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कोरोना का तंतर् जाल

चंदन से नगु प्ता

आमुख

कोविद-१९ या कोरोना शब्द अब कोई नया शब्द नहीं रहा,


एक अनपढ़ नागरिक, सामान्य बच्चा यहाँ तक की प्रत्यन्त दु र्गम
इलाक़ों में रहने वाला व्यक्ति भी इसके बारे में काफ़ी जानकारी जु टा
चु का है | खुद को बचा सकने के उपायों पर भी गौर तलब कर चु का है
1
| हम अगर किसी विषय पर अब चर्चा करें भी तो वा विषय है इस
संक्रमण से पनपे वै श्विक परिस्थिति के बारे में , जहाँ विश्व व्यापार,
आपसी रिश्ते , कुछ वैचारिक सम्मेलन, कुछ मानवीय मु ल्यबोध आदि
विषयों में परिवर्तन आने का अनुमान हमें दिख जाता है |

कुछ परिवर्तन ऐसे भी होंगे जिसे रोक पाना हमारे नियंतर् ण में नहीं
रहने वाला, हमीं उसके उफान के साथ ताल मिलाकर चल पाने की
तमन्ना लिए अग्रज की भूमिका में ढाल जाना होगा | अगर हम
उस प्रकोप को नहीं झे ल पाए तो जाहिर सी बात है कि हमें मिटने के
लिए तैयार रहना होगा | लोकतंतर् , समाजतंतर् और पूज ं ी तंतर् के
बीच चलने वाले खींच तान का विषय संसार में आज कोई नया नहीं है
, इसके पहले भी दु निया इसे किसी और रूप में झे ल चु की है | अतः
उचित यही होगा कि वक्त की अहमियत को समझते हुए ,
् मत्ता का परिचय दे ते हुए और विश्व संस्कृति को जीवित रख
बु दधि
पाने लायक ठोस साझी रणनीति का निर्माण करके सभी जन कदम से
कदम मिलाकर चलने के आदि हो जाएँ |

इस प्रकाशन में कोरोना महामारी से जु ड़े आर्थिक, सामाजिक और


सांस्कृतिक पक्षोंकी विवेचना से चर्चा को आगे बढ़ाते हुए विश्व
संस्कृति को पु ष्ट कर पाने लायक परिस्थितियों पर प्रकाश डालने का
प्रयास किया जा रहा है |

कोरोना स्ल्पंदन शीर्षक प्रस्तु ति में विश्व परिस्थति में कोरोना


संक्रामण से जु ड़ी परिस्थितियों पर प्रकाश डालने का प्रयास हो
रहा है , उससे जु ड़े तथ्यों को उजागर किया जा रहा है और परिवर्तित
परिस्थिति को समझने का प्रयास किया जा रहा है , ऐसा ही हमें
मानना होगा |

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चंदन से नगु प्ता

प्रकाशक

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चिकित्सकों के सामने चुनौती

जब कोई ऐसे बीमारी से जूझना हो जिसका कि कोई ठोस


इलाज और निदान तंतर् ही न रहा हो उसके लिए चिकित्सकों और
चिकित्सा व्यवस्था से जु ड़े अन्य साथियों के लिए पूरा विषय
जोखिमों से भरा ही हो जाता है | उन्हें जानले वा बीमारी से ग्रसित
होने का डर भी रहता है | व्यवस्था में लगे लोग भी इसका शिकार हो
सकते हैं |

जान बचाने वाले के लिए ही जब जान की बाजी लगाने की नौबत आ


रही हो तो इस परिस्थिति में पीड़ित व्यक्ति को भगवान भरोसे छोड़ा
गया ऐसा ही हमें मानना होगा |

आपात कालीन परिस्थिति में ग़लत निर्णय होने का , समयोचित


निर्णय न हो पाने का, परस्पर विरोधी गु टों के बीच आरोप प्रत्यारोप
की स्पर्धा होने का और साथ ही साथ साधन संपदा , सत्ता आदि के
दु रुपयोग होने का ख़तरा मंडराते रहता है |

समझदारी से और धैर्य से काम लेने वालों का दल छोटा है या


बिल्कुल ही नहीं है ऐसा भी हम नहीं कह सकते , या फिर उन्हें
आवाज़ उठाने की आदत नहीं है यह भी समयोचित टिप्पणी करने
लायक विषय नहीं है | पूरी दु निया जहाँ एक आपदा से जूझ रही हो
वहाँ लोग अपने चिकित्सकों से कुछ ख़ास उम्मीदें लगाकर चलने
लगते हैं | पीड़ा को समझने वाला व्यक्ति कम से कम मरने से पहले
भी जीने के लिए दिलषा दे ते रहे गा | ईश्वर के दरवाजे खुल जाने से
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पहले ईश्वर का प्रतिनिधि बनकर आँखें बंद कर पाने हे तु सहयोग दे
सकेगा, मृ त्यु यंतर् ाणाओं से कुछ हद तक मु क्त भी कर सकेगा | कुछ
और भी पहलू ऐसे हैं जो चिकित्सकीय पेशा में लगे लोगों के सामने
उलझनें पै दा करने वेल हैं | क्या, कहाँ और कैसे करना है - इसके लिए
भी उन्हें अपने समझदारी के क्षे तर् का नवीकरण करते रहना होता है |

कोरोना संक्रमण के मद्दे नज़र चिकित्सकों के सम्मुख आए चुनौती का


क् रम कुछ इसी प्रकार उलझनें पै दा करने वाला हो रहा है |
परिस्थितियाँ उन्हें आँख बंद करके कुछ मरीजों को अलविदा कहने की
तैयारी में लगा दे ता है , कुछ एक घटनाएँ उन्हें भी संकट में डाल दे ता
है , कई जगहों पर खुद को लाचार बने रहने की पीड़ा भी उन्हें सताने
लगता है तो कहीं उनकी नज़र सूक्ष्म दर्शी के नीचे ही टिक जाती है |

प्रश्न अगर सिर्फ़ चिकित्सा उपकरणों की अप्रचूरता की करें तो सभी


बड़े बड़े शक्तिधर दे श कोरोना -१९ के समक्ष घु टनों के बल बै ठ चु के
हैं , और समुदाय स्‍तर तक इस विषाणु के फैलने से होने वाली
विनाशलीला का साक्षी बन रहे हैं , झे ल रहे हैं और बिखर भी रहे हैं |
उनके पास कुछ भी ठोस कहने लायक नहीं बच रहा है |

विषाणु के फैलाव का समीकरण जिन लोगों ने और समूहों ने ठीक से


समझा उनके यहाँ इसे रोक पाना कुछ हद तक संभव हो पाया है ऐसा
भी हमें मान्य करना होगा | अपनी कमज़ोरी को बताने में जितनी
वीरता है उससे कहीं ज़्यादा वीरता उन कमज़ोरियों को समझते हुए
साझी रणनीति बनाने में है |

कहा जाता है जहाँ हौसले बुलद ं हों और इरादे ने क हों वहाँ रास्ते
अपने आप ही खुल जाते हैं | किसी महामारी से या फिर विश्व स्तर
तक फैलने वाले ख़तरों से मानव संपर् दाय के द्वारा छे ड़े गये संघर्ष का
यह कोई पहला मौका नहीं है | इसके पहले भी उसी चीन से ब्लै क
डे थ नामक महामारी को फैलते हुए, और यूरोप की आधी आबादी को
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समाप्त करते हुए, दु निया दे ख चु की है | दोनों विश्वयु द्ध के ठीक पहले
पहले दु निया को महामारी की मार भी झे लना पड़ा था | आज
नयापन सिर्फ़ इतना ही है कि चिकित्सा विज्ञान के साथ सूचना तंतर्
और प्रोद्योगिकी का सम्मेलन हो चु का है और इसी वजह से निदान
तंतर् में एक नयापन आया हुआ है |

अछूते प्रश्न

नियंतर् ण और निदान तंतर् विकसित होना संभव


हो पाएगा या नहीं, उस निदान प्रक्रिया को रोजाना वै द्यकीय
कार्यक् रमों में जोड़ा जा सकेगा या नहीं, उस प्रक्रिया के साथ
वै द्यकीय तंतर् में लगे समूह एकरूप हो सकेंगे या नहीं आड़े कई
प्रश्नों के ठोस समाधान की ओर दु निया का कदम बढ़ चु का है |
सफलता अपने अपने स्तर पर सबको मिल ही जाएगी | दिमागी
कसरातों को बल दे पाने लायक सम्यकात्व कीटाणु ओं में रहता ही है
|

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व्यवस्था या सरकार!

हर बार यही प्रश्न का निर्माण होता है कि किसी भी आपदा


को न रोक पाने की, उसका डटकर मु काबला न कर पाने की
ज़िम्मे दारी किसकी! कौन से समूह के लोग, कौन से तंतर् या फिर
कौन सी व्यवस्था में लगे लोग कोई ख़ास ज़िम्मे दारी का पालन करें ?
क्या किसी ख़ास वर्ग को कोई ख़ास ज़िम्मे दारी अगर दिए गये हों तो
क्या अन्य सभी लोग उस व्यवस्था से खुद को अछूता रखें गे या फिर
ज़िम्मे दारी से खुद को डोर रखें गे ? क्या उचित और क्या अनु चित
इसका कोई ठोस तंतर् अभी तक समझदारी के क्षे तर् के बाहर है |

विभागीय समन्वय

भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक दे शों के सामने सबसे बड़ी


चुनौती है अपने तमाम विभागीय स्तरों के बीच सटीक सामंजस्य
त्वरित और अनतिविलम्ब लागू कर पाना | उनके सामने यह भी
चुनौतीपूर्ण ही होगा कि उत्पादक श्रम में लगे लोगों को ज़्यादा दिन
तक उनके उद्योग धंधों से कैसे अलग रख पाया जा सके, अगर हो भी
तो उसकी भरपाई करने लायक उपायोजना कौन कौन से हों | जब भी
किसी गतिविधि को एक विभागीय ढाँचों के अंतर्गत निर्णायत्मक
प्रक्रिया का हिस्सा बनने हे तु लगाया जाता है तब तब उसी
विभागीय समन्वय के मद्दे नज़र व्यवस्थापन और प्रबंधन में लगे
लोग पुनः पुनः अपने अपने गतिविधियों की समीक्षा में लग जाते हैं ,
इतना ही नहीं उन्हें कई सु धार से क् रमशः गुज़रना पड़ता है | आपदा

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प्रबंधन के आलोक में यह लंबित प्रक्रिया कदापि सराहनीय नहीं
हो सकता |

आपातकाल घोषित करने के बाद भी अगर विभागीय


समन्वय स्थापित न हो पाया तो बहुत बड़ी अव्यवस्था से जनता
जनार्दन को जूझना होगा | व्यवस्था की कमज़ोरी का पहला निदर्शन
मजदूरों के पलायन के रूप में सन्दर्भित होने लग गया | कोई राज्य
उनका स्वागत कर रहा है , तो अन्य कोई राज्य उन्हें बाहर निकाल
पाने की योजना पर काम करने लग सकता है | उन संवेदनशील गु टों
पर आरोप लगाना भी बहुत ही आसान हो जाएगा, वे आपबीती सुना
पाने की स्थिति में शायद ही खुद को सुरक्षित पाते हों | छोटे बड़े
सभी शहरों का नक्शा कोमोवेश एक जैसा ही है | असुरक्षित उद्योग
धंधों में लगे लोग ही कोरोना का पहला शिकार हो गये | विषाणु से
मीलों दूर रहते हुए भी उससे उत्पन्न परिस्थिति के अंतर्गत अपना
अपना रोजगारी वृ त्ति गँवा बै ठे और पु श्तै नी गाँव की ओर चल पड़ने
के लिए भी मजबूर हो गये |राजने ता के वादों से और अधिकारी वर्ग
की गुलामी से उन्हें परिचित कराने की आवश्यकता नहीं पड़े गी |

दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे के पास जमे लोगों की तकलीफ़


बयान करते समय एक संवाद माध्यम के संवाददाता सिर्फ़ कैमरे घुमा
घुमाकर उन चे हरों को, भूख से विलखते लोगों को दिखाए जा रहे थे ,
कुछ कह पाने के लिए आत्मबल जु टा नहीं पा रहे थे | वा भीड़ काफ़ी
कुछ बयान कर रही थी | उत्तर प्रदे श सरकार ने उनके लिए पहली
पहल दरवाजा खोल दिया | उनके पास लाखों की संख्या में लाचार
मजदूर पहुचँ रहे थे , उनका विश्वास एक संत स्वाभाव के व्यक्ति पर
टिक रहा था | एक भरोसा ही था जो उन्हें खींचे ला रहा था |

अग्रज और अनुज
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अपने दे श की एक ख़ासियत भी हमें गिनना होगा | सकट की घड़ी में
् को दर किनार करते हुए दे श के लोग एकजु ट
छोटी बड़ी भे द बुदधि
होकर उसका मु काबला करने में जु ट जाते हैं , चाहे वो यु द्ध के हालात
हों , या आपदा के या फिर कोई संक्रमण के , सबका एकजु ट होना
एक भवितव्य ही है | उन्हें किसी भी दृष्टि से कोई भी उपद्रवी शक्ति
गतिविधियों को सफलता की ओर मोड़ने से नहीं रोक पाता है | सन
१९६५ की लड़ाई आधे पे ट लड़ना, सरहदों पर से नानियों का डटे
रहना, दु श्मनों के दाँत खट्टे करना, परमाणु परीक्षण के बाद की
स्थिति का डटकर मु काबला करना आदि कई मु द्दों पर राष्ट्र अपने
कौशल्य और आत्मबल का प्रमाण दे चु का है | आपसी मतभे द
भूलकर सुर में सुर मिलाने हे तु राष्ट्रीय तंतर् को कुछे क मिनट ही
लगते हैं |

जिन ने तृत्व शक्ति पर लोगों ने विश्वास किया है वह अगर


कुछ बिंदुओं पर कमजोर भी पड़ जाते हों तो आपदा की स्थिति में
लोग उसका मुनाफ़ा उठाने के बदले में उसे दूर कर पाने में ज़्यादा
समाधान मानते हैं , लोग ऐसा करते भी हैं | आपदा की बात सुनकर
समृ द्ध भारतीयों ने भरपूर सहयोग करने के अपने अपने वादों से
सरकार का मनोबल, चिकित्सकों का हौसला और से नानियों के ने क
इरादों को और तगड़ा किया है |

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विश्व व्यापार का नक्शा

विश्ले षकों का यह मानना है कि कोविद १९ से जु ड़े


संकट से पर पाने के बाद से विश्व व्यापार के संरचनाओं में , उसके
घटक और उपघटकों में कुछ परिवर्तन आने की उम्मीद है | कौन सा
दे श कितनी तीव्रता से संकटों से उभर सकेगा उसपर ही निर्भर है कि
कौन सा दे श या कौन सा प्रांत विश्व शक्ति के रूप में उभर पाने की
ओर अपने वालिष्ठ कदम बढ़ा सकेगा, यह अमे रिका के लिए भी
उतना ही महत्व का है , जितना कि उसके साथ साझी रणनीति से
चलने वाले लोगों और समूहों के लिए ; इस दृष्टि से अप्रैल २०२०
तक अमिरिका को पिछड़ते हुए कोई भी दे ख सकेगा |

दोनों विश्व यु द्ध के समय अमे रिका अपने निर्णायक कदम से दु निया
को ओतप्रोत कर चु की है , समझा भी चु की है और संकटों पर अंकुश
पाने के अपने इरादों से सबको आगाह भी कर चु की है | अब एक और
संकतमे परिस्थिति से जूझते हुए आज अमे रिका और उसके साथी
दे शों को हम दे ख सकेंगे ; उनकी शक्ति के लिए यह किसी अग्नि
परीक्षा से कम नहीं मानना चाहिए | दु निया में ऐसी मान्यता भी फैल
रही है कि सबसे ज़्यादा प्रौद्योगिकी पर नियंतर् ण रखने वाले समूह
का मु खिया भी दिग्भ्रमित होने जा रहा है | जिस समय के आलोक में
हम परिस्थिति का विश्ले षण कर रहे हैं उस समय उन दे शों के सामने
अपने नागरिकों को मौत के मु ह ँ से निकाल लाने की जबरदस्त चुनौती
सन्दर्भित हो रही है |

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कोरोना वायरस का मामला एक विश्व महामारी के स्तर तक फैल
जाने के पीछे की असली कहानी से अभी भी लोग अनभिज्ञ ही हैं ;
सिर्फ़ अटकलों, आरोपों और प्रत्यारोपों के दौर से हमें धूमिल रास्तों
पर चलते हुए ही कुछ ठोस कदम उठाते हुए समस्या की जड़ तक
पहुचँ ना होगा | इस क् रम में कहीं लाचार लोगों का जीवन दाँव पर न
लगे इस ओर भी धान दे ना होगा | समस्या की जड़ तक पहुच ँ पाने के
उपरांत शायद यह संभव हो सके कि हमें विश्व स्तर पर साझी
रणनीति अपनाते हुए अग्रज बने दे शों के समीकरण में कुछे क
परिवर्तन दिखने लगे | क्या हम तबतक इंतजार करें या जहाँ हैं वहीं
से कचल पड़ें ?

असल में भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक दे श की बात अगर करें तो


जनता जनार्दन कि मानसिक, वैचारिक और आत्मिक शक्ति के
अनु रूप ही साझी रणनीति का समीकरण बने गा | इसका पहला पहलू
यही है कि विश्व प्रेम से ओत प्रोत भारतीय जन मानस कभी किसी
भी दे श का नु कसान सपने में भी नहीं सोचता | उन्हें समस्याओं से
झे लने वाले इटली, स्पे न, अमे रिका आदि दे शों से पूरी हमदर्दी है ; भले
ही अर्तबल से कुछ सहारा न दे पाते हों, पर आत्मबल और विवे कबल
से भारतीयों का मन पासीझता है |

तुरंत उठाने वाले कदम

कोरोना संक्रमण को रोकने के उद्दे श्य से तुरंत उठाए जाने वाले कदम
में सबसे पहला और ज़्यादा असर पै दा करने वाला कदम है सामाजिक
दूरी बनाए रखना, ताकि सौदाय स्तर पर इस बिमारी को फाने से रोका

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जा सके | इसी ओर एक वालिष्ठ कदम उठाते हुए स्तनीय प्रशशण
ने जगह जगह पर लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाए रखने के मकसद
से दै नंदिन गतिविधियों को तीन साप्ताह के लिए बंद रखने का निर्णय
लिया | इस दृष्टि से भारत, दक्षिण अफ् रीका, अमे रिका आदि दे शों में
से ना और सरकार बढ़ चढ़ कर यु द्ध स्तर पर कार्य कर रहे हैं | उनका
मनोबल बढ़ाने के लिए जनता का भी उन्हें साथ मिल रहा है |
स्वास्थ्य कर्मियों के सामने भी चुनौती इस बात का ही है कि सीमित
साधनों को उपयोग में लाकर हम जटिल परिस्थिति का मु काबला करें
भी तो कैसे !

जब तक समाधान की तलाश हो चु की होगी तब तक लाखों, हो


सकता है करोड़ों की संख्या में , लोग अपना जीवन गँवा चु के होंगे |

पशु ओं से इंसानों तक का सफ़र

वै ज्ञानिकों मे अभी भी इस बात को ले कर कोई स्पष्टता नहीं है कि


आख़िर पशु ओं के बीच घूमने वाला कोरोना वायरस इंसानी शरीर तक
का सफ़र कैसे तय किया होगा ! उसके अंतर्वर्ती चरण और रोग निदान
के प्रारूप कौन कौन से हुए होंगे, उसमें परिवर्तन आने की धाराएँ
कौन कौन सी होंगी | जिन प्रत्यक्ष प्रमाण पर इन विषयों को
प्रतिस्थापित किया जा भी सकता वी सबके सब चीन के वूहान शहर
के इर्द गिर्द ही पाए जा सकेंगे , जो की अभी किसी के भी पहुचँ के
दायरे से काफ़ी डोर है | जिन समूहों में एक विशे ष प्रकार के
निूमोनिया के लक्षण दियाम्बर २०१९ के समायकाल में पाए गये वो
समय और परिस्थितियाँ बदल चु की है | संक्रमण के दूसरे चरण के

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बाद से वायरस को सन्दर्भीत होते हुए दु निया इसके विनाशक रूप को
दे ख और समझ पाई |

चिकित्सा विज्ञान को चुनौती दे ने वाला वायरस इस बात के लिए ही


मानव संपर् दाय को भारी मोल चु काने हे तु विवश कर रहा है जिस ओर
वै ज्ञानिक पहले कई बार इशारा कर चु के थे |

चिकित्सा विज्ञान की दु निया में कहर वर्षाने वाले कोरोना के बारे में
सबसे पहला संकेत भे जने का काम जिस व्यक्ति ने किया था उस
व्यक्ति को जीवित रख पाने से चीन चूकी; वह मामला अभी भी
एक रहस्य बना हुआ है | लोग उसे कुछ और ही मान रहे हैं | आने
वाले समय में लोगों की निगाहें चीन पर इस बात के लिए भी टिक
सकती है कि चिकित्सकीय तंतर् में फेर बदल से उसका निपटने का
कौशल्य क्या है | अब उसके पास शायद बीमारी से लड़ने लायक
फौज भी रहे हों जो दूसरे दे शों को से वाएँ प्रदान करना चाहते हों |
् मत्ता साझा करने जैसी परिस्थिति कभी बन पाएगी या नहीं
बु दधि
इस विषय में हमारा कुछ कह पाना एक जल्दबाज़ी में उठाया गया
कदम होगा | इस वक्त सबसे ज़्यादा संकट में अगर कोई है तो वा है
मानवता, मानवीय विचारधारा और मानवतावादी विचारकों का समूह
|

अष्ट्रेलिया सरकार ने अगले छः महीनों के लिए बाहरी लोगों हे तु


सीमाएँ बंद रखने का निर्णय लिया | इसी तरह अन्य दे श भी अपनी
सीमाओं से बाहरी अनुपर् ावेश पर बंदिश लगाने के विषयों पर विमर्श
कर रही है , समस्या जब विश्व स्तर का हो तो ऐसे में एक दूसरे से
ज़्यादा दिन के लिए अलग थलग रहकर खुद को संक्रमण से बचाए
रखने का प्रयास भी ज़्यादा कारगर नहीं रहने वाला |

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जीवन शैली में परिवर्तन

कोरोना संक्रमण के बाद की परिस्थिति में अगर जनजीवन


सामान्य होते भी होंगे तो जनजीवन में कई प्रमुख परिवर्तन दे खे जा
सकेंगे | लोग ज़्यादा से ज़्यादा सूचना तंतर् , प्रौद्योगिकी और ई-
सु विधा को उपयोग में लाने के आदि हो जाएँगे, भीड़ भाड़ की
परिस्थिति से भी बचना चाहें गे , समय की उपयोगिता को समझें गे ,
सामुदायिक जीवन के महत्व से परिचित हो सकेंगे , पैसों और
संपदाओं की सीमाओं को समझते हुए स्वास्थ्य ही संपदा के मंतर् को
स्वीकारने लग जाएँगे | इस प्रकार से हम कई और परिवर्तन को
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गिना सकेंगे जो व्यक्ति जीवन को अधिकाधिक संवेदनशील बना
सकेगा | अपनों का महत्व, अपनी भूमि से जु ड़े रहने की आवश्यकता
और स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता का डंका भी बजे गा | राष्ट्र और
राष्ट्रीयता के मंतर् को भी उतना ही बल मिले गा | लोग एक दूसरे
को सहयोग दे ने की अहमियत को भी समझें गे |

इस परिस्थिति में राज ने तागण जनता जनार्दन की तकलीफ़ों को


समझ सकेंगे , उसे करीब से दे ख सकेंगे और उसपर ठीक से अमल कर
पाने के लिए नीति निर्देशक तत्वों में आवश्यक परिवर्तन भी ला
सकेंगे , वहीं दूसरी ओर जनता जनार्दन भी अपनी परिस्थिति को
समझते हुए जागरूकता के क्षे तर् को बढ़ा सकेंगे | उनको भी अपने
संवेदनशील होने का ज्ञान हो जाएगा |

आपसी तनाव कम करने के लिए लोग सोशल मीडिया का सहारा ले


रहे हैं , मित्रों से घंटों बातें कर रहे हैं , घरे ल ू काम काज में रूचि ले रहे
हैं और साथ ही साथ समय के महत्व को समझ रहे हैं | शास्त्र
संगत तर्क यह भी है कि बीमारी से उसके शु रू के क् रम में ही निपटा
जाए, अगर उसके सामुदायिक स्तर तक फैलाव हो जाए तो उसपर
अंकुश पाना असंभव ही हो जाएगा | अतः सामुदायिक
संवेदनशीलता के साथ साथ वैचारिक परिपक्वता और बौद्धिक
स्थिरता दिखाने का यही उचित समय है , ऐसा भी हम मान सकेंगे |

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कोरोना स्पंदन

२८ मार्च २०२०

बीते कुछ दिनों से यूरोप कोरोना वायरस महामारी का केंद्र


बना हुआ है . कई दे शों में सरकारें लोगों से घरों में बंद रहने के लिए
कह रही हैं और वायरस को फैलने से रोकने के लिए पाबंदियां लगा
रही हैं .

ले किन यूरोप में एक दे श ऐसा भी है जहां अधिकारी इस वायरस के


बढ़ते कदमों को रोकने के लिए आम जनजीवन पर पाबं दियां नहीं
लगा रहे . कोरोना महामारी से निपटने के लिए बे लारूस अपने निकट

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पड़ोसी यूरोपीय दे श, यूक्रे न और रूस की तरह कड़े कदम नहीं उठा
रहा है .

यूक्रे न कोरोना को रोकने के लिए आपातकाल का ऐलान कर सकता


है . रूस ने सभी स्कू लों को बं द कर दिया है , सार्वजनिक कार्यक् रमों पर
पाबं दी लगाई है और दे श से आने जाने वाली सभी उड़ानों को भी रद्द
किया है . ले किन बे लारूस में कामकाज आम दिनों की तरह ही चल
रहा है . दे श की सीमाएं पहले की तरह खु ली है , लोग काम पर जा रहे
हैं और लोग ज़रूरी सामान खरीदने के लिए दुकानों में तरफ नहीं
भाग रहे .

बे लारूस के राष्ट् रपति अले क्ज़ें डर लूकाशे न्को कहते हैं कि फिलहाल
दे श में कोरोना को पै र पसारने से रोकने के लिए ऐहतियातन कदम
उठाने की ज़रूरत नहीं है .

ू से मु लाक़ात के बाद उन्होंने


मं गलवार को मिं स्क में चीन के राजदत
कहा, "घटनाएं तो होती रहती हैं . ज़रूरी है कि उन्हें ले कर लोगों में
दहशत न फैले ."

बे लारूस में न तो सिने माघर और थिएटर बं द किए गए हैं और न ही


यहां सार्वजनिक कार्यक् रम करने पर किसी तरह को पाबं दी लगाई
गई है . बे लारूस दुनिया के उन चं द दे शों में से है जिसने यहां होने
वाली फ़ुटबॉल चैं पियनशिप कैंसिल नहीं की है . यहां हो रहे फ़ुटबॉल
मै च सामान्य दिन की तरह कराए जा रहे हैं और पड़ोसी रूस के
फ़ुटबॉल प्रेमियों के लिए टे लीविज़न पर भी मै चों का सीधा
प्रसारण भी किया जा रहा है .

राष्ट् रपति लूकाशे न्को ने हाल में कहा था कि "कोरोना


वायरस को एक ट् रैक्टर रोकेगा". उनका ये बयान बे लारूस के सोशल
मीडिया पर सु र्खियों में रहा और लोगों ने इस पर चर्चा की, कइयों ने
इस बयान का मज़ाक भी बनाया.
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हालां कि राष्ट् रपति का बयान खे तों में मे हनत करने को ले कर था.
उन्होंने ये भी कहा था कि वो ख़ु द शराब नहीं पीते हैं ले किन कोरोना
को रोकने के लिए पीना पड़ा तो वो एक घूंट वोदका तो पी ही सकते
हैं .

हालां कि बे लारूस के आम नागरिक पूरी दुनिया में हो रहे कोरोना के


कहर से ख़बरों से वाकिफ़ हैं और वो इस वायरस के बढ़ते कदमों को
ले कर चिं ता में हैं . मिं स्क में कई यु वा और स्कू ली छात्र बीमारी का
बहाना बना कर छात्रों से भरी क्लास में जाने से बच रहे हैं .

छात्रों की परे शानी कम करने के लिए कॉले ज और यु निवर्सिटीज़ ने


अपने क्लासे स का वक़्त कुछ घं टे पहले कर दिया है , ताकि छात्र
सार्वजनिक परिवहन में होने वाली भीड़ से बच सकें. मिं स्क की सड़कों
पर लोग कम ही दिख रहे हैं और लोगों का कहना है कि उन्हें पता है
कि बूढ़े लोगों को इस वायरस से अधिक ख़तरा है . ले किन कोरोना को
ले कर इस तरह का कोई जागरूकता अभियान अधिकारियों की तरफ
से नहीं कराया जा रहा.
राष्ट् रपति लूकाशे न्को ने कहा है कि इस कारण चिं ता करने की कोई
बात नहीं है क्योंकि विदे शों से बे लारूस आने वाले सभी लोगों के
कोरोना वायरस टे स्ट कराए जा रहे हैं . वो दावा करते हैं कि, "एक दिन
में दो या तीन लोगों के टे स्ट के नतीजे पॉज़िटिव आ रहे हैं . ऐसे
मामलों में उन्हें क्वारं टीन में भे जा जा रहा है और फिर उन्हें डे ढ़
सप्ताह या दो सप्ताह बाद छोड़ा जा रहा है ."

लूकाशे न्को कहते हैं कि चिं ता करना और मानसिक तनाव ले ना बे हद


ख़तरनाक़ है , शायद ये वायरस से भी अधिक घातक है . उन्होंने दे श

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की ख़ु फ़िया एजें सी बे लारूसी केजीबी को, "आम लोगों के बीच
अफ़वाह फैलाने और दहशत फैलाने वालों को पकड़ने " का आदे श
दिया है . अब तक दे श में कोरोना वायरस के कुल 86 मामले सामने
आए हैं और यहां इस कारण मात्र दो मौतें हुई हैं . बे लारूस ने
आधिकारिक तौर पर इस बात की पु ष्टि नहीं की है कि मौतों का
कारण कोरोना है ले किन माना जा रहा है कि इन मौतें का कारण
वायरस ही है .

बे लारूस कई अर्थों में यूरोप के दस ू रे दे शों से अलग है . ये यूरोप का


आख़िरी ऐसा दे श है जहां अब भी मौत की सज़ा का प्रावधान है .
दे श की विपक्षी एक्टिविस्ट एं ड्रे किम सरकार के कड़े आलोचक रहे
हैं , ले किन इस मामले में वो राष्ट् रपति की बात से इत्ते फाक़ रखते हैं .

किम ने अपने फ़ेसबु क पन्ने पर लिखा कि लूकाशे न्को बिल्कुल सही हैं
क्योंकि, "अगर वो पूरे दे श के लोगों पर बाहर निकलने से जु ड़े
प्रतिबं ध लगाते हैं तो बे लारूस की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी.
यहां चीज़ें अलग हैं और बे लारुस फिलहाल दुनिया का ऐसा एक
मात्र दे श है जहां सरकार लोगों का भला सोच कर काम करती है न
कि जनकल्याणकारी योजनाओं पर निर्भर करती है ."

"मैं मानता हं ू कि ये कहने पर मु झे कड़ी आलोचना झे लनी पड़े गी


ले किन जब हर तरफ पागलपन हो तो आप चु प नहीं रह सकते ." वो
कहते हैं "पागलपन" से मे रा मतलब कोरोना वायरस को ले कर दुनिया
भर में जिस तरीके के कदम उठाए जा रहे हैं उनसे है . वो कहते हैं कि
कुछ न कर के वो बे लारूस को दहशत से दरू रख रहे हैं .

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'कोविड 19' से बचने के लिए

कोरोना वायरस 'कोविड 19' से बचने के लिए आप नियमित रूप से


अपने हाथ साबु न और पानी से अच्छे से धोएं . जब कोरोना वायरस
से सं क्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके थूक के
बे हद बारीक कण हवा में फैलते हैं . इन कणों में कोरोना वायरस के
विषाणु होते हैं . सं क्रमित व्यक्ति के नज़दीक जाने पर ये विषाणु युक्त
कण सांस के रास्ते आपके शरीर में प्रवे श कर सकते हैं . अगर आप
किसी ऐसी जगह को छत ू े हैं , जहां ये कण गिरे हैं और फिर उसके बाद
उसी हाथ से अपनी आं ख, नाक या मुं ह को छत ू े हैं तो ये कण आपके
शरीर में पहुंचते हैं .

ऐसे में खांसते और छींकते वक्त टिश्यू का इस्ते माल करना, बिना
हाथ धोए अपने चे हरे को न छन ू ा और सं क्रमित व्यक्ति के सं पर्क में
आने से बचना इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए बे हद
महत्वपूर्ण हैं . चिकित्सा विशे षज्ञों के अनु सार फेस मास्क इससे
प्रभावी सु रक्षा प्रदान नहीं करते .

कोरोनो वायरस संक्रमण के लक्षण क्या हैं ?

इं सान के शरीर में पहुंचने के बाद कोरोना वायरस उसके


फेफड़ों में सं क्रमण करता है . इस कारण सबसे पहले बु ख़ार, उसके
बाद सूखी खांसी आती है . बाद में सांस ले ने में समस्या हो सकती है .
वायरस के सं क्रमण के लक्षण दिखना शु रू होने में औसतन पाँच दिन
लगते हैं . हालां कि वै ज्ञानिकों का कहना है कि कुछ लोगों में इसके
लक्षण बहुत बाद में भी दे खने को मिल सकते हैं .

20
विश्व स्वास्थ्य सं गठन (डब्ल्यूएचओ) के अनु सार वायरस के शरीर में
पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता
है . हालां कि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि ये समय 24 दिनों तक का भी
हो सकता है .

कोरोना वायरस उन लोगों के शरीर से अधिक फैलता है जिनमें इसके


सं क्रमण के लक्षण दिखाई दे ते हैं . ले किन कई जानकार मानते हैं कि
व्यक्ति को बीमार करने से पहले भी ये वायरस फैल सकता है . बीमारी
के शु रुआती लक्षण सर्दी और फ्लू जै से ही होते हैं जिससे कोई
आसानी से भ्रमित हो सकता है .

कितना घातक है कोरोना वायरस?


कोरोना वायरस के सं क्रमण के आँ कड़ों की तु लना में मरने वालों की
सं ख्या को दे खा जाए तो ये बे हद कम हैं . हालां कि इन आं कड़ों पर
पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, ले किन आं कड़ों की मानें तो
सं क्रमण होने पर मृ त्यु की दर केवल एक से दो फ़ीसदी हो सकती है .
फ़िलहाल कई दे शों में इससे सं क्रमित हज़ारों लोगों का इलाज चल
रहा है और मरने वालों का आँ कड़ा बढ़ भी सकता है .

56,000 सं क्रमित लोगों के बारे में एकत्र की गई जानकारी


आधारित विश्व स्वास्थ्य सं गठन का एक अध्ययन बताता है कि - 6
फ़ीसदी लोग इस वायरस के कारण गं भीर रूप से बीमार हुए. इनमें
फेफड़े फेल होना, से प्टिक शॉक, ऑर्गन फेल होना और मौत का
जोखिम था. 14 फ़ीसदी लोगों में सं क्रमण के गं भीर लक्षण दे खे गए.
इनमें सांस ले ने में दिक्क़त और जल्दी-जल्दी सांस ले ने जै सी
समस्या हुई. 80 फ़ीसदी लोगों में सं क्रमण के मामूली लक्षण दे खे
गए, जै से बु खार और खांसी. कइयों में इसके कारण निमोनिया भी
दे खा गया. कोरोना वायरस सं क्रमण के कारण बूढ़ों और पहले से ही
21
सांस की बीमारी (अस्थमा) से परे शान लोगों, मधु मेह और हृदय रोग
जै सी परे शानियों का सामना करने वालों के गं भीर रूप से बीमार होने
की आशं का अधिक होती है .

कोरोना वायरस का इलाज इस बात पर आधारित होता है कि मरीज़


के शरीर को सांस ले ने में मदद की जाए और शरीर की रोग
प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर ख़ु द
वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए. अगर आप किसी सं क्रमित
व्यक्ति के सं पर्क में आते हैं तो आपको कुछ दिनों के लिए ख़ु द को
दसू रों से दरू रहने की सलाह दी जा सकती है .

पब्लिक हे ल्थ इं ग्लैं ड ने कहा है कि जिन्हें लगता है कि वो सं क्रमित


हैं वो डॉक्टर, फार्मेसी या अस्पताल जाने से बचें और अपने इलाक़े में
मौजूद स्वास्थ्य कर्मी से फ़ोन पर या ऑनलाइन जानकारी लें . जो
लोग दस ू रे दे शों की यात्रा कर के यूके लौटे हैं उन्हें सलाह दी गई है
कि वो कुछ दिनों के लिए ख़ु द को दस ू रों से अलग कर लें . दसू रे दे शों
ने भी इस वायरस से बचने के लिए अपने अपने दे शों में स्कू ल कॉले ज
बं द करने और सर्वजनिक सभाएं रद्द करने जै से क़दम उठाएं हैं . विश्व
स्वास्थ्य सं गठन ने भी लोगों के लिए एहतियात बरतने के तरीक़ों के
बारे में जानकारी जारी की है .

सं क्रमण के लक्षण दिखने पर व्यक्ति को अपने स्थानीय स्वास्थ्य


से वा अधिकारी या कर्मचारी से सं पर्क करना चाहिए. जो लोग बीते
दिनों कोरोना वायरस सं क्रमित व्यक्ति के सं पर्क में आए हैं उनकी
जांच की जाएगी. अस्पताल पहुंचने वाले सभी मरीज़ जिनमें फ्लू
(सर्दी ज़ु काम और सांस ले ने में तकलीफ) के लक्षण हैं , स्वास्थ्य से वा

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अधिकारी उनका परीक्षण करें गे . परीक्षण के नतीजे आने तक आपको
ू रों से खु द को दरू रखने के लिए कहा जाएगा.
इं तज़ार करने और दस

क्यों ज़रूरी है सोशल डिस्टें सिं ग?

जब कोरोना वायरस से सं क्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है


तो उसके थूक के बे हद बारीक कण हवा में फैलते हैं . इन कणों में
कोरोना वायरस के विषाणु होते हैं .

सं क्रमित व्यक्ति के नज़दीक जाने पर ये विषाणु युक्त कण सांस के


रास्ते आपके शरीर में प्रवे श कर सकते हैं . अगर आप किसी ऐसी
जगह को छत ू े हैं , जहां ये कण गिरे हैं और फिर उसके बाद उसी हाथ
से अपनी आं ख, नाक या मुं ह को छत ू े हैं तो ये कण आपके शरीर में
पहुंचते हैं . ऐसे में खांसते और छींकते वक्त टिश्यू का इस्ते माल
करना, बिना हाथ धोए अपने चे हरे को न छन ू ा और सं क्रमित व्यक्ति
के सं पर्क में आने से बचना इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए
बे हद महत्वपूर्ण हैं . इसी कारण कोरोना से बचने के लिए लोगों को
एक जगह पर अधिक लोग इकट् ठा न होने दे ने, एक दस ू रे से दरू ी
बनाए रख कर बात करने या फिर हाथ न मिलाने के लिए कहा जा
रहा है . भारत सरकार द्वारा जारी सोशल डिसटें सिं ग एडवायज़री के
अनु सार जहां -जहां अधिक लोगों के एक दस ू रे के सं पर्क में आने की
सं भावना है उस पर सरकार ने प्रतिबं ध लगा दिए हैं .

सभी शै क्षणिक सं स्थानों (स्कू ल, विश्वविद्यालय आदि), जिम,


म्यूज़ियम, सामाजिक और सां स्कृतिक केंद्रों, स्विमिं ग पूल और
थिएटरों को बं द रखने की सलाह दी है . छात्रों को घरों में रहने की
सलाह दी गई और उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई करने को कहा गया है .
23
सरकार ने कहा है कि परीक्षाओं को स्थगित करने की सं भावना पर
विचार किया जा सकता है . फिलहाल चल रही परीक्षाएं ये
सु निश्चित करके करवाई जाएं कि छात्रों के बीच कम से कम एक
मीटर की दरू ी हो. प्राइवे ट क्षे तर् के सं स्थान से कहा गया है कि हो
सके तो अपने कर्मचारियों से घर से काम करवाएं . सं भव हो तो
मिटिं ग वीडियो कॉन्फ् रें सिं ग के ज़रिए करने पर ज़ोर दिया गया है .
बहुत ज़रूरी ना हो तो बड़ी बै ठकों को स्थगित करने या उनमें लोगों
की सं ख्या को कम करने की बात की गई है . रे स्त्रां को सलाह दी गई
है कि वो हैं डवॉश प्रोटोकॉल का पालन करवाएं और जिन जगहों को
लोग बार-बार छत ू े हैं उन्हें ठीक से साफ करते रहें . टे बल के बीच में
कम से कम एक मीटर की दरू ी रखें .

जो शादियां पहले से तय हैं , उनमें कम लोगों को बु लाया जाए और


सभी तरह के गै र-ज़रूरी सामाजिक और सां स्कृतिक कार्यक् रमों को
स्थगित कर दिया जाए. एक दस ू रे से हाथ मिलाने और गले लगने से
बचना चाहिए.

किसी भी तरह की गै र - ज़रूरी यात्रा ना करें और बस, ट् रेन, हवाई


जहाज़ में यात्रा करते वक्त लोगों से दरू ी बनाए रखना ज़रूरी है .
कमर्शियल एक्टिविटीज़ में लगे लोग ग्राहकों के साथ एक मीटर
की दरू ी बनाए रखें . साथ ही प्रशासन बाज़ारों में भीड़ कम करने के
लिए कदम उठाएं . सभी अस्पतालों को कोविड-19 से जु ड़े ज़रूरी
प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए. साथ ही परिवार, दोस्तों, बच्चों
को अस्पताल में मरीज़ों के पास जाने न दें .
ऑनलाइन ऑडरिं ग सर्विस में काम करने वालों को ख़ास तौर पर
अपनी सु रक्षा का ध्यान रखना चाहिए. अगर कोरोना वायरस से
सं क्रमित कोई व्यक्ति छींकते समय अपना हाथ मुं ह पर लगाता है
और फिर उसी हाथ से किसी जगह को छू ले ता है तो वो जगह
सं क्रमित हो जाती है . दरवाज़े , ट् रेनों-बसों के हैं डल आदि उन

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जगहों के अच्छे उदाहरण हैं जिन्हें लोग बार बार छत
ू े हैं और जो
ख़तरनाक साबित हो सकते हैं .
विशे षज्ञ मानते हैं कि कोरोनावायरस कई दिनों तक एक जगह पर
ज़िं दा रह सकता है . ऐसे में बे हतर ये है कि आप अपने हाथ बार बार
धोएँ ताकि सं क्रमण और वायरस के प्रसार का ख़तरा कम किया जा
सके.
कोरोना वायरस और बु ख़ार में एक जै से लक्षण होते हैं जिनकी वजह
से बिना टे स्ट के उनमें अं तर करना काफ़ी मु श्किल होता है . कोरोना
वायरस का मु ख्य लक्षण बु खार और ख़ासी है . बु खार के अन्य लक्षण
जै से गला ख़राब होना भी है . ले किन कोरोना वायरस के मरीज़ों को
सांस ले ने में परे शानी महसूस हो सकती है . औसतन कोरोना वायरस
से सं क्रमित लोग दो या तीन लोगों को सं क्रमित करते हैं . वहीं, फ्लू
से सं क्रमित व्यक्ति एक व्यक्ति को सं क्रमित करता है . हालां कि,
फ्लू से सं क्रमित व्यक्ति दसू रे लोगों के लिए जल्दी ही सं क्रामक हो
जाता है . ऐसे में दोनों ही वायरस ते ज़ी से फैलते हैं . कोरोना वायरस
से सं क्रमित व्यक्ति द्वारा बनाया हुआ खाना अगर एक सामान्य
व्यक्ति तक साफ सु थरे ढं ग से न पहुंचे तो खाना खाने वाले व्यक्ति के
सं क्रमित होने की सं भावना है . कोरोना वायरस खांसने के दौरान मुं ह
से बाहर आए छींटों के हाथों पर गिरने से फैल सकता है . वायरस के
प्रसार को रोकने के लिए खाना खाने और छन ू े से पहले हाथ धोना
एक अच्छी सलाह है .
कोरोना वायरस से सं क्रमित व्यक्ति द्वारा बनाया हुआ खाना अगर
एक सामान्य व्यक्ति तक साफ सु थरे ढं ग से न पहुंचे तो खाना खाने
वाले व्यक्ति के सं क्रमित होने की सं भावना है . कोरोना वायरस
खांसने के दौरान मुं ह से बाहर आए छींटों के हाथों पर गिरने से फैल
सकता है . वायरस के प्रसार को रोकने के लिए खाना खाने और छन ू े
से पहले हाथ धोना एक अच्छी सलाह है .

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क्या है ऑपरे शन नमस्ते ?

से ना ने कोरोना के खिलाफ जो अभियान छे ड़ा है उसका नाम


'ऑपरे शन नमस्ते ' रखा गया है . मु श्किलों हालातों या अपने किसी
भी मिशन को पूरा करने के लिए से ना एक कोड नाम दे ती है . दिसं बर
2001 में सं सद पर हमले में पाकिस्तान के हाथ होने के कुछ अहम
सबूत मिले थे . तब भारत ने उसके खिलाफ ''ऑपरे शन पराक् रम''
चलाया था. तब भी से ना के जवान लं बे वक्त तक छुट्टियों पर नहीं
गए थे .

से ना की ओर से दे शभर में अब तक आठ क्वारें टाइन सें टर्स


स्थापित किए जा चु के हैं . से ना की ओर से हे ल्प लाइन नंबर भी जारी
किया गया है . इसके लिए से ना के साउर्थन कमांड, ईस्टर्न कमांड,
वे स्टर्न कमांड, सें टर् ल कमांड, नॉदर्न कमांड, साउथ वे स्टर्न कमांड
और दिल्ली हे डक्वॉर्टर में कोरोना हे ल्प लाइन सें टर्स बनाए गए हैं .
इसके जरिए कोरोना वायरस की चपे ट में आए लोगों की मदद की
जाएगी. साथ ही, आम नागरिकों को इस संकट से जु ड़ी जानकारियां
भी दी जाएंगी. निगरानी और आइसोलेशन की क्षमता बढ़ाई जा रही
है . सभी आर्मी हॉस्पिटलों को छह घंटों की सूचना पर सिर्फ कोविड-
19 मरीजों के लिए 45 बे ड का आइसोलेशन वार्ड और 10 बे ड का
आइसीयू वॉर्ड तैयार करने का निर्देश दिया गया है .

कोरोना की मार से कामगार बने लाचार |

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए दे श भर में लॉकडाउन


किया गया है . दिल्ली में भी इसे दे खते हुए 23 तारीख से लॉकडाउन
किया गया है सीमाओं पर आवाजाही के लिए कर्फ़्यू पास अनिवार्य
कर दिया गया है . लॉकडाउन के साथ ही दिल्ली में काम करने वाले
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कई मज़दूर बाहर अपने राज्य लौटने लगे . जब बस और रे ल बंद हो
गईं तो वो पै दल ही अपने घरों के लिए निकल गए.

दिल्ली में अब तक कोरोना वायरस के 35 मामले सामने आ चु के हैं .


दिल्ली में लॉकडाउन से बने हालात को दे खते हुए सें टर फॉर पॉलिसी
रिसर्च (सीपीआर) ने एक रिपोर्ट जारी की है .

इस रिपोर्ट के मु ताबिक दिल्ली के सबसे कमजोर वर्ग के सामने


लॉकडाउन के चलते खाने की समस्या पै दा हो गई है . ये वर्ग अपनी
पे ट भरने की ज़रूरत से जूझ रहा है और आगे मु श्किलें और बढ़ने
वाली हैं . इस रिपोर्ट को सीपीआर में सीनियर रिसर्चर अश्विनी
पारुलकर और फेलो मु क्ता नायक ने तैयार किया है .

मु क्ता नायक ने बताया, “कई जगहों से ये ख़बर आ रही थी कि


शे ल्टर होम्स में खाने के लिए भीड़ बहुत बढ़ गई थी, लोगों को
राशन नहीं मिला रहा था और बाहर से आए कामगार पै दल वापस
लौट रहे थे ले किन सीमा बंद होने के कारण वो जा नहीं पा रहे थे .
मजदूरों और अप्रवासियों की ये जो कई सारी समस्या आ रही थी
इसे दे खते हुए एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की गई.”

मु क्ता नायक बताती हैं कि इस रिपोर्ट के लिए शे ल्टर चलाने वाली


एजें सियों, कम्यूनिटी के लोगों, गैर-सरकारी संस्थाओं और मजदूर
यूनियनों से बात की गई और इससे कई महत्वूपर्ण बातें निकलकर
सामने आईं.

कामगारों और दिल्ली में रह रहे प्रवासियों की इस वक़्त सबसे बड़ी


समस्या भूख की है यानी खाने की कमी की है . दै निक मजूदरों के पास
दो-तीन दिनों से ज़्यादा राशन का पैसा हाथ में नहीं होता और 22
तारीख से लॉकडाउन शु रू हो गया था तो अब तक उनके पास खाने
का पैसा ख़त्म हो गया होगा. वो खाना ढूढ
ं ने के लिए ईधर से उधर जा
रहे हैं .

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- जैसे ही नाइट शे ल्टर्स में खाना दे ने की घोषणा हुई तो वो लोग
शे ल्टर्स की तरफ बढ़ने लगे और शे ल्टर्स में भीड़ बहुत बढ़ गई.
शे ल्टर में खाना सीमित होता है तो जो लोग शे ल्टर में पहले से
मौजूद हैं और जो बाद में आए उनमें झगड़ा भी हुआ.

- उत्तर पूर्वी दिल्ली में हालात सबसे ज़्यादा ख़राब हैं . कोरोना वायरस
को दे खते हुए यहां पर राहत शिविर हटा दिये गये हैं . इसके कारण
लोगों को अपने पुराने जले हुए और टूटे घरों में लौटना पड़ रहा है .
उनके पास खाने -पीने की भी ठीक से व्यवस्था नहीं है . वो एक महीने
से ज़्यादा समय से तनावभरे माहौल में रह रहे हैं .

- राशन की घर-घर डिलीवरी होगी इसकी घोषणा हुई थी ले किन ये


अभी शु रू नहीं हो पाया है .

शे ल्टर के साथ भरपाई (रिइंबर्समें ट) के आधार पर करार होता है .


शे ल्टर को कहा गया था कि वो खाना बनाएं फिर उनके खर्चे की
भरपाई कर दी जाएगी. ले किन, शे ल्टर होम्स की इतनी क्षमता नहीं
है कि वो अपने खर्चे पर इतना खिला पाएं. साथ ही खाने की समान
की ठीक से आपूर्ति भी नहो पा रही थी. इससे उन लोगों के जीवन को
भी ख़तरा था जो लोग शे ल्टर होम्स में काम करते हैं .

- शे ल्टर्स होम्स में एक दिक्कत ये भी हुई कि वहां लोगों की भीड़


इतनी बढ़ गई कि लॉकडाउन का सोशल डिस्टें सिंग का मकसद ही
ख़त्म हो गया.

- शे ल्टर होम्स की संख्या भी कम है . जहां औद्योगिक कामगार रहते


हैं पर शे ल्टर ज़्यादा नहीं हैं .

- रिपोर्ट में दिया गया है कि जनता कर्फ्यू वाले दिन 22 मार्च को ही


सभी शे ल्टर होम्स में खाने खिलाने के आदे श दे दिए गए थे . आदे श के
साथ ही सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ यूथ एंड मासेस
(एसपीवाईएम) ने अपने 60 शे ल्टर होम्स में तीन हजार बेघर लोगों
28
के खाने और हाईजीन की व्यवस्था करनी शु रू कर दी थी. ले किन, वो
काफी नहीं था.

- एसपीवाईएम के एग्जिक्यूटिव डायरे क्टर डॉक्टर राजेश कुमार का


कहना है , “हम अपने इलाक़े के आसपास के बेघर लोगों को खाना
खिलाने के लिए तैयार थे . ले किन, वहां दूसरे इलाक़ों से भी लोग आ
गए और सामान कम पड़ गया.”

क्या हो समाधान
सरकार की कोशिशों के बावजूद भी व्यवस्थागत कमियों के कारण
लोगों तक खाने -पीने के सामान की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पा रही है .
इसे दूर करने के लिए रिपोर्ट में सु धार के कुछ सु झाव दिए गए हैं .

मु क्ता नायक कहती हैं , “हमारा सु झाव था कि दिल्ली में सामुदायिक


रसोई की शु रुआत की जाए. हालांकि, दिल्ली सरकार ने आज स्कू लों
में खाना खिलाने की घोषणा करके इसकी शु रुआत कर दी है और
इससे फायदा हो सकता है .”

“ले किन, आज इस घोषणा के बाद हमारा ये कहना है कि जैसे शे ल्टर


होम्स में घोषणा तो कर दी गई थी ले किन तैयारी नहीं थी वैसा स्कू लों
के स्तर पर ना किया जाए. सरकार को घोषणा करने की जल्दी से
बचना चाहिए और पहले इंतज़ाम करने चाहिए. अब स्कू लों में खाना
खिलाने की योजना शु रू हुई है , तो वहां की तैयारी भी पूरी होनी
चाहिए.”

मु क्ता नायक के मु ताबिक उत्तर पूर्वी दिल्ली की समस्या को दूर करने


के लिए सरकार को अतिरिक्त कदम उठाने चाहिए. वहां और पूरी
दिल्ली में स्थितियां बिल्कुल अलग हैं .

इसके अलावा रिपोर्ट में सु झाव दिया गया है कि पूराने शे ल्टर्स का भी


इस्ते माल हो. खाने के सामान की आपूर्ति भी समय होने की सु विधा
दी जाए. साथ ही मजदूरों को क्वारंटाइन करने की सु विधा भी दी
29
जाए क्योंकि दिल्ली में एक ही कमरे में कई मजदूर एक साथ रहते हैं .
ऐसे में वो अपने ही घर पर क्वारंटाइन नहीं हो सकते .

मु क्ता नायक निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों की समस्या को सबसे


महत्वपूर्ण बताती हैं . उन्होंने कहा कि दिल्ली में कं स्ट्रक्शन बोर्ड
संचालित नहीं हैं तो निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों की मदद कैसे हो
पाएगी. इसके ऊपर विशे ष तौर पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है
वरना वो मजदूर सरकार मदद से मरहम ू रह जाएंगे.

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दे श के शीर्ष वै ज्ञानिक अगले एक महीने


को काफी अहम मान रहे हैं । भारतीय आयु र्वि ज्ञान अनुसंधान परिषद
(आइसीएमआर) के प्रमुख डॉ बलराम भार्गव के अनुसार अगले 30
में यह तय होगा कि दे श में कोरोना का असर कितना होगा। वैसे तो
डॉ. भार्गव कोरोना के दूसरे स्‍तर (Level 2) से तीसरे स्तर (Level 3)
तक पहुच ं ने यानी वायरस के कम्यु निटी ट्रांसमिशन को निश्चित
मान रहे हैं , ले किन साथ ही यह भी कहते हैं कि अगले 30 दिन में ही
तय होगा कि कोरोना के खिलाफ हमारी जंग कितनी सटीक है ।

वायरस के फैलने में विभिन्न स्टे ज का जिक् र करते हुए डॉ. भार्गव
बताते हैं कि पहले स्टे ज में यह विदे श से दे श के भीतर आता है । जो
कोरोना के मामले में 30 जनवरी को केरल में चीन से आए तीन
मरीजों के साथ शु रू हुआ। वायरस के फैलने का बाद दस ू रा स्टे ज तब
आता है , जब विदे श से आए कोरोना वायरस ग्रसित व्यक्ति से दे श
के भीतर दस ू रे व्यक्तियों को इसका सं क्रमण होने लगता है । यह
सं क्रमण ग्रसित व्यक्ति के नजदीकी सं पर्क आने वाले तक सीमित
रहता है ।

30
आगरा के एक ही परिवार के छह लोगों और केरल में फरवरी के अं त
में कुछ लोगों में इस तरह से कोरोना सं क्रमण हुआ। यानी पहले
ू रे स्टे ज तक पहुंचने में एक महीने का समय लगा।
स्टे ज से दस
वायरस के फैलने में तीसरा स्टे ज सबसे अहम होता है । जब वह
सामान्य लोगों के बीच फैलने लगता है । बड़ी जनसं ख्या के बीच
वायरस के पहुंचने के बाद यह महामारी का रूप धारण कर ले ता है ,
जो चौथा स्टे ज कहा जाता है ।

भारत में नहीं शु रू हुआ कम्‍यु निटी ट् रांसमिशन

दरअसल, 30 दिन दो मायनों में अहम है । ध्यान रहे कि पिछले दो-


तीन दिनों से भारत में कोरोना सं क्रमितों की सं ख्या में अपे क्षाकृत
ते जी दिखी है । एक से दस ू रे और दस
ू रे से तीसरे के बीच सं क्रमण की
गति भी अगले 25-30 दिनों में पूरी तरह दिखने लगे गी। वहीं से हमें
इसकी जानकारी भी मिले गी कि अब तक जो कदम उठाए गए हैं , वह
पर्याप्त थे या नहीं। दरअसल, दे श में बाहर से आने जाने वालों पर तो
रोक है ले किन दे श के अं दर एयरपोर्ट से ले कर रे लवे स्टे शन तक जांच
को जरूरी नहीं बनाया गया है और इसी का फायदा उठाकर हाइलोड
वायरस से ग्रसित आगरा की एक यु वती ने बें गलु रु से ले कर दिल्ली
और आगरा तक की यात्रा की थी।

ऐसे सं क्रमण के मामले में तीसरे स्टे ज को रोकना सं भव नहीं है ,


ले किन हमारी कोशिश है कि इसे धीमा कर दिया जाए। जितनी दे र
होगी उतना ही कोरोना का असर कम हो जाएगा। वहीं जांच और
इलाज की सु विधाओं से ले कर आम आदमी को जागरूक बनाने में भी
मदद मिले गी। हर वायरस का एक समय चक् र होता है । चीन के
31
वु हान में यह दे खने को मिला है । इसके साथ ही जापान, दक्षिण
कोरिया, हां गकां ग और सिं गापु र जै से दे श भी कोरोना के शु रुआती
प्रसार के बाद उसे रोकने में सफल रहे हैं । इससे वायरस की
कार्यप्रणाली को समझने में मदद मिल रही है , जो अं तत उसे रोकने
में मददगार साबित होगी।

आइसीएमआर मानना है कि कोरोना वायरस के एक साथ पूरे दे श में


महामारी के रूप में फैलने की आशं का कम है । आइसीएमआर की
डॉक्टर निवे दिता कहती हैं कि इसका प्रचार किसी एक समु दाय या
बड़े इलाके तक सीमित हो सकता है और उससे आक् रमक रणनीति
के तहत निपटा जा सकता है , जै सा निपाह वायरस के मामले में हुआ
था। निपाह वायरस जयपु र के आसपास के बड़े इलाके में फैल गया
था और उसे वहीं रोक दिया गया। साथ ही आइसीएमआर हर व्यक्ति
की कोरोना की जांच का पक्षधर नहीं है ।

यदि किसी व्यक्ति में कोरोना से ग्रसित होने के बाद भी उसके लक्षण
नहीं दिख रहे हैं , तो इसका मतलब है कि उसमें वायरस बहुत ज्यादा
नहीं होगा और टे स्ट में वह निगे टिव भी आ सकता है । यदि ऐसे
व्यक्ति को कोरोना नहीं होने का प्रमाण-पत्र दे दिया जाए, तो वह
सु रक्षित होने का वहम पाल ले गा, जबकि 14 दिन में उसमें कभी भी
कोरोना के लक्षण आ सकते हैं । कोरोना के दोबारा प्रकोप पर ले कर
कोई जानकारी नहीं आइसीएमआर के वै ज्ञानिकों का कहना है कि
किसी भी व्यक्ति को एक बार होने के बाद कोरोना दोबारा होने के बारे
में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है । वै से जापान और दस ू रे
दे शों में कुछ मामलों में दोबारा कोरोना से ग्रसित होने की बात
सामने आई है ।
कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता का समय बहुत छोटा
होता और उस से दोबारा ग्रसित होने की सं भावना है । कोविड 19 के
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बारे में हम अभी यह नहीं कह सकते हैं । यदि कोविड-19 का वायरस
इं फ्लु एंजा वायरस की तरह नए-नए रूप में परिवर्तित होता रहे गा,
तो उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना सं भव नहीं
होगा।

एक ही मरीज के अलग-अलग लिए सैं पल में वायरस में अलग-


अलग लक्षण दिखे हैं , जो वायरस के ते जी से अपना रं ग-रूप बदलने
का सबूत है । मार्च के पहले हफ्ते में इटली से आए वायरस का सैं पल
मिला है । जल्द ही इसकी कुंडली भी तै यार हो जाएगी, जिसके बाद
कोरोना के वायरस के बारे में भारतीय वै ज्ञानिकों के पास अधिक
पु ख्ता जानकारी होगी।

कोरोना वायरस क्या गर्मी से मर जाता है ?


कोरोना वायरस का पहला मामला बीते साल दिसं बर में चीन
के वु हान में सामने आया था. उसके बाद से ये वायरस धीरे -धीरे दुनिया
के 168 दे शों में अपने पै र पसार चु का है . इसे ले कर दुनिया भर में
सरकारें अपने नागरिकों को सतर्क कर रही हैं और इस वायरस के
सं क्रमण से बचने के लिए जानकारी साझा कर रही हैं . ले किन इसे
ले कर अफवाहों का बाज़ार भी गर्म है , और इस कारण लोगों के मन में
कई तरह के सवाल हैं .

33
कई जगह इस तरह के दावे किए दावे किए जा रहे हैं कि गर्मी की
मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है . कई दावों में
पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है . यहां तक कि नहाने
के लिए गर्म पानी के इस्ते माल की बात कही जा रही है .

बीते कई दिनों से सोशल मीडिया पर इस तरह के दावों की भरमार है .


एक पोस्ट जिसे कई दे शों में हज़ारों लोगों ने शे यर किया है , उसमें
दावा किया गया कि गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से
इस वायरस को मारा जा सकता है . इस दावे में आइसक् रीम को ना
खाने की सलाह भी दी गई.

इतना ही नहीं इस मै सेज के साथ फ़र्ज़ी तरीक़े से यह भी बताया जा


रहा है कि ये तमाम बातें यूनिसे फ़ ने कही हैं .
जब कोरोना वायरस से सं क्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है
तो उसके थूक के बे हद बारीक कण हवा में फैल जाते हैं . इन्हीं नन्हें
कणों के ज़रिए कोरोना वायरस फैलता है . व्यक्ति के छींकने पर एक
वक्त पर थूक के 3,000 से अधिक कण यानी ड्रॉपले ट्स शरीर से
बाहर आते हैं .

सं क्रमित व्यक्ति के नज़दीक जाने पर ये कण सांस के रास्ते आपके


शरीर में प्रवे श कर सकते हैं . कभी कभी ये कण कपड़ों, दरवाज़ों के
हैं डल और आपके सामान पर गिर सकते हैं . उस जगह पर किसी का
हाथ पड़े और फिर वो व्यक्ति उसी सं क्रमित हाथ से अपनी आं ख,
नाक या मुं ह छत ू ा है तो उसे कोरोना वायरस सं क्रमण हो सकता है .

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अमरीकन ने शनल इं स्टीट्यूट ऑर हे ल्थ ने अपने रिसर्च में पाया है
कि ये थूक के कणों में वायरस 3-4 घं टों तक ज़िं दा रह सकते हैं और
हवा में तै र सकते हैं . ले किन अगर ये कण दरवाज़े का हैं डल, लिफ्ट
बटन जै से धातु जै सी सतहों पर ये 48 घं टों तक एक्टिव रह सकते हैं .

वहीं अगर कण स्टील की सतह पर गिरा तो गिरा तो वो 2-3 दिन तक


एक्टिव रह सकता है . कुछ पु राने रिसर्च के आधार पर ये भी कहा जा
सकता है कि कोरोना वायरस अनु कूल परिस्थितियों में एक हफ्ते तक
भी एक्टिव रह सकते हैं . कपड़ों जै से नरम सतहों पर कोरोना वायरस
बहुत लं बे वक्त तक नहीं जिं दा रहता.

ऐसे में अगर आप एक दो दिन तक एक ही कपड़ा नहीं पहनते तो


वायरस एक्टिव नहीं रहे गा. ले किन ऐसा भी नहीं है कि किसी
सं क्रमित सतह को छनू े से आपको कोरोना वायरस हो ही जाएगा.
जब तक ये आपके मुं ह, आं ख, नाक के ज़रिए आपके शरीर में नहीं
जाता, तब तक आप ठीक हैं .

इसलिए अपने मुं ह को छन ू ा या बिना हाथ धोए खाना बं द कर दें .


इसका मतलब है कि जिसको कोरोना हुआ है और उसने कुछ छुआ या
छींका तो वही चीज़ आपने छू ली और आं ख नाक मुं ह के ज़रिए
आपके शरीर में वायरस चला गया तो सं क्रमण हो सकता है . ये ध्यान
रहे कि सिर्फ छन
ू े से नहीं, बल्कि आपके शरीर में जाने से सं क्रमण
होगा.

कोरोना वायरस 60 से 70 डिग्री से ल्सियस के तापमान तक नष्ट नहीं


हो सकता. उतना तापमान ना तो भारत में है और ना किसी के शरीर

35
के भातर. कुछ वायरस तापमान बढ़ने के बाद नष्ट होते हैं ले किन
कोरोना वायरस पर बढ़ते तापमान का क्या असर होगा?

इसके बारे में ब्रितानी डॉक्टर सारा जार्विस कहती हैं कि 2002 के
नवं बर में सार्स महामारी शु रू हुई थी जो जु लाई में खत्म हो गई थी.
ले किन ये तापमान बदलने की वजह से हुआ या किसी और वजह से ये
बताना मु श्किल है . वायरस पर शोध करने वाले डॉक्टर परे श दे शपांडे
का कहना है कि अगर कोई भरी गर्मी में छींका तो थूक के डॉपले ट
सतह पर गिर कर जल्दी सूख सकते हैं और कोरोना फैसले का
सं क्रमण कम हो सकता है . हम जानते हैं कि फ्लू वायरस गर्मियों के
दौरान शरीर के बाहर नहीं रह पाते ले किन हमें इस बारे में नहीं पता
कि कोरोना वायरस पर गर्मी का क्या असर पड़ता है .

कोरोनावायरस दुनिया भर में 168 दे शों में फैल चु का है जिनमें


ग्रीनलैं ड जै से ठं डे दे श भी है तो दुबई जै से गर्म शहर भी, मुं बई जै से
ह्यमि
ू ड शहर भी हैं तो दिल्ली जै से सूखे शहर भी.

एक बार अगर यह वायरस इं सान के शरीर में घु स गया तो इसे मारने


का तरीक़ा अभी तक नहीं ईजाद नहीं हो पाया है . विश्व स्वास्थ्य
सं गठन और कई दे श इस पर काम कर रहे हैं ले किन अब तक इसे
मारने वाले कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है .

इसी कारण सरकारें इससे बचने के तरीकों के बारे में नागरिकों को बता
रही हैं . वो यातायात सं बंधी प्रतिबं ध लगा रही हैं और लोगों से एक
ू रे से दरू ी बनाए रखने के लिए कह रही हैं .
दस

36
मास्क पहनना कितना ज़रूरी !

इस वायरस से हमारे शरीर को ही लड़ना होगा यानी हमारे शरीर की


रोग प्रतिरोधक शक्ति को ही इसे हराना होगा. हम अपनी बे डशीट
को धोकर रखें तो इस वायरस को वहां से तो हटाया जा सकता है ,
ले किन शरीर में घु स चु के वायरस को शरीर धोकर बाहर नहीं निकाला
जा सकता.

हम सब दिन में कई बार अपना चे हरा छत ू े हैं . साल 2015 में


ऑस्ट् रेलिया के मे डिकल की पढ़ाई करने वाले यु वाओं पर एक
अध्ययन किया गया. इसमें ये सामने आया कि मे डिकल स्टू डेंट् स भी
ख़ु द को इससे नहीं बचा सके. शायद मे डिकल स्टू डेंट् स को इससे पै दा
होने वाले ख़तरों को ले कर ज़्यादा जाग्रत रहना चाहिए था. ले किन
उन्होंने भी कम से कम एक घं टे में 23 बार अपने चे हरे को छुआ.
इसमें मुं ह, नाक और आँ खें शामिल हैं .

सामाजिक स्वास्थ्य के क्षे तर् में काम करने वाली सं स्थाएं और पे शेवर
जिसमें विश्व स्वास्थ्य सं गठन भी शामिल हैं , कहती हैं कि ये मुं ह
छनू े की आदत ख़तरनाक है . कोविड-19 से जु ड़ी सलाह में हाथों को
साफ रखना और उन्हें धु लने पर जोर दिया गया है .

इं सान और कुछ स्तनपायी जीव ख़ु द को ऐसा करने से नहीं रोक पाते
हैं . ऐसा लगता है कि ये हमारे विकास के क् रम का हिस्सा है .

37
चूं कि कुछ जातियां अपने चे हरों को छक ू र कीड़ों को हटाने की
कोशिश करते हैं . ले किन हम और दस ू रे अन्य स्तनपायी जीव दस ू रे
कारणों की वजह से भी ऐसा करते हैं .

अमरीका स्थित यूसी बार्क ले यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर


डाचर केल्टनर बताते हैं , "कभी-कभी ये एक तरह से ख़ु द को सहलाने
जै सा काम होता है . वहीं, कभी-कभी हम अं जाने में अपने हाथों से
मुं ह छक
ू र अपने हाथों का इस्ते माल कुछ इस तरह करते हैं जै से कि
एक थिएटर के स्टे ज पर पर्दे को इस्ते माल किया जाता है . जिसमें एक
पहलू से होकर दसू रे पहलू में जाने के लिए पर्दा डालते और हटाते हैं ."

ू रे विशे षज्ञ मानते हैं कि ख़ु द


बिहे वियरल साइं स के क्षे तर् से जु ड़े दस
को छन ू अपने भावों को नियं त्रित करने और ध्यान खींचने से जु ड़ा
होता है .

जर्मनी की लिपज़िग यूनिवर्सिटी के मनोवै ज्ञानिक मार्टन ग्रनवाल्ड


कहते हैं कि ये हमारी जाति का मूल व्यवहार है .

ग्रनवाल्ड ने बीबीसी को बताया, "ख़ु द को छन ू ा अपने आप के


नियमन जै सी हरकतें होती है . ये सामान्य तौर पर सं वाद करने के
लिए बनीं हरकतें नहीं होती हैं और बिना जाने ही इन हरकतों को
अं जाम दिया जाता है ."

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"ये हरकतें सभी भावनात्मक और सं ज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में अहम
भूमिका निभाती हैं . ये सभी लोगों में होती हैं ."

ख़ु द को छन ू े से समस्या ये होती है कि इससे हर तरह की ख़राब चीज़


हमारी आँ खों, नाक और मुं ह से होते हुए हमारे शरीर के अलग-अलग
अं गों में पहुंचती हैं . उदाहरण के लिए, कोविड-19 सं क्रमित व्यक्ति
के मुं ह से निकले पानी के छींटों से होकर दसू रे लोगों में पहुंचता है .

ले किन अगर हम किसी ऐसी चीज़ को छत ू े हैं जिस पर वायरस गिरा


हो तो इससे भी वायरस सं क्रमित कर सकता है .

विशे षज्ञ अभी भी वायरस के इस नये स्ट् रेन पर शोध कर रहे हैं .
ले किन ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस किसी जगह पर
गिरने के बाद 9 दिनों तक ज़िं दा रहते हैं .

वायरस की लं बी उम्र का ख़तरा


वायरस के इतने दिनों तक ज़िं दा रहने की वजह से हमारा अपने चे हरे
को छन
ू ा ख़तरनाक हो जाता है .

साल 2012 में अमरीका और ब्राज़ील के शोधार्थियों ने पाया कि


आम लोग सार्वजनिक जगहों पर चीज़ों को एक घं टे में तीन से
ज़्यादा बार छत
ू े हैं .

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ये लोग अपने हाथों को अपने मुं ह और नाक तक हर घं टे में 3.6 बार
ले गए.

ये ऑस्ट् रेलियाई मे डिकल स्टू डेंट् स पर किए गए अध्ययन से काफ़ी


कम था क्योंकि मे डिकल छात्रों पर जब अध्ययन किया गया तब वे
एक क्लास में बै ठे थे . और ये सं भव है कि ऐसा इसी वजह से हुआ हो
क्योंकि बाहर आपके भटकाव की तमाम चीज़ें मौजूद होती हैं .

कुछ स्वास्थ्य विशे षज्ञों के मु ताबिक़, बार-बार मुं ह छन


ू ा फेस मास्क
पहनने की बड़ी वजह है . क्योंकि इस तरह से आपको एक तरह का
सु रक्षाकवच मिलता है .

लीड्स यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर स्टे फ़ेन ग्रिफ़िन समझाती हैं ,


"मास्क पहनने से लोगों के अपने चे हरों को छन ू े की सं भावनाएं कम
हो जाती हैं और गं दे हाथों से चे हरों को छन
ू ा सं क्रमित होने की एक
बड़ी वजह है ."

हम क्या कर सकते हैं ?

ले किन वे कौन से क़दम हैं जिनसे हम कम से कम अपने हाथों से चे हरे


को छन ू े की सं ख्या को कम करते हैं .

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ब्रिटे न के पूर्व प्रधानमं तर् ी डेविड कैमरन के सहयोगी रहे कोलंबिया
यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और बिहे वियरल साइं स के विशे षज्ञ माइकल
हॉलस्वर्थ मानते हैं कि ये कहना आसान है कि ऐसा न किया जाए
ले किन असल में इस सलाह को अमल में लाना मु श्किल है .

हॉलस्वर्थ बीबीसी को बताते हैं , "लोगों को कुछ ऐसा करने के लिए


कहना जो अनजाने में होता है एक बड़ी समस्या है , इससे ज़्यादा
आसान ये है कि लोग अपने हाथों को बार-बार धोते रहें , ताकि वे
अपने चे हरे को कम बार छू सकें. अगर आप किसी से वो काम करने
को कहें गे जो कि वो अं जाने में करता हो तो ऐसी सलाह दे ने से कोई
फ़ायदा नहीं होगा."

हालां कि, हालस्वर्थ मानते हैं कि कुछ चीज़ें हैं जो आपकी मदद कर
सकती हैं . इनमें से एक यह है कि हमें ये पता हो कि हम अपने चे हरों
को कितनी बार छत ू े हैं .

"जब यह (चे हरा छन ू ा) खु जली मचाने की ज़रूरत जै सी शारीरिक


मां ग बन जाए तो हम सजग रहकर अपने बचाव में क़दम उठा सकते
हैं , जै से कि हम अपने उल्टे हाथ का इस्ते माल कर सकते हैं . इससे
जोख़िम कम होता है चाहें ये समस्या का समाधान हो या न हो."
बिहे वियरल साइं स विशे षज्ञ इस बात की सलाह भी दे ते हैं कि हमें ये
पता करना चाहिए कि हम अपने चे हरों को क्यों छत
ू े हैं .

हॉलस्वर्थ इसे समझाते हुए कहते हैं , "अगर हम उन स्थितियों को


पहचान जाएं जब हमें चे हरा छन
ू े की ज़रूरत महसूस होती है तो हम
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ऐसे मौक़ों पर ज़रूरी क़दम उठा सकते हैं . जो लोग अपनी आं खों को
छत
ू े हैं , वे धूप का चश्मा पहन सकते हैं , या जब लगे कि अब वे चे हरा
छनू े जा रहे हैं तो हाथों को दबाया जा सकता है .

उदाहरण के लिए, हम अपने हाथों को व्यस्त रखने के तरीक़ों का


सहारा ले सकते हैं . इसमें मु लायम गें दों जै से खिलौनों का इस्ते माल
कर सकते हैं जिनसे हाथ व्यस्त रहते हैं .

ले किन आपको उन्हें अक्सर कीटाणु रहित करना पड़ सकता है .

इसके साथ-साथ आप ख़ु द को याद दिलाने के लिए नोट भी बना


सकते हैं .

हॉलस्वर्थ मानते हैं , "अगर कोई जानता है कि उनकी एक आदत ऐसी


है जिसे वे चाहकर भी नहीं रोक पाते हैं तो वे अपने दोस्तों या
रिश्ते दारों को ऐसा करने पर टोकने के लिए कह सकते हैं ."

दस्ताने कैसे विकल्प हैं ?

ले किन एक सवाल ये उठता है कि क्या ख़ु द को याद दिलाने के लिए


दस्ताने पहने जाने चाहिए?

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इसका आसान जवाब है कि ये एक ग़लत तरीक़ा है , जब तक कि
दस्तानों को बार-बार साफ़ करके कीटाणु मुक्त ना किया जाए, नहीं तो
वे भी हानिकारिक बन जाएं गे.

सु पर स्प्रेडर

बिशन सिं ह (बदला हुआ नाम) जर्मनी और इटली से लौटकर 7 मार्च


को पं जाब में अपने गां व आए. इसके बाद उनका सं पर्क कई लोगों से
हुआ. बाद में बिशन सिं ह कोरोना पॉजिटिव पाए गए और उनकी मौत
हो गई.

उनके सं पर्क में आने वाले 23 लोग भी पॉजिटिव पाए गए हैं . अब


अधिकारियों को डर है कि वह हजारों दसू रे लोगों को सं क्रमित करने
वाले साबित हो सकते हैं .

जर्मनी और इटली के दो हफ्ते के दौरे के बाद 70 साल के बिशन सिं ह


7 मार्च को पं जाब में अपने गां व लौट आए. उन्हें रिसीव करने पहुंचे
उनके परिवार के लोग और दोस्त काफी खु श थे .

चूं कि, वो विदे श से लौटे थे , ऐसे में उन्हें घर पर ही क्वारं टीन रहकर
वक्त बिताना चाहिए था.

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ले किन अगले दिन वो अपने दो दोस्तों के साथ डे ढ़ घं टे की यात्रा
कर 'होला-मु हल्ला फेस्टिवल' में शामिल होने आनं दपु र साहिब
पहुंच गए. यह एक छह दिन चलने वाला सालाना जलसा है जिसमें
हजारों लोग रोज़ आते हैं .

13 मार्च को केंद्रीय नागरिक उड्डयन मं तर् ालय ने जिला प्रशासन


को बिशन सिं ह की विदे श यात्रा के बारे में सचे त कर दिया.

इसके बाद अधिकारियों ने उन्हें निगरानी में डाल दिया. अब तक


उनमें कोरोना वायरस का कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहा था. पांच
दिन बाद वो गु ज़र गए.

इसके बाद खु लासा हुआ कि बिशन सिं ह हार्ट पे शेंट होने के साथ
डायबिटीज़ से भी पीड़ित थे और कोरोना वायरस के टे स्ट में
पॉजिटिव पाए गए थे .

उनकी मौत के करीब एक हफ्ते बाद जिले में 19 कोरोना वायरस के


मरीज पाए गए. ये सभी लोग बिशन सिं ह से जु ड़े हुए थे और इनमें से
ज्यादातर उनके परिवारजन थे .

अधिकारियों का कहना है कि पं जाब में अब तक कोरोना के 33 मामले


आ चु के हैं जिनमें से 23 ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बिशन
सिं ह के सं पर्क में आए थे .

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कोविड-19 से मरने वाले बिशन सिं ह चौथे भारतीय थे . साथ ही
पं जाब में इस बीमारी से मरने वाले इकलौते शख्स हैं .

उनका सामाजिक मे लजोल राज्य के अधिकारियों के लिए चिं ता की


बड़ी वजह बना हुआ है . यह डर है कि बिशन सिं ह राज्य में वायरस के
'सु पर स्प्रेडर' साबित हो सकते हैं .

सु पर स्प्रेडर एक मोटे तौर पर इस्ते माल किया जाने वाला शब्द है .


जिसकी कोई निश्चित वै ज्ञानिक परिभाषा नहीं है .

ले किन, इसका मतलब यह है कि कोई ऐसा मरीज़ जो कि सामान्य के


मु काबले कहीं ज्यादा लोगों को किसी बीमारी से सं क्रमित कर दे उसे
सु पर स्प्रेडर कहा जाता है .

नवां शहर के डिप्टी कमिश्नर विनय बु बलानी ने बीबीसी को बताया,


"अब तक हम ऐसे 550 लोगों का पता लगाने में सफल रहे हैं जो कि
उनके सं पर्क में आए थे . यह आं कड़ा अभी बढ़ रहा है . हमने 250
लोगों के सैं पल टे स्टिं ग के लिए भे ज दिए हैं . इनके रिजल्ट् स का
इं तजार किया जा रहा है . हमने उनके गां व के आसपास के 15 गां वों
को सील कर दिया है ."

उन्होंने कहा कि बिशन सिं ह के सं पर्क में आए लोगों की सं ख्या बढ़


रही है , हालां कि यह बता पाना मु श्किल है कि उनके सं पर्क में आने
वालों की असली सं ख्या कितनी है .

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अधिकारी इस बात से परे शान हैं कि बिशन सिं ह हजारों लोगों को
सं क्रमित कर चु के होंगे .

एडिशनल डिप्टी कमिश्नर (एडीसी) आदित्य उप्पल इस डर की


वजह बताते हैं , "जिन दो लोगों के साथ बिशन सिं ह जर्मनी और
इटली गए थे , वे भी पॉजिटिव पाए गए हैं . वे भी उसी गां व के रहने
वाले हैं . बिशन सिं ह गां व प्रधान के साथ होला मोहल्ला गए थे ,
उन्हें भी पॉजिटिव पाया गया है ."

प्रशासन की चिं ता है कि बिशन सिं ह के साथ गए एक व्यक्ति गां व में


एक डे रे के मु खिया हैं . इसका मतलब है कि हजारों लोग उनके भी
सं पर्क में आए होंगे .

एडीसी उप्पल ने कहा, "हमने उनके गां व में सौ से ज्यादा लोगों का


टे स्ट किया है और उनके नतीजों का इं तजार किया जा रहा है ."

29/ 3/ 20

183 दे शों में 6 लाख से ज्यादा लोग कोविड-19 के मरीज

कोरोना वायरस के फैलने के बाद से पूरी दुनिया में इस महामारी के


अब तक छह लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं । शनिवार (28
46
मार्च) को एएफपी की तरफ से यह आं कड़ा जारी किया गया। विश्व
के 183 दे शों में अब तक सं क्रमण के छह लाख पांच हजार 10 मामले
सामने आए हैं , जबकि 27 हजार 982 लोगों की मौत हो चु की है ।

इस वै श्विक महामारी के केंद्र चीन में 81,934 लोगों की कोरोना


वायरस से सं क्रमित होने की पु ष्टि हुई है और करीब 3,295 लोगों
की इस वायरस के चपे ट में आने के बाद मौत हो चु की है । पिछले 24
घं टे के दौरान इस बीमारी का सबसे बु रा प्रकोप इटली से सामने
आया है । यहां मरने वालों की सं ख्या बढ़कर 9134 हो गई है , जबकि
अबतक 86,498 मरीज सं क्रमित हो चु के हैं ।

अमे रिका में कोरोना वायरस से सं क्रमित मामलों की सं ख्या बढ़कर


1,00,000 से अधिक हो गई है । अमे रिका सं क्रमितों के एक लाख के
आं कड़े को पार करने वाला पहला दे श है । यहां कोरोना वायरस से
अब तक 1711 लोगों की मौत हो चु की हैं , जबकि 104,837 लोग
इससे सं क्रमित हुए हैं ।

स्पे न में भी कोरोना वायरस का कहर बढ़ता जा रहा है और इससे


मरने वालों की सं ख्या बढ़कर 4858 हो गई है जो चीन से भी अधिक
है । ताजा आं कड़ों के मु ताबिक स्पे न में कोरोना वायरस से सं क्रमित
लोगों की सं ख्या बढ़कर 64059 हो गई है ।

खाड़ी दे श ईरान में भी कोरोना वायरस का कहर जारी है । ईरान में


इस वायरस की चपे ट में आकर मरने वालों की सं ख्या बढ़कर 2,378
हो चु की है जबकि 32,332 लोग इस वायरस से सं क्रमित हुए हैं ।

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दक्षिण कोरिया में मृ तकों की सं ख्या 139 पहुंच चु की है जबकि 9,478
लोग इससे सं क्रमित हुए हैं ।

नमक का प्रयोग कम करें

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को


बे हतर करना जरूरी है । अगर आप अपनी प्रतिरोधी क्षमता को
मजबूत करना चाहते हैं तो खाने में नमक का प्रयोग कम करें । उच्च
नमक वाला आहार सिर्फ रक्तचाप को ही नहीं बढ़ाता बल्कि रोग
प्रतिरोधी क्षमता को भी कमजोर करता है । यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल
बोन में किए गए एक हालिया शोध में ये खु लासा किया गया है ।

शोधकर्ताओं ने चूहों पर अध्ययन किया। उन्होंने दे खा कि जिन चूहों


को उच्च नमक वाला आहार दिया गया उनमें बै क्टीरियल और
वायरल इं फेक्शन ज्यादा हुआ। वहीं, शोध में शामिल किए गए जिन
इं सानी प्रतिभागियों ने हर दिन छह ग्राम अतिरिक्त नमक का
से वन किया उनकी भी रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर पाई गई। दिन
में दो बार फास्ट फू ड का से वन करने से इं सान छह ग्राम अतिरिक्त
नमक का से वन कर ले ते हैं । इस शोध को पत्रिका साइं स ट् रांसले शन
मे डिसिन में प्रकाशित किया गया।

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सोडियम क्लोराइड इं सानों की रोग प्रतिरोधी क्षमता पर
नकारात्मक प्रभाव डालता है । शोधकर्ताओं ने कुछ प्रतिभागियों
को हर दिन छह ग्राम अतिरिक्त नमक का से वन कराया। ये नमक
दो फास्ट फू ड में मौजूद थे जै से दो बर्गर और दो फ् रें च फ् राई के
पै केट। एक हफ्ते बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के खून के नमूने
लिए और उनमें मौजूद ग्रैनु लोसाइट की मात्रा को दे खा।
ग्रैनु लोसाइट प्रतिरोधी कोशिकाएं होती हैं जो रक्त में मौजूद
होती हैं ।

नमक की उच्च मात्रा के कारण ये कोशिकाएं बै क्टीरिया और


वायरस से लड़ने में कम प्रभावकारी साबित हो रही थीं। ज्यादा
नमक खाने से रक्त में ग्लूकोकोरटिसोइड का स्तर भी बढ़ गया। ये
पदार्थ प्रतिरोधी क्षमता पर हावी होकर उसे कमजोर कर दे ता है ।
नमक का ज्यादा से वन करने से प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो सकती
है ।

इतनी मात्रा में खाएं नमक-


शोध के अनु सार एक वयस्क को दिन में पांच ग्राम से ज्यादा नमक
का से वन नहीं करना चाहिए। ले किन, असलियत में लोग इससे कहीं
ज्यादा नमक का से वन हर दिन कर ले ते हैं । रोबर्ट कोच इं स्टीट्यूट के
एक शोध के अनु सार एक औसत आदमी दिनभर में 10 ग्राम नमक
का से वन करता है और महिला आठ ग्राम नमक का से वन करती हैं ।
ज्यादा नमक का से वन करने से रक्तचाप में बढ़ोतरी होती है और
इससे दिल के दौरे व मस्तिष्काघात का खतरा बढ़ता है ।

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डॉक्टरों का कहना है कि गं ध और स्वाद का अहसास न होना भी
कोरोना वायरस के सं क्रमण का एक लक्षण हो सकता है । डॉक्टरों ने
इस समस्या का सामना करने वाले लोगों को भी से ल्फ आइसोले ट
करने की सख्त जरूरत है ।

डॉक्टरों का मानना है कि सं क्रमण के सं भावित मरीजों की पहचान


के लिए यह भी एक सु राग हो सकता है । डॉक्टरों का कहना है कि
स्वाद और गं ध नहीं समझ पाने या अहसास खो दे ने वाले लोगों को
खु द को तत्काल प्रभाव से अलग-थलग कर ले ना चाहिए। उन्हें
जांच भी करवानी चाहिए भले ही उनमें पास कोई अन्य लक्षण न हों।

मरीजों ने बताए एनोस्मिया के अनु भव :

दक्षिण कोरिया में 30 प्रतिशत यानी 2,000 रोगियों ने ऐसे अनु भव


बताए हैं । ऐसे लोगों में वायरस के सं चरण की एक उच्च दर चीन,
इटली और ईरान में भी रिपोर्ट की गई है , जिसके परिणामस्वरूप वहां
कई मौतें हुई हैं । डॉक्टरों के अनु सार, एक मां जो कोरोना वायरस से
सं क्रमित थी उसे बच्चों के डायपर की गं ध नहीं आ रही थी। वहीं,
एक रसोइया जो आमतौर पर हर डिश में से मसाले को पहचान सकते
हैं , वह कढ़ी या लहसु न और भोजन का स्वाद नहीं महसूस कर पा रहा
था। कुछ का कहना है कि वे शैं पू की खु शबू या कू ड़े की दुर्गंध आदि
महसूस नहीं कर पा रहे थे । डॉक्टर इसको एनोस्मिया कहते हैं । अन्य
दे शों की रिपोर्टों में भी कोरोनो वायरस रोगियों की बड़ी सं ख्या ने
एनोस्मिया का अनु भव किया।

ब्रिटे न में शु रू हुआ विस्तृ त अध्ययन :

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ब्रिटिश राइनोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष प्रोफेसर क्ले यर
हॉपकिंस ने बताया कि शु क्रवार को, ब्रिटिश कान, नाक और गले के
डॉक्टरों ने दुनियाभर के सहयोगियों की रिपोर्टों का हवाला दे ते हुए
इस पर विस्तृ त अध्ययन शु रू कर दिया है । डॉक्टरों ने शु क्रवार को
उन वयस्कों को सात दिनों के आइसोले शन के लिए बु लाया, जो
अपनी इं द्रियों से गं ध और स्वाद को खो चु के हैं , भले ही उनमें
सं क्रमण के कोई अन्य लक्षण न हों। हालां कि, अभी इसकी
प्रमाणिक तौर पर पु ष्टि नहीं हुई हो ले किन डॉक्टर सं क्रमण के
फैलाव को ले कर चिं तित हैं । साथ ही प्रसार को धीमा करने के लिए
आइसोले शन कर क्वारं टाइन के लिए चे तावनी दे रहे हैं ।

अमे रिका में भी दे खे गए ऐसे लक्षण :

अमे रिकन एकेडमी ऑफ ओटोलर्यनोलोजी (ईएनटी विज्ञान) ने


रविवार को अपनी वे बसाइट पर जानकारी दी कि सं केत मिलता है कि
गं ध की कमी या स्वाद की कमी सं क्रमण से जु ड़े अहम लक्षण हैं और
यह उन रोगियों में दे खे गए हैं जिनमें कोरोना परीक्षण सकारात्मक
पाए गए हैं । उस दौरान उनमें अन्य लक्षण नहीं थे ।

इटली में इसी से बढ़े मामले :


इटली में वायरस से सबसे अधिक प्रभावित क्षे तर् ों में डॉक्टरों ने
निष्कर्ष निकाला है कि स्वाद और गं ध का अहसास खोना एक सं केत है
जो एक स्वस्थ व्यक्ति को वास्तव में वायरस के सं क्रमण की और ले
जा रहा है और इसे दस ू रों तक फैला सकता है । वहीं, ब्रसे शिया के
मु ख्य अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमु ख डॉक्टर मार्को
मे ट्रा ने कहा, अस्पताल में भर्ती होने वाले लगभग हर व्यक्ति की
यही कहानी है ।

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ब्रिटे न के सं क्रमित ईएनटी डॉक्टरों की हालात गं भीर :

प्रोफेसर हॉपकिंस ने कहा कि ब्रिटे न में दो कान, नाक और गले के


विशे षज्ञ जो कोरोनो वायरस से सं क्रमित पाए गए थे , वे गं भीर
स्थिति में हैं । हॉपकिंस ने कहा कि चीन के वु हान की एक रिपोर्ट में
चे तावनी दी थी कि कान, नाक और गले के विशे षज्ञ के साथ-साथ
ने तर् चिकित्सक भी सं क्रमित थे और बड़ी सं ख्या में मर रहे थे ।

स्वास्थ्य कर्मियों से सावधानी की अपील :

ईएनटी, यूके के अध्यक्ष निर्मल कुमार ने बताया कि ब्रिटे न में कान,


नाक और गले के डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह ने
एक सं युक्त बयान जारी कर ईएनटी स्वास्थ्य कर्मियों से व्यक्तिगत
सु रक्षा उपकरणों का उपयोग करने का आग्रह किया है । विशे ष तौर
पर जब वे किसी भी ऐसे मरीज का इलाज करते हैं , जो गं ध और स्वाद
के अहसास को खो चु के हैं ।

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