंकू क अह स
िं ा का मागम वीरों का मागम ै,

न कक कायरों का | ककसी जीव को

नुकसान न प ु ँ चाने का सिंकल्प तभी

वास्तवोचचत ो सकता ै जब म

र्जक्तधर ो जाएँ | बबना ककसी बल के

म क्षमार्ील ोने का प्रयास करें भी तो

व हटकने वाला न ीिं ोगा | प्रततपक्ष से

ककसी भी समय प्रततघात र्मलने कक

सिंभावना के र्लए में ततष्ट्ठ र ना ोगा |

66
कताव्य बुवि और तत्परता

व्यजक्त जीवन पर कई तत्वों का

सीधा या कफर ककसी अन्य जररए से प्रभाव

र ता ै | व्यजक्त के कृत कमों पर उसकी

जानकारी के क्षेत्र का भी प्रभाव कार्फी द

तक र ता ै | इन पररजस्र्ततयों को

समझने के र्लए म र्ास्त्र में वखर्मत कुछ

घटना िम का स ारा ले सकते ैं |

एकबार त्रेता युग में म ादे व उमा

को सार् लेकर अगस्त्य ऋवर् के पास गए|

ऋवर् म ादे व और सती का स्वागत करते

ु ए अपने आश्रम में र कर रामकर्ा सुनने

े तु उद्योगी ुए | मयामदा पुरुर्ोत्तम

रामचिंि की कर्ा सुनकर म ादे व मन ी

67
मन पुलककत ोते ु ए उमा भवानी के सार्

कैलार् आ र े र्े | सती को म ादे व के

इस आनिंद का र स्य कुछ समझ में न ीिं

आ र ा र्ा | एक मानव का वववरर्

सुनकर पुलककत ोने का र स्य भी उमा के

मन में जहटलताएँ पैदा ककए जा र ा र्ा|

मानव रूप में एक दे व का अवतरर् की

बात सुनकर उमा को ववश्वास न ीिं ुआ |

ब ु त प्रयास करने के बाद भी जब सती के

र्िंकाओिं को म ादे व दरू न ीिं कर पाए तो

उन् ोंने सती को खद


ु जाकर रामजी को

परखकर दे खने के र्लए क े |

उन हदनों सीता ववयोग में

दिं डकारण्य में राम अपने भाई लक्षमर् के

सार् जग जग पर सीता को ढूँढ र े र्े|

68
सती ने सीता का रूप धारर् ककए उस

मागम पर चलने लगीिं जजस मागम से श्री राम

गुजरने वाले र्े | मयामदा पुरुर्ोत्तम श्री

रामचिंिजी सती को प चान गये, प्रर्ाम

ककया और र्र्व के बारे में पूछे | इस बात

के र्लए सती माता प्रस्तुत न ीिं र्ीिं |

सिंकोचवर् चप
ु चाप ी सती र्र्वलोक में

वापस आ गईं और अपने ककए पर उनको

पछतावा ोने लगा | र्र्वजी जानना

चा ते र्े की सती ने श्री राम की परीक्षा

कैसे लीिं, उनको क्या अनभ


ु व प्राप्त ुआ

आहद | अिंतयाममी म ादे व को पररजस्र्ततयों

से जड़
ु े सभी बातों का तो ज्ञान ो चक
ु ा

र्ा कफर भी उन् ें सती के मुख से सुनना

र्ा और सती के मनोजस्र्तत ववर्यक

र स्यों को स ी तरीके से समझना र्ा |


69
सती ने र्र्वजी के सामने झूठ बोलते ुए

अपने सीता का वेर् धारर् करने की बात

को तछपाया | इस बात से भोलेनार् तार्

ु ए | उन् ें सती से इस बात की उम्मीद

न ीिं र्ी | मन ी मन य सोचने लगे की

अब अगर सती से प्रेम ककया जाए तो व

धमम के ववरुिाचरर् ोगा | सती के

पववत्रता का ज्ञान करके म ादे व उनका

पर्
ू तम ः त्याग भी न ीिं कर सकते र्े | सती

के र्रीर से अब सिंपकम न ीिं ो सकता

जानकर म ादे व नीलकिंठ ने सती को

अपने पास न बबठाकर अपने सम्मुख एक

र्मत्र की भाँतत बबठाए | उमा को इस बात

का भी ज्ञान ो गया कक र्िंभू के मन में

अब उनके र्लए कोई जग न ीिं बचा ै |

सती भी र्ोकातुर र ने लगी और


70
जगदीर् ्वर म ादे व भी ध्यानस्र् र ने

लगे|

म ादे व अपने सिंकल्प व्रत से टना

न ीिं चा ते र्े, व ीिं दस


ू री ओर उमा के

सामने सत्य प्रकट करना भी न ीिं चा ते

र्े| उमा को कैलार्पतत आहद दे व की

मनोजस्र्तत का ज्ञान ो गया |

इसी िम में र्र्वलोक में ऐसा

समाचार आया कक उमा के वपता को

ब्रह्मदे व ने प्रजापतत घोवर्त कर हदया और

इस खर्
ु ी में दक्ष राजा एक यज्ञ का

आयोजन करने जा र े ैं | उस यज्ञ में

सभी दे वी दे वता तनमिंबत्रत ैं | र्सर्फम

उमापतत म ादे व को तनमिंत्रर् न ीिं र्मला |

उमा भवानी को अपने वपता द्वारा ककया

71
जानेवाला ग़लती का ज्ञान ोते ी अपने

वपता के घर की ओर चल पड़ी | म ादे व

रोकना तो चा ते र्े, पर य सोचकर न ीिं

रोका कक वपता के घर पत्र


ु ी बबना तनमिंत्रर्

के जा सकती ै | अिंततः उन् ोंने

सम्मानपूवक
म उमा के जाने का इिंतजाम कर

हदया | उस बार दे वी ब ु त अजस्र्रता र्लए

वपता के घर जा र ी र्ी | घर जाते ी

उन् ें अपने वपता, ब न और अन्य

ररश्तेदारों के प्रकोप और आिोर् का

सामना करना पड़ा | उमा इस बात के र्लए

प्रस्तुत र्ी | माँ को छोड़कर सबने उमा

भवानी का ववरोध ककया | सबसे अचधक

सदमा तब लगा जब दक्ष राजा उमापतत

की तनिंदा करने लगे | "एक पत्नी के र्लए

पतत तनिंदा सुनने से बड़ा कोई पाप न ीिं ै|


72
अब मुझे इस र्रीर का त्याग कर दे ना

चाह ए …|", ऐसा क ते ु ए उमा भवानी

यज्ञ अजग्न के चपेट में आ गई और

दे त्याग कर हदया |

कैलार्पतत को पता चला

कक उमा ने दे त्याग कर हदया | जजसके

बारे में सबको र्िंका र्ी व ी ुआ |

कैलार्ाचधपतत अपने गर् और गर्ाचधपतत

को सिं ारक वजृ त्त के सार् दक्ष राजा और

उनके राज्य का ववनार् करने के र्लए भेज

हदए | वीरभि को जजम्मेदारी दी गई की

दक्ष राजा का अनततववलम्ब ी सिं ार कर

हदया जाए |

भजक्त और ज्ञान के समन्वय की

सार्मकता बताने के र्लए पत्नी का त्याग

73
कर दे ने े तु र्र्व का तनर् ्चय भजक्त मागम

का सवोत्तम उदा रर् ै |

जब म ादे व ने य म सूस कर

र्लया कक उमा भवानी के मन में जगदिं बा

का सजन्नवेर् ुआ ै तभी उन् ोंने अपने

आपको उस पररजस्र्तत से दरू कर र्लया,

पर उमा भवानी का सम्मान और मयामदा

रक्षर् के र्लए सिं ारक वजृ त्त का भी प्रयोग

ककया | अपराधी को इस बात का भी ज्ञान

कराया कक उन् ें खद
ु का अपमान जार

बार मिंजरू ो सकता ै पर उमा भवानी का

अपमान एक बार के र्लए भी मिंजूर न ीिं

र्ा |

74
अष्ट्ट ससवि का दशान

ककसी र्सि स्त व्यजक्त से

ी राजधमम का पालन कुर्लता पूवक


म ो

सकेगा, इतना ी न ीिं र्सि स्त व्यजक्त

ी कतमव्यपरायर् ोने के सार् सार् अपने

दरू दर्र्मता का प्रमार् दे ते ु ए लोक ह तार्म

तनर्मय लेने के र्लए सक्षम भी माना

जाएगा |

अष्ट्ट र्सवि का वर्मन और

कियान्वयन का ववज्ञान रामायर् में

सन्दर्भमत ोता ै | माता सीता से

आर्ीवामद पाकर रुि अवतार बजरिं ग बर्ल

अष्ट्ट र्सवि और नव तनचध के दाता बने|

उन् ोंने मयामदा पुरुर्ोत्तम के कायम करने

े तु तत्परता हदखाते ु ए अपने दे ार्भमान

75
और अ म का त्याग कर हदया | समय

आने पर नम
ु ान जी सक्ष्
ू म रूप ले सकते

र्े और पवमताकार भी बन जाते र्े | उनका

इस गर्
ु ों के कारर् कभी आत्मर्भमान भी

न ीिं ोता र्ा |

अपने रामरक्षा स्तोत्र में ऋवर्

बुधकौर्र्क क ते ैं ---

मनोज ं मारुततुल्य ेगं स्जतेस्न्ियं बुविमतां ररष्ट्ठम ्।

ातात्मजं ानरयथ
ू मख्
ु यं श्रीरामदत
ू ं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

अर्ामत, जजनकी गतत मनके

समान और वेग वायुके समान तेजोमय ै,

जो परम जजतेजन्िय एविं समस्त बुविमान

जनों में भी श्रेष्ट्ठ ैं, मैं उन पवन पुत्र,

समस्त वानरों में भी सवमग्र माने जानेवाले

ैं उस सवम र्जक्तमान रामजी के दत


ू की

76
र्रर् लेता ू ँ। नुमान जी सरलता और

सादगी से तनरिं तर राम जी के कायम में लगे

र ते र्े | य ाँ तक की रावर् के सामने

प ली मल
ु ाकात में नम्रता पव
ू क
म ी पेर् ु ए

और बार बार रावर् को ग़लती सुधारने के

र्लए क ते र े | य तो रावर् का

आत्मर्भमान ी र्ा जो उसके तपश्चयाम से

प्राप्त बुवि को ढक र्लया र्ा, जजसके

कारर् वानर वेर्धारी रुिवतार को प चान

न ीिं सका | नुमान जी में इतना बल तो

र्ा ी कक लिंका नष्ट्ट करके, रावर् का

सिं ार करके सीता माता को सुरक्षक्षत वापस

ले आएँ | पर ऐसा कुछ करने से प ले

उन् ोंने अपने वररष्ट्ठ और सज्जनों का मत

र्लया | ऐसा करते ु ए उन् ोंने ककसी भी

नेक कायम में साधम


ु त के अ र्मयत को
77
दर्ामया | उनका बुवि , बल के सार् सार्

वववेक का ोना भी इसी घटना से

प्रततभार्सत ोता ै |

राजधमम पालन करनेवाला

व्यजक्त अगर कोई भक्त ो तो उसके र्लए

सफलता प्राप्त करने की सिंभावना भी

बढती ै | उसे अभीष्ट्ट प्राजप्त से र्ायद ी

कोई रोक सके | भजक्त का कोई भी स्वरूप

ो और कैसे भी आए उसका स्वरूप एक

भक्त को सभी तकलीर्फों से मुक्त

करनेवाला ी ोता ै | सन्तजन भजक्त का

स्वरूप बताते ु ए उसके मुख्य प्रकार भेद

को भी प्रततपाहदत ककए ै | रामायर् में

मयामदा पुरुर्ोत्तम राम सबरी को नवधा

भजक्त की बात बताए र्े | ईश्वर अपने

78
भक्त से सदै व समपमर् ी माँगते ैं |

समपमर् करनेवालों का इष्ट्टदे व पर्


ू तम ा प्राप्त

करने के िम में र सिंभव स यता भी

करते ैं |

79
भस्तत मागा में बािक

भजक्त मागम में सबसे बड़ी बाधा के

रूप में क्लेर्ों को ी बताया गया ै | योग

दर्मन में क्लेर्ों के कई प्रकार बताए गये

ैं| क्लेर्ों के प्रकार बताते ु ए इसे वगीकृत

करने का प्रयास योग दर्मन में ुआ ै |

क्लेर्ों के तनम्न वखर्मत प्रकरभेद बताए

जाते ैं …

१| अव द्या- अतनत्य को तनत्य

समझना, नश्वर को अववनश्वर समझना,

सख
ु -दःु ख आहद के कारर्ों को स ी तरीके

से न ीिं खोज पाना आहद को अववद्या से

जोड़कर दे खा जाता ै | जन कल्यार्,

परोपकार, सामुदातयक कायों में रूचच न

लेना तर्ा जड़ और चेतन का सम्यक ज्ञान

80
न ोना भी अववद्या को ी प्रततभावर्त

करनेवाला ै |

२| अस्स्मता- अ म का वचमस्व ोते

ु ए अपने वस्त,ु अपने ररश्तेदार, अपना

धन आहद ववर्यों पर मो का उत्पन्न

ोना भी क्लेर् को जन्म दे ने वाला ी

ोता ै |

३| राग- सुख प्राजप्त और दःु ख दरू

करने लायक उपाय करने के र्लए सचेष्ट्ट

ोना व्यजक्त रागवर् करता र ता ै |

४| द् ेष- दःु ख, पीड़ा, यातनाएँ आहद

दे नेवालों के प्रतत उत्पन्न िोध से ग्रर्सत

ोना भी क्लेर् को जन्म दे नेवाला ै |

81
५| असभतन ेश- जीवन से प्रेम,

अचधकाचधक हदन जीववत र ने की इच्छा

रखनेवाले मोह त जन खद
ु के र्रीर से

आहदकाचधक लगाव रखने लगते ैं और

उसीको सिंवारते र ते ैं |

६| प्रारब्ि पाप -- ऐसा पाप जजसको

भोगना व्यजक्त के र्लए अतनवायम ो जाता

ै | भोजन में अतनयर्मतताओिं से रोग

आहद का उत्पन्न ोना इस प्रकार का पाप

मान सकते ैं |

७| अप्रारब्ि पाप -- कुछ ऐसा पाप जो

तुरिंत में भोगने लायक न ीिं ै पर भववष्ट्य

में इसका सामना ो सकता ै |

८| सूक्ष्म पाप -- जो प्रततभावर्त न ीिं

ो र ा ै , पर मान में या अज्ञानता के

82
अिंर् में व्यजक्त चेतन को क्लेर् प ु ँ चाते

र ता ै | दरु ाचरर्, दभ
ु ामवना, दज
ु न
म ों से

सिंगतत के कारर् प्रकट ोने वाले पाप इस

प्रकार के ोंगे |

९| बीज रूपी पाप - वासना रूप में मन

में तछपा ु आ आग्र | ककसी को अतनष्ट्ट

प ु ँचाने की इच्छा का मन में पोर्र् करना|

अगर कोई भक्त अपने

ध्येय मागम पर ध्यानस्र् ोना चा े तो ऐसी

कौन सी बाधा ै जो उसे ऐसा करने से

रोक सके ? इस ववपजत्त को योग दर्मन में

ववघ्न बताया गया ै | चचत्त ववक्षेप का

नाम ी ववघ्न ै । कुल र्मलाकर ववघ्न

नौ प्रकार ै - रोग, अकममण्यता, सिंर्य,

83
प्रमाद (योगाभ्यास, प्रार्ायाम, ध्यान,

समाचध आहद के प्रतत तनरुत्सा ), आलस्य

(र्रीर व मन का भारीपना), ववर्यासजक्त,

भ्रजन्तदर्मन (ववपयमयज्ञान), भर्ू म को पाकर

भी चचत्त का जस्र्र न ोना । इस प्रकार

से ववववध बाधाओिं को पार करके न उभरने

वाला अभ्यासी आसानी से खद


ु को भजक्त

मागम पर हटकाए न ीिं रख सकता |

वेद उपतनर्दों में ईश्वर का स्वरूप

बताते ु ए उसे एक अनुभवजन्य सत्ता के

रूप में प्रकार्र्त ककया गया ै | उसे ब्रह्म

स्वरूप क ा गया ै | अनुभव पाने वाले

व्यजक्त को भी ब्रह्म स्वरूप ी क ा गया|

इसका य भी अर्म तनकाला जा सकता ै

कक ब्रह्म स्वरूप का दर्मन म ककसी भी

84
जीवात्मा में कर सकते ैं | अगर ऐसा ी

ै तो सभी जनों में ऐश्वररक सत्ता तर्ा

उजामओिं का दर्मन प्रततभावर्त क्यों न ीिं

ोता ै ? य तो स्वयिं ी ोना चाह ए

र्ा| इसमें भी मारे सामने सुर- असुर,

धमी-ववधमी आहद भेद को प्रततभावर्त

ककया जाता ै ! इसका ववज्ञान ककस द

तक तकम सिंगत ै ? क्या सभी जीवात्मा

ईश्वर तर्ा ऐश्वररक र्जक्तयों का

साजन्नध्य पाने की पात्रता रखता ै ? क्या

इसके र्लए कोई खास प्रयास करने की

आवश्यकता न ीिं ै ? अगर ै भी तो

उसके नीतत तनदे र्क तत्व कौन कौन से

ोंगे ? उसे धमम के सार् जोड़कर दे खा

जाना क ाँ तक उचचत ोगा ?

85
समपाण

ककसी राष्ट्र के प्रतत समपमर् की

भावना से कायमरत व्यजक्त एक स जात

प्रवजृ त्त से प्रेररत ोकर सदै व ी राष्ट्रह त

में ी तनर्मय लेगा | उसके सभी कारनामों

को राष्ट्र के प्रगतत के पररपजन्र् ी माना

जा सकेगा | उस राष्ट्र भजक्त से पुष्ट्ट

व्यजक्त का मन भी दे र् के प्रतत समपमर्

की भावना से ी पष्ट्ु ट सन्दर्भमत ोगा |

एक समय की बात ै , दीनों में

अतत दीन एक र्भक्षु कार्फी कुछ पाने की

आर् लगाए एक ऐसे राजपर् के ककनारे

खड़ा र्ा जजस पर् से राजाओिं का राजा

गुजरता र्ा और इतना दे ता र्ा जजससे

समग्र जीवन का गुजारा ो सके | यर्ावत

86
कािंक्षक्षत समय तर्ा तनधामररत पर् से

राजाओिं का राजा आने लगा | र्भक्षु का

हृदय पुलककत ो उठा, चे रे पर मुस्कान

हदखने लगा, खद
ु को व्यवजस्र्त करते ुए

उसी मागम के ककनारे खड़ा ो गया|

राजाचधराज आए, सम्मुख खड़े भी ो गये

और मुस्कुराते ुए उस र्भक्षु से ी भीख

माँगा | भीक्षु बड़ा ी मायूस ु आ | उसी

मायस
ू ी में कुछ चगने चन
ु े अन्न के दाने

उस राजाचधराज के र्ेली पर रखा | भीख

पाकर राजाचधराज ब ु त प्रसन्न ु ए और

अपने रर् पर सवार ोकर उसी धल


ू से

भरे र्ाश्वत मागम पर चल पड़े |

हदन ढलने के बाद मायूस तर्ा

र्का ु आ र्भक्षु अपनी कुहटया में आया

87
और हदन भर के सिंग्र ों को छाँटने लगा |

उसमें से कुछ चमकने वाले दाने कुछ ख़ास

ी र्े | सिंयोगवर् चमकने वाले दाने उतने

ी र्े जजतना की र्भक्षु ने राजाचधराज को

हदया र्ा |

इस घटना से र्भक्षु और

ज़्यादा मायूस ो गया | उसे अपनी किंजूसी

पर रोना आया, अपने किंु ठा को उसने दरू

न कर पाने के र्लए भी लजज्जत ुआ |

अब अगर राजाचधराज सामने आए तो

सवमस्व दे ने का ववचार बनाया | कफर से

उस मागम पर आर् ् लगाए बैठा र ा|

सिंकीर्मता, मन का तनाव, किंु ठा आहद

अवगुर्ों को ककनारे करके भजक्त मागम पर

88
हटके र ने के र्लए उसने अपने जीवन मिंत्र

को अग्रगन्य माना |

कभी कभी म य न ीिं समझ पाते

ैं कक सवमर्जक्तमान अगर मसे कुछ

माँगता ै तो क्या व कोई भौततक वस्तु

ोगा, या कोई रोचक वस्तु ोगा? उसे

भला इन वस्तुओिं की क्या आवश्यकता

आन पड़ी! उसे तो सभी सुख सुववधाओिं की

प्राजप्त अनायास ी ो सकती ै | मसे

उसे र्सर्फम समपमर् की उम्मीद र ती ै|

समवपमत व्यजक्त को ी सवमर्जक्तमान

जजम्मेदाररयों से सफल जीवन जीने े तु

प्रेररत करता ै | सच्चा भक्त व ी ै जो

सवमर्जक्तमान के पास खद
ु को समवपमत

करे और उसके द्वारा हदए जाने वाले

89
दातयत्व का पालन करे | उसे तो जीवन

प्रकिया से मक्
ु त ो पाने का मिंत्र भी

अपने ईष्ट्ट दे वता से तनरिं तर र्मलता ी

र े गा | इसमें र्िंका, भ्रम, कमजोरी आहद

का कोई स्र्ान ो ी न ीिं सकता |

भजक्त का मागम ककसी समू या

सिंप्रदाय को कदावप कमजोर न ीिं कर

सकता | य तो समू के सभी र्जक्तयों

तर्ा उस समू में व्याप्त ववववधताओिं को

समेटकर समग्र समू तर्ा उसके अिंतगमत

चलनेवाली प्रकियाओिं को बल दे ने वाला ी

ोगा | इस आर्य की पुजष्ट्ट अनेकोनेक

बार काई घटनािम से ो चक


ु ी ै तर्ा

आने वाले समय में भी ोती र े गी |

90
जिंगी सनक और उससे जुड़े दै वी

प्रकोप की एक और घटना मल्ल राजाओिं

के ऐतत ार्सक कारनामों में दजम ै | वैहदक

परिं परा से तनकले राज घरानों में मल्ल

राजाओिं तर्ा उनके रर् कौर्ल से म

भली भाँतत पररचचत ैं | जजस समय की

बात म कर र े ैं उस समय मल्ल राजा

गोपाल र्सिं राज करते र्े | उनके राज्य में

मदनमो न उपास्य दे वता र्े | पववत्र ववग्र

को उन् ोंने अपने ककले में स्र्ावपत भी

ककया र्ा | समय समय पर उसी

मदनमो न के सम्मान में अखिंड भजन

कीतमन का भी आयोजन ककया करते र्े |

ऐसा ी एक अखिंड कीतमन चलते

समय उनके पास खबर भेजा गया कक

91
राज्य में मराठा वरगी घुस आए ैं तर्ा

लट
ू मचाते ु ए राजधानी ववष्ट्र्प
ु रू की ओर

आ र े ैं | अगर म ाराज आदे र् करें तो

उन् ें सीमा पर ी रो ा जा सकता ै | पर

राजा को अखिंड कीतमन चलते समय सिंघर्म

या ह स
िं ा मिंजूर न ीिं र्ा | उन् ोंने मराठा

वचगमयों पर मला न ीिं करने का तनदे र्

जारी ककया | जाह र सी बात ै कक

भास्कर पिंडडत के नेतत्ृ व में आिमर् करने

वाले वचगमयों को आसानी से राजधानी में

दाखखला र्मल गया | राजा के तनदे र् का

सम्मान करते ु ए फसल खाद्यान्न लूटने

पर भी लोगों ने उस पाँच जार वचगमयों का

ववरोध न ीिं ककया | इस घटना से भास्कर

पिंडडत अचरज में भी पड़ा और अपने

परािमी ोने का घमिंड भी ु आ |


92
सेनाओिं की छावनी पास के वनािंचल

में डाले गये और य तय ु आ की सबेरा

ोते ी ककले के अिंदर दाखखल ोकर राजा

से वसल
ू ी करना ोगा | राज्य पर उन

वचगमयों का कब्जा लगभग तय र्ा | दस


ू री

ओर राज्य के सभी नागररक य ाँ तक की

सभी सेनानी ररनाम करते ु ए झूम र े

र्े| ककसी को भी वचगमयों द्वारा घेरे जाने

की र्िंका तक न ी र्ी, डर तो दरू की बात

ै| म ाराज को इस आिमर् की सूचना

कफर एकबार हदया गया, पर वो अपने

तनर्मय पर अडडग र्े | उन् ोंने अपने तमाम

चचिंताओिं को श्री मदनमो न के चरर्ों में

सौंप चक
ु े र्े | अतः अब जो भी ोगा उसे

मान्य करने के र्लए श्री गोपाल र्सिं तैयार

93
र्े| ककसी भी ालत में अखिंड कीतमन को

ववराम दे ने के र्लए राजी न ीिं र्े |

रात भर भजन कीतमन चलता र ा|

सभी नगरवासी तर्ा सेनानी मदनमो न के

भजन कीतमन में मग्न र े | दस


ू री ओर

एक लिंबे कद वाला कृष्ट्र्वर्म जाँबाज

र्सपा ी तर्ा उसका एक सार्ी ककले में

घुसकर दल तर्ा मदम न नामक दो तोप में

बारूद भर भरकर र्त्रु के हठकानों पर गोले

बर्ामते र ा | उस अजग्नवर्ाम से भागने का

कोई अवसर तर्ा मागम र्ा ी न ीिं |

वचगमयों की सिंख्या पाँच जार से घटकर

पाँचसौ तक र्समटकर र गई | भास्कर

पिंडडत उस परािम को दे खकर अचिंर्भत र्े|

उनका अपना घमिंड भी चरू चरू ो चक


ु ा

94
र्ा| अब तो राजा से करुर्ा की भीख र्मल

जाए तो ी ब ुत ै |

एक तरफ ववनार्क अजग्नवर्ाम से

र्त्रप
ु क्ष परे र्ान र्े तो दस
ू रे तरफ

मदनमो न के भजक्तधारा से और अखिंड

भजन कीतमन से पूरा ककला गँज


ू र ा र्ा|

वा दृश्य भी अपने आप में एक अलग

प्रकार का इतत ास र्लखने का काम कर

र ा र्ा |

सबेरा ोते ी अपने कुछ घायल

र्सपाह यों के सार् भास्कर पिंडडत क्षमा

याचना माँगने तर्ा स ायता माँगने ककले

के दरवाजे पर आया | कीतमन ख़त्म ोने

के बाद गोपाल र्सिं आकर उस वरगी के

सरदार भास्कर पिंडडत के सार् र्मले |

95
भास्कर पिंडडत ने रातभर जो ववनार् लीला

दे खा उसका वववरर् दे ते ु ए राजा से

तनवेदन ककया कक एकबार उस परािमी

योिा का दर्मन ो जाए | राजा इस घटना

से खर्
ु न ीिं ु ए, उन् ोंने दोनों सैतनकों को

ढूिंढकर तनकालने का आदे र् हदया | ककसके

क ने पर सेनाओिं ने र्त्रु पर आिमर्

ककया तर्ा इतनी जानें ले र्लया य भी

पता लगाने के र्लए क ा | पर ऐसा कोई

व्यजक्त राजा के सैन्यदल मे र्ा ी न ीिं |

आिमर् की बात, आदे र् पालन आहद तो

दरू की सोच ै ! अिंततः य पाया गया

कक मदनमो न के ार् में बारूद लगा ुआ

ै तर्ा जजस मिंहदर में बबग्र को रखा गया

ै व ाँ से बारूद की म क फैल र ी ै |

उस वक्त तक जजस घोड़े से वो अजनबी


96
सैतनक ककले में दाखखल ु आ र्ा वो घोड़ा

भी ककले के द्वार पर बँधा र्ा | वो घोड़ा

भी सैन्यदल का न ीिं र्ा |

इस घटना को ु ए सैकड़ों साल ो

गये और आज तक य र स्य बना ुआ

ै | ववज्ञान को सदा ी प्रमार् चाह ए | पर

भजक्त धारा से चलनेवाली परिं परा को

ववश्वास का आधार र े गा | आज भी लोग

उस कीततम से मदनमो न के परािम को

भजक्तधारा से जोड़ते ैं तर्ा य भी मानते

ैं कक भगवान अपने भक्त की रक्षा के

र्लए प्रकट ो जाते ैं |

भजक्त धारा य ीिं तक

सीर्मत न ीिं ै जजसमें म मान लें कक

भगवान भक्त की रक्षा करने े तु तत्पर

97
ोते ैं | उनपर भजक्त बनाए रखने वालों

का ववश्वास भी बनाकर रखते ैं | र्ास्त्र

में तकम को कोई प्रततष्ट्ठा न ीिं र्मली ै,

इसका य ी कारर् ै की तकम का कोई

अिंततम छोड़ न ीिं ै | य पक्ष और ववपक्ष

दोनों ओर लग सकता ै |

दक्षक्षर् भारत में एक स्वनामधन्य

वकील ु ए जो प्रभु भक्त ोने के सार्

सार् तनष्ट्ठावान तर्ा परोपकारी भी र्े|

अपने जीवन में भी तरक्की पाकर जज

बने| उनके पास अदालत में एक सा ू कार

ने मुकदमा दाखखल करते ु ए एक ककसान

पर उधार चक
ु ता ना करने का आरोप

लगाया | जज सा ब ने उस ककसान के

खखलाफ फरमान तनकालते ु ए उसे अदालत

98
में ाजजर ोने के र्लए क ा | ग़रीब

ककसान सा ू कार के साजजर् का र्र्कार ो

चक
ु ा र्ा | उसने सरलता से सा ू कार पर

ववश्वास ककया जजसका मोल चक


ु ाने उसे

अदालत आना पड़ा | सबूत पूछे जाने पर

ककसान ने क ा कक जब वो सा ू कार को

उधार के पैसे दे र ा र्ा तब व ाँ प्रत्यक्ष

दर्ी के रूप में श्री रागुनार्जी उपजस्र्त र्े|

जजसा ब ने उस रघन
ु ार्जी के नाम का

भी फरमान तनकाला | जजसा ब को

ककसान की बातें यकीन करने लायक लग

तो र ी र्ी, पर अदालत को सबूत चाह ए

जो कक जट
ु ाकर लाना उस ककसान की

जजम्मेदारी र्ी | ककसान जजसको रघुनार्जी

मान र ा र्ा वो तो अवतार स्वरूप भगवान

ी र्े, उनका एक मिंहदर भी गाँव में र्ा |


99
इधर जजसा ब मान र े र्े कक रघुनार्

नाम का कोई व्यजक्त उसके गाँव में ी

र ता ै जो कक इस पूरी घटना को जनता

ै | अतः उनका रघन


ु ार् के नाम फरमान

तनकालना स्वाभाववक ी र्ा|

डाककया कई बार पत ्र लेकर घूमकर

वापस आ गया | ऐसा कोई व्यजक्त र्ा ी

न ीिं जजसे रघुनार्जी के नाम का पत्र हदया

जा सके | अिंततोगत्वा एक सिंवादप्रेरक

अदालत से ी ववर्ेर् रूप से इसी काम के

र्लए भेजा गया जो ककसान के बताए पते

पर पत्र दे नेवाला र्ा | पर ककसान के बताए

पते पर एक मिंहदर र्ा | मिंहदर के पुजारीजी

के क ने पर श्री रघुनार्जी के नाम का

समन उस मिंहदर में ी हदया गया |

100
पुजारीजी ने भी उस पत्र को श्री रघुनार्जी

के पैरों तले रख हदया | पज


ु ारीजी उस

ककसान से र्मलकर श्री रघुनार्जी के नाम

के फरमान तनकालने का कारर् पछ


ू ा |

ककसान ने क ा , "रघन
ु ार्जी तो सवमत्र

ववद्यमान ैं, अतः सा ू कार के प्रपिंच और

झूठ के बारे में भी अवश्य जानते ोंगे,

ऐसा ववश्वास में रखना ी ोगा |"

अगले हदन अदालत में एक

बढ
ू ा आदमी ककसान के पक्ष में गवा ी दे ने

आया | उसे आस पास के इलाके में प ले

ककसी ने न ीिं दे खा र्ा | पूरी घटना का

वववरर् दे ते ु ए सा ू कार के घर पर रखी

ततजोरी में सबूत र्मलने का सिंकेत बताकर

101
चला गया | सा ू कार के ह साब खाते में

पैसे र्मलते र ने की बात दजम ै | ककसान

ने रसीद न ीिं र्लया, इस सरलता तर्ा

ववश्वास का ग़लत र्फायदा उठाते ुए

सा ू कार प्रपिंच कर र ा ै| पूरी घटना का

यर्ावत वववरर् दे ने के पश्चात तर्ा

अकाट्य प्रमार् र्मलने के बाद रघुनार्जी

चले गये | ककसान सभी आरोपों से मुक्त

ो गया|

इस घटना के कुछ हदनों के बाद

कौतू लवर् जज सा ब उस गाँव में ककसान

से र्मलने आए | उसके रघुनर्जी से

र्मलने के र्लए आग्र करते र े | ककसान

जज सा ब को रघुनार्जी के मिंहदर में ले

आया | सिंयोगवर् फरमान का पत्र

102
रघुनार्जी के पैर के पास ी रखा र्ा |

ककसान जब बड़े प्रेम से मिंहदर के उस

ववग्र को अपने रघुनार्जी के रूप में

पररचय दे ने लगा तो जज सा ब के दोनों

आँख भर आए | जासा ब तो उस ककसान

को ी दे खते र े जजसके पास रघुनार्जी

पर अपार श्रिा तर्ा ववश्वास रूपी अमोल

धन र्ा | एक ककसान प्रभु प्रेम का इतना

धनी र्ा कक भगवान भी अदालत में आकर

उसके पक्ष में गवा ी दे ने लगे |

इस घटना से जज सा ब

ब ु त प्रभाववत ु ए और अपने कमम जीवन

से अवकार् लेकर मर्रु ा, विंद


ृ ावन में र ने

लगे| उन् ोंने भजक्त मागम को ी अपने

जीवन का पार्ेय बनाया | जीवन भर य ी

103
सोच ववचार करते र े की सरलता और

सादगी का धनी व ककसान कैसे

रघुनार्जी से सिंवाद करता ोगा !

ईश्वर से सिंवाद कर पाने की जस्र्तत

में एक मन ी दस
ू रे मन के तरिं गों से

ओतप्रोत ो सकता ै , एक मन ी दस
ू रे

मन की पररचधयों को समझ सकता ै |

र्सर्फम इतना ी न ीिं मन के ग न चेतना

में ी आत्मा और परमात्मा के र्मल पाने

का र स्य तनह त ै | जब कोई व्यजक्त

अपने ककसी कारनामों को ऐश्वररक सत्ता

से जोड़ता ै तो उस िम में भी हदव्य

र्जक्त के अचधष्ट्ठान की बात क ी जाती ै|

104
ब्रह्म एक रूप अनेक

अिंततः म ब्रह्म को उसके स ी

स्वरुप में समझने का प्रयास कर सकते ैं|

सभी पौराखर्क कृततयों में ववववध प्रकार से,

ककसी घटनािम के जररये, आत्मा कक

अववनश्वरता को समझाते ु ए, कतमव्य

परायर्ता कक र्र्क्षा दे ते ु ए सिंत गर्

ब्रह्म के स्वरुप को ी बताते र े ैं |

उनके र्लए सभी जीव य ाँ तक कक परम

सत्ता का आधार भी ब्रह्म ी ै |

वेद प्रततपाद्य ववर्य य भी

ै कक ब्रह्म सवमत्र ववद्यमान ै तर्ा इसे

सभी जीव में , सिंसार के सभी कर्ों में दे खा

जा सकता ै | इस र्जक्त स्वरूप को

105
प्रत्यक्ष करते समय अक्सर व्यजक्त भ्रर्मत

ो जाता ै |

एकबार एक व्यापारी को भगवान ने

सपना हदया कक व अगले हदन अपने ईष्ट्ट

दे वता का दर्मन कर सकेगा | उसके ईष्ट्ट

दे वता उससे र्मलने के र्लए आएँगे | इस

पररजस्र्तत के र्लए व्यापारी प्रस्तुत न ीिं

र्ा| अतः उसने सफाई करके अपने दक


ु ान

पर ी भगवान के बैठने आहद का प्रबिंध

करके अपने ईष्ट्ट दे वता के र्लए इिंतजार

करने लगा | ककसी को बताने से र्ायद ी

कोई उसका ववश्वास कर सके ऐसा सोचकर

उसने ऐसी तैयारी के बारे में ककसी को न ीिं

बताया | पूछे जाने पर क ता र्ा, "आज

मेरे घर मे मान आएँगे |"

106
सुब से एक के बाद एक कई

व्यजक्त का आना ु आ | सबसे प ले एक

चरवा ा आया, उसके ार् में एक फल र्ा

और फल लेने के कारर् बगीचे का

रखवाला उसे खदे ड़ र ा र्ा | व्यापारी ने

उसे दो लड्डू खखलाकर ववदा ककया | र्ोड़ी

दे र बाद काँपते ु ए एक बुहढया आई, उसके

पीछे पीछे एक लधर आया, अिंततः हदन

ढलते समय एक बिंजारा आया | पर

हदनभर तो भगवान का कोई आता पता न

र्ा! उसने सोचा कोई कसर र गया ोगा|

र्का ु आ व्यापारी दे र रात सोया |

रात के आखरी प र में उसे भगवान सपने

में आए और लड्डूओिं के बारे में बताने

लगे| स्वाहदष्ट्ट र्मठाई खाने के र्लए कई

107
बार आए | र बार उन् ें य ी लगता र्ा

कक अबकी बार व्यापारी भक्त जरूर उन् ें

प चान लेगा | आने वाले दीनो में भगवान

कफर आएँगे ऐसा भी क े | भगवान का

सपना पाकर व्यापारी रोने लगा | उसे

अपने उपर ववश्वास ी न ीिं ो र ा र्ा|

भगवान का स्वरूप सोचकर उसे मन ी

मन आनिंद भी ो र ा र्ा | उस हदव्य

र्जक्त का दर्मन पाकर खद


ु को धनी

म सूस कर र ा र्ा |

भक् त और भगवान के ऐसे सिंवाद

में ककसी तीसरे पक्ष की कोई भूर्मका

प्रततभार्सत ो पाना कहठन तो ै ी

असिंभव भी ै | में उस हदव्य र्जक्त को

अपने तनकट उपजस्र्त मानकर ी कायमरत

108
र ना ोगा | जीवन पर् का य ी पार्ेय

ोना चाह ए |

ब्रह्म ववद्या एक ऊच्च ववद्या ै|

य इिंहिया ग्रा ी न ीिं ै , पर इसके कारर्

ी जीवों की व्याजप्त सिंभवपर ै | क्षुितम

कर्ों में भी ब्रह्म ववद्यमान ै | ववद्व

जनों को चेतना की र पररजस्र्तत में ी

इसका बोध ोता र ता ै | सभी बिंधनों से

मुक्त अभ्यासी ी ब्रह्मववद्या प्रीत्यर्म

र्ाश्वत मागम पर चल पड़ता ै | उस

अववनार्ी आत्मा को परमात्मा का दर्मन

अतनवायम ी ै | ब्रह्म का स्वरूप उद्घाटन

एक यक्ष प्रश्न ै और सार् ी सार् य

एक तनरिं तर चलनेवाला प्रयास भी ै |

109
आत्मज्ञानी के र्लए जठराजग्न ब्रह्म का ी

स्वरूप ै तर्ा उस अजग्न में डाला

जानेवाला भोजन एक यज्ञ ी ै | सवमत्यागी

और लोखखतार्म कतमव्य पर् के पररपजन्र्

म ात्मा सवोत्तम यज्ञ करने के धनी ोंगे,

क्यूिंकी उन् ोने लोकह तार्म ज्ञान यज्ञ में

आत्मा ू ती दे ने का तनश्चय कर र्लया ै|

सन्यास लेने वाले सभी म ात्मा इसी मागम

पर चलनेवाले तपस्वी ोते ैं जजन् े ब्रह्म

का ज्ञान प्राप्त करते ुए लोकह तार्म

अवश्य पालनीय का ववधान दे ना ै|

ब्रह्म ज्ञान प्राजप्त े तु अभ्यासी

अगर तनष्ट्ठापूवक
म तर्ा तनरिं तर अपने ईष्ट्ट

दे वता पर ध्यान केंहित करता ो व ी

सरल तर्ा आत्मज्ञानी तपस्वी ईश्वर तर्ा

110
ऐश्वररक र्जक्त का साजन्नध्य म सूस कर

सकता ै | जीवात्मा और परमात्मा का

साजन्नध्य सदै व ी सिंभव ोता ो, पर इसे

अनभ
ु व करनेवाला मन तो र्ि
ु चेतन

स्वरूप ी ोगा | ब्रह्म का स्वरूप दे व

और दानव दोनों में समान रूप से व्याप्त

ै | इसका सम्यक ज्ञान करते ु ए युि भूर्म

में घायल लिंकापतत रावर् के पास अपने

भाई लक्ष्मर् को भेजकर मयामदा परु


ु र्ोत्तम

राम ने रावर् से ज्ञान प्राप्त करने के र्लए

क ते र े | मत्ृ यु को प्राप्त करने से प ले

क ा गया र वाक्य उस व्यजक्त का ब्रह्म

वाक्य ोगा | रावर् भी परम ज्ञानी ोने

के सार् सार् तनष्ट्ठापूवक


म उपासना

करनेवाला भक्त वत्सल म ादे व का

उपासक र्ा | व भी ईश्वर प्रेम का धनी


111
परमात्मा का अनुभव करनेवाला तपस्वी

र्ा| इसका यर्ावत सम्मान करने े तु

मयामदा पुरुर्ोत्तम राम ने अपने भाई को

सार् में लेकर सत्य प्रीत्यर्म एक ऐसे स्र्ान

पर जाकर खड़े ो गये ज ाँ लिंकाचधपती

अनुज सह त श्री राम को आसानी से दे ख

सकें | य घटना ब्रह्म ज्ञान से पुष्ट्ट दो

आत्माओिं को र्मलन को दर्ामता ै | इससे

य भी सवाल पैदा ो जाता ै कक ब्रह्म

ज्ञान प्राप्त करनेवाला सुर ोने के सार्

सार् असरु भी ो सकता ै | इस सत्य

को ध्यान में रखते ु ए गुरुजन ब्रह्मज्ञान

कराने के प ले वप्रत्यार्ी का पात्रता े तु

परीक्षा लेते र ें गे, तर्ा पात्रता पुष्ट्ट ोने के

उपरािंत ी उसे ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का

मागम बताएँगे |
112
ऋवर् माकमण्डेय को ब ु त ी कम

उम्र में ब्रह्म तत्व का ज्ञान ो गया र्ा|

पूवम तनधामररत ववधान के अनुसार उन् ें कम

उम्र में ी यमलोक भी जाना र्ा | पर यम

के सामने खद
ु म ादे व बाधक बन गये,

क्यूिंकी ऋवर् माकमण्डेय सवम त्यागी ोकर

म ादे व की र्रर् ले चक
ु े र्े | म ादे व के

आर्ीवामद के धनी ऋवर् माकमण्डेय अपने

तपश्चयाम को जारी रखा | ऐसी भी मान्यता

व्याप्त ै की माकमण्डेय र्र्व मिंहदर में आज

भी ऋवर् का अववनार्ी आत्मा पज


ू ा करने

के र्लए आता र ता ै | ईश्वर प्रखर्धान

ववश्वास का धन लेकर भक्तों को समि


करते र े गा | व ीिं दस
ू री ओर भ्रर्मत

व्यजक्त के र्लए इस ब्रह्म स्वरूप को

म सूस कर पाना असिंभव सा प्रतीत ोगा |


113
ज्ञानी जन खद
ु को सदै व ी तकम, र्िंका,

सिंघर्म आहद कियाओिं से खद


ु को अलग कर

लेते ैं | उनके समझदारी से मेल रखनेवाले

आत्माओिं का ी साजन्नध्य ब्रह्म ज्ञान के

यज्ञ को दर्ामएगा, जजसमें आ ु तत दे नेवाले

खद
ु को ववश्वास और श्रिा के धनी बना

सकेंगे|

114
भस्तत सम्मेलन

अक्सर दे खा गया ै कक भगवान

अपने भक्तों से काम करवा लेते ैं| कुछ

ऐसी व्यवस्र्ा बनती ै जजससे अभीष्ट्ट

लक्ष्य प्राजप्त में सुगमता का तनमामर् ोने

लगता ै|

दक्षक्षर् भारत में एक कवव

दररि पररवार से र्े, पर ब ु त माने ुए

र्र्व भक्त र्े | उसी राज्य का राजा भी

एक बड़ा र्र्व भक्त र्ा | र्िंकर भगवान ने

दोनों को सपना हदया, दररि कवव के मिंहदर

में आएँगे तर्ा राजा के राज्य में आएँगे,

ऐसा बताया | सिंयोगवर् राजा एक ववर्ाल

र्र्व मिंहदर का भी तनमामर् करवा र ा र्ा |

115
उनको लगा की ईष्ट्ट दे वता को उसी मिंहदर

में प्रततजष्ट्ठत करना सिंभव ो सकेगा |

उनके पास ऐसी भी खबर आई की ककसी

गाँव में भजन कीतमन में लोग झम


ू र े ैं |

उसी गाँव एक दररि ब्राह्मर् के य ाँ

भोलेनार् आएँग,े ऐसा सपना खद


ु र्िंकर

भगवान ने हदया ै | मजे की बात य ै

कक उस ब्राह्मर् का मिंहदर सपने का ै |

राजा उस ब्राह्मर् से र्मलने के र्लए

तनकल पड़े | गाँव में पेड़ के नीचे ध्यान

रत उस ब्राह्मर् से मिंहदर का वववरर्

सुनते र े तर्ा अपने मिंहदर से र्मलाते र े |

दोनों मिंहदर सिंपर्


ू म रूप से र्मल र ा र्ा|

य असिंभव को सिंभव करने का काम करने

वाले ईष्ट्ट दे वता र्र्व दोनों भक्तों के

अिंतममन में ववराजमान र्े | उपजस्र्त


116
जनता इस घटना को प्रत्यक्ष कर र ी र्ी|

सबके मन में एक ी प्रश्न र्ा | दोनों

भक्तों में इसके प ले कभी मुलाकात न ीिं

ु ई र्ी, पर तनमामर् में समानता आने का

क्या र स्य ो सकता ै?

र स्य का कारर् तो प्रभु भजक्त से

र्ा | दोनों का अिंतममन र्र्व भजक्त से

ओतप्रोत र्ा | अतः उनके उपासनाओिं में

समानता का ोना एक नैसचगमक घटना ी

ै | भगवान ने दोनों भक्तों के पुरुर्ार्म को

जोड़कर असिंभव को सिंभव कर हदया| एक

तनष्ट्ठावान भक्त को उसके सपने का मिंहदर

पाने का मागम तनकाला | उसके मिंहदर में

आकर उसी राज्य के राजा को भी धन्य

ककया| मिंहदर तो मन में भी ो सकता ै!

117
उपासना के र्लए सदै व पैसा चाह ए ऐसा

भी न ीिं ै| म जीवन मिंत्र से भी अपने

ईष्ट्ट दे वता को प्रततजष्ट्ठत कर सकते ैं|

भगवान को तलार्ते ु ए स्वामी

वववेकानिंद अपने गुरु रामकृष्ट्र् के पास

प ु ँ च गये र्े| र्सर्फम इतना ी न ीिं भगवान

का दर्मन करने के र्लए तैयार भी ो गये|

जब ववग्र के सामने कुछ माँगने की बारी

आई तो उनका मन त्याग और वैराग्य की

ओर चला गया, आदतन भौततक सुख

सवु वधा माँगने से चक


ू े | असली भजक्त

सुधा का धनी जीवन सबके र्लए सुख

सुववधाएँ तलार्ते र ता ै | उन् ोंने भी

ऐसा ी कर पाने लायक र्जक्त अपने ईष्ट्ट

दे वता सा माँगा |

118
राष्ट्र भजक्त और ईष्ट्ट भजक्त के

स्वरूप में ववस्तर समानता हदख सकता ै|

दोनों मागी ी आदतन गुरुमुखी,

तनष्ट्ठावान, आजस्तक, धममपरायर् ोने के

सार् सार् लोकह त में कतमव्यरत भी ोते

ैं | एक भक्त का प ला गुर् तो सरलता,

सादगी और तनष्ट्ठा से पररपूर्म मन ी ै|

उसके मन में र्िंकाओिं के र्लए कोई स्र्ान

न ीिं र ता ै | भक्त भी भगवान को

अिंतममन में समा सकता ै | भगवान भी

भक्त की अक्िं क्षाओिं पर खरे उतरते ैं |

दोनों का सिंवाद भी आजत्मक सिंवाद ोता

ै|

भक्त और भगवान के सजम्मर्लत

प्रयासों से लोक ह तार्म कियाओिं का

119
अनेकोनेक उदा रर् अपने पररमिंडल में

र्मल सकता ै | अपने दे र् में ार्रस

नामक एक रे ल स्टे र्न पर एक बार एक

स्वामीजी कार्फी दे र से बैठे र्े | समय भी

बीता जा र ा र्ा | उनके बैठे र ने की बात

स्टे र्न मास्टर को बताया गया | मास्टरजी

ने उस सन्यासी को कुछ न क ने के र्लए

सबको बताया | आखख़र खद


ु ी सन्यासी

के पास गये तर्ा ाल चाल पछ


ू ा |

बातचीत करके कार्फी प्रभाववत भी ु ए|

स्वामीजी का भक्त बनने के र्लए भी

मास्टरजी आग्र ी ु ए | स्वामीजी ने क ा

कक अगर मास्टरजी अपने सिंद


ु र चे रे पर

राख लगाकर आ सकें तो दीक्षा जरूर

र्मलेगी | मास्टरजी कीकत में चे रे पर

राख लगाकर आ गये | अपने भक्त की


120
सरलता के सामने स्वामीजी बबल्कुल ी

वववर् र्े| अपने भक्त को उन् ें स्वीकार

करना पड़ा | वो भक्त ी उनके सन्यास

जीवन का प ला भक्त र्ा |

भजक्त की धारा में चल

पड़ने का अनेकोनेक उदा रर् म दे सकते

ैं| सबका एक ी ध्येय र ा, सवमजन

कल्यार्, सवमजन सेवा तर्ा धमामर्म सेवा |

भजक्त की धारा में ब्रह्म ववद्या का

अभ्यास करने वाले आचायम ववनोबा भी

जनह त में ी कृत कमों को अिंजाम दे ते

र्े| उनका व्यजक्त जीवन भी लोकह तार्म

तपस्या का ी मानक बना |

भजक्त का ी व्यापक स्वरूप

राष्ट्रभजक्त ै जो अपने नागररकों को

121
आवश्यपालनीय का ववधान अपनाते ुए

करना ै | एक नागररक जीवन का प ला

ध्येय ी राष्ट्रभजक्त ै| राष्ट्रभजक्त को

धर्ू मल करने वाले सभी तत्वों की प चान

करते ु ए एक ऐसी व्यवस्र्ा कायम करने

की जरूरत ै जजसमें सभी नागररक अपने

राष्ट्र के प्रतत कतमव्यपरायर् ोने के सार्

सार् दायत्वर्ील भी ो सकें |

जजन् ोंने राष्ट्र को ी

अपना ईष्ट्ट दे वता मान र्लया ो उनके

र्लए य स्वाभाववक ी ै की सभी कमों

को राष्ट्रह त में ककया जाने वाला पुरुर्ार्म

मान लें | उनका जीवन भी व्यजक्त जीवन

से उभरकर सामुदातयक जीवन के रूप में

मारे सम्मुख प्रततभार्सत ोता र े गा | य

122
राष्ट्रह त में काम करनेवाले कायमकताम का

भी लक्षर् ै | उसके र्लए जजम्मेदारी

बाँटने तर्ा आदे र् आने का कोई म त्व

न ीिं र ता ै | कायमकताम तो एक

अनुर्ार्र्त व्यवस्र्ा में अपने अिंतममन में

समाववष्ट्ट ईष्ट्ट दे वता के तनदे र् पर

कियाओिं को अिंजाम दे ते र ता ै | ऐसे

ववचारविंत कायमकतामओिं का ोना एक राष्ट्र

की सफलता का प ला मानक ोगा |

अदरू भववष्ट्य में उन् ें ी अग्रज की भूर्मका

में दे खना ोगा |

में अगर य समझ में आ जाये

कक व्यजक्त जीवन में अह स


िं ा सदा ी मारे

जीवन के सार् सार् मारे सार् जुड़े ुए

अन्य जीवन को भी सिंवारने वाला ोगा तो

123
म उस मागम पर ज्यादा से ज्यादा

अभ्यासी को चल पड़ने के र्लए प्रोत्साह त

करना चा ें गे. | इस बात के र्लए भी मारे

मन में कभी द्वन्द न ो कक ककसी ख़ास

सिंत ने अह स
िं ा को भली भािंतत समझा पाने

में सफल ु ए और अन्य सभी जन असफल

र े | अह स
िं ा का तत्व मानव सभ्यता के

प्रचलन से काफी प ले का तत ्व ै |

ऋवर्यों ने उसके सग
ु मता, सरलता,

उपादे यता आहद को खोज तनकला ै , इतना

ी म क सकते ैं | इस तत्व को पोवर्त

करने वाले स ायक व्रतों को अगर म

सफलता पव
ू क
म अपने जीवन में उतार लें

तो ी ऋवर्यों के जीवन को सफल मान

लेना ोगा |

124
भारतीय दर्मन के कई पक्षों में

सक्ष्
ू मता के सार् इस व्रत के व्याव ाररक

पक्षों का भी वर्मन ककया गया ै |

मानवता के आधतु नक पररप्रेक्ष्य में भी

अह स
िं ा का तत्व समान रूप से कारगर

र नेवाला ै | कालखिंड में भले ी पररवतमन

आ जाएँ, पर तत्वगत सम्मलेन में म उस

तत्व को ज्यों का त्यों ी जीवन सुधारक

मन्त्र के रूप में अपना सकेंगे.

अगर म य सोच लें की सिंसार में

उपलब्ध तमाम उजाम श्रोतों पर मारा

तनयिंत्रर् स्र्ावपत ो जाए तो य दरू गामी

स्र्ायी ववकास लाने में कामयाब न ो

सकेगा | इसमे मारी सिंसाधन र्ुचचता का

दर्मन न ीिं ै | उजाम का ववस्तार तो स्वतः

125
स्फूर्त प्रकिया ै | उस प्रकिया से तालमेल

रखकर में भी र्ाश्वत प्रगती का मागम तय

करना ोगा | कोई भी प्रगतत सिंसाधनों के

बीच तालमेल स्र्ावपत ककए बबना प्राप्त

न ीिं ककया जा सकेगा | प्रगतत का मागम

आपसी सिंघर्म तर्ा ह स


िं ा के मागम से भी

न ीिं र्मल सकता ै | र्जक्त परीक्षर् तर्ा

आपसी झगड़ों में उलझे दे र् को भी समझ

में आने लगा ै , उन् े भी सिंप्रदायों के बीच

व्याप्त तनाव कम करते ु ए समन्वय का

मागम ी चन
ु ना ोगा |

र्ाश्वत मागम पर कोई भी एक

सिंप्रदाय अकेले न ीिं बढ सकता ै | ककसी

एक सिंप्रदायों का गला दबाकर अन्य ककसी

सिंप्रदाय के अरमानों को पूरा करना सम्भव

126
न ीिं ो सकता ै | समाज एक ऐसा चि

ै जजसमें आगामी प्रजन्म े तु कायम करते

ु ए दायत्वर्ील समू को अग्रज बने र ना

ोगा |

इस धरती पर कई बार

ववनार् का तािंडव ो चुका ै | बड़े बड़े

दानवीय जानवरों को र्मटना पड़ा, अतः य

स्वाभाववक ी ै कक जब जब नैसचगमक

व्यवस्र्ा का सिंतल
ु न बबगड़ेगा तब तब

ववनार् लीला से सिंसार को गुजरना ोगा |

इसमें समग्र मानव सभ्यता का नष्ट्ट ोना

भी सिंभवपर ो सकता ै | इन हदनों इसी

र्लए सभी जन समू ों में युि के खखलाफ

आवाज बुलिंद ो जाता ै | अब ककसी

अलगाववादी ताकतों को ज़्यादा जमीन न ीिं

127
र्मल र ी ै | य सूचना तिंत्र का ी

वरदान ै कक जागततक ववचारों को तरु िं त

जनबल र्मल जाता ै | जनता जनादम न

के खखलाफ कोई आवाज बल


ु िंद ो ऐसा

दःु सा स र्ायद ी कोई करना चा े |

र्र्क्षा से समाधान पाने का

ववश्वास रखने वाला समू र्ैक्षक्षक प्रकिया

में कुर्लतापव
ू क
म अिंर्भाचगता सतु नजश्चत

करते ु ए समग्र ववकास प्रकिया का ह स्सा

बन सकेगा | आज भी ववडिंबना य ी ै

कक आधतु नक र्र्क्षा व्यवस्र्ा में सभी

अिंर्भागी समू ों को ववश्वास न ीिं ै |

आहदम जनजातत के कुछ सिंप्रदाय आज भी

मुख्य धारा से खद
ु को दरू रखा | .एकबार

128
झाड़खािंड के एक जजले में र्र्क्षा

सवेक्षर् का काम चल र ा र्ा | अपना

मनोगत व्यक्त करते ु ए ववद्यालय की

उपादे यता ववर्यक र्िंका बताते ु ए एक

आहदवासी मुखखया ने क ा, "बड़ा उपकार

ोता अगर इन सभी ववद्यालयों को बिंद

कर हदया जाता | इन ववद्यालॉयोँ में जाने

वाला लड़का ल चलाना भूल जाता ै |

कोई काम करना भी न ीिं चा ता ै , र्सर्फम

कागजों का बोझ उठाकर नौकरी तलार्ते

ु ए र् र की ओर भागने लगता ै | सभी

जमीनें बिंजर ो र ी ैं | आगे चलकर य

बड़ी समस्याओिं को जन्म दे गा | बार्लकाएँ

घरे लू काम काज से दरू र ी ै ."

129
उस ग्रामीर् का र्िंका ग़लत भी

न ीिं र्ा , ज़्यादा भ्रामक भी न ीिं पर

इसका तुरिंत में कोई तनदान भी खोज

तनकलना सिंभवपर न ीिं ो र ा र्ा. र्र्क्षा

का साधारर् तिंत्र सभी समू ों पर समान

रूप से लागू ो भी न ीिं सकता. अगर

स भाचगता को सुतनजश्चत करना चा ें तो

में व्यवस्र्ा में पररवतमन र्ीलता को

अिंजाम दे ना ोगा. स भाचगता ी व ववधा

ै जजसके जररए कियार्ील समू अपने

अरमानों को मत
ू म ोता ु आ प्रत्यक्ष कर

सके. आधतु नक र्र्क्षा के इतने तनखार का

दावा करनेवालों के र्लए उस आहदवासी का

र्िंका तनरसन ककसी चन


ु ौती से कम न ीिं ै.

इसपर अभ्यास कर पाना भी र्ोधकतामओिं

के र्लए कहठन ी ोगा क्यूिंकी इस ववधा


130
का अभ्यास करने वालों को आहदम

जनजातत के सािंस्कृततक ववरासतों के बारे

में सम्यक जानकारी प्राप्त करना ोगा |

र्र्क्षा और सिंस्कृतत का सफल सम्मेलन के

बाद ी में कािंक्षक्षत सफलता का दर्मन ो

सकेगा.

131
जंगी सनक या सनकी जंगबाज!

ककसी भी दे र् के मुखखया से पूछा

जाए कक जिंग के बारे में उसकी क्या राय

ै तो अचधकािंर् क्षेत्र में न ीिं में ी उत्तर

र्मलेगा, ाँ क नेवालों पर सबकी नजर

हटकने लगेगी, क्यूिंकी जिंग छे ड़ना और उसे

चलाए जाना आज की पररजस्र्तत में र्ायद

ी ज़्यादा कारगर ो सके | अभी छोटे से

छोटे मुल्क के पास भी परमार्ु ऊजाम से

सल
ु गनेवाली माचचस की तीर्लयाँ ैं, र्सर्फम

सुलगाने भर की दे र समझें | उसके बाद

का नजारा तो दे खने लायक ी ोगा |

मौजूदा ववश्व धरातल पर सनकी तानार्ा ों

की चगनती बढती जा र ी ै | उसमें कुछ

132
और नाम जोड़े जा र े ैं, जजनपर अिंकुर्

पाना समग्र ववश्व व्यवस्र्ा के र्लए ककसी

चन
ु ौती से कम न ीिं समझना चाह ए |

प्रत्येक राष्ट्र ी अपनी अपनी भर्ू मका अदा

करने े तु स्वतिंत्र ोने के सार् सार् कुछ

द तक सक्षम भी ै | जिंग के ालत

अगर बनते भी ों तो तबा ी का प्रमार्

दोनों पक्षों के र्लए प्रबल और ववकराल रूप

वाला ी ोने की सिंभावना जताई जा

सकती ै | आधतु नक पररप्रेक्ष्य में जिंग का

मैदान जमीन, पानी और आसमान के सार्

सार् अिंतररक्ष तक भी पसर सकेगा, उसकी

सर दी सीमाओिं में कौन आया और कौन

न ीिं इससे भी ज़्यादा म त्व का मुद्दा ोगा

कक र्त्रप
ु क्ष को ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान

ु आ की न ीिं |
133
ककसी लोकतिंत्र के द्वारा सिंचार्लत

राष्ट्र के र्लए इतना तो तय ै कक उन् ें

अपने जनता जनादम न की आकािंक्षाओिं के

सार् तालमेल रखते ुए ी भूर्मकाएँ तय

करनी पड़ेगी | और ज ाँ तानार्ा ी ववश्व

की कल्पना ोती ो व ाँ प्रततपक्ष से चोट

पाने के भय से पूरी व्यवस्र्ा स मी र ती

ै | ऐसे डरे ु ए लोग कभी कभी अचधक

घातक भी र्सि ोते ैं | आज र्ायद ी

ऐसा कोई दे र् ो जो ककसी पररवार के

वचमस्व को पूरी तर मान ले , और पीढी

दर पीढी उसकी गुलामी करने में समाधानी

ो | आज तो वैयजक्तक भेद को दरू करते

ु ए सजम्मर्लत र्जक्त से कुछ कर गुजरने

134
में लोग ज़्यादा ववश्वास रखते ैं, ना कक

ककसी सार्ी सिंप्रदाय के अरमानों के कुचले

जाने में |

आिमर् प्रतत आिमर् का र्सलर्सला

चल पड़ने के प ले इस ववर्य की तनगरानी

र ती ै कक प्रततपक्ष सम् ल जाय, मान

जाय, पीछे टे और पररजस्र्ततयों का

आकलन कर सके | य कुछ ऐसी प्रकिया

ै जब कृष्ट्र् भगवान जरासिंध के र्लए

पाररयाँ चगन र े र्े | इसकी तुलना उस

पररजस्र्तत से भी की जा सकती ै जब

रावर् के पास बार बार र्ािंतत दत


ू भेजे जा

र े र्े, वो रावर् का घमिंड ी र्ा जो उसके

पूरे पररवार, राज्य और सिंसार को झेलना

पड़ा |

135
सिंघीय व्यवस्र्ा में दे र्ों का करीब आना

और साझी रर्नीतत के अिंतगमत कायम करना

इस बात का भी सिंकेत दे ता ै कक तनाव

कम करने से ज़्यादा उस तनाव की जस्र्तत

में खद
ु के कारनामों को पसारने में ज़्यादा

समाधानी दे र्ों का समू अपने पाने

म त्वाकािंक्षाओिं का समीकरर् करते ुए ी

नीततयाँ तनधामररत करें गे | सबसे प ला

सिंघर्म व्यापार जगत से र्रू


ु ोगा और

अिंतररक्ष तक फैल जाएगा | सूचना तिंत्र भी

इससे अछूते र ने वेल न ीिं ैं|

136
मैत्री का यग

जब आचायम ववनोबा मैत्री की बात

ककया करते र्े तब उनके आस पास

बैठनेवालों के र्लए य ककसी ँ सी मजाक

से कम न ीिं लगता र्ा, पर इसकी गिंभीरता

का आकलन म आज के ववश्व में आसानी

से कर सकते ैं | व ी तनयमन आज राष्ट्रों

को एकजट
ु करके ककसी बा री र्त्रु का

मुकाबला करने े तु बल प्रदान करनेवाला

मिंत्र ै | इस बात को कुछ इस तर भी

समझा जा सकेगा, अगर ककसी प लवान

के खखलाफ सभी दर्मक एकजुट ो जाएँ तो

उस प लवान को मैदान छोड़कर भागना

ोगा |

137
गुरु र्र्ष्ट्य परिं परा में ककया जाने

वाला सिंवाद जजतना फलदायी ोगा उससे

क ीिं ज़्यादा फलदायी ोगा मैत्री का

सम्मेलन | गीता में इसी र्लए कृष्ट्र्

भगवान ने अपने गिंभीर स्वरूप को र्मत्रता

के मिंत्र से सरल और सुगम बना हदया,

ताकक अजुन
म के मन में पसरने वाले सभी

र्िंकाओिं को दरू करते ु ए उसे पूर्म ब्रह्म के

हदजप्त से ओतप्रोत ककया जा सके | मैत्री

के मिंत्र को प्रततस्र्ावपत करते ु ए आचायम

ववनोबा अपने दरू दर्ी ोने का प्रमार् दे

चक
ु े र्े, उनके भक्तों और सेवकों ने अपने

जीवन को ब्रह्म ववद्या के मिंत्र से

दीजप्तमान रख पाने में ी समाधान माना,

अवपतु उन् ोंने राष्ट्रह त में लोकसततात्मक

समाज का एक दार्मतनक पक्ष भी


138
सम्यकत्व के सार् सबके वववेचनाधीन भी

रखा | एक नैसचगमक ववधा य भी ै कक

मैत्री का तनयमन ववश्व के सभी मानवों को

एक दस
ू रे से अचधकाचधक सघन करने के

र्लए उत्प्रेरक का कम करे गा | व मैत्री का

ी मिंत्र ै जो कक वैयजक्तक र्भन्नताओिं को

कम करने लायक एक सफल माध्यम का

काम करता र े गा | मैत्री के मिंत्र से ी

भेदकामी र्जक्तओिं को भी दर ककनार करते

ु ए लोग प्रगती की रा पर चल पड़ेंगे |

139

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